MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 8 यशोधरा (गद्य, डॉ. रघुवीर सिंह)

यशोधरा अभ्यास

यशोधरा अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यशोधरा दुःखी क्यों थी? (2015)
उत्तर:
मानव के चिर-सुख का अमृत खोजने के लिए गौतम बिना बताये यशोधरा और अबोध बालक राहुल को छोड़कर चले गये थे। इसी वेदना से यशोधरा अत्यन्त दु:खी थीं।

प्रश्न 2.
जीवन-सागर के मंथन से निकले चिर-वियोग के हलाहल को किसने पीया था?
उत्तर:
चिर-वियोग के उस भयंकर हलाहल को गौतम की पत्नी यशोधरा ने पीया था।

प्रश्न 3.
गौतम कहाँ चले गये थे?
उत्तर:
चिर-सुख का अमृत खोजने के लिए गौतम जंगलों, वनों, पहाड़ों तथा न जाने कहाँ-कहाँ चले गये थे।

प्रश्न 4.
गौतम बुद्ध ने यशोधरा से भिक्षा में क्या माँगा?
उत्तर:
गौतम बुद्ध ने यशोधरा से भिक्षा में ‘चिर वियोग की भीख’ माँगी।

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यशोधरा लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“राहुल पिता के रहते भी अनाथ हो गया” लेखक ने यह कथन किस सन्दर्भ में और क्यों कहा?
उत्तर:
लेखक डॉ. रघुवीर सिंह ने गौतम के पुत्र राहल को अनाथ इसलिए कहा क्योंकि मध्यरात्रि में वह घर को त्यागकर वनों में चले गये थे। उन्होंने अपने जाने की सूचना तक नहीं दी थी। राहुल के पिता गौतम जीवित थे परन्तु उन्होंने घर-परिवार को छोड़ दिया। इस कारण राहुल पिता के जीवित होने पर भी अनाथ था। उस समय राहुल मात्र एक सप्ताह का था। लेखक ने उचित ही कहा है कि “राहुल पिता के रहते भी अनाथ हो गया।”

प्रश्न 2.
हिमालय की छाँह में रहकर भी यशोधरा का ताप पिघलता क्यों नहीं है? (2009)
उत्तर:
ताप पिघलने का अर्थ है विरह-जन्य दुःखों का कम होना। पति-वियोग का दुःख कभी कम नहीं होता है। चाहे विरही मरुस्थल की भयंकर गर्मी में रहे,चाहे हिमालय की शीतलता में रहे, परन्तु विरह की अग्नि की गर्मी हर स्थान पर समान रहती है। पति वियोग तो हर स्थान पर, हर समय बना रहता है। पल भर के लिये यह ताप कम हुआ लगता है,परन्तु वास्तव में होता नहीं है। हिमालय की तलहटी में रहकर भी अर्थात् सर्द भरे वातावरण में रहने पर भी यशोधरा की विरह की तपन कभी कम नहीं होती। लक्ष्मण की विरहिणी उर्मिला ने भी ऐसा ही अनुभव किया था। इसीलिये हिमालय की छाँह में रहने पर भी यशोधरा का ताप पिघलता नहीं है।

प्रश्न 3.
यशोधरा मृत्यु को भी आकर्षक क्यों मान रही थी? (2017)
उत्तर:
यशोधरा मृत्यु को आकर्षक अवश्य कहती है, क्योंकि मरकर जीवन में सुख पाने का यह सुअवसर है। लेकिन यशोधरा सच्चे हृदय से मृत्यु को आकर्षक नहीं मानती है,क्योंकि प्रथम, गौतम के लौटने पर उनका स्वागत कौन करेगा? द्वितीय, यशोधरा ने गौतम से मरने की आज्ञा नहीं ली है। तीसरे, वह मानती है कि प्रिय-वियोग की व्यथा सच्चे प्रेमी के लिए सुखद होती है क्योंकि वियोग के पलों में प्रियतम से मिलने की आशा होती है। प्रश्न में पूछा है, मृत्यु को आकर्षक क्यों मान रही है, परन्तु वह मृत्यु को नहीं जीवन को आकर्षक मानती है।

प्रश्न 4.
बुद्ध को अपने सामने देख यशोधरा सुध-बुध क्यों खो बैठी?
उत्तर:
अनजाने बुद्ध को एकाएक अपने सामने देखकर तथा अपनी उस मूक साधना और आत्मा के लम्बे विरह-प्रणय को यों सफल होते देखकर यशोधरा सारी सुध-बुध खो बैठी। उनका युग-युग का शेषपूर्ण मान और रूठना एकबारगी तो विलीन हो गया। बरसों से सोचे हुए अपने सारे उलाहने भी भूलकर आत्म-विभोर हो उठीं। बुद्ध के दर्शनों के बाद उनकी सारी वेदना नष्ट हो गई। अन्त में वे प्रियतम के चरणों में सिर रखकर रो पड़ी।

यशोधरा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बुद्ध को तपस्विनी यशोधरा के आगे क्यों झुकना पड़ा? (2013)
उत्तर:
बुद्ध को अनेक कारणों से यशोधरा के आगे झुकना पड़ा। गौतम बुद्ध भिक्षा लेने कपिलवस्तु आते हैं और यशोधरा को पता चलता है, तो उनके मुख से अचानक निकल पड़ता है कि प्रियतम कपिलवस्तु ही नहीं राजप्रासादों में भी आये हैं। कुछ ही कदम की दूरी है आँखें उन्हें लालसा से देखने के लिए तरस रही हैं, परन्तु स्वाभिमानी यशोधरा उनसे मिलने नहीं जातीं। गौतम तो चोरी-छिपे रात के अँधियारे में सर्वस्व अर्पण करने वाली यशोधरा की ओर से मुँह फेरकर निकल गये थे, तो क्यों नहीं वह (बुद्ध) अब उन्हें स्वयं देखें। वे आगे कहती हैं कि प्रेम-प्रणय को भी तो वह स्वयं ही आये थे फिर आज क्यों यशोधरा उनके पास जाये।

तब वह प्रेम की भीख माँगने आये थे, लेकिन अब तो वह सचमुच भिक्षुक बनकर आये हैं। आज यशोधरा के पास कुछ नहीं है। तब राजरानी से भिक्षुक को क्या चाहिए? जब बुद्ध कपिलवस्तु तक दूर से पैदल चलकर आ सकते हैं, तो कुछ और आगे (राजप्रासाद तक) क्यों नहीं आ सकते? कामदेव को जीतने वाले तथा संसार को चिर-दुःखों से मुक्ति दिलाने वाले तथागत को तपस्विनी व स्वाभिमानी यशोधरा के आगे यशोधरा के अन्तिम सुख,राहुल और चिर-वियोग की भीख लेने के लिए झुकना पड़ा।

प्रश्न 2.
गौतम बुद्ध के चले जाने के बाद निम्न रूपों में यशोधरा की भूमिका अपने शब्दों में लिखिए
(1) माँ के रूप में
(2) पत्नी के रूप में
(3) भारतीय नारी के रूप में।
उत्तर:
गौतम बुद्ध के चले जाने के बाद यशोधरा ने माँ, पत्नी और भारतीय नारी के रूप को बहुत अच्छी तरह निभाया है।
(1) माँ के रूप में :
यशोधरा को माँ के रूप में दो स्थानों पर देखते हैं-प्रथम गद्यकाव्य के शुरू में जब गौतम बिना कहे घर त्याग देते हैं तो यशोधरा माँ के रूप में तड़पकर कह उठती है-“और कुछ न सही तो राहुल को तो एक बार प्यार कर जाते। एक सप्ताह का वह अबोध अशक्त बालक किस प्रकार उनको रोकने का प्रयत्न कर सकता।” द्वितीय बार जब गौतम लौटकर कपिलवस्तु व राजमहलों में आते हैं। राहुल गौतम के आने की सूचना माँ को देता है,तो यशोधरा कहती है तथागत आयेंगे पर वे हमारे नहीं होंगे। आगे कहती हैं-प्यारे राहुल तू तो राजकुमार व शक्तिशाली राज्य का उत्तराधिकारी है, संन्यासी भिक्षुक का त्यक्त पुत्र नहीं है। तू किसे अपना पिता मान बैठा? इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि यशोधरा एक आदर्श माँ की भूमिका में उपस्थित होती है। लेखक ने आरम्भ में लिखा है-उनका लाडला राहुल पिता के जीवित रहते भी अनाथ हो गया।

(2) पत्नी के रूप में :
यशोधरा एक पत्नी की भूमिका में दृष्टिगत हैं जिन्होंने चिर-वियोग के हलाहल को पीया, प्रियतम के प्रगाढ़ प्रेम से आजीवन बँधी रहीं। गौतम की पत्नी होने के गौरव का भार वह सहती रहीं। गौतम बिना बताये गृह त्यागकर चले जाते हैं तो वह कहने लगती हैं कि “वे मुझसे कहकर क्यों नहीं गए। क्या उन्हें अपनी प्रियतमा अर्धांगिनी पर विश्वास नहीं था?” वे अपने आँसुओं को पति को दिया गया अर्घ्य मानती हैं। हिमालय की छाँह में भी यशोधरा की वियोग की अग्नि की जलन कम नहीं होती है। वे बिहारी की नायिका के समान मरना भी नहीं चाहतीं,क्योंकि लौटने पर उनका स्वागत करना है। जैसे एक पत्नी पति की आज्ञा से ही प्रत्येक कार्य करती हैं,तो मरने की आज्ञा भी उन्हें गौतम से ही लेनी है।

पत्नी पति को अपने सतीत्व से झुका लेती है। यशोधरा ने भी गौतम को झुकाया। गौतम भिक्षा लेने हेतु पत्नी के सम्मुख झुके। पत्नी की सबसे बड़ी विजय यही है। उसके बदले में वे अपने पुत्र तथा चिर-वियोग के सुख को भी भिक्षा पात्र में डाल देती हैं। अन्त में,पति के चरणों में सिर रखकर रो देती हैं। इस प्रकार यशोधरा को हम आदर्श पत्नी के रूप में पाते हैं,जो पति के वंश को बढ़ाने वाले पुत्र का संस्कारित रूप में पालन करती है।

(3) भारतीय नारी के रूप में :
गौतम बुद्ध के चले जाने के बाद यशोधरा भारतीय नारी के रूप में दृष्टिगत होती है। भारतीय नारी की विशेषताएँ हैं-पतिव्रता, सन्तानपालक, स्वाभिमानी, आदर्श माँ, कर्तव्यपालक आदि। ये समस्त गुण यशोधरा में विद्यमान हैं। वह एक आदर्श पत्नी हैं। पतिव्रता नारी हैं। इसी कारण पति के संन्यासी होने पर आजीवन चिर-वियोग के हलाहल को पीती हैं। ऋतुराज की ओर भी नहीं देखती। पति अर्धांगिनी को बताये बिना क्यों गये? वह एक आदर्श माँ के समान पुत्र राहुल का पालन करती हैं तथा कहती हैं कि राहुल तुम संन्यासी के त्यक्त पुत्र नहीं शक्तिशाली राज्य के उत्तराधिकारी हो।

इसी प्रकार वह एक कर्तव्यनिष्ठ भारतीय नारी है। जब गौतम द्वार पर भिक्षा माँगते हैं-वह भिक्षा पुत्र व चिर वियोग है। वह बिना सोच द्वार पर आये भिक्षुक को अपनी दोनों प्रिय वस्तुओं को देकर कर्तव्य का पालन बखूबी करती है। स्वाभिमानी भारतीय नारी के समान वह बुद्ध से मिलने नहीं जाती। वह कहती है कि वह स्वयं बिना बताये गये थे,स्वयं आयें। अन्त में गौतम को नारी के स्वाभिमान के समक्ष झुकना पड़ा। आपने सर्वस्व को नत देखकर उनका रोष,मान,उपालंभ, विरह गायब हो गया तब भारतीय नारी के हृदय की सारी उदारता उमड़ पड़ी।

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प्रश्न 3.
“क्या वियोगी हृदय की ये निःश्वांसें भी कभी प्यार की ठण्डी दलारी बयार बन सकेंगी?” यशोधरा की अनागत पीड़ा को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। (2009)
उत्तर:
गौतम ने मानव के लिए चिर-सुख का अप्राप्त अमृत पाने के लिये परिवार व संसार को त्याग दिया। यशोधरा आजीवन वियोगिनी बन गईं। उनकी व्यथा को सुनने वाला कोई उद्धव नहीं था। उनका सन्देश ले जाने वाला भी कोई नहीं था। इस कारण उनकी प्यासी आँखों के तप्त आँसू बह रहे थे, हृदय से निःश्वांसे निकल रहीं थीं। उन तप्त साँसों के लिए यशोधरा कहती हैं कि क्या वे साँसें कभी शीतल हो सकेंगी अर्थात् गौतम से उनका मिलन होगा? उनका जीवन अब एकाकी ही बीतेगा।

सुख की बीती रातें फिर नहीं आयेंगी। जवानी भूलकर भी नहीं लौटेगी तो संन्यासी गौतम भी लौटकर क्यों आने लगे? तब निःश्वांसों का हलाहल यशोधरा को आजीवन पीना होगा। वैसे तो गौतम लौटकर नहीं आयेंगे.यदि आ भी गये तो एक नये रूप में यानि संन्यासी-भिक्षुक बनकर आयेंगे। इस स्थिति में यशोधरा की तप्त साँसें शीतल पवन में नहीं बदल सकती हैं। यशोधरा का दुःख मृत्यु-पर्यन्त था। यहाँ तक कि तथागत “चिर-वियोग” भिक्षा में माँगकर ले गये।

प्रश्न 4.
विरहिणी और उदास यशोधरा की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विरहिणी यशोधरा उदास अवस्था में बैठी है। पलकों पर प्रतिपल आँसू विराजमान रहते हैं. होठों पर विरह की पीडा रहती है। उनका जीवन साथी गौतम भी उनके साथ नहीं हैं। जगतमाता पृथ्वी भी उन्हें शत्रु जान पड़ती है। उनके नेत्र स्नेह-दीप से चमकते रहते हैं। अब उनका प्रकाश कम हो गया है। उनकी आँखें बसन्त के सौन्दर्य को भी नहीं देख पाती हैं। बीते दिनों की सख की स्मृतियाँ उनके एकाकी जीवन में उभरती रहती हैं। सांसारिक जीवन का वह सूनापन निरन्तर और भी बढ़ता जाता है। गौतम की पत्नी होने का भार और भी उभरता जाता है।

गौतम और यशोधरा के स्नेह बन्धन को बुढ़ापा या मृत्यु भी कम नहीं कर सकते हैं। संन्यास ग्रहण करने के बाद प्रयत्न करने पर भी इन बन्धनों को भुलाया नहीं जा सकता है। इन सब बातों को सोचकर यशोधरा का हृदय बार-बार भर आता है। बीते सुखमय दिनों की ये प्यार भरी स्मृतियाँ उनके हृदय में बिखरी पड़ी हैं। दूसरों के दुःख को समझकर उन दुःखों को दूर करने वाले गौतम यशोधरा के दुःख को न समझ सके, बिना बताये चले गये। उन्हें अपनी अर्धांगिनी पर विश्वास नहीं था। यशोधरा के हृदय में आज भी वही प्रेममयी सूरत बसी है।

यशोधरा भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह कर समास का नाम लिखिए
नीलकंठ, दुःख सागर,जीवन सागर, जीवन-संध्या, नर-नारी, धर्मचक्र, राज-प्रासाद, स्मृति-सुख।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 8 यशोधरा img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम, तद्भव एवं देशज शब्द छाँटिए
दिवस,वियोगी, सूर्य,लज्जा, अँधियारे, जरा, पत्नी, आँखें, अधर, विरह, भग्न,बैरिन, सच्चा, बयार, तरस, उमड़।
उत्तर:
तत्सम शब्द – दिवस, वियोगी, सूर्य, पत्नी, अधर, विरह, भग्न।
तद्भव शब्द – लज्जा, अँधियारे, जरा, बैरिन, सच्चा, आँखें।
देशज शब्द – तरस, उमड़, बयार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को दिए गए निर्देशानुसार बदलिए

  1. सूर्य पश्चिम में अस्त नहीं होता है। (विधानवाचक वाक्य)
  2. बहुत लम्बी रेलगाड़ी है। (विस्मयादिवाचक वाक्य)
  3. तुम पढ़ने कब जाओगे? (आज्ञावाचक वाक्य)
  4. माला नहीं नाचेगी। (प्रश्नवाचक वाक्य)

उत्तर:

  1. सूर्य पश्चिम में अस्त होता है।
  2. ओह! कितनी लम्बी रेलगाड़ी है।
  3. पढ़ने जाओ।
  4. क्या माला नाचेगी?

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों का भाव विस्तार कीजिए-
(अ) “अपने सारे उजाले को लेकर भी क्या वह सूर्य यशोधरा के उस वियोगी सुने दिल के निराशापूर्ण अन्धकार को यत्किचित् भी दूर कर सकता था?”
(ब) “इस कालकूट को पीकर भी यशोधरा नील-कण्ठा नहीं हुई, कैलाशवासी शंकर भी यह देखकर लज्जा के मारे सकुचा गए।”
(स) “वह विरक्त तपस्वी न तो भौरों की गुनगुनाहट ही सुनेगा और न मेघ के साथ भेजे गए सन्देश ही उस योगी तक पहुँच पाएँगे।”
उत्तर:
(अ) गौतम ने यशोधरा को त्यागकर उनके हृदय को सूना कर दिया है तथा यशोधरा को अब प्रियतम के मिलने की भी आशा नहीं है। ऐसे दुःख रूपी अन्धकार से भरे हृदय को सूरज, जो संसार के अन्धकार को मिटाकर उजाले से भर देता है,यशोधरा के हृदय को सुख रूपी प्रकाश से नहीं भर सकता अर्थात् सूर्य भी यशोधरा के सूने मन में प्रसन्नता का प्रकाश नहीं कर सकता।

(ब) गौतम ने मानव के लिए चिर-सुख का अमृत ढूँढ़ने के लिए संसार को त्यागा था, तो यशोधरा के हिस्से में चिर-वियोग का हलाहल आया। उस विष को पीकर भी यशोधरा नील कण्ठा नहीं कहलायी। लेखक ने इस तुलना से यह स्पष्ट करना चाहा है कि समुद्र मंथन से अमृत व विष निकला। भगवान शंकर ने देवताओं की भलाई के लिए विष का पान किया और नीलकण्ठ कहलाये। यशोधरा के इस आजीवन त्याग को देखकर भगवान शंकर भी लज्जित हो गये,क्योंकि यशोधरा का त्याग भगवान शंकर के त्याग से बड़ा था।

(स) गौतम इस संसार से उदासीन थे। इस कारण उन्हें भौंरों का मधुर संगीत यानि संसार की मधुर स्वर-लहरी सुनायी नहीं देती है। उन्हें अपना सन्देश भेजने के लिए यशोधरा यदि बादलों को अपना दूत बनाकर भेजती है, तो संन्यासी गौतम उसे भी सुन व समझ नहीं पायेंगे। गद्य-काव्य की इस पंक्ति के माध्यम से डॉ. रघुवीर सिंह बताते हैं कि उस वैरागी-संन्यासी को संसार का सौन्दर्य तथा रिश्तों के बन्धन कभी नहीं बाँध सकते हैं।

यशोधरा पाठ का सारांश

‘डॉ. रघुवीर सिंह’ द्वारा लिखित प्रस्तुत गद्यकाव्य ‘यशोधरा’ एक उच्चकोटि का विरह काव्य है। कपिलवस्तु के राजकुमार गौतम सत्य की खोज एवं चिर-दुःखों से छुटकारा पाने के लिए संसार को त्यागकर तपस्वी बने,तब उन्हें बुद्धत्व प्राप्त हुआ कि जीवन में दुःखों से छुटकारा नहीं मिल सकता। वनवासी गौतम के महलों में रह गई उनकी अतिप्रिय पत्नी यशोधरा और लाड़ला बेटा राहुल।

चिर वियोगिनी यशोधरा सोचती है कि उनके प्रियतम इतने कठोर क्यों बन गये,पत्नी से नहीं तो क्या सात दिन के अबोध बालक का वात्सल्य भी उनके हृदय में नहीं जागा? गौतम के विरह में उनके पलक हर समय आँसुओं से भरे रहते हैं। सुखमय दिनों की सीमित यादें उन्हें तड़पाती रहती हैं। गौतम यशोधरा को बताकर नहीं गये इस बात से वह व्यथित रहती है। अब उनका जीवन एकांकी ही बीतेगा। यदि गौतम लौटकर आ भी गये तो क्या उनका पुराना ही स्वरूप होगा? वियोग में यशोधरा मरना भी नहीं चाहतीं, क्योंकि उन्होंने मरने की आज्ञा नहीं ली है। बुद्धत्व को प्राप्त करने के बाद गौतम से तथागत बने बुद्ध कपिलवस्तु व राजमहलों में आते हैं। इसकी सूचना उनका पुत्र राहुल माँ को देता है, तो वह कहने लगी कि जैसे बिना बताये गये वैसे ही बिना बुलाये आ जायेंगे।

यशोधरा के इस स्वाभिमान के सामने गौतम को झुकना पड़ा और वे भिक्षा के लिये स्वयं यशोधरा के महल में गये। अपने अनजाने बुद्ध को एकाएक अपने सामने देखकर यशोधरा का सारा मान, रोष, उपालम्भ, रूठना आदि विलीन हो गया तथा अपने प्रणय को सफल होता देख अपनी सुध-बुध खो बैठीं। दर्शन सुख की याद में सारी वेदनाओं का जल बह गया। अपने सर्वस्व को सम्मुख देखकर आत्म-विभोर हो उनके चरणों पर अपना सिर रखकर रो पड़ी। परन्तु पुराने प्रणय के भिक्षुक ने अब भी यशोधरा की पीड़ा को नहीं समझा और झोली फैला दी। प्रेम में पागल यशोधरा ने अतिप्रिय धन राहुल से निष्ठुर भिक्षुक का पात्र भरकर अनजाने में पूछा-“क्या और भी कुछ?” सकुचाते हुए बुद्ध ने माँगा–“तब नहीं ले सका था-आज चिर वियोग की भीख दे दो।”

यशोधरा कठिन शब्दार्थ

यत्किंचित् = बहुत थोड़ा। व्यग्र = उतावला,व्याकुल। हलाहल = विष। कालकूट = विष। नीलकण्ठा = शंकर। विकराल = भयंकर। सर्वदा = हमेशा। भग्न = तोड़। निष्ठुर = कठोर। प्रगाढ़ = गहरा। सर्वथा = बिल्कुल। पीर = पीड़ाद्य। जगन्माता = जगत की माता। द्युति = प्रकाश, ज्योति। क्षीण = कमजोर। ऋतुराज = बसन्त। किंचित मात्र = थोड़ा-सा। भरसक = पूरी तरह। अबोध = नादान। क्षीण = धीमी। अविरल = लगातार। अर्ध्य = पूजा का जल। जीवन संध्या = बुढ़ापा। अज्ञात रात्रि = मृत्यु। श्यामल = काले। तृप्त = प्यास बुझाना। द्रवीभूत = पिघलना। सुधि = याद। विरक्त = संन्यासी। बयार = हवा। व्यथा = दुःख । मार = कामदेव। परिव्राजक = साधु। निस्संग = अकेलापन। पर्यटन = यात्रा। प्रासाद = महल। तथागत = बुद्ध। व्यक्त = त्यागा हुआ। सँध गया = रुक गया। सांत्वना = ढाढस। अन्तरतम् = भीतर। सुगत = अच्छी गति, बुद्ध। समुत्सुक = उत्साहित। सुखावशेष == बचा हुआ सुख। सर्वस्व = सब कुछ। हेरे = देखे। रोषपूर्ण = क्रोधपूर्ण। उपालम्भ = उलाहना।

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यशोधरा संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) मानव के लिए चिर-सुख का वह अप्राप्य अमृत प्राप्त करने को व्यग्र गौतम ने अपने जीवन-सागर का मंथन किया और उससे निकले चिर-वियोग के उस भयंकर हलाहल को पिया उनकी प्रियतमा यशोधरा ने …… परन्तु इस कालकूट को पीकर भी यशोधरा नीलकण्ठा नहीं हुई। कैलाशवासी शंकर भी यह देखकर लज्जा के मारे सकुचा गये। (2009)

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘यशोधरा’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके सर्जक डॉ. रघुवीर सिंह हैं।

प्रसंग :
जो गौतम छोटे से छोटे प्राणी को भी दुःख देना नहीं चाहते थे, वही गौतम इस संसार को दुःख से उबारने के लिये अपनी प्रियतमा यशोधरा को आजीवन दुःख भोगने के लिए वियोग रूपी सागर में अकेला छोड़कर चले गये। उस समय की दुःखी यशोधरा का लेखक ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में वर्णन किया है।

व्याख्या :
संसार के दुःख से दुःखी होने वाले गौतम ने संसार को इस दुःख से पीछा छुड़ाने के मार्ग का पता लगाने के लिये अपने जीवन को दुःखों के सागर में डाल दिया। अपने समस्त सुखों,यहाँ तक कि पत्नी व पुत्र का भी त्याग कर दिया। जीवन का सुखरूपी अमृत आज तक किसी को प्राप्त नहीं हुआ। यह सुख अप्राप्त अमृत के समान है। जब गौतम ने अपने जीवन रूपी सागर का मंथन किया तो उसमें से वियोग रूपी हलाहल निकला। जिसे स्वयं गौतम के बदले उनकी प्रियतमा ‘यशोधरा’ को पीना पड़ा।

जिस प्रकार सागर मंथन में से विष निकला जिसे देवताओं की रक्षा के लिये शंकर ने पीया व नीलकण्ठ कहलाये। परन्तु इस वियोग के विष को, जो गौतम ने दिया, उसे यशोधरा को पीना पड़ा परन्तु यशोधरा नीलकण्ठा नहीं कहलायौं। यशोधरा का वियोग गौतम के वियोग से कहीं अधिक था। इसे देखकर हिमालय का तपस्वी व त्यागी शंकर का सिर भी लज्जा से झुक गया। शंकर को अपना त्याग व उपकार छोटा अनुभव हुआ। वास्तव में यशोधरा का चिर वियोग महान था।

विशेष :

  1. यशोधरा के दुःख का मार्मिक चित्रण है।
  2. रूपक अलंकार व वियोग शृंगार अलंकार का प्रयोग है।
  3. भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त सारगर्भित है।
  4. आलंकारिक शैली।

(2) एकाएक अपने सामने देखकर युग-युग का उसका वह रोषपूर्ण मान, उसका वह रूठना एक बारगी ही विलीन हो गए। बरसों से सोचे हुए अपने वे सारे उपालंभ भी वह भूल गई। अपनी उस मूक साधना और आत्मा के युग भर के इस विरह-प्रणय को यों सफल होते देखकर वह सारी सुध-बुध खो बैठी। अपने जीवन सर्वस्व को पुन: अपने सम्मुख देखकर एकबारगी वह आत्म-विभोर हो गई। दर्शन-सुख-भावना की उस बाढ़ में उसकी सारी वेदना डूबती-सी जान पड़ी। अपने प्रियतम के चरणों में सिर रखकर वह रो पड़ी। (2016)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
गौतम ज्ञान प्राप्त करने के बाद भिक्षा हेतु राजप्रासाद में यशोधरा के समक्ष आते हैं,तब यशोधरा जीवन भर के दुःख को भूल जाती है और आत्मविभोर होकर अपना सिर तथागत गौतम के चरणों में रख देती है।

व्याख्या :
गौतम बिना बताये सत्य की खोज में चले गये थे जिस कारण यशोधरा के मन में रोष था,परन्तु जब उन्होंने गौतम को अचानक अपने सामने भिक्षा का पात्र लिये देखा तो उनका सारा क्रोध दूर हो गया। वे उलाहना देना भी भूल गईं। उन्होंने गौतम के वियोग को वर्षों तक चुप रह कर सहा था। उनका वह मौन,जीवन की बहुत बड़ी साधना थी। गौतम को सम्मुख खड़ा देखकर उनकी साधना व प्रणय सफल हो गया था। जिस कारण वह अपनी सुध-बुध भी खो बैठी और साक्षात् प्रणय को निहारने में बेसुध हो गई थीं।

जो गौतम यशोधरा का जीवन-धन थे, वे आज उनसे भिक्षा माँग रहे थे। उन्हें अचानक अपने सामने देखकर उनकी आत्मा आनन्दित हो उठी। उन्हें अलौकिक सुख का अनुभव हुआ, वे स्वयं को भूल गईं। गौतम को पुनः देखने की खुशी में वह जीवन भर का विरह-वियोग जो गौतम ने ही दिया था,यशोधरा बिल्कुल भूल गई। उनका वह विरह आँसू बनकर गौतम के चरणों का अर्घ्य बन गया। अन्त में वह अपने प्रियतम गौतम के चरणों में अपना सिर रखकर रो पड़ीं।

विशेष :

  1. यशोधरा व गौतम के पुनर्मिलन का हृदयस्पर्शी चित्रण हुआ है।
  2. भाषा शुद्ध साहित्यिक संस्कृत शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।
  3. सामासिक पद शैली-विरह-प्रणय,सुध-बुध आदि।
  4. गद्य में भी कविता का सा आनन्द है।

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