MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 1 मानव एवं पर्यावरण
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 पाठान्त अभ्यास
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
शोर नापने की इकाई है (2010, 18)
(i) सेण्टीमीटर
(ii) डेसीबल
(iii) सेल्सियस
(iv) मिली बार।
उत्तर:
(ii) डेसीबल
प्रश्न 2.
विश्व का सर्वाधिक शोरयुक्त शहर है (2009, 12)
(i) मुम्बई
(ii) न्यूयार्क
(iii) रियो डि जेनेरो
(iv) टोकियो।
उत्तर:
(iii) रियो डि जेनेरो
प्रश्न 3.
सर्वप्रथम ओजोन छिद्र 1985 में किस क्षेत्र में देखा गया था? (2009, 13)
(i) ऑस्ट्रेलिया
(ii) अलास्का
(iii) अंटार्कटिका
(iv) पश्चिमी यूरोप।
उत्तर:
(iii) अंटार्कटिका
प्रश्न 4.
पृथ्वी के ऊपर ओजोन परत की स्थिति है
(i) धरातल से 5 से 10 किमी की ऊँचाई पर
(ii) 25 किमी की ऊँचाई पर
(iii) 32 से 80 किमी की ऊँचाई पर
(iv) 75 से 100 किमी की ऊँचाई पर।
उत्तर:
(iii) 32 से 80 किमी की ऊँचाई पर
प्रश्न 5.
पर्यावरण क्षरण का मुख्य कारण है (2016)
(i) स्थानान्तरी कृषि,
(ii) पर्यटन को बढ़ावा,
(iii) भूमि के उपयोग का बदलता स्वरूप,
(iv) ये सभी।
उत्तर:
(iv) ये सभी।
प्रश्न 6.
जनसंख्या विस्फोट से क्या आशय है? (2017)
(i) प्रवजन,
(ii) जन्म-दर व मृत्यु-दर में समानता
(iii) भीड़ का बढ़ जाना,
(iv) मनुष्यों की संख्या में निरन्तर वृद्धि।
उत्तर:
(iv) मनुष्यों की संख्या में निरन्तर वृद्धि।
प्रश्न 7.
‘काटो और जलाओ’ का सम्बन्ध है (2011)
(i) स्थानान्तरी कृषि से
(ii) पर्यटन व तीर्थ यात्रा से
(iii) अति खनन से,
(iv) बाँध निर्माण से।
उत्तर:
(i) स्थानान्तरी कृषि से
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
- वे भौतिक पदार्थ या वस्तु जो मानव के लिए उपयोगी हैं ………… कहलाते हैं।
- पृथ्वी के …………. प्रतिशत भाग पर स्थल एवं ………… प्रतिशत भाग पर जल है।
- विश्व के कुल भूमि क्षेत्र का ……….. प्रतिशत भाग वनों से ढका हुआ है। (2015)
- ‘एसिड रेन’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् …………. में ब्रिटिश वैज्ञानिक ने किया था।
- बस्तर की डोलोमाइट खदानों से …………. राष्ट्रीय उद्यान को खतरा उत्पन्न हो गया है।
उत्तर:
- संसाधन
- 29, 71
- 30
- 1873
- कांगेर घाटी।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पर्यावरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पर्यावरण का आशय हमारे चारों ओर के उस वातावरण एवं परिवेश से है जिससे हम घिरे हुए हैं व प्रभावित होते हैं; जैसे-वायु, जल, पेड़-पौधे, पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा, तारे, आकाश आदि।
प्रश्न 2.
सांस्कृतिक पर्यावरण से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानव तथा प्राकृतिक पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों द्वारा ही सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण होता है। इसके अन्तर्गत मानव द्वारा निर्मित वस्तुएँ; जैसे-सड़कें, पुल, नहर, कारखाने, जातियाँ, शासन प्रणाली आदि हैं।
प्रश्न 3.
भारत की पाँच प्रमुख प्रदूषित नदियाँ कौन-कौन-सी हैं? लिखिए।
उत्तर:
भारत की प्रमुख प्रदूषित नदियाँ निम्न हैं –
- गंगा
- यमुना
- हुगली
- दामोदर
- गोदावरी।
प्रश्न 4.
ग्लोबल वार्मिंग क्या है? (2018)
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी होने से पेड़-पौधों की वृद्धि रुक जाती है एवं जंगल सूखने लगते हैं। इस कारण से वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ऊष्मारोधी गैसें, ऊष्मा का कुछ भाग शोषित कर भूतल पर वापस कर देती हैं। इससे निचले वायुमण्डल में अतिरिक्त ऊष्मा जमा होने लगती है और वायुमण्डल का तापमान बढ़ जाता है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वायु अथवा ध्वनि प्रदूषण का मानवीय स्वास्थ्य पर कैसे दुष्प्रभाव पड़ता है? लिखिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण का मानवीय स्वास्थ्य पर प्रभाव –
- धूल तथा मिट्टी के कणों के वायु में उपस्थित रहने से श्वसन की क्रिया में बाधा आती है। ये कण फेफड़ों में जाकर बीमारियाँ उत्पन्न करते हैं।
- कोयले और खनिज तेल के जलने से सल्फर डाइ-ऑक्साइड भी वायुमण्डल में चली जाती है। मोटरों और कारों के कै धुएँ के साथ निकले सीसे, कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड्स के अंश भी वायुमण्डल में मिल जाते हैं। मोटर-कारों का धुआँ साँस के साथ नाक में जाकर जलन पैदा करता है तथा साँस के रोगों का कारण बनता है।
- प्रदूषित वायु में से होकर जब वर्षा होती है, जब प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर जलाशयों, भूमि और महासागरों को प्रदूषित कर देते हैं। वायु प्रदूषण का प्रभाव पौधों, मनुष्यों तथा अन्य जन्तुओं पर भी पड़ता है।
ध्वनि प्रदूषण का मानवीय स्वास्थ्य पर प्रभाव –
- ध्वनि प्रदूषण से चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, क्रोध आदि आता है।
- ध्वनि प्रदूषण से नींद नहीं आती, आराम नहीं मिलता है।
- वैज्ञानिक अनुसन्धानों का निष्कर्ष है कि 85 डेसीबल से ऊपर की ध्वनि के प्रभाव में लम्बे समय तक रहने से व्यक्ति बहरा हो सकता है।
- 120 डेसीबल की ध्वनि से अधिक तीव्र ध्वनि गर्भवती महिलाओं तथा उनके शिशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
प्रश्न 2.
रेडियोधर्मी पदार्थों से प्रदूषण कैसे फैलता है?
उत्तर:
रेडियोधर्मी पदार्थ वातावरण में प्रवेश करके रेडियोधर्मी प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। यूरेनियम, थोरियम, सीजियम, स्ट्रांशियम, प्लूटोनियम, कोबाल्ट जैसे रेडियोसक्रिय तत्त्व नाभिकीय प्रक्रियाओं में काम आते हैं। ये तत्त्व ही रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारक हैं। परमाणु बमों के निर्माण तथा परीक्षण रेडियोधर्मी प्रदूषण फैलाते हैं। रेडियोधर्मी पदार्थों से फैले विकिरण के प्रभाव दूरगामी होते हैं। परमाणु परीक्षणों के दौरान अधिक ऊर्जा निकलने से मानव व जीव-जन्तुओं की कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं। स्ट्रांशियम जैसा हानिकारक रेडियोधर्मी
सक्रिय तत्त्व, मृदा की उर्वरा शक्ति नष्ट कर देता है।
प्रश्न 3.
प्रदूषण व प्रदूषक में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रदूषण व प्रदूषक में अन्तर पर्यावरण की प्राकतिक संरचना एवं सन्तुलन में उत्पन्न अवांछनीय परिवर्तन को प्रदूषण कहते हैं। दूसरी ओर प्रदूषक वे अनुपयोगी पदार्थ हैं जो अनुचित मात्रा में उपस्थित होकर प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हों, प्रदूषक कहलाते हैं। प्रदूषक दो प्रकार के होते हैं-(i) प्राकृतिक प्रदूषक तथा (ii) मानवीय प्रदूषक, जैसे-कीटनाशक, उर्वरक, प्लास्टिक, रेडियोधर्मी तत्त्व, लेड, विभिन्न प्रकार के रसायन आदि।
प्रश्न 4.
ओजोन परत के क्षरीकरण की समस्या को स्पष्ट कीजिए। (2010)
उत्तर:
यद्यपि ओजोन वायुमण्डल की एक सूक्ष्म परत है तथापि ओजोन की यह पतली-सी परत धरती पर जीवन की सुरक्षा के लिए अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यह सूर्य की ‘पराबैंगनी किरणों’ को पृथ्वी पर पहुँचने से रोकती है। मुख्य रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन, नाइट्रिक ऑक्साइड, क्लोरीन ऑक्साइड आदि गैसों की ओजोन परत क्षरण में मुख्य भूमिका है। फ्रिज, एयर कण्डीशनर, जैसे उपकरणों में काम में आने वाली गैस क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सी. एफ. सी.) के अधिक उपयोग से ओजोन परत में छेद हो गया है।
ओजोन परत में छिद्र होने से पथ्वी पर पराबैंगनी किरणों का कहर फैल रहा है। इन किरणों से त्वचा कैंसर तथा मोतियाबिन्द आदि बीमारियों का खतरा बनता है। शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और कृषि पैदावार कम होने के अलावा वन-सम्पदा क्षतिग्रस्त होती है।
प्रश्न 5.
मृदा प्रदूषण क्या है? इसके प्रमुख दुष्प्रभाव कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
मृदा प्रदूषण-भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति तथा उपयोगिता नष्ट होती है, मृदा प्रदूषण है।
जनसंख्या के बढ़ते दबाव, रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक दवाओं के अधिकाधिक प्रयोग से भूमि की अवशोषण एवं शुद्धीकरण क्षमता का तेजी से ह्रास हुआ है। परिणामतः भूमि की उत्पादन क्षमता दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कृषि भूमि में नाइट्रोजन के प्रयोग से काफी प्रदूषण बढ़ रहा है और यह नाइट्रेट रासायनिक खादों की देन है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कल-कारखानों के अवसाद, टीन एवं काँच के टुकड़े, पॉलीथिन के थैले, प्लास्टिक की वस्तुएँ आदि आसानी से जमीन में विघटित नहीं होते हैं और आस-पास की जमीन को कुछ समय बाद अनुपयोगी बना देते हैं।
प्रश्न 6.
जनसंख्या विस्फोट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
‘जनसंख्या विस्फोट’ शब्द से तात्पर्य जनसंख्या के अत्यन्त तीव्र गति से एकाएक वृद्धि से ही ‘विस्फोट’ शब्द उस तरह की स्थिति को स्पष्ट करता है, जिसके प्रभाव उतने ही गम्भीर और भयानक होते हैं जितने कि परमाणु बम के गिरने या उसके दूषित पदार्थों से प्रभावित होने से होते हैं।
हर देश में जब विकास होगा तो जन्म-दर की तुलना में मृत्यु-दर अधिक तीव्र गति से घटेगी और उसका परिणाम यह होगा कि जनसंख्या में वृद्धि होगी। आज पैदा होने वाले बच्चे, जिन्हें अकाल शिशु मृत्यु से बचा लिया जाएगा 20-22 वर्ष बाद स्वयं बच्चे पैदा करेंगे। यहाँ से ही ‘जनसंख्या विस्फोट’ स्थिति निर्मित होगी।
प्रश्न 7.
अति चारण के कारण भूमि की गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
अतिचारण क्या है? इसके प्रमुख दुष्प्रभाव कौन-कौन से हैं? (2011)
उत्तर:
पशुओं द्वारा वनस्पति के अधिक चारण को अतिचारण कहा जाता है। अतिचारण से वहाँ पुनः वनस्पति शीघ्र नहीं पनप पाती। इसका दुष्प्रभाव यह होता है कि भूमि पर से वनस्पति की सतह समाप्त हो जाती है। भू-अपरदन के कारण भूमि के मरूस्थल में परिवर्तित होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार के क्षेत्रों में मृदा पानी कम सोख पाती है और वनस्पति को पर्याप्त पानी प्राप्त नहीं होता। ऐसी स्थिति राजस्थान, गुजरात एवं पश्चिमी मध्यप्रदेश के उच्च पठारी प्रदेशों में उत्पन्न हो गई है।
प्रश्न 8.
स्थानान्तरी कृषि कैसे की जाती है?
उत्तर:
कृषि के सबसे प्राचीन रूप को स्थानान्तरीय कृषि कहते हैं। इसमें वृक्षों को काटो और जलाओ का सिद्धान्त अपनाया गया। फिर उस भूमि पर कुछ समय कृषि कार्य करके छोड़ दिया गया। मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी से फसलों की उपज में कमी आयी एवं नये वनों को काटने का काम शुरू हुआ। कृषि की इस प्रणाली से न केवल कृषि उपज कम होती है, अपितु वन क्षेत्र भी कम होते हैं।
प्रश्न 9.
वन अपरोपण क्या है? वन अपरोपण के कारणों को सूचीबद्ध कीजिए।
अथवा
वन-अपरोपण के कोई तीन कारण लिखिए। (2017)
उत्तर:
वन अपरोपण का आशय है वनों को काटना या किसी क्षेत्र से पेड़ों का सफाया करना। वनों का कम होना विभिन्न मानवीय प्रयासों का फल है। विशाल बाँधों के निर्माण से जल विद्युत् परियोजनाओं के प्रारम्भ करने से बिजली वितरण तथा रेल लाइनों एवं सड़क के विस्तार से एवं आवासीय क्षेत्रों के फैलाव से और ईंधन की आपूर्ति तथा उद्योगों के लिए वृक्षों की कटाई से भी वनों को नुकसान हुआ है।
प्रश्न 10.
अधिक मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
साधारण तौर पर पेड़-पौधों को कीड़ों, चंपा, दीमक एवं फफूंद आदि से बचाने के लिए किसान कई प्रकार के विषाक्त कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं। दूसरी ओर पैदावार में वृद्धि करने के लिए पोटाश, यूरिया तथा सल्फर आदि रासायनिक उर्वरकों का भी अन्धाधुन्ध उपयोग किया जाता है। ऐसे रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि तो होती है परन्तु दूसरी ओर इसका दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। अन्य शब्दों में, जिस रसायन से कीट-पतंगों की मृत्यु होती है उसका विपरीत प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर भी अवश्य पड़ेगा।
प्रश्न 11.
खनन से किसी क्षेत्र के पर्यावरण पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
खनन का आशय है धरती को खोदकर खनिज एवं अन्य पदार्थों को निकालना। इसका पर्यावरण पर अत्यन्त बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि भूमि से पेड़-पौधों को काटा जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप भूमिगत जल के संचरण में रुकावट होती है तथा भू-स्खलन, मलबे का जमाव, मृदा अपरदन और नई भू-आकृतियों का निर्माण होता है। अति खनन के दुष्प्रभावों को भारत के हिमालय पर्वत श्रेणियों से घिरी गंगा-यमुना से बनी दून घाटी में देखा जा सकता है। पहले यह घाटी क्षेत्र बासमती, लीची, चाय जैसी फसलों के लिये विश्व प्रसिद्ध था परन्तु अब चूना पत्थर के अंधाधुन्ध खनन से घाटी क्षेत्र का सिर्फ 12% भाग ही हरियाली युक्त है।
प्रश्न 12.
नगरीकरण पर्यावरण को कैसे बिगाड़ता है?
उत्तर:
नगरों के विस्तार की क्रिया ही नगरीकरण है। नगरीकरण से जनसंख्या घनत्व सघन होने लगता है। यातायात की सुविधाएँ बढ़ती हैं। सड़कों, रेलों, अस्पतालों, दफ्तरों, सामुदायिक केन्द्रों आदि का विस्तार होता है। इन सभी से प्रदूषण में वृद्धि होती है। महानगरों में प्रदूषण का प्रमुख कारण सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सीसा, नाइट्रस ऑक्साइड, फ्लोराइड्स आदि विषैले रसायन हैं जो वाहनों एवं औद्योगिक संस्थानों से निकलते हैं। महानगरों में स्थित कल-कारखानों का कचरा नदियों में प्रवाहित कर दिये जाने से नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है। इन सभी का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। अनेक महानगर तरह-तरह की अव्यवस्थाओं, पेयजल, समस्या, नगरीय प्रदूषण, अशान्ति आदि के शिकार होते जा रहे हैं।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पर्यावरण की अवधारणा बताते हुए मानव व पर्यावरण में सम्बन्ध समझाइए। (2008)
उत्तर:
पर्यावरण की अवधारणा-पर्यावरण का आशय मानव के चारों ओर पाई जाने वाली प्राकृतिक दशाओं से है। ये स्थल, जल, वायु एवं मनुष्य द्वारा स्वयं उत्पन्न की गई परिस्थितियाँ हो सकती हैं। मानव पृथ्वी पर कुछ विशेष प्रकार की परिस्थितियों के अन्तर्गत निवास करता है। यह परिस्थितियाँ ही उसका पर्यावरण कहलाती हैं अर्थात् “पर्यावरण एक आवरण या घेरा है जो मानव समुदाय को चारों ओर से घेरे हुए है तथा मानव को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।”
मानव एवं पर्यावरण में सम्बन्ध-मनुष्य पृथ्वी पर निवास करता है और पृथ्वी पर पाए जाने वाले पौधे तथा जीव-जन्तु उसके पर्यावरण के प्रमुख अंग हैं। मानव प्राकृतिक भूदृश्यों को परिवर्तित करने के लिए नहरें खोदता है, वृक्ष काटता है, खनिजों का दोहन करता है, जंगली जीवों का शिकार करता है, जल प्रवाह की गति पर नियन्त्रण करता है या उसके प्रवाह को ही मोड़ देता है। वह उसके स्थान पर खेत, कारखाने, नगर, कस्बे, सड़कें, रेलमार्ग आदि का निर्माण करता है। परन्तु मनुष्य यह सब अपनी प्रकृति के अनुरूप ही करता है। दूसरे शब्दों में, मानव अपने भोजन तथा अन्य विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह पौधों और जन्तुओं पर ही आश्रित है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मानव और पर्यावरण एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं।
प्रश्न 2.
पर्यावरण के प्रमुख तत्व कौन-कौन से हैं ? मानव ने पर्यावरण को कैसे प्रभावित किया है ? स्पष्ट कीजिए। (2008)
उत्तर:
पर्यावरण के तत्व-पर्यावरण के चार तत्व हैं-स्थल, जल, वायु और जीव। इनमें से प्रथम तीन परस्पर मिलकर भौतिक पर्यावरण का निर्माण करते हैं और जीव-जन्तु जैवमण्डल का निर्माण करते हैं। उपयुक्त चारों तत्वों में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित है। उदाहरण के लिए, जलमण्डल से जल का वाष्पीकरण होता है। जलवाष्प वायु द्वारा पृथ्वी पर वर्षा आदि के रूप में पहुँचकर जीवों का भरण-पोषण करती है। यह एक ऐसा प्राकृतिक वातावरण है जिसका इन चारों तत्वों के आपसी तालमेल के कारण ही निर्माण होता है।
मनुष्य पर्यावरण पर निम्न प्रकार प्रभाव डाल रहा है –
- मानव ने अपने जीवन-यापन के लिए वनों को काटा। जंगलों की अन्धाधुन्ध कटाई के कारण जैवमण्डल का सन्तुलन बिगड़ गया है।
- निरन्तर वनों के ह्रास के कारण और भूमि पर से वनस्पति को हटाकर मानव द्वारा कुछ विशेष प्रकार की फसलें उगाने से, वनस्पति की विविधता समाप्त होती जा रही है।
- वायु और जल प्रदूषण के कारण पेड़-पौधों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं क्योंकि प्रदूषित वायु और जल उनके अनुकूल नहीं होता।
- मनुष्य जाति सर्वभक्षी है क्योंकि वह न केवल वनस्पति अपितु पशु उत्पाद भी भोजन के रूप में खाता है। मानव द्वारा अन्धाधुन्ध शिकार करने की प्रवृत्ति के फलस्वरूप पशु-पक्षियों की कई जातियाँ पूर्णतया विलुप्त हो गई हैं और कुछ विलुप्त प्रायः हैं।
- हमने अपनी जनसंख्या में इतनी तीव्र गति से वृद्धि की है, जिसे बहुधा विनाश का पर्याय माना जा सकता है। हम बड़ी शीघ्रता से विश्व के अपूर्व साधनों का प्रयोग कर रहे हैं तथा अनेक प्रकार से पर्यावरण को हानि पहुँचा रहे हैं। जैसे-जैसे हमारी जनसंख्या बढ़ती गयी, उपजाऊ भूमि व वन सिमटते गये। तीव्रगति से बढ़ती हुई जनसंख्या की माँग को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधन का दोहन भी तीव्र गति से हुआ है।
प्रश्न 3.
प्रदूषण से क्या आशय है? प्रदूषण के प्रकारों का वर्णन कीजिए। (2009, 13)
अथवा
प्रदूषण के कोई तीन प्रकारों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
प्रदूषण का आशय-राष्ट्रीय पर्यावरण शोध संस्थान के अनुसार, “मानव के क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्टों के रूप में पदार्थ एवं ऊर्जा विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं।” अतः प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, “प्रदूषण वायु, जल और स्थल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं का अवांछनीय परिवर्तन है।”
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार-पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार निम्नलिखित हैं –
(1) वायु प्रदूषण :
वायु प्रदूषण का प्रादुर्भाव उसी दिन से हो गया था, जब मानव ने सर्वप्रथम आग जलाना सीखा। धीरे-धीरे जनसंख्या में वृद्धि होती गई और जंगल कटते चले गए इसके साथ ही वायुमण्डल में धुआँ भी बढ़ता गया, फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती चली गयी। 1870 के बाद के अन्तराल से अब तक वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 16 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है, जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
वायुमण्डल में पायी जाने वाली गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में होनी चाहिए। इस मात्रा एवं अनुपात में वृद्धि या कमी हो जाती है, तो यह वायु प्रदूषण कहलाता है।
(2) जल प्रदूषण :
जल में आवश्यकता से अधिक खनिज पदार्थ, अनावश्यक लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ, औद्योगिक इकाइयों तथा अन्य संयन्त्रों से निकले हुए अपशिष्ट, मल-मूत्र, मृतजीवी, कूड़ा-करकट आदि नदियों, झीलों तथा सागरों में विसर्जित किये जाते रहने से ये पदार्थ जल के वास्तविक स्वरूप को नष्ट कर उसे प्रदूषित कर देते हैं जिससे जल प्रदूषित हो जाता है।
(3) भूमि प्रदूषण :
बाढ़ के पानी, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, जीवाणुनाशकों के अत्यधिक प्रयोग तथा बहु फसल प्रणाली के तहत भूमि के अधिक उपयोग के चलते मिट्टी की पारिस्थितिकी बदल गई है और उसमें इतनी विकृतियाँ आ गई हैं कि वह अपनी प्राकृतिक संरचना और उर्वरता बनाए रखने के लिए आवश्यक तत्व खो चुकी है। इस स्थिति को भूमि प्रदूषण कहते हैं।
(4) ध्वनि प्रदूषण :
प्रत्येक मनुष्य अपने चारों ओर फैले प्रदूषकों के प्रति एक निश्चित सीमा तक सहनशील होता है। मानव के कानों में भी ध्वनि को साधारणतया ग्रहण करने की एक सीमा होती है। इस सीमा से अधिक की ध्वनि जब होने लगती है, तो वह कानों को अच्छी नहीं लगती, उसका बुरा प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ता है, इसे ध्वनि प्रदूषण या शोर कहा जाता है। वास्तव में शोर वह ध्वनि है जिसके द्वारा मानव के अन्दर अशान्ति व बेचैनी उत्पन्न होने लगती है, इसी को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि की साधारण मापन इकाई को डेसीबल कहते हैं।
(5) रेडियोधर्मी प्रदूषण :
मानव द्वारा विभिन्न रेडियोधर्मी विकिरण निकलते हैं जो मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। स्ट्रांशियम-90 नामक रेडियोधर्मी विकिरण स्थानीय पौधों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है जो मानवीय स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है।
(6) तापीय प्रदूषण :
विश्व के सामान्य तापक्रम में होने वाली अत्यधिक वृद्धि जिसका प्रभाव जीवमण्डल पर पड़े, तापीय प्रदूषण है। कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, सी. एफ. सी. नाइट्रस ऑक्साइड, ताप विद्युत् ग्रहों से निकली ऊष्मा, ओजोन छिद्र, वन में लगी आग तथा परमाणु परीक्षण वायुमण्डलीय तापमान में वृद्धि करते हैं। सूखा, बाढ़, स्थाई जल स्रोतों का सूख जाना, समुद्री जल स्तर में वृद्धि, जलीय जन्तु का लोप, जलवायु परिवर्तन से कृषि उपजों की कमी, ओजोन क्षरण इत्यादि तापीय प्रदूषण के प्रमुख दुष्प्रभाव हैं।
प्रश्न 4.
संसाधन से क्या तात्पर्य है? संसाधन के प्रमुख प्रकारों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2014)
उत्तर:
संसाधन का आशय :
कोई भी भौतिक वस्तु या पदार्थ जब मानव के लिए उपयोगी या मूल्यवान होता है, तो उसे संसाधन कहते हैं। संसाधन सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं
(1) प्राकृतिक संसाधन :
इस प्रकार के संसाधन जो हमें प्रकृति ने प्रदान किये हैं एवं जिनके निर्माण में मानव की भूमिका बिल्कुल नहीं है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। इस आधार पर संसाधनों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है –
- नवीकरणीय संसाधन-वे संसाधन जिन्हें उपयोग के बाद पुनः उत्पादित किया जा सकता है या पुनः उपयोग में लाया जा सकता है, जैसे-कृषि उपजें, चारागाह, कृषि-भूमि, जल संसाधन एवं वायु संसाधन आदि।
- अनवीकरणीय संसाधन-ये संसाधन सीमित होते हैं और कभी-न-कभी समाप्त हो सकते हैं। इनकी उपलब्धि सीमित होती है, जैसे-खनिज संसाधन, कोयला एवं पेट्रोलियम।
(2) मानव संसाधन :
मानव संसाधनों से आशय मानव शक्ति के उपयोग से है। किसी भी देश का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन उसके निवासी ही होते हैं। यहाँ यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि केवल योग्य, शिक्षित, कार्यकुशल एवं तकनीकी में निपुण लोग ही देश के संसाधन हो सकते हैं। ऐसे ही लोग प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग कर सकते हैं और उनको बहुमूल्य बना सकते हैं। मानव संसाधनों के बिना किसी देश के प्राकृतिक संसाधन महत्त्वहीन होते हैं।
(3) मानव निर्मित :
मानव निर्मित संसाधन उत्पादन के वे साधन हैं, जिनका निर्माण मानव ने पर्यावरण के भौतिक पदार्थों का उपयोग करने के लिए किया है; जैसे-मशीनें, भवन, उपकरण आदि।
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रमुख संसाधन निम्न प्रकार हैं –
- भूमि संसाधन :
भूमि एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, क्योंकि मानव भूमि पर ही रहता है और उसकी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भी भूमि से ही होती है। भूमि का उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों; जैसे-मकान, सड़क और रेलमार्ग, कृषि, पशुचारण, खनन, उद्योग आदि में किया जाता है। भूमि का उपयोग समय-समय और स्थान-स्थान पर अलग-अलग हो सकता है। एक ही प्रदेश में समय-समय पर इसका उपयोग बदल सकता है। - कृषि संसाधन :
भूमि, मृदा एवं जल कृषि के आधारभूत साधन हैं। समुद्र के तटीय मैदान तथा नदियों की घाटियों की जलोढ़ उपजाऊ मिट्टी में कृषि कार्य आसानी से किया जाता रहा है। उर्वरकों, कीटनाशकों, सिंचाई के विभिन्न साधनों तथा उन्नत बीजों और यन्त्रों की मदद से प्रति एकड़ उपज में वृद्धि हुई है। - जल संसाधन :
धरातल पर जल वर्षा, नदियों, झीलों, तालाबों, हिमनदों, झरनों, नलकूपों आदि से प्राप्त होता है। जल का उपयोग सिंचाई, उद्योग, घरेलू जल आपूर्ति, मत्स्य पालन एवं जल परिवहन में होता है। सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक जल का उपयोग कृषि कार्य हेतु किया जाता है। - मृदा संसाधन :
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि मृदा वास्तव में एक महत्त्वपूर्ण साधन है। मृदा पौधे को उगाने का एक प्राकृतिक माध्यम है। पौधे अपने विकास के लिए पोषक तत्व मृदा से ही ग्रहण करते हैं। इसके बदले में ये पशुओं के लिए पोषक आहार तथा मानव के लिए खाद्यान्न एवं रेशे प्रदान करते हैं। मृदा संसाधन से हमें भोजन, वस्त्र एवं बहुत अंश तक आवास के आधारभूत तत्व प्राप्त होते हैं, जो वास्तव में हमारी प्रमुख सम्पदा है, अतः मृदा हमारे जीवन का आधार है। - वन संसाधन :
वर्तमान में विश्व के कुल 30 प्रतिशत भाग पर ही वनों का वितरण पाया जाता है परन्तु पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से समस्त भूमि के.33 प्रतिशत भाग पर वनों का विस्तार होना चाहिए। पर्यावरण में वन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। वृक्ष वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं तथा ऑक्सीजन छोड़ते हैं। वन वर्षा करने में सहायक होते हैं। वन पक्षियों, वन्य जीवों एवं अन्य प्राणियों के सुरक्षित आवास हैं।
प्रश्न 5.
भूमि के उपयोग के बदलाव के कारण पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है? समझाइए।
उत्तर:
भूमि के बदलते उपयोग व उसके प्रभाव
मानव की अधिकांश आवश्यकताएँ भूमि से ही पूरी होती हैं; जैसे-मकान बनाना, सड़क बनाना, रेलमार्ग निर्माण, कृषि कार्य, पशुचारण, उद्योग-धन्धे, खनन आदि कार्यों के लिए भूमि अत्यन्त उपयोगी है। मानव द्वारा की गई तीव्र प्रगति, नगरीकरण और औद्योगीकरण से प्राकृतिक पर्यावरण में महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए। पूरे विश्व में प्राकृतिक पर्यावरण के विनाश का मुख्य कारण भूमि के उपयोग का बदलता स्वरूप है।
भारत में कृषि क्षेत्र बढ़ाने के लिए धीरे-धीरे वनों को नष्ट किया जा रहा है। मनुष्य ने भूमि का उपयोग अपने आवास स्थल के लिए भी व्यापक रूप से किया है। खुले स्थान धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं। वनों की कटाई एवं पशुचारण जल विद्युत् आपूर्ति एवं सिंचाई हेतु बड़े बाँधों के निर्माण, नई सड़कों एवं रेलमार्गों के फैलाव तथा कारखानों के विकास ने भारत में भूमि उपयोग के तौर-तरीकों को काफी बदल दिया है। इससे प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ा है। विभिन्न प्रकार के जीवों के आवास नष्ट हुए हैं और हजारों किस्म के पौधे एवं जीव लुप्त होने लगे हैं।
मृदा भूमि का अंग है इसलिए मनुष्य भूमि का उपयोग विभिन्न फसलों के लिए करता है; जैसे-खाद्यान्न उत्पादन करना, व्यापारिक फसलों का उत्पादन करना, विभिन्न प्रकार के फल एवं साग-सब्जियों का उत्पादन करना आदि। कृषि भूमि में अधिक खाद्यान्न पैदा करने के कारण ही अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा हो गईं।
प्रश्न 6.
अधिक जनसंख्या ने मानव जीवन को कैसे प्रभावित किया है? समझाइए। (2016)
उत्तर:
वर्तमान समय में मनुष्यों की संख्या में निरन्तर वृद्धि ने जनसंख्या विस्फोट का रूप ले लिया है। इसके प्रमुख प्रभाव निम्न प्रकार हैं –
- हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप भूमि पर दबाव निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इससे भू-जोतों का आर्थिक विभाजन हुआ है तथा कृषि उत्पादकता में कमी आयी है।
- जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने से प्रति व्यक्ति आय में धीमी वृद्धि होती है। ऐसे में निवेश का बड़ा भाग जनसंख्या के भरण-पोषण में लग जाता है तथा आर्थिक विकास के लिए निवेश का एक छोटा-सा भाग ही बचता है।
- जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने से देश में बच्चों तथा वृद्ध व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है यह लोग कार्यशील जनसंख्या (15 वर्ष से 60 वर्ष तक की आयु) पर आश्रित हैं। इसका कारण यह है कि यह केवल उपभोग करने वाले होते हैं, उत्पादन करने वाले नहीं। आश्रितों की संख्या बढ़ने पर देश पर भार बढ़ रहा है।
- जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगारी की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। सरकार जितने लोगों को रोजगार उपलब्ध कराती है उससे अधिक नये लोग बेरोजगारी की लाइन में आ जाते हैं।
- जनसंख्या वृद्धि के कारण सरकार को आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, जन-कल्याण, कानून एवं सुरक्षा पर अधिक व्यय करना पड़ता है। अतः विकास कार्यों के लिए धन का अभाव हो जाता है।
प्रश्न 7.
बड़े बाँधों का निर्माण पर्यावरण की दृष्टि से किस प्रकार हानिकारक है? समझाइए। (2009)
उत्तर:
तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन स्वाभाविक है। सिंचाई, जल विद्युत्, नहर, मछली पालन, नौका परिवहन, बाढ़ नियन्त्रण के लिए बड़ी नदियों पर बाँध बनाये जा रहे हैं। स्वतन्त्रता के बाद देश में लगभग 700 बाँध बनाये जा चुके हैं। ये बाँध पर्यावरण की दृष्टि से उचित नहीं है। जब किसी नदी घाटी योजना को प्रारम्भ किया जाता है तो बाँध निर्माण के कर्मचारियों के लिए आवास व्यवस्था, सड़क निर्माण, रेलवे लाइन, भूमिगत सुरंग निर्माण आदि आवश्यक हो जाते हैं। इससे निर्माण स्थल के आस-पास के बड़े क्षेत्र की हरियाली गायब हो जाती है।
विशाल बाँध से निर्मित कृत्रिम जलाशय में वन और कृषि भूमि डूब जाते हैं। उदाहरण के लिए, टिहरी का तो पूरा शहर ही जलमग्न हो गया है। बाँध से निकाली गई नहरों के पानी से जमीन का खारापन भी बढ़ता है, उसकी उर्वरा शक्ति क्षीण होती है। बाँध एवं नहर क्षेत्र निरन्तर पानी से भरा रहने के कारण वहाँ की भूमि कृषि योग्य नहीं रहती है। बाँध निर्माण क्षेत्र से बस्तियों को विस्थापित भी किया जाता है। कई परिवारों को अन्यत्र विस्थापित होना पड़ा; जैसे-नर्मदा नदी पर स्थित इन्दिरा सागर और सरदार सरोवर बाँध के निर्माण के लिए भी अनेक परिवारों को विस्थापित किया गया है।
इस प्रकार बड़े बाँध के निर्माण से मानव विस्थापन होता है। वन्य जीवों का विनाश होता है। कृषि और वन भूमि की कमी हो जाती है।
प्रश्न 8.
उद्योग का केन्द्रीयकरण पर्यावरण के लिए गम्भीर खतरा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। (2009, 12, 15)
उत्तर:
कुछ निश्चित सुविधाओं के कारण किसी निश्चित स्थान में निश्चित उद्योगों के केन्द्रित हो जाने को उद्योगों का केन्द्रीयकरण कहते हैं। औद्योगिक विकास के साथ-साथ उद्योगों के स्थानीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। इसमें एक ओर तो कृषि और वन भूमि का उपयोग होता है तथा दूसरी ओर विशाल मशीनों की भूख मिटाने के लिए खदानों से कच्चा माल भी उपलब्ध कराना होता है। औद्योगिक कारखानों की चिमनियों के कारण निकलने वाला धुआँ वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
कारखानों, फैक्ट्रियों, विद्युत् संयन्त्रों आदि में प्रयुक्त होने वाला ईंधन और कोयले का धुआँ पर्यावरण में उपलब्ध ऑक्सीजन को नुकसान पहुंचाता है। अपशिष्ट पदार्थों को आस-पास की भूमि पर खुले ढेर के रूप में छोड़ दिया जाता है। प्रदूषित जल को नदियों में प्रवाहित किया जाता है, जो मानवीय स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को सीधे प्रभावित करते हैं। औद्योगीकरण वायु, जल, ध्वनि, भूमि एवं रासायनिक तथा रेडियोधर्मी प्रदूषण का केन्द्र बिन्दु है। बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ, छोटे-छोटे कल कारखाने नदियों के जल का अधिकाधिक प्रयोग करके अपशिष्टों को पुनः नदियों, नालों में डालकर जल को प्रदूषित करते हैं। अतः एक ओर उद्योग जहाँ वरदान हैं, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण के लिए एक अभिशाप है।
प्रश्न 9.
जल प्रदूषण से क्या आशय है? भारत में बढ़ते हुए नदी जल प्रदूषण का वर्णन कीजिए।
अथवा
जल प्रदूषण के उदाहरण दीजिए। जल प्रदूषण कैसे फैलता है? (2009, 14, 16)
उत्तर:
जल निरन्तर प्रदूषित हो रहा है। इसके प्रमुख कारण कारखानों का कूड़ा-कचरा नदियों और जलाशयों में बहाना, दूसरी ओर शहरों के गन्दे नालों का पानी नदियों में बहाना तथा कृषि में प्रयुक्त उर्वरकों तथा कीटनाशकों के द्वारा भी जल प्रदूषित हो जाता है। जल प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
- कागज और चीनी की मिलें तथा चमड़ा साफ करने के कारखाने अपना कूड़ा-कचरा नदियों में बहा देते हैं या भूमि पर सड़ने के लिए छोड़ देते हैं।
- तमिलनाडु के उत्तरी अर्काट जिले में चमड़े के अनेक कारखाने हैं। उनके कचरे से आस-पास के बहुत-से गाँवों के कुआँ का जल प्रदूषित हो गया है, क्योंकि कूड़े-कचरे का अंश रिस-रिसकर भूमिगत जल में मिल जाता है।
- सागरों का जल तेलवाहक जहाजों से तेल रिसने और तटों पर स्थित नगरों के कड़े-कचरे तथा कारखानों के कचरों के कारण प्रदूषित हो जाता है। ऐसी स्थिति में सागर के जीव जीवित नहीं रह पाते।
- बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ, छोटे-छोटे कल-कारखाने नदियों के जल का अधिकाधिक प्रयोग करके अपशिष्टों को पुनः नदियों, नालों में डालकर जल को प्रदूषित करते हैं। फलस्वरूप सभी नदियाँ दूषित हो चली हैं। लखनऊ में गोमती का जल कागज और लुग्दी के कारखानों से निकले अपशिष्टों से दूषित होता है तो दिल्ली में यमुना का जल डी. डी. टी. के कारखानों से निकले पदार्थों से प्रदूषित होता है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राचीन काल में वेदों में प्रकृति को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है?
(i) पिता
(ii) माता
(iii) भाई
(iv) बहन।
उत्तर:
(ii) माता
प्रश्न 2.
कोई भी भौतिक वस्तु या पदार्थ जो मानव के लिये उपयोगी या मूल्यवान होता है
(i) संसाधन कहलाता है
(ii) स्थानान्तरी पदार्थ कहलाता है
(iii) पर्यावरण कहलाता है,
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) संसाधन कहलाता है
प्रश्न 3.
वे अनुपयोगी पदार्थ जो अनुचित मात्रा में उपस्थित होकर प्रदूषण के लिये जिम्मेदार हैं, क्या कहलाते
(i) प्रदूषक
(ii) विदूषक
(iii) उत्सर्जक
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) प्रदूषक
रिक्त स्थान पूर्ति
- वनों से प्राप्त लकड़ी और जड़ी-बूटी पर अनेक …………. आधारित हैं।
- भारत में लगभग …………. सतही जल प्रदूषित है।
- भारत में पर्यावरण सन्तुलन के लिए कुल भूमि के ………… प्रतिशत भाग पर वन होना चाहिए।
उत्तर:
- उद्योग
- 90 प्रतिशत
- 33
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
पर्यावरण और मानव एक-दूसरे के सर्जक, पोषक एवं रक्षक हैं।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग थल तथा 29 प्रतिशत जल है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 3.
विश्व के कुल भूमि क्षेत्र का 30 प्रतिशत भाग वनों से ढका है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 4.
भारत में लगभ 80,000 हेक्टेयर भूमि पर खनन कार्य हो रहा है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 5.
बड़े बाँध से मानव विस्थापन होता है।
उत्तर:
सत्य।
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- → (ग)
- → (घ)
- → (ङ)
- → (क)
- → (ख)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
किस ग्रन्थ में पृथ्वी को परमात्मा का शरीर, स्वर्ग को मस्तिष्क, सूर्य-चन्द्रमा को आँखें तथा आकाश को मन माना है?
उत्तर:
उपनिषदों में,
प्रश्न 2.
भगवान बुद्ध को किस वृक्ष के नीचे ज्ञान (बौद्धिसत्व) प्राप्त हुआ था?
उत्तर:
वट वृक्ष के नीचे
प्रश्न 3.
वे अनुपयोगी पदार्थ जो अनुचित मात्रा में उपस्थित होकर प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हों, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
प्रदूषक
प्रश्न 4.
1985 में ओजोन छिद्र सर्वप्रथम किस क्षेत्र में देखा गया? (2014, 17)
उत्तर:
अन्टार्कटिका में,
प्रश्न 5.
कितने डेसीबल की ध्वनि मनुष्य को पागल बना देती है?
उत्तर:
140 डेसीबल,
प्रश्न 6.
पृथ्वी की कोई भी वस्तु जो मानव के लिए उपयोगी है। (2008)
उत्तर:
संसाधन।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पर्यावरण के तत्व कौन-से हैं?
उत्तर:
पर्यावरण के चार तत्व हैं-स्थल, जल, वायु और जीव। इनमें से प्रथम तीन परस्पर मिलकर भौतिक पर्यावरण का निर्माण करते हैं और जीव-जन्तु जैवमण्डल का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 2.
पर्यावरण के विभिन्न प्रकारों को बताइए।
उत्तर:
पर्यावरण के प्रमुख प्रकार निम्न हैं-
- प्राकृतिक पर्यावरण
- सांस्कृतिक पर्यावरण
- भौतिक पर्यावरण
- जैविक पर्यावरण तथा
- गतिशील पर्यावरण।
प्रश्न 3.
प्राकृतिक पर्यावरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक पर्यावरण के तत्व प्रकृति से सम्बन्धित हैं। इसमें भौगोलिक स्थिति, भूमि की रचना, खनिज, वनस्पति, वन्य-जन्तु, जलवायु आदि हैं।
प्रश्न 4.
प्रदूषण क्या है?
उत्तर:
पर्यावरण की प्राकृतिक संरचना एवं सन्तुलन में उत्पन्न अवांछनीय (हानिकारक) परिवर्तन को पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अम्लीय वर्षा किसे कहते हैं? (2018)
उत्तर:
कारखाने से निकली विषाक्त सल्फर डाइ-ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन गैसें (नाइट्रिक ऑक्साइड) वायुमण्डल में मिलकर वहाँ की विद्यमान वाष्प के साथ क्रिया करके क्रमशः सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल बनाती हैं। यह अम्ल जब वर्षा के साथ धरती पर गिरता है तो इसे अम्लीय वर्षा, तेजाबी वर्षा या एसिड रेन कहते हैं।
प्रश्न 2.
भौतिक पर्यावरण और सामाजिक पर्यावरण क्या है ? उदाहरण सहित समझाइए। (2011)
उत्तर:
भौतिक पर्यावरण :
भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण से आशय उन प्राकृतिक परिस्थितियों; जैसे-स्थिति, धरातल, जलवायु, वनस्पति, जीव-जन्तु एवं खनिज आदि से है जो मानव जीवन को अनेक प्रकार से प्रभावित करती हैं। प्राकृतिक पर्यावरण के ये तत्व प्रकृति प्रदत्त हैं और इन्हें सरलता से परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
सांस्कृतिक व सामाजिक पर्यावरण :
मानव तथा प्राकृतिक पर्यावरण के आपसी सम्बन्धों के द्वारा सांस्कृतिक-सामाजिक पर्यावरण विकसित होता है। इसमें मानव द्वारा निर्मित, विकसित, संचालित, आर्थिक व सामाजिक गतिविधियों; जैसे-कृषि, उद्योग, रीति-रिवाज, बसावट, सड़कें, रेलमार्ग, वायु सेवाएँ, सिंचाई के साधन, शासन प्रणाली व विज्ञान एवं तकनीक सम्मिलित हैं।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या के कारण बताइए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण के कारण-निरन्तर विकास के अवधारणा का मूल मन्त्र ही पर्यावरण प्रदूषण का प्रमुख कारण है। पर्यावरण प्रदूषित होने के अनेक कारण हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न प्रकार हैं
(1) संसाधनों का अभाव :
पर्यावरण प्रदूषित होने का एक प्रमुख कारण भारत में हो रहे संसाधनों की कमी है, कारण है कि जनसंख्या वृद्धि होने के साथ-साथ जमीन, खनिजों, कृषि उत्पादों, ऊर्जा तथा आवास की प्रति व्यक्ति उपलब्धता कम होती जा रही है।
(2) जंगलों का कटाव :
जंगलों का अन्धाधुन्ध काटा जाना तथा जनसंख्या में वृद्धि से पर्यावरण में असन्तुलन पैदा हुआ है। प्रतिवर्ष 1.50 लाख हेक्टेयर की दर से बड़े पैमाने पर वनों के क्षेत्रफल का ह्रास हो रहा है।
(3) अनियमित जलवायु :
समय पर वर्षा का न होना, भयंकर बाढ़, भूकम्प, महामारी एवं सूखा पड़ना आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण पर्यावरण का प्रदूषित हो जाना है।
(4) औद्योगीकरण :
तीव्र गति से बढ़ते औद्योगीकरण से पर्यावरण सर्वाधिक प्रदूषित हुआ है। आजकल कारखानों की चिमनियों से निरन्तर निकलता धुआँ, तरह-तरह के वाहन तथा ताप बिजलीघर वायुमण्डल में भारी मात्रा में धुआँ छोड़ते हैं, जिससे वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में बढोत्तरी ही नहीं हुई अपितु इससे देश की नदियों, समुद्रों और तालाबों में प्रदूषण की समस्या ने जन्म लिया है। उससे पेड़-पौधों के साथ-साथ जीव-जन्तु भी मरने लगे हैं।
(5) वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि :
आज पर्यावरण प्रदूषण का खतरा रासायनिक पदार्थों, जहरीले धुएँ आदि से इतना अधिक नहीं जितना पृथ्वी पर वायुमण्डल के तापमान के बढ़ने से उत्पन्न हुआ है। इससे कम वर्षा वाले क्षेत्र रेगिस्तान होते जा रहे हैं और कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता में कमी आ रही है।
(6) स्रोतों का उपयोग :
पर्यावरणपर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों का अन्धाधुन्ध उपयोग है। यदि समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई तो परिस्थितियाँ तेजी से प्रतिकूल दिशा में बढ़ती हुई हमारे नियन्त्रण से बाहर हो जाएगी।