MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 10 रंगोली (कहानी, डॉ. शिवप्रसाद सिंह)

रंगोली अभ्यास

रंगोली अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बिना रंग की वस्तु के सम्बन्ध में लेखक ने क्या कहा है? (2016)
उत्तर:
बिना रंग की कोई भी वस्तु लेखक के मस्तिष्क में नहीं आती। आती भी है, तो लगता है जैसे,रंगहीन अगणित आकृतियाँ भिन्नता सूचक रंग भेद के अभाव में वाष्प-पिण्डों की भाँति आपस में टकरा रही हैं।

प्रश्न 2.
श्वेत रंग की वस्तुओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
खड़िया और बर्फ दोनों श्वेत रंग की वस्तुएँ हैं।

प्रश्न 3.
काले रंग को भयप्रद क्यों कहा है?
उत्तर:
काले रंग की प्रत्येक वस्तु में कोई आकार या सुखद संवेदना न होकर विरोध और अशुभ की भयानक संवेदना होती हैं। इसलिए लेखक ने काले रंग को भयप्रद कहा है।

प्रश्न 4.
‘शीतल हरीतिमा’ वाक्यांश का प्रयोग निबन्धकार ने किस कवि के सन्दर्भ में किया है?
उत्तर:
‘शीतल हरीतिमा’ वाक्यांश का प्रयोग निबन्धकार ने प्रकृति और सौन्दर्य के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त के सन्दर्भ में किया है।

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रंगोली लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कोई भी दो चीजें एक-सी क्यों नहीं होती?
उत्तर:
कोई भी दो चीजें एक-सी नहीं होती क्योंकि उनका रंग एक होने पर भी उनके गुण, आकार, परिणिति आदि में अन्तर होता है, जैसे-खड़िया और बर्फ दोनों का रंग सफेद होने पर भी दोनों एक-सी नहीं होती। खड़िया सफेद होने पर कठोरता का आभास कराती है, जबकि बर्फ सफेद होने पर शीतलता का आभास कराती है। रंग की साम्यता होने पर भी दोनों एक-सी नहीं हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि कोई भी दो चीजें एक-सी नहीं होती हैं।

प्रश्न 2.
एक रंग के साथ दूसरे रंग का मिश्रण मानव ने प्रकृति से सीखा है? इसकी पुष्टि हेतु दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
एक रंग के साथ दूसरे रंग का मिश्रण मानव ने प्रकृति से सीखा है। इसकी पुष्टि निम्नलिखित उदाहरणों से होती है-]\

  1. काले रंग में पीला रंग मिलाने से नीला रंग प्राप्त होता है।
  2. कृष्ण की हरे रंग की बाँसुरी, होठों की ललाई और पीत वस्त्र की पीताभा के सम्मिश्रण से इन्द्रधनुष-सी छा जाती है।

प्रश्न 3.
लेखक ने अनुराग और लाल को समानार्थी क्यों बताया है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार रंगों की दुनिया बड़ी विचित्र और मोहक होती है। रंगों की अद्भुत दुनिया में अमूर्त वस्तुएँ भी रंगीन दिखाई देती हैं। अनुराग का अर्थ है-प्रेम। प्रेम को आज तक किसी ने नहीं देखा है परन्तु अनुभव अवश्य किया है और उसे लाल कहा है। इसलिए लेखक ने अनुराग और लाल को समानार्थी कहा है।

प्रश्न 4.
रंग की पहचान करने से होने वाले तीन लाभ लिखिए।
उत्तर:
रंग की पहचान करने से होने वाले तीन लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. रंगों की दुनिया बड़ी विचित्र और मनमोहक लगती है।
  2. इसकी पहचान से अमूर्त वस्तुएँ भी रंगीन दिखाई देने लगती हैं।
  3. कवि के द्वारा रंग स्पर्श से,सजीव सौन्दर्य को देखने की क्षमता आ जाती है।

प्रश्ना 5.
रंग के बिना सब कुछ सूना है।” लेखक के इस कथन का आशय क्या है? (2011, 12, 15)
उत्तर:
“रंग के बिना सब कुछ सूना है।” लेखक के इस कथन का आशय है कि यदि कोई एक बार रंगों की दुनिया में प्रवेश कर जाता है, अर्थात् उसे रंगों की पहचान या महिमा ज्ञात हो जाती है, तो उसे संसार विचित्र व मनमोहक लगने लगता है, सूक्ष्म व स्थूल सब में रंगों का सौन्दर्य दिखाई देता है। साधारण हृदय वाला व्यक्ति भी कवि व कलाकार बन जाता है। रंग भाव-विशेष के द्योतक बनकर मनुष्य को रंगों में इतना डुबो देते हैं कि वह उस आनन्द में डूबता ही चला जाता है। लेखक ने ठीक ही कहा है कि रंग के बिना सब सूना है।

रंगोली दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रंगों की दुनिया को “विचित्र और मनमोहक” क्यों कहा है?
उत्तर:
रंगों की दुनिया बड़ी विचित्र और मनमोहक है क्योंकि यहाँ सूक्ष्म व अमूर्त वस्तुएँ रंगीन दिखाई देती हैं,जैसे-अनुराग (प्रेम) को शायद ही किसी ने देखा हो पर उसे लाल रंग का माना गया है। सूक्ष्म और अमूर्त वस्तुओं को रंगीन बनाना मनुष्य ने प्रकृति से ही सीखा है। बालक, परछाईं, कौआ, रात जैसी काली चीजों से डरता है पर श्वेत चन्द्रमा को देखकर प्रसन्न होता है और उसे माँगता है। यह रंगों की विचित्रता ही है। रात भयानक, साँझ मनहूस, दोपहर उदास और सबेरा प्रफुल्लित लगता है-कारण सिर्फ एक है,रंग का रूप।

श्वेत जल, चाँदनी और कुमुद नयनों को शीतल,मन को पवित्र तथा सुखदायक लगते हैं। यह रंगों का मनमोहक रूप है। ऊषा की लालिमा रतनारी आँखें, रक्तकादम्ब, अनुराग तथा श्रृंगार मादक के साथ लाल वर्ण है, जो मनमोहक हैं। रंगों के आधार पर ही रस तथा अलंकारों की व्यंजना की जाती है। ऋतुएँ साकार हो उठती हैं। रंग की भ्रान्ति और रंग परिवर्तन विरह वर्णनों में दिखाई देता है। उपर्युक्त उदाहरणों एवं चर्चा से स्पष्ट है कि रंगों की दुनिया विचित्र और मनमोहक होती है।

प्रश्न 2.
ऋतुओं का रूप साकार करने के लिए रंगों का प्रयोग होता आया है। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
लेखक का कथन है कि रंगों के आधार पर ऋतुओं का रूप साकार हो जाता है। गुलाब के सम्पर्क से वायु सुगन्धित व लाल हो जाती है, तपते हुए सोने के रंग वाले सूर्य की तीव्रता संध्या की लालिमा में बदलकर भी ऊष्मा देती है। काले मतवाले हाथी जैसे बादलों में जब बिजली चमकती है तो आसमान में इन्द्रधनुष की कल्पना साकार हो उठती है। काले रंग से वर्षा ऋतु के आगमन का संकेत किया गया है। सफेद हंसों की पग ध्वनि से शरद ऋतु के आने की सूचना दी जाती है।

फूलों को खिलाती, पके धानों को हिलाती हुई, तालाब में कमलों को खिला देने वाली पीली हेमन्त ऋतु मुस्कराती-सी दिखाई पड़ती है। दिन की धूप में चाँदनी जैसी प्रतीत होने वाली तथा रात में तारों को पीला करके कँपकँपा देने वाली शिशिर ऋतु सबको दर्शन देती है। दीपक की लौ जैसे चमकीले पीले पैरों से आगे कदम बढ़ाती हुई बसन्त ऋतु बाग-बगीचों में विचरण करने लगती है। इस प्रकार काला रंग वर्षा ऋतु को,सफेद रंग शरद ऋतु को, धानी रंग हेमन्त ऋतु को तथा पीला रंग बसन्त ऋतु के रूप को साकार कर देता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव विस्तार कीजिए-
(अ) “काले मतवाले हाथी पर सवार विद्युत-झण्डियों वाले वर्षा-राज को देखते ही इन्द्रधनुष आँखों में छा जाता है।”
(ब) “रीतिकालीन कवियों की जिन्दादिली तो रंगबाजी में ही दिखाई पड़ती है।”
उत्तर:
(अ) वर्षा ऋतु में आकाश में हाथी के काले रंग जैसे बादल तथा हाथी के विशालकाय जैसे बादल हाथी के समान झूमते हुए आकाश में विचरण करते हैं, उन बादलों के बीच चमकती बिजली हाथी पर सवार के हाथ में ली हुई विजय पताका के समान लहराती है। आकाश में इस दृश्य को देखकर वर्षा के थमने के बाद आकाश में छाये इन्द्रधनुष की याद आ जाती है। दूसरा भाव है कि इस दृश्य से आँखों में प्रसन्नता छा जाती है। यहाँ पर मतवाले हाथी काले-काले बादल हैं, झण्डियाँ बिजली का आकाश में लहराना है और इन्द्रधनुष मन का प्रसन्न होना है।

(ब) रीतिकाल के श्रृंगारी कवि नायिका के सौन्दर्य-वर्णन में रंगों का खुले हृदय से प्रयोग करते हैं। नायिका की एड़ी के लाल रंग को छुड़ाने के लिए नाइन गुलाब के झाँवे को रगड़ती है तो लाल खून ही निकल आता है। ब्रज की गोपियों को संसार, यमुना,कदम्ब-कुंज,घटा,वनस्पतियाँ सभी श्याममय अर्थात् काली ही दिखाई देती हैं। उनका रंग भेद नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(अ) “आज के विश्व में तो ……. चटकीले और धूमिल।”
(ब) “राधा की पिंगलता के प्रभाव ……… इन्द्रधनुष सी छा जाती है।”
(स) “श्वेत जल के सरोवर में …… भाल की चन्द्रकला भी श्वेत।”
(द) “राधा और कृष्ण के प्रेम की ……. सिर पर महावर लगा आए।”
उत्तर:
उपरोक्त गद्यांशों की व्याख्या के लिए ‘व्याख्या हेतु गद्यांश’ भाग का अवलोकन करें।

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रंगोली भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध रूप में लिखिए

  1. मेरी साड़ी तुमसे अच्छी है।
  2. हम अपने पिता के सबसे बड़े लड़के हैं।
  3. शिकारी ने उस पर गोली चलाई पर शेर बच निकला।
  4. मैंने कारीगर से एक घर को बनवाया।
  5. अब राधा मेरे यहाँ जाया आया नहीं करती।

उत्तर:

  1. मेरी साड़ी तुम्हारी साड़ी से अच्छी है।
  2. मैं अपने पिता का सबसे बड़ा बेटा हूँ।
  3. शिकारी ने शेर पर गोली चलाई पर वह बच गया।
  4. मैंने कारीगर से एक घर बनवाया।
  5. राधा अब मेरे यहाँ आती-जाती नहीं।

प्रश्न 2.
हिन्दी में तुलना के तीन सोपान होते हैंयथा-लघु लघुतर लघुतम। इसी आधार पर नीचे दिए गए शब्दों को तुलनात्मक स्वरूप दीजिए-
दिव्य, सूक्ष्म, अधिक, उच्च, गहन।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 10 रंगोली img-1

प्रश्न 3.
‘मातायें’ शब्द का मानक प्रयोग है माताएँ, इसी प्रकार दिए गए शब्दों के मानक प्रयोग लिखिए।
उत्तर:
शालायें – शालाएँ
बालिकायें – बालिकाएँ
चाहिये – चाहिए
नये – नए
किये – किए

प्रश्न 4.
कभी-कभी शब्दों के आद्याक्षर संयुक्त होकर नया रूप बनाते हैं, जैसे-ननि-नगर निगम। इसी प्रकार दिए गए शब्दों के संक्षिप्त स्वरूप लिखिए।
उत्तर:
व्यावसायिक परीक्षा मंडल – व्यापमं
राष्ट्रीय सेवा योजना – रासेयो
दैनिक वेतन भोगी – दैवेभो
जीवन बीमा निगम – जीबीनि

प्रश्न 5.
राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
किसी राज्य विशेष की शासकीय सेवा में जिस भाषा का प्रयोग होता है, वह राजभाषा है। राजभाषा से तात्पर्य ऐसी भाषा से है, जो व्यवहार की भाषा हो, जैसे-तमिलनाडु में तमिल, महाराष्ट्र में मराठी इत्यादि राजभाषाएँ हैं। एक राष्ट्र में अनेक राजभाषाएँ हो सकती हैं।

दूसरी ओर जो भाषा अन्य भाषा-भाषी राज्यों के मध्य सेतु का कार्य करती है तथा सभी राज्यों में अनिवार्य रूप से अपनायी जाती है,उसे राष्ट्रभाषा कहते हैं। किसी एक राष्ट्र की एक ही राष्ट्रभाषा होती है। भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है।

रंगोली पाठ का सारांश

बहुमुखी प्रतिभा एवं अपार लेखन सामर्थ्य के धनी ‘डॉ. शिवप्रसाद सिंह’ द्वारा लिखित प्रस्तुत निबन्ध ‘रंगोली’ में लेखक ने संस्कृत साहित्य से लेकर आधुनिक हिन्दी साहित्य के क्षेत्र तक के कवियों की रंग-विदग्धता का परिचय दिया है।

लेखक के अनुसार रंग वस्तु में होता है। बिना रंग की कोई वस्तु हो ही नहीं सकती। वर्तमान में तो रंग का जादू सबके सिर चढ़कर बोल रहा है। मनुष्य को रंग की परख प्रकृति से ही मिली है। एक ही रंग अनेक आभासों में मिलता है, जैसे-श्यामपट्ट, कौआ तथा सजल जलद तीनों काले कहे जाते हैं, परन्तु तीनों का रंग एक-सा नहीं होता। हर रंग की अपनी अलग प्रकृति होती है, जैसे-लाल रंग प्रेम व क्रोध का, सफेद रंग पवित्रता व कोमलता का,काला रंग विरोध व अशुभ का प्रतीक माना जाता है। इसी प्रकार रंग-संधान व रंग मिश्रण, दो बातें होती हैं। रंग-संधान के कारण आकाश में इन्द्रधनुष दिखाई देता है, तो रंग मिश्रण के कारण कृष्ण हरित धुति वाले दिखायी देते हैं।

रंगों की दुनिया बड़ी विचित्र और मनमोहक होती है, तभी तो मनुष्य सूक्ष्म और अमूर्त वस्तुओं को रंगीन देखने लगा है। रंगों के आधार पर काव्य के अन्दर अद्भुत कार्य होते हैं। ऋतुओं का रूप साकार हो जाता है,रस और अलंकार अलौकिक रूप धारण कर लेते हैं।

रीतिकालीन कवियों ने रंग-वाणी में खूब जिंदादिली दिखाई, जिससे नन्दगाँव पर गोरी घटा और बरसाने में काली घटा छा गयी। कविवर पन्त के रंगों का जादू अद्भुत एवं चित्ताकर्षक माहौल बना देता है। रंगों की दुनिया इतनी विस्मृत कर देने वाली है कि तुलसी जी कह उठते है-

“गिरा अनयन नयन बिनु बानी”
रंग के बिना सब कुछ सूना है।
इस प्रकार रंगों का सामाजिक प्रयोजन,उसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव और कविता में रंगों के विविध वर्णी सौन्दर्य को स्पष्ट किया गया है।

रंगोली कठिन शब्दार्थ

वाष्प-पिण्डों = भाप का समूह। परमेष्ठिन = संसार रचयिता। धूमिल = धुंधला, अधमैना। पुरखों = पूर्वजों। रंग-परख-प्रतिभा = रंग पारखी, रंग पहचानने वाले। सजल जलद = जल से पूर्ण बादल। श्वेत तुषार मण्डित = धवल तुषार (पाला) से शोभायमान। स्निग्धभिन्नाजनाभ = स्निग्ध लेपयुक्त चमक। सद्यः = अभी-अभी। मृसल = चिकना। पिंगलता = छंदयुक्ता, पीलापन। रंग-संधान = रंगों की खोज। अनुराग = प्रेम। धुंधने = रत्ती। मनहूस = अशुभ। प्रफुल्ल = प्रसन्न। कुँई = कुमुदिनी। अधिष्ठात्री = सर्वमान्य। वसन = वस्त्र। दुर्ग्रह = अशुभ ग्रह। मादक = नशीली। रतनारी = लाल। कल्याणोन्मुख = भलाई करने वाला। पाटल = गुलाब। कांचन-वर्ण = सोने के रंग जैसा। पद्य-सर = कमलों के तालाब। डग = कदम। बगरने = घूमने। अतिशयोक्तियाँ = बढ़ा-चढ़ाकर कहना। रागारूण = लालिमायुक्त। पराकाष्ठा = चरम सीमा। विभेद = अन्तर। माहौल = वातावरण। तापस-बाला = तपस्वी कन्या। वातास = वायु। बरजोरी = जबरदस्ती। क्षालित = घुले हुए। परिशिष्ट = अन्त का शेष भाग। मुक्ता = मोती। भयप्रद = डरावना। बिलोचन = नेत्र। म्यूजियम = संग्रहालय। पीताभ = पीली आभा से युक्त। बोरत तो बोरयौ पर निचोरत बनै नहीं = भाव में डूबकर उससे न निकल पाने की स्थिति।

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रंगोली संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) आज के विश्व में तो रंग का जादू सिर चढ़कर बोलता है। सतरंगा, तिरंगा, इकरंगा (लाल) तो उड़ते ही हैं; अब काला भी उड़ने लगा है। यही नहीं, अपने-अपने देश की अपनी-अपनी बात-कहीं रंग जमता है, कहीं रंग उखड़ता है, कहीं रंग चढ़ता है तो कहीं उतरता है, सब जगह रंग। काव्य में भी रंग होते हैं, बड़े मजेदार, साधारण रंगों से थोड़े भिन्न, स्पर्श से परे, चटकीले और धूमिल।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘रंगोली’ नामक पाठ से अवतरित हैं। इस ललित निबन्ध के लेखक ‘डॉ. शिवप्रसाद सिंह’ हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्य पंक्तियों में लेखक ने रंगों के विषय में बताया है कि रंग हमारे सामाजिक, राजनैतिक एवं व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करते हैं।

व्याख्या :
लेखक के अनुसार आज चारों ओर रंगों का ही बोल-बाला है। रंग का जादू सबसे अधिक राजनीति या शासन के क्षेत्र में दिखायी देता है। प्रत्येक देश का अपना अलग झण्डा होता है। वह अपने झण्डे को दूसरे देशों पर फहराना (उड़ाना) अर्थात् दूसरों देशों को जीतना चाहता है, उन्हें अपना गुलाम बनाना चाहता है। ये झण्डे कई रंगों के होते हैं, जैसे-सतरंगा, तिरंगा, इकरंगा आदि। ये झण्डे आधिपत्य के प्रतीक होते हैं। किसी देश का शासन दूसरों पर जमता है और किसी देश से उसका शासन समाप्त होता है। इसी प्रकार काव्य में भी अनेक रंग होते हैं, जैसे-सौन्दर्य का रंग, प्रेम का रण, संयोग-वियोग का रंग। कुछ रंग हृदय पर गहरा प्रभाव डालते हैं, अर्थात् कुछ काव्य-रचनाएँ अत्यन्त प्रभावशाली होती हैं, जबकि कुछ रचनाएँ व्यर्थ की होती हैं । इस प्रकार काव्य में रंगों का बहुत महत्व होता है।

विशेष :

  1. विश्व में रंगों के जादू का प्रभाव बताया गया है।
  2. संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।
  3. व्यास शैली का प्रयोग किया गया है।
  4. मुहावरों का सुन्दर प्रयोग है।

(2) राधा की पिंगलता के प्रभाव से श्याम कृष्ण की ‘हरित दुति’ प्रसिद्ध ही है। शरद के नीले आकाश में ‘विद्रुमभंगलोहित’ मुख वाली हरे शुकों की पंक्ति धान की पीली बालियाँ लिए उड़ती हुई आकाश में इन्द्रधनुष बना देती है। यहाँ रंग-सन्धान का सुन्दर दर्शन होता है। कृष्ण की हरे बाँस की बाँसुरी भी होठों की ललाई और पीत वस्त्र की पीताभा के सम्मिश्रण से इन्द्रधनुष-सी छा जाती है। (2009)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बताया है कि रंग का संधान तथा रंग का मिश्रण दो भिन्न बातें हैं। रंग के संधान का अर्थ है,दो रंगों को साथ-साथ दिखाना और रंग के मिश्रण का अर्थ है, दो रंगों को मिला देना। रंग-सन्धान के लिए तोतों का उदाहरण दिया गया है, तो रंग-मिश्रण के लिए राधा-कृष्ण के मिश्रित रंग का उदाहरण दिया गया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है, कि राधा के पीले रंग की परछाई जब काले रंग वाले कृष्ण पर पड़ती है, तो कृष्ण हरे रंग की आभा वाले दिखाई देते हैं। हरित दुति के दो अर्थ हैं। प्रथम, हरी चमक; दूसरा, प्रसन्न होना। यहाँ भाव यह है कि कृष्ण, राधा को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। सामान्य रूप में पीले और काले रंग के मिश्रण से नीला रंग बनता है परन्तु राधा व कृष्ण के साथ ऐसा नहीं हुआ। शरद ऋतु में लाल चोंच वाले हरे रंग के तोते,जब धान की पीली बालियाँ लेकर आकाश में उड़ते हैं,तो आकाश में इन्द्रधनुष की प्रतीति होने लगती है क्योंकि शरद ऋतु-श्वेत, चोंच-लाल, तोता-हरा और धान की बाली-पीली तथा आकाश-नीला है।

यह रंग-संधान है कि समस्त रंग अलग होते हुए भी इन्द्रधनुष का निर्माण करते हैं। इसी प्रकार, रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी ने उदाहरण दिया है कि कृष्ण के लाल होठों पर रखी बाँसुरी इन्द्रधनुष-सी दिखाई देती है। यहाँ कृष्ण का रंग काला, होंठ-लाल, वस्त्र-पीले, दृष्टि-सफेद तथा बाँसुरी-हरी है। फलतः यह हरी बाँसुरी,लाल होंठों पर इन्द्रधनुष-सी दिखाई देती है। भाव यह है कि समस्त रंग अलग होते हुए भी एक रंग की अनुभूति देते हैं।

विशेष :

  1. रंग-संधान व रंग-मिश्रण के अन्तर को स्पष्ट किया गया है।
  2. गद्य में भी काव्य की सी अनुभूति होती है।
  3. उद्धरण शैली का प्रयोग है।
  4. हरित में श्लेष अलंकार है।
  5. खड़ी बोली के साथ संस्कृत के तत्सम शब्दों का सुन्दर प्रयोग है।

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(3) श्वेत जल के सरोवर में, शरद की चाँदनी में, श्वेत कुमुद नयनों को शीतल लगते हैं, पवित्र लगते हैं। देखने से सुख मिलता है। इस प्रकार की श्वेत-सुन्दरता (खड़िया के रंग-सा श्वेत नहीं) कला में है, क्योंकि वह शीतल है, सुखद है। कला की अधिष्ठात्री देवी श्वेत हैं, उनका आसन-वसन सब श्वेत-कला-गुरु-शिव श्वेत हैं, उनका वास-वसन-वाहन सब श्वेत, गंगा, कैलास, नन्दी सब श्वेत, भाल की चन्द्रकला भी श्वेत। (2009, 15)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक के अनुसार रंगों को पहचानने की शक्ति मनुष्य की प्रकृति से प्राप्त हुई है। कुछ रंग उत्तेजना प्रदान करते हैं, जैसे-लाल,तो कुछ उदासीनता, और कुछ प्रसन्नता प्रदान करते हैं। सब रंगों में अपने-अपने गुण होते हैं। यहाँ बताया गया है कि श्वेत (सफेद) रंग पवित्रता और शीतलता का प्रतीक है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि श्वेत रंग आँखों को शीतल लगता है तथा पवित्रता का आभास कराता है। इसी कारण सरोवर का स्वच्छ जल श्वेत होता है,शरद ऋतु की चाँदनी भी श्वेत होती है, कुमुदिनी भी श्वेत वर्ण होती है। इन्हें देखकर सुख मिलता है तथा नेत्रों को शीतलता का अनुभव होता है। इन सब चीजों का रंग खड़िया जैसा श्वेत नहीं होता। जल, चाँदनी, और कुमुद,तीनों में श्वेत रंग की सुन्दरता है। श्वेत रंग की यह सुन्दरता ही कला है। कला की सर्वमान्य देवी श्वेत हैं। उनका आसन तथा वस्त्र भी सफेद हैं। कला के गुरु शिव हैं जिनका निवास, वस्त्र और वाहन सभी सफेद हैं। गंगा का जल श्वेत,बर्फ से ढका कैलाश श्वेत, नन्दी श्वेत,उनके शीश में विराजमान चन्द्रमा भी सफेद है। इस प्रकार हम पाते हैं कि श्वेत रंग सुन्दर,पवित्र तथा शीतलता प्रदान करने वाला है।

विशेष :

  1. श्वेत रंग की विशेषताएँ बतलाई गयी हैं।
  2. उद्धरण एवं व्यास शैली का प्रयोग है।
  3. संस्कृत शब्द युक्त खड़ी बोली है।
  4. काव्य की-सी अनुभूति होती है।

(4) रंगों के आधार पर ऋतुओं का रूप साकार हो जाता है। पाटल संसर्ग से सुरभित वायु की लालिमा तप्त कांचन वर्ण सूर्य की प्रखरता और ‘परिणाम रमणीय दिवस’ की लाल सांझ अपनी लालिमा में गर्मी को खड़ा कर देती है। काले मतवाले हाथी पर सवार विद्युत् झण्डियों वाले वर्षाराज को देखते ही इन्द्रधनुष आँखों में छा जाता है। (2017)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने विभिन्न ऋतुओं विशेषकर वर्षा ऋतु का रंगों के आधार पर सुन्दर वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक के अनुसार रंगों के आधार पर ऋतुओं का रूप साकार हो उठता है। गुलाब के सम्पर्क में आकर वायु सुगन्धित व लाल हो जाती है,तपते हुए सोने के रंग वाले सूर्य की तीव्रता संध्या की लालिमा में बदलकर भी ऊष्मा देती है। काले रंग के मतवाले हाथियों के जैसे बादलों में जब रह-रहकर बिजली कौंधती है तो आसमान में इन्द्रधनुष की कल्पना साकार हो उठती है। यहाँ काले रंग से वर्षा ऋतु के आगमन का स्पष्ट संकेत मिलता है। इस प्रकार,बादलों का काला रंग वर्षा ऋतु को साकार कर देता है।

विशेष :

  1. प्रकृति का मनोहारी चित्रण है।
  2. शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है।

(5) राधा और कृष्ण के प्रेम की पराकाष्ठा का नतीजा होता है कि नन्दगाँव पर गोरीघटा और बरसाने में श्यामघटा छा जाती है। महावर और रोरी के लाल रंगों का विभेद गोपी खूब जानती थी, इसलिए बहाना बनाने वाले को वह टोकती है, ‘हाय! हाय! इतने बड़े ब्रजमण्डल में तुम्हें माँगने पर रंचक रोरी नहीं मिली कि तुम सिर पर महावर लगा आए।’

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने रीतिकाल के कवियों की रंगबाजी के विषय में बताया है। उन्होंने रंगों के वर्णन में अतिशयोक्तियों का सहारा लेकर नायिका के सौन्दर्य और कोमलता का चित्रण किया है।

व्याख्या :
रीतिकाल के कवियों ने भक्तिकाल के भगवान कृष्ण और राधा को साधारण नायक और नायिका बना दिया। इस कारण उनके प्रेम में अतिशयोक्ति आ गई। कृष्ण और राधा का प्रेम जब चरम सीमा पर पहुँच गया तो राधा के श्वेत रंग के कारण श्वेत बने बादल नन्दगाँव में मँडराने लगे। ब्रज की गोपियाँ तो बहुत ही चतुर, चालाक व समझदार थीं। वे एक ही रंग के सूक्ष्म अन्तर को भली-भांति जानती थीं। महावर और रोली दोनों का ही रंग लाल होता है; लाल होने पर भी उनकी लाली में सूक्ष्म अन्तर है। किसी ने रोली के स्थान पर माथे पर महावर का टीका लगा लिया। गोपियों के पूछने पर बहाना बताया कि लाल ही टीका लगाया है। एक गोपी कहती है कि इतने बड़े ब्रजमण्डल में मांगने पर तुम्हें चुटकी भर भी रोली नहीं मिली जो तुमने रोली के बजाय महावर का टीका लगा लिया। क्या तुम्हें दोनों के रंग का भेद दिखायी नहीं दिया।

विशेष :

  1. रीतिकालीन कवियों की रंगबाजी की जिंदादिली दिखाई है।
  2. शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है।
  3. गोपियों का वाक्-चातुर्य है।
  4. व्यास शैली।

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(6) कविवर पंत के यहाँ इन रंगों का जादुई माहौल अद्भुत चित्ताकर्षक हो उठा है। वे ‘शीतल हरीतिमा’ की छाया में बैठे, अनन्त दृग सुमन फाड़कर दर्पण की तरह फैले ताल में पहाड़ को झाँकते देखते हैं। नौका-विहार करते वक्त ग्रीष्म की गंगा के तापस बाला के समान रूप के भीतर शुक्रतारे की झलमलाती छाया में रूपहले केशों वाली परी का तैरना उन्हें भूलता नहीं।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रकृति और सौन्दर्य के सुकुमार कवि पन्त को रंगों का अच्छा ज्ञान था, तब ही तो उन्होंने प्रकृति चित्रण में रंगों को महत्व दिया। उन्होंने हरीतिमा को शीतल तथा श्वेत रंग को चाँदी के रंग जैसा बताया।

व्याख्या :
लेखक के अनुसार कविवर पंत रंगों के रहस्य को बहुत अच्छी तरह जानते व समझते थे। अपने काव्य में रंगों के प्रयोग से वे एक जादू भरा वातावरण तैयार कर देते हैं। रंगों से भरा यह जादू भरा वातावरण मन को जबरदस्ती अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। पृथ्वी की हरीतिमा अर्थात् हरियाली मन को शीतलता प्रदान करने वाली होती है। उसी हरियाली पर बैठकर अनन्त नेत्र रूपी पुष्प स्वच्छ जल के तालाब में पहाड़ के प्रतिबिम्ब को देखते हैं, अर्थात् तालाब के किनारे अनेक प्रकार के फूल खिले हैं तथा जल में पहाड़ों की परछाई पड़ रही है।

ग्रीष्म ऋतु में दशमी के चन्द्रमा की चाँदनी में गंगा नदी में नौका-विहार करते हुए पन्त कहते हैं कि सामने शुक्र तारा झिलमिला रहा है और उसकी शोभा जल में प्रतिबिम्बित होकर परी-सी तैर रही है जो कभी-कभी चाँदी जैसे रूपहले बालों जैसी लहरों में छिप जाती है। गंगा नदी गर्मी के कारण कम पानी की एक पतली धारा-सी हो गई है, जो एक तपस्विनी के सदृश्य प्रतीत होती है। यहाँ कवि पन्त ने हरीतिमा को शीतल, सफेद जल की गंगा की धारा को तपस्विनी और चाँदनी में चमकती लहरों को चाँदी जैसे बाल बताकर अपनी रंग-परख शक्ति का परिचय दिया है।

विशेष :

  1. प्रकृति का मानवीकरण है।
  2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
  3. श्रृंगार रस का उपयोग है।
  4. उद्धरण शैली है।

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