MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 9 खेल (काव्य, जैनेन्द्र कुमार)

खेल अभ्यास

खेल अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बालक और बालिका किन दो चीजों को आत्मीय बना उनसे खिलवाड़ कर रहे थे?
उत्तर:
बालक और. बालिका गंगा तट के बालू और पानी को आत्मीय बना, उनसे खिलवाड़ कर रहे थे।

प्रश्न 2.
भाड़ बनाने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भाड़ बनाने का एक अर्थ पैर पर रेत रखकर विशेष आकृति बनाना तथा दूसरा, नारी की रचनात्मक कला तथा घर बनाना है जो नारी का मूल स्वभाव है।

प्रश्न 3.
भाड़ में धुएँ का रास्ता और कुटी किस प्रकार बनाई गई?
उत्तर:
भाड़ में धुएँ का रास्ता एक सींक टेढ़ी करके उसमें गाढ़ कर बनाया गया और कुटी धीरे से भाड़ के सिर पर चाट चुटकी रेत छोड़कर बनाई गई।

प्रश्न 4.
सुरबाला की दृष्टि में परमात्मा कहाँ बिराजते हैं?
उत्तर:
सुरबाला की दृष्टि में परमात्मा उसके बनाये भाड़ के जादू में बिराजते हैं।

प्रश्न 5.
भाड़ का अभिषेक करने के पूर्व सुरों रानी ने क्या किया?
उत्तर:
भाड़ का अभिषेक करने के पूर्व सुरों रानी ने एक लात से भाड़ के सिर को चकनाचूर कर दिया।

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खेल लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बालिका मनोहर के बारे में क्या सोच रही थी? (2011)
उत्तर:
बालिका मनोहर के बारे में सोच रही थी वह कुटिया में न रहकर बाहर खड़ा-खड़ा भाड़ में पत्ते झोंकेगा। जब वह हार जायेगा तो अन्दर ले लूँगी। मनोहर हमें छेड़ता ही रहता है। अच्छा होते हुए भी दंगाई बहुत है। अब के दंगा करेगा तो हम उसे कुटी में साझी नहीं करेंगे। साझो करेंगे तो शर्त करवा लेंगे। भाड़ की गरम छत पर मनोहर को नहीं रखेंगे। हठी होने के कारण अन्दर आना चाहेगा तो हम बाहर निकल जायेंगे। ज्यादा कहेगा तो धक्का दे दूँगी। ऐसा कहकर खिलखिला पड़ती है।

प्रश्न 2.
बालिका द्वारा भाड़ बनाने की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
बालिका अपने एक पैर पर रेत जमाकर और हाथ से उसे थोप-थोपकर भाड़ बना रही थी। जब भाड़ बिल्कुल बन गया, तो उसने अपना पैर धीरे-धीरे भाड़ के नीचे से खींच लिया। वह बार-बार भाड़ को पुचकारती-सी जाती थी। भाड़ के सिर पर चार-चुटकी रेत की डालकर कुटी तैयार की फिर एक सींक टेढ़ी करके उसमें गाढ दी। बस ब्रह्माण्ड का सबसे सम्पूर्ण व सुन्दर भाड़ तैयार था।

प्रश्न 3.
सुरबाला द्वारा निर्मित भाड़ को देखते ही मनोहर की त्वरित प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर:
मनोहर सुरों की याद आते ही पानी से नाता तोड़, हाथ की लकड़ी को गंगा की धारा में फेंककर मुड़ा और सुरबाला की दृष्टि का अनुसरण कर उस भाड़ को देखा। उसने जोर से एक कहकहा लगा और एक लात में भाड़ का काम तमाम कर दिया और गर्व से भरकर निर्दय मनोहर चिल्लाया, “सुरों रानी।”

प्रश्न 4.
भाड़ तोड़ने पर पश्चाताप स्वरूप मनोहर ने सुरों से क्या कहा? (2017)
उत्तर:
भाड़ तोड़ने पर मनोहर को लगा जैसे भीतर ही भीतर उसे कोई मसोस रहा हो। उसने पश्चाताप करते हुए कहा,“सुरों,दुत पगली। रूठती है?” जबाब न मिलने पर उसने कहा, “मैं मनोहर हूँ-मुझे मारती नहीं। वह बड़ा दुष्ट है। बोल मत,पर उस पर रेत क्यों नहीं फेंक देती, मार क्यों नहीं देती। उसे एक थप्पड़ लगा-वह अब कभी कसूर नहीं करेगा।”

प्रश्न 5.
“हमारा भाड़ क्यों तोड़ा जी? हमारा भाड़ बना के दो” के जवाब में मनोहर ने क्या किया?
उत्तर:
“हमारा भाड़ क्यों तोड़ा जी ? हमारा भाड़ा बना के दो।” के जवाब में मनोहर ने एक भाड़ बनाकर तैयार किया। कहा-“लो भाड़ बन गया” सुरबाला ने कहा-“धुएँ का रास्ता तथा कुटी भी बनाओ” तब मनोहर ने भाड़ के सिर पर एक सींक लगाकर और एक-एक पत्ते की ओट लगाकर कुटी बनाई। सुरबाला ने उसमें कुछ संशोधन किया। मनोहर से भाड़ के अभिषेक के लिए जल मँगाया। मनोहर को आज्ञाकारी पुरुष के समान जल लाना पड़ा।

खेल दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“मनोहर विश्व तत्व की एक बात भी नहीं जानता” कहानी लेखक जैनेन्द्र कुमार ने ऐसी किन-किन बातों की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
लेखक जैनेन्द्र कुमार बालिका सुरबाला के मुख से स्वयं कहलवाते हैं। “बेवकूफ मनोहर।” एक नौ वर्षीय बालक विश्व-तत्व की बात को क्या समझ सकता है? उसका जीवन तत्व तो खेल व साथियों के साथ हँसता-बोलता है, रूठना-मनाना है। मनोहर क्या जाने कि यह संसार क्षणभंगुर है तथा पानी के बुलबुले के समान है,जो पल में नष्ट होने वाला है। उसका सुख वस्तु को पाना है और दुःख वस्तु को खोना है। सब ब्रह्माण्ड ब्रह्म का है और अन्त में उसी में लीन हो जायेगा। लात मारकर भाड़ को नष्ट करना तो परमात्मा का साधन मात्र है। मनुष्य को परमात्मा तक पहुँचने का प्रयत्न करना चाहिए। इन विश्व-तत्व की बातों को बालक मनोहर कैसे समझ सकता था? उसकी कल्पना और यथार्थ एक है दोनों में कोई अन्तर नहीं। वह नारी व पुरुष की प्रकृति को कैसे समझ सकता है? लेखक ने लिखा है-“अब तो वहाँ निर्बुद्ध शठ मनोहर के सिवा कोई नहीं है और मनोहर विश्व-तत्व की एक भी बात नहीं जानता।”

प्रश्न 2.
मनोहर और सुरबाला ने एक-दूसरे के बने भाड़ तोड़ दिये। फिर भी वे अन्त तक सहज क्यों बने रहे?
उत्तर:
मनोहर और सुरबाला दोनों एक-दूसरे का भाड़ तोड़ने पर भी सहज बने रहते हैं. क्योंकि यह बाल स्वभाव होता है कि वह अपना बदला लेने पर सहज हो जाता है। दूसरी ओर मनोहर ने वह भाड़ इसलिये तोड़ा था क्योंकि वह दंगाई बालक था,विश्व-तत्व से अपरिचित था, सुरबाला को तंग करने में उसका सुख था। उसका बना भाड़ जब सुरबाला तोड़ देती है तो उसे कोई दुःख नहीं होता क्योंकि भाड़ के टूटने पर सुरबाला प्रफुल्लित थी,उसकी प्रसन्नता में मनोहर की प्रसन्नता थी।

उधर सुरबाला भी अपने भाड़ के टूटने पर व्याजकोप कर रही थी। दोनों भाड़ तोड़ने की क्रिया को एक खेल मान रहे थे। उनके लिये संसार के क्षणभंगुर जैसा कोई दर्शन या जीवन का सत्य नहीं था। सुरबाला काल्पनिक जीवन के तन्तु मनोहर के साथ बनाती है कि कुटी में वह उसके साथ रहेगी। मनोहर उसके न बोलने पर कहता है,लो में भी बैठ जाता हूँ, न उलूंगा, न बोलूँगा। अन्त में भाड़ बनाता है। यही कारण था कि मनोहर और सुरबाला ने एक-दूसरे के बने भाड़ तोड़ दिये और अन्त तक सहज बने रहे।

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प्रश्न 3.
“एक लात में भाड़ का काम तमाम करना” के सन्दर्भ में लेखक के दार्शनिक विचार लिखिए।
उत्तर:
“एक लात में भाड़ का काम तमाम करना” संसार की क्षणभंगुरता के साथ-साथ उसकी नश्वरता को भी प्रकट करता है। क्षणभंगरता का शाब्दिक अर्थ है-पल में नष्ट हो जाना। यह संसार ऐसा ही है, जो आज अभी दिखायी दे रहा है, वह पलक झपकते ही नष्ट हो जायेगा। जिस प्रकार एक पल में जल में बुलबुला बनता है और दूसरे ही पल नष्ट हो जाता है तथा उसी पानी का रूप धारण कर लेता है। उस बुलबुले की तथा संसार के नष्ट होने में ही सार्थकता है। उस भाड़ के नष्ट होने पर सुरबाला को दुःख था पर मूक थी। यह उसकी मूर्खता थी। कोई ज्ञानी उसे समझाता है कि जिस मनोहर को लेकर यह भाड़ बनाया उसी ने विनष्ट कर दिया, इसमें क्या दुःख और क्या सुख? जगत में जो इस तथ्य को नहीं समझता उसकी जड़ बुद्धि पर तरस आता है।

लेखक बालिका को समझाना चाहता है। यह संसार (ब्रह्माण्ड) उसी ब्रह्म का बना है और अन्त में उसी में मिल जायेगा। कबीर ने भी कहा है-पानी से हिम बना,हिम पिघलकर पानी बन गया जो वास्तव में था वही बन गया। इसी प्रकार रेत से भाड़ बना और लात मारते ही भाड़ धराशायी होकर रेत में मिल गया। इसमें दुःखी होने का प्रश्न ही नहीं। लात तो मात्र परमात्मा का साधन था। वह लड़की मूर्ख या कहें अबोध थी, उसे समझाने वाला कोई होता तो ऐसा नहीं होता। मनुष्य को परमात्मा की इस सीख को समझकर इस संसार में कमल के रूप में रहना चाहिए। साथ ही परमात्मा को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।

प्रश्न 4.
खेल कहानी का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
जैनेन्द्र की प्रसिद्ध कहानी ‘खेल’ बाल मनोविज्ञान पर आधारित है जिसमें बालकों के मनोविज्ञान के साथ नारी और पुरुष प्रकृति की सूक्ष्मता को स्पष्ट किया गया है। कहानी का दूसरा उद्देश्य है संसार की क्षणभंगुरता तथा नश्वरता को ध्यान में रखते हुए आत्मा को परमात्मा में विलीन होने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। बाल मनोविज्ञान के अन्तर्गत बच्चों की कल्पना और यथार्थ। वे मानो कल्पना में नहीं जीते, कल्पना ही उनका यथार्थ है। वे संसार की क्षणभंगुरता व नश्वरता से परिचित नहीं होते। नारी रचना और क्षमा का प्रतीक है। पुरुष अहंकारी होने पर भी नारी के अनुशासन का अभिलाषी है। नारी पुरुष के अत्याचार का बदला पुरुष को अपने वश में करके ही लेती है।

प्रश्न 5.
मनोहर और सुरबाला के बाल स्वभाव की दो-दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बाल मनोविज्ञान पर केन्द्रित कहानी ‘खेल’ में लेखक जैनेन्द्र बाल स्वभाष को बड़ी सरलता से स्पष्ट करने में सफल हुए हैं। कहानी में मात्र दो ही पात्र हैं-एक नारी-सुरबाला; दूसरा-एक पुरुष–मनोहर। बाल स्वभाव में क्षणिक विषाद, क्षणिक प्रतिवाद, क्षणिक अमर्ष और क्षणिक द्वेष के साथ क्षणिक प्रसन्नता व अहं होता है।

मनोहर के बाल स्वभाव की विशेषताएँ-

  1. मनोहर उजड्ड और विवेकहीन है जिस कारण वह भाड़ की भावनाओं को समझ नहीं पाता और एक लात में उसे नष्ट कर देता है।
  2. नारी का सम्मान करना मनोहर जानता है। इसीलिए सुरबाला के भाड़ को बनाता है और अभिषेक के लिए जल लेने जाता है।

सुरबाला के बाल स्वभाव की विशेषताएँ-
(1) सुरबाला की रचनात्मक कला जिससे अभिभूत हो वह भाड़ बनाती है। मानो घर बनाना तो नारी ही जानती है। उसके साथ पुरुष को भी अनिवार्य मानते हुए स्वयं कष्ट सहती है।

(2) बालिका में बदले की भावना है। इस कारण वह मनोहर से अपना भाड़ बनवाती है तथा उसी की तरह लात मारकर भाड़ को नष्ट कर देती है। इस बदले से बालकों को बड़ी खुशी होती है। बदला लेने पर सुरबाला हँसी से नाच उठी। अतः सम्पूर्ण कहानी बाल चरित्र पर आधारित कहानी है।

खेल भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए-
विश्व, पत्ता, कुटी, उल्लास, पेड़, सूरज।
उत्तर:

  1. विश्व – जगत,संसार
  2. पत्ता – पत्र,किसलय
  3. कुटी – झोंपड़ी, कुटिया
  4. उल्लास – खुशी,प्रसन्न
  5. पेड़ – नीड़,वृक्ष
  6. सूरज – रवि,दिनकर।

प्रश्न 2.
दिए गए समास-युक्त पदों का विग्रह कर नाम लिखिए
स्वर्गविलीन, व्याजकोप, बालक-बालिका, महात्मा, त्रिलोक।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 9 खेल img-1

प्रश्न 3.
‘पूर्व’ शब्द में ‘अ’ उपसर्ग लगाकर अपूर्व शब्द बना है। इसी प्रकार निम्नलिखित उपसर्गों से बनने वाले दो-दो शब्द लिखिए-
अति, अप, वि, सु, सम,परि, उप, अव, दुर, प्रति।
उत्तर:
अति – अतिक्रमण, अतिरिक्त
अप – अपवाद, अपयश
वि – विधाता, विशेष
सु – सुपुत्र, सुदीर्घ
सम – समकोण, समकालीन
परि – परिक्रमा, परिवार
उप – उपवन, उपकार
अव – अवनति, अवमानना
दुर – दुर्गति, दुराचारी
प्रति – प्रतिशोध, प्रतिकूल।

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प्रश्न 4.
दिए गए वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए

  1. दर्शनशास्त्र को जानने वाला। (2010)
  2. किसी अन्य पर किया गया उपकार।
  3. जिसके मन में दया भाव नहीं हो।
  4. जो इस लोक का न हो।
  5. जिसका कोई दोष नहीं हो।

उत्तर:

  1. दर्शनशास्त्री
  2. परोपकार
  3. निर्दयी
  4. पारलौकिक
  5. निदोष

प्रश्न 5.
मध्य प्रदेश की मुख्य बोलियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
मध्य प्रदेश की मुख्य बोलियाँ बुन्देली,बघेली,निमाड़ी,मालवी इत्यादि हैं।

प्रश्न 6.
दूरदर्शन तथा आकाशवाणी लोकभाषा के अथवा बोली के विकास में किस प्रकार सहायक हैं?
उत्तर :
दूरदर्शन तथा आकाशवाणी लोकभाषा तथा स्थानीय बोली में अपने विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित करके उनके विकास में अनेक प्रकार से महायक होते हैं। चूँकि संचार के इन माध्यमों की पहुँच जन-जन तक होती है, अतः ये अपने विभिन्न कार्यक्रमों, जैसे-नाटकों, समाचारों एवं संगीत के विभिन्न कार्यक्रमों इत्यादि के प्रसार से लोकभाषा तथा बोली को आम जनमानस तक पहुँचाकर उसका प्रचार-प्रसार करते हैं।

प्रश्न 7.
अपने क्षेत्र से प्रकाशित हिन्दी मासिक पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
साक्षात्कार, अक्षरा, साहित्यकार, वीणा, ईसुरी, अक्षत, स्नेह, देवपुत्र, राम भोपाली, आस-पास, पहल वसुधा आदि।

प्रश्न 8.
किन्हीं चार दैनिक समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, नवभारत तथा अमर उजाला।

खेल पाठ का सारांश

सुप्रसिद्ध कहानीकार ‘जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रस्तुत कहानी ‘खेल’ लेखक की एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कहानी है जो बाल-मनोविज्ञान की आधार भूमि पर लिखी गयी है। इस कहानी का सबसे बड़ा आकर्षण है-मात्र दो पात्र और एक स्थान व घटना। एक नारी पात्र-सात वर्षीय बालिका और पुरुष पात्र नौ वर्षीय बालक जिनके नाम सुरबाला और मनोहर हैं। स्थान है गंगा तट का रेतीला मैदान।

सुरबाला पैर की सहायता से रेत में भाड़ बना रही है और मनोहर गंगा के तट पर बैठा लकड़ी को जल में डालकर खेल रहा है। दोनों में घनिष्ठ मित्रता है। सुरबाला भाड़ बनाकर उसके सिर पर चार चुटकी रेत डालकर काल्पनिक कुटी बनाती है तथा टेढ़ी सींक लगाकर धुआँ निकालने की चिमनी बनाती है। भाड़ पूरा होने पर मनोहर को दिखाना चाहती है। मनोहर को बुलाकर लाती है परन्तु मनोहर भाड़ को देखते ही लात मारकर उसे नष्ट कर देता है। सुरबाला मनोहर के इस बर्ताव से नाराज होकर बोलती नहीं है। तब मनोहर कहता है-मेरे थप्पड़ मार,मेरे ऊपर रेत फेंक, गुस्सा कर। सुरबाला अपना भाड़ बनाने के लिए मनोहर से कहती है।

वह आज्ञाकारी शिष्य के समान भाड़ बनाता है, सिर पर पत्रों की कुटी बनाता है तथा सींक लगाकर धुआँ निकलने की जगह बनाता है। सुरबाला भाड़ का अभिषेक करने के बजाय उसी तरह लात मारकर भाड़ को चकनाचूर कर देती है। तब दोनों मुक्त हँसी हँसते हैं। भाड़ के बनने व मिटने की क्रिया के माध्यम से संसार की क्षण-भंगुरता और नश्वरता की ओर संकेत किया गया है। नारी और पुरुष की प्रकृति को बात स्वभाव के माध्यम से स्पष्ट किया गया है। कहानी की भाषा सरल व संवाद छोटे हैं।

खेल कठिन शब्दार्थ

निर्जन = सुनसान। खण्डों = टुकड़ों। निस्तब्ध = शान्त। निर्निमेष = एकटक, जिसकी पलक न गिरें। निहार = देखना। विह्वल = बेचैन। रोष = क्रोध। अनुग्रह = कृपा। साझी = हिस्सेदार। हास्योत्पादक = हँसी उत्पन्न करने वाला। सतर्क = सावधानी। आश्रय = सहारा। आहलाद = प्रसन्न। उद्यत = तैयार। विस्मित = आश्चर्यचकित। पुलकित = प्रसन्न। फतह = जीत। निर्दय = जिसमें दया न हो। मूक = चुप। शून्य = खालीपन। मनोरमता = सुन्दरता। व्यथा = दुःख। क्षणभंगुर = पल में नष्ट होने वाला। उद्वेग = विचलित। लीन होना = मिल जाना। लुप्त = गायब। विज्ञ = ज्ञानी। निर्बुद्ध = बुद्धिहीन। शठ = दुष्ट। स्वर्ग विलीन = नष्ट होना। व्याजकोप = क्रोध का बहाना। संशोधन = सुधार। व्याप्त = फैला हुआ।

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खेल संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) “यह संसार क्षणभंगुर है। इसमें दुःख क्या और सुख क्या? जो जिससे बनाया है वह उसी में लय हो जाता है-इसमें शोक और उद्वेग की क्या बात है? यह संसार जल का बुदबुदा है, फूटकर किसी रोज जल में ही मिल जायेगा। फूट जाने में ही बुदबुदे की सार्थकता है, जो यह नहीं समझते, वे दया के पात्र हैं। री मूर्खा लड़की, तू समझ। सब ब्रह्माण्ड ब्रह्म का है और उसी में लीन हो जाएगा। इससे तू किसलिए व्यर्थ व्यथा सह रही है।” (2010, 12, 14, 16)

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘खेल’ नामक पाठ से ली गई हैं। इसके लेखक सुप्रसिद्ध कहानीकार ‘जैनेन्द्र’ हैं।

प्रसंग :
कहानी की नायिका सुरबाला रेत का भाड़ बनाती है। उसे नायक मनोहर एक लात मारकर नष्ट कर देता है। पुरुष रूपी परमात्मा इस जगत को पल में विनष्ट कर देता है। यह संसार इस सत्य को जानते हुए भी अनभिज्ञ बना रहता है।

व्याख्या :
गंगा के सूने तट पर बालक और बालिका मात्र दो पात्र हैं। बालिका भाड़ बनाती है,बालक उसे तोड़ देता है। इस रचना व विनाश के माध्यम से लेखक बताता है कि वह संसार की क्षणभंगुरता का अनुभव करता है, परन्तु मनुष्य इस सत्य को जानते हुए भी अनजान बना रहता है। मनुष्य को संसार की क्षणभंगुरता पर दुःखी नहीं होना चाहिए और न मन को विचलित करना चाहिए और न ही सांसारिक सुखों को भोगते हुए सुखी होना चाहिए। संसार की नश्वरता के लिए लेखक ने दूसरा उदाहरण जल के बुलबुले का लिया है। बहते पानी में बुलबुला बनता है तथा देखने में सुन्दर होता है परन्तु दूसरे ही पल नष्ट हो जाता है।

इसी प्रकार संसार के सुख भी पल में नष्ट होने वाले हैं। बुलबुले के समान संसार की सफलता नष्ट होने में ही है जो व्यक्ति इस सच्चाई को जान लेते हैं, वे जल में रहने वाले कमल के समान सौन्दर्यपूर्ण हैं, जो इस सत्य को नहीं समझते, वे दया के पात्र हैं। कहानी में नायक इसी गूढ़ रहस्य को समझाता हुआ नायिका से कहता है कि यह समूचा जगत् उस परम-पिता ब्रह्म का ही है। जिसने इसे साकार किया है और अन्त में उसी में मिल जायेगा। अतः इस बात से तुझे बेकार में चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है।

विशेष :

  1. संसार की क्षणभंगुरता तथा मनुष्य की अनभिज्ञता की ओर संकेत किया गया है।
  2. लेखक के दार्शनिक विचारों का ज्ञान होता है।
  3. संस्कृत के शब्दों से युक्त शुद्ध खड़ी बोली है।
  4. वाक्य छोटे व अर्थपूर्ण हैं।

(2) उस निर्जन प्रान्त में वह निर्मल शिशु-हास्य-रव-लहरें लेता हुआ व्याप्त हो गया। सूरज महाराज बालकों जैसे लाल-लाल मुँह से गुलाबी-गुलाबी हँसी हँस रहे थे। गंगा मानो जान-बूझकर किलकारियाँ मार रही थीं। और-और वे लम्बे ऊँचे-ऊँचे दिग्गज पेड़ दार्शनिक पंडितों की भाँति सब हास्य की सार-शून्यता पर मानो मन-ही-मन गम्भीर तत्वावलोकन कर, हँसी में भूले हुए मूों पर थोड़ी दया बख्शना चाह रहे थे।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
मनोहर के द्वारा बनाये भाड़ को लात से तोड़कर सुरबाला अपना बदला लेने पर खुली हँसी-हँसती है। मनोहर गुस्सा न करके कहकहा लगाता है। उसकी ईर्ष्या, द्वेष, बदले की भावना जैसी मनोवृत्ति नहीं है। दोनों की खुशी में प्रकृति भी शामिल है। इसी का वर्णन इन पंक्तियों में है।

व्याख्या :
सुरबाला मनोहर के भाड़ को लात से नष्ट करके खुली हँसी हँसती है। मनोहर भी उसकी हँसी में शामिल हो जाता है। उस सूने गंगा के तट पर उन दोनों अबोध बालकों की हँसी से समस्त वातावरण भर जाता है। सूरज भी बालकों की हँसी को देखकर लाल हो गया है और गुलाबी हँसी हँस रहा है। अस्त होने की अवस्था में सूर्य लाल हो गया है। परन्तु लेखक मानता है कि सूर्य बालकों की प्रसन्नता में शामिल होने के कारण लाल हो गया है। गंगा नदी की कलकल की आवाज ऐसी लगती है,मानो गंगा खिलखिलाकर किलकारियाँ मारती हुई हँस रही है। उस सूनसान वन में लगे ऊँचे-ऊँचे पेड़ स्थिर खड़े ऐसे लगते थे मानो वे कह रहे हैं कि सबकी हँसी बेकार है, संसार में कुछ भी सत्य नहीं है। जगत की सब वस्तुओं को आसारहीन मानकर तटस्थ वृक्ष सोच रहे हैं कि, इन हँसने वालों पर दया आती है क्योंकि यह अबोध हैं। नहीं जानते कि संसार निःसार है।

विशेष :

  1. संसार की निस्सारता को बताया है।
  2. लेखक ने प्रत्येक निर्जीव को सजीव जैसा व्यवहार करते बताया है।
  3. संस्कृत के शब्दों का प्रयोग है। शब्दों की पुनरावृत्ति कविता का सा आनन्द देती है।
  4. उत्प्रेक्षाओं के द्वारा भाषा को सरस बना दिया है। सामासिक शैली का प्रयोग है।

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