MP Board Class 10th Special Hindi काव्य बोध

MP Board Class 10th Special Hindi काव्य बोध

1. काव्य की परिभाषा

‘छन्दबद्ध’ रचना काव्य कहलाती है। आचार्य विश्वनाथ ने काव्य को परिभाषित करते हुए लिखा है—’वाक्यं रसात्मकं काव्यम्’। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “कविता शेष सृष्टि के साथ हमारे रागात्मक सम्बन्धों की रक्षा और निवास का साधन है। वह इस जगत के अनन्त रूपों, अनन्त व्यापारों और अनन्त चेष्टाओं के साथ हमारे मन की भावनाओं को जोड़ने का कार्य करती है।”

काव्य के भेद-काव्य के दो भेद माने गये हैं-

  1. श्रव्य काव्य,
  2. दृश्य काव्य

(1) श्रव्य काव्य
जिस काव्य को पढ़कर या सुनकर आनन्द प्राप्त किया जाये,वह श्रव्य काव्य कहलाता है। श्रव्य काव्य के दो भेद माने गये हैं-

  1. प्रबन्ध काव्य,
  2. मुक्तक काव्य।

(क) प्रबन्ध काव्य-प्रबन्ध काव्य वह काव्य रचना कहलाती है जिसकी कथा शृंखलाबद्ध होती है। इसके छन्दों का सम्बन्ध पूर्वापर होता है। प्रबन्ध काव्य के दो प्रकार माने गये हैं-
(i) महाकाव्य,
(ii) खण्डकाव्य।

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(i) महाकाव्य-महाकाव्य में किसी महापुरुष के समस्त जीवन की कथा होती है। इसमें कई सर्ग होते हैं। मूल कथा के साथ प्रासंगिक कथाएँ भी होती हैं। महाकाव्य का प्रधान रस श्रृंगार, वीर अथवा शान्त होता है।

हिन्दी के प्रमुख महाकाव्य एवं उनके रचयिता-
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(ii) खण्डकाव्य-खण्डकाव्य में जीवन का खण्ड चित्रण होता है। इसका नायक यशस्वी होता है। सीमित कलेवर में इसकी कथा अपने आप में पूर्ण होती है।

हिन्दी के प्रमुख खण्डकाव्य एवं उनके रचयिता-
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(ख) मुक्तक काव्य-मुक्तक काव्य में प्रत्येक छन्द स्वयं में पूर्ण होता है तथा पूर्वापर सम्बन्ध से मुक्त होता है। बिहारी सतसई के दोहे,कबीर की साखी मुक्तक काव्य हैं।

2. रस

रस की परिभाषा
जिसका आस्वादन किया जाये वही रस है। रस का अर्थ आनन्द है अर्थात् काव्य को पढ़ने, सुनने या देखने से मिलने वाला आनन्द ही रस है। रस की निष्पत्ति विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से होती है। रस काव्य की आत्मा माना गया है। रस के अंग

रस के चार अंग-
(i) स्थायी भाव,
(ii) विभाव,
(iii) अनुभाव,
(iv) संचारी भाव-माने गये हैं।

(i) स्थायी भाव-मानव हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान रहने वाले भाव स्थायी भाव कहलाते हैं। स्थायी भावों की संख्या नौ-रति,हास,शोक,उत्साह,क्रोध, भय, घृणा, विस्मय एवं निर्वेद मानी गई है। कुछ विद्वान देव विषयक प्रेम और वात्सल्य भाव को स्थायी भाव मानते हैं।
(ii) विभाव-स्थायी भाव को जगाने वाले और उद्दीप्त करने वाले कारण विभाव कहलाते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं—
(क) आलम्बन,
(ख) उद्दीपन।

(क) आलम्बन विभाव-जिस कारण से स्थायी भाव जाग्रत हो. उसे आलम्बन विभाव कहते हैं। जैसे-वन में शेर को देखकर डरने का आलम्बन विभाव शेर होगा।
(ख) उद्दीपन विभाव-जाग्रत स्थायी भाव को उद्दीप्त करने वाले कारण उद्दीपक विभाव कहे जाते हैं। जैसे वन में शेर देखकर भयभीत व्यक्ति के सामने ही शेर जोर से दहाड़ मार दे,तो दहाड़ भय को उद्दीप्त करेगी। अतः यह उद्दीपन विभाव होगी।

(iii) अनुभाव-स्थायी भाव के जाग्रत होने तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय की शारीरिक चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं। जैसे वन में शेर को देखकर डर के मारे काँपने लगना, भागना आदि।

अनुभाव-

  1. कायिक,
  2. वाचिक,
  3. मानसिक,
  4. सात्विक तथा
  5. आहार्य-पाँच प्रकार के होते हैं।

(iv) संचारी भाव-जाग्रत स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए कुछ समय के लिए जगकर लुप्त हो जाने वाले भाव संचारी या व्यभिचारी भाव कहलाते हैं। जैसे वन में शेर को देखकर भयभीत व्यक्ति को ध्यान आ जाये कि आठ दिन पूर्व शेर ने एक व्यक्ति को मार दिया था। यह स्मृति संचारी भाव होगा। संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है।

रस नौ प्रकार के माने गये हैं-

  • शृंगार,
  • वीर,
  • शान्त,
  • करुण,
  • हास्य,
  • रौद्र,
  • भयानक,
  • वीभत्स एवं
  • अद्भुत।

कुछ विद्वान भक्ति एवं वात्सल्य को भी रस मानते हैं।
(1) श्रृंगार रस [2011]-श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति है। नर और नारी का प्रेम पुष्ट होकर श्रृंगार रस रूप में परिणत होता है। श्रृंगार रस के दो भेद हैं-
(i) संयोग शृंगार,
(ii) वियोग शृंगार।

(i) संयोग शृंगार–जहाँ नायक-नायिका के मिलन,वार्तालाप, स्पर्श आदि का वर्णन है। वहाँ संयोग श्रृंगार होता है; जैसे-

“दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं।
गावत गीत सबै मिलि सुन्दरि, वेद तहाँ जुरि विप्र पढ़ाहीं॥
राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नंग की परछाहीं।
याते सबै सुधि भूल गयी, कर टेकि रही पल टारत नाहीं॥”

यहाँ राम और सीता का प्रेम (रति) स्थायी भाव है। राम आलम्बन और सीता आश्रय हैं। नग में राम का निहारना, गीत आदि उद्दीपन हैं। कर टेकना,पलक न गिराना अनुभाव हैं। जड़ता, हर्ष,मति आदि संचारी भाव हैं।

(ii) वियोग शृंगार–जहाँ नायक-नायिका के वियोग का वर्णन हो वहाँ वियोग शृंगार होता है; जैसे-

“भूषन वसन विलोकत सिय के
प्रेम विवस मन कम्प, पुलक तनु नीरज-नयन नीर भये पिय के।”

यहाँ आलम्बन सीता तथा आश्रय राम हैं। सीता के आभूषण, वस्त्र आदि उद्दीपन हैं। कम्पन, पुलक,आँख में आँसू अनुभाव हैं। दर्द,स्मृति संचारी भाव हैं।

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(2) वीर रस युद्ध या कठिन कार्य करने के लिए जगा उत्साह भाव विभावादि से पुष्ट होकर वीर रस बन जाता है। इसका आलम्बन विरोधी होता है, शत्रु की गर्जना, रणभेरी आदि उद्दीपन हैं। हाथ उठाना, वीरता की बातें करना आदि अनुभाव और गर्व,उत्सुकता आदि संचारी भाव हैं; जैसे-

“सौमित्र से घनानन्द का, रव अल्प भी न सहा गया,
निज शत्रु को देखे बिना, तनिक उनसे न रहा गया।
रघुवीर का आदेश ले, युद्धार्थ वे सजने लगे,
रण वाद्य भी निर्घोष करके, धूम से बजने लगे।”

यहाँ मेघनाद आलम्बन तथा लक्ष्मण आश्रय हैं। मेघनाद का रव,रण वाद्य आदि उद्दीपन हैं। लक्ष्मण का युद्ध हेतु तैयार होना आदि अनुभाव और औत्सुक्य,अमर्ष आदि संचारी भाव हैं।

(3) शान्त रस-संसार की असारता, वस्तुओं से विरक्ति के कारण उत्पन्न निर्वेद भाव विभावादि से पुष्ट होकर शान्त रस के रूप में परिणत होता है; जैसे-

“मो सम कौन कुटिल खल कामी।
तुम सों कहा छिपी करुनामय सबके अंतरजामी।
जो तन दियौ ताहि बिसरायौ ऐसौ नोन हरामी।
भरि-भरि द्रोह विषयों को धावत, जैसे सूकर ग्रामी।
सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषयनि संग बिसरामी।
श्री हरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की; निसदिन करत गुलामी।
पापी परम, अधम अपराधी, सब पतितनि मैं नामी।
सूरदास प्रभु अधम-उधारना सुनियै श्रीपति स्वामी॥”

यहाँ भक्त आश्रय तथा विषय वासना, संसार की असारता आलम्बन है। शरीर विस्मृत कर देना,सत्संग में आलस्य आदि उद्दीपन विभाव हैं। द्रोह भरकर विषय को धाना, गुलामी करना आदि अनुभाव और मति, वितर्क, विवोध आदि संचारी भाव हैं।

(4) करुण रस-प्रिय व्यक्ति वस्तु के विनाश या अनिष्ट की आशंका से जागे शोक स्थायी भाव का विभावादि से पुष्ट होने पर करुण रस का परिपाक होता है; जैसे- [2012]

“करि विलाप सब रोबहिं रानी।
महाविपति किमि जाइ बखानी।।
सुनि विलाप दुखद दुख लागा।
धीरज छूकर धीरज भागा॥”

इसमें रानियाँ आश्रय, राजा दशरथ की मृत्यु आलम्बन है। मृत्यु की सूचना उद्दीपन है। आँसू बहाना, रोना, विलाप करना, अनुभाव और विषाद, दैन्य, बेहोशी आदि संचारी भाव हैं।

(5) हास्य रस-विचित्र वेश-भूषा, विकृत आकार, चेष्टा आदि के कारण जाग्रत हास स्थायी भाव विभावादि से पुष्ट होकर हास्य रस में परिणत होता है; जैसे [2017]

“हँसि हँसि भजे देखि दूलह दिगम्बर को,
पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में।
कहै पद्माकर सु काहु सों कहै को कहा,
जोई जहाँ देखे सो हँसोई तहाँ राह में।।
मगन भएई हँसे नगन महेश ठाड़े,
और हँसे वेऊ हँसि-हँसि के उमाह में।
सीस पर गंगा हँसे भुजनि भुजंगा हँसे।
हास ही को दंगा भयो नंगा के विवाह में।”

यहाँ दर्शक आश्रय हैं तथा शिवजी आलम्बन हैं। उनकी विचित्र आकृति, नग्न स्वरूप आदि उद्दीपन हैं। लोगों का हँसना, भागना आदि अनुभाव तथा हर्ष, उत्सुकता, चपलता आदि संचारी भाव हैं।

(6) रौद्र रस-दुष्ट के अत्याचारों, अपने अपमान आदि के कारण जाग्रत क्रोध स्थायी भाव का विभावादि में पुष्ट होकर रौद्र रस रूप में परिपाक होता है; जैसे-

“श्रीकृष्ण के सुन वचन, अर्जन क्रोध से जलने लगा।
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगा || [2009]
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा, वे हो गए उठकर खड़े॥”

यहाँ अर्जुन आश्रय, अभिमन्यु के वध पर कौरवों का हर्ष आलम्बन है। श्रीकृष्ण के वचन उद्दीपन विभाव हैं। हाथ मलना, कठोर बोल,उठकर खड़ा होना, अनुभाव तथा अमर्ष,उग्रता, गर्व आदि संचारी भाव हैं।

(7) भयानक रस-किसी भयंकर व्यक्ति, वस्तु के कारण जाग्रत भय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से भयानक रस रूप में परिणत होता है; जैसे-

“एक ओर अजगर सिंह लखि, एक ओर मृगराय।
विकल वटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।।”

यहाँ आश्रय वटोही तथा आलम्बन अजगर और सिंह हैं। अजगर एवं सिंह की डरावनी चेष्टाएँ उद्दीपन हैं। बटोही (राहगीर) का मूच्छित होना अनुभाव तथा स्वेद, कम्पन, रोमांच आदि संचारी भाव हैं।

(8) वीभत्स रस-घृणापूर्ण वस्तुओं के देखने या अनुभव करने के कारण जगने वाला जुगुप्सा (घृणा) स्थायी भाव का विभावादि के संयोग से वीभत्स रस रूप में परिपाक होता है; जैसे-

“सिर पर बैठो काग आँखि दोऊ खात निकारत।
खींचति जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।
गिद्ध जाँघ कहँ खोदि-खोदि के मांस उपारत।
स्वान अंगुरिन काटि के खात विरारत।।”

यहाँ युद्ध क्षेत्र या श्मशान आलम्बन तथा दर्शक आश्रय हैं। कौओं का आँख निकालना, स्यार का जीभ खींचना, गिद्ध का मांस नोंचना आदि उद्दीपन हैं। इन्हें देखने पर हृदय की व्याकुलता,शरीर का कम्पन आदि अनुभाव तथा मोह,स्मृति, मूर्छा आदि संचारी भाव हैं।

(9) अद्भुत रस-किसी असाधारण या अलौकिक वस्तु के देखने में जाग्रत विस्मय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से अद्भुत रस में परिणत होता है; जैसे-

“अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गद्-गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु।।”

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यहाँ माँ यशोदा आश्रय तथा श्रीकृष्ण के मुख में विद्यमान सब लोक आलम्बन हैं। चर-अचर आदि उद्दीपन हैं। आँख फाड़ना,गद-गद स्वर,रोमांच अनुभाव तथा दैन्य,त्रास आदि संचारी भाव हैं।

(10) वात्सल्य रस-सन्तान के प्रति वात्सल्य भाव उपयुक्त विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के सम्मिश्रण के परिणामस्वरूप जब आनन्द में परिणत हो जाता है, तब वहाँ वात्सल्य रस होता है। [2009, 10, 18]

उदाहरण-

“जसोदा हरि पालने झलावै।
हलरावै दुलराय मल्हावें, जोइ सोइ कछु गावै।।”

3. अलंकार

परिभाषा-काव्य में भाव तथा कला के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले उपकरण अलंकार कहलाते हैं।

भेद-जिन अलंकारों के प्रयोग से शब्द में चमत्कार उत्पन्न होता है, वे शब्दालंकार तथा जिनसे अर्थ में चमत्कार पैदा होता है,वे अर्थालंकार कहलाते हैं। शब्दालंकारों में प्रमुख अनुप्रास, यमक और श्लेष तथा अर्थालंकारों में उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा प्रमुख हैं।

अलंकार परिचय

1. वक्रोक्ति अलंकार [2009, 16]

लक्षण-जहाँ किसी उक्ति का अर्थ जानते हुए कहने वाले के आशय से भिन्न लिया जाए, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है; जैसे

“कौन तुम? हैं घनश्याम हम, तो बरसो कित जाई।”

यहाँ राधा ने ‘घनश्याम’ का अर्थ जानते हुए भी श्रीकृष्ण न लगाकर बादल लिया है। अतः यहाँ वक्रोक्ति अलंकार है।

2. अतिश्योक्ति अलंकार [2009, 10, 12, 13, 15, 17]
लक्षण–जहाँ कोई बात आवश्यकता से अधिक बढ़ा-चढ़ाकर कही जाय, वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता है; जैसे

“हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंका सारी जरि गई, गये निसाचर भाग ॥”

यहाँ बात को बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन हुआ है। अतः अतिश्योक्ति अलंकार है।

3. अन्योक्ति अलंकार [2009, 11, 18]
लक्षण-जहाँ अप्रस्तुत कथन के द्वारा प्रस्तुत अर्थ का बोध कराया जाये वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है; जैसे

“माली आवत देखकर, कलियन करी पुकार।
फूले-फूले चुनि लिए, कालि हमारी बार।”

यहाँ पर बात तो अप्रस्तुत माली,कलियाँ, फूलों की कही गई है परन्तु बोध प्रस्तुत वृद्धजनों और प्रौढ़जनों का कराया गया है।

4. छन्द

(क) परिभाषा-छन्द का शब्दार्थ बन्धन है। वर्ण,मात्रा, गति, यति,तुक आदि नियमों से नियोजित शब्द-रचना छन्द कहलाती है।

(ख) छन्द के अंग-
(1) वर्ण-वर्ण अक्षर को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(अ) लघु (ह्रस्व) वर्णों के बोलने में बहुत कम समय लगता है; जैसे-क, उ, नि, ह आदि।
(आ) दीर्घ (गुरु) वर्णों के बोलने में कुछ अधिक समय लगता है; जैसे-तू, आ,पौ आदि।

(2) मात्रा-वर्ण के बोलने में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा दो प्रकार की होती हैं-
(अ) लघु,
(आ) दीर्घ। लघु वर्ण की एक तथा दीर्घ वर्ण की दो मात्राएँ होती हैं। लघु का चिह्न (l) और दीर्घ का चिह्न (s) होता है।

(3) यति–विराम या रुकने को यति कहते हैं। छन्द पढ़ते समय जहाँ कुछ समय रुकते हैं,वही यति है। इसके संकेत के लिए विराम चिह्न प्रयोग किये जाते हैं।

(4) चरण या पाद-छन्द के एक भाग को चरण या पाद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में चरणों की संख्या निश्चित होती है; जैसे–चार पद,छ: पद आदि।

(5) तुक-छन्द की प्रत्येक पंक्ति के अन्तिम भाग की समान ध्वनि तुक कहलाती है।
(ग) छन्द के भेद-छन्द दो प्रकार के होते हैं-
(i) मात्रिक एवं
(ii) वर्णिक।

(i) मात्रिक छन्द-जिन छन्दों में मात्रा की गणना की जाती है, वे मात्रिक छन्द कहलाते हैं।
(ii) वर्णिक छन्द-जिन छन्दों में वर्गों की गणना की जाती है, वे वर्णित छन्द होते हैं।

छन्दों का परिचय

1. गीतिका [2009, 11, 13, 14, 17]
लक्षण-गीतिका मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 14 तथा 12 पर यति होती हैं; कुल मात्राएँ 26 होती हैं। अन्त में लघु-गुरु होता है; जैसे-

हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए।

2. हरिगीतिका [2009, 14, 16, 18]
लक्षण-इसमें कुल 28 मात्राएँ होती हैं तथा 16 एवं 12 पर यति होती है। अन्त में लघु-गुरु होता है; जैसे-

संसार की समर स्थली में, वीरता धारण करो।
चलते हुए निज इष्ट पथ पर, संकटों से मत डरो॥
जीते हुए भी मृतक सम रहकर न केवल दिन भरो।
वीर वीर बनकर आप, अपनी विघ्न बाधाएँ हरो॥

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3. उल्लाला [2015]
लक्षण-उल्लाला छन्द के प्रथम तथा तृतीय चरण में 15 मात्राएँ होती हैं; जैसे-

करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की। [2009]

4. रोला
लक्षण-रोला के प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11 एवं 13 पर यति होती है। अन्त में प्रायः दो गुरु होते हैं; जैसे

नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र, युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मण्डल हैं।
बन्दीजन खग-वृन्द, शेष प्राय सिंहासन हैं।

प्रश्नोत्तर

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. ‘छन्दबद्ध रचना कहलाती है
(i) काव्य
(ii) छन्द
(iii) मुक्तक
(iv) गेय मुक्तक।
उत्तर-
(i) काव्य

2. ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यम्’ परिभाषा दी है.
(i) भामह
(ii) दण्डी
(iii) विश्वनाथ
(iv) पण्डितराज जगन्नाथ।
उत्तर-
(ii) दण्डी

3. सर्वाधिक लोकप्रिय महाकाव्य है [2013]
(i) कामायनी
(ii) रामचरितमानस
(ii) साकेत
(iv) पद्मावत।
उत्तर-
(ii) रामचरितमानस

4. काव्य की आत्मा है-
(i) अलंकार
(ii) रस
(iii) छन्द
(iv) दोहा।
उत्तर-
(ii) रस

5. स्थायी भाव को जगाने वाले और उद्दीप्त करने वाले कारण कहलाते हैं-
(i) आलम्बन
(ii) उद्दीपन
(iii) विभाव
(iv) अनुभाव।
उत्तर-
(iii) विभाव

6. काव्य में भाव तथा कला के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्त्व कहलाते हैं-
(i) रस
(ii) छन्द
(iii) चौपाई
(iv) अलंकार।
उत्तर-
(iv) अलंकार।

7. हरिगीतिका के प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती हैं-
(i) 26 मात्राएँ
(ii) 28 मात्राएँ
(iii) 24 मात्राएँ
(iv) 16 मात्राएँ।
उत्तर-
(ii) 28 मात्राएँ

8. जहाँ अप्रस्तुत कथन के द्वारा प्रस्तुत का बोध हो, वहाँ अलंकार होता है-
(i) वक्रोक्ति
(ii) अतिश्योक्ति
(iii) विशेषोक्ति
(iv) अन्योक्ति।
उत्तर-
(iv) अन्योक्ति।

9. वर्ण के बोलने में जो समय लगता है, उसे कहते हैं-
(i) यति
(ii) मात्रा
(iii) चरण
(iv) तुक।
उत्तर-
(ii) मात्रा

10. उल्लाला छन्द में मात्राएँ होती हैं [2009]
(i) 26.
(ii) 28
(iii) 14
(iv) 18.
उत्तर-
(ii) 28

11. ‘श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे’ में कौन-सा रस विद्यमान है? [2012]
(i) हास्य रस
(ii) रौद्र रस
(iii) वीर रस
(iv) करुण रस।
उत्तर-
(ii) रौद्र रस

12. ‘चौपाई छन्द में मात्राएँ होती हैं [2012, 15]
(i) 12
(ii) 15
(iii) 16
(iv) 24.
उत्तर-
(ii) 15

13. ‘रौद्र रस का स्थायी भाव’ है [2014]
(i) उत्साह
(ii) हँसी
(iii) क्रोध
(iv) विस्मय।
उत्तर-
(ii) हँसी

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14. ‘अद्भुत रस का स्थायी भाव’ है [2016]
(i) रति
(ii) निर्वेद
(iii) विस्मय
(iv) शोक।
उत्तर-
(i) रति

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. महाकाव्य में जीवन का ………………………………. चित्रण होता है।
2. कामायनी एक ………………………………. है। [2009, 13]
3. लोक सीमा से परे बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन ………………………………. में होता है।
4. गीतिका छन्द ………………………………. छन्द है।
5. ‘चरण-सरोज पखावन लागा’ ………………………………. अलंकार का उदाहरण है। [2009]
6. गेय मुक्तक को ………………………………. भी कहते हैं।
7. श्रृंगार रस का स्थायी भाव ……………………………….” है। [2010, 15]
8. रस के ………………………………. अंग होते हैं।
9. जहाँ शब्द सम्बन्धी चमत्कार हो, उसे ………………………………. कहते हैं।
10. करुण रस का स्थायी भाव ……………………………….” है। [2009]
11. जिसके प्रति स्थायी भाव उत्पन्न हो, वह ………………………………. कहलाता है। [2014, 17]
12. दोहा और रोला छंद से मिलकर ………………………………. छंद बनता है। [2018]
उत्तर-
1. समग्र,
2. महाकाव्य,
3. अतिश्योक्ति,
4. मात्रिक,
5. रूपक,
6. प्रगीति,
7. रति,
8. चार,
9. शब्दालंकार,
10. शोक,
11. आलम्बन,
12. कुण्डलियाँ।

सत्य/असत्य
1. खण्डकाव्य मुक्तक काव्य का एक भेद है। [2014]
2. अस्थिर मनोविकारों को स्थायी भाव कहते हैं। [2013]
3. करुण रस का स्थायी भाव शोक है। [2017]
4. शान्त रस का स्थायी भाव निर्वेद है। [2009]
5. वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है। [2018]
6. रोला वर्णिक छन्द है।
7. रस को काव्य की आत्मा माना गया है।
8. काव्य का प्रत्येक छंद अपने आप में स्वतंत्र, पूर्ण तथा रस की अनुभूति कराने में असमर्थ होता है। [2011]
9. सवैया वर्ण वृत्त है। [2011]
10. ‘उद्धव शतक’ रत्नाकर रचित महाकाव्य है। [2011]
11. प्रबन्ध काव्य में पूर्वापर सम्बन्ध नहीं होता है। [2011, 15]
12. ‘अनुराग तड़ाग में भानु उदै’ में उपमा अलंकार है। [2011]
13. माली आवत देखकर कलियन करी पुकार। फूले-फूले चुन लिये काल्हि हमार बार ॥ में अन्योक्ति अलंकार है। [2012]
14. रामचरितमानस का प्रमुख छंद चौपाई है। [2017]
उत्तर-
1. असत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य,
6. असत्य,
7. सत्य,
8. असत्य,
9. सत्य,
10. असत्य,
11. असत्य,
12. असत्य,
13. सत्य,
14. सत्य।

सही जोड़ी बनाइए

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उत्तर-
1. → (ग), 2. → (क), 3. → (ख), 4. → (ङ), 5. → (घ)।

MP Board Class 10th Special Hindi काव्य बोध img-5
उत्तर-
1. → (घ), 2. → (ङ), 3. → (क), 4. → (ख), 5.→ (ग)।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय महाकाव्य का नाम लिखिए।
2. नायक के सम्पूर्ण जीवन का चित्रण किस काव्य में होता है? (2013, 15)
3. जिस काव्य में एक ही सर्ग होता है, उसे क्या कहते हैं? [2009]
4. जहाँ नायक-नायिका के विरह का वर्णन हो, वहाँ कौन-सा रस होगा?
5. स्थायी भाव कितने माने गये हैं?
6. संचारी भावों की संख्या कितनी है? [2013]
7. स्थायी भावों के उत्पन्न होने के कारणों को क्या कहते हैं? [2018]
8. छन्दोबद्ध एवं लयात्मक रचना को क्या कहते हैं?।
9. अनुभाव कितने प्रकार के होते हैं?
10. जिनसे अर्थ में चमत्कार पैदा होता है,वो क्या कहलाते हैं?
11. गीतिका किस प्रकार का छन्द है?
12. वात्सल्य रस के अलावा रसों की संख्या कितनी मानी गयी है? [2016]
13. आश्रय के चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को क्या कहते हैं? [2017]
उत्तर-
1. रामचरितमानस,
2. महाकाव्य,
3. खण्डकाव्य,
4. वियोग श्रृंगार,
5. नौ,
6. तैंतीस,
7. विभाव,
8. काव्य,
9. पाँच,
10. अर्थालंकार,
11. मात्रिक,
12. नौ,
13. संचारी भाव।

(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कविता से क्या तात्पर्य है?
अथवा
काव्य की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
(1) रसयुक्त वाक्य को काव्य की संज्ञा से विभूषित किया जाता है।
अथवा
(2) छन्द में बँधी रचना को काव्य कहते हैं।
(3) पंडितराज जगन्नाथ के मतानुसार-“रमणीय अर्थ को व्यक्त करने वाली शब्दावली काव्य है।”

प्रश्न 2.
कविता के बाह्य स्वरूप सम्बन्धी तत्त्वों का विवरण दीजिए।
उत्तर-
कविता के बाह्य तत्त्व निम्नवत् हैं
(1) भाषा,
(2) छन्द,
(3) अलंकार,
(4) गेयता,
(5) चित्रात्मकता,
(6) शब्द-गुण,
(7) शब्द शक्ति।

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प्रश्न 3.
कविता के आन्तरिक तत्त्व बताइए।
उत्तर-
कविता के आन्तरिक तत्त्व निम्नलिखित हैं
(1) भावों एवं विचारों की उत्कृष्टता,
(2) रसानुभूति,
(3) अनुभूति की तीव्रता,
(4) हृदयस्पर्शी होना,
(5) अनुभूतियों का मर्मस्पर्शी होना।

प्रश्न 4.
दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य का अर्थ बताइए।
उत्तर-
काव्य के दो भेद स्वीकारे गये हैं, ये क्रमशः दृश्य-काव्य एवं श्रव्य-काव्य के नाम से जाने जाते हैं। नाटक एवं एकांकी आदि दृश्य-काव्य के अन्तर्गत आते हैं। दृश्य-काव्य रंगमंच पर अभिनीत किये जाते हैं। इसका रसास्वादन देखकर ग्रहण किया जा सकता है। इस हेतु इन्हें दृश्य-काव्य कहा जाता है। दूसरी तरह के काव्य श्रव्य-काव्य के नाम से सम्बोधित किये जाते हैं। इनका रसास्वादन प्रमुखतः श्रवण करके (सुनकर) ग्रहण किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
श्रव्य काव्य एवं दृश्य काव्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य’ में क्या अन्तर है?
उत्तर-

  1. श्रव्य-काव्य का रसास्वादन श्रवण करके अथवा पढ़कर प्राप्त किया जाता है; यथा-उपन्यास, कविता एवं कहानी।
  2. दृश्य काव्य का रसास्वादन अथवा आनन्द रंगमंच पर अभिनीत होते हुए देखकर प्राप्त किया जा सकता है; यथा-नाटक एवं एकांकी।

प्रश्न 6.
शब्द गुण (काव्य गुण) के प्रमुख प्रकारों को परिभाषित कीजिए। [2014]
उत्तर-
शब्द गुण (काव्य गुण) निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं
(1) माधुर्य गुण-जिस काव्य के सुनने से आत्मा द्रवित हो जाये, मन आप्लावित और कानों में मधु घुल जाये वही माधुर्य गुणयुक्त है।

उदाहरण-

छाया करती रहे सदा, तुझ पर सुहाग की छाँह।
सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे हो, प्रियतम की बाँह ॥

(2) प्रसाद गुण-जब किसी कविता का अर्थ आसानी से समझ में आ जाये तब वहाँ प्रसाद गुण होता है।

उदाहरण-

“अब हरिनाम सुमिरि सुखधाम,
जगत में जीवन दो दिन का ॥”

(3) ओज गुण [2012] -जिस काव्य के सुनने या पढ़ने से चित्त की उत्तेजना वृत्ति जाग्रत हो,वह रचना ओज गुण सम्पन्न होती है।

उदाहरण-

“बुन्देले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।”

प्रश्न 7.
मुक्तक काव्य किसे कहते हैं? इसकी दो विशेषताएँ लिखिए। [2009]
उत्तर-
मुक्तक रचना में हर पद स्वतः पूर्ण होता है। इसकी रचना में कथा नहीं होती। प्रत्येक छन्द पूर्व पद के प्रसंग से सर्वथा अछूता अथवा मुक्त होता है, अतः मुक्तक काव्य पुकारा जाता है। सूर एवं मीरा के पद तथा गिरिधर की कुंडलियाँ मुक्तक काव्य के अन्तर्गत आते हैं।

विशेषताएँ-

  • हर छन्द अपने आप में पूर्ण होता है।
  • एक प्रकार का जीवन दर्शन छिपा रहता है।

प्रश्न 8.
पाठ्य मुक्तक एवं गेय मुक्तक में अन्तर लिखिए। [2018]
उत्तर-
पाठ्य मुक्तक-पाठ्य मुक्तक पढ़े जाते हैं। इनमें किसी एक भाव या अनुभूति की गहनता होती है। बिहारी,कबीर, रहीम, तुलसी के दोहे इस कोटि में आते हैं। गेय मुक्तक-गेय मुक्तक गाये जाते हैं। इनमें संगीतात्मकता अथवा गेयता विद्यमान रहती है। सूर, मीरा,तुलसी के पद इसके जीवन्त उदाहरण हैं।

प्रश्न 9.
खण्डकाव्य किसे कहते हैं? हिन्दी के चार खण्डकाव्यों के नाम लिखिए।
अथवा [2009]
खण्डकाव्य की परिभाषा एवं एक खण्डकाव्य का नाम लिखिए। [2015]
उत्तर-
खण्डकाव्य में जीवन के किसी एक पक्ष का अंकन होता है। एक घटना अथवा व्यवहार का ही चित्रण किया जाता है।
हिन्दी के चार खण्डकाव्य निम्नवत् अवलोकनीय हैं-

  • जानकी मंगल-तुलसीदास।
  • सिद्धराज-मैथिलीशरण गुप्त।
  • सुदामा-चरित-नरोत्तमदास।
  • गंगावतरण-जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’।

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प्रश्न 10.
महाकाव्य किसे कहते हैं? दो प्रमुख महाकाव्यों एवं उनके रचनाकारों के नाम लिखिए। [2012]
अथवा
महाकाव्य की विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
महाकाव्य की परिभाषा देते हुए दो महाकाव्यों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर-
महाकाव्य में किसी महापुरुष के समस्त जीवन की कथा होती है। इसमें कई सर्ग होते हैं। मूल कथा के साथ प्रासंगिक कथाएँ भी होती हैं। महाकाव्य का प्रधान रस श्रृंगार, वीर अथवा शान्त होता है।

इसकी विशेषताएँ निम्नवत् हैं-

  • महाकाव्य के कथानक में क्रमबद्धता होती है।
  • नायक उदात्त एवं धीरोदात्त होता है।
  • हृदयस्पर्शी मार्मिक प्रसंगों का वर्णन होता है।
  • विषय विस्तृत एवं कथा इतिहास सम्मत होती है।
  • सम्पूर्ण महाकाव्य में एक छन्द प्रयुक्त होता है। भावी कथा के आयोजन हेतु छन्द बदला जाता है।
  • शान्त, शृंगार एवं वीर रस में से किसी एक रस का उद्रेक होता है।
  • जीवन के सम्पूर्ण रूप का चित्रण होता है।

दो प्रमुख महाकाव्यों के नाम-

  • रामचरितमानस (तुलसीदास),
  • कामायनी (जयशंकर प्रसाद)।

प्रश्न 11.
महाकाव्य और खण्डकाव्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2009, 14, 16, 17]
उत्तर-

  • महाकाव्य में जीवन के समग्र रूप का उल्लेख होता है। खण्डकाव्य में जीवन के एक पक्ष का उद्घाटन किया जाता है।
  • महाकाव्य विस्तृत होता है तथा खण्डकाव्य संक्षिप्त होता है।
  • महाकाव्य में प्रकृति चित्रण विशद् रूप में किया जाता है जबकि खण्डकाव्य में प्रकृति चित्रण संक्षिप्त रूप में किया जाता है।
  • महाकाव्य में पात्रों की संख्या अधिक होती है। खण्डकाव्य में पात्र कम तथा सीमित होते हैं।

प्रश्न 12.
प्रबन्ध काव्य किसे कहते हैं? [2009]
अथवा
प्रबन्ध काव्य किसे कहते हैं? इसके भेद बताइए तथा उदाहरण लिखिए। [2011]
अथवा
प्रबन्ध काव्य का अर्थ लिखते हुए उसके भेदों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। [2012]
उत्तर-
प्रबन्ध काव्य काव्य का एक प्रमुख भेद है। प्रबन्ध काव्य में छन्द किसी एक कथासूत्र में पिरोये रहते हैं। छन्दों के क्रम में कोई परिवर्तन नहीं होता है. इसका क्षेत्र विस्तृत होता है। इसमें किसी व्यक्ति के जीवन चरित्र की विभिन्न झाँकियाँ होती हैं।

प्रबन्ध काव्य के दो प्रकार माने गये हैं-

  • महाकाव्य,
  • खण्डकाव्य।

उदाहरण-

महाकाव्य-रामचरितमानस, साकेत, कामायनी।
खण्डकाव्य-सुदामाचरित्र,पंचवटी, हल्दीघाटी।

प्रश्न 13.
रस के अंगों के नाम लिखिए और विभाव को समझाइए।
उत्तर-
रस के अंग-स्थायी भाव, आलम्बन विभाव, अनुभाव,संचारी भाव होते हैं। विभाव-स्थायी भाव को जाग्रत तथा उद्दीपन करने वाले कारक विभाव कहलाते हैं।

प्रश्न 14.
रसों के नाम बताइए।
उत्तर-
हिन्दी साहित्य में रसों की संख्या 9 (नौ) मानी गई है। ये निम्नवत् हैं-

  • शृंगार,
  • वीर,
  • अद्भुत,
  • रौद्र,
  • करुण,
  • भयानक,
  • हास्य,
  • वीभत्स,
  • शान्त।

प्रश्न 15.
रसों के स्थायी भावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
MP Board Class 10th Special Hindi काव्य बोध img-6

प्रश्न 16.
“बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ” पंक्ति में कौन-सा रस है? पहचान कर उसके भेद बताइए।
उत्तर-
शृंगार रस। शृंगार रस के दो भेद होते हैं-संयोग एवं वियोग। उपर्युक्त दोहे में संयोग रस की छटा है।

प्रश्न 17.
“अब मैं नाच्यो बहुत मोपाल” पंक्ति में कौन-सा रस है? [2009]
उत्तर-
शान्त रस की छटा है।

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प्रश्न 18.
रस की निष्पत्ति कैसे होती है?
उत्तर-
“विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव के संयोग से स्थायी भाव परिपक्व होते हैं तभी रस की निष्पत्ति होती है।”

प्रश्न 19.
वीर रस का स्थायी भाव लिखते हुए एक उदाहरण दीजिए। [2016]
उत्तर-
वीर रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ है।

उदाहरण-

“बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।”

प्रश्न 20.
स्थायी भाव एवं संचारी भाव में अन्तर बताइये।। [2012, 15]
उत्तर-
स्थायी भाव एवं संचारी भाव में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-

  1. मानव हृदय में सुषुप्त रूप में रहने वाले मनोभाव स्थायी भाव कहलाते हैं, जबकि हृदय में अन्य अनन्त भाव जाग्रत तथा विलीन होते रहते हैं,उनको संचारी भाव कहा जाता है।
  2. स्थायी भाव स्थायी रूप से हृदय में विद्यमान रहते हैं, जबकि संचारी भाव कुछ समय रहकर समाप्त हो जाते हैं।
  3. स्थायी भाव उद्दीपन के प्रभाव से उद्दीप्त होते हैं, जबकि संचारी भाव स्थायी भाव के विकास में सहायक होते हैं। .
  4. स्थायी भावों की कुल संख्या 10 है, जबकि संचारी भाव तैंतीस माने गये हैं।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में कौन-सा अलंकार है? [2009, 10]
पड़ी अचानक नदी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस बार, तब तक चेतक था उस पार।।
उत्तर-
इस पंक्ति में ‘अतिश्योक्ति’ अलंकार है।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 9 मैं अमर शहीदों का चारण

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 9 मैं अमर शहीदों का चारण (श्री कृष्ण सरल)

मैं अमर शहीदों का चारण अभ्यास-प्रश्न

मैं अमर शहीदों का चारण लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि चारण बनने की कामना क्यों करता है।
उत्तर
कवि चारण बनने की कामना करता है, क्योंकि वह अमर शहीदों के अद्भुत त्याग-बलिदान से बहुत अधिक प्रभावित है।

प्रश्न 2.
इस कविता में कवि किसका कर्ज चुकाना चाहता है?
उत्तर
इस कविता में कवि अपने राष्ट्र का कर्ज चुकाना चाहता है?

प्रश्न 3.
आजादी प्राप्त करने में शहीदों का क्या योगदान रहा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
आजादी प्राप्त करने में शहीदों का विशेष ही नहीं, अपितु सर्वाधिक योगदान रहा। उन्होंने आजादी के लिए अपना सब कुछ निछावर कर दिया।

मैं अमर शहीदों का चारण दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शहीदों का नाम गौरव के साथ क्यों लिया जाता है?
उत्तर
शहीदों का नाम गौरव के साथ लिया जाता है। यह इसलिए कि उन्होंने स्वतंत्रता-संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। उन्होंने अपने जीवन में आने वाली अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं को त्याग कर अपनी मातृभूमि के आँसुओं को पोंछने के लिए अनेक तरह के कष्टों को सहा। अंत में उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

प्रश्न 2.
धरती में मस्तक बोने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर
धरती में मस्तक बोने का तात्पर्य है-अपने-आपको निछावर कर देना। हमारे देश के अमर शहीदों ने अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए अपने तन-मन-धन आदि सब कुछ को न्यौछावर कर दिया।

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प्रश्न 3.
माँ के आँसू देखकर शहीदों ने किस पब को अपनाया?
उत्तर
माँ के आँसू देखकर शहीदों ने अपने जीवन में आई हुई सरस फुहारों को लौटा दिया। उन्होंने काँटों को चुन लिया। इस प्रकार उन्होंने अपने जीवन की रंगीन बहारों को लौटाकर स्वतंत्रता-संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

प्रश्न 4.
‘जो कर्ज राष्ट्र ने……………है’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जो ‘कर्ज राष्ट्र ने….है’ इस पक्ति का आशय है-कवि अपने राष्ट्र के प्रति वफादार है। इसलिए वह राष्ट्र की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने वालों अमर शहीदों का चारण बनकर उनकी यशस्वी गौरव-गाथा का गान करते हुए नहीं थकता है। इसे वह अपनी मातृभूमि के प्रति पवित्र कर्त्तव्य समझता-मानता है।

प्रश्न 5.
कवि ने किस जीवन को श्रेष्ठ माना है और क्यों?
उत्तर
कवि ने देश के लिए समर्पित जीवन को श्रेष्ठ माना है। यह इसलिए कि किसी भी देश के निवासियों का यह पवित्र कर्त्तव्य है। इसका निर्वाह करके ही कोई देशवासी अपने देश के इस ऋण-भार से मुक्त हो सकता है।

मैं अमर शहीदों का चारण भाषा-अध्ययन/काव्य-सौंदर्य

प्रश्न 1.
‘उनने धरती में मस्तक बोए हैं’ इस पंक्ति में प्रतीकात्मकता है। प्रतीक के माध्यम से शहीदों की वीरता का यशोगान किया गया है। इसी तरह की अन्य प्रतीकात्मक पंक्तियाँ लिखिए।
2. यह कविता वीर रस से ओत-प्रोत है। इसी तरह वीर रस की कोई अन्य पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर

  1. उनकी लाशों पर चलकर आजादी आई है।
  2. हिंदुस्तान आज जिंदा उनकी कुर्बानी से।
  3. वे अगर न होते, तो भारत मुर्दो का देश कहा जाता।
  4. दाग गुलामी के उनके लोहू से धोए हैं।
  5. माँ के अर्जन हित फूल नहीं, वे निज मस्तक लेकर दौड़े।
  6. भारत का खून नहीं पतला, वे खून बहाकर दिखा गए।
  7. इस प्रश्न को छात्र/छात्रा स्वयं हल करें।

मैं अमर शहीदों का चारण योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
चंद्रशेखर आजाद की जन्म शताब्दी कब मनाई गई? अपने शिक्षक से जानकारी प्राप्त करें तवा आजादी पर केंद्रित कविता याद करें।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

2. श्रीकृष्ण ‘सरल’ के जीवन की घटनाओं को एकत्र कर एक संक्षिप्त जीवनी लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मैं अमर शहीदों का चारण परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि’चारण बनकर क्या करता है?
उत्तर
कवि चारण बनकर अमर शहीदों का यशगान करता है।

प्रश्न 2.
अगर अमर शहीद न होते तो क्या होता?
उत्तर
अगर अमीर शहीद न होते तो हमारा देश मुर्दो का देश कहा जाता। इससे हमारा जीवन न सहने योग्य एक बोझ बनकर रह जाता।

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प्रश्न 3.
अपनी मातृभूमि की अर्चना अमर शहीदों ने किससे की?
उत्तर
अपनी मातृभूमि की अर्चना अमर शहीदों ने फूल से नहीं की, अपितु अपने मस्तक को देकर की, अर्थात् अपने प्राणों की आहुति देकर की।

मैं अमर शहीदों का चारण दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार क्या सच है?
उत्तर
कवि के अनुसार सच है

  1. हम लोगों ने शहीदों की यादों को दफना दिया है, अर्थात् शहीदों को भुला दिया है।
  2. उनके ही त्याग-बलिदानों से हमने आजादी हासिल की है।
  3. आज हिंदुस्तान उन्हीं की कुर्बानी से जिंदा है।
  4. आज हम उनके ही बलिदान से अपना मस्तक ऊँचा किए हुए हैं।
  5. हम गुलामी के दाग उनके ही प्राण निछावर से मिटा सके हैं।

प्रश्न 2.
अमर शहीदों के जीवन में क्या-क्या सुख-आनंद आए थे? उनको उन्होंने क्या किया?
उत्तर
अमर शहीदों के जीवन में रंगीन-बहारें, सपने के समान निधियाँ, सरस फुहारें आदि सुख-आनंद आए थे। उनको उन्होंने अपनी मातृभूमि के आँसुओं को देखकर वापस कर दिया। इस प्रकार उन्होंने अपने सभी प्रकार के सुखों को अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिए।

प्रश्न 3.
‘मैं अमर शहीदों का चारण’ कविता का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
श्री श्रीकृष्ण ‘सरल’ विरचित कविता ‘मैं अमर शहीदों का चारण’ एक प्रेरणादायक कविता है। इसमें श्री ‘सरल’ ने अपनी ओजपूर्ण भावधारा को भक्तिरस से भर दिया है। इस कविता में उन्होंने स्वयं को ‘अमर शहीदों का चारण’ कहा है। फिर देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीदों के गौरवपूर्ण अतीत का चित्रण कर उनका यशोगान किया है। उन्होंने यह सुस्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता संग्राम में इन वीरों ने फूलों के मार्ग को त्यागकर काँटों से भरे रास्ते का वरण किया, यही नहीं उन्होंने भारत माँ की अर्चना में सहर्ष अपना मस्तक समर्पित कर दिया। फलस्वरूप ऐसे वीर शहीद इतिहास में अमर होकर जन-जन के लिए प्रेरणादायी हो गए।

मैं अमर शहीदों का चारण कवि-परिचय

प्रश्न
श्री श्रीकृष्ण ‘सरल’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
भारतीय स्वाधीनता सेनानियों और क्रांतिकारियों का यशगान करने वाले कवियों में श्रीकृष्ण ‘सरल’ का नाम अत्यंत लोकप्रिय है। शहीदों के प्रति श्रद्धा-भाव रखने और प्राचीन भारतीय सभ्यता के अमर-गायक श्रीकृष्ण ‘सरल’ अत्यधिक प्रसिद्ध कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

जीवन-परिचय-कविवर श्रीकृष्ण ‘सरल’ का जन्म मध्य प्रदेश के गुना जिलान्तर्गत अशोक नगर में 1 जनवरी 1919 को हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण वातावरण में ही हुई। आपका बालस्वरूप अत्यंत स्वाभिमानी और स्वाध्यायी था। आपने अपने स्वाध्याय के द्वारा कई परीक्षाओं को अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर लिया। शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत आपने अध्यापन क्षेत्र में प्रवेश लिया। इस अध्यापन-वृत्ति से आप आजीवन संबद्ध रहे। इसे आपने अत्यंत सफलतापूर्वक निभाया। सन् 1976 में आप शिक्षा महाविद्यालय उज्जैन से सेवा-निवृत्त हुए। तब से लेकर आज तक आप स्वतंत्र रूप से लेखन-कार्य में व्यस्त हैं
रचनाएँ-श्रीकृष्ण ‘सरल’ ने काव्य और गद्य दोनों पर ही अपना समानाधिकार दिखाया है। आपकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं

1. महाकाव्य-

  • भगत सिंह
  • चन्द्रशेखर आजाद
  • सुभाष चन्द्र बोस

2. काव्य-संकलन-

  • मुक्तिगान
  • स्मृति-पूजा।

3. बाल-साहित्य-बच्चों की फुलवारी।
4. गय-ग्रंथ-संसार की प्राचीन समस्याएँ, सभाष-दर्शन आदि।

भाषा-शैली-श्रीकृष्ण ‘सरल’ की भाषा उसके नाम के अनुरूप ही है। दूसरे शब्दों में उनकी भाषा सरल, सुबोध और सुस्पष्ट भाषा है। उसमें तद्भव और देशज शब्दावली की प्रधानता है। इस प्रकार की भाषा से भावाभिव्यक्ति को स्पष्ट होने में कोई कठिनाई नहीं दिखाई देती। श्रीकृष्ण ‘सरल’ की शैली ओजमयी और प्रौढ़मयी है। वह अधिक सशक्त, पुष्ट और सबल है। गंभीर-से गंभीर विषयों को अलंकृत शैली में प्रस्तुत करने की विशेषता प्रकट करने वाले श्रीकृष्ण ‘सरल’ में भाषा-शैली की प्रचुर क्षमता और योग्यता है।

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व्यक्तित्व-श्रीकृष्ण ‘सरल’ का व्यक्तित्व देशभक्त और क्रांतिकारी व्यक्तित्व है। उनके व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष है भारतीय अतीत के प्रति आस्थावान और श्रद्धावान व्यक्तित्व । इन दोनों प्रकार के व्यक्तित्त्व को जोड़कर एक पूरा और सफल व्यक्तित्व बना है-सफल और परिपक्व रचनाशील व्यक्तित्व । इस तरह से श्रीकृष्ण ‘सरल’ का व्यक्तित्व एक युगीन व्यक्तित्व सिद्ध होता है।

महत्त्व-श्रीकृष्ण ‘सरल’ का राष्ट्रीय विचार प्रधान रचनाकारों में विशिष्ट स्थान है। अतीत को सरेरक रूप में प्रस्तुत करने वाले साहित्यकारों में भी उनका स्थान सर्वोच्च है। भारतीय संस्कृति का महत्त्वांकन करने में जितनी बड़ी सफलता आपको मिली है। यह अन्यत्र कम ही दिखाई देती है।

मैं अमर शहीदों का चारण कविता का सारांश

प्रश्न
श्री श्रीकृष्ण ‘सरल’-विरचित कविता ‘मैं अमर शहीदों का चारण’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्री श्रीकृष्ण ‘सरल’ विरचित कविता ‘मैं अमर शहीदों का चारण’ एक प्रेरक और भावों को जगाने वाली कविता है। इस कविता का सारांश इस प्रकार है कवि अमर शहीदों के प्रति अपना श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए कहता है कि वह अमर शहीदों के यश का गायन करता है। इससे वह अपने राष्ट्र के कर्ज-पार से मुक्त’ हुआ करता है। इस सच्चाई को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता है कि हमने देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देने वाले वीर बलिदानों को मुला दिया है। लेकिन आज देश उन्हीं के प्राण न्यौछावर से स्वतंत्र है। अगर वे नहीं होते तो हम आजाद नहीं होते और गुलामी के बंधनों में पड़े-पड़े छटपटाते रहते। इसलिए वह (कवि) आज की पीढ़ी के अंदर उन अमर शहीदों के प्रति सच्चे श्रद्धाभावों को जगाने का प्रयत्न किया करता है। उन्हें याद करते हुए हमें यह अच्छी तरह से जानना चाहिए कि उन अमर शहीदों ने अपनी मातृभूमि के आँसुओं को देख करके अपने सुखों का परित्याग कर दिया और उसके लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। ऐसा करते हुए उन्होंने कोई लम्बे-चौड़े वादे नहीं किए। वे अपनी मातृभूमि की पूजा-अर्चना के लिए फूलों के स्थान पर अपने मस्तक ही लेकर आगे बढ़े थे।

मैं अमर शहीदों का चारण संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

पदों की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौंदर्य व विषय-वस्त पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. मैं अमर शहीदों का चारण, उनके यश गाया करता है
जो कर्ज राष्ट्र से खाया है, मैं उसे चुकाया करता हूँ।
यह सच है, बाद शहीदों की, हम लोगों ने दफनाई है,
यह सच है, उनकी लाशों पर चलकर आजादी आई है।
यह सच है, हिंदुस्तान आज जिंदा उनकी कुर्बानी से,
यह सच, अपना मस्तक ऊँचा उनकी बलिदान कहानी से

शब्दार्च-चारण-भाट, यश गान करने वाला। दफनाई-भुला दी। लाश-पलिदानों। कुर्बानी-बलिदान।

प्रसंग-यह पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती-हिंदी सामान्य’ में संकलित तथा श्री श्रीकृष्ण ‘सरल’-विरिचत कविता ‘मैं अमर शहीदों का चारण से है। इसमें कवि ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वालों के प्रति अपने श्रद्धा-भावों को प्रकट करते हुए कहा है कि

व्याख्या-वह अपने देश की आजादी के लिए मर-मिटने वाले अमर शहीदों का चारण है। वह उनके यश का गीत हमेशा गाया करता है। इससे वह अपने सष्ट्र के ऋण-भार से मुक्त हुआ करता है।

कवि का पुनः कहना है कि इस सच्चाई को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता है कि जिन अमर शहीद के बदौलत हमारे देश को एक लंबी गुलामी के बाद आजादी मिली है, उन्हें आज हम देशवासी लगभग भुला दिए हैं। यह भी एक सच्चाई है कि उन शहीदों के सब कुछ न्यौछावर कर देने और उनके बलिदानों से ही हम आजादी को हासिल किए हैं। यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि उन अमर शहीदों के बलिदानों के बदौलत ही आज हमारा देश अपनी पहचान बढ़ा रहा है और अपनी शक्ति-संपन्नता का परिचय दे रहा है। यह भी अपने आप में बहुत बड़ी सच्चाई है कि उन अमर शहीदों के त्याग और बलिदान के कारण ही हमारा यह भारत देशबड़े गर्व से अपना सिर उठाए हुआ अपना महत्त्व क्तला रहा है।

विशेष-

  1. भाषा हिन्दी-उर्दू के सरल शब्दों की है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. वीर रस का प्रवाह है।
  4. यह पद्यांश प्रेरक रूप में है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश में यह सच है कि पुनरावृत्ति से पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का चमत्कार भक्ति रस के प्रवाह से गतिशील बनाकर भाववर्द्धक है। तुकांत शब्दावली की योजना से प्रस्तुत पद्यांश का सौंदर्य बढ़ गया है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौंदर्य मिश्रित भाव और भाषा के प्रयोग से और कथन की स्वाभाविकता-सरलता रोचक रूप में प्रस्तुत हुआ है। इस प्रकार यह प्रेरक और मर्मस्पर्शी होने के साथ-साथ अनूठा भी कहा जा सकता है।

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2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) आज देशवासियों ने शहीदों के प्रति क्या अपराध किया है?
(ii) शहीदों की कुर्बानी का क्या फल मिला?
उत्तर
(i) आज देशवासियों ने शहीदों के प्रति यह अपराध किया है कि उन्होंने शहीदों की यादों को भुला दिया है।
(ii) शहीदों की कुर्बानी का फल यह मिला कि उससे ही हमने आजादी पाई है। उनकी ही कुर्बानी से आज यह हमारा देश
आत्मनिर्भरता का मस्तक ऊँचा किया है।

2. ये अगर न होते, तो भारत मुदों का देश कहा जाता,
जीवन ऐसा बोझा होता, जो हमसे नहीं सहा जाता।
यह सच है दाग गुलामी के उनके लोहू से धोए हैं,
हम लोग बीज बोते, उनने घरती में मस्तक बोए हैं।

शब्दार्थ-मुर्दो-बेजानों। बोझा-वजन, भार। दाग-दोष, कलंक। लोहू-खून।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने देश के अमर शहीदों का महत्त्वांकन करते हुए कहा है कि

व्याख्या-अगर हमारे देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ त्याग-बलिदान करने वाले हमारे अमर शहीद न होते, तो देश गुलामी के बंधन में बँधा रहता। उसे मुर्दा समझकर उस पर बाहरी शासक अर्थात् अंग्रेजी सत्ता अपना शासन करती। फलस्वरूप प्रत्येक देशवासी की जिंदगी एक ऐसा बोझ बनकर रह जाती, जिसे सहना बड़ा ही असंभव-सा हो जाता। अगर हम अपने देश के अमर शहीदों को गहराई से समझने की कोशिश करेंगे, तो हम यह अवश्य पाएँगे कि हमारे देश के ऊपर गुलामी का जो दाग लगा था, उसे उन्होंने अपना सब कुछ परित्याग-न्यौछावर करके बिल्कुल धो दिया है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि हम लोग तो साधारण बीज बोते हैं, लेकिन उन्होंने तो इस देश की धरती पर अपने मस्तक रूपी बीज को बोकर हमें अमन-चैन की जिंदगी दी है।

विशेष-

  1. अमर शहीदों की असाधारण देन का उल्लेख किया गया है।
  2. इस पयांश से देश-भक्ति की भावना जग रही है।
  3. मुहावरेदार शैली है।
  4. तुकांत शब्दावली है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश की भाषा सरल शब्दों से प्रस्तत होकर महावरेदार शैली से प्रभावशाली बन गई है। बिंब-प्रतीक यथास्थान है। काव्य-स्वरूप की योजना आकर्षक रूप में है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौंदर्य शहीदों के त्याग-बलिदान की वीरता को सरलता से बतलाकर भावों को बढ़ाने वाला है। अमर शहीदों की एक-एक विशेषताओं को रोचक रूप में प्रस्तुत करने का भाव सचमुच में अनूठा है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) अमर शहीद न होते क्या होता और क्यों?
(ii) ‘दाग गुलामी के लोहू से घोए हैं’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
(i) अमर शहीद न होते तो देश आजाद नहीं होता। यह इसलिए गुलामी की बेड़ी नहीं टूटती और यह देश न जाने कब तक गुलाम बना रहता।
(ii) ‘दाग गुलामी के लोहू से धोए हैं, से तात्पर्य है, अमर शहीदों ने अपने प्राणों का बलिदान करके, इस गुलाम देश को आजाद करवाया है।

3. इस पीढ़ी में, उस पीढ़ी के, में भाव जगाया करता हूँ,
मैं अमर शहीदों का चारण, उनके यश गाया करता हूँ।
यह सच, उनके जीवन में भी रंगीन बहारें आई थीं,
जीवन की स्वप्निल निधियाँ भी उनने जीवन में पाई थीं।

शब्दार्थ-भाव-उत्साह। रंगीन-आकर्षक, सुखद। स्वप्निल-स्वप्न के समान। निधियाँ-खजाने।

प्रसंग-पूर्ववत। इसमें कवि ने देश के अमर शहीदों के प्रति अपनी श्रद्धा और कर्तव्य-भाव को प्रकट करते हुए कहा है कि

व्याख्या-वह अपने देश के वर्तमान युवा पीढ़ी के अंदर बार-बार अपने देश के अमर शहीदों के त्याग-बलिदान को उत्साहवर्द्धक और प्रेरक रूप में रखने का प्रयास किया करता है। इस प्रकार वह उन अमर शहीदों का चारण है। उनके अमर यशगान को गाया करता है। यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि उन अमर शहीदों के भी जीवन में सबकी तरह आकर्षक और सुखद अवसर प्राप्त हुए थे। इस प्रकार स्वप्न के समान उन्होंने अपने जीवन में अनेक प्रकार के सुख-सुविधाओं के खजाने (अवसर) प्राप्त किए थे।

विशेष-

  1. कवि का आत्मकर्तव्य-बोध सराहनीय है।
  2. तुकांत शब्दावली आकर्षक है।
  3. लय और संगीत की सुंदर योजना है।
  4. यह अंश ज्ञानवर्द्धक और भाववर्द्धक है।
  5. भक्ति रस का प्रवाह है।

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1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पयांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौंदर्य सरल शब्दों और सरल काव्य-स्वरूपों से निखरकर आया है। भक्ति रस का प्रवाह और तुकांत शब्दावली से प्रस्तुत लयात्मकता से काव्याकर्षण बढ़ गया है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाव-योजना सहज रूप में है। कवि-धर्म देश-भक्तों का गुणगान करना भी होता है, इसे कवि ने अपने भावों के द्वारा व्यक्त कर दिया है। शहीदों के त्याग-बलिदान के संकेत से भाव-योजना में और स्वाभाविकता आ गई है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) ‘इस पीढ़ी में, उस पीढ़ी के’ कवन का तात्पर्य क्या है?
(ii) ‘अमर शहीदों के जीवन में भी रंगीन बहारें आई थीं’ और ‘उन्होंने अपने जीवन में स्वप्निल निधियाँ पाई वी’ कहकर कवि ने क्या प्रकट करना चाहता है?
उत्तर
(i) इस पीढ़ी में, उस पीढ़ी के कथन का तात्पर्य है. वर्तमान युवा पीढ़ी को अमर शहीदों के युग-प्रभाव’ को बतलाना।
(ii) अमर शहीदों के जीवन में भी रंगीन बहारें आई थीं और उन्होंने अपने जीवन में स्वप्निल निधियाँ पाई थीं’ कहकर कवि यह प्रकट करना चाहता है कि अमर शहीदों ने अपनी सुख-सुविधाओं की परवाह न करके देश की आजादी को प्राप्त करने को ही महत्त्व दिया।

4. पर, माँ के आँसू लख उनने सब सरस फुहारें लौटा दी,
काँटों के पथ का वरण किया, रंगीन बहारें लौटा दी।
उनने धरती की सेक के वादे न किए लंबे-चौड़े
माँ के अर्चन हित फूल नहीं, वे निज मस्तक लेकर दौड़े।

शब्दार्थ-लख-देखकर। फुहारें-बहारें। बरण-स्वागत। अर्चन-पूजा। हित-के लिए। निज-अपने।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने अमर शहीदों के अद्भुत देश-भक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि

व्याख्या-देश के अमर शहीदों ने अपने जीवन में आई हई सरसता भरी फहारों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया और न उन्होंने उसे और को महत्त्व ही दिया। उन्होंने तो अपनी मातृभूमि को गुलामी की बेड़ियों में कसे हुए देखा। उसे आँसू बहाते हुए देखा तो अपने जीवन की ‘सरस फुहारों’ को अनदेखा कर दिया। इस तरह उन्होंने अपने सुखमय जीवन को छोड़कर दुखमय जीवन को चुना। फूलों को छोड़कर काँटों को अपनाया। ऐसा करके उन्होंने अपने जीवन में आई रंगीन बहारें लौटा दीं। इस प्रकार उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा, उसकी आजादी और सेवा के लिए किसी भी प्रकार की बड़ी-बड़ी खोखली बातें नहीं की। आवश्यकता पड़ने पर उन्होंने अपनी मातृभूमि की अर्चना-पूजा के लिए फूल नहीं, अपने शीश (मस्तक) को ही अर्पित-समर्पित कर दिया।

विशेष-

  1. अमर शहीदों की देशभक्ति के प्रति किए गए त्याग-बलिदान का उल्लेख है।
  2. प्रतीकात्मक शब्दों के प्रयोग हैं-सरस फुहारें, रंगीन बहार, काँटों का पथ, लंबे-चौड़े वादे आदि।
  3. मुहावरेदार शैली है।
  4. यह अंश उत्साहवर्द्धक है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश में मुहावरेदार शैली के द्वारा कथ्य को आकर्षक बनाने का प्रयास किया गया है। फुहारें लौटाना, काँटों के पथ का वरण करना, रंगीन बहारें लौटाना, लंबे-चौड़े वादे करना और मस्तक लेकर दौड़ना मुहावरे प्रचलित रूप में हैं। इनसे काव्य-सौंदर्य में अच्छा निखार आ गया है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाव-योजना सरस और सरल शब्दों से पुष्ट हुई है। अमर शहीदों के असाधारण और बेजोड़ त्यागपूर्ण देश-भक्ति की भावना को अनूठे रूप में रखने का प्रयास काबिलेतारीफ है।

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2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) अमर शहीदों ने अपनी मातृभूमि की सेवा के लिए क्या-क्या किया?
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) अमर शहीदों ने अपनी मातृभूमि की सेवा के लिए अपने जीवन में आई हुई सरस फुहारें और रंगीन बहारें लौटा दीं। उन्होंने काँटों के पथ का वरण किया। कोई लंबे-चौड़े वादे नहीं किए। इस प्रकार उन्होंने अपनी मातृभूमि की अर्चना के लिए फूल नहीं, अपितु अपने शीश ही चढ़ाए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है-अमर शहीदों की बेजोड देशभक्ति को प्रेरक रूप में प्रस्तुत करना।

5. भारत का खून नहीं पतला, वे खून बहाकर दिखा गए,
जग के इतिहासों में अपनी, वे गौरव-गाथा लिखा गए।
उन गाथाओं से सर्द खून को मैं गरमाया करता हूँ।
में अमर शहीदों का चारण, उनके यश गाया करता हूँ।

शब्दार्थ-जग-संसार । गौरव-प्रतिष्ठा, महत्त्व, बड़प्पन । गाथा-गीत-कथा, कथा।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने अमर शहीदों के अमर त्याग-बलिदान का यशगान करते हुए कहा है कि

व्याख्या-हमारा देश अमर शहीदों का देश है। इसलिए यहाँ के प्रत्येक देशवासी को इसे अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि हमारे अमर शहीदों ने अपने त्याग-बलिदान से यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे देश भारत का खून पतला नहीं है, अर्थात् बेअसर और निरर्थक नहीं है। इससे वे पूरे संसार के इतिहास में अपनी यशस्वी गौरव-गाथा को अंकित कर गए। अर्थात् संसार में एक नया इतिहास बना गए। कवि अपने देश के इस प्रकार की अद्भुत वीरता और त्याग-बलिदान का गुणगान करते हुए पुनः कह रहा है कि वह उन अमर शहीदों की अमर जीवन गाथा की चर्चा के फीकी पड़ने को सहन नहीं कर सकता है। उन्हें फिर से अधिक चर्चित करने के लिए वह उनका चारण है। इस प्रकार वह उनके यश का हमेशा गुणगान करता है।

विशेष-

  1. भारतीय अमर शहीदों के बेजोड़ त्याग-बलिदान का उल्लेख है।
  2. कवि की सच्ची देशभक्ति प्रकट हुई है।
  3. ‘पतला खून’ और ‘सर्द खून’ प्रतीकात्मक शब्द से भाषा सजीव हो उठी है।
  4. ‘खून बहाना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश के भाव-सौंदर्य को लिखिए।
उत्तर-
(i) उपर्युक्त पद्यांश में अमर शहीदों के अद्भुत त्याग-बलिदान को प्रतीकात्मक शब्दावली में पिरोकर भक्ति रस से हृदयस्पर्शी बनाने का प्रयास किया गया है। लय और संगीत के मिश्रित प्रयास से प्रस्तुत पद्यांश का सौंदर्य बढ़ गया है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौंदर्य सुस्पष्ट है। अमर शहीदों के त्याग-बलिदान को ओजस्वी और सजीव भावों के द्वारा प्रस्तुत कर कवि ने इस पद्यांश के भाव-सौंदर्य में अधिक चमत्कार ला दिया है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश में अमर शहीदों की किन विशेषताओं को बतलाया गया है?
(ii) कवि ने शहीदों के प्रति अपनी कौन-सी भावना व्यक्त की है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश में अमर शहीदों की त्याग-बलिदान और गौरवमयी ऐतिहासिक गाथा प्रस्तुत करने वाली विशेषताओं को बतलाया गया है।
(ii) कवि ने शहीदों के प्रति अपनी श्रद्धाभावना व्यक्त किया है।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 8 देवताओं के अंचल में

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 8 देवताओं के अंचल में (अज्ञेय)

देवताओं के अंचल में अभ्यास-प्रश्न

देवताओं के अंचल में लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कुलू में भारी मेला कब लगता है? वहाँ कौन-कौन-सी चीजें विकने आती
उत्तर
कुलू में दशहरे के अवसर पर बड़ा भारी मेला लगता है। रंग-बिरंगे कम्बल, पटू-पट्टियाँ, पश्मीना, ‘चरू’ और अन्य प्रकार की खालें-रीछ की, मग की, बाघ की, कभी-कभी बर्फ के बाघ (स्नो-लेपड) की तरह-तरह के जूते, मोजे, सिली-सिलाई पोशाकें, टोपियाँ, बाँसुरी, बर्तन, पीतल और चाँदी के आभूषण, लकड़ी, हड़ी और सींग की कंधियाँ, देशी और विदेशी काँच, बिल्लौर और पत्थर के मनकों के हार-न जाने क्या-क्या चीजें वहाँ बिकने आती हैं।

प्रश्न 2.
‘हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ किसके द्वारा स्थापित किया गया और यह संस्था किस संबंध में कार्य करती है?
उत्तर
रूसी कलाकार रोयरिक द्वारा स्थापित हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट है। यह संस्था रोयरिक के भाई डॉक्टर जॉर्ज रोयरिक की देखरेख में हिमालय की भाषाओं, जातियों, लोक-साहित्य और वनस्पतियों के संबंध में अनुसंधान करती है। स्वयं रोयरिक भी अक्सर यहीं रहते हैं।

प्रश्न 3.
लेखक ने ऊनी कपड़ों के लिए बढ़िया लांड्री किसे कहा है?
उत्तर
कट्राई से आगे कलाथ है। उसमें गर्म पानी का कुंड है। उसमें गंधक और अन्य रसायन काफी मात्रा में होते हैं। इसे ही लेखक ने ऊनी कपड़ों के लिए बढ़िया लाँड्री कहा है।

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प्रश्न 4.
कुलू प्रदेश को ‘देवताओं का अंचल’ कहा है, क्यों? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
कुलू प्रदेश को ‘देवताओं का अंचल’ कहा है। यह इसलिए कि यहाँ सैकड़ों देवी-देवताओं और उनके मंदिर हैं। और साल में एक बार वे अपने-अपने रथों में बैठकर कुलू के रघुनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित राम की उपासना के लिए जाते हैं। इस विराट देव सम्मेलन के कारण भी लेखक ने कुल प्रदेश को देवताओं का अंचल कहा

प्रश्न 5.
लेखक ने ‘मनाली’ के नामकरण के पीछे क्या कारण बताया है?
उत्तर
लेखक ने ‘मनाली’ का नाम यहाँ अधिक संख्या में पाया जाने वाला मुनाल नामक पक्षी से सम्बन्धित बताया है। लेखक ने यह भी कहा है कि कुछ लोग मनाली को वहाँ के सेबों और नाशपाती के कारण ही जानते हैं।

देवताओं के अंचल में दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर ‘कुलू’ व ‘मनाली’ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर
कुलू को प्राचीन हिंदू-सभ्यता का हिण्डोला (झूला) कहा जा सकता है। यहाँ के हरेक कस्बे और गाँव के अपने-अपने देवता हैं। उनके अपने-अपने मंदिर और भक्त हैं। साल में एक बार वे सभी अपने-अपने रथों में बैठकर कुलू के रखनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित राम की उपासना के लिए जाते हैं। इसलिए कल प्रदेश को ‘देवताओं का अंचल’ (बली ऑफ दि गॉङ्स) कहते हैं। दशहरे के अवसर पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। उसमें अनेक प्रकार की जीवनोपयोगी वस्तुएँ बेची जाती हैं। कुलू-प्रांत में व्यास कुंड तथा व्यास मुनि, बशिष्ठ आदि ऋषि-मुनियों के स्थान हैं, पांडवों के मंदिर हैं. भीम की पत्नी हिडिंबा देवी भी पूजा पाती है, और सबसे बढ़कर महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वहाँ पर ‘मनु रिखि’ या मन भगवान का भी एक मंदिर है। शायद भारत में एकमात्र स्थान है, जहाँ मानवता का यह स्वयंभू आदिम प्रवर्तक मंदिर में प्रतिष्ठित हो और पूजा पाता हो।

मनाली का नामकरण यहाँ अधिक संख्या में पाया जानेवाला मुनाल नामक पक्षी के नाम पर हुआ है। कुछ लोग यहाँ के सेब और नाशपाती की श्रेष्ठता के कारण इसे जानते हैं। मनाली की दो बस्तियाँ हैं-एक तो बाहर से आकर बसे हुए लोगों द्वारा बनाए हए बंगलों और बाजार वाली चस्ती, जो दाना कहलाती है, और दूसरी उससे करीब मील भर ऊपर चलकर खास मनाली गाँव की। मोटर दाना तक जाती है। दाना से सड़क फिर व्यास नदी पार करके रोहतंग की जोत से होकर लाहौर को चली जाती है। इसी मार्ग पर मनाली से दो मील की दूरी पर वशिष्ठ नाम का गाँव है, जहाँ गरम पानी के कंड है। और वशिष्ठ मंदिर भी हैं। कहते हैं कि वशिष्ठ ऋषि यहीं तपस्या करते-करते पाषाण हो गए थे, पाषाण-मूर्ति वहाँ पूजी भी जाती हैं। यहाँ पानी में गंधक की मात्रा काफी है, और यह स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है।

प्रश्न 2.
‘कुलू’ प्राचीन हिंदू सभ्यता का गहबारा है।’ लेखक के इस कवन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘कुलू’ प्राचीन हिंदू सभ्यता का गहवारा है। लेखक के इस कथन का आशय यह है कि यहाँ के हरेक कस्बे और गाँव के अपने-अपने देवताओं के मंदिर हैं। वे साल में एक बार अपने रथ में बैठकर कुलू के रघुनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित राम की उपासना के लिए जाते हैं। इससे हिन्दू सभ्यता की अच्छी झलक मिलती है।

प्रश्न 3.
कोकसर के मार्ग में बर्फानी सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
कोकसर के मार्ग में पड़ने वाले बर्फीले सौंदर्य अद्भुत और बेजोड़ हैं। कुछ मीलों के क्षेत्रफल एक प्याला के समान बना हुआ दृश्य है। उसके चारों ओर बर्फ की ऊँची-ऊँची चोटियाँ हैं। उनके नीचे पहाड़ के खुले रूप हैं, जो काले दिखाई देते हैं। उस प्याले के बीच में बर्फ से ढका हुआ बहुत बड़ा मैदान है। उसे देखकर ऐसा लगता है, मानो अभिमान में आकर पहाड़ की इन ऊँची-ऊँची चोटियों ने अपने सिर और कटि-प्रदेश को ढक लिया है।

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प्रश्न 4.
कुलू और मनाली में कौन-कौन से दर्शनीय स्थल हैं तथा उनका क्या महत्त्व है?
उत्तर
कुलू में प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत रूप में दिखाई देता है। यहाँ अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। वे बड़े ही मनोरम हैं। यहाँ कट्राई सबसे सुंदर स्थान है। फैले हए धान के खेतों के बीच-बीच में सेब, नाशपाती, खुबानी, आड़ और आलचे के पेड़ मन को मोह लेते हैं। यहाँ के पुराने राजाओं के महल आदि अनेक दर्शनीय इमारतें और कुछ प्राचीन मंदिर हैं। मनाली का मुनाली पक्षी बहुत ही सुंदर होता है। मनाली से दो मील की दूरी पर वशिष्ठ गाँव में गरम पानी के कुंड हैं और वशिष्ठ मंदिर भी है। यहाँ के पानी में गंधक की मात्रा अधिक है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है।

प्रश्न 5.
कट्राई के सौंदर्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
कट्राई के सौंदर्य उसकी सड़क के हर मोड़ पर दिखाई देते हैं। एक ओर ऊँचे-ऊँचे चीड़ के जंगल हैं, तो दूसरी ओर फैली तराई में धान के खेत लहराते हुए दिखाई देते हैं। वे मानों मखमली आँगन हैं। इसी सड़क पर जगत सुख एक ऐसा गाँव है, जहाँ अनेक दर्शनीय पुराने मंदिर हैं।

देवताओं के अंचल में भाषा-अध्ययन

1. पाठ में कई ऐसे शब्द भी आए हैं जिनके एक से अधिक अर्थ मिल जाते हैं। जैसे-सोते (स्रोत, झरना) सोना (क्रिया) हार (पराजय, माला)।
निम्नलिखित शब्दों के एक से अधिक अर्थ बताइए
सोना, तीर, मत, अंबर, श्री, हरि।
उत्तर
शब्द – एक से अधिक अर्व
सोना – नींद में होना, स्वर्ण (एक बहुमूल्य धातु)
तीर – बाण, किनारा
मत – विचार, नहीं
अंबर – वस्त्र, आकाश
श्री. – शोभा, यश
हरि – विष्णु, सिंह।

2. वर्तनी शुद्ध कीजिए
स्रष्टि – सृष्टि
अनूमति – ………….
प्रवतर्क – …………..
प्रतीष्ठीत – ………….
दरशनीय – …………….
अभीमानी – …………..
पोषाक – ………….
सैलानि – …………….
उत्तर
अशुद्ध शब्द – शुद्ध शब्द
स्रष्टि – सृष्टि
अनुमति – अनुमति
प्रर्वतक – प्रवर्तक
प्रतीष्ठीत – प्रतिष्ठित
दरशनीय – दर्शनीय
अभीमानी – अभिमानी
पोषाक – पोशाक
सैलानि – सैलानी।

3. नीचे लिखे शब्दों में से मूल शब्द और प्रत्यय छाँटकर अलग-अलग कीजिए।
साहसिक, दर्शनीय, लड़कपन, सुंदरता, अभिमानी, दुकानदार, प्रतिष्ठित ।
उत्तर
मूल शब्द – प्रत्यय
साहस – ईक
दर्शन – ईय
लड़का – पन
सुन्दर – ता
अभिमान – ई
दुकान – दार
प्रतिष्ठा – इत

4. दिए हुए वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए :
1. जिसके बराबर कोई दूसरा न हो-अद्वितीय ……………….
2. जिसका वर्णन न किया जा सके………..
3. आकाश को छूने वाला………….
4. जिसका कोई आकार न हो….
5. दूसरों पर आश्रित रहने वाला…………
उत्तर

  1. जिसके बराबर कोई दूसरा न हो – अद्वितीय
  2. जिसका वर्णन न किया जा सके – अवर्णनीय
  3. आकाश को छूने वाला – गगनचुम्बी
  4. जिसका कोई आकार न हो – निराकार
  5. दूसरों पर आश्रित रहने वाला – पराश्रित

देवताओं के अंचल में योग्यता-विस्तार

1. इस लेखक के अतिरिक्त किसी अन्य हिन्दी के साहित्यकार द्वारा लिखे गए यात्रा-वृत्तांतों की सूची बनाइए।
2. आप भी किसी स्थान को देखने गए होंगे, उसका यात्रा-वृत्तांत अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

देवताओं के अंचल में परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कहाँ से देवताओं का अंचल आरंभ होता है?
उत्तर
मंडी से कुलू-प्रदेश तक देवताओं का अँचल आरंभ होता है।

प्रश्न 2.
मणिकर्ण क्या है?
उत्तर
मणिकर्ण तीर्थ-स्थान है। यहाँ गरम पानी के कई सोते हैं। उसकी उष्णता अलग-अलग है। कोई नहाने के लिए ठीक है, तो किसी में चावल उबाले जा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
कुलू-प्रांत की सबसे बढ़कर महत्त्वपूर्ण बात क्या है?
उत्तर
कुलू-प्रांत की सबसे बढ़कर महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वहाँ पर ‘मनु रिखि’ या मनु भगवान का भी एक मंदिर है। यह शायद भारत में एकमात्र ऐसा स्थान है, जहाँ मानवता यह स्वयंभू आदिम प्रवर्तक मंदिर में प्रतिष्ठित होकर पूजा पाता है।

देवताओं के अंचल में दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मंडी से कुलू-प्रदेश में कैसे जाना पड़ता है?
उत्तर
मंडी से कुलू-प्रदेश में जाने के लिए व्यास नदी को पार करना पड़ता है। व्यास नदी पर रस्सी के झूलना पुल है। उस पर लारी से जाना पड़ता है जो बहुत खतरनाक है। कोई अप्रिय घटना न घटे, इसके लिए यह प्रबंध किया गया है कि पुल का चौकीदार अपनी पीठ पर बड़े-बड़े अक्षरों में यह लिखी हई एक तख्ती टाँगे रहता है-‘चार मील रफ्तार। उसके पीछे-पीछे लारी चलती है। पुल के दोनों ओर चौकीदार पहरा देता रहता है। उसकी अनुमति के बिना कोई आर-पार नहीं जा सकता है।

प्रश्न 2.
रोहतंग मार्ग की क्या विशेषता है?
उत्तर
रोहतंग की जोत पर ही व्यास-कंड है। यहाँ से कुछ मील हटकर व्यास मुनि का स्थान है, जहाँ से व्यास नदी का उद्गम है। रोहतंग का मार्ग बहुत रमणीक है। व्यास नदी के वेग से किस तरह पहाड़ के पहाड़ कट गए हैं, वे भी देखने की चीज है। कहीं-कहीं तो नदी आठ-दस फुट चौड़ी दरार में चार-पाँच सौ फुट नीचे जाकर अदृश्य हो गई है, केवल स्वर सुनाई पड़ता है। इसका कारण यह है कि व्यास नदी तीव्र गति से नीचे उतरती है-अपने मार्ग के पहले पाँच मील में जितना नीचे उतर आती है, वह उतना अगले पचास मील में नहीं, और उसके बाद में पाँच सौ मील में नहीं।

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प्रश्न 3.
मनाली लौटकर आने पर लेखक ने क्या सोचा?
उत्तर
मनाली लौटकर आने पर लेखक ने एकांत में रहकर एक बड़ा-सा उपन्यास लिखने को सोचा। इससे पहले उसने अंग्रेजी में एक पूरा उपन्यास लिख भी डाला था, लेकिन जेल के चार वर्षों के अनुभवों ने उसे यह बता दिया था कि उसमें अभी लड़कपन है। अब उसने अपने नए अनुभवों के आधार पर परिवर्तन और परिष्कार कर उसे हिन्दी में लिखने को सोचा।

प्रश्न 4.
देवताओं के अंचल में’ यात्रा-वृत्तांत के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक है। यह भारत के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र ‘कुलू’ व मनाली की रचना ‘अरे यायावर रहेगा याद’ से उधत है। इसमें लेखक ने शहरी कोलाहल से दूर प्रकृति की गोद में बैठकर स्वास्थ्य लाभ लिया है। इसके साथ-साथ उपन्यास लेखन की इच्छा से वह देवभूमि ‘कुलू’ आता है। इस लेख में कुलू-मनाली के निवासियों की सहज धार्मिक आस्थाओं, रीति-रिवाजों और विभिन्न मनमोहक स्थलों के सौंदर्य एवं महत्त्व को लेखक ने चित्रित किया है। प्राकृतिक संपदा तथा स्थानीय उत्पादों का सजीव चित्रण इस यात्रा-वृत्तांत में अलौकिक अनुभूति कराता है। फलस्वरूप यह यात्रा-वृत्तांत न केवल हृदयस्पर्शी बन गया है, अपितु भाववर्द्धक भी। .

देवताओं के अंचल में लेखक-परिचय

प्रश्न
श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर-प्रदेश के देवरिया जिले के कसिया नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता पंडित हीरानंद शास्त्री पुरातत्त्व विभाग में थे। उनका तबादला एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता रहा। उससे अज्ञेय की शिक्षा भी एक स्थान से दूसरे पर होती रही। आरंभिक शिक्षा समाप्त करके उन्होंने लाहौर के फॉरसन कॉलेज से बी-एस.सी की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद अंग्रेजी विषय लेकर एम.ए. में प्रवेश लिया, लेकिन उसी समय क्रांतिकारियों के संपर्क में आने के कारण उनकी पढ़ाई बीच में ही लटककर रह गई। क्रांतिकारियों के संपर्क में आने के कारण वे कई बार गिरफ्तार होकर जेल गए और रिहा हुए। वे 1936 में ‘सैनिक’ के संपादक मंडल में काम करने लगे। इसके बाद ‘विशाल भारत’ के संपादक मंडल में कलकत्ता रहे। 1943 से 1946 तक वे सेना में रहे। 1947 में ‘प्रतीक’ नामक पत्र निकाला। 1950 में आकाशवाणी दिल्ली में नौकरी की। 1955 से 1960 तक अनेक देशों की यात्रा की। 1987 में उनका निधन हो गया।

रचनाएँ-‘अज्ञेय’ की निम्नलिखित रचनाएँ हैंकाव्य-संग्रह-‘आँगन के पार द्वार’,’कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सागर-मुद्रा’ आदि।

उपन्यास-‘शेखर एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’ और ‘अपने-अपने अजनबी।’ कहानी-संग्रह-‘शरणार्थी’, ‘कोठरी की बात’ आदि।

निबंध-डायरी और यात्रा-‘एक बूँद सहसा उछली’, ‘अरे यायावर रहेगा याद’, ‘लिखी कागज कोरे’, ‘भवन्ती’ आदि।

महत्त्व-चूँकि ‘अज्ञेय’ बहुमुखी प्रतिभासंपन्न रचनाकार रहे। इसलिए उनका रचना-संसार भी विविध है। वे गद्य और काव्य दोनों ही क्षेत्र में युग-प्रवर्तक के रूप में याद किए जाते रहेंगे। ‘तार-सप्तक’ कविता संकलनों के संपादक के रूप में वे युग-युग तक अविस्मरणीय रहेंगे।

देवताओं के अंचल में यात्रा-वृत्तांत का सारांश

प्रश्न
‘अज्ञेय’ द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत ‘देवताओं के आँचल में’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
‘अज्ञेय’ द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत ‘देवताओं के आँचल में एक रोचक यात्रा-वृत्तांत है। इसमें कुलू से मनाली तक की यात्रा का उल्लेख किया गया है। इस यात्रा-वृत्तांत का सारांश इस प्रकार है मंडी से कुलू में प्रवेश को देवताओं का आँचल कहा जाता है। इसमें जाने के लिए व्यास नदी को रस्सी के झूलन पुल से पार करने के लिए लारी से जाना वास्तव में बहत खतरनाक होता है। इसलिए चार मील की ही रफ्तार से लारी को चलाने के लिए, का संकेत लिखा हुआ एक आदमी लारी से आगे-आगे चलता है। पुल के चौकीदार की अनुमति से कोई आर-पार आ-जा सकता है।

अपने लोगों के साथ लेखक दस बजे के आस-पास लोट पहुँचकर मोटर में बैठकर शिमला के लिए रवाना हो जाता है। वह व्यास नदी के किनारे-किनारे होते हुए कुलू बारह बजे पहुँच गया। कुलू में अनेक प्राचीन हिन्द-सभ्यता का झला है। यहाँ के हरेक कस्बे और गाँव के अपने-अपने देवता हैं। इस प्रकार के सैकड़ों देवी-देवताओं के मंदिरों और इस विराट देव-सम्मेलन के कारण ही कुलू प्रदेश का नाम ‘देवताओं का अंचल’ (वैली ऑफ दि गाइस) पड़ा है। दशहरे के दिन आस-पास के लगभग हजारों देवी-देवताओं को रथ में बैठाकर यहाँ लाया जाता है। उस दिन विजयी राम का उत्सव होता है। कुलू प्रदेश में व्यास-कुंड, व्यास मुनि, वशिष्ठ आदि ऋषि-मुनियों के स्थान और पाण्डवों के मंदिर हैं। यहाँ भीम की पत्नी हिडिंबा देवी की भी पूजा होती है। सबसे रोचक बात यह है कि यहाँ मानवता का आदिम प्रवर्तक स्वयंभ (मन) की भी पूजा की जाती है।

दशहरे के अवसर पर यहाँ बहुत बड़ा मेले का आयोजन किया जाता है। फलस्वरूप तरह-तरह की दुकानें और खरीददार यहाँ आते हैं। इस तरह यहाँ एक से एक महँगी वस्तुओं की खरीद-बिक्री होती है। इसके साथ ही यहाँ अनेक प्रकार के खेल-तमाशे, गाने-बजाने और सजावट होती है। लेखक यहाँ अपने साथियों के साथ दो घंटे ठहरकर और भोजन करके लारी में बैठकर आगे चला गया। व्यास नदी के कटाव से कट्राई सबसे सुन्दर स्थान है। यहाँ की घाटी अधिक चौड़ी है। ऊपर चढ़कर देखने से धान के खेतों के बीच-बीच में सेब, नाशपाती, खूबानी, आड़ और आलूचे के पेड़ मन को मोह लेते हैं। यहाँ मछली का शिकार बहुत अच्छा होता है। कट्राई से दो मील की ऊँचाई पर कुलू राज्य की पुरानी राजधानी है।

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यहाँ अनेक दर्शनीय इमारतें-मंदिर हैं। यहाँ रूसी कलाकार रोपरिक द्वारा स्थापित ‘हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ है, जहाँ पर हिमालय की भाषाओं. जातियों. लोक-साहित्य और वनस्पतियों से संबंधित रिसर्च होते हैं। कट्राई से मनाली तक का पुराना रास्ता नगर और जगत सुख होकर जाता था लेकिन अब नगर उससे अलग हो गया है। मनाली से नगर वाली सड़क कच्ची है, लेकिन लम्बी है। इस पर फैला प्राकृतिक दृश्य मन को मोह लेता है। इसी सड़क पर जगत सुख गाँव में अनेक दर्शनीय हिन्दू युग के कलाकारों से निर्मित प्राचीन मंदिर हैं। कटाई से आगे कलाथ में गर्म पानी का एक ऐसा कुंड है, जिसमें गंधक और अन्य रसायन की अधिक मात्रा होती है। यहाँ पर पहाड़ी औरतें खासतौर पर अपने कपड़े धोती हैं।

ऊनी कपड़ों के लिए यहाँ बहुत अच्छी लांडी है। मनाली या मुनाली का नाम यहाँ पर अधिक संख्या में पाया जाने वाला ‘मुनाल’ नामक अधिक सुन्दर पक्षी के नाम पर रखा गया है। यहाँ के कुछ सेबों और नाशपाती के अधिकता के कारण मनाली को जानते हैं। मनाली की दो बस्तियाँ हैं-एक बाहर से आकर बसे हुए लोगों के बंगलों और बाजारवाली बस्ती और दूसरी-उससे मील भर ऊपर बसी खास मनाली गौण की बस्ती जो मोटर दाना तक जाती है। फिर वहाँ से व्यास नदी को पार करके रोहतंग की जोत से लाहौर को चली जाती है। इसी मार्ग पर मनाली से दो मील दूर वसिष्ठ नामक गाँव और मंदिर है। रोहतंग की जोत पर व्यास कुंड है। यहीं से व्यास नदी निकलती है। रोहतंग की जोत के दूसरी पार कोकसर नामक बर्फ की सुन्दरता में बेजोड़ है। मनाली से आकर लेखक की स्वास्थ्य-लाभ करने के बाद सबसे बड़ी आकांक्षा एक बड़ा-सा उपन्यास लिखने की थी। दूसरे दिन सुबह उसने स्वयं को पाया कि वह भी देवताओं का समकक्षी होकर स्रष्टा हो गया है। वह लिखने लगा।

देवताओं के अंचल में संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण व विषय-वस्त से संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सुभीते के लिहाज से चाहे जैसा हो, सौंदर्य-रक्षा के लिए एक बहुत अच्छा हुआ है। मनाली से नगरवाली कच्ची सड़क उस तरफ की सबसे लंबी सैर है। ऊँच-नीच भी बहुत अधिक नहीं है और दृश्य तो हर एक मोड़ पर ऐसा सुंदर दिखता है कि कहा नहीं जा सकता। एक ओर उठते हुए चीड़ के जंगल की गजियाँ, दूसरी ओर खुली हुई तराई में लहराते हुए धन-खेतों के मखमली आँगन-न जाने किस रहस्यमय की नीरव पद-चाप हर समय उसमें एक हिलोस्-सी उठाती रहती हैं।

शब्दार्थ-सुभीते-सुविधा। लिहाज-दृष्टिकोण। सैर-दूरी, भ्रमण। नीरव-शान्त। पद-चाप-पैर की ध्वनि। हिलोर-उमंग।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती-हिंदी सामान्य’ में संकलित तथा सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यावन’ ‘अज्ञेय’ लिखित यात्रा-वृत्तांत ‘देवताओं के आँचल में से है। इसमें लेखक ने कट्राई से मनाली तक की सुंदरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या-कट्राई से मनाली तक का प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोह लेता है। यहाँ तक आने के लिए पूर्वापेक्षा यातायात की बहुत बड़ी सुविधा हो गई है। जो कुछ सुविधा इस समय है, और जैसे भी हो, कोई यहाँ पहुँचता है, तो वह यही पाता है कि इस सुविधा से प्राकृतिक सुंदरता की बहुत बड़ी रक्षा हुई है। इस दृष्टि से यह प्रशंसनीय कदम कहा जा सकता है। यहाँ तक आने का यह पता लग जाता है। कट्राई से मनाली और फिर मनाली से नगर जानेवाली सड़क पक्की नहीं है, अपितु वह कच्ची है। उस ओर जानेवाली वही सबसे लंबी सड़क है। अधिकतर वह समतल है। कहीं-कहीं वह ऊँची-नीची अवश्य है। उसका हरेक मोड़ अपनी सुंदरता से आने-जानेवालों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। सचमुच उसका वर्णन करना असंभव-सा लगता है। उस पर एक ओर ऊँचे-ऊँचे चीड़ के जंगल हैं तो दूसरी ओर तराई है। उसमें धान के खेत ऐसे दिखाई देते हैं, मानो वे मखमल के आँगन की तरह फैले हुए हैं। उन पर फैली हुई शांति एक रहस्यमयी-लगती है। उस पर पैरों की ध्वनि मानों रह-रहकर लहरों से उठ रहो है और गिर रही है।

विशेष-

  1. प्राकृतिक सौंदर्य का आकर्षक चित्र है।
  2. शैली चित्रमयी है।
  3. भाषा काव्यात्मक है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) सौंदर्य-रक्षा के लिए क्या बहुत अच्छा हुआ है?
(ii) मनाली से नगरवाली सड़क कैसी है?
उत्तर
(i) सौंदर्य-रक्षा के लिए कटाई से मनाली तक का पुराना रास्ता नया हो गया है। अब इस पर मोटर चलने लगी है।
(ii) मनाली से नगरवाली सड़क कच्ची है। उस ओर की वह सबसे लंबी सड़क है। वह बहुत ऊँची नहीं है और बहुत नीची भी नहीं है।

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2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) किसके मोड़ पर सुंदर-सुंदर द्रश्य दिखाई देते हैं?
(ii) धान के खेत कैसे लगते हैं?
उत्तर
(i) मनाली से नगरवाली सड़क के हर मोड़ पर सुंदर-सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं।
(ii) धान के खेत मखमली आँगन की तरह एक रहस्यमयी ऐसी शांति जैसे दिखाई देते हैं। उनसे होने वाली धीमी ध्वनि लहरों के उठने-गिरने की तरह सुनाई देती

2. रोहतंग की जोत के दूसरी पार कोकसर पड़ाव है। यहाँ जाते हुए बर्फ के सौंदर्य का जो दृश्य दिखता है, मैंने दूसरा नहीं देखा। उसका न वर्णन हो सकता है, न चित्र खिंच सकता है। कुछ मीलों के दायरे का एक प्याला-सा बना हुआ है, जिसके सब ओर ऊँची-ऊँची हिमावृत्त चोटियाँ, उससे कुछ नीचे पहाड़ों के नंगे काले अंग, और प्याले के बीच में फिर बर्फ से छाया हुआ मैदान मानो अभिमानी पर्वत सरदारों ने. अपना शीश और कटि प्रदेश को ढक लिया है, लेकिन छाती दर्प से खोल रखी है… इस स्थान से तीन नदियों का उद्गम है, ऊपर से व्यास, मध्य से चन्द्रा और भागा, जो आगे चलकर मिल जाती हैं। लेकिन रोहतंग की यात्रा का और कुलू प्रदेश के अपने दूसरे विचित्र अनुभवों का वर्णन अलग लेख माँगता है।

शब्दार्च-हिमावृत्त-बर्फ से ढकी हुई। कटि-प्रदेश-नीचे का भाग। दर्प-गर्व, अहंकार । उद्गम-उत्पत्ति स्थान ।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें लेखक ने कोकसर पड़ाव से आगे बर्फीले सौंदर्य का चित्रण करते हुए कहा है कि

व्याख्या-रोहतंग की जोत के दूसरी तरफ कोकसर का पड़ाव पड़ता है, जो अपनी खास विशेषता रखता है। यहाँ से आगे बढ़ने पर बर्फ का फैला हुआ रूप अपनी सुंदरता से आने-जाने वालों के मन को मोह लेता है। लेखक का यह मानना उसने ऐसा कोई और मोहक दृश्य और कहीं नहीं देखा है। यही नहीं वह उसका वर्णन भी नहीं कर सकता है। शायद वह उसका पूरा-पूरा चित्र भी नहीं खींच सकता है। उसने बड़े ध्यान से देखा कि एक प्याले की कोई आकृति लगभग कुछ मीलों का विस्तार लिए हुए है। उसके चारों ओर केवल बर्फ से ढकी हुई चोटियाँ हैं। उन चोटियों के नीचे काले रंग का फैले हुए पहाड़ के छोटे-बड़े रूप हैं। मीलों तक फैले हुएय उस प्याले-सी आकृति के बीच में और कुछ नहीं है। केवल बर्फ-ही-बर्फ है। वह बहुत बड़ा विस्तार लिए हुए है। उसे देखने से ऐसा लगता है मानो अपने बड़प्पन और उच्चता के अभिमान को लिए हुए पर्वतों का एक एक ऊँचे-ऊँचे भाग स्वयं को छिपा लिये हैं। फिर भी वे अपने विस्तार रूपी छाती को दर्पपूर्वक फैला रखने में अपने-आपको बडा दिखाने का प्रदर्शन कर रहे हैं। इस स्थान के बारे में यह कहा जाता है कि इससे व्यास, चन्द्रा और भागा ये तीन नदियाँ निकलती हैं। वे इसके क्रमशः ऊपर और मध्य भाग से निकलती तो हैं, लेकिन आगे चलकर परस्पर मिल भी जाती हैं। लेखक के अनुसार यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि अगर रोहतंग और कुलू प्रदेश की यात्रा के अनुभवों का उल्लेख अपेक्षित और समुचित रूप में करना है, तो उसके लिए अलग से लेख लिखना पड़ेगा।

विशेष

  1. लेखक की कोकसर पड़ाव से आगे के प्राकृतिक सुन्दरता के प्रति दृष्टि आकर्षक है।
  2. संपूर्ण उल्लेख रोचक और ज्ञानवर्द्धक है।
  3. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  4. शैली चित्रमयी है।

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1. गद्यांश पर आधारित अर्यग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) कोकसर पड़ाव से आगे कौन-सा अद्भुत दृश्य दिखाई देता है?
(ii) प्याला-सा बने दृश्य की क्या विशेषता है?
उत्तर
(i) कोकसर पड़ाव से आगे बर्फ का अत्यधिक आकर्षक दृश्य दिखाई देता
(ii) प्याला-सा बने दृश्य की विशेषता है कि वह कुछ मीलों के दायरे में फैला हुआ है। उसके चारों ओर ऊँची-ऊँची बर्फीली चोटियाँ हैं।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) बर्फ के मैदान से कौन-कौन नदियाँ निकलती हैं?
(ii) लेखक ने किसके लिए अलग लेख लिखने का सुझाव दिया है?
उत्तर
(i) बर्फ के मैदान से व्यास, चन्द्रा, और भागा नदियाँ निकलती हैं।
(ii) लेखक ने रोहतंग और कुलू प्रदेश की यात्रा के विचित्र अनुभवों के लिए अलग लेख लिखने का सुझाव दिया है।

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MP Board Class 10th Special Hindi निबन्ध-लेखन

MP Board Class 10th Special Hindi निबन्ध-लेखन

निबन्ध-रचना विषयक महत्त्वपूर्ण बातें-

  1. जो निबन्ध परीक्षा में पूछा गया हो, उस पर चिन्तन-मनन करके ही लेखनी चलानी चाहिए।
  2. निबन्ध में यत्र-तत्र कविता,सूक्ति तथा विद्वानों के उद्धरण प्रस्तुत करना परमावश्यक है। इससे निबन्ध के सौन्दर्य में वृद्धि होती है।
  3. प्रस्तावना तथा उपसंहार का प्रभावोत्पादक एवं रोचक होना नितान्त आवश्यक है।
  4. निबन्ध में विचार-श्रृंखला क्रमबद्ध होनी चाहिए।
  5. विस्तार के लोभ का संवरण करना चाहिए। एक सुव्यवस्थित ढंग से लिखा गया निबन्ध ही आदर्श होता है।
  6. विषय से सम्बन्धित सामग्री सँजोकर ही निबन्ध लिखना चाहिए।
  7. पत्र-पत्रिकाओं तथा ग्रन्थों में से नवीन विचारों को एकत्र करना चाहिए।
  8. समग्र विषय को पैराग्राफों (अनुच्छेदों) में विभक्त कर लेना चाहिए।
  9. भाषा शुद्ध तथा शैली आकर्षक एवं लेख सुन्दर होना चाहिए।
  10. विराम-चिह्नों का यथा-स्थान समुचित प्रयोग करना चाहिए।

1. विज्ञान के बढ़ते चरण [2016]
अथवा
विज्ञान अभिशाप अथवा वरदान
अथवा
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी [2011, 17]
अथवा
विज्ञान और मानव [2012]
अथवा
विज्ञान का जीवन पर प्रभाव [2015]
अथवा
विज्ञान की देन [2018]

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एमसन नामक विद्वान के शब्दों में-
“आज हम विज्ञान के युग में रह रहे हैं और विज्ञान के बिना मानव के अस्तित्व की कल्पना असम्भव प्रतीत होती है।”

“दर तारों से किया सम्पर्क हमने।
पर पड़ोसी से न हम हँस-बोल पाये।
सरल जीवन से रहा न वास्ता
दुश्वारियों को दौड़कर हम मोल लाए॥”

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • विज्ञान वरदान के रूप में,
  • विज्ञान अभिशाप के रूप में,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-आज विज्ञान का युग है। चहुंओर विज्ञान की दुन्दभी बज रही है। मानव-जीवन से सम्बन्धित ऐसा कोई भी पहलू नहीं है,जहाँ विज्ञान का प्रवेश न हो। यह विज्ञान की प्रगति विगत् दो सौ वर्षों में हुई है। पुरातन काल में भी वैज्ञानिक उपलब्धियों का उल्लेख है, परन्तु इस सन्दर्भ में अभी तक प्रामाणिक जानकारी नहीं है।

विज्ञान के क्षेत्र में नित्य नवीन आविष्कार हो रहे हैं। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप दुनिया का मानचित्र ही बदल गया है। आज मानव ने प्रकृति को अपनी क्रीत दासी बना लिया है। वह समय अतीत के गर्भ में विलीन हो गया जब मानव दुनिया की हर वस्तु को अचम्भे भरी दृष्टि से निहारकर उसकी उपासना किया करता था। आज वे ही सम्पूर्ण वस्तुएँ उसके जीवन में पानी में नमक की भाँति घुल-मिल गई हैं।

विज्ञान वरदान के रूप में विज्ञान ने मानव जीवन को सुखी तथा सम्पन्न बना दिया है।

उदाहरणार्थ-
चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान एक वरदान है। एक्स-रे द्वारा आन्तरिक फोटो लिया जाता है। इससे घातक बीमारियों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। टी.बी. की बीमारी को अतीत की बात बना दिया है। कैंसर पर भी नित नये शोध चल रहे हैं। अब मानव की आयु में भी औसतन वृद्धि हुई है। आपरेशन के द्वारा न जाने कितने इन्सानों को नई जिन्दगी जीने का मौका मिला है।

उद्योग एवं विज्ञान-प्राचीनकाल में जिन कार्यों को सौ आदमी सम्पन्न कर पाते थे, आज विज्ञान द्वारा आविष्कृत मशीनों के माध्यम से उन्हें एक व्यक्ति ही पूरा कर लेता है। मशीनों से उत्पादन की क्षमता कई गुनी बढ़ गई है।

आवागमन के क्षेत्र में विज्ञान ने आवागमन के साधनों को भी सुलभ बना दिया है। प्राचीनकाल में यात्राएँ कष्ट तथा भय का प्रतीक थीं लेकिन आज,रेल,मोटर तथा वायुयानों द्वारा मनुष्य दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक आसानी से पहुँच सकता है।

खाद्यान्न एवं विज्ञान-खाद्यान्न के क्षेत्र में भी विज्ञान ने अभूतपूर्व क्रान्ति-सी उपस्थित कर दी है। अब किसानों को वर्षा-ऋतु पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। ट्यूबवैल खेतों को हरा-भरा कर रहे हैं। वैज्ञानिक खाद तथा बीजों से कई गुना अन्न उत्पादन किया जा रहा है। ट्रैक्टर खेतों को जोतने में प्रयुक्त हो रहे हैं। रासायनिक खाद उत्पादन में बहुत सहायक है। कीटनाशक दवाएँ फसलों को नष्ट होने से बचा रही हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में विज्ञान कम्प्यूटर द्वारा आज शिक्षा दी जा रही है। इससे अनेक स्थानों पर एक ही समय में आसानी से शिक्षा दी जा सकती है। चित्रपट पर प्रदर्शित प्राकृतिक दृश्य, राजनीतिक वार्ता तथा शैक्षणिक कार्यक्रम शिक्षा जगत में बहुत लाभदायी सिद्ध हो रहे हैं।

भवन निर्माण के क्षेत्र में बहुमंजिली इमारतें आज विज्ञान के बल पर ही बन रही हैं। बुलडोजर, क्रेन एवं खनन यन्त्र इस क्षेत्र में बहुत सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

संचार के क्षेत्र में संचार क्षेत्र में भी विज्ञान की अभूतपूर्व देन है। टेलीविजन, टेलीफोन तथा टेलीग्राम इस क्षेत्र में विशेष रूप में उल्लेखनीय हैं।

कपड़ों के क्षेत्र में आज के मानव का पुराने वस्त्रों से मोह भंग हो चुका है। अब वह रेशमी तथा ऊनी वस्त्रों के स्थान पर टेरालीन,टेरीवूल तथा नायलॉन के वस्त्र धारण करने में गौरव का अनुभव कर रहा है। वस्त्र निर्माण के लिए मिलें स्थापित हैं। सिलाई के लिए मशीनें आविष्कृत हैं।

मनोरंजन के क्षेत्र में विज्ञान ने मनोरंजन के क्षेत्र में टेलीविजन, रेडियो, चलचित्र एवं ग्रामोफोन आदि साधन प्रदान किये हैं।

विज्ञान अभिशाप के रूप में विज्ञान ने जहाँ मानव को अपरिमित सुख साधन जुटाये हैं, वहाँ उससे मानव को हानि भी पहुंची है। आज मानव विज्ञान के द्वारा आविष्कृत साधनों से लाभ उठाकर आलसी बन गया है। जिस काम को सौ मनुष्य करते थे, आज वैज्ञानिक मशीनों के माध्यम से एक आदमी पूरा कर लेता है। इस प्रकार विज्ञान ने एक आदमी को रोटी देकर निन्यानवे इन्सानों के पेट पर लात मार दी है। हाइड्रोजन बम तथा जहरीली गैसें मानव को मौत की गोद में सलाने के लिए आतर हैं।

आज वैज्ञानिक आविष्कारों की विनाशलीला की गाथा जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी नगरों के खण्डहर दुहरा रहे हैं। विज्ञान के बसन्त के पीछे पतझड़ की काली छाया भी मँडरा रही है। आज मानव विलासी हो गया है। विज्ञान ने वातावरण को प्रदूषण युक्त कर दिया है। वायुयान, मोटर तथा स्कूटर उसे बहरा बना रहे हैं। कारखानों से निकलने वाला गंदा जल पानी को विषैला बना रहा है। आज इन्सान की जिन्दगी बहुत ही सस्ती हो गई है।

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उपसंहार-परन्तु एक बात ध्यान देने योग्य है कि विज्ञान स्वयं में शक्ति नहीं है। वह मानव के हाथ में आकर शक्ति प्राप्त करता है। अब यह मानव पर निर्भर करता है कि वह विज्ञान का दुरुपयोग करे अथवा सदुपयोग। विष डॉक्टर के हाथ में पहुँचकर जीवनदायक बनता है। हत्यारे के हाथ में पहुँचकर जानलेवा बनता है। यही बात विज्ञान पर लागू होती है। महत्त्वाकांक्षी तथा नरपिशाच उस विज्ञान का दुरुपयोग करते हैं। मानवतावादी उससे जन-जीवन को उल्लासमय बनाते हैं। हमें अपनी महत्त्वाकांक्षा पर अंकुश लगाना होगा। विज्ञान को स्वामी न मानकर दास मानना होगा तभी मानव विश्व सुख तथा आनन्द के झूले में बैठकर अपरिमित सुख तथा शान्ति का अनुभव करेगा-

“विध्वंस की सोचे नहीं निर्माण की गति और दें
विज्ञान के उत्पाद से सुख स्वयं लें, औरों को दें।”

2. वन-महोत्सव
अथवा
वन संरक्षण [2016]
अथवा
वृक्षारोपण एवं मानव [2013]

यदि वृक्ष हैं तो जीवन है, जीवन है तो इन्सान है।
आने वाली सन्तति की, वृक्षों से ही पहचान है।।

“वृक्ष मानव के लगभग सबसे अधिक विश्वस्त मित्र हैं और जो देश अपने भविष्य को सँवारना सुधारना चाहता है, उसे चाहिए कि वह अपने वनों का अच्छी प्रकार ध्यान रखे।”

-इन्दिरा गाँधी

रूपरेखा [2015, 17, 18]-

  • प्रस्तावना,
  • भारतीय संस्कृति एवं वन,
  • वनों के विनाश का दुष्परिणाम,
  • वृक्षों से लाभ,
  • वन संरक्षण की जरूरत,
  • वन-महोत्सव आयोजन,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-भारत प्रकृति का पालना है। यहाँ के हरे-भरे वृक्ष धरती की शोभा में चार चाँद लगाते हैं। दुर्भाग्यवश आज के वातावरण में लाभ अर्जित करने तथा भवन निर्माण करने के नाम तथा अतिवृष्टि वनों के संरक्षण से ही रुक सकती है। वन नदियों को सीमा में बाँधे रहते हैं। जंगली जीव-जन्तुओं तथा पक्षियों को अभयदान देकर मातृवत् पालन-पोषण करते हैं। अपनी हरियाली से मानव मन को भी हरा-भरा तथा प्रफुल्लित करते हैं।

वन-महोत्सव आयोजन-वृक्षों की इसी उपादेयता को देखकर वन-महोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया गया। सन् 1950 में अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने का आयोजन प्रारम्भ किया गया। जनता इसमें अधिक-से-अधिक सहभागी बने, इस उद्देश्य से इसका नाम वन-महोत्सव निर्धारित किया गया। वन-महोत्सव जुलाई मास में सम्पन्न किया जाता है। इसके पीछे यही भावना जुड़ी है कि इन्सान वृक्षों की महत्ता से परिचित होकर उनका अधिक-से-अधिक रोपण करे। साथ ही जन-मानस इतना जाग्रत हो जाय कि वह वृक्षों की अपने पुत्रवत् देखभाल करे।

महाभारत में तो वृक्षों को जीवन नाम से सम्बोधित किया गया है। मानव जीवन के समस्त सुख वनों में ही निहित हैं। इसी भावना से ही प्रेरित होकर मनीषी वनों की कन्दराओं तथा गुफाओं में जाकर तप करते थे।

आज हमारी राष्ट्रीय सरकार भी इस दिशा में सकारात्मक कदम उठा रही है। समस्त देश में वृक्षारोपण का कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है।

उपसंहार-यह बात अपने स्थान पर सही है कि वन-महोत्सव के फलस्वरूप वृक्ष लगाने के सम्बन्ध में लोगों के मन-मानस में नई चेतना का संचार हुआ है, परन्तु अभी हमें इस आयोजन पर विराम नहीं लगाना है। वन-महोत्सव के द्वारा अभी जितने वृक्ष लगाये गये हैं, वे भारत के विशाल भू-भाग को देखते हुए अपेक्षाकृत कम हैं। अभी इस दिशा में निरन्तर प्रयास की महती आवश्यकता है। वृक्ष हमसे कुछ चाहते नहीं हैं। वह प्रतिपल हमें छाया, फल, पुष्प प्रदान कर जीवन में सरसता तथा आनन्द का संचार करते हैं। हमें उनका आभारी होना चाहिए। वृक्षों से परोपकार की शिक्षा ग्रहण करके उसे स्वयं के जीवन में उतारना चाहिए। इसी में हमारा तथा जन-सामान्य का कल्याण निहित है

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“धुंध प्रदूषण की छायी है, उसको दूर भगाओ।
पर्यावरण शुद्ध करने को दस-दस वृक्ष लगाओ।”

3. जीवन में खेलों का महत्त्व [2009, 12, 15, 17, 18]
अथवा
खेल : जीवन के लिए आवश्यक [2016]

“खेल जीवन खेल उसमें जीत जाना चाहता हूँ।
मीत मैं तो सिन्धु के उस पार जाना चाहता हूँ॥”

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • व्यस्त जीवन एवं खेल,
  • मन तथा दिमाग पर खेल का प्रभाव,
  • खेलों की महत्ता,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-जीवन संघर्षमय है, इस संघर्ष में उसको ही मुक्ति मिल सकती है, जो सक्षम एवं सशक्त हो। सशक्त, पुष्ट तथा बलवान बनने का एकमात्र साधन खेल ही है। खेलों से रक्त परिभ्रमण उचित मात्रा में होता है। शरीर में स्फूर्ति जाग्रत होती है। अतः शरीर एवं मस्तिष्क के विकास के लिए खेल नितान्त आवश्यक है।

व्यस्त जीवन एवं खेल-आज मानव का जीवन इतना व्यस्त है कि वह सुबह से लेकर शाम तक किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहता है। रोजी-रोटी की समस्या उसे प्रतिपल विकल बनाये रहती है। वह इसी उधेड़-बुन में रात-दिन घुलता रहता है। चिन्ता तथा आवश्यकता से अधिक श्रम उसे कमजोर बना देता है। ऐसी दशा में पुनः शक्ति प्राप्त करने के लिए किसी न किसी प्रकार का खेल अथवा व्यायाम अपेक्षित है।

पर इन हरे-भरे वृक्षों को निर्दयतापूर्वक काटा जा रहा है। इन सभी बातों को दृष्टि में रखकर वृक्षारोपण कार्यक्रम या वन-महोत्सव चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य धरती की हरियाली को पुनः लौटाना है। वृक्षों के लाभ अनगिनत हैं। ये धरती की शोभा हैं। वृक्ष मानव के चिर सहचर हैं। देवताओं के निवास-स्थल हैं तथा प्राणवायु के दाता हैं।

भारतीय संस्कृति एवं वन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता वनों से गहरे रूप में जुड़ी हुई है। हमारे ऋषियों.दार्शनिकों तथा चिन्तकों ने शहर एवं ग्रामों के कोलाहल से दर जाकर वनों की गोद में ही अनेक अमूल्य जीवन नियमों की खोज की। ज्ञान-विज्ञान के नये सिद्धान्त खोजे। सरिताओं के किनारे बैठकर तपस्या की। वेद-मन्त्रों से वातावरण को गुंजित एवं मुखरित किया। तत्कालिक युग में शिक्षा के केन्द्र गुरुकुल विद्यालय वनों की गोद में ही स्थित थे। वृक्षों की छाया के नीचे बैठकर लोग एक अनिर्वचनीय शान्ति का अनुभव करते थे। वृक्ष हमें मूक रूप में परोपकार का पाठ पढ़ाते हैं। उत्सर्ग की शिक्षा देते हैं। नैतिक शिक्षा के रूप में आशा एवं धीरज का पाठ पढ़ाते हैं।

वनों के विनाश का दुष्परिणाम-आज जनसंख्या सुरसा के मुँह की तरह बढ़ रही है। मानवों को आवास की सुविधा प्रदान करने के लिए वनों को बेरहमी से उजाड़ा जा रहा है। कलकारखानों को बनाने.रेल-मार्गों को बनाने के लिए जगह की जरूरत पडी। इसको पूरा करने के लिए वनों पर ही कुठाराघात हुआ। कल-कारखानों को कच्चे माल की आपूर्ति के लिए भी वन-सम्पदा का बुरी तरह से विनाश किया गया।

वृक्षों के काटने से भूमि का कटाव बढ़ रहा है। वर्षा भी समय पर नहीं हो रही है। रेगिस्तानों में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी अवलोकनीय है। जलवायु भी गर्म तथा पीड़ादायक हो गई है। धरती की उपजाऊ शक्ति में ह्रास हुआ है। भूकम्प आये दिन आते रहते हैं। गर्मी के प्रकोप से मानव का जीना भी दूभर हो गया है।

वृक्षों से लाभ-

  • वृक्ष हरियाली के भण्डार हैं। धरती की शोभा हैं।
  • स्वास्थ्य-वर्द्धक फल प्रदान करते हैं।
  • गोंद, कत्था, सुपाड़ी,नारियल तथा अन्य जीवनोपयोगी सामग्री प्रदान करते हैं।
  • वर्षा को नियन्त्रित करते हैं।
  • उद्योगों के हेतु कच्चा माल वृक्षों से ही प्राप्त होता है।
  • धरती को उपजाऊ बनाते हैं।
  • उपासना के लिए फल तथा फूल देते हैं।
  • भवन-निर्माण की लकड़ी प्रदान करते हैं।
  • वायुमण्डल को संतुलित करते हैं।
  • पशुओं को चारा प्रदान करते हैं।
  • भूमि-कटाव को रोकते हैं।
  • शान्ति तथा मन बहलाने के साधन भी हैं।
  • आध्यात्मिक विकास के सोपान हैं।
  • देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने वाले हैं।
  • हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की अमूल्य धरोहर को सहेज कर रखने वाले हैं।
  • प्राणियों के लिए शुद्ध वायु देते हैं।
  • औषधियों के स्रोत हैं।

वन संरक्षण की जरूरत-आज प्राकृतिक, दैवीय एवं अन्य संकटों से बचने के लिए वन-संरक्षण की महती आवश्यकता है। वन संरक्षण से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। बाढ़,अकाल

मन तथा दिमाग पर खेल का प्रभाव-खेल का मन तथा दिमाग से घनिष्ठ सम्बन्ध है। खेल के मैदान में उतरने पर मन प्रसन्नता से भर उठता है। दिमाग सक्रिय तथा प्रभा सम्पन्न होता है। मानव यदि खेल के मैदान में नहीं उतरे तो वह दैनिक क्रियाकलापों को पूरा करने के पश्चात् प्रमाद में चारपाई पर पड़ा रहता है। जो इन्सान खेल के प्रति अरुचि रखता है, उसका जीवन उत्साह रहित हो जाता है। सुस्ती,प्रमाद तथा रोग उस पर अपना अधिकार जमा लेते हैं। सच्चा खिलाडी खेल के मैदान से ही समता का पाठ पढ़ता है। वह गीता के इस दृष्टान्त को सच्चे अर्थों में प्रमाणित करता है कि मानव को सुख-दुःख और हार-जीत में एक-सा रहना चाहिए।

खेलों की महत्ता-खेल को केवल मन बहलाव का साधन-मात्र ठहराना कोरी मूर्खता है। खेल से मन बहलाव होने के साथ ही हमारे समय का भी अच्छा उपयोग होता है। अगर इन्सान खेल के मैदान में नहीं उतरे,तो वह व्यर्थ की गप-शप में ही अपने समय को नष्ट कर देता है।

खेल से मनुष्य की थकावट दूर हो जाती है। वह नई स्फूर्ति तथा शक्ति का स्वयं में अनुभव करने लगता है। खेल मानव की थकान को मिटाता है। खेल हमें सहयोग तथा मित्रता का पाठ पढ़ाते हैं। खेल के मैदान में उतरने पर हर टीम हार जीत के प्रश्न को लेकर ऐसी सहयोगी भावना से खेलती है कि देखते ही बनता है। यहाँ शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। आपस के बैर-भाव को भुलाकर ऐसी एकता का प्रदर्शन करते हैं,जो देखते ही बनती है।

खेल हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं। खेल के मैदान जैसा अनुशासन अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। जो खिलाड़ी खेल के नियमों की अवहेलना करते हैं, उन्हें खेल के मैदान से बाहर कर दिया जाता है। संगठन तथा एकता का विकास भी खेलों के माध्यम से होता है।

खिलाड़ी सबकी श्रद्धा तथा प्रेम का पात्र बनता है। जन-सामान्य उसे आदर की दृष्टि से निहारते हैं। जब वह बाहर निकलता है तो लोग उसे निहार कर गर्व का अनुभव करते हैं। खिलाड़ी हमारे देश का नाम विदेशों में रोशन करते हैं।

खेल इन्सान की रोजी-रोटी में भी सहायक हैं। जब छात्र अपनी शिक्षा पूर्ण कर लेता है, तो वह नौकरी की तलाश करता है। साक्षात्कार के समय अच्छे खिलाड़ी को खेल की वजह से ही अच्छे अंक मिल जाते हैं। उससे उसका चयनित होना अनिवार्य हो जाता है।

खिलाड़ी प्रतिपल चुस्ती तथा स्फूर्ति का अनुभव करता है। वह प्रत्येक कार्य को चाहे वह शरीर से सम्बन्धित हो अथवा मस्तिष्क से,उसे तुरन्त पूरा कर लेता है। निराशा उसके पास नहीं फटकती। उदासीनता उससे कोसों दूर रहती है।

उपसंहार-हर्ष का विषय है कि आज हमारी राष्ट्रीय सरकार खिलाड़ियों को विविध प्रकार की सुविधाएँ देकर उनके उत्साह को बढ़ावा दे रही है। सरकारी नौकरियों में उन्हें वरीयता प्रदान की जा रही है।

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हमारी जिन्दगी शरीर पर निर्भर है। शरीर समाप्त हुआ तो जिन्दगी बीत गई। स्वस्थ शरीर हमारे जीवन की आधारशिला है। जीवन का रस अच्छे स्वास्थ्य में निहित है। शरीर नहीं होगा तो अन्य कार्य कैसे सम्पन्न होंगे ? हमारे ऋषियों का कहना था कि “जीवेम् शरदः शतम्” अर्थात् हम सौ साल तक जीवित रहें। यह तभी सम्भव है,जब शरीर वेगमय तथा गतिशील हो। खेल इन दोनों आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। अत: वीर,पुष्ट,प्रसन्न तथा स्वस्थ बनने के लिए खेल परमावश्यक है। कहा भी गया है मृतप्राय जीवन में संजीवन फँकते प्राणों की जो तमिस्र के गर्त से खींच ज्योति भर दे हृदय में जो वो खेल जीवन को नया आयाम देते हैं। वो खेल जीवन में नया उत्साह भरते हैं।

4. जल मानव जीवन के प्राणों का आधार है [2009]
अथवा
जल ही जीवन है [2009]
अथवा
बिन पानी सब सून [2013]

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • जल के विभिन्न कार्य,
  • जल के प्रमुख स्रोत,
  • उपसंहार॥

प्रस्तावना प्रत्येक जीवधारी के जीवन के लिए जल एवं वायु आवश्यक हैं। जल ही मानव के जीवन का प्रमुख आधार है। जल के बिना मानव जीवन की कल्पना असम्भव है। अतः जल के महत्त्व को प्रदर्शित करते हुए रहीम कवि ने उचित ही कहा है

“रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती मानुष चून ॥”

जल के विभिन्न कार्य-जैसा कि पूर्व में कहा गया है जल ही जीवन का आधार है। जीवन के लिए आवश्यक रोटी भी है। इसके लिए उत्तम फसल का होना लाभदायक है। जल के बिना उत्तम खेती व खुशहाली असम्भव है। वास्तव में,जल ही ऐसा प्रमुख स्रोत है जिसके द्वारा उत्तम खेती हो सकती है।

यदि समय पर वर्षा होगी तो जुताई, बुवाई भी समय से हो जायेगी। यदि वर्षा न हो तो पेड़-पौधे नष्ट हो जायेंगे। अतः वर्षा का समय से होना शुभ संकेत है। किसानों को तो बादलों को देखकर ही अनुमान हो जाता है कि वर्षा किस समय होगी।

यदि पृथ्वी पर जलाभाव हो जाये तो अकाल व सूखा पड़ जायेगा। हजारों लाखों लोग काल के मुख में समा जायेंगे।

जिस प्रकार मानव के लिए जल आवश्यक है, उसी प्रकार पशु-पक्षी व जलीय जन्तुओं के लिए भी जल आवश्यक है। जल के अभाव में इन प्राणियों का जीवन भी असम्भव है।

जल के प्रमुख स्रोत-जल का सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक स्रोत वर्षा है लेकिन आज के वैज्ञानिक युग में मानव ने जल प्राप्ति के कृत्रिम स्रोतों की खोज कर ली है। इसीलिए उसने नहर एवं बाँधों का निर्माण किया है।

जल के अन्य स्रोत कुएँ,तालाब व झरने हैं। इसके अतिरिक्त जल संचय करने हेतु मानव ने एक नवीन विधि का आविष्कार किया है। इस विधि में बड़े-बड़े गड्ढे खोदकर जल संचय किया जाने लगा है। इससे जल की कमी को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है।

उपसंहार-जल ही जीवन का आधार है लेकिन खेद का विषय है कि जल का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जल के स्तर में भी निरन्तर कमी होती जा रही है। मानवता को खुशहाल रखने के लिए जल आवश्यक है। इसके लिए जल के देवता इन्द्र को प्रसन्न करना पड़ेगा। वास्तव में, जल ही प्राणदायिनी शक्ति है।

5. राष्ट्रीय एकता और अखण्डता [2009, 10, 14]
अथवा
भारत की राष्ट्रीय एकता
अथवा
राष्ट्रीय एकता [2012]

“क्या बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा ॥”

रूपरेखा [2017, 18]-

  • प्रस्तावना,
  • राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य,
  • राष्ट्रीय एकता की जरूरत,
  • देश की वर्तमान स्थिति,
  • राष्ट्रीय एकता को खंडित करने वाले तत्त्व,
  • राष्ट्रीय एकता तथा हमारा उत्तरदायित्व,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-राष्ट्रीय एकता का गम्भीर प्रश्न आज देश के समक्ष चुनौती के रूप में उपस्थित है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इस देश की धरती पर विभिन्न धर्म,जाति,सम्प्रदाय तथा वर्ग के लोग निवास करते हैं। भिन्नता होने पर यदा-कदा संघर्षों का भी सूत्रपात हो जाता है। एकता के स्थान पर भेद-भाव पनप जाता है। इससे राष्ट्रीय एकता को खतरा उत्पन्न हो गया है।

देश को आजाद करने में न जाने कितने लोग शहीद हुए। अनेक लोगों ने कारागार की कठोर यातनाओं को सहर्ष स्वीकार किया। गोली,डण्डे तथा लाठियों के प्रहार को सहन किया। आज इसी स्वतन्त्र भारत के वायुमण्डल में विद्रोह तथा हिंसा के स्वर गूंज रहे हैं। मानवता पर दानवता हावी है।

राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य राष्ट्र एवं उसके स्वरूप के प्रति निष्ठा एवं श्रद्धा का भाव राष्ट्रीयता के नाम से सम्बोधित किया जाता है। राष्ट्र की रक्षा का भाव राष्ट्रीय एकता का सूचक है। विभिन्न धर्मों तथा सम्प्रदाय के लोगों में भाषा, धर्म तथा जाति के आधार पर भेद पाये जाते हैं। आचार-विचार तथा खान-पान में भी भिन्नता होती है। इस अनेकता के मध्य एकता का पाया जाना ही राष्ट्रीय एकता है। विचारों में सामंजस्य तथा राजनीतिक एकता, राष्ट्रीय एकता का प्रतिरूप है। समस्त देश की राजनीतिक, वैचारिक, आर्थिक तथा सामाजिक एकता ही राष्ट्रीय एकता का प्रतिरूप है।

राष्ट्रीय एकता की जरूरत-देश की बाह्य एवं आन्तरिक सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता अति जरूरी है। यदि हमने देश को जोड़ने के स्थान पर तोड़ने का प्रयास किया तो इसका लाभ शत्रु-पक्ष उठायेगा। आज भारतवर्ष की उन्नति को पड़ोसी देश फूटी आँख भी नहीं देखना चाहते। हमें उन तथ्यों का सावधानीपूर्वक पता लगाना है जो कि राष्ट्रीय एकता के मार्ग में रोड़ा बनकर खड़े हुए हैं। बिना तथ्यों की खोज के प्रयास करना बालू में तेल निकालने के समान व्यर्थ सिद्ध होगा। राष्ट्र के हित में सम्पूर्ण देश का हित है। देश के प्रति समर्पण भाव ही राष्ट्रीय एकता को मजबूत करता है। राष्ट्र पर किसी एक जाति, धर्म,वर्ग तथा सम्प्रदाय की बपौती नहीं है। राष्ट्र पर सबका समानाधिकार है।

देश की वर्तमान स्थिति आज भारत देश अनेक परिस्थितियों के जाल में फंसा हुआ है। सम्प्रदाय, धर्म एवं जाति को लेकर संकुचित मनोवृत्ति वाले घृणित अलगाववादी भावना का विषैला बीज बो रहे हैं। आन्दोलन, तोड़-फोड़ तथा हड़ताल राष्ट्र की एकता के तार को छिन्न-भिन्न कर रहे हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत परतन्त्रता के पाश में भी अलगाववादी भावना के कारण ही बँधा।

राष्ट्रीय एकता को खंडित करने वाले तत्त्व-आज आजादी प्राप्त करने के पश्चात् भारत एक प्रभुता-सम्पन्न गणराज्य है। यदि हम राष्ट्रीय एकता के सन्दर्भ में भारत पर दृष्टिपात करें तो इसे एक कमजोर राष्ट्र ही समझा जायेगा।

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आज भारत भूमि पर अनेक प्रकार की ऐसी शक्तियाँ विद्यमान हैं, जो इसकी एकता के तारों को छिन्न-भिन्न करने के लिए सक्रिय हैं।

क्षेत्रीयता, भाषा, धार्मिक उन्माद तथा साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एकता में सेंध लगाने वाले तत्त्व हैं। इनमें सबसे बुरा तत्त्व साम्प्रदायिकता है। साम्प्रदायिकता मानव मन में फूट के विषैले बीजों का वमन करती है। मित्रों के मध्य द्वेष तथा जलन पैदा करती है। भाई से भाई को सदा के लिए विलग कर देती है।

भाषागत विवाद भी देश की एकता के लिए एक समस्या है। भारत में अनेक प्रान्त हैं। उन प्रान्तों की अलग-अलग बोलियाँ हैं। अपनी भाषा के मोह में दूसरी भाषा का निरादर किया जाता है।

प्रान्तीयता की भावना भी राष्ट्रीय एकता के पथ में रोड़ा बनी हुई है। आज अलग-अलग अँचल में निवास करने वाले लोग अपने स्वतन्त्र अस्तित्व की माँग दुहरा रहे हैं। ऐसी स्थिति में एकता किस प्रकार स्थापित की जा सकती है।

सुमित्रानन्दन पन्त की एक पंक्ति राष्ट्रीय एकता के महत्त्व को प्रतिपादित करने के लिए पर्याप्त है, देखिए-

“राजनीति और अर्थशास्त्र के बिना भले ही जी लें,
जन-राष्ट्रीय ऐक्य के बिना असम्भव।”

राष्ट्रीय एकता तथा हमारा उत्तरदायित्व-राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने के लिए आज देश के प्रत्येक नागरिक का पावन कर्त्तव्य है। आज देश के लेखक, कवि, दार्शनिक सभी देश की एकता को बनाये रखने के लिए प्रयासरत् हैं। सभी समझदार चाहते हैं कि राष्ट्रीय एकता खंडित न हो। देश में प्रेम तथा सौहार्द्र का वातावरण बने। भेद तथा अलगाव की लौह दीवारें धराशायी हों। ईर्ष्या,द्वेष तथा तनाव का अन्त हो, परन्तु दुःख का विषय यह है कि विद्वेष की ज्वाला आज भी देश में अनेक स्थानों पर यदा-कदा भड़क उठती है। किसी शायर ने ठीक ही कहा है

“मर्ज बढ़ता गया,ज्यों ज्यों दवा की” समय-समय पर जो अनहोनी घटनाएँ घट जाती हैं, उससे यह सिद्ध होता है कि हम अभी विघटनकारी तत्त्वों को पूरी तरह से कुचल नहीं पाये हैं। यह कार्य सरकार अथवा राष्ट्रीय नेताओं के बल पर पूरा नहीं किया जा सकता है। इसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक को कमर कसकर मैदान में उतरना होगा।

राष्ट्र की सेवा एवं एकता के लिए हमें प्रतिपल तत्पर रहना चाहिए। इकबाल के शब्दों में-

“पत्थरों की मूरतों ने समझा है तू खुदा है।
खाके वतन का मुझको हर जर्रा देखता है।”

उपसंहार-राष्ट्रीय एकता का सामूहिक प्रयास ही फलदायी सिद्ध हो सकता है। साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी वर्ग,समाज-सेवी तथा देश-प्रेमी प्रत्येक व्यक्ति को इसके लिए जी-जान से कोशिश करनी पड़ेगी। परिवार तथा नारियों की भी इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। बालकों के मन-मानस से बचपन से ही बन्धुत्व की भावना का बीजारोपण करना परमावश्यक है। सभी परम-पिता की संतान हैं। आबाल वृद्ध सबको ही राष्ट्रीय एकता के तार को दृढ़ बनाने में अपना योगदान देना चाहिए, तभी राष्ट्र में एकता के स्वर गुंजित होंगे। सभी नागरिक प्रेम तथा बन्धुत्व के सम सूत्र में आबद्ध होकर सुख तथा शान्ति का अनुभव करेंगे।

(6) स्वच्छ भारत अभियान
अथवा
स्वच्छ भारत, श्रेष्ठ भारत

“स्वच्छ भारत का यह अभियान,
आज करता सबका आह्वान।
देश हित उठो सफाई करो,
बढ़ाओ जग में निज सम्मान॥”

रूपरेखा [2018]-

  • प्रस्तावना,
  • स्वच्छ भारत का स्वप्न,
  • स्वच्छ भारत अभियान का प्रारम्भ,
  • गन्दगी के दुष्परिणाम,
  • स्वच्छ भारत अभियान का प्रचार-प्रसार,
  • सभी वर्गों का सहयोग अपेक्षित,
  • शुभ परिणाम,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-सदाचारी, सहृदय, मृदुभाषी,स्पष्टवक्ता आदि की तरह ही सफाई पसन्द होना श्रेष्ठ मानव की विशेष पहचान है। स्वच्छ तन में निर्मल मन विकसित होता है। घर-बाहर का स्वच्छ परिवेश उल्लास,स्फूर्ति,कर्मण्यता को बढ़ाता है। जीवन मंगल मार्ग की ओर अग्रसर होता है। इसके विपरीत गन्दगी व फूहड़ परिवेश पतन के कारण बनते हैं। सफाई पसन्द व्यक्ति स्वयं के साथ-साथ अपने परिवेश को भी सुवासित करता है,वह सभी को अपनी ओर आकर्षित करता . है। स्वच्छता गुण की महिमा अकथनीय है।

स्वच्छ भारत का स्वप्न स्वच्छता के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही महात्मा गाँधीजी ने ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का आह्वान करने के साथ ही स्वच्छ भारत का स्वप्न संजोया था। वे भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने में तो सफल हो गये किन्तु स्वच्छ भारत का स्वप्न उनके लिए सपना ही बनकर रह गया।

स्वच्छ भारत अभियान का प्रारम्भ-भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गाँधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर, 2014 को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की उद्घोषणा की। उन्होंने स्वच्छता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए इसे अपनाने पर बल दिया। उन्होंने बताया कि स्वयं स्वच्छ रहने के साथ-साथ अन्य को सफाई के प्रति जागरूक करना हर भारतीय की नैतिक जिम्मेदारी है। सफाई के सन्दर्भ में भारत संसार के अनेक देशों से पिछड़ा हुआ है। कई देश ऐसे हैं जहाँ गन्दगी का नामोनिशान भी नहीं है, किन्तु भारत में गन्दगी का भयंकर प्रकोप है।

गन्दगी के दष्परिणाम-भारत के नगरों, महानगरों व गाँवों में भयंकर गन्दगी फैली है। नगरों में बजबजाती नालियाँ, उफनते सीवर,खुले नाले, गलियों, चौराहों पर कूड़े-करकट के ढेर, उन पर भिनभिनाते मक्खी-मच्छर सामान्य बात है। ऐसी स्थिति के मध्य भारत की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा जीवनयापन करता है। इस गन्दगी के कारण विभिन्न बीमारियाँ फैलती हैं। बीमारी के कारण उनके काम-धन्धे रुक जाते हैं। इलाज का अतिरिक्त खर्च बढ़ जाता है। परिवार के सदस्यों पर संकट छा जाता है। गरीब और गरीब होता जाता है।

गाँवों की स्थिति और भी दयनीय है। वहाँ की अधिकांश आबादी खले में शौच के लिए जाती है। सर्वाधिक दुःखद बात यह है कि माँ-बहनें भी खुले में शौच को जाती हैं। गन्दगी के सन्दर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़े बताते हैं कि भारत में गरीबी के कारण प्रत्येक व्यक्ति को 6,500 रुपये का नुकसान प्रतिवर्ष झेलना पड़ता है। इस कलंक को मिटाना आवश्यक है।

स्वच्छ भारत अभियान का प्रचार-प्रसार–’स्वच्छ भारत अभियान’ को जन आन्दोलन का रूप देना होगा। यह राष्ट्र भक्ति से जुड़ा कार्य है जिसके प्रति प्रत्येक भारतवासी का समर्पण अपेक्षित है। किसी सरकार,संगठन, संस्था या व्यक्ति द्वारा यह कार्य पूरा नहीं किया जा सकता है। इसे सफल बनाने के लिए दूरदर्शन, रेडियो, समाचार-पत्र आदि के माध्यम से प्रचार-प्रसार, परिचर्चा आदि की आवश्यकता है। भारत की सवा सौ करोड़ आबादी को सफाई के प्रति जागरूक करना अनिवार्य है।

सभी वर्गों का सहयोग अपेक्षित स्वच्छता अभियान में जब तक सभी वर्गों का सहयोग नहीं मिलेगा। तब तक सफलता सम्भव नहीं है। इसमें प्रभावशाली नेताओं, अभिनेताओं, कलाकारों, खिलाड़ियों, उद्योगपतियों, समाज सेवियों का सक्रिय सहयोग अपेक्षित है। ये सभी अपने-अपने ढंग से स्वच्छ भारत अभियान को बढ़ावा दे सकते हैं। ये चाहेंगे तो प्रत्येक भारतवासी अपनी जन्मभूमि को स्वच्छ रखने के प्रति सजग हो जायेगा। गाँव के स्तर पर प्रधान-सरपंच,नगर के स्तर पर नगर प्रमुख,महानगर के स्तर पर महापौर इस अभियान को सफल बनाने में मददगार होंगे। नगरों में सफाई व्यवस्था दुरुस्त की जाय। गाँवों में सफाई व्यवस्था के साथ-साथ शौचालयों का भी निर्माण कराया जाय। तभी सफाई को गति मिल सकेगी।

शुभ परिणाम–’स्वच्छ भारत अभियान’ की सफलता भारत के मंगलकारी भविष्य की निर्माता सिद्ध होगी। स्वच्छता रहेगी तो तन स्वस्थ होगा, मन उल्लसित रहेगा, कार्यकुशलता बढ़ेगी। इससे आय में वृद्धि होगी,तो गरीबी मिटेगी। बीमारियों पर होने वाला व्यय बचेगा तथा देश के निवासी स्वस्थ एवं स्वावलम्बी बनेंगे। भारत सतत् विकास पथ पर अग्रसर होगा।

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उपसंहार-महात्मा गाँधी के स्वच्छ भारत के स्वप्न को साकार करने में प्रत्येक भारतवासी को सहयोग करना चाहिए। उसे अपने घर एवं बाहर सफाई रखनी चाहिए तथा दूसरों को सफाई के प्रति प्रेरित करना चाहिए। यदि सभी स्वच्छता को अपनी आदत बना लेंगे तो भारत में गन्दगी का नामोनिशां नहीं होगा। फलस्वरूप भारत का सम्मान उत्तरोत्तर शिखर की ओर बढ़ता जायेगा।

7. जीवन में अनुशासन का महत्त्व
अथवा
अनुशासित छात्र जीवन [2009]
अथवा
विद्यार्थी एवं अनुशासन [2009, 13, 15]
अथवा
विद्यार्थी जीवन [2018]

“सूर्य, चन्द्रमा, तारे सारे प्रकृति से अनुशासित होते।
समय बद्ध हो चलते रहते,
कभी न पथ से विचलित होते ॥”

रूपरेखा [2016]-

  • प्रस्तावना,
  • अनुशासित जिन्दगी,
  • अनुशासन का महत्त्व,
  • अनुशासन के प्रकार,
  • अनुशासन का तात्पर्य,
  • अनुशासनहीनता के कारण,
  • विद्यार्थी एवं अनुशासन,
  • उपसंहार।।

“अनुशासन दो शब्दों अनु + शासन के योग से बना है। इसका तात्पर्य है-शासन के पीछे चलना या नियमानुकूल कार्य करना। इस प्रकार नियमों का पालन ही अनुशासन कहलाता है।” बिना अनुशासन के जीवन अटपटा एवं सारहीन है।

प्रस्तावना-समस्त सृष्टि नियमबद्ध तरीके से संचालित हो रही है। सूर्य एवं चन्द्र नियमित रूप से उदय होकर दुनिया को प्रकाश लुटाते हैं। जिस प्रकार प्रकृति के नियम हैं, उसी भाँति समाज, देश तथा धर्म की भी कुछ मर्यादाएँ होती हैं। कुछ नियम होते हैं, कुछ आदर्श निर्धारित होते हैं। इन आदर्शों के अनुरूप जीवन ढालना अनुशासन की परिधि में आता है।

अनुशासित जिन्दगी–वास्तव में अनुशासित जिन्दगी बहुत ही मनोहर तथा आकर्षक होती है। इससे जीवन दिन-प्रतिदिन प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है। अनुशासन के पालन से जीवन में मान-मर्यादा मिलती है। जो जीवन अनुशासित नहीं होता, वह धिक्कार तथा तिरस्कार का पात्र बनता है।

अनुशासन का महत्त्व-अनुशासन का जीवन से गहरा लगाव है। जो समाज अथवा राष्ट्र अनुशासन में बँधा होता है,उसकी उन्नति अवश्यम्भावी है। दुनिया की कोई भी ताकत उसे बढ़ने से रोक नहीं पाती। यदि अनुशासन का उल्लंघन किया जाय तो राष्ट्र तथा समाज अधोगति गर्त में गिरता चला जाता है।

अनुशासन के प्रकार-अनुशासन के अनेक प्रकार हैं। नैतिक अनुशासन, सामाजिक अनुशासन तथा धार्मिक अनुशासन। अनुशासन बाह्य तथा आन्तरिक दो प्रकार का होता है। जब भय तथा डंडे के बल पर अनुशासन स्थापित किया जाता है, तो इस प्रकार के अनुशासन को बाहरी अनुशासन कहकर पुकारा जाता है। जब व्यक्ति अथवा बालक स्वेच्छा से प्रसन्न मन से नियमों का पालन करता है, तो इस प्रकार का अनुशासन आन्तरिक अनुशासन की श्रेणी में आता है।

अनुशासन का तात्पर्य-अनुशासन शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। पहला ‘अनु’ जिसका अर्थ है पीछे, दूसरा ‘शासन’ अर्थात् शासन के पीछे अनुगमन करना।

अनुशासनहीनता के कारण आज छात्र वर्ग में असंतोष तथा निराशा है। यही निराशा तथा असंतोष अनुशासनहीनता का जनक है। आज छात्र-वर्ग अनुशासन को भंग करने में अपनी शान समझता है।

इसका प्रमुख कारण यह है कि आज जीवन मूल्यों में निरन्तर गिरावट आ रही है। शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि छात्रों को अपना भविष्य अन्धकारमय नजर आता है। सिनेमा के अश्लील तथा संघर्षमय चित्र आग में घी का काम कर रहे हैं। वातावरण दूषित है। धन को ही सर्वस्व स्वीकारा जा रहा है। आज के नेता अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए छात्र-वर्ग को गुमराह कर रहे हैं। इन सब कारणों से अनुशासनहीनता पनपती जा रही है।

विद्यार्थी एवं अनुशासन-वैसे हर मानव के लिए अनुशासन का पालन करना आवश्यक है, लेकिन छात्रों के लिए तो अनुशासन में रहना अमृत-तुल्य है। छात्र जीवन मानव जीवन की आधारशिला है।

आज छात्रों द्वारा परीक्षा का बहिष्कार, सार्वजनिक स्थानों में तोड़-फोड़ तथा पुलिस के साथ संघर्ष एक आम बात हो गई है। समाचार-पत्र छात्रों की अनुशासनहीनता तथा हिंसक घटनाओं की खबर नित्य-प्रति प्रकाशित करते रहते हैं। हम इन्हें पढ़कर मात्र इतना कह देते हैं कि यह बहुत बुरी बात है,लेकिन हमारे इतना कहने मात्र से इसका निराकरण नहीं होता। क्या कभी हमने शान्त-मन से यह सोचा है कि यदि यह बीमारी बढ़ती गई तो इसका निराकरण करना हमारे वश की बात नहीं रहेगी।

छात्र एवं अनुशासन एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्राचीन काल में छात्रों को आश्रमों तथा गुरुकुलों में गुरु के समीप रहकर शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती थी। उनको अनुशासन के कठोर नियमों में बँधकर जीवनयापन करना पड़ता था। वर्तमान समय के छात्रों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वे आज अनुशासनहीनता के जिस पथ पर अग्रसर हो रहे हैं,वह उनके भविष्य के लिए घातक तथा अमंगलकारी है।

इसके निराकरण के लिए नियमित रूप से नैतिक शिक्षा, धार्मिक उपदेश तथा जीवनोपयोगी चर्चायें, प्रार्थना स्थल तथा कक्षाओं में होनी चाहिए जिससे छात्र सद्मार्ग के अनुगामी बन सकें। अभिभावकों, शिक्षाविदों तथा अध्यापकों को भी स्वयं के आदर्श प्रस्तुत करके छात्रों को देश का उत्तम नागरिक बनाने में यथाशक्ति सहयोग देना चाहिए।

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उपसंहार-छात्र देश के भाग्य विधाता हैं। शक्ति के पुंज हैं। देश उनकी ओर आशा भरी दृष्टि से निहार रहा है। यदि वे सुधरे तो देश सुधरेगा। उनके न सुधरने पर देश रसातलगामी बनेगा।

8. बेकारी की समस्या
अथवा
बेरोजगारी एक समस्या: कारण एवं निवारण [2009]

“अकुलाती है प्यास धरा की
घिरती जब दारिद्र्य दुपहरी।
छलनी हो जाता नभ का उर,
छाती जब अँधियारी गहरी॥”

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. भारत में बेरोजगारी की समस्या,
  3. बेरोजगारी के कारण,
  4. बेकारी निराकरण के उपाय,
  5. उपसंहार।।

प्रस्तावना-आज प्रत्येक साल विद्या-मन्दिरों से उपाधि का बोझ धारण किये लाखों की संख्या में नौजवान निकल रहे हैं। शिक्षा समापन के बाद वे दर-दर नौकरी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। नौकरी सीमित हैं। नौकरी चाहने वालों की संख्या असीमित है। किसी शायर ने इसे देखकर कहा देखिए

“कॉलेजों से सदा आ रही है, पास-पास की।
ओहदों से सदा आ रही है, दूर-दूर की ॥”

कैसी विडम्बना है कि भविष्य की आशालता नौजवान आज बेकार है। उनकी रुचि का कार्य उन्हें नहीं मिल पा रहा है।

भारत में बेरोजगारी की समस्या जब हम अपने देश भारत पर दृष्टिपात करते हैं, तो यहाँ बेरोजगार व्यक्ति सीमा से अधिक हैं। काम सीमित है तथा काम करने वाले हाथ अधिक हैं। मशीनीकरण के कारण भी बेकारी बढ़ी है। भूमि भी कम है। कल-कारखाने भी आदमी के अनुपात में कम हैं।

बेरोजगारी के कारण बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नवत हैं

  1. शारीरिक श्रम से बचने का प्रयास-आज़ देश के अधिकांश नवयुवक शारीरिक श्रम से बचने का प्रयास करते हैं।
  2. प्रत्येक नौकरी का आकांक्षी-आज हर छात्र शिक्षा समाप्त करके नौकरी प्राप्त करना चाहता है। नौकरी कम तथा नौकरी पाने के इच्छुक नौजवानों की संख्या अधिक है। इस दशा में बेकारी का बढ़ना स्वाभाविक है।
  3. जनसंख्या में वृद्धि-आज भारत में जनसंख्या द्रुत गति से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में सबके लिए रोजी-रोटी की समस्या आज प्रश्न रूप में उपस्थित है।
  4. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली-वर्तमान शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है। लार्ड मैकाले के सपने को यह आज भी साकार कर रही है। आज किसी व्यवसाय विशेष को अपनाने के स्थान पर नौजवान बाबू बनने को तत्पर है। शिक्षा रोजगारपरक नहीं है।
  5. कुटीर उद्योग-धन्धों का समापन-आज प्रायः कुटीर उद्योग-धन्धों का समापन-सा ही हो गया है। मशीनी युग आ गया है। इस दशा में कुटीर उद्योग-धन्धों को करने वाले हाथ बेकार हो गये हैं।
  6. उद्योग-धन्धों का उचित विकास न होना–भारत की जनसंख्या के अनुपात में उद्योग-धन्धों का जितना विकास होना चाहिए था, उतना नहीं हो पा रहा है, फलतः बेकारी फैलेगी ही।
  7. सामाजिक कुरीतियाँ-सामाजिक कुरीतियाँ भी बेकारी के लिए उत्तरदायी हैं। जाति विशेष के लोग किसी व्यवसाय विशेष को सम्पन्न करने में अपना अपमान समझते हैं। चाहे वे बेकार भले ही बैठे रहें, परन्तु काम नहीं करते।

बेकारी निराकरण के उपाय-बेकारी की समस्या का निराकरण होना परमावश्यक है। इस सम्बन्ध में देश के नौजवानों में श्रम करने की भावना जाग्रत होनी चाहिए। शारीरिक श्रम के प्रति उनमें सर्वदा सच्चा भाव होना चाहिए। इसे असम्मान के स्थान पर सम्मान समझना चाहिए।

बढ़ती हुई जनसंख्या पर तत्क्षण रोक लगाना जरूरी है। शिक्षा रोजगारपरक हो, योजनाएँ मंगलकारी तथा सुविचारित होनी चाहिए। शिक्षा प्रणाली में समय के अनुरूप परिवर्तन अपेक्षित है।

लघु कुटीर उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन देना नितान्त आवश्यक है। इन धन्धों के माध्यम से निम्न तथा निर्धन वर्ग अपनी रोजी-रोटी की समस्या का समाधान करने में स्वयं ही सक्षम हो जायेगा।

भारत एक कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनता कृषि पर आश्रित है। इस हेतु यह परमावश्यक है कि हर योजना में कृषि को प्रमुखता दी जाय। तरुण पीढ़ी को कृषि कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाय। दुःख का विषय तो यह है कि आज का नवयुवक नगरों की रंग-बिरंगी शोभा पर कुर्बान है। गाँव की प्राकृतिक सुषमा को भुला बैठा है। युवकों के मन मानस में अनाज की बालियों को प्राप्त करने की ललक होनी चाहिए।

देश के नौजवानों को जापान से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, जहाँ पर हर एक की उँगली काम पर थिरकती रहती है। सब कर्म-यज्ञ के आराधक हैं।

उपसंहार-बेरोजगारी की समस्या का निदान राष्ट्र का सर्वोपरि लक्ष्य होना चाहिए। जब तक देश की जनसंख्या पेट की ज्वाला से दग्ध होती रहेगी, तब तक देश की शक्ति का प्रयोग रचनात्मक कार्यों में कदापि नहीं हो सकता। उस समय तक गाँधी तथा नेहरू के सपनों का भारत केवल काल्पनिक वस्तु बनकर ही रह जायेगा।

9. पर्यावरण-प्रदूषण [2011, 12, 14, 17]
अथवा
पर्यावरण प्रदूषण-कारण और निदान [2015]

“अपनी हालत का कुछ अहसास नहीं मुझको,
मैंने औरों से सना है कि परेशाँ हँ मैं।”
“दुनिया में कुछ इस कदर छाया है प्रदूषण,
कि देखकर ये हाल हैराँ हूँ मैं।”

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • प्रदूषण का अभिप्राय,
  • प्रदूषण के प्रकार,
  • प्रदूषण की रोकथाम,
  • उपसंहार।।

प्रस्तावना-पर्यावरण प्रदूषण आज समस्त विश्व के लिए गम्भीर चुनौती बना हुआ है। इस समस्या का अविलम्ब निराकरण होना परमावश्यक है। आज आकाश विषाक्त हो गया है। धरती दूषित हो गई है। जल जानलेवा बन गया है। आज का इन्सान भोग-विलास तथा आमोद-प्रमोद में मस्त है। अपनी सुख-सुविधाओं की वृद्धि की सनक में प्राकृतिक सम्पदाओं का निरन्तर दोहन करता हुआ चला जा रहा है। वृक्ष काटे जा रहे हैं। हरियाली नष्ट की जा रही है। पुष्पों को कुचला जा रहा है। प्राकृतिक छटा स्वप्नवत् हो गई है। यही वजह है कि आज मानव

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स्वच्छ वायु का सेवन करने के लिए भी तरस रहा है। पर्यावरण-प्रदूषण के फलस्वरूप जिन्दगी की गुणात्मकता में प्रतिपल हास हो रहा है। प्रदूषण का अभिप्राय-साधारण रूप से वे समग्र कारण जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से इन्सान के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं, संसाधनों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं, प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। प्रदूषण से हमारा अभिप्राय यह है-वायु, जल एवं धरती की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में अवांछनीय परिवर्तन द्वारा दोष पैदा हो जाना। सरिता, पर्वत,पानी, वायु तथा वन आदि की स्वाभाविक स्थिति में विकार (दोष) का समावेश हो जाता है, तब प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

प्रदूषण के प्रकार-

  • वायु प्रदूषण,
  • जल प्रदूषण,
  • रेडियोधर्मी प्रदूषण,
  • ध्वनि-प्रदूषण,
  • रासायनिक प्रदूषण।।

(1) वायु प्रदूषण-आजकल फैक्टरी तथा कारखानों की चिमनियाँ रात-दिन काला धुआँ उगल रही हैं। सड़क पर दौड़ते हुए वाहन एवं कोयले के प्रयोग से घर से निकलने वाला धुआँ वातावरण में जहर घोल रहा है। सड़क पर चलना तथा घर में रहना भी दुश्वार हो गया है। हर स्थल पर धुएँ की घुटन विद्यमान है। मानव इनसे त्राण पाना चाहता है,परन्तु स्वयं को लाचार तथा असहाय अनुभव कर रहा है। इन्सान स्वयं की साँस में वायु से ऑक्सीजन ग्रहण करता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड नामक गैस को छोड़ता है। यह अत्यधिक विषाक्त गैस है। पृथ्वी पर वृक्ष तथा पौधे इसे सोख लेते हैं। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आज कार्बन डाइ-ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों का प्रतिदिन विस्तार हो रहा है। इन गैसों से धरती का तापमान अनुपात से अधिक बढ़ रहा है।

(2) जल प्रदूषण जब जल दूषित तथा दुर्गन्धयुक्त हो जाता है तब उसे जल प्रदूषण पुकारते हैं। आज फैक्ट्री तथा कारखानों द्वारा छोड़ा गया रासायनिक पदार्थ जल को दूषित बना रहा है। मल-मूत्र जल में मिलकर कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। ये रासायनिक पदार्थ नदियों के माध्यम से सागर तक पहुँचते हैं, फलतः सागर जल भी दूषित हो जाता है। जीव-जन्तु व्याकुल होकर मरणोन्मुख हो जाते हैं। आज का जल इतना विषाक्त तथा दूषित हो गया है, जो मानव को मौत तथा बीमारियों की ओर अग्रसर कर रहा है।

(3) रेडियोधर्मी प्रदूषण-आज विश्व के शक्तिशाली राष्ट्र परमाणु शक्ति के विस्तार में संलग्न हैं। परमाणु विस्फोट आज आम बात हो गई है। विस्फोटों से ढेर के रूप में रेडियोधर्मी कणों का विसर्जन होता है। इससे स्थान विशेष की वायु दूषित हो जाती है।

(4) ध्वनि प्रदूषण-आज औद्योगीकरण की वजह से मशीनों का अम्बार लगा हुआ है। मशीनों तथा वाहनों के कर्ण-भेदी शोर के मध्य में ही जैसे-तैसे करके हमको जीना पड़ रहा है। इससे स्नायुमंडल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। मानव प्रत्येक क्षण तनाव में जीता है। शान्ति आज उससे कोसों दूर है। दिनभर श्रम करने के पश्चात् आदमी सोना चाहता है, परन्तु शोर के कारण वह गहरी निद्रा की गोदी में समाकर तनिक भी विश्राम नहीं कर पाता है।

(5) रासायनिक प्रदूषण-खेती के कीड़ों को मारने के लिए अनेक कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है। इससे पृथ्वी बंजर भूमि में परिवर्तित हो सकती है। आज इनके प्रयोग से अन्न दूषित तथा स्वाद-रहित हो गया है। ये मानव के स्वास्थ्य को भी चौपट किये डाल रहा है।

प्रदूषण की रोकथाम-समय की महती आवश्यकता है कि प्रदूषणकारी तत्त्वों पर पूरी तरह से अंकुश लगाया जाये। इस सन्दर्भ में समस्त दुनिया में एक नवीन विचारधारा जाग्रत हुई है। चेतना का नव संचार हुआ है। प्रदूषण की समस्या का मूल कारण उद्योगों का विकास है।

इस विकास से पूर्व किसी ने भी नहीं सोचा था कि प्रदूषण इतना जानलेवा बन जायेगा। एक तरह से द्रौपदी की चीर की तरह प्रदूषण की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है।

प्रदूषण पर नियन्त्रण लगाने के लिए व्यक्तिगत प्रयास का कोई मूल्य नहीं है। इसके लिए संगठित होकर प्रयास करना होगा। जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए “जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम” पहले ही लागू किया जा चुका है। प्रदूषण बोर्डों का गठन हो चुका है।

उद्योगों से सम्बन्धित उनके स्वामियों से शर्त रखी गई है कि वे कचरे के निस्तारण की समुचित व्यवस्था करें। गन्दे पानी की निकासी की भी समुचित व्यवस्था करें। इससे पूर्व उन्हें उद्योगों की सुविधा उपलब्ध नहीं होगी। पर्यावरण विशेषज्ञों की राय लेना भी आवश्यक है।

जंगलों तथा वनों को काटने पर भी रोक लगायी गई है। वन-महोत्सव सम्पन्न किये जा रहे हैं। वृक्षों को आरोपित करने का अभियान भी तीव्र गति से चलाया जा रहा है लेकिन इस दिशा में जितना सार्थक कार्य होना चाहिए, वह अभी तक नहीं हो पाया है।

उपसंहार-आज विज्ञान का युग है। मानव की सुख-सुविधाओं में निरन्तर विस्तार हो रहा है लेकिन इसका दुःखद पहलू यह है कि इससे प्रदूषण निरन्तर बढ़ रहा है। प्रदूषण की समस्या किसी राष्ट्र विशेष की न होकर सम्पूर्ण विश्व की समस्या है। इसमें विश्व के समस्त देशों को समवेत रूप से प्रयास करना होगा। मानव-मानव में कोई भी भेद नहीं है। सब परमपिता की सन्तान हैं। सबके हित में ही अपना हित है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है

“कोई नहीं पराया मेरा, घर सारा संसार है।
मैं कहता हूँ जिओ, और जीने दो संसार को॥”

10. किसी खेल का आँखों देखा वर्णन-क्रिकेट मैच [2011]
अथवा
आकर्षक मैच का वर्णन [2009, 14]

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • मैच का अर्थ,
  • मैच खेलने का निश्चय,
  • क्रीड़ा स्थल पर,
  • मैच का शुरू होना,
  • हार-जीत की होड़,
  • खेल का समापन,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-दुनिया प्रकृति का रंगमंच है। प्रकृति विविध प्रकार की क्रीड़ाओं में निरन्तर संलग्न रहती है। भ्रमर प्रसूनों से गुनगुना कर बात करते हैं। तितलियाँ फूलों के ऊपर मँडराकर नृत्य करती,खेलती तथा इठलाती हैं। जब छोटे-से-छोटे कीड़े भी निश्चित क्रीड़ा करते रहते हैं, तो मानव भला इनसे कैसे उदासीन रह सकता है। छात्र तथा छात्राओं के मन-मानस में खेल के प्रति उत्कंठा तथा ललक होती है।

मैच का अर्थ-खेल व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। इसी हेतु विभिन्न प्रकार के खेलों का अस्तित्व मानव के समक्ष प्रकट हुआ। खेलों के माध्यम से खिलाड़ियों को एक उत्साह मिलता है। इसी बात को दृष्टिपथ में रखकर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। खेल की प्रतियोगिता को ही मैच के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

मैच खेलने का निश्चय-हर विद्यालय में प्रत्येक साल खेलों का आयोजन होता है। हमारा विद्यालय फिर इसका अपवाद कैसे हो सकता है ? विगत वर्ष जनवरी का प्रथम सप्ताह था। प्रिंसिपल महोदय ने क्रीडाध्यक्ष के माध्यम से यह आदेश प्रसारित किया कि 20 जनवरी को हमारे कॉलेज की टीम स्थानीय विक्टोरिया इण्टर कॉलेज की टीम से मैच खेलेगी। आदेश को सुनते ही छात्र एवं खिलाड़ी फूले नहीं समा रहे थे।

क्रीड़ा-स्थल पर-20 जनवरी को करीब 9 बजे मैं क्रीड़ा-स्थल जा पहुँचा। नगर के बहुत से कॉलेजों के विद्यार्थी इस मैच को देखने के लिए एकत्रित हुए थे, अतः भीड़ का कोई अन्त नहीं था। सुप्रसिद्ध टीमों का नाम सुनकर बहुत से खेल-प्रेमी तथा नागरिक भी आ गये थे। मैच शुरू होने में अभी एक घण्टा शेष था। मैं शनैःशनैः अग्रिम पंक्ति में अपने सहपाठियों के निकट पहुँचने में सफल हुआ।

इसी अन्तराल में दो निर्णायक क्रीड़ा-स्थल पर पधारे। इसी मध्य दोनों कॉलेजों की टीमें अपनी साज-सज्जा के साथ उपस्थित हुईं। ,

मैच का शुरू होना-दोनों टीमों के कप्तान तथा मैच निर्णायक मैदान के मध्य में स्थित खेल पट्टी के पास खड़े होकर ‘टॉस’ करने लगे। हमारे विद्यालय के कप्तान ने ‘टॉस’ जीता और पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया। हमारे दल के प्रारम्भिक बल्लेबाज अपने खेल का प्रदर्शन करने के लिए तैयार थे।

हार-जीत की होड़-क्रिकेट खेल का तो रोमांच ही निराला है। गेंद-बल्ले के इस खेल के सभी आयुवर्ग के लोग दीवाने होते हैं। हमारे बल्लेबाजों ने शुरू से ही तेज गति से रन बनाने प्रारम्भ कर दिये। दोनों ने मिलकर बिना आउट हुए 10 ओवरों में 60 रन कूट डाले,लेकिन तभी विपक्षी दल के गेंदबाज राकेश ने घातक गेंदबाजी करते हुए अपने दो लगातार ओवरों में हमारे तीन बल्लेबाजों को आउट कर दिया। अब हमारा स्कोर हो गया 72 रन पर तीन विकेट। अब खेलने के लिए हमारे दल का कप्तान मैदान में आया और आते ही पहली गेंद पर उसने शानदार छक्का जड़ा। धीरे-धीरे मैच के रोमांच के साथ-साथ हमारे विद्यालय की पारी भी आगे बढ़ने लगी। खेल का दौर निरन्तर गतिमान रहा। कुल मिलाकर हमारे विद्यालय के दल ने अपने कोटे के 30 ओवरों में 150 रन बनाये और विपक्षी दल को जीत के लिए 151 रन बनाने की चुनौती दी।

दर्शक बहुत ही आनन्द का अनुभव कर रहे थे। आधा घण्टे का विश्राम एवं अल्पाहार के पश्चात् विक्टोरिया इण्टर कॉलेज की टीम खेलने आयी। उन्होंने खेल का प्रारम्भ बहुत ही अच्छे तरीके से किया। प्रथम 9 ओवरों में उनके 40 रन बने।

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यद्यपि हमारी टीम के गेंदबाज बहुत ही चतुर तथा जाने-माने थे, लेकिन इस समय वह लाचार से दृष्टिगोचर हो रहे थे। अब हमारे स्पिनरों ने अपने गुरुतर भार को उठाया। उन्होंने तेजी से विपक्ष के तीन खिलाड़ी जल्दी-जल्दी आउट कर डाले। वे अब तक मात्र 96 रन बना पाये थे। चौथे तथा पाँचवें खिलाड़ी भी स्पिनर अजय ने आउट कर दिये। विपक्षी हताश हो गये और मात्र 25 ओवरों में ही उनकी टीम कुल 117 रन बनाकर आउट हो गयी। सौभाग्यवश विजयश्री ने हमारे कॉलेज की टीम का वरण किया।

खेल का समापन-खेल समाप्त हुआ। मैदान में पण्डाल के अन्तर्गत अल्पाहार का आयोजन किया गया था। दोनों दलों के समस्त खिलाड़ी तथा उपस्थित शिक्षक अल्पाहार के लिए टेबिलों पर उपस्थित हुए।

चाय-पान के पश्चात् पुरस्कार वितरण का आयोजन किया गया। हमारे कॉलेज के खिलाड़ी क्रम से उत्साहित होकर पुरस्कार ग्रहण करने के लिए जा रहे थे। हमारे दल के कप्तान ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला-विद्यालय निरीक्षक से हाथ मिलाकर चल बैजयन्ती ग्रहण की। समस्त खिलाड़ियों तथा उपस्थित जन-समूह ने ताली बजाकर प्रसन्नता व्यक्त की। उत्साहवर्धन के लिए विपक्ष के खिलाड़ियों को भी सान्त्वना पुरस्कार प्रदत्त किये गये।

उपसंहार-खेल का महत्त्व इसलिए भी है कि इससे खेल की भावना का विकास होता है। आज हमें अपने मन-मानस में इस भावना को पल्लवित करके देश के माहौल को उन्नत करना होगा। यह भावना हमें खुशी के साथ जीने का सम्बल देगी। सहयोग, मैत्री तथा सद्भाव का पाठ इन खेलों के माध्यम से ही प्राप्त होगा। यह आज के युग की महती आवश्यकता है।

11.समाचार-पत्रों की उपयोगिता [2013, 16]
अथवा
प्रजातन्त्र के सजग प्रहरी समाचार-पत्र [2009]

“न तोप निकालो,
न तलवार निकालो।
मुकाबिल है तो,
एक अखबार निकालो।”

रूपरेखा [2015]-

  • प्रस्तावना,
  • समाचार-पत्रों के प्रकार,
  • जन्म तथा विकास,
  • समाचार-पत्रों की आवश्यकता,
  • समाचार-पत्रों का महत्त्व,
  • समाचार-पत्रों की शक्ति,
  • समाचार-पत्रों का उत्तरदायित्व,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-आज विज्ञान का युग है। विज्ञान ने सम्पूर्ण संसार को एक कुटुम्बवत् बना दिया है। संचार का विस्तार सिमटता हुआ चला जा रहा है। आज हर इन्सान इस बात का इच्छुक है कि उसे संसार की अधिकाधिक जानकारी मिले। इस बात को जानने का सबसे सशक्त साधन समाचार-पत्र ही हैं। समाचार-पत्र जीवन से इस प्रकार जुड़ गया है कि इसके बिना जीवन अधूरा लगता है। शिक्षित व्यक्तियों के लिए तो समाचार-पत्र चाय तथा जलपान की तरह जिन्दगी का अविभाज्य अंग बन गया है।

समाचार-पत्रों के प्रकार-समाचार-पत्रों की कई श्रेणियाँ होती हैं। कतिपय समाचार-पत्र रोजाना छपते हैं। कुछ साप्ताहिक होते हैं। कुछ समाचार-पत्र प्रातः एवं संध्या के रूप में ही छपते हैं। चाहे समाचार-पत्र किसी भी प्रकार का क्यों न हो, जनसामान्य को विश्व की गतिविधियों का अधिकाधिक लेखा-जोखा प्रस्तुत करना ही उसका लक्ष्य होता है।

जन्म तथा विकास समाचार-पत्रों का जन्म सोलहवीं शताब्दी में ठहराया जाता है। इंग्लैण्ड में प्रथम बार सत्रहवीं शताब्दी में समाचार-पत्र का प्रकाशन स्वीकारा गया है। भारतवर्ष में अंग्रेजों के पदार्पण से पूर्व किसी भी समाचार-पत्र का उल्लेख नहीं मिलता। ‘इण्डिया गजट’ नामक ‘सरकारी पत्र’ सबसे पहली बार भारत में प्रकाशित हुआ। ईसाइयों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए समाचार-पत्र छापने प्रारम्भ कर दिये। ‘दर्पण’ नामक समाचार-पत्र इसी श्रृंखला की एक कड़ी है। ईश्वर चन्द्र ने ‘प्रभाकर’ तथा राजा राममोहन राय ने ‘कौमुदी’ नामक समाचार-पत्र प्रकाशित किये। मुद्रण कला के आविष्कार के साथ तो आज समाचार-पत्रों की बाढ़-सी आ गई है। ये समाचार-पत्र देश-विदेश की दैनिक खबर प्रकाशित करके जनसामान्य को प्रबुद्ध तथा जागरूक बना रहे हैं।

समाचार-पत्रों की आवश्यकता-इन्सान एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में जन्म लेता है। समाज में ही उसका पालन-पोषण होता है। वह समाज के सुख एवं दुःख को जानने के लिए प्रतिपल उत्सुक रहता है। वह चाहता है कि उसकी बात को कोई सुने तथा दूसरों की भावना को भी वह जाने। इस सबको जानने का एकमात्र साधन समाचार-पत्र है।

समाचार-पत्रों का महत्त्व–इस बात में कोई भी विरोध नहीं हो सकता कि समाचार-पत्रों का मानव जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक विषयक समाचार दिन-प्रतिदिन प्रकाशित होते हैं। जनसामान्य इन्हें बड़े शौक से पढ़ता है। दुनियाभर के समाचार इन पत्रों में प्रकाशित होते हैं। विश्व के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक के समाचार इन पत्रों में पढ़ने को मिल जाते हैं। चन्द पैसों में हम दुनिया के समाचार पढ़ लेते हैं। यदि कोई घटना हमारे लिए हानिप्रद अथवा लाभप्रद हो तो हम चैतन्य तथा जाग्रत होकर

उससे लाभ ग्रहण कर सकते हैं। व्यापारी व्यापार के विज्ञापन पढ़कर अपनी बिक्री में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। काम की तलाश में बेकार बैठे नवयुवक रिक्त स्थानों के विज्ञापन पढ़कर आवेदन-पत्र प्रस्तुत करके नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। विवाह के इच्छुक वैवाहिक विज्ञापन को पढ़कर मनवांछित जीवन साथी का चयन कर सकते हैं।

महत्त्वपूर्ण विषय के सन्दर्भ में सम्पादक महोदय जिस स्तम्भ को लिखते हैं, वह बहुत ही उपयोगी होता है। सम्पादक जनसामान्य की अपेक्षा अधिक प्रबुद्ध तथा जानकार होता है। उसकी सम्मति बहुत ही सारपूर्ण तथा उपयोगी होती है। पाठकों के स्तम्भ के अन्तर्गत पाठकों के विचार छपते हैं। ये विचार भी सारगर्भित होते हैं। . आज प्रजातन्त्र का युग है। आधुनिक समय में समाचार-पत्रों का महत्त्व और भी बढ़ गया है। ये जनमत को बनाने तथा बिगाड़ने के प्रबल साधन हैं। चुनाव के समय किसी भी दल को जिताने तथा हराने में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

सरकार तथा जनता के मध्य की कड़ी समाचार-पत्र ही होते हैं। सरकार की नीति तथा विचारों का खुलासा जनता के समक्ष समाचार-पत्र ही करते हैं। जनता के आक्रोश को भी सरकार के कानों तक समाचार-पत्र ही पहुँचाते हैं।

समाचार-पत्रों की शक्ति-समाचार-पत्रों की बहुत शक्ति होती है। वे किसी भी समस्या को लेकर आन्दोलन का सूत्रपात कर सकते हैं। जनता को प्रबुद्ध तथा जागरूक बनाकर सरकार को उसकी बात को स्वीकार करने के लिए विवश कर सकते हैं।

समाचार-पत्रों का उत्तरदायित्व-समाचार-पत्रों पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। समाचार-पत्रों को शक्ति-सम्पन्न होने पर भी सन्तुलित एवं मर्यादित होना चाहिए। समाचार-पत्रों को जनसामान्य का ठीक दिशा निर्देश करना चाहिए। उत्तेजक तथा सनसनीपूर्ण खबरें जनमानस में गलत धारणा का बीजारोपण करती हैं। अश्लील तथा हत्या की खबरें जनमानस को विकृत करती हैं। इनका प्रकाशन घटिया किस्म का है, अतः इसे रोकना चाहिए।

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उपसंहार-समाचार-पत्रों की प्रत्येक उन्नत राष्ट्र को महती आवश्यकता है। समाचार-पत्रं सभ्यता तथा संस्कृति के सजग प्रहरी होते हैं। ये क्रान्ति के अग्रदूत तथा सुधार तथा अलख जगाने वाले होते हैं। देश की आन्तरिक शान्ति स्थापना में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। हमारे देश में समाचार-पत्रों का भविष्य स्वर्णिम तथा मंगलमय है। राष्ट्र को ये नया स्वर देते हैं, नवीन प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। ये उन्नति के संदेशवाहक हैं।

12. किसी त्योहार का वर्णन-दीपावली

“दीपावली कह रही है,
दीप-सा युग-युग जलो।
घोर तम को पाट कर,
आलोक बनकर तुम चलो।।”

रूपरेखा-
(1) प्रस्तावना,
(2) दीपावली का तात्पर्य,
(3) दीपावली मनाने के कारण,
(4) लक्ष्मी पूजा पर्व,
(5) दीपावली की तैयारियाँ,
(6) बुराइयाँ,
(7) उपसंहार।

प्रस्तावना-अमावस की घनघोर काली रात में झिलमिल करती एवं जगमगाती मिट्टी के दीपकों की पंक्तियाँ तथा आसमान को चूमती हुई रंग-बिरंगी पटाखे तथा फुलझड़ियाँ जन-सामान्य के हृदय में खुशी की लहर पैदा कर देती हैं। दीपावली भारतवर्ष का प्रमुख त्योहार है। यह पर्व छोटे-छोटे नगर तथा ग्राम से लेकर बड़े-से-बड़े नगरों तथा कस्बों में सोत्साह मनाया जाता है। यह पर्व तिमिर नाशक है। सफाई तथा वैभव का प्रकाश विकीर्ण करने वाला है। कवि नीरज की निम्न पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं

“जलाओ दिए, पर ध्यान रहे इतना। धरा पर अँधेरा कहीं रह न जाये ?”

दीपावली का तात्पर्य-दीपावली को दीपोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। दीपक विवेक तथा प्रसन्नता का द्योतक है। दीपक प्रकाश विकीर्ण करते हैं। दीपावली का तात्पर्य रोलनी के पर्व से व्यक्त किया जाता है।

दीपावली मनाने के कारण यह ज्योति पर्व हर साल कार्तिक मास की अमावस्या के दिन उल्लासमय वातावरण में सम्पन्न किया जाता है। इसके मनाने के अनेक कारण हैं। कुछ लोगों की यह धारणा है कि भगवान राम चौदह साल के वनवास के पश्चात् अयोध्या लौटे, तो दीप जलाकर जनता द्वारा प्रसन्नता व्यक्त की गई,तभी से यह पर्व मनाया जाता है।

इसके अलावा भी दीपावली मनाने के अनेक कारण हैं। भारत एक कृषि-प्रधान देश है। यहाँ फसलों के तैयार होने पर कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है। जब फसल (खरीफ) पककर तैयार हो जाती है, तब दीपावली का पर्व मनाया जाता है।

अन्य कारण बरसात के महीने में सर्वत्र गन्दगी तथा सीलन हो जाती है। कीचड़ की दुर्गन्ध राह चलना भी दुश्वार कर देती है। वर्षा के समाप्त होने पर सफाई करना अपेक्षित हो जाता है। दीपावली पर मकानों की सफाई की जाती है तथा उन पर सफेदी की जाती है। रात्रि में दीपक जलाये जाते हैं। इससे हानिप्रद-कीट-पतंगों का नाश हो जाता है।

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लक्ष्मी पूजा पर्व–दीपावली लक्ष्मी पूजा का पर्व है। व्यापारी वर्ग इस अवसर पर विशेष रूप से लक्ष्मी की उपासना करते हैं। पुराने बहीखातों के स्थान पर नवीन बहीखाते खोलते हैं।

दीपावली की तैयारियाँ-दीपावली को मनाने के लिए कई दिन पूर्व से ही तैयारी की जाने लगती है। मकान साफ-सुथरे करके उन पर सफेदी की जाती है। दरवाजों तथा खिड़कियों पर रंग किया जाता है।

प्रातःकाल से ही बाजारों का दृश्य लुभावना तथा चित्ताकर्षक होता है। हलवाई की दुकानें अनेक स्वादिष्ट तथा रुचिकर मिठाइयों से सजी रहती हैं। चित्र, खिलौने तथा बर्तन दुकानों पर पंक्तिबद्ध लगे रहते हैं।

रात को लोग अपने घरों पर दीपक,मोमबत्ती तथा बिजली के बल्ब जलाते हैं। रोशनी के निमित्त बल्बों की झालरें घर के बाहरी भाग पर लटका देते हैं।

बालक आतिशबाजी, फुलझड़ी तथा पटाखे चलाते हैं। इस अवसर पर लोग तनाव तथा चिन्ता से मुक्त होकर हर्षपूर्वक त्योहार मनाने की खुशी में तिरोहित से हो जाते हैं।

इस दिन बताशे तथा खील का विशेष रूप से सेवन किया जाता है। बालक इनको प्रसन्नतापूर्वक खाते हैं। चीनी के खिलौनों का भी प्रचलन है।

त्योहार की शुरुआत नवरात्रि से ही हो जाती है। त्योहार वैसे धनतेरस से प्रारम्भ होता है। इसी दिन निर्धन एवं सम्पन्न बाजार से छोटा या बड़ा बर्तन खरीदते हैं। अगले दिन नरक-चौदस मनाते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस को मारा था। प्रतीक रूप में इस दिन यम का दीया प्रज्ज्वलित किया जाता है। कार्तिक अमावस्या को दीपावली विशेष रूप से मनाई जाती है। रात को धन की देवी लक्ष्मी की उपासना की जाती है। गणेश पूजा होती है। रात को दीपक जलाये जाते हैं। प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा होती है। इस दिन अन्नकूट तैयार किया जाता है। कार्तिक शुक्ला द्वितीया को भैयादूज के पर्व का आगमन होता है। इस अवसर पर बहिन अपने भाई के मस्तक पर रोली का टीका लगाती है। भाई उनको पुण्य के रूप में उपहार देता है।

बुराइयाँ-दीपावली के पर्व में अच्छाइयों के साथ बुराइयाँ भी प्रवेश कर गई हैं। आतिशबाजी तथा पटाखे असावधानीपूर्वक छोड़ने से आग लगने का कारण बनते हैं। इससे जान तथा माल का नुकसान होता है।

दीपावली की रात्रि में लोगों में जुआ खेलने का प्रचलन बढ़ गया है। उनकी यह गलत मान्यता है कि इस दिन जुआ में पैसा जीतने पर वह धन-सम्पन्न हो जायेंगे। उनके घरों पर लक्ष्मी का वास हो जायेगा, लेकिन जुआ की यह प्रथा निन्दनीय है।

चोर भी यह सोचते हैं कि हमें दीपावली के दिन रात को चोरी करके अपनी भाग्य की आजमाइश करनी चाहिए। यदि इस दिन वे चोरी करने में सफल हुए तो मालामाल हो जायेंगे।

अन्ध-विश्वास में जकड़े कुछ लोग रात को घर के मुख्य प्रवेश द्वार को खुला छोड़ देते हैं। इस प्रकार द्वार को खुला छोड़ना चोरों को चोरी करने का खुला निमन्त्रण है।

उपसंहार-दीपावली उल्लास तथा रोशनी का पर्व है। भारत की संस्कृति तथा सभ्यता का प्रतीक है। यह अन्धकार पर प्रकाश की विजय का परिचायक है। हमें स्वयं उल्लास में डूबकर दूसरों को भी प्रफुल्लित करना चाहिए तभी इस पर्व का मनाना सार्थक होगा-मिलकर करें हम कोशिश यहीं कि हृदय में अँधेरा कहीं रह न जाये।

13. साक्षरता के बढ़ते चरण [2009]
अथवा
साक्षरता अभियान

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • साक्षरता का अर्थ,
  • शिक्षा और साक्षरता,
  • असाक्षरता के कारण,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना शिक्षा का मानव जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। आज के समाज में अशिक्षित व्यक्ति मृतक के समान है, क्योंकि शिक्षा ही एकमात्र ऐसा साधन है जिसके द्वारा व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है। व्यक्ति अपनी जन्मजात शक्तियों को शिक्षा के द्वारा विकसित करके प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। अशिक्षित व्यक्ति को प्रत्येक कर्म के लिए दूसरों का मुँह ताकना पड़ता है। अशिक्षित व्यक्ति एक अपाहिज की भाँति होता है, उसे प्रतिक्षण दूसरों की वैसाखी की आवश्यकता पड़ती है। अतः पराधीन रहकर व्यक्ति सफल नहीं हो सकता है। किसी कवि ने उचित ही कहा है

“पराधीन सपनेऊ सुख नाहीं।”

अतः प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित होना चाहिए तभी देश व समाज का उत्थान सम्भव है अन्यथा देश की उन्नति अवरुद्ध हो जायेगी।

साक्षरता का अर्थ-साक्षरता से तात्पर्य सा + अक्षर अर्थात् अक्षरों को पढ़ने-लिखने और शब्दों-वाक्यों आदि के अर्थ को समझने की क्षमता से है।

साक्षर व्यक्ति ही भाषा के लिखित रूप को पढ़-लिख और समझ सकता है। निरक्षर व्यक्ति को साक्षर व्यक्ति की सहायता लेनी पड़ती है। इस प्रकार वह व्यक्ति दूसरों पर निर्भर रहता है। निरक्षर व्यक्ति समाज के लिए अभिशाप है। निरक्षर व्यक्तियों का सरलता से शोषण कर लिया जाता है। वे अन्धविश्वासों व परम्पराओं में जकड़े रहते हैं।

शिक्षा और साक्षरता शिक्षा जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति जीवन-पर्यन्त कुछ न कुछ सीखता रहता है। यह प्रक्रिया किसी न किसी रूप में चलती रहती है। शिक्षा के लिए कोई उम्र नहीं होती,प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित होने का अधिकार है। शिक्षित व्यक्ति शिक्षा के माध्यम से अपने मार्ग की बाधाओं को सरलता से दूर कर लेते हैं।

भारतीय संविधान के नीति-निदेशक सिद्धान्तों में 14 वर्ष तक की आयु के बालक-बालिकाओं के लिए निःशुल्क अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को भी शामिल किया गया।

इसके लिए राष्ट्रीय चेतना उपसंहार को जाग्रत करना अत्यधिक आवश्यक है। साक्षरता के प्रसार के लिए मिशनरी भावना का होना अपेक्षित है।

सरकारी अधिकारी, कर्मचारियों एवं सम्पूर्ण समाज को निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।

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अतः साक्षरता को जन आन्दोलन बनाने की महती आवश्यकता है। मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में-

“सबसे प्रथम कर्त्तव्य है, शिक्षा बनाना देश में
शिक्षा बिना ही पड़ रहे हैं, आज हम सब क्लेश में।”

सन् 1986 में जब संसद ने शिक्षा की राष्ट्रीय नीति स्वीकृत की तब देश में साक्षरता का प्रतिशत 36.2 प्रतिशत था। इसके अन्तर्गत नारी साक्षरता का प्रतिशत पुरुष साक्षरता के प्रतिशत से न्यून था।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के लम्बे अन्तराल के पश्चात् भी अनेक कानून बने। इसके लिए भरसक प्रयास हुआ परन्तु फिर भी अधिक सुधार दृष्टिगोचर नहीं हुआ। जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप मूल स्थिति में सुधार नहीं हुआ है।

असाक्षरता के कारण

  1. आर्थिक तथा कुछ सामाजिक कारण थे। 6 से 14 वर्ष की उम्र के बालक आज भी पाठशाला नहीं जा रहे हैं। ऐसे अशिक्षितों की संख्या करोड़ों से भी ऊपर है।
  2. प्रौढ़ शिक्षा मात्र कागजी है। इसके अन्तर्गत मिले हुए अनुदान का दुरुपयोग हो रहा है।
  3. प्रौढ़ शिक्षा एवं साक्षरता के अनेक आन्दोलन भी हुए। फलस्वरूप पर्याप्त भाग में साक्षर बनाये गये। अनेक जनपद साक्षर घोषित भी कर दिये गये लेकिन सत्य इसके विपरीत है।

नव साक्षरों के पठन-पाठन की भी सुव्यवस्था नहीं है। प्रौढ़ शिक्षा के लिए मिशनरी भावना का समावेश अपेक्षित है।

उपसंहार–प्रत्येक साक्षर कम-से-कम एक निरक्षर को साक्षर बनाने का प्रयास करे। – साक्षरता के अभाव में सुराज की कल्पना दुराशा मात्र है। साक्षरता को आन्दोलन बनाने की आवश्यकता है।

14. आतंकवाद [2017]

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • आतंकवाद का समाज पर प्रभाव,
  • आतंकवाद राजनीति के क्षेत्र में,
  • आतंकवाद का मूल कारण आर्थिक समस्या,
  • पंजाब विभाजन की माँग,
  • उत्तर भारत आतंकवाद का प्रमुख केन्द्र,
  • उपसंहार।।

प्रस्तावना हमारे देश में अनेक समस्यायें हैं, उनमें से आतंकवाद एक प्रमुख समस्या है। आज यह समस्या भारत के समक्ष एक विकट चुनौती के रूप में उपस्थित है, विशेषकर इस कारण क्योंकि उसका पड़ोसी देश पाकिस्तान आतंकवाद को सामरिक एवं राजनीतिक रूप प्रदान कर चुका है, वह आतंकवाद द्वारा सम्प्रति कश्मीर की ओर अन्ततः भारत को अपने अधीन करने का दुःस्वप्न देखता है। विश्व मंच पर यह प्रश्न उपस्थित है, क्या पाकिस्तान को एक आतंकवादी राष्ट्र घोषित कर दिया जाए?

आतंकवाद का समाज पर प्रभाव-आतंकवाद विश्व के क्षितिज पर बादलों की भाँति छाया हुआ है। आतंकवाद परमाणु बम से भी अधिक भयावह बन गया है,क्योंकि इसने विश्व मानव को संत्रास्त बना रखा है और मानव समाज को विनाश के घेरे में स्थित कर दिया है। आज आतंकवाद अपनी बात को मनवाने का एक सामान्य नियम बन गया है, तोड़-फोड़, लूट-खसोट, अपहरण, हत्या, आत्महत्या आदि इसके रूप हैं।

आतंकवाद राजनीति के क्षेत्र में आज आतंकवाद साधारण व्यक्ति से लेकर राजनीति तक अपने पाँव पसारे हुए है। इसकी जड़ें दिनों-दिन गहरी होती जा रही हैं। भारत में राजनीतिक क्षेत्र में क्षेत्रवाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण विभाजक तत्व बन गया है, सांस्कृतिक टकराव, आर्थिक विषमता,मतभेद,न्यायपालिका की दुर्बलता सर्वव्यापी भ्रष्टाचार आदि अनेक तत्व आतंकवाद का पोषण करते हैं। भारत में आतंकवाद का बीजारोपण भाषायी राज्यों के गठन ने किया। भाषायी प्रदेशों के नाम पर खून-खराबा हुआ, राजभाषा का हिन्दी के नाम पर दक्षिण भारत में कितने

आतंकवादियों को जन्म दिया है, इन सब बातों का हिसाब किसके पास है ? खालिस्तान की माँग, मिजोरम समस्या, गोरखालैण्ड आन्दोलन, पृथक् उत्तराखण्ड की माँग आदि क्षेत्रवाद की उपज हैं, श्रीलंका में तमिल समस्या, इसी कोटि के क्षेत्रवादी आतंकवाद का ज्वलंत उदाहरण है। बंगाल में इस प्रकार की विचारधारा बंगाल में बाहर से जाकर बसने वालों के लिए सिरदर्द रही है।।

आतंकवाद का मूल कारण आर्थिक समस्या-आज आतंकवाद का मूल कारण लोगों की आर्थिक समस्या है। इस समस्या ने सामान्य जन को विशेष कर युवावर्ग को विद्रोही एवं असंतोषी बना दिया है। इनमें साहसी व्यक्ति दुस्साहसपूर्ण आतंकवाद का रास्ता अपनाकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

पंजाब विभाजन की माँग-आतंकवाद का जन्म स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी के कार्यकाल में हो गया था। राजनीति की रोटियाँ सेकने की दृष्टि से स्व.श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने भिंडरवाला की पीठ थपथपा दी,फलतःस्थिति बेकाबू हो गयी,इसके बाद अमृतसर का स्वर्ण मन्दिर आतंकवादियों का गढ़ बन गया। इस पर विजय प्राप्त करने के लिए सैनिक कार्यवाही की गयी, अंगरक्षक सिक्ख सैनिकों द्वारा इन्दिरा गाँधी की हत्या की गयी। इसके अतिरिक्त अनेक निर्दोष सिक्खों की हत्याएँ की गयीं। इसके बाद आतंकवादी गतिविधियाँ दिन पर दिन शक्तिशाली होती गयीं।

उत्तर भारत आतंकवाद का प्रमुख केन्द्र-इन्दिरा गाँधी की हत्या के पश्चात् उत्तर भारत आतंकवाद का प्रमुख केन्द्र बन गया। रेलों में लूटपाट,बलात्कार,रेलमार्ग की तोड़-फोड़,रेलों की टक्करें, बसों में लूटपाट आदि आतंकवाद के परिवार में जन्मे हैं। संक्षेप में उत्तर भारत में जन-जीवन सर्वथा अनिश्चित बन गया है। कश्मीर में आतंकवाद की समस्या का जन्म हुआ फलतः कारगिल की समस्या उसकी परिणति के रूप में सामने आयी।

उपसंहार-अब स्थिति यह बन गयी है कि प्रायःप्रत्येक राष्ट्र में आतंकवाद संत्रास का हेतु बन गया है। कुछ ऐसी हवा चलने लगी है कि भारत को समर्थन देने के नाम पर विश्व के अनेक देश आतंकवाद के विरुद्ध लामबन्द होने की बातें करने लगे हैं। पाकिस्तान का प्रबल समर्थक अमरीका भी अब पाकिस्तानी आतंकवाद से परेशान है और वह भी उसे आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने का मन बनाने लगा है। आतंकवाद पर विजय प्राप्त करने के लिए राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सभी स्तरों पर निष्ठा के साथ प्रयत्न उपेक्षित हैं।

15.विद्यालय का वार्षिकोत्सव [2009]

“गा उठी हैं कन्दराएँ,
बह उठे हैं स्रोत रस के।
हर्ष और उल्लास का,
नव पर्व सा छाया हुआ है।”

रूपरेखा [2016]-

  • प्रस्तावना,
  • समय,
  • उत्सव का शुभारम्भ,
  • अनेक आयोजन,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना प्रत्येक विद्यालय में वार्षिकोत्सव सम्पन्न किया जाता है। वार्षिकोत्सव विद्यालय की प्रगति तथा उल्लास का प्रतीक है। छात्रों, अध्यापकों तथा अभिभावकों के मिलने का एक शुभ अवसर है। इस अवसर पर विद्यालय खूब सजाया जाता है। विद्यालय के भवन पर रोशनी की जाती है। रोशनी के प्रकाश से विद्यालय की शोभा में चार चाँद लग जाते हैं। वार्षिकोत्सव का नाम कर्ण कुहरों में पड़ते ही छात्रों के मन प्रसन्नता से हिलोरें लेने लगते हैं।

समय-हमारे विद्यालय में वार्षिकोत्सव प्रतिवर्ष शिवरात्रि के पर्व पर सम्पन्न किया जाता है। इसी दिन महर्षि दयानन्द सरस्वती को बोध प्राप्त हुआ था। हर साल की तरह हमारे विद्यालय का वार्षिक उत्सव महान् समाज सेविका डॉ. आर. के. वर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न किया गया। वार्षिकोत्सव मनाने का समय सायंकाल चार बजे का निर्धारित किया गया। नगर के प्रतिष्ठित महानुभाव, शिक्षा शास्त्री, प्रधानाचार्य तथा विद्यालय के छात्र तथा अध्यापक निश्चित समय से पूर्व ही आकर नियत स्थानों पर आसीन हुए। सबके चेहरों में हर्ष तथा उमंग के भाव नजर आ रहे थे।

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उत्सव का शुभारम्भ-विद्यालय के प्रवेश द्वार पर प्रधानाचार्य तथा कतिपय अध्यापक गण उस उत्सव के लिए मनोनीत अध्यक्ष का स्वागत करने के लिए पलक पाँवड़े बिछाए हुए थे। ठीक 3.50 बजे अध्यक्ष का वाहन प्रवेश द्वार पर आकर रुका। प्रधानाचार्य तथा अध्यापकों ने उनका भव्य तथा सोत्साह स्वागत किया। जैसे ही अध्यक्ष ने पंडाल में कदम बढ़ाये,छात्रों तथा अध्यापकों ने खड़े होकर तथा ताली बजाकर उनके प्रति आदर भाव व्यक्त किया। विद्यालय के प्रधानाचार्य ने अध्यक्ष से आसन ग्रहण करने की प्रार्थना की। अध्यक्ष के आसन पर आसीन होने पर पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया। विद्यालय के एक छात्र ने अध्यक्ष को माला पहनाकर स्वागत गान गाया। जिसके बोल निम्नवत् हैं-

“स्वागत समादर आपका,
आये कृपा कर आप हैं।
दर्शन सुमग देने हमें,
हरने हमारे ताप हैं ॥”

ईश वन्दना से इस उत्सव का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम की एक प्रति संयोजक के पास थी तथा दूसरी अध्यक्ष की मेज पर रख दी गई। विद्यालय के प्रधानाचार्य ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया। उसके बाद आये हुए गणमान्य लोगों के प्रति भी आभार प्रदर्शित किया। विद्यालय के छात्रों ने महान् कहानीकार प्रेमचन्द द्वारा लिखित पंच परमेश्वर कहानी का नाट्य रूपान्तर बड़े ही सफल ढंग से अभिनीत किया था। पात्र अलगू तथा जुम्मन चौधरी के यह कथन सुनकर-“पंच न किसी का दोस्त होता है तथा न दुश्मन,पंच खुदा का स्थान होता है।”

इन शब्दों को सुनकर दर्शक भाव-विभोर हो गए। एक छात्र ने डॉ.श्याम नारायण पांडेय की वीर रस की कविता सुनाकर सबको वीर रस का ही कर दिया। देश-प्रेम तथा कारगिल युद्ध से सम्बन्धित भारतीय सैनिकों के शौर्य तथा बलिदान की कविता दर्शकों के मन-मानव को झकझोरने वाली थी। एक छात्र का मूक अभिनय भी प्रशंसनीय था।

अनेक आयोजन-इस भाँति छात्रों ने अनेक प्रकार के कार्यक्रम प्रस्तुत किये। इन कार्यक्रमों की दर्शकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। प्रधानाचार्य ने विद्यालय की वार्षिक प्रगति का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। विद्यालय में जो छात्र हाईस्कूल तथा इण्टर की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे, उनके नाम पढ़कर सुनाये। नामों को सुनकर सम्बन्धित छात्र मित्र तथा अभिभावक प्रसन्नता का अनुभव करने लगे। प्रधानाचार्य ने इस अवधि में विद्यालय में आये उतार-चढ़ावों का भी उल्लेख किया तथा सबके सहयोग की आकांक्षा भी की क्योंकि बिना सहयोग के अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

इसके पश्चात् डॉ. आर. के. वर्मा ने छात्रों को चरित्र निर्माण विषयक बहुत ही शिक्षाप्रद भाषण दिया। उन्होंने छात्रों से कहा

“उद्यम ही बस सुख की निधि है।
बनता जो मानव का विधि है ॥”

इसके पश्चात् अध्यक्ष महोदय ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजयी हुए छात्रों को पुरस्कार प्रदान किये।

प्रधानाचार्य ने आगन्तुकों, अभिभावकों, अध्यापकों तथा छात्रों के प्रति आभार व्यक्त किया क्योंकि सबके सहयोग के फलस्वरूप ही उत्सव की शोभा में चार चाँद लग सके। मिष्ठान्न वितरण के साथ ही प्रधानाचार्य ने एक दिन के अवकाश की घोषणा की। इसे सुनकर छात्र प्रसन्नता से फूले नहीं समा रहे थे।

उपसंहार-वार्षिकोत्सव विद्यालय का एक आवश्यक पहलू है। छात्र, अभिभावकों तथा अध्यापकों के मिलने का एक पावन अवसर है। विद्यालय की उन्नति तथा उतार-चढ़ावों का परिचायक है। छात्रों के मन-मानस में एक नवीन उत्साह तथा उल्लास को भरने वाला है। मन तथा मस्तिष्क को तरोताजा बनाने का सर्वोत्तम साधन है।

16. समाज में नारी का स्थान
अथवा
स्वतन्त्र भारत में नारी का स्थान [2009]
अथवा
आधुनिक भारत में नारी [2010, 15]
अथवा
भारतीय समाज में नारी का स्थान [2012]

रूपरेखा [2018]-

  • प्रस्तावना,
  • प्राचीन काल में नारी,
  • मध्य युग में नारी,
  • वर्तमान युग में नारी,
  • पाश्चात्य प्रभाव,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-आधुनिक नारी जीर्ण-शीर्ण मान्यताओं एवं गुलामी की जंजीर को छिन्न-भिन्न करके उन्नति की दौड़ में पुरुष के साथ कदम मिलाकर प्रतिपल आगे बढ़ रही है। उच्च शिक्षा प्राप्त करके कार्यालयों, विश्वविद्यालयों, रक्षा एवं वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग देकर महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रही है। अनेक साहित्यिक एवं वैज्ञानिक विषयक पुस्तकों की भी रचना कर रही है। उनके दिशा निर्देशन के फलस्वरूप शिक्षा जगत् में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन की झलक स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही है

“पहले भारत में नारी को, देवी सा पूजा जाता था।
फिर उसको पददलित मानकर, घर में ही रौंदा जाता था।
पुनः जागरण का युग आया, नारी का सम्मान बढ़ा।
अपने श्रम पौरुष से उसको, फिर ऊँचा स्थान मिला।”

नारी के अभाव में मानवता की कल्पना करना आकाश कुसुम के समान है। वह जननी, बेटी,पत्नी, देवी एवं प्रेयसी आदि रूपों से विभूषित है। नारी के बिना मानव अपूर्ण है। मानव पर उसका अमूल्य उपकार है। वह पुरुष की सहभागिनी है, जीवन संगिनी है।

प्राचीन काल में नारी-वैदिक काल में नारी का महत्त्वपूर्ण स्थान था। आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्र में भी नारी की भूमिका अग्रणी थी। सीता, अनसूया,गार्गी,सावित्री एवं सुलभा इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। इनके नाम इतिहास में स्वर्णांकित हैं।

मध्य युग में नारी-मध्य युग में नारी के गौरव का ह्रास हुआ। कबीर,तुलसी आदि सन्तों ने भी नारी को विकार एवं ताड़ना का पात्र ठहराया। मुसलमानों के अत्याचारों के फलस्वरूप उसे मकान की चहारदीवारी में कैद कर दिया गया।

वर्तमान युग में नारी-राष्ट्रीय एवं सामाजिक चेतना जाग्रत होने के कारण वर्तमान में नारी की दशा में आशातीत सुधार हुआ है। राजा राममोहन राय एवं दयानन्द ने नारी को पुरुष के समकक्ष होने के अधिकार से सम्पन्न कराया। शिक्षा के द्वार खोले।।

आज नारी उन्मुक्त होकर पुरुष के साथ कदम मिलाकर प्रतिपल उन्नति की मंजिल की ओर अग्रसर है। इन्दिरा गाँधी, कमला नेहरू, सरोजनी नायडू, महादेवी वर्मा एवं विजय लक्ष्मी पंडित इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं।

पाश्चात्य प्रभाव-पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव के फलस्वरूप आज भारतीय नारी अपने प्राचीन आदर्शों और मान्यताओं को तिलांजलि दे रही है। भोग-विलास, मौज-मस्ती एवं ‘खाओ पीओ मौज उड़ाओ’ के कुपथ का अनुगमन कर रही है। करुणा, ममता, कोमलता एवं स्नेह को त्याग कर अपनी छवि को धूमिल कर रही है। आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र होने की वजह से नारी आज विलासिता की ओर उन्मुख है।

उपसंहार-अतः आज इस बात की परम आवश्यकता है कि भारतीय नारी को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण न करके प्राचीन उत्तम आदर्शों एवं मान्यताओं को स्वीकार करना चाहिए। ऐसा होने पर वह ऐसा स्थान प्राप्त कर सकेगी, जो देवों के लिए भी दुर्लभ है।

17. दहेज प्रथा
अथवा
दहेज एक सामाजिक अभिशाप है [2009, 16]
अथवा
दहेज एक सामाजिक समस्या [2010]

“पढ़-लिख स्वावलम्बिनी बनकर, जग को आज दिखा दो।
जिसने तुम्हें जलाया उसको, जड़ से आज मिटा दो।”

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • प्राचीन काल में दहेज का स्वरूप,
  • मध्यकाल में नारी की दयनीय स्थिति,
  • आधुनिक काल में दहेज का स्वरूप,
  • निराकरण के उपाय,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-आज भारतीय समाज में दहेज एक अभिशाप के रूप में व्याप्त है। दहेज के अभाव में निर्धन अभिभावक अपनी बेटी के हाथ पीले करने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं। दहेज उन्मूलन के जितने प्रयास किये जाते हैं, उतना ही वह सुरसा के मुँह की तरह बढ़ता जा रहा है। किसी शायर के शब्दों में-

“मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की।”

प्राचीन काल में दहेज का स्वरूप-प्राचीन काल में कन्या को ही सबसे बड़ा धन समझा जाता था। माता-पिता वर-पक्ष को अपनी सामर्थ्य के अनुसार जो कुछ देते थे, उन्हें वे सहर्ष स्वीकार कर लेते थे और जो धन कन्या को दिया जाता था, वह स्त्री धन समझा जाता था।

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मध्यकाल में नारी की दयनीय स्थिति-मध्यकाल में नारी के प्राचीन आदर्श ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते’ को झुठलाकर भोग एवं विलासिता का साधन बना दी गई। उसका स्वयं का अस्तित्व घर की चारदीवारी में सन्तानोत्पत्ति करने में ही सिमट कर रह गया। इस समय पर पुरुष समाज द्वारा उसे धन के समान भोग्य वस्तु समझा जाता था। उसके धन को और माता-पिता द्वारा दिये गये धन को वह अपनी वस्तु समझने लगा।

आधुनिक काल में दहेज का स्वरूप-आधुनिक काल में दहेज का लेना वर पक्ष का जन्म सिद्ध अधिकार-सा बन गया है। दहेज के बिना सद्गुणी कन्या का विवाह होना भी एक जटिल समस्या बन गया है। इस दहेज की बलिवेदी पर न जाने कितनी कन्याएँ आत्महत्या करने के लिए विवश हो रही हैं। इतने पर भी दहेज लोभियों का हृदय तनिक भी द्रवीभूत नहीं होता। .

निराकरण के उपाय

  • युवक और युवतियाँ दहेज रहित विवाह के लिए कृतसंकल्प हों।
  • अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन दिया जाये।
  • दहेज लोलुपों का सामाजिक बहिष्कार हो।
  • सरकार को इस विषय में सक्रिय एवं कठोर कदम उठाने चाहिए।
  • सामूहिक विवाहों का प्रचलन हो।
  • दहेज रहित विवाह करने वालों को सामाजिक संगठनों द्वारा पुरस्कृत किया जाय।

उपसंहार-दहेज का उन्मूलन अकेले सरकार के द्वारा नहीं किया जा सकता। इसके लिए देश के कर्णधारों, मनीषियों एवं समाज सुधारकों को भगीरथ प्रयास करना होगा। प्राचीन भारतीय आदर्शों की पुनः प्रतिष्ठा करनी होगी जिसमें नारी को गृहस्थी रूपी रथ का एक पहिया समझा जाता था। वह गृहलक्ष्मी की गरिमा से मंडित थी। उसकी छाया में घर-घर स्वर्ग बना हुआ था तथा घर आँगन फुलवारी के रूप में सुवासित था।

18. मेरा देश महान्
अथवा
मेरा भारत महान्

“सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा॥”

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • भौगोलिक स्थिति,
  • गौरवपूर्ण संस्कृति,
  • विशेषताएँ,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना हमारे देश की गिनती दुनिया के प्राचीनतम देशों में होती है। सभ्यता एवं ज्ञान का आलोक भारत की धरती से ही समस्त संसार में प्रसारित हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, गौतम बुद्ध एवं महावीर स्वामी ने यहाँ की भूमि पर ही अपने शैशव की आँखें खोली थीं। सज्जनों की रक्षा तथा दुष्टों का दमन करने के लिए भगवान भारत की धरती पर ही अवतार लेते हैं तथा मानव मात्र को एक दिव्य संदेश देते हैं। यह कितने गौरव की बात है।

भौगोलिक स्थिति-भारत की उत्तर दिशा में पर्वत राज हिमालय इसके मुकुट के समान सुशोभित है। दक्षिण में विशाल सागर इसके चरणों को निरन्तर धो रहा है। पूर्व में बांग्लादेश एवं पश्चिम में पाकिस्तान देश स्थित हैं। हम अपने पड़ोसी देशों से बन्धुत्व एवं मानवीय व्यवहार के पक्षधर हैं; जिओ और जीने दो’ के सिद्धान्त के अनुयायी हैं।

गौरवपूर्ण संस्कृति-विभिन्न प्रान्तों,समुदायों एवं भाषाओं के मेल से हमारी संस्कृति का निर्माण हुआ है। हमारी संस्कृति समन्वय की भावना से आपूरित है। हम सम्मान देकर सम्मान पाने की कामना करते हैं। हमारे हृदय के द्वार सभी के लिए खुले हुए हैं। मेरे देश का हृदय उदार तथा मानवीय गुणों से भरा है।

विशेषताएँ–

  • अनेकता में एकता,
  • धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र,
  • आपसी भाईचारे की भावना सुदृढ़ है,
  • विशाल एवं उदार दृष्टिकोण है,
  • महान् विभूतियों की जन्मस्थली है।

उपसंहार-यह बड़े गर्व एवं सौभाग्य का विषय है कि हमने इस देश की धरती में जन्म लिया है। प्रकृति ने इस देश की सुषमा को स्वयं सजाया है। लहराती एवं इठलाती हुई नदियाँ एवं सरोवर इसकी शोभा को बढ़ा रहे हैं। वास्तव में इस देश का वैभव अवर्णनीय है। हम भाग्यशाली हैं क्योंकि हमने ऐसे देश में जन्म लिया है, जहाँ देवता भी जन्म लेने के लिए लालायित रहते हैं।

“सम्पूर्ण देशों से अधिक जिस देश का उत्कर्ष है
वह देश मेरा देश है, वह देश भारतवर्ष है।”

19. देश में कम्प्यूटर की प्रगति
अथवा
भारत में कम्प्यूटर के बढ़ते चरण
अथवा
कम्प्यूटर और उसका महत्त्व [2009, 10, 11, 13]
अथवा
कम्प्यूटर आज की आवश्यकता [2009]

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • भारत में कम्प्यूटर का विकास,
  • शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर,
  • चिकित्सा के क्षेत्र में कम्प्यूटर,
  • विज्ञान के क्षेत्र में कम्प्यूटर,
  • रोजगार के क्षेत्र में कम्प्यूटर,
  • समाज के अन्य क्षेत्रों में कम्प्यूटर,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-आधुनिक युग में विज्ञान ने चमत्कारिक उन्नति की है। विज्ञान ने मानव को वे चमत्कार दिये हैं कि आज पूरी दुनिया उसकी मुट्ठी में कैद हो गई है। विश्व-पटल की कोई भी घटना से अब वह अनभिज्ञ नहीं रह गया है। विज्ञान के द्वारा उसने प्रकृति को भी अपने नियन्त्रण में कर लिया। बाहर चाहे भीषण गर्मी का प्रकोप बरस रहा हो, अन्दर एयर कंडीशनर (वातानुकूलन-यन्त्र) शीत का आनन्द प्रदान कर रहा है। रेफ्रीजरेटर शीतल पेय और भोज्य पदार्थों का आस्वादन करा रहा है। एयर कंडीशन्ड गाड़ियाँ पलक झपकते इधर से उधर पहँचा रही हैं। टेलीविजन सारी दुनिया की आँखों देखी घटना आँखों को दिखा रहा है। अब इस क्षेत्र में यदि कोई कमी रह गई, तो वह है संगणक अथवा कम्प्यूटर की। इतने सारे आविष्कारों में वैज्ञानिक इसे कैसे भूल सकते हैं। पलक झपकते सारी समस्याओं के हल चाहिए, पृथ्वी और अन्तरिक्ष का ज्ञान चाहिए,गणित के बड़े-बड़े सवालों के हल चाहिए,तो उपस्थित है कम्प्यूटर-ज्ञान का बक्सा। खोलो और अपनी-अपनी मन-वांछित जानकारियाँ लो।

भारत में कम्प्यूटर का विकास-भारत में कम्प्यूटर का विकास, सन् 1984 ई. से सरकार द्वारा कम्प्यूटर नीति की घोषणा के उपरान्त प्रारम्भ हुआ। भारत का सर्वश्रेष्ठ कम्प्यूटर है-सुपर कम्प्यूटर। कम्प्यूटर के क्षेत्र में विश्व में हमारे देश का पाँचवाँ स्थान है। इस समय कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में हम निर्यातक भी हो चुके हैं।

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शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर का अत्यन्त महत्त्व है। इस समय यह एक अपरिहार्य आवश्यकता बन चुका है। कम्प्यूटर के विद्यावाहिनी एवं ज्ञानवाहिनी कार्यक्रमों द्वारा शिक्षण कार्य सरल और रोचक बनाया जा रहा है। भारत ने शिक्षा में कम्प्यूटर को सर्वसुलभ बनाने हेतु एजुसैट नामक उपग्रह भी स्थापित किया है। इस कारण आज छात्र तकनीकी ज्ञान,गणितीय ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान आदि सभी का भरपूर लाभ ले सकते हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में कम्प्यूटर-कम्प्यूटर से दूरस्थ चिकित्सा प्रणाली विकसित की गई है। साथ ही शरीर के अन्दर की गतिविधियाँ, बीमारियाँ आदि कम्प्यूटर के जरिए बड़ी आसानी से जानी जा रही हैं। इससे मरीज का इलाज करने में बहुत सुविधा रहती है।

विज्ञान के क्षेत्र में कम्प्यूटर-कम्प्यूटर का वैज्ञानिक जगत में अत्यन्त महत्त्व है। सुदूर, अन्तरिक्ष में होने वाली गतिविधियाँ अथवा अतल सागर की गहराई में होने वाली हलचल, मौसम, ग्रहों, उपग्रहों,उल्कापिंडों आदि की जानकारी कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त की जा सकती है।

रोजगार के क्षेत्र में कम्प्यूटर-रोजगार के क्षेत्र में कम्प्यूटर की बहुत अहमियत है। कम्प्यूटर पर ई-मेल, ई-रेल, ई-कॉमर्स, इलैक्ट्रॉनिक गवर्नेन्स, इण्टरनेट आदि के द्वारा रोजगारों के नये अवसर उपलब्ध रहते हैं। समाज के अन्य क्षेत्रों में कम्प्यूटर-आधुनिक युग में कम्प्यूटर एक अनिवार्य आवश्यकता है। सिनेमा,मनोरंजन,संगीत,खेल आदि के क्षेत्र में कम्प्यूटर ने क्रान्ति उत्पन्न कर दी है।

उपसंहार-इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में भारत के शहरी और ग्रामीण, सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर का बोलबाला है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कम्प्यूटर ने अत्यन्त उन्नति की है।

20. देश में भ्रष्टाचार की समस्या

“भ्रष्टाचार नहीं मिटता है
फैली जड़ किस वन में ?
कहीं न ढूँढ़ो यारो, यह तो
रहती अपने मन में॥”

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • भ्रष्टाचार के विविध रूप,
  • राजनीति के क्षेत्र में भ्रष्टाचार,
  • शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार,
  • चिकित्सा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार,
  • धर्म के क्षेत्र में भ्रष्टाचार,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-आज देश में भ्रष्टाचार की विकराल समस्या व्याप्त है। संसार को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले जगद्गुरु भारत की यह दुर्दशा। आखिर कौन है जिम्मेदार इस मर्ज का ? भ्रष्टाचार रूपी मर्ज का आज तो यह हाल है कि ‘मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की’ अर्थात इस रोग का कोई उपचार क्यों नहीं है ? इसका कारण है कि यह रोग दूसरों से नहीं फैलता,बल्कि स्वयं अपने से फैलता है। हम सभी स्वयं में झाँककर देखें,क्या इसे पल्लवित और पुष्पित करने में हमारा योगदान नहीं है ? समाज में हम रहते हैं और समाज में ही भ्रष्टाचार व्याप्त है।

भ्रष्टाचार के विविध रूप-आज हमारे समाज का कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है। राजनीति का क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो, चिकित्सा का क्षेत्र हो, धर्म का क्षेत्र हो, सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।

राजनीति के क्षेत्र में भ्रष्टाचार-आज शुद्ध और सात्विक राजनीति की तो कल्पना करना भी दुष्कर है। राजनीति में आते ही नेता अपनी-अपनी पीढ़ी-दर-पीढ़ी की आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था करने लगते हैं। जनता की परिश्रम की कमाई उनके बैंक-बैलेंस का वजन बढ़ाती है। राजनेता देश के दलाल हो गये हैं। उनका वश चले तो वे अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए देश को ही. बेच डालें। बोफोर्स काण्ड, किट्स काण्ड, चारा घोटाला, यूरिया घोटाला, हवाला काण्ड आदि तो अत्यन्त छोटे उदाहरण हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार-शिक्षार्थी हो या शिक्षक; आज सभी शिक्षा माफियाओं के शिकार हो रहे हैं। शिक्षा माफिया ‘पैसे दो और डिग्री लो’, पैसे दो और एडमिशन लो’, ‘पैसे दो और नौकरी लो’ आदि के व्यवसाय में लगा हुआ है। उसे न देश के भविष्य की चिन्ता है,न छात्र के जीवन की। नकल की व्यवस्था कराकर अनपढ़ पीढ़ी की उपज बढ़ाने वाले ये लोग देश के सबसे खतरनाक दुश्मन हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार-आज का डॉक्टर या चिकित्सक जिसे लोग भगवान कहकर पूजते हैं, अपना ईमान-धर्म खोकर येन-केन प्रकारेण मोटी कमाई के चक्कर में फंस गया है। दवा बनाने वाली कम्पनियाँ नकली दवा बनाकर मरीजों के प्राणों से खेल रही हैं, तो कहीं नर्सिंग होम से नवजात शिशुओं का व्यापार हो रहा है। आये दिन नवजात शिशुओं को अपहरण कर दूसरों को बेच देने का धंधा जोरों पर है। इतना ही नहीं मानव अंगों की तस्करी भी आज एक बड़े व्यापार के रूप में फल-फूल रही है।

धर्म के क्षेत्र में भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार के दल-दल में कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है,जो डूबा न हो। कथित धर्म-गुरुओं ने तो दूसरों के कष्ट, क्लेशों को दूर करने का लाइसेंस ले लिया है। धर्मभीरू जनता इनकी सेवा में लाखों रुपये लुटाती है। ये धर्म की आड़ में लूटते हैं और जनता पुण्य कमाने के लिए लुटती है। आज कथित गुरुओं के आश्रम कई-कई एकड़ जमीन में फैले हुए हैं। जैसे राजसिक वैभव इनके यहाँ उपलब्ध हैं,वह सामान्य जनता के नसीब में कहाँ ?

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उपसंहार-विहंगम दृष्टि डालकर हम यही पाते हैं कि समाज का कोई कोना भी तो ऐसा नहीं दिखाई देता जहाँ भ्रष्टाचार रूपी राक्षस ने अपना पंजा न फैला रखा हो। इतना होने पर भी इसके जिम्मेदार भी हम ही हैं। यदि हम अपने विवेक चक्षुओं को खोलकर, कानून का सहारा लेकर इसका मुकाबला करें तो ऐसी बात नहीं है कि यह राक्षस समाप्त नहीं किया जा सके। इसके लिए आवश्यक है कि हम इसके विरुद्ध आवाज उठाएँ,संगठित हों और किसी कार्य को अनैतिक रूप से न करें। यदि हम किसी को रिश्वत देना न चाहें, तो कोई हमसे ले नहीं सकता, यदि हम बिना परिश्रम अपने बच्चे को डिग्री न खरीदवाएँ तो भी हमें कोई रोक नहीं सकता। सच तो यह है कि बेचने वाले वे हैं और खरीदने वाले हम, तो इस प्रकार भ्रष्टाचार में हम सभी तो सम्मिलित हो गये। यदि हम खरीदें ही नहीं, तो वे बेचेंगे किसे ? इसलिए भ्रष्टाचार की जड़ को समाप्त करने के लिए पहले हमें स्वयं संयम रखना होगा, तभी इसे दूर किया जा सकता है। कहा भी गया है कि

“अपना-अपना करो सुधार।
तभी मिटेगा भ्रष्टाचार॥”

21.साहित्य और समाज [2014]
अथवा
साहित्य समाज का दर्पण है

“अन्धकार है वहाँ, जहाँ आदित्य नहीं है,
मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है।”

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • साहित्य तथा समाज का सम्बन्ध,
  • साहित्य का समाज पर प्रभाव,
  • समाज का साहित्य पर प्रभाव,
  • हिन्दी साहित्य और समाज,
  • समाज के उत्थान में साहित्य का योगदान,
  • उपसंहार।।

प्रस्तावना-मानव अपनी जीवन-यात्रा को सुखद तथा आनन्दमय बनाने का प्रारम्भ से ही आकांक्षी रहा है। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु उसने वीणा के तारों को झंकृत किया है। कोर पाषाण को तराश कर आकर्षक तथा भव्य मूर्तियों का निर्माण किया है। शब्दों को साकार रूप प्रदान करके भाषा का सृजन किया है। कलाएँ मानव की अभिव्यक्ति का माध्यम हैं। साहित्य भी कला की श्रेणी में आता है।

जिस प्रकार सूर्य की किरणों से जगत में प्रकाश फैलता है उसी प्रकार साहित्य के आलोक से समाज में चेतना का संचार होता है। साहित्य ही अज्ञान के अन्धकार को मिटाकर समाज का मार्गदर्शन करता है। डॉ. श्यामसुन्दर दास का कथन सत्य है कि, “सामाजिक मस्तिष्क अपने पोषण के लिए जो भाव-सामग्री निकालकर समाज को सौंपता है, उसी के संचित भण्डार का नाम
साहित्य है।”

साहित्य तथा समाज का सम्बन्ध–साहित्य और समाज एक-दूसरे के अत्यन्त निकट हैं। साहित्य में मानव समाज के भाव निहित होते हैं। इसी आधार पर कुछ विद्वानों ने साहित्य को ‘समाज का दीपक’, कुछ ने साहित्य को ‘समाज का मस्तिष्क’ और कुछ ने साहित्य को ‘समाज का दर्पण’ माना है। वास्तव में, समाज की प्रबल एवं वेगवती मनोवृत्तियों की झलक साहित्य में दिखायी पड़ती है। विश्व के महान् साहित्यकारों ने अपने-अपने समाज का सच्चा स्वरूप अंकित किया है। यूरोप के गोर्की और भारत के प्रेमचन्द का साहित्य इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इन साहित्यकारों की रचनाएँ अपने समय के समाज का सच्चा प्रतिनिधित्व करती हैं।

साहित्य का समाज पर प्रभाव-किसी भी काल का समाज साहित्य के प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। समाज को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साहित्य पर आश्रित रहना पड़ता है। श्रेष्ठ साहित्य समाज के स्वरूप में परिवर्तन कर देता है। मुगल शासकों के अत्याचारों से पीड़ित हिन्दू जनता को भक्त कवियों के साहित्य ने ही सद्मार्ग का अवलोकन कराया। शिवाजी की तलवार भूषण के छन्दों को सुनकर झनझना उठती थी। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ठीक ही लिखा है कि “साहित्य में जो शक्ति छिपी है वह तोप, तलवार और बम के गोले में नहीं पायी जाती।”

समाज का साहित्य पर प्रभाव-समाज का प्रभाव ग्रहण किये बिना सच्चे साहित्य की रचना असम्भव है। साहित्यकार त्रिकालदर्शी होता है इसीलिए वह अतीत के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान का अंकन भविष्य के दिशा-निर्देश के लिए करता है। साहित्य मे समाज की समस्याएँ और उनके समाधान निहित रहते हैं। अतः साहित्य और समाज दोनों ही एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक परम्पराएँ, घटनाएँ, परिस्थितियाँ आदि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती हैं। साहित्यकार भी समाज का प्राणी है, अतः वह इस प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता है ! वह अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील होने के कारण समाज की परिस्थितियों से अधिक प्रभावित होता है। वह जो कुछ समाज में देखता है, उसी को अपने साहित्य में अभिव्यक्त करता है। इस प्रकार साहित्य समाज से प्रभावित होता ही है।

हिन्दी साहित्य और समाज-हिन्दी-साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करने से यह बात स्वयं पुष्ट हो जाती है। वीरगाथा काल का वातावरण युद्ध एवं अशान्ति का था। वीरता प्रदर्शन में ही जीवन का महत्व था। उक्ति प्रसिद्ध है ‘जा घर देखी सुघढ़ महरिया ता घर धरयो बरौगा जाइ’ उस युग के वातावरण के अनुकूल ही उस समय के चारण कवियों ने काव्य रचना की है। भक्तिकाल में विदेशी शासन में दबे भारतीय समाज को शान्ति तथा प्रगति का रास्ता दिखाने का प्रयास सन्त तथा भक्त कवियों ने किया। उन्होंने समाज में चेतना का संचार किया। रीतिकाल में दरबारों की विलासिता का प्रभाव साहित्य पर पड़ा। कवियों ने नायक-नायिकाओं की विविध क्रीड़ा-कलापों का चमत्कारपूर्ण वर्णन किया।

आधुनिक काल में नव-चेतना संचार हुआ। राष्ट्रीयता की लहर व्याप्त हुई। स्वदेश प्रेम का भाव उमड़ पड़ा। समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप मार्ग-दर्शन का कार्य साहित्य ने किया। मैथिलीशरण गुप्त ने भविष्य का निर्देश देते हुए लिखा-

“हो रहा है जो जहाँ, वह हो रहा, यदि वही हमने कहा तो क्या कहा?
किन्तु होना चाहिए कब क्या, कहाँ व्यक्त करती है कला ही वह, यहाँ।”

समाज के उत्थान में साहित्य का योगदान-जीवन में साहित्य की उपयोगिता अनिवार्य है। साहित्य मानव जीवन को वाणी देने के साथ-साथ समाज का पथ-प्रदर्शन भी करता है। साहित्य मानव-जीवन के अतीत का ज्ञान कराता है, वर्तमान का चित्रण करता है और भविष्य निर्माण की प्रेरणा देता है। साहित्यिक रचना का महत्त्व स्थायी होता है। वाल्मीकि, कालिदास, तुलसीदास, शेक्सपीयर आदि की साहित्यिक कृतियों से आज भी मानव जीवन प्रेरणा ले रहा है और भविष्य में भी लेता रहेगा। विभिन्न जातियों के आगमन से मानव के धर्म एवं संस्कृति पर पड़ने वाले प्रभाव भी साहित्य के माध्यम से जाने जा सकते हैं।

उपसंहार-निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि साहित्य और समाज का अटूट सम्बन्ध है जो साहित्य धरती से जुड़ा हुआ नहीं होता है वह सनातन तथा लोक मंगलकारी नहीं हो सकता है। साहित्यकार किसी देश विशेष की सीमा से आबद्ध नहीं होता वह सम्पूर्ण मानव-मात्र का हित-साधक होता है। आदर्श साहित्य मानव-मन को आलोकित करता है। सद्गुणों का विकास करके असत् वृत्तियों का उच्छेदन करता है। साहित्य मानव की रुचि का पूर्णतः परिष्कार करके उसमें निरन्तर उदात्त मनोवृत्तियों को जाग्रत करता है। जब साहित्य का पतन होने लगता है तब समाज भी रसातल को चला जाता है। इस प्रकार साहित्य समाज के लिए प्रकाश स्तम्भ का कार्य करता है।

22. इण्टरनेट : आधुनिक जीवन की आवश्यकता [2017]

“विज्ञान का एक और विलक्षण, वरदान है ‘इण्टरनेट’।
खोजिए जानकारी, पाइए ज्ञान और कीजिए ‘चैट’।”

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • आखिर क्या है इण्टरनेट?,
  • इण्टरनेट के लाभ,
  • वर्तमान युग और इण्टरनेट,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-एक समय था जब न तो यातायात के पर्याप्त साधन थे और न ही संचार की उन्नत सुविधाएँ ही मौजूद थीं। तब व्यक्ति को पड़ोसी नगर अथवा गाँव तक के समाचार प्राप्त नहीं हो पाते थे, देश-विदेश के सम्बन्ध में जानकारी तो दूर की कौड़ी थी। परन्तु जैसे-जैसे सभ्यता का विकास और प्रसार होता गया, वैसे-वैसे विभिन्न जादुई वैज्ञानिक उपादानों ने ईश्वर की बनाई इस दुनिया को बहुत छोटा कर दिया। रेल, हवाई जहाज,रेडियो, टेलीफोन, टेलीविजन, कम्प्यूटर इत्यादि उपकरणों की सहायता से पूरा विश्व घर के ‘ड्राइंग रूम’ में सिमट गया। कम्प्यूटर के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक उसकी उपयोगिता में सर्वाधिक वृद्धि तब हुई जब उस पर ‘इण्टरनेट’ सेवा बहाल की गई।

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आखिर क्या है इण्टरनेट-इण्टरनेट पूरे विश्व में फैले कम्प्यूटरों का नेटवर्क है। इण्टरनेट पर कम्प्यूटर के माध्यम से सारे संसार की जानकारी पलक झपकते ही प्राप्त की जा सकती है। वास्तव में, इण्टरनेट एक ऐसी अत्याधुनिक संचार प्रौद्योगिकी है जिसमें अनगिनत कम्प्यूटर एक नेटवर्क से जुड़े होते हैं। इण्टरनेट न कोई सॉफ्टवेयर है,न कोई प्रोग्राम अपितु यह तो एक ऐसी युक्ति है जहाँ अनेक सूचनाएँ तथा जानकारियाँ उपकरणों की सहायता से मिलती हैं। इण्टरनेट के माध्यम से मिलने वाली सूचनाओं में विश्वभर के व्यक्तियों और संगठनों का सहयोग रहता है। उन्हें ‘नेटवर्क ऑफ सर्वर्स’ (सेवकों का नेटवर्क) कहा जाता है। यह एक वर्ल्ड वाइड वेव (w.w.w.) है जो हजारों सर्वर्स को जोड़ता है।

इण्टरनेट के लाभ-इण्टरनेट के द्वारा विभिन्न प्रकार के दस्तावेज, सूची, विज्ञापन, समाचार,सूचनाएँ आदि सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं। ये सूचनाएँ संसार में कहीं पर भी प्राप्त की जा सकती हैं। पुस्तकों में लिखे विषय, समाचार-पत्र,संगीत आदि सभी इण्टरनेट के माध्यम से प्राप्त किये जाते हैं। संसार के किसी भी कोने से कहीं पर भी सूचना प्राप्त की जा सकती है और भेजी जा सकती है। हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक, औद्योगिक, शिक्षा, संस्कृति, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में इण्टरनेट उपयोगी है।

वर्ततान युग और इण्टरनेट त्वरित सूचना के इस युग में इण्टरनेट अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षा,स्वास्थ्य, यात्रा,पंजीकरण,आवेदन आदि सभी कार्यों में इण्टरनेट सहयोगी है। पढ़ने वाली दुर्लभ पुस्तकों को संसार के किसी भी कोने में पढ़ा जा सकता है। स्वास्थ्य सम्बन्धी विस्तृत जानकारियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध हैं। इण्टरनेट के द्वारा संसार के किसी भी विशिष्ट व्यक्ति के विषय में जाना जा सकता है। सभी प्रकार के टिकट घर बैठे इण्टरनेट से प्राप्त किये जा सकते हैं। दैनिक जीवन की समस्याओं को हल करने वाला इण्टरनेट आज के जीवन की अनिवार्यता बन गया है।

उपसंहार-समाज के प्रत्येक वर्ग में इण्टरनेट की बढ़ती स्वीकार्यता इस बात का स्पष्ट संकेत है कि इस युक्ति ने मानव-जीवन में चमत्कार-सा कर दिया है। किन्तु जैसा कि हम जानते हैं हर अच्छी बात में कोई-न-कोई बुरी बात भी छुपी होती है। वह बुरा पक्ष व्यक्ति विशेष द्वारा उपलब्ध युक्ति का दुरुपयोग करने पर सामने आता है। इण्टरनेट का दुरुपयोग करने वालों ने इस अनूठी सुविधा का भी स्याह पक्ष सामने ला खड़ा किया है। आज इण्टरनेट पर अश्लील वेबसाइट्स की बाढ़-सी आ गई है। सबसे खतरनाक तथ्य है कि ऐसी ‘साइट्स’ अब किशोरों तक की पहुँच में आ गई हैं। इससे भावी पीढ़ी के नैतिक एवं शारीरिक पतन का खतरा मँडराने लगा है। हमें इस समस्या से मुक्ति के लिए तत्काल प्रभावी उपाय करने होंगे ताकि बहुपयोगी ‘इण्टरनेट’ का श्वेत पक्ष मानव कल्याण में सहायक सिद्ध हो सके।

23. जनसंख्या वृद्धि [2018]

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ,
  • अभाव की स्थिति,
  • जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव,
  • समस्या का समाधान,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना-आज विश्व के सामने अनेक छोटी-छोटी समस्याएँ हैं। प्रत्येक देश उनके समाधान के लिए अपने-अपने ढंग से प्रयासरत है। भारत में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण हमारी उन्नति और प्रगति की सारी योजनाएँ विफल होती जा रही हैं, परन्तु विडम्बना है कि कोई इतनी गम्भीर समस्या को समस्या मानने को तैयार नहीं वरन् उसे सम्पन्नता का प्रतीक मान बैठे हैं और ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपहार मान बैठे हैं।

जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ-जनसंख्या वृद्धि की एक समस्या अनेक अन्य समस्याओं को जन्म देती है। हर किसी की मुख्य आवश्यकताएँ हैं-रोटी, कपड़ा एवं मकान। आज हमारे देश में लाखों लोगों को भरपेट रोटी नहीं मिलती, तन ढकने को. कपड़े नहीं मिलते और वे बिना घर-बार के खुले आसमान के नीचे जीवन जीने को मजबूर हैं।

अभाव की स्थिति स्वतन्त्रता मिलने के बाद भारत तीव्र गति से कृषि, उद्योग तथा व्यवसाय के क्षेत्र में विकास के पथ पर अग्रसर हुआ। हर क्षेत्र में आशातीत प्रगति हुई। आज कृषि योग्य देश की लगभग सारी भूमि पर खेती हो रही है। हम अपनी दैनिक आवश्यकता की सभी वस्तुओं का उत्पादन अपने देश में प्रचुर मात्रा में करने लगे हैं। फिर भी हम अपने देश में आवश्यक वस्तुओं की कमी पूरी नहीं कर सके। जीवन के लिए परम आवश्यक वस्तुओं की खरीद एवं बिक्री पर भी सरकार को प्रतिबन्ध लगाना पड़ता है। आज हम पहले की तुलना में कई गुना अधिक निर्यात कर रहे हैं, फिर भी हमारे देश की गिनती अविकसित देशों में की जाती है। हमें अपने विकास कार्यों के लिए दूसरों से कर्ज लेना पड़ रहा है।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 7 मातृभाषा

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solution Chapter 7 मातृभाषा (भारतेन्दु)

मातृभाषा अभ्यास-प्रश्न

मातृभाषा लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उन्नति का आधार कवि ने मातृभाषा को क्यों बताया है?
उत्तर
उन्नति का आधार कवि ने मातृभाषा को बताया है। यह इसलिए कि इससे ही जीवन में सभी प्रकार की उन्नति हो सकती है।

प्रश्न 2.
कवि ने किस भाषा में बातचीत करने की सलाह दी है और क्यों?
उत्तर
कवि ने हिन्दी भाषा में बातचीत करने की सलाह दी है। यह इसलिए कि यह गुण और किसी भाषा में नहीं है। .

प्रश्न 3.
भाषा में क्या-क्या समाया हुआ है?
उत्तरभाषा में धर्म, युद्ध, विद्या, कला, गीत-संगीत, काव्य आदि से संबंधित ज्ञान की बातें समाई हुई हैं।

मातृभाषा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारतेन्दु जी ने मातृभाषा को सर्वोपरि क्यों कहा है?
उत्तर
भारतेन्दु जी ने मातृभाषा हिन्दी का महत्त्वांकन किया है। उन्होंने हिन्दी का महत्त्वांकन करते हुए उसे सर्वोपरि कहा है। यह इसलिए कि यही सभी प्रकार की उन्नति का मूल है। इसमें ही सभी प्रकार का ज्ञान समाया हुआ है।

प्रश्न 2.
सफल जीवन जीने के लिए हिन्दी भाषा को कवि ने अनिवार्य क्यों बताया है?
उत्तर
सफल जीवन जीने के लिए हिन्दी भाषा को कवि ने अनिवार्य बताया है। यह इसलिए कि इससे ही धर्म, युद्ध, ज्ञान, कला, गीत-संगीत और काव्य के ज्ञान प्राप्त किए जा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का भावार्य लिखिए

(क) अंग्रेजी पढ़के जदपि सब गुन होत प्रबीन।
पे निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उत्तर
उपर्युक्त पंक्तियों के द्वारा कवि ने यह भावं प्रकट करना चाहा है कि अंग्रेजी भाषा का महत्त्व है। वह गुणों को प्रदान करती है, फिर भी अपनी भाषा अर्थात् हिन्दी भाषा के सामने वह छोटी है। वह हृदय की पीड़ा को मिटाने में असमर्थ है। भाव यह कि हमें अंग्रेजी भाषा की चमक-दमक में अपनी भाषा-बोली को नहीं भूलना चाहिए।

(ख) धर्म, जुद्ध, विया, कला, गीत, काव्य अरु ज्ञान।
सबके समझन जोग है, भाषा भांति समान।
उत्तर
उपर्युक्त पंक्तियों के द्वारा कवि ने यह भाव प्रकट करना चाहा कि हमारी हिन्दी भाषा से ही सभी प्रकार के ज्ञान संभव हैं, चाहे वह धर्म, युद्ध, कला का हो या काव्य और गीत-संगीत का हो। भाव यह है कि हिन्दी भाषा ही सभी भाषाओं से सबल, योग्य और ग्राह्य है।

प्रश्न 4.
‘बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।’ इस पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल। इस पंक्ति में निहित भाव यह है कि हिन्दी भाषा ही सब प्रकार की हार्दिक पीड़ा को समाप्त करने में समर्थ है, अर्थात् हिन्दी भाषा ही जनसम्पर्क का बहुत बड़ा साधन है, जिससे परस्पर बातचीत करके अपने दुख-अभाव को बाँटा जा सकता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या लिखिए

(क) पढ़े संस्कृत जतन करि पंडित भे विख्यात।
पै निज भाषा ज्ञान बिन कहि न सकत इक बात।।
उत्तर
भारतेन्दु जी कह रहे हैं कि मेरे जीवन की एकमात्र धारणा और विचार है कि जीवन की सभी प्रकार की उन्नति की जड़ तो अपनी मातृभाषा हिन्दी ही है। इसकी ही उन्नति से जीवन में सभी प्रकार की उन्नति हो सकती है अन्यथा और कोई उपाय नहीं है। इसीलिए अपनी इस मातृभाषा हिन्दी के ज्ञान और उन्नति के बिना मेरे हृदय की पीड़ा किसी भी प्रकार से दूर नहीं हो सकती है।

(ख) विविध कला शिक्षा अमित ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से ले करहू भाषा मांहि प्रचार ॥
उत्तर
कवि भारतीयों को मातृ-भाषा के प्रचार एवं प्रसार हेत उद्बोधन करते हुए कहता है कि संसार में कला, शिक्षा और ज्ञान का क्षेत्र अपरिमित है। अतः, सभी
देशों से सम्पर्क अधिक-से-अधिक ग्रहण करके, उसे अपनी मातृभाषा के माध्यम से प्रचारित कीजिए। इस प्रकार सहज ही मातृ-भाषा की उन्नति हो सकेगी।

मातृभाषा भाषा-अध्ययन/काव्य-सौंदर्य

प्रश्न 1. कुछ क्षेत्र विशेष में ‘य’ का उच्चारण ‘ज’ के रूप में किया जाता है। जैसे-जतन, जोग। इसी तरह के कुछ शब्द पठित पाठ से चुर्ने तथा अर्व लिखें।
प्रश्न 2. ब्रज भाषा के अनेक शब्द जैसे-बिन, तवै, सुने आदि। ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची पाठ के आधार पर बनाइए।
प्रश्न 3. सूल तथा देसन शब्दों में श के स्थान पर स का प्रयोग हुआ है। इसी तरह के कुछ शब्द छाँटकर उनके मानक रूप लिखिए।
उत्तर
1. शब्द – अर्थ
जदपि – फिर भी
सोग – चिन्ता
जुद्ध – लड़ाई।

2. ब्रजभाषा के अनेक शब्द : जैसे-अहै, बिनु, कौ, करि, नाहीं, लोक-रहु, माँहि, समझन आदि।
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मातृभाषा योग्यता-विस्तार

1. हिन्दी दिवस कब मनाया जाता है, क्यों मनाया जाता है? अपने शिक्षक से जानकारी प्राप्त कीजिए। एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी विषय पर आलेख तैयार कीजिए।
2. अपनी मातृभाषा के अन्य कवियों की कविताएँ संकलित कर हस्तलिखित पुस्तिका तैयार करें।
3. किसी समय विशेष में बना अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किए केवल हिन्दी में वार्तालाप करने का खेल खेलें। अंग्रेजी के आने पर अंक काटें।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मातृभाषा परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अपनी भाषा के ज्ञान के बिना क्या होता है?
उत्तर
अपनी भाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा मिटती नहीं है। वह बनी रहती है।

प्रश्न 2.
मूढ़ता का शोक कैसे मिटता है?
उत्तर
मूढ़ता का शोक परस्पर एक ही भाषा के व्यवहार और एक ही विचारधारा से मिटता है।

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प्रश्न 3.
मातृभाषा की उन्नति कैसे हो सकती है?
उत्तर
संसार में अनेक प्रकार हैं-शिक्षा, कला और ज्ञान के। इन सभी का सम्पर्क-संसार के देशों से करके अपनी मातृभाषा के माध्यम से प्रचारित करना चाहिए। इससे मातृभाषा की उन्नति हो सकती है।

मातृभाषा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अंग्रेजी भाषा से हिन्दी भाषा क्यों श्रेष्ठ है?
उत्तर
यद्यपि अंग्रेजी भाषा को पढ़ने से ज्ञान प्राप्त होता है। उससे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विस्तार होता है। उससे अनेक प्रकार के ज्ञान में प्रवीणता हासिल होती है। फिर अपनी भाषा हिन्दी के ज्ञान के बिना सब कुछ अधूरा है। यही नहीं हर प्रकार की हीनता और कमी बनी ही रहती है।

प्रश्न 2.
मातृभाषा के प्रयोग का लाभ क्या है?
उत्तर
मातृभाषा के प्रयोग का लाभ यह है कि यदि केवल अपनी ही मातृभाषा में ज्ञान और विद्या की बातें की जाएँ, तो बड़ी आसानी से वह ज्ञान और विद्या प्राप्त हो जाती है। यह और किसी दूसरी भाषाओं के प्रयोग से किसी प्रकार न तो सुलभ है और न संभव ही।

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प्रश्न 3.
संस्कृत और हिन्दी भाषा में क्या अंतर है?
उत्तर
संस्कृत और हिंदी भाषा में बड़ा अंतर है। संस्कृत भाषा हिंदी भाषा की तुलना में कठिन है। इसलिए उसे समझना या उसका ज्ञान प्राप्त करना आसान नहीं है। बहुत प्रयत्न करके ही कोई उसमें पंडित हो सकता है। इसकी तरह हिंदी भाषा नहीं है। उसे समझना या उसका ज्ञान प्राप्त करना बड़ा ही आसान है। उसमें आसानी से कोई भी पंडित हो सकती है। इस प्रकार अंग्रेजी भाषा में अपने अनुभव (ज्ञान) को नहीं कहा जा सकता है, जबकि हिन्दी में इसे वही आसानी से कहा-सुना जा सकता है।

प्रश्न 4.
‘मातृभाषा’ कविता का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-विरचित प्रस्तुत कविता ‘मातृभाषा’ में मातृभाषा की उन्नति और उसके महत्त्व को बड़े ही सरल और स्पष्ट शब्दों में बतलाया गया है। कविवर भारतेन्दु जी का यह मानना है कि मातृभाषा को छोड़कर किसी और भाषा में कितना ही प्रवीण हो जाए, किन्तु मातृभाषा के ज्ञान के अभाव में उसके ज्ञान का क्षेत्र बिल्कुल अधूरा ही माना जाएगा। किसी के लिए भी धर्म, युद्ध, ज्ञान, कला और काव्य के क्षेत्र में ज्ञानार्जन तभी संभव है, जब उसे अपनी मातृभाषा का ज्ञान हो। देश के सुव्यवस्थित संचालन, समुन्नत करने में मातृभाषा का सर्वोच्च स्थान है। इस प्रकार कवि ने दूसरी भाषाओं का सम्मान करते हुए मातृभाषा को ही उन्नति के शिखर पर पहुँचाने वाला सबसे बड़ा माध्यम बताया है।

मातृभाषा कवि-परिचय

प्रश्न
कविवर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-युग-प्रवर्तक बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी के एक सम्पन्न परिवार में सन् 1850 में हुआ था। उनके पिता बाबू गोपालचन्द (उपनाम गिरिधर दास) भी ब्रजभाषा के विख्यात कवि थे। छोटी अवस्था में ही बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने बंगला, हिन्दी, संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। पाँच वर्ष की आयु में ही उन्होंने एक दोहा लिखकर सबको चौंका दिया था। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी लाखों की सम्पत्ति साहित्य-सेवा में लगा दी। उनकी मृत्यु सन् 1885 में हुई।

रचनाएँ-भारतेन्दु जी की निम्नलिखित रचनाएँ हैं

1. कविता संग्रह-‘प्रेम माधुरी’, ‘प्रेम फुलवारी’, ‘प्रेम-मालिका’, ‘प्रेम-प्रलाप’ आदि।

पत्रिकाएँ-‘कवि वचन सुधा’ तथा ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन।

नाटक-‘भारत-दुर्दशा’, ‘वैदिकी हिंसा-हिंसा न भवति’, ‘नीलदेवी’, ‘अंधेर नगरी’ आदि।

साहित्यिक महत्त्व-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने सच्चे युग-चेत्ता कवि की मते जहाँ जन-जीवन के मर्म को परखा और काव्य-वाणी प्रदान की, वहाँ उसके उद्धार और कल्याण के लिए मार्ग-दर्शन भी दिया। हिन्दी-भाषा के प्रचार और काव्य में समन्वयवादी दृष्टि से उनके महत्त्व को कभी नहीं भुलाया जा सकता। युग और जीवन की आन्तरिक स्थिति के अनुरूप आपने जहाँ कविता के भावपक्ष को विस्तृत किया और उसमें जन-जीवन की ध्वनि को गुंजित किया। वहाँ कलापक्ष की दृष्टि से भी अनेक नूतन प्रयोग कर विविध काव्य-रूपों को गति प्रदान की। निःसन्देह वह सच्चे समाज और राष्ट्र के प्रतिनिधि कवि थे। उनकी वाणी में देश की वाणी गूंजती थी। वह हदय से सच्चे भक्त, स्वभाव से रसिक और साधना की दृष्टि से सफल, सजग एवं युग-प्रतिष्ठापक कवि-कलाकार थे। हिन्दी-साहित्य की प्रत्येक विधा को छूकर आपने उसे जीवन-शक्ति दी। अतः, उसके इतिहास में आपका नाम सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

मातृभाषा संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

पदों की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौंदर्य एवं विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

शब्दार्थ-निज-अपनी। हिय-हृदय। सूल-पीड़ा।

प्रसंग-प्रस्तुत अंश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती-हिंदी सामान्य’ संकलित तथा महाकवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा लिखित कविता ‘मातृभाषा की उन्नाते पर

व्याख्यान’ शीर्षक से है। इसमें भारतेन्दु जी ने हिन्दी भाषा-साहित्य के प्रति अपनी अपार श्रद्धा-आस्था को व्यक्त किया है।

व्याख्या-भारतेन्दु जी कह रहे हैं कि मेरे जीवन की एकमात्र धारणा और विचार है कि जीवन की सभी प्रकार की उन्नति की जड़ तो अपनी मातृभाषा हिन्दी ही है। इसकी ही उन्नति से जीवन में सभी प्रकार की उन्नति हो सकती है अन्यथा और कोई उपाय नहीं है। इसीलिए अपनी इस मातृभाषा हिन्दी के ज्ञान और उन्नति के बिना मेरे हृदय की पीड़ा किसी भी प्रकार से दूर नहीं हो सकती है।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा है।
  2. राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सच्चा प्रेम व्यक्त हुआ है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद के काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य ब्रजभाषा की शब्दावली से पुष्ट दोहा छंद में है। भावात्मक शैली के प्रयोग से काव्य की सुन्दरता और बढ़ गई है।
(ii) प्रस्तुत पद में हिन्दी भाषा को अपनी भाषा कहकर एक विशेष प्रकार से अपनापन का भाव व्यक्त किया है। इस भाव में सहजता और सरलता दोनों ही है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद में किसका उल्लेख हुआ है?
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद में हिन्दी भाषा के महत्त्व का उल्लेख हुआ है।
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव है-हिन्दी भाषा की प्राण-प्रतिष्ठा करना।

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2. पढ़े संस्कृत जतन करि पंडित भे, विख्यात।
पै निजभाषा ज्ञान बिन कहि न सकत एक बात ॥

शब्दार्थ-जतन-प्रयल, कोशिश। विख्यात-प्रसिद्ध। निजभाषा-अपनी भाषा। बिन-बिना।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें भारतेन्दु जी ने अपनी भाषा के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-संस्कृत को पूरे प्रयत्न करके पढ़ने पर कोई प्रसिद्ध पंडित तो हो सकता है, लेकिन अपनी भाषा हिन्दी के ज्ञान के बिना अपने हृदय की एक भी बात नहीं कही जा सकती है। दूसरे शब्दों में संस्कृत तो पढ़नी चाहिए लेकिन हिन्दी के प्रति लगाव उससे अधिक होना चाहिए, कम नहीं।

विशेष-

  1. ब्रजभाषा की शब्दावली है।
  2. यह अंश हिन्दी को महत्त्व देने वाला है।
  3. भाव रोचक है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(i) उपर्युक्त पद दोहा छंद में है और ब्रजभाषा की शब्दावली से पुष्ट हुआ है। संपूर्ण कथन अभिधाशक्ति में होने के कारण सहज रूप में है। भावात्मक शैली से यह अंश रोचक बन गया है।
(ii) उपर्युक्त पद की भाव-योजना सरल और सपाट है। भावों को बेझिझक प्रस्तुत किया गया है। इससे कहने का अभिप्राय अपने आप स्पष्ट हो जाता है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त अंश का मुख्य भाव क्या है?
(ii) उपर्युक्त अंश में किस ओर संकेत किया गया है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त अंश का मुख्य भाव हिन्दी का महत्त्वांकन करना है।
(ii) उपर्युक्त अंश में संस्कृत से बढ़कर हिन्दी के प्रति ध्यान देने की ओर संकेत किया गया है।

3. अंगरेजी पढ़िके जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

शब्दार्थ-प्रवीन-गुणवान, पण्डित । निज-अपनी। हीन-मूर्ख।

प्रसंग-प्रस्तुत अंश महाकवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा लिखित ‘मातृभाषा की उन्नति पर व्याख्यान’ शीर्षक से है। इसमें भारतेन्दु जी ने हिन्दी-भाषा साहित्य के प्रति अपनी अपार श्रद्धा-आस्था को व्यक्त किया है।

व्याख्या-अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयों के प्रति यहाँ कवि अपनी उदासीनता व्यक्त करता हुआ, मातृ-भाषा के महत्त्व की ओर संकेत करता हुआ कह रहा है कि यद्यपि यह ठीक है कि आज अनेक भारतीय अंग्रेजी-भाषा को पढ़कर ब्रिटिश साम्राज्य में बड़े गुणवान तथा पण्डित बन रहे हैं, तो भी भारत में रहने पर अपनी मातृभाषा के ज्ञान के अभाव में वे पण्डित और चतुर होने पर भी मूर्ख-के-मूर्ख ही बने रहते हैं क्योंकि दैनिक व्यवहार में मातृ-भाषा से ही काम लेना पड़ता है।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा है।
  2. राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सच्चा प्रेम व्यक्त हुआ है।
  3. दोहा छंद।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद ब्रजभाषा की शब्दावली और दोहा छंद में प्रस्तुत होकर भावात्मक शैली के द्वारा सहज रूप में है। शब्द-चयन बहुत सरल है। इसमें गति है तो प्रवाह भी है।
(ii) उपर्युक्त पद की भाव-योजना प्रभावशाली है। अंग्रेजी भाषा का विरोध चतुराई के साथ करते हुए अपनी भाषा हिन्दी के महत्त्व को स्वीकारने का सुझाव है। इस सुझाव को अप्रत्यक्ष रूप से देने की कुशलता सचमुच प्रशंसनीय है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद में किसको किससे श्रेष्ठ कहा गया है?
(ii) निजभाषा से कवि का आशय किससे है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा को अंग्रेजी भाषा से श्रेष्ठ कहा गया है।
(ii) निजभाषा से कवि का आशय हिन्दी भाषा से है।

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4. इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग।
तब बनत है सबने सों, मिटत मूढ़ता सोग।

शब्दार्च-इक-एक। मति-बुद्धि। मूढ़ता-मूखता।

प्रसंग-पूर्ववत।

व्याख्या-भारतेन्दु जी भाषा आदि के एकीकरण के सुपरिणाम की ओर संकेत करते हुए कह रहे हैं कि यदि घर में सभी एक ही भाषा का व्यवहार करें और एक ही विचारधारा के पोषक हों तो परस्पर फूट और दूरी नहीं हो सकती है। किसी में किसी प्रकार के भेदभाव अथवा तनाव उत्पन्न नहीं हो सकते। फिर तो मुर्खता का उपचार तो बड़ी ही आसानी से हो सकता है। इसलिए भाषा (हिन्दी भाषा) की एकता का परित्याग किसी भी दशा में नहीं छोड़ना चाहिए।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा है।
  2. भाव हृदयस्पर्शी है।
  3. “मिटत मूढ़ता’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. दोहा छंद है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद भाषा और शैली की दृष्टि से आकर्षक है। ब्रजभाषा की शब्दावली दोहा छंद में प्रस्तुत होकर अनुप्रास अलंकार (मिटत मूढ़ता) से चमत्कृत और मोहक बन गई है।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव सरल और स्पष्ट है। एकता के सूत्रों को सहजतापूर्वक प्रस्तुत करने का कवि का प्रयास सार्थक और सफल है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद में किस तथ्य को महत्त्व दिया गया है?
(ii) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा को किस रूप में देखा गया है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में एक ही भाव और एक ही भाषा के प्रयोग को महत्त्व दिया गया है।
(ii) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा को एकता लाने वाली भाषा के रूप में देखा गया

5. और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात।
निज भाषा में कीजिए जो विद्या की बात।

शब्दार्थ-प्रगट-प्रकट। लखात-दिखाई पड़ता है।

प्रसंग-पूर्ववत्।

व्याख्या-परिवार में एक ही मातृभाषा के प्रयोग के लाभ पर दृष्टिपात करता हुआ कवि कह रहा है कि यदि एक ही अपनी मातृभाषा में ज्ञान और विद्या की बातें की जाएँ, तो सहज ही वह ज्ञान तथा विद्या ग्राह्य हो जाती है, अन्य या विविध भाषाओं के प्रयोग में यह सम्भव नहीं है।

विशेष

  1. भाषा प्रभावशाली है।
  2. हिन्दी भाषा का महत्त्व प्रतिपादित करने का सफल प्रयास किया गया है।
  3. भावात्मक शैली है।
  4. दोहा छंद है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य लिखिए।
(ii) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य बताइए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद दोहा छंद में है। ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली है। भावात्मक शैली से अभिधा शब्द के द्वारा कथन को प्रभावशाली बनाने का प्रयास सराहनीय है।
(ii) प्रस्तुत पद की भाव-योजना सरल और सपाट है। हिन्दी भाषा के लाभ और उसके समुचित उपयोग के कथन को स्वाभाविक रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह अंश सार्थक रूप में सिद्ध हुआ है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद में किसको किससे क्या कहा गया है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद का भाव सरल और सुस्पष्ट है। इससे हिन्दी भाषा के लाभ को बतलाया गया है।
(ii) प्रस्तुत पद में हिन्दी भाषा को अंग्रेजी और अन्य भाषाओं से श्रेष्ठ और लाभदायक कहा गया है।

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6. तेहि सुनि पावें लाभ सब, बात सुने जो कोय।
यह गुन भाषा और महँ, कबहुँ नाहीं होय॥

शब्दार्च-कोय-कोई। नाहीं-नहीं। होय-हो सकता है।

प्रसंग-पूर्ववत्।

व्याख्या-मातृ-भाषा के व्यापक प्रभाव की व्यंजना करता हुआ कवि कहता है कि मातृभाषा में ज्ञान और विद्या का प्रचार अधिक होता है, इस लाभ को सुनकर सभी स्वीकार करेंगे। निदान, मातृभाषा के अतिरिक्त यह गुण किसी और भाषा में कभी नहीं हो सकता है।

विशेष-

  1. ‘महँ कबहूँ नाहीं’ में ‘ह’ वर्ण की क्रमशः आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।
  2. भाषा ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली से पुष्ट है।
  3. हिन्दी भाषा के प्रति बड़ी आत्मीयता दिखाई गई है।
  4. दोहा छंद है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद के काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद के भाक्-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद का काव्य-सौंदर्य सरल और सहज ब्रजभाषा को भावात्मक शैली से पुष्ट हुआ दिखाई दे रहा है। दोहा छंद में अनप्रास अलंकार के चमत्कार को लाने का कवि-प्रयास काबिलेतारीफ है।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य अपनी सरलता और प्रवाहमयता’के फलस्वरूप आकर्षक कहा जा सकता है। यह इसलिए भी कि इसके लिए शब्द-प्रयोग भी अधिक सहज रूप में आया हुआ है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद में मातृभाषा की क्या विशेषता बतलाई गई है?
(ii) उपर्युक्त पद में मातृभाषा के प्रति कवि की भावना कैसी है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में मातृभाषा की व्यापकता, ज्ञान प्रदायिनी और विद्या प्रचारिणी जैसी विशेषताएं बतलाई गई हैं।
(ii) उपर्युक्त पद में मातृभाषा के प्रति कवि की भावना अपनत्व और अपनापन की है।

7. विविध कला शिक्षा, अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन सौं ले करहु, भाषा माँहि प्रचार ॥

शब्दार्च-विविध-अपार, अपरिमित। माहि-माध्यम से। देशन-देशों में।

प्रसंग-पूर्ववत्। इसमें भारतेन्दु जी ने मातृभाषा हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का उद्बोधन किया है।

व्याख्या-कवि भारतीयों को मातृ-भाषा के प्रचार एवं प्रसार हेत उद्बोधन करते हुए कहता है कि संसार में कला, शिक्षा और ज्ञान का क्षेत्र अपरिमित है। अतः, सभी
देशों से सम्पर्क अधिक-से-अधिक ग्रहण करके, उसे अपनी मातृभाषा के माध्यम से प्रचारित कीजिए। इस प्रकार सहज ही मातृ-भाषा की उन्नति हो सकेगी।

विशेष-

  1. भाव हृदयस्पर्शी है।।
  2. सम्पूर्ण अंश प्रेरणादायक है।
  3. ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली है।
  4. शैली सरस और सरल है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य लिखिए।
(ii) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद में स्वभावोक्ति अलंकार को ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली से चमत्कृत करने का प्रयास अनूठा है। दोहा छंद और बोधगम्यता से यह पद सुन्दर बन गया है।
(ii) प्रस्तुत पद की भावधारा सरल है, लेकिन उसमें प्रवाह और गति है। इससे यह पद हृदयस्पर्शी बन गया है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद में मातृभाषा के लिए भारतीयों को क्या सझाव दिया गया है?
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर-
(i) प्रस्तुत पद में मातृभाषा के लिए भारतीयों को सभी देशों से सम्पर्क करके प्रचार-प्रसार करने के सुझाव दिए गए हैं।
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव मातृभाषा के विकास के लिए सुझाव देना है।

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8. धर्म, जुद्ध, विद्या, कला, गीत, काव्य अरू
सबके समझन जोग है, भाषा माँहि समा।

शब्दार्थ-अरु-और । जुद्ध-युद्ध । समझन-समझने। जोग-योग्य।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने हिन्दी भाषा को अद्भुत और सबसे श्रेष्ठ बतलाने का प्रयास करते हुए कहा है कि

व्याख्या-धर्म, युद्ध, विद्या, कला, गीत-संगीत, काव्य आदि सभी के लिए समझने योग्य हैं। लेकिन यह तभी संभव है, जब अपनी भाषा हिन्दी में हो। दूसरी बात यह भी है कि हमारी हिन्दी भाषा में धर्म, युद्ध, विद्या, कला, गीत-संगीत, कविता आदि उच्च संस्कारों को प्रदान करने वाले सभी आधार और साधन मौजूद हैं।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा की सरल शब्दावली से प्रस्तुत हुई है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. अभिधा शब्द-शक्ति है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद के भाव-सौंदर्य को लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा की सम्पन्नता को आकर्षक बनाने के लिए काव्य-स्वरूप के अपेक्षित सौंदर्य-विधान को प्रयुक्त किया गया है। फलस्वरूप इस पद में प्रयुक्त हुआ अनुप्रास अलंकार (सबके समझन) ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली के द्वारा आकर्षक रूप में है।
(ii) उपर्युक्त पद की भाव-योजना रोचक और हृदयस्पर्शी रूप में है। हिन्दी भाषा की विविधता का बयान बड़ी ही विश्वसनीयता के साथ प्रकट किया गया है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा की किस विशेषता पर प्रकाश डाला गया है?
(ii) उपर्युक्त पद का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा की विविधता पर प्रकाश डाला गया है।
(ii) उपर्युक्त पद का मुख्य भाव है-हिन्दी भाषा को प्रेरक रूप में प्रस्तुत करना।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 6 टेलीफोन

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 6 टेलीफोन (हरिशंकर परसाई)

टेलीफोन अभ्यास-प्रश्न

टेलीफोन लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई के अनुसार टेलीफोन के आविष्कार के क्या कारण हैं?
उत्तर
हरिशंकर परसाई के अनुसार टेलीफोन के आविष्कार के कारण हैं कि पहले आदमी की सूरत देखे बिना उससे बातचीत करने की कला की खोज नहीं हुई थी।

प्रश्न 2.
प्रतिष्ठित व्यक्ति फोन उठाने के लिए नौकर क्यों रखते हैं?
उत्तर
प्रतिष्ठित व्यक्ति फोन उठाने के लिए नौकर रखते हैं। यह इसलिए कि वे झूठ बोल सकें। वे यह समझ जाएँ कि किससे अपना स्वार्थ पूरा होगा और किससे नहीं।

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प्रश्न 3.
व्यंग्यकार ने टेलीफोन के क्या-क्या लाभ बताए हैं? फोन के रिसीवर में दो भाग कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर
व्यंग्यकार ने टेलीफोन के अनेक लाभ बताए हैं, जैसे-फोन पर सच और झूठ दोनों ही अधिक सच्चाई से बोले जा सकते हैं। टेलीफोन से संसार में सत्य-भाषण लगभग 67 प्रतिशत बढ़ा है। इससे मनुष्य जाति इतनी वीर बनी है कि जिसकी छाया से भी डर लगता था, उसे गाली दी जा सकती है। उसकी पकड़ में आने से पहले फरार हुआ जा सकता है। फोन के रिसवीर के दो भाग होते हैं-एक कान पर लगाकर सुनने के लिए और दूसरा बोलने के लिए।

प्रश्न 4.
लिफाफे में कोरा कागज भेजकर पत्र-व्यवहार किस प्रकार के लोगों को किया जाता है?
उत्तर
लिफाफे में कोरा कागज भेजकर पत्र-व्यवहार उन लोगों को किया जाता है जिनसे बोल-चाल बन्द हो गई है।

टेलीफोन दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
फोन आने पर पहले अपना नाम नहीं बताने के लिए लेखक ने क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर
फोन आने पर पहले अपना नाम नहीं बताने के लिए लेखक ने यह तर्क दिए हैं कि इसमें खतरा है। वह यह कि दूसरे सिरे पर आपसे उधारी के पैसे माँगने वाला हआ, तो आप पकड़ में आ जाएंगे।

प्रश्न 2.
‘मनुष्य जाति के मुँह तीन आकारों के होते हैं’ इसका क्या आशय है?
उत्तर
‘मनुष्य जाति के मुँह तीन आकारों के होते हैं। इसका यह आशय है कि मनुष्य किस मुँह से कब क्या कह दे, कुछ कहा नहीं जा सकता है।

प्रश्न 3.
‘फोन से मुफ्त बात करने में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘फोन से मुफ्त बात करने में निहित व्यंग्य यह है कि मुफ्त फोन करने वाले बड़े ही चतुर और चापलूस होते हैं। वे मुफ्त में फोन करने के अनेक प्रकार के बहाने बनाने की कला में माहिर होते हैं।

प्रश्न 4.
‘वर्तमान समय में आधुनिक सुविधाओं का दुरुपयोग हो रहा है। इस विषय पर अपने विचार दीजिए।
उत्तर
वर्तमान समय में आधुनिक सुविधाओं का दुरुपयोग हो रहा है। यह इसलिए कि लोग वर्तमान सुख-सुविधाओं के महत्त्व नहीं समझे हैं। सुविधाओं की मौजूदगी को इसलिए अनदेखा कर रहे हैं।

टेलीफोन भाषा-अध्ययन

(क) निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों को अलग-अलग छाँटकर लिखिए
कान, टेलीफोन, हैलो, फोकट, सूरत, ऊब, फिट, कॉल, नफरत, जवाब, गृह, काम, सत्य, मुख, मुँह, हफ्ता , रेट।
तत्सम – …………….
तद्भ व – ……………
देशज – …………….
विदेशी – ……………

(ख) निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों के अलग-अलग अर्थ लिखते हुए दो-दो वाक्य बनाइए।
अर्थ, कल, कर, पत्र, वार।
उत्तर
(क) तत्सम शब्द-गृह, सत्य, मुख।
तद्भव शब्द-कान, काम, मुँह।
देशज शब्द-सूरत, फोकट, ऊब।
विदेशी शब्द-टेलीफोन, हैलो, फिट, कॉल, नफरत, जवाब, हफ्ता, रेट ।

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 6 टेलीफोन img 1
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 6 टेलीफोन img 2

टेलीफोन योग्यता-विस्तार

(क) टेलीफोन का आविष्कार किसने किया, कब किया लिखिए तथा विज्ञान के अन्य आविष्कारों और उनकी खोज करने वाले वैज्ञानिकों की सूची तैयार कीजिए।
(ख) टेलीफोन के आज के विविध उपयोगों को ध्यान में रखकर एक निबंध लिखिए।
(ग) चलित टेलीफोन के पक्ष-विपक्ष में अपने विचार लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्राएँ अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

टेलीफोन परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वैज्ञानिक ने क्या देखा?
उत्तर
वैज्ञानिक ने यह देखा कि दुनिया के आधे लोग बाकी आधे लोगों की सूरत से नफरत करते हैं, लेकिन उनसे जरूर बात करना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
हमारे पास फोन है, यह दिखाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर
हमारे पास फोन है, यह दिखाने के लिए हमें घंटी बजते ही चोंगा नहीं उठाना चाहिए। जब घंटी थक जाए और आराम करने लगे, तब फोन उठाना चाहिए।

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प्रश्न 3.
जिसे रिंग किया जाए, उसे पहले अपना नाम बताने में क्या खतरा है?
उत्तर
जिसे रिंग किया जाए, उसे पहले अपना नाम बताने में खतरा है। वह यह कि दूसरे सिरे पर आपसे उधारी के पैसे माँगने वाला हआ, तो आप पकड़ में आ जाएँगे।

प्रश्न 4.
कॉल रेट न होने का लोग क्या फायदे उठाते हैं?
उत्तर
कॉल रेट न होने का लोग बहुत फायदा उठाते हैं। वे खूब बातें करते हैं। फिजूल की बातें करते हैं। खूब डींगें मारते हैं। इस तरह वे कॉल रेट का अनुचित फायदे ‘उठाते हैं।

टेलीफोन दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
टेलीफोन की खोज किस प्रकार हुई?
उत्तर
टेलीफोन की खोज करने वाले वैज्ञानिक ने दो तार लिये। उसटे दोनों सिरों पर एक-एक चोंगा लगा दिया। एक को उसने अपनी प्रयोगशाला में रखा दूसरे को अपने दुश्मन के घर में। फिर वह कई सालों तक अपने चोंगे में कहता रहा,’तुम बदमाश हो। उधर से कोई उत्तर नहीं आता था। लेकिन इससे वह निराश नहीं हुआ। एक दिन उधर से क्रोध भरा उत्तर आया, “तुम भी बदमाश हो।” इस पर वह वैज्ञानिक खुशी से उछल पड़ा। इस तरह टेलीफोन का आविष्कार हुआ।

प्रश्न 2.
मुँहवाला चोंगा कैसा होता है?
उत्तर
मुँहवाला चोंगा कानवाले चोंगे से अलग प्रकार का होता है। यह सबके मुँह पर ठीक से फिट नहीं होता है। इसलिए अलग-अलग आकार वाले मुँह होते हैं-चोंगे से बड़ा मुँह, चोंगे से छोटा मुँह और चोंगे के बराबर मुँह । इन तीनों प्रकार के लिए इसे प्रयोग में लाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाने पड़ते हैं। अगर मैंह चोंगे से बड़ा है, तो चोंगे को मुँह में घुसेड़ देना चाहिए। अगर दोनों बराबर हैं तो, चोंगे को मुँह पर बिल्कुल फिट कर देना चाहिए। चोंगे के बराबर के मुँह को चोंगा कहा जा सकता है।

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प्रश्न 3.
‘टेलीफोन’ निबंध का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
श्री हरिशंकर परसाई लिखित ‘टेलीफोन’ निबंध एक व्यंग्यात्मक निबंध है। परसाई जी ने इस निबंध में टेलीफोन के बारे में वैज्ञानिक जानकारी देना ही पर्याप्त नहीं समझा है, अपितु मनुष्य की कमजोरियों पर हँसते-हँसते फायदे की दो-तीन बातें सूचित कर देना भी अपना मकसद समझा है। इस प्रकार फोन के निरर्थक उपयोग के प्रकार बताकर अंत में फोन से क्या लाभ और हानियाँ हैं, मानवीय जीवन में परसाई जी ने इसे चुटीले अंदाज में प्रस्तुत किया है।

टेलीफोन लेखक-परिचय

प्रश्न
श्री हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-हरिशंकर परसाई का जन्म जिला होशंगाबाद के जामानी गाँव में 22 अगस्त, 1922 ई. में हुआ था। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया था। कुछ वर्ष उन्होंने अध्यापन-कार्य किया। सन् 1947 में नौकरी छोड़कर उन्होंने स्वतन्त्र लेखन को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उन्होंने ‘वसुधा’ नामक मासिक पत्रिका निकाली थी। इसे वे घाटे के बावजूद कई वर्ष तक चलाते रहे। कई वर्षों से निरंतर वे नियमित रूप से व्यंग्य रचनाएँ लिखने में लगे रहे।

व्यंग्य लेखक-परसाई जी मुख्यतः व्यंग्य लेखक हैं। उनका व्यंग्य लेखन मनोरंजन के लिए नहीं है। वे अपने व्यंग्य के द्वारा बार-बार पाठकों का ध्यान व्यक्ति और समाज की कमजोरियों और विसंगतियों की ओर दिलाते हैं और दूर करने के लिए प्रेरित करते हैं। इन्हीं बुराइयों और कमजोरियों के कारण हमारा जीवन दूभर हो रहा है। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार और शोषण पर भी करारा व्यंग्य किया है।

रचनाएँ-परसाई जी ने दो दर्जन के लगभग पुस्तकों की रचना की है। इन रचनाओं में प्रमुख हँसते हैं, रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे कहानी-संग्रह हैं। रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज उनके उपन्यास हैं और तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत पगडंडियों का जमाना, सदाचार की ताबीज शिकायत मुझे भी है और अन्त में उनके निबंध संग्रह हैं। वैष्णव की फिसलन, तिरछी रेखाएँ, ठिठुरता हुआ गणतन्त्र, विकलांग श्रद्धा का दौर उनके व्यंग्य निबंध-संग्रह हैं। सन् 1955 में उनका निधन हो गया था।

महत्त्व-हरिशंकर परसाई का हास्य-व्यंग्यकारों में प्रतिष्ठित स्थान है। वे हिन्दी व्यंग्य विधा के समर्थ रचनाकार हैं। उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से अपनी समूची समकालीनता को खंगालते हुए पाठकों के मस्तिष्क को जगाने का अद्भुत प्रयास किया है।

टेलीफोन व्यंग्य का सारांश

प्रश्न
श्री हरिशंकर परसाई लिखित व्यंग्य ‘टेलीफोन’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्री हरिशंकर परसाई लिखित ‘टेलीफोन’ हास्य-व्यंग्यात्मक निबंध है। इस निबंध का सारांश इस प्रकार है किसी वैज्ञानिक ने एक ऐसी कला की खोज की, जिससे एक आदमी दूसरे आदमी को बिना देखे बातचीत कर सकता है। इसके लिए उसने एक तार के दोनों सिरों पर एक-एक चोंगा लगा दिया। फिर उसने एक चोंगे को अपनी प्रयोगशाला और दूसरे को अपने शत्रु के घर में लगाकर वर्षों कहता रहा कि वह बदमाश है। लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आता। एक दिन उसके ऐसा कहने पर दूसरी ओर से जवाब आया कि वह भी बदमाश है। यह सुनकर उस वैज्ञानिक के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। टेलीफोन की इस खोज से सच बोलने की मनुष्य जाति की नैतिकता का स्तर करीब-करीब 67 प्रतिशत बढ़ गया है।

इससे किसी को गाली देने की वीरता इतना अधिक बढ़ गई है कि उसे सुनकर पिटाई करने आए हुओं से भागकर बचा जा सकता है। भारत के पिछड़ेपन का एक यह भी कारण है कि यहाँ के लोग फोन पर बात करना तो नहीं जानते हैं, लेकिन देर तक घंटी बजने के बाद ही चोंगा उठाते हैं, ताकि लोगबाग यह जान जाएँ कि उनके पास फोन आते हैं। चोंगा उठाकर बहुत जोर से है लो’ अलग-अलग कहना चाहिए। चोंगा के दो भाग होते हैं-कान पर लगाकर सुनने के लिए और मुँह पर रखकर बोलने के लिए। कान पर लगाकर सुनने के लिए चोंगा तो कान पर ठीक से फिट हो जाता है, जबकि मुँह पर रखकर बोलने के लिए चोंगे का आकार छोटे-बड़े मुँह के आकार के कारण सब पर ठीक फिट नहीं हो पाता है। अनफिट होने की दशा में चोंगे में मुँह डालकर जोर से बोलना चाहिए।

फोन की घंटी बजने पर सोच-विचार कर फोन उठाना चाहिए। किसी प्रकार की झंझट की आशंका के कारण व्यवसायी-नेता स्वयं फोन नहीं उठाते हैं। वे अपने नौकरों से फोन उठवाकर पूछवाते हैं कि किसका फोन है। जिसे कुछ देना, उसे वे कहलवा देते हैं कि घर पर नहीं हैं, लेकिन जिससे कुछ लेना है, उसके लिए कहलवा देते हैं कि घर पर हैं। चतुर और सयाने लोग अपना नाम नहीं बताते हैं, वे दूसरे के नाम और पता पूछते हैं। ऐसे लोग काल रेट वाले फोन नहीं करते हैं। वे तो मुफ्त वाले फोन करते हैं। इसके लिए वे किसी अपने परिचित के पास पहुँचकर कहते हैं-“घर से निकलने पर अमुक को जरूरी फोन करना है, याद आया।

फोन करने के बाद वे अपने उस परिचित को काल रेट का पैसा देने के लिए हाथ बढ़ाते हैं, तो बाइज़्जत उनसे पैसे जेब में रखने के लिए कहता है। इस प्रकार मुक्त फोन कई बार किए जा सकते हैं। मफ्त के फोन का मजा कुछ और ही होता है। जब चाहे, जो चाहे बातें की जा सकती हैं-आँखें बन्दकर, लेटकर, टॉगें फैलाकर, उठकर, बैठकर आदि। इस प्रकार मुफ्त फोन से मजा-ही-मजा है। खासतौर से युवा पीढ़ी को इससे बड़ा और क्या मजा मिल सकता है।

टेलीफोन संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या अर्थग्रहण व विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर

1. वैज्ञानिक अनुसंधान के सबसे महान क्षण में भी पुलिस को नहीं भूलता, यह मानव स्वतन्त्रता के लिए शुभ लक्षण है। इस आविष्कार से मानवीय सम्बन्धों में क्रान्ति हो गई है। अब दुश्मन से बोलचाल बन्द करने की आवश्यकता नहीं रह गई। उसकी सूरत बिना देखे उससे बात की जा सकती है। यह वैज्ञानिक उतना ही महान हुआ, जितना वह विचारक, जिसने यह सूत्र बताया था कि किसी से बोलचाल बंद हो तो उससे लिफाफे में कोरा कागज भेजकर पत्र व्यवहार किया जा सकता है।

शब्दार्थ-शुभ लक्षण-अच्छा संकेत । आविष्कार-खोज। मानवीय-मनुष्य के।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती हिंदी सामान्य’ में संकलित तथा श्री हरिशंकर परसाई लिखित ‘टेलीफोन’ व्यंग्य निबंध से है। इसमें लेखक ने टेलीफोन के आविष्कार के विषय में प्रकाश डालते हुए कहा है कि

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व्याख्या-टेलीफोन की खोज करने वाला वैज्ञानिक अपने खुशी को खुलेआम प्रकट करना चाहता था, लेकिन उसे पुलिस के अनुचित और अमानवीय कदम की याद आ गई। उसे आशंका हुई कि उसके प्रति कहीं वह अत्याचार न कर बैठे। इस प्रकार वह इस सुखद समय में भी मानवीय स्वतन्त्रता को भूल गया। टेलीफोन के उस आविष्कार (खोज) से मानवीय सम्बन्धों और चरित्रों में बहुत बड़ा उलट-फेर हुआ है। उस खोज से मित्र से ही नहीं, अपितु दुश्मन से भी आराम से बातें करने में एक अद्भुत अनुभव होता है। उस खोज के कारण ही वह वैज्ञानिक प्रसिद्ध हो गया। एक महान वैज्ञानिक के ही रूप में नहीं, अपितु एक महान विचारक के भी रूप में उसे बहुत बड़ी लोकप्रियता प्राप्त हुई। उस वैज्ञानिक और विचारक ने ही लोगों को यह सुझाव दिया था कि जब किसी से बातचीत बन्द हो जाए, तो उससे निफाफे में कोरा कागज भेजकर उससे बातचीत शुरू की जा सकती है।

विशेष-

  1. व्यंग्यात्मक शैली है।
  2. पुलिस-दमन पर सीधा व्यंग्य-प्रहार है।
  3. भाषा में गति और ओज है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) वैज्ञानिक अनुसंधान के महान क्षण में भी पुलिस को क्यों नहीं भलता?
(ii) किस आविष्कार से मानवीय संबंधों में क्रान्ति हुई?
उत्तर
(i) वैज्ञानिक अनुसंधान के महान क्षण में भी पुलिस को नहीं भूलता है। यह इसलिए कि पुलिस किसी के प्रति भी अति अमानवीय और निरंकुश कदम उठाकर उसकी स्वतंत्रता पर रोक लगा देती है।
(ii) टेलीफोन के आविष्कार से मानवीय-संबंधों में क्रान्ति आ गई।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) टेलीफोन से पहले संपर्क का माध्यम क्या था?
(ii) टेलीफोन से क्या सुविधा है?
उत्तर
(i) टेलीफोन से पहले संपर्क का माध्यम पत्र-व्यवहार था।
(ii) टेलीफोन से दुश्मन से बन्द हुई बोलचाल को शुरू किया जा सकता है।

2. टेलीफोन के आविष्कार से मनुष्य जाति का नैतिक स्तर उठ गया। फोन पर सच और झूठ दोनों अधिक सफाई से बोले जा सकते हैं। आदमी आमने-सामने तो बेखटके झूठ बोल जाता है, पर सच बोलने में झेंपता है। टेलीफोन के कारण संसार में सत्य भाषण लगभग 67 प्रतिशत बढ़ा है। इससे मनुष्य जाति अधिक वीर भी बनी है। जिसकी छाया से भी डर लगता था, उसी आदमी को फोन पर गाली भी दी जा सकती है और जब तक वह पता लगाकर आपको मारने आए, आप भागकर बच सकते हैं।

शब्दार्थ-बेखटके-तुरन्त। झेंपता-संकोच करता।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें लेखक ने टेलीफोन के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-टेलीफोन की खोज ने मनुष्य जाति के जीवन-स्तर को अधिक नैतिक और ऊँचा बनाने में अहम भूमिका निभाई है। टेलीफोन से यह एक बहुत बड़ी सुविधा हुई है कि इससे किसी को अपनी इच्छानुसार कुछ भी झूठ-सच या मनगढ़त कोई बात सुनाई जा सकती है। इस पर कोई विश्वास करे या न करे, यह दूसरी बात है। झूठ बोलने में आदमी किसी के सामने संकोच नहीं करता है, लेकिन सच बोलने के लिए कई बार सोचता है और संकोच करता है। टेलीफोन ने सच्ची बात करने के वातावरण को बहुत बढ़ा दिया है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि मनुष्य जाति ने बहुत बड़ी वीरता दिखाई है। उसकी वीरता सचमुच में काबिलेतारीफ है। इस प्रकार यह सच्चाई सामने आई है कि जिसके नाम, काम और रूप को याद करने से भय होता था, उसे फोन पर ललकारा जा सकता है। और उसे कुछ भी अपशब्द कहकर उसे नीचा दिखाया जा सकता है। यह साहसी कदम उसके पास आने से पहले उठकर कहीं भी लापता होकर उसके क्रोध का शिकार होने से बचा जा सकता है।

विशेष-

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. शैली व्यंग्यात्मक है।
  3. व्यंजना शब्द-शक्ति है।
  4. फोन का महत्त्वांकन किया गया है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) टेलीफोन के आविष्कार से मनुष्य जाति पर क्या प्रभाव पड़ा है?
(ii) आदमी सच बोलने में क्यों झेंपता है?
उत्तर
(i) टेलीफोन के आविष्कार से मनुष्य जाति की नैतिकता पूर्वापेक्षा बढ़ गई
(ii) आदमी सच बोलने में झेंपता है। यह इसलिए कि वह स्वयं सच से कतरातां है। फिर उसे दूसरों के सामने कहने में और कठिनाई व आशंका होती है।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) टेलीफोन से क्या-क्या लाभ हैं?
(ii) उपर्युक्त गयांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) टेलीफोन से कई लाभ हैं, जैसे-सच बोलने का विस्तार, मनुष्य जाति की वीरता, अपने विरोधियों को नीचा दिखाने की सुविधा आदि।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का मुख्य भाव है-टेलीफोन की सुविधा और लाभ को बतलाना।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 5 ऋतु वर्णन

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 5 ऋतु वर्णन (पद्माकर)

ऋतु वर्णन अभ्यास-प्रश्न

ऋतु वर्णन लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बसंत की छटा कहाँ-कहाँ दिखाई दे रही है?
उत्तर
वसंत की छटा सब जगह दिखाई दे रही है।

प्रश्न 2.
एक ऋतु विशेष को ऋतुराज क्यों कहा गया है?
उत्तर
एक ऋतु विशेष को ऋतुराज कहा गया है। यह इसलिए कि उसका स्वरूप और प्रभाव अन्य ऋतुओं से हर प्रकार बढ़कर आकर्षक, सरस और सहज है।

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प्रश्न 3.
पद्माकर ने शरद ऋतु के सौंदर्य का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर
पद्माकर ने शरद ऋतु के सौंदर्य का वर्णन बड़े ही भाववर्द्धक रूप में किया है। कवि ने शरद ऋतु के वर्णन को प्रभावशाली बनाने के लिए उसके विविध रूपों को प्रस्तुत किया है।

ऋतु वर्णन दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘पद्माकर प्रेम और उल्लास के कुशल कवि हैं।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पद्माकर रीतिकाल के सुप्रसिद्ध कवि हैं। उनकी ‘जगद्विनोद’ रचना को प्रेम और उल्लास का सागर माना जाता है। इनकी कविता रसिक लोगों का कंठाहार है। भावुकता, तन्मयता और चमत्कार उनकी कविताओं में एक साथ दिखाई देते हैं।

प्रश्न 2.
पद्माकर का वसंत वर्णन अद्वितीय है, कारण लिखिए।
उत्तर
पद्माकर का वसंत वर्णन अद्वितीय है। उसकी अद्वितीय होने का कारण यह है कि उसमें व्यापकता, सरसता और कल्पना की सुन्दर त्रिवेणी प्रवाहित हुई है। लयात्मकता, संगीतात्मकता और क्रमबद्धता का त्रिवेग है, जो निरन्तरता से अधिक प्रभावशाली बन गया है। पद्माकर के वसंत वर्णन के अद्वितीय होने का तीसरा कारण है-हमारे परिवेश को न केवल प्रभावित करने का है, अपितु उसे स्वस्थ और सम्पन्न बनाने का भी है।

प्रश्न 3.
पद्माकर के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
पद्माकर के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. पद्माकर का काव्य अत्यंत सरस और कौशलपूर्ण है।
  2. उनके काव्य में मधुर-मधुर कल्पनाएँ हैं जो स्वाभाविक और हाव-भावपूर्ण हैं।
  3. उनके काव्य में अलंकारों की छटा विभिन्न उपमानों की सजीवता लिए हुए है।
  4. उनके काव्य में शृंगार रस का सागर उमड़ता है।
  5. उनके काव्य में विषयों की विविधता को प्रकट करने वाली भाषा मौजूद है।

प्रश्न 4.
निम्न पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए

वीथिन में, ब्रज में नवेलिन में बेलिन में,
बनन में बागन में बगरयो वसंत है।
उत्तर
उपर्युक्त पक्तियों का आशय यह है कि ऋतुराज वसंत का आगमन प्रकत में रहा है। वह व्यापक रूप से हो रहा है। इसलिए मनुष्य के साथ-साथ प्रकृति के और स्वरूप उससे प्रभावित हो रहे हैं। उसका प्रभाव सबको उल्लसित और उमंगित कररहा है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित काव्यांश की व्याख्या सन्दर्भ-प्रसंग सहित लिखिए।

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में
क्यारिन में कलित कलीन किलकन्त है।
कहै पदमाकर परागहू में पौनहूं में,
पातन में पिक में पलासन पगन्त है।
उत्तर
नदियों के तट पर, केलियों में, कछारों में, कुंजों में, क्यारियों में वसंत उल्लासपूर्ण किलकारी मार रहा है। कविवर पदमाकर का पुनः कहना है कि फूलों के परागों में, हवाओं में, पेड़-पौधों के पत्तों में, कोपलों में, पलाशों में वसंत की सरसता लिए हुए है। द्वार-द्वार में, दिशाओं में, दूर देश-परदेश में, दीपों में, सभी दिशाओं में वसंत की चमक-दमक है। गलियों में, ब्रज में, बेलों में, वनों में, बागों में वसंत का साम्राज्य फैला हुआ है।

ऋतु वर्णन भाषा-अध्ययन/काव्य-सौंदर्य

प्रश्न 1.
‘कलित कलीन किलकन्त’ में अनुप्रास अलंकार है। पठित पाठ के आधार पर पाँच उदाहरण दीजिए।
उत्तर
1. ‘पलासन – पगन्त’
2. देस – देसन
3. दीप -दीपन
4. दीप – दिगन्त
5. बगर्यो – बसंत

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए
देश, जीवन, अखण्ड, योग्यता, प्रकाश।
उत्तर
शब्द – विलोम शब्द
देश – विदेश
जीवन – मरण
अखण्ड – खण्ड
योग्यता – अयोग्यता
प्रकाश – अंधकार।

ऋतु वर्णन योग्यता – विस्तार

प्रश्न 1. अनेक कवियों ने ऋतु-वर्णन से संबंधित कविताएँ लिखी हैं, अपने शिक्षक की सहायता से ऋतु-वर्णन से संबंधित कविताएँ संकलित कीजिए।
प्रश्न 2. आपको कौन-सी ऋतु सबसे अच्छी लगती है? क्यों? अखबारों तथा पुरानी पत्रिकाओं से चित्र काटकर चित्र-युक्त निबंध तैयार करें इसे ‘फीच’ लेखन कहते हैं जिसकी जानकारी अपने शिक्षक से लीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

ऋतु वर्णन परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वसंत की छटा किस रूप में दिखाई देती है?
उत्तर
वसंत की छटा अत्यन्त सहज, मनमोहक और व्यापक रूप में दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
वसंत किसका प्रतीक है?
उत्तर
वसंत सम्पन्नता और उल्लास का प्रतीक है।

प्रश्न 3.
वसंत का आगमन कब होता है?
उत्तर
वसंत का आगमन पतझड़ के बाद होता है।

ऋतु वर्णन दीर्य उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पद्माकर ने बसंत और शरद इन दोनों ऋतुओं की किन प्रमुख विशेषता को सामने लाया है?
उत्तर
पद्माकर ने वसंत और शरद इन दोनों ऋतुओं की निम्नलिखित विशेषताओं को सामने लाने का प्रयास किया है :
1. वसंत ऋतु की विशेषताएँ

  • वसंत मानवीय अनुभूतियों का प्रतीक है।
  • वसंत मानव जीवन को विकसित करने का प्रतीक है।
  • वसंत सौंदर्यवर्द्धक और उत्साहवर्द्धक है।
  • वसंत व्यापक सम्पन्नता का प्रमुख कारक है।

2. शरद ऋतु की विशेषताएँ

  • शरद सरसता और सरलता का प्रतीक है।
  • शरद में मधुरता और सुन्दरता है।
  • शरद की चाँदनी प्रेमरस को सरलतापूर्वक प्रवाहित करती है।

प्रश्न 2.
पद्माकर का साहित्यिक महत्त्वाकंन कीजिए।
उत्तर
पद्माकर रीतिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। पद्माकर का साहित्यिक महत्त्वांकन करते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है “उनकी मधुर कल्पना ऐसी स्वाभाविकता और हाव-भावपूर्ण मूर्ति-विधान करती है कि पाठक भावों की प्रत्यक्ष अनुभूति में मग्न हो जाता है।” संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि पद्माकर की कविता में रीतिकाल की कविता की सभी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ मौजूद हैं।

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प्रश्न 3.
पद्माकर विरचित कविता ‘ऋतु-वर्णन’ का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पद्माकर का ऋतु-वर्णन अत्यधिक अनूठा और बेजोड़ कवित्त है। विभिन्न प्रकार की ऋतुओं के सौंदर्य-बोध को उन्होंने अनेक तरह से अपनी कविता में प्रस्तुत किया है। ऋतुओं की बदलती सुन्दरता का क्रियाशील वर्णन उनके काव्य को एक अलग ही आकर्षण प्रदान करता है। कविवर पदमाकर ने वसंत ऋतु को विकसित प्रक्रिया का वर्णन मानवीय अनुभूतियों के स्तर पर तो किया ही है। इसके साथ ही वसंत की नयनाभिराम छटा भी उनकी कविताओं में प्राप्त होती है। वसंत हमारे परिवेश को कैसे प्रभावित कर सम्पन्न करता है? यह उनकी प्रस्तुत कविता से बड़ी सहजता से स्पष्ट हो जाता है। शरद वर्णन में वह राधा-कृष्ण को नहीं भूल पाते। शरद की चाँदनी, उन्हें प्रभावित करती है। इस कविता में कवि ने उद्दीपन भाव को व्यक्त किया है।

ऋतु वर्णन कवि-परिचय

प्रश्न
कविवर पद्माकर का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि पद्माकर का जन्म उत्तर-प्रदेश के बाँदा में सन् 1753 में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित मोहनलाल भट्ट था। वे तैलंग ब्राह्मण थे। यही नहीं वे एक उच्चकोटि के विद्वान और रसिक कवि भी थे। पद्माकर बचपन से ही अपने पिता की कविताओं को सुन-सुनकर काव्य-रचना करने लगे। उनका निधन 1836 में हुआ।

रचनाएँ-पदमाकर के छः प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं, जो इस प्रकार हैं-जगविनोद, ‘पद्माभरण’, ‘हिम्मत बहादुर’, ‘विरुदावली’, ‘गंगालहरी’, ‘प्रबोध-पचीसी’ और ‘राम-रसायन।’
साहित्यिक महत्त्व-पद्माकर रीतिकाल के चुने हुए कवियों में से एक हैं। उनका काव्य-स्वरूप अधिक आकर्षक है। पद्माकर के साहित्यिक महत्त्व का वर्णन करते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है “उनकी मधुर कल्पना ऐसी स्वाभाविक और हाव-भावपूर्ण मूर्ति-विधान करती है कि पाठक भावों की प्रत्यक्ष अनुभूति में मग्न हो जाता है।”

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि पद्माकर का काव्य-विधान विभिन्न प्रकार के काव्य-लक्षणों से पुष्ट है। उनकी भाषा ब्रजभाषा है, जो बहुत ही सरल और सजीव है।
भावुकता, तन्मयता और चमत्कार तो उनकी कविताओं के निश्चित आधार हैं। कुल मिलाकर वे एक युगीन महाकवि ठहरते हैं।

ऋतु वर्णन कविता का सारांश

प्रश्न-कवि पद्माकर-विरचित कविता ‘ऋतु-वर्णन’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
कवि पद्माकर-विरचित कविता ‘ऋतु-वर्णन’ के दो भाग हैं-‘वसंत’ और ‘शरद’ । ‘वसंत’ कविता में कवि ने वसंत ऋतु के व्यापक प्रवेश का अत्यन्त भावपूर्ण वर्णन किया है। ‘शरद’ कविता में कवि ने शरद ऋतु की सुन्दरता तब और मन मोह लेती है, जब कवि राधा-कृष्ण के रासमण्डल का चित्रण करता है। शरद ऋतु की चाँदनी की छटा निश्चित रूप से प्रभावशाली है।

वसंत:

ऋतु वर्णन  संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

पद की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौन्दर्य एवं विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकन्त है।

कहै पद्माकर परागहू में पौनहूं में,
पातन में, पिक में पलासन पगन्त है।

द्वारे में दिसान में दुनी में देस देसन में,
देखो दीप दीपन में दीपत दिगन्त है।

बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में,
बनन में बागन में बगरयो बसन्त है।

शब्दार्थ-कूलन-नदी के तट पर। किलकन्त-उल्लास से किलकारी मारना । पौनहूं-पवन। पिक-कोयल। दिगन्त-समस्त दिशाओं में। बीथिन-गलियों में।
नवेलिन-युवती, तरुणी।

प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘वासंती-हिन्दी-सामान्य’ में संकलित तथा महाकवि पदमाकर द्वारा विरचित कविता ‘वसंत’ से लिया गया है। इसमें कवि ने वसंत ऋतु के व्यापक प्रवेश का चित्रण किया है। इस विषय में कवि का कहना है

व्याख्या-नदियों के तट पर, केलियों में, कछारों में, कुंजों में, क्यारियों में वसंत उल्लासपूर्ण किलकारी मार रहा है। कविवर पदमाकर का पुनः कहना है कि फूलों के परागों में, हवाओं में, पेड़-पौधों के पत्तों में, कोपलों में, पलाशों में वसंत की सरसता लिए हुए है। द्वार-द्वार में, दिशाओं में, दूर देश-परदेश में, दीपों में, सभी दिशाओं में वसंत की चमक-दमक है। गलियों में, ब्रज में, बेलों में, वनों में, बागों में वसंत का साम्राज्य फैला हुआ है।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा है।
  2. लय और संगीत का सुन्दर मेल है।
  3. वर्णनात्मक शैली है।
  4. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. शृंगार रस का संचार है।

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1. पद पर आरित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) प्रस्तुत पद के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(iii) बसंत उल्लास से कहाँ-कहाँ किलकारी मार रहा है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद में वसंत ऋतु के सुखद आगमन को विविध काव्य-सौंदर्य से चित्रित किया गया है। ब्रजभाषा की शब्दावली के द्वारा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का चमत्कार शृंगार रस से पुष्ट हुआ है।
(ii) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य वसंत ऋतु के आगमन की विविधा को अच्छी तरह से दर्शाने वाला है। इस प्रकार इस पद का भाव-सौंदर्य अपनी सरसता और सरलता के साथ स्वाभाविकता को प्रस्तुत कर हृदयस्पर्शी बन गया है।
(iii) वसंत अपने उल्लास से नदियों के तटों पर केलियों में, कछारों में, कुंजों में किलकारी मार रहा है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर ।

प्रश्न
(i) बसंत को किस रूप में चित्रित किया गया है?
(ii) वसंत का अन्य ऋतुओं से बढ़कर क्या महत्त्व है?
उत्तर-
(i) वसंत को मनुष्य के रूप में चित्रित किया गया है।
(ii) वसंत का अन्य ऋतुओं से बढ़कर महत्त्व है। यह इसलिए कि वह अपने आगमन से हमारे जीवन में आनंद की झड़ी लगा देता है। वसंत के आने से प्रकृति के प्रत्येक स्वरूप में उल्लास और सरसता का संचार होने लगता है।

शरद:

ऋतु वर्णन
  संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

पद की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौंदर्य एवं विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर

2. तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै,
वृन्दावन बीथिन बहान बंसीवट पै।

कहै पदमाकर अखण्ड रासमण्डल पै,
मण्डित उमण्डि महा कालिंदी के तट पै॥

छिति पर छान पर छाजत छतान पर,
ललित लतान पर लाड़िली की लट पै।

आई भली छाई यह सरद-जुन्हाई, जिहि,
पाई छवि आज ही कन्हाई के मुकुट पै॥

शब्दार्थ-तालन-तालाबों। तमालन-तमाल नामक वृक्षों में। मालन-मालाएँ। बीविन-गलियाँ। बहार-शोभा। बंसीवट-जिस पर बैठकर कृष्ण बंशी बजाते थे। अखण्ड रासमण्डल-निरन्तर रासलीला। मण्डित-सुशोभित उमण्डि-घिरना, घुमड़ना। महाकालिन्दी-यमुना का बड़ा रूप। ठिति-पृथ्वी। छान-छप्पर की छत। छाजत छतान-छाया हुआ। ललित लतान-सुन्दर लताएँ। सरद जुन्हाइ-शरद की चाँदनी। कन्हाइ-कृष्ण।

प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक वासंती हिंदी सामान्य’ में संकलित तथा महाकवि पद्माकर-विरचित कविता ‘शरद’ से लिया गया है। इसमें कविवर पदमाकर ने शरद ऋतु के स्वरूप-प्रभाव का अनूठा चित्र खींचते हुए कहा है कि

व्याख्या-तालाबों में, तमाल नामक पेड़ों में, मालाओं में वृन्दावन की गलियों में और बंशीवट में शरद ऋतु की चाँदनी की बहार आई हुई है। कविवर पद्माकर का कहना है कि शरद ऋतु की चाँदनी में निरन्तर रासलीलाएँ हो रही हैं। यमुना के तट पर भ्रमण करना बहुत ही शोभा दे रहा है। इस प्रकार पृथ्वी पर, छप्पर की छत पर, सुन्दर-सुन्दर लताओं पर, युवतियों की लटों पर शरद ऋतु की चाँदनी छायी हुई बहुत ही अच्छी लग रही है। इसकी सुन्दरता तो आज कृष्ण के मुकुट पर पड़ने से और ही बढ़ गई है।

विशेष-

  1. ब्रजभाषा की शब्दावली।
  2. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  3. शृंगार रस का प्रवाह।
  4. चित्रमयी शैली है।

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1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत पद के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(iii) प्रस्तुत पद में वृन्दावन का क्या उल्लेख हुआ है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य अनुप्रास अलंकार से चमत्कृत है। इसे शृंगार रस से पुष्ट करके चित्रमयी शैली के द्वारा अधिक मनमोहक बनाने का प्रयास किया गया है।
(ii) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य शरद-पूर्णिमा की चाँदनी की सरसता को क्रमशः उजागर करने में सफल दिखाई देता है। भावों की सरलता उनकी प्रवाहमयता के कारण और रोचक हो गई है।
(iii) प्रस्तुत पद में वृन्दावन की गलियों में शरद की चाँदनी का उल्लासपूर्ण उल्लेख हुआ है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद में किसका चित्रण हुआ है?
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद में शरद ऋतु की चाँदनी का अत्यन्त प्रभावशाली, रोचक और आकर्षक चित्रण हुआ है।
(ii) प्रस्तुत पद का शरद की चाँदनी का प्रकृति के विभिन्न तत्त्वों को सरसतापूर्वक प्रभावित करने का चित्रण करना मुख्य भाव है। यह भाव हर प्रकार से हमारे सोए हुए भावों को जगाता है।

MP Board Class 9th Hindi Solutions

MP Board Class 10th Special Hindi अपठित बोध

MP Board Class 10th Special Hindi अपठित बोध

अपठित का तात्पर्य है जो पढ़ा हुआ न हो। अपठित का अवतरण पाठ्य-पुस्तकों से सम्बन्धित नहीं होता। परीक्षा में अपठित के अन्तर्गत निम्न प्रश्न पूछे जाते हैं। देखिए

  1. अवतरण का शीर्षक।
  2. समस्त गद्य-अवतरण अथवा पद्यावतरण का स्वयं की भाषा में सारांश।
  3. अवतरण पर आधारित प्रश्नों के उत्तर।

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(1) शीर्षक–अवतरण का शीर्षक जहाँ तक हो सके लघु (छोटा) तथा उपयुक्त होना चाहिए। शीर्षक में अवतरण का समस्त भाव परिलक्षित होना नितान्त आवश्यक है। शीर्षक के लिए गद्यांश के प्रारम्भिक एवं आखिरी अंश का चिन्तन एवं मनन करना चाहिए।

(2) सारांश परीक्षा में अवतरण का सारांश अथवा भाव लिखने को आता है। सारांश छोटा तथा सारगर्भित होना चाहिए। इसमें अपनी भाषा का प्रयोग करना परमावश्यक है। अवतरण की भाषा को ज्यों का त्यों लिखना वर्जित है। भाषा का परिमार्जित होना जरूरी है।

सार-लेखन में पूछे गये अवतरण का ही भाव परिलक्षित होना चाहिए। सारांश का कलेवर एक तिहाई से किसी भी दशा में अधिक नहीं होना चाहिए।

(3) प्रश्नोत्तर–प्रश्नों के उत्तर लघु तथा सारगर्भित होने चाहिए। अवतरण के आधार पर ही उत्तर देने चाहिए। अनर्गल उत्तर देना वर्जित है। प्रश्नोत्तरों की भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए।

MP Board Class 10th Special Hindi अपठित गद्यांश

प्रश्न-
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

1. मन के सशक्त होने पर शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है। यदि मन दुर्बल है तो शरीर निष्क्रिय और निरुद्यम ही रहेगा। यह संसार शक्तिशाली का है। दुर्बल का इस संसार में कहीं ठिकाना नहीं। कायर व्यक्ति मृत्यु से पहले ही सहस्रों बार मरता है। कायरता का सम्बन्ध मन से है। कायरता और निरुत्साह का दूसरा नाम ही मन की हार है। परिणामत: मन की हार अत्यन्त भयंकर है। मनुष्य भाग्य का निर्माता है, पर कायर पुरुष नहीं। सबल ही भाग्य निर्माता की सामर्थ्य रखता है। कायर तो दैव-दैव ही पुकारता है। साहसी व्यक्ति को अपने मानसिक बल पर अभिमान होता है।

प्रश्न-
(1) इस अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(2) इस अवतरण में भाग्य का निर्माता किसे कहा गया है?
(3) इस अवतरण का सारांश 30 शब्दों में दीजिए।
(4) मन के सशक्त होने पर शरीर में क्या होता है?
उत्तर-
(1) शीर्षक-‘मनोबल’।’
(2) मानव को स्वयं अपने भाग्य का निर्माता कहा गया है।
(3) सारांश-मन का सबल एवं पुष्ट होना सबसे बड़ी ताकत है। मन के दुर्बल होने पर मानव भीरु (कायर) बन जाता है। ऐसे व्यक्ति का दुनिया में जीवित रहना अथवा न रहना एकसमान है। अतः मन को सशक्त बनाओ तथा अपने भाग्य की सृष्टि (निर्माण) करो।
(4) मन के सशक्त होने पर शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है।

2. क्षमा पृथ्वी का गण-धर्म है। क्षमा वीरों का भूषण है। मनुष्य से स्वाभाविक रूप से अपराध होते रहते हैं,गलतियाँ होती रहती हैं। हमारी दृष्टि में कोई अपराधी है तो हम भी किसी की दृष्टि में अपराधी हैं। यहाँ निर्दोष कोई भी नहीं है, इसलिए परस्पर क्षमा-भावना की अति आवश्यकता है। क्षमा के अभाव में क्रोध, हिंसा, संघर्ष का साम्राज्य छा जायेगा जिसे कोई भी स्वीकार नहीं करता है। माता-पिता, गुरु सभी क्षमाशील होते हैं। मानव जीवन में क्षमा के अवसर आते रहते हैं। क्षमा के अभाव में जीवन चलना दूभर हो जाता है। अहिंसा, करुणा, दया, मैत्री, क्षमा आदि दैवीय गुण हैं। ये गुण मानव-जीवन के लिए आवश्यक हैं। (2009)

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक दीजिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(3) क्षमा के अभाव में किसका साम्राज्य छा जाता है?
उत्तर-
(1) शीर्षक–’क्षमा दैवीय गुण’।

(2) सारांश-क्षमा पृथ्वी का गुण है। पृथ्वी अनेक आघातों को सहकर भी मानव सेवा में तत्पर रहती है। क्षमा वीरों का आभूषण है। मनुष्य स्वाभाविक रूप से जाने-अनजाने में अपराध करता रहता है। सब एक-दूसरे की दृष्टि में अपराधी हैं। अत: मानव को अपने मन मानस में क्षमा को प्रथम वरीयता देनी चाहिए। जीवन में क्षमा के अनेक अवसर आते हैं। अहिंसा, दया, मित्रता, क्षमा आदि ईश्वरीय गुणों के परिचायक हैं।

(3) क्षमा के अभाव में क्रोध, हिंसा और संघर्ष का साम्राज्य छा जायेगा।

3. मानव का अकारण ही मानव के प्रति अनुदार हो उठना न केवल मानवता के लिए लज्जाजनक है, वरन् अनुचित भी है। वस्तुतः यथार्थ मनुष्य वही है जो मानवता का आदर करना जानता है, कर सकता है। केवल इसलिए कि कोई मनुष्य बुद्धिहीन है अथवा दरिद्र वह घृणा का तो दूर रहा, उपेक्षा का भी पात्र नहीं होना चाहिए। मानव तो इसलिए सम्मान के योग्य है कि वह मानव है, भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना है। [2009, 14]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक दीजिए।
(2) यथार्थ मनुष्य किसे कहा गया है?
(3) उक्त गद्य खण्ड का सारांश लिखिए।
उत्तर-
(1) शीर्षक-‘आदर्श मानव’।
(2) यथार्थ मनुष्य वही है जो मानवता का आदर करना जानता है।
(3) सारांश-मानव का उदारता रहित होना मानवता के लिए लज्जाजनक ही नहीं अपितु अनुचित भी है। वास्तव में सच्चा मनुष्य वही है जिसके मन मानस में मानवता के प्रति संवेदना हो। वह प्रत्येक व्यक्ति का आदर करना जानता हो।

बद्धिहीन निर्धन व्यक्ति के प्रति भी उपेक्षा की भावना नहीं होनी चाहिए अपितु उनको भी यथेष्ट सम्मान प्रदान करना चाहिए।

4. राष्ट्रभाषा और राजभाषा के पद पर अभिषिक्त होने के कारण हिन्दी का दायित्व कुछ बढ़ जाता है। अब वह मात्र साहित्य की भाषा ही नहीं रह गयी है, उसके माध्यम से ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई उपलब्धियों का भी ज्ञान विकास करना तथा प्रशासन की भाषा के रूप में उसका नव-निर्माण करना हमारा दायित्व है। यह बड़ा महान् कार्य है और इसके लिए बड़ी उदार और व्यापक दृष्टि तथा कठिन साधना की अपेक्षा है।

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(3) हिन्दी भाषा किस पद पर अभिषिक्त है?
(4) हिन्दी का दायित्व क्यों बढ़ गया है?
उत्तर-
(1) शीर्षक-राष्ट्रभाषा हिन्दी।’
(2) सारांश-आज हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन है। आज हिन्दी भाषा से ज्ञान विज्ञान एवं तकनीकी की जानकारी मिल रही है। प्रशासकीय स्तर पर भी हिन्दी का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है। हिन्दी सभी क्षेत्रों में एक गौरवशाली भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। हमें अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाकर हिन्दी को पूरा सम्मान देना होगा। इसी में सबका हित-साधन है।
(3) हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा और राजभाषा के पद पर अभिषिक्त है।
(4) राष्ट्रभाषा और राजभाषा के पद पर अभिषिक्त होने से हिन्दी का दायित्व बढ़ जाता है, क्योंकि अब यह ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की भाषा बन चुकी है।

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5. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। परिचित तो बहुत होते हैं,पर मित्र बहुत कम हो पाते हैं,क्योंकि मैत्री एक ऐसा भाव है जिसमें प्रेम के साथ समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है। मैत्री में सबसे आवश्यक है, परस्पर विश्वास। मित्र ऐसा सखा, गुरु और माता है जो सभी स्थानों को पूर्ण करता है। [2009]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का एक सटीक शीर्षक दीजिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(3) मैत्री में कौन-कौन से भाव सम्मिलित हैं?
उत्तर-
(1) शीर्षक ‘सच्चा मित्र’।
(2) सारांश-मानव एक समाज में रहने वाला प्राणी है। उसका अस्तित्व ही समाज पर है। समाज में परिचित तो अनेक होते हैं लेकिन मित्रों की संख्या कम होती है। सच्ची मित्रता में त्याग एवं समर्पण की भावना प्रमुख रूप से निहित होती है।

मित्रता में आपसी विश्वास का होना अपेक्षित है। सच्चा मित्र गुरु एवं माता के समान है जो समस्त स्थानों की पूर्णता का द्योतक है।

(3) मैत्री में प्रेम भाव के साथ-साथ समर्पण, त्याग और परस्पर विश्वास होना आवश्यक है।

6. अमृत तो प्रत्येक प्राणी के हृदय में समाया हुआ है, जरूरत है तो उसे जानने की। इस काया के अन्दर भरपूर अमृत है। गुरु के शब्द पर विचार करके ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। जो प्रभु की खोज करते हैं वह इस अमृत को देह से ही प्राप्त करते हैं लेकिन गुरु के शब्द पर विचार न कर पाने के कारण अज्ञानी जीव व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है। इस शरीर के नौ द्वार हैं परन्तु इन नौ द्वारों में से हमें अमृत प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि वह दसवें द्वार में स्थित है। मनुष्य नौ द्वारों के रहस्य को तो जानता है परन्तु गुरु रूपी दसवें द्वार को भूला हुआ है। गुरु का कार्य उस द्वार को प्रकट करना है। यदि अन्तर में परमपिता परमात्मा से हमें प्रेम है, परन्तु जब तक हमें परमात्मा के दर्शन नहीं होते हम तब तक अमृतपान नहीं कर सकते। [2011]

प्रश्न- (1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(3) व्यक्ति अमृतपान कब कर सकता है?
उत्तर-
(1) शीर्षक–’अमृत की अभिलाषा।’

(2) सारांश इस गद्यांश के द्वारा लेखक ने यह बताने का प्रयत्न किया है, कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में ईश्वर का निवास है। लेकिन ईश्वर तक पहुँचने का साधन गुरु है। गुरु के द्वारा ही व्यक्ति अपने गन्तव्य तक पहुँच सकता है। व्यक्ति अज्ञानता के कारण इधर-उधर भटकता रहता है और अपने जीवन को बेकार ही नष्ट कर लेता है। लेखक के अनुसार मानव उसके शरीर में मौजूद नौ द्वारों के रहस्य को तो जानता है किन्तु अमृत से तृप्त दसवें द्वार को वह भूला हुआ है, जिसे बिना गुरु के मार्गदर्शन के वह प्राप्त नहीं कर सकता है। सच्चे गुरु का कर्त्तव्य उस दसवें द्वार को प्रकट कर शिष्य भगवानरूपी अमृत से साक्षात्कार करवाना है।

(3) व्यक्ति गुरु के सानिध्य में रहकर अमृत पान कर सकता है।

7. यदि हम समय का सदुपयोग करना सीख लें,तो इससे लाभ ही लाभ हैं। व्यर्थ ही समय व्यतीत करके जो काम दिन भर में कर पाते हैं,उसे कुछ घण्टों में ही कर सकते हैं। इस प्रकार पूरे जीवन में हम कई गुना कार्य करके अपना विकास और मानवता की सेवा कर सकते हैं। अधिक कार्य करके हम अधिक धन,यश, सम्मान अर्जित कर सकते हैं। निरन्तर ऊँचे उठते हुए जीवन को सार्थक बना सकते हैं। हममें कर्मठता आती है, चरित्र में दृढ़ता आती है। सच्चे अर्थों में हम मनुष्य बन जाते हैं। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं,सभी ने समय के महत्व को समझा तथा उसका सम्पूर्ण उपयोग किया था। [2009]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक लिखिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
(3) जीवन को सार्थक किस प्रकार बनाया जा सकता है?
उत्तर-
(1) शीर्षक-‘समय का सदुपयोग।
(2) सारांश-मानव जीवन में समय का पालन करना नितान्त आवश्यक है। समय के सदुपयोग से कार्य पूर्ण होने में समय की बचत होती है।

समय के सदुपयोग से स्वयं का विकास एवं मानवता की सेवा भी सम्भव है। समय के सदुपयोग से हमारी कर्मशीलता एवं चरित्र का विकास होता है। हम सच्चे अर्थों में मानव कहे जाने के अधिकारी बन सकते हैं।

(3) अधिक कार्य करके धन, यश, सम्मान अर्जित करके निरन्तर ऊँचे उठते हुए जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

8. धर्म एक व्यापक शब्द है। मजहब, मत,पंथ या संप्रदाय सीमित रूप है। संसार के सभी धर्म मूल रूप में एक ही हैं। सभी मनुष्य के साथ सद्व्यवहार सिखाते हैं। ईश्वर किसी विशेष धर्म या जाति का नहीं। सभी मानवों में एक प्राण स्पंदन होता है। उसके रक्त का रंग भी एक ही है। सुख-दुःख का भाव बोध भी उनमें एक जैसा है। आकृति और वर्ण, वेशभूषा और रीतिरिवाज तथा नाम ये सब ऊपरी वस्तुएँ हैं। ईश्वर ने मनुष्य या इंसान को बनाया है और इंसान ने बनाया है धर्म या मजहब को। ध्यान रहे मानवता या इंसानियत से बड़ा धर्म या मजहब दूसरा कोई नहीं। वह मिलना सिखाता है, अलगाव नहीं। ‘धर्म’ तो एकता का द्योतक है। [2010]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
(2) सबसे बड़ा धर्म कौन-सा है?
(3) बाह्य वस्तुएँ क्या हैं?
उत्तर-
(1) शीर्षक-धर्म का अर्थ।’
(2) इन्सानियत या मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।
(3) संसार में भिन्न-भिन्न आकृति एवं वर्ण वाले लोग होते हैं। इन व्यक्तियों के रीतिरिवाज और वेशभूषा भी अलग-अलग होती हैं। ये सभी बाह्य वस्तुएँ कहीं जाती हैं।

9. मनुष्य का जीवन बहुत संघर्षमय होता है। उसे पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। फिर भी ईश्वर के द्वारा जो मनुष्यरूपी वरदान की निर्मिति इस पृथ्वी पर हुई है मानो धरती का रूप ही बदल गया है। यह संसार कर्म करने वाले मनुष्यों के आधार पर ही टिका हुआ है। देवता भी उनसे ईर्ष्या करते हैं। मनुष्य अपने कर्म बल के कारण श्रेष्ठ है। धन्य है मनुष्य का जीवन। [2012]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(3) मनुष्य किस कारण श्रेष्ठ माना गया है?
उत्तर-
(1) शीर्षक-‘मनुष्य और कर्म।’
(2) सारांश-मानव ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है। यद्यपि मानव जीवन कदम-कदम पर कठिनाइयों और संघर्षों की अनवरत कहानी है किन्तु ईश्वर द्वारा पृथ्वी पर मानव की रचना एक वरदान जैसी है। पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति से धरती का स्वरूप पूर्णतः बदल गया है और उसका सबसे बड़ा कारण है मानव का कर्म प्रधान व्यवहार। वास्तव में यह दुनिया ऐसे लोगों के कारण ही इतनी सुन्दर है जो कर्म को अपना धर्म मानते हैं। देवता तक ऐसे कर्मशील व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, या कहें प्रेरित होते हैं। मानव जन्म मात्र अपने कर्म कौशल के कारण ही सभी जीवजन्तुओं में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऐसे कर्म के धनी मानव जीवन की जय है।
(3) मनुष्य अपने कर्म-बल के कारण श्रेष्ठ माना गया है।

10. कई लोग समझते हैं कि अनुशासन और स्वतन्त्रता में विरोध है, किन्तु वास्तव में यह भ्रम है। अनुशासन द्वारा स्वतन्त्रता नहीं छीनी जाती, बल्कि दूसरों की स्वतन्त्रता की रक्षा होती है। सड़क पर चलने के लिए हम स्वतन्त्र हैं, हमें बाईं तरफ से चलना चाहिए किन्तु चाहें तो हम बीच में भी चल सकते हैं। इससे हम अपने प्राण तो संकट में डालते हैं, दूसरों की स्वतन्त्रता भी छीनते हैं। विद्यार्थी भारत के भावी राष्ट्र-निर्माता हैं। उन्हें अनुशासन के गुणों का अभ्यास अभी से करना चाहिए जिससे वे भारत के सच्चे सपूत कहला सकें। [2013, 18]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
(1) शीर्षक-‘अनुशासन और विद्यार्थी जीवन’।
(2) सारांश-प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अनुशासन आवश्यक है। इससे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के साथ-साथ दूसरों की स्वतन्त्रता की भी रक्षा होती है। अपना जीवन सुरक्षित होता है और दूसरों का भी। भविष्य के आशा पुंज विद्यार्थियों को अनुशासन में रहना चाहिए, जिससे वे भावी भारत का स्वस्थ निर्माण कर सकें।

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11. स्वार्थ और परमार्थ मानव की दो प्रवृत्तियाँ हैं। हम अधिकतर सभी कार्य अपने लिए करते हैं, पर’ के लिए सर्वस्व बलिदान करना ही सच्ची मानवता है। यही धर्म है,यही पुण्य है। इसे ही परोपकार कहते हैं। प्रकृति हमें निरन्तर परोपकार का संदेश देती है। नदी दूसरों के लिए बहती है। वृक्ष मनुष्यों को छाया तथा फल देने के लिए ही धूप, आँधी,वर्षा और तूफानों में अपना सब कुछ बलिदान कर देते हैं। [2015]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) सच्ची मानवता क्या है?
(3) वृक्ष हमें परोपकार का सन्देश कैसे देते हैं?
(4) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
(1) शीर्षक-‘परोपकार का महत्व’।
(2) दूसरों के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करना ही सच्ची मानवता है।
(3) वृक्ष धूप, आँधी, वर्षा और तूफानों में डटकर खड़े रहते हैं और सब कुछ सहन करने के बावजूद भी मनुष्यों को अपनी शीतल छाया व रसदार फल प्रदान करके हमें परोपकार का सन्देश देते हैं।
(4) सारांश-अपने लिए जीना’ तथा दूसरों के हित में अपना सब कुछ बलिदान करना’, मानव की ये दो प्राकृतिक प्रवृत्तियाँ हैं। अपने लिए तो प्रत्येक व्यक्ति कार्य करता ही है किन्तु दूसरों के लिए अपना सबकुछ दाँव पर लगा देने वाला व्यक्ति ही सच्चा परोपकारी होता है। परोपकार करना ही सच्चा धर्म और बहुत बड़ा पुण्य माना गया है। नदी स्वयं अपना जल नहीं पीती,वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते और न ही अपनी शीतल छाया का उपयोग स्वयं के लिए करते हैं। अर्थात् प्रकृति भी हमें परोपकार करने की सीख देती है।

12. आप हमेशा अच्छी जिन्दगी जीते आ रहे हैं। आप हमेशा बढ़िया कपड़े, बढ़िया जूते, बढ़िया घड़ी, बढ़िया मोबाइल जैसे दिखावों पर बहुत खर्च करते हैं मगर आप अपने शरीर पर कितना खर्च करते हैं? इसका मूल्यांकन जरूरी है। यह शरीर अनमोल है। अगर शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो आप ये सारे सामान किस पर टाँगेंगे? अतः स्वयं का स्वस्थ रहना सबसे जरूरी है एवं स्वस्थ रहने में हमारे खान-पान का सबसे बड़ा योगदान है। [2016]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) अनमोल क्या है?
(3) शुद्ध व असली शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर-
(1) शीर्षक-‘पहला सुख निरोगी काया’।
(2) मानव शरीर अनमोल है।
(3) शुद्ध = अशुद्ध; असली = नकली।

13. आदर्श व्यक्ति कर्मशीलता में ही अपने जीवन की सफलता समझता है। जीवन का प्रत्येक क्षण वह कर्म में लगाता है। विश्राम और विनोद के लिए उसके पास निश्चित समय रहता है। शेष समय जन सेवा में व्यतीत होता है। हाथ पर हाथ धर कर बैठने को वह मृत्यु के समान समझता है। काम करने की उसमें लगन होती है। उत्साह होता है। विपत्तियों में भी वह अपने चरित्र का सच्चा परिचय देता है। धैर्य की कुदाली से वह बड़े-बड़े संकट पर्वतों को ढहा देता है। उसकी कार्यकुशलता देखकर लोग दाँतों तले उँगली दबाते हैं। संतोष उसका धन है। वह परिस्थितियों का दास नहीं है। परिस्थितियाँ उसकी दासी हैं। [2017]

प्रश्न-
(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश में वर्णित व्यक्ति के गुणों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
(1) शीर्षक-कर्म ही पूजा है।
(2) कर्मशील व्यक्ति सदैव कर्म को ही पूजा समझता है। वह व्यर्थ में समय नहीं गँवाता। आराम तथा मनोरंजन के लिए भी उसके पास एक पूर्व निर्धारित समय होता है। बेकारी की बजाय वह बेगारी करना पसंद करता है। कार्य के प्रति उसमें लगन एवं उत्साह होता है। संकट के समय में भी वह धैर्य के बल पर विजेता बनकर उभरता है। वह परम संतोषी होता है। उसकी कार्यकुशलता प्रेरणाप्रद होती है। वह परिस्थितियों का मोहताज नहीं होता अपितु परिस्थितियाँ उसकी दासी होती हैं।

MP Board Class 10th Special Hindi अपठित पद्यांश

निम्नलिखित पद्यांशों को पढ़कर उनके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए

1. वे मुस्काते फूल, नहीं-
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं-
जिनको भाता है बुझ जाना।

वे नीलम के मेघ, नहीं-
जिनको है घुल जाने की चाह,
वह अनन्त ऋतुराज नहीं
जिसने देखी जाने की राह।

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प्रश्न-
1. उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
2. उक्त पद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
3. कवयित्री के अनुसार देवलोक के पुष्प किस प्रकार के हैं?
4. देवलोक का ऋतुराज किस प्रकार का है?
उत्तर-
1. शीर्षक–’अपरिवर्तनीय प्रकृति।’
2. सारांश-कवयित्री का कथन है कि देवलोक में प्रत्येक वस्तु अपरिवर्तनीय है, इसलिए वहाँ आनन्द नहीं है,क्योंकि परिवर्तन ही जीवन का आनन्द है। देवलोक के पुष्प एक बार खिलते हैं,तो वे मुरझाते ही नहीं हैं। तारे चमकते हैं,तो वे बुझते ही नहीं हैं। नीलम जैसे काले चमकीले मेघ आसमान में छा जाते हैं, किन्तु बरसते नहीं। वहाँ का ऋतुराज अनन्त है और वह सदैव स्थायी रहता है।
3. कवयित्री के अनुसार देवलोक के पुष्प सदैव खिले रहते हैं, वे कभी मुरझाते नहीं हैं।
4. देवलोक का ऋतुराज (वसन्त) स्थायी रूप से वहाँ निवास करता है।

2. तुम माँसहीन, तुम रक्तहीन
हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण! हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की
जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन।
तुम मांस तुम्ही हो रक्त अस्थि
निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य! तुम्हारा निःस्व त्याग
हे विश्व भोग का वर साधन।

प्रश्न-
1. प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक लिखिए।
2. प्रस्तुत पद्यांश का सारांश लिखिए।
3. कवि ने जीवन की पूर्ण इकाई किसे कहा है?
4. नवयुग का तन किससे निर्मित होगा?
उत्तर-
1. शीर्षक–’आत्मा की अमरता।’
2. सारांश-कवि का कथन है कि ऋषि जो संसार के निमित्त जीवन जीते हैं, वे केवल अस्थि मात्र से ही शेष दिखलाई देते हैं, किन्तु उनकी शुद्ध बुद्ध आत्मा जीवन की पूर्ण इकाई है। उनके निःस्वार्थ त्याग के आधार पर देश की संस्कृति का ढाँचा रखा जाएगा। उन्हीं से देश का युवा पल्लवित और पुष्पित होगा, जो संसार के भोगों को आनन्द प्राप्त करेगा।।
3. कवि ने जीवन की पूर्ण इकाई शुद्ध चिन्तनशील और निःस्वार्थ आत्मा से युक्त ऋषि को कहा है।
4. नवयुग का तन ऋषि की अमर आत्मा से निर्मित होगा।

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MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली

प्रश्न 1.
\(\left[i^{18}+\left(\frac{1}{i}\right)^{25}\right]^{3}\) का मान ज्ञात कीजिए।
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-1
= (- 2 + 3i – i)
= – (- 2 + 2i) = 2 – 2i.

प्रश्न 2.
किन्हीं दो सम्मिश्र संख्याओं z1 और z2 के लिए सिद्ध कीजिए:
Re(z1z2) = Rez1 Rez2 – Imz1 Imz2
हल:
मान लीजिए z1 = a + ib, z2 = c + id
∴ z1z2 = (a + ib)(c + id)
= ac + adi + bci + i2bd
= (ac – ba) + (ad + bc) i [∴ i2 = – 1]
Re (z1z2) का वास्तविक भाग = ac – bd
= Rez1 Rez2 – Imz1 Imz2
यहाँ पर Rez1 का वास्तविक भाग = a, इसी प्रकार Rez2 = c
Imz1 = z1 का काल्पनिक भाग = b
इसी प्रकार Imz2 = d.

प्रश्न 3.
\(\left(\frac{1}{1-4 i}-\frac{2}{1+i}\right)\left(\frac{3-4 i}{5+i}\right)\) को मानक रूप में परिवर्तित कीजिए।
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-2

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प्रश्न 4.
यदि x – iy = \(\sqrt{\frac{a-i b}{c-i d}}\), तो सिद्ध कीजिए x2 + y2 = \(\frac{a^{2}+b^{2}}{c^{2}+d^{2}}\)
हल:
x – iy = \(\sqrt{\frac{a-i b}{c-i d}}\) ….(1)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-3

प्रश्न 5.
निम्नलिखित को ध्रुवीय रूप में परिवर्तित कीजिए:
(1) = \(\frac{1+7 i}{(2-i)^{2}}\)
(2) = \(\frac{1+3 i}{1-2 i}\)
इल:
(i) माना.
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-4
∴ r cos θ = -1, r sin θ = 1
वर्ग करके जोड़ने करने पर r2 cos2θ + r2 2θ = 1 + 1
या r2(cos2θ + sin2θ ) = 2 या r2 = 2 या r = \(\sqrt{2}\)
cos θ = ऋणात्मक, sin θ = धनात्मक
∴ 0 दूसरे चतुर्थांश में है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-5
(ii) \(\frac{1+3 i}{1-2 i}\)
हल:
मान लिया
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-6
प्रश्न 6 से 9 में दिए गए प्रत्येक समीकरण को हल कीजिए:
प्रश्न 6.
3x2 4x + \(\frac{20}{3}\) = 0.
हल:
3x2 4x + \(\frac{20}{3}\) = 0 को 3 से गुणा करने पर
9x2 – 12x + 20 = 0
इसकी ax2 + bx + c = 0 से तुलना करने पर,
a = 9, b = – 12, c = 20
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-7
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-8

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प्रश्न 7.
x2 – 2x + \(\frac{3}{2}\) = 0.
हत्त:
x2 – 2x + \(\frac{3}{2}\) = 0, इसे 2 से गुणा करने पर .
2x2 – 4x + 3 = 0
ax2 + bx + c = 0 से तुलना करने पर
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-9

प्रश्न 8.
27x2 – 10x + 1 = 0.
हल:
दिए गए समीकरण 27x2 – 10 x + 1 = 0 की ax2 + bx + c = 0 से तुलना करने पर a = 27, b = -10, c = 1
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-10

प्रश्न 9.
21x2 – 28x + 10 = 0.
हल:
21x2 – 28x + 10 = 0 की ax2 + bx + c = 0 से तुलना करने पर
a = 21, b = – 28, c = 10
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-11

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प्रश्न 10.
यदि z1 = 2 -i, z2 = 1 + i, \(\left|\frac{z_{1}+z_{2}+1}{z_{1}-z_{2}+i}\right|\) का मान ज्ञात कीजिए।
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-12

प्रश्न 11.
यदि a + ib = \(\frac{(x+i)^{2}}{2 x^{2}+1}\), सिद्ध कीजिए कि a2 + b2 = \(\frac{\left(x^{2}+1\right)^{2}}{\left(2 x^{2}+1\right)^{2}}\).
हल :
a + ib = \(\frac{(x+i)^{2}}{2 x^{2}+1}\) …..(1)
i के स्थान पर – i रखने से
a – ib = \(\frac{(x+i)^{2}}{2 x^{2}+1}\) …..(2)
समी. (1) और (2) का गुणा करने पर
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-13

प्रश्न 12.
यदि z1 = 2 – i, z2 = – 2 + i, निम्न का मान ज्ञात कीजिए :
(1) Re \(\left(\frac{z_{1} z_{2}}{\overline{z}_{1}}\right)\)
(2) Im \(\left(\frac{1}{z_{1} \overline{z}_{1}}\right)\)
हल:
(i)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-14
(ii) Im \(\left(\frac{1}{z_{1} \overline{z}_{1}}\right)\)
हल:
\(\frac{1}{z_{1} z_{1}}=\frac{1}{(2-i) \overline{(2-i)}}=\frac{1}{(2-i)(2+i)}\)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-15

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प्रश्न 13.
सम्मिश्र संख्या \(\frac{1+2 i}{1-3 i}\) का मापांक और कोणांक ज्ञात कीजिए।
हल:
माना
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-16
दोनों पक्षों की तुलना करने पर,
⇒ r cosθ = – \(\frac{1}{2}\), r sinθ = \(\frac{1}{2}\)
वर्ग करके जोड़ने पर,
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-17
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-18
प्रश्न 14.
यदि \((x-i y)(3+5 i),-6-24 i\) की संयुग्मी है तो वास्तविक संख्याएँ x और y ज्ञात कीजिए।
हल:
\(\overline{-6-24 i}\)= – 6 + 24i ….(1)
(x – iy) (3 + 5i) = (3x – 5yi<sup.2 + 5xi – 3yi)
= 3x + 5y + (5x – 3y)i ……(2)
समीकरण (1) और (2) से,
3x + 5y + (5x – 3y)i = – 6 + 24i
वास्तविक व काल्पनिक संख्याओं को समान लिखते हुए
3x + 5y = – 6 …..(3)
5x – 3y = 24 ……(4)
समी. (3) को 3 से और समी. (4) को 5 से गुणा करने पर
9x + 15y = – 18 ….(5)
25x – 15y = 120 ….(6)
समी. (5) और समी (6) को जोड़ने पर,
34x = 102 या x = \(\frac{102}{34}\) = 3
x का मान समी. (3) में रखने पर,
9+ 5y = – 6 या 5y = – 15, या y = – 3
अतः x = 3, y = – 3.

प्रश्न 15.
\(\frac{1+i}{1-i}-\frac{1-i}{1+i}\) का मापांक ज्ञात कीजिए।
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-19

प्रश्न 16.
यदि (x + iy)3 = u + iv, तो दर्शाइए कि \(\frac{u}{x}+\frac{v}{y}=4\left(x^{2}-y^{2}\right)\).
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-20

प्रश्न 17.
यदि α और β भिन्न सम्मिश्र संख्याएँ हैं जहाँ \(|\boldsymbol{\beta}|\) = 1, तब \(\left|\frac{\boldsymbol{\beta}-\boldsymbol{\alpha}}{1-\overline{\boldsymbol{\sigma}} \boldsymbol{\beta}}\right|\) का मान ज्ञात कीजिए ।
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-21

प्रश्न 18.
समीकरण \(|1-i|^{x}=2^{x}\) के शून्येत्तर पूर्णांक मूलों की संख्या ज्ञात कीजिए:
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-22
इस समीकरण का 0 के अतिरिक्त और कोई हल नहीं हो सकता।

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प्रश्न 19.
यदि (a + ib)(c + id) (e + if)(g + ih) = A+iB है तो दर्शाइए कि (a2 + b2) (c2 + d2) (e2 + f2) (g2 + h2) = A2 + B2.
हल:
(a + ib) (c + id) (e + if)(g + ih) = A + iB ….(1)
i के स्थान पर – i रखने पर,
(a – ib) (c – id) (e – if)(g – ih) = A – iB …..(2)
समी (1) और (2) को गुणा करने पर,
[(a + ib) (a – ib)] [(c + id) (c – id)] [(e + if)(e – if)][(g + ih)(g – ih)] = (A + iB)(A – iB)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-23

प्रश्न 20.
यदि \(\left(\frac{1+i}{1-i}\right)^{m}\) = 1, तो m का न्यूनतम पूर्णांक मान ज्ञात कीजिए।
11 1111
= 1+2+21
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-24
⇒ m संख्या 4 का गुणज है।
∴ m की कम से कम मूल्य = 4.

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 मित्रता

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 मित्रता (रामचन्द्र शुक्ल)

मित्रता अभ्यास-प्रश्न

मित्रता लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वर्तमान समय में व्यक्ति के किस व्यवहार को देखकर हम शीघ्र ही अपना मित्र बना लेते हैं?
उत्तर
वर्तमान समय में व्यक्ति का हँसमुख चेहरा, बातचीत के ढंग, थोड़ी चतुराई या साहस ये दो-चार व्यवहार देखकर हम उसे शीघ्र अपना मित्र बना लेते हैं।

प्रश्न 2.
लेखक ने कुसंग के ज्वर को सबसे भयानक क्यों कहा है?
उत्तर
लेखक ने कुसंग के ज्वर को सबसे भयानक इसलिए कहा है कि वह नीति, सद्वृत्ति और बुद्धि का नाश करता है।

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प्रश्न 3.
राजदरबार में जगह न मिलने पर इंग्लैंड का बिद्वान अपने भाग्य को क्यों सराहता रहा?
उत्तर
राजदरबार में जगह न मिलने पर इंग्लैंड का विद्वान अपने भाग्य को इसलिए सराहता रहा कि वह अपनी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक बुरे संगति से दूर रहा।

प्रश्न 4.
लेखक ने हमें किन बातों से दूर रहने को कहा है?
उत्तर
लेखक ने हमें अश्लील, अपवित्र और फूहड़ बातों से दूर रहने को कहा है।

मित्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अच्छे मित्र के गुण लिखिए।
उत्तर
अच्छे मित्र के गुण निम्नलिखित हैं :

  1. वह प्रतिष्ठित हो।
  2. वह दृढ़चित्त और सत्य-संकल्प का हो।
  3. उसमें आत्मविश्वास हो।
  4. वह भरोसमंद हो।

प्रश्न 2.
दृढ़चित्त और सत्य संकल्पित व्यक्ति से मित्रता करने के क्या लाभ हैं?
उत्तर
दृढ़चित्त और सत्य संकल्पित व्यक्ति से मित्रता करने से अनेक लाभ हैं। उससे हमें दृढ़ता प्राप्त होती है। हम दोषों और त्रुटियों से बच जाते हैं। हमारे सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम पुष्ट होते हैं। हम कुमार्ग से सचेत हो जाते हैं। हतोत्साहित होने पर हमें उत्साह मिलता है।

प्रश्न 3.
विवेक को कुंठा से बचाने के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए?
उत्तर
विवेक को कुंठा से बचाने के लिए हमें अत्यधिक दृढ़ संकल्प के लोगों के साथ नहीं रहना चाहिए। दूसरी बात यह है कि हमें मनमाने और दबाव डालने वाले लोगों से बचना चाहिए। तीसरी बात यह कि अपनी ही बात को ऊपर रखने वालों से सावधान रहना चाहिए।

प्रश्न 4.
जीवन की अलग-अलग अवस्थाओं में होनी वाली मित्रता की सार्थकता लिखिए।
उत्तर
बचपनावस्था की मित्रता बड़ी आनंदमयी होती है। उसमें हदय को बेधने वाली ईर्ष्या और खिन्नता नहीं होती है। उसमें अत्यधिक मधुरता और प्रेम की ऊँची तरंगें होती हैं। यही नहीं अपार विश्वासमयी कल्पनाएँ होती हैं। उसमें वर्तमान के प्रति आनंदयम दृष्टि और भविष्य के प्रति आकर्षक विचार भरे होते हैं। छात्रावास या सहपाठी की मित्रता में भावों का भारी उथल-पुथल होता है।

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प्रश्न 5.
भिन्न प्रकृति और स्वभाव के लोगों में मित्रता कैसे बनी रहती है?
उत्तर
भिन्न प्रकृति और स्वभाव के लोगों में मित्रता परस्पर अत्यधिक प्रगाढ़ प्रेम के कारण बनी रहती है। जो गुण जिसमें नहीं, वह चाहता है कि उसे ऐसा कोई मित्र मिले, जिसमें वे गुण हों। फलस्वरूप चिंतनशील मनुष्य प्रसन्नचित्त का साथ ढूँढ़ता है। निर्बल बली का और धीर उत्साही का।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
(अ) ‘लेखक ने विश्वासपात्र मित्र को खजाना, औषधि और माता जैसा कहा है।” स्पष्ट कीजिए।
(ब) “संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर भारी पड़ता है।”
(स) “ऐसे नवयुवकों से बढ़कर शून्य, निःसार और शोचनीय जीवन और किसका है?”
उत्तर
(अ) “लेखक ने विश्वापात्र मित्र को खजाना, औषधि और माता जैसा कहा है।” लेखक के ऐसा कहने का आशय यह है कि विश्वासपात्र मित्र का महत्त्व असाधारण होता है। जो विश्वासपात्र मित्र होता है, वह हमारे लिए रक्षा-कवच के समान होता है। इसलिए ऐसे मित्र तो बड़े ही भाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं। वास्तव में ऐसे मित्र एक खजाने की तरह अपने मित्र की प्रत्येक दशा में सहायता करते हैं।

(ब) संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर भारी पड़ता है। लेखक के इस कथन का आशय यह है कि अगर हम सुसंगति में रहते हैं, हम दिनोंदिन उन्नति के शिखर पर चढ़ते जाते हैं। इसके विपरीत अगर हम कुसंगति में रहते हैं, तो हम दिनोंदिन अवनति के गड्ढे में गिरते जाएँगे।

(स) “ऐसे नवयुवकों से बढ़कर शून्य, निःसार और शोचनीय जीवन और किसका है?” लेखक के इस वाक्य का आशय यह है कि मनचले युवक हर प्रकार से उद्दण्ड और अशिष्ट होते हैं। वे अपने जीवन की सार्थकता केवल ऐशो-आराम करना समझते हैं। फलस्वरूप वे अपने जीवन को नरक बनाकर न केवल स्वयं के लिए दुःखद साबित होते हैं, अपितु अपने संपूर्ण समाज और वातावरण के लिए भी। इसलिए ऐसे शून्य, निःसार और शोचनीय युवकों से सावधान होकर दूर ही रहना चाहिए।

मित्रता भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
(क) उत्साह में ‘इत’ प्रत्यय जोड़ने से ‘उत्साहित’ बना है। इसी प्रकार पाठ से छाँटकर प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए।
(ख) दिए गए शब्दों की वर्तनी शुद्ध कीजिए।
मीत्रता – मित्रता
अपरीमार्जित – ……………….
आशचर्य – ………………..
चतुरायी – …………………
प्रतीष्टित – ………………..
सहानूभूति – ………………
दरबारीयों – ……………
कठिंत – ……………….

(ग) निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
कोमल, शुद्ध, विश्वास, भारी, सत्य, मर्यादित, लाभ, परिपक्व, असफलता, उपयुक्त, गुप्त, बुरा।

(घ) दिए गए वाक्यांशों के लिए एक-एक शब्द लिखिए
(i) जिस पर विश्वास किया जा सके-विश्वासपात्र
(ii) जो पका हुआ न हो।
(iii) चित्त में दृढ़ता हो।
(iv) जिसका उत्साह नष्ट हो गया हो।
(v) जो पवित्र न हो।
(vi) सत्य में निष्ठा रखने वाला।
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 मित्रता img 1

(ख) शब्द – शुद्ध शब्द
मीत्रता – मित्रता
अपरीमार्जित – अपरिमार्जित
आशचर्य – आश्चर्य
चतुरायी – चतुराई
प्रतीष्ठित – प्रतिष्ठित
दरबारीयों – दरबारियों
कुंठित – कुंठित।

(ग) शब्द – विलोम शब्द
कोमल – कठोर
शुद्ध – अशुद्ध
विश्वास – अविश्वास
भारी – हल्का
सत्य – असत्य
मर्यादित – अमर्यादित
लाभ – हानि
परिपक्व – अपरिपक्व
असफलता – सफलता
उपयुक्त – अनपयुक्त
गुप्त – प्रकट
बुरा- भला।

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(घ) वाक्यांश – एक शब्द
(i) जिस पर विश्वास किया जा सके – विश्वासपात्र
(ii) जो पका हुआ न हो – अपरिपक्व
(iii) चित्त में दृढ़ता हो – दृढ़चित्त
(iv) जिसका उत्साह नष्ट हो गया हो – हतोत्साहित
(v) जो पवित्र न हो – अपवित्र
(vi) सत्य में निष्ठा रखने वाला – सत्यनिष्ठ

मित्रता योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
सुसंग और कुसंग संबंधी दोहों को संकलित कर चार्ट बनाकर कक्षा में लगाइए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग॥

रहीम के इस दोहे का आशय यह है कि सज्जन पर बुरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। क्या आप इस बात से सहमत हैं? इस तरह के अन्य दोहों का संकलन कर हस्तलिखित पुस्तिका तैयार कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मित्रता परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
युवा पुरुष को मित्र चुनने में कठिनाई कब पड़ती है?
उत्तर
जब कोई युवापुरुष अपने घर से बाहर निकलकर बाहरी संसार में अपनी स्थिति जमाता है, तब पहली कठिनाई उसे मित्र चुनने में होती है।

प्रश्न 2.
विश्वासपात्र मित्र के विषय में एक प्राचीन विद्वान ने क्या कहा है?
उत्तर
विश्वासपात्र मित्र के विषय में एक प्राचीन विद्वान ने कहा है-“विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है। जिसको ऐसा मित्र मिल जाए, उसे समझना चाहिए कि खजाना मिल गया।”

प्रश्न 3.
मित्र किसे कहते हैं?
उत्तर
मित्र उसे कहते हैं, जो एक सच्चे पथ-प्रदर्शक के समान होता है. जिस पर हम पूरा विश्वास कर सकें।

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प्रश्न 4.
सच्चे मित्र की चार विशेषताएँ लिखिए
उत्तर
सच्चे मित्र की चार विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. वह प्रतिष्ठित हो।
  2. वह दृढ़चित्त और सत्य-संकल्प का हो।
  3. उसमें आत्मविश्वास हो।
  4. वह भरोसेमंद होना चाहिए।

प्रश्न 5.
प्रस्तुत पाठ से अच्छे मित्रों के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत पाठ से अच्छे मित्रों के तीन उदाहरण इस प्रकार हैं

  1. राम और लक्ष्मण।
  2. चन्द्रगुप्त और चाणक्य।
  3. राम और सुग्रीव।

प्रश्न 6.
मित्र का कर्त्तव्य क्या बतलाया गया है?
उत्तर
मित्र का कर्त्तव्य इस प्रकार बतलाया गया है, “उच्च और महान, कार्यों में इस प्रकार सहायता देना, मन बढ़ाना, और साहस दिलाना कि हम अपनी-अपनी सामर्थ्य के बाहर काम करते जाएं।”

मित्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मित्रता’ पाठ का भाव उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘मित्रता’ निबंध आचार्य रामचंद्र शक्ल का एक विचारात्मक निबंध है। इस निबंध के द्वारा निबंधकार ने मित्रता के अर्थ, इससे सावधानी, लाभ, आदर्श और आवश्यकता को बतलाने का सफल प्रयास किया है। इस निबंध के द्वारा लेखक ने यह स्पष्ट करना चाहा है कि मित्रता की धुन सभी को होती है और सभी मित्र बनाते हैं लेकिन बहुत कम श्रेष्ठ, लाभकारी और योग्य मित्र सिद्ध होते हैं। अधिकतर तो मित्र ही होते हैं। इसलिए लेखक ने यह सुझाव दिया है कि अच्छी मित्रता करनी चाहिए। सोच-समझकर मित्रता करनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि श्रेष्ठ मित्रों के योगदान से जीवन निश्चय ही महान् बनता जाता है।

प्रश्न 2.
‘मित्रता’ निबंध के आधार पर मित्रता से लाभ बतलाइए।
उत्तर
‘मित्रता’ निबंध में आचार्य शुक्ल ने मित्रता से लाभ पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि विश्वासपात्र मित्र जीवन की औषधि और खजाना होता है। मित्र हमारे संकल्पों को दृढ़ और दोषों को दूर, सद्गुणों का विकास करता है। हृदय में सत्य, प्रेम और पवित्रता के भावों को उत्पन्न करता है। वह कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग पर ले जाता है। वह निराशा में आशा की ज्योति जलाता है। सच्चे मित्र में एक कशल वैद्य के सभी गुण होते हैं।

प्रश्न 3.
कुसंग का ज्वर भयानक क्यों होता है? सोदाहरण बताइए।
उत्तर
कसंग का ज्वर भयानक इसलिए होता है कि यह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता अपितु बुद्धि का भी विनाश करता है। उदाहरण के लिए, किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी जो उसे दिन-रात अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहू के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।

प्रश्न 4.
‘विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है’ इस कथन के आधार पर मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
व्यक्ति का परिचय एक से अधिक व्यक्ति से संभव है, पर मित्र उनमें कोई बिरला ही होता है और मित्रों में भी विश्वासपात्र मित्र तो बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है। विश्वासपात्र मित्र ही जीवन में उपयोगी सिद्ध होता है। वह प्रत्येक कठिनाई से हमें उबार सकता है। अपने हितकारी तथा उपदेशों से वह अपने मित्र की कुरीतियों को दूर कर सकता है। इस तरह विश्वासपात्र मित्र से जीवन निश्चय ही सफल हो जाता है।

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प्रश्न 5.
मित्र का चुनाव करने में क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
उत्तर
मित्र बनाते समय सर्वप्रथम उसके आचरण तथा स्वभाव पर ध्यान देना चाहिए। मित्र बनाते समय प्रायः उसकी कुछ अच्छी बातों को देखकर ही, उसे मित्र बना लेते हैं। जबकि हमें जिसे मित्र बनाना हो, उसके सम्बन्ध में पूरी तरह जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जीवन-पथ पर कितने मित्र हमें आगे बढ़ा सकते हैं। अच्छा मित्र जहाँ हमारे जीवन की दिशा ही बदल देता है वहाँ बुरा मित्र हमें गर्त में भी ढकेल सकता है।

प्रश्न 6.
लेखक ने मित्र का क्या कर्त्तव्य बतलाया है?
उत्तर
लेखक ने मित्र के कर्तव्य का उल्लेख करते हुए कहा कि वह अपने मित्र में साहस, बुद्धि और एकता का भाव उत्पन्न करे। वह जीवन और मरण में अपने मित्र का सहारा बने। वह सत्यशील, न्यायी और पराक्रमी बना रहे। वह अपने मित्र का हर कदम पर सहारा बना रहे। जो अपनी सामर्थ्य से बाहर काम कर जाए। मित्र का कर्तव्य है कि वह अपने मित्र पर पूरा विश्वास करे और उसे धोखा न दे।

प्रश्न 7.
अच्छे मित्र में कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
उत्तर
अच्छे मित्र में निम्नलिखित गुण होने चाहिए

  1. अच्छे मित्र पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिए।
  2. मित्र पर पूरा विश्वास करे।
  3. सच्चा मित्र भाई के समान होता है।
  4. उसमें सच्ची सहानुभूति होती है।
  5. सच्चा मित्र एक के हानि-लाभ को अपना हानि-लाभ समझता है।
  6. सच्चा मित्र जीवन व मरण में सहायक होता है।

मित्रता लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के श्रेष्ठ निबंधकार तथा समीक्षक हैं। आपका जन्म बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 में हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा उर्दू तथा अंग्रेजी में हुई। विधिवत् शिक्षा तो वे इंटरमीडिएट तक ही प्राप्त कर सके। शुक्ल जी ने आरंभ में मिर्जापुर के मिशन स्कूल में पढ़ाया। जब काशी में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा ‘हिंदी शब्द सागर’ का सम्पादन आरंभ हुआ, तो शुक्ल जी को वहाँ कार्य करने का मौका मिला। फिर हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए तथा विभागाध्यक्ष बने। शुक्ल जी ने अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत तथा हिंदी के प्राचीन साहित्य का गंभीर अध्ययन किया।

शुक्ल जी का पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश ‘आनंद-कादम्बिनी’ पत्रिका के संपादन से हुआ। उसका सम्पादन उन्होंने कई वर्षों तक कुशलतापूर्वक किया था। इसके बाद वे नागरी प्रचारिणी सभा में हिंदी शब्द-सागर’ के सहयोगी संपादक नियुक्त हुए थे। इसके बाद आपने ‘नागरी प्रचारिणी’ पत्रिका का कई वर्षों तक कशलता के साथ संपादन किया। साहित्य-सेवा करते हुए शुक्ल जी ने 8 फरवरी 1941 को अंतिम साँस ली।नाएँ-यों तो शुक्ल जी प्रमुख रूप से निबंधकार और समालोचक के रूप में ही सुविख्यात हैं लेकिन इसके साथ ही कवि भी रहे हैं। यह बहुत कम चर्चा में हैं। उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं

1. निबंध-संग्रह-

  • विचार-वीथि
  • चिन्तामणि भाग 1-2
  • त्रिवेणी।

2. समालोचना

  • जायसी, सूर और तुलसी पर श्रेष्ठ आलोचनाएँ।

3. इतिहास-

  • हिंदी-साहित्य का इतिहास
  • काव्य में रहस्यवाद।

4. कविता-संग्रह-

  • वसंत
  • पथिक
  • शिशिर-पथिक
  • हृदय का मधुर भार,
  • अभिमन्यु-वध।

5. संपादन-

  • हिंदी शब्द-सागर
  • नागरी-प्रचारिणी पत्रिका
  • तुलसी
  • जायसी।

6. अनुवाद-

  • शशांक
  • बुद्ध-चरित
  • कल्पना का आनन
  • आदर्श-जीवन,

5. मेगास्थनीज का भारतीयवर्षीय वर्णन,
6. राज्य प्रबंध-शिक्षा,
7. विश्वप्रपंच।

भाषा-शैली-शुक्ल जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक भाषा है। उसमें कहीं-कहीं तद्भव शब्द भी आए हैं। मुख्य रूप से आपकी भाषा गम्भीर, संयत, भावपूर्ण और सारगर्भित है। आपके शब्द चयन ठोस, संस्कृत और उच्च-स्तरीय हैं। उर्दू, अंग्रेजी और फारसी शब्दों के प्रयोग कहीं-कहीं हुए हैं। अधिकतर संस्कृत और प्रचलित शब्द ही आए हैं। शक्ल जी की शैली गवेषणात्मक, मुहावरेदार और हास्य-व्यंग्यात्मक है। इससे विषय का प्रतिपादन सुंदर ढंग से हुआ है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शुक्ल जी की भाषा-शैली विषयानुकूल होकर सफल है।

व्यक्तित्व-शक्ल जी का व्यक्तित्व सर्वप्रथम कविमय व्यक्तित्व था। वह धीरे-धीरे समीक्षक और निबंधकार सहित इतिहासकार के रूप में बदलता गया। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि शुक्ल जी का व्यक्तित्व विविध है। इसीलिए वे एक साथ कई रूपों में देखे जाते हैं। अगर हम संक्षेप में उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना चाहें तो कह सकते हैं कि शुक्ल जी युग-प्रवर्तक प्रधान व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार हैं।

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प्रश्न 2.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल-लिखित निबंध ‘मित्रता’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
यह निबंध आचार्य रामचंद्र शुक्ल का विवरण प्रधान निबंध है। इसमें मित्र के विषय में अच्छा उल्लेख हुआ है। मित्र-कुमित्र का परिचय देते हुए लेखक ने मित्रता की परिभाषा और महत्त्व को बतलाया है। लेखक के अनुसार जब कोई युवक बाहरी संसार में प्रवेश करता है तो उसे सबसे पहले अपना मित्र चुनने में कठिनाई होती है। जरा-सी असावधानी के कारण कुछ लोगों से उसकी मित्रता हो जाती है। इसकी सफलता उसकी जीवन की सफलता पर निर्भर होती है। ऐसा इसलिए कि जब हम समाज में प्रवेश करते हैं तब हमारा चित्त बहुत ही कच्चा होता है। इसलिए ऐसे लोगों का साथ एकदम बुरा होता है जो हमें नियंत्रित रखते हैं। विवेक के कारण इस बात का डर नहीं रहता लेकिन युवा मन में विवेक बहुत कम होता है।

यह आश्चर्य की बात है कि घोड़े के गुण-दोष को तो लोग परखते हैं, लेकिन मित्र के नहीं। ऐसे लोग मित्रता के उद्देश्य को भूल जाते हैं। एक प्राचीन विद्वान के अनुसार-“विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा होती है। जिसे ऐसा मित्र मिल गया हो, मानो उसे खजाना मिल गया हो। इसलिए हमें अपने मित्रों से यही आशा रखनी चाहिए कि वे हमारे उत्तम संकल्पों को दृढ़ करेंगे। दोषों और त्रुटियों से बचाएँगे और हममें सत्य, पवित्रता और मर्यादा को पुष्ट करेंगे। हमें कुमार्ग से बचाएँगे-यही नहीं हमें हतोत्साह से उत्साह की ओर ले जाएंगे।छात्रावस्था में मित्रता की धुन इतनी सवार रहती है कि मित्र बनाने में आनंद का ओर-छोर नहीं होता है। उस समय मित्रता के आदर्शों को भूल जाते हैं। थोड़ी-सी बातें देखकर झट मित्र बना लेते हैं। ऐसे मित्र जीवन-संग्राम में साथ नहीं देते। वास्तव में मित्र तो एक विश्वासपात्र पथ-प्रदर्शक होता है।

दो मित्रों के बीच में परस्पर सहानुभूति होनी आवश्यक है न कि प्रकृति और आचरण आवश्यक है। इसीलिए राम और लक्ष्मण के परस्पर स्वभाव भिन्न तो रहे लेकिन मित्रता खूब निभी थी। हमें ऐसे मित्रों की खोज करनी चाहिए जिनमें हमसे कहीं अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी प्रकार पकड़ना चाहिए जैसे सुग्रीव ने राम का पकड़ा था। शिष्ट और सत्यनिष्ठ, मृदुल, पुरुषार्थी और शुद्ध बुद्धि वाले ही मित्र भरोसेमंद होते हैं। यही बातें जान-पहचान वालों के भी संबंध में लागू हैं। ऐसे लोगों से ही हम अपने जीवन को आनंदमय और उत्तम बना सकते हैं। जान-पहचान बढ़ा लेना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन जीवन-पथ पर सच्चे प्रेम का सुख और शान्ति प्रदान करने वालों का साथ मिलना निश्चय ही कठिन है।

कुसंग का असर सबसे बढ़कर भयानक होता है, क्योंकि इससे न केवल नीति और सद्वृत्ति का ही अपितु सद्बुद्धि का भी नाश होता है। इसलिए कुसंगति तो पैरों में बँधी हुई चक्की और सुसंगति सहारा देने वाली भुजा के समान होती है। यही कारण है कि कुछ ऐसी ही न पड़ने वाली बुरी बातें कुसंगति से कानों में कुछ ही समय में पड़ जाती हैं जिनसे पवित्रता नष्ट हो जाती है। इतनी जल्दी तो कोई भी अच्छी बात प्रभावित नहीं करती है। इसीलिए हमें ऐसी पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हम किसी प्रकार की कुसंगति न करें। यह ध्यान देना चाहिए कि हम किसी प्रकार की बुरी बातों के अभ्यस्त न होवें। शुरू-शुरू में ही आने वाली हर बुरी बातों की छूत से हम बच जावें, एक पुरानी कहावत है

‘काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय,
एक लीक काजल की लागि है पै लागि है।”

मित्रता संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

गयांशों की सप्रसंग व्याख्या, अर्वग्रहण संबंधी एवं विषय-वस्त पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. हम लोग ऐसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरंभ करते हैं, जब कि हमारा चित्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य रहता है। हमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती हैं। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं, जिसे जो जिस रूप में चाहे, उस रूप में ढाले-चाहे राक्षस बनाए, चाहे देवता।

शब्दार्थ-चित्त-हदय। संस्कार-आदत, स्वभाव। अपरिमार्जित-मलीन। अपरिपक्व-कच्चा।

प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘बाल-भारती’ में संकलित और आचार्य श्री रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘मित्रता’ निबंध से है। इसमें लेखक ने नए-नए

व्यक्ति के अनुभवहीनता के स्वरूप को प्रकाश में लाते हुए कहा है कि

व्याख्या-समाज में प्रवेश करने वाले व्यक्ति लगभग जीवन-क्षेत्र के अनुभव से कोसों दूर रहते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अपनी अनुभवहीनता को लेकर अपना कार्य आरंभ करते हैं। उस समय ऐसे व्यक्ति अपने हृदय के बहुत ही कोमल, सरस और सरल होते हैं। यही कारण है कि उनकी योग्यता सभी प्रकार की आदतों और प्रभावों को अपनाने में सफल दिखाई पड़ती है। इस प्रकार के व्यक्ति अपने स्वभाव और स्वरूप से मलिन और असुन्दर दिखाई देते हैं। उनकी सभी प्रकार की आदतें भी पूरी कच्ची-ही-कच्ची होती हैं। इसे यों समझा जा सकता है जिस प्रकार कच्ची मिट्टी मूर्ति के समान चुपचाप और सरल होती है और जिसे चाहे जो चाहे वह बना ले। ठीक उसी प्रकार समाज में नया-नया प्रवेश करने वाला व्यक्ति भी स्वयं पर निर्भर न होकर समाज के दूसरे अनुभवी और पुराने लोगों पर ही निर्भर होता है। ऐसे लोगों के हाथ में उस नए व्यक्ति का भाग्य होता है। इसे वे देवता, राक्षस आदि जिसमें चाहें उसे बदल दें।

विशेष-

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. शैली बोधगम्य है।
  3. सभी तथ्य सुझावपूर्ण है।
  4. इस अंश से प्रेरणा मिलती है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) कार्य आरंभ करने के लिए लेखक ने क्या आवश्यक बतलाया है?
(ii) कार्य आरंभ करते समय हमारी प्रवृत्ति कैसी रहती है?
उत्तर
(i) कार्य आरंभ करने के लिए लेखक ने चित्त को अत्यधिक सरस, सरल और कोमल होना आवश्यक बतलाया है। इसके साथ ही उसे यह भी होना आवश्यक बतलाया है कि वह हर प्रकार के संस्कारों को ग्रहण करने योग्य हो।
(ii) कार्य आरंभ करते समय हमारी प्रवृत्ति बहुत ही कच्ची रहती है। उसे किसी प्रकार का अनुभव प्राप्त नहीं हुआ होता है। इस प्रकार वह किसी प्रकार के संस्कारों को तुरंत ही ग्रहण करने लगती है।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) कच्ची मिट्टी की मूर्ति की क्या विशेषता होती है?
(ii) ‘चाहे राक्षस बनाए, चाहे देवता’ का आशय क्या है?
उत्तर
(i) कच्ची मिट्टी की मूर्ति की यह विशेषता होती है कि वह दूसरे के अधीन होती है। वह इतनी सरल, सीधी और शान्त होती है कि उसे कोई कुछ भी रूप या आकार दे दे, वह उसका तनिक भी विरोध न करके उसे चुपचाप स्वीकार कर लेती है।
(ii) ‘चाहे राक्षस बनाए, चाहे देवता’ का आशय यह है कि समाज में प्रवेश करनेवाला हर प्रकार से अनुभवरहित होता है। वह इसीलिए आत्मनिर्भर होकर कोई काम करने में असमर्थ होता है। वह तो अनुभवी लोगों पर पूरी तरह से निर्भर होता है। वह अपने को उन्हीं लोगों को सौंप देता है। अब उनके ऊपर निर्भर होता है कि वे उसे बुरा बनाते हैं या अच्छा।

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2. मित्र भाई के समान होना चाहिए जिसे हम अपना प्रीतिपात्र बना सकें। हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए। ऐसी सहानुभूति जिससे एक के हानि-लाभ समझे। मित्रता के लिए यह आवश्यक नहीं कि दो मित्र एक ही प्रकार के कार्य करते हों या एक ही रुचि के हों। दो भिन्न प्रकृति के मनुष्यों में बराबर प्रीति और मित्रता रही है।

शब्दार्थ-प्रीति-प्रेम। सहानुभूति-दुःख-सुख समझने का अनुभव। रुचि-इच्छा।

प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘बाल-भारती’ में संकलित आचार्य श्री रामचन्द्र शुक्ल-लिखित ‘मित्रता’ निबंध से है। इसमें लेखक ने मित्र के अच्छे स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि

व्याख्या-मित्र कल्याणकारी और उपकारी होना चाहिए। उसका किया हुआ कल्याण और उपकार निश्चित रूप से सगे भाई के समान होना चाहिए। ऐसा इसलिए कि सगे भाई का कल्याण और उपकार हर प्रकार से प्रीतिकारक सिद्ध होता है। इससे – हमारे और हमारे बने हुए मित्र के बीच परस्पर सही और वास्तविक सहानुभूति का होना परम आवश्यक होता है। इस प्रकार की सहानुभूति के द्वारा ही एक दूसरा अपनी-अपनी हानि-लाभ के विषय में सोच-समझ सकता है अन्यथा नहीं। मित्रता के विषय में यह निश्चित रूप से समझ लेना चाहिए कि परस्पर दोनों एक ही प्रकार के कार्य-व्यापार करते हों। यह भी आवश्यक नहीं कि परस्पर दोनों एक ही विचारधारा के हों। मित्र तो एक-दूसरे के विपरीत विचारधारा के होकर भी परस्पर अधिक प्रीतिकारक और कल्याणकारक सिद्ध होते हैं।

विशेष-

  1. भाव सरल और स्पष्ट है।
  2. मित्र के सच्चे स्वरूप का उल्लेख हुआ है।
  3. मित्रता के लिए आवश्यक गुणों का वर्णन हुआ है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) मित्र को भाई के समान क्यों होना चाहिए?
(ii) मित्र के बीच कैसी सहानुभूति होनी चाहिए?
उत्तर
(i) मित्र को भाई के समान होना चाहिए। यह इसलिए कि उससे हम अपना दुःख-सुख कहकर उसमें उसे भागीदार बना सकें।
(ii) मित्र के बीच वह सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए, जो हानि-लाभ का पूरा-पूरा ध्यान रखे।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त गद्यांश में किसका उल्लेख हुआ है?
(ii) मित्रता के लिए मुख्य रूप से क्या आवश्यक है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त गद्यांश में सच्चे मित्र के स्वरूप का उल्लेख हुआ है।
(ii) मित्रता के लिए मुख्य रूप से प्रीतिकारक और कल्याणकारक होना आवश्यक है।

3. कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि युद्ध का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-रात अवनति के गहे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाह के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।

शब्दार्थ-कुसंग-बुरा संग। सद्वृत्ति-अच्छाई। क्षय-नाश। अवनति-अविकास। बाहु-भुजा। निरन्तर-हमेशा।

प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘बाल-भारती’ में संकलित लेखक आचार्य श्री रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘मित्रता’ निबंध से है। इसमें लेखक ने कुसंगति के भयानक फल को बतलाते हुए कहा है कि
व्याख्या-जो भी व्यक्ति एक बार भी कुसंगति में पड़ जाता है उसके भयानक फलों को भोगने के लिए मजबूर हो जाता है। ऐसा इसलिए कि कुसंगति सभी प्रकार की अच्छाइयों को ही नष्ट करने में लग जाती है। इसलिए इससे, अच्छे-अच्छे सिद्धांतों-संस्कारों और अच्छे उद्देश्यों का विनाश तो होता ही है, इसके साथ-ही-साथ सद्बुद्धि का भी पूरा विनाश होने में तनिक भी देर नहीं लगती है। इसलिए यह कहना बहुत ही उचित है कि किसी भी बुरी संगति वाले अनुभव से ही युवक की कुसंगति बहुत ही दुःखद होती है। यह तो ठीक उसी प्रकार की होती है जिस प्रकार से किसी के पैरों में बंधी हुई चक्की होती है। और वह उसे विकास और सुख की ओर न ले जाकर बार-बार दुःख के गड्ढे में ही गिराती जाती है। लेखक का पुनः कहना है कि यदि किसी व्यक्ति को अच्छी संगति मिल गई है तो इससे उसको निरंतर भला और सुख ही मिलता जाएगा। इस प्रकार की संगति तो उस भुजा के समान ही होती है जो उसे हर प्रकार से सुख और कल्याण के शिखर पर बैठाने में सहायक होगी।

विशेष-

  1. भाव हृदयस्पर्शी है।
  2. उपदेशात्मक शैली है।
  3. तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
  4. संपूर्ण अंश प्रेरणादायक है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) कुसंगति का असर कैसा होता है?
(ii) कुसंगति का असर सबसे अधिक किस पर होता है और क्यों?
उत्तर
(i) कुसंगति का असर बहुत ही भयानक होने के कारण दुखद होता है। जिस पर कुसंगति का असर पड़ जाता है, उसके नियम-सिद्धान्त समाप्त हो जाते हैं। इससे उसकी सद्वृत्तियाँ विनष्ट हो जाती हैं। इस तरह कुसंगति से बुद्धि-विवेक देखते-देखते समाप्त हो जाते हैं।
(ii) कुसंगति का असर युवा-पीढ़ी पर सबसे अधिक पड़ता है। ऐसा इसलिए कि उसकी समझ बहुत कम होती है। उसका चित्त बिल्कुल अविकसित होता है। उसका अनुभव बिल्कुल न के बराबर होता है।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) कुसंग क्या होता है?
(ii) कुसंग का क्या फल होता है?
उत्तर-
(i) कुसंग एक भयंकर ज्वर के समान होता है, जिसकी चपेट में आने वालों को केवल हानि उठानी पड़ती है।
(ii) कुसंग का फल बड़ा ही भयानक होता है। इसकी चपेट में प्रायः युवावर्ग आता है। वह कुसंग में पड़कर हानि ही उठाता रहता है। उससे उसका बाहर निकलना असंभव-सा हो जाता है।

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4. बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनके घड़ी भर के साथ से भी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है क्योंकि उतने ही बीच में ऐसी-ऐसी बातें कही जाती हैं जो कानों में न पड़नी चाहिए। चित्त पर ऐसे प्रभाव पड़ते हैं जिनसे उसकी पवित्रता का नाश होता है। बुराई अटल भाव से धारण करके बैठती है। बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं। इस बात को प्रायः सभी लोग जानते हैं कि भद्दे-फूहड़ गीत जितनी जल्दी ध्यान पर चढ़ते हैं उतनी जल्दी कोई गंभीर या अच्छी बात नहीं।

शब्दार्थ-भ्रष्ट-नष्ट। चित्त-हदय। पवित्रता-सच्चाई। अटल-स्थिर। धारणा-विचार। गंभीर-ठोस।

प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘बाल-भारती’ में संकलित लेखक आचार्य श्री रामचंद्र शुक्ल-लिखित ‘मित्रता’ निबंध से है। इसमें लेखक ने अच्छी-बुरी बातों के प्रभाव के विषय में बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-संसार में अधिकांश लोग ऐसे अवश्य ही मिल जाएँगे जिनका थोड़ा-सा भी साथ अनेक प्रकार के विनाश का कारण बन जाता है। ऐसे लोगों का साथ निश्चय ही सद्बुद्धि को विनष्ट करने में देर नहीं लगाता है। ऐसा इसलिए कि इस थोड़े से ही समय में कुछ ऐसी उलजलूल बातें अवश्य हो जाती हैं जो हर प्रकार से अनुचित और अहितकर ही होती हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बुराई का प्रभाव हृदय-स्थल पर इस तरह से पड़ता है कि इससे कहीं कुछ भी सच्चाई-अच्छाई का नामोनिशान नहीं रह जाता है। यह सब कुछ इसलिए होता है कि जो एक बार भी बुरी बातें हमारे हृदय में प्रवेश कर जाती हैं वे स्थिर और अटल भाव से होती हैं। वे बहुत दिनों तक ज्यों-की-त्यों पड़ी रहती हैं। इसलिए इस बात को सभी मानते और समझते हैं कि भद्दे और गन्दे गीतों के असर इतनी जल्दी और देर तक होते हैं कि ऐसे असर सुंदर और अच्छे गीतों के भी नहीं होते हैं।

विशेष-

  1. अच्छी और बुरी बातों के प्रभाव का आकर्षक उल्लेख है।
  2. तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. शैली बोधगम्य है।
  4. सारा अंश उपदेशात्मक है।
  5. उपमा अलंकार है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i)कुसंग का असर किस प्रकार होता है?
(ii) बुराई और अच्छाई में क्या अंतर है?
उत्तर
(i) कुसंग का असर तुरंत पड़ने लगता है। यहाँ तक कि घड़ी भर में ही कुसंग अपना दुष्प्रभाव दिखाने लगता है।
(ii) बुराई और अच्छाई में बहुत बड़ा अंतर है। बुराई में अटलता होती है, जबकि अच्छाई में नहीं। बुराई तुरंत अपना प्रभाव डालती है, जबकि अच्छाई धीरे-धीरे।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) बुराई से सबसे पहले क्या हानि होती है?
(ii) उपर्युक्त गांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) बुराई से सबसे पहले बुद्धि की हानि होती है। इससे अच्छाई की पवित्रता विनष्ट हो जाती है। इससे हमारा सोच-समझ मलिन हो जाती है।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का मुख्य भाव है-कुसंगति और सत्संगति क्या होती है। इसे समझाते हुए सत्संगति का महत्त्व बतलाना।

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