MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Additional Questions

MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Additional Questions

MP Board Class 9th Maths Chapter 4 अतिरिक्त परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Maths Chapter 4 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दर्शाइए कि बिन्दु A(1, 2), B(-1,-16) और C(0, – 7) रैखिक समीकरण y = 9x – 7 के आलेख पर स्थित है। (2019)
हल:
बिन्दु A(1, 2) के निर्देशांकों का मान समीकरण में रखने पर,
∴ 9x – 7 = 9 x 1 – 7 = 9 – 7 = 2 = y.
⇒ दायाँ पक्ष = बायाँ पक्ष
बिन्दु B(-1, – 16) के निर्देशांकों का मान समीकरण में रखने पर,
∴ 9x – 7 = 9x (-1) – 7 = – 9 – 7 = – 16 = y
⇒ दायाँ पक्ष = बायाँ पक्ष
बिन्दु C(0, – 7) के निर्देशांकों का मान समीकरण में रखने पर,
∴ 9x – 7 = 9 (0) – 7 = 0 – 7 = – 7 =y
⇒ दायाँ पक्ष = बायाँ पक्ष अतः दिए हुए बिन्दु A, B एवं C समीकरण y = 9x – 7 के आलेख पर स्थित हैं।

प्रश्न 2.
रैखिक समीकरण 3x + 4y = 6 का आलेख खींचिए। यह आलेख X-अक्ष और Y-अक्ष को किन बिन्दुओं पर काटता हैं? (2019)
हल:
समीकरण 3x + 4y = 6 (दिया है)
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.4 4
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.4 4a
अतः संलग्न चित्र 4.18 अभीष्ट आलेख है तथा यह आलेख -अक्ष को बिन्दु (2, 0) पर एवं Y-अक्ष को बिन्दु (0, 1\(\frac { 1 }{ 2 }\)) पर काटता है।
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प्रश्न 3.
वह रैखिक समीकरण जो फॉरेनहाइट (F) को सेल्सियस (C) में बदलती है, सम्बन्ध c = \(\frac { 5F – 160 }{ 9 }\) से दी जाती है।
(i) यदि तापमान 86°F है, तो सेल्सियस में तापमान क्या है ?
(ii) यदि तापमान 35°C है, तो फॉरेनहाइट में तापमान क्या है ?
(iii) यदि तापमान 0°C है तो फॉरेनहाइट में तापमान क्या है तथा यदि तापमान 0°F है, तो सेल्सियस में तापमान क्या है ?
(iv) तापमान का वह कौन-सा संख्यात्मक मान है जो दोनों पैमानों (मात्रको) में एक ही है ?
हल:
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.4 5

MP Board Class 9th Maths Chapter 4 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उस सरल रेखा से निरूपित समीकरण का आलेख खींचिए जो X-अक्ष के समानान्तर है और उसके नीचे 3 मात्रक की दूरी पर है।
उत्तर:
अभीष्ट चित्र संलग्न है।
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.4 6

प्रश्न 2.
उस रैखिक समीकरण का आलेख खींचिए जिसके हल उन बिन्दुओं से निरूपित हैं जिनके निर्देशांकों का योग 10 इकाई है।
हल:
प्रश्नानुसार, अभीष्ट समीकरण होगा : x + y = 10
यदि x = 0 तो 0 + y = 10 ⇒ y = 10
यदि x = 5 तो 5 + y = 10 ⇒ y = 10 – 5 = 5
यदि x = 10 तो 10 + y = 10 ⇒ y = 10 – 10 = 0
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.4 7
अतः उपर्युक्त चित्र अभीष्ट आलेख है।

प्रश्न 3.
समीकरण y = 2x + 1 का आलेख खींचिए। (2019)
हल:
निर्देशः उपर्युक्त प्रश्न के समीकरण की तरह हल कीजिए।

प्रश्न 4.
रैखिक समीकरण x + 2y = 8 का वह हल ज्ञात कीजिए जो निम्नलिखित पर एक बिन्दु निरूपित करता है:
(i) X-अक्ष
(ii) Y-अक्ष।
हल:
(i) चूँकि X-अक्ष पर बिन्दु की कोटि y = 0. इसलिए x + 2 x 0 = 8 ⇒ x + 0 = 8
⇒ x = 8
अतः समीकरण का अभीष्ट हल : x = 8, y = 0.

(ii) चूँकि Y-अक्ष पर बिन्दु की भुंज x = 0. इसलिए
0 + 2y = 8 ⇒ 2y = 8 ⇒ y = 8/2 = 4
अतः समीकरण का अभीष्ट हल : x = 0, y = 4.

प्रश्न 5.
मान लीजिए.y, x के अनुक्रमानुपाती है। यदि x = 4 होने पर y = 12 हो, तो एक रैखिक समीकरण लिखिए। जब x = 6, तोy का क्या मान है ?
हल:
चूँकि y α x
⇒ y = Cx
जब x = 4 होने पर y = 12 हो, तो
12 = C x 4
⇒ C = 12/4 = 3 C का मान समीकरण y = Cx में रखने पर,
y = 3x अतः अभीष्ट समीकरण : y = 3x.
अब x = 6 का मान समीकरण y = 3x में रखने पर,
y = 3 x 6 = 18
अतः एका अभीष्ट मान = 18.
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MP Board Class 9th Maths Chapter 4 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य लिखिए। अपने उत्तरों का औचित्य दीजिए।
(i) बिन्दु (0, 3) रैखिक समीकरण 3x + 4y = 12 के आलेख पर स्थित है।
(ii) रैखिक समीकरण x + 2y = 7 के आलेख बिन्दु (0, 7) से होकर जाता है।
(iii) सारणी :
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.4 8
से प्राप्त बिन्दुओं के निर्देशांक समीकरण x – y + 2 = 0 के कुछ हलों को निरूपित करते हैं।
(iv)दो चरों वाली रैखिक समीकरण के आलेख का प्रत्येक बिन्दु उस समीकरण का एक हल निरूपित नहीं करता है।
(v) दो चरों वाली रैखिक समीकरण के आलेख का एक सरल रेखा में होना आवश्यक नहीं है।
उत्तर:
(i) कथन सत्य है, क्योंकि बिन्दु के निर्देशांक समीकरण को सन्तुष्ट करते हैं।
(ii) कथन असत्य है, क्योंकि बिन्दु के निर्देशांक समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करते हैं।
(iii) कथन सत्य है, क्योंकि बिन्दु (3, -5) के निर्देशांक समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करते हैं।
(iv) कथन असत्य है, क्योंकि दो चरों वाली रैखिक समीकरण का प्रत्येक बिन्दु उस समीकरण का एक हल निरूपित करता है।
(v) कथन असत्य है, क्योंकि दो चरों वाली रैखिक समीकरण का आलेख सदैव एक सरल रेखा होती है।

प्रश्न 2.
वह रैखिक समीकरण लिखिए जिसकी कोटि उसके भुज से तीन गुनी है। (2019)
उत्तर:
y = 3x.

MP Board Class 9th Maths Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रैखिक समीकरण 2x – 5y = 7 :
(a) का एक अद्वितीय हल है
(b) के दो हल हैं
(c) के अपरिमित रूप से अनेक हल हैं
(d) का कोई हल नहीं है।
उत्तर:
(c) के अपरिमित रूप से अनेक हल हैं

प्रश्न 2.
यदि (2,0) रैखिक समीकरण 2x + 3y = k का हल है, तो k का मान है :
(a) 4
(b) 6
(c) 5
(d) 2.
उत्तर:
(a) 4

प्रश्न 3.
रैखिक समीकरण 2x + 3y = 6 का आलेख -अक्ष को निम्नलिखित में से किस बिन्दु पर काटता
(a) (2, 0)
(b) (0, 3)
(c) (3, 0)
(d) (0, 2).
उत्तर:
(d) (0, 2).

प्रश्न 4.
X-अक्ष पर स्थित किसी बिन्दु का रूप होता है :
(a) (x, y)
(b) (0, y)
(c) (x, 0)
d) (x, 4).
उत्तर:
(c) (x, 0)
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प्रश्न 5.
रेखा y = x पर स्थित किसी बिन्दु का रूप होता है :
(a) (a, a)
(b) (0, a)
(c) (a, 0)
(d) (a, – a).
उत्तर:
(a) (a, a)

प्रश्न 6.
X-अक्ष की समीकरण का रूप है :
(a) x = 0
(b) y = 0
(c) x + y = 0
(d) x = y
उत्तर:
(b) y = 0

प्रश्न 7.
दो चरों वाला रैखिक समीकरण है : (2019)
(a) ax2 + bx + c = 0
(b) ax + b = 0
(c) ax3 + bx2 + c = 0
(d) ax + by + c = 0.
उत्तर:
(d) ax + by + c = 0.

प्रश्न 8.
x = 5, y = 2 निम्नलिखित रैखिक समीकरण का हल है:
(a) x + 2y = 7
(b) 5x + 2y = 7
(c) x + y = 7
(d) 5x + y = 7.
उत्तर:
(c) x + y = 7

प्रश्न 9.
रैखिक समीकरण 2x + 3y = 6 का आलेख एक रेखा है जो X-अक्ष को निम्नलिखित बिन्दु पर मिलती है:
(a) (0, 2)
(b) (2, 0)
(c) (3, 0)
(d) (0, 3).
उत्तर:
(c) (3, 0)
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प्रश्न 10.
(a, a) रूप का बिन्दु सदैव स्थित होता है :
(a) X-अक्ष पर
(b) Y-अक्ष पर
(c) रेखा y = x पर
(d) रेखा x + y = 0 पर।
उत्तर:
(c) रेखा y = x पर

प्रश्न 11.
(a,-a) रूप का बिन्दु सदैव रेखा पर स्थित होता है :
(a) x = a
(b) y = -a.
(c)y = x
(d) x + y = 0.
उत्तर:
(d) x + y = 0.

प्रश्न 12.
दो संख्याओं का योग 25 व अन्तर 5 है, तो वे संख्याएँ होंगी : (2018)
(a) 15, 10
(b) 20, 5
(c) 13, 12
(d) 30, 5
उत्तर:
(a) 15, 10

रिक्त स्थानों की पूर्ति
1. एक ऐसा समीकरण जिसका आलेख एक सरल रेखा होता है, …… समीकरण कहलाता है।
2. रैखिक समीकरण ax + by + c = 0 का आलेख एक ……..रेखा है।
3. x और y का मान युग्म (x, y) जो दिए हुए समीकरण ax + by + c = 0 को सन्तुष्ट करता है, उक्त समीकरण का ………. कहलाता है।
4. जब किसी समीकरण निकाय का कोई भी हल नहीं होता, तब निकाय ……….. निकाय कहलाता है।
5. जब किसी समीकरण निकाय का कोई हल होता है, तब निकाय …………. निकाय कहलाता है।
6. दो चरों वाले एक घात समीकरण का ग्राफ ………… को प्रदर्शित करता है। (2018)
7. यदि एक समीकरण x + 2y = 5 में x = 1 है, तब y का मान ……….. है। (2019)
उत्तर:
1. रैखिक,
2. सरल,
3. हल,
4. असंगत,
5. संगत,
6. सरल रेखा,
7. 2 (दो)।

जोड़ी मिलान
स्तम्भ ‘A’                                      स्तम्भ ‘B’
1. रेखाएँ सम्पाती हों                  (a) y का मान शून्य
2. रेखाएँ प्रतिच्छेदी हों               (b) x का मान शून्य
3. रेखाएँ समानान्तर हों             (c) अनन्ततः अनेक हल
4. रेखा X-अक्ष को काटे            (d) अद्वितीय हल
5. रेखा Y-अक्ष को काटे             (e) कोई हल नहीं
उत्तर:
1. → (c),
2. → (d),
3. → e),
4. → (a),
5. → (b)
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सत्य/असत्य कथन
1. समीकरण x + 2y = 5 में यदि x = 1 तो y = 2 होगा।
2. रैखिक समीकरण का आलेख एक वृत्त होता है।
3. दो चरों वाले एकघातीय समीकरण रैखिक समीकरण कहलाते हैं।
4. X-अक्ष का समीकरण x = 0 होता है। (2019)
5. Y-अक्ष, के समानान्तर रेखा का समीकरण x = + a होता है।
6. समीकरण x +2y = 3 का एक हल (1, 1) है। (2019)
7. बिन्दु (0, 5) समीकरण y = 5x + 5 का हल है। (2019)
8. मूल-बिन्दु से गुजरने वाली रेखा का आलेख y = kx रूप द्वारा प्रदर्शित होता है। (2019)
9. रैखिक समीकरण 2x -3y = 0 में चर 2 एवं – 3 है। (2019)
उत्तर:
1. सत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. असत्य,
5. सत्य,
6. सत्य,
7. सत्य,
8. सत्य,
9. असत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. जब किसी समीकरण निकाय के अनन्ततः अनेक हल हों तो उसका आलेख कैसा होगा?
2. जब किसी समीकरण निकाय का अद्वितीय हल हो, तो उसका आलेख कैसा होगा?
3. जब किसी समीकरण निकाय का कोई हल न हो, तो उसका आलेख कैसा होगा?
4. यदि \(\frac { { a }_{ 1 } }{ { a }_{ 2 } } \neq \frac { { b }_{ 1 } }{ { b }_{ 2 } }\), तो निकाय का हल क्या होगा?
5. यदि \(\frac { { a }_{ 1 } }{ { a }_{ 2 } } =\frac { { b }_{ 1 } }{ { b }_{ 2 } }\neq \frac { { c }_{ 1 } }{ { c }_{ 2 } }\) तो निकाय का हल क्या होगा?
6. यदि \(\frac { { a }_{ 1 } }{ { a }_{ 2 } } =\frac { { b }_{ 1 } }{ { b }_{ 2 } }= \frac { { c }_{ 1 } }{ { c }_{ 2 } }\), तो निकाय का हल क्या होगा?
7. रैखिक समीकरण में चर राशि की उच्चतम घात होती है। (2018)
8. दो.चरों वाला एक रैखिक समीकरण लिखिए। (2019)
9. यदि x = 2, y = 1 समीकरण 2x + 3y =k का हल है, तब k का मान क्या होगा? (2019)
उत्तर:
1. सम्पाती रेखाएँ,
2. प्रतिच्छेदी रेखाएँ,
3. समानान्तर रेखाएँ,
4. अद्वितीय हल,
5. कोई हल नहीं,
6. अनन्ततः अनेक हल,
7. एक,
8. ax + by + c = 0,
9. 7 (सात)।

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 14 नागरिकों के संवैधानिक अधिकार एवं कर्त्तव्य

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 14 नागरिकों के संवैधानिक अधिकार एवं कर्त्तव्य

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
44वें संशोधन के द्वारा किस मौलिक अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हटा दिया गया है?
(i) सम्पत्ति का अधिकार
(ii) स्वतन्त्रता का अधिकार
(iii) समानता का अधिकार,
(iv) संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार।
उत्तर:
(i) सम्पत्ति का अधिकार

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प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सा कार्य बाल श्रम की श्रेणी में आता है?
(i) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से होटलों में, निर्माण कार्य में या खदानों में कार्य कराना
(ii) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का घूमना और शिक्षा प्राप्त करना
(iii) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के खेल के कार्य
(iv) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का शारीरिक व्यायाम करना।
उत्तर:
(i) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से होटलों में, निर्माण कार्य में या खदानों में कार्य कराना

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-सा अधिकार स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार से सम्बन्धित नहीं है?
(i) भाषण की स्वतन्त्रता
(ii) उपाधियों का अन्त
(iii) निवास की स्वतन्त्रता
(iv) भ्रमण की स्वतन्त्रता।
उत्तर:
(ii) उपाधियों का अन्त

प्रश्न 4.
किस लेख द्वारा उच्चतम या उच्च न्यायालय किसी भी अभिलेख को अपने अधीनस्थ न्यायालय से अपने पास मँगा सकता है?
(i) बन्दी प्रत्यक्षीकरण
(ii) उत्प्रेषण
(iii) अधिकार पृच्छा
(iv) परमादेश।
उत्तर:
(ii) उत्प्रेषण

प्रश्न 5.
6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार किस मौलिक अधिकार के अन्तर्गत आता है?
(i) समानता का अधिकर
(ii) संस्कृति व शिक्षा का अधिकार
(iii) स्वतन्त्रता का अधिकार
(iv) संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
उत्तर:
(ii) संस्कृति व शिक्षा का अधिकार

प्रश्न 6.
मौलिक अधिकारों का संरक्षण निम्नलिखित में से कौन करता है? (2009)
(i) संसद
(ii) विधान सभाएँ
(iii) सर्वोच्च न्यायालय
(iv) भारत सरकार।
उत्तर:
(iii) सर्वोच्च न्यायालय

प्रश्न 7.
सूचना समय पर न मिलने पर सबसे पहले अपील की जाती है
(i) विभाग प्रमुख
(ii) लोक सूचना अधिकारी
(iii) सूचना आयोग
(iv) मुख्यमंत्री।
उत्तर:
(iii) सूचना आयोग

प्रश्न 8.
राज्य के नीति निदेशक तत्व निम्न में से क्या हैं?
(i) कानून द्वारा बन्धनकारी है
(ii) न्याय योग्य हैं
(iii) राज्य के लिए रचनात्मक निर्देश है
(iv) न्यायपालिका के आदेश हैं।
उत्तर:
(iii) राज्य के लिए रचनात्मक निर्देश है

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. मौलिक अधिकारों के पीछे …………. की शक्ति होती है।
  2. सूचना का अधिकार बढ़ते ………… को रोकने का सशक्त अस्त्र है। (2017)
  3. संविधान के अनुच्छेद …….. के द्वारा प्रत्येक नागरिक को विधि के समक्ष समानता और संरक्षण प्राप्त है।
  4. संविधान में अस्पृश्यता …………. अपराध है।
  5. संविधान के 44वें संविधान द्वारा …………. के मौलिक अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया मया है।

उत्तर:

  1. कानून
  2. भ्रष्टाचार
  3. 14
  4. दण्डनीय
  5. सम्पत्ति के अधिकार।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कानून के समक्ष समानता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता और संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। संविधान की दृष्टि में कानून सर्वोपरि है। कानून से ऊपर कोई व्यक्ति नहीं है। एक-सा अपराध करने वाले समान दण्ड के भागीदार होंगे।

प्रश्न 2.
मौलिक अधिकार के प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
हमें संविधान द्वारा 6 मौलिक अधिकार प्राप्त हैं –

  1. समानता का अधिकार
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार
  5. संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों के अधिकार।

प्रश्न 3.
संवैधानिक में अस्पृश्यता का अन्त करने के लिए क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा नागरिकों में सामाजिक समानता लाने के लिए अस्पृश्यता के आचरण का निषेध किया गया है। नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 द्वारा राज्य अथवा नागरिकों द्वारा अस्पृश्यता का व्यवहार अपराध माना जाएगा, जिसके लिए दण्ड की व्यवस्था की गयी है।

प्रश्न 4.
सूचना का अधिकार किसे प्राप्त है?
उत्तर:
देश के प्रत्येक नागरिक को सूचना का अधिकार प्राप्त है।

प्रश्न 5.
सूचना के अधिकार किन सिद्धान्तों पर आधारित हैं?
उत्तर:
यह प्रमुख रूप से तीन सिद्धान्तों पर आधारित हैं-

  1. जवाबदेही का सिद्धान्त.
  2. सहभागिता का सिद्धान्त तथा
  3. पारदर्शिता का सिद्धान्त।

प्रश्न 6.
नीति निदेशक तत्व किसके लिए निर्देश हैं?
उत्तर:
नीति निदेशक तत्व संविधान निर्माताओं द्वारा केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों की नीतियों के निर्धारण के लिए दिये गये दिशा निर्देश हैं।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य के नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए। (2008, 09, 10, 18)
उत्तर:
नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों में अन्तर-नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों में महत्त्वपूर्ण अन्तर निम्नलिखित हैं –

  1. मूल अधिकारों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त है। इसके विपरीत राज्य के नीति-निदेशक तत्वों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त नहीं है।
  2. “मौलिक अधिकार राज्य के लिए कुछ निषेध आज्ञाएँ हैं। इनके द्वारा राज्य को यह आदेश दिया जाता है कि राज्य को क्या नहीं करना चाहिए? इसके विपरीत नीति के निदेशक सिद्धान्तों के द्वारा राज्य को ये निर्देश दिये जाते हैं कि उसे क्या करना चाहिए।”
  3. मौलिक अधिकार नागरिकों की वैधानिक माँग है, किन्तु नीति निदेशक सिद्धान्त नागरिकों की वैधानिक माँग नहीं है।
  4.  नीति-निदेशक सिद्धान्त एक प्रकार के आश्वासन है, जिनका पालन करने में सरकार किसी भी स्थिति में असमर्थ हो सकती है। इसके विपरीत मौलिक अधिकारों की उपेक्षा कोई भी सरकार नहीं कर सकती।
  5. मौलिक अधिकारों को कुछ परिस्थितियों में मर्यादित, सीमित, निलम्बित या स्थगित किया जा सकता है, परन्तु नीति-निदेशक तत्वों के साथ ऐसी बात नहीं है।
  6. 1976 तक नीति-निदेशक तत्वों की स्थिति मूल अधिकारों से गौण थी, लेकिन 42वें संविधान के संशोधन द्वारा यह स्थिति बदल गयी है। अब नीति-निदेशक तत्वों को मूल अधिकारों से उच्च स्थान प्राप्त है। इस संशोधन में यह व्यवस्था है कि यदि संसद के किसी कानून से नीति-निदेशक तत्व का पालन होता है, लेकिन उससे मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है तो कानून को न्यायालय अवैध घोषित नहीं कर सकता है।
  7. मौलिक अधिकारों का विषय व्यक्ति (Individual) है, जबकि नीति-निदेशक तत्वों का विषय राज्य (State) है।

प्रश्न 2.
मौलिक अधिकारों को न्यायिक संरक्षण किस प्रकार प्राप्त है? समझाइए।
अथवा
संवैधानिक उपचारों के अधिकार से आपका क्या तात्पर्य है? (2010)
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार-संविधान द्वारा नागरिकों को जो मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं, उनकी सुरक्षा की व्यवस्था की गई है। यदि केन्द्र सरकार, राज्य सरकार या किसी अन्य द्वारा नागरिकों के उपर्युक्त मूल अधिकारों में बाधा पहुँचाई जाती है तो नागरिक उच्च या उच्चतम न्यायालय से अपने अधिकारों की सुरक्षा की माँग कर सकते हैं। मूल अधिकारों की रक्षा के लिए ये न्यायालय निम्न प्रकार के आदेश जारी करते हैं –

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण आदेश
  2. परमादेश
  3. प्रतिशोध लेख
  4. उत्प्रेषण लेख
  5. अधिकार पृच्छा।

आपातकाल में नागरिकों के कुछ अधिकारों तथा संवैधानिक उपचारों के अधिकार को निलम्बित किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
“मौलिक अधिकार और मौलिक कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” उक्त कथन को समझाइए।
उत्तर:
मौलिक अधिकार और मौलिक कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम अधिकारों की प्राप्ति कर्तव्यों की पूर्ति के बिना नहीं कर सकते हैं। यदि नागरिक अपने मौलिक कर्त्तव्यों को पूरा करेंगे तो उन्हें अपने मौलिक अधिकारों की प्राप्ति सरलता से हो जाएगी। अगर देश के नागरिक मौलिक कर्त्तव्यों का पालन नहीं करते हैं तो देश में अव्यवस्था होगी और अशान्ति का वातावरण उत्पन्न होगा। मौलिक कर्त्तव्यों की पूर्ति स्वस्थ सामाजिक वातावरण का निर्माण करती है। हमारे देश के संविधान में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्यों के मध्य कोई कानूनी सम्बन्ध निश्चित नहीं किया गया है। इनकी अवहेलना करने पर किसी भी प्रकार के दण्ड की व्यवस्था नहीं की गयी है। परन्तु हमारा राष्ट्र के प्रति यह दायित्व बनता है कि हम उचित प्रकार से इन कर्त्तव्यों का पालन करें। मौलिक कर्त्तव्य देश की सांस्कृतिक विरासत, राष्ट्रीय सम्पत्ति, व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रगति, देश की सुरक्षा व्यवस्था आदि को सुदृढ़ बनाने, पर्यावरण संरक्षित रखने, राष्ट्रीय आदर्शों का आदर करने की प्रेरणाएँ हैं।

प्रश्न 4.
किस प्रकार की सूचना देने के लिए सरकार बाध्य नहीं है? कोई चार छूट बताइए।
उत्तर:
कुछ सूचनाएँ या जानिकारियाँ ऐसी भी होती हैं, जो आम जनता तक नहीं पहुँचाई जा सकती हैं। उनके स्पष्ट किये जाने से देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा और आर्थिक तथा वैज्ञानिक हित को हानि पहुँचती है। अतः कुछ सूचनाओं को न देने की छूट दी गई है। निम्नलिखित सूचना देने के लिए सरकार बाध्य नहीं है –

  1. जिस सूचना में भारत की संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित और विदेश से सम्बन्ध की अवमानना होती हो।
  2. जिसको प्रकट करने के लिए किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकरण द्वारा मना किया गया है, जिससे न्यायालय की अवमानना होती हो।
  3. सूचना, जिसके प्रकट करने से किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को भय हो।
  4. मन्त्रिमंडल के कागज-पत्र इसमें सम्मिलित हैं-मंत्रिपरिषद् सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के अभिलेख।

प्रश्न 5.
अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देने हेतु नीति निदेशक तत्वों में क्या निर्देश हैं? लिखिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करके सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करना, नीति निदेशक तत्वों का प्रमुख कार्य है। नीति निदेशक तत्व भारत में सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति को साकार करने का सपना है। अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देने के लिए नीति निदेशक तत्वों में निम्नलिखित निर्देश दिये गये हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा बनाये रखने का प्रयास करना।
  2. राज्यों के मध्य न्याय संगत एवं सम्मानपूर्वक सम्बन्धों की स्थापना करने का प्रयास करना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं संधियों का आदर करना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को मध्यस्थता द्वारा शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने का प्रयास करना।

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प्रश्न 6.
स्वतन्त्रता के अधिकार से हमें कौन-कौन सी स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हुई हैं? (2009)
अथवा
स्वतन्त्रता के अधिकारों के अन्तर्गत नागरिकों को कौन-सी स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं? (2012, 15, 17)
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-10 द्वारा नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है। इससे उन्हें विचारों की अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। यह उसके शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इनके अभाव में व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता है। स्वतन्त्रता के अधिकार में हमें निम्नलिखित स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं –

  1. भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता।
  2. अस्त्र-शस्त्र के बिना शान्तिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने की स्वतन्त्रता।
  3. समुदाय या संघ बनाने की स्वतन्त्रता।
  4. पूरे भारत में कहीं भी भ्रमण करने की स्वतन्त्रता।
  5. भारत के किसी भी कोने में निवास करने की स्वतन्त्रता।
  6. अपनी इच्छा के अनुकूल रोजगार या व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकारों से आशय व उसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। (2008, 09, 14, 16)
उत्तर:
मौलिक अधिकार का अर्थ-मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं, जिन्हें देश के सर्वोच्च कानून में स्थान दिया गया है तथा जिनकी पवित्रता तथा उलंघनीयता को विधायिका तथा कार्यपालिका स्वीकार करते हैं, अर्थात् जिसका उल्लंघन कार्यपालिका तथा विधायिका भी नहीं कर सकती। यदि वे कोई ऐसा कार्य करें, जिनसे संविधान का उल्लंघन होता है तो न्यायपालिका उनके ऐसे कार्यों को असंवैधानिक घोषित कर सकती है। –

मौलिक अधिकारों का महत्त्व
(1) व्यक्ति के विकास में सहायक :
मौलिक अधिकार उन परिस्थितियों को उपलब्ध कराते हैं, जिनके आधार पर व्यक्ति अपनी मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों में उन्नति कर सकता है। मूल अधिकार व्यक्ति को उन क्षेत्रों में सुरक्षा और स्वतन्त्रता भी प्रदान करते हैं। इस प्रकार मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हैं। :

(2) प्रजातन्त्र की सफलता के आधार :
हमारे देश में प्रजातन्त्रीय शासन-प्रणाली को अपनाया गया है। ‘स्वतन्त्रता’ और ‘समानता’ प्रजातन्त्र के मूल आधार हैं। बिना इसके प्रजातन्त्र की सफलता की आशा नहीं की जा सकती। भारतीय संविधान में ‘स्वतन्त्रता’ और ‘समानता’ दोनों को अधिकार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक नागरिक को शासन की आलोचना करने का अधिकार है। निर्वाचन में खड़े होने, प्रचार करने, मत देने आदि के सभी को समान अधिकार हैं। इस प्रकार मूल अधिकार सफल लोकतन्त्र के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं।

(3) एक दल की तानाशाही पर रोक :
प्रजातन्त्र में ‘बहुमत की तानाशाही’ का सदैव भय बना रहता है। अतः मूल अधिकार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करते हैं। इस प्रकार मौलिक अधिकार किसी एक दल की तानाशाही पर अंकुश लगाने में सहायक हैं।

(4) न्यायप्रालिका की सर्वोच्चता :
मौलिक अधिकारों को न्यायपालिका का संरक्षण प्राप्त है इसलिए कार्यपालिका और व्यवस्थापिका नागरिकों के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।

(5) देश की सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप :
मौलिक अधिकार हमारे देश की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि परिस्थितियों के अनुरूप हैं। इसलिए जीविकोपार्जन का अधिकार, शिक्षा पाने का अधिकार आदि उनमें सम्मिलित किये गये हैं।

(6) अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के उत्थान में सहायक :
मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग के हितों की रक्षा करते हैं।

(7) व्यक्ति और राज्य के मध्य सामंजस्य :
श्री एम. बी. पायली के अनुसार, “मूल अधिकार एक ही समय पर शासकीय शक्ति से व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं एवं शासकीय शक्ति द्वारा व्यक्ति स्वातन्त्र्य को सीमित करते हैं। इस प्रकार मौलिक अधिकार व्यक्ति और राज्य के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के अधिकारों के अन्तर्गत नागरिकों को कौन-सी स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं? (2009, 13)
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-10 द्वारा नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है। इस अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्नलिखित स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं –
(1) विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता :
भारत में प्रत्येक नागरिक को अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने तथा भाषण देने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। परन्तु साथ ही इस अधिकार पर कुछ प्रतिबन्ध भी लगाये गये हैं, ताकि कोई नागरिक उनका दुरुपयोग न कर सके।

(2) अस्त्र-शस्त्र रहित शान्तिपूर्ण ढंग से सभा तथा सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता :
प्रत्येक भारतीय नागरिक को बिना अस्त्र-शस्त्र के शान्तिपूर्ण ढंग से सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता है। परन्तु देश की एकता और उसकी प्रभुता के हित में राज्य इन पर प्रतिबन्ध भी लगा सकता है।

(3) समुदाय और संघ निर्माण की स्वतन्त्रता :
भारतीय नागरिकों को अपनी सांस्कृतिक व बौद्धिक . आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्थाएँ तथा संघ निर्माण करने का अधिकार है।

(4) भ्रमण की स्वतन्त्रता :
भारत के सभी नागरिक बिना किसी प्रतिबन्ध या अधिकार-पत्र के भारत की सीमाओं के अन्दर कहीं भी भ्रमण कर सकते हैं।

(5) व्यवसाय की स्वतन्त्रता :
संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार व्यवसाय चुनने तथा उसे करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। परन्तु वृत्ति, उपजीविका व्यापार करने की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। कारण यह है कि राज्य को स्वयं या किसी निगम के द्वारा किसी व्यापार, उद्योग या सेवा का स्वामित्व ग्रहण करने का पूरा अधिकार है। इन उद्योगों से सरकार जनता को पृथक् रख सकती है। इसके अतिरिक्त किसी व्यवसाय को ग्रहण करने के लिए व्यावसायिक योग्यता की भी शर्त लगा सकती है, जैसे-वकालत पेशा ग्रहण करने के लिए एल. एल. बी. की परीक्षा एवं प्रशिक्षण होना अनिवार्य है।

(6) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता :
बिना कारण बताये गिरफ्तारी एवं नजरबन्दी के विरुद्ध व्यवस्था के अन्तर्गत यदि किसी भी व्यक्ति को बन्दी बनाया जाता है तो उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना चौबीस घण्टे से अधिक समय तक बन्दी बनाकर नहीं रखा जा सकता है। साथ ही अभियुक्त को वकील आदि से परामर्श करने एवं पैरवी आदि कराने की भी पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त है। जिन लोगों को नजरबन्द किया जाता है उन्हें भी साधारण अवस्था में तीन महीने से अधिक समय के लिए नजरबन्द नहीं किया जा सकता है। परन्तु ‘नजरबन्दी परामर्शदात्री समिति’ जब अधिक समय के लिए नजरबन्दी की सलाह देती है तो यह अवधि बढ़ाई जा सकती है। फिर भी संसद को अधिकार रहता है कि वह निर्णय ले कि किसी व्यक्ति को अधिक से अधिक कितने समय तक नजरबन्द रखा जा सकता है।

(7) आवास की स्वतन्त्रता :
भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी भी स्थान पर स्थायी तथा अस्थायी निवास करने की स्वतन्त्रता है। पश्चिमी बंगाल का निवासी उत्तर प्रदेश में निवास कर सकता है और उत्तर प्रदेश का निवासी पश्चिमी बंगाल में। स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकारों पर कुछ प्रतिबन्ध भी लगाये गये हैं। नागरिक जनता को भड़काने वाले भाषण नहीं दे सकते। इसी प्रकार अनैतिक तथा अपराधी समुदायों के गठन की स्वतन्त्रता नहीं है। साम्प्रदायिकता फैलाने वाले समुदाय भी नहीं बनाये जा सकते। “आन्तरिक सुरक्षा अधिनियम” (MISA) द्वारा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर भी अंकुश लगाया जा सकता है। परन्तु यह प्रतिबन्ध विशेष परिस्थितियों में ही लगाया जाता है; सामान्य परिस्थितियों में नहीं।

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प्रश्न 3.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अन्तर्गत कौन से प्रमुख लेख (रिट् न्यायालय जारी करते हैं?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-32 से 35 तक मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए संविधान में प्रबन्ध किये गये हैं। इन अधिकारों के अन्तर्गत न्यायालय निम्नलिखित पाँच प्रकार के लेख (रिट) जारी करते हैं

(1) बन्दी प्रत्यक्षीकरण आदेश :
यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आदेश है। इस आदेश द्वारा बन्दी व्यक्तियों को तुरन्त ही न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत करने तथा बन्दी बनाये जाने के कारण बताने का आदेश दिया जाता है। न्यायालय के विचार में यदि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बन्दी बनाया गया है, तो वह उसे मुक्त करने का आदेश देता है।

(2) परमादेश :
इस आदेश को उस समय जारी किया जाता है जब किसी संस्था या पदाधिकारी अपने कर्तव्यों का उचित ढंग से पालन नहीं करते जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन होता है। न्यायालय इस आदेश द्वारा संस्था या पदाधिकारी को अपने कर्तव्य पालन का आदेश दे सकता है।

(3) प्रतिषेध :
इसके द्वारा उच्च या सर्वोच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों को किसी कार्य को न करने का आदेश दे सकता है। जो विषय किसी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर के होते हैं, उनकी सुनवाई उस न्यायालय में न हो, उस उद्देश्य से ये लेख जारी किये जाते हैं।

(4) उत्प्रेषण :
इसके द्वारा कोई न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय को आदेश देकर सभी प्रकार के अभिलेख (रिकॉर्ड) अपने पास मँगवा सकता है।

(5) अधिकार पृच्छा :
जब किसी व्यक्ति को कानून की दृष्टि से कोई कार्य करने का अधिकार नहीं है और वह व्यक्ति उस कार्य को करता है, तब यह लेख जारी किया जाता है। उदाहरणार्थ-यदि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त किया जाता है, जिसके लिए वह कानून की दृष्टि में योग्य नहीं है, तो न्यायालय उस लेख द्वारा उसकी नियुक्ति पर तब तक के लिये रोक लगा सकता है जब तक कि उसका निर्णय न हो जाए। ये सभी लेख मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध जारी किये जाते हैं।

प्रश्न 4.
सूचना के अधिकार के कोई दो सैद्धान्तिक आधारों का वर्णन कीजिए, साथ ही लिखिए कि यदि सूचना समय पर न मिले तो क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सूचना के अधिकार का सैद्धान्तिक आधार यह अधिकार एक महत्त्वपूर्ण अधिकार है, क्योंकि यह प्रमुख रूप से तीन सिद्धान्तों पर आधारित है।
(1) जवाबदेही का सिद्धान्त :
हमारे शासन का स्वरूप लोकतान्त्रिक है। इससे सरकारें लोकहित के लिए उत्तरदायी ढंग से कार्य करती हैं। मात्र किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष द्वारा लाभ के लिए कार्य नहीं किया जाना चाहिए। अतः सरकार तथा इससे सम्बन्धित समस्त संगठनों एवं लोक प्राधिकरणों को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है। जनता को इनके कार्यों की जानकारी देना आवश्यक है।

(2) सहभागिता का सिद्धान्त :
एक प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में सरकारों द्वारा अधिकांश कार्य जनता के लिए और जनता के सहयोग से किया जाता है। योजना निर्माण की प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी होना आवश्यक है, जिससे लोगों द्वारा समय रहते जनता के हित में योजनाओं में वांछित परिवर्तन एवं संशोधन किया जा सके।

(3) पारदर्शिता का सिद्धान्त :
तीसरा आधार है-पारदर्शिता का सिद्धान्त। सार्वजनिक धन एवं समय के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार, गबन आदि को रोकने के लिए सरकारी काम-काज में पारदर्शिता होना आवश्यक है। इससे भ्रष्ट लोगों पर अंकुश लगाया जा सकता है और ईमानदार लोग निर्भय एवं निष्पक्ष होकर कार्य कर सकेंगे।

लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना आधी, पूर्णतः सही न दिये जाने पर आवेदक 30 दिनों के भीतर प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील कर सकता है। अपीलीय अधिकारी को, अपील प्राप्त होने के सामान्यतः 30 दिन एवं अधिकतम 45 दिन के भीतर कार्यवाही अपेक्षित है। साथ ही इस कार्यवाही की सूचना आवेदक को भी दी जानी चाहिए, जिस पर 30 दिनों के भीतर कार्यवाही कर आवेदक को सूचित किया जाता है। यदि प्रथम अपीलीय अधिकारी 30 दिन के भीतर की गई प्रथम अपील पर कार्यवाही की सूचना आवेदक को नहीं देता है तो आवेदक 90 दिनों के अन्दर द्वितीय अपील राज्य सूचना आयोग में कर सकता है या सूचना आयोग को पूर्ण विवरण सहित शिकायत कर सकता है।

प्रश्न 5.
सूचना के अधिकार का महत्व स्पष्ट करते हुए सूचना आयोग के गठन के बारे में लिखिए।
अथवा
सूचना के अधिकार का महत्त्व वर्णित कीजिए। (2017)
उत्तर:
सूचना के अधिकार का महत्त्व सूचना के अधिकार का महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है –
(1) मौलिक अधिकारों को प्रभावशाली बनाना :
मौलिक अधिकारों में सूचना का अधिकार भी निहित है। यह भाषण एवं अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की रक्षा करता है। सूचना एवं जानकारी के अभाव में किसी भी व्यक्ति को सार्थक ढंग से अपनी राय अभिव्यक्त करना सम्भव नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान A-21 के अन्तर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार से भी जोड़ा है। जानने के अधिकार के बिना जीने का अधिकार अधूरा रह जाता है।

(2) शासन को पारदर्शी बनाना :
इस अधिनियम का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है शासन में पारदर्शिता लाना। जनता के प्रतिनिधि अपने अधिकारों का उपयोग उचित ढंग से कर रहे हैं या नहीं, पैसों का उपयोग सही ढंग से हो रहा है या नहीं, इन तथ्यों की जानकारी जनता को होनी चाहिए। इससे सार्वजनिक धन के माध्यम से जन-कल्याण का उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है। सूचना के अधिकार से पारदर्शिता होगी और सार्वजनिक धन को सावधानी से प्रयोग करने का दबाव बनेगा।

(3) शासन में जनता की सहभागिता बढ़ाना :
भारतीय संविधान सहभागी लोकतन्त्र के सिद्धान्त पर आधारित है। इसके लिए जनता द्वारा चुनाव के माध्यम से अपने प्रतिनिधि का चयन किया जाता है, परन्तु पिछले काफी समय से नागरिकों की निष्क्रियता एक प्रमुख कारण रहा है। अतः शासन व्यवस्था में जनता की सहभागिता बढ़ाने में यह अधिकार एक प्रभावी अस्त्र है।

(4) भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण :
सूचना का अधिकार बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को रोकने का एक सशक्त अस्त्र है। पारदर्शिता एवं जवाबदेही के सिद्धान्त पर आधारित होने के कारण भ्रष्ट आचरण करने वाला व्यक्ति तुरन्त पहचान लिया जाएगा एवं उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकेगी। इसी भय के कारण उत्तरदायी लोग अनुचित कार्यों से दूर होंगे और सुशासन की परिकल्पना को भी साकार किया जा सकता है।

(5) योजनाओं को सफल बनाना :
योजनाओं को सफल बनाने में भी सूचना के अधिकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शासकीय योजनाओं की सफलता मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर करती है-एक योजना का क्रियान्वयन सही ढंग से निर्धारित समयावधि में पूर्ण हो जाए एवं दूसरा योजना का लाभ वास्तविक लाभार्थी तक पहुँचाया जा सके। इन दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति में सूचना का अधिकार एक कारगर अस्त्र है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सूचना का अधिकार एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अधिकार है।

सूचना आयोग का गठन :
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय सूचना आयोग तथा प्रदेश स्तर पर राज्य सूचना आयोग गठन का प्रावधान है। राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त के अतिरिक्त अधिक-से-अधिक.9 राज्य सहायक सूचना आयुक्त नियुक्त करने का प्रावधान है। राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है, जिसके अध्यक्ष मुख्यमन्त्री होते हैं। इस समिति में विधानसभा में विपक्ष के नेता और मुख्यमन्त्री द्वारा नामित एक मंत्री भी होते हैं। मुख्य सूचना आयुक्त व राज्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

प्रश्न 6.
मौलिक कर्त्तव्य किसे कहते हैं? संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों का वर्णन कीजिए। (2008, 13, 15)
अथवा
संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
साधारण शब्दों में किसी काम को करने के दायित्व को कर्त्तव्य कहते हैं। मौलिक कर्त्तव्य ऐसे बुनियादी कर्तव्यों को कहते हैं जो व्यक्ति को अपनी उन्नति व विकास के लिए तथा समाज व देश की प्रगति के लिए अवश्य ही करने चाहिए।

जब भारत के संविधान का निर्माण हुआ था तब उसमें सिर्फ मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया था। इसमें कर्त्तव्यों की कोई व्याख्या नहीं की गई थी, जबकि अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए अनुच्छेद-51 (क) में निम्नलिखित मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है –

  1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं और राष्ट्रगान का आदर करें।
  2. स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें। .
  3. भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें।
  4. देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और सम्मान, भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावों से दूर हो। ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हैं।
  6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखें।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
  9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें, जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नयी ऊँचाइयों को छू सके।
  11. यदि माता-पिता या संरक्षक हैं, तो छ: वर्ष और चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने बालक या प्रतिपाल्य को यथास्थिति शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

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प्रश्न 7.
नीति निदेशक तत्वों के प्रकार स्पष्ट करते हुए उनका वर्णन करें। (2016)
अथवा
गाँधीजी के विचारों के अनुकूल निदेशक तत्व कौन-से हैं? (2009)
अथवा
नीति निदेशक तत्वों के उद्देश्य स्पष्ट करते हुए उनका वर्णन कीजिए। (2009)
अथवा
राज्य के नीति निदेशक तत्वों के प्रकार का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
नीति निदेशक तत्व भारत में सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति को साकार करने का सपना है। इनको निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. कल्याणकारी व्यवस्था।
  2. गाँधीजी के विचारों के अनुकूल निदेशक तत्व।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा।

1. कल्याणकारी व्यवस्था :

  • देश के संसाधनों का प्रयोग लोक कल्याण के लिए किया जाए।
  • महिला और पुरुषों को समान जीविका के साधन उपलब्ध कराना।
  • धन और उत्पादन के साधन मात्र कुछ व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित न हो, उनका उपयोग व्यापक जनहित के लिए हो।
  • महिलाओं और पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।
  • बच्चे और नवयुवकों की आर्थिक एवं नैतिक पतन से रक्षा हो।
  • सभी को रोजगार और शिक्षा प्राप्त हो, बेरोजगारी व असमर्थता में राज्य द्वारा सहायता मिले।
  • सभी व्यक्तियों को गरिमामयी जीवन स्तर, पर्याप्त अवकाश एवं सामाजिक व सांस्कृतिक सुविधाएँ प्राप्त हों। सभी के भोजन एवं स्वास्थ्य के स्तर में सुधार हो।
  • बच्चों के लिए अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध हो।’

2. गाँधीजी के विचारों के अनुकूल निदेशक तत्व –

  • कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
  • ग्राम पंचायतों का गठन करना और उन्हें स्वशासन की इकाई बनाना।
  • पिछड़ी एवं अनुसूचित जाति तथा जनजातियों की शिक्षा एवं आर्थिक हितों का सवंर्धन करना तथा उन्हें शोषण से बचाने हेतु प्रयास करना।
  • नशीली वस्तुओं के प्रयोग पर पाबन्दी लगाना।
  • कृषि और पशुपालन को वैज्ञानिक ढंग से करवाने का प्रबन्ध करना।
  • पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु प्रयास करना व वन्य जीवों की रक्षा करना।
  • दुधारू व बोझ ढोने वाले पशुओं की रक्षा व उनकी नस्ल को सुधारने के उपाय करना।
  • सारे देश में दीवानी और फौजदारी कानून बनाना।
  • राष्ट्रीय व ऐतिहासिक महत्त्व के स्थानों की सुरक्षा करना।
  • लोक सेवा में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को पृथक् करने का प्रयास करना।

3. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  2. राज्यों के मध्य न्यायसंगत एवं सम्मानपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करने का प्रयास करना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं सन्धियों का आदर करना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को मध्यस्थता द्वारा शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने का प्रयास करना।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान कितने भागों में विभाजित है?
(i) 22 भागों
(ii) 20 भागों
(iii) 11 भागों
(iv) 25 भागों।
उत्तर:
(i) 22 भागों

प्रश्न 2.
इसमें से कौन सा मौलिक अधिकार नहीं है?
(i) काम करने एवं आराम करने का अधिकार
(ii) स्वतन्त्रता का अधिकार
(iii) समानता का अधिकार
(iv) शोषण के विरुद्ध अधिकार।
उत्तर:
(i) काम करने एवं आराम करने का अधिकार

प्रश्न 3.
संविधान ने नागरिक को कितने मूलाधिकार प्रदान किये हैं?
(i) 10
(ii) 8
(iii) 6
(iv) 71
उत्तर:
(iii) 6

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प्रश्न 4.
संविधान के अनुच्छेद 22 में व्यक्ति को कौन सा अधिकार प्रदान किया गया है?
(i) जीवन व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता
(ii) गिरफ्तारी निवारण सम्बन्धी अधिकार
(iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(iv) निवास व भ्रमण का अधिकार।
उत्तर:
(ii) गिरफ्तारी निवारण सम्बन्धी अधिकार

प्रश्न 5.
संवैधानिक उपचारों हेतु न्यायालय द्वारा कितने प्रकार के लेख (रिट) जारी किये गये हैं?
(i) चार प्रकार के
(ii) तीन प्रकार के
(iii) छ: प्रकार के
(iv) पाँच प्रकार के।
उत्तर:
(iv) पाँच प्रकार के।

रिक्त स्थान की पूर्ति

  1. भारतीय संविधान कुल ……. भागों में विभाजित है। (2010)
  2. संविधान में अस्पृश्यता का किसी भी रूप में व्यवहार ………… है।
  3. मौलिक अधिकारों का संरक्षण ………… करता है। (2008,09)
  4. हमें भारतीय संविधान द्वारा ………… मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। (2011, 13)
  5. सूचना का अधिकार देश के प्रत्येक …………. को प्राप्त है। (2013)
  6. मौलिक अधिकार …………. के लिए हैं। (2014)

उत्तर:

  1. 22
  2. दण्डनीय अपराध
  3. सर्वोच्च न्यायालय
  4. 6
  5. नागरिक
  6. नागरिकों।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
संविधान ने नागरिकों को 8 मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं। (2009)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2.
संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को विधि के समक्ष समानता और संरक्षण प्राप्त है। (2014)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3.
20 वर्ष की आयु तक विद्यालय शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य बनाना है। (2012)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 4.
राज्य के नीति-निदेशक तत्व राज्य के लिए रचनात्मक निर्देश हैं। (2009)
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 5.
मौलिक कर्तव्यों का पालन प्रत्येक राज्य के प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है। (2009)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 6.
मूल अधिकारों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त है। (2015)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 7.
भारत के संविधान में अस्पृश्यता का किसी भी रूप में व्यवहार दण्डनीय अपराध है। (2016)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8.
संस्कृति और शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है। (2016)
उत्तर:
सत्य

सही जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 14 नागरिकों के संवैधानिक अधिकार एवं कर्त्तव्य - 1
उत्तर:

  1. →(ङ)
  2. →(घ)
  3. →(ख)
  4. → (क)
  5. → (ग)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकारों का संरक्षण कौन करता है? (2008)
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय

प्रश्न 2.
14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों से श्रम कहलाता है। (2012, 15)
उत्तर:
बाल अपराध

प्रश्न 3.
देश का सर्वोच्च कानून जिसमें किसी देश की राजनीति और समाज को चलाने वाले मौलिक कानून हों। (2011)
उत्तर:
संविधान

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प्रश्न 4.
भाषण की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता। (2012)
उत्तर:
स्वतन्त्रता का अधिकार

प्रश्न 5.
देश की सर्वोच्च विधायी संस्था द्वारा उस देश के संविधान में किया जाने वाला बदलाव।। (2010)
उत्तर:
संविधान संशोधन।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह अधिकार जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास एवं गरिमा के लिए आवश्यक हैं, जिन्हें देश के संविधान में अंकित किया गया है और सर्वोच्च न्यायालय जिनकी सुरक्षा करता है, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान कितने भागों में विभाजित है?
उत्तर:
भारतीय संविधान कुल 22 भागों में विभाजित है। इसके तीसरे भाग में मूल अधिकार हैं, चौथे भाग में नीति निदेशक तत्व हैं और बाद में जोड़े गये भाग चार (क) में मूल कर्त्तव्य हैं। ये सब एक ही व्यवस्था के अंग हैं।

प्रश्न 3.
बालश्रम (14 वर्ष के कम आयु वाले बच्चों से श्रम) के सम्बन्ध में कौन-सा कानून बनाया गया है?
उत्तर:
बालश्रम के सम्बन्ध में अनुच्छेद-23 एवं 24 में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों एवं अन्य खतरनाक स्थानों पर नियुक्ति आदि पर रोक लगायी गयी है। इस सम्बन्ध में ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ कानून बनाया गया है।

प्रश्न 4.
संवैधानिक उपचारों हेतु न्यायालय ने कितने प्रकार के लेख (रिट) जारी किये हैं ?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों हेतु न्यायालय ने पाँच प्रकार की रिट जारी की हैं। जो निम्न हैं –

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण
  2. प्रतिषेध
  3. परमादेश
  4. उत्प्रेषण
  5. अधिकार पृच्छा।

प्रश्न 5.
हमें कर्त्तव्य का पालन क्यों करना चाहिए?
उत्तर:
भारतीय नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम संविधान का पालन करें, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गीत का सम्मान करें अर्थात् देश की एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए हमें कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“संविधान में अस्पृश्यता का किसी भी रूप में व्यवहार दण्डनीय अपराध है।” स्पष्ट कीजिए। (2008)
अथवा
भारतीय संविधान में अस्पृश्यता का अन्त करने के लिए क्या व्यवस्था की गई है ? (2011)
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-17 द्वारा नागरिकों में सामाजिक समानता लाने के लिए अस्पृश्यता अर्थात् छुआछूत के व्यवहार का निषेध किया गया है। नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 द्वारा राज्य अथवा नागरिकों द्वारा किसी भी रूप में अस्पृश्यता का व्यवहार अपराध माना जाएगा। जो नागरिक छुआछूत को मानेगा तथा इसे बढ़ावा देगा, वह दण्ड का भागी होगा। इस अधिकार के द्वारा अछूतों के साथ किये गये अन्याय का निराकरण होता है। संविधान में यह भी स्पष्ट लिखा हुआ है कि राज्य, जाति, वंश, धर्म, लिंग तथा जन्म-स्थान के नाम पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। अतः किसी भी व्यक्ति को दुकानों, सार्वजनिक जलपान-गृहों, कुओं, तालाबों, नदी के घाटों, सड़कों, पार्कों तथा ऐसे सार्वजनिक प्रयोग के स्थानों में नहीं रोका जा सकता है जिनको बनाये रखने का व्यय या तो पूर्णतः या आंशिक रूप से राज्य के द्वारा होता है। किसी को भी जाति या अन्य किसी आधार पर अपमानित नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
समानता के अधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समानता का अधिकार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह लोकतन्त्र की आधारशिला है। इस अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्न प्रकार की समानताएँ प्रदान की गई हैं –

  1. कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं।
  2. धर्म, वंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ राज्य किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा।
  3. राज्य के अधीन नौकरियों और पदों के सम्बन्ध में नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे।
  4. अस्पृश्यता के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  5. सेना तथा शिक्षा सम्बन्धी उपाधियों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की उपाधियों का अन्त।

प्रश्न 3.
जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के संरक्षण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के संरक्षण के सन्दर्भ में अनुच्छेद-21 के अनुसार किसी भी नागरिक को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त, उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक नागरिक को अपने जीवन और प्राणों की रक्षा के साथ समाज में मानवीय प्रतिष्ठा के साथ जीवित रहने का अधिकार है। इसके अन्तर्गत सम्मानजनक आजीविका के अवसर और बंधुआ मजदूरी से भी मुक्ति शामिल है। परन्तु नागरिक संविधान द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त स्वतन्त्रता का उपभोग नहीं कर सकता है।

प्रश्न 4.
गिरफ्तारी निवारण सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-22 के अन्तर्गत देश के नागरिक को गिरफ्तारी निवारण सम्बन्धी कुछ अधिकार प्रदान किये गये हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. देश के किसी भी नागरिक को उसके अपराध के विषय में बताए बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
  2. प्रत्येक आरोपी को अपने बचाव के लिए वकील से सलाह-मशविरा करने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
  3. न्यायालय की आज्ञा के बिना किसी भी आरोपी को 24 घण्टों से ज्यादा समय तक बन्दी बनाकर नहीं रखा जा सकता है अर्थात् 24 घण्टे के भीतर आरोपी को निकटतम न्यायालय के सामने प्रस्तुत करना आवश्यक है।

प्रश्न 5.
‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ से नागरिकों को कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हुए हैं?
अथवा
नागरिकों को शोषण के विरुद्ध क्या अधिकार प्राप्त हैं? (2009)
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकारों का वर्णन अनुच्छेद-23 एवं 24 में है। इन अधिकारों के द्वारा श्रमिकों, अल्पसंख्यकों तथा स्त्रियों को अन्याय व शोषण से मुक्ति दिलाने की चेष्टा की गयी है। ये निम्नलिखित हैं –

  1. बेगार व बलपूर्वक श्रम कराने का अन्त-संविधान की धारा-23 के अनुसार मनुष्यों से बेगार या बलपूर्वक कराया गया श्रम, कानून के विरुद्ध माना जाएगा।
  2. मनुष्य के क्रय-विक्रय का अन्त-संविधान के द्वारा मानव के क्रय-विक्रय को अवैध घोषित कर दिया गया है।
  3. अल्प आयु के बालकों से श्रम लेने पर रोक-14 वर्ष तक की आयु के बालकों को किसी कारखाने या खान में काम पर नहीं रखा जाएगा।
  4. स्त्रियों की सुरक्षा-संविधान में स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अवसर देने की व्यवस्था की गयी है। स्त्रियों से किसी प्रकार का कठोर कार्य नहीं लिया जाएगा।

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प्रश्न 6.
धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को स्पष्ट कीजिए। (2009)
उत्तर:
अनुच्छेद-25 से 28 के अन्तर्गत इस अधिकार की व्याख्या की गई है। भारत को धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है जिसका अर्थ है कि राज्य किसी भी धर्म से सम्बन्धित नहीं रहेगा और न ही किसी धर्म विशेष का पोषण करेगा। भारतीय नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है, जिसके अन्तर्गत –

  1. नागरिक अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपना सकते हैं।
  2. प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का शान्तिपूर्वक प्रचार करने का अधिकार है।
  3. नागरिक धार्मिक संस्थाओं की व्यवस्था कर सकते हैं।
  4. अपनी धार्मिक संस्थाओं का प्रबन्ध करने तथा इनके सम्बन्ध में सम्पत्ति प्राप्त करने और व्यय करने की स्वतन्त्रता प्रत्येक नागरिक को है।
  5. राज्य द्वारा संचालित तथा सहायता प्राप्त विद्यालयों में किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी।

प्रश्न 7.
संस्कृति तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संविधान की 29वीं एवं 30वीं धाराओं में नागरिकों के संस्कृति व शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों का उल्लेख किया गया है, जो निम्नलिखित हैं –

  1. भाषा, लिपि व संस्कृति की सुरक्षा-प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भाषा, लिपि एवं विशिष्ट संस्कृति की रक्षा व प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है।
  2. सहायता अनुदान में निष्पक्षता-सरकार समस्त विद्यालयों को चाहे वे अल्पसंख्यकों के हों या बहुसंख्यकों के, सभी को समान अनुदान देगी।
  3. शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश की समानता-जाति, भाषा व धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक को सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता।
  4. शिक्षण संस्थाओं की स्थापना का अधिकार-संविधान के अनुच्छेद-30 के अनुसार समस्त अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्थाओं को स्थापित करने का अधिकार है।

प्रश्न 8.
राज्य के नीति निदेशक तत्वों से क्या तात्पर्य है? इनके क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
भारत के संविधान में कल्याणकारी राज्य की स्थापना कर सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करने के लिए नीति निदेशक सिद्धान्तों को शामिल किया गया है। नीति निदेशक तत्व संविधान निर्माताओं द्वारा केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को नीतियों के निर्धारण के लिए दिए गए दिशा निर्देश हैं। ये निर्देश शासन प्रशासन के समस्त अधिकारियों के लिए मार्गदर्शक सिद्धान्त भी हैं। यह अपेक्षा की जाती है कि इनके अनुसार ही सभी कार्य सम्पन्न हों, परन्तु ऐसा न होने पर नागरिक इसकी अपील न्यायालय में नहीं कर सकता है। जबकि मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में ऐसा नहीं है। नीति निदेशक तत्व राज्य के कर्त्तव्य हैं। ये भारतीय संविधान की विशेषता है।

नीति निदेशक तत्वों के उद्देश्य :
नीति निदेशक तत्व भारत में सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति को साकार करने का सपना है। इनका उद्देश्य आम आदमी की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना और समाज के ढाँचे को परिवर्तित कर भारतीय जनता को सही अर्थों में समान एवं स्वतन्त्र बनाना है। इन तत्वों का उद्देश्य भारत को :

  1. कल्याणकारी राज्य में बदलना
  2. गाँधीजी के विचारों के अनुकूल बनाना तथा
  3. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के पोषक राज्य के रूप में विकसित करना है।

प्रश्न 9.
सूचना के अधिकार से सम्बन्धित सूचनाएँ हम किन स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
सूचनाएँ दो प्रकार से प्राप्त की जा सकती हैं –

  1. प्रकाशित सूचनाओं द्वारा :
    विभाग और शासकीय निकाय समय-समय पर स्वयं से सम्बन्धित जानकारियाँ प्रकाशित करते हैं, अतः सूचनाएँ उनसे मिल जाती हैं।
  2. आवेदन-पत्र प्रस्तुत करके :
    इस प्रकार सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदक को सादे कागज पर अपना नाम, पता दर्शाते हुए विभाग, शासकीय निकाय के सक्षम प्राधिकारी के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करना होता है। आवश्यक दस्तावेजों की छाया प्रतियाँ भी माँगी जा सकती हैं। इस हेतु कुछ शुल्क का प्रावधान भी है।

प्रश्न 10.
सूचना के अधिकार के अन्तर्गत हम सरकारी कार्यालय से जानकारी कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
सूचना के अधिकार के तहत किसी भी सरकारी कार्यालय से जानकारी निम्नलिखित रूपों में प्राप्त की जा सकती है –

  1. दस्तावेज की फोटोकॉपी
  2. दस्तावेज एवं आँकड़ों की सी. डी. फ्लॉपी, वीडियो कैसेट की प्रति
  3. प्रकाशन जो सम्बन्धित विभाग द्वारा प्रकाशित किए गए हों
  4. दस्तावेजों का अवलोकन अर्थात् दस्तावेजों को उन्हीं के कार्यालय में पढ़ा जा सकता है।

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प्रश्न 11.
सूचना के अधिकार के तहत सूचना नहीं देने वाले अधिकारियों को किन स्थितियों में और क्या दण्ड दिया जा सकता है?
उत्तर:
सूचना न देने पर दण्ड-सूचना नहीं देने वाले अधिकारियों को निम्नलिखित स्थितियों में सजा दी जा सकती है –

  1. लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन लेने से मना करना।
  2. निर्धारित समय में जानकारी नहीं देना।
  3. जानबूझ कर गलत, अधूरी व गुमराह करने वाली जानकारी देना।
  4. माँगी गई सूचना को नष्ट करना।

उपर्युक्त स्थितियों में सूचना आयोग ऐसे लोक सूचना अधिकारियों पर 250 रुपये प्रतिदिन से लेकर अधिकतम 25,000 रुपए तक अर्थदण्ड आरोपित करने का आदेश दे सकता है। इसी प्रकार, लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने हेतु विभाग प्रमुख को आयोग अनुशंसा भी कर सकता है।

प्रश्न 12.
राज्य सूचना आयोग के कार्य व अधिकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
राज्य सूचना आयोग के कार्य व अधिकार राज्य सूचना आयोग के निम्नलिखित कार्य व अधिकार है –

  1. राज्य सूचना आयोग का कार्य सूचना के अधिकार को लागू करवाना है। आयोग लोगों से सूचना प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयों को दूर करता है और इससे सम्बन्धित शिकायतों/अपीलों की सुनवाई करता है।
  2. आयोग सूचना के अधिकार से सम्बन्धित किसी भी प्रकरण की जाँच के आदेश दे सकता है।
  3. आयोग के पास सिविल कोर्ट से सम्बन्धित समस्त अधिकार हैं। इसके अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को सम्मन जारी करना, सुनवाई के दौरान उसकी हाजिरी (उपस्थिति) सुनिश्चित करना तथा साक्ष्य प्रस्तुत करने के आदेश देने जैसे अधिकार प्रमुख हैं।

प्रश्न 13.
सूचना के अधिकार के अन्तर्गत हम किस प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
सूचना के अधिकार के अन्तर्गत हम निम्न प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं –

  1. सरकार व सरकार के किसी भी विभाग से सम्बन्धित सूचना।
  2. सरकारी ठेकों का भुगतान, अनुमानित खर्च, निर्माण कार्यों के माप आदि की फोटो प्रतियाँ।।
  3. सड़क, नाली व भवन निर्माण में प्रयुक्त सामग्री के नमूने।
  4. निर्माणाधीन या पूर्ण विकास कार्यों का अवलोकन।
  5. सरकारी दस्तावेजों, जैसे-ड्राइंग, रिकॉर्ड पुस्तिका व रजिस्टरों आदि का अवलोकन।’
  6. यदि कोई शिकायत की गई है या कोई आवेदन दिया गया है तो उस पर प्रगति की जानकारी।
  7. सरकारी परियोजनाओं की जानकारी जिनका क्रियान्वयन कोई भी सरकारी विभाग या स्वयंसेवी संस्था कर रही हो।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान ने नागरिकों को कौन-कौन से मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
संविधान में कितने मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है? ‘समानता के अधिकार’ की व्याख्या कीजिए। (2009)
अथवा
मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ? भारतीय संविधान द्वारा हमें कितने मौलिक अधिकार प्राप्त हैं? (2011, 12)
उत्तर:
1948 में संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र जारी किया गया था। भारतीय संविधान में नागरिकों को जो मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं, वे इसी घोषणा-पत्र पर आधारित हैं। ये अधिकार अग्रवत् हैं –

  • समानता का अधिकार :
    इस अधिकार के द्वारा प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता है तथा भेदभाव, अस्पृश्यता और उपाधियों का अन्त कर दिया गया है। सरकारी नौकरियों में बिना धर्म, जाति, लिंग आदि का भेदभाव किये समानता है।
  • स्वतन्त्रता का अधिकार :
    स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को भाषण देने तथा विचार प्रकट करने, शान्तिपूर्ण सभा करने, संघ बनाने, देश में किसी भी स्थान पर घूमने-फिरने की, देश के किसी भी भाग में व्यवसाय की तथा देश में कहीं भी रहने की स्वतन्त्रता आदि प्राप्त है।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार :
    प्रत्येक नागरिक को शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने का अधिकार है। इस अधिकार के अनुसार मानव के क्रय-विक्रय, किसी से बेगार लेने तथा 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को कारखानों, खानों या किसी खतरनाक धन्धे में लगाने पर रोक लगा दी गयी है।
  • धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार :
    भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है, अतः प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म का अनुसरण करने का अधिकार है। प्रत्येक धर्म के अनुयायियों को अपनी धार्मिक संस्थाएँ स्थापित करने तथा उनका प्रबन्ध करने का अधिकार है।
  • सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार :
    इस अधिकार के अन्तर्गत भारत के नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने तथा उसका विकास करने का अधिकार है।
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार :
    इस अधिकार के अनुसार प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है कि यदि उपरिवर्णित पाँच अधिकारों में से किसी भी अधिकार पर आक्षेप किया जाए या उससे छीना जाए, चाहे वह सरकार की ओर से ही क्यों न हो, तो वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से न्याय की माँग कर सकता है।

प्रश्न 2.
सूचना के अधिकार से क्या समझते हैं? सूचना अधिकार अधिनियम सम्बन्धी विशेष तथ्यों को स्पष्ट कीजिए। (2014)
उत्तर:
सूचना का अधिकार-भारतीय संसद में मई 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के द्वारा देश के लोगों को किसी भी सरकारी कार्यालय से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। देश में विगत् कई वर्षों से विकास में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के कई प्रयास किए जाते रहे हैं। पंचायत राज की स्थापना और सार्वजनिक सेवाओं की निगरानी में स्थानीय समुदाय की भागीदारी इसका प्रमुख आयाम है। सार्वजनिक सेवाओं, सुविधाओं और योजनाओं, नियम-कायदों के बारे में जानकारी न होने से लोग विकास के कार्यों में भलीभाँति भागीदारी नहीं कर पाते हैं। लेकिन अब सूचना के अधिकार द्वारा विकास योजनाओं और सार्वजनिक कार्यों में पारदर्शिता लाई जा सकती है। शासन में निर्णय लेने की प्रक्रिया में पक्षपात की सम्भावना एवं भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

सूचना अधिकार अधिनियम सम्बन्धी तथ्य :
इस अधिनियम के विशेष तथ्य निम्नलिखित हैं –
(1) सूचना के अधिकार किसे प्राप्त हैं :
सूचना का अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है। कोई भी नागरिक लोक निकाय से उससे सम्बन्धित जानकारी प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त सभी लोक निकाय अपने दैनिक कार्य-कलापों के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाओं को सूचना-पट पर लोगों की जानकारी के लिए प्रदर्शित करते हैं।

(2) लोक निकाय से आशय :
ऐसे समस्त प्राधिकरण अथवा संस्थाएँ जिनकी स्थापना संसद या विधान मण्डल द्वारा पारित किये गये कानून (अधिनियम) के अन्तर्गत की गई हो, वे लोक निकाय की श्रेणी में सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त वे परिषद् भी इसमें सम्मिलित की गई हैं जो स्वशासी या गैर-सरकारी हैं, किन्तु जिन्हें या तो सरकारी अनुदान मिलता है या जिनका नियन्त्रण केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। इस प्रकार, लोक निकाय से आशय सरकारी, संवैधानिक संस्थाएँ एवं विभागों से है।

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
निम्न में से किसे मताधिकार प्रदान किया जा सकता है?
(i) अवयस्क पुरुष तथा महिलाओं को
(i) केवल पुरुषों को,
(iii) वयस्क पुरुष तथा महिलाओं को
(iv) केवल महिलाओं को।
उत्तर:
(iii) वयस्क पुरुष तथा महिलाओं को

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प्रश्न 2.
किसे वोट देने का अधिकार नहीं है? (2016, 18)
(i) पागल या मानसिक विकलांगों को
(ii) नाबालिगों को
(iii) न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित
(iv) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में निम्नलिखित में से किसके बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू मानी जाती है?
(i) प्रत्याशी के नामांकन पत्र जमा करने के बाद
(ii) चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद
(iii) प्रचार कार्य प्रारम्भ होने के बाद
(iv) चुनाव सभा होने से।
उत्तर:
(ii) चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. हमारे देश के सभी स्त्री-पुरुष जिनकी उम्र …………. वर्ष है, वोट डालने के अधिकारी हैं। (2018)
  2. कई दल मिलकर जब सरकार बनाते हैं, तब वह …………. सरकार कहलाती है। (2017)
  3. राजनीतिक दलों को मान्यता देने के लिए ………… आयोग बनाया गया है।
  4. देश के प्रत्येक वयस्क महिला-पुरुष को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार ……….. मताधिकार कहलाता है।

उत्तर:

  1. 18 वर्ष
  2. साझा
  3. निर्वाचन
  4. सार्वभौमिक वयस्क।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक दल किसे कहते हैं ? लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक दल उन नागरिकों के संगठित समूह का नाम है जो एक ही राजनीतिक सिद्धान्तों को मानते और एक राजनीतिक इकाई के रूप में काम करते और सरकार पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं।

प्रश्न 2.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त को कौन नियुक्त करता है? (2008, 15, 17)
उत्तर:
निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 3.
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय नई दिल्ली में है।

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प्रश्न 4.
साझा सरकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी एक दल का बहुमत न आने पर जब कई दल मिलकर सरकार बनाते हैं, तब वह सरकार साझा सरकार कहलाती है। इसे गठबन्धन सरकार भी कहते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक दलों की विशेषताएँ बताइए। (2014)
अथवा
राजनीतिक दल किसे कहते हैं? उसकी चार विशेषताएँ बताइए। (2008)
उत्तर:
राजनीतिक दल उन नागरिकों के संगठित समूह का नाम है जो एक ही राजनीतिक सिद्धान्तों को मानते और एक राजनीतिक इकाई के रूप में काम करते और सरकार पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं।

राजनीतिक दलों की विशेषताएँ –

  1. अपने विचारों के समर्थन में निरन्तर जनमत बनाना।
  2. एक विधान द्वारा संगठित और संचालित होना।
  3. निर्वाचन आयोग में पंजीकृत होना।
  4. पहचान हेतु एक चुनाव चिह्न होना।
  5. प्रमुख उद्देश्य निर्वाचन में विजय प्राप्त कर सत्ता प्राप्त करना।
  6. शासक दल पर निगाह रखते हुए जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध जनमत तैयार करना।

प्रश्न 2.
मध्यावधि निर्वाचन किसे कहते हैं? (2016)
उत्तर:
मध्यावधि निर्वाचन-यदि लोकसभा अथवा राज्य विधानसभा को उसके कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग कर दिया जाता है तो होने वाले चुनाव मध्यावधि चुनाव कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
निर्वाचन आयोग के कार्य लिखिए। (2008, 09, 10, 14, 16, 18)
अथवा
चुनाव आयोग के कार्यों को लिखिए। (2012)
उत्तर:
निर्वाचन आयोग के कार्य-निर्वाचन आयोग या चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  • चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन :
    चुनाव आयोग का महत्त्वपूर्ण कार्य चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित करना है। प्रत्येक 10 वर्ष बाद जनगणना के आधार पर चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित की जाती हैं।
  • मतदाता सूची तैयार करना :
    चुनाव आयोग चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र के आधार पर मतदाता सूची तैयार करवाता है, जिसके लिए यथासम्भव उन सभी वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में अंकित करने का प्रयास किया जाता है जो मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं।
  • चुनाव-चिह्न देना :
    निर्वाचन आयोग ही सभी राजनीतिक दलों को उनके चुनाव चिह्न प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाव प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाये गये चुनाव-चिह्नों पर स्वीकृति देता है। जो प्रत्याशी किसी राजनीतिक दल की टिकट से नहीं बल्कि स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ते हैं, तो उनके चुनाव-चिह्न निर्वाचन आयोग द्वारा ही निश्चित किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना :
    राजनीतिक दलों को मान्यता निर्वाचन आयोग ही देता है। प्रत्येक चुनाव के बाद मतों के निश्चित प्रतिशत के आधार पर राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों को मान्यता देने का कार्य निर्वाचन आयोग करता है।
  • निष्पक्ष चुनाव करवाना :
    निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र चुनाव कराना चुनाव आयोग का एक प्रमुख कार्य है। चुनाव का समय, तिथि, मोहर लगाना, मतपत्रों पर चिह्न, गणना, परिणाम घोषित करना आदि के निर्देश आयोग ही देता है।

प्रश्न 4.
निर्वाचक नामावली क्या है? इसका उपयोग बताइए। (2009)
उत्तर:
चुनाव आयोग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य निर्वाचक नामावली तैयार कराना है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रत्येक निर्वाचन से पूर्व वह मतदान केन्द्र के अनुसार मत देने के योग्य नागरिकों की सूची तैयार करवाता है। इसे निर्वाचन नामावली कहते हैं। नवीन सूची में 18 वर्ष के नागरिकों के नाम जोड़े जाते हैं और मृत्यु या अन्य कारण से अन्यत्र स्थानों पर चले गये नागरिकों के नाम हटाये जाते हैं। निर्वाचक नामावली को मतदाता सूची के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 5.
विपक्षी दल की भूमिका का वर्णन कीजिए। (2008, 09, 13)
अथवा
भारतीय राजनीति में विपक्षी दलों की भूमिका बताइए। (2008)
उत्तर:
विपक्षी दल की भूमिका-लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक संचालन और सत्तारूढ़ पार्टी पर अंकुश रखने के लिए विपक्षी दल का अत्यधिक महत्त्व है। हमारे देश में प्रजातन्त्र है और उसमें सरकार के प्रत्येक कार्य, उसकी प्रत्येक नीति की समालोचना किया जाना अनिवार्य है। यह कार्य विपक्षी दल ही कर सकते हैं। सरकार को तानाशाह बनने से रोकना और नागरिकों के अधिकारों का हनन न होने देना, यह सभी कार्य विपक्ष करता है विपक्ष की उपस्थिति से सरकार जनता के प्रति अधिक सजगता से अपने दायित्वों का निर्वहन करती है। विधायिका में कोई भी कानून पारित होने से पूर्व उस पर विचार-विमर्श और चर्चा होती है।

विपक्ष के सहयोग से कानून के दोषों को दूर किया जा सकता है। विधान मण्डल और संसद की बैठकों के समय विपक्ष की भूमिका और बढ़ जाती है। विपक्ष सदन में प्रश्न पूछकर, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव या स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार पर दबाव बनाता है। इस प्रकार विपक्ष जनता के सामने अपनी योग्यता को स्थापित करता है, विपक्ष सरकार की त्रुटियों को जनता के सामने लाता है, सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करके सरकार को भूल सुधार के लिए बाध्य किया जाता है। विपक्ष द्वारा अपने दायित्व का सही प्रकार से पालन करने से सरकार प्रभावित होती है।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मताधिकार किसे कहते हैं? मताधिकार के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मताधिकार कहलाता है। यह अधिकार महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार है।

मताधिकार के सिद्धान्त
प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि मताधिकार का आधार क्या हो? क्या यह अधिकार राज्य के सभी नागरिकों को दिया जाए या कुछ चुने हुए व्यक्तियों को? इस सन्दर्भ में मताधिकार के प्रमुख सिद्धान्त अग्र प्रकार हैं –

  • जनजातीय सिद्धान्त :
    इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य के प्रत्येक नागरिक को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए। क्योंकि यह कोई विशेष अधिकार या सुविधा नहीं है वरन् यह प्रत्येक नागरिक के जीवन को प्रभावित करने वाला स्वाभाविक एवं महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह अवधारणा प्राचीन यूनान, रोम तथा अन्य छोटे राष्ट्रों की सभाओं में प्रचलित था, जहाँ हाथ उठाकर मतदान किया जाता था। आधुनिक युग में मताधिकार के लिए नागरिकता की अनिवार्यता सम्भवतः इसी का प्रारूप है।
  • नैतिक सिद्धान्त :
    यह सिद्धान्त इस अवधारणा पर आधारित है कि मानव के व्यक्तित्व के विकास के लिए यह अनिवार्य है कि उसे मताधिकार के माध्यम से यह निश्चित करने का अधिकार हो कि उनका शासन कौन करे। मताधिकार व्यक्ति में संवेदनशीलता को जन्म देता है तथा उसे सरकारी नीतियों तथा कार्यक्रमों के प्रति सजग बनाता है।
  • वैधानिक अधिकार :
    मताधिकार एक प्राकृतिक अधिकार नहीं वरन् राजनीतिक अधिकार है। यह निर्धारण करना राज्य का कार्य है कि किसे मताधिकार मिलना चाहिए। प्रत्येक शासन अपनी परिस्थितियों और सामाजिक स्थिति के आधार पर इसका निर्धारण करता है।
  • प्राकृतिक सिद्धान्त :
    17वीं तथा 18वीं शताब्दी में यह सिद्धान्त विशेष लोकप्रिय हुआ। इस सिद्धान्त के अनुसार सरकार मानव निर्मित संयन्त्र है। इसका आधार जनता की सहमति है। अर्थात् शासक को चुनने का अधिकार जनता का प्राकृतिक अधिकार है।
  • सर्वव्यापी वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त :
    यह सिद्धान्त लोकतान्त्रिक राज्यों में सर्वाधिक प्रचलित सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य के प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार होता है। 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में प्राकृतिक अधिकारों और जनसम्प्रभुता के वातावरण में सर्वव्यापक मताधिकार की माँग ने जोर पकड़ा। इसमें वयस्कता का अधिकार सम्मिलित किया गया।
  • भारीकृत मताधिकार का सिद्धान्त :
    इस सिद्धान्त के अनुसार मतों को गिना नहीं जाता है वरन् उनका भार दिया जाता है। भार का आशय यहाँ महत्त्व से है अर्थात् सरकार के चयन में किसी प्रकार की विशिष्टता जैसे शिक्षा, धन या सम्पत्ति से विभूषित व्यक्ति के मत का भार एक आम आदमी से अधिक होना चाहिए।
  • बहुल मताधिकार का सिद्धान्त :
    मताधिकार के इस सिद्धान्त की मूल अवधारणा में यह आग्रह है कि व्यक्तियों के मतों की संख्या कुछ आधारों पर कम या अधिक होनी चाहिए। आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में ‘एक व्यक्ति एक मत’ का सिद्धान्त सर्व स्वीकृत है, परन्तु विगत वर्षों में बहुल मताधिकार की व्यवस्था भी अनेक राज्यों में प्रचलित रही है।

प्रश्न 2.
निर्वाचन से क्या आशय है? निर्वाचन आयोग के कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
निर्वाचन एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह एक निर्धारित विधि से होता है। देश में होने वाले सामान्य निर्वाचन, मध्यावधि निर्वाचन या उपचुनाव या निर्वाचन, सभी में समान प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया के प्रमुख बिन्दु हैं-

  1. मतदाता सूची तैयार करना
  2. चुनाव की घोषणा
  3. निर्वाचन हेतु नामांकन
  4. चुनाव चिह्न
  5. चुनाव अभियान
  6. मतदान
  7. मतगणना।

निर्वाचन आयोग के कार्य :
निर्वाचन आयोग के कार्य-निर्वाचन आयोग या चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं’

  • चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन :
    चुनाव आयोग का महत्त्वपूर्ण कार्य चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित करना है। प्रत्येक 10 वर्ष बाद जनगणना के आधार पर चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित की जाती हैं।
  • मतदाता सूची तैयार करना :
    चुनाव आयोग चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र के आधार पर मतदाता सूची तैयार करवाता है, जिसके लिए यथासम्भव उन सभी वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में अंकित करने का प्रयास किया जाता है जो मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं।
  • चुनाव-चिह्न देना :
    निर्वाचन आयोग ही सभी राजनीतिक दलों को उनके चुनाव चिह्न प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाव प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाये गये चुनाव-चिह्नों पर स्वीकृति देता है। जो प्रत्याशी किसी राजनीतिक दल की टिकट से नहीं बल्कि स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ते हैं, तो उनके चुनाव-चिह्न निर्वाचन आयोग द्वारा ही निश्चित किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना :
    राजनीतिक दलों को मान्यता निर्वाचन आयोग ही देता है। प्रत्येक चुनाव के बाद मतों के निश्चित प्रतिशत के आधार पर राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों को मान्यता देने का कार्य निर्वाचन आयोग करता है।
  • निष्पक्ष चुनाव करवाना :
    निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र चुनाव कराना चुनाव आयोग का एक प्रमुख कार्य है। चुनाव का समय, तिथि, मोहर लगाना, मतपत्रों पर चिह्न, गणना, परिणाम घोषित करना आदि के निर्देश आयोग ही देता है।

प्रश्न 3.
राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर राजनीतिक दलों के प्रकार लिखिए।(2013)
उत्तर:
दलीय व्यवस्था के प्रकार-किसी राष्ट्र में राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर दल व्यवस्था को तीन वर्गों में बाँटा जाता है –

  • एकल दल (एक दलीय) प्रणाली :
    एक दलीय पद्धति या व्यवस्था उसे कहते हैं जिसमें केवल एक राजनीतिक दल होता है और वही समस्त राजनीतिक गतिविधियों का संचालन करता है, जैसे-जनवादी चीन में एक दलीय प्रणाली है, वहाँ केवल साम्यवादी दल को ही मान्यता है। अन्य राजनैतिक विचार रखने वालों पर पाबन्दी है।
  • द्वि-दलीय प्रणाली :
    इस प्रणाली में केवल दो दल या दो प्रमुख दल होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में द्वि-दलीय प्रणाली प्रचलित है। इस राष्ट्र के दो प्रमुख दल हैं-डेमोक्रेटिक दल तथा रिपब्लिकन दल। इस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन की शासन व्यवस्था में द्वि-दलीय प्रणाली प्रचलित है।
  • बहुदलीय प्रणाली :
    बहुदलीय प्रणाली में अनेक राजनीतिक दल होते हैं, किन्तु सभी दलों की स्थिति समान नहीं होती। हमारे देश में बहुदलीय राजनीतिक प्रणाली है। निर्वाचन में किसी एक दल का बहुमत में आना आवश्यक नहीं है।

जब किसी एक दल का बहुमत नहीं आता है, तो देश या प्रान्त में साझा सरकार बनाई जाती है। साझा या गठबन्धन सरकार में दो या अधिक दल शामिल होते हैं।

बहुदलीय प्रणाली का सबसे बड़ा दोष दल-बदल है। चुनावों के समय अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आती हैं। इस प्रणाली में राजनीतिक दलों की नीतियों में स्पष्ट अन्तर करना कठिन हो जाता है। बहुदलीय प्रणाली में व्यक्तिनिष्ठ दलों की संख्या बढ़ जाती है। आये दिन उनका विघटन और पतन होता रहता है।

प्रश्न 4.
दल व्यवस्था क्या है? उसका महत्त्व बताइए।
अथवा
राजनैतिक दल व्यवस्था क्या है? उसका महत्त्व बताइए। (2009)
उत्तर:
संसदीय लोकतन्त्र के लिए विभिन्न राजनीतिक दल आवश्यक हैं। राजनीतिक दल नागरिकों के संगठित समूह हैं, जो एक-सी विचारधारा रखते हैं। ये अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। राजनीतिक दल एक शक्ति के रूप में कार्य करते हैं और सदैव शक्ति प्राप्त करने और उसे बनाये रखने का प्रयास करते रहते हैं।

दलीय व्यवस्था का महत्त्व :
दलीय व्यवस्था लोकतान्त्रिक शासन को सम्भव बनाती है। आधुनिक युग में शासन कार्य राजनीतिक दलों के सहयोग से होता है। यह शासन के नीति निर्धारण में सहयोग करते हैं और इनके सहयोग से नीतियों में परिवर्तन आसान होता है। दल-व्यवस्था के प्रभाव से सरकार जनोन्मुखी होती है व लोकहित में कार्य करती है। राजनैतिक दल शासन के निरंकुशता पर नियन्त्रण करते हैं। इनके माध्यम से जनता की आशाएँ और अपेक्षाएँ सरकार तक पहुँचती हैं। यह जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण देते हैं। इनके . . माध्यम से जनता को शासन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। राजनीतिक दल नागरिक स्वतन्त्रताओं के रक्षक होते हैं। इनके द्वारा राष्ट्र की एकता स्थापित होती है। लॉर्ड ब्राइस का मत है कि, “दल राष्ट्र के मस्तिष्क को उसी प्रकार क्रियाशील रखते हैं, जैसे कि लहरों की हलचल से समुद्र की खाड़ी का जल स्वच्छ रहता है।”

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प्रश्न 5.
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया व भारतीय चुनाव प्रणाली के प्रमुख दोषों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया को लिखिए। (2008, 09)
अथवा
भारतीय चुनाव प्रणाली के कोई चार दोष लिखिए। (2017, 18)
उत्तर:
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया-निर्वाचन एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह एक निर्धारित विधि से होता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) मतदाता सूची तैयारी करना :
निर्वाचन का यह पहला चरण है। जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार प्रत्येक निर्वाचन से पूर्व मतदाता सूची को तैयार करता है। कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष है इसमें अपना नाम सम्मिलित करवा सकता है। मतदाता पहचान पत्र भी जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा बनवाये जाते हैं। मतदाता पहचान पत्र के अभाव में नागरिक को अपनी पहचान के लिए अन्य कागजात लाने होते हैं।

(2) चुनाव की घोषणा :
प्रत्येक निर्वाचन प्रक्रिया का प्रारम्भ अधिसूचना जारी होने से होता है। लोकसभा के सामान्य अथवा मध्यावधि या उपचुनाव की अधिसूचना राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। विधान सभाओं के लिए अधिसूचना राज्यपाल द्वारा की जाती है। अधिसूचना का प्रकाशन चुनाव आयोग से विचार-विमर्श के बाद राजपत्र में किया जाता है।

अधिसूचना जारी होने के पश्चात् निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित किया जाता है। इसके साथ ही राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता लागू हो जाती है।

(3) नामांकन पत्र :
चुनाव सूचना जारी होने के बाद चुनाव आयोग चुनावों की तिथि घोषित करता है जिसके अन्तर्गत एक निश्चित तिथि एक प्रत्याशी अपना नामांकन पत्र भरते हैं। नामांकन पत्र मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित व अनुमोदित होना चाहिए तथा प्रत्याशी का नाम मतदाता सूची में अवश्य होना चाहिए। नामांकन पत्र के साथ प्रत्याशी एक निश्चित धनराशि जमानत के रूप में जमा करवाता है। नामांकन पत्र भरे जाने की तिथि के बाद एक निश्चित तिथि में सभी नामांकन पत्रों की जाँच की जाती है और जिन प्रत्याशियों के नामांकन पत्र सही पाये जाते हैं उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया जाता है। इसके पश्चात् एक निश्चित तिथि तक प्रत्याशी अपना नाम वापस ले सकते हैं।

(4) चुनाव-चिह्न-चुनाव :
चिह्न ऐसे चिह्नों को कहते हैं जिन्हें कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार चुनाव के समय अपने चिह्न के रूप में प्रयोग करता है। चिह्न की पहचान से ही मतदाता अपना मत सही उम्मीदवार को दे सकता है।

(5) चुनाव अभियान :
चुनाव अभियान समस्त चुनावी प्रक्रिया का सबसे निर्णायक भाग है। वैसे ही आज के विज्ञापन के युग में चुनाव प्रचार का अत्यधिक महत्त्व है। चुनाव प्रचार के लिए चुनाव घोषणा-पत्र के साथ-साथ आम सभाएँ भी आयोजित की जाती हैं। चुनाव प्रचार की दृष्टि से आकर्षक नारे गढ़े व प्रचारित किये जाते हैं। नारे छपे पोस्टर जगह-जगह दीवारों पर चिपकाये जाते हैं। परम्परागत तरीकों से रिक्शा व लाउडस्पीकर का भी चुनाव प्रचार में भरपूर प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक दल को दूरदर्शन व आकाशवाणी द्वारा अपना प्रचार-प्रसार करने का एक निश्चित समय दिया जाता है।

(6) मतदान-निश्चित तिथि पर मतदाता चुनाव बूथ पर जाकर मत डालते हैं। मतदान के लिए सार्वजनिक छुट्टी रहती है व एक निश्चित समय तक ही मतदाता अपना वोट डाल सकते हैं। मतदान अधिकारी व विभिन्न प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों द्वारा यह पहचान किये जाने के पश्चात् कि मतदाता सही है, कोई धोखा नहीं है, उस मतदाता को मतपत्र दे दिया जाता है जो बूथ में जाकर गुप्त रूप से अपना मत डालता है। मत-पत्र दिये जाने के पूर्व चुनाव अधिकारी एक अमिट स्याही का निशान मतदाता की उँगली पर लगाता है, ताकि वह मतदाता दुबारा गलत ढंग से मत न डाल सके।

(7) मतगणना व परिणाम :
मतदान पूरा हो जाने के बाद चुनाव अधिकारी प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों के सामने मतपेटियों को सीलबन्द कर देते हैं। प्रत्येक मतदान केन्द्र से मतपेटियाँ एक स्थान पर एकत्र कर ली जाती हैं जहाँ एक निश्चित तिथि पर प्रत्याशी व उनके प्रतिनिधियों के समक्ष मतपेटियों को खोला जाता है। उनके ही सामने मतों की गिनती चुनाव कर्मचारी करते हैं। सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

भारतीय चुनाव प्रणाली के दोष :
भारतीय चुनाव प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं –
(1) मतदान में पूर्ण भागीदारी का अभाव :
सार्वभौम वयस्क मताधिकार प्रणाली का उद्देश्य सभी नागरिकों को शासन में अप्रत्यक्ष भागीदार बनाना है। बड़े क्षेत्रों में लोकसभा तथा राज्य विधानसभा चुनावों में एक बड़ी संख्या में मतदाता अपना वोट डालने नहीं जाते हैं। इस कारण मतदाताओं के बहुमत से निर्वाचित उम्मीदवार जनता का प्रतिनिधि नहीं होता है। अतः यह अपेक्षित है कि, सभी नागरिकों को मतदान में भाग लेना चाहिए।

(2) बाहुबल का प्रभाव :
कई बार कुछ प्रत्याशी हर तरीके से चुनाव में विजय हासिल करना चाहते हैं और वे चुनाव में अपराधियों की सहायता भी लेते हैं। हिंसा और शक्ति का प्रयोग कर लोगों को डरा-धमका कर वोट देने से रोकना, मतदान केन्द्र पर कब्जा करना, अवैध मत डलवाने का प्रयास करते हैं।

(3) सरकारी साधनों का दुरुपयोग :
चुनाव होने से पहले कुछ शासक दल. जनता को आकर्षित करने वाले वायदे करने लगते हैं, शासकीय कर्मचारियों/अधिकारियों की अपने हितों के अनुकूल पदस्थापना करते हैं तथा शासकीय धन और वाहनों व अन्य साधनों का दुरुपयोग करते हैं। इससे चुनावों की निष्पक्षता प्रभावित होती है।

(4) फर्जी मतदान :
यह भी हमारी चुनाव प्रणाली की बड़ी समस्या है। कुछ व्यक्ति दूसरे के नाम पर वोट डालने चले जाते हैं। एक से अधिक स्थान पर मतदाता सूची में नाम लिखना, नाम न होते हुए भी वोट देने जाना आदि फर्जी मतदान है।

(5) चुनाव में धन का प्रयोग :
चुनाव में बढ़ता खर्च एक बड़ी समस्या है। प्रत्येक चुनाव में व्यय की सीमा निर्धारित है, परन्तु चुनाव में भाग लेने वाले अनेक प्रत्याशी बहुत अधिक धन व्यय करते हैं। धन व बल के अभाव में कई बार कुछ अच्छे और ईमानदार व्यक्ति चुनाव लड़ने में असमर्थ होते हैं। चुनाव में धन का दुरुपयोग व्यक्ति की अनैतिक भूमिका को दर्शाता है, जो चुनाव व्यवस्था में सुधार की दृष्टि से गम्भीर समस्या है।

(6) निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या :
निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या कभी-कभी बहुत अधिक होती है इससे चुनाव प्रबन्ध में कठिनाई आती है। अधिक प्रत्याशियों के कारण मतदाता भी भ्रमित होता है।

(7) अन्य दोष :
वोट देने के लिए नागरिकों का मतदाता सूची में नाम होना आवश्यक है। प्रायः यह देखने में आता है कि अनेक लोगों के नाम मतदाता सूची से छूट जाते हैं। दूसरी ओर जिनकी मृत्यु हो गयी है या वे दूसरे स्थान पर चले गये हैं, तब भी उनके नाम मतदाता सूची में होते हैं। एक मतदान केन्द्र पर मतदाताओं की संख्या अधिक होने से भी कठिनाई आती है। एक प्रत्याशी कई बार दो या अधिक जगह पर चुनाव में खड़ा हो जाता है। दोनों स्थानों पर जीत होने की स्थिति में उसको एक स्थान को त्यागपत्र देना पड़ता है। जिसके कारण पुनः उपचुनाव होते हैं। इसमें शासकीय और प्रत्याशी के धन का अपव्यय होता है। ये सभी हमारी चुनाव प्रणाली के दोष हैं।

प्रश्न 6.
राजनीतिक दलों के कार्य और महत्त्व बताइए।
अथवा
राजनीतिक दलों के कार्य बताइए। (2008, 12)
अथवा
‘राजनीतिक दलों के कोई चार महत्त्व लिखिए। (2017)
उत्तर:
राजनीतिक दलों के कार्य-राजनीतिक दल अनेक कार्य करते हैं। इनमें प्रमुख कार्य निम्नलिखित :

  • जनमत तैयार करना :
    राजनीतिक दल देश की समस्याओं को स्पष्ट रूप से जनता के सामने रखकर जनमत तैयार करते हैं। वे पत्र-पत्रिकाओं तथा सभाओं में इन समस्याओं को सरल ढंग से जनता के सामने रखते हैं और फिर इस लोकमत को तथा जनता की कठिनाइयों को संसद में रखते हैं।
  • मध्यस्थता :
    राजनीतिक दल जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता का कार्य करते हैं। सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों को जनता के सामने तथा जनता की इच्छाओं को सरकार के सामने रखते हैं।
  • आलोचना :
    प्रजातन्त्रीय शासन में बहुमत प्राप्त दल अपनी सरकार बनाता है और अल्पमत दल विरोधी दल का कार्य करता है। विरोधी दलों की आलोचना के भय से सत्तारूढ़ दल गलत कार्य व नीतियाँ नहीं अपनाता।
  • राजनीतिक शिक्षा :
    राजनीतिक दल साधारण नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा देने का कार्य भी करते हैं। चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल प्रेस, रेडियो, टी. वी. व सभाओं के माध्यम से अपनी नीतियों व जनता के अधिकारों का वर्णन करते हैं। इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती हैं।
  • शासन पर अधिकार करना :
    राजनीतिक दलों का अन्तिम उद्देश्य शासन पर अधिकार करना होता है। वे प्रचार साधनों के द्वारा जनमत को अपने पक्ष में करते हैं और सत्ता पर अधिकार करने का प्रयास करते हैं।

राजनीतिक दलों का महत्त्व :
राजनैतिक दल आधुनिक लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली की देन है। आधुनिक राजनैतिक जीवन में इनका निम्नलिखित महत्त्व है –

  • लोकमत के निर्माण में सहायक :
    राजनीतिक दल जनता को सार्वजनिक समस्याओं से परिचित कराते हैं तथा उनकी अच्छाइयों और बुराइयों की जानकारी देते हैं। इनसे जनता सार्वजनिक समस्याओं पर अपना मत बनाती है और इस प्रकार लोकमत का निर्माण होता है।
  • जनता में जागृति उत्पन्न करने में सहायक :
    राजनीतिक दलों के माध्यम से जनता को देश की आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं का ज्ञान होता है।
  • संसदीय सरकार के लिए अनिवार्य :
    संसदीय शासन-व्यवस्था में सरकार का निर्माण दलों के आधार पर होता है। संसद के निम्न सदन में जिस दल का बहुमत होता है, वह सरकार बनाता है।
  • लोकतन्त्र के लिए अनिवार्य :
    लोकतन्त्रात्मक प्रशासन में राजनीतिक दल अनिवार्य होता है। उनके बिना निर्वाचन की व्यवस्था करना कठिन है। दलों से ही सरकार बनती है और वही उस पर नियन्त्रण रखते हैं। उनके माध्यम से सरकार व जनता के बीच सम्पर्क स्थापित होता है और जनता की कठिनाइयों से सरकार अवगत होती है।
  • मतदान में सहायक :
    राजनीतिक दलों के सहयोग से नागरिकों को निर्वाचन के समय यह निर्णय लेने में कठिनाई नहीं होती कि उन्हें अपना मत किस उम्मीदवार को देना है। वह जिस दल के कार्यक्रम व नीति को पसन्द करता है, उसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर देता है।
  • सरकार की निरंकुशता पर रोक :
    प्रजातन्त्र में बहुमत प्राप्त दलों की सरकार बनती है, इसलिए उसके निरंकुश बन जाने की सम्भावना रहती है। विरोधी दल उसकी स्वेच्छाचारिता पर रोक लगाकर उस पर नियन्त्रण रखते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मतदज समाप्त होने के कितने घण्टे पूर्व चुनाव प्रचार बन्द कर दिया जाता है?
(i) 24 घण्टे
(ii) 36 घण्ट
(iii) 48 घण्टे
(iv) 72 घण्टे।
उत्तर:
(iii) 48 घण्टे

प्रश्न 2.
निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है?
(2009)
(i) 3 वर्ष
(ii) 4 वर्ष
(iii) 5 वर्ष
(iv) 6 वर्ष।
उत्तर:
(iv) 6 वर्ष।

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रिक्त स्थान पूर्ति

  1. नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार ……….. कहलाता है। (2008, 09, 14, 15)
  2. भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय …………. में है। (2010)
  3. नागरिकों द्वारा अपने देश के प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया ………… कहलाती है।
  4. जन-जन की शासन में सहभागिता ही लोकतन्त्र की …………है।
  5. निर्वाचन आयुक्तों की नियक्ति …………. करता है। (2008)

उत्तर:

  1. मताधिकार
  2. नई दिल्ली
  3. निर्वाचन
  4. प्राण शक्ति
  5. राष्ट्रपति।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमन्त्री करता है। (2008, 09)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2.
निर्वाचन आयोग में 750 से अधिक दल पंजीकृत हैं। (2008)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 3.
आम चुनाव की तिथियाँ चुनाव आयोग निर्धारित करता है। (2009)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
बहुमत प्राप्त न करने वाले दल विपक्षी दल कहलाते हैं। (2013)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय मुम्बई में है। (2009)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 6.
प्रत्येक व्यक्ति के मत को समान महत्त्व मिलता है। (2014)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 7.
हमारे देश में वे सभी स्त्री-पुरुष जिनकी उम्र 18 वर्ष है वोट डालने के अधिकारी है। (2016)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8.
राजनीतिक दलों को मान्यता देने के लिए चुनाव आयोग बनाया गया है। (2018)
उत्तर:
सत्य

सही जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन - 1

उत्तर:

  1. → (ङ)
  2. → (ग)
  3. → (ख)
  4. → (क)
  5. → (घ)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
बहुमत प्राप्त न करने वाले राजनैतिक दल? (2011)
उत्तर:
विपक्षी दल

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प्रश्न 2.
निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है? (2009)
उत्तर:
6 वर्ष

प्रश्न 3.
नागरिकों द्वारा अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया कहलाती हैं। (2009)
अथवा
लोकतांत्रिक देशों में जनता द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया को कहते हैं। (2016)
उत्तर:
निर्वाचन

प्रश्न 4.
हमारे देश में वोट डालने की निम्नतम आयु कितनी है?
उत्तर:
18 वर्ष

प्रश्न 5.
अपने निर्धारित समय पर होने वाला निर्वाचन। (2009)
उत्तर:
सामान्य निर्वाचन अथवा आम चुनाव

प्रश्न 6.
चुनाव के समय पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा माने जाने वाले कायदे-कानून और दिशा-निर्देश (2010)
उत्तर:
आचार संहिता

प्रश्न 7.
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार क्या कहलाता है? (2013)
उत्तर:
मताधिकार।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्वाचन से क्या आशय है? लिखिए।
उत्तर:
लोकतान्त्रिक राष्ट्रों में जनता द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया को निर्वाचन कहा जाता है।

प्रश्न 2.
मताधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार, मताधिकार कहलाता है।

प्रश्न 3.
किन व्यक्तियों को मताधिकार से वंचित रखा जाता है?
उत्तर:
मानसिक रूप से विकलांग या पागल या ऐसे व्यक्ति जो न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित हैं या ऐसे व्यक्ति जो भारत देश के नागरिक नहीं हैं, मत देने के अधिकारी नहीं होते।

प्रश्न 4.
भारत के राजनीतिक दल कितने भागों में विभक्त हैं? उनके नाम लिखिए।
अथवा
भारत के सर्वाधिक सदस्य संख्या वाले चार राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत के राजनीतिक दल दो भागों में विभक्त हैं। इनमें कुछ राष्ट्रीय दल और शेष क्षेत्रीय दल हैं।
भारत के सर्वाधिक सदस्य संख्या वाले राजनीतिक दल हैं –

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  2. भारतीय जनता पार्टी
  3. समाजवादी पार्टी तथा
  4. भारतीय साम्यवादी दल।

प्रश्न 5.
‘आम चुनाव’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आम चुनाव का आशय-हमारे देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किये जाते हैं। इन चुनावों को आम चुनाव कहते हैं।

प्रश्न 6.
आम चुनाव की अधिघोषणा किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
लोकसभा व राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति तथा विधानसभाओं के लिए राज्यपाल मतदाताओं को चुनाव के बारे में सूचना देते हैं। इस अधिसूचना का प्रकाशन चुनाव आयोग से विचार-विमर्श करने के बाद सरकारी गजट में होता है।

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प्रश्न 7.
‘नामांकन-पत्र’ से क्या आशय है? समझाइए।
उत्तर:
चुनाव से पहले उम्मीदवारों द्वारा नामांकन पत्र दाखिल किये जाते हैं। कोई भी व्यक्ति जिसका नाम मतदाताओं की सूची में है और जो निश्चित योग्यताएँ रखता हो, चुनाव में खड़ा हो सकता है।

प्रश्न 8.
चुनाव में राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न क्यों आबंटित किये जाते हैं?
उत्तर:
चुनावों में अनेक राजनीतिक दल तथा निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं। उनकी पहचान के लिए तथा मतदान की सुविधा के लिए प्रत्येक प्रत्याशी तथा राजनीतिक दल को चुनाव आयोग चिह्न देता है।

प्रश्न 9.
निर्वाचन आयोग में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो चुनाव आयुक्त होते हैं। इन दोनों चुनाव आयुक्तों को भी मुख्य चुनाव आयुक्त के समान अधिकार प्राप्त हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्वाचन से आप क्या समझते हैं? हमारे देश में इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हमारे देश में कौन-सी शासन प्रणाली है? इस प्रणाली में निर्वाचन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
निर्वाचन से आशय एवं आवश्यकता-भारत में संसदीय शासन प्रणाली है। इस शासन प्रणाली में देश के निर्वाचित प्रतिनिधियों से सरकार बनाई जाती है। निर्वाचन के द्वारा नागरिकों की शासन में भागीदारी होती है। नागरिकों द्वारा अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया निर्वाचन कहलाती है। निर्वाचन के द्वारा एक निश्चित समय के लिए जन-प्रतिनिधियों का चयन किया जाता है। हमारे राष्ट्र के नागरिक निर्वाचन में भाग लेकर अपने राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करते हैं। भारत एक विशाल और बहुभाषी राष्ट्र है। हमारे यहाँ सभी नागरिकों को समान रूप से प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है। मताधिकार की यह प्रणाली सार्वजनिक वयस्क मताधिकार प्रणाली कहलाती है। भारत में मतदान की गोपनीय प्रणाली को अपनाया गया है। भारत में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए, निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है।

प्रश्न 2.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से क्या आशय है? (2009, 15)
उत्तर:
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार-नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मताधिकार कहलाता है। यह अधिकार महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार है। भारत के प्रत्येक वयस्क महिला व पुरुष को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहलाता है। इस प्रणाली में एक निर्धारित आयु पूरा करने के उपरान्त देश के सभी पात्र नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। हमारे देश में वे सभी स्त्री-पुरुष जिनकी आयु 18 वर्ष है, वोट डालने के अधिकारी हैं।

प्रश्न 3.
मताधिकार की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मताधिकार की विशेषताएँ :
मताधिकार की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

  1. देश के सभी नागरिकों की शासन में हिस्सेदारी होती है।
  2. प्रत्येक नागरिक के मत को समान महत्त्व मिलता है।
  3. जन प्रतिनिधियों का शान्तिपूर्वक परिवर्तन सम्भव है।
  4. नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
  5. नागरिकों में आत्म-सम्मान की भावना उत्पन्न होती है।
  6. यह प्रणाली समानता के सिद्धान्त के अनुकूल है।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं? लिखिए। (2011)
उत्तर:
राष्ट्रीय राजनीतिक दल वे हैं जिनका प्रभाव सम्पूर्ण देश में होता है। इसका आशय यह नहीं है कि उनकी लोकप्रियता सभी राज्यों में एक जैसी है। उनका प्रभाव और इनकी शक्ति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त होने के लिए निम्न शर्त में से कोई एक का होना अनिवार्य है-जो दल एक या एक से अधिक राज्यों में लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में डाले गये मतों का कम से कम 6 प्रतिशत मत प्राप्त करे अथवा यदि कोई दल लोकसभा के सदस्यों का कम से कम 2 प्रतिशत स्थान प्राप्त करे और यह स्थान न्यूनतम तीन राज्यों में होना चाहिए।

प्रश्न 5.
राजनीतिक दल के चार कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. ये देश के हित में अनुकूल जनमत बनाते हैं।
  2. निर्वाचन में विजय प्राप्त करना और सरकार बनानो इनका प्रमुख कार्य है।
  3. ये सरकार और जनता के मध्य सेतु का कार्य करते हैं।
  4. शासक दल की निरंकुशता पर नियन्त्रण लगाने का प्रयास करते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वव्यापी वयस्क मताधिकार सिद्धान्त के गुण-दोष बताइए।
‘उत्तर:
गुण :

  1. चूँकि प्रजातन्त्र का आशय प्रत्येक व्यक्ति की शासन में सहभागिता है, तो यह वांछनीय है कि मताधिकार सर्वव्यापक हो। जन-जन की शासन में सहभागिता ही प्रजातन्त्र की प्राणशक्ति है।
  2. जिसका सम्बन्ध सबसे हो, ऐसे व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि बनाने में सबका हाथ होना चाहिए।
  3. मताधिकार समानता के सिद्धान्त के अनुरूप है, जो प्रजातन्त्र का मूलरूप है।
  4. जब तक मताधिकार सर्वव्यापी नहीं होगा तब तक यह आशा नहीं की जा सकती कि शासन का उद्देश्य सार्वजनिक हितों की प्राप्ति है।

दोष :

  1. यह कहा जाता है कि जनता के बड़े भाग को मताधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है।
  2. मैकाले व हेनरीसेन जैसे विचारकों का कथन है कि इसमें निरक्षर और नासमझ लोगों को भी मताधिकार प्राप्त हो जाता है।

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MP Board Class 7th Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1.4

MP Board Class 7th Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1.4

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से प्रत्येक का मान ज्ञात कीजिए
(a) (-30) ÷ 10
(b) 50 ÷ (-5)
(c) (-36) ÷ (-9)
(d) (-49) ÷ 49
(e) 13 ÷ [(-2)+1]
(f) 0 ÷ (-12)
(g) (-31) ÷ [(-30) + (-1)]
(h) [(-36) ÷ 12] ÷ 3 (i) [(-6)+5] ÷ [(-2) +1]
हल:
MP Board Class 7th Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1. 4

प्रश्न 2.
a, b और c के निम्नलिखित मानों में से प्रत्येक के लिए a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c) को सत्यापित कीजिए :
(a) a = 12, b = -4, c = 2.
(b) a = -10, b = 1, c = 1.
हल:
(a) यहाँ a = 12, b = – 4, c = 2
L.H.S = a ÷ (b + c) = 12 ÷ [(-4) + 2]
= 12 ÷ (-2)= – 6
R.H.S. = a ÷ b + a ÷ c = 12 + (-4) + 12 ÷ 2
= (-3) + 6 = 3
∵ -6 ≠ 3
अतएव, a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c)

(b) यहाँ a = -10, b = 1, c = 1
L.H.S. = a ÷ (b + c) = (- 10) ÷ (1 + 1)
= – 10 ÷ 2 = -5
R.H.S. = (a ÷ b) + (a ÷ c)
= [(-10) ÷ 1] + [(-10) ÷ 1]
= (-10) + (-10) = (-20)
∵ -5 ≠ – 20
∴ L.H.S. ≠ R.H.S.
अतएव, a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c)

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प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
हल:
(a) 369 ÷ 1 = 369 [∵ a ÷ 1 = a]
(b) (-75) ÷ 75 = -1 [∵ (-a) ÷ a = – 1]
(c) (-206) ÷ (-206) = 1 [∵ (-a) ÷ (-a) = 1]
(d) – 87 ÷ (-1)= 87 [∵ (-a) ÷(-1) = a]
(e) (-87) ÷ 1 =-87 [∵ (-a) ÷ 1 = -a]
(f) (-48) ÷ 48 = – 1
(g) 20 ÷ (-10) = – 2
(h) (-12) ÷ 4 = -3

प्रश्न 4.
पाँच ऐसे पूर्णांक युग्म (a, b) लिखिए ताकि a ÷ b = – 3 हो। ऐसा एक युग्म (6, – 2) है। क्योंकि 6 ÷ (-2) = – 3 है।
हल:
(i) ∵ [(-3) ÷ 1] = -3 ÷ 1 = -3
a ÷ b = – 3 से तुलना करने पर, a = -3, b = 1
अतः अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (-3, 1)

(ii) ∵ 9 ÷ (-3) = -3
a ÷ b = – 3 से तुलना करने पर, a = 9, b = – 3
अतः अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (9, -3)

(iii) ∵ (-15) ÷ 5 = – 3
a ÷ b = -3 से तुलना करने पर, a = – 15, b = 5
अत: अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (-15, 5)

(iv) ∵ 12 ÷ (-4) = -3
a ÷ b = – 3 से तुलना करने पर, a = 12, b = -4
अतः अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (12, -4)

(v) ∵ (-21) ÷ 7 = -3
a ÷ b = – 3 से तुलना करने पर, a = – 21, b = 7
अत: अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (-21, 7)

प्रश्न 5.
दोपहर 12 बजे तापमान शून्य से 10°C ऊपर था। यदि यह आधी रात तक 2°C प्रति घण्टे की दर से कम होता है, तो किस समय तापमान शून्य से 8°C नीचे होगा? आधी रात को तापमान क्या होगा?
हल:
दोपहर 12 बजे तापमान = 10°C
तापमान कम होने की दर = -2°C प्रति घण्टा
दोपहर 12 बजे से आधी रात तक का समय = 12
घण्टे 12 घण्टे में तापमान में परिवर्तन = 12 x (-2) °C
= – 24°C
अतः आधी रात को तापमान = + 10°C + (-24°C)
= -14°C
अब 10°C और -8°C के मध्य तापमान का अन्तर = 10°C – (-8°C) = 18°C
∴ तापमान 0°C से 8°C नीचे तक जाने में लगा समय
= कुल कमी/1 घण्टे में तापमान में अन्तर = 18/2 = 9 घण्टे
उत्तर अतः 18°C तापमान में अन्तर दोपहर 12 बजे से 9 घण्टे में होगा।
अतः दोपहर 12 बजे के बाद 9 घण्टे = रात्रि 9 बजे
अतएव, 9 बजे रात्रि को तापमान शून्य से 8°C नीचे होगा।

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प्रश्न 6.
एक कक्षा टेस्ट में प्रत्येक सही उत्तर के लिए (+ 3) अंक दिए जाते हैं और प्रत्येक गलत उत्तर के लिए (-2) अंक दिए जाते हैं। और किसी प्रश्न को हल करने का प्रयत्न नहीं करने पर कोई अंक नहीं दिया जाता है।
(i) राधिका ने 20 अंक प्राप्त किए। यदि उसके 12 उत्तर सही पाए जाते हैं, तो उसने कितने प्रश्नों का उत्तर गलत दिया है ?
(ii) मोहिनी टेस्ट में (-5) अंक प्राप्त करती है, जबकि उसके 7 उत्तर सही पाए जाते हैं। उसने कितने प्रश्नों का उत्तर गलत दिया है ?
हल:
प्रत्येक सही उत्तर के लिए अंक = +3
प्रत्येक गलत उत्तर के लिए अंक = – 2
(i) राधिका द्वारा प्राप्त कुल अंक = 20
सही उत्तर के लिए प्राप्त अंक = 12 x 3 = 36
∴ गलत उत्तर के लिए प्राप्त अंक = 20 – 36 = – 16
∴ गलत उत्तरों की संख्या = (-16) ÷ (-2)
अतः राधिका ने 8 प्रश्नों के उत्तर गलत दिए।

(ii) मोहिनी द्वारा प्राप्त अंक = -5
7 सही उत्तरों के लिए प्राप्त अंक = 7 x 3 = 21
∴ गलत उत्तरों के लिए प्राप्त अंक =-5-21 = -26
∴ गलत उत्तरों की संख्या = (-26) (-2) = 13
अतः मोहिनी ने 13 प्रश्नों का उत्तर गलत दिया है।

प्रश्न 7.
एक उत्थापक किसी खान कूपक में 6 m प्रति मिनट की दर से नीचे जाता है। यदि नीचे जाना भूमि तल से 10 मीटर ऊपर से शुरू होता है, तो – 350 m पहुँचने में कितना समय लगेगा?
हल:
उत्थापक की वर्तमान स्थिति भूमि तल से 10 मीटर ऊपर है।
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अतः उत्थापक को नीचे पहुँचने में 60 मिनट (या एक घण्टा) लगेंगे।

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 12 प्रजातन्त्र

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 12 प्रजातन्त्र

MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता लोकतन्त्र की नहीं है?
(i) निर्वाचित प्रतिनिधियों की सरकार
(ii) अधिकारों का सम्मान
(iii) शक्तियों का एक व्यक्ति में केन्द्रीयकरण
(iv) स्वतन्त्रता और निष्पक्ष चुनाव।
उत्तर:
(iii) शक्तियों का एक व्यक्ति में केन्द्रीयकरण

प्रश्न 2.
कौन-सी अवधारणा प्रजातन्त्र की है?
(2016)
(i) स्वतन्त्रता
(ii) शोषण
(iii) असमानता
(iv) व्यक्तिवादिता।
उत्तर:
(i) स्वतन्त्रता

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौन-सा प्रजातन्त्र का दोष नहीं है?
(i) सार्वजनिक धन व समय का अपव्यय
(i) धनिकों का वर्चस्व
(iii) दलीय गुटबन्दी
(iv) लोक कल्याण।
उत्तर:
(iv) लोक कल्याण।

प्रश्न 4.
प्रजातन्त्र, जनता का जनता के लिये जनता द्वारा संचालित शासन है
(2008, 14, 15)
(i) मैकियावली
(ii) रूसो
(iii) लिंकन
(iv) हाट्स।
उत्तर:
(iii) लिंकन

रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए

  1. अरस्तु ने प्रजातन्त्र को ………… का शासन कहा है। (2009, 10, 18)
  2. साम्यवाद के प्रवर्तक ………… और ………… थे।
  3. सफल प्रजातन्त्र के लिए संविधान का …………. होना आवश्यक है।
  4. निर्बल प्रजातन्त्र ………….. और …………. के समय प्रभावहीन सिद्ध होता है।

उत्तर:

  1. ‘बहुतों का शासन’
  2. कार्ल मार्क्स और लेनिन
  3. लिखित
  4. युद्ध और संकट।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तर वैदिक काल में प्रजातान्त्रिक सन्दर्भ में उसका उल्लेख पाया जाता है?
उत्तर :
उत्तर वैदिककाल में शासन का गणतान्त्रिक रूप एवं स्थानीय स्वशासन की संस्थाएँ विद्यमान थीं। ऋग्वेद में सभा और समिति का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 2.
प्राचीन भारत में शासन की मूल इकाई के रूप में किस प्रकार की व्यवस्था थी?
उत्तर:
प्राचीन भारत में भारतीय समाज कृषि प्रधान था जिसकी मूल इकाई स्वशासित एवं स्वतन्त्र ग्राम थे।

प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र का मार्क्सवादी सिद्धान्त किस अधिकार पर बल देता है?
उत्तर:
प्रजातन्त्र का मार्क्सवादी सिद्धान्त राजनीतिक एवं नागरिक समानताओं की अपेक्षा आर्थिक समानता पर अधिक बल देता है।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र का अर्थ समझाते हुए कोई दो परिभाषा लिखिए। (2009, 13, 15)
उत्तर:
प्रजातन्त्र का अर्थ-प्रजातन्त्र का अर्थ एक ऐसी शासन व्यवस्था से है जिसमें जनहित सर्वोपरि है। प्रजातन्त्र का अर्थ केवल एक शासन प्रणाली तक सीमित नहीं है। यह राज्य व समाज का रूप भी है। अर्थात् इसमें राज्य, समाज व शासन तीनों का समावेश होता है। राज्य के रूप में प्रजातन्त्र, जनता को शासन करने, उस पर नियन्त्रण करने एवं उसे हटाने की शक्ति है। समाज के रूप में प्रजातन्त्र इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था है जिसमें समानता का विचार और व्यवहार सर्वोपरि हो। व्यक्तित्व की गरिमा का समान मूल्य हो एवं विकास के समान अवसर सभी को प्राप्त हों। यह सम्पूर्ण जीवन का एक मार्ग है। यह मूल्यों की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति साध्य है और व्यक्तित्व का विकास इसका उद्देश्य है। यह स्वतन्त्रता एवं समरसता की पूर्व कल्पना पर आधारित है।

परिभाषाएँ :
अरस्तू ने प्रजातन्त्र को बहुतों का शासन’ कहा है। डायसी के अनुसार, “प्रजातन्त्र शासन .. का वह रूप है जिसमें शासन व्यवस्था की शक्ति सम्पूर्ण राष्ट्र में विस्तृत हो।”

प्रश्न 2.
अप्रत्यक्ष अथवा प्रतिनिधि प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? (2009, 16)
उत्तर:
अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र :
जब जनता निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि निर्माण तथा शासन के कार्यों पर नियन्त्रण रखने का कार्य करती है तो उसे अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। वर्तमान समय में अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रचलित है। इसमें जनता निश्चित अवधि के लिए अपने प्रतिनिधि चुनती है, जो व्यवस्थापिका का गठन करते हैं और कानूनों का निर्माण करते हैं। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति, निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम होती है।

प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र में राजनीतिक शिक्षण कैसे होता है?
उत्तर:
प्रजातन्त्र राजनीतिक शिक्षण का श्रेष्ठ साधन है। मताधिकार और राजनीतिक पद प्राप्त करने की स्वतन्त्रता के कारण जनता स्वाभाविक रूप से राजनीतिक क्षेत्र में रुचि लेने लगती है। भाषण अभिव्यक्ति एवं संचार माध्यमों के उपयोग की स्वतन्त्रता, जनता में विचारों के आदान-प्रदान करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है। उनमें उत्तरदायित्व तथा आत्म-निर्भरता की भावना का विकास होता है। सभी राजनीतिक दल निरन्तर प्रचार द्वारा जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करते हैं। अतः प्रजातन्त्र में नागरिकों को प्रशासनिक, राजनीतिक व सामाजिक सभी प्रकार का शिक्षण प्राप्त होता है।

प्रश्न 4.
प्रजातन्त्र के लिये संविधान क्यों आवश्यक है? इस पर टिप्पणी लिखिए। (2009, 10, 16)
उत्तर:
शासन संगठन के मूलभूत सिद्धान्त तथा प्रक्रिया निश्चित होना प्रजातन्त्र का महत्त्वपूर्ण लक्षण है, जिसमें कोई भी सत्तारूढ़ दल अपने बहुमत के आधार पर इसे जैसा चाहे वैसा परिभाषित या परिवर्तित न कर सके। शासन के अंगों का गठन, शासन की शक्तियाँ एवं कार्य, प्रक्रिया आदि संविधान में स्पष्ट हों, इसलिए लिखित संविधान का होना अनिवार्य माना गया है। प्रजातन्त्र नागरिकों की समानता एवं स्वतन्त्रता पर आधारित है। वास्तव में संविधान प्रजातन्त्र का प्राण होता है। बिना संविधान के कोई भी प्रजातन्त्र सफल नहीं हो सकता। इस प्रकार प्रजातन्त्र के लिए संविधान परम आवश्यक है।

प्रश्न 5.
वर्तमान में भारतीय प्रजातन्त्र किन-किन चुनौतियों से गुजर रहा है? लिखिए।
उत्तर:
भारत में प्रजातन्त्र के समक्ष चुनौतियाँ-भारत में प्रजातन्त्र के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी हैं। भारतीय प्रजातन्त्र आज निरक्षरता, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, पृथक्तावाद, साम्प्रदायिकता, राजनीतिक हिंसा, सामाजिक-आर्थिक असमानता, धन व बाहुबल के वर्चस्व, भ्रष्टाचार और वोट बैंक की राजनीति की समस्याओं से प्रभावित हो रहा है।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र से क्या आशय है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए। (2008, 09)
अथवा
प्रजातन्त्र की कोई पाँच विशेषताएँ बताइए और किसी एक विशेषता के बारे में वर्णन कीजिए। (2010)
अथवा
प्रजातन्त्र का क्या अर्थ है? प्रजातन्त्र की प्रमुख दो परिभाषाएँ लिखिए। (2008)
अथवा
प्रजातन्त्र की चार विशेषताएँ लिखिए। (2017, 18)
उत्तर:
प्रजातन्त्र का आशय-प्रजातन्त्र को अंग्रेजी भाषा में डेमोक्रेसी (Democracy) कहते हैं। प्रजातन्त्र का अंग्रेजी पर्याय डेमोक्रेसी दो यूनानी शब्दों से मिलकर बना है-‘डेमो’ (Demo) यानी ‘जनता’ तथा ‘क्रेटिया’ (Kratia) अर्थ है-शक्ति। इस प्रकार डेमोक्रेसी या प्रजातन्त्र का अर्थ हुआ जनता की शक्ति’ । अन्य शब्दों में कहा जाए तो ऐसी शासन प्रणाली जिसमें सर्वोच्च सत्ता जनता के पास रहती है और उसका उपयोग वह प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में करती है। इसे लोकतन्त्र या जनतन्त्र भी कहा जाता है।

परिभाषाएँ :
प्रजातन्त्र का अर्थ-प्रजातन्त्र का अर्थ एक ऐसी शासन व्यवस्था से है जिसमें जनहित सर्वोपरि है। प्रजातन्त्र का अर्थ केवल एक शासन प्रणाली तक सीमित नहीं है। यह राज्य व समाज का रूप भी है। अर्थात् इसमें राज्य, समाज व शासन तीनों का समावेश होता है। राज्य के रूप में प्रजातन्त्र, जनता को शासन करने, उस पर नियन्त्रण करने एवं उसे हटाने की शक्ति है। समाज के रूप में प्रजातन्त्र इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था है जिसमें समानता का विचार और व्यवहार सर्वोपरि हो। व्यक्तित्व की गरिमा का समान मूल्य हो एवं विकास के समान अवसर सभी को प्राप्त हों। यह सम्पूर्ण जीवन का एक मार्ग है। यह मूल्यों की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति साध्य है और व्यक्तित्व का विकास इसका उद्देश्य है। यह स्वतन्त्रता एवं समरसता की पूर्व कल्पना पर आधारित है।

आशय यह है कि प्रजातन्त्रात्मक शासन व्यवस्था लोक कल्याणकारी राज्य से सम्बन्धित है। इसमें व्यक्ति की महत्ता और उसकी स्वतन्त्रता पर बल दिया गया है तथा सम्प्रभुता जनता में निहित होना माना गया है।

प्रजातन्त्र की विशेषताएँ :
प्रजातन्त्र एकमात्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें सभी को अपने सर्वांगीण विकास के लिए बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्राप्त होते हैं प्रजातान्त्रिक व्यवस्था नागरिकों की गरिमा तथा समानता, स्वतन्त्रता, मातृत्व और न्याय के सिद्धान्तों पर आधारित है। प्रजातन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • जनता प्रभुसत्ता की स्वामी :
    प्रजातन्त्र में सत्ता का अन्तिम स्रोत राज्य की सम्पूर्ण जनता होती है।
  • शासन का संचालन जन प्रतिनिधियों द्वारा :
    प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था में शासन का संचालन जनता के प्रतिनिधि करते हैं।
  • राजनीतिक दलों के गठन की व्यवस्था :
    प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों का गठन अनिवार्य रूप से किया जाता है। दो या अधिक राजनीतिक दल होते हैं। जिस दल को सर्वाधिक बहुमत प्राप्त होता है, वही शासन का संचालन करता है।
  • चुनावों की व्यवस्था :
    प्रजातन्त्र में संविधान द्वारा निर्धारित तिथि पर चुनाव होते हैं। चुनाव का आधार वयस्क मताधिकार होता है।
  • नागरिकों को अधिकार व स्वतन्त्रताएँ प्रदान करना :
    नागरिक अपने मतों का उचित ढंग से प्रयोग कर सकें तथा अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकें। इसके लिए उन्हें यथा सम्भव अधिकार व स्वतन्त्रताएँ प्रदान की जाती हैं।
  • शासन जनता के प्रति उत्तरदायी :
    प्रजातन्त्रीय शासन जनता के प्रति उत्तरदायी होता है। जनहित की अवहेलना करने पर उसे पदच्युत किया जा सकता है।
  • लोक या जन कल्याणकारी राज्य का आदर्श :
    प्रजातन्त्र का प्रमुख आदर्श जनहित होता है। अत: इस शासन व्यवस्था में यथासम्भव लोक कल्याणकारी कार्यों को महत्त्व दिया जाता है।
  • स्वतन्त्र व निष्पक्ष न्यायपालिका :
    संविधान की समस्त व्यवस्थाएँ व्यवहार में लागू की जा सकें, इसलिए प्रजातन्त्र में स्वतन्त्र व निष्पक्ष न्यायपालिका का होना एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण लक्षण है।

प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रजातन्त्र के कोई चार गुण लिखिए। (2017)
अथवा
प्रजातन्त्र के दो-दो गुण-दोषों का वर्णन कीजिए। (2008, 14, 18)
अथवा
प्रजातन्त्र के दोषों का वर्णन कीजिए। (2008, 09)
उत्तर :
प्रजातन्त्र के गुण-प्रजातन्त्र के निम्नलिखित गुण हैं –

1. जन-कल्याण की भावना :
प्रजातन्त्र की सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि इसमें शासक गण जन-कल्याण के प्रति विशेष रूप से सजग तथा क्रियाशील रहते हैं। प्रजातन्त्र में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही शासन करते हैं। अतः वे जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। ऐसी दशा में उनके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे जनता के हित में ही शासन करें।

2. व्यक्तित्व के विकास के अवसर :
प्रजातन्त्र शासन में नागरिकों के प्रतिनिधि ही शासन में भाग लेते हैं। अतः इस प्रकार की प्रणाली में प्रत्येक नागरिक को अपने व्यक्तित्व के विकास के समान अवसर प्राप्त होते हैं।

3. देश-भक्ति की भावना का विकास :
प्रजातन्त्र में नागरिकों के हृदय में राज्य के प्रति निष्ठा तथा भक्ति की भावना उत्पन्न होती है। नागरिक यह अनुभव करते हैं कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि ही शासन का संचालन कर रहे हैं और वे जो कुछ भी करेंगे वह उनके हित में ही होगा। अतः प्रजातन्त्र में प्रत्येक नागरिक के हृदय में अपने देश के प्रति अगाध प्रेम होता है। मिल के अनुसार “प्रजातन्त्र लोगों में देश-भक्ति की भावना का विकास करता है, क्योंकि नागरिक यह अनुभव करते हैं कि सरकार उन्हीं की बनाई हुई है और अधिकारी उनके स्वामी न होकर, सेवक हैं।”

4. नैतिकता तथा उत्तरदायित्व की भावनाओं का विकास :
प्रजातन्त्रात्मक शासन-प्रणाली नागरिकों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास करती है। इस सम्बन्ध में मिल का कहना है कि “सत्यता, नैतिकता, साहस, आत्मविश्वास तथा उद्योगशीलता आदि गुणों का किसी अन्य शासन-प्रणाली की अपेक्षा लोकतन्त्र में अधिक विकास होता है।

5. क्रान्ति से सुरक्षा :
प्रजातन्त्र में नागरिकों की इच्छा के अनुसार ही शासन होता है। नागरिक जानते हैं कि वे इच्छानुसार अपने मत द्वारा अत्याचारी शासकों को अपदस्थ कर सकते हैं। अतः सरकार बदलने के लिए क्रान्ति की आवश्यकता नहीं पड़ती।

6. सार्वजनिक शिक्षण :
प्रजातन्त्रात्मक शासन में समस्त व्यक्तियों को सार्वजनिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता है। वे मतदान द्वारा तथा चुनाव में खड़े होकर राजनीति की शिक्षा प्राप्त करते हैं। उनमें उत्तरदायित्व तथा आत्मनिर्भरता की भावना का विकास होता है। बर्क के शब्दों में “सभी शासन शिक्षा के साधन होते हैं और सबसे अच्छी शिक्षा स्वशिक्षा है। इस प्रकार सबसे अच्छा शासन स्वशासन है, जिसे लोकतन्त्र कहते हैं।

7. स्वतन्त्रता व समानता की प्राप्ति :
प्रजातन्त्र का मूल आधार स्वतन्त्रता और समानता है। इस कारण प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेद-भाव के समान रूप से राजनीतिक अधिकार प्रदान किये जाते हैं। जाति, धर्म, नस्ल, रंग, सम्पत्ति आदि के आधार पर उनमें भेद-भाव नहीं किया जाता। यही ऐसा शासन है जिसमें सभी को अपना विकास करने के समान अवसर प्राप्त होते हैं।

प्रजातन्त्र के दोष :
प्रजातन्त्र के प्रमुख दोष निम्न प्रकार हैं –

  • योग्यता और गुण की अपेक्षा बहुमत का महत्त्व :
    प्रजातन्त्रात्मक शासन में योग्यता और गुण के स्थान पर संख्या और बहुमत को अधिक महत्त्व दिया जाता है। प्रत्येक बात का निर्णय बहुमत के आधार पर होता है, चाहे वह गलत ही क्यों न हो।
  • दल प्रणाली और गुटबन्दी के प्रभाव :
    प्रजातन्त्र शासन में दल प्रणाली और गुटबन्दी के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव जीतने के प्रयास में जनता को भ्रामक प्रचार द्वारा गुमराह करने का प्रयास करते हैं। एक दल दूसरे दल की कटु आलोचना करता है। योग्य व्यक्ति दलबन्दी से दूर भागते हैं तथा अयोग्य व्यक्ति राजनीति में सफलता प्राप्त कर लेते हैं।
  • अनुत्तरदायी शासन :
    इसे (प्रजातन्त्र को) जनता का शासन कहा जाता है क्योंकि सैद्धान्तिक रूप से उसे जनता के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए परन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं होता। प्रजातन्त्र में केवल चुने हुए प्रतिनिधि जो शासन के स्वामी हो जाते हैं, मन्त्रिमण्डल आदि के चुनाव के पश्चात् सर्वसाधारण की आवश्यकताओं, हितों तथा उनकी कठिनाइयों के प्रति तनिक भी चिन्ता नहीं करते। इस प्रकार प्रजातन्त्र अनुत्तरदायी शसान है।
  • समय की बर्बादी-प्रजातन्त्रात्मक शासन :
    प्रणाली में अनावश्यक रूप से समय का अपव्यय होता है। चुनाव तथा नीति निर्धारण आदि में ही काफी समय बर्बाद हो जाता है। किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पूर्व वाद-विवाद में भी समय व्यर्थ ही नष्ट होता है तथा निर्णय लेने में देर लगती है।
  • धन का अत्यधिक अपव्यय :
    इस प्रणाली में व्यवस्थापिका सभाओं के सदस्यों तथा मन्त्रिमण्डलं आदि पर पर्याप्त धन व्यय किया जाता है। चुनाव के समय भी पैसा आवश्यक रूप से खर्च होता है। व्यर्थ में कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ जाती है।
  • पूँजीपतियों का शासन :
    प्रजातन्त्र में शासन तथा सरकार पूँजीपतियों के हाथ की कठपुतली बन जाती है। धनवान व्यक्ति दलों को चन्दा देते हैं तथा पैसे की सहायता देकर अपने उम्मीदवारों को चुनाव में खड़ा करके उन्हें विजयी बनाते हैं। पूँजीपतियों द्वारा खड़े किये गये उम्मीदवार चुने जाने के पश्चात् उनके ही हित-साधन में जुट जाते हैं तथा जनसाधारण की उपेक्षा करते हैं। इस प्रकार प्रजातन्त्र में पूँजीवाद का पोषण ‘ होता है और जनसाधारण की उपेक्षा होती है।
  • युद्ध और संकट के समय दुर्बल :
    प्रजातन्त्रात्मक सरकार युद्ध और संकट के समय प्रायः दुर्बल सिद्ध होती है। युद्ध के समय शीघ्र निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, परन्तु इस प्रणाली की गति अत्यन्त मन्द होती है। इसीलिए शीघ्र निर्णय नहीं हो पाते।
  • पक्षपात और भ्रष्टाचार का बोलबाला :
    इस शासन-प्रणाली में शासन भ्रष्ट और शिथिल हो जाता है। जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि जनसाधारण के हितों की उपेक्षा कर भाई-भतीजे तथा सगे-सम्बन्धियों के हितों का ही ध्यान रखते हैं। इससे भाई-भतीजेवाद और भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र के आधारभूत सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। (2009, 14)
उत्तर:
प्रजातन्त्र के आधारभूत सिद्धान्त-प्रजातन्त्र के प्रमुख सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं –
(1) प्रजातन्त्र का अभिजनवादी सिद्धान्त :
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में प्रतिपादित यह सिद्धान्त मानव की प्राकृतिक असमानता के सिद्धान्त पर जोर देते हुए यह मानता है कि प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में शासक और शासित दो वर्ग होते है। शासक वर्ग हमेशा अल्पसंख्यक होते हुए भी सत्ता के केन्द्र में विशिष्ट वर्ग होता है। शासन की शक्ति इसी विशिष्ट वर्ग के हाथ में केन्द्रित होती है। सामान्यत: व्यक्ति यह सोचते हैं कि वे राजनीतिक प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं, लेकिन वास्तव में उनका प्रभाव चुनाव तक सीमित होता है। अभिजन का आधार है-श्रेष्ठता के आधार पर चयन। प्रकृति, विचार, आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि आदि किसी भी आधार पर इनकी श्रेष्ठता निर्भर हो सकती है, जो इन्हें आम लोगों से अलग बनाती है।

अभिजन भी स्वयं को आम लोगों से भिन्न एवं श्रेष्ठ समझते हैं, परन्तु जनसाधारण के साथ इनकी क्रिया-प्रतिक्रिया होती रहती है। इस प्रकार जन सम्प्रभुता का समन्वय हो जाता है। समाज की धन सम्पदा एवं नीति निर्धारण में अभिजन की प्रभावशाली भूमिका होती है, परन्तु प्रजातन्त्र में इस वर्ग में प्रवेश के सभी को समान अवसर प्राप्त होते हैं। दूसरी ओर नियमित एवं खुली निर्वाचन प्रक्रिया अभिजन को जनहित में कार्य करने हेतु बाध्य करती है।

(2) बहुलवादी सिद्धान्त :
यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि प्रजातन्त्र में व्यक्ति को अपने विभिन्न हितों की पूर्ति के लिये समूह में संगठित होने की स्वतन्त्रता है। ये समूह अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्त भी होते हैं और अपनी हितपूर्ति के लिये शासन पर दबाव भी डालते हैं। इस प्रकार सभी समूहों को अपनी हितपूर्ति की सीमा तक सत्ता में भागीदारी मिलती है। अतः सत्ता का विकेन्द्रीकरण इस सिद्धान्त की मूल धारणा है। अर्थात् राज्य ही सर्वोच्च सत्ता का अधिकारी नहीं अपितु प्रजातन्त्र में समाज के सभी समूहों की राजनीतिक शक्ति एवं शासन की सत्ता में भागीदारी होती है।

(3) प्रजातन्त्र का उदारवादी या शास्त्रीय सिद्धान्त :
इस सिद्धान्त में व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं समाज की सर्वोपरिता पर बल दिया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार शासन का आधार जनता की सहमति है, लेकिन सरकार यदि जनता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है, तो जनता निर्वाचन के माध्यम से सरकार को हटा सकती है। जनहित साधना उसका उद्देश्य है।

(4) मार्क्सवादी सिद्धान्त :
साम्यवाद की विचारधारा के आधुनिक प्रवर्त्तक कार्ल मार्क्स व लेनिन के विचारों पर आधारित प्रजातन्त्र का एक नवीन सिद्धान्त 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सामने आया। इस सिद्धान्त के अनुसार उदारवादी प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में वास्तविक प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है, क्योंकि इसमें शासन पर एक छोटे साधन सम्पन्न वर्ग का नियन्त्रण हो जाता है, जबकि प्रजातन्त्र जन कल्याण व उनकी समानता पर आधारित है। इस सिद्धान्त के अनुसार वास्तविक प्रजातन्त्र के लिये एक वर्ग विहीन तथा राज्यविहीन समाज की स्थापना होनी चाहिए। प्रजातन्त्र का यह सिद्धान्त राजनीतिक एवं नागरिक समानताओं की अपेक्षा आर्थिक समानता पर अधिक जोर देता है। इसकी मान्यता है कि यदि व्यक्ति के पास रोटी, कपड़ा, मकान नहीं है तो उसके पास मतदान या निर्वाचित होने का अधिकार कोई अर्थ नहीं रखता है। मार्क्सवाद वास्तविक प्रजातन्त्र की स्थापना हेतु निम्नलिखित सुझाव देता है –

  1. सम्पत्ति का समान वितरण तथा सभी की मूलभूत आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति होना।
  2. उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व देना।
  3. सभी के आर्थिक हित समान होने से इनके प्रतिनिधित्व के लिए एक दल-साम्यवाद दल के हाथ में शासन संचालन की सम्पूर्ण शक्ति देना।

प्रश्न 4.
भारत में प्रजातन्त्र के महत्त्व तथा स्वरूप का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
प्रजातन्त्र का महत्त्व :
अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र-जब जनता निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि निर्माण तथा शासन के कार्यों पर नियन्त्रण रखने का कार्य करती है तो उसे अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। वर्तमान समय में अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रचलित है। इसमें जनता निश्चित अवधि के लिए अपने प्रतिनिधि चुनती है, जो व्यवस्थापिका का गठन करते हैं और कानूनों का निर्माण करते हैं। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति, निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम होती है।

भारत में प्रजातन्त्र का स्वरूप :
भारत के लिए प्रजातन्त्र व प्रजातान्त्रिक संस्थाओं के विचार नवीन नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि लगभग 3000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के वैदिक काल में भारत की जनता के मध्य प्रतिनिधिक विचार-विमर्श की परम्परा थी। उत्तर वैदिककाल में शासन का गणतान्त्रिक रूप एवं स्थानीय स्वशासन की संस्थाएँ मौजूद थीं। ऋग्वेद व अथर्ववेद में सभा और समिति का वर्णन मिलता है। महाभारत के युद्ध के बाद बड़े साम्राज्य लुप्त होने लगे और कई गणतान्त्रिक राज्यों का उदय हुआ। महाजनपद काल में सोलह महाजनपद जन्मे जिनमें काशी, कोशल, मगध, कुरु, अंग, अवंति, गन्धार, वैशाली, मत्स्य इत्यादि शामिल थे।

इनमें से कुछ महाजनपदों में राजतन्त्र व अन्य में गणतन्त्र थे। महावीर और गौतम बुद्ध दोनों ही गणतन्त्र से आये थे। बौद्ध भिक्षुओं के कई नियम आधुनिक संसदीय शासन प्रणाली के नियमों से मिलते हैं। उदाहरण के लिए बैठक व्यवस्था, विभिन्न प्रकार के प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण, गणपूर्ति (कोरम) हिप, वोटों की गिनती, रोक प्रस्ताव, न्याय सम्बन्धी विचार आदि। बज्जि संघ में तो सभी लोग एक साथ एकत्रित होकर अपनी-अपनी सभाएँ करते थे। यह प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का स्वरूप था। यह संघ छ: गणराज्यों से मिलकर बना था। मौर्यकालीन भारत में ग्रामों और नगरों में स्वशासन की व्यापक व्यवस्था थी। भारत कृषि प्रधान था जिसकी मूल इकाई स्वशासित एवं स्वतन्त्र ग्राम थे। राजनीतिक संरचना इन ग्राम समुदायों की इकाईयों पर आधारित थी। चुनी हुई पंचायत गाँव का शासन चलाती थी। गाँव के मध्य में पंचायत हुआ करती थी, जहाँ बुजुर्ग परस्पर मिला करते थे। प्रत्येक वर्ष गाँव में पंचायत का चुनाव हुआ करता था। इन पंचायतों को न्याय करने का अधिकार प्राप्त था।

पंचायत ही भूमि का बँटवारा करती थी और कर एकत्रित करके गाँव की ओर से सरकार को भी देती थी। पंचायत के चुने हुए सदस्यों से कुछ समितियों का निर्माण किया जाता था और प्रत्येक समिति एक वर्ष के लिए बनाई जाती थी। यदि कोई सदस्य विपरीत व्यवहार करे तो उसे हटाया जा सकता था। यदि कोई सदस्य जन कोष का उचित लेखा-जोखा पेश न करे तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता था। केन्द्रीय स्तर पर राजा शासक था। यदि राजा दुर्व्यवहार करे तो उसे हटाने का प्रजा को भी अधिकार था। राजा को सलाह देने के लिए राज्य परिषद हुआ करती थी। राजा प्रजा की इच्छा के अनुसार कार्य करता था और राजा के सलाहकार (मन्त्री) स्थानीय स्तर के पंचों का सम्मान करते थे। अर्थात् प्राचीन समय में राजा के शासन का आशय प्रजा की सेवा करना था।

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प्रश्न 5.
प्रजातन्त्र की अवधारणा क्या है? वर्तमान भारतीय प्रजातन्त्र के स्वरूप का वर्णन कीजिए। (2008)
अथवा
वर्तमान भारतीय प्रजातन्त्र के स्वरूप का वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर:
प्रजातन्त्र की अवधारणा-राजनीतिक विकास में जो विभिन्न प्रकार की शासन व्यवस्थाएँ रहीं उनमें प्रजातन्त्र संसार की प्रमुख शासन प्रणाली मानी जाती है। इसकी प्रमुख अवधारणा यह है कि राज्य की सम्पूर्ण शक्ति की स्वामी जनता है, कोई व्यक्ति, समूह या कोई वंश नहीं। अतः जनता की सहभागिता प्रजातन्त्र का मूल आधार है। जिन निर्णयों या कार्यों का प्रभाव सभी पर पड़ता है, उन निर्णयों में सभी की भूमिका होनी चाहिए।

प्रजातन्त्र के प्रारम्भिक काल में सीमित जनसंख्या एवं सीमित क्षेत्रफल वाले छोटे राज्य होने से सारी जनता शासन संचालन सम्बन्धी निर्णयों में सहभागी होती थी। अतः सीमित क्षेत्रफल एवं सीमित जनसंख्या वाले छोटे-छोटे राज्यों में इसका व्यवहार होने लगा। यूनान के नगर राज्यों में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की शुरूआत मानी जाती है। वर्तमान राज्यों में उनके विस्तार एवं जनसंख्या की दृष्टि से बड़े होने से जनता द्वारा प्रत्यक्ष शासन सम्भव नहीं था। अत: जनता अप्रत्यक्ष रूप से अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन की शक्ति का उपयोग करती है। अतः वर्तमान में प्रजातन्त्र अप्रत्यक्ष रूप से जन प्रतिनिधियों के माध्यम से संचालित प्रजातन्त्र कहलाता है।

वर्तमान भारतीय प्रजातन्त्र-स्वतन्त्रता प्राप्त होने के कुछ समय पूर्व ही भारत में एक संविधान सभा की स्थापना की गयी थी, जिसने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान निर्माण का कार्य पूर्ण किया और 26 जनवरी, 1950 से यह संविधान लागू किया गया। संविधान के द्वारा भारत में एक प्रजातन्त्रात्मक गणराज्य की स्थापना की गयी है और प्रजातन्त्र के आधारभूत सिद्धान्त ‘वयस्क मताधिकार’ को स्वीकार किया गया है। संविधान के द्वारा एक धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना की गयी और नागरिकों को शासन के हस्तक्षेप से स्वतन्त्र रूप में मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। व्यवहार में भी भारतीय नागरिक इन स्वतन्त्रताओं का पूर्ण उपभोग कर रहे हैं। इस प्रकार यह कहा जाता है कि भारतीय संविधान आदर्श रूप में एक लोकतन्त्रात्मक संविधान है।

आज तक सम्पन्न हुए विभिन्न लोकसभा और विधान सभा चुनावों में भारतीय नागरिकों के द्वारा सक्रिय सहभागिता एवं परिपक्वता का परिचय दिया है। आपातकाल के अपवाद को छोड़कर समय से एवं निष्पक्ष चुनावों का होना, भारतीय प्रजातन्त्र की निरन्तरता का सूचक है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पन्न होने वाले पंचायतों एवं नगरीय क्षेत्रों में नगरीय निकायों के चुनाव भी भारतीय प्रजातन्त्र की व्यापकता का प्रमाण है।

भारतीय जनता लोकतन्त्रीय व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्ध है और भविष्य में किसी भी शासक वर्ग के द्वारा लोकतन्त्र की अवहेलना का दुस्साहस नहीं किया जा सकेगा। लेकिन लोकतन्त्रीय शासन के ढाँचे को बनाये रखना ही पर्याप्त नहीं है; लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि लोकतन्त्र के लक्ष्य को प्राप्त किया जाए और वह लक्ष्य है-सामाजिक एवं आर्थिक न्याय। हम इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाये हैं और दुःखद तथ्य यह है कि हम इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में भी आगे नहीं बढ़ रहे हैं। भारत और भारतीय मनोभूमि में लोकतन्त्र गहरा बैठ गया है और यही भविष्य में इसकी सफलता का सबसे बड़ा आधार है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की शुरूआत मानी जाती है (2008)
(i) ब्रिटिश के नगर राज्यों से
(ii) यूनान के नगर राज्यों से
(iii) फ्रांस के नगर राज्यों से
(iv) जर्मनी के राज्यों से।
उत्तर:
(ii) यूनान के नगर राज्यों से

प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र को ‘बहुतों का शासन’ कहा है (2008)
(i) डायसी,
(ii) अब्राहम लिंकन
(iii) अरस्तू
(iv) लेनिन।
उत्तर:
(iii) अरस्तू

प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र का अभिजनवादी सिद्धान्त किस शताब्दी के प्रारम्भ में प्रतिपादित हुआ?
(i) 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में
(ii) 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में
(iii) 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(iii) 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में

प्रश्न 4.
प्रजातन्त्र का शास्त्रीय सिद्धान्त
(i) बहुलवादी सिद्धान्त भी कहलाता है
(ii) प्रजातन्त्र का विशिष्ट वर्गीय सिद्धान्त भी कहलाता है
(iii) उदारवादी सिद्धान्त भी कहलाता है
(iv) अभिजनवादी सिद्धान्त भी कहलाता है।
उत्तर:
(iii) उदारवादी सिद्धान्त भी कहलाता है

MP Board Solutions

प्रश्न 5.
प्रथम महायुद्ध के पश्चात् 1990 तक साम्यवाद की विचारधारा का प्रयोग हुआ
(i) स्विट्जरलैण्ड में
(ii) ब्रिटेन में
(iii) सोवियत संघ में
(iv) फ्रांस में।
उत्तर:
(iii) सोवियत संघ में

प्रश्न 6.
भारत में आपातकाल लागू हुआ
(i) 1970-1972
(ii) 1972-1974
(iii) 1975-1977
(iv) 1978-1980
उत्तर:
(iii) 1975-1977

रिक्त स्थान पूर्ति

  1. ………. जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा संचालित शासन है। (2017)
  2. निश्चित भू-भाग, जनसंख्या, सरकार और सम्प्रभुता से निर्मित समूह ………… कहलाता है। (2011)
  3. वर्तमान में भारत विश्व का सबसे बड़ा ……….. देश है। (2012)
  4. स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त भारतीय संविधान ………. में लागू हुआ। (2009)

उत्तर:

  1. प्रजातन्त्र
  2. राज्य
  3. प्रजातांत्रिक
  4. 26 जनवरी, 1950।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
शोषण की अवधारणा प्रजातन्त्र की है। (2017)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2.
वर्तमान समय में अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रचलित है।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र में स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव होना चाहिए। (2015)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
प्रजातन्त्र में उत्तरदायी शासन व्यवस्था नहीं होती। (2009)
उत्तर:
असत्य

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प्रश्न 5.
डायसी ने प्रजातन्त्र को ‘बहुतों का शासन’ कहा है। (2014)
उत्तर:
असत्य।

सही जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 12 प्रजातन्त्र - 1

उत्तर:

  1. → (घ)
  2. → (ग)
  3. → (ख)
  4. → (ङ)
  5. → (क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
राज्य की. सर्वोच्च सत्ता। (2016)
उत्तर:
सम्प्रभुता

प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र का मार्क्सवादी सिद्धान्त किस अधिकार पर बल देता है?
उत्तर:
आर्थिक समानता

प्रश्न 3.
‘प्रजातन्त्र, जनता का, जनता के लिये, जनता द्वारा संचालित शासन है’ यह कथन किसका है? (2009)
उत्तर:
अब्राहम लिंकन का

प्रश्न 4.
स्विट्जरलैण्ड के राजनैतिक प्रशासनिक प्रान्त/इकाई। (2016)
उत्तर:
कैण्टन

प्रश्न 5.
कौन-सी अवधारणा प्रजातन्त्र की है? (2013)
उत्तर:
स्वतन्त्रता।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र आरम्भिक काल में किन निर्णयों में सहभागी होती थी ?
उत्तर:
प्रजातन्त्र के आरम्भिक काल में सीमित जनसंख्या एवं सीमित क्षेत्रफल वाले छोटे राज्य होने से सारी जनता शासन संचालन सम्बन्धी निर्णयों में सहभागी होती थी।

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प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रजातन्त्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासन की शक्ति जनता के पास होती है और शासन . संचालन जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से करती है।

प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र के बहुलवादी सिद्धान्त की मूल धारणा क्या है?
उत्तर:
सत्ता का विकेन्द्रीकरण इस सिद्धान्त की मूल धारणा है।

प्रश्न 4.
प्रजातन्त्र के मार्क्सवादी सिद्धान्त के अनुसार किस प्रकार के समाज की स्थापना होनी चाहिए?
उत्तर:
प्रजातन्त्र के मार्क्सवादी सिद्धान्त के अनुसार सच्चे प्रजातन्त्र के लिये एक वर्ग विहीन तथा राज्य विहीन समाज की स्थापना होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
प्रजातन्त्र के प्रमुख प्रकार लिखिए।
उत्तर:
साधारणतः प्रजातन्त्र दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र और अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि मूलक प्रजातन्त्र।

प्रश्न 6.
प्रजातन्त्र की रक्षा के लिए किस प्रकार का संविधान होना आवश्यक है?
उत्तर:
प्रजातन्त्र की रक्षा के लिए लिखित संविधान का होना आवश्यक है।

प्रश्न 7.
भारतीय प्रजातन्त्र की आंशिक पूर्वपीठिका किसे कहा गया?
उत्तर:
ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम एवं भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा बनाये गये कानून, वर्तमान भारतीय प्रजातन्त्र की आंशिक पूर्वपीठिका कही जा सकती है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र :
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में राज्य की प्रभुता सम्पन्न जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन के कार्यों में भाग लेती है, नीति निर्धारित करती है, कानून बनाती है और प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त कर उन पर नियन्त्रण रखती है।

प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कम जनसंख्या वाले एवं छोटे आकार वाले राज्यों में ही सम्भव है। वर्तमान में बड़े आकार वाले राष्ट्रों में जहाँ नागरिकों की संख्या करोड़ों में होती है, प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है। वर्तमान में स्विट्जरलैण्ड के कुछ कैंटनों एवं भारत में पंचायत राज व्यवस्था के अन्तर्गत ग्रामसभाओं में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की व्यवस्था है।

प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र का महत्त्व स्पष्ट कीजिए। (2008, 09, 11)
उत्तर:
प्रजातन्त्र का महत्त्व :
प्रजातन्त्र स्वतन्त्रता, समानता, सहभागिता और भाई-चारे की भावना पर आधारित शासन व्यवस्था है। इसे हम एक सामाजिक व्यवस्था भी कह सकते हैं। इसके अन्तर्गत मानव का सम्पूर्ण जीवन इस लोकतन्त्रीय मान्यता पर आधारित होता है कि प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान महत्त्व एवं व्यक्तित्व की गरिमा प्राप्त है। व्यक्ति के महत्त्व की यह स्थिति यदि जीवन के केवल राजनीतिक क्षेत्र में ही हो, तो प्रजातन्त्र अधूरा रहता है। प्रजातन्त्र की पूर्णता के लिए यह अनिवार्य है कि जीवन के राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक तीनों ही क्षेत्रों में सभी व्यक्तियों को अपने विकास के समान अवसर प्राप्त हों।

मानव जीवन के राजनीतिक क्षेत्र में प्रजातन्त्र से आशय ऐसी राजनीतिक व्यवस्था से है जिसमें निर्णय लेने की शक्ति किसी एक व्यक्ति में न होकर जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों में निहित होती है। सामाजिक क्षेत्र में प्रजातन्त्र से आशय इस प्रकार के समाज से है, जिसमें जाति, धर्म, रंग, लिंग, नस्ल, मूलवंश व सम्पत्ति के आधार पर भेद-भाव न हो।

आर्थिक क्षेत्र में प्रजातन्त्र से आशय इस प्रकार की व्यवस्था से है जिसमें समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका चुनने या व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता प्राप्त हो। अर्थात् व्यक्ति को रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा रोजगार आदि की सुविधाएँ प्रजातन्त्र के आधार हैं। अतः प्रजातन्त्र न केवल शासन का एक विशेष प्रकार है बल्कि यह जीवन के प्रति एक विशिष्ट दृष्टिकोण है।

प्रश्न 3.
“स्वतन्त्रता प्रजातंत्र की आत्मा है।” कथन की पुष्टि कीजिए। (2015)
उत्तर:
प्रजातंत्र में नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए अनेक प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं। राजनैतिक स्वतन्त्रता के अतिरिक्त नागरिकों को अनेक प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतन्त्रताओं के अधिकार भी प्राप्त होते हैं। प्रजातंत्र में नागरिकों को मत देने, निर्वाचित होने, सार्वजनिक पद ग्रहण करने, भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता सूचना प्राप्त करने का अधिकार सम्मेलन सभा करने, समूह बनाने, व्यापार व्यवसाय करने आदि की स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं। नागरिक यदि शासन की नीतियों से असहमत हों, तो संयमित विरोध की स्वतन्त्रता भी उन्हें प्राप्त है। स्वतन्त्रता प्रजातंत्र की आत्मा है। बिना स्वतन्त्रता प्रजातंत्र सम्भव नहीं है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 12 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र के प्रकारों का वर्णन कीजिए।(2011)
अथवा
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में अन्तर लिखिए। (2012)
उत्तर:
साधारणतः प्रजातन्त्र दो प्रकार का होता है –
(1) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र :
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में राज्य की प्रभुता सम्पन्न जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन के कार्यों में भाग लेती है, नीति निर्धारित करती है, कानून बनाती है और प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त कर उन पर नियन्त्रण रखती है।

प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कम जनसंख्या वाले एवं छोटे आकार वाले राज्यों में ही सम्भव है। वर्तमान में बड़े आकार वाले राष्ट्रों में जहाँ नागरिकों की संख्या करोड़ों में होती है, प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है। वर्तमान में स्विट्जरलैण्ड के कुछ कैंटनों एवं भारत में पंचायत राज व्यवस्था के अन्तर्गत ग्रामसभाओं में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की व्यवस्था है।

(2) अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र :
जब जनता निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि निर्माण तथा शासन के कार्यों पर नियन्त्रण रखने का कार्य करती है तो उसे अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। वर्तमान समय में अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रचलित है। इसमें जनता निश्चित अवधि के लिए अपने प्रतिनिधि चुनती है, जो व्यवस्थापिका का गठन करते हैं और कानूनों का निर्माण करते हैं। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति, निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम होती है।

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MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions

MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions

MP Board Class 9th Maths Chapter 13 अतिरिक्त परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Maths Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दोनों ओर से खली एक बेलनाकार टयूब एक लोहे की चादर की बनी है, जिसकी मोटाई 2 cm है। यदि इसका व्यास 16 cm और लम्बाई 100 cm है, तो ज्ञात कीजिए कि इस को
बनाने में कितने cm³ लोहे का प्रयोग किया गया ?
हल :
दिया है: एक बेलनाकार ट्यूब के आधार का बाह्य व्यास d = 16 cm
⇒ त्रिज्या r1 = 16/2 = 8 cm
और लम्बाई (लम्बाई) h = 100 cm तथा धातु की मोटाई = 2 cm.
⇒ आधार की आन्तरिक त्रिज्या r2 = 8 – 2 = 6 cm
लोहे का आयतन = π(r12 – r22) h = \(\frac { 22 }{ 7 }\) [(8)² – (6)²] x 100
= \(\frac { 22 }{ 7 }\) (64 – 36) x 100
= \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 28 x 100
= 8800 cm³
अत: लोहे का अभीष्ट आयतन = 8800 cm³.

प्रश्न 2.
28 cm व्यास वाली एक अर्द्धवृताकार धातु की चादर को मोड़कर एक शंकु के आकार का खुला कप बनाया गया है। इस कप की धारिता ज्ञात कीजिए।
हल :
ज्ञात है : 28 cm व्यास वाले एक अर्द्धवृताकार धातु की चादर को मोड़कर एक शंकु के आकार में मोड़ा गया है जिसकी तिर्यक ऊँचाई l = \(\frac { 28 }{ 2 }\) = 14 cm तथा आधार की परिधि
2πr’ = π x 14 cm
⇒ r’ = 14/2 = 7 cm
शंकु की ऊँचाई \(h=\sqrt{l^{2}-\left(r^{\prime}\right)^{2}}\)
\(=\sqrt{(14)^{2}-(7)^{2}}\)
\(=\sqrt{196-49}\)
= √147
= 7√3 cm
कप की धारिता = शंकु का आयतन = \(\frac{1}{3} \pi r^{2} h\)
⇒ \(V=\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times(7)^{2} \times 7 \sqrt{3}\)
= 622.38 cm³ (लगभग)
अतः कप की अभीष्ट धारिता = 622.38 cm³. (लगभग)

प्रश्न 3.
165 m² क्षेत्रफल वाले एक कपड़े को 5 m त्रिज्या वाले एक शंक्वाकार तम्बू के रूप में बनाया जाता है।
(i) इस तम्बू में कितने विद्यार्थी बैठ सकते हैं, यदि औसतन एक विद्यार्थी भूमि पर \(\frac { 5 }{ 7 }\) m² स्थान घेरता है ?
(ii) इस शंकु का आयतन ज्ञात कीजिए।
हल :
∵ शंक्वाकार तम्बू का पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल = कपड़े का क्षेत्रफल
πrl = \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 5 x l= 165
\(l=\frac{165 \times 7}{22 \times 5}=\frac{21}{2}=10 \cdot 5 \mathrm{m}\)
शंकु की ऊँचाई \(h=\sqrt{l^{2}-r^{2}}\)
\(=\sqrt{(10 \cdot 5)^{2}-(5)^{2}}\)
\(h=\sqrt{110 \cdot 25-25}=\sqrt{85 \cdot 25}\)
= 9.233 m

(i) वृत्ताकार आधार का क्षेत्रफल = πr² = \(\frac { 22 }{ 7 }\) x (5)² = \(\frac { 550 }{ 7 }\) m²
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions image 1
\(=\frac{550 / 7}{5 / 7}\)
= 110
अतः विद्यार्थियों की अभीष्ट संख्या = 110.

(ii) तम्बू का आयतन \(V=\frac{1}{3} \pi r^{2} h=\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 5^{2} \times 9 \cdot 233\)
= 241.81
अतः शंकु का अभीष्ट आयतन = 241.81 m³.

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प्रश्न 4.
किसी फैक्ट्री के लिए पानी एक अर्द्धगोलाकर टंकी से संचरित किया जाता है जिसका आन्तरिक व्यास 14 m है। इस टंकी में 50 किलोलीटर पानी है। इस टंकी को पूरा भरने के लिए पम्प द्वारा भरा जाता है। टंकी में पम्प द्वारा भरे गए पानी का आयतन ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है : अर्द्धगोलाकार टंकी का आन्तरिक व्यास d = 14 m
त्रिज्या R = d/2 = 14/2 = 7 cm टंकी में पानी 50 किलोलीटर
टंकी की धारिता \(V=\frac{2}{3} \pi R^{3}=\frac{2}{3} \times \frac{22}{7} \times(7)^{3}\)
= \(\frac { 2156 }{ 3 }\)
= 718.67 m³
= 718.67 kL
पम्प द्वारा भरा गया पानी = 718.67 – 50
= 668.67 kL
अतः पम्प द्वारा भरे गए पानी का आयतन = 668.67 kL.

प्रश्न 5.
दो गोलों के आयतनों का अनुपात 64 : 27 है, उनके पृष्ठीय क्षेत्रफलों का अनुपात ज्ञात कीजिए।
हल :
मान लीजिए गोलों के आयतन V1 एवं V2, पृष्ठीय क्षेत्रफल S1 और S2 तथा त्रिज्याएँ R1 और R2 हैं। दिया है : V1 : V2 = 64 : 27
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions image 2
अत: गोलों के पृष्ठीय क्षेत्रफलों का अनुपात = 16 : 9.

प्रश्न 6.
4 cm भुजा वाले एक घन के अन्दर एक गोला जो उसके तलों को स्पर्श करता है। इन दोनों के बीच में रिक्त स्थान का आयतन ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है : घन की प्रत्येक भुजा 4 cm, घन के अन्दर एक गोला उसके तलों को स्पर्श करता हुआ अतः गोले कां व्यास = धन की भुजा
d = 4 cm
R = \(\frac { 4 }{ 2 }\) = 2 cm,
गोले का आयतन = \(=\frac{4}{3} \pi R^{3}=\frac{4}{3} \times \frac{22}{7} \times(2)^{3}\)
\(=\frac{22 \times 32}{21}=\frac{704}{21}\)
= 33.52 cm³
एवं घन का आयतन = (a)³ = (4)³ = 64 cm³
रिक्त स्थान का आयतन = 64 – 33.52
= 30.48 cm³
अतः अभीष्ट रिक्त स्थान का आयतन = 30.48 cm³.

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प्रश्न 7.
एक ही त्रिज्या वाले एक गोले और एक लम्बवृत्तीय बेलन के आयतन बराबर हैं। बेलन का व्यास उसकी ऊँचाई से कितने प्रतिशत अधिक है ?
हल :
दिया है : बेलन की त्रिज्या = गोले की त्रिज्या = R मात्रक
मान लीजिए बेलन की ऊँचाई = h मात्रक, बेलन का आयतन = गोले का आयतन (दिया है)
πR²h = \(\frac { 4 }{ 3 }\)πR³
बेलन की ऊँचाई h = \(\frac { 4 }{ 3 }\)R
बेलन का व्यास d = 2R
बेलन का व्यास – बेलन की ऊँचाई \(=2 R-\frac{4}{3} R=\frac{6 R-4 R}{3}=\frac{2}{3} R\)
प्रतिशत अधिकता \(=\frac{2 / 3 R}{4 / 3 R} \times 100\)
= 50%
अतः बेलन का व्यास बेलन की ऊँचाई से 50% अधिक है।

प्रश्न 8.
30 वृत्ताकार प्लेटों को जिनमें से प्रत्येक की त्रिज्या 14 cm है और मोटाई 3 cm है, एक के ऊपर एक रखकर एक बेलनाकार ठोस बनाया गया है। इस प्रकार बने बेलन का ज्ञात कीजिए
(i) कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल
(ii) आयतन।
हल :
ज्ञात है : बने बेलन की त्रिज्या = वृत्ताकार प्लेट की त्रिज्या = 14 cm,
बने बेलन की ऊँचाई h = प्लेटों की संख्या x मोटाई = 30 x 3 = 90 cm
(i) बेलन का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πr (h + r)
= 2 x \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 14(90 + 14)
= 88 x 104
= 9152 cm²
अतः बेलन का अभीष्ट कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल = 9152 cm².

(ii) बेलन का आयतन = πr²h = \(\frac { 22 }{ 7 }\) x (14)² x 90
= 55440 cm³
अतः बेलन का अभीष्ट आयतन = 55440 cm³.

MP Board Class 9th Maths Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक 16 cm x 8 cm x 8 cm आन्तरिक विमाओं वाले आयताकार पेटी में, धातु के गोले पैक किए जाते हैं जिनमें से प्रत्येक की त्रिज्या 2 सेमी है। 16 गोले पैक किए (रखे) जाने पर पेटी को एक परिरक्षक द्रव से भर दिया जाता है। इस द्रव का आयतन ज्ञात कीजिए। अपना उत्तर निकटतम पूर्णांक तक दीजिए। (π = 3.14 का प्रयोग कीजिए।)
हल :
पेटी की धारिता = 16 x 8 x 8 = 1024 cm³
1 गोले का आयतन \(=\frac{4}{3} \pi R^{3}=\frac{4}{3} \times \frac{22}{7} \times(2)^{3}\)
\(=\frac{32 \times 22}{21}=\frac{704}{21}\)
= 33.524 cm
गोलों का आयतन V2 = 16 x 33.524
= 536.384 cm³
= 536 cm³
(निकटतम पूर्णांक से) द्रव का आयतन = पेटी का आयतन – 16 गोलों का आयतन
= 1024 – 536
= 488 cm³
अतः द्रव का अभीष्ट आयतन = 488 cm³.

प्रश्न 2.
पानी को संचरित करने वाली एक टंकी एक घन के आकार की है। इसे पूरा भरने पर इसमें पानी का आयतन 15.625 m³ है। यदि इस टंकी में पानी की गहराई 1.3 m है, तो इस टंकी
में से पहले से प्रयुक्त किए गए पानी का आयतन ज्ञात कीजिए।
हल :
माना घनाकार टंकी की एक भुजा = a m है, तो टंकी का आयतन = a³ = 15.625 (दिया गया है)
a³ = (2.5)³ = a = 2.5 m
प्रयुक्त पानी का ऊँचाई h = 2.5 – 1.3 = 1.2 m
प्रयुक्त पानी का आयतन V = 2.5 x 2.5 x 1.2 = 7.5 m³
अतः पहले से प्रयुक्त पानी का अभीष्ट आयतन = 7.5 m³.

प्रश्न 3.
यदि 4.2 cm व्यास वाली एक गोलाकार गेंद को पूर्णतः पानी में डुबो दिया जाए तो उसके द्वारा विस्थापित पानी का आयतन ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है : गोलाकार गेंद का व्यास d = 4.2 cm ⇒ त्रिज्या R = 2.1 cm
चूँकि हटाए गए पानी का आयतन = गोलाकार गेंद का आयतन
⇒ हटाए गए पानी का आयतन = \(\frac{4}{3} \pi R^{3}=\frac{4}{3} \times \frac{22}{7} \times(2 \cdot 1)^{3} \cdot \mathrm{cm}^{3}\)
= 88 x 2.1 x 2.1 x 0.1
= 38.808 cm³
अतः गेंद द्वारा हटाए गए पानी का अभीष्ट आयतन = 38:808 cm³.

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प्रश्न 4.
उस शंक्वाकार तम्बूको बनाने में लगे कैनवासका क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए जिसकी ऊँचाई 3.5m है तथा आधार की त्रिज्या 12 m है।
हल :
शंकु की ऊँचाई h = 3.5 m एवं त्रिज्या 12 मीटर दी गई है।
शंक्वाकार तम्बू की तिर्यक ऊँचाई
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions image 3
कैनवास का क्षेत्रफल = शंक्वाकार तम्बू का पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल
= πrl
= \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 12 x 12.5
= \(\frac { 3300 }{ 7 }\)
= 471.43 m²
अतः कैनवास का अभीष्ट क्षेत्रफल = 471.43 m².

प्रश्न 5.
एक ही धातु के बने दो ठोस गोलों का भार 5920g और 740g है। यदि छोटे गोले का व्यास 5 cm है तो बड़े गोले की त्रिज्या ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है : बड़े गोले का द्रव्यमान m1 = 5920 g एवं छोटे गोले का द्रव्यमान m2 = 740g
छोटे गोले का व्यास d1 = 5 cm ⇒ उसकी त्रिज्या r2 = 5/2 cm
मान लीजिए बड़े गोले की त्रिज्या r1 तथा धातु का घनत्व d है, तो
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions image 4
अत: बड़े गोले की अभीष्ट त्रिज्या = 5 cm.

प्रश्न 6.
कोई स्कूल अपने विद्यार्थियों को प्रतिदिन 7 cm व्यास वाले बेलनाकार गिलासों में दूध देता है। यदि गिलास दूध से 12 cm ऊँचाई तक भरा जाता है, तो ज्ञात कीजिए कि 1600 विद्यार्थियों के लिए प्रतिदिन कितने लीटर दूध की आवश्यकता होगी ?
हल :
दिया है : बेलनाकार गिलास का व्यास d = 7 cm ⇒ त्रिज्या r = 7/2 cm
गिलास में दूध स्तम्भ की ऊँचाई h = 12 cm तथा स्कूल में छात्रों की संख्या = 1600
1 गिलास में दूध का आयतन = πr²h
= \(\frac{22}{7} \times\left(\frac{7}{2}\right)^{2} \times 12 \mathrm{cm}^{3}\)
= 462 cm³
1600 विद्यार्थियों के लिए आवश्यक दूध = 1600 x 462 cm³
= 739200 cm³
= 739.2 लीटर
अतः आवश्यक अभीष्ट दूध = 739.2 लीटर।

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प्रश्न 7.
2.5 m लम्बे और 1.75m त्रिज्या वाले एक बेलनाकार रोलर (roller) को जब सड़क पर रोल किया गया, तो पाया गया कि उसने 5500 m² के क्षेत्रफल को तय कर लिया। रोलर ने कितने चक्कर लगाए ?
हल :
रोलर की लम्बाई l = 2.5 m एवं त्रिज्या r = 1.75 m
तय किया गया कुल क्षेत्रफल = 5500 m²
रोलर का पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πrh
= 2 x \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 1.75 x 2.5 m³
= 44 x 0.25 x 2.5
= 27.5 m²
चूँकि रोलर द्वारा लगाए गए चक्करों की संख्या
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions image 5
अतः रोलर द्वारा लगाए गए अभीष्ट चक्कर = 200.

प्रश्न 8.
5000 जनसंख्या वाले एक छोटे गाँव में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 75 लीटर पानी की आवश्यकता है। इस गाँव में 40 m x 25 m x 15 m मापन की एक उपरि टंकी हैं। इस टंकी का पानी कितने दिन तक पर्याप्त रहेगा?
हल :
टंकी का आयतन V = 40 x 25 x 15
= 15,000 m³
= 15,000 x 1000
= 1,50,00,000 लीटर
एक दिन में गाँव में पानी की आवश्यकता = 5000 x 75 लीटर
= 3,75,000 लीटर
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions image 6
अतः टंकी का पानी अभीष्ट 40 दिन तक पर्याप्त होगा।

प्रश्न 9.
एक दुकानदार के पास 5 cm त्रिज्या का एक लड्डू है। इतनी ही सामग्री से 2.5 cm त्रिज्या वाले कितने लड्डू बनाए जा सकते हैं ?
हल :
दिया है : बड़े लड्डू की त्रिज्या r1 = 5 cm और छोटे की त्रिज्या r2 = 2.5 cm
मान लीजिए छोटे लड्डुओं की संख्या n है, तो
बड़े लड्डू का आयतन = n छोटे लड्डुओं का आयतन
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions image 7
अतः 8 नए लड्डू बनाए जा सकते हैं।

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प्रश्न 10.
6 cm, 8 cm और 10 cm वाले एक समकोण त्रिभुज को 8 cm वाली भुजा के परितः घुमाया जाता है। इस प्रकार बनने वाले ठोस का आयतन और वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है : 6 cm, 8 cm एवं 10 cm भुजाओं वाले एक समकोण त्रिभुज को 8 सेमी वाली भुजा के परितः घुमाने पर बना ठोस एक लम्बवृत्तीय शंकु है जिसके आधार की त्रिज्या r = 6 cm, ऊँचाई h = 8 cm एवं तिर्यक ऊँचाई l = 10 cm है।
शंक्वाकार ठोस शंकु का आयतन = \(\frac{1}{3} \pi r^{2} h=\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times(6)^{2} \times 8\)
ठोस का आयतन = \(\frac { 6336 }{ 21 }\)
= 301.7 cm³ (लगभग)
शंक्वाकार ठोस का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = πrl = \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 6 x 10
= \(\frac { 1320 }{ 7 }\)
= 188.6 cm² (लगभग)
अतः ठोस का अभीष्ट आयतन = 301.7 cm³ (लगभग)
एवं वक्र पृष्ठीय अभीष्ट क्षेत्रफल = 188.6 cm² (लगभग)।।

प्रश्न 11.
यदि घन की कोर 12 cm है, तो घन का आयतन ज्ञात कीजिए। (2019)
हल :
दिया है : घन की कोर a = 12 cm
∵ घन का आयतन V = a³
⇒ घन का आयतन V= (12)³
= 1728 cm³
अतः घन का अभीष्ट आयतन = 1728 cm³.

प्रश्न 12.
एक घन की भुजा 4 cm है, तो उसका सम्पूर्ण पृष्ठ ज्ञात कीजिए। (2019)
हल :
दिया है : घन की भुजा a = 4 cm
∵ घन का सम्पूर्ण पृष्ठ Sw = 6a²
⇒ घन का सम्पूर्ण पृष्ठ = 6 x (4)²
= 96 cm²
अतः घन का अभीष्ट सम्पूर्ण पृष्ठ = 96 cm².

MP Board Class 9th Maths Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

निम्नलिखित में से प्रत्येक में सत्य या असत्य लिखिए और अपने उत्तर का औचित्य दीजिए।

प्रश्न 1.
एक गोले का आयतन उस बेलन के आयतन का \(\frac { 2 }{ 3 }\) होता है जिसकी ऊँचाई और व्यास गोले के व्यास के बराबर हैं।
उत्तर-
कथन सत्य है, क्योंकि गोले का आयतन = \(\frac{4}{3} \pi r^{3}=\frac{2}{3} \pi r^{2}(2 r)\) = बेलन का आयतन।

प्रश्न 2.
यदि एक लम्बवृत्तीय शंकु की त्रिज्या आधी कर दी जाए और ऊँचाई दो गुनी कर दी जाए, तो उसके आयतन में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उत्तर-
कथन असत्य है, क्योंकि नया आयतन प्रारम्भिक आयतन का आधा है।

प्रश्न 3.
एक लम्बवृत्तीय शंकु की ऊँचाई, त्रिज्या और तिर्यक ऊँचाई सदैव एक समकोण त्रिभुज की भुजाएँ नहीं होती हैं।
उत्तर-
कथन असत्य है, क्योंकि r² + h² = l² समकोण त्रिभुज की सदैव भुजाएँ होती हैं।

प्रश्न 4.
यदि एक बेलन की त्रिज्या दुगनी कर दी जाए तथा उसके वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल में कोई परिवर्तन न किया जाए तो उसकी ऊँचाई अवश्य ही आधी हो जाएगी।
उत्तर-
कथन सत्य है, क्योंकि 2πrh = 2π (2r) x h/2

प्रश्न 5.
किनारे 2r वाले एक घन में समावेशित किए जा सकने वाले सबसे बड़े लम्बवृत्तीय शंकु का आयतन त्रिज्या r वाले अर्द्धगोले के आयतन के बराबर होता है।
उत्तर-
कथन सत्य है, क्योंकि शंकु का आयतन = \(\frac { 1 }{ 3 }\)πr²(2r)
= \(\frac { 2 }{ 3 }\)πr³ = अर्द्धगोले का आयतन।

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प्रश्न 6.
एक बेलन और एक लम्बवृत्तीय शंकु के समान आधार और समान ऊँचाई है। बेलन का आयतन शंकु के आयतन का तीन गुना होगा।
उत्तर-
कथन सत्य है, क्योंकि बेलन का आयतन = πr²h
= 3 x \(\frac { 1 }{ 3 }\) πr²h
= 3 x शंकु का आयतन।

प्रश्न 7.
एक शंकु, अर्द्धगोला और बेलन समान आधार और समान ऊँचाई के हैं। इनके आयतनों में अनुपात 1 : 2 : 3 है।
उत्तर-
कथन सत्य है, क्योंकि शंकु का आयतन : अर्द्धगोले का आयतन : बेलन का आयतन
= \(\frac{1}{3} \pi r^{2} r : \frac{2}{3} \pi r^{3} : \pi r^{2} . r\)
= 1 : 2 : 3.

प्रश्न 8.
यदि किसी घन के विकर्ण की लम्बाई 6√3 है तो इसके किनारे की लम्बाई 3 cm है।
उत्तर-
कथन असत्य है, क्योंकि a√3 = 6√3
= a = 6 cm होगी।

प्रश्न 9.
यदि एक गोला एक घन के अन्तर्गत हैं तो घन के आयतन का गोले के आयतन में अनुपात 6 : π है।
उत्तर-
कथन सत्य है क्योंकि घन का आयतन a³ : गोले का आयतन , \(\frac { 4 }{ 3 }\)π(a/2)³
= a³ : π/6 a³ ⇒ 6 : π.

प्रश्न 10.
यदि एक बेलन की त्रिज्या दुगनी कर दी जाए और उसकी ऊँचाई आधी कर दी जाए तो उसका आयतन दो गुना हो जाएगा।
उत्तर-
कथन सत्य है, क्योंकि नया आयतन = π(2r)² h/2 = 2πr²h
⇒ नया आयतन = 2 x पुराना आयतन।

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MP Board Class 9th Maths Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि एक गोले की त्रिज्या 2r है, तो उसका आयतन होगा :
(a) \(\frac{4}{3} \pi r^{3}\)
(b) \(4 \pi r^{2}\)
(c) \(\frac{8 \pi r^{3}}{3}\)
(d) \(\frac{32 \pi r^{3}}{3}\)
उत्तर:
(d) \(\frac{32 \pi r^{3}}{3}\)

प्रश्न 2.
एक घन का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल 96 cm है। घन का आयतन है :
(a) 8 cm³
(b) 512 cm³
(c) 64 cm³
(d) 27 cm³.
उत्तर:
(c) 64 cm³

प्रश्न 3.
एक शंकु की ऊँचाई 8.4 cm है। और उसके आधार की त्रिज्या 2.1 cm है। इसे पिघलाकार एक गोले के रूप में ढाला जाता है। गोले की त्रिज्या है :
(a) 4.2 cm
(b) 2.1 cm
(c) 2.4 cm
(d) 1.6 cm.
उत्तर:
(b) 2.1 cm

प्रश्न 4.
यदि एक बेलन की त्रिज्या दो गुनी कर दी जाए और ऊँचाई आधी कर दी जाए तो उसका वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल :
(a) आधा हो जायेगा
(b) दो गुना हो जायेगा
(c) वही रहेगा
(d) चार गुना हो जायेगा।
उत्तर:
(c) वही रहेगा

प्रश्न 5.
एक शंकु जिसकी त्रिज्या r/2 है और तिर्यक ऊँचाई 2l है का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल होगा :
(a) 2πr (1 + r)
(b) πr (1 + r/4)
(c) πr (1 + r)
(d) 2πrl.
उत्तर:
(b) πr (1 + r/4)

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प्रश्न 6.
दो बेलनों की त्रिज्याएँ 2 : 3 के अनुपात में हैं तथा उनकी ऊँचाइयों का अनुपात 5 : 3 है। इनके आयतनों का अनुपात है :
(a) 10 : 17
(b) 20 : 27
(c) 17 : 27
(d) 20 : 37.
उत्तर:
(b) 20 : 27

प्रश्न 7.
एक घन का पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल 256 m² है। घन का आयतन है :
(a) 512 m³
(b) 64 m³
(c) 216 m³
(d) 256 m³.
उत्तर:
(a) 512 m³

प्रश्न 8.
16 m लम्बे, 12 m चौड़े तथा 4 m गहरे एक गड्ढे में रखे जा सकने वाले 4 m x 50 cm x 20 cm विमाओं वाले बॉक्सों की संख्या :
(a) 1900
(b) 1920
(c) 1800
(d) 1840.
उत्तर:
(b) 1920

प्रश्न 9.
10 m x 10 m x 5 m विमाओं वाले एक कमरे में रखे जा सकने वाले सबसे लम्बे डण्डे की लम्बाई
(a) 15 m
(b) 16 m
(c) 10 m
(d) 12 m.
उत्तर:
(a) 15 m

प्रश्न 10.
एक अर्द्धगोलाकार गुब्बारे में हवा भरने पर उसकी त्रिज्या 6 cm से बढ़कर 12 cm हो जाती है। दोनों स्थितियों में गुब्बारे के पृष्ठीय क्षेत्रफल का अनुपात है :
(a) 1 : 4
(b) 1 : 3
(c) 2 : 3
(d) 2 : 1.
उत्तर:
(a) 1 :4

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प्रश्न 11.
बेलन का वक्र पृष्ठ है :
(a) πr²h
(b) πr (r + h)
(c) 2πrh
(d) \(\frac{1}{3} \pi r^{2} h\)
उत्तर:
(c) 2πrh

प्रश्न 12.
शंकु का आयतन है:
(a) πr²h1
(b) \(\frac{4}{3} \pi r^{2} h\)
(c) \(\frac{1}{3} \pi r^{2} h\)
(d) 4a²h
उत्तर:
(c) \(\frac{1}{3} \pi r^{2} h\)

प्रश्न 13.
एक बेलन का व्यास 14 cm है तथा इसकी ऊँचाई 7 cm है, तब इस बेलन का आयतन है :
(a) 7π cm³
(b) 49π cm³
(c) 343π cm³
(d) 443π cm³.
उत्तर:
(c) 343π cm³

प्रश्न 14.
एक घन के विकर्ण की लम्बाई 15√3 cm है तो घन की भुजा की लम्बाई होगी :
(a) 30√2 cm
(b) 15 cm
(c) 5√2 cm
(d) 30 cm.
उत्तर:
(b) 15 cm

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प्रश्न 15.
एक शंकु की तिर्यक ऊँचाई 13 cm है तथा त्रिज्या 5 cm है तो इसकी ऊँचाई है:
(a) 5 cm
(b) 22 cm
(c) 12 cm
(d) 18 cm.
उत्तर:
(c) 12 cm

प्रश्न 16.
अर्द्ध गोले का आयतन होगा : (2019)
(a) \(\frac{4}{3} \pi r^{3}\)
(b) \(\frac{2}{3} \pi r^{3}\)
(c) 2πr²
(d) 4πr²
उत्तर:
(b) \(\frac{2}{3} \pi r^{3}\)

प्रश्न 17.
यदि घन की भुजा 3 cm है, तो उसका आयतन होगा : (2019)
(a) 3 cm³
(b) 9 cm³
(c) 54 cm³
(d) 27 cm³
उत्तर:
(d) 27 cm³

प्रश्न 18.
घन के सम्पूर्ण पृष्ठ का सूत्र है : (2019)
(a) 6a²
(b) 4a²
(c) a³
(d) abc.
उत्तर:
(a) 6a²

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रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. एक घनाभ की कोरों की लम्बाइयाँ 3 cm, 4 cm एवं 5 cm हों तो उनके विकर्ण की लम्बाई ………… होगी।
2. किसी घन की कोर 2a हो, तो इसके विकर्ण की लम्बाई ………. होगी।
3. घनाभ के विकर्ण की लम्बाई का सूत्र ………. है। (2018)
4. एक घनाभ में कुल फलकों (तलों) की संख्या ………….. होती है।
5. एक ही केन्द्र के दो भिन्न त्रिज्याओं के गोलों से घिरे ठोस भाग को ………… कहते हैं।
6. बेलन का आयतन ………… होता है। (2019)
उत्तर-
1. 5√2 cm,
2. 2√3a,
3. \(d=\sqrt{l^{2}+b^{2}+h^{2}}\)
4. छ:
5. गोलीय कोश,
6. πr²h

जोड़ी मिलान

MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Additional Questions image 8
उत्तर-
1. →(c),
2. →(d),
3. →(e),
4. →(a),
5. →(b).

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सत्य/असत्य कथन

1. बेलन के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = 2πrh
2. शंकु के पार्श्व पृष्ठ का क्षेत्रफल = πrl
3. गोले का पार्श्व पृष्ठ = 4/3 πR²
4. घनाभ का सम्पूर्ण पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2 (lb + bh + hl)
5. घन का पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल = 6a²
6. बेलन का आधार वृत्ताकार होता है।
उत्तर-
1. असत्य,
2. सत्य,
3. असत्य,
4. सत्य,
5. असत्य,
6. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. वह समान्तर षट्फलक जिसका प्रत्येक फलक आयत हो, क्या कहलाता है?
2. वह समान्तर षट्फलक जिसका प्रत्येक फलक एक वर्ग हो, क्या कहलाता है?
3. किसी आयत को उसकी एक भुजा के परितः घुमाने पर बना ठोस क्या कहलाता है?
4. किसी अर्द्धवृत्त को उसके व्यास के परितः घुमाने पर बना ठोस क्या कहलाता है?
5. एक ही त्रिज्या और एक ही ऊँचाई वाले बेलन और शंकु के आयतनों में क्या अनुपात होगा?
6. बेलन के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल होता है। (2018)
7. गोले का पृष्ठीय क्षेत्रफल लिखिए। (2019)
उत्तर-
1. घनाभ,
2. घन,
3. बेलन,
4. गोला,
5. 3 : 1,
6. 2πr(r + h),
7. 4πr².

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MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम

MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम

MP Board Class 9th Science Chapter 9 पाठ के अन्तर्गत के प्रश्नोत्तर

प्रश्न श्रृंखला-1 # पृष्ठ संख्या 131

प्रश्न 1.
निम्न में किसका जड़त्व अधिक है –
1. एक रबर की गेंद एवं उसी आकार का पत्थर?
2. एक साइकिल एवं एक रेलगाड़ी?
3. पाँच रुपए का एक सिक्का एवं एक रुपए का एक सिक्का?
उत्तर:

  1. रबर गेंद से पत्थर का जड़त्व अधिक है क्योंकि पत्थर का द्रव्यमान अधिक है।
  2. रेलगाड़ी का जड़त्व साइकिल से अधिक है क्योंकि रेलगाड़ी का द्रव्यमान अधिक है।
  3. पाँच रुपए के सिक्के का जड़त्व अधिक है क्योंकि पाँच रुपए का द्रव्यमान अधिक है।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए उदाहरण में गेंद का वेग कितनी बार बदलता है, जानने का प्रयास करें?
फुटबॉल का एक खिलाड़ी गेंद पर किक लगाकर गेंद को अपनी टीम के दूसरे खिलाड़ी के पास पहुँचाता है। दूसरा खिलाड़ी किक लगाकर उस गेंद को गोल की ओर पहुँचाने का प्रयास करता है। विपक्षी टीम का गोलकीपर गेंद को पकड़ता है और अपनी टीम के खिलाड़ी की ओर किक लगाता है।” इसके साथ ही उस कारण की भी पहचान करें जो प्रत्येक अवस्था में बल प्रदान करता है।
उत्तर:
चार बार।

  1. पहले खिलाड़ी द्वारा किक लगाने पर गेंद का विरामावस्था से गति अवस्था में बदलना।
  2. दूसरे खिलाड़ी द्वारा किक लगाकर गेंद की गति की दिशा में परिवर्तन।
  3. गोलकीपर द्वारा गेंद को पकड़कर विरामावस्था में लाना।
  4. गोलकीपर द्वारा किक लगाकर गेंद को अपने साथी खिलाड़ी की ओर गति प्रदान करना।

प्रश्न 3.
किसी पेड़ की शाखा को तीव्रता से हिलाने पर कुछ पत्तियाँ झड़ जाती है, क्यों?
उत्तर:
पेड़ की शाखा को तीव्रता से हिलाने पर पत्तियाँ जड़त्व के कारण गति का विरोध करती हैं और झड़ जाती हैं।

प्रश्न 4.
जब कोई गतिशील बस अचानक रुकती है तो आप आगे की ओर झुक जाते हैं और जब विरामावस्था से गतिशील होती है तो पीछे की ओर हो जाते हैं, क्यों?
उत्तर:
जब हम गतिशील बस में बैठे होते हैं, तो हमारा शरीर भी बस के साथ उसी दिशा में गतिमान रहता है। जब बस रुकती है तो हमारे शरीर का निचला भाग तो बस के रुकने के साथ-साथ रुक जाता है लेकिन शरीर का ऊपरी भाग जड़त्व के कारण आगे गतिमान रहता है और हम आगे की ओर झुक जाते हैं। जब हम विरामावस्था वाली बस में बैठे होते हैं तो हमारा सम्पूर्ण शरीर भी बस के साथ-साथ विरामावस्था में होता है और बस के एकाएक चलने पर हमारे शरीर का निचला भाग गतिमान हो जाता है लेकिन ऊपरी भाग जड़त्व के कारण विरामावस्था में ही रहता है इसलिए हम पीछे की ओर हो जाते हैं।

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प्रश्न श्रृंखला-2 # पृष्ठ संख्या 140

प्रश्न 1.
यदि क्रिया सदैव प्रतिक्रिया के बराबर होती है तो स्पष्ट कीजिए कि घोड़ा गाड़ी को कैसे खींच पाता है। (2019)
उत्तर:
घोड़ा गाड़ी को खींचने के लिए अपनी पिछली टाँगों से जमीन को पीछे की ओर धक्का मारता है प्रतिक्रियास्वरूप जमीन आगे की ओर धक्का लगाती है जिससे धोड़ा गाड़ी को खींच पाता है।

प्रश्न 2.
एक अग्निशमन कर्मचारी को तीव्र गति से बहुतायत मात्रा में पानी फेंकने वाली रबर की नली को पकड़ने में कठिनाई क्यों होती है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
जब रबर की नली से तीव्र गति से पानी निकलता है तो वह प्रतिक्रियास्वरूप पीछे की ओर धक्का मारती है इसलिए अग्निशमन कर्मचारी को तीव्रगति से पानी फेंकने वाली रबर की नली को पकड़ने में कठिनाई होती है।

प्रश्न 3.
एक 50 g द्रव्यमान की गोली 4 kg द्रव्यमान की राइफल से 35 m s-1 के प्रारम्भिक वेग से छोड़ी जाती है। राइफल के प्रारम्भिक प्रतिक्षेपित वेग की गणना कीजिए।
हल:
ज्ञात है:
गोली का द्रव्यमान m1 = 50 g
गोली का वेग v1 = 35 m s-1
राइफल का द्रव्यमान m2 = 4 kg
= 4000g
ज्ञात करना है:
राइफल का प्रारम्भिक प्रतिक्षेपित वेग v2 = ?
संवेग संरक्षण के नियम से हम जानते हैं कि
m2v2 = m1v1
⇒ 4000 x v2 = 50 x 35
⇒ \(v_{2}=\frac{50 \times 35}{4,000}\)
= 0 – 4375 m s-1
अतः राइफल का अभीष्ट प्रारम्भिक प्रतिक्षेपित वेग = 0 – 4375 m s-1.

प्रश्न 4.
100g और 200 g द्रव्यमान की दो वस्तुएँ एक ही रेखा के अनुदिश एक ही दिशा में क्रमशः 2 m s-1 और 1 m s-1 की वेग से गति कर रही हैं। दोनों वस्तुएँ टकरा जाती हैं। टक्कर के पश्चात् प्रथम वस्तु का वेग 1.67 m s-1 हो जाता है तो दूसरी वस्तु का वेग ज्ञात करें।
हल:
ज्ञात है:
प्रथम वस्तु का द्रव्यमान m1 = 100 g
द्वितीय वस्तु का द्रव्यमान m2 = 200 g
टक्कर से पूर्व प्रथम वस्तु का वेग u1 = 2 m s-1
टक्कर से पूर्व द्वितीय वस्तु का वेग u2 = 1 m s-1
टक्कर के बाद प्रथम वस्तु का वेग v1 = 1.67 m s-1
ज्ञात करना है:
टक्कर के बाद द्वितीय वस्तु का वेग v = ?
संवेग संरक्षण के नियम के अनुसार हम जानते हैं कि
m1v1 + m2v2 = m1u1 + m2u2
⇒ 100 x 1.67 + 200v2 = 100 x 2 + 200 x 1
⇒ 167 + 200v2 = 200 + 200 = 400
⇒ 200v2 = 400 – 167 = 233
⇒ \(v_{2}=\frac{233}{200}=1 \cdot 165 \mathrm{ms}^{-1}\).
अतः दूसरी वस्तु का अभीष्ट वेग = 1.165 m s-1

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MP Board Class 9th Science Chapter 9 पाठान्त अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कोई वस्तुशून्य बाह्य असन्तुलित बल अनुभव करती है। क्या किसी भी वस्तु के लिए अशून्य वेग से गति करना सम्भव है? यदि हाँ, तो वस्तु के वेग के परिमाण एवं दिशा पर लगने वाली शर्तों का उल्लेख करें। यदि नहीं तो कारण स्पष्ट करें।
उत्तर:
नहीं। क्योंकि वस्तु की गति के लिए उस पर असन्तुलित बल लगना आवश्यक है और यह वस्तु शून्य असुन्तुलित बल का अनुभव कर रही है।

प्रश्न 2.
जब किसी छड़ी से एक दरी (कार्पेट) को पीटा जाता है, तो धूल के कण बाहर आ जाते हैं। स्पष्ट करें।
उत्तर:
छड़ी से पीटने पर दरी (कार्पेट) के कण गति में आ जाते हैं तथा धूल के कण जड़त्व के कारण स्थिर अवस्था में ही रहना चाहते हैं इसलिए बाहर आ जाते हैं।

प्रश्न 3.
बस की छत पर रखे सामान को रस्सी से क्यों बाँधा जाता है?
उत्तर:
जब बस स्थिर अवस्था में है तो उसकी छत पर रखा सामान भी स्थिर अवस्था में रहेगा और जब बस एकाएक चल देगी तो उसकी छत पर रखा सामान स्थिर अवस्था के जड़त्व के कारण पीछे की तरफ गिर जायेगा। इसलिए बस की छत पर रखे सामान को रस्सी से बाँधा जाता है।

प्रश्न 4.
किसी बल्लेबाज द्वारा क्रिकेट की गेंद को मारने पर गेंद जमीन पर लुढ़कती है। कुछ दूरी चलने के पश्चात् गेंद रुक जाती है। गेंद रुकने के लिए धीमी होती है, क्योंकि –
(a) बल्लेबाज ने गेंद को पर्याप्त प्रयास से हिट नहीं किया है।
(b) वेग गेंद पर लगाए गए बल के समानुपाती है।
(c) गेंद पर गति की दिशा के विपरीत एक बल कार्य कर रहा है।
(d) गेंद पर कोई असन्तुलित बल कार्यरत नहीं है, अत: गेंद विरामावस्था में आने के लिए प्रयासरत है।
उत्तर:
(c) गेंद पर गति की दिशा के विपरीत एक बल कार्य कर रहा है।

प्रश्न 5.
एक ट्रक विरामावस्था से किसी पहाड़ी से नीचे की ओर नियत त्वरण से लुढ़कना शुरू करता है। यह 20 s में 400 m की दूरी तय करता है। इसका त्वरण ज्ञात करें। अगर इसका द्रव्यमान 7 टन है, तो इस पर लगने वाले बल की गणना करें। (1 टन = 1000 kg)
हल:
ज्ञात है:
ट्रक का प्रारम्भिक वेग u = 0 m s-1
ट्रक द्वारा चली गई दूरी s = 400 m
दूरी तय करने में लगा समय t = 20 s
दूरी का द्रव्यमान m = 7 टन
=7x 1000
= 7000 kg
ज्ञात करना है:

  1. ट्रक का त्वरण a = ?
  2. ट्रक पर लगा बल F = ?

हम जानते हैं कि-(गति के द्वितीय समीकरण से)
s =ut + \(\frac{1}{2}\)at2
⇒ 400 = 0 x 20 + = \(\frac{1}{2}\)a (20)2
⇒ 400 = 200a
⇒ a = \(\frac{400}{200}\) = 2 m s-2
ओर F = m x a = 7000 x 2 न्यूटन
= 14000 न्यूटन
अतः दूक का अभीष्ट त्वरण = 2 m s-2 एवं उस पर
लगने वाला बल = 14000 न्यूटन

प्रश्न 6.
1 kg द्रव्यमान के एक पत्थर को 20 m s-1 के वेग से झील की जमी हुई सतह पर फेंका जाता है। पत्थर 50 m की दूरी तय करने के बाद रुक जाता है। पत्थर और बर्फ के बीच लगने वाले घर्षण बल की गणना कीजिए।
हल:
ज्ञात है:
पत्थर का द्रव्यमान m = 1 kg
पत्थर का प्रारम्भिक वेग u = 20 m s-1
पत्थर का अन्तिम वेग v = 0 m s-1
पत्थर द्वारा बर्फ पर चली दूरी s = 50 m
ज्ञात करना है:
घर्षण बल F = ?
हम जानते हैं कि:
2as =v2-u2 (गति का तृतीय समीकरण)
⇒ 2a (50) = (0)2 – (20)2
⇒ 100a = 0 – 400 = 400
⇒ a = – \(\frac{400}{100}\) = – 4 m s-2
पत्थर एवं बर्फ के मध्य लगा घर्षण बल
F = ma = 1 x (-4)
= – 4 न्यूटन
घर्षण बल ऋणात्मक होता है।
अतः अभीष्ट घर्षण बल का परिमाण = 4 न्यूटन (गति की विपरीत दिशा में)।

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प्रश्न 7.
एक 8,000 kg द्रव्यमान का रेल इंजन प्रति 2,000 kg द्रव्यमान वाले पाँच डिब्बों को सीधी पटरी पर खींचता है। यदि इंजन 40,000 N का बल आरोपित करता है तथा यदि पटरी 5,000 N का घर्षण बल लगाती है, तो ज्ञात करें –
(a) नेट त्वरण बल
(b) रेल का त्वरण
(c) डिब्बे 1 द्वारा डिब्बे 2 पर लगाया गया बल।
हल:
ज्ञात है:
इन्जन का द्रव्यमान m1 = 8,000 kg
प्रति डिब्बे का द्रव्यमान m2 = 2,000 kg
डिब्बों की संख्या n = 5
इन्जन द्वारा आरोपित बल F1 = 40,000 N
पटरी द्वारा आरोपित घर्षण बल
F2 = 5,000 N
ज्ञात करना है:
(a) नेट त्वरण बल = ?
(b) रेल का त्वरण = ?
(c) पहले डिब्बे द्वारा दूसरे डिब्बे पर लगा बल = ?
(a)
नेट त्वरण बल F = F1 – F2
= 40,000 – 5,000
= 35,000 N

(b)
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 1
(c)
पहले डिब्बे द्वारा दूसरे डिब्बे पर लगा बल = शेष चारों डिब्बों का द्रव्यमान x रेल का त्वरण
=4 x 2,000 x 3.5 = 28.000 N
अतः
(a) अभीष्ट नेट त्वरण बल = 35,000N
(b) रेल का अभीष्ट त्वरण = 3.5m s-2 एवं
(c) पहले डिब्बे द्वारा
दूसरे डिब्बे पर आरोपित अभीष्ट बल = 28,000 N

प्रश्न 8.
एक गाड़ी का द्रव्यमान 1500 kg है। यदि गाड़ी को 1.7 m s-2 के ऋणात्मक त्वरण (अवमंदन) के साथ विरामावस्था में लाना है, तो गाड़ी तथा सड़क के बीच लगने वाला बल कितना होगा?
हल:
ज्ञात है:
रेलगाड़ी का द्रव्यमान m = 1500 kg
गाड़ी का ऋणात्मक त्वरण a = 1.7 m s-2
चूँकि घर्षण बल (F) = गाड़ी का द्रव्यमान (m) x ऋणात्मक त्वरण (a)
= 1500 x 1.7 N
= 2550 N
अतः अभीष्ट घर्षण बल = 2550 N. (गाड़ी की गति के विपरीत दिशा में)

प्रश्न 9.
किसी m द्रव्यमान की वस्तु जिसका वेग v है, का संवेग क्या होगा?
(a) (mv)2
(b) mv2
(c) \(\left(\frac{1}{2}\right)\)mv2
(d) mv. (उपर्युक्त में से सही विकल्प चुनिए)।
उत्तर:
(d) mv.

प्रश्न 10.
हम एक लकड़ी के बक्से को 200 N बल लगाकर उसे नियत वेग से फर्श पर धकेलते हैं। बक्से पर लगने वाला घर्षण बल क्या होगा?
उत्तर:
इस अवस्था में सीमान्त घर्षण बल होगा जोकि 200 N होगा।

प्रश्न 11.
दो वस्तुएँ, जिनमें प्रत्येक का द्रव्यमान 1.5 kg है, एक सीधी रेखा में एक-दूसरे के विपरीत दिशा में गति कर रही हैं। टकराने के पहले प्रत्येक का वेग 2.5 m s-1 है। टकराने के बाद यदि दोनों एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं तब उनका सम्मिलित वेग क्या होगा?
हल:
ज्ञात है:
प्रत्येक वस्तु का द्रव्यमान m1 = m2 = 1.5 kg
पहली वस्तु का वेग v1 = v m s-1
दूसरी वस्तु का वेग v2 = – v m s-1
ज्ञात करना है:
टक्कर के बाद सम्मिलित वेग V = ?
संवेग संरक्षण के नियम से हम जानते हैं कि
m1v1 + m2v2 = (m1 + m2)V
⇒ 1.5 v+ 1.5 (-v) = (1.5 + 1.5)V
⇒ 1.5 v – 1.5 v = 3 V = 0
⇒ v = \(\frac{0}{3}\) = 0 m s-1
अतः अभीष्ट सम्मिलित वेग = 0 m s-1.

प्रश्न 12.
गति के तृतीय नियम के अनुसार जब हम किसी वस्तु को धक्का देते हैं, तो वस्तु उतने ही बल के साथ हमें भी विपरीत दिशा में धक्का देती है। यदि वह वस्तु एक ट्रक है जो सड़क के किनारे खड़ा है। सम्भवतः हमारे द्वारा बल आरोपित करने पर भी गतिशील नहीं होने पायेगा। एक विद्यार्थी इसे सही साबित करते हुए कहता है कि दोनों बल विपरीत एवं बराबर हैं, जो एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं। इस तर्क पर अपने विचार दें और बताएँ कि ट्रक गतिशील क्यों नहीं हो पाता?
उत्तर:
विद्यार्थी द्वारा दिया गया तर्क सही नहीं है क्योंकि दो बराबर एवं विपरीत बल एक-दूसरे को तभी निरस्त करते हैं जबकि वे एक ही वस्तु पर लगें। जबकि क्रिया-प्रतिक्रिया में लगे बल विभिन्न वस्तुओं पर आरोपित होते हैं जो कि एक-दूसरे को निरस्त नहीं करते। सही कारण है-ट्रक का जड़त्व (द्रव्यमान) बहुत अधिक होता है और हमारे द्वारा आरोपित बल बहुत कम होता है इसलिए वह ट्रक में त्वरण उत्पन्न नहीं कर पाता। अतः ट्रक गतिशील नहीं हो पाता।

प्रश्न 13.
200 g द्रव्यमान की एक हॉकी की गेंद 10 m s-1 से गति कर रही है। यह एक हॉकी स्टिक से इस प्रकार टकराती है कि यह 5 m s-1 के वेग से अपने प्रारम्भिक मार्ग पर वापस लौटती है। हॉकी स्टिक द्वारा आरोपित बल द्वारा हॉकी की गेंद में आये संवेग परिवर्तन के परिमाण का परिकलन कीजिए।
हल:
ज्ञात है:
गेंद का द्रव्यमान m = 200 g = 0.2 kg
गेंद का प्रारम्भिक वेग u = 10 m s-1
गेंद का अन्तिम वेग v = – 5 m s-1
(∵ वेग की दिशा विपरीत है।)
∵ संवेग परिवर्तन ∆p = m (v – u)
⇒ संवेग परिवर्तन = 0 – 2 (-5 – 10)
⇒ ∆p = 0 – 2 (-15)
= – 3.0 kg m s-1
(यहाँ ऋणात्मक चिन्ह संवेग परिवर्तन की दिशा को व्यक्त करता है।)
अतः अभीष्ट संवेग परिवर्तन का परिमाण = 3 kg m s-1.

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प्रश्न 14.
10 g द्रव्यमान की एक गोली सीधी रेखा में 150 m s-1 के वेग से चलकर एक लकड़ी के गुटके से टकराती है और 0.03 s के बाद रुक जाती है? गोली लकड़ी को कितनी दूरी तक भेदेगी? लकड़ी के गुटके द्वारा गोली पर लगाए गए बल के परिमाण की गणना कीजिए।
हल:
ज्ञात है:
गोली का द्रव्यमान m = 10 g = 0.01 kg
गोली का प्रारम्भिक वेग u = 150 m s-1
गोली का अन्तिम वेग v = 0 m s-1
गोली को रुकने में लगा समय t = 0.03 s
त्वरण a = \(\frac{v-u}{t}=\frac{0-150}{0 \cdot 03}\)
= – 5000 m s-2
s = ut + \(\frac{1}{2}\)at2
= 150 x 0.03 + \(\frac{1}{2}\) (-5000) x (0.03)2
= 4.5 – 2.25 = 2.25 m
अब लकड़ी के गुटके द्वारा गोली पर लगा बल F = ma
⇒ F = 0.01 x (-5000) = – 50 N
अतः अभीष्ट दूरी = 2.25 m एवं अभीष्ट बल का परिमाण = 50 N.

प्रश्न 15.
एक वस्तु जिसका द्रव्यमान 1 kg है, 10 ms-1 के वेग से एक सीधी रेखा में चलते हुए विरामावस्था में रखे 5 kg द्रव्यमान के एक लकड़ी के गुटके से टकराती है। उसके बाद दोनों साथ-साथ उसी सीधी रेखा में गति करते हैं। संघट्ट के पहले तथा बाद के कुल संवेगों की गणना करें। आपस में जुड़े हुए संयोजन के वेग की भी गणना करें।
हल:
ज्ञात है:
वस्तु का द्रव्यमान m1 = 1 kg
वस्तु का वेग v1 =10 m s-1
लकड़ी के गुटके का द्रव्यमान m2 = 5 kg
लकड़ी के गुटके का वेग v2 = 0 m s-1
संयोजन का वेग V =?
वस्तु का संवेग = m1v1
P1 = 1 x 10 = 10 kg m s-1
लड़की के गुटके का संवेग = m1v2
P2 = 5 x 0 = 0 kg m s-1
संघट्ट से पहले सम्पूर्ण संवेग
P(i) = 10 + 0 = 10 kg m s-1
संवेग संरक्षण के नियम से
P(f) संघट्ट के बाद कुल संवेग = संघट्ट से पहले कुल संवेग
⇒ (m1 + m2) x V = 10 kg m s-1 (जहाँ V संयोजन का वेग है।)
(1 + 5) x V = 10 ⇒ 6 V = 10
v = \(\frac{10}{5}\) = 5 m s-1
अतः संघट्ट से पहले अभीष्ट कुल संवेग = 10 kg m s-1
संघट्ट के बाद अभीष्ट कुल संवेग = 10 kg m s-1
एवं संघट्ट के बाद संयोजन का वेग = \(\frac{5}{3}\) अर्थात् 1 – 67 m s-1

प्रश्न 16.
100 kg द्रव्यमान की एक वस्तु का वेग समान त्वरण से चलते हुए 6 5 में 5 m s-1 से 8 m s-1 हो जाता है। वस्तु के पहले और बाद के संवेगों की गणना करें। उस बल के परिमाण की गणना करें जो उस वस्तु पर आरोपित है।
हल:
ज्ञात है:
वस्तु का द्रव्यमान m = 100 kg
वस्तु का प्रारम्भिक वेग u = 5 m s-1
वस्तु का अन्तिम वेग v = 8 m s-1
यात्रा का समय t = 6s
वस्तु का प्रारम्भिक संवेग
P1 = mu = 100 x 5 = 500 kg m s-1
वस्तु का बाद का संवेग
P2 = mv = 100 x 8 = 800 kg m s-1
संवेग परिवर्तन ∆P = P2 – P1
= 800 – 500 = 300 kg m s-1
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 2
अतः वस्तु के अभीष्ट प्रारम्भिक एवं अन्तिम संवेग क्रमश: 500 kg m s-1 एवं 800 kg m s-1 हैं, तथा वस्तु पर आरोपित अभीष्ट बल = 50 N.

प्रश्न 17.
अख्तर, किरण और राहुल किसी राजमार्ग पर बहुत तीव्र गति से चलती हुई कार में सवार हैं। अचानक उड़ता हुआ कोई कीड़ा गाड़ी के सामने के शीशे से आ टकराया और वह शीशे से चिपक गया। अख्तर और किरण इस स्थिति पर विवाद करते हैं। किरण का मानना है कि कीड़े के संवेग परिवर्तन का परिमाण कार के संवेग परिवर्तन के परिमाण की अपेक्षा बहुत अधिक है (क्योंकि कीड़े के वेग में परिवर्तन का मान कार के वेग में परिवर्तन के मान से बहुत अधिक है)।

अख्तर ने कहा कि चूँकि कार का वेग बहुत अधिक था अतः कार ने कीड़े पर बहुत अधिक बल लगाया जिसके कारण कीड़े की मौत हो गयी। राहुल ने एक नया तर्क देते हुए कहा कि कार तथा कीड़ा दोनों पर समान बल लगा और दोनों के संवेग में बराबर परिवर्तन हुआ। इन विचारों पर आप अपनी प्रतिक्रिया दें।
उत्तर:
राहुल का तर्क सही प्रतीत होता है क्योंकि पूरे तन्त्र पर कोई भी बाहरी बल नहीं लगा है तथा संवेग संरक्षण के सिद्धान्त के अनुसार टक्कर के समय तन्त्र का कुल संवेग संरक्षित रहता है। अतएव कीड़ा एवं कार, दोनों पर समान बल लगेगा तथा दोनों के संवेग में बराबर परिवर्तन होगा।

प्रश्न 18.
एक 10 kg द्रव्यमान की घण्टी 80 cm ऊँचाई से फर्श पर गिरी। इस अवस्था में घण्टी द्वारा फर्श पर स्थानान्तरित संवेग के मान की गणना करें। परिकलन में सहायता हेतु नीचे की ओर दिष्ट त्वरण का मान 10 m s-2 लें।
हल:
ज्ञात है:
घण्टी का द्रव्यमान m = 10 kg
घण्टी का प्रारम्भिक वेग u = 0 m s-1
घण्टी की ऊँचाई h = 80 cm
= 0.80 m
नीचे की ओर त्वरण g = 10 m s-2
हम जानते हैं कि (गति के तृतीय समीकरण से)
v2 = u2 + 2gh
= (0)2 + 2 x 10 x 0.8 = 16
⇒ v = √16 = 4 m s-1
टकराते समय घण्टी का संवेग
P = mv = 10 x 4 = 40 kg m s-1
चूँकि टकराने के बाद घण्टी का संवेग शून्य हो जाता है।
इसलिए स्थानान्तरित संवेग = 40 – 0 = 40 kg m s-1
अतः अभीष्ट स्थानान्तरित संवेग = 40 kg m s-1

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अतिरिक्त अभ्यास- # पृष्ठ संख्या 144

प्रश्न A1.
एक वस्तु की गति की अवस्था में दूरी-समय सारणी निम्नवत् है –
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 3
(a) त्वरण के बारे में आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? क्या यह नियत है? बढ़ रहा है? घट रहा है? या शून्य है?
(b) आप वस्तु पर लगने वाले बल के बारे में क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
उत्तर:
(a) त्वरण बढ़ रहा है।
(b) वस्तु पर लगा बल बढ़ रहा है अतः परिवर्तनशील है।

प्रश्न A2.
1200 kg द्रव्यमान की कार को एक समतल सड़क पर दो व्यक्ति समान वेग से धक्का देते हैं। उसी कार को तीन व्यक्तियों द्वारा धक्का देकर 0.2 m s-2 का त्वरण उत्पन्न किया जाता है। कितने बल के साथ प्रत्येक व्यक्ति कार को धकेल पाता है। (मान लें कि सभी व्यक्ति समान पेशीय बल के साथ कार को धक्का देते हैं।)
हल:
ज्ञात है:
कार का द्रव्यमान ma = 1200 kg
तीन व्यक्तियों द्वारा धक्का देने पर उत्पन्न
त्वरण a = 0.2 m s-2
तीन व्यक्तियों द्वारा लगाया गया बल F = ma = 1200 x 0.2
= 240 N
चूँकि तीनों व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति समान पेशीय बल का उपयोग कर रहा है। इसलिए प्रत्येक समान बल से कार को धकेल पाता है।
अतः कार को धकेलने में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा आरोपित अभीष्ट बल = 240 N.

प्रश्न A3.
500 g द्रव्यमान के एक हथौड़े द्वारा 50 m s-1 वेग से एक कील पर प्रहार किया जाता है। कील द्वारा हथौड़े को बहुत कम समय 0.015 में ही रोक दिया जाता है। कील के द्वारा हथौड़े पर लगाए गए बल का परिकलन करें।
हल:
ज्ञात है:
हथौड़े का द्रव्यमान m = 500 g.
= 0.5 kg
हथौड़े का प्रारम्भिक वेग u = 50 m s-1
हथौड़े का अन्तिम वेग v = 0 m s-1
समय अन्तराल t = 0.01 s
हम जानते हैं कि
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 4
F = – \(\frac{25}{0.01}\) = – 2500 N
(ऋणात्मक चिह्न बल की दिशा बताता है कि बल कील ने लगाया)
अतः कील द्वारा हथौड़े पर लगा अभीष्ट बल = 2500 N.

प्रश्न A4.
एक 1200 kg द्रव्यमान की मोटर कार 90 km/h के वेग से एक सरल रेखा के अनुदिश चल रही है। उसका वेग बाहरी असन्तुलित बल लगने के कारण 4 s में घटकर 18 km/h हो जाता है। त्वरण और संवेग में परिवर्तन का परिकलन करें। लगने वाले बल के परिमाण का भी परिकलन करें।
हल:
ज्ञात है:
मोटर कार का द्रव्यमान m = 1200 kg
कार का प्रारम्भिक वेग u = 90 kg/h
कार का अन्तिम वेग v = 18 km/h
समय अन्तराल t=4 s
वेग में परिवर्तन v – u = (90 – 18) km/h
= 72 x \(\frac{5}{18}\) = 20 m/s
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 5
संवेग परिवर्तन P = m (v – u)
= 1200 x 20 = 24000 kg m s-1
बल (F) = द्रव्यमान (m) x त्वरण (a)
= 1200 x 5= 6,000 N.
अतः अभीष्ट त्वरण = 5 m s-2, संवेग में परिवर्तन = 24000 kg m s-1
एवं लगने वाला बल = 6000 N.

MP Board Class 9th Science Chapter 9 परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

MP Board Class 9th Science Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सरल रेखीय पथ के अनुदिश त्वरित गति से गतिमान किसी पिण्ड के लिए नीचे दिए गए कथनों में कौन-सा सही नहीं है?
(a) इसकी चाल परिवर्तित होती रहती है
(b) इसका वेग सदैव परिवर्तित होता है
(c) यह सदैव पृथ्वी से दूर जाता है
(d) इस पर सदैव एक बल कार्य करता है
उत्तर:
(c) यह सदैव पृथ्वी से दूर जाता है

प्रश्न 2.
गति के तीसरे नियम के अनुसार क्रिया एवं प्रतिक्रिया –
(a) सदैव एक ही वस्तु पर लगती है
(b) सदैव दो भिन्न वस्तुओं पर विपरीत दिशाओं में कार्य करती है
(c) के परिमाण एवं दिशाएँ समान होती हैं
(d) किसी भी एक वस्तु पर एक-दूसरे के अभिलम्बवत् कार्य करती है
उत्तर:
(b) सदैव दो भिन्न वस्तुओं पर विपरीत दिशाओं में कार्य करती है

प्रश्न 3.
फुटबॉल के खेल में कोई गोलरक्षक गोल पर तीव्र गति से आती बॉल को पकड़ने के पश्चात् अपने हाथों को पीछे की ओर खींचता है। ऐसा करके गोलरक्षक –
(a) बॉल पर अधिक बल लगा पाता है
(b) बॉल द्वारा हाथों पर लगाये गए बल को कम कर पाता है
(c) संवेग परिवर्तन की दर में वृद्धि कर पाता है
(d) संवेग परिवर्तन की दर में कमी कर पाता है
उत्तर:
(b) बॉल द्वारा हाथों पर लगाये गए बल को कम कर पाता है

प्रश्न 4.
किसी पिण्ड का जड़त्व –
(a) उसकी चाल बढ़ाता है
(b) उसकी चाल कम करता है
(c) उसकी गति की अवस्था में परिवर्तन को प्रतिरोधित करता है
(d) घर्षण के कारण अवमंदित करता है
उत्तर:
(c) उसकी गति की अवस्था में परिवर्तन को प्रतिरोधित करता है

प्रश्न 5.
कोई यात्री किसी गतिमान रेलगाड़ी में एक सिक्का उछालता है जो उसके पीछे गिरता है। इसका यह अर्थ है कि रेलगाड़ी की गति –
(a) त्वरित है
(b) एकसमान है
(c) अवमंदित है
(d) वृत्ताकार पथ के अनुदिश है
उत्तर:
(a) त्वरित है

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प्रश्न 6.
2 kg द्रव्यमान का कोई पिण्ड किसी घर्षणहीन क्षैतिज मेज पर 4 m s-1 के नियत वेग से फिसल रहा है। इस वस्तु की इसी वेग से गति बनाए रखने के लिए आवश्यक बल है –
(a) 32 N
(b) 0 N
(c) 2 N
(d) 8 N
उत्तर:
(b) 0 N

प्रश्न 7.
रॉकेट किस नियम पर कार्य करता है?
(a) द्रव्यमान संरक्षण नियम पर
(b) ऊर्जा संरक्षण नियम पर
(c) संवेग संरक्षण नियम पर
(d) वेग संरक्षण नियम पर
उत्तर:
(c) संवेग संरक्षण नियम पर

प्रश्न 8.
\(\frac{2}{3}\) ऊँचाई तक जल से भरा कोई टैंकर एकसमान चाल से गतिमान है। अचानक ब्रेक लगाने पर टैंकर में भरा.जल –
(a) पीछे की ओर गति करेगा
(b) आगे की ओर गति करेगा
(c) प्रभावित नहीं होगा
(d) ऊपर की ओर उठेगा
उत्तर:
(b) आगे की ओर गति करेगा

प्रश्न 9.
निम्न में संवेग का सही सूत्र है –
(a) P = mv
(b) m = PV
(c) V = Pm
(d) P = mv2
उत्तर:
(a) P = mv

प्रश्न 10.
घर्षण हमारे लिए है –
(a) लाभदायक
(b) हानिकारक
(c) दोनों
(d) कोई नहीं।
उत्तर:
(c) दोनों

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प्रश्न 11.
जड़त्व की माप है – (2018)
(a) लम्बाई
(b) ताप
(c) समय
(d) द्रव्यमान
उत्तर:
(d) द्रव्यमान

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. गति की अवधारणा को वैज्ञानिक आधार …………….. एवं …………….. ने दिया।
2. न्यूटन का …………… नियम जड़त्व पर आधारित है।
3. बल का S.I. पद्धति में मात्रक ……………. होता है।
4. न्यूटन का गति विषयक तृतीय नियम …………….. का नियम भी कहलाता है।
5. संवेग परिवर्तन की दर लगाए गए ……………. के बराबर होती है।
6. गति का नियम सर्वप्रथम ……………. ने दिया था। (2019)
उत्तर:

  1. गैलीलियो, न्यूटन
  2. प्रथम
  3. न्यूटन
  4. क्रिया-प्रतिक्रिया
  5. बल
  6. न्यूटन।

सही जोड़ी बनाना
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 6
उत्तर:

  1. → (iii)
  2. → (iv)
  3. → (v)
  4. → (i)
  5. → (ii)

सत्य/असत्य कथन

1. बल एक अदिश राशि है।
2. किसी पिण्ड का त्वरण उस पर आरोपित कुल बल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
3. संवेग एक सदिश राशि है।
4. संवेग परिवर्तन उस पर आरोपित बल के बराबर होता है।
5. घर्षण एक आवश्यक बुराई है।
6. बॉल बियरिंग के प्रयोग से घर्षण बढ़ाया जाता है।
7. ग्रीस के प्रयोग द्वारा घर्षण कम किया जाता है।
उत्तर:

  1. असत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य
  6. असत्य
  7. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
बल (F), द्रव्यमान (m) एवं त्वरण (a) में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
बल (F) = द्रव्यमान (m) x त्वरण (a)

प्रश्न 2.
संवेग के लिए सूत्र लिखिए।
उत्तर:
संवेग (P) = द्रव्यमान (m) x वेग (v)

प्रश्न 3.
आवेग के लिए व्यंजक लिखिए।
उत्तर:
आवेग (I) = बल (F) x समय अन्तराल (∆t)

प्रश्न 4.
आवेग एवं संवेग में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
आवेग (I) = संवेग परिवर्तन (∆P) अथवा I =m (v – u)

प्रश्न 5.
संवेग का S.I. मात्रक क्या है?
उत्तर:
kg m s-1 या Ns

प्रश्न 6.
आवेग का S.I. मात्रक क्या है?
उत्तर:
kg m s-1 या Ns

प्रश्न 7.
न्यूटन के गति के द्वितीय नियम को संवेग के पदों में लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 7

प्रश्न 8.
बल का S.I. मात्रक लिखिए।
उत्तर:
न्यूटन (N).

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MP Board Class 9th Science Chapter 9 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बल’ को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बल-“वह बाह्य कारक जो किसी पिण्ड की विराम अवस्था अथवा गति अवस्था में परिवर्तन करे अथवा परिवर्तन की प्रवृत्ति उत्पन्न करे, बल कहलाता है।”

प्रश्न 2.
एक न्यूटन बल से क्या समझते हो?
उत्तर:
एक न्यूटन बल-“बल की वह मात्रा जो एक किलोग्राम द्रव्यमान की वस्तु पर आरोपित करने पर उस वस्तु में 1 m s-2 का त्वरण पैदा कर सके, एक न्यूटन बल कहलाता है।”

प्रश्न 3.
सन्तुलित बल किसे कहते हैं? (2019)
उत्तर:
सन्तुलित बल-“वे बल जो किसी वस्तु पर लगाने से उस वस्तु की गति में कोई परिवर्तन नहीं करते, सन्तुलित बल कहलाते हैं।”

प्रश्न 4.
असन्तुलित बल किसे कहते हैं?
उत्तर:
असन्तुलित बल-“वे बल जो किसी वस्तु पर आरोपित करने पर उस वस्तु की गति में परिवर्तन कर दें, असन्तुलित बल कहलाते हैं।”

प्रश्न 5.
जड़त्व से आप क्या समझते हो? (2019)
उत्तर:
जड़त्व-“वस्तुओं का वह गुण जिसके द्वारा वह उसकी गति या विराम अवस्था में परिवर्तन का विरोध करती है, जड़त्व कहलाता है।”

प्रश्न 6.
गैलीलियो के जड़त्व के नियम अथवा न्यूटन के गति विषयक प्रथम नियम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गैलीलियो का जड़त्व का नियम अथवा न्यूटन का गति विषयक प्रथम नियम-“यदि कोई वस्तु स्थिर है तो वह स्थिर ही रहेगी और यदि वह एकसमान गति से गतिमान है, तो वह उसी तरह गतिमान रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाह्य असन्तुलित बल न लगाया जाये।”

प्रश्न 7.
संवेग किसे कहते हैं?
उत्तर:
संवेग:
“किसी वस्तु के द्रव्यमान एवं उसके वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं।” इसे P से व्यक्त करते हैं। अर्थात्
संवेग (P) = संहति (m) x वेग (v)

प्रश्न 8.
न्यूटन के गति विषयक द्वितीय नियम को संवेग के पदों में लिखिए।
उत्तर:
संवेग के पदों में न्यूटन का गति विषयक द्वितीय नियम-“संवेग परिवर्तन की दर लगाए गए बल के बराबर होती है।” अर्थात्
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 8

प्रश्न 9.
न्यूटन के गति विषयक द्वितीय नियम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
‘न्यूटन का गति विषयक द्वितीय नियम-“किसी वस्तु पर लगाया गया बल उस वस्तु की संहति . एवं उस वस्तु में उत्पन्न त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है।” अर्थात्
बल (F) = द्रव्यमान (m) x त्वरण (a)

प्रश्न 10.
संवेग संरक्षण का नियम लिखिए।
उत्तर:
संवेग संरक्षण का नियम-“किसी निकाय का सम्पूर्ण संवेग नियत रहता है यदि उस पर कोई बाह्य बल कार्य न करे।” अर्थात्
m1u1 + m2u2 = m1v1 + m2v2

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प्रश्न 11.
बल के आवेग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बल का आवेग-“यदि किसी वस्तु पर कोई बल किसी सूक्ष्म समय अन्तराल के लिए लगाया जाए तो उस बल एवं समय अन्तराल के गुणनफल को उस वस्तु का आवेग कहते हैं।” इसे I से व्यक्त करते हैं। अर्थात्
आवेग (I) = बल (F) ~ समय अन्तराल (∆t)

प्रश्न 12.
न्यूटन के गति विषयक तृतीय नियम अथवा क्रिया-प्रतिक्रिया के नियम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
न्यूटन के गति विषयक तृतीय नियम अथवा क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम-“किसी क्रिया के बराबर एक विपरीत प्रतिक्रिया होती है।”

प्रश्न 13.
घर्षण से क्या समझते हो?
उत्तर:
घर्षण-“खुरदरी सतह पर गतिमान किसी वस्तु पर लगने वाले गति विरोधी बल को घर्षण कहते है।”

प्रश्न 14.
आपके पास ऐलुमिनियम, स्टील तथा लकड़ी के बने समान आकृति तथा समान आयतन के तीन ठोस हैं। इनमें से किसका जड़त्व सबसे अधिक है?
उत्तर:
स्टील के बने ठोस का, क्योंकि स्टील का घनत्व सबसे अधिक है और चूँकि सबका आयतन समान है इसलिए स्टील के ठोस का द्रव्यमान सबसे अधिक है। इस कारण स्टील के ठोस का जड़त्व सबसे अधिक है।

प्रश्न 15.
विभिन्न पदार्थों रबर तथा लोहे की बनी दो समान साइज की बॉल किसी गतिमान रेलगाड़ी के चिकने फर्श पर रखी हैं। रेलगाड़ी को रोकने के लिए अचानक ब्रेक लगाए गए। क्या बॉल लुढ़कना आरम्भ करेगी? यदि ऐसा है तो किस दिशा में? क्या ये समान चाल से गति करेंगी? अपने उत्तर का कारण लिखिए।
उत्तर:
हाँ, गेंदें रेलगाड़ी की गति की दिशा में लुढ़कना प्रारम्भ कर देंगी। ये गेंदें समान चाल से गति नहीं करेंगी क्योंकि इनका द्रव्यमान अलग-अलग होने के कारण उनका जड़त्व भी अलग-अलग है।

प्रश्न 16.
दो सर्वसम गोलियों में से एक हल्की राइफल द्वारा तथा दूसरी को किसी भारी राइफल द्वारा समान बल से दागा जाता है। कौन-सी राइफल कंधे पर अधिक आघात करेगी और क्यों?
उत्तर:
संवेग संरक्षण के नियम के अनुसार हल्की राइफल अधिक तेज गति से पीछे लौटेगी। इसलिए कंधे पर अधिक आघात करेगी।

प्रश्न 17.
किसी घोड़ागाड़ी को नियत चाल से चलाने के लिए घोड़े को निरन्तर बल लगाना पड़ता है। स्पष्ट कीजिए, क्यों?
उत्तर:
घर्षण बल को सन्तुलित करने के लिए घोड़े को निरन्तर बल लगाना पड़ता है जिससे घोडागाड़ी नियत चाल से चल सके।

प्रश्न 18.
मान लीजिए m द्रव्यमान की कोई गेंद प्रारम्भिक चाल ” से ऊर्ध्वाधर ऊपर की ओर फेंकी गई। उसकी चाल निरन्तर शून्य होने तक घटती जाती है। इसके पश्चात् गेंद नीचे गिरने लगती है तथा पृथ्वी पर गिरने से पूर्व वह पुनः v चाल प्राप्त कर लेती है। इससे यह ध्वनित होता है कि गेंद के आरम्भिक तथा अन्तिम संवेग परिमाण में समान हैं। तथापि, यह संवेग संरक्षण नियम का उदाहरण नहीं है। स्पष्ट कीजिए, क्यों?
उत्तर:
संवेग संरक्षण का नियम केवल उन निकायों पर लागू होता है जिन पर कोई बाह्य बल कार्यरत न हो, लेकिन यहाँ पर गुरुत्वाकर्षण बल कार्यरत है इसलिए यह संवेग संरक्षण नियम का उदाहरण नहीं है।

प्रश्न 19.
दो मित्र रोलर-स्केटों पर एक-दूसरे के सामने 5 m की दूरी पर खड़े हैं। इनमें से एक 2 kg की गेंद को दूसरे की ओर फेंकता है जिसे दूसरा अपने स्थान पर ही खड़े हुए लपक लेता है। इस क्रियाकलाप द्वारा दोनों मित्रों की स्थितियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर:
दोनों मित्रों के बीच की दूरी में वृद्धि हो जायेगी। चूँकि संवेग संरक्षण के नियम से जो मित्र गेंद फेंकता है वह पीछे की ओर गति करेगा तथा दूसरा मित्र भी जो गेंद लपकता है वह भी अपने पीछे की ओर गति करेगा क्योंकि गतिमान गेंद उस पर नेट बल आरोपित करती है।

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प्रश्न 20.
जैसे ही जल की आपूर्ति होती है, घास के मैदान में जल का छिड़काव करने वाला यन्त्र घूर्णन करने लगता है। इसके कार्य करने का सिद्धान्त स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जल का छिड़काव करने वाले यन्त्र (वॉटर स्प्रिंकलर) की कार्य प्रणाली गति के तीसरे नियम (क्रिया-प्रतिक्रिया नियम) पर आधारित है। स्प्रिंकलर के नोजल से जल जिस बल से बाहर आता है उतना ही विपरीत बल नोजल पर लगता है जिससे नोजल घूर्णन करने लगता है।

MP Board Class 9th Science Chapter 9 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिकेटर बॉल को कैच करते समय अपने हाथ पीछे खींचता है, क्यों? समझाइए।
उत्तर:
क्रिकेट के खेल में क्रिकेटर बॉल को कैच करते समय अपने हाथ पीछे खींचता है ताकि गेंद को पूरी तरह स्थिर होने का समय अन्तराल बढ़ जाये। इससे गेंद द्वारा हथेलियों पर आरोपित बल कम हो जाता है और हाथों को चोट नहीं लगती क्योंकि हम जानते हैं कि –
बल का आवेग = बल x समयान्तर = संवेग में परिवर्तन
आवेग = \(\overrightarrow{\mathrm{F}} \times t=\overrightarrow{\mathrm{P}_{2}}-\overrightarrow{\mathrm{P}_{1}}\)
अर्थात् समयान्तर t का मान जितना अधिक होगा बल \(\overrightarrow{\mathrm{F}}\) का मान उतना ही कम होगा क्योंकि संवेग में परिवर्तन \((\overrightarrow{\mathrm{P}_{2}}-\overrightarrow{\mathrm{P}_{1}})\) स्थिर है।

प्रश्न 2.
घर्षण से क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
घर्षण से हानियाँ-घर्षण से निम्नलिखित हानियाँ हैं –

  1. घर्षण के कारण ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे मशीनों के पुर्जे अत्यधिक गर्म होने के कारण जल्दी खराब हो जाते हैं।
  2. घर्षण के कारण मशीन के पुों में टूट-फूट बहुत होती है तथा वे घिसते रहते हैं। इससे मशीन के पुर्जे जल्दी-जल्दी बदलने पड़ते हैं।
  3. घर्षण से मशीन की दक्षता कम हो जाती है।

प्रश्न 3.
घर्षण से क्या-क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
घर्षण से लाभ-घर्षण के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. घर्षण से आग उत्पन्न होती है इसी आधार पर दियासलाई एवं लाइटर कार्य करते हैं।
  2. घर्षण के कारण ही रेलगाड़ी एवं अन्य वाहन चल पाते हैं।
  3. वाहनों को ब्रेक लगाकर घर्षण के द्वारा ही रोका जा सकता है।
  4. घर्षण के कारण ही हम पृथ्वी पर आसानी से चल पाते हैं।

प्रश्न 4.
घर्षण को कम करने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
घर्षण को कम करने के उपाय-घर्षण को निम्नलिखित उपायों से कम किया जा सकता है –

1. स्नहेक का उपयोग करके:
घर्षण कम करने के लिए सम्पर्क पृष्ठों के बीच स्नेहक, जैसे ग्रीस, तेल आदि का उपयोग किया जाता है।

2. पॉलिश करके:
सम्पर्क पृष्ठों को चिकना कर देने से घर्षण कम हो जाता है।

3. बॉल-बियरिंग का उपयोग करके:
बॉल-बियरिंग के उपयोग करने से सम्पर्क क्षेत्रफल कम हो जाता है इससे घर्षण कम हो जाता है।

4. धारारेखीय आकृति:
नाव, जलयान, वायुयान एवं कारों की आकृति विशेष प्रकार की अर्थात् मछली के आकार की बनाई जाती है जिससे पिण्डों के सम्पर्क के तरल (जल एवं वायु) की परतों का प्रवाह धारारेखीय हो जाने से घर्षण कम हो जाता है।

प्रश्न 5.
घर्षण बढ़ाने के उपाय बताइए।
उत्तर:
घर्षण बढ़ाने के उपाय-घर्षण को निम्न प्रकार से बढ़ाया जा सकता है –

  1. घरों के ढाल पर लाइनें डालकर घर्षण बढ़ाया जा सकता है।
  2. चिकनी सतह, जैसे बर्फ, तेल पर सूखी मिट्टी या बालू डालकर घर्षण बढ़ाया जा सकता है।
  3. जूतों के तले खुरदरे या खाँचेदार बनाकर।
  4. वाहनों के टायरों में खाँचे बनाकर।

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प्रश्न 6.
“घर्षण हानिकारक होते हुए भी आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है।” कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
“घर्षण एक महत्वपूर्ण बुराई है।” कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
घर्षण हानिकारक है, क्योंकि इससे मशीन की दक्षता कम हो जाती है, उसके पुों की टूट-फूट होती है तथा पुर्जे घिसते रहते हैं। घर्षण से ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे मशीनरी का ताप अत्यन्त बढ़ जाता है जिससे पुर्जे जल्दी खराब हो जाते हैं। घर्षण में इतनी सारी बुराइयाँ होते हुए भी बिना घर्षण के कोई कार्य सम्भव नहीं, क्योंकि घर्षण के बिना हम आसानी से चल नहीं सकते।

घर्षण नहीं होता तो चलते हुए वाहन ब्रेक लगाने से रुकते नहीं तथा घर्षण के बिना रुके हुए वाहन चल नहीं सकते। घर्षण के बिना आग उत्पन्न नहीं होती। अतः हमारे चूल्हे नहीं जलते। इस प्रकार हम देखते हैं कि घर्षण हानिकारक होते हुए भी आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। अतः हम कह सकते हैं कि घर्षण एक महत्वपूर्ण बुराई है।

प्रश्न 7.
m द्रव्यमान के किसी ट्रक को F बल द्वारा प्रचालित किया गया है। यदि अब इस ट्रक पर ट्रक के द्रव्यमान के बराबर द्रव्यमान m का कोई पिण्ड लादा जाता है, तथा चालक बल आधा कर दिया जाता है, तो त्वरण में क्या परिवर्तन होगा?
हल:
ज्ञात है:
प्रथम स्थिति में ट्रक का कुल
द्रव्यमान m1 = M
आरोपित बल F1 = F
द्वितीय स्थिति में ट्रक का कुल द्रव्यमान m2 = 2m
आरोपित बल F2 = \(\frac{F}{2}\)
हम जानते हैं कि:
बल (F) = द्रव्यमान (m) x त्वरण (a)
प्रथम स्थिति में:
F1 = m1 x a1
⇒ F = M x a1
⇒ a1 = F/M ……(1)
द्वितीय स्थिति में:
F2 = m2 x a2
⇒ \(\frac{F}{2}\) = 2M x a2
⇒ \(a_{2}=\frac{\mathrm{F}}{2} \times \frac{1}{2 \mathrm{M}}=\frac{1}{4} \frac{\mathrm{F}}{\mathrm{M}}\) ….(2)
समीकरण (1) एवं (2) से,
a2 = \(\frac{1}{4}\)a1
अत: अभीष्ट त्वरण पहले त्वरण का एक चौथाई रह जाएगा।

प्रश्न 8.
कंक्रीट के फर्श पर लुढ़कती 50g द्रव्यमान की किसी गेंद का वेग-समय ग्राफ संलग्न चित्र में दर्शाया गया है। गेंद का त्वरण तथा फर्श द्वारा बॉल पर लगाया गया घर्षण बल परिकलित कीजिए।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 9
हल:
ग्राफ द्वारा ज्ञात है:
गेंद का प्रारम्भिक वेग u = 80 m s-1
गेंद का अन्तिम वेग v = 0 m s-1
समय अन्तराल t = 8s
गेंद का द्रव्यमान m = 50 g= 0.05 kg (दिया है)
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 10
एवं बल (F) = ma = 0.05 x (- 10) = – 0.5 N.
अतः अभीष्ट त्वरण = -10 m s-2 एवं घर्षण बल = – 0.5 N.

MP Board Class 9th Science Chapter 9 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गति के दूसरे नियम का उपयोग करके बल-त्वरण के बीच सम्बन्ध F = ma की व्युत्पत्ति कीजिए। (2019)
उत्तर:
माना कोई m द्रव्यमान का पिण्ड ५ वेग से गतिमान है। इस पिण्ड पर बल F आरोपित करने पर t समय बाद इसका वेग v हो जाता है, तो
वस्तु का प्रारम्भिक संवेग = mu
t समय बाद वस्तु का संवेग = mv
t समय में संवेग परिवर्तन = mv – mu
= m (v – u)
संवेग परिवर्तन की दर = \(\frac{m(v-u)}{t}\)
\(\frac{v-u}{t}=a\) [गति के प्रथम समीकरण से]
अतः संवेग परिवर्तन की दर = ma
न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से बल ∝ संवेग की परिवर्तन की दर
⇒ F ∝ ma
⇒ F = kma
यदि F, m एवं a का मान 1 मात्रक लें, तो
k = 1
अतः F = ma

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प्रश्न 2.
10 g द्रव्यमान की 103 m s-1 की चाल से गतिमान कोई गोली किसी रेत के बोरे में टकराकर उसमें 5 cm तक धंस जाती है। परिकलित कीजिए –
(i) रेत द्वारा गोली पर लगाया गया अवरोधी बल
(ii) गोली को विराम में आने में लगा समय।
हल:
ज्ञात है:
गोली का द्रव्यमान m = 10 g
= 0.01 kg
गोली का प्रारम्भिक वेग u = 103 m s-1
गोली का अन्तिम वेग v = 0 m s-1
गोली द्वारा बोरे में तय की गयी दूरी s = 5 cm = 0.05 m
(i)
हम जानते हैं कि –
2as = v2 – u2
⇒ 2a (0.05) = (0)2 – (103)2
⇒ 0.1a = -106
⇒ a =-107 ms-2
F = ma = (0.01) x (- 107)
= – 105 N
(ऋणात्मक चिह्न अवरोधी बल को प्रदर्शित करता है।)
अतः अभीष्ट अवरोधी बल = 105N

(ii)
हम जानते हैं कि –
v = u + at
⇒ 0 = 103 + (-107)t
⇒ 107t = 103
⇒ t = \(\frac{10^{3}}{10^{7}}\) = 10-4s
अतः अभीष्ट समय = 10-4

प्रश्न 3.
गति के दूसरे नियम का उपयोग करके बल का मात्रक व्युत्पन्न कीजिए। 5 N का कोई बल द्रव्यमान m1 पर कार्य करके उसमें 8 m s-2 का त्वरण तथा द्रव्यमान m2 पर कार्य करके उसमें 24 m s-2 का त्वरण उत्पन्न करता है। यदि दोनों द्रव्यमानों को बाँध दें तो यही बल कितना त्वरण उत्पन्न करेगा?
हल:
गति के दूसरे नियम के आधार पर हम जानते हैं कि बल F= द्रव्यमान (m) x त्वरण (a)
⇒ बल F का मात्रक = द्रव्यमान (m) का मात्रक – त्वरण (a) का मात्रक = kg x m s-2 = kg m s-2 अर्थात् N
अतः बल का अभीष्ट मात्रक = kg ms-2 अथवा N है।
ज्ञात है:
आरोपित बल F = 5 N .
प्रथम वस्तु का द्रव्यमान = m1
प्रथम वस्तु का त्वरण (a1) = 8 m s-2
द्वितीय वस्तु का द्रव्यमान = m2
द्वितीय वस्तु का त्वरण (a2) = 24 m s-2
संयुक्त द्रव्यमान = (m1 + m2)
संयुक्त त्वरण = a (माना)
संख्यात्मक भाग का हल:
F = ma
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 11
अतः अभीष्ट त्वरण = 6 m s-2.

प्रश्न 4.
संवेग क्या है? इसका S.I. मात्रक लिखिए। संवेग के पदों में बल की व्याख्या कीजिए। निम्नलिखित का ग्राफीय निरूपण कीजिए –
(a) वेग के साथ संवेग में परिवर्तन जबकि द्रव्यमान नियत है
(b) द्रव्यमान के साथ संवेग में परिवर्तन जबकि वेग नियत है।
उत्तर:
संवेग-“किसी वस्तु की संहति (द्रव्यमान) एवं उसके वेग के गुणनफल को संवेग कहते हैं।” अर्थात्
संवेग (P) = द्रव्यमान (m) x वेग (v)
संवेग का S.I. मात्रक:
kg m s-1 अथवा Ns
संवेग के पदों में बल:
“किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर उस वस्तु पर लगाए गए बल के बराबर होती है।” अर्थात्
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 9 बल तथा गति के नियम image 12

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 11 प्रमुख सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 11 प्रमुख सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ

MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
रथ-चालक कांस्य प्रतिमा कहाँ से प्राप्त है?
(i) दैमाबाद
(ii) मोहनजोदड़ो
(iii) कालीबंगा
(iv) पंजाब।
उत्तर:
(ii) मोहनजोदड़ो

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प्रश्न 2.
प्रथम नगरीकरण कब हुआ?
(i). नव पाषाण काल में
(ii) सिन्धु सभ्यता में
(iii) मौर्य काल में
(iv) गुप्तकाल में।
उत्तर:
(ii) सिन्धु सभ्यता में

प्रश्न 3.
चित्रकला में वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन-अध्यापन की बात गुप्तकाल में किसने कही?
(i) वात्सायन ने
(ii) अशोक ने
(iii) समुद्रगुप्त ने
(iv) कुमारगुप्त ने।
उत्तर:
(iii) समुद्रगुप्त ने

प्रश्न 4.
वीणाधारी सिक्कों का चलन किस राजवंश ने किया? (2014)
(i) मौर्य राजवंश
(ii) गुप्त राजवंश
(iii) वर्धन वंश
(iv) राजपूत वंश।
उत्तर:
(ii) गुप्त राजवंश

प्रश्न 5.
कव्वाली का जनक था (2008,09)
(i) अकबर
(ii) शाहजहाँ
(iii) तानसेन
(iv) अमीर खुसरो।
उत्तर:
(iv) अमीर खुसरो।

सही जोड़ी बनाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 11 प्रमुख सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ - 1
उत्तर:

  1. → (घ)
  2. → (क)
  3. → (ख)
  4. → (ग)
  5. → (च)
  6. → (ङ)।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिन्धु सभ्यता के सबसे लम्बे अभिलेख में कितने अक्षर हैं?
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता में अब तक लगभग 2500 से अधिक अभिलेख प्राप्त हैं। सबसे लम्बे अभिलेख में 17 अक्षर हैं।

प्रश्न 2.
दीपवंश, महावंश, दिव्यावदान किस साहित्य से सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
दीपवंश, महावंश, दिव्यावदान बौद्ध साहित्य से सम्बन्धित हैं।

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प्रश्न 3.
कल्पसूत्र और परिशिष्ट पर्व किस धर्म की साहित्यिक कृति है?
उत्तर:
भद्रबाहु का कल्पसूत्र और हेमचन्द्र का परिशिष्ट पर्व जैन धर्म की साहित्यिक कृति है।

प्रश्न 4.
तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, रसखान किस भक्ति मार्ग के उपासक थे?
उत्तर:
तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, रसखान सगुण भक्ति मार्ग के उपासक थे।

प्रश्न 5.
एलोरा के मन्दिरों का निर्माण किस काल में हुआ? (2008,09)
उत्तर:
एलोरा के मन्दिरों का निर्माण गुप्तकाल में हुआ।

प्रश्न 6.
ताजमहल किसने बनवाया था? (2018)
उत्तर:
ताजमहल मुगल सम्राट शाहजहाँ ने बनवाया था। यह 313 फुट ऊँचा चौकोर संगमरमर का मकबरा है। जो 22 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है। चबूतरे के चारों कोनों पर एक-एक मीनार है और शीर्ष भाग पर एक गुम्बद है।

प्रश्न 7.
तानसेन कौन थे?
उत्तर:
अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक रत्न तानसेन उस युग का सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ था। वृन्दावन के बाबा हरिदास तानसेन के गुरु थे।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुप्तकालीन चित्रकला की विशेषताएँ लिखिए। (2008, 09, 10, 14, 16, 18)
उत्तर:
गुप्तकाल में चित्रकला वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित थी। चित्रकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण अजन्ता की गुफाओं के चित्र हैं इसे विश्व धरोहर के रूप में शामिल किया गया है। ये चित्र मुख्यतः धार्मिक विषयों पर आधारित हैं। इसमें बुद्ध और बोधिसत्व के चित्र हैं। जातक ग्रन्थों के वर्णनात्मक दृश्य हैं। यह चित्र वास्तविक, सजीव तथा प्रभावोत्पादक हैं। इस काल की चित्रकला बाघ (म. प्र. में धार जिले में) की गुफाओं में भी देखी जा सकती है। इन गुफाओं के चित्रों के विषय लौकिक हैं। इस काल में चित्रकारी में सुन्दर रंगों का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
सिन्धु सभ्यता की वास्तुशिल्प की विशेषताएँ लिखिए। (2008, 09, 12, 16)
उत्तर:
सिन्धु घाटी के मोहनजोदड़ो व हड़प्पा नगर की खुदाई से तत्कालीन वास्तुशिल्प की जानकारी मिलती है। इस काल में लोग भवन निर्माण कला में दक्ष थे। विशाल अन्नागार, मकान, सुनियोजित नगर, बड़े प्रासाद, बन्दरगाह, स्नानागार आदि तत्कालीन वास्तुशिल्प पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। तत्कालीन अवशेषों को देखकर किसी आधुनिक विकसित नगर से इनकी तुलना की जा सकती है। पक्की ढुकी हुई नालियाँ, भवनों के खिड़की-दरवाजे मुख्य मार्ग से विपरीत बनाना, भवनों में रसोईघर, स्नानागार, रोशनदान की पर्याप्त व्यवस्था, साधारण व राजकीय भवनों का निर्माण आदि तत्कालीन वास्तुशिल्प के अनुपम उदाहरण हैं। सिन्धु सभ्यता के नगर में प्रथम नगरीकरण के प्रमाण हैं।

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प्रश्न 3.
अशोक के स्तम्भ पर टिप्पणी लिखिए। (2008, 09, 10, 14, 15, 18)
उत्तर:
मौर्य वास्तुकला के सर्वोत्तम नमूने अशोक के स्तम्भ हैं। जो कि उसने धम्म के प्रचार हेतु बनवाये थे। ये स्तम्भ संख्या में लगभग 20 हैं। ये स्तम्भ देश के विभिन्न भागों में स्थित हैं। उत्तर प्रदेश में सारनाथ, प्रयाग, कौशाम्बी, नेपाल की तराई में लुम्बनी व निग्लिवा में अशोक के स्तम्भ मिले हैं। इन स्थानों के अतिरिक्त साँची, लोरिया, नन्दगढ़ आदि स्थानों में भी अशोक के स्तम्भ मिले हैं। स्तम्भों में शीर्ष अत्यधिक कलापूर्ण बनाये जाते थे। मौर्यकालीन स्थापत्य कला के प्रसिद्ध स्तम्भ लेख-साँची (म. प्र.), सारनाथ (उ. प्र.), गुहालेख-बाराबर, नागार्जुनी (बिहार) एवं स्तूप-साँची (म. प्र.) बोधगया (बिहार) में हैं।

प्रश्न 4.
गुप्तकालीन मन्दिरों की विशेषताएँ बताइए। (2008, 09, 12, 13, 15, 17)
अथवा
गुप्तकालीन वास्तुशिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
गुप्तकाल में वास्तुशिल्प चर्मोत्कर्ष पर थी। इस काल की विशेष उपलब्धि मन्दिर निर्माण रही है। मन्दिर ईंट तथा पत्थरों आदि से बनाये जाते थे। गुप्तकाल में बने मन्दिरों की छतें सपाट थीं। सबसे पहले देवगढ़ (झाँसी, उ. प्र.) के दशावतार मन्दिर में शिखर का निर्माण हुआ था, इसके बाद ही मन्दिरों में शिखर बनने शुरू हो गये। इनमें से अनेक मन्दिर आज भी अबस्थित हैं; जैसे-म. प्र. में विदिशा जिले में साँची का मन्दिर उत्तर प्रदेश में झाँसी तथा भीतरगाँव (महाराष्ट्र) के देवगढ़ के मन्दिर इसके उदाहरण हैं। अजन्ता की 16, 17, 19 नम्बर की गुफा गुप्तकालीन मानी जाती है। उदयगिरि (विदिश म. प्र.), बाघ (धार म. प्र.) आदि गुफाओं का निर्माण गुप्तकाल में हुआ था। गुप्तकाल के शिल्पकार लोहे तथा काँसे के काम में कुशल थे। नई दिल्ली में महरौली में स्थित लौह स्तम्भ लौह प्रौद्योगिकी का एक अनुपम उदाहरण है जिसे ईसा की चौथी शताब्दी में बनाया गया था और आज तक इसमें जंग नहीं लगा।

प्रश्न 5.
नागर शैली व द्राविड़ शैली के मन्दिर में क्या अन्तर है? लिखिए।(2009, 14, 16, 18)
उत्तर:
उत्तर भारत के अतिरिक्त दक्षिण भारत व पूर्वी भारत में भी अनेक मन्दिरों का निर्माण हुआ। इस काल में बने मन्दिरों को मुख्यतः दो शैलियों में विभाजित कर सकते हैं-नागर शैली व द्राविड़ शैली। इन दोनों शैलियों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं –
नागर व द्राविड़ शैली में अन्तर

नागर शैली द्राविड़ शैली
1. नागर शैली के मन्दिर प्रमुखतया उत्तर भारत में पाये जाते हैं। 1. द्रविड़ शैली के मन्दिर प्रमुखतया दक्षिण भारत में पाये जाते हैं।
2. नागर शैली में मन्दिरों के शिखर लगभग वक्राकार होते हैं। 2. द्राविड़ शैली में मन्दिरों के शिखर आयताकार होते हैं।
3. नागर शैली में मन्दिरों के शिखर पर गोलाकार आमलक और कलश पाया जाता है। 3. द्राविड़ शैली में मन्दिरों के शिखर आयताकार खण्डों की सहायता से बनते हैं।

प्रश्न 6.
मथुरा व गांधार कला में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2008, 09, 11, 13, 14, 16, 18)
उत्तर:
मथुरा व गांधार कला में अन्तर

मथुरा कला गांधार कला
1. मथुरा कला राजस्थान व उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में विकसित हुई। 1. गांधार कला पुष्कलरावती, तक्षशिला, पुरूषपुर  (पेशावर) के आस-पास विकसित हुई।
2. मथुरा कला की मूर्तियों के लिये बिंदीदार लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है। 2. गांधार कला में मूर्तियाँ चूने, सीमेण्ट, पकी हुई मिट्टी और चिकनी मिट्टी तथा पत्थर की है।
3. मथुरा कलाकारों ने शारीरिक सुन्दरता के स्थान पर स्थलाकृतियों को आध्यात्मिक आकर्षण देने का प्रयास किया है। 3. मूर्तियों को अधिक आकर्षक और सुन्दर बनाने का प्रयास किया गया है। इसके लिये वस्त्रों और आभूषणों का खूब प्रयोग किया गया।
4. इस कला के विषय, विचार और भाव भारतीय हैं। परन्तु मूर्तियाँ बनाने का ढंग भी भारतीय है। 4. इस कला के विषय, विचार और भाव ही भारतीय नहीं थे वरन् बनाने के ढंग यूनानी है।
5. इस कला में बुद्ध और बोधिसत्वों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू और जैन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनायी गयीं। 5. इस कला में महात्मा बुद्ध और बोधिसत्वों की आदमकद मूर्तियों का निर्माण किया गया है।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन चित्रकला की विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर:
सल्तनत काल में चित्रकला का पतन हुआ। फिर भी गुजरात, राजस्थान, मालवा के क्षेत्रों में चित्रकला जीवित रही। मध्यकालीन चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

  1. यहाँ धार्मिक जनजीवन से सम्बन्धित चित्र प्रस्तुत किये।
  2. मालवा और राजस्थानी चित्रकला शैलियों का विकास हुआ।
  3. गुजरात में जैन मुनियों द्वारा ताड़पत्र पर लिखे हुए ग्रन्थों में उच्चकोटि के छोटे-छोटे चित्र बनाये गये।
  4. मुगलकालीन चित्रों की विशेषता है-विदेशी पेड़-पौधों और उनके फूल-पत्तों, स्थापत्य अलंकरण की बारीकियाँ साज समान के साथ स्त्री आकृतियाँ, अलंकारिक तत्वों के रूप में विशिष्ट राजस्थानी चित्रकला।
  5. जहाँगीर के काल में छवि चित्र (व्यक्तिगत चित्र) प्राकृतिक दृश्यों एवं व्यक्तियों के सम्बन्धित चित्रण की पद्धति आरम्भ हुई।
  6. शाहजहाँ के काल में चित्रों में रेखांकन और बॉर्डर बनाने में विशेष प्रगति हुई।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की प्रमुख सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ कौन-सी हैं? किसी एक का प्राचीनकाल एवं मध्यकाल के सन्दर्भ में तुलनात्मक विवरण लिखिए।
उत्तर:
सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से आशय यहाँ की भारतीय संस्कृति के स्वरूप से है। भारत की प्रमुख सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ साहित्य, चित्रकला, वास्तुकला, मूर्तिकला, नृत्य एवं संगीत एवं अन्य ललित कलाएँ हैं।

वास्तुकला :
वास्तुकला मानव जीवन के रीति-रिवाजों और तत्कालीन समय की सभ्यता व समाज व्यवस्था पर प्रकाश डालती है। किसी भी युग के इतिहास का अनुमान उस युग की निर्मित इमारतों से लगाया जा सकता है। वास्तुशिल्प तत्कालीन समय के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी देने में सक्षम होता है।

प्राचीनकाल व मध्यकाल की वास्तुकला का तुलनात्मक अध्ययन
प्राचीनकाल में वास्तुकला :
प्राचीन काल में लोग भवन निर्माण कला में दक्ष थे। विशाल अन्नागार, मकान, सुनियोजित नगर, बड़े प्रासाद, बन्दरगाह, स्नानागार, पक्की ढंकी हुई नालियाँ, भवनों के खिड़की-दरवाजे मुख्य मार्ग से विपरीत बनाना, भवनों में रसोई घर, स्नानागार, रोशनदान की पर्याप्त व्यवस्था, साधारण व राजकीय भवनों के निर्माण आदि तत्कालीन वास्तु शिल्प के उदाहरण हैं। सिन्धु सभ्यता के नगर भारत में प्रथम नगरीकरण के प्रमाण हैं।

वैदिककाल में यज्ञवेदियों, हवनकुण्डों, यज्ञ शालाओं, पाषाण-प्रासादों, खम्बों व द्वारों वाले भवनों, आश्रमों का उल्लेख मिलता है। इस काल में बड़े-बड़े राजप्रसादों व भवनों का उल्लेख मिलता है। मौर्य वास्तुकला के सर्वोत्तम नमूने अशोक के स्तम्भ, अशोक द्वारा निर्मित बौद्ध स्तूप, पाटलिपुत्र स्थित राज प्रसाद, गया में बारांबर तथा नागार्जुनी पहाड़ियों के पहाड़ों को काटकर तैयार किये गये चैत्य गृह-आवास आदि हैं।

गुप्तकाल में वास्तुकला चर्मोत्कर्ष पर थी। इस काल की विशेष उपलब्धि मन्दिर निर्माण रही है। मन्दिर ईंट तथा पत्थरों से बनाये जाते थे इनकी छतें सपाट होती थीं। सबसे पहले देवगढ़ (झाँसी, उ. प्र.) के दशावतार मन्दिर में शिखर का निर्माण हुआ, इसके पश्चात् ही मन्दिरों में शिखर का निर्माण होने लगा। गुप्तकाल में शिल्पकार लोहे तथा कांसे का काम करने में कुशल थे। नई दिल्ली में महरौली स्थित लौह स्तम्भ लौह प्रौद्योगिकी का अनुपम उदाहरण है। यह ईसा की चौथी शताब्दी में बना था इसमें अभी तक जंग नहीं लगी है।

पूर्व मध्यकाल में शासक अपने वैभव को प्रदर्शित करने के लिये विशाल मन्दिरों का निर्माण करवाते थे। इस काल में बने मन्दिरों में खजुराहो का मन्दिर समूह, ओसिया में ब्राह्मण तथा जैन मन्दिर, चित्तौड़गढ़ में कालिका देवी का मन्दिर व आबू में जैन मन्दिर इस काल की वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

मध्यकाल की वास्तुकला :
भारत में मध्यकालीन वास्तुशिल्प पर इस्लाम प्रभाव दिखायी देता है। विभिन्न सुल्तानों व मुगलों के समय बनी हुई इमारतों में भारतीय वास्तुकला का समन्वय ईरानी तुर्की व अन्य इस्लामी देशों में प्रचलित वास्तुकला व शैलियों के साथ हुआ। इस्लामी वास्तुकला में मुख्यतः मस्जिद, मकबरे, महल तोरण, गुम्बद, मेहराब तथा मीनारों का निर्माण किया गया। महरौली की कुब्बतुल इस्लाम मस्जिद, कुतुबमीनार, कुतुबी मस्जिद, अलाई दरवाजा, गयासुद्दीन तुगलक का मकबरा, फिरोजशाह कोटला आदि भवनों का निर्माण सल्तनत काल में हुआ। इसी प्रकार हुमायूँ का मकबरा, आगरा का किला, फतेहपुर सीकरी के अगणित भवनों (विशेषकर बुलन्द दरवाजा, शेख चिश्ती का मकबरा, पंचमहल) मोती मस्जिद, लाल किला, जामा मस्जिद, ताजमहल आदि अद्वितीय भवनों का निर्माण मुगलकाल में हुआ।

मुगलकालीन भवन अपने रंग-बिरंगे टाइलों, महराबों, गुम्बद, ऊँची मीनारों, फूल-पत्तियों व ज्यामितीय के नमूनों के कारण प्रसिद्ध हैं। ये भवन सुन्दर, सफेद संगमरमर से निर्मित होने, बगीचों, दोहरे गुम्बदों, ऊँचे द्वार पथी, शानदार विशाल हॉलों के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 2.
प्राचीनकाल से लेकर मध्यकाल तक साहित्य का विकास किस प्रकार हुआ? लिखिए। (2009, 12)
उत्तर:
साहित्य समाज का दर्पण माना जाता है। भारत का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही उसका साहित्य समृद्धशाली है। भारतीय साहित्य के केन्द्र में संस्कृत साहित्य का अपार भण्डार है।

प्राचीन भारत में साहित्य का अपूर्व विकास हुआ। जिस समय अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा पश्चिम के अनेक देशों में लोग पशुवत् असभ्यता का जीवन व्यतीत कर रहे थे, उसी समय भारत में वेदों की रचना हुई थी। वेदों की संख्या चार है-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। इसके अतिरिक्त आरण्यक व उपनिषदों की रचना हुई। वैदिक काल के पश्चात् रामायण, महाभारत तथा भगवद्गीता जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे गये। गुप्तकाल में साहित्य का सर्वाधिक विकास हुआ। इस काल में धर्मशास्त्र पर अनेक ग्रन्थ लिखे गये जिसमें स्मृति साहित्य, याज्ञवलक्य स्मृति, नारद स्मृति, काव्यायन स्मृति प्रमुख हैं।

कालिदास इस काल के प्रमुख साहित्यकार थे, उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-अभिज्ञान शाकुन्तलम्, मालविकाग्निमित्रं, मेघदूत, विक्रमोर्वशीयम्, कुमारसंभव, रघुवंश, ऋतुसंहार। इसके अतिरिक्त इस काल के प्रमुख साहित्यकार विशाखदत्त, शूद्रक, विष्णु शर्मा व आर्यभट्ट थे। हर्षवर्धन काल के प्रमुख विद्वान् बाणभट्ट थे जिन्होंने कादम्बरी की रचना की। राजपूत काल में भी साहित्य के सृजन का कार्य उन्नति की ओर अग्रसर था। राजा मुंज, भोज, अमोघवर्ष आदि प्रमुख साहित्यकार थे। इस समय चिकित्सा, ज्योतिष, व्याकरण, वास्तुकला आदि विषयों पर ग्रन्थ लिखे गये।

मध्यकाल में साहित्य का विकास क्रम चलता रहा। इस काल का साहित्य सल्तनत एवं मुगलकालीन व्यवस्थाओं पर प्रकाश डालता है। तत्काली समय में व्यक्तिवादी इतिहास में लेखन कार्य प्रारम्भ हो चुका था। सल्तनत काल में धार्मिक एवं धर्म निरपेक्ष साहित्य का सृजन किया गया। अमीर खुसरो द्वारा रचित दोहे और पहेलियाँ आज भी लोकप्रिय हैं। मुगलकाल में कई भाषाओं का विकास हुआ। हिन्दी भाषा में कबीर, जायसी, सूरदास, तुलसीदास की रचनाओं का विशेष महत्त्व है। जबकि मीराबाई ने राजस्थानी व मैथिली भाषा का प्रयोग किया है। बंगाल में रामायण और महाभारत का संस्कृत से बंगाली भाषा में अनुवाद किया गया।

इस काल में फारसी तथा तुर्की भाषा में भी रचनाएँ लिखी गयीं। मुगलकाल में ही उर्दू साहित्य का विकास हुआ। प्रारम्भ में उर्दू को ‘जबान-ए-हिन्दर्वा’ कहा जाता था। अकबर द्वारा संस्कृत भाषा के अनेक ग्रन्थों का अनुवाद फारसी भाषा में करवाया गया था। इस प्रकार मध्यकाल में साहित्य का विकास विभिन्न प्रकार से होता रहा।

प्रश्न 3.
प्राचीनकाल से लेकर मध्यकाल तक की चित्रकला की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
चित्रकला का विकास मानव के विचारों की अभिव्यक्ति के चित्रात्मक स्वरूप पर आधारित है। विभिन्न कालों में चित्रकला का अंकन तत्कालीन समाज के चित्रकारों द्वारा किया गया।

सिन्धु सभ्यता में चित्रकला के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। इस काल में प्राप्त बर्तनों एवं मोहरों पर अनेक चित्र मिलते हैं। भवनों पर चित्रकारी और रंगों का प्रयोग भी किया जाता था। वैदिक काल में मन की अभिव्यक्ति को दीवारों के साथ-साथ बर्तनों तथा कपड़ों पर कढ़ाई के रूप में अंकित किया जाता था। मौर्यकाल में चित्रकला का विकास लोककला के रूप में हुआ। मौर्यकालीन भवनों एवं प्रासादों के स्तम्भों पर चित्रकारी की जाती थी। अजन्ता की गुफाओं के कुछ चित्र ई. पू. प्रथम शताब्दी के हैं। यहाँ स्थित गुफा संख्या 10 में छद्दत जातक का चित्रांकन विशेष है। चित्रकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हमें गुप्तकाल में दिखाई देते हैं।

अजन्ता की गुफाओं के चित्र मुख्यतः धार्मिक विषयों पर आधारित हैं। इनमें बुद्ध और बोधिसत्व के चित्र हैं। इस काल की चित्रकला बाघ (म. प्र. में धार जिले में) की गुफाओं में दिखाई देती है। हर्ष के समय में कपड़ों पर चित्रकारी की जाती थी। विवाह कार्यों में मांगलिक दृश्यों का अंकन किया जाता था व महिलाओं द्वारा कच्ची मिट्टी के बर्तन को अलंकृत किया जाता था। राजपूत काल में चित्रकला पूर्णतः विकसित हो चुकी थी। इस काल में गुजरात शैली और राजपूताना शैली विकसित हो गयी थीं। मन्दिरों और राजमहलों को सजाने के लिये भित्ति चित्र बनाये जाते थे। लघु चित्रों को बनाने की कला भी इसी काल से शुरू हुई थी।

मध्यकालीन चित्रकला :

  1. यहाँ धार्मिक जनजीवन से सम्बन्धित चित्र प्रस्तुत किये।
  2. मालवा और राजस्थानी चित्रकला शैलियों का विकास हुआ।
  3. गुजरात में जैन मुनियों द्वारा ताड़पत्र पर लिखे हुए ग्रन्थों में उच्चकोटि के छोटे-छोटे चित्र बनाये गये।
  4. मुगलकालीन चित्रों की विशेषता है-विदेशी पेड़-पौधों और उनके फूल-पत्तों, स्थापत्य अलंकरण की बारीकियाँ साज समान के साथ स्त्री आकृतियाँ, अलंकारिक तत्वों के रूप में विशिष्ट राजस्थानी चित्रकला।
  5. जहाँगीर के काल में छवि चित्र (व्यक्तिगत चित्र) प्राकृतिक दृश्यों एवं व्यक्तियों के सम्बन्धित चित्रण की पद्धति आरम्भ हुई।
  6. शाहजहाँ के काल में चित्रों में रेखांकन और बॉर्डर बनाने में विशेष प्रगति हुई।

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प्रश्न 4.
मुगलकालीन स्थापत्य कला का वर्णन कीजिए।(2008, 09, 13, 17)
उत्तर:
मुगलकालीन स्थापत्य कला के अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। मुगलकालीन स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताएँ हैं-गोल गुम्बद, पतले स्तम्भ तथा विशाल खुले प्रवेश द्वार।

बाबर द्वारा भवन निर्माण :
बाबर का अधिकांश समय युद्ध करने में ही व्यतीत हुआ। उसे भवन बनवाने का समय नहीं मिला। जो भवन उसने बनवाये हैं, उनमें से मात्र दो ही भवन शेष हैं –

  1. पानीपत के काबुली बाग में स्थित मस्जिद
  2. रुहेलखण्ड में स्थित मस्जिद।

हुमायूँ द्वार भवन निर्माण :
हुमायूँ का शासनकाल स्थापत्य कला की दृष्टि से साधारण है। उसे भी नवीन इमारतें बनवाने का समय नहीं मिल सका। दिल्ली में उसने दीनपनाह नामक महल का निर्माण करवाया था जो शेरशाह द्वारा नष्ट कर दिया गया। आगरा और फतेहाबाद (हिसार) में दो मस्जिदों का निर्माण भी करवाया था।

शेरशाहकालीन स्थापत्य कला :
शेरशाह महान् प्रशासक होने के साथ-साथ एक महान् निर्माता भी था। उसके शासन काल की प्रमुख इमारते हैं –

  1. दिल्ली के समीप पुराने किले की मस्जिद
  2. सहसराम का मकबरा। इसमें सहसराम का मकबरा प्रसिद्ध है।

इसका निर्माण बड़े आकर्षक और प्रभावशाली ढंग से किया गया है।

अकबरकालीन स्थापत्य कला :
मुगलकालीन स्थापत्य कला का वास्तविक प्रारम्भ अकबर के शासन से होता है। इसके शासनकाल में अनेक विशाल और भव्य इमारतों का निर्माण हुआ। अकबरकालीन भवनों में हिन्दू स्थापत्य कला का प्रभाव अत्यधिक दृष्टिगोचर होता है। अकबर द्वारा निर्मित प्रमुख भवन निम्न हैं-हुमायूँ का मकबरा, आगरे का लाल किला, जहाँगीरी महल, अकबरी महल, फतेहपुर सीकरी (दीवाने-आम, दीवाने-खांस, बीरबल का महल, मरियम भवन, जामा मस्जिद, बुलन्द दरवाजा, सलीम चिश्ती का मकबरा) आदि। फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाजा स्थापत्य कला का एक भव्य तथा आश्चर्यजनक उदाहरण है। यह दरवाजा सड़क से 176 फीट ऊँचा है तथा सीढ़ियों से इसकी ऊँचाई 134 फीट है।

जहाँगीरकालीन स्थापत्य कला :
जहाँगीर को स्थापत्य कला की अपेक्षा चित्रकला से अधिक प्रेम था, अतः उसके शासन काल में अधिक भवनों का निर्माण नहीं हुआ। परन्तु जो भवन बने वे सुन्दर और आकर्षक हैं। ये निम्न हैं-अकबर का मकबरा सिकन्दरा, मरियम की समाधि, एत्माद्उद्दौला का मकबरा। इनमें एत्मादद्दौला का मकबरा सबसे आकर्षक है।

शाहजहाँकालीन स्थापत्य कला :
मुगलकालीन स्थापत्य कला का चरम विकास शाहजहाँकालीन इमारतों में झलकता है। शाहजहाँ की सर्वश्रेष्ठ कृति ताजमहल है। इसका निर्माण उसने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की यादगार में किया था। इसके बनने में लगभग 22 वर्ष लगे तथा 50 लाख रुपये खर्च हुये। शाहजहाँ के काल को मुगल स्थापत्य कला का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस काल की प्रमुख विशेषताएँ थीं-नक्काशी युक्त मेहराबें, बंगाली शैली में मुड़े हुए कंगूरे तथा जंगले के खम्भे। शाहजहाँ की अन्य प्रसिद्ध इमारतें दिल्ली का लाल किला, दीवाने खास और जामा मस्जिद।

औरंगजेबकालीन स्थापत्य कला :
औरंगजेब शुष्क और नीरस स्वभाव का था। उसे स्थापत्य कला से विशेष प्रेम नहीं था। अत: उसके शासनकाल में बहुत कम इमारतें बनीं और जो भी बनीं वे अत्यन्त घटिया किस्म की थीं।

प्रश्न 5.
मध्यकाल में मूर्तिकला का विकास किस प्रकार हुआ? लिखिए। (2008, 09, 12)
उत्तर:
मध्यकाल में दक्षिण भारत में मूर्तिकला का अभूतपूर्व विकास हुआ। मन्दिरों के बाह्य व अंतरंग भागों को अलंकृत करने के लिए तक्षण शिल्प व मूर्तिशिल्प का उपयोग किया गया। इस्लाम धर्म मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता था। ऐसे में मध्यकालीन मूर्तिकला पर उसका प्रभाव पड़ा। मुगलकाल में इस कला की विशेष उन्नति नहीं हुई। अकबर के समय मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। उसने चित्तौड़ के जयमल और पत्ता की हाथियों पर सवार मूर्तियाँ बनवायीं और उन्हें आगरा के किले के फाटक पर रखवा दिया। जहाँगीर शासनकाल में भी मूर्तिकला को प्रोत्साहित किया गया। आगरा किले में झरोखा दर्शन के नीचे अमरसिंह व कर्णसिंह की मूर्तियाँ लगायी गयीं। फतेहपुर सीकरी में महल के हाथी द्वार पर दो विशालकाय हाथियों की टूटी हुई मूर्तियाँ अब भी विद्यमान हैं।

जहाँगीर ने उदयपुर के राणा अमरसिंह एवं उनके पुत्र कर्णसिंह की मूर्तियाँ आगरा के महलों के बाग में रखवायीं। शाहजहाँ के समय मूर्तिकला को प्रोत्साहन नहीं दिया। औरंगजेब शुष्क और नीरस स्वभाव का था उसे मूर्तिकला से विशेष प्रेम नहीं था। इसलिये उसके शासनकाल में मूर्तिकला के विकास में उदासीनता आ गई। कुल मिलाकर मध्यकाल में मूर्ति के विकास को प्रोत्साहन नहीं मिला जिसके चलते मूर्तिकला प्रभावित हुई।

प्रश्न 6.
मध्यकाल में नृत्य व संगीत के विकास व उसके प्रभाव का समीक्षात्मक विवरण दीजिए।
उत्तर:
संगीत के विषय में मध्ययुगीन हिन्दू शासकों की विशेष रुचि रही है। नृत्य संगीत से सम्बन्धित कुछ ग्रन्थ लिपिबद्ध हो चुके थे, इससे भोज, सोमेश्वर और सारंगदेव का संगीत रत्नाकर बहुत प्रसिद्ध ग्रन्थ है। बाद में संगीत के कई अन्य ग्रन्थ भी रचे गये। तेरहवीं सदी में जयदेव द्वारा रचित ‘गीत गोविन्द’ इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। मध्यकाल में भक्ति संगीत को अधिक महत्त्व प्राप्त हुआ। मीराबाई, तुलसीदास, कबीरदास और सूरदास के भजनों को लोग मन लगाकर गाते थे।

सल्तनत काल में नये रागों एवं वाद्य यन्त्रों से हिन्दुस्तानी संगीत का परिचय हुआ। यद्यपि मुस्लिमों के प्रसिद्ध ग्रन्थ कुरान में संगीत को वर्जित माना जाता है। परन्तु समय-समय पर सुल्तानों, सामन्तों व खलीफाओं ने नृत्य-संगीत को प्रोत्साहन दिया। सल्तनत काल का प्रसिद्ध संगीतकार अमीर खुसरो था जिसने अपनी पुस्तक ‘नूरह सिपहर’ में संगीत की व्याख्या की है। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि भारतीय संगीत केवल मनुष्य मात्र को ही प्रभावित नहीं करता वरन् यह पशुओं तक को मन्त्रमुग्ध कर देता है। अमीर खुसरो ने भारतीय-ईरानी संगीत सिद्धान्तों के मिश्रण से कुछ नवीन रागों का आविष्कार किया। अमीर खुसरो को ‘कब्बाली का जनक’ माना जाता है। उस काल में ख्याल तराना आदि संगीत की नवीन विधाओं के कारण संगीत का रूप परिवर्तित हो गया। नृत्य-संगीत उस काल में मनोरंजन का प्रमुख साधन था।

मुगलकाल में नृत्य संगीत कला फली-फूली। मुगल बादशाह संगीत प्रेमी होते थे। प्रत्येक राजकुमार को संगीत को विधिवत् शिक्षा दी जाती थी। बाबर स्वयं संगीत प्रेमी था। वह स्वयं गीतों का रचयिता था। उसके बनाये हुए गीत बहुत समय तक प्रचलित रहे। हुमायूँ व शेरशाह सूरी को भी संगीत का बड़ा शौक था। मुगल सम्राट अकबर ने अपने दरबार में संगीतज्ञों को प्रश्रय दिया। अकबर स्वयं नक्कारा बजाने में माहिर था। संगीतशास्त्र में उसकी बहुत रुचि थी। अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक रत्न तानसेन था जो उस काल का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार था। अबुल फजल के अनुसार उस जैसा गायक न तो है और न ही होगा।

तानसेन के गुरु बाबा हरिदास थे। तानसेन के अतिरिक्त 36 अन्य गायकों को भी अकबर के दरबार में संरक्षण मिला हुआ था। तत्कालीन समय में संगीत के संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया गया। अकबर के काल में ध्रुपद गायन की चार शैलियाँ प्रचलन में थीं। मुगलकाल में जहाँगीर के दरबार में खुर्रमदाद, मक्खू, चतुरखाँ और हमजा आदि संगीतज्ञ थे। इसी प्रकार शाहजहाँ के दरबार में रामदास, जगन्नाथ, सुखसैन और लाल खाँ आदि प्रमुख संगीतज्ञ थे। औरंगजेब संगीत कला का विरोधी था। अत: मुगलकालीन संगीत का विकास शाहजहाँ के पश्चात् रुक गया।

मध्यकाल में भारतीय नृत्य की शास्त्रीय शैलियाँ दिखाई देती रहीं। इनमें भरतनाट्यम्, कुचीपुड़ी, कत्थकली आदि शास्त्रीय शैलियों के नृत्य दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में प्रचलित रहे हैं। भरतनाट्यम् व कुचीपुड़ी नृत्य कृष्णलीला पर आधारित होते थे। जबकि कत्थक नृत्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब व मध्य प्रदेश तक सीमित था। इसमें कृष्ण लीलाओं तथा अन्य पौराणिक कथाओं पर आधारित नृत्य किये जाते थे। दरबारों में नृत्य संगीत चलता था जो कि मनोरंजन का प्रमुख साधन था।

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प्रश्न 7.
ललित कलाओं का विकास प्राचीनकाल से मध्यकाल तक किस प्रकार हुआ ? लिखिए।
उत्तर:
अन्य ललित कलाओं में नाट्य, रंगोली व वनवासी कलाओं को शामिल किया जाता है। भारतीय परम्पराओं में इसका प्रचलन अत्यन्त प्राचीन काल से है।
सिन्धु सभ्यता में ललित कला :
सिन्धु सभ्यता में ललित कलाएँ प्रचलन में थीं। सिन्धु सभ्यता के राखीगढ़ी से प्राप्त ऊँचे चबूतरे पर बनायी गयी अग्निवेदिकाएँ, कालीबंगा के फर्श की अलंकृत ईंटें, पक्की मिट्टी की जालियाँ, मूर्तियाँ, अलंकृत आभूषण, बर्तनों पर चमकदार लेप, पशु-पक्षियों का अंकन, मंगल चिह्न स्वास्तिक, सूर्य आकृति आदि से ललित कलाओं के प्रचलन की जानकारी प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त उस काल में थियेटर की जानकारी भी मिलती है। जिसका उपयोग मुख्यतः नाट्य व नृत्य संगीत के लिये किया जाता होगा।

वैदिक काल में ललित कला :
वैदिक काल में भी ललित कलाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। वैदिक काल में लौकिक धर्म के विकास के साथ-साथ लोक संस्कृति का भी विकास हुआ। इस काल में प्रमुखतया मंगल चिह्नों, भवनों की सजावट, जादू कला, यज्ञ वेदिकाओं आदि के उल्लेख मिलते हैं।

मौर्यकाल में ललित कला :
मौर्यकाल में लोक कलाओं का प्रचलन था। तमाशे दिखाकर लोग जनता का मनोरंजन करते थे। यह काल नट (मदारी), विभिन्न प्रकार की बोलियाँ बोलकर मनोरंजन करने वालों, रस्सी पर नाचने वालों और रंगमंच पर अभिनय कर जीवन-यापन करने वालों का था।

गुप्तकाल में ललित कला :
गुप्तकाल में ललित कलाओं का प्रचलन रहा। गुप्तकालीन सिक्कों पर सुन्दर चित्रण इस कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। काष्ठ शिल्प, पाषाण शिल्प, धातु शिल्प, ताबीज, हाथी दाँत शिल्प, आभूषण आदि तत्कालीन ललित कलाओं के परिचायक हैं। गुहा मन्दिरों में अलंकरण, दीवारों पर चित्रकारी, प्रेक्षणिकाएँ, चमर दुलाते द्वारपाल, मूर्तियों में केश सज्जा, यक्ष, पशु-पक्षी, नदी, झरनों का अंकन आदि ललित कलाओं के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। तत्कालीन समय में नाट्यशालाओं के लिये प्रेक्षागृह तथा रंगशाला जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता है।

पूर्वमध्यकाल में ललित कला :
पूर्वमध्यकाल में नट, जादूगर, हाथी दाँत के कारीगर आदि का उल्लेख कला सौन्दर्य के सन्दर्भ में मिलता है। मन्दिरों की दीवारें पर बनी मूर्तियाँ राग-रागिनी, नायक-नायिकाओं का चित्रण, पादप-पत्रों, पुष्पों व पशुओं का चित्रण, लोक चित्रण आदि इस काल की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं। पूर्व मध्यकाल में विभिन्न ऐतिहासिक व पौराणिक नृत्य नाटिकाएँ भी ललित कला में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

मध्यकाल में ललितकला :
मध्यकाल में ललितकलाओं का अभूतपूर्व विकास हुआ। वृन्दावन, मथुरा आदि में रासलीलाओं का मंचन किया जाता था। इस समय महाकाव्यों के अतिरिक्त ऐतिहासिक पात्रों पर भी नाटिकाओं का मंचन किया जाता था। विजय नगर के शासक हरिहर द्वितीय के पुत्र वीरू दादा ने ‘नारायण विलास’ नामक नाटक की रचना की, साथ ही उन्मत्तराघव एकांकी भी लिखा। महाकवि बाणभट्ट ने ‘कुमार संभव’ तथा रामचन्द्र ने ‘जगन्नाथवल्लभ’ की रचना की। मध्यकाल में नाटकों के मंचन में सामाजिक व धार्मिक नाटकों को प्राथमिकता प्रदान की जाती थी। उस काल में सुलेख कला भी विकसित हुई। इसके अतिरिक्त अलंकृत बर्तन, अलंकृत दीवारें, महल, मीनारें, मकबरे आदि पर नक्काशीदार जालियाँ, जरी के कपड़े, कशीदाकारी, पच्चीकारी कला, नक्काशीदार फब्बारे आदि तत्कालीन ललित कलाओं के अभूतपूर्व उदाहरण हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रामायण की रचना किसने की थी?
(i) महर्षि वाल्मिकी
(ii) महर्षि वेद व्यास
(iii) महर्षि पतंजलि
(iv) महर्षि कालिदास।
उत्तर:
(i) महर्षि वाल्मिकी

प्रश्न 2.
नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना किस काल में हुई थी?
(i) गुप्तकाल
(ii) मौर्यकाल
(iii) वैदिक काल
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) गुप्तकाल

रिक्त स्थान पूर्ति

  1. नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना ………… काल में हुई थी।
  2. भोपाल के निकट ………… शैलाश्रय है। (2012)
  3. माउण्ट आबू का …………. मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है।
  4. बौद्ध ग्रन्थ ‘मिलिन्द के प्रश्न’ की रचना ………… ने की।
  5. आर्यभट्टीयम् पुस्तक गुप्तकाल में …………. के द्वारा लिखी गयी। (2009)
  6. रामायण और महाभारत भारतवर्ष के दो ………… हैं। (2013)

उत्तर:

  1. गुप्तकाल
  2. भीमबेटका
  3. दिलवाड़ा
  4. नागसेन
  5. आर्यभट्ट
  6. महाकाव्य।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
सामवेद विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ है। (2008)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2.
प्रथम नगरीकरण गुप्तकाल में हुआ था। (2008)
उत्तर:
असत्य

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प्रश्न 3.
प्रारम्भ में उर्दू को जबान-ए-हिन्द कहा जाता था। (2011)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
कब्बाली का जनक अमीर खुसरो था। (2010)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना मौर्य काल में हुई। (2009)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 6.
कम्बन नामक कवि ने तमिल ‘रामायण’ की रचना की। (2014)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 7.
सिंधु सभ्यता में लिपि का ज्ञान था। (2015)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8.
वैदिक काल साहित्य सृजन की दृष्टि से समृद्ध है। (2017)
उत्तर:
सत्य।

सही जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 11 प्रमुख सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ - 2

उत्तर:

  1. → (ग)
  2. → (घ)
  3. → (क)
  4. → (ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
भिक्षुओं के रहने के मठ।
उत्तर:
बिहार

प्रश्न 2.
अशोक के अभिलेख किन प्रमुख लिपियों में हैं?
उत्तर:
ब्राह्मी एवं खरोष्ठि लिपि

प्रश्न 3.
पाली और संस्कृत भाषा का विकास किस धर्म में हुआ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म

प्रश्न 4.
श्रोतसूत्र का विषय क्या है? (2016)
उत्तर:
यज्ञ

प्रश्न 5.
मौर्यकालीन सामूहिक पूजा के मन्दिर। (2008)
उत्तर:
चैत्य।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से क्या आशय है?
उत्तर:
सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से आशय भारतीय संस्कृति के स्वरूप से है। जिसमें साहित्य, चित्रकला, वास्तुकला, मूर्तिकला, नृत्य एवं संगीत तथा अन्य ललित कलाएँ शामिल हैं।

प्रश्न 2.
साहित्य क्या है?
उत्तर:
साहित्य समाज का दर्पण है। भारत का इतिहास जितना गौरवशाली है उतना ही साहित्य समृद्धशाली है। भारतीय साहित्य के केन्द्र में संस्कृत साहित्य का अक्षय भण्डार है।

प्रश्न 3.
महाकाव्य कालीन काल में किन ग्रन्थों की रचना की गयी थी?
उत्तर:
महाकाव्य कालीन काल में रामायण एवं महाभारत ग्रन्थों की रचना की गयी थी।

प्रश्न 4.
मौर्यकालीन साहित्य में कौन-सी दो लिपियाँ प्रयोग में लायी जाती थीं?
उत्तर:
मौर्यकालीन साहित्य में ब्राह्मी एवं खरोष्ठि लिपियाँ प्रयोग में लायी जाती थीं।

प्रश्न 5.
पतंजलि कौन थे?
उत्तर:
शुंग सातवाहन के काल में पतंजलि जैसे विद्वान हुए, इन्होंने पाणिनी की अष्टाध्यायी पर महाभाष्य लिखा व संस्कृत भाषा के नियमों को संशोधित रूप में प्रस्तुत किया।

प्रश्न 6.
गुप्तकाल में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र कौन से थे?
उत्तर:
गुप्तकाल में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र काशी, मथुरा, अयोध्या, पाटलिपुत्र आदि थे।

प्रश्न 7.
शून्य के सिद्धान्त का प्रारम्भ और दशमलव प्रणाली के विकास का श्रेय किस युग के गणितज्ञों को है?
उत्तर:
शून्य के सिद्धान्त का प्रारम्भ और दशमलव प्रणाली के विकास का श्रेय गुप्त युग के गणितज्ञों को है।

प्रश्न 8.
बाणभट्ट ने किन दो महान् ग्रन्थों की रचना की?
उत्तर:
बाणभट्ट ने दो महान् ग्रन्थों-

  1. हर्षचरित्र, तथा
  2. कादम्बरी की रचना की।

प्रश्न 9.
कुषाण काल में मूर्तिकला की किन दो शैलियों का विकास हुआ ?
उत्तर:
कुषाण काल में मूर्तिकला की दो प्रमुख शैलियों का विकास हुआ-गान्धार शैली और मथुरा शैली।

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प्रश्न 10.
अकबरकालीन स्थापत्य कला की प्रमुख इमारतें कौन-सी हैं?
उत्तर:
फतेहपुर सीकरी का दीवाने आम, दीवाने खास, आगरा का किला, जोधाबाई का महल, पंचमहल, जामा मस्जिद, बुलन्द दरवाजा आदि अकबरकालीन स्थापत्य कला की प्रमुख इमारतें हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से क्या आशय है? (2008)
उत्तर:
सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ हमें प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर से परिचित कराती हैं। किसी भी देश का इतिहास तभी महत्त्वपूर्ण होता है जब उसके सांस्कृतिक प्रतिमानों का अध्ययन वैज्ञानिक आधार पर किया जाए। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। भारत प्राचीनकाल से विश्व भर में अपनी समृद्ध संस्कृति के लिये जाना जाता रहा है। इसकी प्रमुख विशेषता निरन्तरता के साथ पुरातनता, अध्यात्मवाद, एकीकरण व समन्वय की शक्ति आदि है। भारतीय संस्कृति मानव समाज की अमूल्य निधि है।

प्रश्न 2.
“वैदिक काल साहित्य सृजन की दृष्टि से समृद्ध है।” व्याख्या करें। (2008)
उत्तर:
वैदिक काल साहित्य सृजन की दृष्टि से समृद्ध है। इस काल की साहित्यिक रचनाओं में प्राचीन जीवन मूल्यों का सजीव वर्णन किया गया है। वैदिक साहित्य में वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, उपनिषद्, वेदांग, सूत्र, महाकाव्य स्मृति ग्रन्थ, पुराण आदि आते हैं। वेदों की संख्या चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वैदिक साहित्य का सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद हैं।

महाकाव्य कालीन समय में रामायण एवं महाभारत जैसे ग्रन्थों की रचना की गई जिसमें उस समय का सामाजिक एवं राजनीतिक चित्रण मिलता है। रामायण की रचना महर्षि वाल्मिकी द्वारा एवं महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी।

प्रश्न 3.
बौद्ध साहित्य के बारे में वर्णन कीजिए।
अथवा
बौद्ध धर्म में ‘त्रिपिटकाएँ यानि तीन टोकरियाँ’ का क्या आशय है ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म में पाली और संस्कृत भाषाओं को अत्यधिक समृद्ध किया है। बौद्ध धर्म ने त्रिपिटकाएँ यानि तीन टोकरियाँ-विनयपटिक, सूतपिटक और अभिधम्मपिटक। विनय-पिटक में दैनिक जीवन के नियम व उपनियम हैं। सूतपिटक में नैतिकता और चार महासत्यों पर बुद्ध के संवाद और संभाषण संग्रहीत हैं। अभिधम्मपिटक में दर्शन और तत्व संग्रहीत हैं। बौद्ध साहित्य में दीपवंश, महावंश, दिव्यावदान, मिलिन्द पन्हों, महोबोधि वंश, महावंश टीका, आर्य मंजूश्री मूलकल्प आदि शामिल हैं।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित साहित्यकारों की एक-एक मुख्य रचना का नाम लिखिएभारवि, माघ, कल्हण, विल्हण, परिमल, बल्लाल, हरिषेण, वज्जिका, वराहमिहिर।
उत्तर:
साहित्यकार – रचना
1. भारवि – किरातार्जुनीय
2. माघ – शिशुपाल वध
3. कल्हण – राज तरंगिणी
4. विल्हण – विक्रमांक चरित्र
5. परिमल – नवसाहसांक चरित्र
6. बल्लाल – भोज प्रबन्ध
7. हरिषेण – प्रयाग प्रशस्ति लेख
8. वज्जिका – कौमुदी महोत्सव
9. वराहमिहिर – वृहत्संहिता

प्रश्न 5.
कालिदास की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
कालिदास की प्रमुख रचनाएँ अभिज्ञान शाकुन्तलम्, मालविकाग्निमित्र, मेघदूत, विक्रमोर्वशीयम, कुमारसम्भव, रघुवंश, ऋतुसंहार आदि हैं।

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प्रश्न 6.
राजपूतकालीन चित्रकला की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2008)
उत्तर:
राजपूत काल में चित्रकला पूर्ण विकसित स्वरूप में आ चुकी थी। इस काल में चित्रकला की अनेक क्षेत्रीय शैलियाँ विकसित हो चुकी थीं; जैसे-गुजरात शैली, राजपूताना शैली। गुजरात शैली में जैन जीवन पद्धति एवं धर्म से सम्बन्धित चित्र हैं। राजपूताना शैली में राधाकृष्ण की रास लीला व नायक-नायिका के भेद सम्बन्धित चित्र हैं। मन्दिरों और राजमहलों को सजाने के लिये भित्ति चित्र बनाये जाते थे। लघु चित्रों को बनाने की कला भी इसी काल से प्रारम्भ हुई। पुस्तकों को आकर्षक बनाने के लिये यह चित्र बनाये जाते थे।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित राजपूतकालीन प्रमुख मन्दिर कहाँ स्थित हैं?
कन्दरिया महादेव, दिलवाड़ा मन्दिर, लिंगराज मन्दिर, मुक्तेश्वर मन्दिर, सूर्य मन्दिर, महाबलिपुरम् और वृहदीश्वर मन्दिर।
अथवा
राजपूतकालीन किन्हीं चार मन्दिरों के नाम एवं उनके स्थान बताइए। (2010, 15)
उत्तर:
राजपूतकालीन प्रमुख मन्दिर
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प्रश्न 8.
सिन्धु सभ्यता में मूर्ति शिल्प की विशेषताएँ बताइए। (2011)
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता में धातु की मूर्तियों का चलन शुरू हो चुका था। मोहनजोदड़ो से एक नर्तकी की कांस्य मूर्ति मिली है। इसी सभ्यता का एक कांस्य रथ मूर्ति के रूप में मिला है। दो पहिए वाले रथ को दो बैल खींच रहे हैं। इसी समय की अन्य मूर्तियों में हाथी, गैंडा, कूबड़दार बैल सर्वाधिक प्राप्त हैं। अन्य पशु-मूर्तियों में कुत्ता, भेड़, सुअर, बन्दर और अन्य पशु-पक्षियों का अंकन मोहरों पर मिलता है। सिन्धु सभ्यता में मृणमूर्तियाँ बहुत मिलती हैं। सिन्धु सभ्यता की मोहरें वर्गाकार, आयतकार व बटन के आकार की हैं। ये गोमेद, चर्ट और मिट्ठी की हैं। लोथल के देसलपुर से ताँबे की मोहर भी प्राप्त हुई हैं। इसमें एक चौकी पर पशुपति शिव आसीन हैं जिनके आस-पास हाथी, चीता, गैंडा, भैंस आदि का अंकन मिलता है।

प्रश्न 9.
गुप्तकाल साहित्य का स्वर्ण युग था। कारण बताइए। (2009)
उत्तर:
गुप्तकाल साहित्य का स्वर्ण युग-गुप्त शासकों के शासन काल में साहित्य जिस रूप में पुष्पित-फलित हुआ, वह अद्वितीय है। इस काल में ज्ञान-विज्ञान की अनेक विधाओं में साहित्य सृजन किया गया। स्मृति साहित्य का सृजन इसी काल में किया गया। याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, कात्यायन स्मृति आदि प्रमुख हैं। रामायण तथा महाभारत को गुप्तकाल में लिपिबद्ध किया गया। बौद्ध दार्शनिक असंग ने महायानसूत्रानंकार व योगाचार भूमिशास्त्र, वसुबंध ने अभिधर्म कोष की रचना की। जैन लेखकों में जिनचन्द्र, सिद्धसेन, देवनन्दिन आदि प्रमुख हैं। गुप्तकालीन साहित्य को देखकर प्रतीत होता है कि उस युग में प्रचलित शिक्षा पद्धति उत्तम रही होगी। नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना इसी काल में हुई थी। इसीलिए गुप्तकाल साहित्य का स्वर्ण युग था।

प्रश्न 10.
“सिन्धु सभ्यता में नृत्य संगीत की परम्परा थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में नृत्य संगीत की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। नृत्य के माध्यम से कलाकार अपनी कला को प्रकट करता है। जबकि संगीत का उपयोग मनोरंजन के साथ-साथ धार्मिक एवं सांस्कृतिक अवसरों पर किया जाता है।

सिन्धु सभ्यता में नृत्य संगीत की परम्परा थी, इसके स्पष्ट प्रमाण भी उपलब्ध हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांस्य नर्तकी की प्रतिमा इस बात की पुष्टि करती है कि तत्कालीन समय में नृत्यकला, मनोरंजन आदि भाव एवं मोहरों पर ढोलक का अंकन प्राप्त होता है, जो उस समय संगीत के होने का प्रमाण देती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता में नृत्य तथा संगीत कला लोकप्रिय रही होगी।

प्रश्न 11.
गुप्तकाल में नृत्य-संगीत कला का वर्णन कीजिए। (2008, 09)
उत्तर:
गुप्तकाल में नृत्य-संगीत विधा का बहुत विकास हुआ। तत्कालीन समय में वसन्तोत्सव, कौमुदी महोत्सव, दीपोत्सव आदि पर नृत्य-संगीत का प्रचलन था। उस काल में गणिकाओं का उल्लेख मिलता है जिनका प्रमुख कार्य नृत्य और गायन था। गुप्त शासकों द्वारा कलाकारों को प्रश्रय देने की जानकारी भी मिलती है। समुद्रगुप्त स्वयं एक श्रेष्ठ वीणावादक थे इसलिये अपनी स्मृति को जीवित रखने के लिये उन्होंने वीणाधारी प्रकार के सिक्कों को चलवाया। गुप्तकालीन वाघ की गुफाओं में नृत्य-संगीत का एक महत्त्वपूर्ण चित्र मिलता है जो तत्कालीन समय में नृत्य-संगीत के वैभव के परिचायक हैं। मालविकाग्निमित्र से स्पष्ट होता है कि नगरों में संगीत की शिक्षा के लिये कलाभवन और आचार्य भी होते थे। इस प्रकार गुप्तकाल में नृत्य-संगीत के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं।

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प्रश्न 12.
मुगलकाल में किन-किन भाषाओं का विकास हुआ?
उत्तर:
मुगलकाल में, वर्तमान में प्रचलित भाषाओं में से कई भाषाओं का विकास हुआ। कबीर, जायसी, सूरदास, तुलसीदास आदि की रचनाओं का हिन्दी भाषा में विशेष महत्त्व है। मीरा ने राजस्थानी भाषा व मैथली शब्दों का प्रयोग किया। बंगाल में रामायण और महाभारत का संस्कृत से बंगाली भाषा में अनुवाद किया गया। महाराष्ट्र में नामदेव तथा एकनाथ मराठी के प्रसिद्ध सन्त और साहित्यकार हुए। मुगलकाल में शासक साहित्य प्रेमी थे। सभी ने विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया था। इस काल में फारसी और तुर्की भाषा में रचनाएँ लिखी गईं। मुगलकाल में उर्दू साहित्य का सबसे अधिक विकास हुआ। प्रारम्भ में उर्दू को ‘जबान-ए-हिन्दर्वा’ कहा जाता था। अकबर ने संस्कृत भाषा के अनेक ग्रन्थों का अनुवाद फारसी भाषा में करवाया था।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित लेखकों की रचनाएँ लिखिएबाबर, गुलाबदत्त, अब्बास खान, अबुल फजल, मलिक मोहम्मद जायसी, सूरदास, तुलसीदास।
उत्तर:

प्रश्न 14.
जैन साहित्य के बारे में वर्णन कीजिए। (2010, 15)
अथवा
जैन साहित्य के बारे में कोई चार बिन्दु लिखिए। (2017)
उत्तर:
जैन साहित्य-इस साहित्य की तीन शाखाएँ हैं –

  1. धार्मिक ग्रन्थ, दर्शन और धर्म निरपेक्ष लेखन।
  2. इनमें मुख्यतः काव्य, दन्त कथाएँ, व्याकरण एवं नाटक हैं। इनमें से अधिकार रचनाएँ अभी तक पाण्डुलिपि के रूप में है और गुजरात तथा राजस्थान के चैत्यों में मिलती हैं। रचनाएँ हैं-अंग, पंग, प्रकीर्ण, छेद, सूत्र और मलसूत्र।
  3. अन्तिम चरण में आख्यान एवं दन्तकथाएँ लिखने के लिए उन्होंने प्राकृत के स्थान पर संस्कृत भाषा का प्रयोग किया। व्याकरण और काव्यशास्त्र पर उनके कार्य से संस्कृत की वृद्धि में काफी योगदान हुआ।
  4. जैन साहित्य में भद्रबाहु का कथसूत्र, हेमचन्द्र का परिशिष्ट पर्वन प्रमुख ग्रन्थ हैं।

प्रश्न 15.
सल्तनतकालीन नृत्य-संगीत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सल्तनत काल में नवीन रागों एवं वाद्य यन्त्रों से हिन्दुस्तानी संगीत का परिचय हुआ। यद्यपि कुरान में संगीत को वर्जित माना गया है। किन्तु समय-समय पर सुल्तानों, सामन्तों आदि खलीफाओं ने इसे प्रोत्साहित किया। इस समय का प्रसिद्ध संगीतकार अमीर खुसरो था जिसने संगीत का वर्णन अपनी पुस्तक ‘नूरह सिपहर’ (नव आकाश) में किया है। इस पुस्तक में लिखा है कि ‘भारतीय संगीत से हृदय और आत्मा उद्वेलित हो जाते हैं। भारतीय संगीत मात्र मनुष्य को ही प्रभावित नहीं करता वरन् यह पशुओं तक को मन्त्र मुग्ध कर देता है। हिरन संगीत सुनकर अवाक खड़े रह जाते हैं और उनका आसानी से शिकार कर लिया जाता है।’ अमीर खुसरो ने भारतीय ईरानी संगीत सिद्धान्तों के मिश्रण से कुछ नवीन रागों को ईजाद किया। कब्बाली का जनक अमीर खुसरो था। तत्कालीन समय में ख्याल तराना जैसी संगीत की नई विधाओं के कारण संगीत के रूप में परिवर्तन आया।

प्रश्न 16.
अमृतसर के हरिमन्दिर की प्रसिद्धि का क्या कारण है?
उत्तर:
गुरुद्वारों में अमृतसर का हरिमन्दिर तत्कालीन समय की अनुपम कृति है। इसका निर्माण 1588 से 1601 ई. के बीच किया गया। यह स्वर्ण मन्दिर अमृतसर नामक सरोवर के मध्य बना हुआ। यह 20 मीटर लम्बे और 20 मीटर चौड़े चार कोनों में चार बुर्जियाँ और बीच में मुख्य गुम्बद है। बाद में इस गुम्बद को महाराजा रणजीत सिंह ने सोने की प्लेटों से सुसज्जित कर दिया। इसलिए यह हरिमन्दिर स्वर्ण मन्दिर के नाम से पुकारा जाने लगा। इसकी चारों दिशाओं में चार चाँदी की दीवारों से मढ़े हुए द्वार हैं। इसकी दीवारें सफेद संगमरमर से बनी हुई हैं।

प्रश्न 17.
मुगलकालीन नृत्य-संगीत कला का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगलकालीन में नृत्य-संगीत कला फली-फूली। बाबर स्वयं संगीत प्रेमी था। हुमायूँ व शेरशाह सूरी को भी संगीत का शौक था। मुगल सम्राट अकबर ने संगीतज्ञों को आश्रय दिया। अकबर के दरबार में नवरत्नों में से तानसेन उस युग का सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ था। उस जैसा गायक हजारों वर्षों से नहीं हुआ है। तानसेन की शिक्षा ग्वालियर में हुई थी। तानसेन के अतिरिक्त 36 गायकों को अकबर के दरबार में संरक्षण प्राप्त था। अकबर के समय ध्रुपद गायन की चार शैलियाँ चलन में थीं। मुगलकाल में संगीत के संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया गया। मुगलकाल में जहाँगीर के समय खुर्रम दाद, मक्खू, चतुरखाँ और हमजा आदि संगीतज्ञ थे। इसी तरह शाहजहाँ के समय रामदास, जगन्नाथ, सुखसैन और लाल खाँ आदि प्रमुख संगीतज्ञ थे। औरंगजेब संगीत कला का विरोधी था। अत: मुगलकालीन नृत्य-संगीत कला शाहजहाँ के बाद पतन की ओर बढ़ने लगी।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 11 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के प्रमुख साहित्यिक स्रोत निम्नलिखित हैं –
(1) वैदिक साहित्य :
आर्यों के प्राचीनतम ग्रन्थ वेद हैं, जिनकी संख्या चार है। ये वेद हैं-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। इनमें सबसे प्राचीनतम ऋग्वेद है। ऋग्वेद में वैदिककालीन आर्यों के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन का विवरण मिलता है तो सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद में उत्तर वैदिक कालीन सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन की विवेचना की गयी है। ऋग्वेद में आर्यों और अनार्यों के मध्य होने वाले संघर्षों तथा आर्यों के राजनीतिक संगठन का भी उल्लेख है।

(2) ब्राह्मण ग्रन्थ तथा उपनिषद् :
ब्राह्मण ग्रन्थों की रचना यज्ञ तथा कर्मकाण्डों के विधान को समझने के लिए की गयी थी। प्रमुख ब्राह्मण ग्रन्थ-ऐतरेय, शतपथ तथा पंचविश थे। उपनिषदों से तत्कालीन दार्शनिक, सामाजिक तथा धार्मिक चिन्तन का ज्ञान प्राप्त होता है।

(3) पुराण :
पुराणों की संख्या अठारह है परन्तु इनमें वायु, विष्णु, मत्स्य, भविष्य तथा भागवत पुराण सर्वाधिक महत्त्व के हैं। यद्यपि ये सभी धार्मिक ग्रन्थ हैं परन्तु इनका सावधानी से अध्ययन करने पर तत्कालीन इतिहास की पर्याप्त जानकारी हो जाती है।

(4) रामायण तथा महाभारत :
रामायण तथा महाभारत वेदों के पश्चात् सर्वाधिक महत्त्व के ग्रन्थ हैं। रामायण के लेखक महाकवि वाल्मीकि थे तथा महाभारत के मुनि व्यास थे। इन दोनों काव्य ग्रन्थों से हमें उस काल के सामाजिक, थार्मिक तथा आर्थिक जीवन की पर्याप्त जानकारी होती है।

(5) बौद्ध तथा जैन ग्रन्थ :
उपर्युक्त धर्मग्रन्थों के समान ही बौद्ध तथा जैन धर्म के ग्रन्थों का भी अपना विशेष महत्त्व है। प्रमुख बौद्ध ग्रन्थ हैं-विनयपिटक, अभिधम्मपिटक तथा सूतपिटक। इन तीनों ग्रन्थों में भगवान बुद्ध के उपदेशों का उल्लेख करने के साथ-साथ तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है। मौर्यकालीन सामाजिक तथा राजनीतिक दशा का ज्ञान कराने में दीपवंश व महावंश नामक अन्य बौद्ध ग्रन्थ सहायक होते हैं।

बौद्ध ग्रन्थों के समान जैन ग्रन्थ भी ऐतिहासिक जानकारी कराने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। जैन ग्रन्थों में तत्कालीन भारत के राजतन्त्रों तथा गणतन्त्रों की व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है। आचार्य हेमचन्द्र द्वारा लिखित ‘परिशिष्ट पर्व’ नामक ग्रन्थ का विशेष महत्त्व है।

(6) साहित्यिक ग्रन्थ :
प्राचीन काल में धार्मिक ग्रन्थों के अतिरिक्त अनेक साहित्यिक ग्रन्थों की भी रचना हुई थी जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-पाणिनी का अष्टाध्यायी, पतंजलि का महाभाष्य, कालिदास का अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस तथा कल्हण की राजतरंगिणी। इन ग्रन्थों के अध्ययन से तत्कालीन भारत की सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक दशा का भी ज्ञान होता है। जयद्रथ की पृथ्वीराज विजय तथा जयचन्द,का हमीर काव्य भी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। तमिल साहित्य में संगम साहित्य का भी अपना विशेष महत्त्व है। संगम साहित्य का अध्ययन करने से हमें दक्षिण भारत के तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन का ज्ञान होता है।

प्रश्न 2.
शाहजहाँ द्वारा बनाई गई इमारतें कौन-कौन-सी हैं? वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
स्थापत्य कला की दृष्टि से शाहजहाँ के काल को स्वर्ण युग कहते हैं। उसकी अधिकांश इमारतें संगमरमर के पत्थरों की बनी हुई हैं। शाहजहाँ की इमारतों का विवरण निम्न प्रकार है –

(1) ताजमहल :
ताजमहल विश्व की सबसे सुन्दर तथा कला का उच्चकोटि का नमूना है। इसका निर्माण शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल की यादगार में कराया था। इसका निर्माण आगरा नगर के दक्षिण में यमुना के किनारे पर राजा जयसिंह के बगीचे में किया गया था। ताजमहल का नमूना उस्ताद अहमद लाहौरी ने तैयार किया था। वह शाहजहाँ का प्रधान कारीगर था। ताजमहल के निर्माण में 22 वर्ष लगे थे और उसमें 50 लाख रुपये खर्च हुए थे। ताजमहल कला का अद्भुत नमूना माना जाता है।

(2) दीवान-ए-आम :
दीवान-ए-आम का निर्माण शाहजहाँ ने 1628 ई. में आगरा के किले में कराया था। यहाँ पर सम्राट का दरबार लगता था। इसमें दोहरे खम्भों की 40 कतारें हैं। यह हॉल तीनों ओर से खुला हुआ है। उसके खम्भे सुन्दर संगमरमर के बने हुए हैं।

(3) जामा मस्जिद :
यह मस्जिद आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन (मीटरगेज) के सामने स्थित है। इसका निर्माण शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा बेगम ने कराया था। इसकी मुख्य इमारत 103 फुट लम्बी तथा 10 फुट चौड़ी है। इसके निर्माण पर 5 लाख रुपये व्यय हुए थे।

(4) दिल्ली का लाल किला :
इस किले का निर्माण शाहजहाँ ने यमुना के किनारे कराया था। इसकी चौड़ाई 1,600 फुट तथा लम्बाई 3,200 फुट है। इसके भीतर दरबार-ए-आम तथा दरबार-ए-खास का भी निर्माण कराया गया। इस किले में स्थित मोती महल, हीरामहल और रंग महल अधिक प्रसिद्ध हैं।

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MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

MP Board Class 9th Science Chapter 10 पाठ के अन्तर्गत के प्रश्नोत्तर

प्रश्न शृंखला-1 # पृष्ठ संख्या 149

प्रश्न 1.
गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम बताइए। (2018, 19)
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम-“विश्व का प्रत्येक पिण्ड प्रत्येक अन्य पिण्ड को एक बल से आकर्षित करता है, जो दोनों पिण्डों के द्रव्यमान के समानुपाती होता है तथा दोनों के बीच की दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है।” यह बल गुरुत्वाकर्षण बल कहलाता है तथा दोनों पिण्डों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में लगता है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी तथा उसकी सतह पर रखी किसी वस्तु के बीच लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल का परिमाण ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल (F) = \(\mathrm{G} \frac{\mathrm{M} m}{\mathrm{R}^{2}}\)
जहाँ M = पृथ्वी का द्रव्यमान
m = वस्तु का द्रव्यमान
R = पृथ्वी की त्रिज्या एवं
G = गुरुत्वाकर्षण नियतांक है।

प्रश्न शृंखला-2 # पृष्ठ संख्या 152

प्रश्न 1.
मुक्त पतन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मुक्त पतन-“जब वस्तुएँ पृथ्वी की ओर उस पर लगने वाले केवल गुरुत्वीय बल के कारण गिरती हैं तो उनका इस प्रकार गिरना मुक्त पतन कहलाता है।”

प्रश्न 2.
गुरुत्वीय त्वरण से आप क्या समझते हैं? (2019)
उत्तर:
गुरुत्वीय त्वरण-“पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण किसी गिरते हुए पिण्ड में उत्पन्न त्वरण गुरुत्वीय त्वरण कहलाता है।” इसे g से प्रदर्शित करते हैं।

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प्रश्न श्रृंखला-3 # पृष्ठ संख्या 153

प्रश्न 1.
किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा भार में क्या अन्तर है?
उत्तर:
किसी वस्तु के द्रव्यमान एवं उसके भार में अन्तर:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 1

प्रश्न 2.
किसी वस्तु का चन्द्रमा पर भार पृथ्वी पर इसके भार का \(\frac{1}{6}\) गुना क्यों होता है?
उत्तर:
चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण के मान का \(\frac{1}{6}\) होता है और किसी वस्तु का भार उसके द्रव्यमान एवं गुरुत्वीय त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है इसलिए किसी वस्तु का चन्द्रमा पर भार पृथ्वी पर इसके भार का \(\frac{1}{6}\) गुना होता है।

प्रश्न श्रृंखला-4 # पृष्ठ संख्या 157

प्रश्न 1.
एक पतली तथा मजबूत डोरी से बने पट्टे की सहायता से स्कूल बैग को उठाना कठिन होता है, क्यों?
उत्तर:
पतली डोरी से बना पट्टा कम सम्पर्क क्षेत्रफल घेरता है अतः बैग अधिक दाब डालता है। इसलिए इसकी सहायता से स्कूल बैग को उठाना कठिन होता है।

प्रश्न 2.
उत्प्लावकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उत्प्लावकता-“जब किसी वस्तु को किसी द्रव में पूर्ण या आंशिक रूप से डुबोया जाता है, तो वह द्रव उस वस्तु के ऊपर एक उत्प्लावन बल लगाता है। द्रव की इस प्रवृत्ति या गुण को उत्प्लावकता कहते हैं।”

प्रश्न 3.
पानी की सतह पर रखने पर कोई वस्तु क्यों तैरती या डूबती है?
उत्तर:
जब किसी वस्तु को पानी के पृष्ठ पर रखते हैं तो उस पर दो बल कार्य करते हैं। एक वस्तु का भार नीचे की ओर दूसरा उस पर लगा उत्प्लावन बल ऊपर की ओर। यह उत्प्लावन बल उस वस्तु द्वारा हटाए गए पानी के भार के बराबर होता है। जब वस्तु का भार उत्प्लावन बल से अधिक होता है तो वस्तु डूब जाती है और जब यह कम या बराबर होता है तो वस्तु तैरती है।

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प्रश्न श्रृंखला-5 # पृष्ठ संख्या 158

प्रश्न 1.
एक तुला (Weighing machine) पर आप अपना द्रव्यमान 42 kg नोट करते हैं? क्या आपका द्रव्यमान 42 kg से अधिक है या कम?
उत्तर:
हमारा वास्तविक द्रव्यमान 42 kg से अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा में अधिक होगा।

प्रश्न 2.
आपके पास एक रुई का बोरा तथा एक लोहे की छड़ है। तुला पर मापने पर दोनों 100 kg द्रव्यमान दर्शाते हैं। वास्तविकता में एक दूसरे से भारी है। क्या आप बता सकते हैं कि कौन-सा भारी है और क्यों?
उत्तर:
वास्तविकता में रुई का बोरा, लोहे की छड़ से अधिक भारी है क्योंकि रुई के बोरे का आयतन लोहे की छड़ से अधिक है, इसलिए बोरे पर वायु द्वारा आरोपित उत्प्लावन बल छड़ पर लगे उत्प्लावन बल से अधिक है।

MP Board Class 9th Science Chapter 10 पाठान्त अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
यदि दो वस्तुओं के बीच की दूरी को आधा कर दिया जाय, तो उनके बीच गुरुत्वाकर्षण बल किस प्रकार बदलेगा?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल चौथाई रह जायेगा क्योंकि गुरुत्वाकर्षण बल दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

प्रश्न 2.
सभी वस्तुओं पर लगने वाला गुरुत्वीय बल उनके द्रव्यमान के समानुपाती होता है। फिर एक भारी वस्तु हल्की वस्तु के मुकाबले तेजी से क्यों नहीं गिरती ?
उत्तर:
गिरती हुई वस्तुओं का वेग गुरुत्वीय त्वरण पर निर्भर करता है, वस्तु के भार पर नहीं और गुरुत्वीय त्वरण सभी वस्तुओं पर समान लगता है। इसलिए भारी वस्तु हल्की वस्तु के मुकाबले तेजी से नहीं गिरती।

प्रश्न 3.
पृथ्वी तथा उसकी सतह पर रखी किसी 1 kg की वस्तु के बीच गुरुत्वीय बल का परिमाण क्या होगा? (पृथ्वी का द्रव्यमान 6 x 1024 kg तथा पृथ्वी की त्रिज्या 6.4 x 106 m है।)
हल:
ज्ञात है:
पृथ्वी का द्रव्यमान M = 6 x 1024kg
पृथ्वी की त्रिज्या R = 6.4x 106 m
वस्तु का द्रव्यमान m = 1 kg
सार्वत्रिक गुरुत्वीय नियतांक G = 6.7 x 10-11
Nm2kg-2
हम जानते हैं कि पृथ्वी तल पर
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 2
= 9:814N.
अतः अभीष्ट गुरुत्वीय बल = 9.814 N.

प्रश्न 4.
पृथ्वी तथा चन्द्रमा एक-दूसरे को गुरुत्वीय बल से आकर्षित करते हैं। क्या पृथ्वी जिस बल से चन्द्रमा को आकर्षित करती है वह बल, उस बल से जिससे चन्द्रमा पृथ्वी को आकर्षित करता है, बड़ा है या छोटा है या बराबर है? बताइए क्यों?
उत्तर:
गुरुत्वीय बल परस्पर आकर्षण बल है। यह पृथ्वी द्वारा चन्द्रमा पर या चन्द्रमा द्वारा पृथ्वी पर समान रूप से लगता है तथा बीच की दूरी के अनुदिश होता है। इसलिए यह बराबर है।

प्रश्न 5.
यदि चन्द्रमा पृथ्वी को आकर्षित करता है तो पृथ्वी चन्द्रमा की ओर गति क्यों नहीं करती?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल परस्पर होता है अर्थात् जिस बल से चन्द्रमा पृथ्वी को अपनी ओर आकर्षित करता है उसी बल से पृथ्वी चन्द्रमा को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसलिए पृथ्वी चन्द्रमा की ओर गति नहीं करती।

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प्रश्न 6.
दो वस्तुओं के बीच लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल का क्या होगा? यदि –
(i) एक वस्तु का द्रव्यमान दो गुना कर दिया जाए।
(ii) वस्तुओं के बीच की दूरी दो गुनी अथवा तीन गुनी कर दी जाए।
(iii) दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान दो गुने कर दिए जाएँ।
दो वस्तुओं के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल \(\mathrm{F}=\frac{\mathrm{G} m_{1} m_{2}}{r^{2}}\) होता है।
उत्तर:
(i)
जब किसी एक वस्तु का द्रव्यमान दो गुना कर दिया जाये तो बल
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 3
अर्थात् गुरुत्वाकर्षण बल दो गुना हो जाएगा।

(ii)
जब दूरी दो गुनी कर दी जाएगी, तो
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 4
अर्थात् बल \(\frac{1}{4}\) गुना हो जाएगा। इसी प्रकार जब दूरी तीन गुनी कर दी जाएगी तो बल – गुना हो जाएगा।

(iii)
जब दोनों वस्तुओं का द्रव्यमान दो गुना कर दिया जाए तो
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 5
अर्थात् गुरुत्वाकर्षण चार गुना हो जाएगा।

प्रश्न 7.
गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के क्या महत्व हैं? (2018, 19)
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के महत्व-गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम अनेक ऐसी परिघटनाओं की सफलतापूर्वक व्याख्या करता है जो असम्बद्ध मानी जाती थीं –

  1. हमें पृथ्वी से बाँधे रखने वाला बल।
  2. पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा की गति।
  3. सूर्य के चारों ओर ग्रहों की गति।
  4. चन्द्रमा तथा सूर्य के कारण ज्वार-भाटा।

प्रश्न 8.
मुक्त पतन का त्वरण क्या है?
उत्तर:
मुक्त पतन का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण ‘g’ है। इसका मान सामान्यत: 9.8 m s-2 होता है।

प्रश्न 9.
पृथ्वी तथा किसी वस्तु के बीच गुरुत्वीय बल को हम क्या कहेंगे?
उत्तर:
उस वस्तु का भार।

प्रश्न 10.
एक व्यक्ति ‘A’ अपने एक मित्र के निर्देश पर ध्रुवों पर कुछ ग्राम सोना खरीदता है। वह इस सोने को विषुवत् वृत्त पर अपने मित्र को देता है। क्या उसका मित्र खरीदे हुए सोने के भार से सन्तुष्ट होगा? यदि नहीं तो क्यों? (संकेत: ध्रुवों पर g का मान विषुवत् वृत्त की अपेक्षा अधिक है।)
उत्तर:
चूँकि ध्रुवों पर g का मान विषुवत् वृत्त की अपेक्षा अधिक है। इसलिए सोने का भार ध्रुवों पर अधिक होगा तथा विषुवत् वृत्त पर कम होगा। इसलिए उसका मित्र सन्तुष्ट नहीं होगा।
[नोट: यदि सोने के द्रव्यमान का मापन किया गया है तो कोई अन्तर नहीं होगा।]

प्रश्न 11.
एक कागज की शीट, उसी प्रकार की शीट को मरोड़कर बनाई गई गेंद से धीमी क्यों गिरती है?
उत्तर:
कागज की शीट का आयतन गेंद के आयतन से अधिक होगा। इस कारण हवा का उत्प्लावन बल उस पर अधिक होगा। इसलिए वह शीट धीमी गिरेगी।

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प्रश्न 12.
चन्द्रमा की सतह पर गुरुत्वीय बल, पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वीय बल की अपेक्षा \(\frac{1}{6}\) गुना है। एक 10 kg की वस्तु का चन्द्रमा पर तथा पृथ्वी पर न्यूटन में भार क्या होगा?
हल:
ज्ञात है:
वस्तु का द्रव्यमान m = 10 kg
गुरुत्वीय त्वरण पृथ्वी पर ge = 9.8 m s-2
गुरुत्वीय त्वरण चन्द्रमा पर gm = \(\frac{1}{6}\) ge
= \(\frac{1}{2}\) x 9.8 = 1.63 m s-2
वस्तु का भार w = mg
⇒ वस्तु का पृथ्वी पर भार we = mge
⇒ 10 x 9.8 = 98 N
एवं वस्तु का चन्द्रमा पर भार wm = m gm
= 10 x 1.63 = 16.3 N
अतः वस्तु का अभीष्ट भार पृथ्वी पर= 98 N एवं चन्द्रमा पर = 16.3 N

प्रश्न 13.
एक गेंद ऊर्ध्वाधर दिशा में ऊपर की ओर 49 m/s के वेग से फेंकी जाती है। परिकलन कीजिए –
(i) अधिकतम ऊँचाई जहाँ तक कि गेंद पहुँचती है
(ii) पृथ्वी की सतह पर वापस लौटने में लिया गया कुल समय।
हल:
(i)
हम जानते हैं कि
ज्ञात है:
गेंद का प्रारम्भिक वेग u = 49 m s-1
गेंद का अन्तिम वेग v = 0 m s-1
त्वरण (गुरुत्वीय)g = – 9.8 m s-2
ज्ञात करना है:

  1. अधिकतम ऊँचाई h = ?
  2. वापस आने में कुल समय = 2t = ?

2gh = v2 – u2
⇒ 2 x (-9.8)h = (0)2 – (49)2
⇒ – 2 x 9.8h = – 49 x 49
⇒ \(h=\frac{49 \times 49}{2 \times 9.8}\)
⇒ h = 122.5m.

(ii)
v = u + gt
⇒ 0 = 49 – 9.8t
⇒ t = \(\frac{49}{9.8}\) = 5s
चूँकि जाने एवं आने में समय बराबर लगता है।
इसलिए वापस आने में कुल समय = 2 x 5 = 10 s
अतः अभीष्ट

  1. ऊँचाई = 122.5 m एवं
  2. अभीष्ट समय = 10 s.

प्रश्न 14.
19.6 m ऊँची एक मीनार की चोटी से एक पत्थर छोड़ा जाता है। पृथ्वी पर पहुँचने से पहले इसका अन्तिम वेग ज्ञात कीजिए।
हल:
हम जानते हैं कि
ज्ञात है:
पत्थर का प्रारम्भिक वेग ५ = 0 m s-1
पत्थर की ऊँचाई h = 19.6 m
त्वरण (गुरुत्वीय) g = 9.8 m s-2
v2 – u2 = 2gh
v2 – (0)2 = 2 (9.8) x 19.6
v2 = 19.6 x 19.6
v = \(\sqrt{19 \cdot 6 \times 19 \cdot 6}\) = 19.6 m s-1
अतः अभीष्ट वेग = 19.6 m s-1.

प्रश्न 15.
कोई पत्थर ऊर्ध्वाधर दिशा में ऊपर की ओर 40 m s-1 के प्रारम्भिक वेग से फेंका गया है। g= 10 m s-2 लेते हुए पत्थर द्वारा पहुँची हुई अधिकतम ऊँचाई ज्ञात कीजिए। नेट विस्थापन तथा पत्थर द्वारा चली गयी कुल दूरी कितनी होगी?
हल:
हम जानते हैं कि
ज्ञात है:
पत्थर का प्रारम्भिक वेग u = 40 m s-1
पत्थर का अन्तिम वेग v = 0 m s-1
गुरुत्वीय त्वरण g = – 10 m s-2
2gh = v2 – u2
2 (-10) h = (0)2 – (40)2
– 20 h = 0 – 1600
h = \(\frac{1600}{20}\) = 80 m
चूँकि पत्थर लौटकर वापस अपनी पूर्वावस्था में आ जाता है। इसलिए नेट विस्थापन शून्य होगा।
कुल दूरी (चली गई) = 2h = 2 x 80 = 160 m
अभीष्ट अधिकतम ऊँचाई = 80 m
नेट विस्थापन = 0 (शून्य)
कुल चली गई दूरी = 160 m.

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प्रश्न 16.
पृथ्वी तथा सूर्य के बीच गुरुत्वाकर्षण बल का परिकलन कीजिए। दिया है-पृथ्वी का द्रव्यमान =6x 1024 kg तथा सूर्य का द्रव्यमान =2 x 1030 kg, दोनों के बीच औसत दूरी = 1.5 x 10lm.
हल:
ज्ञात है:
पृथ्वी का द्रव्यमान ma = 6 x 1024 kg
सूर्य का द्रव्यमान m2 = 2 x 1030 kg
दोनों के बीच की औसत दूरी d= 1.5 x 1011m
गुरुत्वीय स्थिरांक G = 6.7 x 10-11N m2 kg-2
गुरुत्वाकर्षण के नियम से
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= 3.573 x 1022N
अतः अभीष्ट गुरुत्वाकर्षण बल = 3.573 x 1022 N

प्रश्न 17.
कोई पत्थर 100 m ऊँची किसी मीनार की चोटी से गिराया गया और उसी समय कोई दूसरा पत्थर 25 m/s के वेग से ऊर्ध्वाधर दिशा में ऊपर की ओर फेंका गया। परिकलन कीजिए कि दोनों पत्थर कब और कहाँ मिलेंगे?
हल:
माना दोनों यात्रा प्रारम्भ के t s बाद पृथ्वी तल से hm ऊँचाई पर मिलेंगे।
पहले पत्थर द्वारा तय की गयी दूरी
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 7
चूँकि
h1 + h2 =h
4.9t2 + 25t – 4.9t2 = 100
25t = 100
t = \(\frac{100}{25}\) = 4 s
h = ut + \(\frac{1}{2}\)gt2
= 25 x 4+ \(\frac{1}{2}\) (-9.8) (4)2
= 100 – 78.4 = 21.6 m
अतः दोनों पत्थर पृथ्वी तल से 21.6 m की ऊँचाई पर 4 s बाद मिलेंगे।

प्रश्न 18.
ऊर्ध्वाधर दिशा में ऊपर की ओर फेंकी गई एक गेंद 6 s पश्चात् फेंकने वाले के पास लौट आती है। ज्ञात कीजिए –
(a) यह किस वेग से ऊपर फेंकी गई।
(b) गेंद द्वारा पहुँची गयी अधिकतम ऊँचाई।
(c) 4 s पश्चात् गेंद की स्थिति।
हल:
चूँकि गेंद ऊपर जाने और वापस आने में 6 s का समय लेती है।
इसलिए ऊपर जाने में लगा समय t = \(\frac{6}{2}\) = 3 s एवं
अन्तिम वेग v = 0 m s-1
माना गेंद का प्रारम्भिक वेग = u m s-1 तथा गुरुत्वीय त्वरण g = – 9.8 m s-2
(a)
v = u + gt
0 = u – 9.8 x 3
⇒ u = 29.4 m s-1
अत: गेंद अभीष्ट वेग 29.4 m s-1 से ऊपर फेंकी गयी।

(b)
⇒ h = ut + \(\frac{1}{2}\) gt2
⇒ h = 29.4 x 3 + \(\frac{1}{2}\) + (-9.8) (3)2
h = 88.2 – 44.1 = 44.1 m.
अत: गेंद द्वारा पहुँची गयी अभीष्ट m = अधिकतम ऊँचाई = 44.1 m.

(c)
प्रथम 3 सेकण्ड में गेंद अधिकतम ऊँचाई 44.1 m पर पहुँचकर लौटना प्रारम्भ कर देगी तथा अगले 1 s में माना वह उच्चतम बिन्दु से h1m नीचे आती है, तो
h1 = u1t + gt2
= 0 x 1 + \(\frac{1}{2}\)(9.8)(1)2 = 0 + 4.9 m
इस प्रकार 4 s बाद गेंद की पृथ्वी तल से ऊँचाई
= 44.1 – 4.9 = 39.2 m.
अत: 4s पश्चात् गेंद की अभीष्ट स्थिति 39.2 m पृथ्वी तल से ऊपर।

प्रश्न 19.
किसी द्रव में डुबोई गई वस्तु पर उत्प्लावन बल किस दिशा में कार्य करता है?
उत्तर:
ऊपर की ओर।

प्रश्न 20.
पानी के भीतर किसी प्लास्टिक के टुकड़े को छोड़ने पर यह पानी के पृष्ठ पर क्यों आ जाता है?
उत्तर:
पानी के अन्दर डूबे प्लास्टिक के टुकड़े पर जल द्वारा आरोपित उप्लावन बल उसके गुरुत्व बल (भार) से अधिक होता है। इसलिए वह प्लास्टिक का टुकड़ा जल के पृष्ठ पर आ जाता है।

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प्रश्न 21.
50 g के किसी पदार्थ का आयतन 20 cm3 है। यदि पानी का घनत्व 1 g cm-3 हो, तो पदार्थ तैरेगा या डूबेगा।
हल:
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चूँकि पदार्थ का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक है इसलिए पदार्थ पानी में डूब जाएगा।

प्रश्न 22.
500g के एक मोहरबन्द पैकेट का आयतन 350 cm3 है। पैकेट 1 g cm-3 घनत्व वाले पानी में तैरेगा या डूबेगा। इस पैकेट द्वारा विस्थापित पानी का द्रव्यमान कितना होगा?
हल:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 9
चूँकि पैकेट का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक है। इसलिए पैकेट डूब जाएगा।
पैकेट द्वारा विस्थापित पानी का द्रव्यमान = पैकेट का आयतन x पानी का घनत्व
= 350 cm3 x 1g cm-3 = 350 g
अतः पैकेट पानी में डूब जाएगा तथा पैकेट द्वारा विस्थापित पानी का द्रव्यमान = 350 g.

MP Board Class 9th Science Chapter 10 परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

MP Board Class 9th Science Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चन्द्रमा के पृष्ठ के निकट मुक्त रूप से गिरते विभिन्न द्रव्यमानों के दो पिण्डों –
(a) के वेग किसी भी क्षण समान होंगे
(b) के विभिन्न त्वरण होंगे
(c) पर समान परिमाण के बल कार्य करेंगे
(d) के जड़त्वों में परिवर्तन हो जायेंगे।
उत्तर:
(a) के वेग किसी भी क्षण समान होंगे

प्रश्न 2.
गुरुत्वीय त्वरण का मान
(a) विषुवत् वृत्त तथा ध्रुवों पर समान होता है
(b) ध्रुवों पर न्यूनतम होता है
(c) विषुवत् वृत्त पर न्यूनतम होता है
(d) ध्रुवों से विषुवत् वृत्तों की ओर बढ़ता है।
उत्तर:
(c) विषुवत् वृत्त पर न्यूनतम होता है

प्रश्न 3.
दो पिण्डों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल F है। यदि दोनों पिण्डों के द्रव्यमान उनके बीच की दूरी को समान रखते हुए आधे कर दिए जायें, तो गुरुत्वाकर्षण बल हो जायेगा –
(a) F/4
(b) F/2
(c) F
(d) 2 F
उत्तर:
(a) F/4

प्रश्न 4.
कोई लड़का डोरी से बँधे पत्थर को किसी क्षैतिज वृत्ताकार पथ पर घुमा रहा है। यदि डोरी टूट जाये तो वह पत्थर –
(a) वृत्ताकार पथ में गति करेगा
(b) वृत्ताकार पथ के केन्द्र की ओर सरल रेखा के अनुदिश गति करेगा।
(c) वृत्ताकार पथ पर किसी सरल रेखीय स्पर्शी के अनुदिश गति करेगा
(d) लड़के से दूर वृत्ताकार पथ के अभिलम्बवत् सरल रेखा के अनुदिश गति करेगा।
उत्तर:
(c) वृत्ताकार पथ पर किसी सरल रेखीय स्पर्शी के अनुदिश गति करेगा

प्रश्न 5.
किसी पिण्ड को बारी-बारी से विभिन्न घनत्वों के तीन द्रवों में रखा जाता है। वह पिण्ड d2, d2 तथा d3 घनत्वों के द्रवों में क्रमशः \(\frac{1}{9}\), \(\frac{2}{11}\) तथा \(\frac{1}{2}\) भाग को द्रव के बाहर रखते हुए तैरता है। घनत्वों के विषय में कौन-सा कथन सही है?
(a) d1 > d2 > d3
(b) d1 > d2 < d3
(c) d1 < d2 > d3
(d) d1 < d2 < d3
उत्तर:
(d) d1 < d2 < d3

प्रश्न 6.
कथन F = \(\frac{\mathrm{GMm}}{d^{2}}\) में राशि G –
(a) परीक्षण स्थल पर g के मान पर निर्भर करता है
(b) का उपयोग दो द्रव्यमानों में से एक पृथ्वी होने पर ही किया जाता है
(c) पृथ्वी की सतह पर अधिक होता है
(d) प्रकृति का सार्वत्रिक नियतांक है
उत्तर:
(d) प्रकृति का सार्वत्रिक नियतांक है

प्रश्न 7.
गुरुत्वाकर्षण के नियम में गुरुत्वाकर्षण बल –
(a) केवल पृथ्वी तथा बिन्दु द्रव्यमान के बीच होता है
(b) केवल सूर्य तथा पृथ्वी के बीच होता है
(c) द्रव्यमान रखने वाले किन्हीं भी दो पिण्डों के बीच होता है
(d) केवल दो आवेशित पिण्डों के बीच होता है
उत्तर:
(c) द्रव्यमान रखने वाले किन्हीं भी दो पिण्डों के बीच होता है

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प्रश्न 8.
गुरुत्वाकर्षण के नियम से राशि G का मान –
(a) केवल पृथ्वी के द्रव्यमान पर निर्भर करता है
(b) केवल पृथ्वी की त्रिज्या पर निर्भर करता है
(c) पृथ्वी के द्रव्यमान एवं त्रिज्या दोनों पर निर्भर करता है
(d) पृथ्वी के द्रव्यमान एवं त्रिज्या पर निर्भर नहीं करता है
उत्तर:
(d) पृथ्वी के द्रव्यमान एवं त्रिज्या पर निर्भर नहीं करता है

प्रश्न 9.
दो कण कुछ दूरी पर रखे हैं। यदि दोनों कणों के द्रव्यमान दो गुने कर दिए जाएँ तथा इनके बीच की दूरी अपरिवर्तित रखें, तो इनके बीच का गुरुत्वाकर्षण बल –
(a) = गुना हो जाएगा
(b) 4 गुना हो जाएगा
(c) गुना हो जाएगा
(d) अपरिवर्तित रहेगा
उत्तर:
(b) 4 गुना हो जाएगा

प्रश्न 10.
वायुमण्डल पृथ्वी से जकड़ा हुआ है –
(a) गुरुत्वीय बल द्वारा
(b) पवन द्वारा
(c) बादलों द्वारा
(d) पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा
उत्तर:
(a) गुरुत्वीय बल द्वारा

प्रश्न 11.
एकांक दूरी पर स्थित दो एकांक द्रव्यमानों के बीच आकर्षण बल कहलाता है –
(a) गुरुत्वीय विभव
(b) गुरुत्वीय त्वरण
(c) गुरुत्वीय क्षेत्र
(d) सार्वत्रिक गुरुत्वीय नियतांक
उत्तर:
(d) सार्वत्रिक गुरुत्वीय नियतांक

प्रश्न 12.
R त्रिज्या की पृथ्वी के केन्द्र पर किसी पिण्ड का भार –
(a) शून्य होता है
(b) अनन्त होता है
(c) पृथ्वी के पृष्ठ पर भार का R गुना होता है
(d) पृथ्वी के पृष्ठ पर भार का 7 गुना होता है
उत्तर:
(a) शून्य होता है

प्रश्न 13.
किसी पिण्ड का वायु में भार 10 N है। जल में पूरा डुबाने पर इसका भार केवल 8 N है। पिण्ड द्वारा विस्थापित जल का भार होगा –
(a) 2 N
(b) 8 N
(c) 10 N
(d) 12 N
उत्तर:
(a) 2 N

प्रश्न 14.
कोई लड़की 60 cm लम्बे, 40 cm चौड़े तथा 20 cm ऊँचे किसी बॉक्स पर तीन ढंग से खड़ी होती है। बॉक्स द्वारा लगाया गया दाब –
(a) तब अधिकतम होगा जब आधार लम्बाई एवं चौड़ाई से बना है
(b) तब अधिकतम होगा जब आधार चौड़ाई एवं ऊँचाई से बना है
(c) तब अधिकतम होगा जब आधार ऊँचाई एवं लम्बाई से बना है
(d) उपर्युक्त तीनों प्रकरणों में समान होगा
उत्तर:
(b) तब अधिकतम होगा जब आधार चौड़ाई एवं ऊँचाई से बना है

प्रश्न 15.
कोई सेब किसी वृक्ष से पृथ्वी पर पृथ्वी एवं सेब के बीच गुरुत्वाकर्षण बल के कारण गिरता है। यदि पृथ्वी द्वारा सेब पर आरोपित बल का परिमाण F1 है तथा सेब द्वारा पृथ्वी पर आरोपित बल का परिमाण F2 है, तो –
(a) F2 की तुलना में F1 बहुत अधिक होता है
(b) F1 की तुलना में F2 बहुत अधिक होता है
(c) F2 की तुलना में F1 केवल थोड़ा अधिक होता है
(d) F1 एवं F2 बराबर होते हैं
उत्तर:
(d) F1 एवं F2 बराबर होते हैं

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प्रश्न 16.
आकाशीय पिण्डों के बीच लगता है –
(a) चुम्बकीय बल
(b) विद्युत बल
(c) गुरुत्वीय बल
(d) घर्षण बल
उत्तर:
(c) गुरुत्वीय बल

प्रश्न 17.
चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण (gm) होता है –
(a) 6g
(b) g/6
(c) 10g
(d) शून्य
उत्तर:
(b) g/6

प्रश्न 18.
g का मान होता है सामान्यतः
(a) 9.8 m s
(b) 9.8 m s-1
(c) 9.8 m s
(d) 9.8 m s-2
उत्तर:
(b) 9.8 m s-1

प्रश्न 19.
g और G में सम्बन्ध होता है –
(a) gR2 = GM
(b) G = MgR2
(c) g = MGR2
(d) M = GgR2
उत्तर:
(a) gR2 = GM

प्रश्न 20.
g का सर्वाधिक मान होता है – (2019)
(a) ध्रुवों पर
(b) भूमध्य रेखा पर
(c) पृथ्वी के केन्द्र पर
(d) आकाश में।
उत्तर:
(a) ध्रुवों पर

प्रश्न 21.
गुरुत्वीय नियतांक को किस संकेत से व्यक्त करते हैं?
(a)g
(b) m
(c) G
(d) K
उत्तर:
(c) G

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रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. ……………… ने गुरुत्वाकर्षण का नियम दिया था। (2019)
2. दो पिण्डों के बीच ………….. बल लगता है।
3. गुरुत्वाकर्षण के कारण पेड़ से टूटा फल ……………. आता है।
4. एक किलोग्राम भार ……………. न्यूटन के बराबर होता है। (2019)
5. G का S.I. का मात्रक …………….. होता हैं।
6. दाब का S.I. का मात्रक ………….. होता है।
7. घनत्व का SI मात्रक …………. है। (2019)
उत्तर:

  1. न्यूटन
  2. गुरुत्वाकर्षण
  3. नीचे
  4. 9.8
  5. N m2 kg-2
  6. N m-2
  7. kg m-3

सही जोड़ी बनाना
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 10
उत्तर:

  1. → (iii)
  2. → (iv)
  3. → (v)
  4. → (vi)
  5. → (i)
  6. → (ii)

सत्य/असत्य कथन

1. G का मान हैनरी केवेण्डिश ने ज्ञात किया।
2. गुरुत्वाकर्षण का नियम गैलीलियो ने दिया।
3. गुरुत्वाकर्षण को केन्द्रीय बल कहा जाता है।
4. सभी वस्तुओं पर गुरुत्वाकर्षण बल समान होता है।
5. चन्द्रमा पर वस्तुओं के भार पृथ्वी की अपेक्षा कम होते हैं।
उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम का गणितीय सूत्र लिखिए।
उत्तर:
F = \(\mathrm{G} \frac{m_{1} m_{2}}{d^{2}}\)

प्रश्न 2.
पृथ्वी तथा उसकी सतह पर रखी किसी वस्तु के मध्य लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल का परिमाण ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
F = \(\mathrm{G} \frac{\mathrm{M} m}{\mathrm{R}^{2}}\)

प्रश्न 3.
‘G’ का S.I. मात्रक लिखिए।
उत्तर:
N m2 kg-2

प्रश्न 4.
‘G’ का मान लिखिए।
उत्तर:
6.673 x 10-11 N m2 kg-2

प्रश्न 5.
‘G’ का मान किस वैज्ञानिक ने ज्ञात किया?
उत्तर:
हेनरी कैवेण्डिशने

प्रश्न 6.
गुरुत्वीय त्वरण ‘g’ का S.I. मात्रक लिखिए।
उत्तर:
ms-2

प्रश्न 7.
‘g’ एवं ‘G’ में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
g = \(\mathrm{G} \frac{\mathrm{M}}{\mathrm{R}^{2}}\) अथवा gR2 = GM

प्रश्न 8.
सामान्यतः g का मान क्या लिखा जाता है?
उत्तर:
9.8 m s-2

प्रश्न 9.
चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण का मान कितना होता है?
उत्तर:
g/6 या 1.63 m s-2

प्रश्न 10.
किसी वस्तु के भार (w) एवं द्रव्यमान (m) में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
w = mg

प्रश्न 11.
भार के विभिन्न मात्रकों में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
1 किग्रा भार = 1 किग्रा बल = 9.8 न्यूटन

प्रश्न 12.
बल (F), दाब (P) एवं क्षेत्रफल (A) में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 11

प्रश्न 13.
दाब का S.I. मात्रक लिखिए। (2018)
उत्तर:
N m-2

प्रश्न 14.
घनत्व के लिए व्यंजक (सूत्र) लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 12

प्रश्न 15.
आपेक्षिक घनत्व के लिए व्यंजक (सूत्र) लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 13

प्रश्न 16.
घनत्व का S.I. मात्रक लिखिए।
उत्तर:
kg m-3

प्रश्न 17.
आपेक्षिक घनत्व का S.I. मात्रक लिखिए।
उत्तर:
कोई मात्रक नहीं

प्रश्न 18.
दाब सदिश राशि है या अदिश?
उत्तर:
अदिश

प्रश्न 19.
घनत्व सदिश राशि है या अदिश?
उत्तर:
अदिश

प्रश्न 20.
आपेक्षिक घनत्व सदिश राशि है या अदिश?
उत्तर:
अदिश।

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MP Board Class 9th Science Chapter 10 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘गुरुत्वाकर्षण बल’ से क्या समझते हो?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational force):
“वह बल जिससे दो पिण्ड एक-दूसरे से आकर्षित होते हैं, गुरुत्वाकर्षण बल कहलाता है।”

प्रश्न 2.
द्रव्यमान केन्द्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र:
“वह बिन्दु जहाँ पर पिण्ड का सम्पूर्ण द्रव्यमान केन्द्रित माना जाता है, उस पिण्ड का द्रव्यमान केन्द्र कहलाता है।”

प्रश्न 3.
दो पिण्डों के मध्य लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल उनके मध्य दूरी के अनुसार किस प्रकार बदलता है?
उत्तर:
दो पिण्डों के मध्य लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल F उनके मध्य दूरी d के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात्
\(\mathrm{F} \propto \frac{1}{d^{2}}\)

प्रश्न 4.
दो वस्तुओं के बीच गुरुत्वीय बल उनके द्रव्यमान पर किस प्रकार निर्भर करता है?
उत्तर:
दो वस्तुओं के मध्य गुरुत्वीय बल उन वस्तुओं के द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती होता है। अर्थात्
F = m1m2

प्रश्न 5.
गुरुत्वाकर्षण बल को केन्द्रीय बल क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल को केन्द्रीय बल कहा जाता है, क्योंकि इसकी माप पिण्ड के द्रव्यमान केन्द्र से की जाती है।

प्रश्न 6.
‘न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियम’ में सार्वत्रिक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सार्वत्रिक (Universal) से यहाँ अभिप्राय यह है कि वह सभी पिण्डों (वस्तुओं) पर लागू होता है चाहे वे छोटे हों या बड़े, खगोलीय हों या पार्थिव।

प्रश्न 7.
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक से क्या समझते हो?
उत्तर:
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (Universal Gravitational Constant):
“गुरुत्वाकर्षण बल की वह मात्रा जो एकांक द्रव्यमान के दो समान पिण्डों के बीच आरोपित होता है जबकि उनके द्रव्यमान केन्द्रों के बीच एकांक दूरी हो, सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहलाता है।” इसे G से प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 8.
गुरुत्वीय त्वरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुरुत्वीय त्वरण:
“पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण पिण्ड में उत्पन्न त्वरण को गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं।” इसे ‘g’ से प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 9.
द्रव्यमान से क्या समझते हो? इसका मात्रक लिखिए।
उत्तर:
द्रव्यमान (Mass):
“किसी पिण्ड का द्रव्यमान वह भौतिक राशि है जो यह प्रदर्शित करती है कि उस पिण्ड में पदार्थ की कितनी मात्रा समाहित है।” इसे संकेत m से व्यक्त करते हैं।

द्रव्यात्मक का मात्रक:
S.I. पद्धति में द्रव्यमान का मात्रक kg है।

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प्रश्न 10.
भार से आप क्या समझते हो? इसका S.I. मात्रक लिखिए।
उत्तर:
भार (Weight):
“किसी पिण्ड का पृथ्वी पर भार उस बल के बराबर होता है जिससे पृथ्वी उस पिण्ड को अपनी ओर आकर्षित करती है।” इसे W से प्रदर्शित करते हैं।

भार का S.I. मात्रक:
न्यूटन (N)

प्रश्न 11.
यदि चन्द्रमा पृथ्वी को आकर्षित करता है तो पृथ्वी चन्द्रमा की ओर गति क्यों नहीं करती?
उत्तर:
चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर वृत्ताकार मार्ग पर सदैव गतिमान रहता है जिसके कारण उस पर एक अपकेन्द्र बल आरोपित होता है जो दोनों के मध्य लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल को सन्तुलित कर देता है इसलिए न तो चन्द्रमा पृथ्वी की ओर गति करता है और न पृथ्वी चन्द्रमा की ओर गति करती है।

प्रश्न 12.
सभी वस्तुओं पर लगने वाला गुरुत्वीय बल उनके द्रव्यमान के समानुपाती होता है फिर भी एक भारी वस्तु एक हल्की वस्तु की तुलना में तेजी से क्यों नहीं गिरती ?
उत्तर:
गिरती हुई वस्तुओं के वेग को गुरुत्वीय त्वरण प्रभावित करता है उन पर लगने वाला गुरुत्वीय बल नहीं और गुरुत्वीय त्वरण भारी एवं हल्की सभी वस्तुओं पर समान होता है इसलिए एक भारी वस्तु एक हल्की वस्तु की तुलना में तेजी से नहीं गिरती बल्कि समान रूप से गिरती है।

प्रश्न 13.
वस्तु के द्रव्यमान एवं भार में एक मुख्य अन्तर बताइए।
उत्तर:
किसी वस्तु का द्रव्यमान उस वस्तु में निहित पदार्थ की मात्रा का मापन है जबकि उस वस्तु का भार उस वस्तु पर पृथ्वी द्वारा आरोपित बल है।

प्रश्न 14.
हम चन्द्रमा पर भारहीनता का अनुभव क्यों करते हैं?
उत्तर:
चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण का भाग होता है इसलिए चन्द्रमा पर हमारे शरीर का भार पृथ्वी पर हमारे शरीर के भार से बहुत कम अर्थात् 1/6 भाग होता है इसलिए हमको चन्द्रमा पर भारहीनता का अनुभव होता है।

प्रश्न 15.
प्रणोद किसे कहते हैं? इसका मात्रक लिखिए। (2019)
उत्तर:
प्रणोद (Thrust):
“किसी वस्तु की सतह पर लम्बवत् लगने वाले बल को प्रणोद कहते हैं।” प्रणोद का मात्रक-न्यूटन।

प्रश्न 16.
दाब से क्या समझते हो? इसका मात्रक लिखिए।
अथवा
दाब को परिभाषित कीजिए एवं इसका S.I. मात्रक लिखिए।
उत्तर:
दाब (Pressure):
“एकांक क्षेत्रफल पर आरोपित प्रणोद को दाब कहते हैं। दूसरे शब्दों में, “एकांक क्षेत्रफल पर आरोपित लम्बवत् बल को दाब कहते हैं।” इसे P से निरूपित करते हैं। अर्थात्
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 14
दाब का मात्रक:
न्यूटन/मीटर2 या पास्कल।

प्रश्न 17.
दाब एवं क्षेत्रफल में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर:
दाब एवं क्षेत्रफल में सम्बन्ध-दाब क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात्
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प्रश्न 18.
भारी सामान ढोने वाले वाहन में अतिरिक्त पहिए क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर:
भारी सामान होने वाले वाहन में अतिरिक्त पहिए लगाने से वाहन का पृथ्वी तल से सम्पर्क क्षेत्रफल बढ़ जाता है इससे उसके द्वारा पृथ्वी पर आरोपित दाब कम हो जाता है। इसलिए उसमें अतिरिक्त पहिए लगाए जाते हैं।

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प्रश्न 19.
चाकू या कुल्हाड़ी धारदार क्यों बनाये जाते हैं?
अथवा
पिन या कील नुकीली क्यों बनाई जाती है?
उत्तर:
चाकू या कुल्हाड़ी धारदार एवं पिन या कील नुकीली इसलिए बनाई जाती है जिससे सम्पर्क क्षेत्र कम हो जाता है। इससे दाब बढ़ जाता है जिसके कारण चाकू या कुल्हाड़ी द्वारा वस्तुओं को काटने एवं पिन या कील को गाढ़ने में आसानी होती है।

प्रश्न 20.
उत्प्लावन बल एवं उत्प्लावकता से क्या समझते हो?
उत्तर:
उत्प्लावन बल एवं उत्प्लावकता:
“किसी द्रव द्वारा उसमें आंशिक या पूर्णरूप से डूबी हुई वस्तु पर ऊपर की ओर आरोपित बल, उत्प्लावन बल कहलाता है एवं द्रव के इस गुण को उत्प्लावकता कहते हैं।”

प्रश्न 21.
आर्किमिडीज के सिद्धान्त से क्या समझते हो? (2018, 19)
उत्तर:
आर्किमिडीज का सिद्धान्त:
“जब किसी वस्तु को आंशिक या पूर्णरूप से किसी तरल में डुबाया जाता है तो उस पर ऊपर की ओर एक बल (उत्प्लावक बल) कार्य करता है जिसके कारण उस वस्तु के भार में कमी आ जाती है। भार में यह कमी उस वस्तु द्वारा हटाए गए तरल के भार के बराबर होती है।”

प्रश्न 22.
किसी वस्तु के घनत्व से क्या तात्पर्य है? इसका S.I. मात्रक लिखिए। (2019)
उत्तर:
घनत्व (Density):
“किसी वस्तु के एकांक आयतन के द्रव्यमान को उस वस्तु का घनत्व कहते हैं।” अर्थात्
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 16
घनत्व का S.I. मात्रक किग्रा प्रति मीटर (Kg m-3)

प्रश्न 23.
किसी पदार्थ के आपेक्षित घनत्व से क्या समझते हो? इसका मात्रक लिखिए।
उत्तर:
आपेक्षिक घनत्व (Relative Density):
“किसी पदार्थ के घनत्व एवं 4°C तापमान के शुद्ध पानी के घनत्व के अनुपात को उस पदार्थ का आपेक्षिक धनत्व कहते हैं।” अर्थात्
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 17
आपेक्षिक घनत्व का कोई मात्रक नहीं होता, क्योंकि यह एक अनुपात है।

प्रश्न 24.
सूर्य के चारों ओर किसी गृह की परिक्रमा करने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल का स्रोत क्या है? यह बल किन कारकों पर निर्भर करेगा?
उत्तर:
आवश्यक स्रोत है गुरुत्वाकर्षण बल। यह बल सूर्य तथा ग्रह के द्रव्यमानों के गुणनफल एवं उनके बीच की दूरी के वर्ग पर निर्भर करता है।

प्रश्न 25.
पृथ्वी पर किसी ऊँचाई से कोई पत्थर पृथ्वी के पृष्ठ के समानान्तर फेंका जाता है तथा उसी समय (क्षण) कोई अन्य पत्थर उसी ऊँचाई से ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर गिराया जाता है। इनमें से कौन-सा पत्थर पृथ्वी पर पहले पहुँचेगा और क्यों ?
उत्तर:
दोनों पत्थर पृथ्वी पर एक साथ पहुंचेंगे क्योंकि दोनों पत्थर समान ऊँचाई से ऊर्ध्वाधर शून्य वेग से गिरते हैं तथा दोनों पर समान गुरुत्वीय त्वरण लग रहा है।

प्रश्न 26.
मान लीजिए पृथ्वी का गुरुत्व बल अचानक शून्य हो जाता है, तो चन्द्रमा किस दिशा में गति करना प्रारम्भ कर देगा। (यदि उसे अन्य आकाशीय पिण्ड प्रभावित न करें।)
उत्तर:
चन्द्रमा सरल रेखीय पथ पर उसी दिशा में गति करना प्रारम्भ कर देगा जिस दिशा में वह उस क्षण था क्योंकि चन्द्रमा की वर्तुल गति पृथ्वी के गुरुत्व बल के द्वारा प्रदान किए गए अभिकेन्द्र बल के कारण थी।

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प्रश्न 27.
दो वायुयानों जिनमें एक विषुवत् वृत्त के ऊपर तथा दूसरा उत्तरी ध्रुव के ऊपर है, से h ऊँचाई से सर्वसम पैकेट गिराये जाते हैं। यह मानते हुए कि सभी स्थितियाँ सर्वसम हैं, क्या सभी पैकेट पृथ्वी के पृष्ठ पर एक ही समय पहुँचेंगे ? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
विषुवत् वृत्त पर ‘g’ का मान ध्रुवों पर ‘g’ के मान से कम होता है। अतः पैकेट ध्रुवों की तुलना में विषुवत् वृत्त पर धीरे से गिरेगा तथा वह वायु में अधिक समय तक रहेगा।

प्रश्न 28.
पृथ्वी पर सूर्य का गुरुत्व बल कार्य करता है तथापि पृथ्वी सूर्य में नहीं गिरती है, क्यों?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल आवश्यक अभिकेन्द्र बल प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है। इसलिए पृथ्वी पर सूर्य का गुरुत्व बल कार्य करते हुए भी पृथ्वी सूर्य में नहीं गिरती है।

MP Board Class 9th Science Chapter 10 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी के तल पर रखी किसी वस्तु एवं पृथ्वी के मध्य लगने वाले गुरुत्वीय बल के परिमाण के लिए व्यंजक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
हम जानते हैं कि d दूरी पर रखी m1 एवं m2 द्रव्यमान को दो वस्तुओं के मध्य लगने वाला गुरुत्वीय बल F होता है –
\(\mathrm{F}=\mathrm{G} \frac{m_{1} m_{2}}{d^{2}}\)
(न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम के आधार पर) इसलिए M द्रव्यमान की पृथ्वी एवं m द्रव्यमान की वस्तु के मध्य लगने वाला गुरुत्वीय बल F होगा –
\(\mathrm{F}=\mathrm{G} \frac{\mathrm{M} m}{d^{2}}\)
लेकिन जब वस्तु पृथ्वी की सतह (तल) पर रखी हो तो पृथ्वी एवं वस्तु के मध्य दूरी पृथ्वी की त्रिज्या R के बराबर होगी अर्थात् d = R, तब
\(\mathrm{F}=\mathrm{G} \frac{\mathrm{M} m}{\mathrm{R}^{2}}\)
अतः अभीष्ट व्यंजक होगा
\(\mathrm{F}=\mathrm{G} \frac{\mathrm{M} m}{\mathrm{R}^{2}}\)

प्रश्न 2.
गुरुत्वीय त्वरण (g) एवं गुरुत्वीय नियतांक (G) के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2019)
उत्तर:
गुरुत्वीय नियतांक (G) एवं गुरुत्वीय त्वरण (g) के मध्य सम्बन्ध ज्ञात करनाहम जानते हैं कि पृथ्वी तल पर रखी हुई m द्रव्यमान की वस्तु पर लगने वाला गुरुत्वीय बल F होता है –
\(\mathrm{F}=\mathrm{G} \frac{\mathrm{M} m}{\mathrm{R}^{2}}\) ….(1)
यदि यह बल वस्तु पर a त्वरण उत्पन्न करता है तो न्यूटन के गति के द्वितीय नियमानुसार हम पाते हैं कि –
F = mg …(2)
समीकरण (1) एवं समीकरण (2) से हम पाते हैं कि
\(m g=\mathrm{G} \frac{\mathrm{M} m}{\mathrm{R}^{2}}\)
अर्थात् \(g=\mathrm{G} \frac{\mathrm{M}}{\mathrm{R}^{2}}\)
अतः यही g एवं G के मध्य अभीष्ट सम्बन्ध है।

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प्रश्न 3.
किसी व्यक्ति का चन्द्रमा पर भार पृथ्वी पर भार का 1/6 गुना है। वह पृथ्वी पर 15 kg द्रव्यमान उठा सकता है। चन्द्रमा पर उतना ही बल लगाकर वह व्यक्ति कितना अधिकतम द्रव्यमान उठा सकेगा?
हल:
माना पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण ge = g है तो चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण gm = g/6 होगा क्योंकि चन्द्रमा पर भार पृथ्वी पर भार का 1/6 है।
पृथ्वी पर 15 kg द्रव्यमान उठाने के लिए अनुप्रयुक्त बल
F = mge = 15 g N
उसी बल से चन्द्रमा पर मान लीजिए अधिकतम m kg द्रव्यमान उठा सकता है तो
m x gm = 15 ge
m x g/6 = 15 g
m = 15 x 6 = 90 kg
अतः अभीष्ट अधिकतम द्रव्यमान = 90 kg.

प्रश्न 4.
‘g’, ‘G’ तथा ‘R’ के पदों में पृथ्वी का औसत घनत्व परिकलित कीजिए।
हल:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 18
अतः पृथ्वी का अभीष्ट घनत्व \(\mathbf{D}=\frac{3 \mathbf{g}}{4 \pi \mathbf{G} \mathbf{R}}\)

प्रश्न 5.
किसी पिण्ड के भार में पृथ्वी के द्रव्यमान तथा त्रिज्या के सापेक्ष किस प्रकार परिवर्तन होता है? किसी परिकल्पित प्रकरण में यदि पृथ्वी का व्यास अपने वर्तमान व्यास का आधा तथा इसका द्रव्यमान अपने वर्तमान मान का चार गुना हो जाये तो पृथ्वी के पृष्ठ पर रखे किसी पिण्ड के भार पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
किसी पिण्ड का भार पृथ्वी के द्रव्यमान के अनुक्रमानुपाती एवं उसकी त्रिज्या के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात्
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 19
अर्थात् पिण्ड का नवीन भार उसके मूल भार का 16 गुना हो जाएगा।

प्रश्न 6.
दो पिण्डों के बीच आकर्षण बल उनके द्रव्यमानों तथा उनके बीच की दूरी पर किस प्रकार निर्भर करता है? किसी छात्र ने यह सोचा कि एक-दूसरे से बँधी दो ईंटें, एक ईंट की तुलना में, गुरुत्व बल के अधीन अधिक तेजी से गिरेंगी। क्या आप उसकी इस परिकल्पना से सहमत हैं अथवा नहीं? कारण लिखिए।
उत्तर:
दो पिण्डों के बीच आकर्षण बल उसके द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात्
F ∝ m1m2
तथा उन दोनों पिण्डों के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात्
\(\mathrm{F} \propto \frac{1}{d^{2}}\)
उस छात्र की परिकल्पना से हम सहमत नहीं हैं। उसकी परिकल्पना गलत है क्योंकि बँधी हुई दो ईंटें एक पिण्ड की तरह व्यवहार करेंगी तथा मुक्त पतन के प्रकरण में समान त्वरण से गिरकर समान समय में पृथ्वी पर गिरेंगी। इसका कारण यह है कि गुरुत्वीय त्वरण गिरते पिण्ड के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।

प्रश्न 7.
समान साइज तथा m एवं m2 द्रव्यमान के दो पिण्ड h1 एवं h2 ऊँचाइयों से एक ही क्षण गिराये जाते हैं। उनके द्वारा पृथ्वी तक पहुँचने में लिए गए समयों का अनुपात ज्ञात कीजिए। क्या यह अनुपात यही रहेगा यदि –
(i) एक पिण्ड खोखला तथा दूसरा ठोस हो, तथा
(ii) दोनों पिण्ड खोखले हों तथा प्रत्येक प्रकरण में उनके साइज समान रहें, कारण लिखिए।
हल:
मान लीजिए कि दोनों पिण्डों के पृथ्वी तक पहुँचने में लिए गए समय क्रमशः t1 एवं t2 हैं तो
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 20
अतः पिण्डों द्वारा लिए गए समयों में अनुपात = \(\sqrt{\frac{h_{1}}{h_{2}}}\)
चूँकि त्वरण समान हैं अतः दोनों प्रकरणों में अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं होगा। मुक्त पतन के प्रकरण में त्वरण द्रव्यमान एवं साइज पर निर्भर नहीं करता है।

प्रश्न 8.
आर्किमिडीज के सिद्धान्त के अनुप्रयोग लिखिए। (2018, 19)
उत्तर:
आर्किमिडीज के सिद्धान्त के अनुप्रयोग:

  1. विभिन्न पदार्थों के आपेक्षिक घनत्व की गणना करना।
  2. स्वर्ण आदि धातुओं में मिलावट की जाँच करना।
  3. दुग्धमापी की क्रियाविधि।
  4. गुब्बारों का उड़ान भरना आदि।

प्रश्न 9.
एक वस्तु का भार पृथ्वी की सतह पर मापने पर 10 N आता है। इसका चन्द्रमा की सतह पर मापने पर कितना भार होगा? (2019)
हल:
हम जानते हैं कि
∵ चन्द्रमा की सतह पर किसी वस्तु का भार = \(\frac{1}{6}\) पृथ्वी की सतह पर उस वस्तु का भार
⇒ चन्द्रमा की सतह पर उस वस्तु का भार = \(\frac{1}{6}\) x 10 N = \(\frac{5}{3}\)N
= 1.7 N (लगभग)
अतः दी हुई वस्तु का चन्द्रमा की सतह पर अभीष्ट भार = 1.7N (लगभग)।

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MP Board Class 9th Science Chapter 10 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम’ की व्याख्या कीजिए।
अथवा
“न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण के नियम” को समझाते हुए नियम के सूत्र की व्युत्पत्ति कीजिए। (2019)
उत्तर:
न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton’s UniversalGravitational Law):
न्यूटन ने दो पिण्डों के मध्य लगने वाले आकर्षण बल की गणना के लिए एक नियम का प्रतिपादन किया जिसे ‘न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम’ नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार-“ब्रह्माण्ड में प्रत्येक पिण्ड अन्य पिण्ड को एक निश्चित बल से आकर्षित करता है, यह बल पिण्डों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उन दोनों पिण्डों के मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।”
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 21
मान लीजिए कि दो पिण्ड A एवं B हैं जिनके द्रव्यमान m1 एवं m2 हैं तथा जिनके केन्द्रों के बीच की दूरी d है और यदि उनके बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल F हो तो उस नियमानुसार
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 22
जहाँ, G एक समानुपाती नियतांक है जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं।

प्रश्न 2.
(a) 5 cm भुजा के किसी घन को पहले जल में तथा फिर नमक के संतृप्त विलयन में डुबोया गया है। किस प्रकरण में यह अधिक उछाल बल अनुभव करेगा ? यदि इस घन की प्रत्येक भुजा घटाकर 4 cm कर दी जाये और फिर इसे जल में डुबोया जाये तो जल के लिए पहले प्रकरण की तुलना में अब घन द्वारा अनुभव किए जाने वाले उछाल बल पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

(b) 4 kg भार की 4,000 kg m-3 घनत्व की किसी गेंद को 103kg m-3 घनत्व के जल में पूरा डुबाया जाता है। इस पर उछाल बल ज्ञात कीजिए। (दिया है: g= 10 m s-2)
उत्तर:
(a) नमक के संतृप्त घोल में डुबोने पर अधिक उछाल बल का अनुभव करेगा क्योंकि नमक के संतृप्त घोल का घनत्व जल के घनत्व से अधिक है।

चूँकि छोटे घन का आयतन प्रारम्भिक घन से कम है अतः यह कम आयतन का जल विस्थापित करेगा। इसलिए इस प्रकरण में कम उछाल का अनुभव करेगा।

(b) संख्यात्मक भाग का हल:
ज्ञात है:
गेंद का द्रव्यमान m = 4 kg
गेंद का घनत्व d = 4,000 kg m-3
जल का घनत्व dw = 103 kg m-3
गुरुत्वीय त्वरण = 10 m s-2
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण image 23
विस्थापित जल का आयतन = गेंद का आयतन = 10-3ms
जल का द्रव्यमान = जल का आयतन x जल का घनत्व
= 10-3 x 103 = 1 kg
उछाल बल = जल का द्रव्यमान x गुरुत्वीय त्वरण
F = 1 x 10 = 10 N
अतः अभीष्ट उछाल बल = 10 N.

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर स्वामित्व होता है –
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) निजी नियन्त्रण

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प्रश्न 2.
सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने के लिए किस शासक ने नहरें प्रमुखता से बनवायी? (2015)
(i) मोहम्मद तुगलक
(ii) अकबर
(iii) शाहजहाँ
(iv) हुमायूँ।
उत्तर:
(i) मोहम्मद तुगलक

प्रश्न 3.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी (2014)
(i) मुद्रा आधारित
(ii) आत्मनिर्भर
(iii) आयात पर निर्भर,
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) आत्मनिर्भर

प्रश्न 4.
2001 में भारत में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत था
(i) 21.4
(ii) 32.8
(iii) 65.1
(iv) 72.2
उत्तर:
(iv) 72.2

प्रश्न 5.
भारत में भूमि सुधार कब प्रारम्भ किया गया?
(i) स्वतन्त्रता के पश्चात्
(ii) अंग्रेजों के आगमन से पूर्व
(iii) वैदिक काल में
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) स्वतन्त्रता के पश्चात्

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. …………. एक प्रणाली है जिसके द्वारा मनुष्य जीविकोपार्जन करता है।
  2. आजकल वर्षभर में प्रमुख रूप से ………… फसलें ली जाती है।
  3. अंग्रेजों के आगमन से पूर्व कृषि का उद्देश्य ………… था।
  4. …………. ने जमींदारी प्रथा चलाई। (2016)

उत्तर:

  1. अर्थव्यवस्था
  2. तीन फसलें
  3. जीवन निर्वाह
  4. लॉर्ड कार्नवालिस।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
फसलों के उचित बिक्री मूल्य हेतु सरकार न्यूनतम मूल्य निर्धारण करती है।
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के बाद गाँव आत्मनिर्भर हो गए। (2018)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3.
अनार्थिक खेतों को मिलाकर चकबन्दी के द्वारा आर्थिक खेत बनाए।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान बढ़ता जा रहा है।
उत्तर:
असत्य

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था से क्या आशय है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था से आशय आर्थिक संसाधनों के स्वामित्व से है। इसमें वह सम्पूर्ण क्षेत्र सम्मिलित किया जाता है जहाँ उसकी आर्थिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं।

प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव किस प्रकार के थे?
उत्तर:
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव आत्मनिर्भर, समृद्ध एवं खुशहाल थे।

प्रश्न 3.
गाँवों की आत्मनिर्भरता से क्या आशय है? (2011)
उत्तर:
आत्मनिर्भरता से आशय यह है कि ग्रामवासी अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति अपने गाँव में ही पूर्ण कर सकें।

प्रश्न 4.
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या के प्रमुख अंग कौनसे थे ?
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या या समुदाय के तीन प्रमुख अंग थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय ग्रामीण कार्यशील समुदाय की संरचना बताइए।
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या या समुदाय के तीन प्रमुख अंग थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।
(1) कृषक:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग कृषक होता है। प्राचीन समय में प्रत्येक कृषक का गाँव में अपना घर तथा भूमि में हिस्सा होता था। वे साधन सम्पन्न होते थे। खेती का उद्देश्य प्रायः जीवन निर्वाह होता था।

(2) दस्तकार :
गाँव में बढ़ई, लुहार, कुम्हार, कारीगर, मोची, जुलाहे आदि सभी प्रकार के दस्तकार पाये जाते थे। ये ग्रामीण समुदाय की विभिन्न आवश्यकताओं को गाँव में ही पूरा कर देते थे। उनके कार्यों का पारिश्रमिक अनाज या वस्तु के रूप में दिया जाता था।

(3) ग्राम अधिकारी:
ग्राम अधिकारी मुख्यत: तीन प्रकार के होते थे –

  • मुखिया गाँव का प्रमुख अधिकारी होता था। यह किसानों से लगान की वसूली कर शासक को देने के लिए उत्तरदायी था।
  • मालगुजारी का रिकार्ड रखने वाला।
  • कोटवार जो आपराधिक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ शासक को प्रदान करता था।

प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् कृषि भूमि का हस्तान्तरण क्यों होने लगा? (2009, 12, 13)
उत्तर:
अंग्रेजों ने लगभग 200 वर्षों तक हमारे देश पर शासन किया। उन्होंने भारत एवं भारतीयों का हर प्रकार से शोषण किया। उन्होंने ऐसी नीतियाँ अपनाई जिसके कारण खुशहाल भारत गरीबी और भुखमरी से जूझने लगा। कृषि एवं उद्योग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। कृषकों में निर्धनता व्याप्त होने के कारण कृषक ऋण लेकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने लगे। किन्तु किन्हीं कारणोंवश ऋणों को वापस न कर पाने के कारण वे ऋणों के बोझ तले दबने लगे। समय पर ऋण चुका नहीं पाने के कारण साहूकार व महाजन ऋण के बदले उनकी जमीन पर कब्जा करने लगे। इस प्रकार कृषि भूमि का हस्तान्तरण कृषकों से साहूकारों एवं महाजनों को होने लगा। परिणामस्वरूप कृषक भूमिहीन एवं बेघर होने लगे। अतः स्पष्ट है कि अंग्रेजों ने जो जमींदारी प्रथा चलाई, उसका कृषि एवं कृषकों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 3.
प्राचीन भारत में वस्तु विनिमय प्रणाली क्यों प्रचलित थी?
(2008, 09, 12)
उत्तर:
प्राचीन भारत में मनुष्य की आवश्यकताएँ सीमित होती थीं। परन्तु वह अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति, स्वयं नहीं कर सकता था। उसे अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता था। उस समय मुद्रा का चलन नहीं था। सभी ग्रामीण दस्तकारों तथा महाजनों से अपनी-अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे और बदले में अनाज या फिर अन्य वस्तुएँ देते थे। इसी कारण इस प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा गया। पण्डित, वैद्य, नाई, धोबी सभी व्यक्तियों की सेवाओं का भुगतान अनाज या अन्य वस्तुओं के रूप में किया जाता था। अन्य शब्दों में “वस्तु विनिमय प्रणाली, विनिमय की वह प्रणाली होती थी जिसमें वस्तु के बदले वस्तु या सेवा का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था। इसमें मुद्रा का प्रयोग नहीं किया जाता था।”

प्रश्न 4.
जनसंख्या का गाँव से शहरों की ओर पलायन क्यों होने लगा? समझाइए। (2008, 09, 13)
अथवा
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जनसंख्या का गाँव से शहरों की ओर पलायन क्यों होने लगा? समझाइए। (2009)
उत्तर:
प्राचीन समय में सीमित आवश्यकताओं व यातायात व संचार के साधनों के अभाव में ग्रामीण जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती थी, वह समृद्ध और खुशहाल थी। वह अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति गाँव में ही कर लेती थी। परन्तु अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् खुशहाल व समृद्ध ग्रामीण जनता गरीबी व भुखमरी से जूझने लगी। ग्रामीण बेरोजगार हो गये। कृषक ऋणों के बोझ तले दब गये, उनकी भूमि उनसे छिन गयी। वे भूमिहीन और बेघर हो गये। भूमि की उत्पादकता कम हो गयी। अंग्रेजों द्वारा चलाई गई जमींदारी प्रथा से कृषि एवं कृषकों पर बुरा असर पड़ा। इन सभी बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण जनता शहरों की ओर पलायन करने लगी। 1951 में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत 82.7 था जो वर्ष 2011 में 68.84 प्रतिशत रह गया। जबकि शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 1951 में 17:3 था जो सन् 2011 में बढ़कर 31.16 हो गया।

आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन करने लगी है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ बताइए। (2009, 16)
अथवा
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कोई पाँच विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर:
प्राचीन काल में देश की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती थी। वस्तुतः गाँव ही अर्थव्यवस्था की प्रमुख इकाई होते थे। उस समय गाँव आत्मनिर्भर, समृद्ध एवं खुशहाल थे। प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था आज के गाँवों से बहुत भिन्न थी। इसकी विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं –
(1) कार्यशील समुदाय की संरचना :
प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गाँव की कार्यशील जनसंख्या के प्रमुख तीन प्रकार होते थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।

(2) आत्मनिर्भरता :
प्राचीन समय में गाँव आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी हुआ करते थे। ग्रामवासी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति गाँव में ही कर लेते थे। क्योंकि उस समय ग्रामीण जनता की आवश्यकताएँ सीमित होती थीं और यातायात और संचार के साधनों का अभाव होता था।

(3) वस्तु विनिमय प्रणाली :
प्राचीन अर्थव्यवस्था में वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। सभी ग्रामवासी दस्तकारों व महाजनों से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त करते थे। इसके बदले उन्हें अनाज और वस्तुएँ दी जाती थीं। पण्डित, वैद्य, नाई, धोबी सभी की सेवाओं का पारिश्रमिक उस समय में अनाज या वस्तुओं के रूप में किया जाता था।

(4)श्रम की गतिहीनता :
प्राचीन अर्थव्यवस्था में परिवहन के साधनों के अभाव के कारण श्रम गतिहीन होता था। परिवहन के साधनों के अतिरिक्त जाति प्रथा, भाषा एवं खान-पान की कठिनाई आदि का प्रभाव भी श्रम की गतिहीनता पर पड़ता था। फलस्वरूप ग्रामवासी अपने गाँव में ही रहना अधिक पसन्द करते थे।

(5) सरल श्रम विभाजन :
उस काल में ग्रामवासियों में आर्थिक क्रियाएँ बँटी हुई थीं। कार्य का बँटवारा दो आधार पर किया जाता था –

  • वंशानुगत या परम्परा के आधार पर; जैसे-कृषि एवं पशुपालन व्यवसाय।
  • जातिगत परम्परा के आधार पर; जैसे-लुहार, सुनार, बढ़ई, मोची, नाई, धोबी आदि।

(6) बाह्य दुनिया से सम्पर्क का अभाव :
प्राचीन समय में हर गाँव अपने आप में सम्पूर्ण इकाई था। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता था। बाहरी दुनिया से उसका किसी प्रकार का सम्पर्क नहीं रहता था।

(7) राज्य के प्रति उदासीनता :
ग्रामवासियों का मुख्य उद्देश्य जीवन निर्वाह करना होता था। उनका राज्य की गतिविधियों की ओर कोई विशेष रुझान नहीं होता था।

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प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्या परिवर्तन हुए एवं विकास हेतु शासन ने क्या प्रयास किए? लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निम्न परिवर्तन हुए
(1) उपलब्ध भूमि के आधार पर समुदाय की संरचना :
वर्तमान में कृषकों को उनके पास उपलब्ध भूमि के स्वामित्व के आधार पर निम्न भागों में बाँट सकते हैं –

  • बड़े कृषक
  • मंझोले कृषक
  • छोटे कृषक तथा
  • भूमिहीन कृषक।

(2) बहुविध फसलें :
फसलें तीन प्रकार की होती हैं-रबी, खरीफ एवं जायद। रबी जाड़ों की फसल, खरीफ वर्षाकाल की फसल और जायद गर्मी की फसल होती है। वर्तमान में परम्परागत फसलों के अतिरिक्त कुछ नगदी फसलों का प्रचलन भी हो गया है, जैसे-फूलों की खेती, तिलहन की खेती आदि।

(3) जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन :
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, बुनियादी सुविधाओं की कमी आदि अनेक कारणों से ग्रामीण जनता शहरों की ओर पलायन कर रही है। 1951 में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत 82.7 प्रतिशत था जो वर्ष 2011 में 68.84 प्रतिशत रह गया है। जबकि शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 1951 में 17:3 था जो 2011 में बढ़कर 31.16 हो गया। आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन होने लगा है।

(4) मौद्रिक प्रणाली का प्रादुर्भाव :
गाँवों में प्राचीन समय में प्रचलित वस्तु विनिमय प्रणाली अब लुप्त हो गयी है। वर्तमान में सभी जगह मुद्रा का प्रयोग होने लगा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी विनिमय की क्रय-विक्रय की मौद्रिक प्रणाली पूरी तरह लागू हो गयी है।

(5) अपर्याप्त संचार एवं आवागमन सुविधाएँ :
आज प्रत्येक गाँव को संचार एवं परिवहन के साधनों के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, परन्तु सड़कें कच्ची होने के कारण वर्षा के समय बहुत से गाँवों का अपने आस-पास के क्षेत्रों में सम्पर्क टूट जाता है। वर्षा के समय ट्रक, बस, रेल, ट्रैक्टर, जीप, मोटर साइकिल व साइकिल का प्रयोग होता है। वर्तमान में अधिकांश गाँव टेलीफोन एवं दूरदर्शन के माध्यम से भी जुड़ गये हैं।

(6) सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास :
स्वतन्त्रता के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ एवं उन्नत बनाने के उद्देश्य से कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास पर अत्यधिक ध्यान दिया गया है। कृषक और ग्रामवासी अपने खाली वक्त में इन उद्योगों के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर पा रहे हैं।

(7) तकनीकी उन्नति :
गाँवों में किसानों ने पुरानी तकनीक को छोड़कर नई को अपनाना शुरू कर दिया है। अब सिंचाई के लिए रहट की जगह पम्प का, हल की जगह हैरो व बैलगाड़ी की जगह ट्रक एवं ट्रैक्टर-ट्राली का प्रयोग किया जाने लगा है। किसान बड़ी मशीनों का प्रयोग भी करने लगे हैं। किसानों द्वारा थ्रेशर का प्रयोग करना अब आम बात हो गयी है।

(8) शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार-आधुनिक ग्रामवासी शिक्षा एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते जा रहे हैं। गाँव में प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक सरकारी स्कूल खुल गये हैं। लड़कों के साथ लड़कियाँ भी स्कूल व कॉलेजों में पढ़ने लगी हैं। गाँवों में चिकित्सा की भी पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हो गई हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास हेतु शासन के प्रयास
सरकार द्वारा किये गये प्रयासों की विवेचना निम्न प्रकार है –
(1) भूमि सुधार :

  • सरकार ने जमींदारी प्रथा का उन्मूलन एवं चकबन्दी करके अनार्थिक जोतों को लाभप्रद बनाया है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि बहाल करने और उसके हस्तान्तरण पर रोक लगाने के लिए सरकारी बंजर भूमि, भूदान से प्राप्त भूमि, निर्धारित अधिकतम सीमा से प्राप्त भूमि आदि का वितरण किया गया है।
  • सरकार द्वारा फसल बीमा योजना शुरू की गयी है।
  • गाँवों में वित्त आपूर्ति हेतु ग्रामीण बैंकों तथा सरकारी बैंकों की स्थापना की गयी है।
  • फसलों की उचित बिक्री हेतु सरकार द्वारा न्यूनतम मूल्य का निर्धारण किया गया है। साथ ही फसलों के विपणन एवं भण्डारण की सुविधा भी मुहैया करवायी है।
  • केन्द्र सरकार की प्रधानमन्त्री सड़क योजना के माध्यम से प्राचीन इलाकों को बारहमासी सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।

(2) आवास स्वच्छता एवं स्वास्थ्य :

  • स्वास्थ्यप्रद आवास व्यवस्था हेतु सरकार ने इन्दिरा आवास योजना चलाई है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता हेतु केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम चलाया गया है।
  • गाँवों में परिवार कल्याण केन्द्र एवं आँगनबाड़ी आदि के माध्यम से खान-पान, स्वास्थ्य शिक्षा सम्बन्धी जागरूकता का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
  • स्कूलों में सफाई, पेयजल एवं शिक्षण की बुनियादी आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

(3) कुटीर एवं लघु उद्योग :

  • अखिल भारतीय हस्त करघा उद्योग बोर्ड, भारतीय कुटीर उद्योग, खादी ग्रामोद्योग आदि संस्थाओं द्वारा उद्योगों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना।
  • कुटीर व लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु लघु उद्योग विकास बैंक की स्थापना करना।
  • विपणन में सहायता प्रदान करने वाले सरकारी विभागों द्वारा इनके उत्पादों की खरीद सुनिश्चित की जाती है। इसके अतिरिक्त देश-विदेश में मेले, प्रदर्शनी व हाट आदि का भी अयोजन किया जाता है।
  • उद्योगों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये हैं।
  • इन उद्योगों को संरक्षण प्रदान करके बड़े उद्योगों से इनकी प्रतिस्पर्धा को समाप्त किया गया है।

उपर्युक्त सरकारी प्रयासों द्वारा गाँवों के विकास का प्रयास किया जा रहा है। हमें राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आदर्शों को आधार बनाते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना है।

प्रश्न 3.
कुटीर एवं लघु उद्योग भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में किस प्रकार सहायक हैं? समझाइए। (2015)
उत्तर:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में कुटीर एवं लघु उद्योगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गाँधीजी के अनुसार, “भारत का मोक्ष उसके कुटीर उद्योग-धन्धों में निहित है।” कुटीर और लघु उद्योग भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास की आधारशिला है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में लघु व कुटीर उद्योगों का औचित्य –
(1) आर्थिक विकास :
प्रत्येक गाँव में स्थानीय कच्चे माल की उपलब्धता के आधार पर छोटे-छोटे घरेलू उद्योग विकसित किये जा सकते हैं। जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है और कृषक व ग्रामवासी अपने खाली समय में इन उद्योगों के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। आय में वृद्धि होने से उनका जीवन-स्तर भी ऊँचा हो जाएगा।

(2) रोजगार :
गाँधीजी के अनुसार ग्रामोद्योग का अत्यधिक विकास कर हम राष्ट्र की महान् सेवा कर सकते हैं। केवल कुटीर एवं लघु उद्योग ही कम पूँजी के साथ अधिक श्रमिकों को रोजगार प्रदान कर सकते हैं। प्रच्छन्न बेरोजगारी और मौसमी बेरोजगारी के समाधान में लघु एवं कुटीर उद्योगों का विशेष महत्त्व है। इन उद्योगों को श्रमिकों के घरों पर ही बहुत कम पूँजी लगाकर खोला जा सकता है और आवश्यकतानुसार बन्द भी किया जा सकता है; जैसे-दियासलाई, मधुमक्खी पालन, साबुन निर्माण आदि। इस प्रकार स्पष्ट है कि लघु व कुटीर उद्योग बड़े उद्योगों की अपेक्षा ग्रामवासियों की बेरोजगारी दूर करने में सहायक होते हैं।

(3) आय वितरण :
कुटीर एवं लघु उद्योगों का स्वामित्व अधिक से अधिक लोगों के हाथ में होता है, जिससे आय का वितरण समान होता है। इन उद्योगों में श्रमिकों का शोषण भी नहीं होता है। आज देश में धनी और निर्धन के बीच एक बहुत बड़ी खाई है जो वृहत् उद्योगों के बढ़ने के साथ बढ़ती जा रही है।

(4) भारतीय ग्रामीण व्यवस्था के अनुरूप :
भारत कृषि प्रधान राष्ट्र है यहाँ की लगभग 68% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है, परन्तु कृषकों को वर्षपर्यन्त कार्य नहीं मिल पाता है। इस दृष्टि से भी लघु व कुटीर उद्योग अत्यन्त उपयोगी हैं।

(5) कृषि पर जनसंख्या का भार कम करना :
भारत में कृषि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख व्यक्ति खेती पर आश्रित होने के लिए बढ़ जाते हैं। जिससे कृषि का विभाजन और अपखण्डन होता है। इस समस्या के समाधान की दृष्टि से लघु व कुटीर उद्योग बहुत उपयोगी हैं।

(6) कलात्मक वस्तुओं का निर्माण :
भारत की परम्परागत कलात्मक वस्तुओं के निर्माण में कुटीर व लघु उद्योगों का विशेष महत्त्व है। इन वस्तुओं के निर्यात से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति भी होती है।

(7) तकनीकी ज्ञान की कम आवश्यकता :
पूँजी की भाँति भारत में तकनीकी ज्ञान का अभाव है। लघु उद्योगों व कुटीर उद्योगों को तकनीकी ज्ञान की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है। इस दृष्टि से लघु व कुटीर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

(8) शीघ्र उत्पादक उद्योग :
लघु व कुटीर उद्योग शीघ्र उत्पादक उद्योग होते हैं अर्थात् इन उद्योगों में विनियोग करने और उत्पादन प्रारम्भ होने में अधिक समय नहीं लगता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कुटीर व लघु उद्योगों का ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। सरकार ने भी इन क्षेत्रों में इन्हें विकसित करने के अनेक प्रयास किये हैं।

प्रश्न 4.
प्राचीन एवं आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए। (2009, 14, 16)
उत्तर:
प्राचीन एवं आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास - 1

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि वर्तमान में गाँव व ग्रामीणों का पहले से अधिक विकास हुआ। ये पहले की अपेक्षा अधिक जागरूक हो गये हैं। वे अपना और अपने परिवार के कल्याण के बारे में सोचते हैं। वे शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, राजनीति के बारे में जानने समझने लगे हैं।

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प्रश्न 5.
एक आदर्श ग्राम की विशेषताएँ क्या-क्या होती हैं ? लिखिए। (2008, 14, 15, 17)
अथवा
एक आदर्श ग्राम की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। (कोई पाँच) (2010, 18)
उत्तर:
देश को अग्रणी बनाने के लिये ग्राम सुधार आवश्यक है। यदि ऐसा हो जाए तो भारत एक समृद्ध, सम्पन्न एवं खुशहाल देश बन सकता है। हमें अपने गाँवों को आदर्श बनाने के प्रयास करने होंगे। एक आदर्श ग्राम की अग्रलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –

  • उन्नत कृषि व्यवस्था :
    कृषि के विकास हेतु चकबन्दी, सामूहिक कृषि का प्रयोग, उपज में वृद्धि हेतु जैविक तथा रासायनिक उर्वरक, कृषि के लिये उन्नत बीजों का प्रयोग एवं सिंचाई की आधुनिक सुविधाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए। उपज के भण्डारण हेतु उपयुक्त व्यवस्था एवं सहकारिता एवं शासकीय सहायता से उपज की बिक्री की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • आवासीय सुविधाएँ :
    गाँवों में आवास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मकान साफ-सुथरे होने चाहिए। साथ ही घर में स्नानगृह, शौचालय आदि की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। जानवरों के लिये अलग बाड़ा एवं गोबर से बायोगैस बनाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
  • पेयजल व्यवस्था :
    ग्रामवासियों के लिये स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिये कुएँ, तालाब, बाबड़ी आदि का जीर्णोद्वार होना चाहिए। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उसमें कचरा आदि न जा पाये। ग्रामवासियों को भू-जल संवर्द्धन का महत्त्व समझाना चाहिए।
  • शिक्षा का व्यवस्था :
    गाँव में प्रत्येक बच्चे को प्राथमिक शिक्षा देने का प्रयास करना चाहिए। बालिका शिक्षा के प्रति विशेष जागरूकता अपनानी चाहिए। गाँवों में परम्परागत शिक्षा के साथ-साथ प्रौढ़ । शिक्षा की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
  • स्वास्थ्य सुविधाएँ :
    प्रत्येक गाँव में प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र व अनुभवी चिकित्सक की व्यवस्था होनी चाहिए। चिकित्सा केन्द्र में आवश्यकतानुसार दवाइयों का प्रबन्ध होना चाहिए जिससे ग्रामवासियों को कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े। साथ ही शासन की विभिन्न स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं का लाभ ग्रामवासी प्राप्त कर सकें।
  • परिवार व संचार सुविधाएँ :
    गाँवों में परिवहन व संचार साधनों की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। परिवहन व्यवस्था हेतु पक्की सड़कें होनी चाहिए जो आस-पास के कस्बों और गाँवों को जिला मुख्यालय से जोड़े। टेलीफोन, डाकघर तथा इण्टरनेट की सुविधा भी उपलब्ध होनी चाहिए।
  • ऊर्जा एवं पर्यावरण जागरूकता :
    गाँवों में बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। सम्भव हो तो वैकल्पिक ऊर्जा का प्रयोग की समय-समय पर करना चाहिए। ग्रामवासियों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करनी चाहिए। वृक्षों के उपयोग व वृक्षारोपण के प्रति ग्रामीणों को सक्रिय रहना चाहिए जिससे गाँवों में हरियाली व्याप्त हो सके।
  • औद्योगिक विकास :
    गाँवों में कृषि पर आधारित उद्योगों का विकास होना चाहिए, जैसे-डेयरी उद्योग, कुक्कुट उद्योग आदि। गाँवों में ऐसे उद्योगों का विकास होने से ग्रामवासियों को उन्हीं के गाँव में रोजगार प्राप्त हो सकता है। जिससे उनकी आय में वृद्धि हो सकती है।
  • वित्तीय सुविधाएँ :
    गाँवों में वित्तीय सुविधाओं के लिये ग्रामीण बैंक व सहकारी बैंक आदि की सुविधा होनी चाहिए। गाँवों में स्वसहायता बचत समूहों के निर्माण के प्रति ग्रामीणों में जागरूकता पैदा करके उनकी बचत की आदत में वृद्धि करायी जा सकती है।
  • प्रशासनिक व्यवस्था :
    गाँवों में पंचायत व्यवस्था होनी चाहिए। ग्राम पंचायत के सदस्यों व सरपंच को गाँव के विकास के प्रति जागरूक होना चाहिए। जिससे गाँवों में स्वच्छता, पेयजल व्यवस्था, स्वास्थ्य व सुरक्षा सम्बन्धी व्यवस्थाएँ ग्रामवासियों को प्राप्त हो सकें। ग्राम पंचायत में प्रशासकीय पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए।

प्रश्न 6.
किसी गाँव को आत्मनिर्भर व विकासशील बनाने के लिये क्या-क्या प्रयास करने की आवश्यकता होती है? लिखिए। (2009)
उत्तर:
किसी गाँव को आत्मनिर्भर व विकासशील बनाने के लिये निम्नलिखित प्रयासों की आवश्यकता होती है –

  • सिंचाई के साधनों का विकास :
    गाँवों में कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिये सिंचाई के साधनों पर ध्यान देना आवश्यक है। इसके लिये नहरों, कुओं, तालाबों एवं नलकूपों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं जन जागृति के प्रयास :
    ग्रामीणों को जैविक खाद बनाने की विधि व उसके महत्त्व से परिचित कराने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए तथा गाँवों में स्वच्छता बनाये रखने के लिये जन जागृति के प्रयास किये जाने चाहिए।
  • भण्डार गृहों की स्थापना :
    गाँवों में कृषि उत्पादन को सुरक्षित रखने के लिये भण्डार गृहों की स्थापना की जाए जिससे उनकी फसल खराब न हो पाये।
  • पशुओं की दशा में सुधार :
    गाँवों में पशुओं के महत्त्व को देखते हुए उनकी हीन दशा सुधारने के लिये अच्छे व पौष्टिक चारे, पेयजल, चिकित्सा एवं नस्ल सुधारने हेतु पर्याप्त प्रयास करने चाहिए।
  • कृषि आधारित उद्योगों का विकास :
    कृषि आश्रित लघु उद्योगों; जैसे-डेयरी उद्योग, मुर्गी पालन उद्योग आदि के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी।
  • अनावश्यक व्यय को रोकना :
    न्यूनतम आय होने पर भी ग्रामवासी पारिवारिक व सामाजिक कार्यक्रमों पर अधिक खर्च करते हैं। उदाहरणार्थ-विवाह कार्यों पर बीस हजार से दस लाख की राशि, शोक कार्यों पर दस से चालीस हजार की राशि व त्यौहारों पर 500 से 2000 की राशि खर्च कर दी जाती है। अतः व्यर्थ के व्ययों को रोकने के प्रयास किये जाने चाहिए तथा ग्राम पंचायत में इसकी चर्चा की जानी चाहिए।
  • बचत की प्रवृत्ति को बढ़ावा :
    गाँवों में स्वसहायता बचत समूहों के निर्माण के प्रयास किये जा सकते हैं। जिससे ग्रामवासियों में बचत की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले।
  • शिक्षा का प्रसार :
    ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार एवं प्रचार की आवश्यकता है। जिससे किसानों को रूढ़िवादिता, अन्धविश्वासों के विचारों से उबारा जा सके। आकाशवाणी और टेलीविजन इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवादी अर्थव्यस्था में संसाधनों पर कैसा नियन्त्रण होता है?
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) सरकारी नियन्त्रण

प्रश्न 2.
मिश्रित अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर किस प्रकार का नियन्त्रण पाया जाता है?
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) निजी नियन्त्रण

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प्रश्न 3.
भारतीय अर्थव्यवस्था है
(i) पूँजीवादी
(ii) समाजवादी
(iii) मिश्रित
(iv) साम्यवादी।
उत्तर:
(iii) मिश्रित

प्रश्न 4.
अकबर के शासन काल में सही ढंग से भू-मापन किसने कराया? (2009)
(i) मोहम्मद तुगलक
(ii) टोडरमल
(iii) तानसेन
(iv) शाहजहाँ।
उत्तर:
(ii) टोडरमल

प्रश्न 5.
बड़े कृषक किसे कहते हैं?
(i) जिसके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है
(ii) जिसके पास 2 हेक्टेयर से भी कम भूमि है
(iii) जिसके पास 20 हेक्टेयर से अधिक भूमि है
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) जिसके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है

प्रश्न 6.
छोटे कृषकों की श्रेणी में वे कृषक आते हैं
(i) जिनके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है
(ii) जिनके पास 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि है
(iii) जिनके पास 20 हेक्टेअर से अधिक भूमि है
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) जिनके पास 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि है

प्रश्न 7.
जमींदारी प्रथा के जन्मदाता कौन थे?
(i) लॉर्ड कार्नवालिस
(ii) लॉर्ड कर्जन
(iii) लॉर्ड माण्टबेटन
(iv) लॉर्ड लेनिन।
उत्तर:
(i) लॉर्ड कार्नवालिस

प्रश्न 8.
सर्वप्रथम बंगाल में जमींदारी प्रथा किस वर्ष में प्रारम्भ की गई?
(i) 1870
(ii) 1875
(iii) 1793
(iv) 17451
उत्तर:
(iii) 1793

रिक्त स्थान की पूर्ति

  1. समाजवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर ……… नियन्त्रण होता है।
  2. वस्तुओं का, वस्तुओं के बदले में लेन-देन …………. कहलाता है।
  3. छोटे कृषक वे होते हैं जिनके पास ………… से भी कम भूमि है।

उत्तर:

  1. सरकार का
  2. वस्तु विनियम
  3. 2 हेक्टेअर।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था आयात पर निर्भर थी। (2010)
उत्तर:
असत्य

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प्रश्न 2.
अकबर के शासनकाल में टोडरमल ने सही ढंग से भू मापन कराया।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 3.
मझोले कृषक वे होते हैं जिनके पास 5 हेक्टेअर से अधिक भूमि होती है।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 4.
प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वस्तु विनियम प्रणाली प्रचलित थी। (2009)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
भारत में आज गाँवों की संख्या 6,00,000 है। (2011)
उत्तर:
सत्य

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास - 2

उत्तर:

  1. → (ङ)
  2. → (घ)
  3. → (क)
  4. → (ग)
  5. → (ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव किस प्रकार के थे?
उत्तर:
आत्मनिर्भर

प्रश्न 2.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग। (2012)
उत्तर:
कृषक

प्रश्न 3.
जिनके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर भूमि है। (2012)
उत्तर:
बड़े कृषक

प्रश्न 4.
वस्तुओं का, वस्तुओं के बदले लेन-देन की प्रणाली। (2009, 10)
उत्तर:
वस्तु विनियम प्रणाली

प्रश्न 5.
अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर निजी नियन्त्रण कहलाता है। (2011)
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

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प्रश्न 6.
सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने के लिये किस शासक ने नहरें प्रमुखता से बनाई? (2008)
उत्तर:
मोहम्मद तुगलक

प्रश्न 7.
ग्रामीण क्षेत्रों के विकास हेतु किस उद्योग का अत्यधिक महत्त्व है? (2013)
उत्तर:
कुटीर एवं लघु उद्योग।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की होती है :

  1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
  2. समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 2.
एक गाँव की अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक गाँव की अर्थव्यवस्था में वहाँ पर स्थित खेत, दुकानें और अन्य सभी प्रतिष्ठान जहाँ व्यक्ति काम करते हैं, शामिल किये जाते हैं। इस प्रकार अर्थव्यवस्था जीविकोपार्जन का क्षेत्र होता है।

प्रश्न 3.
भारत कैसा देश है और यहाँ का मुख्य व्यवसाय क्या है?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ का मुख्य व्यवसाय कृषि है।

प्रश्न 4.
वैदिक काल में अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या था?
उत्तर:
वैदिक काल में अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। पशुपालन, आखेट और दस्तकारी का भी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान था।

प्रश्न 5.
गुणवत्ता की दृष्टि से कहाँ की मलमल विश्व प्रसिद्ध है?
उत्तर:
गुणवत्ता की दृष्टि से ढाका की मलमल विश्व प्रसिद्ध है। अतः वस्त्र निर्माण का इस युग में विशेष विकास हुआ।

प्रश्न 6.
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है?
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं –

  1. अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था
  2. अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा
  3. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 7.
प्राचीन समय में ग्रामीण समुदाय के कार्यों का पारिश्रमिक किस रूप में दिया जाता था?
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव में बढ़ई, लुहार, कुम्हार, कारीगर, मोची, जुलाहे आदि का पारिश्रमिक अनाज या वस्तु के रूप में दिया जाता था।

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प्रश्न 8.
ग्राम अधिकारी के रूप में मुखिया का क्या कार्य होता था?
उत्तर:
मुखिया गाँव का प्रमुख अधिकारी होता था। इसका कार्य किसानों से लगान की वसूली कर शासक को देना था।

प्रश्न 9.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते थे?
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली, विनिमय की वह प्रणाली होती थी जिसमें वस्तु के बदले वस्तु या सेवा का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था। इसमें मुद्रा का प्रयोग नहीं किया जाता था।

प्रश्न 10.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारत के गाँवों की क्या दशा थी?
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत और भारतीयों का हर प्रकार से शोषण किया। उन्होंने ऐसी नीतियाँ अपनाईं जिसके कारण खुशहाल भारत गरीबी और भुखमरी से जूझने लगा। कृषि और उद्योग पर भी बुरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 11.
ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन क्यों कर रही है?
उत्तर:
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन कर रही है।

प्रश्न 12.
न्यूनतम मूल्य का निर्धारण कौन करता है?
उत्तर:
न्यूनतम मूल्य का निर्धारण सरकार द्वारा फसलों की उचित बिक्री मूल्य हेतु किया जाता है।

प्रश्न 13.
आदर्श ग्राम कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
एक आदर्श ग्राम में कृषि विकसित होनी चाहिए, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ ग्राम में स्वच्छता के प्रति जागरूकता एवं उपलब्ध संसाधनों का सम्पूर्ण प्रयोग होना चाहिए।

प्रश्न 14.
चकबन्दी से क्या आशय है?
उत्तर:
चकबन्दी वह प्रक्रिया है जिसमें किसान की छितरी छोटी-छोटी जोतों के बदले उसी किस्म की उतने ही आकार के एक या दो भूखण्ड दे दिये जाते हैं। यह ऐच्छिक और अनिवार्य दोनों होती है।

प्रश्न 15.
भूमि सुधार क्या है?
उत्तर:
भूमि सुधार किसी संगठन या भूमि व्यवस्था की संस्थागत व्यवस्था में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन से है। भूमि स्वामित्व एवं भूमि जोत में होने वाला सुधार भूमि सुधार के अन्तर्गत आता है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था से क्या आशय है ? यह कितने प्रकार की हो सकती है?
अथवा
अर्थव्यवस्था का आशय स्पष्ट कीजिए। (2008, 09)
उत्तर:
अर्थव्यवस्था एक प्रणाली है जिसके द्वारा मनुष्य जीविकोपार्जन करता है तथा अर्थव्यवस्था एक क्षेत्र विशेष में विद्यमान उत्पादन इकाइयों से बनती है। दूसरे शब्दों से हम कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था का अर्थ एक देश के उन सभी खेतों, कारखानों, दुकानों, खदानों, बैंकों, सड़कों, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्तपाल आदि से है जो लोगों को रोजगार देते हैं एवं वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं तथा जिनका प्रयोग वहाँ की जनता द्वारा किया जाता है। अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की हो सकती है-

  1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
  2. समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था।

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प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या का 64.84 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करती है तथा शहरी क्षेत्रों से केवल 31.16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इसी प्रकार आज गाँवों की संख्या 6,38,588 है जबकि शहरों की संख्या मात्र 5,161 ही है। आज भी भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। देश की दो-तिहाई जनसंख्या अपनी आजीविका के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर है।

परन्तु देश के सकल उत्पाद में कृषि का योगदान केवल 26 प्रतिशत है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से हुआ है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही है। गाँवों का स्वरूप बदलने लगा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे। जिसमें से प्रमुख परिवर्तन मौद्रिक प्रणाली का प्रार्दुभाव, सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास, तकनीकी उन्नति, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, संचार एवं आवागमन की पर्याप्त सुविधाएँ आदि हैं।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण समुदाय की संरचना में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय की संरचना-स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् कृषकों को उनके पास उपलब्ध भूमि के स्वामित्व के आधार पर चार भागों में बाँटा जा सकता है –

  • बड़े कृषक :
    बड़े कृषकों के अन्तर्गत वह कृषक आते हैं जिनके पास 2 हेक्टेअर से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है।
  • मॅझोले कृषक :
    मँझोले कृषक वह होते हैं जिनके पास 2 हेक्टेअर या उससे कुछ अधिक भूमि होती है।
  • छोटे कृषक :
    छोटे कृषक वह कहलाते हैं जिनके पास मात्रं 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि होती है।
  • भूमिहीन कृषक :
    भूमिहीन कृषकों के पास अपनी कोई भूमि नहीं होती है। वह बँटाई पर भूमि लेकर खेती करते हैं या फिर दूसरों के खेतों में मजदूरी करते हैं।

प्रश्न 4.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ लिखिए। (2008, 18)
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ

  • दस्तकारी एवं हस्तकला का पतन :
    अंग्रेजों की नीतियों के फलस्वरूप गाँवों में दस्तकारी व हस्तकला का पतन होने लगा। गाँव के दस्तकार बेरोजगार हो गये। गाँवों की समृद्धि और खुशहाली समाप्त हो गयी।
  • आत्मनिर्भरता की समाप्ति :
    कृषि के व्यापारीकरण के परिणामस्वरूप उपज को गाँवों के बाहर ले जाकर बेचा जाने लगा तथा गाँव की आवश्यकताओं की पूर्ति का सामान भी बाहर से आने लगा। इस प्रकार गाँवों की आत्मनिर्भरता स्वयं ही समाप्त हो गयी।
  • कृषि भूमि का हस्तान्तरण :
    निर्धनता के फलस्वरूप कृषक, महाजनों व साहूकारों से ऋण लेने लगे; पर ऋण की वापसी न कर पाने से महाजनों व साहूकारों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया। इस प्रकार कृषि भूमि का हस्तान्तरण साहूकारों व महाजनों को होने लगा। फलस्वरूप कृषक भूमिहीन हो गये।
  • कृषि का पिछड़ापन :
    अंग्रेजों द्वारा शुरू की गयी जमींदारी प्रथा का कृषि व कृषकों पर बहुत बुरा असर पड़ा। कृषक निर्धन एवं ऋणग्रस्त होते गये। शासन और जमींदारों ने भूमि की उत्पादकता और सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जिससे भूमि की उत्पादकता कम होती गई। परिणामस्वरूप किसानों का शोषण किया जाने लगा।

प्रश्न 5.
किसी ग्राम का आर्थिक अध्ययन करते समय हमें किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
आर्थिक अध्ययन से तात्पर्य है कि एक क्षेत्र विशेष में उपलब्ध संसाधन, वहाँ की जनसंख्या, आजीविका के साधन, आर्थिक स्थिति, परिवहन व संचार के साधन, वानिकी, उद्यानिकी, हाट-बाजार, वित्त, सामाजिक एवं सामुदायिक स्थितियों का अध्ययन करना। किसी गाँव के आर्थिक अध्ययन के लिए सबसे पहले अध्ययन का उद्देश्य निर्धारित करना होता है। तत्पश्चात् अध्ययन का क्षेत्र सुनिश्चित कर अध्ययन की योजना बनायी जाती है। किसी भी अध्ययन के लिये आवश्यक सांख्यिकी आँकड़ों की भी आवश्यकता पड़ती है। इसके लिये सामान्यतः तालिका और प्रश्नावली का निर्माण किया जाता है।

उस गाँव का अध्ययन करके, उस गाँव में उपलब्ध संसाधनों व सुविधाओं को ध्यान में रखकर, उस गाँव की असुविधाओं व समस्याओं के समाधान के लिये ग्रामवासियों का सहयोग लेना श्रेयस्कर होता है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या का 64.84 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करती है तथा शहरी क्षेत्रों से केवल 31.16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इसी प्रकार आज गाँवों की संख्या 6,38,588 है जबकि शहरों की संख्या मात्र 5,161 ही है। आज भी भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। देश की दो-तिहाई जनसंख्या अपनी आजीविका के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर है। परन्तु देश के सकल उत्पाद में कृषि का योगदान केवल 26 प्रतिशत है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से हुआ है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही है। गाँवों का स्वरूप बदलने लगा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे। जिसमें से प्रमुख परिवर्तन मौद्रिक प्रणाली का प्रार्दुभाव, सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास, तकनीकी उन्नति, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, संचार एवं आवागमन की पर्याप्त सुविधाएँ आदि हैं।

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