MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति धारा

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति धारा

भक्ति धारा अभ्यास

बोध प्रश्न

भक्ति धारा अति लघु उत्तरीय प्रश्न

कक्षा 10 हिंदी पाठ 1 के प्रश्न उत्तर MP Board प्रश्न 1.
पद में मीठे फल का आनन्द लेने वाला कौन है?
उत्तर:
पद में मीठे फल का आनन्द लेने वाला गूंगा है।

Mp Board Class 10th Hindi Navneet प्रश्न 2.
अवगुणों पर ध्यान न देने के लिए सूरदास ने किससे प्रार्थना की है?
उत्तर:
अवगुणों पर ध्यान न देने के लिए सूरदास ने प्रभु श्रीकृष्ण से प्रार्थना की है।

Class 10 Hindi Navneet Solutions प्रश्न 3.
पारस में कौन-सा गुण पाया जाता है?
उत्तर:
पारस एक प्रकार का पत्थर होता है जिसमें यह गुण पाया जाता है कि इसके स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है।

Mp Board Class 10th Hindi Chapter 1 प्रश्न 4.
जायसी के अनुसार संसार की सृष्टि किसने की है?
उत्तर:
जायसी के अनुसार संसार की सृष्टि आदि कर्तार (भगवान) ने की है।

नवनीत हिन्दी विशिष्ट कक्षा 10 Pdf MP Board प्रश्न 5.
ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को क्या दिया?
उत्तर:
ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को औषधियाँ प्रदान की हैं।

10th Class Hindi Navneet MP Board प्रश्न 6.
‘स्तुति खंड’ में जायसी ने कितने द्वीपों और भुवनों की चर्चा की है?
उत्तर:
स्तुति खंड में जायसी ने सात द्वीपों और चौदह भुवनों की चर्चा की है।

Class 10 Hindi Chapter 1 Question Answer Mp Board प्रश्न 7.
जायसी ने कथा किसका स्मरण करते हुए लिखी है?
उत्तर:
जायसी ने आदि एक कर्त्तार (भगवान) का स्मरण करते हुए कथा लिखी है जिसने जायसी को जीवन दिया और संसार का निर्माण किया।

भक्ति धारा लघु उत्तरीय प्रश्न

Hindi Navneet 10th Class MP Board प्रश्न 1.
सूरदास ने निर्गुण की अपेक्षा सगुण को श्रेयस्कर क्यों माना है?
उत्तर:
सूरदास ने निर्गुण की अपेक्षा सगुण को श्रेयस्कर इसलिए माना है कि निर्गुण तो रूप रेख गुन जाति से रहित होता है अतः उसका कोई आधार नहीं होता है जबकि सगुण का आधार होता है।

कक्षा 10 हिंदी अध्याय 1 सवाल जवाब MP Board प्रश्न 2.
गूंगा, फल के स्वाद का अनुभव किस तरह करता है?
उत्तर:
गूंगा व्यक्ति फल का स्वाद अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है वह उसे किसी को बता नहीं सकता है।

प्रश्न 3.
कुब्जा कौन थी? उसका उद्धार कैसे हुआ?
उत्तर:
कुब्जा कंस की नौकरानी थी। उसका काम कंस को नित्य माथे पर चन्दन लगाना होता था। जब कृष्ण मथुरा में। पहुँचे तो सबसे पहले उनसे कुब्जा का ही सामना हुआ। भगवान। कृष्ण ने कुब्जा के कुब्ब पर हाथ रखा, तो वह अनुपम सुन्दरी बनकर उद्धार पा गई।

प्रश्न 4.
सूरदास ने स्वयं को ‘कुटिल खल कामी’ क्यों कहा है?
उत्तर:
सूरदास ने स्वयं को कुटिल, खल और कामी इसलिए कहा है कि जिसने उसे जीवन दिया उसी भगवान को वह भूल गया और काम वासनाओं में डूब गया।

प्रश्न 5.
जायसी के अनुसार परमात्मा ने किस-किस तरह के मनुष्य बनाए हैं?
उत्तर:
जायसी के अनुसार परमात्मा ने साधारण मनुष्य। बनाये तथा उनकी बढ़ाई की, उनके लिए अन्न एवं भोजन का प्रबन्ध किया। उसने राजा लोगों को बनाया एवं उनके भोग-विलास की व्यवस्था की तथा उनकी शोभा बढ़ाने के लिए हाथी, घोड़े आदि प्रदान किए। उसने किसी को ठाकुर तथा किसी को दास। बनाया। कोई भिखारी बनाया तो कोई धनी बनाया।

भक्ति धारा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास ने किस आधार पर ईश्वर को समदर्शी कहा है?
उत्तर:
सूरदास ने पारस पत्थर के आधार पर ईश्वर को समदर्शी कहा है। जिस प्रकार पारस पत्थर प्रत्येक लोहे को सोना बना देता है चाहे वह लोहा पूजा के काम में आता हो चाहे बधिक। के घर पशुओं की हत्या के काम आता हो। उसी आधार पर भगवान भी सभी का उद्धार कर देते हैं। चाहे वह व्यक्ति पुण्यात्मा हो अथवा पापात्मा हो।

प्रश्न 2.
निर्गुण और सगुण भक्ति में क्या अन्तर है?
उत्तर:
निर्गुण भक्ति में भगवान का न तो कोई रूप-रंग होता है और न कोई आकार-प्रकार। इस भक्ति में तो भक्त भगवान को अनन्य भाव से उसी में डूबकर भजता है। सगुण भक्ति में भक्त को आधार मिल जाता है। जिस पर वह अपना लक्ष्य निर्धारित कर भगवान की शरण में जाता है।

प्रश्न 3.
ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण कितने रूपों में किया है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण विविध रूपों में किया है। उसने हिम बनाया है तो अपार समुद्र भी। उसने सुमेरू और किष्किन्धा जैसे विशाल पर्वत बनाये हैं। उसने नदी, नाला और झरने बनाये हैं। उसने मगर, मछली आदि बनाये हैं। उसने सीप मोती और अनेक नगों का निर्माण किया है। उसने वनखंड और जड़-मूल, तरुवर, ताड़ और खजूर का निर्माण किया है। उसने जंगली पशु और उड़ने वाले पक्षी बनाये हैं। उसने पान, फूल एवं औषधियों का भी निर्माण किया है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रंसग व्याख्या कीजिए
(अ) अविगत गति ……………. जो पावै।।
उत्तर:
उस अज्ञात निर्गुण ब्रह्म की गति अर्थात् लीला कुछ कहते नहीं बनती है अर्थात् वह निर्गुण ब्रह्म वर्णन से परे है। जिस प्रकार गँगा व्यक्ति मीठा फल खाता है और उसके रस के आनन्द का अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है। वह आनन्द उसे अत्यधिक सन्तोष प्रदान करता है लेकिन उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता उसी प्रकार वह निर्गुण ब्रह्म मन और वाणी से परे है। उसे तो जानकर ही प्राप्त किया जा सकता है। उस निर्गुण ब्रह्म की न कोई रूपरेखा एवं आकति होती है न उसमें कोई गुण होता है और न उसे प्राप्त करने का कोई उपाय है। ऐसी दशा में उस परमात्मा को प्राप्त करने हेतु यह आलम्बन चाहने वाला मन बिना सहारे के कहाँ दौड़े? वास्तव में इस मन को तो कोई न कोई आधार चाहिए ही, तभी वह उसको पाने के लिए प्रयास कर सकता है। सूरदास जी कहते हैं कि मैंने यह बात भली-भाँति जान ली है कि वह निर्गुण ब्रह्म अगम्य अर्थात् हमारी पहुँच से परे है। इसी कारण मैंने सगुण लीला के पदों का गान किया है।

(ब) अधिक कुरूप कौन …………. फिरि-फिरि जठर जरै।
उत्तर:
सूरदास जी कहते हैं कि जिस किसी पर दीनानाथ कृपा कर देते हैं वही व्यक्ति इस संसार में कुलीन, बड़ा और सुन्दर हो जाता है।

आगे इसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए वे अनेक दृष्टान्त और अन्तर्कथाएँ प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि विभीषण रंक एवं निशाचर था पर भगवान ने कृपा करके रावण वध के पश्चात् उसी के सिर छत्र धारण कराया अर्थात् लंका का राजा बनाया। रावण से बड़ा शूरवीर योद्धा संसार में कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन चूँकि उस पर भगवान की कृपा नहीं थी। इस कारण वह मिथ्या गर्व में ही जीवन भर जलता रहा। सुदामा से बड़ा दरिद्र कौन था, जिसे भगवान ने कृपा करके अपने समान दो लोकों का पति अर्थात् स्वामी बना दिया।

अजामील से बड़ा अधम कौन था अर्थात् कोई नहीं। वह इतना बड़ा दुष्ट था कि उसके पास जाने में मृत्यु के देवता यमराज को भी डर लगता था, पर भगवान ने कृपा करके उस पापी का भी उद्धार कर दिया। नारद मुनि से बढ़ा वैरागी संसार में कोई नहीं हुआ लेकिन प्रभु कृपा के अभाव में वह रात-दिन इधर-उधर चक्कर लगाया करते हैं। शंकर से बड़ा योगी कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में वह भी कामदेव द्वारा छले गये। कुब्जा से अधिक कुरूप स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा से उसने स्वयं भगवान को पति रूप में प्राप्त कर अपना उद्धार किया। सीता के समान संसार में सुन्दर स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में उन्हें भी जीवन भर वियोग सहना पड़ा।

अंत में कवि कहता है कि भगवान की इस माया को कोई नहीं जान सकता है। न मालूम वे किस रस के रसिक होकर भक्त पर अपनी कृपा की वर्षा कर दें। सूरदास जी कहते हैं कि भगवान के भजन के बिना मनुष्य को बार-बार इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है और जन्म लेने के कारण उसे अपनी माता की कोख की अग्नि में बार-बार जलना पड़ता है।

(स) कीन्हेसि मानुस दिहिस ……….. अघाइ न कोई।
उत्तर:
कविवर जायसी कहते हैं कि उसी सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को निर्मित किया तथा सृष्टि के अन्य सभी पदार्थों में उसे बड़प्पन प्रदान किया। उसने उसे अन्न और भोजन प्रदान किया। उसी ने राजाओं को बनाया जो राज्यों का भोग करते हैं, हाथियों और घोड़ों को उनके साज के रूप में बनाया। उनके मनोरंजन के लिए उसने अनेक विलास की सामग्री बनाईं और किसी को उसने स्वामी बनाया तो किसी को दास। उसने द्रव्य बनाए जिनके कारण मनुष्यों को गर्व होता है। उसने लोभ को बनाया जिसके कारण कोई मनुष्य उन द्रव्यों से तृप्त नहीं होता है, उनकी निरन्तर भूख बनी रहती है। उसी ने जीव का निर्माण किया जिसे सब लोग चाहते हैं और उसी ने मृत्यु का निर्माण किया जिसके कारण कोई भी सदैव जीवित नहीं रह सका है। उसने सुख, कौतुक और आनन्द का निर्माण किया है। साथ ही उसने दुःख, चिन्ता और द्वन्द्व की भी रचना की है। किसी को उसने भिखारी बनाया तो किसी को धनी बनाया। उसने सम्पत्ति बनाई तो बहुत प्रकार की विपत्तियाँ भी बनाईं। किसी को उसने निराश्रित बनाया तो किसी को बलशाली। छार (मिट्टी) से ही उसने सब कुछ बनाया और पुनः सबको उसने छार (मिट्टी) कर दिया।

भक्ति धारा महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भक्ति धारा बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास ने अविगत गति किसकी बतलाई है?
(क) सगुण उपासक की
(ख) निर्गुण उपासक की
(ग) सगुण ब्रह्म की
(घ) निर्गुण ब्रह्म की।
उत्तर:
(घ) निर्गुण ब्रह्म की।

प्रश्न 2.
‘अधम उधारन’ का अर्थ है-
(क) पापियों का संहार करने वाला
(ख) पापियों का उद्धार करने वाला
(ग) पापियों को शरण देने वाला
(घ) पापियों की रक्षा करने वाला।
उत्तर:
(ख) पापियों का उद्धार करने वाला

प्रश्न 3.
ईश्वर अपनी कृपा किस पर करता है?
(क) जिसको वह अपना कृपापात्र बनाना चाहता है
(ख) सुन्दर पर
(ग) कुरूप पर
(घ) पापी पर।
उत्तर:
(क) जिसको वह अपना कृपापात्र बनाना चाहता है

प्रश्न 4.
मीठे फल का आनन्द लेने वाला कौन है? (2009)
(क) बहरा
(ख) गूंगा
(ग) अन्धा
(घ) अपाहिज।
उत्तर:
(ख) गूंगा

रिक्त स्थानों की पूर्ति-

  1. सूरदास जी ने ………… भक्ति को श्रेष्ठ माना है। (2011)
  2. गूंगे के लिए मीठे फल का रस ……….. ही होता है।
  3. ‘मधुप की मधुर गुनगुन’ से आशय …………. है। (2009)
  4. ईश्वर छार में से सब कुछ बनाकर सबको पुनः ………….. कर देता है।

उत्तर:

  1. सगुण
  2. अन्तर्गत
  3. भौंरों के मधुर गान से
  4. छार।

सत्य/असत्य

  1. सूरदास वात्सल्य रस के सम्राट हैं। (2012)
  2. लोकायतन के रचयिता सूरदास हैं। (2009)
  3. मलिक मोहम्मद जायसी सूफी कवि थे।
  4. शंकर जी को भी कामदेव ने छलने का प्रयास किया।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति धारा img-1
उत्तर:
1. → (ख)
2. → (ग)
3. → (क)
4. → (घ)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. मनवाणी के लिए अगम और अगोचर क्या है?
  2. पूजाघर में रखे हुए लोहे में और बहेलिए के घर में रखे लोहे में कौन भेद नहीं करता?
  3. सूरदास जी के अनुसार ईश्वर का भजन न करने से क्या होता है? (2009)
  4. जायसी के अनुसार ईश्वर की प्रकृति कैसी है?

उत्तर:

  1. निर्गुण ब्रह्म
  2. पारस पत्थर
  3. प्राणी को पुनः पुनः माँ के उदर में आकर जन्म लेना पड़ता है
  4. अनेक वर्ण वाली।

विनय के पद भाव सारांश

प्रस्तुत विनय के पदों में सूरदास जी ने कहा है कि निर्गुण ब्रह्म की उपासना दुरूह होने के कारण वे सगुण की उपासना करते हैं। निर्गुणोपासक योगी ब्रह्म का अनुभव मन ही मन करके आनन्द प्राप्त कर सकता है किन्तु उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकता। जैसे एक मूक व्यक्ति मधुर फल का रसास्वादन मन ही मन करता है किन्तु उसकी अभिव्यक्ति नहीं कर पाता, उसी प्रकार से निर्गुण ब्रह्म रूप व आकार से परे है। इसीलिए सूरदास जी सगुणोपासना को अत्यन्त सरल बताते हैं।

सूरदास जी के अनुसार परमात्मा अत्यन्त दयालु और समदर्शी हैं। वह सभी का कल्याण करते हैं। हम ही उनकी भक्ति से दूर होकर विषय-भोगों की मरीचिका में भटकते फिरते हैं। यदि हम उनकी शरण में जायें तो वह हमारा क्षण भर में उद्धार कर सकते हैं। वह बड़े-बड़े पापियों का उद्धार करने वाले हैं। जिस पर उनकी कृपादृष्टि पड़ती है, वह इस संसार सागर को पार कर जाता है।

विनय के पद संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) अविगत-गति कछु कहत न आवै।
ज्यों गूंगे मीठे फल को रस, अन्तरगत ही भावै।
परम स्वाद सबही सुनिरन्तर, अमित तोष उपजावै।
मन-बानी को अगम अगोचर, सो जानै जो पावै।
रूप-रेख-गुन-जात जुगति-बिनु, निरालंब कित धावै।
सब विधि अगम विचारहि तातें, सूर सगुन पद गावै।।

शब्दार्थ :
अविगत = अज्ञात ईश्वर। गति = दशा। अन्तरगत = हृदय में। अमित = अत्यधिक। तोष = सन्तोष। उपजावै = पैदा करता है। अगोचर = अदृश्य। गुन = गुण। जुगति = मुक्ति। निरालंब = बिना आश्रय के। कित = किधर। धावै = दौड़े। अगम = पहुँच के बाहर। ता” = इस कारण से। सगुन = सगुण भक्ति के।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘भक्तिधारा’ पाठ के अन्तर्गत ‘विनय के पद’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि सूरदास हैं।

प्रसंग :
इस पद में निर्गुण-निराकार ब्रह्म को अगम्य बताकर विवशता की स्थिति में सूरदास सगुण लीला का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या :
उस अज्ञात निर्गुण ब्रह्म की गति अर्थात् लीला कुछ कहते नहीं बनती है अर्थात् वह निर्गुण ब्रह्म वर्णन से परे है। जिस प्रकार गँगा व्यक्ति मीठा फल खाता है और उसके रस के आनन्द का अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है। वह आनन्द उसे अत्यधिक सन्तोष प्रदान करता है लेकिन उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता उसी प्रकार वह निर्गुण ब्रह्म मन और वाणी से परे है। उसे तो जानकर ही प्राप्त किया जा सकता है। उस निर्गुण ब्रह्म की न कोई रूपरेखा एवं आकति होती है न उसमें कोई गुण होता है और न उसे प्राप्त करने का कोई उपाय है। ऐसी दशा में उस परमात्मा को प्राप्त करने हेतु यह आलम्बन चाहने वाला मन बिना सहारे के कहाँ दौड़े? वास्तव में इस मन को तो कोई न कोई आधार चाहिए ही, तभी वह उसको पाने के लिए प्रयास कर सकता है। सूरदास जी कहते हैं कि मैंने यह बात भली-भाँति जान ली है कि वह निर्गुण ब्रह्म अगम्य अर्थात् हमारी पहुँच से परे है। इसी कारण मैंने सगुण लीला के पदों का गान किया है।

विशेष :

  1. इस पद में निर्गुण ब्रह्म को अगम्य और सगुण ब्रह्म को सुगम माना गया है।
  2. ‘ज्यों गूंगे …………… भाव’ में उदाहरण अलंकार, ‘रूप-रेख-गुन ………….. धावै’ में विनोक्ति तथा सम्पूर्ण में अनुप्रास अलंकार।
  3. शान्त रस।

(2) हमारे प्रभु औगुन चित न धरौ।
समदरसी है नाम तुम्हारौ, सोई पार करौ।
इक लोहा पूजा मैं राखत, इक घर बधिक परौ।
सो दुविधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ।
इक नदिया, इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब दोऊ मिलि एक बरन गए, सुरसरि नाम परौ।
तन माया ज्यों ब्रह्म कहावत सूर सुमिलि बिगरौ।
कै इनको निरधार कीजिए, कै प्रन जात टरौ॥

शब्दार्थ :
औगुन = अवगुण, दोष। समदरसी = सबको समान समझने वाला। तिहारो = तुम्हारा, आपका। राखत = रखते हैं। बधिक = कसाई। पारस = एक प्रकार का पत्थर जिसके स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। कंचन = सोना। नार = नाला। बरन = वर्ण, रंग। सुरसरि = देवनदी गंगा। बिगरौ = बिगड़ गया। निरधार = निर्धारण करना, अलग-अलग। प्रन = प्रण, प्रतिज्ञा।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद में सूर ने भगवान से प्रार्थना की है कि वे उसके अवगुणों पर ध्यान न दें।

व्याख्या :
सूरदास जी भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु! आप हमारे अवगुणों को अपने मन में मत लाओ। आपका नाम तो समदर्शी है अर्थात् आप सभी मनुष्यों के लिए एक-सा देखने वाले हो। आप यदि चाहें तो मेरा भी उद्धार कर दें। एक लोहा पूजा में रखा जाता है और एक कसाई के घर माँस काटने के काम आता है। पारस पत्थर इस दुविधा को नहीं देखता है कि यह पूजा का लोहा है या कसाई के घर का लोहा है। वह तो दोनों प्रकार के लोहे को खरा सोना बना देता है। इसी प्रकार एक नदी का पानी होता है और एक नाले का पानी होता है लेकिन जब ये दोनों मिलकर एक रंग के हो जाते हैं तो इनका नाम देवनदी गंगा पड़ जाता है। यह शरीर माया है और जीव ब्रह्म का अंश कहलाता है। यह जीवात्मा माया से मिलकर बिगड़ गयी है। हे भगवान्! या तो इनका निर्धारण करके अलग-अलग कर दीजिए, नहीं तो आपकी पतित पावन और समदर्शी होने की प्रतिज्ञा समाप्त हुई जा रही है।

विशेष :

  1. भगवान के समदर्शी नाम का लाभ उठाते हुए सूरदास अपने पापी मन के उद्धार की प्रार्थना करते हैं।
  2. ‘इक लोहा ………… बधिक परौ’-में उदाहरण अलंकार।
  3. सम्पूर्ण में अनुप्रास की छटा।

(3) मो सम कौन कुटिल खल कामी।
तुम सौं कहा छिपी करुनामय, सबके अन्तरजामी।
जो तन दियौ ताहि बिसरायौ, ऐसौ नोन-हरामी।
भरि-भरि द्रोह विर्षे कौं धावत, जैसे सूकर ग्रामी।
सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषयिनि संग बिसरामी।
श्री हरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की, निसि-दिन करत गुलामी।
पापी परम, अधम अपराधी, सब पतितनि मैं नामी।
सूरदास प्रभु अधम-उधारन, सुनियै श्रीपति स्वामी।।

शब्दार्थ :
सम = समान। कुटिल = टेढ़ा। खल = दुष्ट। कामी = विषयभोग में डूबा हुआ। करुनामय = भगवान। अन्तरजामी = हृदय की बात जानने वाले। ताहि = उसी को। बिसरायौ = भूल गया। नोन-हरामी = नमक हरामी। वि. कौं धावत = विषय वासनाओं की ओर दौड़ता है। सूकर ग्रामी = गाँव का सूअर। विषयनि संग विसरामी = विषय वासनाओं में डूब जाता है। विमुखिनि = दुष्टों की। नामी = प्रसिद्ध। अधम-उधारन = नीच व्यक्तियों का उद्धार करने वाले। श्री पति स्वामी = भगवान श्रीकृष्ण।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद में सूर ने अपने आपको कुटिल, खल एवं कामी बताते हुए संसार के सभी पापियों में सबसे बड़ा पापी बताते हुए अपने उद्धार की प्रार्थना की है।

व्याख्या :
सूरदास जी कहते हैं कि हे भगवान! मेरे समान कोई भी कुटिल, खल और कामी नहीं है अर्थात् मैं सबसे बड़ा पापी एवं कामी हूँ। हे भगवान! आप करुणामय हैं तथा सबके हृदय की बात जानते हैं, इसलिए आपसे मेरा क्या छिपा हुआ है? अर्थात् आप मेरे पापों को भली-भाँति जानते हैं। मेरे समान नमक हराम इस संसार में कोई नहीं है जिसने अर्थात् आपने मुझे यह नर शरीर दिया, मैं आपको ही भूल गया और माया, मोह तथा विषय-वासनाओं में डूब गया अत: मुझसे बड़ा नमक हराम अर्थात् कृतघ्न कोई नहीं हो सकता। मैं काम वासनाओं में इतना अंधा हो गया कि बार-बार उन्हीं की ओर मैं दौड़ता रहता हूँ जिस प्रकार कि गाँव का सूअर गन्दगी या विष्टा की ओर बार-बार दौड़ा करता है। मैं कितना गिरा हुआ व्यक्ति हूँ कि सत्संग की जब भी चर्चा होती है तो उसे सुनकर मुझे आलस्य आने लगता है तथा विषय-वासनाओं में मेरा मन आनन्द का अनुभव किया करता है।

मैं भगवान के चरणों को छोड़कर रात-दिन दुष्ट लोगों की गुलामी करता रहता हूँ। मैं महान् पापी हूँ तथा अधम अपराधी हूँ और सब पतितों में बड़ा हूँ। हे करुणामय भगवान श्री कृष्ण! आप तो अधम अर्थात् पतित लोगों का उद्धार करने वाले हैं, अतः हे श्रीपति स्वामी भगवान! मेरी टेर अर्थात् पुकार को सुन लीजिए और मुझ दुष्ट का उद्धार कर दीजिए।

विशेष :

  1. कवि आत्मग्लानि वश अपने सभी पापों को स्वीकारता है तथा भगवान से उद्धार की विनती करता है।
  2. उपमा एवं अनुप्रास की छटा।
  3. नोन हरामी, गुलामी आदि उर्दू फारसी शब्दों का प्रयोग किया है।

(4) जापर दीनानाथ ढरैं।
सोइ कुलीन बड़ौ सुन्दर सोई, जिहि पर कृपा करे।
कौन विभीषन रंक-निसाचर, हरि हँसि छत्र धरै।
राजा कौन बड़ौ रावन तैं, गर्बहि-गर्ब गरे।
रंकव कौन सुदामा हूँ तै, आप समान करै।
अधम कौन है अजामील तें, जम तँह जात डरै।
कौन विरक्त अधिक नारद तैं, निसि दिन भ्रमत फिरै।
जोगी कौन बड़ौ संकर तैं, ताको काम छरै।
अधिक कुरूप कौन कुबिजा तैं, हरिपति पाइ तरै।
अधिक सुरूप कौन सीता तै, जनक वियोग भरै।
यह गति-गति जानै नहि कोऊ, किहिं रस रसिक ढरै।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु, फिरि-फिरि जठर जरै॥

शब्दार्थ :
जापर = जिस किसी के ऊपर। दीनानाथ = भगवान। ढरें = कृपा करते हैं। सोई = वही व्यक्ति। रंक निसाचर = दरिद्र निशाचर। छत्र धरै = छत्र धारण कराया अर्थात् राजा बनाया। रंकव = दरिद्र। अधम = नीच। जम = यमराज। जात डरै = जाने में डरता था। विरक्त = वैरागी। काम छरै = कामदेव ने छल किया। किहिं रस रसिक ढरै = न मालूम किस रस में वे ढलने लगते हैं। जठर जरै = पेट की अग्नि में जलता है, अर्थात् बार-बार जन्म लेता है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद में सूरदास जी कहते हैं कि भगवान की माया बड़ी विचित्र है। जिस किसी. पर भगवान की कृपा हो जाती है; वही व्यक्ति कुलीन होता है, वही बड़ा होता है तथा वही सुन्दर होता है।

व्याख्या :
सूरदास जी कहते हैं कि जिस किसी पर दीनानाथ कृपा कर देते हैं वही व्यक्ति इस संसार में कुलीन, बड़ा और सुन्दर हो जाता है।

आगे इसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए वे अनेक दृष्टान्त और अन्तर्कथाएँ प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि विभीषण रंक एवं निशाचर था पर भगवान ने कृपा करके रावण वध के पश्चात् उसी के सिर छत्र धारण कराया अर्थात् लंका का राजा बनाया। रावण से बड़ा शूरवीर योद्धा संसार में कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन चूँकि उस पर भगवान की कृपा नहीं थी। इस कारण वह मिथ्या गर्व में ही जीवन भर जलता रहा। सुदामा से बड़ा दरिद्र कौन था, जिसे भगवान ने कृपा करके अपने समान दो लोकों का पति अर्थात् स्वामी बना दिया।

अजामील से बड़ा अधम कौन था अर्थात् कोई नहीं। वह इतना बड़ा दुष्ट था कि उसके पास जाने में मृत्यु के देवता यमराज को भी डर लगता था, पर भगवान ने कृपा करके उस पापी का भी उद्धार कर दिया। नारद मुनि से बढ़ा वैरागी संसार में कोई नहीं हुआ लेकिन प्रभु कृपा के अभाव में वह रात-दिन इधर-उधर चक्कर लगाया करते हैं। शंकर से बड़ा योगी कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में वह भी कामदेव द्वारा छले गये। कुब्जा से अधिक कुरूप स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा से उसने स्वयं भगवान को पति रूप में प्राप्त कर अपना उद्धार किया। सीता के समान संसार में सुन्दर स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में उन्हें भी जीवन भर वियोग सहना पड़ा।

अंत में कवि कहता है कि भगवान की इस माया को कोई नहीं जान सकता है। न मालूम वे किस रस के रसिक होकर भक्त पर अपनी कृपा की वर्षा कर दें। सूरदास जी कहते हैं कि भगवान के भजन के बिना मनुष्य को बार-बार इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है और जन्म लेने के कारण उसे अपनी माता की कोख की अग्नि में बार-बार जलना पड़ता है।

विशेष :

  1. कवि का मानना है कि भगवत् कृपा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है।
  2. इस बात को सिद्ध करने के लिए कवि ने विभीषण, रावण, सुदामा, अजामील, नारद, शंकर, कुब्जा, सीता आदि के जीवन से सम्बन्धित अन्तर्कथाओं की ओर संकेत किया है।
  3. उदाहरण तथा उपमा अलंकारों का सुन्दर प्रयोग।

स्तुति खण्ड भाव सारांश

निर्गुण भक्ति धारा के प्रेममार्गी सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने ग्रन्थ ‘पद्मावत’ में लौकिक दाम्पत्य-प्रेम के माध्यम से अलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम भावना व्यक्त की है। पाठ्य-पुस्तक के स्तुति खण्ड’ में कवि ने उस करतार’ का स्मरण करते हुए कहा है कि वह उसने प्रकृति को अनेक रूपों में सृजित किया है। अग्नि, जल, गगन, पृथ्वी,वायु आदि सब उसी से उत्पन्न हुए। उसने संसार में वृक्ष, नदी, सागर, पशु-पक्षी और मनुष्य आदि अनेक प्रकार के जीवों की संरचना की। उसने इनके लिए भोजन बनाया। उसने रोग, औषधियाँ, जीवन, मृत्यु, सुख,दुःख,आनन्द, चिन्ता और द्वन्द्व आदि बनाये तथा संसार में उसने किसी को राजा,किसी को सेवक, किसी को भिखारी और किसी को धनी बनाया।

स्तुति खण्ड संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) सँवरौं आदि एक करतारू। जेहँ जिउदीन्ह कीन्ह संसारू॥
कीन्हेसि प्रथम जोति परगासू। कीन्हेसि तेहिं पिरीति कवितासू॥
कीन्हेसि अगिनि पवन जल खेहा। कीन्हेसि बहुतइ रंग उरेहा॥
कीन्हेसि धरती सरग पतारू। कीन्हेसि बरन-बरन अवतारू॥
कीन्हेसि सात दीप ब्रह्मडा। कीन्हेसि भुवन-चौदहउ खंडा।
कीन्हेसि दिन दिनअर ससि राती। कीन्हेसि नखत तराइन पाँती॥
कीन्हेंसि धूप सीउ और छाहाँ। कीन्हेसि मेघ बिजु तेहि माहाँ॥
कीन्ह सबइ अस जाकर दोसरहि छाज न काहु।
पहिलेहिं तेहिक नाउँलइ, कथा कहौं अवगाहुँ।

शब्दार्थ :
सँवरौं = स्मरण करता हूँ। आदि = आरम्भ में। करतारू = कर्त्तार (सृष्टिकर्ता)। जिउ = जीवन। कीन्ह संसारू = संसार की रचना की। परगास = प्रकट किया। पिरीति = प्रीति के लिए। खेहा = मिट्टी। उरेहा = रेखांकन। सरग = स्वर्ग। पतारू = पाताल। बरन-बरन अवतारू = नाना प्रकार के वर्णों के प्राणी बनाए। दीप = द्वीप। दिनअर = सूर्य। ससि = चन्द्रमा। नखत = नक्षत्र। तराइन = तारागणों की। पाँती = पंक्ति। सीउ = शीत। बीजु = बिजली। भाहाँ = मध्य में। दोसरहि = दूसरे को। छाज = शोभा। तेहिक = उसी का। अवगाहु = अवगाहन करता हूँ, वर्णन करता हूँ।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पद्मावत’ महाकाव्य के ‘स्तुति खण्ड’ से लिया गया है।

प्रसंग :
इस पद में कवि ने ग्रन्थ की रचना में सृष्टि के निर्माता आदि ईश्वर का स्मरण करते हुए कहा है।

व्याख्या :
महाकवि जायसी कहते हैं कि मैं आदि में उस एक कर्ता (सृष्टिकर्ता) का स्मरण करता हूँ, जिसने हमें जीवन दिया और जिसने संसार की रचना की। जिसने आदि ज्योति अर्थात् मुहम्मद के नूर का प्रकाश किया और उसी की प्रीति के लिए कैलास की रचना की। जिसने अग्नि, वायु, जल और मिट्टी का निर्माण किया और जिसने अनेक प्रकार के रंगों में तरह-तरह के चित्रांकन (रेखांकन) किए। जिसने धरती, आकाश और पाताल की रचना की और जिसने नाना वर्ण के प्राणियों को अवतरित किया, जिसने सात द्वीप और ब्रह्माण्ड की रचना की और जिसने चौदह खण्ड भुवनों की रचना की। जिसने दिन, दिनकर, चन्द्रमा और रात्रि की रचना की तथा जिसने नक्षत्रों और तारागणों की पंक्ति की रचना की। जिसने धूप, शीत और छाया का निर्माण किया और ऐसे मेघों का निर्माण किया जिनमें बिजली निवास करती है। उसने ऐसी सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है जो दूसरे किसी को भी शोभा नहीं दे सकी।

अतः सर्वप्रथम मैं उसी कर्ता का नाम लेकर अपनी विस्तृत कथा की रचना कर रहा हूँ।

विशेष :

  1. यह छन्द ईश स्तुति के रूप में जाना जाता है।
  2. स्मरण की यह शैली सूफी प्रभाव से प्रभावित है।
  3. अनुप्रास की छटा।
  4. चौपाई दोहा छन्द है।
  5. अवधी भाषा का प्रयोग।

(2) कीन्हेसि हेवँ समुंद्र अपारा। कीन्हेसि मेरु खिखिंद पहारा॥
कीन्हेसि नदी नार औझारा। कीन्हेसि मगर मछं बहुबरना॥
कीन्हेसि सीप मोंति बहुभरे। कीन्हेसि बहुतइ नग निरमरे॥
कीन्हेसि वनखंड औ जरि मूरी। कीन्हेसि तरिवर तार खजूरी॥
कीन्हेसि साऊन आरन रहहीं। कीन्हेसि पंखि उड़हि जहँ चहहीं॥
कीन्हेसि बरन सेत औ स्यामा। कीन्हेसि भूख नींद बिसरामा॥
कीन्हेसिपान फूल बहुभोगू। कीन्हेसि बहुओषद बहुरोगू॥
निमिख न लाग कर, ओहि सबइ कीन्ह पल एक।
गगन अंतरिख राखा बाज खंभ, बिनु टेक॥

शब्दार्थ :
कीन्हेसि = निर्माण किया। हेरौं = हिम। मेरु = रेगिस्तान। खिखिंद = किष्किन्धा पर्वत। नार = नाला। झारा = झरना। मछ = मछली। सीप = शुक्ति। निरभरे = निर्मल। जरिमूरी = जड़ और मूल। तखिर = श्रेष्ठ वृक्ष। तार = ताड़ वृक्ष। साउज = जंगली जानवर। आरन = अरण्य में। सेत = श्वेत। बरन = वर्ण। पान = ताम्बूल। ओषद = औषधि। निमिख = पलभर। अंतरिख = अंतरिक्ष। बाज = बिना। खंभ = स्तम्भ। टेक = सहारा।

सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
कविवर जायसी कहते हैं कि उसी परमात्मा ने हिम तथा अपार समुद्रों की रचना की है। उसी ने सुमेरू तथा किष्किन्धा पर्वतों की रचना की है। उसी ने नदियों, नालों एवं झरनों की रचना की है। उसी ने सीपियों और बहुत प्रकार के मोतियों तथा निर्मल नगों का निर्माण किया है। उसी ने वन खण्ड और जड़ों तथा मूलों का निर्माण किया है। उसी ने ताड़, खजूर आदि तरुवरों का निर्माण किया है। उसी ने जंगली जानवरों का निर्माण किया जो जंगल में रहते हैं। उसी ने पक्षियों का निर्माण किया जो जहाँ चाहते हैं, उड़ जाते हैं। उसी ने श्वेत और श्याम वर्णों का निर्माण किया और उसी ने भूख, नींद तथा विश्राम का निर्माण किया। इन सबकी रचना करने में उसे एक पल भी नहीं लगा और उसने यह सब कुछ पलक झपकते ही कर दिया। पुनः उसी ने आकाश को भी बिना किसी खम्भे और टेक के अन्तरिक्ष में रख दिया।

विशेष :

  1. इस्लाम धर्म के मतानुसार समस्त सृष्टि का निर्माण उसी आदि शक्ति (नूर) ने किया है।
  2. अनुप्रास की छटा।
  3. अवधी भाषा का प्रयोग।

(3) कीन्हेसि मानुस दिहिस बड़ाई। कीन्हेसि अन्न भुगुति तेंहि पाई॥
कीन्हेसि राजा पूँजहि राजू। कीन्हेसि हस्ति घोर तिन्ह साजू॥
कीन्हेसि तिन्ह कहँ बहुत बेरासू। कीन्हेसि कोई ठाकुर कोइ दासू॥
कीन्हेसि दरब गरब जेहिं होई। कीन्हेसि लोभ अघाइन कोई॥
कीन्हेसि जिअन सदा सब चाहा। कीन्हेसि मीच न कोई राहा॥
कीन्हेसि सुख औ कोड अनंदू। कीन्हेसि दुख चिंता औ दंदू॥
कीन्हेसि कोई भिखारि कोई धनी। कीन्हेसि संपति विपति पुनि घनी॥
कीन्हेसि कोई निभरोसी, कीन्हेसि कोई बरिआर।
छार हुते सब कीन्हेसि, पुनि कीन्हेसि सब छार॥

शब्दार्थ :
कीन्हेसि = किया है। मानुस = मनुष्य। दिहिसि बड़ाई = बड़प्पन प्रदान किया। भुगुति = भुक्ति या भोजन। पूँजहि राजू = जो राज का भोग करते हैं। हस्ति = हाथी। घोर = घोड़ा। बेरासू = विलास की सामग्री। ठाकुर = स्वामी। दासू = दास। दरब = द्रव्य। गरब = गर्व। अघाइ न कोई = कोई तृप्त नहीं होता। जिअन = जीवन। मीचु – मृत्यु। कोड= कौतुक। दंदू = द्वन्द्व। संपति = सम्पत्ति। घनी = बहुत। निभरोसी = निराश्रित। बरिआर = बलशाली। छार = राख, धूल।,

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद में कविवर जायसी ने ईश्वर द्वारा निर्मित सृष्टि का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कविवर जायसी कहते हैं कि उसी सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को निर्मित किया तथा सृष्टि के अन्य सभी पदार्थों में उसे बड़प्पन प्रदान किया। उसने उसे अन्न और भोजन प्रदान किया। उसी ने राजाओं को बनाया जो राज्यों का भोग करते हैं, हाथियों और घोड़ों को उनके साज के रूप में बनाया। उनके मनोरंजन के लिए उसने अनेक विलास की सामग्री बनाईं और किसी को उसने स्वामी बनाया तो किसी को दास। उसने द्रव्य बनाए जिनके कारण मनुष्यों को गर्व होता है। उसने लोभ को बनाया जिसके कारण कोई मनुष्य उन द्रव्यों से तृप्त नहीं होता है, उनकी निरन्तर भूख बनी रहती है। उसी ने जीव का निर्माण किया जिसे सब लोग चाहते हैं और उसी ने मृत्यु का निर्माण किया जिसके कारण कोई भी सदैव जीवित नहीं रह सका है। उसने सुख, कौतुक और आनन्द का निर्माण किया है। साथ ही उसने दुःख, चिन्ता और द्वन्द्व की भी रचना की है। किसी को उसने भिखारी बनाया तो किसी को धनी बनाया। उसने सम्पत्ति बनाई तो बहुत प्रकार की विपत्तियाँ भी बनाईं। किसी को उसने निराश्रित बनाया तो किसी को बलशाली। छार (मिट्टी) से ही उसने सब कुछ बनाया और पुनः सबको उसने छार (मिट्टी) कर दिया।

विशेष :

  1. अनुप्रास की छटा।
  2. शान्त रस।
  3. अवधी भाषा का प्रयोग।

MP Board Class 10th Hindi Solutions

MP Board Class 8th Social Science Solutions Chapter 21 India and the United Nations

MP Board Class 8th Social Science Solutions Chapter 21 India and the United Nations

MP Board Class 8th Social Science Chapter 21 Text Book Exercise

Choose the correct option of the following questions

Mp Board Class 8 Social Science Solution Chapter 21 Question 1.
When UN was established?
(a) 24 October 1945
(b) 10 December 1945
(c) 1 May 1945
(d) 3 December 1950
Answer:
(a) 24 October 1945.

Mp Board Class 8 Social Science Chapter 21 Question 2.
Which countries are permanent members of UN Security Council?
(a) US, Russia, France, Britain and China
(b) Russia, France, India, China and Pakistan
(c) Saudi Arab, Bangladesh, Britain, US and Russia
(d) Britain, India, China, France and U.S
Answer:
(a) US, Russia, France, Britain and China.

Fill in the blanks:

  1. The Headquarter of UN are in ………….
  2. At present total number of members in UN ………….

Answer:

  1. New York
  2. 191

MP Board Class 8th Social Science Chapter 21 Very Short Answer Type Questions

Class 8 Social Science Chapter 21 Question 1.
Who elects the Non-Permanent members of UN Security Council?
Answer:
The Security Council is the important organ of the United Nations. It after the Security and peace in the World. It 15 members, out of them 5 are permanent members and 10 are non-permanent. These N Permanent members are elected by the General Assembly for a duration of two years.

Mention India’s Role In The Un Class 8 Question 2.
What is the International Court Justice?
Answer:
The International Court of Justice consists of 15 judges for a period of 9 years, retiring every 5 years. The court decided disappoint among its member nations. It gives advice the different organs of the United Nations.

India And The United Nations Class 8 Question 3.
By which name the administration officer UN is known?
Answer:
Administrative head of UN is known as the Secretary General.

MP Board Class 8th Social Science Chapter 2 Short Answer Type Questions

Class 8 Social Science Mp Board Question 1.
What are the works of UNICEF?
Answer:
The main function of UNICEF, provide help to children in need regardless their race and religion. It works in the field health, nutrition and education.

Mp Board Solution Class 8 Social Science Question 2.
Write two objectives of UN?
Answer:
Two objectives of UN are:

  • To maintain international peace security to do joint effort to clearly hurdles in the way of peace.
  • To co-operate in solving international problems of an economic social cultural or humanitarian character in promoting respect for human and fundamental freedom for all.

Mp Board Class 8 Social Science Question 3.
Write the names of the major of UN?
Answer:
There are six organs of the United Nations:

  • The General Assembly.
  • The Security Council.
  • The Economic and Social Council.
  • The Trusteeship Council.
  • The International Court of Justice, and
  • The Secretariat.

MP Board Class 8th Social Science Chapter 2 Long Answer Type Questions

Social Science Class 8 Mp Board Question 1.
What efforts have been taken up by UN for world peace?
Answer:
The major objective of the United Nations is to maintain peace in the world. During its existence of more than sixty years the United Nations has been called upon to take action in several disputes. The United Nations was helpful in avoiding several wars.

It reduced tension in many critical situation. UN operated peacekeeping operations by sending peace keeping forces. By sending goodwill mission UN has been successful to reduce tension between tense countries It prevented large scale wars in Kashmir. Congo, West Asia, Cyprus, Yaman etc. ts peace-keeping efforts in Greece, Indonesia, Lebanon, Egypt, Gaza Strip, Congo, Korea, Iran, Iraq are some of its significant achievements.

The united nations has also been making efforts to stop nuclear weapons race. It, is an important effort to keep peace in the world.

Class 8th Mp Board Social Science Question 2.
Mention India’s role in UN?
Answer:
India is one of the founder members f the United Nations. It has made significant contribution in making the United Nations more meaningful. It is participated in peace-keeping mission whenever required. It has always committed to the principals and working of the United Nations.

India greatly participated in the administration of two most worst systems of partheid and colonialism with the United nations and got success. Apart from this, it undertook various peace-keeping mission in various countries in establishing peace, and maintaining human rights. It also advocated of inducing more and more countries to make it unable. It is India’s effort that made the inclusion

China to the United Nations. It is also supported the United Nations efforts on Nuclear n-proliferation. So we can concluding that india play a vital role in the UN activities to take it successful.

Social Science Class 8th Mp Board Question 3.
Write about three bodies of UN
Answer:
The three bodies of UN are:.

  1. General Assembly
  2. Security Council
  3. WHO

1. General Assembly:
A General Assembly consists of all members of the United Nations. Every member-state can send a maximum of five representatives to the General Assembly but at the time of voting a state is entitled to cast only one vote. It discuss and makes recommendations on various important issues brought before it.

2. Security Council:
The Security Council is the most important organ of the United Nations. It looks after the security and peace m the world it has 15 members. These members fall in two categories. Five members viz. France and People’s Republic of China, the Russian Federation, the United Kingdom and the United States of America are permanent members. The other ten members are elected by the General Assembly for the duration of two years.

3. WHO:
Who is special agency of the UN that works for the improvement of health and prevention and control diseases.

MP Board Class 8th Social Science Solutions

MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 2 कालबोध:

MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 2 कालबोध:

MP Board Class 7th Sanskrit Chapter 2 अभ्यासः

Mp Board Class 7th Sanskrit Chapter 2 प्रश्न 1.
एक शब्द में उत्तर लिखो-
(क) सप्ताहे कति दिनानि भवन्ति? [सप्ताह में कितने दिन होते हैं?]
उत्तर:
सप्त

(ख) कति तिथयः भवन्ति?  [तिथियाँ कितनी होती हैं ?]
उत्तर:
पञ्चदश

(ग) सूर्यः कस्यां दिशि उदेति? [सूर्य किस दिशा में उदय होता है ?]
उत्तर:
पूर्वस्यां

(घ) वर्षे कति मासाः भवन्ति? [वर्ष में कितने महीने होते हैं ?]
उत्तर:
द्वादश

(ङ) चैत्रवैशाखयोः कः ऋतुः भवति? [चैत्र-वैशाख में कौन-सी ऋतु होती है ?]
उत्तर:
बसन्तः।

कति ऋतवः भवन्ति Meaning In Hindi प्रश्न 2.
एक वाक्य में उत्तर लिखो
(क) माघफाल्गुनयोः कः ऋतुः भवति  माघ और फागुन में कौन-सी ऋतु होती है?]
उत्तर:
माघफाल्गुनयोः शिशिरः ऋतुः भवति। [माघ और फागुन में शिशिर ऋतु होती है।]

(ख) चन्द्रः कदा पूर्णतां प्राप्नोति? [चन्द्रमा कब पूर्णता को प्राप्त करता है?]
उत्तर:
चन्द्रः पूर्णिमायां पूर्णतां प्राप्नोति।  [चन्द्रमा पूर्णमासी को पूर्णता प्राप्त करता है।]

(ग) अमावस्या कस्मिन् पक्षे भवति? [अमावस्या किस पक्ष में होती है?]
उत्तर:
अमावस्या कृष्णपक्षे भवति। [अमावस्या कृष्णपक्ष में होती है।]

(घ) कौ द्वौ पक्षौ भवतः? [कौन से दो पक्ष होते हैं ?]
उत्तर:
शुक्लपक्षः, कृष्णपक्षः च इति द्वौ पक्षौ भवतः। [शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष नामक दो पक्ष होते हैं।]

कति ऋतवः भवन्ति Answer MP Board Class 7th प्रश्न 3.
उपयुक्त जोड़े बनाइए
कति ऋतवः भवन्ति Answer MP Board Class 7th
उत्तर:
(क) → (4)
(ख) → (6)
(ग) → (5)
(घ) → (1)
(ङ) → (3)
(च) → (2)

Kati Bhavanti MP Board Class 7th प्रश्न 4.
नीचे लिखे हुए शब्दों में से उपयुक्त शब्द चुनकर खाली स्थानों को पूरा करो
(क) शुक्लपक्षे ……….. तिथिः भवति। (अमावस्या/पूर्णिमा)
(ख) ज्येष्ठमासानान्तरम् ………. मासः भवति। (श्रावण/आषाढः)
(ग) सप्ताहे ……….. दिनानि भवन्ति। (नव/सप्त)
(घ) शुक्लपक्षे चन्द्रः क्रमशः ……….। (क्षीयते/वर्धते)
(ङ) पक्षे तिथयः ……… भवन्ति। (षोडश/पञ्चदश)
उत्तर:
(क) पूर्णिमा
(ख) आषाढ़ः
(ग) सप्त
(घ) वर्धते
(ङ) पञ्चदश।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्दों को लिखो (चन्द्रः, पृथ्वी, वासरः, निशा)
उत्तर:
(क) चन्द्रः-शशिः, शशाङ्क।
(ख) पृथ्वी-धरा, अचला।
(ग) वासरः-दिवसः, दिनम्।
(घ) निशा-रजनी, राका।

प्रश्न 6.
पाठ में आये हुए अव्यय शब्दों को चुनकर पाँच वाक्य बनाओ।
उत्तर:
अव्यय शब्द :
यदा, तत्र, तदा, यथा, अत्र ।

वाक्य प्रयोग :

  1. यदा सूर्यः उदेति, तदा अहम् व्यायामम् करोमि।
  2. अहम् एकम् व्यालम् अपश्यत् तदा अहम् भयभीतः जातः।
  3. अत्र आगच्छ।
  4. तत्र सः अगच्छत्।
  5. यथा सः निर्दिष्टः तथा सः अकरोत्।
    (नामों को क्रम से लिखिए)

प्रश्न 7.
रिक्त स्थानों को पूरा करो-
(क) वसन्तः ……….. वर्षा ……… , ……… , शिशिरः।
(ख) शनिवासरः ……… , ……… मङ्गलवासरः ………… , …………… , ………..।
(ग) चैत्रः ………. आषाढः ……….. आश्विनः ……….. पौषः ……….।
(घ) ……… द्वादशः ………. , ……… , पञ्चदश, ……….. , ………. , ………… , नवदश ……….।
(ङ) प्रतिपदा ……….. , ……….. , ……….. पञ्चमी …………… , …………. नवमी ……….. , ………. त्रयोदशी ………. अमावस्या।
उत्तर:
(क) ग्रीष्म, शरद, हेमन्त।
(ख) रविवासरः, सोमवासरः, बुधवासरः, गुरुवासरः, शुक्रवासरः।
(ग) वैशाखः, ज्येष्ठः, श्रावणः, भाद्रपदः, कार्तिकः, मार्गशीर्ष, माघः, फागुनः।
(घ) एकादशः, त्रयोदश, चतुर्दश, षोडशः, सप्तदश, अष्टादश, विंशति।
(ङ) द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, चतुर्दशी।।

कालबोध: हिन्दी अनुवाद :

शिष्यः :
महोदय! रात्रिदिवसयोः विभाजनं कथं भवति?

गुरुः :
पृथ्वी गोलाकारा विद्यते। एषा अहर्निशं केन्द्र परिभ्रमति। यदा अस्याः यः भागः सूर्यस्य सम्मुखे भवति तत्र सूर्यस्य किरणाः पतन्ति तदा दिनं जायते। यस्मिन् भागे किरणाः न पतन्ति तत्र अन्धकारः भवति रात्रिश्च जायते। सूर्यः प्रातः पूर्वस्यां दिशि उदेति सायं च पश्चिमदिशि अस्तं गच्छति। एवं सूर्यस्य उदयानन्तरं दिनस्य अस्तानन्तरं च रात्रेः ज्ञानं भवति। दिवानिशानुसारमेव जनाः विविधाः क्रियाः सम्पादयन्ति।

अनुवाद :
शिष्य-महोदय! रात और दिन का विभाजन कैसे होता है?

गुरु :
पृथ्वी गोल आकार की है। यह रात और दिन केन्द्र पर (अपनी कीली पर) घमती है। जब इसका जो भाग सर्य के सामने होता है, वहाँ सूर्य की किरणें गिरती हैं, तब दिन होता है। जिस भाग में किरणें नहीं गिरती हैं, वहाँ अंधेरा होता है और रात्रि हो जाती है। सूर्य प्रात:काल पूर्व दिशा में उदित होता है और सायंकाल को पश्चिम दिशा में छिप जाता है। इस प्रकार, सूर्य के उदय होने के बाद और दिन के अस्त हो जाने के बाद रात्रि का ज्ञान हो जाता है। दिन और रात्रि के अनुसार ही मनुष्य अनेक प्रकार के कार्य पूर्ण किया करते हैं।

शिष्यः :
सप्ताहे कति दिनानि भवन्ति?

गुरुः :
सप्ताहे सप्त दिनानि भवन्ति। तेषां नामानि तु-रविवासरः, सोमवासरः, मङ्गलवासरः, बुधवासरः, गुरुवासरः, शुक्रवासरः, शनिवासरः चेति। शिष्यः-वर्षे कति मासाः भवन्ति?

गुरुः :
वर्षे द्वादश मासाः भवन्ति। तेषां नामानि तु-चैत्रः, वैशाखः, ज्येष्ठः, आषाढः, श्रावणः, भाद्रपदः, आश्विनः, कार्तिकः, मार्गशीर्षः, पौषः, माघ, फाल्गुनः चेति।

शिष्यः :
तिथयः कति भवन्ति? अनुवाद-शिष्य-एक सप्ताह में कितने दिन होते हैं?

गुरु :
एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। उनके नाम हैंरविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार तथा शनिवार।

शिष्य :
एक वर्ष में कितने महीने होते हैं?

गुरु :
एक वर्ष में बारह महीने होते हैं। उनके नाम हैं-चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन (क्वार), कार्तिक, मार्गशीर्ष (अगहन), पौष, माघ और फाल्गुन (फागुन)।

शिष्य :
तिथियाँ कितनी होती हैं?

गुरुः :
प्रतिपक्षं तिथयः पञ्चदश भवन्ति। यथा-प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या वा।

मासे द्वौ पक्षौ भवतः शुक्लपक्षः, कृष्णपक्ष: चेति। शुक्लपक्षे पूर्णिमा कृष्णपक्षे च अमावस्या भवति। शुक्लपक्षे चन्द्रः क्रमशः वर्धते। पूर्णिमायां सः पूर्णतां प्राप्नोति। सः पञ्चदशभिः कलाभिः पूर्णः भवति। कृष्णपक्षे च क्रमशः क्षयं प्राप्नोति। प्रतिदिनं तस्य एका कला क्षीयते। अमावस्यायां सः पूर्णरूपेण लुप्तः भवति।

अनुवाद :
गुरु :
प्रत्येक पक्ष (पाख) में पन्द्रह तिथियाँ होती हैं। जैसे-प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दौज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पञ्चमी (पाँचें), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातें), अष्टमी (आठ), नवमी (नौमी), दशमी, एकादशी (ग्यारस), द्वादशी, त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस), पूर्णिमा (पूर्णमासी या पूनों) अथवा अमावस्या (मावस)।

महीने में दो पक्ष होते हैं-शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष में अमावस्या होती है। शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। पूर्णमासी को वह पूर्णता को प्राप्त कर लेता है। वह पन्द्रह कलाओं से पूर्ण होता है और कृष्णपक्ष में क्रमशः क्षय (क्षीणता) को प्राप्त कर लेता है। प्रत्येक दिन उसकी एक कला क्षीण हो जाती है। अमावस्या को वह पूर्ण रूप से छिप जाता है।

शिष्यः :
वर्षे कति ऋतवः भवन्ति?

गुरुः :
चैत्रवैशाखयोः-वसन्तः, ज्येष्ठाषाढयो:-ग्रीष्मः, श्रावणभाद्रपदयोः-वर्षा, आश्विनकार्तिकयोः-शरद्, मार्गशीर्षपौषयोः-हेमन्तः, माघफाल्गुनो:-शिशिरः एवं षड् ऋतवः भवन्ति। शिष्य! एकादशतः विंशतिपर्यन्तं संख्यां गणय।

शिष्यः :
आम्! एकादश, द्वादश, त्रयोदश, चतुर्दश, पञ्चदश, षोडश, सप्तदश, अष्टादश, नवदश, विंशतिः।

गुरु :
साधु वत्स! सम्यगुक्तम्। अनुवाद-शिष्य-वर्ष में कितनी ऋतुएँ होती हैं?

गुरु :
चैत्र और वैशाख में बसन्त, ज्येष्ठ और आषाढ़ में ग्रीष्म, श्रावण और भाद्रपद में वर्षा, आश्विन और कार्तिक में शरद, मार्गशीर्ष (अगहन) और पौष में हेमन्त, माघ और फाल्गुन में शिशिर, इस तरह छः ऋतु होती हैं। हे शिष्य! ग्यारह से बीस तक की संख्या गिनो।

शिष्य :
जी हाँ! ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, पन्द्रह, सोलह, सत्रह, अठारह, उन्नीस, बीस।

गुरु :
बहुत अच्छा वत्स! ठीक बताया है।

कालबोध: शब्दार्थाः

अहर्निशम् = दिन और रात। गोलाकारा = गोल आकार की। कला = शोभा (चन्द्रमा की कला)। पक्ष = पखवारा (महीने का आधा भाग)। क्षयं = नाश, हानि को।

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Mp Board Class 7 Sanskrit Chapter 5 प्रश्न 1.
एक शब्द में उत्तर लिखो
(क) द्वावपि अग्रजौ कुतः गृहं प्रत्यागच्छताम्? [दोनों बड़े भाई कहाँ से घर को लौटकर आये थे?]
उत्तर:
इन्दौरनगरात्

(ख) के उत्सवप्रियाः भवन्ति? [उत्सवप्रिय कौन हुआ करते हैं?]
उत्तर:
जनाः

(ग) कस्य वृद्ध्यर्थं उत्सवाः सहायकाः? [किसकी वृद्धि के लिए उत्सव सहायक होते हैं?]
उत्तर:
सुखस्य

(घ) श्रावणमासस्य कालः केषां मनांसि आह्लादयति? [श्रावण महीने का समय किनके मन को प्रसन्न करता हैं?]
उत्तर:
जनानां।

Mp Board Class 7th Sanskrit Chapter 5 प्रश्न 2.
एक वाक्य में उत्तर लिखो
(क) कै वर्षागीतानि गायन्ति नृत्यन्ति च? [वर्षा के गीत कौन गाते हैं और नाचते हैं?]
उत्तर:
लोकगायकाः वर्षागीतानि गायन्ति नृत्यन्ति च। [लोकगायक वर्षा के गीतों को गाते हैं और नाचते हैं।]

(ख) का रक्षासूत्रं बध्नाति? [राखी कौन बाँधती है?]
उत्तर:
भगिनी रक्षासूत्रम् बध्नाति। [बहन राखी बाँधती है।]

(ग) कर्मवती के रक्षासूत्रं प्रेषितवती? [कर्मवती ने किसके लिए राखी भेजी थी?]
उत्तर:
कर्मवती हुमायूँ नामाख्यं मुगलशासकं रक्षासूत्रं प्रेषितवती। [कर्मवती ने हुमायूँ नामक मुगलशासक के लिए राखी भेजी थी।]

(घ) के संस्कृति प्रकटी कुर्वन्ति? [संस्कृति को कौन प्रकट करते हैं?]
उत्तर:
उत्सवाः संस्कृति प्रकटी कुर्वन्ति। [उत्सव संस्कृति को प्रकट करते हैं।

रक्षाबंधन पर्व कदा भवति MP Board प्रश्न 3.
नीचे लिखे रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्न बनाओ
(क) मयूराः स्वबर्ह प्रसार्य नृत्यन्ति।
(ख) बालिकाः नवयुवतयः दोलनक्रीडया प्रसन्नाः भवन्ति।
(ग) सैनिकाः अहर्निशः देशरक्षां कुर्वन्ति।
(घ) श्रावणमासस्य पौर्णिमायां रक्षाबन्धनपर्वं भवति।
उत्तर:
(क) के स्वबहँ प्रसार्य नृत्यन्ति?
(ख) बालिकाः नवयुवतयः कया प्रसन्नाः भवन्ति?
(ग) सैनिकाः अहर्निशं किम् कुर्वन्ति?
(घ) कस्य मासस्य पौर्णिमायां रक्षाबन्धनपर्वं भवति?

संस्कृत कक्षा 7 पाठ 5 MP Board प्रश्न 4.
अर्थ के अनुसार जोड़ी का निर्माण करो
Mp Board Class 7 Sanskrit Chapter 5
उत्तर:
(क) → (4)
(ख) → (1)
(ग) → (2)
(घ) → (3)

Ke Sanskriti Prakriti Kurvanti प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के मूल शब्द, विभक्ति और वचन लिखो
(क) पौर्णिमायां
(ख) स्नेहेन
(ग) सुखस्य
(घ) सहायकाः।
उत्तर:
(क) पूर्णिमा-सप्तमी-एकवचन
(ख) स्नेह- तृतीया-एकवचन
(ग) सुख-षष्ठी-एकवचन
(घ) सहायक-प्रथमा-बहुवचन।

Mp Board Class 7 Sanskrit Solution प्रश्न 6.
कोष्ठक से उचित रूप चुनकर रिक्त स्थानों को पूरा करो
(क) अद्य त्वं बह्वाह्लादिता ………….। (अस्ति/असि)
(ख) सर्वे तूष्णी ……….। (भवतु/भवन्तु)
(ग) परश्वः रक्षाबन्धनपर्वं ………। (भविष्यति/भवति)
(घ) वर्षागीतानि गायन्ति ………..। (गायकाः/गायकः)
(ङ) स्वबहँ प्रसार्य नृत्यति ………….। (मयूराः/मयूरः)
उत्तर:
(क) असि
(ख) भवन्तु
(ग) भविष्यति
(घ) गायकाः
(ङ) मयूरः।

Mp Board Class 7th Sanskrit Solution प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों के आधार पर वाक्य निर्माण करो
(क) श्रावणमासे
(ख) मयूराः
(ग) सैनिकाः
(घ) लोकगायकाः।
उत्तर:
(क) श्रावणमासे पूर्णिमायाम् रक्षाबन्धनस्य उत्सवः भवति।
(ख) वर्षाकाले मयूराः स्वबर्ह प्रसार्य नृत्यन्ति।
(ग) सैनिकाः देशस्य रक्षार्थम् सर्वस्वम् त्यजन्ति।
(घ) लोकगायकाः श्रावणमासे गीतानि गायन्ति

Raksha Bandhan Parv Kodavati प्रश्न 8.
पाठसे चुनकर सन्धि युक्त शब्दों को लिखो
(क) गै + अकः
(ख) नाम + आख्यम्
(ग) द्वौ + अपि
(घ) नृत्यन्ति + अपि।
उत्तर:
(क) गायकः
(ख) नामाख्यम्
(ग) द्वावपि
(घ) नृत्यन्त्यपि।

Mp Board Solution Class 7 Sanskrit प्रश्न 9.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करो-
(1) नायकः
(2) इत्यादि
(3) उभावपि
(4) राजाज्ञा।
उत्तर:
(1) नै + अकः
(2) इति + आदि
(3) उभौ + अपि
(4) राजा + आज्ञा।

रक्षाबन्धनम् हिन्दी अनुवाद

(कक्षायां छात्राः वार्तालापं कुर्वन्ति)

घनश्यामः :
वर्षे! अद्य त्वं अति-आह्लादिता असि। किं कारणम्?

कक्षा 7 संस्कृत पाठ 5 MP Board वर्णा :
आम्! घनश्याम! ह्यः मम द्वावपि अग्रजौ इन्दौरनगरात् गृहं प्रत्यागच्छताम्। नूनं परश्वः रक्षाबन्धनस्य पा. वनपर्व भविष्यति।

मेघावती :
सत्वरं तूष्णी भवन्तु। आचार्यः आगच्छति।
(आचार्यः प्रविशति। छात्राः उत्तिष्ठन्ति अभिवादनं कुर्वन्ति च)

संस्कृत सुरभि कक्षा 7 MP Board आचार्यः :
उपविशत! अस्माकं देशे के के प्रमुखाः उत्सवाः भवन्ति? मेघावति! त्वं वद।

मेघावती :
विजयादशमी, दीपावलिः, नवरोज्, ईद, होलिकोत्सवः, बैसाखी, ओणम्, मकर सङ्क्रान्तिः च।

Mp Board Solution Class 7th Sanskrit आचार्यः :
उचितम्। सम्प्रति श्रावणमासः। श्रावणमासस्य पौर्णिमायां रक्षाबन्धनपर्व भविष्यति। अद्य वयं रक्षाबन्धनम्’ इति निबन्धं पठिष्यामः।

अनुवाद :
(कक्षा में छात्र वार्तालाप करते हैं)

घनश्याम ;
हे वर्षा! आज तुम बहुत प्रसन्नचित्त हो! कारण क्या है?

Class 7th Sanskrit Mp Board वर्षा :
हाँ! घनश्याम! कल मेरे दोनों ही बड़े भाई इन्दौर नगर से घर लौटकर आ गये। निश्चय ही परसों रक्षाबन्धन का त्यौहार होगा।

मेघावती :
जल्दी ही चुप हो जाओ। आचार्य आ रहे हैं।
(आचार्य प्रवेश करते हैं। सभी छात्र खड़े हो जाते हैं और अभिवादन करते हैं।)

आचार्य :
बैठिये। हमारे देश में कौन-कौन से प्रमुख त्यौहार होते हैं। मेघावती! तुम बतलाओ।

Class 7 Sanskrit Surbhi MP Board मेघावती :
विजयादशमी (दशहरा), दीपावली, नवरोज, ईद, होली का त्यौहार, बैसाखी, ओणम और मकर संक्रान्ति।

आचार्य :
ठीक है। अब सावन का महीना है। सावन महीने की पूर्णमासी को रक्षाबन्धन का त्यौहार होगा। आज हम सब ‘रक्षाबन्धन’ शीर्षक निबन्ध को पढ़ेंगे।

जनाः उत्सवप्रियाः भवन्ति। सामाजिकतायाः विकासे उत्सवाः सहायकाः। सुखस्य वृद्धयर्थम् अपि ते सहायकाः। उत्सवाः समाजस्वभावं संस्कृतिञ्च प्रकटीकुर्वन्ति। भारते अनेके उत्सवाः भवन्ति। तेषु रक्षाबन्धनम् एकः प्रमुखः उत्सवः। अयं कालः जनानां मनासि आह्लादयति। पुनः पुनः वर्षन्त्यः जलधाराः जीवसृष्टि पुलकितां कुर्वन्ति। मयूराः स्वबर्ह प्रसार्य नृत्यन्ति। बालिका: नवयुवतयः च दोलनक्रीडया प्रसन्नाः भवन्ति। लोकगायकाः वर्षागीतानि गायन्ति नृत्यन्त्यपि।

Mp Board Class 7th Solution Sanskrit अनुवाद :
मनुष्य उत्सवप्रिय होते हैं। सामाजिकता के विकास में उत्सव सहायक होते हैं। सुख की वृद्धि के लिए भी वे सहायक होते हैं। उत्सव समाज के स्वभाव को तथा संस्कृति को प्रकट करते हैं। भारत में अनेक उत्सव होते हैं। उनमें रक्षाबन्धन एक प्रमुख उत्सव है। यह अवसर मनुष्यों के मनों को प्रसन्न बनाता है। बार-बार बरसती हुई जल की धाराएँ जीवसृष्टि को पुलकायमान करती हैं। मोर अपने पंखों को फैलाकर नाचते हैं। बालिकाएँ और नई युवतियाँ झूलने के खेल से प्रसन्न होती हैं। लोकगायक वर्षा के गीत गाते हैं और नाचते भी हैं।

रक्षाबन्धनं सुरक्षायाः बन्धनं भवति। यस्मै रक्षासूत्रं दीयते सः सुरक्षावचनंददाति तद्वचनं प्राणपणेन पालयति च। वर्तमाने काले भगिनी भ्रातुः मस्तके तिलकं कृत्वा रक्षासूत्रं बध्नाति। तस्मै मिष्ठान्न भोजयति तस्य कृते मङ्गलकामनां च करोति। भ्राता अपि तस्याः रक्षायै वचनबद्धः भवति। कतिपयाः जनाः संस्थाः च सैनिकेभ्यः रक्षासूत्राणि प्रेषयन्ति। सैनिकाः अपि अहर्निशं प्राणर्पणेन देशरक्षां कुर्वन्ति। स्त्रियः बन्धितानां कृते रक्षासूत्रबन्धनार्थं कारागारं गच्छन्ति। सागरतटप्रदेशे जनाः सागरपूजां अपि कुर्वन्ति।

अनुवाद :
रक्षाबन्धन सुरक्षा का बन्धन होता है। जिसे राखी (रक्षासूत्र) दी जाती है, वह सुरक्षा का वचन देता है और उस वचन का पालन अपनी हथेली पर प्राण रखकर करता है। मौजूदा समय में बहन भाई के माथे पर तिलक करके राखी (रक्षासूत्र) बाँधती है। उसको मिठाई खिलाती है और उसके लिए कल्याण की कामना करती है। भाई भी उसकी रक्षा के लिए वचनबद्ध होता है। कुछ लोग और संस्थाएँ सैनिकों के लिए राखी भेजते हैं। सैनिक भी दिन-रात अपनी हथेली पर प्राण रख कर देश की रक्षा करते हैं। स्त्रियाँ बन्धन में पड़े लोगों के लिए (बन्दियों के लिए) राखी बाँधने के लिए कारागार (बन्दीगृह) जाती हैं। समुद्र के किनारे के प्रदेश में रहने वाले लोग समुद्र की भी पूजा करते हैं।

पुराणे एका कथा अस्ति। देवासुरसंग्रामे विजयप्राप्त्यर्थं इन्द्रपत्नी शची इन्द्रस्य रक्षासूत्रबन्धनम् अकरोत्। तदारभ्य रक्षाबन्धनोत्सवस्य आरम्भः इति। पुरा याज्ञिकाः पुरोहिताः यजमानस्य राज्ञः च कल्याणार्थं तेभ्यः रक्षासूत्रार्पणं कुर्वन्ति स्म।

श्रूयते खलु इतिहासस्य मध्ययुगे साम्राज्ञी कर्मवती हुमायूँ नामाख्यं मुगलशासकंबहुस्नेहेन रक्षासूत्रं प्रेषितवती। सः अपि श्रद्धया तत् स्वीकृतवान्। सः स्नेहेन भ्रातृभगिनीसम्बन्धस्य रक्षां अपि अकरोत्। एवं जातिधर्मनिरपेक्षः अय उत्सवः प्रवर्तते।

अनुवाद :
पुराणों में एक कथा है। देव और असुरों के संग्राम में विजय प्राप्त करने के लिए इन्द्र की पत्नी शची ने इन्द्र का राखी बन्धन किया। तब से लेकर रक्षाबन्धन का त्यौहार आरम्भ हुआ है। प्राचीन काल में यज्ञ कराने वाले पुरोहित यजमान के तथा राजा के कल्याण के लिए उन्हें राखी अर्पित किया करते थे।

सुना जाता है कि इतिहास के मध्य युग में महारानी कर्मवती ने हुमायूँ नामक मुगल शासक के लिए बड़े प्रेम से राखी भेजी। उसने भी श्रद्धा से उसे स्वीकार कर लिया। उसने प्रेमपूर्वक भाई और बहन के सम्बन्ध की रक्षा भी की। इस प्रकार यह उत्सव जाति और धर्म से निरपेक्ष है।

रक्षाबन्धनम् शब्दार्थाः

अति-आह्लादिता = (अति + आह्लादिता) अति प्रसन्न। अग्रजः = बड़ा भाई। प्रत्यागच्छताम् = (प्रति + आ + अगच्छ. ताम्) लौट आये। पावनम् = (पौ + अन्) = पवित्र। रक्षासूत्रं = राखी। आह्लादयति = प्रसन्न करता है। दोलनक्रीड़ा = झूला झूलने का खेल। स्वबर्हम् = अपने पंख को। प्रसार्य = फैलाकर। भोजयति = खिलाती है/खिलाता है। गायकः = (गै + अक:) = गायक। तूष्णीं = चुप होना। प्राणपणेन = हथेली पर प्राण रखकर। प्रवर्तते = होता है। बध्नाति = बाँधती है।

MP Board Class 7th Sanskrit Solutions

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश (निबन्ध, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)

मैं और मेरा देश अभ्यास

बोध प्रश्न

मैं और मेरा देश अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

मैं और मेरा देश MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 1.
पंजाब केसरी के नाम से कौन जाना जाता है?
उत्तर:
पंजाब केसरी के नाम से लाला लाजपत राय को जाना जाता है।

Main Aur Mera Desh MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 2.
‘दीवार में दरार पड़ गई’ का आशय किससे है?
उत्तर:
‘दीवार में दरार पड़ गई’ से लेखक का आशय उनके मन में जो पूर्णता का आनन्द भाव था उसमें उनको कमी का अनुभव होने से है।

मैं और मेरा देश पाठ के प्रश्न उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
जापानी युवक ने स्वामी रामतीर्थ को दिये गये फल के मूल्य के रूप में क्या माँगा?
उत्तर:
जापानी युवक ने स्वामी रामतीर्थ को दिये गये फल के मूल्य के रूप में यह माँगा कि यदि आप मूल्य देना ही चाहते हैं तो वह यह है कि आप अपने देश में जाकर किसी से यह न कहियेगा कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते।

मैं और मेरा देश के प्रश्न उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 4.
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति को कौन-सा उपहार दिया?
उत्तर:
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति कमाल पाशा को मिट्टी की छोटी हंडिया में अपने हाथ से तोड़ा गया पाव भर शहद दिया था।

मैं और मेरा देश लघु उत्तरीय प्रश्न

Main Aur Mera Desh Question Answer MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 1.
तेजस्वी पुरुष लाला लाजपत राय की दो विशेषताएँ कौन-सी थीं?
उत्तर:
तेजस्वी पुरुष लाला लाजपत राय की दो विशेषताएँ थीं-एक तो वे अपनी लेखनी द्वारा देश के लोगों में ओज का संचार करते थे, दूसरे वे जन सभाओं में अपनी तेजस्वी वाणी द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया करते थे।

Mai Aur Mera Desh MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 2.
देहाती बूढ़ा कमाल पाशा के पास क्यों गया था?
उत्तर:
देहाती बूढ़ा राष्ट्रपति कमाल पाशा के जन्मदिन पर उन्हें उपहार देने गया था। उपहार में वह एक हंडिया में पाव भर शहद लेकर आया था। कमाल पाशा ने उस उपहार को सराहते हुए कहा, “दादा आज सर्वोत्तम उपहार तुमने ही भेंट किया क्योंकि इसमें तुम्हारे हृदय का शुद्ध प्यार है।”

Main Aur Mera Desh Ke Question Answer MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
स्वामी रामतीर्थ जापानी युवक का उत्तर सुनकर मुग्ध हो गए, क्यों?
उत्तर:
स्वामी रामतीर्थ जापानी युवक का उत्तर सुनकर इसलिए मुग्ध हो गए क्योंकि उस युवक ने अपने कार्य से अपने देश के गौरव को बहुत ऊँचा उठा दिया था।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार हमारे देश को किन दो बातों की सर्वाधिक आवश्यकता है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार हमारे देश को दो बातों की सर्वाधिक आवश्यकता है-एक शक्ति बोध की और दूसरी सौन्दर्य बोध की। हम यह समझ लें कि हमारा कोई भी काम ऐसा न हो जो देश में कमजोरी की भावना को बल दे या कुरुचि की भावना को। हम कभी भी अपने देश के अभावों एवं कमजोरियों की सार्वजनिक स्थलों पर चर्चा न करें और न तो गन्दगी फैलायें और न गन्दे विचार व्यक्त करें।

प्रश्न 5.
देश के सामूहिक मानसिक बल का ह्रास कैसे हो रहा है?
उत्तर:
यदि आप चलती रेलों में, मुसाफिर खानों में, चौपालों पर और मोटर-बसों में बैठकर देश की कमियों और बुराइयों की चर्चा करना अपना धर्म समझते हैं और यदि दूसरे देशों की तुलना में अपने देश को नीचा या छोटा मानते हैं, तो आप देश के सामूहिक मानसिक बल का ह्रास कर रहे हैं।

मैं और मेरा देश दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जय’ बोलने वालों का महत्त्व प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
‘जय’ बोलने वालों का बहुत महत्त्व है। किसी भी मैच में जब कोई वर्ग खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन पर तालियाँ बजाता है या उनका जय-जयकार करता है तो खिलाड़ियों में आत्म संचार एवं उत्साह कई गुना बढ़ जाता है। गिरता हुआ खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर जाता है। कवि-सम्मेलनों और मुशायरों में तो तालियाँ बजाने या जयकारा बोलने से कवियों एवं शायरों में दो गुना जोश आ जाता है और वे मंचों पर छा जाते हैं।

प्रश्न 2.
जापान में शिक्षा लेने आये विद्यार्थी की कौन-सी गलती से उसके देश के माथे पर कलंक का टीका लग गया?
उत्तर:
जापान में किसी अन्य देश से शिक्षा लेने आये विद्यार्थी ने सरकारी पुस्तकालय से उधार ली गयी पुस्तक में से कुछ दुर्लभ चित्रों को फाड़ लिया था। उसकी इस हरकत को एक अन्य जापानी लड़के ने देख लिया था। अतः उसने चोर लड़के की शिकायत कर दी। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और उसके कब्जे से चोरी किये गये चित्र बरामद कर लिये। फिर उस लड़के को देश से निकाल दिया गया तथा पुस्तकालय के बाहर बोर्ड पर लिख दिया गया कि उस देश का (जिसका वह चोर विद्यार्थी था) कोई निवासी इस पुस्तकालय में प्रवेश नहीं कर सकता। इस प्रकार इस विद्यार्थी ने अपने नीच कार्य से अपने देश के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया था।

प्रश्न 3.
देश के शक्तिबोध को चोट कैसे पहुँचती है?
उत्तर:
यदि आप बात-बात में सार्वजनिक स्थानों पर, चलती रेलों में, क्लबों में, मुसाफिरखानों, चौपालों पर या मोटर बसों में बैठकर अपने देश की कमियों को उजागर करते रहते हैं या देश की निन्दा करते रहते हैं या फिर दूसरे देशों से तुलना करते हुए अपने देश को हेय या तुच्छ बताते रहते हैं, तो निश्चय ही आप अपने इन कार्यों से देश के शक्तिबोध को चोट पहुंचा रहे हैं।

प्रश्न 4.
‘देश के सौन्दर्य बोध को आघात लगता है तो – संस्कृति को गहरी चोट लगती है’-इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यदि समाज में सामान्य शिष्टाचार नहीं है, आप में। खान-पान और उठने-बैठने में शिष्टता नहीं है, फूहड़पन है। यदि आप केला खाकर छिलका रास्ते में फेंक देते हैं, घर का कूड़ा निर्धारित स्थान पर न फेंककर इधर-उधर फेंक देते हैं, दफ्तर, घर, गली, होटल, धर्मशालाओं में रहते हुए आप अपनी पीक या थूक इधर-उधर कर देते हैं या फिर अपने मुँह से गन्दी गालियाँ निकालते हैं, तो निश्चय ही आपके द्वारा किये गये इन कार्यों से देश के सौन्दर्य बोध को आघात लगता है तथा इससे देश की संस्कृति को गहरी चोट लगती है।

प्रश्न 5.
देश के लाभ और सम्मान के लिए नागरिकों के कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
देश के लाभ और सम्मान के लिए नागरिकों को कभी भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे देश की प्रतिष्ठा पर आँच आये। हमें अपने आपको सभ्य एवं संस्कारवान बनाना चाहिए। हमेशा दूसरों का आदर करें, सत्य बोलें एवं देश से प्रेम करें। हम भूलकर भी ऐसा कोई काम न करें जिससे देश की बदनामी हो। अपने उठने-बैठने एवं बात करने में हमें शिष्टता का पालन करना चाहिए। घर, दफ्तर, धर्मशाला, होटल आदि स्थान पर गन्दगी नहीं फैलानी चाहिए। जरूरत मन्दों एवं गरीबों की सदैव सहायता करनी चाहिए।

मैं और मेरा देश भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का नाम बताइए-
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए-
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम लिखिए-
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश img-3

मैं और मेरा देश महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

मैं और मेरा देश बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक भूकम्प आया था जिससे दीवार में दरार पड़ गयी। वह भूकम्प कहाँ आया था?
(क) प्रान्त में
(ख) विदेश में
(ग) प्रदेश में
(घ) मन-मानस में।
उत्तर:
(घ) मन-मानस में।

प्रश्न 2.
तेजस्वी पुरुष कौन थे जिन्हें ‘पंजाब केसरी’ कहा जाता है?
(क) लाला लाजपत राय
(ख) वल्लभभाई पटेल
(ग) चन्द्रशेखर आजाद
(घ) सुभाषचन्द्र बोस।
उत्तर:
(क) लाला लाजपत राय

प्रश्न 3.
हमारे देश के कौन-से सन्त जापान गये?
(क) दयानन्द
(ख) रामानन्द
(ग) विवेकानन्द
(घ) स्वामी रामतीर्थ।
उत्तर:
(घ) स्वामी रामतीर्थ।

प्रश्न 4.
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति को उपहार में भेंट किया (2015)
(क) फल
(ख) मिठाई
(ग) रुपया
(घ) शहद।
उत्तर:
(घ) शहद।

प्रश्न 5.
शल्य कौन था?
(क) अर्जुन का सारथी
(ख) कर्ण का सारथी
(ग) कृष्ण का सारथी
(घ) कोचवान।
उत्तर:
(ख) कर्ण का सारथी

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. स्वामी रामतीर्थ ………… गये थे। (2009)
  2. जीवन एक युद्ध स्थल है और युद्ध में ………… ही तो काम नहीं होता।
  3. एक दिन वह सरकारी पुस्तकालय से एक पुस्तक पढ़ने को लाया जिसमें कुछ ………… चित्र थे।
  4. राजधानी में अपनी …………. का उत्सव समाप्त कर वे अपने भवन में ऊपर चले गये।
  5. क्या आप कभी केला खाकर ………… रास्ते में फेकते हैं?

उत्तर:

  1. जापान
  2. लड़ना
  3. दुर्लभ
  4. वर्षगाँठ
  5. छिलका।

सत्य/असत्य

  1. स्वामी रामतीर्थ एक बार जापान गए थे। (2016, 17)
  2. कमालपाशा उन दिनों मलेशिया के राष्ट्रपति थे।
  3. क्या कभी अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है,मुहावरा है।।
  4. लाला लाजपत राय की कलम और वाणी दोनों तेजस्विता की अद्भुत किरणें थीं।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. असत्य
  4. सत्य।

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश img-4
उत्तर:
1. → (ङ)
2. → (घ)
3. → (ग)
4. → (ख)
5. → (क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. श्री कन्हैया लाल मिश्र जी ने किन पत्रों का सम्पादन किया?
  2. हमारे देश को कौन-सी दो बातों की सबसे अधिक जरूरत है?
  3. हमारे देश के कौन-से सन्त जापान गये?
  4. यह निबन्ध किस शैली में रचा गया है?

उत्तर:

  1. ज्ञानोदय, नया जीवन और विकास
  2. एक शक्तिबोध दूसरा सौन्दर्यबोध
  3. स्वामी रामतीर्थ
  4. दृष्टान्त शैली।

मैं और मेरा देश पाठ सारांश

प्रस्तुत निबन्ध में निबन्धकार ने व्यक्ति के जीवन-विकास में घर,नगर, समाज की भूमिका का उल्लेख करते हुए देश के प्रति उसके कर्त्तव्यबोध को जाग्रत करने की चेष्टा की है। निबन्धकार के अनुसार यदि हम अपना सम्मान चाहते हैं, तो हमें अपने साथ-साथ अपने देश का सम्मान भी करना चाहिए और अपने देश का गौरव बढ़ाने के लिए ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे अन्य देशों में भी हमारे देश का नाम ऊँचा हो तथा सभी देश हमारा और हमारे देश का सम्मान करें।

व्यक्ति और देश के सम्बन्धों की व्याख्या करते हुए निबन्धकार ने देश के गौरव और प्रतिष्ठा के लिए प्रत्येक व्यक्ति की देशनिष्ठा को रेखांकित किया है। हमें भी उन महापुरुषों की तरह कार्य करने चाहिए जिनके प्रयास से हमारा देश स्वतन्त्र हुआ, हमारे देश का गौरव बढ़ा। ऐसा ही एक उदाहरण स्वर्गीय पंजाब केसरी लाला लाजपत राय का निबन्धकार ने दिया है, जिन्होंने अपनी कलम और वाणी से हमारे देश को एक अलग पहचान दी। लाला जी के अनुसार भारतवर्ष की गुलामी उनके लिए एक कलंक थी जिसे उन्होंने अपनी कलम से भारतवासियों के समक्ष रखा था, क्योंकि यह गुलामी उनके लिए एक मानसिक भूकम्प के समान थी।

दर्शनशास्त्रियों के अनुसार जीवन बहुमुखी है। यदि हम कुछ नहीं कर सकते तो हमें उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए जो अपने देश,समाज,नगर के लिए कुछ कार्य करना चाहते हैं। हमारे राष्ट्र के महान् सन्त स्वामी रामतीर्थ एक बार जापान जा रहे थे। वह भोजन के रूप में फल ही ग्रहण करते थे। गाड़ी स्टेशन पर रुकी। किसी ने बताया कि यहाँ अच्छे फल प्राप्त नहीं होते। एक जापानी युवक प्लेटफार्म पर खड़ा था, उसने स्वामी जी को फल दिये, साथ ही उसने स्वामी जी से प्रार्थना की कि इस घटना को किसी को न बतायें, यह उस युवक की देशभक्ति का उदाहरण है।

पुस्तकालय में चोरी करते हुए विदेशी नागरिक को बाहर निकाल दिया गया, यह देश के प्रति उसकी अपूर्ण निष्ठा है। तुर्की के राष्ट्रपति कमाल पाशा ने विश्राम त्यागकर तीन कोस से पैदल आये हुए वृद्ध से भेंट की। रेल का सफर भी हमारे देश में अन्य देशों की अपेक्षा अधिक कष्टप्रद है। अन्त में लेखक का कथन है कि चुनाव के समय योग्य व्यक्ति को मत देना ही अधिक श्रेयस्कर है। इसी से देश और समाज की उन्नति में चार चाँद लगेंगे।

मैं और मेरा देश संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) अपने महान् राष्ट्र की पराधीनता के दीन दिनों में जिन लोगों ने अपने रक्त से गौरव के दीपक जलाये और जो घोर अन्धकार और भयंकर बवण्डरों के झकझोरों में जीवन भर खेले, उन दीपकों को बुझने से बचाते रहे, उन्हीं में एक थे वे लालाजी। उनकी कलम और वाणी दोनों में तेजस्विता की अद्भुत किरणें थीं।

कठिन शब्दार्थ :
पराधीनता = गुलामी। दीन दिनों = बुरे दिनों में। गौरव के दीपक = देश की प्रतिष्ठा को जीवित रखा। तेजस्विता = तेज, प्रताप की आभा।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘मैं और मेरा देश’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक श्री कन्हैया लाल मिश्र। ‘प्रभाकर’ हैं।

प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक ने लाला लाजपत राय की देश भक्ति एवं तेजस्विता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि अपने महान् देश की गुलामी के उन दुर्दिनों में जब देश को कदम-कदम पर अपमान का घूट पीना पड़ता था, लाला लाजपत राय ने अपने रक्त से गौरव के दीपक को जलाये रखा। उन पर अनेक भयंकर बवण्डर एवं झोंके आये पर वे अपने लक्ष्य से बिल्कुल भी हटे नहीं। उनकी कलम में तेजस्विता थी जिसको वे अपने लेखों में लिखकर विदेशी सत्ता के विरुद्ध आग उगला करते थे और समय-समय पर जनता जनार्दन को अपनी तेजस्वी एवं ओजस्वी वाणी से प्रोत्साहन देते रहते थे।

विशेष :

  1. लालाजी की अनुपम देशभक्ति पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(2) हाँ जी, युद्ध में जय बोलने वालों का भी बहुत महत्व है। कभी मैच देखने का अवसर मिला ही होगा, आपको। देखा नहीं आपने कि दर्शकों की तालियों से खिलाड़ियों के पैरों में बिजली लग जाती है और गिरते खिलाड़ी उभर जाते हैं। कविसम्मेलनों और मुशायरों की सफलता दाद देने वालों पर निर्भर करती है। इसलिए मैं अपने देश का कितना भी साधारण नागरिक क्यों न हूँ, अपने देश के सम्मान की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।

कठिन शब्दार्थ :
पैरों में बिजली= चुस्ती-फुर्ती, उत्तेजना। दाद = तारीफ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक जय बोलने के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कह रहा है।

व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी कहते हैं कि हाँ जी, युद्ध में जय बोलने वालों का बड़ा महत्त्व होता है। लेखक पाठकों से प्रश्न करता है कि आपको जीवन में कभी किसी मैच को देखने का मौका मिला होगा। उस समय दर्शक गण जब तालियाँ बजाते हैं तो खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ जाता है, उनके पैरों में बिजली जैसी गति आ जाती है। इतना ही नहीं जो खिलाड़ी निराशा में डूब जाते हैं, उनमें भी इस जय-जयकार से जोश आ जाता है और उनकी पराजय जय में बदल जाती है। यही बात कवि-सम्मेलनों एवं मुशायरों पर भी लागू होती है। यदि श्रोताओं की ओर से सुनाने वालों को बार-बार दाद मिलने लगेगी, तो सुनाने वालों .का उत्साह कई गुना बढ़ जायेगा। अतः यह हमारा पवित्र कर्तव्य है कि हम अपने देश के सम्मान की रक्षा हर प्रकार से करें। चाहे हम साधारण नागरिक हों या महत्त्वपूर्ण। देश सम्मान हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

विशेष :

  1. लेखक ने जय के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(3) जहाँ एक युवक ने अपने काम से अपने देश का सिर ऊंचा किया था, वहीं एक युवक ने अपने देश के मस्तक पर कलंक का ऐसा टीका लगाया, जो जाने कितने वर्षों तक संसार की आँखों में उसे लांछित करता रहा।

कठिन शब्दार्थ :
सिर ऊँचा किया = देश का सम्मान बढ़ाया। मस्तक पर कलंक का टीकादेश को नीचा दिखाया।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक का मत है कि हम अच्छे कामों से देश का सम्मान बढ़ा सकते हैं और बुरे कार्यों से देश को नीचा गिरा सकते हैं।

व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी ने देश के दो युवकों के उदाहरण देकर यह बताना चाहा है कि अच्छे कार्यों से देश का सम्मान बढ़ता है। इसके लिए उन्होंने जापान के उस युवक का उदाहरण दिया है जिसने स्वामी रामतीर्थ की इस टिप्पणी पर कि ‘जापान में शायद अच्छे फल नहीं मिलते’ उस जापानी युवक ने अपने देश की बेइज्जती होते देख दौड़कर ताजे और अच्छे फल लाकर स्वामी जी को दे दिए। जब स्वामी जी ने उस बालक को फलों का मूल्य देना चाहा तो उसने मूल्य लेने से मना कर दिया और कहा कि यदि आप इसका मूल्य देना ही चाहते हैं तो वह यह है कि अपने देश में जाकर किसी से यह मत कहना कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते।

लेखक ने दूसरा उदाहरण उस युवक का दिया जो अपने देश से जापान में शिक्षा लेने आया था। उस बालक ने सरकारी पुस्तकालय से उधार ली हुई एक पुस्तक में से कुछ दुर्लभ चित्र चुरा लिए। उसकी इस हरकत को एक जापानी विद्यार्थी ने देख लिया था। फलतः उसने इसकी सूचना पुस्तकालय को दे दी। पुलिस ने तलाशी लेकर उस विद्यार्थी से वे चित्र बरामद कर लिए फिर उस विद्यार्थी को जापान से निकाल दिया गया। इस दूसरे युवक ने अपने बुरे काम से अपने देश के माथे पर कलंक का टीका लगाया। अतः लेखक का मानना है कि अच्छे काम करने वालों की सदा प्रशंसा होती है और बुरे काम करने वालों की निन्दा।

विशेष :

  1. लेखक ने अच्छे गुण अपनाने का युवकों को सन्देश दिया है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(4) जैसा मैं अपने लाभ और सम्मान के लिए हरेक छोटी-छोटी बात पर ध्यान देता हूँ, वैसा ही मैं अपने देश के लाभ और सम्मान के लिए भी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दै। यह मेरा कर्तव्य है और जैसे मैं अपने सम्मान और साधनों से अपने जीवन में सहारा पाता हूँ, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊँ-यह मेरा अधिकार है। बात यह है कि मैं और मेरा देश दो अलग चीज तो हैं ही नहीं।

कठिन शब्दार्थ :
सम्मान = आदर, इज्जत।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि व्यक्ति विशेष को जैसा मान-सम्मान पाने की इच्छा होती है, वैसा ही देश के लिए भी किया जाना चाहिए।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि जिस तरह मैं अपने व्यक्तिगत लाभ एवं आदर के लिए छोटी से छोटी बात पर भी ध्यान देता हूँ, उसी तरह मुझे अपने देश का भी ध्यान रखना चाहिए। मेरा यह कर्त्तव्य है। जिस प्रकार मैं अपने सम्मान और साधनों से अपने जीवन में सहारा पाता हूँ, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊँ-यह मेरा अधिकार है। लेखक यह बताना चाहता है कि मैं और मेरा देश दोनों एक ही हैं, इनमें कहीं भेद नहीं होना चाहिए।

विशेष :

  1. लेखक अपने को देश से अलग नहीं मानता है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(5) मैंने जो कुछ जीवन में अध्ययन और अनुभव सीखा है, वह यही है कि महत्त्व किसी कार्य की विशालता में नहीं है, उस कार्य के करने की भावना में है। बड़े से बड़ा कार्य हीन है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है और छोटे से छोटा कार्य भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना है।

कठिन शब्दार्थ :
विशालता= व्यापकता, बड़ा होना। हीन = छोटा, तुच्छ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक कहता है कि भावना से ही कोई कार्य अच्छा या बुरा, बड़ा या छोटा होता है।

व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी कहते हैं कि मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में जो कुछ भी अध्ययन और अनुभव किया है, उससे मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जीवन में महत्त्व कार्य के छोटे-बड़े से नहीं होता है, उसका महत्त्व तो काम करने की भावना से होता है। बड़े से बड़ा कार्य भी तुच्छ श्रेणी का बन जायेगा, यदि उसके पीछे कर्ता की भावना पवित्र एवं महान नहीं है।

विशेष :

  1. लेखक भावना को महान् मानता है, कार्य को नहीं।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(6) आपके द्वारा देश के सौन्दर्य बोध को भंयकर आघात पहुँच रहा है और आपके द्वारा देश की संस्कृति को गहरी चोट पहुंच रही है।

कठिन शब्दार्थ :
आघात = चोट।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में लेखक यह बताना चाहता है कि यदि आपका जीवन साफ-सफाई से दूर रहने वाला एवं गन्दगी प्रिय है तो इससे आप देश के सौन्दर्य बोध एवं संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि यदि आप अपने घर की गन्दगी सड़क पर फेंकते हैं और उसे उसके स्थान पर नहीं फेंकते हैं या अपने मुँह से अपशब्द निकालते हैं, या अपने आस-पास की जगह को थूक या पीक से गन्दा किये रहते हैं तो निश्चय ही इस प्रकार के व्यवहार से आप देश के सौन्दर्य बोध को चोट पहुँचा रहे हैं और आपके इन कारनामों से देश की संस्कृति को बहुत हानि पहुँच रही है।

विशेष :

  1. लेखक ने व्यावहारिक जीवन में सफाई एवं स्वच्छता रखने का उपदेश दिया है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

MP Board Class 10th Hindi Solutions

MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Chapter 7 ऐक्यबलम्

MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 7 ऐक्यबलम्

MP Board Class 8th Sanskrit Chapter 7 अभ्यासः

Mp Board Class 8 Sanskrit Solution Chapter 7 प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत(शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) चटकायुगलं कुत्र निवसति स्म? (चिड़ियों का जोड़ा कहाँ रहता था।)
उत्तर:
निम्बवृक्षे। (नीम के पेड़ पर)

(ख) गजः कां नाशितवान्? (हाथी ने किसको नष्ट किया?)
उत्तर:
अण्डानि। (अण्डों को)

(ग) चटकायुगलस्य रोदनं श्रुत्वा कः आगतः? (चिड़ियों के जोड़े का रोना सुनकर कौन आया ?)
उत्तर:
काष्ठभेदकः। (कठफोड़वा)

(घ) काष्ठभेदकः काम् आनीतवान्? (कठफोड़वा किसको लाया?)
उत्तर-मक्षिकाम्। (मक्खी को)

(ङ) जलं पातुं गजं कः आकर्षितवान्? (पानी पीने के लिए हाथी को किसने आकर्षित किया?)
उत्तर:
मण्डूकः। (मेंढक ने)

Mp Board Class 8 Sanskrit Chapter 7 प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत(एक वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) बुद्धिमान् कः अस्ति? (बुद्धिमान् कौन है?)
उत्तर:
यः मृतं गतं च न चिन्तयति। (जो मरे हुए और गये हुए की नहीं सोचता है।)

(ख) मित्रस्य कार्य कः साधयति? (मित्र के कार्य को कौन पूरा करता है?)
उत्तर:
मित्रस्य कार्यं मित्रं साधयति। (मित्र के काम को मित्र पूरा करता है।)

(ग) मण्डूकः मक्षिकां किम् उपायम् उक्तवान्? (मेंढक ने मक्खी को क्या उपाय कहा?)
उत्तर:
मण्डूकः मक्षिका एकीभूता दुर्बलाः अपि सबलं शत्रु हन्तुं शक्नुवन्ति इति उपायम् उक्तवान्। (मेंढक ने मक्खी से एक होकर दुर्बल भी सबल शत्रु को मार सकते हैं, इस उपाय को कहा।)

(घ) मक्षिका गजस्य कर्णयोः किं कृतवती? (मक्खी ने हाथी के कानों में क्या किया?)
उत्तर:
मक्षिका गजस्य कर्णयों वीणावादनं कृतवती। (मक्खी ने हाथी के कानों में वीणा वादन किया।)

(ङ) तैः मत्तगजं केन बलेन मारितः? (उन्होंने मतवाले हाथी को किस शक्ति से मारा?)
उत्तर:
तैः मत्तगजं ऐक्यबलेन मारितः। (उन्होंने मतवाले हाथी को एकता की शक्ति से मारा।)

Class 8 Sanskrit Chapter 7 Mp Board प्रश्न 3.
युग्मनिर्माणं कुरुत(जोड़े बनाओ-)
Class 8 Sanskrit Mp Board Solution
उत्तर:
(क) → (iv)
(ख) → (v)
(ग) → (i)
(घ) → (ii)
(ङ) → (iii)

Mp Board Class 8 Sanskrit Solution प्रश्न 4.
रिक्तस्थानानि पूरयत(रिक्त स्थान भरो-)
(क) निम्बवृक्षे एकं ……… प्रतिवसति स्म।
(ख) चटकायुगलं ………….. आरब्धवत्।
(ग) मक्षिका स्वमित्रम् ……….. पृष्टवती।
(घ) मत्तगजः ………….. पतितः।
(ङ) ते ………….. मत्तगजं मारितवन्तः।
उत्तर:
(क) चटकायुगलम्
(ख) कातरक्रन्दनम्
(ग) उपायम्
(घ) पङ्के
(ङ) ऐक्येन।

Mp Board Solution Class 8 Sanskrit प्रश्न 5.
एकताविषये पञ्चवाक्यानि लिखत(एकता के विषय पर पाँच वाक्य लिखो-)
उत्तर:
(क) ऐक्यबलेन दुर्बलाः अपि सबलं शत्रु हन्तुं शक्नुवन्ति।
(ख) एकतया सर्वाणि कार्याणि सिद्धयन्ति।
(ग) एकतया तैः मत्तगजः मारितः।
(घ) वर्तमानसमये एकतायाः महती आवश्यकता अस्ति।
(ङ) मानवजीवने एकतायाः विशेषमहत्वं वर्तते।

Mp Board Class 8th Sanskrit Solution प्रश्न 6.
पाठे आगतानां जीवानां नामानि परस्परं सम्बन्धं च लिखत (पाठ में आये हुए जीवों के नाम और आपस में सम्बन्ध लिखो-)
उत्तर:
Sanskrit Class 8 Mp Board

ऐक्यबलम् हिन्दी अनुवाद

कस्मिञ्चित् वने निम्बवृक्षे एकं चटकायुगलं प्रतिवसति स्म। समये चटकया अण्डानि दत्तानि, युगलम् अति प्रसन्नम् आसीत्। एकस्मिन् दिने आतपपीडितः एकः मदमत्त: गजः तत्र आगतः। मदेन सः तस्य वृक्षस्य तां शाखां नाशितवान् यस्यां शाखायां चटकायाः अण्डानि आसन्। अतः अण्डानि अपि नष्टानि। चटकायुगलं कातरक्रन्दनम् आरब्धवत्। रोदनं श्रुत्वा तयोः मित्रं काष्ठभेदकः पक्षी आगतः। सः उक्तवान् रोदनेन अलम्। तेन उक्तं सः एव बुद्धिमान् यः मृतं गतं च न चिन्तयति। चटका तम् अवदत्, “एषः मत्तगजः हन्तव्यः अन्यथा एषः सर्वान् पशुपक्षिपादपान् नाशयिष्यति।” काष्ठभेदकः अवदत्-अहं स्वमित्रम् मक्षिकाम् आनयामि कदाचित् सा गजं हन्तुम् उपायं चिन्तयेत्।

अनुवाद:
किसी वन में नीम के पेड़ पर एक चिड़ियों का जोड़ा (नर-मादा) रहता था। समय पर चिड़िया द्वारा अण्डे दिये गये, जोड़ा बहुत प्रसन्न था। एक दिन धूप से दुःखी एक मतवाला हाथी वहाँ आया। मस्ती में उसने उस पेड़ की उस डाल को तोड़ दिया जिसमें चिड़िया के अण्डे थे। इसलिए अण्डे भी नष्ट हो गये। चिड़ियों के जोड़े ने करुण रोदन प्रारम्भ कर दिया। रोना सुनकर उन दोनों का मित्र कठफोड़वा नामक पक्षी आ गया। उसने कहा रोना बस करो। उसने कहा वह ही बुद्धिमान है जो मरे हुए और गये हुए की चिन्ता नहीं करता। चिड़िया ने उससे कहा, “यह मतवाला हाथी मारा जाना चाहिए अन्यथा यह सभी पशु-पक्षी और पेड़ों को नष्ट कर देगा।” कठफोड़वा बोला-मैं अपनी मित्र मक्खी को लाता हूँ शायद वह हाथी को मारने के लिए उपाय सोचे।

सः गत्वा मक्षिकां न्यवेदयत् यत्-मम चटकामित्रस्य गृहम् एकेन मत्तगजेन विनष्टम्। तस्य वधाय सहायतां करोतु। मक्षिका अवदत-“यत् मित्रम् एव मित्रस्य कार्य साधयति।” मक्षिका तदा स्वमित्रं चतुरमण्डूकम् उपायं पृष्टवती। मण्डूकः उक्तवान्-‘एकीभूता दुर्बलाः अपि सबलं शत्रु हन्तुं शक्नुवन्ति।’ तैः सर्वेः मिलित्वा एका योजना निश्चिता। सर्वेषां दायित्वं वितरितम्। तदनुसारं मध्याह्ने मक्षिकया गजस्य कर्णयोः वीणावादनं कृत्रम्। एतेन गजः नयने निमील्य वीणावादनेनमुग्धः अभवत्। तावत् एव काष्ठभेदकः तस्य नयने च प्रहारेण व्यनाशयत्। अनन्तरं यत्र महान् पङ्कः आसीत् तत्र मण्डूकः ध्वनिना तं जलं पातुम् आकर्षितवान्। अन्ध: गजः तस्मिन् पङ्के पतितः मृतश्च। एवं तैः तीक्ष्णबुद्धया ऐक्येन सः मत्तगजः मारितः। आत्मनो वनस्य च रक्षणं कृतम्।

अनुवाद :
उसने जाकर मक्खी से कहा कि-मेरी चिड़िया। मित्र का घर एक मतवाले हाथी ने नष्ट कर दिया है। उसके वध। (मारने) करने में सहायता करो। मक्खी ने कहा कि “मित्र ही। मित्र का कार्य पूरा करता है।” मक्खी ने तब अपने मित्र मेंढक से उपाय पूछा। मेंढक ने कहा-‘एकत्र होकर कमजोर भी बलशाली। शत्रु को मार सकते हैं।’ उन सबने मिलकर एक योजना निश्चित। की। सभी का दायित्व बाँट दिया गया। उसके अनुसार मध्यान्ह। में मक्खी ने हाथी के कानों में वीणा वादन किया। इससे हाथी। आँखें बन्द कर वीणा वादन से मोहित हो गया। तभी कठफोड़वे ने उसकी आँखें चोंच के प्रहार से फोड़ दी। इसके बाद जहाँ बहुत दलदल था वहाँ मेंढक ने आवाज से उसको पानी पीने केलिए आकर्षित किया। अन्धा हाथी उस दलदल में गिर गया और मर गया।

इस प्रकार, उन सबके द्वारा तेज बुद्धि के द्वारा एकता से वह मतवाला हाथी मारा गया। उन्होंने अपनी और वन की रक्षा की।

ऐक्यबलम् शब्दार्थाः

आतपपीडितः = धूप से दुःखित। निम्बवृक्षे = नीम के पेड़ पर। चटकायुगलम् = चिड़ियों का जोड़ा (नर-मादा)। काष्ठभेदकः = कठफोड़वा नाम का पक्षी। मत्तगजः = मतवाला हाथी। चतुरमण्डूकम् = होशियार मेंढक। कातरक्रन्दनम् = करुण रोदन। मक्षिका = मक्खी। एकीभूताः = एकत्र होकर। सबलम् = बलशाली को। निमील्य = बन्दकर। तीक्ष्णबुद्धया = तेज बुद्धि के द्वारा। वीणावादनमुग्धः = वीणा वादन से मोहित हुआ।

MP Board Class 8th Sanskrit Solutions

MP Board Class 8th Special English Solutions Chapter 6 How Mowgli Joined the Pack

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MP Board Class 8th Special English Solutions Chapter 6 How Mowgli Joined the Pack

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How Mowgli Joined the Pack Textual Exercise

Word Power

(A) Match the words in column A with their meanings column B.
Class 8 English Chapter 6 How Mowgli Joined The Pack
Answers:

  1. c
  2. a
  3. d
  4. b.

(B) Fill in the blanks with correct words given below :
stretched, handover, scoured, snarled, roared

  1. He ______ and yawned lazily.
  2. The dog ______ at us.
  3. We ______ the area for somewhere to pitch our tent.
  4. She put her foot down and the car ______ away.
  5. The old woman wanted to ______ the documents to the police.

Answer:

  1. stretched
  2. snarled
  3. scoured
  4. roared
  5. handover.

Comprehension

(A) Answer the following questions.

Class 8 English Chapter 6 How Mowgli Joined The Pack Question 1.
Where did the pair of wolves live?
Answer:
The pair of wolves lived in a cave in the Seeonee Hills.

Mp Board Class 8 English Chapter 6 Question 2.
Father wolf says,” It is time to hunt again.” What time was it actually ?
Answer:
It was evening.

Class 8 English Chapter 6 Mp Board Question 3.
What did the ‘Law of the Jungle’ forbid ? Why?
Answer:
The ‘Law of the Jungle’ forbade the animals to change their quarters without due warning

Question 4.
What news did Tabaqui bring ?
Ans.
Tabaqui, the jackal, brought the news that. Shere Khan, the tiger, had shifted his hunting grounds to the hills.

Question 5.
Why was Father wolf annoyed ?
Ans.
Father wolf was annoyed because Shere Khan, the tiger, had broken the ‘Law of the Jungle.’

Question 6.
Where was the Pack Council meeting held ?
Answer:
The Pack Council meeting was held on a hilltop.

Question 7.
What was the price at which the cub was bought to the Wolves Pack ?
Answer:
The cub was bought to the Wolves Pack for the price of a newly killed bull.

(B) Who says to whom?

(i) Good luck be with you !
Answer:
Tabaqui, the jackal, to Father wolf.

(ii) The fool ! To begin a night’s work with that noise !
Answer:
Father wolf to mother wolf.

(iii) have never seen one, bring it here.
Answer:
Mother wolf to father wolf.

(iv) He may be a help in time.
Answer:
Akela, the lone wolf, to Bagheera.

(v) The cub is mine and to my teeth he will come in the end.
Answer:
Shere Khan, the tiger, to mother wolf.

(c) Say true of false.

  1. The couple of wolves have three cubs.
  2. Tabaqui teases mother and father wolves.
  3. Mother wolf was not delighted to see the man’s cub.
  4. Shere Khan was a lame tiger.
  5. Mother and father wolves were attracted to Mowgli.

Answer:

  1. false
  2. false
  3. false
  4. true
  5. true.

Let’s Learn

Read the short story and learn the use of articles.

(A) Once there was a doctor. He was a greedy man. One day an ailing old man came to him. The doctor treated him carelessly. After some days the old man died. The sons of the man seized the doctor. They put him in a dark room and tied him with a long rope. In the night the doctor got loose from the rope. He escaped from the room. On the way he swam across the river also. When he reached home he found his son studying some medical books. He said “Listen my son, the first and the most important thing for a doctor to do is to learn to swim.”:

Now insert suitable articles in the following story and complete it.

______ man decided to rob ______ bank in another town. He went to ______ Town and walked into ______ bank. He handed ______ note to one of cashiers
______ cashier read ______ note, which told him to give ______ man five lakh rupees.

Afraid that he might have ______ gun, he did as he was told ______ man then walked out of ______ bank. How ______ ever, he had no time to spend ______ money because he was arrested ______ same day. He had made ______ mistake. He had written ______ note on ______ back of ______ envelope. And on ______ other side of ______ envelope was his name and address. The clue was quite enough for ______ police.
Answer:
A, a, the, a, the, a, the, the, the, the, a, the, the, the, the, a, the, the, an, the, the, the,

(B) Go through the table carefully. Then write complete sentences using the appropriate articles as given in the example :
MP Board Class 8th Special English Chapter 6 How Mowgli Joined the Pack 2
eg.

  1. Mrs. Nagma teaches students. She is teacher.
  2. Mr. Ashok works in fields. He is a farmer.
  3. Mr. Ramesh sings songs. He is a singer.
  4. Mr. Pawan treats sick people. He is a doctor.
  5. Mr. Kasanya signals the train. He is a station master.
  6. Mrs. Kalpana looks after patientsShe is a nurse.
  7. Mrs. Khalida draws pictures-She is a painter
  8. Mr. Malvia brings letters. He is a postman.
  9. Mr. Sharma makes pots. he is a potter.
  10. Mrs. Alka acts in films. She is an acters.

Let’s talk

Rinku the rabbit and Matru, the monkey are talking to each other about the Van Mela which is going to be held very soon. Complete the dialogues between the two with the help of the following clues:

(stalls, eatables, swings, other animals, ice-cream, toys, carrots, bananas)

Begin like this:
Rinku: Hello, Matru!
Matru : Hello Rinku !
Rinku : Have you heard about the Van Mela?
Answer:
Mantru : Yes, I am very excited about it. I will visit it and enjoy swings there.
Rinku : There will be other ani mals too. We will visit all the stalls one by one.
Mantru: It will be a nice time for us. We will enjoy bananas.
Rinku : Why only bananas? I am very fond of ice-cream.
Mantru: OK! We all enjoy in our own way. We’ll buy toys and some eatables.
Rinku : Carrots also taste delicious We’ll buy them too.

Let’s Read

Here is the menu card of the Jungle Restaurant. On the basis of your reading of this menu card, answer the questions given below.

Jungle Restaurant Menu

Appetizers:

Bhelpuri – Rs. 15.00
Aloo Chat spiced with coriander & tomatoes – Rs. 25.00
Crisp samosas – Rs. 15.00
Lassi with strawberry flavour – Rs. 20.00
Lassi with peach flavour – Rs. 26.00
Lassi with mango flavour – Rs. 24.00

Vegetarian Dishes:

Palak Paneer – Rs. 30.00
Fragrant curry – Rs. 31.00
Mushrooms with tomato – Rs. 45.00
Curd Sauce – Rs. 20.00

Chutneys:

Mango chutney – Rs. 10.00
Coconut chutney – Rs. 12.00

Desserts:

Kesar badaam – Rs. 80.00
Kheer – Rs. 28.00
Rasmalai – Rs. 38.00
Pine apple sherbet – Rs. 21.00

All dishes are accompanied with (1) Fragrant Basmati raisin pulao (2) Raita (3) Green salad
Seeonne Hills, Pench Dist. Seeonee

Question 1.
Where is the Jungle Restaurant situated ?
Answer:
The Jungle Restaurant is situated on Seeonne Hills, Pench Dist. Seeonee.

Question 2.
Which item is moderately priced at the Jungle Restaurant?
Answer:
Mango chutney is moderately priced at the Jungle Restaurant.

Question 3.
Which things are supplied free with all the dishes?
Answer:
Fragrant Basmati raisin pulao, raita and green salad.

Question 4.
How many varieties of “Lassi” are available in the restaurant? Write their names.
Answer:
There are three varieties of “Lassi” available in the restaurant.
Their names are –

  1. Lassi with strawberry flavour
  2. Lassi with peach flavour
  3. Lassi with mango flavour.

Question 5.
Which are your favourite items? What is their price ?
Answer:
My Favourite items are kesar badaam and kheer. Their prices are –
Kesar badaam – Rs. 80.00
Kheer. – Rs. 28.00

Let’s Write

Maniya’s mother had to make all the arrangements for the trip to the Pench National Park. She has made a list of things to do. Complete the list.
Things to do
Answer:

  1. Ticket booking
  2. luggage packing
  3. taking raw materials for food
  4. arranging a video camera
  5. a music system.

(B) Look at the picture carefully.
MP Board Class 8th Special English Chapter 6 How Mowgli Joined the Pack 3
Write a paragraph with the help of the following clues:

Park, parents, sister, girls, hawker, mangoes, balloon, trees, newspaper, ball, icecream, children, skip, buy, eat etc.
Answer:
In the morning I go to a nearby park for morning walk with my parents. Even in the early morning it is a very busy place. Hawkers begin to set their thelas outside the park. Girls skip. Children play different games and sports. My sister swings and my little brother flies kites. Some persons read newspaper sitting on the bench in the open air. Some persons do yogas and run along the ground. I like to walk and jog. It is nice and pleasant to be there enjoying nature in full.

How Mowgli Joined the Pack Word Meanings

MP Board Class 8th Special English Chapter 6 How Mowgli Joined the Pack 4
MP Board Class 8th Special English Chapter 6 How Mowgli Joined the Pack 5

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MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 4 नीति-धारा

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 4 नीति-धारा

नीति-धारा अभ्यास

बोध प्रश्न

नीति-धारा अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरिधर के अनुसार हमें क्या भूल जाना चाहिए?
उत्तर:
गिरिधर के अनुसार हमें बीती हुई बातों को भूल जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
कोयल को उसके किस गुण के कारण पसन्द किया जाता है?
उत्तर:
कोयल को उसकी मीठी वाणी के गुण के कारण पसन्द किया जाता है।

प्रश्न 3.
गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द का नाम लिखिए।
उत्तर:
गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द का नाम ‘कुण्डलियाँ’ है।

प्रश्न 4.
व्यक्ति सम्मान योग्य कब बन जाता है?
उत्तर:
व्यक्ति जब परोपकार की भावना से कार्य करता है तो वह सम्मान के योग्य बन जाता है।

प्रश्न 5.
भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण आपस में बैर और फूट की भावना का होना है।

नीति-धारा लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि गिरिधर के अनुसार मन की बात को कब तक प्रकट नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
कवि गिरिधर के अनुसार मन की बात को तब तक प्रकट नहीं करना चाहिए जब तक कि किसी कार्य में सफलता न मिल जाए।

प्रश्न 2.
धन-दौलत का अभिमान क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
धन-दौलत का अभिमान इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि यह धन-दौलत सदा एक के साथ नहीं रहती है, अपितु यह चंचल एवं स्थान बदलने वाली है।

प्रश्न 3.
कवि ने गुणवान के महत्व को किस प्रकार रेखांकित किया है?
उत्तर:
कवि ने गुणवान के महत्त्व को इस प्रकार रेखांकित किया है कि गणी व्यक्ति के चाहने वाले हजारों व्यक्ति मिल जाते हैं पर निर्गुण का साथ तो घरवाले भी नहीं दे पाते।

प्रश्न 4.
भारतेन्दु ने कोरे ज्ञान का परित्याग करने की सलाह क्यों दी है?
उत्तर:
भारतेन्दु ने कोरे ज्ञान का परित्याग करने की सलाह है इसलिए दी है कि कोरे ज्ञान से कोई काम या व्यापार चल नहीं सकता है। इनको चलाने के लिए उनमें डूबना पड़ता है।

प्रश्न 5.
सम्माननीय होने के लिए किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तर:
सम्माननीय होने के लिए व्यक्ति को परोपकारी होना चाहिए; कोरे पद से काम नहीं चलता है।

प्रश्न 6.
‘उठहु छोड़ि विसराम’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘उठहु छोड़ि विसराम’ का आशय यह कि तुम विश्राम त्यागकर उस निर्गुण निराकर ईश्वर को पूरी तरह अपना लो।

नीति-धारा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बिना विचारे काम करने में क्या हानि होती है? समझाइए।
उत्तर:
जो व्यक्ति बिना विचारे अपना कोई काम करता है, तो उस काम में उसे सफलता नहीं मिलती है। इससे जहाँ उसका काम बिगड़ जाता है वहीं संसार में उसकी हँसी भी उड़ती है।

प्रश्न 2.
कौआ और कोयल के उदाहरण से कवि जो सन्देश देना चाहता है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कौआ और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि यह सन्देश देना चाहता है कि संसार में व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके रूप-रंग से नहीं अपितु गुणों से होती है।

प्रश्न 3.
पाठ में संकलित भाषा सम्बन्धी दोहों के माध्यम से भारतेन्दु जी क्या सन्देश देना चाहते हैं?
उत्तर:
पाठ में संकलित भाषा सम्बन्धी दोहों के माध्यम से भारतेन्दु जी यह सन्देश देना चाहते हैं कि किसी भी देश की उन्नति उसकी मातृ भाषा के विकास द्वारा ही सम्भव है।

प्रश्न 4.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की काव्य प्रतिभा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बहु आयामी रचनाकार हैं। उन्होंने नाटक, काव्य, निबन्ध आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलाई है। वे समाजोन्मुखी चिन्तक कवि हैं, इसलिए उनकी कविताओं में नीति कथन सर्वत्र मिलते हैं। आपने परोपकार एवं एकता को विशेष महत्त्व प्रदान किया है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(अ) बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताय।
………………………….          ……………………..
…………………………..         ………………………
खटकत है जिय माँहि, कियौ जो बिना विचारे॥
उत्तर:
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि बिना सोच और – विचार के जो कोई भी व्यक्ति काम करता है, वह बाद में पछताता है। ऐसा करने से एक तो उसका काम बिगड़ जाता है, दूसरे संसार में उसकी हँसी होती है अर्थात् सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। संसार में हँसी होने के साथ ही साथ उसके स्वयं के मन में शान्ति नहीं रहती है, वह परेशान हो जाता है। खाना-पीना, सम्मान, राग-रंग आदि कोई भी बात उसे अच्छी नहीं लगती है।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि इससे उत्पन्न दुःख टालने पर भी टलता नहीं है अर्थात् भगाने पर भी भागता नहीं है और सदा ही यह बात मन में खटकती रहती है कि बिना सोच-विचार के करने से मुझे यह मुसीबत झेलनी पड़ रही है।

(ब) गुन के गाहक सहस नर, बिनु गुन लहै न कोय।
……………………          ……………………..
……………………         ……………………….
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
उत्तर:
कविवर गिरिधर कहते हैं कि इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों लोग हैं, लेकिन बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता है। उदाहरण देकर कवि समझाता है कि कौआ और कोयल दोनों का रंग एक जैसा होता है पर दोनों की वोशी में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। जब संसारी लोग इन दोनों की वाणी को सुनते हैं तो कोयल की वाणी सबको प्रिय लगती है और कौए की नहीं। इस कारण कोयल को सब प्यार करते हैं और कौओं से परहेज करते हैं।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! कान लगाकर सुन लो इस संसार में बिना गुणों के कोई किसी को पूछता तक नहीं है। इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों होते हैं, निर्गुण का ग्राहक कोई नहीं।

(स) मान्य योग्य नहिं होत, कोऊ कोरो पद पाए।
मान्य योग्य नर ते, जे केवल परहित जाए॥
उत्तर:
कवि श्री भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस संसार में कोरा पद पाकर ही कोई व्यक्ति समाज में माननीय नहीं हो सकता। समाज में माननीय वही व्यक्ति होता है, जो परोपकार की भावना से कार्य करता है।

(द) बैर फूट ही सों भयो, सब भारत को नास।
तबहुँन छाड़त याहि सब, बँधे मोह के फाँस॥
उत्तर:
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस देश, भारत का पूरी तरह से नाश आपसी बैर एवं फूट के कारण ही हुआ है। यह सच्चाई मानते हुए भी आज भी भारतवासी लोग मोह के फन्दे में ऐसे बँधे हुए हैं कि इस बुरी भावना का त्याग नहीं करते हैं।

नीति-धारा काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
‘उल्लाला’ को परिभाषित करते हुए उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
‘उल्लाला’-परिभाषा-उल्लाला एक मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 15-15 मात्राएँ और दूसरे एवं चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। कुल 28 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण :
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥

नीति-धारा महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नीति-धारा बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरिधर के अनुसार हमें क्या भूल जाना चाहिए?
(क) कल की बात
(ख) बरसों की बातें
(ग) आज की बात
(घ) बीती हुई बातें।
उत्तर:
(घ) बीती हुई बातें।

प्रश्न 2.
कोयल को उसके किस गुण के कारण पसन्द किया जाता है?
(क) रंग
(ख) आकृति
(ग) नृत्य
(घ) मधुर बोली।
उत्तर:
(घ) बीती हुई बातें।

प्रश्न 3.
भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण क्या है?
(क) अन्धविश्वास
(ख) अज्ञानता
(ग) विद्या की कमी
(घ) बैर-फूट।
उत्तर:
(घ) बीती हुई बातें।

प्रश्न 4.
बिना विचारे काम करने में क्या हानि होती है?
(क) धन की
(ख) मर्यादा की
(ग) मान की
(घ) पछताना पड़ता है।
उत्तर:
(घ) बीती हुई बातें।

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. सम्पत्ति के बढ़ने पर …………. नहीं करना चाहिए।
  2. गिरिधर कवि ने कहा है कि हमें अपने किये …………. ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए।
  3. भारतेन्दु जी ने भारत के विकास के लिए भारतवासियों को ………… छोड़ने को कहा।
  4. ‘बैर-फूट ही सों भयो सब भारत को ……….. ।
  5. नीतिकाव्य जीवन-व्यवहार को ………. बनाने का आधार है। (2016)

उत्तर:

  1. अभिमान
  2. कामों का
  3. बैर-भाव
  4. नाश
  5. सुगम

सत्य/असत्य

  1. गिरिधर के अनुसार हमें बीती बातें भूल जानी चाहिए।
  2. दौलत पाकर व्यक्ति को सदैव अभिमान करना चाहिए।
  3. ‘कोकिल वायस एक सम पण्डित मूरख एक।’ यह पंक्ति गिरिधर कवि की कुण्डलियों में
  4. भारतेन्दु जी ने भाषा के द्वारा राष्ट्र की उन्नति व एकता बतायी है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. असत्य
  4. सत्य

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 4 नीति-धारा img-1
उत्तर:
1. → (घ)
2. → (ग)
3. → (ख)
4. → (क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. बिना विचारे कार्य करने से क्या होता है? (2009, 17)
  2. काग और कोकिल में से किसका शब्द सुहावना लगता है?
  3. “कोरी बातन काम कछु चलिहैं नाहिन मीत।
    तासों उठि मिलि के करहु बेग परस्पर प्रीत॥” दोहा किस कवि का है?
  4. गिरिधर कवि किस प्रकार के रचनाकारों की श्रेणी में आते हैं? (2009)

उत्तर:

  1. पछताना पड़ता है
  2. कोकिल का
  3. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  4. नीतिकाव्य के रचनाकार।

गिरिधर की कुण्डलियाँ भाव सारांश

गिरिधर की कुण्डलियों में नीति के उपदेश देते हुए कहा गया है कि मनुष्य को बीती बातें भुलाकर भविष्य के विषय में विचार करना चाहिए। मनुष्य को अपना कार्य सम्पन्न होने से पूर्व किसी को नहीं बतलाना चाहिए। जो व्यक्ति बिना सोच-विचार के कार्य करता है उसके पास पछताने के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचता। धन पाकर मनुष्य को गर्व नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपने अन्दर गुणों का संग्रह करना चाहिए। इस संसार में गुणवान को सम्मान मिलता है और गुणहीन व्यक्ति उपेक्षा और तिरस्कार का पात्र बनता है।

गिरिधर की कुण्डलियाँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) बीती ताहि विसार दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित्त देइ॥
ताही में चित्त देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हँसे न कोइ, चित्त में खता न पावै॥
कह गिरिधर कविराय, यहै करु मन-परतीती।
आगे की सुख समुझि, हो बीती सो बीती॥

शब्दार्थ :
बीती = जो बात हो गयी है। ताहि = उसी को। विसारि दे = भूल जाओ। सुधि लेइ = ध्यान में रखो। सहज = सरल रूप में। चित्त देइ = मन लगाओ। दुर्जन = दुष्ट लोग। खता = गलती, भूल। परतीती = प्रतीति, विश्वास। बीती सो बीती = जो बीत गई सो बीत गई।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत कुण्डली कविवर गिरिधर द्वारा रचित ‘गिरिधर की कुण्डलियाँ’ से ली गई है।

प्रसंग :
इसमें कवि ने व्यावहारिक जीवन की यह बात बताई है कि बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो बीती हुई बात को भुलाकर आगे के लिए सचेत रहता है।

व्याख्या :
गिरिधर कवि जी कहते हैं हे मनुष्यो! जो बात घटित हो चुकी है उसके बारे में व्यर्थ में सोच-विचार कर समय को बर्बाद मत करो। तुम आगे होनी वाली बातों या घटनाओं की चिन्ता करो जो कुछ भी तुमसे सहज, सरल रूप में बन जाये उसी में अपना मन लगाओ। ऐसा करने पर कोई भी दुष्ट व्यक्ति तुम्हारी बातों की हँसी नहीं उड़ाएगा और न ही तुम्हारे मन में कोई खोट रहेगा।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! तुम अपने मन में यह विश्वास रखो कि आने वाली बातों या घटनाओं में तुम पूरी सावधानी बरतो और जो हो गई, सो हो गई।

विशेष :

  1. कवि ने व्यावहारिक जीवन की बात बताई है।
  2. अवधी भाषा का प्रयोग।
  3. कुण्डलियाँ-छन्द।

(2) साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिए कोई।
तब लग मन में राखिए, जब लग कराज होइ॥
जब लम कारज होइ, भूलि कबहूँ नहिं कहिए।
दुरजन हँसे न कोई, आप सियरे है रहिए॥
कह गिरिधर कविराय, बात चतुरन की ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिए नहिं साईं॥

शब्दार्थ :
साईं = मित्र। तब लग = तब तक। जब लग = जब तक। कारज न होइ = काम में सफलता प्राप्त न हो जाए। दुरजन = दुष्ट लोग। सियरे = शीतल, प्रसन्न। खै रहिए = होकर – रहिए। करतूती = काम।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस छन्द में कवि ने मनुष्यों को शिक्षा दी है कि यदि आप कोई काम करने की योजना बनाते हैं तो उसे प्रारम्भ करने से पूर्व जग जाहिर मत करो। नहीं तो दुष्ट लोग तुम्हारे उस – शुभ कार्य में बाधा डालेंगे।

व्याख्या :
कविवर गिरिधर कहते हैं कि हे मित्र! अपने मन की बात भूलकर भी किसी दूसरे से मत कहो। उस बात को अपने – मन में तब तक दाब कर रखो जब तक कि आपका काम न हो जाए। जब तक आपका काम नहीं होता, भूल कर भी किसी से मत कहो। यह ऐसी नीति है कि इसमें दुर्जन लोगों को हँसी उड़ाने – का अवसर नहीं मिलेगा और स्वयं आपके चित्त को शान्ति एवं आनन्द मिलेगा।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि यह बात मैंने चतुर लोगों के लिए कही है। हे मित्र! तुम अपने मुँह से कोई बात मत कहो। तुम्हारे काम स्वयं तुम्हारी बात को सबसे कह देंगे।

विशेष :

  1. कवि ने व्यावहारिक जीवन की बात बताई है।
  2. भाषा-अवधी।
  3. छन्द-कुण्डलियाँ।

(3) बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारै आपनो, जग में होत हँसाय॥
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान-पान सनमान, राग-रंग मनहिं न भावै॥
कह गिरिधर कविराय, दुःख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माँहि, कियो जो बिना बिचारे।

शब्दार्थ :
बिना विचारे = बिना सोचे-समझे। बिगारे = बिगाड़ना। जग = संसार में। होत हँसाय = हँसी उड़ती है। चैन = शान्ति। टरत नटारे = टालने पर भी नहीं टलता है, भागता है। माँहि = में।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस छन्द में कवि कहता है कि मनुष्य को बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए।

व्याख्या :
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि बिना सोच और – विचार के जो कोई भी व्यक्ति काम करता है, वह बाद में पछताता है। ऐसा करने से एक तो उसका काम बिगड़ जाता है, दूसरे संसार में उसकी हँसी होती है अर्थात् सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। संसार में हँसी होने के साथ ही साथ उसके स्वयं के मन में शान्ति नहीं रहती है, वह परेशान हो जाता है। खाना-पीना, सम्मान, राग-रंग आदि कोई भी बात उसे अच्छी नहीं लगती है।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि इससे उत्पन्न दुःख टालने पर भी टलता नहीं है अर्थात् भगाने पर भी भागता नहीं है और सदा ही यह बात मन में खटकती रहती है कि बिना सोच-विचार के करने से मुझे यह मुसीबत झेलनी पड़ रही है।

विशेष :

  1. ‘टरत न टारे’ मुहावरे का सुन्दर प्रयोग।
  2. अवधी-भाषा।
  3. कुण्डलियाँ-छन्द।

(4) दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारि को, ठाउँ न रहत निदान॥
ठाउँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥
कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसि दिन चारि, रहत सबही के दौलत॥

शब्दार्थ :
दौलत = धन सम्पत्ति। अभिमान = घमण्ड। चंचल जल = बहते हुए पानी के समान। दिन चारि को = चार दिन को अर्थात् बहुत थोड़े समय के लिए। ठाउँ न रहत निदान = एक स्थान पर सदा रुकी नहीं रहती है। जियत = जब तक जीवित हो। जस = यश। विनय = विनम्रता। घट तौलत = घट-घट को तौलने वाली, हर मनुष्य को परखने वाली। पाहुन = अतिथि, मेहमान।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने धन के ऊपर गर्व न करने की मनुष्य को सलाह दी है।

व्याख्या :
कविवर गिरिधर कहते हैं कि हे संसार के मनुष्यो! धन-दौलत पाकर सपने में भी घमण्ड मत करो। यह धन-दौलत जल के समान चंचल है अर्थात् यह कभी भी एक स्थान पर टिककर नहीं रहती है। चार दिन के लिए अर्थात् बहुत थोड़े समय के लिए यह किसी व्यक्ति के पास रहती है। स्थायी रूप से यह किसी व्यक्ति के पास नहीं रहती है। इसीलिए विद्वानों ने इसे चंचला कहा है। हे मनुष्यो! संसार में आये हो तो ऐसे काम करो जिससे जीवन में यश मिले। सभी से मीठे वचन बोलो तथा सभी के साथ विनम्रता से मिलो।
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि दौलत मनुष्यों को तौलती फिरती है। यह केवल चार दिन के लिए अर्थात् थोड़े समय के लिए ही किसी के घर मेहमान बनकर आती है।

विशेष :

  1. धन पर मनुष्य को गर्व नहीं करना चाहिए।
  2. दिन चारि, ठाउँ न रहत निदान, सब घट तौलत आदि मुहावरों का सुन्दर प्रयोग।
  3. भाषा-अवधी।

(5) गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सहावन।
दोऊ को इक रंग, काग सब भए अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर ग्राहक गुन के॥

शब्दार्थ :
गुण = गुणों के। सहस नर = हजारों आदमी। लहै = प्राप्त करना। अपावन = अपवित्र।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि कहता है कि संसार में गुणों का ही महत्त्व है; बिना गुण के कोई किसी को नहीं पूछता है।

व्याख्या :
कविवर गिरिधर कहते हैं कि इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों लोग हैं, लेकिन बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता है। उदाहरण देकर कवि समझाता है कि कौआ और कोयल दोनों का रंग एक जैसा होता है पर दोनों की वोशी में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। जब संसारी लोग इन दोनों की वाणी को सुनते हैं तो कोयल की वाणी सबको प्रिय लगती है और कौए की नहीं। इस कारण कोयल को सब प्यार करते हैं और कौओं से परहेज करते हैं।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! कान लगाकर सुन लो इस संसार में बिना गुणों के कोई किसी को पूछता तक नहीं है। इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों होते हैं, निर्गुण का ग्राहक कोई नहीं।

विशेष :

  1. कवि ने मनुष्यों को गुणों को ग्रहण करने का सन्देश दिया है।
  2. भाषा-अवधी।
  3. छन्द-कुण्डलियाँ।

नीति अष्टक भाव सारांश

नीति अष्टक दोहों में बतलाया गया है कि वही व्यक्ति इस संसार में माननीय है जो दूसरों के कल्याण के लिए जीवन जीता है। भारत देश का विनाश लोगों की बैर भावना के कारण ही हुआ। इसलिए इसे मन से निकाल देना चाहिए। अपनी भाषा, अपने धर्म,अपने कर्म पर हमें गर्व होना चाहिए। उस बुरे देश में किसी को निवास नहीं करना चाहिए जहाँ मूर्ख और विद्वान सबको एक ही भाँति का समझा जाता हो।

नीति अष्टक संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र मान्य योग्य नहीं होत, कोऊ कोरो पद पाए।
मान्य योग्य नर ते, जे केवल परहित जाए॥ (1)

शब्दार्थ :
मान्य योग्य = सम्मान के योग्य। होत = होता है। कोरो पद = केवल पद पाने से। परहित = परोपकार में।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित ‘नीति’ अष्टक’ शीर्षक से लिया गया है।

प्रसंग :
इसमें कवि ने बताया है कि जो व्यक्ति परोपकार में रत रहते हैं, समाज उन्हीं का आदर करता है।

व्याख्या :
कवि श्री भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस संसार में कोरा पद पाकर ही कोई व्यक्ति समाज में माननीय नहीं हो सकता। समाज में माननीय वही व्यक्ति होता है, जो परोपकार की भावना से कार्य करता है।

विशेष :

  1. कवि की दृष्टि में केवल परोपकार भावना में रत व्यक्ति ही समाज में सम्मान पाता है, न कि पद से।
  2. दोहा-छन्द।

बिना एक जिय के भए, चलिहैं अब नहिं काम।
तासों कोरो ज्ञान तजि, उठहु छोड़ि बिसराम॥ (2)

शब्दार्थ :
एक जिय = एक रूप हुए। कोरो ज्ञान = केवल ज्ञान, समर्पण नहीं। विसराम = आराम।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि कहता है कि जब तक ईश्वर के प्रति पूर्ण सेमर्पण नहीं होगा, जीव का उद्धार नहीं होगा।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्द जी कहते हैं कि भगवान के प्रति पूर्ण भाव से समर्पण किए बिना अब काम चलने वाला नहीं है। अतः कोरे ज्ञान को त्यागकर, विश्राम त्यागकर उठ खड़े हो
और ईश्वर में पूर्ण समर्पण कर दो।

विशेष :

  1. कवि ने ईश्वर भक्ति की सफलता, पूर्ण समर्पण में मानी है।
  2. दोहा-छन्द।

बैर फूट ही सों भयो, सब भारत को नास।
तबहुँ न छाड़त याहि सब, बँधे मोह के फाँस॥ (3)

शब्दार्थ :
बैर फूट = परस्पर शत्रुता और भेद की भावना। नास = नाश। फाँस = फन्दे में।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस छन्द में कवि ने भारतवासियों से आपसी बैर तथा फूट को छोड़ने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस देश, भारत का पूरी तरह से नाश आपसी बैर एवं फूट के कारण ही हुआ है। यह सच्चाई मानते हुए भी आज भी भारतवासी लोग मोह के फन्दे में ऐसे बँधे हुए हैं कि इस बुरी भावना का त्याग नहीं करते हैं।

विशेष :

  1. कवि ने बैर, फूट आदि बुराइयों को दूर कर आपसी मेल-मिलाप की बात कही है।
  2. दोहा-छन्द।

कोरी बातन काम कछु चलिहैं नाहिन मीत।
तासों उठि मिलि के करहु बेग परस्पर प्रीत॥ (4)

शब्दार्थ :
कोरी बातन = व्यर्थ की बातों से। नाहिन = नहीं। मीत = मित्र। बेग = जल्दी। परस्पर = आपस में। प्रीत = प्रेम।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि परस्पर प्रेम की शिक्षा देता है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि हे मित्र! केवल व्यर्थ की बातों में अब काम नहीं बनेगा। इस कारण से उठो और आपस में प्रेम का व्यवहार करो।

विशेष :

  1. कवि ने परस्पर प्रेम बढ़ाने की बात कही है।
  2. दोहा-छन्द।

निज भाषा, निज धरम, निज मान करम ब्यौहार।
सबै बढ़ावहु वेगि मिलि, कहत पुकार-पुकार॥ (5)

शब्दार्थ :
निज = अपनी। धरम = धर्म। मान = इज्जत। करम = कर्म। ब्यौहार = व्यवहार। बेगि = जल्दी।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने अपनी भाषा, धर्म, मान, कर्म और व्यवहार को परस्पर बढ़ाने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि अपनी भाषा, धर्म, मान, कर्म और व्यवहार से सब काम बनता है। अतः मैं बार-बार पुकार कर कहता हूँ कि आप लोग इन्हीं सब बातों को परस्पर मिलकर बढ़ाओ।

विशेष :

  1. कवि ने अपनी भाषा, धर्म, कर्म और व्यवहार अपनाने का सन्देश दिया है।
  2. दोहा-छन्द।

करहँ विलम्ब न भ्रात अब, उठहु मिटावहु सूल।
निज भाषा उन्नति करहु प्रथम जो सबको मूल।। (6)

शब्दार्थ :
विलम्ब = देरी। भ्रात = भाई। सूल = कष्ट, दुःख, बाधाएँ। मूल = आधार।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
निज भाषा हिन्दी की उन्नति के लिए कवि ने भारतीयों को जगाया है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि हे भारतवासी भाइयो! अब देर मत करो और अपनी भाषा की उन्नति में आने वाली सभी बाधाओं को मिटा दो। तुम सब मिलकर अपनी हिन्दी भाषा की उन्नति का प्रयास करो, जो कि सबका मूल आधार है।

विशेष :

  1. भारतेन्दु जी का निज भाषा अर्थात् हिन्दी की उन्नति के प्रति विशेष प्रयास रहा है।
  2. दोहा-छन्द।

सेत-सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास।
ऐसे देश कुदेस में, कबहुँ न कीजै बास।। (7)

शब्दार्थ :
सेत-सेत = सफेद-सफेद। कुदेस = बुरे देश में। बास = निवास।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इसमें कवि ने मूों के देश में न रहने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि जिस देश में रहने वाले नागरिकों में बुद्धि विवेक नहीं होता है और जो सफेद रंग की सभी वस्तुओं को एक जैसा ही समझते हैं; चाहे सफेद कपूर हो या फिर सफेद कपास। कवि कहता है कि ऐसे मूल् के देश में बुद्धिमान आदमी को कभी निवास नहीं करना चाहिए।

विशेष :

  1. कवि अज्ञानी एवं मूों के देश में रहने को बुरा बताता है।
  2. दोहा-छन्द।

कोकिल वायस एक सम, पण्डित मूरख एक।
इन्द्रायन दाडिम विषय, जहाँ न नेक विवेक॥ (8)

शब्दार्थ :
कोकिल = कोयल। वायस = कौआ।, एक सम = एक जैसे। इन्द्रायन = एक प्रकार का कड़वा फल। दाडिम = अनार।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस दोहे में कवि मूर्ख एवं अज्ञानी लोगों के देश में रहने को बुरा बता रहा है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि जिस देश में कोयल और कौवे में, पण्डित और मूर्ख में, अनार (मीठे फल) और इन्द्रायन (कड़वे फल) में अन्तर नहीं जाना जाता है और जहाँ पर न नेक (उचित बात) और ज्ञान की बात कही जाती है, उस देश में भूलकर भी नहीं रहना चाहिए।

विशेष :

  1. मूर्ख एवं अज्ञानी लोगों के देश में रहना कवि उचित नहीं मानता है।
  2. दोहा-छन्द

MP Board Class 10th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति काव्य

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति काव्य

भक्ति काव्य अभ्यास

भक्ति काव्य अति लघु उत्तरीय प्रश्न

स्वाति (हिन्दी विशिष्ट), कक्षा-12 Solution Mp Board प्रश्न 1.
मीरा की भक्ति किस भाव की थी? (2014)
उत्तर:
मीरा की भक्ति दाम्पत्य (प्रेम) भाव की थी। उनके आराध्य श्रीकृष्ण हैं।

Mp Board Class 12th Hindi Swati Solution प्रश्न 2.
मीराबाई कैसा वेश रखना चाहती हैं? (2015)
उत्तर:
मीराबाई अपने स्वामी श्रीकृष्ण के लिए बैरागिन का वेश धारण करना चाहती हैं। इसके अलावा वह वही वेश धारण करना चाहती हैं, जिससे श्रीकृष्ण प्रसन्न हों।

Bani Jagrani Ki Udarta Barwani Jaaye MP Board Class 12th प्रश्न 3.
‘रामचन्द्रिका’ के रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
‘रामचन्द्रिका’ के रचयिता केशवदास हैं।

प्रश्न 4.
गजमुख का मुख कौन देखता है? (2010, 15)
उत्तर:
गजमुख का मुख दसमुख (रावण) देखता है।

भक्ति काव्य लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा के अनुसार देह का गर्व क्यों नहीं करना चाहिए? (2014)
उत्तर:
मीरा के अनुसार देह का गर्व नहीं करना चाहिए क्योंकि यह शरीर मृत्यु के बाद मिट्टी में मिल जाता है। यह शरीर पाँच तत्वों से निर्मित बताया जाता है-आकाश, वायु, पृथ्वी, अग्नि और जल। यह शरीर मृत्यु के पश्चात् इन्हीं तत्वों में मिल जाता है।

प्रश्न 2.
मीरा को हरि से मिलने में क्या-क्या कठिनाइयाँ हैं? (2010, 17)
उत्तर:
मीरा को हरि से मिलने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ हैं-

  1. मीरा के चारों मार्ग (कर्म, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य) बन्द हैं अर्थात् इनमें से कोई भी मार्ग मीरा के लिए खुला नहीं है।
  2. हरि का महल इतना ऊँचा है कि मीरा वहाँ तक चढ़ने में असमर्थ है।
  3. मीरा का मार्ग इतना सँकरा है कि चलते हुए डगमगाती है अर्थात् गिरने का डर लगा रहता है।
  4. विधाता ने मीरा का गाँव हरि से बहुत दूर बना दिया है।

प्रश्न 3.
भगवान गणेश भक्तों की विपत्तियों को किस प्रकार हर लेते हैं?
उत्तर:
जिस प्रकार एक बालक कमल की डंडी को आसानी से तोड़ देता है उसी प्रकार गणेश जी भक्त के विघ्नों को हर लेते हैं। जिस प्रकार कमलिनी कीचड़ से अलग रहती है उसी प्रकार गणेश जी के भक्त संसार के विघ्नों से दूर रहते हैं। शंकर जी जैसे चन्द्रमा को निष्कलंक कर अपने शीश पर धारण करते हैं उसी प्रकार गणेश जी अपने भक्त को निष्कलंक कर देते हैं।

प्रश्न 4.
माँ सरस्वती की वन्दना कौन-कौन करता है? (2015, 16)
उत्तर:
माँ सरस्वती की वन्दना देवगण, ऋषिगण,श्रेष्ठ तपस्वी, भूत, भविष्य और वर्तमान को जानने वाले,उनके पति ब्रह्मा जी,शंकर जी और कार्तिकेय करते हैं।

भक्ति काव्य दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“मीरा का सम्पूर्ण काव्य भाव-विह्वलता के गुणों से पूरित है।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
मीरा के काव्य में भाव-विह्वलता’ कूट-कूटकर भरी है।
(i) विरह-वेदना :
मीराबाई भगवान कृष्ण के प्रेम की दीवानी थीं। उन्होंने आँसुओं के जल से सींच-सींच कर प्रेम की बेल बोई थी। मीरा ने अपने प्रियतम (श्रीकृष्ण) के विरह में जो कुछ लिखा उसकी तुलना कहीं पर भी नहीं की जा सकती।

(ii) रस और माधुर्य भाव :
मीरा के साहित्य में माधुर्य भाव को बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त है। उनकी रचनाओं में माधुर्य भाव प्रधान है। उसमें शान्त रस और श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है।

(iii) रहस्यवाद :
मीरा के अधिकतर पदों में उनका रहस्यवाद स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इस रहस्यवाद में प्रियतम के प्रति उत्सुकता, मिलन और वियोग के सजीव चित्र हैं।

प्रश्न 2.
मीरा अपने मन को ईश्वर के चरण कमलों में ही क्यों लीन रखना चाहती हैं?
उत्तर:
मीरा श्रीकृष्ण के चरण-कमलों में ही अपने मन को लगाना चाहती हैं। जिस किसी को उनके चरण कमलों के अपनी भृकुटि के मध्य दर्शन हो गए वह संसार से ऊपर उठ गया अर्थात् उसका उद्धार हो गया। तीर्थ एवं व्रत करने, काशी में रहकर मृत्यु प्राप्त करने की इच्छा करने से कुछ नहीं होता और न ही संसार को त्याग करके संन्यासी होने से कुछ होगा। मीरा के अनुसार तो श्रीकृष्ण के चरणों में ध्यान लगाने से ही जीवन सफल होगा। मीरा के प्रभु ही जन्म-मरण के बन्धन को काटने वाले हैं। इसलिए वह श्रीकृष्ण के चरण-कमलों में ही अपने मन को लगाना चाहती हैं।

प्रश्न 3.
‘कठिन क्रूर अक्रूर आयो’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मथुरा का राजा कंस श्रीकृष्ण का वध करना चाहता था इसलिए उसने नन्दबाबा के मित्र अक्रूर को श्रीकृष्ण को मथुरा लाने के लिए भेजा। उसे विश्वास था कि अक्रूर के साथ नन्दबाबा कृष्ण को मथुरा अवश्य भेज देंगे। अत: वह रथ लेकर श्रीकृष्ण को लेने आया था। अक्रूर का अर्थ यद्यपि दयालु होता है, लेकिन वह कठोर बनकर इस कार्य को करने आया था। श्रीकृष्ण को मथुरा ले जाकर उसने क्रूरता दिखाई है।

प्रश्न 4.
‘बानी जगरानी की उदारता’ का बखान करना क्यों सम्भव नहीं है?
उत्तर:
जगत वन्दनीया सरस्वती की उदारता (दया) का वर्णन संसार में कोई नहीं कर सकता है। देव, सिद्ध मुनि,श्रेष्ठ तपस्वी सभी उनकी उदारता का वर्णन करते-करते थक गए पर उनकी उदारता का वर्णन नहीं कर सके। भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता भी इस बारे में असमर्थ रहे। उनके पति ब्रह्मा जी, पुत्र शिवजी और नाती कार्तिकेय ने भी उनकी उदारता का बखान किया, पर हर बार उन्हें उनमें कुछ नवीनता ही दिखाई दी।

प्रश्न 5.
श्रीराम वन्दना में राम के नाम की क्या महिमा बताई गई है?
उत्तर:
श्रीराम परिपूर्ण परमात्मा हैं। ये पुराण पुरुषोत्तम हैं। भक्त उनका दर्शन पाकर भी उनको नहीं समझ पाता है क्योंकि वेदों में ‘न इति’, ‘न इति’ कहकर उस भेद को वहीं छोड़ दिया है। केशवदास कवि श्रीराम नाम का निरन्तर जाप करते हैं इसलिए उन्हें जन्म-मरण से डर नहीं लगता अर्थात् जन्म-मरण के बन्धन से वह छूट जाएँगे। श्रीराम का रूप अणिमा सिद्धि (सूक्ष्मता) प्रदान करता है,उनका गुण गरिमा सिद्धि प्रदान करता है,उनकी भक्ति महिमा नामक सिद्धि प्रदान करती है और उनका पावन नाम मुक्ति प्रदान करता है।

प्रश्न 6.
केशवदास की काव्यगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
केशव की भाषा के दो रूप हैं-संस्कृतनिष्ठ भाषा और हिन्दी में प्रचलित शब्दों को लिए हुए हिन्दी भाषा। संस्कृत के अतिरिक्त इन्होंने बुन्देलखण्डी,अवधी और अरबी-फारसी के शब्दों का भी पर्याप्त प्रयोग किया है। केशव के काव्य में अलंकारों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है। इन्होंने जितनी अधिक संख्या में ‘छन्दों का प्रयोग किया है,उतना आज तक किसी भी हिन्दी कवि ने नहीं किया है।

केशव हिन्दी साहित्य के प्रथम एवं सर्वाधिक प्रौढ़ आचार्य हैं। काव्यशास्त्र का जितना व्यापक और प्रौढ़ विवेचन इन्होंने किया है उतना परवर्ती कोई भी आचार्य नहीं कर सका है। केशव की रचनाओं में परिस्थिति और क्रियान्विति के आधार पर सभी रसों की निष्पत्ति हुई है। इन्होंने दोहा, कवित्त, सवैया, चौपाई, सोरठा आदि का प्रयोग किया है। केशव हिन्दी के प्रमुख आचार्य हैं। उच्चकोटि के रसिक होने पर भी वे पूरे आस्तिक थे।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(अ) बाल्हा मैं बैरागिण………..साधाँ संग रहूँगी हो॥
(ब) भज मन चरण………..जनम की फाँसी।
(स) बालक मृणालनि……….गजमुख-मुख को।
(द) भावी भूत वर्तमान…………..नई-नई॥
उत्तर:
(अ) सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘भक्ति काव्य’ के शीर्षक ‘मीरा के पद’ से अवतरित है। इसकी रचयिता मीराबाई हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश में भक्त कवयित्री मीरा ने अपने स्वामी श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए वैरागिण होने और शील, सन्तोष आदि गुणों को धारण करके अपनी अनन्य भक्ति का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
मीराबाई कहती हैं कि हे स्वामी मैं बैरागिन (संन्यासी) होकर संसार को त्याग दूंगी और जिस भेष (स्वरूप) से मेरे स्वामी कृष्ण प्रसन्न होंगे वैसा ही वेष मैं धारण करूँगी। अपने हृदय में शील और सन्तोष धारण करके सब लोगों के साथ समान व्यवहार करूँगी अर्थात् समता की राह पर चलूँगी। जिसका नाम निरंजन (पवित्र) है,उसी प्रभु का ध्यान मैं हमेशा अपने हृदय में धारण करूंगी। मैं अपने शरीर रूपी वस्त्र को गुरु के ज्ञान रूपी रंग से रंग लूँगी और मन रूपी मुद्रिका (अंगूठी) पहनूंगी। मैं प्रेम से प्रभु के गुणों का वर्णन करूँगी और उन्हीं के चरणों में लिपट कर पड़ी रहूँगी अर्थात् श्रीकृष्ण के चरणों का आश्रय ग्रहण करूँगी। अपने इस शरीर को तन्तु वाद्य बनाकर अपनी जिह्वा से राम नाम को रटती रहूँगी। मेरा शरीर और जिह्वा श्रीकृष्ण के नाम लेने के काम में ही आवे मीरा कहती हैं कि मेरे प्रभु गिरधर गोपाल हैं। मैं उन्हें प्रसन्न करने के लिए और उनका गुणगान करने के लिए साधुओं के साथ रहकर अपना जीवन सफल बनाऊँगी।

(ब) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद में मीरा श्रीकृष्ण के चरण-कमलों का भजन करने के लिए अपने आपको प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित कर रही है।

व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि हे मन ! तू श्रीकृष्ण के चरण-कमलों का भजन कर। जिसने भी गिरधर के चरणों के दर्शन अपनी भृकुटि के बीच में कर लिए उसको तो संसार फीका लगता है। जब तक प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों के दर्शन नहीं हुए तो तीर्थ करने,व्रत करने और काशी में शरीर त्यागने से भी कोई लाभ नहीं होता। मनुष्य को इस शरीर का गर्व नहीं करना चाहिए क्योंकि यह शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। इस संसार का आनन्द तो हार जीत की शर्त के समान है जो शाम होते ही उठ जाता है। जैसे बाजार की चहल-पहल दिन में ही रहती है,शाम होते ही समाप्त हो जाती है। गेरुए वस्त्र धारण कर और घर त्याग कर संन्यासी होकर यदि ईश्वर को प्राप्त करने की युक्ति नहीं जानी तो फिर यह सब व्यर्थ है। फिर दोबारा संसार के जन्म-मरण के चक्कर में फंसना पड़ता है। मीरा के प्रभु तो गिरधर गोपाल हैं,वही उनके जन्म-मरण की रस्सी को काटकर उसे जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त करेंगे।

(स) सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश केशवदास द्वारा रचित ‘वन्दना’ के शीर्षक ‘गणेश वन्दना’ से उद्धृत है।

प्रसंग :
यहाँ पर कवि केशवदास ने विघ्नहारी गणेश जी की वन्दना की है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि जैसे बालक कमल की डाल को किसी भी समय आसानी से तोड़ डालता है। उसी प्रकार गणेश असमय में आए विकराल दुःख को भी दूर कर देते हैं। जैसे कमल के पत्ते पानी में फैली कीचड़ को नीचे भेज देते हैं और स्वयं स्वच्छ होकर ऊपर रहते हैं, उसी प्रकार गणेश हर विपत्ति को दूर कर देते हैं। जिस प्रकार चन्द्रमा को निष्कलंक कर शिवजी ने अपने शीश पर धारण किया उसी प्रकार गणेश जी अपने दास को कलंक रहित कर पवित्र कर देते हैं। गणेश जी बन्धन से अपने दास को मुक्त कर देते हैं। रावण भी गणेश जी के मुख की तरफ देखकर अपनी बाधाओं को दूर करने की आशा रखता है।

(द) सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘केशवदास’ द्वारा रचित ‘वन्दना’ के शीर्षक ‘सरस्वती वन्दना’ से उद्धृत है।

प्रसंग :
यहाँ पर कवि ने सरस्वती की उदारता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि जगत में पूज्य सरस्वती की उदारता का वर्णन नहीं किया जा सकता। संसार में ऐसी श्रेष्ठ बुद्धि किसी में नहीं है जो उनकी उदारता का वर्णन कर सके देवता, सिद्ध मुनि,श्रेष्ठ तपस्वी सभी कह-कह कर हार गये, लेकिन कोई भी उनकी उदारता का वर्णन नहीं कर सका। भूत, वर्तमान और भविष्य बताने वाले सभी ने वर्णन किया, लेकिन केशवदास कहते हैं कि कोई भी सरस्वती की दया (उदारता) का वर्णन नहीं कर सका। उनके पति ब्रह्माजी ने, पुत्र शंकर जी ने और उनके नाती कार्तिकेय ने भी सरस्वती की उदारता का वर्णन किया लेकिन वे भी उनकी उदारता का पार नहीं पा सके। (शंकर जी का जन्म ब्रह्माजी की भौंहों से होने के कारण उनको पुत्र कहा गया है और कार्तिकेय शिवजी के पुत्र होने के नाते सरस्वती के नाती हुए।)

भक्ति काव्य काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी मानक रूप लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति काव्य img-1

प्रश्न 2.
‘म्हारों’, ‘सूँ’ आदि राजस्थानी शब्दों का प्रयोग मीरा के पदों में हुआ है। ऐसे ही अन्य शब्दों का चयन कर उनका अर्थ लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति काव्य img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:
रसना – जिह्वा,जीभ,रसना।
पथ – मार्ग,पथ,राह।
गगन – नभ, आकाश, व्योम।
देह – तन,बदन,शरीर।
जगत – संसार,जग, दुनिया।
मुख – मुँह, वदन, आनन।
भव – जन्म,उत्पत्ति,संसार।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए
(क) ‘सोच सोच पग धरूँ जतन से, बार-बार डिग जाइ।’
(ख) भज मन चरण कँवल अविनासी।’
(ग) ‘बालक मृणालनि ज्यों तोरि डारै सब काल।’
(घ) विपति हरत हठि पद्मिनी के पात सम।’
(ङ) पूरण पुराण अरु पुरुष पुराण परिपूरण ‘
(च) ‘दरसन देत जिन्हें दरसन सुमुझै न।’
उत्तर:
(क) अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
(ख) रूपक अलंकार
(ग) उत्प्रेक्षा अलंकार
(घ) उपमा अलंकार
(ङ) अनुप्रास अलंकार
(च) यमक अलंकार।

प्रश्न 5.
रस की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
विभाव, अनुभाव और संचारी भावों की सहायता से पुष्ट होकर स्थायी भाव जब परिपक्व अवस्था को प्राप्त होता है, तो रस कहलाता है।

प्रश्न 6.
‘केशवदास’ की संकलित वन्दनाओं में कौन-सा रस है?
उत्तर:
शान्त रस।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित रस तथा उसके विभिन्न अंगों को समझाइए-
बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ,
ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध,
कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
उत्तर:
उक्त पंक्तियों में शान्त रस है। इसका स्थायी भाव निर्वेद है। यहाँ आलम्बन विभाव सरस्वती जी हैं तथा आश्रय भक्त, गुणों का गान, अनुभव, धृति, मति आदि संचारी भाव हैं।

मीरा के पद भाव सारांश

‘मीरा के पद’ नामक कविता की रचयिता ‘मीराबाई हैं। उन्होंने इन पदों में श्रीकृष्ण को पति रूप में स्वीकार कर प्रेमभाव से समन्वित भक्ति को ही अपनी साधना का आधार बनाया।

भक्तिकाल में भक्ति का लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति के साथ-साथ समाज कल्याण की भावना की परिपुष्टि भी रही है। संकलित पदों में मीरा का दृढ़ संकल्प,उनकी सत्संग की प्रबल-चाह, उनकी भक्ति-यात्रा में आने वाले विघ्न, उन पर सद्गुरु की असीम कृपा तथा कृष्ण-कृपा की एकनिष्ठ आकांक्षा का उल्लेख है। मीरा के अनुसार, वह अपने प्रभु को प्रसन्न करने के लिए कोई भी वेष धारण कर सकती हैं। पिय से मिलने में कठिनाई है। संसार के काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि बाधाएँ प्रभु के पास जाने से रोकते हैं। मीरा के सतगुरु ने गिरधर नागर को ही उनका प्रभु बताया है। लाज के कारण मीरा कृष्ण के साथ मथुरा नहीं जा सकीं। श्याम के बिछड़ने से हृदय में पीड़ा हुई। संसार से उद्धार पाने के लिए देह का गर्व छोड़कर श्रीकृष्ण के चरण कमलों की वन्दना करनी चाहिए। श्रीकृष्ण से मीराबाई की यही प्रार्थना है कि वे उनका जन्म-मरण के बन्धन से उद्धार कर दें।’

मीरा के पद संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) बाल्हा मैं बैरागिण हूँगी हो।
जो-जो भेष म्हाँरो साहिब रीझै, सोइ-सोइ भेष धरूँगी, हो।
सील सन्तोष धरूँ घट भीतर, समता पकड़ रहूँगी, हो।
जाको नाम निरजण कहिये, ताको ध्यान धरूँगी, हो।
गुरु ज्ञान रंगू, तन कपड़ा, मन मुद्रा पेरूँगी, हो।
प्रेम प्रीत सँ हरि गुण गाऊँ चरणन लिपट रहँगी, हो।
या तन की मैं करूँ कीगरी, रसना नाम रदूँगी, हो।
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर, साधाँ संग रहूँगी, हो।

शब्दार्थ :
बाल्हा = स्वामी; म्हाँरो = मेरे; साहिब = आराध्य (कृष्ण); सील = शील, लज्जा; घट = हृदय; समता = बराबरी; निरजण = निरंजन (दोष रहित); या तन = यह शरीर; कीगरी = तंतु वाद्य; रसना = जिह्वा (जीभ); गिरधर नागर = गिरिराज पर्वत को धारण करने वाले श्रीकृष्ण; साधौँ = साधुओं के।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘भक्ति काव्य’ के शीर्षक ‘मीरा के पद’ से अवतरित है। इसकी रचयिता मीराबाई हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश में भक्त कवयित्री मीरा ने अपने स्वामी श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए वैरागिण होने और शील, सन्तोष आदि गुणों को धारण करके अपनी अनन्य भक्ति का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
मीराबाई कहती हैं कि हे स्वामी मैं बैरागिन (संन्यासी) होकर संसार को त्याग दूंगी और जिस भेष (स्वरूप) से मेरे स्वामी कृष्ण प्रसन्न होंगे वैसा ही वेष मैं धारण करूँगी। अपने हृदय में शील और सन्तोष धारण करके सब लोगों के साथ समान व्यवहार करूँगी अर्थात् समता की राह पर चलूँगी। जिसका नाम निरंजन (पवित्र) है,उसी प्रभु का ध्यान मैं हमेशा अपने हृदय में धारण करूंगी। मैं अपने शरीर रूपी वस्त्र को गुरु के ज्ञान रूपी रंग से रंग लूँगी और मन रूपी मुद्रिका (अंगूठी) पहनूंगी। मैं प्रेम से प्रभु के गुणों का वर्णन करूँगी और उन्हीं के चरणों में लिपट कर पड़ी रहूँगी अर्थात् श्रीकृष्ण के चरणों का आश्रय ग्रहण करूँगी। अपने इस शरीर को तन्तु वाद्य बनाकर अपनी जिह्वा से राम नाम को रटती रहूँगी। मेरा शरीर और जिह्वा श्रीकृष्ण के नाम लेने के काम में ही आवे मीरा कहती हैं कि मेरे प्रभु गिरधर गोपाल हैं। मैं उन्हें प्रसन्न करने के लिए और उनका गुणगान करने के लिए साधुओं के साथ रहकर अपना जीवन सफल बनाऊँगी।

काव्य सौन्दर्य :

  1. भगवान श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति भावना और श्रद्धा व्यक्त हुई है।
  2. अनुप्रास, रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. दास्य भाव की प्रधानता है।
  4. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
  5. शान्त रस का प्रयोग।

(2) गली तो चारों बन्द हुई, मैं हरि से मिलूँ कैसे जाइ।
ऊँची नीची राह रपटीली, पाँव नहीं ठहराइ।
सोच-सोच पग धरूँ जतन से, बार-बार डिग जाइ।
ऊँचा नीचा महल पिया का, हमसे चढ्या न जाइ।
पिया दूर पथ म्हारो झीणों, सूरत झकोला खाइ।
कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैड़ पैड़ बटमार।
हे विधना कैसी रच दीन्हीं, दूर बस्यौ म्हाँरो गाँव।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सतगुरु दई बताय।
जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा, घर में लीन्हीं लाय॥

शब्दार्थ :
गली = रास्ता; राह = मार्ग; रपटीली = चिकनी;जतन से = प्रयास से; डिग जाय = फिसल जाता है; झीणों = पतला, सँकरा; सूरत = शरीर;झकोला = हिल जाना; कोस = दो मील की दूरी;पैड़ = जगह; बटमार = राह का कर लेने वाले विधना = विधाता; बस्यौ = स्थित; म्हाँरो = मेरा; जुगन-जुगन = युग-युग से (युग चार होते हैं-सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग); बिछड़ी = बिछड़ गई है; लाय = अग्नि।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश में मीराबाई ने अपने स्वामी श्रीकृष्ण से मिलने में संसार में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन किया है।

व्याख्या :
मीराबाई कहती हैं कि प्रभु से मिलने के चारों रास्ते (कर्म, भक्ति,ज्ञान, वैराग्य) बन्द हैं तो फिर वह कैसे प्रभु से मिलें अर्थात् न तो कर्म अच्छा है,न भक्ति है,न ज्ञान है और न ही वैराग्य है जिससे कि प्रभु के पास जाया जा सकता है। उनसे मिलने का मार्ग ऊँचा-नीचा और रपटीला है जिस पर पैर ठहर नहीं पाते हैं अर्थात् चलने के लिए खड़े होते ही गिर जाते हैं। यहाँ पर प्रभु-मार्ग में आने वाली कठिनाइयों की ओर संकेत किया गया है। मन में बार-बार सोच-विचार कर आगे बढ़ने का प्रयत्न करती हूँ फिर भी पैर आगे नहीं बढ़ पाते। मेरे प्रिय श्रीकृष्ण का महल बहुत ऊँचा है जिसमें चढ़ने में मैं अपने को असमर्थ पाती हूँ। मेरे प्रियतम दूर बसे हैं और उन्हें प्राप्त करने का मार्ग बहुत सँकरा है जिस पर चलते ही शरीर डगमगाता है और नीचे गिरने का भय बना रहता है। हर कोस पर पहरेदार बैठे हैं और जगह-जगह पर कर वसूल करने वाले (लूटने वाले लुटेरे-काम, क्रोध,लोभ,मोह) बैठे हुए हैं जो हमारे आगे बढ़ने में बाधा उत्पन्न करते हैं। विधाता ने कुछ ऐसा नियम बनाया है जिसके कारण मेरा गाँव मेरे पिया से बहुत दूर है। मीरा को उसके सद्गुरु ने यह बताया है कि उसके प्रभु (स्वामी) तो गिरधर नागर श्रीकृष्ण हैं। उनसे बिछड़े हुए कई युग बीत गये हैं। मीरा के घर में आग लगी हुई है जिसके कारण न तो घर में रह सकती है और बाहरी संसार उसे रहने नहीं देता। ऐसे में प्रभु श्रीकृष्ण ही उसे अपना कर उसकी रक्षा कर सकते हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. ब्रजभाषा, पद गेय एवं लालित्यपूर्ण है।
  2. अनुप्रास अलंकार।
  3. गुण माधुर्य।
  4. शान्त रस है।

3. सखी री लाज बैरन भई।
श्री लाल गोपाल के संग काहे नाहिं गई।।
कठिन क्रूर अक्रूर आयो, साजि रथ कह नई।
रथ चढ़ाय गोपाल लैगो, हाथ मीजत रही।।
कठिन छाती स्याम बिछुरत, बिरह में तन तई।
दासी मीरा लाल गिरधर, बिखर क्यों न गई।

शब्दार्थ :
लाज = लज्जा; बैरन = दुश्मन; काहे = क्यों; क्रूर = कठोर; साजि = सजाकर; हाथ मीजत रही = पछता कर रह गई; बिरह = वियोग; तन = शरीर;तई = कढ़ाई; बिखर = नष्ट होना।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश में मीराबाई ने विरह जनित पीड़ा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। लोकलाजवश वह श्रीकृष्ण के साथ नहीं जा पाईं और उनके मथुरा चले जाने पर पछता कर रह गई।

व्याख्या :
मीराबाई कहती हैं कि हे सखी ! मेरी लाज ही मेरी दुश्मन हो गई। उसने मुझे गोपाल श्रीकृष्ण के साथ नहीं जाने दिया। मथुरा से कठोर हृदय वाला अक्रूर आया और अपने साथ सुन्दर रथ सजाकर लाया जिसमें कि श्रीकृष्ण को बिठाकर मथुरा ले गया और मैं अपने मन में पश्चाताप करती हुई रह गई। श्रीकृष्ण के वियोग में मेरा हृदय कठोरता का अनुभव करने लगा और मेरा शरीर उनके विरह में कढ़ाई के समान जलने लगा। मीरा तो गोपाल श्रीकृष्ण की दासी है। उन्होंने ही भक्तों के हित में गोवर्धन पर्वत उठाया था। मीरा को इस बात का दुःख है कि वह श्रीकृष्ण के विरह में नष्ट क्यों नहीं हो गई।

काव्य सौन्दर्य :

  1. ब्रजभाषा,पद गेय है एवं लालित्यपूर्ण है।
  2. रस वियोग शृंगार।
  3. अनुप्रास व उपमा अलंकार।
  4. विरह का अनूठा वर्णन।

4. भज मन चरण कँवल अविनासी।
जे ताई दीसे धरण गगन बिच, ते ताइ सब उठि जासी।
कहा भयो तीरथ ब्रत कीन्हें, कहा लिए करवत कासी।
इस देही का गरब न करणा, माटी में मिल जासी।।
यो संसार चहर की बाजी, साँझ पड्यो उठ जासी।
कहा भयो है भगवा पहरयाँ, घर तज भये संन्यासी।।
जोगी होइ जुगत नहि जाणी, उलटि जनम फिर आसी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, काटो जनम की फाँसी।। (2009)

शब्दार्थ :
कँवल = कमल; अविनासी = जिसका नाश न हो; करवत कासी = काशी में मृत्यु होने पर; देही = शरीर; गरब = घमण्ड; चहर = रौनक; बाजी = हार जीत पर कुछ लेन-देन की शर्त; भगवा = गेरुए कपड़े; जुगत = युक्ति।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद में मीरा श्रीकृष्ण के चरण-कमलों का भजन करने के लिए अपने आपको प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित कर रही है।

व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि हे मन ! तू श्रीकृष्ण के चरण-कमलों का भजन कर। जिसने भी गिरधर के चरणों के दर्शन अपनी भृकुटि के बीच में कर लिए उसको तो संसार फीका लगता है। जब तक प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों के दर्शन नहीं हुए तो तीर्थ करने,व्रत करने और काशी में शरीर त्यागने से भी कोई लाभ नहीं होता। मनुष्य को इस शरीर का गर्व नहीं करना चाहिए क्योंकि यह शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। इस संसार का आनन्द तो हार जीत की शर्त के समान है जो शाम होते ही उठ जाता है। जैसे बाजार की चहल-पहल दिन में ही रहती है,शाम होते ही समाप्त हो जाती है। गेरुए वस्त्र धारण कर और घर त्याग कर संन्यासी होकर यदि ईश्वर को प्राप्त करने की युक्ति नहीं जानी तो फिर यह सब व्यर्थ है। फिर दोबारा संसार के जन्म-मरण के चक्कर में फंसना पड़ता है। मीरा के प्रभु तो गिरधर गोपाल हैं,वही उनके जन्म-मरण की रस्सी को काटकर उसे जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त करेंगे।

काव्य सौन्दर्य :

  1. ब्रजभाषा है,पद गेय एवं लालित्यपूर्ण है।
  2. अनुप्रास एवं उपमा अलंकार है।
  3. गुण-माधुर्य
  4. शान्त रस है।

वन्दना भाव सारांश

‘वन्दना’ नामक कविता के रचयिता नीतिनिपुण एवं स्पष्टवादी ‘केशवदास’ हैं। इसमें उन्होंने प्रथम पूज्य गणेश, विद्या की देवी सरस्वती एवं मर्यादा पुरुषोत्तम राम की वन्दना की है।

भक्ति केवल भक्तिकाल तक सीमित भाव नहीं है, यह काव्य के लिए एक शाश्वत-भाव भी है। इसलिए अन्य काल के कवियों में भी भक्ति-तत्व के दर्शन होते हैं; जैसे’केशवदास’-वे रीतिकाल के कवि माने जाते हैं, किन्तु उनकी कविता में भी भक्ति-भावना का निदर्शन हुआ है। प्रस्तुत काव्यांश में केशवदास द्वारा की गई देव वन्दना परक पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं। भक्ति’ के अन्तर्गत ‘इष्ट’ के वन्दन-अर्चन की प्रक्रिया है। वे गणेश, सरस्वती और श्रीराम की वन्दना करते हुए इनकी महिमा का वर्णन करते हैं। वे गणेश की कष्ट निवारक क्षमता,सरस्वती की उदारता और श्रीराम की मुक्ति प्रदायिनी क्षमता का विशेष रूप से उल्लेख करते हैं।

वन्दना संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. गणेश वन्दना
बालक मृणालनि ज्यों तोरि डारै सब काल,
कठिन कराल त्यों अकाल दीह दुःख को।
बिपति हरत हठि पद्मिनी के पात सम,
पंक ज्यों पताल पेलि पठवै कलुष को।
दूरि कै कलंक-अंक भव-सीस-ससि सम,
राखत है केशोदास दास के बपुष को।
साँकरे की साँकरनि सनमुख होत तोरै,
दसमुख मुख जोवै गजमुख-मुख को।।

शब्दार्थ :
मृणालनि = कमल की नाल; कराल = विकराल; अकाल = असमय; दीह = बड़ा,लम्बा; पद्मिनी = कमलनी; पात = पत्ता;पंक = कीचड़; पेलि = हठपूर्वक; पठवै = भेज देता है; कलुष = पाप; अंक = गोद; वपुष = देह; सनमुख = सामने दसमुख = रावण; गजमुख = गणेश।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश केशवदास द्वारा रचित ‘वन्दना’ के शीर्षक ‘गणेश वन्दना’ से उद्धृत है।

प्रसंग :
यहाँ पर कवि केशवदास ने विघ्नहारी गणेश जी की वन्दना की है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि जैसे बालक कमल की डाल को किसी भी समय आसानी से तोड़ डालता है। उसी प्रकार गणेश असमय में आए विकराल दुःख को भी दूर कर देते हैं। जैसे कमल के पत्ते पानी में फैली कीचड़ को नीचे भेज देते हैं और स्वयं स्वच्छ होकर ऊपर रहते हैं, उसी प्रकार गणेश हर विपत्ति को दूर कर देते हैं। जिस प्रकार चन्द्रमा को निष्कलंक कर शिवजी ने अपने शीश पर धारण किया उसी प्रकार गणेश जी अपने दास को कलंक रहित कर पवित्र कर देते हैं। गणेश जी बन्धन से अपने दास को मुक्त कर देते हैं। रावण भी गणेश जी के मुख की तरफ देखकर अपनी बाधाओं को दूर करने की आशा रखता है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. भक्ति रस का प्रयोग हुआ है।
  2. अनुप्रास, उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग।
  3. गुण-माधुर्य।

2. सरस्वती वन्दना
बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ
ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपवृद्ध
कहि-कहि हारे सब कहि न काहू लई।
भावी भूत वर्तमान जगत बखानत है,
केशोदास क्योंहू ना बखानी काहू पै गई।
पति बनें चार मुख पूत बर्ने पाँच मुख,
नाती बनें घटमुख तदपि नई-नई। (2009)

शब्दार्थ :
बानी = सरस्वती;जगरानी = जगत् की पूज्य; उदारता = दयालुता; बखानी = वर्णन करना;मति = बुद्धि; उदित = उदय होना; तपवृद्ध = श्रेष्ठ तपस्वी; भावी भूत वर्तमान = भूत, वर्तमान और भविष्य; चारमुख = ब्रह्मा; पाँच मुख = शिवजी; षटमुख = कार्तिकेय; तदपि = फिर भी।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘केशवदास’ द्वारा रचित ‘वन्दना’ के शीर्षक ‘सरस्वती वन्दना’ से उद्धृत है।

प्रसंग :
यहाँ पर कवि ने सरस्वती की उदारता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि जगत में पूज्य सरस्वती की उदारता का वर्णन नहीं किया जा सकता। संसार में ऐसी श्रेष्ठ बुद्धि किसी में नहीं है जो उनकी उदारता का वर्णन कर सके देवता, सिद्ध मुनि,श्रेष्ठ तपस्वी सभी कह-कह कर हार गये, लेकिन कोई भी उनकी उदारता का वर्णन नहीं कर सका। भूत, वर्तमान और भविष्य बताने वाले सभी ने वर्णन किया, लेकिन केशवदास कहते हैं कि कोई भी सरस्वती की दया (उदारता) का वर्णन नहीं कर सका। उनके पति ब्रह्माजी ने, पुत्र शंकर जी ने और उनके नाती कार्तिकेय ने भी सरस्वती की उदारता का वर्णन किया लेकिन वे भी उनकी उदारता का पार नहीं पा सके। (शंकर जी का जन्म ब्रह्माजी की भौंहों से होने के कारण उनको पुत्र कहा गया है और कार्तिकेय शिवजी के पुत्र होने के नाते सरस्वती के नाती हुए।)

काव्य सौन्दर्य :

  1. सरस्वती वन्दना में उनके प्रति आस्था का निष्पादन हुआ है।
  2. ब्रजभाषा में रचना है।
  3. अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार।
  4. भाषा में मधुरता का गुण है।
  5. शान्त रस का प्रयोग।

3. श्रीराम वन्दना
पूरण पुराण अरु पुरुष पुराण परिपूरण,
बतावै न बतावै और उक्ति को।
दरसन देत जिन्हें दरसन सुमुझैं न,
नेति-नेति कहैं वेद छाँड़ि भेद जुक्ति को।
जानि यह केशोदास अनुदिन राम-राम,
स्टत रहत न डरत पुनरुक्ति को।
रूप देहि अणिमाहि गुन देई गरिमाहि
भक्ति देई महिमाहि नाम देई मुक्ति को।

शब्दार्थ :
पूरण पुराण = पूर्ण ब्रह्म; परिपूरण = पूरे; पुरुष पुराण = पुरुषोत्तम; उक्ति = उपाय; दरसन = दर्शन; नेति-नेति = इतना ही नहीं; वेद = वेद चार हैं-सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, ऋग्वेद, भेद जुक्ति = भेद करने की युक्ति; अनुदिन = प्रतिदिन; पुनरुक्ति = बार-बार संसार में आना; अणिमाहि = सूक्ष्मता, अणिमा सिद्धि; गुन = गुण; गरिमा = अष्ट सिद्धियों में से एक; गुरुत्व,महिमा = आठ सिद्धियों में से एक (महिमा); मुक्ति = जन्म मृत्यु से छुटकारा।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश ‘केशवदास’ द्वारा रचित ‘वन्दना’ के शीर्षक ‘श्रीराम वन्दना’ से लिया गया है।

प्रसंग :
यहाँ पर कवि ने श्रीराम की वन्दना का वर्णन किया है।

व्याख्या :
केशवदास कहते हैं कि और कोई उक्ति बताये या न बताये श्रीराम पूर्ण ब्रह्म पुरुषोत्तम हैं। उनका दर्शन पाकर भी कोई उन्हें समझ नहीं पाता है क्योंकि वेद भी ‘न इति’ ‘न इति’ कहकर उस भेद को वहीं छोड़ देते हैं। यह जानकर केशवदास प्रतिदिन राम-राम रटते रहते हैं जिसके कारण उन्हें जन्म-मरण का डर नहीं रहता,क्योंकि राम-राम रटने से जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है। श्रीराम का रूप अणिमा सिद्धि (सूक्ष्मता) प्रदान करता है, उनका गुण गरिमा सिद्धि (गुरुत्व) प्रदान करता है, उनकी भक्ति महिमा (बड़प्पन) सिद्धि प्रदान करती है और उनका नाम मुक्ति प्रदान करता है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. श्रीराम की महानता का बड़ा विशद वर्णन है।
  2. भक्ति रस समाया हुआ है।
  3. अनुप्रास, श्लेष, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकारों का प्रयोग।
  4. ब्रजभाषा में मधुरता का गुण है।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 13 चतुरः वानरः

MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 13 चतुरः वानरः

MP Board Class 6th Sanskrit Chapter 13 अभ्यासः

Chatur Vanar Ka Saransh MP Board Class 6th Sanskrit प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) जम्बूवृक्षेः कुत्र आसीत्? (जामुन का वृक्ष कहाँ था?)
उत्तर:
नदीतीरे (नदी के किनारे)

(ख) कः प्रतिदिनं जम्बूफलानि खादति स्म? (प्रतिदिन कौन जामुन के फल खाया करता था?)
उत्तर:
वानरः (बन्दर)

(ग) वानरस्य मित्रं कः आसीत्? (बन्दर का मित्र कौन था?)
उत्तर:
मकरः (मगरमच्छ)

(घ) का वानरस्य हृदयं खादितम् इच्छति? (बन्दर के हृदय को कौन खाना चाहती थी?)
उत्तर:
मकरस्य पत्नी (मगरमच्छ की पत्नी)।

Bandar Aur Magarmach Ki Kahani In Sanskrit प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) वानरः कस्मै जम्बूफलानि ददाति स्म? (बन्दर किसे जामुन के फल दिया करता था?)
उत्तर:
वानरः मकराय जम्बूफलानि ददाति स्म। (बन्दर मगरमच्छ को जामुन के फल दिया करता था।)

(ख) मकरः कस्यै जम्बूफलानि अयच्छत्? (मगरमच्छ किसको जामुन के फल देता था?)
उत्तर:
मकरः स्वपत्न्यै जम्बूफलानि अयच्छत्। (मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को जामुन के फल दिये।)

(ग) वानरः कीदृशानि फलानि खादति स्म? (बन्दर कैसे फल खाया करता था?)
उत्तर:
वानरः मधुराणि फलानि खादति स्म। (बन्दर मीठे फल खाया करता था।)

(घ) नद्याः मध्ये मकरः वानरं किम् अवदत्? (नदी के बीच मगरमच्छ ने बन्दर को क्या बतलाया?)
उत्तर:
नद्याः मध्ये मकरः वानरं अवदत्, “मम पत्नी तव हृदयं खादितुं इच्छति।” (नदी के बीच मगरमच्छ ने बन्दर को बतलाया, “मेरी पत्नी तुम्हारे हृदय को खाना चाहती है।”)

Chatur Vanar Sanskrit MP Board Class 6th Sanskrit प्रश्न 3.
रिक्तस्थानानि पूरयत (खाली स्थानों को भरो)
(क) शुष्कं पत्रं (1) ………… (2) ………..
(ख) रक्तं कमलं (3) ………. (4) …………
(ग) निर्मलं हृदयं (5) ………. (6) ………..
(घ) स्वस्थं शरीरं (7) ………… (8) ……….
(ङ) सुन्दरं गृहम् (9) ………… (10) ………..
उत्तर:

  1. शुष्के पत्रे
  2. शुष्कानि पत्राणि।
  3. रक्ते कमले
  4. रक्तानि कमलानि।
  5. निर्मले हृदये
  6. निर्मलानि हृदयानि
  7. स्वस्थ शरीरे
  8. स्वस्थानि शरीराणि।
  9. सुन्दरे गृहे
  10. सुन्दराणि गृहाणि ।

चतुर वानर का सारांश MP Board Class 6th Sanskrit प्रश्न 4.
ध्यानेन वाक्यं पठित्वा पुनः लिखत (ध्यान से वाक्य को पढ़कर फिर से लिखो)
(क) निखिलः गृहं अगच्छत्।
(ख) रामः वने अवसत्।
(ग) पिता पुत्रं अवदत्।
(घ) सा उच्चैः अहसत्।
उत्तर:
(क) निखिलः गृहं गच्छति स्म।
(ख) रामः वने वसति स्म।
(ग) पिता पुत्रं वदति स्म।
(घ) सा उच्चैः हसति स्म।

Mp Board Class 6 Sanskrit Chapter 13 प्रश्न 5.
उदाहरणम् अनुसृत्य लिखत (उदाहरण के अनुसार लिखो)
यथा-खाद् + क्त्वा = खादित्वा
मकरः जम्बूफलानि खादित्वा प्रसन्नः अभवत्।
(क) बालकः विद्यालयं ……… पाठं पठति। गम् + क्त्वा
(ख) बालिका उच्चैः ……….. वदति। हस् + क्त्वा
(ग) वानरः वृक्षे ………. तिष्ठति। कूर्द + क्त्वा
(घ) बालकः पाठं ………. खेलति। पठ् + क्त्वा
उत्तर:
(क) बालक: विद्यालयं गत्वा पाठं पठति।
(ख) बालिका उच्चैः हँसित्वा वदति।
(ग) वानरः वृक्षे कूर्दित्वा तिष्ठति।
(घ) बालकः पाठं पठित्वा खेलति।

Class 6 Sanskrit Chapter 13 Mp Board प्रश्न 6.
उचितक्रियापदं योजयत (उचित क्रियापद से जोड़ो)
(क) त्वं कुत्र ………..। (गमिष्यसि/गमिष्यति)
(ख) अहं पत्रं ………..। (लेखिष्यामि/लेखिष्यन्ति)
(ग) वयं पुष्पाणि …………। (आनेष्यन्ति/आनेष्यामः)
(घ) यूयं कदा ………..। (वदिष्यसि/वदिष्यथ)
(ङ) सः फलं ………….। (खादिष्यति/आगमिष्यति)
(च) ते उच्चैः …………। (हसिष्यावः/हसिष्यन्ति)
(छ) किं युवा भोपालनगरे ………..? (वसिष्यथ:/वसिष्यथ)
(ज) आवां पाठं …………..। (पठिष्यावः/पठिष्यथ:)
(झ) तौ विद्यालयं …………..। (आगमिष्यतः/आगमिष्यन्ति)
उत्तर:
(क) गमिष्यसि
(ख) लेखिष्यामि
(ग) आनेष्यामः
(घ) वदिष्यथ
(ङ) खादिष्यति
(च) हसिष्यन्ति
(छ) वसिष्यथः
(ज) पठिष्यावः
(झ) आगमिष्यतः।

अयच्छत् Meaning MP Board Class 6th Sanskrit योग्यताविस्तारः

कथां आधृत्य क्रमानुसारं पुनः लिखत (कथा के आधार पर क्रमानुसार पुनः लिखो)
(क) त्वं तु जले वससि, कथम् अहं तत्र गन्तुं शक्नोमि।
(ख) परं सा दृढनिश्चया आसीत्।
(ग) एकस्मिन् नदीतीरे एकः जम्बूवृक्षः आसीत्।
(घ) अद्य त्वं मम गृहमागच्छ।।
(ङ) रे मित्र! मम हृदयं तु वृक्षस्य कोटरे निहितम्।
(च) तस्मिन् एकः वानरः प्रतिवसति स्म।
(छ) इतः परं त्वया सह मम मैत्री समाप्ता।
(ज) त्वं मूर्खः असि।
(झ) कश्चित् मकरः तस्य मित्रम् आसीत्।
उत्तर:
(ग) → (च) → (झ) → (ख) → (घ) → (क) → (ङ) → (ज) → (छ)।

चतुरः वानरः हिन्दी अनुवाद

एकस्मिन् नदीतीरे एकः जम्बूवृक्षः आसीत्। तस्मिन् एकः वानरः प्रतिवसति स्म। सः नित्यं जम्बूफलानि खादति स्म। कश्चित् मकरः तस्य मित्रम् आसीत्। सः वानरः प्रतिदिनं तस्मै जम्बूफलानि ददाति स्म। अतः सः मकरः तस्य वानरस्य प्रिय मित्रम् अभवत्।

अनुवाद :
एक नदी के किनारे एक जामुन का पेड़ था। उस पर एक वानर रहा करता था। वह प्रतिदिन जामुन के फल खाया करता था। कोई मगरमच्छ उसका मित्र था। वह बन्दर प्रतिदिन उसको जामुन के फल दिया करता था। अत: वह मगरमच्छ उस बन्दर का प्रिय मित्र बन गया।

एकदा मकरः कानिचित् जम्बूफलानि स्वपत्न्यै अयच्छत्। तानि खादित्वा तस्य पत्नी अचिन्तयत्, “अहो! सः वानरः प्रतिदिनं मधुराणि जम्बूफलानि खादति। अतः नूनं तस्य हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति” इति। सा स्वपतिम् अवदत्, “भो प्रतिदिनं मधुराणि जम्बूफलानि खादित्वा त्वं वानरमित्रस्य हृदयं कियत् मधुरं स्यात्? तस्य हृदयं खादित्वा मम हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति। तत् यदि माम् जीवितां दुष्टम् इच्छसि तर्हि आनय शीघ्रं तस्य वानरस्य हृदयम्।”

मकरः स्वपत्नी बहुविधैः निवारितवान्। परं सा दृढ़निश्चया आसीत्। विवशः मकरः स्वमित्रं वानरं प्रति गत्वा अवदत, “मित्र प्रतिदिनम् अहम् एव अन्नं आगच्छामि। अद्य त्वं मम गृहमागच्छ।”

वानरः प्रत्युवाच, “त्वं तु जले वससि, कथम् अहं तत्र गन्तुं शक्नोमि?”

Khaga Kutra Basanti MP Board Class 6th Sanskrit अनुवाद :
एक दिन मगरमच्छ ने कुछ जामुन के फल अपनी पत्नी को दिये। उन्हें खाकर उसकी पत्नी ने सोचा, “अहो! वह बन्दर प्रतिदिन मीठे जामुन के फल खाता है। अतः अवश्य ही उसका हृदय भी अति मधुर होगा।” वह अपने पति से बोली, “अरे, प्रतिदिन मधुर जामुन के फल खाकर आपके वानर-मित्र का हृदय कितना मधुर होगा ? उसके हृदय को खाकर मेरा हृदय भी अति मधुर हो जायेगा। इसलिए यदि मुझे जीवित देखना चाहते हो, तो शीघ्र ही उस बन्दर के हृदय को लाओ।”

मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को अनेक प्रकार से रोका (इन्कार किया) परन्तु वह पक्के निश्चय वाली थी। विवश हुआ मगरमच्छ अपने मित्र बन्दर के पास जाकर बोला, “हे मित्र, प्रतिदिन मैं ही यहाँ आया करता हूँ। आज तुम मेरे घर आओ।”

बन्दर ने उत्तर दिया, “तुम तो जल में रहते हो, मैं वहाँ किस तरह जा सकता हूँ?”

मकरः अवदत्, “अलं चिन्तया। त्वं मम पृष्ठोपरि उपविश। अहं त्वां नेष्यामि।”

यदा तौ नद्याः मध्यभागे स्थितौ तदा मकरः वानरम् अवदत्, “मम पत्नी तव हृदयं खादितुंइच्छति। अतः त्वां मम गृहं नयामि।”

मकरस्य वचनेन वानरः भीतः। किन्तुः चतुरः वानरः शीघ्रम् अवदत्, “रे मित्र! मम हृदयं तु वृक्षस्य कोटरे निहितम्। अतः त्वं शीघ्र मां तत्र नय। अहं प्रमुदितमना मम हृदयं तुभ्यं दास्यामि। मकरः वानरं पुनः तास्यावासं आनीतवान्। चतुरः वानरः शीघ्रं कूर्दित्वा वृक्षोपरि आरुहत्।”

अनुवाद :
मगरमच्छ बोला, “चिन्ता मत करो। तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें ले जाऊँगा।”

जब वे दोनों नदी के मध्य भाग ठहर गये, तब मगरमच्छ बन्दर से बोला, “मेरी पत्नी तुम्हारे हृदय को खाना चाहती है। अतः तुमको घर ले चलता हूँ।”

मगरमच्छ के वचन से बन्दर भयभीत हो गया। किन्तु चतुर बन्दर शीघ्र बोला, “अरे मित्र ! मेरा हृदय तो वृक्ष के कोटर में रखा हुआ है। अतः तुम शीघ्र मुझे वहाँ ले चलो। मैं प्रसन्न मन से अपने हृदय को तुम्हें दे दूंगा। मगरमच्छ बन्दर को फिर से उसके निवास पर लेकर आया। चतुर बन्दर शीघ्र ही कूदकर वृक्ष के ऊपर चढ़ गया।”

वानरः उच्चैः हसित्वा मकरम् अवदत्, “रे मूर्ख! किं हृदयं कदापि शरीरात् पृथक् भवति? त्वं मूर्खः असि। इति परं त्वया सह मम मैत्री समाप्ता।”

इति उक्त्वा वानरः पुनः मधुराणि जम्बूफलानि अभक्षयत्।

“विश्वासो हि ययोर्मध्ये तयोर्मध्येऽस्ति सौहृदम्।
यस्मिन्नवास्ति विश्वासः तस्मिन् मैत्री क्व सम्भवा॥”

अनुवाद :
बन्दर ऊँचे स्वर में हँसकर मगरमच्छ से बोला, “अरे मूर्ख! क्या हृदय कभी शरीर से अलग होता है? तुम मूर्ख हो। इससे आगे तुम्हारे साथ मेरी मित्रता समाप्त हो गई।”

ऐसा कहकर, बन्दर ने फिर मधुर (मीठे) जामुन के फल खाये।

“जिनके मध्य विश्वास है, उनके साथ ही मित्रता होती है। जिसमें विश्वास नहीं होता है, वहाँ (उसमें) मित्रता कैसे सम्भव है।”

चतुरः वानरः शब्दार्थाः

जम्बूवृक्षः = जामुन का पेड़। प्रतिवसति स्म = रहता था। कानिचित् = कुछ। खादित्वा = खाकर। चिन्तयित्वा = सोचकर। कियत् = कितना। स्यात् = होना चाहिए। तर्हि = तो। आनय = लाओ। बहुविधैः = अनेक प्रकार से। निवारितवान् = रोका। अद्य = आज। प्रत्युवाच = उत्तर दिया। शक्नोमि= सकता हूँ। अलं चिन्तया = चिन्ता मत करो। नेष्यामि = ले जाऊँगा। नद्याः = नदी के। खादितुम् इच्छति = खाने के लिए इच्छा करती है/करता है। कोटरे = खोखले में। प्रमुदितमना = प्रसन्न मन से। आरुहत् = चढ़ गया। इतः परम् = इसके बाद। अभक्षयत् = खाए। सौहृदम् = मित्रता। कूर्दित्वा = कूदकर। कश्चित = कोई। निहितम् = रखा है। नूनं = निश्चित। दृष्टुम् = देखना।

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