MP Board Class 9th Sanskrit अनुवाद पकरण

अनुवाद करने के लिए सर्वप्रथम कारक का उचित प्रयोग जानना महत्त्वपूर्ण है।

कारक प्रकरण

कारक वे शब्द हैं, जिनका क्रिया से प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहता है। संस्कृत में कारक अपनी विभक्ति के साथ जुड़े हैं, जबकि हिन्दी में विभक्ति चिह्न को कारक शब्द से अलग लिखते हैं। इनके प्रयोग के कुछ विशेष नियम हैं, जो यहाँ दिए जा रहे हैं।

प्रथमा विभक्ति का प्रयोग

1. कर्तवाच्य (Active Voice) में कर्ता प्रथमा विभक्ति में होता है।
जैसे-
(क) बालाः क्रीडन्ति। (बच्चे खेलते हैं।) .
(ख) अहं धावामि। (मैं दौड़ता हूँ।)

2. किसी वस्तु के नाम या लिंग का ज्ञान कराने हेतु प्रथमा का प्रयोग करते हैं। जैसे
(क) एषा माला अस्ति।
(ख) एतानि फलानि सन्ति।

द्वितीय विभक्ति का प्रयोग
1. कर्म हमेशा कर्मकारक (द्वितीया विभक्ति) में रहता है। जैसे
(क) मैं फल खाता हूँ। (अहं फलं खादामि।)
(ख) मैं जल पीता हूँ। (अहं जलं पिबामि।)

2. जिस स्थान को जाते हैं, वह कर्मकारक (द्वितीया) में रहता है। जैसे
(क) रामः वनम् अगच्छत्। (राम वन गये।)
(ख) वयं विद्यालयं गच्छामः। (हम विद्यालय जाते हैं।)

3. किसी अव्यय के योग में जब कोई विशेष विभक्ति हो, तो उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। द्वितीया का उपपद विभक्ति के रूप में निम्न अव्ययों के साथ प्रयोग होता है

धिक् (धिक्कार है), अन्तरेण (के बिना), अन्तरा (बीच में), प्रति (की ओर), उभयतः (दोनों ओर), विना (के बिना), निकषा (निकट), अनु (पीछे), सर्वतः (सब ओर), परितः (चारों ओर), अभितः (सामने), अधोऽथः (नीचे-नीचे), उपर्युपरि (ऊपर-ही-ऊपर), हा (अफसोस)।

(क) धिक् अत्याचारिणम्। (अत्याचारी को धिक्कार है।)
(ख) ग्रामं परितः वनानि सन्ति। (गाँव के चारों ओर वन हैं।)
(ग) राधा नगरं प्रति गच्छति। (राधा नगर की ओर जाती है।)
(घ) जलं विना मत्स्यः न जीवति। (जल के बिना मछली जीवित नहीं रहती है।)
(ङ) गृहं निकषा उद्यानम् अस्ति। (घर के निकट उद्यान है।)

4. दुह्, याच्, भिक्ष्, प्रच्छ्, शास्, चि (चुनना), ब्रू (बोलना) आदि धातुओं के योग में द्वितीय विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे
(क) भिक्षुकः धनं भिक्षते। (भिखारी धन की भिक्षा माँगता है।)
(ख) गोपालः धेनोः दुग्धं दुह्यति। (ग्वाला गाय का दूध दुहता है।)

5. शी (सोना), स्था (बैठना, तथा आस् (बैठना) धातुओं में ‘अधि’ उपसर्ग लगा होने पर द्वितीय विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे
(क) राज्यपालः राजभवनम् अध्यासते। (राज्यपाल राजभवन में बैठते हैं।)
(ख) सीता पर्यकम् अधिशेते। (सीता पलंग पर सोती है।)
(ग) रामः आसनम् अधितिष्ठति। (राम आसन पर बैठता है।)

6. वस् (रहना) धातु में ‘अधि, उप, आ, अनु’ उपसर्ग लगा होने पर द्वितीय विभक्ति का प्रयोग होता है।

तृतीया विभक्ति का प्रयोग

1. जिसके द्वारा कार्य हो, वह कारणकारक (तृतीया) में रहता है।
जैसे-
(क) बालकाः कंदुकेन क्रीडन्ति। (लड़के गेंद से खेलते हैं।)
(ख) बालिका कलमेन लिखति। (लड़की कलम से लिखती है।)
(ग) वयं नेत्राभ्यां पश्यामः। (हम आँखों से देखते हैं।)

2. जिसका साथ बतलाना हो, वह कारणकारक में रहता है। सह, साकम् सार्धम् आदि सहार्थक अव्यय हैं। इसके साथ सदैव तृतीया विभक्ति रहती है।
जैसे-
(क) अहं मित्रेण सह गच्छामि। (मैं मित्र के साथ जाता हूँ।
(ख) छात्राः शिक्षकैः सह गायन्ति। (छात्र शिक्षकों के साथ गाते हैं।)

3. कारण के अर्थ में तथा विकृतांग वाची शब्दों के साथ तृतीया लगती है। जैसे
(क) जनः सभायां विद्यया शोभते। (सभा में व्यक्ति विद्या के कारण शोभित होता है।)
(ख) सः नेत्रेण काणः। (वह आँख से काना है।)
(ग) हरिः पादेन पंगुः अस्ति। (हरि पैर से लँगड़ा है।)

4. तृतीया विभक्ति का निम्न शब्दों के साथ पयोग होता है-
अलम् (बस करो), सह (साथ), साकम् (साथ), सार्धम् (साथ), समान (बराबर), सम (समान), सदृश्य (समान), तुल्य (समान), बिना/विना (के बिना)।
(क) अलम् हसितेन। (हँसो मत।).
(ख) रामेण सह लक्ष्मणः अपि वनम् अगच्छत्। (राम के साथ लक्ष्मण भी वन को गए।)
(ग) सः पित्रा साकम् आपणं गच्छति। (वह पिता के साथ बाजार जाता है।)
(घ) धर्मेण विना जीवनं शून्यम् अस्ति। (धर्म के बिना जीवन मूल्य है।)

5. हेतु या स्वाभाव के अर्थ में तृतीया विभक्ति होती है।
6. पृथक् और हीन के अर्थ में तृतीय विभक्ति होती है।
7. तुलनात्मक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।

चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग
1. सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। जिसे कुछ दिया जावे या जिस उद्देश्य से क्रिया की जावे, या जिसके लिए कार्य हो, वह सम्प्रदान होता है।
जैसे-
(क) एतत् फलं रामाय अस्ति। (यह फल राम के लिए है।)
(ख) नद्यः परोपकाराय वहन्ति। (नदियाँ परोपकार के लिए बहती हैं।)

2. नमः, स्वस्ति, स्वाहा और अलम् अव्ययों के साथ चतुर्थी का प्रयोग होता है। अलम् के योग में बढ़कर बताया जावे, या ‘पर्याप्त है’ का अर्थ हो, तब उसमें चतुर्थी का प्रयोग होता है। जैसे
(क) शिवाय नमः ! (शिवजी को नमस्कार है।)
(ख) श्री गणेशाय नमः। (श्री गणेशजी को नमस्कार है।)
(ग) अनुजाय स्वस्ति। (छोटे भाई का कल्याण हो।)
(घ) अग्नये स्वाहा। (यह आहुति अग्नि के लिए है।)
(ङ) रामः रावणाय अलम्। (राम रावण से बढ़कर हैं।)
(च) एतनि फलानि पंच जनेभ्यः अलम् सन्ति। (ये फल पाँच लोगों के लिए पर्याप्त हैं।)

नमः अव्यय और नम् धातु में भ्रमित न होवे। नम् धातु के साथ अन्य विभक्तियाँ भी प्रयुक्त होती हैं।

जैसे-
अहं शिवं नमामि। (मैं शिवजी को नमन करता हूँ।)

3. दा, रुच, क्रुध, कुप, द्रुह (विद्रोह करना), स्पृह् (इच्छा करना) असूय् (द्वेष करना) व स्निह् धातुओं के योग में चतुर्थी प्रयुक्त होती है। जैसे
(क) प्राचार्यः छात्राय पुरस्कारं यच्छति। (प्राचार्य छात्र को पुरस्कार देते हैं।)
(ख) मह्यं दुग्धं रोचते। (मुझे दूध अच्छा लगता है।)
(ग) रामः सुरेशाय कुप्यति। (राम सुरेश पर नाराज होता है)
(घ) बालिकाः पुष्पेभ्यः स्पृहयन्ति। (लड़कियाँ फूलों की इच्छा करती हैं।)
(ङ) सः मोहनाय ईयति। (वह मोहन से ईर्ष्या करता है।)
(च) अध्यापकः शिष्याय क्रुध्यति। (शिक्षक शिष्य पर क्रोधित होते हैं।)

पंचमी विभक्ति का प्रयोग
1. जिससे अलग होना बतलाना हो, वह पंचमी में रहता है।

जैसे-
(क) वृक्षात् पत्रं पतति। (वृक्ष से पत्ता गिरता है।)
(ख) सः ग्रामात् आगच्छति। (वह गाँव से आता है।)

2. भय, रक्षा आदि के योग में पंचमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
(क) व्याघ्रात् भयम् अस्ति। (शेर से डर लगता है।)
(ख) रमा बालः दुर्जनात् रक्षति। (रमा बालक की दुष्ट से रक्षा करती है।)

3. जिससे शिक्षा ग्रहण की जाये, या जिससे उत्पत्ति हो, उसके योग में पंचमी का प्रयोग किया जाता है।

जैसे-

(क) छात्राः अध्यापकात् विद्यां पठन्ति। (छात्र अध्यापक से विद्या पढ़ते हैं।)
(ख) हिमालयात गङ्गा प्रभवति। (हिमालय से गंगा निकलती है।)

4. निलीयते (छिपना) के योग में पंचमी का प्रयोग किया जाता है।

जैसे-
(क) सुरेशः अध्यापकात् निलीयते। (सुरेश शिक्षक से छिपता है।)
(ख) चौरः रक्षकात् निलीयते। (चोर सिपाही से छिपता है।)

5. पृथक्, विना और नाना शब्दों के साथ द्वितीया, तृतीया या पंचमी में से कोई भी एक विभक्ति हो सकती है। जैसे
(क) जलं बिना मत्स्यः न जीवति। (जल के बिना मछली नहीं जीती।)
(ख) जलेन विना मत्स्यः न जीवति। (जल के बिना मछली नहीं जीती।)
(ग) जलाद् विना मत्स्यः न जीवति। (जल के बिना मछली नहीं जीती।)

6. पंचर्मी विभक्ति का निम्न शब्दों के साथ प्रयोग होता है ऋते (बिना), प्रभृति (लेकर), आरात् (के पास), अनन्तरम् (के बाद), दूरम् (दूर), बहिः (बाहर), अन्तिकम् (पास), ऊर्ध्वम् (ऊपर)।
(क) ग्रामात् दूरे नद्यः अस्ति। (गाँव से नदी दूर है।)
(ख) उद्यानात् अन्तिकम् देवालयः अस्ति। (उद्यान के पास मंदिर है।)
(ग) ग्रामात् आरात् तडागः अस्ति। (गाँव के पास तालाब है।)
(घ) उद्यानात् बहिः भोजनालयः अस्ति। (उद्यान के बाहर भोजनालय है।)

षष्ठी विभक्ति का प्रयोग

1. वस्तुओं में सम्बन्ध स्थापित करने में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे
(क) दशरथस्य चत्वारः पुत्राःआसन्। (दशरथ के चार पुत्र थे।)
(ख) इयं तव पुस्तकम् अस्ति। (यह तुम्हारी पुस्तक है।)

2. जंघ खेद पूर्वक याद किया जावे, तो ‘स्मृ’ के योग में षष्ठी प्रयुक्त होती है। जैसे
(क) राधा पितुः स्मरति। (राधा पिता के उपकारों को याद करती है।)

3. षष्ठी विभक्ति का निम्न शब्दों के साथ प्रयोग होता है पुरः (सामने), अधः (नीचे), उपरि (ऊपर), पश्चात् (बाद में), पुरस्तात् (सामने), अन्तिके (पास में), अधस्तात् (नीचे)।
(क) वृक्षस्य अधः पथिकः तिष्ठति। (वृक्ष के नीचे राहगीर बैठा है।)
(ख) उद्यानस्य पुरस्तात् कूपः अस्ति। (बाग के सामने कुआँ है।)
(ग) ग्रामस्य अन्तिके देवालयः अस्ति। (गाँव के पास मंदिर है।)
(घ) वृक्षस्य अधस्तात् जनाः सन्ति (वृक्ष के नीचे लोग हैं।)

4. विशेषण की उत्तमावस्था बताने में षष्ठी या सप्तमी का प्रयोग होता है। जैसे
(क) कवीनां कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति। (कालीदास कवियों में श्रेष्ठ हैं।)
(ख) कवीष कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति। (कालीदास कवियों में श्रेष्ठ हैं।)

5. तुलना, कुशलता के योग में षष्ठी का प्रयोग होता है।

जैसे-
(क) रामस्य तुल्यः कोऽपि न अस्ति। (राम की तुलना में कोई नहीं है।)
(ख) तस्य मुखम् चन्द्रस्य सदृशं अस्ति। (उसका मुख चन्द्रमा के समान सुंदर है।)

सप्तमी विभक्ति का प्रयोग

1. स्थान या समय सूचक शब्द अधिकारकारक (सप्तमी) में रहते हैं।
जैसे-
(क) तडागे जलम् अस्ति। (तालाब में पानी है।)
(ख) बिले मूषकः तिष्ठति। (बिल में चूहा रहता है।)
(ग) ते मम गृहे न्यवसन्। (वे सब मेरे घर में रहते थे।)
(घ) वृक्षेषु फलानि सन्ति। (वृक्षों पर फल हैं।)
(ङ) जले मत्स्याः निवसन्ति। (जल में मछलियाँ रहती हैं।)

2. स्निह्, अभिलष् आदि के योग में सप्तमी विभक्ति होती है।
जैसे-
(क) माता पुत्रे स्निह्यति। (माता पुत्र से स्नेह करती है।)

3. तत्परता, चतुरता, कुशलता आदि के योग में सप्तमी विभक्ति होती है।

जैसे-
(क) शीला गायने निपुणा अस्ति। (शीला गाने में निपुण है।)
(ख) हरिः कार्ये तत्परः अस्ति। (हरि कार्य में तत्पर है।)
(ग) रामः व्यापारे कुशलः अस्ति। (राम व्यापार में कुशल है।)

4. एक कार्य होने के लिए उपरान्त दूसरा प्रारम्भ होने पर सप्तमी का पयोग होता है।

जैसे-
(क) सूर्ये अस्तं गते रात्रिः आगच्छति। (सूर्य अस्त होने के बाद रात्रि आती है।)
(ख) शिक्षके गते छात्राः कोलाहलं कृतवन्तः। (शिक्षक के जाने पर छात्रों ने शोर मचाया) . . .. .. ……. .

सम्बोधनम् का प्रयोग

1. सम्बोधन हेतु सम्बोधनकारक का प्रयोग होता है।

जैसे-
(क) हे राम, उत्तिष्ठ। (राम, खड़े हो जाओ।)
(ख) हे प्रभु! रक्ष माम्। (हे भगवान! मेरी रक्षा करो।)

अनुवाद के अन्य नियम
नियम 1. विशेषण का पयोग उसी लिंग, वचन और कारक में होगा, जिस लिंग, वचन और कारक में उसका विशेष (अर्थात् जिसकी वह विशेषता बतलाता है) रहेगा।
जैसे-
(क) चह चतुर बालक है। = एषः चतुरः बालकः अस्ति!
(ख) यह चतुर लड़की है। = एषा चतुरा बालिका अस्ति।
(ग) यह सफेद घोड़ा है। = एषः श्वेत अश्वः अस्ति।
(घ) यह सफेद बकरी है। = एषा श्वेता अजा अस्ति।
(ङ) यह सफेद गाय है। = एषा श्वेता धेनुः अस्ति।
(च) सफेद घोड़े को लाओ। = श्वेतम् अश्वम् आनय।
(छ) काले घोड़े पर बैठो। = कृष्णे अश्वे उपविश।

नियम 2. भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग विशेषण के समान करेंगे।
जैसे-
(क) यह गिरा हुआ फल है। = एतत् पतितं फलं अस्ति।
नियम 3. पूर्वकालिक कृदन्त, हेतुवाचक कृदन्त तथा अव्ययों के रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
नियम 4. मकारांत शब्द के बाद व्यंजन से प्रारम्भ होने वाला शब्द आवें, तो म् के बदले अनुस्वार (-) लिखते हैं। यदि म के बाद स्वर से प्रारम्भ होने वाला शब्द आये, तब म् की उस स्वर में संधि हो जाती है।

जैसे-
(क) अहम् गच्छामि = अहं गच्छामि। (मैं जाता हूँ।) (ख) अहम् अगच्छम् = अहमगच्छम्। (मैं गया था।)
नियम 5. संस्कृत में वाक्य की क्रिया यदि ‘भू’ (भवति) = होना या ‘अस्’ (होना) या कोई उसके समान अर्थ वाली हो, तो वाक्य में प्रायः उसे नहीं लिखा जाता है और उसका अर्थ ऊपर से कर लिया जाता है।

जैसे-
(क) सुरेशः स्वपितुः एकः पुत्रः भवति। – सुरेशः स्वपितुः एकः पुत्र। (सुरेश अपने पिता का एक पुत्र है।)
(ख) एतत् चक्रम् अस्ति। (यह पहिया है।) = एतत् चक्रम।

नियम 6. कुत्रचित् (कहीं), किंचित् (कुछ), कदाचित् (कभी) आदि का प्रयोग-संस्कृत में कहीं, किसी, कोई, कभी, कुछ आदि शब्दों का अव्यय या अनिश्चय वाचक विशेषण या सर्वनाम के रूप प्रयोग करने हेतु “किम्’ सर्वनाम के रूपों में ‘चित्’ जोड़ देते हैं। यह ध्यान में रखना चाहिए कि किम् के लिंग और वचन वही हों, जो उसके विशेष के हैं। किम् के रूपों की चित् के साथ संधि करते समय उचित नियमों का पालन करें। यथा न को अनुस्वार और श् में बदल देते हैं। जैसे-कस्मिन् चित् कस्मिंश्चित् आदि। इसी तरह किम् के रूपों का विसर्ग भी श् में बदल जाता है। कः+ चित -कश्चित् आदि। इसी तरह अन्य नियमों का प्रयोग करें। इसके उदाहरण निम्नानुसार हैं.

(क) किसी वृक्ष पर एक तोता बैठा था।
कस्माच्चित् वृक्षे एकः शुकः अतिष्ठत्।
(ख) प्राचीन काल में मथुरा में कोई सेठ रहता था।
पुरा मथुरा नगर्यां कश्चित् श्रेष्ठी अवसत्।
(सा) किसी गाँव में एक साधु रहता था।
कास्मिंश्चित् ग्रामे एकः साधुः अनिवसत्।

इसी तरह किसी तालाब में = कस्माच्चित् सरोवरे, किसी सुंदरी का = कस्याश्चित सुंदर्याः, कुछ पक्षी = केचित् विहगाः, किसी आदमी ने = कश्चित् जनः आदि का अनुवाद किया जाता है।

परीक्षापयोगी महत्वपूर्ण अनुवाद के वाक्य-

  1. 1. वृक्ष से पत्ता गिरता है। – वृक्षात् पत्रं पतति।
  2. 2. गुरु शिष्य को पुस्तक देता है। – गुरुः शिष्याय पुस्तकं यच्छति।
  3. 3. छात्र पुस्तक पढ़ते हैं। – छात्राः पुस्तकानि पठन्ति।
  4. 4. सीता राम के साथ बन गई। – सीताः रामेण सह वनं गता।
  5. 5. सूर्य को नमस्कार। – सूर्याय नमः।
  6. 6. गंगा हिमालय से निकलती है। – गंगा हिमालयात् प्रभवति।
  7. 7. राम शीतल जल पीता है। – रामः शीतलं जलं पिबति।
  8. मोहन शीतल जल पीता है। – मोहनः अद्य गृहं गमिष्यति।
  9. अति सभी जगह वर्जित है। – अति सर्वत्र वर्जयेत्।
  10. विद्या विनय देती है। – विद्या विनयं ददाति।
  11. तुम कहाँ जा रहे हो? – त्वं कुत्र गच्छसि?
  12. उसे संस्कृत पढ़ी। – सः संस्कृतभाषाम् अपठत्।
  13. गणेश जी को नमस्कार है। – श्री गणेशाय नमः।
  14. यह हमारा देश है। – एषः अस्माकं देशः अस्ति।
  15. आत्मा जल से शुद्ध नहीं होती है। – आत्मा जलेन ने शुद्धयति।
  16. उनकी माता पुतली बाई थीं। – तस्य माता पुतलीबाई आसीत्।
  17. मुझे लड्डू अच्छे लगते हैं। – मह्यम् मोदकानि रोचन्ते।
  18. यह मेरी पुस्तक है। – इदं मम पुस्तकं अस्ति।
  19. मैं विद्यालय जाता हूँ! – अहं विद्यालयं गच्छमि।
  20. सीमा गेंद से खेलती है। – सीताः कन्दुकेन क्रीडति।

वाक्यों को शुद्ध करके लिखना
          अशुद्ध           –     शुद्ध वाक्य
1. सः पुस्तकं पठामि। – सः पुस्तकं पठति।
2. सः फलं खादामि। – सः फलं खादति।
3. सः रामस्य सह गतः। – सः रामेण सह गतः।
4. सः क्रीडन्ति। – सः क्रीडति।
5. अहं पाठशालाः गच्छामः। – अहम् पाठशालांग छमि।
6. वयं विद्यालये गच्छमि। – वयं विद्यालयं गच्छामः।
7. ह्यः रविवासरः अस्ति। – ह्यः रविवासरः आसीत्।
8. युवां क्रीडसि। – युवां क्रीडथः।
9. त्वम् कदा पठति? – त्वं कदा पठसि?
10. बालकः कुत्र गच्छसि। – बालकः कुत्र गच्छति?
11. अहं पाठशाले गच्छामि ? – अहं पाठशाला गच्छामि।
12. त्वम पठामि। – त्वं पठसि।
13. बालकाः फलाः खादन्ति। – बालकाः फलानि खादन्ति।
14. ते गच्छामि। – ते गच्छन्ति।
15. सर्वाणि बालकाः पठन्ति। – सर्वे बालकाः पठन्ति।
16. रामस्य नमः। – रामाय नमः।
17. पिता पुत्रे क्रुध्यति। – पिता पुत्राय क्रुध्यति।
18. नोहनः सुरेशम् ईष्यति। – मोहनः सुरेशाय ईष्यति।
19. मां दुग्धं न रोचते। – मह्यं दुग्धं न रोचते।
20. ग्रामस्य परितः वनानि सन्ति। – ग्रामं परितः वनानि सन्ति।

अभ्यास

1. निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए-
किसी किसान के चार पुत्र थे। वे चारों मुर्ख थे। निदेय मनुष्य पशुओं पर दया नहीं करते। ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे। किसी नगर में कोई वैश्य रहता था। वह बहुत अमीर था। एक बार नदी में किसी नारी का हार गिर गया। एक मछुआरे ने उसे निकला। जब तक मैं न आऊँ, तब तक तुम अपना पाठ पढ़ो। राजा के आदेश से सेनापति ने आक्रमण किया। जहाँ परिश्रम है, वहाँ सुख निवास करता है। छात्रों को रात-दिन मेहनत करना चाहिए, तभी सफलता मिलेगी। झूठ मत बोलो। यह अच्छी बात नहीं है। सदैव सच्चे और हितकारी वचन बोलो। गाँव से शाला दूर है, अतः _ वह बैलगाड़ी से शाला जाता है। (बैलगाड़ी से = शकटेन)

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