MP Board Class 12th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 3 गणेश शंकर विद्यार्थी (संस्मरण, भगवतीचरण वर्मा)

गणेश शंकर विद्यार्थी अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
भगवतीचरण वर्मा का प्रथम परिचय गणेश शंकर विद्यार्थी से कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर नगर से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पत्र प्रताप के सम्पादक-संचालक थे। लगभग 13-14 वर्ष की आयु में लेखक को कविता लिखने का शौक प्रारम्भ हुआ। सन् 1917 में अपनी पहली कविता के प्रकाशनार्थ लेखक महोदय फीलखाना स्थित ‘प्रताप’ के कार्यालय में पहुँचे। कार्यालय में प्रवेश करते ही एक बड़े-से हॉल में चार-छह आदमी बैठे हुए काम करते दिखाई दिये। एक व्यक्ति अपने विचारों में खोया हुआ इधर-उधर टहल रहा था। दुबला-सा युवक,धोती और कमीज पहने हुए,मुख पर अधिकार की भावना,वही गणेश शंकर विद्यार्थी थे। विद्यार्थीजी के पूछने पर “क्या काम है?”,लेखक ने अपनी कविता आगे बढ़ाते हुए उसे ‘प्रताप’ में स्थान देने का आग्रह किया। विद्यार्थीजी ने लेखक को कविता एक अन्य कमरे में बैठे दूसरे व्यक्ति को देने के लिए कहा और पुनः अपने विचारों में मग्न हो गये। श्री गणेश शंकर विद्यार्थीजी से लेखक का यह प्रथम परिचय था, निहायत उखड़ा हुआ और रूखा-सा।

प्रश्न 2.
कानपुर में किन-किन साहित्यकारों से भगवतीचरण वर्मा की मित्रता हुई? (2015, 16)
उत्तर:
अपनी प्रारम्भिक कविताओं के ‘प्रताप’ में छपने के दो-तीन साल के अन्दर ही लेखक की मित्रता कानपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’,बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ एवं श्री रमाशंकर अवस्थी जैसे उच्चकोटि के साहित्यकारों से हो गई थी।

प्रश्न 3.
गणेश शंकर विद्यार्थी के व्यक्तित्व की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2010, 14)
उत्तर:
गणेश शंकर विद्यार्थी का व्यक्तित्व अत्यन्त विशाल एवं गहरा था। उनके व्यक्तित्व की अन्य विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) साधारण कद :
काठी एवं पहनावा-गणेश शंकर विद्यार्थी की कद-काठी साधारण थी। वे साधारण कद के दुबले-पतले से युवा थे। उनका पहनावा भी अत्यन्त साधारण होता था। वे अक्सर धोती-कमीज पहना करते थे।

(2) गम्भीर व्यक्तित्व :
साधारण कद-काठी के स्वामी गणेश शंकरजी का व्यक्तित्व बेहद गम्भीर था। उनकी सोच उच्च दर्जे की थी। वे अक्सर किसी भी समस्या के समाधान को ढूँढ़ने के क्रम में गम्भीरतापूर्वक विचार किया करते थे।

(3) निर्भीक सम्पादक एवं संचालक :
अंग्रेजों के शासन काल में कानपुर नगर से न सिर्फ उन्होंने ‘प्रताप’ का सफल प्रकाशन एवं संचालन किया, बल्कि निर्भीकता के साथ उन्होंने सरकार की गलत नीतियों, पूँजीपतियां द्वारा मजदूरों के होने वाले शोषण पर अपनी बात कही। वास्तव में,उनका समाचार-पत्र प्रताप’ भारतवर्ष का एक अति शक्तिशाली साप्ताहिक पत्र बन गया था। उनकी लेखनी, वाणी और व्यक्तित्व में बला का ओज था।

(4) महान् देशभक्त एवं समाज परिवर्तक :
गणेश शंकर विद्यार्थी महान् देशभक्त थे। अंग्रेजों के चंगुल से माँ भारती को स्वतन्त्र कराने की प्रबल महत्वाकांक्षा उनके मन-मस्तिष्क में सदैव विद्यमान रहती थी। वे अपने पत्र के माध्यम से देशभक्ति से सम्बन्धित लेख, कविताएँ प्रकाशित कर जनमानस को आन्दोलित करने में मुख्य भूमिका निभाते। क्रान्तिकारियों को आर्थिक अथवा नैतिक सहायता प्रदान करने की बात हो या फिर भूखे-उपेक्षित मजदूरों की समस्या, वे सदैव सहायता को तत्पर दिखते थे। समाजवाद की भावना से प्रेरित-प्रभावित हो उन्होंने मजदूरों के संगठन का काम भी अपने हाथ में ले लिया था।

(5) कुशल राजनीतिज्ञ एवं साहित्यकार :
गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर शहर के राजनीतिक जीवन के प्राण थे। वे अत्यन्त सरल और त्यागी तथा धन और वैभव से बहुत दूर रहने वाले व्यक्ति थे। वे कानपुर शहर के प्रमुख नेता थे। एक चुनाव में उन्होंने एक अत्यन्त सम्पन्न और प्रभावशाली पूँजीपति को करारी शिकस्त दी थी। एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ वे उच्च कोटि के साहित्यकार भी थे। देशभर के सुप्रसिद्ध साहित्यकारों के मध्य उनका नाम सम्मान से लिया जाता था।

(6) बला के प्राणशक्तिवान :
गणेश शंकर विद्यार्थी में बला की प्राण शक्ति थी। ‘प्रताप’ का सम्पादन एवं संचालन करना, मजदूरों के संगठन में स्वयं को पूरी तरह झोंक देना, क्रान्तिकारियों की जी-तोड़ सहायता करना और उनके आन्दोलनों में भाग लेकर जेल जाना आदि कार्य उनकी अद्भुत प्राणशक्ति के प्रमाण ही तो थे।

प्रश्न 4.
भगवतीचरण वर्मा ने गणेश शंकरजी से प्रभावित होकर किस प्रकार का साहित्य पढ़ा और लेख लिखे?
उत्तर:
गणेश शंकर विद्यार्थीजी अन्दर से उच्चकोटि के साहित्यकार थे। उनसे प्रेरित होकर ही भगवतीचरण वर्मा ने विक्टर ह्यगो के उपन्यास कच्ची उम्र में ही पढ़ डाले थे । क्रान्तियों से सम्बद्ध साहित्य के वह विशेषज्ञ थे। विश्व की नवीन उभरती हुई धाराओं को वह स्वाभाविक रूप से आत्मसात् कर लेते थे। उनके प्रभाव से ही भगवतीचरण वर्मा ने सन् 1921-22 में कार्ल मार्क्स,मैक्स्वीनी एवं फ्रान्स की राज्य क्रान्ति के प्रमुख व्यक्तियों पर लेख लिख डाले थे और जो उन्हीं दिनों प्रताप प्रेस से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘प्रभा’ में छपे थे। भगवतीचरण वर्मा के कविता के क्षेत्र से निकलकर गद्य साहित्य के क्षेत्र को अपनाने का श्रेय भी गणेश शंकरजी को ही जाता है।

प्रश्न 5.
विद्यार्थीजी पत्रकारिता के अतिरिक्त किन-किन गतिविधियों में सक्रिय थे?
उत्तर:
गणेश शंकर विद्यार्थीजी कानपुर नगर से ‘प्रताप’ नामक साप्ताहिक पत्र का सम्पादन एवं प्रकाशन करते थे। पत्रकारिता के साथ-साथ वे अन्य अनेक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। वे कानपुर शहर के राजनीतिक जीवन के प्राण थे। वे एक कुशल राजनीतिज्ञ थे। उन दिनों कानपुर की प्रमुख समस्या मजदूरों की समस्या थी। समाजवाद की भावना से प्रेरित होकर गणेश जी ने मजदूरों के संगठन का काम भी अपने हाथों में ले लिया था। मजदूर आन्दोलनों में उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। इसके अतिरिक्त वे एक महान् देशभक्त थे। वे भारत की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष कर रहे क्रान्तिकारियों को आर्थिक एवं नैतिक सहायता प्रदान करते थे।

इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि गणेश शंकरजी न सिर्फ निर्भीक पत्रकार थे, अपितु मजदूरों के संगठन के प्रणेता, क्रान्तिकारियों के सहायक एवं उच्च कोटि के साहित्यकार भी थे और जीवन-पर्यन्त वे इन गतिविधियों से जुड़े रहे।

गणेश शंकर विद्यार्थी अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्रताप’ में क्या-क्या छपता था?
उत्तर:
‘प्रताप’ नामक हिन्दी साप्ताहिक पत्र में देशभक्ति के लेख छपते थे तथा देशभक्ति से परिपूर्ण कविताएँ छपती थीं।

प्रश्न 2.
गणेशशंकर विद्यार्थी का ‘प्रताप’ से क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
स्वतन्त्रता आंदोलन के समय ‘प्रताप’ भारतवर्ष का एक शक्तिशाली साप्ताहिक बन गया था। गणेशशंकर विद्यार्थी उस पत्र के सम्पादक एवं संचालक दोनों थे।

गणेश शंकर विद्यार्थी पाठ का सारांश

भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखित प्रस्तुत संस्मरण ‘गणेश शंकर विद्यार्थी’ में, लेखक ने महान् देशभक्त एवं पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन, व्यक्तित्व एवं संघर्षों का प्रभावी चित्रण किया है।

मध्य भारत के एक बहुत साधारण मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे श्री गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर नगर से प्रकाशित होने वाले ‘प्रताप’ नामक हिन्दी साप्ताहिक पत्र के सम्पादक-संचालक थे। उन दिनों संयुक्त प्रान्त (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) में ‘प्रताप’ की धूम थी। लेखक को उन दिनों कविताएँ लिखने का नया-नया शौक लगा था। 1917 में लेखक स्वरचित प्रथम कविता के प्रकाशनार्थ प्रताप’ के कार्यालय में पहुँचे। उनका सामना एक दुबले-पतले, धोती-कमीज पहने हुए एक धीर-गम्भीर व्यक्ति से हुआ। वही गणेश शंकर विद्यार्थी थे। लेखक की प्रथम कविता जल्द ही ‘प्रताप’ में मामूली से भाषा-परिवर्तन के साथ प्रकाशित हो गई। उसके बाद तो लेखक की रचनाएँ अक्सर ‘प्रताप’ में छपने लगीं। कुछ ही वर्षों में कानपुर में लेखक, सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ एवं श्री रमाशंकर अवस्थी का एक गुट बन गया इन सबके मानस-गुरु थे गणेश शंकर विद्यार्थी।

गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर शहर के राजनीतिक प्राण थे। अत्यन्त सरल और त्यागी, धन और वैभव से बहुत दूर रहने वाले व्यक्ति। अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियों और अभावों के बावजूद उनकी लेखनी,वाणी और समस्त व्यक्तित्व में ओज था। वे एक सच्चे साहित्यकार थे। उन्हीं की प्रेरणा से लेखक ने छोटी उम्र में ही विश्व के कई साहित्यकारों के साहित्य को पढ़ लिया था। लेखक के अनुसार वह आज जो भी कुछ है, गणेश शंकर विद्यार्थी का उसमें अहम् योगदान है। गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रेरणा, परोपकार और त्याग के चलते ही लेखक आज साहित्याकाश में कुछ नाम कमा पाये हैं।

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