MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 4 बूढ़ी काकी (प्रेमचन्द)

बूढ़ी काकी अभ्यास प्रश्न

बूढ़ी काकी लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

Budhi Kaki Question Answer In Hindi MP Board Class 9th प्रश्न 1.
बूढ़ी काकी बुद्धिराम के पास क्यों रहती थी?
उत्तर
बूढ़ी काकी का बुद्धिराम के सिवा और कोई नहीं था। इसलिए वह बुद्धिराम के पास रहती थी।

Budhi Kaki Question Answer MP Board Class 9th प्रश्न 2.
सुखराम के तिलक पर घर का वातावरण कैसा था?
उत्तर
सुखराम के तिलक पर घर का वातावरण बड़ा ही आनंददायक था। लोगों की भारी भीड़ थी। तरह-तरह के खान-पान तैयार हो रहे थे। मेहमानों का खूब आदर-सत्कार हो रहा था। बुद्धिराम और रूपा कार्यभार संभालने में बहुत व्यस्त थे।

Budhi Kaki Question Answer In Hindi Class 9 प्रश्न 3.
लाडली और बूढ़ी काकी में परस्पर सहानुभूति क्यों थी?
उत्तर
लाडली को अपने दोनों भाइयों के डर से अपने हिस्से की मिठाई-चबैना खाने के लिए बढ़ी काकी के सिवा और कोई सरक्षित जगह नहीं थी। उससे बढ़ी काकी को कुछ खाने के लिए मिल जाता था। इस तरह दोनों में परस्पर सहानुभूति थी।

Budhi Kaki Saransh MP Board Class 9th प्रश्न 4.
रूपा का व्यवहार काकी के प्रति किस प्रकार का था?
उत्तर
रूपा का व्यवहार बूढ़ी काकी के प्रति बड़ा ही अन्यायपूर्ण और कठोर था।

Budhi Kaki Ke Prashn Uttar MP Board Class 9th प्रश्न 5.
बूढ़ी काकी को भोजन न देने पर लाडली का मन क्यों अधीर हो रहा था?
उत्तर
बूढ़ी काकी को भोजन न देने पर लाडली का मन अधीर हो रहा था। यह इसलिए कि वह अपने माता-पिता द्वारा बूढ़ी काकी के प्रति किए गए दुर्व्यवहार से दुखी
और चिंतित थी।

बूढ़ी काकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

Budhi Kaki Question Answer In Hindi Class 9 प्रश्न 1.
“बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है।” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
बुढ़ापा आने पर किसी प्रकार की जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व निभाने की न कोई क्षमता होती है और न कोई सोच-समझ। बुढ़ापा में बच्चों के समान स्वतंत्रता आ जाती है। स्वार्थपरता के कारण अच्छा-बुरा का कुष्ठ भी ख्याल न बुढ़ापा में होता है और न बचपन में। इस प्रकार की और भी कई बातें होती हैं, जो बचपन और बढ़ापा में होती हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि, “बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है।”

Boodhi Kaki Question Answer MP Board Class 9th प्रश्न 2.
भोजन की वाली अपने सम्मुख देख बूढ़ी काकी की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर
भोजन की थाली अपने सामने देखकर बूढ़ी काकी खिल उठी। उसके रोम-रोम में ताजगी आ गई। उस समय वह अपने ऊपर हुए अत्याचार और तिरस्कार को बिल्कुल भूल गई। वह भोजन की थाली पर टूट पड़ी। धड़ाधड़ पूड़ियों को खाने के लिए वह आतुर हो उठी। उसके एक-एक रोएँ रूपा को आशीर्वाद दे रहे थे।

प्रश्न 3.
रूपा का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ?
उत्तर
बूढ़ी काकी को जूठे पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठा-उठाकर खाते हुए देखकर रूपा का हृदय सन्न हो गया। उसे बूढ़ी काकी के प्रति किए गए अन्याय और अत्याचार का भारी पश्चाताप हुआ। इस प्रकार रूपा का हृदय परिवर्तन हुआ।

प्रश्न 4.
इस पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर
इस पाठ से हमें निम्नलिखित शिक्षा मिलती है

  1. हमें बुजुर्गों की भावनाओं को समझना चाहिए।
  2. हमें बुजुर्गों का मान-सम्मान करना चाहिए।
  3. हमें बुजुर्गों की सेवा सच्ची भावना से करनी चाहिए।
  4. हम भी किसी समय बुजुर्ग होंगे। यह समझकर हमें बुजुर्गों पर होने वाले अत्याचार-अन्याय का विरोध करना चाहिए।

प्रश्न 5.
रूपा की जगह यदि आप होते तो बूढ़ी काकी के प्रति आपका व्यवहार कैसा होता?
उत्तर
रूपा की जगह हम होते तो बूढ़ी काकी के प्रति सहानुभूति रखते। उनकी भावनाओं को समझते। उनकी इच्छाओं को पूरी करने की कोशिश करते। अगर वे कोई अनुचित या अशोभनीय कदम उठातीं, तो हम उन पर क्रोध नहीं करते। उन्हें बड़े प्यार और आदर के साथ समझाते। उनकी कठिन जिद्द को नम्रतापूर्वक दूर करने का प्रयास करते।

प्रश्न 6.
स्पष्ट कीजिए।
(क) नदी में जब कगार का कोई वृहद खंड कटकर गिरता है तो आस पास का जल-समूह चारों ओर से उसी स्थान को पूरा करने के लिए दौड़ता है।
(ख) संतोष का सेतु जब टूट जाता है तब इच्छा का बहाव अपरिमित हो जाता है।
उत्तर
(क) उपर्युक्त वाक्य के कथन का आशय यह है कि जब कहीं कोई अवांछित और अनचाही घटना किसी के जीवन में घटित होती है तो हदय और मस्तिष्क की सारी शक्तियाँ, सारे विचार और सभी भार उसी ओर केंद्रित हो जाते हैं।
(ख) उपर्युक्त वाक्य के कथन का आशय यह है कि संतोष से इच्छाओं का प्रवाह रुक जाता है। इसके विपरीत असंतोष से इच्छाओं का प्रवाह किसी प्रकार की सीमा को तोड़ने में तनिक भी देर नहीं लगाता है।

बूढ़ी काकी भाषा-अध्ययन

1. जिह्वा, कृपाण आदि तत्सम शब्द हैं। पाठ में आए ऐसे ही तत्सम शब्दों की सूची बनाइए।
2. दिए हुए शब्दों में से उपसर्ग-प्रत्या छाँटकर अलग कीजिए
स्वाभाविक, प्रतिकूल, मसालेदार, सुगन्धित, अविश्वास, विनष्ट, लोलुपता, असहाय, निर्दयी।
3. ‘दिन-रात खाती न होती तो न जाने किसकी हाँडी में मुँह डालती।’
उपर्युक्त वाक्य में दिन का विलोम शब्द रात आया है। पाठ में आए ऐसे ही अन्य वाक्य छाँटिए जिनमें विलोम शब्दों का एक साथ प्रयोग हुआ हो।
उत्तर
1. चेष्टा, नेत्र, प्रतिकूल, पूर्ण, परिणाम, कालान्तर, तरुण, आय, वार्षिक, ईश्वर, तीव्र, व्यय, संताप, आर्तनाद, अनुराग, क्षुधावर्द्धक, सम्मुख, उद्विग्न, कार्य, क्रोध, वृहद, दीर्घाहार, व्यर्थ, मिथ्या, वाटिका, वर्षा, क्षुधा, प्रबल, प्रत्यक्ष, वृद्धा, आकाश, निमग्न आदि।
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3. (i) फिर जब माता-पिता का यह रंग देखते, तो बूढ़ी काकी को और भी सताया करते।
(ii) यद्यपि उपद्रव-शांति का यह उपाय रोने से कहीं अधिक उपयुक्त था।
(iii) लाडली अपने दोनों भाइयों के भय से अपने हिस्से की मिठाई-चबैना बूढ़ी काकी के पास बैठकर खाया करती थी।
(iv) आघात ऐसा कठोर था कि हृदय और मस्तिष्क की संपूर्ण शक्तियाँ, संपूर्ण । विचार और संपूर्ण भार उसी ओर आकर्षित हो गए।
(v) अवश्य ही लोग खा-पीकर चले गए।

बूढ़ी काकी योग्यता-विस्तार

1. “वृद्धजन का सम्मान ही परिवार का सम्मान है।” इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
2. आप अपनी दादी या नानी से कितना प्यार करते हैं। अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

बूढ़ी काकी परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बूढ़ी काकी कब-कब रोती थीं?
उत्तर
जब घरवाले कोई बात उनकी इच्छा के विपरीत करते, भोजन का समय टल जाता या उसका परिणाम पूरा न होता अथवा बाजार से कोई वस्तु आई और उन्हें न मिलती, तो वे रोने लगती थीं।

प्रश्न 2.
बूढ़ी काकी को रोना आया लेकिन वे रो न सकीं। क्यों?
उत्तर
बूढ़ी काकी को रोना आया, लेकिन वे रो न सकीं क्योंकि उन्हें अपशकुन का भय हो गया था।

प्रश्न 3.
बूढ़ी काकी अपनी कोठरी में क्या पश्चाताप कर रही थी?
उत्तर
बूढ़ी काकी अपनी कोठरी में यह पश्चाताप कर रही थीं कि उन्होंने बड़ी जल्दीबाजी की। मेहमानों के खाने तक तो इंतजार करना ही चाहिए था। मेहमानों से पहले घर के लोग कैसे खाएँगे?

प्रश्न 4.
लाडली ही बूढ़ी काकी के लिए क्यों कुढ़ रही थी?
उत्तर
लाडली ही बूढ़ी काकी के लिए कुढ़ रही थी, क्योंकि उसे ही उनसे अत्यधिक प्रेम था।

प्रश्न 5.
रूपा ने रुद्ध कंठ से क्या कहा?
उत्तर
रूपा ने रुद्ध कंठ से कहा, “काकी उठो, भोजन कर लो। मुझसे आज बड़ी भूल हुई। उसका बुरा न मानना। परमात्मा से प्रार्थना कर दो कि वह मेरा अपराध क्षमा कर दें।”

बूढ़ी काकी दीर्य उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बूढ़ी काकी को भरपेट भोजन बड़ी कठिनाई से क्यों मिलता था?
उत्तर
बूढ़ी काकी ने अपनी सारी सम्पत्ति अपने भतीजे बुद्धिराम को लिख दी। थी। सम्पत्ति लिखाते समय बुद्धिराम ने खूब लंबे-चौड़े वादे किए थे, लेकिन वे खोखले साबित हुए। बुद्धिराम की कृपणता ही इसके मूल में रही। उसी के फलस्वरूप वे बूढ़ी काकी के भोजन में कमी रखने का प्रयास करना नहीं भूलते थे।

प्रश्न 2.
बूढ़ी काकी प्रतीक्षा की घड़ी कैसे बिता रही थीं?
उत्तर
बूढ़ी काकी को एक-एक पल एक-एक युग के समान मालूम होता था। अब पत्तल बिछ गई होंगी। अब मेहमान आ गए होंगे। लोग हाथ-पैर धो रहे हैं. नाई पानी दे रहा है। मालूम होता है लोग खाने बैठ गए। जेवनार गाया जा रहा है, यह विचार कर वह मन को बहलाने के लिए लेट गई। धीरे-धीरे एक गीत गुनगुनाने लगी। उन्हें मालूम हुआ कि मुझे गाते देर हो गई। क्या इतनी देर तक लोग भोजन कर ही रहे होंगे? किसी की आवाज नहीं सुनाई देती। अवश्य ही लोग खा-पीकर चले गए। मुझे कोई बुलाने नहीं आया। रूपा चिढ़ गई। क्या जाने न बुलाए, सोचती हो कि आप ही आवेगी। वह कोई मेहमान तो नहीं जो उन्हें बुलाऊँ। बूढ़ी काकी चलने के लिए तैयार हुई।

प्रश्न 3.
बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी के प्रति क्या कठोरता दिखाई?
उत्तर
बुद्धिराम ने जब बूढ़ी काकी को मेहमानों के बीच में देखा तो उनको क्रोध आ गया। वे इससे अपने को संभाल न सके। हाथ में लिए हए पूड़ियों के थाल को उन्होंने जमीन पर पटक दिया। फिर जिस तरह कोई निर्दय महाजन अपने किसी बेईमान और भगोड़े आसामी को देखते ही लपककर उसका टेंटुआ पकड़ लेता है। उसी तरह से उन्होंने भी बुढ़ी काकी के दोनों हाथों को कसकर पकड़ लिया। फिर उन्हें घसीटते हुए उनकी उसी अँधेरी कोठरी में लाकर पटक दिया।

प्रश्न 4.
रूपा ने अपनी गलती का पञ्चाताप किस प्रकार किया?
उत्तर
रूपा ने अपनी गलती का पश्चाताप इस प्रकार किया
“हाय कितनी निर्दयी हूँ! जिसकी सम्पत्ति से मुझे दो सौ रुपया वार्षिक आय हो रही है। उसकी यह दुर्गति! और मेरे कारण! हे दयामय भगवान! मुझसे बड़ी भारी चूक हुई है। मुझे क्षमा करो। आज मेरे बेटे का तिलक था। सैकड़ों मनुष्यों ने भोजन किया। मैं उनके इशारों की दासी बनी रही। अपने नाम के लिए सैकड़ों रुपए व्यय कर दिए, परंतु जिनकी बदौलत हजारों रुपए खाए, उसे इस उत्सव में भरपेट भोजन न दे सकी। केवल इसी कारण कि वह वृद्धा है, असहाय है।”

प्रश्न 5.
रूपा ने बूढ़ी काकी से अपने अपराध के क्षमा के लिए क्या किया?
उत्तर
आधी रात जा चुकी थी। आकाश पर तारों के थाल सजे हुए थे। और उन पर बैठे हुए देवगण स्वर्गीय पदार्थ सजा रहे थे। परंतु उनमें किसी को वह परमानंद प्राप्त न हो सकता था, जो बूढ़ी काकी को अपने सम्मुख थाल देखकर प्राप्त हुआ। रूपा ने कंठावरुद्ध स्वर में कहा, “काकी उठो, भोजन कर लो। मुझसे आज बड़ी भूल हुई, उसका बुरा न मानना। परमात्मा से प्रार्थना कर दो कि वह मेरा अपराध क्षमा कर दें।” भोले-भोले बच्चों की भाँति जो मिठाइयाँ पाकर मार और तिरस्कार सब भूल जाता है, बूढ़ी काकी वैसे सब भुलाकर बैठी हुई खाना खा रही थीं। उनके एक-एक रोएँ से सच्ची सदिच्छाएँ निकल रही थीं और रूपा बैठी इस स्वर्गीय दृश्य का आनंद लूटने में निमग्न थी।

बूढ़ी काकी लेखक-परिचय

प्रश्न
प्रेमचंद का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले के लमही गाँव में सन् 1880 ई. में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपतराय था, परन्तु आप साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद नाम से प्रसिद्ध हुए। छोटी आयु में पिता की मृत्यु हो जाने से उनका जीवन गरीबी में बीता था। मैट्रिक पास करने के पश्चात् आपने स्कूल में अध्यापन कार्य किया। उसके बाद स्वाध्याय से बी.ए. की परीक्षा पास की और शिक्षा विभाग में सब-इंस्पेक्टर पद पर कार्य किया। कुछ समय के बाद वहाँ से भी त्याग-पत्र दे दिया और आजीवन साहित्य-सेवा में लगे रहे। बीमारी के कारण 56 वर्ष की आय में सन् 1936 में आपका देहान्त हो गया।
साहित्यिक सेवा-प्रेमचंद ने सर्वप्रथम नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखना आरंभ किया था।

उनका ‘सोजेवतन’ नामक कहानी-संग्रह तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने जब्त कर लिया और नवाबराय पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए। इसके बाद आपने हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखना आरंभ किया। आपके साहित्य का मुख्य स्वर समाज-सुधार है। आपने समाज-सुधार और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत कई उपन्यास और लगभग तीन सौ कहानियाँ लिखी हैं। उन्होंने अपने साहित्य में किसानों की दशा, सामाजिक बंधनों में तड़पती नारियों की वेदना और वर्ण-व्यवस्था की कठोरता के भीतर संत्रस्त हरिजनों की पीड़ा का मार्मिक चित्रण किया है।

भाषा-शैली-प्रेमचंद की भाषा साधारण बोल-चाल की भाषा है। इसमें उर्द, फारसी. अंग्रेजी तथा तत्सम, तदभव शब्दों के साथ-साथ देशज शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। इनकी भाषा मुहावरे-लोकोक्तियों और सूक्तियों से युक्त है। हास्य-व्यंग्य के छींटे भाषा को जीवंत बनाए रखते हैं। उन्होंने वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया है।

रचनाएँ-उपन्यास-सेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन और गोदान आदि प्रसिद्ध उपन्यास हैं।

नाटक-कर्बला, संग्राम और प्रेम की बेदी।

निबंध-संग्रह-कुछ विचार संग्रह। सामाजिक और राजनीतिक निबंधों का संग्रह ‘विविध-प्रसंग’ नाम से तीन भागों में प्रकाशित है।

उन्होंने हंस, मर्यादा और जागरण पत्रिकाओं का संपादन किया।कहानी-प्रेमचंद ने अनेक प्रसिद्ध कहानियों की रचना की। उन्होंने लगभग तीन सौ कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में संग्रहीत हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्रेमचंद का साहित्यिक महत्त्व बहुत अधिक है। फलस्वरूप वे युग-युग तक आने वाली साहित्यिक पीढ़ी को प्रेरित करते रहेंगे।

बूढ़ी काकी कहानी का सारांश

प्रश्न
प्रेमचंद-लिखित कहानी ‘बूढ़ी काकी’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
प्रेमचंद-लिखित कहानी ‘बूढ़ी काकी’ एक सामाजिक-पारिवारिक कहानी है। इसमें वृद्धों की मानसिक स्थितियों को सामने लाने का प्रयास किया गया है। इस कहानी का सारांश इस प्रकार है बूढ़ी काकी जीभ का स्वाद न पूरा होने पर गला फाड़-फाड़कर रोने लगती थी। उनके पतिदेव और जवान बेटे की मौत के बाद उनका भतीजा बुद्धिराम ही उनका अपना था। उसी के नाम उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति लिख दी। सम्पत्ति लिखाते समय बुद्धिराम ने उनकी देखभाल के लम्बे-चौड़े वादे किए थे, लेकिन बाद में वे वादे खोखले साबित होने लगे। बुद्धिराम इतने सज्जन थे कि उनके कोष पर कोई आंच न आए।

उनकी पत्नी रूप-स्वभाव से तीव्र होने पर भी ईश्वर से डरती थी। बढी काकी अपनी जीभ के स्वाद या अपनी भूख मिटाने के लिए किसी की परवाह किए बिना रोती-चिल्लाती थीं। बच्चों के चिढ़ाने पर वह उन्हें गालियाँ देने लगती थीं। रूपा के आते ही वह शान्त हो जाती थीं। पूरे परिवार में बूढ़ी काकी से बुद्धिराम की छोटी लड़की लाडली ही प्रेम संबंध रखती थी। वह अपने खाने-पीने की चीजों में से कुछ चीजें निकालकर चुपके से बूढ़ी काकी को खिला दिया करती थी।

एक दिन बुद्धिराम के लड़के सुखराम का तिलक आया तो मेहमानों के खाने-पीने के लिए तरह-तरह के पकवान-मिठाइयाँ बनाए गए। उनकी सगन्ध से बढ़ी काकी अपनी कोठरी में बैठी हुई बेचैन हो रही थीं। वह एक-एक घड़ी का अंदाजा लगा रही थीं कि इतने देर बाद उन्हें भी वह भोजन मिलेगा। काफी देर बाद जब उनके लिए भोजन लेकर कोई उनके पास नहीं आया, तब उनके धैर्य का बाँध टूट गया। वह उक. बैठकर हाथों के बल सरकती हुई बड़ी कठिनाई से कड़ाह के पास जा बैठीं। उन्हें इस तरह कड़ाह के पास बैठी हुई देखकर रूपा के क्रोध की सीमा न रही। उसने सबके सामने बूढ़ी काकी को खूब खरी-खोटी सुनाई। उसे सुनकर बूढ़ी काकी चुपचाप रेंगती-सरकती हुई अपनी कोठरी में चली गई। किसी के बुलाने की प्रतीक्षा करने लगीं।

बूढ़ी काकी ने बहुत इंतजार किया, लेकिन उन्हें कोई बुलाने नहीं आया। उन्होंने शांत वातावरण से यह अनुमान लगा लिया कि मेहमान खा-पीकर चले गए हैं। मुझे कोई बुलाने नहीं आया तो क्या हुआ। वह मेहमान तो नहीं हैं कि उन्हें कोई बुलाने आएगा। इन्हीं बातों को सोच-समझकर वह पहले की तरह सरकती हुई आँगन में खा रहे मेहमानों के बीच में पहुंच गई। उन्हें देखते ही बुद्धिराम क्रोध से उबल पड़े। उन्होंने बूढ़ी काकी को घसीटते हुए अँधेरी कोठरी में लाकर धम्म से पटक दिया। यह देखकर लाडली को क्रोध तो आया, लेकिन डर से वह कुछ कह न सकी। वह अपने हिस्से की पूड़ियों को सबके सोने के बाद बूढ़ी काकी को खिलाने के लिए उस अँधेरी कोठरी में गई। उसने बूढ़ी काकी को उन पूड़ियों को खाने के लिए सामने रख दिया। उन पूड़ियों को उन्होंने पाँच मिनट में खा लिया। इसके बाद उन्होंने उससे और पूड़ियाँ अपनी माँ रूपा से माँगकर लाने के लिए कहा।

लाडली ने जब अपनी अम्मा से अपने डर की बात कही तब उन्होंने उससे कहा, “मेरा हाथ पकड़कर वहाँ ले चलो, जहाँ मेहमानों ने बैठकर भोजन किया है।” लाडली जब उन्हें वहाँ ले गई, तब उन्होंने पूड़ियों के टुकड़े चुन-चुनकर खाना शुरू किया। नींद खुलने पर रूपा लाडली को खोजती हुई वहाँ पहुँच गई, जहाँ बूढ़ी काकी पूड़ियों के टुकड़े उठा-उठाकर खा रही थीं। उन्हें इस तरह देखकर रूपा काँप उठी। उसे ऐसा लगा, मानो आसमान चक्कर खा रहा है। संसार पर कोई नई विपत्ति आने वाली है। करुणा और भय के आँसुओं से उसने हृदय खोलकर आकाश की ओर हाथ उठाते हुए कहा, “परमात्मा, मेरे बच्चों पर दया करो। इस अधर्म का दंड मुझे मत दो, नहीं तो मेरा सत्यानाश हो जाएगा। मुझे क्षमा करो। आज मेरे बेटे का तिलक था। सैकड़ों मनुष्यों ने भोजन किया। मैं उनके इशारों की दासी बनी रही। अपने नाम के लिए सैकड़ों रुपए खर्च कर दिए। परन्तु जिनकी बदौलत हजारों रुपए खाए, उसे इस उत्सव में भरपेट भोजन न दे सकी। केवल इसी कारण कि वह वृद्धा है, असहाय है।”

रूपा दिया जलाकर भंडार से थाली में सारी सामग्रियाँ सजाकर काकी के पास गई। उसने रुंधे हुए स्वर में कहा, “काकी उठो, भोजन कर लो। मुझसे आज बड़ी भूल हुई, उसका बुरा न मानना। परमात्मा से प्रार्थना कर दो कि वह मेरा अपराध क्षमा कर दे।”
मिठाइयाँ पाकर मार और तिरस्कार भूल जाने वाले भोले-भाले बच्चों की तरह बूढ़ी काकी सब कुछ भुलाकर वह खाना.खा रही थी। उनके रोम-रोम से सदिच्छाएँ निकल रही थीं। रूपा वहाँ बैठी उस स्वगीय आनंद को लूट रही थी।

बूढ़ी काकी संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. संपूर्ण परिवार में यदि काकी से किसी को अनुराग था, तो वह बुद्धिराम की छोटी लड़की लाडली थी। लाडली अपने दोनों भाइयों के भय से अपने हिस्से की -मिठाई-चबेना बूढ़ी काकी के पास बैठकर खाया करती थी। वह उसका रक्षागार था और यद्यपि काकी की शरण उनकी लोलुपता के कारण बहुत महँगी पड़ती थी, तथापि भाइयों के अन्याय से वहीं सुलभ थी। इसी स्वार्थानुकूलता ने उन दोनों में प्रेम और सहानुभूति का आरोपण कर दिया था।

शब्दार्थ-अनुराग-प्रेम । लोलुपता-लालच । स्वार्थानुकूलता- स्वार्थ के अनुसार। आरोपण-आरोप लगाना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती-हिंदी सामान्य’ में संकलित तथा मुंशी प्रेमचंद-लिखित कहानी ‘बूढ़ी काकी’ से है। इसमें लेखक ने बूढ़ी काकी और लाडली के विषय में बतलाने का प्रयास किया है।

व्याख्या-लेखक का कहना है कि बूढ़ी काकी के प्रति परिवार में किसी को कोई लगाव नहीं था। बूढ़ी काकी का भतीजा बुद्धिराम, उसकी पत्नी रूपा और उसके बच्चे बूढ़ी काकी के प्रति सहानुभूति नहीं रखते थे। अगर उनके प्रति लगाव या सहानुभूति रखने वाला घर का कोई सदस्य था, तो वह थी बुद्धिराम की छोटी लड़की लाडली। वह अपनी सहानुभूति उनके प्रति बराबर दिखाती थी। वह अपना अधिकांश समय उनके पास ही बिताया करती थी। अपने भाइयों से डरी हुई वह अपने हिस्से की मिठाई-चबैना उनके पास बैठकर खाया करती थी। उन्हें देखकर उनको लालच होने लगता था। उनकी लपलपाती हुई जीभ को शांत करने के लिए उसे अपने हिस्से की मिठाई-चबैना के कुछ भाग को दे देना पड़ता है। इससे उसकी उनके प्रति प्रकट की जाने वाली सहानुभूति दुखद साबित होती थी, फिर भी उसे यह अपने भाइयों के बेईमानी से अच्छी लगती थी। इस प्रकार दोनों की स्वार्थपरता ने उन दोनों में प्रेम और सहानुभूति को पैदा कर दिया था।

विशेष-

  1. भाषा तत्सम और तद्भव शब्दों की है।
  2. बाल-स्वभाव और वृद्ध-स्वभाव की समानता का संकेत है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) बूढ़ी काकी से लाडली को क्यों अनुराग था?
(ii) बूढ़ी काकी लाडली को क्यों चाहती थी?
उत्तर
(i) बूढ़ी काकी से लाडली को अनुराग था। यह इसलिए कि वह अपने भाइयों के भय से अपने हिस्से की मिठाई-चबैना बूढ़ी काकी के पास बैठकर निडर हो खाया करती थी।
(ii) बूढ़ी काकी लाडली को चाहती थी। यह इसलिए कि लाडली ही कुछ खिलाकर उनकी लपलपाती हुई जीभ को शांत करती थी।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) बूढ़ी काकी और लाडली में परस्पर प्रेम क्यों हो गया था?
(ii) उपर्युक्त गयांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) बूढ़ी काकी और लाडली में परस्पर सहानुभूति और प्रेम उन दोनों के परस्पर स्वार्थपूर्ति के फलस्वरूप हो गया था।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का मुख्य भाव है-बाल-स्वभाव और वृद्ध-स्वभाव की समानता को दर्शाना।

2. जिस प्रकार मेढक कॅचए पर झपटता है, उसी प्रकार वह बड़ी काकी पर झपटी और उन्हें दोनों हाथों से झिंझोड़कर बोली, “ऐसे पेट में आग लगे, पेट है या भाड़? कोठरी में बैठते क्या दम घुटता था? अभी मेहमानों ने नहीं खाया, भगवान का भोग नहीं लगा, तब तक धैर्य न हो सका? आकर छाती पर सवार हो गई। जल जाय ऐसी जीभ । दिन-रात खाती न होती, तो न जाने किसकी हाड़ी में मुँह डालती? गाँव देखेगा तो कहेगा, बुढ़िया भरपेट खाने को नहीं पाती, तभी तो इस तरह मुंह बाये फिरती है। डायन, न मरे न माँचा छोड़े। नाम बेचने पर लगी है। नाक कटवाकर दम लेगी। इतना ढूँसती है, न जाने कहाँ भस्म हो जाता है। लो! भला चाहती हो तो जाकर कोठरी में बैठो, जब घर के लोग खाने लगेंगे तब तुम्हें भी मिलेगा। तुम कोई देवी नहीं हो कि चाहे किसी के मुँह में पानी न जाए, परंतु तुम्हारी पूजा पहले हो ही जाए।”

शब्दार्थ-झिंझोड़-झिड़ककर । डायन-राक्षसी।

प्रसंग-पूर्ववत् इसमें लेखक ने उस समय का उल्लेख किया है, जब बढ़ी काकी खाने के लिए अपने धैर्य की सीमा को तोड़ती हुई सबके सामने कड़ाह के पास जा बैठी। उन्हें इस तरह देखकर रूपा ने बहुत तेज फटकार लगाई। उसे बतलाते हुए लेखक ने कहा है।

व्याख्या-बूढ़ी काकी को कड़ाह के सामने बैठी हुई देखकर रूपा के क्रोध की सीमा न रही। उसने सबके सामने ही बूढ़ी काकी पर वैसे ही झपट पड़ी, जैसे मेढक केंचुए पर झपट पड़ता है। उसने उनके दोनों हाथों को कसकर पकड़कर झकझोर दिया। फिर उसने आगबबूला होकर उन्हें फटकारना शुरू कर दिया, “तुम्हें पेट में आग लगी है। तुम्हारा पेट है या भाड़? चुपचाप कोठरी में बैठी रहती तो क्या मरने लगती। तुम्हें इतनी भी समझ नहीं है कि मेहमानों के लिए अभी तो खाना बन रहा है। न पूरा खाना बना और न भगवान को उसे चढ़ाया ही गया, इससे पहले ही छाती पर आकर सवार हो गई। धिक्कार है, तुम्हारी ऐसी जीभ पर। भरपेट भोजन न पाती तो न जाने कहाँ-कहाँ इस लपलपाती जीभ को लिए फिरती। लोग तुम्हें इस तरह देखकर यह अवश्य मान जाएँगे, तुम्हें हम भरपेट नहीं खिलाते हैं। सच ही कहा है-‘डायन, न मरे, न माँचा छोड़े।

3. अब समझ में आ गया कि हम लोगों को बदनाम करने के लिए ऐसा कर रही हो। इसलिए हम लोगों की नाक जब तक नहीं कटवा लेगी, तब तक चुप नहीं बैठेगी। बड़ा अचरज होता है कि लूंस-ठूसकर खाने पर भी खाने के लिए मरती है। अब कान खोलकर सुनो अपनी भलाई चाहती है तो चुपचाप अपनी कोठरी में जाकर बैठ जाओ। घर के लोगों के खाने के समय तुम्हें खिलाया जाएगा। यह अच्छी तरह समझ वह उसका रेंटुआ पकड़कर उससे अपना बकाया वसूल लेने की कोशिश करता है। कुछ इसी प्रकार का कठोर दुर्व्यवहार बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी के प्रति किया। उसने बढ़ी काकी के दोनों हाथों को कसकर पकड़ लिया। फिर उन्हें वह घसीटते हुए उनकी उसी अँधेरी कोठरी में लाकर पटक दिया। उसके इस प्रकार के कठोर दुर्व्यवहार से बूढ़ी काकी की आशामयी वाटिका वैसे ही सूख गई, जैसे लू से हरियाली समाप्त हो जाती है।

विशेष-

  1. बुद्धिराम की मनोदशा का स्वाभाविक चित्रण है।
  2. संपूर्ण उल्लेख विश्वसनीय है।
  3. ‘आशा रूपी वाटिका’ में रूपक अलंकार है तो बुद्धिराम की तुलना निर्दय महाजन से किए जाने से उपमा अलंकार है।
  4. शैली दृष्टांत है।
  5. करुण रस का संचार है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) बुद्धिराम काकी को देखते ही क्रोध से क्यों तिलमिला गए?
(ii) बुद्धिराम ने पूड़ियों के चाल को क्यों पटक दिया?
उत्तर-
(i) बुद्धिराम बूढ़ी काकी को देखते ही क्रोध से तिलमिला गए। यह इसलिए कि उन्हें उस समय खाना खा रहे मेहमानों के बीच बूढ़ी काकी का आना एकदम सहन नहीं हुआ।
(ii) बुद्धिराम ने पूड़ियों के.थाल को पटक दिया। यह इसलिए कि उनका अपने क्रोध पर नियंत्रण न रहा। उन्हें उचित-अनुचित का ध्यान बिल्कुल नहीं रहा।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी के प्रति किस प्रकार का व्यवहार किया?
(ii) बुद्धिराम की जगह आप होते तो क्या करते?
उत्तर
(i) बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी के प्रति बड़ा ही कठोर और बेगानापन का व्यवहार किया। उसके द्वारा किया गया व्यवहार वैसे ही कठोर था जैसे किसी निर्दय महाजन का अपने बेईमान और भगोड़े आसामी के प्रति होता है।
(ii) बुद्धिराम की जगह अगर हम होते तो बूढ़ी काकी के प्रति शिष्ट और उदार व्यवहार करते। उन्हें समझा-बुझाकर उन्हें उनकी कोठरी में वापस ले जाते।

4. रूपा का हृदय सन्न हो गया। किसी गाय के गर्दन पर छुरी चलते देखकर जो अवस्था उसकी होती वही उस समय हुई। एक ब्राह्मणी दूसरों की जूठी पत्तल टटोले, इससे अधिक शोकमय दृश्य असंभव था। पूड़ियों के कुछ ग्रासों के लिए उनकी चचेरी सासं ऐसा पतित और निकृष्ट कर्म कर रही है। यह वह दृश्य था जिसे देखकर देखने वालों के हृदय काँप उठते हैं। ऐसा प्रतीत होता था मानो जमीन रुक गई, आसमान चक्कर खा रहा है, संसार पर कोई नई विपत्ति आने वाली है। रूपा को क्रोध न आया। शोक के सम्मुख क्रोध कहाँ? करुणा और भय से उसकी आँखें भर आईं। इस अधर्म के पाप का भागी कौन है? उसने सच्चे हृदय से गगनमंडल की ओर हाथ उठाकर कहा-“परमात्मा, मेरे बच्चों पर दया करो। इस अधर्म का दंड मुझे मत दो, नहीं तो हमारा सत्यानाश हो जावेगा।”

शब्दार्च-ग्रास-टुकड़ा। पतित-पापपूर्ण। निकृष्ट-अधम, तुच्छ । प्रतीत होना-जानना ज्ञात होना। सम्मुख-सामने।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें लेखक ने रूपा की शोकमय दशा का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या-बूढ़ी काकी को जूठे पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़ों को उठा-उठाकर खाते हुए देखकर रूपा का कलेजा धक् से रह गया। उसकी उस समय ऐसी अवस्था हो गई थी। जैसे मानों किसी गाय के गर्दन पर कोई छुरी चला रहा है और वह उसे देखकर बिल्कुल हकबक हो रही है। एक ऐसी असहाय और दुखी वृद्धा को जूठी पत्तलों से पूड़ियों के टुकड़ों को टटोल-टटोलकर अपनी भूख मिटाने के लिए ऐसा नीच कर्म करे, इस प्रकार का दृश्य उसके लिए शोकमय और हार्दिक दुखद होने के अतिरिक्त और क्या हो सकता है। उसे स्वयं पर इस बात की ग्लानि हुई कि उसकी चचेरी सास उसकी संपन्नता के बावजूद जूठी पत्तलों के पूड़ियों के कुछ टुकड़ों के लिए इतना नीच और अधम काम कर रही है।

इस प्रकार का दृश्य उसके लिए ही नहीं, अपितु किसी के लिए भी ग्लानिपूर्ण हो सकता है। किसी के लिए दुखद और शोकमय हो सकता है। उस समय रूपा को ऐसा लग रहा था, मानो उसके नीचे की जमीन रुक गई है। आसमान चकरा रहा है। यही नहीं शायद अब कोई नई मुसीबत आने वाली है। इससे उसे क्रोध नहीं आया। उसे तो उस समय शोक ही नहीं अपितु भय और करुणा ने घेर लिया। इससे उसकी आँखें छलछला उठीं। उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि इस अधम पाप का कौन दोषी है? फलस्वरूप उसने बड़ी असहाय होकर आकाश की ओर हाथ उठाकर सच्चे हदय से कहा, “हे प्रभु! आप इस अधम पाप के लिए मुझे क्षमा कर देना। मेरे परिवार पर दया करना। मुझे अगर आप क्षमा नहीं करोगे तो मेरा सारा परिवार बर्बाद हो जाएगा।”

विशेष-

  1. भाषा सरल शब्दों की है।
  2. शैली चित्रमयी है।
  3. मुहावरों के सटीक प्रयोग हैं।
  4. यह अंश मार्मिक है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) रूपा का हृदय सन्न क्यों हो गया?
(ii)-बूढ़ी काकी जूठे पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठाकर क्यों खा रही थी?
उत्तर
0रूपा का हृदय सन्न हो गया। यह इसलिए कि उसने बूढ़ी काकी को जूठे पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठाकर खाते हुए देखा। इससे उसे भारी ग्लानि और शोक हुआ कि उसकी ही चचेरी सास इतना अधम काम कर रही है।
(i) बूढ़ी काकी जूठे पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठाकर खा रही थी। यह इसलिए कि उसका भोजन के लिए बुलाए जाने के लिए और इंतजार करने का धैर्य नहीं रहा। फलस्वरूप उसे इसके सिवा और कोई चारा नहीं दिखाई पड़ा था।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) रूपा को क्रोध क्यों नहीं आया?
(ii) रूपा ने परमात्मा से क्यों प्रार्थना की?
उत्तर
(i) रूपा को क्रोध नहीं आया। यह इसलिए कि बूढ़ी काकी का जूठे पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़ों को उठा-उठाकर खाने का दृश्य उसके लिए ग्लानिपूर्ण और शोकजनक दृश्य था।
(ii) रूपा ने परमात्मा से प्रार्थना की। यह इसलिए कि उसे यह पूरा भरोसा हो गया था कि उसे परमात्मा ही क्षमा कर सकता है और कोई नहीं।

5. रूपा को अपनी स्वार्थपरता और अन्याय इस प्रकार प्रत्यक्ष रूप से कभी न देख पड़े थे। वह सोचने लगी, हाय! कितनी निर्दयी हूँ! जिसकी संपत्ति से मुझे दो सौ रुपया वार्षिक आय हो रही है उसकी यह दुर्गति! और मेरे कारण! हे दयामय भगवान! मुझसे बड़ी भारी चूक हुई है, मुझे क्षमा करो। आज मेरे बेटे का तिलक था। सैकड़ों मनुष्यों ने भोजन पाया। मैं उनके इशारों की दासी बनी रही, अपने नाम के लिए सैकड़ों रुपए व्यय कर दिए, परंतु जिनकी बदौलत हजारों रुपए खाए उसे इस उत्सव में भरपेट भोजन न दे सकी। केवल इसी कारण तो कि वह वृद्धा है, असहाय है।

शब्दार्थ-निर्दयी-कठोर । दुर्गति-दुर्दशा। चूक-भूल । व्यय-खर्च । बदौलत-कारण।

प्रसंग-पूर्ववत्। इसमें लेखक ने रूपा को किस प्रकार अपनी स्वार्थपरता और अन्याय का बोध हुआ, उस पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि

व्याख्या-बूढ़ी काकी को जूठे पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठाकर खाते हुए देखकर रूपा ने अपना अन्याय और अपना स्वार्थ ही माना। उसने इस प्रकार कभी नहीं देखा था। इसका अनुमान भी उसे नहीं था। उसने इसे गंभीरतापूर्वक सोचा-समझा तो यह पाया कि इस अन्याय और स्वार्थ के लिए वही दोषी है। उसकी ही कठोरता से यह हुआ है। उसने हदय से यह स्वीकार किया कि बूढ़ी काकी की ही दी हुई संपत्ति से उसे जो दो सौ रुपए की सालाना आमदनी हो रही है, उसी की इस प्रकार की दुर्दशा हो रही है। उसके लिए वही अपराधी है। इस प्रकार दुखी होकर उसने ईश्वर से अपनी इस कठोरता और अन्याय के लिए क्षमा माँगी। उसने यह पश्चाताप कि उसके बेटे के तिलक के सुअवसर पर अनेक लोगों ने तरह-तरह के भोजन किए। सैकड़ों रुपए उसने अनेक लिए खर्च भी किए। लेकिन यह बड़ी अफसोस की बात है कि जिसके कारण उसने खर्च किए और जिसके दिए-किए से आज वह सुखी-संपन्न है, उसी को इस दुर्दशा में डाल रही है। क्या इसलिए कि वह एक ऐसी वृद्धा है, जिसका कोई सहारा नहीं है।

विशेष

  1. संपूर्ण कथन मार्मिक है।
  2. करुण रस का संचार है।
  3. भाव यथार्थपूर्ण और विश्वसनीय है।
  4. भावात्मक शैली है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) रूपा की स्वापरता और अन्याय क्या वा?
(ii) रूपा से बड़ी भारी चूक क्या हुई?
उत्तर
(i) रूपा की स्वार्थपरता और अन्याय यही था कि वह बूढ़ी काकी की संपत्ति से पल-बढ़ रही थी, फिर भी वह बूढ़ी काकी को जूठे पत्तलों से पूड़ियों के टुकड़े खाने के लिए मजबूर दुर्दशा में डाल रही थी।
(ii) रूपा से बड़ी भारी यह चूक हुई कि बूढ़ी काकी की संपत्ति से दो सौ रुपए की सालाना आमदनी पाकर भी उन्हें दाने-दाने के लिए लाचार बना रही थी।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) रूपा ने भगवान से क्या क्षमा माँगी?
(ii) रूपा को किस बात का सबसे अधिक अफसोस हुआ?
उत्तर
(i) रूपा ने भगवान से यह कहा कि बूढ़ी काकी की दुर्गति कर उससे बड़ी भारी चूक हुई। वह इसके लिए उसे क्षमा कर दे।
(ii) रूपा को इस बात का सबसे अधिक अफसोस हुआ कि जिनकी बदौलत हजारों रुपए खाये, उसे ही वह इस उत्सव में भरपेट भोजन न दे सकी। केवल इसलिए कि वह वृद्धा है और बेसहारा है।

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