MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व

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11 p-ब्लॉक तत्त्व NCERT अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.

  1. B से TIतक
  2. C से Pb तक की ऑक्सीकरण अवस्थाओं की भिन्नता के क्रम की – व्याख्या कीजिए।

उत्तर:
1. B से TI तक की ऑक्सीकरण अवस्थाओं की भिन्नता का क्रम –
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बोरॉन तथा ऐल्युमिनियम केवल +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं, क्योंकि ये d-अथवा f- इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति के कारण अक्रिय युग्म प्रभाव नहीं दर्शाते हैं। Ga से TI तक के तत्व + 1 तथा +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। + 1 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाने की प्रवृत्ति वर्ग में नीचे की ओर जाने पर बढ़ती जाती है, क्योंकि संयोजी कोश के ns2 इलेक्ट्रॉनों की आबंध की प्रवृत्ति घटती जाती है। इसे अक्रिय युग्म प्रभाव कहते हैं। TI+ TI की अपेक्षा अधिक स्थायी है।

2. से Pb तक की ऑक्सीकरण अवस्थाओं की भिन्नता का क्रम –
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कार्बन तथा सिलिकॉन केवल + 4 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। भारी सदस्यों + 2 में ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति Ge < Sn < Pb के क्रम में बढ़ती है। यह संयोजी कोश के ns इलेक्ट्रॉनों की आबंध के प्रति कम रूचि के कारण होता है (अक्रिय युग्म प्रभाव) Ge + 4 अवस्था में स्थायी यौगिक बनाता है । Sn दोनों अवस्थाओं में यौगिक बनाता है तथा लेड के यौगिक +4 अवस्था की तुलना में, + 2 अवस्था में अधिक स्थायी होते हैं।

प्रश्न 2.
TICl3 की तुलना में BCl3 के उच्च स्थायित्व को आप कैसे समझायेंगे ?
उत्तर:
बोरॉन केवल + 3 अवस्था प्रदर्शित करता है। अतः यह एक स्थायी यौगिक BCl3 बनाता है। वर्ग में नीचे आने पर अक्रिय युग्म प्रभाव क्रमशः अधिक प्रभावी होता जाता है, जिसके कारण थैलियम की + 1 ऑक्सीकरण अवस्था, + 3 ऑक्सीकरण अवस्था की अपेक्षा BCl3 अधिक स्थायी होता है।

प्रश्न 3.
बोरॉन ट्राइफ्लुओराइड लुईस अम्ल के समान व्यवहार क्यों प्रदर्शित करता है ?
उत्तर:
BF3, इलेक्ट्रॉन न्यून होने के कारण, एक प्रबल लुईस अम्ल है। यह लुईस क्षार के कारण, एक प्रबल लुईस अम्ल है। यह लुईस क्षार के साथ सुगमतापूर्वक क्रिया करके बोरॉन के प्रति अष्टक पूरा करता है।
F3B + : NH3 → F3B → NH3
लुईस अम्ल लुईस क्षार

प्रश्न 4.
BCl3 तथा CCl4 यौगिक का उदाहरण देते हुए जल के प्रति इनके व्यवहार के औचित्य समझाइए।
उत्तर:
BCl3 एक इलेक्ट्रॉन न्यून अणु है। यह जल से सरलता से इलेक्ट्रॉनों का एक युग्म ग्रहण करता है तथा बोरिक अम्ल (H3BO3) तथा HCl बनाता है।
BCl3 + 3H2O → H3BO3 + 3HCl
CCl4 एक इलेक्ट्रॉन समृद्ध अणु है, जिसमें C परमाणु में d- कक्षक अनुपस्थित होते हैं । जिसके कारण यह ना तो इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करता है और न ही देता है। अतः CCl4का जल-अपघटन नहीं होता है।

प्रश्न 5.
क्या बोरिक अम्ल प्रोटीनो अम्ल है ? समझाइए।
उत्तर:
बोरिक अम्ल प्रोटीनो अम्ल नहीं है, क्योंकि यह जल में आयनीकृत होकर प्रोटॉन नहीं देता है। यह एक लुईस अम्ल की भाँति व्यवहार करते हुए H2O अणु के हाइड्रॉक्सिल आयन से इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करता है तथा अंत में H+ आयन मुक्त करता है।
B(OH)3 + 2HOH → [B(OH)3] + H3O+

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प्रश्न 6.
क्या होता है, जब बोरिक अम्ल को गर्म किया जाता है ?
उत्तर:
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प्रश्न 7.
BF3 तथा BH4 की आकृति की व्याख्या कीजिए।इन स्पीशीज में बोरॉन के संकरण को निर्दिष्ट कीजिए।
उत्तर:
BF3 में बोरॉन में 3 आबंध युग्म उपस्थित होते हैं । अतः यह sp2संकरित तथा त्रिकोणीय तथा त्रिकोणीय समतलीय संरचना का होता है जबकि [BH4] में आबंध संख्या = 4 होने के कारण संकरण sp3 तथा संरचना चतुष्फलकीय होती है।
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प्रश्न 8.
ऐल्युमिनियम के उभयधर्मी व्यवहार दर्शाने वाली अभिक्रियाएँ दीजिए।
उत्तर:
Al, अम्ल तथा क्षार दोनों में घुलकर डाइहाइड्रोजन मुक्त करता है, इसका यह व्यवहार उभयधर्मी होता है।
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प्रश्न 9.
इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक क्या होते हैं ? क्या BCl3 तथा SiCl4 इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक है ? समझाइए।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक वे यौगिक होते हैं, जिनमें इनके अणुओं में उपस्थित केन्द्रीय परमाणु एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करने की प्रवृत्ति रखता है। इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक लुईस अम्ल भी कहलाते हैं। हाँ, BCI और SiCl, दोनों इलेक्ट्रॉन न्यून होते हैं। जहाँ B परमाणु में एक रिक्त 2p – कक्षक होता है। वहीं Si परमाणु मे रिक्त 3d-कक्षक होता है। ये दोनों परमाणु, इलेक्ट्रॉन दाता स्पीशीज से इलेक्ट्रॉन युग्मों को ग्रहण कर सकते हैं।

प्रश्न 10.
CO2-3 – तथा HCO 3 की अनुनादी संरचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
CO2-3आयन की अनुनादी संरचनाएँ –
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HCO 3 आयन की अनुनादी संरचनाएँ –
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प्रश्न 11.

  1. CO2-3
  2. हीरा तथा
  3. ग्रेफाइट में कार्बन की संकरण अवस्था क्या होती है ?

उत्तर:
CO2-3 हीरा तथा ग्रेफाइट में कार्बन की संकरण अवस्थाएँ क्रमशः sp2 sp3 तथा sp2 हैं।
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प्रश्न 12.
संरचना के आधार पर हीरा तथा ग्रेफाइट के गुणों में निहित भिन्नता समझाइए।
उत्तर:
हीरा तथा ग्रेफाइट में अंतर –
हीरा:

  • इसमें C2 sp3संकरित अवस्था में है।
  • इसमें ज्यामिति द्विविमीय परतीय होती है।
  • यह उच्च घनत्व तथा उच्च क्वथनांक के साथ कठोरतम पदार्थ है।
  • यह ऊष्मा तथा विद्युत् का कुचालक (मुक्त इलेक्ट्रॉन मुक्त होता है) होता है।
  • इसका प्रयोग काँच काटने में, आभूषणों तथा अपघर्षक के रूप में होता है।

ग्रेफाइट:

  • इसमें C2 sp2 संकरित अवस्था में है।
  • इसकी ज्यामिति त्रिविमीय चतुष्फलकीय होती है।
  • यह निम्न घनत्व तथा उच्च क्वथनांक के साथ मुलायम तथा चिकनाई वाला पदार्थ है।
  • यह ऊष्मा तथा विद्युत् का सुचालक (चौथा इलेक्ट्रॉन की अनुपस्थिति) होता है।
  • यह स्नेहक के रूप में, इलेक्ट्रोड निर्माण में, पेंसिल में, क्रूसीबल (उच्च गलनांक के कारण) आदि के निर्माण में प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित कथनों को युक्तिसंगत कीजिए तथा रासायनिक समीकरण दीजिए –
1. लेड (II) क्लोराइड, Cl2 से क्रिया करके PbCl4 देता है।
2. लेड (IV) क्लोराइड ऊष्मा के प्रति अत्यधिक अस्थायी है।
3. लेड एक आयोडाइड PbI4 नहीं बनाता है।
उत्तर:
1. लेड (Pb) की +2 ऑक्सीकरण अवस्था अर्थात् Pb(II), + 4 ऑक्सीकरण अवस्था अर्थात् Pb(IV) की अपेक्षा अधिक स्थायी क्लोराइड Pb(IV) क्लोराइड नहीं बनाएगा।
PbCl2(g) + Cl2(g) →PbCl4(g)

2. लेड की (II) ऑक्सीकरण अवस्था, (IV) ऑक्सीकरण अवस्था की तुलना में अधिक स्थायी होती है। अतः लेड (IV) क्लोराइड ऊष्मा के प्रति अत्यधिक अस्थायी होता है। यह गर्म करने पर विघटित होकर लेड (II) क्लोराइड बनाता है।
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3. शक्तिशाली अपचायक होने के कारण I आयन विलयन में Pb4+ आयन को Pb2+ आयन में अपचयित कर देता है, जिससे लेड PbI4 नहीं बना पाता है। अतः प्रायः PbI2 बनाता है।
Pb4+ + 2I → Pb2+ + I2

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प्रश्न 14.
BF3 तथा BF4 में B – F बंध लम्बाई क्रमशः 130 pm तथा 143 pm होने का कारण बताइए।
उत्तर:
BF3 में, बोरॉन sp2 – संकरित है। इसमें रिक्त कक्षक होता है। प्रत्येक में पूर्णतया भरे हुए, अप्रयुक्त कक्षक होते हैं। चूँकि ये दोनों कक्षक समान ऊर्जा-स्तर के होते हैं। अतः pr – pz पश्च बंधन होता है, जिसमें पूर्णतया भरे हुए अप्रयुक्त 2p – कक्षक द्वारा एक इलेक्ट्रॉन युग्म, B के अतिरिक्त 2p – कक्षक को स्थानांतरित होता है। इस प्रकार का बंध निर्माण पश्च बंधन कहलाता है। अत: B – Fबंध में कुछ द्विबंध व्यवहार पाया जाता है। यही कारण है कि सभी तीन B – F बंधों की बंध लम्बाई से कम होती है।

[B – F4] आयन में, बोरॉन sp3 संकरित होती है। इसके पास रिक्त 2p – कक्षक नहीं होते हैं, जिसके कारण इसमें पश्च बंधन नहीं पाया जाता है।[B – F4]आयन में, सभी 4B – F की पूर्णतया एकल बंध होते हैं। द्विबंध, एकल बंध की अपेक्षा छोटे होते हैं। अत: B-F बंध लम्बाई [B – F4] (143 pm) की अपेक्षा BF3 (130 pm) में कम होती है।
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प्रश्न 15.
B – Cl आबंध द्विध्रुव आघूर्ण रखता है, किन्तु BCl3 अणु का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है। क्यों?
उत्तर:
BCl3 में बोरॉन sp2 संकरित होती है, जिसके कारण BCl3 अणु की संरचना ज्यामिति त्रिकोणीय समतलीय होती है। यह आकार में सममित होता है तथा सममित अणुओं के लिए परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण का मान शून्य होता है (क्योंकि सभी द्विध्रुव आघूर्ण, अणु की सममितता के कारण निरस्त हो जाते हैं)।
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अतः BCl3 का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है।

प्रश्न 16.
निर्जलीय HF में ऐल्युमिनियम ट्राइफ्लुओराइड अविलेय है, परन्तु NaF मिलाने पर घुल जाता है। गैसीय BF3 को प्रवाहित करने पर परिणामी विलयन में से ऐल्युमिनियम ट्राइफ्लुओराइड अवक्षेपित हो जाता है। इसका कारण बताइए।
उत्तर:
ऐल्युमिनियम ट्राइफ्लुओराइड (AIF3) अपनी सहसंयोजी प्रकृति के कारण निर्जल HF में अघुलनशील होता है। किन्तु NaF के साथ क्रिया करने पर यह एक जटिल यौगिक बनाता है जो जल में घुलनशील होता है।
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(घुलनशील) जब BF3की वाष्प को जलीय विलयन में प्रवाहित कराया जाता है तो संकुल विदलित हो जाता है। इसके फलस्वरूप ऐल्युमिनियम ट्राइफ्लुओराइड पुनः अवक्षेपित हो जाता है।
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प्रश्न 17.
co के विषैली होने का एक कारण बताइए।
उत्तर:
रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन के साथ ऑक्सीजन फेफड़े में संयोजित होकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है। हीमोग्लोबिन + ऑक्सीजन ⥨ ऑक्सीहीमोग्लोबिन। कार्बन मोनोऑक्साइड अत्यधिक विषाक्त प्रकृति की होती है। इसकी विषाक्तता रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन के साथ संयोग करने की इसकी प्रवृत्ति के कारण होता है, जिससे कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनता है।

कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन अन्दर खींची गयी ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों में ले जाने की स्थिति में नहीं होता है। इससे गला घुटने लगता है और अंत में मृत्यु हो जाती है। हीमोग्लोबिन + CO → कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन
हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मोनोऑक्साइड, हीमोग्लोबिन की रक्त परिवहन की क्षमता को कम कर देती है।

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प्रश्न 18.
CO2 की अधिक मात्रा भूमण्डलीय ताप वृद्धि के लिए उत्तरदायी कैसे है ?
उत्तर;
हम जानते हैं कि पौधों के प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 अति आवश्यक है। विभिन्न प्रकार की दहन अभिक्रियाओं से यह गैस बनकर वातावरण में मुक्त होती है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, पौधों द्वारा इसे ग्रहण किया जाता है। अत: वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड चक्र कार्य करता है और इसकी प्रतिशतता लगभग नियत रहती है। जबकि पिछले कई वर्षों में दहन अभिक्रियाएँ अत्यधिक बढ़ गयी हैं और पेड़-पौधे (जंगल) घट गये हैं।

इससे अब वातावरण में CO2 अधिकता में उपस्थित है। मेथेन की भाँति यह भी हरित गृह गैस की भाँति व्यवहार करती है और पृथ्वी के ऊष्मीय विकिरण को अवशोषित कर लेती है। कुछ ऊष्मा वातावरण में मुक्त होती है और शेष पृथ्वी की ओर पुनः विकिरित हो जाती है। इससे धीरे-धीरे भूमण्डलीय ताप वृद्धि हो जाती है एवं बड़े मौसमी परिवर्तन होते हैं।

प्रश्न 19.
डाइबोरेन तथा बोरिक अम्ल की संरचना समझाइए।
उत्तर:
डाइबोरेन की संरचना:
डाइबोरेन में, सिरे वाले चार हाइड्रोजन परमाणु तथा दो बोरॉन परमाणु एक ही तल में होते हैं। इस तल के ऊपर तथा नीचे दो सेतुबंध हाइड्रोजन परमाणु होते हैं। सिरे वाले चार – B – Hबंध नियमित बंध होते हैं, जबकि दो सेतु बंध (B – H – B) भिन्न प्रकार के होते हैं तथा इन्हें केला बंध (या विकेंद्रीय बंध) कहते हैं।
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बोरिक अम्ल की संरचना-बोरिक अम्ल की परतीय संरचना होती है, जिससे H3BO3 इकाइयाँ हाइड्रोजन बंध द्वारा जुड़ी होती है।
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प्रश्न 20.
क्या होता है ? जब –
1. बोरेक्स को अधिक गर्म किया जाता है।
2. बोरिक अम्ल को जल में मिलाया जाता है।
3. ऐल्युमिनियम की तनु NaOH से अभिक्रिया कराई जाती है।
4. BF3 की क्रिया अमोनिया से की जाती है।
उत्तर:
1. बोरेक्स को अत्यधिक गर्म करने पर सोडियम मेटाबोरेट तथा बोरिक एनहाइड्राइड का काँच के समान पारदर्शक मानक प्राप्त होता है।
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2. बोरिक अम्ल ठण्डे जल में अल्प विलेय है जबकि गर्म जल में शीघ्र विलेय है। यह दुर्बल मोनो क्षारीय अम्ल की भाँति कार्य करता है। यह प्रोटीन अम्ल नहीं है परन्तु जल के एक हाइड्रॉक्साइड आयन को ग्रहण करके प्रोटॉन देने के कारण लुईस अम्ल की भाँति व्यवहार करता है।
H – OH + B(OH)3 — [B(OH)3] + H+

3. जब ऐल्युमिनियम की क्रिया तनु NaOH से कराई जाती है तो डाइहाइड्रोजन मुक्त होती है।
2Al(s) + 2NaOH(aq) + 6H2O(l) → 2Na+[AI(OH)4](aq) + 3H2(g)

4. BF3 लुईस अम्ल होने के कारण, NHसे एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करके संकर यौगिक बनाता है।
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प्रश्न 21.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं को समझाइए –
1. कॉपर की उपस्थिति में उच्च ताप पर सिलिकॉन को मेथिल क्लोराइड के साथ गर्म किया जाता है।
2. सिलिकॉन डाइऑक्साइड की क्रिया हाइड्रोजन फ्लुओराइड के साथ की जाती है।
3. CO को ZnO के साथ गर्म किया जाता है।
4. जलीय ऐलुमिना की क्रिया जलीय NaOH के साथ की जाती है।
उत्तर:
1. सिलिकॉन को कॉपर उत्प्रेरक की उपस्थिति में लगभग 300°C ताप पर मेथिल क्लोराइड के साथ गर्म करने पर निम्न क्रिया होती है –
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जल अपघटन करने पर यह सिलिकॉन के बहुलकों का निर्माण करता है।

2. सिलिकॉन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन फ्लुओराइड के साथ अभिक्रिया करके सिलिकॉन टेट्राफ्लुओराइड (SiFa) बनाता है।
SiO2 + 4HF → SiF4 + 2H2O
पुनः SiF4 हाइड्रोजन फ्लुओराइड के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोफ्लुओरोसैलिसिलीक अम्ल बनाता है।
SiF4 + 2HF → H2SiF6

3. CO द्वारा जो कि एक प्रबल अपचायक है, ZnO जिंक (Zn) में अपचयित हो जाता है।
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4. ये दोनों यौगिक दाब के अधिक गर्म करने पर अभिक्रिया करके एक घुलनशील संकुल बनाते हैं।
Al2O3(s)+ 2NaOH(aq) + 3H2 O(l) → 2Na[Al(OH)Al4](aq)

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प्रश्न 22.
कारण बताइए –
1. सांद HNO3 का परिवहन ऐल्युमिनियम के पात्र द्वारा किया जा सकता है।
2. तनु NaOH तथा ऐल्युमिनियम के टुकड़ों के मिश्रण का प्रयोग अपवाहिका खोलने के लिए किया जाता है।
3. ग्रेफाइट शुष्क स्नेहक के रूप में प्रयुक्त होता है।
4. हीरे का प्रयोग अपघर्षक के रूप में क्यों करते हैं ?
5. वायुयान बनाने में ऐल्युमिनियम मिश्रधातु का उपयोग होता है।
6. जल को ऐल्युमिनियम पात्र में पूरी रात नहीं रखना चाहिए।
7. संचरण केबल बनाने में ऐल्युमिनियम तार का प्रयोग होता है।
उत्तर:
1. Al सांद्र HNO3 के साथ क्रिया करके अपनी सतह पर ऐल्युमिनियम ऑक्साइड की रक्षी परत बना लेता है, जो इसकी पुनः क्रियाओं को रोकती है।
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अत: A निष्क्रिय हो जाता है। यही कारण है कि, सांद्र HNO3 का परिवहन ऐल्युमिनियम के पात्र द्वारा किया जाता है।

2. NaOH, AI के साथ क्रिया करके डाइहाइड्रोजन गैस मुक्त करता है । इस हाइड्रोजन गैस के दाब का प्रयोग अपवाहिका खोलने के लिए किया जाता है।
2Al(s) + 2NaOH(aq) + 2H2O(l) → 2NaAlO2(aq) + 3H2(g)

3. ग्रेफाइट की परतीय संरचना होती है। ये परतें परस्पर दुर्बल वाण्डर वाल्स आकर्षण बलों द्वारा बँधी होती हैं, अतः एक दूसरे के ऊपर फिसल सकती हैं। इसी कारण ग्रेफाइट को शुष्क स्नेहक के रूप में प्रयुक्त करते हैं।

5. हीरे में, प्रत्येक sp3 संकरित परमाणु, चार अन्य कार्बन परमाणुओं द्वारा जुड़ा रहता है। इससे परमाणुओं के त्रिविमीय जालक का निर्माण होता है। इस विस्तृत सहसंयोजक बंधन को तोड़ना कठिन कार्य होता है। अतः हीरा पृथ्वी पर पाये जाने वाला कठोरतम पदार्थ है। इसी कारण इसका प्रयोग अपघर्षक के रूप में करते हैं।

6. ऐल्युमिनियम के मिश्रधातु जैसे ड्यूरालुमीन हल्की, मजबूत तथा जंगरोधी होती है। इसी कारण इनका प्रयोग वायुयान बनाने में होता है।

7. ऐल्युमिनियम जल तथा ऑक्सीजन (जल में उपस्थित) के साथ क्रिया करके विषैले ऐल्युमिनियम ऑक्साइड की पतली परत पात्र दीवार पर बना देता है। इसलिए जल को ऐल्युमिनियम पात्र में पूरी रात नहीं रखना चाहिए।

8. ऐल्युमिनियम में विद्युत् चालकता अत्यधिक होती है। इसका प्रयोग संचरण केबल बनाने में होता है। पुनः भारानुसार AI विद्युत् चालकता Cu की अपेक्षा दुगुनी होती है।
2Al(s) + O2(g) + H2O(l) → Al2O(s) + H2(g)

प्रश्न 23.
कार्बन से सिलिकॉन तक आयनीकरण एन्थैल्पी में प्रघटनीय कमी होती है, क्यों ?
उत्तर:
आवर्त सारणी में कार्बन से सिलिकॉन की ओर चलने पर, परमाणु आकार में वृद्धि होती है, अर्थात् बाह्यतम इलेक्ट्रॉन तथा नाभिक में दूरी बढ़ती है। अतः ये इलेक्ट्रॉन नाभिक का आकर्षण बहुत कम अनुभव करते हैं, जिसके कारण इन्हें निकालना अत्यन्त आसान है। चूँकि Si परमाणु का आकार छोटा है, जिसके कारण बाह्यतम इलेक्ट्रॉन न्यूनतम आकर्षण अनुभव करते हैं। अतः इसकी आयनन एन्थैल्पी (1 इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा) न्यूनतम होती है।

प्रश्न 24.
AI की तुलना में Ga की कम परमाण्वीय त्रिज्या को आप कैसे समझाएँगे?
उत्तर:
AI तथा Ga की इलेक्ट्रॉनिक संरचनाएँ निम्न हैं –
Al13= 1s2,2s22p6, 3s23p1
Ga51 = 1s2,2s22p6, 3s23p63d10, 4s2,4p1.
इनमें d – इलेक्ट्रॉनों का परिरक्षण प्रभाव अत्यन्त कम है। अत: AI से Ga की ओर चलने पर, 10 d – इलेक्ट्रॉनों का रक्षी प्रभाव बढ़े हुए नाभिकीय आवेश को निष्प्रभावी करने में असमर्थ है। अतः Ga की परमाण्विक त्रिज्या प्रभावी नाभिकीय आवेश के कारण ऐल्युमिनियम की परमाण्विक त्रिज्या से कम होती है।

प्रश्न 25.
अपरूप क्या होता है ? कार्बन के दो महत्वपूर्ण अपरूप हीरा तथा ग्रेफाइट की संरचना का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
जब कोई तत्व दो या दो से अधिक रूपों में पाया जाता है तथा इन रूपों के भौतिक गुण भिन्नभिन्न तथा रासायनिक गुण लगभग समान होते हैं, तो इस गुण को अपरूपता तथा तत्व के विभिन्न रूप अपरूप कहलाते हैं। क्रिस्टलीय कार्बन मुख्यतः दो अपररूपों –

  • ग्रेफाइट तथा
  • हीरा रूप में पाया जाता है।

1985 में कार्बन का एक तीसरा अपररूप फुलरीन की खोज एच. डब्लू. क्रोटो, ई. स्माले तथा आर. एफ. कर्ल द्वारा की गई। हीरे में प्रत्येक कार्बन sp3 संकरित होता है तथा चतुष्फलकीय ज्यामिति से चार अन्य कार्बन परमाणु से होता रहता है। हीरे में कार्बन परमाणुओं का त्रिविमीय जालक बना होता है। ग्रेफाइट में प्रत्येक कार्बन sp2 संकरित होता है तथा तीन समीपवर्ती कार्बन परमाणुओं के साथ तीन सिग्मा (6) बंध बनाता है। इसकी संरचना परतीय होती है तथा ये परतें दुर्बल वाण्डर वाल्स बलों से जुड़ी होती हैं।
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कार्बन के दो अपरूपों हीरा तथा ग्रेफाइट की संरचना तथा इनके भौतिक गुणों पर प्रभाव –

  • हीरा, अपनी कठोरता के कारण, अपघर्षक तथा रूपदा (dye) बनाने में प्रयुक्त होता है, जबकि ग्रेफाइट मुलायम होने के कारण पेंसिल के रूप तथा मशीनों में शुष्क स्नेहक के रूप में प्रयुक्त होता है।
  • हीरा विद्युत् का चालक नहीं है, जबकि ग्रेफाइट विद्युत् का अच्छा चालक है, क्योंकि इसमें प्रत्येक कार्बन परमाणु का इलेक्ट्रॉन मुक्त अवस्था में होता है।
  • हीरा पारदर्शी है, जबकि ग्रेफाइट अपारदर्शी है।

प्रश्न 26.
1. निम्नलिखित ऑक्साइड को उदासीन, क्षारीय तथा उभयधर्मी ऑक्साइड के रूप में वर्गीकृत कीजिए – CO, B,03, SiO2, AI,03, Pb02, TI2O3.
(b) इनकी प्रकृति को दर्शाने वाली रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
1. उदासीन ऑक्साइड – CO
अम्लीय ऑक्साइड – B2O3, SiO2, CO2
क्षारीय ऑक्साइड – TI2O3
उभयधर्मी ऑक्साइड – Al2O3, PbO2.

2. (i) B2O3, SiO2 तथा CO2 अम्लीय होने के कारण क्षारों के साथ क्रिया करके लवण बनाते हैं।
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3. Al2O3 तथा PbO2 उभयधर्मी होने के कारण, अम्लों तथा क्षारों दोनों के साथ क्रिया करते हैं।
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4. Tl2O3क्षारीय होने के कारण अम्लों के साथ क्रिया करता है।
TI2O3 + 6HCl → 2TICl3 +3H2O

प्रश्न 27.
कुछ अभिक्रियाओं में थैलियम, ऐल्युमिनियम से समानता दर्शाता है, जबकि अन्य में यह समह – 1 के धातुओं से समानता दर्शाता है। इस तथ्य को कुछ प्रमाणों के द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
थैलियम तथा ऐल्युमिनियम दोनों वर्ग – 13 के तत्व हैं। इसके संयोजी कोश का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np1 है। ऐल्युमिनियम केवल +3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है। ऐल्युमिनियम की भाँति, थैलियम भी कुछ यौगिकों में + 3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है। उदाहरण- TI2O3, TIC, आदि। ऐल्युमिनियम की भाँति थैलियम भी अष्टफलकीय आयन जैसे [AlF6]3- तथा [TIF]3- बनाता है।

वर्ग – 1 की क्षार धातुओं के समान, थैलियम अक्रिय युग्म प्रभाव के कारण + 1 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है। उदाहरण- TICl, TIO आदि। क्षार धातु हाइड्रॉक्साइडों की भाँति, TIOH भी जल में विलेय है तथा जलीय विलयन प्रबल क्षारीय है। TI,SOA, क्षार धातु सल्फेटों की भाँति फिटकरी बनाता है तथा TI2O3, क्षार धातु कार्बोनेट की भाँति जल में विलेय है।

प्रश्न 28.
जब धातु X की क्रिया सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ की जाती है, तो श्वेत अवक्षेप (A) प्राप्त होता है, जो NaOH के आधिक्य में विलेय होकर विलेय संकुल (B) बनाता है। यौगिक (A) तनु HCl में घुलकर यौगिक (C) बनाता है। यौगिक (A) को अधिक गर्म किए जाने पर यौगिक (D) बनता है, जो एक निष्कर्षित धातु के रूप में प्रयुक्त होता है।X,A, B, C तथा D को पहचानिए तथा इनकी पहचान के समर्थन में उपयुक्त समीकरण दीजिए।
उत्तर:
आँकड़े सुझाते हैं कि यह धातु ‘X’ ऐल्युमिनियम है। यौगिक (A), (B), (C) और (D) के निर्माण में ऐल्युमिनियम की अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –
1. ऐल्युमिनियम (X) को NaOH के साथ गर्म करने पर AI(OH)3 का एक सफेद अवक्षेप अर्थात् यौगिक A बनता है, जो NaOH के आधिक्य में घुलकर घुलनशील संकुल ‘B’ बनाता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 27
2. यौगिक (A) तनु HCl में घुलकर ऐल्युमिनियम क्लोराइड (C) बनाता है।
Al(OH)3 + 3HCl(aq) → AlCl3(aq) + 3H2O(l)

3. AI(OH)3 गर्म करने पर ऐलुमिना (D) में बदल जाता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 28
Al2O3, Al धातु के निष्कर्षण में प्रयुक्त होता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 29

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प्रश्न 29.
निम्नलिखित से आप क्या समझते हैं(a) अक्रिय युग्म प्रभाव, (b) अपरूप, (c) श्रृंखलन।
उत्तर:
1. अक्रिय युग्म प्रभाव:
जबs – इलेक्ट्रॉनों की प्रवृत्ति स्वयं के साथ ही रहने की हो या sइलेक्ट्रॉनों की प्रवृत्ति अभिक्रिया में भाग लेने के प्रति विमुखता हो तो इस प्रवृत्ति को अक्रिय युग्म प्रभाव कहते हैं । इसका कारण यह है कि ns – इलेक्ट्रॉनों को अयुग्मित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा दो अतिरिक्त ऊर्जा दो अतिरिक्त बंध बनाने में निर्मुक्त ऊर्जा से अधिक नहीं होती है। वर्ग-13, 14, 15 के भारी सदस्य तत्व अपने संयोजी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या से कम ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए TI में +1 ऑक्सीकरण अवस्था, + 3 ऑक्सीकरण अवस्था की अपेक्षा अधिक स्थायी है।

2. अपरूप:
जब कोई तत्व दो. या दो से अधिक रूपों में पाया जाता है तथा इन रूपों के भौतिक गुण भिन्न-भिन्न तथा रासायनिक गुण लगभग समान होते हैं, तो इन रूपों को अपरूप तथा इस गुण को अपरूपता कहते हैं। इसका कारण या तो अणुओं में परमाणुओं की संख्या में अंतर है (जैसे- O2 तथा O3) अथवा अणु में परमाणुओं की व्याख्या में भिन्नता होती है। [जैसे – ग्रेफाइट, हीरा तथा फुलेरीन (कार्बन के क्रिस्टलीय अपरूप)]

3. श्रृंखलन:
एक जैसे परमाणुओं की परस्पर, जुड़कर लंबी, खुली या बंद श्रृंखला बनाने का गुण श्रृंखलन कहलाता है। यह कार्बन में अधिकतम पाया जाता है तथा वर्ग में नीचे की ओर जाने पर क्रमशः घटता है। वर्ग-14 में क्रम निम्नवत् है –
C >> Si > Ge = Sn >> Pb

प्रश्न 30.
एक लवण x निम्नलिखित परिणाम देता है –
1. इसका जलीय विलयन लिटमस के प्रति क्षारीय होता है।
2. तीव्र गर्म किए जाने पर यह काँच के समान ठोस में स्वेदित हो जाता है।
3. जब X के गर्म विलयन में सान्द्र H2SO4 मिलाया जाता है, तो एक अम्ल Z का श्वेत क्रिस्टल बनता है।
उपर्युक्त अभिक्रियाओं के समीकरण लिखिए और X, Y तथा Z को पहचानिए।
उत्तर:
आँकड़ों से पता चलता है कि लवण ‘X’ बोरेक्स (Na2B4O7. 10H2O) है।
1. बोरेक्स का जलीय विलयन क्षारीय प्रकृति का होता है और लाल लिटमस को नीला कर देता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 30
2. बोरेक्स को तेज गर्म करने पर इसका आकार बढ़ जाता है और यह क्रिस्टलन जल के अणुओं को त्यागकर ठोस (Y) बनाता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 31
3. बोरेक्स, सान्द्र H2SO4 के साथ अभिक्रिया करके बोरिक अम्ल (H3BO3) बनाता है। यह विलयन में सफेद क्रिस्टलों (Z) के रूप में प्राप्त होता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 38

प्रश्न 31.
निम्नलिखित के लिये संतुलित समीकरण लिखिये –
1. BF3 + LiH →
2. B2H6 + H2O →
3. NaH + B2H6
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 32
5. AI + NaOH + H2O →
6. B2H6 + NH2
उत्तर:
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 33

प्रश्न 32.
CO तथा CO2 प्रत्येक के संश्लेषण के लिए एक प्रयोगशाला तथा एक औद्योगिक विधि समझाइए।
उत्तर:
(a) कार्बन मोनोऑक्साइड –
1. औद्योगिक विधि;
गर्म कोक पर भाप प्रवाहित करने पर CO प्राप्त होती है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 34
2. प्रयोगशाला विधि:
सांद्र H2SO4 की उपस्थिति में फॉर्मिक अम्ल के निर्जलीकरण द्वारा CO प्राप्त होती है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 35

(b) कार्बन डाइऑक्साइड –
1.  औद्योगिक विधि – चूने के पत्थर को गर्म करने पर CO2प्राप्त होती है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 36
2. प्रयोगशाला विधि – CaCO3 पर तनु HCl की क्रिया से CO2 प्राप्त होती है।
CaCO3(s) + 2HCl(aq) →CaCl2(aq)+ CO2(g)+ H2O(l)

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प्रश्न 33.
बोरेक्स के जलीय विलयन की प्रकृति कौन-सी होती है –
(i) उदासीन
(ii) उभयधर्मी
(iii) क्षारीय
(iv) अम्लीय।
उत्तर:
क्षारीय।

प्रश्न 34.
बोरिक अम्ल के बहुलकीय होने का कारण
(i) इसकी अम्लीय प्रकृति है
(ii) इसमें हाइड्रोजन बन्धों की उपस्थिति है
(iii) इसकी एकक्षारीय प्रकृति है
(iv) इसकी ज्यामिति है।
उत्तर:
(ii) हाइड्रोजन बन्धों की उपस्थिति।

प्रश्न 35.
डाइबोरेन में बोरॉन का संकरण कौन:
सा होता है –
(i) sp2
(ii) sp2
(iii) sp3
(iv) dsp2
उत्तर:
(iii) sp3 संकरण।

प्रश्न 36.
ऊष्मागतिकीय रूप से कार्बन का सर्वाधिक स्थायी रूप कौन-सा है –
(i) हीरा
(ii) ग्रेफाइट
(iii) फुलेरीन्स
(iv) कोयला।
उत्तर:
(ii) कार्बन अपरूपों में ग्रेफाइट सर्वाधिक स्थायी है।

प्रश्न 37.
निम्नलिखित में से समूह-14 के तत्वों के लिए कौन-सा कथन सत्य है –
(i) +4 ऑक्सीकरण प्रदर्शित करते हैं।
(ii) +2 तथा + 4 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं।
(iii) M2- तथा M4+ आयन बनाते हैं।
(iv) M2+ तथा M4-आयन बनाते हैं।
उत्तर:
(ii) +2 और +4 ऑक्सीकरण अवस्था।

प्रश्न 38.
यदि सिलिकॉन-निर्माण में प्रारंभिक पदार्थ RSiC3 है, तो बनने वाले उत्पाद की संरचना दीजिए।
उत्तर:
एल्किलट्राइक्लोरोसिलेन के जल-अपघटन तथा इसके पश्चात् संघनन बहुलीकरण द्वारा शृंखला बहुलक (सिलिकॉन) प्राप्त होते हैं।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 37

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11 p-ब्लॉक तत्त्व अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

11 p-ब्लॉक तत्त्व वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –

प्रश्न 1.
बोरिक अम्ल के बारे में कौन-सा कथन असत्य है –
(a) यह एक भास्मिक अम्ल है
(b) यह बोरॉन हैलाइड के जल-अपघटन से बनता है
(c) इसकी आकृति समतलीय होती है
(d) यह त्रिभास्मिक अम्ल है।
उत्तर:
(a) यह एक भास्मिक अम्ल है

प्रश्न 2.
डाइबोरेन में बोरॉन परमाणु का संकरण है –
(a) sp
(b) sp2
(c) sp3
(d) sp3d2
उत्तर:
(b) sp2

प्रश्न 3.
बोरिक अम्ल के बहुलीकृत होने का कारण है –
(a) अम्लीय प्रकृति
(b) H – बंध
(c) मोनो-भास्मिक प्रकृति
(d) इसकी ज्यामिति।
उत्तर:
(b) H – बंध

प्रश्न 4.
ऐल्युमिनियम का प्रमुख अयस्क है –
(a) बॉक्साइट
(b) डोलोमाइट
(c) गैलेना
(d) फेल्स्पार।
उत्तर:
(a) बॉक्साइट

प्रश्न 5.
त्रिकेन्द्रित दो इलेक्ट्रॉन बंध किसमें उपस्थित हैं –
(a) NH3
(b)B2H 6
(c) BCl3
(d) Al2Cl6
उत्तर:
(b)B2H6

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प्रश्न 6.
कार्बोरंडम है –
(a) B4C
(b) SiC
(c) Al3C4
(d) CaC2
उत्तर:
(b) SiC

प्रश्न 7.
कौन-सा हैलाइड इलेक्ट्रॉन न्यून है –
(a) CCl4
(b) NCl3
(c) Cl2O
(d) BCl3
उत्तर:
(d) BCl3

प्रश्न 8.
कार्बन का स्थायी अपरूप है –
(a) हीरा
(b) ग्रेफाइट
(c) कोल
(d) ऐंथेसाइट।
उत्तर:
(b) ग्रेफाइट

प्रश्न 9.
विद्युत् चालकता किसमें नहीं है –
(a)K
(b) ग्रेफाइट
(c) हीरा
(d) Na.
उत्तर:
(c) हीरा

प्रश्न 10.
कठोरतम ज्ञात पदार्थ है –
(a) कोक
(b) कार्बोरण्डम
(c) कोरंडम
(d) हीरा।
उत्तर:
(d) हीरा।

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

  1. जब एलुमिना में Fe2O3 एवं SiO2दोनों प्रकार की अशुद्धियाँ उपस्थित रहती हैं तो इसका शोधन ………….. की विधि द्वारा किया जाता है।
  2. सिलिका युक्त अशुद्धि वाले बॉक्साइट खनिज को N2 की धारा में कोक के साथ 1800°C पर गर्म करने से ………….. प्राप्त होता है तथा सिलिकॉन वाष्पशील होने से अलग हो जाता है।
  3. समूह 13 के तत्वों के कुछ ऑक्साइड जलीय विलयन में नीले लिटमस को लाल एवं लाल लिटमस को नीला करते हों, इस प्रकार के ऑक्साइडों का विलयन ………….. कहा जाता है।
  4. ऐल्युमिनियम क्लोराइड द्विलक के रूप में पाया जाता है, जिसका रासायनिक सूत्र ………….. है।
  5. ठोस CO2 को ………….. कहते हैं।
  6. ओजोन परत को नष्ट करने वाला प्रमुख कारक ………….. है।
  7. कार्बन मोनोऑक्साइड सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरीन से क्रिया करके एक विषैली गैस ………….. बनाती है।
  8. कृत्रिम हीरे बनाने वाले सर्वप्रथम वैज्ञानिक ………….. हैं।
  9. जर्मेनियम एक ………….. है।
  10. ग्रेफाइट विद्युत् का ………….. तथा हीरा ………….. है।

उत्तर:

  1. हॉल की
  2. ऐल्युमिनियम नाइट्राइड, (AIN)
  3. उदासीन
  4. Al2Cl6
  5. शुष्क बर्फ
  6. क्लोरो फ्लोरो कार्बन
  7. फॉस्जीन
  8. मोयसाँ
  9. उपधातु
  10. कुचालक, सुचालक।

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प्रश्न 3.
उचित संबंध जोडिए –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 1
उत्तर:

  1. (b) अम्लीय
  2. (c) क्षारीय
  3. (d) क्षारीय
  4. (a) उभयधर्मी
  5. (e) उभयधर्मी।

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उत्तर:

  1. (e) CS2
  2. (c) B4C
  3. (a) CCl4
  4. (b) C2 H2
  5. (d) ग्रेफाइट

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प्रश्न 4.
एक शब्द / वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. TI की + 1 ऑक्सीकरण अवस्था + 3 की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है।
  2. बोरॉन के हाइड्राइड को क्या कहते हैं ?
  3. Two electron three center bond’ किसे कहते हैं ? .
  4. कॉपर सल्फेट के विलयन में अमोनिया विलयन को अधिकता में मिलाने पर क्या होगा?
  5. ऐलम का सूत्र लिखिए।
  6. C60 कार्बन क्रिस्टल का नाम क्या है?
  7. कौन-सा कार्बाइड हीरे से भी कठोर है?
  8. कार्बन के किस गुण के कारण इसके यौगिकों की संख्या इतनी अधिक है?
  9. कार्बन के विद्युत् सुचालक अपररूप का नाम बताइये।
  10. जल ग्लॉस किसे कहते हैं?

उत्तर:

  1. अक्रिय युग्म प्रभाव
  2. बोरेन
  3. डाइबोरेन
  4. क्यूप्रिक अमोनियम सल्फेट का संकर यौगिक बनेगा.
  5. K2SO4Al2 (SO4)3.24H20
  6. बकमिंस्टर फुलेरीन
  7. बोरॉन कार्बाइड
  8. श्रृंखलन का गुण
  9. ग्रेफाइट
  10. सोडियम सिलिकेट।

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11 p-ब्लॉक तत्त्व अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि कास्टिक क्षार जैसे NaOH को ऐल्युमिनियम के बर्तन में नहीं रखा जाता?
उत्तर:
कास्टिक क्षार जैसे NaOH को ऐल्युमिनियम के पात्र में रखने पर ऐल्युमिनियम क्षार में विलेय होकर सोडियम मेटा ऐल्युमिनेट बनाता है इसीलिए क्षार को ऐल्युमिनियम के पात्र में नहीं रखा जाता। 2Al + 2NaOH + 2H2O → 2NaAlO2  + 3H2

प्रश्न 2.
साधारण ताप पर ऐल्युमिनियम जल के साथ कोई अभिक्रिया नहीं करता, क्यों?
उत्तर:
वायु की उपस्थिति में AI की सतह पर पारदर्शी असरन्ध्रमय संरक्षक ऑक्साइड पर्त बन जाती है। इस पर्त के कारण साधारण ताप पर जल के साथ कोई अभिक्रिया नहीं दर्शाता।

प्रश्न 3.
आयरन तथा ऐल्युमिनियम में ऐल्युमिनियम, आयरन की तुलना में अधिक क्रियाशील है किन्तु ऐल्युमिनियम की तुलना में आयरन पर जंग सरलता से लगता है, क्यों?
उत्तर:
वायु की उपस्थिति में ऐल्युमिनियम की सतह पर पारदर्शी असरन्ध्रमय संरक्षक ऑक्साइड पर्त बन जाती है, जिसके कारण यह साधारण ताप पर वायु में उपस्थित ऑक्सीजन तथा नमी के साथ कोई अभिक्रिया नहीं दर्शाती जबकि आयरन की सतह पर सरन्ध्रमय ऑक्साइड पर्त बनती है। जिसके कारण आयरन की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। इसीलिये आयरन पर सरलता से जंग लगता है।

प्रश्न 4.
द्विक लवण या एलम का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
द्विक लवण का सामान्य सूत्र R2SO4 M2(SO4)3 है। जहाँ R कोई एकसंयोजी धातु जैसे – Na, K, Rb, Cs या NH+4 मूल तथा M त्रिसंयोजक धातु जैसे- Fe+3 Al+3 या Cr+3 हो सकता है।
उदाहरण – K2SO4 Al2 (SO4)3.24H2O पोटाश एलम

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प्रश्न 5.
ऐल्युमिनियम के अयस्कों के नाम बताइये। अयस्कों के सूत्र दीजिए।
उत्तर:
ऐल्युमिनियम के अयस्क निम्नलिखित हैं –

  1. बॉक्साइट – Al2O3 2H2O
  2. डायस्योर – Al2O3H2O2
  3. क्रायोलाइट – Na3AlF 6
  4. एलुनाइट – K2SO4 Al2 (SO4)3 2Al(OH)3
  5. कोरण्डम – Al2O3
  6. फेल्स्पार – K2OA2O3 SiO3

प्रश्न 6.
क्या होता है जब (समीकरण देकर स्पष्ट कीजिए) –

  1. ऐल्युमिनियम क्लोराइड को गर्म करते हैं।
  2. फिटकरी को गर्म करते हैं।

उत्तर:
(1) ऐल्युमिनियम क्लोराइड को गर्म करने पर Al2O3प्राप्त होता है।
2AlCl3l.6H2 O → Al2O3 + 6HCl + 3H2O
(2) फिटकरी को गर्म करने पर 200°C पर सरन्ध्र पदार्थ में बदल जाती है।
K2SO4.Al2 (SO4)3 .24H2O → K2O + Al2O3 + 4SO2 + 24H2O

प्रश्न 7.
ऐल्युमिनियम एक प्रबल अपचायक है, क्यों?
उत्तर:
वे तत्व जो रासायनिक अभिक्रिया में इलेक्ट्रॉन दान करके धनायन बनाते हैं, अपचायक कहलाते हैं। किसी भी तत्व की अपचायक प्रवृत्ति उसके मानक इलेक्ट्रोड विभव पर निर्भर करती है। किसी भी तत्व का मानक इलेक्ट्रोड विभव का मान जितना अधिक ऋणात्मक होगा वह तत्व उतना प्रबल अपचायक होगा। Al का मानक इलेक्ट्रोड विभव -1.67 है इसलिये ऐल्युमिनियम एक प्रबल अपचायक की तरह कार्य करता है।

प्रश्न 8.
कमरे के तापक्रम पर गैलियम द्रव क्यों है ?
उत्तर:
ठोस अवस्था में गैलियम की क्रिस्टलीय संरचना इस प्रकार की होती है कि इसकी जालक ऊर्जा बहुत कम होती है तथा कम ताप पर ही इसके परमाणुओं के बीच के धात्विक बंध टूटने लगता है। इसलिये कमरे के तापक्रम पर ही गैलियम द्रव अवस्था में प्राप्त होता है।

प्रश्न 9.
बोरॉन त्रिसंयोजी आयन नहीं बनाता, क्यों?
उत्तर:
बोरॉन के छोटे आकार के कारण इसकी आयनन ऊर्जा अत्यन्त उच्च होती है तथा तृतीय आयनन ऊर्जा का मान प्रथम आयनन ऊर्जा तथा द्वितीय आयनन ऊर्जा से अधिक होता है। इसलिये बोरॉन के संयोजी कोश से तीन इलेक्ट्रॉन का सरलता से निकाला जाना या दान करना संभव नहीं है। इसलिये बोरॉन त्रिसंयोजी आयन नहीं बनाता।

प्रश्न 10.
बोरॉन के गलनांक तथा क्वथनांक अत्यधिक उच्च क्यों हैं ?
उत्तर:
बोरॉन का क्रिस्टल परमाणुओं के बीच सहसंयोजी बंध स्थापित होकर बनता है। 2 परमाणु ‘मिलकर इकोसेहेड्रॉन नेटवर्क तैयार करते हैं, जिसके 20 त्रिभुजाकार फलक तथा 12 कोने होते हैं। यह बोरॉन को अत्यधिक कठोर बनाता है इसीलिये बोरॉन के गलनांक तथा क्वथनांक अत्यधिक उच्च होते हैं।

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प्रश्न 11.
बोरॉन सामान्यतः अम्ल या क्षार से अभिक्रिया नहीं करता, वह किन परिस्थितियों में अम्ल या क्षार से अभिक्रिया करता है?
उत्तर:
बोरॉन सामान्यतः अम्ल या क्षार से अभिक्रिया नहीं करता है लेकिन अम्ल यदि प्रबल ऑक्सीकारक हो तो बोरॉन उसके साथ उच्च ताप पर अभिक्रिया कर बोरिक अम्ल बनाता है। इसी प्रकार क्षार के साथ उच्च ताप पर अभिक्रिया करके बोरेट बनाता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 39

प्रश्न 12.
अकार्बनिक बेंजीन किसे कहते हैं?
उत्तर:
बोरेजीन को अकार्बनिक बेंजीन कहा जाता है इसका रासायनिक सूत्र B3N3H6 है। बोरेजीन की संरचना बेंजीन के समान चक्रीय तथा समतलीय षट्कोणीय संरचना होती है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 40

प्रश्न 13.
कोरण्डम किसे कहते हैं ?
उत्तर:
Al एक से अधिक क्रिस्टलीय रूपों में मिलता है। इसका सबसे अधिक कठोर क्रिस्टलीय रूप कोरन्डम कहलाता है, जो अपघर्षक की तरह कार्य करता है।

प्रश्न 14.
बोरॉन के अयस्कों के नाम बताइये। अयस्कों के सूत्र दीजिये।
उत्तर:
बोरॉन के अयस्क निम्नलिखित हैं –

  • बोरेक्स – Na2 B4O710H2O
  • केनाइट – Na2B4O7 2H2O
  • कोलेमेनाइट – Ca3[B3HO4 (OH)3] .2H2O
  • आर्थोबोरिक अम्ल – H3BO3

प्रश्न 15.
सिद्ध कीजिए कि TI+3 ऑक्सीकारक है जबकि Al+3 नहीं।
उत्तर-अक्रिय युग्म प्रभाव के कारण बोरॉन परिवार में +1 ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व समूह में ऊपर से नीचे आने पर बढ़ता है जबकि + 3 ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व घटता है इसलिये TI+1, TI+3 की तुलना में अधिक स्थायी है, अतः
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अभिक्रिया से स्पष्ट है कि TI+3 का TI+1 में अपचयन हो रहा है इसलिये TI+3 ऑक्सीकारक है लेकिन Al में Al+3 ऑक्सीकरण अवस्था संभव है। किन्तु Al+3 का ऑक्सीकारक होना संभव नहीं है।

प्रश्न 16.
क्या होता है, जब बोरॉन की अभिक्रिया कास्टिक क्षार के साथ कराई जाती है?
उत्तर:
बोरॉन साधारण ताप पर क्षार के साथ कोई अभिक्रिया नहीं दर्शाता लेकिन कास्टिक क्षार NaOH या कास्टिक पोटाश KOH के साथ अभिक्रिया कर बोरेट बनाता है तथा H2 गैस मुक्त करता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 42

प्रश्न 17.
विषमानुपाती अभिक्रिया को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
गैलियम +1 तथा +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है। गैलियम की +3 ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थायी होती है इसलिये गैलियम की +1 ऑक्सीकरण अवस्था वाला यौगिक + 3 ऑक्सीकरण अवस्था वाले यौगिक में ऑक्सीकृत हो जाता है।
3GaCl → 2Ga + GaCl3

प्रश्न 18.
बोरिक अम्ल लुईस अम्ल की तरह कार्य करता है प्रोटिक अम्ल की तरह नहीं, क्यों?
उत्तर:
बोरिक अम्ल में केन्द्रीय धातु बोरॉन का अष्टक पूर्ण नहीं होता है। इसके संयोजी कोश में 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं इसे अपना अष्टक पूर्ण करने के लिये एक एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म की आवश्यकता होती है। इलेक्ट्रॉन युग्म ग्राही होने की वजह से बोरिक अम्ल लुईस अम्ल की तरह कार्य करता है। यह जल से अभिक्रिया कराने पर H + आयन मुक्त करता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 43

प्रश्न 19.
कोलेमेनाइट से बोरेक्स किस प्रकार प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर:
कोलेमेनाइट को सान्द्र सोडियम कार्बोनेट विलयन के साथ उबालने पर बोरेक्स प्राप्त होता है।
Ca2B6O11 + 2Na2CO3 → Na2B4O7 + 2NaBO2 + 2CaCO3
प्राप्त निस्यंद का सान्द्रण करने पर बोरेक्स के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं। मातृद्रव में कार्बन डाइ-ऑक्साइड प्रवाहित करने पर बोरेक्स प्राप्त होता है।
4NaBO2 + CO2 → Na2B407 + Na2CO3

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प्रश्न 20.
बोरिक अम्ल पर ऊष्मा का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
बोरिक अम्ल को 100°C ताप पर गर्म करने पर मेटाबोरिक अम्ल बनता है जो उच्च ताप पर गर्म करने पर बोरिक एनहाइड्राइड बनाता है।
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प्रश्न 21.
ऐलुमिना से ऐल्युमिनियम के निष्कर्षण में क्रायोलाइट का उपयोग किया जाता है, क्यों?
उत्तर:
शुद्ध ऐलुमिना का गलनांक बहुत उच्च 2050°C होता है, परन्तु क्रायोलाइट और फ्लोरस्पार की उपस्थिति में यह 870°C पर ही पिघल जाता है। इस प्रकार क्रायोलाइट ऐलुमिना का गलनांक कम कर देता है एवं वैद्युत अपघट्य का भी कार्य करता है।

प्रश्न 22.
कैसे सिद्ध करोगे कि हीरा तथा ग्रेफाइट कार्बन के अपरूप हैं ?
उत्तर:
हीरा तथा ग्रेफाइट को वायु की उपस्थिति में दहन करने पर CO2 गैस निकलती है जिसे चूने के पानी में प्रवाहित करने पर चूने का पानी दूधिया हो जाता है। जिससे स्पष्ट है कि हीरा तथा ग्रेफाइट कार्बन के . अपरूप हैं।
Cहीरा + O2 → CO2
Cप्रेफाइट + O2 → CO2

प्रश्न 23.
क्या होगा यदि हीरे के किसी टुकड़े को दहकते चारकोल में डाल दिया जाये?
उत्तर:
यदि हीरे के टुकड़े को दहकते चारकोल में डाल दिया जाये तो वह पूर्णत: जल जाएगा और जलने के पश्चात् केवल CO2 गैस प्राप्त होती है तथा दहन के पश्चात् कोई अवशेष नहीं रहता जिससे स्पष्ट है कि हीरा कार्बन का शुद्धतम रूप है।
Cहीरा + O2 → CO2

प्रश्न 24.
कार्बन मोनोऑक्साइड के उपयोग लिखिये।
उत्तर:

  • यह जल गैस (CO + H2) तथा प्रोड्यूसर गैस (CO + N2) का प्रमुख घटक है।
  • कुछ धातु कार्बोनिल को बनाने के लिये प्रयुक्त होता है।
  • कार्बन मोनोऑक्साइड अपचायक के रूप में प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 25.
प्रकृति में ग्रेफाइट की तुलना में हीरा कम मिलता है, क्यों? .
उत्तर:
हीरे का निर्माण कार्बन की पिघली हुई अवस्था में अत्यधिक दाब से क्रिस्टलीय रूप में परिवर्तन के कारण होता है। लेकिन प्रकृति में ऐसी अवस्था बहुत कम होती है इसलिये हीरा ग्रेफाइट की तुलना में कम मिलता है।

प्रश्न 26.
शुष्क बर्फ किसे कहते हैं ? इसके प्रमुख उपयोग लिखिए।
उत्तर:
ठोस कार्बन डाइ-ऑक्साइड को शुष्क बर्फ कहते हैं क्योंकि इसके क्रिस्टल बर्फ के समान दिखते हैं तथा ये कागज तथा कपड़े को गीला नहीं करते हैं। – 78.5° पर द्रव हुए बिना ही ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। इसका उपयोग शीतलक के रूप से खाद्य पदार्थों को सड़ने से बचाने के लिये तथा शल्य चिकित्सा में निश्चेतक के रूप में किया जाता है।

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प्रश्न 27.
कार्बोरण्डम क्या है ? इसका प्रमुख उपयोग लिखिए।
उत्तर:
सिलिकॉन कार्बाइड की संरचना हीरे के समान कठोर होती है इसे कार्बोरण्डम कहते हैं। इसका उपयोग धातुओं में धार बनाने के लिये तथा पीसने के लिये होता है।

प्रश्न 28.
प्रशीतक, निश्चेतक एवं विलायक के रूप में प्रयुक्त होने वाले कार्बनिक यौगिक का नाम एवं संरचना सूत्र लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 45

प्रश्न 29.
ग्रेफाइट के उपयोग लिखिए।
उत्तर:
ग्रेफाइट के उपयोग –

  • यह विद्युत् का सुचालक है। इसलिये इसका उपयोग शुष्क सेल, विद्युत् आर्क में इलेक्ट्रोड के रूप में होता है।
  • इससे पेंसिल, काला पेंट, काली स्याही बनाई जाती है।
  • इसके स्नेहक गुण के कारण इसका उपयोग उच्च ताप पर मशीनों को चिकना बनाये रखने में होता है।

प्रश्न 30.
कोल की किस्मों के नाम लिखिये।
उत्तर:
कोल में उपस्थित कार्बन के आधार पर इसके निम्न प्रकार होते हैं –

  • पीट – इसमें 60% कार्बन होता है।
  • लिग्नाइट – इसमें 70% कार्बन होता है।
  • बिटुमिनस – इसमें 80% कार्बन होता है।
  • ऐन्थेसाइटइसमें 90% कार्बन होता है।

प्रश्न 31.
हीरे के उपयोग लिखिए।
उत्तर:
हीरे के उपयोग –

  • बहुमूल्य जवाहरात के रूप में
  • काँच को काटने के काम में आता है।
  • चट्टानों में छेद करने के काम आता है।
  • नगों पर पॉलिश करने के काम आता है।

प्रश्न 32.
कार्बन डाइ-ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय है। समीकरण सहित समझाइये।
उत्तर:
कार्बन डाइ – ऑक्साइड का जलीय विलयन अम्लीय होता है।
CO2 + H2O →H2CO2 (कार्बोनिक अम्ल)
यह नीले लिटमस को लाल कर देता है तथा क्षार में क्रिया कराने पर लवण बनाता है। .
2 NaOH + CO2 → Na2CO3 + H2O
Ca (OH)2 + CO2 → CaCO3 + H2O.

प्रश्न 33.
किसी बंद कमरे में अंगीठी जलाकर क्यों नहीं सोना चाहिए?
उत्तर:
बंद कमरे में अंगीठी इसलिये नहीं जलानी चाहिए, क्योंकि अंगीठी से निकलने वाली गैस में CO की मात्रा अधिक होती है। यह श्वसन की क्रिया के द्वारा शरीर के भीतर पहुँचकर रक्त की हीमोग्लोबिन के साथ संयुक्त होकर कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन बनाती है जो शरीर के विभिन्न भागों में ऑक्सीजन एवं रक्त परिवहन में बाधा उत्पन्न कर देता है। इस कारण मनुष्य को बेहोशी आ सकती है तथा उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

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प्रश्न 34.
कार्बाइड क्या होते हैं ?
उत्तर:
कार्बन के वे द्विअंगी यौगिक जो कार्बन अपने से कम ऋणविद्युती या उच्च धनविद्युती तत्व के साथ बनाता है, कार्बाइड कहलाते हैं। ये अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे –

  • आयनिक कार्बाइड
  • धात्विक कार्बाइड
  • माध्यमिक कार्बाइड
  • सहसंयोजी कार्बाइड।

प्रश्न 35.
सिलिका जेल का उपयोग लिखिए।
उत्तर:
सिलिका जेल सरन्ध्र अक्रिस्टलीय ठोस हैं जिसमें 4% नमी होती है-इसका उपयोग उत्प्रेरक के रूप में पेट्रोलियम उद्योग में होता है। क्रोमेटोग्राफी में भी प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 36.
थिक्सोट्रॉपी किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी द्रव को हिलाने से या मथने से अस्थायी रूप से उसकी श्यानता घट जाती है। इस गुण को थिक्सोट्रॉपी कहते हैं। जब SiCl4 का जल-अपघटन उच्च ताप पर किया जाता है तो प्राप्त होने वाले सिलिका में थिक्सोट्रॉपी का गुण होता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 46
पॉलीएस्टर तथा एपॉक्सी रेजिन एवं पेंट की श्यानता कम करने के लिये इसका उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 37.
अंतराकाशी कार्बाइड किसे कहते हैं ?
उत्तर:
संक्रमण धातुओं के क्रिस्टल जालकों के अंतराकाशी स्थानों में जब कार्बन परमाणु समावेशित होते हैं। तो ऐसे बनने वाले कार्बाइड अंतराकाशी कार्बाइड होते हैं। ये अत्यंत कठोर होते हैं तथा इनके गलनांक उच्च होते हैं।
उदाहरण – टंगस्टन कार्बाइड, आयरन कार्बाइड।

प्रश्न 38.
मेथेनाइड तथा एसीटिलाइड क्या होते हैं ?
उत्तर:
1. जो कार्बाइड जल-अपघटित होकर मेथेन देते हैं वे मेथेनाइड कहलाते हैं।
Al4C3 +12H2O →4Al(OH)3 + 3CH4
2. जो कार्बाइड जल-अपघटित होकर एसीटिलीन देते हैं, एसीटिलाइड कहलाते हैं।
CaC2 + 2H2O → Ca(OH)2 + C2H2

प्रश्न 39.
बेरीलियम तथा कैल्सियम दोनों एक ही समूह के सदस्य हैं फिर भी कैल्सियम कार्बाइड CaC2 है जबकि बेरीलियम कार्बाइड Be2C है, क्यों?
उत्तर:
कैल्सियम कार्बाइड का जल-अपघटित होकर एसीटिलीन बनता है, अतः इसकी संरचना कैल्सियम कार्बाइड के रूप में है।
जबकि बेरीलियम कार्बाइड का जल-अपघटित होकर मेथेन बनता है, अतः इसकी संरचना बेरोलियम मेथेनाइड के रूप में होनी चाहिये।

प्रश्न 40.
सिलेन तथा जर्मेन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
Si तथा Ge के हाइड्राइड को सिलेन तथा जर्मेन कहते हैं जिसे Mn H2n+2) से दर्शाते हैं जहाँ M = Si, Ge है। सिलेन में n का मान 1 से 8 तक हो सकता है। जबकि जर्मेन में n का मान 1 से 5 तक हो सकता है।

प्रश्न 41.
सक्रिय चारकोल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
चारकोल मुलायम तथा सरन्ध्र होता है। यह रंगीन पदार्थ एवं गंध वाली गैसों को शोषित कर लेता है। यदि इसको भाप में 1100°C पर गर्म किया जाता है, तो इसकी शोषण शक्ति और बढ़ जाती है और यह सक्रिय चारकोल कहलाता है।

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11 p-ब्लॉक तत्त्व लघु उत्तरीय प्रश्न – I

प्रश्न 1.
क्या होता है, जब बोरिक अम्ल को गर्म किया जाता है ?
उत्तर:
बोरिक अम्ल को गर्म करने पर विभिन्न तापों पर जल के तीन अणु मुक्त करता है तथा अन्त में बोरॉन ट्राइऑक्साइड बनाता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 47

प्रश्न 2.
फिटकरी क्या है ? इसका सामान्य सूत्र बताकर इसके उपयोग बताइये।
उत्तर:
पहले पोटैशियम सल्फेट और ऐल्युमिनियम सल्फेट के द्विक लवण K2SO4 AI2 (SO4)3.24H2O को फिटकरी कहते थे। परन्तु आजकल R2SO4 : M2 (SO4)3.24H2O सामान्य सूत्र वाले सभी द्विक लवण फिटकरी कहलाते हैं । जहाँ K = एकसंयोजी धातु जैसे- Na, K, Rb, Cs आदि ।
M= त्रिसंयोजी धातु जैसे – Al, Cr, Fe इत्यादि।
उपयोग –

  • जल के शोधन में
  • चमड़ा रंगने में
  • कागज उद्योग में
  • आग बुझाने के यंत्रों में
  • कपड़ों की रंगाई में
  • रक्त का बहना रोकने में।

प्रश्न 3.
ऐल्युमिनियम की चार मिश्र धातुओं के नाम, संघटन एवं उपयोग लिखिये।
उत्तर:
ऐल्युमिनियम की मिश्र धातुएँ –
(1) ऐल्युमिनियम ब्रांज – Cu (90%) + Al (10%)
उपयोग –
बर्तन, सस्ते आभूषण, सिक्के बनाने में।

(2) मैग्नेलियम –
Mg (10%) + Al (90%)
उपयोग –
वायुयान, औजार और तुला बनाने में।

(3) यूरेनियम – Al(95%) + Cu (4%) + Mn (0.5%) + Mg (0.5%)
उपयोग –
वायुयान बनाने में।

(4) निकेलॉय –
AI(95%) + Cu(4%) + Ni (1%)

प्रश्न 4.
ऐल्युमिनियम ताँबे की तुलना में विद्युत् का दुर्बल सुचालक है फिर भी विद्युत् केबल में ऐल्युमिनियम का उपयोग होता है। क्यों ?
उत्तर:
कॉपर, ऐल्युमिनियम की तुलना में अच्छा सुचालक है, किन्तु ऐल्युमिनियम हल्की धातु है तथा ऐल्युमिनियम का घनत्व कॉपर की तुलना में अत्यंत कम है। इस प्रकार भारानुसार ऐल्युमिनियम कॉपर की तुलना में अच्छा चालक है। इसलिये इलेक्ट्रिक वायर तथा केबल बनाने में कॉपर के स्थान पर ऐल्युमिनियम का उपयोग ज्यादा होता है।

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प्रश्न 5.
बोरॉन केवल सहसंयोजी यौगिक बनाता है, क्यों?
उत्तर:
बोरॉन के छोटे आकार तथा उच्च आयनन ऊर्जा के कारण धनायन बनाने की प्रवृत्ति अत्यन्त कम होती है। इसलिये बोरॉन तीन इलेक्ट्रॉन को त्यागकर त्रिसंयोजी आयन नहीं बना सकता है। अपना स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने के लिये यह अन्य तत्वों के परमाणु के साथ इलेक्ट्रॉन का साझा करके स्थायी यौगिकों का निर्माण करता है इसलिये बोरॉन केवल सहसंयोजी यौगिक बनाता है।

प्रश्न 6.
बोरॉन के हैलाइड प्रबल लुईस अम्ल की तरह कार्य करते हैं, क्यों?
उत्तर:
बोरॉन के संयोजी कोश में तीन इलेक्ट्रॉन होते हैं। जब यह तीन हैलोजन परमाणुओं के साथ इलेक्ट्रॉन का साझा करके बोरॉन ट्राई हैलाइड बनाता है। तब भी इस बोरॉन ट्राई हैलाइड के संयोजी कोश में कुल 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं इन्हें अभी भी अपना अष्टक पूर्ण करने के लिये एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म की आवश्यकता होती है। इसलिये ये इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक है तथा इलेक्ट्रॉन ग्राही की तरह कार्य करता है तथा किसी भी इलेक्ट्रॉन युग्म दाता यौगिक द्वारा दिये गये एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण कर उप-सहसंयोजी बंध बनाते हैं तथा एक योगात्मक यौगिक का निर्माण करते हैं । इसलिये ये प्रबल लुईस अम्ल की तरह कार्य करते हैं।

प्रश्न 7.
ऐल्युमिनियम को उसके अयस्कों से अपचयन विधि द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता, क्यों?
उत्तर:
ऐल्युमिनियम प्रबल धन विद्युती होने के कारण अपचायक की तरह कार्य करता है। इसलिये ऐल्युमिनियम को सरलता से ऑक्सीकृत किया जा सकता है, आयनन ऊर्जा तथा इलेक्ट्रॉन बंधुता के आधार पर यह स्पष्ट है कि ऐल्युमिनियम इलेक्ट्रॉन दाता की तरह कार्य करता है इलेक्ट्रॉन ग्राही की तरह नहीं । इसलिये इसे अपचयित नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि ऐल्युमिनियम को उसके अयस्कों के अपचयन द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
गैलियम की परमाण्विक त्रिज्या ऐल्युमिनियम से कम होती है, क्यों?
उत्तर:
गैलियम में d कक्षक में 10 इलेक्ट्रॉन होते हैं। d कक्षक की आकृति इस प्रकार की होती है कि उसका परिरक्षण प्रभाव कम प्रभावी होता है। जिसके कारण बाहरी कोश के इलेक्ट्रॉन के प्रति नाभिक का आकर्षण बल अधिक होता है जिसके फलस्वरूप बाहरी कोश के इलेक्ट्रॉन नाभिक की ओर अधिक दृढ़ता से आकर्षित होने लगते हैं। जिसके कारण गैलियम की परमाण्विक त्रिज्या में कमी आती है। इसलिये गैलियम की परमाण्विक त्रिज्या ऐल्युमिनियम से कम है।

प्रश्न 9.
क्या कारण है कि बोरॉन के हैलाइड अमोनिया तथा एमीन के साथ सहसंयोजी यौगिक बनाते हैं ?
उत्तर:
बोरॉन के संयोजी कोश में तीन इलेक्ट्रॉन होते हैं । जब यह तीन हैलोजन परमाणुओं के साथ इलेक्ट्रॉन का साझा करके बोरॉन ट्राइहैलाइड बनाता है। तब भी इस बोरॉन ट्राइहैलाइड के संयोजी कोश में कुल 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इन्हें अभी भी अपना अष्टक पूर्ण करने के लिये एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म की आवश्यकता होती है। इसलिये ये इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक हैं तथा इलेक्ट्रॉन ग्राही की तरह कार्य करते हैं तथा किसी भी इलेक्ट्रॉन युग्म दाता यौगिक जैसे अमोनिया या एमीन द्वारा दिये गये एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण कर उप-सहसंयोजी बंध बनाते हैं तथा एक योगात्मक यौगिक का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 10.
बोरॉन परिवार सामान्यतः + 1 तथा + 3 ऑक्सीकरण संख्या दर्शाते हैं, क्यों ?
उत्तर:
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 48
बोरॉन परिवार के सभी सदस्यों का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns- np’ है । साधारण अवस्था में इनके संयोजी कोश के p उपकोश में एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन रहता है। लेकिन उत्तेजित अवस्था में 2s का एक इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर 2p उपकोश में चला जाता है। इस प्रकार उत्तेजित अवस्था में तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं । इसलिये बोरॉन परिवार के सभी सदस्य + 1 तथा + 3 ऑक्सीकरण संख्या दर्शाते हैं।

प्रश्न 11.
बोरॉन परिवार में अक्रिय युग्म प्रभाव को समझाइये।
उत्तर:
बोरॉन परिवार के सदस्य साधारण अवस्था में +1 तथा उत्तेजित अवस्था में +3 ऑक्सीकरण संख्या दर्शाते हैं। समूह में ऊपर से नीचे आने पर +1ऑक्सीकरण संख्या का स्थायित्व बढ़ता है लेकिन +3 ऑक्सीकरण संख्या का स्थायित्व कम होता है। क्योंकि संयोजी कोश के 5 कक्षक के दो इलेक्ट्रॉन बंध निर्माण में भाग नहीं लेते। इसे अक्रिय युग्म प्रभाव कहते हैं।

जब परमाणु क्रमांक में वृद्धि होती है तो इलेक्ट्रॉन d उपकोश में प्रवेश करता है तथा d तथा f उपकोश की आकृति इस प्रकार की होती है कि उनका परिरक्षण प्रभाव न्यूनतम होता है जिसके कारण संयोजी कोश के इलेक्ट्रॉनों पर नाभिक का आकर्षण बल बढ़ जाता है तथा इस आकर्षण बल में वृद्धि 5 उपकोश के इलेक्ट्रॉनों पर p उपकोश की तुलना में अधिक होती है। इसलिये ऽ उपकोश के इलेक्ट्रॉन बंध बनाने में भाग नहीं लेते।

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प्रश्न 12.
कोलमेनाइट से बोरिक अम्ल किस प्रकार प्राप्त करते हैं ?
उत्तर:
कोलमेनाइट को उबलते हुये जल में विलेय करके सल्फर डाइ ऑक्साइड गैस प्रवाहित करने पर बोरिक अम्ल व कैल्सियम बाइ सल्फाइट बनता है। कैल्सियम बाइसल्फाइट विलेय रहता है जबकि बोरिक अम्ल क्रिस्टलीत हो जाता है।

  • Ca2B6O11  + 4H2 O + 4SO2  → H4 B6O11 + 2Ca(HSO3 )2
  • H4 B6 O11  + 7H2O → 6H3BO3
  • Ca2B6O11 + 11H2O + 4SO2 → 6H3BO3 + 2Ca(HSO3)2

प्रश्न 13.
बोरेक्स काँच क्या है ?
उत्तर:
निर्जल सोडियम टेट्राबोरेट Na2 B4O7 बोरेक्स काँच कहलाता है। साधारण बोरेक्स को उसके गलनांक के ऊपर गर्म करने पर प्राप्त होता है। यह एक रंगहीन काँच जैसा पदार्थ है। वायु से नमी शोषित करके डेकाहाइड्रेट रूप में बदल जाता है। गर्म जल में विलेय है। इसका जलीय विलयन अपघटन के कारण क्षारीय होता है। गर्म करने पर श्वेत अपारदर्शी पदार्थ में फूल जाता है। निर्जल पदार्थ 740°C पर बोरेक्स काँच देता है।
Na2B4O7 + 2H2O  ⇌  H2B4O7 + 2NaOH

प्रश्न 14.
बोरेक्स पर ऊष्मा के प्रभाव को समझाइये।
उत्तर:
बोरेक्स को तीव्र गर्म करने पर इसका क्रिस्टलीय जल अलग हो जाता है तथा अंततः वह पिघल कर पारदर्शी मणिका में बदल जाता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 49
बोरिक एनहाइड्राइड B2O3 धात्विक ऑक्साइडों से क्रिया कर मेटाबोरेट बनाता है। जिनका अपना विशिष्ट रंग होता है। सुहागा मणिका परीक्षण के नाम से जानी जाती है यह क्रिया भास्मिक मूलकों के परीक्षण में सहायक होती है।

प्रश्न 15.
बोरेक्स बीड परीक्षण क्या है ?
उत्तर:
बोरेक्स को गर्म करने पर क्रिस्टलन जल का निष्कर्षण करके श्वेत काँच जैसा पदार्थ देता है जो मनका बना लेता है। इस मनके में सोडियम मेटाबोरेट और बोरिक एनहाइड्राइड होता है।
Na2B4O7. 10H2O →2NaBO2 + B2O2 + 10H2O
जब इस मनके को रंगीन मिश्रण के साथ गर्म किया जाता है तो बोरिक एनहाइड्राइड धातु लवण के साथ क्रिया करके मेटा बोरेट बना लेता है जिसका एक विशेष रंगीन मनका होता है।
उदाहरण –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 50
इस परीक्षण को करने के लिये साफ प्लेटीनम तार का छल्ला बनाकर उस पर बोरेक्स के क्रिस्टल को गर्म करके एक पारदर्शक मनका प्राप्त कर लिया जाता है। गर्म मनके को रंगीन मिश्रण के साथ छुआ देते हैं और फिर ऑक्सीकारक तथा अपचायक ज्वाला पर गर्म करते हैं । रंगों के आधार पर धातुओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

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प्रश्न 16.
बोरेक्स के कितने रूप होते हैं ? इनका संक्षिप्त में वर्णन कीजिये।
उत्तर:
बोरेक्स निम्नलिखित तीन रूपों में पाया जाता है –
(1) प्रिज्मीय बोरेक्स – यह डेकाहाइड्रेट Na2B4O7 10H2O है। यह साधारण रूप है तथा साधारण ताप पर विलयन का क्रिस्टलीकरण करने पर प्राप्त होता है।
(2) अष्टफलकीय बोरेक्स – यह बोरेक्स पेन्टा हाइड्रेट Na2B4O7 ·5H2O है। यह विलयन का 60°C से ऊपर क्रिस्टलीकरण करने पर बनता है।
(3) बोरेक्स काँच – यह निर्जल सोडियम टेट्राबोरेट Na2B4O7 है । यह साधारण बोरेक्स को उसके गलनांक के ऊपर गर्म करने पर प्राप्त होता है। यह एक रंगहीन काँच जैसा पदार्थ है। यह वायु से नमी शोषित करके डेकाहाइड्रेट रूप में बदल जाता है। इसका जलीय विलयन क्षारीय होता है।
Na2B4O7 + 2H2O → H2B4O7 +2NaOH

प्रश्न 17.
बोरेट मूलक का परीक्षण किस प्रकार करते हैं ? ..
उत्तर:
प्रयोगशाला में अम्लीय बोरेट मूलक BO-33 का परीक्षण करने के लिये लवण को एथेनॉल तथा सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करते हैं जिससे एथिल बोरेट की वाष्प निकलती है। यह वाष्प हरे कोर की ज्वाला से जलती है। वास्तव में लवण पहले बोरिक अम्ल में परिवर्तित होता है। यह बोरिक अम्ल एथेनॉल से क्रिया कर ट्राइ एथिल बोरेट बनाता है।
H3BO3 + 3C2H5OH → BOC2H5)3 + 3H2O

प्रश्न 18.
ऐल्युमिनियम क्लोराइड की संरचना को समझाइये।
उत्तर:
ऐल्युमिनियम ट्राइक्लोराइड वास्तव में डाईमर Al2Cl6 के रूप में प्राप्त होता है। Al के संयोजी कोश में तीन इलेक्ट्रॉन होते हैं। जब यह तीन क्लोरीन के साथ इलेक्ट्रॉन का साझा करके AlCl3 का निर्माण करता है तो Al के संयोजी कोश में कुल 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसे अपना अष्टक पूर्ण करने के लिये एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में AlCl3 का ऐल्युमिनियम इसके AlCl3 के क्लोरीन का इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण कर अपना अष्टक पूर्ण कर लेता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 51

प्रश्न 19.
कुछ अभिक्रियाओं में थैलियम, ऐल्युमिनियम से समानता दर्शाता है, जबकि अन्य में यह समूह-1 के धातुओं से समानता दर्शाता है। इस तथ्य को कुछ प्रमाणों के द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
थैलियम तथा ऐल्युमिनियम दोनों वर्ग-13 के तत्व हैं। इसके संयोजी कोश का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns – np’ है। ऐल्युमिनियम केवल + 3 ऑक्सीकरण अवस्था, प्रदर्शित करता है। ऐल्युमिनियम की भाँति, थैलियम भी कुछ यौगिकों में + 3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है।  उदाहरण- TI2O3, TIC3 आदि। ऐल्युमिनियम की भाँति थैलियम भी अष्टफलकीय आयन जैसे [AIF6]-3 तथा [TIF6]-3 बनाता है। वर्ग-1 की क्षार धातुओं के समान, थैलियम अक्रिय युग्म प्रभाव के कारण + 1 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है। उदाहरण- TICl, TI2O आदि। क्षार धातु हाइड्रॉक्साइडों की भाँति, TIOH भी जल में विलेय है तथा जलीय विलयन प्रबल क्षारीय है। TI2SO4, क्षार धातु सल्फेटों की भाँति फिटकरी बनाता है। TI2SO2, क्षार धातु सल्फेटों की भाँति फिटकरी बनाता है तथा TI2CO3, क्षार धातु कार्बोनेट की भाँति जल में विलेय है।

प्रश्न 20.
संरचना के आधार पर हीरा तथा ग्रेफाइट के गुणों में निहित भिन्नता समझाइए।
उत्तर:
हीरा तथा ग्रेफाइट के गुणों में भिन्नता –

हीरा:

  • इसमें C, sp3 संकरित है।
  • इसकी ज्यामिति त्रिविमीय चतुष्फलकीय होती है।
  • यह उच्च घनत्व तथा उच्च क्वथनांक के साथ
  • यह ऊष्मा तथा विद्युत् का कुचालक (मुक्त इलेक्ट्रॉन मुक्त होता है) होता है।
  • इसका प्रयोग काँच काटने में, आभूषणों तथा अपघर्षक के रूप में होता है।

ग्रेफाइट:

  • इसमें C, sp2 संकरित है।
  • इसमें ज्यामिति द्विविमीय परतीय होती है।
  • यह निम्न घनत्व तथा उच्च क्वथनांक के साथ कठोरतम पदार्थ है। मुलायम तथा चिकनाई वाला पदार्थ है।
  • यह ऊष्मा तथा विद्युत् का सुचालक (चौथा इलेक्ट्रॉन की अनुपस्थिति) होता है।
  • यह स्नेहक के रूप में, इलेक्ट्रोड निर्माण में, पेंसिल में, क्रूसीबल (उच्च गलनांक के कारण) आदि के निर्माण में प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 21.
बैक बॉण्डिंग को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
बोरॉन ट्राइ क्लोराइड के संयोजी कोश में कुल 6 इलेक्ट्रॉन हैं, इलेक्ट्रॉन ग्राही होने की वजह से BF लुईस अम्ल की तरह कार्य करता है तथा इसे प्रबल लुईस अम्ल होना चाहिये लेकिन यह दुर्बल लुईस अम्ल की तरह कार्य करता है। BF3 में बोरॉन sp2संकरित अवस्था में होने के कारण BF3 समतलीय अणु है। इस अणु में बोरॉन का एक 2pz कक्षक पूर्णतः रिक्त रहता है। दूसरी ओर फ्लुओरीन के 2pz कक्षक में 2 इलेक्ट्रॉन हैं। ऐसी स्थिति में बोरॉन के 2pz कक्षक तथा फ्लुओरीन के 2pz कक्षक में अतिव्यापन कर बंध बना सकते हैं। इसे बैक बॉण्डिंग कहते हैं।

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प्रश्न 22.
(1) BCl3 स्थायी है किन्तु B2Cl6 का अस्तित्व नहीं जबकि AlCl3 अस्थायी है, क्यों ?
(2) AlCl3 अस्थायी है, Al2Cl6 स्थायी, इसका क्या कारण है ?
उत्तर:
(1) BCl3 स्थायी है क्योंकि BCl3 के संयोजी कोश में इलेक्ट्रॉन होते हैं लेकिन बैक बॉण्डिंग (Back Bonding) के कारण बनने वाली विभिन्न अनुनाद संरचनाएँ अनुनाद के द्वारा BCl3 को स्थायित्व प्रदान करती है। लेकिन B के पास रिक्त d कक्षक नहीं है इसलिये बोरॉन क्लोरीन परमाणु द्वारा दिये जाने वाले इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण नहीं कर पाता इसलिये B2Cl6 का बनना संभव नहीं है।

(2) AlCl3 के संयोजी कोश में कुल 6 इलेक्ट्रॉन हैं अष्टक पूर्ण न होने के वजह से AlCl3 अस्थायी है लेकिन Al2Cl6 डाईमर में ऐल्युमिनियम का रिक्त d कक्षक क्लोरीन द्वारा दिये गये एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण कर अपना अष्टक पूर्ण कर लेता है इसलिये Al2Cl6 स्थायी है।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित यौगिकों के सूत्र एवं कोई दो उपयोग लिखिए –
(1) बोरेक्स
(2) बोरिक अम्ल।
उत्तर:
(1) बोरेक्स-सूत्र-Na2B4O7.10H2O
उपयोग –
(1) अपने प्रतिरोधी गुण के कारण औषधीय साबुन बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
(2) चश्में के काँच (बोरोग्लास) बनाने में।

(2) बोरिक अम्ल-सूत्र – H3BO3
उपयोग –
(1) बोरिक अम्ल का उपयोग इनेमल के निर्माण में तथा बर्तनों को चमकाने में किया जाता है।
(2) बोरिक अम्ल अपने पूतिरोधी (Antiseptic) स्वभाव के कारण आँखों को धोने में काम आता है।

11 p-ब्लॉक तत्त्व लघु उत्तरीय प्रश्न – II

प्रश्न 1.
श्रृंखलन किसे कहते हैं तथा यह प्रवृत्ति किस तत्व में सबसे अधिक है और क्यों?
उत्तर:
किसी तत्व की अपने अन्य परमाणुओं के साथ संयोग कर लंबी श्रृंखला बनाने की प्रवृत्ति को श्रृंखलन कहते हैं। यह प्रवृत्ति कार्बन में सबसे अधिक होती है, क्योंकि कार्बन के छोटे आकार तथा प्रबल बंध के कारण श्रृंखला में बनने वाले बंध अधिक प्रबल व स्थायी होते हैं। Si में यह प्रवृत्ति कार्बन से कम होती है। Ge में यह प्रवृत्ति अत्यन्त कम होती है। Sn तथा Pb में यह प्रवृत्ति नगण्य होती है।

प्रश्न 2.
हीरे की संरचना लिखिये।
उत्तर:
हीरे में प्रत्येक कार्बन परमाणु sp3 संकरित अवस्था में होता है तथा प्रत्येक कार्बन अन्य चार कार्बन परमाणुओं से एकल सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़ा रहता है तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु एक समचतुष्फलक के केन्द्र पर स्थित है, तथा अन्य चार कार्बन परमाणु समचतुष्फलक के कोनों पर स्थित है। इस त्रिविमीय संरचना के कारण हीरा अत्यंत कठोर व उच्च गलनांक वाला होता है। इसमें C-C बंध लंबाई 1.54 A होता है।

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प्रश्न 3.
ग्रेफाइट की संरचना लिखिये।
उत्तर:
ग्रेफाइट में प्रत्येक C परमाणु sp3संकरित अवस्था में / होता है। प्रत्येक कार्बन परमाणु तीन अन्य कार्बन परमाणुओं द्वारा एकल सहसंयोजक बंध से जुड़ा रहता है एवं प्रत्येक परमाणु का चौथा इलेक्ट्रॉन मुक्त होता है। इससे C – C बंध लंबाई 1.42 A होती है। इसमें कार्बन परमाणु एक-दूसरे के साथ जुड़कर अनेक षट्भुजीय रिंग बनाते हैं। ये रिंग आपस में मिलकर तल बनाते हैं, तथा इन पर्तों के मध्य दुर्बल वाण्डर वाल्स बल होने के कारण ये पर्ते एक-दूसरे के ऊपर आसानी से फिसल सकती हैं। अतः इसका उपयोग स्नेहक के रूप में होता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 52
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 53

प्रश्न 4.
कृत्रिम ग्रेफाइट बनाने की औद्योगिक विधि का रासायनिक समीकरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृत्रिम ग्रेफाइट अमेरिका के रसायनज्ञ एडवर्ड जी. एकीसन की विधि द्वारा बनाया जाता है। इस विधि द्वारा कोक और बालू के मिश्रण 6 को एक विद्युत् भट्टी में गर्म करते हैं जिसमें कार्बन के दो इलेक्ट्रोड लगे रहते हैं जो आपस में कार्बन कोक+बालू की एक पतली सलाखा से जुड़े रहते हैं। विद्युत धारा प्रवाहित करने पर 3000°C ताप पर कार्बन सिलिका के साथ अभिक्रिया कर सिलिकॉन कार्बाइड बनाता है, इस अभिक्रिया में आयरन ऑक्साइड उत्प्रेरक का कार्य करता है। यह सिलिकॉन कार्बाइड विघटित होकर ग्रेफाइट बनाता है।
3C + SiO2  → 2CO + SiC
SiC → Si + C (ग्रेफाइट)।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 54

प्रश्न 5.
कृत्रिम हीरा बनाने की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्रेफाइट की प्याली में शर्करा, चारकोल एवं आयरन ऑक्साइड का मिश्रण लेकर उसे विद्युत् भट्टी में 3000°C ताप पर गर्म करते हैं। इसके बाद इसे गलित लेड में रखा जाता है। गलित लेड का ताप लोहे की तुलना में कम होता है जिसके कारण लोहा ठोस अवस्था में आने लगता है जिसके फलस्वरूप दाब के कारण कार्बन छोटे-छोटे हीरे के क्रिस्टल के रूप में पृथक होने लगता है। लोहे को HCl में विलेय करके पृथक् कर लिया जाता है। इस प्रकार कृत्रिम हीरा प्राप्त होता है।

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प्रश्न 6.
कार्बन परमाणु की संयोजकता सम्बन्धी लेवेल तथा वाण्ट हॉफ का नियम समझाइये। अथवा, कार्बन की समचतुष्फलक प्रकृति से क्या समझते हो?
उत्तर:
कार्बन का परमाणु क्रमांक 6 है इसके आधार पर प्रथम कक्ष में 2 इलेक्ट्रॉन और द्वितीय कोश में 4 इलेक्ट्रॉन होते हैं। अत: इसकी संयोजकता चार होती है। लेवेल तथा वाण्ट हॉफ के अनुसार यदि कार्बन परमाणु को समचतुष्फलक के केन्द्र पर स्थित माने तो चतुष्फलक की चारों भुजायें कार्बन की चारों संयोजकता को दर्शाती है, किन्हीं भी दो संयोजकताओं के बीच कोण का मान 109° 28° होता है। हेनरी के प्रयोग के अनुसार कार्बन संयोजकतायें सममित रूप में व्यवस्थित होती हैं। ये अंतरिक्ष में चतुष्फलकीय रूप से व्यवस्थित होती हैं। एक ही तल में स्थित नहीं होती हैं।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 55

प्रश्न 7.
ग्रेफाइट में स्नेहक गुण का कारण लिखिये।
उत्तर:
ग्रेफाइट में कार्बन परमाणु एक-दूसरे से सहसंयोजक बंधों द्वारा जुड़कर षट्कोणीय जाल बनाते हैं। ये रिंग आपस में मिलकर तल बनाते हैं। ग्रेफाइट में ऐसे कई तल एक के ऊपर एक, एक-दूसरे से 3.4A की दूरी पर होते हैं तथा प्रत्येक तल दुर्बल वाण्डर वाल्स बल के द्वारा बँधे होने के कारण एक-दूसरे पर सरलता से फिसल सकते हैं जिसके कारण ग्रेफाइट नर्म होता है तथा इसके गलनांक उच्च होते हैं। इसलिये ऐसी मशीनें जो चलने पर अधिक गर्म हो जाती हैं उनके लिये ग्रेफाइट का उपयोग स्नेहक के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 8.
हीरे का उपयोग काटने वाले औजारों में किया जाता है, क्यों?
उत्तर:
हीरे में प्रत्येक कार्बन परमाणु sp2 संकरित अवस्था में होता है तथा प्रत्येक कार्बन अन्य चार कार्बन परमाणुओं से प्रबल सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़ा होता है। इस प्रकार हीरे में एक चतुष्फलकीय त्रि – आयामी संरचना बन जाती है जो अत्यन्त सुदृढ़ होती है। इसलिये हीरा सबसे कठोर ज्ञात तत्व है और इसलिये इसका उपयोग काटने वाले औजारों में किया जाता है।

प्रश्न 9.
हीरे में एक विशेष चमक होती है, क्यों? अथवा, हीरे का उपयोग आभूषण बनाने में होता है, क्यों?
उत्तर:
हीरे के उच्च अपवर्तनांक होने के कारण पूर्ण आंतरिक परावर्तन इसे चमकदार एवं सुंदर बना देता है। इसलिये हीरा अत्यन्त चमकीला होता है और इसका उपयोग कीमती आभूषण बनाने में होता है।

प्रश्न 10.
ग्रेफाइट मुलायम तथा हीरा कठोर होता है, क्यों ?
उत्तर:
ग्रेफाइट में प्रत्येक कार्बन परमाणु sp2संकरित अवस्था में होता है तथा ग्रेफाइट में कार्बन का प्रत्येक परमाणु अपने निकट के तीन परमाणुओं से उसी तल में जुड़कर एक षट्कोणीय जाल बनाता है। ऐसे अनेक तल एक के ऊपर एक ढीली अवस्था में सटे रहते हैं तथा इनके मध्य दुर्बल वाण्डर वाल्स बल होते हैं जिसके कारण ग्रेफाइट की पर्ते एक-दूसरे के ऊपर सरक सकती हैं इसी गुण के कारण ग्रेफाइट मुलायम होता है। हीरे में प्रत्येक कार्बन परमाणु sp3 संकरित अवस्था में होता है जिसमें प्रत्येक कार्बन अन्य चार कार्बन परमाणुओं द्वारा सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़ा रहता है और एक चतुष्फलकीय त्रि-आयामी संरचना बनाता है इसलिये हीरा अत्यंत कठोर होता है।

प्रश्न 11.
हीरा विद्युत् का कुचालक है जबकि ग्रेफाइट सुचालक है, कारण स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
हीरा तथा ग्रेफाइट दोनों ही कार्बन के अपररूप हैं तथा इनके परमाणु के बाह्यतम कोश में चार इलेक्ट्रॉन होते हैं। हीरे में कार्बन sp3 संकरित अवस्था में होता है तथा प्रत्येक कार्बन के चारों संयोजी इलेक्ट्रॉन अपने निकटतम चार कार्बन परमाणुओं से प्रबल सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़े होते हैं इस प्रकार किसी भी कार्बन के पास कोई स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन नहीं होता इसलिये यह अत्यन्त कठोर व विद्युत् का कुचालक है।

ग्रेफाइट में प्रत्येक कार्बन sp2 संकरित अवस्था में होता है तथा प्रत्येक कार्बन केवल तीन संयोजी इलेक्ट्रॉन अपने निकटतम तीन कार्बन परमाणुओं से प्रबल सहसंयोजक बंध द्वारा जुड़े रहते हैं तथा चौथा संयोजी इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र रहता है। इसलिये ग्रेफाइट में इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह सरलता से हो सकता है । इसलिये ग्रेफाइट नर्म एवं विद्युत् का सुचालक होता है।

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प्रश्न 12.
हीरे तथा ग्रेफाइट के भौतिक गुणों को तालिकाबद्ध कीजिए।
उत्तर:
हीरे तथा ग्रेफाइट के भौतिक गुणों की तुलना –
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प्रश्न 13.
सुपर क्रिटिकल द्रव क्या होता है ?
उत्तर;
किसी भी गैस को उसके क्रिटिकल ताप से कम ताप पर दबाव बढ़ाते हुये द्रवित किया जा सकता है। जिस दाब पर किसी गैस को द्रवित किया जा सकता है उसे उस द्रव का क्रिटिकल दाब कहते हैं। लेकिन CO2 गैस के ऊर्ध्वपातन गुण के कारण इसे द्रव अवस्था में नहीं लाया जा सकता इसलिये क्रिटिकल दाब से अधिक पर यह सुपर क्रिटिकल द्रव में बदल जाती है। CO2 के लिये क्रिटिकल ताप तथा क्रिटिकल दाब क्रमशः 31°C तथा 72.9 वायुमण्डलीय दाब है।

प्रश्न 14.
कार्बन मोनो-ऑक्साइड की वे अभिक्रियाएँ लिखिये जो बताती हैं कि वे हैं
1. ज्वलनशील,
2. असंतृप्त यौगिक
3. अपचायक।
उत्तर:
1. ज्वलनशील – ऑक्सीजन की उपस्थिति में यह दहन के पश्चात् CO, गैस देती है।
CO + \(\frac {1 }{ 2 }\)O2 → CO2
2. असंतृप्त यौगिक – कार्बन मोनो-ऑक्साइड असंतृप्त यौगिक होने के कारण योगात्मक यौगिक बनाती है।
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3. अपचायक – धातु ऑक्साइडों से क्रिया करके धातु अवकृत करती है।
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प्रश्न 15.
कार्बन तथा सिलिकॉन में समानता तथा असमानता लिखिये।
उत्तर:
समानता –

  • कार्बन तथा सिलिकॉन दोनों अधातु हैं।
  • दोनों के संयोजी कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2 np2 है।
  • दोनों अपरूपता दर्शाते हैं।
  • दोनों सहसंयोजी यौगिक बनाते हैं।
  • दोनों की सहसंयोजकता 4 है।
  • दोनों में शृंखलन की प्रवृत्ति होती है।
  • दोनों के ऑक्साइड अम्लीय हैं।

असमानता:
कार्बन तथा सिलिकॉन में असमानताएँ –
कार्बन:

  • ग्रेफाइट को छोड़कर कार्बन विद्युत् का कुचालक है।
  • कार्बन की अधिकतम सहसंयोजकता 4 है।
  • कार्बन में श्रृंखलन की प्रवृत्ति अधिक है।
  • कार्बन बहु आबंध बनाता है।
  • CO ज्ञात है।
  • CCl2  जल – अपघटित नहीं होता।

सिलिकॉन:

  • सिलिकॉन अर्धचालक है।
  • सिलिकॉन की अधिकतम सह संयोजकता 6 है।
  • सिलिकॉन में श्रृंखलन की प्रवृत्ति कम है।
  • सिलिकॉन बहु आबन्ध नहीं बनाता है।
  • SiO अज्ञात है।
  • SiC4  जल-अपघटित नहीं होता।

प्रश्न 16.
कार्बन तथा सिलिकॉन चतुर्संयोजकता दर्शाते हैं। जबकि Ge, Sn तथा Pb द्विसंयोजी होते हैं, क्यों?
उत्तर:
कार्बन तथा सिलिकॉन के छोटे आकार के कारण इनकी आयनन ऊर्जा अत्यधिक उच्च होती है। इसलिये यह इलेक्ट्रॉन का त्याग कर आयनिक यौगिक नहीं बनाते लेकिन अपना अष्टक पूर्ण करने के लिये अन्य तत्वों के परमाणुओं के साथ इलेक्ट्रॉन का साझा करके सहसंयोजी यौगिक बनाते हैं और चतुर्संयोजकता को दर्शाते हैं। Ge, Sn तथा Pb के बड़े आकार के कारण इनकी आयनन ऊर्जा अत्यन्त कम होती है।

इसलिये यह इलेक्ट्रॉन दान करके आयनिक यौगिक भी बना सकते हैं तथा इन यौगिकों में +2 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। अक्रिय युग्म प्रभाव के कारण समूह में ऊपर से नीचे आने पर समूह में + 4 ऑक्सीकरण संख्या का स्थायित्व कम होता है। लेकिन +2 ऑक्सीकरण संख्या का स्थायित्व बढ़ता है। इसलिये यह +2 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं।

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प्रश्न 17.
SnCl4 द्रव है जबकि SnCl2 ठोस है, क्यों?
अथवा,
टिन के एक यौगिक का अणुभार 189 तथा दूसरे का 260 है। इसके बावजूद पहला यौगिक ठोस जबकि दूसरा द्रव है। ऐसा क्यों? ।
उत्तर:
SnCl4 में Sn + 2 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है तथा सहसंयोजी यौगिकों का निर्माण करता है इसलिये SnCl4 द्रव है जबकि SnCl4 में Sn + 2 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है तथा आयनिक यौगिकों का निर्माण करता है इसलिये SnCl4 ठोस है।

प्रश्न 18.
Si, C के समान ग्रेफाइट संरचना नहीं बनाता, क्यों?
उत्तर:
Si ग्रेफाइट के समान संरचना नहीं बनाता, क्योंकि –
1. Si, sp2 संकरित यौगिकों का निर्माण नहीं करता जबकि ग्रेफाइट में कार्बन sp2संकरित अवस्था में होता है।
2. Si की परमाण्विक त्रिज्या कार्बन की परमाण्विक त्रिज्या से अधिक है जिसके कारण Si की इलेक्ट्रॉन बंधुता आयनन ऊर्जा इत्यादि कार्बन से कम है। जिसके कारण Si, C के समान 7 बंधों का निर्माण नहीं करता।

प्रश्न 19.
कार्बन की अधिकतम सहसंयोजकता 4 है जबकि इस समूह के अन्य सदस्यों की अधिकतम सहसंयोजकता 6 है, क्यों?
अथवा
कार्बन Si के समान उच्च ऑक्सीकरण नहीं दर्शाते, क्यों?
उत्तर:
कार्बन परिवार के सभी सदस्यों के संयोजी कोश में उत्तेजित अवस्था में 4 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। इन्हें अपना अष्टक पूर्ण करने के लिये 4 अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है। इसलिये अन्य तत्वों के साथ साझा कर सहसंयोजी बंध बनाते हैं। इसलिये इनकी सहसंयोजकता 4 होती है। कार्बन में d कक्षक की उपस्थिति के कारण उच्च ऑक्सीकरण संख्या संभव नहीं है।

जबकि अन्य सदस्यों में रिक्त d कक्षक की उपस्थिति के कारण उच्च ऑक्सीकरण संख्या संभव है क्योंकि रिक्त d कक्षक की उपस्थिति के कारण इलेक्ट्रॉन ग्राही की तरह कार्य करने लगता है तथा किसी भी अन्य इलेक्ट्रॉन दाता समूह द्वारा दिये गये एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करके उप-सहसंयोजी बंध बना सकते हैं। इसलिये इनकी अधिकतम ऑक्सीकरण संख्या 6 होती है।

प्रश्न 20.
CCl4 जल – अपघटित नहीं होता जबकि SiCl4 जल – अपघटित हो जाता है, क्यों?
उत्तर:
कार्बन में रिक्त d कक्षक की अनुपस्थिति के कारण उच्चतम ऑक्सीकरण संख्या 4 है तथा d कक्षक की अनुपस्थिति के कारण यह अपनी ऑक्सीकरण संख्या में वृद्धि नहीं कर सकता इसलिये CCl4जल अपघटित नहीं होता। जबकि Si में रिक्त d कक्षक की उपस्थिति के कारण अधिकतम ऑक्सीकरण संख्या 6 है इसलिये SiCl4 जल द्वारा दिये गये एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म को सरलता से ग्रहण कर लेता है और इस प्रकार उसकी ऑक्सीकरण संख्या में वृद्धि हो जाती है। जिसके कारण यह सरलता से जल-अपघटित हो जाता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 59

प्रश्न 21.
CO2 गैस है जबकि SiO2 उच्च गलनांक वाला ठोस है, क्यों ?
अथवा
CO2तथा SiO2 की संरचना को समझाइये।
उत्तर:
CO2की संरचना रेखीय होती है। इसमें कार्बन sp संकरित अवस्था में होता है तथा CO2 के अणु दुर्बल वाण्डर वाल्स आकर्षण बल द्वारा आकर्षित रहते हैं। इसलिये साधारण ताप पर CO2 गैस अवस्था में होता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 60
SiO2 ठोस है। इसकी संरचना त्रिविम जाल के समान होती है। इसमें प्रत्येक Si चार ऑक्सीजन परमाणु के साथ चतुष्फलकीय रूप से जुड़ा होता है। Si तथा 0 परमाणु के बीच एकल सह-संयोजी बंध होता है। यह एकल। सहसंयोजी बंध वाण्डर वाल्स की तुलना में अधिक प्रबल है। इसलिये SiO2 ठोस व कठोर है तथा इसके गलनांक उच्च होते हैं।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 61

प्रश्न 22.
CO2तथा SiO4 में तुलना कीजिए।
उत्तर:
CO2 तथा SiO2 में तुलना| –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 62

प्रश्न 23.
कार्बन अपने समूह के अन्य सदस्यों के समान संकुल यौगिक का निर्माण नहीं करता, क्यों?
उत्तर:
किसी भी तत्व की उपसहसंयोजी या संकुल यौगिक बनाने की प्रवृत्ति निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है –
(1) छोटी परमाण्विक त्रिज्या
(2) उच्च आवेश घनत्व
(3) d कक्षक की उपस्थिति।
कार्बन के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से स्पष्ट है कि कार्बन के पास रिक्त d कक्षक अनुपस्थित होता है। इसलिये वह लिगेण्ड द्वारा दिये गये इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण कर संकुल यौगिक नहीं बनाता। जबकि इस समूह के अन्य सदस्यों के पास रिक्त d कक्षक होता है। जिसके कारण वह लिगेण्ड द्वारा दिये गये इलेक्ट्रॉन युग्म को सरलता से ग्रहण करके उपसहसंयोजी बंध बना सकते हैं। इसलिये वह सरलता से संकुल यौगिक का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 24.
M+2 आयन प्रबल अपचायक है, जबकि M+4 आयन सहसंयोजी गुण दर्शाता है, क्यों?
उत्तर:
कार्बन परिवार के सभी सदस्यों के संयोजी कोश में 4 इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा M +4 अवस्था में आयनन ऊर्जा अत्यधिक उच्च होती है। इसलिये सभी तत्व अपना अष्टक पूर्ण करने के लिये अन्य तत्वों के H परमाणुओं के साथ इलेक्ट्रॉन का साझा करके सहसंयोजी यौगिक बनाते हैं। जबकि दो इलेक्ट्रॉन निकालने के लिये कम आयनन ऊर्जा की आवश्यकता होती है इसलिये +2 ऑक्सीकरण अवस्था में यह आयनिक यौगिकों का निर्माण करते हैं। इलेक्ट्रॉन दान करने की प्रवृत्ति के कारण यह अपचायक की तरह कार्य करते हैं।

प्रश्न 25.
सामान्यतः टिन तथा लेड के यौगिक जैसे SnCl, तथा PbCl, का उपयोग अपचायक के रूप में जबकि SnCl, तथा PbCl का उपयोग ऑक्सीकारक के रूप में होता है, क्यों?
उत्तर:
Sn तथा Pb में +2 की तुलना में +4 ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थायी है। अत: Sn+2,Sn+4 में जाने की प्रवृति रखता है जिसके कारण यह दूसरों का अपचयन करता है। Sn तथा Pb में +4 ऑक्सीकरण संख्या कम स्थायी हैं। अत: Pb+2 से Pb+4 में जाने की प्रवृत्ति रखता है। इसी कारण यह दूसरों का ऑक्सीकरण करता है।

प्रश्न 26.
कार्बन से मोनो-ऑक्साइड की आर्बिटल संरचना को समझाइये।
उत्तर:
CO में कार्बन तथा ऑक्सीजन दोनों sp संकरित अवस्था में होते हैं। कार्बन का एक sp आर्बिटल ऑक्सीजन के एक sp आर्बिटल के साथ अतिव्यापन कर ०-बंध बनाते हैं। कार्बन के तथा ऑक्सीजन के दूसरे sp आर्बिटल में एक-एक इलेक्ट्रॉन युग्म होता है, जो अनाबंधित रहता है। कार्बन के pz आर्बिटल में एक इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन के pz आर्बिटल के एक इलेक्ट्रॉन से पार्वीय अतिव्यापन करके एक L – बंध बनाता है।
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अब कार्बन के py आर्बिटल में एक भी इलेक्ट्रॉन नहीं है, जबकि ऑक्सीजन के py आर्बिटल में 2 इलेक्ट्रॉन हैं। इनके बीच भी पार्वीय अतिव्यापन होकर बंध बनता है। जो लुईस संरचना में उपसहसंयोजकता को दर्शाता है।
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प्रश्न 27.
सिलिका उद्यान किसे कहते हैं?
उत्तर:
सोडियम सिलिकेट के संतृप्त जलीय विलयन की नली में यदि बालू, कॉपर सल्फेट, फेरस सल्फेट, निकिल सल्फेट, कैडमियम नाइट्रेट, मैंगनीज सल्फेट और कोबाल्ट नाइट्रेट आदि के क्रिस्टल डाल दें तो दो तीन दिन पश्चात् विलयन में रंग-बिरंगे पौधे उगे हुये प्रतीत होते हैं तथा यह सिलिका उद्यान कहलाता है।

प्रश्न 28.
कार्बन मोनो-ऑक्साइड की तरह सिलिकॉन मोनो-ऑक्साइड क्यों नहीं बनता?
उत्तर:
कार्बन ऑक्सीजन के साथ एक सहसंयोजी बंध बना लेने के बाद एक बंध बना सकता है। साथ ही कार्बन के एक और रिक्त 2pz आर्बिटल के साथ ऑक्सीजन के 2pz में स्थित एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म का अतिव्यापन भी हो सकता है। क्योंकि ऑक्सीजन से एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण कर सके इतनी ऋणविद्युतता कार्बन में है। जबकि.Si की ऋणविद्युतता भी कम है तथा आकार भी बड़ा है। जिससे वह ऑक्सीजन के साथ 3pr – 2pz बंध नहीं बना सकता इसलिये SiO संभव नहीं है।

प्रश्न 29.
भाप अंगार गैस, कार्बोरेटेड भाप अंगार गैस तथा प्रोड्यूसर गैस बनाने के लिये संतुलित समीकरण लिखिए।
उत्तर:
1. भाप अंगार गैस:
यह गैस कार्बन मोनो-ऑक्साइड तथा हाइड्रोजन का मिश्रण होती है। पानी की भाप को रक्त तप्त कोक पर प्रवाहित करके बनायी जाती है।
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2. कार्बोरेटेड भाप अंगार गैस-भाप अंगार गैस को तेल में पड़ी हुई गर्म ईंटों पर प्रवाहित करने पर एसीटिलीन तथा एथिलीन बनती है तथा भाप अंगार गैस से मिश्रित होकर कार्बोरेटेड भाप अंगार गैस बनती है। इसमें CO = 30%, H2 = 35%, संतृप्त हाइड्रोकार्बन = 15-20%, हाइड्रोकार्बन = 10%, N2 = 2.5-5%, CO2 = 2% होती है।

3. प्रोड्यूसर गैस:
कार्बन मोनो-ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन का मिश्रण होती है। रक्त तप्त कोक पर वायु की सीमित मात्रा प्रवाहित करने पर प्राप्त होती है।
2C + वायु (O2 + N2) → 2CO + N2

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प्रश्न 30.
सिलिकॉन टेट्राक्लोराइड से सिलिका जेल किस प्रकार प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर:
सिलिकॉन की क्लोरीन से क्रिया कराने पर सिलिकॉन टेट्रा क्लोराइड प्राप्त होता है।
Si + 2Cl2 → SiCl4

SiCl4 का जल-अपघटन कराने पर सिलिकॉन टेट्रा हाइड्रॉक्साइड प्राप्त होता है।
SiCl4 + 4HOH → Si(OH)4 + 4HCl

यह सिलिकॉन टेट्रा हाइड्रॉक्साइड वास्तव में सिलिसिक अम्ल मोनोहाइड्रेट है।
Si (OH)4H2SiO3.H2O

यह सिलिसिक अम्ल गर्म करने पर सिलिका में टूट जाता है।
H2SiO3 ⥨ H2O → SiO2 + 2H2O
यही सिलिका, सिलिका जेल (SiO2 xH2O) कहलाता है।

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11 p-ब्लॉक तत्त्व दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
Be तथा Al में विकर्ण संबंध लिखिए।
उत्तर:
द्वितीय एवं तृतीय आवर्त में एक-दूसरे के विकर्णतः उपस्थित तत्वों के गुणों में समानता होती है विकर्णतः उपस्थित समान गुणों वाले तत्वों के बीच संबंध को विकर्ण संबंध कहते हैं।
(1) दोनों की विद्युत् ऋणात्मकता समान होती है।
Be = 1.5 Al = 1.5
(2) Be+2 तथा Al+3 के ध्रुवित करने की क्षमता लगभग समान होती है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 66
(3) क्षारीय मृदा धातुएँ कोमल होती हैं परन्तु बेरीलियम ऐल्युमिनियम के समान कठोर है।

(4) Be, Al के समान सान्द्र नाइट्रिक अम्ल में निष्क्रिय हो जाता है।

(5) Be2C ऐल्युमिनियम कार्बाइड की तरह जल से अभिक्रिया कर मेथेन मुक्त करता है।

  • Be2C + 2H2O + 2BeO + CH4
  • Al4C3 + 12H2O → 4Al(OH)3 + 3CH4

(6) Be तथा A1 की NaOH से क्रिया कर हाइड्रोजन मुक्त करते हैं।

  • Be + 2NaOH →Na2BeO2 + H2
  • 2Al + 2NaOH + 2H2O → 2NaAlO2 + 3H2

(7) दोनों के ऑक्साइड उभयधर्मी है।

  • BeO +2HCl → BeCl2 + H2O
  • BeO + 2NaOH → Na2BeO2 + H2O
  • Al2O3 + 6HCl → 2AlCl3 + 3H2O
  • Al2O3 + 2NaOH → 2NaAlO2 + H2O

(8) BeCl2 तथा AlCl3, द्विलक तथा बहुलक रूप में मिलते हैं।

(9) दोनों के हाइड्रॉक्साइड जल में अविलेय हैं तथा गर्म करने पर अपघटित हो जाते हैं।

  • Be(OH)2 → BeO + H2O
  • 2Al(OH)3 → Al2O3 + 3H2O

(10) BeCl2 तथा AlCl3 प्रबल लुईस अम्ल है।

(11) दोनों धातुएँ हैलोजन से क्रिया कर हैलाइड बनाते हैं।

  • Be + Cl2 → BeCl2
  • 2Al + 3Cl2 → 2AlCl3

(12) दोनों के हैलाइड सहसंयोजक प्रवृत्ति दर्शाते हैं तथा कार्बनिक विलायकों में विलेय हैं।

प्रश्न 2.
B तथा AI में समानता तथा असमानता लिखिए।
उत्तर:
समानता:

  • दोनों के संयोजी कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np1 है।
  • दोनों की सहसंयोजकता 6 है।
  • दोनों की ऑक्सीकरण संख्या +3 है।
  • दोनों M2O3 प्रकार के ऑक्साइड बनाते हैं।
  • दोनों के यौगिक प्रबल लुईस अम्ल की तरह कार्य करते हैं।
  • दोनों के ऑक्साइड उभयधर्मी प्रकृति के होते बोरॉन

असमानता:
बोरॉन तथा ऐल्युमिनियम में असमानताएँ हैं –

बोरॉन:

  • बोरॉन अधातु है।
  • बोरॉन विद्युत् एवं ऊष्मा का कुचालक होता है।
  • इसका गलनांक बहुत अधिक है।
  • ये तनु HCl एवं H2SO4 के साथ क्रिया नहीं करते
  • ये सान्द्र HNO3 से क्रिया करते हैं।
  • B + 3HNO3 → H3BO3 + 3NO2
  • ये धातु के साथ क्रिया कर मिश्र धातु बनाते हैं।
  • 3Mg + 2B → Mg2B2
  • बोरॉन कई हाइड्राइड बनाता है।
  • बोरॉन की अधिकतम सहसंयोजकता 4 है।
  • इसके कार्बाइड सहसंयोजी हैं।

ऐल्युमिनियम:

  • ऐल्युमिनियम धातु है।
  • ऐल्युमिनियम विद्युत् एवं ऊष्मा का सुचालक है।
  • इसका गलनांक बहुत कम है।
  • ये तनु HCl एवं H2SO4 से क्रिया कर H2 मुक्त करते हैं।
  • 2Al + 3H2SO4 → Al2 (SO4)3 + 3H2
  • ये सान्द्र HNO3 के लिये निष्क्रिय होते हैं।
  • ये धातु के साथ क्रिया कर बोराइड बनाते हैं।
  • ऐल्युमिनियम का हाइड्राइड अस्थायी है।
  • Al की अधिकतम सहसंयोजकता 6 है।
  • इनके कार्बाइड आयनिक होते हैं तथा जल अपघटित होकर मेथेन देते हैं।

प्रश्न 3.
बोरॉन अपने समूह के अन्य सदस्यों से अपसामान्य व्यवहार दर्शाता है, समझाइये।
उत्तर:
बोरॉन अपने समूह के अन्य सदस्यों से अपसामान्य व्यवहार दर्शाता है, क्योंकि –

  • बोरॉन की परमाण्विक तथा आयनिक त्रिज्या कम होती है।
  • आयनन ऊर्जा उच्च होती है।
  • इलेक्ट्रॉन बंधुता उच्च होती है।
  • d कक्षक की अनुपस्थिति है।

अपसामान्य व्यवहार:

  • बोरॉन अधातु है जबकि समूह के अन्य सदस्य धातु हैं।
  • बोरॉन विद्युत् का कुचालक है जबकि अन्य सदस्य विद्युत् के सुचालक हैं।
  • बोरॉन सहसंयोजी यौगिक बनाता है जबकि समूह के अन्य सदस्य आयनिक यौगिक बनाते हैं।
  • बोरॉन के यौगिक जल में अविलेय लेकिन कार्बनिक विलायकों में विलेय हैं जबकि समूह के अन्य सदस्यों के यौगिक जल में विलेय हैं।
  • बोरॉन अन्य सदस्यों के समान त्रिसंयोजी आयन नहीं बनाता।
  • बोरॉन की अधिकतम सहसंयोजकता 4 है जबकि अन्य सदस्यों की अधिकतम सहसंयोजकता 6 है।
  • बोरॉन का ऑक्साइड अम्लीय है जबकि अन्य सदस्यों के ऑक्साइड उभयधर्मी या क्षारीय प्रकृति के होते हैं।
  • बोरॉन अन्य धातु के साथ क्रिया करके बोराइड बनाता है जबकि अन्य सदस्य धातुओं के साथ क्रिया करके मिश्र धातु बनाते हैं।
  • बोरॉन एक से अधिक प्रकार के हाइड्राइड बनाता है जबकि अन्य सदस्य केवल एक ही हाइड्राइड बनाते हैं।

प्रश्न 4.
बोरेन क्या है ? इसकी विशेषतायें व उपयोग लिखिए।
उत्तर:
बोरॉन के हाइड्राइड को बोरेन कहा जाता है। बोरॉन दो श्रेणियों में हाइड्राइड बनाता है –
निडो बोरेन श्रेणी:
इसका सामान्य सूत्र BnHn+4 +4 है। इसके प्रथम सदस्य BH5 का अस्तित्व नहीं है, दूसरा सदस्य B2H6 सबसे महत्वपूर्ण है जिसे डाइबोरेन कहा जाता है। अन्य महत्वपूर्ण सदस्य पेंटा बोरेन B5H9 हेक्साबोरेन B6H10 है।

एरेक्नो बोरेन श्रेणी:
जिसका सामान्य सूत्र BnHn+6 है। इस श्रेणी के महत्वपूर्ण सदस्य टेट्राबोरेन B4H10,पेंटा बोरेन B5H11, हेक्सा बोरेन B6H12 हैं।

बनाने की विधि:
1. BX3की अभिक्रिया लीथियम हाइड्राइड के साथ 450K ताप पर कराने पर डाइबोरेन प्राप्त होता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 67

2. बोरॉन ट्राइ हैलाइड का अपचयन लीथियम ऐल्युमिनियम टेट्राहाइड्राइड के द्वारा कराने पर डाइबोरेन प्राप्त होता है।
4BCl3 + 3LiAlH4 → 2B2H6 + 3LiCl + 3AlCl3

विशेषताएँ:

  • डाइबोरेन रंगहीन गैस है जबकि उच्चतर सदस्य वाष्पशील तथा ठोस हैं।
  • डाइबोरेन ऑक्सीजन की उपस्थिति में दहन के पश्चात् ऊष्मा उत्सर्जित करता है। इसलिये इसका उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में करते हैं।
  • यह निम्न ताप पर स्थायी होते हैं। उच्च ताप पर यह विघटित होने लगते हैं।

उपयोग:

  • रॉकेट ईंधन के रूप में
  • बहुलीकरण अभिक्रिया में उत्प्रेरक के रूप में।

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प्रश्न 5.
डाइबोरेन की संरचना को समझाइये।
अथवा
इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक किसे कहते हैं?
अथवा
2 इलेक्ट्रॉन -3 केन्द्रीय यौगिक किसे कहते हैं ?
उत्तर:
डाइबोरेन के संयोजी कोश में कुल 12 इलेक्ट्रॉन होते हैं। जिसमें से तीन-तीन इलेक्ट्रॉन दोनों बोरॉन के संयोजी कोश में तथा एक-एक प्रत्येक हाइड्रोजन के संयोजी कोश में होता है। B2H6 के स्थायी अवस्था हेतु 16 अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है। डाइबोरेन के अणु में दो समतलीय BH2 समूह होते हैं तथा दो हाइड्रोजन इन दोनों BH2 समूह के मध्य लंबवत् रूप से स्थित रहते हैं। चारों कोनों पर स्थित चारों हाइड्रोजन बोरॉन के साथ सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़े रहते हैं।

इन्हें टर्मिनल हाइड्रोजन कहते हैं। जबकि सेतु बनाने वाले हाइड्रोजन इस तल के ऊपर व नीचे लंबवत् रूप से व्यवस्थित होते हैं तथा B – H – B बंध में इलेक्ट्रॉन की न्यूनता होती है। इस बंध संरचना में 2 इलेक्ट्रॉन 3 परमाणुओं को जोड़ने का कार्य करते हैं इसलिये इन्हें 2- इलेक्ट्रॉन 3- केन्द्र यौगिक कहते हैं तथा इलेक्ट्रॉन की न्यूनता के कारण इन्हें इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक कहते हैं।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 68

प्रश्न 6.
बोरॉन तथा कार्बन में तुलना कीजिए।
उत्तर:
समानता:

  • बोरॉन तथा कार्बन दोनों अधातु हैं।
  • दोनों अपरूपता दर्शाते हैं।
  • दोनों एक से अधिक प्रकार के हाइड्राइड बनाते हैं।
  • दोनों के यौगिक सहसंयोजी यौगिक होते हैं।
  • दोनों के यौगिक कार्बनिक विलायकों में विलेय हैं।
  • बोरॉन का क्रिस्टलीय रूप भी डायमंड के समान कठोर है।
  • CO2 तथा B2 O3 दोनों क्षार में विलेय होकर कार्बोनेट तथा बोरेट बनाते हैं।
    2NaOH + CO2 → Na2 CO3 + H2 O
    2NaOH + B5O3 → Na2 B2 O3 + H2O

असमानता:
बोरॉन तथा कार्बन में असमानताएँ –

बोरॉन:

  • बोरॉन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2-2s22p1 है।
  • बोरॉन की सहसंयोजकता 3 है।
  • बोरॉन द्विबंध तथा त्रिबंध नहीं बनाता।
  • बोरॉन के यौगिक इलेक्ट्रॉन न्यून हैं।
  • कार्बन के यौगिक लुईस अम्ल नहीं हैं।

कार्बन:

  • कार्बन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s22s22p1 है।
  • कार्बन की सहसंयोजकता 4 है।
  • कार्बन द्विबंध तथा त्रिबंध बनाता है।
  • कार्बन के यौगिक इलेक्ट्रॉन न्यून नहीं हैं।
  • बोरॉन के यौगिक लुईस अम्ल हैं।

प्रश्न 7.
BCl3 तथा AlCl3 की संरचना में तुलना कीजिए।
उत्तर:
BCl3 एक इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक है जो हमेशा एकलक अवस्था में मिलता है। BCl3 में बोरॉन sp2 संकरित अवस्था में होता है। इसलिये इसकी संरचना त्रिफलकीय होती है तथा बंध कोण 120° होता है। क्योंकि बोरॉन की परमाण्विक त्रिज्या छोटी होती है तथा क्लोरीन सेतु अस्थायी होता है इसलिये यह द्विलक संरचना नहीं बनाता। AlCl3 सदैव द्विलक संरचना के रूप में होता है इस द्विलक संरचना र में प्रत्येक Al परमाणु दूसरे Al से जुड़े क्लोरीन परमाणु से एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण कर अपना अष्टक पूर्ण कर लेता है तथा स्थायित्व प्राप्त कर लेता है।
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प्रश्न 8.
गोल्ड श्मिट की ऐल्युमिनो थर्मिक विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
थर्माइट वेल्डिंग विधि को समझाइये।
उत्तर:
कुछ धात्विक ऑक्साइडों, जैसे – Cr2O3
Fe2O3 आदि का कार्बन से अपचयन नहीं होता है। इनका अपचयन ऐल्युमिनियम चूर्ण द्वारा किया जाता है तो इस विधि को गोल्ड श्मिट ऐल्युमिनो तापी विधि या थर्माइट. विधि कहा जाता है।
Cr2O3 + 2Al → Al2O3 + 2Cr
Fe2O3 + 2Al → 2Fe + Al2O3

इस विधि में एक अग्निसह क्रूसीबल में धातु ऑक्साइड एवं Al चूर्ण जिसे थर्माइट कहते हैं, भरते हैं। इस मिश्रण में फायर क्ले का साँचा Mg फीते के द्वारा जिसके सिरे पर Mg चूर्ण एवं बेरियम परॉक्साइड की पोटली बँधी होती है, आग लगा देते हैं। अभिक्रिया के ऊष्माक्षेपी होने के कारण उच्च ताप उत्पन्न होता है और ऑक्साइड के अपचयित होने के कारण धातु मुक्त होती है। इस विधि का उपयोग टूटे हुये लोहे के गर्डर या मशीनों के पुों को जोड़ने के लिये होता है।
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प्रश्न 9.
फिटकरी बनाने की विधि, गुण तथा उपयोग लिखिए।
अथवा
फिटकरी क्या है ? इसका सामान्य सूत्र लिखकर कोई एक उदाहरण दीजिए तथा फिटकरी के कोई चार उपयोग लिखिए।
उत्तर:
वे द्विक सल्फेट लवण जिनका सामान्य सूत्र R2SO4 · Al2 (SO4)3 24H2O होता है फिटकरी या एलम कहलाते हैं जहाँ R एकसंयोजी धातु जैसे – Na, K, NH4 इत्यादि और M त्रिसंयोजक धातु जैसे – Al, Fe, Cr आदि होता है।

नामकरण:
1. वे फिटकरी जिनमें त्रिसंयोजक धातु के रूप में Al रहता है उसमें उपस्थित एकसंयोजक धातु या मूलक के एकलक के नाम से जानी जाती है। जैसे –
K2SO4 . Al2 (SO4)3 24H2O (पोटाश एलम)
(NH4)SO4Al2 (SO4)3 24H2O (अमोनियम एलम)

2. वे फिटकरी जिनमें Al नहीं होता उनमें उपस्थित दोनों धातुओं के नाम से जानी जाती है।
K2SO2 Cr(SO4)3 .24H2O (पोटैशियम क्रोमियम एलम)
(NH4)2 SO4. Fe2 (SO4)3.24H2O (अमोनियम आयरन एलम)

बनाने की विधि:
(1) पोटैशियम सल्फेट के विलयन में ऐल्युमिनियम सल्फेट की सम अणुक मात्रा का विलयन मिलाकर विलयन का क्रिस्टलन करने पर एलम प्राप्त होता है।
K2SO4 + Al2 (SO4)3 + 24H2O → K2SO4 . Al2 (SO4)324H2O

(2) एलम स्टोन से:
एलम स्टोन K2SO4 Al2 (SO4)3.4Al(OH)3 को बारीक पीस कर तनु H,SO, के साथ उबाला जाता है। प्राप्त विलयन को छानकर आवश्यक मात्रा में K2SO4मिलाकर सम्पूर्ण विलयन का सान्द्रण कर क्रिस्टलन करने पर फिटकरी के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं।
K2SO4 + Al2 (SO4)3 + 4AI(OH)3+ 6H2SO4 → K2SO4 + 3Al2 (SO4)2 + 12H2O K2SO4 + Al2 (SO4)3 + 24H2O → K2SO4 + Al2 (SO4).24H2O

गुण:

  • रंगहीन, अष्टफलकीय क्रिस्टल।
  • इसका जलीय विलयन जल-अपघटन के कारण अम्लीय होता है।
  • जल में विलेय परन्तु ऐल्कोहॉल में अविलेय।
  • गर्म करने पर 92°C पर पिघल जाता है। 200°C तक गर्म करने पर सम्पूर्ण क्रिस्टलन जल के निकल जाने के कारण सरन्ध्र होकर फूल जाता है इस प्रकार की फिटकरी को जली हुई फिटकरी कहते हैं।

उपयोग:

  • रक्त के बहाव को रोकने में
  • कपड़े की रंगाई और छपाई में
  • चमड़ा पकाने में
  • कागज को चिकना करने में
  • जल को साफ करने में।

प्रश्न 10.
कार्बन अपने समूह के अन्य सदस्यों की तुलना में अपसामान्य व्यवहार दर्शाता है, क्यों? उत्तर- कार्बन अपने समूह के अन्य सदस्यों की तुलना में अपसामान्य व्यवहार दर्शाता है, क्योंकि

  • परमाण्विक त्रिज्या तथा आयनिक त्रिज्या कम होती है।
  • आयनन ऊर्जा उच्च होती है।
  • उच्च इलेक्ट्रॉन बंधुता,
  • d कक्षक की अनुपस्थिति।

अपसामान्य व्यवहार:

  • कार्बन के गलनांक तथा क्वथनांक अन्य सदस्यों की तुलना में उच्च है।
  • C की श्रृंखलन की प्रवृत्ति अन्य सदस्यों से अधिक है।
  • कार्बन बहुआबन्ध बनाता है। जबकि अन्य सदस्य बहुआबन्ध नहीं बनाते।
  • C का मोनो-ऑक्साइड ज्ञात है जबकि अन्य सदस्यों के मोनो-ऑक्साइड अज्ञात हैं।
  • C की अधिकतम सहसंयोजकता 4 है जबकि अन्य सदस्यों की अधिकतम सहसंयोजकता 6 है।
  • कार्बन अन्य सदस्यों की तरह संकुल यौगिकों का निर्माण नहीं करता।
  • कार्बन एक से अधिक प्रकार के हाइड्राइड बनाता है जबकि अन्य सदस्य केवल एक ही प्रकार के हाइड्राइड बनाते हैं।
  • CCl4 जल-अपघटित नहीं होता जबकि अन्य सदस्यों के टेट्रा हैलाइड सरलता से जल-अपघटित हो जाते हैं।
  • CO2 गैस है जबकि अन्य सदस्यों के डाइऑक्साइड ठोस हैं।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
1. फ्रिऑन,
2. सिलिकॉन।
उत्तर:
1. फ्रिऑन:
डाइ क्लोरो डाइ – फ्लोरोमिथेन को फ्रिऑन कहते हैं, कार्बन टेट्रा क्लोराइड की अभिक्रिया HF या SbF3 के साथ SbCl5 की उपस्थिति में कराने पर फ्रिऑन बनता है। फ्रिऑन का उपयोग प्रशीतक के रूप में रेफ्रिजरेटर तथा ए.सी. में करते हैं।
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2. सिलिकॉन:
सिलिकॉन एक संश्लेषित बहुलक है। जिसकी मूल इकाई R2 SiCl2 है। इसका मूलानुपाती सूत्र कीटोन के समान होता है इसलिये इन्हें सिलिकॉन नाम दिया है। एल्किल हैलाइड और Si की अभिक्रिया Cu की उपस्थिति में 575K ताप पर कराने पर डाइ-एल्किल डाइ-क्लोरो हैलाइड सिलेन प्राप्त होता है।
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इनका जल:
अपघटन कराने पर Si – Cl बंध टूटने लगता है तथा Cl का प्रतिस्थापन OH समूह द्वारा होने लगता है।
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OH बंध बनने के बाद संघनन होने लगता है। इस प्रक्रम में HO के अणु निकलते हैं और सिलिकॉन प्राप्त होता है।
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गुण:

  • रासायनिक रूप से निष्क्रिय
  • जल प्रतिकर्षी
  • कुचालक
  • ऊष्मा द्वारा अप्रभावित या.. ऊष्मा प्रतिकर्षी।

उपयोग:

  • वॉटर प्रूफ पेपर के रूप में
  • स्नेहक के रूप में।

प्रश्न 12.
फुलेरीन्स पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
फुलेरीन्स कार्बन का क्रिस्टलीय अपरूप है, किन्तु इसकी गेंद के समान आकृति होती है तथा प्रत्येक गोलीय क्रिस्टल में कार्बन के 60 परमाणु होते हैं, इस प्रकार से इसके क्रिस्टल धूल के कणों के समान होते हैं। एक क्रिस्टल इकाई का सूत्र C60, Cr70, C84 होता है। C60 फुलेरीन्स को बकमिन्स्टर फुलेरीन भी कहा जाता है। ग्रेफाइट को विद्युत् आर्क में हीलियम या ऑर्गन माध्यम में वाष्पीकृत कर संघनित्र करने से धूल के समान पाउडर एकत्र होता है।
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गुण:
फुलेरीन्स धूल के कण के समान होते हैं जो चिकने तथा गोल होते हैं। कार्बनिक विलायकों में विलेय होकर रंगीन विलयन देते हैं। सोडियम जैसी क्षार धातुओं से क्रिया कर Na3C60यौगिक देता है । पराबैंगनी किरणों में फुलेरीन्स का बहुलीकरण होता है। जबकि लगभग 1375K तापक्रम पर भी इनके क्रिस्टल टूटते नहीं हैं।

संरचना:
फुलेरीन्स में 20 छ: कार्बन परमाणु के चक्र तथा 12 पाँच कार्बन परमाणु के चक्र होते हैं। सभी पाँच परमाण्विक चक्र छः परमाण्विक चक्र के साथ जुड़े रहते हैं। जिससे एक गोलीय सममित आकृति प्राप्त होती है। इसीलिये Co60 फुलेरीन्स बकी बॉल के नाम से भी जाना जाता है । फुटबॉल की तरह यह पिंजरा होता है। प्रत्येक गोले का व्यास 700 pm होता है।

उपयोग:

  • स्नेहक के रूप में
  • क्षार धातुओं के साथ बने यौगिक अतिचालक के रूप में।

प्रश्न 13.
जियोलाइट पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जियोलाइट एक प्रकार के जटिल सिलिकेट हैं जिनमें कुछ सिलिकॉन आयनों को प्रतिस्थापित कर Al+3 आयन जुड़े रहते हैं। Si+4 तथा Al+3 आयन की संयोजकता के अंतर को संतुलित करने के लिये कुछ अन्य आयन जैसे – Na+, K+; Ca+2, Mg+2 इत्यादि उपस्थित रहते हैं। जो अणु को विद्युत् उदासीन बनाये रखते हैं। इनका सामान्य सूत्र Mx [(AIO2)x(SiO2)y] – mH2O है।
उदाहरण:
Na2[Al2Si3O10].2H2O
Ca[Al2Si7O18].6H2O
जियोलाइट की संरचना मधुमक्खी के छत्ते के समान होती है। इसमें विभिन्न आकार के छिद्र व गुहिकाएँ होती हैं। इन छिद्रों का आकार 260 pm से 740 pm के मध्य होता है इन छिद्रों में उचित आकार के अणुओं या आयनों का अवशोषण हो सकता है।

तथा गुहिकाओं के द्वारा जल आदि अणुओं का उत्सर्जन व अवशोषण हो सकता है। इसलिये इन्हें आण्विक चालनी भी कहते हैं तथा ये आकार चयन करने वाले उत्प्रेरक की तरह कार्य करते हैं। इनके द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रिया इनमें उपस्थित छिद्रों के आकार तथा अभिकारक व उत्पाद के आकार पर निर्भर करती है।

संरचना:
चतुष्फलकीय SiO-44 आयन की 24 इकाइयाँ जुड़कर जियोलाइट का एक ब्लॉक निर्मित करती है। इस घनीय अष्टफलकीय ब्लॉक या सोडालाइट केज कहते हैं। सोडालाइट केज के ये ब्लॉक चार सदस्यीय रिंग के द्वारा आपस में जुड़कर द्विविमीय अथवा त्रिविमीय नेटवर्क का निर्माण करते हैं । इस प्रकार की संरचना के कारण जियोलाइट की संरध्रता बहुत अधिक होती है। यदि सोडालाइट केज के ब्लॉक दोहरी छः सदस्यीय रिंग के द्वारा जुड़े होते हैं तो बनने वाला नेटवर्क फौजासाइट कहलाता है।

उपयोग –

  • व्यावसायिक एवं घरेलू उपयोग में जियोलाइट का उपयोग आयन विनिमय द्वारा पानी को शुद्ध करने में किया जाता है।
  • गैसों के पृथक्करण में – जियोलाइट की छिद्रयुक्त संरचना के उपयोग से प्राकृतिक गैसों से H2O, CO2 एवं SO2 को पृथक् किया जाता है।
  • कृषि क्षेत्र में प्राकृतिक जियोलाइट क्लिनोप्टिलोलाइट (Clinoptilolite) का उपयोग भूमि उपचार में किया जाता है। यह भूमि में धीरे-धीरे पोटैशियम को मुक्त करता है।
  • डिटर्जेन्ट बनाने में – कृत्रिम जियोलाइट का उपयोग डिटर्जेन्ट बनाने में किया जाता है।

प्रश्न 14.
CO2की लुईस संरचना एवं अनुनाद संरचना लिखिए।
उत्तर:
संरचना:
CO2 की लुईस संरचना निम्नानुसार है –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 77
CO2 की मानक ऊष्मा AH° f = -393.5kJ/mol होती है तथा C – O बंध लंबाई 115 pm होती है। इससे स्पष्ट है कि लुईस संरचना के आधार पर CO2 का जो स्थायित्व आना चाहिये CO2 उससे भी अधिक स्थायी है। यह तभी संभव है जब CO2 की अनुनाद संरचना संभव है। कार्बन डाइ-ऑक्साइड अग्रलिखित अनुनाद संरचना का अनुनाद संकर है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 78
ऑर्बिटल संरचना – CO2 में कार्बन sp संकरित अवस्था में तथा दोनों ऑक्सीजन sp2संकरित अवस्था में होते हैं। प्रत्येक ऑक्सीजन के दो-दो sp कक्षक में अनाबंधित इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं। एक sp2 कक्षक कार्बन के sp2 कक्षक के साथ अतिव्यापन करके बंध बनाता है। एक ऑक्सीजन का pzकक्षक कार्बन के pzकक्षक से पाश्वर्ती अतिव्यापन करके 7 बंध बनाता है। दूसरे ऑक्सीजन का py कक्षक कार्बन के py कक्षक से पाश्वर्ती अतिव्यापन करके 7 बंध बनाता है। इस प्रकार CO2 का अणु रेखीय होता है तथा इसका द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 79

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प्रश्न 15.
(a) R2SiCl2 तथा RSiCl3के जल – अपघटन से बनने वाले सिलिकोन्स में मूलभूत अंतर क्या है ?
(b) [SiF6]-2 ज्ञात है जबकि [SiCl6]-2 नहीं, क्यों?
उत्तर:
(a) R2SiCl2 के जल-अपघटन से सिलिकोन्स का रेखीय बहुलक बनता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 80
जबकि RSiCl3 के जल – अपघटन से सिलिकोन्स का द्विविमीय बहुलक बनता है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 81
(b) फ्लुओराइड आयनों का आकार छोटा होता है इसलिये सिलिकॉन परमाणु 6 फ्लुओराइड आयनों को समाहित कर सकता है। इसलिये [SiF6]-2 ज्ञात है जबकि क्लोराइड के बड़े आकार के सिलिकॉन क्लोराइड आयनों को समाहित नहीं कर सकता इसलिये [SiCl6]-2 अज्ञात है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
(1) सोडियम जियोलाइट
(2) सोडियम सिलिकेट
(3) सिलिकोन्स।
उत्तर:
(1) सोडियम जियोलाइट:
सोडियम और ऐल्युमिनियम के मिश्रित सिलिकेट्स को परम्यूटिट कहते हैं। इसका सूत्र Na2 [Al2SiO8.xH3O] है। इसको सोडियम जियोलाइट या सोडियम परम्यूटिट भी कहते हैं। कठोर पानी स्तम्भ में रखते हुए परम्यूटिट से प्रवाहित पुनर्निर्माण हेतु किया जाता है। कैल्सियम और मैग्नीशियम लवण सोडियम NaCl विलयन द्वारा विस्थापित हो जाते हैं। सोडियम लवण जल को कठोर नहीं करते। इस प्रकार मृदु जल प्राप्त होता है। बाइ-सोडियम परम्यूटिट Na2P से व्यक्त किया जाये तो पानी को मृदु बनाने की अभिक्रियाएँ निम्न प्रकार लिखी मृदु जल जा सकती हैं –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 84
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 82
इस विधि द्वारा पानी की अस्थायी कठोरता भी दूर की जा सकती है।

(2) सोडियम सिलिकेट:
यह काँच की भाँति चमकदार तथा जल में विलेय है, इसी कारण यह जल काँच (Water glass) कहलाता है। यह सोडियम कार्बोनेट और बालू के मिश्रण को एक परावर्तनी भट्टी में गलाकर बनाया जाता है।
Na2CO3 + SiO2 Na2SiO3 + CO2
प्राप्त पदार्थ कड़ा होने पर काँच जैसा-ठोस कठोर जल होता है तथा जल में विलेय हो जाता है सोडियम मृदु जल सिलिकेट के संतृप्त जलीय विलयन को नली में बालू CuSO4, FeSO4, NISO4, Cd(NO3)2 MnSO4 और CO(NO3)2 आदि के क्रिस्टल डाले तो दो तीन दिन पश्चात् विलयन में रंग बिरंगे पौधे उगे हुए प्रतीत होते हैं जो सिलिका गार्डन कहलाता है।

(3) सिलिकोन्स:
ये सिलिकॉन और कार्बन क्वार्टजी यौगिकों के रेजिन है ये प्रायः रेत NaCl तथा पेट्रोलियम से बनाये जाते हैं। इनको गैस, चिपचिपे द्रव, रबर की भाँति ठोस या पत्थर के समान कठोर ठोस रुप में प्राप्त किया जा सकता है। ये कार्ब सिलिकॉन बहुलक है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व - 83

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 21 मन की एकाग्रता

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 21 मन की एकाग्रता (निबंध, पं. बालकृष्ण भारद्वाज)

मन की एकाग्रता पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

बोध प्रश्न

मन की एकाग्रता अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
छात्रों की समस्या क्या है?
उत्तर:
जब छात्र पढ़ने के लिए बैठता है तो उसके मन को अनेक विचार घेरने लगते हैं, मन भटक उठता है। सोचता है कि पढ़कर अधिक उच्च पद प्राप्त करूँ और अधिक अर्थ अर्जित करूँ, पर जब पढ़ने बैठता है तो सिनेमा व क्रिकेट, मित्र-मण्डल की मौज-मस्ती याद आ जाती है और उसके मन की एकाग्रता हट जाती है।

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प्रश्न 2.
स्थित प्रज्ञता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर:
मन को किसी परम उच्च में लगा देने से स्थितप्रज्ञता प्राप्त की जा सकती है। जैसे लोक-संग्रह के कार्य में, राष्ट्रभक्ति में, दीन-दुखियों की सेवा में।

प्रश्न 3.
मन कितने प्रकार से उत्तेजित होता है?
उत्तर:
मन दो प्रकार से उत्तेजित होता है-एक तो बाहरी विषयों से और दूसरे भीतर की वासनाओं की स्मृतियों से।

प्रश्न 4.
गीता में परं का अर्थ क्या है?
उत्तर:
गीता में परं का अर्थ परमात्मा है। इसे परिभाषित करते हुए गीता में कहा गया है कि सब विश्व ईश्वर है। मुझ ईश्वर को सब ईश्वर में जानो और मुझमें संपूर्ण विश्व समझो।

मन की एकाग्रता लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्जुन की स्वीकारोक्ति को लिखिए।
उत्तर:
अर्जुन की स्वीकारोक्ति है-“चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है।”

प्रश्न 2.
मन को एकाग्र करने की बाह्य साधना क्या है?
उत्तर:
मन को एकाग्र करने की बाह्य साधना यह है कि दो बाहरी आकर्षणों अर्थात् बाहरी चकाचौंध से हटा दिया जाए। जैसे मित्रों के साथ भोज-मस्ती, क्रिकेट, सिनेमा आदि से।

प्रश्न 3.
छात्र की समस्याएँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
छात्र की समस्याएँ हैं आज के प्रौद्योगिकी युग में भौतिक उन्नति प्राप्त की जाए। इसके लिए जब पढ़ने बैठता है तो उसके मन की एकाग्रता भंग होने लगती है। उसका मन भटकने लगता है। जब पढ़ने में मन नहीं लगता तो उदास हो जाता है और सोचता है कि मैं बिना परीक्षा उत्तीर्ण किए किस प्रकार अच्छे अंक लाकर पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करूँगा? इस तरह तो जीवन बोझ हो जाएगा।

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
इंद्रियों का क्या कार्य होना चाहिए।
उत्तर:
जीवन में इंद्रियों का सेवन तो होना चाहिए पर यह आसक्ति व द्वेष से नहीं किया जाना चाहिए। इन्हें स्वच्छंद और निरंकुश कभी नहीं छोड़ना चाहिए। अगर ऐसा किया तो यह व्यवहार में अनेक समस्याओं का कारण बन सकती हैं।

मन की एकाग्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संयम को समझाइए।
उत्तर:
संयम का अर्थ है संसार में सांसारिक भोग भोगते रहें पर उतनी ही मात्रा में जितने आवश्यक हों। जीवन में इंद्रियों का सेवन आसक्ति व द्वेषभाव से कभी नहीं करना चाहिए। इंद्रियों को कभी स्वच्छद नहीं छोड़ना चाहिए। अन्यथा भविष्य में इतनी समस्याएँ पैदा हो जाएँगी कि जीवन को ही नरक बना देंगी।

प्रश्न 2.
परं उच्च लक्ष्य का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
परम का अर्थ है मन को किसी परम् अर्थात् परम लक्ष्य में लगाया जाए। यह लक्ष्य है सेवा-कार्य में लगना, लोक- संग्रह करना, राष्ट्र की सेवा में स्वयं को लगाना। दीन-दुखियों की सहायता करना। जब व्यक्ति इस तरह के कार्यों में अपने मन को लगाता है तो तब उसके मन में व्याप्त आसक्ति स्वयं नष्ट हो जाती है।

मन की एकाग्रता भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
विलोम शब्द लिखिए।
राग, अनाचार।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 21 मन की एकाग्रता img-1

प्रश्न 2.
दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
चंचल, कामनाएँ, निग्रह।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 21 मन की एकाग्रता img-2

प्रश्न 3.
उपसर्ग पहचानकर लिखिए।
विचलना, निग्रह, परिभाषित।
उत्तर:
उपसर्ग की पहचान:

  • विचलना – वि + उपसर्ग – विचलना।
  • निग्रह – नि + उपसर्ग – निग्रह।
  • परिभाषित – परि + उपसर्ग – परिभाषितं।

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प्रश्न 4.
समास विग्रह कर नाम बताइए।
अशक्य, बहिर्मुख, लोकसंग्रह।
उत्तर:
विग्रह और नाम:

  • अशक्य – शक्य का अभाव, अव्ययीभाव समास।
  • बहिर्मुख – बाहर की ओर जो मुख, कर्मधारय समास।
  • लोकसंग्रह – लोक के लिए संग्रह, संप्रदान तत्पुरुष या चतुर्थी तत्पुरुष समास।

मन की एकाग्रता योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
स्थित प्रज्ञ के द्वितीयाध्याय के 18 श्लोकों का अर्थ विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
स्थित प्रज्ञ के लक्षण श्रीमद्भगवत् गीता में द्वितीय अध्याय में हैं। इस अध्याय का नाम कर्मयोग है। इसमें 72 श्लोक हैं। 52 से 72 श्लोकों में स्थितप्रज्ञ पुरुष के लक्षण बताए गए हैं। अर्जुन ने पूछा, हे केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थितप्रज्ञ पुरुष के क्या लक्षण हैं? स्थित प्रज्ञ पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है? श्री भगवान ने कहा कि हे अर्जुन! जिस काल में पुरुष मन में स्थित संपूर्ण कामनाओं को त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।

दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है। हे अर्जुन! आसक्ति का नाश न होने के कारण ये प्रमथन स्वभाववाली इंद्रियाँ यत्न करते हुए बुद्धिमान पुरुष के मन को भी बलात् हर लेती हैं। इसलिए साधक को चाहिए कि वह उन संपूर्ण इंद्रियों को वश में करके समाहितचित्त हुआ मेरे प्रति परायण होकर ध्यान में वैठे हैं। क्रोध से मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है। मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात् ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है।

भगवान् ने अर्जुन से कहा कि अंतःकरण की प्रसन्नता होने पर इसके संपूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्नचित्त वाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भली-भाँति स्थिर हो जाती है। श्रीभगवान् ने कहा कि संपूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानंद की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिंस नाशवान् सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं परमात्मा के तत्त्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि के समान है।

उन्होंने अपने प्रिय भक्त से कहा कि जैसे नाना नदियों के जल सब और परिपूर्ण अचल, प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं वैसे ही सब भोग जिस स्थितप्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किए बिना ही समा जाते हैं, वही पुरुष परमशान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं। अन्तिम श्लोक में श्रीभगवान् ने कहा- हे अर्जुन! यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है, इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता और अन्तकाल में भी इस ब्राह्मी स्थिति में स्थित होकर ब्रह्मानंद को प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 2.
गीता पर लिखी गई पुस्तकों का अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
गीता पर बहुत-से विद्वानों ने व्याख्यात्मक व आलोचनात्मक पुस्तकें लिखी हैं। सबसे श्रेष्ठ पुस्तक बालगंगाधर तिलक की मानी जाती हैं जिसका नाम है ‘गीता रहस्य’ । इसी तरह ‘श्रीमद्भगवद् गीता यथा रूप’ नाम से ग्रंथ प्रसिद्ध है जिसे श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने लिखा है। इन दोनों ग्रंथों में व्याख्याकारों ने विषयों को ही विस्तार से उठाया है। छात्र इन ग्रंथों का अध्ययन कर अपने विषय को विस्तार से समझ सकते हैं।

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प्रश्न 3.
अवसाद जीवन-मूल्य और सामाजिक समरसता पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
निबंध:
अवसाद जीवन-मूल्य और सामाजिक समरसता:
जब व्यक्ति जीवन में निराश हो जाता है तब उसे चारों ओर से अवसाद घेर लेता है। इसका मूल कारण यह है कि वह अपने जीवन-मूल्यों से दूर होता जा रहा है। पहले वह अपने जीवन के लिए कुछ मूल्य निश्चित कर लिया करता था और उन पर चलने का उम्रभर निर्णय करता था।

वह जानता था कि सत्य पर आचरण करने से कभी व्यथित नहीं हो सकता। दूसरों का विश्वास प्राप्त करने पर वह हमेशा लोगों में लोकप्रिय हो सकता है। सभी के साथ समान व्यवहार करने और सबको साथ लेकर चलने से वह सामाजिक समरसता को मजबूत कर सकता है क्योंकि सामाजिक समरसता किसी भी समाज की सबसे बड़ी शक्ति होती है।

समाज में बदलाव आया तो लोग केवल अपने बारे में सोचने लगे। दूसरों के बजाय अपनी उन्नति का ख्वाब देखने लगे क्योंकि समाज में एकतानता की जगह अकेलेपन की भावना पैदा हुई इसलिए समाज में अवसाद ने लोगों को घेरना शुरू कर दिया। व्यक्ति अपनी विषय-भावना न पूरी होने पर सही रास्ते के बजाय गलत रास्ते अपनाने लगा। सही-गलत का फर्क मिट गया। आज समाज मन की एकाग्रता के अभाव में बिखर गया है इसलिए उसका जीवन अवसादमय हो गया है।

अगर व्यक्ति चाहता है कि उसका जीवन प्रसन्न हो, तो उसे अपने सही जीवन-मूल्यों पर चलने का निर्णय करना होगा। उसे सत्य और विश्वास के बल पर अपना जीवन का पथ निश्चित करना होगा। वासनाओं का आवश्यक उपभोग करते हुए और उन पर नियंत्रण करते हुए आगे बढ़ना होगा। अतः व्यक्ति को अवसाद से उबरना होगा, निराशा से दूर भागना होगा। सत्य और विश्वास पर टिकने वाले जीवन-मूल्य के बल पर सामाजिक समरसता लाने का प्रयत्न करना होगा, तभी समाज में आनंद का वातावरण बन सकेगा।

प्रश्न 4.
‘मन की एकाग्रता’ विषयक लेखों और विचारों का संग्रह कीजिए।
उत्तर:
‘मन की एकाग्रता’ के संबंध में अनेक निबंधकारों ने लेख लिखे हैं। उन लेखों में एक लेख द्विवेदीयुगीन रचनाकार का है। रचनाकार हैं बालकृष्ण भट्ट इस निबंध का शीर्षक है मन की दृढ़ता। लेखक इस पर जोर देता है कि मन दृढ़ होता है तो उसमें स्थितप्रज्ञता आ जाती है। एक प्रसिद्ध उक्ति है ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत।’ इस उक्ति में भी कवि ने मन की एकाग्रता पर बल दिक है क्योंकि मन अगर एकाग्र होता है तो वह कभी हारता नहीं।

वह सदैव जीतता है। सुदृढ़ मन वाला व्यक्ति उन्नति पर उन्नति करता चला जाता है, पीछे नहीं देखता। एक निबंध ‘एकाग्र मन के गुण’ शिवशंकर चौहान ने लिखा है। यह निबंध योग साधना पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। इस प्रकार यदा-कदा मन की एकाग्रता पर लेख प्रकाशित होते रहते हैं।

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प्रश्न 5.
अपने अशांत मन को संतुलित कर जिन महापुरुषों ने कीर्ति पाई उनका वृत्त संकलित कीजिए।
उत्तर:
भारत में ऐसे अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने असंतुलित मन को संतुलित कर देश में यश की पताका फहराई है, जिनमें स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानंद आदि महापुरुषों का नाम लिया जा सकता है। पूर्वप्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के भी इस तरह के कई किस्से हैं। विद्यार्थी इस संदर्भ में पुस्तकालयों से संबंधित महापुरुषों की पुस्तकें नामांकित कर इनके बारे में विशद जानकारी प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 6.
यदि आप अर्जुन होते तो कृष्ण से क्या-क्या प्रश्न करते?
उत्तर:
अगर हम अर्जुन होते तो कृष्ण से प्रश्न करते –

  1. हे भगवन्! मेरा मन अध्ययन में नहीं लग रहा है मुझे क्या करना चाहिए?
  2. सांसारिक वासनाएँ मुझे आपका नाम नहीं लेने देतीं, इनसे मुक्त होने का कोई उपाय बताइए।
  3. मेरा मन आज बहुत उद्विग्न है क्योंकि परीक्षाएँ निकट आ रही हैं, मैं अपना मन कैसे शांत कर सकता हूँ?
  4. मैं जीवन में संतोष कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?
  5. क्या संसार के सीमित भोगों के साथ जीवन-निर्वाह करते हुए मैं मन एकाग्र कर सकता हूँ? आदि।

मन की एकाग्रता परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
मन की एकाग्रता……… है –
(क) सनातन
(ख) अस्थायी
(ग) वेगमय
(घ) मंदमय
उत्तर:
(क) सनातन।

प्रश्न 2.
छात्र का मन …… घबरा उठता है –
(क) मौज-मस्ती के कारण
(ख) अध्ययन न कर पाने के कारण
(ग) होटल में जाने पर
(घ) ईर्ष्या के कारण
उत्तर:
(ख) अध्ययन न कर पाने के कारण।

प्रश्न 3.
चंचल मन का निग्रह वायु की ….. रोकने के समान दुष्कर है।
(क) आँधी
(ख) गति
(ग) साँसें
(ख) मंदता
उत्तर:
(ख) गति।

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प्रश्न 4.
मन ………. प्रकार से उत्तेजित होता है।
(क) चार
(ख) केवल एक
(ग) दो
(घ) पाँच
उत्तर:
(ग) दो।

प्रश्न 5.
…..अभाव तभी संभव है जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना संतुष्ट हो।
(क) कामनाओं का
(ग) जीवन का
(ग) बुद्धि का
(घ) परमात्मा
उत्तर:
(क) कामनओं का।

प्रश्न 6.
मन की एकाग्रता पाठ के लेखक हैं…..
(क) बालमुकुंद गुप्ता
(ख) पं. बालकृष्ण भट्ट
(ग) पं. बालकृष्ण भारद्वाज
(घ) पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन
उत्तर:
(ग) पं. बालकृष्ण भारद्वाज।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित कथनों के सही विकल्प चुनिए –
‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः’ किस ग्रंथ की सूक्ति है?
(क) श्रीमद्भागवत महापुराण
(ख) शिवपुराण
(ग) श्रीमद्भगवत् गीता
(घ) श्रीराधाकृष्ण चरितमानस
उत्तर:
(क) श्रीमद्भगवत् गीता।

प्रश्न 8.
…… इच्छाएँ समाज में अनाचार पनपाएँगी।
(क) अनियंत्रित
(ख) नियंत्रित
(ग) चंचल
(घ) स्थिर
उत्तर:
(क) अनियन्त्रित।

II. निम्नलिखित कथनों में सत्य या असत्य छाँटिए –

  1. ऐसी छात्र की तीन समस्याएँ हैं।
  2. ‘मन की एकाग्रता’ के लेखक बालकृष्ण भारद्वाज हैं।
  3. स्थितप्रज्ञ पुरुष मन के विषयों के पास जा सकता है।
  4. गीता में परम का अर्थ बहुत अधिक है।
  5. अनियंत्रित इच्छाएँ समाज में अनाचार पनपाएँगीं।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य
  5. सत्य।

मन की एकाग्रता लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए।

प्रश्न 1.
जब छात्र पढ़ने बैठता है तो उसका मन कहाँ विचरण करने लगता है?
उत्तर:
जब छात्र पढ़ने बैठता है तो उसका मन क्रिकेट और सिनेमा में विचरण करने लगता है।

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प्रश्न 2.
छात्र को अपना जीवन बोझ कव लगने लगता है?
उत्तर:
जब छात्र का मन पढ़ाई से भटक जाता है तब उसे अपना जीवन बोझ लगने लगता है क्योंकि सोचता है कि न पढ़े पाने के कारण न तो वह अच्छी नौकरी पा सकेगा और न ही प्रतिष्ठित पद।

प्रश्न 3.
कामनाओं का अभाव कब संभव है?
उत्तर:
कामनाओं का अभाव तभी संभव है जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना भी संतुष्ट रह सकता है।

प्रश्न 4.
बलपूर्वक हटाई गई इंद्रियों की लेखक ने किससे उपमा दी है?
उत्तर:’
बलपूर्वक हटाई गई इंद्रियों की लेखक ने ग्रीष्म ऋतु के बाद होने वाली वर्षा से उपमा दी है क्योंकि जिस तरह गमी में सूखी वनस्पतियाँ वर्मा का जल गिरने से हरी-भरी हो जाती हैं उसी प्रकार हठयोग से हटाई गई शुष्क इंद्रियाँ विषय का रस पाकर पुनः जाग उठती हैं।

प्रश्न 5.
जीवन का परम सत्य लेखक ने क्या बताया है?
उत्तर:
लेखक ने जीवन का परम सत्य बताया है कि इंद्रियों को वश में नहीं किया जा सकता, अतः इंद्रियों का आवश्यक सेवन करते हुए उस पर अंकुश लगाने का प्रयास करना चाहिए।

मन की एकाग्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मन की एकाग्रता’ निबंध का केंद्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
पं. बालकृष्ण भारद्वाज ने ‘मन की एकाग्रता’ में कहा है कि आज छात्र के पास ज्ञान के अनिवार्य साधन उपलब्ध हैं। पुस्तकालय, इंटरनेट, मेधावी शिक्षक आदि के सहयोग से छात्र बहुमुखी ज्ञान प्राप्त कर रहा है परन्तु प्रतिभा के बिना सब व्यर्थ है। इस प्रतिभा को मन की एकाग्रता से प्राप्त किया जा सकता है।

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प्रश्न 2.
‘मन की एकाग्रता’ के लिए कौन-से साधन महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
‘मन की एकाग्रता’ के लिए दो साधन अपनाए जाते हैं। पहला साधन संसार के आकर्षणों से मुँह मोड़ लेना और दूसरा है आंतरिक मन पर संयम करना। इनमें बाहरी आकर्षणों पर सरलता से अंकुश लगाया जा सकता है पर आंतरिक मन पर संयम करना कठिन है। इसके लिए गीता में बताए गए मार्ग से मन एकाग्र रखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
स्थितप्रज्ञ दर्शन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्थितप्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए मन विषयों के पास नहीं ले जाना चाहिए और यह तभी संभव है जब इंद्रियों के भोगों में आसक्त न रहे। उनसे दूर रहे। मन इंद्रियों से दूर तभी हो सकता है जब उसमें रहने वाली कामनाएँ नष्ट हो जाती हैं। कामनाएँ तभी समाप्त हो सकती हैं जब उसमें वस्तुओं के होते हुए भी इच्छाएँ न हों। वह संतुष्ट रहे। ऐसे ही व्यक्ति को स्थित प्रज्ञ की दिशा में गतिशील कहा जा सकता है।

प्रश्न 4.
गीता के अनुसार परं का क्या अर्थ है?
उत्तर:
गीता में परं का अर्थ परमात्मा कहा गया है। इसे परिभाषित करते हुए गीता में कहा गया है कि सारा संसार ही ईश्वर है। मुझे ईश्वर को समस्त विश्व में समझो। मुझसे ही सारा संसार समझो। ईश्वर व विश्व एक-दूसरे से अभिन्न हैं। अतः गीता सबके प्रति सेवाभाव और मन की वासनाओं को शुद्ध करने के लिए दीक्षित करती है।

प्रश्न 5.
क्या इंद्रियों पर नियन्त्रण मन में कुंठाएँ उत्पन्न कर सकता है?
उत्तर:
यह समझा जाता है कि अगर हम अपनी इंद्रियों पर जबरदस्ती नियंत्रण करेंगे तो इससे अनेक कुंठाएँ जन्मेंगी। हम अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाएँगे। पर ऐसा नहीं है। अनियंत्रित इच्छाएँ निश्चित रूप से समाज में अनाचार व व्यभिचार पैदा करती हैं पर इन्हें अनिवार्य रूप से भोगते हुए काबू में रखा जाए तो निश्चित रूप से मन की एकाग्रता में सहायता करेंगी।

मन की एकाग्रता पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
‘मन की एकाग्रता’ निबंध का सार लिखिए।
उत्तर:
मन किस प्रकार एकाग्र होना चाहिए वह सदा से व्यक्ति की समस्या रही है। आज प्रौद्योगिकी का समय है और इसमें प्रगति की सीमाहीन संभावनाएं हैं। ऐसे में जब वह अध्ययन करने के लिए बैठता है तो अनेक चिंताएँ मन की एकाग्रता में बाधा बनती हैं। उत्कृष्ट पद पाने के लिए मन एकाग्र करना चाहता है पर मनोरंजन के साधन उसके लक्ष्य में रुकावट बन जाते हैं। इस कारण वह बार-बार निराशा का शिकार होता है। तब उसे यह ठीक लगता है कि चंचल मन को एकाग्र करना उसी तरह कठिन है जिस प्रकार वायु की गति रोकना दुष्कर है।

मन एकाग्र करने वाले छात्र की दो समस्याएँ हैं-पहली मन का भोगों की ओर भागना और दूसरी पढ़ने में एकाग्रचित्त न होना। वह बाहरी परिस्थितियों से किसी तरह स्वयं को बचा लेता है पर भीतरी मन का चक्र उसे अनेक कामनाओं में भटका देता है। प्राणायाम आदि से कुछ समय के लिए मन पर नियंत्रण हो भी जाता है पर हमेशा नहीं रहता। गीता में इसका उपाय अवश्य लिखा है, : स्थित प्रज्ञ वह है जिसकी बुद्धि अस्थिर व चंचल नहीं है।

स्थित प्रज्ञता इन्द्रिय और मन संयमित बुद्धि का नाम है। इंद्रियों को भोगों से दूर रखकर स्थित प्रज्ञ रहा जा सकता है। कामनाओं को नष्ट कर मन को इंद्रियों से दूर रखा जा सकता है। यह तभी संभव है जब व्यक्ति बिमा वस्तुओं के संतुष्ट हो। गीता में भी कहा गया है कि व्यक्ति अपनी संतुष्टि के लिए अन्य वस्तुओं की इच्छा नहीं रखता। जब तक उसकी एक भी वृत्तिं बाहरी होगी तब तक वह मन के पराधीन होगा।

हठयोग से मन भागों से दूर करके भी नहीं हटता, अवसर पाते ही पुनः उस ओर भागने लगता है। इसी तरह बलपूर्वक हटाई गई इंद्रियाँ विषय-चिंतन रूपी जल से फिर हरी हो जाती हैं, अतः प्राणायाम आदि उपाय क्षणिक हैं। – मन की उत्तेजना दो कारणों से है : बाहरी विषयों से और भीतरी वासनाओं की याद से। जब तक वासनाएँ हैं तब तक विषय से मन दूर नहीं किया जा सकता। ऐसे में गीता में दिए गए उपाय का अनुसरण किया जा सकता है। यह उपाय है, मन को किसी परम लक्ष्य के लिए लगाया जाए। जैसे राष्ट्रभक्ति में, दीनों की सेवा में। ऐसा करने से मन में व्याप्त विषयों की आसक्ति नष्ट हो जाएगी। छात्रों के लिए अध्ययन परम लक्ष्य है।

गीता में परं का अर्थ परमात्मा कहा गया है। मैन की वासनाओं को मिटाने का सूत्र गीता में है। उसके अनुसार सब विश्व ईश्वर है, अतः सबके प्रति सेवाभाव रखो। यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या इंद्रियों को भोगों से दूर करने पर मानसिक कुंठाओं का उदय नहीं होगा? गीता में इसका उत्तर तार्किक है। इसमें कहा गया है कि जीवन के लिए इंद्रियों का सेवन आवश्यक है पर यह आसक्ति व द्वेषभाव से नहीं किया जाना चाहिए। इन्हें खुला नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि इससे जीवन जीने में अनेक बाधाएँ खड़ी हो जाती हैं। अनियंत्रित इच्छाओं से समाज में अनाचार फैलता है। इसलिए कहा गया है कि इंद्रियों से विषयों का सेवन तो किया जाए पर विवेकशील होकर किया जाए। उन पर नियंत्रण रहे पर अनिवार्य विषयों में वे प्रवृत्त भी रहें।

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मन की एकाग्रता संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
मन की एकाग्रता की समस्या सनातन है। आज के प्रौद्योगिकी युग में जहाँ भौतिक उन्नति की संभावनाएँ अपार हैं ऐसे में छात्र जब अध्ययन करने बैठता है, तब उसके मन को अनेक तरह के विचार घेरने लगते हैं। वह सोचता है इस अर्थ प्रधान युग में मुझे उत्कृष्ट पद प्राप्ति के लिए एकाग्र मन से पढ़कर परीक्षा में उच्चतम श्रेणी प्राप्त करना आवश्यक है। लेकिन वह जब पढ़ने बैठता है तो क्रिकेट, सिनेमा या मित्र मण्डली की मौज-मस्ती के विचार में उसका मन भटकने लगता है। मन का यह विचलन बुद्धि की एकाग्रता भंग कर देता है।

वह घबड़ा कर सोचता है, परीक्षा तिथि पास है, मन उद्विग्न है, कैसे अध्ययन करूँ? क्या करूँ? व्यर्थ के विचारचक्र से बुद्धि अस्थिर और मन चंचल बना रहता है। वह सोचता है यदि परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा। पद, प्रतिष्ठा, वैभव कुछ नहीं मिलेगा, जीवन बोझ बन जाएगा, वह बार-बार हताशा से घिर जाता है। अनियंत्रित मन और एकाग्रहीनता उसे चिंताओं में डुबो देती है। अर्जुन की यह स्वीकारोक्ति कि ‘चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है उसे उचित प्रतीत होने लगता है।’ (Page 96)

शब्दार्थ:

  • एकाग्रता – मन को एक ओर लगाना।
  • सनातन – पुरानी।
  • अपार – असीमित।
  • उत्कृष्ट – श्रेष्ठ।
  • विचलन – चंचल।
  • उद्विग्न – बेचैन, व्याकुल।
  • विचारचक्र – विचारों का चक्कर।
  • अस्थिर – गतिमान।
  • प्रतिष्ठा – सम्मान।
  • हताशा – निराशा।
  • स्वीकारोक्ति – स्वीकार की गई उक्ति।
  • निग्रह – नियंत्रण।
  • दुष्कर – कठिन, जिसे करना बहुत मुश्किल हो।
  • प्रतीत – लगना।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। आज छात्र उच्च पद की प्राप्ति के लिए अध्ययन करना चाहता है पर मन एकाग्र नहीं रहता। लेखक ने यहाँ उसकी इसी समस्या पर विचार किया है।

व्याख्या:
मन किस प्रकार नियंत्रण में किया जाए, यह सदा से व्यक्ति की समस्या रही है। छात्र चाहता है कि वह प्रौद्योगिकी युग में अपने लिए कोई उच्च पद प्राप्त करे और इसके लिए मन अध्ययन में लगाना चाहता है, पर नहीं, लगता। उसका मन बाहरी विचारों में विचरण करने लगता है। वह सोचता है कि अर्थप्रधान युग में अच्छे अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण करूँ ताकि मुझे उच्च पद प्राप्त हो। वह इस बात को अच्छी तरह जानता है कि जब तक परीक्षा में अच्छे अंकों से पास नहीं होगा तब तक अच्छी नौकरी नहीं प्राप्त कर सकता।

पर जब वह पढ़ने के लिए बैठता है तो बाहरी मनोरंजन के साधन उसके लिए समस्या पैदा कर देते हैं। कभी तो उसका मन क्रिकेट की ओर विचरण करने लगता है तो कभी सिनेमा-जगत् की ओर। कभी वह सोचने लगता है कि पढ़ने में क्या रखा है, जरा मित्र-मण्डली में बैठकर गप-शप की जाए। उसका मन जब इस प्रकार की बातें सोचने लगता है तो उसकी बुद्धि की एकाग्रता भटकं जाती है। वह घबरा जाता है। सोचता है कि मन तो पढ़ाई में लग नहीं रहा है, अब क्या करूँ? मन बहुत बेचैन है, किस तरह इसे पढ़ाई में लगाऊँ? अगर ऐसा रहा तो परीक्षा में अच्छे अंक कैसे आएँगे? और अच्छे अंक नहीं आए तो वह अच्छी नौकरी कैसे पा सकेगा?

सोचता है कि अगर मन एकाग्र न होने के कारण परीक्षा में ही अनउत्तीर्ण हो गया तो तब क्या होगा? मेरा तो जीवन ही नष्ट हो जाएगा! न मुझे कोई प्रतिष्ठित पद मिल पाएगा और न ही अच्छी नौकरी। तब तो यह जीवन बोझ बन जाएगा। यह सोचकर वह बार-बार निराशा में घिर जाता है। अनियंत्रित मन उसे अनेक चिंताओं में डुबो देता है। तब उसे अर्जुन की यह स्वीकारोक्ति याद. आने लगती है कि मन बहुत चंचल है। इस पर नियंत्रण उसी तरह पाना कठिन है जिस तरह बहती हवा को रोकने की नाकाम कोशिश करना।

विशेष:

  1. एकाग्र मन न होने से छात्र में कितना भय व्याप्त हो जाता है, इसका यथार्थ चित्रण है।
  2. ‘मन की एकाग्रता की समस्या सनातन है’, सूक्तिपरक वाक्य है। इसी प्रकार अन्य सूत्र वाक्य है- ‘अर्जुन की यह सकारोक्ति है कि चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है।’
  3. सूत्रात्मक, व्याख्यात्मक और विवेचनात्मक शैली है।
  4. भाषा संस्कृतनिष्ट है, किंतु तद्भव व विदेशी शब्दों के इस्तेमाल से परहेज भी नहीं किया गया है। घेरने, घबरा जैसे शब्द तद्भव हैं तो एकाग्रता, संभावनाएँ, अध्ययन जैसे तत्सम। क्रिकेट, सिनेमा, मौज-मस्ती जैसे शब्द विदेशी हैं। प्रौद्योगिकी पारिभाषिक शब्द है। एकाग्र अर्द्धपारिभाषिक शब्द है। बार-बार युग्म शब्द है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
छात्र के लिए भौतिक उन्नति की क्या संभावनाएँ हैं?
उत्तर:
छात्र के लिए आज प्रौद्योगिकी युग में भौतिक उन्नति की अपार संभावनाएँ – हैं। जैसे इंटरनेट की सुविधा, पुस्तकालय की सुविधा, विद्वान शिक्षकों का समूह और छात्रवृत्ति आदि।

प्रश्न (ii)
छात्र का मन पढ़ने से क्यों भटक जाता है?
उत्तर:
छात्र जब पढ़ने के लिए बैठता है तो उसके सामने बाहरी आकर्षण आकर खड़े हो जाते हैं। ये आकर्षण उसे सिनेमा चलने, मित्रों के साथ गप-शप मारने और क्रिकेट आदि खेलने के संबंध में होते हैं। ऐसे में उसका मन भटक जाता है और उसे समझ नहीं आता कि अब वह अपना अध्ययन किस प्रकार जारी रखे।

प्रश्न (iii)
छात्र के अनियंत्रित मन में किस प्रकार की आंशकाएँ जागती हैं?
उत्तर:
छात्र सोचता है कि मेरा मन तो बाहरी आकर्षणों के कारण पढ़ाई से हट गया है। अब मैं ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाऊँगा, परिणामतः असफल हो जाऊँगा। इससे मुझे न तो अच्छी नौकरी मिल पाएगी और न ही प्रतिष्ठित पद।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
अर्जुन की स्वीकारोक्ति लेखक को उचित क्यों लगती है?
उत्तर:
अर्जुन की स्वीकारोक्ति है कि चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है। यह इसलिए कहा गया है कि मन एकाग्र करना उसी तरह कठिन है जिस तरह वायु की गति को रोकना।

प्रश्न (ii)
मन की एकाग्रता को लेखक ने सनातन क्यों कहा है?
उत्तर:
लेखक ने कहा है कि आदिकाल से ही ऋषि-मुनि इंद्रियों पर निग्रह करने के प्रयास करते रहे हैं। उनमें अधिकांश को सफलता प्राप्त नहीं हो पाई है। आज भी यही समस्या है। आज भी इसे नियंत्रण में करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। इसलिए लेखक का कहना है कि यह समस्या सदा से रही है।

प्रश्न (iii)
मन का विचलन क्या प्रभाव पैदा करता है?
उत्तर:
मन का विचलन बुद्धि के प्रभाव को भंग कर देता है। व्यक्ति का मन किए जाने वाले कार्य से दूर हो जाता है। इससे उसे काम में सफलता प्राप्त नहीं होती। काम पूरा न होने पर वह घबरा जाता है। उसमें कई प्रकार की निराशाएँ जन्म ले लेती हैं।

प्रश्न 2.
ऐसे छात्र की दो समस्याएँ हैं। पहली उसका मन भोग और ऐश्वर्य पाने के लिए उसे लुभा रहा है, और दूसरी पढ़ने में उसकी बुद्धि की एकाग्रता का न होना। बाहर की चकाचौंध उसे अपनी ओर खींचती है और आन्तरिक मन उसे अनेक स्मृतियों और कामनाओं में भटका रहा है। वह बाहर की परिस्थितियों में स्वयं को बचा सकता है, पर आन्तरिक मनश्चक्र की गति अनियंत्रित वेग से चलती रहती है। ऐसी स्थिति में मन का संयम कैसे करें। यम-नियम, आसन, प्राणायाम आदि कुछ क्षण के लिए मन को एकाग्र कर सकते हैं पर ये सब मन की पूर्ण और स्थायी एकाग्रता कराने मन की एकाग्रता में समर्थ नहीं है। इसका पूर्ण उपाय गीता के स्थित प्रज्ञ के विवरण में है। स्थित प्रज्ञ वह है जिसकी बुद्धि अस्थिर, चंचल तथा विचलित नहीं है। स्थित प्रज्ञता इन्द्रिय और मन से संयमित बुद्धि का नाम है। (Page 90)

शब्दार्थ:

  • ऐश्वर्य-भोग – विलास।
  • लुभाना – ललचाना।
  • चकाचौंध – चमक-दमक।
  • आन्तरिक – मन की।
  • मनश्चक्र – मन का चक्र।
  • वेग – तेज।
  • संयम – नियंत्रण।
  • यम-नियम – ये योग के शब्द हैं।
  • प्राणायाम – प्राणों का यौगिक प्रयोग प्राणायाम कहलाता है।
  • समर्थ – क्षमतावान।
  • स्थितप्रज्ञ – जिसने अपनी बुद्धि को वश में कर लिया है।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। आज छात्र उच्च पद की प्राप्ति के लिए अध्ययन करना चाहता है पर मन एकाग्र नहीं रहता। लेखक ने उसकी दो समस्याओं का यहाँ वर्णन किया है, पहली भोग की ओर आकर्षण व दूसरा मन की एकाग्रता का न होना। यहीं इसके उपाय की ओर भी संकेत किया गया है।

व्याख्या:
आज के छात्र की दो सबसे बड़ी समस्याएँ दिखाई दे रही हैं। पहली समस्या यह है कि सांसारिक भोग-विलास उसे अपनी ओर खींचे बिना नहीं रहते और दूसरी यह है कि उसका मन एकाग्र नहीं हो रहा है। इसकी उसे यह हानि उठानी पड़ रही है कि उसका मन पढ़ने में नहीं लग रहा है। बाहर की चकाचौंध यानी क्रिकेट के मैच, सिनेमा व मित्र-मण्डली की गप-शप उसे अपनी ओर खींचती है। उसका भीतरी मन अनेक स्मृतियों के कारण उसे आकुल करता है। जैसे सैर-सपाटा, अच्छे होटलों में खाना खाना, मनोरंजन के साधनों में मन लगे रहना आदि।

वह पढ़ने के लिए कोशिश करते हुए बाहरी परिस्थितियों से मन दूर रखने का प्रयास करता है। कहने का अभिप्राय यह है कि वह मित्र-मण्डली से किनारा कर लेता है, सिनेमा-क्रिकेट या होटल वगैरह से मन हटा लेता है पर भीतरी परिस्थितियाँ उसे शांत नहीं रहने देतीं। उसका मन इन सब चीजों को प्राप्त करने के लिए व्याकुल रहता है। उसके सामने बड़ी समस्या आकर खड़ी हो जाती है कि आखिर वह इन सबसे किस प्रकार अपने आप को बचाए। वह अपने मन पर किस प्रकार निग्रह करे। मन पर नियंत्रण के लिए वह यम-नियम आदि करता है, आसन-प्राणायाम आदि करता है पर ये सब उसे कुछ समय के लिए ही मन नियंत्रित करने में सहयोग करते हैं।

कुछ देर बाद उसका मन पुनः इन सब बाहरी पदार्थों के लिए विचरण करने लगता है। लेखक कहता है कि मन को किस प्रकार एकाग्र किया जा सकता है, इसका उपाय श्रीमद्भगवत् गीता में है। गीता में स्थितप्रज्ञ व्यक्ति का विवरण दिया गया है। इसमें कहा गया है कि वही व्यक्ति स्थितप्रज्ञ कहलाता है जिसकी बुद्धि स्थिर रहती है और मन चंचल नहीं होता। स्थितप्रज्ञता भी उसे ही कहते हैं जब — इन्द्रिय और मन पर संयम हो जाता है।

विशेष:

  1. लेखक ने छात्रों की प्रमुख दो समस्याओं पर विचार किया है-मन का बाहरी आकर्षणों की ओर भागना व बुद्धि का एकाग्र न होना।
  2. छात्र बाहरी समस्याओं पर किसी प्रकार संयम करता है तो भीतरी मन उसे स्थिर नहीं रहने देता। इस ओर रचनाकार ने विशेष ध्यान दिया है।
  3. यम-नियम, आसन-प्राणायाम मन की एकाग्रता के स्थायी उपचार नहीं हैं।
  4. मन को स्थिर कैसे किया जा सकता है, इसका उपाय गीता में है।
  5. भाषा संस्कृतनिठ है। भोग, ऐश्वर्य, एकाग्रता, स्मृतियाँ आदि तत्सम शब्द हैं। यम-नियम युग्म शब्द हैं। लुभा, सब आदि तद्भव शब्द हैं। चकाचौंध, भटकना आदि देशज शब्द हैं। मनश्चक्र में विसर्ग संधि है। यम-नियम में द्वंद्व समास है। एकाग्र में ता प्रत्यय है। प्रज्ञ में ता प्रत्यय मिलाकर प्रज्ञता शब्द बनाया गया है।
  6. सूक्ति वाक्य है-स्थितप्रज्ञता इन्द्रिय और मन में संयमित बुद्धि का नाम है।
  7. सूत्रात्मक, विवेचनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
भटके हुए छात्र की दो समस्याएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
भटके हुए छात्र की दो समस्याएँ हैं-एक तो यह है कि उसका मन भोग-विलास के लिए हमेशा लुभाता रहा है और दूसरी यह है कि उसकी बुद्धि पढ़ने को नहीं करती। पढ़ने के लिए जिस प्रकार की एकाग्र बुद्धि की आवश्यकता है, वह उसके पास नहीं है।

प्रश्न (ii)
व्यक्ति को मन का संयम करने में क्या दिक्कत आती है?
उत्तर:
व्यक्ति का मन संयम में नहीं हो पाता। इसके मार्ग में पहली दिक्कत यह आती है कि बाहर की चमक-दमक उसे अपनी ओर खींचती है और आंतरिक मन में उन आकर्षणों की यादें उसे भटकाती रहती हैं। इसी कारण उसे अपना मन संयमित करने में दिक्कत आती है।

प्रश्न (iii)
मन को संयम में करने के लिए व्यक्ति को किन विधियों का पालन करना पड़ता है?
उत्तर:
मन को संयमित करने के लिए वह योग साधना में बताए यम-नियम, प्राणायाम आदि का आसरा लेता है। पर वे सब उसके मन को पूरी तरह एकाग्र करने में असफल रहते हैं। ये तो कुछ क्षण के लिए ही मन को नियंत्रित कर पाते हैं।

गयांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मन को एकाग्र करने का पूरा उपाय कहाँ बताया गया है?
उत्तर:
यों तो मन को एकाग्र करना निश्चित रूप से कठिन है पर श्रीमद्भगवत् गीता में मन को एकाग्र करने का उपाय अवश्य बताया गया है। अगर व्यक्ति उस उपाय का पालन करता है तो वह निश्चित रूप से मन एकाग्र कर सकता है।

प्रश्न (ii)
स्थितप्रज्ञ किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह व्यक्ति स्थित प्रज्ञ कहलाता है जिसकी बुद्धि अस्थिर नहीं है। चंचल व विचलित नहीं है। वस्तुतः स्थित प्रज्ञता इंद्रिय और मन से संयमित होने वाली बुद्धि को कहते हैं।

प्रश्न (iii)
अगर व्यक्ति बाहरी आकर्षण से बच भी जाए तो उसे कौन-सा कारण स्थित प्रज्ञ नहीं होने देना चाहता?
उत्तर:
व्यक्ति प्रयत्न कर बाहरी आकर्षण से बचने का प्रयत्न कर लेता है। उसे सफलता मिल भी जाती है तब भी उसका मन एकाग्र नहीं हो पाता क्योंकि भोगों की स्मृति उसके सभी प्रयास धूल में मिला देती है। परिणामतः वह पुनः आकर्षणों में स्वयं को फँसा पाता है।

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प्रश्न 3.
स्थित प्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए आवश्यक है कि मन को विषयों के पास न ले जावें। पर यह तभी संभव है जब मन इन्द्रियों के भोगों में आसक्त न हो, उनसे दूर रहे। मन इन्द्रियों से दूर तभी तक रह सकता है जब उसमें रहने वाली कामनाएँ नष्ट हो जाएँ। पर कामनाओं का अभाव तभी संभव है जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना स्वयं संतुष्ट हो। इसे गीता में ‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः’ कहा है अर्थात् व्यक्ति अपनी तुष्टि के लिए अन्य या भिन्न वस्तु की इच्छा नहीं करता। अतः चित्तं की एक भी वृत्ति जब तक बहिर्मुखी है तब तक मन अशांत रहेगा। इन्द्रियों की गुलामी से वह मुक्त नहीं रह सकता। ऐसा मन, बुद्धि को अस्थिर करता है। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • आसक्त – रमा हुआ।
  • कामनाएँ – अभिलाषाएँ।
  • तुष्टि – संतोष।
  • चित्त – हृदय।
  • वृत्ति – स्वभाव।
  • बहिर्मुखी – बाहरी।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। मन की एकाग्रता पर विचार करते हुए लेखक कहता है कि कामनाएँ व्यक्ति को स्थिर प्रज्ञ नहीं होने देतीं। ये तभी समाप्त हो सकती हैं जब वह अन्य वस्तुओं के बिना भी स्वयं को संतुष्ट अनुभव कर सके।

व्याख्या:
अगर व्यक्ति स्थितप्रज्ञ बनना चाहता है तो उसके लिए परम आवश्यक है कि बुद्धि को स्थिर रखे। यह तभी संभव है जब वह अपने पास विषयों को न फटकने दे। इसलिए उसे अपने मन को इंद्रियों से एकदम हटाना होगा। उनसे बिलकुल दूर रखना होगा। उसका मन तभी इंद्रियों से दूर रह सकता है जब उससे कामनाएँ दूर हो जाएँ। पर कामनाओं का अभाव इतना आसान भी नहीं है। अलबत्ता, जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना भी स्वयं को संतुष्ट या संतोषी अनुभव करने लगेगा, तब उसे स्थितप्रज्ञ कहा जा सकेगा।

लेखक श्रीमद्भगवत् गीता से उद्धरण प्रस्तुत करता है कि ‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः सूक्ति का अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने संतोष के लिए दूसरी वस्तुओं की कामना नहीं करता। लेखक कहता है कि चित्त की एक वृत्ति जब तक बाहरी रहेगी तब तक व्यक्ति का मन शांत नहीं होगा। उसमें व्याकुलता बराबर बनी रहेगी। वह किसी भी सूरत में इन्द्रियों की गुलामी से आज़ाद नहीं हो सकता। ऐसा व्यक्ति अस्थिर मन का ही होता है। उसकी बुद्धि कभी स्थिर हो ही नहीं सकती।

विशेष:

  1. लेखक ने स्थितप्रज्ञ दर्शन का विवेचन किया है।
  2. लेखक का मानना है कि मन की एकाग्रता की पहली शर्त यह है कि व्यक्ति को विषयों से दूर रहना होगा। और मन इन्द्रियों से तब दूर होगा जब उसमें कोई कामना नहीं होगी।
  3. कामना का अभाव उस व्यक्ति में हो सकता है जो बिना अन्य वस्तुओं के मिलने पर भी संतोषी होता है।
  4. गीता से उद्धरण लिया गया है ‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः’ यह इस ..अनुच्छेद का सूत्रवाक्य है।
  5. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। तत्सम शब्दों में स्थितप्रज्ञ, बुद्धि की अस्थिरता, संभव, आसक्त आदि हैं। स्थितप्रज्ञ अर्द्ध पारिभाषिक शब्द है। इसी प्रकार वृत्ति और बहिर्मुखी शब्द हैं। स्थिरता में ता प्रत्यय है, अभाव में अ उपसर्ग है। गुलाम में ई प्रत्यय लगने से गुलामी शब्द बना है। बहिर्मुखी बहि + मुखी, विसर्ग संधि है। सूत्रात्मक वाक्य है-“अतः चित्त की एक भी वृत्ति जब तक बहिर्मुखी है तब तक मन अशांत रहेगा। इन्द्रियों की गुलामी से वह मुक्त नहीं रह सकता।”
  6. सूत्रात्मक और विवेचनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
स्थितप्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
स्थितप्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए प्रयत्न करना चाहिए कि मन विषयों की ओर न जाए। यह तभी संभव है जब यह इंद्रियों के वशीभूत न हो व भोगों में न यह फँसे। मन इंद्रियों से दूर तभी हो सकता है जब उसमें किसी प्रकार की कामना न हो।

प्रश्न (ii)
मन की कामनाएँ किस मन में नहीं निवास करती?
उत्तर:
मन की कामनाएँ ऐसे व्यक्ति के मन में निवास नहीं करतीं जिसके मन में भोगों के प्रति कोई लालसा न हो। जिसके पास भोग न हो, तब भी संतोषी रहे। ऐसे व्यक्ति के मन में कामनाओं का कोई काम नहीं है।

प्रश्न (iii)
गीता के किस सूत्र की इस अनुच्छेद में व्याख्या की गई है?
उत्तर:
इस अवतरण में गीता के इस सूत्र की व्याख्या की है : ‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः’ इस सूत्र का अर्थ है कि व्यक्ति अपने संतोष के लिए अन्य अथवा भिन्न वस्तु की अभिलाषा नहीं करता।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
व्यक्ति का मन कब तक अशांत रहेगा?
उत्तर:
वही व्यक्ति सुखी है जिसके मन में एक भी वृत्ति अशांत नहीं है। जब तक उसकी वृत्ति बहिर्मुखी है. तब तक उसका मन शांत हो ही नहीं सकता।

प्रश्न (ii)
स्थितप्रज्ञ शब्द लेखक ने किस स्थान से ग्रहण किया है?
उत्तर:
स्थितप्रज्ञ लेखक ने गोता से ग्रहण किया है। गीता के द्वितीय अध्याय कर्मयोग में भगवान ने अर्जुन को स्थित प्रज्ञ व्यक्ति के लक्षण बताए हैं। वहीं से यह शब्द भारद्वाज ने चयन किया है।

प्रश्न (iii)
आत्मन्येयात्मना तुष्टः सूत्र का हिंदी अनुवाद कीजिए।
उत्तर:
आत्मन्येयात्मना तुष्टः सूत्र का अर्थ है कि व्यक्ति अपनी तुष्टि के लिए अन्य या भिन्न वस्तु की इच्छा नहीं करता।

प्रश्न 4.
समस्या यह है कि यदि इंद्रियों को विषयों से बलपूर्वक हठयोग के द्वारा दूर भी कर लें, तो भी विषयों का चिंतन नहीं छूटता वह अवसर आने पर पुनः विकसित होगा। जैसे ग्रीष्म ऋतु के ताप से पृथ्वी पर वनस्पतियाँ सूख जाती हैं, पर वर्षा ऋतु में जल पाकर फिर पल्लवित हो जाती हैं। – इसी प्रकार विषयों से बलपूर्वक हटाई गयी शुष्क इन्द्रियाँ विषय चिन्तन रूपी जल से फिर विषयों में लिप्त हो जाती हैं। क्योंकि इन्द्रियों की विषय रस की चाह बाह्य दमन से नष्ट नहीं होती है। इसीलिए प्राणायामादि के अभ्यास से मन कुछ समय के लिए विषय शून्य हो जाएगा, किंतु बाद में वह अवसर पाकर फिर विषयों में डूब जाएगा। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • बलपूर्वक – जबरदस्ती।
  • हठयोग – योग का एक प्रकार।
  • पल्लवित – विकसित।
  • लिप्त – लीन।
  • दमन – नष्ट करना।
  • प्राणायाम – योग में साँस लेने की एक पद्धति।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से लिया गया है। मन की एकाग्रता पर विचार करते हुए लेखक कहता है कि कामनाएँ व्यक्ति को स्थित प्रज्ञ नहीं होने देतीं। यहाँ भारद्वाज कहते हैं कि इन्द्रियों को जबरदस्ती विषयों से हटाने पर भी समस्या बनी रहती है क्योंकि विषयों के चिंतन से व्यक्ति का नाता नहीं छूटता।

व्याख्या:
लेखक मन की एकाग्रता पर विचार कर रहा है। वह कामनाओं के संदर्भ में सोचता है कि अगर व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना संतोष कर ले तो उसकी कामनाएँ शांत हो जाएँगी। इस प्रकार वह मन को एकाग्र कर सकेगा। लेखक के विचार में यह भी उचित नहीं लगता। इसमें समस्या यह पैदा होती है कि हम इंद्रियों को बलपूर्वक अपने से अलग तो कर देते हैं पर उनका चिन्तन निरन्तर करते रहते हैं। ऐसे में उनका मन से हटना न हटना व्यर्थ ही है। जैसे ही मन उन विषयों के बारे में चिंतन करता है, वैसे ही वे फिर जाग जाती हैं।

यह स्थिति ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार गर्मी में अतिशय ताप के कारण वनस्पतियाँ सूख जाती हैं परन्तु वर्षा ऋतु आती है तो पुनः हरी-भरी हो जाती हैं। वे पुनः पल्लवित हो जाती हैं। अतःएव बलपूर्वक हटाई गई इन्द्रियाँ अवसर मिलते ही पुनः जाग उठती हैं। और यह काम विषय चिंतन करता है। शुष्क इन्द्रियाँ विषय चिंतन रूपी जल से पुनः विषयों में लिप्त हो जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यम-नियम, आसन-प्राणायाम आदि से कुछ समय के लिए इंद्रियाँ दब अवश्य जाती हैं पर अवसर आने पर पुनः खड़ी हो जाती हैं और मानव की हानि करना आरम्भ कर देती हैं।

विशेष:

  1. लेखक ने साधक के बलपूर्वक इंद्रियों के दमन को गलत बताया है। उसका मानना है कि बलपूर्वक हटाई गई इंद्रियाँ उसी तरह पुनः जाग जाती हैं जिस प्रकार गर्मी में सूखी वनस्पतियाँ वर्षा ऋतु में पुनः पल्लवित हो जाती हैं।
  2. उपमा अलंकार है। प्रसाद गुण है।
  3. ऋतुओं के उपयोग की सुंदर व्याख्या की गई है। ग्रीष्म का काम – सूखना और वर्षा का काम हरा-भरा करना है।
  4. विषय किस प्रकार मानव मन पर आक्रमण कर देते हैं, इसका सुंदर विवेचन किया गया है।
  5. संस्कृतनिष्ट भाषा है। इन्द्रियों, बलपूर्वक, वनस्पतियाँ आदि शब्द तत्सम हैं। हठयोग और प्राणयाम शब्द अर्द्ध पारिभाषिक शब्द हैं।
  6. दृष्टांत या उदाहरण व विवेचनात्मक शैली है। सूत्रात्मक शैली भी देखी जा सकती है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
लेखक ने इस अनुच्छेद में किस समस्या की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
लेखक ने व्यक्ति की इस समस्या की ओर संकेत किया है कि इंद्रियों को हठयोग से दूर कर भी लिया जाए तब भी उसका विषयों के चिंतन से पीछा नहीं छूटता। अवसर आने पर वे पुनः व्यक्ति पर हावी हो जाती हैं।

प्रश्न (ii)
कामनाओं का पुनः लौट आने को लेखक ने किस उदाहरण से समझाया है?
उत्तर:
लेखक ने कहा है कि जिस प्रकार ग्रीष्म में सूखी वनस्पतियाँ वर्षा का जल पीने पर पुनः हरी-भरी हो जाती हैं उसी प्रकार बलपूर्वक मन से हटाई गई इच्छाएँ विषयों का चिन्तन करने से पुनः जाग जाती हैं।

प्रश्न (iii)
इंद्रियाँ क्यों नहीं समाप्त होती?
उत्तर:
इंद्रियों का समाप्त न होने का कारण यह है कि इन्हें विषय-रस समाप्त नहीं होने देता। हम चाहे हठयोग से इन पर कुछ समय के लिए नियंत्रणं क्यों न कर लें पर जैसे ही विषय याद आते हैं ये पुनः रसमग्न हो जाती हैं।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
हठयोग का इस अवतरण में क्या उपयोग है?
उत्तर:
हठयोग योग का शब्द है। इसे अर्द्धपारिभाषिक शब्द कहा जाता है। हठयोग में बलपूर्वक इंद्रियों को वश में किया जाता है। लेखक यहाँ कहना चाहता है कि व्यक्ति बाहरी वासनाओं को अपने वश में कर लेता है और इसके लिए हठयोग का प्रयोग करता है।

प्रश्न (ii)
क्या हठयोग से मन एकाग्र हो सकता है?
उत्तर:
हठयोग से मन एकाग्र नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे हम बाहरी वासनाओं पर लगाम लगा सकते हैं। वस्तुतः मन का भीतरी पक्ष वासनाओं को स्मरण कर पुनः जीवन धारण करता रहता है। ऐसे में हठयोग मन को एकाग्र करने का कारगर साधन नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न (iii)
शुष्क इंद्रियाँ लेखक ने किसे कहा है?
उत्तर:
लेखक ने शुष्क इंद्रियाँ उन्हें कहा है जिन्हें बलपूर्वक वश में करने का प्रयास किया गया है।

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प्रश्न 5.
मन दो प्रकार से उत्तेजित होता है-बाहर के विषयों से एवं भीतर की वासनाओं और स्मृतियों से। अतः जब तक वासनाएँ हैं विषय रस का संस्कार नष्ट नहीं किया जा सकता। यद्यपि बाह्य प्राणायामादि कुछ सहायक हैं पर पूरी तरह विषय रस का निस्सारण नहीं करते, तब मन से विषय रस कैसे निवृत्त हो? गीता बताती है कि ‘परं दृष्ट्वा निवर्तते’, परं का अर्थ है कि मन को किसी परं अर्थात् परम उच्च लक्ष्य में लगाना जैसे सेवा-कार्य के प्रकल्पों में, लोक-संग्रह में, राष्ट्र भक्ति में या दीन-दरिद्रों की सेवा में। ऐसा करने से मन की विषय आसक्ति नष्ट हो जाती है। इस संदर्भ में छात्रों के लिए अध्ययन ही परम लक्ष्य है। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • उत्तेजित – तनाव।
  • निस्सारण – निकालना।
  • निवृत्त – फारिग।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। मन की एकाग्रता पर लेखक का विचार यह है कि मन दो कारणों से उत्तेजित होता है। इस उत्तेजना को परम लक्ष्य में लगाने पर व्यक्ति मन एकाग्र कर सकता है।

व्याख्या:
भारद्वाज कहते हैं कि मन अगर एकाग्र नहीं होता तो इसके दो कारण कहे जा सकते हैं। दूसरे शब्दों में मन दो कारणों से उत्तेजित होता है। एक तो उसे बाहरी विषय यानी सैर-सपाटे, होटलों में खाना-पीना, मौज-मस्ती वगैरह मन एकाग्र नहीं करने देते और दूसरे भीतर की वासनाएँ उसे नोच-नोच कर खाती हैं। उसके मन में उठी वासनाओं की आँधी उसे बार-बार याद आती है। उनसे वह उत्तेजित होता है। अगर व्यक्ति मन को एकाग्र करना चाहता है तो उसे सबसे पहले विषय-रस के संस्कार खत्म करने होंगे। यह ठीक है कि मन को एकाग्र करने के लिए प्राणायाम, यम, आसन आदि कुछ लाभ देते हैं पर उनका यह लाभ क्षणिक होता है।

वे पूरी तरह व्यक्ति के मन में रमे विषय रस को मिटा नहीं सकते। तब सवाल पैदा होता है कि मन से विषय रस कैसे समाप्त किए जाएँ? इसका उत्तर हमें मीता में मिलता है कि मन को किसी परं यानी परम उच्च लक्ष्य में लगा देना चाहिए। लोक-संग्रह के कामों में लगा देना चाहिए, राष्ट्रभक्ति में मन लगाना चाहिए, दीन-दुखियों की सेवा में लग जाना चाहिए। इस तरह के काम करने से मन की विषय आसक्ति समाप्त हो जाती है। छात्र के लिए क्योंकि परम लक्ष्य अध्ययन है अतः इस दृष्टि से वह मन को एकाग्र कर सकता है साथ ही अर्थप्रधान युग में उच्च पद पर प्रतिष्ठित भी हो सकता है। अच्छा धनार्जन भी कर सकता है।

विशेष:

  1. मन के एकाग्र न होने के कारण बताए गए हैं। लेखक का कहना है कि बाहर के विषयों से और भीतरी वासनाओं की स्मृति से मन एकाग्र नहीं रह पाता।
  2. प्राणायाम, यम-नियम मन की एकाग्रता में सहायक हैं पर यह चिरकालिक उपाय नहीं हैं।
  3. मन को नियंत्रित करने का उपाय बताया गया है कि इसे उच्च लक्ष्य की ओर मोड़ दो जैसे दीन-दुखियों की सेवा करना, राष्ट्रभक्ति की ओर उन्मुख हो जाना।
  4. छात्र इसी माध्यम से मन एकाग्र कर सकते हैं और उच्च पद पर प्रतिष्ठित हो सकते हैं।
  5. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। वासनाओं, उत्तेजित, संस्कार आदि तत्सम शब्द हैं। निस्सारण नि+सारण। यहाँ विसर्ग सन्धि है। प्राणायाम अर्द्ध पारिभाषिक शब्द है। दीन-दरिद्रों मे द्वंद्व समास है।
  6. सूत्रात्मक शैली है। इसके अतिरिक्त विवेचनात्मक शैली है।

गयांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मन को उत्तेजित करने के दो प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर:
मन को उत्तेजित करने के दो प्रकार हैं-एक तो बाहर के विषयों से मन उत्तेजित होता है और दूसरा विषय-चिंतन से वह तनाव में आ जाता है।

प्रश्न (ii)
विषय की वासनाएँ क्यों नष्ट नहीं होती?
उत्तर:
जब तक इंद्रियों की विषय-वासना रसमग्न रहती हैं तब तक नष्ट नहीं होतीं। कारण यह है कि मन से विषय रस का संस्कार नष्ट नहीं होता। संस्कार के नष्ट न होने से विषय वासनाओं का अंत होने लगता है।

प्रश्न (iii)
वासनाओं पर लगाम लगाने के लिए प्राणायाम का अभ्यास कितना उपयोगी है?
उत्तर:
प्राणायाम का अभ्यास करने से वासनाओं पर नियंत्रण अवश्य होता है पर यह बाहरी आकर्षण पर ही प्रतिबंध लगा सकता है। जैसे मित्र-मण्डली में न जाना, होटलों में जाकर बढ़िया खाना न खाना, क्रिकेट-सिनेमा आदि न देखना। बाहरी आकर्षण के बाद जो भीतरी वासनाएँ व्यक्ति को प्रताड़ित करती हैं, उससे मन एकाग्र नहीं रह पाता।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गीता में परं का अर्थ क्या है? लेखक ने इस शब्द का यहाँ किस प्रकार उपयोग किया है?
उत्तर:
गीता में परं का अर्थ है मन को किसी श्रेष्ठ कार्य के लिए लगाना। यह . किसी की सेवा करना हो सकता है, दीन-दुखियों की मदद करना हो सकता है अथवा राष्ट्रभक्ति में अपने को खो देना हो सकता है।

प्रश्न (ii)
छात्रों के लिए परम शब्द कितना उपयोगी है?
उत्तर:
छात्रों के लिए परम शब्द बहुत उपयोगी है। लेखक का मानना है कि अगर छात्र अपना मन एकाग्र करने के लिए भटकते मन को देश-सेवा या दीन-दुखियों की सेवा के लिए लगा देते हैं तो उनके मन में एकाग्रता स्थान ग्रहण कर सकती है।

प्रश्न (iii)
मन से विषय रस कैसे दूर किया जा सकता है?
उत्तर:
मन से विषय रस दूर करने के लिए परम लक्ष्य को अपनाना होगा। इसके बिना विषय रस से मुक्ति संभव नहीं।

प्रश्न 6.
गीता में परं का अर्थ परमात्मा है इसे परिभाषित करते हुए गीता कहती है कि सब विश्व ईश्वर ही है। वासुदेवः सर्वम्। यह भी कहा गया है कि मुझ ईश्वर को सब विश्व में व्याप्त जानो और मुझमें संपूर्ण विश्व को समझो। अर्थात् ईश्वर और विश्व अभिन्न हैं। अतः सबके प्रति सेवाभाव रखो। यही मन की वासनाओं की शुद्धि का सूत्र गीता देती है। क्या इंद्रियों के भोगों को नियंत्रण करने से मानसिक कुंठाएँ नहीं उभरेंगी तथा व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रोगों से पीड़ित नहीं हो जाएगा। गीता का इस विषय में उत्तर पूर्णतः तर्क संगतं है। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • परं – परमात्मा।
  • वासुदेव – ईश्वर।
  • व्याप्त – संपूर्ण।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। मन की एकाग्रता पर विचार करते हुए लेखक कहता है कि कामनाएँ व्यक्ति को स्थितप्रज्ञ नहीं रहने देतीं। स्थिर मन के उपायों पर विचार करते हुए लेखक गीता के प्रधान सूत्र का उल्लेख करता है कि यह वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना उत्पन्न करती है। इसी में मन की एकाग्रता का सूत्र विद्यमान है।

व्याख्या:
गीता के एक सूत्र में आए परं शब्द की व्याख्या करते हुए रचनाकार कहता है, परं का अर्थ है परमात्मा। यह समस्त विश्व और कुछ नहीं है, ईश्वर है। कहा भी गया है कि सबमें ईश्वर समाया हुआ है। मुझ ईश्वर को संसार के कण-कण में व्याप्त जानो। यह विश्व किसी अन्य में नहीं, मुझमें ही है। ईश्वर और विश्व को अलग अलग नहीं देखा जा सकता। ये एक-दूसरे में लीन हैं।

इसलिए लेखक गीता के इस सूत्र का आधार लेकर अपने विषय को विवेचित करता है और व्यक्ति मा को संदेश देता है कि मन की वासनाओं को शुद्ध करने का एक ही उपाय है कि सबके प्रति सेवाभाव रखो। यहीं एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि अगर हम वासनाओं पर नियंत्रण करेंगे तो इससे मन में अनेक प्रकार की कुंठाएँ जन्म लेंगी। इससे व्यक्ति में मानसिक व शारीरिक पीड़ा पैदा होगी। ऐसे में संभव नहीं लगता कि व्यक्ति मन एकाग्र कर सकेगा।

विशेष:

  1. इस अंश में लेखक ने वेद सूक्त को विवेचित किया है कि मैं एक अवश्य हूँ पर समस्त विश्व में व्याप्त हूँ। एकोहं….। यहीं लेखक ने एक अन्य सूत्र का उल्लेख भी किया है, “वासुदेवः सर्वम्।
  2. दर्शनशास्त्र में बड़ा झगड़ा है। आत्मा और ब्रह्म अलग-अलग हैं या एक हैं। कुछ ब्रह्मज्ञानी इन्हें अलग-अलग मानते हैं और कुछ अभिन्न। यहाँ ईश्वर व विश्व अभिन्न में ब्रह्मज्ञानियों की यही भावना परिलक्षित होती है।
  3. वासनाओं की शुद्धि का मूल मंत्र बताया गया है-सबके प्रति सेवाभाव रखो, वासनाएँ शांत हो जाएँगी।
  4. यहाँ एक महत्त्वपूर्ण आशंका उठाई गई है कि क्या इन्द्रियों के भोगों को नियन्त्रण करने से मानसिक कुंठाएँ जन्म नहीं लेंगी? शारीरिक पीड़ा नहीं होगी?
  5. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। सूत्रात्मक विवेचनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गीता में परं का अर्थ क्या है?
उत्तर:
गीता में परम का अर्थ परमात्मा है।

प्रश्न (ii)
परं को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
परं को गीता में इस प्रकार परिभाषित किया है–सारा विश्व ईश्वर है। मुझ ईश्वर को सबमें व्याप्त समझो। मुझमें ही सारा विश्व बना है। दूसरे शब्दों में ईश्वर और विश्व अभिन्न हैं।

प्रश्न (iii)
मन की वासनाओं को दूर करने का गीता में क्या उपाय बताया गया है?
उत्तर:
गीता में कहा गया है कि अगर मन की वासनाओं को शांत करना चाहते हो तो सबके प्रति सेवाभाव रखो। इससे मन की वासनाएँ शुद्ध हो जाएंगी।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
इस अनुच्छेद का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर:
इस अनुच्छेद का केंद्रीय भाव है कि ईश्वर कण-कण में बसा है। सबके प्रति सेवाभाव से मन की वासनाओं को शुद्ध किया जा सकता है।

प्रश्न (ii)
इंद्रियों पर नियंत्रण करने से क्या समस्या पैदा हो सकती है?
उत्तर:
इंद्रियों पर नियंत्रण करने से मन में कुंठाएँ जन्म ले सकती हैं। इससे व्यक्ति अनेक प्रकार की बीमारियों का शिकार हो सकता है।

प्रश्न (iii)
गीता में इंद्रियों के नियंत्रण से पनपने वाली कुंठाओं का क्या समाधान बताया है? .
उत्तर:
गीता में कहा गया है कि वासमाओं पर नियंत्रण से मन में कुंठाएँ तो उपज सकती हैं पर उनका सरल उपाय यह कि विषय का सेवन तो किया जाए पर आसक्ति या द्वेष से न किया जाए। इससे मन में कुंठाएँ उपजने का भय नहीं रह सकता।

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प्रश्न 7.
अनियन्त्रित इच्छाएँ समाज में अनाचार पनपाएँगी। लोग कामनाओं से आवेशित होकर निषिद्ध आचरण में प्रवृत्त होवेंगे। अतः इन्द्रियों द्वारा विषयों का सेवन – तो हो पर विवेक शून्य आसक्ति न हो। इन्द्रियाँ अपने वश में रहें। उन पर अंकुश रहे अनिवार्य विषयों में इंद्रियाँ प्रवृत्त हों, पर निषिद्ध वर्जित विषयों में नहीं। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • अनियन्त्रित – जिन पर नियंत्रण लगा दिया गया है।
  • आवेशित – क्रोधित।
  • वर्जित – त्याज्य।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। मन की एकाग्रता पर विचार करते हुए लेखक कहता है कि कामनाएँ व्यक्ति को स्थित प्रज्ञ नहीं रहने देतीं। लेखक ने अंत में स्वीकार कर लिया है कि कामनाएँ कभी समाप्त नहीं हो सकती हैं पर आवश्यकता इस बात है कि व्यक्ति को उनका दास नहीं होना चाहिए।

व्याख्या:
लेखक का मानना है कि व्यक्ति वासनाओं से स्वयं को कभी दूर नहीं कर सकता पर इन्हें नियंत्रित कर जीवन में अपनाया जाए तो वह अपने मन को एकाग्र कर सकता है। क्योंकि वासनाएँ समाज के लिए अनेक प्रकार अनाचार पैदा करती हैं। लोग कामनाओं से संचालित होने लगते हैं और ऐसे आचरण करने लगते हैं जिनकी समाज में करने की मनाही है। अतः लेखक कहता है कि इन्द्रियों से विषय सेवन करो, तुम्हें कोई नहीं रोकने वाला पर इनके सेवन में विवेक को मत भूलो। उन पर आपका हर हालत में नियंत्रण रहना चाहिए। अनिवार्य हो तो विषयों का सेवन करो अन्यथा इनसे परहेज करो।

विशेष:

  1. जब वासनाओं पर नियंत्रण नहीं होता तो समाज में तरह-तरह के अत्याचार पैदा हो जाते हैं। इससे समाज में अनाचार फैलता है।
  2. इंद्रियों के सेवन की मनाही नहीं है पर विवेक का प्रयोग करते हुए करना चाहिए।
  3. तत्सम प्रधान शब्द हैं, संस्कृतनिष्ठ भाषा है। अनियंत्रित में अ और नि दो उपसर्गों का प्रयोग किया गया है तब जाकर अनियंत्रित शब्द का निर्माण किया गया है। इसी तरह अनाचार में अ उपसर्ग का प्रयोग है। प्र उपसर्ग लगाकर प्रवृत्त शब्द तैयार किया गया है।
  4. विवेचित व सूत्रात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
अनियंत्रित इच्छाएँ समाज का क्या अहित करती हैं?
उत्तर:
जिन इंद्रियों पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं रहता वे समाज को भयावह बना देती हैं। समाज को अनुशासनहीन बना देती हैं। लोग कामनाओं से तनाव में आकर समाज के विरुद्ध आचरण करने लगते हैं।

प्रश्न (ii)
इंद्रियों के सेवन के लिए लेखक ने क्या परामर्श दिया है?
उत्तर:
लेखक ने कहा है कि इंद्रियों का सेवन तो किया जाए पर विवेक से किया जाए। इनके सेवन में आसक्ति का लेश मात्र भी अंश नहीं होना चाहिए।

प्रश्न (iii)
लेखक इंद्रियों का सेवन करते समय किस बात की ओर ज़्यादा ध्यान देना चाहता है?
उत्तर:
इंद्रियों का नियंत्रण अपने हाथ में होना चाहिए। अगर नियंत्रण छूटा तो समाज में अनाचार फैल सकता है।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
अनाचार से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
जब समाज-विरुद्ध क्रियाएँ की जाती हैं तो उसे अनाचार की श्रेणी में रखा जाता है। इंद्रियों का नियंत्रित सेवन समाज-सम्मत है और अनियंत्रित सेवन निश्चित रूप से समाज-विरुद्ध है।

प्रश्न (ii)
इस अनुच्छेद में कोई एक पारिभाषिक शब्द का चुनाव कीजिए।
उत्तर:
इस अनुच्छेद में पारिभाषिक शब्द है–आसक्ति।

प्रश्न (iii)
आवेशित शब्द किस प्रकार बना है?
उत्तर:
आवेश में इत प्रत्यय लगकर आवेशित शब्द का निर्माण हुआ है।

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ (कविता, सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’)

हम कहाँ जा रहे हैं…! पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

हम कहाँ जा रहे हैं…! लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि का दोगली-दोहरी सभ्यता से क्या आशय है?
उत्तर:
दोगली-दोहरी सभ्यता से आशय है-पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय सभ्यता का सम्मिश्रण।

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प्रश्न 2.
हम कैसी दुंदुभी बजा रहे हैं?
उत्तर:
हम विदेशी जीवन-शैली में अपनी संस्कृति की ही वस्तुओं को आयायित समझकर अपना रहे और आधुनिक होने की दुंदुभी बजा रहे हैं।

प्रश्न 3.
हम विदेश क्यों जा रहे हैं?
उत्तर:
अपनी ही संस्कृति के रहस्यों को जानने के लिए हम विदेश जा रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि ने किस संदर्भ में कहा है? (M.P. 2009)
उत्तर:
विदेशियों द्वारा हमारी परंपराओं और उपलब्धियों को अपना कहकर प्रचारित करने के सौंदर्य में कवि ‘उल्टे बाँस बरेली को’ कहा है।

प्रश्न 2.
हमने दूसरों को क्या सौंप दिया है? (M.P. 2010)
उत्तर:
हमने दूसरों को अपनी सभ्यता और संस्कृति सौंप दी है।

प्रश्न 3.
‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से कवि यह संदेश केता चाहता है कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति, उसकी परंपराएँ, व्यवहार, उपलब्धियाँ और जीवन-मूल्य सर्वश्रेष्ठ है। हमें पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को नहीं अपनाना चाहिए। हमें भारतीय ही बने रहना चाहिए; क्योंकि इसी में हमारा कल्याण है।

हम कहाँ जा रहे हैं…! भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित का भाव पल्लवन कीजिए –

  1. मान्यताएँ बदल कर हम अपना सर मुड़ा रहे हैं।
  2. अपना खालिसे कलश भी हम विदेशी बना रहे हैं।

उत्तर:
1. हम भारतीय पुरातन काल से चली आ रही परंपराओं, जीवन-मूल्यों और आदर्शों को बदलकर, पाश्चात्य जीवन-शैली को अपनाकर, अपनी संस्कृति और अपने व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। आज जब विश्व हमारे चिंतन और ज्ञान से नई चेतना प्राप्त कर रहा है, तब हम अपनी विरासत को छोड़कर विदेशी चिंतन और व्यवहार को ग्रहण करें, यह उचित नहीं है।

2. हम विदेशी वस्तुओं के प्रति इतने आकर्षित हो रहे हैं कि हमने शुद्ध भारतीय ‘देन कलश को विदेशी की देन बता दिया है। कवि ने इसके द्वारा भारतीयों पर व्यंग्य किया है कि हम अपनी सांस्कृतिक उपलब्धियों को भी नकार रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए –
(अ) मुलम्में पर मुलम्मा चढ़ाना।
(ब) उल्टे बाँस बरेली को
(स) दुदंभी बजाना
(द) सर मुंडाना।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-1

प्रश्न 2.
विलोम शब्द लिखिए –

  1. कड़वा
  2. नीति
  3. ज्ञान
  4. सभ्यता
  5. रहस्य
  6. दानवीर।

उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-3
हम कहाँ जा रहे हैं…! योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
किसी प्रवासी भारतीय की कविता खोजिए और उसे कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
चाणक्य और अभिमन्यु के संबंध में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर:
चाणक्य चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री था और अर्थशास्त्र का रचयिता था। अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था। महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए वह उसमें प्रवेश कर गया, किंतु वहाँ कई महारथियों ने मिलकर उसका वध कर दिया था।

प्रश्न 3.
पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण को आप कैसा मानते हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
विश्व में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार की स्थिति पर अपने विचार अपने साथियों के साथ बाँटिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

हम कहाँ जा रहे हैं…! परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हम कहाँ जा रहे हैं। कविता के कवि हैं –
(क) मैथिलीशरण गुप्त
(ख) देवेंद्र ‘दर्शिक’
(ग) बालकवि ‘वैरागी’
(घ) सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’
उत्तर:
(घ) सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’

प्रश्न 2.
मान्यताएँ बदलकर हम अपना सर……………………..रहे हैं –
(क) कटा
(ख) मुँडा
(ग) झुका
(घ) ऊँचा
उत्तर:
(ख) मुँड़ा।

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प्रश्न 3.
चक्रव्यूह में फँसा था –
(क) अभिमन्यु
(ख) अर्जुन
(ग) भीम
(घ) द्रोणाचार्य
उत्तर:
(क) अभिमन्यु।

प्रश्न 4.
हम ‘डॉविंची कोड’ बना रहे हैं, कैसे ………..
(क) दबाव में आकर
(ख) जान-बूझकर
(ग) अनजाने में
(घ) देख-सुनकर
उत्तर:
(ख) जान-बूझकर।

प्रश्न 5.
हम कैसी सभ्यता के रंग में रंगे हैं –
(क) दोहरी-दोगली
(ख) भारतीय पाश्चात्य
(ग) असली-नकली
(घ) अच्छी-बुरी
उत्तर:
(क) दोहरी-दोगली।

प्रश्न 6.
कवि ने हमें संदेश दिया है –
(क) हम भारतीय बने रहें
(ख) हम आधुनिक बनने के लिए पाश्चात्य जीवन-शैली अपनाएँ
(ग) हम अपनी संस्कृति-सभ्यता को भूल जाएँ
(घ) हम अपनी उपलब्धियों को नकार दें
उत्तर:
(क) हम भारतीय बने रहें।

प्रश्न 7.
हमारा कल्याण इसी में है कि –
(क) हम भारतीय बने रहें।
(ख) हम नकली जीवन-शैली को उतार फेंकें।
(ग) हम अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें।
(घ) हम अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को और अपनी सांस्कृतिक चेतना पहचानें।
उत्तर:
(घ) हम अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार कीजिए –

  1. सुदर्शन ‘प्रियदर्शनी’ ………. हैं। (प्रवासी भारतीय/अप्रवासी भारतीय)
  2. विश्व में ………. पहले स्थान पर है। (चीनी भाषा/हिंदी भाषा)
  3. हिंदी जानने वालों की संख्या ………. करोड़ है। (100/102)
  4. पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर हम ………. रहे। (भाग/ललचा)
  5. ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ कविता के कवि ……… हैं। (बालकवि वैरागी/सुदर्शन प्रियदर्शिनी)

उत्तर:

  1. अप्रवासी भातीय
  2. हिंदी भाषा
  3. 102
  4. ललचा
  5. सुदर्शन “प्रियदर्शिनी।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –

  1. महाभारत के चक्रव्यूह में अभिमन्यु फँसा था।
  2. कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं’…में हैरीपीटर फिल्म का उल्लेख है।
  3. हम दोहरी-दोगली सभ्यता के रंग में रंगे हैं।
  4. कवि ने संदेश दिया है कि हम भारतीय बने रहें।
  5. ‘दोगली-दोहरी’ में उपमा अलंकार है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-4
उत्तर:

(i) (ङ)
(i) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

  1. हमारे लिए क्या शुभ संकेत नहीं है।
  2. विदेशी किसे क्या कहकर प्रचारित कर रहे हैं?
  3. हमारा कल्याण किसमें है?
  4. चाणक्य-नीति क्या है?
  5. ‘सब कुछ गड़मड़ा रहा है?

उत्तर:

  1. हमारे लिए यह शुभ संकेत नहीं है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं।
  2. विदेशी हमारी देन वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं।
  3. हमारा कल्याण इसी में हैं कि हम भारतीय बने रहें।
  4. खूब सोच-विचार कर ही कदम उठाना चाणक्य नीति है।
  5. ‘सब कुछ गड़मड़ा रहा है’ से कवि का तात्पर्य है-भारतीय और पाश्चात्य जीवन-शैली एक-दूसरे से इतनी मिल गई हैं कि क्या भारतीय है और क्या पाश्चात्य, यह समझ पाना कठिन होता जा रहा है।

हम कहाँ जा रहे हैं…! लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभद्रा कौन-सी कथा सुनते-सुनते सो गई थी?
उत्तर:
सुभद्रा चक्रव्यूह की कथा सुनते-सुनते सो. गई थी?

प्रश्न 2.
‘डॉविंची कोड’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘डॉविंची कोड’ से तात्पर्य है नकली नियमावली।

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प्रश्न 3.
विदेशी क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
विदेशी हमारी वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
विदेशी हमारा क्या-क्या ग्रहण कर उन्हें क्या-क्या बना दिया है?
उत्तर:
विदेशी हमारी वास्तुकला को ग्रहण कर उसे फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग को योगा बना दिया है।

प्रश्न 5.
कवि ने क्या उतार फेंकने के लिए कहा है?
उत्तर”:
कवि ने नकली जीवन-शैली उतार फेंकने के लिए कहा है।

प्रश्न 6.
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि सुदर्शन ने किस संदर्भ में कहा है? (M.P. 2009)
उत्तर:
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि सुदर्शन ने उस संदर्भ में कहा है कि विदेशी हमारी ही वस्तुओं को ग्रहण करके उसे अपना अच्छा बताकर हमें लौटा रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने किन प्रसंगों को उजागर किया है?
उत्तर:
कवि ने भारतीय और पाश्चात्य जीवन-बोध के उन प्रसंगों को उजागर किया है जिनमें हम अपनी संस्कृति और अपने परंपरागत व्यवहार को भूल रहे हैं।

प्रश्न 2.
हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चकाचौंध में क्या-क्या खोते जा रहे हैं?
उत्तर:
हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चकाचौंध में अपनी सांस्कृतिक पहचान, धर्म-कर्म, वेशभूषा, भाषा-ज्ञान, विधि-विधान आदि खोते जा रहे हैं।

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प्रश्न 3.
हमारा क्या-क्या विदेशी हो गया है?
उत्तर:
हमारा खालिस कलश, धर्म, कर्म, वेशभूषा, भाषा-विज्ञान, विधि-विधान सभ्यता, संस्कृति, दानवीरता, वास्तुकला, सत्वज्ञान, योग, नीम की निमोली आदि विदेशी हो गए हैं। इन्हें विदेशी अपना मुलम्मा चढ़ाकर अपना बतलाते हुए प्रचारित कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
‘हम कहाँ जा रहे हैं….. कविता के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ कविता सोद्देश्यपूर्ण कविता है। इसमें कवि सुदर्शन का यह उद्देश्य है कि हमें बाहरी आडम्बरों से दूर रहना चाहिए। तथाकथित सभ्यता और पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे-समझे अपनाना मूर्खता है। हमारी ही विरासत और सांस्कृतिक निष्ठा दुनिया में श्रेष्ठ है। विदेशी वस्तुओं की ओर दौड़ना अच्छी बात नहीं है। अच्छी बात यही है कि हम भारतीय हैं और भारतीय बने रहें।

हम कहाँ जा रहे हैं…! पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
“हम कहाँ जा रहे हैं…!” कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं। कविता में कवि सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ ने भारतीय और पाश्चात्य जीवन-बोध के उन प्रसंगों को उजागर किया है। जिन्हें हम भारतीय अपनी भारतीय संस्कृति और परंपरागत व्यवहार में होने पर भी भूलते जा रहे हैं। कविने इस बात पर बल दिया है कि हम अपनी छम प्रवृत्ति को छोड़ दें। बाह्य आडंबर को नष्ट कर दें। कुछ नवीन सभ्यता के नाम पर पाश्चात्य जीवन-शैली का अपनाना बुद्धिमानी नहीं है। सच तो यह है कि हमारी विरासत एवं सांस्कृतिक निष्ठा विश्व में श्रेष्ठ है। पाश्चात्य जीवन-शैली और उनकी वस्तुओं को देखकर हम ललचा रहे हैं। उन्हें स्वीकार कर रहे हैं।

अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। हम अपनी संस्कृति को देखने-समझने के लिए विदेश जा रहे हैं। यहाँ तक कि हम अपने स्वयं के कलश (धरोहर) को भी विदेशी बता रहे हैं। मैंनशुई, रेकी और योगा का उल्लेख करते हुए कवि कहता है कि यह सब कुछ हमारी वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग हमारी ही देन हैं। विदेशी लोग अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं। कवि हमें सचेत करता है कि हमें अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानना चाहिए। इसी में हमारा कल्याण है कि हम भारतीय बने रहे। नकली जीवन-शैली को त्याग दें।

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

प्रश्न 1.
चिरंतन काल से
लिख-पीढ़ी दर –
पीढ़ियाँ चली
मान्यताएँ बदलकर
अपना सर हम

मुड़ा रहे हैं…!
न जाने हम कहाँ
जा रहे हैं…!

चाणक्य नीतियों
के चक्रव्यूह में फँसे
हम अभिमन्यु के
व्यूह को दुहरा रहे हैं…।

सुनते-सुनते
कथा, सो गई
सुभद्रा-हम जान-बूझकर
डॉविंची कोड बना रहे हैं।
रहस्य पर रहस्य
दबे हैं संस्कृति के
उन्हें देखने-समझने
विदेश आ रहे हैं…!

पगड़ी उतरी –
बार-बार-हमारी
फिर भी कलगी
की-कलफ सहला रहे हैं…… (Page 93)

शब्दार्थ:

  • चिरंतन – पुरातन, बहुत पहले से चलते रहने वाला।
  • मान्यताएँ – किसी सिद्धांत आदि का मान्य होना, मानने योग्य।
  • सर मुड़ाना – अपने पास का धन गँवा देना।
  • चाणक्य-नीति – चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री की चतुराई भरी चाल।
  • व्यूह – सैनिकों को युद्धभूमि में उपयुक्त स्थान पर रखना।
  • डॉविची कोड – नकली आचारसंहिता, नकली नियमावली।
  • रहस्य – गुप्त भेद।
  • पगड़ी उतारना – प्रतिष्ठा समाप्त करना।
  • कलगी – पगड़ी। में लगाया जाने वाला फूंदना।
  • कलफ़ – माँड़ी।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश.सुदर्शन ‘प्रिंयदिर्शनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ से उद्धृत है। कवि ने भारतीयों को पुरातन समय से चली आ रही भारतीय संस्कृति की मान्यताओं को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे-समझे अपनाने और अपनी जीवन-शैली को भूलते जाने को उचित नहीं मानता। इन्हीं भावों को इस काव्यांश में व्यक्त किया गया है।

व्याख्या:
कवि का कहना है कि हम भारतीय पुरातन काल से पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपनी संस्कृति की परंपरागत जीवन-शैली को बदलकर, अपने परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। हम अपने जीवन-मूल्यों और आदर्श परंपराओं को छोड़कर पाश्चात्य परंपराओं और जीवन-शैली का अंधानुकरण करके कहाँ जा रहे हैं। हम पाश्चात्य संस्कृति की चतुराईभरी नीतियों के चक्रव्यूह में फंसकर अभिमन्यु वध वाले कांड को दुहरा रहे हैं; अर्थात् हम भारतीय पाश्चात्य जीवन-शैली के शिकार होते जा रहे हैं, जिसमें एक बार फँसने के बाद निकलना अभिमन्यु की तरह असंभव है।

जिस प्रकार अभिमन्यु ने सुभद्रा के गर्भ में ही चक्रव्यूह में प्रवेश का मार्ग जान लिया या किंतु कहानी सुनते-सुनते सुभद्रा के सो जाने पर वह उससे निकलने का मार्ग नहीं जान पाया क्योंकि सुभद्रा कथा के बीच में ही सो गई थी। अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुस तो गया, लेकिन वापस नहीं लौट सका। वही स्थिति हमारी है। हम पाश्चात्य जीवन-शैली के चक्रव्यूह में फँसते जा रहे हैं। हमारे लिए उससे छुटकारा पाना कठिन है। हम जान-बूझकर इसमें फँस रहे हैं तथा बिना सोचे-समझे इसे अपनाकर, नकली नियमावली बना रहे हैं। हमें यह अपनी छद्म प्रवृत्ति छोड़ देनी चाहिए।

हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अनेक गुप्त भेद दबे पड़े हैं। हम उन गुप्त भेदों को जानने के लिए विदेश आ रहे हैं। आज जब हमारे चिंतन और ज्ञान को अपनाकर विश्व नई चेतना ग्रहण कर रहा है, तब हम अपनी विरासत को छोड़कर विदेशी चिंतन और व्यवहार को अपनाने के लिए आतुर हो रहे हैं। ऐसा करने से बारम्बार हमारी प्रतिष्ठा घटती जा रही, है, फिर भी हम कलगी में लगे कलफ़ को सहला रहे हैं।

विशेष:

  1. कवि ने भारतीय संस्कृति को पाश्चात्य संस्कृति से श्रेष्ठ बताया है और पाश्चात्य शैली को बिना विचारे स्वीकार करना उचित नहीं है।
  2. सुनते-सुनते, बार-बार मैं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  3. कलगी की कलफ़ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुहावरों का सटीक, सार्थक प्रयोग किया गया है।
  5. महाभारत की पौराणिक कथी का प्रयोग हुआ है।
  6. भाषा तत्सम प्रधान है जिसमें अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  7. मुक्त छंद है। तुकांत का अभाव है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
चिरंतन काल से चली आ रही मान्यताओं को बदलेकर हम क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
पुरातन काल से चली आ रही अपनी संस्कृति और परंपरागत मान्यताओं को बदलकर हम पाश्चात्य जीवन-शैली का अनुकरण कर अपनी संस्कृति और परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं।

प्रश्न (ii)
चाणक्य नीतियों से क्या आशय है?
उत्तर:
चाणक्य नीतियों से आशय है चतुराई की चालें। हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चतुराईभरी चालों में फँसते जा रहे हैं। आशय यह कि हम बिना सोचे-विचारे उन्हें अपना रहे हैं।

प्रश्न (iii)
हम किन्हें देखने-समझने विदेश जा रहे हैं?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता-संस्कृति में अनेक. गुप्त भेद दवे पड़े हैं। हम उन गुप्त भेदों को जानने के लिए विदेश जा रहे हैं।

पयांश पर आधारित सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।.
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
हम भारतीय अपनी संस्कृति और अपने परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। शताब्दियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही मान्यताओं, जीवन आदर्शों और जीवन-शैली को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे विचारे अपना रहे हैं। अपनी ही संस्कृति के रहस्यों को जानने के लिए हम विदेशों में जा रहे हैं। यह उचित नहीं है।

प्रश्न (ii)
पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
कवि कहता है कि पाश्चात्य जीवन-शैली का बिना सोचे-विचारे स्वीकार करना बुद्धिमानी नहीं है। सुनते-सुनते, बार-बार में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। ‘कलगी की कलफ’ में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों को सटीक, सार्थक प्रयोग किया गया है। महाभारत की पौराणिक कथा और चाणक्य का उल्लेख करने से उदाहरण अलंकार है। चाणक्य…सुभद्रा में रूपक अलंकार है। मुक्तक छंद है। तुकांत का अभाव है। भाषा तत्सम प्रधान है, जिसमें अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न (iii)
पद्यांश का मुख्य भाव बताइए।
उत्तर:
पद्यांश का मुख्य भाव यह है कि हमारी विरासत एवं संस्कृति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है।

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प्रश्न 2.
सब कुछ गड़मड़ा
रहा है-क्या है
हमारा-क्या
पाश्चात्य –
जानकर भी
नकारा –
सर हिला रहे हैं…।
दोगली-दोहरी
सभ्यता के रंग
में रंगे हैं –
हम और हमारा
कुछ भी नहीं
यही…
मुलम्में पर
मुलम्मा चढ़ा
रहे हैं…। (Page 94)

शब्दार्थ:

  • गड़मड़ा – अस्त-व्यस्त होना।
  • मुलम्मे पर मुलम्मा चढ़ाना – दिखावे पर दिखावा करना, सोने या चाँदी का पानी चढ़ाया हुआ।
  • नकारा – अस्वीकृत, इनकार, निकम्मा।
  • दोगली – वर्णसंकर।
  • दोहरी – दो तरह की बात।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से उद्धृत है। कवि का मानना है कि हम न तो भारतीय रह पाए हैं और न ही पूरी तरह पाश्चात्य जीवन-शैली को अपना सके। हम दो रंगी सभ्यता में रंगे जा रहे हैं।

व्याख्या:
कवि कहता है कि आज सब कुछ अस्त-व्यस्त हो रहा है। कहने का भाव यह है कि भारतीय संस्कृति, परंपराएँ और मान्यताएँ तथा पाश्चात्य जीवन-शैली दोनों ही एक-दूसरे में मिलकर गड़मड़ होकर अस्त-व्यस्त हो रही हैं। इस कारण पता ही नहीं चलता कि क्या हमारा है अर्थात् क्या भारतीय है और क्या पाश्चात्य है। सत्य तो यह है कि हम सब कुछ जानकर भी निकम्मे बने हुए अस्वीकृति में सर हिला रहे हैं। हम वर्णसंकर; अर्थात् दो प्रकार की जीवन-शैली अपनाकर दो तरह की बातें करते हैं।

हम एक ओर भारतीय सभ्यता-संस्कृति की अपनी परंपरागत जीवन-शैली को नहीं छोड़ पा रहे हैं और दूसरी ओर हम पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की जीवन-पद्धति को बिना विचारे अपनाकर दोहरी जिन्दगी जी रहे हैं। कहने का भाव यह है कि हम आधुनिक होने का दिखावा कर रहे हैं। हम अपनी विरासत को भुलाकर पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर ललंचा रहे हैं अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। इस प्रकार हम दिखावे पर दिखावा कर रहे हैं। भारतीय जीवन-शैली पर पाश्चात्य जीवन-शैली को चढ़ा रहे हैं।

विशेष:

  1. भारतीय जीवन-शैली को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को अपनाने वालों पर व्यंग्य किया है।
  2. भारतीय पाश्चात्य होने का दिखावा कर रहे हैं। अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं।
  3. दोगली-दोहरी में अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  5. छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।
  6. भाषा सरल और उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-सुदर्शन ‘प्रियदर्शनी, कविता-‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’

प्रश्न (ii)
‘हम और हमारा’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘हम’ से कवि का तात्पर्य है हम भारतीय और ‘हमारा’ से तात्पर्य है-हम भारतीयों की उपलब्धियों से, अपनी विरासत से हे जिसे हम भूलते जा रहे हैं।

प्रश्न (iii)
‘दोगली-दोहरी सभ्यता के रंग में रंगे’ द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कवि यह कहना चाहता है कि हा भारतीय अपनी संस्कृति की मान्यताओं और जीवन-शैली के साथ-साथ पाश्चात्य जीवन-शैली और उनकी वस्तुओं के प्रति ललचा रहे हैं। इस तरह हम न तो अपनी जीवन-शैली को छोड़ पा रहे हैं और न ही पाश्चात्य जीवन-शैली को पूरी तरह अपना पा रहे हैं।

पद्यांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पद्यांश का भाव-सौदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
भारतीय जीवन-शैली और पाश्चात्य जीवन-पद्धति दोनों मिल जाने के कारण सभी कुछ अस्त-व्यस्त हो रहा है। हम अपनी विरासत और उपलब्धियों को भी जानते हुए नकार रहे हैं। हमें लगता है कि हमारा कुछ भी नहीं है। यही कारण है कि हम परत पर परत चढ़ा रहे हैं।

प्रश्न (ii)
पद्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
हम भारतीय पाश्चात्य होने का दिखावा कर रहे हैं और अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। दोगली-दोहरी में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है। छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है। भाषा सरल और उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है। विशेषणों का प्रयोग अर्थवत्ता में वृद्धि कर रहा है।

प्रश्न 3.
अपना खालिस
कलश भी हम
विदेश बता रहे, हैं…।
न धर्म न कर्म-अपना
न वेश-न भूषा
न भाषा-न विज्ञान
न विधि-न विधान –
सब कुछ दूसरों
के हवाले –
किए जा रहे हैं….।
बड़े त्यागी –
ऋषि-और दानवीर हैं हम –
दूसरे-हमें –
हमारे ही प्याले
से-हमारी सभ्यता
संस्कृति का
घुट पिला रहे हैं… (Page 94)

शब्दार्थ:

  • खालिस – शुद्ध।
  • कलश – घड़ा।
  • विधि – रचना, ढंग।
  • विधान – व्यवस्था।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश सुर्दशन ‘प्रियदर्शनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं….!’ से उद्धृत है। कवि भारतीयों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। यहाँ तक कि इमने स्वयं के कलश (धरोहर) को भी विदेशी दर्शा दिया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। यहाँ तक अपने शुद्ध देशी कलश (धरोहर) को भी विदेशी बता रहे हैं। दूसरे शब्दों में, मांगलिक कार्यों में रखा जाने वाला कलश भारतीय संस्कृति की देन है। विदेशी वस्तुओं को अपनाने के चक्कर में हमने उसे भी विदेशी संस्कृति की देन बता दिया है। न धर्म – हमारा है, न कर्म अपना है और न ही पहनावा अपना रहा है। यहाँ तक कि विधि-विधान भी अपने नहीं रहे। हम सब कुछ हवाले किए जा रहे हैं। हम बड़े त्यागी बन रहे हैं। कहने का भाव यह है कि हम अपनी उपलब्धियों को विदेशियों को दिए जा रहे हैं।

हम अपने-आपको ऋषि और दानवीर समझ रहे हैं। दूसरी ओर विदेशी हमारी इन्हीं परंपराओं का सत्व ग्रहण करके हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें विदेशी मानकर ग्रहण कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में, पाश्चात्य संस्कृति के लोग हमारी भारतीय संस्कृति की मान्यताओं व हमारी उपलब्धियों को दूसरा नाम देकर हमारी सभ्यता और संस्कृति हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें अपना रहे हैं। यह हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है।

विशेष:

  1. हम भारतीय अपनी संस्कृति, अपनी मान्यताएँ और परंपरागत व्यवहार को त्यागकर विदेशी जीवन-शैली अपना रहे हैं जो शुभ संकेत नहीं है।
  2. सभ्यता-संस्कृति में अनुप्रास अलंकार है।
  3. मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  4. भाषा सरल खड़ी बोली है जिसमें उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  5. छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।
  6. व्यंग्यात्मकता का प्रयोग, किया गया है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि ने भारतीयों पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
कवि ने भारतीयों पर व्यंग्य किया है कि हम लोग विदेशी वस्तुओं के प्रति ललचा रहे हैं इसलिए हमें अपनी संस्कृति में मांगलिक कार्यों में प्रयोग होने वाले भारतीय देन कलश को भी विदेशी बता दिया है। यह सर्वथा अनुचित है।

प्रश्न (ii)
भारतीय अपनी किन-किन सांस्कृतिक उपलब्धियों को दूसरों को सौंप रहे हैं?
उत्तर:
भारतीय अपना धर्म-कर्म, वेशभूषा, भाषा और ज्ञान एवं विधि-विधान आदि दूसरों को सौंप रहे हैं और उनकी जीवन-शैली को अपना रहे हैं। हमारे पास अपना कुछ नहीं रहा है।

प्रश्न (iii)
विदेशी हमें क्या परोस रहे हैं?
उत्तर:
विदेशी हमारी सभ्यता और संस्कृति को अपने साँचे में ढोलकर हमें ही परोस रहे हैं।

पयांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि ने भारतीयों को व्यंग्य का निशाना बनाया है। हम पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर ललचा रहे हैं। इसलिए हम अपना सब कुछ उन्हें सौंप रहे हैं। हमारी यह स्थिति हो गई है कि न हमारा धर्म-कर्म, न ही वेशभूषा, भाषा-ज्ञान और न कोई विधि-विधान रहा है। पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के लोग हमारी उपलब्धियों को अपना बताकर हमें परोस रहे हैं।

प्रश्न (ii)
पद्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट. कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
कवि ने भारतीयों की मनःस्थिति को व्यंग्य का निशाना बनाया है। अतः पद्यांश की भाषा में व्यंग्यात्मकता है। हमें हमारे’ व ‘सभ्यता-संस्कृति’ में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा सरल खड़ी बोली है इसमें उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ है। छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।

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प्रश्न 4.
उल्टे बाँस
बरेली को –
योग-साधना –
धर्म नीति –
सब उल्टे हमें
परोसे
जा रहे हैं…।
वास्तुकला
हुई फेंगशुई
सत्वज्ञान को
रेकी-बना रहे हैं
योग को योगा हुआ देख
कैसी हम
दुंदुभी-बजा
रहे हैं…!
नीम भी
गले नहीं उतरी –
हमें कड़वी लगी –
निमोली की
तरह-तोड़ कर
उन्हें खिला रहे हैं –
हम कहाँ जा रहे हैं…! (Page 94)

शब्दार्थ:

  • दुंदुभी – एक तरह का वाद्य-यंत्र।
  • उल्टे बाँस बरेली को – जैसा होना चाहिए उसके विपरीत होना।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ से उद्धृत है। इसमें कवि कह रहा है कि पाश्चात्य और अन्य देशों केलोग हमारी परंपराओं का सत्व ग्रहण करके हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें विदेशी मानकर स्वीकार कर रहे हैं। हमें आधुनिक चकाचौंध में अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।

व्याख्या:
कवि का कहना है कि विदेशी उल्टे बाँस बरेली की कहावत को चरितार्थ करते हुए अर्थात् हमारी उपलब्धियों, परंपराओं और जीवन-पद्धति को हमें लौटा रहे हैं जबकि होना यह चाहिए था कि हमें ही उन्हें सब कुछ अपना बता कर देना चाहिए था, पर हो रहा इसके विपरीत है। हमारी संस्कृति में प्रारंभ से ही योग-साधना पर बल दिया जाता रहा है। धर्म-नीति हमारी परंपरा का अंग रही है। वे इन्हें हमसे लेकर हमें ही परोस रहे हैं। उदाहरणार्थ-हमारी वास्तुकला को ग्रहण कर उसे फेंगशुई नाम दे दिया गया, सत्वज्ञान को ग्रहण कर रेकी बना दिया और योग को योगा बना दिया गया।

इस प्रकार वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग हमारी ही देन है। इसे विदेशी लोग अपना कहकर – प्रचारित कर रहे हैं और हम इन्हें विदेशी मानकर और इन्हें अपनाकर कितने प्रसन्न हो रहे हैं। कवि कहता है कि नीम का वृक्ष हमारी संस्कृति की देन है, लेकिन वह भी – हमारे गले नहीं उतरा। वह भी हमें कड़वा लगा। उसके औषधीय गुणों को हमने नहीं जाना। हम उनकी निमोलियों की दवाई बना-बनाकर उन्हें खिला रहे हैं। दूसरे शब्दों में, विदेशियों ने नीम के महत्त्व को पहचानकर उसे पेटेंट कराने का प्रयास किया।

कवि कहता है कि हम लोग कहाँ जा रहे हैं। हम अपनी संस्कृति को भूले जा रहे हैं। सच तो यह है कि हमारी विरासत और सांस्कृतिक निष्ठा दुनिया में श्रेष्ठ है। हमें अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। उसकी प्रासंगिकता को आधुनिकता के साथ तलाशें और भली-भाँति भारतीय जीवन-मूल्यों के महत्त्व को समझें। हम भारतीय बने रहें और नकली जीवन-शैली को उतार दें।

विशेष:

  1. कवि ने हमें अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानने और भारतीय बने रहने का संदेश दिया है।
  2. बाँस बरेली में अनुप्रास अलंकार है।
  3. उदाहरण अलंकार भी है।
  4. मुहावरों और कहावतों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  5. भाषा सरल, तत्सम और विदेशी शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।
  6. छंदविहीन रचना में लय और तुक का नितांत अभाव है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
हमारी संस्कृति की किन-किन उपलब्धियों को विदेशी किन-किन नामों से हमें परोस रहे हैं?
उत्तर:
हमारी संस्कृति की वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को विदेशी ग्रहण करके हमें ही फेंगशुई, रेकी और योगा के नाम से परोस रहे हैं।

प्रश्न (ii)
‘कैसी हम दुंदुभी बजा रहे हैं…!’ के द्वारा कवि हम पर क्या व्यंग्य कर रहा है?
उत्तर:
इसके द्वारा कवि यह व्यंग्य कर रहा है कि हम अपनी ही वास्तुकला को फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग को योगा को विदेशी मानकर, अपनाकर स्वयं को आधुनिक समझकर अत्यंत प्रसन्न हो रहे हैं। यह हमारे लिए उचित नहीं है।

प्रश्न (iii)
कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
कवि यह संदेश देना चाहता है कि हम अपनी शक्ति, अपनी उपलब्धियों और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें। हमारी विरासत विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। आधुनिक जीवन की चकाचौंध में अपनी संस्कृति को न भूलें भारतीय बने रहें तथा नकली पाश्चात्य जीवन-शैली को उतार फेंकें।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
इस काव्यांश में कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि हमारी सभ्यता संस्कृति के जीवन-मूल्य विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। विदेशी लोग हमारी संस्कृति की उपलब्धियों को ही अपनी उपलब्धियाँ बताकर प्रचारित कर रहे हैं। वे हमारी वास्तुकला को फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग का योगा बनाकर हमें परोस रहे हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी संस्कृति की उपलब्धियों को पहचानें और भारतीय बने रहें। इस तरह हमें पाश्चात्य जीवन-शैली अपनाने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
‘बाँस बरेली, तरह-तोड़’ में अनुप्रास अलंकार है। उदाहरण अलंकार भी है। मुहावरों और कहावतों का सुंदर प्रयोग किया गया है। भाषा सरल, तत्सम और विदेशी शब्दों से युक्त खड़ी बोली है। छंदविहीन रचना में लय और तुक का अभाव है। शब्द चयन भावानुकूल है।

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MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत

अणुगति सिद्धांत अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 13.1.
ऑक्सीजन के अणुओं के आयतन और STP पर इनके द्वारा घेरे गए कुल आयतन का अनुपात ज्ञात कीजिए। ऑक्सीजन के एक अणु का व्यास 3Å लीजिए।
उत्तर:
दिया है:
d = 3 Å
∴ r = \(\frac{1}{2}\) × 3 = 1.5 Å
= 1.5 × 10-10 मीटर
STP पर 1 मोल गैस का आयतन
V1 = 22.41 = 22.4 × 10-3 मीटर 3
तथा 1 मोल गैस में अणुओं की संख्या
= N = 6.02 × 1023
∴ अणुओं का आयतन, V2 = एक अणु का आयतन × N
= \(\frac{4}{3}\) π3 × N
= \(\frac{4}{3}\) × 3.14 × (1.5 × 10-10)3 × 6.02 × 23
= 8.52 × 10-6 मीटर 2
∴ \(\frac { V_{ 2 } }{ V_{ 1 } } \) = \(\frac { 8.52\times 10^{ -6 } }{ 22.4\times 10^{ -3 } } \) = 3.8 × 10-4
अतः अणुओं के आयतन तथा STP पर इनके द्वारा घेरे गए आयतन का अनुपात 3.8 × 10-4 है।\

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प्रश्न 13.2.
मोलर आयतन STP पर किसी गैस (आदर्श) के 1 मोल द्वारा घेरा गया आयतन है। (STP : 1 atm) दाब, 0°C। दर्शाइये कि यह 22.4 लीटर है।
उत्तर:
दिया है: STP पर,
P = 1 atm = 7.6 m of Hg column
= 0.76 × 13.6 × 10 3 × 9.9
= 1.013 × 105 Nm-2
T = 0°C = 273 K
R = 8.31 J mol-1K-1
n = 1 मोल V = 22.41 सिद्ध करने के लिए,
सूत्र PV = nRT से
V = \(\frac { nRT }{ P } \)
= \(\frac { 1\times 8.31\times 273 }{ 1.013\times 10^{ 5 } } \)
= 22.4 × 10 -3 m3
= 22.4 लीटर

प्रश्न 13.3.
चित्र में ऑक्सीजन के 100 x 10-3 kg द्रव्यमान के लिए PV/T एवं P में, दो अलग-अलग तापों पर ग्राफ दर्शाये गए हैं।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत img 1
(a) बिंदुकित रेखा क्या दर्शाती है?
(b) क्या सत्य है: T1 >T2, अथवा T1 < T2 ?
(c) y – अक्ष पर जहाँ वक्र मिलते हैं वहाँ PV/T का मान क्या है?
(d) यदि हम ऐसे ही ग्राफ 100 × 10-3 kg हाइड्रोजन के लिए बनाएँ तो भी क्या उस बिंदु पर जहाँ वक्र y – अक्ष से मिलते हैं PV/T का मान यही होगा? यदि नहीं तो हाइड्रोजन के कितने द्रव्यमान के लिए PV/T का मान कम दाब और उच्च ताप के क्षेत्र के लिए वही होगा? H2 का अणु द्रव्यमान = 2.02 u, O2 का अणु द्रव्यमान = 32.0 u, R = 8.31 Jmol-1K-1
उत्तर:
(a) बिन्दुकित रेखा यह व्यक्त करती है कि राशि | PV/T स्थिर है। यह तथ्य केवल आदर्श गैस के लिए सत्य है। अर्थात् बिन्दुकित रेखा आदर्श गैस का ग्राफ है।

(b) ताप T, पर ग्राफ की तुलना में ताप T, पर गैस का ग्राफ आदर्श गैस के ग्राफ के अधिक समीप है। हम जानते हैं कि वास्तविक गैसें निम्न ताप पर आदर्श गैस के व्यवहार से अधिक । विचलित होती हैं। अतः T1 > T2

(c) जहाँ ग्राफ y – अक्ष पर मिलते हैं ठीक उसी बिन्दु पर आदर्श गैस का ग्राफ भी गुजरता है। अतः इस बिन्दु पर ऑक्सीजन – गैस, आदर्श गैस का पालन करती है।
अतः गैस समीकरण से,
\(\frac { PV }{ T } \) = nR
हम जानते हैं O2 का 32 × 10-3 kg = 1 मोल
∴ O2 का 1.00 × 10-3 kg
= \(\frac { 1 }{ 32\times 10^{ -3 } } \) × 1 × 10-3
i.e; n = \(\frac{1}{32}\)
R = 8.31 JK-1mol-1
∴ \(\frac{PV}{T}\) = \(\frac{1}{32}\) × 8.31 = 0.26 JK-1

(d) नहीं, हाइड्रोजन गैस के लिए PV/T का मान समान नहीं रहता है। चूंकि यह द्रव्यमान पर निर्भर करता है तथा H2 का द्रव्यमान O2 से कम है।
माना हाइड्रोजन का अभीष्ट द्रव्यमान m किया है जिसमें PV/T का समान मान प्राप्त होता है।
∴ n = \(\frac { m }{ 2.02\times 10^{ -3 } } \)
\(\frac{PV}{T}\) = nR = 0.26 JK-1 से,
n = \(\frac { 0.26 }{ R } \) = \(\frac { 0.26JK^{ -1 } }{ 8.31JK^{ -1 }mol^{ -1 } } \)
= 0.0313 mol
∴ समी० (i) व (ii) से,
n1 = 2.02 × 10-3 × 0.313
= 0.0632 × 10-3 kg
= 6.32 × 10-5 kg

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प्रश्न 13.4.
एक ऑक्सीजन सिलिंडर जिसका आयतन 30 लीटर है, में ऑक्सीजन का आरंभिक दाब 15 atm एवं ताप 27°C है। इसमें से कुछ गैस निकाल लेने के बाद प्रमापी (गेज)दाब गिर कर 11 atm एवं ताप गिर कर 17°C हो जाता है। ज्ञात कीजिए कि सिलिंडर से ऑक्सीजन की कितनी मात्रा निकाली गई है। (R = 8.31 Jmol-1K-1, ऑक्सीजन का अणु द्रव्यमान 02 = 32 u)।
उत्तर:
दिया है: ऑक्सीजन सिलिण्डर में प्रारम्भ में
V1 = 30 litres = 30 × 10-3 m3
P1 = 15 atm = 15 × 1.013 × 105 Pa
T1 = 27 + 273 = 300K
R = 8.31 JK-1mol-1
माना सिलिण्डर में ऑक्सीजन गैस के n2 मोल हैं।
अतः सूत्र PV = nRT से,
n1 = \(\frac { P_{ 1 }V_{ 1 } }{ RT_{ 1 } } \)
= \(\frac { 15\times 1.013\times 10^{ 5 } }{ 8.31\times 300 } \) = 18.253
ऑक्सीजन का अणु भार
M = 32 = 32 × 10-3kg
सिलिंडर में ऑक्सीजन का प्रारम्भिक द्रव्यमान
m1 = n1M
= 18.253 × 32 × 10-3kg
माना अन्त में सिलिंडर में O2 kg के n2 kg मोल बचे हैं।
दिया है: V2 = 30 × 10-3 m3, P2 = 11 atm
= 11 × 1.013 × 105 pa
∴ n2 = \(\frac { P_{ 2 }V_{ 2 } }{ RT_{ 2 } } \)
= \(\frac { (11\times 1.013\times 10^{ 5 })\times (30\times 10^{ -3 }) }{ 8.31\times 290 } \)
= 13.847
∴ सिलिंडर में O2 गैस का अन्तिम द्रव्यमान
m2 = 13.847 × 32 × 10-3
∴ सिलिंडर से O2 का लिया गया द्रव्यमान
= m1 – m2
= (584.1 – 453.1) × 10-3 kg
= 141 × 10-3 kg = 0.141 kg

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प्रश्न 13.5.
वायु का एक बुलबुला, जिसका आयतन 1.0 cm3 है, 40 m गहरी झील की तली में जहाँ ताप 12°C है, उठकर ऊपर पृष्ठ पर आता है जहाँ ताप 35°C है। अब इसका आयतन क्या होगा?
उत्तर;
जब वायु का बुलबुला 40 मी० गहराई पर है तब
V1 = 1.0 cm3 = 1.0 × 10-6m3
T1 = 12°C = 12 + 273 = 285 K
= 1 atm + 40 m पानी की गहराई
Pc = 1 atm – h1ρg
= 1.013 × 10c + 40 × 103 × 9.8
= 493000 Pa = 4.93 × 105 × Pa
जब वायु का बुलबुला झील की सतह पर पहुँचता है तब
V2 = ?, T2 = 35°C = 35 + 273 = 308 K
P2 = 1 atm = 1.013 × 105 Pa
सूत्र \(\frac { P_{ 1 }V_{ 1 } }{ T_{ 1 } } \) = \(\frac { P_{ 2 }V_{ 2 } }{ T_{ 2 } } \) से,
= \(\frac { P_{ 1 }V_{ 1 } }{ T_{ 1 } } \) × \(\frac { T_{ 2 } }{ P_{ 2 } } \)
= \(\frac { 4.95\times 10^{ 5 }\times 1\times 10^{ -6 }\times 308 }{ 285\times 1.013\times 10^{ 5 } } \)
= 5.275 × 10-6 m
= 5.3 × 10-6 m

प्रश्न 13.6.
एक कमरे में, जिसकी धारिता 25.0 m3 है, 27°C ताप और 1 atm दाब पर, वायु के कुल अणुओं (जिनमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, जलवाष्प और अन्य सभी अवयवों के कण सम्मिलित हैं) की संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है: V = 25.0 m3
T = 27°C = 27 + 273 = 300 K
K = 1.38 × 10-23 JK-1
P =1 atm = 1.013 × 105 Pa
गौस समीकरण से, P = \(\frac { nRT }{ V } \)
= \(\frac{n}{V}\) (Nk) T
= (nN) \(\frac{kT}{V}\) = N’\(\frac{kT}{V}\)
जहाँ N’ =nN = दी गई गैस में ऑक्सीजन अणुओं की संख्या
N’ = \(\frac{PV}{KT}\)
= \(\frac { (1.013\times 10^{ 5 })\times 25 }{ 1.38\times 10^{ -23 }\times 300 } \)
= 6.10 × 1026

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प्रश्न 13.7.
हीलियम परमाणु की औसत तापीय ऊर्जा का आंकलन कीजिए

  1. कमरे के ताप (27°C) पर
  2. सूर्य के पृष्ठीय ताप (6000 K) पर
  3. 100 लाख केल्विन ताप (तारे के क्रोड का प्रारूपिक ताप) पर।

उत्तर:
गैस के अणुगति सिद्धान्त के अनुसार, ताप T पर गैस की औसत गतिज ऊर्जा (i. e., औसत ऊष्मीय ऊर्जा) निम्नवत् है –
E = \(\frac{3}{2}\) kT
दिया है: k = 1.38 × 10-23 JK-1
1. T = 27°C = 273 + 27 = 300 K पर,
E = \(\frac{3}{2}\) × 1.38 × 10-23 × 300
= 621 × 10 -23 J
= 6.21 × 10 -21 J

2. T = 6000 K पर
∴ E = \(\frac{3}{2}\) × 0138 × 10-23 × 6000
= 1.24 × 10-19 J

3. T = 10 × 106 K = 107 K पर,
∴ E = 3 × 1.38 × 10-23 × 107
= 2.07 × 10-16 J
= 2.1 × 10-16 J

प्रश्न 13.8.
समान धारिता के तीन बर्तनों में एक ही ताप और दाब पर गैसें भरी हैं। पहले बर्तन में नियॉन (एकपरमाणुक) गैस है, दूसरे में क्लोरीन (द्विपरमाणुक) गैस है और तीसरे में यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (बहुपरमाणुक) गैस है। क्या तीनों बर्तनों में गैसों के संगत अणुओं की संख्या समान है? क्या तीनों प्रकरणों में अणुओं की vrms (वर्ग माध्य मूल चाल) समान है।
उत्तर:
(a) हाँ, चूँकि आवोगाद्रों परिकल्पना से, समान परिस्थितियों में गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है।
(b) नहीं चूँकि Vrms = \(\sqrt { \frac { 3RT }{ m } } \)
∴ Vrms ∝ \(\frac { 1 }{ \sqrt { m } } \)
अतः तीनों गैसों के ग्राम – अणु भार अलग – अलग हैं। अतः अणुओं की वर्ग माध्य – मूल चाल अलग – अलग होगी।

प्रश्न 13.9.
किस ताप पर आर्गन गैस सिलिंडर में अणुओं की Vrms – 20°C पर हीलियम गैस परमाणुओं की Vrms के बराबर होगी। (Ar का परमाणु द्रव्यमान = 39.9 u एवं हीलियम का परमाणु द्रव्यमान = 4.0 u)।
उत्तर:
माना कि T1 व T2 K ताप पर आर्गन व हीलियम गैस की वर्ग माध्य मूल वेग क्रमश: C1 व C2 हैं।
दिया है:
M1 = 39.9 × 10-3 kg,
M2 = 4.0 × 10-3 kg, T1 = ?
T2 = – 20 + 273 = 253 K
हम जानते हैं कि वर्ग माध्य मूल वेग
C = \(\sqrt { \frac { 3RT }{ M } } \)
C1 = \(\sqrt { \frac { 3RT_{ 1 } }{ M_{ 1 } } } \)
तथा C2 = \(\sqrt { \frac { 3RT_{ 1 } }{ M_{ 2 } } } \)
चूँकि C1 = C2 (दिया है)
∴ \(\sqrt { \frac { 3RT_{ 1 } }{ M_{ 1 } } } \) = \(\sqrt { \frac { 3RT_{ 1 } }{ M_{ 2 } } } \)
या \(\frac { T_{ 1 } }{ M_{ 1 } } \) = \(\frac { T_{ 1 } }{ M_{ 2 } } \)
= \(\frac { 39.9\times 10^{ -3 } }{ 4.0\times 10^{ -3 } } \) × 253
या T = 2523.7 K = 2524 K
= 2.524 × 103 K

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प्रश्न 13.10.
नाइट्रोजन गैस के एक सिलिंडर में, 2.0 atm दाब एवं 17°C ताप पर नाइट्रोजन अणुओं के माध्य मुक्त पथ एवं संघट्ट आवृत्ति का आंकलन कीजिए। नाइट्रोजन अणु की त्रिज्या लगभग 1.0 Å लीजिए। संघट्ट काल की तुलना अणुओं द्वारा दो संघट्टों के बीच स्वतंत्रतापूर्वक चलने में लगे समय से कीजिए। ( नाइट्रोजन का आण्विक द्रव्यमान = 28.0 u)।
उत्तर:
मैक्सवेल संशोधन ने गैस अणुओं का मध्य मुक्त पद
λ = \(\frac { 1 }{ \sqrt { 2\pi nd^{ 2 } } } \)
जहाँ d = अणु का व्यास
तथा = N = \(\frac{N}{V}\) = image 1
2 atm दाब पर, m द्रव्यमान गैस का आयतन
V = \(\frac{RT}{P}\), T = 273 + 17 = 290 K
∴ n = \(\frac{N}{V}\) = \(\frac{NP}{RT}\)
दिया है: N = 6.023 × 1023 mole-1
P = 2 atm = 2 × 1.013 × 105 Nm-2
R = 8.3 JK-1mol-1
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत img 2
= 5.08 × 102 ms-1
= 5.10 × 102 ms-1
∴ संघट्ट आवृत्ति,
v = \(\frac { C }{ \lambda } \) = \(\frac { 5.1\times 10^{ 2 } }{ 1.0\times 10^{ -7 } } \)
= 2.0 × 10-10 s ….. (i)
पुनः माना संघट्ट के लिया गया समय t है।
∴ t = \(\frac { d }{ C } \) = \(\frac { 2\times 10^{ -10 } }{ 5.10\times 10^{ 2 } } \)
= 4 × 10-13 s
समी० (i) को (ii) से भाग देने पर,
\(\frac { \tau }{ \tau } \) = \(\frac { 2.0\times 10^{ -10 }s }{ 4\times 10^{ -13 }s } \) = 500
या τ = 500t
अतः दो क्रमागत टक्करों के मध्य समय टक्कर में लिये गए समय का 500 गुना है। इससे यह प्रदर्शित होता है कि गैस के अणु लगभग हर समय मुक्त रूप से चलायमान रहते हैं।

अणुगति सिद्धांत अतिरिक्त अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 13.11.
1 मीटर लंबी संकरी (और एक सिरे पर बंद) नली क्षैतिज रखी गई है। इसमें 76 cm लंबाई भरा पारद सूत्र, वायु के 15 cm स्तंभ को नली में रोककर रखता है। क्या होगा यदि खुला सिरा नीचे की ओर रखते हुए नली को ऊर्ध्वाधर कर दिया जाए।
उत्तर:
प्रारम्भ में नली क्षैतिज है तब बंद सिरे पर रोकी गई वायु का दाब वायुमण्डलीय दाब के समान होगा।
∴ P1 = 76 सेमी पारे स्तम्भ का दाब।
माना कि नली का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A सेमी2 है।
वायु का आयतन = 15 × A = 15A सेमी3
जब नली का खुला सिरा नीचे की ओर रखते हैं तथा ऊर्ध्वाधर करते हैं जब खुले’ सिरे पर बाहर की ओर से वायुमण्डलीय दाब कार्य करता है जबकि ऊपर की ओर से 76 सेमी पारद सूत्र का दाब व बंद सिरे पर एकत्र वायु का दाब अधिक है। अतः पारद सूत्र असंचुलित रहेगा व नीचे गिरते हुए वायु को बाहर निकाल देता है।
माना कि पारद सूत्र की λ लम्बाई नीचे नली से बाहर निकलती है।
∴ नली में पारद सूत्र की शेष लम्बाई = (76 – h) सेमी तथा बंद सिरे पर वायु स्तम्भ की लम्बाई
= (15 + 9 + h)
= (24 + h) सेमी3
तथा वायु का आयतन V2 = (24 + h) A सेमी3
माना कि इस वायु का दाब P2 है।
∴ सन्तुलन में,
P2 + (76 – h) सेमी पारद सूत्र का दाब = वायुमण्डलीय दाब
∴ P2= R सेमी पारद सूत्र का दाब
सूत्र P1V1 = P2V2 से,
76 × 15A = h × (24 + h) A
या 1140 = 24h + h2
या h2 + 24h – 1140 = 0
∴ h = – 24 ± \(\sqrt { 24^{ 2 }-4\times 17-1140 } \)
= 28.23 या – 4784 सेमी
परन्तु h ≠ ऋणात्मक
∴ h = 28.23 सेमी।
अतः पारद सूत्र की 28.23 सेमी लम्बाई नली से बाहर निकल जाएगी।

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प्रश्न 13.12.
किसी उपकरण से हाइड्रोजन गैस 28.7 cm3s-1 की दर से विसरित हो रही है। उन्हीं स्थितियों में कोई दूसरी गैस 7.2 cm3 s-1 की दर से विसरित होती है। इस दूसरी गैस को पहचानिए। [संकेत : ग्राहम के विसरण नियम R1/R2 = (M2/ M1)1/21/2 का उपयोग कीजिए, यहाँ R1, R2 क्रमशः गैसों की विसरण दर तथा M1 एवं M2 उनके आण्विक द्रव्यमान हैं। यह नियम अणुगति सिद्धांत का एक सरल परिणाम है।
उत्तर:
विसरण के ग्राहम के नियम से,
\(\frac { R_{ 1 } }{ R_{ 2 } } \) = \(\sqrt { \frac { M_{ 2 } }{ M_{ 1 } } } \) … (i)
जहाँ R1 = गैस – 1 की विसरण दर = 28.7 cm3s-1
R2 = गैस – 2 की विसरण दर = 7.2 cm2s-1 … (ii)
माना इनके संगत अणुभार M1 व M2 हैं।
∴H2 के लिए, M1 = 2
∴समी० (i) तथा (ii) से
\(\frac { 28.7 }{ 7.2 } \) = \(\sqrt { \frac { M_{ 2 } }{ 2 } } \)
या \(\frac { M_{ 2 } }{ 2 } \) = (\(\frac { 28.7 }{ 7.2 } \))2
या M2 = 2 × 15.89 = 31.77 = 32 u
हम जानते हैं कि O2 का अणुभार 32 है। अत: अज्ञात गैस O2 हैं।

प्रश्न 13.13.
साम्यावस्था में किसी गैस का घनत्व और दाब अपने संपूर्ण आयतन में एकसमान है। यह पूर्णतया सत्य केवल तभी है जब कोई भी बाह्य प्रभाव न हो। उदाहरण के लिए, गुरुत्व से प्रभावित किसी गैस स्तंभ का घनत्व (और दाब) एकसमान नहीं होता है। जैसा कि आप आशा करेंगे इसका घनत्व ऊँचाई के साथ घटता है। परिशुद्ध निर्भरता ‘वातावरण के नियम’ n2 = n1 exp [\(\frac { – mg }{ k_{ B }T } \) (h2 – h1)] से दी जाती है, यहाँ n2,n1 क्रमश: h2 व h1 ऊँचाइयों पर संख्यात्मक घनत्व को प्रदर्शित करते हैं। इस संबंध का उपयोग द्रव स्तंभ में निलंबित किसी कण के अवसादन साम्य के लिए समीकरण n2 = n1exp \(-\frac { mgN_{ A } }{ \rho RT } \)(ρ – ρ’)( h2 – h1)] को व्युत्पन्न करने के लिए कीजिए, यहाँ निलंबित कण का घनत्व तथा ρ’ चारों तरफ के माध्यम का घनत्व है। NA आवोगाद्रो संख्या, तथा सार्वत्रिक गैस नियतांक है। संकेत: निलंबित कण के आभासी भार को जानने के लिए आर्किमिडीज के सिद्धांत का उपयोग कीजिए।
उत्तर:
माना कि कणों तथा अणुओं का आकार गोलाकार है। कणों का भार निम्नवत् है।
w = mg = \(\frac{4}{3}\) π r2ρg … (i)
जहाँ r = कणों की त्रिज्या
तथा ρ = कणों का घनत्व है।
कणों की गति गुरुत्व के अधीन होने पर, ऊपर की ओर उत्क्षेप लगाती है जिसका मान निम्नवत् है –
B = कण का आयतन × प्रतिवेश का घनत्व × g
= \(\frac{4}{3}\) π r3(ρ – ρ’) g … (ii)
मन कण पर नीचे की और लगाने वाला बा F है।
अतः F = W – B
= \(\frac{4}{3}\) π r3(ρ – ρ’) g … (iii)
पुनः n2 = n1 exp [\(\frac { – mg }{ k_{ B }T } \) (h2 – h1)] … (iv)
जहाँ kB = बोल्ट्जमैन नियतांक है।
तथा n1 व n2 क्रमश: h1 व h2 ऊँचाई पर संख्या घनत्व है। समीकरण (iii) में mg के स्थान पर बल F रखने पर, समीकरण (ii) व (iv) से,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत img 3
जो कि अभीष्ट समीकरण है।
जहाँ \(\frac{4}{3}\) π r3 ρg
= कण का द्रव्यमान × g = mg

प्रश्न 13.14.
नीचे कुछ ठोसों व द्रवों के घनत्व दिए गए हैं। उनके परमाणुओं की आमापों का आंकलन(लगभग)कीजिए।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत img 4
[संकेत: मान लीजिए कि परमाणु ठोस अथवा द्रव प्रावस्था में दृढ़ता से बंधे हैं तथा आवोगाद्रो संख्या के ज्ञात मान का उपयोग कीजिए। फिर भी आपको विभिन्न परमाण्वीय आकारों के लिए अपने द्वारा प्राप्त वास्तविक संख्याओं का बिल्कुल अक्षरशः प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि दृढ़ संवेष्टन सन्निकटन की रुक्षता के परमाणवीय आकार कुछA के परास में हैं।
उत्तर:
1. कार्बन का परमाणु भार
M = 12.01 × 10-3 kg
N = 6.023 × 1023
∴ एक कार्बन परमाणु का द्रव्यमान
M = \(\frac{M}{N}\) = \(\frac { 12.01\times 10^{ -3 } }{ 6.023\times 10^{ 23 } } \)
या m = 1.99 × 10-26kg
= 2 × 10-26 kg
कार्बन का घनत्व ρe = 2.2 × 10+3 kg m-3
∴ प्रत्येक कार्बन परमाणु का आयतन
V = \(\frac { m }{ \rho C } \) = \(\frac { 2\times 10^{ -26 } }{ 2.2\times 10^{ 3 } } \)
= 0.9007 × 10-29m3
माना rC = कार्बन परमाणु की त्रिज्या
∴ \(\frac{4}{3}\) πr3C = 0.9007 × 10-29
या
rC = [\(\frac { 0.9007\times 10^{ -29 } }{ 4\pi } \) × 3]1/3
= [2.16 × 10-30]1/3
= 1.29 × 10-10m = 1.29 Å

2.  दिया है: स्वर्ण परमाणु का परमाणु भार
M = 1.97 × 10-3 kg
∴ प्रत्येक स्वर्ण परमाणु का द्रव्यमान
= \(\frac{M}{N}\) = \(\frac { 197\times 10^{ 3 } }{ 6.023\times 10^{ 23 } } \)
= 3.721 × 10-25 kg
ρg = 19.32 × 103kg m-3
माना rg = गोल्ड परमाणु की त्रिज्या
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत img 5
= (0.04 × 10-28)1/3
= 0.159 × 10-9m
= 1.59 × 10-10m = 1.59 Å

3. दिया है: नाइट्रोजन परमाणु का परमाणु भार
M = 14.01 × 10-3 kg
∴ प्रत्येक परमाणु का द्रव्यमान
M = \(\frac{M}{N}\) = \(\frac { 14.01\times 10^{ -3 }kg }{ 6.023\times 10^{ 23 } } \)
= 2.3261 × 10-26 kg
माना rn = इसके प्रत्येक परमाणु की त्रिज्या
ρn = 1 × 103 kg m-3
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत img 6
= (5.55 × 10-30 m3)1/3
= 1.77 × 10-10m = 1.77 Å

4. दिया है: MLi = 6.94 × 10-3 kg
ρLi = 0.53 × 103 kg m-3
∴ MLi = mass of Li atom
= \(\frac { M_{ Li } }{ \rho _{ Li } } \) = \(\frac { 6.94\times 10^{ -3 } }{ 6.023\times 10^{ 23 } } \)
= 1.152 × 10-26 kg
माना rLi = Li परमाणु की त्रिज्या
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत img 7

5. दिया है: MF = 19 × 10-3 kg
ρF = 1.14 × 103 kg m-3
∴ प्रत्येक फलुओरीन परमाणु का द्रव्यमान
mF = \(\frac { M_{ F } }{ \rho _{ F } } \) = \(\frac { 19\times 10^{ -3 } }{ 6.023\times 10^{ 23 } } \)
= 3.155 × 10-26 kg
माना प्रत्येक फलुओरीन परमाणु की त्रिज्या rF है। अतः
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 13 अणुगति सिद्धांत img 8
= 1.88 × 10-10 m = 1.88 Å

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 पुस्तक

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 पुस्तक (निबन्ध, देवेन्द्र ‘दीपक’)

पुस्तक पाठ्य-पुस्तक पर अधिारित प्रश्न

पुस्तक लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बख्तियार खिलजी के आक्रमण से क्या हानि हुई?
उत्तर:
बख्तियार खिलजी के आक्रमण से सबसे बड़ी हानि नालंदा के पुस्तकालयों को जलाने से हुई।

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प्रश्न 2.
पुस्तक पढ़ने की आदत कम क्यों होती जा रही है?
उत्तर:
सूचना क्रांति और दूरदर्शन के प्रभाव से पुस्तकें पढ़ने की आदत कम होती जा रही है।

प्रश्न 3.
नालंदा विश्वविद्यालय में कौन-से तीन पुस्तकालय थे?
उत्तर:
नालंदा विश्वविद्यालय में रत्न सागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक नाम के तीन विशाल पुस्तकालय थे।

प्रश्न 4.
पुस्तक या यात्रा का क्या संबंध है?
उत्तर:
पुस्तक बाहरी और भीतरी यात्रा का घनिष्ठ संबंध है।

पुस्तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नालंदा विश्वविद्यालय की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
नालंदा विश्वविद्यालय में पुस्तकालय का एक विशिष्ट क्षेत्र था। उसे धर्मगंज कहा जाता था। इसमें रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक नामक तीन विशाल पुस्तकालय थे। रत्नसागर पुस्तकालय का भवन नौमंजिला था। बख्तियार खिलजी ने इन पुस्तकालयों को जला डाला। इस अग्निकांड में अमूल्य ग्रंथ जलकर सदा के लिए भस्म हो गए।

प्रश्न 2.
पुस्तकें किन षड्यंत्रों का शिकार होती हैं?
उत्तर:
पुस्तकें कई षड्यंत्रों का शिकार होती हैं। षड्यंत्रों के शिकार के कारण ही कुछ पुस्तकें तिरस्कृत हो जाती हैं। कुछ प्रतिबंधित कर दी जाती हैं और कुछ विशेष लेखकों की पुस्तकें जला दी हैं। पुस्तकें भी राजनीतिक, साहित्यिक, धार्मिक और भाषाई षड्यंत्रों का शिकार होती हैं।

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प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार पुस्तक की समीक्षा किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार पुस्तक की समीक्षा बेबाक होती है और प्रायः प्रायोजित होती है। समीक्षा में अक्सर एक अनावश्यक लंबी भूमिका होती है। इसमें पुस्तक के अंदर जो कुछ है उसकी चर्चा कम होती है और जो नहीं है उसकी चर्चा अधिक होती है। दूसरे शब्दों में, पुस्तक की समीक्षा ठीक प्रकार से नहीं होती है।

प्रश्न 4.
पुस्तकों के जलने से होने वाली क्षति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुस्तकों के जलने से देश की सबसे बड़ी क्षति होती है। ज्ञान का अपार भंडार जलकर राख हो जाता है। प्रत्येक, ग्रंथ रचनाकार की साधना और परिश्रम का प्रतिफल होता है। उसका सारा परिश्रम व्यर्थ चला जाता है। कितने लोगों का शोध व्यर्थ चला जाता है। कितने ही विद्वानों का चिंतन-मनन नष्ट हो जाता है, जो पुनः लौटकर नहीं आता। आगामी पीढ़ियों को ज्ञान नहीं मिल पाता। विश्वधरोहर जलकर नष्ट हो जाती है।

पुस्तक भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्ति का भाव-विस्तार कीजिए“यात्रा में पुस्तक, पुस्तक में यात्रा, यों यात्रा में यात्रा।”
उत्तर:
यात्रा में पुस्तकें यात्रा की मित्र होती हैं। उनको पढ़ने से यात्री की यात्रा आराम से कट जातं. है। पुस्तकें पढ़ने से उनका ज्ञान भी बढ़ता है और मनोरंजन भी होता है। यात्री जिन स्थानों की यात्रा करता है, उनका वर्णन वह पुस्तकों में करता है। उन स्थानों के निवासियों के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहारों और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक धरोहरों का वर्णन करता है। इस प्रकार यात्रा में यात्रा हो जाती है। यात्रा से सभी का ज्ञान बढ़ता है और मनोरंजन होता है।

पुस्तक भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
समीक्षा शब्द विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होने के कारण पारिभाषिक शब्द है। इसी तरह के पाँच पारिभाषिक शब्द लिखिए –
उत्तर:
विदेश नीति, विमोचन, प्राक्कथन, प्रायोजित, समालोचक।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से विदेशी शब्द और तत्सम शब्द छाँटिए –
वहशत, ग्रंथ, दहशत, दिमाग, सारस्वत, गैरजरूरी, सुटेबिल, जलयात्रा, अलमारी, समवाय, दुर्लभ, समीक्षा।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 पुस्तक img-1

प्रश्न 3.
(क) यह आम रास्ता नहीं है।
(ख) आम के फल मीठे होते हैं।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘आम’ शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। पहले वाक्य में आम का अर्थ ‘जन साधारण’ है, जबकि दूसरे वाक्य में ‘आम’ फल के लिए आया है। इसी प्रकार अंक, अम्बर, अर्थ, उत्तर और मूल शब्दों के उदाहरण के अनुसार वाक्य बनाइए।
उत्तर:

  • अंक – विमला को सौ में से पचास अंक मिले हैं।
    माँ ने रोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
  • अंबर – अंबर में तारे छिटके हैं।
    श्रीकृष्ण पीत अंबर धारण करते हैं।
  • अर्थ – ‘गगन’ शब्द का अर्थ आकाश है।
    आजकल हम अर्थ-अभाव से गुजर रहे हैं।
  • उत्तर – इस प्रश्न का उत्तर बीस शब्दों में लिखिए।
    भारत के उत्तर में पर्वतराज हिमालय है।
  • मूल – मूल कट जाने के कारण यह पौधा सूख गया है।
    मैं मूल रूप से राजस्थान का निवसी हूँ।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए –

  1. पुस्तक चुराया जाता है।
  2. जितना सोचता हूँ उतना खिन्नता बढ़ती है।
  3. हर पाठक को पुस्तक मिलना चाहिए।
  4. रविवार के दिन की छुट्टी रहती है।

उत्तर:

  1. पुस्तक चुराई जाती है।
  2. जितना सोचता हूँ, उतनी खिन्नता बढ़ती है।
  3. हर पाठक को पुस्तक मिलनी चाहिए।
  4. रविवार को छुट्टी रहती है।

पुस्तक योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
‘पुस्तक मित्र’ पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आधुनिक विश्वविद्यालयों में नालंदा विश्वविद्यालय से भिन्न जिन नए विषयों का अध्ययन किया जाता है, उन नए विषयों की सूची बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं सूची बनाएँ।

प्रश्न 3.
पुस्तकालय जाकर देखिकए कि वहाँ पुस्तकें कैसे व्यवस्थित रखी जाती हैं, ताकि कोई भी पुस्तक एक मिनिट में आप खोज सकें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
अपने विद्यालय के पुस्तकालय से ऐसी पुस्तकें प्राप्त कीजिए, जो बहुत पुरानी हो चुकी हों, तथा जो फट रही हों, उन्हें प्राप्त कर चिपकाइए तथा व्यवस्थित कीजिए ताकित वह लम्बे समय तक सुरक्षित रह सकें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

पुस्तक परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
विचारों की जययात्रा का मूर्तरूप है ……..
(क) पुस्तक
(ख) नालंदा
(ग) शिक्षा
(घ) पुस्तकालय
उत्तर:
(क) पुस्तक।

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प्रश्न 2.
पुस्तक रची, छापी और ………… की जाती है –
(क) बिक्री
(ख) भेंट
(ग) विमोचित
(घ) चुराई
उत्तर:
(ग) विमोचित।

प्रश्न 3.
पुस्तक समीक्षाओं में होती है ……
(क) एक आवश्यक लंबी भूमिका
(ख) एक गैरज़रूरी लंबी भूमिका
(ग) एक बेकार अर्थहीन भूमिका
(घ) एक सार्थक लंबी भूमिका
उत्तर:
(ख) एक गैरज़रूरी लंबी भूमिका।

प्रश्न 4.
नालंदा विश्वविद्यालय को ………. नामक आक्रमणकारी ने जलाकर राख कर दिया।
(क) अलाउद्दीन खिलजी
(ख) ग्यासुद्दीन खिलजी
(ग) बख्तियार खिलजी
(घ) जलालुद्दीन खिलजी
उत्तर:
(ग) बख्तियार खिलजी।

प्रश्न 5.
नालंदा में पुस्तकालयों के विशिष्ट क्षेत्र को कहते थे ………..।
(क) धर्मगंज
(ख) पुस्तकगंज
(ग) दर्शन गंज
(घ) आचार्य गंज
उत्तर:
(क) धर्मगंज।

प्रश्न 6.
पुस्तकालय वाले कहते हैं, दान में किताबें ही नहीं, उन्हें रखने के लिए ……….. भी दो।
(क) अलमारियाँ
(ख) धन
(ग) स्थान
(घ) आदमी
उत्तर:
(क) अलमारियाँ।

प्रश्न 7.
कमरे को रोशनदान चाहिए, तो याद रखिए दिमाग को भी ………..।
(क) दवाई चाहिए
(ख) पुस्तक चाहिए
(ग) ज्ञान चाहिए
(घ) प्रकाश चाहिए
उत्तर:
(ख) पुस्तक चाहिए।

प्रश्न 8.
हर पुस्तक को उसका मिलना चाहिए ……….. ।
(क) खरीददार
(ख) पाठक
(ग) आलोचक
(घ) समीक्षक
उत्तर:
(ख) पाठक।

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प्रश्न 9.
ग्रंथों में प्रक्षेप करते हैं ………..।
(क) कुछ धूर्त लोग
(ख) कुछ धूर्त रचनाकार
(ग) कुछ बेईमान लोग
(घ) कुछ पागल लोग
उत्तर:
(क) कुछ धूर्त लोग।

प्रश्न 10.
सूचना क्रांति और दूरदर्शन के कारण आदत कम होती जा रही है ………….।
(क) पुस्तकें पढ़ने की
(ख) पुस्तकें खरीदने की
(ग) पुस्तकें भेंट करने की
(घ) पुस्तकें एकत्र करने की
उत्तर:
(क) पुस्तकें पढ़ने की।

प्रश्न 11.
एक उम्र होती है कि –
(क) आदमी पुस्तकें लिखता है
(ख) आदमी पुस्तकें सहेजता है
(ग) आदमी पुस्तकें बेचता है
(घ) आदमी पुस्तकें खरीदता है
उत्तर:
(ख) आदमी पुस्तकें सहेजता है।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. रातों रात कोई पुस्तक ………. हो जाती है। (बहिष्कृत/तिरस्कृत)
  2. हर पुस्तक को’ उसका ………. मिलना चाहिए। (लेखक/पाठक)
  3. ………. का भवन नौमंजिला था। (रत्नसागर/रत्नरंजक)
  4. आज ………. का दौर है। (हरितक्रांति/सूचनाक्रांति)
  5. पुस्तक ………. जाती है। (रची/लिखी)

उत्तर:

  1. तिरस्कृत
  2. पाठक
  3. रत्नासागर
  4. सूचनाक्रान्ति
  5. रची।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –

  1. ‘पुस्तक’ एक कहानी है।
  2. ‘पुस्तक’ के लेखक देवेन्द्र ‘दीपक’ हैं।
  3. नालंदा में पन्द्रह हजार विद्यार्थी थे।
  4. पुस्तकें षड्यंत्रों का शिकार होती हैं।
  5. कुछ धूर्त लोग कुछ वाक्यों को लुप्त कर देते हैं।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 पुस्तक img-2
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
पुस्तक किसका समवाय है?
उत्तर:
पुस्तक बाहरी और भीतरी यात्रा का समवाय है।

प्रश्न 2.
हमारे देश में सबसे बड़ा विद्या का केन्द्र कौन था?
उत्तर:
नालंदा का पुस्तकालय।

प्रश्न 3.
पुस्तक का जलना किसका जलना है?
उत्तर:
पुस्तक का जलना विश्व धरोहर का जलना है।

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प्रश्न 4.
नालंदा के पुस्तकालय को किसने जला डाला था?
उत्तर:
बख्तियार खिलजी ने।

प्रश्न 5.
पुस्तक जलाना और उसे नष्ट करना क्या है?
उत्तर:
पुस्तक जलाना और उसे नष्ट करना घोर अपराध जैसा कत्य है।

पुस्तक लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुस्तक किसका मूर्तरूप है?
उत्तर:
पुस्तक लेखक के पुरुषार्थ का सारस्वत मूर्तरूप है।

प्रश्न 2.
पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन कैसे लिखवाया जाता है?
उत्तर:
पुस्तक की भूमिका और प्राक्काय लिखवाने के लिए उपयुक्त व्यक्ति खोजे जाते हैं। फिर उनसे प्राक्कथन और भूमिका लिखवाई जाती है।

प्रश्न 3.
पुस्तकों के क्या-क्या प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर:
पुस्तकें भेंट की जाती हैं, माँगी, चुराई, दबाई और पढ़ी जाती हैं।

प्रश्न 4.
पुस्तकालय वाले दान में किताबों के साथ क्या माँगते हैं?
उत्तर:
पुस्तकालय वाले दान में किताबों के लिए अलमारियाँ भी माँगते हैं।

प्रश्न 5.
नालंदा विश्वविद्यालय के साथ कौन-सा काला ध भी लगा है?
उत्तर:
नालंदा विश्वविद्यालय के साथ पुस्तकालय जलाने का काला धब्बा भी लगा है।

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प्रश्न 6.
पुस्तकों के संबंध में लेखक की क्या आशा है?
उत्तर:
लेखक की आशा है कि पुस्तक मित्र थीं, मित्र हैं और मित्र रहेंगी।

प्रश्न 7.
‘पुस्तक’ निबंध में लेखक का कौन-सा स्वर है?
उत्तर:
‘पुस्तक’ निबंध में लेखक का आशावादी स्वर है।

प्रश्न 8.
शिक्षा के क्षेत्र में किसका दबदबा रहा?
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा विश्वविद्यालय का दबदबा रहा।

प्रश्न 9.
‘रत्नसागर’ का भवन कैसा था?
उत्तर:
रत्नसागर’ का भवन नौमंजिला था।

पुस्तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुस्तकालय को लेकर घर में चिकचिक क्यों होने लगती है?
उत्तर:
जब घर में आदमी के अपने लिए जगह कम पड़ने लगती है, तो निजी पुस्तकालय को लेकर घर में चिकचिक होने लगती है। प्राध्यापकों की संतानों की शिक्षण में रुचि न होना भी एक कारण है।

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प्रश्न 2.
नालंदा विश्वविद्यालय की महिमा का वर्णन कीजिए। (M.P. 2012)
उत्तर:
नालंदा प्राचीन भारत का एक सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। शिक्षा के क्षेत्र – में इसका बड़ा दबदबा था, जहाँ दस हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। इन विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए 1500 आचार्य थे। यहाँ अनेक विषयों की शिक्षा दी जाती थी। नालंदा का पुस्तकालय बहुत विशाल था। आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा के पुस्तकालय को जलाकर राख कर दिया था।

प्रश्न 3.
नालंदा में किन-किन विषयों की शिक्षा दी जाती थी? (M.P. 2012)
उत्तर:
नालंदा में बौद्धदर्शन, दर्शन, इतिहास, निरुक्त, वेद, हेतुविद्या, न्यायशास्त्र, व्याकरण, चिकित्साशास्त्र, ज्योतिष आदि के शिक्षा की व्यवस्था थी।

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प्रश्न 4.
नालंदा विश्वविद्यालय में कार्यरत आचार्य कौन-कौन से थे? (M.P. 2010)
उत्तर:
नालंदा विश्वविद्यालय में कार्यरत आचार्य शीलभद्र, नागार्जुन, आचार्य धर्म कीर्ति, आचार्य ज्ञानश्री, आचार्य बुद्ध भंद्र, आचार्य गुणमति, आचार्य स्थिरमति, आचार्य सागरमति आदि विख्यात आचार्य कार्यरत थे।

प्रश्न 5.
‘पुस्तक’ नामक निबंध में देवेन्द्र ‘दीपक’ (लेखक) ने नालंदा विश्वविद्यालय की क्या विशेषताएँ बताई हैं? (M.P. 2009)
उत्तर:
‘पुस्तक’ नामक निबंध में देवेन्द्र ‘दीपक’ (लेखक) नै नालंदा विश्वविद्यालय की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं –
नालंदा विश्वविद्यालय का शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा दबदबा था। वहाँ दस हजार विद्यार्थी और पन्द्रह सौ आचार्य थे। बौद्ध-दर्शन, इतिहास, निरुक्त, वेद, हेतुविद्या, न्यायशास्त्र, व्याकरण, चिकित्साशास्त्र, ज्योतिष आदि के शिक्षण की व्यवस्था थी। आचार्य शीलभद्र, नागार्जुन, आचार्य धर्मकीर्ति, आचार्य ज्ञानश्री, आचार्य बुद्ध भट्ट,आचार्य गुणमति, आचार्य स्थिरमति, आचार्य सागरमीरा जैसे विश्वविख्यात आचार्य वहाँ थे।

प्रश्न 6.
पुस्तक-समीक्षा की क्या विशेषता है?
उत्तर:
पुस्तक-समीक्षा के लिए सुटेबिल आदमी खोजे जाते हैं। समीक्षा कभी बेबाक होती है। समीक्षा प्रायः प्रायोजित होती है। इस प्रकार की समीक्षाओं में प्रायः एक गैरज़रूरी लम्बी भूमिका होती है। पुस्तक में जो है, उसकी चर्चा कम, जो नहीं है, उसकी चर्चा अधिक होती है।

पुस्तक लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
देवेन्द्र ‘दीपक’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
राष्ट्रवादी चिंतक और रचनाकार देवेंद्र ‘दीपक’ का जन्म 31 जुलाई, 1934 ई० को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुआ। आपने शालेय शिक्षा के बाद साहित्य रत्न, एम.ए. (हिंदी, अंग्रेजी में) किया। उसके बाद पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपने वंचित समाज के विकास में शब्द और कर्म द्वारा अपूर्व कार्य कर महत्त्वपूर्ण योगदान किया। मारीशस, लंदन, सूरीनाम तथा न्यूयार्क में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलनों में अपना सक्रिय योगदान दिया है। आप उन चिंतकों में से हैं, जिन्होंने हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया है। आप्रे अनुसूचित जाति से संबद्ध परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण केंद्र का प्राचार्य रहे हैं। मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक के रूप में आपने सराहनीय कार्य किया है।

साहित्यिक-परिचय:
वर्तमान में आप साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद् के निदेशक पद पर कार्य करते हुए साहित्य सेवा में जुटे हैं। ‘साक्षात्कार’ पत्रिका के प्रधान संपादक हैं। ‘दीपक’ जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। आपने काव्य, काव्य नाटक, कठपुतली नाटक और अनेक ग्रंथों का अनुवाद किया है। काव्य-सृजन में उन्होंने अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई है। आपने गद्य-क्षेत्र में भी मानदंड स्थापित किए हैं। आपकी गद्य रचनाओं में जीवन-बोध के सहज और आत्मीय प्रसंग मिलते हैं। आपकी गद्य रचनाओं में सामाजिक चिंताओं और आस्थामूलक दृष्टि का समावेश है।

रचनाएँ:

  • काव्य-संग्रह – सूरज बनती किरण, बंद कमरा, दुली कविताएँ (आपत्तकालीन) मास्टर धर्मदास, हम दंने नहीं (अन्त्यज कविता)
  • काव्य-नाटक – भूगोल राजा का। खगोल राजा का।
  • कठपुतली – नाटक दवाव।
  • अन्य रचनाएँ – शिक्षाशास्त्रियों के सिद्धांत, विचारणा विथि का, कुंडली चक्र पर मेरी वार्ता आदि।

भाव-शैली:
‘दीपक’ जी को भाषा-शैली शब्द विपर्यय के चमत्कार आपकी गद्य रचनाओं के भाव-सौन्दर्य में विशेष रूप से वृद्धि करते हैं। वे भाषा के क्षेत्र में अपनी रचनात्मकता के माध्यम से मुहावर जैरे. चते चलते है। उनकी भाषा सहज स्वाभाविक खड़ी बोली है। उसमें यथास्थान तत्सम, उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का समावेश है।

पुस्तक पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
‘पुस्तक’ पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘पुस्तक’ निबंध में देवेंद्र ‘दीपक’ ने पुस्तक को केंद्र बनाकर अनेक प्रकार के विचारों को प्रस्तुत किया है। लेखक कहता है कि पुस्तक का जीवन में बड़ा महत्त्व है। पुस्तक जीवन की बाहरी और भीतरी,मात्रा का समन्वय है। पुस्तकें लिखी, छापी और विमोचित की जाती हैं। पुस्तकें बेची, खरीदी जाती हैं। बुक डिपो में अलमारी में करीने से सजी होती हैं। ये कभी चौराहे पर भी रेहड़ी में भी बेची जाती हैं। इतना ही नहीं पुस्तकें भेंट की जाती हैं, माँगी, चुराई और दबाई जाती हैं। अंततः पुस्तकें पढ़ी जाती हैं। कुछ पुस्तकें रखी जाती हैं, जबकि कुछ निगली और उनमें से कुछ ही पचाई जाती हैं।

पुस्तकों की भूमिका लिखने के लिए उपयुक्त व्यक्ति खोजे जाते हैं। पुस्तक की समीक्षा की जाती है। व्यक्ति एक आयु में पुस्तकें खरीदता है, पढ़ता है और अंत में पुस्तकालय के कमरे को लेकर परिवार में झगड़ा होता है। पुस्तकालय वाले : भी उन दुर्लभ पुस्तकों को दान में स्वीकार नहीं करते। पुस्तकों को राजनीति के कारण कई उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को बख्तियार खिलजी ने जला डाला था। पुस्तक का जलना विश्व धरोहर का जलना है। पुस्तक जलाना और नष्ट करना घोर अपराध जैसा कार्य है। पुस्तकों को जलाना, जलवाना रचनाकार के कठोर परिश्रम और साधना को बरबाद करने के समान है।

कितनों का शोध और सोचा-समझा व्यर्थ हो जाता, जो पुनः लौट कर नहीं आता। पुस्तकें भी षड्यंत्रों का शिकार होती हैं। कुछ धूर्त लोग ग्रंथों में प्रक्षेप कर देते हैं इसलिए जो ग्रंथ नष्ट होने से बच गए, उनमें भी बहुत बदलाव आ गए। लेखक का आशावादी स्वर भी उभरा है। आधुनिक युग में सूचना क्रांति का दौर होने के कारण पुस्तकों को पढ़ने की आदत अवश्य कम हुई है, लेकिन यह भी पुस्तकों के महत्त्व को कम भी नहीं कर सकता। पुस्तक की उपस्थिति और उपयोगिता बनी ही रहेगी।

पुस्तक संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
पुस्तक बेची जाती हैं-पुस्तक खरीदी जाती हैं-कभी किसी बुक डिपो में करीने से सजी अलमारियों से, तो कभी चौराहे पर खड़े किसी ठेले पर लगे ढेर से। पुस्तक भेंट की जाती है, पुस्तक माँगी जाती है। पुस्तक चुराई जाती है। पुस्तक दबाई जाती है। और यह सब इसलिए कि अंततः पुस्तक पढ़ी जाती है। पढ़ने में कुछ पुस्तकें केवल रखी जाती हैं, कुछ निगली जाती हैं, कुछ ही हैं जो पचाई जाती हैं। पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन के लिए सुटेबिल आदमी खोजे जाते हैं। पुस्तक की समीक्षा की जाती है। कभी यह समीक्षा बेबाक होती है, अक्सर प्रायोजित। इन समीक्षाओं में अक्सर एक गैरज़रूरी लंबी भूमिका होती है। पुस्तक में जो है उसकी चर्चा कम, जो नहीं है उसकी चर्चा अधिक। (Pages 89-90)

शब्दार्थ:

  • सुटेबिल – उपयुक्त।
  • बेबाक – अचूक, सटीक।
  • गैरज़रूरी – अनावश्यक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश देवेंद्र ‘दीपक’ के द्वारा लिखित निबंध ‘पुस्तक’ से उद्धृत है। लेखक इस गद्यांश में पुस्तकों की उपयोगिता और उनकी समीक्षा पर प्रकाश डाल रहा है।

व्याख्या:
लेखक पुस्तकों की उपयोगिता के संबंध में कहता है कि प्रकाशक पुस्तकों का व्यापार करता है। पुस्तकें प्रकाशन गृहों और बुक डिपों में बेची जाती हैं। बुक डिपो वाले पुस्तकों को अलमारियों में सजाकर रखते हैं और बेचते हैं। कभी-कभी पुस्तकें चौराहे पर खुद को दुकानदारों द्वारा ठेले पर ढेर के रूप में रखकर भी बेची जाती हैं। पाठक पुस्तकों को खरीदते हैं। सुशिक्षित तथा पुस्तकों के सुधी पाठक अपने साहित्यिक मित्रों, सगे-संबंधियों अथवा अन्य लोगों को उपहार के रूप में भी देते हैं। पुस्तकें कुछ लोगों द्वारा माँग कर पढ़ी जाती हैं।

इतना ही नहीं पुस्तकालयों से महत्त्वपूर्ण दुर्लभ पुस्तकों को चुराया भी जाता है और आवश्यक पुस्तकों को इधर-उधर दबाकर भी रख दिया जाता है ताकि जरूरत पड़ने पर उसे प्राप्त किया जा सके। ये सारे काम इसलिए किए जाते हैं कि अंत में पुस्तक पढ़ी जाती है। पुस्तक पढ़ने के बाद कुछ पुस्तकें केवल रखी जाती हैं क्योंकि उन्हें फेंका नहीं जा सकता। कुछ पुस्तकें रोचक अथवा मनोरंजक न होने के कारण जबरदस्ती पढ़ी जाती हैं जबकि कुछ ही पुस्तकें ऐसी होती हैं जिन्हें पाठक पढ़ता है और चिंतन-मनन कर उन्हें आत्मसात् करता है।

लेखक पुस्तक की भूमिका और समीक्षा पर टिप्पणी करते हुए कहता है कि पुस्तक का सर्जन करने वाला अपनी पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन लिखवाने के लिए उपयुक्त आदमी को ढूँढ़कर, उससे भूमिका और प्राक्कथन लिखवाता है। पुस्तक के विषय, उसकी शैली, उसके उद्देश्य और गुण-दोषों की समीक्षा की जाती है। पुस्तक की यह समीक्षा एकदम सटीक होती है। प्रायः यह समीक्षा प्रायोजित होती है। इन समीक्षाओं में प्रायः एक अनावश्यक लंबी भूमिका रहती है, जिसमें जो कुछ पुस्तक के अंदर होता है, उसकी – चर्चा कम होती है और जो उसमें नहीं होता, उसकी चर्चा अधिक की जाती है।

विशेष:

  1. पुस्तकों के अच्छी-बुरी होने का वर्णन रखी, निगली और पचाई जाने जैसे शब्दों से किया गया है।
  2. समीक्षा के ढंग पर व्यंग्य किया गया है।
  3. भाषा तत्सम शब्दों के साथ-साथ विदेशी शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पुस्तकें चुराई और दबाई क्यों जाती हैं?
उत्तर:
कुछ पुस्तकें महत्त्वपूर्ण होती हैं। बाजार में वे उपलब्ध नहीं होती हैं। ऐसी पुस्तकें दुर्लभ होती हैं। जो केवल पुस्तकालयों में ही होती हैं, पाठक या छात्र अथवा शोधकर्ता ऐसी पुस्तकों को चुरा लेते हैं और अपना काम सरलता से निपटा लेते हैं। कुछ पुस्तकें पुस्तकालय में प्रायः छात्रों द्वारा ही दबाई जाती हैं। वे अपने विषय से संबंधित पुस्तक को इधर-उधर दबाकर रख देते हैं और जरूरत पड़ने पर निकाल लेते हैं।

प्रश्न (ii)
पुस्तकों के निगलने और पचाने से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
पुस्तकों के निगलने से लेखक का आशय यह है कि पुस्तकें विषय पर शैली की दृष्टि से रोचक, मनोरंजक नहीं होतीं। ऐसी पुस्तकों को पाठक जबरदस्ती पढ़ता है। कुछ पुस्तकें विषय की दृष्टि से, शैली और उद्देश्य की दृष्टि से रोचक, मनोरंजक और जीविनोपयोगी होती हैं। ऐसी पुस्तकों को पाठक पढ़कर चिंतन-मनन करता है और जीवन में उनकी बातों को व्यवहार में लाता है। यही पुस्तकों का पचाना है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन लिखवाने के लिए क्या किया जाता है?
उत्तर:
पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन लिखवाने के लिए उपयुक्त व्यक्ति को खोजा जाता है और उससे ही भूमिका और प्राक्कथन लिखवाया जाता है।

प्रश्न (ii)
पुस्तक-समीक्षा पर लेखक ने क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
पुस्तक-समीक्षा पर लेखक ने व्यंग्य किया है कि पुस्तक प्रायः प्रायोजित है। समीक्षा चर्चा होती है जो पुस्तक में होती ही नहीं है। पुस्तक में होने वाली बातों की चर्चा कम की जाती है।

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प्रश्न 2.
पागल कौन है?-वह जो पुस्तक लिखता है या वह जो पुस्तकालय को जलाता है, जलवाता है। क्या होता है किसी पुस्तक का जलना? क्या होता है किसी पुस्तकालय का जलना! जितना सोचता हूँ, उतनी खिन्नता बढ़ती है। हर पुस्तक अपने में लंबी साधना और परिश्रम का प्रतिफल होती है। कितनी आँखों का कितना जागरण व्यर्थ चला गया। कितने लोगों के कितने शोध व्यर्थ हो गए। कितनों का सोचा-समझा था जो अब लौटकर नहीं आएगा। यह तो विश्वधरोहर को नष्ट करना हुआ। शताब्दियों की सारस्वत साधना के साथ छल किया पुस्तकालय जलाने बालों ने। वहत और दहशत की जुगलबंदी के अलावा और क्या था वह! (Page 90) (M.P. 2010)

शब्दार्थ:

  • खिन्नता – दुख।
  • प्रतिफल – परिणाम।
  • वहशत – असभ्यता, जंगलीपन।
  • दहशत – आतंक।
  • सारस्वत – सरस्वती संबंधी।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश देवेंद्र ‘दीपक’ द्वारा रचित निबंध ‘पुस्तक’ से लिया गया है। लेखक पुस्तकालय जलाने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है।

व्याख्या:
लेखक पाठकों से प्रश्न करता है कि पागल कौन है? जो पुस्तक की रचना करता है या वह जो पुस्तकालय को जलाता है, अपने लोगों से जलवाता है। इन दोनों में से पागल व्यक्ति कौन है? इसका उत्तर देने से पूर्व लेखक फिर प्रश्न करता है कि इस संबंध में जितना सोचता हूँ, उतनी ही दुख में वृद्धि होती है। लेखक के मतानुसार प्रत्येक पुस्तक लेखक की लंबी साधना और परिश्रम का परिणाम होती है अर्थात लेखक किसी पुस्तक की रचना लंबी साधना और परिश्रम से करता है। पुस्तक के जलने के कारण लेखक का रातों को जागकर पुस्तक लिखना व्यर्थ हो जाता है।

उसकी कृति नष्ट हो जाती है। कितने ही लोगों के अनुसंधान से संबंधित ग्रंथ पुस्तकालय जलने से नष्ट हो जाते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा परिश्रम से खोजे गए नए सिद्धांत और नए फार्मूले बेकार हो जाते हैं। अनेक विद्वानों, चिंतकों, दर्शनशास्त्रियों और चिकित्सकों का चिंतन-मनन जलकर राख हो जाता है जो कभी पुनः प्राप्त नहीं हो सकता। पुस्तकों और पुस्तकालयों को जलाना विश्वधरोहर को नष्ट करना है।

इस तरह विश्वधरोहर को नष्ट करना घोर अपराध जैसा कार्य किया है, पुस्तकालय को जलाने वालों ने। शताब्दियों की विद्या की देवी सरस्वती की साधना के साथ धोखा किया है। यह उनकी असभ्यता और आतंक फैलाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। उन्होंने पुस्तकालय जलाकर विश्व को ज्ञान के स्रोत से वंचित किया। यह उनके असभ्य होने का ही परिचायक है।

विशेष:

  1. लेखक ने पुस्तकालय जलाने को घोर अपराध माना है।
  2. पुस्तकालय जलाने वालों को असभ्य कहा है।
  3. विचारात्मक और प्रश्नात्मक शैली है।
  4. भाषा तत्सम व उर्दू शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

गयांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
लेखक ने पुस्तक लेखक और पुस्तकालय जलाने वाले में से किसे पागल माना है?
उत्तर:
लेखक ने पुस्तक लेखक और पुस्तकालय जलाने वाले में से पुस्तकालय जलाने वाले को पागल माना है ऐसा इसलिए कि पुस्तकालय जलाने से पुस्तक लेखकों की लंबी साधना, शोधकर्ताओं का परिश्रम और विद्वानों का चिंतन-मनन नष्ट हो गया।

प्रश्न (ii)
पुस्तकालय को जलाना लेखक की दृष्टि में कैसा कार्य है?
उत्तर:
पुस्तकालय को जलाना लेखक की दृष्टि में घोर आपराधिक कार्य है।

गयांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पुस्तकालय जलाने वालों ने किसके साथ छल किया?
उत्तर:
लेखक के अनुसार पुस्तकालय जलाने वालों ने शताब्दियों की विद्या की देवी सरस्वती के साधकों की साधना के साथ छल किया।

प्रश्न (ii)
लेखक पुस्तकालय जलाने वालों को क्या मानता है?
उत्तर:
लेखक पुस्तकालय जलाने वालों को असभ्य और आतंक फैलाने वाले मानता है; क्योंकि पुस्तकालय जलाना असभ्यता और आतंक फैलाने की मनोवृत्ति का ही सूचक है।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ (कविता, बालकवि बैरागी’ एवं संकलित)

माँ पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

माँ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व की शुभकामना किसे कहा गया है? (M.P. 2010)
उत्तर:
माँ के वात्सल्य भाव को ही विश्व की शुभकामना कहा गया है।

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प्रश्न 2.
माँ किस राग के गीत गाने का निर्देश देती है?
उत्तर:
माँ भैरवी राग के गीत गाने का निर्देश देती है।

प्रश्न 3.
मुसीबत में किसका नाम लेना चाहिए? और क्यों?
उत्तर:
मुसीबत में माँ का नाम लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
पथ पर चलने के लिए प्रतिफल कैसा कदम चाहिए?
उत्तर:
पथ पर चलने के लिए गतिशील कदम चाहिए।

प्रश्न 5.
गुरुता का ज्ञान क्यों अपेक्षित है?
उत्तर:
गुरुता का ज्ञान जीवन में प्रेरणा के लिए अपेक्षित है।

माँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचतत्त्वों के किन गुणों को माँ धारण किए हुए है? (M.P. 2010)
उत्तर:
पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु पाँच तत्त्व होते हैं। माँ इन सभी गुणों को धारण किए हुए हैं। माँ पृथ्वी का गुण धैर्य, आकाश के गुण चैतन्य अथवा प्रकाश को, अग्नि के गुण तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता तथा जल के गुण गंभीरता को धारण किए हुए है।

प्रश्न 2.
माँ किस प्रकार शिक्षा देती है?
उत्तर:
माँ अपनी संतान को जागृत होने की शिक्षा देती है। वह जगाकर संघर्ष का मार्ग दिखताती और जीवन में संघर्ष करने के लिए प्रेरित करती है। इतना ही नहीं वह कर्तव्य निभाने की भी शिक्षा देती है। वह जीवन में होश के साथ कार्य करने की भी शिक्षा देती है।

प्रश्न 3.
कवि माँ से क्या कामना करता है? (M.P.2011)
उत्तर:
कवि माँ से कामना करता है कि वह वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करें कि उसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके। वह हार-जीत को समान भाव से ग्रहण कर सके। यही नहीं वह देश की उन्नति-प्रगति के लिए अपने स्वार्थों को त्यागकर समर्पित हो सके।

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प्रश्न 4.
देश की जय के लिए कवि किस भाव का आकांक्षी है?
उत्तर:
देश की जय के लिए कवि अपनी हार, स्वार्थ, त्याग और बलिदान के भाव का आकांक्षी है।

प्रश्न 5.
कवि किस उद्देश्य के लिए जीवन देना चाहता है?
उत्तर:
कवि संसार को खुशहाल जीवन देने के लिए उद्देश्य से अपना जीवन देना चाहता है।

माँ भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
‘मेरी हार देश की जय हो’ का भाव-विस्तार कीजिए।
उत्तर:
कवि चाहता है कि जीवन संघर्ष में बेशक उसकी हार हो जाए, वह जीवन में प्रगति और उन्नति बेशक न कर पाए, किंतु देश सदैव विजयी हो, उसकी संघर्षों में सदैव विजय हो। मेरी व्यक्तिगत समस्याएँ हल हों या न हौं, लेकिन देश अपनी समस्त समस्याओं पर विजय प्राप्त कर, निरंतर उन्नति-प्रगति करता रहे। देश की विजय में ही उसकी स्वतंत्रता, अखंडता और एकता निहित होती है। उसकी विजय से जनता में खुशहाली, सुख और शांति आती है इसलिए व्यक्ति की बेशक हार हो जाए, लेकिन देश की हार नहीं होनी चाहिए।

माँ भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित समोच्चित शब्दों का वाक्य बनाकर अर्थ स्पष्ट कीजिएअनिल-अनल, फाँस-पाश, ह्रास-हास, नीर-नीड़, पवन-पावन।
उत्तर:

  • अनिल – शीतल अनिल शरीर की थकान हर लेता है।
  • अनल – यह तुम्हारी स्वार्थ की अनल तुम्हें जलाकर राख कर देगी।
  • फाँस – मित्र के असत्य वचन मेरे लिए फाँस बन गए हैं।
  • पाश-मोह – माया के पाश में बँधे हो और मुक्ति चाहते हो, कैसे संभव है।
  • हास – जीवन में हास और त्रास मिलते रहते हैं।
  • हास – जीवन में हास (हास्य) को महत्त्व दिया जाना चाहिए।
  • नीर – महादेवी वर्मा ने कहा है, मैं नीर भरी दुख की बदली हूँ।
  • नीड़ – इस वृक्ष पर पक्षी नीड़ों में बैठे विश्राम कर रहे हैं।
  • पवन – प्रातःकाल का शीतल, मंद और सुगंधित पवन स्वान्मावर्धक होता है।
  • पावन – गंगा पावन नदी है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह सहित नाम लिखिए –
कंटक पथ, दावानल, टालो-संभालो, गिरें-उठे।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-1

प्रश्न 3.
दिए गए मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
तिल-तिल कर जलना, गिर-गिर कर उठना, कंटक पथ पर चलना, लोरियाँ गाकर सुनाना, भैरवी गीत गाना।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-2

माँ योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
माँ की आराधना विषयक अन्य गीतों को याद कर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘देश की जय’ के लिए अपने प्राणों की बलि चढ़ाने वाले अमर शहीदों की जानकारी संगृहीत कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
‘माँ’ विषय पर अपने विचार लिखिए तथा उसे कथा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

माँ परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता के कवि हैं –
(क) मनमोहन मदारिया
(ख) बालकवि वैरागी
(ग) मैथिलीशरण गुप्त
(घ) कवि सुदर्शन
उत्तर:
(ख) बालकवि वैरागी।

प्रश्न 2.
कवि किससे वरदान माँग रहा है –
(क) ईश्वर से
(ख) दुर्गा देवी से
(ग) माँ से
(घ) भगवान शिव से
उत्तर:
(ग) माँ से।

प्रश्न 3.
संसार को सुखद और सरल बनाने वाला भाव है –
(क) वात्सल्य भाव
(ख) भक्तिभाव
(ग) स्वार्थ भाव
(घ) अहिंसा भाव
उत्तर:
(क) वात्सल्य भाव।

प्रश्न 4.
माँ से व्यक्तित्व में पवन से…… का गुण निहित है –
(क) गंभीरता
(ख) व्यापकता
(ग) धैर्य
(घ) तीव्रता
उत्तर:
(ख) व्यापकता।

प्रश्न 5.
कवि को जीवन का अभिमान चाहिए ताकि वह –
(क) जीवन-मार्ग पर बढ़ता रहे
(ख) वह निराश न हो
(ग) जीवन-संघर्षों से घबराए
(घ) वह जीवन के संघर्षों पर विजय प्राप्त करे
उत्तर:
(घ) वह जीवन-संघर्षों में विजय प्राप्त करे।

प्रश्न 6.
मुसीबत के समय किसे याद करना चाहिए –
(क) ईश्वर को
(ख) माँ को
(ग) मित्र को
(घ) पिता को
उत्तर:
(ख) माँ को।

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प्रश्न 7.
कवि को गुरुता का ज्ञान चाहिए; क्योंकि –
(क) वह जीवन की प्रेरणा बने
(ख) वह जीवन की आशा बने
(ग) वह जीवन का त्याग बने
(घ) वह जीवन की कठिनाई बने
उत्तर:
(क) वह जीवन की प्रेरणा बने।

प्रश्न 8.
जीवन के समस्त स्वार्थ त्यागकर…………के लिए समर्पित होना ही हमारा लक्ष्य है।
(क) मातृ-सेवा
(ख) राष्ट्र-सेवा
(ग) समाज-सेवा
(घ) प्रभु-सेवा
उत्तर:
(ख) राष्ट्र-सेवा।

प्रश्न 9.
कवि किससे वरदान की अपेक्षा करता है? (M.P. 2012)
(क) माँ से
(ख) गुरु से
(ग) प्रभु से
(घ) भाई से
उत्तर:
(क) माँ से।

प्रश्न 10.
‘माँ की भावनाओं में है –
(क) पहाड़ जैसी ऊँचाई
(ख) समुद्र जैसी चौड़ाई
(ग) धरती जैसा विस्तार
(घ) धरती जैसा धैर्य
उत्तर:
(घ) धरती जैसा धैर्य।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. तिल-तिलकर ………. जले। (मन/तन)
  2. माँ ………. की रचना है। (मैथिलीशरण गुप्त/वालकवि ‘वैरागी’)
  3. बालकवि ‘वैरागी’ ………. हैं। (आलोचक/कवि)
  4. बाल कवि ‘वैरागी’ का जन्म ………. को हुआ था। (1931/1941)
  5. कवि माँ से ………. की अपेक्षा करता है। (वरदान प्यार)

उत्तर:

  1. तन
  2. बालकवि ‘वैरागी’
  3. कवि
  4. 1931
  5. वरदान।

III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –

  1. ‘माँ’ एक निबन्ध है।
  2. ‘माँ’ संघर्ष का मार्ग दिखाती है।
  3. ‘जल-जलकर जीवन’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. बालकवि वैरागी का वास्तविक नाम नन्दरामदास वैरागी है।
  5. मुसीबत में बस माँ का नाम लेना चाहिए।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

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IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-3
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (घ)
(iii) (ख)
(iv) (क)
(v) (ग)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
माँ से कवि क्या चाहता है?
उत्तर:
वरदान।

प्रश्न 2.
माँ क्या गाकर सुलाती है?
उत्तर:
लोरियाँ।

प्रश्न 3
मुसीबत आने पर क्या करना चाहिए?
उत्तर:
माँ का नाम लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
जीवन के संघर्षों में क्या होना चाहिए?
उत्तर:
होठों पर मुस्कान होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
जीवन में क्या स्वाभाविक है?
उत्तर:
काँटों के रास्ते पर गिरना-बढ़ना और हार-जीत।

माँ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता में किसके व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है?
उत्तर:
‘माँ’ कविता में माँ के विराट व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है।

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प्रश्न 2.
‘माँ’ में पृथ्वी तत्त्व का कौन-सा गुण निहित है? (M.P. 2012)
उत्तर:
‘माँ’ में पृथ्वी तत्त्व का धैर्य गुण निहित है।

प्रश्न 3.
माँ का कौन-सा भाव संसार को सुखद और सरल बनाता है?
उत्तर:
माँ का वात्सल्य-भाव ही संसार को सुखद और सरल बनाता है।

प्रश्न 4.
जीवन-पथ कंटकमय होने पर भी कवि किसकी कामना करता है?
उत्तर:
जीवन-पथ कंटकमय होने पर भी कवि जीवन-मार्ग पर निरंतर गतिशील रहने की कामना करता है।

प्रश्न 5.
कवि किस पर विजय प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर:
कवि जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करना चाहता है।

प्रश्न 6.
‘माँ’ संसार की क्या है?
उत्तर:
माँ संसार की शुभकामना है।

प्रश्न 7.
कवि की माँ से एक कामना क्या है?
उत्तर:
कवि की माँ से एक कामना यह है कि उसके पैर हर क्षण गतिमान होने चाहिए।

प्रश्न 8.
उठ-उठकर गिरने और फिर उठने पर कवि को माँ से क्या चाहिए?
उत्तर:
उठ-उठकर गिरने और फिर उठने पर कवि को माँ से गुरुता का ज्ञान होने का वरदान चहिए।

माँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
माँ के व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
माँ का व्यक्तित्व विराट है। उसके व्यक्तित्व में धैर्य, तीव्रता, व्यापकता और गंभीरता के साथ-साथ ममता, वात्सल्य आदि गुण निहित हैं। उसका व्यक्तित्व केवल स्नेहमयी है, अपितु वह अपनी संतान को जगाती है। संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। वह कर्तव्य मार्ग पर चलने के प्रेरित करने वाली शक्ति है।

प्रश्न 2.
कवि कैसी माँ को अपनी स्मृतियों में बसाने की प्रेरणा देता है? (M.P. 2012)
उत्तर:
कवि धैर्यशाली, तीव्र प्रकाशयुक्त, गतिमयी व्यापकता और गंभीरता से युक्त स्नेहमयी, वात्सल्यमयी, संघर्ष का मार्ग दिखाने वाली तथा कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली माँ को सदैव अपनी स्मृतियों में बसाने की प्रेरणा देता है।

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प्रश्न 3.
कवि देश और जगत् के लिए क्या-क्या करने के लिए तैयार है?
उत्तर:
कवि देश के लिए अपनी हार स्वीकार करने के लिए तैयार है। वह अपने स्वार्थों को देश-सेवा के लिए त्यागने को तैयार है। जगत् के लिए वह अपना जीवन भी देने के लिए तैयार है।

प्रश्न 4.
कवि को कौन-सा सम्मान चाहिए?
उत्तर:
कवि को अपना स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित होने का ही सम्मान चाहिए। इस सम्मान के अतिरिक्त उसे कोई अन्य सम्मान नहीं चाहिए। यही सम्मान प्राप्त करना, उसके जीवन का लक्ष्य है। इसी लेंए वह कहता है-‘बस इतना सम्मान चाहिए।’

प्रश्न 5.
माँ का स्वरूप क्या है?
उत्तर:
माँ धरा का धैर्य है। वह आसमान की ज्योति है। वह आग की लपट है। वह हवा तीव्र गति है। वह पानी का गंभीर स्वर है। यही नहीं वह वत्सला है। वह वंदना है, वह जननी है और जन्मदात्री भी है।

प्रश्न 6.
कवि माँ से कब-कब वरदान चास’ है?
उत्तर:
कवि माँ से तब-तब वरदान चाह जब उसका जीवन काँटों से भर जाए, विपदाओं से घिर जाए, उसे हास मिले ना त्रास मिले, विश्वास मिले या फाँस मिले, उसके सामने काल ही आकर क्यों न गरजे, इस प्रकार के संकटमय और दुखमय जीवन में कवि माँ से वरदान चाहता है।

माँ कवि-परिचय

प्रश्न 1.
बालकवि वैरागी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
श्रीबालकवि वैरागी युगचेतना को ओजस्वी स्वर देने वाले आधुनिक युग के कवियों में सुप्रसिद्ध हैं।
जीवन-परिचय:
बालकवि वैरागी का जन्म मध्य प्रदेश के जिला मंदसोर के नीमच नामक स्थान में 10 फरवरी, सन् 1931 ई० को हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में हुई। इसके उपरान्त आपने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से एम.ए. हिंदी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस प्रकार आपने एक मेधावी छात्र होने का परिचय दिया। आपने शिक्षा-समाप्ति के उपरांत साहित्य और राजनीति दोनों में ही दखल देना शुरू कर दिया। आप मध्य प्रदेश के एक सम्मानित विधायक और सांसद होने के साथ साथ आप मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं किंतु आपने साहित्य-सृजन को नहीं छोड़ा। आपकी कविताएँ राजनीतिक क्षितिज से उठकर जन-सामान्य के दुख-दर्द और आशा-आकांक्षाओं से जड़ी रही हैं।

रचनाएँ:
बालकवि वैरागी की रचनाएँ मुख्य रूप से काव्य ही हैं। अब तक आपके कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आपके निम्नलिखित काव्य-संग्रह हैं –

‘दरद दीवानी’, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’, ‘गौरव-गीत’, ‘भावी रक्षक देश के’, ‘दो टूक’, ‘दादी का कर्ज’, ‘रेत के रिश्ते’, ‘कोई तो समझें’, ‘शीलवती आग’, ‘गाओ बच्चों’, ‘पुलिवर’ (पद्यानुवाद), ‘वंशज का वक्तव्य’, ‘ओ अमलतास’ आदि। . इनके अतिरिक्त ‘चटक म्हारा चम्पा’ मालवीय काव्य-संग्रह भी बालकवि ‘वैरागी’ का एक जीवंत और सशक्त प्रकाशित काव्य-संग्रह हैं।

बालकवि वैरागी की कार्यशैली ‘गद्य’ विधा में भी है। कुछ प्रकाशित गद्य रचनाओं के उल्लेख इस प्रकार किए जा सकते हैं-गद्य सरपंच (सहयोगी उपन्यास), ‘कच्छ का पदयात्री’ (यात्रा-संस्मरण), ‘बर्लिन से बच्चू को’ (विदेशी यात्रा के पत्र) आदि।’

भाषा-शैली:
बालकवि वैरागी की भाषा-शैली में एकरूपता है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि कविवर बालकवि की भाषा और शैली में काव्यात्मकता है। दूसरे शब्दों में, बालकवि वैरागी जी मूलतः कवि हैं, अतएव उनकी भाषा-शैली का काव्यमयी होना स्वाभाविक है। आपकी भाषा-शैली संबंधित निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

1. भाषा:
बालकवि वैरागी की भाषा मध्यस्तरीय काव्यमयी भाषा है। उसमें मुहावरों, कहावतों के प्रयोग आवश्यकतानुसार हुए हैं। इस प्रकार की भाषा में आए शब्द प्रायः तद्भव श्रेणी के हैं। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि तत्सम शब्द और विदेशी शब्दों की तुलना में प्रयुक्त देशज शब्द बहुत अधिक हैं। इनके बाद ही उर्दू के प्रचलित शब्द प्रयुक्त हुए। इस प्रकार से बने हुए शब्दों से वाच्यार्थ और विषय के प्रतिपादन बहुत अच्छी तरह से हुए हैं।

2. शैली:
बालकवि वैरागी की शैली मुख्य रूप से काव्यमयी है। अतः उसमें अलंकारिता, चमत्कारिता और रसात्मकता जैसे स्वाभाविक और आवश्यक गुण सर्वत्र दिखाई देते हैं। इस प्रकार की शैली में प्रयुक्त हुए अलंकारों में मुख्य रूप से अनुप्रास, रूपक, स्वभावोक्ति और दृष्टांत अलंकार हैं। आपकी रचनाधारा को प्रवाहित करने वाले रस मुख्य रूप से वीररस, करुणरत, रौद्ररस आदि हैं। आपकी कविताओं में संगीतात्मकता और लयात्मकता ये दोनों ही गुण सर्वत्र दिखाई देते हैं।

महत्त्व:
बालकवि वैरागी का आधुनिक हिंदी कविता धारा का राष्ट्रीय तरंगित भावोत्थान में एक विशिष्ट और सुपरिचित स्थान है। राष्ट्र-प्रेम के भावों से भीग-भीगकर राष्ट्र के प्रति अपार प्रेम दिखलाने वाले आप बहुत ऊँचे कवि हैं। कविताओं के अतिरिक्त गद्य-रचना के क्षेत्र में भी आपकी बड़ी शान और मान है। इस प्रकार बालकवि वैरागी आधुनिक हिंदी काव्य-जगत के एक उज्ज्वल और प्रकाशवान रचनाकार हैं। आपका साहित्यिक महत्त्वांकन करके ही आपको राजसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में चुना गया। अभी आपसे अनेक साहित्यिक उपलब्धियों की अपेक्षाएँ हैं।

‘माँ’ पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘माँ’ कविता बालकवि वैरागी द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्ति दी है। माँ में धरती के जैसा धैर्य, उसमें आकाश ज्योति की तीव्रता है, पवन की गतिमयी व्यापकता है और जल जैसी गंभीरता है। वह वात्सल्य भाव से भरी हुई पूजनीय है। माँ जन्म देने वाली है और वह संसार को सुखद और सरल बनाने वाली है।

कवि कहता है कि माँ का व्यक्तित्व केवल स्नेह का पर्याय नहीं है। वह लोरियाँ गाकर सुलाती है तो वह जगाती भी है और संघर्ष का मार्ग भी दिखलाती है। माँ पालन-पोषण करने वाली शक्ति भी है तो वह कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। माँ कहती है कि मुझे बहाने बनाकर टालने का प्रयास मत करो, होश से काम लो और जब कभी मुसीबत आए तो तुम केवल माँ को याद करो। तुम ऐसी माँ को सदैव स्मृतियों में बसाकर रखो।

दूसरी कविता ‘माँ बस यह वरदान चाहिए’ है। इस कविता में कवि माँ से वरदान स्वरूप वह शक्ति माँगता है, जिसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की जा सके। कवि चाहता है कि उसकी यही इच्छा है कि उसका प्रत्येक पग गतिशील रहे। उसे जीवन में हास मिले या त्रास मिले, विश्वास प्राप्त हो या विश्वासघात प्राप्त हो और चाहे उसके सामने मृत्यु ही क्यों न आ जाए, लेकिन जीवन के इन विरोधों के बीच भी स्वाभिमान जागृत रहे।

कष्टों में भी जीवन की प्रसन्नता बनी रहे। काँटोंभरे रास्तों पर गिरना, चढ़ना और हार-जीत स्वाभाविक हैं, किंतु फिर भी जीवन में बड़प्पन, गंभीरता का भाव बना रहे। हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का ज्ञान हमारे जीवन की प्रेरणा बने। हम सदा देश की उन्नति के लिए क्रियाशील रहें। इस हेतु जीवन से समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र-सेवा के लिए. समर्पित होना ही हमारा लक्ष्य रहे। यही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। कवि माँ से ऐसे ही वरदान की अपेक्षा करता है।

माँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
मैं धरा का धैर्य हूँ
ज्योति हूँ मैं ही गगन की
अग्नि की मैं ही लपट हूँ
तीव्र गति हूँ मैं पवन की
नीर का गंभीर स्वर हूँ,
वत्सला हूँ-वंदना हूँ ,
मैं जननि हूँ-जन्मदात्री
विश्व की शुभकामना हूँ। (Page 86) (M.P. 2011)

शब्दार्थ:

  • धरा – पृथ्वी, जमीन, धरती।
  • ज्योति – प्रकाश।
  • गगन – आकाश।
  • अग्नि – आग।
  • तीव्र – तेज।
  • गति – चाल।
  • पवन – वायु।
  • नीर – पानी, जल।
  • वत्सला – ममतामयी, स्नेहमयी।
  • वंदना – प्रार्थना, पूजन।
  • जननि – जन्म देने वाली।
  • विश्व – संसार।
  • शुभकामना – अच्छी इच्छा।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित कविता ‘माँ’ से उद्धृत है। कवि माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्त करते हुए कहता है कि-माँ की भावनाओं में धैर्य, तीव्र गति और गंभीरता है। इन्हीं भावों को इस काव्यांश में व्यक्त किया गया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि माँ के लिए विराट व्यक्तित्व में अनेक भावनाएँ निहित हैं। माँ कहती है कि मेरी भावनाओं में धरती के जैसा धैर्य है; अर्थात् मेरे व्यक्तित्व पृथ्वी के समान धैर्य हैं। मैं अत्यंत धैर्यवान हूँ। मैं ही आकाश की ज्योति हूँ। मैं ही आग की लपट हूँ और मुझ में ही वायु की गति व्यापक है। मुझ में ही जल की गंभीरता है। मैं ममतामयी, स्नेहमयी और पूजनीय हूँ। मैं जन्म देने वाली माता हूँ। मेरा वात्सल्य भाव से ही संसार को सुखद और सरल बनाने वाली हूँ। कहने का भाव यह है कि माँ का व्यक्तित्व विराट है। उसके व्यक्तित्व में धरती के समान धैर्य, तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता और गंभीरता है। वह स्नेहमयी, पूजनीय और जन्म देने वाली माँ हैं। वह पूजनीय है। उसमें विश्व का कल्याण को चाहने की कामना है।

विशेष:

  1. माँ के विराट व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है।
  2. माँ के व्यक्तित्व में अनेक गुणों का समावेश है।
  3. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  4. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  5. ‘मैं धरा का धैर्य हूँ’ में उदाहरण अलंकार है।
  6. ‘वत्सला हूँ-वंदना हूँ’ में अनुप्रास अलंकार है।
  7. रूपक अलंकार है।
  8. विशेषणों का सार्थक प्रयोग किया गया है।

पद्य पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-बालकवि वैरागी, कविता-‘माँ’।

प्रश्न (ii)
कविता में किसके व्यक्तित्व का अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर:
कविता में माँ के विराट व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति हुई है।

प्रश्न (iii)
माँ के व्यक्तित्व में क्या निहित है?
उत्तर:
माँ के व्यक्तित्व में पृथ्वी जैसा धैर्य, आकाश की तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता और जल जैसी गंभीरता और वात्सल्य भाव निहित हैं।

पद्य पर आधारित सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत पद्य के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि ने इस पद्य में माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्ति दी है। उसके व्यक्तित्व में धैर्य, तेजी, व्यापकता, गंभीरता और वात्सल्य भावना निहित है। वह पूजनीय है।

प्रश्न (ii)
प्रस्तुत पद्य के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य:
पद्य की भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। ‘धरा का धैर्य हूँ’ में उदाहरण अलंकार है। ‘वत्सला हूँ-वंदना हूँ’ में अनुप्रास अलंकार है। छंदबद्ध रचना में तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। शांतरस है। पद्य में माँ का विराट रूप साकार हो उठा है। शब्द चयन सटीक और भावानुकूल है। विशेषणों का सार्थक प्रयोग हुआ है।

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प्रश्न 2.
लोरियाँ गाकर सुलाया
अब जगाती हूँ तुम्हें,
भैरवी गाओ-उठो!
रस्ता दिखाती हूँ तुम्हें
मत मुझे टालो-सम्हालो,
होश से कुछ काम लो,
जब कभी आए मुसीबत
सिर्फ माँ का नाम लो। (Page 86)

शब्दार्थ:

  • लोरियाँ – बच्चों को सुलाने के समय गाया जाने वाला गीत।
  • भैरवी – एक राग।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश बालकवि ‘वैरागी’ द्वारा रचित कविता ‘माँ’ से उद्धृत है। कवि माँ के विराट स्वरूप को व्यक्त करते हुए कहता है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि माँ का व्यक्तित्व केवल स्नेहमयी, ममतामयी ही नहीं है अपितु माँ अपने बच्चों को गीत गाकर सुलाती है, तो वह जगाती भी है। वह भैरवी राग गाकर, दुर्गा की भाँति उठाती भी है और जीवन में संघर्ष का मार्ग भी दिखाती है। वह कहती है कि तुम मुझे विभिन्न प्रकार बहाने करके टालने का प्रयास मत करो। उठो, और संघर्ष करो। कुछ होश से कार्य करो अर्थात् माँ पालित-पोषित करने वाली ममता है, तो वह कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। कवि कहता है कि जब भी तुम पर कोई मुसीबत आए, तो तुम केवल माँ को याद करो। उसका नाम लो, तुम्हें संकट से छुटकारा मिलेगा। ऐसी माँ को सदा अपनी स्मृतियों में बसाए रखो।

विशेष:

  1. कवि ने माँ व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन किया है।
  2. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  3. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  4. ‘कुछ काम’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. ‘टालो-सम्हालो’ में पद-मैत्री है।
  6. माँ को शक्ति के रूप में चित्रण किया गया है।

पद्य पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-बालकवि ‘वैरागी’। कविता-‘माँ’

प्रश्न (ii)
‘माँ’ को किस रूप में चित्रित किया गया है?
उत्तर:
माँ को अपनी संतान का पालन-पोषण करने वाली ममतामयी माता के रूप में तथा कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति के रूप में चित्रित किया है।

प्रश्न (iii)
इस पद्य में कवि ने क्या प्रेरणा दी है?
उत्तर:
इस पद्य में कवि ने माँ को सदा अपनी स्मृतियों में वसाने की प्रेरणा दी है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने माँ के विराट व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है। माँ एक ओर अपनी संतान का स्नेहपूर्वक पालन-पोषण करती है। अपनी संतान को लोरी गाकर सुलाती है, तो दूसरी ओर वह उसे जगाती है और संघर्ष का मार्ग भी दिखलाती है। वह ममतामयी भी है तो कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। हमें ऐसी माँ को सदैव स्मृतियों में बसाए रखना चाहिए।

प्रश्न (ii)
प्रस्तुत काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश की भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली हैं। छंदबद्ध रचना है। तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। ‘मत मुझे’ ‘कुछ काम’ में अनुप्रास अलंकार है। शब्द-चयन में मितव्ययता और सटीकता है। ‘टालो-सम्हालो’ में पद-मैत्री है।

प्रश्न 3.
माँ बस यह वरदान चाहिए!
जीवन-पथ जो कंटकमय हो,
विपदाओं का घोर वलय हो,
किंतु कामना एक यही बस,
प्रतिपल पग गतिमान चाहिए। (M.P. 2010)

ह्रास मिले या त्रास मिले,
विश्वास मिले या फाँस मिले,
गरजे क्यों न काल ही सम्मुख
जीवन का अभिमान चाहिए। (Page 86)

शब्दार्थ:

  • वरदान – किसी को इष्ट वस्तु देना।
  • जीवन-पथ – जीवन रूपी रास्ता।
  • कंटकमय – काँटों से भरा।
  • विपदाओं – संकटों।
  • वलय – घेरा।
  • कामना – इच्छा, अभिलाषा।
  • हास – हानि।
  • त्रास – कष्ट।
  • विपत्ति – फाँस।
  • काल – मृत्यु।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित’ कविता से उद्धृत है। इस कविता में कवि द्वारा माँ से वरदानस्वरूप वह शक्ति माँगी गई है, जिसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की जा सके।

व्याख्या:
कवि माँ से कहता है कि हे माँ! मुझे केवल आपसे यही वरदान चाहिए कि चाहे जीवन रूपी मार्ग काँटों से भरा हो और मेरा जीवन विभिन्न प्रकार के कष्टों और संकटों में क्यों न घिरा हो, फिर भी मेरी यही अभिलाषा है कि मैं समस्त, दुखों, कष्टों और संकटों से संघर्ष करता हुआ हर क्षण नितर आगे बढ़ता रहूँ।

मुझे जीवन रूप मार्ग आगे बढ़ते हुए चाहे हानि प्राप्त हो अथवा कष्टों विपत्तियों का सामना करना पड़े, जीवन में विश्वास प्राप्त हो अथवा मेरी अपघात (विश्वासघात) हो, चाहे मेरे सामने साक्षात् मृत्यु ही क्यों न आ जाए, किंतु ‘सी स्थिति में भी मेरा स्वाभिामान बना रहना चाहिए। कहने का भाव यह कि कवि माँ से ऐसा वरदान चाहता है कि जीवन-मार्ग में आगे बढ़ते हुए आने वाली कठिनाइयों ५ विजय प्राप्त कर ..सके। जीवन के समस्त विरोधों के बावजूद स्वाभिमान जागृत र।

विशेष:

  1. कवि ने माँ से ऐसा वरदान देने की कामना की है जिससे जीवन के कष्टों के बीच भी उसका स्वाभिमान बना रहे।
  2. ‘जीवन-पथ’ में रूपक अलंकार है।
  3. ‘किंतु कामना और प्रतिफल पग’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ह्रास मिले…या फाँस मिले, में संदेह अलंकार है।
  5. ह्रास और त्रास क्रमशः हानि और कष्ट के प्रतीक हैं।
  6. भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त परिमार्जित खड़ी बोली है।
  7. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  8. विशेषणों का सार्थक प्रयोग किया गया है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कविता-‘माँ बस यह वरदान चाहिए’।

प्रश्न (ii)
कवि माँ से क्या चाहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि माँ से ऐसा वरदान चाहता है, जिसके द्वारा जीवन में आने वाली समस्त कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके।

प्रश्न (iii)
कवि ने माँ से क्या वरदान देने की कामना की है?
उत्तर:
कवि ने माँ से बस ऐसा वरदान देने की कामना की है कि उसे जीवन में चाहे हानि प्राप्त हो या कष्ट, विपत्ति मिले, या फिर विश्वास प्राप्त हो या विश्वासघात प्राप्त हो किंतु जीवन के इन कष्टों के मध्य भी जीवन में स्वाभिमान सदा बना रहे।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
भाव-सौंदर्य-इस कविता में कवि माँ से वरदान प्राप्त करना चाहता है कि जिसके द्वारा वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने में सफल हो। वह यह भी चाहता है कि उसे जीवन के सभी लाभ-हानि, विश्वासघातों, कष्टों, विपत्तियों और विरोधों के बीच स्वाभिमान बना रहे।

प्रश्न (ii)
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य:
‘जीवन-पथ’ में रूपक अलंकार है। किंतु कामना, प्रतिपल पग में अनुप्रास अलंकार है। ह्रास मिले…फाँस मिले में संदेह अलंकार है। ह्रास और त्रास क्रमशः हानि और कष्ट के प्रतीक हैं। तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। विशेषणों का सार्थक प्रयोग है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त परिमार्जित खड़ी बोली है।

प्रश्न (iii)
कवि किससे और क्या माँग रहा है?
उत्तर:
कवि माँ से वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति माँग रहा है जिसके बल पर वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके।

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प्रश्न 4.
जीवन के इन संघर्षों में
दुःख कष्ट के दावानल में
तिल तिलकर तन जले न क्यों पर,
होठों पर मुस्कान चाहिए।

कंटक पथ पर गिरना, चढ़ना,
स्वाभाविक है हार जीतना,
उठ-उठ कर हम गिरें, उठे फिर
पर गुरुता का ज्ञान चाहिए। (Page 87)

शब्दार्थ:

  • दावानल – जंगल की आग।
  • तन – शरीर।
  • मुस्कान – हँसी, प्रसन्नता।
  • गुरुता – बड़प्पन, गंभीरता।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित कविता’ से उद्धृत है। इस काव्यांश में कवि माँ से वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति की कामना करता है कि कष्टों में भी जीवन का प्रसन्नता बनी रहे, यह स्पष्ट किया है।

व्याख्या:
कवि माँ से कामना करता है कि वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करे कि जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए जीवन के संघर्षों में दुख और कष्टों की जंगल की आग में यह शरीर थोड़ा-थोड़ा जलकर क्यों न जले किंतु इन समस्त कष्टों-दुखों में भी जीवन की प्रसन्नता समाप्त न हो। अर्थात् कवि चाहता है कि जीवन में कष्टों और दुखों के कारण यह शरीर धीरे-धीरे नष्ट क्यों न हो जाए किंतु होंठों पर सदा मुस्कान बनी रहनी चाहिए।

मुख पर निराशा या पीड़ा के भाव नहीं आने चाहिए। काँटों और दुखों, विपत्तियों से भरे जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए अवनति की ओर जाना और फिर उठकर चढ़ना तथा जीवन में हार-जीत आना तो स्वाभाविक प्रक्रिया है। जीवन-मार्ग पर चलते हुए हम गिरें, उठें और फिर उठें और गिरें। ऐसी स्थिति में भी मन में सदैव गंभीरता बनी रहे। जीवन में हार-जीत तो होती रहती है। किंतु हमें हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने की शक्ति प्रदान करें। हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का ज्ञान हमारे जीवन की प्रेरणा बने।

विशेष:

  1. कवि चाहता है कि माँ वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करें कि कष्टमय जीवन व्यतीत करते हुए भी प्रसन्नता का भाव बना रहे।
  2. कवि हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने की क्षमता चाहता है।
  3. तिल-तिलकर तन में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ‘तिल-तिलकर जलना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया है।
  5. ‘दुख कष्ट के साथ दावानल’ में रूपक अलंकार है।
  6. ‘गिरना’ अवनति का और ‘चढ़ना’ प्रगति, उन्नति का प्रतीक है।
  7. ‘उठ-उठ’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  8. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
संकलित कविता।

प्रश्न (ii)
कंटक पथ पर गिरना, चढ़ना का प्रतिकार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘कंटक पथ’ दुखों और कष्टों से भरे जीवन पथ का प्रतीक है, तो ‘गिरना’.. अवनति का और ‘चढ़ना’ उन्नति प्रगति का प्रतीक। कवि कहना चाहता है कि हम दुखों और कष्टों से भरे जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए संघर्ष द्वारा जीवन में उन्नति-प्रगति करें, किंतु हम इन्हें समान भाव से ग्रहण करें और हमारे मुख पर कभी निराशा का भाव न आने पाए।

प्रश्न (iii)
कवि को गुरुता का ज्ञान क्यों चाहिए?
उत्तर:
कवि को गुरुता का ज्ञान इसलिए चाहिए, ताकि वह हार-जीत को समान भाव से ग्रहण कर सके और उसमें जीवन की प्रेरणा बनी रहे।

काव्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
इस काव्यांश में कवि ने जीवन कष्टों में भी प्रसन्नता बनी रहने की कामना व्यक्त की है। इसके साथ ही जीवन में हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का वरदान माँ से प्राप्त करना चाहता है। उसकी इच्छा है कि उसमें जीवन की प्रेरणा सदैव बनी रहे।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
‘तिल-तिलकर तन’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘तिल-तिलकर जलना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया गया है। ‘दुख-कष्ट के दावानल’ में रूपक अलंकार है। गिरना और चढ़ना क्रमश जीवन में अवनति का और उन्नति प्रगति का प्रतीक है। ‘उठ-उठ’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

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प्रश्न 5.
मेरी हार देश की जय हो,
स्वार्थ-भाव का क्षण-क्षण क्षय हो,
जल-जल कर जीवन दूं जग को,
बस इतना सम्मान चाहिए।
माँ बस यह वरदान चाहिए
माँ बस यह वरदान चाहिए! (Page 87)

शब्दार्थ:

  • हार – पराजय।
  • जय – विजय।
  • क्षय – कम होना, नष्ट होना।
  • जग – संसार।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित कविता’ से उद्धृत है। कवि इस काव्यांश में माँ से वरदानस्वरूप ऐसी शक्ति की कामना करता है जिसके द्वारा वह अपने समस्त स्वार्थ त्याग कर राष्ट्र-सेवा के लिए समर्पित हो सके।

व्याख्या:
कवि कहता है कि हे माँ! तुम हमें वरदानस्वरूप वह शक्ति प्रदान करो, जिससे हम सदैव देश की उन्नति और प्रगति के लिए क्रियाशील रहें। इसमें हमारी बेशक पराजय हो लेकिन देश की विजय हो। अर्थात् हम अपने जीवन में उन्नति और प्रगति करें या न करें लेकिन देश की उन्नति और प्रगति हो। हमारे स्वार्थ मानों का हर क्षण क्षय हो भाव यह कि हम अपने समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र सेवा में लगे रहें। हम जल-जल कर जीवन को जग के लिए समर्पित कर दें। हमारा लक्ष्य यही रहे, यही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। माँ, हमें वरदान स्वरूप यही शक्ति प्रदान करो। इसके अतिरिक्त हमें और कुछ नहीं चाहिए।

विशेष:

  1. देश-सेवा के लिए समर्पित होने का वरदान कवि माँ से चाहता है।
  2. कवि अपनी हार में देश की विजय चाहता है।
  3. ‘स्वार्थ-भाव’ में रूपक अलंकार है।
  4. क्षण-क्षण क्षय, जल-जल में अनुप्रास अलंकार है।
  5. क्षण-क्षण, जल-जल में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  6. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
इस काव्यांश में कवि माँ से क्या वरदान चाहता है?
उत्तर:
इस काव्यांश में कवि सदैव देश की उन्नति और विकास के लिए क्रियाशील रहने का वरदान चाहता है।

प्रश्न (ii)
कवि ने अपना जीवन-लक्ष्य क्या बताया है?
उत्तर:
कवि ने देश की उन्नति और प्रगति हेतु जीवन के समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र-सेवा के लिए समर्पित होना ही अपने जीवन का लक्ष्य बताया है।

प्रश्न (iii)
जीवन का सबसे बड़ा सम्मान क्या है?
उत्तर:
अपने जीवन से समस्त स्वार्थ त्यागकर देश की उन्नति-प्रगति के समर्पित हो जाना ही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है।

काव्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस काव्यांश में कवि अपनी जीत की अपेक्षा देश की जीत चाहता है। वह चाहता है कि उसका देश उन्नति और प्रगति करे। इसके लिए वह अपने स्वार्थ त्याग कर राष्ट्र सेवा में जुट जाने का भाव व्यक्त कर रहा है। राष्ट्र सेवा में समर्पित होना ही उसके जीवन का लक्ष्य और सबसे बड़ा सम्मान है। कवि माँ से ऐसे ही वरदान की अपेक्षा करता है।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि की राष्ट्र-सेवा की भावना को अभिव्यक्ति मिली है। ‘स्वार्थ-भाव’ में रूपक अलंकार है। ‘क्षण-क्षण-क्षय’, ‘जल-जल’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘क्षण-क्षण, जल-जल’ में पुनरुक्तिप्रकाश है। ‘माँ बस यह वरदान’ पंक्ति की पुनरावृत्ति है। काव्यांश की भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

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MP Board Class 8th Science Solutions Chapter 15 Some Natural Phenomena

MP Board Class 8th Science Solutions Chapter 15 Some Natural Phenomena

MP Board Class 8th Science Some Natural Phenomena NCERT Textbook Exercises

Select the correct option in questions 1. and 2.

Question 1.
Which of the following cannot be changed easily by friction?
(a) A plastic scale
(b) A copper rod
(c) An inflated balloon
(d) A woolen cloth.
Answer:
(b) A copper rod

Question 2.
When a glass rod is rubbed with a piece of silk cloth the rod
(a) And the cloth both acquire positive charge.
(b) Becomes positively charged while the cloth has a negative charge.
(c) And the cloth both acquire negative charge.
(d) Becomes negatively charged while the cloth has a positive charge.
Answer:
(b) Becomes positively charged while the cloth has a negative charge.

Question 3.
Write ‘T against true and ‘F’ against False in the following statements:

  1. Like charges attract each other.
  2. A charged glass rod attract a charged plastic straw.
  3. Lightning conductor cannot protect a building from lightning.
  4. Earthquakes can be predicted in advance.

Answer:

  1. False
  2. True
  3. False
  4. False.

Question 4.
Sometimes, a crackling sound is heard while taking off sweater during winters. Explain.
Answer:
This occurs due to electric discharge between sweater and body. Some energy is always released with electric discharge, which in this case is released in the form of a crackling sound.

Question 5.
Explain why a charged body loses its charge if we touch it with our hand.
Answer:
When we touch a charged body, it loses its charge due to the process of earthing. Our body is a good conductor of electricity and transfers the charges to the earth.

Question 6.
Name the scale on which the destructive energy of an earthquake is measured. An earthquake measures 3 on this scale. Would it be recorded by a seismograph? Is it likely to cause much damage?
Answer:
The destructive energy of an earthquake is measured on Richter Scale. The magnitude 3 on this scale can be recorded by a seismograph. Such an earthquake rarely causes damage.

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Question 7.
Suggest three measures to protect ourselves from lightning.
Answer:
Three measures to protect from lightning:

  1. Find a safe place like a house or a building. If travelling by a bus or by a car, stay inside with windows and doors of the vehicle shut.
  2. If outside, take shelter under shorter trees. Stay away from tall trees and poles. Do not lie on the ground but sit placing your hands on your knees, with your head between the hands.
  3. If inside, avoid bathing, unplugging electric appliances like TV, computer and switching off air conditioners.

Question 8.
Explain why a charged balloon is repelled by another charged balloon whereas an uncharged balloon is attracted by another charged balloon?
Answer:
A charged balloon is repelled by another charged balloon because both have the same charge. And we know similar charges repel each other. But a charged balloon attracts an uncharged balloon and lose its own charge to the other balloon.

Question 9.
Describe with the help of a diagram an instrument which can be used to detect a charged body.
Answer:
Electroscope is a device used to detect the presence of charge on an object or body. When the metal strips repel each other, that proves that the body is charged. As repulsion is the sure test to detect if a body carries charge or not.
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Question 10.
List three states in India where earthquakes are more likely to strike.
Answer:
Kashmir, Gujarat and Rajasthan.

Question 11.
Suppose you are outside your home and an earthquke strikes. What precautions would you take to protect yourself?
Answer:
If we are outside and an earthquake strikes, we should take the following precautions:

  1. We should find a clear spot away from buildings, trees and overhead power lines.
  2. If we are in a bus or a car, do not come out. Ask the driver to drive slowly to a clear spot.
  3. Do not come out of bus or car till the tremors stop.

Question 12.
The weather department has predicted that a thunderstorm is likely to occur on a certain day. Suppose you have to go out on that day. Would you carry an umbrella? Explain.
Answer:
During thunderstorm, we should not carry an umbrella. An umbrella can become electrically charged due to lightning. It can be dangerous to life during thunderstorm. Therefore, carrying an umbrella is not proper during thunderstorm.

MP Board Class 8th Science Some Natural Phenomena NCERT Extended Learning – Activities and Projects

Question 1.
Open a water tap. Adjust the flow so that if forms a thin stream. Charge a refill. Bring it near the water stream. Observe what happens. Write a short report on the activity.
Answer:
Do yourself.

Question 2.
Make your own charge detector. Take a paper strip roughly 10 cm x 3 cm. Give it a shape as shown in Fig 15.2. Balance it on a needle. Bring a charged body near it. Observe what happens. Write a brief report, explaining its working.
MP Board Class 8th Science Solutions Chapter 15 Some Natural Phenomena 2
Answer:
Do yourself.

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Question 3.
This activity should be performed at night. Go to a room where there is a fluorescent tube light. Charge a balloon. Switch off the tube light so that the room is completely dark. Bring the charged balloon near the tube light. You should see a faint glow. Move the balloon along the length of the tube and observe how glow changes.
Caution: Do not touch the metal parts of the tube or the wires connecting the tube with the mains.
Answer:
Do yourself.

Question 4.
Find out if there is an organisation in your area which provides relief to those suffering from natural disaster. Enquire about the type of help they render to the victims of earthquakes. Prepare a brief report on the problems of the earthquake victims.
Answer:
Several NGOs extend help in time of natural disaster. These organisations provide relief to the victims with food packets, blankets, water bottles etc. They help government in their rehabilitation.

MP Board Class 8th Science Some Natural Phenomena NCERT Additional Important Questions

A. Short Answer Type Questions

Question 1.
Name any three natural phenomena.
Answer:
Earthquakes, cyclones and lightning.

Question 2.
What is static electricity?
Answer:
The electrical charge generated by rubbing is called static electricity because these charges do not move.

Question 3.
What happens when a charged eraser is brought close to charged balloon?
Answer:
They would attract each other because there is attraction between opposite charges.

Question 4.
What is earthing?
Answer:
The process of transfer of charges from a charged object to the earth is called earthing.

Question 5.
What is an earthquake?
Answer:
An earthquake is the sudden shaking of the earth which lasts for a very short time.

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Question 6.
What happens when earthquake occurs?
Answer:
The earthquake causes immense damage to buildings, bridges, dams and people. There can be great loss of life and property. The earthquake can cause floods, landslides and tsunamis. Thousands of people may lose their lives.

B. Long Answer Type Questions

Question 7.
What did Ancient Greeks know about amber?
Answer:
Ancient Greeks knew as early as 600 BC that a resin names amber, when rubbed with fur, acquired some properties, which attracted objects with lightweight towards it. They knew that if amber is rubbed for longer period, it produced sparks as seen in sky during thunderstorm.

Question 8.
How does electrical discharge take place in clouds?
Answer:
During thunderstorms the negative charges get accumulated near the clouds and positive charges accumulate near the ground. When these negative and positive charges meet, electrical discharge takes place between clouds and grounds. It produces a huge amount of energy which is released in the form of lightning and thunder.

Question 9.
What precautions should we take to secure ourselves from lightning stroke during thunderstorm when we are in our homes?
Answer:
Following precautions should be taken while in house:

  • We should not use wired phone.
  • Electrical appliances should be plugged off.
  • We should not bathe in running water.

Question 10.
How would you protect yourself when an earthquake strikes?
Answer:
In the event that an earthquake does strike, we can take the following steps to protect ourselves:

If we are at home:
Take shelter under a table and stay there till shaking stops.
Stay away from tall and heavy objects that may fall on you.
If we are in bed, do not get up. Protect our head with a pillow.

If we are outdoors:
Find a clear spot, away from buildings, trees and overhead power lines. Drop to the ground.
If we are in a car or a bus, do not come out. Ask the driver to drive slowly to a clear spot. Do not come out until the tremors stop.

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी (लोककथा, मनमोहन मदारिया)

हंसिनी की भविष्यवाणी पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

हंसिनी की भविष्यवाणी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंत्री ने राजा को क्या सलाह दी?
उत्तर:
मंत्री ने निस्संतान राजा को किसी होनहार बालक को गोद लेने की सलाह दी।

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प्रश्न 2.
राजा का चुनाव करना क्यों आवश्यक था? (M.P. 2011)
उत्तर:
राजा की मृत्यु हो गई थी। राजकाज चलाने वाला कोई नहीं था। इसलिए राजा का चुनाव करना आवश्यक था।

प्रश्न 3.
मंत्री जी सरोवर किनारे क्यों जाते थे?
उत्तर:
मंत्रीजी को जब कोई गहरी बात सोचनी होती थी तो वे सरोवर के किनारे चले जाते थे।

प्रश्न 4.
हंसिनी ने प्रजा को राज स्थापित करने का कौन-सा उपाय बताया?
उत्तर:
जिसका देश है, उसी प्रजा को राजकाज सौंपने का उपाय हंसिनी ने बताया।

हंसिनी की भविष्यवाणी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंत्री जी क्यों उदास थे?
उत्तर:
देश के राजा निसंतान चल बसे थे। तब राजा किसे चुना जाए, इसी फिक्र में मंत्रीजी उदास थे।

प्रश्न 2.
मंत्री जी ने देश का राजा चुनने की समस्या, किस प्रकार हल की?
उत्तर:
मंत्री ने एक विचारसभा की स्थापना की। उसमें तीन सौ आदमी थे। ये आदमी प्रजा ने चुने थे। एक लाख आबादी में से एक आदमी चुना गया था। इस विचारसभा में जाने-माने व्यक्ति थे। तीन सौ आदमियों ने अपना एक नेता चुना। वह देश का मुखिया हुआ। उसने विचार सभा में से चार आदमी और चुन लिए वे सब मिलकर देश का राजकाज चलाने लगे। इक्त मकार मंत्रीजी ने देश का राजा चुनने की समस्या हल कर ली।

प्रश्न 3.
नए ढंग के राज्य से क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
नए ढंग के राज्य से देश का राजकाज ठीक ढंग से चलने लगा। यह प्रजा के लिए बड़ा हितकारी हुआ। प्रजा पहले से भी अधिक सुखी और धनी हो गई। जिसका देश था, उसी को राज्य मिल गया।

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प्रश्न 4.
किसने किससे कहा?

  1. ‘भगवान नहीं चाहते कि इस देश के सिंहासन पर मेरे वंश का राज रहे।’
  2. अरे! तुझे नहीं मालूम? देश के राजा नहीं रहे।
  3. हाँ, यही न्याय की बात है। मंत्री जी को चाहिए कि वह प्रजा के हाथ में राज-काज सौंप दें।
  4. अरे तूने सुना, अपने देश में प्रजा का ही राज कायम हो गया है?

उत्तर:

  1. राजा ने मंत्री से कहा।
  2. हंस ने हंसिनी से कहा।
  3. हंसिनी ने हंस से कहा।
  4. हस ने हंसिनी से कहा।

हंसिनी की भविष्यवाणी भाव-विस्तार पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों का भाव-विस्तार कीजिए –

प्रश्न 1.
मैं भगवान की मरजी के खिलाफ काम नहीं करना चाहता।
उत्तर:
देश के राजा के कोई संतान नहीं थी। राजा बूढ़ा हो चला था। मंत्रीजी ने उसे किसी होनहार बालक को गोद लेने की सलाह दी ताकि उनके बाद उसे राजा बनाया जा सके। इस पर राजा ने कहा कि मैं भगवान की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करूँगा, क्योंकि यदि भगवान यह चाहता कि उसके वंश का राज कायम रहे तो भगवान उसे संतान अवश्य देते।

किन्तु भावान नहीं चाहते कि देश पर उसका वंश राज करे इसलिए उन्होंने मुझे निस्संतान रखो। भगवान की इच्छा के विरुद्ध कार्य करना सर्वथा अनुचित होता है। उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने से मन अशांत रहता है। हानि होने का अंदेशा बना रहता है। ईश्वर की मरजी के विरुद्ध कार्य करना धर्म के विरुद्ध है। अतः ईश्वर की मरजी के बिना कार्य नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘आखिरी वक्त तो मुझ से एक न्याय का काम हुआ? ईश्वर दूसरे देश बालों को भी ऐसी ही समझ दे।’
उत्तर:
राजा के मंत्री पद पर कार्य करते हुए, राजा की आज्ञा का पालन करते हुए प्रजा के हित अवहेलना करके, प्रजा पर अत्याचार और अन्याय किए। उनके हितों का बिलकुल ध्यान नहीं रखा परंतु जीवन के अंतिम समय में जिस प्रजा का देश है, उसी को उसका राज सौंपकर मैंने एक तो न्याय का काम किया है। जैसे इस देश में प्रजा का राज स्थापित हुआ है, ऐसी समझ भगवान दूसरे देश वालों को भी दे। दूसरे शब्दों में, दूसरे देशों में भी प्रजातंत्र की स्थापना हो।

हंसिनी की भविष्यवाणी भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए – (M.P. 2009)

  1. स्वर्ग सिधार जाना।
  2. कानों में भनक पड़ना।
  3. हँसी खेल न होना।

उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
साधारण, बूढ़ा, हित, आसान, मालिक, धनी।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कर नाम लिखिए –
राज-सिंहासन, राज-काज, हित-अनहित, हंस-हंसिनी, नील गगन, यथा शक्ति।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी img-3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर यथास्थान विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए – (M.P. 2012)
मंत्री को फिक्र हुई अब कौन राज काज संभाले कौन राजा बने ऐसा चतुर आदमी कहाँ मिले कैसे मिले मंत्री को कुछ सूझ नहीं रहा था क्या करें राजा का चुनाव साधारण काम तो नहीं राजभर की जनता के हित-अनहित का सवाल था कहीं किसी गलत आदमी को राजा चुन बैठे तो राज बरबाद हो सकता था मंत्री को यह सवाल नामुमकिन जान पड़ने लगा?
उत्तर:
मंत्री को फिक्र हुई, अब कौन राज काज सँभाले? कौन राजा बने? ऐसा चतुर आदमी कहाँ मिले, कैसे मिले? मंत्री को कुछ सूझ नहीं रहा था। क्या करें? राजा का चुनाव साधारण काम तो नहीं? राजभर की जनता के हित-अनहित का सवाल था। कहीं किसी गलत को राजा चुन बैठे, तो राज बरबाद हो सकता था। मंत्री को यह सवाल नामुमकिन जान पड़ने लगा।

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प्रश्न 5.
उदाहरण के अनुसार ‘तंत्र’ शब्द जोड़कर चार नए शब्द बनाइए –
प्रजा + तंत्र = प्रजातंत्र
उत्तर:

  1. स्व + तंत्र = स्वतंत्र
  2. राज + तंत्र = राजतंत्र
  3. पर + तंत्र = परतंत्र
  4. लोक + तंत्र = लोकतंत्र

हंसिनी की भविष्यवाणी योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
हंस और हंसिनी की लोककथा बाल-सभा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
अपने परिवेश में प्रचलित किसी लोक कथा की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
पशु-पक्षियों के वार्तालाप से प्राप्त बोल कथाओं का संकलन कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
हमारे देश में भी प्रजातंत्र है। लोक सभा और विधान सभा के सदस्यों की संख्या पता कीजिए और उनके अधिभारों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

हंसिनी की भविष्यवाणी परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1.
मंत्री ने राजा को सलाह दी कि –
(क) वह किसी बालक को गोद ले लें।
(ख) वह किसी बालक को अपना उत्तराधिकारी बना दें।
(ग) वह किसी मंत्री को राजकाज सौंप दें।
(घ) वह किसी को भी अपना राजसिंहासन न सौंपें ।
उत्तर:
(क) वह किसी बालक को गोद ले लें।

प्रश्न 2.
मंत्री ने राजा को किसी बालक को गोद लेने की सलाह दी, क्योंकि –
(क) राजा बूढ़े हो गए थे
(ख) राजा निस्संतान थे
(ग) राजा के केवल लड़की थी
(घ) राजा को दूसरे राजा से खतराथा
उत्तर:
(ख) राजा निस्संतान थे।

प्रश्न 3.
राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था क्योंकि –
(क) मंत्री को अपना पद जाने का सवाल था
(ख) जनता के हित-अहित का सवाल था
(ग) राज्य की रक्षा का सवाल था
(घ) राजा के परिवार का सवाल था।
उत्तर:
(ख) जनता के हित-अहित का सवाल था।

प्रश्न 4.
बातचीत की आवाज आ रही थी –
(क) महल के पीछे से
(ख) सरोवर के किनारे से
(ग) सरोवर के बीच से
(घ) सरोवर के पेड़ों के पीछे से
उत्तर:
(ग) सरोवर के बीच से।

प्रश्न 5.
वाह! यह छोटी-सी बात कैसे हुई? किसने कहा?
(क) मंत्री ने
(ख) राजा ने
(ग) हंसिनी ने
(घ) हंस ने
उत्तर:
(घ) हंस ने।

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प्रश्न 6.
‘अब दूसरे देशों में भी ऐसा ही राज कायम होगा’ में किस राज की बात की गई है?
(क) तानाशाही राज की
(ख) राजा के राज की
(ग) प्रजा के राज की
(घ) स्वतंत्र राज की
उत्तर:
(ग) प्रजा के राज की।

प्रश्न 7.
हंसिनी ने क्या भविष्यवाणी की?
(क) दूसरे देशों में प्रजातंत्र कायम होने की
(ख) दूसरे देशों में राजतंत्र कायम होने की
(ग) दूसरे देशों में परतंत्र कायम होने की
(घ) दूसरे देशों में भीड़तंत्र कायम होने की।
उत्तर:
(क) दूसरे देशों में प्रजातंत्र कायम होने की।

प्रश्न 8.
मंत्री ने इस तरह व्यवस्था बनाई कि –
(क) प्रजातंत्र का प्रारंभ हुआ
(ख) राजा का चुनाव करना आसान हो गया
(ग) राज्य में राजतंत्र पुनःस्थापित हो गया
(घ) मंत्री आसानी से राजा बन गया
उत्तर:
(क) प्रजातंत्र का प्रारंभ हुआ।

प्रश्न 9.
मंत्री को कुछ सूझ नहीं रहा था क्योंकि –
(क) राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था
(ख) उसको अपना पद जाने का भय था
(ग) उसे किसी और के पदासीन होने की आशंका थी
(घ) उसे राज्य से निर्वासित होने का डर सता रहा था।
उत्तर:
(क) राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. ‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ ………. है। (लोककथा/वेदकथा)
  2. ‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ के लेखक हैं ……….। (उदयशंकर भट्ट/मनमोहन मदारिया)
  3. ………. का मालिक तो प्रजा ही है। (राज/राजा)
  4. जिसका यह देश है, उसको ही इसका ………. सँभालने दिया जाए। (शासन/राजकाज)
  5. मनमोहन मदारिया का साहित्य ………. है। (समाजोपयोगी बालोपयोगी)

उत्तर:

  1. लोककथा
  2. मनमोहन मदारिया
  3. राज
  4. राजकाज
  5. समाजोपयोगी।

III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –

  1. राजा ने कहा, “भगवान नहीं चाहते कि इस देश के राजसिंहासन पर दूसरे वंश का राज रहे।”
  2. मंत्री ने कहा, “राजन्! आप किसी होनहार बालक को गोद ले लें।”
  3. मंत्रीजी राजकाज से छुटकारा नहीं चाहते थे।
  4. किसी गलत आदमी के राजा बनने से राज बरबाद हो सकता था।
  5. देश में प्रजा के राज को राजतंत्र कहते हैं।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी img-4
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
मंत्री ने राजा को अपना वारिस चुनने की सलाह क्यों दी?
उत्तर:
मंत्री ने राजा को अपना वारिस चुनने की सलाह इसलिए दी कि वह बुड्ढा हो गया था।

प्रश्न 2.
राजा का चुनाव क्या नहीं था?
उत्तर:
राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था।

प्रश्न 3.
मंत्री ने किसकी बात कान लगाकर सुनी?
उत्तर:
मंत्री ने हंस और हंसिनी की वात कान लगाकर सुनी।

प्रश्न 4.
हंस ने न्याय की क्या बात कही?
उत्तर:
हंस ने यह न्याय की बात कही, “देश की असल मालिक तो प्रजा है, देश उसका ही है।”

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प्रश्न 5.
मंत्री ने संतोष की साँस क्यों ली?’
उत्तर:
मंत्री ने संतोष की साँस ली; क्योंकि आखिरी वक्त में उससे एक न्याय का काम हुआ था।

हंसिनी की भविष्यवाणी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंत्री ने बूढ़े राजा को किसी बालक को गोद लेने की सलाह क्यों दी?
उत्तर:
बूढ़े राजा निस्संतान थे। मंत्री ने राजा को किसी बालक को गोद लेने की सलाह इसलिए दी, ताकि उनके बाद उस बालक को राजकाज दिया जा सके।

प्रश्न 2.
राजा ने बालक को गोद लेने से इनकार क्यों कर दिया?
उत्तर:
राजा समझता था किसी बालक को गोद लेना भगवान की मरजी के खिलाफ होगा।

प्रश्न 3.
मंत्री राजकाज से छुटकारा क्यों पाना चाहता था?
उत्तर:
मंत्री राजकाज से छुटकारा पाना चाहता था; क्योंकि मंत्री बहुत बूढ़ा हो गया था।

प्रश्न 4.
सरोवर में हंस-हंसिनी किस संबंध में बातें कर रहे थे?
उत्तर:
सरोवर में हंस-हंसिनी मंत्री और देश के राजकाज के संबंध में बातें कर रहे थे।

प्रश्न 5.
हंसिनी ने राजकाज किसे सौंपने का सुझाव दिया?
उत्तर:
हंसिनी ने देश की असल मालिक प्रजा को राजकाज सौंपने का सुझाव दिया।

प्रश्न 6.
मंत्रीजी ने राज की किस पद्धति का आरंभ किया? उसे किस नाम से : जाना जाता है?
उत्तर:
मंत्रीजी द्वारा प्रारंभ की गई राज-पद्धति को प्रजातंत्र के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 7.
राजा क्या था?
उत्तर:
राजा बूढ़ा और निस्संतान था।

प्रश्न 8.
मंत्री की चिंता कैसे दूर हुई?
उत्तर:
मंत्री की चिन्ता हंस-हंसिनी के परस्पर बातचीत को सुनने से दूर हुई।

प्रश्न 9.
दूसरे देशों में भी किस ढंग का राज्य फैला?
उत्तर:
दूसरे देशों में भी प्रजातंत्र का राज्य फैला।

प्रश्न 10.
हंसिनी ने राजकाज किसे सौंपने का सुझाव दिया? (M.P. 2009)
उत्तर:
हंसिनी ने राजकाज प्रजा को सौंपने का सुझाव दिया।

हंसिनी की भविष्यवाणी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा ने किसी बालक को गोद न लेने के लिए क्या तर्क दिए?
उत्तर:
राजा ने किसी बालक को गोद न लेने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए –

  1. भगवान नहीं चाहते कि देश के राजसिंहासन पर मेरे वंश का राज रहे।
  2. मैं भगवान की मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं करूँगा। मैं भगवान की मरजी के खिलाफ कुछ नहीं करना चाहता।

प्रश्न 2.
हंसिनी ने राजा चुनने के प्रश्न को कैसे हल कर दिया?
उत्तर:
हंसिनी ने राजा चुनने के प्रश्न को बड़ी सरलता से हल कर दिया। उसने – हंस से कहा कि जो देश का असली मालिक है, उसे राजकाज सौंप दो। देश की असली मालिक प्रजा है और प्रजा को ही उसका राजकाज सौंप देना चाहिए।

प्रश्न 3.
हंसिनी ने राजकाज प्रजा को सौंपने की क्या योजना बताई? (M.P. 2012)
उत्तर:
हंसिनी ने राजकाज प्रजा को सौंपने की निम्नलिखित योजना बताई-प्रजा अपने में से कुछ व्यक्तियों को चुन ले। वे प्रजा की ओर से राजकाज सँभाले। उन व्यक्तियों में से एक मुखिया चुन लें और वह मुखिया चार-पाँच व्यक्तियों को चुन ले। वे सब मिलकर काम करें। यदि ठीक काम न करें तो प्रजा उन्हें हटाकर दूसरे आदमी चुन लें।

प्रश्न 4.
मंत्री की क्या परेशानी थी?
उत्तर:
मंत्री की यह परेशानी थी कि वह राजा का चुनाव कैसे करे, क्योंकि राजा का चुनाव आसान काम नहीं था। यह पूरे देश की जनता के हित-अनहित का प्रश्न था, इसके लिए उसने कुछ चतुर-सयाने लोगों से सलाह ली। लेकिन किसी ने सही सलाह नहीं दी थी। गलत आदमी को राजा बनाने से पूरा देश बरबाद हो सकता था।

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प्रश्न 5.
विचार-सभा बनने से क्या हुआ?
उत्तर:
विचार-सभा बनने से देश में नए ढंग का राज होने लगा। इससे प्रजा को बहुत अधिक लाभ हुआ। प्रजा पहले कभी उतनी सुखी और धनी नहीं रही थी, जितनी इस नए ढंग के राज में सुखी रही।

हंसिनी की भविष्यवाणी लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
मनमोहन मदारिया का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
समाज-कल्याण से निरंतर रूप से जुड़े मनमोहन मदारिया का जन्म मध्य प्रदेश के बोहानी नरसिंहपुर गाँव में 3 सितंबर, 1929 को हुआ। आपने बी.एस.सी., एम.ए. और एल.एल.बी. तक शिक्षा प्राप्त की। उसके उपरान्त आप दैनिक अखबारों में संपादक के कार्य से जुड़े। विज्ञान और साहित्य की समझ और पत्रकारिता की समझ के कारण ही आप साहित्य-सृजन की ओर मुड़ पड़े। साहित्य-सृजन के क्षेत्र में आपने कहानी, उपन्यास, संस्मरण, व्यंग्य और बालोपयोगी साहित्य की रचना की। आपने मध्य प्रदेश शासन के समाज-कल्याण विभाग से अवकाश ग्रहण किया। आज भी आप साहित्य-सृजन के क्षेत्र में सक्रिय हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ:
मदनमोहनजी ने अपनी साहित्य रचनाओं में अपने विचार, अनुभव और समकालीन सोच में सामंजस्य को स्थान दिया है। यह सामंजस्य उनकी रचनाओं से स्पष्ट झलकता है। जमीन से जुड़ाव और सामाजिक समस्याओं से साक्षात्कार ने उनकी रचनात्मकता को व्यापक फलक प्रदान किया है। यही कारण है कि उन्होंने विविध विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है।

रचनाएँ:

  • कहानी-संकलन – एक वासंती रात, समुद्र के किनारे।
  • उपन्यास – चार दीवारी, मिसेज लाल।
  • संस्मरण-संग्रह – वे सहचर आत्मा के।
  • व्यंग्य-संग्रह – मेरी प्रिय व्यंग्य रचनाएँ।
  • एकांकी-संग्रह – सूरज की धूप।
  • बालोपयोगी साहित्य – गुदड़ी का लाल (उपन्यास), आज की लोककथाएँ, बाल, कथाएँ आदि।

भाषा-शैली:
मनमोहन मदारिया की भाषा-शैली सहज, सरल, प्रांजल खड़ी बोली है। उनकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। उनकी भाषा में व्यंग्य के छींटे भी हैं। बालोपयोगी साहित्य की भाषा सहज और स्वाभाविक है। वे नवसाक्षरों हेतु उपयोगी साहित्य-सृजन में सिद्धहस्त हैं। समाज कल्याण विभाग से संबद्धता और संपादन कार्य ने उन्हें समाजोपयोगी सृजन का विस्तृत क्षेत्र प्रदान किया है।

हंसिनी की भविष्यवाणी पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
मनमोहन मदारिया ने इस कहानी में लोककथा शैली को अपनाते हुए प्रजातंत्र शासन-पद्धति की प्रारंभिक अवधारणा को एक कल्पना कथा के द्वारा प्रस्तुत किया है। कहानी का सार इस प्रकार है –

एक देश के राजा को कोई संतान नहीं थी। उस बूढ़े राजा को मन्त्री ने किसी योग्य बालक को गोद लेने की सलाह दी परंतु राजा ने इस सलाह को यह कहकर मानने से इनकार कर दिया कि भगवान नहीं चाहते कि इस देश के राजसिंहासन, पर मेरे वंश का राज रहे। मैं भगवान की इच्छा के विपरीत कार्य नहीं करना चाहता। कुछ समय बाद राजा की मृत्यु हो गई। मंत्रीजी बड़े चिंतित हुए कि अब राज-काज कौन चलाये। कौन राजा बने? वह स्वयं भी बहुत वृद्ध थे। वे मरने से पहले किसी चतुर आदमी के हाथ में राज-काज सौंपना चाहते थे।

उन्होंने कई लोगों की सलाह ली, पर कोई ठीक से राय नहीं दे सका। – एक दिन मंत्रीजी महल के पीछे सरोवर के किनारे टहल रहे थे और नया राजा चुनने के संबंध में सोच रहे थे कि वह समस्या अचानक सुलझ गई। सरोवर के किनारे टहलते हुए उन्हें हंस-हंसिनी की बातें सुनाई पड़ीं जो मंत्रीजी और नया राजा चुनने के संबंध में ही बातें कर रहे थे। हंसिनी ने सुझाव दिया कि जिसका राज-काज है, उसे ही सँभालने दिया जाए। हंस ने कहा, देश की असल मालिक तो प्रजा है, देश उसका ही है। हंसिनी ने कहा-न्याय की बात तो यही है कि मंत्रीजी को राजकाज प्रजा को सौंप देना चाहिए। इसके बाद हंसिनी ने प्रजा को राज-काज सौंपने की सारी प्रक्रिया समझाई।

हंसिनी की बातों को सुनकर मंत्रीजी को उपाय सूझ गया। उन्होंने एक विचार-सभा स्थापित की। उसमें तीन सौ आदमी थे। वे देश की तीन करोड़ जनता द्वारा चुने गए थे। उनमें से एक आदमी को नेता चुना गया। वह देश का मुखिया हुआ। उस मुखिया ने विचार-सभा में से चार आदमी और चुन लिए। वे मिलकर राजकाज चलाने लगे। यह बंदोबस्त प्रजा के लिए बड़ा हितकारी हुआ ! प्रजा नए ढंग के राज में पहले से अधिक धनी और सुखी हुई।

पुराने मंत्री अपने महल में आराम से रहने लगे। एक दिन जब मंत्रीजी सरोवर की ओर विहार के लिए गए तो उन्होंने हंस-हंसिनी को बातें करते सुना। हंस हंसिनी से कह रहा था कि अपने देश में प्रजा का ही राज स्थापित हो गया है। हंसिनी ने कहा, इसमें आश्चर्य की क्या बात है? आज नहीं तो कल यह तो डोने वाला ही था। अब दूसरे देशों में भी ऐसा ही राज कायम होगा। हंस ने कहा, भगवान करे, तेरी बात सच हों। मंत्री ने उनकी बातें सुनकर संतोष की साँस ली और मन ही मन कहा, चलो आखिरी वक्त में मुझसे एक न्याय का काम हुआ। आगे चलकर हंसिनी की भविष्यवाणी सच हुई। दूसरे देशों में भी उस ढंग का राज फैला। इस प्रकार के प्रशासन को आज प्रजातंत्र के नाम से जाना जाता है।

हंसिनी की भविष्यवाणी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
कुछ दिनों बाद राजा चल बसा। मंत्रीजी को फिक्र हुई, अब कौन राज-काज सँभाले? कौन राजा बने? वह खुद बहुत बूढ़े थे। राज-काज से अब वह भी छुटकारा चाहते थे। मगर इसके पहले किसी चतुर आदमी के हाथ में वह राज-काज सौंप देना चाहते थे। ऐसा चतुर आदमी आखिर कहाँ मिले, कैसे मिले? मंत्री इसी सोच में थे। उन्होंने कुछ चतुर-सयाने लोगों से सलाह ली पर कोई ठीक राय न दे सका। मंत्री सब तरफ से निराश हो गए। कुछ सूझ नहीं रहा था, क्या करें? राजा का चुनाव साधारण काम तो था नहीं राज्यभर की जनता के हित-अनहित का सवाल था। कहीं किसी गलत आदमी को राजा चुन बैठे तो राज बरबाद हो सकता था। मंत्री को यह सवाल नामुमकिन जान पड़ने लगा। (Pages 80-81)

शब्दार्थ:

  • चल बसा – मृत्यु होना।
  • फ्रिक – चिंता।
  • चतुर – चालाक, योग्य।
  • सयाने – समझदार।
  • राय – सलाह।
  • बरबाद – समाप्त।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश मनमोहन मदारिया द्वारा रचित कहानी ‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ से उद्धृत है। इस गद्यांश में मंत्री नए राजा के चुनाव को लेकर चिंतित है। उसके सामने नए राजा का चुनाव करना एक समस्या बन गया है। इस पर प्रकाश डालते हुए लेखक ने कहा है –

व्याख्या:
कुछ समय के बाद बूढ़े निस्संतान राजा की मृत्यु हो गई। संतानहीन होने के कारण उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उसकी मृत्यु के बाद मंत्री को चिंता हुई कि अब राज्य का कार्य कौन सँभालेगा? कौन राजा बने? मंत्री स्वयं भी बहुत बूढ़ा हो गया था। वह राजकार्य चलाने में असमर्थ था। मंत्री तो स्वयं अब राजकार्य से मुक्त होना चाहता था। मंत्री राजकार्य से मुक्ति पाने से पहले किसी योग्य व्यक्ति को राजकाज दे देना चाहता था। उन्हें इस बात की चिंता हो रही थी कि ऐसा योग्य व्यक्ति उन्हें कहाँ मिलेगा। उसे कहाँ खोजा जाए और कैसे खोजा जाए। मंत्रीजी इसी सोच-विचार में लगे हुए थे। उन्होंने राज्य के कुछ योग्य और समझदार लोगों से इस संबंध में विचार-विमर्श किया। किंतु कोई भी उचित सलाह नहीं दे सका।

मंत्री सब ओर से निराश हो गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करें और कैसे राजा का चुनाव करें। राजा का चुनाव करना कोई साधारण काम नहीं था। राजा के चुनाव के साथ राज्य की समूची जनता की भलाई और बुराई का प्रश्न जुड़ा था। यदि योग्य व्यक्ति राजा बना, तो वह जनता की भलाई, उसके कल्याण के लिए कार्य करेगा और यदि राजा अयोग्य चुना गया, तो जनता पर अन्याय, अत्याचार करेगा। मंत्री को डर था कि यदि उसने राजा के रूप में गलत व्यक्ति का चुनाव कर दिया, तो सारा राज्य नष्ट हो जाएगा। मंत्री को योग्य राजा चुनने के प्रश्न का उत्तर मिलना असंभव लग रहा था। उसे लगने लगा था कि योग्य राजा का चुनाव करना अत्यंत मुश्किल है।

विशेष:

  1. मंत्री की चिंता को व्यक्त किया गया है।
  2. विचारात्मक शैली है।
  3. सरल, सुबोध खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मंत्री को क्यों चिंता सता रही थी?
उत्तर:
राजा की मृत्यु हो चुकी थी। राज्य का मंत्री इसलिए चिंतित था कि राजा निःसंतान था। उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। मंत्री को चिंता सता रही थी कि वह अब किसे राजा बनाए, जो राज्य का कार्यभार सँभाल सके।

प्रश्न (ii)
मंत्री स्वयं राजा क्यों नहीं बनना चाहता था?
उत्तर:
मंत्री ईमानदार और स्वामिभक्त था। दूसरे वह बहुत बूढ़ा हो चुका था। समस्त राज-काज संलना उसके बस का नहीं था। मंत्री स्वयं राजकाज से छुटकारा चाहता था इसलिए वह स्वयं राजा नहीं बनना चाहता था।

प्रश्न (iii)
मंत्री ने राजा चुनने के लिए क्या प्रयास किया?
उत्तर:
मंत्री ने योग्य व्यक्ति को राजा चुनने के लिए राज्य के योग्य और समझदार व्यक्तियों से विचार-विमर्श किया किन्तु कोई भी उन्हें उचित सलाह नहीं दे सका।

प्रश्न (iv)
राजा का चुनाव साधारण काम क्यों नहीं था?
उत्तर:
राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था, क्योंकि इसके साथ राज्य की प्रजा के हित-अहित का प्रश्न जुड़ा था। राज्य की सुरक्षा का भी प्रश्न था । अयोग्य व्यक्ति राजा बन जाए, तो राज्य बरबाद हो सकता था।

गद्य पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मंत्री कैसा राजा ढूँढना चाहता था और क्यों?
उत्तर:
मंत्री राज्य के लिए योग्य व्यक्ति ढूँढना चाहता था, क्योंकि वह चाहता था कि यदि योग्य व्यक्ति राजा बना, तो वह राज्य की प्रजा के हितों का ध्यान रखेगा और राज्य भी सुरक्षित रहेगा।

प्रश्न (ii)
मंत्री सब तरफ से निराश क्यों हो गया?
उत्तर:
मंत्री चतुर व्यक्ति के हाथ में सारा राजकाज सौंप देना चाहते थे। उसने योग्य व्यक्ति की खोज के लिए राज्य के विद्वानों से विचार-विमर्श किया किंतु कोई भी व्यक्ति उचित सलाह नहीं दे सका। इसलिए मंत्री निराश हो गया।

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प्रश्न 2.
हंस-हंसिनी की इन बातों से मंत्री को राह सूझ गई। उनकी एक बड़ी फिक्र मिट गई। उन्होंने हंस-हंसिनी की बातों के मुताबिक काम किया। देश में एक विचारसभा कायम की गई। उसमें तीन सौ आदमी थे। ये आदमी प्रजा ने चुने थे। देश की आबादी तीन करोड़ थी। एक लाख आबादी में से एक आदमी चुना गया था। इस तरह विचारसभा में प्रजा के जाने-माने आदमी थे। विचारसभा के तीन सौ आदमियों ने अपना एक नेता चुना।

वह आदमी देश का मुखिया हुआ, उसने ही पुराने राजा का काम सँभाला। अपनी मदद के लिए उसने विचारसभा में से ही चार आदमी और चुन लिए। वे पाँच लोग मिल-जुलकर राज-काज चलाने लगे। उनके कामों पर विचारसभा की निगरानी रहती थी। विचारसभा राज चलाने के कानून भी बनाती थी। इस तरह देश में नएं ढंग से राज होने लगा। यह बंदोबस्त प्रजा के लिए बड़ा हितकारी हुआ। प्रजा पहले कभी उतनी सुखी और धनी नहीं रही थी जितनी इस नए ढंग के राज में सुखी रही। (Page 82)

शब्दार्थ:

  • राह सूझना – रास्ता दिखाई देना।
  • फ्रिक – चिंता।
  • मुताबिक – के अनुसार।
  • कायम – स्थापना, स्थापित करना।
  • आबादी – जनसंख्या।
  • जाने-माने – प्रसिद्ध, योग्य।
  • निगरानी – देख-रेख।
  • बंदोबस्त – व्यवस्था।
  • हितकारी – कल्याणकारी।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश मनमोहन मदारिया द्वारा रचित कहानी ‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ से उद्धृत है। इस गद्यांश से प्रजातंत्र पद्धति की प्रारंभिक अवधारणा को प्रस्तुत करने के साथ-साथ उसके सफल होने का भी वर्णन किया गया है।

व्याख्या:
हंस-हंसिनी के पारस्परिक वार्तालाप को सुनकर राजा की खोज के लिए मंत्री को रास्ता समझ में आ गया। उसकी एक बहुत बड़ी चिंता समाप्त हो गई। मंत्री ने हंस-हंसिनी की बातों के अनुसार प्रजा का राज्य प्रजा को सौंपने का कार्य आरंभ कर दिया। उन्होंने देश में एक विचारसभा की स्थापना की। उस विधारसभा में तीन सौ व्यक्ति थे। ये तीन सौ व्यक्ति प्रजा ने स्वयं चुने थे। देश की कुल जनसंख्या तीन करोड़ थी। इस प्रकार एक लाख की जनसंख्या में से एक आदमी चुना गया था। दूसरे शब्दों में, विचारसभा का गठन प्रजा ने अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया। विचारसभा के सदस्यों की संख्या जनसंख्या पर आधारित थी।

एक लाख व्यक्तियों का एक प्रतिनिधि था। विचारसभा के तीन सौ आदमियों ने अपना एक नेता चुना। वह नेता देश का मुखिया हुआ। उस मुखिया ने ही पुराने राजा का कार्य सँभाल लिया। उसने अपनी सहायता के लिए विचारसभा से ही चार व्यक्तियों का चुनाव कर लिया। वे पाँच लोग मिल-जुलकर राज्य का राजकाज चलाने लगे। उनके द्वारा किए गए और किए जाने वाले सभी काम पर विचारसभा देख-रेख करती थी।

विचारसभा ही देश का प्रशासन सुचारु रूप से चलाने के नियम-उपनियम बनाती थी। इस प्रकार देश में नई शासन-व्यवस्था से राज होने लगा। यह शासन-व्यवस्था देश की प्रजा के लिए बड़ा कल्याणकारी सिद्ध हुआ। इस शासन-व्यवस्था के कारण प्रजा पहले की अपेक्षा अधिक सुखी और धनी थी। इस नए ढंग की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में प्रजा अत्यंत सुखी रही।

विशेष:

  1. प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था की प्रारंभिक अवधारणा को प्रस्तुत किया गया है।
  2. विचारात्मक शैली है।
  3. भाषा सहज, सरल, उर्दू शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
हंस-हंसिनी की बातों से मंत्री को कौन-सी राह सूझ गई?
उत्तर:
मंत्रीजी देश के लिए योग्य राजा चुनने की चिंता से ग्रस्त थे। उसे राजा के योग्य व्यक्ति नहीं मिल रहा था। हंस-हंसिनी की पारस्परिक बातों से मंत्री को रास्ता मिल गया कि देश की असली मालिक प्रजा है और प्रजा को देश का राजकाज सौंप देना चाहिए। यही न्याय है।

प्रश्न (ii)
मंत्री ने देश की प्रजा को राजकाज सौंपने के लिए क्या किया?
उत्तर:
मंत्री ने देश में एक विचारसभा की स्थापना की। उसमें जनसंख्या के आधार पर जनता को एक प्रतिनिधि चुनकर भेजने को कहा। प्रजा ने अपने तीन सौ प्रतिनिधि चुनकर भेजे। ये सभी देश के जाने-माने व्यक्ति थे। विचारसभा के आदमियों ने अपना एक मुखिया चुना। मुखिया ने उन आदमियों में से चार आदमी चुन लिए। मंत्री ने मुखिया को सारा राजकाज सौंप दिया। वे सब मिलकर राजकाज चलाने लगे।

प्रश्न (iii)
नए ढंग की व्यवस्था से क्या फल हुआ?
उत्तर:
नए ढंग की व्यवस्था से राज में प्रजा का बहुत.हित हुआ। राज में सुख और शांति का वातावरण बना। प्रजा पहले राज की तुलना में अधिक धनी और सुखी हुई।

गद्य पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मंत्री ने किसके मुताबिक कार्य किया और क्यों?
उत्तर:
मंत्री ने हंस-हंसिनी की बातों के मुताबिक कार्य किया क्योंकि उसे देश ‘ की असली मालिक प्रजा को राजकाज सौंपने की बात उचित लगी।

प्रश्न (ii)
पुराने राजा का कार्य किसने सँभाला?
उत्तर:
पुराने राजा का काम विचारसभा में तीन सौ आदमियों द्वारा अपना नेता चुने गए व्यक्ति ने सँभाला।

प्रश्न (iii)
विचारसभा क्या-क्या कार्य करती थी?
उत्तर:
विचारसभा मुखिया उसके सहयोगी के कामों पर निगरानी रखती थी। वह राज चलाने के लिए कानून बनाती थी।

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MP Board Class 8th Science Solutions Chapter 14 Chemical Effects of Electric Current

MP Board Class 8th Science Solutions Chapter 14 Chemical Effects of Electric Current

MP Board Class 8th Science Chemical Effects of Electric Current NCERT Textbook Exercises

Question 1.
Fill in the blanks:
(a) Most liquids that conduct electricity are solutions of ……………, ……………. and ………….
(b) The passage of an electric current through a solution causes ……………. effects.
(c) If you pass current through copper sulphate solution, copper gets deposited on the plate connected to the ………. terminal of the battery.
(d) The process of depositing a layer of any desired metal on another material by means of electricity is called ………..
Answer:
(a) acids, bases, salts
(b) chemical
(c) negative
(d) electroplating.

Question 2.
When the free ends of a tester are
dipped into a solution, the magnetic needle shows deflection. Can you explain the reason?
Answer:
Yes, the solution conducts electricity.

Question 3.
Name three liquids, which when tested in the manner shown in Fig 14.1 may cause the magnetic needle to deflect.
MP Board Class 8th Science Solutions Chapter 14 Chemical Effects of Electric Current 1
Answer:
Tap water, lime water, vinegar or lemon juice.

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Question 4.
The bulb does not glow in the setup shown in Fig. 14.2. List the, possible reasons. Explain your answer.
MP Board Class 8th Science Solutions Chapter 14 Chemical Effects of Electric Current 2
Answer:
If the bulb does not glow it may be because of some reasons like the bulb may be fused. Replaced with a new bulb, if it still does not glow, it shows that the connection of wires may be loose. After tightening connections if still the bulb does not glow, then it is for sure that the solution does not conduct electric current.

Question 5.
A tester is used to check the conduction of electricity through two liquids, labelled A and B. It is found that the bulb of the tester glows brightly for liquid Awhile it glows very dimly for liquid B. You would conclude that:
(i) Liquid A is a better conductor than liquid B.
(ii) Liquid B is abeHer conductor than liquid A.
(iii) both liquids are equally conducting.
(iv) conducting properties of liquid cannot be compared in this manner.
Answer:
(i) Liquid A is a better conductor than liquid B.

Question 6.
Does pure water conduct electricity? If not, what can we do to make it conducting?
Answer:
Pure water does not conduct electricity. To make it conducting we may add to it a little common salt or acid or a base.

Question 7.
In case of any fire, before the firemen use the water hoses, they shut off the main electrical supply for the area. Explain the reason why they do this?
Answer:
If an electric wire or appliance becomes wet, the risk of electrocution increases. Therefore, to ensure safety, the firemen shut off the main electrical supply for the area to extinguish fire due to electric short circuit.

Question 8.
A child staying in the coastal region tests the drinking water and also the sea-water with his tester. He finds that the compass needle deflects more in case of sea-water. Can you explain the reason?
Answer:
Sea-water is better conductor than the drinking water because sea-water contains mineral salts dissolved in it. It is therefore, the compass needle deflects more in case of seawater.

Question 9.
Is it safe for the wireman to carry out electrical repairs during heavy downpour? Explain.
Answer:
No, During heavy downpour, there is a risk of electrocution because impure water is good conductor of electricity.

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Question 10.
Pooja knew that rainwater is as pure as distilled water. So she collected some rainwater in a clean glass tumbler and tested it using a tester. To her surprise she found that the compass needle showed deflection. What could be the reasons?
Answer:
Rainwater is, of course, as good as distilled water but when it passes through atmosphere, it dissolves a lot of dust, dirt and impurities and becomes conducting. So, when Pooja used a tester, its compass showed deflection.

Question 11.
Prepare a list of objects around you that are electroplated.
Answer:
The objects which are electroplated are:

  • Handles and rims of a bicycles
  • Utensils of kitchen
  • Metallic showpieces
  • Metallic containers, buckets
  • bath tubs
  • Artificial jewelery
  • kitchen gas burner.

Question 12.
The process that you saw in Activity 14.7 (NCERT Textbook page no. 178) is used for purification of copper. A thin plate of pure copper and a thick rod of impure copper are used as electrodes. Copper from impure rod is sought to be transferred to the thin copper plate. Which electrode should be attached to the positive terminal of battery and why?
Answer:
Impure copper rod should be attached to the positive terminal of the battery in order to make it anode. This will enable the deposition of copper on thin copper plate which acts as a cathode.

MP Board Class 8th Science Chemical Effects of Electric Current NCERT Extended Learning – Activities

Question 1.
Test the conduction of electricity through various fruits and vegetables, Display your result in a tabular form.
Answer:
Do yourself.

Question 2.
Repeat the Activity 14.7 (Textbook page no. 178) with a zinc plate in place of the copperplate connected to the negative terminal of the battery. Now replace zinc plate with some other metallic object and again repeat the activity. Which metal gets deposited over which other metal? Discuss your findings with your friends.
Answer:
Do yourself.

Question 3.
Find out if there is a commercial electroplating unit in your town. What objects are electroplated there and for what purpose? (The process of electroplating in a commercial unit is much more complex than what we did in Activity 14.7 of textbook. Find out how they dispose off the chemicals they discard.
Answer:
Do yourself.

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Question 4.
Imagine that you are an ‘entrepreneur’ and have been provided a loan by a bank to set up a small electroplating unit. What object you would like to electroplate and for what purpose? (Look meaning of ‘entrepreneur’ in a dictionary).
Answer:
Entrepreneur is a person who makes money by starting or running business, especially when this involves taking financial risks.

Question 5.
Find out the health concerns associated with chromium electroplating. How are people trying to resolve them?
Answer:
Do yourself.

Question 6.
You can make a fun pen for yourself. Take a conducting metal plate and spread a moist paste of potassium iodide and starch. Connect the plate to a battery as shown in Fig. 14.3. Now using the free end of the wire, write a few letters on the paste. What do you see?
MP Board Class 8th Science Solutions Chapter 14 Chemical Effects of Electric Current 3
Answer:
Do yourself.

MP Board Class 8th Science Chemical Effects of Electric Current NCERT Additional Important Questions

A. Short Answer Type Questions

Question 1.
What types of forces do electric charges exert on each other?
Answer:
Unlike charges attract each other referred to as an electric circuit, while like charges repel each other.

Question 2.
What is an electric circuit?
Answer:
The path of an electric current is referred to as an electric circuit.

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Question 3.
How can we check magnetic effects of electric current?
Answer:
We can check magnetic effects of electric current by using magnetic compass.

Question 4.
What is used in CFLs?
Answer:
Mercury is used in CFLs.

Question 5.
Why is it very dangerous to operate an electrical appliance with wet hands?
Answer:
If someone operates electrical appliances with wet hands, there is a chance of getting electrocuted.

B. Long Answer Type Questions

Question 6.
What effect does the current produce when it flows through a conducting solution?
Answer:
The passage of an electric current through a conducting solution causes chemical reactions. As a result, bubbles of gas are formed, deposits of metal on electrodes may be seen and changes of colour of solution may occur, depending on what solutions and electrodes are used. These are some of the chemical effects of the electric current.

Question 7.
What are the different effects of electricity?
Answer:
The different effect of electricity are:

  • Heating effect
  • Chemical effect
  • Magnetic effect.

Question 8.
What is the application of chemical effects of electricity in our daily life?
Answer:
Carrying chemical reactions by the effect of electricity is called chemical effect of electric current.

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक (निबन्ध, आचार्य विनय मोहन शर्मा)

दक्षिण भारत की एक झलक पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

दक्षिण भारत की एक झलक लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तमिलनाडु के निवासियों की दृष्टि में सर्वोपरि क्या है?
उत्तर:
तमिलनाडु के निवासियों की दृष्टि में अपनी भाषा और संस्कृति सर्वोपरि है।

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प्रश्न 2.
‘महाश्वेता’ की छवि कौन धारण करता है? यहाँ महाश्वेता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
महाश्वेता की छवि केरल की स्त्रियाँ धारण करती हैं। यहाँ महाश्वेता का अर्थ है-सरस्वती देवी।

प्रश्न 3.
कन्याकुमारी में कौन-कौन से समुद्रों का मिलन होता है? (M.P. 2011)
उत्तर:
कन्याकुमारी में हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी समुद्रों का मिलन होता है।

प्रश्न 4.
तमिल कवि की तुलना तुलसी काव्य से क्यों की जाती है?
उत्तर:
तमिल कवि ‘कम्बन’ ने भी तुलसी के समान ही ‘कम्बन रामायण’ की रचना की है।

प्रश्न 5.
पार्वती जी का नाम कन्याकुमारी क्यों पड़ा? (M.P. 2010)
उत्तर:
शिव-पार्वती का विवाह होने वाला था। विवाह का मूहूर्त रात में था। पार्वती उनकी खोज में चली गईं। बारात न पहुँचने के कारण वे उदास होकर अपने निवास में लौट आयीं और तभी से उनका नाम कन्याकुमारी पड़ गया।

दक्षिण भारत की एक झलक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आंध्रवासियों का रहन-सहन कैसा है?
उत्तर:
आंध्रवासियों का रहन-सहन साधारण है। स्त्रियाँ खुली साड़ी पहनती हैं। उन्हें अपने बालों को फूलों से सजाने का चाव है। पुरुष धोती पहनते हैं। पीछे लाँग का छोर झंडी की तरह लहराता दिखाई देता है। वे कॉफी पीते हैं और इडली का नाश्ता करते हैं। यहाँ रामायण का बड़ा प्रचार है। स्त्री-पुरुषों में भावुकता अधिक पाई जाती है। वे समय के अनुसार स्वयं को ढालने में सक्षम हैं।

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प्रश्न 2.
तमिल और आंध्रवासियों की भोजन पद्धति में क्या नवीनता है?
उत्तर:
तमिल और आंध्रवासियों की भोजन पद्धति में विशेष अंतर नहीं है। केले के पत्ते पर भात का ढेर, रसम, दाल, तरकारी, दही, चटनी, मोर (तक्र) परोसा जाता है। खाने वाला भात में सब कुछ मिलाकर लंबे लंबे पिंड बनाकर गटकता जाता है। अय्यर (ब्राह्मण) निरामिष भोजी होता है और ब्राह्मणोत्तर को आमिष भोजन से परहेज नहीं है। भात की इडली ‘छोले’ के समान दोसा और उपमा, चटनी और दही के साथ बड़े प्रेम से खाये जाते हैं। भात में शुद्ध देशी घी का प्रयोग होता है।

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार नारी किस तरह भारतीय एकता का प्रतीक बन रही है?
उत्तर:
हिंदी फिल्मों के प्रभाव के कारण आधुनिक महाराष्ट्र, तमिल और केरल नारी की वेशभूषा समान होती जा रही है। सभी स्त्रियाँ एक जैसी साड़ी पहनती हैं, जिसका एक छोर दक्षिण कंधे से होता हुआ पीछे एड़ी से छूता हुआ झूलता है। उसका सर सदा खुला रहने का रिवाज धीरे-धीरे उत्तर के शिक्षित घरों में भी बढ़ रहा है। इस प्रकार लेखक के अनुसार वेशभूषा में भारतीय नारी एकता की प्रतीक बनती जा रही है।

प्रश्न 4.
केरल के गाँवों की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
केरल के गाँवों में भोजन के अंत में जीरे से उबाला हुआ कुनकुना पानी पीने के काम में लाया जाता है। वहाँ रहन-सहन का स्तर ऊँचा है। गरीबों के नारियल के अवयवों से बने घर भी बिलकुल स्वच्छ होते हैं। प्रत्येक घर के आँगन में दस-पाँच नारियल, दो-चार केले, कटहल के पेड़ अवश्य होते हैं। गाँव की प्रत्येक गली साफ-सुथरी होती है। अधिकांश गाँवों में बिजली है। पोस्ट ऑफिस, छोटा दवाखाना और स्कूल हैं। दो-चार गाँवों के बीच हाई स्कूल और बीस-पच्चीस गाँवों के बीच कॉलेज की व्यवस्था है। गाँव-गाँव में हिंदी बोलने वाले हैं।

प्रश्न 5.
चेन्नई में हिंदी प्रचार-सभा क्या-क्या कार्य कर रही है?
उत्तर:
चेन्नई में हिंदी प्रचार-सभा हिंदी की विद्यापीठ का कार्य कर रही है। यहाँ से हिंदी के कई सौ अध्यापक-अध्यापिकाएँ प्रतिवर्ष शिक्षा ग्रहण कर दक्षिण के अनेक स्कूल और कॉलेजों में हिंदी अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। वे दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार का महत्त्वपूर्ण काम कर रही हैं।

दक्षिण भारत की एक झलक भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
‘आमिष’ शब्द में निः उपसर्ग लगाकर ‘निरामिष’ विलोम शब्द बनाया गया है। इसी प्रकार उपसर्गों के प्रयोग से निम्नलिखित के विलोम शब्द लिखिए –
प्रशंसनीय, एकता, सजीव, संस्कृति
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह कर समासों के नाम लिखिए –
तमिलनाडु, अनंत-शयनम्, शताव्दी, चौपाटी, शृंगार-काल।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक img-2

प्रश्न 3.
‘कृष्णा नदी के दर्शन होते हैं।’ वाक्य में ‘दर्शन’ शब्द एकवचन होकर भी बहुवचन की तरह प्रयुक्त हुआ है। हिंदी के ऐसे ही पाँच वाक्य जिसमें बहुवचन के रूप में शब्द का प्रयोग हुआ हो लिखिए।
उत्तर:

  1. अधिकारी ने चेक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।
  2. बीमार वृद्धा के प्राण-पखेरू उड़ गए।
  3. इस मंदिर में भगवान विराजमान हैं।
  4. दुखभरी बातें सुनते ही महिला की आँखों से आँसू बह निकले।
  5. सुमन के बाल लंबे हैं।

दक्षिण भारत की एक झलक भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
प्रकृति पर विजय पाकर ही मनुष्य दम लेता है।
उत्तर:
प्रकृति मनुष्य के मार्ग में अनेक बाधाएँ उपस्थित करती है। समुद्र की लहरों पर मछुआरों की नाव बार-बार ऊपर-नीचे होती है। उन्हें देखकर प्रतीत होता है कि उनकी नावें अब डूबी और तब डूबीं। काफ़ी प्रयास के बाद वे नाव को स्थिर कर पाते हैं। मछुआरे शीघ्र ही समुद्र की सतह पर नाव खेते हुए दिखाई देते हैं। इस प्रकार मनुष्य प्रकृति से हार नहीं मानता, उस पर विजय प्राप्त करके ही दम लेता है। समुद्र की लहरों पर नाव खेना उसके द्वारा प्रकृति पर विजय पाने का ही परिणाम है।

दक्षिण भारत की एक झलक योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
दक्षिण भारतीय छात्रों से सघन मैत्री कर उनके प्रदेशों की विशेषताएँ ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
दक्षिण के उन लोगों की सूची बनाइए जो राजनीति, फिल्म, साहित्य, नृत्य …….. और संगीत में प्रसिद्ध हुए हैं।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
संविधान स्वीकृत कोई अन्य भाषा सीखने का प्रयत्न कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
दक्षिण भारत दर्शन का कार्यक्रम बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 5.
हिंदी प्रचार सभा (चेन्नई) की तरह हिंदी के विकास के लिए जो संस्थाएँ पत्रिकाएँ कार्य करती हैं, उनकी सूची बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

दक्षिण भारत की एक झलक परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘दक्षिण भारत की एक झलक’ यात्रा-वृत्तांत के लेखक हैं –
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) आचार्य विनय मोहन शर्मा
(घ) आचार्य नरेंद्र देव
उत्तर:
(ग) आचार्य विनय मोहन शर्मा।

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प्रश्न 2.
कृष्णा नदी स्थित है –
(क) तमिलनाडु में
(ख) केरल में
(ग) आंध्र प्रदेश में
(घ) महाराष्ट्र में
उत्तर:
(ग) आंध्र प्रदेश में।

प्रश्न 3.
अय्यर (ब्राह्मण) ……….. भोजी होता है।
(क) निरामिष
(ख) आमिष
(ग) शाकाहारी
(घ) रंजक
उत्तर:
(क) निरामिष।

प्रश्न 4.
अनंत-शयनम् के मंदिर में ……….. पहनकर जाना निषिद्ध है।
(क) सिला हुआ वस्त्र या जूता
(ख) पगड़ी या खड़ाऊँ।
(ग) पैंट-कमीज अथवा धोती
(घ) घड़ी, बेल्ट अथवा चप्पल
उत्तर:
(क) सिला हुआ वस्त्र या जूता।

प्रश्न 5.
विश्व में वह कौन-सा स्थान है, जहाँ सूर्य समुद्र में डूबता है और समुद्र से ही उगता है?
(क) कन्याकुमारी का समुद्र तट
(ख) गोवा का समुद्र तट
(ग) मुंबई का समुद्र तट
(घ) कोलकाता का गंगा तट
उत्तर:
(क) कन्याकुमारी का समुद्र तट।

प्रश्न 6.
त्रिवेन्द्रम का दूसरा नाम है –
(क) त्रावणकोर
(ख) तिरुअनन्तपुरम
(ग) गोपुरम
(घ) तिरुचिरापल्ली
उत्तर:
(ख) तिरुअनन्तपुरम।

प्रश्न 7.
मीनाक्षी मंदिर स्थित है –
(क) मदुरा में
(ख) मथुरा में
(ग) रामेश्वरम में
(घ) मद्रास में
उत्तर:
(क) मदुरा में।

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प्रश्न 8.
काले पत्थर की विशाल हनुमान मूर्ति दक्षिण के किस मंदिर में है?
(क) शुचिन्द्रम मंदिर
(ख) मीनाक्षी मंदिर
(ग) अनन्तशयनम् मंदिर
(घ) कन्याकुमारी मंदिर
उत्तर:
(क) शुचिन्द्रम मंदिर।

प्रश्न 9.
कन्याकुमारी को मंदिर किस देवी का मंदिर है?
(क) सरस्वती
(ख) दुर्गा
(ग) पार्वती
(घ) लक्ष्मी
उत्तर:
(ग) पार्वती।

प्रश्न 10.
तमिल स्त्रियाँ किससे बनी बाल्टी से कुएँ से पानी खींच रही थीं?
(क) लोहे की
(ख) ताड़ के पत्तों की
(ग) नारियल के पत्तों की
(घ) प्लास्टिक की
उत्तर:
(ख) ताड़ के पत्तों की।

प्रश्न 11.
जब पार्वती का विवाह शिव से होने वाला था –
(क) तब शिवजी की बारात वहाँ पहुँच गई।
(ख) कुमारी पार्वती शिवजी से मिल गईं।
(ग) विवाह का मुहूर्त भोर में था।
(घ) शिवजी के न मिलने पर पार्वती अपने निवास स्थान को लौट आईं।
उत्तर:
(घ) शिवजी के न मिलने पर पार्वती अपने निवास स्थान को लौट आईं।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. त्रिवेन्द्रम का दूसरा नाम ………. है। (तिरुचिरापल्ली/तिरुअनन्तपुरम्)
  2. लेखक ने दक्षिण भारत की यात्रा ………. में की थी। (1853/1953)
  3. बेजवाड़ा ………. का एक प्रमुख नगर है। (आंध्र-प्रदेश/तमिलनाड्)
  4. तेलुगु भाषा में सत्तर प्रतिशब्द ………. के होते हैं। (तमिल संस्कृत)
  5. आंध्र में ………. कृत रामायण का बड़ा प्रचार है। (त्यागराज/तुलसी)

उत्तर:

  1. तिरुअनन्तपुरम्
  2. 1953
  3. आन्ध-प्रदेश
  4. संस्कृत
  5. तुलसी।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –

  1. त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी तक लगातार बस्ती है।
  2. गोपुरम् मन्दिर के द्वार को कहते हैं।
  3. तमिल का व्याकरण ईसा के आठवीं शताब्दी पूर्व लिखा गया था।
  4. मद्रास को चेन्नई कहते हैं।
  5. श्री रंगम् का मंदिर कावेरी नदी के द्वीप में है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक img-3
उत्तर:
(i) (ग), (ii) (घ), (iii) (ङ), (iv) (ख), (v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
त्रिवांकुर (त्रावणकोर) जाते समय लेखक ने किसकी झलक देखी?
उत्तर:
त्रिवांकुर (त्रावणकोर) जाते समय लेखक ने आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल की झलक देखी।

प्रश्न 2.
आंध्र का प्रमुख नगर कौन-सा है?
उत्तर:
वेजवाड़ा

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प्रश्न 3.
भक्त कवि त्यागराज किस शताब्दी के थे?
उत्तर:
18वीं शताब्दी के

प्रश्न 4.
अय्यर ब्राह्मण कैसे होते हैं?
उत्तर:
अय्यर ब्राह्मण निरामिष भोजी होते हैं।

प्रश्न 5.
आन्ध्र में क्या-क्या अधिक पैदा होता है?
उत्तर:
आंध्र में काजू, केला और धान अधिक पैदा होता है।

दक्षिण भारत की एक झलक लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आंध्र में हिंदी की किस पुस्तक का बड़ा प्रचार है?
उत्तर:
आंध्र में हिंदी की तुलसीकृत रामायण का बड़ा प्रचार है।

प्रश्न 2.
आंध्रप्रदेश के लोग कौन-सी भाषा बोलते हैं?
उत्तर:
आंध्रप्रदेश के लोग तमिल भाषा बोलते हैं।

प्रश्न 3.
केरल के गरीब लोग क्या खाते हैं?
उत्तर:
केरल के गरीब लोग जंगल से कंद को उखाड़कर उसे भूनकर या उबाल के खाते हैं।

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प्रश्न 4.
त्रिवेन्द्रम में बाजारों में बहुत-से लोग नंगे पैर क्यों चलते हैं?
उत्तर:
त्रिवेन्द्रम में बारहों महीने वर्षा होती रहती है। अतः कीचड़ से बचने के लिए लोग नंगे पैर चलते हैं।

प्रश्न 5.
श्रीरंगम् का मंदिर कहाँ बना हुआ है?
उत्तर:
श्रीरंगम् का मंदिर तिरुचिरापल्ली के निकट कावेरी नदी के द्वीप में बना हुआ है।

प्रश्न 6.
मद्रास का कौन-सा वृक्ष जग-प्रसिद्ध है और क्यों?
उत्तर:
मद्रास का वट-वृक्ष जग प्रसिद्ध है, क्योंकि इसकी लंबाई उत्तर से दक्षिण की ओर 200 फुट और चौड़ाई में पूरब से पश्चिम की ओर 205 फुट है।

प्रश्न 7.
तमिल और आंध्र का मुख्य भोजन क्या है?
उत्तर:
भात का ढेर, रसम, दाल, तरकारी, दही, चटनी, मोटर (तक्र), भात की इडली, डोसा और उपमा तमिल और आंध्र का मुख्य भोजन है।

प्रश्न 8.
समुद्र दर्शन के बाद लेखक कहाँ गया?
उत्तर:
समुद्र दर्शन के बाद लेखक अजायबघर गया।

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प्रश्न 9.
रामेश्वरम् की क्या विशेषता है?
उत्तर:
रामेश्वरम् में विशाल मंदिर है। कई तीर्थ कूप हैं, जिनका पानी मीठा है। यहाँ हिंदी जानने वाले बहुत हैं।

दक्षिण भारत की एक झलक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तमिलानाडु के स्त्री-पुरुषों की वेशभूषा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तमिलनाडु के पुरुषों की वेशभूषा में लुंगी, कुरता और आधुनिक बुशर्ट शामिल हैं। स्त्रियाँ खुली साड़ी पहनती हैं। उन्हें हरा रंग अच्छा लगता है। स्त्रियाँ हरा परिधान पहनती हैं।

प्रश्न 2.
लेखक किस व्यावसायिक ईमानदारी से प्रभावित हुआ?
उत्तर:
लेखक ने मद्रास, मदुरा, तिरुचिरापल्ली और रामेश्वरम् आदि स्थानों के होटल में भोजन किया। वहाँ के होटलों में भात पर शुद्ध देशी घी ही डाला गया। होटल वालों की यह ईमानदारी प्रशंसनीय है। दूध के संबंध में वहाँ के दुकानदार बड़े स्पष्टवादी हैं। वे स्पष्ट कहते हैं कि हम शुद्ध दूध नहीं बेचते। हम कॉफी का दूध बेचते हैं, जिसमें पानी मिला होता है। लेखक उनकी इस व्यावसायिक ईमानदारी से बड़ा प्रभावित हुआ।

प्रश्न 3.
लेखक कन्याकुमारी में सूर्यास्त का दृश्य क्यों नहीं देख पाया?
उत्तर:
लेखक सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए कन्याकुमारी के समुद्र तट पर पहुँच गया। बहुत-से सैलानी वहाँ सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए उत्सुक थे, पर बादल सूर्य को रह-रहकर ढाँप लेते थे। लेखक सूर्यास्त की दिशा पर नजरें गड़ाये रहा, पर बादलों ने सूर्य को मुक्त नहीं किया। फलस्वरूप वह सूर्यास्त का दृश्य नहीं देख पाया।

प्रश्न 4.
मीनाक्षी मंदिर की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मीनाक्षी मंदिर मदुरा में स्थित है। यह बड़ा विशाल मंदिर है। यह कई गोपुरम से घिरा हुआ है। गोपुरम ऊँचा गुंबद के समान द्वार है। इस मंदिर में अनेक मूर्तियों में पौराणिक गाथाएँ अंकित हैं। मंदिर के प्रत्येक खंभे पर हाथी के ऊपर सवार सिंह दिखलाया गया है। मूर्तियाँ बड़ी सजीव हैं। यहाँ एक हजार खंभों वाला हाल है। मंदिर में दक्षिण के 63 संतों की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर में इनकी वाणियों का अध्ययन-मनन होता है।

प्रश्न 5.
अनंतशयनम् के मंदिर की क्या विशेषता है?
उत्तर:
अनंतशयनम् मंदिर में सिला हुआ वस्त्र या जूता पहनकर जाना निषिद्ध है। महिलाओं की साड़ी सिला हुआ वस्त्र न होने के कारण मंदिर में प्रवेश पा सकती, हैं। मंदिर में मूर्ति की विशालता दर्शनीय है।

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प्रश्न 6.
मद्रास का जग-प्रसिद्ध वट-वृक्ष कैसा है?
उत्तर:
मद्रास का जग-प्रसिद्ध वट-वृक्ष दर्शनीय है। इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण की ओर 200 फुट और चौड़ाई पूरब से पश्चिम की ओर 205 फुट है। इसके नीचे एनींबेसेन्ट ने थियोसोफिकल सोसाइटी की अनेक महत्त्वपूर्ण सभाएँ की हैं। यह हजारों दर्शकों का विश्राम-स्थल है।

दक्षिण भारत की एक झलक लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
आचार्य विनय मोहन शर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
आचार्य विनय मोहन शर्मा का जन्म 19 दिसंबर, सन् 1905 में करकबैल मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में हुआ। इनका मूल नाम शुक देव प्रसाद तिवारी ‘वीरात्मा’ था। आपने एम.ए., पी-एचडी., एल.एल.बी., तक शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने पत्रकारिता से साहित्य जगत् में प्रवेश किया। ये ‘कर्मवीर’ पत्रिका के सहायक सम्पादक.रहे। सन् 1940 से शिक्षा-जगत् में विभिन्न पदों पर रहकर अध्यापन किया।

ये नागपुर एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और महाकौशल विश्वविद्यालय, जबलपुर में प्राचार्य रहे। इन्होंने केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के प्रथम निदेशक पद को भी सुशोभित किया। ये सन् 1970 से 1973 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अंतर्गत विश्वविद्यालय से भी संबद्ध रहे। 5 अगस्त, सन् 1993 को इनका निधन हो गया।

साहित्यिक-परिचय:
हिंदी को मराठी संतों की देन’ शोध प्रबंध पर आपको अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए। इन्होंने हिंदी, पंजाबी और मराठी संतों का तथा तुलसी काव्यों का तुलनात्मक अध्ययन किया और ‘गीत-गोविंद’ का हिंदी अनुवाद किया। इनकी ‘दृष्टिकोण’, ‘साहित्य कथा पुराना’, शोध प्रविधि-मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत की जा चुकी है। विभिन्न शासकीय एवं अशासकीय साहित्य संस्थानों तथा सभाओं द्वारा आपको सम्मानित एवं पुरस्कृत भी किया गया है। पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र द्वारा रचित महाकाव्य ‘कृष्णायक’ की इन्होंने अवधी से खड़ी बोली में रूपान्तरित किया है। हिंदी साहित्य जगत् में निबंधकार, समीक्षक, एवं शोधकर्ता के रूप में इनका विशिष्ट स्थान है।

रचनाएँ:
इनकी हिंदी को मराठी संतों की देन, हिंदी, पंजाबी और मराठी में कृष्ण तथा तुलसी काव्यों का तुलनात्मक अध्ययन, गीत-गोविन्द का हिंदी अनुवाद, दृष्टिकोण, साहित्य कथा पुराना, शोध प्रविधि, कृष्णायन का खड़ी बोली में रूपांतरण आदि रचनाएँ हैं।

भाषा-शैली:
विनय मोहन शर्मा की भाषा प्रौढ़, सशक्त, परिमार्जित खड़ी बोली – है। भाषा में तत्सम शब्दों के अतिरिक्त प्रचलित उर्दू शब्द भी हैं। साधारण विषयों पर इनकी लेखनी सरल और व्यावहारिक भाषा का रूप धारण कर लेती है।

दक्षिण भारत की एक झलक पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
‘दक्षिण भारत की एक झलक’ यात्रा-वृत्तांत का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत की एक झलक’ यात्रा-वृत्तांत में आचार्य विनय मोहन शर्मा ने दक्षिण भारत के सुरम्य स्थानों, रीति-रिवाजों और दृश्यों का वर्णन करते हुए वहाँ की संस्कृति की सजीव झाँकियाँ प्रस्तुत की हैं। शर्माजी कहते हैं कि मुझे 1953 में पहली बार त्रावणकोर जाते हुए आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जाने का अवसर मिला। प्रातःकाल जब उनकी गाड़ी आंध्र प्रदेश के बेजबाड़ा पहुँची तो उन्हें ऐसा लगा मानो किसी नई दुनिया में प्रवेश हो रहा है।

वहाँ की समुद्र से आने वाली वायु तन और मन दोनों को शीतलता प्रदान कर रही थी। वहाँ कृष्णा नदी भी देखी। आंध की स्त्रियाँ खुली साड़ी पहनती हैं और पुरुष धोती पहनते हैं, जिनकी लांग की छोर झंडी की तरह लहराता दिखाई देती है। लोग गोरे रंग के होते हैं और लोग तेलुगू बोलते हैं। यहाँ तुलसीकृत रामायण का बड़ा प्रचार है। 18वीं शताब्दी में भक्त कवि त्यागराज ने भी तुलसी का अनुकरण किया है।

आचार्यजी आंध्र के लोगों के खान-पान के संबंध में बताते हुए कहते हैं कि लोग कॉफी अधिक पीते हैं और इडली का नाश्ता करते हैं। स्त्रियाँ फूलों से केश-सज्जा करती हैं। वहाँ काजू और केले के साथ-साथ धान उत्पन्न होता है। स्त्री-पुरुष भावुक होते हैं। वे स्वयं को समय के अनुरूप ढालने में सक्षम हैं। ‘गुडूर’ से गाड़ी तमिलनाडु में प्रवेश करती है। यहाँ तमिल भाषा बोली जाती है। पुरुष लुंगी, कुर्ता और बुशशर्ट पहनते हैं। यहाँ के लोग रंग के साँवले होते हैं। स्त्रियों को हरा रंग अधिक पसन्द है। तमिल और आंध्र के भोजन में विशेष अंतर नहीं है। वहाँ केले के पत्ते पर भात, रसम, दाल, तरकारी और दही, चटनी, मोर परोसा जाता है।

यहाँ इटली, दोसा, उपमा, चटनी और दही के साथ खाया जाता है। – सुदूर दक्षिण में मिठाइयों की दुकानें नहीं हैं। वहाँ होटल वाले ईमानदार हैं। वे भात में शुद्ध घी का प्रयोग करते हैं परन्तु वे शुद्ध दूध नहीं बेचते। केरल की आबादी सघन है। जमीन हरी-भरी है। गरीब लोग कंद खाते हैं। उसके साथ मछली मिल जाने पर पूरा आहार हो जाता है। नारियल बहुतायत से होता है। अतः लोग उसका कई रूपों में प्रयोग करते हैं। उसका पानी बेंचा जाता है।

केरल में स्त्रियों का पहनावा तमिलनाडु की स्त्रियों से अलग है। वे उजले रंग के वस्त्र पहनती हैं। शहरी स्त्रियों का पहनावा हिंदी फिल्मों के प्रभाव के कारण महाराष्ट्र, तमिल और केरल में एक जैसा है। त्रावणकोर-कोचीन में शिक्षा प्रचार-प्रसार अधिक है। लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा है। घर साफ-सुथरे होते हैं। अधिकांश गाँवों में बिजली है। पोस्ट-ऑफिस, दवाखाना, और स्कूल प्रत्येक गाँव में हैं। दो-चार गाँवों के मध्य एक हाई स्कूल और बीस-पच्चीस गाँवों के बीच एक कॉलेज भी स्थापित है। हिंदी का यहाँ बहुत प्रचार है। परीक्षा के लिए हिंदी अनिवार्य है।

त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी की यात्रा बड़ी रोचक थी। स्त्री-पुरुष बाजारों में नंगे पैर चलते हैं; क्योंकि वर्षा होती रहती है। यहाँ का समुद्र-दर्शन अत्यन्त आकर्षक होता है। समुद्र की आती-जाती लहरों में खड़ा होने में आनन्द आता है। समुद्र में अनेक मछुवारे मछलियाँ पकड़ते दिखाई देते हैं। उनकी नावें समुद्र में तैरती दिखाई देती हैं। वहाँ के अजायबघर में समुद्र की मछलियों, सर्पो, केकड़ों आदि को सुरक्षित रखा गया है। यह अजायबघर भारत में अपनी तरह का एक ही है। वहाँ के अनन्त-शयनम् मन्दिर में सिला हुआ वस्त्र या जूता पहनकर जाना मना है। मन्दिर में मूर्ति की विशालता दर्शनीय है।

त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी तक इतनी सघन आबादी है कि भारत के किसी भाग में इतनी सघन आबादी नहीं है। तमिल स्त्रियाँ ताड़ की बनी बाल्टी से कुएँ से पानी निकालती हैं। दक्षिण भारत में मामूली स्त्रियाँ सोने के और संभ्रांत स्त्रियाँ हीरे, मोती, जवाहरात के आभूषण पहनती हैं। कन्याकुमारी में सूर्यास्त का दृश्य अत्यन्त भव्य होता है। यहाँ तीन समुद्रों का मिलन होता है। अनेक स्त्री-पुरुष सूर्यास्त का दृश्य देखने को उत्सुक थे, लेकिन बादलों के कारण यह सम्भव नहीं हो सका। संसार में यही स्थान है जहाँ सूर्य समुद्र में डूबता है और समुद्र से ही उगता है।

कन्याकुमारी के मंदिर में पार्वती के दर्शन के लिए गए। इस मंदिर में भी नंगे बदन ही जाना पड़ता था। वहाँ पार्वती विवाह का मुहूर्त निकल जाने के कारण अविवाहित रूप में ही आकर विराजमान हो गई थी। अतः इसीलिए यहाँ का नाम कन्याकुमारी पड़ा है। इसके बाद शुचिन्द्रम के भव्य मंदिर के दर्शन किए। वहाँ पर काले पत्थर की विशाल हनुमान की मूर्ति है। वह मुख्य रूप से शिव-मंदिर है। मंदिर के प्रस्तर स्तंभों की विशेषता है कि उसे हाथ से ठोंकने पर धीमी सुरीली आवाज निकलती है।

त्रिवेन्द्रम और कन्याकुमारी के बीच की भूमि में सुपारी, काजू, केला, नारियल और धान आदि से उर्वरा है। आचार्य कहते हैं कि समय की कमी के कारण मलयालय के कई साहित्यकारों से भेंट नहीं हो पाई। इसके बाद मदुरा का मीनाक्षी मंदिर देखा। वह बहुत विस्तीर्ण है। यह कई गोपुरम से घिरा है। गोपुरम ऊँचा गुम्बद के समान द्वार है। यहाँ की मूर्तियाँ बड़ी सजीव हैं। वहाँ एक हजार खम्भों वाला हॉल है, वहाँ हजारों नर-नारी प्रसाद पा सकते हैं। मदुरा से रामेश्वरम धनुष-कोटि भी गए। रामेश्वरम का मंदिर विशाल है। यहाँ तीर्थयात्री समुद्र में स्नान करते हैं।

यहाँ हिंदी जानने वाले बड़ी संख्या में हैं। तिरुचिरापल्ली का कावेरी नदी के द्वीप पर बना श्रीरंगम का मंदिर दर्शनीय है। त्रिचिन्नापल्ली में सहस्रों सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद ऊँचाई पर एक विशाल मंदिर है। यहाँ से । नगर और नदी का दृश्य बड़ा सुन्दर दिखायी देता है। तमिल साहित्य बहुत प्राचीन है। तमिल का व्याकरण आज भी ईसा की चार शताब्दी पूर्व ही लिखा गया व्याकरण है। चेन्नई में भी हिंदी साहित्य में गीत का परिचय मिलता है। वहाँ की हिंदी-प्रचार सभा को दक्षिण में हिंदी की प्रमुख विद्यापीठ का रूप प्रदान कर रही है।

वहाँ से कई सौ अध्यापक-अध्यापिकाएँ प्रतिवर्ष शिक्षा ग्रहण कर दक्षिण के अनेक स्कूल-कॉलेजों दक्षिण भारत की एक झलक में हिंदी पढ़ा रहे हैं। मद्रास में अडयार पुस्तकालय काफी संपन्न है। वहाँ का वटवृक्ष विश्वविख्यात है। वहाँ का समुद्रतट भी बहुत सुन्दर है। वहाँ शाम को सैलानियों का मेला-सा लग जाता है। रात के आठ बजे तक सैलानियों को मद्रास रेडियो स्टेशन का भोंपू कार्यक्रम सुनाता रहता है।

दक्षिण भारत की एक झलक संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
सुदूर दक्षिण में उत्तर भारत के समान तरह-तरह की मिठाइयों की दुकानें नहीं हैं। बड़े-बड़े नगरों में उत्तर भारत के एक-दो हलवाई थोड़ी-बहुत मिठाई बनाते हैं। चटपटी, खारी, खट्टी चीजें दक्षिण भारतीयों को बहुत प्रिय हैं। घी की अपेक्षा नारियल के तेल का इस्तेमाल अधिक होता है। परन्तु वहाँ के होटलों में एक बात यह देखी गई है कि जब वे भात पर घी डालते हैं, तो ह शुद्ध घी ही होता है।

होटल वालों की यह ईमानदारी प्रशंसनीय है। मैंने मद्रास, मदुरा, त्रिचिनापल्ली, रामेश्वरम् आदि स्थानों के होटलों में भोजन किया और मुझे हर जगह शुद्ध ताजे घी का स्वाद मिला। दूध के संबंध में भी यहाँ के दुकानदार बड़े स्पष्टवादी हैं। दक्षिण के स्टेशनों पर आपकी आँखों के सामने की पाल (दूध) में वल्लम (पानी) मिलाकर देंगे और कहेंगे शुद्ध दूध हम नहीं बेचते, हम कॉफी का दूध रखते हैं। इस व्यावसायिक ईमानदारी ने मुझे बड़ा प्रभावित किया। (Page 74)

शब्दार्थ:

  • सुदूर – बहुत दूर, बहुत दूर का।
  • प्रशंसनीय – प्रशंसा करने योग्य।
  • स्पष्टवादी – स्पष्ट बोलने वाले।
  • व्यावसायिक – व्यापारिक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य विनय मोहन शर्मा द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत ‘दक्षिण भारत की एक झलक’ से उद्धृत है। लेखक दक्षिण भारत के सुरम्य स्थानों, रीति-रिवाजों और दृश्यों का रोचक वर्णन किया है। इस गद्यांश में लेखक दक्षिण भारत के लोगों की व्यावसायिक ईमानदारी का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या:
लेखक ने दक्षिण भारत की कवा के दौरान तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश की यात्रा की। उसने देखा कि बहुत दूर स्थित दक्षिण में उत्तर भारत के समान तरह-तरह की मिठाइयों की दुकानें नहीं हैं। दूसरे शब्दों, जैसे उत्तर भारत में तरह-तरह की मिठाई बनाने वाले हलवाइयों की दुकानें होती हैं, वैसे दुकानें दूरस्थ दक्षिण भारत में नहीं मिलतीं। यहाँ केवल बड़े-बड़े नगरों में ही उत्तर भारत के एक-दो हलवाई ही थोड़ी-बहुत मिठाई बनाते हैं। इसका कारण है दक्षिण भारत के लोगों को मिठाई अधिक रुचिकर नहीं होती है।

दक्षिण भारत के लोगों को मिठाइयों की अपेक्षा चटपटी, मसालेदार, खारी और खट्टी चीजें ही अधिक पसन्द हैं। दक्षिण भारत में लोग घी का कम प्रयोग करते हैं। नारियल के तेल का अधिक इस्तेमाल करते हैं। लेखक यहाँ के होटलों की विशेषता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहता है कि यहाँ के होटलों में एक बात यह देखने में आई कि वे भात पर घी डालते हैं और वह भी शुद्ध देशी घी। भात पर देशी घी डालने के संबंध में उनकी ईमानदारी प्रशंसा करने के योग्य है। वे देशी घी में किसी तरह की मिलावट नहीं करते। वे ईमानदारी से भात पर शुद्ध देशी घी ही डालते हैं।

लेखक बताता है कि उसने दक्षिण भारत के मद्रास, मदुरा, त्रिचिन्नापल्ली, रामेश्वरम आदि स्थानों के होटलों में खाना खाया और उसे हर स्थान पर शुद्ध देशी घी का ही स्वाद मिला। इतना ही नहीं दूध के संबंध में भी यहाँ के दुकानदार बहुत स्पष्ट बोलने वाले हैं। दक्षिण भारत के स्टेशनों पर वे आपके द्वारा दूध माँगने पर आपकी आँखों के सामने ही दूध में पानी मिलाकर देंगे। वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि हम लोग शुद्ध दूध नहीं बेचते। हम कॉफी का दूध रखते हैं। कॉफी के दूध में पानी मिला होता है। लेखक दक्षिण भारतीयों की इस व्यापारिक ईमानदारी से वड़ा प्रभावित हुआ।

विशेष:

  1. दक्षिण भारतीय होटल वालों की ईमानदारी की प्रशंसा की है।
  2. वर्णनात्मक शैली है।
  3. भाषा सरल, स्पष्ट खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
उत्तर भारतीय तथा दक्षिण भारतीय लोगों के स्वाद में क्या अंतर है?
उत्तर:
उत्तर भारतीयों को भिठाइयाँ अधिक पसंद हैं, तो दक्षिण भारतीयों को चटपटी, खारी और खट्टी चीजें अधिक पसंद हैं।

प्रश्न (ii)
लेखक दक्षिण भारतीयों की किस स्पष्टवादिता से प्रभावित हुआ?
उत्तर:
दक्षिण भारत के लोग आपके सामने दूध में पानी मिलाकर आपको देंगे और स्पष्ट कहेंगे कि हम शुद्ध दूध नहीं बेचते, हम कॉफी का दूध रखते हैं। लेखक उनकी इस स्पष्टवादिता से प्रभावित हुआ।

प्रश्न (iii)
दक्षिण भारत के होटलों में भात पर किस तरह का घी डाला जाता है?
उत्तर:
दक्षिण भारत के होटलों में भात पर शुद्ध देशी घी डाला जाता है।

गद्य पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर:
दक्षिण भारतीयों की पसंद, ईमानदारी और स्पष्टवादिता की प्रशंसा करना।

प्रश्न (ii)
लेखक ने दक्षिण भारत के किन-किन नगरों के होटल में खाना खाया और उसको क्या अनुभव हुआ?
उत्तर:
लेखक ने दक्षिण भारत के मद्रास, मदुरा, त्रिचिन्नापल्ली, रामेश्वरम आदि चारों होटलों में खाना खाया और उसे हर स्थान पर शुद्ध ताजे घी के स्वाद का अच्छा अनुभव हुआ।

प्रश्न 2.
त्रावणकोर (केरल) में प्रवेश करते ही स्त्रियों की पोशाक के रंग में अंतर दिखाई देने लगता है। यहाँ वे ‘महाश्वेता’ की छवि धारण कर लेती हैं। उन्हें तमिलनाडु की स्त्री के समान हरा-लाल रंग पसन्द नहीं-वे उजले रंग के वस्त्र पहनती हैं। यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूं। इस लेख में पोशाक आदि की चर्चा नगर और ग्राम के सामूहिक जीवन को लक्ष्य करके की जा रही है। यों आज महाराष्ट्र, तमिल और केरल राज्यों की ही नहीं, समस्त देश की शहरी स्त्रियों की वेशभूषा प्रायः समान ही होती जा रही है। यह हिंदी चित्रपटों का प्रभाव जान पड़ता है।

आधुनिक महाराष्ट्र की नारी स्वच्छ साड़ी पहनना पसन्द करती है, तमिल और केरल की नारी भी उसी तरह साड़ी पहनती है, जिसका एक छोर दक्षिण कन्धे से होता हुआ पीछे एड़ी से छूता हुआ झूलता है। उसका सर सदा खुला रहने का रिवाज धीरे-धीरे उत्तर के शिक्षित घरों में भी बढ़ रहा है। वेशभूषा में नारी भारतीय एकता का प्रतीक बनती जा रही है। त्रावणकोर-कोचीन में शिक्षा का प्रसार अधिक होने से जनता के रहन-सहन का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा है। गरीबों के घर भी, जो अधिकतर नारियल के विभिन्न अवयवों से बनते हैं, बिल्कुल स्वच्छ रहते हैं।

प्रत्येक छोटे से घर के आँगन में दस-पाँच नारियल, दो-चार केले, कटहल के पेड़ अवश्य दिखाई देंगे। उत्तर के गाँव जहाँ चारों ओर पुरीष से घिरे रहते हैं, वहाँ केरल के गाँव गली-गली स्वच्छ झलकते हैं। यहाँ अधिकांश ग्राम विजली से जगमगाते हैं। पोस्ट ऑफिस, छोटा-सा दवाखाना और स्कूल के बिना तो गाँव बसते ही नहीं, दो-चार गाँवों के मध्य एक हाईस्कूल, बीस-पच्चीस गाँवों के बीच एक कॉलेज आवश्यक समझा जाता है। वहाँ हिंदी का इतना अधिक प्रचार है कि गाँव-गाँव में उसे बोलने-समझने वाले स्त्री-पुरुष मिल जाते हैं। (Page 75)

शब्दार्थ:

  • महाश्वेता – सरस्वती।
  • छवि – सुंदरता, रूप।
  • पोशाक – वेशभूषा।
  • सामूहिक – सामाजिक।
  • चित्रपटों – फिल्मों।
  • स्वच्छ – साफसुथरे।
  • रिवाज – परंपरा।
  • अवयवों – भागों।
  • पुरीष – गंदगी
  • कूड़ा – करकट।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य विनय मोहन शर्मा द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत दक्षिण भारत की एक झलक’ से उद्धृत है। इस गद्यांश में लेखक केरल की स्त्रियों की वेशभूषा, वहाँ के घरों तथा शिक्षा-व्यवस्था के साथ-साथ हिंदी की स्थिति पर प्रकाश डाल रहा है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि केरल राज्य में प्रवेश (दाखिल) होते ही स्त्रियों के पहनावे की पोशाकों के रंग में अंतर स्पष्ट दिखाई देने लगता है। वेशभूषा के संबंध में केरल की स्त्रियाँ सरस्वती का रूप ग्रहण करती दिखाई पड़ती हैं। यहाँ की स्त्रियों को तमिलनाडु की स्त्री की तरह हरा और लाल रंग पसंद नहीं है। वे सफेद (उज्ज्वल) रंग के कपड़े पहनती हैं। लेखक यहाँ एक बात स्पष्ट कर रहा है कि इस लेख में पहनावे आदि की चर्चा नगर और गाँव के सामूहिक जीवन को लक्ष्य करके ही की जा रही है। वैसे तो आज महाराष्ट्र, जमिल और केरल राज्यों में ही नहीं, अपितु देश के समस्त राज्यों के शहरी क्षेत्रों की स्त्रियों के पहनावे में समानता आती जा रही है।

सारे देश के शहरी क्षेत्रों नारियों की वेशभूषा में समानता आने का कारण हिंदी फिल्मों का प्रभाव दिखाई देता है। हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियाँ जो वस्त्र पहनती हैं, वही आजकल नगरों की स्त्रियाँ पहनने लगी हैं। आधुनिक महाराष्ट्रीय स्त्री साफ-सुथरी साड़ी पहनना पसंद करती है तो तमिलनाडु और केरल की स्त्रियाँ भी उसी प्रकार की साड़ी पहनती हैं। उस तरह की साड़ी का एक किनारा दक्षिण कंधे से होता पीछे एड़ी से छूता हुआ लटकता रहता है। दूसरे शब्दों में, सभी स्त्रियाँ उलटे पल्ले की साड़ी पहनती हैं। उनका सर बिना पल्ले के खुला रहता है। यह रिवाज धीरे-धीरे उत्तर भारत के सुशिक्षित घरों की नारियों में भी निरंतर बढ़ता जा रहा है।

इस तरह के पहनावे से भारतीय नारी राष्ट्रीय एकता की प्रतीक बनती जा रही है। त्रावणकोर और कोचीन में शिक्षा-प्रसार अधिक होने के कारण जनता के रहन-सहन का स्तर तुलनात्मक दृष्टि से ऊँचा है। गरीबों के घर भी जो अधिकतर नारियल के विभिन्न भागों में बने होते हैं, बिलकुल साफ-सुथरे होते हैं। प्रत्येक छोटे-से घर के आँगन में भी नारियल के दस-पाँच पेड़, दो-चार केले के पेड़ और कटहल के पेड़ अवश्य लगे होते हैं। उत्तर भारत के गाँवों में चारों तरफ कूड़े-करकट के ढेर लगे होते हैं, वहीं दक्षिण भारत के गाँव की गली-गली साफ-सुथरी होती है। यहाँ के अधिकांश गाँवों में बिजली की व्यवस्था है, जिसके प्रकाश से गाँव बिजली की रोशनी से जगमगाते रहते हैं।

केरल के प्रत्येक गाँव में पोस्ट ऑफिस (डाकखाना), छोटा दवाखाना और प्राथमिक स्कूल हैं। दो-चार गाँवों के बीच हाई स्कूल है। तो 20-25 गाँवों के मध्य एक कॉलेज भी है। इस प्रकार केरल राज्य में शिक्षा की अच्छी व्यवस्था है। केरल में हिंदी का प्रचार-प्रसार बहुत है। यही कारण है कि यहाँ के गाँव-गाँव में हिंदी बोलने और समझने वाले स्त्री-पुरुष मिल जाते हैं। दूसरे शब्दों में, केरल में हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या पर्याप्त है।

विशेष:

  1. लेखक ने केरल की विशेषताओं का वर्णन किया है।
  2. वर्णनात्मक शैली है।
  3. भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

प्रश्न (i)
लेखक ने हिंदी चित्रपट के किस प्रभाव का वर्णन किया है?
उत्तर:
लेखक ने हिंदी चित्रपट के वेशभूषा के प्रभाव का वर्णन किया है। हिंदी फिल्मों के प्रभाव के कारण सारे भारत के शहरी क्षेत्रों की स्त्रियों में एक ही ढंय से साड़ी पहने जाने लगी है।

प्रश्न (ii)
उत्तर भारत और केरल के गाँवों में क्या अंतर है?
उत्तर:
उत्तर भारत के गाँव चारों ओर से कूड़े-करकट से घिरे रहते हैं, जबकि केरल के गाँव की गली-गली साफ-सुथरी रहती हैं।

प्रश्न (iii)
तमिलनाडु और केरल की स्त्रियों की पसंद में क्या अंतर है?
उत्तर:
तमिलनाडु की स्त्रियाँ पहनावे में हरा और लाल रंग पसंद करती हैं, तो केरल की स्त्रियाँ उजले वस्त्र पहनना पसन्द करती हैं।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न (i)
त्रावणकोर-कोचीन में रहन-सहन का स्तर ऊँचा क्यों है?
उत्तर:
त्रावणकोर-कोचीन में शिक्षा का प्रचार-प्रसार अधिक होने के कारण जनता के रहन-सहन का स्तर गाँवों की अपेक्षा अधिक ऊँचा है।

प्रश्न (ii)
केरल के गाँवों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. केरल के गाँवों में बिजली की व्यवस्था है। गाँव बिजली से जगमगाते रहते हैं।
  2. केरल के गाँवों में डाकखाना, दवाखाना और स्कूल हैं।

प्रश्न (iii)
किस राज्य के गाँव-गाँव में हिंदी बोलने और समझने वाले मिल जाते हैं और क्यों?
उत्तर:
केरल राज्य के गाँव-गाँव में हिंदी बोलने वाले और समझने वाले मिल जाते हैं, क्योंकि यहाँ हिंदी का प्रचार-प्रसार बहुत है। यहाँ हिंदी परीक्षा की अनिवार्य भाषा है।

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प्रश्न 3.
त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी तक लगातार बस्ती होने से ऐसा जान पड़ता है, मानो त्रिवेन्द्रम ही पचास मील तक चला गया हो। इतनी घनी आबादी भारत के किसी भाग में नहीं है। मार्ग में गाड़ी पंचर हो जाने से हम एक निकटवर्ती कुएँ पर गए जहाँ तमिल स्त्रियाँ ताड़ की बनी हुई बाल्टी से पानी खींच रही थीं। उन्होंने हमें प्यासा, अनुमान कर स्वयं पानी पिलाया। उन्हें हम अजनबियों को देखकर कुतूहल होता था और हमें उनके नीचे तक लटके फटे कानों से सोने के कर्णफूल देखकर आश्चर्य होता था। ऐसा जान पड़ता था कि कान अब अधिक भार नहीं सह सकेंगे, फट ही पड़ेंगे। दक्षिण में मामूली स्त्रियाँ सोने के आभूषण पहनती हैं। संभ्रान्त परिवार की स्त्रियाँ हीरे, मोती, जवाहरात को काम में लाती हैं। सोना उनके लिए हल्की धातु है। (Page 76)

शब्दार्थ:

  • आबादी – जनसंख्या।
  • कुतूहल – आश्चर्य।
  • आभूषण – जेवर।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य विनय मोहन शर्मा द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत ‘दक्षिण भारत की एक झलक’ से उद्धृत है। लेखक केरल की सघन जनसंख्या और तमिल स्त्रियों की आभूषणप्रियता का वर्णन करता हुआ कर रहा है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी तक लगातार बस्ती ही बस्ती थी। उस बस्ती को देखकर लमता था, मानो त्रिवेन्द्रम ही पचास मील तक फैला हुआ हो। इतनी अधिक सघन आबादी (जनसंख्या) भारत के किसी भाग में नहीं है जितना त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी के बीच फैले भाग में है। लेखक कहता है कि कन्याकुमारी की ओर जाते हुए उनकी गाड़ी में पंचर हो गया इसलिए गाड़ी में सवार हम सभी उतरकर पास वाले कुएँ पर चले गए। वहाँ हमने देखा कि तमिल स्त्रियाँ ताड़ के पत्तों से बनी हुई बाल्टी से पानी खींच रही थीं। उन्होंने हम लोगों को प्यासा जानकर अंदाजे से स्वयं ही पानी पिलाया।

उन तमिल स्त्रियों को हम अपरिचितों को देखकर आश्चर्य होता था और हम लोगों को उन स्त्रियों के नीचे तक लटके फटे हुए कानों में सोने के कर्णफूल देखकर आश्चर्य होता था। कहने का भाव यह कि वे तमिल स्त्रियाँ हम अपरिचितों को आश्चर्य से देख रही थीं तो हम लोगों को भी उनके कानों में सोने के कर्णफल नामक आभूषण देखकर आश्चर्य हो रहा था। उन स्त्रियों के कान भी कटे-फटे हुए थे।

उनके कानों की स्थिति देखकर लगता था कि उनके नीचे तक लटके-फटे हुए कान अब अधिक वजन नहीं सह सकेंगे। यदि और थोड़ा वजन अधिक डाला, तो कान फट ही जायेंगे। लेखक बताता है कि दक्षिण भारत में साधारण वर्ग की स्त्रियाँ सोने के जेवर धारण करती हैं और उच्च वर्ग या कुल की स्त्रियाँ हीरे, मोती और जवाहरात के आभूषण पहनती हैं। सोना उनके लिए हल्की वस्तु है; अर्थात् उनके लिए मामूली चीज है।

विशेष:

  1. लेखक ने दक्षिण भारत की सामाजिक स्थिति का वर्णन किया है।
  2. वर्णानात्मक शैली है।
  3. भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

प्रश्न (i)
तमिल स्त्रियों को क्या देखकर आश्चर्य हो रहा था?
उत्तर:
तमिल स्त्रियों को अजनबियों को अपने गाँव में देखकर आश्चर्य हो रहा था।

प्रश्न (ii)
तमिल स्त्रियों के कटे-फटे कान क्या संकेत कर रहे थे?
उत्तर:
तमिल स्त्रियों के कटे-फटे और लटके कान इस बात की ओर संकेत कर रहे थे कि अपने कानों में वज़नदार आभूषण पहनती होंगी, जिनके कारण कान नीचे तक लटककर फट गए हैं। अब उन कानों में अधिक भार सहने की क्षमता नहीं : रह गई है।

प्रश्न (iii)
तमिल स्त्रियों ने लेखक और उसके साथियों को पानी क्यों पिलाया?
उत्तर:
लेखक और उसके साथी गाड़ी में पंचर होने के कारण गाड़ी से उतरकर एक पास के कुएँ पर गए। वहाँ पानी भरने वाली तमिल स्त्रियों ने समझा कि वे लोग प्यासे हैं और पानी पीने के लिए ही कुएँ पर आए हैं। इसलिए तमिल स्त्रियों ने उन्हें पानी पिलाया।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न (i)
दक्षिण में साधारण स्त्रियों और संभ्रान्त स्त्रियों के आभूषणों में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
दक्षिण में साधारण स्त्रियाँ सोने के आभूषण पहनती हैं और संभ्रान्त परिवार की स्त्रियाँ हीरे, मोती और जवाहरात के आभूषण काम में लाती हैं।

प्रश्न (ii)
त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी की आबादी के सम्बन्ध में लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर:
त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी की आबादी के संबंध में लेखक ने कहा कि इतनी घनी आबादी तो भारत के किसी भी भाग में नहीं है। दूसरे शब्दों में केरल के इस क्षेत्र में बहुत सघन जनसंख्या है।

प्रश्न 4.
यहाँ हिंदी साहित्य में गति का परिचय मिलता है। यहाँ की हिंदी प्रचार सभा को दक्षिण में हिंदी की प्रमुख विद्यापीठ का रूप प्रदान कर रही है। यहाँ से हिंदी के कई सौ अध्यापक-अध्यापिकाएँ प्रतिवर्ष शिक्षा ग्रहण कर दक्षिण की अनेक शालाओं तथा विश्वविद्यालय के कॉलेजों में हिंदी-अध्यापन कार्य कर रहे हैं। महात्माजी ने जब मद्रास में हिंदी-प्रचार की नींव रखी तब हृषीकेशजी के साथ-साथ रघुवरदयालजी जो यहाँ के हिंदी प्रेमी जन हैं वे भी सभा में पहुँचे।

तब से आज तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का अंग मानकर ये सभा में कार्य कर रहे हैं। दक्षिण भारत में कई अहिंदी भाषा-भाषी सज्जन हिंदी की बड़ी सेवा कर रहे हैं। रघुवरदयाल मिश्र ने बतलाया कि तंजोर पुस्तकालय में मणि-प्रवाल शैली में लिखित बहुत पुराना हस्तलिखित ग्रन्थ है, जिसमें अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी रचनाएँ हैं। (Page 77)

शब्दार्थ:

  • गति – प्रगति।
  • महात्माजी – महात्मा गाँधी जी।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य विनय मोहन शर्मा द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत ‘दक्षिण भारत की एक झलक’ से उद्धृत है। लेखक इस गाद्यांश में चेन्नई की हिंदी प्रचार सभा के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहता है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि जब वह दक्षिण भारत की यात्रा करते हुए त्रिचिन्नापल्ली से मद्रास पहुँचा, तो उसे यहाँ हिंदी साहित्य की प्रगति की जानकारी प्राप्त हुई। दूसरे शब्दों में, मद्रास में हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में पर्याप्त प्रगति देखने को मिली। यहाँ स्थापित हिंदी प्रचार सभा दक्षिण में हिंदी की प्रमुख विद्यापीठ के रूप में कार्य कर रही है। यहाँ से हिंदी प्रचार सभा के कई सौ अध्यापक और अध्यापिकाओं को हर वर्ष प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। वे प्रशिक्षण प्राप्त करके दक्षिण भारत के अनेक स्कूलों और विश्वविद्यालय के अनेक कॉलेजों में हिंदी पढ़ा रहे हैं।

महात्मा गाँधीजी ने जब मद्रास में हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की तब हृषीकेशजी के साथ-साथ एक हिंदी प्रेमी सज्जन रघुवरदयाल भी सभा में पहुँचे थे। वे तब से लेकर आज तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का अंग मानकर सभा में कार्य कर रहे हैं। लेखक कहता है कि दक्षिण भारत में कई अहिंदी भाषा-भाषी व्यक्ति भी हिंदी की बड़ी सेवा कर रहे हैं; अर्थात् अहिंदी भाषा-भाषी भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं। स्वर्गीय रघुवरदयाल मिश्र ने बतलाया कि तंजोर पुस्तकालय में मणि-प्रवाल शैली में लिखित बहुत पुराना हाथ से लिखा ग्रंथ है, जिसमें अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी की रचनाएँ भी सम्मिलित हैं।

विशेष:

  1. मद्रास की हिंदी प्रचार सभा के कार्यों का वर्णन किया गया है।
  2. वर्णानात्मक शैली है।
  3. भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है।

गद्य पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
‘हिंदी साहित्य में गति का परिचय मिलता है’ से लेखक का क्या आशय
उत्तर:
इससे लेखक का आशय है कि मद्रास की हिंदी प्रचार सभा के प्रयत्नों से दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार-प्रसार में पर्याप्त प्रगति देखने को मिलती है।

प्रश्न (ii)
दक्षिण की हिंदी प्रचार सभा विद्यापीठ के रूप में किस प्रकार कार्य कर रही है?
उत्तर:
दक्षिण की हिंदी प्रचार सभाप्रतिवर्ष कई सौ अध्यापक-अध्यापिकाओं को हिंदी अध्यापन का प्रशिक्षण प्रदान करती है। वे अध्यापक-अध्यापिकाएँ दक्षिण भारत के स्कूल और कॉलेजों में हिंदी-अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। इस प्रकार यहाँ की प्रचार सभा हिंदी विद्यापीठ के रूप में कार्य कर रही है।

गद्यांश की विषय-वस्त पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
रघुवरदयाल अहिंदीभाषी होते हुए भी हिंदी प्रचार सभा में कार्य क्या कर रहे थे?
उत्तर:
रघुवरदयाल को हिंदी से प्रेम था। वे दक्षिण की हिंदी प्रचार सभा में उसकी स्थापना से लेकर आज तक कार्य कर रहे हैं। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा का अंग मानकर सभा में कार्य कर रहे थे।

प्रश्न (ii)
रघुवरदयाल मिश्र ने लेखक को क्या जानकारी दी थी?
उत्तर:
रघुवरदयाल मिश्र ने लेखक को जानकारी दी थी कि तंजोर पुस्तकालय में मणि-प्रवाल शैली में रचित एक बहुत पुराना ग्रंथ है, जो हाथ से लिखा हुआ है। उस ग्रंथ में अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी रचनाएँ हैं।

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