MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 9 विविधा-1

विविधा-1 अभ्यास

विविधा-1 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी का आँचल किस प्रकार का कहा गया है?
उत्तर:
पृथ्वी का आँचल सुनहरी धानों जैसा कहा गया है।

प्रश्न 2.
बसन्त के आमगन पर प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं? (2014)
उत्तर:
बसन्त के आगमन पर नवयुवती बेल रूपी दुल्हन ने नवीन कोपलों के वस्त्र धारण कर लिये हैं। भौरे गुंजार कर रहे हैं। बेलों के पुष्पों का हार पहन कर समीर धीरे-धीरे बहने लगता है। धरती रूपी नायिका का सुनहरी धान्य भरा आँचल लहराने लगा है।

प्रश्न 3.
‘धरती और बसन्त’ का आपस में क्या नाता है? (2017)
उत्तर:
धरती मानव है तो बसन्त मानवता है। यही नाता दोनों का है।

प्रश्न 4.
नये-नये फूल कवि को कैसे लगते हैं?
उत्तर:
नये-नये लाल फूल कवि को ऐसे लगते हैं मानो मनुष्य के हृदय के भीतर जलने वाली क्रान्ति विधात्री आग का ही प्रतिरूप हो।

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विविधा-1 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पल्लव वसना’ किसे कहा गया है? (2016)
उत्तर:
पल्लव वसना’ सूखी-सी डाल को कहा गया है जो बसन्त के आने पर पल्लवों से वस्त्रधारिणी बनेगी। वह डाली उस शैलपुत्री के समान है जिसने पत्ते भी खाना छोड़ दिया था और सूख गई थी। वह सूखी डाली बसन्त के आने पर पल्लवों से वस्त्रधारिणी बनेगी।

प्रश्न 2.
शिपार्वती और सूखी डाली के बीच कौन-कौनसी समानताएँ हैं?
उत्तर:
शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए शैलपुत्री ने पत्ते भी खाना छोड़ दिया था। अतः अत्यन्त कमजोर हो गईं थीं। इधर पतझड़ ऋतु के आने पर डालें पत्तों से रहित हो जाती हैं। फिर बसन्त के आने पर उनमें नवीन पत्ते आ जाते हैं। अर्थात् वह पल्लवों से वस्त्रधारिणी बनती हैं। पार्वती अपनी तपस्या के बाद शिवजी का वरण करेंगी। यह डाल रूपी वधू बसन्त के आने पर बासन्ती वस्त्र पहनेगी।

प्रश्न 3.
“धरती है मानव तो बसन्त मानवता है” कवि की इस उक्ति का आशय समझाइये।
उत्तर:
कवि ने अपनी कविता में बसन्त के सौन्दर्य को मनुष्य के माध्यम से ही व्यक्त किया है। बसन्त में खिले लाल पुष्प मानो मनुष्य के हृदय के भीतर जलने वाली क्रान्ति रूपी आग का ही प्रतिरूप हैं। यह परस्पर आदान-प्रदान है, जो मनुष्य और प्रकृति के बीच निरन्तर चलता रहता है। मनुष्य जब मानवता की भावना से जुड़ता है तभी उसके भीतर बसन्त खिलता है। कवि ने यहाँ धरती को मानव तो बसन्त को मानवता माना है। जिस प्रकार बसन्त धरती पर आकर चारों ओर आल्हाद बिखेर देता है उसी प्रकार मानव जब मानवता को समझ लेता है और उसके हित में भागीदार होता है तो ही बसन्त आता है अर्थात् खुशियाँ छा जाती हैं।

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विविधा-1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निराला ने नवोत्कर्ष की बात किसके लिए कही है?
उत्तर:
निराला ने कहा है कि बसन्त आ गया है, जिससे सम्पूर्ण वन आनन्दित हो उठा है और चारों ओर सौन्दर्य का नया उत्कर्ष छा गया है। नवयुवती बेल रूपी दुल्हन ने नवीन कोंपलों के वस्त्र धारण कर लिये हैं और वृक्ष रूपी पति के गले से उमंगित होकर मिल रही है। भौरे गुंजार कर रहे हैं मानो बसन्त की वन्दना में चारण की भाँति गीत गा रहे हों। कोयल के स्वर को सुनकर आकाश के हृदय में प्रसन्नता भर गई है। समीर सुगन्धित फूलों का हार पहने धीरे-धीरे बहने लगा है। तालाब में कमल खिल गये हैं और कली के केशर रूपी केश बिखर गये हैं। बसन्त के आने पर चारों ओर नवोत्कर्ष स्पष्ट लक्षित हो रहा है।

प्रश्न 2.
“मधुव्रत में रत वधू मधुर फल देगी जग को स्वाद तोष दल” के भाव को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
बसन्त के आगमन पर सूखी डाली बासन्ती वस्त्र धारण करेगी। यह वधू मधु का व्रत लेकर समस्त संसार को स्वाद का सन्तोष प्रदान करने वाला फल देगी। जिस शिव ने जहर को अमृत समझ कर पिया,ऐसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले का बल समस्त संसार को उपहार में देगी। यह डाल रूपी वधू बासन्ती वस्त्र पहनेगी। इसका शुष्क एवं रूखापन बसन्त के आगमन पर पीलेपन में परिवर्तित हो जायेगा। यह पूरा वातावरण प्रसन्नता का द्योतक है। पुष्प मधु से भर जाते हैं। प्रस्तुत पंक्ति के दो भाव हैं

पार्वती के पक्ष में :
मधुर मिलन का व्रत लिए अनुरागिनी वधू मधुर फल (प्रिय-मिलन) को प्राप्त करेगी और संसार को सन्तोष रूपी स्वाद का फल प्रसाद रूप में देगी अर्थात् पार्वती भगवान शिव से विवाह करके जो मधुर फल प्राप्त करेंगी उसे जगत को दे देंगी। शीघ्र प्रसन्न होने वाली शिवजी की शक्ति से भी अमृत हो जायेगा।

बसन्त के पक्ष में :
डाल रूपी बधू मधु (बसन्त) के व्रत के मधुर मिलन की प्रतीक्षा में मग्न है और संसार को तृप्ति प्रदान करती फूलों की पाँखुरी से ग्रीष्म रूपी गरल का बसन्त रूपी अमृत बन जायेगा।

प्रश्न 3.
मुक्तिबोध ने प्रकृति को किस रूप में पहचाना है?
उत्तर:
मुक्तिबोध की अनुभूति अत्यन्त गम्भीर तथा मार्मिक है। कल्पना में प्रसूतों की महक है जो भावना सागर की लहरों को मोहित करने वाली है। मुक्तिबोध ने प्रकृति को मानवीय भावनाओं से जोड़ा है। धरती ने जो लाल-लाल फूल खिलाए हैं वे ऐसे लगते हैं जैसे मानव के हृदय में क्रान्ति की ज्वाला के उठते हुए भाव हों। बसन्त मानो पृथ्वी की ही छाया हो जो प्रकृति के ऊपर पड़कर चारों ओर के वातावरण को सुन्दर और सुखद बना देती है। धरती और बसन्त का नाता यह है कि धरती मानो मानव है तो बसन्त मानवता है। मनुष्य जब मानवता की भावना से जुड़ता है तभी उसके अन्दर बसन्त खिलता है। बसन्त में खिले लाल फूल मानो मनुष्य के हृदय के भीतर जलने वाली क्रान्ति रूपी ज्वाला का ही प्रतिरूप हों। बसन्त की प्राकृतिक सुषमा का सम्बन्ध मनुष्य की चेतना से भी है।

प्रश्न 4.
‘मुझमें अपना ज्वलन्त बसन्त निहार लिया’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
इस पंक्ति से कवि का तात्पर्य है कि धरती ने अपना धानी घूघट खोल कर मेरे हृदय के ज्वलन्त बसन्त को देख लिया अर्थात् बसन्त में खिले लाल पुष्प मानो हृदय के भीतर जलने वाली क्रान्ति रूपी ज्वाला का ही प्रतिरूप हों। मेरे हृदय में जलती अग्नि रूपी आसव को पीकर धरती ने लाल-लाल फूल खिलाए हैं। उन नये-नये फूलों में भी कवि को अग्नि दिखाई देती है क्योंकि उसके अन्दर भी क्रान्ति की आग सुलग रही है। मेरे अन्दर जो अग्नि की ज्वाला जल रही है वह मुझे बसन्त के लाल-लाल फूलों में दिखाई दे रही है। कवि ने मानव का धरती से तादात्म्य स्थापित किया है। अन्त में कवि ने स्पष्ट कर दिया है कि धरती यदि मानव है तो बसन्त मानवता है। धरती के मानव पर कोई कष्ट आयेगा तो उसे बसन्त भी कष्टदायक प्रतीत होगा। मनुष्य जब मानवता की भावना से जुड़ता है,तभी उसके भीतर बसन्त खिलता है।

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प्रश्न 5.
मुक्तिबोध ने नये-नये फूलों का वर्णन किस रूप में किया है?
उत्तर:
मुक्तिबोध के काव्य में विचार तत्त्व की प्रधानता है। बसन्त की प्राकृतिक सुन्दरता का सम्बन्ध मनुष्य की चेतना से है। एक तरह से कवि ने बसन्त के सम्पूर्ण सौन्दर्य को मनुष्य के माध्यम से ही व्यक्त किया है। उन्होंने नये-नये फूलों का वर्णन मनुष्य के हृदय में जलती हुई क्रान्ति की ज्वाला से किया है। नये-नये फूल भी आग भरे लगते हैं। मैंने उनको पहचाना नहीं कि वे मेरे हैं, धरती को कहा वे सब तेरे हैं। धरती ने तो फूल मनुष्य के लिए ही खिलाए हैं। जब मनुष्य के हृदय में कोई संघर्ष चल रहा हो तो वे फूल उसे क्रान्ति को पूर्ण करने का ही उत्साह देते हैं। कवि बसन्त के लाल-लाल फूलों को अपने हृदय में जलती हुई क्रान्ति की ज्वाला के समान मानता है। धरती पर बसन्त तभी सुन्दर लगता है जब मानवता बेवश व पददलित न हो। मानव के समाज में समरसता का होना आवश्यक है। जब तक समाज में विषमता रहेगी बसन्त के फूल हृदय में जलती हुई ज्वाला के समान लगेंगे।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पद्यांशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिये
(1) किसलय वसना ……… तरु पतिका।
(2) हीरक-सी समीर ……. अपर्ण अशना।
(3) धरती ने ……….. निहार लिया।
(4) बसन्त नहीं हूँ ………… बसन्त मानवता है।
उत्तर:
(1) सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘बसन्त गीत’ शीर्षक से उद्धृत है।

प्रसंग :
इस कविता में कवि ने प्रकृति सुन्दरी के सौन्दर्य का वर्णन किया है,जो बसन्त के आगमन पर अति प्रसन्न है। कवि ने यहाँ प्रकृति का मानवीकरण किया है।

व्याख्या :
हे सखि ! बसन्त आ गया है, जिससे सम्पूर्ण वन आनन्दित हो उठा है और चारों ओर सौन्दर्य ही सौन्दर्य छा गया है। नवयुवती बेल रूपी दुल्हन ने नवीन कोंपलों के वस्त्र धारण कर लिये हैं और वृक्ष रूपी प्रिय पति के गले से प्रफुल्लित होकर मिल रही है, इस समय भौरे गुंजार कर रहे हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि बसन्त की वन्दना में चारण की तरह गीत गा रहे हैं। कोयल के स्वर से आकाश भी प्रसन्न हो गया है।

सुगन्ध के भरे हुए पुष्पों का हार पहनकर समीर भी धीरे-धीरे बहने लगा है। वन की आँखों में भी यौवन का जादू जाग उठा है। तालाब में कमल खिल गये हैं और कली के केसर रूपी केश बिखर गये हैं। धरती रूपी नायिका का सुनहरी धान्य भरा अँचल लहराने लगा है।

(2) सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ द्वारा रचित ‘वसन बासंती लेगी’ शीर्षक से उधृत है।

प्रसंग :
इस कविता में निराला जी ने बसन्त के आने से सूखी डाली में जो परिवर्तन आता है उसका वर्णन किया है। डाल की उपमा उन्होंने पार्वती से दी है।

व्याख्या :
हे सखि ! सूखी-सी यह डाल बसन्ती रंग का वस्त्र धारण करेगी। देखो, यह डाली पत्ते भी न खाने वाली पार्वती के समान हवा की चमकीली माला से जाप कर तपस्या कर रही है। यह पल्लवों के वस्त्र धारण करेगी। इसने गले में फूलों की माला पहन रखी है। सभी पुष्पों का रस बसन्त उसके हृदय-सरोवर में भर देगा। तब वह कामदेव को हराने वाले शिवजी का वरण करेगी। वह सूखी डाली बासन्ती वस्त्र धारण करेगी। यह वधू मधु का व्रत लेकर समस्त संसार को स्वाद का सन्तोष प्रदान करने वाला फल देगी। जिस शिव ने जहर को अमृत समझकर पिया,ऐसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले का बल सम्पूर्ण संसार को उपहार में देगी। यह डाल रूपी वधू बासन्ती वस्त्र पहनेगी। इसका शुष्क एवं रूखापन बसन्त के आगमन पर पीलेपन में परिवर्तित हो जायेगा।

(3) सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अमृत का चूंट शक्ति के’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव मुक्तिबोध’ हैं।

प्रसंग :
इसमें कवि ने बसन्त की प्राकृतिक सुषमा का सम्बन्ध मनुष्य की चेतना से लिया है। बसन्त में खिले लाल पुष्प मानो मनुष्य के हृदय के भीतर जलने वाली क्रान्ति रूपी आग का ही रूप है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि आज मैंने शक्तिरूपी अमृत का चूँट पी लिया है अर्थात् मुझमें चेतना और शक्ति आ गई है। धरती ने अपना धानी रंग का चूँघट उठा कर मेरे हृदय के अन्दर जलने वाली क्रान्ति की ज्वाला का बसन्त देख लिया है। धरती पर खिले हुए लाल-लाल फूल मनुष्य के हृदय में जलने वाली क्रान्ति की ज्वाला के समान हैं। नये-नये फूलों में भी अग्नि की ज्वाला दिखाई देती है उस मनुष्य को जो मानवता के लिए संघर्षरत है।

(4) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में बताया है कि धरती और बसन्त का गहरा सम्बन्ध है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि मैंने धरती के फूलों को अपना नहीं समझा। मैंने सोचा कि ये फूल धरती के हैं, धरती ने कहा कि ये सब तेरे हैं। बसन्त क्या है? बसन्त प्रकृति की लावण्यमयी छाया है जो पृथ्वी पर पड़ती है। धरती और मानव का अटूट नाता है। धरती मानव है तो बसन्त मानवता है। धरती पर जब मानव प्रसन्न होता है तो बसन्त आता है। यह परस्पर आदान-प्रदान है जो मनुष्य और प्रकृति के बीच निरन्तर चलता रहता है।

प्रश्न 7.
‘अमृत का चूंट शक्ति के’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए। (2010)
उत्तर:

प्रस्तुत कविता ‘बसंत गीत ऋतु-चित्रण के महत्त्वपूर्ण कवि ‘सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने ऋतुराज बसंत का बड़ा मनोहारी वर्णन किया है।

‘निराला’ छायावाद के श्रेष्ठ कवि हैं। उनकी कविता में समाज,संस्कृति,प्रकृति, अध्यात्म, व्यंग्य आदि भावों का समावेश है। वे निर्भीक कवि हैं। बसन्त वर्णन में तो वे सिद्धहस्त हैं ही। उनकी ऋतुपरक कविताओं में बसन्त के लिए सर्वाधिक स्थान है। प्रस्तुत कविता में बसन्त प्रसन्नता और उत्कर्ष का भाव लेकर आता है। यह मिलन की ऋतु है और रस-रंग का काल है। खेतों में पीताभ फसलें लहरा रही हैं। जीवन का उल्लास और प्रकृति का सौन्दर्य दोनों इस कविता में परिलक्षित होते हैं। पतझड़ में पत्तों से रहित हो जाने वाली डाल बसन्त आते ही पत्र-वसना हो जाती है। उसका तप,त्याग मानो सफल हो गया हो। बसन्त आकर सभी जगह रस भर देगा और सभी अच्छे कार्यों की तरह बसन्त भी इस पृथ्वी पर विस्तारित होगा। इस कविता में सूखी डाली को कवि ने तप करती हुई पार्वती के रूप में स्वीकार किया है। उसकी तपस्या के परिणामस्वरूप ही उसे बसन्त रूपी शिव से विवाह करने का अवसर प्राप्त होता है।

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विविधा-1 काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए
बसन्त, मधुप, सरसिज, पल्लव, गरल।
उत्तर:
बसन्त ऋतुराज, बासंत, ऋतुपति। मधुप-भौंरा, भ्रमर, अलि। सरसिज कमल,पंकज,नलिन। पल्लव-पत्ता,पत्र,कोपल। गरल-विष,जहर, हलाहल।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में से अलंकार पहचान कर लिखिये
(अ) किसलय-वसना नव-वय लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका
(ब) हीरक-सी-समीर-माला जप
(स) धरती ने खिलाये हैं ज्वलन्त लाल-लाल
उत्तर:
(अ) रूपक व मानवीकरण अलंकार।
(ब) उपमा अलंकार।
(स) पुनरुक्तिप्रकाश।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में शब्द गुण पहचान कर लिखिए
स्नेह-सरस भर देगा उर-सर स्मर हर को वरेगी
वसन बासंती लेगी।
उत्तर:
माधुर्य गुण है।

प्रश्न 4.
बसन्त नहीं हूँ केवल तेरी ही लावण्यमयी
छाया हूँ, तेरी ही जो मुझ पर ही छा गयी।
उपर्युक्त पंक्तियों में रस पहचान कर लिखिए।
रस का स्थायी-भाव भी लिखिए।
उत्तर:
शृंगार रस। स्थायी भाव-रति।

प्रश्न 5.
मुक्तक काव्य से आप क्या समझते हैं? आपकी पाठ्य-पुस्तक के पद्य भाग में कौन-कौन से पाठ मुक्तक काव्य की श्रेणी में आते हैं?
उत्तर:
मुक्तक काव्य-मुक्तक काव्य में किसी एक अनुभूति,भाव या कल्पना का चित्रण किया जाता है। इसमें प्रत्येक पद स्वतन्त्र एवं अपने आप में पूर्ण होता है। मुक्तक काव्य दो प्रकार के होते हैं-पाठ्य-मुक्तक और गेय मुक्तक। कबीर, तुलसी, वृंद,रहीम आदि कवियों के भक्ति और नीति विषयक दोहे पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत आते हैं। गेय मुक्तक में भावों की प्रधानता रहती है। सूर, तुलसी,मीरा, प्रसाद, महादेवी वर्मा आदि के गीत गेय मुक्तक हैं।

प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों को पढ़िए तथा नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए
उषा सुनहरे तीर बरसाती
जय-लक्ष्मी-सी उदित हुई,
उधर पराजित कालरात्रि भी,
जल में अंतर्निहित हुई।
1. ‘उषा के सुनहरे तीर बरसाने’ से क्या तात्पर्य है?
2. ‘कालरात्रि’ को पराजित क्यों कहा गया है?
3. ‘जय-लक्ष्मी-सी उदित हुई’ पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए।
4. उपर्युक्त पद्यांश का भाव लिखिए।
उत्तर:
1. ‘उषा के सुनहरे तीर बरसाने’ से तात्पर्य यह है कि प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व के समय, उषाकाल में पृथ्वी व आकाश में फैला प्रकाश सुनहरा होता है। उस सुनहरे प्रकाश की प्रारम्भिक किरणें ऐसी प्रतीत हो रही हैं,मानो आकाश में कोई सुनहरे तीरों की बारिश कर रहा हो।

2..उषा के आने पर रात्रि का अंधकार नष्ट हो जाता है तथा पृथ्वी पर चारों ओर प्रकाश फैल जाता है। जिस प्रकार युद्ध में हारने वाले का अस्तित्व ही नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार दिन के निकलने पर रात का साम्राज्य नष्ट हो, विलुप्त हो जाता है। अतः कालरात्रि’ को पराजित कहा गया है।

3. ‘जय-लक्ष्मी-सी उदित हुई’ पंक्ति में उपमा अलंकार है।

4. भाव-उपर्युक्त पद्यांश में उषाकाल का सजीव चित्रण करते हुए कहा गया है कि जब प्रातःकाल से पहले उषाकाल आता है तो रात्रि का समस्त अंधकार नष्ट होने लगता है और सम्पूर्ण संसार में उषा की लालिमा छा जाती है। धीरे-धीरे दिन के उदय होने पर पृथ्वी एवं आकाश में प्रकाश फैलने लगता है और इस प्रकाश के हाथों पराजित रात का अंधकार विलुप्त हो जाता है अर्थात् रात का समापन होकर दिन का आगमन होने लगता है।

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बसंत गीत, वसन बासंती लेगी भाव सारांश

प्रस्तुत कविता ‘बसंत गीत ऋतु-चित्रण के महत्त्वपूर्ण कवि ‘सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने ऋतुराज बसंत का बड़ा मनोहारी वर्णन किया है।

‘निराला’ छायावाद के श्रेष्ठ कवि हैं। उनकी कविता में समाज,संस्कृति,प्रकृति, अध्यात्म, व्यंग्य आदि भावों का समावेश है। वे निर्भीक कवि हैं। बसन्त वर्णन में तो वे सिद्धहस्त हैं ही। उनकी ऋतुपरक कविताओं में बसन्त के लिए सर्वाधिक स्थान है। प्रस्तुत कविता में बसन्त प्रसन्नता और उत्कर्ष का भाव लेकर आता है। यह मिलन की ऋतु है और रस-रंग का काल है। खेतों में पीताभ फसलें लहरा रही हैं। जीवन का उल्लास और प्रकृति का सौन्दर्य दोनों इस कविता में परिलक्षित होते हैं। पतझड़ में पत्तों से रहित हो जाने वाली डाल बसन्त आते ही पत्र-वसना हो जाती है। उसका तप, त्याग मानो सफल हो गया हो। बसन्त आकर सभी जगह रस भर देगा और सभी अच्छे कार्यों की तरह बसन्त भी इस पृथ्वी पर विस्तारित होगा। इस कविता में सूखी डाली को कवि ने तप करती हुई पार्वती के रूप में स्वीकार किया है। उसकी तपस्या के परिणामस्वरूप ही उसे बसन्त रूपी शिव से विवाह करने का अवसर प्राप्त होता है।

बसंत गीत, वसन बासंती लेगी संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) बसंत गीत
सखि बसंत आया।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका
मधुप-वृन्द बन्दी
पिक-स्वर नभ सरसाया
लता-मुकुल-हार-गन्ध भार भर
बही पवन बंद मंद मंदतर
जागी नयनों में बन
यौवन की माया।
आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे
केशर के केश कली के छूटे
स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया।

शब्दार्थ :
नवोत्कर्ष = नया विकास; किसलय वसना = कोंपल रूपी वस्त्र धारण करने वाली; नव वय लतिका = तरुणी लता; तरु पतिका = वृक्ष ही जिसका पति है; मधुप-वृन्द = भौरों का समूह; मुकुल = कली; सरसी = तालाब; सरसिज = कमल; आवृत्त = ढके हुए; स्वणे-शस्य = पके हुए धान रूपी सुनहरा; अंचल = आँचल।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘बसन्त गीत’ शीर्षक से उद्धृत है।

प्रसंग :
इस कविता में कवि ने प्रकृति सुन्दरी के सौन्दर्य का वर्णन किया है,जो बसन्त के आगमन पर अति प्रसन्न है। कवि ने यहाँ प्रकृति का मानवीकरण किया है।

व्याख्या :
हे सखि ! बसन्त आ गया है, जिससे सम्पूर्ण वन आनन्दित हो उठा है और चारों ओर सौन्दर्य ही सौन्दर्य छा गया है। नवयुवती बेल रूपी दुल्हन ने नवीन कोंपलों के वस्त्र धारण कर लिये हैं और वृक्ष रूपी प्रिय पति के गले से प्रफुल्लित होकर मिल रही है, इस समय भौरे गुंजार कर रहे हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि बसन्त की वन्दना में चारण की तरह गीत गा रहे हैं। कोयल के स्वर से आकाश भी प्रसन्न हो गया है।

सुगन्ध के भरे हुए पुष्पों का हार पहनकर समीर भी धीरे-धीरे बहने लगा है। वन की आँखों में भी यौवन का जादू जाग उठा है। तालाब में कमल खिल गये हैं और कली के केसर रूपी केश बिखर गये हैं। धरती रूपी नायिका का सुनहरी धान्य भरा अँचल लहराने लगा है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. प्रकृति को नायिका मान कर उसके रूप का वर्णन किया गया है।
  2. सांगरूपक, श्लेष तथा मानवीकरण अलंकार है।
  3. शृंगार रस का वर्णन है।
  4. संस्कृतनिष्ठ समास-प्रधान माधुर्य गुण का प्रयोग हुआ है।

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(2) वसन बासंती लेगी
रूखी री यह डाल,
वसन बासंती लेगी।
देख, खड़ी करती तप अपलक,
हीरक-सी-समीर-माला जप।
शैलसुता ‘अर्पण-अशना’
पल्लव-वसना बनेगी
वसन बासन्ती लेगी।
हार गले पहना फूलों का
ऋतुपति सकल सुकृत कूलों का
स्नेह सरस भर देगा उर-सर
स्मर हर को वरेगी
वसन बासंती लेगी।
मधुव्रत में रत वधू मधुर फल
देगी जग को स्वाद-तोष-दल
गरलामृत शिव आशुतोष-बल
विश्व सकल नेगी
वसन बासंती लेगी।

शब्दार्थ :
वसन = वस्त्र; शैलसुता = पार्वती; अर्पण-अशना = पत्तों को भी ग्रहण न करने वाली (पार्वती); सुकृत = पुण्य; स्मर-हर = कामदेव को पराजित करने वाले शिव; नेगी = उपहार देने वाला; गरलामृत = जहररूपी अमृत; आशुतोष = शिव, बासन्ती = बसन्त ऋतु में चलने वाली पवन; ऋतुपति = बसन्त; कूलों = किनारों।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ द्वारा रचित ‘वसन बासंती लेगी’ शीर्षक से उधृत है।

प्रसंग :
इस कविता में निराला जी ने बसन्त के आने से सूखी डाली में जो परिवर्तन आता है उसका वर्णन किया है। डाल की उपमा उन्होंने पार्वती से दी है।

व्याख्या :
हे सखि ! सूखी-सी यह डाल बसन्ती रंग का वस्त्र धारण करेगी। देखो, यह डाली पत्ते भी न खाने वाली पार्वती के समान हवा की चमकीली माला से जाप कर तपस्या कर रही है। यह पल्लवों के वस्त्र धारण करेगी। इसने गले में फूलों की माला पहन रखी है। सभी पुष्पों का रस बसन्त उसके हृदय-सरोवर में भर देगा। तब वह कामदेव को हराने वाले शिवजी का वरण करेगी। वह सूखी डाली बासन्ती वस्त्र धारण करेगी। यह वधू मधु का व्रत लेकर समस्त संसार को स्वाद का सन्तोष प्रदान करने वाला फल देगी। जिस शिव ने जहर को अमृत समझकर पिया,ऐसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले का बल सम्पूर्ण संसार को उपहार में देगी। यह डाल रूपी वधू बासन्ती वस्त्र पहनेगी। इसका शुष्क एवं रूखापन बसन्त के आगमन पर पीलेपन में परिवर्तित हो जायेगा।

काव्य सौन्दर्य :

  1. प्रकृति का मानवीकरण है,जो छायावादी कविता का प्रमुख गुण है।
  2. समास-प्रधान संस्कृतनिष्ठ भाषा होते हुए भी मधुरता लिए है।
  3. रूपक तथा मानवीकरण अलंकार है।
  4. शृंगार रस एवं माधुर्य गुण है।

अमृत का घूँट शक्ति के भाव सारांश।

प्रस्तुत कविता ‘अमृत का चूंट शक्ति के’ नई कविता के महत्त्वपूर्ण कवि ‘गजानन माधव मुक्तिबोध’ द्वारा लिखित है। इस कविता में कवि ने ऋतु-वर्णन का सुन्दर वर्णन किया है।

गजानन माधव मुक्तिबोध’ नई कविता के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। इनकी कविताओं में हमारे। समय के अन्तर्विरोध मिलते हैं। इनके काव्य में विचार तत्व प्रधान होता है। इनके प्रारम्भिक काव्य में ऋतु-वर्णन के सुन्दर चित्र प्राप्त होते हैं। बसन्त की प्राकृतिक सुन्दरता का सम्बन्ध मनुष्य। की चेतना से भी है। एक प्रकार से कवि ने बसन्त के पूर्ण सौन्दर्य को मनुष्य के माध्यम से ही व्यक्त किया है। बसन्त में खिले लाल पुष्प मानो मनुष्य के हृदय के भीतर जलने वाली क्रान्ति की ज्वाला के समान हैं। यह परस्पर आदान-प्रदान है जो मनुष्य और प्रकृति के बीच सदा चलता रहता है। मनुष्य जब मानवता की भावना से जुड़ता है,तभी उसके अन्दर बसन्त खिलता है। इस कविता में रूपक के माध्यम से यही सत्य प्रकट किया गया है।

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अमृत का घूँट शक्ति के संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) आज मैने शक्ति के अमृत का घुट पिया,
धरती ने अपना धानी पूँघट उघार कर
मुझमें अपना ज्वलन्त वसन्त निहार लिया।
मेरी हृदय-अग्नि के आसव को पिये,
अरे धरती ने खिलाये हैं ज्वलन्त लाल-लाल
नये-नये फूल कैसे लगते हैं आग भरे
जीवन-सुहाग भरे !!

शब्दार्थ :
धानी = सुनहरे रंग का; ज्वलन्त = जलता हुआ; निहार = देखना।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अमृत का चूंट शक्ति के’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव मुक्तिबोध’ हैं।

प्रसंग :
इसमें कवि ने बसन्त की प्राकृतिक सुषमा का सम्बन्ध मनुष्य की चेतना से लिया है। बसन्त में खिले लाल पुष्प मानो मनुष्य के हृदय के भीतर जलने वाली क्रान्ति रूपी आग का ही रूप है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि आज मैंने शक्तिरूपी अमृत का चूँट पी लिया है अर्थात् मुझमें चेतना और शक्ति आ गई है। धरती ने अपना धानी रंग का चूँघट उठा कर मेरे हृदय के अन्दर जलने वाली क्रान्ति की ज्वाला का बसन्त देख लिया है। धरती पर खिले हुए लाल-लाल फूल मनुष्य के हृदय में जलने वाली क्रान्ति की ज्वाला के समान हैं। नये-नये फूलों में भी अग्नि की ज्वाला दिखाई देती है उस मनुष्य को जो मानवता के लिए संघर्षरत है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. भाषा संस्कृतनिष्ठ होते हुए भी सरल है।
  2. कवि की अनुभूति अत्यन्त गम्भीर एवं मार्मिक है।
  3. प्रतीक एवं बिम्बों का प्रयोग किया गया है।

(2) मैंने पहचाना भी नहीं कि वे मेरे हैं,
धरती को कहा, तेरे फूल सब तेरे हैं
बसन्त नहीं हूँ,  केवल तेरी ही लावण्यमयी
छाया हूँ, तेरी ही जो मुझ पर छा गयी !!
धरती औ’ बसन्त के समान ही जो नाता है
धरती है मानव तो बसन्त मानवता है !!

शब्दार्थ :
लावण्यमयी = सुन्दरता से भरी।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में बताया है कि धरती और बसन्त का गहरा सम्बन्ध है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि मैंने धरती के फूलों को अपना नहीं समझा। मैंने सोचा कि ये फूल धरती के हैं, धरती ने कहा कि ये सब तेरे हैं। बसन्त क्या है? बसन्त प्रकृति की लावण्यमयी छाया है जो पृथ्वी पर पड़ती है। धरती और मानव का अटूट नाता है। धरती मानव है तो बसन्त मानवता है। धरती पर जब मानव प्रसन्न होता है तो बसन्त आता है। यह परस्पर आदान-प्रदान है जो मनुष्य और प्रकृति के बीच निरन्तर चलता रहता है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. भाषा सहज और सरल है।
  2. धरती को मानव और बसन्त को मानवता का रूपक दिया गया है।
  3. मानवीकरण की छटा दर्शनीय है।

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