MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 6 डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरमन

MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 6 डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरमन

डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरमन अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
डॉ. रमन छात्रवृत्ति मिलने के बाद भी विदेश क्यों नहीं जा सके?” (2016)
उत्तर:
श्री रमन ने एम. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। भौतिक विज्ञान में विश्वविद्यालय का रिकॉर्ड तोड़ दिया। सरकार ने इनमें असाधारण प्रतिभा देखी तो विदेश जाने के लिए छात्रवृत्ति देना स्वीकार कर लिया। किन्तु अस्वस्थता के कारण आप विदेश नहीं जा सके। लाचार होकर इन्होंने अर्थ विभाग की प्रतियोगिता परीक्षा दी और सर्वप्रथम उत्तीर्ण घोषित हुए। तदुपरान्त इनकी नियुक्ति डिप्टी डायरेक्टर-जनरल के पद पर कोलकाता में हो गई।

प्रश्न 2.
ब्रिटेन यात्रा के समय डॉ. रमन ने क्या-क्या देखा?
उत्तर:
ब्रिटेन यात्रा के समय डॉ. रमन ने समुद्र के नीले रंग को बड़े ध्यान से देखा। यह उनका प्रथम अवसर था। जब वे यात्रा से वापस लौटकर आये तो अपनी प्रयोगशाला में अनुसंधान किया और पता लगाया कि लहरों पर प्रकाश के कारण जल नीला दिखाई देता है। आकाश का रंग भी इसी तरह नीला दिखाई पड़ता है। इन प्रयोगों के परिणामों को विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया और चारों ओर अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध हो गए। विश्व के विद्वान वैज्ञानिकों में इनकी गणना होने लगी।

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प्रश्न 3.
डॉ. रमन ने किन-किन वाद्ययंत्रों के गुणों का अध्ययन किया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोलकाता में रहते हुए रमन ने वीणा, मृदंग, पियानो आदि वाद्ययंत्रों के शाब्दिक गुणों का अध्ययन किया। इनकी इस खोज से विश्व में तहलका मच गया।

प्रश्न 4.
डॉ. रमन ने किन-किन देशों का भ्रमण किया? (2015)
उत्तर:
डॉ. रमन ने ब्रिटेन के अतिरिक्त अमरीका, रूस तथा यूरोप के अन्य देशों का भी भ्रमण किया। अमरीका के प्रख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर मिलिकन ने स्वयं आकर इनसे भेंट की। सन् 1914 ई. में लन्दन की रॉयल सोसाइटी ने आपको फैलो चुना। आपको कनाडा भी बुलाया और वहाँ आपके प्रकाश सम्बन्धी खोज पर अपना भाषण देने के लिए आमन्त्रित किया।

प्रश्न 5.
“डॉ. रमन का जीवन तत्परता, परिश्रम और एकाग्रता से पूर्ण था।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
डॉ. रमन ने जितने भी अनुसंधान किए, वे सभी मौलिक थे। साथ ही उन्होंने अपने विद्यार्थियों को अनुसंधान की ओर प्रेरित किया। उनकी ही प्रेरणा से डॉ. के. एस. कृष्णन् जैसे वैज्ञानिक भारत को आप की ही देन हैं। रमन का स्वभाव बहुत ही सरल और विनीत था। उनमें अभिमान तो रंचमात्र भी नहीं था।

उनके अन्दर तत्परता ऐसा गुण था कि वे किसी भी विषय पर जिसकी ओर यदि उनमें आकर्षण पैदा हो गया, तो वे उसके सम्बन्ध में पूरी अनुसन्धान विधि से जानकारी लेने में तत्पर रहते थे। साथ ही कोई भी विद्यार्थी अपने शोध अथवा अन्य समाधानों के लिए उनकी सहायता की आकांक्षा रखता तो वे उसकी पूरी-पूरी मदद करते। लेकिन उनमें यह भी एक अन्य विशेषता थी कि वे किसी के भी अनावश्यक हस्तक्षेप को पसन्द नहीं करते थे।

अब आती है बात परिश्रम की। वे वैज्ञानिक अनुसंधानों में दिन-रात जुटकर परिश्रम किया करते थे। अपने बहुमूल्य समय को व्यर्थ नहीं गंवाते थे। एक-एक क्षण में उपयोग से उन्होंने लगातार कितने ही अनुसन्धान और प्रयोग कर डाले। यह उनकी लगन, तत्परता और परिश्रम का ही परिणाम था।

डॉ. रमन एक वैज्ञानिक का अपनी प्रयोगशाला में ही अपना मूल स्थान बताया करते थे, कार्यालयों में नहीं। इसका तात्पर्य यह है वे स्वयं भी किसी प्रयोग को करने में और उस विषय का (समस्या का) समाधान ढूँढ़ने में एकाग्र मन से लगे रहते थे। बर्फ के टुकड़े अथवा साबुन के बुलबुलों तक में अपने अनुसधान करने और जिज्ञासा को शान्त करने के लिए तत्पर रहकर एकाग्रता से अपने निरीक्षणों का परिणाम घोषित करते थे।

इसलिए डॉ. रमन के विषय में यह कथन बिल्कुल सही है और प्रेरणाप्रद भी है कि वे अपने कार्य को तत्परता, परिश्रम और एकाग्रता से किया करते थे। यह उनकी एक बहुत बड़ी विशेषता थी।

प्रश्न 6.
एक महान वैज्ञानिक के रूप में डॉ. रमन की उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:
यद्यपि रमन ने अर्थ विभाग में कार्य किया, फिर भी उनका ध्यान सदा विज्ञान की ओर लगा रहा। वे भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद् के सदस्य बने। वहाँ के मंत्री को अपने उन पत्रों को दिखाया जो प्रकाशित हो चुके थे। साथ ही उन्होंने अपनी अभिरुचि को व्यक्त किया कि वे अनुसंधान करना चाहते हैं। भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद् के मंत्री महोदय उनके लेखों से बहुत प्रभावित हुए। उनके इन लेखों से उनके वैज्ञानिक अभिरुचि का पता चलता था। मंत्री महोदय ने इन्हें परिषद् का सदस्य भी बना लिया और अनुसंधान करने की पूरी-पूरी सुविधा भी प्रदान कर दी।

कोलकाता से रंगून के लिए इनका स्थानान्तरण सन् 1910 ई. में कर दिया गया। वहाँ भी इन्होंने अपने अनुसंधानों को जारी रखा। इनके पिताजी का देहान्त भी इसी वर्ष हो गया, अत: इन्होंने छ: माह का अवकाश लिया और चेन्नई आ गये। बाद में आपकी नियुक्ति कोलकाता में ही डाकतार विभाग में एकाउन्टेन्ट के पद पर हो गई। डॉ. रमन सदैव वैज्ञानिक अनुसंधानों की ओर विशेष रुझान रखते थे। साथ ही, अपने विभाग के कार्यों को भी समय पर तत्परता से करते थे।

जब सन् 1914 ई. में कोलकाता में साइन्स कॉलेज की स्थापना हुई, तब सर आशुतोष मुखर्जी ने इन्हें विज्ञान कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के पद पर बुलाया, क्योंकि सर मुखर्जी भौतिक विज्ञान में इनकी प्रतिभा से अच्छी तरह परिचित थे। उन्होंने सर आशुतोष मुखर्जी के कहने पर सरकारी नौकरी छोड़ दिया और आचार्य पद स्वीकार कर लिया।

जब वे विज्ञान कॉलेज के प्रोफेसर नियुक्त हुए उस समय उनकी उम्र केवल 29 वर्ष की थी। इस तरह सन् 1917 ई. में इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में काम करना स्वीकार कर लिया। विश्वविद्यालय में रहते हुए इन्होंने अनेक अनुसंधान किए. जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण थे। बाद में, ब्रिटिश साम्राज्य के सभी विश्वविद्यालयों की एक कॉन्फ्रेंस हुई; तब कोलकाता विश्वविद्यालय ने इन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर इंग्लैण्ड भेजा।

ब्रिटिश यात्रा के दौरान रमन ने समुद्र के नीले रंग को ध्यान से देखा। अपनी यात्रा से लौटकर अपनी प्रयोगशाला में अनुसंधान से इन्होंने ज्ञात किया कि लहरों पर प्रकाश के कारण जल नीला दिखाई देता है। आकाश भी इसी तरह नीला दिखाई देता है। इन प्रयोगों को और उनके निष्कर्षों को विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया और चारों ओर इनकी विद्वता की धूम फैल गई। इन्हें तब से महान वैज्ञानिकों में गिना जाने लगा। इंग्लैण्ड के अलावा इन्होंने अमरीका, रूस और यूरोप के अन्य देशों में अपनी वैज्ञानिक खोजों के प्रपत्रों को विभिन्न वैज्ञानिक समितियों में पढ़ा और उनके निष्कर्षों को उपस्थित लोगों के सम्मुख रखा, तो अमरीका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर मिलिकन ने स्वयं आकर इनसे भेंट की। सन् 1922 ई. में कोलकाता विश्वविद्यालय ने आपकी अमूल्य सेवाओं से प्रसन्न होकर डी. एस-सी. की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1974 ई. में लन्दन की रॉयल सोसाइटी ने इन्हें फैलोशिप के लिए चुन लिया।

प्रकाश सम्बन्धी खोजों पर भाषण देने के लिए इन्हें कनाडा बुलाया गया। ग्लेशियर पर हरे और नीले रंग देखे। इन्होंने अपने प्रयोगों से खोज निकाला कि पारदर्शक और अपारदर्शक पदार्थों पर प्रकाश का परिक्षेपण होता है। सन् 1924 ई. में ‘रमन-प्रभाव’ से सिद्ध किया कि अणु प्रकाश बिखेरते हैं और मूल-प्रकाश में परिवर्तन हो जाता है।

सन् 1929 ई. में चेन्नई में भारतीय विज्ञान काँग्रेस के लिए इन्हें अध्यक्ष चुना गया। अनेक संस्थानों ने इन्हें सम्मानित किया। ब्रिटिश सरकार ने सन् 1930 ई. में इन्हें ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया। ‘रमन-प्रभाव’ के अनुसंधान के लिए ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। एशिया के पहले व्यक्ति थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। स्टॉकहोम में भी पुरस्कार मिला। देश और विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों ने इन्हें डी. एस-सी. की सम्मानित उपाधि दी।

कोलकाता विश्वविद्यालय से मुक्त होकर सरकार के आग्रह पर इन्होंने बंगलूरू के ‘इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ साइन्स’ में अनुसंधान कार्य के संचालक का पद स्वीकार किया और भौतिक विज्ञान की एक प्रयोगशाला स्थापित की। सन् 1941 ई. में इन्हें अमरीका का प्रसिद्ध ‘फ्रेन्कलिन पुरस्कार’ प्रदान किया गया। सन् 1943 ई. में बंगलूरू में ही ‘रमन इन्स्टीट्यूट’ की स्थापना की। सन् 1954 में भारत सरकार ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ इन्हें प्रदान किया। सन् 1957 ई. में सोवियत रूस ने ‘लेनिन शान्ति पुरस्कार’ देकर आपको सम्मानित किया।

डॉ. रमन जैसे विज्ञानवेत्ताओं पर भारत माता गर्व करती है।

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प्रश्न 7.
प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने के लिए डॉ. रमन ने किस प्रकार तैयारी की ? लिखिए।
उत्तर:
भौतिक विज्ञान विषय में बी. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और विश्वविद्यालय का रिकार्ड तोड़ दिया क्योंकि अभी तक कोई भी छात्र भौतिक विज्ञान में न तो प्रथम आया और न किसी को इतने अंक ही मिले। इनकी असाधारण प्रतिभा को देखकर छात्रवृत्ति देना स्वीकार कर लिया किन्तु अस्वस्थ हो गए और विदेश नहीं गए।

परवशता में इन्होंने अर्थविभाग की प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल होने का निश्चय किया। प्रतियोगिता परीक्षा में बैठने के लिए इन्हें इतिहास और संस्कृत आदि नए विषयों का अध्ययन करना पड़ा। वे इस बात से परिचित थे कि प्रतियोगिता परीक्षा में इन विषयों में अधिक अंक मिलते हैं।

बस, इसी कारण से इन्होंने इन विषयों का (इतिहास और संस्कृत) का विशेष अध्ययन किया और प्रतियोगिता परीक्षा में सर्वप्रथम उत्तीर्ण घोषित हुए। इन विषयों की तैयारी भी उन्होंने अपनी तत्परता, लगनशीलता और परिश्रम से की। इनके इन्हीं गुणों के कारण कभी भी न पढ़े गए इन विषयों में अपनी अलौकिक प्रतिभा का प्रदर्शन कर सर्वप्रथम उत्तीर्ण हुए।

प्रश्न 8.
‘रमन प्रभाव घटना’ एक महत्त्वपूर्ण खोज थी, इसके बारे में विस्तार से बताइए। (2009)
उत्तर:
ब्रिटेन की यात्रा के अवसर पर रमन को समुद्र के नीले रंग को ध्यान से देखने का अवसर मिला। यात्रा से लौटकर अपनी प्रयोगशाला में अनुसंधान किया और बताया कि लहरों पर प्रकाश के कारण जल नीला दिखाई देता है। इसी तरह आकाश का रंग भी नीला दिखाई देता है। इन प्रयोगों को विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया। परिणामतः आपकी विद्वता की धूम चारों ओर मच गई। आपकी गणना संसार के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों में होने लगी।

इसका नतीजा यह हुआ कि आपने ब्रिटिश के अलावा अमरीका, रूस और यूरोप के अन्य देशों की यात्राएँ की। अपनी खोजों और अनुसंधान सम्बन्धी प्रयोगों का निष्कर्ष लोगों के सामने रखा। प्रकाश सम्बन्धी खोजों पर भाषण देने के लिए कनाडा में आप को बुलाया गया। वहाँ के ग्लेशियर को देखते समय इन्होंने हरे और नीले रंग से मिले हुए बर्फ के टुकड़ों को देखा

और उन पर मुग्ध हो गए। उन्होंने एक टुकड़े को काट लिया किन्तु उसमें कोई भी रंग नहीं था। इससे वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्रकाश का परिक्षेपण पारदर्शक पदार्थों में ही नहीं होता, अपितु बर्फ जैसे ठोस पदार्थों में भी होता है। साबुन के बुलबुलों के सम्बन्ध में भी रमन ने इसी प्रकार के प्रयोग किए और सन् 1928 ई. में आपने नया आविष्कार कर दिखाया। इसे ‘रमन प्रभाव’ कहते हैं। ‘रमन-प्रभाव’ के द्वारा आपने यह सिद्ध कर दिया कि जब अणु प्रकाश बिखेरते हैं, तो मूल प्रकाश में परिवर्तन हो जाता है और नई किरणों के कारण परिवर्तन दिखाई देता है। ‘रमन-प्रभाव’ के आधार पर आधुनिक वैज्ञानिकों ने बड़े-बड़े आविष्कार किए हैं।

आपने बंगलूरू में सन् 1943 ई. में ‘रमन इन्स्टीट्यूट’ की स्थापना की। इस इन्स्टीट्यूट में भौतिक विज्ञान विषय पर अनुसंधान कार्य होता है।

प्रश्न 9.
डॉ. वेंकटरमन की कार्य प्रणाली से आप किस प्रकार प्रेरणा ग्रहण करेंगे ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
डॉ. वेंकटरमन की कार्य प्रणाली हम सभी को प्रेरणा देने के लिए एक बहुत बड़ा माध्यम सिद्ध होती है। सबसे प्रथम तो बालक रमन पर बाल्यकाल से ही अपने परिवेश का भारी प्रभाव पड़ना शुरू हो गया। जब आप हाईस्कूल तक पहुँचे, तब तक आपने कितनी ही विज्ञान सम्बन्धी पुस्तकों का अध्ययन कर लिया था। इसका सीधा प्रभाव यह हुआ कि उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा सम्मानपूर्वक उत्तीर्ण कर ली। एम. ए. भी प्रथम श्रेणी में पास की। परन्तु आपके अ६ ययन का विषय विज्ञान नहीं था।

उपर्युक्त बातों से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम किसी भी विषय का अध्ययन करें, परन्तु उस विषय का अध्ययन लगन और तत्परता से किया जाना चाहिए। अपनी पूरी क्षमताओं का उपयोग परिश्रमपूर्वक करना चाहिए।

अब बात आती है स्नातक स्तर पर अध्ययन करने की प्रक्रिया की। इन्होंने अल्पायु में ही इससे पूर्व की कक्षाओं का अध्ययन कर लिया तो इन्हें बी. ए. में किसी छोटी कक्षा का छात्र माना जाने लगा। अंग्रेजी के प्रोफेसर इलियट तो इन्हें किसी छोटी कक्षा का छात्र मानते रहे। बी. ए. की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। आपको स्वर्णपदक और पारितोषिक विश्वविद्यालय की ओर से दिए गए। पूरे विद्यालय में अकेले इन्हीं के प्रथम आने पर इन्हें ‘अरणी स्वर्ण पदक’ भी मिला। प्रधानाचार्य को रमन की प्रतिभा पर आश्चर्य था और रमन ने उन्हें प्रभावित भी किया। अतः इन्हें मनचाहे प्रयोग करने के लिए पूरी-पूरी सुविधाएँ दी गईं।

‘गणित’ और ‘यंत्र विज्ञान’ का अध्ययन भी इन्होंने अपनी रुचि से किया। अपने छात्र जीवन में ‘रमन’ अपनी प्रयोगशाला में घण्टों बैठे रहते थे। एम. ए. में प्रवेश लिया। मौलिक अन्वेषण की प्रतिभा का प्रथम परिचय दिया। ‘नाद-शास्त्र’ पर भी नए तरीके का एक प्रयोग किया। इन सभी कार्यों से रमन की प्रतिभा और अलौकिक विद्वता का प्रभाव हम सभी को नई खोजों को और अन्वेषणों को प्रगति देने के लिए प्रेरित करता है।

रमन ने एम. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इनकी अप्रतिम प्रतिभा के कारण छात्रवृत्ति देकर विदेश भेजने का सरकार ने अवसर दिया। लेकिन अपनी अस्वस्थता के कारण विदेश नहीं गए। अर्थ विभाग की प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल हुए। प्रथम उत्तीर्ण घोषित हुए और डिप्टी डायरेक्टर-जनरल के पद पर नियुक्त हुए।

विज्ञान क्षेत्र के इन्होंने अनेक अनुसंधान किए, कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर नियुक्त हुए, विदेशी यात्राएँ की, अनेक अन्वेषणों के नतीजे विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इनके लिए इन्हें सम्मानित किया गया। अनेक उपाधियाँ और पारितोषिक मिले। नोबेल पुरस्कार मिला, भारत रत्न की उपाधि मिली, ये सब डॉ. रमन की अपनी मेहनत, लगन, तत्परता और बौद्धिक क्षमता का ही प्रभाव था।

इनसे हम सभी को अनुप्राणित होकर अपने-अपने विषयों के प्रति अभिरुचि के अनुसार कार्य प्रणाली अपनाना और मानव हित को ध्यान में रखते हुए कार्य करने की प्रेरणा हमें मिलती है।

डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरमन अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चन्द्रशेखर वेंकटरमन का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
चन्द्रशेखर वेंकटरमन का जन्म दक्षिण भारत के त्रिचनापल्ली (तमिलनाडु) नामक नगर में 7 नवंबर, 1888 ई. को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

प्रश्न 2.
चन्द्रशेखर वेंकटरमन को कब और किस कार्य के लिए सर्वोच्च वैज्ञानिक सम्मान’ नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया?
उत्तर:
सन् 1930 ई. में चन्द्रशेखर वेंकटरमन को भौतिक विज्ञान का ‘नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया। उन्हें यह पुरस्कार उनके द्वारा सम्पादित रमन प्रभाव के अनुसंधान के लिए दिया गया।

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डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरमन पाठ का सारांश

प्रस्तावना :
जन्म एवं शिक्षा-चन्द्रशेखर वेंकटरमन का जन्म दक्षिण भारत के त्रिचनापल्ली (तमिलनाडु) नामक नगर में 07 नवम्बर, 1888 ई. को विद्या के क्षेत्र में विख्यात ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रशेखर अय्यर तथा माता का नाम पार्वती अम्मल था। रमन के जन्म के समय श्री अय्यर त्रिचनापल्ली के हाईस्कूल में अध्यापक थे। बाद में, विजगापट्टम के हिन्दू कालेज में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक हो गए। रमन के पिता अपने विषय के प्रकाण्ड विद्वान थे।

रमन पर भी अपने पिता का प्रभाव पड़ा और हाईस्कूल तक पहुँचते-पहुँचते उन्होंने विज्ञान की अनेकों पुस्तकों का अध्ययन कर डाला। इन्होंने कुल 12 वर्ष की उम्र में ही मैट्रिक की परीक्षा सम्मानपूर्वक पास कर ली। सन् 1901 ई. में आपने एफ. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की लेकिन इसका विषय विज्ञान नहीं था। प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से बी. ए. की परीक्षा विज्ञान विषय के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। स्वर्ण पदक और पारितोषिक विश्वविद्यालय की ओर से मिले। उस वर्ष विश्वविद्यालय में रमन ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे। भौतिक विज्ञान का ‘अरणी स्वर्ण पदक’ भी आपको मिला। रमन ने गणित और यंत्र विज्ञान का भी अE ययन किया। बी. ए. (भौतिक विज्ञान) की परीक्षा रमन ने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और पिछले रिकार्डों को तोड़ दिया। उस समय तक भौतिक विज्ञान में कोई भी प्रथम श्रेणी में नहीं आया था।

इसके बाद इन्होंने अर्थ विभाग की प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण की और सर्वप्रथम घोषित हुए तथा डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद पर कोलकाता (कलकत्ता) में नियुक्त हो गए।

इनका विवाह सामुद्रिक चुंगी विभाग के सुपरिन्टेन्डेन्ट श्री कृष्णस्वामी अय्यर (मद्रास) और श्रीमती रुक्मणी अम्मल की पुत्री से हो गया।

विज्ञान की तरफ झुकाव :
अर्थ विभाग में काम करते हुए भी आप ‘भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद्’ में गए। वहाँ अपने प्रकाशित लेखों को दिखाया और वहाँ से अनुसंधान करने की अनुमति प्राप्त की। कोलकाता से इन्हें रंगून के लिए स्थानान्तरित कर दिया। इन्होंने अपने वैज्ञानिक अनुसंधान जारी रखे। सन् 1910 ई. में इनके पिता का देहावसान हो गया। छ: माह के अवकाश पर भारत आए। इसी बीच इनकी नियुक्ति डाकतार विभाग में एकाउन्टेन्ट के पद पर हो गई। सरकार ने इन्हें सचिवालय में बुलाना चाहा किन्तु इन्होंने स्वीकार नहीं किया।

कोलकाता विश्वविद्यालय :
रमन ने कोलकाता में रहकर वीणा, मृदंग, पियानो आदि वाद्ययंत्रों के शाब्दिक गुणों का अध्ययन किया। सन् 1914 ई. में कोलकाता में साइंस कॉलेज खोला गया। सर आशुतोष मुखर्जी रमन की प्रतिभा से परिचित थे। अतः इन्हें वहाँ भौतिक विज्ञान के पद पर प्रोफेसर नियुक्त कर दिया। इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और आचार्य पद स्वीकार कर लिया। सन् 1917 ई. में मात्र 29 वर्ष की आयु में इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में काम करना आरम्भ किया। कोलकाता विश्वविद्यालय ने इन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर विश्वविद्यालयों की कॉन्फ्रेंस में भाग लेने इंग्लैण्ड भेजा।

विदेश यात्रा व रमन :
प्रभाव की नींव-विदेश यात्रा से लौटकर इन्होंने प्रयोगशाला में अनुसंधान किया और पता लगाया कि लहरों पर प्रकाश के कारण जल नीला दिखाई देता है। आकाश का रंग भी नीला दिखता है। इन प्रयोगों के नतीजे विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इन्हें अपनी खोजों के लिए प्रशंसा मिली और प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में गणना होने लगी। इन्होंने अमरीका, रूस और यूरोप के अन्य देशों की भी यात्राएँ की। अमरीका के विख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर मिलिकन ने स्वयं आकर इनसे भेंट की और सन् 1922 ई. में कोलकाता विश्वविद्यालय में इन्हें डी. एस. सी. की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। सन् 1914 ई. को लन्दन की रॉयल सोसाइटी ने इन्हें फैलो चुना। प्रकाश सम्बन्धी खोजों पर भाषण देने के लिए कनाडा बुलाया गया। वहाँ के ग्लेशियर्स को देखकर निष्कर्ष निकाला कि प्रकाश का परिक्षेपण पारदर्शक पदार्थों में ही नहीं होता अपितु बर्फ जैसे ठोस पदार्थों में भी होता है। सन् 1928 ई. में ‘रमन प्रभाव’ नामक आविष्कार कर दिखाया। इसके अनुसार, सिद्ध कर दिया कि जब अणु प्रकाश बिखेरते हैं, तो मूल प्रकाश में परिवर्तन हो जाता है।

विज्ञान के नोबेल पुरस्कार विजेता :
सन् 1929 ई. में भारतीय विज्ञान काँग्रेस के आप अध्यक्ष चुने गए। सन् 1929 ई. में ब्रिटिश सरकार ने ‘सर’ की उपाधि दी। सन् 1930 ई. में भौतिक विज्ञान का ‘नोबेल पुरस्कार’ रमन प्रभाव के उपलक्ष्य में मिला। विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों ने इन्हें डी. एस. सी. या पी. एच. डी. की उपाधि देकर सम्मानित किया।

कोलकाता विश्वविद्यालय से मुक्त होकर सरकार के आग्रह पर इन्होंने बंगलूरू के ‘इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ साइन्स’ में अनुसंधान संचालक का पद स्वीकार कर लिया। सन् 1941 ई. में आपको अमरीका का प्रसिद्ध ‘फ्रेन्कलिन पुरस्कार’ प्रदान किया गया। सन् 1953 ई. में भारत सरकार ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘भारत-रत्न’ इन्हें प्रदान किया। सन् 1957 ई. में सोवियत रूस ने ‘लेनिन शान्ति पुरस्कार’ देकर आपको सम्मानित किया।

व्यक्तित्व :
डॉ. रमन ने अपने विद्यार्थियों को अनुसन्धान के लिए प्रेरित किया। डॉ. के. एस. कृष्णन जैसे विज्ञानवेत्ता भारत को आपकी ही देन हैं। वे स्वभाव से नम्र, सरल और विनीत थे। अभिमान उनमें था ही नहीं। उनमें तत्परता, परिश्रम और एकाग्रता जैसे विरल गुण विद्यमान थे। वे सदा लोकहित के ही कार्य करते थे। वे साहित्य, प्रकृति, संगीत, खेल आदि में विशेष रुचि लेते थे। बच्चों से अगाध प्रेम करते थे। रमन की मृत्यु 82 वर्ष की आयु में 21 नवम्बर, 1970 ई. को बंगलूरू में हो गई।

डॉ. रमन जैसे वैज्ञानिकों पर भारत गौरवान्वित महसूस करता है।

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MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Micro Economics Introduction 

MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction

Micro Economics Introduction Important Questions

Micro Economics Introduction Objective Type Questions

Question 1.
Choose the correct answers:

Question 1.
Indian economy is:
(a) Centrally planned economy
(b) Market economy
(c) Mixed economy
(d) None of these.
Answer:
(c) Mixed economy

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Question 2.
Who used the word ‘micro’ for the first time:
(a) Marshall
(b)Boulding
(c) Keynes
(d) Ragnar Frisch
Answer:
(d) Ragnar Frisch

Question 3.
Who said economics is the ‘Science of wealth:
(a) Prof. Robbins
(b) Prof. J.K. Mehta
(c) Prof. Marshall
(d) Prof. Adam Smith
Answer:
(d) Prof. Adam Smith

Question 4.
What is the shape of production possibility curve:
(a) Concave to the origin
(b) Concave
(c) Straight line
(d) None of the above.
Answer:
(a) Concave to the origin

Question 5.
The reason for downward shape of production possibility curve is:
(a) Increasing opportunity cost
(b) Decreasing opportunity cost
(c) Same opportunity cost
(d) Negative opportunity cost
Answer:
(b) Decreasing opportunity cost

Question 6.
The point of optimum utilization of resources lies on which side of PPC curve:
(a) Towards left
(b) Towards right
(c) Inside
(d) Upwards
Answer:
(d) Upwards

Question 2.
Fill in the blanks:

  1. Every person has ………………… quantity of goods.
  2. ……………………economics is the study of individual economic units.
  3. Opportunity cost ………………….. in production list.
  4. Micro and Macro-economics are ……………………… to each other.
  5. Economic growth is related to ………………………… economics.
  6. Economy is a group of ………………….. units.
  7. Mixed economy is composed of ………………………. and …………………………
  8. The goods and services which help in the production of other goods and services are ………………………. goods.

Answer:

  1. Few
  2. Micro-economics
  3. Changes
  4. Complement
  5. Macro
  6. Production
  7. Socialism, Capitalism
  8. Intermediate

Question 3
State true or false:

  1. Production possibility curve is convex towards main point.
  2. Central problem in the capitalist economy is solved by price mechanism.
  3. An economy can be capitalist, socialist or opportunist.
  4. Today all economics of the world are almost mixed economics.
  5. Macro-economics is the study of the problems of unemployment, price inflation etc.
  6. In socialism, the feeling of personal profit is prominent.

Answer:

  1. False
  2. True
  3. False
  4. True
  5. True
  6. False

Question 4.
Match the following:
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-1
Answer:

  1. (c)
  2. (d)
  3. (a)
  4. (e)
  5. (b)

Question 5.
Answer the following in one word/ sentence:

  1. Which economy is adopted in India ?
  2. What is the production possibility curve towards its origin ?
  3. The governmentalization of exploitation is the fault of which economy ?
  4. The struggle class is the specialty of which economy ?
  5. Which economy has limited the scope of private sector ?
  6. What is the heart of all the institutions of capitalism ?
  7. What are central problems of an economy known as ?
  8. Based on priorities, who determines the production area and quantity of production ?

Answer:

  1. Mixed economy
  2. Concave
  3. Socialist
  4. Capitalism
  5. Socialism
  6. Profit
  7. Basic work
  8. Central Planning Authority

Micro Economics Introduction Very Short Answer Type Questions

Question 1.
What do you mean by macro-economics ?
Answer:
Macro-economics aims at dealing with the aggregates and averages. It is not interested in the individual items but as total savings, total consumption, total employment, aggregate demand, etc.

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Question 2.
What do you mean by micro-economics ?
Answer:
Micro-economics studies the economic actions of individuals i.e., particular firm, individual households, wages, interest, profit etc. In other words it is infact a microscopic study of the economy.

Question 3.
What is the central point of macro-economics ?
Answer:
The central point of marco-economics is the analysis of national income.

Question 4.
What do you mean by goods ?
Answer:
All physical, tangible objects which satisfy human wants and need i.e., objects which possess utility, are called goods.
For example : Tables, cars, etc.

Question 5.
What do you mean by economic activity ?
Answer:
Economic activities are those activities which increases the material, welfare of man and which are used for increasing wealth and welfare.

Question 6.
How are services ?
Answer:
Services are non – material, intangible goods which can not be seen, touched or stored and have power to satisfy human wants and needs. For example, services provided by doctor.

Question 7.
Write the meaning of ‘a person’.
Answer:
By person, we mean the decision taking units.

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Question 8.
How many branches are there of Economics ?
Answer:
Economics has two branches:

  1. Micro-economics
  2. Macro-economics

Question 9.
What to you mean by resources ?
Answer:
Those goods and services which are used to produce other goods are known as resources. They are traditionally known as factors of production.

Question 10.
What do you mean by economy ?
Answer:
It refers to the sum total of economic activities in an area, which may be a village, a city, a district, or a country as a whole. They provide source of livelihood.

Micro Economics Introduction Short Answer Type Questions

Question 1.
What do you mean by macro-economics ? Write its two characteristics.
Answer:
Macro-economics:
Macroeconomics is the study of aggregate factors such as employment, inflation and gross domestic product and evaluating how they influence the economy as a whole.

The characteristics of macro-economics are as follows:
1. Broader perspective:
The concept of macro-economics is broader. In it small units are not given importance but with the help of it National and International economic problems.

2. Broad analysis:
In macro-economics broad analysis is given importance. For example, under the subject matter of macro-economics we study the monetary and fiscal policies of the government. It studies the general problems of national level like the effects on – monetary policy, fiscal policy, general price level, general employment etc. If the effect of public finance and public expenditure is good on society then we can conclude that the . effect of it is also good on each person of the society.

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Question 2.
Explain the main types of Macro-economics.
Answer:
Following are the types of Macro-economics:

1. Macro static:
Macro static method explains the certain aggregative  relations in 1 stationary state. It does not reveal the process by which the national economy reaches the equilibrium. It deals with the final equilibrium of the economy at a particular point of time. It does not analyse the path by which the economy reaches equilibrium. It presents a “still” picture of the economy as a whole at a particular point of time. Pro. Keynes has explained by this equation:

Y = C +1.
Here, Y = Total income, C = Total consumption expenditure, I = Total investment expenditure.

2. Comparative macro statics:
The various macro variables in the economy are subject to charge with the passage of time. Total consumption, total investment and total income etc. go on changing and so the economy reaches different levels of equilibrium.

3. Macro dynamics:
This is a realistic and new method of economic analysis. Under this method, we study how the equilibrium in the economy is reached as a result of changes in the macro variables and aggregates. This method enables us to see the movie picture of the entire economy as progressive whole. This method is a complex method. It is recently developed by Frish, Robertson, Hicks, Tinburzon, Samulson etc.

Question 3.
What is economic problem ? Why do economic problem arises ?
Answer:
An economic problem is basically the problem of choice which arises because of scarcity of resources. Human wants are unlimited but means to satisfy them are limited. Therefore, all human wants cannot be satisfied with limited means.

An economic problem arises because of the following causes:
1. Human wants are unlimited :
With the satisfaction of one want, another want arises. These is a difference in the intensity of wants also. Thus, there is an unending circle of wants, when they arise, are satisfied and arise again.

2. Limited resources:
Means are limited for the satisfaction of wants. Scarcity of resources is a relative term, for satisfying a particular want, resources can be in abundance, but for the satisfaction of all the wants, resources are scarce. Thus, scarcity of resources gives rise to economic problems.

Question 4.
“Scarcity is the mother of all economic problems”. Explain.
Answer:
The statement is true, no matter, how well a particular economy is endowed with resource, these resources will be relatively scarce to fulfill its unlimited wants. Moreover, these scarce resources have alternative uses and can be allocated to the production of different goods and services. Thus, it is due to the scarce availability of resources to fulfill the different and competing unlimited wants that an economy faces the economic problem of choice. Thus, it is rightly said that Scarcity of resources is the mother of all economic problems.

Question 5.
What do you understand by positive economic analysis ?
Answer:
Positive economic analysis is confined to cause and effect relationship. In other words, it states “What is it relates to, what the facts are, were or will be about various economic phenomena in the economics, e.g., it deals with the analysis of questions like what are the causes of unemployment.

Question 6.
What do you understand by normative economic analysis ?
Answer:
Normative economic analysis is concerned with ‘What ought to be’. It examines the real economic events from moral and ethical angles and judge whether certain economic events are desirable or undesirable, e.g., it deals with the analysis of questions like what should be the prices of food grains, unemployment is better than poverty, rich persons should be faxed more.

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Question 7.
Write main assumptions of production possibility curve.
Answer:
Following are the main assumptions of production possibility curve:

  1.  Economy produces only two goods X and Y in different proportions.
  2.  Amount of resources available in an economy are given and fixed.
  3.  Resources are not specific i.e., they can be shifted from the production of one goods to the other goods.
  4.  Resources are fully employed, i.e., there is no wastage of resources.
  5.  State of technology in an economy is given and remains unchanged.
  6.  Resources are efficiently employed.

Question 8.
What is production possibility curve ? Explain with example.
Answer:
Production possibility curve shows graphical presentation of various combination of two goods that can be produced with available technologies and given resources assuming that the resources are fully and efficiently employed. The production possibility curve is also known as transformation curve. PPC can be explained with the help of example and imaginary schedule.

Question 9.
What do you mean by opportunity cost ?
Answer:
The opportunity cost of a good is the value of the next best alternative good is forgone for it. In other words opportunity cost of any commodity is the amount of other good which has been given up in order to produce that commodity.

Question 10.
A school teacher takes two years of leave for study to get the degree of doctorate of philosophy from a university. His monthly income is Rs 35,200 and the fees of research degree is Rs 40,000. What will be his opportunity cost for doctorate degree ?
Solution:
Opportunity cost = (35,200 × 12 x 2) + 40,000
= (35,200 × 24) + 40,000
=  Rs 8,84,800.

Question 11.
Why is production possibility curve downward sloping ?
Answer:
Production possibility is a curve which shows various production possibilities with the help of given limited resources and technology. It is also known as production possibility frontier and transformation curve. It i&downward sloping from left to right because in a situation of fuller utilization of the given resources, production of both the goods cannot be increased together. More of goods X can be produced only with less of goods Y as resources are scarce. Because of this un use relationship between production of both the goods, PPC is downward sloping.
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-2

Question 12.
Why is production possibility curve concave to the origin ?
Answer:
Production possibility curve is concave to the origin because to produce each additional unit of goods X, more and more unit of goods Y is to be sacrificed. Opportunity cost of producing every additional unit of goods ‘A’ tends to increase in terms of the loss of production of goods Y. It is so because factors of production are not perfect substitute of each other. As we move down along the PPC, the opportunity cost increases. And this causes the concave share of PPC.

For example, if in any state, production of mango is more and it may not be same in other state, the other state may lead in the production of sugar cane. So, it is not Goods (A) necessary that a person who is efficient in the production of one goods will also lead in the production other good. This shows increase in marginal opportunity cost reason of marginal opportunity cost that PP curve is concave to the origin.
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-3

Question 13.
What is studied in Economics ?
Answer:
It is an important question that what should be studied under subject matter of economics. Wants are unlimited but resources are limited. It is decided in economics that row resources should be economically and more efficiently used. Study of subject-matter of economics includes the rational use of resources. The ultimate air of any economy is to have maximum economic welfare.

In any economy, what economic system we use is based on macro and micro-economics. In micro-economics, we study principle of consumers, price determination, producers behavior, monetary policy, inflation, Government budget, exchange rate etc. is studied.

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Micro Economics Introduction Long Answer Type Questions

Question 1.
Distinguish between Micro-economics and Macro-economics.
Answer:
Differences between Micro-economics and Macro-economics;
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-4

Question 2.
Define micro-economics and explain its characteristics.
Answer:
The word ‘micro’ is originated from the Greek word micros; which means small. Micro-economics studies the economic actions of individuals. Under this branch the whole economy is divided into small individual parts i.e., a particular firm, individual household, wages, interest, profit etc. According to Chamberlain, “The micro model is built solely on the individual and deals with interpersonal relations only.”

Characteristics:
Followings are the characteristics of micro-economics:
1. Study of individual units :
The first characteristics of micro-economics is that it studies individual units. It helps to explain personal income (individual income), individual production, individual consumption etc. Micro-economics studies the individual problems and helps in analyzing the whole economic system.

2. Study of small variable:
Micro-economics gives importance to the study of small variable. These variables have such little influence that they do not affect the whole economy.
For e.g., a single consumer by his consumption or a single producer by his production cannot have influence over the demand and supply of whole economic system.

3. Determination of individual price :
Micro-economics is also called the price theory. It determines the individual price of different products by analyzing the demand and supply i. e., behavior of buyers and sellers.

4. Based on the concept of full-employment:
While studying micro-economics the concept of full employment is taken into consideration.

Question 3.
Write any five importance of Micro-economics.
Answer:
The importance of micro-economics can be studied under the following points:
1. Essential for the knowledge of whole economy:
The sum of individual demand, individual production etc., make the aggregated demand and combined supply. Hence, micro-economics analysis is essential for knowing the position of whole economy.

2. Helpful in solving economic problems :
The problems of pricing of product and pricing of factors of production are main economic problems. Each factor of production demands more remuneration for it, each seller wants to get maximum price for his product. What price should be paid, at what price the problems should be sold all these problems are studied in micro-economics,

3. Helpful in determining economic policies:
The economic policies of government are studied in micro-economics in order to know as to how they influence the functioning of individual units.

4. Investigation of condition of economic welfare:
The study of micro-economics also reveals the effects of public expenditure and public revenue along with the position of individual consumption individual living standard etc. The classical economists favored micro-economic analysis as a measuring rod of economic welfare.

5. Helpful in decision making for individual units:
Micro-economics analysis proves helpful in taking rational decision about the problems of individual units profit of individual firm, individual income etc. Each consumers wants to get maximum satisfaction from his limited means, each firms want to get maximum profit.

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Question 4.
What are the limitations of macro-economics ?
Or
Write defects of macro-economics.
Answer:
The limitations of macro-economics are as follows :

1. Ignorance of individual units :
Macro-economics gives importance to aggregate rather than individual units. The sum of small individual economic units make the wall of whole economy. The whole economy depend on the economy of individual unit. Thus, the small individual units play the role of foundation which are ignored in the macro-economic analysis.

2. Conclusions are not practical :
The conclusions drawn from macro-economic analysis are after misleading. For example, if the general price index number is unchanged, it cannot be concluded that the price level is unchanged. The increase in prices of certain commodities and decrease in prices of other commodities may make the general price level in – charged but the fluctuations are found in the prices of individual commodities.

3. Measurement of aggregates is difficult:
The measurement of aggregates itself presents serious problems in certain cases. Despite several improvements in statistical techniques in recent years, it has not been possible to obtain reliable measures of aggregates.

4. Macro-economics does not depict correct picture of Individual units :
Macro-economics does not depict the true picture of individual units. For example, if the aggregate demand increases, the production will rise but there may be certain firms whose cost and output may increase or decrease.

Similarly if the level of income increases the consumption of some goods may increase and that of some may decrease also. The out of those goods will be reduced whose consumption tends to decrease and the output of those goods will be reduced whose consumption tends to decrease and the output of those goods will be in-creased whose consumption tends to increase.

5. It may not influence all the sectors of economy:
The principles or analysis of Macro-economics may not influence all the sectors of economy. For example, a general rise in prices may not affect all the sections of the community in a similar manner. Some sections may be affected more adversely than others. Some industries may get more benefit than others.

6. No consideration of composition of the aggregate:
Macro-economic analysis takes into consideration the size and types of the aggregate but does not take into consideration the composition of the aggregate. Unless and until the composition and all the components of the aggregate are not analysed, the forecasts of Macro-economic analysis are baseless the suggestions given on their basis will be of no use.

Question 5.
Explain any five points of importance of macro-economics.
Or
Write any five advantages of macro-economics.
Answer:
The importance of macro-economics is clear from the following facts:

1. Helpful in making and executing governmental economic policies:
The study of macro-economics is essential for formulation of the economic policies of the government. Government has to make policies of general level of production, general price level. Macro-economists help.in formulation of such policies.

2. Helpful for Micro-economics:
The study of macro-economics is helpful for studying micro-economics. No micro-economic law can be formulated without studying macro-economics.

3. Measurement of economic development:
Macro-economics deals with the aggregates (output, consumption, income, capital formation) which help in measuring the economic development of the country.

4. Study of inflation and deflation:
The study of aggregate demand and aggregate supply of currency enables us to analyse the rate of inflation and deflation in the country. By this we can get the idea of economic conditions and standard of living of people.

5. Helpful in the study of fluctuation in economy:
Macro-economics proves helpful in the study of fluctuations in the economy through the analysis of national aggregates like; income, output saving, investment etc.

Question 6.
Write any five limitations of Micro-economics.
Answer:
Following are the limitations of micro-economics:

1. Conclusions drawn are not accurate:
What is true in the case of individual units may not be true in the case of aggregates. For example, individual saving is good but if the entire community starts saving more, effective demand will be reduced.

2. Based on unrealistic assumptions:
Micro-economist assumes other things being equal, and is based on the assumption of full employment in society. This is unrealistic assumption.

3. Concentration on small parts:
Instead of studying the total economy, micro-economics studies only small parts of it. It fails to enlighten us the collective functioning of the national economy.

4. Unable to analyse certain problems:
There are certain economic problems which cannot be analysed with the aid of Micro-economics. For example, important problems relating to public finance, monetary and fiscal policy etc., are beyond purview of microeconomics.

5. Infeasible:
Micro-economics fails to provide us with a description of the real world as it is. It is not in a position to take into accountable the entire economic data of the real world.

Question 7.
What is opportunity cost ? Explain with suitable example.
Answer:
Opportunity cost is defined as the value of a factor in its next best alternative use or it is the cost of foregone alternatives, or it can be defined as the value of the benefit that is sacrificed by choosing an alternative. We can also say that opportunity cost of any commodity is the amount of other goods which has been given up in order to produce that commodity. It is also known as opportunity lost or transfer earning of a factor e.g., a person is working in college ‘A’ at the salary of ? 70,000/- per month, he has two more options to work:

  1. To work in college “C” at Rs 65,000 per month.
  2. To work in college “D” at Rs 62,000 per month.

In this case opportunity cost of working in college “A” is Rs 65,000 i.e., salary he would get in college “C” (cost of foregone alternative) because it is the value of next best alternative between college “C” and college “D”. Thus, opportunity cost is very important concept in economics. It is because our re-sources are limited, we are always making choices from the available alternatives. Thus, the opportunity cost of using a resource is defined as the value of the next best use to which that resource could be put.

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Question 8.
What is production possibility curve ? Explain with example.
Answer:
Production possibility curve:
Production possibility curve shows graphical presentation of various combination of two goods that can be produced with available technologies and given resources assuming that the resources are fully and efficiently employed. The production possibility curve is also known as transformation curve. PPC can be explained with the help of example and imaginary schedule.
Example:
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-5
We can show the basic problem of choice or all forms of economic problems with the help of this production possibility curve. This is shown in the table and diagram. Here, for the sake of simplicity we have presumed that only two commodities i.e., wheat and machines are being produced in an economy with limited capital.

From the table, it is clear that when the production of machine is zero then production of rice is 500 tone. If, the production of machines increase from 1 to 2 then the production of rice will be decreased from 500 to 450 ton. If all resources are implied on production of machines then production of machines will become 4 and production of rice will be zero. So suitable combination is essential for production.

Question 9.
What do you mean by Marginal Opportunity Cost ? Explain with the help of an imaginary schedule.
Answer:
Marginal Opportunity Cost can be explained as if the resources are transferred from one use to the other, it is obvious that there would be loss in production of one goods in order to increase output of the other. This loss is marginal opportunity cost which is technically termed as marginal rate of transformation. It is also called as rate of sacrifice.
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-6
i.e., \(\frac { ΔY }{ ΔX }\)
Here,
ΔY = Increase in production of Goods.
ΔX = Increase in production in Goods of X.
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-7
From the above table it is clear that in order to produce one unit of commodity ‘A’ he has to sacrifice all the units of commodity ‘B’. After combination ‘E’ to ‘F’ marginal opportunity cost increases to 25.0. Thus, it is clear that production possibility curve is also known as transformation curve or rate of sacrifice.

Question 10.
“Micro-economics and Macro-economics are not competitive to each other but complementary to each other”. Explain.
Answer:
Interdependence of micro and macro can be studies as follows:

1. Macro – economics depends on micro-economics:
Macro-economics and microeconomics depend on each other. Both are interdependent, macro-economics contributes to the micro-economics. For example, the theory of investment belongs to micro-economics. It is derived from the behavior of the individual entrepreneur. The theory of aggregate investment function can also be derived from micro-economic theory of investment. Thus, we can say, that macro-economics depends on micro-economics.

2. Micro-economics depends on macro-economics:
Micro-economics depend upon macro-economics to a certain extent. For example, the rate of interest is a subject which belongs to micro-economics but it is influenced by macro-economics aggregates. Thus, micro-economics depends upon macro-economics.

Conclusion:
Macro and micro-economics both are interdependent on each other. Neither is complete without the other. We must study macro-economics because it deals with average variables, such as national income and national output. We must study microeconomics because national output and national income are eventually the result of decision of millions of business firms and individuals. Thus, we can conclude that both are complementary to each other.

Question 11.
Search for new entrepreneurs so that expansion of industries can be done and more use of capital intensive technology can be done in the country.
Answer:
When the economy is below its potential due to unemployment, the economy operates inside the PPC. When the government starts employment generation scheme, it enables the economy to utilise its existing resources in the optimum manner. The resources which were sitting idle, now get
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-8
job and the economy functions at its maximum capacity and moves from inside the PPC to points on the PPC. Thus, economy moves from point ‘a’ below PPC, to any point on PPC as shown in the figure.

Question. 12.
Explain the subject matter of macro-economics under five headings.
Answer:
We can study the subject matter of economics under the following heads :

1. Income and level of employment:
Income and level of employment is the main subject matter of Macro-economics. Level of employment and income depends on effective demand. Effective demand is determined by total expenditure.

2. Price theory :
It includes the study of inflation and deflation. Macro-economics also studies the normal level of prices of goods. It also studies the causes of inflation.

3. Theory of economic growth:
Macro-economics studies the economic growth by economic planning we can solve the problems of economic growth.

4. Theory of distribution :
During distribution of shares of national income many problems arise. How much should be paid as wages, what should be rent, how much interest should be paid all are the main elements of the subject matter of macro economics.

5. Theory of public finance:
Public revenue, public expenditure, public debts, taxation, fiscal policies are the subject matter of macro-economics.

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Question 13.
Explain the five factors determining demand.
Answer:
1. Price of commodity:
Price is a dominating factor. The demand for a commodity is increased when the price of it decreases and the demand for it decreases when the price increases. For example, if the price of a commodity is Rs 50 then its demand is 100 units. If the price increases to Rs 100, its demand will be 50 units. In other words, there is an inverse relation between price and demand.

2. Price of substitutes:
If the price of substitutes of a commodity rises, the price of the commodity will also rise. If the price of substitute of a commodity goes down, the price of the commodity will also go down. For example, tea and coffee are substitutes to each other. If the price of tea rises, the demand for coffee will increase. In other words, the increase or decrease in the price of the substitute of a commodity results in the increase or decrease in the price of the commodity.

3. Price of complementary goods:
If the price of complementary goods increases, the price of the commodity will decrease. For example, the increase in the price of petroleum results in the decrease of demand for motor-cars and scooters etc. If the price of petroleum decreases, the demand for motor-car and scooter etc. will increase.

4. Income of consumer :
There is a direct correlation between the income of consumer and demand. If the income of a consumer increases, the demand for commodities will also increase. If the income of a consumer decreases, the demand for commodities will also decrease. The main reason for this tendency is that the purchasing power of a consumer increases or decreases as a result of increase or decrease in income.

5. Tastes and preferences of consumers:
The consumers, often, consume those commodities which suit to their taste and preference. If a commodity does not suit to their taste and preference, there will no remarkable change its demand as a result of increase or decrease in its price. If the price of a commodity of consumer’s taste and preference goes down, the demand for it will certainly increase and vice-versa.

Question 14.
Distinguish between Market Economy and Centrally Planned Economy.
Answer:
Differences between Centrally planned economy and Market economy:
MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 1 Introduction-9

MP Board Class 12th Economics Important Questions

MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 5 नेताजी का तुलादान

MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 5 नेताजी का तुलादान

नेताजी का तुलादान अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
नेताजी के तुलादान के अवसर पर सिंगापुर की सजावट का वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
नेताजी (सुभाषचन्द्र बोस) के तुलादान के अवसर पर सिंगापुर की सजावट की सुन्दरता चारों ओर बिखरकर सभी को विमुग्ध कर रही थी। सिंगापुर एक उपवन की रौनक को अपने अन्दर समेटे हुए था। इस दिन अर्थात् 23 जनवरी, सन् 1897 ई. को एक छोटी-सी कली चटककर खिली थी अर्थात् इस दिन सुभाष बाबू का जन्म हुआ था। हर एक व्यक्ति के चेहरे पर एक जोश, ताजगी छाई हुई थी। आज क्योंकि नेताजी का जन्म दिन है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में व्याप्त खुशी और उल्लास भरा वातावरण अपने आप में कहीं पर समा नहीं रहा है। अर्थात् लोगों के मन में खुशी और उल्लास का उफान उमड़ रहा है। इस प्रकार सिंगापुर का कोना-कोना मतवालेपन से भीगा हुआ सा लग रहा है। सिंगापुर की हर एक गली, बाजार और चौराहे जनता ने सजाए हुए थे। प्रत्येक घर में खुशी का मंगलाचार हो रहा था। बधाइयाँ परस्पर दी जा रही थीं। भारत के प्रत्येक प्रान्त के निवासियों ने खासकर युवतियों ने अपने पुराने वस्त्र उतारकर नये वस्त्र धारण किये हुए थे। प्रत्येक व्यक्ति देशभक्ति के और देश की आजादी के तराने गा रहा था।

प्रश्न 2.
‘नेताजी का था जन्म दिवस, उल्लास न आज समाता था’ के अनुसार सिंगापुर के निवासियों के जोश और उल्लास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिंगापुर में युवक-युवतियाँ ढोलक-मंजीरें की तान पर अपने गीत गा रहे थे। वे सब गोल घेरे में बैठे हुए थे। वे सभी पठानी गीत स्वर और लय में गा रहे थे जिससे सभी के हृदय उत्साह से भर उठते थे। सिंगापुर नगर एक फुलवारी में बदल गया था। फुलवारी में भिन्न-भिन्न रंग और सुगन्ध के फूल एक साथ खिल उठते हैं और उसकी शोभा बढ़ाते हैं, उसी तरह भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त के लोग किसी भी जाति, धर्म, वर्ण, वेश धारण किये हों, वे सभी आपस में भारत की शोभा बढ़ाने वाले नागरिक हैं। महाराष्ट्र, बंगाल आदि सभी प्रान्तों की विशिष्ट धर्माचरण करती हुईं महिलाएँ इकतारा पर ध्वनि निकाल रही थीं। समर्थ स्वामी रामतीर्थ के प्रेरणादायी शब्दों का गायन किया जा रहा था। उनके मन फूले नहीं समा रहे थे। अपने-अपने इष्ट से मनौती मना रही थीं कि सुभाषचन्द्र बोस चिरंजीवी हों, भारत अपनी आजादी प्राप्त करे। हे कात्यायनी दुर्गे, भारतवर्ष में प्रजातन्त्र फैल जाए। सिंगापुर का प्रत्येक स्त्री-पुरुष, बालक-बालिका, जवान और वृद्ध उल्लसित दीख रहा था।

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प्रश्न 3.
नेताजी के तुलादान में क्या-क्या वस्तुएँ अर्पित की गई थीं? (2015)
उत्तर:
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के तुलादान के लिए एक फूलों से सुसज्जित तुला सामने आई। तुलादान के लिए वहाँ ठोस पदार्थ लाए गये थे। सुभाष बाबू एक महान शक्ति के रूप में उस तुला के एक पलड़े में विराजमान थे। दूसरे पलड़े को सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात से बाजी लगाते हुए भरा जाता था। इस तुलादान के अवसर पर मन्त्रोचार से मण्डप को पवित्र किया गया था। सभी लोग प्रसन्न थे। चारों ओर शंखध्वनि मधुर-मधुर उठ रही थी। ऐसे सुखद और उत्साहवर्द्धक पवित्र बेला में कुन्दन के समान काया वाले सुभाष बाबू उस तुला के एक पलड़े से मुस्कान भर रहे थे।

सर्वप्रथम एक वृद्ध औरत ने स्वर्ण की ईंटों से तुलादान किया। गुजरात की एक माँ भी. पाँच ईंटें सोने की लाई थी। वहाँ उपस्थित सभी महिलाओं ने, युवतियों ने एक-एक करके अपने आभूषण उतारकर तुलादान में दिये। कोई तो अपनी मुदरी, छल्ले, कंगन, बाजूबन्द आदि का दान कर रही थी। किसी-किसी ने हार-मालाएँ, गले की जंजीरें, तलवार की सोने की गूंठें, सोने के सिक्के, कर्ण फूल, ताबीज आदि तुलादान में प्रदान कर दिये।

आज के दिन इतने स्वर्ण आदि का दान भी तुच्छा दिख रहा था क्योंकि हिन्दुस्तान भर में और प्रत्येक हिन्दुस्तानी के मन में बलिदान का जज्बा हावी था।

प्रश्न 4.
नेताजी ने टोपी उतारकर किस महिला का सम्मान किया था और क्यों? लिखिए। (2008, 09, 13)
उत्तर:
तुलादान के स्थल पर कप्तान लक्ष्मी को एक कोने से उसी समय कुछ सिसकियाँ सुनाई देने लगी। यह सिसकियाँ उस तरुणी की थी, जिसका पति कल ही युद्धस्थल पर कठिन काल के द्वारा निगल लिया गया था। उसका जूड़ा खुला हुआ था, उसकी आँखें सूजी हुई और लाल हो रही थीं। वह तरुणी अपने साथ धन सम्पत्ति लिए हुए थी; जिसे वह तुलादान में देने के लिए लेकर आई थी। नेताजी सुभाष बाबू ने जब उस तरुणी को देखा तो उन्होंने अपनी टोपी उतार ली और उस महिला का बहुत सम्मान किया। उसने अपने पति को आजादी की बलि वेदी पर कुर्बान कर दिया था। उस महिला ने अपने काँपते हाथों से तुला के पलड़े में अपना शीशफूल रख दिया। यह उस महिला के सौभाग्य का चिह्न था। जैसे ही उसने उस शीशफूल को पलड़े में रखा तो तुला का काँटा सहम गया और कम्पित होने लगा। (उस तरुणी का तुलादान सबसे गौरवशाली और गुरुतर था)। इसलिए नेताजी ने अपनी टोपी उतारकर उस तरुणी महिला का सम्मान किया था।

प्रश्न 5.
“हे बहन, देवता तरसेंगे, तेरे पुनीत पद वन्दन को।” किसने, किससे और क्यों कहा है? (2008, 14)
उत्तर:
“हे बहन! देवता तरसेंगे, तेरे पुनीत पद वन्दन को” यह कथन नेताजी श्री सुभाष बाबू का है। इन शब्दों को नेताजी ने उस तरुणी महिला से कहा है, जिसके पति का भारत माता की आजादी के लिए लड़ते-लड़ते बलिदान हो गया। उन्होंने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा कि “हम भारतवासी तुम्हारे इस करुण क्रन्दन को याद रखेंगे क्योंकि इससे हमें आजादी की लड़ाई में प्रेरणा मिलेगी।”

प्रश्न 6.
तराजू के पलड़े सम पर कैसे आये?
उत्तर:
तरुणी महिलाओं के सौभाग्यसूचक चिह्नों एवं स्वर्ण राशि को तुला के पलड़े में रखने पर भी पलड़े सम पर नहीं आए, तभी अपने शरीर से जर्जर हुई, काँपती एक वृद्धा अपनी छाती से लगाए हुए छिपाकर एक सुन्दर सा चित्र लेकर आई थी। वह वृद्धा व्याकुल थी। उसने कहा कि मैं अपने इकलौते पुत्र का चित्र लेकर आई हूँ। हे नेताजी ! यह मेरा सर्वस्व है, इसे लीजिए, ऐसा कहते हुए उस वृद्धा ने उस चित्र को पटक दिया तो चरमराकर शीशा टूट गया और चौखटा अलग हो गया। वह चौखटा स्वर्ण से निर्मित था। क्रोध में भरी शेरनी के समान उस वृद्धा ने गर्व से कहा कि मेरे बेटे ने आजादी के लिए फाँसी खाई थी। उसने मेरी कोख को कलंकित नहीं किया था। अब भी मेरा अन्य पुत्र होता तो उसे भी भारतमाता की भेंट चढ़ा देती। इसी बीच उस सोने के चौखटे को तुलादान के पलड़े में चढ़ाया तो तुला का काँटा सम पर आ गया। सुभाष बाबू उठे और उस वृद्धा के चरणों का स्पर्श करते हुए कहा कि “हे माँ ! मैं केवल आप जैसी माताओं के बलबूते पर धन्य हो गया।”

प्रश्न 7.
इस पाठ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम भारतवासी अपनी आजादी को अपना सर्वस्व निछावर करते हुए भी सुरक्षित रहेंगे। दुनिया में कोई भी हमारा शत्रु होगा तो हम उसे मुँह की खाने के लिए मजबूर कर देंगे तथा उसके मुख पर कालिख पोत देंगे।

‘भारत माता’ हमारी वन्दनीय माता है। हमने इसकी कोख से जन्म लिया है, इसकी मिट्टी, धान्य, जल और वायु से अपने आपको पोषित और पुष्ट किया है। बताओ फिर अपनी इस पुण्य प्रदायी माता की मुक्ति के लिए, उसकी आजादी की रक्षा के लिए हम किस महत्त्वपूर्ण वस्तु का बलिदान करने से मुख मोड़ेंगे? अर्थात् इसकी सुरक्षा के लिए अपने जीवन का दान करना भी कम महत्त्व का होगा, क्योंकि इस मातृभूमि के उपकार कहीं अधिकतर हैं, गुरुतर हैं।

नेताजी का तुलादान अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नेताजी का तुलादान’ कविता में नेताजी का जन्म दिवस किस देश में मनाने की बात कही गई है?
उत्तर:
उपर्युक्त कविता में नेताजी का जन्म दिवस सिंगापुर में बनाने की बात कही गई है।

प्रश्न 2.
इस कविता में नेताजी की किस प्रमुख सहयोगी एवं भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी का ज़िक्र आया है?
उत्तर:
इस कविता में नेताजी की प्रमुख सहयोगी और आजाद हिन्द फौज की महिला सिपाही कप्तान लक्ष्मी का ज़िक्र आया है।

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नेताजी का तुलादान पाठका सारांश

प्रस्तावना :
प्रात:काल का समय है, पूर्व दिशा से सूर्य की किरणें उगती हैं और सभी प्राणियों को आजादी का सन्देश देती हैं। उस सन्देश का अनुपालन सभी भारतीय करते हैं और आजादी के लिए प्रयास करने में जुट जाते हैं। प्रात:काल में खिली कली सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरती है। सभी खुश हैं क्योंकि उस दिन नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म दिन था। सिंगापुर की भूमि पर उनके जन्म दिन को मनाने के लिए लोग इकट्ठे हो रहे थे। हर गली, हर चौराहे पर, द्वार पर मंगलाचार हो रहे थे। सभी लोग अपनी-अपनी वेशभूषा में सुसज्जित थे। मदमस्त लोगों की भीड़ ढोलक, मंजीरे बजाकर नेताजी के जन्मोत्सव पर बधाइयाँ गा रही थीं। प्रत्येक प्रान्त के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जा रहे थे। बसन्त का आगमन था।

परिचय :
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, सन् 1897 को कटक में हुआ था। भारतीय जन सुभाष की दीर्घ आयु, भारत की आजादी, भारत में प्रजातन्त्र के फलने-फूलने की कामना माँ कात्यायनी के मन्दिर में कर रहे थे। सुभाष जी ने ध्वज फहराया, तिरंगें फूलों का तुला बनाया गया। देश को आजाद कराने के लिए संकल्पित सैनिकों के संगठन के लिए धन की आवश्यकता को देश के प्रत्येक नागरिक ने अनुभव किया और नेताजी के जन्म दिन पर उनके भार के बराबर धन-सोना, चाँदी आदि सब कुछ एकत्र करने का विचार लोगों ने किया। इस धन से आजाद हिन्द फौज का संगठन किया गया। प्रत्येक महिला-युवती, विवाहिता, वृद्धा ने अपने सभी आभूषण तुलादान में प्रदान किए।

उत्साह :
प्रत्येक माँ ने, पत्नी ने, बहन ने, बाप ने, भाई ने अपने पुत्र, बेटे, पति, भाई को सैनिक रूप में सुभाष बाबू के जन्म दिन पर तुलादान में दे दिया। माँ ने बेटे को वचनबद्ध कराया कि वह मातृभूमि की आजादी की लड़ाई में अपनी माँ की पवित्र कोख को कलंकित नहीं करेगा। कुछ अपूती माँ दुर्गे महारानी से मनौती माँगती हैं कि माँ, मुझे पुत्रवती बना, मैं उसे अपनी भारत माता की भेंट चढ़ाना चाहती हूँ। तुलादान की क्रिया सम्पन्न हुई और नेताजी के वचन से भी अधिक धन तुलादान में प्राप्त हुआ।

उपसंहार :
चारों ओर स्वर गूंजने लगा कि दुश्मन जीवित नहीं रहेगा। भारत आजाद होकर रहेगा !!!

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MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 4 असफलता दिखाती है नयी राह

MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 4 असफलता दिखाती है नयी राह

असफलता दिखाती है नयी राह अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
डॉ. कलाम बचपन में कौन-सी पौराणिक कहानी सुना करते थे? उसका उन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
डॉ. कलाम को उनके पिताजी अबूबेन आदम की एक पौराणिक कथा सुनाया करते थे। एक रात अबू एक सपना देखकर जाग जाता है। सपने में वह देखता है कि एक फरिश्ता सोने की किताब में उन लोगों के नाम लिख रहा है जो ईश्वर से प्यार करते हैं। अबू उस फरिश्ते से पूछता है कि क्या खुद उसका नाम भी इस सूची में है। इस पर फरिश्ता नकारात्मक उत्तर देता है। तब निराश मगर खुशी से अबू कहता है कि मेरा नाम उनमें लिख दो, जो उसके अनुयायियों से प्रेम करते हैं। फरिश्ते ने नाम लिख दिया और गायब हो गया। अगली रात फिर फरिश्ता आया और उन लोगों के नाम दिखाए जिन्हें ईश्वर के प्रेम से आशीर्वाद मिला था। इसमें अबू का नाम सबसे ऊपर था।

इस पौराणिक कहानी का कलाम पर इतना प्रभाव पड़ा कि वे प्रत्येक जगह ईश्वर की उपस्थिति मानते थे और यह मानते थे कि सभी प्राणी ईश्वर की कृति हैं। उन्हें परस्पर सभी से प्रेम करना चाहिए। इन्हें अल्लाह में गहरी आस्था है।

प्रश्न 2.
परिवार में लगातार होने वाली मौतों के बाद, डॉ. कलाम की दिनचर्या में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर:
डॉ. कलाम के परिवार में लगातार तीन वर्ष तक तीन मौतें हो जाने के बाद, उनमें अपने काम के प्रति पहले से ज्यादा प्रतिबद्धता आ गई। उन्होंने अपने लिए वह सब कुछ तलाश लिया था जिससे उन्हें आगे बढ़ना था, तरक्की करनी थी। एस. एल. वी. डॉ. कलाम के लिए एक ईश्वर द्वारा प्रदत्त मिशन था। इसके क्षेत्र में प्रगति करना उनका उद्देश्य था, ध्येय बन चुका था। इसलिए उन्होंने अपनी सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी। यद्यपि उनकी अन्य गतिविधियाँ अधिक नहीं थीं, फिर भी जो कुछ थीं, उनको भी समाप्त कर दिया। वे शाम को बैडमिन्टन खेला करते थे, उसका खेलना भी बन्द हो गया। उन्हें साप्ताहिक अथवा अन्य अवकाश मिला करते थे, उन्हें भी लेना बन्द कर दिया। वे अपने परिवार अथवा रिश्तेदारी में यदा-कदा आया-जाया करते थे, वह भी बन्द कर दिया। प्रतिदिन मुलाकातें जिनसे हो सकती थीं, प्रायः वे उनसे मिलने जाया भी करते थे, इस श्रेणी में आने वाले दोस्तों और सहयोगियों से मिलने जाना अथवा किसी काम के सन्दर्भ में उनके यहाँ पहुँच जाना हुआ करता था, वह सब बन्द हो गया।

उन्होंने अपने मिशन को सफल बनाने की इच्छा से अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त होकर स्वयं को समर्पित कर दिया। डॉ. कलाम सरीखे व्यक्तियों को कार्याधिकता से ग्रसित व्यक्ति कहा जाता है। उन्हें ऐसा कहे जाने के लिए विरोध करना उचित लगता था। इसका एक कारण है। कार्याधिकता से ग्रसित के रूप में पुकारा जाना एक बीमारी (रुग्णता) का प्रतीक बनता है। यह शब्द किसी बीमारी का द्योतक है। जबकि प्रतिबद्धता (वचनबद्धता), एकाग्रचित्तता अपने लक्ष्य (उद्देश्य) को प्राप्त करने का साधन हुआ करता है, किसी रोग का सूचक नहीं। डॉ. कलाम ज्यादा से ज्यादा वही करना चाहते थे, जिससे उन्हें दुनिया में सबसे ज्यादा खुशी प्राप्त हो अर्थात् अधिक से अधिक कार्य करने से उद्देश्य के निकट पहुँचा जा सकता है। सफलता प्राप्त हो सकती है। सफलता हमें प्रसन्नता देती है।

ऐसे व्यक्ति जो अपने पेशे में शीर्ष तक पहुँचना चाहते हैं, उनके अन्दर पूर्ण वचनबद्धता का मूलभूत गुण विकसित कर लेना चाहिए। जो व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ कार्य सम्पादन की इच्छा रखता है, उसमें शायद ही कोई अन्य इच्छा जन्म लेती हो। पुरुष हो अथवा स्त्री उन सबमें वचनबद्धता का गुण अवश्य होना चाहिए।

डॉ. कलाम के अन्दर भी इन तीन वर्षों का दुःखद घटनाओं के बाद शीर्ष पर पहुँचने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति का विकास होता गया।

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प्रश्न 3.
रामेश्वरम् मन्दिर के पास डॉ. कलाम संध्या का समय किस प्रकार व्यतीत करते थे? (2011)
उत्तर:
डॉ. कलाम अपने बचपन की स्मृतियों को पुनः जाग्रत करके स्पष्ट रूप से बतलाते हैं कि रामेश्वरम् मन्दिर के आस-पास ही घूमा करते थे। समुद्र के आस-पास की बलुई मिट्टी चाँदनी रात में चमकती दिखाई देती थी। डॉ. कलाम को सान्ध्यकालीन वातावरण बहुत ही आकर्षित करता था। इसके अतिरिक्त समुद्र की उठती, इठलाती लहरें एक विशेष प्रकार का नृत्य प्रस्तुत करती जान पड़ती थीं। वहाँ का असीम आकाश खुला हुआ आनन्दातिरेक से डॉ. कलाम को आत्मविभोर कर देता था। अनन्त आकाश में बिखरे हुए टिमटिमाते तारे अपनी मद्धिम रोशनी विकीर्ण करते हुए धीमे से उनके कानों में कुछ रहस्यपूर्ण सन्देश देते प्रतीत होते थे। डॉ. कलाम के साथ उनके बहनोई उन्हें सान्ध्यकालीन डूबते क्षितिज को दिखाने के लिए ले जाया करते थे। उनके बहनोई का नाम जलालुद्दीन था।

डॉ. कलाम की अन्तश्चेतना पर बचपन में प्रकृति की गोद में रहने का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। उनमें चिन्तन की गहराई परिपक्वता को प्राप्त थी।

प्रश्न 4.
एस. एल. वी.-3 की तैयारी में डॉ. कलाम किस तरह व्यस्त रहते थे? (2017)
उत्तर:
एस. एल. वी.-3 पर अभी काम चल रहा था। साथ ही इसकी उप-प्रणालियों को तैयार करने का काम भी पूरा होने जा रहा था। जून 1974 ई. में कुछ जटिल प्रणालियों के परीक्षण के लिए सैंटोर साउण्डिग रॉकेट छोड़ा। इन उपप्रणालियों में जो सम्मिश्र पदार्थ, कन्ट्रोल इन्जीनियरिंग और सॉफ्टवेयर प्रयोग में लाए गये थे, उनका देश में पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था, परीक्षण पूरी तरह सफल रहा, तब तक भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम साउण्डिग रॉकेटों से आगे नहीं बढ़ा था और यहाँ तक कि जानकार लोग भी इसकी कोशिशों को देखने-समझने और स्वीकार करने को राजी नहीं थे, पहली बार इन्हें राष्ट्र के विश्वास से प्रेरणा मिली थी। एस. एल. वी.-3, ए. पी. जी. रॉकेट के ऊपरी हिस्से का विकास डायामाण्ट की तरह ही तैयार किया गया। इसका उड़ान परीक्षण फ्रांस में होना था। इसमें कई समस्याएँ आ गई थीं। इन समस्याओं को दूर करने के लिए डॉ. कलाम को तत्काल फ्रांस जाना था।

एस. एल. वी.-3, ए. पी. जी. रॉकेट के सफल परीक्षण के बाद फ्रांस से लौटने पर एक दिन ब्रह्म प्रकाश ने वनहर फॉन ब्रॉन के पहुँचने के बारे में सूचना दी। रॉकेट विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाला हर व्यक्ति फॉन ब्रॉन के बारे में जानता है। फॉन ब्रॉन को मद्रास से थुम्बा लाने को कहा तो डॉ. कलाम बहुत ही रोमांचित हो उठे, चेन्नई से त्रिवेन्द्रम तक डॉ. कलाम व अन्य एयरक्राफ्ट से गये। इस यात्रा में नब्बे मिनट का समय लगा। फॉन-ब्रॉन ने काम के विषय में पूछा। उन्होंने इस सन्दर्भ में एक छात्र की तरह जानकारी ली। डॉ. कलाम को यह पता नहीं था कि रॉकेट विज्ञान के जन्मदाता इतने विनम्र, ग्रहणशील एवं प्रेरणा देने वाले होंगे। पूरी उड़ान के दौरान बहुत अच्छा महसूस किया। डॉ. कलाम को मिसाइलों के इतने बड़े ज्ञाता से बात करके पता चला कि वे अपनी प्रशंसा के इच्छुक नहीं हैं।

फॉन ब्रॉन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि एस. एल. वी.-3 एक विशुद्ध भारतीय डिजाइन है। आपके सामने समस्याएँ भी आ सकती हैं। इसके लिए तुम्हें ध्यान रखना है कि व्यक्ति का सफलताओं से ही नहीं, असफलताओं से भी निर्माण होता है। उन्होंने आगे कहा कि रॉकेट विज्ञान में कठोर परिश्रम और प्रतिबद्धता की जरूरत होती है। साथ ही उस परिश्रम के द्वारा बड़ा सम्मान प्राप्त कर सकते हैं। इस विज्ञान को पेशा न बनाकर अपना धर्म समझो।

सन् 1979 ई. में छः सदस्यों की टीम नियन्त्रण प्रणाली का रूपान्तर तैयार करने में लगी थी। इस प्रणाली के बारह बाल्वों में से एक को ठीक करते समय नाइट्रिक एसिड का टैंक फट गया। एसिड टीम सदस्यों पर गिरा। वे सभी गम्भीर रूप से घायल हो गये। उन सभी को डॉ. कलाम ने त्रिवेन्द्रम् मेडिकल कॉलेज ले जाकर इलाज के लिए भर्ती कराया। घायल टीम के सदस्य दर्द से कराह रहे थे, लेकिन उपचार उचित होने से उन्हें राहत मिली। डॉ. कलाम इस दौरान बड़े चिन्तित और व्यथित रहे। परीक्षण काम रुक गया और विलम्ब हो गया। इस दुर्घटना से असफलता होने से हमें साहस अधिक मिला और सोचा कि हमारी टीम चट्टान की तरह साथ रहने में मजबूत है। अब एस. एल. वी.-3 का ठोस आकार आने लगा और उसकी परियोजना अब सफल हो रही थी।

एस. एल. वी.-3 का प्रायोगिक उड़ान परीक्षण 10 अगस्त, 1979 को निर्धारित किया गया। श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केन्द्र से समेकित प्रक्षेपण यान विकसित करना था। उड़ान प्रणालियों में-स्टेज मोटर्स, निर्देशन व नियन्त्रण प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली को जाँचना था। चैक आउट, टैकिंग, टेलीमीटरी एवं आँकड़ों से सम्बन्धित सुविधाएँ भी इस केन्द्र में विकसित करनी थीं। इस प्रकार तेईस मीटर लम्बा, चार चरणों वाला एस. एल. वी.-3 रॉकेट सुबह सात बजकर अट्ठावन मिनट पर छोड़ा गया। इसका वजन सत्रह टन था। प्रक्षेपण के तुरन्त बाद ही इसकी प्रणालियों ने अपने काम शुरू कर दिये।

इसकी उड़ान निश्चित हो जाने पर, इसमें अचानक कोई गड़बड़ी आ गई। उम्मीदों पर पानी फिर गया। रॉकेट का दूसरा चरण नियन्त्रण से बाहर हो गया। 317 सेकण्ड के बाद ही उड़ान बन्द हो गई और पूरा यान श्रीहरिकोटा से पाँच सौ साठ किमी दूर समुद्र में जा गिरा।

इस घटना से इनकी टीम को गहरा सदमा लगा। डॉ. कलाम स्वयं अपने पर नाराज हुए और निराशा हाथ लगी। उन्हें लगा कि उनके पैर थक गये हैं। उनमें पीड़ा थी। इस समस्या का असर शरीर की अपेक्षा मस्तिष्क में बहुत अधिक था।

प्रश्न 5.
जो व्यक्ति शीर्ष पर पहुँचना चाहते हैं, उनमें कौन-कौन से गुण होने चाहिए ? इसे डॉ. कलाम के जीवन के आधार पर समझाइए। (2008, 09)
उत्तर:
जो लोग अपने पेशे में शीर्ष पर पहुँचना चाहते हैं। उनमें पूर्ण वचनबद्धता का मूलभूत गुण होना चाहिए। हम अपनी सफलता चाहते हैं तो हमें यह भरोसा करना पड़ेगा कि हम जो भी काम करना चाहते हैं, तो हमें अपनी क्षमताओं पर भरोसा व दृढ़ आस्था होनी चाहिए।

अपनी क्षमताओं को जागृत कर, अपने निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जो इच्छा उठती है, तो बाद में फिर कोई भी इच्छा जन्म नहीं लेती है। डॉ. कलाम के साथ काम करने वाले व्यक्तियों को प्रत्येक सप्ताह में चालीस घण्टे काम करना पड़ता था। इस प्रकार उन्हें चालीस घण्टे तक काम करने का पैसा दिया जाता था। डॉ. कलाम बताते हैं कि वे ऐसे व्यक्तियों से भी परिचित हैं, जो सप्ताह में कम से कम साठ, अस्सी और यहाँ तक है कि वे सौ घण्टे प्रति सप्ताह काम करते थे। इसके अनुसार उन्हें पैसा दिया जाता था। वे जानते थे और समझते भी थे कि उनका काम रोमांच पैदा करने वाला है, साथ ही साथ चुनौतियों से भरा है। इसलिए इस काम से उन्हें सबसे अच्छा प्रतिफल प्राप्त होगा। इस तरह के वे पुरुष या स्त्री जो भी हों वे चुनौती भरे कामों को हाथ में लेते हैं। उन्हें अपने इन कामों में पूर्ण सफलता मिलती है क्योंकि उनमें पूर्ण-रूपेण वचनबद्धता पाई जाती है।

जिन व्यक्तियों में अपने कार्य के पूर्ण करने की वचनबद्धता होती है तो उनमें ऊर्जा अधिक होती है। उनका काम जब चुनौतीपूर्ण होता है, तो उन्हें अपने आप को पूर्ण स्वस्थ बनाए रखना पड़ेगा। पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए विशेष ऊर्जा की जरूरत होती है।

शीर्ष पर पहुँचने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की परम आवश्यकता है। यह काम माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ने का अथवा अपने कार्य क्षेत्र का शीर्ष हो सकता है। परन्तु हर व्यक्ति में ऊर्जा अलग-अलग मात्रा में होती है, जो जन्म के साथ ही मिलती है। अत: जो व्यक्ति सबसे पहले प्रयास करेगा और अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा, वही सबसे पहले और शीघ्रता से अपने जीवन को सुव्यवस्थित कर पायेगा।

प्रश्न 6.
डॉ. कलाम का जीवन संघर्षों के मध्य उभरती प्रतिभा की कहानी है, उदाहरण देते हुए समझाइए। (2008, 16)
उत्तर:
डॉ. कलाम का सारा जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उनके मध्य भी उन्होंने निराशा या हार नहीं मानी। अनेक बाधाओं के मध्य अपनी प्रतिभा की ऊर्चस्वलता का प्रदर्शन करते ही रहे। वे अपने जीवन के शुरूआती पक्ष में वायु सेना में भर्ती होकर पायलट बनना चाहते थे। विमान उड़ाने की उनकी चाहत पूर्ण नहीं हो सकी। इसका एक कारण यह था कि चयन बोर्ड ने उन्हें उपयुक्त नहीं समझा। लेकिन देखिये, जो व्यक्ति अपनी युवावस्था में विमान चालक की क्षमताओं से रहित माना गया, वही अपनी वृद्ध अवस्था में ऐसे विमान में उड़ने लगा जो आवाज से भी तेज गति वाला था। इस प्रकार व्यक्ति अपने अन्तःस्थल की गहराई में इच्छा की पूर्ति किसी भी तरह और किसी भी अवस्था में पूर्ण करने की क्षमता विकसित कर लेता है। प्रश्न है केवल अपनी सद् इच्छाओं के प्रति सद्प्रयास करने एवं कथनी की प्रतिबद्धता का होना। इन्हीं बातों को, गुणों को डॉ. कलाम में हम देखते हैं और उन्हें वचनबद्धता और प्रतिबद्धता से शीर्ष तक पहुँचने में सफलता मिली।

प्रतिभा के विकास और उभार में पारिवारिक स्थिति और पैतृक योग कोई खास भूमिका नहीं निभाते। डॉ. कलाम पारिवारिक रूप से बहुत साधारण माता-पिता की सन्तान थे। बस, महत्त्वपूर्ण बात थी तो केवल महान विचारों को जीवन में स्थान देने की और उनके अनुसार कर्म करने की।

डॉ. कलाम के परिवार की आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं थी जो उन्हें उत्तम साधन उपलब्ध करा पाती। उन्हें सही मार्गदर्शन देने वाला भी उनके परिवार में कोई नहीं था। एक महानुभाव जलालुद्दीन महोदय थे भी, लेकिन अल्लाह ने उन्हें असमय ही अपने पास बुला लिया। जलालुद्दीन डॉ. कलाम के बहनोई थे। वे ही इनके लिए पुस्तकों का खर्च जुटाते थे। व्यय करने के लिए रुपये-पैसे भी वही जुटाते थे। यहाँ तक है कि सांताक्रूज हवाई अड्डे पर इनको विदा करने के लिए वे ही आया करते थे।

श्री जलालुद्दीन ही इन्हें रामेश्वरम् के आस-पास घुमाते थे। चाँदनी रात में चमकती मिट्टी, नाचती हुई समुद्री लहरें, आकाश में टिमटिमाते सितारे उन्हें ऊँचा उठने और ऊँची उड़ान भरने के सपने उनमें पैदा करते थे। चमकती मिट्टी उन्हें प्रेरित करती कि अपनी मातृभूमि की सेवा करने से तुम्हें भी वही चमक प्राप्त होगी। अब उन्हें लगने लगा कि वे काल के भंवर में फंस गये हैं।

डॉ. कलाम ने हिम्मत नहीं हारी। वे अपने अन्दर ऊर्जावान बने रहे। उस ऊर्जा ने इनकी प्रतिभा को शक्ति प्रदान की जिसके कारण सांसारिक आपदाओं से, बाधाओं से लड़ने की हिम्मत और हौंसला बना रहा। जो व्यक्ति हौंसला पस्त नहीं होता वह उन्नति के शिखर पर विराजमान होकर ही रहता है। इस सन्दर्भ में कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं, “एस. एल. वी.-3 को तैयार करना कष्ट साध्य प्रक्रिया थी।” …..” इसी बीच उनके बहनोई और उन्हें रास्ता दिखाने वाले जनाब अहमद जलालुद्दीन जब इस दुनिया से चले गये थे, तो वे एकदम थम से गये, कुछ भी सोच नहीं पाये, काम करने में ध्यान लगाने की कोशिश की, लेकिन अपने आप में बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं। तब उन्हें इस बात की अनुभूति हुई कि “अहमद जलालुद्दीन के साथ मेरा भी एक हिस्सा चला गया है।”

अहमद जलालुद्दीन की मौत के बाद उनके पिता का देहावसान होना और फिर उनकी माँ का भी चला जाना, इस तरह तीन वर्ष में लगातार तीन मौतों के दौर से गुजरना और एस. एल. वी. -3 का निर्माण व परीक्षण व्यवस्था का कार्य सभी विपरीत स्थितियाँ थीं; जिनमें से डॉ. कलाम धैर्य, उद्देश्य के प्रति आस्था और वचनबद्धता तथा ध्येय प्राप्ति की प्रतिबद्धता के गुणों के कारण आगे निकल सकें।

उपर्युक्त वर्णन से सिद्ध है कि डॉ. कलाम का जीवन संघर्षों के मध्य उभरती प्रतिभा की कहानी है।

असफलता दिखाती है नयी राह अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम क्या बनना चाहते थे?
उत्तर:
डॉ. कलाम वायुसेना में भर्ती होना चाहते थे तथा विमान उड़ाना चाहते थे, यद्यपि चयन बोर्ड ने उन्हें इसके उपयुक्त नहीं पाया था।

प्रश्न 2.
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के पिताजी का नाम क्या था ? वह कितने वर्ष तक जीवित रहे?
उत्तर:
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के पिताजी का नाम जैनुल आबदीन था। सन् 1976 में रामेश्वरम् में एक सौ दो वर्ष तक रहने के पश्चात् उनका निधन हो गया।

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असफलता दिखाती है नयी राह पाठ का सारांश

प्रस्तावना :
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का नाम कौन नहीं जानता ? वे भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति रहे हैं। वे प्रारम्भ में वायुसेना में भर्ती होना चाहते थे। लेकिन चयन बोर्ड ने उन्हें उपयुक्त नहीं पाया। उस युवक का सपना टूट गया। वह वायु सेना में भर्ती होकर विमान उड़ाना चाहता था। लेकिन उसी युवक ने, जब वह कुछ बूढ़ा हो रहा था, तब आवाज से भी तेज गति वाले विमान उड़ाकर अपने सपने को पूरा किया। डॉ. कलाम का जन्म एक कस्बे के साध पारण से परिवार में हुआ था। कलाम अपने जीवन में बड़े सपने देखते थे। साथ ही, उन्हें पूरा करने की भी जिद करते और सफलता प्राप्त करते थे। ‘अग्नि की उड़ान’ उनकी आत्मकथा है। यहाँ इस उड़ान के कुछ रोमांचक अंश प्रस्तुत हैं-

एस. एल. वी-3 पर अभी काम चल रहा था। इसकी उप-प्रणालियों को तैयार करने का काम भी पूरा होने जा रहा था। सन् 1974 के जून महीने में कुछ जटिल प्रणालियों के परीक्षण के लिए “सैंटोर साउण्डिंग रॉकेट” छोड़ा गया। इन उप-प्रणालियों में जो सम्मिश्र पदार्थ, कन्ट्रोल इन्जीनियरिंग और सॉफ्टवेयर प्रयोग में लाये गये, उनका देश में पहली बार प्रयोग किया गया। परीक्षण सफल रहा। राष्ट्र के विश्वास से प्रेरणा मिली।

कष्टसाध्य प्रक्रिया :
एस. एल. वी.-3 को तैयार करना एक कष्टसाध्य प्रक्रिया थी। एक दिन डॉ. कलाम और उनकी टीम पहले चरण की मोटर परीक्षण के काम में पूरी तरह तल्लीन थी। तभी डॉ. कलाम को सूचना मिली कि उनके बहनोई अहमद जलालुद्दीन अब इस दुनिया में नहीं रहे। इस खबर से कलाम महोदय कुछ समय तक अस्त-व्यस्त रहे। काम में उनका मन नहीं लगा क्योंकि मुः जलालुद्दीन डॉ. कलाम के जीवन का अहम् हिस्सा थे।

बचपन की यादें :
डॉ. कलाम को अपने बचपन की स्मृतियाँ उभर कर आने लगीं। मुहम्मद जलालुद्दीन उन्हें संध्याकाल में रामेश्वर मन्दिर के आस-पास घुमाने ले जाते थे। चाँदनी रात में चमकती समुद्र की रेत और नृत्य करती समुद्री लहरें, अनन्त आकाश से टिमटिमाते तारों का प्रकाश तथा डूबते सूरज के क्षितिज को दिखाने ले जाते थे। वे ही कलाम साहब के लिए पुस्तकों का बन्दोबस्त करते थे। सांताक्रूज हवाई अड्डे पर इन्हें विदा करने के लिए जलालुद्दीन (डॉ. कलाम के बहनोई) ही जाया करते थे।

डॉ. कलाम का अधीर होना :
मुहम्मद जलालुद्दीन का इस दुनिया से चला जाना कलाम को ऐसा लगा मानो समय और काल के भंवर में उन्हें फेंक दिया हो। उनके पिता की उम्र सौ साल से अधिक रही होगी। उनके दामाद का जनाजा उठाना था जो उनकी उम्र से आधी उम्र के थे। कलाम की बहन जोहरा की आत्मा कलप रही थी। उसका चार साल का बेटा भी चल बसा था, उसके चले जाने के घाव अभी भरे भी नहीं थे। ये सभी दृश्य कलाम की धुंधलाई सी आँखों के सामने तैर रहे थे। कलाम ने स्वयं को सम्भाला और परियोजना के उप निदेशक डॉ. एस. श्रीनिवास को अपनी गैरहाजिरी में काम को देख लेने के बारे में निर्देश दिये।

अल्लाह में गहरी आस्था :
बसें बदलते हुए रामेश्वर का सफर तय किया। डॉ. कलाम के पिता इनका हाथ थामे थे। उनकी आँखों में कोई भी आँसू नहीं था। पिता बोले देखो ईश्वर किस प्रकार अन्धेरा कर देता है। जलालुद्दीन तुम्हें रास्ता दिखाने वाला सूरज था, वही गहरी नींद में सो गया। वह पूरी तरह शान्त और अचेतन है। अल्लाह की नियति के आगे कुछ नहीं कर सकते। बेटे कलाम! अल्लाह पर भरोसा रखो।

वैराग्यभाव की जागृति :
डॉ. कलाम थुम्बा लौट आये। उन्हें हर काम निरर्थक लगा। एक वैराग्य जैसा अनुभव हुआ।

पिता की मृत्यु :
सन् 1976 ई. में डॉ. कलाम के पिता का इन्तकाल हो गया। वे रामेश्वरम् की भूमि पर एक सौ दो वर्ष तक रहे। उनका नाम जैनुल आबदीन था।

प्राणिमात्र से प्रेम :
डॉ. कलाम के पिता सभी प्राणियों से प्रेम करते थे। इस दुनिया के प्राणी ईश्वर की प्रतिकृति हैं। इनसे प्रेम करना ईश्वर से प्रेम करना है। ऐसा डॉ.कलाम के पिता का जीवन दर्शन था।

एस. एल.वी.-3, ए. पी. जी. रॉकेट का निर्माण व परीक्षण :
एस. एल. वी.-3, ए. पी. जी. रॉकेट का निर्माण सफलतापूर्वक किया गया और इसका परीक्षण विदेश में फ्रांस की भूमि पर किया गया। इस परीक्षण में आई हुई जटिल समस्याओं का निराकरण करने डॉ. कलाम को फ्रांस तत्काल जाना था। परन्तु उसी दिन इनकी माँ के इन्तकाल की खबर दी गई। डॉ. कलाम नागर कोइल से रामेश्वर पहुँचे। उनका अन्त समय आ गया था। डॉ. कलाम ने उसी मस्जिद में प्रार्थना की जहाँ उनके पिताजी हर शाम इन्हें ले जाया करते थे। कलाम ने ईश्वर से क्षमा माँगी। ईश्वर ने जो उन्हें जिम्मेदारी दी, उसका निर्वाह डॉ. कलाम ने ईमानदारी से किया। कलाम ने स्वयं को समझाते हुए कहा कि शोक क्यों मना रहे हो ? उस काम पर ध्यान दो जो तुम्हारे लिए पड़ा है। अपने कार्यों के करने से ही परमानन्द प्राप्त करो। मस्जिद में कलाम ने इन शब्दों को सुना। मस्जिद से बाहर आकर, अपने घर की ओर देखे बिना ही वहाँ से चल दिये।

अपने उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्धता :
डॉ. कलाम के घर में तीन वर्ष में तीन मौतें हो गईं। फिर भी वे अपने काम में उनकी प्रतिबद्धता बनी रही। एस. एल. वी. उनके लिए ईश्वरीय मिशन है और उसकी प्रगति उनका उद्देश्य बन गया था। उन्होंने बैडमिन्टन खेलना बन्द कर दिया। साप्ताहिक छुट्टियाँ भी नहीं करते। रिश्तेदारी और मित्रों के यहाँ आना-जाना सब छूट गया। डॉ. कलाम के अनुसार वचनबद्धता, एकाग्रचित्तता लक्ष्य प्राप्त करने के साधन हैं।

नियन्त्रण प्रणाली का उड़ान रूपान्तर :
सन् 1979 ई. में छः सदस्यों की टीम दूसरे चरण की जटिल नियन्त्रण प्रणाली की उड़ान रूपान्तर तैयार करने में लगी थी। परन्तु अचानक ही लाल धुएँ वाले नाइट्रिक एसिड (आर. एफ. एन. ए.) का टैंक फट गया और नाइट्रिक एसिड टीम के सदस्यों पर जा गिरा। टीम के सदस्य गम्भीर रूप से जल गये। कलाम सभी को त्रिवेन्द्रम मेडीकल कॉलेज ले गये और उनका इलाज कराया।

इस टीम में कलाम को गहरा विश्वास हो गया कि ये सभी सफलता और असफलता में एक चट्टान की भाँति खड़े रह सकते हैं। जीवन एक प्रवाह है जिसमें काम करते-करते आराम और आनन्द की अनुभूति होती है। सन् 1979 के मध्य तक एस. एल. वी. का सपना पूरा हो गया और श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केन्द्र से एल. एल. वी.-3 का प्रायोगिक उड़ान परीक्षण 10 अगस्त, 1979 को निर्धारित किया गया।

उपसंहार :
पहले चरण का कार्य पूर्ण सफल हुआ परन्तु दूसरे चरण में परिवर्तित करने का कार्य एस. एल. वी.-3 को उड़ते देखना उम्मीदों से पीछे रहा। 317 सेकण्ड के बाद उड़ान बन्द हो गई और चौथे चरण सहित पूरा यान श्रीहरिकोटा से पाँच सौ साठ किमी. दूर समुद्र में आ गिरा। इस घटना से हम सभी निराश हुए। परन्तु डॉ. ब्रह्म प्रकाश के साथ डॉ. कलाम के अन्दर एक विश्वास जगा और इसी विश्वास से नई सफलताओं के क्षितिजों तक पहुँचा जा सकता है।

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MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants

MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants

Sexual Reproduction in Flowering Plants Important Questions

Sexual Reproduction in Flowering Plants Objective Type Questions

Question 1.
Choose the correct answers:

Question 1.
Apomixis in plants means the development of a plant :
(a) Fusion of gametes
(b) Without fusion of gametes
(c) Stem cuttings
(d) Root cuttings.
Answer:
(b) Without fusion of gametes

Question 2.
Polygonum type of embryo sac is :
(a) 8 – nucleated
(b) 16 – nucleated
(c) 24 – nucleated
(d) 32 – nucleated
Answer:
(a) 8 – nucleated

Question 3.
In angiosperms, female gametophyte is represented by :
(a) Synergids
(b) Carpel
(c) Egg
(d) Pollen grain
Answer:
(c) Egg

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Question 4.
The term ‘xenia’ denotes the effect of pollen on the :
(a) Endosperm
(b) Flower
(c) Somatic tissue
(d) Root.
Answer:
(a) Endosperm

Question 5.
The fusion of male gamete with the secondary nucleus of the embryo sac is a process of:
(a) Fertilization
(b) Double fertilization
(c) Parthenocarpy
(d) Parthenogenesis.
Answer:
(b) Double fertilization

Question 6.
Which of the following is formed as a result of double fertilization :
(a) Endosperm
(b) Megaspore
(c) Seed
(d) Fruit.
Answer:
(a) Endosperm

Question 7.
What is the fusion product of polar nucleus and male gamete :
(a) Secondary nucleus
(b) Triple fusion
(c) Primary endosperm nucleus
(d) Zygote.
Answer:
(c) Primary endosperm nucleus

Question 8.
In which of the following plants, water is not necessary for fertilization :
(a) Vallisneria
(b) Pisus sativum
(c) Funaria
(d) Fern.
Answer:
(b) Pisus sativum

Question 9.
Tepetum is a part of :
(a) Male gametophyte
(b) Female gametophyte
(c) Ovary wall
(d) Anther wall.
Answer:
(d) Anther wall.

Question 10.
The endosperm is generally :
(a) Haploid
(b) Diploid
(c) Triploid
(d) Tetraploid
Answer:
(c) Triploid

Question 11.
The exine of pollen grain is made up of:
(a) Cellulose
(b) Pectdcellulose
(c) Lignin
(d) Sporopollenin
Answer:
(d) Sporopollenin

Question 12.
After fertilization ovary develops in to :
(a) Embryo
(b) Fruit
(c) Endosperm
(d) Seed
Answer:
(b) Fruit

Question 13.
A typical embryo sac is eight nuleate and :
(a) Single celled
(b) Seven celled
(c) Eight celled
(d) Four celled
Answer:
(b) Seven celled

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Question 14.
Germ pore is the place where exine is :
(a) Thick
(b) Uniform
(c) Thick and Uniform
(d) Absent.
Answer:
(d) Absent.

Question 2.
Fill in the blanks:

  1. The main function of endosperm in embryo is ……………. storage.
  2. Type of pollination which occurs by birds is called …………….
  3. Apple is the example of ……………. fruit.
  4. Ovules are situated on these tissue is called …………….
  5. In sunflower ……………. types of anther is found.
  6. In plants fruit is formed by …………….
  7. Single cotyledon of maize is called …………….
  8. Outer membrane of pollen grain is called …………….
  9. Process of double fertilization is discoverd by …………….
  10. The process of pollination of Vallisneria is occurs by …………….
  11. The study of pollen grain is called …………….
  12. Smell and nectar is the adaptation of ……………. pollinated flowers.
  13. Pollination in cobra plant is occurs through the …………….
  14. Tetradynamous stamen are found in …………….

Answer:

  1. Food material
  2. Omithophily
  3. False fruit
  4. Placenta
  5. Syngenesious
  6. Ovary
  7. Scutellum
  8. Exine
  9. Nawaschin
  10. Water
  11. Palynology
  12. Insect
  13. Snail
  14. Mustard.

Question 3.
Match the followings :
I.
MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants 1
Answer:

  1. (e)
  2. (d)
  3. (b)
  4. (a)
  5. (c)
  6. (f)

II.
MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants 2
Answer:

  1. (c)
  2. (a)
  3. (d)
  4. (b)

Question 4.
Write the answer in one word/sentences:

  1. What is the ploidy of microspore tetrad?
  2. Which component prepare intine of the pollen grain?
  3. Name a scar on a seed marking the point of attachment of the ovule.
  4. Name the type of pollination in which found in Salvia.
  5. What is the ploidy of angiospermic endosperm.
  6. Stigma, style and oVary is the part of.
  7. Name the largest flower of the world.
  8. Name the plant in which found in longest style and stigma.
  9. Name the hormone which is induced the ovary in the form of fruit.
  10. Name the layer of pollen grain which has binuleated cell.
  11. Name the mass of cells which is produced in culture medium.

Answer:

  1. Haploid
  2. Cellulose and Pectin
  3. Hilum
  4. EntomophiIy
  5. Triploid
  6. Female gamete
  7. Rafflesia
  8. Maize
  9. Auxin
  10. Tapetum
  11. Callus.

Sexual Reproduction in Flowering Plants Very Short Answer Type Questions

Question 1.
Development of female gametophyte occurs in which cell?
Answer:
By functional megaspore mother cell.

Question 2.
What is the other name of female gametophyte?
Answer:
Embryo sac.

Question 3.
Ovule derives nourishment from which part of the carpel?
Answer:
Ovule derives nourishment from placenta.

Question 4.
What are cleistogamous flowers? Give an example.
Answer:
The flowers which do not open are called cleistogamous flowers, e.g., Commelina.

Question 5.
What is the substance found on the exine of pollen grains?
Answer:
Sparopollenin.

Question 6.
Give the characters of wind pollinated flowers.
Answer:
White in colour, small in size and.pollen grains are formed in large number.

Question 7.
What is the ploidy of angiospermic endosperm?
Answer:
Triploid.

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Question 8.
Give an example of a monocotyledonous endospermic seed.
Answer:
Ricinus.

Question 9.
Give example of two false fruit.
Answer:
Apple, Jackfruit.

Question 10.
What are monocious plants ?
Answer:
Plants which have both male and female flower.

Sexual Reproduction in Flowering Plants Short Answer Type Questions

Question 1.
Write three merits of sexual reproduction in plants.
Answer:

  1. Due to sexual reproduction variations possibilities of evolution become more.
  2. Seeds thus produced can be preserved for years.
  3. It helps the plants to develop adaptations.

Question 2.
Name the parts of an angiosperm flower in which development of male and female gametophyte take place.
Answer:
Development of male gametophyte takes place in anther and female gametophyte in ovary.

Question 3.
Differentiate between microsporogenesis and megasporogenesis. Which type of cell division occurs during these events ? Name the structure formed at the end of these two events.
Answer:
Differences between Microsporogenesis and Megasporogenesis:

Microsporogenesis:

  • In this process haploid microspores are formed from diploid microspore mother cell.
  • The four microspores formed from a single microspore mother cell are generally aranged in a tetrahedral structure.
  • All the four microspores arranged in a tetrahedral tetrad are functional.

Megasporogenesis:

  • In this process, haploid megaspores are formed from diploid megaspore mother cell.
  • The four megaspores formed from a me – gaspore mother cell are arranged in the from of a linear tetrad.
  • Only one megaspore remain functional while the other three degenerates.

Meiosis occurs during micro and megasporogenesis. Microspores (pollen grain) are formed at the end of microsporogenesis and female gametophyte (embryo sac) are formed at the end of megasporogenesis.

Question 4.
Arrange the following terms in the correct developmental sequence :
Pollen grain, sporogenous tissue, microspore tetrad, pollen mother cell, male gametes.
Answer:
Sporogenous tissue → Pollen mother cell → Microspore → Tetrad → Pollen grain → Male gametes.

Question 5.
With a neat, labelled diagram, describe the parts of a typical angiosperm ovule.
Answer:
Structure of Ovule: Each ovule consists of the following parts as visible in a longitudinal section:

1. A small stalk or funicle by which the ovule remains attached with the placenta of the ovary.

2. Hilum is the point at which it is attached with the ovule. In inverted ovule the funicle fuses with the main body of the ovule and is called as raphe.
MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants 4
3. The ovule is surrounded on all sides by two integuments but not at the apex where an aperture called micropyle is present. This end of the ovule is called as micropylar, while the end of the ovule opposite to it is called as chalazal end.

4. Embryo sac is situated inside the nucellus.

5. Towards the micropyle end of embryo sac one egg or oospore and 2 synergids are found, and towards the chalaza end of embryo sac 3 antipodal cells are fpund. At the centre secondary nuclei is found.

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Question 6.
Differentiate self – pollination and cross – pollination.
Answer:
Differences between Self and Cross – pollination:

Self – pollination:

  • It is the process of transfer of pollen grains from one flower to the stigma of same flower or another flower of same plant.
  • Medium is not required for pollination.
  • Pollination is sure.
  • Less number of pollen grains are produced.
  • Plants do not show any special character.
  • Pure breed can be obtained.

Cross – pollination:

  • It is the process of transfer of pollen grains from one flower to the stigma of flower of another plant.
  • Medium is required for pollination.
  • Pollination depends on medium.
  • More number of pollen grains are produced.
  • Attractive, coloured, scent or honey bearing flowers are produced to attract insects.
  • Hybrids are produced.

Question 7.
What is apomixis and what is its importance?
Answer:
Apomixis is the process of asexual production of seeds, without fertilisation. The plants that grow from these seeds are identical to the mother plant.
Uses:

  1. It is a cost effective method for producing seeds.
  2. It has great use for plant breeding when specific traits of a plant have to be preserved.

Question 8.
With a neat diagram explain the 7 – celIed, 8 – nucleate nature of the female gametophyte.
Answer:
Explanation:
Nucleus of the functional megaspore undergoes mitosis resulting in 2 – nuclei that move to two opposite poles forming 2 – nucleate embryo sac. Two more mitotic nuclear divisions result in 4 – nucleate and later 8 – nucleate stages of the embryo sac. so far no cytokinesis (cytoplasmic division) has taken place. Now cell walls start to build leading to the organisation of female gametophyte or embryo sac. Six of the 8 – nuclei are bound by cell wall and the ramaining 2 – celled polar nuclei lie below the egg apparatus in the large central cell.
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Seven – celled stage:
Three cells are grouped together at the micropylar end and constitute the egg apparatus, which is constituted of two synergids and one egg cell. Three cells at the chalazal end are called antipodals. The large central cell has 2 – polar nuclei. Thus, a typical angiosperm embryo sac at maturity is 7 – celled but 8 – nucleated as the central cell has 2 – nuclei.

Question 9.
What are chasmogamous flowers? Can cross – pollination occur in cleistogamous flower? Give reason for your answer.
Answer:
Chasmogamous flowers are open flowers with exposed stamens and stigma which facilitate cross – pollination. No cross – pollination occurs in cleistogamous flowers. As these flowers are closed and never open and thus no transfer of pollen from outside to stigma of the flower is possible. So there is no cross – pollination.

Question 10.
What is polyembryony?
Answer:
Polyembryony:
When more than one embryo develops in one seed then this condition is called as polyembryony. It is generally found in citrus family. It is also found in nicotiana, conifers, rice, wheat. It occurs when fertilization occurs in all embryo sacs found in the ovule,

Question 11.
Mention two strategies evolved to prevent self – pollination in flowers.
Answer:
Two strategies evolved to prevent self – pollination are:

  1. Pollen release and stigma receptivity is not synchronized.
  2. Anthers and stigma are placed at such positions that pollen doesn’t reach stigma.

Question 12.
What is self – incompatibility? Why does self – pollination not lead to seed formation in self – incompatible species?
Answer:
Self – incompatibility is a genetic mechanism to prevent self – pollen from fertilizing the ovules by inhibiting pollen germination or pollen tube growth in the pistil, In these cases, self – pollination does not lead to seed formation because fertilization is inhibited.

Question 13.
What is bagging technique? How is it useful in a plant breeding programme?
Answer:
It is the covering of female plant with butter paper or polythene to avoid their contamination from foreign pollens during breeding programme.

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Question 14.
What is triple fusion? Where and how does it take place? Name the nuclei involved in triple fusion.
Answer:
Triple fusion refers to the process of fusion of three haploid nuclei. It takes place , in the embryo sac. The 3 – nuclei that fuse together are, nucleus of the male gamete and 2 – polar nuclei of the central cell to produce a triploid primary endosperm nucleus,

Question 15.
Why do you think the zygote is dormant for sometime in a fertilized ovule?
Answer:
The zygote is dormant in fertilized ovule for sometime because at this time, endosperm needs to develop. As endosperm is the source of nutrition for the developing j embryo, the nature ensures the formation of enough endosperm tissue before starting the process of embryogenesis.

Question 16.
Differenciate between:
(a) Hypocotyl and Epicotyl
(b) Colcoptile and Coleorhiza,
(c) Integument and Testa
(d) Perisperm and Pericarp.
Answer:
(a) Differences between Hypocotyl and Epicotyl:

Hypocotyl:

  • The region of the embryonal axis that lies between the radicle and the point of attachment of cotyledons is called hypocotyl.
  • Hypocotyl pushes the seed above the soil in epigeal germination.
  • It is an important component of embryonic root system.

Epicotyl:

  • The region of the embryonal axis that lies between the plumule and cotyledons is called epicotyl.
  • Epicotyl pushes the plumule above the soil in hypogeal germination.
  • It is an important component of embryonic shoot system.

(b) Differences between Coleoptile and Coleorhiza:

Coleoptile:

  • The shoot apex and few leaf primordia are enclosed in epicotyl region is called coleoptile.
  • It comes out of the soil.

Coleorhiza

  • The redicle and rootcap are situated at the lower end of embryonal axis are enclosed by protective sheath called coleorhiza.
  • It remains inside the soil.

(c) Differences between Integement and Testa:

Integument:

  • It is the protective covering of the ovule.
  • It is a part of pre fertilisation.

Testa:

  • It is the protective covermg of the seed.
  • It is a part of post fertilisation.

(d) Differences between Perisperm and Pericarp:

Perisperm:

  • It is the part of nucellus which remains in form of thin layer after seed germination.
  • It is a part that belongs to seed.
  • It is usually dry.

Pericarp:

  • Ovary is convert into pericarp after fertilisation.
  • It is a part that belongs to fruit.
  • It can be dry and fleshy.

Question 17.
Why is apple called a false fruit? Which part of the flower forms the fruit?
Answer:
Apple is called a false fruit because it develops from the thalamus instead of ovary (thalamus is the enlarged structure at the the base of the flower).

Question 18.
What is meant by emasculation? When and why does a plant breeder employ this technique?
Answer:
Emasculation means removal of anthers, with a forceps, from the flower bud before dehiscence. Plant breeder employs this technique to prevent contamination of stigma with the undesired pollen. This is useful in artificial hybridisation, where desired pollen is required.

Question 19.
If one can induce parthenocarpy through the application of growth sub – stances, which fruits would you select to induce parthenocarpy and why?
Answer:
Orange, lemon, litchi could be potential fruits for inducing the parthenocarpy because seedless variety of these fruits would be much appreciated by the consumers.

Sexual Reproduction in Flowering Plants Long Answer Type Questions

Question 1.
Describe structure of ovule with labelled diagram.
Answer:
Structure of Ovule:
Each ovule consists of the following parts as visible in a longitudinal section:

1. A small stalk or funicle by which the ovule remains attached with the placenta of the ovary.

2. Hilum is the point at which it is attached with the ovule. In inverted ovule the funicle fuses with the main body of the ovule and is called as raphe.

3. The ovule is surrounded on all sides by two integuments but not at the apex where an aperture called micropyle is present. This end of the ovule is called as micropylar, while the end of the ovule opposite to it is called as chalazal end.
MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants 4
4. Embryo sac is situated inside the nucellus.

5. Towards the micropyle end of embryo sac one egg or oospore and 2 synergids are found, and towards the chalaza end of embryo sac 3 antipodal cells are found. At the centre secondary nuclei is found.

Question 2.
Describe structure of anther with labelled diagram.
Answer:
Structure of Anther:
Transverse section of anther shows that it consists of 2 lobes which are connected by connective. Each lobe contains two pollen sacs. Innermost layer of pollen sac is called as tapetum. Tapetum is a layer rich in nutritive contents which supplies food material for the developing pollen grains. At first many pollen mother cells are formed in them which divides meiotically to form haploid pollen grains.
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Question 3.
Give four contrivances for self – pollination.
Answer:
Contrivances for self – pollination:
1. Bisexuality:
When male and female parts are found in same flower then possibility of self – pollination increases.

2. Cleistogamy:
In Commelina benghalensis both cleistogamous and chasmogamous flowers are produced. The former are the underground flowers and the latter are the aerial ones developed on branches. In the small, inconspicuous cleistogamous flowers the pollen are shed within the closed flowers so that self – pollination is a must. This is also observed in Impatiens, Oxalis, Viola, Portulaca etc.

3. Homogamy:
Here the stamens and carpels mature at the same time. So, there is a greater chance of self – pollination as compared to cross – pollination, example Mirabilis, Argemone etc.

4. Failure of cross – pollination:
In some flowers generally cross pollination occurs but if they fails to do cross-pollination then self pollination occurs.

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Question 4.
What do you mean by micropropagation?
Answer:
Micropropagation:
It is a modem method of reproduction. By this process thousands of new plants can be obtained from few tissues of mother plant. This method is based on tissue and cell culture technique. In this process a small part of tissue is separated from the plant and then it is grown in nutrient medium in aseptic condition. The tissue develops to form a cluster of cells which is called as callus.

This callus can be preserved for long time for multiplication. A small part of the callus is transferred to nutrient medium, where it grows into a new plant. This plant is then transferred to the field. By this process Orchids, Carnations, Chrysanthemum plants can be grown successfully.

Question 5.
What is self – pollination? Give advantages and disadvantages of self – pollination.
Answer:
Self – pollination:
When the pollen grain of one flower are transferred to the stigma of the same flower then the process is called as self – pollination.

Advantages of self – pollination : These are the advantages of self – pollination:

  1. Parental characters can be preserved indefinitely in several generations.
  2. Self – pollination helps in maintaining pure lines for experimental hybridization.
  3. It is most economical method of pollination. The plants do not consume their energies in the production of large number of pollen grains, nectar and coloured corolla.
  4. It ensures seed production and flowers do not take chances of the failure of fertilization.

Disadvantages of self – pollination : These are the disadvantages of self – pollination:

  1. The weaker characteristics or defects of the plant can never be eliminated from the race.
  2. No useful characters can be introduced in the race.
  3. The immunity of race towards diseases falls and ultimately it falls prey to many diseases.

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Question 6.
Describe development of endosperm.
Answer:
Development of endosperm:
It develops from the triploid tissue of the fertilized embryo sac after the act of double fertilization. It is of the following three types:

  1. Free nuclear endosperm.
  2. Cellular type of endosperm.
  3. Helobial type of endosperm.

The name refers to the type of nuclear divisions of the endosperm nucleus. If triploid nucleus divides by free nuclear division the endosperm produced contains many nuclei ly¬ing freely in it and hence it is termed as free nuclear endosperm. If the nuclear division is followed by wall formation it is called as cellular type. If endosperm is intermediate between the two types it is called as helobial type.
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Question 7.
Differentiate between:

  1. Embryo sac and Endosperm,
  2. Seed and Ovule.

Answer:
1. Differences between Embryo sac and Endosperm:

Embryo sac:

  • It is haploid structure.
  • It is found in ovule.
  • It is formed before fertilization.
  • Nutritive materials are stored.
  • It consists of antipodal cells, egg cell, synergid cells and two polar nuclei.

Endosperm:

  • It is triploid structure.
  • It is found in seed.
  • It is formed after fertilization.
  • Nutritive materials are not stored.
  • Antipodal cells, egg cell, synergid cells are absent and all cells are similar

2. Differences between Seed and Ovule:

Seed:

  • It is formed in the fruit seed is formed after fertilization of ovule.
  • Seed is surrounded by integument. Outer covering is called outer integument and inner covering is called inner integument.
  • Embryosac is absent in seed.
  • Embryo is present in seed
  • Endosperm may be found in seed
  • Seed germinates to produce new paint.

Ovule:

  • Before fertilization ovule is found into the ovary called mega sporangium.
  • Nucellus is present below the ovule and is surrounded by inner and outer covering.
  • Embryosac is present in ovule.
  • Embryo is absent in ovule.
  • Endosperm is not found in ovule.
  • Ovule does not germinate.

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Question 8.
Explain any five differences between pollination and fertilization.
Answer:
Differences between Pollination and Fertilization:

Pollination:

  • In pollination, pollen grains are transferred from stamens to stigma of the flower.
  • Two male gametes are formed in this process.
  • Haploid cells participating in this process.
  • A medium is required for this process.
  • There is no morphological change after this process.

Fertilization:

  • Fertilization is a process in whieh male and female gametes fused to form the zygote.
  • Zygote is formed at the end of this process.
  • Haploid cells fused to form a diploid cell.
  • Medium is not required for this process.
  • Flower is modified into fruit and seed after this process.

Question 9.
What do you understand by double fertilization? Write its importance.
Answer:
Double fertilization:
It is the process of fusion of one male gamete with the egg nucleus and other male gamete with the polar nuclei or secondary nucleus is called double fertilization. In all angiospermic plants there is double fertilization. This process was discovered by S. N. Navaschin (1898) and Grignard (1899) in Lilium and Fritillaria. In this process, pollen grains reach stigma and then germinate. A short pollen tube comes out through a germpore. The pollen grain nucleus divides mitotically into a tube nucleus and a generative nucleus. The generative nucleus again divides into two male nuclei.

The pollen tube may enter the ovule through micropyle or through integuments or through chalazal end. One of the two male nuclei fuses with the egg nucleus and forms a zygote and this process is called syngamy. The male nucleus fuses with the two polar nuclei or secondary nucleus (diploid) and gives rise to triploid primary endosperm nucleus. This process is called triple fusion and whole process is called double fertilization. This triploid nucleus forms endosperm of the seed.

Importance:
After double fertilization triploid nucleus (endosperm nucleus) developed to form an endosperm which provide nourishment to the developing embryo resulting in the formation of healthy seed and plant.
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MP Board Class 12th Biology Important Questions

MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 3 बन्दी पिता का पत्र

MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 3 बन्दी पिता का पत्र

बन्दी पिता का पत्र अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
‘बन्दी पिता का पत्र’ किसने किसे संबोधित कर लिखा है?
उत्तर:
‘बन्दी पिता का पत्र’ पंडित कमलापति त्रिपाठी ने अपने प्रिय पुत्र लाल जी को सम्बोधित करते हुए लिखा है।

प्रश्न 2.
पत्र में कैदियों के जीवन के विषय में किन-किन बातों का उल्लेख किया है? (2017)
उत्तर:
पत्र में कैदियों के जीवन के विषय में जिन बातों का उल्लेख है, वे इस प्रकार हैं-इन कैदियों के जीवन में आनन्द, सुख और सन्तोष के लिए स्थान नहीं होता है। इनके साथ पशओं जैसा व्यवहार किया जाता है, उन्हें पीसा जाता है। इन कैदियों को समाज से उपेक्षित समझा जाता है। संसार में कहीं पर भी सम्मानपूर्वक इनको खड़े होने का कोई स्थान नहीं है। इनका भविष्य भी अन्धकारपूर्ण ही होता है। इन कैदियों के जीवन के अनेक वर्ष यहाँ ही समाधिस हो गए।

इन जेल के कैदियों के जीवन में कहाँ है बसन्त? और कहाँ है सावन की मेघगर्जन? यहाँ ये ऐसे प्राणी हैं जिनकी सारी जवानी इसी में कट गई। बुढ़ापा यहाँ आ गया और अब मौत भी इन्हें यहाँ ही आकर समाधिस्थ करेगी। वे, फिर किसी भी बन्धन से मुक्त हो जाएँगे।

जेल के कैदियों में ऐसे व्यक्तियों की भी संख्या इतनी अधिक है जिन्हें यह भी पता नहीं कि उनके घर की क्या दशा है? अपने जिन बच्चों को छोड़ आए थे, वे अब कैसे हैं? उनके घर वाले भी अब उन्हें भूल चुके हैं। यदि आज जेल से छूट कर जाएँ, और अपने सौभाग्य से अपने बेटों से मिलें, और अपनी बीबी के सामने खड़े हों तो शायद न बेटा बाप को पहचानेगा और न ही बीबी अपने मियाँ को।

क्या कभी कोई ऐसी कल्पना भी कर सकता है कि इनके हृदय में भी रस का संचार होगा, सम्भव है? क्या होली, क्या दीवाली-किसी में यह सामर्थ्य कहाँ हो सकती है कि इनके हृदय में टूटे हुए तारों को पुनः जोड़ दिया जाए और फिर उनमें से झंकृति निकल सके।

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प्रश्न 3.
जीवन के सुख-दुःख से सम्बन्धित विचारों को लेखक ने किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तर:
प्रकृति एक नटी है। लीलामयी प्रकृति मानव में वह क्षमता उत्पन्न करती है जिससे सुख-दुःख की परिस्थिति में एक सामंजस्य स्थापित हो उठता है। मनुष्य की इस क्षमता को अद्भुत ही कहा जायेगा। परिस्थितिवश स्वयं को उसके अनुकूल किस सरलता से ढाल लेता है। मनुष्य के हृदय में कला, संतुलन और धैर्य का कितना माद्दा है कि प्रत्येक परिस्थिति को अपने अनुसार ढालने में कोई कसर नहीं छोड़ता। अपनी इसी क्षमता के बलबूते पर मनुष्य जीवन धारण करने में समर्थ है।

मेरा स्वयं का अनुभव है कि यह जगत अनन्त वेदना और दुःखों से ही भरा हुआ है। यह जीवन प्रबल गति से बहते महान् काल रूपी नदी के प्रवाह पर उठे हुए बुलबुले के समान क्षणिक है। यह जीवन अस्थायी अस्तित्व लिए हुए है। इस जीवन के कितने क्षण ऐसे हैं जो सुख और शान्ति से बीते हैं। इस जीवन में सुख, आनन्द और तृप्ति नाम का पदार्थ ढूँढ़े नहीं मिल सकता।

यह जीवन बित्तेभर का है, उसके भी बड़े हिस्से में वेदना, पीड़ा और अवसाद भरा हुआ है। यदि सुख के कुछ क्षण यहाँ आ भी जाते हैं, तो वे बिजली की भाँति क्षण भर कौंध जाते हैं और मानव जीवन जो प्रायः अंधकार से भरा हुआ है, कभी-कभी आलोकित हो उठता है। सुख का प्रकाश शीघ्र ही लुप्त हो जाता है। यह सुख नश्वर है, क्षणिक है। परन्तु इस सुख की क्षणिकाओं में सत्य समाया रहता है। यह सत्य अमिट स्मृतियाँ छोड़ चला जाता है। इसी न मिटने वाली स्मृति को जीवन की शक्ति का स्रोत कहते हैं; यही स्मृति निराशा में आशा का संचार करती है, अंधकार में प्रकाश विकीर्ण करती है। मृत्यु और विनाश में जीवन का सृजन का आधार बनकर पुष्ट होती है।

संसारी जीव दु:खों से प्रभावित है। समाज में कौन ऐसा है जो तप्त हो, और अभावों से ग्रस्त न हो। फिर भी दुःखमय, क्षणिक जीवन के प्रति मनुष्य का इतना मोह क्यों? सुख के कणों को बटोरने के प्रयास में जीवन कितने दुःख, वेदना और यातना सहन करता है। कितने अचम्भे की बात है यह?

प्रश्न 4.
पत्र-लेखक ने गाँधी जी के सत्याग्रह के विषय में क्या लिखा है?
उत्तर:
ब्रिटेन अपनी साम्राज्यवादी नीतियों से लोगों के हृदय में अपने प्रति घृणा की आग सुलगा रहा था। यह अवस्था असहनीय हो चुकी थी जिससे लोगों में झुंझलाहट पैदा हो रही थी। इस महान् देश के करोड़ों लोग नपुंसकतापूर्ण ग्लज्जा का उद्रेक कर रहे थे। उस समय हम सोच रहे थे कि गाँधी जी विकट संकट में फंस गए हैं। गाँधी जी उन लोगों में से थे जो अपनी प्रतिज्ञा से एक कदम भी पीछे हटने वाले नहीं थे। शरीर को चाहे दो भागों में विभक्त क्यों न कर दिया जाए? गाँधी जी के शरीर में विदेहत्व का आदर्श सजीव रूप में मूर्तिमान हो चुका था। आदर्श और सत्य के लिए उस व्यक्ति की दृष्टि में न जीवन का मूल्य है और न जगत का।

परन्तु दूसरी ओर स्वार्थ में अंधे हुए कठोर हृदय साम्राज्यवादियों की सत्ता देखी। जिनमें नर रक्तपान करते-करते मनुष्यता नाम के किसी पदार्थ की छाया भी नहीं रह गई है। भय होता, भय नहीं विश्वास था कि यदि कहीं, वह अशिव मुहूर्त आ ही गया जब गाँधी जी की भौतिक देह इस तप के बोझ को सहन करने में असमर्थ होती दिखाई देगी, तो उस समय भी वे मानवता की इस विभूति और पृथ्वी के इस अमूल्य रत्न को नष्ट कर देने में आगा-पीछा न करेंगे। आखिर वे तो मनुष्य ही थे जिन्होंने ईसा के तपःपूत शरीर में लोहे की कील ठोंककर प्रसन्नता और सन्तोष प्राप्त किया था। यदि इतिहास उसी की पुनरावृत्ति करे तो उसे कौन रोक सकेगा।

अब हम यह अनुभव कर रहे हैं कि आज गाँधी नहीं मर रहा है। बल्कि उसके साथ वह आदर्श और वह सत्य भी मर रहा है जिसका प्रतिनिधित्व वह स्वयं कर रहा है और जिसका दिव्य संदेश लेकर यह देवदूत अवनि पर अवतीर्ण हुआ है। अब प्रश्न यह भी उठता है कि क्या मानव के चरम कल्याण के लिए और उसके लिए चेष्टा करना ही कोई जघन्य अपराध है जिसके कारण इतना भयानक दंड मिल रहा है।

यदि मानव समाज को संहार से, विनाश से और पाप से बचाना है, तो उसकी समस्त व्यवस्था को अहिंसा के आधार पर स्थापित करने का आयोजन करना ही होगा। लोग कह देते हैं कि अहिंसा मानव-प्रकृति के प्रतिकूल है और कभी हिंसा का उन्मूलन संभव नहीं है। वे इतिहास को साक्षी रूप में उद्धृत करते हैं। लेकिन लेखक के अनुसार लोग उसी इतिहास को गलत ढंग से देखते हैं। वे यह नहीं देखते कि विकास-पथ का पथिक मानव सदा प्रवृत्तियों से युद्ध करता। उनका संयम और नियंत्रण करता रहता तो आगे बढ़ता चला गया होता। उसकी यही साधना संस्कृतियों को जन्म देती रही है।

प्रश्न 5.
कैदियों ने होली के उत्सव को किस प्रकार मनाया था?
उत्तर:
आज जेल में कैदियों द्वारा होली का उत्सव मनाया जा रहा है। मैंने अपने कानों से अभी-अभी मंद-मंद किन्तु उनके उल्लास से परिपूर्ण स्वर लहरी को सुना है। यह स्वर लहरी मेरे पास वाली बैरक से सुनाई पड़ रही है। परन्तु इन बेचारे कैदियों के जीवन में आनन्द कहाँ? सुख और सन्तोष के क्षण कहाँ? इन्हें तो समाज से उपेक्षित रखा गया है। ये समाज में सम्मान से खड़े भी नहीं रह सकते। इनके जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा कैद में ही समाधिस्थ हो गया है। फिर भी अपने हृदय की भावनाओं को अपनी मस्त स्वर लहरियों में व्यक्त करते हुए इन्हें देख रहा हूँ।

इन्होंने ढपली बनाई है। धुंघरू बनाए हैं। फटे-पुराने चिथड़ों को एकत्रकर रंगा है। अपनी-अपनी बैरकों से बाहर निकल आए हैं और वे स्वाँग रच रहे हैं। फगुआ गा रहे हैं। कोई-कोई तो धुंधरू पहनकर नाच रहा है। इन अभागे कैदियों का उल्लास और उन्माद दर्शनीय है।

स्वतंत्र वायु और निर्मुक्त अनंत आकाश से भी वंचित होकर वे जीवन को कुछ क्षण के लिए मोहक और आकर्षक बनाने में सफल हुए हैं। आज होली न आई होती, तो आज इन्हें इतना भी नसीब न हुआ होता।

प्रश्न 6.
ब्रिटेन की सरकार की मनमानी से लेखक को क्यों क्षोभ हुआ?
उत्तर:
ब्रिटेन की सरकार साम्राज्यवादी है। वह सरकार निष्ठुरता की पराकाष्ठा से ऊपर तक जा चुकी है। उसकी निष्ठुरता के विरुद्ध लोगों के हृदयों में विरोध की आग फूट पड़ने लगी है। उसने जो अवस्था उत्पन्न की है, वह असह्य है, जिससे ब्रितानी शासक वर्ग किसी भी भारतीय की झंझलाहट के पात्र हो सकते हैं। ब्रिटिश सरकार की ज्यादतियों को भारत जैसे महान् देश के लोग सहन कैसे कर रहे हैं? शायद उनमें नपुंसकता का संचार हो गया है। इससे तो लज्जा का उद्रेक हुआ है।

अब बात आती है, गाँधी जी द्वारा आमरण उपवास की। हम लोग सोचते हैं कि गाँधी जी किसी विकट संकट में पड़ गए हैं। गाँधी जी उन लोगों में से एक हैं जो अपनी प्रतिज्ञा से डिगना नहीं जानते; चाहे उनके शरीर के कितने ही टुकड़े क्यों न हो जायें? वस्तुतः उनमें विदेहत्व का एक आदर्श रूप मूर्तिवान हो गया है, जिसमें सजीवता है। गाँधी जी अपने आदर्श और सत्य के लिए जीवन त्याग सकते हैं, जगत से नाता छोड़ सकते हैं। अतः उनके लिए जीवन और जगत-अपने आदर्श और सत्य के लिए कोई महत्त्व नहीं रखते।

अब थोड़ा-सा नर-पिशाचियों की ब्रितानी सरकार पर विहंगम दृष्टि डालते हैं, तो हम पाते हैं कि वे अपने स्वार्थ में अंधे हो चुके हैं। वह सरकार साम्राज्यवादियों की है। उन स्वार्थी साम्राज्यवादी सरकार की सत्ता नर रक्तपात को मौन खड़ी देख सकती है। उन लोगों में मानवता का एक बिन्दु रूप भी नहीं है। यह अत्यन्त भय की अथवा अशिवता की बात घटित हो जाती है, जिसका हम सबको भय था, और गाँधी जी की भौतिक देह तप के गहन बोझ को सहन करने में असमर्थ हो जाती तो क्या इस मानवता की विभूति और पृथ्वी के रत्न गाँधी को नष्ट करने देने में क्या हम भारतीय आगा-पीछा न करेंगे? अर्थात् अवश्य करेंगे। आखिर वे मनुष्य ही तो थे; जिन्होंने तप से पवित्र शरीर वाले ईसा मसीह के शरीर में लोहे की कील ठोंक दी और स्वयं उन्होंने प्रसन्नता और सन्तोष का अनुभव किया। इतिहास, यदि उसी की पुनरावृत्ति करे तो कर सकता है, उसे रोकने वाला कौन है?

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प्रश्न 7.
इस पत्र के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पत्र के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि-
(1) प्रकृति ने मनुष्य की रचना की है और उसमें विचित्रता पैदा की है कि मनुष्य सदैव सुख और दुःख में सामंजस्य बैठाता रहा है। इस सामंजस्य की क्षमता भी उसमें अद्भुत है। सुख क्षणिक होता है। दुःख की अन्धेरी रात्रि अपार होती है। सुख की स्मृतियाँ जीवन में शक्ति, ऊर्जा और उत्साह की स्त्रोत कहलाती हैं।

(2) लेखक वैदिक युग के समाज का दिग्दर्शन कराता हुआ कहता है कि उस युग में स्त्री-पुरुष समाज के उत्सवों में समान रूप से भाग लेते थे। खेलों और उत्सवों तथा क्रीड़ाओं में दोनों की ही सहभागिता महत्त्व रखती थी।

(3) उस युग में इन उत्सवों और पर्वो पर सम्पन्न आयोजनों में ही युवक-युवतियाँ अपने वर और वधुओं का वरण कर लेती थी। माता-पिता की और अन्य सामाजिक रूप से महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की उपस्थिति में यह स्वयंवर सम्पन्न हुआ करते थे। पुरातन आर्यों की संस्कृति सुसम्पन्न थी।

(4) आज के होली-दीवाली आदि उत्सवों पर बन्धनयुक्त कल्पित आजादी विषैली हो गयी है। जीवन में पराधीनता का बन्धन सत्य नहीं है। आज हमें सत्य और असत्य से मिश्रित जीवन का उपभोग करने की बाध्यता अनुभव हो रही है।

(5) हम भारतीयों ने लम्बे समय तक पराधीनता के कष्ट भोगे हैं। इस पराधीनता में साम्राज्यवादी सत्ता की निष्ठुरता ने सभी भारतीयों को शताब्दियों तक झुलसाया है। फिर भी गाँ ती जी ने विश्वमानव को अपने शुद्ध तपभूत मन से यह बता दिया कि हिंसा पर अहिंसा विजय पा सकती है, यदि उसके पालन करने वाले सत्य और अपने आदर्श को जीवित रखने के लिए कटिबद्ध हैं। यद्यपि हिंसा मनुष्य में प्राकृत रूप से मौजूद है। सत्य कभी मरता नहीं है।

(6) यदि मानव समाज को संहार से, विनाश से और पाप से बचाना है तो समाज की समस्त व्यवस्था को अहिंसा के आधार पर स्थापित करना होगा। मनुष्यों का कहना है कि अहिंसा मानव-प्रकृति के प्रतिकूल है। अत: हिंसा का उन्मूलन कभी भी सम्भव नहीं है। परन्तु उन्हें यह समझने की कोशिश करनी होगी कि विकास पथ का पथिक मानव सदा प्रारम्भिक प्रवृत्तियों से युद्ध करता रहा है, उन पर संयम साधता रहा है, उन पर नियंत्रण करता रहा है, और परिणामत: वह आगे बढ़ता गया है। इसी तरह की साधना से विश्व में संस्कृतियों ने जन्म लिया।

(7) मनुष्यता का इतिहास परम साधना का इतिहास है। सहज प्रवृत्तियों का उन्मूलन मानव द्वारा सम्भव नहीं है। लेकिन उन प्रवृत्तियों को एक व्यवस्था दे सकता है। उन्हें कला के रंग से रंग सकता है। उन्हें नियंत्रित कर सकता है। इस सहज प्रवृत्तियों को उन्नत पथ की ओर मोड़ा जा सकता है। हिंसात्मक प्रवृत्ति के साथ ही मनुष्य में उसके ऊपर संयम करने की प्रवृत्ति भी तो मानव के अन्दर प्रकृति ने प्रदान की है। इस प्रकार मानव के अन्दर एक विशेष गुण है, वह है मनुष्य का द्वन्द्वात्मक स्वरूप। गाँधी जी ने बताया कि इस हिंसात्मक प्रवृत्ति पर विजय पाने में असफलता, मानवता की पुनीत साधना की असफलता होगी।

(8) मनुष्य लेखन के माध्यम से अपने मन में उठे उद्गारों को स्पष्ट कर देता है। यह उसकी कल्पना शक्ति की अभिव्यक्ति है। जिस पर अन्तःकरण की छाप लगी हुई होती है। लेखक के मन की अनुभूतियाँ जीवन के स्वरूप को बताती हैं। समस्याओं का समाधन आकलित होता है। वैचारिक भिन्नता अनिवार्य है। लेकिन आशा है कि भारत का विविधामय स्वरूप प्रेम और सौन्दर्य के सूत्र में अभिन्नता से पिरोया हुआ होने की आशा की जाती है।

बन्दी पिता का पत्र अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बन्दी पिता का पत्र’ कहाँ लिखा गया था?
उत्तर:
‘बन्दी पिता का पत्र’ पंडित कमलापति त्रिपाठी ने नैनी सैंट्रल जेल में लिखा था।

प्रश्न 2.
पत्र-लेखन के समय नैनी सेंट्रल जेल में कौन-सा त्यौहार मनाया जा रहा था?
उत्तर:
पत्र-लेखन के समय नैनी सेंट्रल जेल में होली का उत्सव मनाया जा रहा था।

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बन्दी पिता का पत्र पाठका सारांश

प्रस्तावना :
लेखक अपने प्रिय पुत्र लाल जी को जेल से पत्र लिखता है। वह बताता है कि आज जेल में होली का उत्सव मनाया जा रहा है। लेखक के पास वाली बैरक से उल्लास भरी स्वर लहरियाँ उसे कान में सुनाई पड़ रही हैं। जेल की बैरके ही बहुत से कैदियों की समाधि स्थल बन गयी हैं। कुछ अपनी हड्डियाँ और मांस तक को सुखा चुके हैं; उनके लिए अब बसंत अथवा वर्षा ऋतु के सावन का मेघ गर्जन कहाँ? यहाँ कुछ कैदी ऐसे भी हैं जिनकी सुध लेने वाला बाहर कोई भी नहीं है। घरवाले उन्हें भूल चुके हैं, यहाँ तक कि बेटे, बाप, पत्नी परस्पर उन्हें पहचान नहीं सकते। तो फिर उनके हृदय में रस का संचार कहाँ हो सकता है? ऐसे होली, दीवाली पर्यों में आज वह सामर्थ्य कहाँ जो इनके टूटे हुए तारों को पुनः जोड़ दे?

प्रकृति एक महानटी है :
प्रकृति ने मनुष्य को एक विचित्रता दी है जिससे उसमें सुख और दुःख के सामंजस्य की स्थापना की क्षमता है। जीवन एक अस्थायी अस्तित्व को लिए हुए है जिसमें अनन्त वेदना और दुःख परिपूर्ण है। अतः यहाँ सुख, आनन्द और तृप्ति नाम का पदार्थ ढूँढ़े भी नहीं मिल सकता। सुख क्षणिक है, दु:ख की अनन्त कारा की कलियाँ सर्वत्र फैली हैं यहाँ। परन्तु फिर भी इस दुनिया में निराशा में आशा, अन्धकार में प्रकाश, मृत्यु में जीवन के सृजन का आधार बना रहता है।

समाज में अतृप्ति और अभाव :
सम्पूर्ण मानव समाज अतृप्ति और अभाव की समस्या से व्यथित है। मनुष्य सुख की तलाश ओस की बूंदों से प्यास बुझाने की तरह करता है। इसी तरह जेल के कैदी भी किसी भी तरह अपने मन के अवसाद को भुलाने के लिए ‘फगुआ गा रहे हैं’, कोई ढपली बजा रहा है, तो कोई अपने पैरों में घुघरू पहन नृत्य कर रहा है। इन कैदियों का भाग्य अभागेपन में डूब चुका है। परन्तु अपने जीवन में ये बंदी लोग उल्लारा की मादकता उत्पन्न करने की कोशिश कर रहे हैं। मुक्त आकाश का सौन्दर्य तो इन्हें मिलेगा नहीं, लेकिन कुछ क्षण के लिए मोहक और आकर्षक झलकियाँ जीवन का संचार कर ही देती हैं। इस होली पर्व का भी लम्बा इतिहास है। वैदिक युग में यही होली बसन्तोसव के रूप में मनाई जाती थी। विविध खेलकूद, नाचरंग, नाटक, घुड़दौड़, रथदौड़ होती थी। जीवन में जीवन का संचार था। स्त्री-पुरुष सभी इन उत्सवों में भाग लेते थे।

स्वयंवर प्रथा :
इन विविध प्रक्रियाओं के आयोजनों के बीच ही युवतियाँ भी मन के अनुकूल किसी युवक को पतिरूप में वरण करती थीं। माता-पिता उन युवक-युवतियों की इच्छाओं के अनुकूल आचरण करते थे। परन्तु ज्ञात नहीं कि जीवन और हृदयों के मिलन को पुण्यशाली पर्व की वह स्वस्थ परम्परा काल के गर्त में कब समा गई।

ब्रिटेन की साम्राज्यवादी सरकार की निष्ठुरता :
ब्रिटेन की साम्राज्यवादी सरकार की निष्ठुरता के समक्ष मानवतावादी दृष्टि अन्धत्व में समा गई है। उनके लिए न जीवन का मूल्य है, और न जगत का। उन्हें तो स्वार्थ के अन्धेरे में घेरा हुआ है। मनुष्यता से तो उनका दूर का भी परिचय नहीं है।

आदर्शों और सत्य के मूल्यों का ह्रास परन्तु बचाव :
स्वार्थपरता के अन्धकार को विकीर्ण करती यह सरकार आदर्शों और सत्य के मूल्यों से कोई सरोकार नहीं रखती। सम्पूर्ण मानव समाज को संहार से बचाने का प्रयास अहिंसा से ही हो सकता है। लेकिन हिंसा का उन्मूलन भी सम्भव नहीं है। लेकिन निराशा में आशा एवं विकास पथ का पथिक बना मानव सदा से ही इन कुत्सित प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने का क्रम अपनाता रहा है। यही वह साधना है जो संस्कृतियों को जन्म देती रही है।

मानवता का इतिहास ही साधना का इतिहास :
मनुष्य सहज और प्राकृतिक प्रवृत्तियों का उन्मूलन नहीं कर सकता। लेकिन इनको एक व्यवस्था दे सकता है। कला का रंग चढ़ा सकता है। उन्हें उन्नत पथ की ओर मोड़कर ले जाने का भागीरथी प्रयत्न कर सकता है। संस्कृतियों का विकास इसी तपस्या का फल है। हिंसा सहज प्रवृत्ति है लेकिन उस सहज प्रवृत्ति पर अंकुश डाला जा सकता है।

मानव का द्वन्द्वात्मक स्वरूप :
मानव अपने समाज में अपने इस द्वन्द्वात्मक स्वरूप से अभिशप्त है। गाँधी जी हिंसा पर अहिंसा द्वारा नियंत्रण का मंत्र जपते हैं तो यह असफलता उनकी नहीं, वरन् मानवता की पवित्र साधना की असफलता है। हिंसा में मनुष्य गतिहीन हो जाएगा। गाँधीजी उसी हिंसा के विरुद्ध इक्कीस दिन का आमरण व्रत लिए हुए हैं। जीवन निराशा में डूब रहा है।

उपसंहार :
मनुष्य अपनी जीवन नैया को आगे बढ़ाने के उपाय अपनाता है, लेखक भी अपनी लेखन शैली के माध्यम से समय काटता है। लिखता है, परन्तु उस लेखन में सम्बोधन किसी को भी कर सकता है। पत्र लेखक का प्रयोजन केवल सम्बोधित किए व्यक्ति के लिए ही नहीं होता, वह तो स्वयं लेखक के लिए भी महत्त्वपूर्ण होता है। विविध अनुभूतियाँ जीवन चक्र को विविधता देती हैं। विविधता का दृश्य जगत अभिन्नता के धारा प्रवाह में बहता रहे, एक ऐसा अदृश्य सूत्र इस विविधता को पिरोकर आकर्षण का केन्द्र बने भारत माता के हृदय का हार।

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MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 2 सवा सेर गेहूँ

MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 2 सवा सेर गेहूँ

सवा सेर गेहूँ अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
सवा सेर गेहूँ उधार लेने के बाद शंकर को क्या-क्या कष्ट सहने पड़े? (2009, 13, 15)
उत्तर:
प्रस्तावना :
अतिथियों की सेवा और भक्ति के लिए शंकर, एक दिन अपने घर पर आए हुए महात्माओं को भोजन कराने के लिए गाँव के महाराज से सवा सेर गेहूँ लेकर आया। उसकी पत्नी ने गेहूँ पीसे और गेहूँ के आटे का भोजन उन महात्माओं को कराया। अगले दिन प्रात:काल महात्मा तो आशीर्वाद देकर चलते बने। लेकिन शंकर की घरेलू दशा इस तरह खराब हुई कि उस पर आठ-आठ आँसू रोना आता है। क्योंकि महाराज के सवा सेर गेहूँ साढ़े पाँच मन में बदल गये थे।

पारिवारिक विघटन :
शंकर का छोटा भाई मंगल अलग हो गया। घर का बँटवारा हो गया। साथ रहकर दोनों किसान थे। अब दोनों ही मजूर (मजदूर) हो गए। चूल्हे अलग-अलग जलने लगे। भाई-भाई शत्रु बन गए। प्रेम, खून और दूध के बन्धन टूट गए। कुल मर्यादा का स्थापित वृक्ष सूखने लगा। कई दिन तक शंकर को भूख-प्यास और नींद नहीं आई। शारीरिक रूप से दुर्बल हो गया। बीमारी ने जकड़ लिया। खेती केवल मर्यादा भर के लिए रह गई थी।

शंकर :
एक बन्धुआ मजदूर-महाराज से महाजन बने महाराज के यहाँ ऋण न चुका पाने की दशा में शंकर को बंधुआ मजदूर होना पड़ा। उसे आधा सेर जौ प्रतिदिन, एक कम्बल और मिरजई वर्ष में एक बार दिया जाने लगा।

उपसंहार :
शंकर को बीस वर्ष तक बंधुआ मजदूर की तरह काम करना पड़ा महाराज महाजन के यहाँ, फिर भी एक सौ बीस रुपये का ऋण उसके सिर बाकी रहा। शंकर के जवान बेटे को गरदन पकड़कर उस ऋण की अदायगी के लिए बंधुआ मजदूर बनाया गया। जब तक. शंकर जीवित रहा तब तक महाराज के सवा सेर गेहूँ किसी देवता के अभिशाप के दाने की तरह उसके सिर से नहीं उतरे।

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प्रश्न 2.
‘महाराज’ के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
महाराज :
एक सहायक के रूप में-शंकर के गाँव का महाराज गाँव के लोगों की सहायता आवश्यकता पड़ने पर किया करता था। शंकर को जब गेहूँ की जरूरत पड़ी तो वह उसे सवा सेर गेहूँ देता है और उसकी सहायता समय पर कर देता है।

खलिहानी लेने वाला महाराज :
महाराज अपने गाँव के किसानों से वर्ष में दो बार खलिहानी माँगने जाता है। प्रत्येक किसान आदरपूर्वक श्रद्धा से खलिहानी में अच्छी तौल का अन्न देते हैं। शंकर तो उसे बेहिसाब खलिहानी देता है।

गाँव का अकेला महाजन महाराज :
गाँव के किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता अन्न या धन देकर करता रहता है। गाँव में वह ऐसा अकेला ही व्यक्ति है, जो सभी किसानों की जरूरत के समय सहायता करने को तैयार रहता है। लेकिन सभी से ऊँचे दर का मूद वसूल करता है।

लोभी लालची महाजन :
शंकर के गाँव का महाजन लोभी और लालची है। वह किसी भी व्यक्ति को अपने लालच के चंगुल में फंसाकर उसे शीघ्र मुक्ति नहीं देता। स्वयं शंकर उससे सवा सेर गेहूँ उधार लेता है। सात वर्ष में उस सवा सेर गेहूँ का साढ़े पाँच मन गेहूँ के ऋण का बोझ शंकर पर डाल देता है। जीवन भर उसके ऋण को शंकर चुका नहीं पाता।

निर्दयी और कठोर हृदय महाराज :
महाराज सूदखोर होने के साथ-साथ निर्दयी भी है और कठोर हृदय भी। शंकर के बीमार होने की दशा में भी वह उसे अपने यहाँ काम करने से मुक्ति नहीं देता है। अन्त में शंकर इस संसार से विदा लेता है। उसके बाद भी एक सौ बीस रुपये का ऋण शेष बताकर उसके (शंकर के) जवान बेटे को भी बंधुआ मजदूरी करने के लिए पकड़ लेता है। उसमें दीन-दुःखियों के प्रति कोई भी सहृदयता और सहानुभूति नहीं है।

एहसान न मानने वाला बेईमान महाराज :
शंकर अपने खेतों से महाराज को जी खोलकर खलिहानी देता है। वह सोचता है कि मैं इनके सवा सेर गेहूँ को अलग से क्या दूँ? वह सोचता है कि महाराज भी इसी तरह समझ लेंगे, जिस तरह मैं सोच रहा हूँ। लेकिन शंकर की उदारता का लाभ वह महाराज लेता रहा और उसके ऊपर सवा सेर गेहूँ के बदले साढ़े पाँच मन गेहूँ के ऋण का बोझ रख दिया। महाराज एहसान फरामोश और बेईमान व्यक्ति है।

लोगों की श्रद्धा और भक्ति का लाभ लेना :
महाराज शंकर के गाँव के सभी किसानों की श्रद्धा और भक्ति की भावना का लाभ स्वयं लेता रहा। प्रत्येक किसान उस महाराज को वर्ष में खेती पकने पर दो बार खलिहानी देते हैं। वे उसके प्रति अंधी भक्ति रखते हैं। उन लोगों को अगले जन्म में ऋण चुकता करने का भय दिखाकर सरल और उदार हृदय लोगों का शोषण करता है।

उपसंहार :
शंकर के गाँव का महाराज एक चालाक, धोखेबाज, सूदखोर व्यक्ति है जो प्रत्येक क्षण लोगों के शोषण का नया मार्ग अपनाता रहता है।

प्रश्न 3.
“शंकर एक गरीब किसान होते हुए भी समस्याओं से कभी घबराता नहीं था।” उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
प्रस्तावना :
शंकर गाँव का किसान है। सीधा सादा व्यक्ति है। आहार-व्यवहार में भी भोला-भाला। वह यदि ठगा भी गया, तो भी खुश ही रहा। भाग्य और जन्म-जन्मान्तर के खेल में वह विश्वास करता था। उसके दरवाजे पर आये हुए अतिथि भगवान होते थे। उनकी खातिर में सब कुछ खर्च कर देता था। वह विश्वास करता था कि ‘साधु न भूखा जाय’, का सिद्धान्त उसके लिए सर्वोपरि था।

महात्माओं का आना :
शंकर के घर में आर्थिक तंगी थी। दोनों समय भोजन मिलने में भी कोताही। परन्तु महात्माओं के लिए गाँव के महाराज से सवा सेर गेहूँ उधार लाया और फिर उन अतिथियों को छककर भोजन कराया गया। महात्मा आशीष देकर विदा हुए।

सवा सेर गेहूँ का ऋण बना पहाड़ जैसा भार :
शंकर गाँव के महाराज को खलिहानी में वर्ष में दो बार अन्न देता रहा। वह भी पाँच सेर से बढ़कर। फिर भी महाराज ने अपने सवा सेर गेहूँ के ऋण को द्रोपदी का चीर बना दिया। अपने सवा सेर गेहूँ के बदले उसने शंकर पर साढ़े पाँच मन गेहूँ का ऋण लाद दिया।

बंधुआ मजदूर बना शंकर :
शंकर महाराज के ऋण को चुकाने की स्थिति में नहीं रहता। सूद के रूप में वह मजदूर बनकर महाराज के यहाँ काम करता है। घर के खर्चे के लिए उसकी पत्नी और बच्चे मजदूरी करते हैं। इतना सब कुछ होने की दशा में शंकर बिल्कुल भी नहीं घबराता। महाराज की प्रत्येक बात को अपना संस्कार और पूर्वजन्म का प्रभाव समझकर स्वीकार कर लेता है।

शंकर का अन्त और पुत्र का बंधुआ मजदूर होना :
शंकर महाराज के यहाँ बीस वर्ष तक बंधुआ मजदूर की तरह कार्य करता है। अन्त में उसकी मृत्यु हो जाती है। फिर भी “एक सौ बीस रुपये” का ऋण अपने सिर छोड़कर दूसरी दुनिया में चला जाता है। महाराज उसके जवान बेटे को गरदन पकड़कर अपने घर बंधुआ मजदूर बनाकर रखता है।

उपसंहार :
इस दुनिया में शंकर जैसे परिश्रमी, ईमानदार लोग पूर्व संस्कारों और अगले जन्म के भय के वशीभूत होकर सवा सेर गेहूँ के ऋण को किसी देवता के “अभिशाप के दाने की तरह” भोगते रहते हैं।

प्रश्न 4.
“यह कहानी प्राचीन भारत में किसानों के होने वाले शोषण को उजागर करती है।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
प्रस्तावना-शंकर एक गरीब किसान अपने गाँव में कृषि करता है। वे दो भाई हैं। उसका दूसरा भाई मंगल है। दोनों भाइयों का परिवार सन्तोष और धैर्य से गरीबी में भी एक इज्जतदार कृषक परिवार के सम्मान को पाया हुआ है। दो बैलों से किसानी करते हैं। निर्धनता का यह आलम है कि शंकर को भोजन मिला तो खाया, न भी मिला तो भला, चना-चबैना से गुजर हुई-पानी पिया सो गया। ‘राम’ का जाप करते नींद आयी।

लेकिन उस शंकर में अतिथियों, महात्माओं के प्रति बड़ी श्रद्धा थी, भक्ति थी। उनके आने पर उनका आतिथ्य अच्छे भोजन से कराया जाना नहीं भूलता। वह स्वयं भूखा सो सकता था, लेकिन साधू को कैसे भूखा सुलाता क्योंकि भगवान के भक्त जो ठहरे।

एक दिन संध्या समय कुछ साधु-महात्मा आए। सन्ध्या समय भोजन आदि का इन्तजाम करने की चिन्ता में शंकर गाँव में गया। किसी ने भी गेहूँ का आटा नहीं दिया। देते भी कहाँ से, उनके घर में जौ के अलावा कोई अन्य अन्न होता ही नहीं। चिन्तित शंकर को गाँव के महाराज के यहाँ से सवा सेर गेहूँ उधार मिल गए। उसकी पत्नी ने गेहूँ पीसा और साधु महात्माओं को भोजन कराया। प्रातः हुई और महात्मा आशीष देकर चले गये।

महाराज रूपी महाजन :
शंकर ने महाराज को खलिहानी के रूप में कुछ ज्यादा खलिहानी दे देना उचित समझा कि सवा सेर गेहूँ क्या लौटाऊँ ? पसेरी के बदले कुछ ज्यादा ही खलिहानी दे दी गई। वर्ष में दो बार खलिहानी उगाहने का रिवाज इन महाराज महोदय ने पनपा लिया था। प्रति किसान दो बार खलिहानी से वर्ष में काफी अन्न प्राप्त होता रहा। ये लोग बिना परिश्रम किए ही मुफ्त में अन्न धन प्राप्त करते रहे। ये सब होता था किसानों की उदारता और दरियादिली के कारण।

शोषण की स्थिति :
कृषक के कृषि उत्पादन पर न जाने कितने प्रकार की रीति-रिवाजों और सामाजिक व्यवस्था के चलते निकम्मे लोगों के पोषण का भार होता था। इसका प्रभाव सीधा कृषक की आर्थिक दशा पर पड़ता था। कथित महाराज भी इन्हीं निकम्मे लोगों का प्रतीक है जिसने शंकर जैसे सीधे भोले-भाले कृषक को अपने चंगुल में फंसाया हुआ है।

शंकर को दिए गये सवा सेर गेहूँ का ऋण जीवन के बीस वर्ष तक बंधुआ मजदूर के रूप में महाराज के यहाँ मजदूरी करते-करते चुकता नहीं होता है। उसे अगले जन्म में चुकाने का भय दिखाकर, शंकर जैसे भोले और अशिक्षित किसानों को चतुर चालाक निकम्मे व्यक्ति ठगते रहते हैं।

महाराज से बना महाजन सवा सेर गेहूँ के बदले साढ़े पाँच मन गेहूँ का ऋण वसूलता है। सूद में सारे जीवन भर मजदूरी कराता है, बेगार लेता है। अन्त में बीस वर्ष की बंधुआ मजदूरी में, रोगी होकर, तिल-तिल जलती जिन्दगी से मुक्ति पाता हुआ शंकर दूसरी दुनिया में चला जाता है।

तात्पर्य है कि किसान ऋण में ही पैदा हुआ, ऋण में ही जीवन जीता रहा और ऋण में ही मृत्यु को प्राप्त हुआ। फिर भी ऋण का चुकता नहीं हुआ। शंकर सम्पूर्ण किसान जाति का प्रतीक है। महाराज रूपी महाजन उसके जवान पुत्र को भी एक सौ बीस रुपये का ऋण जिसे उसका बाप चुका नहीं पाया, बंधुआ मजदूर के रूप में चुकाने को मजबूर करता है।

अतः किसान का शोषण अन्तहीन हो गया। वह ऋण पीढ़ी-दर-पीढ़ी चुकाने के लिए ये महाराज रूपी महाजन अपने जाल बुनते रहते थे।

उपसंहार :
“यह कहानी प्राचीन भारत में किसानों के ऊपर होने वाले शोषण को उजागर करती है” इस कथन से हम पूर्णतः सहमत हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में यह शोषण अभी भी चालू है। सरकार इस तरह के शोषण के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करे और ऐसे कदम उठाए जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता का ऋण समय पर उपलब्ध हो सके। साथ ही किसानों को भी अपने भले-बुरे का ज्ञान होना चाहिए। उन्हें भी शिक्षित होकर इन महाजन रूपी दैत्यों के चंगुल से बचे रहने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
प्रस्तुत कहानी में आपको किस पात्र ने अधिक प्रभावित किया है? और क्यों? लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तावना :
एक गाँव है किसानों का। प्रायः सभी कृषि कर्म करते हैं। अपने-अपने कार्य में लगे रहकर, दीनता की पराकाष्ठा तक पहुँचकर भी स्वयं को धन्य, संतुष्ट और भाग्यशाली समझते हैं। भाग्य भरोसे और जन्म-जन्मान्तर के भोग और संस्कारों का प्रतिफल मानते हुए इस जीवन के घोर नरकतुल्य अवसादों की जिन्दगी जीते हैं।

पात्र परिचय :
प्रस्तुत कहानी में-शंकर, महाराज (महाजन), महात्मा (अतिथि), मंगल (शंकर का भाई), शंकर की पत्नी, उसका बेटा और मंगल की पत्नी और बच्चे, सभी पात्र हैं जो भारतीय कृषक गाँवों के निवासी किसान हैं। सभी अशिक्षित, महाजन (महाराज) की ठगी के शिकार, साधु-महात्माओं के आतिथ्य में बढ़-चढ़कर सामर्थ्य से अधिक खर्च करके स्वयं को ईश भक्तों की कतार में खड़ा करने की होड़ वाले हैं। इनका प्रतीक पात्र शंकर है। शंकर अपनी सीधी-सादगी भरी जिन्दगी, कर्मठ, अशिक्षा के कारण ठगी का शिकार होता है। जीवन भर शोषित ही रहकर संसार से विदा लेता है। उसका परिवार विघटित हो जाता है। दोनों भाई इज्जतदार किसान से मजदूर होकर दैन्य जीवन गुजारते हैं। प्रतिष्ठा दाँव पर लगा दी जाती है।

उपर्युक्त निर्दिष्ट पात्रों में मुझे प्रभावित किया है शंकर ने। इस पात्र ने मुझे क्यों प्रभावित किया है-इसका उत्तर भी इसी शोषित शंकर की पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक दशा के चित्रण के संदर्भ में दे दिया जाएगा।

शंकर और मंगल निर्धन और शोषित कृषक परिवार के सदस्य हैं। लेकिन अपनी सीधी व सादगी भरी जिन्दगी की गाड़ी परिश्रम करके खींच रहे हैं। सामाजिक रूप से थोड़ा अधिक सम्मान पाने वाला अशिक्षित व्यक्ति दिखावे और बड़प्पन के चक्कर में पड़कर विपत्तियों और कष्टों को आमंत्रित करता रहता है। यही इस शंकर ने किया, स्वयं को अतिथि सत्कार करने में श्रेष्ठ, ईश भक्तों में श्रेष्ठ प्रदर्शित करने की आदत वाला अशिक्षित व्यक्ति साहूकारों से प्राप्त ऋण के चंगुल में पड़कर अपना सर्वस्व गँवा बैठता है।

महात्मा को गेहूँ का श्रेष्ठ भोजन कराने के चक्कर में सवा सेर गेहूँ का साढ़े पाँच मन गेहूँ हो जाता है और उस पहाड़ जैसे ऋण के चुकाने में सारा जीवन बंधुआ मजदूर के रूप में व्यतीत करता है। बड़े धैर्य से इसको सहन करते हुए अपनी पत्नी और पुत्र को भी ऋण चुकाने के चक्कर में कष्ट की चक्की में पिसने को मजबूर कर देता है।

यह शंकर ही है, जो प्रत्येक नई समस्या पैदा करता है अपने परिवार के लिए और स्वयं अविचलित होते हुए उस समस्याग्रस्त जीवन में फंसा रहता है। अपनी श्रेष्ठता को कायम रखने के कारण उसका और उसके भाई मंगल का आपसी विभाजन हुआ। स्वयं ने कड़े परिश्रम से परिवार के वृक्ष को रोपा, सींचा, बड़ा किया परन्तु अन्त में उसको काटने के लिए भी स्वयं महाजन के ऋण को अस्त्र रूप में प्रयोग करता है।

वर्ष में दो बार खलिहानी लेने वाला महाराज रूपी महाजन उसकी उदारता, सहृदयता, भोलेपन, श्रद्धा और भक्ति का लाभ उठाता है। शंकर ऐसे ठग की चालों में अपनी उदारता का प्रभाव देखना चाहता है। इसे चाहिए था पहली बार की ही खलिहानी पर सवा सेर गेहूँ अलग से अधिक दे देता है। परन्तु अपनी अव्यावहारिक नीति के कारण अपने परिवार के सदस्यों को भी कष्ट में झोंक देता है। स्वयं भी बीस वर्ष बंधुआ मजदूर की जिन्दगी भोगता हुआ चल बसता है।

उपर्युक्त सभी कारण ऐसे हैं जिनसे प्रभावित होकर शंकर सभी पाठकों का प्रिय पात्र बन जाता है। सभी इसके प्रति सहानुभूति रखते हैं।

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प्रश्न 6.
‘सवा सेर गेहूँ’ कहानी के आधार पर शंकर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
‘सवा सेर गेहूँ’ कहानी के आधार पर शंकर के चरित्र की दो विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर:
प्रस्तावना :
‘सवा सेर गेहूँ’ मुंशी प्रेमचन्द की सामाजिक विरसता को अभिव्यक्ति देने वाली श्रेष्ठ कहानी है। कहानीकार ने इस कहानी में पात्रों का चयन एक खास वर्ग से किया है जिसकी करतूतों से समस्त भारतीय कृषक समुदाय सदैव से त्रस्त रहा है। आजादी के बाद लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था कायम होने के उपरान्त भी इस शोषक, शोषित और शोषण की अवस्था में कोई भी फर्क नहीं दीख पड़ा है। मुंशी प्रेमचन्द अपनी कहानियों में किसी एक समस्या को प्रधान रूप से इंगित करके जरूर चलते हैं लेकिन उसके परिप्रेक्ष्य में अन्य समस्याएँ उत्पन्न होकर समाज को जड़ समेत उखाड़ती-सी प्रतीत होती हैं।

शंकर एक प्रमुख पात्र :
‘सवा सेर गेहूँ’ कहानी का प्रमुख पात्र शंकर है। सम्पूर्ण कहानी का घटना चक्र उसके चारों ओर घूमता है। अब यहाँ उसके चरित्र की कुछ विशेषताओं का उल्लेख करते हैं

(1) शंकर का आतिथ्य भाव :
शंकर अपने द्वार पर आए किसी भी महात्मा, साधु, संन्यासी या अन्य अतिथियों का आतिथ्य भक्ति और श्रद्धा से करता है। उसके लिए वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। घर में महात्मा को सांध्यकालीन भोजन में गेहूँ के आटे का उत्तम भोजन देकर, पुण्य अर्जन की कामना करता है। इसके निमित्त अपने ही गाँव के महाराज (महाजन) से सवा सेर गेहूँ उधार लाता है। उसकी पत्नी गेहूँ पीसती है, फिर भोजन तैयार होता है। इस अतिथि सत्कार के कार्यक्रम में शंकर के घर के सभी सदस्य अपना योग देते हैं। परन्तु स्वयं अपने और घर के : सदस्यों के लिए सम्भवत: चना-चबैना खाकर या पानी पीकर ही रात्रि गुजारना उनकी नियति था। आतिथ्य सत्कार का पुण्य और श्रेष्ठ गृहस्थी के जीवन का सपना कंगाली की कराहट में विभाजन तक पहुँच जाता है।

(2) अपने परिवार के प्रति समर्पित :
शंकर अपने परिवार के प्रति पूर्णतः समर्पित है। वह सप्रयास दोनों भाइयों के परिवार को सम्मिलित रूप में खड़ा करता है। वह परिवार रोपे गये, सींचे गए वृक्ष की तरह पल्लवित हुआ है। परन्तु दीनता की आरी ने असमय में काटना प्रारम्भ कर दिया जिससे शंकर की दर्द भरी चीख उठती है। लेकिन रात्रि के अन्धकार में अपने दुपट्टे से मुँह बाँधकर हफ्तों तक भूखे रहते समय बिताता है। वह नहीं चाहता कि उसका समृद्ध वृक्ष-परिवार विभाजित हो।

(3) सादगी भरा शंकर :
शंकर अपने व्यवहार और आचरण में सीधा-सादा और सादगी भरा है। वह ठग विद्या नहीं जानता। अतः वह स्वयं जैसा है, वैसे ही व्यवहार की आशा अन्य लोगों से करता है। महाराज (महाजन) अपनी चालों से, ठगी के पेंचों से ‘सवा सेर गेहूँ’ देकर ‘साढ़े पाँच मन’ गेहूँ के पहाड़ सरीखे कर्ज में डुबो देता है। यदि वह चालबाज होता, ठग विद्या अपनाने वाला होता तो निश्चय ही उसका परिवार कर्ज के सागर में न डूबता।

(4) अशिक्षित :
शंकर अशिक्षित किसान है। शिक्षित होता तो वह किसी भी तरह महाजन द्वारा ठगाई में नहीं आता और ‘सवा सेर गेहूँ’ का कर्ज तिल से ताड़ नहीं बनने देता।

(5) बंधुआ मजदूर :
शंकर महाजन (महाराज) की कुचालों में फंसकर उसका बँधुआ मजदूर होकर पूरी जिन्दगी बिता देता है। फिर भी उसका एक सौ बीस रुपये का ऋण शेष रह जाता है जिसे चुकता करने के लिए शंकर का नौजवान बेटा उसी राक्षस वृत्ति वाले निर्दयी महाराज द्वारा बंधुआ मजदूर बनाया जाता है।

(6) पति और पिता के रूप में शंकर :
शंकर एक पति के रूप में अपनी पत्नी के प्रति व्यवहार में श्रेष्ठता अपनाता है। वह नहीं चाहता कि उसकी पत्नी उसके कारण हुए कर्ज को चुकाने के लिए कष्ट भोगे।।

शंकर एक पिता के रूप में खरा उतरता है। वह स्वयं निर्धनता के अनेक कष्ट भोगता हुआ भी अपने पुत्र को इन सभी कष्टों का आभास तक नहीं होने देता।

(7) सहृदय भाई :
शंकर एक सहृदय भ्राता है। जब उसका भाई मंगल पारिवारिक रूप से अलग होकर रहने लगता है, तो घर के इस विभाजन को बड़ी मुश्किल से सहन कर पाता है। विघटन और विभाजन को रोकने का उसका प्रयास विफल हो जाता है। अन्त में वह स्वयं इस विभाजन से टूट जाता है।

(8) शंकर की उदारता :
शंकर सहृदय और उदार है। सबसे पहले तो वह अपने परिवार के प्रति उदारता का व्यवहार करता है। दूसरे, घर के द्वार पर आए हुए अतिथियों का अपनी शक्ति से ऊपर होकर सत्कार करता है। साथ ही ठग और चालबाज महाराज को भी खलिहानी के रूप में अधिक अन्न देता है। यह सब शंकर के हृदय की उदारता ही है।

(9) उपसंहार :
शंकर सीधा, सरल व्यवहार वाला किसान है। किसान प्रकृति से सहनशील, कष्ट-सहिष्णु, भाग्यवादी और पूर्वजन्म के संस्कारों के प्रभाव से प्रभावित होते रहते हैं। ये सभी गुण शंकर में एक साथ विद्यमान हैं।

सवा सेर गेहूँ अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शंकर के द्वार पर पधारे महात्मा की वेशभूषा कैसी थी?
उत्तर:
संध्या समय शंकर के द्वार पर एक महात्मा पधारे। वह तेजस्वी मूर्ति थे, पीताम्बर गले में, जटा सिर पर, पीतल का कमंडल हाथ में, खड़ाऊँ पैर में, ऐनक आँखों पर, सम्पूर्ण वेष महात्माओं का सा था।

प्रश्न 2.
शंकर ने किससे, कितना और क्यों गेहूँ उधार लिया था?
उत्तर:
गरीब किसान शंकर ने गाँव के महाराज से सवा सेर गेहूँ उधार लिये थे क्योंकि एक दिन उसके द्वार पर एक महात्मा आ पहुँचे थे और उसके पास उन्हें खिलाने के लिए गेहूँ का एक दाना तक न था।

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सवा सेर गेहूँ पाठ का सारांश

शंकर एक किसान :
किसी गाँव में शंकर नाम का एक किसान था। वह अपने काम से काम रखता था, वह सीधा सादा और गरीब था। वह किसी के भी लेन-देन से दूर रहता था। व्यवहार में सरल; भोजन-अशन में सादा, जो मिला खा लिया। परन्तु द्वार पर आए अतिथि उसके लिए भगवान थे। स्वयं भूखा रह लेता, परन्तु आगन्तुक साधु-संन्यासियों की सेवा में दत्तचित्त रहता था। एक दिन घर आए हए महात्माओं के लिए घर में गेहूँ का आटा नहीं था। घर में सिर्फ जौ का ही आटा था। अतिथियों को तो गेहूँ का ही भोजन कराना है। अतः वह गाँव भर में आटे की तलाश में गया। पूरे गाँव में आटा नहीं मिला।

गाँव का महाराज :
गाँव के महाराज से सवा सेर गेहूँ लिए, स्त्री ने आटा तैयार किया। महात्मा लोग भोजन करके आशीर्वाद देकर अगले दिन प्रात:काल चल दिए।

महाराज की खलिहानी :
महाराज वर्ष में दो बार खलिहानी लेते थे। शंकर ने सोचा कि इन्हें सेवा सेर गेहूँ क्या हूँ, पसेरी भर से ज्यादा खलिहानी दे दूँगा। दोनों ही आपस में समझ लेंगे। चैत के महीने में महाराज पहुँचे, डेढ़ पसेरी गेहूँ दे दिए गए। शंकर ने सवा सेर गेहूँ से स्वयं को उऋण समझ लिया। सवा सेर गेहूँ की चर्चा महाराज ने कभी नहीं की। महाराज अब महाजन होने लगे।

शंकर के घर की दशा :
शंकर किसान से मजदूर हो गया। छोटा भाई मंगल अलग हो गया। भाई के अलग होने पर शंकर फूट-फूट कर रोने लगा। कुल मर्यादा का वृक्ष उखड़ने लग गया। सात दिन लगातार एक दाना भी उसके मुंह तक नहीं गया। दिन में धूप में काम करता। मुँह लपेटकर रात को सोता। रक्त जल गया मांस मञ्जा घुल चुकी। खेती मान-मर्यादा के लिए रह गई। सब चौपट हो चला। सात वर्ष बीत चुके। शंकर मजदूरी से लौटकर आ रहा था। महाराज ने बुलाया और कहा कि तू अपने बोज-बेंग का हिसाब कर ले। तेरे हिसाब में साढ़े पाँच मन गेहूँ बाकी पड़े हैं। तू देने का नाम ही नहीं लेता, हजम करना चाहता है।

सवा सेर का साढ़े पाँच मन गेहूँ :
शंकर को अचम्भा हुआ। उसने कहा कि मैंने तुमसे कब गेहूँ लिए जो साढ़े पाँच मन हो गए। मुझ पर किसी का भी एक दाना व एक पैसा भी उधार नहीं है। महाराज ने कहा कि तुम अपनी नीयत के कारण कष्ट भोग रहे हो तभी तो खाने को नहीं जुड़ता। तब फिर महाराज ने सवा सेर गेहूँ का जिक्र किया।

शंकर ने कहा कि मैं बढ़-चढ़कर खलिहानी देता रहा। तुम्हारे सवा सेर गेहूँ अभी चुकता नहीं हुए। महाराज ने कहा-बख्शीस सौ-सौ हिसाब जौ-जौ। व्यर्थ की बहस छोड़, मेरा उधार दे।

बंधुआ मजदूर :
शंकर काँप गया। मेहनत मजदूरी करके साल भर में 60 रुपये जुड़े, उन्हें जमा करा दिया, शेष रुपया दो-तीन माह में लौटा देने का वादा किया। पन्द्रह रुपए शेष रह गए। उन्हें चुका नहीं सका। शंकर महाराज के यहाँ बंधक मजदूर हो गया। उसे आधा सेर जौ रोज कलेवा के लिए, ओढ़ने को साल में एक कम्बल मिला करता। एक मिरजई बनवा देता। शंकर महाराज की गुलामी में बँध गया। सवा सेर गेहूँ की बदौलत उम्र भर के लिए गुलामी की बेड़ियों में बँध गया।

उपसंहार :
शंकर इस सब को पूर्व जन्म का संस्कार मानता था। वे गेहूँ के दाने किसी देवता के शाप की भाँति पूरे जीवन उसके सिर से नहीं उतरे। शंकर महाराज के यहाँ बीस वर्ष तक गुलामी करता रहा। संसार से चल बसा। फिर भी एक सौ बीस रुपये उसके सिर पर सवार थे। शंकर के जवान बेटे को गरदन पकड़कर अपने यहाँ शंकर के ऋण को चुकाने के लिए बंधक मजदूर बनाया। वह आज भी काम करता है। ऐसे शंकरों और महाराजों से दुनिया भरी पड़ी है।

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MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 1 कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री

MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 1 कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री

कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
लाल बहादुर शास्त्री को निष्काम कर्मयोगी क्यों कहा गया? (2014)
उत्तर:
प्रस्तावना-लाल बहादुर शास्त्री के नाम के साथ यदि ‘कर्मयोगी’ भी जोड़ दिया जाए, तो यह अधिक उपयुक्त होगा। उनका सम्पूर्ण जीवन कर्म से परिपूर्ण था। शास्त्री जी एक सामान्य परिवार में जन्मे, पले, बड़े हुए और शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा भी सामान्य स्तर से प्रारम्भ हुई। इस तरह एक साधारण परिवार का बालक प्रधानमन्त्री के उत्तरदायित्वपूर्ण पद तक पहुँचे, यह एक अति आश्चर्य की बात मानी जाएगी। उनके जीवन में असुविधाएँ ही असुविधाएँ थीं। कठिनाइयों का तो कोई जोड़-तोड़ ही नहीं रहा। लेकिन इन सबके पीछे स्वयं शास्त्री जी की विचारधारा और कर्म प्रधान जीवन में ही उनके जीवन की सफलता का रहस्य छिपा था। उनको जीवन का रास्ता स्वयं निर्मित करना पड़ा। उन्हें किसी के द्वारा बना-बनाया रास्ता नहीं मिला।

जीवन शैली और दर्शन :
अब आती है बात, शास्त्री के जीवन की शैली और उनके जीवन के प्रति दर्शन की। वे ऐसे लोगों में से नहीं थे जो भाग्य में विश्वास करते थे और यह सोचकर बैठ जाते कि जो भाग्य में होगा, वही प्राप्त होगा और देखा जाएगा। भाग्यवादी लोगों को कभी अचानक सफलता मिल जाती है, ऐसा उनके साथ नहीं था। यह उनके जीवन की शैली नहीं थी। वे ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें अपने चिन्तन और कर्म शक्ति पर अधिक भरोसा होता है। वे अपने हाथ की लकीरों को मिटाकर चलने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन का रास्ता स्वयं चुना और उस पर आगे बढ़ते गये।

कर्मफल में निष्काम भाव :
शास्त्री ने अपने कर्म और उत्तरदायित्व का निर्वाह किया। कर्म साधना ही उनके लिए ईश्वर की साधना थी, भक्ति थी। वे अपने कर्म के लिए समर्पित थे। कर्म के फल और उसकी परिणति में उन्हें कभी भी आशा नहीं थी। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वे निराशावादी थे। सम्पूर्ण भाव से कर्म में निरत रहना, उनकी ईश आराधना और भक्ति से कम नहीं थी। उन्हें अपने कर्म फलानुसार जब भी अवसर प्राप्त हुए, वे उस कर्म के फल की ओर उपेक्षापूर्ण दृष्टि ही अपनाते रहे। इस तरह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म की व्याख्या करते हुए जो मार्ग दिखाया है, उसी का अनुपालन उन्होंने अपने जीवन में पूरे समय किया। इस सबका यह निष्कर्ष निकलता है कि श्री शास्त्री जी निष्काम कर्मयोगी थे।

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प्रश्न 2.
“शास्त्री जी अत्यन्त लोकप्रिय थे”, कारण सहित उनकी लोकप्रियता पर प्रकाश डालिए। (2008, 09)
उत्तर:
प्रस्तावना :
शास्त्री जी सदैव ही भारतीय आजादी के आन्दोलनों के दौरान- चाहे जेल में रहे या जेल से बाहर; वे समाजगत समस्याओं के निराकरण के लिए जूझते रहे। उनके जीवन का उद्देश्य समाज और देश में रचनात्मक कार्यों को प्राथमिकता से पूरा करना था। इस दिशा में, वे पूरी लगन और तत्परता से प्रयत्नशील रहे और कार्यों को सम्पन्न किया और सहयोगीजनों से सहयोग प्राप्त किया।

शास्त्रीजी और जनसेवा :
रचनात्मक कार्यों के अतिरिक्त एक पदाधिकारी के रूप में भी जनसेवा को महत्त्व प्रदान किया। वे सन् 1935 ई. में संयुक्त प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे और सन् 1938 तक जनसेवा में लगे रहे। खासतौर से उनका लगाव किसानों की सेवा व उनके उत्थान के उपायों के प्रति रहा। उन्होंने किसानों को संगठित किया। इस कार्य शैली और जीवन दिशा की सोच के कारण उन्हें उस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया, जो किसानों की दशा का अध्ययन कर रही थी। यह सन् 1936 की बात है। उन्होंने अपनी पक्की लगन और दृढ़ आस्था से अपनी रिपोर्ट तैयार की और उस रिपोर्ट में जमींदारी उन्मूलन पर विशेष बल दिया था।

इलाहाबाद की नगरपालिका से भी लगातार 6 वर्षों तक किसी न किसी रूप में जुड़े रहे। वे ग्रामीण जीवन शैली से पूर्णतः परिचित थे ही। अब इसके साथ इलाहाबाद नगरपालिका ने जनसेवा का भी अनुभव जोड़ दिया। लोकतन्त्र की आधारभूत इकाई इलाहाबाद नगरपालिका थी। इसके कार्य करने से देश की छोटी-छोटी समस्याओं और उनके निराकरण की व्यावहारिक प्रक्रिया से वे बहुत अच्छी तरह परिचित हो चुके थे।

शास्त्रीजी का संसदीय जीवन :
शास्त्री जी के व्यक्तित्व में कार्य के प्रति निष्ठा और परिश्रम करने की अदम्य क्षमता व्याप्त थी। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें सन् 1937 ई. में संयुक्त प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचित कर लिया गया। अगर सही अर्थ की बात मानें तो शास्त्री जी का संसदीय जीवन यहीं से प्रारम्भ हुआ और उसका समापन देश के प्रधानमन्त्री के पद तक पहुँचने में हुआ।

उपसंहार :
शास्त्रीजी को भारतीय राजनीति की इतनी सही और गहरी पकड़ थी कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा कि वे उनके राजनीतिक गुरु थे और उन्हीं के मार्गदर्शन में उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत हुई।

प्रश्न 3.
शास्त्री जी के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2012)
अथवा
कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व की दो विशेषताएँ लिखिए। (2016)
उत्तर:
शास्त्री जी के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं-
(1) शास्त्री जी का निष्काम कर्मयोग :
शास्त्री जी एक सामान्य स्थिति के परिवार से ऊपर उठकर देश के प्रधानमन्त्री के अति महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचे, इस सबका रहस्य उनके कर्मयोगी होने में निहित है। लोगों को बहुत से आसान तरीके मिल जाते हैं और वे आगे तक सुविधाभोगी जीवन बिताते हैं। लेकिन शास्त्री जी ऐसे नहीं थे। वे भाग्य पर भरोसा करके बैठे रहने वाले व्यक्ति नहीं थे। वे तो उन लोगों में से थे, जो अपने हाथ की लकीर मिटाकर अपने चिन्तन और कर्म की शक्ति पर भरोसा करते थे और आगे बढ़ते थे। शास्त्री जी के लिए कर्म ही ईश्वर था। वे किसी भी कर्म के फल के प्रति आशावान नहीं थे। वे तो मात्र कर्म में ही समर्पित थे। उनका जीवन दर्शन गीता के निष्काम कर्मयोग से प्रभावित था।

(2) अपने उद्देश्य के प्रति दृढ़ आस्था :
शास्त्री जी अपने कर्म उद्देश्य को प्राप्त करने में आस्था रखते थे। उद्देश्य में सफलता उनका ध्येय होता था।

(3) उद्देश्य प्राप्ति के लिए कर्म :
शास्त्री जी अपने निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कर्म के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। अपनी समग्र क्षमताओं से विश्वास के द्वारा उद्देश्य प्राप्ति के लिए कर्म करते जाना उनके जीवन का प्रधान लक्ष्य था।

(4) उद्देश्य प्राप्ति हेतु कर्म करने के लिए समर्पित :
शास्त्री जी सदैव ही अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के प्रति सद्प्रयासों से कर्म के प्रति संकल्पित थे। इस संकल्प की पूर्ति करने तक वे कर्म निष्पादन में समर्पित रहते थे।

(5) स्वस्थ चिन्तन :
शास्त्री जी का चिन्तन पूर्णतः स्वस्थ था। अपने स्वस्थ चिन्तन से ही वे अपनी सफलताएँ प्राप्त करते चले गये। शास्त्री का चिन्तन ही ऐसा था जिससे स्वयं अपना, देश का विकास आगे बढ़ सका। इस चिन्तन में भी भक्ति और कर्म का सिद्धान्त निहित था।

(6) श्रम, सेवा, सादगी और समर्पण :
शास्त्री जी को कोई भी उत्तरदायित्व सौंपा गया, वे उस उत्तरदायित्व का निर्वाह श्रम से, सेवाभाव से, सादगी से और समर्पण (त्याग) की भावना से करते थे। इस तरह किसी भी कर्म के फल के प्रति उनका स्वार्थ अथवा लगाव नहीं था।

(7) सादगी, विनम्रता एवं सरलता :
शास्त्री जी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी सादगी। वे साधारण परिवार में उत्पन्न हुए, सादगी से ही परवरिश हुई परन्तु देश के प्रधानमन्त्री पद पर आरूढ़ शास्त्री जी सदैव सामान्य बने रहे, सादगी से जीवन बिताते रहे। विनम्रता, सादगी और सरलता ने उनके व्यक्तित्व में एक विचित्र आकर्षण पैदा कर दिया था।

(8) कठिनाइयों में भी न घबराना :
शास्त्री जी ने सन् 1930 से सन् 1942 तक के जीवन के सफर में अर्थात् बारह वर्ष की इस समयावधि में लगभग सात वर्ष तक जेल का जीवन काटा। उस साधारण स्थिति वाले व्यक्ति के लिए इस तरह की साधना अत्यन्त कठिनताओं से भरी हुई थी। वे अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं हुए। राजनैतिक अथवा सामाजिक तौर पर उन्हें कोई भी कार्य सौंपा गया, वे उस कार्य के सम्पादन में सफल हुए, घबराए नहीं।

(9) लोकप्रियता :
शास्त्री जी अपनी कार्य शैली और विविध पहलुओं की पूर्ति सम्बन्धी कार्यों के लिए लोगों में बहुत ही प्रिय और प्रसिद्ध हो गए।

(10) आत्मसंयम :
देश में शास्त्री को अति महत्त्वपूर्ण पदों पर स्वाभाविक रूप से अधिकार भी प्राप्त थे परन्तु उन अधिकारों का उपयोग कर्त्तव्यपालन से किया, जिसमें शास्त्री जी का आत्मसंयम ही काम आया। आत्मसंयम से एक श्रेष्ठ नागरिक के गुण विकसित किये जा सकते हैं, ऐसा विचार था शास्त्री जी का।

शास्त्री जी सोचते थे कि हमारा देश प्रजातन्त्रात्मक रूप से आजाद है। अतः उस आजादी का उपभोग एक व्यवस्थित समाज के हित में स्वेच्छा से लगाए गए प्रतिबन्धों के तहत होना चाहिए। इस तरह शास्त्री जी का व्यक्तित्व एक अनुशासित रूप से कर्त्तव्य और अधिकार सम्पन्न कर्मशीलत्व लिए हुए धैर्य और शौर्य (वैचारिक दृढ़ता) का अनुकरणीय उदाहरण है।

प्रश्न 4.
शास्त्री जी ने किन रूपों में प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया?
उत्तर:
प्रस्तावना :
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान गाँधी जी द्वारा निर्देशित रचनात्मक कार्यों में लगे रहे। इसके अतिरिक्त उन्होंने एक पदाधिकारी के रूप में जनसेवा के कार्यों को भी महत्त्व दिया।

संयुक्त प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के सचिव :
शास्त्री जी सन् 1935 ई. में संयुक्त प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के सचिव बनाए गये। इस पद पर सन् 1938 ई. तक बने रहे। किसानों के प्रति उनके मन में विशेष लगाव था। इसलिए किसानों की दशा का अध्ययन करने के लिए एक विशेष कमेटी बनाई गई और उस कमेटी का उन्हें अध्यक्ष बनाया गया।

जमींदारी उन्मूलन की सिफारिश :
शास्त्री जी ने किसानों की दशा का अध्ययन पूरी लगन से किया। काम पूरा करके एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस रिपोर्ट में जमींदारी उन्मूलन पर विशेष जोर दिया गया।

नगरपालिका इलाहाबाद से जुड़ाव :
इसके बाद छः वर्ष तक वे इलाहाबाद की नगरपालिका में किसी न किसी रूप में जुड़े रहे। इससे शास्त्री जी के व्यक्तित्व और चिन्तन को नागरिकों की समस्याओं का अति निकटता से अनुभव प्राप्त हुआ। नगरपालिका प्रजातन्त्र की एक आधारभूत इकाई होती है। अतः इसमें कार्य करने से वे देश की छोटी-छोटी समस्याओं और उनके निराकरण की व्यावहारिक प्रक्रिया से अच्छी तरह परिचित हो गए थे।

संयुक्त प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचित :
शास्त्री जी सन् 1937 ई. में संयुक्त प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचित हुए। इस निर्वाचन के पीछे शास्त्री जी की कार्य के प्रति निष्ठा और मेहनत करने की अदम्य क्षमता थी। सही अर्थ में यदि देखा जाए तो शास्त्री जी के संसदीय जीवन की शुरूआत यहीं से हुई। इसके साथ ही शास्त्री जी प्रधानमन्त्री के पद पर सुशोभित हुए तो इस पद तक पहुँचने के साथ ही संसदीय जीवन का समापन हो गया।

भारतीय राजनीति की सही और गहरी पकड :
शास्त्री जी को भारतीय राजनीति की इतनी सही और गहरी पकड़ थी कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानती थीं। उन्हें उत्तर प्रदेश और केन्द्र में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्य करने का विशद अनुभव था। उन्होंने रेल, परिवहन, संचार, वाणिज्य, उद्योग और गृह मन्त्रालय जैसे महत्त्वपूर्ण पदों को सम्भाला।

उपसंहार :
अन्त में यह कहा जा सकता है कि शास्त्री जी ने भारतीय प्रदेश और संघीय सरकार के पदों पर रहकर अपनी प्रशासकीय दक्षता का परिचय दिया, वह एक उदाहरण के रूप में देश के लिए एक गौरव की बात है। अपने मन्त्रालयों के कार्यों में उनका दृष्टिकोण अत्यन्त व्यावहारिक बना रहा एवं सभी प्रकार की औपचारिकताओं से परे रहा। उन्होंने देश की सेवा एक शासक के रूप में नहीं, वरन् एक जनसेवक के रूप में की। लोक सेवक शास्त्री जी को अपनी कार्य शैली के कारण लोकप्रियता प्राप्त हुई। वे एक लोकप्रिय नेता थे। आत्मानुशासन, अधिकार और कर्तव्य का तालमेल लोकतन्त्र प्रशासकीय पद्धति का मूल आधार होता है, ऐसा मानते हुए एक व्यवस्थित समाज के लिए निष्ठा, भक्ति और श्रद्धा से निष्काम कर्म करना अति महत्त्वपूर्ण है।

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प्रश्न 5.
“शास्त्री जी श्रम, सेवा, सादगी और समर्पण की प्रतिमूर्ति थे।” उदाहरण देकर समझाइए। (2009)
उत्तर:
प्रस्तावना-श्री लाल बहादुर शास्त्री का सम्पूर्ण जीवन श्रम, सेवा, सादगी और समर्पण (त्याग) की भावना से भरा हुआ था। श्रम’ से उन्होंने जन्म से ही नाता जोड़ा हुआ था। सेवा और सादगी उनके व्यवहार और वार्तालाप से परिलक्षित होते थे। समर्पण (त्याग) तो उनकी जीवन शैली थी।

समन्वय :
उनके ये गुण केवल उनके कार्यों और विचारों में ही अभिव्यक्ति नहीं पाते थे। वरन् उनको देखने मात्र से ही इन सभी भावों का अहसास हो जाता था। उनमें श्रम, सेवा, सादगी और समर्पण का समन्वय था। वे अपने मुख से जो भी कहते, उसे तद्नुसार ही करके रहते थे।

राष्ट्रहित :
शास्त्री जी का वचन, उनका कथन और उनकी करनी इन तीनों की समय पर अन्विति होती थी जिसमें राष्ट्रहित, कल्याण समाहित रहता था। वे जो भी करते अथवा कहते उस सब में राष्ट्र के लाभ की बात छिपी रहती थी। उनका वचन और कथन एकमात्र राष्ट्र-लाभ की भावना से प्रेरित रहता था।

समर्पण :
शास्त्री जी में समर्पण भाव भरा हुआ था। उनके समर्पण के भाव की विशेषता उनके चरित्र से आभासित होती थी। इस चारित्रिक विशेषता के कारण देशवासी उनका विश्वास करते थे और वे सम्पूर्ण भारतीय नागरिकों की प्रथम पसंद थे।

विनम्रता और सूझबूझ :
शास्त्री जी विनम्रता और सूझबूझ के धनी थे। उनकी प्रत्येक बात से, आचरण से, वेशभूषा से उनकी विनम्रता झलकती थी। उनके वचनों की विनम्रता के आगे शक्तिसम्पन्न राष्ट्र भी नतमस्तष्क थे। राजनैतिक सूझबूझ ने तो उन्हें इतना विशाल हृदय और उदारता प्रदान की हुई थी कि देश की जनता का प्रतिनिधित्व शास्त्री जी जैसा व्यक्तित्व ही कर सका।

उपसंहार :
अन्त में, कहा जा सकता है कि शास्त्री जी की ताकत और शख्त-नम्र व्यक्तित्व ही पंडित जवाहरलाल नेहरू की समृद्ध राजनैतिक विरासत को सँभालने में सफल हो सका। वे ही उस विरासत को आगे बढ़ा सके। अन्य किसी के लिए यह काम बहुत ही कठिन रहा होता। सम्पूर्ण देश ने इन सभी विशेषताओं के समन्वित स्वरूप को शास्त्री जी में देखा और उनके निर्मल चरित्र और दृढ़ संकल्प शक्ति के द्वारा सम्पूर्ण देश की इस आकांक्षा को पूरा किया।

प्रश्न 6.
“संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति शास्त्री जी के क्या विचार थे?” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तावना :
सन् 1964 ई. में पं. नेहरू का देहावसान हो गया। इनके बाद, देश ने श्री लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार किया। इसका एकमात्र कारण था शास्त्री जी का भारतीय जनता के प्रति सेवा का भाव। वे स्वयं को शासक नहीं सेवक मानते थे। उनकी लोकप्रियता एवं श्रम साध्य कर्मों में सफलता ने ही शास्त्री जी को पं. नेहरू के बाद प्रधानमंत्री के रूप में देश ने स्वीकार किया। शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री के रूप में मात्र 19 महीने की बहुत छोटी सी अवधि में जितनी लोकप्रियता और सफलताएँ अर्जित की वे एक उदाहरण हैं।

प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक है :
शास्त्री जी ने 19 दिसम्बर, 1964 ई. में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में अपने सम्बोधन में कहा था कि आपके जीवन के उद्देश्य अलग-अलग हो सकते हैं, आपकी मंजिलें जो भी हों, लेकिन आप सभी को यह सोचना चाहिए कि आप सबसे पहले देश के नागरिक हैं।

अधिकार और कर्त्तव्य :
विशाल भारतीय संघ के नागरिक होने के कारण आप सभी को संविधान द्वारा कुछ अधिकार दिए गए हैं, लेकिन साथ ही आप सभी नागरिकों पर कुछ कर्बव्यों का बोझ भी स्वतः ही आ गया है अर्थात् अधिकारों की प्राप्ति कर्त्तव्यों के निर्वाह करने में ही परिणति होती है। यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसका समझना अति आवश्यक है।

स्वैच्छिक प्रतिबन्धों में ही स्वतंत्रता का उपयोग :
श्री शास्त्री जी ने आगे कहा कि हमारे देश में प्रजातांत्रिक (लोकतंत्रात्मक) शासन पद्धति प्रस्तावित की है। अत: यहाँ के प्रत्येक नागरिक को निजी स्वतंत्रता भी प्राप्त है। लेकिन उन्हें इस स्वतंत्रता का उपयोग स्वेच्छा से लगाए गए प्रतिबन्धों के अनुसार करना चाहिए। इसका एक कारण है-हम सभी यह देख चुके हैं कि हमारा समाज एक व्यवस्थित समाज है। उस व्यवस्था का प्रधान समाज के लिए प्रतिबन्ध बहुत अनिवार्य है। इस तरह, इन स्वैच्छिक प्रतिबन्धों का उपयोग और प्रदर्शन जीवन में प्रतिदिन ही होना चाहिए।

उपसंहार :
अन्त में, यह बात स्पष्ट है कि शास्त्री जी ने अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति बड़ी विशेष व्याख्या अत्यल्प शब्दों के प्रयोग में कर दी थी कि अधिकारों की उपभुक्ति कर्त्तव्यों के सुयोग्य सम्पादन से ही सम्भव है।

प्रश्न 7.
शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री कब बने? (2015)
उत्तर:
भारत राष्ट्र के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का देहावसान 27 मई, 1964 ई. को हो गया। इसके निधन के बाद देश ने श्री लाल बहादुर शास्त्री में वे महान् गुण और विशेषताओं को देखा जिनसे वे पं. नेहरू द्वारा प्रस्थापित समृद्ध राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ा सकते थे। अतः सन् 1964 ई. में ही श्री लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने।

प्रश्न 8.
इस पाठ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है? लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ से हम सभी छात्रों एवं पाठकों को इस बात की प्रेरणा मिलती है कि हम सभी कर्मयोगी बनें। क्रियाशील व्यक्ति रचनात्मक शैली के गुण से सम्पन्न होता है। वह सदैव कर्म सम्पादन में संलग्न होकर स्वयं को उस स्थान तक ले जाता है, जहाँ से उसमें निस्वार्थ भाव की जागृति हो। निस्वार्थ भाव से किया कर्म ही असली और निष्काम भाव की उत्पत्ति करता है। प्रलोभनों से ऊपर उठकर अपने कर्तव्य कर्म का निर्वाह करते रहें।

अपने जीवन के निर्धारित उद्देश्यों और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी आन्तरिक और बाह्य क्षमताओं में दृढ़ विश्वास रखें। अपने आपको कर्म में समर्पण भाव से, निष्ठा से लगा देंगे तो हमें चारित्रिक बल की प्राप्ति होगी जिसके द्वारा राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र के सभी कार्यों का निष्पादन करते जायेंगे।

हमारा चिन्तन स्वस्थ रहना चाहिए। जीवन में श्रम, सेवा, सादगी और समर्पण भाव का विकास हमें उन्नत बनाता है। साथ ही व्यक्तित्व में विनम्रता मनुष्य को पृथ्वी का वारिस बना देती है। कठिनाइयों के दौर में भी धैर्य और शौर्य व शील का त्याग नहीं होना चाहिए। हमारा व्यावहारिक पक्ष खुला और समृद्ध हो, इसका हमें प्रयास करना चाहिए।

हमें अपने अधिकारों की माँग न करके अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने वाला होना चाहिए क्योंकि कर्त्तव्यों की इति अधिकारों के रूप में प्रतिफलित होती ही है। व्यक्तिगत आजादी के उपयोग में भी प्रतिबन्धन होते हैं। तब ही सम्पूर्ण समाज व्यवस्थित रूप से चल सकता है। वहाँ उच्छृखलता के लिए कोई अवकाश नहीं है।

सर्वोपरि मुख्य बात है जिसकी प्रेरणा हमें मिलती है, वह है आत्मसंयम। आत्मसंयम खो देने से किसी भी कार्य के सम्पादन की शक्ति का ह्रास हो जाता है।

उपर्युक्त सभी गुणों को अपने अन्दर विकसित करने की प्रेरणा प्रस्तुत पाठ से हमें प्राप्त होती है।

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कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कर्मयोगी’ विशेषण किसके नाम के साथ जोड़ना उपयुक्त है?
उत्तर:
पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी के नाम के साथ कर्मयोगी विशेषण जोड़ना बिल्कुल उपयुक्त है।

प्रश्न 2.
शास्त्री जी के चरित्र एवं जीवन दर्शन में कौन-सी तीन बातें स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती हैं?
उत्तर:
अपने उद्देश्य के प्रति दृढ़ आस्था, उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कर्म का भाव तथा उस कर्म के प्रति सम्पूर्ण समर्पण-ये तीन बातें शास्त्री जी के सम्पूर्ण चरित्र तथा जीवन दर्शन में दिखाई पड़ती हैं।

कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री पाठ का सारांश

कर्मयोगी शास्त्री जी :
श्री लालबहादुर शास्त्री का सम्पूर्ण जीवन कर्म प्रधान ही था। शास्त्री जी एक साधारण परिवार से ऊपर उठकर भारतवर्ष के प्रधानमन्त्री पद तक पहुँचे। यह सब उनकी कर्त्तव्यपरायणता, निष्ठा, देशभक्ति का परिणाम था। उन्होंने अपने कर्म और चिन्तन की विशिष्ट शैली से भाग्य की रेखाओं को पलट दिया। शास्त्री जी को अपने कर्म और ईश्वर पर ही भरोसा था। उन्होंने पं. जवाहरलाल नेहरू जैसे राजनेता की समृद्ध राजनीति की विरासत को सँभाल कर रखा। यह शास्त्री जी का निष्काम कर्मयोगी का प्रतिरूप ही था।

शास्त्री जी का जीवन दर्शन :
शास्त्री जी के जीवन दर्शन में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें दिखायी पड़ती हैं-(1) उद्देश्य के प्रति दृढ़ आस्था, (2) उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कर्म का भाव, (3) उस कर्म के प्रति सम्पूर्ण समर्पण। शास्त्री जी ने सदैव ही यह कहा कि यदि अपने दायित्वों की पूर्ति करना चाहते हो तो अपने कार्य, समर्पण, भक्ति और कर्म में समन्वय होना चाहिए। वे सोचा करते थे कि किसी भी व्यक्ति, समाज और देश के विकास का रहस्य भक्ति और कर्म के सिद्धान्त में निहित है।

सेवा, सादगी का सिद्धान्त :
उन्होंने श्रम, सेवा और सादगी के सिद्धान्त का अनुसरण किया। उन्होंने अपने निर्मल चरित्र और दृढ़ संकल्प शक्ति द्वारा देश की आकांक्षा को पूरा किया। शास्त्री जी का जन्म सामान्य परिवार में हुआ, सामान्य रूप से ही परवरिश हुई। आप देश के प्रधानमन्त्री होकर भी सामान्य बने रहे। विनम्रता, सादगी और सरलता उनके व्यक्तित्व के असाधारण आभूषण थे।

शास्त्री जी और भारतीय आजादी का आन्दोलन :
शास्त्री जी अपनी अल्पायु (17 वर्ष की उम्र) से ही भारतीय आजादी के आन्दोलनों से जुड़े रहे। सन् 1930 से सन् 1942 तक के आजादी के आन्दोलनों के बारह वर्षों के दौरान, शास्त्री जी ने सात वर्ष जेल में बिताए। सबसे लम्बी जेल यात्रा 1942 ई. की थी जो तीन वर्ष तक चली।

साहस और अनुशासन :
शास्त्री जी में अदम्य साहस और अनुशासन की भावना परिपक्वता को प्राप्त थी। वे समस्याओं के निराकरण में पूर्ण सक्षम थे। वे इन्दिरा गाँधी के राजनैतिक गुरु थे। शास्त्री जी ने उत्तर प्रदेश और केन्द्र में विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्हें जिन विभागों का उत्तरदायित्व दिया गया, उन्होंने उन सभी विभागों के कार्य को पूर्ण दक्षता से निभाया।

जनता के सेवक :
शास्त्री जी अपनी छवि ‘जनता के सेवक’ के कारण लोकप्रिय हुए। यद्यपि प्रधानमन्त्री जैसे भारी भरकम पद का कार्य उन्होंने मात्र 19 महीने ही किया लेकिन इस पद पर रहकर सफलताएँ और लोकप्रियता अपने आप में एक उदाहरण हैं। वे प्रायः प्रत्येक भारतीयजन से यही अपेक्षा करते थे कि वे यह समझें कि वे सबसे पहले देश के नागरिक हैं। देश के नागरिक हैं तो संविधान आपको अधिकार तो देता ही है, लेकिन उसके साथ तुम सभी से अपने कर्तव्यों के निर्वाह की आशा भी करता है। आप सभी स्वतन्त्र हैं परन्तु स्वतन्त्रता का उपयोग एक व्यवस्थित समाज के हित में स्वेच्छा से लगाए गए प्रतिबन्धों के अनुसार होना चाहिए। शास्त्री जी कहा करते थे कि अधिकार, कर्त्तव्य और आत्मसंयम अति महत्त्वपूर्ण बात हैं। हमें इनको व्यवहार में लाना चाहिए।

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MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन

दोलन अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 14.1.
नीचे दिए गए उदाहरणों में कौन आवर्ती गति को निरूपित करता है?

  1. किसी तैराक द्वारा नदी के एक तट से दूसरे तट तक जाना और अपनी एक वापसी यात्रा पूरी करना।
  2. किसी स्वतंत्रतापूर्वक लटकाए गए दंड चुंबक को उसकी N – S दिशा से विस्थापित कर छोड़ देना।
  3. अपने द्रव्यमान केन्द्र के परितः घूर्णी गति करता कोई हाइड्रोजन अणु।
  4. किसी कमान से छोड़ा गया तीर।

उत्तर:

  1. यह आवश्यक नहीं है कि तैराक को प्रत्येक बार वापस लौटने में समान समय लगे। अर्थात् यह गति आवर्ती गति नहीं है।
  2. दण्ड चुंबक को N – S दिशा से विस्थापित कर छोड़ने पर उसकी गति आवर्ती गति होगी।
  3. यह गति आवर्ती है।
  4. तीर छूटने के बाद कभी भी पुनः प्रारम्भिक स्थिति में नहीं लौटता है। अतः यह गति आवर्ती नहीं है।

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प्रश्न 14.2.
नीचे दिए गए उदाहरणों में कौन (लगभग) सरल आवर्त गति को तथा कौन आवर्ती परंतु सरल आवर्त गति नहीं निरूपित करते हैं?

  1. पृथ्वी की अपने अक्ष के परितः घूर्णन गति।
  2. किसी U नली में दोलायमान पारे के स्तंभ की गति।
  3. किसी चिकने वक्रीय कटोरे के भीतर एक बॉल बेयरिंग की गति जब उसे निम्नतम बिन्दु से कुछ ऊपर के बिन्दु से मुक्त रूप से छोड़ा जाए।
  4. किसी बहुपरमाणुक अणु की अपनी साम्यावस्था की स्थिति के परित: व्यापक कंपन।

उत्तर:

  1. आवर्त गति लेकिन सरल आवर्त गति नहीं है।
  2. सरल आवर्त गति।
  3. सरल आवर्त गति
  4. आवर्ती गति लेकिन सरल आवर्त गति नहीं है।

प्रश्न 14.3.
चित्र में किसी कण की रैखिक गति के लिए चार x – t आरेख दिए गए हैं। इनमें से कौन-सा आरेख आवर्ती गति का निरूपण करता है? उस गति का आवर्तकाल क्या है? (आवर्ती गति वाली गति का)।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 1
उत्तर:

  1. ग्राफ से स्पष्ट है कि कण कभी भी अपनी गति की पुनरावृत्ति नहीं करता है; अतः यह गति आवर्ती गति नहीं
  2. ग्राफ से ज्ञात है कि कण प्रत्येक 2 s के बाद अपनी गति की पुनरावृत्ति करता है; अत: यह गति एक आवर्ती गति है जिसका आवर्तकाल 2 s है।
  3. यद्यपि कण प्रत्येक 3 s के बाद अपनी प्रारम्भिक स्थिति में लौट रहा है परन्तु दो क्रमागत प्रारम्भिक स्थितियों के बीच कण अपनी गति की पुनरावृत्ति नहीं करता; अतः यह गति आवर्त गति नहीं है।
  4. कण प्रत्येक 2 s के बाद अपनी गति को दोहराता है; अतः यह गति एक आवर्ती गति है जिसका आवर्तकाल 2 s है।

प्रश्न 14.4.
नीचे दिए गए समय के फलनों में कौन (a) सरल आवर्त गति (b) आवर्ती परंतु सरल आवर्त गति नहीं, तथा (c) अनावर्ती गति का निरूपण करते हैं। प्रत्येक आवर्ती गति का आवर्तकाल ज्ञात कीजिए: ( ω कोई धनात्मक अचर है।)

  1. sin ωt – cos ωt
  2. sin3 ωt
  3. 3 cos (\(\frac{x}{4}\) – 2 ωt)
  4. cos ωt + cos 3ωt + cos 5ωt
  5. exp (-ω2t2)
  6. 1 + ωt + ω2t2

उत्तर:
1. x = sinωt – cos ωt
= 2 \(\frac { 1 }{ \sqrt { 2 } } \) sin ωt – \(\frac { 1 }{ \sqrt { 2 } } \) cos ωt]
= \(\sqrt { 2 } \) [sin ω + cos \(\frac { \pi }{ 4 } \) – cos ωt sin \(\frac { \pi }{ 4 } \)]
= \(\sqrt { 2 } \) sin (ωt – \(\frac { \pi }{ 4 } \))
स्पष्ट है कि यह सरल आवर्त गति को व्यक्त करता है। इसका आयाम = \(\sqrt { 2 } \)
∴ आवर्त काल, T = \(\frac { 2\pi }{ \omega } \)

2. दिया गया फलन आवर्ती गति को व्यक्त करता है लेकिन यह सरल आवर्त गति नहीं है।
आवर्त काल, T = \(\frac { 2\pi }{ \omega } \)

3. यह फलन स० आ० ग० को व्यक्त करता है।
आवर्त काल T = \(\frac { 2\pi }{ \omega } \) = \(\frac { pi }{ \omega } \)

4. यह फलन आवर्ती गति को व्यक्त करता है जोकि सरल आवर्त गति नहीं है।
फलन cos ωt का आवर्तकाल T1 = \(\frac { 2\pi }{ \omega } \)
फलन cos 2ωt का आवर्तकाल T2 = \(\frac { 2\pi }{ 3\omega } \)
व फलन cos 5ωt का आवर्तकाल T3 = \(\frac { 2\pi }{ 5\omega } \) है।
यहाँ T1 = 3T2 = 5T3
अत: T1 समय पश्चात् पहले फलन की एक बार दूसरे की तीन बार व तीसरे की पाँच बार पुनरावृत्ति होती है।
∴ दिए गए फलन का आवर्तकाल T = \(\frac { 2\pi }{ \omega } \) है।

5. तथा

6. में दिये दोनों फलन न तो आवर्त गति और न ही सरल आवर्त गति को निरूपित करते हैं।

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प्रश्न 14.5.
कोई कण एक दूसरे से 10 cm दूरी पर स्थित दो बिन्दुओं A तथा B के बीच रैखिक सरल आवर्त गति कर रहा है। A से B की ओर की दिशा को धनात्मक दिशा मानकर वेग, त्वरण तथा कण पर लगे बल के चिह्न ज्ञात कीजिए जबकि यह कण –
(a) A सिरे पर है
(b) B सिरे पर है
(c) A की ओर जाते हुए AB के मध्य बिन्दु पर है
(d) A की ओर जाते हुए B से 2 cm दूर है
(e) B की ओर जाते हुए A से 3 cm दूर है तथा
(f) A की ओर जाते हुए B से 4 cm दूर है।
उत्तर:
प्रश्न से स्पष्ट है कि बिन्दु A व B अधिकतम विस्थापन की स्थितियाँ हैं जिनका मध्य बिन्दु 0 सरल आवर्त गति का केन्द्र है।

(a)

  • बिन्दु A पर कण का वेग शून्य होगा।
  • कण के त्वरण की दिशा बिन्दु A से 0 की ओर होगी। अतः त्वरण धनात्मक होगा।
  • कण पर बल त्वरण की दिशा में होगा। अतः बल धनात्मक होगा।

(b)

  • बिन्दु B पर कण का वेग शून्य होगा।
  • कण का त्वरण B से O की ओर दिष्ट होगा। अतः त्वरण ऋणात्मक होगा।

(c)

AB का मध्य बिन्दु O से सरल आवर्त गति का केन्द्र है। चूँकि कण B से A की ओर चलता हुआ O से गुजरता है। अतः वेग BA के अनुदिश है अर्थात् वेग ऋणात्मक है।

  • त्वरण शून्य है।
  • बल भी शून्य है।
  • बल भी शून्य है।

(d)

  • B से 2 सेमी० की दूरी पर कण Bव के मध्य होगा।
  • चूँकि कण B से A की ओर जा रहा है अत: वेग ऋणात्मक होगा।
  • त्वरण भी B से O की ओर दिष्ट है अतः त्वरण भी ऋणात्मक होगा।
  • बल भी ऋणात्मक होगा।

(e)

  • चूँकि कण B की ओर जा रहा है अत: वेग धनात्मक होगा।
  • चूँकि कण A व O के मध्य है अतः त्वरण A से 0 की ओर दिष्ट है। अतः त्वरण भी धनात्मक है।

(f)

  • चूँकि कण A की ओर गतिमान है अतः वेग ऋणात्मक होगा।
  • बल भी धनात्मक है।
  • चूँकि कण B तथा O के बीच है व त्वरण B से O की ओर दिष्ट है। अत: त्वरण ऋणात्मक है।
  • बल भी ऋणात्मक है।

प्रश्न 14.6.
नीचे दिए गए किसी कण के त्वरण a तथा विस्थापन x के बीच संबंधों में से किससे सरल आवर्त गति संबद्ध है:

  1. a = 0.7x
  2. a = – 200x2
  3. a = -10x
  4. a = 100x3

उत्तर:
उपरोक्त में से केवल विकल्प (3) में a = – 10x, त्वरण विस्थापन के समानुपाती है। इसमें त्वरण विस्थापन के विपरीत दिशा में है। अतः केवल यह सम्बन्ध सरल आवर्त गति को व्यक्त करता है।

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प्रश्न 14.7.
सरल आवर्त गति करते किसी कण की गति का वर्णन नीचे दिए गए विस्थापन फलन द्वारा किया जाता है,
x (t) = A cos (ωt + φ) यदि कण की आरंभिक (t = 0) स्थिति 1 cm तथा उसका आरंभिक वेग rcms-1 है, तो कण का आयाम तथा आरंभिक कला कोण क्या है? कण की कोणीय आवृत्ति πs-1 है। यदि सरल आवर्त गति का वर्णन करने के लिए कोज्या (cos) फलन के स्थान पर हम ज्या (sin) फलन चुने; x = B sin (ωt + α) तो उपरोक्त आरंभिक प्रतिबंधों में कण का आयाम तथा आरंभिक कला कोण क्या होगा?
उत्तर:
(a) x (t) = A cos (ωt +ϕ) ……. (i)
t = 0, ω = πs-1
∴ x = 1 cm पर
v = ω = cms-1 ……. (ii)
∴ समी० (i) व (ii) से,
1 = A cos (π × 0 + ϕ) = A cos ϕ ….. (iii)
पुनः ω = \(\frac { 2\pi }{ T } \)
∴ T = m \(\frac { 2\pi }{ \omega } \) = \(\frac { 2\pi }{ \pi } \) = 2s
समी० (i) का t के सापेक्ष अवकलन करने पर,
\(\frac{d}{dx}\)(x) = -A sin (ωt + ϕ)
= – Aωsin (ωt + ϕ) …… (iv)
समी० (ii) व (iv) से
π = – A × π × sin (ωt + ϕ)
= – A sin ϕ
या 1 = – A sin ϕ …. (v)
समी० (ii) व (v) का वर्ग करके जोड़ने पर,
12 + 12 = A2 (sin2ϕ + cos2ϕ) = A2
∴ A = \(\sqrt { 2 } \) cm
समी० (v) को समी० (iii) से भाग देने पर,
1 = – \(\frac { sin\phi }{ cos\phi } \) = -tan ϕ
या tan ϕ = – 1 = – tan \(\frac { \pi }{ 4 } \)
= tan (2π – \(\frac { \pi }{ 4 } \))
= tan \(\frac { 7\pi }{ 4 } \)
∴ ϕ = \(\frac{7}{4}\) π

(b) जब x = B sin (ωt + α)
या x = B cos [(ωt + α) – \(\frac { \pi }{ 2 } \)]
अब’ (a) t = 0 पर x = 1 सेमी
तथा ∴ v = πcms-1, ω = πs-1 से,
∴ 1 = B cos (π × 0 + α – \(\frac { \pi }{ 2 } \))
= B cos (α – \(\frac { \pi }{ 2 } \)) …. (vi)
पुनः माना v’ = वेग
∴ v’ = \(\frac{d}{dt}\)(x)
= – BW sin (ωt + α – \(\frac { \pi }{ 2 } \))
या π = -B × π sin(π × 0 + α – \(\frac { \pi }{ 2 } \)
= -Bπ sin (α – \(\frac { \pi }{ 2 } \))
= -Bπ sin (α – \(\frac { \pi }{ 2 } \)) ….. (vii)
सभी० (vii) व (viii) का वर्ग कर जोड़ने पर,
12 + 12 = B2 [sin2(α – \(\frac { \pi }{ 2 } \)) + cos 2(α – \(\frac { \pi }{ 2 } \))]
या 2 = B2 or B = \(\sqrt { 2 } \) cm
समी० (viii) को (vii) से भाग देने पर,
1 = -tan (α – \(\frac { \pi }{ 2 } \)) = -1 = – tan \(\frac { \pi }{ 4 } \)
= tan (2π – \(\frac { \pi }{ 4 } \)) = tan \(\frac { 7\pi }{ 4 } \)
या
α – \(\frac { \pi }{ 2 } \) = \(\frac { 7\pi }{ 4 } \)
या α = \(\frac { 7\pi +2\pi }{ 4 } \) = \(\frac { 9\pi }{ 4 } \) = \(\frac { 9\pi }{ 4 } \)
= 2π + \(\frac { \pi }{ 4 } \)
∴ α = \(\frac { \pi }{ 4 } \)

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प्रश्न 14.8.
किसी कमानीदार तुला का पैमाना 0 से 50 kg तक अंकित है और पैमाने की लम्बाई 20 cm है। इस तुला से लटकाया गया कोई पिण्ड,जब विस्थापित करके मुक्त किया जाता है, 0.6 s के आवर्तकाल से दोलन करता है। पिंड का भार कितना है?
उत्तर:
दिया है, m = 50 kg,
अधिकतम प्रसार y = 20 – 0 = 20 cm
= 0.2 m, T = 0.6s
∴ अधिकतम बल
F = mg = 50 × 9.8 = 490.0 N
∴ स्प्रिंग नियतांक
k = \(\frac{F}{Y}\) = \(\frac{490}{0.2}\)
= \(\frac { 490\times 10 }{ 2 } \) = 2450 Nm-1
हम जानते हैं कि आवर्त काल T = 2π \(\sqrt { \frac { m }{ k } } \)
या T2 = 4π2 \(\frac{m}{k}\)
या m = \(\frac { T^{ k } }{ 4\pi ^{ 2 } } \)
= \(\frac { (0.6)^{ 2 }\times 2450 }{ 4\times 9.87 } \) = 22.36 kg
वस्तु का भार w = mg = 22.36 × 9.8
= 219.1 N = 22.36 kg

प्रश्न 14.9.
1200 Nm-1 कमानी – स्थिरांक की कोई कमानी (चित्र) में दर्शाए अनुसार किसी क्षैतिज मेज से जुड़ी है। कमानी के मुक्त सिरे से 3 kg द्रव्यमान का कोई पिण्ड जुड़ा है। इस पिण्ड को एक ओर 2.0 cm दूरी तक खींच कर मुक्त किया जाता है।

  1. पिण्ड के दोलन की आवृत्ति
  2. पिण्ड का अधिकतम त्वरण, तथा
  3. पिण्ड की अधिकतम चाल ज्ञात कीजिए।

उत्तर:
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 2
दिया है: k = 1200 Nm-1, m = 3.0 kg,
A = 2.0 cm = 0.02 m
= अधिकतम विस्थापन
1. हम जानते हैं कि आवर्तकाल T = 2π\(\sqrt { \frac { M }{ k } } \)
आवृत्ति, v = \(\frac{1}{T}\)
∴ v = \(\frac{1}{2π}\)\(\sqrt { \frac { k }{ m } } \)
= \(\frac { 1 }{ 2\times 3.142 } \) × \(\sqrt { \frac { 1200 }{ 3 } } \)
= \(\frac { 1 }{ 2\times 3.142 } \) = 3.18
∴ v = 3.18 s-1 = 3.2 s-1

2. त्वरण, 4 = -ω2x = \(\frac{-k}{m}\)x
या c|amax| = \(\sqrt { \frac { k }{ m } } \) |xmax|, जहाँ ω = \(\sqrt { \frac { k }{ m } } \) या x के अधिकतम होने पर त्वरण भी अधिकतम होगा।
या x = A = 0.02 m
∴ a = \(\frac{1200}{3}\) × 0.02 × 8.0 ms-2

3. द्रव्यमान की अधिकतम चाल
v = Aω = A\(\sqrt { \frac { k }{ m } } \) = 0.02 × \(\sqrt { \frac { 1200 }{ 3 } } \)
= 0.02 × 20 = 0.40 ms-1

प्रश्न 14.10.
प्रश्न 14.9 में मान लीजिए जब कमानी अतानित अवस्था में है तब पिण्ड की स्थिति x = 0 है तथा बाएँ से दाएँ की दिशा x – अक्ष की धनात्मक दिशा है। दोलन करते पिण्ड के विस्थापन x को समय के फलन के रूप में दर्शाइए, जबकि विराम घड़ी को आरम्भ (t = 0) करते समय पिण्ड,
(a) अपनी माध्य स्थिति
(b) अधिकतम तानित स्थिति, तथा
(c) अधिकतम संपीडन की स्थिति पर है।
सरल आवर्त गति के लिए ये फलन एक दूसरे से आवृत्ति में,आयाम में अथवा आरंभिक कला में किस रूप में भिन्न है?
उत्तर:
चूँकि द्रव्यमान x = 0 पर स्थित है। अतः x – दिशा में विस्थापन निम्नवत् होगा
x = A sin ωt …. (i)
[∴ x = 0 पर प्रारम्भिक कला ϕ = 0]
प्रश्न 14.9 से A = 2 cm = 0.02 m
k = 1200 Nm-2 ω = \(\sqrt { \frac { k }{ m } } \)
= \(\sqrt { \frac { 1200 }{ 3 } } \) = 20 s-1

(a) जब वस्तु माध्य स्थिति में है, समी० (i) से,
x = 2 sin 20t ……. (ii)

(b) अधिकतम तानित स्थिति में ϕ = \(\frac{π}{2}\)
∴ x = A sin (ωt + ϕ)
= 2 sin (20t + \(\frac{π}{2}\)) = 2 cos 20t ………… (iii)

(c) अधिकतम सम्पीडन की स्थिति में,
φ = \(\frac{π}{2}\) + \(\frac{π}{2}\) = \(\frac{2π}{2}\)
∴ x = A sin (ωt + ϕ)
A sin (ωt + \(\frac{2π}{2}\)) = – A cos ωt
∴ x = A cos ωt = – 2cos (20t) ……… (iv)
समी० (ii), (iii) तथा (iv) से स्पष्ट है कि फलन केवल प्रारम्भिक कला. में ही असमान है चूँकि इनके आयाम (A = 2 cm) तथा आवर्तकाल समान है।
i.e.,T = \(\frac{2π}{ω}\) = \(\frac{2π}{10}\) = \(\frac{π}{10}\) rad s-1

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प्रश्न 14.11.
चित्र में दिए गए दो आरेख दो वर्तुल गतियों के तद्नुरूपी हैं। प्रत्येक आरेख पर वृत्त की त्रिज्या, परिक्रमण काल, आरंभिक स्थिति और परिक्रमण की दिशा दर्शायी गई है। प्रत्येक प्रकरण में, परिक्रमण करते कण के त्रिज्य – सदिश के x अक्ष पर प्रक्षेप की तद्नुरूपी सरल आवर्त गति ज्ञात कीजिए।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 3
उत्तर:
(a) यहाँ t = 0 पर, OP, x अक्ष से \(\frac{π}{2}\) का कोण बनाती है। चूंकि गति वर्तुल है अतः ϕ = \(\frac{+π}{2}\) रेडियन। अतः t समय पर OP का मन्घटक सरल आवर्त गति करता है।
t = 0 पर OP, x – अक्ष से धन दिशा में T कोण बनाता है।
x = A cos (\(\frac{2πt}{T}\)) + ϕ)
= 3 cos (\((\pi t+\frac { \pi }{ 2 } )\))
(∴A = 3 cm, T = 2s, cx, cm में है)
x = 3 cos (\((\pi t+\frac { \pi }{ 2 } )\)) = -3 sin πt
x = -3 sin πt (cm)
T = 4s, A = 2m
it + 2)=-3 sin t
t = 0 पर Op x – अक्ष से धन,दिशा में T कोण बनाता है। i.e., = ϕ +π
अतः t समय में OP के x घटक की सरल आवर्त गति की समीकरण निम्न होगी –
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 4

प्रश्न 14.12.
नीचे दी गई प्रत्येक सरल आवर्त गति के लिए तद्नुरूपी निर्देश वृत्त का आरेख खींचिए। घूर्णी कण की आरंभिक (t = 0) स्थिति, वृत्त की त्रिज्या तथा कोणीय चाल दर्शाइए। सुगमता के लिए प्रत्येक प्रकरण में परिक्रमण की दिशा वामावर्त लीजिए। (x को cm में तथाt को s में लीजिए।)

  1. x = – 2 sin (3t + π/3)
  2. x = cos (π/6 – t)
  3. x = 3 sin (2πt + π/4)
  4. x = 2 cos πt

उत्तर:
1. x = – z sin (3t + π/3)
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 5
∴संगत निर्देश वृत्त चित्र (a) में दिखाया गया है।
समी० (i) की तुलना x = A cos (ωt + ϕ) से करने पर,
T = \(\frac{2πt}{3}\) , ϕ = \(\frac{5π}{6}\), A = 2 cm

2. x = cos (\(\frac{π}{6}\) – t)
= cos (t – \(\frac{π}{6}\))
= 1 cos (\(\frac{2π}{2π}\) t – \(\frac{π}{6}\)) ………… (ii)
∴ संगत निर्देश वृत्त चित्र (a) में दिखाया गया है।
समी० (ii) की तुलना x = A cos (\(\frac{2π}{t}\) + ϕ) से करने पर …. (iii)
A = 1cm, t = 2π, ϕ = – \(\frac{π}{-6}\)
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 6
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 6-2
संगत निर्देश वृत्त चित्र (c) में दिखाया गया है।
समी० (iv) की (iii) से तुलना करने पर
A = 3 cm
T = 1s
φ = – \(\frac{π}{4}\)

4. x = 2 cos πt
= 2 cos (\(\frac{π}{1}\) t + 0) ……….. (v)
संगत निर्देश वृत्त चित्र (c) में दिखाया गया है।
में दिखाया गया है। समी० (iii) की (v) से तुलना करने पर,
A = 2 cm, T = 15, ϕ = 0
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 7

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प्रश्न 14.13.
चित्र (a) में k बल – स्थिरांक की किसी कमानी के एक सिरे को किसी दृढ़ आधार से जकड़ा तथा दूसरे मुक्त सिरे से एक द्रव्यमान m जुड़ा दर्शाया गया है। कमानी के मुक्त सिरे पर बल F आरोपित करने से कमानी तन जाती है। चित्र (b) में उसी कमानी के दोनों मुक्त सिरों से द्रव्यमान m जुड़ा दर्शाया गया है। कमानी के दोनों सिरों को चित्र में समान बल F द्वारा तानित किया गया है।
(a) दोनों प्रकरणों में कमानी का अधिकतम विस्तार क्या है।
(b) यदि (a) का द्रव्यमान तथा (b) के दोनों द्रव्यमानों को मुक्त छोड़ दिया जाए, तो प्रत्येक प्रकरण में दोलन का आवर्तकाल ज्ञात कीजिए।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 8
उत्तर:
माना कि स्प्रिंग का बल नियतांक = k
मुक्त सिरे से लटकाया गया द्रव्यमान = M

(1) मुक्त सिरे पर लगाया गया बल = F
(a) माना बल F लगाने पर मुक्त सिरे पर द्रव्यमान m लटकाने से उत्पन्न त्वरण a है।
अतः F = ma ……. (i)
माना कि चित्र (a) में उत्पन्न विस्तार y1 है।
F = – ky1
समी० (i) व (ii) से,
ky1 = ma = m \(\frac { d^{ 2 }y }{ dt^{ 2 } } \)
जहाँ a = \(\frac { d^{ 2 }y }{ dt^{ 2 } } \) = \(\sqrt { \frac { -k }{ m } } \) y1 … (ii)
या
a = \(\frac { d^{ 2 }y }{ dt^{ 2 } } \) = \(\sqrt { \frac { -k }{ m } } \) y1
= \(\sqrt { \frac { -k }{ m } } \) y ………….. (iii)
जहाँ y विस्थापन y1 के समान है। पुनः हम जानते हैं कि
a = – ω2 y ……….. (iv)
∴समी० (iii) व (iv) से,
ω2 = \(\frac{k}{m}\) या ω = \(\sqrt { \frac { k }{ m } } \) ….. (v)
∴स्प्रिंग में उत्पन्न अधिकतम प्रसार y1 = y या
y1 = \(\frac{F}{K}\)
(b) समी० (v) से, a ∝ y अधिकतम प्रसार y1 = y
या
∴ माना m द्रव्यमान के दोलन का आवर्तकाल T1 है।
अतः T1 = \(\frac{2π}{ω}\)
= 2π \(\sqrt { \frac { m }{ k } } \) (समी० (v) से)
या T1 = 2π\(\sqrt { \frac { m }{ k } } \) ……… (vi)

(2) (a) माना दोनों द्रव्यमानों को छोड़ने पर, स्प्रिंग में कुल उत्पन्न प्रसार y2 है। चूँकि दो द्रव्यमान समान हैं अतः प्रत्येक द्रव्यमान के कारण स्प्रिंग में उत्पन्न प्रसार y है। अतः
y2 = y’ + y’ = 2y’
पुनः 1 (a) से,
y2 + \(\frac{F}{K}\)
\(\frac{F}{K}\) = 2y’
या y’ = \(\frac{1}{2}\)\(\frac{F}{K}\)
∴ y2 = 2.\(\frac{F}{2k}\) = \(\frac{F}{K}\)
∴ प्रत्येक द्रव्यमान का विस्थापन
\(\frac { d^{ 2 }y’ }{ dt^{ 2 } } \) = – \(\frac{F}{m}\) = – \(\frac { 2ky’ }{ m } \)
∴ प्रत्येक द्रव्यमान में \(\frac { d^{ 2 }y’ }{ dt^{ 2 } } \) = – \(\frac{F}{m}\) = \(\frac { 2ky’ }{ m } \)
परन्तु स० आ० ग० में \(\frac { d^{ 2 }y’ }{ dt^{ 2 } } \) = – ω2y’
अतः ω2 = \(\frac{2k}{m}\)
या ω = \(\sqrt { \frac { 2k }{ m } } \)
(b) माना प्रत्येक द्रव्यमान का आवर्तकाल T2 है।
अतः T = \(\frac{2π}{ω}\) = \(\frac { 2\pi }{ \sqrt { \frac { 2k }{ m } } } \)
= 2π \(\sqrt { \frac { m }{ 2k } } \)

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प्रश्न 14.14.
किसी रेलगाड़ी के इंजन के सिलिंडर हैड में पिस्टन का स्ट्रोक (आयाम का दो गुमा) 1.0 m का है। यदि पिस्टन 200 rad/min की कोणीय आवृत्ति से सरल आवर्त गति करता है तो उसकी अधिकतम चाल कितनी है?
उत्तर:
दिया है:
ω = 200 रेडियन/मिनट = \(\frac{200}{60}\) = \(\frac{10}{3}\) रेडियन प्रति सेकण्ड
स्ट्रोक की लम्बाई = 1 मीटर
माना सरल आवर्त गति का आयाम = a
∴ 2a = 1 मीटर
या a = \(\frac{1}{2}\) = 0.5 मीटर
सूत्र चाल = aω से,
पिस्टन की अधिकतम चाल,
vmax = 400 = 0.5 × \(\frac{10}{3}\)
= \(\frac{5}{3}\) = 1.67 मीटर/सेकण्ड

प्रश्न 14.15.
चंद्रमा के पृष्ठ पर गुरुत्वीय त्वरण 17 ms-2 है। यदि किसी सरल लोलक का पृथ्वी के पृष्ठ पर आवर्तकाल 3.5 s है, तो उसका चंद्रमा के पृष्ठ पर आवर्तकाल कितना होगा? ( पृथ्वी के पृष्ठ पर g = 9.8 ms-2)
उत्तर:
दिया है:
पृथ्वी के पृष्ठ पर आवर्तकाल T = 3.5 s
चंद्रमा के पृष्ठ पर आवर्तकाल = Tm = ?
पृथ्वी के पृष्ठ पर गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण
ge = 9.8 ms-2
सरल लोलक की लम्बाई l = ?
सूत्र
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 9
समी० (ii) व (i) से भगा देने पर,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 11
Tm = 8.4s

प्रश्न 14.16.
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(a) किसी कण की सरल आवर्त गति के आवर्तकाल का मान उस कण के द्रव्यमान तथा बल-स्थिरांक पर निर्भर करता T = 2π\(\sqrt { \frac { m }{ k } } \) कोई सरल लोलक सन्निकट सरल आवर्त गति करता है। तब फिर किसी लोलक का आवर्तकाल लोलक के द्रव्यमान पर निर्भर क्यों नहीं करता?
(b) किसी सरल लोलक की गति छोटे कोण के सभी दोलनों के लिए सन्निकट सरल आवर्त गति होती है। बड़े कोणों के दोलनों के लिए एक अधिक गूढ़ विश्लेषण यह दर्शाता है कि T का मान 2π\(\sqrt { \frac { l }{ g } } \) से अधिक होता है। इस परिणाम को समझने के लिए किसी गुणात्मक कारण का चिंतन कीजिए।
(c) कोई व्यक्ति कलाई घड़ी बाँधे किसी मीनार की चोटी से गिरता है। क्या मुक्त रूप से गिरते समय उसकी घड़ी यथार्थ समय बताती है?
(d) गुरुत्व बल के अंतर्गत मक्त सिरे से गिरते किसी केबिन में लगे सरल लोलक के दोलन की आवृत्ति क्या होती है?
उत्तर:
(a) चूँकि सरल लोलक के लिए k स्वयं m के अनुक्रमानुपाती होता है अत: m निरस्त हो जाता है।
(b) sin θ < θ पर, यदि प्रत्यानयन बल mg sin θ का प्रतिस्थापन mg θ से कर दें तब इसका तात्पर्य यह होगा कि बड़े कोणों के लिए g के परिमाण में प्रभावी कमी व इस प्रकार सूत्र T = 2π\(\sqrt { \frac { l }{ g } } \) से प्राप्त आवर्तकाल के परिमाण में वृद्धि होगी।
(c) हाँ, क्योंकि कलाई घड़ी में आवर्तकाल कमानी क्रिया पर निर्भर करता है, जिसका गुरुत्वीय त्वरण से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।
(d) स्वतन्त्रतापूर्वक गिरते हुए मनुष्य के लिए गुरुत्वीय त्वरण का प्रभावी मान शून्य हो जाता है। अतः आवृत्ति शून्य होती है।

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प्रश्न 14.17.
किसी कार की छत से l लम्बाई का कोई सरल लोलक, जिसके लोलक का द्रव्यमान M है, लटकाया गया है। कार R त्रिज्या की वृत्तीय पथ पर एकसमान चाल से गतिमान है। यदि लोलक त्रिज्य दिशा में अपनी साम्यावस्था की स्थिति के इधर-उधर छोटे दोलन करता है, तो इसका आवर्तकाल क्या होगा?
उत्तर:
कार जब मोड़ पर मुड़ती है तो उसकी गति में त्वरण \(\frac { v^{ 2 } }{ R } \) होता है। अत: कार एक अजड़त्वीय निर्देश तन्त्र है।
अत: गोलक पर एक छद्म बल \(\frac { mv^{ 2 } }{ R } \) वृत्तीय पथ के बाहर की ओर लगेगा जिस कारण लोलक ऊर्ध्वाधर रहने के स्थान पर थोड़ा तिरछा हो जाएगा।
इस क्षण लोलक पर दो बल क्रमश: उपकेन्द्र बल \(\frac { mv^{ 2 } }{ R } \) व भार mg’ लगेंगे।
यदि लोलक के लिए गुरुत्वीय त्वरण g का प्रभावी मान g’ हो, तो गोलक पर प्रभावी बल mg’ होगा जो कि उक्त दो बलों का परिणामी है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 12
अतः लोलक का नया आवर्तकाल, सूत्र T = 2π\(\sqrt { \frac { l }{ g } } \) से
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 13

प्रश्न 14.18.
आधार क्षेत्रफल A तथा ऊँचाई h के एक कॉर्क का बेलनाकार टुकड़ा ρi घनत्व के किसी द्रव में तैर रहा है। कॉर्क को थोड़ा नीचे दबाकर स्वतंत्र छोड़ देते हैं, यह दर्शाइए कि कॉर्क ऊपर-नीचे सरल आवर्त दोलन करता है जिसका आवर्तकाल
T = 2π\(\sqrt { \frac { h\rho }{ \rho _{ i }g } } \) है।
यहाँ ρ कर्क का धनाथव है (ध्रुव की सायनाथा के कारन अवमंदन को नगण्य मानिये)।
उत्तर:
मना कर्क के टुकड़ों का द्रव्यमान m है मना समथदस्थता मे इस टुकड़ों की l लंबदइ दुव मे डूबती है
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 14
तैरने के सिद्धान्त से, कॉर्क के डूबे भाग द्वारा हटाए गए द्रव का भार कॉर्क के भार के समान होगा। अतः
1g = mg
जहाँ V = डूबे भाग द्वारा विस्थापित द्रव का आयतन माना कि कॉर्क का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A है।
∴ V = A × lρig = mg
या Aρil = m ………. (i)
कॉर्क को द्रव में नीचे की ओर दबाकर छोड़ने पर यह ऊपर नीचे दोलन करने लगता है। माना किसी क्षण इसका साम्यावस्था से नीचे की ओर विस्थापन y है। इस क्षण, इसकी लम्बाई (y) द्वारा विस्थापित द्रव का उत्क्षेप बेलनाकार बर्तन को प्रत्यानयन बल प्रदान करेगा।
∴ F = -AYρ1g
यहाँ ऋण चिह्न प्रदर्शित करता है कि प्रत्यानयन बल F1 कॉर्क के टुकड़े के विस्थापन के विपरीत दिशा में लगता है। अतः टुकड़े का त्वरण,
a = \(\frac{F}{m}\) = \(\frac { -Ay\rho _{ 1 }g }{ m } \) … (ii)
चूँकि कॉर्क के टुकड़े का घनत्व ρ व ऊँचाई h है।
m = Ahρ
अतः त्वरण a = \(\frac { -Ay\rho _{ 1 }g }{ Ah } \)ρ
= – (\(\frac { \rho _{ 1 }g }{ h } \rho \)) y
∴ a ∝(-y)
अतः कॉर्क के टुकड़े का त्वरण α, विस्थापन के अनुक्रमानुपाती परन्तु दिशा विस्थापन के विपरीत है। अतः यह स० आ० ग० करता है।
समी० (ii) से,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 15
अतः कॉर्क का आवर्तकाल T = 2π\(\sqrt { \frac { y }{ a } } \)
= 2π\(\sqrt { \frac { h\rho }{ \rho _{ 1 }g } } \)

प्रश्न 14.19.
पारे से भरी किसी U नली का एक सिरा किसी चूषण पम्प से जुड़ा है तथा दूसरा सिरा वायुमण्डल में खुला छोड़ दिया गया है। दोनों स्तम्भों में कुछ दाबान्तर बनाए रखा जाता है। यह दर्शाइए कि जब चूषण पम्प को हटा देते हैं, तब U नली में पारे का स्तम्भ सरल आवर्त गति करता है।
उत्तर:
स्पष्ट है कि चूषण पम्प की अनुपस्थिति में दोनों नलियों में पारे के तल समान होंगे। यह साम्यावस्था की स्थिति है। चूषण पम्प लगाने पर पम्प वाली नली में पारे का तल ऊपर उठ जाता है और पम्प हटाते ही पारा साम्यावस्था को प्राप्त करने का प्रयास करता है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 16
माना पम्प हटाने के बाद किसी क्षण दूसरी नली में पारे का तल साम्यावस्था से ) दूरी नीचे है तो दूसरी ओर यह y दूरी ऊपर होगा।
यदि नली में एकांक लम्बाई में भरे पारे का द्रव्यमान m है तो पम्प वाली नली में चढ़े अतिरिक्त पारद स्तम्भ का भार 2y × mg होगा। यह भार ही द्रव को दूसरी ओर धकेलता है, अतः प्रत्यानयन बल F = – 2mgy होगा।
ऋण चिह्न यह प्रदर्शित करता है कि यह बल विस्थापन के विपरीत दिष्ट है।
माना साम्यावस्था में दोनों नलियों में पारद स्तम्भ की ऊँचाई h है, तब नलियों में भरे पारे का कुल द्रव्यमान M = 2hm होगा।
यदि पारद स्तम्भ का त्वरण a है तो
F = ma
⇒ – 2mgy = 2hma
⇒त्वरण a = – (\(\frac{g}{h}\)) y
अतः a ∝(-y)
इससे स्पष्ट है कि पारद स्तम्भ की गति सरल आवर्त गति है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 17
∴आवर्तकाल T = 2π\(\sqrt { \frac { y }{ a } } \)
⇒ T = 2π\(\sqrt { \frac { h }{ g } } \)

दोलन अतिरिक्त अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 14.20.
चित्र में दर्शाए अनुसार V आयतन के किसी वायु कक्ष की ग्रीवा (गर्दन) की अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल a है। इस ग्रीवा में m द्रव्यमान की कोई गोली बिना किसी घर्षण के ऊपर-नीचे गति कर सकती है। यह दर्शाइए कि जब गोली को थोड़ा नीचे दबाकर मुक्त छोड़ देते हैं, तो वह सरल आवर्त गति करती है। दाब आयतन विचरण को समतापी मानकर दोलनों के आवर्तकाल का व्यंजक ज्ञात कीजिए [चित्र देखिए]।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 18
उत्तर:
गोली को नीचे की ओर दबाकर छोड़ने पर यह अपनी साम्यावस्था के ऊपर नीचे सरल रेखीय दोलन करने लगती है।
माना कि किसी क्षण गोली का साम्य अवस्था से नीचे की ओर विस्थापन है। माना इस स्थिति में कक्ष में भरी वायु का आयतन। के स्थान पर V – ∆V हो जाता है व दाब P ये (P + ∆P) हो जाता है।
∴ बॉयल के नियम से,
PV = (P + ∆P) (V – ∆V)
या ∆P.V = P.∆V (∆P∆V को छोड़ने पर)
∴ P = \(\frac { \Delta P }{ (\Delta V/V) } \)
लेकिन P = ET = वायु की समतापी प्रत्यास्थता है।
∴ ET = \(\frac { \Delta P }{ (\Delta V/V) } \)
∴अभिलम्ब प्रतिबल,
∆P = \(\frac{F}{A}\) = ET. \(\frac { \Delta V }{ V } \)
जहाँ F वायु द्वारा गोली पर लगने वाला अतिरिक्त बल है व a ग्रीवा का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल है।
चूँकि ग्रीवा के गोली का नीचे की ओर विस्थापन ∆V = ax
∴ \(\frac{F}{a}\) = Et.\(\frac { ax }{ V } \)
या F = (\(\frac { E_{ T }a^{ 2 } }{ V } \)) x …………… (i)
परन्तु गोली पर वायु द्वारा लगने वाला बल बाहर की ओर लगता है। अत: यह बल गोली के विस्थापन x के विपरीत दिशा में है अर्थात् यह एक प्रत्यानयन बल है।
सूत्र F = ma से,
ma = – (\(\frac { E_{ T }-a^{ 2 } }{ V } \)) x [समी० (i) से]
∴ त्वरण = – \(\frac { E_{ T }a^{ 2 } }{ mv } \) x ……. (ii)
∴ त्वरण ∝ (-x)
अर्थात् त्वरण विस्थापन के विपरीत दिशा में हैं।
अतः गोली स० आ० ग० करती है।
समी० (ii) से,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 19
∴ आवर्तकाल,
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प्रश्न 14.21.
आप किसी 3000 kg द्रव्यमान के स्वचालित वाहन पर सवार हैं। यह मानिए कि आप इस वाहन की निलंबन प्रणाली के दोलनी अभिलक्षणों का परीक्षण कर रहे हैं। जब समस्त वाहन इस पर रखा जाता है, तब निलंबन 15 cm आनमित होता है। साथ ही, एक पूर्ण दोलन की अवधि में दोलन के आयाम में 50% घटोतरी हो जाती है। निम्नलिखित के मानों का आंकलन कीजिए:
(a) कमानी स्थिरांक, तथा
(b) कमानी तथा एक पहिए के प्रघात अवशोषक तंत्र के लिए अवमंदन स्थिरांक b यह मानिए कि प्रत्येक पहिया 750 kg द्रव्यमान वहन करता है।
उत्तर:
(a) दिया है: M = 3000 kg
प्रत्येक पहिए पर लटकाया गया द्रव्यमान = m = 750 kg
y = 15 cm = 0.15 m, α = g
स्प्रिंग नियतांक k = ?
हम जानते हैं कि, \(\frac{m}{k}\) = \(\frac{y}{a}\) = \(\frac{y}{g}\)
या mg = ky
या k = \(\frac{mg}{y}\) = \(\frac { 750\times 9.8 }{ 0.15 } \)
= 4.9 × 104 Nm-1
= 5 × 104 Nm-1
(b) \(\sqrt { km } \) = \(\sqrt { 5\times 10^{ 4 }\times 750 } \)
= 61.24 × 102 kgs -1
T = 2π \(\sqrt { \frac { m }{ k } } \) ………. (i)
पुनः माना कि प्रारम्भिक मान के आधे मान तक छोड़ने पर आयाम की आवर्त काल T1/2 है।
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दिए गए प्रतिबन्ध से T = T1/2 एक दोलन का समय
या
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 22
= 0.135037 × 104 = 1350 kgs-1

प्रश्न 14.22.
यह दर्शाइए कि रैखिक सरल आवर्त गति करते किसी कण के लिए दोलन की किसी अवधि की औसत गतिज ऊर्जा उसी अवधि की औसत स्थितिज ऊर्जा के समान होती है।
उत्तर:
माना कि m द्रव्यमान का कण सरल आवर्त गति करता है जिसका आवर्त काल T है। किसी क्षण t पर जबकि समय माध्य स्थिति से मापा गया है, कण का विस्थापन निम्नवत् है –
y = a sinωt
V = कण का वेग
\(\frac { dy }{ dt } \) = \(\frac { d }{ dt } \) (a sin ωt)
= a \(\frac { d }{ dt } \) (sin ωt) …. (i)
K.E., Ek = \(\frac{1}{2}\) mv2
= \(\frac{1}{2}\) m (aω cos ωt)2
= \(\frac{1}{2}\) ma2ω2cos2ωt
P.E., Ep = \(\frac{1}{2}\) ky2
= \(\frac{1}{2}\) m(αωcosωt)2
= \(\frac{1}{2}\) ma2a2sin2ωt (∴k = mω2)
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 23
पुनः प्रति चक्र औसत स्थितिज ऊर्जा निम्नवत् है –
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 24
अतः समी० (ii) व (iii) से स्पष्ट है कि दोलन काल के दौरान औसत गतिज ऊर्जा समान; दोलनकाल में औसत स्थितिज ऊर्जा के समान होती है।

प्रश्न 14.23
10 kg द्रव्यमान की कोई वृत्तीय चक्रिका अपने केन्द्र से जुड़े किसी तार से लटकी है। चक्रिका को घूर्णन देकर तार में ऐंठन उत्पन्न करके मुक्त कर दिया जाता है। मरोड़ी दोलन का आवर्तकाल 1.5 s है। चक्रिका की त्रिज्या 15 cm है। तार का मरोड़ी कमानी नियतांक ज्ञात कीजिए। [मरोड़ी कमानी नियतांक a संबंध J = – αθ द्वारा परिभाषित किया जाता है, जहाँ J प्रत्यानयन बल युग्म है तथा θ ऐंठन कोण है।]
उत्तर:
सम्पूर्ण निकाय मरोड़ी दोलन की भाँति कार्य करता है जिसका साम्य मरोड़ी आघूर्ण निम्नवत् है –
τ = \(\frac { \pi \eta r^{ 4 } }{ 2I } \) θ …. (i)
जहाँ t = तार की त्रिज्या
η = लटकाए गए तार की दृढ़ता गुणांक, θ = तार में ऐंठन कोण प्रति ऐंठन मरोड़ी आघूर्ण
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 25
चूंकि चक्रिका दोलन करती है अतः इस पुर लगने पर विक्षेषणा आधूर्ण = I\(\frac { d^{ 2 }\theta }{ dt^{ 2 } } \)
साम्यावस्था में Cθ = I\(\frac { d^{ 2 }\theta }{ dt^{ 2 } } \) …. (iii)
जहाँ \(\frac { d^{ 2 }\theta }{ dt^{ 2 } } \) = कोणीय त्वरण
समी० (i) की तुलना दी हुई समी० J = -αθ से करने पर,
J = τ
तथा
α = \(\frac { \pi \eta r^{ 4 } }{ 2I } \) ……….. (iv)
∴ समी० (ii) व (iv) से
α ~ C
समीकरण (iv) मरोड़ी कमानी नियतांक को व्यक्त करता है। वृत्तीय चक्रिका के पुनः I = \(\frac{1}{2}\)mr2
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MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 26-2
दिया है:
r =15 cm = 0.15 cm,
T = 1.5 s, m=10 kg
इन मानों को समी० (v) में रखने पर,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 14 दोलन img 27
= 1.97 Nm rad-1
= 2.0 Nm rad-1

प्रश्न 14.24.
कोई वस्तु 5 cm के आयाम तथा 0.2 सेकण्ड की आवृत्ति से सरल आवृत्ति गति करती है। वस्तु का त्वरण तथा वेग ज्ञात कीजिए जब वस्तु का विस्थापन (a) 5 cm (b) 3 cm (c) 0 cm हो।
उत्तर:
दिया है: आयाम, r = 5 cm = 0.05 m
T = 0.2 s
ω = \(\frac { 2\pi }{ T } \) = \(\frac { 2\pi }{ 0.2 } \) = 10π rad s-1
माना कि वस्तु का विस्थापन y है। अतः
v = ω\(\sqrt { r^{ 2 }-y^{ 2 } } \)
तथा a = \(\frac { dv }{ dt } \) = – ω2y
(a) दिया है:
y = 5 cm = 5 × 10-2 m
∴ v = 10π \(\sqrt { (0.05)^{ 2 }=(0.03)^{ 2 } } \) – 0
तथा a = – (10π)2 × 0.05 = – 5π2ms-2
(b) दिया है: y = 3 cm = 3 × 10-2
∴ v = 10π \(\sqrt { (0.05)^{ 2 }=(0.03)^{ 2 } } \)
= 10π × 0.04 ms -1
= 0.4π ms -1
तथा a = – (10π)2 (3 × 10-2)
= – 3π2 ms -2
(c) दिया है: y = 0 cm
v = ω\(\sqrt { r^{ 2 }-0^{ 2 } } \)
= rω = 0.05 × 10π
= 0.5π ms-1
तथा a = -ω2 × 0 = 0

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प्रश्न 14.25.
किसी कमानी से लटका एक पिण्ड एक क्षैतिज तल में कोणीय वेग से घर्षण या अवमंद रहित दोलन कर सकता है। इसे जब x0 दूरी तक खींचते हैं और खींचकर छोड़ देते हैं तो यह संतुलन केन्द्र से समय t = 0 पर, v0 वेग से गुजरता है। प्राचल ωx0, तथा v0 के पदों में परिणामी दोलन का आयाम ज्ञात करिये। [संकेत: समीकरण x = a cos (ωt + θ) से प्रारंभ कीजिए। ध्यान रहे कि प्रारंभिक वेग ऋणात्मक है।]
उत्तर:
माना किसी क्षण t कण का विस्थापन निम्न है –
x = a cos (ωt + φ0) ……. (i)
जहाँ a = आयाम
φ0 = प्रा० कला
माना किसी क्षण पर वेग v है। तब,
v = \(\frac { dy }{ dt } \)
= \(\frac { d }{ dt } \) [a cos (ωt + φ0)]
= – aω sin (ωt + φ0) ………. (ii)
t = 0, x0 = x व v = v0 पर
t = 0 रखने पर, समी० (i) व (ii) से,
x0 = a cos φ0
तथा v0 = 0 aωsinφ0
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समी० (iii) यह व्यक्त करता है कि प्रा० वेग ऋणात्मक है। (iii) में दोनों ओर का वर्ग करने पर,
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MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 1 Reproduction in Organisms

MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 1 Reproduction in Organisms

Reproduction in Organisms Important Questions

Reproduction in Organisms Objective Type Questions

Question 1.
Choose the correct answers:

Question 1.
The endosperm in angiospermic plant is :
(a) Haploid
(b) Diploid
(c) Triploid
(d) Polyploid.
Answer:
(c) Triploid

Question 2.
The function of tapetum innermost layer of the anther is :
(a) Dehiscence
(b) Mechanical
(c) Protection
(d) Nutritional.
Answer:
(c) Protection

Question 3.
In angiosperms, female gametophyte is represented by :
(a) Synergids
(b) Carpel
(c) Egg
(d) Pollen grain
Answer:
(c) Egg

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Question 4.
The endocarp of coconut is :
(a) Liquid
(b) Soft
(c) Fibrous
(d) Very hard and stony.
Answer:
(b) Soft

Question 5.
In Vallisneria, pollination takes place by :
(a) Water
(b) Insect
(c) Animal
(d) Air
Answer:
(d) Air

Question 6.
Movement of male gamete towards archegonium in prothallus of fern is :
(a) Thermotactic
(b) Chemotropic
(c) Chemotactic
(d) Hygroscopic movement.
Answer:
(d) Hygroscopic movement.

Question 7.
The process of double fertilization (triple fusion) was discovered by: (MP 2012)
(a) Navaschin
(b) Leeuwenhoek
(c) Strasburger
(d) Hofmeister.
Answer:
(a) Navaschin

Question 8.
Clonal cell line is obtained from :
(a) Tissue culture
(b) Tissue isolation
(c) Tissue mixture
(d) Tissue system.
Answer:
(a) Tissue culture

Question 9.
Plants simillar to their parents can be obtained by :
(a) Seeds
(b) Stem cutting
(c) Cutting
(d) Both (a) and (b).
Answer:
(d) Both (a) and (b).

Question 10.
A scion is grafted over stock. The quality of fruit depends on :
(a) Scion
(b) Stock
(c) Both (a) and (b)
(d) None of these.
Answer:
(a) Scion

Question 11.
The life span of a parrot is :
(a) One – two week
(b) 15 years
(c) 20 years
(d) 140 years.
Answer:
(d) 140 years.

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Question 12.
Stem cutting are commonly used for the propagation of :
(a) Banana
(b) Rose
(c) Mango
(d) Cotton.
Answer:
(b) Rose

Question 13.
If the organism is forged from male gamete without fertilization :
(a) Parthenogenesis
(b) Parthenocarpy
(c) Apogamy
(d) Apospory.
Answer:
(a) Parthenogenesis

Question 2.
Fill in the blanks:

  1. Coconut water is the example of ………………
  2. ……………… is the fusion of male and female gamete.
  3. After fertilization of ovule ……………… is formed.
  4. ……………… is formed from ovary.
  5. The endosperm of gymnosperms is ………………
  6. The fusion of male and female gamete of the same flower of same plant is called ………………
  7. ……………… is called the end of reproductive cycle.
  8. The outer wall of pollen grain is called
  9. In Oxalis vegetative propagation takes place by ………………
  10. In Penicilliumasexual reproduction takes place by ………………

Answer:

  1. Endosperm
  2. Fertilization
  3. Seed
  4. Fruit
  5. Haploid
  6. Self polli – nation
  7. Ageing
  8. Exine
  9. Bulbils
  10. Conidia.

Question 3.
I.
MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 1 Reproduction in Organisms 1
Answer:

  1. (c)
  2. (a)
  3. (d)
  4. (e)
  5. (b)

II.
MP Board Class 12th Biology Important Questions Chapter 1 Reproduction in Organisms 2
Answer:

  1. (d)
  2. (e)
  3. (a)
  4. (b)
  5. (c)

Question 4.
Write the answer in one word/sentences:

  1. Name the process in which fruits are formed without fertilisation.
  2. Name the mode of reproduction in which new plants are formed from vegetative parts of the plants.
  3. Transfer of pollen grains from pollengrains to stigma of flower is called.
  4. Name the outer covering of seed.
  5. How many male gametes found in a pollen tube?
  6. Who provide nutrition to developing embryo?
  7. Write the name of an algae in which reproductive metshod occurs by zoospores.
  8. Give an example of vegetative propagation which is occurs by leaf.
  9. Name the animal which is reproduced by asexual reproduction.
  10. Split part of the body which is reproduce and developed in new plant is called.
  11. What we called the population of genetically similar organisms formed by asexual reproduction?
  12. Name the animal in which reproduction occurs by transverse binary fission.

Answer:

  1. Parthenogenesis
  2. Vegetative propagation
  3. Pollination
  4. Seedcoat
  5. Two
  6. Endosperm
  7. Chlamydomonas
  8. Bryophyllum
  9. Spongilla
  10. Fragmentation
  11. Clone
  12. Paramoecium.

Reproduction in Organisms Very Short Answer Type Questions

Question 1.
What is meant by life span?
Answer:
The period from birth to the natural death of an organism is called life span.

Question 2.
Give definition of fertilization.
Answer:
Fertilization is a process in which male and female gametes fused to form the zygote.

Question 3.
What is clone?
Answer:
Morphologically and genetically similar individuals who are produced by single parent is called clone.

Question 4.
Give the name of an organism in which asexual reproduction occurs through conidia.
Answer:
Penicillium.

Question 5.
In which plant vegetative propagation occurs through rhizome?
Answer:
In Ginger and Turmeric.

Question 6.
Give the name of an organism in which transverse binary fission occurs.
Answer:
Paramoecium.

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Question 7.
What is ageing?
Answer:
When humans are not capable for reproduction is known as ageing.

Question 8.
Give two examples of hermaphrodite plants.
Answer:
Cucurbita and Coconut are hermaphrodite plants.

Reproduction in Organisms  Short Answer Type Questions

Question 1.
Name the types of reproduction occur in the living organisms.
Answer:
Two types of reproduction occur in the living organisms:

  1. Asexual reproduction
  2. Sexual reproduction.

Question 2.
Which is a better mode of reproduction, sexual or asexual. Why?
Answer:
Sexual mode of reproduction is better because it is biparental reproduction and introduces variation among offsprings and their parants due to crossing over and recombination during gamete formation by meiosis.

Question 3.
Why is the offspring formed by asexual reproduction referred to as clone ?
Answer: In sexual reproduction, the offspring is morphologically and genetically identi-cal to the parent and to each other. Hence, it is called clone.

Question 4.
Write three advantages of asexual reproduction.
Answer:
Following are the three advantages of asexual reproduction:

  1. Large number of offsprings can be produced by single parent.
  2. Purity can be maintained.
  3. It helps in dispersal to far off places.

Question 5.
Offsprings formed due to sexual reproduction have better chances of survival. Why? Is this statement always true?
Answer:
Offsprings formed due to sexual reproduction have better chance of survival because:

  1. The offspring consists of hybrid characters which may adapt better with the different environment.
  2. Genetic variations are introduced among the offsprings which increases the bio – logical tolerance.
  3. Sexual reproduction occurs in adverse condition in lower plant kingdom, so sexual spores survive in adverse condition.

Sexual reproduction may not always show better chances of survival because the off – spring may be inferior to the parents.

Question 6.
How does the progeny formed from asexual reproduction differ from those formed by sexual reproduction?
Answer:
The progenies have similar genetic make up and are exact copies of their parents in asexual reproduction but the progenies have different genetic make up and different from each other and dissimilar to the parent in sexual reproduction.

Variation is absent in asexual reproduction but it is a common phenomenon of sexual reproduction. In asexual reproduction, variation may occur due to mutation whereas variation occurs due to mutation, crossing over and recombination in sexual reproduction.

Question 7.
Distinguish between asexual and sexual reproduction. Why is vegetative reproduction also considered as a type of asexual reproduction?
Answer:
Differences between Asexual and Sexual reproduction:

Asexual reproduction:

  • In this type of reproduction only one parent is required.
  • Whole body or a single cell acts as reproductive unit.
  • Offsprings remain pure, i.e., alike their parents.
  • It occurs by mitosis cell division.
  • Variation does not occur.

Sexual reproduction:

  • In this type of reproduction two parents of different sexes are required.
  • Reproductive units are called as gametes which are produced by specific tissues.
  • Offsprings differ from their parents.
  • Gametes are formed by meiosis cell division and zygote develops by mitosis cell division.
  • Variation occurs.

Vegetative reproduction is considered as a type of asexual reproduction because:

  1. It is uniparental reproduction.
  2. There is no involvement of gametes or sex cells.
  3. Cell division and no reduetional division take place.
  4. Vegetative propagules are somatic cells.

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Question 8.
What is vegetative propagation? Give two suitable examples.
Answer:
In plants, the vegetative propagules (runner, rhizome, sucker, etc.) are capable, of producing new offsprings by the process called vegetative propagation. As the formation of these vegetative propagules does not involve both the parents, the process involved is asexual.
Examples:

  1. Adventitious buds in the notches along the leaf margins of bryophyllum grow to form new plants.
  2. Potato tuber having buds when grown, develops into a new plant.

Question 9.
Define:

  1. Juvenile phase
  2. Reproductive phase
  3. Senescent phase.

Answer:
1. Juvenile phase:
It is the pre – reproductive in which all organisms require a certain growth and maturity in the life before reproducing sexually.

2. Reproductive phase:
Reproductive phase is the phase in the life cycle, where an organism possesses all the capacity and potential to reproduce sexually. It is the end of juvenile phase or vegetative phase.

3. Senescent phase:
It is the post reproductive phase in the life cycle where an organism slowly looses the rate of metabolism, reproductive potential and show deterioration of the physiological activity of the body.

Question 10.
Higher organisms have resorted to sexual reproduction inspite of its complexity.Why?
Answer:
Higher organisms have resorted to sexual reproduction to:

  1. Get over the unfavourable conditions.
  2. Restore high gene pool in a population.
  3. Restore vigour and vitality of the race.
  4. Get proper parental care.
  5. Introduce variations to enable better adaptive capacity.

Question 11.
Explain, why meiosis and gametogenesis are always interlinked.
Answer:
Gametogenesis (formation of male and female gametes) is associated with reduction in chromosome number. Thus, the gamete formed contains half chromosome set of the parental cell. So, gametogenesis is interlinked with meiosis because in meiosis reduction of chromosome number from diploid set (2n) to haploid set (n) takes place.

Question 12.
Identify each part in a flowering plant and write whether it is haploid (n) or diploid (2n).
Answer:
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Question 13.
Define external fertilization, mention its disadvantages.
Answer:
The fusion of compatible gametes (male and female) outside the body of an organism is called external fertilization, example in Frog.
Disadvantages of external fertilization:

  1. It requires a medium for fusion of gametes.
  2. The young ones are often exposed to the predators.
  3. After fertilization, offsprings are produced large in number but no parental care is provided.

Question 14.
Differentiate between a zoospore and zygote.
Answer:
Differences between Zoospores and Zygote:

Zoospore:

  • These are endogenously, asexually produced, unicellular, naked and motile spores having one or two flagella.
  • It may be haploid or diploid.
  • Zoospores takes part in dispersal.

Zygote:

  • Zygote is a diploid cell formed by fusion of male and female gametes.
  • It is always diploid.
  • Zygote does not have significant role in dispersal.

Question 15.
Differentiate between gametogenesis and embryogenesis.
Answer:
Differences between Gametogenesis and Embryogenesis:

Gametogenesis:

  • It is the formation of gametes from me – iocytes.
  • This is a pre – fertilization event.
  • It occurs inside reproductive organs.
  • It produces haploid gamete.
  • The cell division during gametogenesis is meiotic in diploid organisms.

Embryogenesis:

  • It is the formation of embryo from zyg – ote cell.
  • This is a post fertilization event.
  • It occurs outside or inside the female body.
  • It gives rise to diploid embryo.
  • The cell division during embryogenesis is mitotic in diploid organisms.

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Question 16.
What is gootee? How it is prepared?
Answer:
Gootee or Air layering:
It is a modified form of layering in which the cut or injured branch is not buried in the soil but is bound with mud and rags, etc. which is kept moist with the help of water kept in an earthen pot. The roots develop at this portion within a period of about a month or two. Now, the branch is cut and separated from the parent plant and planted in the soil. This method is applied for the vegetative, propagation of Lemon, Orange, Litchi, Guava, Lokat, etc.

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Question 17.
What do you understand by grafting? Write down the method of grafting.
Answer:
Vegetative propagation:
Vegetative reproduction or vegetative propagation is the process of multiplication in which a portion or fragment of the plant body functions as propagate and develops into new individual. Grafting is a type of artificial vegetative propagation.

Importance of vegetative propagation:

  1. Pure variety can be produced
  2. It increases production.

Grafting:
This is a very significant method and is extensively used for growing Roses and Mangoes. Grafting is making a twig or bud of one plant grow on the trunk and root system of another. In this process a detached portion of one plant is inserted into the stem or root system of another plant. The former is called scion (short piece of detached shoot containing several dormant buds) and the latter stock (lower portion of the plant which is fixed to the soil by its root system).

Grafting is done in such a way that the cambium tissue of both scion and stock comes in contact and forms a cambium layer common to both. Consequently the scion and the stock grow together and the scion becomes part of the plant into which it is grafted.
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