MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य भाव
वात्सल्य भाव अभ्यास
बोध प्रश्न
वात्सल्य भाव अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि ने कौए के भाग्य की सराहना क्यों की है?
उत्तर:
कवि ने कौए के भाग्य की सराहना इसलिए की है कि कौए को भगवान का साक्षात् स्पर्श प्राप्त हो गया जबकि बड़े-बड़े भक्तों को यह प्राप्त नहीं होता है।
प्रश्न 2.
डिठौना किसे कहते हैं?
उत्तर:
माताएँ अपने छोटे शिशु को दूसरों की नजर न लग जाए इसलिए उनके माथे पर काजल का एक ऐसा घेरा-सा बना देती हैं। इसे ही डिठौना कहा जाता है।
प्रश्न 3.
बचपन की याद किसे आ रही है?
उत्तर:
बचपन की याद कवयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान को आ रही है।
प्रश्न 4.
बच्ची माँ को क्या खिलाने आई थी?
उत्तर:
बच्ची माँ को मिट्टी खिलाने आई थी।
प्रश्न 5.
ऊँच-नीच का भेद किसे नहीं है? और क्यों?
उत्तर:
छोटे बच्चों को ऊँच-नीच के भेद का ज्ञान नहीं होता है क्योंकि उनकी बुद्धि निर्मल एवं पवित्र होती है।
वात्सल्य भाव लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि रसखान बालकृष्ण की छवि पर क्या न्यौछावर कर देना चाहते हैं?
उत्तर:
कवि रसखान धूल से सने हुए बालक कृष्ण की उस छवि को देखते हैं जिन्होंने सुन्दर चोटी गुँथा रखी है, पीले रंग की कछौटी पहन रखी है और पैरों में पायल बज रही है तो वे करोड़ों कामदेवों के सौन्दर्य को उन पर निछावर कर देना चाहते हैं।
प्रश्न 2.
कवयित्री ने बचपन के आनन्द को पुनः कैसे पाया?
उत्तर:
कवयित्री ने बचपन के आनन्द को अपनी बेटी के रूप में प्राप्त किया। वह अपनी बेटी के साथ पुनः खेलने लग जाती है, उसी के साथ खाती है और उसी के समान तुतली बोली बोलती है।
प्रश्न 3.
उन पंक्तियों को लिखिए जिनका आशय है-
(क) सुखी जसौदा का पुत्र करोड़ों वर्ष जीवित रहे।
(ख) बचपन के आनन्द को कैसे भूला जा सकता है?
उत्तर:
(क) बाको जियौ जुग लाख करोर।
(ख) कैसे भूला जा सकता है, बचपन का अतुलित आनन्द।
वात्सल्य भाव दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
यशोदा माँ बालक कृष्ण को किस प्रकार सजाती-सँभालती हैं?
उत्तर:
यशोदा माँ बालक कृष्ण को स्नान कराती हैं, तेल की मालिश करती हैं, आँखों में काजल लगाती हैं, उनकी भौहें बनाती हैं तथा माथे पर काजल का डिठौना लगा देती हैं।
प्रश्न 2.
धूल में लिपटे बालकृष्ण की शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धूल में लिपटे बालकृष्ण बड़े ही सुन्दर लग रहे हैं, वैसी ही सुन्दर उनकी चुटिया बनी हुई है, वे नन्द बाबा के आँगन में खेलते हैं और खाते हैं, उनके पैरों में पैंजनी बज रही है तथा उन्होंने पीली कछौटी पहन रखी है।
प्रश्न 3.
मेरा नया बचपन’ कविता का मुख्य भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने ‘मेरा नया बचपन’ नामक कविता में वात्सल्य भाव को बड़ी सहजता से प्रस्तुत किया है। उन्हें अपनी बिटिया की वात्सल्य चेष्टाओं को देखकर अपना बचपन याद आ जाता है और उसे ही उन्होंने इस कविता में प्रस्तुत किया है।
प्रश्न 4.
रसखान और सुभद्रा कुमारी चौहान के वात्सल्य’ में क्या अन्तर है?
उत्तर:
रसखान ने धूल में लिपटे बालकृष्ण के सौन्दर्य का वर्णन किया है जबकि सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी बिटिया की बाल चेष्टाओं को देखकर ही ‘वात्सल्य भाव का चित्रण किया है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित काव्यांश की प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए-
(अ) वह भोली सी ………… मन का सन्ताप।
उत्तर:
कवयित्री कहती हैं कि बचपन में मैं भोली-भाली मधुरता का अनुभव करती थी। उस समय मेरा जीवन पूरी तरह पाप रहित था। हे मेरे बचपन! क्या तू पुनः मेरे जीवन में आ सकेगा और आकर के वर्तमान जीवन में जो दुःख हैं उनको मिटा सकेगा? कवयित्री कहती हैं कि जिस समय मैं अपने बीते हुए बचपन को याद कर रही थी उसी समय मेरी बेटी बोल उठी। बेटी की बोली सुनकर मेरी छोटी-सी कुटिया देवताओं के वन जैसी प्रसन्न हो उठी।
(आ) मैं भी उसके साथ …………… बन जाती हूँ।
उत्तर:
कवयित्री कहती हैं कि मेरी बेटी के रूप में मैंने अपना खोया हुआ बचपन फिर से पा लिया है। उसकी सुन्दर मूर्ति देखकर मुझमें नया जीवन आ गया है। आज मैं अपनी बेटी के साथ खेलती हूँ, खाती हूँ और उसी के समान तुतली बोली बोलती हूँ, मैं उसके साथ मिलकर स्वयं बच्ची बन जाती हूँ।
(इ) आज गई हुती भोर …………… कह्यौ नहि।
उत्तर:
एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि मैं आज। प्रात:काल होते ही नन्द बाबा के भवन को चली गई और मैं वही बनी रही। यशोदा माता का वह लाल लाखों-करोड़ों वर्ष तक जीवित रहे। कृष्ण के साथ यशोदा माता को जो सुख एवं आनन्द प्राप्त हो रहा है वह किसी से कहते नहीं बनता है। यशोदा माता अपने पुत्र श्रीकृष्ण को पहले तो तेल लगाती हैं फिर उनके नेत्रों में काजल लगाती हैं, उनकी भौहों को बनाती हैं और फिर माथे पर दूसरों की नजर से बचाने के लिए डिठौना (काला टीका) लगाती हैं। सोने के हार को पहने हुए श्रीकृष्ण की शोभा को मैं देखती हूँ और माता द्वारा पुत्र श्रीकृष्ण को पुचकारते हुए देखती हूँ, तो उस दृश्य पर मैं न्यौछावर हो जाती हूँ।
प्रश्न 6.
कवयित्री ने बचपन के आनन्द को अतुलित आनन्द क्यों कहा है?
उत्तर:
कवयित्री ने बचपन के आनन्द को अतुलित इसलिए कहा है क्योंकि बचपन में जो आनन्द प्राप्त होता है उसकी किसी से भी तुलना नहीं की जा सकती। बचपन निष्पाप होता है उसमें न तो ऊँच-नीच का भाव होता है और न छोटे-बड़े का। बचपन में बालक निडर एवं मनमौजी हुआ करते हैं। बच्चों की किलकारी परिवार के सभी लोगों को आनन्द का अनुभव कराती रहती है।
वात्सल्य भाव काव्य-सौन्दर्य
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी मानक रूप लिखिए-
हौं, जियो, जुग, आजु, काओ।
उत्तर:
शब्द | हिन्दी मानक रूप |
हौं | मैं |
जियौ | जीवौ, जीवित रहो जुग |
जुग | युग |
आजु | आज |
काओ | खाओ |
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिएजीवन, ऊँच, पाप।
उत्तर:
शब्द | विलोम |
जीवन | मृत्यु |
ऊँच | नीच |
पाप | पुण्य |
प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए
(क) नन्दन वन-सी …………. कुटिया मेरी।
(ख) बार-बार आती ………….. तेरी।
(ग) मैं बचपन को …………. मेरी।
(घ) धूरि भरे ………….. सुन्दर चोटी।
उत्तर:
(क) उपमा अलंकार
(ख) पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
(ग) मानवीकरण
(घ) अनुप्रास,अलंकार।।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) काग के भाग …………. रोटी।
उत्तर:
भाव सौन्दर्य-इस पंक्ति में कविवर रसखान कौए के भाग्य को मनुष्य के भाग्य से भी ऊँचा मानते हैं क्योंकि भगवान का स्पर्श जो उसने प्राप्त कर लिया है। बड़े-बड़े भक्त भी भगवान का दर्शन तक नहीं पा पाते हैं, स्पर्श तो बहुत दूर की बात है।
(ख) डारि हमेलनि ………….. छौनहि।
उत्तर:
भाव सौन्दर्य-इस पंक्ति में कविवर रसखान बालक कृष्ण की सुन्दर छवि को देखकर आई हुई सखियों के वार्तालाप को प्रस्तुत कर रहे हैं कि एक सखी ने जब यशोदा माता को बालकृष्ण को सजाते हुए तथा उसको पुचकारते हुए देखा तो उस दृश्य पर आनन्दित होकर वह कह उठती है कि हम ऐसे दृश्य को देखकर उस पर स्वर्ण जड़ित हारों को न्यौछावर करती हैं।
(ग) पाया बचपन ………….. बन आया।
उत्तर:
भाव सौन्दर्य-इस पंक्ति में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान अपने बचपन को अपनी बिटिया के बचपन में देखकर आनन्दित हो उठी हैं और मन ही मन वह सोचने लगती हैं कि मैंने अपनी बिटिया के रूप में ही अपने खोये हुए बचपन को पा लिया है और मेरा वह बचपन बिटिया बनकर आ गया है।
(घ) बड़े-बड़े मोती …………. पहनाते थे।
उत्तर:
भाव सौन्दर्य-कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान इस पंक्ति में बचपन की उन मधुर स्मृतियों का वर्णन कर रही हैं जब बालक रूप में किसी बात पर नाराज होकर वह रोने लग जाया करती थीं और उस समय आँखों से निकले बड़े-बड़े आँसू मोती जैसे लगते थे और उनकी निरन्तरता से वे आँसू एक जयमाला जैसे बन जाते थे।
प्रश्न 5.
कविता में उपमा अलंकार की बहुलता है। पढ़िए और उपमा अलंकार रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
- बड़े-बड़े मोती से आँसू
- वह भोली-सी मधुर सरलता
- नन्दन वन सी।
रसखान के सवैये संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) आजु गई हुती भोर ही हौं, रसखानि रई वहि नंदके भौनहिं।
वाको जियौ जुग लाख करोर, जसोमति को सुख जात कयौ नहिं।
तेल लगाई लगाइ कै अंजन, भौहैं बनाइ बनाइ डिठौनहिं।
डारि हमेलनि हार निहारत वारत ज्यौं पुचकारत छौनहिं॥
कठिन शब्दार्थ :
आजु = आज; गई हुती = गयी हुई थी; हौं = मैं; रई = रही; वहि = उसी; नंद के भौनहिं = नन्द के भवन में; जुग = युग; करोर = करोड़ों; कह्यौ नहिं = कहा नहीं जाता; अंजन = काजल; डिठौनहिं = नजर का टीका; हमेलनि = सोने के; निहारत = देखती हूँ; वारत = न्यौछावर होती हूँ; छौनहिं = पुत्र।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘वात्सल्य भाव’ के शीर्षक ‘रसखान के सवैये’ से लिया गया है। इसके रचयिता रसखान हैं।
प्रसंग :
कोई गोपी नन्द बाबा के घर जाकर कृष्ण को देखती है। वहाँ यशोदा माता कृष्ण का श्रृंगार कर रही हैं। इस दृश्य को देखकर वह गोपिका अपने आपको न्यौछावर कर देती है।
व्याख्या :
एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि मैं आज। प्रात:काल होते ही नन्द बाबा के भवन को चली गई और मैं वही बनी रही। यशोदा माता का वह लाल लाखों-करोड़ों वर्ष तक जीवित रहे। कृष्ण के साथ यशोदा माता को जो सुख एवं आनन्द प्राप्त हो रहा है वह किसी से कहते नहीं बनता है। यशोदा माता अपने पुत्र श्रीकृष्ण को पहले तो तेल लगाती हैं फिर उनके नेत्रों में काजल लगाती हैं, उनकी भौहों को बनाती हैं और फिर माथे पर दूसरों की नजर से बचाने के लिए डिठौना (काला टीका) लगाती हैं। सोने के हार को पहने हुए श्रीकृष्ण की शोभा को मैं देखती हूँ और माता द्वारा पुत्र श्रीकृष्ण को पुचकारते हुए देखती हूँ, तो उस दृश्य पर मैं न्यौछावर हो जाती हूँ।
विशेष:
- वात्सल्य रस का वर्णन है।
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
- ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
(2) धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना, पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी॥
वा छबि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कला निज कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी॥
कठिन शब्दार्थ :
धूरि = धूल; सोभित = शोभित हो रहे हैं; पग = पैरों में; पैंजनी = पायल; पीरी = पीली; कछौटी = लंगोटी; वा छवि = उस सुन्दरता को; विलोकत = देखने पर; वारत = न्यौछावर; काम = कामदेव; कोटी = करोड़ों; काग = कौआ; सजनी = हे सखि; हरिहाथ = भगवान श्रीकृष्ण के हाथ से।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस पद में धूल में सने हुए श्रीकृष्ण की अनुपम शोभा का वर्णन किया गया है।
व्याख्या :
रसखान कवि कहते हैं कि धूल से सने हुए श्रीकृष्ण बहुत शोभित हो रहे हैं। वैसी ही उनके सिर पर सुन्दर चोटी गुंथी हुई है। वे नन्द बाबा के आँगन में खेलते हुए एवं खाते हुए फिर रहे हैं। उनके पैरों में पायल बज रही है तथा उन्होंने अपनी कमर में पीली लंगोटी पहन रखी है। उस छवि को देखकर करोड़ों कामदेव अपनी कलाओं को न्यौछावर कर देते हैं। एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखि! उस कौए का भाग्य बहुत अच्छा है जो बालक कृष्ण के हाथ से माखन और रोटी छीनकर ले गया।
विशेष :
- बालक कृष्ण के अनुपम सौन्दर्य का वर्णन है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा।
- ब्रजभाषा का प्रयोग।
मेरा नया बचपन संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) बार-बार आती है मुझको, मधुर याद बचपन तेरी।
गया, ले गया तू जीवन की, सबसे मस्त खुशी मेरी॥
चिन्ता रहित खेलना खाना, फिर फिरना निर्भय स्वच्छन्द।
कैसे भूला जा सकता है, बचपन का अतुलित आनन्द।
कठिन शब्दार्थ :
मधुर = मीठी; खुशी, प्रसन्नता; निर्भय = निडर होकर; स्वच्छन्द = स्वतन्त्र; अतुलित = जिसकी तुलना न की जा सके।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मेरा नया बचपन’ शीर्षक कविता से अवतरित हैं। इसकी रचयिता श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान हैं।
प्रसंग :
इन पंक्तियों में कवयित्री ने अपने बचपन की मधुर स्मृतियों को अपनी बेटी की बाल चेष्टाओं के माध्यम से व्यक्त किया है।
व्याख्या :
कवयित्री कहती हैं कि हे मेरे प्यारे बचपन तुम्हारी याद मुझे बार-बार आती है। तू समय आने पर चला गया पर तू मेरे जीवन की सबसे अधिक मस्त खुशियों को अपने साथ ले गया। बचपन के उन दिनों में बिना किसी चिन्ता के खेलती और खाती रहती थी तथा निडर होकर स्वतन्त्र रूप से घूमती रहती थी। ऐसा अतुलनीय बचपन का आनन्द भला कैसे भूला जा सकता है अर्थात् उस आनन्द को मैं कभी नहीं भूल सकती।
विशेष :
- वात्सल्य भावना का वर्णन है।
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
- सरल, सुबोध शब्दों का प्रयोग।
(2) ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था, छुआछूत किसने जानी।
बनी हुई थी आह झोंपड़ी, और चीथड़ों में रानी॥
रोना और मचल जाना भी, क्या आनन्द दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती से आँस, जयमाला पहनाते थे।
कठिन शब्दार्थ :
ऊँच-नीच = छोटे-बड़े का; आह = ओ हो; जयमाला = विजय पाने की माला।
सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।
व्याख्या :
कवयित्री कहती हैं कि उस बचपन में मेरे मन में ऊँच-नीच की भावना नहीं थी अर्थात् मैं बिना किसी छोटे-बड़े के भेद के सबके साथ खेला करती थी और न ही मैं छुआछूत जानती थी। मैं उस समय झोंपड़ी में रहते हुए तथा चीथड़े पहने रहने पर भी रानी जैसी बनी हुई थी। उस समय बात-बात पर मैं रोने लग जाती थी और किसी बात का हठ करके मचल उठती थी, ये दोनों बातें मुझे बहुत आनन्द देती थीं। कभी-कभी मेरी आँखों से निकलने वाले बड़े-बड़े आँसू मोती बनकर मेरे गालों पर जयमाला पहना दिया करते थे।
विशेष :
- बचपन की मधुर स्मृतियों का वर्णन।
- ‘मोती से आँसू’ में उपमा अलंकार।
- भाषा सहज एवं सरल, खड़ी बोली।
(3) वह भोली-सी मधुर सरलता, वह प्यारा जीवन निष्पाप।
क्या फिर आकर मिटा सकेगा, त मेरे मन का सन्ताप?
मैं बचपन को बुला रही थी, बोल उठी बिटिया मेरी।
नन्दन-वन-सी फूल उठी वह, छोटी-सी कुटिया मेरी॥
कठिन शब्दार्थ :
मधुर = मीठी; निष्पाप = बिना पाप के; सन्ताप = दुःख; नन्दन वन = देवताओं के वन; कुटिया = छोटी झोंपड़ी; फूल उठी = प्रसन्न हो उठी।
सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।
व्याख्या :
कवयित्री कहती हैं कि बचपन में मैं भोली-भाली मधुरता का अनुभव करती थी। उस समय मेरा जीवन पूरी तरह पाप रहित था। हे मेरे बचपन! क्या तू पुनः मेरे जीवन में आ सकेगा और आकर के वर्तमान जीवन में जो दुःख हैं उनको मिटा सकेगा? कवयित्री कहती हैं कि जिस समय मैं अपने बीते हुए बचपन को याद कर रही थी उसी समय मेरी बेटी बोल उठी। बेटी की बोली सुनकर मेरी छोटी-सी कुटिया देवताओं के वन जैसी प्रसन्न हो उठी।
विशेष :
- वात्सल्य भाव का वर्णन।
- ‘नन्दन वन सी’ में उपमा अलंकार।
- बचपन का मानवीकरण।
(4) ‘माँ ओ’ कहकर बुला रही थी, मिट्टी खाकर आई थी।
कुछ मुँह में कुछ लिए हाथ में, मुझे खिलाने लाई थी॥
मैंने पूछा- “यह क्या लाई ?” बोल उठी वह “माँ, काओ।”
हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से, मैंने कहा, “तुम्ही काओ॥”
कठिन शब्दार्थ :
माँ काओ = माँ तुम खालो; प्रफुल्लित = खुश।
सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।।
व्याख्या :
कवयित्री कह रही हैं कि वह मेरी बिटिया-‘हे माँ’ कहकर मुझे बुला रही थी और उस समय वह जमीन से मिट्टी उठाकर तथा खाकर आई थी। कुछ मिट्टी उसके मुँह में लगी हुई थी और कुछ मिट्टी हाथ में लिए थी जो मुझे खिलाने के लिए लाई थी। मैंने जब उससे पूछा कि तू क्या लाई है तो वह तुरन्त बोल उठी कि माँ इसे तुम भी खाओ। अपनी बिटिया की इस तुतली बोली को सुनकर मेरा हृदय खुशी से झूम उठा और फिर मैंने भी उससे तुतली बोली में कहा कि इसे तुम ही खा लो।
विशेष :
- बालक की चेष्टाओं का वर्णन है।
- माँ काओ’ तुतली बोली में माँ खाओ’ के लिए कहा है।
- भाषा सहज एवं सरल।
(5) पाया बचपन फिर से मैंने, बचपन बेटी बन आया।
उसकी मंजुल मूर्ति देखकर, मुझमें नव जीवन आया॥
मैं भी उसके साथ खेलती, खाती हूँ, तुतलाती हूँ।
मिलकर उसके साथ स्वयं, मैं भी बच्ची बन जाती हूँ।
कठिन शब्दार्थ :
मंजुल = सुन्दर; नवजीवन = नया जीवन स्वयं = खुद।
सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।
व्याख्या :
कवयित्री कहती हैं कि मेरी बेटी के रूप में मैंने अपना खोया हुआ बचपन फिर से पा लिया है। उसकी सुन्दर मूर्ति देखकर मुझमें नया जीवन आ गया है। आज मैं अपनी बेटी के साथ खेलती हूँ, खाती हूँ और उसी के समान तुतली बोली बोलती हूँ, मैं उसके साथ मिलकर स्वयं बच्ची बन जाती हूँ।
विशेष :
- बचपन की यादों का वर्णन है।
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग।
- भाषा सरस एवं सरल है।