MP Board Class 9th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 8 जीवन का झरना

MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 8 जीवन का झरना (कविता, आरसी प्रसाद सिंह)

जीवन का झरना अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्झर किन गुणों के आधार पर आगे बढ़ता है?
उत्तर:
निर्झर अपनी निरन्तर गति और यौवन के गुणों के आधार पर आगे बढ़ता है। उसके जीवन में विपत्तियों से जूझने की क्षमता है।

प्रश्न 2.
निर्झर को किन-किन बाधाओं को पार करना पड़ता है?
उत्तर:
निर्झर को मार्ग में आने वाली चट्टानों एवं वृक्षों आदि की बाधाओं को पार करना पड़ता है।

प्रश्न 3.
निर्झर क्या कहता है?
उत्तर:
निर्झर कहता है कि निरन्तर बिना कोई चिन्ता किए आगे बढ़ते जाओ। मार्ग में चाहे कैसी भी विपत्ति आये उससे घबराओ मत अपितु उसका बहादुरी से मुकाबला करो।

प्रश्न 4.
जीवन रूपी निर्झर के दोनों किनारे कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
जीवन रूपी निर्झर के दो किनारे हैं-सुख और दुःख। जिस प्रकार दिन-रात का, लाभ-हानि का जोड़ा रहता है उसी प्रकार सुख-दुःख का भी जोड़ा रहता है। जब व्यक्ति के पुण्य उदय होते हैं तब वह सुख भोगता है और पाप के उदय होने पर दुःख भोगता है।

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प्रश्न 5.
निर्झर की सिर्फ एक ही धुन है, वह कौन सी हैं?
उत्तर:
निर्झर की सिर्फ एक ही धुन है, वह है निरन्तर चलने की और मस्ती में गाते हुए चलने की अर्थात् वह दुःख एवं विपत्ति की चिन्ता न करते हुए निरन्तर अपनी मस्ती के गीत गाते हुए विघ्न-बाधाओं को पार करते हुए निरन्तर चलता रहता है।

प्रश्न 6.
कविता के आधार पर मनुष्य कैसे बढ़ता है?
उत्तर:
कविता के आधार पर मनुष्य संघर्ष करता हुआ, विघ्न बाधाओं को पार करता हुआ बढ़ता है। जिस प्रकार झरना कठोर-से-कठोर चट्टानों को तोड़कर अपनी राह बनाता हुआ आगे बढ़ता जाता है उसी प्रकार मनुष्य को भी मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर भगाकर निरन्तर आगे-ही-आगे बढ़ते चला जाना चाहिए।

प्रश्न 7.
कविता के आधार पर निर्झर की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कविता के आधार पर निर्झर की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-प्रथम विशेषता है सदैव मस्त रहना, द्वितीय विशेषता है यौवन जैसा जोश लेकर सदैव गतिशील बना रहना। मार्ग में चाहे जैसी भी बाधाएँ, (विपरीत परिस्थितियाँ) आएँ उनसे बिना विचलित हुए अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर आगे बढ़ते जाना और तृतीय विशेषता है कभी भी पीछे मुड़कर न देखना अर्थात् अतीत की यादों को याद कर व्यर्थ ही अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ न करना।

प्रश्न 8.
निर्झर को बाधाओं को पार करने के लिए क्या करना पड़ता है?
उत्तर:
निर्झर को मार्ग में आने वाली चट्टानों एवं वृक्षों को अपने सामने से हटाकर अपना मार्ग प्रशस्त करना पड़ता है। जीवन के उतार-चढ़ाव के समान ही कभी उसकी लहरें ऊपर चढ़ती हैं तो कभी नीचे गिरती हैं। इन संकटों से वह कभी भी विचलित न होकर निरन्तर आगे-ही-आगे बढ़ता जाता है।

प्रश्न 9.
निर्झर क्या कहना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
निर्झर कहता है कि हमें विघ्न और विपत्तियों की चिन्ता न कर निरन्तर आगे बढ़ते जाना चाहिए। मार्ग में आने वाली बाधाओं को अपनी बहादुरी एवं सूझ-बूझ से दूर हटा दो और आगे ही आगे बढ़ते जाओ। पीछे मुड़कर अर्थात् अतीत को मत देखो क्योंकि उससे कुछ भी मिलने वाला नहीं है। निरन्तर आलस्य को त्यागकर हर क्षण अपने जीवन को गतिमान बनाये रखो क्योंकि गति ही जीवन है। जिस दिन व्यक्ति निष्क्रिय हो जाएगा उस दिन निर्जीव व्यक्ति के समान बन जाएगा और यह निष्क्रिता ही मरण का दूसरा नाम है।

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MP Board Class 9th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 7 उड़ता चल कबूतर

MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 7 उड़ता चल कबूतर (यात्रा वृत्तांत, रामवृक्ष बेनीपुरी)

उड़ता चल कबूतर अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
सोनभद्र नदी किस प्रदेश में बहती है?
उत्तर:
सोनभद्र नदी बिहार प्रदेश में बहती है।

प्रश्न 2.
यूरोप यात्रा पर जाने के लिए किसने पत्र लिखा?
उत्तर:
यूरोप यात्रा पर जाने के लिए सन् 1947 ई. में आचार्य नरेन्द्र देव ने पत्र लिखा।

प्रश्न 3.
जयप्रकाश जी को किस-किसकी चिन्ता थी?
उत्तर:
जयप्रकाश जी को दैनिक-पत्र ‘जनता’ की चिन्ता थी और आगामी आम चुनाव की भी चिन्ता थी।

प्रश्न 4.
बिहार से चलने के बाद लेखक का प्लेन कौन-से शहर में उतरा?
उत्तर:
बिहार से चलने के बाद लेखक का प्लेन बनारस शहर में उतरा।

प्रश्न 5.
शरीर की भंगिमा द्वारा भाव प्रकट करने वाले व्यक्ति का नाम क्या था?
उत्तर:
शरीर की भंगिमा द्वारा भाव प्रकट करने वाले व्यक्ति का नाम उदय शंकर था।

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प्रश्न 6.
ननिहाल जाते समय लेखक की हाथी के साथ क्या घटना घटी?
उत्तर:
ननिहाल जाते समय लेखक एक हाथी पर चढ़कर ऊँचे आसन पर बैठकर आनन्द लेना चाहता था पर हाथी की वह सवारी भीतरी मन को जितना आनन्द नहीं दे पाई उससे ज्यादा मन में भय बैठा गई थी।

प्रश्न 7.
बर्नार्ड शा ने अंग्रेजों के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
बर्नार्ड शा ने अंग्रेजों के बारे में लिखा है कि इस कौम के दिल में कोई इरादा जागता है तो वह इस तरह उसे छिपाकर रखती है कि एक दिन यह इरादा एक ज्वलन्त विश्वास में परिणत हो जाता है और इस विश्वास की अखण्ड ज्योति, इसमें इतनी शक्ति पैदा कर देती है कि वह जो चाहती है, उसे करके ही दम लेती है।

प्रश्न 8.
ब्रजनन्दन आजाद ने तार के द्वारा क्या सूचना दी?
उत्तर:
ब्रजनन्दन आजाद ने तार के द्वारा विलायत जाने की तैयारी करने की सूचना दी।

प्रश्न 9.
गोरे अंग्रेज ने हिन्दी के बारे में क्या कहा?
उत्तर:
गोरे अंग्रेज ने हिन्दी के बारे में कहा कि आजकल हिन्दी को लोग संस्कृत बना रहे हैं। प्रेमचन्द की हिन्दी कितनी अच्छी थी। पटना के हिन्दी अखबार तक ऐसी हिन्दी लिखते हैं कि उनका अर्थ समझने के लिए डिक्शनरी की जरूरत होती है।

प्रश्न 10.
दिल्ली के राजभवन में कौन-कौन से चित्र लगे थे?
उत्तर:
दिल्ली के राजभवन में वायसराय के चित्र, अंग्रेजों द्वारा बनाये गये भवनों के चित्र, उन युद्धों के चित्र जिनमें विजयी बनकर अंग्रेज भारत के शासक हुए। सुरक्षा की दृष्टि से ये चित्र राजभवन को म्यूजियम मानकर लगा दिये गये थे।

प्रश्न 11.
हवाई जहाज यात्रा के समय नीचे के दृश्यों का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है?
उत्तर:
हवाई जहाज यात्रा के समय नीचे के दृश्यों का वर्णन करते हुए लेखक कहता है कि ऊपर उड़ने पर ताड़ के वृक्ष छोटे-छोटे लगते हैं। धरती की सीमाएँ जैसे सिमटी जा रही हैं। खेत ऐसे लग रहे हैं जैसे मुसल्लम धारीदार चादर हो। तेजधूप में गंगा का कछार हिमालय की सीढ़ी का पहला जीना जैसा लग रहा था। नीचे की सारी चीजें छोटी होती जा रही हैं। ताड़-खजूर आम-नीम सब छोटे-छोटे से पौधे लग रहे हैं। पृथ्वी शतरंज की एक लम्बी विसात सी लगती है। जैसे-जैसे हम ऊँचे चढ़ते जाते हैं भेदभाव मिटते जाते हैं, सीमाएँ नष्ट हो जाती हैं और एकरूपता बढ़ती जाती है।

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प्रश्न 12.
अन्तर्मन और बहिर्मन का परस्पर क्या सम्बन्ध है? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक वस्तु के दो पहलू होते हैं-आन्तरिक और बाह्य। इसी प्रकार मानव मन के भी दो पहलू होते हैं-अन्तर्मन और बहिर्मन। जब किसी वस्तु के प्रति हमारा आकर्षण अधिक होता है तो हमारा बहिर्मन उस वस्तु को प्राप्त करने का प्रयास करता है। अभिप्राय यह है कि अन्तर्मन किसी के भी बारे में सोचता रहता है, योजनाएँ बनाता रहता है पर उन योजनाओं को कार्य रूप में परिणत नहीं कर पाता है। उन योजनाओं को कार्य रूप में ‘परिणत करता है बहिर्मन। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अन्तर्मन का कार्य योजना बनाना है और उसे क्रिया रूप में परिणत करता है बहिर्मन। अत: इन दोनों का परस्पर अटूट सम्बन्ध है। एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल सकता है।

प्रश्न 13.
बनारस में उदय शंकर जी से लेखक की क्या बातचीत हुई?
उत्तर:
जब लेखक बिहार से चलकर बनारस हवाई अड्डे पर उतरा तो उसने लॉन में किसी को बैठा देखा। उसे देखकर लेखक की जो बातचीत हुई, वह इस प्रकार है-“क्षमा करें, क्या आप उदय शंकर हैं?”

“जी हाँ, आप मुझे पहचानते हैं?” जी, मैं भी एक छोटा-मोटा कलाकार ही हूँ। जिसे आप शरीर की भंगिमा द्वारा प्रकट करते हैं, उसे मैं कलम द्वारा उतारने की कोशिश करता हूँ।”

“अपने कला-केन्द्र के बारे में कुछ बता ………”
हाँ, सोच रहा हूँ, 1952 में उसे अल्मोड़ा के बदले देहरादून में खोलूँ। देहरादून बड़ी अच्छी जगह है।” मैने बताया लेखनीधारी का बेटा राइफलधारी बनने जा रहा है। “देश को उसकी भी जरूरत है। अच्छा किया है।”

प्रश्न 14.
भावार्थ स्पष्ट कीजिए-“ज्यों-ज्यों ऊँचे चढ़िए भेदभाव मिटते जाते हैं। सीमाएँ नष्ट होती जाती हैं, एकरूपता बढ़ती जाती है।”
उत्तर:
भावार्थ-लेखक कहता है कि ज्यों-ज्यों हम हवाई जहाज के द्वारा ऊपर आकाश की ओर बढ़ते जाते हैं, नीचे की सब वस्तुएँ एकसी दिखाई देने लगती हैं। इस यात्रा में सीमाएँ नष्ट होती जाती हैं और ऐसा लगता है कि सारा संसार, सारी पृथ्वी एक ही है।

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MP Board Class 9th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 6 सिपाही का पत्र

MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 6 सिपाही का पत्र (कविता, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’)

सिपाही का पत्र अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
सिपाही ने अपना पत्र किसको सम्बोधित करते हुए लिखा है?
उत्तर:
सिपाही ने अपना पत्र देशवासियों को सम्बोधित करते हुए लिखा है।

प्रश्न 2.
पंचायत का रेडियो किसका सहारा है?
उत्तर:
पंचायत का रेडियो सैनिक की माता का सहारा है।

प्रश्न 3.
सिपाही अपना पत्र कहाँ से लिख रहा है?
उत्तर:
सिपाही अपना पत्र गंगा, यमुना और ब्रहापुत्र के मुहाने से लिख रहा है। वह वहाँ अपने देश की सीमा की सुरक्षा के लिए तैनात है।

प्रश्न 4.
सिपाही युद्ध को राम-राज के रूप में क्यों स्वीकार करता है?
उत्तर:
सिपाही युद्ध को राम-राज के रूप के रूप में इसलिए स्वीकार करता है क्योंकि वह जीवन मूल्यों तथा मानवता की रक्षा के लिए लड़ रहा है। उसका मानना है कि राम-काज की सिद्धि में यदि यह क्षणभंगुर शरीर चला भी जाए तो यह पुण्य का काम होगा।

प्रश्न 5.
अपनी माँ को विश्वास दिलाते हुए सिपाही क्या कहता है?
उत्तर:
अपनी माँ को विश्वास दिलाते हुए सिपाही कहता है कि हे माँ! तू धीरज मत खो। मेरे सिर पर तुम्हारे आशीषों की छाया है। मैं तुम्हारा ही नाम ले लेकर इन नरभक्षी दुष्टों से उलझ रहा हूँ। मैं तेरे दूध की शपथ खाकर कहता हूँ कि मैं वीरमाताओं के यश को कलंकित नहीं करूँगा और इन शत्रुओं को छठी का दूध याद दिला दूंगा। मैं जब भी युद्ध क्षेत्र से विजय प्राप्त कर लौहँगा तो अपने माथे पर तेरी चरणरज लगा-लगाकर आनन्दित हो उलूंगा। मैं किसी भी दशा में तेरी कोख को कलंकित नहीं होने दूंगा।

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प्रश्न 6.
सिपाही अपने बच्चों को क्या सिखाना चाहता है?
उत्तर:
सिपाही अपने बच्चों को यह सिखाना चाहता है कि वे अपने पिता की भाँति देशभक्त एवं कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति बनें। नन्हें-मुन्ने आग से खेलना सीखें। वह उन बच्चों को वीरता, धैर्य एवं आत्म बलिदान का पाठ पढ़ाना चाहता है।

प्रश्न 7.
“ऐसा सौभाग्य बड़ी मुश्किल से मिलता है।”-इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऐसा सौभाग्य बड़ी मुश्किल से मिलता है-यह कथन कवि ने मातृभूमि की सुरक्षा में तैनात सिपाही की आन्तरिक भावनाओं को व्यक्त किया है। सिपाही का कथन है कि वह अपनी मातृभूमि की आजादी की सुरक्षा के लिए बलिदान होने का इच्छुक है। मातृभूमि उसकी माँ है और वह उसका पुत्र है।

सिपाही का कथन है कि देश की सेवा के लिए समर्पण करने का अवसर सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही मिलता है। वह अपने बलिदान को कभी भी कलंकित नहीं होने देगा।

प्रश्न 8.
सिपाही अपनी उदास पत्नी के प्रति क्या भावना व्यक्त करता है?
उत्तर:
सिपाही अपनी उदास पत्नी के प्रति इस प्रकार की भावना व्यक्त करता है-“मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम बहुत दुर्बल हो रही हो। बार-बार हिचकी भरती हुई एवं पीपल के पत्ते के समान झकझोरी-सी लग रही हो।

मुझे यह कदापि उम्मीद नहीं थी कि तुम अपने मन में कायरता के भाव उत्पन्न करोगी। इस मंगलमय बेला में चण्डी का द्वार खोल उपासना में जुट जाओ। यह अकेला मेरा प्रश्न नहीं है यह तो राष्ट्र की सुरक्षा का प्रश्न है। देश पर संकट आया हुआ है, ऐसे में देश हितार्थ अपना-अपना उत्सर्ग करने की सबमें होड़ लगी हुई है। तुम धैर्य धारण करो, अपनी सन्तानों को कर्तव्य निष्ठा एवं देश प्रेम का पाठ पढ़ाओ। बलिदान ही मानव का गौरव है। मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर है।

प्रश्न 9.
इस कविता के आधार पर युद्ध क्षेत्र का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
सीमा पार से शत्रु सेना ने देश पर आक्रमण कर दिया है। देश के वीर सैनिक सीमाओं की रक्षा के लिए बहुत ऊँचे दुर्गम पर्वतों पर अपनी जान की बाजी लगाकर शत्रु से संघर्ष कर रहे हैं। देश के सैनिकों का एकमात्र लक्ष्य अपने देश की सुरक्षा करना है। वे सरहदों पर रहकर न माँ की चिन्ता करते हैं, न पत्नी की और न बच्चों की। वे तो देश की रक्षा हेतु अपने प्राणों को बलिदान करने को तैयार हैं। वे यह मानते हैं कि युद्ध क्षेत्र में बलिदान देने से भारत माता की अनुपम सेवा होगी।

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MP Board Class 9th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 5 विश्व मन्दिर

MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 5 विश्व मन्दिर (सामाजिक निबन्ध, वियोगी हरि)

विश्व मन्दिर अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक अपना विश्व मन्दिर कहाँ निर्मित करना चाहता है?
उत्तर:
लेखक अपना विश्व मन्दिर भारत की तपोभूमि पर ही निर्मित करना चाहता है।

प्रश्न 2.
परमेश्वर का महामन्दिर किसे कहा गया है?
उत्तर:
परमेश्वर का महामन्दिर इस समस्त विश्व को कहा गया है। यह समस्त विश्व उसी घट-घट व्यापी का घर है जब हम उसे अपने दिल के मन्दिर में बैठा लेंगे तो सर्वत्र हमें सुख शान्ति एवं आनन्द मिलेगा। उसके आने से अविद्या की अँधेरी रात समाप्त हो जाएगी और प्रेम का आलोक सर्वत्र बिखर जाएगा। यह महामन्दिर सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय होगा। यह महामन्दिर किसी एक धर्म सम्प्रदाय का न होकर सर्व धर्म सम्प्रदायों का समन्वय मन्दिर होगा।

प्रश्न 3.
विश्व मन्दिर हमें कब दिखाई देगा?
उत्तर:
यह विश्व मन्दिर हमें प्रेम के प्रकाश में दिखाई देगा।

प्रश्न 4.
समन्वय मन्दिर किसके लिए होगा?
उत्तर:
समन्वय मन्दिर सभी धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए होगा। यह किसी विशेष धर्म या सम्प्रदाय के लिए नहीं होगा।

प्रश्न 5.
विश्व मन्दिर की दीवारों पर किन-किन धर्म ग्रन्थों के महावाक्य खुदे होंगे? धर्म ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विश्व मन्दिर की दीवारों पर वेद के मन्त्र, कुरान की आयतें, अवेस्ता की गाथाएँ, बौधों के सुत्त, इंजील के सरमन, कन्फ्यू शियस के सुवचन, कबीर के सबद और सूर के भजन आप उस मन्दिर की पवित्र दीवारों पर पढ़ सकेंगे।

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प्रश्न 6.
इस काल्पनिक विश्व मन्दिर में “मैं-तू न होगा।” इस वाक्य का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि उस काल्पनिक विश्व मन्दिर में साधकगण लोक सेवा एवं विश्व प्रेम का प्रचार-प्रसार करेंगे। धार्मिक झगड़े से ऊबे हुए या घबराये हुए शान्ति प्रिय साधक वहाँ बैठकर दिव्य प्रेम की साधना किया करेंगे। उस मन्दिर में ‘मैं’ और ‘तू’ का झगड़ा नहीं होगा। वहाँ तो वही एक प्रभु होगा जो सबका होगा।

प्रश्न 7.
काल्पनिक विश्व मन्दिर के भव्य और दिव्य रूप को देखकर विपक्षियों के मन में कौन-से भाव जाग्रत होंगे?
उत्तर:
काल्पनिक विश्व मन्दिर के भव्य और दिव्य रूप को देखकर विपक्षियों के मन में प्रेम एवं सत्य की भावनाएँ जन्म लेंगी। चारों ओर स्नेह ही स्नेह होगा। सभी एक साथ मिलकर स्नेह का प्रसाद वितरित कर रहे होंगे। विपक्षियों का भी प्रवेश मन्दिर में वर्जित नहीं होगा।

प्रश्न 8.
समन्वय मन्दिर में बैठकर लोग क्या करेंगे?
उत्तर:
समन्वय मन्दिर में किसी विशेष धर्म या सम्प्रदाय का प्रवेश न होगा अपितु वहाँ तो सर्वधर्म सम्प्रदायों के लोगों का वास रहेगा। वह सबके लिए होगा, सबका होगा। यहाँ बैठकर लोग सत्य, प्रेम एवं करुणा का सन्देश दुनिया को सुनायेंगे। उसमें आपसी मन-मुटाव तथा तू-तू, मैं-मैं का झगड़ा नहीं होगा।

प्रश्न 9.
विश्व मन्दिर पाठ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
‘विश्व मन्दिर’ पाठ का प्रमुख उद्देश्य है कि समस्त विश्व में धर्म, जाति देश एवं दिशा के आधार पर भेद-भाव को समाप्त करके सर्वत्र एकता, सहानुभूति एवं सह-अस्तित्व की भावना को जाग्रत करना है। इसी बन्धुत्व भाव से रहते हुए हमें जगत् पिता के दर्शन हो जाएँगे।

प्रश्न 10.
लेखक ने काल्पनिक विश्व मन्दिर के निर्माण की कल्पना किस उद्देश्य से की है? लिखिए।
उत्तर:
लेखक ने काल्पनिक विश्व मन्दिर के निर्माण की कल्पना सब धर्म एवं सम्प्रदायों में आपसी सहमति एवं सहृदयता जगाने की भावना से की है। उसकी दीवारों पर संसार के सभी प्रचलित धर्म ग्रन्थों के समन्वय सूचक महावाक्य दीवारों पर खुदे होंगे। किसी भी धर्मवाक्य में भेद न दिखाई देगा। सबका एक ही लक्ष्य एक ही मतलब होगा। उसकी दीवारों पर खुदे हुए प्रेम मन्त्र मानवों के मन से संशय और भ्रम का पर्दा उठायेंगे तथा उनसे अनेकता में एकता की झलक दिखाई देगी।

प्रश्न 11.
विश्व मन्दिर की स्थापना की आवश्यकता लेखक क्यों अनुभव करता है?
उत्तर:
विश्व मन्दिर की स्थापना की आवश्यकता लेखक इसलिए अनुभव करता है क्योंकि इससे यह समस्या समाप्त हो जाएगी कि यह राम का निवास स्थल है या नहीं। ईश्वर की सार्वभौमिकता प्रश्नों की परिधि से बाहर रहेगी। सर्वसामान्य के हितों की रक्षा हो पाएगी। इसकी स्थापना से संशय, नास्तिकता एवं भेदभाव की भावना समाप्त हो जाएगी। इसमें सभी धर्म, वर्ण एवं जातियों के लोग प्रवेश पाने में समर्थ होंगे। इसमें पापी-पुण्यात्मा तथा ऊँचा-नीच का भेद नहीं होगा।

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MP Board Class 9th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 4 वैद्यराज जीवक

MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 4 वैद्यराज जीवक (वैज्ञानिक निबन्ध, घनश्याम ओझा)

वैद्यराज जीवक अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवक किस शास्त्र के विद्वान थे?
उत्तर:
जीवक आयुर्वेदिक चिकित्साशास्त्र के विद्वान थे।

प्रश्न 2.
जीवक के मन में किनके दर्शन की इच्छा थी?
उत्तर:
जीवक के मन में बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध के दर्शन की इच्छा थी।

प्रश्न 3.
राजकुमार अभय के प्रति जीवक ने अपनी कृतज्ञता कैसे व्यक्त की?
उत्तर:
अयोध्या नगरी में एक सेठ की बीमार पत्नी के सफल इलाज के फलस्वरूप सेठ द्वारा जीवक को सहस्र स्वर्ण मुद्राएँ दी गयीं। राजगृह पहुँचकर जीवक ने अपने प्रतिपालक राजकुमार अभय को सेठ द्वारा दी गयी सारी स्वर्ण मुद्राएँ देकर कृतज्ञता ज्ञापित की।

प्रश्न 4.
अवंती नरेश से तेज चलने वाला हाथी माँगने के पीछे जीवक का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
अवन्ती नरेश पीलिया रोग से पीड़ित थे और इस रोग का इलाज गाय के घी के सेवन से ही हो सकता था पर अवन्ती नरेश को घी से उल्टी आती थी। बिना घी के सेवन के उपचार नहीं हो सकता था। जीवक इसी समस्या से उलझे हुए थे तभी उन्होंने अवन्ती नरेश से तेज चलने वाला हाथी माँगा। हाथी मिल जाने पर जीवक ने घी के साथ राजा को औषधि देने का ऐसा समय बताया जबकि वे हाथी पर सवार होकर अवन्ती राज्य की सीमा पार कर चुके होते। यदि दवाई का अनुकूल प्रभाव उनकी उपस्थिति में न होता तो उन्हें दण्ड का भागी होना पड़ता। इसी भय से उन्होंने राजा से तेज गति से चलने वाला हाथी माँगा।।

प्रश्न 5.
जीवक के खाली हाथ लौटने पर भी आचार्य ने उन्हें परीक्षा में उत्तीर्ण क्यों कहा?
उत्तर:
तक्षशिला के आचार्य ने जीवक की परीक्षा लेने के लिए यह प्रश्न दिया था कि वत्स संसार में ऐसी किसी वनस्पति को खोजो जिसमें औषधीय गुण न हो। जीवक ने अनेक दिनों तक अथक परिश्रम किया पर उसे एक भी वनस्पति ऐसी न मिली जिसमें औषधीय गुण न हों। यद्यपि जीवक अपने आचार्य के प्रश्न का उत्तर नहीं ढूँढ़ सका था। पर फिर भी आचार्य ने उसे परीक्षा में उत्तीर्ण कह दिया। क्योंकि आचार्य जी जानते थे कि मेरे द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रश्न वास्तव में गलत था।

प्रश्न 6.
जीवक ने कौन-सा संकल्प लिया था?
उत्तर:
जीवक ने यह संकल्प लिया था कि वे कठिन परिश्रम और तप से योग्यता हासिल करेंगे तथा कभी भी किसी पर आश्रित बनकर नहीं रहेंगे और अपनी सामर्थ्य के अनुसार सबकी सहायता करेंगे।

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प्रश्न 7.
सम्राट बिम्बसार के पुत्र ने ‘जीवक’ नाम क्यों दिया?
उत्तर:
महाराज बिम्बसार के पुत्र राजकुमार ‘अभय’ को यह नवजात शिशु एक मिट्टी के ढेर पर पड़ा हुआ मिला था। इतनी विषम परिस्थिति में भी वह जीवित था इसलिए उसका नाम ‘जीवक’ रख दिया गया।

प्रश्न 8.
आचार्य द्वारा जीवक को विदा करते समय कौन-सी सीख दी गई थी? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जीवक को जब कोई भी वनस्पति औषधीय गुणों से हीन नहीं दिखाई दी तथा सभी में उन्हें सजीवता के दर्शन हुए तो इस बात से प्रसन्न होकर तक्षशिला के आचार्य ने उसे उसकी अन्तिम परीक्षा में उत्तीर्ण कर दिया तथा उसे आशीर्वाद दिया। जीवक को विदाई देते समय आचार्य ने उन्हें शिक्षा दी कि तुम्हें ऋग्वेद में जो रोग एवं उनके उपचार बताए हैं, उन्हें तुम्हें आगे बढ़ाना है। भारद्वाज, अत्रेय, धन्वंतरि, चरक एवं सुश्रुत आदि आचार्यों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया है। इन सभी ने वनस्पतियों में भी प्राणियों के समान जीवन माना है। अत: इसी कार्य को तुम्हें और आगे बढ़ाना है। यह कहकर आचार्य चुप हो गये। यह उपदेश सुनकर जीवक बहुत प्रसन्न हुआ।

प्रश्न 9.
जीवक द्वारा किन-किन रोगियों की चिकित्सा की गयी? विवरण दीजिए।
उल्लर:
अपने आचार्य से दीक्षा प्राप्त करके तथा उनसे विदा लेकर जीवक राजगृह लौट आये। राजगृह वापस आने के बाद जीवक ने दो असाध्य रोगियों को शल्य क्रिया द्वारा स्वस्थ बनाया। उन्होंने एक युवक के पेट की शल्य क्रिया करके उसकी उलझी हुई आँतों की गाँठे खोलकर तथा पुनः सिलाई करके औषधि का लेप लगाया। दूसरी शल्य क्रिया एक सेठ के मस्तिष्क की करके उसे नया जीवन प्रदान किया था।

अयोध्या नगरी में सात वर्षों से सिर की पीड़ा से तड़प रही नगर सेठ की पत्नी का बिना शल्य क्रिया के ही उपचार कर दिया था। इसी भाँति उन्होंने अवंती नरेश चंदप्रद्योत के पीलिया रोग का इलाज किया था।

प्रश्न 10.
जीवक को ऐसा क्यों लगा कि वे भगवान बुद्ध के कृपापात्र बन गये हैं?
उत्तर:
आयुर्वेद का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर जीवक वैद्य बहुत सन्तुष्ट थे पर वे उस युग के महान् धर्म प्रवर्तक भगवान बुद्ध के दर्शन करना चाहते थे। संयोग से उन्हें भगवान बुद्ध की चिकित्सा का अवसर प्राप्त हो गया। भगवान बुद्ध के पाँव में धारदार पत्थर से चोट लग गई थी। इससे पाँव से खून बहने लगा था। जीवक ने औषधियों का लेप करके पैर पर पट्टी बाँध दी। लेकिन पट्टी के एक निश्चित सीमा के बाद खोलने का उन्हें ध्यान नहीं रहा। इससे वे बड़े दुःखी हुए।

इधर भगवान बुद्ध ने जीवक के मन की बात जानकर स्वयं पट्टी खोल दी थी। भगवान बुद्ध से सुबह भेंट होने पर भगवान ने जीवक को स्वयं ही बताया कि “जीवक जब तुम मेरी पट्टी खोलने के लिए चिंतित हो रहे थे, तभी मैंने उस पट्टी को खोल दिया था।” जीवक ने आश्चर्य से भगवान बुद्ध की ओर देखा और वे उनके चरणों में नतमस्तक हो गये। उन्हें यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि भगवान बुद्ध ने उनके मन को अपने मन से जोड़ लिया है, वे उनके कृपापात्र बन चुके हैं।

प्रश्न 11.
सेठ के मस्तिष्क की शल्य क्रिया करने के पूर्व जीवक ने क्या शर्त रखी?
उत्तर:
सेठ के मस्तिष्क की शल्य क्रिया करने से पूर्व जीवक ने एक शर्त रखी थी कि तुम्हें इक्कीस महीने तक बिस्तर पर लेटना होगा। सात महीने दाईं तरफ, सात महीने बाईं तरफ और सात महीने सीधे।

पर सेठ सात महीने के स्थान पर सात दिन भी एक तरफ नहीं लेट पाया तो जीवक ने सात, सात दिन में ही उसे करवटें बदलवा कर स्वस्थ कर दिया था। उन्होंने सेठ से कहा कि मैं आपको केवल इक्कीस दिन ही विश्राम देना चाहता था लेकिन आपके धैर्य की कमी को देखकर मैंने इक्कीस दिनों को इक्कीस महीने बताया था।

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MP Board Class 9th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 3 हल्दीघाटी

MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 3 हल्दीघाटी (कविता, श्यामनारायण पाण्डेय)

हल्दीघाटी अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
चेतक को प्रलय मेघ-सा क्यों कहा गया है?
उत्तर:
चेतक को प्रलय मेघ-सा इसलिए कहा गया है क्योंकि वह रणभूमि में शत्रु सेना पर प्रलय काल के मेघ के समान भयंकरता से टूट पड़ता था।

प्रश्न 2.
राणा प्रताप की तलवार को किसके समान कहा गया है?
उत्तर:
राणा प्रताप की तलवार को विषयुक्त नागिन, विद्युत् एवं जिह्वा निकाले हुए चण्डी के समान कहा गया है।

प्रश्न 3.
अजब विषैली नागिन किसे कहा गया है?
उत्तर:
अजब विषैली नागिन राणा प्रताप की तलवार को कहा गया है।

प्रश्न 4.
मानसिंह के हाथी की कमर क्यों झुक गई?
उत्तर:
मानसिंह ने राणा प्रताप के ऊपर भाले से प्रहार करना चाहा तभी राणा प्रताप ने उस प्रहार को थाम कर इस तरह का झटका दिया कि हाथी की भी कमर झुक गई।

प्रश्न 5.
अम्बर कलंक किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर:
अम्बर कलंक का अर्थ होता है आकाश को कलंकित करने वाला। अम्बर कलंक मानसिंह को कहा गया है क्योंकि मानसिंह ने मेवाड़ पर आक्रमण करने का षड्यंत्र रचा था। अकबर तो राणा प्रताप के शौर्य एवं रणकौशल से भयभीत था। लेकिन मानसिंह के उकसाने पर और उसी के नेतृत्व में हल्दी घाटी पर आक्रमण किया गया। मेवाड़ की धरती के आकाश को कलंकित करने के कारण ही मानसिंह को अम्बर कलंक कहा गया है।

प्रश्न 6.
‘तो फिर लड़ ले भाला लेकर’ यह किसने, किससे कहा?
उत्तर:
‘तो फिर लड़ ले भाला लेकर’ यह कथन राणा प्रताप ने मानसिंह से कहा।

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प्रश्न 7.
प्रताप के भाले के वार से मानसिंह कैसे बचा? उसके बदले में कौन मारा गया?
उत्तर:
प्रताप के भाले के वार से मानसिंह हौंदे के तल में छिपकर बच सका पर भाले के वार से हाथी का चालक पीलवान मारा गया।

प्रश्न 8.
हल्दी घाटी कहाँ स्थित है और क्यों प्रसिद्ध है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हल्दी घाटी अरावली पर्वत श्रेणियों के मध्य स्थित है। इस क्षेत्र में अकबर द्वारा भेजी गयी सेना ने मानसिंह के नेतृत्व में हमला किया। यह युद्ध एक भयनाक युद्ध था। अकबर, राणा प्रताप की शक्ति से डरता था पर मानसिंह के उकसाने पर उसने युद्ध किया। इस युद्ध में अकबर की सेना का बहुत नुकसान हुआ। महाराणा प्रताप सैनिकों की कमी के कारण युद्ध तो नहीं जीत पाये पर उन्होंने हार कभी भी स्वीकार नहीं की। भामाशाह से धन की मदद मिलने पर उन्होंने अपनी सेना को फिर इकट्ठा किया और वे देश की स्वतंत्रता के लिए जंगल-जंगल भटकते फिरे पर अपनी प्रतिज्ञा से पीछे नहीं हटे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राणा प्रताप का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है।

प्रश्न 9.
चेतक के शौर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक अत्यन्त तीव्र गति से दौड़ता था। वह दौड़ने में हवा को कभी को भी मात देता था। उसको चलाने के लिए चाबुक का प्रयोग नहीं किया जाता था। वह तो इशारे में ही उड़ जाता था। वह शत्रुओं को रौंदता हुआ युद्ध क्षेत्र से निकल जाता था। चौकड़ी भरते समय वह आकाश में उड़ने लगता था। तलवारों के युद्ध में भी वह बिना किसी डर के सरपट दौड़ जाता था।

वह शत्रु सेना पर प्रलय काल के बादलों के समान आक्रमण करता था। वह हाथी के मस्तक पर अपने आगे के दोनों पैर गड़ाकर उन्हें रोक देता था।

प्रश्न 10.
राणा प्रताप के युद्ध कौशल व वीरोचित व्यवहार का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
राणा प्रताप एक महान वीर योद्धा था। वह शत्रुओं से जरा भी नहीं डरता था। राणा प्रताप युद्धक्षेत्र में शत्रुओं के सिरों को एक झटके में काट डालता था। जब भी राणा का आक्रमण होता था शत्रुदल में आतंक मच जाता था और वे इधर-उधर बचने के लिए भागने लग जाते थे। उसकी तलवार शत्रुओं के सिर काट-काटकर लहराती रहती थी। उसकी तलवार को देखकर ऐसा लगता था मानो रणचण्डी अपनी जीभ पसार कर खून पीने के लिए व्याकुल हो रही है।

महान् योद्धा होते हुए भी वीरोचित व्यवहार शत्रु से भी करता था। जब प्रताप के प्रहार से मानसिंह का भाला टूट गया था। वह चाहता तो इस मौके का लाभ उठाकर मानसिंह का वध कर सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया अपितु मानसिंह से पुनः भाला हाथ में लेने को कहा। जब मानसिंह ने दुबारा भाला ले लिया तो राणा प्रताप ने हँसकर कहा-हे मानसिंह अब तू बस कर युद्ध हो चुका। अब यदि तू अपनी खैर चाहता है तो अपनी जान बचाकर यहाँ से भाग जा। जब मानसिंह नहीं माना तो राणा ने ऐसा भीषण प्रहार किया कि हाथी का हौदा टूट गया और मानसिंह ने उसमें छिपकर अपनी जान बचाई लेकिन दूसरे ही क्षण राणा के प्रहार से पीलवान की मौत हो गई। इस प्रकार हम देखते हैं कि राणा जहाँ महान् योद्धा था वहीं वह शत्रु के निशस्त्र होने पर उस पर वार नहीं करता था।

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MP Board Class 9th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 2 पुस्तक

MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 2 पुस्तक (आत्मकथा, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी)

पुस्तक अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य पुस्तकों से कौन-कौन-से गुण अर्जित करता है?
उत्तर:
मनुष्य पुस्तकों से सदाचार, प्रेम, करुणा, परोपकार तथा न्याय आदि मानवीय गुण अर्जित करता है।

प्रश्न 2.
सत् साहित्य की रचना कब होती है?
उत्तर:
जब कवि का विवेक या ज्ञान उल्लास का रूप धारण करता है तभी सत् साहित्य की रचना होती है।

प्रश्न 3.
इस पाठ में वर्णित दो महाकाव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
इस पाठ में लेखक ने तुलसीकृत रामचरितमानस और महाकवि व्यास रचित ‘महाभारत’ महाकाव्यों की चर्चा की है।

प्रश्न 4.
चिरन्तन आनन्द और गौरव किसमें निहित है?
उत्तर:
चिरन्तन आनन्द और गौरव सत् साहित्य में निहित है। जब कवि का विवेक आनन्द का रूप ग्रहण करता है, तब सत् साहित्य का निर्माण होता है।

प्रश्न 5.
मुझमें किसी दूसरे की आत्मा निवास करती है से क्या आशय है? समझाइए।
उत्तर:
‘मुझमें किसी दूसरे की आत्मा निवास करती है’ से यह आशय है कि एक पुस्तक की रचना में रचनाकार की साधना ही प्रमुख तथा अपूर्व प्रकाश सम्पन्न होती है। उसके अन्तर्गत उल्लास, सुख, सुषमा, शौर्य, आतंक एवं विस्मय जब किसी रचनाकार के हृदय स्थल में रसरूप में परिणत होते हैं, तभी पुस्तक की रचना होती है। वास्तव में पुस्तक में लेखक की आत्मा का प्रकाश ही निहित होता है।

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प्रश्न 6.
‘किताब का यथार्थ मूल्य’ किसमें निहित है?
उत्तर:
किताब का यथार्थ मूल्य तो पुस्तक में निहित ज्ञान में होता है। ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। किताब एक अमूल्य कोश है। पुस्तक रचनाकार के आनन्द का स्रोत है। वास्तव में किताब का यथार्थ मूल्य रचनाकार के यश, गौरवपूर्ण चिन्तन और उल्लास में होता है जिसका रसास्वादन पाठक किया करते हैं।

प्रश्न 7.
व्यक्ति द्वारा किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य किए जाते हैं?
उत्तर:
जीवन निर्वाह के लिए धन की आवश्यकता होती है। अतः व्यक्ति द्वारा किसी-न-किसी रूप में इसी अर्थसिद्धि के लिए अर्थात् उद्देश्य की पूर्ति के लिए काम करना पड़ता है।

प्रश्न 8.
पुस्तक एक निष्प्राण ग्रंथ क्यों नहीं है?
उत्तर:
पुस्तक एक निष्प्राण ग्रंथ नहीं हो सकती क्योंकि उसमें कवि/लेखक की आत्मा का प्रकाश समाया हुआ है। पुस्तक में कवि/लेखक का ज्ञान, अनुभव एवं अध्यवसाय समाया रहता है। इन्हीं गुणों को धारण कर मानव सच्चा मानव बनता है। वह समाज एवं मानवता को सन्मार्ग पर ले जाता है जिससे जीवन में समरसता और आनन्द की वर्षा होती है।

प्रश्न 9.
संसार में सफलता की कसौटी क्या है?
उत्तर:
संसार में जब ज्ञान आनन्द के रूप में प्रतिष्ठित होता है तब सत् साहित्य का निर्माण होता है। इसके विपरीत जब वह व्यवसाय के रूप में परिणत हो जाता है तब वह लाभ-हानि एवं लेन-देन का एक उपकरण मात्र रह जाता है। सामान्यतः अपनी इच्छा की पूर्ति को ही मानव सफलता की कसौटी मानता है लेकिन यह भावना चिरस्थायी नहीं है। यदि हममें आत्मबल है, दृढ़ संकल्प है तो हमारा कोई काम असफल नहीं होगा। अतः संसार में सफलता की कसौटी प्राप्त करने के लिए हमें इन गुणों का संचय अपने में करना चाहिए।

प्रश्न 10.
जिन्हें केवल उदरपूर्ति की चिन्ता रहती है वे किस महत्व को नहीं जानते?
उत्तर:
जिन्हें केवल उदरपूर्ति की चिन्ता रहती है वे ज्ञान के गौरव के महत्त्व को नहीं जानते हैं। जो ज्ञान के महत्त्व को नहीं जानते वे न सत् साहित्य की महिमा को जानते हैं और न विज्ञान की शक्ति को।

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MP Board Class 9th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 1 नया वर्ष नया विहान

MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 1 नया वर्ष नया विहान (आलेख, अमृतलाल बेगड़)

नया वर्ष नया विहान अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
हमारी पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में कितने दिन लगते हैं?
उत्तर:
हमारी पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन लगते हैं।

प्रश्न 2.
सौर पंचांग किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन का समय लगता है। इसी के आधार पर बनाई गई तिथियों आदि के क्रमवार विवरण को हम सौर पंचांग कहते हैं।

प्रश्न 3.
अधिकांश देशों में कौन-सा संवत् प्रचलित है?
उत्तर:
अधिकांश देशों में ईसवी संवत् प्रचलित है।

प्रश्न 4.
चन्द्रमा कितने दिनों में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करता है?
उत्तर:
चन्द्रमा 27½ दिन में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करता है।

प्रश्न 5.
हमारे देश में कौन-कौन से संवत् चलते हैं?
उत्तर:
हमारे देश में अनेक संवत् चलते हैं जिनमें वीर निर्माण संवत्, शक संवत्, ईसवी संवत् तथा विक्रम संवत् प्रमुख हैं।

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प्रश्न 6.
लेखक ने स्वाद के सम्बन्ध में किस प्रकार की जिज्ञासा प्रकट की है?
उत्तर:
स्वाद के सम्बन्ध में यह जिज्ञासा उत्पन्न होने पर कि स्वाद जीभ में है या गुलाब जामुन में? यदि स्वाद गुलाब जामुन में है तब तो वह तश्तरी में रखे-रखे ही स्वाद देगा और यदि जीभ में स्वाद है तो फिर गुलाब जामुन खाने की क्या जरूरत है? वास्तव में स्वाद न केवल जीभ में है और न केवल गुलाब जामुन में अपितु वह तो दोनों के योग में है।

प्रश्न 7.
हमें निराश क्यों नहीं होना चाहिए?
उत्तर:
हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि निराशा हमारी आत्मा के खेत में जंगली घास के समान है। अतः उसे समय पर उखाड फेंक देना चाहिए नहीं तो वह सारे खेत पर छा जाएगी। निराशा कायरता है, आशा साहस है।

प्रश्न 8.
संकल्प से होने वाले लाभों के बारे में बताइए।
उत्तर:
संकल्प से अनेक लाभ मिलते हैं। इसके द्वारा हम असम्भव कार्यों को भी सम्भव बना लेते हैं। इसके द्वारा ही हम अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना सीखते हैं। इसके द्वारा हमें जीवन में नयी ऊर्जा प्राप्त होती है।

प्रश्न 9.
लेखक ने व्यायाम के क्या लाभ बताये हैं?
उत्तर:
लेखक ने व्यायाम के लाभों के बारे में बताया है कि एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत है। व्यायाम करने से हमारा स्वास्थ्य ठीक रहेगा। हम कभी रोगी नहीं होंगे। इससे हमारा जीवन सहज और सुखमय बनता है। प्रतिदिन आधा घंटा तेज गति से चलकर हम अपने यौवन को वापस ला सकते हैं।

प्रश्न 10.
मानव ने समय को कितने भागों में विभाजित किया है?
उत्तर:
मानव ने समय को वर्ष, महीने, सप्ताह, दिन, घंटे आदि में विभाजित किया है।

प्रश्न 11.
मिस्रवासियों ने वर्षों की गणना किस आधार पर की है?
उत्तर:
मिस्रवासियों ने वर्षों की गणना नदी की बाढ़ों को देखकर की है। वे एक बाढ़ से दूसरी बाढ़ तक के समय को पूरा एक वर्ष मानते थे।

प्रश्न 12.
अतीत को भुला देने के पीछे लेखक ने क्या तर्क दिए हैं? लिखिए।
उत्तर:
अतीत को भुला देने के पीछे लेखक ने यह तर्क दिए हैं कि अतीत के विषय में पश्चात्ताप करना व्यर्थ है। अतीत के विषय में सोचना व्यर्थ का बोझ ढोना है। दु:ख के क्षण जब बीत जाएँ तो उनको भूल जाने में ही मानव का भला है। जब हम यह जानते हैं कि बीता हुआ पल कभी वापस नहीं लौटता है तब उसके विषय में सोचने से क्या लाभ? अतीत को बदलने की शक्ति मानव में नहीं है तब उसके बारे में सोचना व्यर्थ ही मानसिक तनाव को न्यौता देना है।

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प्रश्न 13.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(i) मनुष्य की मंगल यात्रा निरन्तर चलती रहेगी।
उत्तर:
आशय-लेखक कहता है कि चलना और आगे बढ़ना मानव का स्वाभाविक धर्म है। उसकी मंगल यात्रा निरन्तर चलती रहेगी। दुःख और अवसाद उस यात्रा में क्षणिक रुकावट भले ही पैदा करे पर उस मंगल यात्रा को रोक नहीं सकते।।

(ii) दुःख और पीड़ा हमारे जीवन को नया आयाम देते हैं।
उत्तर:
आशय-लेखक का आशय है कि मनुष्य के भाग्य में सुख भी आता है और दुःख भी। इसी का नाम जिन्दगी है। हमें दु:ख को, पीड़ा को जीवन का आवश्यक अंग समझना चाहिए। कवियों और दार्शनिकों ने दुःख और पीड़ा को नया जीवन देने वाला बताया है।

(iii) निराशा हमारी आत्मा के खेत में जंगली घास है।
उत्तर:
आशय-लेखक कहता है कि हमें जीवन में कभी भी निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि निराशा हमारी आत्मा के खेत में जंगली घास के समान है। अगर इसे समय रहते न उखाड़ा गया तो वह सारे खेत पर छा जाएगी और अच्छे बीज के उगने की जगह नहीं बचेगी। निराशा कायरता है, आशा साहस है।

प्रश्न 14.
स्वाद के विषय में लेखक का तर्क स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वाद के सम्बन्ध में यह जिज्ञासा उत्पन्न होने पर कि स्वाद जीभ में है या गुलाब जामुन में? यदि स्वाद गुलाब जामुन में है तब तो वह तश्तरी में रखे-रखे ही स्वाद देगा और यदि जीभ में स्वाद है तो फिर गुलाब जामुन खाने की क्या जरूरत है? वास्तव में स्वाद न केवल जीभ में है और न केवल गुलाब जामुन में अपितु वह तो दोनों के योग में है।

प्रश्न 15.
अमृतलाल बेगड़ मूलतः किस विधा के रचनाकार हैं? उस विद्या का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
अमृतलाल बेगड़ मूलत: चित्रकार हैं। उन्होंने अपनी कूँची से नर्मदा के सौन्दर्य को अनेक छवियों में उकेरा है। जितने अच्छे वे चित्रकार हैं उतने ही अच्छे वे शब्द शिल्पी भी हैं। उन्होंने नर्मदा परिक्रमा पर आधारित अनेक यात्रा-प्रसंगों को जीवंत-रूप में लिखा है।

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MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions कहानी Chapter 2 ताई

MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions कहानी Chapter 2 ताई (कहानी, विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’)

ताई अभ्यास

बोध प्रश्न

ताई अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“ताऊजी हमें रेलगाड़ी ला दोगे।” यह वाक्य किसने और किससे कहा?
उत्तर:
“ताऊजी हमें रेलगाड़ी ला दोगे।” यह वाक्य मनोहर ने अपने ताऊ रामजीदास ने कहा।

प्रश्न 2.
मनोहर और रामेश्वरी का क्या रिश्ता था?
उत्तर:
मनोहर रामेश्वरी देवी के देवर का बेटा था तथा वह उसकी ताई है।

प्रश्न 3.
रामेश्वरी के मन में किस चीज की कामना थी?
उत्तर:’
रामेश्वरी के मन में निजी सन्तान की कामना थी।

प्रश्न 4.
‘ताई’ कहानी का प्रमुख उद्देश्य एक वाक्य में लिखिए।
उत्तर:
‘ताई’ कहानी का प्रमुख उद्देश्य प्रेम द्वारा घृणा को जीतना है।

प्रश्न 5.
कहानी से उन दो प्रमुख स्थलों को लिखिए जिसमें नायिका में मार्मिक भाव जागता है।
उत्तर:
कहानी का एक स्थल है-शाम का समय था। रामेश्वरी खुली छत पर बैठी हवा खा रही थी। मनोहर तथा उसकी बहिन भी खेल रहे थे। मनोहर की बहिन खिलखिलाती हुई दौड़कर रामेश्वरी की गोद में आ गिरी। उसके पीछे-पीछे मनोहर भी दौड़ा हुआ आया और वह भी ताई की गोद में जा गिरा। रामेश्वरी उस समय द्वेष भूल गई। उन्होंने दोनों बच्चों को उसी प्रकार हृदय से लगा लिया जिस तरह वह मनुष्य लगाता है जो कि बच्चों के लिए तरस रहा हो।

दूसरा स्थल है :
छत पर रामेश्वरी खड़ी है। तभी मनोहर छत पर आ जाता है। आकाश में पतंगें उड़ रही हैं। पतंगें देखकर मनोहर ताई से पतंग मँगाने की बात कहता है पर ताई उसे अनसुना कर देती है। थोड़ी देर में एक पतंग कटकर उसी छत पर आती है। मनोहर उसे पकड़ने के लिए दौड़ता है तभी उसका पैर फिसल जाता है। पैर फिसलने पर वह मुंडेर को पकड़ लेता है और ‘ताई’ को बचाव के लिए पुकारता है। पहले तो ताई अनसुना कर देती है फिर दुबारा पुकारने पर उसका हृदय पसीज जाता है और वह मनोहर को बचाने के दौड़ती है लेकिन तभी मनोहर के हाथ से मुंडेर छूट जाती है और वह धड़ाम से नीचे गिर जाता है। इसी समय रामेश्वरी भी चीख मारकर छज्जे पर गिर पड़ी। अपनी बीमारी की दशा में होश आने पर वह मनोहर का ही हाल-चाल पूछती है।

प्रश्न 6.
विशम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ की दो प्रमुख कहानियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कौशिक की दो प्रमुख कहानियाँ हैं-‘इक्केवाला’ और ‘अशिक्षित छन्द’।

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ताई लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रामेश्वरी ममता और त्याग की प्रतिमूर्ति हैं, कहानी के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
रामेश्वरी एक साधारण स्त्री है। उसे भी सन्तानहीनता का दुःख सताता है लेकिन हृदय से वह उदार एवं ममतामयी है। इस कहानी में दो घटनाएँ ऐसी हैं जिनसे उसके ममत्व और त्याग की पहचान होती है। एक दिन शाम के समय वह खुली छत पर बैठकर हवा खा रही थी। दोनों बच्चे भी छत पर खेल रहे थे। रामेश्वरी उनके खेलों को देख रही थी। इस समय रामेश्वरी को उन बच्चों का खेलना-कूदना बड़ा भला मालूम हो रहा था। हवा में उड़ते हुए उनके बाल, कमल की तरह खिले हुए उनके नन्हे-नन्हे मुख, उनकी प्यारी-प्यारी तोतली बातें, उनका चिल्लाना, भाग जाना, लोट जाना इत्यादि क्रीड़ाएँ उनके हृदय को शीतल कर रही थी। सहसा मनोहर अपनी बहन को मारने दौड़ा। वह खिलखिलाती हुई दौड़कर रामेश्वरी की गोद में आ गिरी। उसके पीछे-पीछे मनोहर भी दौड़ता हुआ आया और वह भी ताई की गोद में जा गिरा। रामेश्वरी इस समय सारा द्वेष भूल गई। उन्होंने दोनों बच्चों को उसी प्रकार हृदय से लगा लिया जिस तरह वह मनुष्य लगाता है जो कि बच्चों के लिए तरस रहा हो।

दूसरी घटना मनोहर के छज्जे से गिरने की है। “वह अत्यन्त भय तथा करुण नेत्रों से रामेश्वरी की ओर देखकर चिल्लाता है-“अरी ताई।” रामेश्वरी की आँखों से मनोहर की आँखें आ मिली। मनोहर की वह करुण दृष्टि देखकर रामेश्वरी का कलेजा मुँह को आ गया। उन्होंने व्याकुल होकर मनोहर को पकड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। उसका हाथ मनोहर के हाथ तक पहुँचा भी नहीं था कि मनोहर के हाथ से मुंडेर छूट गई। वह नीचे आ गिरा, रामेश्वरी चीख मारकर छज्जे पर गिर पड़ी। दोनों घटनाओं से यह ज्ञात होता है कि रामेश्वरी ममता और त्याग की प्रतिमूर्ति थी।

प्रश्न 2.
पूर्ण स्वस्थ होने के बाद ताई के हृदय में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर:
एक दिन रामेश्वरी अपने घर की छत पर टहल रही थी। उसी समय मनोहर वहाँ आ जाता है। आकाश में उड़ती हुई पतंगों को देखकर उसका मन भी पतंग उड़ाने के लिए ललचा जाता है। अत: वह ताई से पतंग मँगाने की बात कहता है परन्तु रामेश्वरी उसे अनसुना कर देती है। तभी एक पतंग टूटकर आती है। मनोहर उसे पकड़ने के लिए छत पर दौड़ लगाता है। पर उसका पैर फिसल जाता है। वह गिरते समय छज्जे की मुंडेर पकड़ लेता है। वह बचाव के लिए ताई को आवाज लगाता है पर रामेश्वरी उनको अनसुना कर देती है।

तब फिर वह दुबारा बचाने की प्रार्थना करता है। मनोहर की डबडबाई आँखें देखकर उसके मन में ममता की भावना हिलोरें लेने लगती हैं तभी उसे बचाने के लिए जैसे ही वह कदम बढ़ाती है, उससे पूर्व ही मनोहर गिर पड़ता है। इस दृश्य को देखकर वह अपने मन को धिक्कारती है तथा चेतना शून्य होकर छत पर गिर जाती है। होश आने पर उसकी ईर्ष्या की भावना ममता में परिवर्तित हो जाती है। अब वे मुन्नी से भी बात करने लगती हैं। अब मनोहर उन्हें प्राणों से भी अधिक प्यारा लगने लगा।।

प्रश्न 3.
“ताई हमें प्याल नहीं करती” वाक्य में मनोहर ने किसकी बात की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
“ताई हमें प्याल नहीं करती” इस वाक्य में मनोहर ने ताई के व्यवहार की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 4.
मनोहर की बाल सुलभ चेष्टाएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
मनोहर रामजीदास के छोटे भाई का पुत्र है। वह लगभग पाँच वर्ष का है। वह एक अबोध तथा सरल हृदय वाला बालक है।

मनोहर की चेष्टाएँ बाल सुलभ हैं। अन्य बालकों के समान वह अपने ताऊ एवं ताई से खिलौने एवं पतंग लाने का आग्रह करता है। वह यह बात अच्छी तरह जानता है कि उसकी ताई उससे प्रेम नहीं करती है पर फिर भी वह ताई से पतंग मँगाने का आग्रह करता है।

ताऊ द्वारा यह पूछे जाने पर कि रेल में वह किन-किन को बैठायेगा तो वह सहज रूप में कह देता है कि वह रेल में ताऊ को बैठायेगा और ताई को नहीं। ताऊ द्वारा यह पूछे जाने पर कि वह ताई को क्यों नहीं बैठायेगा तो वह सहज भाव से कह देता है कि ताई मुझे प्यार नहीं करती है।

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ताई दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रामेश्वरी, मनोहर, रामजीदास के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
रामेश्वरी का चरित्र-रामेश्वरी ‘ताई’ कहानी की प्रमुख पात्र है। उसके चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-रामेश्वरी बाबू रामजीदास की पत्नी है। वह नि:सन्तान है। इसी कारण वह प्रायः खिन्न रहती है। सन्तान के लिए उसके मन में तीव्र अभिलाषा है। इस बात का उलाहना वह अपने पति को भी देती है।

बाबू रामजीदास का अपने भाई के पुत्र-पुत्री से विशेष स्नेह है जबकि रामेश्वरी का नहीं। रामेश्वरी जब भी अपने पति को उन बच्चों से प्यार करते देखती है तो उसके मन में उन बच्चों के प्रति द्वेष भावना उत्पन्न हो जाती है। रामेश्वरी का हृदय ममता से शून्य नहीं है। एक दिन खेलते-खेलते जब ये बच्चे उसकी गोद में आ जाते हैं तो वह उन्हें बहुत प्यार करती है। मनोहर के छत से गिरने पर उसको आघात लगता है, वह चीखकर बेहोश हो जाती है और जब होश में आती है तभी वह मनोहर का हाल-चाल पूछती है। होश में आने तथा स्वस्थ होने पर वह मनोहर को हृदय से लगा लेती है और बेहद प्यार करने लग जाती है।

मनोहर का चरित्र :
मनोहर रामजीदास के छोटे भाई का पुत्र है। वह लगभग पाँच वर्ष का है। वह एक अबोध एवं सरल हृदय का बालक है। कहानी का आरम्भ ही ‘ताऊजी हमें लेलगाड़ी ला दोगे।’ के वाक्य से होता है।

वह जब जान लेता है कि उसकी ताई उसे प्रेम नहीं करती है तो वह सहज रूप में ताऊ द्वारा पूछने पर कह देता है कि वह रेल में ताऊ को तो बैठायेगा पर ताई को नहीं। क्योंकि ताई उसे प्यार नहीं करती है।

वह बालकों के समान ही कभी ताऊ से तो कभी ताई से रेल एवं पतंग लाने का आग्रह करता है। वह ताई की नीरसता एवं ताऊ के लाड़-प्यार को भली-भाँति जानता है।

रामजीदास का चरित्र :
रामजीदास यद्यपि नि:सन्तान हैं पर वे अपने छोटे भाई के बच्चों को भी अपना बच्चा समझते हैं और उनसे बहुत प्यार करते हैं। यद्यपि उनके इस प्यार से कभी-कभी उनकी पत्नी नाराज हो जाती है। पर वह अपनी पत्नी को भी इन बच्चों से प्यार करने की बात कहता है। वे अपनी पत्नी का भी ध्यान रखते हैं और संयुक्त परिवार की भावना को समझाते हैं।

प्रश्न 2.
ताई के हृदय में उठने वाले द्वन्द्वों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
ताई रामेश्वरी नि:सन्तान हैं। वह कहानी के आरम्भ से अन्त तक द्वन्द्वों से घिरी रहती हैं। जब वह द्वन्द्व से बाहर आती हैं वह अपने भतीजे एवं भतीजी को प्रेम करने लग जाती हैं।

उसका मन बच्चों से प्रेम तो करना चाहता है पर अपने-पराये की भावना से ग्रसित होने पर वह उनसे उपेक्षा करने लग जाती है। जब रामजीदास मनोहर को उसकी गोद में बैठाते हैं तो वह ईर्ष्या से जलने लग जाती है।

एक बार खेलते-खेलते जब मुन्नी और मनोहर उसकी गोद में आ जाते हैं तो वह उन्हें भरपूर प्यार करने लग जाती है लेकिन रामजीदास को देखकर वह उन्हें गोद से हटाकर फटकार देती है।

रामेश्वरी का हृदय प्रेम शून्य नहीं है लेकिन द्वन्द्व में फँसी | होने के कारण वह बच्चों को भरपूर स्नेह नहीं दे पाती है। कहानी
के अंतिम भाग में जब पतंग पकड़ने के बहाने मनोहर छत से गिर पड़ता है तो इस दृश्य को देखकर उनका हृदय परिवर्तित हो जाता है और फिर वह बच्चों को बहुत प्यार करने लग जाती हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(अ) मनुष्य का हृदय ………….. उससे प्रेम करता है।
उत्तर:
सन्दर्भ :
यह गद्यांश ‘ताई’ नामक कहानी से अवतरित है। इसके लेखक विशम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ हैं।

प्रसंग :
इस गद्यांश में कहानीकार ने यह बताया है कि मानव तभी किसी से प्रेम करता है जब वह उसे अपना समझता है।

व्याख्या :
कहानीकार कहता है कि मानव किसी के प्रति तभी प्रेम करता है जब उसके हृदय में उसके प्रति ममता की भावना हो। जब उसे यह ज्ञात हो जाता है कि वह वस्तु विशेष या व्यक्ति विशेष उसका अपना न होकर पराया है तो उसके प्रति वह अपनेपन की भावना नहीं रखता है। इसके विपरीत यदि किसी अनुपयोगी या भद्दी से भद्दी वस्तु को भी वह अपना प्यार देता है जब उससे उसका अपनेपन का नाता जुड़ जाता है। अतः प्रेम के लिए अपनापन होना बहुत आवश्यक है।

(ब) रामेश्वरी की आँखों………मुंडेर छूट गई।”
उत्तर:
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
जिस समय कटी पतंग पकड़ने के लिए मनोहर दौड़ा तो उसका पैर फिसल गया और वह मुंडेर पकड़कर लटक गया। मदद के लिए उसने ताई को पुकारा, तब ताई ने उसकी ओर जो देखा, उसी का यहाँ वर्णन है।

व्याख्या :
छत पर कटी हुई पतंग को पकड़ने के लिए मनोहर दौड़ा। तभी उसका पैर फिसल गया। उसने सहायता के लिए ताई को पुकारा। रामेश्वरी ने पहले तो उसकी बात को अनसुना कर दिया लेकिन दूसरी बार पुकारने पर उसका हृदय पिघल जाता है

और वह जैसे ही मनोहर को पकड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाती है, उससे पहले ही मनोहर के हाथ से मुंडेर छूट जाती है और वह नीचे गिर जाता है। इस घटना से रामेश्वरी को बड़ा आघात लगता है। वह संज्ञा शून्य होकर छज्जे पर ही गिर जाती है। उसके मन में यह अपराध बोध जन्म ले लेता है कि उसकी उपेक्षा के कारण ही मनोहर छज्जे से गिरा है। इसका उसे बहुत दुःख होता है।

प्रश्न 4.
‘ताई’ कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
एक दिन संध्या के समय रामेश्वरी छत पर घूम रही थीं तभी मनोहर उनका भतीजा वहाँ आ गया। आकाश में पतंगें उड़ रही थीं। पतंगों को देखकर उसने ताई रामेश्वरी से पतंग दिलाने को कहा पर रामेश्वरी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसी समय आसमान से एक पतंग कटकर छत के छज्जे की ओर गई। मनोहर उस पतंग को पकड़ने के लिए छज्जे की ओर दौड़ा। इसी समय मनोहर का पैर अचानक फिसल गया और गिरते समय उसने दोनों हाथों से मुंडेर को पकड़ लिया था।

वह ‘ताई’ को मदद के लिए चीखा। पहले तो रामेश्वरी ने उसकी चीख की ओर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन उसके दुबारा पुकारने पर रामेश्वरी का हृदय पिघल गया और वह पकड़ने के लिए भागी लेकिन तब तक मनोहर के हाथ से मुंडेर छूट गयी और वह धड़ाम से नीचे गिर गया। इस दृश्य को देखकर रामेश्वरी भी चीखकर छज्जे पर गिर पड़ी। एक सप्ताह तक वह बुखार से पीड़ित रही तथा मूर्छित रही। जब उन्हें होश आया तो उसने सबसे पहले मनोहर की कुशलता पूछी। इसके बाद स्वस्थ होने पर प्रेम से अभिभूत होकर उसने मनोहर को गले लगा लिया और अब मनोहर उसे प्राणों से भी अधिक प्यारा हो गया है। यहीं कहानी समाप्त हो जाती है।

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ताई भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी रूप लिखिए-
परवाह, मुबारक, चुहलबाजी, गुस्सा।
उत्तर:
MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions कहानी Chapter 2 ताई img 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग एवं प्रत्यय पहचानकर अलग कीजिए-
मूल्यवान, अपरिचित, तत्पश्चात्, समझता, मेहनती, पराई, अपशब्द, प्रसन्नता, असह्य।
उत्तर:
MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions कहानी Chapter 2 ताई img 2
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिएनेत्र, आकाश, हृदय, चिराग, प्रार्थना, माँ।
उत्तर:
नेत्र – चक्षु, अक्षि।
आकाश – गगन, अम्बर।
हृदय – दिल, अन्त:करण।
चिराग – दीपक, दीप।
प्रार्थना – विनती, आराधना।
माँ – माता, जननी।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित लोकोक्तियों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
आँखों का अंधा नाम नैन सुख, चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात।
उत्तर:
(क) आँखों का अंधा नाम नैन सुख (नाम के विपरीत काम होना)-घर में फूटी कौड़ी नहीं है नाम है कुबेर सिंह। इसे ही कहते हैं आँख के अंधे नाम नैन सुख।
(ख) चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात (अल्पकाल के लिए सुख मिलना)-उत्तर प्रदेश में बेरोजगारों को मिलने वाला बेरोजगारी भत्ता ऐसे ही है जैसे चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात।

प्रश्न 5.
मुहावरा और लोकोक्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुहावरे और लोकोक्तियों में मुख्य अन्तर यह है कि मुहावरा वाक्यांश है जबकि लोकोक्ति पूरा वाक्य है।

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ताई पाठ का सारांश

बाबू रामजीदास एक सम्पन्न परिवार के मुखिया हैं। उनकी पत्नी का नाम राजेश्वरी है। रामजीदास नि:सन्तान हैं इस कारण उनकी पत्नी रामेश्वरी खिन्न रहती है। रामजीदास के छोटे भाई के यहाँ एक पुत्र और एक पुत्री है। रामजीदास अपने भतीजे तथा भतीजी को बहुत प्यार करते हैं। उनका यह प्रेम उनकी पत्नी को अच्छा नहीं लगता है। उनके भतीजे रामजीदास को ही सब कुछ मानते थे। जब भी वे घर में घुसते बालक उन्हें पकड़ लेता और तरह-तरह की फरियाद करता है। एक दिन बालक ने ताऊजी से रेलगाड़ी लाने की फरियाद की। ताऊ ने पूछा कि उस रेल में किन-किनको बिठायेगा तो बालक सहज स्वभाव से कह देता है कि ताऊ जी को। जब ताऊजी ने यह पूछा कि वह अपनी ताई को नहीं बैठायेगा तो बालक ने सहज रूप में कह दिया कि वह ताईजी को रेल में नहीं बैठायेगा क्योंकि ताई उसे प्यार नहीं करती हैं।”

रामेश्वरी अपने नि:सन्तान जीवन पर दुःखी र्थी पर कभी इन बच्चों की किलकारियों में खेल-कूद से वे बहुत अधिक प्रसन्न भी हो जाया करती थीं।

एक दिन संध्या के समय रामेश्वरी छत पर घूम रही थीं तभी मनोहर उनका भतीजा वहाँ आ गया। आकाश में पतंगें उड़ रही थीं। पतंगों को देखकर उसने ताई रामेश्वरी से पतंग दिलाने को कहा पर रामेश्वरी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसी समय आसमान से एक पतंग कटकर छत के छज्जे की ओर गई। मनोहर उस पतंग को पकड़ने के लिए छज्जे की ओर दौड़ा। इसी समय मनोहर का पैर अचानक फिसल गया और गिरते समय उसने दोनों हाथों से मुंडेर को पकड़ लिया था। वह ‘ताई’ को मदद के लिए चीखा।

पहले तो रामेश्वरी ने उसकी चीख की ओर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन उसके दुबारा पुकारने पर रामेश्वरी का हृदय पिघल गया और वह पकड़ने के लिए भागी लेकिन तब तक मनोहर के हाथ से मुंडेर छूट गयी और वह धड़ाम से नीचे गिर गया। इस दृश्य को देखकर रामेश्वरी भी चीखकर छज्जे पर गिर पड़ी। एक सप्ताह तक वह बुखार से पीड़ित रही तथा मूर्छित रही। जब उन्हें होश आया तो उसने सबसे पहले मनोहर की कुशलता पूछी। इसके बाद स्वस्थ होने पर प्रेम से अभिभूत होकर उसने मनोहर को गले लगा लिया और अब मनोहर उसे प्राणों से भी अधिक प्यारा हो गया है। यहीं कहानी समाप्त हो जाती है।

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MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions कहानी Chapter 1 बड़े घर की बेटी

MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions कहानी Chapter 1 बड़े घर की बेटी (कहानी, प्रेमचंद)

बड़े घर की बेटी अभ्यास

बोध प्रश्न

बड़े घर की बेटी अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेनी माधवसिंह के पिता ने गाँव में क्या-क्या बनवाया था?
उत्तर:
बेनी माधवसिंह के पिता ने गाँव में मन्दिर, पक्का तालाब आदि बनवाये थे।

प्रश्न 2.
श्रीकंठ का चेहरा कान्तिहीन क्यों था?
उत्तर:
बी. ए. तक की पढ़ाई में अधिक मेहनत करने के कारण श्रीकंठ का चेहरा कान्तिहीन हो गया था।

प्रश्न 3.
आनन्दी का विवाह किसके साथ हुआ था?
उत्तर:
आनन्दी का विवाह श्रीकंठ के साथ हुआ था।

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बड़े घर की बेटी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठाकुर भूपसिंह के घर का वातावरण कैसा था?
उत्तर:
ठाकुर भूपसिंह एक छोटी-सी रियासत के ताल्लुकेदार थे। वे ऑनरेरी मजिस्ट्रेट थे तथा इसके साथ ही वे एक उदार व्यक्ति थे। उनके घर में सभी रईसी ठाठ-बाट थे। उनके घर में एक हाथी, तीन कुत्ते आदि पालतू जानवर थे। घर में झाड़-फानूस की सजावट हो रही थी। खाने-पीने का भी उच्च स्तर था।

प्रश्न 2.
“हाथी मरा भी नौ लाख का” यह बात किसने कही और क्यों कही?
उत्तर:
दाल में घी न डालने पर लालबिहारी आनन्दी से लड़ने लगा। लड़ाई में उसने आनन्दी के मायके पर व्यंग्य कसा। इस पर आनन्दी ने पलटवार करते हुए कहा कि पहले जैसा वैभव न होने पर भी उसके मायके में रहन-सहन और खान-पान में कोई कमी नहीं आयी है क्योंकि मरा हाथी भी नौ लाख का होता है।

प्रश्न 3.
आनन्दी की संयुक्त परिवार के बारे में क्या राय थी?
उत्तर:
आनन्दी की संयुक्त परिवार के बारे में अच्छी राय नहीं थी। कारण कि वह यह मानती थी कि यदि संयुक्त परिवार में खूब परस्पर सम्मान देने और बहुत कुछ करने के पश्चात् भी यदि परिवार में खुशहाली का वातावरण नहीं बनता है और बात-बात में नुक्ताचीनी और काट-छाँट होती है तो उससे अलग होकर रहना चाहिए। इससे कम-से-कम मन में शान्ति तो रहेगी।

प्रश्न 4.
श्रीकंठ का अपने भाई के साथ कैसा व्यवहार था?
उत्तर:
श्रीकंठ का अपने छोटे भाई लालबिहारी के साथ बड़े ही प्रेम का व्यवहार था। वह जब भी इलाहाबाद से आते उसके लिए कुछ-न-कुछ लेकर आते थे। एक बार जब अखाड़े में लालबिहारी ने दूसरे पहलवान को पछाड़ दिया था तो उन्होंने पाँच रुपये के पैसे लुटाए थे।

किन्तु आनन्दी के साथ हुए अभद्र व्यवहार को सुनकर उनका सारा प्रेम समाप्त हो जाता है और उसके प्रति घृणा पैदा हो जाती है यहाँ तक कि वे उसका मुँह भी देखना पसन्द नहीं करते हैं। लेकिन जब आनन्दी ने अपने बड़प्पन का परिचय देते हुए लालबिहारी को माफ कर दिया तो श्रीकंठ का हृदय पुनः परिवर्तित होकर अपने भाई से प्यार करने लग जाते हैं।

प्रश्न 5.
“अब अन्याय और हठका प्रकोप हो रहा है”-यह कथन श्रीकंठ ने क्यों कहा?
उत्तर:
इलाहाबाद से शनिवार को जब श्रीकंठ अपने घर पर आये तो आनन्दी से लालबिहारी द्वारा की गयी अभद्रता की जानकारी हुई। रातभर वे बेचैन रहे और सुबह होते ही अपने पिता से बोले-“दादा, अब इस घर में मेरा निर्वाह न होगा।” बेनी माधव अपने पुत्र की यह बात सुनकर घबरा उठे और बोले- क्यों’। इस पर श्रीकंठ ने कहा-“इसलिए कि मुझे भी अपनी मान-प्रतिष्ठा का कुछ विचार है। आपके घर में अब अन्याय और हठ का प्रकोप हो रहा है। जिनको बड़ों का आदर करना चाहिए, वे उनके सिर चढ़ते हैं।”

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बड़े घर की बेटी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लालबिहारी सिंह के स्वभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लालबिहारी सिंह, बेनी माधव सिंह का छोटा पुत्र है। लाड़-प्यार में वह पढ़-लिख नहीं पाया है। खेतों-खलिहानों में घूमना और कुश्ती-दंगल में भाग लेना उसकी दिनचर्या के अंग थे। वह दोहरे बदन का सजीला जवान था। भरा हुआ मुखड़ा और चौड़ी छाती थी। भैंस का दो सेर ताजा दूध वह उठकर सुबह पी जाता था।

वह अपने बड़े भाई श्रीकंठ का बहुत आदर करता था। श्रीकंठ के सामने न तो वह चारपाई पर बैठता था और न हुक्का पी सकता था और न पान खा सकता था। वह अपने बाप से भी ज्यादा अपने भाई का मान करता था।

पर वह बिना पढ़ा-लिखा एवं उजड्ड था। बिना सोचे-समझे ऐसा निर्णय ले लेता था जिसके लिए उसे प्रायश्चित्त करना पड़ता था। एक दिन दाल में घी न होने की बात पर वह अपनी भाभी से उल्टा-सीधा व्यवहार कर डालता है जिससे परिवार टूटने के कगार पर आ जाता है पर आनन्दी के बड़प्पन से वह परिवार टूटने से बच जाता है।

प्रश्न 2.
आनन्दी के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
आनन्दी ताल्लुकेदार भूपसिंह की बेटी और ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी की प्रधान नायिका है। उसके पति का नाम श्रीकंठ है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(i) स्वाभिमानी :
आनन्दी एक स्वाभिमानी स्त्री है। अपने देवर लालबिहारी के अभद्रतापूर्ण व्यवहार से वह दु:खी हो जाती है और इस घटना की जानकारी वह अपने पति के आने पर उसको देती है।

(ii) उदार एवं करुण हृदय वाली :
आनन्दी का हृदय करुणा एवं दया से पूर्ण है। जब उसका देवर लालबिहारी अपनी गलती को स्वीकार करके भाई और भाभी से पश्चात्ताप करता हुआ माफी माँगता है तो आनन्दी का हृदय करुणा से पिघल जाता है और वह अपनी सौगंध देकर उसको घर छोड़ने से रोक लेती है। इस प्रकार वह एक संयुक्त परिवार को टूटने से बचा लेती है। वास्तव में वह एक उच्च चरित्र वाली उदार एवं स्वाभिमानी स्त्री है।

प्रश्न 3.
आनन्दी के मायके और ससुराल के वातावरण में क्या अंतर था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आन के मायके के अनौखे ठाठ-बाट थे। उसके पिता एक यासर ताल्लुकेदार थे। उनके पास विशाल भवन, एक हाथा, तोन, कुत्ते, बाज, वहरी-शिकरे, झाड़-फानूस, ऑनरेरी मजिस्ट्रटी और ऋण देने आदि की सुविधाएँ थी। आनन्दी की तीन बहिनों का बड़े ठाठ-बाट से विवाह हुआ था।

आनन्दी के ससुराल का वातावरण कुछ और ही था। यहाँ उसके मायके जैसी न टीम-टाम थी और न अन्य सुविधाएँ। हाथी-घोड़ों की बात तो बहुत दूर यहाँ कोई सजी हुई सुन्दर बहली तक न थी। न यहाँ बाग-बगीचे थे न मकान में खिड़कियाँ, न जमीन पर फर्श, न दीवार पर तस्वीरे। यहाँ तो एक सीधा-सादा देहाती मकान था परन्तु आनन्दी ने थोड़े ही दिनों में अपने आपको इस नयी व्यवस्था में ढाल लिया था।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिएजिस तरह सूखी लकड़ी …………. तिनक जाता है।
उत्तर:
भाव-कहानीकार प्रेमचन्द कहते हैं कि जिस प्रकार सूखी लकड़ी जल्दी से आग पकड़ लेती है उसी तरह भूख से पागल मनुष्य भी जरा-जरा सी बात पर तिनक जाता है, वह लड़ने-मरने को आमादा हो जाता है।

प्रश्न 5.
“बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं।” इस कथन से लेख्क का क्या आशय है?
उत्तर:
इस कथन से लेखक का आशय यह है कि बड़े घर की बेटियाँ बहुत सभ्य, व्यवहारकुशल और घर को बनाने वाली होती हैं। वे सही समय पर उचित निर्णय लेकर परिवार की विपत्ति को दूर कर देती हैं। पहले तो आनन्दी अपने देवर के अभद्र व्यवहार पर बहुत क्रोधित होती है पर जब उसने देखा कि उसके क्रोध से घर उजड़ जाएगा तो वह माफी माँगने पर अपने देवर को क्षमा कर देती है तथा अपने पति से भी उसे क्षमा दिला देती है।

प्रश्न 6.
इस कहानी से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर:
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि यदि हम उदार हैं, दूसरों के प्रति सहृदय हैं तो बड़ी-से-बड़ी विपत्ति भी दूर हो जाती है। आज के संयुक्त परिवारों को टूटने से बचाने वाली यह कहानी शिक्षाप्रद है। इस कहानी की नायिका अपने देवर के अभद्र व्यवहार से बहुत दु:खी होती है पर देवर द्वारा सच्चे हृदय से माफी माँगने पर वह उसे क्षमा कर देती है तथा जब वह घर छोड़ने की बात कहता है तो अपनी सौगन्ध देकर तथा उसका हाथ पकड़कर रोक लेती है। ऐसा करके वह टूटते परिवार को बचा लेती है।

प्रश्न 7.
किस घटना ने आनन्दी के हृदय को परिवर्तित कर दिया? विवरण सहित लिखिए।
उत्तर:
श्रीकंठ के मुख से यह बात सुनकर कि अब मैं लालबिहारी की सूरत नहीं देखना चाहता। लालबिहारी तिलमिला गया तथा कपड़े पहनकर आनन्दी के द्वार पर आकर बोला-“भाभी, भैया ने निश्चय किया है कि वह मेरे साथ इस घर में न रहेंगे। अब वह मेरा मुँह नहीं देखना चाहते, इसलिए अब मैं जाता हूँ। उन्हें फिर मुँह न दिखाऊँगा। मुझसे जो कुछ अपराध हुआ, उसे क्षमा करना।” लालबिहारी की इस बात से आनन्दी का हृदय परिवर्तित हो गया वह अपने कमरे से निकली और लालबिहारी का हाथ पकड़ लिया और कहा “तुम्हें मेरी सौगंध, अब एक पग भी आगे न बढ़ाना” बाद में श्रीकंठ का हृदय भी पिघल गया और दोनों भाई गले लगकर फूट-फूटकर रोए। इस प्रकार आनन्दी ने अपने उदार हृदय से टूटते हुए घर को बचा लिया।

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बड़े घर की बेटी भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों से पुनरुक्त और विलोम शब्द युग्म छाँटकर लिखिए।
गरम-गरम, फूट-फूट, साथ-साथ, अच्छा-बुरा, सुख-दुख, दिन-रात।
उत्तर:
पुनरुक्त शब्द – गरम-गरम, फूट-फूट, साथ-साथ।
विलोम शब्द – अच्छा-बुरा, सुख-दुख, दिन-रात।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी मानक रूप लिखिए-
व्याह, भावज, निबट, लात, जवाब, कर्ज।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रत्यय जोड़कर शब्द बनाइए-
आहट, आई, ता, हारा, वान, हीन, ईय, माला, कार।
उत्तर:
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प्रश्न 4.
उपसर्गों के योग से शब्द बनाइए-
उप, अभि, सु, अप, कु, अव, वि, अधि, अनु।
उत्तर:
MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions कहानी Chapter 1 बड़े घर की बेटी img 3

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बड़े घर की बेटी पाठ का सारांश

गौरीपुर गाँव के जमींदार ठाकुर बेनी माधवसिंह थे। उनके पिता इलाके के प्रतिष्ठित रईस थे पर बेनी माधव की माली हालत अच्छी नहीं थी। उनकी साल भर की आमदनी मात्र हजार रुपये रह गयी थी। ठाकुर के दो पुत्र थे-श्रीकंठ और लालबिहारी। श्रीकंठ बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर किसी ऑफिस में इलाहाबाद में नौकरी करने लगा था। छोटा भाई लालबिहारी पढ़ा-लिखा नहीं था। कुश्ती, लड़ाई -झगड़ा और खेत-खलिहानों में अपना समय बिताया करता था।

श्रीकंठ अंग्रेजी से डिग्री लेने के बाद भी अंग्रेजी रीति-रिवाजों के विरोधी थे। वे सम्मिलित परिवार के पक्षधर थे। उनकी इस विचारधारा के कारण गाँव की नवविवाहिता उनकी आलोचना किया करती थीं।

भूपसिंह एक छोटी रियासत के ताल्लुकेदार थे। उन्होंने अपनी चौथी बेटी आनन्दी का विवाह श्रीकंठ से कर दिया। आनन्दी जब नये घर में आई तो यहाँ का वातावरण उसे अपने परिवार से बिल्कुल भिन्न मिला परन्तु आनन्दी ने एक वर्ष में ही अपने को उस परिवार में खपा लिया था।

एक दिन सब्जी पकाते समय आनन्दी ने जितना घी (एक पाव) डिब्बे में बचा था, वह सब सब्जी में डाल दिया। फलतः दाल में डालने के लिए घी बचा ही नहीं। जब लाल बिहारी खाना खाने बैठा तो दाल में घी न देखकर भाभी से इसका कारण पूछा। भाभी द्वारा पूरी बात बताई जाने पर भी लालबिहारी ने गुस्से में आकर भोजन की थाली फेंक दी और अपने पैर की खड़ाऊ आनन्दी को मारने के लिए फेंकी। आनन्दी ने हाथ से इस वार को बचा लिया लेकिन इस कारण उसकी उँगली में चोट लग गयी। इस घटना ने आनन्दी को झकझोर डाला। उसने गुस्से में खाना-पीना छोड़ दिया। उसका पति श्रीकंठ इलाहाबाद से हर शनिवार को आता था। जब श्रीकंठ दो दिन बाद घर वापस आता है तो उसके पिता बेनीमाघव उल्टे आनन्दी के व्यवहार की शिकायत उससे करते हैं।

इस पर पहले तो श्रीकंठ आनन्दी पर गुस्सा करते हैं लेकिन पूछने पर जब आनन्दी ने पूरी घटना श्रीकंठ को बताई तो श्रीकंठ आग बबूला हो उठे। सुबह होते ही उसने अपने पिता से कहा कि वह अब इस घर में एक पल भी नहीं रह सकता। वह अपने छोटे भाई लालबिहारी को उल्टा-सीधा कहते हैं। जब लालबिहारी अपने बड़े भाई के अपने विषय में इस प्रकार के विचार सुनते हैं तो उन्हें प्रायश्चित्त के साथ बड़ा दुःख होता है और भाई की बात रखने के लिए वह हमेशा के लिए घर छोड़कर जाना चाहता है। लालबिहारी ने आनन्दी के द्वार पर आकर कहा-“भाभी, भैया ने निश्चय किया है कि वह मेरे साथ इस घर में न रहेंगे। वह मेरा मुँह नहीं देखना चाहते, इसलिए अब मैं जाता हूँ उन्हें फिर मुँह न दिखाऊँगा। मुझसे जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करना।”

लालबिहारी के इन वचनों को सुनकर आनन्दी का हृदय परिवर्तित हो गया और स्वयं अपने पति से कहा ‘लालाजी’ को अन्दर बुला लो। श्रीकंठ ने इस पर कुछ उत्तर नहीं दिया तो आनन्दी ने स्वयं आगे बढ़कर लालबिहारी को रोक लिया और कहने लगी “तुम्हें मेरी सौगंध, अब एक पग भी आगे न बढ़ाना।”

कुछ ही देर में श्रीकंठ भी पिघल गया और उसने भी लालबिहारी को अपने गले से लगा लिया। दोनों भाई रोने लगते हैं। इसी समय बेनी माधव आ जाते हैं और खुश होकर कहने लगते हैं “बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं।”

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