MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 1 सूर के बालकृष्ण

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 1 सूर के बालकृष्ण (कविता, सूरदास)

Students can also download MP Board 12th Model Papers to help you to revise the complete Syllabus and score more marks in your examinations.

सूर के बालकृष्ण पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

सूर के बालकृष्ण लघु उत्तरीय प्रश्न

Sur Ke Balkrishna Class 12 Mp Board प्रश्न 1.
बालक कृष्ण वृंदावन जाने को लालायित क्यों हैं?
उत्तर:
बालक कृष्ण वृंदावन जाने के लिए इसलिए लालायित हैं क्योंकि वह वृंदावन में अनेक प्रकार के फलों को अपने हाथों से तोड़कर खाना चाहते हैं।

Sur Ke Balkrishna Summary In Hindi MP Board प्रश्न 2.
गोचारण हेतु जाने के लिए कृष्ण क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
गोचारण हेतु जाने के लिए कृष्ण तर्क देते हैं कि माँ मुझे तेरी सौगंध कि मुझे न तो गर्मी लगती है, न ही भूख-प्यास सताती है। मैं तो गोचारण के लिए अवश्य जाऊँगा।

Mp Board Solution Class 12 Hindi प्रश्न 3.
यशोदा अपने आपको कृष्ण की धाय क्यों कहती हैं?
उत्तर:
यशोदा ने कृष्ण को जन्म नहीं दिया था। उन्होंने केवल उनका पालन-पोषण किया था इसलिए वह स्वयं को कृष्ण की धारा कहती हैं।

सूर के बालकृष्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Hindi Class 12th Mp Board प्रश्न 1.
यशोदा ने कृष्ण को वन की क्या-क्या कठिनाइयाँ बताईं? (M.P. 2010)
उत्तर:
यशोदा ने कृष्ण को वन की निम्नलिखित कठिनाइयाँ बताईं –

  1. वन बहुत दूर है। तुम छोटे-छोटे पाँवों से चलकर कैसे जाओगे।
  2. वन से घर लौटते हुए रात हो जाती है।
  3. अतः घर से जाओगे और रात को घर लौटोगे। भूख-प्यास से व्याकुल्हो जाओगे।
  4. धूप में गायों के पीछे-पीछे घूमते रहने के कारण तुम्हारा कमल के समान कोमल शरीर मुरझा जाएगा।

स्वाति (हिन्दी विशिष्ट), कक्षा-12 Solution MP Board प्रश्न 2.
बालकृष्ण को देखकर माता यशोदा के हृदय में कौन-कौन-सी अभिलाषाएँ जागती हैं?
उत्तर:
बालकृष्ण को देखकर माता यशोदा के हृदय में कई अभिलाषाएँ जगती हैं, जैसे-कृष्ण घुटनों के बल चलें, उनके दूध के दो दाँत निकलें, तोतली बोली में वे नंद को बाबा और उन्हें माता कहकर पुकारें, आँचल पकड़कर बालहठ करें, अपने हाथों से थोड़ा-थोड़ा खाकर अपना मुख भरें, सभी दुखों को दूर करने वाली अपनी मधुर हँसी बिखेरें।

Makrand Hindi Book Class 12 Solutions MP Board प्रश्न 3.
यशोदा ने देवकी को क्या संदेश भेजा? (M.P. 2009, 2012)
उत्तर:
यशोदा ने देवकी से संदेश में कहा कि मैं तो कृष्ण का पालन-पोषण करने वाली धाय हूँ। मैं तमसे विनती करती हैं कि तुम बालक कृष्ण पर ममता, दया करती रहना। उसके प्रति कठोरता का व्यवहार मत करना। श्रीकृष्ण को प्रातःकाल माखन-रोटी अच्छी लगती है इसलिए उसे प्रातःकाल माखन रोटी ही देना। वह बड़ी मुश्किल से स्नान करता है। तुम उसकी सभी फरमाइशों को पूरा करके उसे स्नान के लिए मनाना, तभी वह तेल, उबटन और गर्म पानी से स्नान करेगा अर्थात् उसकी रुचियों और आदतों का ध्यान रखना। कृष्ण संकोची स्वभाव का है, अतः वह अपने मुख से कुछ नहीं कहेगा। देवकी तुम्हें ही उसकी रुचियों और आदतों का ध्यान रखना पड़ेगा।

सूर के बालकृष्ण भाव-विस्तार/पल्लवन

Mp Board Class 12 Hindi Book Makrand Pdf प्रश्न 1.
निम्नलिखित हाव्य-पंक्तियों की व्याख्या कीजिए –

संदेसौ देवकी सौं कहियौ।
हौं तो धाइ तिहारे सुत की, मया करत ही रहियौ॥
जदपि टेव तुम जानति उनकी, तऊ मोहिं कहि आवै।
प्रात होत मेरे लाड़ लडैते, माखन रोटी भावै॥

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश भक्तिकालीन सगुण कृष्णभक्ति धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के मथुरागमन प्रसंग से लिया गया है। उद्धव जब वृंदावन से मथुरा वापस जाते समय यशोदा से मिलने जाते हैं तो यशोदा उन्हें देवकी के नाम संदेश भेजती हैं। यशोदा उद्धव से कहती हैं –

Mp Board 12th Hindi Book Pdf Download व्याख्या:
हे. राहगीर! कृष्ण की जननी देवकी को मेरा यह संदेश देना कि मैं तो कृष्ण का पालन-पोषण करने वाली धाय मात्र हूँ, कृष्ण की माता तो तुम ही हो। धाय, बच्चे के संबंध में उसकी माँ से कुछ कहे यह उचित नहीं लगता। परंतु फिर भी मैं यह विनती करती हूँ कि तुम बालक पर ममता, दया करती रहना। अर्थात् उसके प्रति कठोरता का व्यवहार मत करना। यद्यपि मैं जानती हूँ कि तुम कृष्ण की सभी रुचियों-आदतों से भली-भाँति परिचित हो, परंतु फिर भी मुझसे रहा नहीं जाता, इसलिए कह रही हूँ कि प्रातःकाल मेरे लाड़ले बालक कृष्ण को माखन-रोटी का नाश्ता ही अच्छा लगता है। अतः प्रातःकाल नाश्ते में उसे माखन-रोटी ही देना।

विशेष:

  1. यशोदा मातृ हृदय का अत्यंत मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है।
  2. लाड़ लडैतें में अनुप्रास अलंकार है।
  3. पद्यांश में ब्रजभाषा तथा गेयता है।

सूर के बालकृष्ण भाषा-अनुशीलन

Class 12 Mp Board Hindi Solution MP Board प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन समानार्थी शब्द लिखिए –
पग, कमल, जननी, गगन।
उत्तर:

  • पग – पैर, पाद, चरण।
  • कमल – राजीव, जलज, पंकज।
  • जननी – माता, माँ, अम्बा।
  • गगन – आकाश, नभ, अम्बर।

Mp Board Hindi Book Class 12 Pdf प्रश्न 2.
दिए गए मुहावरों के अर्थ लिखते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
बाल-बाल बचना, सर धुनना, कान का कच्चा, नाक में दम करना, मुँह की. खाना, पेट में चूहे दौड़ना, पाँचों अंगुली घी में होना। (M.P. 2011)
उत्तर:
Sur Ke Balkrishna Class 12 Mp Board

Mp Board Class 12th Hindi Solution प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों को छाँटिए –
मुख, दाँत, दूध, घर, जननी, साँझ, जनि, तनक, कमल, पथिक, गैया, टेव।
उत्तर:
Sur Ke Balkrishna Summary In Hindi MP Board

सूर के बालकृष्ण योग्यता-विस्तार

स्वाति (हिन्दी विशिष्ट) कक्षा-12 Pdf Download MP Board प्रश्न 1.
गाय चराते हुए कृष्ण का एक सुन्दर चित्र बनाने का प्रयास कीजिए तथा उसे चित्र प्रदर्शनी में प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Sur Ke Balkrishna Class 12 Question Answer MP Board प्रश्न 2.
वात्सल्य विषयक अन्य कवियों की रचनाओं का संकलन कीजिए।
उत्तर:
छात्र तुलसीदास, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि की कविताओं का संकलन कर सकते हैं।

Class 12th Hindi Mp Board प्रश्न 3.
कृष्ण की बाल लीलाओं से संबंधित चित्रों का संकलन कर एलबम बनाइए।
उत्तर:
कृष्ण की बाल लीलाओं के चित्र बाजार में उपलब्ध हैं। छात्र उनको प्राप्त कर एलबम स्वयं बना सकते हैं।

Class 12 Hindi Book Solution Mp Board प्रश्न 4.
आधुनिक काल के उन कवियों की सूची बनाइए जिन्होंने कृष्ण-चरित्र को अपने काव्य का विषय बनाया।
उत्तर:
छात्र अपने विषय अध्यापक की सहायता से सूची स्वयं बनाएँ।

सूर के बालकृष्ण परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

Hindi Solution Class 12 Mp Board प्रश्न 1.
‘आजु मैं गाइ चरावन जैहौं’ पद के रचयिता हैं –
(क) नन्ददास
(ख) मीराबाई
(ग) सूरदास
(घ) तुलसीदास
उत्तर:
(ग) सूरदास।

(घ) चौक में
प्रश्न 2.
ब्रज के लोग अत्यंत भयभीत क्यों हो गए?
(क) कंस की ललकार सुनकर
(ख) श्रीकृष्ण की चीख सुनकर
(ग) वादलों की गर्जना सुनकर
(घ) कालिया नाग की फुफकार सुनकर
उत्तर:
(ग) बादलों की गर्जना सुनकर।

प्रश्न 3.
सूरदास किसके अनन्य भक्त थे?
(क) श्रीकृष्ण के
(ख) श्रीराम के
(ग) भगवान विष्णु के
(घ) भगवान महादेव के
उत्तर:
(क) श्रीकृष्ण के।

प्रश्न 4.
यशोदा श्रीकृष्ण को अकेला कहाँ छोड़कर गईं?
(क) आँगन में
(ख) णलने में
(ग) नंद के पास
उत्तर:
(क) ऑगन में।

प्रश्न 5.
‘पर्यो आपनी टेक’ में ‘टेक’ शब्द का अर्थ है –
(क) टिकना
(ख) ठिकाः
(ग) हठ
(घ) हटा
उत्तर:
(ग) हठ।

प्रश्न 6.
‘लाड़ लडैतें’ का अर्थ है –
(क) प्यार से लड़ना
(ख) लाड़ला बालक
(ग) लाड़-प्यार करना
(घ) लाड़ लड़ाना
उत्तर:
(ख) लाड़ला बालक।

प्रश्न 7.
यशोदा श्रीकृष्ण को नहाने के लिए कैसे मनाती हैं?
(क) माखन-रोटी देकर
(ख) जो कुछ माँगते उसे देकर
(ग) लाड़-प्यार से पुचकारकर
(घ) जबरदस्ती पकड़कर
उत्तर:
(ख) जो कुछ माँगते उसे देकर।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:

  1. सूरदास ने श्रीकृष्ण के ………. का वर्णन किया है। (बालरूप/यौवनरूप)
  2. माँ ……… ने श्रीकृष्ण का पालन-पोषण किया था। (देवकी/यशोदा)
  3. बड़े होने पर श्रीकृष्ण ………. के राजा बन गए। (बनारस/मथुरा)
  4. श्रीकृष्ण को खाने में ………. पसंद था। (माखन-रोटी/दही-रोटी)
  5. सूरदास ने अपनी कविता में …….. भाषा का प्रयोग किया है। (अवधी/ब्रज)
  6. सूरदास ………. अनन्य भक्त थे। (श्रीराम के/श्रीकृष्ण के)

उत्तर:

  1. बालरूप
  2. यशोदा
  3. मथुरा
  4. माखन-रोटी
  5. ब्रज
  6. श्रीकृष्ण के।

III. निम्न कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए:

  1. श्रीकृष्ण स्नान करने के बड़े शौकीन थे।
  2. माँ देवकी, उद्धव के माध्यम से यशोदा को संदेश भेजती हैं।
  3. माँ यशोदा श्रीकृष्ण को बहुत प्यार करती थीं।
  4. श्रीकृष्ण इतने संकोची थे कि माँ यशोदा की हर बात चुपचाप मान – लेते थे।
  5. श्रीकृष्ण गाय चराने के लिए बन जाने को लालायित थे।
  6. सोइ-सोइ, क्रम-क्रम में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  7. ब्रज के लोग बादलों की गर्जना सुनकर अत्यंत भयभीत हो गए। (M.P. 2009)

उत्तर:

  1. असत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य
  6. सत्य
  7. सत्य।

IV. निम्न के सही जोड़े मिलाइए:

प्रश्न 1.
Hindi Class 12th Mp Board
उत्तर:

  1. (घ)
  2. (ग)
  3. (क)
  4. (ङ)
  5. (ख)।

V. निम्न प्रश्नों के उत्तर एक शब्द अथवा एक वाक्य में दीजिए:

  1. श्रीकृष्ण की असली माँ कौन थीं?
  2. श्रीकृष्ण का स्वभाव कैसा था?
  3. माँ यशोदा किसके माध्यम से देवकी के पास संदेश भेजती हैं?
  4. ‘कमल बदन’ में कौन-सा अलंकार है?
  5. श्रीकृष्ण ने क्या निश्चय कर लिया है?

उत्तर:

  1. श्रीकृष्ण की असली माँ देवकी थीं।
  2. श्रीकृष्ण का स्वभाव संकोची था।
  3. उद्धव के माध्यम से।
  4. रूपक अलंकार।
  5. श्रीकृष्ण ने वन जाकर गाय चराने का निश्चय कर लिया है।

VI. निम्न कथन के लिए सही विकल्प चुनिए:

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को अपनी गाय चराने के लिए वन में जाने का निश्चय सुनाया ताकि –
(क) अपने साथियों के साथ खेलकूद सकें।
(ख) अपनी मनमानी कर सकें।
(ग) अनेक प्रकार के फल अपने हाथों से तोड़कर खा सकें।
(घ) उन्हें किसी प्रकार की चिन्ता न हो सके।
उत्तर:
(ग) अनेक प्रकार के फल अपने हाथों से तोड़कर खा सकें।

सूर के बालकृष्ण लघु उत्तरीय प्रश्न.

प्रश्न 1.
सूरदास ने श्रीकृष्ण के किस रूप का वर्णन किया है?
उत्तर:
सूरदास ने श्रीकृष्ण के बाल-रूप का वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
‘जसुमति मन अभिलाष करै’ पद में यशोदा की किन अभिलाषाओं का चित्रण किया गया है?
उत्तर:
इस पद में यशोदा की शिशुपरकी अभिलाषाओं का चित्रण किया है।

प्रश्न 3.
यशोदा किसके द्वारा किसे संदेश भेजती हैं?
उत्तर:
यशोदा कृष्ण के अनन्य मित्र उद्धव के द्वारा देवकी को संदेश भेजती हैं।

प्रश्न 4.
कृष्ण अपनी किस बात पर अड़े हुए हैं?
उत्तर:
कृष्ण गाय चराने के लिए जाने की बात पर अड़े हुए हैं।

प्रश्न 5.
माता यशोदा कृष्ण की किस प्रकार की हँसी की अभिलाषा करती हैं?
उत्तर:
माता यशोदा कृष्ण के समस्त दुखों को दूर करने वाली मधुर हँसी की अभिलाषा करती हैं।

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण की हँसीयुक्त छवि की क्या विशेषता है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की हँसीयुक्त छवि की यह विशेषता है कि उससे सारे दुख दूर हो जाते हैं।

प्रश्न 7.
श्रीकृष्ण क्या देखकर भाग जाया करते थे और क्यों?
उत्तर:
श्रीकृष्ण तेल, उबटन और गर्म पानी देखकर भाग जाया करते थे ताकि नहाना न पड़े।

प्रश्न 8.
यशोदा ने श्रीकृष्ण का निश्चय सुनकर क्या किया?
उत्तर:
यशोदा ने श्रीकृष्ण का निश्चय सुनकर उन्हें समझाने का प्रयास किया।

सूर के बालकृष्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मथुरा जाकर कृष्ण राजा हो गए, फिर भी. माता का हृदय उन्हें किस रूप में अनुभव करता है?
उत्तर:
मथुरा जाकर कृष्ण राजा बन गए। निस्संदेह वे बड़े हो गए। पूरी मथुरा की जिम्मेदारी उन्होंने अपने कंधों पर उठा ली लेकिन माता का हृदय उन्हें कभी भी बड़ा स्वीकार नहीं करता। उनका हृदय तो सदैव अपने पुत्र को शिशु रूप में ही अनुभव करता है। माता यशोदा के लिए तो वे सदैव बच्चे ही रहते हैं।

प्रश्न 2.
यशोदा और देवकी में से कृष्ण पर किसका अधिकार अधिक है औरक्यों?
उत्तर:
यशोदा और देवकी में से कृष्ण पर यशोदा का अधिकार अधिक है। देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया था, परंतु उनका पालन-पोषण करने के लिए उन्हें यशोदा नर से नारायण के पास भेज दिया था। यशोदा ने बड़े लाड़-प्यार से कृष्ण का पालन-पोषण किया। इस कारणं कृष्ण पर उनका अधिकार अधिक है, न कि देवकी का।

प्रश्न 3.
यशोदा ने देवकी को क्या संदेश भेजा? (M.P. 2009, 2012)
उत्तर:
यशोदा ने देवकी को यह संदेश भेजा कि मैं तो कृष्ण का पालन-पोषण करने वाली धाय थी, लेकिन तुम तो वास्तविक माँ हो इसलिए उस पर दया करते रहना। कृष्ण को मक्खन-रोटी बहुत पसंद है। वह गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहता है। वह तेल-उबटन देखकर भागने लगता है। मैं तो उसकी इच्छानुसार उसे सारी चीजें देती थी। तुम भी उसकी इच्छाओं का ध्यान रखना।

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से क्या हठ किया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से यह हठ किया कि वह वन में अवश्य जाएँगे। उन्होंने तर्क देकर कहा-माँ! तेरी कसम, वंन में मुझे न गरमी, न भूख, न प्यास और न ही कोई चीज परेशान करेगी। इसलिए मैं वन में अवश्य जाऊँगा।

सूर के बालकृष्ण कवि-परिचय

प्रश्न 1.
सूरदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
सूरदासजी भक्तिकाल की सगुण भक्तिधारा के प्रमुख कवि थे। वे कृष्ण भक्त थे। उनका जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को विक्रम संवत 1535 (सन् 1478 ई०) रुनकता नामक गाँव में हुआ था। कुछ विद्वानों का मत है कि सूर का जन्म दिल्ली के पास सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सूरदासजी विट्ठलनाथ द्वारा स्थापित अष्टछाप के अग्रणी कवि थे। वे वृंदावन के गऊघाट पर जाकर रहने लगे थे। वहाँ वे भक्तिमय विनय के पद गाते थे, जिनमें दैन्य भाव की प्रधानता थी। वल्लभाचार्य ने इन्हें पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया और भगवद्लीला से परिचित कराया। उनके आदेश से आप ‘गोकुल में श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन करने लगे और आजन्म वहीं रहे। उनका देहावसान विक्रम संवत 1642 में हो गया।

साहित्यिक विशेषताएँ:
कहा जाता है कि सूरदास जन्मांध थे। वे बहुश्रुत, अनुभव संपन्न, विवेकशील और संवेदनशील व्यक्तित्व के स्वामी थे। परंतु उनके काव्य में प्रकृति और श्रीकृष्ण की लीलाओं आदि का वर्णन देखकर ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वे जन्मांध थे। उन्होंने कृष्ण के जन्म से लेकर मथुरा जाने तक की कथा और कृष्ण की विभिन्न लीलाओं से संबंधित अत्यंत मनोहर पदों की रचना की है। श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन उनकी सहजता, मनोवैज्ञानिकता और स्वाभाविकता के कारण अद्वितीय है। वे मुख्यतः वात्सल्य एवं शृंगार के कवि थे। उनके काव्य में वात्सल्य, माधुर्य एवं सख्य भाव की धारा सतत प्रवाहमान रही है।

रचनाएँ:
सूरसागर, सूर सारावली और साहित्य लहरी।

1. भाषा-शैली:
कवि सूरदास की भाषा ब्रजभाषा है। साधारण बोलचाल की भाषा को परिष्कृत कर उन्होंने उसे साहित्यिक रूप प्रदान किया है। उनके काव्य में ब्रजभाषा का स्वाभाविक, सजीव एवं भावानुकूल प्रयोग है।

2. अलंकार विधान:
सूर का अलंकार विधान उत्कृष्ट है। उसमें शब्द चित्र उपस्थित . करने एवं प्रसंगों की वास्तविक अनुभूति कराने को पूर्ण क्षमता है। उनके काव्य में अन्य अनेक अलंकारों के साथ उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक का कुशल प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का सहज प्रयोग हुआ है।

3. शैली:
सूर के सभी पद गेय हैं और किसी न किसी राग से संबंधित हैं। उनके पदों में काव्य और संगीत का अपूर्व संगम है।

4. महत्त्व:
हिंदी साहित्य में सूरदास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे सगुण कृष्ण भक्ति-धारा के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवि थे। उनके काव्य में भक्ति, काव्य और संगीत की त्रिवेणी के दर्शन होते हैं। उन्होंने कृष्ण की बाल छवि, स्वभाव, बाल क्रीड़ाओं आदि का सरल, सहज, माधुर्यपूर्ण वर्णन किया है। उनके काव्य में बालक कृष्ण के प्रति नन्द-यशोदा के स्नेह का हृदयग्राही चित्रण दृष्टिगोचर होता है। उनका वात्सल्य वर्णन विश्व साहित्य की अमूल्य निधि है। हिंदी साहित्यजगत् में सूरदासजी सदा सूर्य की भाँति प्रकाशमान रहेंगे।

सूर के बालकृष्ण’ पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
‘सूरदास के बालकृष्ण’ पदों का सार लिखिए।
उत्तर:
पहले पद में माँ यशोदा की शिशुपरक अभिलाषा का वर्णन किया गया है। माँ यशोदा की अभिलाषा है कि कब कृष्ण घुटनों के बल चलेंगे, कब उनके दूध के दाँत दिखेंगे, कब वे तोतली बोली में बोलेंगे और नंदजी को बाबा कहकर और उन्हें माँ कहकर संबोधित करेंगे, कब वे आँचल खींचकर झगड़ा करेंगे, हठ ठानेंगे, कब अपनी मधुर हँसी बिखेरेंगे और कब अपने मुँह को अपने हाथों से भरेंगे। इस बीच यशोदाजी श्रीकृष्ण को आँगन में अकेला छोड़कर कुछ काम करने चली गईं और आकाश में बादल गरजने लगे। सूरदासजी कहते हैं कि गर्जना सुनकर ब्रज के सभी लोग बहुत भयभीत हो गए।

दूसरे पद में श्रीकृष्ण थोड़े बड़े हो जाते हैं और अपनी माँ से वन में गाय चराने के लिए जाने की हठ करते हैं। माँ उन्हें समझाती हैं कि तुम छोटे-छोटे पैरों से कैसे चलोगे, सुबह जाओगे और शाम को घर लौटोगे। धूप-गर्मी में तुम्हारा कोमल शरीर कुम्हला जाएगा। लेकिन श्रीकृष्ण के भी अपने तर्क हैं। वे उन तर्कों का हवाला देकर गाय चराने के लिए वन जाने की बात दोहराते हैं।

तीसरे पद में माँ यशोदा, उद्धव के माध्यम से देवकी को संदेश भेजती हैं। यद्यपि कृष्ण अब राजा हैं किंतु माँ का हृदय तो सदैव अपने पुत्र को शिशु रूप में अनुभव करता है। वे संदेश भेजती हैं कि कृष्ण को सुबह माखन-रोटी अच्छी लगती है। उबटन करके, उसे गर्म पानी से नहाना अच्छा नहीं लगता। वे जो कुछ माँगते हैं, उन्हें देती हैं। इसमें माँ का वात्सल्य भाव प्रकट हुआ है।

सूर के बालकृष्ण संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
जसुमति मन अभिलाष करै।
कब मेरो लाल घुटुरुवनि रेंगै, कब धरनी पग द्वैक धरै॥
कब द्वै दाँत दूध के देखों, कब तोतरै मुख बचन झरे।
कब नंदहिं बाबा कहि बोलें, कब जननी कहि मोहि ररै॥
कब मेरो अँचरा गहि मोहन, जोइ-सोइ कहि मोसौं झगरे।
कब धौं तनक-तनक कछु खैहैं, अपने कर सौं मुखहिं भरै।
कब हँसि बात कहैगौ मोसौं, जा छबि तैं दुख दूर हरै।
स्याम अकेले आँगन छाँडै, आपु गई कछु काजु धरै॥
इहि अंतर अँधवाइ उठ्यो इक, गरजत गगन सहित घहरै।
सूरदास ब्रज-लोग सुनत धुनि, जो जहँ-तहँ सब अतिहि डरै॥ (Page 1)

शब्दार्थ:

  • जसुमति – माता यशोदा।
  • अभिलाष – इच्छा, चाहना।
  • लाल – पुत्र (श्रीकृष्ण)।
  • घुटुरुवनि – घुटनों के बल।
  • धरनी – पृथ्वी।
  • पग – पैर।
  • द्वैक – दो, एक।
  • तोतरें – तोतला।
  • झरै – निकलें।
  • अँचरा गहि – आँचल पकड़कर।
  • मोसौं – मुझसे।
  • तनक-तनक – छोटे-छोटे।
  • कर – हाथ।
  • काजु – काम।
  • अंतर – बीच।
  • अँधवाइ – आँधी।
  • गगन – आकाश।
  • सुनत – सुनना।
  • अतिहि – अत्यधिक।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकाल के कृष्णभक्त कवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ से लिया गया है। इस पद में माता यशोदा की शिशुपरक अभिलाषा का चित्रण किया है। माता यशोदा चाहती हैं कि श्रीकृष्ण घुटनों के बल चलें और वे बोलना सीखकर उन्हें तोतली भाषा में संबोधित करें। अपनी मधुर हँसी बिखेरें। माँ की इन आकांक्षाओं, शिशु की भाव-भंगिमाओं और चेष्टाओं में वात्सल्य भाव व्यक्त हुआ है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण की आयु सात-आठ मास की होगी। माता यशोदा उन्हें देखकर अपने मन में अभिलाषा करती हैं, वह चाहती हैं कि कब उनका पुत्र कृष्ण घुटनों के बल रेंगना सीखेगा और कब पृथ्वी पर अपने दो-एक पग धर कर चलेगा। अर्थात्! माता यशोदा की आकांक्षा है कि श्रीकृष्ण जल्दी से घुटनों के बल चलें फिर खड़े होकर अपने पैरों से चलें। माता यशोदा चाहती हैं कि बालकृष्ण के मुख में दूध के दो दाँत दिखाई दें अर्थात् श्रीकृष्ण के दूध के दाँत निकलें और उनके मुख से तोतली भाषा में शब्द निकलें। वे अपनी तोतली भाषा में नंद को बाबा कहकर पुकारें और उन्हें तोतली बोली में माता कहकर संबोधित करें।

कब वे मेरा आँचल पकड़कर, जोइ-सोइ कहकर मुझसे झगड़ा करेंगे अर्थात् माता यशोदा की इच्छा है कि श्रीकृष्ण अपनी तोतली बोली में नंद को बाबा और मुझे माता कहकर पुकारें तथा मेरा आँचल पकड़कर मुझसे झगड़ा करें, बाल-हठ करें। कब वे हँसकर मुझसे अपनी बात कहेंगे अर्थात् कब अपनी मधुर हँसी बिखेरेंगे, उनकी हँसीयुक्त छवि को देखकर मेरे समस्त दुख दूर हो जाएंगे। यह अभिलाषा करती हुई माता यशोदा श्रीकृष्ण को घर के आँगन में खेलता हुआ छोड़कर, घर का कुछ काम करने के लिए अंदर चली गईं। इसी बीच एक आँधी उठी और आकाश में गर्जना करते हुए बादल छा गए। कवि सूरदास कहते हैं कि ब्रज के लोग बादलों की गर्जना को सुनकर, जो जहाँ था वहीं सब अत्यंत भयभीत हो उठे।

विशेष:

  1. इस पद में माँ की शिशुपरक अभिलाषाओं का बड़ा यथार्थ चित्र हुआ है। प्रत्येक माता चाहती है कि उसका बाल अथवा पुत्र जल्दी से घुटनों के बल चले, फिर पैदल चले। उसके दूध के दाँत निकलें और वह तोतली बोली में उसे पुकारे, आँचल पकड़कर बालहठ करे तथा अपने हाथों से अपना मुँह । यहाँ माता के हृदय का यथार्थ
    वर्णन हआ है।
  2. मनोविज्ञान की सुंदर अवधारणा हुई है।
  3. अंतिम पंक्तियों में प्रकृति की कठोरता का भी चित्रण हुआ है।
  4. द्वै दाँत दूध के देखों, दुख दूर, अकेले आँगन, कछु काजु, अंतर अँधवाइ, गरजत गगन में अनुप्रास अलंकार है।
  5. ‘तनक-तनक’ में पुनरुक्ति अलंकार है।
  6. ब्रजभाषा की सरसता, सरलता तथा पद में गेयता है।
  7. माँ की आकांक्षाओं, शिशु की भाव-भंगिमाओं और चेष्टाओं में वात्सल्य भाव का चित्रण है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i) यशोदा अपने मन में क्या-क्या अभिलाषा करती हैं?
उत्तर:
यशोदा की उत्कट अभिलाषा है कि उनका पुत्र घुटनों के बल चले, फिर अपने पैरों के बल। उसके दूध के दाँत निकलें और वह अपने मुख से तोतली भापा बोले और नंद को बाबा कहकर तथा मुझे माता कहकर पुकारे।

प्रश्न (ii)
श्रीकृष्ण की हँसीयुक्त छवि का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की हँसीयुक्त छवि से सारे दुख दूर हो जाते हैं।

प्रश्न (iii)
आकाश में बादल गरजने का ब्रज के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आकाश में बादल गरजने से ब्रज के सभी लोग बहुत भयभीत हो गए।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद में माता यशोदा की शिशुपरक अभिलाषा का चित्रण किया गया है। माँ यशोदा चाहती हैं कि उनका कृष्ण जल्दी से जल्दी घुटनों के बल चले, तोतली बोली में उन्हें माँ कहकर और नंद को बाबा कहकर संबोधित करे, और अपना बाल सुलभ हठ दिखाए। दुखों को दूर करने वाली हँसी बिखेरे। माँ की इन आकांक्षाओं, शिशु की भाव-भंगिमाओं, चेष्टाओं द्वारा वात्सल्य भाव व्यक्त हुआ है।

प्रश्न (ii)
पद का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद में माँ यशोदा की शिशुपरक इच्छा तथा अंतिम पंक्तियों में प्रकृति के कठोर रूप का चित्रण हुआ है। द्वै दाँत दूध के देखों, दुख दूर, अकेले आँगन, कछ काजु, अंतर अँधवाइ, गरजत गगन में अनुप्रास अलंकार है। ‘तनक-तनक’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। सरल, सरस तथा स्वाभाविक ब्रजभाषा है। पद में गेयता, लय और तुक का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।
वृंदावन के भाँति-भाँति फल अपने कर मैं खैहौं।
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखो अपनी भाँति।
तनक-तनक पग चलिहौं कैसें, आवत है है राति।
प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत हैं साँझ।
तुम्हरौ कमल बदन कुम्हिलैहैं, रेंगति घामहिं माँझ।
तेरी सौं मोहि धाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।
सूरदास प्रभु को न मानत पर्यो आपनी टेक। (Page 2)

शब्दार्थ:

  • आजु – आज।
  • गाइ – गाय।
  • चरावन – चराने के लिए।
  • जैही – जाऊँगा।
  • कर – हाथ।
  • खैहौं – खाऊँगा।
  • जनि – मत।
  • बारे – बालक।
  • भाँति – तरह।
  • तनक – छोटे, लघु।
  • पग – पैर।
  • आवत – आना।
  • कमल बदन – कमल के समान कोमल शरीर।
  • कुम्हिलैहैं – मुरझाना, थक जाना।
  • रेंगति – धीरे-धीरे चलना।
  • माँझ – मध्य।
  • सौं – शपथ, सौगंध, कसम।
  • घाम – धूप, गर्मी।
  • टेक – हट।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकाल के कृष्णभक्त कवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ से लिया गया है। इस पद में कवि ने श्रीकृष्ण की बालसुलभ इच्छा का, माँ की ममता और बच्चे को समझाकर रोकने के प्रयास के साथ-साथ बालहठ का भी सुन्दर चित्रण किया है। श्रीकृष्ण अपनी माँ यशोदा से ‘अपनी इच्छा एवं निश्चय व्यक्त करते हुए कहते हैं –

व्याख्या:
माँ, मैंने निश्चय कर लिया है कि आज मैं वन में गौएँ चराने जाऊँगा। आज मुझे वह अवसर उपलब्ध होगा जिससे मैं वृंदावन के अनेक प्रकार के फल अपने हाथ से तोड़कर खाऊँगा। श्रीकृष्ण के उक्त निश्चय को सुनते ही यशोदा बोलीं-मेरे लाड़ले! तुम अभी बच्चे हो, अपनी उम्र देखो। बड़ों की देखा-देखी करने की अभी मत सोचो। वन के कष्टों का वर्णन करती हुई यशोदा बोलीं-तुम्हारे पैर छोटे-छोटे हैं और वन बहुत दूर तुम चलकर कैसे जा पाओगे? फिर आने के समय काफी गहरी रात और घना अँधेरा छा चुका होता है। ऐसा कभी-कभार नहीं होता, अपितु प्रतिदिन होता है।

प्रतिदिन ही ग्वाल-बाल प्रातःकाल गायों को लेकर जाते हैं और सायंकाल बहुत देर से लौटते हैं। जिस प्रकार ग्वाल-बाल प्रतिदिन गायों के पीछे-पीछे धूप-गर्मी में चलते हैं, उस प्रकार चलने से तो तुम्हारा कमल जैसा कोमल शरीर एक ही दिन में कुम्हला जाएगा। यशोदा द्वारा वर्णित कठिनाइयों को सुनकर श्रीकृष्ण बोले-माँ, मुझे तेरी कसम, मुझे गर्मी, भूख, प्यास, कुछ भी परेशान नहीं करेगी। मैं तो आज गोचारण के लिए वन में अवश्य जाऊँगा। सूरदासजी कहते हैं कि भगवान् कृष्ण माँ का कहना नहीं मानते। वे अपने हठ पर अडिग भाव से टिके हुए हैं।

विशेष:

  1. इस पद में बाल मनोविज्ञान का बड़ा ही यथार्थ वर्णन हुआ है। बच्चे बड़ों की नकल करने अथवा उसकी देखा-देखी करने को उत्सुक रहते हैं। ग्वाल-बाल जब सायंकाल घर लौटने पर दिनभर के वन-विहार के अनुभव सुनाते होंगे तो श्रीकृष्ण का मन भी उन्मुक्त विहार के लिए मचलता होगा। इसकी प्रतिध्वनि इस पंक्ति में हुई है-“वृंदावन के भाँति-भाँति फल अपने कर मैं खैहौं।” इसके साथ ही मातृ हृदय का भी यथार्थ वर्णन हुआ है। माँ की दृष्टि में बच्चा कितना ही बड़ा हो जाए, वह बच्चा ही रहता है। इस प्रकार बाल मनोविज्ञान और मातृ मनोविज्ञान दोनों का ही सुंदर चित्रण हुआ है।
  2. पद में माँ-बेटे के मध्य संवादात्मकता ने कथ्य को सजीव एवं चित्रात्मक बना दिया है।
  3. ‘तेरी सौं’ के द्वारा तत्कालीन समाज में माँ की कसम की महत्ता को अंतिम निर्णय की सूचना के रूप में चित्रित किया गया है।
  4. ‘कमल बदन’ में रूपक अलंकार है।
  5. भाँति-भाँति, तनक-तनक में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  6. पद में ब्रजभाषा की मधुरता एवं गेयता है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
श्रीकृष्ण ने अपना कौन-सा निश्चय माता यशोदा को बताया और क्यों?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को गाय चराने के लिए वन में जाने का अपना निश्चय बताया ताकि वे वन में जाकर वृंदावन के अनेक प्रकार के फल अपने हाथ से तोड़कर खा सकें।

प्रश्न (ii)
श्रीकृष्ण का निश्चय सुनकर यशोदा की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
श्रीकृष्ण का गाय चराने के लिए वन में जाने का निश्चय सुनकर माँ यशोदा की चिंतायुक्त प्रतिक्रिया हुई। उन्होंने श्रीकृष्ण को वन में जाने से रोकने के लिए उनकी कोमलता और प्रकृति की कठोरता की बात बता उन्हें समझाने का प्रयास किया।

प्रश्न (iii)
कवि ने श्रीकृष्ण की किस हठ का वर्णन किया है?
उत्तर:
कवि ने श्रीकृष्ण की बालहठ का वर्णन किया है। वे गायें चराने के लिए वन में जाने की जिद पर अड़े हुए हैं।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रीकृष्ण थोड़े बड़े होने पर गाय चराने के लिए वन में जाना चाहते हैं। वे वन में जाकर अपने हाथों से फल तोड़कर खाना चाहते हैं। वे अपना निश्चय माँ यशोदा को बताते हैं। माँ यशोदा उन्हें रोकने के लिए उनकी कोमलता और प्रकृति कठोरता का तर्क देती हैं तो श्रीकृष्ण अपने तर्क देते हैं कि उन्हें धूप, भूख कुछ नहीं लगेगी। वे वन अवश्य जाएँगे।

प्रश्न (ii)
काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पद में बाल मनोविज्ञान और मातृ-स्नेह का सुंदर चित्रण हुआ है। बालहठ का सजीव एवं आकर्षक चित्रण हुआ है। माँ-बेटे के मध्य हुए संवाद ने कथ्य को सजीव एवं चित्रात्मक बना दिया है। ‘तेरी सौं’ के द्वारा तत्कालीन समाज में माँ की कसम के महत्त्व को रेखांकित किया गया है। ‘कमल बदन’ में रूपक अलंकार है। भाँति-भाँति और तनक-तनक में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। ब्रजभाषा माधुर्य गुण संपन्न सरल एवं सरस है। पद में गेयता, लय और तुक का समावेश है।

प्रश्न 3.
संदेसौ देवकी सौं कहियौ। (M.P. 2011)
हौं तो धाइ तिहारे सुत की, मया करत ही रहियौ॥
जदपि टेव तुम जानति उनकी, तऊ मोहिं कहि आवै।
प्रात होत मेरे लाड़ लडैतें, माखन रोटी भावै॥
तेल उबटनौ अरु तातौ जल, ताहि देखि भजि जाते।
जोइ-जोइ माँगत सोइ-सोइ देती, क्रम-क्रम करि कै न्हाते॥
सूर पथिक सुनि मोहि रैन-दिन, बढ्यो रहत उर सोच।
मेरौ अलक लडेतो मोहन, है हैं करत संकोच ॥ (Page 2)

शब्दार्थ:

  • संदेसौ – संदेश।
  • सौं – से।
  • हौं – मैं।
  • धाइ-(धाय) – पालन-पोषण करने वाली दासी।
  • तिहारे – तुम्हारे।
  • मया – ममता, दया।
  • टेव – आदत, स्वभाव, पसंद-नापसंद।
  • लाड़ लडैतें – लाड़ले, प्यार से पले बालक कृष्ण।
  • भावै – अच्छी लगती है।
  • तातो – गर्म।
  • भजि जाते – भाग जाना।
  • क्रम-क्रम करि कै – नखरे करते हुए।
  • पथिक – राहगीर।
  • रैन-दिन – रात-दिन।
  • उर – हृदय।
  • सोच – चिंता।
  • संकोच – हिचकिचाहट।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकाल के कृष्णभक्त कवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के मथुरागमन प्रसंग से लिया गया है। श्रीकृष्ण मथुरा जाने के बाद अपने अनन्य मित्र उद्धव को गोपियों तथा नंद-यशोदा को समझाने, उन्हें ढाढ़स बँधाने के लिए ब्रज भेजते हैं। उद्धव ब्रज से वापस मथुरा जाते समय यशोदा से मिलने जाते हैं तो यशोदा उन्हें देवकी के नाम जो संदेश देती हैं, उसमें मातृ हृदय के ममत्व का अत्यंत सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण कवि ने किया है। यशोदा उद्धव से कहती हैं –

व्याख्या:
हे राहगीर! कृष्ण की जननी देवकी को यशोदा का यह संदेश देना कि मैं तुम्हारे पुत्र पर अपना अधिकार नहीं जता रही हूँ। मैं यह स्वीकार करती हूँ कि. कृष्ण की माँ तुम ही हो, मैं तो केवल उसका पालन-पोषण करने वाली धाय हूँ। धाय, बच्चे के संबंध में उसकी माँ से कुछ कहे यह सर्वथा अनुचित ही लगेगा। फिर भी मैं यह विनती करती हूँ कि तुम बालक पर ममता, दया करती रहना अर्थात् उसके प्रति कठोरता का व्यवहार मत करना। यद्यपि मैं यह जानती हूँ कि तुम कृष्ण की सभी रुचियों-आदतों से भली प्रकार परिचित हो परंतु फिर भी मुझसे रहा नहीं जाता, इसलिए कह रही हूँ कि प्रातःकाल मेरे लाड़ले बालक कृष्ण को माखन-रोटी का नाश्ता ही अच्छा लगता है। अतः उसे प्रातःकाल माखन-रोटी ही देना।

यहाँ मैं यह भी बता दूँ कि तेल, उबटन और गरम पानी आदि स्नान करने की चीज़ों को देखकर वह दूर भाग जाता है। अर्थात् वह मुश्किल से ही स्नान करता है। फिर अपनी फरमाइशें रखता है। वह जो कुछ माँगता है, उसे वह सब देती हूँ। इस प्रकार अनेक नखरे करने के बाद तेल, उबटना लगवाता है और नहाता है। अतः यदि वह स्नान करने से इनकार करे तो तुम खीझना नहीं अपितु उसको मनाना, उसकी माँगों को पूरा करके उसे नहाने के लिए तैयार करना।

सूरदास कहते हैं कि यशोदा उद्धव को संबोधित करती हुई कहती हैं-हे राहगीर! रात-दिन मेरे हृदय में यही चिंता रहती है कि मेरा लाड़ला पुत्र कृष्ण अत्यंत संकोचशील स्वभाव का है। वह अपने मुँह से कुछ नहीं कहेगा। वह देवकी की रुचि-प्रवृत्ति के अनुसार अपने मन को मारकर चलेगा। यह उचित नहीं होगा। इसी कारण मैं रात-दिन चिंता में रहती हूँ। चिंता के कारण न तो मुझे नींद आती है और न ही दिन में मुझे चैन पड़ता है।

विशेष:

  1. यशोदा के मातृ हृदय का अत्यंत मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है अपने को धाय कहना और अधिकार न जताते हुए भी उसके प्रति चिंतित होना मातृ-स्नेह का बड़ा गहन, सूक्ष्म और यथार्थ चित्रण सूरदास ने किया है।
  2. लाड़ लडैतें, क्रम-क्रम करि कै, है हैं’ में अनुप्रास अलंकार है।
  3. जोइ-जोइ, सोइ-सोइ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. पद में प्रवाहपूर्ण ब्रजभाषा तथा गेयता है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
माता यशोदा किसके माध्यम से किसे संदेश भेजती हैं और क्यों?
उत्तर:
माता यशोदा श्रीकृष्ण के मित्र उद्धव के माध्यम से देवकी को संदेश भेजती हैं क्योंकि माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का पालन-पोषण कर बड़ा किया है और अब वे अपनी माता देवकी के पास मथुरा में रहने लगे हैं। माता यशोदा को श्रीकृष्ण की सभी आदतों का पता है इसीलिए वे उद्धव के माध्यम से श्रीकृष्ण की आदतों के बारे में जानकारी देने के लिए संदेश भेजती हैं।

प्रश्न (ii)
श्रीकृष्ण को प्रातःकाल खाने में क्या अच्छा लगता है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को प्रातःकाल माखन-रोटी खाना अच्छा लगता है।

प्रश्न (iii)
यशोदा देवकी को श्रीकृष्ण की कौन-कौन-सी आदतों से परिचित कराती है?
उत्तर:
यशोदा देवकी को श्रीकृष्ण की खाने, स्नान करने, रूठने और मनाने की आदतों से परिचित कराती हैं।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि कृष्ण अब मथुरा के राजा हैं किंतु माता का हृदय तो अपने पुत्र को सदैव शिशु रूप में ही अनुभव करता है। वे अपने संदेश में कृष्ण के खाने-पीने, स्नान करने, रूठने-मनाने की आदतों से देवकी को परिचित कराती हैं। इस पद में माँ का वात्सल्य भाव व्यक्त हुआ है।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोदा के मातृ हृदय का अत्यंत प्रभावपूर्ण एवं मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है, कवि ने मातृ-विज्ञान का गहन, सुक्ष्य और यथार्थ चित्रण कर अपनी सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का परिचय दिया है। लाड़-लडैतें, क्रम-क्रम करि कै, है हैं, में अनुप्रास अलंकार है। जोइ-जोइ, सोइ-सोइ, क्रम-क्रम में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं, ब्रजभाषा माधुर्य गुण संपन्न है। पद में गेयता, लय और तुक समाहित है।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th English A Voyage Solutions Chapter 1 Invocation

MP Board Solutions for 12th English Chapter 1 Invocation Questions and Answers aids you to prepare all the topics in it effectively. You need not worry about the accuracy of the Madhya Pradesh Board Solutions for 12th English as they are given adhering to the latest exam pattern and syllabus guidelines.

You Can Download MP Board Class 12th English Solutions Questions and Answers Notes, Summary, Lessons: Pronunciation, Translation, Word Meanings, Textual Exercises. Enhance your subject knowledge by preparing from the Chapterwise MP Board Solutions for 12th English and clarify your doubts on the corresponding topics.

MP Board Class 12th English A Voyage Solutions Chapter 1 Invocation (Translated from Atharva Veda)

Kick start your preparation by using our online resource MP Board Solutions for 12th English Chapter 1 Invocation Questions and Answers. You can even download the Madhya Pradesh Board Class 12th English Solutions Questions and Answers for free of cost through the direct links available on our page. Clear your queries and understand the concept behind them in a simple manner. Simply tap on the concept you wish to prepare in the chapter and go through it.

Invocation Textbook Exercises

Word Power

A. Choose the antonyms of the following words from the text:
discord, destroy, diversity, resolve, worldly, fall, known, demon.
Answer:
Words – Antonyms

  • Discord – Concord
  • Destroy – Create
  • Diversity – Unity
  • Notes – Battle
  • Worldly – Divine
  • Fall – Rise
  • Known – Stranger
  • Demon – God

B. Compounding is a process of word formation, in which two constituent words normally are bound together to form a single word. The first member of a compound word is a modifier whereas the second member acts as an independent unit. There are two examples of compound words in the poem.

  • battle + cry ………….. battle-cry.
  • war + god ………… war-god.

Now match words from the two columns to form suitable compound words.

Column A – Column B

(i) black – (a) watch
(ii) on – (b) ways
(iii) off – (c) cry
(iv) side – (d) set
(y) watch – (e) board
(vi) mind – (f) wise
(vii) stop – (g) colour
(viii) out – (h) line
(ix) like – (i) word.
Answer:
(i) (e), (ii) (h), (iii) (g), (iv) (b), (y) (i), (vi) (J), (vis) (a), (viii) (C), (ix) (J).

Comprehension

A. Answer in one sentence each:

Mp Board Class 12 English Chapter 1 Question 1.
Who is the speaker in the poem?
Answer:
The poet is the speaker in the poem.

Invocation Poem Class 12 MP Board Question 2.
What does ‘concord’ mean?
Answer:
‘Concord’ means friendship and peace among people and countries.

Invocation Poem Summary Class 12 MP Board Question 3.
Whose concord is wished for at first?
Answer:
Concord with our own people is wished for at first.

Invocation Class 12 MP Board Question 4.
Who are the Asvins?
Answer:
Asvlns are the dual gods (devas) who symbolise perfect unity between the natives and the strangers.

English Chapter 1 Class 12 Mp Board Question 5.
What should not be fought against?
Answer:
The divine spirit within us should not be fought against.

B. Answer in about 50-60 words each:

Invocation Question Answer MP Board Question 1.
Which are the two kinds of people referred to in the verse? (M.P. Board 2020)
Answer:
The verse is an invocation made to the Asvins, the twin gods. The two types of people that are referred here the first type of people are those who surround us and whom we know well. We live among them. They are our own people. The second type of people are those who are strangers who do not belong to us. We don’t know them. It means that they belong to different culture and land. They are foreigners to us. Poet wants to create unity between these two kind of people. In short, the first type refers to our countrymen while the other refers to foreign people.

Chapter 1 English Class 12 Mp Board Question 2.
‘Let not the battle-cry rise amidst many slains, nor the arrows of the War-God fall with the break of the day’. What is implied by these lines?
Answer:
These lines imply that we have already.fought many battles. There are a lot of war victims. We have already lost many lives and property. The cries still haunt us. So, we should not let any more cries caused by battles. Instead we should resolve all issues peacefully.

Summary Of Invocation Class 12 MP Board Question 3.
In how many ways is the unity sought?
Answer:
Unity has been sought in many ways. First, we should have concord with our own people as well as with the strangers. We should unite our minds and purposes. We should not let any more battle-cry rise.

Mp Board Solution Class 12 English Question 4.
Why does the speaker invoke the gods-Asvins?
Answer:
Asvins are the dual gods (devas) who symbolise perfect unity of the natives and the strangers; The poet here, while making invocation for unity, invokes the gods Asvins in order to establish perfect concord and harmony between our countrymen and the foreigners.

C. Answer in about 75 words:

12th English Workbook Answers Pdf MP Board Question 1.
What is the message of the verse?
Answer:
The verse ‘Invocation’ has a very sound message. In the present context the poet feels that there is a need of mutual harmony and co-existence among people. This feeling of oneness should be extended to the foreign people also. We should have cordial relations and peace among our own men and with the strangers. This is the only way that can bring peace and harmony everywhere.

Class 12 English Chapter 1 Mp Board  Question 2.
Why does the speaker not want the battle-cry to be raised? (M.P. Board 2009,2015)
Answer:
The poet here intends to establish peace in the world. He wishes for the unity among people by having concord among ourselves and also with the aliens. He denigrates them because they are the vital causes for all ruins. People are victimised. Battles never resolve any problem but add many more, leaving a lot of unanswered questions and unending cries without end. We have already suffered a lot. Any more cry will finish us completely. Hence we should make efforts to resolve our differences by peaceful ways.

Mp Board Class 12 English Book Solution Question 3.
How does the speaker wish to achieve concord? (M.P. Board 2012)
Answer:
This poem is an invocation for the establishment of concord in world. First, we should have concord with our own people and then with the strangers. Here ‘own people’ refers to our countrymen with whom we live and share all our joys and sorrows. All the time they are with us. Then we should have a state of peace with the strangers i.e., the aliens who contribute to our global vision. We can achieve this by resolving our disputes or issues through peaceful ways because battles only ruin us and we should condemn them.

Speaking Activity

A. Divide the class into two groups and conduct a debate on the proposition, ‘United we stand, Divided we fall’.
Answer:
Do with the help of your teacher.

B. Narrate a story to the class, bringing out the moral of Unity is Strength.
Answer:
Do yourself.

Writing Activity

A. Write a short composition on the theme, ‘Our country represents unity amid diversity’.
Answer:
India is a great country. It has embraced a lot of vicissitudes. It is culturally so rich that it stands apart with its unique recognition. It is recognized as a land of diversity. Its uniqueness lies in the fact that it is a federal democratic country with so many different cultures, climates, castes, religions, and foods. We have Kashmir where the temperature goes even below zero on the one hand and on the other we have coastal regions which remain hot all the time. We equally enjoy and celebrate the festivals of Holi, Id, Christmas,etc. We have so many different dresses and manners. Still we are Indians with one national song, one national anthem, one national flag, one national symbol, one judiciary and one parliament. Hence in the truest sense our country represents unity amid diversity.

B. Every Indian takes pride in his culture and age-old traditions. Write a letter to your American friend, highlighting the salient features of Indian civilization and culture.
Answer:
A-42/F, Shivaji Park
Gwalior, M.P.
25th July, 20xx
Dear Jack,
I am really happy to receive your letter. It gives me extreme joy to note that you wish to know about my country and visit it soon. I would like to highlight a few unique features of my country. You know that India is a land of glorious past and prosperous future. Its culture has been so rich that it has always attracted the foreigners for study and research. The world is still amazed at the unique culture of unity in diversity of India. It has been the land of Rama, Krishna, Gautama, Ram Krishna Paramhans and Vivekananda, Mahatma Gandhi and Subhash Chandra Bose. Every Indian feels proud of belonging to this country. India can’t be explained in words. Therefore, I would like to invite you to my country, so that you see it with your own eyes. So come, see and feel its beauty. It would be an exciting and new experience felt for its beauty.
Yours,
Arun

Think IT over

A. Have you read the English translation of the Sanskrit epics, the Ramayana and the Mahabharata or any other Indian literary work? Are they able to capture the essence of the original work to your satisfaction?
Answer:
Yes, I have read the English translation of some of the epics like the Mahabharata, the Gita by some great writers and scholars. They have captured the essence of the original work to my satisfaction.

B. In this age of revolution in information and communication technology, we talk of the world being a global village. Do you find any relevance of our ancient texts in sustaining the tempo of social change?
Answer:
Yes, the ancient texts are much relevant in sustaining the tempo of social change. The evidences of Aakashwani, Pushpak Viman, Predictions, etc. prove it well.

Things to Do

A. Inspired by the ‘Vedas’, Tagore composed Gitanjali in Bengali. lts translation into English exposed Tagore to the readers worldwide. For this work, he was awarded the Nobel Prize in 1913. look for other such Nobel Laureates from other languages.
Answer:
Some Nobel Laureates from other languages are:

  • Romain Rolland — French
  • Selma Legerlof — Swedish
  • Gunter Grass — German

B. Prepare a list of important literary works by foreign authors, whose translations you would like to have in your personal library, citing reasons there of
Answer:
I would like to have the translations of the literary works of Jane Austen, James Joyce, Emil Zola, Anton I’ Chekov, O. Henr Hemingway, and Charles Dickens. I would like to have the works of these writers in my library because they have touching appeal. They put their impact upon our mind and their characters seem to be realistic. They depict the incidents that seem to be our own life’s stories and their characters are
common people who give us a message for life.

C. You know the books giving information about knowledge and Indian culture are called ‘the Vedas’. You also know a book containing important dates and statistical information is called an ‘almanac’. Given below are some books with the information they give us. What are these books called? Write the names on the books. (You can take the help of the Help Box.)

Help Box

(a) Psalter
(b) Lexicon
(c) Pharmacopoeia
(d) Anthology
(e) Missal
(f) Bestiary.
Answer:
1. (d), 2. (f), 3. (e), 4. (c), 5. (b), 6. (a).

Invocation by Translated from Atharva Veda Introduction

The poem inculcates the ethics of collective living through mutual love and understanding. There must be a sense of unity among all human beings. Thus, an invocation has been made to unite ah the people.

Invocation Summary in English

Invocation is an excerpt taken from Hymns from the Vedas, a book of selected translations from the Vedas by Dr. Abinash Chandra Bose. In this part, the ethics of collective living through mutual love and understanding has been propounded.

An invocation has been made to the Asvins, the twin gods for the people to be united and live with mutual co-operation, not only with their relatives and friends but also with strangers. There should be a unity between mind and purposes. We should not fight against the divine spirit within us. We should avoid wars and battles.

Invocation Summary in Hindi

Invocation डॉ. अविनाश चन्द्र बोस द्वारा वेदों के संकलन के अनुवाद की एक पुस्तक Hymns from the Vedas का एक अंश है। इस भाग में परस्पर प्यार एवं समन्वय के साथ सामूहिक जीवन के सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया गया है। लोगों को परस्पर प्यार एवं सहयोग के साथ न केवल अपनों (स्वजनों) बल्कि अजनबियों के साथ भी एकाकार होने के लिए गन्धर्व (द्विदेव) को उद्बोधित किया गया है। मस्तिष्क एवं उद्देश्यों में तारतम्य होना चाहिए। हमें अपने अंदर के दैविक शक्तियों से लड़ना नहीं चाहिए। हमें युद्ध एवं क्रन्दन को नकारना चाहिए।

Invocation Word Meaning

Mp Board Class 12 Special English Book Pdf Download

Invocation Important Pronunciation

12th General English Workbook Answers MP Board

We believe the information shared regarding MP Board Solutions for 12th English Chapter 1 Invocation Questions and Answers as far as our knowledge is concerned is true and reliable. In case of any queries or suggestions do leave us your feedback and our team will guide you at the soonest possibility. Bookmark our site to avail latest updates on several state board Solutions at your fingertips.

MP Board Class 12th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास : आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ

MP Board Class 12th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास : आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ

आधुनिक काल

आधुनिक हिन्दी कविता का प्रारम्भ संवत् 1900 से माना जाता है। यह काल अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इस काल में हिन्दी साहित्य का चहुंमुखी विकास हुआ। इस काल में सांस्कृतिक,राजनीतिक एवं सामाजिक आन्दोलनों के फलस्वरूप हिन्दी काव्य में नई चेतना तथा विचारों ने जन्म लिया और साहित्य बहुआयामी क्षेत्रों को सस्पर्श करने लगा। इस काल में धर्म, दर्शन,कला एवं साहित्य,सभी के प्रति नये दृष्टिकोण का आविर्भाव हुआ।

आधुनिक हिन्दी कविता के विकासक्रम को विभिन्न विद्वानों ने अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया है किन्तु सर्वमान्य रूप से इस विकास को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता-
आधुनिक हिंदी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ Pdf MP Board Class 12th Special
है भारतेन्दु युग हिन्दी कविता का जागरण काल है। इस युग को हिन्दी साहित्य का प्रवेश द्वार माना जाता है। इस युग में देशोद्धार, राष्ट्र – प्रेम, अतीत – गरिमा आदि विषयों की ओर ध्यान दिया गया और कवियों की वाणी में राष्ट्रीयता का स्वर निनादित होने लगा। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, चौधरी बद्रीनारायण प्रेमघन’, लाला सीताराम आदि प्रमुख रचनाकार हुए।
आधुनिक हिंदी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ MP Board Class 12th Special

द्विवेदी युग में खड़ी बोली कविता की सम्वाहिका बनी। काव्य में सामाजिक तथा पौराणिक विषयों का विस्तार हुआ। श्रीधर पाठक, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, मैथिलीशरण गुप्त, गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’,रामचरित उपाध्याय, रामनरेश

त्रिपाठी, गोपालशरण सिंह, जगन्नाथ प्रसाद ‘रत्नाकर’, सत्यनारायण ‘कविरत्न’ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।
आधुनिक काल की प्रवृत्तियाँ Pdf MP Board Class 12th Special

हिन्दी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

1. छायावाद [1920 – 19361]

हिन्दी कविता में आधुनिकता तथा नवीन युग के सूत्रपात का श्रेय छायावादी युग को प्रदान किया जाता है।

हिन्दी साहित्य में छायावाद द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया की उपज है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में है—एक तो कवि उस अनन्त अज्ञात प्रियतम को आलम्बन बनाकर चित्रमयी भाषा में प्रेम के अनेक प्रकार की व्यंजना करता है। दूसरा प्रयोग काव्य – शैली या पद्धति – विशेष के व्यापक अर्थ में है।”

डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार, “परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में,यही छायावाद है।”

डॉ. नगेन्द्र ने छायावाद को “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह”माना है।

आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के अनुसार, “मानस अथवा प्रकृति के सूक्ष्म किन्तु व्यक्त सौन्दर्य में आध्यात्मिक छाया का भाव ही छायावाद है।”

  • छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

छायावादी काव्य में पायी जाने वाली प्रवृत्तियों को हम मुख्यतः तीन वर्गों में विभक्त कर सकते हैं—
(क) विषयगत, (ख) विचारगत और (ग) शैलीगत।

आधुनिक हिंदी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ Pdf MP Board Class 12th Special (क) विषयगत प्रवृत्तियाँ
इसके अन्तर्गत तीन प्रकार की अभिव्यंजना है –
(1) नारी सौन्दर्य और प्रेम – चित्रण,
(2) प्रकृति – सौन्दर्य और प्रेम – व्यंजना तथा
(3) अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद।

(1) नारी सौन्दर्य और प्रेम – चित्रण छायावादी कवियों ने सौन्दर्य के स्थूल चित्रण की अपेक्षा उसके सूक्ष्म प्रभाव का अंकन किया है। प्रेम के क्षेत्र में वे किसी रूढ़ि, मर्यादा या नियमबद्धता को स्वीकार नहीं करते। दारले 3 इनके प्रेम की दूसरी विशेषता है – वैयक्तिकता। हिन्दी में पहले भी श्रृंगारी कवियों ने प्रेम – वर्णन किया, किन्तु प्रेममार्गी कवियों को छोड़कर सभी ने राधा, पद्मिनी,उर्मिला,यशोधरा को माध्यम बनाया, जबकि छायावादी कवियों ने निजी प्रेमानुभूतियों की व्यंजना की। उनका प्रेम सूक्ष्म है। इन्होंने श्रृंगार के स्थूल क्रिया – कलापों के बजाय सूक्ष्म भाव दशाओं का उद्घाटन किया। चौथी विशेषता है कि उनकी प्रणय – गाथा का अन्त असफलता एवं निराशा में होता है। प्रेम – निरूपण में सबसे अधिक सफलता विरह – अनुभूति के वर्णन में मिली है।

(2) प्रकृति – सौन्दर्य और प्रेम – व्यंजना प्रकृति के सौन्दर्य और प्रेम का वर्णन भी छायावादी कवियों की श्रृंगारिकता का दूसरा रूप है। वे प्रकृति में नारी और प्रेयसी दोनों की छवि और सौन्दर्य देखते हैं। पत्तों और फूलों की मर्मर, भ्रमरों की गुनगुन में उन्हें पायल की झंकार या मधुर आलाप सुनायी देता है। उन्होंने प्रकृति को सचेतन मानकर (उसका) मानवीकरण और नारीकरण किया है।

(3) अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद – ‘प्रेम पथिक’ और ‘आँसू’ में प्रसादजी ने सबसे पहले अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति की थी। रहस्यवाद में पहले वियोग, फिर संयोग होता है। छायावाद में इसके विपरीत है।

(ख) विचारगत प्रवृत्तियाँ छायावाद की विचारगत प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं

(1) दर्शन के क्षेत्र में अद्वैतवाद एवं सर्वात्मवाद।
(2) धर्म के क्षेत्र में रूढ़ियों एवं बाह्याचारों से मुक्त व्यापक मानव – हितचिन्तन।
(3) समाज के क्षेत्र में समन्वयवाद।
(4) राजनीति के क्षेत्र में अन्तर्राष्टीय एवं विश्व – शान्ति का समर्थन।
(5) पारिवारिक एवं दाम्पत्य जीवन के क्षेत्र में हृदयतत्व की प्रधानता।
(6) साहित्य के क्षेत्र में व्यापक कलावाद या सौन्दर्यवाद।

आधुनिक हिंदी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ MP Board Class 12th Special (ग) शैलीगत प्रवृत्तियाँ
छायावादी शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) मुक्तक गीत शैली।
(2) प्रतीकात्मकता।
(3) प्राचीन एवं नवीन अलंकारों का प्रचुर मात्रा में सफल प्रयोग।
(4) कोमलकांत संस्कृतनिष्ठ पदावली।
(5) गीति शैली के सभी प्रमुख तत्व – वैयक्तिकता, भावात्मकता, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता और कोमलता।

  • छायावाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ

आधुनिक काल की प्रवृत्तियाँ Pdf MP Board Class 12th Special छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भ हैं
1. जयशंकर प्रसाद,
2. सुमित्रानन्दन पन्त,
3. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
4. महादेवी वर्मा।

(1) जयशंकर प्रसाद प्रसाद ने प्रारम्भ में ब्रजभाषा में कविताएँ लिखीं। 1913 – 14 में वे खड़ी बोली में कविता करने लगे। उनके प्रमुख काव्य ग्रन्थ हैं – ‘चित्राधार’, ‘प्रेम पथिक’, ‘करुणालय’, ‘महाराणा का महत्व’, ‘कानन कुसुम’, ‘झरना’, ‘आँसू’, लहर’ और ‘कामायनी’। ‘कामायनी’ उनकी अन्तिम काव्य – रचना है। यह महाकाव्य है। ‘प्रेम पथिक’ लघु प्रबन्ध – काव्य है। ‘आँसू’ खण्ड – काव्य है, विरह – काव्य है। ‘कानन कुसुम’, झरना’, लहर स्फुट’ कविताओं के संग्रह हैं।

प्रसादजी छायावाद के प्रौढ़तम श्रेष्ठ कवि हैं।

(2) सुमित्रानन्दन पन्त—’वीणा’,’ग्रन्थि’, पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘युगान्त’,’युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्ण धूलि’, ‘युगान्तर’, ‘उत्तरा’, ‘रजतशिखर’,’शिल्पी’, ‘अतिमा’, ‘वीणा’ पन्त की काव्य – कृतियाँ हैं। पल्लव’, ‘गुंजन’ में उनकी स्फुट रचनाएँ हैं। ‘वीणा’ में रहस्यवाद का प्रभाव है। ‘पल्लव’ में निराशा और प्रकृति – चित्रण की तथा ‘गुंजन’ में नारी सौन्दर्य एवं मानववाद की प्रवृत्ति दृष्टव्य है। ‘ग्रन्थि’ एक छोटा प्रबन्ध – काव्य है जिसमें असफल प्रेम की कहानी है। ‘युगान्त’ में छायावादी युग का अन्त हो जाता है।

(3) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ – ‘परिमल’, ‘अनामिका’, ‘तुलसीदास’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’,’बेला’, ‘नये पत्ते’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’ निरालाजी की रचनाएँ हैं। इनकी रचनाओं में छायावाद की सभी प्रवृत्तियाँ हैं। कहीं रहस्यवाद भी है। बाद में निरालाजी प्रगतिवादी हो गये।

(4) महादेवी वर्मा – ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’ और ‘दीपशिखा’ महादेवीजी की काव्य – रचनाएँ हैं। इन चार प्रमुख कवियों के अतिरिक्त मुकुटधर पाण्डेय, भगवतीचरण वर्मा, रामकुमार वर्मा, नरेन्द्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, मोहनलाल महतो ‘वियोगी’, जानकीबल्लभ शास्त्री भी छायावाद के कवि हैं।
आधुनिक हिंदी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ MP Board Class 12th Special

2. रहस्यवाद
[काल निर्धारण कठिन]

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है वही भावना के क्षेत्र में रहस्यवाद है।”

बाबू गुलाबराय ने “प्रकृति में मानवीय भावों का आरोप कर जड़ – चेतन के एकीकरण की प्रवृत्ति के लाक्षणिक प्रयोगों को रहस्यवाद कहा है।”

मकटधर पाण्डेय के अनुसार, “प्रकृति में सूक्ष्म सत्ता का दर्शन ही रहस्यवाद है।”

रहस्यवाद का अर्थ है – छिपी हुई बात’। अतः रहस्यवाद का अर्थ हुआ वह विचारधारा या वाद जिसका आधार अज्ञात है। हिन्दी कविता में रहस्यवाद का काल निर्धारण करना कठिन है क्योंकि रहस्यवाद सृष्टि के आरम्भ से ही कवियों को प्रिय रहा है।

रहस्यवाद के तीन प्रमुख लक्षण हैं –
(1) अद्वैतवादी विचारधारा की स्वीकृति – आत्मा और परमात्मा एक हैं, अभिन्न हैं।
(2) उस असीम शक्ति से रागात्मक सम्बन्ध की अनुभूति।
(3) भाषा के माध्यम से अनुभूतियों की अभिव्यक्ति। सर्वप्रथम रहस्यवादी कवि कबीर और जायसी माने गये हैं।

आधुनिक युग में रहस्यवादी कवियों में जयशंकर प्रसाद सर्वप्रथम हैं। फिर निरालाजी ने तुंग हिमालय श्रृंग मैं चंचलगति सुर – सरिता” कहकर अलौकिक के साथ अपना स्पष्ट सम्बन्ध जोड़ लिया। पन्तजी भी प्रारम्भ में रहस्यवादी रहे।

रहस्यवाद की साधना में अकेली महादेवी वर्मा विरह के गीत ही गाती रहीं।

  • रहस्यवाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

(1) अद्वैतवादी मान्यता,
(2) दाम्पत्य – प्रेम पद्धति,
(3) प्रेम में स्वच्छता एवं पवित्रता,
(4) दैन्य एवं आत्म – समर्पण की भावना,
(5) प्रतीकात्मकता,
(6) मुक्तक गीति शैली।

  • रहस्यवाद के प्रमुख कवि

कबीर, प्रसाद, पन्त, निराला, महादेवी सभी ने इस शैली को अपनाया है। ये सभी रहस्यवादी हैं। रामकुमार वर्मा आदि कवि अंशतया रहस्यवाद के कुछ सोपानों पर चढ़ सके. इसलिए उनकी रचनाओं में कुछ स्थानों पर रहस्यवाद की झलक मिलती है।

3. प्रगतिवाद
आधुनिक हिंदी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ MP Board Class 12th Special [1936 – 19431]

“राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है, वह काव्य के क्षेत्र में प्रगतिवाद है।”

प्रगतिवादी काव्य की संज्ञा उस कविता को प्रदान की गई जो कि छायावाद के समापन काल में सन् 1936 के आस – पास सामाजिक चेतना को लेकर अग्रसर हुआ। प्रगतिवादी कविता में राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक शोषण से मुक्ति का स्वर प्रमुख है। इस कविता पर मार्क्सवाद का प्रभाव है। रूस के नये संविधान और सन् 1905 में लखनऊ में भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की प्रेमचन्द की अध्यक्षता में हुई सभा इसके विकास – क्रम के महत्वपूर्ण सोपान हैं। प्रगति शब्द का अर्थ है – चलना, आगे – बढ़ना, अर्थात् यह वह वाद है जो आगे बढ़ने में विश्वास रखता है। प्रगतिवाद में साम्यवाद दृष्टिकोण को साहित्यिक विचारधारा के रूप में स्वीकार किया गया है।

  • प्रगतिवाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

“दर्शन में जिसे द्वन्द्वात्मक भौतिक विकासवाद माना गया है, राजनीति में जो साम्यवाद है, वही साहित्य में प्रगतिवाद है।”
(1) धर्म,ईश्वर एवं परलोक का विरोध है। समाज में वर्ग – संघर्ष को समाप्त करने के लिए भाग्यवादिता की मान्यता को नष्ट करना होगा, क्योंकि शोषक वर्ग केवल भाग्य के बल पर ही शोषण करता है।
(2) पूँजीपति वर्ग के प्रति घृणा का प्रचार प्रगतिवादी कलाकारों ने किया है।
(3) शोषित वर्ग की दीन – हीन दशा का यथार्थ चित्रण करके ही दोनों वर्गों का भेद स्पष्ट किया है।
(4) नारी के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया गया है। उसे रूपसी, नायिका या राज – वैभव में पलने वाली राजदुलारी नहीं, वरन् मजदूरी करने वाली कृषक ललना के रूप में चित्रित किया है।
(5) सरल शैली को अपनाकर अपनी रचनाओं को जन – साधारण तक पहुँचाना ही इस प्रवृत्ति का उद्देश्य रहा है।

  • प्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ

निराला, सुमित्रानन्दन पन्त, नरेन्द्र शर्मा, भगवतीचरण वर्मा के अतिरिक्त आधुनिक कवियों में सबसे अग्रणी नाम रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का है। इनके बाद बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, नागार्जुन, त्रिलोचन, केदारनाथसिंह, केदारनाथ अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह आदि प्रगतिवादी कवि हुए।
आधुनिक हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियाँ MP Board Class 12th Special

4. प्रयोगवाद
आधुनिक हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियाँ MP Board Class 12th Special [1943 – 1950]

सन् 1943 में सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के नेतृत्व में हिन्दी में एक आन्दोलनकारी लहर उठी,जो ‘प्रयोगवाद’ कहलायी। इसकी भूमिका में अज्ञेय ने लिखा है, “ये कवि नवीन राहों के अन्वेषी हैं।”
इस प्रयोगवाद नामक विचारधारा पर यूरोप के अनेक आधुनिक काव्य सम्प्रदायों का प्रभाव है, जिसमें
(1) प्रतीकवाद, बिम्बवाद,
(2) अति यथार्थवाद,
(3) अस्तित्ववाद,
(4) फ्राइडवाद आदि मुख्य हैं।

  • प्रयोगवाद की मुख्य प्रवृत्तियाँ

(1) घोर व्यक्तिवाद – नयी कविता का प्रमुख लक्ष्य निजी मान्यताओं, विचारधाराओं और अनुभूतियों का प्रकाशन है। वस्तुतः इन कविताओं में व्यष्टिवाद को अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है
(2) दूषित वृत्तियों का यथार्थ (एवं) नग्न रूप में चित्रण – जिन वृत्तियों को पहले साहित्य में अश्लील,असामाजिक एवं अस्वस्थ समझा जाता था,उन्हीं कुण्ठाओं और वासनाओं का वर्णन प्रयोगवादी कविता में मिलता है।
(3) निराशावादिता – इस धारा के कवि भूत – भविष्य की प्रेरणा और चिन्ता से मुक्त होकर केवल वर्तमान क्षण में ही जीना चाहते हैं।
(4) बौद्धिकता एवं रूखापन, इस युग की कविताएँ हृदय की न होकर मस्तिष्क की देन हैं। इसलिए वे नीरस हैं और शायद चिरस्थायी साहित्य सम्पदा भी न हो। इन कविताओं में रागात्मकता के स्थान पर विचारात्मकता अधिक परिलक्षित होती है। इनका दावा है कि भले ही ये कविताएँ हृदय पर प्रभाव न डालें,किन्तु बौद्धिकता में भी रस होता है।
(5) साधारण विषयों पर लेखन इन नये कवियों ने आस – पास की साधारण वस्तुओं, जैसे – चूड़ी का टुकड़ा, चाय की प्याली, साइकिल, कुत्ता, होटल, दाल, नोन, तेल,लकड़ी, ब्लेड आदि को लेकर कविताएँ रची हैं।
(6) व्यंग्य एवं कटूक्ति – आधुनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर व्यंग्य किये हैं। पर उनमें गम्भीरता का अभाव है। अतः वे व्यंग्य कटूक्ति बनकर रह गये।
(7) असम्बद्ध प्रलाप – फ्राइडवादी प्रवृत्ति के अनुसार उद्गारों का प्रभाव ग्रहण कर उन्मुक्त साहचर्य की पद्धति अपनाकर नयी कविता में उसका प्रयोग किया गया है।
(8) शैली – नये बिम्ब, प्रतिमान, उपमान, मुक्त छन्द और नयी शब्दावली का प्रयोग, बेढंगी उपमाओं, अनगढ़ शब्दों, असम्बद्ध पदों और अनुपयुक्त विशेषणों का प्रयोग किया है।

  • प्रयोगवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ

सन् 1943 में अज्ञेय ने ‘तार सप्तक’ का सम्पादन किया,फिर 1951 में दूसरा सप्तक’ और 1959 में ‘तीसरा सप्तक’ का सम्पादन किया।

1. प्रथम तार – सप्तक
(1) अज्ञेय,
(2) नैमिचन्द्र जैन,
(3) गजानन माधव मुक्तिबोध’,
(4) भारत भूषण,
(5) प्रभाकर माचवे,
(6) गिरिजाकुमार माथुर, और
(7) रामविलास शर्मा।

2. दूसरा तार – सप्तक
(1) भवानीप्रसाद मिश्र,
(2) धर्मवीर भारती,
(3) शकुन्तला माथुर,
(4) हरिनारायण व्यास,
(5) रघुवीर सहाय,
(6) शमशेर बहादुर सिंह, और
(7) नरेश मेहता।

3. तीसरा तार – सप्तक
(1) प्रयागनारायण त्रिपाठी,
(2) कीर्ति चौधरी,
(3) मदन वात्स्यायन,
(4) केदारनाथसिंह,
(5) कुँवरनारायण,
(6) विजयदेव नारायण साही, और
(7) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।

नलिनविलोचन शर्मा,डॉ. जगदीश गुप्त,श्रीकान्त वर्मा, अशोक वाजपेयी, धूमिल स्नेहमयी चौधरी, कैलाश वाजपेयी आदि भी प्रयोगवाद के अन्य प्रसिद्ध कवि हैं।
Aadhunik Hindi Kavita Ki Pravritiyan MP Board

5. नई कविता
Aadhunik Hindi Kavita Ki Pravritiyan MP Board [1950 से अब तक]

नई कविता भारतीय स्वाधीनता के अनन्तर लिखी गई उन कविताओं को कहा गया जिन्होंने नये भावबोध,नये मूल्यों और नूतन शिल्पविधान को अन्वेषित तथा स्थापित किया। नई कविता अपनी वस्तु – छवि तथा रूपायन में पूर्ववर्ती प्रगतिवाद तथा प्रयोगवाद की विकासान्विति होकर भी अपने में सर्वथा विशिष्ट तथा असामान्य है।

नई कविता में आज की क्षणवादी,लघु मानववादी जीवन दृष्टि के प्रति नकार निषेध नहीं अपितु स्वीकार सहमति के साथ जीवन को पूर्णतया स्वीकार करके उसके भोगने की आकांक्षा है। नई कविता क्षणों की अनुभूतियों में अपनी आस्था प्रकट करती है जो कि समस्त जीवनानुभूतियों के लिए अवरोध न बनकर सहायक होते हैं। नई कविता, लघु मानवत्व को स्वीकार करती है जिसका तात्पर्य है सामान्य मनुष्य की अपेक्षित समूची संवेदनाओं और मानसिकता की खोज या प्रतिष्ठा करना। नई कविता कोई वाद नहीं है। उसमें सर्व महान् विशिष्ट कश्य की व्यापकता तथा सृष्टि की उन्मुक्तता है। नई कविता के दो प्रमुख घटक हैं – (क) अनुभूति की सच्चाई और (ख) बुद्धि की यथार्थवादी दृष्टि।।

नई कविता जीवन के प्रत्येक क्षण को सत्य मानती है। आन्तरिक और मार्मिकता के कारण नई कविता में जीवन के अति साधारण सन्दर्भ अथवा क्रिया – कलाप नूतन अर्थ तथा छवि पा लेते हैं। नई कविता में क्षणों की अनुभूति को लेकर अनेकानेक मार्मिक एवं विचारोत्तेजक कविताएँ लिखी गई हैं जो कि अपने लघु आकार के बावजूद प्रभावोत्पादकता में अत्यन्त तीव्र तथा सघन हैं। नई कविता की वाणी अपने परिवेश की जीवनानुभूतियों से संसिक्त है।

  • नई कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

(1) कुंठा, संत्रास, मृत्युबोध – मानव मन में व्याप्त कुंठाओं का, जीवन के संत्रास एवं मृत्युबोध का मनोवैज्ञानिक ढंग से चित्रण इस काल की कविताओं की पहचान है।
(2) बिम्ब – प्रयोगवादी कवियों ने नूतन बिम्बों की खोज की है।
(3) व्यंग्य प्रधान रचनाएँ – इस काल में मानव जीवन की विसंगतियों, विकृतियों एवं अनैतिकतावादी मान्यताओं पर व्यंग्य रचनाएँ लिखी गई हैं।
(4) लघु मानववाद की प्रतिष्ठा – मानव जीवन को महत्वपूर्ण मानकर उसे अर्थपूर्ण दृष्टि प्रदान की गई।
(5) प्रयोगों में नवीनता – नए – नए भावों को नए – नए शिल्प विधानों में प्रस्तुत किया गया
(6) क्षणवाद को महत्व जीवन के प्रत्येक क्षण को महत्वपूर्ण मानकर जीवन की एक – एक अनुभूति को कविता में स्थान प्रदान किया गया है।
(7) अनुभूतियों का वास्तविक चित्रण – मानव व समाज दोनों की अनुभूतियों का सच्चाई के साथ चित्रण किया गया है।

नई कविता में जीवन मूल्यों की पुनः परीक्षा की गई है। प्रगतिवाद में लोक जीवन एक आन्दोलन के रूप में आया,प्रयोगवाद में वह कट गया परन्तु सम्प्रक्ति नई कविता की एक प्रमुख विशेषता बन गई। नई कविता के शिल्प को भी लोक – जीवन ने प्रभावित किया। उसने लोक – जीवन से बिम्बों,प्रतीकों,शब्दों तथा उपमानों को चुनकर निजी संवेदनाओं तथा सजीवता को द्विगुणित किया। नई कविता अपनी अन्तर्लय, बिम्बात्मकता, नव प्रतीक योजना, नये विशेषणों के प्रयोग,नव उपमान – संघटना के कारण प्रयोगवाद से अपना पृथक् अस्तित्व भी सिद्ध करती है।

प्रयोगवाद बोझिल शब्दावली को लेकर चलता है, परन्तु नई कविता ने प्रगतिवाद की तरह विशेष क्षेत्रों के विशिष्ट सन्दर्भ के लिए ही लोक शब्द नहीं लिये, परन्तु समस्त प्रकार के प्रसंगों के लिए लोक शब्दों का चयन किया। नई कविता की भाषा में एक खुलापन और ताजगी है।

निष्कर्षतः नई कविता मानव मूल्यों एवं संवेदनाओं की नूतन तलाश की कविता है।

  • नई कविता के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ

नई कविता के प्रमुख कवियों में अज्ञेयजी के अनुभव – क्षेत्र तथा परिवेश में ग्राम एवं नगर, दोनों ही समाहित हैं। शहरी परिवेश के साथ जुड़ने वाले रचनाकारों में बालकृष्ण राव, शमशेर बहादुर सिंह, गिरिजाकुमार माथुर, कुँवर नारायण, डॉ. धर्मवीर भारती, डॉ. प्रभाकर माचवे, विजयदेव नारायण साही, रघुवीर सहाय आदि कवि आते हैं परन्तु भवानीप्रसाद मिश्र, केदारनाथ सिंह, शम्भूनाथ सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल आदि ऐसे सृजनकर्ता हैं जिन्होंने मुख्यतः ग्रामीण संस्कारों को अभिव्यक्ति दी।
आधुनिक काल की प्रमुख प्रवृत्तियां MP Board Class 12th Special

प्रश्नोत्तर

आधुनिक काल की प्रमुख प्रवृत्तियां MP Board Class 12th Special (क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

  • बहु – विकल्पीय

प्रश्न 1. आधुनिक हिन्दी कविता का प्रारम्भ माना जाता है
(अ) 1901 ई.से, (ब) 1900 ई.से, (स) संवत् 1901 से, (द) संवत् 1900 से।

2. छायावादी युग की कालावधि है
(अ) 920 – 1936, (ब) 1936 – 1943, (स) 1943 – 1950, (द) 1950 – अब तक।

3. छायावादी काव्य की विशेषता है [2009]
(अ) सामाजिक यथार्थ का चित्रण, (ब) अलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम, विद्रोह, (स) सुख के लिए फूल तथा दुःख के लिए काँटा, (द) रूढ़ियों के प्रति विद्रोह।

4. नई कविता की कालावधि है
(अ) 1920 – 1936, (ब) 1936 – 1943, (स) 1943 – 1950, (द) 1950 – अब तक।

5. हिन्दी कविता का जागरण काल माना जाता है
(अ) भारतेन्दु युग को, (ब) द्विवेदी युग को, (स) छायावादी युग को, (द) प्रयोगवादी युग को।

6. इस युग के काव्य में सामाजिक तथा पौराणिक विषयों का विस्तार हुआ
(अ) भारतेन्दु युग, (ब) द्विवेदी युग, (स) छायावादी युग, (द) रहस्यवादी युग।

7. “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह” – छायावाद की यह परिभाषा है
(अ) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की, (ब) डॉ.रामकुमार वर्मा की, (स) डॉ.नगेन्द्र की, (द) आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी की।

8. प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी को इस युग के चार स्तम्भ माना गया है
(अ) प्रगतिवाद, (ब) छायावाद, (स) प्रयोगवाद, (द) नई कविता।

9. ‘युगधारा’ के रचनाकार हैं
(अ) नागार्जुन, (ब) सुमित्रानन्दन पन्त, (स) त्रिलोचन, (द) निराला।

10. दूसरा तार – सप्तक प्रकाशित हुआ
(अ) 1943 में, . (ब) 1950 में, (स) 1951 में, (द) 1959 में।

11. नई कविता की प्रमुख प्रवृत्ति है
(अ) बिम्ब, (ब) प्रयोगों में नवीनता, (स) व्यंग्य प्रधान रचनाएँ, (द) उपर्युक्त सभी।

12. ‘कामायनी’ इस युग की रचना है [2009]
(अ) रहस्यवाद, (ब) प्रयोगवाद, (स) छायावाद, (द) प्रगतिवाद।
उत्तर–
1. (द), 2. (अ), 3. (ब), 4. (द), 5. (अ), 6. (ब), 7.(स), 8. (ब), 9.(अ), 10. (स), 11. (द), 12. (स)।

  • रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. नई कविता की कालावधि …… से अब तक मानी गई है।
2. ‘पंचवटी’ के रचनाकार ……. थे।
3. हिन्दी कविता में आधुनिकता तथा नवीन युग के सूत्रपात का श्रेय ……. युग को प्रदान किया जाता है।
4. ‘नीरजा’ की रचनाकार ……… हैं।
5. “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है,वही भावना के क्षेत्र में ……. है।”
6. प्रथम तार – सप्तक का प्रकाशन ……. में हुआ।
7. ‘सन्नाटा’ के रचनाकार “…” हैं।
8. ……. मानव मूल्यों और संवेदनाओं की कविता है।
9. ……… कविता पर मार्क्सवाद का प्रभाव है।
10. राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है, वह काव्य के क्षेत्र में ……. है।
11. प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना ……….. में हुई। [2009]
12. ……… स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। [2009]
13. शोषण का विरोध ………. काव्य की प्रमुख विशेषता है। [2009]
14. जयशंकर प्रसाद ……. के प्रमुख कवि हैं। [2010]
15. सुमित्रानन्दन पन्त …… के प्रमुख कवि हैं। [2011]
उत्तर–
1. 1950 ई, 2. मैथिलीशरण गुप्त, 3. छायावादी, 4. महादेवी वर्मा, 5. रहस्यवाद, 6. 1943 ई. 7. भवानीप्रसाद मिश्र, 8. नई कविता, 9. प्रगतिवादी 10. प्रगतिवाद, 11. सन् 1936, 12. छायावाद, 13. प्रगतिवादी, 14. छायावाद, 15. छायावाद।

  • सत्य/असत्य

1. आधुनिक हिन्दी कविता का प्रारम्भ 1900 ई.से माना गया है।
2. आधुनिक काल की कविता में धर्म,दर्शन,कला एवं साहित्य के प्रति नवीन दृष्टिकोण का आविर्भाव हुआ।
3. प्रयोगवादी युग की कालावधि 1943 ई.से 1950 ई. तक मानी गयी है।
4. द्विवेदी युग को हिन्दी साहित्य का प्रवेश – द्वार माना जाता है।
5. प्रसाद,पन्त, निराला और महादेवी वर्मा रहस्यवाद के चार प्रमुख स्तम्भ माने गये हैं।
6. “प्रकृति में सूक्ष्म सत्ता का दर्शन ही रहस्यवाद है।” यह कथन मुकुटधर पांडेय का है।
7. “राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है,वह काव्य के क्षेत्र में प्रगतिवाद है।”
8. “ये कवि नवीन राहों के अन्वेषी हैं।” प्रयोगवाद के सम्बन्ध में यह कथन अज्ञेयजी का है।
9. गजानन माधव मुक्तिबोध रीतिकाल के प्रमुख कवि हैं। [2010]
10. भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है। [2009]
उत्तर–
1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. असत्य, 6. सत्य, 7. सत्य, 8. सत्य, 9. असत्य,10. सत्य।

  • सही जोड़ी मिलाइये

I. ‘क’
(1) माखनलाल चतुर्वेदी – (अ) कामायनी
(2) केदारनाथ अग्रवाल – (ब) सूर्य का स्वागत
(3) जयशंकर प्रसाद – (स) हिमकिरीटिनी
(4) धर्मवीर भारती – (द) फूल नहीं रंग बोलते हैं
(5) दुष्यन्त कुमार – (इ) अन्धा युग
उत्तर–
(1) → (स),
(2) → (द),
(3) → (अ),
(4) → (इ),
(5) → (ब)।

II. ‘क’
(1) छायावाद – (अ) सुमित्रानन्दन पन्त
(2) हिन्दी साहित्य का प्रवेश द्वार [2010] – (ब) जयशंकर प्रसाद
(3) प्रकृति के सुकुमार कवि [2011] – (स) नई कविता
(4) प्रयोगवाद – (द) अज्ञेय
(5) व्यंग्य की प्रधानता [2009] – (इ) भारतेन्दु युग
उत्तर–
(1) → (ब),
(2) → (इ),
(3) → (अ),
(4) → (द),
(5) → (स)।

  • एक शब्द/वाक्य में उत्तर

Hindi Sahitya Ka Pravesh Dwar MP Board Class 12th Special प्रश्न 1.
भारतेन्दु युग के कवियों की वाणी में कौन – सा स्वर मुखरित हुआ है?
उत्तर–
राष्ट्रीयता का स्वर।

आधुनिक काल की कविता MP Board Class 12th Special प्रश्न 2.
द्विवेदी युग में कौन – सी भाषा कविता की संवाहिका बनी?
उत्तर–
खड़ी बोली।

आधुनिक युग की काव्य प्रवृत्तियां MP Board Class 12th Special प्रश्न 3.
हिन्दी कविता में नवीन युग के सूत्रपात का श्रेय किस युग को प्रदान किया जाता है?
उत्तर–
छायावादी युग।

आधुनिक काल की प्रवृतियां MP Board Class 12th Special प्रश्न 4.
छायावादी काव्य में किन भावनाओं की प्रधानता है?
उत्तर–
सौन्दर्य तथा प्रेम – भावना।

आधुनिक काव्य की प्रवृत्तियाँ Pdf MP Board Class 12th Special प्रश्न 5.
महादेवी वर्मा के काव्य में प्रधान रूप से कौन – से स्वर मुखरित हैं?
उत्तर–
विरह – वेदना।

प्रश्न 6.
जयशंकर प्रसाद ने मूलत: अपने काव्य में किन भावों का अंकन किया है?
उत्तर–
सौन्दर्य,प्रेम, यौवन और श्रृंगार।

प्रश्न 7.
छायावादी युग के किस कवि ने क्रान्ति एवं विद्रोह का स्वर निनादित किया है?
उत्तर–
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’।

प्रश्न 8.
कामायनी किस युग की रचना है?
उत्तर–
आधुनिक छायावादी युग।

प्रश्न 9.
गजानन माधव मुक्तिबोध’ की रचनाएँ किस युग से सम्बन्धित हैं?
उत्तर–
प्रगतिवाद।

प्रश्न 10.
यथार्थ से पलायन का काव्य कौन – सा है?
उत्तर–
छायावाद।

  • (ख) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रगतिवादी साहित्य किस विचारधारा से प्रभावित है?
उत्तर–
प्रगतिवादी साहित्य साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित है।

प्रश्न 2.
दो छायावादी कवियों के नाम बताइये।
उत्तर–
(1) सुमित्रानन्दन पन्त,
(2) महादेवी वर्मा।

प्रश्न 3.
सुमित्रानन्दन पन्त किन – किन विचारधाराओं से प्रभावित थे?
उत्तर–
सुमित्रानन्दन पन्त गाँधीवाद,मार्क्सवाद एवं अरविन्द दर्शन से अत्यधिक प्रभावित

प्रश्न 4.
भारतेन्दु युग का अन्य क्या नाम है?
उत्तर–
भारतेन्दु युग को ‘पुनर्जागरण काल’ के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 5.
भारतेन्दु युग में काव्य की भाषा क्या थी?
उत्तर–
भारतेन्दु युग में काव्य की भाषा ब्रज थी।

प्रश्न 6.
आधुनिक काल के द्वितीय युग का नाम लिखिए।
उत्तर–
आधुनिक काल के द्वितीय युग का नाम द्विवेदी युग है।

प्रश्न 7.
द्विवेदी युग के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर–
द्विवेदी युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी माने जाते हैं।

प्रश्न 8.
द्विवेदीयुगीन दो महाकाव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर–
द्विवेदीयुगीन दो महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ और ‘साकेत’ हैं।

प्रश्न 9.
छायावाद का तात्पर्य समझाइए।
उत्तर–
संसार के किसी पदार्थ में एक अनजान शक्ति का प्रतिबिम्ब निहारना अथवा सको आरोपित करना छायावाद कहलाता है।

प्रश्न 10.
छायावादी काव्य के एक कवि एवं उसकी एक रचना का नाम बताइए।
उत्तर–
एक प्रमुख छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पन्त हैं एवं उनकी रचना लोकायतन’ है।

प्रश्न 11.
छायावाद का समय क्या माना गया है?
उत्तर–
छायावाद का समय सन् 1920 ई.से 1936 ई. माना गया है।

प्रश्न 12.
छायावाद की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर–
‘कामायनी’ तथा ‘परिमल’ छायावाद की प्रमुख दो रचनाएँ हैं।

प्रश्न 13.
छायावादी युग के दो श्रेष्ठ कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर–
जयशंकर प्रसाद एवं सुमित्रानन्दन पन्त छायावाद के दो श्रेष्ठ कवि हैं।

प्रश्न 14.
प्रगतिवादी कविता का विषय क्या रहा है?
उत्तर–
प्रगतिवादी कविता में निर्धन, मजदूरों तथा शोषितों का यथार्थ चित्रण हु

प्रश्न 15.
प्रगतिवादी काव्य की समयावधि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
प्रगतिवादी काव्य का समय सन् 1936 से लेकर 1943 तक स्वीकारा गया है।

प्रश्न 16.
प्रगतिवादी काव्यधारा के दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर–
प्रगतिवादी काव्यधारा के दो श्रेष्ठ कवि नागार्जुन तथा केदारनाथ अग्रवाल हैं।

प्रश्न 17.
प्रयोगवाद का प्रवर्तक किसे माना गया है?
उत्तर–
प्रयोगवाद का प्रवर्तक ‘अज्ञेय’ को माना गया है।

प्रश्न 18.
‘तार सप्तक’ का सम्पादन प्रथम बार कब और किसने किया?
उत्तर–
तार सप्तक’का प्रथम बार सम्पादन ‘अज्ञेय’ जी ने सन् 1943 में किया था।

प्रश्न 19.
प्रयोगवाद के एक कवि तथा उसकी एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर–
अज्ञेय’ प्रयोगवाद के प्रमुख कवि हैं। उनकी एक रचना का नाम ‘बावरा अहेरी’ है।

प्रश्न 20.
‘नई कविता’ के एक कवि तथा उसकी एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर–
नई कविता’ के प्रमुख कवि भवानीप्रसाद मिश्र हैं तथा उनकी एक रचना का नाम ‘गीत फरोश’ है।

  • (ग) लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दी कविता के आधुनिक विकासक्रम को विद्वानों ने किस प्रकार वर्गीकृत किया है? सर्वमान्य रूपों को लिखिए तथा यह भी बताइए कि हिन्दी साहित्य का प्रवेश द्वार किस युग को माना गया है? [2009]
उत्तर–
आधुनिक हिन्दी कविता के विकासक्रम को विभिन्न विद्वानों ने अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया है किन्तु सर्वमान्य रूप से इस विकास को अग्रलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
MP Board Class 12th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ img-8

भारतेन्दु युग हिन्दी कविता का जागरण काल है। इस युग को हिन्दी साहित्य का प्रवेश द्वार माना जाता है। इस युग में देशोद्धार, राष्ट्र – प्रेम, अतीत – गरिमा आदि विषयों की ओर ध्यान दिया गया और कवियों की वाणी में राष्ट्रीयता का स्वर निनादित होने लगा।

प्रश्न 2.
आधुनिक काल को कितने युगों में विभाजित किया गया है?
उत्तर–
आधुनिक काल को निम्नांकितं युगों में विभाजित किया गया है
(1) भारतेन्दु युग,
(2) द्विवेदी युग,
(3) छायावादी युग,
(4) प्रगतिवादी युग,
(5) प्रयोगवादी युग,
(6) नयी कविता।

प्रश्न 3.
भारतेन्दु युग के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। [2015, 16]
उत्तर–
भारतेन्दु युग के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(1) समाज सुधार का भाव,
(2) राष्ट्रीय चेतना,
(3) भक्ति भावना,
(4) प्रकृति चित्रण,
(5) ब्रजभाषा का प्रयोग,
(6) शृंगार वर्णन,
(7) स्वदेश – प्रेम।

प्रश्न 4.
भारतेन्दु युग के प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर–
भारतेन्द हरिश्चन्द्र प्रताप नारायण मिश्र चौधरी बद्रीनारायण ‘प्रेमघन’ ‘ठाकर जगमोहन सिंह’, राधाकृष्ण दास, अम्बिकादत्त व्यास आदि भारतेन्दु युग के प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 5.
भारतेन्दु युग को हिन्दी कविता का जागरण काल क्यों कहा जाता है?
उत्तर–
भारतेन्दु युग के कवियों की कविता में देशोद्धार, राष्ट्र – प्रेम, अतीत गरिमा आदि विषयों की ओर ध्यान दिया गया है। कवियों की वाणी में राष्ट्रीयता के स्वर मुखरित हैं। सांस्कृतिक,राजनीतिक एवं सामाजिक आन्दोलनों के फलस्वरूप हिन्दी काव्य में नयी चेतना तथा विचारों का समावेश हुआ।

प्रश्न 6.
द्विवेदी – युग के काव्य की चार विशेषताएँ बताइए। [2006]
उत्तर–
(1) वर्णन का प्राधान्य,
(2) अतीत के गौरव का बखान,
(3) आदर्शवादिता, और
(4) देश – प्रेम।

प्रश्न 7.
रूपसि तेरा घन केशपाश !
श्यामल – श्यामल कोमल – कोमल
लहराता सुरभित केशपाश !
उपर्युक्त में व्यक्त छायावाद की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर–
(1) सौन्दर्य का चित्रण,
(2) मानवीकरण,
(3) कोमलकान्त पदावली।

प्रश्न 8.
छायावाद के तीन कवियों के नाम उनकी एक – एक रचना सहित लिखिए।
उत्तर–
(1) जयशंकर प्रसाद कामायनी।
(2) सुमित्रानन्दन पन्त – युगवाणी।
(3) महादेवी वर्मा – दीपशिखा।

प्रश्न 9.
छायावादी कविता की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2009]
अथवा
छायावाद की चार विशेषताएँ लिखिए। [2012, 14, 17]
उत्तर–
(1) सौन्दर्य तथा प्रणय – भावनाओं का प्राधान्य।
(2) भाषा में लाक्षणिकता तथा वक्रता की प्रमुखता।
(3) बाह्यार्थ निरूपण के स्थान पर स्वानुभूति निरूपण की प्रमुखता।
(4) प्रकृति का सजीव सत्य के रूप में चित्रण तथा प्रकृति पर कवि द्वारा अपने भावों का आरोपण।
(5) छन्द विधान में नूतनता।।
(6) डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में, छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह था।”

प्रश्न 10.
छायावाद के चार प्रमुख कवियों के नाम बताइए।
उत्तर–
छायावाद के चार प्रमुख कवि –
(1) जयशंकर प्रसाद,
(2) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
(3) सुमित्रानन्दन पन्त, तथा
(4) महादेवी वर्मा हैं।

प्रश्न 11.
छायावादी कविता के ह्रास के प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर–
छायावादी कविता में प्रेम और सौन्दर्य का अति सूक्ष्म अंकन हो रहा था। काव्य में यथार्थ से परे रहस्यवादी प्रवृत्तियों की प्रधानता का समावेश हो गया था। जीवन से पलायन की प्रवृत्ति बढ़ गयी थी। प्रतीक और बिम्बों की अतिशयता थी। ये कारण ही छायावाद के हास के कारण बने।

प्रश्न 12.
रहस्यवाद की परिभाषा देते हुए रहस्यवादी कविता की चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
रहस्यवादी कविता की विशेषताएँ लिखिए। [2009, 15]
उत्तर–
परिभाषा – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है वही भावना के क्षेत्र में रहस्यवाद है।”
विशेषताएँ –
(1) विरह – वेदना की अभिव्यक्ति।
(2) आधुनिक काल में रहस्यवादी कविता व्यापक स्वच्छन्दतावादी काव्य क्षेत्र के अन्तर्गत समाविष्ट है।
(3) कविता में अप्रस्तुत योजना की नतनता है।
(4) रहस्यवादी कविता में बौद्ध दर्शन के अतिरिक्त उपनिषदों का प्रभाव भी परिलक्षित है।

प्रश्न 13.
छायावाद तथा रहस्यवाद में अन्तर लिखिए। [2010]
उत्तर–
छायावाद तथा रहस्यवाद में अन्तर इस प्रकार है-
MP Board Class 12th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ img-9

प्रश्न 14.
प्रगतिवादी काव्य का परिचय दीजिए।
उत्तर–
अतिशय भावुकता का विरोध,स्थूल भौतिक जगत की यथार्थता का वर्णन,शोषण के प्रति आक्रोश तथा सामाजिक विषमताओं पर तीव्र प्रहार करने की प्रवृत्ति वाले हिन्दी काव्य को प्रगतिवादी काव्य कहा जाता है।

प्रश्न 15.
पाँच प्रगतिवादी कवियों के नाम बताइए।
उत्तर–
पाँच प्रगतिवादी कवि हैं –
(1) नागार्जुन,
(2) रामधारी सिंह ‘दिनकर’,
(3) नागार्जुन,
(4) शिवमंगल सिंह ‘सुमन’,
(5) निराला।

प्रश्न 16.
दो प्रगतिवादी कवियों के नाम लिखिए तथा उनकी एक – एक रचना का नाम भी लिखिए।
अथवा
प्रगतिवाद की विशेषताएँ बताते हुए दो प्रमुख कवियों के नाम तथा उनकी एक – एक रचना लिखिए। [2009, 11, 13]
उत्तर–
प्रगतिवाद की विशेषताएँ –
(1) प्रगतिवादी काव्य में यथार्थ का चित्रण है।
(2) इस काव्य में रूढ़िवादी विचारधाराओं का जमकर विरोध किया गया है।
(3) मानव की समानता में आस्था।
MP Board Class 12th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ img-10

प्रश्न 17.
प्रगतिवाद की चार विशेषताएँ लिखिए। [2017]
उत्तर–
प्रगतिवादी काव्य की चार विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
(1) सड़ी – गली रूढ़ियों का विरोध।
(2) शोषण तथा अन्याय के प्रति रोष।
(3) साम्यवाद से प्रभावित।
(4) मानव की समानता में आस्था।

प्रश्न 18.
प्रगतिवादी काव्यधारा से आप क्या समझते हैं? दो प्रगतिवादी कवियों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर–
प्रगति शब्द का अर्थ है – चलना, आगे बढ़ना। अर्थात् यह वह वाद है जो आगे बढ़ने में विश्वास रखता है। प्रगतिवाद में साम्यवादी दृष्टिकोण को साहित्यिक विचारधारा के रूप में स्वीकार किया गया है। प्रगतिवादी काव्य की संज्ञा उस कविता को प्रदान की गई है जो कि छायावाद के समापन काल में सन् 1936 के आस – पास सामाजिक चेतना को लेकर अग्रसर हुआ। प्रगतिवादी कविता में राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक शोषण से मुक्ति का स्वर प्रमुख है। इस कविता पर मार्क्सवाद का प्रभाव है।

दो प्रगतिवादी कवि हैं – सुमित्रानन्दन पन्त, नागार्जुन।

प्रश्न 19.
कुछ प्रमुख महाकाव्यों एवं उनके रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर–
MP Board Class 12th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ img-11

प्रश्न 20.
‘तार सप्तक’ से क्या आशय है? समझाइए।
उत्तर–
सन् 1943 ई.में प्रथम बार तार सप्तक’ के प्रकाशन के साथ हिन्दी में प्रयोगवाद का आरम्भ हुआ। यही धारा विकसित होकर 1952 – 54 तक ‘नयी कविता के रूप में स्थापित हो गयी। आज इसी का युग चल रहा है। इसकी मुख्य विशेषताएँ ये हैं – अतिवैयक्तिकता. यथार्थवाद, बौद्धिकता का आग्रह, विद्रोह का स्वर, यौन भावनाओं का मुक्त चित्रण, सामाजिक विषमता पर व्यंग्य विचित्रता का प्रदर्शन प्रकृति का बहुविधि चित्रण,भावों और भाषा का अनगढ़ रूप,भदेसपन,प्रतीकात्मकता, नवीन उपमान तथा भाषा शैली के नये प्रयोग।

प्रश्न 21.
प्रयोगवादी कविता की विशेषताएँ लिखिए। [2009]
अथवा
प्रयोगवाद की विशेषताएँ बताते हुए दो प्रयोगवादी कवियों के नाम लिखिए। [2012]
अथवा
प्रयोगवादी काव्य की तीन प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख दो प्रमुख कवियों के नाम, उनकी एक – एक रचना के साथ लिखिए। [2013]
उत्तर–
प्रयोगवाद की विशेषताएँ –
(1) प्रयोगवादी कविता पर मार्क्सवादी प्रभाव परिलक्षित है।
(2) इस काव्य में सजग एवं गहरी पीड़ा का बोध है।
(3) प्रयोगवादी कविता भावुकता के स्थान पर बौद्धिकता पर विशेष बल देती है।
(4) फ्रायड के काम सिद्धान्त को सर्वोपरि रूप में स्वीकार किया गया है।
MP Board Class 12th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ img-12

प्रश्न 22.
‘प्रयोगवाद’ का प्रारम्भ काल बताइए तथा उसकी प्रमुख प्रवृत्ति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
‘अज्ञेय’ के सम्पादन में प्रकाशित ‘तार सप्तक’ के साथ सन् 1943 ई. से ‘प्रयोगवाद’ का प्रारम्भ माना गया है। प्रयोग के प्रति आग्रह इस कविता की प्रमुख प्रवृत्ति है।

प्रश्न 23.
प्रयोगवादी कवियों का नाम उल्लेख करते हुए उनकी प्रमुख वृत्तियों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर–
प्रयोगवाद के प्रमुख कवि अज्ञेय, धर्मवीर भारती, भारत भूषण, नरेश मेहता, प्रभाकर माचवे आदि हैं। उनके काव्य में अतिवैयक्तिकता, बौद्धिकता, यथार्थवादिता,स्वार्थपन, विद्रोह,नग्न श्रृंगार, भदेसपन आदि वृत्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। इन कवियों ने प्राचीन का विरोध किया है। भाषा तथा शैली का अनगढ़ विकृत रूप भी इनके काव्य में दिखायी पड़ता है।

प्रश्न 24.
प्रयोगवादी और प्रगतिवादी काव्य में कोई तीन अन्तर लिखिए।
उत्तर–
प्रयोगवादी काव्य में कवि प्रतीक, बिम्ब,शब्द चयन और कथन की विचित्र भाव भंगिमा द्वारा मानव मन की कुंठा की अभिव्यक्ति होती है। इस काव्य में घोर व्यक्तिवाद होता है और इसमें निराशावादी दृष्टिकोण पाया जाता है जबकि प्रगतिवाद पूँजीपति वर्ग के प्रति घृणा व्यक्त करता है,शोषित वर्ग की दीन – हीन दशा का वर्णन करता है और नारी के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण का चित्रण करता है।

प्रश्न 25.
नई कविता की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर–
(1) नई कविता जीवन के हर क्षण को सत्य ठहराती है।
(2) नई कविता की को वाणी अपने परिवेश के जीवन अनुभव पर आधारित है।
(3) नई कविता लघु माननत्व को स्वीकार करती है।
(4) नई कविता में जीवन मूल्यों की पुनः परीक्षा की गयी है।

प्रश्न 26.
नई कविता एवं प्रयोगवादी कविता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–
नई कविता ने प्रगतिवाद की तरह विशेष क्षेत्रों में विशिष्ट शब्द नहीं लिए हैं। समस्त प्रकार के प्रश्नों हेतु लोक शब्दों का चयन किया है। प्रयोगवाद बोझिल शब्दावली को लेकर चलता है। प्रयोगवादी कविता में मध्यवर्गीय जीवन के संघर्ष को बौद्धिकता के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है।

प्रश्न 27.
यह पहाड़ी, पाँव क्या चढ़ते इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीजे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है।
उपर्युक्त पंक्तियों को किन कारणों से नयी कविता कहा जा सकता है?
उत्तर–
नयी कविता में भाषा की सरलता, बिम्बात्मकता और प्रतीक योजना होती है। क्षण की अनुभूति को कविता का आकार दिया जाता है। इन पंक्तियों में नयी कविता की ये विशेषताएँ हैं। इसलिए इनको नयी कविता कहा जा सकता है।

प्रश्न 28.
‘नई कविता’ के प्रमुख कवियों तथा उनकी प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर–
नई कविता’ के प्रमुख कवि एवं उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
MP Board Class 12th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ img-13

प्रश्न 29.
‘नई कविता’ की दो विशेषताएँ बताते हुए दो प्रमुख कवियों के नाम तथा उनकी एक – एक रचना का नाम लिखिए। [2010]
अथवा
नई कविता की तीन विशेषताएँ बताते हुए दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए। [2014]
उत्तर–
नई कविता’ के प्रमुख कवि एवं उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं –
(1) नई कविता जीवन के हर क्षण को सत्य ठहराती है।
(2) नई कविता की को वाणी अपने परिवेश के जीवन अनुभव पर आधारित है।
(3) नई कविता लघु माननत्व को स्वीकार करती है।
(4) नई कविता में जीवन मूल्यों की पुनः परीक्षा की गयी है।

प्रश्न 30.
लोकगीतों की कोई दो विशेषताएँ लिखिए। [2012]
उत्तर–
लोकगीतों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं
(1) लोकगीत अधिकांशतः सामूहिक रूप में ही माने जाते हैं।
(2) लोकगीत लोक मानस के भावों और विचारों को प्रकट करने की सक्षम विधा है।
(3) लोकगीतों में जीवन का उल्लास, विषाद, भक्तिभावना, हास्य – व्यंग्य, प्रेम, प्रकृति, आक्रोश आदि भावों का समावेश रहता है।
(4) लोकगीत सामाजिक परम्पराओं में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th English A Voyage Solutions Chapter 2 The Diamond Necklace

MP Board Solutions for 12th English Chapter 2 The Diamond Necklace Questions and Answers aids you to prepare all the topics in it effectively. You need not worry about the accuracy of the Madhya Pradesh Board Solutions for 12th English as they are given adhering to the latest exam pattern and syllabus guidelines.

You Can Download MP Board Class 12th English Solutions Questions and Answers Notes, Summary, Lessons: Pronunciation, Translation, Word Meanings, Textual Exercises. Enhance your subject knowledge by preparing from the Chapterwise MP Board Solutions for 12th English and clarify your doubts on the corresponding topics.

MP Board Class 12th English A Voyage Solutions Chapter 2 The Diamond Necklace (G.D. Maupassant)

Kick start your preparation by using our online resource MP Board Solutions for 12th English Chapter 2 The Diamond Necklace Questions and Answers. You can even download the Madhya Pradesh Board Class 12th English Solutions Questions and Answers for free of cost through the direct links available on our page. Clear your queries and understand the concept behind them in a simple manner. Simply tap on the concept you wish to prepare in the chapter and go through it.

The Diamond Necklace Textbook Exercises

Word Power

A. Mathilde has been described as a pretty girl. The zoords-pretty, beautiful and gorgeous convey almost the same idea ‘good-looking’ but the intensity of the idea is different. Rearrange the words in each group from the least to the highest intensity;
1. distinguished, well-known, famous.
2. exhausted, tired, sluggish.
3. exquisite, dainty, graceful.
4. torturous, oppressive, troubling.
5. magnificent, beautiful, stunning.
6. priceless, costly, precious.
7. ecstasy, gladness, happiness.
8. bewildered, puzzled, disoriented.
9. shocked, thunderstruck, amazed.
10. proud, self-satisfied, egoistical.
Answer:

  1. well-known, famous, distinguished.
  2. tired, sluggish, exhausted:
  3. graceful, exquisite, dainty.
  4. troubling, oppressive, torturous.
  5. beautiful, magnificent, stunning.
  6. costly, precious, priceless.
  7. happiness, gladness, ecstacy.
  8. puzzled, disoriented, bewildered.
  9. shocked, amazed, thunderstruck.
  10. self-satisfied, proud, egoistical.

B. In each set of words given below, one word is the exactly opposite of the first word. The rest are nearer to each other in meaning. Identify them and put them in the proper columns in the table given below:
(i) strange, weird, familiar, odd.
(ii) ancient, primeval, modern, ageless.
(iii) envy, prejudice, jealousy, goodwill.
(iv) delicious, tasteless, sumptuous, delectable.
(u) irritated, exasperated, unperturbed, vexed.
(vi) convinced, uncertain, sure, certain.
(vii) queer, peculiar, bizarre, commonplace.
(viii) homage, reverence, disrespect, tribute.
(ix) charming, appealing, delightful, unattractive.
(x) impertinence, brazenness, insolence, respect.
Answer:

Word Antonym Words nearer to each other in meaning
strange
ancient
envy
delicious
irritated
convinced
queer
homage
charming
impertinence
familiar
modem
goodwill
tasteless
unperturbed
uncertain
commonplace
disrespect
unattractive
respect
weird
primeval
prejudice
delectable
vexed
sure
peculiar
tribute
delightful
brazenness
odd
ageless
jealousy
sumptuous
exasperated
certain
bizarre
reverence
appealing
insolence

C. The words given below have more than one meaning. Use each of them in two separate sentences of your own to bring out different meanings:
dress, rank, sight, heat, bore, company, shoot, pale, shop, paste.

  • Dress : (i) His dress is wonderful.
    (ii) She dressed herself in a modest way.
  • Rank : (i) Jack holds a high rank in army.
    (ii) I was ranked second in the race.
  • Sight : (i) This awful sight depressed me.
    (ii) An unidentified flying object was sighted last month
  • Heat : (i) The heat of the water is unbearable.
    (ii) Heat the water for tea.
  • Bore : (i) Ramesh is a great bore to everyone.
    (ii) I was extremely bored with that movie.
  • Company: (i) My father is CEO in a software company.
    (ii) Avoid bad company to make your future bright.
  • Shoot : (i) I was invited to host a photo shoot expo.
    (ii) Shoot the tiger.
  • Pale : (i) He became pale due to the disease.
    (ii) His face was paled at this news.
  • Shop : (i) There is no good book shop in my 1ocality
    (ii) My friends like to shop in the weekend.
  • Paste : (i) Mustard paste is good for skin.
    (ii) Don’t paste the ticket here.

A. Answer the following questions in one sentence each:

The Diamond Necklace Class 12 MP Board Question 1.
Who was Mathilde married to?
Answer:
Mathilde was married to Mr Loisel, a clerk.

The Diamond Necklace Questions And Answers MP Board Class 12th Question 2.
Where was Mathilde’s husband employed?
Answer:
Mathilde’s husband was employed in the Ministry of Public Instruction.

The Diamond Necklace Questions And Answers Pdf MP Board Class 12th Question 3.
Why did Mathilde wear plain dresses?
Answer:
Mathilde wore plain dresses because she couldn’t afford costly ones.

Class 12 English Chapter 2 The Diamond Necklace MP Board Question 4.
What was there in the envelope Mathilde’s husband gave her?
Answer:
There was an invitation card to a party in the envelope.

The Diamond Necklace Class 12 Summary MP Board Question 5.
How much money did Mathilde ask for from her husband to buy a gown?
Answer:
Mathilde asked for four hundred francs from her husband to buy a gown.

Mp Board Class 12 English Chapter 2  Question 6.
When did the couple go to the ministerial ball?
Answer:
The couple went to the ministerial ball at night.

The Diamond Necklace Question Answer MP Board Class 12th Question 7.
How much did the necklace at Palaise Royale cost?
Answer:
The necklace at Palaise Royale costed forty thousand francs.

The Diamond Necklace Chapter MP Board Class 12th Question 8.
How did Madame Forestier react when Mathilde returned the necklace?
Answer:
When Mathilde returned the necklace Madame Forestier reacted that she (Mathilde) should have returned it sooner. She (Forestier) might have needed it.

Class 12 English Chapter 2 Question Answer Mp Board Question 9.
How long did it take Mathilde and Loisel to repay the cost of the necklace?
Answer:
It took ten years for Mathilde and Loisel to repay the cost of the necklace.

The Diamond Necklace Summary In Hindi MP Board Class 12th Question 10.
What was the actual cost of the necklace?
Answer:
The actual cost of the necklace was only five hundred francs.

B. Answer the following questions in about 60 words each:

Question 1.
Was Mathilde dissatisfied with her life? What makes you think so?
Answer:
Yes, Mathilde was dissatisfied with her life as she was extraordinarily pretty and charming girl. As, she had been born into a family of unfavourable economic status had no dowry to pay, so she was destined to marry an ordinary clerk. She had lost all her hopes and aspirations. She had no means to fulfill her desires. She had no beautiful dresses to flaunt. There was no one to praise her beauty. She longed for luxuries and led an ordinary life.

Question 2.
What things did Mathilde resent in her life? (M.P. Board 2009)
Answer:
There were many things that Mathilde resented all her life. But the most important of it was her being born and married in an ordinary family devoid of all the luxuries. She had no good and costly dresses, She had poor dwellings. But unluckily, she was destined to live in a wretched house with barren walls. She had shabby chairs and ugly curtains. She had no rank and profile in society. Seeing her rich and well off married friends tortured her and made her angry.

Question 3.
On receiving the invitation to the-ball, Mathilde wept. Why? (M.P. Board 2010)
Answer:
When Mathilde’s husband, Mr. Loisel brought the invitation to the ball, she wept instead of being delighted because she had no jewels, no gowns, and nothing of the sort that can match the grand party. She resent being married to such an ordinary man as she was a lady with high ambitions.

Question 4.
Describe Mathilde’s feelings while she was sifting through her friend’s jewellery.
Answer:
Mathilde on the advice of her husband went to borrow some ornaments for the ball from her friend Madame Forestier. Since Mathilde was not rich enough to buy the jewellery for herself she get really happy to see a large collection of ornaments that her friend had. She tried each and every ornament and was lost in them. She enjoyed while sifting through her friend’s jewellery. She was feeling hesitated and did not wish to part from the jewellery or give them back. Her interest was at its peak and can be understood by her statement “Haven’t you anymore?” Which not only shows how much she enjoyed trying the jewellery but also her hidden desire to possess one.

Question 5.
How did Mathilde fare at the ball? (M.P. Board 2011)
Answer:
At the party Madame Loisel was a great success. She was prettier than any other woman
present. She was elegant, graceful, smiling and filled with joy. Everyone was attracted to her and wished to be familiar with her. The attaches of the cabinet wished to dance with her. Even the minister himself was attracted to her. She fared well more than she had thought for.

Question 6.
Why did Mathilde not take a cab at the minister’s house but took one on the quay?
Answer:
Mathilde did not take a cab at the minister’s home but took one on the way since she was ashamed of her low status and felt embarrassed before other ladies. Her modest wraps reminded her of their poor earnings and ordinary life. She wanted to hide her poverty which was continuously reminded to her through her wrap. She wanted to avoid the remarks of other women who enveloped themselves in fine fur. She wanted to escape from that place as soon as possible and did not care about the cold and went till the quay to get one cab.

Question 7.
What efforts did Loisel make to find the necklace?
Answer:
It was really very shocking for them to lose the necklace. They were nervous. They looked among the folds of Mathilde’s skirt, of her cloak, in her pockets and everywhere but all in vain. The necklace was found nowhere. Loisel made all his efforts. He followed the cab. He went around the minister’s house. He went to the police headquarter, to the newspaper offices to offer reward. He did everything but could not find the necklace.

Question 8.
How did Loisel arrange the money for the necklace?
Answer:
The couple had to face great trouble after the diamond necklace was lost. They found a similar one in a jewellery shop. Its cost was forty thousand francs which was really a huge amount for them. They bargained it for thirty-six thousand francs. Loisel had eighteen thousand francs his father had left for him. He had to borrow a thousand francs of one, five hundred of another, five louis here, three louis there. He gave notes, took up ruinous obligation, dealt with usures and all the race of lenders. In this way, he could manage the cost of the necklace.

Question 9.
How did Mathilde and Loisel repay the cost of the necklace? (M.P. Board 2012)
Answer:
Mathilde and Loisel had to pay a very heavy price to meet the cost of the new necklace. The arrangement of the money for the necklace proved to be a ruin for the rest of their life. They had to compromise for the whole life thereafter. They dismissed their servants, changed their lodgings and rented a garrage under the roof. Mathilde did all the household work herself. She washed the dishes, soiled linen, the shirts, and the discloths and carried water. She dressed like a common woman, went to fruiter, the grocer, the butcher and everywhere and bargained for every sou. Loisel himself worked in the evenings making up tradesman’s account and late at night often copied manuscript for five sous a page. It took ten years for them to compensate the loss.

Question 10.
What change did the ordeal of repaying bring about in Mathilde?
Answer:
The loss of the necklace took a heavy toll to the life of the Loisels. Mathilde and Loisel over strained themselves. As a result they grew old prematurely. Specially Mathilde had 1 become the woman of impoverished households. She looked strong and rough with frousy hair, skirts, askew and red hands. She talked loud washing on the floor with great swishes of water. She lost all her beauty and charm in due course.

C. Answer the following questions in about 75 words each:

Question 1.
How would you rate Mathilde as an ambitious woman or as an honest woman? Justify
your answer.
Answer:
Mathilde was a pretty and extraordinarily charming lady with high hopes. She was over- ambitious. But by ill-luck she had to compromise with her poverty Once when she got a chance she wished to quench her thirst of ambitions. In the story, The Necklace, Mathilde borrowed a necklace from her rich friend Madame Forestier to show off herself in the party. Unfortunately, she lost it. She had to spend thirty-six thousand francs to replace it. She was forced to undergo various difficulties to pay the debt of eighteen thousand francs. She had to shift to a cheaper one room house and remove her servant.

Mathilde and her husband had to lower their standard of living for full ten years. She looked older than her age. But in the end she found from her friend that the cost of necklace was only five hundred francs because its diamonds were not original. In this way her over- ambitious nature and her love for ornaments was responsible for her difficult life. At least for ten years they took to repay the debt.

Question 2.
What kind of husband was Loisel?
Answer:
Loisel is a caring and loving husband. He is a simple man. He is not over-ambitious like Mathilde. He would very happily relish the potpie, while she would think of rich life. When Mathilde refuses to go to the party, he tries his best to make her agree. He gives her four hundred francs to buy a pretty gown. This amount he had been saving to purchase a gun for himself. On the day of the ball, Mathilde again grumbles that she has no ornaments to wear for this occasion.

Then he suggests her that she can borrow it from her rich friend Madame Forestier. In the party, whereas Mathilde danced up till four o’clock in the morning, Loisel was half asleep in a small room since midnight. When he comes to know about the lost necklace, he does not rebuke his wife. Rather, to pay off the debt of eighteen thousand francs, he overworked for ten years and suffered other inconveniences like shifting to a smaller house. Therefore, we can say that Loisel was a simple man, who loved his wife tremendously.

Question 3.
Do you think it was unfortunate for Mathilde to have married Loisel? Why?
Answer:
Mathilde was an extraordinary girl with all the charms and beauty. But her fate made her compromise with the reality of life. She had to marry a middle class poor clerk working with the Ministry of Public Instruction. Loisel was a devoted and loving husband who made sure that his wife never compromises. He was understanding of her sentiments and compromised with his desires to fulfill his wishes.

He willingly gave his savings of four hundred franes to her for her lavish ball gown when she lost the necklace, he didn’t loose his colours and put all his efforts to search the necklace. He worked hard for ten years to pay off for the diamond necklace she had to bought as she lost the original necklace. She was very fortunate in her marriage as she had as honest man whose life revolved around his wife. It was her own high ambitions and misdesires which lead to so much sorrow, pain and stroggle in her life.

Question 4.
In what way was Madame Forestier different from Madame Loisel?
Answer:
Madame Forestier and Madame Loisel both are contrary to each other. Madame Forestier is a rich and high profile lady. She is completely materialisitc and formal. When Madame Loisel goes to ask her for jewellery, she shows her affluency putting a large jewel box before her and says, “Choose my dear,”. She is very much formal with Mathilde. Mathilde takes a diamond necklace from her for the party, which unluckily she loses. Mathilde replaces the necklace with great trouble.

When she goes to return it Madame Forestier very rudely says, that she should have returned it sooner and that she might have needed . it. Towards the end when Mathilde tells her misery to her she simply says that her necklace was a paste.. On the other hand, Madame Loisel is an honest lady. She is informal. She hesitates to go to Forestier after losing the necklace and manages to replace it with the Same one which costed her thirty six thousand francs. It ruined her life. She feels stunned when she comes to know that the necklace was artificial. She is simple and hard working too.

Question 5.
What do you think would have happened if Mathilde had not lost the necklace that night?
Answer:
Mathilde had borrowed the necklace from her rich friend Madame Forestier to wear at the party. Unluckily the necklace was lost by her. To get a new necklace they had to . borrow eighteen thousand francs on a higher rate of interest to repay the debt they had to lead miserable life for ten long years.

Had Mathilde not lost the necklace, her husband would not have borrowed money and their life would have been better. Though they would not have led a luxurious life, yet they would, at least, have been free from the hard difficulties of life. They would not have had to shift to a cheap one room house and put so much hard labour.

They still would have had a servant in the house and Mathilde would not have to do all the household work by herself. Her husband would not have had to work in the evening and late in the night. She would not have had to toil hard and become rough and old. Mathilde would have remained charming and equally ambitious and would never have understood the pains of miserable life.

Grammar

A. When Loisel meant to say that Mathilde had not dropped the necklace in the street, he said, “If you had lost it in the street, we should have heard it fall,”
English can express three important ideas with ‘If.

Type 1: Open condition: Conditionals of this type tell us that something will happen if a certain condition is fulfilled ‘If you study hard, you will get a first class.’
Type 2 : Improbable or Imaginary Condition: We use conditionals of this type when we talk about something which we don’t expect to happen or which is purely imaginary ‘If you studied hard, you would get a first class.’
Type 3: Unfulfilled Condition: We use these conditionals when we mean to say that something did not happen because a certain condition was not fulfilled—’If you had studied hard,, you would have got a first class’.
But you didn’t! Why? Because you didn’t work hard.
Now convert the following sentences given in Type 1 conditional form into the other two forms. The first one is done for you.

(i) He will come if you ask.
He would come if you asked.
He would have come if you had asked.
(ii) If you ring the bell, the servant will come.
(iii) You’ll catch the train if you hire a taxi.
(iv) I shall come and see you if I have time.
(v) If my father allows me, I will come to the party.
(in) If you go to town, will you buy something for me?
(vii) If you step on the dog’s tail, it will bite you.
(viii) We shall be pleased if our school wins.
(ix) The soldiers will fight bravely if they understand the orders. .
(x) If he buys a motorcycle for Rs.10,000 and sells it for Rs.12,000, he’ll make a good profit.
Answer:
(ii) If you rang the bell, the servant would come.
If you had rung the bell, the servant would have come.
(iii) You would catch the train if you hired a taxi.
You would have caught the train, if you had hired a taxi.
(iv) I should come and see you if I had time.
I should have come and see you if I had had time.
(v) If my father allowed me, I would come to the party.
If my father had allowed me, I would have come to the party.
(vi) If you went to town, would you buy something for me?
If you had gone to town, would you have bought something for me?
(vii) If you stepped on the dog’s tail, it would bite you.
If you had stepped on the dog’s tail, it would have, bitten you.
(viii) We should be pleased if our school won. .
We should have been pleased if our school had won.
(ix) The soldiers would fight bravely if they understood the orders.
The soldiers would have fought bravely if they had understood the orders.
(x) If he bought a motorcycle for Rs. 10,000 and sold it for Rs. 12,000, he would make a good profit. If he had bought a motorcycle for Rs. 10,000 and had sold it for Rs.12,000, he would have made a good profit.

B. Try to read the following excerpt:
i have i have ive lost madame forestiers necklace she cried he stood up bewildered what how impossible
This excerpt is unpunctuated. It is difficult to understand the meaning of this excerpt clearly. Let us now read it in the punctuated form:
“I have-I have-I’ve lost Madame Forestier’s necklace,” she cried. He stood up, bewildered. “What!-how? Impossible!”
Now we can easily understand the excerpt. So punctuation makes our expression clearer and easier to follow. We use stops or marks of punctuation to separate one sentence from another, or one part of a sentence from another part. You have studied them in detail in previous classes. However, given below are the main marks of punctuation to refresh your memory.
The main marks of punctuation are:

  • Fullstop (.)
  • Comma (,)
  • Semicolon (;)
  • Colon (:)
  • Mark of interrogation (?)
  • Mark of Exclamation (!)
  • Quotation marks or inverted commas (” “)
  • Dash (—)
  • Hyphen (-)
  • Parenthesis and the Apostrophe (‘)

Now punctuate the following:
1. the teacher said Mary have you done the sums many said no madam i did not understand them
2. why is a river so rich asked tarunrita said a river is rich because it has two banks
3. a father had two sons the elder was wise clever and diligent the younger was foolish lazy and careless one day the father called the younger son and said why do you waste your time doing nothing
4. the man was angry with his servant and said why have you again disturbed me in my sleep i am very sorry sir excuse me this time said the servant
5. the laws of most countries today are split into two kinds criminal law and civil law
Answer:

  1. The teacher said, “Mary! Have you done the sums?” Mary said, “No madam! I did not understand them.”
  2. “Why is a river so rich?” asked Tarun. Rita said, “A river is rich because it has two banks.”
  3. A father had two sons. The elder was wise, clever and diligent. The younger was foolish, lazy and careless. One day, the father called the younger son and said, “Why do you waste your time doing nothing?”
  4. The man was angry with his servant and said, “Why have you again disturbed me in my sleep?” “I am very sorry sir, excuse me this time”, said the servant.
  5. The laws of most countries today are split into two kinds—criminal law and civil law.

Speaking Activity

A. Work in groups of four or five. List the points for and against the topic ‘Ambition leads a man to success’. Half the number of groups should work for’ and the other half ‘against’ the motion. Present your views in the class in the form of a debate.
Answer:
A. Do at class level. Some points are given below:
For:

  • Ambition gives determination.
  • Ambition makes one plan systematically.
  • One finds ways to fulfill the ambition.
  • Ambition makes one courageous, enthusiastic and meticulous.
  • One labours hard to reach the zenith.
  • Without ambition one can never succeed.

Against:

  • Ambition may lead to corruption.
  • It may create evil ways for one to reach the top.
  •  One may be blind to one’s ambition.

B. Present before the class a short speech on your ambition(s) and how you intend to achieve it (them).
Answer:
I am a student of class XII. Right from the very beginning, I nourish an ambition to climb Mount Everest. I am determined for it. I have gone under various training for it. I am trying to build my body well enough to climb the height of the Everest. I am also trying to cultivate perseverance in myself. Next year, I shall go for a mountaineering expedition. It will show me the way. My parents and friends are all giving me support and courage for it. I hope to be the youngest to achieve this success.

Writing Activity

A. You are Mathilde. You have just returned from the ball and found that the necklace you borrowed from your affluent friend is missing. Write down your feelings in the form of a diary entry.
Answer:
25th June, Sunday 4 a.m.
I have just come back from the party of the Minister of Education. Oh! what a wonderful experience I had! For the first time in my life I felt what I am. Since I got married to Mr. Loisel, I had never thought, I am so pretty. For the party, I had borrowed a diamond necklace from my friend Madame Forestier. I was so charming that everyone including the Minister himself came closer to me. After all, it was an unforgettable moment. But as I came back home, I found the necklace missing. I was shocked. All my happiness disappeared. My husband tried to search for it everywhere but all in vain. I don’t understand what would we do to return the necklace. Now I feel my husband was right when he told me to wear flowers. However, the mistake has been committed and now, I can do nothing except accepting the tough trolling ahead. I am very upset. I am also afraid, how will I confront Madame Forestier.

B. Write a notice for display at prominent places as Mathilde would have put up when the necklace was lost.
Answer:
Notice
Lost! – Lost!! – Lost!!!
A beautiful diamond necklace has been lost somewhere on the Circular Road between the house of the Minister of Education and the Church Gate on Sunday night. If anyone finds it, please inform or meet at the address given below. The person will be rewarded.
Mathilde
Contact:
C1/M225,
Circular Road
Near Church Gate, Bhopal
Phone No : 9414311921

Think it over

A.What is the moral of the story, The Diamond Necklace? Should all good stories teach a lesson?
Answer:
The Diamond Necklace is a story that tells the tragic effect of one’s over-ambition. Mathilde and her husband Mr Loisel are the protagonists. Mathilde is a pretty and charming lady with not so good fate. As she had no dowry, she was destined to marry a poor middle class man. Her husband is a clerk in the Ministry of Instruction. She has suppressed her expectation but once she gets a chance to attend to a party arranged by the Minister of Instruction himself.

She borrows a diamond necklace from one of her rich friends. She loses it and it brings the ruin to all her charm. She replaces the necklace by spending thirty-six thousand francs. She and her husband over strain themselves to repay the borrowed amount. It takes ten years to overcome the nightmare. Had she not borrowed the necklace, she would not have suffered so much. At last, she comes to know that the diamond necklace, that she lost was artificial costing not more than five hundred francs.

So, she lost her life for a fake thing. Hence, the moral of the story is that we must realize our reality. We should never wish too much for things beyond our capacity. Never borrow from others and adjust within your limits and be happy.

Yes, I feel that all the good stories should teach a lesson as in that way we can understand how good or bad we behave in the society. Moral values are degrading day by day in our society. These stories will help in reaffirming the lost morals of our society.

B. Some of your friends may be good at imitating others speech, mannerism, etc. Such children are often popular among peers but seldom among elders. Why?
Answer:
Some of the children imitate others. They can be interesting and funny among their friends. It is for the limited time that they are taken to be genius and get appreciation from their friends but the elders never like them. It is because they know that imitation is not a good tendency. It may lead to corrupt one. It may promote bad habits among children. One should develop one’s own talent and skills. It provides originality which lasts long.

Things to Do

Etymology is the study of the origin and development of a word, a prefix, a suffix etc., Look up for the word coquettish in a good dictionary. It is the adjective of the word coquette, which itself is mid-17th century French feminine of coquet derived from coq meaning ‘a little cock’.

Find out the roots of the following words and write them under the proper heading: radius, democracy, petite, capital, chalet, pneumonia, regal, delta, discotheque, axis, charade, philosophy, lymph, restaurant, anthrax.
Answer:

French Latin Greek
petite radius democracy
chalet axis capital
discotheque lymph delta
restaurant regal philosophy
charade pneumonia
anthrax

The Diamond Necklace by G.D. Maupassant Introduction

This story is about the irony of the Me in the life of a woman called Mathilda Loisel. She is very ambitious. In order to show her off in a ball she borrows a diamond necklace. Eventually she loses it in the party. She along with her husband does hard labour to purchase a similar diamond necklace. In the end, she is Rocked to know that the necklace that she had lost was artificial.

The Diamond Necklace Summary in English

Mathilde Loisel was a beautiful, young lady. She was born in a middle class family. She was very ambitious. She thought that she had nothing to feel proud of. It was not possible for her to marry a rich man. So, she got married to a clerk. This clerk was serving in the Ministry of Public Instruction. Mathilde, being highly ambitious, was not happy because she could not lead a luxurious life. She had to wear simple clothes and had to live in a mediocre apartment with shabby walls and shabby furniture and curtains. She was jealous of her own schoolmates who were rich.

She felt small and would weep after visiting them.One day, her husband brought her an invitation card. But she was not very happy because she had no good and beautiful clothes to wear on the occasion. So, her husband arranged to buy a gown for her for 400 francs. He had saved this money to buy a gun for himself. As the date for the party came near, she looked sad again. It was because she had no jewellery befitting the occasion. She thought that she would be considered a poor lady in the party. Her husband advised her to borrow some ornaments from her rich friend Madame Forestier. Poor Loisel liked this suggestion. Next day she went to her friend’s house and borrowed a diamond necklace.

She attended the ball with her husband and everyone was paying attention to her. She was the prettiest of all the women present there. All the men were fascinated with her charm. They wanted to be introduced to her. All the officials of the Ministry expressed their desire to dance with her. Even the minister took notice of her.

She was intoxicated by pleasure. She was greatly excited and happy. She danced with passion. She forgot everything in the victory of her beauty and felt elated over her success. She danced and danced in the hall till about four o’clock in the morning. When she had finished, her husband threw the modest shawl he had brought for her. After reaching home, she stood before the mirror. She wanted to see herself once more in all her glory. However, she was shocked to see that there was no necklace around her neck and then cried in dismay.

Mathilde informed her husband that she had lost the necklace. Her husband was bewildered. They looked for the necklace everywhere but all in vain. Mr. Loisel went out to search it on the way. She was waiting in her ball dress. She had no more strength left to go to bed. Her husband returned at about seven o’clock but he could not find the necklace anywhere.

On the advice of her husband, Mathilde wrote a letter to her friend Madame Forestier saying that the clasp of the necklace was broken, so it had been sent for repairs. In this way they got some time to buy another diamond necklace. After going from, one shop to the other, at last they found a necklace similar to the lost one. The shopkeeper demanded 40,000 francs as its price. The bargain finally was settled for 36,000 francs. Mathilde’s husband had only 18,000 francs with him. He borrowed the remaining 18,000 francs on high rate of interest. They bought the necklace and sent it to Madame Forestier. She did not care to see it.

Now a life of hardship began for Mathilde and her husband. They had to pay off the debt of 18,000 francs. For this, they had to shift to a very cheap room. They removed the servant. Now Mathilde did the household work herself. She fetched water, washed the floor of the house, utensils and dirty clothes all by herself. She did shopping by herself. Her husband worked in the evening and late at night to pay back 18,000 francs. They had paid the entire amount at I the end of tenth year. But Mathilde had to pay a heavy price for it.

She look ed like an ordinary woman. She looked old now. She was now a tough and rough woman. One Sunday, Mathilde went out to take a walk. She saw Madame Forestier there and went up to her. Madame Forestier was surprised to see her so much changed. Mathilde told her that she had to lead a very tough life and it was because of her. Madame Forestier was puzzled to hear it. Then Mathilde explained to her how she had lost her diamond necklace and had to buy another for 36,000 francs to replace it. It had taken them ten years to pay for it. Madame Forestier was moved to hear Mathilde’s tragic story. She revealed to Mathilde that her necklace was worth” only five hundred francs and the diamonds were artificial and not real.

The Diamond Necklace Summary in Hindi

मैथिल्ड लॉयसल एक बहुत सुन्दर, आकर्षक नवयुवती थी। वह एक मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुई थी। वह बहुत ही महत्वाकांक्षी थी। वह सोचती थी कि उसके पास ऐसा कुछ नहीं है जिस पर वह घमण्ड कर सके। उसके लिए यह संभव नहीं था कि वह किसी अमीर या प्रसिद्ध व्यक्ति से विवाह करे। इस प्रकार उसका विवाह एक क्लर्क से हो गया, जो कि मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक इन्सट्रॅक्शन में कार्य करता था। बहुत महत्त्वाकांक्षी होने के कारण वह खुश नहीं थी क्योंकि वह विलासी जीवन व्यतीत नहीं कर सकती थी। वह साधारण वस्त्र पहनती थी और मध्यम श्रेणी के एक कमरे में रहती थी जिसकी दीवारें बहुत पुरानी थीं। वह अपने विद्यालय में पढ़ने वाली उन सहपाठियों से ईर्ष्या करती थी जो कि अमीर थीं। उनसे मिलने के बाद वह बहुत रोती थी।

एक दिन उसका पति उसके लिए एक निमंत्रण पत्र लाया। लेकिन वह प्रसन्न नहीं थी क्योंकि उसके पास इस अवसर पर पहनने के लिए अच्छे वस्त्र नहीं थे। इसलिए उसके पति ने 400 फ्रैंक्स का एक गाउन खरीदने का प्रबंध किया। उसने यह पैसे अपने लिए बन्दूक खरीदने के लिए बचाए थे। जैसे-जैसे दावत की तिथि पास आ रही थी वह पुनः बहुत उदास नजर आ रही थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि उसके पास इस अवसर पर पहनने लायक आभूषण नहीं थे। वह सोचती थी कि वह एक सबसे गरीब महिला होगी। उसके पति ने उसे सलाह दी कि वह अपनी अमीर सहेली मैडम फरिस्टियर से कुछ आभूषण उधार ले ले। बेचारी Loisel को यह सुझाव पसन्द आया। अगले दिन वह अपनी सहेली के घर गई और एक हीरे का हार उधार ले आई।

जब उसने अपने पति के साथ नृत्य किया, तो प्रत्येक व्यक्ति उसी की ओर देख रहा था। वह वहाँ उपस्थित सभी महिलाओं में सबसे सुन्दर महिला थी। सभी व्यक्ति उसकी सुन्दरता पर मोहित थे। वे सभी उससे परिचित होना चाहते थे। मंत्रालय के सभी अधिकारियों ने उसके साथ नृत्य करने की इच्छा व्यक्त की। Minister तक का उस पर ध्यान गया।

वह प्रसन्नता से मदमस्त हो गई। वह मस्ती में नृत्य करने लगी। वह अपनी सुन्दरता की विजय में सब कुछ भूल गई। वह अपनी सफलता पर काफी उल्लासित हो रही थी। वह सुबह 4 बजे उस बड़े कमरे (हॉल) से निकली। उसके पति ने उस पर साधारण शाल डाल दिया। घर पहुँचने के बाद वह शीशे के सामने खड़ी हो गई। वह स्वयं को एक बार पुनः गौरव से देखना चाहती थी। परन्तु वह यह देखकर सन्न रह गई कि उसके गले में कहीं हार नहीं था। वह निराशा में चिल्लाई।

मैथिल्ड ने अपने पति को बताया कि उससे वह हीरे का हार खो गया है। उसका पति भयभीत हो गया। उन लोगों ने हार को हर जगह खोजा लेकिन सब बेकार। Mr. Loisel रास्ते में हार खोजने के लिए बाहर निकल पड़े। वह नृत्य की पोशाक पहने प्रतीक्षा करने लगी। वह सोने जाने के लिए भी साहस नहीं जुटा पा रही थी। उसका पति लगभग सात बजे वापिस आया। किन्तु उसे वह हार कहीं भी नहीं मिला।

अपने पति की सलाह पर मैथिल्ड ने अपनी सहेली को एक पत्र लिखा कि हार का हुक टूट गया था, इसलिए उसने हार मरम्मत के लिए भेज दिया था। इस प्रकार उन्हें एक दूसरा हीरे का हार खरीदने का समय मिल गया। एक दुकान से दूसरी दुकान पर ढूँढ़ते हुए अंततः उस खोए हुए हार जैसा एक हार उन्हें मिला। दुकानदार ने उस हार की कीमत 40,000 फ्रैंक माँगी। अन्ततः 36,000 फ्रैंक पर सौदा तय हुआ। मैथिल्ड के पति के पास कुल 18,000 फ्रैंक थे। उसने बाकी बचे 18,000 फ्रैंक ऊँचा ब्याज देकर उसे ले लिया। हीरे का हार उसने मैडम फरिस्टियर को भेज दिया। उसने उसे देखने की भी परवाह नहीं की।

अब मैथिल्ड और उसके पति के लिए जीवन कठिन बन गया। उन्हें 18,000 फ्रैंक का कर्ज चुकाना था। इसके लिए, उन्हें एक सस्ते कमरे में जाना पड़ा। उन्होंने अपना नौकर भी हटा दिया था। अब मैथिल्ड घर के काम-काज स्वयं करने लगी। वह पानी लाना, कमरे का फर्श साफ करना, बर्तन और गंदे कपड़े धोना सभी कार्य स्वयं करने लगी। खरीददारी भी वह स्वयं ही करती थी। उसका पति शाम को तथा देर रात तक उधार लिए हुए 18,000 फ्रैंकों को चुकाने के लिए कठिन परिश्रम करता था। उन्होंने दसवें वर्ष के अन्त तक सारा कर्जा चुका दिया। लेकिन मैथिल्ड को इसके लिए काफ़ी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। वह एक सामान्य औरत लगने लगी थी और वस्तुतः बूढ़ी भी दिखने लगी थी। अब वह एक कठोर, कर्कश और हठी औरत बन गई थी।

एक रविवार मैथिल्ड सैर के लिए बाहर निकली। उसने मैडम फॉरिस्टियर को वहाँ देखा और उसके पास गई। मैडम फॉरस्टियर उसमें आए बहुत बड़े बदलाव को देखकर बहुत आश्चर्यचकित हुई। मथिल्ड ने बताया कि वह बहुत कठिन जीवन व्यतीत कर रही थी और यह सब उसके कारण हुआ। मैडम फरिस्टियर यह सुनकर बहुत अचंभित हुई। तब मैथिल्ड ने उसे विस्तारपूर्वक बताया कि किस प्रकार उससे उसका हीरे का हार खो गया था। उसने उसके स्थान पर 36,000 फ्रैंक का एक अन्य हार खरीदा। उस कर्ज को चुकाने में उसे दस वर्ष लग गए। मैडम फॉरस्टियर उसकी दुख भरी कहानी सुनने लगी। उसने मैथिल्ड को बताया कि उसका हार मात्र पाँच सी फ्रैंक का था और उसमें लगे हीरे बनावटी थे न कि असली थे।

The Diamond Necklace Word Meaning


The Diamond Necklace Important Pronunciation

MP Board Class 12th English A Voyage Solutions Chapter 2 The Diamond Necklace img 3

We believe the information shared regarding MP Board Solutions for 12th English Chapter 2 The Diamond Necklace Questions and Answers as far as our knowledge is concerned is true and reliable. In case of any queries or suggestions do leave us your feedback and our team will guide you at the soonest possibility. Bookmark our site to avail latest updates on several state board Solutions at your fingertips.

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 3 नये मेहमान

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 3 नये मेहमान (एकांकी, उदयशंकर भट्ट)

नये मेहमान अभ्यास

नये मेहमान अति लघु उत्तरीय प्रश्न

नए मेहमान एकांकी के प्रश्न उत्तर MP Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
रेवती अपने घर को जेलखाना क्यों कहती है? (2015)
उत्तर:
चूँकि उसका घर छोटा, घुटन वाला तथा जीवन की सुविधाओं से रहित,जेलखाने की किसी कोठरी जैसा है। अत: वह घर को जेलखाने की संज्ञा प्रदान करती है।

नए मेहमान MP Board Class 12th Hindi प्रश्न 2.
मकान छोटा होने के कारण विश्वनाथ किस बात से आशंकित हैं? (2014)
उत्तर:
छोटा मकान व भयंकर गर्मी के कारण विश्वनाथ इस बात से आशंकित हैं कि ऐसे में कहीं कोई मेहमान न आ जाये।

नए मेहमान एकांकी Pdf MP Board Class 12th Hindi प्रश्न 3.
“हे भगवान! कोई मुसीबत न आ जाए।” रेवती के इस कथन का आशय बताइए।
उत्तर:
रेवती गर्मी से परेशान है। साथ ही,घर में सोने के स्थान का भी अभाव है। किसी मेहमान के आने की सम्भावना की आशंका से ग्रसित हो वह कहती है कि ऐसे में कोई मेहमान न आ जाये।

Naye Mehman Story In Hindi MP Board Class 12th Hindi प्रश्न 4.
नये मेहमान किस शहर से आये थे?
उत्तर:
नए मेहमान बिजनौर शहर से आये थे।

प्रश्न 5.
नन्हेमल और बाबूलाल किसके घर जाना चाहते थे? (2016)
उत्तर:
नन्हेमल और बाबूलाल कविराज रामलाल वैद्य के घर जाना चाहते थे।

MP Board Solutions

नये मेहमान लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्मी से बेहाल विश्वनाथ और रेवती के संवाद को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
गर्मी से बेहाल विश्वनाथ कहते हैं कि बड़ी गर्मी है। बंद कमरों में रहना कठिन है, मकान भंट्टी बना हुआ है। रेवती कहती है कि पत्ता भी नहीं हिलता। घड़े का पानी ठण्डा नहीं होता। वह घर को जेलखाना कहती है। पति से बर्फ लाने के लिए कहती है। पति का कथन है कि नया मकान मिलता ही नहीं है। पड़ोसी छत को छूने तक नहीं देते। दोनों आँगन में सोने के लिए बहस के साथ आशंकित हैं कि ऐसे में कोई मेहमान न आ जाये। इस गर्मी ने उनके लिए अनेक चिन्ताएँ और मुसीबतें खड़ी कर दी हैं।

प्रश्न 2.
नन्हेमल और बाबूलाल स्टेशन से सीधे विश्वनाथ के घर क्यों पहुँचे?
उत्तर:
नन्हेमल और बाबूलाल अपना परिचय इधर-उधर की बातों से जोड़कर बताते हैं। इस घटना से झुंझलाकर विश्वनाथ पूछते हैं कि क्या आप कोई चिट्ठी-विट्ठी लाये हैं। तब नन्हेमल कहते हैं कि संपतराम ने कहा था कि स्टेशन से उतरकर सीधे रेलवे रोड चले जाना,वहाँ कृष्णगली में वह रहते हैं। अतः उन्होंने वैसा ही किया और बिना नाम पूछे दरवाजा खटखटा दिया। गृहस्वामी ने दरवाजा खोला तो वे लोग उनके पीछे-पीछे घर में घुस आये।

प्रश्न 3.
नन्हेमल ने बिजनौर के किन सन्दर्भो का उल्लेख विश्वनाथ से किया?
उत्तर:
अपना परिचय देते हुए नन्हेमल ने कहा कि बिजनौर निवासी लाला संपतराम, जो उनके चाचा हैं, वे विश्वनाथ के बड़े प्रशंसक हैं तथा विश्वनाथ से कई बार मिल चुके हैं। दूसरे, नन्हेमल नजीबाबाद में सेठ जगदीश प्रसाद के यहाँ मिले थे। जगदीश प्रसाद बिजनौर में एक चीनी की मिल खोलने जा रहे हैं। इस प्रकार मेहमान अपरिचय के सेतु के दोनों सिरों को परिचय के सन्दर्भ में जोड़ने का व्यर्थ प्रयास करते हैं।

प्रश्न 4.
नन्हेमल और बाबूलाल के सही स्थान पर न पहुँचने का भेद कब खुला?
उत्तर:
विश्वनाथ नन्हेमल और बाबूलाल से पूछते हैं कि जिसके यहाँ आपको जाना है, संपतराम ने उसका नाम तो बताया होगा। तब वे दोनों कविराज का नाम बताते हैं। इस पर विश्वनाथ कहते हैं कि मैं कविराज नहीं हूँ, कहीं आप कविराज रामलाल वैद्य के यहाँ तो नहीं आये हैं। दोनों एक साथ चिल्लाते हैं, हाँ वही तो। हम कविराज रामलाल वैद्य के यहाँ आये थे। इस प्रकार सही स्थान पर न पहुँचने का भेद खुल जाता है।

प्रश्न 5.
आगन्तुक के आते ही रेवती के विचारों में क्या परिवर्तन हुआ और क्यों?
उत्तर:
आगन्तुक के आते ही रेवती के विचारों में परिवर्तन आया क्योंकि आगन्तुक अपरिचित नया मेहमान न होकर उसका अपना सगा भाई था। भाई के देखते ही रेवती के चेहरे पर खुशी आ जाती है। वह भाई से कपड़े उतारने के लिए कहती है। पंखा झलने लगती है और प्रमोद से ठण्डा पानी पिलाने के लिए कहती है। हलवाई के यहाँ से मिठाई लाने को कहती है। तेज गर्मी होने पर भी भाई के लिए खाना बनाना आरम्भ करती है।

नये मेहमान दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एकांकी के आधार पर महानगरीय आवास समस्या पर विचार व्यक्त कीजिए।
अथवा
‘नये मेहमान’ एकांकी के आधार पर महानगरों की आवास की समस्या पर प्रकाश डालिए। (2009, 13)
उत्तर:
‘नये मेहमान’ एकांकी में लेखक उदयशंकर भट्ट ने महानगरों के मध्यम वर्ग की ‘आवास समस्या’ को प्रस्तुत किया है। विश्वनाथ तथा रेवती जैसी स्थिति के लोगों की दशा बहुत ही दयनीय है। आवास छोटा होने के कारण स्वयं उनको सोने के लिए स्थान का अभाव है, उस पर किसी मेहमान का आना अच्छी-खासी चिन्ता व चर्चा का विषय बन जाता है। पानी की समस्या हारी-बीमारी इत्यादि समस्याओं से आज के निम्न-मध्यमवर्गीय समाज को जूझना पड़ रहा है। इन समस्याओं के साथ पड़ोसियों के साथ ताल-मेल बैठाना और भी चिन्ता का विषय है। एकांकीकार ने इस यथार्थ स्थिति का चित्र उभारने में व्यंग्य-विनोद का सहारा, सरल व बोलचाल की भाषा के माध्यम से लिया है।

प्रश्न 2.
क्या नन्हेमल और बाबूलाल ने अपने वाक्चातुर्य से विश्वनाथ को प्रभावित किया? उनके कछ महत्त्वपर्ण संवाद लिखिए।
उत्तर:
नये मेहमान एकांकी को विकास की चरम सीमा पर ले जाने वाले पात्र तो वास्तव में नन्हेमल और बाबूलाल ही हैं, जिनके प्रत्येक वाक्य में बोलने की चतुराई है। अपने इसी गुण के चलते वे प्रत्येक घटना को घुमा-फिरा कर विश्वनाथ के समक्ष खड़ा कर देते हैं, जैसे बिजनौर के संपतराम को चचेरा भाई बताकर विश्वनाथ से मिलने की बात कहते हैं-“नजीबाबाद में भानामल की लड़की की शादी में आपसे मिले थे।” तथा “मुरादाबाद में जगदीश प्रसाद के यहाँ विश्वनाथ को देखा था।” दोनों वाचालता के साथ-साथ बेशर्म बनकर लेमन की बोतल की चर्चा करते हैं। बीच-बीच में गृहस्वामी की प्रशंसा करते जाते हैं।

इस प्रकार दोनों अपनी वाक्पटुता से अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। विश्वनाथ उनकी चातुर्यपूर्ण बातों से प्रारम्भ में तो प्रभावित हुए से जान पड़ते हैं किन्तु वस्तुस्थिति को समझते ही वह उनसे प्रभावित नहीं होते हैं। अन्त में विश्वनाथ पूछ बैठते हैं कि उनके पास कोई चिट्ठी-विट्ठी है अथवा नहीं? भेजने वाले ने उनका नाम तो बताया होगा ? दोनों कहते हैं कि शायद कविराज बताया था। विश्वनाथ कहते हैं, “मैं तो कविराज नहीं हूँ।” अतः यह कहा जा सकता है कि दोनों वाक्पटुता में निपुण होने के बाद भी विश्वनाथ को प्रभावित करने में पूर्ण असफल रहते हैं।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
रेवती का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
रेघती के चरित्र की दो विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर:
‘उदयशंकर भट्ट’ द्वारा रचित एकांकी ‘नये मेहमान’ की एक प्रमुख पात्र रिवती’ है जो इस एकांकी का एकल नारी पात्र है। साथ ही, वह मध्यमवर्गीय परिवार की गृहस्वामिनी का प्रतिनिधित्व भी करती है।
(1) पतिव्रता :
अनेक अभावों के मध्य तथा गर्मी के कारण झुंझलाते हुए भी वह पति की सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखती है। वह पति की आज्ञा का पालन करना भी जानती है। भीषण गर्मी में स्वयं आँगन में सोने के लिए कहती है तथा पति को ऊपर छत पर भेज देती है। सोचती है-रात में नींद न आयेगी,सबेरे काम पर जाना है। मेरा क्या है? पड़ी रहूँगी; इस प्रकार पति से बहुत प्रेम करती है।

(2) श्रेष्ठ गृहिणी :
रेवती में मध्यमवर्गीय परिवारों की गृहिणी के गुण स्पष्ट परिलक्षित होते हैं। वह मन से सबका आदर करना चाहती है परन्तु परिवार की परेशानियाँ, स्वभाव में शुष्कता पैदा कर देती है। पड़ोसी स्त्रियों, उनके अंधविश्वासों, पति और बच्चों की चिन्ता से परेशानी है। इस प्रकार रेवती भारतीय नारी का यथार्थ रूप प्रकट करती है।

(3) परिवार की समस्याओं से खिन्न :
एक ओर भीषण गर्मी है तो दूसरी ओर मकान का छोटा व घुटनवाला होना। बच्चों की बीमारी तथा बिजली के पंखे का न चलना,न नल में पानी का आना। ये सब परेशानियाँ रेवती को खिन्न स्वभाव वाला बना देती हैं। तब वह कह उठती है-“जाने कब तक इस जेलखाने में सड़ना होगा।”

(4) आतिथ्य-सेवा भाव से रहित :
अपरिचित मेहमान के आने पर अँझला जाती है तथा खाना बनाने की बात पर तुनक जाती है। खिसियाकर पति से कहती है कि “दर्द के मारे सिर फटा जा रहा है, फिर खाना बनाना इनके लिए और इस समय, आखिर वे आये कहाँ से हैं?” इस प्रकार रेवती आतिथ्य-सेवा भाव से रहित है। इसे मुसीबत समझकर तुनकमिजाज बन जाती है।

(5) पड़ोसियों के अशिष्ट व्यवहार से दुःखी :
रेवती के पड़ोस की स्त्रियों का व्यवहार अच्छा नहीं था। विशेष रूप से लाला की पत्नी बहुत लड़ाकू थी। वह पति से कहती है, क्या फायदा? अगर लाला मान भी लें तो वह दुष्टा नहीं मानेगी …… बड़ी डायन औरत है।”

(6) अपने पराये में भेद :
अपरिचित मेहमान के आने पर उसके सिर में दर्द होता है और वह खाना नहीं बना सकती। लेकिन जैसे ही उसका भाई आता है, उसमें उत्साह की लहर भर जाती है, सिर का दर्द ठीक हो जाता है, भाई को बिना खाये सोने नहीं देती है, बर्फ और मिठाई मँगवाती है। वह अपने तथा पराये के मध्य भेद रखती है।

(7) अंधविश्वासी :
रेवती संकुचित विचारधारा की स्त्री है। बच्चों को पड़ोसी की छत पर सोने देना नहीं चाहती है। उसके बजाए बच्चों को गर्मी में ही सुलाती है।

इस प्रकार रेवती में एक ओर कुछ अच्छाइयाँ हैं तो दूसरी ओर कुछ कमियाँ भी हैं। समग्र रूप में रेवती एक मध्यमवर्गीय नारी के गुणों से युक्त है।

प्रश्न 4.
एकांकी के तत्वों के नाम लिखते हए ‘नये मेहमान’ एकांकी के किसी एक तत्त्व पर अपने विचार लिखिए।
अथवा
एकाकी के तत्वों के आधार पर ‘नये मेहमान’ की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
नये मेहमान’ उदयशंकर भट्ट का एक यथार्थवादी एकांकी है, जिसमें आवास-समस्या को प्रधान रखा गया है। एकांकी के निम्नलिखित छ: तत्व होते हैं। उनके आधार पर इस एकांकी की समीक्षा निम्नलिखित है-
(1) कथावस्तु :
इस एकांकी की कथावस्तु पूर्णतः शृंखलाबद्ध है। प्रत्येक घटना क्रमबद्धता के धागे में पिरोई गई है। विश्वनाथ के संकोच,रेवती के नाक-भौं सिकोड़ने और नये मेहमानों की बेहयाई के त्रिकोण में हास्य-विनोद के साथ कथा आगे बढ़ती है। एकांकी में संकलनत्रय का पूर्ण निर्वाह हुआ है। पूरा एकांकी एक कमरे में घटित है। पूरे समय कौतूहल बना रहता है। कथानक सामाजिक है, जिसमें मध्यमवर्ग की आवास-समस्या को उठाया गया है।

(2) पात्र या चरित्र :
चित्रण-सफल एकांकी की दृष्टि से पात्रों की संख्या उचित है। मुख्य तीन पुरुष पात्र तथा एक नारी पात्र है। प्रथम, गृहस्वामी विश्वनाथ अपनी उदारता और दया के कारण कष्ट उठाता है। अन्य दो पुरुष पात्र नन्हेलाल तथा बाबूलाल हैं। दोनों बेशर्म तथा वाचाल हैं। दूसरों की परेशानी की उन्हें कोई चिन्ता नहीं। बिना उचित पते के अजनबी के मेहमान बन जाते हैं। उनका चरित्र एक विदूषक के समान है। रेवती अकेली नारी पात्र है जो पतिव्रता, तुनकमिजाज,श्रेष्ठ गृहिणी के साथ अनुदार व अंधविश्वासी विचारधारा की है। उसके साथ दो लड़के हैं-प्रमोद और किरण। अन्त में एक अन्य पुरुष पात्र आता है जो रेवती का भाई तथा वास्तविक मेहमान है। इसे आगन्तुक के नाम से सम्बोधित किया गया है।

(3) संवाद :
संवाद एकांकी के प्राण होते हैं जो कलेवर को सौन्दर्य प्रदान कर आकार देते हैं। संवाद छोटे-छोटे हैं परन्तु सारगर्भित हैं जो काव्य का-सा स्वाद व आनन्द देते हैं, देखिएबाबूलाल-उतना ही मैं भी। (दोनों गट-गट पानी पीते हैं किरण-(विश्वनाथ से धीरे से) फिर खाना। विश्वनाथ (इशारे से) ठहर जा जरा। नन्हेमल-कितने सीधे लड़के हैं। बाबूलाल-शहर के हैं न।

(4) भाषा-शैली :
भाषा साधारण खड़ी बोली है, जिसमें बोलचाल के शब्द हैं, जैसेकुर्सी इधर खिसका दो। उर्दू के शब्द भी हैं तारीफ, खूब,जरा। संस्कृत के तत्सम शब्द-क्षमा, साहित्यिक, मित्र। “चने की तरह भाड़ में भुनना” जैसे मुहावरों का प्रयोग है। भाषा में प्रवाह के साथ बोधगम्यता है। शैली सरल पर साधारण है। क्लिष्टता कहीं भी देखने को नहीं मिलती है।

(5) देश काल तथा वातावरण :
एकांकी में महानगरों के मध्यम वर्ग की आवास समस्या को प्रस्तुत किया गया है। उनके अपने बैठने-सोने को तो जगह होती नहीं, उस पर मेहमानों का सत्कार कैसे करें ? तंग गलियों में सटे मकान की छतों के पास-पास होने से पड़ोसियों के मध्य झगड़ने का दृश्य है। नलों में पानी का न आना। भीषण गर्मी का समय है।

(6) उद्देश्य बड़े :
बड़े नगरों की आवासीय समस्या को सहज ही उजागर करने की क्षमता इस एकांकी का उद्देश्य है। त्रस्त रेवती कह उठती है-“जाने कब तक इस जेल खाने में सड़ना पड़ेगा।” उधर विश्वनाथ भी परेशान हैं, क्योंकि नया मकान मिलता ही नहीं। लेखक ने इस समस्या का समाधान नहीं बताया है। एकांकी को रोचक बनाने के लिए व्यंग्य-विनोद का सहारा लिया गया है। मेहमानों का आना एक समस्या है। इसी उद्देश्य को चित्रित करने में नाटककार सफल हुआ है।

(7) अभिनेयता :
एकांकी के छ: तत्वों में इसकी गणना नहीं होती,क्योंकि अभिनेयता तो एकांकी की प्राण है। यह एकांकी प्रहसन की श्रेणी में सहज भाव से आ जाता है। मंचन की दृष्टि से यह एकांकी सफल है। पात्रों की गिनती का कम होना, भाषा सरल, वाक्य छोटे-छोटे होना, हास्य-व्यंग्य विनोद का होना इस एकांकी की अभिनेयता की नींव रखना है। इसका अभिनय और प्रसारण दोनों ही सफलतापूर्वक किये जा सकते हैं।

प्रश्न 5.
अपने मेहमान और पराये मेहमान के प्रति रेवती के व्यवहार में क्या अन्तर है? लिखिए।
अथवा
आगन्तुक के प्रति रेवती के आत्मीय व्यवहार से आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए। (2009)
उत्तर:
अपने मेहमान तथा पराये मेहमान के प्रति रेवती के व्यवहार में जमीन-आसमान का अन्तर है। रेवती को पराये मेहमान बोझ जैसे प्रतीत होते हैं जबकि अपने मेहमान,जो उसका भाई है,को देखकर वह एकदम खिल उठती है और भोजन बनाने में जुट जाती है। मिठाई व बर्फ मँगाती है। उसकी प्रत्येक सुख-सुविधा का पूरा-पूरा ध्यान रखती है। उसके सिर का दर्द भी गायब हो जाता है। इस प्रकार अपने मेहमान (आगन्तुक) के प्रति रेवती की आत्मीयता से हम सहमत हैं।

MP Board Solutions

नये मेहमान भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
आग बरसना, चौपट हो जाना, पेट में चूहे कूदना, खून का घूट पीना।
उत्तर:
(i) शब्द – आग बरसना।
वाक्य प्रयोग :
ज्येष्ठ मास की दोपहरी में आसमान से आग बरसने लगती है।

(ii) शब्द – चौपट हो जाना।
वाक्य प्रयोग :
शहर में बाढ़ आने से लोगों के काम-धन्धे चौपट हो गये।

(iii) शब्द – पेट में चूहे कूदना।
वाक्य प्रयोग :
राजा ने सुबह से कुछ भी नहीं खाया। शाम होते-होते उसके पेट में चूहे कूदने लगे।

(iv) शब्द-खून का घूट पीना।।
वाक्य प्रयोग :
वह अपने पिताजी का अपमान होता देखकर भी खून के चूंट पीकर रह गया।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों के लिए एक शब्द लिखिए-

  1. यात्रियों के ठहरने का स्थान।
  2. जिसके आने की तिथि न मालूम हो।
  3. आयुर्वेदिक औषधियों से इलाज करने वाला।
  4. कविताएँ रचने वाला।

उत्तर:

  1. धर्मशाला
  2. अतिथि
  3. वैद्य
  4. कवि।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में अशुद्ध वर्तनी वाले शब्दों की सही वर्तनी लिखिए

  1. जिवन में तुम्हें कोई सुख न दे सका।
  2. शायद वहाँ कोई साहितयिक मित्र हो।
  3. वह पड़ोसी की इसत्री चिल्ला रही है।
  4. मैं यह बरदाश नहीं कर सकता।

उत्तर:

  1. जीवन
  2. साहित्यिक
  3. स्त्री
  4. बर्दाश्त।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांश में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए-
खाना तो खिलाना ही होगा तुम भी खूब हो भला इस तरह कैसे काम चलेगा दर्द के मारे तो सिर फटा जा रहा है फिर खाना बनाना इनके लिए और इस समय आखिर ये आए कहाँ से हैं
उत्तर:
खाना तो खिलाना ही होगा-तुम भी खूब हो। भला इस तरह कैसे काम चलेगा? दर्द के मारे तो सिर फटा जा रहा है, फिर खाना बनाना इनके लिए; और इस समय ‘आखिर ये आए कहाँ से हैं?

प्रश्न 5.
पाठ में चिट्ठी-पत्री और तार शब्दों का प्रयोग हआ है। आप भी अपने आने की सूचना पत्र द्वारा अपने रिश्तेदार को दीजिए।
उत्तर:
74-B, शालीमार एन्कलेव,
भोपाल
दिनांक : 30 मार्च,……

आदरणीय चाचाजी,
सादर चरण स्पर्श।

मैं यहाँ कुशलतापूर्वक हूँ। आपके पत्र द्वारा आपकी कुशलक्षेम भी ज्ञात हुई। आपने अपने पत्र में पूछा था कि मेरा गर्मियों की छुट्टियों का क्या कार्यक्रम है? सो मैं आपको सचित करना चाहता हूँ कि मैं अपनी अन्तिम परीक्षा देने के उपरान्त 5 अप्रैल को मालवा एक्सप्रेस से ग्वालियर पहुँचूँगा। शेष बातें आपसे मिलने पर होंगी।

मेरी ओर से पूज्य चाचीजी को सादर चरण स्पर्श। छोटी बहन शुभा तथा अनुज शुभम को हार्दिक स्नेह।
शेष शुभ ….

आपका भतीजा
क ख ग

MP Board Solutions

नये मेहमान पाठ का सारांश

देश के शीर्षस्थ एकांकीकार ‘उदयशंकर भट्ट’ की प्रबल लेखनी से लिखित प्रस्तुत एकांकी ‘नये मेहमान’ में लेखक ने सामाजिक जीवन का यथार्थवादी व सशक्त चित्र प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत एकांकी में आधुनिक महानगरों में रहने वाले निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की कठिनाइयों का एक सरल-सी घटना के माध्यम से प्रभावी वर्णन किया गया है।

गृहस्वामी विश्वनाथ किसी बड़े नगर में अपने बच्चों के साथ किराये के मकान में रहते हैं। गर्मी का मौसम है, छोटा बेटा बीमार है, उसे खुली हवा वाला सोने का स्थान भी नहीं मिलता। उसी समय पहर रात गये दो मेहमान-बाबूलाल और नन्हेमल घर पर आ जाते हैं। संकोची स्वभाव वाले विश्वनाथ जी मेहमानों से सही ठिकाना जाने बिना उनकी आवभगत में लग जाते हैं, परन्तु उनकी पत्नी मेहमानों के लिए खाना भी नहीं बनाना चाहती है, उसका कारण वह अपने सिर का दर्द बताती है। मेहमान स्वयं को बिजनौर का निवासी बताकर जबरदस्ती विश्वनाथ से रिश्ता जोड़कर अपनी खातिर करवाने में लगे हैं। “मान न मान, मैं तेरा मेहमान” वाला मुहावरा चरितार्थ करने में रत हैं। अन्त में रहस्य खुलता है कि वे इसी मौहल्ले में रहने वाले कविराज वैद्य के यहाँ आये हैं। अतः विश्वनाथ को उन्हें उनके असली गन्तव्य तक पहुँचाना पड़ता है। इस अप्रत्याशित कष्ट से छुटकारा मिला ही था कि अचानक विश्वनाथ जी का साला वहाँ आ टपकता है। उसका स्वागत अभावों में भी आत्मीयता के साथ होता है। गृहस्वामिनी सिर में दर्द होने पर भी भाई के लिए प्रेमपूर्वक भोजन बनाती है, ठण्डे पानी का प्रबन्ध करती है और नहाने के लिए बार-बार कहती है।

एकांकी की कथावस्तु परिचित व यथार्थवादी है। संकलनत्रय का पूरा निर्वाह हुआ है। पूरा एकांकी एक कमरे में आधे घण्टे में घटित हुआ है। एकांकी हास्य को प्रकट करता है, तो जीवन की सच्चाई को भी प्रदर्शित करता है। नाटक का शिल्प,रंगमंच और रेडियो-रूपक दोनों के अनुकूल है। भाषा सामान्य जीवन के निकट और सरल है। संवाद छोटे-छोटे व सरल वाक्यों वाले हैं, जिनमें देशज व तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार सम्पूर्ण एकांकी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सत्य का प्रदर्शन यथार्थ रूप में करने में सफल हुआ है।

नये मेहमान कठिन शब्दार्थ

बेहद = बहुत। निर्दयी = जिसके हृदय में दया न हो। हर्ज = हानि। सम्पन्न = अमीर। आगंतुक = आने वाला। कारोबार = व्यवसाय। वजह = कारण। चौपट होना = बरबाद होना। तुनककर = रूठकर।

नये मेहमान संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) वे तो हमें मसीबत में देखकर प्रसन्न होते हैं। उस दिन मैंने कहा तो लाला की औरत बोली: ‘क्या छत तुम्हारे लिए है? नकद पचास देते हैं, तब चार खाटों की जगह मिली है। न, बाबा, यह नहीं हो सकेगा। मैं खाट नहीं बिछाने दूंगी। सब हवा रुक जाएगी। उन्हें और किसी को सोता देखकर नींद नहीं आती।’

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्य अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘नये मेहमान’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक देश के शीर्षस्थ एकांकीकार ‘उदयशंकर भट्ट’ हैं।

प्रसंग :
बड़े नगरों में किराये के मकान में रहने वालों के मध्यमवर्गीय समाज की परेशानियों का चित्रण अति सरल व सामान्य बोलचाल के माध्यम से किया गया है।

व्याख्या :
गर्मी का मौसम है। सोने के लिए खुली जगह की कमी है. परन्तु पडोसी की छत खाली होने पर भी कोई पड़ोसी उसे उपयोग में नहीं ला सकता है। रेवती पति से कहती है कि पड़ोसी-पड़ोसी को दुःखी देखकर प्रसन्न होते हैं। छत पर बच्चों को सुलाने की पूछने पर कहती है कि ऊँचा किराया देने पर ही ऐसा मकान मिला है, जिसमें खुली छत है। यह छत दूसरों के प्रयोग के लिए न होकर अपने प्रयोग के लिए है। दूसरों की खाट डालने से हवा रुक जायेगी तथा लाला को नींद भी नहीं आती है। मूल में भावना है कि यह छत किसी को नहीं दी जायेगी।

विशेष :

  1. पड़ोसी के स्वार्थी स्वभाव का चित्रण है।
  2. भाषा सामान्य बोलचाल की है, जिसमें देशज शब्द, जैसे-खाट तथा उर्दू शब्द, जैसे-मुसीबत का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य अति संक्षिप्त किन्तु प्रभावशाली हैं।

MP Board Solutions

(2) अरे खाने की भली चलाई, पेट ही भरना है। शहर में आए हैं तो किसी को तकलीफ थोड़े ही देंगे। देखिए पंडित जी, जिसमें आपको आराम हो, हम तो रोटी भी खा लेंगे कल फिर देखी जाएगी।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
विश्वनाथ बाबूलाल और नन्हेमल से खाने के लिए पूछते हैं, तो वे तुरन्त तैयार हो जाते हैं।

व्याख्या :
बाबूलाल विश्वनाथ से कहते हैं कि खाना तो खायेंगे ही चाहे रोटी ही क्यों न हो। खाने को तो बहुत कुछ खा लेंगे। इस समय तो पेट भरने से मतलब है। यहाँ आप लोगों को तकलीफ देने थोड़े ही आये हैं। खाना तो पेट भरने के लिए चाहिए। भले ही पूड़ी-सब्जी हो या दाल-रोटी। कल की कल देखी जायेगी। वे बातों की चालाकी से न सिर्फ अपनी पसन्द बता रहे हैं बल्कि दूसरे दिन के खाने का प्रबन्ध भी कर रहे हैं।

विशेष :

  1. बाबूलाल की वाक्पटुता का प्रदर्शन है।
  2. वाक्यांशों के द्वारा कविता का आनन्द व भावों की गहराई परिलक्षित होती है।
  3. बोलचाल की भाषा से युक्त खड़ी बोली है।
  4. भाषा में सम्प्रेषणीयता है।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति

MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति

उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति Important Questions

उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –

प्रश्न (a)
उत्पादन के साधन होते हैं –
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(d) पाँच

प्रश्न (b)
स्थिर लागत को कहते हैं –
(a) परिवर्तनशील लागत
(b) प्रमुख लागत
(c) पूरक लागत
(d) अल्पकालीन लागत।
उत्तर:
(c) पूरक लागत

प्रश्न (c)
पूर्ति में उसी कीमत पर गिरावट आ जाती है जब –
(a) पूर्ति में कमी हो जाय
(b) जब पूर्ति में संकुचन हो जाय
(c) पूर्ति में वृद्धि हो जाय
(d) पूर्ति में विस्तार हो जाय।
उत्तर:
(a) पूर्ति में कमी हो जाय

प्रश्न (d)
उत्पादन का सक्रिय साधन है –
(a) पूँजी
(b) श्रम
(c) भूमि
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) श्रम

प्रश्न (e)
अल्पकाल में उत्पादन प्रक्रिया में निम्नलिखित में कौन से साधन होते हैं –
(a) स्थिर साधन
(b) परिवर्तनशील साधन
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

  1. अल्पकालीन उत्पादन फलन ……………………………… कहा जाता है।
  2. पैमाने के प्रतिफलों का संबंध …………………………… काल अवधि से है।
  3. उत्पादन की प्रति इकाई लागत को ……………………………. कहते हैं।
  4. उत्पादन की एक इकाई की बिक्री में वृद्धि होने से आय में होने वाली वृद्धि को ……………………… कहते हैं।
  5. एक उत्पादक तब संतुलन में होता है, जब उसका ………………………………. होता है।
  6. पूर्ति का नियम, कीमत एवं वस्तु की पूर्ति के बीच ………………………………. संबंध बताता है।
  7. दूध जैसी वस्तु के लिए पूर्ति लोच ……………………………….. होती है।

उत्तर:

  1. परिवर्तनशील अनुपात के नियम
  2. दीर्घ
  3. औसत लागत
  4. सीमांत लागत
  5. लाभ
  6. धनात्मक
  7. शून्य।

प्रश्न 3.
सत्य/असत्य बताइए –

  1. रिकार्डो का लगान सिद्धान्त उत्पत्ति ह्रास नियम पर आधारित है।
  2. अविभाज्यता के कारण पैमाने के घटते प्रतिफल की अवस्था लागू होती है।
  3. स्थिर लागत को पूरक लागत भी कहते हैं।
  4. पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में एक फर्म का MC वक्र, MR वक्र को जब ऊपर से काटता है तो उस ‘ समय उसको अधिकतम लाभ की प्राप्ति होती है।
  5. पूर्ति तथा कीमत में विपरीत संबंध होता है।
  6. शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं की पूर्ति बेलोच होती है।
  7. उत्पत्ति के चार नियम प्रतिपादित किये गये हैं।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. सत्य
  7. असत्य।

प्रश्न 4.
सही जोड़ी बनाइए –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 1
उत्तर:

  1. (b)
  2. (c)
  3. (a)
  4. (e)
  5. (d).

प्रश्न 5.
एक शब्द/वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. हस्तांतरण आय किस लागत को कहा जाता है?
  2. स्थिर लागत और परिवर्तनशील लागत का योग किसके बराबर होता है?
  3. कीमत में थोड़ी – सी गिरावट होने पर वस्तु की पूर्ति शून्य हो जाती है तो इसे किसकी पूर्ति की लोच कहा जाता है?
  4. उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है, उसे कहते हैं?
  5. एक फर्म साम्य की दशा में कौन-सा लाभ प्राप्त करती है?

उत्तर:

  1. अवसर लागत को
  2. कुल लागत के
  3. पूर्णत: लोचदार
  4. सीमांत आगम
  5. अधिकतम।

उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थिर लागत एवं परिवर्तनशील लागत में अन्तर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
स्थिर लागत एवं परिवर्तनशील लागत में अन्तर –

स्थिर लागत –

  1. “परिवर्तनशील लागत स्थिर लागतों का सम्बन्ध उत्पादन के स्थिर।
  2. कुल स्थिर लागतों पर उत्पादन की मात्रा का। परिवर्तनशील लागतें उत्पादन की मात्रा से कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  3. स्थिर लागतें उत्पादन बन्द कर देने पर भी शून्य परिवर्तनशील लागतें उत्पादन बन्द कर देने पर नहीं होती हैं।
  4. स्थिर लागतों की हानि उठाकर भी अन्य काल| एक उत्पादक तभी उत्पादन जारी रखेगा, जब में एक उत्पादक, उत्पादन जारी रख सकता है।

परिवर्तनशील लागतों –

  1. परिवर्तनशील साधनों से होता है।
  2. परिवर्तनशील लागतें उत्पादन की मात्रा से कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  3. परिवर्तनशील लागतें उत्पादन बन्द कर देने पर नहीं होती हैं।
  4. एक उत्पादक तभी उत्पादन जारी रखेगा, जब में एक उत्पादक, उत्पादन जारी रख सकता है। उसे कम-से-कम परिवर्तनशील लागतों के बराबर कीमत अवश्य मिले।

प्रश्न 2.
लागत वक्रों की आकृति ‘U’ के समान होने के प्रमुख कारण लिखिए?
उत्तर:
लागत वक्रों की आकृति ‘U’ आकार की होने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण फर्म को प्राप्त होने वाली आंतरिक बचते हैं। आंतरिक बचतों को निम्नांकित चार भागों में बाँटा जा सकता है –

1. तकनीकी बचतें:
उत्पादन की तकनीक में सुधार पर बचतें प्राप्त होती हैं, उन्हें तकनीकी बचतें कहते हैं। आधुनिक मशीनों एवं बड़े आकार की मशीनों का प्रयोग करने के कारण उत्पादन अधिक मात्रा में होता है, तब प्रति इकाई लागत कम आती है।

2. श्रम संबंधी बचतें:
श्रम संबंधी बचतें श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण का परिणाम होती हैं। जब उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है तो श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण भी उतना ही अधिक संभव होता है। परिणामस्वरूप श्रमिकों की कार्य कुशलता में वृद्धि होती है जिससे प्रति इकाई उत्पादन लागत कम हो जाती है।

3. विपणन की बचतें:
कोई भी फर्म जब अपने उत्पादन की मात्रा को बढ़ाती है, तो विक्रय लागतें उस अनुपात में नहीं बढ़ती हैं, जिससे प्रति इकाई लागत में कमी आ जाती है।

4. प्रबंधकीय बचतें:
उत्पादन की मात्रा को बढ़ाने पर प्रबंध पर होने वाले व्ययों में कमी आती है, जिसे प्रबंधकीय बचतें कहते हैं। एक कुशल प्रबंधक अधिक मात्रा में उत्पादन का प्रबंध उसी कुशलता के साथ कर सकता है, जितना कि थोड़े उत्पादन का, तो फर्म की प्रति इकाई उत्पादन लागत कम हो जाती

प्रश्न 3.
औसत आय और सीमान्त आय में संबंध बताइए?
उत्तर:
औसत आय और सीमान्त आय वक्र में निम्न संबंध होते हैं –

  1. जब तक औसत आय वक्र ऊपर से नीचे की ओर गिरता है, तब तक सीमान्त आय वक्र भी अनिवार्य रूप से औसत आय से कम होगी।
  2. जब औसत आय वक्र तथा सीमान्त आय वक्र दोनों गिरते हुए होते हैं, तब यदि औसत आय वक्र के किसी बिन्दुं से OY अक्ष पर लम्ब डाला जाये तो सीमान्त आय वक्र सदैव उस लम्ब केन्द्र से गुजरेगा।
  3. जब औसत आय वक्र मूलबिन्दु की ओर नतोदर होता है तब औसत आय वक्र में किसी बिन्दु से AY अक्ष पर डाले गये लम्ब को सीमान्त आय वक्र आधे से कम दूरी पर काटता है।
  4. जब औसत आय वक्र मूलबिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है तब औसत आय वक्र के किसी बिन्दु के OY अक्ष पर डाले गये लम्ब को सीमान्त आय वक्र आधे से अधिक दूरी पर काटता है।

प्रश्न 4.
एक उत्पादक संतुलन की स्थिति में कब होता है?
उत्तर:
एक उत्पादक संतुलन की स्थिति में तब होता है जब उत्पादक अधिकतम लाभ अर्जित कर रहा हो। एक उत्पादक अधिकतम लाभ वहाँ प्राप्त करता है जहाँ पर लाभ = TR – TC अधिकतम हो। जहाँ TR > TC होता है वहाँ पर फर्म (उत्पादक) को असामान्य लाभ प्राप्त होता है एवं जहाँ पर TR < TC होता है वहाँ पर हानि भी उत्पादक को ही होती है।

प्रश्न 5.
पूर्ति का क्या आशय है?
उत्तर:
किसी वस्तु की पूर्ति से आशय का सम्मानित एक वस्तु की विभिन्न कीमतों पर उत्पादक द्वारा बेची जाने वाली विविध मात्राओं से होता है। पूर्ति वास्तव में उस अनुसूची या तालिका को दर्शाती है जो वस्तु की उन मात्राओं को बताती है जिस पर एक उत्पादक विभिन्न कीमतों पर निश्चित समय पर विक्रय करने के लिए कार्य करता है।

प्रश्न 6.
पूर्ति अनुसूची से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
पूर्ति अनुसूची एक तालिका है जो वस्तु की विभिन्न संचय कीमतों पर बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाने वाली उस वस्तु की विभिन्न मात्राओं को दर्शाती है। पूर्ति अनुसूची भी दो प्रकार की हो सकती है व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूची एवं बाजार की पूर्ति अनुसूची। व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूची बाजार में किसी एक फर्म की पूर्ति अनुसूची होती है जबकि बाजार अनुसूची बाजार में किसी विशेष वस्तु का उत्पादन करने वाली सभी फर्मों की पूर्ति के योग को कहते हैं।

प्रश्न 7.
पूर्ति वक्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
अनूसूची के रेखीय प्रस्तुतिकरण को पूर्ति वक्र कहा जाता है। किसी वस्तु की विभिन्न संभाव्य कीमतों पर बिक्री के लिए प्रस्तुत किए जाने वाले न लाभ न हानि की विभिन्न मात्राओं को दर्शाने वाला वक्र होता है। यह वक्र भी व्यक्तिगत पूर्ति वक्र एवं बाजार पूर्ति के रूप में विभाजित किया जा सकता है। व्यक्तिगत पूर्ति वक्र बाजार में एक फर्म की पूर्ति को रेखाचित्र में प्रस्तुत करता है जबकि बाजार पूर्ति वक्र किसी बाजार में सभी फर्मों की पूर्ति का योग होता है जिसे रेखाचित्र के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
पूर्ति के नियम की सचित्र व्याख्या कीजिए?
उत्तर:
यदि अन्य बातें समान रहें तो वस्तु की पूर्ति की मात्रा एवं उसकी कीमत में धनात्मक संबंध होता है। वस्तु की कीमत बढ़ने से पूर्ति की मात्रा बढ़ती है एवं वस्तु की कीमत घटने से पूर्ति की मात्रा कम होती है। एक उदाहरण द्वारा इसे निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 3
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 4

प्रश्न 9.
पूर्ति वक्र पर संचलन (Moments) एवं खिसकाव (Shifting) के कौन – से कारण हैं?
उत्तर:
जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है तो इस परिवर्तन के कारण पूर्ति वक्र पर संचलन दिखाई देता है। पूर्ति वक्र में खिसकाव तब होता है जब वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य कारकों में परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है)। पूर्ति वक्र पर संचलन को जानने के लिए हमें पूर्ति के विस्तार एवं पूर्ति के संकुचन को जानना आवश्यक है पूर्ति वक्र में खिसकाव को वस्तु की पूर्ति में वृद्धि एवं वस्तु की पूर्ति में कमी के द्वारा जाना जाता है।

जब वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने से पूर्ति की मात्रा बढ़ती है तो पूर्ति का विस्तार कहते हैं। इसके विपरीत होने पर संकुचन कहते हैं। हड्कि वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य कारण से पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। इसके विपरीत होने पर पूर्ति में कमी होती है।

प्रश्न 10.
पूर्ति की कीमत लोच से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पूर्ति की कीमत लोच का तात्पर्य एक वस्तु की कीमत में परिवर्तनों के कारण वस्तु की पूर्ति की मात्रा की अनुक्रियाशीलता का मापन करती है। दूसरे शब्दों में, पूर्ति की कीमत लोच वस्तु की पूर्ति की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन तथा वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तनों का अनुपात कहलाती है। इसे निम्न समीकरण की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है –
E s = \(\frac { \triangle Q }{ \triangle P } \times \frac { P }{ Q } \)

प्रश्न 11.
पूर्ति की कीमत लोच को मापने की प्रतिशत विधि एवं ज्यामितीय विधि को संक्षेप में समझाइये?
उत्तर:
पूर्ति की कीमत लोच को मापने में प्रतिशत विधि एवं ज्यामितीय विधि का उपयोग किया जा सकता है परन्तु इनमें प्रतिशत विधि अधिक लोकप्रिय है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img b

ज्यामितीय विधि के अंतर्गत एक सीधी रेखा वाले पूर्ति वक्र पर कीमत लोच ज्ञात करने के लिए उसे बढ़ाते जाते हैं।

  1. जब वृद्धि पर पूर्ति मूल बिन्दु पर मिलता है तो Es < 1 होता है।
  2. जब वृद्धि पर पूर्ति वक्र X अक्ष के धनात्मक भाग को काटता है तो Es < 1 होता है।
  3. जब वृद्धि पर पूर्ति वक्र X अक्ष के ऋणात्मक भाग पर काटता है तो Es > 1 होता है।

प्रश्न 12.
पूर्ति की लोच को कौन – से घटक प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
पूर्ति की लोच को निम्न घटक प्रभावित करते हैं –

  1. समयावधि
  2. वस्तु की प्रकृति
  3. प्राकृतिक अवरोध
  4. उत्पादन लागत
  5. उत्पादन की तकनीक
  6. उत्पादन की जोखिम सहन करने की शक्ति
  7. प्रयोग किए जाने वाले आगतों की प्रकृति
  8. उत्पादक की अभिरुचि एवं योग्यता।

प्रश्न 13.
औसत स्थिर लागत की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
विशेषताएँ –

  1. औसत स्थिर लागत, कुल स्थिर लागत को फर्म के कुल उत्पादन मात्रा से भाग दिये जाने पर प्राप्त होती है –
  2. अल्पकाल में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर कुल स्थिर लागत अपरिवर्तित रहती है –
  3. उत्पादन के बढ़ने पर औसत स्थिर लागत घटती है –
  4. औसत स्थिर लागत को प्रति इकाई स्थिर लागत भी कहा जाता है।

प्रश्न 14.
उत्पादन लागत से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट लागतों एवं अस्पष्ट लागतों में अंतर बताइए?
अथवा
उपयुक्त उदाहरण देते हुए स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागतों में अंतर कीजिए?
उत्तर:
वे सभी व्यय जो किसी उत्पादक या फर्म द्वारा वस्तु के उत्पादन व्यय के रूप में किए जाते हैं, उत्पादन लागत कहलाते हैं।

  1. स्पष्ट लागतें: वे सभी लागतें जिनका उत्पादक भौतिक रूप से भुगतान करता है, जैसे – मजदूरी देना, विक्रय लागत आदि।
  2. अस्पष्ट लागतें: वे लागतें जिनका उत्पादक को किसी दूसरे व्यक्ति को भुगतान नहीं करना पड़ता जैसे – स्वयं की फैक्टरी या फर्म।

प्रश्न 15.
कॉब – डगलस के उत्पादन फलन को समझाइए?
उत्तर:
कॉब – डगलस का उत्पादन फलन:
यह फलन सामान्यतः निर्माण उद्योगों पर लागू होता है, इस फलन के अनुसार उत्पादन की मात्रा केवल दो साधनों श्रम और पूँजी की मात्रा पर निर्भर करती है।
सूत्र के रूप में – q = x1α, x2β

जहाँ α तथा β दो धनात्मक संख्याएँ हैं, फर्म निर्गत की q मात्रा का उत्पादन कारक एक का x1 मात्रा तथा कारक दो की x2 मात्रा को प्रयोग में लाकर करती है।

प्रश्न 16.
अल्पकाल एवं दीर्घकाल की संकल्पनाओं को समझाइये?
उत्तर:
अल्पकाल वह समयावधि है जिसमें उत्पादन के कुछ साधन स्थिर रहते हैं एवं कुछ परिवर्तनशील होते हैं। यही कारण है कि केवल परिवर्तनशील साधनों को बढ़ाकर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। दीर्घकाल वह समयावधि है जिसमें उत्पादन के साधन चाहे वे स्थिर हों या परिवर्तनशील सभी परिवर्तनशील होते हैं। इसलिए उत्पादन के सभी साधनों की मात्राओं को बढ़ाया जा सकता है। दीर्घकाल में यहाँ तक कि उत्पादन के पैमाने को भी परिवर्तित किया जा सकता है। अल्पकाल में लागतें स्थिर एवं परिवर्तनशील होती हैं परन्तु दीर्घकाल में केवल परिवर्तनशील होती हैं।

प्रश्न 17.
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र ‘U’ आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
जब किसी भी फर्म की उत्पादन प्रक्रिया शुरू की जाती है तब शुरुआत में सीमांत लागत घटती है, किन्तु यह साधन की निश्चित इकाइयों के अल्पकालीन सीमांत नियोजन तक ही घटती है। इसके बाद फर्म को साधन का समता प्रतिफल प्राप्त लागत वक्र होता है। अतः सीमांत लागत स्थिर होने लगती है अंत में साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर ह्रासमान प्रतिफल लागू हो जाता है इस स्थिति में सीमांत। लागत वक्र ऊपर उठने लगता है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 7
इस प्रकार उत्पादन प्रक्रिया के प्रारंभिक चरणों में सीमांत लागत घटती है इसके बाद स्थिर होती है तथा अंतिम चरणों में बढ़ने लगती है जिसकी वजह से सीमांत लागत वक्र अंग्रेजी के अक्षर ‘U’ जैसा होता है।

प्रश्न 18.
दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा औसत लागत वक्र कैसे दिखते हैं?
उत्तर:
दीर्घकाल में एक फर्म उत्पादन प्रक्रिया में सभी साधनों को समायोजित कर सकती है। उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन का पैमाना बढ़ाने पर शुरू में पैमाने का वर्धमान प्रतिफल मिलता है। इस स्थिति में उत्पादन की समान मात्रा का उत्पादन करने पर अपेक्षाकृत कम लागत आती है। फर्म जब तक उत्पादन का वर्धमान प्रतिफल प्राप्त करती है तब तक सीमान्त औसत लागत दोनों घटती हैं। इसके बाद समता प्रतिफल प्राप्त होता है अतः समान उत्पादन के लिए समान लागत आती है जिससे औस उत्पादन व सीमान्त लागत दोनों स्थिर हो जाती हैं। अंतत: पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल लागू होने पर सीमान्त व औसत लागत दोनों बढ़ती हैं। इसलिए सीमान्त व औसत लागत वक्रों का आकार अंग्रेजी के अक्षर U जैसा होता है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 8

प्रश्न 19.
निम्नलिखित तालिका, श्रम की कुल उत्पाद अनुसूची देती है। तद्नुरूप श्रम का औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची निकालिए –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 9
उत्तर:
श्रम की औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 10

प्रश्न 20.
मान लीजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है –
q = 5 L\(\frac{1}{2}\) K \(\frac{1}{2}\) , K = 100, L = 100
समीकरण में मान रखने पर,
q = 5(100)1/2 x (100)1/2
q = 5\(\sqrt{100}\) x \(\sqrt{100 – 25}\)100
q = 5 x 10 x 10
q = 500
अतः अधिकतम सम्भावित निर्गत 500 इकाइयाँ होंगी।

प्रश्न 21.
लागत फलन की संकल्पनाओं को संक्षिप्त में समझाइए?
उत्तर:
लागत फलन:
लागत तथा निर्गत के बीच में तकनीकी संबंध को लागत फलन कहते हैं, लागत दो प्रकार की होती है –

(अ) अल्पकालीन लागत तथा
(ब) दीर्घकालीन लागत।

(अ) अल्पकालीन लागत:
अल्पकाल में केवल परिवर्ती साधनों को परिवर्तित किया जा सकता है, स्थिर साधनों को नहीं।

अल्पकाल में लागत की विभिन्न संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं –

  1. कुल स्थिर लागत – जिन लागतों में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  2. कुल परिवर्ती लागत – जो लागतें उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन के साथ – साथ परिवर्तित होती हैं।
  3. कुल लागत – किसी वस्तु के उत्पादन की कुल मात्रा पर किया जाने वाला कुल व्यय।
  4. औसत स्थिर लागत – कुल स्थिर लागत में कुल उत्पादित इकाइयों का भाग देकर औसत स्थिर लागत प्राप्त की जाती है।
  5. औसत परिवर्ती लागत –  कुल परिवर्ती लागत में उत्पादित मात्रा की कुल इकाइयों से भाग देकर प्राप्त होने वाली लागत।
  6. अल्पकालीन औसत लागत –  अल्पकालीन औसत लागत की गणना कुल लागत में उत्पादन मात्रा का भाग देकर अथवा औसत स्थिर लागत एवं औसत परिवर्तनशील लागत का योग करके की जा सकती है।
  7. अल्पकालीन सीमान्त लागत – उत्पादन की मात्रा में एक इकाई की वृद्धि होने से कुल लागत में जो परिवर्तन आता है, उसे अल्पकालीन सीमान्त लागत कहते हैं।

सूत्र –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 11
(ब) दीर्घकालीन लागत:
दीर्घकालीन लागत में सभी लागत परिवर्तनशील होते हैं। दीर्घकालीन लागत की संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं

  1. दीर्घकालीन कुल लागत – कुल उत्पादन पर किये गये समस्त व्ययों के योग को दीर्घकालीन कुल लागत कहते हैं।
  2. दीर्घकालीन औसत लागत – दीर्घकालीन कुल लागत में उत्पादन की मात्रा का भाग देकर दीर्घकालीन औसत लागत ज्ञात की जाती है।

सूत्र के रूप में –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 12

प्रश्न 22.
फर्म के संतुलन की मान्यताएँ लिखिए?
उत्तर:
फर्म के संतुलन की मान्यताएँ निम्नांकित हैं –

  1. फर्म के सिद्धांत में यह मान लिया जाता है कि उत्पादक का व्यवहार विवेकपूर्ण होता है। प्रत्येक उत्पादक अधिक से अधिक मौद्रिक लाभ अर्जित करने का प्रयत्न करते हैं।
  2. उद्यमकर्ता प्रत्येक उपज को उत्पादन की एक दी हुई तकनीकी दशाओं में कम से कम लागत पर पैदा करने का प्रयत्न करता है।
  3. एक फर्म द्वारा एक वस्तु का उत्पादन किया जाता है।
  4. प्रत्येक उत्पत्ति के साधन की कीमत दी हुई होती है तथा निश्चित होती है।

उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औसत स्थिर लागत, औसत परिवर्तनशील लागत और औसत कुल लागत को भलीभाँति समझाइए?
उत्तर:
अल्पकालीन औसत लागते तीन प्रकार की होती हैं

(अ) औसत स्थिर लागत:
(ब) औसत परिवर्तनशील लागत एवं
(स) औसत कुल लागत।

(अ) औसत स्थिर लागत:
औसत स्थिर लागत, कुल स्थिर लागत को फर्म के कुल उत्पादन मात्रा से भाग दिये जाने पर प्राप्त होती है। इसे प्रति इकाई लागत भी कहा जाता है। अर्थात्,
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 13
अल्पकाल में उत्पादन की मात्रा घटे या बढ़े, कुल स्थिर लागत अपरिवर्तित रहती है। कुल स्थिर लागत में कोई परिवर्तन नहीं होता है, किन्तु उत्पादन के बढ़ने के साथ-साथ औसत स्थिर लागत घटती चली जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि उत्पादन की मात्रा बढ़ने से कुल स्थिर लागत, उत्पादन की अधिकाधिक इकाइयों में बँटने लगती है। अत: औसत स्थिर लागत क्रमशः घटने लगती है।

(ब) औसत परिवर्तनशील लागत:
कुल परिवर्तनशील लागत को फर्म के कुल उत्पादन की इकाइयों से भाग दिये जाने पर जो भजनफल प्राप्त होता है, उसे ही औसत परिवर्तनशील लागत कहते हैं। इसे प्रति इकाई परिवर्तनशील लागत भी कहते हैं । अर्थात्,
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 14
कुल परिवर्तनशील लागत उत्पादन की मात्रा कुल परिवर्तनशील लागत, उत्पादन की मात्रा में वृद्धि किये जाने से हमेशा बढ़ती जाती है। चूंकि अल्पकाल में उत्पादन के क्षेत्र में परिवर्तनशील अनुपातों का नियम’ लागू होता हैं, इसलिए औसत परिवर्तनशील लागत वक्र प्रारम्भिक अवस्था में गिरता है, क्योंकि उत्पादन वृद्धि नियम या लागत ह्रास नियम लागू होता है, किन्तु एक बिन्दु के पश्चात् उत्पत्ति ह्रास नियम या लागत वृद्धि नियम लागू होने के कारण यह तीव्र गति से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है।

(स) औसत कुल लागत:
औसत कुल लागत से अभिप्राय, उत्पादन की कुल प्रति इकाई लागत से है। जब उत्पादन की कुल लागत को उत्पादित इकाइयों की संख्या से भाग दिया जाता है, तो औसत कुल लागत प्राप्त होती है। अर्थात
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 15
चूँकि कुल लागत, परिवर्तनशील लागत एवं स्थिर लागत का योग होती है, अतः औसत कुल लागत, औसत परिवर्तनशील लागत और औसत स्थिर लागत के योग के बराबर होती है।

प्रश्न 2.
कुल, औसत एवं सीमान्त आय को एक काल्पनिक तालिका तथा रेखाचित्र की सहायता से समझाइए?
उत्तर:
कुल आय, औसत आय तथा सीमान्त आय को निम्नलिखित तालिका की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है
तालिका – कुल आय, औसत आय तथा सीमान्त आय कुल आय औसत आय –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 16
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि अतिरिक्त इकाई बेचने के लिए कीमत में कटौती की जा रही है। जब फर्म, वस्तु की इकाई बेचती है, तो औसत आय, कुल आय और सीमान्त आय सभी ₹ 10 हैं, किन्तु जब वह वस्तु की दो इकाइयाँ बेचती है, तो वस्तु की कीमत में कटौती कर ₹ 9 प्रति इकाई कर देती है, इससे उसकी कुल आय ₹ 18 हो गयी है, जबकि सीमान्त आय 18 – 10 = ₹ 8 है। जब वस्तु की 3 इकाइयाँ बेची जाती हैं, तो कीमत में पुनः कटौती की जाती है। प्रति इकाई कीमत ₹ 8 किये जाने पर कुल आय 8 x 3 = ₹ 24 हो गयी है, जबकि सीमान्त आय 24 – 18 = ₹ 6 हो गयी है।

उपर्युक्त तालिका को निम्न रेखाचित्र की सहायता से भी स्पष्ट किया जा सकता है प्रस्तुत रेखाचित्र में Ox – आधार रेखा पर बेची जाने वाली इकाइयाँ तथा OY – लम्ब रेखा पर आगम को दिखाया गया है।

1. चित्र में TR कुल आय वक्र, AR औसत आय वक्र एवं सीमांत आय वक्र एवं MR सीमान्त आय वक्र है।

2. जब कुल आय वक्र TR,A बिन्दु तक बढ़ता जाता है तो सीमान्त आय MR धनात्मक होती है। चित्र से स्पष्ट है 15 कि MR रेखा C बिन्दु तक धनात्मक है।

3. जब कुल आय वक्र TR, A में B बिन्दु तक घटने आय वक्र – लगती है, तो सीमान्त आय वक्र MR ऋणात्मक हो जाता है। MR वक्र C बिन्दु के पश्चात् ऋणात्मक हो गया है।

4. जब औसत आय वक्र AR गिरने लगता है, तो सीमान्त आय वक्र MR भी गिरने लगता है किन्तु MR वक्र में गिरावट की दर AR में गिरावट की दर से अधिक है। चित्र से स्पष्ट है कि MR वक्र AR वक्र से नीचे है।

5. जब उत्पादन की मात्रा OC हो जाती है, तो इसके उत्पादन बढ़ने पर सीमान्त आय वक्र ऋणात्मक हो जाता है।

6. औसत आय वक्र AR बायें से दायें नीचे की ओर गिरता हुआ वक्र है। इसका अभिप्राय यह है कि वस्तु की अतिरिक्त इकाइयाँ बेचने के लिए मूल्यों में कटौती करनी पड़ती है। मूल्यों में यह कटौती सभी इकाइयों में की जाती है इसलिए AR औसत आय वक्र नीचे की ओर गिरता हुआ है।

7. सीमान्त आय वक्र MR भी बायें से दायें की ओर गिरता हुआ वक्र है, किन्तु सीमान्त आय वक्र में गिरावट की दर अधिक है। इसका कारण यह है कि अतिरिक्त इकाई बेचने के लिए वस्तु के मूल्य में कटौती करनी पड़ती है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 17

प्रश्न 3.
पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में अल्पकाल में किसी वस्तु का मूल्य कैसे निर्धारित होता है? उदाहरण तथा रेखाचित्र द्वारा समझाइए?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का साम्य:
पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में प्रत्येक फर्म का व्यवहार पूरी तरह विवेकपूर्ण होता है, ऐसा हम मान सकते हैं। ये फर्मे अपने हित में अधिकाधिक लाभ अर्जित करने का प्रयास करती हैं। आधुनिक अर्थशास्त्री किसी वस्तु के मूल्य तथा उत्पादन निर्धारण को फर्म के साम्य के शब्दों में व्यक्त करते हैं:

एक फर्म साम्य की स्थिति में तब होगी जबकि उसके कुल उत्पादन में कोई परिवर्तन नहीं होता। एक फर्म अपने उत्पादन में परिवर्तन तब नहीं करेगी जब उसे अधिकतम लाभ प्राप्त हो रहा हो। अत: “एक फर्म का साम्य तथा एक फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की मात्रा और कीमत निर्धारण दोनों एक ही बात है।”

अल्पकाल में फर्म का साम्य:
अल्पकाल में समय की कमी होती है जिससे पूर्ति की मात्रा को घटायाबढ़ाया नहीं जा सकता, परन्तु माँग में होने वाले परिवर्तनों को रोका भी नहीं जा सकता। अत: अल्पकाल में एक फर्म को लाभ, सामान्य लाभ व हानि हो सकती है।

1. लाभ की स्थिति:
जब वस्तु की माँग अधिक होती है और पूर्ति को अल्पकाल में उसके अनुसार नहीं बढ़ाया जा सकता तो उस समय विशेष पर फर्म को लाभ मिलता है जैसा कि चित्र से स्पष्ट है।

चित्र में E बिन्दु पर MR = MC के है इसलिए E PM बिन्दु अधिकतम लाभ का बिन्दु है। यह फर्म के साम्य की E स्थिति को बताता है अतः
कुल उत्पादन = 0Q
कीमत (AR) = EQ या OP
प्रति इकाई लागत (AC) = RQ
प्रति इकाई लाभ = EQ – RQ = ER
कुल लाभ = प्रति इकाई लाभ x उत्पादन.
= ER x OQ = ER X PE,
(: 0Q = PE) = MPER
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 18

2. सामान्य लाभ की स्थिति:
अर्थशास्त्र में सामान्य लाभ उस स्थिति में होता है जब वस्तु की माँग और MC AC पूर्ति आपस में बराबर होती है अर्थात् फर्म द्वारा प्राप्त की गयी कीमत AR से वस्तु की औसत लागत AC पूरी हो जाये (AR = AC) तो वह सामान्य लाभ की स्थिति होगी। जैसा AR = MR कि चित्र से स्पष्ट है। चित्र में E बिन्दु अधिकतम लाभ का बिन्दु है। इस बिन्दु पर OQ कुल उत्पादन है, वस्तु की प्रति इकाई कीमत EQया OP है तथा प्रति इकाई लागत भी EQ है, अतः स्पष्ट है कि फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त हो रहा है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 19

3. हानि की स्थिति:
उत्पादन में कभी – कभी अल्पकाल में ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है जबकि फर्म को हानि का सामना करना पड़े, अर्थात् उसकी औसत आय (AR) की तुलना में औसत लागत (AC) अधिक हो। इस स्थिति को चित्र की सहायता से समझा जा सकता है। चित्र में MC, MR को नीचे से काटती है। E बिन्दु साम्य PM बिन्दु है। इस बिन्दु पर OQ कुल उत्पादन है, वस्तु की प्रति ल इकाई कीमत EQ या OP है, प्रति इकाई लागत RQ तथा। प्रति इकाई हानि (RQ – EQ) = RE है। कुल = RE x MR.
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 20

प्रश्न 4.
औसत लागत और सीमान्त लागत में संबंध को एक काल्पनिक तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए?
अथवा
औसत लागत तथा सीमांत लागत में क्या संबंध है? रेखाचित्र की सहायता से समझाइये?
उत्तर:
औसत लागत और सीमान्त लागत के संबंध को निम्नलिखित तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है –
तालिका – कुल, औसत व सीमान्त लागत –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 21

प्रस्तुत रेखाचित्र में OX – आधार रेखा पर उत्पादन की मात्रा तथा OY – लम्ब रेखा पर लागत को दिखाया गया है। AC औसत लागत वक्र एवं MC सीमान्त लागत वक्र है। दोनों का स्वरूप अंग्रेजी अक्षर ‘U’ के समान है, क्योंकि उत्पादन के क्षेत्र में परिवर्तनशील अनुपातों। का नियम लागू होता है। Pबिन्दु औसत लागत वक्र का न्यूनतम बिन्दु। है। सीमान्त लागत वक्र MC, औसत लागत वक्र AC को इसी न्यूनतम बिन्दु P पर नीचे से काटता है एवं कटाव बिन्दु के ऊपर तेजी से बढ़ने। लगता है। P बिन्दु के पूर्व जब औसत लागत वक्र AC ऊपर से नीचे उत्पादन की मात्रा की ओर गिर रहा है। चित्र से स्पष्ट है कि सीमान्त लागत वक्र MC औसत लागत वक्र AC से नीचे है। P बिन्दु के पश्चात् जब औसत लागत वक्र AC की ओर बढ़ने लगता है, तो सीमान्त लागत वक्र MC भी बढ़ने लगता है, किन्तु सीमान्त लागत वक्र में वृद्धि की दर अधिक है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 22

प्रश्न 5.
उत्पादन लागत से आप क्या समझते हैं? कुल लागत, स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत का अर्थ समझाइए?
उत्तर:
“अर्थशास्त्र में उत्पादन लागत का अर्थ उन सभी भुगतानों से है जो उत्पादन दर व्यय किये गये हैं। भले ही इसके उत्पादक द्वारा प्रदान की गई पूँजी, भूमि, श्रम आदि सेवाओं का पुरस्कार भी शामिल हो। साहसी का सामान्य लाभ भी इसमें सम्मिलित होता है। उत्पादन लागत में न केवल वित्तीय व्यय, बल्कि समय, सेवा तथा शक्ति के रूप में किये गये व्यय को भी सम्मिलित किया जाता है।

कुल लागत:
किसी फर्म को उत्पादन की एक निश्चित मात्रा उत्पादित करने के लिए जो कुल व्यय करना पड़ता है, उसे फर्म की कुल लागत कहा जाता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ – साथ कुल लागतों में वृद्धि होती जाती है। कुल लागतों में सामान्यतः दो प्रकार की लागतें सम्मिलित की जाती हैं –

  1. स्थिर या पूरक लागत तथा
  2. परिवर्तनशील या प्रमुख लागत

अर्थात्
कुल लागत = स्थिर लागत + परिवर्तनशील लागत।

1. स्थिर या पूरक लागत:
स्थिर लागत से तात्पर्य, उत्पत्ति के स्थिर साधनों पर किये जाने वाले व्यय से होता है। उत्पत्ति के स्थिर साधन ऐसे साधनों को कहा जाता है जिन्हें अल्पकाल में घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता, वे उत्पत्ति के स्थिर साधन कहलाते हैं। ऐसे साधनों पर किया जाने वाला व्यय उत्पादन के सभी स्तरों पर समान रहता है। यदि किसी समय पर उत्पादने शून्य हो जाये, तो भी स्थिर लागत बनी रहेगी। यही कारण है कि स्थिर लागतों को पूरक लागतें, ऊपरी लागते, सामान्य लागतें एवं अप्रत्यक्ष लागतें भी कहते हैं।

स्थिर लागतों के अन्तर्गत निम्नलिखित लागतों को सम्मिलित किया जाता है –

  1. फर्म की बिल्डिंग का किराया
  2. स्थिर पूँजी एवं दीर्घकालीन ऋण पर ब्याज
  3. बीमा शुल्क
  4. मशीनों का घिसावट व्यय
  5. प्रशासनिक ब्याज, जैसे – प्रबन्धकों एवं कार्यालयों के कर्मचारियों के वेतन
  6. विद्युत् व्यय
  7. व्यावसायिक कर, लाइसेंस फीस
  8. फर्म के स्वामी के अवसर लागतों एवं सामान्य लाभ को भी सम्मिलित किया जाता है।

2. परिवर्तनशील या प्रमुख लागत:
परिवर्तनशील लागतों से अभिप्राय, ऐसे व्ययों से है, जो उत्पत्ति के परिवर्तनशील साधनों पर किये जाते हैं। उत्पत्ति के परिवर्तनशील साधन ऐसे साधनों को कहा जाता है, जिन्हें उत्पादन में परिवर्तन होने पर परिवर्तन करना पड़ता है। इस प्रकार, परिवर्तनशील लागतों से तात्पर्य, ऐसी लागतों से है, जिनमें उत्पादन में परिवर्तन होने पर परिवर्तन हो जाता है। परिवर्तनशील लागत को प्रमुख लागत एवं प्रत्यक्ष लागत भी कहा जाता है।

अल्पकालीन परिवर्तनशील लागतों में निम्न लागतें सम्मिलित की जाती हैं –

  1. कच्चे माल का मूल्य
  2. श्रमिकों की मजदूरी
  3. ईंधन एवं विद्युत् शक्ति की लागते
  4. परिवहन लागत
  5. उत्पादन कर एवं बिक्री कर इत्यादि।

इस प्रकार स्पष्ट है कि कुल लागत, स्थिर लागत एवं कुल परिवर्तनशील लागत का योग होता है।

प्रश्न 6.
फर्म के संतुलन का क्या अर्थ है? फर्म के संतुलन की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये?
उत्तर:
फर्म के साम्य या संतुलन से आशय-फर्म के संतुलन से आशय उस अवस्था से है जिसमें परिवर्तन की अनुपस्थिति दृष्टिगोचर होती है। फर्म के साम्य के आधार पर किसी फर्म के द्वारा वस्तु के मूल्य निर्धारण एवं उत्पादन की मात्रा का निर्धारण किया जाता है साम्यावस्था में उत्पादन की मात्रा में कमी या वृद्धि से फर्म का कोई सारोकार नहीं होता है। यही कारण है कि फर्म को इस अवस्था में अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। अतएव वह बिंदु जिस पर फर्म को अधिकतम मौद्रिक लाभ प्राप्त हो उसे फर्म का संतुलन कहते हैं। जहाँ TRTC अधिकतम हो।

फर्म के संतुलन की विशेषताएँ – फर्म के संतुलन की अवस्था की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. वस्तु की कीमत या उत्पादन की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं:
संतुलन की स्थिति में फर्म अपनी कीमत या वस्तु के उत्पादन की मात्रा में किसी भी प्रकार की कोई परिवर्तन नहीं करती है अर्थात् परिवर्तन की अनुपस्थिति रहती है।

2. अधिकतम लाभ प्राप्त करना:
एक फर्म अपने संतुलन की स्थिति में अधिकतम लाभ प्राप्त करती है। अत: वह किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहती है।

3. फर्म की उत्पादन लागत न्यूनतम होना:
फर्म के संतुलन की स्थिति में फर्म न्यूनतम लागत पर उत्पादन को संभव बनाती है। उत्पादन लागत न्यूनतम हो जाने से लाभ बढ़ जाता है।

4. कुल लागत एवं कुल आगम तथा सीमांत विश्लेषण रीति का प्रयोग:
फर्म की साम्यावस्था कुल लागत एवं कुल आगम तथा सीमांत विश्लेषण रीति का प्रयोग करके प्राप्त की जा सकती है। एक फर्म के साम्य में उत्पादित वस्तु की मात्रा एवं कीमत निर्धारण में कोई अन्तर नहीं है।

प्रश्न 7.
उत्पादन फलन को परिभाषित कीजिए।पैमाने के वर्धमान, स्थिर तथा ह्रासमान प्रतिफल को समझाइए?
उत्तर:
उत्पादन फलन – यह उत्पादन के आगतों तथा अंतिम उत्पाद के बीच तकनीकी संबंध को बताता है।
q= f(x1x2)
यहाँ = उत्पादन की मात्रा, x1 व x2, कारक 1 व 2
पैमाने के प्रतिफल:
दीर्घकाल में उत्पादन के साधनों के समानुपात में बदलने से उत्पादन पर जो प्रभाव पड़ता है, वह पैमाने के प्रतिफल कहलाते हैं। यह दीर्घकाल से संबंधित है तथा सभी आगत परिवर्तनीय होते हैं।
पैमाने के प्रतिफल के तीन निम्नलिखित प्रकार हैं –

पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था:
जब सभी आगतों को एक ही अनुपात में बढ़ाने के फलस्वरूप उत्पादन में, आगतों में वृद्धि की अपेक्षा, अधिक अनुपात में वृद्धि होती है, तो। इस स्थिति को पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था कहा जाता है, जैसेमाना कि आगतों में 10% की वृद्धि करने पर उत्पादन में 12% की वृद्धि हो, ” तो यह पैमाने के बढ़ते प्रतिफल कहलाएँगे।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 23

पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था:
जब सभी आगतों में एक निश्चित अनुपात में वृद्धि करने के फलस्वरूप उत्पादन में भी उसी अनुपात में वृद्धि होती है, जिस अनुपात में आगतों में वृद्धि की गई थी। तो इसे पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था कहते, उपरोक्त चित्रानुसार OP पैमाने की रेखा है। साधन X व Y की पहली इकाइयों पर उत्पादन 100 इकाइयों का था, जबकि दोनों इकाइयों की मात्रा 300 बढ़ाकर 2 – 2 करने पर उत्पादन 200 तथा 3 – 3 करने पर उत्पादन 300 इकाइयाँ । X – 200 हो जाती हैं। अत: AB = BC, यहाँ यह स्पष्ट है कि उत्पादक को पैमाने के। स्थिर प्रतिफल प्राप्त हो रहे हैं।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 24

पैमाने के घटते प्रतिफल की अवस्था:
जब सभी आगतों में एक निश्चित अनुपात में वृद्धि के परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि, आगतों में की गई आनुपातिक वृद्धि की। अपेक्षा कम होती है, तो इस स्थिति को पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की अवस्था कहा जाता है, जैसे – माना कि आगतों में 10% की वृद्धि की जाती है। इसके परिणामस्वरूप उत्पादन में 8% की वृद्धि होती है, तो इसे पैमाने के घटते प्रतिफल की अवस्था कहा जायेगा। उपरोक्त चित्रानुसार, x + y उत्पादन के साधन मिलकर पहले 100 इकाइयाँ उत्पादित करते हैं। फिर 2x + 2y मिलकर 180 इकाइयाँ उत्पादित करते हैं तथा 3x + 3y मिलकर 240 इकाइयाँ।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 25

अतः इस प्रकार उत्पत्ति के साधनों की मात्रा दुगुनी तथा तिगुनी होने पर भी उत्पादन दुगुना या तिगुना न होकर कम बढ़ता है। अत: E बिन्दु तक पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की प्राप्ति हो रही है, क्योंकि DE > CD > BC > AB है।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका, श्रम का सीमांत उत्पादन अनुसूची देती है। यह भी दिया गया है कि श्रम का कुल उत्पाद शून्य है। प्रयोग के शून्य स्तर पर श्रम के कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची की गणना कीजिए?
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 26
उत्तर:
श्रम की कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 27

प्रश्न 9.
एक फर्म की अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची निम्नलिखित में दी गयी है। फर्म की स्थिर लागत ₹ 100 है। फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत अनुसूची निकालिए?
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 28
उत्तर:
फर्म की अन्य अनुसूची निम्नलिखित हैं –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति img 29

प्रश्न 10.
मान लीजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है?
q= 2L2 K
अधिकतम संभावित निर्गत ज्ञात कीजिए, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है, 5 इकाइयाँ L तथा 2 इकाइयाँ K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत क्या है, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है। शून्य इकाई L तथा 10 इकाई K द्वारा?
हल:
दिया है –
q = 22 K2
जहाँ L = 5,
K = 2
समीकरण में मान रखने पर,
q = 2(5)2 x (2)2
q = 2(25)(4)
q = 200 इकाइयाँ
अत: अधिकतम सम्भावित निर्गत (उत्पादन) 200 इकाइयाँ होंगी। दूसरी स्थिति में, दिया है
L = 0, K = 10 समीकरण में मान रखने पर,
q = 2(0) x (10) या
q = 2 x 0 x 100
q = 0
अतः अधिकतम संभावित निर्गत (उत्पादन) शून्य होगा।

प्रश्न 11.
एक फर्म के लिए शून्य इकाई L तथा 10 इकाइयाँ K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत निकालिए, जब इसका उत्पादन फलन है?
q= 5L + 2K.
हल:
दिया है
q = 5L + 2K
L = 0, K = 10
समीकरण में मान रखने पर,
q = 5(0) + 2(10) या
q = 0 + 20 या
q = 20
अतः अधिकतम संभावित उत्पादन 20 इकाइयाँ होंगी।

MP Board Class 12th Economics Important Questions

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य और स्नेह

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य और स्नेह

वात्सल्य और स्नेह अभ्यास

वात्सल्य और स्नेह अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृष्ण ने दही का दोना कहाँ छिपा लिया?
उत्तर:
बालकृष्ण ने दही का दोना अपनी पीठ के पीछे छिपा लिया है।

प्रश्न 2.
दूध पीने से चोटी बढ़ती है, यह सुझाव कृष्ण को किसने दिया था?
उत्तर:
गाय का दूध पीने से चोटी बढ़ती है, यह सुझाव यशोदा माता ने बालकृष्ण को दिया था।

प्रश्न 3.
सूरदास किस भाषा के कवि हैं?
उत्तर:
सूरदास ब्रजभाषा के कवि हैं।

प्रश्न 4.
‘मोसों कहत मोल को लीनो’ यह कथन किसने कहा है? (2016)
उत्तर:
यह कथन बलदाऊ की शिकायत करते हुए कृष्ण यशोदा माता से कहते हैं कि बलदाऊ उन्हें मोल का खरीदा हुआ बताते हैं।

प्रश्न 5.
“घर का पहरे वाला” से कवि का क्या आशय है? (2015)
उत्तर:
“घर का पहरे वाला” से कवि का तात्पर्य घर के रखवाले से है अर्थात् देश की रक्षा करने वाला प्रहरी।

प्रश्न 6.
‘ममता की गोद’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
बहन को ‘ममता की गोद’ कहा गया है।

वात्सल्य और स्नेह लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए कृष्ण ने यशोदा को क्या-क्या तर्क दिए? (2013)
उत्तर:
अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए कृष्ण ने निम्न तर्क दिए-

  1. मैंने दही नहीं खाया है,बल्कि ग्वालवालों ने मेरे मुँह पर लपेट दिया है।
  2. तेरा दधि का बर्तन इतने ऊँचे छींके पर लटका हुआ है।
  3. मेरे छोटे-छोटे हाथ हैं जो उस छींके तक नहीं पहुँच सकते।

प्रश्न 2.
“गोरे नन्द जसोदा गोरी, तुम कत स्याम सरीर” यह पंक्ति किसने किससे और क्यों कही?
उत्तर:
उक्त पंक्ति बलदाऊ ने कृष्ण से कहीं। उन्होंने यह पंक्ति अपने इस पक्ष को दृढ़ करने के लिए कहीं कि तुझे तो मोल लिया है। यदि तू नन्द और यशोदा माँ का पुत्र होता तो काला क्यों होता ? वे दोनों तो गोरे हैं। यहाँ इस तथ्य को उजागर किया गया है कि गोरे माता-पिता की सन्तान भी गोरी होती है।

प्रश्न 3.
मुँह से मिट्टी निकालने के लिए यशोदा ने कौन-सा उपाय किया?
उत्तर:
कृष्ण के मुँह से मिट्टी निकालने के लिए यशोदा ने कसकर उनकी बाँह पकड़ ली और मारने के लिए एक हाथ में डंडी उठा ली। उनका भाव यह था कि डर के मारे कृष्ण अपने मुख से मिट्टी बाहर निकाल देगा।

प्रश्न 4.
‘मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि कहता है कि भाई का जीवन तो क्रीड़ा-कौतूहल आदि से भरा रहा, लेकिन बहन गम्भीर रहते हुए भी आनन्द देने वाली बनी रही। बहन के होते हुए कभी भी भाई के प्रेम और आनन्द में कमी नहीं आई।.

प्रश्न 5.
बहन को भाई का ध्रुवतारा’ क्यों कहा गया है? (2009, 11, 14, 17)
उत्तर:
भाई तो एक अल्हड़ जीवन या यों कहें कि लापरवाह जीवन बिताता रहा, लेकिन बहन अपने लक्ष्य के लिए ध्रुवतारे की तरह अटल खड़ी हुई दिखाई दी। बहन ने भाई को मुसीबतों के समय उत्साह दिया और उसकी देश-भक्ति को जाग्रत कर देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण करने में सहयोग दिया।

वात्सल्य और स्नेह दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृष्ण माता यशोदा से बलदाऊ की क्या-क्या शिकायतें करते हैं?
उत्तर:
कृष्ण माता यशोदा से शिकायत करते हैं कि बलदाऊ मुझे बहुत चिढ़ाते हैं। मझसे यह कहते हैं कि तुझे यशोदा माता ने जन्म नहीं दिया है,बल्कि तुझे किसी से मोल लिया है। में इस गुस्से में खेलने भी नहीं जाता हूँ। बार-बार मुझसे पूछते हैं कि तेरे माता-पिता कौन हैं और कहते हैं कि नन्द बाबा और यशोदा तो दोनों गोरे हैं,यदि तू उनका पुत्र है तो साँवला क्यों है? फिर सभी ग्वालों को सिखा देते हैं और मेरी तरफ देखकर ताली मारकर हँसते हैं और मुझे खिझाते हैं और तू मुझे ही मारना जानती है,बलदाऊ को कभी नहीं मारती।

प्रश्न 2.
‘सूर वात्सल्य के चितेरे हैं’ इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
‘सूर वात्सल्य के चितेरे हैं’ यह कथन अक्षरशः सत्य है। इनका वात्सल्य वर्णन अद्वितीय है। कृष्ण के बाल रूप और उनकी बाल-सुलभ क्रीड़ाओं का जैसे विशद वर्णन सूरदास ने किया है, वैसा सम्पूर्ण विश्व साहित्य में कहीं नहीं मिलता। कृष्ण का घुटनों चलना,मणियों के खम्भ में अपने प्रतिबिम्ब को माखन खिलाना, माँ से जिद करना,खेलते समय खिसिया जाना आदि विविध बाल क्रीड़ाओं का वर्णन सूरसागर में चित्रित है। उदाहरण देखिए-
“मैया मैं तो चंद खिलौना लैहों।
जैहों लोटि धरनि पै अब ही तेरी गोद न ऐहौं।”

बच्चों की पारस्परिक होड़ का चित्रण भी सूरदास ने अनूठे रूप में किया है। माता यशोदा उनसे कहती है कि दूध पीने से चोटी बढ़ती है तो वह इस लालच में रोज दूध पी लेते हैं। जब उन्हें चोटी बढ़ती हुई दिखाई नहीं देती तो वह कहते हैं-
“मैया कबहि बढ़ेगी चोटी।
काचो दूध पियाबति पचि-पचि देत न माखन रोटी ॥
कितनी बार मोहि दूध पिबत भई यह अजहूँ है छोटी॥”

प्रश्न 3.
बहन को ‘चिनगारी’ तथा भाई को ‘ज्वाला’ बताने के पीछे कवि का क्या आशय (2009)
उत्तर:
गोपाल सिंह नेपाली राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने वाले कवि हैं। उन्होंने भाई-बहन के प्रेम को राष्ट्रीय प्रेम के रूप में अभिव्यक्त किया है। अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ बहन चिनगारी के रूप में कार्य करेगी तो भाई ज्वाला बन कर देश की रक्षार्थ तत्पर रहेगा। बहन की क्रोध रूपी चिनगारी जलकर भयानक ज्वाला का रूप ले लेगी और मातृभूमि के दुश्मन को जलाकर राख कर देगी। दूसरी ओर भाई का क्रोध तो स्वयं ज्वाला बनकर देश की रक्षा करेगा। भाई बहन को कहता है कि देश की रक्षा के लिए हम दोनों को सजग और सक्रिय रहना है। कवि आश्वस्त है कि भाई और बहन दोनों मिलकर अपने देश की रक्षा के लिए सतर्क रहेंगे और देश के दुश्मन के लिए ज्वाला बनकर उसका सर्वनाश करने में सक्षम होंगे।

प्रश्न 4.
कवि ने भाई-बहन के स्नेह को किन-किन प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:
कवि ने भाई-बहन के स्नेह को देश-प्रेम में परिवर्तित कर नये-नये प्रतीकों का सहारा लिया है। बहन के प्रेम के प्रतीक हैं-चिनगारी,हहराती गंगा,बसन्ती चोला,कराल क्रान्ति, राधारानी, आँगन की ज्योति,ममता की गोद, बहन की बुद्धि, नदी की धारा, ध्रुवतारा के रूप में बताया है। दूसरी तरफ भाई के प्रेम को ज्वाला, बेहाल झेलम, सजा हुआ लाल, विकराल, वंशीवाला, घर का पहरेदार,प्रेम का पुतला, जीवन का क्रीड़ा कौतुक, क्रियाशीलता, एक लहर बताया है। इन प्रतीकों के माध्यम से कवि ने राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ मानवीय जीवन की ऊष्मापूर्ण अनुभूतियों का प्रभावशाली वर्णन किया है। इस कविता में कवि ने देश-प्रेम का उच्च आदर्श उद्घाटित किया है।

प्रश्न 5.
भाई-बहन’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
भाई-बहन’ कविता के माध्यम से कवि ने नये-नये प्रतीकों के द्वारा भाई बहन के प्रेम को राष्ट्रीय प्रेम के परिवेश में व्यक्त किया है। भाई अपनी बहन को सम्बोधित कर कहता है कि हम दोनों को देश की रक्षा के लिए सजग और सक्रिय होना है। बहन की बुद्धि और भाई की क्रियाशीलता मिलकर जीवन और राष्ट्र को आनन्दमय बना देगी। भाई-बहन दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर लोगों में देश की रक्षा के प्रति जागति पैदा कर देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा कर सकते हैं। भाई-बहन के प्रेम को राष्ट्रीय प्रेम से जोड़कर उदात्त बना दिया गया है। कवि संदेश दे रहा है कि हम अपने आनन्द में ही मस्त होकर देश की रक्षा के अपने कर्त्तव्य को कहीं भूल न जाएँ। यहाँ सभी को सजग रहकर एक सच्चे देशभक्त प्रहरी की तरह अपने देश की रक्षा करनी है।

देश के लिए बसन्ती चोला धारण करना पड़े तो करें और विकराल स्वरूप धारण करना पड़े तो करें तथा अपनी बुद्धि और बल के सहारे देश के लिए अपना बलिदान कर दें। जब देश की आजादी का प्रश्न हो, तो अपनी क्रोध रूपी ज्वाला को जलाकर सामने आये अरि (दुश्मन) को नष्ट कर दें। किसी भी कीमत पर देश की आजादी को बचाना है। यदि मातृभूमि तुम्हें अपनी रक्षा के लिए आवाज दे, तो सभी सुख-सम्पत्ति को भूल कर एक सच्चे देश-भक्त की तरह आगे आयें और अपना सर्वस्व अर्पण करके भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करें। कवि देश में एकता बनाये रखने का भी संदेश देता है।

प्रश्न 6.
सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिये
(अ) मैया मैं नाही……. शिव विरंचि बौरायो।
(ब) मैया कबहिं बढ़ेगी……. हरि हलधर की जोटी।
(स) भाई एक लहर ……. भाई का ध्रुवतारा है।
उत्तर:
(अ) सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘वात्सल्य और स्नेह’ से सूरदास द्वारा रचित ‘सूर के बालकृष्ण’ नामक शीर्षक से उद्धृत किया गया है।

सन्दर्भ :
इसमें बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से अपने प्रति की गई दही खाने की शिकायत को नकारते हुए बड़े ही बुद्धिकौशल से बाल सुलभ उत्तर देते हैं।

व्याख्या :
श्रीकृष्ण माता यशोदा से कहते हैं कि, हे माता! मैंने दही नहीं खाया है। मुझे याद आ रहा है कि इन सभी सखाओं ने मिलकर मेरे मुख पर दही लपेट दिया था। तू जानती है कि इतने ऊँचे टँगे हुए छींके पर दही का बर्तन रखा हुआ है। तू देख सकती है कि मेरे छोटे-छोटे हाथ हैं। इन छोटे हाथों से मैं कैसे उस दही के बर्तन को प्राप्त कर सकता हूँ। फिर नन्दकुमार बालकृष्ण ने दोने को पीठ के पीछे छिपाते हुए और मुख पर लगे हुए दही को पोंछते हुए उपर्युक्त बातें कहीं। यहाँ उनकी बाल सुलभ चतुरता का प्रदर्शन किया गया है। उन्हें भान है कि मुख पर लगे हुए दही से और हाथ में लगे दोने से उनकी चोरी पकड़ी जाएगी, अतः मुख को साफ कर लिया और दोने को पीठ के पीछे छुपा लिया।

यशोदा जी सब समझ गईं, लेकिन पीटने वाली लकड़ी को फेंक कर मुस्कराने लगी और मनमोहन बालकृष्ण को अपने गले से लगा लिया। श्रीकृष्ण के बाल विनोद के आनन्द ने माता यशोदा के मन को मोहित कर लिया। यहाँ श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति का प्रताप दर्शाया गया है। सूरदास कहते हैं कि यशोदा जी और बालकृष्ण के सख को देखकर शिव और ब्रह्मा भी विवेक रहित होकर मोहित हो गए। अर्थात् श्रीकृष्ण यशोदा जी को अपनी बाल लीलाओं का जो सुख दे रहे हैं उससे किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है और वह भ्रमित हो सकता है। निरंजन निराकार परब्रह्म साकार रूप में आकर यशोदा जी के आँगन में उनके प्रमोद के लिए जो क्रीड़ाएँ कर रहे हैं, ऐसा सुख शिव-विरंचि को भी दुर्लभ है।

(ब) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से यह शिकायत कर रहे हैं कि उनको कितने ही दिन दूध पीते हो गए, लेकिन उनकी चोटी बड़ी नहीं हुई है।

व्याख्या :
बालकृष्ण यह जानने को उत्सुक हैं कि उनकी चोटी कब बढ़ेगी। उनकी माता उन्हें यह भरोसा दिलाकर दूध पिलाती थीं कि दूध पीने से उनकी चोटी बढ़ जाएगी। वह माता से पूछते हैं कि हे माता मुझे कितनी ही बार (बहुत समय) दूध पीते हुए हो गईं, लेकिन यह चोटी अभी तक छोटी है। तेरे कथनानुसार मेरी चोटी बलदाऊ की चोटी के समान लम्बी और मोटी हो जाएगी, काढ़ते में, गुहते में,नहाते समय और सुखाते समय नागिन के समान लोट जाया करेगी। तू मुझे कच्चा दूध अधिक मात्रा में पिलाती है तथा माखन और रोटी नहीं देती है। माखन और रोटी बालकृष्ण को प्रिय हैं, लेकिन वे नहीं मिलते और चोटी बढ़ने की लालसा से उन्हें गाय का कच्चा दूध पीना पड़ता है। सूरदास कहते हैं कि माता बलाएँ लेने लगी और कहने लगी कि हरि हलधर दोनों भाइयों की जोड़ी चिरंजीव हो।

(स) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
भाई और बहन एक-दूसरे के सहायक हैं। हर उन्माद में बहन को भाई का ही सहारा है। दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण कर सकते हैं।

व्याख्या :
कवि गोपाल सिंह नेपाली कहते हैं कि यहाँ पर भाई एक लहर के रूप में है, तो बहन नदी की एक धारा है। दोनों साथ-साथ रहकर कल्याण के मार्ग पर चलकर सभी का सहारा बनेंगे। गंगा-यमुना के संगम में पानी की अधिकता होने से कभी बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है और किनारे डूबने लगते हैं। ऐसे पागलपन भरे अवसर पर बहन को भाई का ही एकमात्र सहारा है। बेफिक्री के समय में भी भाई अपनी बहन के लिए ध्रुवतारे की तरह अडिग है। कुछ समय ऐसे आते हैं जब हमें अपने संयम को दृढ़ रखना है। भाई और बहन दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर ही मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा कर सकते हैं। अपनी मुसीबतों को झेलकर और बलिदानों के माध्यम से पत्थर-हृदय देश के दुश्मनों को चेतावनी देते हैं कि हम हर हाल में देश की रक्षा के लिए तत्पर हैं।

वात्सल्य और स्नेह काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखिए
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य और स्नेह img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए
(अ) काढ़त गुहत न्हवावत ओछत, नागिन सी भुई लोटी।
(ब) मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी।
(स) काचो दूध पिआवत पचि-पचि, देत न माखन रोटी।
उत्तर:
(अ) उपमा अलंकार
(ब) अनुप्रास अलंकार
(स) पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम और तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए
ज्योति, उन्माद, बहन, कलंक, जननी,माटी,मैया, पूत,तात, पत्थर।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य और स्नेह img-2

प्रश्न 4.
गोद राखि चचुकारि दुलारति पुन पालति हलरावति।
आँचर ढाँकि बदन विधु सुंदर थन पय पान करावति॥
उपर्युक्त पंक्तियों में प्रयुक्त रस बताइये।
उत्तर:
वात्सल्य रस।

प्रश्न 5.
इस पाठ में से पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकार के उदाहरण छाँट कर लिखिए।
उत्तर:
(i) पुनरुक्तिप्रकाश-तू चिनगारी बनकर उड़ री,जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ।
(ii) अनुप्रास अलंकार-तू भगिनी बन क्रान्ति कराली,मैं भाई विकराल बनूँ।

सूर के बालकृष्ण भाव सारांश

‘सूर के बालकृष्ण’ नामक पदों के रचयिता भक्त कवि ‘सूरदास’ हैं। सूरदास ने शिशु सुलभ मुद्राओं, क्रीड़ाओं और शिशु के स्वभावगत सौन्दर्य को भी अपनी उदात्त और आकर्षक छवियों में प्रकट किया है।

वात्सल्य प्रेम में प्रेम का निश्छल,उदार और शिशु सुलभ स्वभाव प्राप्त होता है। शिशु के सुन्दर स्वरूप, आकर्षक मुद्राओं और उसके अबोध व्यवहारों के प्रदर्शन से यह वात्सल्य भाव दर्शक के हृदय में संचरित होता है। हिन्दी साहित्य में वात्सल्य भाव की रचनाओं की कमी है, किन्तु जितनी भी रचनाएँ प्राप्त होती हैं, वे वत्सलता के प्रभावी स्वरूप को प्रकट करती हैं। सूरदास ने शिशु सुलभ भुद्राओं,क्रीड़ाओं को तो अपने काव्य में स्थान दिया ही है साथ ही शिश के स्वभावगत सौन्दर्य को भी अपनी आकर्षक छवियों में प्रस्तुत किया है। शिशु कृष्ण अपने वाक्यचातुर्य से अपने दही खाने वाली बात को काट देते हैं। शिशु सहज विश्वासी होता है। शिशु कृष्ण से यदि माँ ने कह दिया कि गाय का दूध पीने से चोटी बढ़ती है तो कृष्ण खूब दूध पीते हैं और रोज-रोज माँ से पूछते हैं कि चोटी क्यों नहीं बढ़ रही? यहाँ शिशु की अधीरता दिखाई देती है। बच्चों में पारस्परिक चिढ़ाने का भाव है। कृष्ण अपनी माँ से बलराम के चिढ़ाने की शिकायत करते हैं। बाल सुलभ चेष्टाओं में मिट्टी खाने की प्रवृत्ति भी समाहित है। सूरदास ने इस तथ्य का आकर्षक वर्णन अपने पदों में किया है। सूरदास की भाषा में चमत्कृत कर देने वाला प्रवाह इन पदों में उपलब्ध है।

सूर के बालकृष्ण संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) मैया मैं नाहीं दधि खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि, मेरे मुख लपटायो।
देखि तही सीके पर भाजन, ऊँचे धर लटकायो।
तुही निरखि नान्हे कर अपने, मैं कैसे करि पायो।
मुख दधि पोंछि कहत नंदनंदन, दोना पीठि दुरायो।
डारि सॉट मुसुकाई तबहि, गहि सुत को कंठ लगायो।
बाल विनोद मोद मन मोह्यो, भक्ति प्रताप दिखायो।
सूरदास प्रभु जसुमति के सुख, शिव विरंचि बौरायो।

शब्दार्थ :
ख्याल परे = याद आया; लपटायो = लपेट दिया है; भाजन = बर्तन; निरखि = देख; नान्हे = छोटे,कर = हाथ; दोना = पत्तों का बना पात्र; साँटि = पीटने की डंडी; सुत = पुत्र; कंठ = गला; मोद = प्रसन्नता; मोह्यो = मोहित हो गया; विरंचि = ब्रह्माजी।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘वात्सल्य और स्नेह’ से सूरदास द्वारा रचित ‘सूर के बालकृष्ण’ नामक शीर्षक से उद्धृत किया गया है।

सन्दर्भ :
इसमें बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से अपने प्रति की गई दही खाने की शिकायत को नकारते हुए बड़े ही बुद्धिकौशल से बाल सुलभ उत्तर देते हैं।

व्याख्या :
श्रीकृष्ण माता यशोदा से कहते हैं कि, हे माता! मैंने दही नहीं खाया है। मुझे याद आ रहा है कि इन सभी सखाओं ने मिलकर मेरे मुख पर दही लपेट दिया था। तू जानती है कि इतने ऊँचे टँगे हुए छींके पर दही का बर्तन रखा हुआ है। तू देख सकती है कि मेरे छोटे-छोटे हाथ हैं। इन छोटे हाथों से मैं कैसे उस दही के बर्तन को प्राप्त कर सकता हूँ। फिर नन्दकुमार बालकृष्ण ने दोने को पीठ के पीछे छिपाते हुए और मुख पर लगे हुए दही को पोंछते हुए उपर्युक्त बातें कहीं। यहाँ उनकी बाल सुलभ चतुरता का प्रदर्शन किया गया है। उन्हें भान है कि मुख पर लगे हुए दही से और हाथ में लगे दोने से उनकी चोरी पकड़ी जाएगी, अतः मुख को साफ कर लिया और दोने को पीठ के पीछे छुपा लिया।

यशोदा जी सब समझ गईं, लेकिन पीटने वाली लकड़ी को फेंक कर मुस्कराने लगी और मनमोहन बालकृष्ण को अपने गले से लगा लिया। श्रीकृष्ण के बाल विनोद के आनन्द ने माता यशोदा के मन को मोहित कर लिया। यहाँ श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति का प्रताप दर्शाया गया है। सूरदास कहते हैं कि यशोदा जी और बालकृष्ण के सख को देखकर शिव और ब्रह्मा भी विवेक रहित होकर मोहित हो गए। अर्थात् श्रीकृष्ण यशोदा जी को अपनी बाल लीलाओं का जो सुख दे रहे हैं उससे किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है और वह भ्रमित हो सकता है। निरंजन निराकार परब्रह्म साकार रूप में आकर यशोदा जी के आँगन में उनके प्रमोद के लिए जो क्रीड़ाएँ कर रहे हैं, ऐसा सुख शिव-विरंचि को भी दुर्लभ है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. बालकृष्ण की बाल सुलभ चतुरता दर्शनीय है।
  2. ब्रजभाषा का प्रयोग।
  3. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग।
  4. वात्सल्य रस है।

(2) मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी।
किती बार मोहि दूध पिअत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी, ज्यौं, है है लॉबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत ओछत, नागिन सी भुइँ लोटी।
काचो दूध पिआवत पचि-पचि देत न माखन रोटी।
सूर श्याम चिरजीवौ दोऊ भैया, हरि हलधर की जोटी।। (2010, 15)

शब्दार्थ :
किती बार = कितनी बार; बल = बलदाऊ; बेनी = चोटी; काढ़त गुहत = काढ़ते में और गुहते में; न्हवावत = नहाने में; ओछत = सुखाने में; पचि-पचि = खूब; हरि हलधर = कृष्ण बलराम; जोटी = जोड़ी।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से यह शिकायत कर रहे हैं कि उनको कितने ही दिन दूध पीते हो गए, लेकिन उनकी चोटी बड़ी नहीं हुई है।

व्याख्या :
बालकृष्ण यह जानने को उत्सुक हैं कि उनकी चोटी कब बढ़ेगी। उनकी माता उन्हें यह भरोसा दिलाकर दूध पिलाती थीं कि दूध पीने से उनकी चोटी बढ़ जाएगी। वह माता से पूछते हैं कि हे माता मुझे कितनी ही बार (बहुत समय) दूध पीते हुए हो गईं, लेकिन यह चोटी अभी तक छोटी है। तेरे कथनानुसार मेरी चोटी बलदाऊ की चोटी के समान लम्बी और मोटी हो जाएगी, काढ़ते में, गुहते में,नहाते समय और सुखाते समय नागिन के समान लोट जाया करेगी। तू मुझे कच्चा दूध अधिक मात्रा में पिलाती है तथा माखन और रोटी नहीं देती है। माखन और रोटी बालकृष्ण को प्रिय हैं, लेकिन वे नहीं मिलते और चोटी बढ़ने की लालसा से उन्हें गाय का कच्चा दूध पीना पड़ता है। सूरदास कहते हैं कि माता बलाएँ लेने लगी और कहने लगी कि हरि हलधर दोनों भाइयों की जोड़ी चिरंजीव हो।

काव्य सौन्दर्य :

  1. बच्चों को बहाने से दूध पिलाने के तथ्य को उजागर किया गया है।
  2. ब्रजभाषा का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
  3. पुनरुक्तिप्रकाश,उपमा अलंकार का प्रयोग।

(3) मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मोसों कहत मोल को लीनो, तोहि जसुमति कब जायो।
कहा कहौं यहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात।
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तुमरो तात।।
गोरे नन्द जसोदा गोरी, तुम कत स्याम सरीर।
चुटकी दै दै हँसत ग्वाल सब, सिखे देत बलवीर।।
तू मोही को मारन सीखी, दाऊ कबहुँ न खीझै।
मोहन को मुख रिस समेत लखि, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही को धूत।
सुर-श्याम मो गोधन की सौं, हों माता तू पूत।।

शब्दार्थ :
खिझायो = चिढ़ाना; जायो = पैदा किया; लखि = देखकर, रिसके = गुस्से में; तात = पिता; चबाई = चुगलखोर; धूत = धूर्त; सौं = सौगन्ध।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
बलदाऊ और कृष्ण अन्य ग्वाल-बालों के साथ बाहर खेलने जाते हैं तो बलदाऊ भिन्न-भिन्न प्रकार से उन्हें चिढ़ाते हैं। यहाँ यही शिकायत कृष्ण माता यशोदा जी से कर रहे हैं।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलभद्र की शिकायत करते हुए अपनी माता से कहते हैं कि हे माता बलभद्र भाई मुझे बहुत चिढ़ाते हैं। मुझसे कहते हैं कि तुझे यशोदा जी ने जन्म नहीं दिया है, तुझे तो किसी से मोल लिया है। मैं क्या बताऊँ इस गुस्से के कारण मैं खेलने भी नहीं जाता। मुझसे बार-बार पूछते हैं कि तेरे माता-पिता कौन हैं। तू नन्द-यशोदा का पुत्र तो हो नहीं सकता क्योंकि तू साँवले रंग का है जबकि नन्द और यशोदा दोनों गोरे हैं। ऐसी मान्यता है कि गोरे माता-पिता की सन्तान भी गोरी होती है। यह तर्क बलदाऊ ने इसलिए दिया ताकि कृष्ण इसको काट न सके। इस बात पर सभी ग्वाल-बाल ताली दे-देकर हँसते हैं।

सभी ग्वाल-बालों को बलदेव सिखा देते हैं और सभी हँसते हैं, तब मैं खीझ कर रह जाता हूँ। तू सिर्फ मुझे ही मारना सीखी है दाऊ से कभी कुछ भी नहीं कहती कृष्ण के गुस्से से भरे मुख को बार-बार देखकर उनकी रिस भरी बातें सुन-सुनकर यशोदा जी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। मोद भरे मुख से यशोदा जी बोलीं, हे कृष्ण! बलदाऊ तो चुगलखोर है और जनम से ही धूर्त है। सूरदास जी कहते हैं, यशोदाजी कहने लगीं-मुझे गोधन (अपनी गायों) की सौगन्ध है,मैं माता हूँ और तू मेरा पुत्र है। इस कथन ने कृष्ण के गुस्से को दूर कर दिया।

काव्य सौन्दर्य :

  1. ब्रजभाषा में अनूठा माधुर्य भर दिया है।
  2. माता और पुत्र के प्रश्नोत्तर तार्किक दृष्टि से उत्तम हैं।
  3. अनुप्रास व पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग है।

4. मो देखत, जसुमति तेरे ढोटा, अबहिं माटी खाई।
यह सुनिकै रिसि करि उठि धाई, बांह पकरि लै आई।।
इन कर सों भज गहि गाढ़े, करि इक कर लीने सांटी।
मारति हौ तोहिं अबहिं कन्हैया, वेग न उगिलौ माटी॥
ब्रज लरिका सब तेरे आगे, झूठी कहत बनाई।
मेरे कहे नहीं तू मानति, दिखरावौं मुख बाई॥ (2016)

शब्दार्थ :
ढोटा = पुत्र; भुइँ = भूमि; मुख बाई = मुख फैलाकर; गहि गाढ़े = जोर से पकड़कर।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
ग्वाल-बालों ने यशोदा माँ से यह शिकायत की है कि कान्हा ने मिट्टी खाई है। उनका विश्वास कर माँ उसे पकड़ लेती है।

व्याख्या :
कृष्ण के साथ खेलने वाले बालकों ने माता यशोदा से शिकायत की कि कान्हा ने मिट्टी खाई है। यह सुनकर माता को बड़ा क्रोध आया और कृष्ण को बाँह से पकड़ लिया। उनके हाथ से कहीं छूट कर भाग न जाय इसलिए कसकर बाँह पकड़ ली और एक हाथ में मारने के लिए एक डंडी ले ली। माता यशोदा ने कृष्ण से कहा हे कृष्ण ! मैं तुझे अभी मारूँगी नहीं तो जल्दी से मुँह से मिट्टी उगल दो। यह सुनकर बालकृष्ण ने डरते हुए अपनी माँ से कहा-ये सब ब्रज के ग्वाल-वाल तेरे पास आकर मेरी झूठी शिकायत लगाते हैं। मैं जानता हूँ कि तू मेरा कहना तो मानेगी नहीं इसलिए में अपना मुंह खोलकर दिखाता हूँ कि मुँह में माटी कहाँ है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. बाल सुलभ चेष्टाओं का सुन्दर वर्णन है।
  2. ब्रजभाषा का सुन्दर प्रयोग किया है।
  3. बच्चों के माटी खाने के तथ्य को उजागर किया गया है।
  4. अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है।

भाई-बहन भाव सारांश

प्रस्तुत कविता ‘भाई-बहन’ सुप्रसिद्ध कवि ‘गोपाल सिंह नेपाली’ द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भाई बहन के प्रेम को राष्ट्रीय प्रेम के परिवेश में व्यक्त किया है।

गोपाल सिंह नेपाली ने राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ जीवन की अनुभूतियों का वर्णन अपनी कविताओं में किया है। प्रस्तुत कविता में भाई-बहिन के प्रेम को राष्ट्र-प्रेम के रूप में व्यक्त किया है। यहाँ भाई अपनी बहन को सम्बोधित कर राष्ट्र की रक्षा हेतु समर्पित होने का आग्रह कर रहा है। इस कविता में अनेक प्रतीकों के माध्यम से राष्ट्र-प्रेम को उजागर किया गया है। बहन की बुद्धि और भाई की क्रियाशीलता मिलकर ही जीवन और राष्ट्र को आनन्दमय बना सकेगी। दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर अपने राष्ट्र के प्रति अपने प्रेम को प्रकट कर सकते हैं। कविता में दिए गए प्रतीक और बिम्ब मौलिक हैं।

भाई-बहन संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. तू चिनगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनें,
तू बन जा हहराती गंगा, मैं झेलम बेहाल बून,
आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूं लाल बनूँ
तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूँ
यहाँ न कोई राधारानी, वृन्दावन, वंशीवाला;
तू आँगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरेवाला।

शब्दार्थ :
हहराती गंगा = कलकल ध्वनि करती गंगा; चोला = वेश; भगिनी = बहन; विकराल = भयानक।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘वात्सल्य और स्नेह’ पाठ के ‘भाई-बहन’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता गोपाल सिंह नेपाली हैं।

प्रसंग :
यहाँ पर भाई अपनी बहन से अपने देश की रक्षा के लिए बसन्ती चोला पहनने और अपने हृदय के अन्दर की ज्वाला को जलाए रखने को प्रेरित कर रहा है।

व्याख्या :
कविवर गोपाल सिंह नेपाली कहते हैं कि एक भाई अपनी बहन से देश की रक्षा के लिए जाग्रत रहने का आह्वान कर रहा है। भाई कहता है कि हे बहन! तू चिनगारी बनकर आकाश में उड़ और मैं ज्वाला बनकर देश-रक्षा के लिए जाग्रत रहूँ। तू कल-कल ध्वनि करती हुई गंगा बनकर बह और मैं बेहाल की तरह चलने वाली झेलम नदी बन कर बहूँ तू देश की रक्षा के लिए बसन्ती रंग के वस्त्र पहन ले और मैं भी देश के वीरों के रूप में सज जाऊँ। तू दुश्मन के लिए भयंकर क्रान्ति बन जा और मैं भयानक वीर बन जाऊँ ताकि उसकी दृष्टि हमारे देश पर न पड़े। यहाँ सिर्फ देश की रक्षा का सवाल है, सभी की एकता का प्रश्न है। यहाँ न तो वृन्दावन अलग है,न राधारानी अलग है और न नन्दलाल अलग है। सभी देश की रक्षा के लिए उद्यत हैं। भाई अपनी बहन से कहता है कि वह आँगन की ज्योति बनकर प्रकाश करे और वह घर का पहरेदार बनेगा। हम दोनों अपने प्रेम को देश-प्रेम पर न्यौछावर करते हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. भाषा साहित्यिक होने के साथ-साथ व्यावहारिक है।
  2. देश-भक्ति का अनूठा समर्पण है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. कविता में मधुरता है।

(2) बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं, तू ममता की गोद बनी;
मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी;
मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी;
भाई की गति, मति भगिनी की दोनों मंगल-मोद बनी
यह अपराध कलंक सुशीले, सारे फूल जला देना।
जननी की जंजीर बज रही, चल तबियत बहला देना।

शब्दार्थ :
पुतला = मूर्ति; विनोद = मनोरंजन; प्रमोद = आनन्द; भगिनी = बहन।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ पर भाई अपनी बहन को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि यदि अपने देश की परतन्त्रता पुकार रही हो तो अपने सारे सुख भुलाकर उसकी रक्षा के लिए तैयार हो जाना।

व्याख्या :
भाई कहता है कि मैं तो प्रेम की मूर्ति बनकर रहा हूँ और तू ममता की गोद बनकर रही है। अर्थात् तूने हर किसी को अपनी ममता की छाँव में बैठाया है। मेरा जीवन क्रीड़ा और कौतूहल बनकर रहा है और तू साक्षात् आनन्दमयी बन कर रही है। मैं अपने जीवन के सुखों में खोया रहा और मेरी बहन मनोरंजन में डूबी रही। भाई की क्रियाशीलता और बहन की बुद्धि दोनों मिलकर आनन्द का साधन बनीं। भाई अपनी बहन को चेतावनी देते हुए कहता है कि हे बहन! हमारे सुख और आनन्द कहीं अपराध और कलंक न बन जायँ, इसलिए सभी सुखों को तिलांजलि देकर भारतमाता की परतन्त्रता की बेड़ियों की आवाज को सुन और चलकर उसे धैर्य दिला कि हम सब मिलकर उसे स्वतन्त्र करेंगे। हम सभी सुखों को अपने देश की रक्षा के लिए अर्पण कर देंगे।

काव्य सौन्दर्य :

  1. अनेक प्रतीकों के माध्यम से कवि ने इस कथ्य को प्रकट किया है।
  2. अनुप्रास अलंकार की छटा दृष्टव्य है।
  3. वीर रस का पुट दिया गया है।

(3) भाई एक लहर बन आया, बहन नदी की धारा है।
संगम है, गंगा उमड़ी है, डूबा कूल-किनारा है;
यह उन्माद बहन को अपना, भाई एक सहारा है;
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा हैं;
पागल घड़ी, बहन-भाई है, वह आजाद तराना है।
मुसीबतों से बलिदानों से पत्थर को समझाना है। (2009)

शब्दार्थ :
तराना = ताल स्वर; अलमस्त = मतवाला, बेफ्रिक; उन्माद = पागलपन।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
भाई और बहन एक-दूसरे के सहायक हैं। हर उन्माद में बहन को भाई का ही सहारा है। दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण कर सकते हैं।

व्याख्या :
कवि गोपाल सिंह नेपाली कहते हैं कि यहाँ पर भाई एक लहर के रूप में है, तो बहन नदी की एक धारा है। दोनों साथ-साथ रहकर कल्याण के मार्ग पर चलकर सभी का सहारा बनेंगे। गंगा-यमुना के संगम में पानी की अधिकता होने से कभी बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है और किनारे डूबने लगते हैं। ऐसे पागलपन भरे अवसर पर बहन को भाई का ही एकमात्र सहारा है। बेफिक्री के समय में भी भाई अपनी बहन के लिए ध्रुवतारे की तरह अडिग है। कुछ समय ऐसे आते हैं जब हमें अपने संयम को दृढ़ रखना है। भाई और बहन दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर ही मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा कर सकते हैं। अपनी मुसीबतों को झेलकर और बलिदानों के माध्यम से पत्थर-हृदय देश के दुश्मनों को चेतावनी देते हैं कि हम हर हाल में देश की रक्षा के लिए तत्पर हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. भाषा सरल और मधुर है।
  2. भाई-बहन का स्नेह देश-प्रेम से मिलकर उदात्त बन गया है।
  3. बिम्ब और प्रतीक नवीन रूप में दर्शाए गए हैं।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण

MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण

बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण Important Questions

बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –

प्रश्न (a)
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की मुख्य विशेषता है –
(a) वस्तु की समान कीमत
(b) समरूप वस्तुएँ
(c) अत्यधिक क्रेता और विक्रेता
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न (b)
जिस बाजार में स्वतंत्र प्रवेश तथा बहिर्गमन हो, उसका नाम है –
(a) एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता बाजार
(b) अपूर्ण प्रतियोगिता का बाजार
(c) पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार

प्रश्न (c)
वस्तु की कीमत एवं माँग के बीच प्रतिलोम संबंध पाया जाता है –
(a) केवल एकाधिकार का
(b) केवल एकाधिकारी प्रतियोगिता
(c) और (b) दोनों में
(d) केवल पूर्ण प्रतियोगिता।
उत्तर:
(c) और (b) दोनों में

प्रश्न (d)
निम्नलिखित में से किसके अनुसार, “किसी वस्तु की कीमत, माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है” –
(a) जेवन्स
(b) वालरस
(c) मार्शल
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) मार्शल

प्रश्न (e)
एकाधिकार फर्म के संतुलन की शर्त नहीं है –
(a) औसत आय = सीमांत आगम
(b) सीमांत आय = सीमांत लागत
(c) सीमान्त लागत वक्र सीमांत आय वक्र को नीचे से काटे
(d) (b) एवं (c) दोनों।
उत्तर:
(a) औसत आय = सीमांत आगम

प्रश्न (f)
बाजार मूल्य पाया जाता है –
(a) अल्पकालीन बाजार में
(b) दीर्घकालीन बाजार में
(c) अति दीर्घकालीन बाजार में
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) अल्पकालीन बाजार में

प्रश्न (g)
एक फर्म का माँग वक्र पूर्ण लोचदार होता है –
(a) पूर्ण प्रतियोगिता
(b) एकाधिकार
(c) एकाधिकारी प्रतियोगिता
(d) अल्पाधिकार।
उत्तर:
(a) पूर्ण प्रतियोगिता

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

  1. जिस कीमत पर माँग एवं पूर्ति बराबर होते हैं, उसे ……………………………. कीमत कहते हैं।
  2. कीमत विभेद की सम्भावना …………………………………. बाजार में उत्पन्न होती है।
  3. एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय करने पर कुल आगम में वृद्धि को …………………………….. कहते हैं।
  4. यदि किसी वस्तु की आपूर्ति अपरिवर्तित रहती है तो माँग में वृद्धि होने पर उस वस्तु की साम्य कीमत …………………………. जायेगी।
  5. पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक फर्म …………………….. होती है।
  6. कीमत सीलिंग ………………………… द्वारा किया जाता है।
  7. ……………………….. काल में माँग की शक्ति प्रभावशाली होती है।
  8. दो से अधिक फर्म का होना ……………………………. बाजार में आवश्यक है।
  9. फर्मों के समूह को ………………………………. कहते हैं।
  10. पेट्रोल का बाजार …………………………….. होता है।

उत्तर:

  1. सामान्य
  2. एकाधिकारी
  3. सीमान्त आगम
  4. बढ़
  5. कीमत स्वीकारक
  6. सरकार
  7. अल्प
  8. अल्पाधिकार
  9. उद्योग
  10. अंतर्राष्ट्रीय।

प्रश्न 3.
सत्य/असत्य का चयन कीजिए –

  1. ईटों का बाजार प्रादेशिक होता है।
  2. सामान्य मूल्य काल्पनिक होता है।
  3. अपूर्ण प्रतियोगिता एक व्यावहारिक दशा है।
  4. माँग तथा पूर्ति की शक्तियाँ लम्बी अवधि तक स्थायी साम्य की अवस्था में रहती हैं।
  5. माँग तथा पूर्ति दोनों में से किसी एक शक्ति द्वारा किसी वस्तु का मूल्य निर्धारित होता है।
  6. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म स्वयं मूल्य निर्धारित करती है।
  7. एकाधिकृत प्रतियोगिता का माँग वक्र अनिश्चित होता है।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. सत्य।

प्रश्न 4.
सही जोड़ी बनाइए –
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 1
उत्तर:

  1. (c)
  2. (a)
  3. (e)
  4. (d)
  5. (b).

प्रश्न 5.
एक शब्द/वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. टमाटर का बाजार मुख्य रूप से किस प्रकार का बाजार होता है?
  2. बाजार मूल्य किसके चारों ओर घमता है?
  3. दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगी फर्म को कौन – सा लाभ प्राप्त होता है?
  4. कीमत निर्धारण में समय तत्व का महत्व किस अर्थशास्त्री ने बताया था?
  5. असामान्य लाभ या हानि किस प्रतियोगिता में होती है?
  6. व्यावहारिक जगत में किस प्रतियोगिता की स्थिति नहीं पाई जाती है?

उत्तर:

  1. अति अल्पकालीन
  2. सामान्य मूल्य
  3. सामान्य लाभ
  4. प्रो. मार्शल ने
  5. अपूर्ण प्रतियोगिता,
  6. पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति।

बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण लघु उत्तरोष प्रश्न

प्रश्न 1.
बाजार मूल्य तथा सामान्य मूल्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
बाजार मूल्य तथा सामान्य मूल्य में अन्तर –

बाजार मूल्य:

  1. सामान्य मूल्य बाजार मूल्य अल्पकालीन मूल्य होता है। सामान्य मूल्य दीर्घकालीन मूल्य होता है।
  2. बाजार मूल्य वास्तविक मूल्य होता है। सामान्य मूल्य एक काल्पनिक मूल्य होता है।
  3. बाजार मूल्य का निर्धारण माँग एवं पूर्ति के अस्थायी संतुलन द्वारा होता है।
  4. बाजार मूल्य के निर्धारण में पूर्ति की अपेक्षा माँग सामान्य मूल्य के निर्धारण में माँग की अपेक्षा अधिक प्रभावी होती है।
  5. बाजार मूल्य पुनरुत्पादनीय तथा गैरपुनरुत्पादनीय दोनों ही प्रकार की वस्तुओं का होता है।

सामान्य मूल्य:

  1. सामान्य मूल्य दीर्घकालीन मूल्य होता है।
  2. सामान्य मूल्य एक काल्पनिक मूल्य होता है।
  3. सामान्य मूल्य का निर्धारण माँग और पूर्ति के अस्थायी संतुलन द्वारा होता है।
  4. पूर्ति अधिक प्रभावशाली होती है।
  5. सामान्य मूल्य केवल पुनरुत्पादनीय वस्तुओं का ही होता है गैर – पुनरुत्पादनीय वस्तुओं का नहीं।

प्रश्न 2.
बाजार मूल्य की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर:
बाजार मूल्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं –

  1. बाजार मूल्य एक अल्पकालीन मूल्य होता है। यह किसी समय माँग और पूर्ति के अस्थायी संतुलन द्वारा निर्धारित होता है।
  2. बाजार मूल्य वह मूल्य होता है जिस पर वास्तव में बाजार में वस्तु खरीदी एवं बेची जाती है।
  3. बाजार मूल्य सदैव सामान्य मूल्य के इर्द – गिर्द चक्कर लगाता रहता है। यह अधिक समय तक सामान्य मूल्य से बहुत ऊँचा या नीचा नहीं रह सकता।
  4. बाजार मूल्य सभी प्रकार की वस्तुओं का होता है चाहे वे निरुत्पादनीय हों अथवा पुनरुत्पादनीय।
  5. बाजार मूल्य के निर्धारण में पूर्ति की अपेक्षा माँग अधिक प्रभावशाली होती है। जब माँग बढ़ती है तो बाजार मूल्य भी बढ़ जाता है और जब माँग घटती है तो बाजार मूल्य भी घट जाता है।

प्रश्न 3.
सामान्य मूल्य की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर:
सामान्य मूल्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं –

  1. सामान्य मूल्य दीर्घकालीन मूल्य होता है। अत: सामान्य मूल्य माँग और पूर्ति के स्थायी संतुलन द्वारा निर्धारित होता है।
  2. सामान्य मूल्य उत्पादन व्यय के बराबर होता है। यह उत्पादन व्यय से बहुत ऊँचा या नीचा स्थायी रूप से नहीं रह सकता।
  3. सामान्य मूल्य एक स्थायी मूल्य होता है, क्योंकि यह माँग तथा पूर्ति की स्थायी शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है।
  4. सामान्य मूल्य उन्हीं वस्तुओं का होता है, जिन्हें पुनः उत्पन्न किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर जिन वस्तुओं को पुन: उत्पन्न नहीं किया जा सकता, उनका सामान्य मूल्य नहीं होता।
  5. सामान्य मूल्य के निर्धारण में माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 4.
एक वस्तु का बाजार संतुलन में है, यदि कीमत –

  1. संतुलन कीमत से अधिक और
  2. संतुलन कीमत से कम होगी तो बाजार में क्या प्रतिक्रियाएँ होंगी? समझाइए?

उत्तर:

1. यदि बाजार कीमत संतुलन कीमत से अधिक हो:
इस दशा में बाजार माँग, बाजार पूर्ति से कम होगी अतः पूर्ति की अधिकता की स्थिति निर्मित हो जाएगी। प्रतिस्पर्धा विक्रेताओं में बढ़ेगी जिसके कारण विक्रेता कम कीमत भी स्वीकार कर लेगा। कीमत कम होने से माँग बढ़ जाएगी एवं पूर्ति संकुचित हो जाएगी। ऐसा होने से बाजार कीमत संतुलन कीमत के बराबर आ जाएगी।

2. यदि बाजार कीमत संतुलन कीमत से कम हो:
इस परिस्थिति में बाजार माँग, पूर्ति से अधिक हो जाएगी तथा माँग की अधिकता हो जाएगी। इसके कारण क्रेताओं में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। इस प्रतिस्पर्धा के कारण क्रेता अधिक मूल्य देने को तैयार हो जाते हैं। इस मूल्य का प्रभाव यह पड़ता है कि माँग कम या संकुचित हो जाती है तथा पूर्ति का विस्तार हो जाता है यह तब तक होता है जब तक कि बाजार कीमत, संतुलन कीमत के बराबर न आ जाए। इन दोनों परिस्थितियों को निम्न चित्रों की सहायता से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 2
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 3

प्रश्न 5.
पूर्ति में परिवर्तन का संतुलन मूल्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? रेखाचित्र द्वारा समझाइए?
उत्तर:
माँग स्थिर रहने पर पूर्ति में परिवर्तन का मूल्य पर Y प्रभाव पड़ना आवश्यक है। पूर्ति परिवर्तन की दो स्थितियाँ हो सकती हैं –

1. पूर्ति में वृद्धि का प्रभाव:
यदि किसी वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होती है तो उसका पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसकेगा। पूर्ति वृद्धि का आशय है कि उसके उत्पादक एवं विक्रेता वस्तु के निश्चित मूल्य पर उसकी अधिक मात्रा उत्पादित करने एवं विक्रय करने को तत्पर रहेंगे।

रेखाचित्र के आधार पर DD माँग रेखा और SS पूर्ति वक्र के मध्य E बिन्दु संतुलन बिन्दु है। इस आधार पर OQ वस्तु की मात्रा का निर्धारण होता है। अब पूर्ति में वृद्धि के कारण पूर्ति वक्र दायीं तरफ खिसक कर S1S1, हो जाता है । इस नये S1S1, वक्र DD माँग वक्र का E सन्तुलन होता है। अत: मात्रा बढ़कर OQ1, हो जाता है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 4

2. पूर्ति में कमी का प्रभाव:
यदि किसी वस्तु की पूर्ति कम होती है, तो इसका आशय यह है कि उसके उत्पादक एवं विक्रेता वस्तु के निश्चित मूल्य पर उसकी कम मात्रा ही उत्पादित करने एवं विक्रय को तैयार होंगे। रेखाचित्र द्वारा DD रेखा माँग रेखा तथा SS रेखा पूर्ति रेखा है। E बिन्दु सन्तुलन बिन्दु है। यदि पूर्ति में कमी होती है तो पूर्ति रेखा बायीं ओर खिसक कर S1S1, हो जाता है और नयी सन्तुलन बिन्दु E1, प्राप्त होता है। अतः सन्तुलन मूल्य बढ़कर OP1, हो जाती है और सन्तुलन मात्रा घटकर OQ1 हो जाता है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 5

प्रश्न 6.
जब एक वस्तु का संतुलन मूल्य उसके बाजार मूल्य से कम हो जाता है तो विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धा होगी? इस कथन के संदर्भ में कारण सहित उत्तर दीजिए?
उत्तर:
उक्त कथन सही है क्योंकि जब संतुलन मूल्य, बाजार मूल्य से कम होता है तो बाजार पूर्ति अधिक एवं बाजार माँग कम हो जाती है। इससे पूर्ति की अधिकता उत्पन्न होती है। दूसरे शब्दों में वस्तु के क्रेता कम एवं विक्रेता अधिक होते हैं इसके कारण विक्रेताओं में स्वाभाविक रूप से प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल में किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने का क्या कारण है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाजार में नए फर्मों का प्रवेश दीर्घकाल में निर्बाध रूप से होता है। यदि कोई उद्योग या फर्म अल्पकाल में धनात्मक अर्जित कर रही है तो इससे नवीन फर्मों का उद्योग में प्रवेश का आकर्षण बढ़ेगा ऐसा तब तक होगा जब तक लाभ शून्य न हो जाए। यदि अल्पकाल में ही फर्मों को हानि हो रही हो तो कुछ फर्मे या तो उत्पादन बंद कर देंगी या उद्योग को छोड़कर बाजार से बहिर्गमन कर जाएँगी। पूर्ति में कमी आ जाएगी एवं इसके कारण संतुलन मूल्य बढ़ेगा एवं ऐसा तब तक होगा जब तक लाभ शून्य की स्थिति में न आ जाए।

प्रश्न 8.
एक फर्म को मूल्य स्वीकारक फर्म कब कहा जाता है?
उत्तर:
एक फर्म को मूल्य स्वीकारक फर्म तभी माना जाएगा जब वस्तु की कीमत बाजार माँग और बाजार पर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है और फर्मों द्वारा इस मूल्य पर कितनी भी वस्तुओं का विक्रय किया जा सकता है एवं कोई भी फर्म कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है। इसके कारण हैं –

  1. विक्रेताओं एवं क्रेताओं की बड़ी संख्या जो बाजार की पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकते।
  2. वस्तुएँ समरूप होती हैं। इसलिए कोई भी फर्म प्रचलित मूल्य से अधिक मूल्य वसूल करेगी तो क्रेता एक फर्म को छोड़कर दूसरे फर्म की ओर चले जाएँगे।
  3. क्रेता एवं विक्रेता को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। अतः प्रत्येक फर्म मूल्य स्वीकारक होती है।

प्रश्न 9.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों के स्वतंत्र प्रवेश एवं बहिर्गमन का क्या प्रभाव होता है? समझाइए?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म स्वतंत्रतापूर्वक उद्योग में प्रवेश कर सकती है एवं इच्छानुसार बहिर्गमन कर सकती है। जब फर्मे अधिलाभ अर्जित करती हैं तो नई फर्मे लाभ की आशा में उद्योग में प्रवेश करेंगी एवं इससे बाजार की पूर्ति में वृद्धि हो जाएगी। इससे वस्तु की बाजार कीमत कम हो जाएगी, लाभ कम हो जाएगा एवं फर्मे उद्योग को छोड़कर जाने लगेंगी। जब सामान्य हानि की दशा रहेगी तो फर्ने उद्योग को छोड़कर जाने लगेंगी परिणामस्वरूप बाजार की पूर्ति में कमी आ जाएगी। बाजार की पूर्ति कम होने से बाजार मूल्य बढ़ जाएगा एवं सामान्य हानि समाप्त होने लगेगी।

प्रश्न 10.
एक कीमत – स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा सीमान्त सम्प्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक इकाई के कम या अधिक उत्पादन करने से। कुल सम्प्राप्ति में जो परिवर्तन आता है। उसे सीमान्त सम्प्राप्ति। कहते हैं। सूत्र –
MR = TRN – TRN – 1

एक कीमत स्वीकारक फर्म बाजार कीमत को ही स्वीकार करती है। अत: उसके लिए औसत सम्प्राप्ति, सीमान्त सम्प्राप्ति की तथा बाजार कीमत तीनों बराबर होते हैं। एक कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सभी सीमान्त सम्प्राप्तियों को जोड़कर कुल सम्प्राप्ति – उत्पादन की गणना की जा सकती है।

प्रश्न 11.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
जब उत्पादन की एक आगत की कीमत (जैसे – भूमि की लगान दर) में वृद्धि होती है, तो इसके परिणामस्वरूप निर्गत की उत्पादन लागत में भी वृद्धि होती है। जिससे निर्गत के किसी भी स्तर पर फर्म की औसत लागत तथा सीमान्त लागत में भी वृद्धि हो जाती है। सीमान्त लागत वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है। अतः साधनों की कीमत/लागत बढ़ने से आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 12.
मूल्य निर्धारण में समय तत्व के महत्व की व्याख्या कीजिये?
उत्तर:
किसी भी वस्तु के मूल्य निर्धारण में समय तत्व का विशेष महत्व होता है। वस्तु का मूल्य हमेशा माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है। बाजार में माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के बीच रस्साकशी होती है। कभी माँग, पूर्ति से ज्यादा हो जाती है तो कभी पूर्ति, माँग से ज्यादा हो जाती है किन्तु इन दोनों शक्तियों को पूर्ण संतुलन बिन्दु तक पहुँचने में समय लगता है। तब तक बाजार में अस्थायी साम्य बना रहता है। वस्तु के मूल्य निर्धारण में समय तत्व का प्रभाव निम्न प्रकार पड़ता है –

1. अति अल्पकाल:
यह वह समयावधि होती है जब वस्तु की पूर्ति स्थिर रहती है। यदि माँग बढ़ जाती है तो वस्तु का मूल्य बढ़ जायेगा एवं माँग घट जाती है तो मूल्य घट जायेगा। इसका कारण यह है कि मूल्य पर माँग का ही प्रभाव अधिक एवं पूर्ति का प्रभाव कम देखने में आता है। माँग अनुसार पूर्ति समायोजित नहीं की जा सकती।

2. अल्पकाल:
इस समयावधि में भी वस्तु की पूर्ति लगभग स्थिर रहती है। इसमें स्टॉक में रखी गई मात्रा तक ही माँग को पूरा किया जा सकता है। इस काल में भी मूल्य पर माँग का ही प्रभाव अधिक देखने में आता है। यहाँ भी माँग के अनुसार पूर्ति को पूर्णतः समायोजित नहीं किया जा सकता है।

3. दीर्घकाल:
यह वह समयावधि होती है जिसमें वस्तु की कीमत पर पूर्ति का प्रभाव अधिक पड़ता है। समय इतना अधिक होता है कि माँग के अनुसार पूर्ति को समायोजित किया जा सकता है।

4. अति दीर्घकाल:
यह वह समयावधि है जिसमें न केवल उत्पादकों को माँग के अनुसार पूर्ति को समायोजित करने का पूरा समय मिल जाता है, यहाँ तक पूर्ति पक्ष में उत्पादन की मात्रा, तकनीक, संयंत्र के आकार – प्रकार एवं माँग पक्ष में जनसंख्या, रुचि, फैशन, आय आदि में परिवर्तन दिखाई देता है।

प्रश्न 13.
मान.लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में वस्तुx की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिये गये हैं –
qD = 700 – P
qS = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि 0 ≤ p < 15
मान लीजिए कि बाजार में समरूपी फर्मे हैं। ₹15 से कम किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाजार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए सन्तुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर:
माना कि बाजार में समरूपी फर्मों की संख्या स्थिर है, तब दिया है –
qD = 700 – p
qS = 500 + 3 p के लिए p ≥ 15
qS = 0 के लिए p < 15
यहाँ qD = माँग, qS= पूर्ति, p = कीमत।
क्योंकि सन्तुलन कीमत पर बाजार रिक्त हो जाता है।
अतः हम बाजार माँग और बाजार पूर्ति को बराबर करके संतुलन कीमत निम्न प्रकार ज्ञात कर सकते हैं –
qD = qS
700 – p = 500 + 3p
3P + P = 700 – 500
4P = 200
P = 50
अतः संतुलन कीमत = 50 प्रति इकाई।
अतः सन्तुलन की स्थिति में वस्तु x की मात्रा qD= 700 – 50 = 650
पूर्ति qS = 500 + 3(50) = 650
इस प्रकार सन्तुलन मात्रा 650 इकाई होगी तथा ₹ 5 से कम किसी भी कीमत पर फर्म उत्पादन नहीं करेगी क्योंकि उसे हानि उठानी पड़ेगी।

प्रश्न 14.
मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है?
qD = 1000 – p
qS = 700 + 2p

(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है –

qS = 400 + 2p
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?

(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर ₹ 3 प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
उत्तर:

(a) दिया है –

qD = 1000 – P
qS = 700 + 2 p
संतुलन कीमत की गणना निम्न प्रकार कर सकते हैं –
qD = qS
1000 – p = 700 + 2p
1000 – 700 = 2p + p
3p = 300
p= 100
अतः संतुलन कीमत = 100 होगी।
अब हम संतुलन मात्रा की गणना निम्न प्रकार कर सकते हैं –
qD = 1000 – 100 = 900
तथा
qS = 700 + 2 (100) = 900
अतः सन्तुलन मात्रा 900 किग्रा होगी।

(b) संतुलन वक्र में परिवर्तन होने पर –
qS = 400 + 2p
तथा
qD = 100 – p
संतुलन कीमत की गणना –
q = 1000 – p = 400 + 2p
qD = 100 – p
संतुलन कीमत की गणना –
qD = qS
= 1000 – p = 400 + 2p
= 1000 – 400 = 2p + p
3p = 600
p = 200
अतः संतुलन कीमत की गणना –
qD = 1000 – 200 = 800
qS = 400 + 2 (200) = 800.

प्रश्न 15.
क्या प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ – अधिकतमीकरण फर्म, जिसकी बाजार कीमत सीमान्त लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है? व्याख्या कीजिए?
उत्तर:
प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत, सीमान्त लागत से कम या अधिक है अर्थात् बराबर नहीं है। उसका निर्गत स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है। निर्गत सतर के सकारात्मक होने के लिए प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ – अधिकतमीकरण फर्म की बाजार कीमत तथा सीमान्त लागत का बराबर होना आवश्यक है। प्रश्नानुसार, व्याख्या करने के लिए निर्गत स्तर के सकारात्मक न होने की दो स्थितियाँ हो सकती हैं –

  • बाजार कीमत सीमान्त लागत से अधिक होने पर, (MR > MC)
  • बाजार कीमत सीमान्त लागत से कम होने पर, (MR < MC)

इस रेखाचित्र में Y1, के उत्पादन स्तर पर उत्पादन किया जाता है। इससे कम उत्पादन करने का तात्पर्य होगा कि कीमत सीमान्त लागत से कम (MR < MC) है। जिसके फलस्वरूप फर्म को हानि होगी। इसलिए कोई भी फर्म ऐसा नहीं करेगी कि Y1, से कम उत्पादन करे। इसका तात्पर्य यह है कि फर्म सकारात्मक उत्पादन करने के लिए Y1 से अधिक उत्पादन को बढ़ाने का प्रयत्न करेगी। ऐसा करने पर यदि कीमत सीमान्त लागत से अधिक हो जाती है, (MR > MC) तो फर्म उत्पादन बढ़ाने का लाभ प्राप्त करेगी। फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए तब तक उत्पादन बढ़ाएगी जब तक कीमत सीमान्त लागत के बराबर नहीं आ जाती है। (MR = MC)। चित्र में Y2 आ जाती है। (MR = MC)।

चित्र में Y2, उत्पादन के बाद भी उत्पादन बढ़ाना जारी रखती है, तो Y3 उत्पादन स्तर पर सीमान्त लागत कीमत से कम हो जाएगा अर्थात् MR < MC और फर्म के लाभ कम हो जाएँगे। इसलिए फर्म Y3, उत्पादन स्तर से पुन: Y2, उत्पादन के स्तर पर आएगी तथा E बिन्दु जो कि अधिकतम लाभ का बिन्दु है पर पहुँच जाएँगी। यही फर्म का सकारात्मक स्तर है। इस प्रकार से एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में फर्म Y2, स्तर से न कम और न ज्यादा उत्पादन करना चाहेगी। क्योंकि इस स्तर पर उसे अधिकतम लाभ मिल रहे हैं।

प्रश्न 16.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ – अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमान्त लागत घट रही हो। व्याख्या कीजिए?
उत्तर:
प्रस्तुत रेखाचित्र से स्पष्ट है कि यदि फर्म निर्गत की q1, मात्रा का उत्पादन करती है, तो सीमान्त लागत, सीमान्त सम्प्राप्ति से अधिक होगी। जिससे फर्म को हानि Y उठानी पड़ेगी। फर्म उत्पादन मात्रा को तब तक बढ़ाएगी। जब तक MC = MR न हो जाए। बिन्दु B पर MC = MR है। फर्म का सकारात्मक निर्गत स्तर है। q1 से q2 निर्गत स्तरों के बीच सीमान्त लागत कम होती जा रही है। इसलिए इनके बीच का कोई भी निर्गत स्तर सकारात्मक निर्गत स्तर नहीं हो सकता है। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन नहीं कर सकती है, जब सीमान्त लागत घट रही हो।

बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ बताइये?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं –

1. क्रेताओं और विक्रेताओं की बाजार में अधिक संख्या:
पूर्ण प्रतियोगिता की सबसे पहली विशेषता यह है कि बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या इतनी अधिक होनी चाहिए कि कोई भी क्रेता या विक्रेता अकेले वस्तु की कीमत को प्रभावित करने की दशा में न हो।

2. वस्तुओं का समरूप होना:
पूर्ण प्रतियोगिता की दूसरी विशेषता यह है कि विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं में समरूपता का गुण होता है। उत्पादन में समरूपता होने के कारण विक्रेता बाजार में प्रचलित मूल्य से अधिक कीमत नहीं ले सकता।

3. फर्मों का स्वतंत्र प्रवेश तथा बहिर्गमन:
पूर्ण प्रतियोगिता की तीसरी विशेषता यह है कि विभिन्न फर्मों को उद्योग में प्रवेश करने तथा उद्योग को छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।

4. उत्पत्ति के साधनों में पूर्ण गतिशीलता:
पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पत्ति के साधनों को एक व्यवसाय को छोड़कर दूसरे व्यवसाय में जाने की पूरी स्वतंत्रता रहती है। इसलिए उत्पत्ति के साधन पूर्णरूपेण गतिशील होते है।

5. विक्रय एवं परिवहन लागतों का अभाव:
पूर्ण प्रतियोगिता में सभी उत्पादक एवं क्रेता एक – दूसरे के इतने अधिक निकट होते हैं कि इनमें विक्रय एवं परिवहन लागतों का अभाव पाया जाता है।

प्रश्न 2.
संतुलन मूल्य का निर्धारण उदाहरण सहित समझाइए?
उत्तर:
संतुलन मूल्य:
पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की कीमत का निर्धारण माँग और पूर्ति की सापेक्षिक क्रियाओं के द्वारा होता है। माँग और पूर्ति की शक्तियाँ ही इस कीमत का निर्धारण करती हैं। जिस कीमत पर क्रेता, और विक्रेता दोनों संतुष्ट हो जाते हैं। यह मूल्य संतुलन मूल्य कहलाता है। इस कीमत पर वस्तु की माँग और पूर्ति दोनों बराबर होते हैं तथा बाजार साफ हो जाता है अर्थात् न तो कोई अतिरिक्त माँग होती है और न ही कोई अतिरिक्त पूर्ति।
तालिका – संतुलन – मूल्य वस्तु का मूल्य:

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि जब कीमत ₹ 1 है तब माँग 500 और पूर्ति 100 किलोग्राम है अर्थात् माँग पूर्ति से अधिक है, अत: कीमत में बढ़ने की प्रवृत्ति होगी। कीमत बढ़ते – बढ़ते जब ₹ 3 पर पहुँचती है तब वस्तु की माँग और पूर्ति दोनों ही 300 किलोग्राम हो जाती है। यहीं पर संतुलन होगा। यदि कीमत ₹ 5 हो जाती है तो वस्तु की माँग 100 किलोग्राम तथा पूर्ति 500 किलोग्राम की होगी। इस स्थिति में माँग की तुलना में पूर्ति अधिक होगी, अतः कीमत में घटने की प्रवृत्ति प्रारंभ हो जायेगी और पुनः कीमत ₹ 3 पर जा पहुँचती है इस प्रकार उपर्युक्त तालिका के अनुसार माँग और पूर्ति में संतुलन ₹ 3 कीमत पर होता है, अतः कीमत ₹ 3 निर्धारित होती है चूँकि ₹ 3 की इस कीमत पर वस्तु की माँग और वस्तु की पूर्ति दोनों ही बराबर है अतः कीमत में परिवर्तन होने की कोई प्रवृत्ति नहीं होगी और संतुलन हो जायेगा!

प्रश्न 3.
बाजार मूल्य का अर्थ लिखिए। अति अल्पकाल के बाजार का मूल्य निर्धारण पर क्या प्रभाव पड़ता है? समझाइए?
उत्तर:
बाजार मूल्य का अर्थ:
बाजार मूल्य वह मूल्य होता है जिस पर अल्पकाल में माँग और पूर्ति के बीच अस्थायी संतुलन होता है। अल्पकाल से तात्पर्य, समय की उस अवधि से है जिनमें वस्तु की पूर्ति को उसकी माँगों के अनुसार समायोजित नहीं किया जा सकता है। बाजार मूल्य का निर्धारण वस्तु की माँग एवं पूर्ति के अस्थायी संतुलन द्वारा होता है। अल्पकाल में जिस मूल्य पर वस्तुओं का क्रय – विक्रय होता है, वही बाजार मूल्य कहलाता है।

MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 11
अति अल्पकाल में मूल्य – निर्धारण:
अति अल्पकाल वह अवधि होती है जिसमें कुल पूर्ति स्थिर रहती है। अति अल्पकाल में समय इतना कम होता है कि उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन करना सम्भव नहीं होता। इस दृष्टि। से नाशवान वस्तुओं में अति अल्पकाल या बाजार अवधि प्रायः एक दिन तथा टिकाऊ वस्तुओं की बाजार अवधि कुछ दिन या कुछ सप्ताह होती है।

चित्र द्वारा स्पष्टीकरण:
प्रस्तुत रेखाचित्र में पूर्ति स्थिर होने के कारण पूर्ति रेखा SQ को एक खड़ी रेखा के रूप में प्रदर्शित किया गया है। OQ पूर्ति स्थिर है। माँग रेखा DD है। माँग तथा पूर्ति रेखा एक – दूसरे को P बिन्दु पर काट रही है। अत: वस्तु की कीमत PQ निर्धारित होती है। यदि माँग बढ़ाकर D1,D1, हो जाती है तो कीमत बढ़कर PQ हो जाती है। यदि माँग घटकर D2,D2, हो जाती है तो कीमत घटकर P1Q हो जाती है।

प्रश्न 4.
पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण कैसे होता है? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए?
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण को निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट कीजिए?

  1. वस्तु की माँग
  2. वस्तु की पूर्ति
  3. माँग व पूर्ति का संतुलन।

उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण:
पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण किस प्रकार का होता है, इस संबंध में प्राचीन अर्थशास्त्रियों में काफी मतभेद रहा, मुख्यत: दो विचारधाराएँ प्रचलित थीं। एक विचार के समर्थक एडम स्मिथ, रिकार्डो आदि थे, जिनके अनुसार किसी वस्तु का मूल्य उसकी उत्पादन लागत द्वारा निर्धारित होता है। इसके विपरीत, दूसरी विचारधारा के समर्थकों वालरस, जेवेन्स आदि के अनुसार किसी वस्तु का मूल्य उसकी उत्पादन लागत पर नहीं बल्कि उसकी उपयोगिता अर्थात् सीमान्त उपयोगिता पर निर्भर करता है।

1. वस्तु की माँग:
किसी वस्तु की माँग उपभोक्ताओं द्वारा की जाती है। उपभोक्ता किसी वस्तु की माँग उस वस्तु में निहित उपयोगिता के कारण करता है। उपभोक्ता वस्तु का कितना मूल्य देगा, यह वस्तु की सीमान्त उपयोगिता पर निर्भर करता है। उपभोक्ता किसी भी दशा में वस्तु की सीमान्त उपयोगिता में अधिक मूल्य नहीं देगा। इस प्रकार उपभोक्ता के लिए वस्तु की सीमान्त उपयोगिता वस्तु के मूल्य की अधिकतम सीमा निर्धारित करती है।

2. वस्तु की पूर्ति:
किसी वस्तु की पूर्ति उत्पादकों द्वारा की जाती है। वस्तु के उत्पादन में चूँकि उत्पादकों को कुछ लागतें वहन करनी पड़ती हैं, इसलिए वह अपनी वस्तु का मूल्य कम से कम सीमान्त लागत के बराबर अवश्य प्राप्त करना चाहेंगे। इस प्रकार सीमान्त लागत किसी वस्तु के मूल्य की निम्नतम सीमा को बताती है।

3. माँग व पूर्ति का संतुलन:
उपभोक्ता वस्तु की कीमत उसकी सीमान्त उपयोगिता से अधिक नहीं देगा तथा उत्पादक वस्तु की कीमत उसकी सीमान्त लागत से कम नहीं लेगा। अतः वस्तु की कीमत इन दोनों सीमाओं के बीच में कहीं निर्धारित होगी। प्रत्येक क्रेता इस बात का प्रयास करता है कि उसे वस्तु की कम से कम कीमत चुकानी पड़े। प्रत्येक विक्रेता इस बात का प्रयास करता है कि वह वस्तु की अधिक से अधिक कीमत प्राप्त कर ले। ऐसी स्थिति में क्रेता एवं विक्रेता में – सौदेबाजी चलती रहती है तथा माँग एवं पूर्ति की शक्तियाँ एकदूसरे के विपरीत दिशा में कार्य करती हैं। अन्त में वस्तु की कीमत है| उस बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ पर कि वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा तथा वस्तु की पूर्ति मात्रा आपस में बराबर हो जाती है। इसी को साम्य मूल्य कहते हैं।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 12

चित्र द्वारा स्पष्टीकरण:
प्रस्तुत चित्र में OX आधार रेखा पर वस्तु की माँग व पूर्ति तथा OY लम्ब रेखा पर वस्तु की कीमत को प्रदर्शित किया गया है। चित्र में DD माँग वक्र तथा SS पूर्ति वक्र हैं । ये दोनों एक – दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। यह साम्य बिन्दु है। इस बिन्दु पर मूल्य OP या OE होगा तथा मात्रा OQ होगी। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य का निर्धारण माँग व पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा साम्य बिन्दु पर किया जाता है।

प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगिता को परिभाषित कीजिए। क्या पूर्ण प्रतियोगिता काल्पनिक है?
अथवा
“पूर्ण प्रतियोगिता एक कोरी कल्पना है।” स्पष्ट कीजिये?
अथवा क्या पूर्ण प्रतियोगिता कल्पना मात्र है? मुख्य कारण बताइये?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा:
श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “पूर्ण प्रतियोगिता तब पायी जाती है, जब प्रत्येक उत्पादक के उत्पादन के लिए माँग पूर्णतया लोचदार होती है। इसका अर्थ यह है कि प्रथम, विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है जिससे किसी एक विक्रेता को उत्पादक का उत्पादन उस वस्तु के कुल उत्पादन का एक बहुत ही थोड़ा – सा भाग प्राप्त होता है तथा दूसरे सभी क्रेता प्रतियोगी विक्रेताओं के बीच चुनाव कराने की दृष्टि से समान होते हैं, जिससे कि बाजार पूर्ण हो जाता है।”

क्या पूर्ण प्रतियोगिता काल्पनिक है:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की एक काल्पनिक दशा है, क्योंकि

1. क्रेताओं एवं विक्रेताओं का बड़ी संख्या में न होना:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की एक ऐसी दशा है जिसमें क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है, लेकिन व्यावहारिक जगत में यह बात सही नहीं है, क्योंकि कुछ वस्तुओं के उत्पादक सीमित होते हैं जबकि उपभोक्ताओं की संख्या अधिक होती है।”

2. वस्तु का समरूप न होना:
पूर्ण प्रतियोगिता के लिए यह आवश्यक शर्त है कि वस्तुएँ समरूप होनी चाहिए, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं होता। प्राय: हम जिन वस्तुओं का उपभोग करते हैं वे सब वस्तुएँ आकारप्रकार तथा गुणों में एक – दूसरे के समान नहीं होती हैं।

3. फर्मों का स्वतंत्र प्रवेश तथा बहिर्गमन न होना:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में यह शर्त रहती है कि कोई भी फर्म, उद्योग में प्रवेश कर सकती है तथा उद्योग से बहिर्गमन कर सकती हैं लेकिन व्यवहार में सरकारी हस्तक्षेप के कारण ऐसा नहीं होता है।

4. बाजार का पूर्ण ज्ञान न होना:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में यह शर्त रहती है कि क्रेताओं एवं विक्रेताओं में निकट का सम्पर्क होता है, लेकिन व्यावहारिक जगत में क्रेताओं एवं विक्रेताओं को इस बात की जानकारी नहीं रहती कि कौन – सी वस्तु कहाँ तथा किस कीमत में बेची या खरीदी जा सकती है।

5. उत्पत्ति के साधनों में पूर्ण गतिशीलता न होना:
उत्पत्ति के साधन पूर्ण प्रतियोगिता में पूर्ण गतिशील होते हैं, यह मान्यता भी गलत है।

6. परिवहन लागतों का शून्य होना संभव नहीं:
वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने में परिवहन व्यय भी होते हैं। अतः परिवहन लागतों का शून्य होना संभव नहीं है।

प्रश्न 6.
पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में दीर्घकाल में किसी वस्तु का मूल्य कैसे निश्चित होता है? समझाइये?
उत्तर:
दीर्घकाल (Long Period) दीर्घकाल वह समयावधि है जिसमें उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं तथा जिनका माँग के अनुरूप ४ पूर्ति में समायोजन किया जा सकता है। इस समयावधि में अन्य फर्मे उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं एवं वर्तमान फर्मे उद्योग से बहिर्गमन कर सकती हैं तथा सभी फर्मे अपने उत्पादन की क्षमता को आवश्यकतानुसार परिवर्तित कर सकती हैं। दीर्घकाल में वस्तु के मूल्य निर्धारण में उसके उत्पादन की लागत का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। इस समयावधि में वस्तु का मूल्य उसकी औसत न्यूनतम लागत के बराबर होगा।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 13
रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण:
प्रस्तुत रेखाचित्र में उद्योग की माँग व पूर्ति की शक्तियाँ E वस्तु की मात्रा – साम्य बिन्दु पर OP कीमत का निर्धारण करती हैं तथा उद्योग में कुल OQ मात्रा तक वस्तुओं का क्रय – विक्रय किया जाता है। यही OP कीमत फ़र्म के द्वारा स्वीकार कर ली जाती है। यह कीमत दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) तथा दीर्घकालीन सीमांत लागत (LMC) के बराबर है। फर्म का संतुलन P बिन्दु पर होता है। फर्म OK मात्रा बेचकर न्यूनतम औसत लागत OR पर उत्पादन करती है। फर्म को यहाँ सामान्य लाभ प्राप्त होता है। अर्थात् यहाँ P = LAC = LMC = LAR = LMR है। इस काल में कीमत, उत्पादन लागत पर निर्भर करेगी, जो स्वयं उत्पत्ति के नियमों पर आधारित है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 14

प्रश्न 7.
माँग में परिवर्तन का संतुलन मूल्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? रेखाचित्र द्वारा समझाइए?
उत्तर:
वस्तु विशेष के मूल्य स्थिर रहने पर भी दूसरी वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन, उपभोक्ताओं की आय में परिवर्तन अथवा फैशन, रुचि आदि परिवर्तित होने से माँग घट-बढ़ सकती है। दूसरे शब्दों में माँग वक्र खिसक सकता है।

1. माँग में वृद्धि का प्रभाव:
यदि किसी वस्तु की माँग में वृद्धि होती है तथा पूर्ति यथावत् रहती है, तो बाजार में इस वस्तु का मूल्य बढ़ जायेगा क्योंकि इस दशा में उत्पादक या विक्रेता अपनी वस्तु को अधिक मूल्य पर विक्रय कर सकेगा और मात्रा अधिक होने। पर माँग में भी वृद्धि होगा। रेखाचित्र में DD माँग रेखा और SS पूर्ति रेखा बिन्दु E पर काटती है। वस्तु की कीमत OP तथा वस्तु की मात्रा। OQ निर्धारित होता है। माँग में वृद्धि के कारण माँग रेखा खिसक कर D1D1, हो जाता है। नये माँग रेखा पूर्ति वक्र को E1, बिन्दु पर संतुलन करता है, जब संतुलन मूल्य बढ़कर E1Q1 और संतुलन मात्रा OQ1, हो। जाती है। अर्थात् माँग बढ़ने से मूल्य भी बढ़ता है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 15
2. माँग में कमी का प्रभाव:
पूर्ति वक्र यथावत् रहने पर जब माँग में कमी या माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है तो संतुलन मूल्य और संतुलन की मात्रा दोनों में कमी हो जाती है। रेखाचित्र में DD माँग रेखा तथा SS पूर्ति रेखा है, E संतुलन बिन्दु है और OQ1 संतुलन की मात्रा है। माँग में कमी के कारण माँग वक्र बायीं ओर खिसक कर D1D1 और मात्रा OQ, रह जाती है। अतः जब वस्तु विशेष पर माँग में कमी आती है, तो उसका मूल्य भी गिर जाता है।
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 16

प्रश्न 8.
निम्न तालिका में प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत ₹ 10 दी हुई है। प्रत्येक उत्पादक स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ – अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए?
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 17
उत्तर:
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img t
लाभ:
अधिकतमीकरण निर्गत स्तर 5 इकाइयाँ हैं।

प्रश्न 9.
दो फर्मों वाले एक बाजार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों की पूर्ति सारणियों को दर्शाती है – SS1, कॉलम में फर्म -1 की पूर्ति सारणी, कॉलम SS2, में फर्म – 2 की पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए?
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 19
उत्तर:
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 19

प्रश्न 10.
एक दो फर्मों वाले बाजार को लीजिए। निम्न तालिका में कॉलम SS1, तथा कॉलम SS2, क्रमशः फर्म -1 तथा फर्म – 2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए?
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 21
उत्तर:
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 4 बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण img 22

प्रश्न 11.
₹ 10 प्रति इकाई बाजार कीमत पर एक फर्म की सम्प्राप्ति ₹ 50 है। बाजार कीमत बढ़कर ₹ 15 हो जाती है और अब फर्म को ₹ 150 की सम्प्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
हल: कीमत स्तर ₹ 10 प्रति इकाई बाजार कीमत पर
कुल आगम (TR) = ₹ 50
पूर्ति की गई इकाइयाँ (q0) = \(\frac { TR }{ P }\)
= \(\frac { 50 }{ 10 }\)
= 5 इकाइयाँ
कीमत स्तर ₹ 15 प्रति इकाई बाजार कीमत पर
कुल आगम (TR) = ₹ 150
पूर्ति की गई इकाइयाँ (q1) = \(\frac { TR }{ P }\)
= \(\frac { 150 }{ 15 }\)
= 10 इकाइयाँ
P0 = 10, P1 = 15
कीमत में परिवर्तन ∆p = P1 – P0
= 15 – 10 = ₹5
मात्रा में परिवर्तन ∆q = q1 – q0
= 10 – 5 = 5 इकाइयाँ
es = \(\frac { Δ_{ p } }{ Δ_{ q } } \) x \(\frac { p_{ 0 } }{ q_{ 0 } } \)
= \(\frac { 5 }{ 5 }\) x \(\frac { 10 }{ 5 }\) = 2
पूर्ति की लोच = 2

MP Board Class 12th Economics Important Questions

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 1 भय

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 1 भय (निबंध, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल)

भय अभ्यास

भय अति लघु उत्तरीय प्रश्न

भय पाठ कक्षा 12 MP Board प्रश्न 1.
‘भय’ कायरता या भीरुता की संज्ञा कब प्राप्त करता है? (2014, 16)
उत्तर:
भय जब स्वभावगत हो जाता है, तब वह कायरता या भीरुता की संज्ञा को प्राप्त करता है।

भय और आशंका में अंतर MP Board Class 12 प्रश्न 2.
किस प्रकार के भय को आशंका कहा गया है? (2015)
उत्तर:
जब आपत्ति या दुःख का पूर्ण निश्चय न रहने पर उसकी मात्र सम्भावना होती है, तब जो आवेगशून्य भय होता है,उसे आशंका कहते हैं।

भय आचार्य रामचंद्र शुक्ल MP Board Class 12 प्रश्न 3.
भय किन-किन रूपों में सामने आता है? (2016)
उत्तर:
भय अपने अनेक रूपों, जैसे-असाध्य,साध्य,कायरता, आशंका इत्यादि रूपों में सामने आता है।

Bhai Aur Aashanka Mein Antar MP Board  प्रश्न 4.
किस भय के कारण व्यापारी व्यवसाय में हाथ नहीं डालते?
उत्तर:
अर्थहानि के भय के कारण बहुत से व्यापारी कभी-कभी किसी विशेष व्यवसाय में हाथ नहीं डालते हैं।

भय लघु उत्तरीय प्रश्न

Mp Board Class 12th Hindi Swati Solution प्रश्न 1.
भय और आशंका में क्या अन्तर है? (2009)
उत्तर:
भय और आशंका में सूक्ष्म अन्तर है। आने वाली मुसीबत की भावना या दुःख के कारण एक प्रकार का आवेगपूर्ण तथा स्तम्भ-कारक मनोभाव पैदा होता है,उसे भय कहते हैं। भय में दुःख के बाहर जाने की भावना होती है। दूसरी ओर, दुःख या आपत्ति का पूर्ण निश्चय न रहने पर उसकी सम्भावना मात्र का अनुमान, जो आवेगशून्य भय है, वह आशंका है। आशंका में आकुलता नहीं होती, उसका संचार धीमा व अधिक समय तक रहता है। आशंका को भय का लघु रूप कहा गया है।

कक्षा 12वीं विषय हिंदी पाठ 1 MP Board प्रश्न 2.
भय किन-किन स्थितियों में ‘साध्य’ का स्वरूप प्राप्त करता है?
उत्तर:
भय का साध्य स्वरूप भय है,जब भय को प्रयत्न अथवा प्रयास द्वारा दूर किया या रखा जा सकता है। साध्य का स्वरूप परिस्थिति की विशेषता,मनुष्य की प्रकृति और विश्वास पर निर्भर होता है।

अभ्यास,साहस,क्षमता,शारीरिक शक्ति,ज्ञान शक्ति तथा हृदय शक्ति इत्यादि तत्त्व प्राणी को भय से बचाव में सफल बनाते हैं और यही सफलता भय को साध्य का स्वरूप प्रदान करती है।

Bhay Class 12 MP Board प्रश्न 3.
जंगली जातियाँ भय से स्थायी रक्षा हेतु क्या उपाय करती हैं?
उत्तर:
परिचय क्षेत्र अति सीमित होने के कारण जंगली व असभ्य जातियों में भय सबसे अधिक होता है। भय से स्थायी रक्षा हेतु वह जिससे भयभीत होता है,उसे श्रेष्ठ मान लेता है और उसी की पूजा व स्तुति करने लगता है। उनके देवी-देवता भय के कारण ही कल्पित होते हैं। अतः आपत्ति के भय से रक्षा हेतु वह भय और भयकारक का सम्मान करता है।

भय दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

भय और आशंका में क्या अंतर MP Board Class 12 प्रश्न 1.
सभ्यता के विकास-क्रम में भय की स्थितियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भय एक मनोविकार है जो किसी आने वाली आपदा की भावना या दुःख के कारण का सामना होने पर मन में आवेग या आश्चर्य उत्पन्न करता है। भय हर प्राणी या समाज में एक. समान नहीं होता है। भय सभ्यता के विकास के साथ-साथ कम होता जाता है। जैसे जंगली तथा असभ्य जातियों में भय अधिक होता है, और इसी भय के द्वारा वे अपने काम निकालती हैं तथा जिससे भयभीत होती हैं,उसे श्रेष्ठ मानकर उसकी पूजा व सम्मान करती हैं। इसका कारण यह है कि असभ्य या जंगली जातियों का परिचय क्षेत्र छोटा होता है तथा जानकारियाँ कम होती हैं। परन्तु जैसे-जैसे सभ्यता के विकास के कारण प्राणी सभ्य होता जाता है और समाज विस्तृत होता जाता है,भय की सम्भावना कम होती जाती है।

स्थायी रक्षा की संभावना भी कम होती जाती है। सभ्यता के विकास में असभ्य काल जैसा भूतों का डर तो छूट गया है तथा पशुओं की बाधा भी छूट गई है, परन्तु मनुष्य के लिए मनुष्य का भय बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में,मनुष्य के दुःख का कारण मनुष्य ही है। सभ्यता के विकास से दुःखदान की विधियाँ गूढ़ व जटिल हो गयी हैं। सभ्यता की वर्तमान स्थिति में एक जाति को दूसरी जाति से,एक देश को दूसरे देश से, भय के स्थायी कारण प्रतिष्ठित हो गये हैं। सबल व सक्षम देशों के मध्य अर्थ-संघर्ष,सबल-निर्बल देशों के बीच अर्थशोषण की प्रक्रिया भय की स्थिति को ही जन्म देती है और विश्व-प्रेम और आध्यात्मिकता का नारा लगाती है। कैसी विषम स्थिति पैदा हो गई है।

भय निबंध का सारांश MP Board Class 12 प्रश्न 2.
निर्भयता’ की प्राप्ति हेतु क्या अपेक्षित है?
उत्तर:
सुखी एवं आतंक-मुक्त रहना प्रत्येक प्राणी का अधिकार है। इन दोनों की प्राप्ति के लिए वह जीवन में कर्म को अपनाता है और सुख को साध्य बनाकर निर्भयता का आंचल पकड़ लेता है। अगर हम सामान्य रूप से निर्भयता को प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए दो बातें अपेक्षित हैं। पहली तो यह कि दूसरों को हमसे किसी प्रकार का भय या कष्ट न हो। यह उच्च कोटि के शील की बात है। हमारा आचरण व कर्म ऐसा न हो जो भय पैदा करे! इसके लिए संयम व ज्ञान की आवश्यकता है। दूसरी यह है कि दूसरे प्राणी हमें कष्ट अथवा दुःख पहुँचाकर भयाक्रांत करने का साहस न करें। इस अपेक्षा के मूल में शक्ति और पुरुषार्थ छिपा है।

दूसरे प्राणी अपनी शक्ति व पुरुषार्थ का प्रयोग हमें भयभीत करने में न करें। संसार में किसी को न डराने से ही डरने की सम्भावना दूर नहीं हो जाती। उदाहरण के लिए, सज्जन किसी को नहीं डराते पर दुर्जन व क्रूर-लोभी उन सन्त सज्जनों को व्यर्थ में ही दुःख पहुँचाकर भयभीत करते रहते हैं। उन दुष्टों को असफल बनाने अथवा भय को रोकने के लिए कुछ करना ही होता है वरना साधु-सज्जन कैसे निर्भय होकर जीवित रह सकते हैं। दुष्टों के भय पहुँचाने के साहस को रोककर ही निर्भयता प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 3.
जीवन में भीरुता किन-किन स्थितियों में दिखाई देती है?
उत्तर:
भय जब स्वभावगत हो जाता है, तब भीरुता या कायरता कहलाता है। कष्ट न सह पाने की भावना और अपनी शक्ति पर अविश्वास ही कायरता के मूल कारण हैं। जीवन में भीरुता या कायरता अनेक स्थितियों में देखी जा सकती है। पुरुषों में पाई जाने वाली भीरुता निन्दनीय होती है। स्त्रियों की भीरुता उनकी लज्जा की स्थिति में दिखाई देती है। व्यापारी अर्थहानि के भय से विशेष व्यवसाय में हाथ नहीं डालते। पण्डित परास्त होने के भय से शास्त्रार्थ से मुँह चुराते हैं।

जंगली और असभ्य जातियों में भीरुता श्रेष्ठ की पूजा करने की स्थिति में दिखायी देती है। बच्चों में अपरिचय की स्थिति में भय दिखाई देता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भीरुता अनेक स्थितियों में दिखाई देती है,जो मानव का दोष है। एक और प्रकार की भीरूता है, जिसे धर्मभीरुता कहते हैं, जिसकी प्रशंसा होती है। लेकिन शुक्लजी धर्म से डरने वालों की अपेक्षा धर्म की ओर आकर्षित होने वालों की प्रशंसा करते हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि जीवन में भीरुता स्वभावगत, लज्जा, अर्थहानि, सम्मान हानि, अपरिचय आदि की स्थितियों में दिखाई देती है।

प्रश्न 4.
“कर्मक्षेत्र के चक्रव्यूह में पड़कर जिस प्रकार सुखी होना प्रयत्न-साध्य होता है, उसी प्रकार निर्भय रहना भी।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने मनोवैज्ञानिक निबन्ध ‘भय’ में भय से छुटकारा पाने का साधन कर्म बताया है। मनुष्य के लिए प्रत्येक वस्तु साध्य है और उस साध्य का माध्यम कर्म है। प्राणी प्रयत्न के द्वारा ही सुखी हो सकता है। सुखी होने की यही भावना निर्भयता कहलाती है। निर्भयता प्राप्ति के लिए प्राणी को कर्मशील के साथ-साथ सहनशील, स्वयं की शक्ति में विश्वास, भीरुता से दूर,साहसी आदि बनना अनिवार्य है। प्राणी कर्मरत रहकर अपने दुःखों पर विजय प्राप्त कर लेता है और निर्भय हो जाता है। अतः कर्म के द्वारा निर्भयता को प्राप्त किया जा सकता है। इसी कर्म का संदेश श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को देते हुए कहा था,“हे क्षत्रिय! तेरा कर्म युद्ध करना है, पारिवारिक मोह में पड़ना नहीं।”

प्रश्न 5.
सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(1) किसी आती हुई ………… उसी को भय कहते हैं।
(2) भीरुता के संयोजक ……….. विश्वास नहीं रखता।
(3) दुःख या आपत्ति ………….. काल तक रहता है।
(4) ऐसे अज्ञानी ……….. रहता है।
(5) भय की इस ……….. हटाता चलता है।
उत्तर:
उपरोक्त गद्यांशों की व्याख्या पाठ के ‘व्याख्या हेतु गद्यांश भाग में देखिए

भय भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखिए
साध्य, क्षमता, विश्वास, सुखात्मक।
उत्तर:
असाध्य, अक्षमता, अविश्वास, दुःखात्मक।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग और प्रत्यय पृथक करके लिखिए
सार्वभौमिक, परिस्थिति, अज्ञान, अपरिचित, भीरुता, विशेष।
उत्तर:
उपसर्ग – परिस्थिति-परि।, अज्ञान-अ।, अपरिचित-अ।, विशेष-वि
प्रत्यय – सार्वभौमिक-क।, भीरुता-ता।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों के लिए एक-एक शब्द लिखिए

  1. जिसकी कल्पना न की जा सके।
  2. जिसका अंत न हो।
  3. जिसके समान कोई दूसरा न हो।
  4. बिना सोचे समझे किया गया विश्वास।

उत्तर:

  1. अकल्पनीय
  2. अनन्त
  3. अद्वितीय
  4. अंधविश्वास।

प्रश्न 4.
नीचे दिये वाक्यों में से सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छाँटिए

  1. मेरा विचार है कि आज घूमने चलें।
  2. मैंने एक व्यक्ति को देखा जो बहुत लंबा था।
  3. बालिकाएँ गा रही हैं और नाच रही हैं।
  4. बच्चे लाइन में जाएँगे।
  5. अध्यापक चाहता है कि उसके सभी शिष्य अच्छे बनें।
  6. मैंने उसे मना लिया है।

उत्तर:

  1. मिश्र वाक्य
  2. मिश्र वाक्य
  3. संयुक्त वाक्य
  4. सरल वाक्य,
  5. मिश्र वाक्य
  6. सरल वाक्य।

भय पाठ का सारांश

हिन्दी आलोचना के आधार स्तम्भ और मनोवैज्ञानिक निबन्धों के लेखक ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ द्वारा लिखित प्रस्तुत निबन्ध ‘भय’ में लेखक ने व्यक्ति के मन में रहने वाली ‘भय’ नामक मूल प्रवृत्ति की साहित्यिक विवेचना की है।

निबन्ध की पहली पंक्ति में ही ‘भय’ को परिभाषित करते हुए शुक्लजी ने लिखा है कि, भय आने वाली विपत्ति या दुःख के साक्षात्कार से उत्पन्न होता है। इस स्थिति में मन की दशा या तो स्तम्भित हो जाती है अथवा आवेग से भर जाती है। भय के दो रूप-असाध्य व साध्य होते हैं। जब प्राणी भय को विवशता, अक्षमता अथवा साहस के अभाव के कारण दूर नहीं कर पाता है तो यह असाध्य अवस्था है। परन्तु साहसी, सक्षम व निडर व्यक्ति जब भय पर विजय प्राप्त कर लेता है,तो वह साध्य अवस्था है। भय का एक अन्य रूप भी है,वह है कायरता। जिन पुरुषों में कष्ट न सहने की भावना व अविश्वास विद्यमान होता है, उनमें भय कायरता के रूप में दिखाई देता है। स्त्रियों में भय उनके नारी सुलभ गुण लज्जा के रूप में रहता है तो पण्डित मानहानि के भय से शास्त्रार्थ नहीं करता। परन्तु शुक्लजी धर्मभीरुता के प्रशंसक हैं।

भय आशंका के रूप में भी दिखाई देता है, जिसका संचार धीमा व अधिक समय तक रहता है। लेखक ने भय व क्रोध में अन्तर बताते हुए लिखा है कि क्रोध दुःख के कारण पर प्रभाव डालता है तो भय दु:ख के बाहर आने के लिए। दुःख का सामाजिक प्रभाव जंगली व असभ्य जातियों पर अधिक होता है। मनुष्य अपनी आन्तरिक आँख खोलकर बाहुबल व ज्ञानबल से भय को जीतकर दुःख से छुटकारा पा सुख व आनन्द का भागी बन जाता है। शुक्लजी ने निर्भयता को मनुष्य,समाज व विश्व के कल्याण के लिए अनिवार्य माना है।

शुक्लजी ने प्रस्तुत निबन्ध में भय जैसे मनोभाव का गम्भीर वैचारिक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। भाषा क्लिष्ट होते हुए भी प्रवाहमय है, विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से विचारों को स्पष्टता प्रदान की गई है। गद्यांशों के अन्त में लघु वाक्यों के प्रयोग,तत्सम शब्दावली व सामासिक पदशैली ने भाषा को सरस बना दिया है।

भय कठिन शब्दार्थ

आपदा = मुसीबत। स्तंभकारक = संज्ञाहीन करने वाला, जड़ता कारक, अवाक् कर देने वाला। निर्दिष्ट = स्पष्ट। असाध्य = लाइलाज, अच्छा न होने वाला। निवारण = दूर करना। विवशता = मजबूरी। अवलंबित = निर्भर। अक्षमता = अयोग्यता। भीरुता = डर। क्लेश = दुःख। श्रेष्ठ = उत्तम। ज्ञानबल = बुद्धि की शक्ति। व्यतिक्रम = विपरीत। परिहार – छुटकारा पाना। क्षोभकारक = खलबली,व्याकुलता पैदा करने वाला। आवरण = पर्दा। क्रूर – निर्दयी। त्रस्त = भयभीत, डरा हुआ। अनिष्ट = हानिकारक। प्रतिष्ठा = स्थापना, सम्मान। अर्थोन्माद = धन का घमण्ड। फैशन = चलन। अपेक्षित = आवश्यक। उत्कृष्ट = उच्च कोटि का।

भय संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) किसी आती हुई आपदा की भावना या दुःख के कारण के साक्षात्कार से जो एक प्रकार का आवेगपूर्ण अथवा स्तंभ-कारक मनोविकार होता है, उसी को भय कहते हैं। (2013, 15)

सन्दर्भ :
प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक के निबन्ध ‘भय’ से उद्धृत है। इसके लेखक ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ हैं।

प्रसंग :
इस पंक्ति में लेखक ने भय का अर्थ बताते हुए कहा है कि भविष्य के दुःख की कल्पना ही भय है।

व्याख्या :
भय का शाब्दिक अर्थ है-‘डर’। डर हृदय में उत्पन्न वह भाव है, जो व्याकुलता तथा आश्चर्य को जन्म देता है। अत: आने वाले दुःख अथवा मुसीबत की कल्पना से उत्पन्न मनःस्थिति का नाम भय है । जब प्राणी का सामना आने वाले दुःखों से होता है, तब उसके मन में एक अजीब-सी आकुलता और आश्चर्यजनक मनोभाव जाग्रत होता है । इसी मनोभाव को साहित्य में भय के नाम से जाना जाता है । इस प्रकार दुःख या हानि की कल्पना ही भय है।

विशेष :

  1. ‘भय’ मनोभाव का मनोवैज्ञानिक रूप से अर्थ स्पष्ट किया है।
  2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग है।
  3. सम्पूर्ण व्याख्या अंश का रूप एक मिश्र वाक्य है।
  4. विचारात्मक व गवेषणात्मक शैली का प्रयोग है।

(2) भीरुता के संयोजक अवयवों में क्लेश सहने की अक्षमता और अपनी शक्ति का अविश्वास प्रधान है। शत्रु का सामना करने से भागने का अभिप्राय यही होता है कि भागने वाला शारीरिक पीड़ा नहीं सह सकता तथा अपनी शक्ति के द्वारा उस पीड़ा से अपनी रक्षा का विश्वास नहीं रखता। (2009)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
भयभीत रहना स्वभाव बन जाने पर भीरुता या कायरता को पैदा करता है। कायर प्राणी में, अपनी शक्ति में विश्वास न होने के कारण कष्ट सहने की भी क्षमता नहीं होती है।

व्याख्या :
आचार्य शुक्ल भीरु या कायर व्यक्ति की अयोग्यता के विषय में लिखते हैं कि आने वाले दुःख या कष्ट से वही प्राणी भयभीत होता है, जो उस दुःख को सहन करने की शक्ति नहीं रखता तथा उसे अपनी सहन-शक्ति पर विश्वास नहीं होता है। साहसी व्यक्ति शत्रु का डटकर सामना करके विजयी होता है। इसके विपरीत एक कायर अथवा डरपोक व्यक्ति दुःख या आपदा रूपी शत्रु का मुकाबला नहीं कर पाता और वह कष्टों से भागता फिरता है। वह स्वयं को शक्तिहीन मानकर स्वयं की शक्तियों के प्रति अविश्वास की भावना रखता है। इस प्रकार अपनी योग्यता व शक्ति में विश्वास न होने के कारण वह कष्टों से भागता ही जाता है।

विशेष :

  1. भीरु व्यक्ति की शारीरिक कष्ट सहन करने की अक्षमता तथा स्वयं की शक्ति पर भरोसा न होने की बात कही गई है।
  2. शुद्ध साहित्यिक शब्दावली के साथ भावों की स्पष्टता है।
  3. शैली विवेचनात्मक व व्याख्यात्मक है।

(3) दुःख या आपत्ति का पूर्ण निश्चय न रहने पर उसकी सम्भावना मात्र के अनुमान से जो आवेगशून्य भय होता है, उसे आशंका कहते हैं। उसमें वैसी आकुलता नहीं होती। उसका संचार कुछ धीमा, पर अधिक काल तक रहता है। (2009, 12)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण में आशंका मनोभाव को भय का एक लघु रूप बताया गया है। जब भय में आकुलता कम और अवधि अधिक होती है, तब उसे ‘आशंका’ कहा जाता है।

व्याख्या :
भय के समानान्तर एक अन्य मनोभाव, आशंका है। आशंका भी भविष्य में आने वाले कष्ट या पीड़ा की कल्पना है। दुःख या आपत्ति निश्चित रूप से आयेगी ही,ऐसा नहीं होता, अपितु अज्ञात भय उस आपत्ति के प्रति बना रहता है अथवा आपत्ति के आने का विचार मन में आता है, उस समय मन में एक भय उत्पन्न होता है, जिसमें न जोश होता है और न बेचैनी या घबराहट होती है। उस भय का उद्वेग बहुत कम होता है परन्तु उस उद्वेग का समय लम्बा होता है, इसी कारण आशंका लम्बे समय तक बनी रहती है। अतः भय व्यापक है तो आशंका उसका लघु रूप है।

विशेष :

  1. आशंका को भय का लघु रूप बताया गया है, जिसमें तीव्रता कम होती है।
  2. तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
  3. सूत्रात्मक वाक्यों से भावों की व्याख्या।
  4. शैली में संक्षिप्तता तथा विचारों में स्पष्टता।

(4) ऐसे अज्ञानी प्राणियों के बीच जिसमें भाव बहुत काल तक संचित रहते हैं और ऐसे उन्नत समाज में जहाँ एक-एक व्यक्ति की पहुँच या परिचय का विस्तार बहुत अधिक होता है, प्राय: भय का फल भय के संचार-काल तक ही रहता है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत संयुक्त दीर्घ वाक्य में स्पष्ट कहा गया है कि अशिक्षित व असभ्य मनुष्यों में भय का भाव लम्बे समय तक रहता है, तो विकसित बुद्धि वालों में भय बहुत कम समय तक रहता है।

व्याख्या :
लेखक के अनुसार भय हर समाज में एक समान नहीं होता। हर समाज में भय का रूप व समय अलग-अलग होता है। जैसे-अल्पबुद्धि वाले या साधारण समाज के प्राणियों में कोई भी भाव लम्बे समय तक रहता है तथा उनका परिचय क्षेत्र संकुचित होने के कारण वे अपने ही भावों में लगे रहते हैं। परन्तु इसके विपरीत प्रखर बुद्धि वाले समाज, विकसित समाज तथा विस्तृत परिचय वाले समाज के प्राणियों में भय का भाव, भय के फल तक ही रहता है। परिणाम समाप्ति के साथ ही भय भी समाप्त हो जाता है। इस प्रकार भय असभ्य समाज की संचित वस्तु है। इसी भय के द्वारा वह अपने समस्त अभीष्ट कार्यों को सिद्ध करता है।

विशेष :

  1. असभ्य व उन्नत समाज के स्तर पर भय के रूप को स्पष्ट किया गया है।
  2. भाषा भावों के अनुकूल सरल खड़ी बोली है।
  3. शैली विचारात्मक है।
  4. संयुक्त वाक्य के रूप में पूर्ण गद्य खण्ड।

(5) भय की इस वासना का परिहार क्रमशः होता चलता है। ज्यों-ज्यों वह नाना रूपों से अभ्यस्त होता है, त्यों-त्यों उसकी धड़क खुलती जाती है। इस प्रकार अपने ज्ञानबल, हृदयबल और शरीरबल की वृद्धि के साथ वह दुःख की छाया मानो हटाता चलता है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण में दुःख से छुटकारा पाने का तरीका बताया गया है। ज्ञान बढ़ने पर दुःख का प्रभाव कम होता है, तो दुःख के कम होने से भय मनोविकार स्वतः ही शून्यता को प्राप्त हो जाता है।

व्याख्या :
मानव-स्वभाव ही ऐसा है कि वह दुःख के स्थान पर सुख की कामना करता है। इसी कारण वह दुःख के विचार से उत्पन्न भय से पीछा छुड़ाना चाहता है। यह क्रिया धीरे-धीरे सम्पन्न होती है। प्राणी में जैसे-जैसे बुद्धि (ज्ञान) का विकास होता है तथा उसके अन्दर दुःखों को सहन करने की शक्ति जाग्रत होती है, उसके विचारों में फैलाव आता है और भय छूट जाता है। भय से छुटकारा पाने के लिए प्राणी को अपने शरीर, हृदय तथा ज्ञान को विकसित (मजबूत) बनाना होता है। जब ये तीनों तत्त्व दृढ़ व उन्नत हो जाते हैं, तो भय नामक मूल प्रवृत्ति को जन्म देने वाला दुःख या आशंका का भाव स्वयं विलीन हो जाता है और मन भयरहित होकर आनन्दित हो उठता है।

विशेष :

  1. ज्ञान के द्वारा प्राणी अपने भय को दूर कर सकता है।
  2. संस्कृत के शब्दों के प्रयोग के साथ भावों की सरलता है।
  3. भाषा परिष्कृत तथा शैली व्याख्यात्मक है।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 3 प्रेम और सौन्दर्य

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 3 प्रेम और सौन्दर्य

प्रेम और सौन्दर्य अभ्यास

प्रेम और सौन्दर्य अति लघु उत्तरीय प्रश्न

घनानंद के पदों की व्याख्या Class 12 MP Board प्रश्न 1.
चातक को घातक क्यों कहा गया है? (2015)
उत्तर:
चातक अपनी बोली के द्वारा विरही हृदय को चोट (दुःख) पहुँचा रहा है इसलिए कवि ने उसे घातक कहकर सम्बोधित किया है।

Ghananand Ke Pad Ki Vyakhya Class 12 MP Board प्रश्न 2.
विश्वास में विष घोलने का काम किसने किया है?
उत्तर:
विश्वास में विष घोलने का काम ‘सुजान’ ने किया है। पहले तो उसने दर्शन देने की आशा दिलाकर विश्वास दिया फिर मना करके उस विश्वास को तोड़ दिया।

घनानंद के पदों की व्याख्या Class 12 MP Board प्रश्न 3.
मथुरा से योग सिखाने कौन गये थे?
उत्तर:
मथुरा से गोपियों को योग सिखाने श्रीकृष्ण के मित्र उद्धवजी ब्रज क्षेत्र में गये थे।

उद्धव प्रसंग कक्षा 12 MP Board प्रश्न 4.
नंद के आँगन में गोपियाँ क्यों एकत्र हुईं? (2014)
उत्तर:
गोपियों ने यह सुना कि मथुरा से कोई कृष्ण का संदेश लेकर आया है, तो प्रेम में मदमाती सभी गोपियाँ यह जानने के लिए नन्द के आँगन में एकत्रित हुईं कि उनके लिए क्या लिखा है।

विश्वास में विष घोलने का काम किसने किया MP Board Class 12 प्रश्न 5.
कुटीर कौन-सी नदी के किनारे बनाने की बात कही गई है?
उत्तर:
कृष्ण के सखा उद्धव अपना कुटीर यमुना नदी के किनारे बनाने की बात कहते हैं।

प्रेम और सौन्दर्य लघु उत्तरीय प्रश्न

उद्धव-प्रसंग व्याख्या Class 12 MP Board प्रश्न 1.
‘तिरछे करि नैननि नेह के चाव मैं’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति के माध्यम से कवि घनानन्द अपनी प्रेयसी सुजान की उदासीनता व निष्ठुरता की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं कि कवि प्रेम के बदले प्रेम की कामना करता है किन्तु प्रेयसी अपनी आँखें फेरकर उसके प्रेम के प्रति अस्वीकृति प्रकट करती है। प्रेयसी का यह निष्ठुर वहार कवि के हृदय को गहरा आघात पहुँचाता है और वह वेदना से भर जाता है।

प्रश्न 2.
घनानन्द सुजान को क्या उलाहना देते हैं? (2016)
उत्तर:
घनानन्द अपनी प्रियतमा ‘सुजान’ को यह उलाहना देते हैं कि पहले तो मुझे तुमने प्रेम से अपनाया फिर स्नेह को तोड़कर मुझे मँझधार में बिना आधार के क्यों छोड़ दिया? चातक की आन से कुछ सीख कर मुझे बेसहारा मत छोड़िए। प्रेम का रस पिलाने की आशा बँधा कर विश्वास में विष मत दीजिये।

प्रश्न 3.
रत्नाकर की गोपियों के मन में कौन बसा है? उनके विचार स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर:
रत्नाकर की गोपियों के मन में श्रीकृष्ण बसे हैं। वह उनके मन में इस तरह बस गये हैं कि अब निकालने से भी नहीं निकलते। उनका सन्देश आने की खबर सुन कर सभी दौड़-दौड़ कर नन्द के घर आने लगीं। उन्होंने उद्धव से कहा कि हमारे मन रूपी शीशे में कृष्ण बसे हुए हैं। तुम अपने कठोर वचन रूपी पत्थर चलाकर हमारे मनरूपी शीशे को तोड़कर अनेक मोहन (कृष्ण) हमारे हृदय में मत बसाओ। अनेक मोहन हमारे हृदय में बस कर अधिक दुःख देंगे।

प्रश्न 4.
रत्नाकर के अनुसार गोपी-ग्वालवालों की मनोदशा को समझाइए।
उत्तर:
ब्रज में गोपी-ग्वाल सभी कृष्ण के वियोग में कृशगात हो गये हैं। कृष्ण का संदेश जानने के लिए अत्यन्त व्याकुल रहते हैं। जैसे ही गोपियों ने कृष्ण का सन्देश आने की बात सुनी तो वे दौड़-दौड़ कर नन्द के घर में इकट्ठी हो गईं। प्रेमातुर गोपियाँ कमल जैसे कोमल पैरों के पंजों पर खड़ी होकर उचक-उचक कर पत्र को देखने लगीं। लेकिन जब उन्होंने उद्धव द्वारा अकथनीय बातें सनीं तो गस्से में बडबडाने लगीं.कोई पसीने से तर हो गई.कोई मच्छित होकर गिर पड़ी। उनकी व्यथा का वर्णन बड़ा कठिन है। उन्होंने उद्धव के वचनों की कठोर पाहन (पत्थर) की उपमा दी जो उनके मन-मुकुर को तोड़कर अनेक मनमोहन बसा देंगे। जब एक कृष्ण के जाने से इतना कष्ट हो रहा है तो अनेक मनमोहन हमारा सर्वनाश कर देंगे। स्वयं उद्धव ने कृष्ण से कहा है कि गोपी-ग्वालों के आँसुओं से ब्रज में बाढ़-सी आ गई है। वे सभी कृष्ण के वियोग में परम दुःखी हैं।

प्रश्न 5.
उद्धव के ब्रज आगमन की गोपियों पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
अथवा
उद्धव के ब्रज आगमन पर गोपियों की आतुरता का वर्णन कीजिए। (2010)
उत्तर:
कृष्ण के सखा उद्धव के ब्रज में आगमन की खबर सब जगह फैल गई। जैसे ही गोपियों ने श्रीकृष्ण के सखा उद्धव के आने का समाचार सुना गोपियों के झुण्ड के झुण्ड नन्द के द्वार पर इकट्ठे होने लगे। अपने कमल से कोमल पैरों के पंजों से उचक-उचक कर पत्री को देखने लगीं। कोई तो उस पत्री को अपने हृदय से स्पर्श कराने लगी। सभी एक-दूसरे से पूछने लगी कि हमारे लिए श्रीकृष्ण ने क्या लिखा है। श्रीकृष्ण के विरह में व्यथित सभी गोपियों की हालत ऐसी है जैसे वे दुःख की पराकाष्ठा पर पहुँच गई हों। संदेश की खबर ने जितना सुख उनको दिया उससे कहीं अधिक दुःख संदेश के ज्ञान ने दिया।

प्रेम और सौन्दर्य दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संकलित कविता के आधार पर “प्रेम और सौन्दर्य” पर घनानन्द के विचार लिखिए।
उत्तर:
घनानन्द का विरह वर्णन सूरदास के भ्रमरगीत के समकक्ष है। घनानन्द की कविताओं में ‘सुजान’ का उनकी प्रेयसी होना ही अधिक समीचीन है। सुजान को श्रृंगार पक्ष के नायक और भक्ति पक्ष में कृष्ण मान लेना ही उचित दिखाई देता है। उनके प्रेम का संयोग सुजान नामक वेश्या से प्रारम्भ हुआ है जो अल्पकाल में ही वियोग में परिणत हो गया। उनकी कविता प्रिय सुजान की कठोरता के कारण प्रेमी हृदय की मार्मिकता से उमड़े आँसुओं का सागर है। वे सच्चे,सरल तथा साहित्यिक प्रेम के समर्थक हैं-
“अति सूधौ सनेह को मारग है, जहँ नेकू सयानप बाँक नहीं।
तहँ साँचे चलें तजि आपनपो, झिझकैं कपटी जो निसाँक नहीं।”

घनानन्द के संयोग का चित्रण अति अल्प है। इससे स्पष्ट होता है कि उन्हें सुजान के सामीप्य से उनकी सुन्दरता का आभास रहा है। संयोग के सुख का उल्लास देखिए जिसमें उनका हृदय आनन्द से सिक्त है। देखिए-
“डगमगी डगनि धरनि छवि ही के भार,
ढरनि छबीले उर आछी वनमाल की।”

पहले अपनाने के बाद छोड़ देना घनानन्द को अच्छा नहीं लगा-
“पहिले अपनाय सुजान सनेह सौं,
क्यों फिर नेह कै तोरियो जू।”

प्रिय के अपने पास न होने से विरह का दुःख उमड़ पड़ता है। सुख के प्रतीक भी उस विरह-जन्य कवि को दुःख ही दे रहे हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अंशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(अ) पहिले अपनाय सुजान सनेह सौं.
क्यों फिर नेह के तोरियै जू।
निरधार अधार है धार मॅझार,
दई, गहि बाँह न बोरियै जू।।

(आ) आए हो सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै
ऊधो ये बियोग के बचन बतरावौ ना।
कहें ‘रत्नाकर’ दया करि दरस दीन्यौ
दुःख दरिबै कौं, तोपै अधिक बढ़ावौ ना।
उत्तर:
(अ) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ कवि अपनी प्रेयसी सुजान से प्रेम को न तोड़ने के लिए प्रार्थना कर रहा है।

व्याख्या :
कविवर घनानन्द कहते हैं कि हे सुजान ! पहले तो तुमने मुझे प्रेमवश अपना लिया अर्थात् मुझसे प्रेम किया परन्तु अब क्यों उस प्रेम को तोड़ दिया? मैं इस प्रेम की मँझधार में बिना किसी आधार के हूँ। ऐसी स्थिति में मेरी बाँह पकड़कर उसे छोड़ो नहीं। अर्थात् इस प्रेम मार्ग में तुम्हारे अतिरिक्त कोई और नहीं है इसलिए मेरा हाथ पकड़कर बीच राह में मेरा साथ मत छोड़ो। चातक के आनन्द धन अपने चातक के गुणों को ग्रहण करके अर्थात् उसकी टेक का ध्यान करके मेरे साथ प्रेम करना छोड़ो मत। जिस प्रकार चातक अपने प्रिय घन (बादल) को देखकर हर्षित हो जाता है। उसकी टेक है कि वह स्वाति नक्षत्र की वर्षा का जल ही पीता है। गगन में घुमड़ते घन उसको आनन्द देते हैं। इसी प्रकार कवि का चातक रूपी मन सुजान रूपी घन की ओर ही टकटकी लगाए है। मुझे प्रेम रस पिलाकर और मेरी आशा को बढ़ाकर मेरे प्रेम-रस में विष (धोखा) घोलकर न पिलाओ अर्थात् मेरे विश्वास में विश्वासघात मत करो।

(आ) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ पर गोपियाँ उद्धव के कथन ‘योग’ का श्लेष अर्थ करते हुए अनेक उलाहने उद्धव को देती हैं।

व्याख्या :
गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव ! जब आप मथुरा से योग (मिलन) का उपदेश देने के लिए यहाँ पधारे हो तो हमसे वियोग की कठोर बातें क्यों करते हो? कविवर रत्नाकर कहते हैं कि गोपियों ने पुनः उद्धव से प्रार्थना की कि हे उद्धव ! हमारे कष्ट को दूर करने के लिए यहाँ आकर हमें दर्शन देकर आपने बड़ी कृपा की,तो फिर ये वियोग (बिछड़ने) की बातें सुनाकर हमारे दुःख को और मत बढ़ाओ। आपसे विनम्र निवेदन है कि आप अपने ज्ञानोपदेश के कठोर वचन रूपी पत्थर भूलकर भी मत चलाना, अन्यथा हमारा मन रूपी दर्पण चूर-चूर हो जायेगा। हमारा कोमल हृदय रूपी दर्पण इतने बड़े प्रहार को सहन नहीं कर पायेगा। एक मनमोहन ने तो हमारे मन में निवास करके हमें नष्ट कर दिया है। हमें उनके विरह का दुःख भोगने के लिए छोड़ दिया है। यदि तुमने हमारे मन रूपी दर्पण को तोड़ दिया तो इस दर्पण के अनेक टुकड़ों में हमें अनेक कृष्ण दिखाई देंगे। ऐसी स्थिति में हमारी क्या दशा होगी यह अकथनीय है। इसलिए तुम हमारे मन को तोड़कर उसमें अनेक मनमोहन मत बसाओ।

प्रश्न 3.
घनानन्द को ‘प्रेम की पीर’ कहना कहाँ तक उचित है?
उत्तर:
घनानन्द प्रेम की पीर के अमर गायक हैं। उनके प्रेम का प्रारम्भ ‘सुजान’ नामक वेश्या से हुआ, लेकिन उनका प्रेम अल्पकाल में ही वियोग में परिणत हो गया। उनकी कविता प्रिय सुजान कठोरता के कारण प्रेमी हृदय की मार्मिक व्यथा से उमड़े आँसुओं का सागर है। घनानन्द की कविता में प्रिय की निष्ठुरता,प्रेमी की सहनशीलता तथा प्रकृति का विरहोद्दीपक रूप का बड़ा ही सुन्दर वर्णन हुआ है। घनानन्द तो सच्चे सरल प्रेम के समर्थक थे, लेकिन उनकी प्रियतमा के मन में सयानापन और टेढ़ापन था, जो उनके प्यार को रास नहीं आया। देखिए-
“अति सूधौ सनेह को मारग है, जहँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहँ साँचे चलें तजि आपनपो, झिझक कपटी जो निसाँक नहीं।”

घनानन्द के काव्य में संयोग पक्ष का चित्रण अति अल्प है। इससे ज्ञात होता है कि सुजान का सामीप्य चाहे कम प्राप्त हुआ हो, पर रहा अवश्य है। संयोग सुख का उल्लास देखिए-
“डगमगी डगनि धरनि छवि ही के भार,
ढरनि छबीले उर आछी वन माल की।”

घनानन्द के संयोग में भी वियोग निहित है। उन्हें संयोग में भी वियोग की शंका दुःख देती है।
“यह कैसी संयोग न जानि परै जु वियोग न क्यों हूँ विछोहत है।”

घनानन्द के प्रेम में कृत्रिमता जरा भी नहीं है। अपनी प्रेयसी ‘सुजान’ विरह से जागृत हृदय की उद्दाम आकांक्षा का प्राधान्य है। डॉ. कृष्णचन्द्र वर्मा के शब्दों में “घनानन्द का सारा काव्य सुजान की बेवफाई का शिकार होने और बलि चढ़ जाने की कहानी है जो आँसुओं में लिखी गयी है और भावों की भाषा में गायी गयी है।”

प्रश्न 4.
‘उद्धव शतक’ के आधार पर सिद्ध कीजिये कि रत्नाकर को मार्मिक स्थलों की भली-भाँति पहचान है।
उत्तर:
जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ ने ब्रजभाषा में उत्कृष्ट काव्य का सृजन किया है। भाव की मार्मिकता तथा कला की अभिव्यंजना में इनका काव्य अनुपम है। ब्रजभाषा के भावुक एवं रसिक कवि ‘रत्नाकर’ के काव्य में श्रृंगार रस की प्रधानता मिलती है। उद्धव शतक का मूल रस श्रृंगार रस है। श्रीकृष्ण की एकनिष्ठ प्रेमिका गोपियों पर उद्धव का ज्ञानोपदेश मार्मिक प्रहार करता है-
“टूक-टूक है है मन-मुकुर हमारौ हाय,
चूकि हूँ कठोर-बैन-पाहन चलावौ ना॥
एक मनमोहन तो बसिकै उजारयौ मोहि,
हिय में अनेक मनमोहन बसावौ ना।”

कृष्ण के सन्देश आने का समाचार गोपियों के तप्त हृदय को सान्त्वना प्रदान करता है, लेकिन संदेश का ज्ञान उन्हें पुनः वियोग के सागर में डुबो देता है। उद्धव की अकथनीय कहानी सुनकर गोपियों की हालत दयनीय हो गई। कोई तो काँपने लगी,कोई बेहोश हो गई और किसी को पसीना आ गया। गोपियों के उत्तर ने उद्धव को निरुत्तर कर दिया।-
“आये हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै,
ऊधौ ये बियोग के बचन बतरावौ ना।”

रत्नाकर के काव्य में रत्नाकर की भाषा का उत्कर्ष रूप देखा जा सकता है। इनके काव्य में ब्रजभाषा के अर्थगाम्भीर्य, पद-विन्यास, वाक्य चातुर्य, चमत्कार सौष्ठव आदि वैशिष्ट्य विद्यमान हैं। उदाहरण देखिए-
“छावते कटीर कहँ रम्य जमुना के तीर,
गौन रौन-रेती सों कदापि करते नहीं।
कहैं रत्नाकर बिहाइ प्रेम गाथा गूढ़
स्रोंन रसना में रस और भरते नहीं।”

प्रेम और सौन्दर्य काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए
नेत्र,मार्ग,आनन्द, दया, कठोर।
उत्तर:
नेत्र – दृग, लोचन, नयन।
मार्ग – पथ,मग,राह।
आनन्द – आमोद,प्रमोद, उल्लास।
दया – कृपा, करुणा,रहम।
कठोर – कराल,निष्ठुर, कठिन।

प्रश्न 2.
घनानन्द के संकलित छंदों में कौन-सा रस है?
उत्तर:
घनानन्द के संकलित छंदों में शृंगार रस है।

प्रश्न 3.
रत्नाकर की भाषा के सम्बन्ध में अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
रत्नाकर’ की कविता भक्तिकालीन भावधारा एवं रीतिकालीन कला का पुट मिलने पर जीवन्त हो गई है। रचना कौशल के साथ चित्रोपमता भी अनोखी है। अनुभावों का मर्मस्पर्शी अंकन है। भाषा शुद्ध एवं कोमल है। वह दुरूह नहीं है। इनकी भाषा ब्रज है जिसमें मधुरता, सरलता, भाव सबलता,मार्मिकता एवं कोमलता है। इनकी भाषा स्वाभाविक, गहन तथा मर्मस्पर्शी है। इनकी भाषा में पद माधुर्य, भाव अभिव्यक्ति की समर्थता और भाषा की उत्कृष्टता देखी जा सकती है। इनके काव्य में ब्रजभाषा के अर्थगाम्भीर्य, पद-विन्यास, वाक्-चातुर्य, चमत्कार सौष्ठव, समाहार शक्ति आदि वैशिष्ट्य विद्यमान हैं।
उदाहरण देखिए-
“छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना के तीर,
गौन रौन-रेती सों कदापि करते नहीं।
कह रत्नाकर बिहाइ प्रेम गाथा गूढ़
स्त्रोंन रसना में रस और भरते नहीं।”

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए
(अ) निरधार अधार है धार मँझार।
(आ) हिय में अनेक मनमोहन बसावौ ना।
(इ) टूक-टूक है है मन-मुकुर हमारौ हाय।
(ई) एक मनमोहन तौ बसिकै उजार्यो मोहिं।
(उ) उझकि-उझकि पद कंजनि के पंजनि पै।
उत्तर:
(अ) विरोधाभास।
(आ) श्लेष।
(इ) टूक-टूक = पुनरुक्तिप्रकाश, मन-मुकुर = रूपक।
(ई) विरोधाभास।
(उ) पुनरुक्तिप्रकाश, रूपक।

प्रश्न 5.
छप्पय किन मात्रिक छंदों के योग से बनता है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
छप्पय इस विषम मात्रिक छंद में छह चरण होते हैं। इसके प्रथम चार चरण रोला और दो चरण उल्लाला के होते हैं। रोला के प्रत्येक चरण में 11-13 की यति पर 24 मात्राएँ और उल्लाला के हर चरण में 15-13 की यति पर 28 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण-
जहाँ स्वतन्त्र विचार न बदलें मन में मुख में,
जहाँ न बाधक बनें सबल निबलों के सुख में।
सबको जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो।
शान्तिदायिनी निशा, हर्ष सूचक वासर हो।
सब भाँति सुशासित हों जहाँ, समता के सुखकर नियम।
बस उसी स्वशासित देश में जागे हे जगदीश हम॥
(रोला + उल्लाला = छप्पय)

घनानंद के पद भाव सारांश

‘घनानन्द के पद’ नामक कविता के रचयिता रीतिमुक्त कवि ‘घनानन्द’ हैं। उन्होंने अपनी प्रियतमा ‘सुजान’ के वियोग में इन पदों को लिखा है। इनमें कवि के प्रेम की परिशुद्ध भावना के दर्शन होते हैं।

घनानन्द का प्रेम अनुभूतिपरक है। वे वियोग श्रृंगार के कवि हैं। प्रिय की स्मृतियों का भावना-ग्राही रूप उनके काव्य का प्राण है। प्रस्तुत पदों में वे प्रेम के स्वरूप की चर्चा करते हैं। वे कहते हैं कि ‘अति सूधो सनेह को मारग है’। सच्चा प्रेम हृदय से किया जाता है। वे बार-बार उसके रूप को, चेष्टाओं को और उसके स्वभाव को याद करते हैं ! प्रिय द्वारा किये गये उपेक्षा-भाव की चर्चा करते हुए वे प्राकृतिक उपादानों के रूप में कोयल, वर्षा और बादलों को विरह के उद्दीपकों की तरह चित्रित करते हैं, जैसे-कारी करि कोकिल! कहाँ को बैर काढ़ति री, कृकि कूकि अबहीं करेजो किन कोरि लै। घनानन्द की उपमाएँ एकदम नवीन हैं।

घनानंद के पद संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) आपुहि तो मन हेरि हँसे
तिरछे करि नैननि नेह के चाव मैं।
हाय दई ! सुविसारि दई सुधि,
कैसी करें, सौ कहौ कित जावँ मैं।।
मीत सुजान, अनीति कहा यह,
ऐसी न चाहिए प्रीति के भाव मैं।
मोहन मूरति देखिबे को,
तरसावत हौ बसि एक ही गाँव मैं॥

शब्दार्थ :
हेरि = चुराना; तिरछे = टेढ़े नेह = प्रेम; चाव = शौक; दई = भगवान, देना; सुधि = याद; करें = कहना; कित = कहाँ; अनीति = अन्याय; बसि = निवास करना।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत सवैया रीतिकालीन कवि घनानन्द द्वारा रचित ‘घनानन्द के पद’ नामक काव्य से लिया गया है।

प्रसंग :
इस सवैया में रीतिकालीन मुक्तक काव्यधारा के श्रेष्ठ कवि घनानन्द ने अपनी प्रेयसी सुजान को उलाहना देते हुए उसे निष्ठुर कहा है।

व्याख्या :
कवि घनानन्द अपनी प्रेयसी सुजान के रूखेपन से व्याकुल हो उसे उलाहना देते हुए कहते हैं कि पहले तो तुमने मेरे मन (हृदय) को ले लिया (चुरा लिया) और अब हँसकर मेरा और मेरे प्रेम का मजाक बनाती हो। तुम अपने नेत्रों को टेढ़ा करके तथा प्रेम का प्रतिदान न करके उसे अस्वीकार करती हो। निराश कवि भगवान से कहता है कि उसकी प्रेयसी ने उसकी स्मृति को बिसरा दिया है। वह सुजान से भी पूछता है कि वह अपना प्रेम कैसे व्यक्त करे और सुजान को छोड़कर कहाँ जाये। कवि अपनी प्रेमिका को मोहन शब्द से सम्बोधित करके अपने प्रेम की व्यापकता का परिचय देता है। वह कहते हैं कि मित्र सुजान ! तुम मेरे साथ ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार क्यों करती हो, जबकि प्रेम में ऐसा नहीं होता है। कवि प्रेयसी की सूरत देखने को अत्यन्त आकुल है तथा उससे मिलने की इच्छा उसके मन में और बलवती हो उठती है। कवि कहता है कि उसकी प्रेयसी एक ही गाँव, अर्थात् मुहम्मदशाह रंगीले के दरबार में नर्तकी के रूप में उपस्थित होते हुए भी, जहाँ कवि स्वयं एक दरबारी कवि है, उससे बहुत दूरी बनाये रहती है। प्रेयसी सुजान की यही निष्ठुरता कवि के लिए असहनीय है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. ब्रजभाषा का सुन्दर उपयोग हुआ है।
  2. सवैया छन्द, मुक्त शैली, वियोग शृंगार रस, अनुप्रास व यमक अलंकार दृष्टव्य हैं।
  3. कवि की विरह भावना व सुजान की निष्ठुरता का सजीव चित्रण है।
  4. यहाँ मोहन शब्द भगवान कृष्ण व सुजान, दोनों के लिए उपयोग किया गया है।

(2) पहिले अपनाय सुजान सनेह सौं,
क्यों फिरि नेह के तोरियै जू।
निरधार अधार है धार मँझार,
दई, गहि बाँह न बोरियै ज॥
घन आनन्द अपने चातक कौं,
गुन बाँधि लै मोह न छोरियै जू।
रस प्याय कै ज्याय बढ़ाय कै आस,
बिसास में यौं विष घोरियै जू॥

शब्दार्थ :
अपनाय = अपनाकर; नेह = प्रेम; धार मँझार = धारा के मध्य में; गहि = पकड़कर; बोरियै = डुबाना; मोह = प्रेम; बिसास = विश्वास। विष = जहर।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ कवि अपनी प्रेयसी सुजान से प्रेम को न तोड़ने के लिए प्रार्थना कर रहा है।

व्याख्या :
कविवर घनानन्द कहते हैं कि हे सुजान ! पहले तो तुमने मुझे प्रेमवश अपना लिया अर्थात् मुझसे प्रेम किया परन्तु अब क्यों उस प्रेम को तोड़ दिया? मैं इस प्रेम की मँझधार में बिना किसी आधार के हूँ। ऐसी स्थिति में मेरी बाँह पकड़कर उसे छोड़ो नहीं। अर्थात् इस प्रेम मार्ग में तुम्हारे अतिरिक्त कोई और नहीं है इसलिए मेरा हाथ पकड़कर बीच राह में मेरा साथ मत छोड़ो। चातक के आनन्द धन अपने चातक के गुणों को ग्रहण करके अर्थात् उसकी टेक का ध्यान करके मेरे साथ प्रेम करना छोड़ो मत। जिस प्रकार चातक अपने प्रिय घन (बादल) को देखकर हर्षित हो जाता है। उसकी टेक है कि वह स्वाति नक्षत्र की वर्षा का जल ही पीता है। गगन में घुमड़ते घन उसको आनन्द देते हैं। इसी प्रकार कवि का चातक रूपी मन सुजान रूपी घन की ओर ही टकटकी लगाए है। मुझे प्रेम रस पिलाकर और मेरी आशा को बढ़ाकर मेरे प्रेम-रस में विष (धोखा) घोलकर न पिलाओ अर्थात् मेरे विश्वास में विश्वासघात मत करो।

काव्य सौन्दर्य :

  1. ब्रज भाषा का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
  2. देशज शब्दों का प्रयोग बड़ा सटीक लगता है।
  3. ‘चातक की टेक’ जैसी उक्ति का सुन्दर प्रयोग हुआ।
  4. श्लेष और अनुप्रास अलंकार की छटा प्रशंसनीय है।

(3) कारी कूरि कोकिल ! कहाँ को बैर काढ़ति री,
कूकि कूकि अबहीं करेजो किन कोरि लै।
पैड़े परे पापी ये कलापी निसि-द्यौस ज्यों ही,
चातक ! रे घातक है तू हू कान फोरि लै।
आनन्द के घन प्रानजीवन सुजान बिना,
जानि कै अकेली सब घेरो दल जोरि लै।
जोलौं करें आवन विनोद बरसावन वे,
तो लौं रे डरारे बजमारे घन ! घोरि लै॥

शब्दार्थ :
कूर = कठोर; कोकिल = कोयल; बैर = दुश्मनी; काढ़ति री = निकालती है; कूकि-कूकि = कूज-कूज कर; किन कोरि लै = खरोंच कर निकाल क्यों नहीं लेती; पैड़े परे = पीछे परे हैं; कलापी = मोर; निसि-द्यौस = रात-दिन; घातक = भयानक,घात करने वाला; डरारे = डरा लें; बजमारे = वज्राहत,बहुत दुष्ट; घोरि = गर्जना।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रकृति के मनभावन प्रतीक भी विरह में दग्ध कवि को प्रियतम सुजान के वियोग में कष्ट दे रहे हैं।

व्याख्या :
विरह जन्य पीड़ा से पीड़ित घनानन्द कवि आनन्द की प्रतीक कोयल से कहते हैं कि हे कोयल ! तेरी मधुर आवाज भी मुझे कष्ट दे रही है। हे कोयल ! तू कौन-सा बैर मुझसे निकाल रही है। कूक-कूक कर मेरे कलेजे को ही क्यों न निकाल ले? ये पापी मोर मेरे पीछे पडे हैं जो कि रात-दिन केउ,केउ कर मेरे कष्ट को और भी बढ़ा रहे हैं। चातक जो कभी प्रिय लगता था आज वह अपनी आवाज से मेरे कान फोड़े दे रहा है। आनन्द के धन प्रानजीवन सुजान के बिना मुझे अकेली जान कर सभी ने दल बना लिए हैं और मुझे घेर कर दुःख दे रहे हैं। जब तक मेरे विनोद के देने वाले सुजान (दूसरे भक्ति के अर्थ में श्रीकृष्ण) नहीं आते, तभी तक हे दुष्ट घन (बादल) सब मिलकर गर्जना कर मुझे डरा लो यहाँ बताया गया है कि संयोग श्रृंगार में जो प्रकृति के प्रतीक सुखदायी होते हैं वे ही प्रतीक वियोग शृंगार में दुःखदायी प्रतीत होते हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. प्रकृति के प्रतीकों का वैचित्र्य दिखाया गया है।
  2. ब्रजभाषा का प्रभावशाली वर्णन हुआ है।
  3. देशज शब्दों का प्रयोग रोचक लगता है।
  4. अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश और श्लेष अलंकार हैं।

उद्धव प्रसंग भाव सारांश

‘उद्धव प्रसंग’नामक कविता के रचयिता ‘जगन्नाथ दास रत्नाकर’ हैं। कृष्ण और गोपियों के प्रेम का भावनामय वर्णन उनकी संकलित कविता में है। उद्धव प्रसंग प्रेम से भरा हुआ भावुक प्रसंग है।

रीतिकाल और आधुनिक काल की देहरी पर स्थित कवि जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ ने वियोग श्रृंगार को अपने काव्य का आधार बनाया है। कृष्ण और गोपियों के प्रेम का भावनामय चित्रण यहाँ पर हुआ है। गोपियों में कृष्ण द्वारा भेजे गये पत्र को पढ़ने की आतुरता, उनकी विरहजन्य दशा,उनका कृष्ण के प्रति अतिशय समर्पण का अति सुन्दर वर्णन है। रत्नाकर के पदों में शब्दालंकार के साथ रूपक और प्रतीकों का प्रयोग हुआ है। योग सिखाने आये उद्धव की दशा गोपियों के तर्क के सामने मूक हो जाती है। अन्त में उद्धव को मानना पड़ता है कि सच्चा प्रेम तो गोपियों में ही देखने को मिलता है। कृष्ण के पास जाकर उद्धव कहते हैं कि यदि आपको देखने का चाव मन में न होता तो में इधर न आकर यमुना के किनारे झोपड़ी बनाकर रहता।

उद्धव प्रसंग संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की,
सुधि ब्रज-गाँवनि में पावन जब लगी।
कहैं ‘रतनाकर’ गुवालिनी की झौरि-झौरि,
दौरि-दौरि नंद-पौरि आवन तबै लगीं।
उझकि-उझकि पद कंजनि के पंजनि पै,
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगीं।
हमकौं लिख्यौ है कहा, हमकौं लिख्यौ है कहा,
हमकौं लिख्यौ है कहा कहन सबै लगीं।

शब्दार्थ :
झौरि-झौरि = झुंड के झुंड। दौरि-दौरि = दौड़-दौड़ कर। नंद पौरि = नन्द के आँगन। उझकि-उझकि = उझक-उझक कर, ऐड़ी उठा-उठा कर देखना पखि-पेखि = देख-देखकर। छाती छोहनि छबै लगी = हृदय से स्पर्श करने लगीं।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश कवि जगन्नाथदास रत्नाकर द्वारा रचित ‘उद्धव प्रसंग’ से अवतरित है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने उद्धव के ब्रज आगमन की बात सुनकर कृष्ण के संदेश को सुनने के लिए आ रही गोपियों की आतुरता का अनुपम वर्णन किया है।

व्याख्या :
जब ब्रज के गाँव में श्रीकृष्ण के मित्र उद्धव के आगमन का समाचार मिला तो गोपियों के समूह दौड़-दौड़ कर नन्द के द्वार पर एकत्रित होने लगे। गोपियों में कृष्ण के सन्देश को जानने की आतुरता तो देखते ही बनती है। कविवर रत्नाकर कहते हैं कि नन्द के वर पहुँची प्रेमातुर गोपियाँ अपने कमल जैसे कोमल पैरों के पंजों के बल खड़ी होकर उचक-उचक कर श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गये पत्र को देखने लगीं। उनका हृदय सन्देश जानने की उत्कंठा से भर गया। बार-बार पत्र को देखकर हृदय से स्पर्श कराने लगीं। सभी गोपियाँ उद्धव से बार-बार यही पूछ रही हैं कि श्रीकृष्ण ने हमारे लिए क्या लिखा है, हमारे लिए क्या लिखा है, हमारे लिए क्या लिखा है?

काव्य सौन्दर्य :

  1. गोपियों की आतुरता का सजीव चित्रण किया गया है।
  2. अनुभावों और संचारी भावों की सुन्दर योजना है।
  3. सरल, सुबोध ब्रजभाषा का प्रयोग।
  4. श्रृंगार रस का अनूठा वर्णन।
  5. रूपक (पद कंजनि पै), पुनरुक्ति (दौरि-दौरि) अलंकारों का प्रयोग।

(2) सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान,
कोऊ थहरानी कोऊ थानहिं थिरानी हैं।
कहैं ‘रत्नाकर’ रिसानी, बररानी कोऊ
कोऊ बिलखानी, विकलानी, विधकानी हैं।
कोऊ सेद-सानी, कोऊ भरि दृग पानी रही,
कोऊ घूमि-घूमि परी भूमि मुरझानी हैं।
कोऊ स्याम-स्याम कह बहकि बिललानी कोऊ
कोमल करेजो थामि सहमि सुखानी हैं।

शब्दार्थ :
अकह = जो कही न जाय; थहरानी = काँप गईं; थानहिं = स्थान पर; थिरानी = स्थिर रह गईं; रिसाई = क्रोधित हुई; बररानी = गुस्से में बड़बड़ाने लगी; बिथकानी = थकी-थकी सी हो गई; सेदसानी = पसीने में भीग गई; मुरझानी = बेहोश हो गईं; बिललानी = छटपटाने लगीं; सहमि सुखानी = सहम कर मानो सूख गई हो।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
उद्धव ने ब्रज में गोपियों को कृष्ण के प्रति प्रेम त्यागकर योग साधना द्वारा ब्रह्म प्राप्ति का उपदेश दिया जिसे सुनते ही विरह संतप्त गोपियाँ व्याकुल हो गईं। प्रस्तुत पद्यांश में गोपियों की इसी विकलता का सजीव वर्णन हुआ है।

व्याख्या :
उद्धव की उस ब्रह्म की अकथनीय कहानी को सुन-सुन कर गोपियाँ बेहाल हो गईं। कोई गोपी तो काँप गई और कोई अपने ही स्थान पर जड़वत् स्थिर रह गई। किसी किसी को उद्धव पर क्रोध आने लगा और कोई गुस्से में बड़बड़ाने लगी। कोई बिलख उठी, कोई व्याकुल हो उठी और कोई शिथिल होकर शरीर से थकी-थकी सी-दिखाई देने लगी। उस असह्य व्यथा के कारण किसी-किसी का शरीर तो पसीने से तर हो गया, किसी के नेत्र आँसुओं के जल से छलछला उठे। कोई-कोई चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ी और मूर्च्छित हो गई। कोई बावली सी ‘स्याम-स्याम’ की रट लगाने लगी और बहक कर बड़बड़ाने लगी। कोई सहम कर सूखी हुई सी अपना कोमल हृदय थाम कर रह गई।

काव्य सौन्दर्य :

  1. उद्धव के आगमन पर ‘योग’ की बातें सुनकर गोपियों के हृदय का मार्मिक चित्रण हुआ है।
  2. रत्नाकर अनुभवों का वर्णन करने में सिद्धहस्त हैं।
  3. अनुप्रास, पुनरुक्ति, विरोधाभास (अकह कहानी) लोकोक्ति (करेजौ थामि) अलंकारों की छटा दृष्टव्य है।

3. आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै,
ऊधौ ये बियोग के बचन बतरावौ ना।
कहैं. रत्नाकर’ दया करि दरस दीन्यौ,
दुःख दरिबै कौं, तोपै अधिक बढ़ावौ ना।।
टूक-टूक है है मन-मुकुर हमारी हाय,
चकि हँ कठोर-बैन-पाहन चलावौ ना।
एक मनमोहन तौ बसिकै उजार्यो मोहिं
हिय में अनेक मनमोहन बसावौ ना॥ (2009)

शब्दार्थ :
जोग = योग शास्त्र; दरस = दर्शन; टूक-टूक = टुकड़े-टुकड़े मन-मुकुर = मन रूपी दर्पण; बैन-पाहन = वचनों के पत्थर; मनमोहन = श्रीकृष्ण।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ पर गोपियाँ उद्धव के कथन ‘योग’ का श्लेष अर्थ करते हुए अनेक उलाहने उद्धव को देती हैं।

व्याख्या :
गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव ! जब आप मथुरा से योग (मिलन) का उपदेश देने के लिए यहाँ पधारे हो तो हमसे वियोग की कठोर बातें क्यों करते हो? कविवर रत्नाकर कहते हैं कि गोपियों ने पुनः उद्धव से प्रार्थना की कि हे उद्धव ! हमारे कष्ट को दूर करने के लिए यहाँ आकर हमें दर्शन देकर आपने बड़ी कृपा की,तो फिर ये वियोग (बिछड़ने) की बातें सुनाकर हमारे दुःख को और मत बढ़ाओ। आपसे विनम्र निवेदन है कि आप अपने ज्ञानोपदेश के कठोर वचन रूपी पत्थर भूलकर भी मत चलाना, अन्यथा हमारा मन रूपी दर्पण चूर-चूर हो जायेगा। हमारा कोमल हृदय रूपी दर्पण इतने बड़े प्रहार को सहन नहीं कर पायेगा। एक मनमोहन ने तो हमारे मन में निवास करके हमें नष्ट कर दिया है। हमें उनके विरह का दुःख भोगने के लिए छोड़ दिया है। यदि तुमने हमारे मन रूपी दर्पण को तोड़ दिया तो इस दर्पण के अनेक टुकड़ों में हमें अनेक कृष्ण दिखाई देंगे। ऐसी स्थिति में हमारी क्या दशा होगी यह अकथनीय है। इसलिए तुम हमारे मन को तोड़कर उसमें अनेक मनमोहन मत बसाओ।

काव्य सौन्दर्य :

  1. इस कविता में मानव,मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण हुआ है। गोपियों ने ‘योग’ का अर्थ मिलन लिया जो उनकी बुद्धि में सहज समा गया।
  2. मुहावरों का सुन्दर व सार्थक प्रयोग।
  3. व्याकरण सम्मत ब्रजभाषा एवं व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग।
  4. वियोग श्रृंगार का वर्णन। श्लेष (जोग) पुनरुक्तिप्रकाश (टूक-टूक) और रूपक अलंकारों का प्रयोग।

(4) छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर,
गौन रौन-रेती सों कदापि करते नहीं।
कहैं ‘रतनाकर’ बिहाइ प्रेम गाथा गूढ
स्त्रोंन रसना में रस और भरते नहीं।
गोपी ग्वाल बालनि के उमड़त आँसू देखि
लेखि प्रलयागम हैं नैंक डरते नहीं।
होतो चित चाब जौ न रावरे चितावन को,
तजि ब्रज-गाँव इतै पाँव धरते नहीं।

शब्दार्थ :
छावते कुटीर = कुटिया बना लेते; रम्य = सुन्दर; रौनरेती = रमणरेती; गौन = गमन; बिहाइ = छोड़कर; गूढ़ = गम्भीर; स्रोन = कान; रसना = जीभ; लखि = देखकर; प्रलयागम = प्रलय का आना; चितावन = देखने की लालसा।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में उद्धव की ब्रज के प्रति अनुराग की सुन्दर व्यंजना हुई है। उद्धव श्रीकृष्ण को सम्बोधित करते हुए कहते हैं।

व्याख्या :
उद्धव कहते हैं कि हे श्रीकृष्ण ! यदि मेरे मन में गोपियों की दशा बताने का उत्साह न होता तो हम ब्रज छोड़कर इधर की तरफ पैर भी नहीं रखते। चाहे हमें किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़ता, हम ब्रज में रमणीय यमुना के किनारे किसी स्थान पर कुटी बनाकर रहते और रमणरेती से इधर की ओर गमन नहीं करते। रत्नाकर कवि कहते हैं उद्धव ने कृष्ण को समझाया कि हम अपने कानों से प्रेम की गम्भीर गाथा सुनते और अपनी रसना से उसी प्रेम-रस का गुणगान करते। हम तो श्रीकृष्ण-प्रेम की कथा ही सुनते और उसे ही गाते। गोपी-ग्वालाओं के उमड़ते हुए आंसुओं को देखकर प्रलय आने की सम्मावना से भी नहीं डरते। यदि आपको देखने की लालसा न होती तो हम ब्रज छोड़कर इधर पैर भी नहीं रखते।

काव्य सौन्दर्य :

  1. उद्धव का ब्रज के प्रति अनुराग का सच्चा स्वरूप व्यक्त हुआ है।
  2. व्याकरणसम्मत मुहावरेदार ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. पदमैत्री एवं अनुप्रास अलंकार।

MP Board Class 12th Hindi Solutions