MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.4

MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.4

Question 1.
Determine which of the following polynomials has (x + 1) as factor:

  1. x3 + x2 + x + 1
  2. x4 + x3 + x2 + x + 1
  3. x4 + 3x2 + 3x2 + x + 1
  4. x3 – x2 – (2 + √2 ) x + √2

Solution:
1. p(x) = x3 + x2 + x + 1
x + 1 = 0 ∴ x = – 1
p(-1) = (-1)3 + (-1)2 + (-1) + 1
= – 1 + 1 – 1 + 1 = 0
(x + 1) is a factor of p(x).

2. p(x) = x4 + x3 + x2 + x + 1
x + 1 = 0, x = – 1
P(- 1) = (- 1)4 + (-1)3 + 3(-1)2 + (-1) + 1
= 1 – 1 + 1 – 1 + 1 = 1
(x + 1) is not a factor of p(x).

3. p(x) = x4 + 3x3 + 3x2 + x + 1
x + 1 = 0,
x = – 1
p(-1) = (-1)4 + 3(-1)3 + 3(-1)3 + (-1) + 1
= 1 – 3 + 3 – 1 + 1 = 1
(x + 1) is not a factor of p(x).

4. p(x) = x3 – x2 – (2 + √2 ) x + √2
x + 1 = 0, x = – 1
p(-1) = (-1)3 – (-1)2 – (2 + √2) x (-1) + √2
= – 1 – 1 + 2 + √2 + √2 = 2√2
(x + 1) is not a factor of p(x).

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Question 2.
Use the factor theorem to determine whether g(xr) is a factor of p(x) in each of the following cases:

  1. p(x) = 2x3 + x2 – 2x – 1, g(x) = x + 1
  2. p(x) = x3 + 3x2 + 3x + 1, g(x) = x + 2
  3. p(x) = x2 – 4x2 + x + 6, g(x) = x – 3

Solution:
1. p(x) = 2x3 + x2 – 2x – 1, g(x) = 0
x + 1 = 0 x = – 1
p(-1) = 2(-1)3 + (-1)2 – 2(-1) – 1
= – 2 + 1 + 2 – 1 = 0
(x + 1) is a factor of p(x).

2. p(x) = x3 + 3x2 + 3x + 1, g(x) = x + 2
g(x) = 0
x + 2 = 0, x = – 2
zero of g(x) is – 2.
Now, p(-2)
= (-2)3 + 3 (-2)2 + 3(-2) + 1 ,
= – 8 + 12 – 6 + 1 = – 1 ≠ 0
By factor theorem, g(x) is not a factor of p(x).

3. p(x) = x3 – 4x2 + x + 6
g(x) = x – 3 = 0, x = 3
p(3) = (3)3 – 4(3)2 + (3) + 6
= 27 – 36 + 3 + 6
= 36 – 36 = 0
(x – 3) is a factor of p(x).

Question 3.
Find the value of k, if x – 1 is a factor of p(x) in each of the following cases:

  1. p(x) = x2 + x + k
  2. p(x) = 2x2 + kx + √2
  3. p(x) = kx2 – √2x + 1
  4. p(x) = kx2 – 3x + k.

Solution:

1. p(x) = x2 + x + k
If x – 1 is a factor of p(x), then p( 1) = 0
(∴ By factor theorem)
(1)2 + (1) + k = 0
1 + 1 + k = 0
2 + k = 0
k = – 2

2. p(x) = 2x2 + kx + √2
g(x) = x – 1, x = 1
P(1) = 2(1)2 + k(1) + √2 = 0
2 + k + √2 = 0
k = – (2 + √2)

3. p(x) = kx2 – √2 x + 1
g(x) = x – 1,
x = 1
p(1) = k(1)2 – √2(1) + 1
k – √2 + 1 = 0
k = √2 – 1

4. p(x) = kx2 – 3x + k
g(x) = x – 1, x = 1
p(1) = k(1)2 – 3(1) + k = 0
k – 3 + k = 0
2k – 3 = 0

Question 4.
Factorise:

  1. 12x2 – 7x + 1
  2. 2x2 + 7x + 3
  3. 6x2 + 5x – 6
  4. 3x2 – x – 4

Solution:
1. 12x2 – 7x + 1
12x2 – 7x + 1 = 12x2 – 4x – 3x + 1
= 4x(3x – 1) – 1 (3x – 1)
= (3x – 1) (4x – 1)

2. 2x2 + 7x + 3
2x2 + 7x + 3 = 2x2 + 6x + x + 3
= 2x (x + 3) + 1 (x + 3)
= (x + 3) (2x + 1)

3. 6x2 + 5x – 6
6x2 + 5x – 6 = 6x2 + 9x – 4x – 6
= 3x(2x + 3) – 2(2x + 3)
= (2x + 3) (3x – 2)

4. 3x2 – x – 4
3x2 – x – 4 = 3x2 – 4x + 3x – 4
= x(3x – 4) + 1(3x – 4)
= (3x – 4) (x + 1)

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Question 5.
Factorize:

  1. x3 – 2x2 – x + 2
  2. x3 – 3x2 – 9x – 5
  3. x2 + 13x2 + 32x + 20
  4. 2y3 + y2 – 2y – 1.

Solution:
1. x3 – 2x2 – x + 2
Let p(x) = x3 – 2x2 – x + 2
We find that
p(1) = (1)3 – 2(1)2 – (1) + 2
= 1 – 2 – 1 + 2 = 0
By factor theorem, (x – 1) is a factor of p(x).
Now,
x3 – 2x2 – x + 2 = x2(x – 1) – x(x – 1) – 2(x – 1)
= (x – 1) (x2 – x – 2)
= (x – 1) (x2 – 2x + x – 2)
= (x – 1) {x(x – 2) + 1(x – 2)}
= (x – 1) (x – 2) (x + 1).

2. p(x) = x3 – 3x2 – 9x – 5
x = – 1
p(-1) = (-1)3 – 3(-1)2 – 9(- 1) – 5
= – 1 – 3 + 9 – 5 = 0
(x + 1) is a factor of p(x).
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.4 img-1
Now, p(x) = (x + 1) (x2 – 4x – 5)
= (x + 1) (A2 – 5A + A – 5)
= (x + 1) [x(x – 5) + 1 (x – 5)]
= (x + 1) (x – 5) (x + 1)

3. p(x) = x3 + 13x2 + 32x + 20
x = – 1,
p(-1) = (-1)3 + 13(-1)2 + 32(-1) + 20
= – 1 + 13 – 32 + 20 = 0
(x + 1) is a factor of p(x)
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.4 img-2
p(x) = (x + 1) (x2 + 12x + 20)
= (x + 1) (x2 + 10x + 2x + 20)
= (x + 1) [x (x + 10) + 2 (x + 10)]
= (x + 1) (x + 2) (x + 10)

4. p(y) = 2y3 + y2 – 2y – 1
y = 1
P(1) = 2(1)3 + (1)2 – 2(1) – 1
= 2 + 1 – 2 – 1
= 0
(y – 1) is a factor of p(y)
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.4 img-3
p(x) = (y – 1) (2y2 + 3y + 1)
= (y – 1) (2y2 + 2y + 1y + 1)
= (y – 1)[2y(y + 1) + 1 (y + 1)]
= (y – 1) (y + 1) (2y + 1)

Algebraic Identities:

  1. (x + y)2 = x2 + 2xy + y2
  2. (x – y)2 = x2 – 2xy + y2
  3. x2 – y2 = (x + y) (x – y)
  4. (x + a) (x + b) = x2 + (a + b) x + ab

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 22 हिन्दी साहित्य का इतिहास

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 22 हिन्दी साहित्य का इतिहास (संकलित)

प्रश्न 1.
हिंदी साहित्य के इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए उसके काल-विभाजन का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर
प्रत्येक वस्तु का इतिहास होता है। इसी प्रकार हिन्दी साहित्य का भी अपना इतिहास है। हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में प्रमुखतः गार्स द तॉसी, शिवसिंह सेंगर, जार्ज ग्रियर्सन, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. राजकुमार वर्मा, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. भगीरथ प्रसाद, डॉ. लक्ष्मीनारायण वार्ष्णेय, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जैसे अनेक विद्वानों ने अपना सहयोग प्रदान किया।

हिन्दी साहित्य का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पहले से प्रारम्भ होता है। कालविभाजन की दृष्टि से हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है। यह विभाजन उस काल की समय सीमा में मिलने वाले साहित्य की विशेषताओं पर आधारित है। काल-विभाजन के नामकरण का मुख्य आधार उस काल की प्रवृत्तियों, परिस्थितियों और उस काल की विशेषताओं को बनाया गया है। इस आधार पर हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल-विभाजन इस प्रकार है :

  1. आदिकाल (वीरगाथा काल) – संवत् 1050 से 1375 तक
  2. मध्य काल – संवत् 1375 से 1900 तक
    • पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) – संवत् 1375 से 1700 तक
    • उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) – संवत् 1700 से 1900 तक
  3. आधुनिक काल (गद्यकाल) – संवत् 1900 से अब तक

प्रश्न 2.
आदिकाल के नामकरण और इसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
आदिकाल (वीरगाथा काल)-आदिकाल का नामकरण अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग विशेषताओं के आधार पर किया है। आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के आदिकाल का समय सं. 1050 से सं. 1375 तक अर्थात् महाराजा भोज के समय । से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक माना है। आदिकाल में तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार साहित्य सृजन हुआ जिसे हिन्दी साहित्य के प्रारम्भिक काल में स्पष्ट देखा जा सकता है। आदिकाल को चारण काल भी कहा गया है। यह इसलिए कि आदिकाल की समय सीमा में सम्राट हर्षवर्द्धन की मृत्यु के पश्चात् विदेशी आक्रमणकारियों विशेषकर यवनों के आक्रमणों के चारों ओर अशान्ति और अराजकता की स्थिति निर्मित थी अतः कवि एक ओर तलवार के गीत गा रहे थे, तो दूसरी ओर आध्यात्मिकता की बात भी कर रहे थे। आदि काल को वीरगाथा काल भी कहा गया है। यह इसलिए कि इस काल में वीरता लोक जीवन शृंगार के प्रमुख काव्य के विषय थे।आदिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ

आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. आदिकालीन साहित्य में युद्ध वर्णन में सजीवता और अधिकता है।
  2. आदिकालीन साहित्य में ‘रासो काव्य परम्परा’ का प्रादुर्भाव हुआ। ‘रासो’ शब्द की उत्पत्ति के सम्बन्ध में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने संस्कृत के एक छन्द ‘रासक’ को माना है। बाद में अपभ्रंश में भी ‘रास’ या ‘रासा’ छन्द का वर्णन मिलता है।
  3. राजाओं के शौर्य और पराक्रम का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया।
  4. वीर और श्रृंगार रस के साथ शान्त, करुण, विभत्स आदि रस युक्त रचनाओं का वर्णन किया गया।
  5. अलंकारों का स्वाभाविक समावेश इस युग के साहित्य में मिलता है। अलंकारों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि की प्रधानता रही।

प्रमुख कवि – रचनाएं

  1. स्वयंभू – पउम चरिउ
  2. पुष्पदन्त – जसहारचरिउ
  3. मुनि शालिभद्र – बुद्धिरास
  4. जिनधर्म सूरि – स्थलिभद्ररास
  5. नरपति नाल्ह – वीसलदेव रासो
  6. जगनिक – परमाल रासो
  7. दलपति विजय – खुमान रासो
  8. चन्दवरदाई – पृथ्वीराज रासो

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प्रश्न 3.
मध्यकाल का सामान्य परिचय और उसके भेदों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
हिन्दी साहित्य का मध्यकाल दो खण्डों में विभक्त है जो इस प्रकार हैं-पूर्व मध्यकाल और उत्तर मध्यकाल। पूर्व मध्यकाल को भक्तिकाल तथा उत्तर मध्यकाल को रीतिकाल कहा गया। पूर्व मध्यकाल अर्थात् भक्ति काल का समय संवत् 1375 से 1700 तक। इस काल में भक्ति की प्रधानता थी। इस समय सीमा में कवि भक्त थे, अतः उनकी रचनाएँ भक्ति से ओत-प्रोत हैं। उस समय समाज में अनेक प्रकार ३. के भेदभाव थे। इसके विरोध में भक्ति का स्रोत इस काल में प्रस्फुटित हुआ। इस – काल में धर्म साधना की नई भावना का उदय हुआ। इन भक्त कवियों को धन, यश और राजाश्रय की चाह नहीं था बल्कि समाज-व्यक्ति तथा राष्ट्र को आगे बढ़ाने की भावना थी। यह भक्ति आंदोलन अखिल भारतीय था, इसक परिणाम यह हुआ कि लगभग पूरे देश में मध्य प्रदेश की काव्य भाषा हिन्दी (ब्रजभाषा) का प्रचार-प्रसार हुआ। भक्ति आन्दोलन हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है। भक्तिकाल की समय सीमा में दो प्रकार की काव्यधाराएँ थीं
1. निर्गुण धारा
2. सगुण धारा
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प्रश्न 4.
निर्गुण भक्ति काव्य-धारा का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए।
उत्तर
निर्गुण भक्ति काव्य-धारा के कवियों ने निराकार ब्रह्म की उपासना पर जोर दिया। उन्होंने योग साधना और ब्रह्म ज्ञान को प्रधानता दी। इसे अपनी-अपनी रचनाओं के द्वारा चित्रित किया। धार्मिक उन्माद और आडम्बर का विरोध कर उन्होंने मन की पवित्रता, सदाचार और समता पर बल दिया था।
निर्गुणधारा की दो शाखाएँ हैं :
(क) ज्ञानाश्रयी शाखा
(ख) प्रेमाश्रयी शाखा।

(क) ज्ञानाश्रयी शाखा : इस शाखा के सभी कवि सन्त साधु कहलाए। उन सभी ने ज्ञान की चर्चा की। सन्तों ने जाति-पाँति को तिलांजलि देकर सबके लिए भक्ति का मार्ग खोल दिया।
विशेषताएँ :
ज्ञानाश्रयी शाखा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. नाम की उपासना पर अधिक जोर दिया गया।
  2. गुरुः को भगवान से भी अधिक बढ़कर बताया गया।
  3. आडम्बरों का खंडन किया गया।
  4. सदाचार और साधना को महत्त्व दिया गया।
  5. जाति-पांति के बन्धन का विरोध किया गया।
  6. भाषा साहित्यिक न होकर सधुक्कड़ी थी।

प्रमुख कवि : शाखा के प्रमुख कवि कबीर, रैदास, धर्मदास, गुरुनानक, दादूदयाल, सुन्दरदास और मलूकदास आदि हैं।

(ख) प्रेमाश्रयी शाखा-‘सूफी’ शब्द की उत्पत्ति ‘सोफिया’ अथवा ‘सफा’ शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ है क्रमशः ज्ञान अथवा शुद्ध एवं पवित्र । एक अन्य मत के अनुसार सूफी शब्द का सम्बन्ध ‘सूफ’ से है जिसका अर्थ सूफी लोग सफेद ऊन से बने हुए चोंगे पहनते थे। उनका आचरण शुद्ध होता था। प्रेमाश्रयी शाखा के कवि.सूफी संन्त थे। इन कवियों ने मुक्ति प्रेम को महत्व दिया है। उन्होंने बतलाया कि प्रेम की साधना के लिए गुरु का सहयोग अनिवार्य है।

विशेषताएँ : प्रेमाश्रयी शाखा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं.

  1. प्रेम की.पीर की व्यंजना अधिक है।
  2. प्रेमाश्रयीं सूफी काव्य, प्रबन्धात्मक है।
  3. इनकी भाषा अवधी है।।
  4. दोहा, चौपाई. की प्रधानता है।
  5. इन कवियों ने भारतीय लोक जीवन में प्रचलित कथाओं को अपनी रचनाओं का आधार बनाया है।
  6. कथानक में रूढ़ियों के प्रयोग हैं
  7. भारतीय और ईरानी पद्धति का समन्वय है।
  8. लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना है।

प्रमुख कवि : कुतुबन, मंझन, जायसी, उसमान, कासिम, नूर-मोहम्मद और फाजिल शाह आदि।

हिन्दी साहित्य का इतिहास सगुण भक्ति काव्य-धारा

प्रश्न 5.
सगुण भक्ति काव्य-धारा का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
सगुण भक्ति काव्य-धारा के उपासकों का राम और कृष्ण अवतार और लीला पर अधिक आग्रह रहा है। इस धारा के प्रमुख कवि तुलसी और सूर हुए हैं और उन्होंने अपने रचनाओं द्वारा मध्ययुगीन साहित्य का चहुँमुखी विकास किया है। सगुण भक्ति धारा को दो उपशाखाओं में विभाजित किया गया है :
(क) रामभक्ति शाखा : निर्गुण और सगुण दोनों धाराओं के कवियों ने राम की उपासना की है। हिन्दी क्षेत्र के रामभक्त कवियों का सम्बन्ध रामानन्द से है। रामानन्द, राघवानन्द के शिष्य एवं रामानुजाचार्य की परम्परा के आचार्य थे। वे अत्यन्त उदार गुरु थे। उनके शिष्य सभी वर्गों के लोग थे।

विशेषताएं-

  1. राम के स्वरूप को परब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठा दी गई। .
  2. यह काव्य प्रधानतः लोकमंगल और सामाजिक मर्यादा को महत्त्व दिया गया।
  3. यह धारा प्रायः सभी काव्य रूपों, छन्दों और लोकगीतों पर आधारित हैं।
  4. वैष्णव और शैव सम्प्रदायों में लाने का प्रयास परस्पर एकता लाने का प्रयास किया गया।
  5. रामभक्तों के आराध्य देव राम विष्णु के अवतार हैं और परम ब्रह्म हैं। राम की शक्ति, शील और सौन्दर्य को लौकिक-पारलौकिक रूप में चित्रित किया गया।
  6. इस काव्य धारा में प्रायः सभी काव्य-शैलियों के प्रयोग किए गए-जैसे-छप्पयपद्धति, गीति पद्धति, कवित्त सवैया पद्धति, दोहा-चौपाई पद्धति आदि।
  7. इस काव्य धारा में नवों रसों के प्रयोग हुए हैं।
  8. इस काव्य धारा में मुख्य रूप से अनुप्रास रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा, विशेषोक्ति आदि अलंकार हैं।
  9. इस धारा के कवियों ने अवधी और ब्रज दोनों ही भाषाओं का प्रयोग किया है।

प्रमुख कवि : तुलसीदास, नाभादास, प्राणचन्द चौहान, हृदयराम, अग्रदास और बाल आली आदि।

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(ख) कृष्ण भक्ति शाखा : कृष्ण भक्ति शाखा के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य थे। आचार्य वल्लभ ने कृष्ण को ही परब्रह्म पुरुषोत्तम कहा है। कृष्ण भक्त कवियों ने भगवान के लीलामय मधुर रूप का वर्णन किया है।

विशेषताएँ-

  1. श्रीकृष्ण को साकार और निर्गुण ब्रह्म के रूप में चित्रित किया गया।
  2. भागवद् पुराण को आधार बनाकर कृष्ण चरित्र को चित्रित किया गया।
  3. ब्रह्म के लोक रक्षक एवं लोक रंजक रूप की स्थापना।
  4. रहस्यवादी कविता का प्रारम्भ।
  5. प्रकृति-चित्रण की अधिकता रही।
  6. व्यक्तिगत साधना और लोकसाधना का सामंजस्य प्रस्तुत किया गया।
  7. सामाजिक पक्ष को महत्त्व दिया गया।
  8. प्रबन्ध, मुक्तक तथा खण्ड दोनों ही प्रकार के काव्य की रचना हुई।
  9. ब्रज और अवधी दोनों भाषा में काव्य-रचना।
  10. इस काव्य धारा में चौपाई, दोहा, सवैया, कवित्त, हरिगीतिका आदि छन्द हैं।
  11. शैली मुख्य रूप से गेय है।
  12. उपमा, अनुप्रास, रूपक, अतिशयोक्ति आदि अलंकार हैं।
  13. शृंगार, शान्त, अद्भुत आदि इस प्रवाहित हुए हैं।

प्रमुख कविः सुरदास, कुंभनदास, परमानन्ददास, कृष्णदास, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, नन्ददास, मीरा, रसखान आदि।।

हिन्दी साहित्य का इतिहास उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)

प्रश्न 6.
उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) का सामान्य परिचय देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
हिन्दी साहित्य के रीतिकाल का युग सामन्तों और राजाओं का युग था। फलस्वरूप इस काल के अधिकांश कवि राजाश्रित थे। यही कारण है कि उनकी रचनाओं की प्रमुख प्रवृत्ति रीति निरूपण और श्रृंगार थी। रीतिकाल के कवियों की यह भी विशेषता थी कि उन्होंने प्रायः काव्यशास्त्र के लक्षणों को समझाने के लिए काव्य रचना की। उन्होंने रस, छन्द, अलंकार आदि का विवेचन करने वाले ग्रन्थों को रीतिग्रन्थ कहा जाता है। ऐसे रीतिग्रन्थों की भरमार के कारण ही इस युग को रीतिकाल कहा गया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इस काल को उत्तर मध्यकाल अथवा रीतिकाल कहा है। उनके इस नामकरण को ध्यान रखकर व अपने अध्ययन-मनन के द्वारा कुछ विद्वानों ने शृंगार काल, अलंकृत काल, काव्यकला काल और रीति शृंगार काल आदि नाम दिए। रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि केशव, भूषण, पद्माकर, बिहारी और बोधा का सम्बन्ध मध्यप्रदेश से रहा है। इन कवियों के बगैर रीतिकाल अधूरा-सा लगता है। इसीलिए रीतिकाल को मध्यप्रदेश की देन कहा जाता है।

रीतिकाल में तीन धाराएँ प्रवाहित हुई है। जिन कवियों ने काव्य-रीतियों का पालन करते हुए अनेकानेक ग्रन्थों की रचना की उनकी इस धारा को रीतिबद्ध काव्य धारा कहा गया। इस प्रकार धारा के कवियों में केशव, सेनापति, देव, भूषण, पद्माकर मतिराम आदि हैं। इस रीतिबद्ध काव्य धारा के समानान्तर इसमें प्रेम और सौन्दर्य वर्णन की एक ऐसी धारा भी प्रवाहित हुई। उसने रीति के पालन की प्रायः उपेक्षा की। इस धारा के कवियों में घनानन्द, बोधा, ठाकुर, और आलम आदि का नाम उल्लेखनीय है। यह धारा रीति मुक्त काव्य धारा के नाम से जानी गई। काल में एक तीसरी धारा भी प्रवाहित हुई। उसे रीति सिद्ध काव्य धारा नाम दिया गया। बिहारी इस रीति सिद्ध धारा के कवि कहे गए हैं। इस प्रकार रीतिकालीन काव्य की तीन धाराएं हैं :
1. रीतिबद्ध काव्य धारा
2. रीतिमुक्त काव्यधारा
3. रीतिसिद्ध धारा प्रधान है।

विशेषताएँ-

  1. लक्षण ग्रन्थों की प्रधानता।
  2. इस काल के काव्य में शृंगार रस के दोनों रूपों की प्रधानता रही।
  3. प्रकृति-चित्रण उद्दीपन में किया गया।
  4. भक्ति-भावना (राधा-कृष्ण) को स्थान दिया गया।
  5. नीति-उपदेश को प्रमुखता दी गई।
  6. मुक्तक कविता होने के कारण कवित्त, सवैया, दोहे आदि छन्दों को कवियों ने अधिक अपनाया।
  7. राजा के आश्रितता के कारण कवियों में मौलिकता का अभाव रहा।
  8. भाषा ब्रजभाषा रही।।

प्रमुख कवि : केशव दास, चिन्तामणि, मतिराम, देव, रसलीन, प्रताप सिंह, पद्माकर, जसवन्त सिंह, श्रीपति, भिखारीदास, रसिक गोविन्द, बिहारी और बोधा आदि।

हिन्दी साहित्य का इतिहास आधुनिक काल

प्रश्न 7.
आधुनिक काल का सामान्य परिचय देते हुए उसके भेद बताइए।
उत्तर
आधुनिक काल का उदय रीतिकालीन मूल्यहीनता, रूढ़िवादिता जड़ता,और नैतिक हीनता के विरोध में हुआ। इस प्रकार जो नया क्रम जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आरम्भ हुआ, उसे आधुनिक काल कहा गया।
भेद-प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर आधुनिक काल को निम्नलिखित युगों में बाँटा जा सकता है

  1. भारतेन्दु युग (पुनर्जागरण काल) : सन् 1857 से 1900 ई.
  2. द्विवेदी युग (जागरण सुधार काल): सन् 1900 से 1918 ई.
  3. छायावाद युग : सन् 1918 से 1938 ई.
  4. छायावादोत्तर काल
    • प्रगति प्रयोगकाल : सन् 1938 से 1953 ई.
    • नई कविता या नवलेखक काल : सन् 1953 से अब तक

1. भारतेन्दु युग:
बाबू भारतेन्दु हरिश्चंद्र हिन्दी युग के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी की प्रत्येक विधा का सूत्रपात किया। भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना हो जाने से हिन्दी कविता ने नई मोड़ ली। उस हमारे देश में सामाजिक सुधार व राष्ट्रीय उत्थान के प्रयास जोर पकड़ रहे थे। राजा राममोहन राय और स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचारों ने रूढ़िवाद को दूर किया। रीतिकालीन काव्य परम्पराएं विलीन होने लगीं। सन 1857 के विद्रोह ने राष्ट्रीयता की तीव्र लहर फैला दी। नए विचार, नई शैली और नई भाषा का आन्दोलन चल पड़ा। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पूर्वाग्रह के विरोधी थे। उन्हीं से हिन्दी कविता का वर्तमान युग प्रारम्भ होता है। भारतेन्दु हिन्दी को स्वस्थ रूप देने के लिए ‘भारतेन्दु मण्डल’ की स्थापना की। भारतेन्दु तथा भारतेन्दु मण्डल के कवियों में राष्ट्रीयता और देश-प्रेम का तीव्र स्वर सुनाई पड़ता है। भारतेन्दु युग के कवियों में .अम्बिकादत्त व्यास, प्रतापनारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, श्री निवासदास, राधाचरण गोस्वामी और बद्रीनारायण चौधरी प्रमुख हैं।

2. द्विवेदी युग :
भारतेन्दु युग के बाद द्विवेदी युग का उदय हुआ। द्विवेदी युग के काव्य में राष्ट्रीयता और सामाजिकता की प्रवृत्ति अधिक तीव्र,थी। द्विवेदी युग में ब्रज भाषा के स्थान पर काव्य में खड़ी बोली सुशोभित हो गई। इस प्रकार खड़ी बोली के रचनाकारों में आचार्य पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त, सियाराम शरण गुप्त, राम चरित उपाध्याय, नाथूराम शर्मा शंकर, रामनरेश त्रिपाठी, जगन्नाथदास रत्नाकर, सत्य नारायण, कविरत्न, श्रीधर पाठक, लोचन प्रसाद पांडेय, डॉ. गोपाल शरण सिंह, गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’, आदि द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं। द्विवेदी युग की कविता पर स्वतन्त्रता आन्दोलन और गाँधी विचारधारा का विशेष प्रभाव पड़ा। प्रिय प्रवास और साकेत इस युग के प्रमुख महाकाव्य हैं।

3. छायावाद और छायावादोत्तर युग :
द्विवेदी युग में द्विवेदी युग की प्रतिक्रियास्वरूप ही छायावाद और रहस्यवाद हिन्दी काव्य क्षेत्र में आया। प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी का नाम इस क्षेत्र में सर्वाधिक उल्लेखनीय है। छायावादी युग में प्रकृति को आलम्बन के रूप में ग्रहण किया गया और गीत काव्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। छायावादी कवियों ने कविता को छन्द के नियमों से मुक्त किया। कामायनी, छायावादी काव्यधारा का प्रमुख काव्य है। आधुनिक काल में सत्यनारायण कविरत्न, जगन्नाथ दास रत्नाकर और वियोगी हरि ने ब्रज भाषा में सरस काव्य की रचनाएँ कीं।

प्रगतिवाद, छायावाद की प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दी प्रगतिवाद का उदय हुआ। राष्ट्रीयता, मानवीय संवेदना, समाज सुधार, समाजवादी व्यवस्था आदि क्रांतिवादी काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं। किसान और मजदूरों की समस्याओं के समाधान में कविगण रूसी-साहित्य से भी प्रभावित हैं। राजनीति का साम्यवाद ही साहित्य में प्रगतिवाद बन गया है। प्रमुख रूप से प्रगतिवादी कवियों में डॉ. रामविलास शर्मा, सुमित्रानन्दन पंत, निराला, नागार्जुन, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, शिव मंगल सिंह ‘सुमन’, नरेन्द्र शर्मा, केदारनाथ अग्रवाल आदि हैं।

प्रयोगवाद:
अज्ञेय के नेतृत्व में प्रयोगवाद की नवीनतम धारा भी काव्य क्षेत्र में प्रवाहित हुई। इसके प्रमुख कवि गिरिजा कुमार माथुर, धर्मवीर भारती, भवानी प्रसाद मिश्र भारतभूषण अग्रवाल, नेमिचन्द्र जैन, गजानन माधव मुक्तिबोध, नरेश मेहता, शमशेरबहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, रमेश कुंतल मेघ आदि हैं। राष्ट्रीय विचारधारा के कवियों में पं. माखन लाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ और रामधारी सिंह ‘दिनकर’ आदि प्रमुख हैं।

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प्रश्न 8.
गद्य की प्रमुख विधाएँ बतलाइए और उन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर
गद्य की प्रमुख विधाएँ : आचार्य रामचन्द्र सहित सभी आलोचकों ने आधुनिक काल को गद्यकाल की संज्ञा दी है। यह इसलिए कि इस काल में गद्य की शुरुआत हुई। यह ध्यातव्य है कि इस काल में पद्य साहित्य भी अधिक मात्रा में रचा गया। इसलिए इसे गद्यकाल के स्थान पर आधुनिक काल कहना अधिक समीचीन प्रतीत होता है।

गद्य साहित्य का विकास वैसे तो हिन्दी साहित्य के उदय के साथ ही माना जा सकता है। जो प्रामाणिक नहीं है। इसलिए लिखित गद्य साहित्य का प्रादुर्भाव 1850 के बाद स्वीकार किया जाता है। 1850 के पूर्व पद्य साहित्य ही लिखा जाता था। गद्य साहित्य ने केवल एक शताब्दी में ही विकास के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं और यही कारण है कि आज गद्य साहित्य की अनेक विधाओं से हम परिचित हैं। गद्य का अर्थ है बोलना, बताना या कहना। अतएव दैनिक जीवन में गद्य का ही प्रयोग होता है। गद्य की प्रमुख विधाएँ निम्नलिखित हैं :

  1. निबन्ध
  2. नाटक
  3. कहानी
  4. उपन्यास
  5. एकांकी
  6. रेखाचित्र
  7. संस्मरण
  8. रिपोर्ताज
  9. यात्रा-वृत्तान्त
  10. जीवनी।

1. निबन्ध
निबन्ध का अर्थ है : बन्धन युक्त करना अथवा बाँधना। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि निबन्ध में भावों तथा विचारों को सुव्यवस्थित, सुसंगठित रूप से बाँधा जाता है। इसके द्वारा विषय का गम्भीर विवेचन तथा नवीन तथ्यों के अन्वेषण को प्रस्तुत किया गया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार-“यदि पद्य कवियों की कसौटी है तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।” बाबू गुलाब राय के विचार में निबन्ध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें सीमित आकार के भीतर, किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन, एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव, सजीवता, तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया है।

निबन्धकार को किसी भी बात को स्वतन्त्रतापूर्वक प्रस्तुत करने की स्वतन्त्रता रहती है। इसमें निबन्धकार का व्यक्तित्व ही उसका प्रमुख तत्त्व होता है।

निबन्ध सामान्यतः चार प्रकार के होते हैं

  1. विवरणात्मक
  2. वर्णनात्मक
  3. विचारात्मक
  4. भावात्मक।

हिन्दी में निबन्ध का विकास, आधुनिक काल में ही हुआ है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबू गुलाबराय, सरदार पूर्ण सिंह, बाबू श्याम सुन्दर दास, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नन्द दुलारे वाजपेयी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय की गणना हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकारों में की जाती है।

2. नाटक :
नाटक दृश्य काव्य श्रव्य काव्य दोनों ही है। इसका प्रदर्शन रंगमंच पर ही हो सकता है। जिसे दर्शक-श्रोता देखकर-सुनकर रसमग्न होते हैं। नाटक एक ऐसा साहित्य रूप है जिसमें रंगमंच पर पात्रों के द्वारा किसी कथा का प्रदर्शन होता है। यह प्रदर्शन अभिनय, दृश्य सज्जा, संवाद, नृत्य, गीत आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। नाटक के सात तत्त्व माने जाते हैं :

  1. कथावस्तु
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. कथोपकथन
  4. देशकाल और वातावरण
  5. अभिनेयता एवं रंगमंच निर्देश
  6. भाषा-शैली
  7. उद्देश्य।

हिन्दी के प्रमुख नाटककारों में भारतेन्दु, हरिश्चन्द्र, लाला श्रीनिवासदास, राधाकृष्णदास, किशोरीलाल गोस्वामी बालकृष्णभट्ट प्रतापनारायण मिश्र, जयशंकर प्रसाद, हरिकृष्ण प्रेमी, गोविन्द वल्लभ पन्त, जी.पी श्रीवास्तव, लक्ष्मी नारायण मिश्र, वृन्दावनलाल वर्मा, सेठ गोविन्ददास, उदयशंकर भट्ट, धर्मवीर भारती, उपेन्द्रनाथ अश्क, मोहन राकेश आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।

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3. एकांकी:
एकांकी एक ही अंक का नाटक होता है इसलिए इसे एकांकी कहते हैं, पर इसके एक से अधिक दृश्य हो सकते हैं, पर एकांकी, नाटक का लघु संस्कृरण मात्र न होकर, अपनी निजी सत्ता रखने वाली साहित्य की एक स्वतन्त्र विधा होती है। डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार एकांकी में एक ही घटना होती है और वह नाटकीय कौशल से कौतूहल का संचय करते हुए चरमसीमा तक पहुँचती है। इसमें कोई गौण प्रसंग नहीं रहता है। पात्र सीमित होते हैं। कथावस्तु भी स्पष्ट और कौतूहल से युक्त होती है, उसमें विस्तार के लिए अवकाश नहीं होता। एकांकी के सात तत्त्व हैं

  1. कथावस्तु
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. कथोपथन
  4. देशकाल एवं वातावरण
  5. अभिनेयता एवं रंगमंच निर्देश
  6. भाषा-शैली
  7. उद्देश्य।

हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों में भारतेन्दु हरिचन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, जयशंकर प्रसाद, भुवनेश्वर, सेठ गोविन्ददास, रामनरेश त्रिपाठी, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, डॉ. रामकुमार वर्मा, उदयशंकर भट्ट, लक्ष्मीनारायण मिश्र, उपेन्द्र नाथ अश्क जगदीश चन्द्र माथुर भगवतीचरण वर्मा, वृन्दावन लाल वर्मा, भारत भूषण अग्रवाल, नरेश मेहता, चिरंजीत, मोहन राकेश, विष्णु ‘प्रभाकर’, प्रभाकर माचवे आदि का नाम प्रमुखता के साथ लिया जा सकता है।

4. कहानी :
कहानी को परिभाषित करते हुए बाबू गुलाब राय लिखते हैं-“छोटी कहानी एक स्वतः पूर्ण रचना है, जिसमें प्रभावों वाली व्यक्ति केन्द्रित घटना या घटनाओं का आवश्यक परन्तु कुछ-कुछ अप्रत्याशित ढंग से उत्थान-पतन और मोड़ के साथ पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला कौतूहलपूर्ण वर्णन हो”। कहानी के छः तत्त्व होते हैं :

  1. कथावस्तु
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. संवाद
  4. देशकाल व वातावरण
  5. शैली
  6. उद्देश्य।

कहानी में एक ही प्रमुख पात्र के इर्द-गिर्द सारी घटना घूमती रहती है। इसका आकार संक्षिप्त होता है। लघुता और तीव्रता कहानी कला की मुख्य विशेषता है।
तत्त्वों के आधार पर कहानी के चार प्रमुख भेद हैं :

  1. घटना प्रधान
  2. वातावरण प्रधान
  3. चरित्र-प्रधान
  4. भाव-प्रधान।

हिन्दी कहानीकारों में भारतेन्दु, मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, फणीश्वर नाथ रेणु, सुदर्शन, जैनेन्द्र, अज्ञेय, कमेलश्वर, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, शैलेश मटियानी, जैनेन्द्र कुमार, इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, भगवती चरण वर्मा, यशपाल, शिव प्रसाद सिंह, भीष्म साहनी, धर्मवीर भारती, अमरकान्त, मालती जोशी, निर्मल वर्मा, ज्ञानरंजन, महेश कटारे, उदय प्रकाश आदि का योगदान प्रशंसनीय रहा है।

5. उपन्यास :
‘उपन्यसेत इति उपन्यास’ परिभाषा के अनुसार उपन्यास शब्द का अर्थ है-सामने रखना है। डॉ. भागीरथ मिश्र के अनुसार-“युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की एक पूर्ण झाँकी प्रस्तुत करने वाला गद्य काव्य उपन्यास कहलाता है।” मुंशी प्रेमचन्द का कथन है-मैं उपन्यास को मानव-जीवन का चित्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है। उपन्यास के छह तत्त्व पाए जाते हैं

  1. कथावस्तु
  2. चरित्र-चित्रण
  3. संवाद
  4. देशकाल या वातावरण
  5. शैली
  6. उद्देश्य।

हिन्दी में उपन्यास लेखन तो भारतेन्दु युग से ही प्रारम्भ हो गया था, लेकिन प्रेमचन्द्र (1880-1936 ई.) के उपन्यासों में इस विधा ने अभूतपूर्व व्यापकता और गम्भीरता प्राप्त की। प्रेमचन्द की संवेदना अत्यन्त व्यापक थी। उपन्यास विधा के चरम उत्कर्ष के लिए जिस सहज भाषा-शैली की आवश्यकता होती है वह भी प्रेमचन्द के पास थी। मुंशी प्रेमचन्द को तो उपन्यास सम्राट की संज्ञा दी गई है।

हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार-विचार, भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा, आकांक्षा, दुःख-सुख और सूझ-बूझ जानना चाहते हैं तो प्रेमचन्द से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। हिन्दी के उपन्यासकारों में श्रीनिवास दास, राधाकृष्णदास, देवकीनंदन खत्री, गोपाल राय गहपरी, किशोरी लाल गोस्वामी मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, वृन्दावनलाल वर्मा, अमृतलाल नागर, जैनेन्द्र, इलाचन्द्र जोशी, नागार्जुन, भगवती चरण वर्मा, भगवती प्रसाद वाजपेयी, फणीश्वरनाथ रेणु, शैलेश मटियानी, शिव प्रसाद सिंह, अज्ञेय, यशपाल, राहुल सांकृत्यायन, चतुरसेन शास्त्री, भीष्म साहनी, कृष्णा सोवती, राही मासूम रजा, मनोहर श्याम जोशी, यशपाल, श्रीलाल शुक्ल, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर आदि के नाम महत्त्वपूर्ण है।

6. जीवनी
जीवन आधुनिक गद्य-विधा की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इसमें सम्पूर्ण जीवन की व्याख्या प्रत्यक्ष एक वास्तविक रूप में मिलती है। जीवनी लेखक अपने चरित्र नायक , के अन्तर और बाह्य स्वरूप का चित्रण कलात्मक ढंग से करता है। जीवनी लेखक अपने चरित्र नायक के जीवन का रोचक ढंग से चित्रण प्रस्तुत करता है ताकि प्रस्तुत घटनाओं के प्रकाश में उसका व्यक्तित्व उभर सके।

हिन्दी के प्रमुख जीवनी लेखक प्रताप नारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी, पण्डित बनारसीदास, सत्यदेव विद्यालंकार, सेठ गोविन्द दास, बाबू श्यामसुन्दर दास, हरिभाऊ उपाध्याय, काका कालेलकर, जैनेन्द कुमार, राहुल सांस्कृत्यायन, अज्ञेय, भदन्त आनन्द कौसल्यायन, रामवृक्ष बेनीपुर, महादेवी वर्मा, अमृतराय, डॉ. रामविलास शर्मा, विष्णु प्रभाकर, विष्णु चन्द्र वर्मा, शान्ति जोशी आदि।

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7. आत्म कथा :
आत्मकथा किसी व्यक्ति की स्वलिखित जीवन-गाथा है। आत्मकथा लिखकर लेखक आत्म-परिक्षण एवं आत्म-परिष्कार करना चाहता है, जिसमें उसके अनुभवों का लाभ संसार के अन्य लोग भी ले सकें। हिन्दी की प्रमुख आत्मकथाएं इस प्रकार हैं :

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द – कुछ आप बीती, कुछ जग बीती
  2. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी – मेरी जीवन गाथा
  3. डॉ. श्याम सुन्दर दास – मेरी आत्मा कहानी
  4. बाबू गुलाबराय – मेरी असफलताएँ
  5. राहुल सांस्कृत्यायन – मेरी जीवन यात्रा
  6. आचार्य चतुरसेन शास्त्री – मेरी आत्म कहानी
  7. स्वामी श्रद्धानन्द – कल्याण मार्ग का पथिक
  8. भाई परमानन्द – आप बीती
  9. हरिवंशराय बच्चन – क्या भूलूँ क्या याद करूँ
  10. जवाहरलाल नेहरू – मेरी कहानी
  11. राजेन्द्र प्रसाद – आत्मकथा
  12. यशपाल – सिंहावलोकन
  13. डॉ. रामविलास शर्मा – मैं क्रान्तिकारी कैसे बना
  14. भवानी दयाल संन्यासी – प्रवासी की कहानी
  15. राजाराम – मेरी कहानी
  16.  ओमप्रकाश वाल्मीकी – जूठन।

8. संस्मरण :
जीवनी का एक अन्य रूप संस्मरण है। संस्मरण का अर्थ है-सम्यक स्मरण। इस विधा में लेखक स्वयं अपनी अनुभूति किसी वस्तु, व्यक्ति या घटना का आत्मीयता तथा कलात्मकता के साथ विवरण प्रस्तुत करता है। इसलिए आत्मकथा की अपेक्षा संस्मरण लिखना आसान होता है। संस्मरण का सम्बन्ध प्रायः महापुरुषों से होता है संस्मरण लेखक जब अपने विषय में लिखता है तो उसकी रचना आत्मकथा में प्रक होती है और जब दूसरे के विषय में लिखता है तो जीवनी कहलाती है।

हिन्दी में संस्मरण लेखन का प्रथम श्रेय श्री पद्म सिंह शर्मा को है। राहुर सांस्कृत्यायन, बनारसीदास चतुर्वेदी, अज्ञेय, देवेन्द्र सत्यार्थी, डॉ. नगेन्द्र, यशपाल, श्र रामकृष्णदास तथा रामवृक्ष बेनीपुरी ने अनेक संस्मरण लिखे हैं। हिन्दी के कुछ उल्लेखनीय संस्मरण निम्नलिखित हैं

  1. देवेन्द्र सत्यार्थी-राहुल सांस्कृत्यायन
  2. श्रीराम शर्मा-खूनी बँटवारा
  3. मुंशी महेश प्रसाद-मेरी ईरान यात्रा
  4. सत्यदेव परिव्राजक-अमरीका भ्रमण
  5. भदन्त आनन्द कौसल्यायन-जो भूल न सका
  6. शिवरानी प्रेमचन्द-प्रेमचन्द : घर में
  7. कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ -भूले हुए चेहरे
  8. महादेवी वर्मा-‘स्मृति की रेखाएँ’ व ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’।

इनके अतिरिक्त संस्मरण साहित्य का बहुत बड़ा भाग अभिनन्दन ग्रन्थों में संकलित हैं।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन (डॉ. छाया पाठक)

कर्त्तव्य पालन अभ्यास प्रश्न

कर्त्तव्य पालन लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश कव दिया था?
उत्तर
अर्जुन जब श्रीकृष्ण के साथ युद्धभूमि में आया तो उसने वहाँ अपने भाई, दादा, पड़दादा, गुरु आदि देखे। यह देखकर उसका मन युद्ध से हट गया। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया।

प्रश्न 2.
श्यामपट्ट में हमे चित्र में कौन-कौन दिखाई दे रहे थे?
उत्तर
गुरु जी ने कक्ष के श्यामपट्ट पर एक चित्र टाँगा। उस चित्र में युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण और अर्जुन दिखाई दे रहे थे।

प्रश्न 3.
कृष्ण का अभिनय करने वाले छात्र का क्या नाम था? उत्तर-कृष्ण का अभिनय करने वाले छात्र का नाम सात्विक था। रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(क) तेरा यह आचरण किसी ………………………..पुरुष का आचरण नहीं है।
(ख) आपने मेरे मन से अज्ञानरूपी अंधकार का नाश कर ज्ञान रूपी ………….फैलाया है।
उत्तर
(क) तेरा यह आचरण किसी श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है।
(ख) आपने मेरे मन से अज्ञानरूपी अंधकार का नाश कर ज्ञान रूपी प्रकाश फैलाया है।

कर्त्तव्य पालन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्जुन करुणा से क्यों भर उठते हैं?
उत्तर
अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि केशव, मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच खड़ा कर दीजिए। श्रीकृष्ण ऐसा ही करते हैं। वे रथ को लाकर दोनों सेनाओं के बीच खड़ा कर देते हैं। अर्जुन दोनों ओर दृष्टि डालते हैं। देखते हैं कि जिनके साथ उसने युद्ध लड़ना है उनमें उसके ताऊ, दादा, मामा, भाई, पुत्र और पौत्र मित्र, गुरु व सहृदय हैं। उन्हें देखकर उनका मन करुणा से भर उठता है कि आज उन्हें अपने प्रियजनों के साथ युद्ध करना है, जिन्हें वे अपने प्रिय स्वजन समझते हैं अतः उसका हृदय करुणा से भर उठता है।

प्रश्न 2.
अपने स्वजनों को युद्धभूमि में देखकर अर्जुन की क्या दशा हुई?
उत्तर
अर्जुन ने देखा कि युद्ध-भूमि में शत्रपक्ष के रूप में वे वीर उपस्थित हैं जिनके या तो वे सदा चरण स्पर्श करता आया है अथवा उन्हें प्रिय कहता आया है। अपने प्रियजनों को वह उन्हें शुभ-अशीष देता आया है। यह देखकर उसका मन युद्ध से अलग हो गया। उसने श्रीकृष्ण से कहा कि अपने प्रियजनों को देखकर मेरा मुख सूखा जा रहा है। मेरे शरीर कांपने लगा है। शरीर के रोएं-रोएं खड़े हो उठे हैं। हाथ से गाण्डीव गिरा जा रहा है। मेरा मन भ्रमित हो रहा है। मुझमें यहाँ खड़े होने की शक्ति नहीं है। इसलिए मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

प्रश्न 3.
अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था?
उत्तर
अर्जुन के मन में मोह उत्पन्न हो गया था। वह सोचने लगा था कि जिनके ‘साथ उसने युद्ध करना है वे तो उसके या तो आदरणीय हैं या प्रियजन है। उनका युद्ध में वध करने से पाप लगेगा। अगर युद्ध कर भी लिया तो इसका फल भी उसे कुछ नहीं मिलने वाला है। इसलिए उसने युद्ध में अपना कर्त्तव्य निभाने से इंकार । कर दिया।

प्रश्न 4.
हम सुख-दुख के बंधन से मुक्त कैसे हो सकते हैं?
उत्तर
हमें सुख और दुख में सदैव समान रहना चाहिए। न सुख में अधिक उत्साहित होना चाहिए और न दुख में अत्यधिक व्याकुल ही। ये दोनों समान तत्त्व हैं। जब हम इन्हें समान मानेंगे तब हम इसके बंधन से मुक्त हो जाएंगे। न तो सुख मिलने पर अधिक प्रसन्न होंगे और न ही दुख आने पर ज्यादा दुखी ही। इस उपाय से हम सुख और दुख के बंधन से मुक्त हो सकते हैं।

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प्रश्न 5
पाप-पुण्य के भ्रम से निकलने के लिए गुरु जी ने क्या उपाय बताया?
उत्तर
एक शिष्य ने पूछा था कि पाप और पुण्य के भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए। गुरु जी ने उस शिष्य को इस भ्रम से निकलने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार किसी कमरे में लंबे समय से अंधकार छाया है, किंतु जैसे ही उसमें प्रकाश किया जाता है तो अँधकार स्वयं दूर हो जाता है उसी प्रकार पहले किए पापों का अँधेरा पुण्य के एक कार्य से दूर हो जाता है। इसीलिए कहा है कि पाप और पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। प्रश्न-निम्नलिखित पंक्तियों का

कर्त्तव्य पालन अर्थ लिखकर अपने शब्दों में लिखिए

(क) “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
(ख) सुख और दुख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं।
उत्तर
(क) यह श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सैंतालीसवां श्लोक है। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा है कि तुझे केवल कर्म यानी
अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। यह चिंता ही मत कर कि तुझे इस कर्म का ‘कोई फल मिलेगा भी या नहीं। यह बात ठीक उसी तरह है जिस तरह वृक्ष को लगाने वाला उसके फल नहीं खाता। वह तो केवल कर्म या अपना कर्तव्य करता है। यह । अलग बात है कि उसके लगाए वृक्ष पर आए फल अन्य खाता है। अतः फल की चिंता मत कर केवल कर्म अर्थात् कर्त्तव्य कर।

(ख) हमें सुख और दुख बंधन में बाँध देते हैं। जब सुख आता है तो हमारी भरसक कोशिश होती है कि यह हमसे दूर न जाए। हम उसे अपनी ओर करने की पूरी कोशिश करते हैं। दुख चाहे हमारे पास अभी फटका भी न हो पर हम इसलिए चिंतित हो उठते हैं कि कहीं आ न जाए। इसलिए कहा गया है कि सुख और दुख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं। इससे बचने का एक ही उपाय है कि इन दोनों स्थितियों में समान रहो।

कर्त्तव्य पालन भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
शुद्ध वर्तनी छाँटिए :
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 1
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 2

प्रश्न 2.
दी गई वर्ग पहली में से नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द छाँटिए :
अंधकार, कर्म, निश्चित, लाभ, बंधन, ज्ञान, पुण्य।
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 3
उत्तर
वर्ग पहेली से विलोम शब्द :
अंधकार – प्रकाश
कर्म – अकर्म
निश्चित – अनिश्चित
लाभ – हानि
बंधन – मुक्त
ज्ञान – अज्ञान
पुण्य – पाप

प्रश्न 3.
एकांकी में आए योजक चिह वाले शब्दों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
योजक चिह्न वाले शब्द :
धर्म – अधर्म
सुख – दुख
जय – पराजय
सुख – दुख
क्या – क्या
निश्चय – अनिश्चय
कर्म – अकर्म
बंधु – बांधवों
लाभ – हानि
मोह – माया
पाप – पुण्य

प्रश्न 4.
दिए गए सामासिक पदों का विग्रह कीजिए–
पितृभक्त, सूत्रधार, सत्यवादी, युद्धारंभ, भगतवद्गीता।
उत्तर
सामासिक पदों का विग्रह
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 8

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 4

प्रश्न 5.
दिए गए शब्दों में से तत्सम एवं तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए :
वृक्ष, इच्छा, कर्त्तव्य, नमस्ते, सच, माता, अभिनय, मुँह
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 5

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प्रश्न 6.
‘ही’ निपात के प्रयोग वाले वाक्य एकांकी से छाँटकर लिखिए।
उत्तर
ही निपात का प्रयोग वाले शब्द :

  1. क्योंकि इस विषय में तू व्यर्थ ही शोक कर रहा है।
  2. युद्ध में अपने ही स्वजन का वध कर मुझे क्या मिलेगा?
  3. सुख और दुःख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं।
  4. जैसे ही उसमें प्रकाश किया जाता है अँधेरा अपने आप दूर हो जाता है।
  5. जब फल की इच्छा ही नहीं होगी तो हम कर्म क्या करेंगे?
  6. और न ही हमें उसके फल खाने को मिलते।
  7. गुरु जी आपने हमें बहुत ही अच्छी बातें बताईं।

प्रश्न 7.
ईय प्रत्यय लगाकर शब्द बना है पूजनीय। इसी प्रकार के पाँच अन्य शब्द लिखिए।
उत्तर
ईय प्रत्यय लगकर बनने वाले शब्द :
नंदनीय – पाठनीय
दर्शनीय – विजातीय
आदरणीय –

कर्त्तव्य पालन योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
श्रीमद्भगवद्गीता के इस अंश का शाला के वार्षिकोत्सव में वेशभूषा सहित अभिनय कीजिए।
उत्तर
विद्यार्थी भगवद्गीता के इस अंश का अभिनय पाठशाला में अपने कक्षा शिक्षक की सहायता से करे।

प्रश्न 2.
कर्तव्य पालन से संबंधित महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग कक्षा में सुनाइए।
उत्तर
प्रेरक प्रसंग
स्वामी रामकृष्ण परम हंस के पास स्वामी विवेकानंद सिद्धि प्राप्त करने के लिए गए। परमहंस ने कहा कि क्या तुम ऐसी सिद्धि प्राप्त करना चाहते हो जैसे बिना
नाव के नदी पार करना। स्वामी जी ने हाँ में उत्तर दिया। इस पर स्वामी जी हंसे और उनसे कहा कि इसके लिए सिद्धि की क्या आवश्यकता है? नदी को किसी भी नाविक को एक पैसा देकर पार किया जा सकता है। स्वामी जी को सिद्धि का मूल्य पता चल गया। तब उन्होंने कभी भी किसी को सिद्धि प्राप्त करने के लिए नहीं कहा। यह कथा प्रेरक है। हमें प्रेरित करती है कि किसी भी वस्तु की प्राप्ति के लिए पहले उसकी अच्छी तरह उपादेयता जान लेनी चाहिए।

प्रश्न 2.
कर्मण्येवाधिकारस्ते……. जैसे अन्य शिक्षाप्रद श्लोक लिखकर कक्षा में छाँटिए।
उत्तर
शिक्षप्रद श्लोकः

1. श्रेयान्द्रव्यमयाद् यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तपः
सर्व कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।

(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय चार, 32 वां श्लोक।)
अर्थः हे परंतप अर्थात् अर्जुन! द्रव्ययज्ञ से ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है। हे पार्थ अन्ततोगत्वा सारे कर्मयज्ञों का अवसान दिव्य ज्ञान में होता है।

2. गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्
जन्ममृत्युजरादुःखैविर्मुक्तोऽमृतमश्नुते।।

(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय चौदहवां, 20 वां श्लोक।)
अर्थ : जब देहधारी जीव भौतिक शरीर से सम्बद्ध इन तीनों गुणों को लाँघने में समर्थ होता है तो वह जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा तथा उनके कष्टों से मुक्त हो सकता है और इसी जीवन में अमृत का भोग कर सकता है।

त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहर्मनीषिणः।
यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे।।

(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय अठारह, तीसरा श्लोक।)
अर्थः समस्त प्रकार के सकाम कर्मों को दोषपूर्ण समझ कर त्याग देना चाहिए। किंतु अन्य विद्वान् मानते हैं कि यज्ञ, दान और तपस्या के कर्मों को कभी नहीं त्यागना चाहिए।

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प्रश्न 3.
श्रीमद्भगवद्गीता के अन्य अध्यायों की विषयवस्तु पर कक्षा में शिक्षक से चर्चा कीजिए।
उत्तर
श्रीमद्भगवद्गीता में अठारह अध्याय हैं। पहले अध्याय में कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण है। दूसरे अध्याय में गीता का सार है। तीसरे अध्याय में कर्मयोग पर विचार है। चौथे अध्याय में दिव्य ज्ञान है। पाँचवें अध्याय में कर्म योग-कृष्णभावनाभावित कर्म है। छठे अध्याय में ध्यान योग है। सातवें अध्याय में भगवद्वान है। आठवें अध्याय में भगवत प्राप्ति है। नवें अध्याय में परम गुह्य ज्ञान है। दसवें अध्याय में श्रीभगवान् का ऐश्वर्य है। ग्यारहवें अध्याय में विराट रूप है। बारहवें अध्याय में भक्ति योग है। तेरहवें अध्याय में प्रकृति पुरुष व चेतना है। चौदहवें अध्याय में प्रकृति के तीन गुण कहे गए हैं। पंद्रहवें अध्याय में पुरुषोत्तम योग है। सोलहवें अध्याय में दैवी और आसुरी स्वभाव है। सत्रहवें अध्याय में श्रद्धा के विभाग हैं और अठारहवें अध्याय में उपसंहार संन्यास की सिद्धि है।।

कर्त्तव्य पालन परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गुरु जी ने श्यामा से क्या प्रश्न किया?’
उत्तर
गुरु जी ने श्यामा से पूछा कि राजा हरिश्चंद्र के सत्य की रक्षा के करने में उनका साथ किसने दिया था?

प्रश्न 2.
रोहित ने गुरु जी से अर्जुन के संबंध में क्या जिज्ञासाएँ प्रकट की?
उत्तर
रोहित ने गुरु जी से जिज्ञासा प्रकट की कि अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहते थे? वे डर गए थे या उन्हें युद्ध करना अच्छा नहीं लगता था।

प्रश्न 3.
रोहिणी ने नाटक से क्या शिक्षा ली?
उत्तरः
रोहिणी ने नाटक से शिक्षा ली कि सुख और दुखं और लाभ और हानि एक समान हैं।

कर्त्तव्य पालन रिक्त स्थानों की पूर्तिः

(क) युद्ध के मैदान में तो ……..होता है, फिर ये बातचीत ……………
(ख) …..दोनों सेनाओं की ओर दृष्टि डालता है।
उत्तर
रिक्तों स्थानों की पूर्ति
(क) युद्ध के मैदान में तो युद्ध होता है, फिर ये बातचीत.
(ख) अर्जुन दोनों सेनाओं की ओर दृष्टि डालता है।

कर्त्तव्य पालन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्यार्थियों ने गुरु जी को पिछले पाठों के बारे में क्या बताया?
उत्तर
गुरु जी ने शिष्यों से पूछा कि अच्छा बताओ कि कल हमनें क्या पढ़ा था? इस पर वैदेही ने बताया कि गुरु जी कल आपने हमें सत्यवादी हरिश्चंद्र की कहानी सुनाई थी। फिर उन्होंने अशोक से पूछा कि श्रवण कुमार माता पिता को कहाँ ले गए थे? इसका उत्तर उसने दिया कि श्रवणकुमार अपने माता-पिता को तीर्थाटन के लिए ले गए थे। उन्होंने श्यामा से पूछा कि राजा हरिश्चंद्र के.सत्य की रक्षा करने में उनका साथ किसने दिया, इस पर उसने उत्तर दिया कि उनकी पत्नी ने।

प्रश्न 2.
छात्रों के मन की अर्जुन संबंधी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए गुरु जी ने क्या किया?
उत्तर
छात्रों के मन में अर्जुन के संबंध में अनेक प्रकार की जिज्ञासाएँ उठ रही थीं। गुरु जी ने उनकी इन जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश के अभिनय का विचार किया। यह अभिनय श्रीकृष्ण और अर्जुन से संबंधित था।

प्रश्न 3.
नाटक में किन छात्रों ने किन पात्रों का अभिनय किया?
उत्तर
नाटक में प्रमुख पात्र थे श्रीकृष्ण और अर्जुन । इन दोनों पात्रों का अभिनय क्रमशः सात्विक और सिद्धार्थ ने किया। नाटक में क्योंकि एक सूत्रधार की भी आवश्यकता होती है। इसलिए इस पात्र का अभिनय अशोक ने किया। कक्षा के अन्य छात्रों को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। एक भाग कौरवों की सेना हो गया और दूसरा भाग पांडवों की।

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प्रश्न 4.
नाटक आरम्भ होते ही सबसे पहले मंच पर कौन पात्र आया, उसने क्या कहा?
उत्तर
नाटक आरम्भ होते ही मंच पर सबसे पहले सूत्रधार ने प्रवेश किया। इस पात्र का अभिनय अशोक ने किया। उसने मंच पर आकर यह संवाद बोला : “आज मैं धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुख, कर्म-अकर्म आदि की ओर संकेत करने वाले एक ऐसे प्रसंग से आपका साक्षात्कार कराने जा रहा हूँ जिसने श्रीमद्भगवद्गीता को जन्म दिया। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पाण्डव की सेनाएँ युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी हैं। युद्धारंभ का शंखनाद हो चुका है।”

प्रश्न 5.
अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने का क्या कारण बताया?
उत्तर
अर्जुन ने देखा कि जिनके साथ युद्ध करना है वे उसके आदरणीय या प्रियजन हैं। बंधु-बांधवों पर विजय प्राप्त करने का उसका विचार बदल गया। उसने कहा कि मैं न तो सगे-संबंधियों से युद्ध कर विजय प्राप्त करना चाहता हूँ और न ही राज्य का उपभोग करना चाहता हूँ। मैं तो जैसे रहता आया हूं वैसे ही रहूँगा। चाहे मुझे तीनों लोकों का राज्य क्यों न मिल जाए, मैं अपने सगे-संबंधियों को युद्ध में मारकर पाप अर्जित नहीं करूँगा।

कर्त्तव्य पालन भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से शुद्धों शब्दों का चयन कीजिए।
माध्यावकाश, अभीवादन, हरिश्चन्द्र, उपदेस, सहमती, अभीनय, सेनओं,
आचरण, कुंतीपुत्र, माधव, संशय, सामन, अतित
उत्तर
शुद्ध शब्दों का चयनः
हरिश्चंद्र – आचरण
कुंतीपुत्र – माधव
संशय।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :
कल, युद्ध, सहमति, अधर्म, अनिश्चय, सत्य, आचरण, मृत्यु।
उत्तर
विलोम शब्द
शब्द – विलोम
कल – आज
सहमति – असहमति
अधर्म – धर्म
अनिश्चय – निश्चय
सत्य – असत्य
आचरण – दुराचरण
मृत्यु – जीवन

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प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग बताइए।
अभिवादन, अभिनय, प्रसंग, असमय, विजय ।
उत्तर
उपसर्ग :
अभिवादन : अभि उपसर्ग वादन शब्द
अभिनय : अभि उपसर्ग नय शब्द
प्रसंग : प्र उपसर्ग संग शब्द
असमय : अ उपसर्ग समय शब्द
विजयः वि उपसर्ग जय शब्द

प्रश्न 4.
निम्नलिखित समासों का विग्रह कीजिए और नाम भी बताइए।
माता-पिता, असमय, कुरुक्षेत्र, प्रियजन, रणभूमि ।
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 6

प्रश्न 5.
आई प्रत्यय लगाकर पांच शब्दों का निर्माण कीजिए।
उत्तरः
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 7

प्रश्न 6.
पाठ में आए पांच तत्सम शब्दों का चयन कीजिए।
उत्तर
पाँच तत्सम शब्द :
सत्यवादी, वार्तालाप, उपदेश, सम्बन्धित, धनुष ।

कर्त्तव्य पालन एकांकी का सारांश

प्रश्न
डॉ. छाया पाठक लिखित एकांकी ‘कर्त्तव्य पालन’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ एकांकी में एकांकीकार ने विद्यार्थियों को बिना फल की चिंता किए कर्म करने की प्रेरणा दी है। संसार में रहते हुए मन में तरह-तरह के विकार आ जाते हैं। जैसे- सुख-दुख, पाप-पुण्य, राग-द्वेष आदि। हमें इनकी चिंता न करते हुए केवल कर्त्तव्य निभाने की ओर ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त इस एकांकी में अर्जुन के मोह का वर्णन भी किया गया है। वह सगे-संबंधियों के मोह-जाल में फंसे रहने के कारण अपने कर्तव्य से हट गया है। स्वजनों पर अस्त्र-शस्त्र न चलाने का निर्णय कर बैठा है।

इस एकांकी के दो दृश्य हैं : दोनों दृश्य विद्यार्थियों के कक्ष से आरम्भ होते हैं और कक्ष में ही समाप्त हो जाते हैं। ..
अंतर केवल यह है कि दूसरे दृश्य में कक्ष को ही मेज़-कुर्सी एक ओर लगाकर उन्हें मंच बना दिया जाता है।
कक्षा के दृश्य से एकांकी शुरू होती है। आधी छुट्टी के बाद हिंदी का घंटा शुरू होता है। कोई विद्यार्थी खेल में लंगा है तो कोई शरारत में जुटा है। कोई पुस्तक निकाल रहा है तो कोई आपस में बातचीत में लगा है।।

कक्षा में गुरु जी आते हैं। अभिवादन के बाद बच्चों से पूछते हैं कि कल क्या पढ़ा था। वैदेही बताती है कि कल आपने हमें सत्यवादी हरिश्चंद्र और श्रवणकुमार की कहानी सुनाई थी। गुरु जी अशोक से पूछते हैं कि श्रवणकुमार अपने माता-पिता को कहाँ ले जा रहा था? वह उत्तर देता है-तीर्थाटन के लिए। श्यामा से पूछते हैं कि सत्य की रक्षा करने में उनका साथ किसने दिया? श्यामा उत्तर देती है, उनकी पत्नी ने। गुरु जी उत्तर सुनकर बच्चों को शाबासी देते हैं।

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गुरु जी श्यामपट्ट यानी ब्लेक बोर्ड पर एक चित्र टाँगते हैं। चित्र में भगवान .श्री कृष्ण को अर्जुन को गीता का उपदेश देते दिखाया गया है। चित्र की तरफ संकेत करते हुए गुरु जी अशोक से पूछते हैं कि इस चित्र में कौन-कौन दिखाई दे रहे हैं और क्या कर रहे हैं? अशोक उत्तर देता है कि इसमें कृष्ण और अर्जुन बात कर रहे हैं। गुरु जी उसके उत्तर को सही बताते हैं। दूसरा प्रश्न करते हैं कि क्या तुम्हें पता है कि श्रीकृष्ण और अर्जुन में बातचीत युद्ध के मैदान में हुई थी? श्यामा हैरानी से पूछती है कि युद्धभूमि में तो युद्ध होता है, यह बातचीत क्यों हो रही है? गुरु जी उत्तर देते हैं-बिलकुल ठीक कहती हो श्यामा। अर्जुन जब युद्ध के मैदान से पीछे हटने लगा तो तब श्रीकृष्ण ने उसे कर्त्तव्य पर डटे रहने का उपदेश दिया था।

रोहित पूछता है कि अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था? क्या वह डर गया था? गुरु जी अर्जुन के युद्ध न करने के कारण पैदा होने वाली जिज्ञासाएँ शांत करने के लिए अपने छात्रों से श्रीमद्भगवद्गीता के एक हिस्से का अभिनय कराते हैं। वे कृष्ण का अभिनय करने के लिए सात्विक का चुनाव करते हैं, अर्जुन के अभिनय के लिए सिद्धार्थ को चुनते हैं। अशोक को सूत्रधार की भूमिका दी जाती है। शेष बच्चों को दो हिस्सों में बाँटकर कमवार कौरव व पाण्डव के सैनिक बना देते हैं।

सूत्रधार से एकांकी का दूसरा दृश्य आरम्भ होता है। सूत्रधार एकांकी आरम्भ करता है, ” आज मैं धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुख, कर्म-अकर्म आदि की ओर संकेत करने वाले एक ऐसे प्रसंग से आपका साक्षात्कार कराने जा रहा हूँ जिसने श्रीमद्भगवद्गीता को जन्म दिया। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पाण्डव की सेनाएँ युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी हैं। युद्धारंभ का शंखनाद हो चुका है।”

एक तरफ सूत्रधार मंच से जाता है और दूसरी तरफ कृष्ण और अर्जुन का प्रवेश होता है। अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच खड़ा कर दें ताकि मैं युद्ध के लिए बेचैन सैनिकों को निहार सकूँ। श्रीकृष्ण ऐसा ही करते हैं और अर्जुन से कहते हैं कि पार्थ युद्ध के लिए तैयार इन योद्धाओं को देख। अर्जुने युद्धभूमि में चारों ओर दृष्टि डालता है। देखता है कि चारों ओर उसके भाई, ताऊ, मामा, पुत्र, मित्र, गुरु आदि युद्ध के लिए खड़े हैं। उन्हें देखकर पार्थ अर्थात् अर्जुन की करुणा से भर उठता है। श्री कृष्ण से स्पष्ट शब्दों में कहता है कि मुझे अपने प्रियजनों से युद्ध करना होगा, इसलिए मैं युद्ध नहीं करूँगा। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तेरे मन में यह असमय मोह कैसे पैदा हो गया? तेरा यह आचारण श्रेष्ठ योद्धा का नहीं है। इससे तेरा यश भी नहीं बढ़ने वाला। अर्जुन उत्तर देता है कि मैं अपने सगे-संबंधियों का युद्ध में संहार कर विजय नहीं चाहता। मुझे राज्य की भी इच्छा नहीं है।

श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं। इस संसार में जो भी आया है उसकी मृत्यु निश्चित है। मृत्यु के बाद फिर नया जन्म मिलता है। ऐसे में तेरा शोक व्यर्थ है। अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि तीनों लोकों का राज्य भी मिल जाए तब भी अपने प्रिय संबंधियों का संहार कर राज्य प्राप्त करने की इच्छा नहीं करूँगा। श्रीकृष्ण समझाते हैं कि तू पाप-पुण्य में क्यों पड़ गया है? अगर युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग मिलेगा और विजयी हुआ तो पृथ्वी का राज्य।

अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछता है कि मैं अपने आदरणीय भीष्म व गुरु द्रोणाचार्य से युद्ध नहीं कर सकता। इन्हें मारकर मेरा कल्याण नहीं हो सकता और न सुखी रह सकता हूँ। श्रीकृष्ण उसे ऐसा सब कुछ सोचने से मना करते हैं। उससे यही कहते हैं कि तू जय-पराजय, जनम-मरण, हानि-लाभ को समान समझ और केवल युद्ध कर। कुछ अन्य न सोच। तू केवल कर्म कर। उसके फल की चिंता न कर।

श्रीकृष्ण का उपदेश उसे चिंतामुक्त कर देता है। उनसे कहता है कि आज – आपने मेरे मन से अज्ञान का अंधकार समाप्त कर दिया है। मेरा मोह नष्ट हो गया
है। मेरा मन संशयहीन हो गया है। अब मैं युद्ध करूँगा। अर्जुन का संवाद सुनकर सब बच्चे खुश होकर गुरु जी के साथ तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस एकांकी से तुम्हें क्या शिक्षा मिली? रोहिणी

उत्तर देती है कि हमें सुख और दुख में समान रहना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं। अशोक कहता है कि पाप और पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। गुरु जी विद्यार्थियों का उत्तर सही मानते हैं और उनसे कहते हैं कि बिलकुल ठीक, हमें सुख-दुख, हानि-लाभ में समान रहना चाहिए और इसलिए रहना चाहिए कि सुख और दुख दोनों ही हमें बंधन में बाँध देते हैं।

रोहिणी के पूछने पर गुरु जी बताते हैं कि सुख मिलने पर हम चिंता करते हैं कि कहीं यह हमसे छिन न जाए, और दुःख न होने पर चिंता करते हैं कि कहीं यह आ न जाए। यही बंधन है जिससे हम मुक्त नहीं हो पाते। नकुल उनसे पूछता है कि हमें पाप और पुण्य के भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए, गुरु जी कहते हैं, “मान लो कि किसी कमरे में बहुत लंबे समय से अंधेरा है किंतु जैसे ही उसमें प्रकाश किया जाता है तो अँधेरा अपने आप दूर हो जाता है, उसी प्रकार अतीत में किए गए पापों का अँधेरा पुण्य के एक ही कार्य से दूर हो जाता है।”

सिद्धार्थ गुरु जी से अपने मन का भ्रम दूर करना चाहता है। वह उनसे पूछता है कि अर्जुन को श्रीकृष्ण ने यह क्यों कहा कि केवल कर्त्तव्य कर, फल की चिंता मत कर। जब फल की इच्छा ही न होगी तो हम कर्म क्यों करेंगे? गुरु जी सिद्धार्थ की इस शंका का उत्तर एक उदाहरण से देते हैं। हम फल मेवे आदि तो खाते हैं जबकि जिन पर वे हुए, उन्हें हमने नहीं लगाया। अगर कोई व्यक्ति यह सोचे कि मैं तभी वृक्ष लगाऊँगा, जब इसके फल व मेवे मुझे खाने को मिलेंगे, तब तो कोई भी वृक्ष नहीं लगाता और न ही उसके फल उसे खाने को मिलते। इसीलिए सभी को अपना कर्त्तव्य करना चाहिए।

कर्त्तव्य पालन प्रमुख स्थलों की सप्रसंग व्याख्या

1. आज मैं धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुख, कर्म-अकर्म आदि की ओर संकेत करने वाले एक ऐसे प्रसंग से आपका साक्षात्कार कराने जा रहा हूँ जिसने ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ को जन्म दिया। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पाण्डव की सेनाएं युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी हैं। युद्धारंभ का शंखनाद हो चुका है।”

शब्दार्थ : सूत्रधार = नाटक या एकांकी का वह पात्र, जो मंच से दर्शकों को . जोड़ता है। इसे नाट्यशाला या रंगमंच का व्यवस्थापक भी कहा जाता है। संकेत = इशारा। साक्षात्कार = सामना, मिलना। श्रीमद्भगवद्गीता = भारतीयों की धार्मिक पुस्तक। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मोह को समाप्त कर उसे कर्म करने का उपदेश दिया है। कुरुक्षेत्र = वह स्थान जहाँ प्रसिद्ध महाभारत का युद्ध हुआ। आजकल यह स्थान हरियाणा में है। युद्धारंभ्भ = युद्ध का आरम्भ। शंखनाद = शंख की आवाज़। पुराणकाल में युद्ध आरंभ करने से पूर्व शंख की आवाज की जाती थी। इसे ही शंखनाद कहा जाता है।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। इसमें सूत्रधार एकांकी को दर्शकों से जोड़ रहा है। सूत्रधार दर्शकों से कहता है कि आज मैं आपको उस प्रसंग से परिचित करा रहा हूँ जिससे श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ। वह इसमें कौरवों व पांडवों के युद्ध के लिए तैयार होने की भी सूचना देता है।

व्याख्या : मैं इस एकांकी का सूत्रधार हूँ। मैं आपको एक ऐसा प्रसंग अभिनय के द्वारा दिखाना चाहता हूँ जो इस ओर संकेत करता है कि पाप और पुण्य क्या है? इन दोनों में क्या अन्तर है? धर्म किसे कहते हैं और अधर्म किसे? निश्चय और अनिश्चय में क्या अंतर है? सुख और दुख किसे कहते हैं? ये ऐसे प्रश्न थे जिसके कारण श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ। कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों ओर सेनाएँ एकत्र हैं। एक ओर पांडवों की है और दूसरी ओर कौरवों की। दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हैं। युद्ध आरम्भ होने वाला है क्योंकि इसके लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने पुंडरीक नाम के शंख को बजा दिया है।

विशेष-

  1. इस एकांकी के संवाद में सूत्रधार शब्द पारिभाषिक शब्द है। यह नाटक में उस पात्र के लिए प्रयोग किया जाता है जो रंगमंच का व्यवस्थापक होता है। यही नाटक आरम्भ होने की सूचना देता है। ‘कर्तव्य पालन’ एकांकी में सूत्रधार का काम कक्षा का एक छात्र अशोक कर रहा है।
  2. इस संवाद में विलोम शब्दों का प्रयोग है जैसे धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय। सुख-दुखें, कर्म-अकर्म।
  3. प्रसंग का अर्थ है संबंध। यहाँ अर्थ है संवाद का पहला अंश।
  4. श्रीमद्भगवद्गीता। यह भारतीयों का परमपावन ग्रंथ है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का अंश है। इसमें श्रीकृष्ण ने मोह में फँसे अर्जुन को कर्त्तव्य के लिए तत्पर होने का उपदेश या संदेश दिया है।
  5. कुरुक्षेत्र वह स्थान है जहाँ कौरवों व पाण्डवों का युद्ध हुआ। आजकल यह स्थान हरियाणा प्रदेश में है।
  6. भाषा सरल, प्रवाहमय और भावानुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) सूत्रधार किस प्रसंग से दर्शकों का साक्षात्कार कराने जा रहा है?
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म किस प्रसंग ने दिया?
(iii) इस संवाद के किस वाक्य से पता चलता है कि युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व की सूचना दी जा चुकी है?
उत्तर
(i) सूत्रधार एक ऐसे प्रसंग से दर्शकों का साक्षात्कार कराना चाहता है जो धर्म और अधर्म, निश्चय और अनिश्चय, सुख और दुख एवं कर्म और अकर्म की ओर संकेत कर रहा है।
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म ऐसे प्रसंग ने दिया जहाँ यह बताना आवश्यक हो गया कि धर्म किसे कहते हैं और अधर्म किसे? अनिश्चय से कैसे निकला जा सकता है और निश्चय पर कैसे दृढ़ रहा जा सकता है। सुख और दुख क्या हैं? तथा कर्म और अकर्म में क्या अन्तर है?
(iii) इस संवाद में एक वाक्य है ‘युद्धारंभ्भ का शंखनाद हो चुका है।” इस वाक्य से पता चलता है कि युद्ध प्रारम्भ होने की सूचना दी जा चुकी है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) सूत्रधार किसे कहते हैं?
(ii) प्रसंग से अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
(iii) शंखनाद मुहावरे का अर्थ देते हुए इसका एक वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर
(i) रंगमंच की व्यवस्था करने वाले को सूत्रधार कहा जाता है।
(ii) प्रसंग वह स्थिति है जहाँ पहले कहे हुए विषय की सूचना दी जाती है और जो कहा जा रहा है उससे उसका संबंध स्थापित किया जाता है।
(iii) शंखनाद का अर्थ है किसी काम को शुरू करने की सूचना देना। वाक्य : शंखनाद से दोनों पक्षों को युद्ध शुरू होने की सूचना दे दी गई।

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2. हे कृष्ण! अपने इन प्रियजनों को देखकर तो मेरा मुख सूखा जा रहा है। मेरे शरीर में कंप और रोमांच हो रहा है। हाथ से गाण्डीव धनुष गिरा जा रहा है। मेरा मन भी भ्रमित-सा हो रहा है। मुझमें यहाँ खड़े रहने का भी सामर्थ्य नहीं है। इसलिए मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

शब्दार्थ : प्रियजनों = सगे-संबंधियों । यहाँ अभिप्राय अर्जुन के मामा, ताऊ, भाइयों, पुत्र आदि से है जो युद्ध के लिए मैदान में खड़े हैं। मुख सूखा जाना = निराश होना। कंप = कांपने का भाव । रोमांच = भय के कारण शरीर के रोएँ खड़े हो जाना। गाण्डीव = अर्जुन के धनुष का नाम। भ्रमित = भ्रम में होना। क्या करूँ क्या न करूँ यह निश्चित न कर पाना। सामर्थ्य = समर्थ होने का भाव, शक्ति।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था कि केशव मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दो ताकि मैं उन योद्धाओं को देख सकूँ जो युद्ध के लिए दोनों ओर खड़े हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन की यह इच्छा पूरी कर देते हैं। दोनों ओर की सेनाओं को देखकर अर्जुन भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे संबंधी ही अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े थे।

व्याख्या : दोनों ओर की सेनाओं को देखकर अर्जुन भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे-संबंधी ही अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े थे। मन में निराशा का भाव धारण किए उसने केशव से कहा कि है कि कौरव पक्ष में युद्ध के लिए वे लोग खड़े हैं जिनमें कोई मेरा भाई है तो कोई मेरा मित्र। कोई ताऊ है तो कोई पुत्र। कोई मामा है तो कोई चाचा। ये सब मेरे बहुत नजदीकी संबंधी हैं। इनसे मैं कैसे युद्ध कर सकता हूँ? यह देखकर मेरा शरीर कांप रहा है। भय के कारण मेरे शरीर के रोएँ खड़े हो गए हैं। हाथ से गाण्डीव छूट रहा है। मेरे मन में भ्रम पैदा हो गया है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि अपने प्रियजनों पर कैसे अस्त्र-शस्त्र का संचालन करूँ। मुझमें युद्धभूमि में खड़े होने की शक्ति नहीं रही है। केशव! मुझे युद्धभूमि से दूर ले चलो। मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

विशेष-

  1. इस संवाद में अर्जुन का मोह. जाग उठा है। वह युद्ध के लिए आया था पर वहाँ अपने सगे-संबंधियों को देखकर हिम्मत हार बैठा है। इसलिए केशव से युद्ध करने के लिए मना कर रहा है।
  2. अर्जुन के मन में मोह उत्पन्न हो गया है। उसने अपने कर्त्तव्य से मुँह मोड़ लिया है।
  3. मुख सूखै जाना मुहावरे का प्रयोग है। इसका अर्थ है निराश होना।
  4. कंप और रोमांच सात्विक भाव हैं।
  5. गांडीव अर्जुन के धनुष का नाम है।
  6. भ्रमित-सा होने में उपमा अलंकार है।
  7. भाषा प्रवाहमय, प्रभावी और भावानुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) अर्जुन का मुँह क्यों सूखा जा रहा था?
(ii) प्रियजनों को देखकर अर्जुन की दशा का वर्णन कीजिए।
(iii) अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने का क्या कारण बताया?
उत्तर
(i) अर्जुन ने देखा की दोनों पक्षों में युद्ध के लिए ऐसे वीर उपस्थित हैं जिनमें उसके गुरुजन, आदरणय, निकटतम संबंधी, ताऊ, चाचा, भाई, पुत्र आदि हैं। उन्हें देखकर उसका मुँह सूखने लगा अर्थात् वह निराश हो गया कि उसे अपने संबंधियों के साथ युद्ध करना पड़ रहा है।
(ii) युद्ध में प्रियजनजों को उपस्थित देखकर अर्जुन का शरीर काँपने लगा। वह रोमांचित हो गया। घबराहट के कारण उसके हाथ से गांडीव गिरने लगा।
(iii) अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि जिनके साथ मुझे युद्ध करना है वे तो मेरे निकटतम संबंधी है। मेरे मन में भ्रम पैदा हो गया है। जिनका मैं आज तक सम्मान करता आया हूँ, उनके साथ भला युद्ध कैसे कर सकता हूँ। उनके सामने युद्ध के मैदान में खड़े होने का मुझमें बिलकुल सामर्थ्य नहीं है। मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) कृष्ण कौन हैं? अर्जुन उनसे युद्ध न करने की बात क्यों कह रहा है?
(ii) कंपन और रोमांच किस प्रकार के भाव हैं?
(iii) गांडीव के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर
(i) श्रीकृष्ण पांडव पक्ष की ओर से युद्ध के मैदान में हैं। वे अर्जुन के सारथि हैं। वे ही उसका युद्ध दोनों सेनाओं के बीच लेकर आए हैं। इसलिए उनसे ही वह कह रहा है कि मैं युद्ध नहीं लड़ना चाहता।
(ii) कंपन और रोमांच सात्विक भाव हैं। सात्विक वे भाव हैं जो शरीर के हाव भाव से सूचित किए जाते हैं।
(iii) गांडीव अर्जुन के धनुष का नाम है। यही अर्जुन का प्रमुख अस्त्र है।

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3. अर्जुन! तुझे यह असमय मोह क्यों उत्पन्न हो रहा है? तेरा यह आचरण किसी श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है और न ही तेरी कीर्ति को बढ़ाने वाला है।

शब्दार्थ : असमय = जिस बात को सोचने का समय नहीं है। मोह = सगे-संबंधियों के प्रति ममता का भाव । आचरण = व्यवहार । श्रेष्ठ उत्तम, सबसे अच्छे कीर्ति = यश

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्त्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था कि केशव मेरा रथ दोनों
सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दो ताकि मैं उन योद्धाओं को देख सकूँ जो युद्ध के लिए दोनों ओर खड़े हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन की यह इच्छा पूरी कर देते हैं। दोनों ओर की सेनाओं को देखकर अर्जुन भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे-संबंधी ही अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े थे। सगे-संबंधियों को युद्ध में आमने सामने खड़े देखकर अर्जुन को मोह हो गया। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता। इस पर श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं तेरा युद्धभूमि में आकर मोह करना श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है।

व्याख्या : अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था कि केशव मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दो ताकि मैं उन योद्धाओं को देख सकूँ जो युद्ध के लिए दोनों ओर खड़े हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन की यह इच्छा पूरी कर देते हैं। दोनों ओर की सेनाओं को देखकर अर्जुन भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे-संबंधी ही अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े थे। सगे-संबंधियों को युद्ध में आमने-सामने सामने खड़े देखकर अर्जुन को मोह हो गया। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता। इस पर श्रीकृष्ण ने उससे कहा कि यह समय युद्ध से भागने का नहीं है। सगे-संबंधियों को युद्ध के मैदान में खड़े देखकर तुम्हारे मन में उनके प्रति ममता क्यों जाग उठी है? यह समय ममता करने का नहीं है। यह युद्ध करने का है। अगर तू युद्ध से भागेगा तो यह व्यवहार किसी अच्छे वीर का आचरण नहीं कहा जा सकता। ऐसा करने से इस संसार में तेरी बदनामी होगी। तुझे यश कभी प्राप्त नहीं होगा।

विशेष-

  1.  इस संवाद में श्रीकृष्ण ने मोह के कारण भ्रमित अर्जुन को कर्तव्य की ओर लाने का प्रयास किया है।
  2. अर्जुन को सावधान किया है कि युद्ध से भागने पर पूरे विश्व में तुम्हारा अपमान होगा। यह श्रेष्ठ पुरुष का व्यवहार भी नहीं कहलाएगा।
  3. असमय शब्द समय में अ उपसर्ग लगने से बना है।
  4. प्रश्नात्मक संवाद हैं।
  5. भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और भावानुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) असमय मोह से से क्या अभिप्राय है?
(ii) वाक्य का आशय समझाइए: ‘तेरा यह आचरण किसी श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है।’
(iii) अर्जुन का आचरण कीर्ति बढ़ाने वाला क्यों नहीं है?
उत्तर
(i) असमय मोह से अभिप्राय है ऐसे समय मन में मोह उत्पन्न हो जाना जिसका यह उचित समय नहीं है। अर्जुन ने युद्धभूमि में जब अपने प्रियजनों को युद्ध के लिए उपस्थित देखा तो उसके मन में मोह पैदा हो गया और केशव से कह दिया कि वह अब युद्ध नहीं लड़ेगा क्योंकि उसके समाने उसके प्रियजन ही युद्ध के लिए उपस्थित हैं। श्रीकृष्ण ने जब उसकी ऐसी स्थिति देखी तो उससे कहा कि यह समय युद्ध करने का है, प्रियजनों को देखकर युद्ध से मुँह मोड़ने का नहीं है। ऐसा करना तो तुम्हारे मन में असमद मोह पैदा होना है।
(ii) श्रीकृष्ण ने देखा कि प्रियजनों को युद्ध के मैदान में खड़े देखकर अर्जुन ने युद्ध के लिए इंकार कर दिया है। उन्होंने अर्जुन से कहा कि तुम्हारा ऐसा करना
उचित नहीं है। यह युद्ध का समय है। केवल युद्ध करो। अगर तुम युद्ध से मुँह मोड़ेगो तो तुम्हारी गणना श्रेष्ठ व्यक्तियों में नहीं होगी क्योंकि ऐसा व्यवहार कभी भी श्रेष्ठ आचरण करने वाले नहीं करते। अतः ऐसा व्यवाहर मत करो, युद्ध करो।
(iii) श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि युद्ध के मैदान में तुम्हारे मन में मोह उत्पन्न उचित नहीं है। अगर तुम इस भावना पर सुदृढ़ रहे तो तुम्हारी गणना सदाचरण करने वाले वीरों में या पुरुषों में नहीं की जाएगी। इससे तो तुम्हारी संसार में निंदा होगी। युद्ध करोगे तो संसार में यश प्राप्त होगा और मोह में युद्ध से दूर भागोगे तो तुम्हारा यश क्षीण होगा।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) असमय मोह का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ii) श्रेष्ठ पुरुष का आचरण इस संवाद के अनुसार क्या है?
(iii) मोह, आचरण पुरुष कीर्ति शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर
(i) असमय मोह का अर्थ है ऐसे समय मोह उत्पन्न हो जाना जिसका वह समय नहीं है।
(ii) श्रेष्ठ आचरण इस संवाद के अनुसार यह है कि अर्जुन को मोह त्यागकर केवल युद्ध के लिए प्रस्तुत हो जाना चाहिए।
(iii) विलोम
शब्द – विलोम शब्द
मोह- निर्मोह
आचरण – दुराचरण
पुरुष – स्त्री
कीर्ति – अपकीर्ति

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4. हे कुंतीपुत्र! इस संसार में जन्में प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है तथा मृत्यु के बाद पुनः नया जन्म भी निश्चित है। इसलिए इस विषय में तू व्यर्थ ही शोक कर रहा है।

शब्दार्थ : कुंतीपुत्र = कुंती का पुत्र, अर्जुन के लिए प्रयुक्त है। जन्में = जन्म लेने वाले। प्रत्येक = हर व्यक्ति। पुनः = फिर। विषय = बारे में। व्यर्थ = बेकार। शोक = दुख।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। अर्जुन ने जब दोनों ओर की सेनाओं को देखा तो भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे-संबंधी ही अस्त्रशस्त्र लिए खड़े थे। उन्हें देखकर उसके मन को मोह हो गया और श्रीकृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता। इस पर श्रीकृष्ण अर्जुन से कहता है कि तेरा शोक करना बेकार है क्योंकि इस दुनिया में जन्म लेना व मृत्यु को प्राप्त करना निश्चित है।

व्याख्या : अर्जुन को युद्ध में खड़े सगे-सबंधियों को देखकर मोह पैदा हो गया और श्रीकृष्ण से कहा कि वह युद्ध नहीं लड़ेगा। इस पर श्रीकृष्ण ने उससे कहा कि तेरे मन में इस समय मोह पैदा होना उचित नहीं है। यह श्रेष्ठ पुरुष का व्यवहार नहीं है। ऐसा करना तेरा कर्तव्य पथ से हटना है। तू यह सोच रहा है कि मैं अपने सगे-संबंधियों को मारना अनुचित है। तू यह अच्छी तरह समझ लेना कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति का मरना निश्चित है और जन्म लेना भी निश्चित है। जब यह क्रिया निरन्तर चल रही है तब तेरा इस बारे में किसी तरह का शोक प्रकट करना बेकार है।

विशेष-

  1. श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मन में उत्पन्न मोह दूर करते हुए कहा है कि तू इन्हें मारने वाला नहीं है। इनका मरना तो निश्चित है। ये संसार के अंत तक जीवित रहने वाले नहीं हैं और न ही तू इनके जन्म को रोक सकता है। इसलिए तुझे इस बारे में दुख प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है।
  2. व्यक्ति अपने पाप पुण्य के आधार पर इस संसार में जन्म लेता है और मरता है, इस सिद्धांत का यहाँ समर्थन किया गया है।
  3. कुंतीपुत्र अर्जुन के लिए प्रयुक्त है क्योंकि वह कुंती का पुत्र था।
  4. भाषा सरल और सरस है। भावानुकूल है और प्रवाहमय भी है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) श्रीकृष्ण ने शोक संतप्त अर्जुन को किस प्रकार समझाया?
(ii) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यह क्यों कहा कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति जन्मलेता और मरता है?
(iii) अर्जुन के शोक को श्रीकृष्ण व्यर्थ क्यों बता रहे हैं?
उत्तर
(i) श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस संसार में जो भी व्यक्ति जन्म लेता है उसे निश्चित रूप से मरना पड़ता है। वह अगर मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसका जन्म भी पुनः होता है। ऐसे में तुम्हारा शोक करना व्यर्थ है।
(ii) अर्जुन को मोह उत्पन्न हो गया है कि वह अपने प्रिय संबंधियों को नहीं मार सकता, इसलिए युद्ध नहीं करना चाहता। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि जितने भी योद्धा इस मैदान में उपस्थित हैं इन्हें तो एक न एक दिन मरना है और फिर जन्म भी लेना है। ऐसे में तू इन्हें मारने वाला नहीं है और न ही जन्म देने वाला है। अतः तू तो कर्म कर और युद्ध कर।
(iii) अर्जुन के शोक को श्रीकृष्ण व्यर्थ इसलिए बता रहे हैं कि न तो वह इन वीरों को मारने वाला है और न जन्म देने वाला। अगर तू इन्हें मारेगा नहीं, तब भी ये मरने ही हैं, इसलिए तुम्हें इस संबंध में शोक करने की आवश्यकता नहीं है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) कुंतीपुत्र किसे और क्यों कहा गया है?
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता के किस अध्याय के किस श्लोक में कहा गया है कि . व्यक्ति का जन्म और मरण निश्चित है?
(iii) संसार, व्यक्ति, व्यर्थ, शोक शब्द के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर
(i) कुंतीपुत्र अर्जुन के लिए प्रयोग किया गया है। इसलिए किया गया है कि वे कुंती के पुत्र थे।
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय में कहा गया हैः आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है और न मृत्यु । वह न तो कभी जन्मा है और न जन्म लेगा। यह अजन्मा नित्य शाश्वत तथा पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर वह मरता नहीं।

(iii) पर्यायवाची शब्द :
शब्द – पर्यायवाची
संसार – विश्व, दुनिया
व्यक्ति – नर, मानव
व्यर्थ – बेकार, नाकारा
शोक – दुख, आतुर

5. तू इस पाप-पुण्य के संशय में क्यों भ्रमित हो रहा है? यदि तू युद्ध में मारा भी गया तो स्वर्ग को प्राप्त होगा और यदि विजयी हुआ तो पृथ्वी का राज्य भोगेगा। तू युद्ध करने के लिए दृढ़ निश्चयी हो जा।

शब्दार्थः संशय = संदेह । भ्रमित = भ्रम में। विजयी = जीता। दृढ़ निश्चयी = पक्का इरादा।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने को मना कर दिया। अर्जुन को मोहित देखकर उसके मोह को समाप्त करने का यत्न किया और उसे कर्तव्य करने का उपदेश दिया। अर्जुन ने कहा था कि अगर मैं अपने सगे-संबंधियों को युद्ध में मारूँगा तो मुझे पाप लगेगा। मैं यह पाप कभी नहीं करूँगा। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि तू इस पाप और पुण्य के चक्कर में मत पड़ । केवल युद्ध कर।

व्याख्या : अर्जुन ने देखा कि मेरे सामने तो मेरे प्रियजन व आदरणीय गुरुजन खड़े हैं। मैं उनसे युद्ध कैसे करूँगा। उसने श्रीकृष्ण से कह दिया कि मैं युद्ध नहीं करूँगा क्योंकि यह पाप होगा। इस पर श्रीकृष्ण ने उसे पुनः समझाया कि तू इस चक्कर में क्यों पड़ गया कि अगर मैं युद्ध में शत्रुओं को मारूँगा तो पाप होगा, नहीं मारूँगा तो पुण्य होगा। तुम्हारे मन में इस तरह का संदेह क्यों पैदा हो रहा है? अगर युद्ध में तू मारा गया तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी और विजय प्राप्त हुई तो इस पृथ्वी का राज्य भोगेगा, इसलिए तू अपने मन से समस्त मोह ममता निकाल दे और केवल युद्ध कर। इसके लिए अपने मन को निश्चित कर ले।

विशेष-

  1. अर्जुन के मन में सगे-संबंधियों के कारण मोह पैदा हो गया है, श्रीकृष्ण उसे मोह छोड़कर केवल युद्ध के लिए निश्चिय करने का उपदेश दे रहे हैं।
  2. इसमें गीता के श्लोक का पूरा प्रभाव है कि ‘हतो वा…
  3. पाप का विलोम शब्द पुण्य है। व्याकरण की दृष्टि से पाप-पुण्य द्वंद्व समास है।
  4. भाषा भावानुकूल है और प्रवाहपूर्ण है।
  5. संवाद रंगमंच के अनुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) श्रीकृष्ण ने अर्जुन को किससे दूर रहने के लिए कहा है?
(ii) श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार होने के लिए क्या तर्क देते हैं?
(iii) आपके विचार से क्या अर्जुन श्रीकृष्ण से सहमत हो गया?
उत्तर
(i) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पाप-पुण्य के संशय से दूर रहने के लिए कहा है।
(ii) श्रीकृष्ण अर्जुन से युद्ध करने का निश्चय करने के लिए कहते हैं। इसके
लिए वे तर्क देते हैं कि अगर तू युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी क्योंकि वीरगति पाने वाले को स्वर्ग में स्थान मिलता है और अगर यद्ध में तूने विजय प्राप्त की तो इस संसार का साम्राज्य भोगेगा। इसलिए जब दोनों ओर से तुझे अनुकूल फल मिलने वाला है तो तब युद्ध के लिए तैयार होना ही उचित है।
(iii) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तू केवल युद्ध कर। युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग मिलेगा और जीत गया तो संसार का साम्राज्य मिलेगा। पर इससे अर्जुन का मोह पूरी तरह शांत नहीं हुआ। क्योंकि उसके मन में मोह स्वर्ग या साम्राज्य प्राप्ति का नहीं है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) श्रीकृष्ण के अनुसार अर्जुन के मन में क्या भ्रम है?
(ii) स्वर्ग का राज्य कौन भोगता है?
(iii) इस संवाद में तत्सम शब्दों का चुनाव कीजिए।
उत्तर
(i) श्रीकृष्ण के अनुसार अर्जुन के मन में भ्रम यह है कि उसे लगता है कि अगर वह उसने प्रियजनों को मारा तो उसे पाप लगेगा। और नहीं मारा तो उसे पुण्य की प्राप्ति होगी। इसीलिए श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू इस पाप-पुण्य के संशय में क्यों भ्रमित हो रहा है?
(ii) तत्सम शब्दों का चुनावः
पाप – पाप
संशय – भ्रमित
युद्ध – स्वर्ग
विजयी पृथ्वी
राज्य – दुद
निश्चयी –

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6. मैं रणभूमि में किस प्रकार भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लडूंगा? ये दोनों ही मेरे पूजनीय हैं। अपने ही गुरुजनों और बंधु-बांधवों का वध कर मेरा किसी भी प्रकार कल्याण नहीं होगा। हम कैसे सुखी रहेंगे।

शब्दार्थ : रणभूमि = युद्धभूमि। विरुद्ध = खिलाफ । पूजनीय = पूजा के योग्य । बंधु – बांधवों = सगे – संबंधी। वधकर = हत्याकर। कल्याण = भला।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध करने को मना कर दिया। उसने कहा कि मैं युद्धभूमि में अपने गुरुजनों के विरुद्ध कैसे लडूंगा? अगर ऐसा किया तो मेरा कभी कल्याण न होगा। ऐसा करने पर मैं कभी सुखी नहीं रह पाऊँगा।

व्याख्या : श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि तू इस भ्रम में मत पड़ कि युद्ध में योद्वाओं को मारने से पाप लगेगा और न मारने से पुण्य । इस चक्कर में मत पड़। युद्ध में अगर मारा गया तो स्वर्ग की प्राप्ति होगी और जीतने से इस धरती का सुखमय राज्य मिलेगा। किंतु अर्जुन का मोह समाप्त नहीं हो रहा था। उसने उनसे कहा कि युद्धभूमि में मेरे आदरणीय पितामह भीष्म खड़े होंगे, मेरे गुरुदेव द्रोणाचार्य खड़े होंगे,

उनके विरुद्ध मैं कैसे अस्त्र-शस्त्र उठाऊँगा? उनकी तो मैं प्रतिदिन पूजा करता आया हूँ। अगर मैंने उनसे युद्ध किया और वे इसमें मारे गए तो मेरा तो कभी कल्याण न होगा। मैं कभी सुखी नहीं रहूँगा। इसलिए मैं अपने संबंधियों के विरुद्ध नहीं लडूंगा।

विशेष-

  1. अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह कहकर युद्ध लड़ने से इंकार किया क्योंकि उसमें वे वीर खड़े हैं जिनकी वह सदा पूजा करता आया है।
  2. अर्जुन का मानना है कि आदरणीय को युद्ध में मारकर उसका कभी भला नहीं हो सकता।
  3. भीष्म और द्रोणाचार्य पौराणिक चरित्र हैं। द्रोणाचार्य से तो अर्जुन ने धनुर्विद्या सीखी थी।
  4. रणभूमि संबंध तत्पुरुष समास है। बंधु-बांधवों में द्वंद्व समास है।
  5. अर्जुन की मुख्य चिंता यह है कि आदरणीयों को युद्ध में मारकर उसे कभी सुख प्राप्त नहीं होगा।
  6. भाषा सरल और सरस है।

कर्त्तव्य पालन प्रवाहपूर्ण है और भावानुकूल है।

प्रश्न :
(i) अर्जुन के मन में मोह क्यों है?
(ii) भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य से अर्जुन का क्या संबंध है?
(iii) ‘मेरा किसी भी प्रकार कल्याण नहीं होगा’ अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) अर्जुन के मन में मोह का कारण यह है कि उसके समक्ष भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे- वीर अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हैं। वे गुरुजन और पूजनीय है। उन्हें मारकर वह किसी प्रकार सुखी नहीं रह सकता।
(ii) भीष्मपितामह पांडवों व कौरवों दोनों के पूजनीय हैं। उन्हें वह सदैव प्रणाम करता रहा है। द्रोणाचार्य से अर्जुन ने धनुर्विद्या सीखी है इसलिए वे उसके गुरु हैं।
(iii) अर्जुन श्रीकृष्ण से कह रहा है कि जो शिष्य अपने गुरु का ही वध करेगा, वह भला संसार में किस प्रकार सुखी रह सकेगा। यह पाप करने के बाद तो उसका संसार में कभी कल्याण नहीं सकता।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) रणभूमि से क्या आशय है?
(ii) महाभारत के अनुसार भीष्मपितामह कौन थे?
(iii) निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए:
विरुद्ध, पूजनीय, कल्याण, सुखी
उत्तर
(i) जहाँ युद्ध होता है उस स्थल को रणभूमि कहा जाता है।
(ii) महाभारत के अनुसार भीष्म आजन्म ब्रह्मचारी थे और गंगा के पुत्र थे। उन्हें गंगेय भी कहा जाता है।
(iii) विलोम शब्दः
शब्द – विलोम
विरुद्ध – पक्ष
पूजनीय – निंदनीय
कल्याण – अकल्याण
सुखी – दुखी

6. हे पार्थ! यह सब मत सोच । जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर तू केवल युद्ध कर।

शब्दार्थ : पार्थ = अर्जुन । जय-पराजय = हार – जीत । लाभ-हानि = नुकसान-फायदा।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने को मना कर दिया। उसने कहा कि मैं युद्धभूमि में अपने गुरुजनों के विरुद्ध कैसे लडूंगा? अगर ऐसा किया तो मेरा कभी कल्याण न होगा। यह अनुभव श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस बारे में कुछ मत सोच । केवल युद्ध का निश्चय कर।

व्याख्या : अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मेरे लिए युद्ध करना संभव नहीं है। कारण यह है कि आप मुझे उन आदरणीय सगे-संबंधियों से युद्ध करने के लिए कह रहे हैं जिनकी मैं प्रातःकाल पूजा करता हूँ। भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य के विरुद्ध मैं कैसे युद्ध कर सकता हूँ, इनकी तो मैं प्रतिदिन पूजा करता हूँ। इस पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तू यह सब मत सोच। जितना इन विषयों पर सोचेगा उतना ही युद्ध से मन हटेगा। कोई युद्ध में जीतता है या हारता है, किसी को युद्ध में हानि होती है या फायदा होता है, किसी को युद्ध करने में सुख मिलता है या दुख मिलता है, इनमें कोई अंतर नहीं है। यह सब समान समझकर सिर्फ युद्ध कर। नफे-नुकसान की परवाह करने लगेगा तो तू इस मोह के बंधन में फंसा ही रहेगा।

विशेष-

  1. श्रीकृष्ण ने इस संवाद में जीत और हार, लाभ और हानि तथा सुख और दुख को समान समझने का उपदेश दिया है।
  2. व्यक्ति के बंधन के कारण जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख व दुख में पड़े रहना है।
  3. जय-पराजय, लाभ-हानि सुख-दुख में द्वंद्व समास है।
  4. भाषा भावानुकूल व प्रवाहमय है।
  5. संवाद रंगमंच के अनुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) पार्थ यह सब मत सोच। भाव स्पष्ट कीजिए।
(ii) ‘जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर युद्ध कर।’आशय स्पष्ट कीजिए।
(iii) पार्थ संबोधन किसके लिए है, किसने किया है?
उत्तर
(i) यह कथन श्रीकृष्ण का अर्जुन से है। अर्जुन मोह में लिप्त होने के कारण युद्ध करने से इसलिए मना कर रहा है क्योंकि जिनके साथ युद्ध करना है वे उसके आदरणीय हैं। उनका वध करना पाप है। ऐसा कर उसका कभी कल्याण नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि तेरा यह सव सोचना बेकार है। तेरे लिए हार-जीत, फायदा-नुकसान और सुख-दुख समान है। तू अपना ध्यान केवल युद्ध की ओर लगा।
(ii) श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि युद्ध में चाहे विजय हो और चाहे पराजय, चाहे इससे लाभ होता हो और चाहे हानि, चाहे युद्ध से सुख मिल रहा हो या फिर
दुख, यह सब मत सोच। सोचना हो तो इन्हें समान समझ। सुख और दुख, हानि लाभ अथवा जय-पराजय को अगर समान समझेगा तो तुझे कभी मोह नहीं होगा।
(iii) पार्थ शब्द अर्जुन के लिए है। यह संबोधन श्रीकृष्ण ने अर्जुन के लिए किया है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) इस संवाद का केंद्रीय भाव क्या है?
(ii) जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख कौन से समास हैं?
(iii) इस संवाद में विलोम शब्दों का प्रयोग किया गया है, उनका चुनाव कीजिए।
उत्तर
(i) इस संवाद का केंद्रीय भाव है, जय-पराजय हानि-लाभ और सुख-दुख में व्यक्ति को समान रहना चाहिए। ऐसा व्यक्ति ही अपने निश्चय में सफलता प्राप्त कर पाता है।
(ii) जय-पराजय लाभ-हानि, सुख और दुख द्वंद्व समास हैं।
(iii) इस संवाद के विलोम शब्द हैं :
शब्द – विलोम
जय – पराजय
लाभ – हानि
सुख – दुख

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7. हे अर्जुन! तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है। उसके फल का नहीं

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्तकर्मणि।”

इसलिए मोह-माया को त्यागकर त केवल अपने कर्म को कर, फल की इच्छा त्याग दे।

शब्दार्थ : कर्मण्येवाधिकारस्ते = (कर्मणि = कर्म करने में, एव = निश्चिय ही, अधिकारः = अधिकार, ते = तुम्हारा) तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है। मा = कभी नहीं। फलेषु =कर्म फलों में। कदाचन = कदापि, कभी भी। कर्मफल = कर्म का फल। हेतुर्भूर्माः (हेतुः = कारण, भूः= होओ, मा= कभी नहीं।) कारण कभी मत होओ। ते = तुम्हारी। संगः = आसक्ति। अकर्मणि = कर्म न करने में। (अर्थात् तुम्हें अपना कर्म करने का अधिकार है, किंतु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो+तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण मानो, न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ।)

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने को मना कर दिया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस बारे में कुछ मत सोच कि गुरुजनों के विरुद्ध कैसे युद्ध लडूंगा। तेरा कर्म युद्ध करना है फल की चिंता करना नहीं है। तू केवल युद्ध का निश्चय कर।

व्याख्या : अर्जुन का सगे-संबंधियों के प्रति ममता अभी छूटी नहीं है। जब श्रीकृष्ण उसे कहते हैं कि जीत-हार, हानि-लाभ सुख या दुख तो सब समान है केवल युद्ध में मन लगा तो उसके मन में पुनः संदेह उत्पन्न होता है कि मैं युद्ध में अपने सगे-संबंधियों को मार देता हूँ तो इससे मुझे क्या फल प्राप्त होना है? जब युद्ध से कोई फल ही नहीं मिलना है तो मैं युद्ध क्यों करूँ? इस पर श्रीकृष्ण उससे कह देते हैं कि तेरा काम केवल कर्म करना है अर्थात् कर्तव्य का पालन करना है, इसकी चिंता करना नहीं है कि इस युद्ध से मुझे क्या फल मिलने वाला है। कर्म करना ही तेरा अधिकार है, फल के बारे में कुछ मत सोच । इसलिए.तू मोह और माया को छोड़ दे। केवल कर्म करने के लिए तत्पर हो। इस कर्तव्यं से तुझे क्या फल मिलेगा, तू यह इच्छा ही क्यों करता है? केवल कर्त्तव्य ही कर।

विशेष-

  1. इस संवाद में श्रीकृष्ण ने अर्जुन ही नहीं व्यक्ति को केवल कर्म करने के लिए कहा है। उनका कहना है कि फल पर सोचने का हमारा अधिकार नहीं है। …
  2. इस संवाद से अर्जुन के मन के मोह का नाश हो जाता है।
  3. इस संवाद को प्रभावी बनाने के लिए एकांकीकार ने श्रीमद्भगवद्गीता का मूल. श्लोक उद्धत किया है:“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्तकर्मणि।”
  4. भाषा प्रभावशाली व प्रवाहपूर्ण है।
  5. संवाद रंगमंच के अनुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्नः

(i) इस संवाद में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्या उपदेश दिया है?
(ii) “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।।
मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्तकर्मणि।” अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(iii) इस संवाद का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर
(i) इस संवाद में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह उपदेश दिया है कि तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है, फल का नहीं हैं।
(ii) इस श्लोक का भाव यह है : हे अर्जुन! तेरा अधिकार केवल कर्म करना है। यह चिंता करना नहीं है कि इससे क्या फल मिलेगा। इसलिए तू मोह और माया को छोड़ दें। केवल कर्म करने के लिए तत्पर हो। इस कर्त्तव्य से तुझे क्या फल मिलेगा, तू यह इच्छा ही क्यों करता है? तू तो केवल कर्त्तव्य कर।
(iii). इस संवाद का केंद्रीय भाव है कि कर्म करना करना हमारा अधिकार है फल की चिंता करना नहीं। इसलिए केवल कर्म कर।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) इस संवाद पर किसका प्रभाव है?
(ii) श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म का अधिकार क्यों दे रहे हैं फल का क्यों नहीं?
(iii) कर्मण्येवाधिकारस्ते शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर
(i) इस संवाद पर श्रीमद्भगवद्गीता का प्रभाव है। यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीयं अध्याय में लिखा है और यह सैंतालीसवां श्लोक है।
(ii) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि कर्म करना ही हमारा अधिकार है, यह सोचना नहीं है कि इससे फल क्या मिलेगा। जो व्यक्ति फल की चिंता करने लगते हैं वे कर्म से दूर हो जाते हैं। इसलिए श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म करने का अधिकार दे रहे हैं।
(iii) कर्मण्येवाधिकारस्ते का अर्थ है कर्म करना ही तुम्हारा अधिकार है।

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8. हे कृष्ण! आज आपने मेरे मन से अज्ञानरूपी अंधकार का नाशकर ज्ञानरूपी प्रकाश फैलाया है। आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया है। अब मैं बिना किसी संशय के अपने कर्तव्य का पालन करूँगा।

शब्दार्थ : मोह = सगे-संबंधियों पर ममता का भाव । संशय = संदेह।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने को मना कर दिया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस बारे में कुछ मत सोच कि गुरुजनों के विरुद्ध कैसे युद्ध लडूंगा। तेरा कर्म युद्ध करना है फल की चिंता करना नहीं है। तू केवल युद्ध का निश्चय कर। श्रीकृष्ण का यह कथन सुनकर अर्जुन चिंतामुक्त हो गया.और उनसे कहा कि मेरे मन का संदेह समाप्त हो गया है। अब मैं युद्ध करूँगा। –

व्याख्या : जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यह कहा कि तुझे फल की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। तुझे तो केवल कर्त्तव्य का पालन करना है। यह देखना मेरा काम है कि तुझे किसी काम से फल मिलता है या नहीं। यह सुनकर अर्जुन के मन से मोह दूर हो गया। वह चिंतामुक्त हो गया। उसने श्रीकृष्ण से कहा कि आपने मेरे मन में छाए अज्ञान को दूर कर दिया। आपके सुवचनों से मेरा मन प्रकाशित हो गया। आपकी दया से मेरे मन का मोह चला गया है। अब मेरे मन में किसी प्रकार का संदेह नहीं रहा है कि अगर अपने सगे-संबंधियों का वध करूँगा तो मुझे पाप मिलेगा। मैं अब युद्ध में अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए पूरी तरह तैयार हूँ।

विशेष-

  1. श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म करने का संदेश देने में सफल हो गए हैं।
  2. अज्ञान को अंधकार कहा गया है तथा ज्ञान को प्रकाश । इसलिए यहाँ रूपक अलंकार है।
  3. श्रीमद्भगवद्गीता के कर्म करो व फल की चिंता मत करो वाला मूल श्लोक से संवाद कुछ कठिन हो गया है।
  4. संवाद में एकांकी का प्रतिपाद्य स्पष्ट है।
  5. भाषा संस्कृतनिष्ठ हो गई है।
  6. संवाद रंगमंचीय है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) इस संवाद का केंद्रीय भाव लिखिए।
(ii) अर्जुन ने श्रीकृष्ण से क्या कहा?
(iii) ‘अब मैं बिना संशय के कर्तव्य पालन करूँगा’. भाव स्प्ष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) इस संवाद का केंद्रीय भाव यह है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मोह त्यागकर युद्ध के लिए तैयार होने के लिए कहा था, अर्जुन इसके लिए तैयार हो गया। अब उसके मन में अपने गुरुजनों व आदरणीयों पर अस्त्रशस्त्र संचालन में कोई दुविधा नहीं रही।
(ii) अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मेरे मन में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो गया है। आप की कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया है। अब मैं संशयहीन होकर अपना कर्तव्य पालन करूँगा।
(iii) अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि हे केशव! आपने मेरे मन में व्याप्त दुविधा समाप्त कर दी है। पहले मेरी चिंता का विषय यह था कि मैं अपने गुरुजनों या आदरणीयों का वध करूँगा तो मुझे पाप लगेगा। इस कर्म से मेरा कल्याण नहीं होगा पर अब यह बात समाप्त हो गई है। मैं अब संशयहीन होकर युद्ध में
अपना कर्तव्य पालन के लिए तैयार हूँ।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) अज्ञान के नाश होने पर अर्जुन के मन में किसका प्रकाश हुआ?
(ii) ‘अब मैं बिना किसी संशय के अपने कर्तव्य का पालन करूँगा’ इस वाक्य से अर्जुन का कैसा चरित्र दर्शकों के समक्ष आता है?
(iii) क्या इस संवाद को रंगमंचीय कहा जा सकता है?
उत्तर
(i) अज्ञान के बाद अर्जुन के मन में ज्ञान रूपी प्रकाश फैल गया।
(ii) अब मैं बिना किसी संशय के अपने कर्तव्य का पालन करूँगा से अर्जुन के चरित्र का यह गुण प्रकट होता है कि वह कर्त्तव्यपालक है।
(iii) यह संवाद निश्चित रूप से रंगमंचीय है क्योंकि यह संक्षिप्त है, सारगर्भित है और सरल व सरस शब्दावली से युक्त है।

9. हाँ बच्चो! सुख-दुख एवं हानि-लाभ को हमें एक समान इसलिए समझना चाहिए क्योंकि सुख और दुख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं।

शब्दार्थ : सुख-दुख = सुख और दुख । बंधन = फंसना, बंधना।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस नाटक से तुमने क्या सीखा? रोहिणी कहती है कि सुख-दुख व लाभ-हानि में सबको समान रहना चाहिए। अशोक कहता है कि पाप और पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। यहाँ गुरु जी बच्चों के कथन का समर्थन कर रहे हैं।

व्याख्या : गुरु जी ने बच्चों से पूछा था कि श्रीमद्भगवद्गीता के अंश पर आधारित नाटक से आपको क्या शिक्षा मिलती है? इस पर बच्चों ने उन्हें बताया था कि इस अंश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सुख और दुख, पाप और पुण्य और लाभ-हानि में समान रहना चाहिए। बच्चों के उत्तर से गुरु जी सहमति जताते हैं। उन्हें बताते हैं कि यह बिलकुल ठीक है। हमें सुख हो चाहे दुख, हमें चाहे नुकसान हो जाए और चाहे फायदा, दोनों ही स्थितियों में समान भाव रखना चाहिए। अगर ऐसा न करते हैं तो हम बंधन में बंध जाते हैं। हमारे मन में तरह-तरह का मोह पैदा हो जाता है। इस कारण हम अपने कर्त्तव्य को पूरा नहीं कर पाते।

विशेष-

  1. गुरुजी ने बच्चों से नाटक से मिलने वाली शिक्षा पूछी जिसका उन्हें सही उत्तर मिला।
  2. बच्चों को गुरु जी ने समझाया कि उन्हें सुख-दुख और हानि-लाभ में एक जैसा मन रखना चाहिए। ऐसा न करने पर हम अपना कर्त्तव्य पूरा नहीं कर पाते।
  3. भाषा सरल और सरस है। भावानुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) गुरुजी ने अपने शिष्यों को इस संवाद के माध्यम से क्या संदेश दिया?
(ii) सुख और दुख, लाभ-हानि में एक समान रहने से क्या अभिप्राय है?
(iii) सुख और दुख या लाभ या हानि हमें बंधन में किस प्रकार डालते हैं?
उत्तर
(i) गुरु जी ने अपने शिष्यों से कहा कि हमें सुख-दुख, लाभ-हानि को एक समान समझना चाहिए। अगर ऐसा समझा जाएगा तो हम इनके कारण होने वाले बंधन से अपने को दूर कर सकते हैं।
(ii) अगर हमें किसी कारण सुख मिलता है तो यह मानना चाहिए कि दुख भी आएगा। और दुख में भी हमें उसी तरह अपने मन को स्वस्थ रखना है जिस तरह सुख में रखा है। इसी तरह अगर हमें किसी कारण हानि हो जाती है तो अपना व्यवहार उसी तरह रखना चाहिए जैसे लाभ होने पर रखते हैं। जब इस तरह के भावों में किसी प्रकार का भेद नहीं समझेंगे, तब हम निश्चित रूप से एक समान रहना सीख जाएंगे। न तो हमें सुख होने पर अतिशय प्रसन्नता होगी और न दुख होने पर अतिशय दुख। हम सुख और दुख में समान रहेंगे।
(iii) जब हम दुख और सुख को अलग अलग मानने लगते हैं. तब हम बंधन में बंध जाते हैं। सुख देखकर कहते हैं कि हमें दुख कभी न आए। इसी तरह अगर लाभ प्राप्त कर रहे हैं तो चाहते हैं कि हानि कभी न आए। यही बंधन कहलाता है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) सुख दुख को समान समझना चाहिए इसे गुरु जी अपने शिष्यों को किस माध्यम से समझाया?
(ii) एकांकीकार ने यह संवाद क्यों लिखा?
(iii). इस संवाद के तत्सम शब्दों को लिखिए।
उत्तर
(i) सुख दुख को समान समझना चाहिए इसे गुरु जी ने बच्चों से श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का अभिनय करवाकर समझाया।
(ii) गुरु जी ने बच्चों से पूछा था कि इस नाटक से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है, बच्चों ने इससे मिलने वाली शिक्षा के बारे में बताया। तब बच्चों की बात का समर्थन करते हुए गुरु जी ने कहा कि बिलकुल ठीक। हमें सुख और दुख, हानि और लाभ में समान रहना चाहिए। .
(iii) संवाद के तत्सम शब्द :
सुख – दुख
हानि – लाभ
समान – बंधन

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10. जव हमें सुख मिलता है तो हम इस चिंता में पड़ जाते हैं कि कहीं यह सुख हमसे छिन न जाए और जब हम दुख में भी नहीं होते तब भी इस चिंता में रहते हैं कि कहीं दुःख न आ जाए। यही तो वह बंधन है जिससे हम मुक्त नहीं हो पाते।

शब्दार्थ : मुक्त = स्वतंत्र। प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्त्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी ने बच्चों से कहा था कि हमें सुख और दुख में समान व्यवहार करना चाहिए। ऐसा न करने पर हमें बंधन घेर लेता है। इस पर रोहिणी ने पूछा था कि बंधन क्या होता है? गुरु जी इस संवाद में उसे उत्तर दे रहे हैं।

व्याख्या : हम सुख और दुख को समान नहीं देख पाते। यही बंधन होता है। वस्तुतः जब हमारे जीवन में कभी सुख आता है तो हमारे सामने यह समस्या आकर खड़ी हो जाती है कि आखिर इस सुख की कैसे रक्षा की जाए। कहीं ऐसा न हो कि कोई यह हमसे छीन कर ले जाए और हम फिर दुख में घिर जाएं। हमारी यह स्थिति होती है कि हमें चाहे दुख ने आकर घेरा न हो पर तब भी हम इस चिंता में डूब जाते हैं कि कहीं यह आ न जाए। यही एक बंधन है कि हम सुख की रक्षा करने का प्रयास करते हैं और दुख आने की आशंका में चिन्तित रहते हैं। यह मोह के कारण है और इसे ही बंधन कहा जाता है।

विशेष-

  1. इस संवाद में एकांकीकार ने बंधन को परिभाषित किया है।
  2. एकांकीकार ने गीता का हवाला देकर कहा है कि सुख आने पर इसके जाने का भय रहता है और दुख न होने पर भी दुख के आने का। यही बंधन कहलाता है।
  3. संवाद दार्शनिक हो गया है।
  4. रंगमंचीय भाषा है। प्रवाहमय और प्रभावपूर्ण है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) सुख मिलने पर हम क्या चिंता करते हैं?
(ii) दुख में न होने पर भी हमारी चिंता क्यों बढ़ जाती है?
(iii) किस बंधन से हम मुक्त नहीं हो पाते?
उत्तर
(i) जब हमें सुख प्राप्त हो जाता है तो हम चिंता करते हैं कि यह हमारे . पास हमेशा रहे। हम सदैव ऐसा प्रयास करते हैं कि यह हमसे छिन न जाए। ..
(ii) हम सुख में रहते हुए इस चिंता में हमेशा डूबे रहते हैं कि कहीं हमें दुख न प्राप्त हो जाए। चाहे हम सुख से रह रहे हैं, और हमें दुख ने आकर घेरा भी न हो पर इस चिंता में सूखते चले जाते हैं कि कहीं दुख आ न जाए। अगर दुख आ गया तो हमें वह सहन करना कठिन हो जाएगा।
(iii) सुख में दुख आने की संभावित आशंका से हम व्यथित रहने लगते हैं। इसे ही गीता के अनुसार बंधन कहा गया है। और इस बंधन से हम आजन्म मुक्त नहीं हो पाते।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) गुरु जी ने किस शिष्य के प्रश्न पर यह उत्तर दिया?
(ii) सुख में दुख को अनुभव कब नहीं हो सकता?
(iii) संवाद से तत्सम शब्दों का चुनाव कीजिए।
उत्तर
(i) गुरु जी से रोहिणी ने पूछा था कि बंधन क्या होता है, गुरु जी ने इस संवाद में रोहिणी के प्रश्न का सटीक उत्तर दिया।
(ii) जब हम सुख और दुख को समान भाव से समझने लगेंगे तब सुख में दुख का अनुभव नहीं हो सकता।
(iii) संवाद से तत्सम शब्दों का चुनाव :
सुख – चिंता
बंधन – मुक्त

11. एकदम सही प्रश्न किया तुमने! मान लो किसी कमरे में बहुत लंबे समय से घना अँधेरा है किंतु जैसे ही उसमें प्रकाश किया जाता है अँधेरा अपने आप दूर हो जाता है। उसी प्रकार अतीत में किए गए पापों का अँधेरा पुण्य के एक ही कार्य से दूर हो जाता है।

शब्दार्थ : एकदम = बिलकुल । घना = ज्यादा । प्रकाश = रोशनी। अतीत = भूतकाल, बीता हुआ समय।।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस नाटक से तुमने क्या सीखा? इसी क्रम में नकुल गुरु जी से पूछता है कि हमें भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए। गुरु जी इस संवाद में उसके प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं।

व्याख्या : गुरु जी ने नकुल से कहा कि तुम्हारा प्रश्न उचित है। हमें निश्चित रूप से पाप और पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। किसी कमरे में काफी समय से अँधेरा छाया हुआ है। जब उसमें प्रकाश कर दिया जाता है तो उस कमरे का अँधेरा स्वयं दूर हो जाता है, उसी तरह अगर हमने बीते समय में बहुत ज्यादा पाप किए हैं तो पुण्य का एक ही काम सब पापों को दूर कर देता है। इसीलिए कहा गया है कि व्यक्ति को पाप और पुण्य के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। इन्हें तो समान समझना चाहिए। पाप के बाद पुण्य और पुण्य के बाद पाप आता रहता है। जो इसे समान समझते हैं उन्हें इस संबंध में कोई भ्रम नहीं होता।

विशेष-

  1. इस संवाद में गुरु जी ने शिष्य के इस प्रश्न का उत्तर दिया है कि पाप और पुण्य के भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए।
  2. पाप-पुण्य के भ्रम से दूर रहने के लिए उदाहरण का आश्रय लिया गया है।
  3. इसे दृष्टांत या उदाहरण अलंकार कहा जा सकता है।
  4. भाषा भाव के अनुकूल है और प्रवाहमय है।
  5. रंगमंचीय संवाद है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्नः
(i) नकुल ने गुरु जी से क्या प्रश्न किया?
(ii) पाप-पुण्य के भ्रम को दूर करने के लिए गुरुजी ने क्या उदाहरण दिया?
(iii) पाप और पुण्य के भ्रम में हमें क्यों नहीं पड़ना चाहिए?
उत्तर
(i) नकुल ने गुरु जी से प्रश्न किया कि हमें पाप और पुण्य के भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए।
(ii) पाप-पुण्य के भ्रम को दूर करने के लिए गुरु जी सटीक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि जैसे अंधकारभरे कमरे में प्रकाश करने पर अंधेरा स्वयं दूर हो जाता है उसी प्रकार हमने कितने भी पाप किए हैं हमारा एक पुण्य का काम सभी पापों को दूर कर देता है।
(iii) पाप और पुण्य का आना-जाना लगा ही रहता है। इसलिए इस भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए कि अमुक काम करने पर पाप लगेगा और अमुक करने पर पुण्य पाप-पुण्य को सुख-दुख की तरह समान भाव से स्वीकार करना चाहिए।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) पाप-पुण्य के भ्रम में न पड़ने के प्रश्न पर गुरुजी की क्या प्रतिक्रिया थी?
(ii) अंधकारमय कमरे में प्रकाश करने से अंधेरा स्वयं दूर हो जाता है, इस उदाहरण का औचित्य क्या है?
(iii) निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखिए : सही, प्रश्न, लंबे, घना, अँधेरा, अतीत, दूर।
उत्तर
(i) पाप-पुण्य के भ्रम पर न पड़ने वाले नकुल के प्रश्न को गुरु जी ने एकदम सही प्रश्न बताया।
(ii) यह स्वाभाविक है। अगर किसी कमरे के भीतर लंबे समय से अंधकार छाया है तो प्रकाश से अंधकार स्वयं दूर हो जाता है। इस उदाहारण का औचित्य है कि पापों का समूह भी एक पुण्य से ही नष्ट हो जाता है। वस्तुतः यह भ्रम है। जैसे सुख-दुख में व्यक्ति को समान रहना चाहिए उसी प्रकार पाप और पुण्य के भाव में भी समान ही रहना चाहिए।
(iii) शब्दों के विलोम शब्द
शब्द – विलोम
सही – गलत
प्रश्न – उत्तर
लंबे – छोटे
घना – कम
अँधेरा – प्रकाश
अतीत – वर्तमान

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12. कृष्ण ने अर्जुन से ऐसा क्यों कहा कि तू केवल अपने कर्तव्य को कर फल की इच्छा त्याग दे। गुरु जी! जब फल की इच्छा ही नहीं होगी तो हम कर्म क्यों करेंगे?

शब्दार्थ : केवल = मात्र। इच्छा = ख्वाइश। कर्म = कर्तव्य। – प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्त्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक
पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस नाटक से तुमने क्या सीखा? नाटक देखकर सिद्धार्थ के मन में एक दुविधा पैदा हो गई। इसमें गुरु जी सिद्धार्थ की इसी दुविधा को दूर कर रहे हैं।

व्याख्या : जब कक्षा में श्रीमद्भगवद्गीता पर आधारित अंश को नाटक के रूप में मंचित किया जा रहा था तब बच्चों ने देखा था कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि तू केवल कर्म कर, फल की इच्छा त्याग दे। यह संवाद सुनकर सिद्धार्थ के हृदय में एक दुविधा पैदा हो गई थी। उसने गुरु जी से इस दुविधा के बारे में पूछा था कि श्रीकृष्ण ने यह बात क्यों कही कि केवल कर्तव्य कर फल की इच्छा मत कर। अगर फल की इच्छा न होगी तो तब कोई कर्म करेगा ही क्यों?

विशेष-

  1. सिद्धार्थ के मन में यह शंका उठनी स्वाभाविक ही है कि जब हम कर्म करने के बाद फल ही प्राप्त नहीं कर पाएँगे तब हमें कर्म करने की आवश्यकता ही क्या है?
  2. इसी तरह की शंका अर्जुन ने श्रीकृष्ण से अप्रत्यक्षतः की थी परिणामतः उन्होंने उसे कर्म करने व फल की चिंता न करने का उपदेश दिया था।
  3. भाषा सरल और सरस है, भावानुकूल है।
  4. संवाद रंगमंचीय विशेषताएँ लिए हुए है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) सिद्धार्थ के मन में क्या दुविधा उत्पन्न में हुई?
(ii) ‘तू केवल अपने कर्तव्य को कर फल की इच्छा त्याग दे’ आशय समझाइए।
(iii) ‘गुरु जी फल की इच्छा ही नहीं होगी तो हम कर्त्तव्य क्यों करेंगे?’
उत्तर
(i) सिद्धार्थ के मन में दुविधा पैदा हुई कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से ये क्यों कहा कि कर्तव्य कर फल की इच्छा त्याग दे। अगर कोई फल की इच्छा ही नहीं करेगा तो कर्त्तव्य क्यों करेगा।
(ii) यह कथन श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि तुझे केवल कर्म करना चाहिए अर्थात् कर्त्तव्य करना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि इस कर्तव्य को करने पर मुझे क्या फल मिलेगा। जो लोग कर्त्तव्य करने से पहले फल की इच्छा करने लगते हैं, वे ठीक से अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पाते, परिणामतः उन्हें उसका उचित फल भी प्राप्त नहीं करते।
(iii) यह प्रश्न सिद्धार्थ ने गुरु जी से किया है। गुरु जी अपने छात्रों को बता रहे थे कि उन्हें केवल कर्म या कर्त्तव्य करना चाहिए, उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस पर सिद्धार्थ ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति कर्म या कर्त्तव्य इसलिए करता है ताकि उसे उसका उचित फल प्राप्त हो। अगर वह फल की इच्छा ही नहीं क़रेगा तो वह अपना मन कर्त्तव्य में क्यों लगाएगा?

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कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) फल की इच्छा त्यागने और कर्म या कर्त्तव्य बात गीता में किसने किससे और क्यों कही है?
(ii) गीता में किस अध्याय में कहा गया है कि कर्म कर फल की चिंता मत कर।
(iii) कर्त्तव्य, इच्छा, कर्म शब्दों का वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग कीजिए कि अर्थ स्पष्ट हो जाए।
उत्तर
(i) फल की इच्छा त्यागने और कर्म या कर्त्तव्य करने की बात श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कही है। इसलिए कही है कि रणभूमि में गुरुजनों व निकटतम संबंधियों को खड़े देखकर अर्जुन के मन में मोह उत्पन्न हो गया था।
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में कहा गया है कि कर्म करना ही तेरा अधिकार है फल की चिंता करना नहीं। यह कथन इस अध्याय के सैंतालीसवें श्लोक में है।
(iii) वाक्य में प्रयोग :
शब्द – वाक्य
कर्तव्य – आप अपने कर्तव्य का निर्वहण कीजिए, शेष मुझ पर छोड़ दीजिए।
इच्छा – केवल इच्छा करने से ही सफलता नहीं मिलती, परिश्रम भी करना पड़ता है।
कर्म- जैसा व्यक्ति कर्म करता है उसके अनुसार ही उसे फल मिलता

13. अब ये बताओ, यदि इन वृक्षों को लगानेवाला व्यक्ति ये सोचता कि इनके फल मुझे खाने को मिलेंगे तभी मैं इन्हें लगाऊँगा। तब तो कोई भी व्यक्ति न तो वृक्ष लगाता और न ही हमें उसके फल खाने को मिलते। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को केवल अपना कर्म करना चाहिए। है ना?

शब्दार्थ : वृक्षों = पेड़ों। प्रत्येक = हरेक, हर एक।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्त्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस नाटक से तुमने क्या सीखा? जब गुरु जी नाटक की शिक्षा के बारे में बच्चों से बात करे रहे थे तब एक विद्यार्थी सिद्धार्थ ने पूछा कि अगर हमारे मन में फल की इच्छा नहीं होगी तो हम कर्म करेंगे ही क्यों? गुरु जी सिद्धार्थ को उदाहरण के द्वारा अपनी बात समझा रहे हैं।

व्याख्या : गुरु जी ने सिद्धार्थ के प्रश्न का उत्तर देने से पहले बच्चों से पूछा कि हम यहाँ मेवे व फल आदि खाते हैं, क्या ये वृक्ष हमने लगाए थे? इस पर सभी छात्र कहते हैं कि नहीं, हमने वे वृक्ष नहीं लगाए। हम तो उनसे उतरे या टूटे फल खा रहे हैं। वे फिर पूछते हैं कि अगर कोई व्यक्ति वृक्ष लगता है और यह सोचता है कि अगर इसके फल मुझे खाने को मिलेंगे तो लगाऊँगा। तो ऐसा तो कभी होता नहीं है। वृक्ष कोई लगाता है उसके फल कोई ओर खाता है। ऐसे में कर्म करने वाला कोई और है और फल खाने वाला कोई ओर । वृक्ष किसने लगाया लेकिन उसका फल उसने नहीं खाया। उसका फल खाया किसी अन्य ने, जैसे आम का पेड़ लगाया मुरादाबाद के एक व्यक्ति ने और फल खाने वाले हुए उज्जैन की मंडी में आम खरीदने वाले हम लोग। अतः हमें केवल कर्म करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

विशेष

  1. एकांकीकार ने गुरु जी के माध्यम से बच्चों को उदाहरण के साथ समझाया है कि हमें कर्म करना चाहिए किंतु फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
  2. उदाहरण और दृष्टांत अलंकार है।
  3. भाषा सरल और सहज है। भावानुकूल है।
  4. संवाद रंगमंच के अनुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) वृक्ष लगाने वाला व्यक्ति क्या सोच सकता है?
(ii) वृक्ष लगाने वाले व्यक्ति की सोच का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता?
(iii) यह संवाद किस ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर
(i) वृक्ष लगाने वाला व्यक्ति सोच सकता है कि जब इस वृक्ष के फल मुझे ग्रहण करने ही नहीं हैं तो मैं इसे लगाऊँगा ही क्यों? मुझे तो ये तभी लगाने चाहिए जब इसके फल खाने के लिए उसे भी मिलें।
(ii) अगर वृक्ष लगाने वाला यह सोच लेता कि मैं वृक्ष तभी लगाऊँगा जब मुझे इसके फल खाने को मिलेंगे तो संभवतः वह वृक्ष लगाता ही नहीं। कौन जाने कब वृक्ष फल देगा और लगाने वाला तब न जाने कहाँ होगा। ऐसी स्थिति में वह वृक्ष नहीं लगाता। और हमें भी वृक्ष पर आए फल खाने को नहीं मिलते।
(iii) यह संवाद संकेत कर रहा है कि व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) संवाद में ‘अब ये बताओ’ वाक्यांश किसका है और किसके लिए कहा गया है?
(ii) इस संवाद का पूर्व प्रसंग संक्षेप में बताइए।
(iii) पर्यायवाची शब्द लिखिए:
वृक्ष, फल, कर्म
उत्तर
(i) संवाद में अब ये बताओ कथन गुरुजी का है और सिद्धार्थ के लिए कहा गया है।
(ii) इस संवाद का पूर्व प्रसंग यह है-गुरु जी ने कहा था कि व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस पर सिद्धार्थ के मन में एक दुविधा पैदा हो गई थी कि अगर हम बिना फल के कर्तव्य करेंगे तो कोई नहीं करेगा क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति तभी किसी कार्य को करने के लिए तत्पर होता है जब उसे उससे फल की आशा होती है। इसी प्रसंग के साथ यह संवाद आरम्भ होता है और गुरु जी उदाहरण के माध्यम से सिद्धार्थ के मन की दुविधा का अंत करते हैं।
(iii) पर्यायवाची शब्द
शब्द – पर्यायवाची शब्द
वृक्ष – तरु
फल – परिणाम
कर्म – कर्तव्य

MP Board Class 9th Hindi Solutions

MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध

MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध

प्रश्न 1.
कविता की परिभाषा और विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
परिभाषा-कविता को परिभाषित करते हुए सुप्रसिद्ध समालोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है

“कविता वह साधन है जिसके द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा और निर्वाह होता है।”

विशेषताएँ-उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार कविता की तीन विशेषताएँ दिखाई देती हैं

  1. कविता मानव एकता की प्रतिष्ठा करने का साधन है और यही उसकी उपयोगिता है।
  2. कविता में भावों और कल्पना की प्रधानता रहती है।
  3. कविता में कवि की अनुभूति की अभिव्यक्ति रहती है।

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प्रश्न 2.
कविता के स्वरूप के कौन-से पक्ष होते हैं?
उत्तर-
कविता का बाह्य स्वरूप-कविता के दो पक्ष होते हैं

  1. अनुभूति,
  2. भिव्यक्ति।

(1) अनुभूति के पक्ष का सम्बन्ध कविता के आन्तरिक स्वरूप से है।
(2) अभिव्यक्ति का सम्बन्ध कविता के बाह्य रूप से है। कविता के बाह्य रूप के निर्धारण में निम्नलिखित कारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है-

  • लय,
  • तुक,
  • छन्द,
  • शब्द योजना,
  • काव्य भाषा,
  • अलंकार,
  • काव्य गुण।

कविता का आन्तरिक स्वरूप-

  1. कविता के आन्तरिक स्वरूप से रसात्मकता, अनुभूति की तीव्रता, भाव और विचारों का समावेश तथा कल्पना की सृजनात्मकता से उत्पन्न सौन्दर्य बोध का सम्बन्ध हुआ करता है।
  2. कविता के स्वरूप के अन्तर्गत भाव सौन्दर्य, विचार सौन्दर्य, नाद सौन्दर्य तथा अप्रस्तुत योजना का सौन्दर्य सम्मिलित हुआ करता है।

प्रश्न 3.
काव्य भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
काव्य-भेद-

  1. दृश्य काव्य,
  2. श्रव्य काव्य।

(1) दृश्य काव्य को हम आँखों से देखते हैं और कानों से सुनते हैं।
(2) श्रव्य काव्य को सुनकर ही उसका रसास्वादन किया जाता है। शैली के आधार पर काव्य भेद-शैली के आधार पर काव्य भेद दो हैं

  1. प्रबन्ध काव्य,
  2. मुक्तक काव्य।

(1) प्रबन्ध काव्य-प्रबन्ध काव्य में महाकव्य, खण्डकाव्य तथा आख्यानक गीतियाँ आती हैं।
(2) मुक्तक काव्य—मुक्तक काव्य में पाठ्य मुक्तक, गेय मुक्तक शामिल हैं।

प्रश्न 4.
महाकाव्य के लक्षण बताइए और उसकी कथा की विशेषता लिखिए।
उत्तर-
महाकाव्य-महाकाव्य के लक्षण (परिभाषा) निम्न प्रकार है

  1. इसमें जीवन की विशद् व्याख्या होती है।
  2. इसकी कथा इतिहास प्रसिद्ध होती है।
  3. महाकाव्य का नायक उदात्त चरित्र, धीर-वीर और गम्भीर होता है।
  4. महाकाव्य में श्रृंगार, शान्त और वीर रस में से कोई एक रस प्रधान रस होता है। शेष रस गौण होते हैं।
  5. महाकाव्य सर्गबद्ध होता है। इसमें कम-से-कम आठ सर्ग होते हैं।

महाकाव्य की कथा की विशेषता-

  1. महाकाव्य की कथा धारा-प्रवाही मार्मिक प्रसंगों पर आधारित होती है।
  2. मूलकथा के साथ-साथ अन्य सहायक कथांश भी इसमें प्रारम्भ से अन्त तक आकर अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।
  3. सहायक कथांशों से मूलकथा परिपुष्ट होती है।

प्रश्न 5.
हिन्दी के प्रसिद्ध महाकाव्य और उनके रचयिताओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
हिन्दी के प्रसिद्ध महाकाव्य और उनके रचयिता
महाकाव्य – रचयिता

  1. रामचरितमानस – गोस्वामी तुलसीदास
  2. पद्मावत मलिक – मुहम्मद जायसी
  3. साकेत – मैथिलीशरण गुप्त
  4. कामायनी – जयशंकर प्रसाद
  5. उर्वशी – रामधारीसिंह ‘दिनकर’

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प्रश्न 6.
खण्डकाव्य किसे कहते हैं? हिन्दी के प्रसिद्ध खण्डकाव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर-
खण्डकाव्य-खण्डकाव्य वह रचना है जिसमें जीवन का कोई एक भाग, एक घटना अथवा एक चरित्र का चित्रण होता है। खण्डकाव्य अपने आप में एक पूर्ण रचना होती है। सम्पूर्ण रचना एक ही छन्द में पूर्ण होती है।

हिन्दी के कुछ प्रसिद्ध खण्डकाव्य-पंचवटी, जयद्रथ वध, नहुष, सुदामा-चरित, पथिक, हल्दीघाटी इत्यादि।

प्रश्न 7.
आख्यानक कृतियाँ किसे कहते हैं? स्पष्ट लिखिए।
उत्तर-
आख्यानक कृतियाँ-महाकाव्य और खण्डकाव्य से भिन्न पदबद्ध कहानी ही आख्यानक कृति है। इसमें वीरता, साहस, पराक्रम, प्रेम और बलिदान, करुणा आदि से सम्बन्धित प्रेरक घटना प्रसंगों को कथा के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। इसकी भाषा सरल, स्पष्ट और रोचक होती है। गीतात्मकता और नाटकीयात्मकता इसकी विशेषता है। झाँसी की रानी, रंग में भंग, तुलसीदास आदि आख्यानक कृतियों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 8.
मुक्तक काव्य किसे कहते हैं? इसके दो प्रकार भी बताइए।
उत्तर-
मुक्तक काव्यं-मुक्तक काव्य में एक अनुभूति, एक भाव और एक ही कल्पना का चित्रण होता है। मुक्तक काव्य की भाषा सरल एवं स्पष्ट होती है। वर्ण्य विषय अपने आप में पूर्ण होता है। इसका प्रत्येक छन्द स्वतन्त्र होता है। उदाहरण-बिहारी, रहीम, वृन्द, सूर, मीरा के दोहे और पद।

मुक्तक काव्य दो प्रकार के होते हैं-

  1. पाठ्य मुक्तक,
  2. गेय मुक्तक।

पाठ्य मुक्तक-पाठ्य मुक्तक में विषय की प्रधानता होती है। प्रसंगानुसार भावानुभूति व कल्पना का चित्रण होता है तथा किसी विचार या रीति का भी चित्रण होता है।

गेय मुक्तक-इसे गीति या प्रगीति काव्य भी कहते हैं। इसमें-

  1. भाव प्रवणता,
  2. सौन्दर्य बोध,
  3. अभिव्यक्ति की संक्षिप्तता,
  4. संगीतात्मकता,
  5. लयात्मकता की प्रधानता होती है।

रस

प्रश्न 1.
रस किसे कहते हैं? इसकी परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
रस को काव्य की आत्मा बताया गया है। जिस तरह आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नहीं होता, उसी तरह रस के बिना काव्य भी निर्जीव माना गया है। ‘रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्’ अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।

यदि काव्य की तुलना मनुष्य से की जाए तो शब्द और अर्थ को काव्य का शरीर, अलंकारों को आभूषण, छन्दों को उसका बाह्य परिधान तथा रस को आत्मा कह सकते हैं। काव्य में रस का अर्थ आनन्द बताया गया है। साहित्यशास्त्र में ‘रस’ का अर्थ अलौकिक या लोकोत्तर आनन्द होता है। अतः “काव्य के पढ़ने, सुनने अथवा उसका अभिनय देखने में पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनन्द मिलता है, वही काव्य में रस कहलाता है।”

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प्रश्न 2.
रस के अंगों (रस को आस्वाद योग्य बनाने में सहायक अवयव) को स्पष्ट रूप से बताइए।
उत्तर-
रस के अंग चार होते हैं-

  • स्थायीभाव,
  • विभाव,
  • अनुभाव,
  • संचारीभाव।

विभाव के दो भेद होते हैं-

  • आलम्बन,
  • उद्दीपन।

आलम्बन भी दो प्रकार का होता है-

  • आशय,
  • विषय।

प्रश्न 3.
रस के भेद बताइए तथा प्रत्येक रस के स्थायी भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
रस – स्थायी भाव

  1. शृंगार – रति
  2. हास्य – हास
  3. करुण – शोक
  4. रौद्र – क्रोध
  5. वीभत्स – जुगुप्सा
  6. भयानक – भय
  7. अद्भुत – विस्मय
  8. वीर – उत्साह
  9. शान्त – निर्वेद

विशेष-आचार्य भरत ने नाटक में आठ रस माने हैं। परवर्ती आचार्यों ने शान्त रस को अतिरिक्त स्वीकृति देकर कुल नौ रस निश्चित कर दिए। काव्य में महाकवि सूरदास ने वात्सल्य प्रधान मधुर पदों की रचना की तो एक अन्य रस-‘वात्सल्य रस’ की भी स्थापना हो गई। आजकल भक्ति को भी रस रूप में स्वीकृति दिये जाने का आग्रह चल रहा है।

प्रश्न 4.
शृंगार रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
शृंगार रस की निष्पत्ति ‘रति’ स्थायी भाव के संयोग से होती है। इसके दो भेद हैं-

  • संयोग शृंगार,
  • वियोग शृंगार।

संयोग शृंगार रस में नायक-नायिका के संयोग (मिलन) की स्थिति का वर्णन होता है।

उदाहरण-
“बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें, भौंहनि हंसै, दैन कहे नटि जाय॥”

वियोग श्रृंगार रस में नायक-नायिका के बिछुड़ने का तथा दूर देश में रहने की स्थिति का वर्णन, वियोग श्रृंगार की व्यंजना करता है-
उदाहरण-
“आँखों में प्रियमूर्ति थी, भूले थे सब भोग।
हुआ योग से भी अधिक, उसका विषम वियोग॥”

प्रश्न 5.
हास्य, करुण और रौद्र रस की परिभाषा सोदाहरण लिखिए।
उत्तर-
हास्य रस-किसी व्यक्ति के विकृत वेश, आकृति तथा वाणी आदि को देख व सुनकर हँसी उत्पन्न हो उठती है, वैसा ही वहाँ का वर्णन होता है, तो वहाँ हास्य रस की निष्पत्ति होती है।

उदाहरण-
“जब धूमधाम से जाती है बारात किसी की सजधज कर।
मन करता धक्का दे दूल्हे को, जा बैतूं घोड़े पर।
सपने में ही मुझको अपनी, शादी होती दिखती है।
वरमालाले दुल्हन बढ़ती, बस नींद तभी खुल जाती है।”

करुण रस-प्रिय वस्तु के विनाश अथवा अनिष्ट के होने से चित्त में आती हुई विकलता करुण रस को उत्पन्न करती है।

उदाहरण-
“अभी तो मुकुट बँधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले भीनचुम्बन-शून्यकपोल,
हाय ! रुक गया यहीं संसार,
बना सिंदूर अंगार।।”

रौद्र रस-जब क्रोध नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट हआ रस दशा को प्राप्त होता है, तो वहाँ रौद्र रस की निष्पत्ति होती है।

उदाहरण-
सुनत लखन के वचन कठोरा।
परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥
अब जनि देउ दोष मोहि लोगू।
कटु वादी बालक वध जोगू॥

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित रसों के स्थायी भाव सहित परिभाषा लिखिए और प्रत्येक का उदाहरण भी दीजिए-
(1) वीर रस,
(2) भयानक रस।
उत्तर-
(1) वीर रस-वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है। वीर रस की निष्पत्ति ओजस्वी वीर घोषणाओं या वीर गीतों को सुनकर अथवा उत्साह बढ़ाने वाले कार्यकलापों को देखने से होती है।
उदाहरण-
“वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें जीवन की रवानी नहीं॥”

(2) भयानक रस-भयानक रस का स्थायी भाव ‘भय’ है। प्रकृति के डरावने दृश्यों, अथवां बलवान शत्रु के प्राणनाशक बोलों को सुनकर भय की उत्पत्ति होने पर भयानक रस की निष्पत्ति होती है।

उदाहरण-
‘हाहाकार हुआ कन्दन मय,
कठिन वज्र होते थे चूर।
हुए दिगन्त बधिर भीषण
रव बार-बार होता था क्रूर॥

अलंकार

प्रश्न 1.
अलंकार का क्या तात्पर्य है? अलंकार की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
अलंकार से तात्पर्य है-शृंगार करना या सजाना या आभूषित करना। जिस तरह एक नारी आभूषणों से अपने शरीर की सज्जा करती है, उसी तरह अलंकार वे तत्व हैं जिनसे काव्य की शोभा बढ़ती है। आचार्य विश्वनाथ के शब्दों में, “अलंकार शब्द-अर्थ स्वरूप काव्य के अस्थिर धर्म हैं और भावों और रसों का उत्कर्ष करते हुए वैसे ही काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, जैसे हार आदि आभूषण नारी की सुन्दरता में चार चाँद लगा देते हैं।”

प्रश्न 2.
अलंकार के भेद बताओ और प्रत्येक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
अलंकार के भेद तीन होते हैं-

  1. शब्दालंकार,
  2. अर्थालंकार,
  3. उभयालंकार।

(1) शब्दालंकार-शब्द विशेष के चमत्कार द्वारा जो अलंकार कविता का सौन्दर्य बढ़ाएँ, वे शब्दालंकार होते हैं।
(2) अर्थालंकार-काव्य में जहाँ अर्थ के द्वारा चमत्कार उत्पन्न करते हैं, वे अर्थालंकार कहलाते हैं।
(3) उभयालंकार-शब्द एवं अर्थ दोनों में चमत्कार पैदा करके काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, वे उभयालंकार होते हैं।

प्रश्न 3.
शब्दालंकार के भेद बताइए और प्रत्येक की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
शब्दालंकार के प्रमुख तीन भेद हैं-

  1. अनुप्रास,
  2. यमक,
  3. श्लेष।

(1) अनुप्रास-जिस काव्य रचना में व्यंजन वर्ण की दो या दो से अधिक बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे-
“तरनि तनूजा तट तमाल, तरुवर बहु छाए।”

यहाँ ‘त’ वर्ण की आवृत्ति की गई है, अतः अनुप्रास अलंकार है।

(2) यमक-यमक अलंकार में एक शब्द बार-बार आए, किन्तु उसका अर्थ हर बार अलग-अलग हो, तो वहाँ यमक अलंकार होता है।
जैसे
“माला फेरत जुग गया, गया न मन को फेर।
करका मनका डारि के मनका मनका फेरि॥”

यहाँ मनका शब्द के दो अर्थ हैं-पहले मन का अर्थ ‘मोती’ तथा दूसरे मन का अर्थ ‘हृदय’ से है।

(3) श्लेष अलंकार-श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ होते हैं।

जैसे-
चिरजीवी जोरी जुरै क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के वीर॥

वृषभानुजा = वृषभानु की पुत्री अर्थात् राधा। वृषभ की अनुजा = गाय। हलधर = कृष्ण के भाई बलराम। हलधर = हल को धारण करने वाला बैल।।

प्रश्न 4.
अर्थालंकार के भेद बताइए और प्रत्येक की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
अर्थालंकार के तीन भेद होते हैं-

  1. उपमा,
  2. रूपक,
  3. उत्प्रेक्षा।

(1) उपमा-जहाँ एक वस्तु अथवा प्राणी की तुलना अत्यन्त सादृश्य के कारण प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है।
जैसे-
“सिंधु सा विस्तृत है अथाह,
एक निर्वासित का उत्साह।”

उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं-

  • उपमेय-जिस व्यक्ति या वस्तु की समानता की जाती है।
  • उपमान-जिस व्यक्ति या वस्तु से समानता की जाती है।
  • साधारण धर्म-वह गुण या धर्म जिसकी तुलना की जाती है।
  • वाचक शब्द-वह शब्द जो रूप-रंग, गुण और धर्म की समानता दर्शाता है। जैसे-सा, सी, सम, समान आदि।

(2) रूपक अलंकार-काव्य में जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप होता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसमें वाचक शब्द का लोप होता है।
जैसे-
“चरण-सरोज पखारन लागा।”

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(3) उत्प्रेक्षा अलंकार-काव्य में जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जनु, जानो, मानो, मानहुँ आदि वाचक शब्द उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान हैं।

जैसे-
“जनु अशोक अंगार दीन्ह मुद्रिका डारि तब।”
“मानो, झूम रहे हैं, तरू भी मंद पवन के झोकों से।”

छन्द

प्रश्न 1.
छन्द की परिभाषा बताइए।
या
छन्द किसे कहते हैं?
उत्तर-
कविता के शाब्दिक अनुशासन का नाम छन्द

इस तरह काव्यशास्त्र के नियम के अनुसार, जिस कविता या काव्य में मात्रा, वर्ण, गण, यति, लय आदि का विचार करके शब्द योजना की जाती है, उसे छन्द कहते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के विषय में जानकारी दीजिएयति, लय, गति, तुक।
उत्तर-

  • यति-छन्द का पाठ करते समय जहाँ थोड़ी देर रुका जाता है, उसे यति कहते हैं।
  • लय-छन्द के पढ़ने की शैली को लय कहते हैं।
  • गति-गति का अर्थ है प्रवाह, अर्थात छन्द को पढ़ते समय प्रवाह एक-सा हो।
  • तुक-पद के चरणों के अन्त में जो समान स्वर आते हैं तथा साम्य बैठाने के लिए, लिये जाते हैं, उन्हें तुक कहते हैं।

प्रश्न 3.
छन्द के भेद बताइए और उनका परिचय दीजिए।
उत्तर-
छन्ददो प्रकार के होते हैं-

  1. वार्णिक छन्द,
  2. मात्रिक छन्द।

(1) वार्णिक छन्द-वार्णिक छन्दों में वर्गों की गणना की जाती है तथा वर्णों की संख्या के आधार पर छन्द का निर्धारण किया जाता है।
(2) मात्रिक छन्द-मात्रिक छन्दों में मात्राओं की गणना की जाती है।

नोट-दोहा, चौपाई मात्रिक छन्द हैं।

प्रश्न 4.
दोहा और चौपाई छन्द के लक्षण उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर-
दोहा-दोहा छन्द के प्रथम और तृतीय चरणों में 13-13 और द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके सम चरणों के अन्त में तगण अथवा जगण का होना जरूरी है।

उदाहरण-
MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध img 1
जा तन की झाँई, परै, स्याम हरित दुति होय॥ चौपाई-चौपाई एक सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण-
MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध img 2

प्रश्न 5.
गण के स्वरूप को समझाइए।
उत्तर-
तीन वर्गों के समूह को गण कहते हैं। वार्णिक छन्दों में वर्ण की गणना की जाती है। उन वर्णों की लघुता और गुरुता के विचार से गुणों के आठ रूप होते हैं।

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प्रश्न 6.
गणों के आठ रूप कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर-
गणों के आठ रूप और मात्राएँ निम्न प्रकार हैं

  • यगण (।ऽऽ)
  • मगण (ऽऽऽ)
  • तगण (ऽऽ।)
  • रगण (ऽ।ऽ)
  • जगण (।ऽ।)
  • भगण (ऽ।।)
  • नगण (।।।)
  • सगण (।।ऽ)

महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान पूर्ति

1. कविता के द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के ……………………… सम्बन्ध की रक्षा होती है। (रागात्मक/विवादात्मक)
2. अनुभूति के पक्ष का सम्बन्ध कविता के ……………………… स्वरूप से (बाह्य/आन्तरिक)
3. पद्मावत के रचयिता ……………………… हैं। (रहीम/मलिक मुहम्मद जायसी)
4. ‘रस’ को काव्य की ……………………… बताया गया है। (आत्मा/शरीर)
5. अर्थालंकार के ……………………… भेद हैं। (तीन/पाँच)
उत्तर-
1. रागात्मक,
2. आन्तरिक,
3. मलिक मुहम्मद जायसी,
4. आत्मा,
5. तीन।

सही विकल्प चुनिए

1. काव्य भेद हैं
(क) दृश्य काव्य
(ख) श्रव्य काव्य
(ग) दृश्य और श्रव्य काव्य
(घ) नाट्य और कथ्य काव्य।
उत्तर-
(ग) दृश्य और श्रव्य काव्य

2. ‘कामायनी’ के रचयिता हैं
(क) तुलसीदास
(ख) मीराबाई
(ग) जयशंकर प्रसाद’
(घ) पन्त।
उत्तर-
(ग) जयशंकर प्रसाद’

3. ‘रस’ के बिना काव्य माना जाता है-
(क) सजीव
(ख) निर्जीव
(ग) व्यर्थ
(घ) सार्थक।
उत्तर-
(ख) निर्जीव

4. ‘रस’ के भेद हैं
(क) नौ
(ख) बारह
(ग) पाँच
(घ) सात।
उत्तर-
(क) नौ

5. श्रृंगार रस के भेद होते हैं
(क) दो
(ख) चार
(ग) आठ
(घ) सात।
उत्तर-
(क) दो

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध img 3
उत्तर-
(i) → (ख),
(ii) → (क),
(iii) → (ङ),
(iv) → (ग),
(v) → (घ)।

सत्य असत्य

1. तीन वर्गों के समूह को ‘गण’ कहते हैं।
2. छन्द के पढ़ने की शैली को गति कहते हैं।
3. कविता के शाब्दिक अनुशासन का नाम छन्द है।
4. प्रबन्ध और मुक्तक काव्य-शैली के आधार पर काव्य भेद होते हैं।
5. ‘रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्’ (रसयुक्त वाक्य ही काव्य होता है)।
उत्तर-
1. सत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा का साधन बताइए।
उत्तर-
काव्य।

2. एक ही छन्द में रचित एक घटना का चित्रण पूर्ण रूप से करने वाली रचना को क्या कहते हैं?
उत्तर-
खण्डकाव्य।

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3. रसयुक्त वाक्य को क्या नाम दिया गया है?
उत्तर-
कविता।

4. ‘सिन्धु सा विस्तृत है अथाह, ‘एक निर्वासित का उत्साह’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
उपमा।

5. पद के चरणों के अन्त में समान स्वर में साम्य बैठाने के लिए गृहीत पद क्या कहे जाते हैं?
उत्तर-
तुक।

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MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3

MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3

Question 1.
Find the remainder when x3 + 3x3 + 3x + 1 is divided by

  1. x + 1
  2. x – \(\frac{1}{2}\)
  3. x
  4. x + π
  5. 5 + 2x.

Solution:
Let p(x) = x3 + 3x2 + 3x + 1

1. x + 1
x + 1 = 0
x = – 1
Remainder
= p(- 1)= (- 1)3 + 3 (- 1)2 + 3 (-1) +1
= – 1 + 3 – 3 + 1 = 0.

2. x – \(\frac{1}{2}\) = 0
x =π
When p(x) is divided by ( x – \(\frac{1}{2}\)) the remainder is P(\(\frac{1}{2}\))
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3 img-1

3. x = 0
When p(x) is divided by x, the remainder is p(0).
p(0) = (0) + 3(0)2 + 3(0) + 1
= 0 + 0 + 0 + 1 = 1

4. x + π = 0
x = – π
When p(x) is divided by (x + π), the remainder is p(- π) p(- K) = (- π)3 + 3 (- π)2 + 3 (- π) + 1
= – π3 + 3π2 – 3π + 1

5. 5 + 2x = 0 x = \(\frac{-5}{2}\)
When p(x) is divided by (5 + 2x), the remainder is p(\(\frac{-5}{2}\))
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3 img-2

Question 2.
Find the remainder when x3 – ax2 + 6x – a is divided by x – a.
Solution:
Let p(x) = x2 – ax2 + 6x – 1
x – a = 0
x = a
Remainder = (a)3 – a(a)2 + 6(a) – a
= a2 – a2 + 6a – a
= 5a.

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Question 3.
Check whether 7 + 3x is a factor of 3x3 + 7x.
Solution:
p(x) = 3x3 + 7x
7 + 3X = 0
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3 img-3
(7 + 3x) is not a factor of p(x).

Factorization of Polynomials:

Factor Theorem:
Let p{x) be any polynomial of degree equal to or greater than 1 and ‘a’ be any real number such that –

  1. If p(a) = 0, then (x – a) is a factor of p(x)
  2. If (x – a) is a factor then p(a) = 0

Proof:
Let p(x) be a polynomial of degree ≥ 1 and be a real number.

1. If p(a) = 0, then (x – a) is a factor of p(x)
Suppose q(x) be the quotient when p(x) is divided by (x – a). By remainder theorem, remainder = p(a).
P(x) = (x – a) x q(x) + p(a)
p(x) = (x – a) x q(x) (∴ p(a) = 0, given)
= (x – a) is a factor of p(x).

2. If (x – a) is a factor then p(a) = 0
=> p(x) when divided by (x – a) gives remainder = 0 …(i)
But by remainder theorem
When p(x) is divided by (x – a), remainder = p(a) …(ii)
From (i) and (ii), we get
p(a) = 0 Proved.

MP Board Class 9th Maths Solutions

MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2

MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2

Question 1.
Find the value of the polynomial 5x – 4x2 + 3 at

  1. x = 0
  2. x = – 1
  3. x = 2.

Solution:
Let f(x) = 5x – 4x2 + 3

1. Value of f(x) at x = 0
= f(0) = 5(0) – 4(0)2 + 3 = 3

2. Value of f(x) at x = – 1
= f(- 1) = 5(- 1) – 4(- 1)2 + 3
= – 5 – 4 + 3 = – 6

3. Value of f(x) at x = 2
= f(2) = 5(2) – 4(2)2 + 3
= 10 – 16 + 3 = – 3.

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Question 2.
Find p(0), p(1) and p(2) for each of the following polynomials:

  1. p(y) = y2 – y + 1
  2. p(t) = 2 + t + 2t2 – t3
  3. p(x) = x3
  4. p(x) = (x – 1)(x + 1)

Solution:
1. p(y) = y2 – y + 1
P(0) = (0)2 – (0) + 1
= p(1) = (1)2 – (1) + 1 = 1,
and p(2)2 = (2)2 – (2) + 1
= 4 – 2 + 1 = 3.

2. p(t) = 2 + t + 2t2 – t3
p(0) = 2 + 0 + 2(0)2 – (0)2 = 2
p(1) = 2 + 1 + 2(1)2 – (1)2
= 2 + 1 + 2 – 1 = 4
and p(2) = 2 + 2 + 2(2)2 – (2)3
= 2 + 2 + 8 – 8 = 4

3. p(x) = x3
p(0) = (0)2 = 0,
p(1) = (1)2 = 1,
and p(2) = (2)3 = 8.

4. p(x) = (x – 1) (x + 1)
p(0) = (0 – 1) (0 + 1) = (- 1) (1) = – 1
P(1) = (1 – 1) (1 + 1) = (0) (2) = 0 and
p(2) = (2 – 1) (2 + 1) = (1) (3) = 3

Question 3.
Verify whether the following are zero of the polynomial, written against them.

  1. p(x) = 3x + 1, x = – \(\frac{1}{3}\)
  2. p(x) = 5x – π, x = \(\frac{4}{5}\)
  3. p(x) = x2 -1, x = 1, – 1
  4. p(x) = (x + 1) (x – 2), x – 1, 2
  5. p(x) = x2, x = 0
  6. p(x) = lx + m, x = – \(\frac{m}{l}\)
  7. p(x) = 3x2 – 1, x = – \(\frac{1}{\sqrt{3}}\), \(\frac{2}{\sqrt{3}}\)
  8. p(x) = 2x + 1, x = \(\frac{1}{2}\)

Solution:
1. p(x) = 3x + 1
x = – \(\frac{1}{3}\)
p(- \(\frac{1}{3}\)) = 3(- \(\frac{1}{3}\)) + 1 = 0
= – 3 x \(\frac{1}{3}\) + 1 = – 1 + 1 = 0
As p(- \(\frac{1}{3}\)) = 0, – \(\frac{1}{3}\) is the zero of p(x).

2. p(x) = 5x – π
x = \(\frac{4}{5}\)
p(\(\frac{4}{5}\)) = 5 x \(\frac{4}{5}\) – π = 4 – π
As p(\(\frac{4}{5}\)) ≠ 0,
\(\frac{4}{5}\) is not the zero of p(x).

3 p(x) = x2 – 1, x = 1, -1
P(1) = (1)2 – 1 = 1 – 1 = 0
p(-1) = (-1)2 – 1 = 1 – 1 = 0
As p(1) = 0 and p(-1) = 0
Both 1 and -1 are the zeros of p(x).

4. p(x) = (x + 1)(x – 2)
x = – 1, 2
p(- 1) = (-1 + 1) (- 1 – 2)
= (0) (-3) = 0
p( 2) = (2 + 1) (2 – 2)
= 3 x 0 = 0
As p(- 1) = 0 and p(2) = 0,
Both -1 and 2 are the zeros of p(x).

5. p(x) = x2
x = 0
P(0) = (0)2 = 0
As p(0) = 0, 0 is a zero of p(x)

6. p(x) = lx + m, x = – \(\frac{m}{l}\)
p(- \(\frac{m}{l}\)) = l x – \(\frac{m}{l}\) + m
As p(- \(\frac{m}{l}\)) = 0, (-\(\frac{m}{l}\)) is a zero of p(x).

7.
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2 img-1
8.
MP Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2 img-2

Question 4.
Find the zero of the polynomial in each of the following cases:

  1. p(x) = x + 5
  2. p(x) = x – 5
  3. p(x) = 2x + 5
  4. p(x) = 3x – 2
  5. p(x) = 3x
  6. p(x) = ax, a ≠ 0
  7. p(x) = cx + d, c ≠ 0, c, d are real numbers.

Solution:
1. p(x) = x + 5
p(x) = 0
x + 5 = 0
x = – 5
∴ – 5 is a zero of the polynomial p(x).

2. P(x) = x – 5
p(x) = 0
x – 5 = 0 x = 5
∴ 5 is a zero of the polynomial p(x).

3. p(x) = 2x + 5
2x + 5 = 0
x = – \(\frac{5}{2}\)
∴ – \(\frac{5}{2}\) is the zero of p(x).

4. p(x) = 3x – 2
3x – 2 = 0
x = \(\frac{2}{3}\)
∴ \(\frac{2}{3}\) is the zero of p(x)

5. p(x) = 3x
3x = 0
x = \(\frac{0}{3}\)
∴ 0 is the zero of p(x).

6. p(x) = ax where a ≠ 0
ax = 0
x = \(\frac{0}{a}\)
∴ 0 is the zero of p(x).

7. p(x) = cx + d where c ≠ 0, c, d are real numbers
cx + d = 0
x = – \(\frac{d}{c}\)
∴ – \(\frac{d}{c}\) is the zero of p(x).

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Remainder Theorem:
If a polynomial p{x) is divided by another polynomial (x – a), the remainder isp(a). Where p(x) is any polynomial of degree greater than or equal to one and also degree p(x) > degree p(a) ‘a’ be any real number.

Dividend = divisor x quotient + remainder

Proof:
Let p(x) be any polynomial with degree greater than or equal to 1, suppose that when p(x) is divided by x – a, the quotient is q(x) and remainder is r(x).
p(x) – (x – a) x q(x) + r(x)
p(x) = (x – a) x q(x) + r(x)…..(i)

Case I:
If r(x) = 0
Equation reduce to
p(x) = (x – a) q(x) ……(ii)
On putting x = a, in (ii),
We get p(a) = (a – a) q(a)
p(a) = 0 = Remainder

Case II:
If r(x) ≠ 0
Equation (i) reduced to
p(x) = (x – a) q(x) + r …..(iii)
On putting x = a in (iii), we get
p(a) =(a – a) x q(x) + r
p(a) = r = Remainder
∴ So the remainder is p(a) when p(x) is divided by (x – a).

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MP Board Class 9th Special Hindi अपठित बोध

MP Board Class 9th Special Hindi अपठित बोध

MP Board Class 9th Special Hindi अपठित गद्यांश

निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. मानव जीवन में उत्तरदायित्व का विशेष स्थान है। अवगुणों को दूर करने के लिए एवं जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए उत्तरदायित्व का ज्ञान होना अति आवश्यक है। उत्तरदायित्व आ जाने पर मनुष्य बुद्धिमान हो जाता है। उदाहरण के लिए, बुरी आदतों वाले लोग, शिक्षक जैसे पद को प्राप्त कर अपनी बुरी आदतों को छोड़ देते हैं। इसी प्रकार उद्दण्ड नवयुवक भी गृहस्थी का भार आ जाने पर विचारशील बन जाते हैं।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त (सटीक) शीर्षक चुनिए।
2. जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक है?
3. लोग अपनी बुरी आदतों को कब छोड़ देते हैं?
4. विलोम शब्द बताइए-सफलता, आवश्यक।
5. ‘उत्तरदायित्व’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. ‘उत्तरदायित्व’।
2. जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए उत्तरदायित्व का ज्ञान होना अति आवश्यक हैं।
3. लोग अपनी बुरी आदतों को शिक्षक जैसे पद को प्राप्त करके छोड़ देते हैं।
4. असफलता, अनावश्यक।
5. ‘उत्तरदायित्व’ का निर्वाह करने पर मनुष्य प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो सकता है।

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2. राष्ट्रीय एकता प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र के लिए नितान्त आवश्यक है। जब भी धार्मिक या जातीय आधार पर राष्ट्र से अलग होने की कोशिश होती है, हमारी राष्ट्रीय एकता के खण्डित होने का खतरा बढ़ जाता है। यह एक सुनिश्चित सत्य है कि राष्ट्र का स्वरूप निर्धारित करने में वहाँ निवास करने वाले जन एक अनिवार्य तत्व होते हैं। भावात्मक स्तर पर स्नेह सम्बन्ध सहिष्णुता, पारस्परिक सहयोग एवं उदार मनोवृत्ति के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की अभिव्यक्ति होती है। राष्ट्र को केवल भूखण्ड मानकर उसके प्रति अपने कर्तव्यों से उदासीन होने वाले जन राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में कदापि सहायक नहीं हो सकते। वस्तुतः राष्ट्रीय एकता को व्यवहार में अवतरित करके ही राष्ट्र के निवासी अपने राष्ट्र की उन्नति और प्रगति में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त (सटीक) शीर्षक लिखिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
3. राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा कब उत्पन्न होता है?
4. विलोम शब्द बताइए-एकता, उदार।
5. ‘उन्नति’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. उपर्युक्त शीर्षक–’राष्ट्रीय एकता’।
2. किसी देश की स्वतन्त्रता एकता के द्वारा ही स्थायी रह सकती है। राष्ट्रीय एकता का मूलाधार वहाँ निवास करने वाले लोगों के उत्तम संस्कार एवं श्रेष्ठ विचार हैं। राष्ट्र की उन्नति के लिए प्रत्येक मानव को सहगामी बनाना चाहिए।
3. राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा उस समय उत्पन्न होता है, जब धर्म एवं जाति को माध्यम बनाकर राष्ट्र से पृथक् होने की कोशिश की जाती है।
4. अनेकता, अनुदार।
5. देश की उन्नति’ प्रत्येक नागरिक के चारित्रिक गुणों के विकास पर निर्भर हैं।

3. कविता ही मनुष्य को हृदय के स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित मण्डल से ऊपर उठाकर सामान्य भावभूमि पर ले जाती है। जहाँ जगत् की नाना गतियों के मार्मिक स्वरूप का साक्षात्कार और शुद्ध अनुभूति का संचार होता है। इस भूमि पर पहुँचे हुए मनुष्य को कुछ काल के लिए अपना पता नहीं रहता। वह अपनी सत्ता को लोक सत्ता में लीन किए रहता है। उसकी अनुभूति सबकी अनुभूति है। इस अनुभूति के आभास से हमारे मनोविकार तथा शेष सृष्टि के साथ हमारे रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा और निर्वाह होता है।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित (सटीक) शीर्षक लिखिए।
2. कविता मनुष्य के लिए क्या काम करती है?
3. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
4. विलोम शब्द बताइए-स्वार्थ, शेष।
5. ‘रागात्मक’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. कविता का स्वरूप।
2. कविता ही मनुष्य को हृदय के स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित मण्डल से ऊपर उठाकर सामान्य भावभूमि पर ले जाती है।
3. कविता मनुष्य को स्वार्थ से अलग करती है। उसकी संकुचित व संकीर्ण मानसिकता को व्यापक रूप प्रदान करती है। मनुष्य हृदय में कविता से संवेदना का भाव जगता है। वह संसार के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेता है। इसी गुण के विकास से वह दूसरों की अनुभूति को अपनी अनुभूति मान लेता है।
4. परार्थ, अशेष।
5. सृष्टि के प्रति हमारा रागात्मक सम्बन्ध कविता के द्वारा स्थापित होता है।

4. समाजवाद एक सुन्दर शब्द है। जहाँ तक मैं जानता हूँ, समाजवाद में समाज के सारे सदस्य बराबर होते हैं, न कोई नीचा और न कोई ऊँचा। किसी आदमी के शरीर में सिर इसलिए ऊँचा नहीं है कि वह सबसे ऊपर है और पाँव के तलवे इसलिए नीचे नहीं हैं कि वे जमीन को छूते हैं। जिस तरह मनुष्य के शरीर के सारे अंग बराबर हैं उसी प्रकार समाज में सभी मनुष्य समान हैं; यही समाजवाद है।

प्रश्न.
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित (सटीक) शीर्षक दीजिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
3. समाजवाद में महत्त्व की बात क्या है?
4. विलोम शब्द बताइए-छूते हैं, नीचा।
5. ‘सदस्य’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. शीर्षक-‘समाजवाद’।
2. समाजवाद की व्यवस्था आदमी के शरीर की भाँति है। जहाँ समाज के सारे सदस्य एक बराबर होते हैं न कोई नीचा और न कोई ऊँचा।
3. समाजवाद में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समाज के सारे सदस्य बराबर होते हैं।
4. अछूते हैं, ऊँचा।
5. घर के सदस्य मिलकर अपने-अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हैं।

MP Board Class 9th Special Hindi अपठित पद्यांश

निम्नलिखित पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक दीजिए-

1. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को सूल॥
इक भाषा इक जीव, इक मीत सब घर के लोग।
तब बनत है सबन सौं, मिटत मूढ़ता सोग॥

प्रश्न
1. उपर्युक्त पद्यांश का उचित (सटीक) शीर्षक लिखिए।
2. उपर्युक्त पद्यांश का भाव अपने शब्दों में लिखिए।
3. कविकेअनुसार मूढ़ता और शोक किस प्रकार मिटता है?
4. शब्दार्थ बताइए-निज, सूल।
5. ‘ज्ञान’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. शीर्षक-‘राष्ट्रभाषा की उन्नति’।
2. भावार्थ-अपनी राष्ट्र भाषा की उन्नति और विकास से ही सभी प्रकार की उन्नति सम्भव है। अपनी भाषा का ज्ञान प्राप्त करके ही अपने हृदय की बात को, व्यथा को बता सकते हैं। जब सम्पूर्ण राष्ट्र के लोग एक भाषा, एक ही तरह की जीवन-शैली एवं समान विचारधारा अपनायेंगे, तो अवश्य ही उनकी मूर्खता एवं शोक (कष्ट) दूर हो सकेंगे।
3. कवि के अनुसार जब सभी लोग एक ही भाषा एवं एक जैसी जीवन शैली एवं विचार अपनायेंगे, तभी उनकी मूढ़ता एवं शोक मिट सकेंगे।
4. अपना, कष्ट।
5. ‘ज्ञान’ से मनुष्य उन्नति प्राप्त करता है।

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2. सावधान मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार,
तो इसे दो फेंक तजकर मोह, स्मृति के सार।
हो चुका है सिद्ध ! है तू शिशु अभी अज्ञान;
फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है, बड़ी ये धार।

प्रश्न
1. उपर्युक्त पद्यांश का उपयुक्त (सटीक) शीर्षक लिखिए।
2. उपर्युक्त पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
3. ‘फूल और काँटों’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
4. विलोम शब्द बताइए-स्मृति, अज्ञान।
5. ‘धार’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. उपयुक्त शीर्षक ‘विज्ञान से सचेत’।
2. कवि का आशय यह है कि मनुष्य को विज्ञान से सावधान रहना चाहिए। इसका प्रयोग अज्ञानता से नहीं कीजिए। मनुष्य ने अभी विज्ञान से होने वाली हानि और लाभ की भी जानकारी नहीं ली है। अतः कहीं ऐसा न हो कि अज्ञानता के कारण यह विज्ञान मनुष्य को ही हानि न पहुँचा दे।
3. ‘फूल और काँटों’ से कवि का तात्पर्य है-लाभ और हानि।
4. विस्मृति, ज्ञान।
5. तलवार की धार तेज होती है।

3. बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से,
मूल्यवती होती सोने की, भस्म यथा सोने से;
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी,
यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की, आशा की चिनगारी॥

प्रश्न
1. उपर्युक्त कविता का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
2. पद्यांश का आशय लिखिए।
3. वीर का मान कब बढ़ जाता है?
4. विलोम शब्द बताइए-वीर, स्वतन्त्रता।
5. ‘निहित’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. ‘स्वतन्त्रता’ इस पद्यांश का उचित शीर्षक है।
2. जब युद्ध में संघर्षरत वीर स्वयं को आजादी को प्राप्त करने के महान् उद्देश्य की पूर्ति के लिए शहीद कर देता है, तो उसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। तीव्र ज्वाला में जलकर स्वर्ण की भस्म तैयार होती है। वह भस्म निश्चय ही उस धातु की अपेक्षा कई गुना लाभ देने वाली होगी। सभी लोग उसको सम्मान देते हैं।
3. वीर का मान उस समय बढ़ जाता है, जब वह स्वयं को राष्ट्र की स्वतन्त्रता के बचाव में बलिदान कर देता है।
4. कायर, परतन्त्रता।
5. बालक में शिक्षा के द्वारा उसके निहित गुणों को उभारना होता है।

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4. लाख पक्षी सौ हिरन दल, चाँद के कितने किरण दल,
झूमते वन-फूल फलियाँ, खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,
हरित दूर्वा रक्त किसलय, पूत पावन पूर्ण रसमय,
सतपुड़ा के घने जंगल।

प्रश्न
1. उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
2. कवि ने इस पद्यांश में कहाँ का वर्णन किया है?
3. पद्यांश का आशय लिखिए।
4. विलोम शब्द बताइए-अज्ञात, पावन।
5. ‘घने’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. शीर्षक-‘सतपुड़ा के घने जंगल’।
2. कवि ने इस पद्यांश में सतपुड़ा के घने जंगलों का वर्णन किया है।
3. कवि का आशय है कि सतपुड़ा के घने जंगलों में लाखों पक्षी और हिरणों के समूह विचरण करते सुन्दर लगते हैं। चन्द्रमा की चाँदनी अपनी छटा बिखेरती रहती है। वहाँ वन के फूल और फलियाँ निरन्तर विकसित होते रहते हैं जिनकी पूर्ण जानकारी हमें नहीं है। कहीं-कहीं हरी-भरी दूब घास अपने लाल-लाल किसलयों से युक्त विकास पा रहे हैं। वे वातावरण को पूर्ण पवित्रता दे रहे हैं।
4. ज्ञात, अपावन।
5. घने वन में असंख्य पशु-पक्षी रहते हैं।

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MP Board Class 9th Special Hindi पत्र-लेखन

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प्रश्न 1.
अपने भाई के शुभ-विवाह में सम्मिलित होने हेतु अपने प्रधानाचार्य को अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तर-
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
सतना (म. प्र.)

मान्यवर,
सविनय निवेदन है कि मेरे बड़े भाई का शुभ विवाह 21 नवम्बर, 20…..को होना निश्चित हुआ है। बरात रीवा शहर की सिविल लाइन्स स्थित मान्धाता धर्मशाला के लिए दिनांक 21 नवम्बर, 20……….को ही प्रातः 6 बजे बस द्वारा प्रस्थान करेगी। मैं स्वयं बरात में सम्मिलित होऊँगा। अत: मुझे तीन दिन (दिनांक 20 नवम्बर, 20……..से दिनांक 22 नवम्बर, 20……) का अवकाश प्रदान करने की कृपा करें।

सधन्यवाद
दिनांकः 19 नवम्बर, 20……

आपका आज्ञाकारी शिष्य
महेन्द्र प्रताप सिंह
कक्षा 9 अ

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प्रश्न 2.
तुम्हारे पिताजी एक साधारण शासकीय सेवा में हैं। आपके भाई-बहन भी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस तरह शिक्षा के भार को सहन करना उनके लिए कठिन है। अतः
अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय के लिए प्रार्थना-पत्र लिखकर शुल्क मुक्ति के लिए निवेदन कीजिए।
उत्तर-
शुल्क मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र
सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
सागर (म.प्र)

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा 9 अ का विद्यार्थी हूँ। मेरे पिताजी राजकीय सेवा में हैं। वे हम सभी घर के सदस्यों का पालन-पोषण बड़ी कठिनाई से कर पाते हैं।

मेरा पिछला पढ़ाई का रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है। इस कारण मुझे पिछले वर्षों में भी शुल्क में मुक्ति मिलती रही है। आपसे प्रार्थना है कि मुझे इस वर्ष भी शुल्क में मुक्ति देकर मुझ पर बड़ी कृपा करेंगे। मैं आपसे वायदा करता हूँ कि इस वर्ष भी कक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने का प्रयास करूंगा।

अन्त में, मुझे पूर्ण विश्वास है कि मुझे फीस में पूरी-पूरी . छूट देकर बड़ी कृपा करेंगे। मैं आजीवन आपका ऋणी रहूँगा।

दिनांक: 19.7.20…….

आपका आज्ञाकारी शिष्य
मोहन चन्द्र
कक्षा 9 अ

प्रश्न 3.
परीक्षा की तैयारी का उल्लेख करते हुए रुपये मँगवाने के लिए अपने पिताजी को एक पत्र लिखिए।
उत्तर-
पिताजी को पत्र
कक्ष सं. 105. गाँधी आश्रम हॉस्टल,
बन्नी पार्क, इन्दौर (म. प्र)
दिनांक 15.11.20……

पूज्य पिताजी,

सादर चरण स्पर्श!
आपका पत्र मिला। पत्र पढ़कर प्रसन्नता हुई। मैं आजकल ‘अपनी अर्द्ध वार्षिक परीक्षाओं की तैयारी में लगा हुआ हूँ। प्रतिदिन छ: या सात घण्टे तक पढ़ाई में लगा रहता हूँ। मैं अभी तक लगभग सभी विषयों का अध्ययन कर चुका हूँ। पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दे रहा हूँ। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि पिछली कक्षाओं की तरह इस कक्षा में भी सर्वोच्च अंक प्राप्त कर सकूँगा। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मैं आपके सम्मान में चार चाँद ही लगाऊँगा। मुझे कुछ धन की आवश्यकता है, कृपया पाँच सौ रुपये मनीऑर्डर से भेज दीजिए जिससे मैं अपनी अंग्रेजी और गणित की पुस्तकों को खरीद लाऊँ और अपनी पढ़ाई बहुत अच्छी तरह कर सकूँ। आदरणीया माताजी को मेरा चरण स्पर्श कहियेगा।

दिनांक: 17.11.20……

आपका प्रिय पुत्र
आनन्द प्रताप सिंह

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प्रश्न 4.
प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए अपने मित्र को एक बधाई पत्र लिखिए।
उत्तर-
मित्र को बधाई पत्र
प्रिय मित्र पल्लव,

सप्रेम हृदय स्पर्श।
आज प्रातकालः ‘दैनिक जागरण’ समाचार-पत्र में तुम्हारा अनुक्रमांक देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। तुम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हो। मैं स्वयं को अति भाग्यशाली समझता हूँ कि मैंने तुम जैसे योग्य, चतुर, बुद्धिमान मित्र को प्राप्त किया है। इस सन्दर्भ में मैं तुम्हें अपनी हार्दिक बधाइयाँ देता हूँ और आशा करता हूँ कि तुम अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करोगे और अपने जीवन में सफलताओं के शिखर को प्राप्त करोगे। अपने माता-पिता को मेरी ओर से चरण स्पर्श कहना।

तुम्हारा मित्र
कपिल

प्रश्न 5.
अपने छोटे भाई की कुशल क्षेम जानने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर-
भाई को पत्र
प्रिय आशीष,

शुभाशीर्वाद।
कल तुम्हारा भेजा हुआ पत्र मिला तथा सबकी कुशल क्षेम जानकर हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हुआ। तुम्हें यह समाचार देते हुए प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि मैंने तुम्हारे लिए कहानी तथा चुटकुलों की कुछ पुस्तकें खरीद ली हैं। अब आऊँगा तो सबके लिए कुछ मिष्ठान तथा नमकीन भी लाऊँगा। गुंजन के लिए एक अच्छी-सी साड़ी भी लेकर आऊँगा। यहाँ तुम्हारे भतीजे तथा भाभी पूरी तरह स्वस्थ एवं सानन्द हैं। वे सब तुम्हारे पत्र को बार-बार पढ़कर सुखानुभूति करते हैं। मैं 28 मई को प्रात:काल वाली ट्रेन से आऊँगा।

माताजी एवं पिताजी को सादर प्रणाम तथा छोटों को प्यार। शेष सब ठीक है।

शुभेच्छु
अक्षय कुलश्रेष्ठ

प्रश्न 6.
बुक बैंक से पुस्तकें देने के विषय में अपने प्रधानाचार्य महोदय को आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर-
बुक बैंक से पुस्तकें देने के
विषय में आवेदन-पत्र

प्रधानाध्यापक महोदय,
विद्यालय-सरस्वती नगर

विषय-बुक-बैंक से पुस्तक देने हेतु

मान्यवर,
विनम्र निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय का कक्षा 9 ‘ब’ का छात्र हैं। निर्धन होने के कारण मैं अपने पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त पुस्तकों को खरीदने में पूरी तरह असमर्थ हूँ। मेरे पिता की मासिक आय बहुत कम है।

इस हेतु आपसे विनम्र निवेदन है कि बुक-बैंक से वांछित पुस्तकें दिलवाने का आदेश पारित करें। जब मेरी वार्षिक परीक्षा सम्पन्न हो जायेगी तभी समस्त पुस्तकों को समय पर वापस कर दूंगा।

आपकी इस महती अनुकम्पा के लिए मैं आजन्म आपका ऋणी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
निशान्त शर्मा

प्रश्न 7.
तुम्हारे पिताजी या अभिभावक का स्थानान्तरण हो जाने के कारण विद्यालय छोड़ने का प्रमाण-पत्र (टी.सी) प्राप्त करने हेतु आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर-
प्रधानाचार्य को विद्यालय छोड़ने
का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने हेतु आवेदन-पत्र

सेवा में,
प्रधानाध्यापक महोदय,
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
ग्वालियर।

महोदय,
सेवा में विनम्र प्रार्थना है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा 9 वीं का संस्थागत छात्र हूँ। मेरे अभिभावक का स्थानान्तरण हो गया है। इस हेतु मैं आपके विद्यालय में आगे अपना अध्ययन करने में असमर्थ हूँ। अत: मुझे विद्यालय त्यागने का प्रमाण-पत्र देने हेतु आदेश करें। मैंने अपना समस्त शुल्क तथा पुस्तकालय की ली हुई पुस्तकें भी लौटा दी हैं। मेरे पास विद्यालय का कुछ भी देने को शेष नहीं है। आशा है कि आप सहयोग देकर अनुगृहीत करेंगे।

दिनांक: 20.7.20…..

आपका आज्ञाकारी शिष्य
अक्षय
कक्षा IX-स

प्रश्न 8.
अपने निवास के आस-पास नालियों की सफाई कराने हेतु तथा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कराने हेतु सुझाव देते हुए अपने नगर निगम के सक्षम अधिकारी को एक आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर-
नगर निगम के सक्षम अधिकारी को नालियों की सफाई कराने हेतु तथा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कराने के लिए आवेदन-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् आयुक्त महोदय,
नगर-निगम, भोपाल (म.प्र)

महोदय,
मैं आपका ध्यान नगर की नेहरू नगर कॉलोनी की स्वच्छता के सम्बन्ध में आकर्षित करना चाहता हूँ। इस कॉलोनी में पिछले दो-तीन माह से नियमित सफाई नहीं की जा रही है। इस कारण नालियाँ सिल्ट तथा गन्दगी से भरी पड़ी हैं। इससे मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। साथ ही महामारी फैलने का भी भय पैदा हो गया है।

अतः आपसे साग्रह निवेदन है कि आप अपने अधीनस्थ सफाईकर्मियों को कॉलोनी में नालियों की सफाई करने और कीटनाशक औषधियों के छिड़काव के लिए अपने निर्देश देने की कृपा करें। इससे कॉलोनी का पर्यावरण स्वच्छ बना रहेगा।

भवदीय
मोहन स्वरूप 97,
नेहरू नगर कॉलोनी,
भोपाल (म. प्र)

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प्रश्न 9.
अपने क्षेत्र में पेड़-पौधों के अनियमित कटाव को रोकने के लिए जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए।
उत्तर-
पेड़-पौधों के अनियमित कटाव को रोकने हेतु जिलाधिकारी को एक पत्र

प्रतिष्ठा में,
जिलाधिकारी महोदय,
इन्दौर (म. प्र.)

मान्यवर,
पिछले सप्ताह से सड़क चौड़ी करने के नाम से हमारे क्षेत्र के असंख्य पेड़-पौधों को बड़ी बेरहमी से काटा जा रहा है। इन पेड़-पौधों को नियमित रूप से काटा जाय तो कोई खास हानि हमारे पर्यावरण के लिए भी नहीं होगी। इस बेतरतीव कटाई से तो हरियाली भी मिट रही है, साथ ही प्रदूषण का प्रभाव भी बढ़ रहा है। पेड़-पौधों की अनियमित कटाई करना न केवल धर्म विरुद्ध कार्य है, वरन् कानून के खिलाफ आचरण भी है।

अतः आपसे निवेदन है कि उक्त कार्यवाही को तत्काल रोककर क्षेत्रीय पर्यावरण की सुरक्षा की दिशा में प्रभावकारी पहल करने की कृपा कीजिए।

दिनांक: 31.9.20…..

भवदीय
राकेश रमण ठाकुर
नेहरू रोड (पश्चिम),
इन्दौर (म. प्र.)

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MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Matter in Our Surroundings Intext Questions

Matter in Our Surroundings Intext Questions Page No. 3

Question 1.
Which of the following are matter? Chair air, love, smell, hate, almonds, thought, cold, cold – drink smell of perfume.
Answer:
Chair, air, almonds and cold – drink.

Question 2.
Give reasons for the following observation: The smell of hot sizzling food reaches you several metres away, but to get the smell from cold food you have to go close.
Answer:
The particles of hot food have more kinetic energy due to higher temperature, so their rate of diffusion is more and they move several meters away as compared to the particles of cold food.

Question 3.
A diver is able to cut through water in a swimming pool. Which property of matter does this observation show?
Answer:
This shows that the particles of matter have space between them and a weak force of attraction between them.

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Question 4.
What are the characteristics of the particles of matter?
Answer:
Following are the characteristics of the particles of matter:

  1. Particles of matter are very small.
  2. Particles of matter have space between them.
  3. Particles of matter are continuously moving.
  4. Particles of matter attract each other.

Matter in Our Surroundings Intext Questions Page No. 6

Question 1.
The mass per unit volume of a substance is called density, (density = mass / volume). Arrange the following in order of increasing density: air, exhaust from chimneys, honey, water, chalk, cotton and iron.
Answer:
The order of increasing densities:
air < exhaust from chimneys < cotton < water < honey < chalk < iron.

Question 2.
(a) Tabulate the differences in the characteristics of states of matter.
(b) Comment upon the following: Rigidity, Compressibility, Fluidity, Filling a gas container, Shape, Kinetic energy and Density.
Answer:
(a)
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings 1

(b)
(i) Rigidity: It is the tendency of matter to retain or maintain its shape when an outside force is applied.

  • Solids are rigid in matter

(ii) Compressibility: It is the property of matter due to which it can be compressed to lower volume.

  • Solids have minimum compressibility, but gases have maximum.

(iii) Fluidity: It is the tendency of a matter or particles of a matter to flow.

  • Liquid and gases have fluidity so they are fluids.

(iv) Filling a gas container: Gas particles fill the container completely due to negligible intermolecular force and maximum space between particles.

(v) Shape: It is the property of a matter which indicates its boundaries.

  • Solid have fixed shape but liquids and gases have no fixed shape.

(vi) Kinetic energy: The energy of matter or particles of matter due to their motion is called kinetic energy.

  • Particles of gases have highest kinetic energy and liquids have less kinetic energy than gases but more than solids.

(vii) Density: It is mass per unit volume.

  • Solids have highest density, liquids have low density than solids but greater than gases.

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Question 3.
Give reasons:
(a) A gas fills completely the vessel in which it is kept.
(b) A gas exerts pressure on the walls of the container.
(c) A wooden table should be called a solid.
(d) We can easily move our hand in air but to do the same through a solid block of wood, we need a karate expert.
Answer:
(a) The molecules of gas have very less force of attraction and possess high kinetic energy due to which they move in all directions and fill the vessel completely.

(b) The particles of gas move freely and randomly in all directions. So, they collide with each other and also with the walls of the container due to which they exert a Pressure on its walls.

(c) A wooden table has a fixed shape, fixed volume. It is rigid and cannot be compressed. So it should be called a solid.

(d) The particles of Air have very less force of attraction between them, so we can easily move our hand, but particles of wood have strong force of attraction, so we have to apply a greater amount of force to break it and pass through solid wood.

Question 4.
Liquids generally have lower density as compared to solids. But you must have observed that ice floats on water. Find out why.
Answer:
We know that ice is solid and water is liquid but the structure of ice is cage like due to which the molecules of water are not closely packed and have vacant space between them due to which ice has low density than water and floats over it.

Matter in Our Surroundings Intext Questions Page No. 9

Question 1.
Convert the following temperature to celsius scale:
(a) 300 K
(b) 573 K
Answer:
(a) 300 K = (300 – 273)°C = 27°C.
(b) 573 K = (573 – 273)°C = 300°C.

Question 2.
What is the physical state of water at:
(a) 250°C
(b) 100°C?
Answer:
(a) Gaseous state.
(b) Liquid and gaseous both.

Question 3.
For any substance, why does the temperature remain constant during the change of state?
Answer:
During the change of state of any substance, the temperature remains constant because the heat supplied to the substance is used in overcoming the force of attraction between the particles and change its state. This hidden heat is called latent heat.

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Question 4.
Suggest a method to liquefy atmospheric gases.
Answer:
The atmospheric gases can be liquefied by cooling and applying pressure on them in a closed chamber or cylinder.

Matter in Our Surroundings Intext Questions Page No. 10

Question 1.
Why does a desert cooler cool better on a hot dry day?
Answer:
On a hot dry day, the rate of evaporation is high because of low humidity. So, water sprinkling on the pads of cooler gets evaporated from outside which results in making its walls cool and then we receive cool air.

Question 2.
How does the water kept in an earthen pot (matka) become cool during summer?
Answer:
The earthen pot has a lot of pores on its surface. So, water comes out and gets evaporated from these pores and cools the water inside the pot.

Question 3.
Why does our palm feel cold when we put some acetone or petrol or perfume on it?
Answer:
When we put acetone, petrol or perfume on our palm, then these liquids absorb energy from our palm and get evaporated which cause cooling effect on our palm.

Question 4.
Why are we able to sip hot tea or milk faster from a saucer rather than a cup?
Answer:
Saucer has a large surface area than a cup. So the rate of evaporation is more in saucer than cup which causes faster cooling of the hot tea. Hence, we can sip hot tea from a saucer faster than cup.

Question 5.
What type of clothes should we wear in summer?
Answer:
Light coloured cotton clothes should be worn in summer because light colour reflects heat and cotton absorbs sweat quickly and evaporates it easily which makes our body feel cool and dry.

Matter in Our Surroundings NCERT Textbook Exercises

Question 1.
Convert the following temperatures to the Celsius scale.
(a) 293 K
(b) 470 K.
Answer:
(a) 293 K into°C
⇒ 993 – 273 = 20°C

(b) 470 K into°C
⇒ 470 – 273 = 197°C

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Question 2.
Convert the following temperatures to the Kelvin scale.
(a) 25°C
(b) 373°C
Answer:
(a) 25°C = 25 + 273 = 298 K
(b) 373°C = 373 + 273 = 646 K.

Question 3.
Give reason for the following observations.
(a) Naphthalene balls disappear with time without leaving any solid.
(b) We can get the smell of perfume sitting several metres away.
Answer:
(a) Naphthalene balls disappear with time without leaving any solid, because naphthalene balls sublime and directly change into vapour state without leaving any solid.

(b) We can get the smell of perfume sitting several metres away because perfume contains volatile solvent i.e., gaseous particles, which have high speed and large space between them and diffuse faster and can reach people sitting several metres away.

Question 4.
Arrange the following substances in increasing order of forces of attraction between the particles – water, sugar, oxygen.
Answer:
Oxygen → water → sugar.

Question 5.
What is the physical state of water at:
(a) 25°C
(b) 0°C
(c) 100°C?
Answer:
(a) 25°C is liquid.
(b) 0°C is solid or liquid.
(c) 100°C is liquid and gas.

Question 6.
Give two reasons to justify:
(a) water at room temperature is a liquid.
(b) an iron almirah is a solid at room temperature.
Answer:
(a) Water at room temperature is a liquid because its freezing point is 0°C and boiling point is 100°C.
(b) An iron almirah is a solid at room temperature because melting point of iron is higher than the room temperature.

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Question 7.
Why is ice at 273 K more effective in cooling than water at the same temperature?
Answer:
Ice at 273 K will absorb heat energy or latent heat from the medium to overcome the heat of fusion to become water. Hence, the cooling effect of ice is more than the water at same temperature because water does not absorb this extra heat from the medium.

Question 8.
What produces more severe burns, boiling water or steam?
Answer:
Steam at 100°C will produce more severe burns as extra heat is hidden in it called latent heat. Whereas, the boiling water does not have this hidden heat.

Question 9.
Name A, B, C, D, E and F in the following diagram showing change in its state
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings 2
Answer:
A → Liquefication / melting / fusion
B → Vaporisation / evaporation
C → Condensation
D → Solidification
E → Sublimation
F → Sublimation

Matter in Our Surroundings Additional Questions

Matter in Our Surroundings Multiple Choice Questions

Question 1.
Which of the following substances is solid?
(a) Plasma
(b) BEC
(c) Wood
(d) Mercury
Answer:
(c) Wood

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Question 2.
Fusion is the phenomenon of changing of state of __________ .
(a) Liquid to gas
(b) Solid to liquid
(c) Solid to gas
(d) Gas to plasma.
Answer:
(b) Solid to liquid

Question 3.
Diffusion is not possible in the case of __________ .
(a) Liquid into Solid
(b) Gas into liquid
(c) Gas into Gas
(d) Solid into Solid.
Answer:
(d) Solid into Solid.

Question 4.
Compressibility is highest in __________ .
(a) Liquid
(b) Solid
(c) Gas
(d) Plasma.
Answer:
(c) Gas

Question 5.
We can smell odour of deodrant several metres away due to __________ .
(a) Diffusion
(b) Evaporation
(c) Fusion
(e) None.
Answer:
(a) Diffusion

Question 6.
Which of the following do not exhibit sublimation?
(a) Water
(b) Camphor
(c) Naphthalene
(d) Dry ice.
Answer:
(a) Water

Question 7.
Ice floats on water because of __________ .
(a) Higher density than water
(b) Equal density than water
(c) Lower density than water
(d) None of these.
Answer:
(c) Lower density than water

Question 8.
As the pressure of air increases then boiling point of liquid __________ .
(a) Increases
(b) Decreases
(c) Remains same
(d) None of these.
Answer:
(a) Increases

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Question 9.
The atmospheric pressure equals to __________ .
(a) 1.01325 × 108 Pa
(b) 101.3 25 × 104 Pa
(c) 1.01325 × 105 Pa
(d) 1.01325 × 102 Pa.
Answer:
(c) 1.01325 × 105 Pa

Question 10.
Cooking at high altitudes is difficult because __________ .
(a) Boiling point decreases
(b) Boiling point increases
(c) Freezing point reduced
(d) None of the above.
Answer:
(a) Boiling point decreases

Question 11.
Density of water is highest at __________ .
(a) 3°C
(b) 5°C
(c) 4°C
(d) 6°C.
Answer:
(a) 3°C

Question 12.
Dry ice is __________ .
(a) Solid carbon monoxide (CO)
(b) Solid Nitrogen dioxide (NO2)
(c) Solid carbon dioxide (CO2)
(d) Solid Ammonia (NH3).
Answer:
(c) Solid carbon dioxide (CO2)

Question 13.
The amount of heat required to change the state of 1 kg of substance is called __________ .
(a) Calorific heat
(b) Latent heat
(c) Thermal heat
(d) Conversion heat.
Answer:
(b) Latent heat

Question 14.
Evaporation takes place at __________ .
(a) Boiling point
(b) Melting point
(c) Freezing point
(d) At all temperatures.
Answer:
(d) At all temperatures.

Question 15.
Evaporation generally takes place at __________ .
(a) Below boiling point
(b) Above boiling point
(c) At boiling point
(d) None.
Answer:
(a) Below boiling point

Question 16.
Evaporation causes __________ .
(a) Heating effect
(b) Boiling effect
(c) Cooling effect
(d) Absorbing effect.
Answer:
(c) Cooling effect

Question 17.
Latent heat of vaporisation of water is __________ .
(a) 2.25 × 106 J/kg
(b) 3.34 × 106 J/kg
(c) 22.5 × 106 J/kg
(d) 33.4 × 105 J/kg.
Answer:
(a) 2.25 × 106 J/kg

Question 18.
Which factor does not affect the rate of evaporation?
(a) Humidity
(b) Colour
(c) Wind Speed
(d) Surface area.
Answer:
(b) Colour

Question 19.
The rate of evaporation is minimum in __________ .
(a) Dry day
(b) Humid day
(c) Hot day
(d) Stormy day.
Answer:
(b) Humid day

Question 20.
Which of the following processes consumes heat?
(i) Melting
(ii) Freezing
(iii) Vaparisation
(iv) Condensation.

(a) (i) and (ii)
(b) (ii) and (iii)
(c) (i) and (iii)
(d) (ii) and (iv).
Answer:
(c) (i) and (iii)

Matter in Our Surroundings Very Short Answer Type Questions

Question 1.
Define Matter.
Answer:
Matter is defined as something which occupies space and has mass.

Question 2.
What is the melting point of ice?
Answer:
0°C or 273 K.

Question 3.
Name the phenomenon by which two substances intermix with each other.
Answer:
Diffusion.

Question 4.
Name the physical State of matter which can be highly compressed.
Answer:
Gaseous state.

Question 5.
Name the tiny particles of which matter is made up of.
Answer:
Atoms.

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Question 6.
Name the process of conversion of solid state into gaseous state directly.
Answer:
Sublimation.

Question 7.
Name the Indian scientist who calculated the fifth state of matter.
Answer:
Satyendra Nath Bose.

Question 8.
Name all the states of matter.
Answer:
Solid, liquid, gas, plasma, BEC (Bose Einstein Condensate).

Question 9.
What is Chemical name of dry ice?
Answer:
Solid Carbon Dioxide.

Question 10.
What is the main effect produced by evaporation?
Answer:
Cooling effect.

Matter in Our Surroundings Short Answer Type Questions

Question 1.
Define diffusion? On which features does it depend?
Answer:
It is the mixing of particles of different matters. It depends on the state, temperature and kinetic energy of particles.

Question 2.
Define:
(a) Latent heat of fusion
(b) Latent heat of vaporisation.
Answer:
(a) Latent heat of fusion is the amount of heat energy required to convert 1 kg of a solid into liquid at its melting point.

(b) Latent heat of vaporisation is the amount of heat energy required to convert 1 kg of liquid into gas at its boiling point.

Question 3.
Explain the following terms:
(a) Sublimation
(b) Evaporation.
Answer:
(a) Sublimation: The phenomenon of change of state directly from solid to gas or vapours or vice-versa without changing into liquid state.
Examples:
Dry ice, camphor.

(b) Evaporation: The process of changing matter from liquid state into the vapour state at any temperature below its boiling point.
Examples:
Drying of clothes, volatile liquids like petrol, kerosene.

Question 4.
What are the different factors on which evaporation of liquids depend?
Answer:
The factors on which evaporation depends are:
(a) Temperature
(b) Surface area
(c) Humidity
(d) Wind speed

Question 5.
Write four substances which show sublimation.
Answer:
(a) Camphor
(b) Naphthalene balls
(c) Dry ice
(d) Ammonium chloride

Question 6.
Why the temperature of ice remains constant when it starts melting?
Answer:
When the ice melts, then it absorbs the latent heat of fusion which changes its states. And, that heat is consumed in changing the state, keeping the temperature constant.

Question 7.
How can we liquefy gas? How is it useful to us?
Answer:
Gases can be liquefied by cooling them and by applying pressure into a closed chamber like cylinder. This property of compressibility is useful for us and we use it through different ways e.g., LPG (Liquefied Petroleum Gas), CNG (Compressed Natural Gas) and Liquefied O2 in welding.

Question 8.
Differentiate between:
(a) Freezing and Melting.
(b) Evaporation and Boiling.
Answer:
(a) Freezing and Melting:

(a) FreezingMelting
1. It is the conversion from liquid state into solid state1. It is the conversion from solid to liquid state.
2. Heat is released.2. Heat is absorbed.

(b) Evaporation and Boiling:

(b) EvaporationBoiling
1. It takes place on the surface of liquid.1. It happens to all liquids.
2. It takes place at all temperatures.2. It happens at a particular temperature.
3. It is slow.3. It is fast.
4. It causes cooling.4. It does not cause cooling.

Question 9.
Why solid carbon dioxide is called dry ice?
Answer:
It is because carbon dioxide is pressurised in the form of solid state which looks cool like ice. But when it is heated, it directly get converted into carbon dioxide gas.

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Question 10.
Change the following temperatures accordingly.
(a) -173°C
(b) 250 K
(c) 2°C
(d) 0°K
Answer:
(a) We know that,
Temperature on kelvin = Temperature on Celsius + 273
So, -173°C = (-173 + 273) K = 100 K

(b) 250 K = (250 – 273)°C = -23°C

(c) 2°C = (2 + 273) K = 275 K

(d) 0°K = (0 – 273)°C = -273°C.

Question 11.
Give one example of each: Melting, Vaporisation, Condensation, Sublimation, Evaporation.
Answer:
Melting: Ice to water
Vaporisation: Water to steam
Condensation: LPG
Sublimation: Naphthalene balls, solid iodine
Evaporation: Volatile liquids like petrol.

Matter in Our Surroundings Long Answer Type Questions

Question 1.
Give reasons:
(а) The smell of hot tasty cooked food reaches us from far.
(b) The smell of perfume reaches us several metres away.
(c) The fragrance of an incense stick spreads in entire hall quickly.
(d) Steam is more severe than boiling water.
(e) We see water droplets collected on outer surface of steel glass containing cold water.
(f) We feel lot of perspiration on a humid day.
(g) Evaporation causes cooling.
(h) It is advised to use pressure cooker at high altitudes.
(i) We should wear light colour cotton clothes in summer.
(j) A gas fills the container completely.
(k) Clothes take more time to dry in a humid day.
(l) Kerosene oil is kept in a cool place.
Answer:
(a) The particles of hot tasty food have high kinetic energy due to raised temperature. So, they can easily diffuse and move to long distances.

(b) The particles of perfume are in vapour form. So, they possess high kinetic energy and move randomly and finally reach us several metres away.

(c) The particles of an incense stick are in gaseous state. So, they have high kinetic energy and diffuse quickly into atmosphere and cover the room.

(d) Steam has the heat in the form of latent heat as compared to boiling water. So, it is more severe.

(e) The water vapours present in the atmosphere get condensed when it comes in contact with the chilled container and get deposited in the form of liquid droplets.

(f) The rate of evaporation decreases on humid day as there are sufficient water vapours present in the atmosphere. So, our sweat does not get dried and we perspire a lot.

(g) During the evaporation, the particles on the surface of the fluid take energy and heat from the surface get vaporised which create cooling effect.

(h) It is advised to use pressure cooker at high altitudes because the atmospheric pressure is low and water boils quickly. So, to increase the pressure and to cook the food properly, pressure cooker is required.

(i) Light colour cotton clothes are good reflectors of heat as well as good absorbers of sweat. When sweating occurs, the cotton absorbs it quickly and evaporates it faster.

(j) The particles of gas have very less intermolecular force of attraction and have large intermolecular space. So, they possess high kinetic energy and expand quickly resulting in filling the container completely.

(k) The rate of evaporation is minimum on a humid day. So, cloth takes more time to get dried.

(l) Kerosene a volatile substance and it evaporates quickly and also there is a risk of breaking of bottle due to the pressure created by its particles. So, it is stored in a closed container and kept in a cool place.

Question 2.
(a) What is evaporation? On what factors does it depend?
(b) How is it useful to us?
Answer:
(a) Evaporation:
The phenomenon of changing of a matter from liquid state into the vapour state or gaseous state at any temperature below its boiling point is known as evaporation. The rate of evaporation depends on the following factors:

  1. Surface area: If the surface area of the liquid increases, then evaporation becomes faster.
  2. Temperature: When the temperature of the liquid increases then the kinetic energy of the particles increases which causes faster evaporation.
  3. Wind speed: When the speed of wind increases, it covers the vacant space in the atmosphere created by moving wind, the evaporation gets faster. Also, we have seen that clothes dry faster in a windy day than a normal day.
  4. Humidity: If the humidity is least then rate of evaporation is faster but when humidity is high, then Atmosphere can’t hold much water vapours which causes slow rate of evaporation.

(b) Uses of evaporation:

  1. Drying of clothes.
  2. Separation of different mixtures like water and salt.
  3. Desert coolers etc.

Question 3.
Give one example of each:
(a) Water vapours present in the atmosphere.
(b) Diffusion of a gas into liquid.
(c) Diffusion of a liquid into liquid.
(d) Diffusion of a gas into gas.
(e) Two sublime substances.
Answer:
(a) Presence of water droplets is seen on the outer surface of steel container containing cold water.
(b) Presence of dissolved oxygen in marine water which is used up by aquatic organisms.
(c) Mixing of ink and water.
(d) Burning of incense stick.
(e) Ammonium chloride, Naphthalene balls.

Question 4.
(a) What is matter? What characteristics does a matter possess?
(b) Explain all the five states of matter.
Answer:
(a) Matter: Matter is anything which occupies space and has mass.
(b) Matter has five states:

  1. Solid: It is the state of matter which has a fixed shape, volume, high density, incompressible and cannot flow.
  2. Liquid: It is the state of matter which possesses indefinite shape, definite volume, low compressibility and can flow easily.
  3. Gas: It is the state of matter which possesses indefinite shape, indefinite volume, high compressibility and can flow easily.
  4. Plasma: This state of matter consists of free electrons . and ions in the form of ionised gases.
  5. BEC (Bose – Einstein Condensate): This state of matter is achieved by cooling gas of extremely to low density of about one – hundredth thousand the density of a normal air to super low temperature.

Matter in Our Surroundings Higher Order Thinking Skills (HOTS)

Question 1.
Osmosis is a special kind of diffusion, Comment
Answer:
In diffusion, molecules of a substance move from higher concentration to lower concentration. But, during Osmosis, the water or solvent molecules move from their higher concentration to the place of their lower concentration. Therefore, Osmosis is a special kind of diffusion.

Question 2.
Why does honey diffuse in water at a slower rate than ink?
Answer:
Honey diffuse at a slower rate than ink since the density of honey is greater than that of water.

Matter in Our Surroundings Value Based Questions

Question 1.
Gaurav is preparing for his cricket match in summer camp. He took full sleeves black colour silk shirt for the match. But his mother advised him to wear white half sleeve cotton shirt
(a) Why did mother advise him to wear white cotton shirt?
(b) What type of clothes we should wear in summer?
(c) What values of mother are reflected here?
Answer:
(a) Mother advised him to wear white cotton shirt because white is a good reflector of heat and cotton is a good absorber of sweat and helps in quick evaporation, which will make Gaurav feel cool during the match.

(b) Light coloured cotton clothes should be worn in summer.

(c) Mother showed her values of caring and insightful.

Question 2.
Aakansha parked her scooty in a parking of her society. In the evening, she saw her scooty tyre was burst. Then, she immediately went to mechanic to repair the puncture and advised the mechanic not to inflate the tyres fully.
(а) Why did the scooty punctured?
(b) Why she advised mechanic not to inflate the tyres fully?
(c) What values of Aakansha is reflected here?
Answer:
(a) The scooty got punctured due to bursting of tyre because the particles of air expanded and gained kinetic energy due to heat and pressurised the walls of tyre resulting in bursting.

(b) She advised mechanic not to inflate the tyres fully as the summer days were hot which caused the expansion of inflated air and create excessive pressure in the tyres.

(c) Aakansha showed her values of intelligence and awareness.

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Question 3.
Ansh had a “Pooja” in his house. His mother told him to bring camphor required for “Pooja” from the market. On the “Pooja” day when he opened up the packet, he got surprised to see it empty. Then, Ansh got alert and brought a new packet.
(a) Why did the packet got empty?
(b) Name the property of matter mentioned here.
(c) Why did Ansh keep new camphor packet in a closed container?
(d) What values of Ansh are mentioned here?
Answer:
(a) Packet got emptied due to the evaporation of camphor due to its sublime nature.
(b) The property of sublimation is shown here.
(c) To prevent sublimation of camphor.
(d) Ansh shows the values of curiosity, wisdom and duty.

Question 4.
Sanjana went to a farm house with her family to spend her summer vacations. But the farm house faced the frequent problem of power cut. So, the refrigerator was not chilling the water bottles. Then, she brought two earthen pots for making drinking water, cool.
(a) How did the earthern pot, cool the water in it?
(b) Name the phenomenon involved in it
(c) Mention the values of Sanjana depicted here.
Answer:
(a) Earthen pots have small pores through which water gets evaporated making the water cool inside the pot.
(b) The process of evaporation is involved in it.
(c) Sanjana showed her intelligent, caring and responsible behaviour.

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 20 गुणवन्ती

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 20 गुणवन्ती (संकलित)

गुणवन्ती अभ्यास-प्रश्न

गुणवन्ती लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मोहन का बचपन किस प्रकार बीता?
उत्तर
मोहन के बचपन में ही उसके माता-पिता का निधन हो गया। उसका पालन-पोषण उसकी सौतेली बहन ने किया फिर भी वह उसके प्रति ठीक व्यवहार नहीं करती थी। इस तरह से उसका बचपन बड़ी ही कठिनाइयों में बीता।

प्रश्न 2.
राजकुमारी की शादी के लिए राजा क्यों चिन्तित था?
उत्तर
राजकुमारी की शादी के लिए राजा चिन्तित था। यह इसलिए कि उसकी सुन्दर और गुणवन्ती बेटी को कोई भी व्यक्ति पसन्द नहीं आता था। वह अपने से अधिक सुन्दर और गुणवान व्यक्ति से शादी करना चाहती थी।

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प्रश्न 3.
विवाह के पश्चात् राजकुमारी ने क्या संकल्प किया?
उत्तर
विवाह के पश्चात् राजकुमारी ने संकल्प किया कि वह अपनी मेहनत, लगन, साहस और धैर्य के सहारे इन परिस्थितियों का सामना करेगी।

प्रश्न 4.
राजकुमारी को पुरस्कार क्यों मिला?
उत्तर
राजकुमारी को पुरस्कार मिला। यह इसलिए कि उसकी गुड़िया की सभी ने बहुत प्रशंसा की।

गुणवन्ती दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर.

प्रश्न 1.
राजा को नाई की चालाकी का कब पता चला?
उत्तर
गुड़ियों की प्रदर्शनी में राजकुमारी को प्रथम पुरस्कार देने के लिए जब राजा ने उसे बुलाया तब राजकुमारी ने राजा से कहा कि आपने एक धोखेबाज नाई के चक्कर में फंसकर एक अनपढ़ और बेकार आदमी से मेरी शादी कर दी। इससे राजा को नाई की धोखेबाजी का पता चल गया।

प्रश्न 2.
गुणवन्ती के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
गुणवन्ती का चरित्र बड़ा ही उज्ज्वल और निश्छल है। वह एक स्वाभिमानी है। उसमें दृढ़-संकल्प और कुछ कर गुजरने की अटूट भावना है। फलस्वरूप वह अपने सामने आई हुई कठिनाइयों और विपत्तियों से हताश व निराश नहीं होती है। इस प्रकार वह अपनी हिम्मत व बुद्धि से सफलता को चूम लेती है।

प्रश्न 3.
अपना संकल्प पूरा करने के लिए राजकुमारी ने क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर
राजकुमारी ने अपना संकल्प पूरा करने के कई कार्य किए। उसने अपनी सुन्दर रेशमी साड़ी फाड़कर सुई और धागे की सहायता से सुन्दर-सुन्दर गुड़ियाँ बनाई। फिर उन्हें बाजार में अपने पति से बेचवाया। अपनी सुन्दरता के कारण वे सभी गुड़ियाँ देखते-ही-देखते बिक गईं। उसे अच्छे पैसे मिल गए। उन पैसों से उसने अपनी बुद्धि-प्रतिभा से रंग, लकड़ी और कुछ सामान मँगवाकर एक सुंदर घोड़ा बनाया। उन घोड़ों के भी अच्छे दाम मिल गए। इस तरह से उसका कारोबार चल निकला। अब उसकी आमदनी इतनी बढ़ गई कि उसने राजा से भी बड़ा महल और सुख-सुविधाएँ जुटा लीं। इस प्रकार से उस राजकुमारी ने अपना संकल्प पूरा कर लिया।

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प्रश्न 4.
इस कहानी से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर
इस कहानी से हमें बहुत वही प्रेरणा मिलती है। वह प्रेरणा यह है कि हमें अपने जीवन में आनेवाली विपत्तियों और कठिनाइयों पर हताश, निराश और बुजदिल नहीं होना चाहिए। उसे हिम्मत, परिश्रम और विवेक से आगे बढ़ना चाहिए। इससे वह अवश्य अपने जीवन में सफलता प्राप्त करके सुखी और सम्पन्न होकर आनन्दमय जीवन बिता सकता है।

प्रश्न 5.
‘गुणवन्ती’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘गुणवन्ती’ कहानी एक सार्थक शीर्षक की कहानी है। इस कहानी में एक राजकुमारी के महान और प्रेरणादायक गुणों का उल्लेख हुआ है। घोर विपत्ति और अचानक कुसमय होने के बावजूद वह अपने गुणों को त्यागती नहीं अपितु उनके ही सहारे वह मॅझधार में पड़ी हुई गृहस्थी को पार लगा लेती है। इसके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि ‘गुणवंती’ शीर्षक सार्थक है।

गुणवन्ती भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए
घर, घोड़ा, अंधेरा, राजा, धन।
उत्तर
शब्द – पर्यायवाची शब्द
घर – आवास, गृह
घोड़ा – अश्व, हय
अँधेरा – अंधकार, तम
राजा – नृप, नरेश
धन – द्रव्य, सम्पत्ति।

प्रश्न 2.
दिए गए शब्दों में से प्रत्यय छाँटकर लिखिए
हिनहिनाहट-हिनहिन+आहट
अनपढ़, बचपन, दुकानदार, परिस्थितिवश।
उत्तर
शब्द
अनपढ़ = अन-पढ़
दुकानदार = दुकान-दार
बचपन = बच-पन
परिस्थितिवश = परिस्थिति-वश।

प्रश्न 3.
नीचे लिखे उपसर्गों का उपयुक्त प्रयोग करते हुए शब्द बनाइए
बे, कु, सद्, सु, नि, सद्।
सहारा – ……………….
पोषण – ……………….
व्यवस्थित – ………………
डर – ……………
लोक – …………….
व्यवहार – ……………
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 20 गुणवन्ती img 1

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प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के लिंग बदलकर रिक्त स्थान भरिए
1. मोहन ने सोचा नाई से शादी की बात करूँ परन्तु……ने मना कर दिया।
2. साधारण पुरुष का यह काम नहीं था न ही किसी…..का।
3. सभी पुरुष विद्वान थे और स्त्रियाँ…..थीं।
4. दिए गए शब्द युग्मों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
पालन-पोषण, काम-धंधा, धन-दौलत, सुख-सुविधा।
उत्तर
1. मोहन ने सोचा नाई से शादी की बात करूँ, परन्तु नाईन ने मना कर दिया।
2. साधारण पुरुष का यह काम नहीं था, न ही किसी स्त्री का।
3. सभी पुरुष विद्वान और स्त्रियाँ विदुषी थीं।
4. शब्द-युग्मों का वाक्य-प्रयोग
(i) पालन – पोषण
पालन – उसने उसका पालन किया है।
पोषण – पौधों के लिए पोषण तत्त्व आवश्यक है।
(ii) काम – धंधा
काम – वह दुकान पर काम करता है।
धंधा – मोहन कबाड़ी का धंधा करता है।
(iii)धन – दौलत
धन – मेरे पास पुस्तक ही धन है।
दौलत – आजकल दौलत के स्वामी पूजे जाते हैं।
(iv) सुख – सुविधा
सुख – भिखारी को भीख माँगने से ही सुख मिलता है।
सुविधा – अमीरों को सभी सुविधाएं प्राप्त होती हैं

गुणवन्ती योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
विद्यार्थी बची हुई, व्यर्थ अथवा पुरानी सामग्री से छोटे-छोटे खिलौने या काम आने वाली चीजें बनाएँ और कक्षा में प्रदर्शनी लगाएँ।
प्रश्न 2.
गुणवन्ती कहानी की तरह अपनी कल्पनाओं से दिए गए बिन्दुओं की मदद से कहानी बनाइए
एक राजकुमारी थी। वह बहुत सुन्दर……..थी। एक दिन बाग में……..और उसके सफेद घोड़े पर सवार युवक……. । वह उस समय खतरे में थी क्योंकि…..। तभी मदद …… । राजकुमारी वापस…………. । राजा ने……विवाह कर दिया और वे दोनों खुशी खुशी रहने लगे।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

गुणवन्ती परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मोहन का पालन-पोषण किसने किया?
उत्तर
मोहन का पालन-पोषण उसकी सौतेली बहन ने किया।

प्रश्न 2.
सौतेली बहन का व्यवहार मोहन के प्रति कैसा था?
उत्तर
सौतेली बहन का व्यवहार मोहन के प्रति अच्छा नहीं था।

प्रश्न 3.
मोहन की शादी क्यों नहीं हो पा रही थी?
उत्तर
मोहन की शादी निम्नलिखित कारणों से नहीं हो पा रही थी

  1. वह अनपढ़ और गंवार था।
  2. वह कामचोर था।
  3. वह बहुत गरीब था
  4. वह अनाथ था।
  5. वह बेसहारा था।

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प्रश्न 4.
गाँव का नाई कैसा था?
उत्तर
गाँव का नाई पूरी तरह से धूर्त और चालाक था। उसने अपनी इसी धूर्तता और चालाकी से कई गरीबों, बेसहारों और अपंगों की शादियां करवा दी थीं।

प्रश्न 5.
झोपड़ी को देखकर राजकुमारी ने क्या सोचा?
उत्तर
झोपड़ी को देखकर राजकुमारी बहुत दुखी हुई। उसने समझ लिया कि उसके साथ धोखा हुआ है।

प्रश्न 6.
राजकुमारी को पुरस्कार किसने दिया?
उत्तर
राजकुमारी को पुरस्कार उसके पिता राजा ने ही दिया।

प्रश्न 7.
राजा ने अपनी बेटी से क्या कहा? ।
उत्तर
राजा ने अपनी बेटी का हौसला बढ़ाते हए कहा-“बेटी! हमें तम पर गर्व है। तुम्हारी सफलता उन सभी के लिए प्रेरणादायक हो सकती है जो बाधाओं और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं।”

प्रश्न 8.
शादी के लिए राजा की बेटी की क्या शर्त थी?
उत्तर
शादी के लिए राजा की बेटी की यही शर्त थी कि वह अपने से अधिक सुन्दर और गुणवान व्यक्ति से ही शादी करेगी।

प्रश्न 9.
राजा की बेटी की डोली कहाँ रुकी?
उत्तर
राजा की बेटी की डोली एक टूटी हुई झोपड़ी के सामने रुकी।

गुणवन्ती दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मोहन अपनी शादी करवाने की प्रार्थना करने के लिए किसके पास गया?
उत्तर
मोहन अपनी शादी करवाने की प्रार्थना करने के लिए अपने ही गांव के एक नाई के पास गया। यह इसलिए कि उस नाई ने कितनी ही शादियाँ गरीब-से-गरीब लड़के-लड़कियों की करवाई थी। इस विश्वास और आशा से वह उस नाई के पास गया कि उसकी भी शादी वह अवश्य करवा देगा।

प्रश्न 2.
नाई ने मोहन को क्या सिखाया?
उत्तर-नाई ने मोहन को यही सिखाया कि, तुम्हारी शादी एक राजा की बेटी से करवा दूंगा। तुम इसे मजाक मत समझो। मैं तुमसे जैसा कहता हूं, तुम वैसा ही करना। तुम धोबी के यहाँ से अच्छी पोशाक माँगकर पहन लो। कहीं से सफेद अरबी घोड़ा ले आओ। पन्द्रह-बीस गीदड़ों को इक्ठे कर लो। इसके बाद की बातें मैं देख लूँगा।

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प्रश्न 3.
नाई ने राजा से जाकर क्या कहा?
उत्तर
नाई ने राजा के पास जाकर कान में कहा कि आपको जिस प्रकार के वर की तलाश थी उस तरह का वर मिल गया है। वह किसी देश का राजा है। उसके पास धन-दौलत सब कुछ है। उसे दान-दहेज कुछ नहीं चाहिए। इन सबके बावजूद उसकी एक शर्त है कि अंधेरा होने पर लड़की को डोली में बैठाकर शहर के बाहर बरगद के पेड़ के पास पहुँचा दिया जाए। लड़की के साथ और कोई न आए। लड़की वहीं से ससुराल चली जाएगी।

प्रश्न 4.
राजा की बेटी ने झोपड़ी के अन्दर क्या देखा?
उत्तर
राजा की बेटी ने झोपड़ी के अन्दर जो कुछ देखा वह सब उसकी कल्पना के विपरीत था। उसने झोपड़ी के अन्दर देखा कि एक मिट्टी का मटका तथा कुछ टूटे हुए बर्तन हैं।

गुणवन्ती कहानी का सारांश

प्रश्न
‘गुणवंती’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
गुणवंती’ कहानी एक प्रेरक कहानी है। इस कहानी से कठिन परिस्थितियों में हिम्मत न हारने की शिक्षा मिलती थी। इस कहानी का सारांश इस प्रकार है | एक गाँव में मोहन नामक एक अनाथ बालक का पालन-पोषण उसकी सौतेली बहन ने किया था। बड़ा होने पर मोहन अपनी शादी तो करना चाहता था लेकिन कोई उसे अपनी लड़की देने के लिए तैयार नहीं होता था। एक दिन उसने अपने.. गाँव के नाई से अपनी शादी कहीं करवा देने की मिन्नत की। नाई ने उसकी शादी राजकुमारी से करवाने की बात उससे कही तो उसने इसे मजाक समझा, फिर बाद में इसे सत्य मान लिया। नाई ने कहा कि इसके लिए तुम्हें एक काम करना होगा। वह यह कि तुम धोबी के यहाँ से अच्छी पोशाक माँगकर पहन लो। कहीं से सफेद अरबी घोड़ा ले आओ।

पन्द्रह-बीस गीदड़ इकट्ठे कर लो। बाकी सब मैं देख लूंगा। मोहन ने जब यह सब कुछ कर लिया, तब नाई ने उसे शहर के बाहर एक बरगद के पेड़ के नीचे रुकने के लिए कहा। फिर वह दौड़ते हुए राजा के कान में कहा-आपकी पसन्द का वर मिल गया है। इस राजकुमार के पास सब कुछ है। इसलिए उसे दहेज नहीं चाहिए। उसकी शर्त है कि अँधेरा होने पर लड़की को डोली में बैठाकर शहर के बाहर बरगद के पेड़ के पास पहुंचा दिया जाए। लड़की अकेली ही ससुराल जाएगी। यह इसलिए कि अगर राजकुमार यहाँ आएँगे तो लोगबाग यही समझेंगे कि कोई आप पर हमला करने आ रहा है। राजा ने नाई के इस सुझाव को मानकर नाई के कथनानुसार राजा ने अपनी बेटी को डोली में भेजकर महल के ऊपर चढ़कर राजा ने देखा कि बरगद के पेड़ के नीचे वह राजकुमार घोड़े पर चढ़ा है। गीदड़ों के शोर और घोड़ो की हिनहिनाहट से उसे लगा कि उसकी सेना में हलचल है। राजा ने चैन की सांस ली।

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मोहन की झोपड़ी में पहुंचने पर गुणवंती का विवाह जब हो गया तो उसे पता चला कि उसके साथ धोखा हुआ है। फिर भी उसने हिम्मत और साहस से काम लिया। उसने अपने पति को काम करने के लिए कहा तो उसने अपनी अयोग्यता बताई। एक दिन उसने अपनी रेशमी साड़ी से कई गुड़ियां बनाकर अपने पति को बाजार में बेचने के लिए भेजा। लोगों ने उन्हें बहुत सराहा। वे सभी अच्छे पैसे में बिक गईं। बाद में गुणवन्ती ने मोर और घोड़े बनाकर भेजे। वे सभी अच्छे दाम में बिक गए। इस तरह गुणवन्ती ने खिलौने का एक बहुत बड़ा कारखाना खोल लिया। उसकी आमदनी से अपने पिता से अच्छा महल बना लिया।

कुछ समय पहले शहर में लगी हुई प्रदर्शनी में गुणवन्ती की गुड़िया को सर्वश्रेष्ठ इनाम घोषित किया गया। राजा ने वह इनाम अपने हाथों से दिया। इनाम लेते समय राजा और गुणवन्ती ने एक-दूसरे को पहचान लिया। उसने राजा से कहा कि आपने धोखेबाज नाई के कहने पर मेरा विवाह एक गंवार, बेकार और अयोग्य व्यक्ति से कर दिया फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने तो अपनी हिम्मत और मेहनत से दुनिया की सारी सुविधाएँ प्राप्त कर लीं। इसे सुनकर राजा ने लज्जित होकर कहा कि बेटी हमें तुम पर गर्व है। तुम्हारी सफलता उन सभी के लिए प्रेरणादायक हो सकती है जो बाधाओं और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं।

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