MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 5 नेताजी का तुलादान

नेताजी का तुलादान अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
नेताजी के तुलादान के अवसर पर सिंगापुर की सजावट का वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
नेताजी (सुभाषचन्द्र बोस) के तुलादान के अवसर पर सिंगापुर की सजावट की सुन्दरता चारों ओर बिखरकर सभी को विमुग्ध कर रही थी। सिंगापुर एक उपवन की रौनक को अपने अन्दर समेटे हुए था। इस दिन अर्थात् 23 जनवरी, सन् 1897 ई. को एक छोटी-सी कली चटककर खिली थी अर्थात् इस दिन सुभाष बाबू का जन्म हुआ था। हर एक व्यक्ति के चेहरे पर एक जोश, ताजगी छाई हुई थी। आज क्योंकि नेताजी का जन्म दिन है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में व्याप्त खुशी और उल्लास भरा वातावरण अपने आप में कहीं पर समा नहीं रहा है। अर्थात् लोगों के मन में खुशी और उल्लास का उफान उमड़ रहा है। इस प्रकार सिंगापुर का कोना-कोना मतवालेपन से भीगा हुआ सा लग रहा है। सिंगापुर की हर एक गली, बाजार और चौराहे जनता ने सजाए हुए थे। प्रत्येक घर में खुशी का मंगलाचार हो रहा था। बधाइयाँ परस्पर दी जा रही थीं। भारत के प्रत्येक प्रान्त के निवासियों ने खासकर युवतियों ने अपने पुराने वस्त्र उतारकर नये वस्त्र धारण किये हुए थे। प्रत्येक व्यक्ति देशभक्ति के और देश की आजादी के तराने गा रहा था।

प्रश्न 2.
‘नेताजी का था जन्म दिवस, उल्लास न आज समाता था’ के अनुसार सिंगापुर के निवासियों के जोश और उल्लास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिंगापुर में युवक-युवतियाँ ढोलक-मंजीरें की तान पर अपने गीत गा रहे थे। वे सब गोल घेरे में बैठे हुए थे। वे सभी पठानी गीत स्वर और लय में गा रहे थे जिससे सभी के हृदय उत्साह से भर उठते थे। सिंगापुर नगर एक फुलवारी में बदल गया था। फुलवारी में भिन्न-भिन्न रंग और सुगन्ध के फूल एक साथ खिल उठते हैं और उसकी शोभा बढ़ाते हैं, उसी तरह भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त के लोग किसी भी जाति, धर्म, वर्ण, वेश धारण किये हों, वे सभी आपस में भारत की शोभा बढ़ाने वाले नागरिक हैं। महाराष्ट्र, बंगाल आदि सभी प्रान्तों की विशिष्ट धर्माचरण करती हुईं महिलाएँ इकतारा पर ध्वनि निकाल रही थीं। समर्थ स्वामी रामतीर्थ के प्रेरणादायी शब्दों का गायन किया जा रहा था। उनके मन फूले नहीं समा रहे थे। अपने-अपने इष्ट से मनौती मना रही थीं कि सुभाषचन्द्र बोस चिरंजीवी हों, भारत अपनी आजादी प्राप्त करे। हे कात्यायनी दुर्गे, भारतवर्ष में प्रजातन्त्र फैल जाए। सिंगापुर का प्रत्येक स्त्री-पुरुष, बालक-बालिका, जवान और वृद्ध उल्लसित दीख रहा था।

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प्रश्न 3.
नेताजी के तुलादान में क्या-क्या वस्तुएँ अर्पित की गई थीं? (2015)
उत्तर:
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के तुलादान के लिए एक फूलों से सुसज्जित तुला सामने आई। तुलादान के लिए वहाँ ठोस पदार्थ लाए गये थे। सुभाष बाबू एक महान शक्ति के रूप में उस तुला के एक पलड़े में विराजमान थे। दूसरे पलड़े को सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात से बाजी लगाते हुए भरा जाता था। इस तुलादान के अवसर पर मन्त्रोचार से मण्डप को पवित्र किया गया था। सभी लोग प्रसन्न थे। चारों ओर शंखध्वनि मधुर-मधुर उठ रही थी। ऐसे सुखद और उत्साहवर्द्धक पवित्र बेला में कुन्दन के समान काया वाले सुभाष बाबू उस तुला के एक पलड़े से मुस्कान भर रहे थे।

सर्वप्रथम एक वृद्ध औरत ने स्वर्ण की ईंटों से तुलादान किया। गुजरात की एक माँ भी. पाँच ईंटें सोने की लाई थी। वहाँ उपस्थित सभी महिलाओं ने, युवतियों ने एक-एक करके अपने आभूषण उतारकर तुलादान में दिये। कोई तो अपनी मुदरी, छल्ले, कंगन, बाजूबन्द आदि का दान कर रही थी। किसी-किसी ने हार-मालाएँ, गले की जंजीरें, तलवार की सोने की गूंठें, सोने के सिक्के, कर्ण फूल, ताबीज आदि तुलादान में प्रदान कर दिये।

आज के दिन इतने स्वर्ण आदि का दान भी तुच्छा दिख रहा था क्योंकि हिन्दुस्तान भर में और प्रत्येक हिन्दुस्तानी के मन में बलिदान का जज्बा हावी था।

प्रश्न 4.
नेताजी ने टोपी उतारकर किस महिला का सम्मान किया था और क्यों? लिखिए। (2008, 09, 13)
उत्तर:
तुलादान के स्थल पर कप्तान लक्ष्मी को एक कोने से उसी समय कुछ सिसकियाँ सुनाई देने लगी। यह सिसकियाँ उस तरुणी की थी, जिसका पति कल ही युद्धस्थल पर कठिन काल के द्वारा निगल लिया गया था। उसका जूड़ा खुला हुआ था, उसकी आँखें सूजी हुई और लाल हो रही थीं। वह तरुणी अपने साथ धन सम्पत्ति लिए हुए थी; जिसे वह तुलादान में देने के लिए लेकर आई थी। नेताजी सुभाष बाबू ने जब उस तरुणी को देखा तो उन्होंने अपनी टोपी उतार ली और उस महिला का बहुत सम्मान किया। उसने अपने पति को आजादी की बलि वेदी पर कुर्बान कर दिया था। उस महिला ने अपने काँपते हाथों से तुला के पलड़े में अपना शीशफूल रख दिया। यह उस महिला के सौभाग्य का चिह्न था। जैसे ही उसने उस शीशफूल को पलड़े में रखा तो तुला का काँटा सहम गया और कम्पित होने लगा। (उस तरुणी का तुलादान सबसे गौरवशाली और गुरुतर था)। इसलिए नेताजी ने अपनी टोपी उतारकर उस तरुणी महिला का सम्मान किया था।

प्रश्न 5.
“हे बहन, देवता तरसेंगे, तेरे पुनीत पद वन्दन को।” किसने, किससे और क्यों कहा है? (2008, 14)
उत्तर:
“हे बहन! देवता तरसेंगे, तेरे पुनीत पद वन्दन को” यह कथन नेताजी श्री सुभाष बाबू का है। इन शब्दों को नेताजी ने उस तरुणी महिला से कहा है, जिसके पति का भारत माता की आजादी के लिए लड़ते-लड़ते बलिदान हो गया। उन्होंने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा कि “हम भारतवासी तुम्हारे इस करुण क्रन्दन को याद रखेंगे क्योंकि इससे हमें आजादी की लड़ाई में प्रेरणा मिलेगी।”

प्रश्न 6.
तराजू के पलड़े सम पर कैसे आये?
उत्तर:
तरुणी महिलाओं के सौभाग्यसूचक चिह्नों एवं स्वर्ण राशि को तुला के पलड़े में रखने पर भी पलड़े सम पर नहीं आए, तभी अपने शरीर से जर्जर हुई, काँपती एक वृद्धा अपनी छाती से लगाए हुए छिपाकर एक सुन्दर सा चित्र लेकर आई थी। वह वृद्धा व्याकुल थी। उसने कहा कि मैं अपने इकलौते पुत्र का चित्र लेकर आई हूँ। हे नेताजी ! यह मेरा सर्वस्व है, इसे लीजिए, ऐसा कहते हुए उस वृद्धा ने उस चित्र को पटक दिया तो चरमराकर शीशा टूट गया और चौखटा अलग हो गया। वह चौखटा स्वर्ण से निर्मित था। क्रोध में भरी शेरनी के समान उस वृद्धा ने गर्व से कहा कि मेरे बेटे ने आजादी के लिए फाँसी खाई थी। उसने मेरी कोख को कलंकित नहीं किया था। अब भी मेरा अन्य पुत्र होता तो उसे भी भारतमाता की भेंट चढ़ा देती। इसी बीच उस सोने के चौखटे को तुलादान के पलड़े में चढ़ाया तो तुला का काँटा सम पर आ गया। सुभाष बाबू उठे और उस वृद्धा के चरणों का स्पर्श करते हुए कहा कि “हे माँ ! मैं केवल आप जैसी माताओं के बलबूते पर धन्य हो गया।”

प्रश्न 7.
इस पाठ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम भारतवासी अपनी आजादी को अपना सर्वस्व निछावर करते हुए भी सुरक्षित रहेंगे। दुनिया में कोई भी हमारा शत्रु होगा तो हम उसे मुँह की खाने के लिए मजबूर कर देंगे तथा उसके मुख पर कालिख पोत देंगे।

‘भारत माता’ हमारी वन्दनीय माता है। हमने इसकी कोख से जन्म लिया है, इसकी मिट्टी, धान्य, जल और वायु से अपने आपको पोषित और पुष्ट किया है। बताओ फिर अपनी इस पुण्य प्रदायी माता की मुक्ति के लिए, उसकी आजादी की रक्षा के लिए हम किस महत्त्वपूर्ण वस्तु का बलिदान करने से मुख मोड़ेंगे? अर्थात् इसकी सुरक्षा के लिए अपने जीवन का दान करना भी कम महत्त्व का होगा, क्योंकि इस मातृभूमि के उपकार कहीं अधिकतर हैं, गुरुतर हैं।

नेताजी का तुलादान अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नेताजी का तुलादान’ कविता में नेताजी का जन्म दिवस किस देश में मनाने की बात कही गई है?
उत्तर:
उपर्युक्त कविता में नेताजी का जन्म दिवस सिंगापुर में बनाने की बात कही गई है।

प्रश्न 2.
इस कविता में नेताजी की किस प्रमुख सहयोगी एवं भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी का ज़िक्र आया है?
उत्तर:
इस कविता में नेताजी की प्रमुख सहयोगी और आजाद हिन्द फौज की महिला सिपाही कप्तान लक्ष्मी का ज़िक्र आया है।

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नेताजी का तुलादान पाठका सारांश

प्रस्तावना :
प्रात:काल का समय है, पूर्व दिशा से सूर्य की किरणें उगती हैं और सभी प्राणियों को आजादी का सन्देश देती हैं। उस सन्देश का अनुपालन सभी भारतीय करते हैं और आजादी के लिए प्रयास करने में जुट जाते हैं। प्रात:काल में खिली कली सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरती है। सभी खुश हैं क्योंकि उस दिन नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म दिन था। सिंगापुर की भूमि पर उनके जन्म दिन को मनाने के लिए लोग इकट्ठे हो रहे थे। हर गली, हर चौराहे पर, द्वार पर मंगलाचार हो रहे थे। सभी लोग अपनी-अपनी वेशभूषा में सुसज्जित थे। मदमस्त लोगों की भीड़ ढोलक, मंजीरे बजाकर नेताजी के जन्मोत्सव पर बधाइयाँ गा रही थीं। प्रत्येक प्रान्त के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जा रहे थे। बसन्त का आगमन था।

परिचय :
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, सन् 1897 को कटक में हुआ था। भारतीय जन सुभाष की दीर्घ आयु, भारत की आजादी, भारत में प्रजातन्त्र के फलने-फूलने की कामना माँ कात्यायनी के मन्दिर में कर रहे थे। सुभाष जी ने ध्वज फहराया, तिरंगें फूलों का तुला बनाया गया। देश को आजाद कराने के लिए संकल्पित सैनिकों के संगठन के लिए धन की आवश्यकता को देश के प्रत्येक नागरिक ने अनुभव किया और नेताजी के जन्म दिन पर उनके भार के बराबर धन-सोना, चाँदी आदि सब कुछ एकत्र करने का विचार लोगों ने किया। इस धन से आजाद हिन्द फौज का संगठन किया गया। प्रत्येक महिला-युवती, विवाहिता, वृद्धा ने अपने सभी आभूषण तुलादान में प्रदान किए।

उत्साह :
प्रत्येक माँ ने, पत्नी ने, बहन ने, बाप ने, भाई ने अपने पुत्र, बेटे, पति, भाई को सैनिक रूप में सुभाष बाबू के जन्म दिन पर तुलादान में दे दिया। माँ ने बेटे को वचनबद्ध कराया कि वह मातृभूमि की आजादी की लड़ाई में अपनी माँ की पवित्र कोख को कलंकित नहीं करेगा। कुछ अपूती माँ दुर्गे महारानी से मनौती माँगती हैं कि माँ, मुझे पुत्रवती बना, मैं उसे अपनी भारत माता की भेंट चढ़ाना चाहती हूँ। तुलादान की क्रिया सम्पन्न हुई और नेताजी के वचन से भी अधिक धन तुलादान में प्राप्त हुआ।

उपसंहार :
चारों ओर स्वर गूंजने लगा कि दुश्मन जीवित नहीं रहेगा। भारत आजाद होकर रहेगा !!!

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