MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 6 शौर्य और देशप्रेम

शौर्य और देशप्रेम अभ्यास

बोध प्रश्न

शौर्य और देशप्रेम अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हिन्दुस्तान हमारा है’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
‘हिन्दुस्तान हमारा है’ से कवि का आशय यह है कि यह देश हमारा है और इस देश की आन-बान शान से हमें प्रेम है।

प्रश्न 2.
हमारा अतिशय मान किसने किया है?
उत्तर:
इतिहास और अतीत ने हमारा अतिशय मान किया है।

प्रश्न 3.
निशीथ का दिया क्या ला रहा है?
उत्तर:
निशीथ का दिया सबेरा ला रहा है।

प्रश्न 4.
स्वतंत्रता का निशीथ का दिया’ क्यों कहा है?
उत्तर:
स्वतंत्रता को निशीथ का दिया इसलिए कहा है कि जिस प्रकार दिया रात्रि के अंधकार को नष्ट कर प्रकाश बिखेर देता है उसी तरह स्वतंत्रता से भी हमारे दुःख एवं कष्ट मिट जायेंगे और हम प्रगति करते चले जायेंगे।

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शौर्य और देशप्रेम लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है’ का संकेत किस ओर है?
उत्तर:
‘यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है’ से कवि का संकेत है कि हमें स्वतंत्रता के दीपक की हर कीमत पर रक्षा करनी है। चाहे कितने भी आँधी-तूफान, युद्ध-शान्ति, जय-पराजय आकर खड़ी हो जायें तब भी हमारा स्वतंत्रता का दीपक बुझ न पाये और वह जनमानस को सन्मार्ग दिखाता रहे।

प्रश्न 2.
कवि स्वतंत्रता का दीपक किन परिस्थितियों में जलाए रखने की प्रेरणा देता है?
उत्तर:
कवि स्वतंत्रता का दीपक प्रत्येक परिस्थिति में जलाए रखने की प्रेरणा देता है। चाहे घनघोर अँधेरी रात हो, चाहे घनघोर वर्षा हो रही हो और बिजलियाँ कड़क रही हों। शत्रु पक्ष चाहे कितना ही प्रबल क्यों न हो, हमें हर स्थिति में उनसे मुकाबला करना है और इस स्वतंत्रता के दीपक को जलाए रखना है।

प्रश्न 3.
‘हिन्दुस्तान हमारा है’ एवं ‘स्वतंत्रता का दीपक’ कविताओं में कौन-सा रस है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
‘हिन्दुस्तान हमारा है’ एवं ‘स्वतंत्रता का दीपक’ कविताओं में वीर रस है।
‘हिन्दुस्तान हमारा है’ कविता में वीर रस का उदाहरण यह है-
गरज उठे चालीस कोटि-जन, सुन ये वचन उछाह भरे,
काँप उठे प्रतिपक्षी जनगण, उनके अंतस्तल सिहरे;
आज नये युग के नयनों से, ज्वलित अग्निपुंज झरे,
कौन सामने आएगा? यह देश महान हमारा है।

‘स्वतंत्रता का दीपक’ कविता में वीर रस का उदाहरण यह है-
घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।

अथवा
लड़ रहा स्वदेश हो, शान्ति का न लेश हो,
क्षुद्र जीत-हार पर यह दिया बुझे नहीं।

शौर्य और देशप्रेम दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हिन्दुस्तान हमारा है’ कविता में भारतीय इतिहास का चित्रण है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘हिन्दुस्तान हमारा है’ कविता में कवि ने भारतीय इतिहास का चित्रण किया है। हमारा अतीत हमें बताता है कि हमने समय-समय पर अनेकानेक क्रान्तियों को जन्म दिया है और उन क्रान्तियों के द्वारा हमने नये इतिहास को जन्म दिया है तथा इतिहास ने भी हमारा सदैव मान रखा है। हमारा अतीत का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है, हमने बड़े-से-बड़े शत्रु को भी युद्धक्षेत्र में मुँह की खिलाई है और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की है।

प्रश्न 2.
भारत की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए कवि का क्या संदेश है?
उत्तर:
भारत की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण करने के लिए कवि ने सभी देशवासियों से देश के लिए सदैव बलिदान देने के लिए तैयार रहने को कहा है। साथ ही यह प्रतिज्ञा भी कराई है कि हमें खुद तो स्वतंत्र रहना ही है चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यों न हों साथ-ही-साथ हमें सम्पूर्ण मानवता को भी बुराइयों से मुक्ति दिलाने का प्रयास करने को कहा गया है।

प्रश्न 3.
“स्वतंत्रता शहीदों के पुण्य प्राण-दान का प्रतिफल है” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमारा भारत देश अत्यन्त पुरातन है। यह देश विश्व में अपनी वीरता, साहस एवं बलिदान के लिए प्रसिद्ध है। हमने स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अनेक क्रान्तियाँ की हैं। हमारे मार्ग में चाहे कितनी भी विपत्तियाँ आई हों, पर हमने उन सबका पूरी बहादुरी के साथ सामना कर उन पर विजय पाई है। देश की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए देश के वीर सपूतों ने सदैव दुश्मन के दाँत खट्टे किए हैं।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों की प्रसंग सहित व्याख्या लिखिए
(अ) विंध्य सतपुड़ा ………. हमारा है।
उत्तर:
कविवर नवीन जी कहते हैं कि हमारे इस देश में विंध्याचल, सतपुड़ा, नागा, खसिया नाम के दो दुर्गम घाट हैं। इस देश के पूरब एवं पश्चिम के ये दो भीमकाय दरवाजे हैं। सदैव अटल रूप में खड़ा रहने वाला हिमालय पर्वत है। इस पर्वत का शिखर सबसे ऊँचा है। ऐसा पर्वतराज हिमालय हमारे देश में है जो युगों-युगों से हमारी विजय का प्रतीक बन गया है। यह भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

(आ) तीन चार फूल हैं …………. झकोर दे।
उत्तर:
कविवर नेपाली कहते हैं कि चाहे हमारे पास तीन-चार ही फूल क्यों न हों अर्थात् हमारी सुविधाएँ चाहे जितनी सीमित हों और चारों ओर धूल बिखरी हो अर्थात् अभाव इकट्ठे हो रहे हैं। चाहे हमारे चारों ओर बाँस हों या बबूल हों या घास की मेड़ें उग रही हों, चाहे वायु हमें हिलोरें देकर हर्षित करती रहे, अथवा वह आँधी बनकर हमें झकझोर डाले। चाहे संघर्ष करते-करते हमारी कब्र बन जाये अथवा कोई मजार बन जाये तो भी आजादी का यह दीप बुझे नहीं क्योंकि यह किसी बलिदानी के पुण्यों का प्राणदान है।

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शौर्य और देशप्रेम काव्य-सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) शक्ति का दिया ………….. दिया हुआ।
उत्तर:
भाव-सौन्दर्य-इस पंक्ति में कवि का आशय यह है कि यह जो स्वतंत्रता का दीपक है. वह शक्ति प्रदान करने वाला है और यह पूर्ण भाव से शक्ति बनकर ही हमारे सम्मुख आया है।

(आ) यह अतीत ………… प्रार्थना।
उत्तर:
भाव-सौन्दर्य-कवि का कथन है कि स्वतंत्रता का यह दीपक अतीत की कल्पनाओं से भरा हुआ है तथा यह विनम्र प्रार्थना के रूप में हमारे सामने है।

(इ) यह किसी ………….. प्राण-दान है।
उत्तर:
भाव-सौन्दर्य-कवि का कथन है कि यह स्वतंत्रता का दीपक किसी बलिदानी शहीद द्वारा किये गये पुण्यदान का प्रतीक है। कहने का भाव यह है कि बलिदानी वीरों ने अपना बलिदान देकर ही इसकी रक्षा की है।

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता का दीपक कविता में निम्नलिखित शब्द किस ओर संकेत करते हैं? इन शब्दों को अपने वाक्यों में प्रयोग भी कीजिए
निशीथ, विहाने, बिजलियाँ, आँधियाँ।
उत्तर:
(i) निशीथ-घनघोर काली रात। :
वाक्य प्रयोग-आज हमारे देश की स्वतंत्रता पर सरहदों से निशीथ घिरती आ रही है।
(ii) विहान-नया सवेरा :
वाक्य प्रयोग-यदि हम सभी देशवासी प्रतिज्ञा कर लें कि हमें अपने देश को उन्नत बनाना है तो निश्चय ही हमारे देश में नया विहान आ जाएगा।
(iii) बिजलियाँ और आँधियाँ :
विभिन्न दिशाओं से आने वाले संकटों की ओर इशारा करती हैं।

वाक्य प्रयोग :
चाहे हमारे स्वतंत्रता के मार्ग में कितनी भी बिजलियाँ कड़कें अथवा तेज आँधियाँ आएँ पर हमारी एकजुटता के सामने वे हमारा बाल भी नहीं बिगाड़ सकतीं।

प्रश्न 3.
‘स्वतंत्रता का दीपक में स्वतंत्रता’ उपमेय और ‘दीपक’ उपमान है। इस स्थिति में यहाँ कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
रूपक अलंकार।

प्रश्न 4.
‘स्वतंत्रता का दीपक’ में दिया गया शब्द का एक ही पंक्ति में दो बार प्रयोग हुआ है और उसके अलग अर्थ हैं अतः उस पंक्ति को छाँटकर लिखिए तथा उसमें प्रयुक्त अलंकार का नाम भी लिखिए।
उत्तर:
शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ। इस पंक्ति में शक्ति दो बार आया है और दोनों का अलग-अलग अर्थ है। अतः यहाँ यमक अलंकार है।

प्रश्न 5.
‘स्वतंत्रता का दीपक’ एवं ‘हिन्दुस्तान हमारा है’ कविता में कौन-सा रस है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
इसके उत्तर के लिए लघु उत्तरीय’ प्रश्नों में से प्रश्न 3 का उत्तर देखें।

हिन्दुस्तान हमारा है! संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

कोटि-कोटि कंठों से निकली आज यही स्वर धारा है
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।
जिस दिन सबसे पहले जागे, नवल सृजन के स्वप्न घने,
जिस दिन देश-काल के दो-दो, विस्तृत विमल वितान तने,
जिस क्षण नभ में तारे छिटके, जिस दिन सूरज-चाँद बने,
तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है ! ॥1॥

कठिन शब्दार्थ :
कोटि-कोटि = करोड़ों; कंठों = गलों से; नवसृजन = नये निर्माण; स्वप्न घने = अनेक कल्पनाएँ; विस्तृत = विशाल; विमल = स्वच्छ; वितान = तम्बू; छिटके = बिखरे।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हिन्दुस्तान हमारा है शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ हैं।

प्रसंग :
कवि ने इस अंश में बताया है कि जिस समय से प्रकृति में चेतना का संचार हुआ तभी से हमारा देश गौरवशाली बना हुआ है।

व्याख्या :
कविवर बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ कहते हैं कि करोड़ों देशवासियों के कंठ से यही स्वर निकल रहा है कि यह भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

जिस दिन सबसे पहले नवीन निर्माण की अनेक कल्पनाओं को साकार करने की प्रबल इच्छा जाग्रत हुई, जिस दिन देश और काल के दो-दो विशाल एवं निर्मल तम्बू बनकर तैयार हुए, जिस दिन नभ में तारागणों का समूह बिखरा हुआ दिखाई दिया, जिस दिन सूर्य एवं चन्द्रमा का निर्माण हुआ, तभी से यह देश हमारा है। इस पर हमें अभिमान है। यह भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. कवि ने अनादिकाल से ही भारत की महत्ता का बखान किया है।
  2. रूपक, अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार
  3. भाषा सहज एवं सरल खड़ी बोली।

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जब कि घटाओं ने सीखा था सबसे पहले घहराना,
पहले पहल प्रभंजन ने जब सीखा था कुछ हहराना,
जब कि जलधि सब सीख रहे थे सबसे पहले लहराना,
उसी अनादि-आदि क्षण से यह जन्म-स्थान हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है! ॥2॥

कठिन शब्दार्थ :
घहराना = इकट्ठा होना; प्रभंजन = आँधी; हहराना = ध्वनि के साथ बहना; जलधि = समुद्र।

सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
कविवर बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ कहते हैं कि जब से काली-काली घटाओं ने आकाश में घने रूप में एकत्रित होना सीखा, आँधी-तूफान ने आकाश में ध्वनि करते हुए बहना सीखा, समुद्र में सबसे पहले लहरों ने हिलोर मारना सीखा था, तभी उसी अनादिकाल के आरंभ में यह हमारा देश जन्मस्थल है। यह भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. कवि ने अनादिकाल से ही भारतवर्ष के अस्तित्व को माना है।
  2. रूपक, अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार
  3. भाषा सहज एवं सरल खड़ी बोली।

जिस क्षण से जड़ उजकण गतिमय होकर जंगम कहलाए,
जब विहँसी थी प्रथम उषा वह, जब कि कमल-दल मुस्काए,
जब मिट्टी में चेतन चमका, प्राणों के झोंके आए,
है तब से यह देश हमारा, यह मन-प्राण हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है! ॥3॥

कठिन शब्दार्थ :
उजकण = चमकते हुए; गतिमय = गतिशील; जंगम = प्राणी; विहँसी = हँसी थी; उषा = प्रात:कालीन सूर्य की लालिमा; कमल-दल = कमल की पंखुड़ियाँ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि की मान्यता है कि जिस क्षण से सृष्टि में प्राणों का संचार हुआ तभी से यह देश हमारा है।

व्याख्या :
कविवर नवीन का कथन है कि जिस क्षण से जड़ चमकते हुए कण गतिशील बनकर प्राणों का संचार करने वाले कहलाए, जिस समय प्रथम उषा हँसी थी, जिस समय कमल दल मुस्कराए थे, जब मिट्टी में चेतन चमका था तथा प्राणों के झोंके आए थे तभी से यह देश हमारा है, यह हमें मन और प्राणों से भी प्यारा है। भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. कवि ने सृष्टि के आरंभ से ही भारत की सत्ता मानी है।
  2. रूपक, अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार।
  3. भावानुकूल सरल भाषा।

यहाँ प्रथम मानव ने खोले, निदियारे लोचन अपने!
इसी नभ तले उसने देखे, शत-शत नवल सृजन-सपने!
यहाँ उठे ‘स्वाहा’ के स्वर, औ यहाँ ‘स्वधा’ के मंत्र बने!
ऐसा प्यारा देश पुरातन, ज्ञान-निधान हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है! ॥4॥

कठिन शब्दार्थ :
निंदियारे = नींद से भरे हुए; लोचन – नेत्र; नभ तले = आकाश के नीचे; शत-शत = सैकड़ों; नवल = नवीन; सृजन सपने = नये-नये सपनों का निर्माण; स्वाहा के स्वर = सर्वस्व त्याग की भावना; स्वधा = मंगलकारी; पुरातन = प्राचीन; ज्ञान-विधान = ज्ञान का भण्डार।

सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
कविवर नवीन कहते हैं कि यहाँ मनुष्यों ने सर्वप्रथम अपनी नींद से भरे हुए नेत्र खोले थे। भाव यह है कि इस देश में सबसे पहले ज्ञान का प्रकाश प्रकट हुआ था। उस समय इसने इसी आकाश के नीचे नवीन सृष्टि के निर्माण के सपने संजोये थे। यहीं पर सर्वप्रथम स्वाहा (सर्वस्व त्याग की भावना) शब्द उच्चरित हुआ तथा यहीं पर स्वधा के मंत्र बने थे। ऐसा हमारा प्राचीनतम देश ज्ञान का अक्षय भंडार है। यह देश भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. कवि ने स्वाहा और स्वधा के प्रयोग द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि वैदिक यज्ञों एवं मंत्रों का जन्मदाता यही देश है।
  2. रूपक, अनुप्रास एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  3. भाषा भावानुकूल एवं सरल है।

सतलज, व्यास, चिनाब, वितस्ता, रावी, सिंधु, तरंगवती,
यह गंगा माता, यह यमुना गहर, लहर-रस रंगवती,
ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी, वत्सलता-उत्संग-सी,
इनसे प्लावित देश हमारा, यह रसखान हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है!! ॥5॥

कठिन शब्दार्थ :
तरंगवती = लहरों वाली; गहर = गहरी; लहर-रस = लहरों की सुन्दरता से; रंगवती = क्रीड़ा करती हुई; वत्सलता = वात्सल्य प्रेम से; उत्संग = लहरें लेती हुई; प्लावित = पानी में डूबा हुआ; रसखान = रस की खान (खजाना)।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि का कथन है कि इस भारतवर्ष में असंख्य नदियाँ बहती हैं और वे ही इस देश को रससिक्त किए रहती हैं।

व्याख्या :
कविवर नवीन जी कहते हैं कि हमारे देश में सतलज, व्यास, चिनाब, वितस्ता, रावी एवं सिंधु नदियाँ लहरें लेती हुई प्रवाहित होती हैं। माँ गंगा, गहरी यमुना नदी अपनी लहरों के रस से आनन्दित होती हुई एवं क्रीड़ा करती हुई बहती हैं। ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी आदि नदियाँ अपने हृदय में वात्सल्य प्रेम के साथ तथा उत्साह के साथ बहती रहती हैं। इन्हीं नदियों से हमारा देश रस अर्थात् जल से तृप्त बना रहता है। यह भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. कवि ने नदियों में वात्सल्य भाव दर्शाकर उन्हें माता का रूप प्रदान किया है।
  2. अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार।
  3. भावानुकूल सहज एवं सरल खड़ी बोली।

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विध्य, सतपुड़ा, नागा, खसिया, ये दो औघट घाट महा,
भारत के पूरब-पश्चिम के, यह दो भीम कपाट महा!
तुंग शिखर, चिर अटल हिमालय; है पर्वत-सम्राट यहाँ!
यह गिरिवर बन गया युगों से विजय निसान हमारा है।
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है! ॥6॥

कठिन शब्दार्थ :
औघट = दुर्गम; भीम = विशाल, भयंकर; कपाट = दरवाजे; तुंग = ऊँचा; शिखर = चोटी; चिर अटल = सदैव अडिग (स्थिर)।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।।

प्रसंग :
इस छन्द में कवि ने भारत में विद्यमान पर्वत श्रेणियों का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कविवर नवीन जी कहते हैं कि हमारे इस देश में विंध्याचल, सतपुड़ा, नागा, खसिया नाम के दो दुर्गम घाट हैं। इस देश के पूरब एवं पश्चिम के ये दो भीमकाय दरवाजे हैं। सदैव अटल रूप में खड़ा रहने वाला हिमालय पर्वत है। इस पर्वत का शिखर सबसे ऊँचा है। ऐसा पर्वतराज हिमालय हमारे देश में है जो युगों-युगों से हमारी विजय का प्रतीक बन गया है। यह भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. कवि ने प्रकृति प्रदत्त उच्च पर्वत श्रृंखलाओं का वर्णन किया है।
  2. अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार।
  3. भावानुकूल सहज एवं सरल खड़ी बोली का प्रयोग।

क्या गणना है, कितनी लम्बी हम सबकीइतिहासलड़ी?
हमें गर्व है कि बहुत ही गहरे अपनी नींव पड़ी।
हमने बहुत बार सिरजी हैं कई क्रान्तियाँ बड़ी-बड़ी,
इतिहासों ने किया सदा ही अतिशय मान हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है! ॥7॥

कठिन शब्दार्थ :
इतिहास लड़ी = इतिहास बताने वाली रेखाएँ; गर्व = अभिमान; सिरजी हैं = पैदा की हैं; क्रान्तियाँ = संघर्ष; अतिशय = अत्यधिक।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि का कथन है कि हमारे देशवासियों के इतिहास की लड़ी बहुत लम्बी है और समय-समय पर हमने अनेक क्रान्तियाँ की हैं।

व्याख्या :
कविवर नवीन कहते हैं कि हमारे देश के इतिहास की लड़ियाँ बहुत लम्बी हैं। इनकी गणना नहीं की जा सकती है। हमें इस बात का गर्व है कि हमारी संस्कृति की नींव बहुत ही गहरी गढ़ी हुई है। यद्यपि समय-समय पर हमें अनेक विरोधियों के विरोध का सामना करना पड़ा है जिसके कारण हमने अनेक क्रान्तियों को भी जन्म दिया है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि ईश्वर ने इन विपत्तियों में भी हमारी पूरी सहायता की और हम विजयश्री लेकर ही निकले। यह भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. कवि का कथन है कि भारतीय संस्कृति संसार की प्राचीनतम एवं लम्बी श्रृंखला वाली संस्कृति है।
  2. अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार।।
  3. भाषा भावानुकूल सहज एवं सरल है।

है आसन्न-भूत अति उज्ज्वल है, अतीत गौरवशाली,
औ, छिटकी है वर्तमान पर, बलि के शोणित की लाली,
नव उषा-सी विजय हमारी विहँस रही है मतवाली!
हम मानव को मुक्त करेंगे, यही विधान हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है! ॥8॥

कठिन शब्दार्थ :
आसन्न भूत = बीता हुआ, अतीत; उज्ज्वल = पवित्र, शानदार; गौरवशाली = महिमा वाला; औ = और; शोणित = खून; बलि = बलिदान; उषा-सी = प्रात:कालीन लालिमा जैसी; विहँस = हँस रही हैं; मुक्त = स्वतंत्र।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि का कथन है कि हमारा अतीत काल बड़ा ही स्वर्णिम रहा, वर्तमान पर शोणित की लाली छिटकी हुई लेकिन साथ-ही-साथ हमारे देश में नवागन्तुक के रूप में उषा की लाली भी बिखर रही है।

व्याख्या :
कविवर नवीन कहते हैं कि हमारा अतीत काल बड़ा ही उज्ज्वल एवं गौरवशाली रहा है। वर्तमान पर बलिदानों के खून की लाली छिटक रही है। साथ ही हमें यह भी विश्वास है कि आने वाला समय हमारे देश के जीवन में हँसती हुई उषा की मतवाली लाली को लेकर आने वाला है। हम यह प्रतिज्ञा करते हैं कि मानव को सभी प्रकार के बन्धनों से उन्हें मुक्त कर देंगे यही हमारा विधान है। यह भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. अतीत की गौरवशाली परम्परा के उल्लेख के साथ नये कीर्तिमान स्थापित करने की कवि प्रतिज्ञा करता है।
  2. अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार।
  3. भावानुकूल भाषा।

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गरज उठे चालीस कोटि जन, सुन ये वचन उछाह भरे,
काँप उठे प्रतिपक्षी जनगण, उनके अंतस्तल सिहरे;
आज नए युग के नयनों से, ज्वलित अग्नि के पुंज झरे;
कौन सामने आएगा? यह देश महान हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है! ॥9॥

कठिन शब्दार्थ :
कोटि = करोड़; उछाह = उत्साह (जोश); प्रतिपक्षी = शत्रु; अंतस्तल = हृदय; सिहरे = काँप गये; ज्वलित = जलते हुए; अग्नि के पुंज = आग के गोले।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने भारतवासियों की उमंग और वीरता का ‘वर्णन करते हुए कहा है।

व्याख्या :
कविवर नवीन जी कहते हैं कि भारत के चालीस करोड़ भारतवासियों के उत्साह एवं जोश से भरे हुए वचनों की गर्जना सुनकर शत्रुओं के हृदय भय से काँपने लगे। आज उन देशवासियों को नवीन युग के सपनों को सजाने वाली आँखों से जलते हुए आग के गोले झर रहे थे। कहने का भाव यह है कि उनके नेत्रों से शत्रुओं को जला डालने वाला क्रोध टपक रहा था। ऐसे वीरों को देखकर कौन व्यक्ति उनके सामने आने का दुःस्साहस कर सकेगा? अर्थात् कोई नहीं। यह हमारा देश महान् है। भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

विशेष :

  1. कवि ने भारतीय लोगों के वीर एवं उत्साह के भावों का वर्णन किया है।
  2. अनुप्रास एवं रूपक अलंकार
  3. वीर रस का वर्णन है।

स्वतंत्रता का दीपक संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो, 
आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं! 
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है! 
शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ, 
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया, 
रुक रही न नाव हो, जोर का बहाव हो, 
आज गंग-धार पर यह दिया बुझे नहीं! 
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है! ॥1॥

कठिन शब्दार्थ :
घोर = घना, भयंकर; बयार = हवा; निशीथ = रात; विहान = सबेरा; दिया = दीपक; बहाव = प्रवाह।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘स्वतंत्रता का दीपक’ शीर्षक कविता से ली गयी हैं। इसके कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली’ हैं।

प्रसंग :
इन पंक्तियों में कवि ने स्वतंत्रता के दीपक को जलाये रखने की सलाह दी है।

व्याख्या :
कविवर नेपाली जी कहते हैं कि अंधकार चाहे कितना ही घना क्यों न हो, चाहे कितनी ही तेज हवा बह रही हो, प्रत्येक दरवाजे पर यह दिया बुझना नहीं चाहिए। यह रात में जलाया गया दिया प्रातःकालीन आजादी की खुशियाँ ला रहा है।

यह शक्ति का दीपक शक्ति के लिए राष्ट्र प्रेम की भावना से ओत-प्रोत हो। अत्याचार एवं अनाचार रूपी नदी का प्रवाह कितना ही तीव्र क्यों न हो किन्तु देश की स्वतंत्रता को बचाने वाली नाव रुके नहीं। यह गंगा की धारा को समर्पित आजादी का दीपक कभी न बुझने पाये ऐसा सदैव प्रयास करना चाहिए। यह स्वतंत्रता का दीपक भारतवासियों के लिए अपने प्राणों के समान प्रिय है।

विशेष :

  1. राष्ट्र प्रेम की भावना का वर्णन है।
  2. प्रतीक शैली का प्रयोग।
  3. यमक, अनुप्रास एवं रूपक अलंकारों का प्रयोग।
  4. भाषा सहज एवं सरल।।

यह अतीत कल्पना, यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भावना, यह अनंत साधना,
शांति हो, अशांति हो, युद्ध-संधि-क्रांति हो,
तीर पर कछार पर यह दिया बुझे नहीं!
देश पर, समाज पर ज्योति का वितान है! ॥2॥

कठिन शब्दार्थ :
अतीत = भूतकाल; विनीत = विनम्र; पुनीत = पवित्र; अनन्त = कभी न समाप्त होने वाली; संधि = समझौता; क्रान्ति = परिवर्तन; तीर पर = किनारे पर; कछार = बालू के किनारे; वितान = तम्बू।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने आजादी के महत्त्व को बताते हुए उसकी हर प्रकार से रक्षा का आह्वान किया है।

व्याख्या :
कविवर नेपाली कहते हैं कि आजादी की यह कल्पना अतीत काल से चली आ रही है। यह देश की स्वतंत्रता तथा अखंडता के लिए की गयी विनम्र प्रार्थना है। यह आजादी वास्तव में एक पवित्र भावना है। इसकी प्राप्ति के लिए अनन्त साधनाएँ की जाती रही हैं। चाहे शान्ति का काल हो या अशांति का, युद्ध का हो या सन्धि-समझौते का, नदी के तट पर हो या कछारों में हो पर आजादी का यह दिया कभी भी बुझने न पाये। हम यह प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर! आजादी का यह दीप देश एवं समाज पर अपने प्रकाश का चंदोवा ताने रहे।

विशेष :

  1. कवि ने आजादी को बनाये रखने हेतु भारतवासियों को जगाया है।
  2. उपमा, रूपक, यमक एवं मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग।
  3. भाषा भावानुकूल सहज एवं सरल है।

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तीन-चार फूल हैं, आस-पास धूल है,
बाँस हैं, बबूल हैं, घास के दुकूल हैं,
वायु भी हिलोर दे, फूंक दें, झकोर दे,
कब्र पर, मजार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह किसी शहीद का पुण्य प्राण-दान है! ॥3॥

कठिन शब्दार्थ :
दुकूल = दुपट्टे पुण्य = पवित्र; शहीद = बलिदानी का।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने आजादी के दीपक को शहीदों के पुण्य युक्त प्राणों का दान बताया है।

व्याख्या :
कविवर नेपाली कहते हैं कि चाहे हमारे पास तीन-चार ही फूल क्यों न हों अर्थात् हमारी सुविधाएँ चाहे जितनी सीमित हों और चारों ओर धूल बिखरी हो अर्थात् अभाव इकट्ठे हो रहे हैं। चाहे हमारे चारों ओर बाँस हों या बबूल हों या घास की मेड़ें उग रही हों, चाहे वायु हमें हिलोरें देकर हर्षित करती रहे, अथवा वह आँधी बनकर हमें झकझोर डाले। चाहे संघर्ष करते-करते हमारी कब्र बन जाये अथवा कोई मजार बन जाये तो भी आजादी का यह दीप बुझे नहीं क्योंकि यह किसी बलिदानी के पुण्यों का प्राणदान है।

विशेष :

  1. स्वतंत्रता की हर स्थिति में रक्षा की बात कही गई है।
  2. अनुप्रास, रूपक एवं मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग।
  3. भाषा भावानुकूल सहज एवं सरल है।

झूम-झूम बदलियाँ, चूम-चूम बिजलियाँ
आँधियाँ उठा रहीं, हलचलें मचा रहीं! 
लड़ रहा स्वदेश हो, शांति का न लेश हो,
क्षुद्र जीत-हार पर यह दिया बुझे नहीं! 
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है! ॥4॥

कठिन शब्दार्थ :
बदलियाँ = बरसा के बादल; हलचलें = खलबली; लेश = नाममात्र भी; क्षुद्र = तुच्छ, ओछी।

सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
कविवर नेपाली कहते हैं कि आसमान में चाहे कितने ही बादल उमड़-घुमड़कर छा गये हों और उनके मध्य बिजली बार-बार चमक रही हो। कहने का भाव यह है कि चाहे कितनी भी मुसीबतें क्यों न आयें हम इनसे घबड़ाएँ नहीं और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहें। चाहे चारों ओर आँधियाँ उठकर हलचलें उत्पन्न कर रही हों। चाहे देश के अन्दर युद्ध चल रहा हो और शान्ति नाममात्र को भी न हो। चाहे हमें क्षुद्र जीत या हार का सामना करना पड़े पर यह आजादी का दीप किसी भी प्रकार बुझ न पाये। यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।

विशेष :

  1. स्वतंत्रता की रक्षा की प्रतिज्ञा की गयी है।
  2. वीर रस का प्रयोग।
  3. अनुप्रास एवं उपमा का प्रयोग।
  4. भाषा भावानुकूल सहज एवं सरल है।

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