MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 14 वीरबाला (संवादः)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 14 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)-
(क) वीरबालायाः नाम किम्? (वीरबाला का क्या नाम था?)
उत्तर:
चम्पा। (वीरबाला का नाम चम्पा था)

(ख) चम्पायाः पितुः नान किम्? (चम्पा के पिता का नाम क्या था?)
उत्तर:
महाराणा प्रताप। (महाराणाप्रताप)।

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(ग) रोटिकाद्वयम् कुत्र स्थापितम्? (दोनों रोटियाँ कहाँ रखी थीं?)
उत्तर:
पाषाणतले। (पत्थर के नीचे)!

(घ) उद्वेलितः प्रतापः किं कर्तुमुद्यतः अभवत्? (दुःखी प्रताप क्या करने के जिए तैयार हो गए?)
उत्तर:
अकबरस्याधीनता। (अकबर की आधीनता स्वीकार करने के लिए)।

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) अस्माकं देशे काः काः वीरबालाः जाताः? (हमारे देश में कौन-कौन-सी वीरबालाएँ हुईं?)
उत्तर:
अस्माकं देशे चम्पा, कृष्णा, वीरमती, पद्मादयः वीरबालाः जाताः। (हमारे देश में चम्पा, कृष्णा, वीरमती, पद्ममा जैसी वीरबालाएँ हुईं।)

(ख) प्रतापेन का प्रतिज्ञा कृता? (राणा प्रताप ने क्या प्रतिज्ञा की?).
उत्तर:
प्रतापेन प्रतिज्ञा कृताः अकबरस्य अधीनतां न स्वीकृतवान्। (प्रताप ने अकबर की आधीनता न स्वीकरने की प्रतिज्ञा की।)

(ग) चम्पया रोटिकाद्वयम् किमर्थं संरक्षिता? (चम्पा दोनों रोटियों को किसलिए सुरक्षित रखी थी?)
उत्तर:
चम्पया रोटिकाद्वयम् अनुजाय भोजनार्थम् संरक्षिता। (चम्पा दोनों रोटियों को छोटे भाई के भोजन के लिए सुरक्षित रखी थी।)

(घ) राजकुमारः कथं सुप्तवान् आसीत्? (राजकुमार कैसे सो गया?)
उत्तर:
राजकुमारः बुभुक्षितः सुप्तवान् आसीत्। (राजकुमार भूखा सो गया।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) महाराणाप्रतापस्य प्रतिज्ञा का आसीत्? (महाराणाप्रताप की प्रतिज्ञा क्या थी?)
उत्तर:
महाराणाप्रतापस्य प्रतिज्ञा आसीत् अकबरस्य अधीनतां न स्वीकृत। (महाराणा। प्रताप की प्रतिज्ञा थी कि अकबर की अधीनता न स्वीकारूँगा।)

(ख) चम्पा केन कारणेन मूर्छिता जाता? (चम्पा किस कारण से मूर्छित हो गई?)
उत्तर:
चम्पा दौर्बल्यात् कारणेन मूर्च्छिता जाता। (चम्पा दुर्बल होने के कारण मूर्च्छित हो गई।)

(ग) महाराणाप्रतापः किमर्थं चिन्तामग्नः आसीत्? (महाराणाप्रतापः को किस बात की चिंता थी?)
उत्तर:
महाराणाप्रतापः अतिथिः भोजनार्थम् चिन्तामग्नः आसीत्। (महाराणाप्रताप को अतिथि के लिए भोजन की व्यवस्था की चिंता थी।)

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प्रश्न 4.
यथायोग्यं योजयत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला img-1

प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्ष कोष्ठके ‘न’ इति लिखत
(क) अरावलीपर्वतस्य उपत्यकायां महाराणाप्रतापः एकाकी आसीत्। (आम्)
(ख) अतिथिः महाराणागृहात् अनश्नन् गतवान्।
(ग) चम्पा स्वभागस्य रोटिकां स्वानुजं ददाति स्म।
(घ) महाराणाप्रतापः आधीनताविषये पत्रं लिखितवान्।
उत्तर:
(क) (आम्)
(ख) (न)
(ग) (आम्)
(घ) (न)

प्रश्न 6.
उचितविकल्पेन वाक्यानि पूरयत
(क) अरावलीपर्वतस्य उपत्यकायाम् कष्टमनुभूतम्। (उपत्यकायाम्/गुहायाम्)
(ख) पाषाणतले रोटिकाद्वयम् संरक्षिता आसीत्। (रोटिका/रोटिकाद्वयम्)
(ग) चम्पामूर्छिता जाता अनश्नन्। (अश्नन्/अनश्नन्)
(घ) कष्टान् अवलोक्य महाराणाप्रतापः उद्वेलितः जातः। (जाता/जातः)
(ङ) राजकुमारः बुभुक्षया पीडित सुप्तवान्। (बुभुक्षया/पिपासया)

प्रश्न 7.
कोष्टकात् चित्वा वाक्यानि रचयत्
यथा- घटना – एक घटना महाराणाप्रताप कालीना आसीत्
(क) चम्पा – एषा महाराणाप्रतापस्य पुत्री आसीत्।
(ख) राजकुमारः – एषः महाराणाप्रतापस्य पुत्रः आसीत।
(ग) शपथः – महाराणाप्रतापः शपथः गृहीतवान्।
(घ) पत्रम् – महाराणाप्रतापः पत्रम् अलिखत्।
(ङ) वीरः – महाराणाप्रतापः वीरः च आसीत्।

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प्रश्न 8.
अधोलिखितशब्दानां धातुं प्रत्ययं च पृथक् कुरुत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला img-2

प्रश्न 9.
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला img-3

प्रश्न 10:
निम्नलिखत क्रियापदानां धातुं लकारं पुरुषं वचनञ्च लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला img-4

प्रश्न 11.
निम्ललिखित अव्यायानां वाक्यप्रयोगं कुरुत-
उदाहरणं यथा-
कदा – सः कदा पठति? तदा-यदा अहं आगमिष्यामि तदा त्वम् गमिष्यसि
अद्य – अद्य सोमवासरः अस्ति। ह्यः-ह्यः दीपावली अस्ति।।
कृते – संस्कृतस्य कृते अहं जीवनम् ददामि।
एव – अहं दुग्धं न पिवामि, अहं चायमेव पिवामि।
च – मोहितः राशिन्तश्च विद्यालयं गच्छति।

वीरबाला पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

मेवाड़ के राजा उदयसिंह के पुत्र महाराणा प्रताप पिता के समान विशाल, वीर व पराक्रमी थे। उसने प्रतिज्ञा की कि जब तक मैं अकबर को पराजित नहीं करूँगा और चित्तौड़ के दुर्ग को नहीं जीत लूँगा तब तक पत्ते में भोजन करूँगा तथा जमीन पर शयन करूँगा परिवार पर आए संकट से विचलित होकर उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा बदलने की इच्छा की किन्तु उनकी पुत्री चम्पा के जीवन का उत्सर्ग करने के बाद महाराणा प्रताप अपनी पूर्व प्रतिज्ञा पर दृढ़ होकर मेवाड़ के गौरव की रक्षा के लिए पुनः प्रतिज्ञा की। प्रस्तुत पाठ में भारतीय बालाओं की गौरव गाथा है

वीरबाला पाठ का हिन्दी अर्थ

1. शिक्षक-भो छात्राः अस्माकं भारतदेशे बहव्यः वीरबालाः चम्पा, कृष्णा, वीरमती, पद्मा दयः सञ्जाताः।
आनन्द :
आचार्य! एतासु केयम् चम्पा? कृपया तद्विषये कथयतु। शिक्षक-आम्! शृणोतु, किं भवन्तः महाराणाप्रताप विषये जानन्ति?

वेदान्त :
किं स एव महाराणाप्रतापः यः भारतवर्षभूषणः स्वदेशस्वातन्त्र्याभिमानी च।

शिक्षक :
आम् तस्यैव पुत्री आसीत् चम्पा।

आरती :
तस्याः विषये विस्तारेण न जानीमः।

शिक्षक :
शृण्वन्तु। महाराणाप्रतापः अकबरस्य अधीनतां न स्वीकृतवान्। अनेन कारणेन अरावलीपर्वतस्य उपत्यकाय गुहासु वनेषु च सपरिवारंपरिभ्रमन् अत्यधिकं कष्टम् अन्वभवत्।

भरत :
तत्र ते कुत्र स्वपन्ति, स्म किञ्च खादन्ति स्म?

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शब्दार्थ :
बहव्य-बहुत-सी-Many; आदय-आदि-and; सजाता-हुए-Happen; केयम्-यह कौन-who is that; तद्विषये-उस विषय में-in that subjects;जानन्ति-जानते हैं-knows; किं-कौन-who; भवन्त-आप सब-every body; स-वह-He, Smile, it; एव-भी-also; भूषण-भूषण-Bhushan; तस्यैव-उसका ही-His; आसीत्-था-was; तस्याः -उसके-His; शृण्वन्तु-सुनिए-listen; जानीमः-जानते हैं-knows; अनेन-इस तरह-This type; अन्वभवत्-अनुभव किया-felt; स्वपन्ति-सोते थे-were sleeping, स्म-थे-were.

हिन्दी अर्थ :
शिक्षक-हे विद्यार्थियो! हमारे देश भारत में अनेक वीर बालाएँ-कृष्णा, चंपा, वीरमती, पद्मा आदि हुई हैं।

आनन्द :
गुरुजी! इनमें चम्पा कौन थी? कृपया उसके विषय में बताएँ।

शिक्षक :
ठीक है, सुनो। क्या आप लोग महाराणा प्रताप के विषय में जानते हैं?

वेदान्त :
क्या वही महाराणा प्रताप जो भारतवर्ष के गौरव तथा अपने देश की स्वतंत्रताभिमानी थे?

शिक्षक :
हाँ, उन्हीं की पुत्री चंपा थी।

आरती :
उसके विषय में हम विस्तारपूर्वक नहीं जानते।

शिक्षक :
सुनो! महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता नहीं स्वीकार की जिसके कारण उन्होंने अरावली पर्वत की घाटियों, गुफाओं, उपत्यका में परिवार सहित गुप्त भ्रमण करते हुए अत्यधिक कष्ट पूर्ण जीवन बिताया।

भरत :
(उन उपत्यकाओं में) वे कहाँ सोते थे और क्या खाते थे।

2. शिक्षक-अहोरात्रं पदातिरेव ते चलन्ति स्म भूमौ शिलायां वा स्वपन्ति स्म। बहुधा उपवासं कृत्वा यदा कदा। बदरीफलानि वा तृणरोटिकांश्च खादन्ति स्म। नैकवारं ईदृशः समयः आगतः यदा तृणरोटिकाम् अपि त्यक्त्वा पलायनार्थं शत्रुभि विवशीकृताः। तस्मिन् काले प्रतापस्य पुत्री चम्पा एकादशवर्षीया पुत्रश्च चतुर्वर्षीयः आस्ताम्।

शालिनी :
आचार्य। यदि तयोः विषये कापि अस्ति तर्हि नूनं कथयतु।

शिक्षक :
एकदा राजकुमारः चम्पा च नदीतटे क्रीडतः आस्ताम्। तदैव राजकुमारः क्षुधापीडितः अभवत्। सः रोटिकां याचमानः रोदितवान!। सः न जानाति स्म यत् रोटिकायाः ग्रासमेकमपि नास्ति। चम्पा तं कथां श्रावयित्वा विनोदयामास। राजकुमारः बुभुक्षितः एव सुप्तवान्।

प्रियङ्का :
(सोत्साहेन पृच्छति) तदा किम् अभवत्?

शिक्षकः :
शृणवन्तु! सुप्तं अनुजं अङ्के नीत्वा चम्पा शयनाय मातुः समीपे आगत्य पितरं चिन्तामग्नम् अपश्यत् अपृच्छच्च भवान् किमर्थं चिन्तातुरोऽस्ति? तदा तेनोक्तम्-सुते। अस्माकं गृहे एकः अतिथिः आगतः, किं चित्तौड़महाराणागृहात् सः अनश्नन् एव गच्छेत् तदा चम्पा अवदत पितः! भवान् मा चिन्तयतु। ह्यः भवता दत्तम् रोटिकाद्वयं सुरक्षितम् अस्ति! मे बुभुक्षा नास्ति। भवान् रोटिकाद्वयम् तस्मै ददातु।

शब्दार्थ :
अहोरात्रं-रात्रि में-on night; चलन्ति-चलते हैं-walks; स्म-थे-were; स्वपन्ति-सोते थे-were slept; बहुधा-बहुत अधिक-very much; कृत्वा-करके-do; वदरीफलानि-बेर का फल-fruit of Bare; तृणरोटिकांश्च-और घास की रोटियाँ-and grass’s chapati; त्यक्त्वा -छोड़कर-After left; पलायनार्थ-भागने के लिए-for running; तस्मिन्-उस-That; प्रतापस्य-प्रताप के-famous; तयो-वे दोनों-these two; कापि-कोई भी-Anybody; वार्ता-वार्ता-Talking, conversation; नूनं-निश्चित ही-certainly;, कथयतु-कहिए-Say; च-और-and; तदेव-उसके अनुसार-According to him;अभवत्-हुआ-Happend; रोटिकां-रोटी को-for chapati; यत्-जो-who; तं-उसको-him; श्रावयित्वा-सुनकर-Listening; एव-भी-Also; मुप्तवान्-सो गया-he slept; नीत्वा-ले जाकर-for going; आगत्य-आकर-for coming; पितरं-माता-पिता-Mother and father; देखा-Seeing; अपश्यत्-देखा-seeing; भवान्-आप-you; तेनोक्तय-उसके कहे अनुसार-his according to saying; आगत-आया-came; गच्छेत्-जाने के लिए-for going; ह्य-बीता हुआ कल-Past; दत्तम्-देने के लिए-for giving; मे-मुझे-me: तस्मै-उसे-His; ददातु-दो-give.

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हिन्दी अर्थ :
शिक्षक-वे रात्रि में चलते थे, भूमि एवं शिलाओं पर सोते थे। अधिकतर उपवास करते थे। कभी-कभी बेर के फल एवं तृण आदि की रोटियाँ खाते थे। एक बार ऐसा समय आ गया जब शत्रुओं ने घास की रोटी खाता छोड़ भागने पर विवश कर दिया। उस समय प्रताप की पुत्री चम्पा ग्यारह वर्ष एवं बालक 4 वर्ष का था।

शालिनी :
गुरु जी! यदि उन दोनों के विषय में कोई कथा हो तो कहें।

शिक्षक :
एक बार राजकुमार एवं चम्पा नदी के तट पर क्रीड़ा कर रहे थे तभी राजकुमार भूख से पीड़ित हो गए और वह रोटियों की माँग करते हुए रोने लगे। उन्हें यह पता नहीं था कि रोटियों के लिए घास नहीं है। चम्पा ने उसे कहानियाँ सुनाकर मन बहलाया। राजकुमार भूखा-प्यासा ही सो गया।

प्रियंका :
(उत्साहपूर्वक) तब क्या हुआ?

शिक्षक :
सुनो! फिर चम्पा सोते हुए अनुज को गोद में लेकर माँ के पास आई तो पिता को चिंता में निमग्न देखा और पूछा-आप क्यों चिंतित हैं? उन्होंने (प्रताप) ने कहा-बेटी! हमारे घर में एक अतिथि आया है। क्या चित्तौड़गढ़ के महाराजा के घर से वह भूखा ही जाएगा? चम्पा बोली-पिताजी! आप चिंतित न हों। आपने कल जो दो रोटी मुझे दी थी, वे अब भी मसुरक्षित रखी हुई हैं। आप दोनों रोटी मेहमान को खिलाएँ। मुझे भूख नहीं है।

3. सर्वेश-ततः किम् अभवत्?

शिक्षक :
तदनन्तरं चम्पा पाषाणतले संरक्षितां तृणरोटिकाम् आनीत्य अतिथये ददाति अतिथिः उपभुज्य गतवान्। परन्तु स्वपरिवार प्रति आगतान् कष्टान् अवलोक्य उद्वेलितः महाराणा स्वप्रतिज्ञां परित्यज्य अकबरस्याधीनता विषये पत्रमलिखत्।

प्रभा :
तदनन्तरं किं जातम?

शिक्षक :
तस्यै बालायै नैक दिनान्तराले याः तृणरोटिकाः मिलन्ति स्म ताः अपि अनुजं भोजयति स्म। अनेन कारणेन क्षुत्क्षामा वीरबाला चम्पा अति दुर्बलतां प्राप्ता। एकदा दौर्बल्यात् सा मूर्छिता जाता। तदा महाराणाप्रतापः ताम् अङ्के उत्थाय रुदन्नवदत्-पुत्रि! इतोप्यधिकम! दुःखम् त्वाम् न दास्यामि। मया अकबरस्य कृते पत्रं लिखितम्। अर्धचेतनायाम् इदम् पितुर्वाक्यं श्रुत्वैव सा पितरमवदत् तात। भवान् किं कथयति, अस्मभ्यं जीवनरक्षणाय दासतां स्वीकरिष्यति भवान्। किं वयम् कदापि न मरिष्यामः? देशस्य अवमानं मा करोतु! देशस्य कुलस्य च गौरवरक्षार्थं लक्षवारमपि यदि वयम् प्राणानुत्सृजामः तदपि न्यूनमस्ति।

अतः मम आग्रहः एषः यत् भवान् कदापि अकबरस्य अधीनतां मा स्वीकरोतु। वीरबाला चम्पा एवं वदन्ती एव महाराणाङ्के चिरनिद्रां गता। ततः महाराणाप्रतापः पराधीनतायाः विचारम् अत्यजत्। इत्थं चम्पया स्वजीवनोत्सर्गेण न केवलं महाराणाप्रतापस्य विचारपरिवर्तनम् : अपितु मेवाड़गौरवस्य रक्षणमपि विहतम्।

शब्दार्थ :
अभवत्-हुआ-happen; तदनन्तरं-इसके बाद-After this; आनीत्यलाया-getting; ददाति-देता है-gives; गतवान्-गया-went; स्वपरिवारं-अपने परिवार को-for own family; आगतान्-आया-came; उद्वेलित-बहुत दुःखी-very sad; स्वप्रतिज्ञां-अपनी प्रतिज्ञा-our promise; तदनन्तरं-इसके बाद-After this; मिलन्ति-मिलते हैं-meet; स्म-थे-was; ता-उसके-his; अपि-भी-also; अनेन-इस कारण-That reason; अङ्के-गोद में-In lap; त्वाम्-तुम में-In you;मया-मेरे-my; कृते-के लिए-for; अर्धचेतनयाम्-अर्ध चेतन स्थिति में-half unconscious situation; श्रुत्वैव-सुनकर भी-to listening; भवान्-आप-you; कथयति-कहें-say; अस्मभ्यं-हमारे-our; दासतां-दासता-Slavery; वयम्-हम सब-we all; मरिष्याम-मरेंगे-will die; अवमान-अपमान-Defame; न्यूनमस्ति-थोड़ा-Little; मम-मेरा-my; आग्रह-निवेदन-Application; अधीनता-अधीनता-Under, Ruled; स्वीकरोतु-स्वीकार करो-to accept; अत्यजत्-छोड़ा-left; इत्थं-इस तरह-That type; रक्षणमपि-रक्षा में भी-In defence also; निहितम्-निहित-Constant.

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हिन्दी अर्थ :
सर्वेश-तब क्या हुआ?

शिक्षक :
तब चम्पा पत्थर के नीचे सुरक्षित रखी तृण की रोटियां निकाल कर अतिथि को प्रदान कर दी। अतिथि उसका उपभोग कर चले गए। परन्तु अपने परिवार पर आए कष्ट को देखकर राजा प्रताप का मन विचलित हो उठा और उन्होंने प्रतिज्ञा को छोड़कर अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए पत्र लिखा।

प्रभा :
फिर क्या हुआ?

शिक्षक :
उनके बच्चों को प्रतिदिन रोटी न मिलकर एक दिन के अंतराल पर रोटी खाने को मिलती थी। उसे भी उसका छोटा भाई खा जाता था इसलिए वह लड़की चम्पा बहुत दुबली हो गई। एक बार दुर्बलता के कारण वह बेहोश हो गई। तब महाराणा प्रताप उसे गोद में उठा रोते हुए बोले-पुत्री! अब मैं इससे अधिक कष्ट तुम्हें नहीं दूंगा, मैं अकबर को पत्र लिखूगा। अर्द्ध मूर्छितावस्था में इस तरह (हताश) पिता के वाक्यों को सुनकर बोली-पिताजी! यह आप क्या कह रहे हैं? हमारे जीवन की रक्षा के लिए आप गुलामी स्वीकार करेंगे? क्या हम कभी मरेंगे नहीं? पिताजी! देश का अपमान न करें देश और कुल के मान की रक्षा के लिए यदि हमें लाखों बार प्राण देने पड़ें तो भी वह थोड़ा है।

मेरी प्रार्थना है कि आप इस तरह कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार न करें…इस प्रकार कहती हुई वह वीर बाला चम्पा महाराणा प्रताप की गोद में ही प्राण त्याग दिए। तब महाराणा ने अधीनता स्वीकार करने की बात अपने मन से निकाल दी। इस प्रकार चम्पा के प्राणोत्सर्ग से न केवल महाराणा के विचारों में परिवर्तन हुआ, बल्कि मेवाड़ के गौरव की रक्षा भी हुई।

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