MP Board Class 12th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 8 छोटे-छोटे सुख (ललित निबंध, रामदरश मिश्र)

छोटे-छोटे सुख अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
रामदरश मिश्र उन सारे कार्यों के प्रति उदासीन क्यों रहे, जो तरक्की के लिए जरूरी हैं?
उत्तर:
वास्तव में,लेखक महोदय का मन सदैव से ही बड़ा अल्पाकांक्षी है। आवश्यकता के लिए दौड़-भाग करने के अतिरिक्त, तरक्की के चक्कर में पड़कर स्वयं को लहूलुहान कर लेना लेखक के लिए वश की बात नहीं। लेखक को यदि तेज रफ्तार जिन्दगी की भागमभाग में जब कभी शामिल होना पड़ा तो हुए-अर्थात् पढ़ाई के लिए, नौकरी के लिए या किसी संकट के समय, किन्तु उन्नति के लिए योजनाएँ बना-बनाकर यहाँ-वहाँ भागते फिरने उन्हें कभी रास नहीं आया। इसलिए वह उन सारे कार्यों के प्रति उदासीन रहे, जो तरक्की के लिए जरूरी समझे जाते हैं।

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प्रश्न 2.
“घर घुसरे मन के बावजूद लेखक को सब कुछ मिल गया।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
लेखक के लिए उसकी सबसे बड़ी दुनिया थी उसका घर। बाहर जितनी देर तक रहना जरूरी होता उतनी देर ही लेखक बाहर रहते थे,फिर घर की ओर भाग खड़े होते थे। वास्तव में,लेखक का मन बड़ा ही अल्पाकांक्षी है,उसे थोड़े से ही सन्तुष्टि मिल जाती है। उसे भागमभाग करने की उत्तेजना प्राप्त नहीं होती। लेखक को भागमभाग में शामिल होना ही पड़ा,तो हुआअर्थात् पढ़ाई के लिए, नौकरी के लिए या किसी के संकट के समय। उन्नति के लिए योजनाएँ बनाकर यहाँ-वहाँ भागते फिरना तथा कुछ अनचाहा पाने की दौड़ में स्वयं को लहूलुहान कर लेना लेखक को कभी भी रास नहीं आया। लेखक को उनके मन की इस घर-घुसरी प्रकृति के बावजूद काफी कुछ मिला, भले ही देर से सही, भले ही मात्रा में कम मिला, किन्तु मिला। लेखक को तो कभी-कभी इस बात पर आश्चर्य होता है कि उसे इतना सब कुछ कब और कैसे मिल गया, जिसके लिए उसने कभी भी विशेष प्रयास नहीं किये थे।

प्रश्न 3.
“मैं छोटा आदमी हूँ और छोटा बना रहना चाहता हूँ।” मिश्रजी के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मिश्रजी स्वयं को एक साधारण और छोटा आदमी समझते हैं और चाहते हैं कि वे छोटे ही बने रहें। उन्हें ऐसे बड़प्पन की कल्पना मात्र से डर लगता है, जब उनका समस्त व्यक्तिगत सुख,खाँसना-खखारना,उठना-बैठना मीडिया के माध्यम से लोगों में समाचार बनकर फैलता रहे। मिश्रजी नहीं चाहते कि वे बड़े आदमी बनें और अपने आत्मीय लोगों तक से उन्हें एक विशेष दूरी बना कर रखनी पड़े अथवा उनके अपने लोग उनसे दूरी बनाकर रखें। वह छोटा आदमी ही बने रहना चाहते हैं जिससे उनके निजी सुख-दुःख उनके निजी ही रहें। वह अपने मन के अनुसार कहीं भी आ-जा सकें, किसी से भी घुल-मिल सकें और कुछ भी, कहीं भी खा-पी सकें। मिश्र जी स्वयं को सामान्य लोगों के मध्य पाकर प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 4.
मिश्रजी ने जिन छोटे-छोटे सुखों की चर्चा की है, उनकी एक सूची बनाइए।
उत्तर:
मिश्रजी के अनुसार छोटा ही सही, किन्तु सबसे बड़ा सुख यह होता है कि जीवन अपने मन से जिया जाये-चाहे वह साहित्यिक जीवन हो, सामाजिक जीवन हो अथवा पारिवारिक जीवन। मिश्र जी के लिए छोटी-छोटी उपलब्धियाँ भी बहुत बड़ी हैं। मिश्र जी अपार सुख का अनुभव करते हैं जब रेलवे स्टेशन पर टिकट आरक्षित करा लेते हैं या फिर किसी अस्पताल में स्वयं को या अपने घर के किसी परिजन को दिखा लेते हैं अथवा यात्रा में अच्छे लोग मिल जाते हैं अथवा यात्रा शुरू होने से पूर्व तथा समाप्त होने के पश्चात् कोई भला टैक्सी वाला या ऑटो वाला मिल जाता है। मिश्रजी को तब भी असीम आनन्द और सुख प्राप्त होता है जब सीढ़ियों पर चढ़ते समय कोई युवती उनकी पत्नी की सहायता करने को तत्पर दिखाई पड़ती है। वास्तव में, मिश्रजी संतोषी प्रवृत्ति के,छोटे से सुख में ही बड़ेपन का अनुभव करने वाले सीधे सरल व्यक्तित्व के स्वामी हैं।

प्रश्न 5.
बड़प्पन प्राप्ति की कल्पना से मिश्रजी को भय क्यों लगता है?
उत्तर:
मिश्रजी स्वयं को एक सामान्य व्यक्ति समझते हैं और सामान्य व्यक्तियों के बीच खो जाना चाहते हैं। उन्हें बड़प्पन प्राप्ति की कल्पना मात्र से बहुत डर का अनुभव होता है। उनके अनुसार बड़ा आदमी बनने का मतलब है समस्त व्यक्तिगत सुख, खाँसना-खखारना, उठना-बैठना इत्यादि का,मीडिया के माध्यम से लोगों में समाचार बनकर फैलना। बड़े व्यक्ति होकर वे किसी भी ऐसे कार्यक्रम में नहीं जा सकेंगे जहाँ उन्हें आमन्त्रित न किया गया हो, किसी सार्वजनिक स्थान पर लोग उन्हें घेर कर खड़े होंगे,किन्तु उन्हें उनसे एक निश्चित दूरी बनाकर ही बात करनी पड़ेगी, आम व्यक्ति की तरह वह हँस-बोल नहीं सकेंगे,मनचाही जगह आ-जा नहीं सकेंगे और न ही मनचाहा खा-पी सकेंगे। बड़ा बनते ही उन्हें बड़प्पन का एक ऐसा ‘चोला’ धारण करना पड़ेगा कि जिसमें उनकी निजता ही दम तोड़ देगी। मिश्रजी को ऐसे बड़प्पन की कल्पना मात्र से ही भय लगता है। वह तो चाहते हैं कि उनके व्यक्तिगत सुख-दुःख की बात उनके आस-पास ही चक्कर काटती रहे। उनकी त्रुटियाँ और उपलब्धियाँ उनके और उनके सगे-सम्बन्धियों के बीच ही होती रहें।

प्रश्न 6.
“रामदरश मिश्र आजीवन मनुष्यता के प्रति संवेदनशील बने रहे।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
रामदरश मिश्र ‘सादा जीवन-उच्च विचार के मूल मन्त्र पर अपना जीवन काटने वाले एक संतोषी प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। वे बड़े बनने की खोखली मनोवृत्ति और तरक्की के इरादे से किए जाने वाले गोरखधन्धों से दूर रहने वाले एक साधारण प्राणी है। मिश्रजी जीवन में प्राप्त होने वाली छोटी-मोटी उपलब्धियों में से ही सुख के असीम क्षणों को खोज निकालने की कला के कुशल चितेरे हैं। जीवन-भर वे सगे-सम्बन्धियों, परिजनों एवं व्यक्तियों के प्रति संवेदनशील बने रहना चाहते हैं। उनका मन बड़ा ही अल्पाकांक्षी रहा है और वे मनुष्यता एवं मानव मूल्यों के प्रति सदैव ही संवेदनशील रहे। छोटे-बड़े कई ऐसे प्रकरण वे अपनी स्मृतियों में संजोए हुए हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि मनुष्यता अभी मरी नहीं है, छोटे-छोटे भाव और क्रिया दीप्तियों के रूप में वह आज तक जीवित है और सम्भवतया मनुष्य के रहने तक जीवित रहेगी।

उपर्युक्त चर्चा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि रामदरश मिश्र ने एक साधारण व्यक्ति होते हुए भी अपनी संतोषी प्रवृत्ति के कारण एक अच्छा व सुखमय जीवन व्यतीत किया है। साथ ही, वे आजीवन मनुष्यता के प्रति संवेदनशील बने रहे हैं।

प्रश्न 7.
मूर्ति उठाने वाली युवती से आपको क्या प्रेरणा मिलती है और क्यों?
उत्तर:
स्टेशन पर सीढ़ियाँ चढ़ते समय मिश्रजी की पत्नी से भारी मूर्ति लेकर उठाने वाली युवती के कृत्य से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए। इस प्रकार जरूरतमन्दों की आवश्यकता के समय की गई सहायता से हमारा तो कुछ नहीं जाता अपितु सहायता प्राप्त करने वाले व्यक्ति से प्राप्त आशीर्वाद और शुभ वचन हमें जीवन में और अधिक अच्छा करने के लिए प्रेरित करते हैं। कठिनाई के समय मूर्ति उठाने में मदद करने वाली उस युवती के निःस्वार्थ सेवा-भाव की स्मृति मिश्रजी जीवन भर संजोए रहे । हमें भी उस युवती के समान ही गरीब, असहाय,महिला, वृद्ध, रोगी इत्यादि की समय पड़ने पर भरपूर सहायता करनी चाहिए।

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छोटे-छोटे सुख अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक रामदरश मिश्र ने अपने मन के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
लेखक रामदरश मिश्र के अनुसार उनका मन बड़ा ही अल्पाकांक्षी है। उसे आलसी या कायर भी कह सकते हैं। जो कहना हो,कह लीजिए उसे भागमभाग करने की उत्तेजना प्राप्त नहीं होती।

प्रश्न 2.
लेखक रामदरश मिश्र को सम्मान के रूप में आगरा में क्या मिला? उस समय उनके साथ और कौन था?
उत्तर:
लेखक रामदरश मिश्र को सम्मान के तहत आगरा में माँ सरस्वतीजी की एक भारी मूर्ति मिली थी। उस समय उनके साथ उनकी धर्मपत्नी मौजूद थीं।

छोटे-छोटे सुख पाठ का सारांश

सुप्रसिद्ध निबन्धकार ‘रामदरश मिश्र द्वारा लिखित प्रस्तुत ललित निबन्ध छोटे-छोटे सुख’ में लेखक ने तरक्की और उन्नति के लिए आपाधापी करने के स्थान पर संतोषी मनुष्य के जीवन में दिन-प्रतिदिन आने वाले छोटे,किन्तु महत्त्वपूर्ण सुखों के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।

लेखक सदैव से ही संतोषी प्रवृत्ति के व अल्पाकांक्षी रहे हैं। पढ़ाई, नौकरी और अब सेवानिवृत्ति तक की लम्बी यात्रा में उन्हें जो प्राप्त हुआ,वे उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। इस दौरान उन्हें जो प्राप्त नहीं हो सका, वे उन सबके बारे में सोचना भी नहीं चाहते, क्योंकि वे उन्नति और तरक्की पाने की जुगत में स्वयं को असहाय ही पाते हैं। लेखक स्वयं को एक नितान्त साधारण व्यक्ति मानते हैं, एक ऐसा व्यक्ति जो बहुत बड़ा विद्वान अथवा साहित्यकार तो नहीं है,अपितु जो भी वह जानते हैं सदैव दूसरों के साथ वह अनुभव अथवा ज्ञान बाँटने को तत्पर रहते हैं। लेखक बड़े सुख की प्राप्ति की कामना में स्वयं को लहूलुहान करने की बजाय दिन-प्रतिदिन,जाने-अनजाने प्राप्त होने वाले छोटे-छोटे सुखों से सन्तुष्ट होने की बात कहते हैं। लेखक इतना बड़ा व्यक्ति भी नहीं बनना चाहते कि उन्हें लोगों से एक दूरी बनाकर रहना पड़े अथवा लोग स्वयं ही उनसे दूरी बनाने लगें। लेखक के अनुसार छोटा ही सही, किन्तु सबसे बड़ा सुख यह होता है कि जीवन अपने मन से जिया जाय–चाहे वह साहित्यिक हो, सामाजिक हो अथवा पारिवारिक जीवन हो। लेखक का मन बहुत अल्पतोषी है वह तो छोटी-छोटी बातों में ही सुख का अनुभव कर लेता है। लेखक अपने जीवन से जुड़ी हर उस छोटी-बड़ी घटना को याद रखना चाहता है, जिससे उसे लेशमात्र भी सुख की प्राप्ति हुई हो।

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