MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 16 प्राचीन-भारतीय-वैज्ञानिकाः

MP Board Class 7th Sanskrit Chapter 16 अभ्यासः

Class 7 Sanskrit Chapter 16 MP Board प्रश्न 1.
एक शब्द में उत्तर लिखो
(क) वृक्षायुर्वेदग्रन्थस्य रचयिता कः? [वृक्षायुर्वेद ग्रन्थ के रचयिता कौन हैं?]
उत्तर:
महर्षिः पराशरः

(ख)”शुल्बसूत्रं” कः रचितवान्? [‘शुल्बसूत्र’ की रचना किसने की?]
उत्तर:
बोधायनः

(ग) प्रकाशस्य गतिं कः ज्ञातवान्? [प्रकाश की गति का किसने पता किया?]
उत्तर:
आर्यभट्टः

(घ) शल्यक्रियायाः जनकः कः? [शल्यक्रिया (सर्जरी) का जनक कौन है?]
उत्तर:
आचार्यः सुश्रुतः

(ङ) गुरुत्वाकर्षणसिद्धान्तं कः प्रतिपादितवान्? [गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को किसने प्रतिपादित किया?]
उत्तर:
भास्कराचार्यः।

Class 7 Sanskrit Chapter 16 Question Answer MP Board प्रश्न 2.
अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखो
(क) महर्षिः पराशरः वनस्पतीनां किं कृतवान्? [महर्षि पराशर ने वनस्पतियों का क्या किया?]
उत्तर:
महर्षिः पराशरः वनस्पतीनां वर्गीकरणं कृतवान् [महर्षि पराशर ने वनस्पतियों का वर्गीकरण किया।]

(ख) विद्युत्कोशस्य आविष्कारकः कः आसीत्? [विद्युत्कोश का आविष्कारक कौन था?]
उत्तर:
विद्युत्कोशस्य आविष्कारकः महर्षिः अगस्त्यः आसीत्। [विद्युतकोश के आविष्कारक महर्षि अगस्त्य थे।]

(ग) “पृथ्वी सूर्यस्य परिक्रमा करोति” इति सिद्धान्तं कः प्रतिपादितवान्? [“पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है”, इस सिद्धान्त को किसने प्रतिपादित किया?]
उत्तर:
“पृथ्वी सूर्यस्य परिक्रमा करोति”, इति सिद्धान्तं आर्यभट्टः प्रतिपादितवान्। [“पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है”, इस सिद्धान्त को आर्यभट्ट ने प्रतिपादित किया।]

(घ) भास्कराचार्यः किं प्रतिपादितवान्? [भास्कराचार्य ने क्या प्रतिपादित किया?]
उत्तर:
भास्कराचार्यः गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्तं, π (पै) इति गणित चिह्नस्य मानं त्रैराशिक-नियमादीन् प्रतिपादितवान्। [भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त, π (पाई) नामक गणित चिह्न का मान, त्रैराशिक नियमों आदि का प्रतिपादन किया।]

(ङ) “त्वचारोपणम्” आदौ कः कृतवान्? [त्वचारोपण प्रारम्भ में किसने किया?]
उत्तर:
त्वचारोपणम् आदौ आचार्यः सुश्रुतः कृतवान्। [त्वचारोपण प्रारम्भ में आचार्य सुश्रुत ने किया।]

Class 7th Sanskrit Chapter 16 MP Board प्रश्न 3.
रेखांकित शब्द के आधार पर प्रश्न का निर्माण करो
(क) परमाणुवादस्य जनकः महर्षिः कणादः अस्ति।
(ख) विमानविद्यायाः वर्णनं भरद्वाजः अकरोत्।
(ग) भारतीकृष्णतीर्थः वैदिकगणितं रचितवान्।
(घ) रेखागणितस्य प्रमेयं शुल्बसूत्रे अस्ति।
(ङ) महर्षिः पाणिनि: अष्टाध्यायीं रचितवान्।
उत्तर:
(क) कस्य जनकः महर्षिः कणादः अस्ति?
(ख) विमानविद्यायाः वर्णनं कः अकरोत्?
(ग) भारतीय कृष्णतीर्थः किम् रचितवान्?
(घ) रेखागणितस्य प्रमेयं कस्मिन् अस्ति?
(ङ) महर्षिः पाणिनिः किम् ग्रन्थम् रचितवान्?

Sanskrit Class 7 Chapter 16 MP Board प्रश्न 4.
उचित शब्द से रिक्त स्थान को पूरा करो
(क) सः आपणम् ………. (गतवान्/गतवन्तः)
(ख) बालकाः पाठं ……….। (पठितवान्/पठितवन्तः)
(ग) ……….. पत्रं लिखितवान्। (अध्यापकः/अध्यापकाः)
(घ) ……….. मातृभूमिम् रक्षितवन्तः। (सैनिकः/सैनिकाः)
(ङ) गायकः गीतम् ……….। (गीतवान्/गीतवन्तः)
उत्तर:
(क) गतवान्
(ख) पठितवन्तः
(ग) अध्यापकः
(घ) सैनिकाः
(ङ) गीतवान्।

Chapter 16 Sanskrit Class 7 MP Board प्रश्न 5.
कोष्ठक से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थान को पूरा करो-
(विद्युत-कोशः, सूर्यस्य, प्रकाश निस्सारण, शल्यक्रियाम्)
(क) आर्यभट्टस्य मतेन पृथ्वी …………. परिक्रमा करोति।
(ख) सुश्रुतः शरीरस्य ………… करोति स्म।
(ग) वृक्षाः ………… क्रिया द्वारा भोजनं कुर्वन्ति।
(घ) ताम्र-जतु-पारदादीनां संयोगेन …………. उत्पन्नाः भवति।
उत्तर:
(क) सूर्यस्य
(ख) शल्यक्रियाम्
(ग) प्रकाश निस्सारण
(घ) विद्युत-कोशः।

Sanskrit Chapter 16 Class 7 MP Board प्रश्न 6.
समुचित अक्षर से रिक्त स्थान की पूर्ति करो-
Class 7 Sanskrit Chapter 16 MP Board
उत्तर:
(क) क्षा, द।
(ख) ह, हि।
(ग) आ, भ।
(घ) धा, न।
(ङ) ब्र, प्त।

Mp Board Class 7 Sanskrit Chapter 16 प्रश्न 7.
समुचित मिलान करो
Class 7 Sanskrit Chapter 16 Question Answer MP Board
उत्तर:
(क) → (4)
(ख) → (3)
(ग) → (5)
(घ) → (1)
(ङ) → (2)

प्राचीन-भारतीय-वैज्ञानिकाः हिन्दी अनुवाद

(एकस्मिन् विद्यालये आचार्य-छात्राणां मध्ये वैज्ञानिकानां विषये वार्तालापः प्रचलति)

Ch 16 Sanskrit Class 7 MP Board आचार्यः :
छात्राः! किं यूयं जानीथ, यत् रेखागणितस्य नवविंशतितमं (२९) प्रमेयं किम्?

Class 7 Sanskrit Chapter 16 Hindi Translation MP Board छात्रा: :
आम्! जानीमः, “पाइथागोरसप्रमेयम्” इति।

Sanskrit Chapter 16 MP Board आचार्यः :
एतस्य नामकरणस्य कारणं किम्?

प्रशान्तः :
अस्य प्रमेयस्य आविष्कर्ता “पाइथागोरस” नामक वैज्ञानिकः आसीत्। अतः तस्य नाम्ना एतस्य नामकरणम् अभवत्।

आचार्यः :
सम्प्रति एषः एव प्रचारः परन्तु पाइथागोरसतः १५०० वर्षपूर्व आचार्य: बोधायन:शुल्बसूत्रे एतस्य प्रमेयस्य प्रयोगं कृतवान्। भारतीयाः अङ्का अपि ततः पूर्वम् आसन्।

नीलेश: :
महोदय! प्राचीनकाले भारतदेशे वैज्ञानिकाः आसन् किम्?

आचार्य: :
भारतदेशः वैदिककालात् एव वैज्ञानिकानां देशः अस्ति। चिकित्सा-अभियान्त्रिकी-गणित-विज्ञानादिषु क्षेत्रेषु भारतीय-वैज्ञानिकाः बहुकार्यं कृतवन्तः।।

अनुवाद :
(एक विद्यालय में आचार्य-छात्रों के बीच में वैज्ञानिकों के विषय में वार्तालाप चलता है।)

आचार्य :
हे छात्रो! क्या तुम सब जानते हो कि रेखागणित के उन्तीस प्रमेय क्या हैं?

छात्र :
हाँ! जानते हैं। ‘पाइथागोरस की प्रमेय’।

आचार्य :
इसके नामकरण का कारण क्या है?

प्रशान्त :
इस प्रमेय का आविष्कार करने वाले “पाइथागोरस” नामक एक वैज्ञानिक थे। इसलिए उसके नाम से इसका नामकरण हो गया।

आचार्य :
अब तो यही प्रचारित है। परन्तु पाइथागोरस से १५०० वर्ष पूर्व (पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व) आचार्य बोधायन ने शुल्ब सूत्र में इस प्रमेय का प्रयोग किया था। भारतीय अंक भी उससे पहले थे।

नीलेश :
महोदय! प्राचीन काल में भारत देश में क्या वैज्ञानिक थे?

आचार्य :
भारतदेश वैदिक काल से ही वैज्ञानिकों का देश है। चिकित्सा, अभियान्त्रिकी, गणित, विज्ञान आदि के क्षेत्रों में भारतीय वैज्ञानिकों ने बहुत-सा कार्य किया हुआ है।

सौम्या :
महोदय! वनस्पतिविज्ञान-विषये किं कार्यं भारते अभवत्?

आचार्यः :
महर्षिः पराशरः “वृक्षायुर्वेद” ग्रन्थे वनस्पतीनां वर्गीकरणं कृतवान्। वृक्षेषु प्रकाश-निस्सारण-क्रियायाः (प्रकाशसंश्लेषणम्) पर्णस्य अवान्तर-भागानाम् (प्लाज्माइत्यादीनाम्) अपि वर्णनं पराशरः कृतवान्।

अर्जुन: :
प्राचीनकाले विद्युत्कोशः (बैट्री) अपि आसीत् किम्?

आचार्य: :
अवश्यमेव आसीत्। ताम्रपत्र-जतुपत्रकृष्णाङ्गारचूर्ण-पारद-इत्यादीनां संयोगेन विद्युत् उत्पन्ना भवति इति महर्षिः अगस्त्यः लिखितवान्।

अनुवाद :
सौम्या-महोदय! वनस्पति विज्ञान के विषय में भारत में क्या कार्य हुआ था?

आचार्य :
महर्षि पराशर ने ‘वृक्षायुर्वेद’ नामक ग्रन्थ में वनस्पतियों का वर्गीकरण किया था। वृक्षों में प्रकाश के निकलने की क्रिया का (प्रकाश-संश्लेषण) पत्ते के अवान्तर भागों का (प्लाज्मा आदि का) भी वर्णन पराशर ने किया था।

अर्जुन :
प्राचीनकाल में विद्युत्कोश (बैट्री) भी थी क्या?

आचार्य :
अवश्य ही थी। ताम्रपत्र, जतुपत्र, कृष्णाङ्गारचूर्ण, पारद आदि के संयोग से विद्युत उत्पन्न होती है। महर्षि अगस्त्य ने लिखा था।

केशवः :
महोदय! वदतु कृपया, अस्माकं भारते गणितविषये अन्यत् किं प्रमुखं कार्यम् अभवत्?

आचार्यः :
प्राचीनः भारतीयः महान गणितज्ञः आर्यभट्टः प्रकाशस्य गतिं सम्यक् जानाति स्म। पृथ्वी गोलाकारा अस्ति। पृथ्वी स्व अक्षे भ्रमति, तेन एवं दिवारात्री भवतः। पृथ्वी सूर्यस्य परिक्रमा करोति, तेन एव षड् ऋतवः भवन्ति सप्ताहे दिनानां क्रमः, प्रकाशस्य गतिः, कालगणना, खगोलविज्ञानं त्रिकोणमितिः इत्यादिषु क्षेत्रेषु आचार्यः आर्यभट्टः बहुकार्य कृतवान्।

अनुवाद :
केशव-महोदय! कृपा करके बताइए, हमारे भारतवर्ष में गणित विषय में अन्य कौन-सा प्रमुख कार्य हुआ।

आचार्य :
प्राचीन भारतीय महान गणितज्ञ आर्यभट्ट प्रकाश की गति को ठीक तरह से जानते थे। पृथ्वी गोल आकार की है। पृथ्वी अपने अक्ष पर (कीली पर) घूमती है। उसी के कारण से दिन और रात होते हैं। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, उसी के कारण से छः ऋतुएँ होती हैं। सप्ताह में दिनों का क्रम, प्रकाश की गति, कालगणना, खगोलविज्ञान, त्रिकोणमिति इत्यादि के क्षेत्र में आचार्य आर्यभट्ट ने बहुत-सा कार्य किया था।

आदित्यः :
आचार्य! भास्करः अपि गणित-विषये कार्य कृतवान् किम्?

आचार्य: :
आम्! गुरुत्वाकर्षणसिद्धान्तं π (पै) इति गणितचिह्नस्य मानं त्रैराशिक-नियमादीन् भास्कराचार्यः प्रतिपादितवान्।

शालिनी :
महोदय! चिकित्साक्षेत्रे अस्माकं पूर्वजानां ज्ञानं कीदृशम् आसीत्?

आचार्यः :
शल्यचिकित्सायाः जनकः आचार्यः सुश्रुतः प्रायशः सर्वाः शल्यक्रियाः करोति स्म। यथा-त्वचारोपणम् (प्लास्टिक सर्जरी), नासिकारोपणम्, कर्णरोपणम्, तन्त्रिकाचिकित्सा नेत्रचिकित्सा इत्यादयः। शल्यक्रियायां यानि उपकरणानि सुश्रुतेन प्रयुक्तानि तानि एव उपकरणानि तथैव आधुनिक-चिकित्सा-क्षेत्रे प्रयुज्यन्ते।

अनुवाद :
आदित्य :
आचार्य! क्या भास्कर ने भी गणित के विषय में कार्य किया हुआ था?

आचार्य :
हाँ! गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त को π (पाई) नामक गणित के चिह्न का मान, त्रैराशिक नियम आदि को भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया।

शालिनी :
महोदय! चिकित्सा के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों का ज्ञान कैसा था?

आचार्य :
शल्य चिकित्सा के जनक (जन्म देने वाले) आचार्य सुश्रुत प्रायः सभी प्रकार की शल्य क्रिया किया करते थे। जैसे-त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी), नासिकारोपण, कर्णरोपण, तन्त्रिका चिकित्सा, नेत्र चिकित्सा इत्यादि। शल्य क्रिया में जिन उपकरणों (औजारों) का प्रयोग सुश्रुत ने किया, उन्हीं उपकरणों को उसी तरह आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है।

मोहित :
आचार्य! चरकः अपि भैषजरसायनं, ज्वालापरीक्षणं, वनस्पति-आधारितां च चिकित्सापद्धतिं निर्दिष्टवान्।

गरिमा :
महोदय! प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकानां नामानि तेषाम् आविष्कारः च विस्तरेण कुत्र लभ्यन्ते?

आचार्यः :
भारतस्य वैज्ञानिकपरम्परा सुदीर्घा अस्ति। तस्याः परिचयः संस्कृतस्य प्राचीनग्रन्थेषु प्राप्यते।

अनुवाद :
मोहित-आचार्य! चरक ने भी भैषज रसायन को, ज्वाला परीक्षण को और वनस्पति पर आधारित चिकित्सा पद्धति को निर्दिष्ट किया।

गरिमा :
महोदय! प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों के नाम तथा उनके आविष्कार विस्तार से कहाँ प्राप्त किये जा सकते हैं?

आचार्य :
भारतवर्ष की वैज्ञानिक परम्परा बहुत ही दीर्घ है। उसका परिचय संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में प्राप्त होता है।

प्राचीन-भारतीय-वैज्ञानिकाः शब्दार्थाः

सम्प्रति = आजकल। विसङ्गति = असमानता। इत्यस्य = (इति + अस्य) इसका। जतु/कुप्यातु = जस्ता। वर्गीकरणम् = गुणों के आधार पर स्थान निर्धारण। अवान्तर = आन्तरिक, भीतरी। पारदः = पारा। विद्युत्कोशः = सञ्चित विद्युत का भण्डार। कृष्णाङ्गारम् = कोयला। ताम्रम् = ताँबा। π (पै) = गणित में प्रयुक्त एक चिह्न। इसका मान \( \frac{22}{7}\) होता है। त्वचारोपणम् = त्वचाप्रत्यारोपण (प्लास्टिक सर्जरी)। नासिकारोपणम् = नासिकाप्रत्यारोपण (नाक को इच्छानुसार आकार देना)। कर्णरोपणम् = कान प्रत्यारोपण (कान को इच्छानुसार आकार देना)। तन्त्रिकाचिकित्सा = तन्त्रिका तन्त्र की चिकित्सा विधि। शल्यक्रिया = चीरफाड़ द्वारा चिकित्सा करना। उपकरणानि = उपकरण। भैषजरसायनम् = पेड़-पौधों के रस द्वारा औषधि निर्माण प्रक्रिया। सुदीर्घा = लम्बी। वैदिककालादेव = (वैदिककालात् + एव) वैदिक काल से ही। प्रयुज्यमानानि = प्रयोग में आने वाले। प्रयुज्यन्ते = प्रयुक्त होते हैं। प्रकाशनिस्सारणक्रिया = प्रकाश संश्लेषण, सूर्य के प्रकाश में पौधों द्वारा भोजन संग्रहण करने की क्रिया।

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