MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणिः (संवादः)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 17 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) आरुणेः गुरोः नाम किम्? (आरुणि के गुरु का क्या नाम था?)
उत्तर:
धौम्य आयोदः ।(धौम्य आयोद)।

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(ख) गुरुपूर्णिमायां किम् भवति? (गुरु पूर्णिमा को क्या होता है?)
उत्तर:
गुरुजनानां पूजनं सम्मानञ्च। (गुरुजनों का पूजन एवं सम्मान होता है।)

(ग) धौम्यः आरुणिं कुत्र प्रेषयति? (धौम्य ने आरुणि को कहाँ भेजा?)
उत्तर:
केदारखण्ड बधान इति। (खेत की क्यारी को बाँधने।)

(घ) आरुणिः केदारखण्डे किमकरोत? (आरुणि ने खेत के खण्ड में क्या किया?)
उत्तर:
तत्केदारखण्डे संविवेश। (तब वह खेत की क्यारी में लेट गया।)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) गुरुः आरुणिं पाञ्चाल्यं किमर्थम् प्रेषयति स्म? (गुरु ने आरुणि को पाञ्चाल किसलिए भेजा?)
उत्तर:
गुरुः आरुणिं पाञ्चाल्यं केदारखण्डे बधान इति प्रेषयति स्म। (गुरु ने आरुणि को पाञ्चाल खेत की क्यारी को बाँधने के लिए भेजा।)

(ख) गुरोः आदेशेन आरुणिः किमकरोत? (गुरु के आदेश से आरुणि ने क्या किया?)
उत्तर:
गुरोः आदेशेन आरुणिः तत्केदारखण्डे संविवेश। (गुरु के आदेश से आरुणि खेत की क्यारी में लेट गया।)

(ग) आरुणिः गुरोः शब्दं श्रुत्वा किं कृतवान्? (आरुणि गुरु के शब्दों को सुनकर क्या किया?)
उत्तर:
आरुणिः गुरोः शब्द श्रुत्वा केदारखण्डात् सहसेत्थाय ऋषि समीपं प्रत्यागच्छत् कृतवान्। (आरुणि गुरु के शब्द को सुनकर खेत की क्यारी को छोड़कर पास में आकर नमस्कार किया।)

(घ) धौम्यः शिष्याय कमाशीर्वादम् अददात्? (आचार्य धौम्य ने शिष्य को क्या आशीर्वाद दिया?)
उत्तर:
धौम्यः शिष्याय ते सर्वे वेदाः प्रतिभाष्यन्ति सर्वाणि च शास्त्राणीति आशीर्वादम् अददात्। (धौम्य ने शिष्य को सभी वेद तथा शास्त्रों के ज्ञाता होने का आशीर्वाद दिया।)

प्रश्न 3.
उचितशब्देन रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) तस्य शिष्यः आरुणिः आसीत्।
(ख) उपाध्यायः धौम्यः शिष्यान् अपृच्छत्।
(ग) भवान् उद्दालक इति नाम्ना भविष्यति।
(घ) अहमभिवादये भवन्तम्।
(ङ) ते सर्वे वेदाः प्रतियास्यन्ति।

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प्रश्न 4.
शुद्धकथनानां समक्षम् “आम्” अशुद्धकथनानां समक्षं “न” इति लिखत
(क) आरुणिः महान् पितृभक्तः आसीत्।
(ख) धौम्यः आरुणिम् आह्वनाय शब्दं चकार।
(ग) आरुणिः गुरोः आज्ञया केदारखण्डम् प्रति गतवान्।
(घ) आरुणिः उद्दालक नाम्ना प्रसिद्धः।
उत्तर:
(क) न
(ख) आम्
(ग) आम्
(घ) आम्

प्रश्न 5.
निम्नलिखितैः अव्ययशब्दैः वाक्यानि रचयत्
(क) श्वः – श्वः गुरुपूर्णिमा पर्व अस्ति।
(ख) तत्र – तत्र आरुणि आसीत्।
(ग) यत्र – यत्र केदारखण्डं आसीत्।
(घ) बाढम् – उपाध्यायः बाढम् कथित्वा अगच्छत्।
(ङ) क्व – क्व आरुणि पाञ्चाल्य।

प्रश्न 6.
क्रियापदानां धातुं लकारं पुरुषं वचनं च लिखत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणि img-1

प्रश्न 7.
निम्नलिखितशब्दानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणि img-2

प्रश्न 8.
निम्नलिखित शब्दानां धातुं प्रत्ययं च विभज्य लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणि img-3

प्रश्न 9.
निम्नलिखितशब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं लिङ्गं च लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणि img-4

पश्न 10.
निम्नलिखितवाक्यानि कथानुसारेण क्रमेण लिखत
(क) शयाने तस्मिन् प्रवाहं विरराम।
(ख) स तत्र संविवेश केदारखण्डे।
(ग) तदभिवादये भवन्तम्।
(घ) गुरुजनानामाज्ञा पालनीया।
(ङ) तस्य शिष्यः आमीत आरुणिरिति
उत्तर:
(ङ) तस्य शिष्यः आसीत् आरुणिरिति।
(घ) गुरुजनानामाज्ञा पालनीया।
(ख) स तत्र संविवेश केदारखण्डे।
(क) शयाने तस्मिन् प्रवाहं विरराम।
(ग) तद्भिवादये भवन्तम्।

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गुरुभक्तः आरुणिः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

‘श्रद्धागन को ही ज्ञान लाभ होता है’ इस कथन के अनुसार श्रद्धालु शिष्य ही गुरु से ज्ञान प्राप्त करते हैं। न केवल बुद्धि अपितु आसक्ति (गुरु के प्रति) भी ज्ञान प्राप्त करने हेतु आवश्यक होता है। उपनिषदों में अनेक उदाहरण श्रद्धा के महत्त्व को सिद्ध करते हैं। आरुणि का चरित्र भी गुरु-भक्ति का एक उदाहरण है।

गुरुभक्तः आरुणिः पाठ का हिन्दी अर्थ

1. शिक्षक-(छात्रान प्रति) श्वः किम् पर्व अस्ति?
रुचिरा-महोदय! श्वः गुरुपूर्णिमा-पर्व अस्ति।
प्रसून-गुरुपूर्णिमा पर्वणि किम् भवति?

शिक्षक :
अस्मिन् पर्वणि गुरुजनानां पूजनं सम्मानञ्च भवति। लोके आरुणिः, एकलव्यः, उपमन्युः इत्यादयः गुरुभक्तिं कृत्वा प्रसिद्धिं गताः।

अक्षत :
गुरुवर्य! आरुणिः कः आसीत?

शिक्षक :
शोभनम्, शृणोतु! आसीत् कश्चिद् ऋषिः धाम्यो नाम आयोदः। तस्य शिष्यः आसीत् आरुणिरिति।

प्रज्ञा :
तेन गुरोः कीदृशी सेवा कृता?

शिक्षक :
शृणोतु, ऋषि धौम्यः आरुणिं पाञ्चाल्यं प्रेषयति स्म-गच्छ, केदारखण्डं बधान इति। उपाध्यायेन आदिष्टः आरुणिः तत्र गतवान् परञ्च केदारखण्डं बर्बु नाशक्नोत्। मयङ्क-तदनन्तरं स किमकरोत्?

शब्दार्थः :
श्वः-कल (आने वाला)-tomorrow; भवति-होता है-happens; अस्मिन्-हमारे-our; सम्मानञ्च-सम्मान-Honour; शोभनम्-सुन्दर-beautiful; शृणोतु-सुनाए-to listen;कीदृशी-किस तरह-How;कृता-किया-did;धाम्मो-भेजा-to sent; केदारखण्ड वधान-आचार्य धौम्य-Acharaya Dhoumya. उपाध्यायेन-शिक्षक के द्वारा-By teacher; नाशक्नोत्-असमर्थ-not capable.

हिन्दी अर्थ :
शिक्षक :
(छात्रों से) आज कौन-सा पर्व है? रुचिरा-महोदय! आज गुरु पूर्णिमा का पर्व है। प्रसून-गुरु पूर्णिमा का पर्व क्या होता है?

शिक्षक :
इस पर्व के दिन गुरु जनों का पूजन एवं सम्मान किया जाता है। संसार में आरुणि एकलव्य उपमन्यु इत्यादि गुरु-भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं।

अक्षत :
गुरुवर! आरुणि कौन थे?

शिक्षक :
बहुत सुंदर, सुनो! कोई धौम्य आयादि नामक ऋषि थे। उन्हीं के शिष्य का नाम आरुणि था।

प्रज्ञा :
उन्होंने गुरु की किस प्रकार सेवा की?

शिक्षक :
सुनो, ऋषि धौम्य आरुणि पाञ्चाल को कहा-जाओ, खेत की मेड़ को बांधो। गुरु के इस तरह के ओदश को सुनकर आरूणि वहाँ गया किन्तु खेत के उस मेड़ को बाँधने में असमर्थ हो गया।

मयंक :
तब उसने क्या किया?

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2. शिक्षक-कष्टमनुभवन् स अचिन्तयदुपायम्-भवतु एवमहं करिष्यामीति। इति विचिन्त्य स तत्केदारखण्डे संविवेश। शयाने तस्मिन् तदुदकप्रवाहं विरराम। ततः परम्। बहुकालानन्तरमुपाध्यायः आयोदो धौम्यः शिष्यानपृच्छत्-“क्व आरुणिः पाञ्चाल्य गत इति।” ते प्रत्यवदन् भगवतैव प्रेषितः। बहुकालगतेऽपि स न प्रत्यागतः।

अक्षत :
तदा धौम्यः आरुणेः अन्वेषणाय प्रयत्नं न कृतवान् किम्?

शिक्षक :
अवश्यमेव, यदा आरुणिः न प्रत्यागच्छत् तदा चिन्तितः सशिष्यैः ऋषिः तत्र गतवान् यत्र स आरुणिः गतः। तत्र तमाह्वनाय उच्चैः शब्दं चकार-भो आरुणि! क्वासि वत्स? क्वासि? एतच्छ्रुत्वा स तस्मात् केदारखण्डात् सहसोत्थाय ऋषिसमीप प्रत्यागच्छत्। प्रत्यवदच्चैनम् अयमस्मि अत्र केदारखण्डे, अहं निस्सरदकमवारणीयं संरोद्धं संविष्टः। भवच्छब्दं श्रुत्वा केदारखण्ड विदार्य समुपस्थितः। तदभिवादये भवन्तम्। आज्ञापयतु भवान् किमिदानीं करवाणीति।

रुचिरा :
स गुरुणां पुरस्कृतः किम्?

शिक्षक :
शृणोतु! तमुपाध्यायोऽब्रबीत्-“यं केदारखण्डमवदार्य त्वमुपस्थितः, तस्मात् त्वमुद्दालक इति नाम्ना भविष्यतीति।” यस्मात् त्वया मद्वचनं अनुष्ठितं तस्मात् श्रेयोऽवाप्स्यसीति! ते सर्वे वेदाः प्रतिभवन्ति, सर्वाणि च शास्त्राणीति । अनेन स गुरुभक्तः आरुणिः उद्दालक नाम्ना प्रसिद्धो विद्वान शास्त्रज्ञो यशस्वी दीर्घायुश्चाजायतः।

प्रसून :
आस्मभिरपि गुरुजनानामाज्ञा पालनीया। शिक्षक-आम्, अवश्यमेव।

शब्दार्थः :
संविवेश-लेट गया-laid; क्लिश्यमानः-दुखीः होते हुए-being distressed; प्रेषितः-भेज दिया गया-has been sent; प्रत्युवाच-उत्तर भेजा-replied; उत्थाय उठकर-raising; प्रत्यागच्छत्-पास लौट आया-came near; उकम्-पानी को-water; संरोद्धम्-रोकने के लिए-for stop; संविष्टः-लेट गया-laid down; विदार्य-तोड़करbreaking; समुपस्थितः-पहुँचा हूँ-reached; आज्ञापयतु-आज्ञा दीजिए-grant me permission; अनुगृहीत-कृपा किया गया-was blessed; अनुष्ठितम्-किया गया-was done;अवाप्स्यसि-प्राप्त करोगे-will get;प्रतिभास्यन्ति -ज्ञात हो जाएँगे-will be known.

हिन्दी अर्थ :
शिक्षक :
कष्ट का अनुभव करते हुए उसने एक उपाय सोचा-ठीक है, इस तरह ही मैं करूँगा-ऐसा सोच वह स्वयं उस खेत की मेड़ पर लेट गया। उसके लेटने से पानी का वह प्रवाह रुक गया। कुछ समय बीतने पर आचार्य आयोद धौम्य के शिष्यों से पूछा-आरुणि पाञ्चाल कहाँ गया है? वे बोले-आपने ही उसे भेजा है। बहुत समय व्यतीत हो जाने पर भी अभी तक नहीं लौटा है।

अक्षत :
तब धौम्य ने आरुणि को खोजने के लिए प्रयत्न नहीं किया?

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शिक्षक :
अवश्य किया। जब आरुणि नहीं लौटा तब चिंतित ऋषि शिष्यों सहित गए जहां आरुणि को भेजा था। वहाँ उन्होंने आरुणि का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारा-हे आरुणि! तुम कहाँ हो, कहाँ हो। अपने को पुकारता सुन वह मेड़ से उठ गुरु के समीप आ गया और बोला-मैं यहाँ हूँ। यहाँ खेत की मेड़ से बहते हुए पानी को रोकने के लिए मैं यहाँ लेट गया था। आपके शब्दों को सुनकर खेत की मेड़ को छोड़कर यहाँ उपस्थित हुआ हूँ। हे श्रीमान! मैं आपका अभिवादन करता हूँ। आप आज्ञा दें-अब मैं क्या करूँ।

रुचिरा :
उसे गुरु ने क्या पुरस्कार दिया?

शिक्षक ;
सुनो, आचार्य उससे बोले-जिस तरह खेत के इस खण्ड को तोड़ कर तुम उपस्थित हुए, इससे तुम्हारा नाम उद्दालक होगा और जिस तरह तुमने मेरे वचन का ज्ञान होगा। बाद में, वही गुरु भक्त आरुणि उद्दालक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह विद्वान शास्त्रों का ज्ञाता एवं यशस्वी व दीर्घायु हुआ।

प्रसून :
हमें भी गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए।

शिक्षक :
हाँ, अवश्य ही।

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