MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 5 प्रकृति चित्रण
प्रकृति चित्रण अभ्यास
प्रकृति चित्रण अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रस्तुत गीत में ‘तारागण’ को किस रूप में चित्रित किया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत गीत में ‘तारागण’ को घट के रूप में चित्रित किया गया है।
प्रश्न 2.
कवि ने पनघट किसे कहा है? (2009)
उत्तर:
कवि ने पनघट आसमान को कहा है।
प्रश्न 3.
बिजली की चमक देखकर कवि सखी को क्या सलाह देता है? (2014, 16)
उत्तर:
बिजली की चमक देखकर कवि सखी को परामर्श देता है कि हे सखी ! तू भाग, बिजली चमक रही है,पानी आने वाला है।
प्रश्न 4.
‘अरी सुहागिन’ सम्बोधन किसके लिए आया है?
उत्तर:
‘अरी सुहागिन’ सम्बोधन वैसे तो विवाहित स्त्री के लिए किया गया है, लेकिन प्रकृति की ओर भी संकेत है।
प्रश्न 5.
सहज रंगीली नायिका किसके रंग में रंगी हुई है ?
उत्तर:
सहज रंगीली नायिका इन्द्रधनुषी रंगों से रंगी हुई है।
प्रकृति चित्रण लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विभावरी’ के बीतने पर ‘उषा नागरी’ क्या कर रही है? (2009, 17)
उत्तर:
‘विभावरी’ यानी रात्रि के बीत जाने पर उषा रूपी स्त्री अम्बर रूपी पनघट में तारे रूपी घड़ों को डुबो रही है। इस दृश्य को कवि ने बड़े मनोहारी ढंग से मानवीय भावनाओं और कार्यों से जोड़ा है।
प्रश्न 2.
‘आँखों में भरे विहाग री’ सम्बोधन किसके लिए आया है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में ‘आँखों में भरे विहाग री’ सम्बोधन उस स्त्री के लिए आया है जिसकी आँखें अभी उनींदी हैं और प्रभात का गीत उसकी आँखों में भरा हुआ है। दूसरी ओर रजनी रूपी स्त्री की आँखों में अभी तक नींद भरी है और उसके उठते ही खग अपने गीत गाने लगेंगे।
प्रश्न 3.
खगकुल ‘कुल-कुल सा’ क्यों बोलने लगा?
उत्तर:
पक्षियों का समूह प्रभात की किरण के साथ आमोद-प्रमोद में भर जाते हैं और नभमण्डल में उड़ान भरते हुए मधुर गीत गाने लगते हैं। प्रभात ही उनके गीत प्रारम्भ करने का संकेत देता है।
प्रश्न 4.
आसमान में बादलों के आते ही धरती पर क्या प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर:
आसमान में बादलों के आते ही धरती पर प्यार के अंकुर फूटने लगते हैं। धरती प्रसन्न हो जाती है। बिजली आकाश में चमकती है और दादुर अपनी बोली से वर्षा का स्वागत करते हैं। मोर वन में नाचने लगता है और गाँवों में स्त्रियों के हिंडोले सज जाते हैं और किसान की पलियाँ ‘कजरी’ नामक गीत गाती हैं। सभी वर्षा का स्वागत करने को तत्पर रहते हैं।
प्रकृति चित्रण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न पद्यांशों का आशय स्पष्ट कीजिये
(अ) अधरों में राग अमंद…………विहाग री।
(आ) ‘फिसली-सी पगडण्डी…………सरग-नसैनी री !’
(इ) बिजली चमकी भाग………..पानी बरसा री।
उत्तर:
(अ) सन्दर्भ :
महाकवि जयशंकर प्रसाद का यह गीत हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘प्रकृति चित्रण’ के ‘गीत’ नामक शीर्षक से उद्धृत है जो ‘लहर’ नामक काव्य संकलन में से संकलित है।
प्रसंग :
इस गीत में प्रकृति के प्रातःकालीन सौन्दर्य का नवयौवना नायिका के रूप में चित्रण किया है। एक सखी रात्रि व्यतीत हो जाने पर दूसरी सखी को जगाती है और कहती है।
व्याख्या :
री सखि ! चाँदनी से युक्त रात्रि अब व्यतीत हो रही है। अतः तु अब जाग जा। अपनी आँखों को खोल और देख कि आकाशरूपी पनघट में उषारूपी चतुर नायिका तारारूपी घड़े को डुबो रही है। भाव यह है कि उषाकाल हो गया है, जिससे तारे धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। जल में घड़ा डुबोने का कुलकुल स्वर पक्षियों की कलरव ध्वनि के रूप में हो रहा है। उषारूपी नायिका का हिलता हुआ आँचल कोमल कोपलों के कम्पन में दिखाई देता है और देखो वह लतिका नाम की सखी भी अपनी गगरी को परागयुक्त पुष्पों के नवीन रस से भर लायी है। अर्थात् लताएँ सरस कलियों से पूर्ण हो गयी हैं।
प्रातःकालीन शोभा का चित्रण करते हुए एक सखी दूसरी सोती हुई सखी से कहती है कि तेरे रक्तिम ओठों से प्रतीत होता है कि तूने रात को प्रेम मदिरा का पान किया है जिससे तेरे ओंठ रक्तिम हो गये हैं। भाव यह है कि तेरे ओठों पर प्रेम दिखायी देता है। तेरे काले केशों में चन्दन जैसी सुगन्ध, स्निग्धता और कोमलता बढ़ गयी है। हे सखी ! तू अब तक सोई हुई है। देख, प्रातःकाल हो गया है और तू अपनी आँखों में विहाग राग की सी खुमारी भरे हुए है, जो तेरे रात्रिकालीन जागरण और आलस्य की सूचना दे रही है।
(आ) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि वर्षा के आगमन पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों और पेड़ों पर पड़ने वाले झूलों के बारे में वर्णन कर रहा है।
व्याख्या :
पानी के आने से पगडण्डियों पर फिसलन हो गई है। आँखें लज्जावश झुक गई हैं। प्रकृति मानो इन्द्रधनुषी रंगों से रंग गई हो। ऐसे ही कामिनियाँ रंग-बिरंगे वस्त्रों से सुसज्जित होकर इन्द्रधनुष की शोभा को फीका कर रही हैं। स्त्रियों के बीछिया रुनझुन बज रहे हैं और मदित मन से चलने से उनकी बेणी इधर-उधर हिल रही है। हिंडोले पड़े हुए हैं उन पर स्त्रियाँ ऊँचे पेंग बढ़ा रही हैं।
एक सखी दूसरी सखीं से कहती है कि हे सखी ! सुन, ये मोर जो सूने स्थान पर रहते हैं उन्हें भी वह वन घर जैसा प्रतीत हो रहा है,वर्षा के आने पर। वर्षा के आने पर प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं। धरती पर उगते हुए अंकुर भी बड़े प्यारे लगते हैं।
(इ) शब्दार्थ :
पीके = अंकुर; दादुर = मेंढक। सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ पं. भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित ‘मंगल वर्षा’ से उद्धृत हैं।
प्रसंग :
इस कविता में मिश्र जी ने सावन में वर्षा के आने के सुन्दर दृश्य का वर्णन किया है। बादलों के आसमान में आने पर प्रकृति के सभी उपादान और स्त्री-पुरुष प्रसन्न हो जाते हैं।
व्याख्या :
कवि कहता है कि पानी के बरसने से प्रकृति में प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं। चारों तरफ हरियाली छा गई है और सावन हरा-भरा हो गया है। आकाश में बादल छा गये हैं और सम्पूर्ण धरती प्रफुल्लित हो रही है। एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि तेरी माँग भरी हुई है और ऐसा लगता है कि इस मनोरम मौसम में तू कुछ भूली-भूली सी लगती है। आसमान में बिजली चमक रही है और बादलों को देख मेंढक भी हर्षित होकर बोलने लगे। हवा के चलने से सुन्दर पक्षी भी उड़ने लगे। पक्षियों के उड़ने का दृश्य मनोरम है। मन में उमंग उठ रही है,मन मानो पागल जैसा मस्त हो गया हो। पानी के बरसने से आज प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं।
प्रश्न 2.
भोर होते ही प्रकृति में कैसी-कैसी चेतनता आ जाती है? प्रसाद की कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भोर होते ही सम्पूर्ण प्रकृति चैतन्य दृष्टिगत होती है। एक स्त्री दूसरी स्त्री से कहती है-हे सुन्दरी ! तू जाग रात्रि समाप्त हो गई है और भोर की बेला ने दस्तक दे दी है। ऊषा रूपी सुन्दर स्त्री अम्बर रूपी पनघट में अपने तारे रूपी घड़े को डुबो रही है। यहाँ प्रातः होते ही रमणियों का घड़े लेकर पानी भरने का दृश्य चित्रित किया है। प्रातः होते ही तारे डूबने लगते हैं। पक्षियों के समूह अपनी मधुर बोली में गीत गा रहे हैं और सुगन्धित पवन के चलने से मुलायम पत्तियाँ हिल रही हैं। लता भी अपने पुष्प रूपी घड़े में मधु भर लाई है। तेरे होठों पर राग बन्द है और तेरी अलकों में सुगन्धित वायु भरी हुई है तू अभी तक क्यों सो रही है,जाग।।
प्रश्न 3.
“किसलय का अंचल डोल रहा” कहकर कवि क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
प्रातः के सुहावने मौसम में नमी लिए हुए सुगन्धित समीर बहने लगता है। इसके चलने से धरती के मुलायम किसलय (नयी कोपलें या घास के पत्ते) प्रसन्नता लिए हुए झूमने लगते हैं। प्रातःकाल होते ही प्रकृति के सभी उपादान अपनी प्रमोदता प्रकट करने के लिए मानवीय भावों जैसे दिखाई देते हैं। दिन सुख का प्रतीक है इसलिए प्रकृति भी मानव और अन्य पशु-पक्षियों के साथ अपने सुख बाँटती है। प्रातः समीर के साथ किसलय का इधर-उधर झूमना उसकी प्रसन्नता का प्रतीक है। धरती भी अपने मन के भावों को किसलय के साथ बाँटने लगती है। किसलय का हिलना ऐसे लगता है मानो धरती के हृदय में खुशी की लहर उठ रही हो।
प्रश्न 4.
सावन में ग्रामवधू के उल्लास का वर्णन कवि के शब्दों में कीजिये।
उत्तर:
सावन के महीने में अति उल्लासपूर्ण वातावरण रहता है। पानी के बरसते ही स्नेह के अंकुर पृथ्वी पर उग आये हैं। चारों तरफ हरियाली छा गई है। ग्रामवधू वर्षा के आगमन पर अति हर्षित दिखाई दे रही है। बिजली आसमान में चमक रही है। वर्षा की आस में मेंढक अपनी बोली में प्रसन्नता प्रकट कर रहे हैं। मन पागल की तरह आसमान में घूम रहा है। पगडण्डी पानी के गिरने से फिसलन भरी हो गई हैं। ग्रामवधू इन्द्रधनुषी रंगों से सजी हुई है। ग्राम में चारों तरफ पेड़ों पर झले पड़ गये हैं। उस स्त्री के बीछिया रुनझन बज रहे हैं और चलने से बेणी इधर-उधर हिल रही है। वन में मोर बोलने लगे हैं। वर्षा के आगमन पर मयूरों की मधुर बोली हमारे मन को आकर्षित कर रही है। खेतों के बीच में खड़ी हुई किसानिन ‘कजरी’ गीत गा रही है। रात रूपी सुहागिन के शरीर को जैसे उसके वर्षारूपी साजन ने स्पर्श करके उसे आल्हादित कर दिया हो। झरने के झरने के साथ हमारा मन श्रीहर्षित हो गया है। पानी के आने से प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं। कहने का तात्पर्य है कि ग्रामवधू प्रकृति की मनोहारी छवि पर मोहित हो गई हैं।
प्रकृति चित्रण काव्य सौन्दर्य
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में से अलंकार पहचान कर लिखिए
बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा-नागरी।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा।
उत्तर:
(i) अम्बर-पनघट, तारा-घट, ऊषा-नागरी में रूपक अलंकार और प्रकृति का मानवीकरण।
(ii) कुल-कुल में पुनरुक्तिप्रकाश।
(iii) किसलय का अंचल डोल रहा-मानवीकरण।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए
विभावरी, अम्बर, ऊषा, मलयज, खग।
उत्तर:
(i) विभावरी – रात्रि, रजनी, यामिनी।
(ii) अम्बर – आकाश,नभ, आसमान।
(iii) ऊषा – प्रातः बेला, सुबह, अरुणोदय।
(iv) मलयज – मलय,समीर, बयार।
(v) खग – पक्षी,नभचर, पखेरू।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(1) अधरों में राग अमन्द पिये।
अलकों में मलयज बंद किये।
फिसली-सी पगडण्डी।
खिसली आँख लजीली री।
उत्तर:
(1) भाव सौन्दर्य-
(i) किसी सोती हुई सुन्दरी के अधरों में कोई मधुर गीत बन्द है-इसमें भावों का सुन्दर सामंजस्य है।
(ii) प्रकृति के रूप में मानवीकरण का सुन्दर उदाहरण है।
(iii) अलकों में सुगन्धित हवा बन्द है-कितनी सटीक और अद्भुत कल्पना की उड़ान है।
(2) (i) पगडण्डी की फिसलन का सुन्दर शब्द चित्र संजोया है।
(ii) खिसकने के लिए खिसली शब्द लिखकर ग्रामीण परिवेश का चित्रण किया गया है।
(iii) सुन्दरी की आँख में लज्जा होना उसकी शोभा है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम एवं तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए
अम्बर, धरती, दादुर,खग, नवल, अधर, अलक, मोती, सरग।
उत्तर:
प्रश्न 5.
कविता में आए पुनरुक्तिप्रकाश के उदाहरण छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
(1) खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा।
(2) छन-छन उठी हिलोर,मगन मन पागल दरसा री।
ऊँचे-ऊँचे पेंग, हिंडोला सरग नसैनी री।
फुर-फुर उड़ी फुहार अलक हल मोती छाए रो।
झर-झर झरना झरे, आज मन प्राण सिहाये री।
प्रश्न 6.
कविता में आए मानवीकरण के उदाहरण छाँट कर लिखिये।
उत्तर:
(1) अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा-नागरी।
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लायी
मधु-मुकुल नवल रस-गागरी।
(2) हरियाली छा गयी, हमारे सावन सरसा री
बादल आए आसमान में, धरती फूली री।
प्रश्न 7.
कविता में आयी ‘प्रसाद गुण’ सम्पन्न पंक्तियाँ छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री।
हरियाली छा गयी,हमारे सावन सरसा री।
बादल आए आसमान में, धरती फूली री,
बिजली चमकी भाग सखी री,दादुर बोले री,
अन्ध प्राण ही बहे,उड़े पंछी अनमोले री॥
प्रश्न 8.
माधुर्य गुण के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
(1) बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा-नागरी।
(2) पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री।
हरियाली छा गयी, हमारे सावन सरसा री।
बादल आए आसमान में, धरती फूली री।
अरी सुहागिन, भरी माँग में भूली-भूली री।
बिजली चमकी भाग सखी री,दादुर बोले री।
अन्द प्राण ही बही, उड़े पंछी अनमोले री।
प्रश्न 9.
पाठ में आए विभिन्न रसों की पंक्तियाँ छाँट कर स्थायी भाव सहित रस का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा-नागरी।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो लतिका भी भर लायी
मधु-मुकुल नवल रस-गागरी।
रस – श्रृंगार रस।
स्थायी भाव – रति।
रस – श्रृंगार।
स्थायी भाव – रति।
गीत भाव सारांश
संकलित कविता ‘गीत’ के रचयिता छायावादी कवि ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं। इसमें कवि ने ऊषा रूपी सुन्दरी को तारा रूपी घट को आकाश रूपी सरोवर में डुबोते हुए चित्रित किया है।
मनुष्य के जीवन में प्रकृति की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्रकृति का अनुकरण करके ही मनुष्य ने अपने परिगत भाव-संसार और कला-संसार की सृष्टि की है। काव्य का सम्पूर्ण इतिहास प्रकृति के प्रकाश से जगमगा रहा है। छायावाद के जयशंकर प्रसाद का काव्य प्रकृति को केन्द्र मानकर ही प्रारम्भ होता है। ‘गीत’ नामक रचना में प्रातःकाल के परिवर्तन को मानवीकरण के रूप में चित्रित किया है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग किया है। रात बीत गई है और ऊषा रूपी कामिनी आकाश रूपी पनघट में तारों रूपी घड़ों को डुबो रही है। तारे अस्त होते जा रहे हैं। सुबह का प्रकाश फैल रहा है। पक्षियों,लताओं और कलिकाओं का बड़ा ही सजीव और सुन्दर वर्णन किया गया है।
गीत संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
(1) बीती विभावरी जाग री
अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा-नागरी।
खगकुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लायी।
मधु-मुकुल नवल रस-गागरी। (2010)
अधरों में राग अमन्द पिये,
अलकों में मलयज बन्द किये
तू अब तक सोयी है आली !
आँखों में भरे विहाग री।
शब्दार्थ :
विभावरी = ज्योत्स्नामयी रात्रि अम्बर = गगन, आकाश; घट = घड़ा; उषा = प्रातःकाल; नागरी = चतुर स्त्री; खग = पक्षी; किसलय = कोमल कोपलें; अंचल = आँचल; लतिका = लता; मधु-मुकुल = परागयुक्त पुष्प; नवल रस = नवीन पराग; गागरी = गगरी; अधर = होठ; अमंद = पर्याप्त; अलक = केशराशि; मलयज = शीतल सुगन्धित पवन,चन्दन,सर्प; आली = सखी; विहाग = राग विशेष,जो रात्रि के अन्तिम प्रहर में गाया जाता
सन्दर्भ :
महाकवि जयशंकर प्रसाद का यह गीत हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘प्रकृति चित्रण’ के ‘गीत’ नामक शीर्षक से उद्धृत है जो ‘लहर’ नामक काव्य संकलन में से संकलित है।
प्रसंग :
इस गीत में प्रकृति के प्रातःकालीन सौन्दर्य का नवयौवना नायिका के रूप में चित्रण किया है। एक सखी रात्रि व्यतीत हो जाने पर दूसरी सखी को जगाती है और कहती है।
व्याख्या :
री सखि ! चाँदनी से युक्त रात्रि अब व्यतीत हो रही है। अतः तु अब जाग जा। अपनी आँखों को खोल और देख कि आकाशरूपी पनघट में उषारूपी चतुर नायिका तारारूपी घड़े को डुबो रही है। भाव यह है कि उषाकाल हो गया है, जिससे तारे धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। जल में घड़ा डुबोने का कुलकुल स्वर पक्षियों की कलरव ध्वनि के रूप में हो रहा है। उषारूपी नायिका का हिलता हुआ आँचल कोमल कोपलों के कम्पन में दिखाई देता है और देखो वह लतिका नाम की सखी भी अपनी गगरी को परागयुक्त पुष्पों के नवीन रस से भर लायी है। अर्थात् लताएँ सरस कलियों से पूर्ण हो गयी हैं।
प्रातःकालीन शोभा का चित्रण करते हुए एक सखी दूसरी सोती हुई सखी से कहती है कि तेरे रक्तिम ओठों से प्रतीत होता है कि तूने रात को प्रेम मदिरा का पान किया है जिससे तेरे ओंठ रक्तिम हो गये हैं। भाव यह है कि तेरे ओठों पर प्रेम दिखायी देता है। तेरे काले केशों में चन्दन जैसी सुगन्ध, स्निग्धता और कोमलता बढ़ गयी है। हे सखी ! तू अब तक सोई हुई है। देख, प्रातःकाल हो गया है और तू अपनी आँखों में विहाग राग की सी खुमारी भरे हुए है, जो तेरे रात्रिकालीन जागरण और आलस्य की सूचना दे रही है।
काव्य सौन्दर्य :
- इस गीत में प्रकृति का मार्मिक एवं सजीव अंकन हुआ है।
- वियोग शृंगार से अनुप्राणित इस गीत में गेयता तथा चित्रोपमता सर्वत्र विद्यमान है।
- सांगरूपक, उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा रूपकातिशयोक्ति, अलंकारों का सौन्दर्य दृष्टव्य है।
- विषयानुरूप परिमार्जित खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
मंगल वर्षा भाव सारांश
संकलित कविता ‘मंगलवर्षा’ के रचयिता ‘भवानी प्रसाद मिश्र’ हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा के आगमन पर प्रकृति और मानव की प्रफुल्लता का सजीव वर्णन किया है।
भवानी प्रसाद मिश्र छायावादोत्तर काल के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रकृति भावों के उद्दीपन का आधार बनती है। प्रस्तुत कविता में उन्होंने वर्षा का मनोहारी वर्णन किया है। बादलों का आसमान में घिरना, बिजली का चमकना,फिसलती पगडण्डियाँ,रंगीला इन्द्रधनुष, झरनों का झरना ये सब मानवीय भावनाओं के अनुरूप दृष्टिगोचर होते हैं। वर्षा के माध्यम से जीवन की प्रसन्नता कविता के माध्यम से प्रकट हो रही है। लोक छबियों और लोक जीवन की अनुभूतियों का सुन्दर वर्णन इस कविता में दिखाई देता है। इस कविता में लयात्मकता है और शब्दों में प्रवाह है। प्रकृति चित्रण के रूप में यह कविता एक अनूठी रचना है।
मंगल वर्षा संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
1. पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री,
हरियाली छा गयी हमारे, सावन सरसा री।
बादल आये आसमान में, धरती फूली री,
अरी सुहागिन, भरी माँग में भूली-भूली री,
बिजली चमकी भाग सखी री, दादुर बोले री,
अन्य प्राण ही बही, उड़े पंछी अनमोले री,
छन-छन उठी हिलोर, मगन मन पागल दरसा री।
पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री।
शब्दार्थ :
पीके = अंकुर; दादुर = मेंढक। सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ पं. भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित ‘मंगल वर्षा’ से उद्धृत हैं।
प्रसंग :
इस कविता में मिश्र जी ने सावन में वर्षा के आने के सुन्दर दृश्य का वर्णन किया है। बादलों के आसमान में आने पर प्रकृति के सभी उपादान और स्त्री-पुरुष प्रसन्न हो जाते हैं।
व्याख्या :
कवि कहता है कि पानी के बरसने से प्रकृति में प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं। चारों तरफ हरियाली छा गई है और सावन हरा-भरा हो गया है। आकाश में बादल छा गये हैं और सम्पूर्ण धरती प्रफुल्लित हो रही है। एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि तेरी माँग भरी हुई है और ऐसा लगता है कि इस मनोरम मौसम में तू कुछ भूली-भूली सी लगती है। आसमान में बिजली चमक रही है और बादलों को देख मेंढक भी हर्षित होकर बोलने लगे। हवा के चलने से सुन्दर पक्षी भी उड़ने लगे। पक्षियों के उड़ने का दृश्य मनोरम है। मन में उमंग उठ रही है,मन मानो पागल जैसा मस्त हो गया हो। पानी के बरसने से आज प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं।
काव्य सौन्दर्य :
- प्रकृति चित्रण अनूठा बन पड़ा है।
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग सुन्दर है।
- मानवीकरण की छटा सुन्दर है।
2. फिसली-सी पगडण्डी खिसली आँख लजीली री,
इन्द्रधनुष-रंग-रंगी, आज मैं सहज रंगीली री,
रुनझुन बिछिया आज, हिला-डुल मेरी बेनी री,
ऊँचे-ऊँचे पेंग, हिंडोला, सरग-नसैनी री,
और सखी सुन ! मोर विजन वन दीखे घर-सारी,
पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री।
शब्दार्थ :
हिंडोला = झूला; सरग-नसेनी = स्वर्ग की सीढ़ी (बहुत ऊँचे जाना); विजन = जन रहित।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि वर्षा के आगमन पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों और पेड़ों पर पड़ने वाले झूलों के बारे में वर्णन कर रहा है।
व्याख्या :
पानी के आने से पगडण्डियों पर फिसलन हो गई है। आँखें लज्जावश झुक गई हैं। प्रकृति मानो इन्द्रधनुषी रंगों से रंग गई हो। ऐसे ही कामिनियाँ रंग-बिरंगे वस्त्रों से सुसज्जित होकर इन्द्रधनुष की शोभा को फीका कर रही हैं। स्त्रियों के बीछिया रुनझुन बज रहे हैं और मदित मन से चलने से उनकी बेणी इधर-उधर हिल रही है। हिंडोले पड़े हुए हैं उन पर स्त्रियाँ ऊँचे पेंग बढ़ा रही हैं।
एक सखी दूसरी सखीं से कहती है कि हे सखी ! सुन, ये मोर जो सूने स्थान पर रहते हैं उन्हें भी वह वन घर जैसा प्रतीत हो रहा है,वर्षा के आने पर। वर्षा के आने पर प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं। धरती पर उगते हुए अंकुर भी बड़े प्यारे लगते हैं।
काव्य सौन्दर्य :
- प्रकृति का मनोहारी वर्णन किया है।
- रूपक, उपमा और मानवीकरण की शोभा निराली है।
- वर्षा के आगमन से मोर का प्रसन्न होना प्रसिद्ध उक्ति है।
3. फुर-फुर उड़ी फुहार अलक हल मोती छाए री,
खड़ी खेत के बीच किसानिन कजरी गाये री,
झर-झर झरना झरे, आज मन प्राण सिहाये री,
कौन जन्म के पुण्य कि ऐसे शुभ दिन आये री,
रात सुहागिन गात मुदित मन, साजन परसा री।
पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री॥ (2009)
शब्दार्थ :
अलक = बाल; परसा = स्पर्श किया,कजरी = गीत; सिहाये = प्रसन्न हुए; गात = शरीर; मुदित = प्रसन्न।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने फुहारों के पड़ने,खेत में किसानिन के कजरी गाने का बड़ा ही सुहावना वर्णन किया है।
व्याख्या :
वर्षा की फुहारों के पड़ने से कामिनी के बालों पर बूंदें मोती जैसी शोभित हो रही हैं। अपने खेत के बीच में खड़ी किसान की पत्नी वर्षा ऋतु में गाये जाने वाला कजरी गीत गा रही है। वर्षा के आने से झरने झर-झर कर नीचे गिर रहे हैं। इस सबको देखकर मन-प्राण हर्षित हो जाते हैं। स्त्रियाँ मन में सोचने लगीं कि किसी जन्म के पुण्य रहे होंगे जो इतने सुहावने दिन आये हैं। सावन के महीने में किसी सुहागिन के शरीर को उसके पति ने स्पर्श किया हो तो वह कितना मंगलमय लगता है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति रूपी सुहागिन के तन को वर्षा रूपी उसके साजन ने स्पर्श किया हो। पानी के बरसने से चारों ओर प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं। सभी ओर सम्पूर्ण वातावरण प्रसन्नता से भरा हुआ है।
काव्य सौन्दर्य :
- प्रकृति चित्रण अनूठा है।
- कविता में अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार की छटा दर्शनीय है।
- किसानिन का कजरी गाने का भाव हृदय में आनन्द भर देता है।