MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 6 शौर्य और देश प्रेम

शौर्य और देश प्रेम अभ्यास

शौर्य और देश प्रेम अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भूषण ने अपने छन्दों में किन-किन राजाओं की प्रशंसा की है? (2017)
उत्तर:
भूषण ने अपने छन्दों में छत्रपति शिवाजी तथा महाराज छत्रसाल की प्रशंसा की है।

प्रश्न 2.
शिवाजी के नगाड़ों की आवाज सुनकर राजाओं की क्या दशा होती है?
उत्तर:
शिवाजी के युद्ध के नगाड़ों की आवाज से भयभीत राजा थर-थर काँपने लगते हैं, तथा उनका हृदय दहल जाता है।

प्रश्न 3.
दिनकर जी ने जनता को जगाने के लिए किसका आह्वान किया है? (2016)
उत्तर:
दिनकर जी ने जनता को जगाने के लिए क्रान्तिकारी कविता का आह्वान किया है।

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शौर्य और देश प्रेम लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“तीन बेर खाती थीं, वेतीन बेरखाती हैं।” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (2014)
उत्तर:
शिवाजी के शौर्य तथा युद्ध कौशल से भयभीत मुगल शासकों की रानियाँ महल छोड़कर वनों में रहने के लिए विवश हैं। वहाँ वे विविध प्रकार के कष्ट सहन कर रही हैं। जब वे महलों में रहती थीं तो प्रतिदिन तीन समय प्रातः, दोपहर एवं सायंकाल विविध प्रकार के व्यंजन, फल, मेवा आदि का आस्वादन किया करती थीं। अब वे ही रानियाँ जंगलों में भटकते हुए पूरे दिन में मात्र तीन बेर (बेर का फल) खाकर ही गुजारा करती हैं।

प्रश्न 2.
‘दिनकर’ जी कैसे समाज की रचना करना चाहते हैं ? उनके द्वारा कथित समाज की तीन विशेषताएँ लिखिए। (2011, 12)
उत्तर:
प्रगतिवादी विचारधारा से प्रेरित दिनकर जी को इस समय की वर्ग विषमता से कष्ट होता है। वे देखते हैं कि निर्धन किसानों, दलितों, मजदूरों के बलिदान से विशाल भवन, उद्योग आदि खड़े हो रहे हैं और वे बेचारे दो समय की सूखी रोटी के लिए मोहताज हैं। इसलिए वे ऐसे समाज की रचना चाहते हैं जहाँ पर धनी-निर्धन, ऊँच-नीच, धर्म या सम्प्रदाय का भेद न हो, सभी प्रेमभाव से हिलमिल कर रहें, किसी प्रकार के कटुता, द्वेष आदि का विकार न हों।

‘दिनकर’ जी द्वारा कथित समाज की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. नदी किनारे या कहीं भी झोंपड़ी हो या घर हो किन्तु वहाँ पर सरसता विराजमान होनी चाहिए।
  2. इस समाज के सभी लोग प्रेम भाव के साथ मिल-जुलकर रहें।
  3. इस समाज के लोगों में धार्मिक भेदभाव न हो।

प्रश्न 3.
‘लाखों क्रोंच कराह रहे हैं’ से कवि का क्या आशय है? (2008, 09)
उत्तर:
अपनी प्रिय क्रोंची के वध से आहत क्रोंच पक्षी के करुण क्रन्दन की मर्मांतक पीड़ा से उद्वेलित कवि वाल्मीकि की वाणी कविता के रूप में फूट पड़ी थी। ‘दिनकर’ जी कहना चाहते हैं कि वाल्मीकि ने तो मात्र एक क्रच पक्षी की वेदना को काव्य का रूप दिया था किन्तु आज धन, वर्ग आदि-आदि की विषमता ने समाज में अनेक क्रोंच आहत कर दिए हैं। अनेक मनुष्य असह्य पीड़ा से कराह रहे हैं। अतः इन पीड़ा से कराहते निरीह जनों की आवाज कविता के द्वारा जन-जन तक पहुँचनी चाहिए।

शौर्य और देश प्रेम दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवाजी के भय से मुगल रानियों की दशा का वर्णन भूषण ने किस प्रकार किया है? (2009)
उत्तर:
शिवाजी के शौर्य का भय सर्वत्र व्याप्त है। यहाँ तक कि मुगल शासकों की जो रानियाँ विशाल महलों में आनन्दपूर्वक रहती थीं अब वे भयभीत होकर पर्वतों की गुफाओं में छिपती फिर रही हैं। जो रानियाँ मिष्ठान, मेवा, फल आदि का आस्वादन करती थीं, अब वे जंगल में वृक्षों की जड़ें खाकर ही गुजारा कर रही हैं। प्रतिदिन प्रातः, दोपहर एवं सांय तीन समय भोजन करने वाली रानियाँ अब वन में भटकते हुए मात्र तीन बेर (एक फल) खाकर ही दिन काटती हैं। रत्नजड़ित गहनों के भार से जिनके अंग थक जाया करते थे, वे रानियाँ भूख के कारण सुस्त रहती हैं। अनेक दासियाँ जिनके पंखे झलती रहती थीं अब वे ही मुगल रानियाँ वन में अकेली फिर रही हैं। शिवाजी के भय के संत्रास के कारण जो रानियाँ गहनों में रत्न जड़वाती थीं, अब वे वस्त्रों के अभाव में सर्दी से ठिठुर रही हैं। उनकी दशा बड़ी दयनीय हो गयी है।

प्रश्न 2.
छत्रसाल की बरछी का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (2011)
उत्तर:
कविवर भूषण महाराज छत्रसाल के युद्ध कौशल के बड़े प्रशंसक रहे हैं। उन्होंने उनकी बरछी के कौशल का अद्भुत वर्णन किया है। छत्रसाल की बरछी उनकी भुजा में हर समय सुशोभित रहती है। नागिन के समान लहराती यह बरछी बड़े से बड़े शत्रु दल को खदेड़ने में समर्थ है। वह कवच और पाखरन के बीच तेजी से प्रवेश कर शत्रु को आहत कर देती है। लोहे तक को काटने में समर्थ उनकी बरछी से कटे शत्रु पक्ष के सैनिक परकटे पक्षियों की तरह पंगु बने पड़े रहते हैं। उस बरछी के सामने दुष्ट तो टिक ही नहीं पाते हैं। वे शक्तिहीन, निरीह हो जाते हैं। इस प्रकार महाराज छत्रसाल की बरछी का कौशल भयंकर है।

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प्रश्न 3.
कवि ने कविता के क्रान्तिकारी रूप का आह्वान क्यों किया है? (2013)
अथवा
‘कविता का आह्वान’ के माध्यम से दिनकर समाज की किन स्थितियों का चित्रण कर रहे हैं और क्यों? (2008, 09)
उत्तर:
आज समाज में ऊँच-नीच, धनी-निर्धन, छोटे-बड़े आदि की विषमता व्याप्त है। निर्धनों, किसानों, मजदूरों के बलिदान से विशाल महल खड़े हो गये हैं, बड़े-बड़े उद्योग निरन्तर बढ़ रहे हैं। धनी बिना काम किये ही धनवान होते जा रहे हैं; निर्धन लगातार श्रम करते हुए भी और गरीब होते जा रहा है। शोषित और शोषक की खाई निरन्तर गहरी होती जा रही है। लाखों लोग असह्य पीड़ा से कराह रहे हैं। उनकी कोई आवाज नहीं है।

अत: कवि ने कविता का आह्वान किया है कि वह क्रान्तिकारी बनकर निरीह, असहायों की आवाज को जन-जन तक पहुँचाए ताकि समाज विषमता से मुक्त होकर समरसता से ओत-प्रोत हो जाय। सभी हिल-मिलकर प्रेमपूर्वक रहें। ‘दिनकर’ मानते हैं कि संवेदनशील कवि ही कविता के द्वारा क्रान्ति का बिगुल बजा सकता है और समाज में अपेक्षित परिवर्तन ला सकता है। बिना क्रान्तिकारी कविता के यह विकट समस्या हल नहीं हो पायेगी।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पद्यांशों की प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(क) दावा दुम दण्ड पर …………… सेर शिवराज हैं।
(ख) भूषण सिथिल अंग…………….. नगन जड़ाती हैं।
(ग) क्रान्तिधात्री ! कविते………… बलि होती है।
(घ) छ भूषण की भाव…………… निज युग की वाणी।
उत्तर:
(क) सन्दर्भ :
यह पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘छत्रसाल का शौर्य वर्णन’ पाठ से लिया गया है। इसके रचियता महाकवि भूषण हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्य में शिवाजी के वीरतापूर्ण व्यक्तित्व की विविध प्रकार से प्रशंसा की गई हैं।

व्याख्या :
कविवर भूषण कहते हैं कि जिस प्रकार इन्द्र का जम्भासुर पर अधिकार है, सागर के जल पर बड़वाग्नि का अधिकार है, अहंकारी रावण पर श्रीराम का शासन है, बादलों पर वायु का अधिकार है, कामदेव पर शिव का शासन है, सहस्रबाहु नामक राजा पर परशुराम का अधिकार है, वन के पेड़ों पर दावानलं का अधिकार है, हिरणों के समूह पर चीते का अधिकार है, सिंह का हाथी पर अधिकार है, अन्धकार पर तेजवान सूर्य का अधिकार है, कंस पर श्रीकृष्ण का शासन है; उसी प्रकार म्लेक्ष वंश के मुगल शासक (औरंगजेब) पर वीरवर शिवाजी का शासन है।

(ख) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्य में शिवाजी के शौर्य से भयाक्रांति रानियों का प्रभावी वर्णन हुआ है।

व्याख्या :
भूषण कवि कहते हैं कि वीर शिवाजी का इतना त्रास व्याप्त है कि ऊँचे विशाल महलों में निवास करने वाली मुगल शासकों की रानियाँ भय के कारण ऊँचे-ऊँचे पर्वतों की गुफाओं में रह रही हैं। जो फल, मिष्ठान आदि का उपभोग किया करती थीं अब उन्हें पेड़ों की जड़ें खाने को मिल पाती हैं। जो रानियाँ दिन में तीन समय मिष्ठान, मेवा आदि खाया करती थीं अब वे मात्र तीन जंगली बेर खाकर ही दिन गुजारा करती हैं। जिनके अंग सुन्दर आभूषणों के भार से थक जाते थे अब उनके अंग भूख के कारण सुस्त हो रहे हैं। जिनके लिए अनेक सेविकाएँ हर समय पंखा झलती रहती थीं अब वे रानियाँ निर्जन वनों में अकेली मारी-मारी फिर रही हैं। जो अपने गहनों में नग, रत्न जड़वाती थीं वे रानियाँ वस्त्रों के बिना सर्दी में ठिठुर रही हैं।

(ग) सन्दर्भ :
यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में कविता का आह्वान’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।

प्रसंग :
क्रान्तिदृष्टा कवि ने इस पद्यांश में समाज की विषमता, शोषण, अन्याय आदि विकृतियों का अंकन करते हुए कविता से परिवर्तन का आह्वान किया है।

व्याख्या :
कवि कहते हैं कि हे क्रान्ति की जननी कविते! तू आज की विषम परिस्थितियों को देखकर जाग्रत हो जा। तुझमें जो दिखावटीपन है उसको नष्ट करके दूर हटा दे तथा संसार में तू चेतना की ऐसी आग लगा दे कि समाज को पतन की ओर ले जाने वाली सभी पापी एवं पाखण्डी जलकर भस्म हो जाएँ। आज धनवानों की बिजली की चकाचौंध इतनी बढ़ गयी है कि निर्धन के घर में जलने वाला दीपक उस चकाचौंध के कारण आँसू बहाने को विवश है। हे कविते! तू अपने हृदय को स्थिर करके इस रहस्य को उजागर कर दे कि विशालकाय महलों के लिए निर्धनों की झोंपड़ियों का बलिदान हो रहा है अर्थात् बिजली की चकाचौंध वाले बड़े-बड़े महल निर्धनों के शोषण से बन रहे हैं।

दिन-रात धूप-ताप और धूल में काम करने वाले किसान खेती की उपज के रूप में अपने हृदय का रक्त दे रहे हैं। उनके श्रम के बल पर शोषकों की समृद्धि की दीवारें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं अर्थात् किसान गरीब होता जा रहा है; शोषक सम्पन्न होते जा रहे हैं। किसान के सामने पशु प्रवृत्ति वाले दानव मदमस्त होकर नंगानाच नाच रहे हैं। बाहर से आने वाले इस देश के वासियों के खून-पसीने की कमाई पर ऐश करते हैं। शोषक वर्ग निम्न वर्ग का शोषण कर रहा है।

(घ) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद्यांश में क्रान्ति दूतों के उद्धरण देकर क्रान्तिकारी भावों की अभिव्यक्ति के लिए कविता का आह्वान किया गया है।

व्याख्या :
वीर रस के प्रख्यात कवि भूषण में विविध भाव भंगिमाओं का संचार करने हेतु कविते तू जाग उठ। फ्रांस की क्रान्ति के जनक रूसो तथा रूसी क्रान्तिकारी लेनिन के हृदय में जल उठने वाली विद्रोह की आग के रूप में तू जाग्रत हो उठ अर्थात् जैसे रूसो और लेनिन ने क्रान्ति का बिगुल फूंका था उसी प्रकार हे कविते! तू आग के रूप में तुरन्त जाग्रत हो जा। अथवा तपोवन के सुखद कुञ्जों में एक फूस की झोंपड़ी का आवास मिल जाये। जिस झोंपड़ी के तिनकों में तमसा नदी की धारा में कविता इठलाकर संचरित होती हो और प्रत्येक वृक्ष पर पक्षियों के सुमधुर स्वर में गीत गाकर पर्व मनाती कविता ध्वनित हो रही हो, वहीं मेरा घर हो। के पास में हिंगोट के पेड़ के तेल से दीपक जलाकर, वृक्षों की जड़ें, फल-फूल, धान आदि खाकर आनन्दपूर्वक रहना चाहते हैं। कवि चाहते हैं कि मनुष्यों में धर्म आदि की भिन्नता के बावजूद भी कटुता न हो। पर्वत की तलहटी में उषा काल के सुनहरे प्रकाश में सभी मिल-जुलकर भावुक भक्ति के आनन्द में लीन होकर प्रेम एवं समरसता के गीत गायें।

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शौर्य और देश प्रेम काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
पौन, सम्भू, कान्ह, मलिच्छ, सिब, सिथिल, आग।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 6 शौर्य और देश प्रेम img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित समोच्चरित भिन्नार्थक शब्दों को इस प्रकार वाक्यों में प्रयोग कीजिए कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाए
अंश-अंस, बंस वंश, शे-सेर, ग्रह गृह, छात्र क्षात्र, बात वात।
उत्तर:
(i) अंश-आमदनी का एक अंश (भाग) अपंगों को दान दे देना चाहिए।
अंस-उठे हुए अंसों (कन्धों) वाला पुरुष बहादुर होता है।

(ii) बंस-बंस (बाँस) से बाँसुरी बनती है।
वंश-कुपुत्र वंश (कुल) के यश को नष्ट कर देता है।

(iii) शेर-शेर (सिंह) जंगल का राजा होता है।
सेर-घर में प्रतिमाह चार सेर (किलो) चीनी लग जाती है।

(iv) ग्रह-प्रकाश के ग्रह (नक्षत्र) बहुत अच्छे चल रहे हैं।
गृह-मेरे गृह (घर) में चार प्राणी निवास करते हैं।

(v) छात्र-निरन्तर अध्ययनशील छात्र (विद्यार्थी) ही सफल होते हैं।
क्षात्र-शिवाजी ने औरंगजेब का विरोध कर क्षात्र (क्षत्रिय) धर्म का पालन किया था।

(vi) बात-बात (अधिक बोलना) बनाना तो कोई मोहन से सीखे।
वात-वात (वायु) विकार से शरीर में दर्द हो जाता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में अलंकार पहचानकर लिखिए
(अ) ‘क्रान्तिधात्रि ! कविते जाग उठ आडम्बर में आग लगा दे।’
(आ) तीन बेर खाती सो तो तीन बेर खाती हैं।
(इ) फूट फूट तू कवि कण्ठों से बन व्यापक निज युग की वाणी।
(ई) बरस सुधामय कनक वृष्टि बन ताप तप्त जन वक्षस्थल में।
उत्तर:
इन पंक्तियों में अलंकार इस प्रकार हैं-
(अ) रूपक
(आ) यमक
(इ) पुनरुक्ति प्रकाश
(ई) रूपक।

प्रश्न 4.
भूषण के संकलित अंश में से वीर रस का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
भूषण के संकलित अंश में से वीर रस का उदाहरण है-
‘राजा शिवराज के नगारन की धाक
सुनि कैते बादसाहन की छाती दरकति है।’

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों में शब्द गुण लिखिए
राजा शिवराज के नगारन की धाक
सुनि कैते बादसाहन की छाती दरकति है।
उत्तर:
इन पंक्तियों में ओज गुण है।

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छत्रसाल का शौर्य वर्णन भाव सारांश

रीतिकाल के श्रृंगार प्रधान वातावरण में अपने काव्य के द्वारा वीर रस को साकार करने का श्रेय कविवर भूषण को जाता है। उन्होंने अपने काव्य के नायक वीर शिवाजी और छत्रसालं जैसी विभूतियों को बनाया। इन छन्दों में कवि ने शिवाजी के शौर्य, युद्ध कौशल, निर्भीकता, तेज आदि का प्रभावी वर्णन किया है। शिवाजी म्लेक्षों पर वैसे ही शेर की सी गर्जना कर शासन करते हैं जैसे अहंकारी रावण पर श्रीराम, कामदेव पर शिव, सहस्रबाहु पर परशुराम और कंस पर श्रीकृष्ण का अधिकार है। उनके युद्ध नगाड़ों की धाक से बड़े-बड़े बादशाह भयभीत हो उठते हैं। विजयपुर, गोलकुण्डा आदि के शासक शिवाजी के भय से काँपते हैं। उनके भय से डरकर महलों में रहने वाली बेगमें भी विलासी जीवन त्यागकर कष्टमय जीवन बिता रही हैं। महाराजा छत्रसाल की वीरता एवं उनका शौर्य अद्भुत है। उनकी बरछी के करतब इतने प्रभावी हैं कि शत्रु पक्ष हताश हो उठता है, दुष्ट लोग शक्तिहीन हो जाते हैं।

छत्रसाल का शौर्य वर्णन संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

[1] इन्द्र जिमि जम्भ पर बाड़व सुअम्भ पर,
रावन सदम्भ पर रघुकल राज हैं।
पौन वारिवाह पर सम्भु रनिनाह पर,
ज्यों सहस्त्रबाहु पर राम द्विजराज हैं।
दावा दुम दंड पर चीता मृगझुण्ड पर,
भूषण वितुण्ड पर जैसे मुगराज हैं।
तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर सेर शिवराज हैं।।

शब्दार्थ :
जिमि = जिस प्रकार; जम्भ = जम्भासुर, जम्भ नाम का राक्षस; बाड़व = बड़वाग्नि, पानी में लगने वाली आग; सुअम्भ = उत्तम जल; सदम्भ = अहंकारी; रघकुल राज = श्रीराम पौन = पवन, वायु; वारिवाह = बादल; सम्भु = शिव; रनिनाह = रति के पति, कामदेव; राम द्विजराज = परशुराम; दावा = दावानल, वन में लगने वाली आग; दुम दंड = पेड़ों के तने; मृगझुण्ड = हिरणों का समूह; वितुण्ड = हाथी; मृगराज = शेर; तम अंस= अंधकार का भाग; कान्ह = श्रीकृष्ण; मलिच्छ = म्लेक्ष, यवन।

सन्दर्भ :
यह पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘छत्रसाल का शौर्य वर्णन’ पाठ से लिया गया है। इसके रचियता महाकवि भूषण हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्य में शिवाजी के वीरतापूर्ण व्यक्तित्व की विविध प्रकार से प्रशंसा की गई हैं।

व्याख्या :
कविवर भूषण कहते हैं कि जिस प्रकार इन्द्र का जम्भासुर पर अधिकार है, सागर के जल पर बड़वाग्नि का अधिकार है, अहंकारी रावण पर श्रीराम का शासन है, बादलों पर वायु का अधिकार है, कामदेव पर शिव का शासन है, सहस्रबाहु नामक राजा पर परशुराम का अधिकार है, वन के पेड़ों पर दावानलं का अधिकार है, हिरणों के समूह पर चीते का अधिकार है, सिंह का हाथी पर अधिकार है, अन्धकार पर तेजवान सूर्य का अधिकार है, कंस पर श्रीकृष्ण का शासन है; उसी प्रकार म्लेक्ष वंश के मुगल शासक (औरंगजेब) पर वीरवर शिवाजी का शासन है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. इस छंद में भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ पुरुषों, प्राकृतिक तथ्यों के माध्यम से शिवाजी के प्रभाव का वर्णन किया गया है।
  2. यह छन्द शिवाजी को बहुत पसंद आयो था। उन्होंने इसे 52 बार सुना था और प्रसन्न होकर कवि भूषण को 52 गाँव, 52 लाख रुपये तथा 52 हाथी उपहार में दिए थे।
  3. मालोपमा, अनुप्रास अलंकारों का सौन्दर्य दृष्टव्य है। (4) भावानुरूप ब्रजभाषा में सशक्त भावाभिव्यक्ति हुई है।

[2] चकित चकता चौंकि चौकि छै,
बार-बार दिल्ली दहसति चितै चाह करसति है।
बिलखि बदन बिलखात बिजैपुर पति,
फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है।।
थर थर काँपत कुतुबशाह गोलकुण्डा,
हहरि हबम भूप भीर भरकति है।
राजा शिवराज के नगारन की धाक,
सुनि कैते बादसाहन की छाती दरकति है।।

शब्दार्थ :
चकित = भौंचक्के; दहसति = भयभीत; चाह = खबर; करसति = कर्षित होती है, निकलती है; बिलखि = व्याकुल; बदन = मुख, शरीर; बिलखात = दुःखी होता है; नारी = नाड़ी; हहरि = डरकर; भरकति = भड़कती है; धाक = प्रभाव; दरकति = फट जाती है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद्यांश में शिवाजी के युद्ध के नक्कारों से भयभीत करने वाले रूप का वर्णन किया गया है।

व्याख्या :
शिवाजी की वीरता एवं युद्ध कौशल का इतना प्रभाव है कि उसके युद्ध के नक्कारों की आवाज सुनकर ही भय व्याप्त हो जाता है। बड़े-बड़े शासक उनके युद्ध कौशल को देखकर बार-बार आश्चर्यचकित हो उठते हैं। शिवाजी के युद्ध की खबर सुनकर ही शिवाजी के भय से दिल्ली के शासक भी भयभीत हैं। व्याकुल मुख विजयपुर के राजा अत्यन्त दु:खी हैं। उनके भय के कारण फिरंगी (विदेशी) शासकों की नाड़ी फड़कने लगती हैं। शिवाजी के शौर्य से डरकर गोलकुण्डा के कुतुबशाह थर-थर काँपते हैं। उनके डर से विलासी शासकों की भीड़ भय से भड़क उठती है। महाराज शिवाजी के युद्ध के नक्कारों की घनघोर ध्वनि सुनकर कितने ही बादशाहों की छाती फटने लगती है अर्थात् वे शिवाजी के युद्ध का संकेत सुनकर ही भयंकर रूप से डर जाते हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. शिवाजी के युद्ध की भयप्रद स्थिति की प्रभावशीलता का वर्णन हुआ है।
  2. पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास अलंकारों तथा पद-मैत्री की छटा अवलोकनीय है।
  3. भावानुरूप ब्रजभाषा की लाक्षणिकता ने विषय की अभिव्यक्ति को प्रभावी बना दिया है।

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[3] ऊँचे घोर मन्दिर के अन्दर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदिर के अन्दर रहाती हैं।
कन्दमूल भोग करें कन्दमूल भोग करें,
तीन बेर खाती सो तो तीन बेर खाती हैं।
भूषन सिथिल अंग भूखन सिथिल अंग,
बिजन डुलाती ते वे बिजन डुलाती हैं।
भूषन भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते बे नगन जड़ाती हैं।। (2017)

शब्दार्थ :
घोर = बहुत भयानक; मन्दिर = महल, पर्वत; कन्दमूल = फल-फूल, पेड़ों की जड़ें; तीन बेर = तीन बार, तीन बेर (फल) मात्र; भूषन = आभूषण; भूखन = भूख से; सिथिल = थका हुआ, सुस्त; बिजन = पंखा, निर्जन, एकाकी; मनत= कहते हैं; त्रास = भय; नगन = रत्नों से, नग्न; जड़ाती = जड़वाती, ठिठुरती हैं।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्य में शिवाजी के शौर्य से भयाक्रांति रानियों का प्रभावी वर्णन हुआ है।

व्याख्या :
भूषण कवि कहते हैं कि वीर शिवाजी का इतना त्रास व्याप्त है कि ऊँचे विशाल महलों में निवास करने वाली मुगल शासकों की रानियाँ भय के कारण ऊँचे-ऊँचे पर्वतों की गुफाओं में रह रही हैं। जो फल, मिष्ठान आदि का उपभोग किया करती थीं अब उन्हें पेड़ों की जड़ें खाने को मिल पाती हैं। जो रानियाँ दिन में तीन समय मिष्ठान, मेवा आदि खाया करती थीं अब वे मात्र तीन जंगली बेर खाकर ही दिन गुजारा करती हैं। जिनके अंग सुन्दर आभूषणों के भार से थक जाते थे अब उनके अंग भूख के कारण सुस्त हो रहे हैं। जिनके लिए अनेक सेविकाएँ हर समय पंखा झलती रहती थीं अब वे रानियाँ निर्जन वनों में अकेली मारी-मारी फिर रही हैं। जो अपने गहनों में नग, रत्न जड़वाती थीं वे रानियाँ वस्त्रों के बिना सर्दी में ठिठुर रही हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. मुगल शासकों की रानियों की दयनीय दशा का वर्णन करके शिवाजी के आतंक की भयावह स्थिति का अभ्यास कराया है।
  2. यमक, पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास अलंकारों का सौन्दर्य दृष्टव्य है।
  3. प्रवाहमयी ब्रजभाषा में प्रवाह गुण का पुट विद्यमान है।

[4] भुज भुजगेस की बैसंगिनी भुगिनी सी,
खेदि खेदि खाती दीह दारूने दलन के।
बखतर-पाखरन बीच सि जाति मीन,
पैरि पार जात परवाह ज्यों जलन के।
रैयाराव चंपति के छत्रसाल महाराज,
भूषन सकै करि बखान को बलन के।
पच्छी परछीने ऐसे परे पर छीने बीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।।

शब्दार्थ :
भुज = भुजा; भुजगेस = शेषनाग; बैसंगिनी = आयु भर साथ देने वाली; भुजंगिनी = नागिन; खेदि = खदेड़कर; पाखरन = झूलें; परछीने = पक्ष छिन्न, परकटे; पर = शत्रु; छीने = क्षीण, कमजोर; वर = बल, शक्ति।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद्य में भूषण ने महाराज छत्रसाल की बरछी के कौशल की प्रशंसा तथा उसकी शत्रुओं को नष्ट करने की भयानकता का चमत्कारी वर्णन किया है।

व्याख्या :
कवि भूषण कहते हैं कि हे रैयावराव चम्पतिराय के सुपुत्र महाराज छत्रसाल! आपकी बरछी आपके साथ सदा बाहुरूपी शेषनाग की तरह रहने वाली नागिन के समान है। यह भयंकर शत्रु दल को खदेड़कर नष्ट करती है। यह कवच और लोहे की झूलों में उसी प्रकार प्रवेश कर जाती है, जैसे मछली पानी की धारा को तैरकर पार कर जाती है। भाव यह है कि यह बरछी इतनी तेज है लोहे को भी सरलता से काट देती है। भूषण कहते हैं कि आपके बल का वर्णन कौन कर सकता है। बरछी के कटने से शत्रु की सेना के वीर परकटे पक्षी की तरह निर्बल होकर क्षीण पड़ गये हैं। हे वीर! आपकी बरछी ने दुष्टों के बल ही छीन लिये हैं अर्थात् तेरी बरछी के कौशल को देखकर शत्रु शक्तिहीन हो गये हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. यहाँ छत्रसाल महाराज की बरछी के कला-कौशल तथा युद्ध-कौशल का सरस अंकन हुआ है।
  2. रूपक, उपमा, उदाहरण, यमक, पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास आदि अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
  3. गत्यात्मक तथा चमत्कारिक भाषा के प्रयोग से प्रभावशीलता में वृद्धि हुई है।

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कविता का आह्वान भाव सारांश

क्रांतिदर्शी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने ‘कविता का आह्वान’ में क्रान्तिकारी परिवर्तन का आह्वान किया है। वे चाहते हैं आज के विषमता की पराकाष्ठा के युग में, कविता क्रान्ति जाग्रत कर दे। कविता को सम्बोधित करते हुए वे कहते हैं कि तू क्रान्ति की जननी बनकर जाग उठ और दिखावटी आडम्बरों का त्याग कर दे। पुनः उत्थान और विकास का मार्ग प्रशस्त कर, दीन-हीन किसानों और मजदूरों का बलिदान कर खड़े होने वाले ऊँचे भवनों, उद्योगों का जो विकास हो रहा है, वह बड़ा कष्टदायी है। शोषितों के खून-पसीने से बड़े-बड़े वैभव सम्पन्न लोग विलास कर रहे हैं। शोषक दानव बनकर मजदूर-किसानों का खून चूस रहे हैं। निर्धन निरन्तर पिस रहा है। यह विषमता की चरमावस्था है।

इसलिए हे कविता! तू इसके विरुद्ध क्रान्ति का बिगुल बजा दे। हे क्रान्तिकारी कविता! तू अपने युग की वाणी बनकर कवियों के कण्ठों से प्रस्फुटित हो उठ। निराशा के गहन अन्धकार में पड़े असहाय और मूक प्राणियों की भाषा बनकर उनमें आशा का संचार कर दे। आज अनेक दीन-हीन मर्मान्तक पीड़ा से कराह रहे हैं तू उनकी वाणी बनकर आज की आपाधापी तथा कोलाहलमय जिन्दगी को सुख और शान्तिमय बनाने का सूत्रपात कर। जहाँ तेरा वास है वही समरसता और एकता का प्रेममय वातावरण होगा। वही वातावरण धर्म आदि की भिन्नता से मुक्त एकता और प्रेम का गायन कराने वाला होगा। यह कार्य कविता ही कर सकती है।

कविता का आह्वान संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

[1] क्रांतिधात्रि ! कविते जाग उठ आडम्बर में आग लगा दे।
पतन पाप पाखण्ड जले, जग में ऐसी ज्वाला सुलगा दे।
विद्युत् की इस चकाचौंध में देख, दीप की लौ रोती है।
अरी ! हृदय को थाम महल के लिए झोंपड़ी बलि होती है।
देख कलेजा फाड़ कृषक, दे रहे हृदय शोणित की धारें।
और उठी जातीं उन पर ही वैभव की ऊँची दीवारें।
बन पिशाच के कृषक मेघ में नाच रही पशुता मतवाली।
आगन्तुक पीते जाते हैं, दीनों के शोणित की प्याली।

शब्दार्थ :
क्रान्तिधात्री = क्रान्ति की जननी; आडम्बर = दिखावटीपन; ज्वाला आग; विद्युत् = बिजली; कृषक = किसान; शोणित = रक्त; वैभव = समृद्धि; पिशाच = राक्षस; मतवाली= मदमस्त, उन्मत्त।।

सन्दर्भ :
यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में कविता का आह्वान’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।

प्रसंग :
क्रान्तिदृष्टा कवि ने इस पद्यांश में समाज की विषमता, शोषण, अन्याय आदि विकृतियों का अंकन करते हुए कविता से परिवर्तन का आह्वान किया है।

व्याख्या :
कवि कहते हैं कि हे क्रान्ति की जननी कविते! तू आज की विषम परिस्थितियों को देखकर जाग्रत हो जा। तुझमें जो दिखावटीपन है उसको नष्ट करके दूर हटा दे तथा संसार में तू चेतना की ऐसी आग लगा दे कि समाज को पतन की ओर ले जाने वाली सभी पापी एवं पाखण्डी जलकर भस्म हो जाएँ। आज धनवानों की बिजली की चकाचौंध इतनी बढ़ गयी है कि निर्धन के घर में जलने वाला दीपक उस चकाचौंध के कारण आँसू बहाने को विवश है। हे कविते! तू अपने हृदय को स्थिर करके इस रहस्य को उजागर कर दे कि विशालकाय महलों के लिए निर्धनों की झोंपड़ियों का बलिदान हो रहा है अर्थात् बिजली की चकाचौंध वाले बड़े-बड़े महल निर्धनों के शोषण से बन रहे हैं।

दिन-रात धूप-ताप और धूल में काम करने वाले किसान खेती की उपज के रूप में अपने हृदय का रक्त दे रहे हैं। उनके श्रम के बल पर शोषकों की समृद्धि की दीवारें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं अर्थात् किसान गरीब होता जा रहा है; शोषक सम्पन्न होते जा रहे हैं। किसान के सामने पशु प्रवृत्ति वाले दानव मदमस्त होकर नंगानाच नाच रहे हैं। बाहर से आने वाले इस देश के वासियों के खून-पसीने की कमाई पर ऐश करते हैं। शोषक वर्ग निम्न वर्ग का शोषण कर रहा है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. वर्ग वैषम्य जनित विकृतियों के प्रति रोष व्यक्त हुआ है।
  2. दिनकर’ जी की प्रगतिवादी विचारधारा व्यक्त है।
  3. रूपक, अनुप्रास अलंकारों तथा लाक्षणिकता के पुट से अभिव्यक्ति प्रभावी बन गयी है।
  4. विषयानुरूप खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

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[2] उठ भूषण की भाव रंगिणी ! रूसो के दिल की चिनगारी।
लेनिन के जीवन की ज्वाला जाग जागरी क्रांतिकुमारी।
लाखों क्रोंच कराह रहे हैं जाग आदि कवि की कल्याणी।
फूट-फूट तू कवि कंठों से, बन व्यापक निज युग की वाणी।
बरस ज्योति बन गहन तिमिर में फूट मूक की बनकर भाषा।
चमक अन्ध की प्रखर दृष्टि बन, उमड़ गरीबी की बन आशा।
गूंज शान्ति की सुखद साँस सी, कलुष पूर्ण युग कोलाहल में।
बरस सुधामय कनक वृष्टि बन, ताप तप्त जन के वक्षस्थल में।
खींच स्वर्ग संगीत मधुर से जगती को जड़ता से ऊपर।
सुख की स्वर्ण कल्पना सी तू छा जाए कण-कण में भूपर।

शब्दार्थ :
रूसो = फ्रांस की राज्य क्रांति का जनक; लेनिन – सुप्रसिद्ध रूसी क्रान्तिकारी; क्रोंच – क्रोंच पक्षी के करुण क्रंदन से ही वाल्मीकि की कविता प्रस्फुटित हुई थी; आदिकविवाल्मीकि; गहन = गहरे; तिमिर = अन्धकार; कलुष = दोषमय; कोलाहल = शोर-शराबा; वृष्टि= वर्षा; ताप तप्त = ताप तपा हुआ; वक्षस्थल = हृदय; भूपर = धरती पर।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद्यांश में क्रान्ति दूतों के उद्धरण देकर क्रान्तिकारी भावों की अभिव्यक्ति के लिए कविता का आह्वान किया गया है।

व्याख्या :
वीर रस के प्रख्यात कवि भूषण में विविध भाव भंगिमाओं का संचार करने हेतु कविते तू जाग उठ। फ्रांस की क्रान्ति के जनक रूसो तथा रूसी क्रान्तिकारी लेनिन के हृदय में जल उठने वाली विद्रोह की आग के रूप में तू जाग्रत हो उठ अर्थात् जैसे रूसो और लेनिन ने क्रान्ति का बिगुल फूंका था उसी प्रकार हे कविते! तू आग के रूप में तुरन्त जाग्रत हो जा। अथवा तपोवन के सुखद कुञ्जों में एक फूस की झोंपड़ी का आवास मिल जाये। जिस झोंपड़ी के तिनकों में तमसा नदी की धारा में कविता इठलाकर संचरित होती हो और प्रत्येक वृक्ष पर पक्षियों के सुमधुर स्वर में गीत गाकर पर्व मनाती कविता ध्वनित हो रही हो, वहीं मेरा घर हो। के पास में हिंगोट के पेड़ के तेल से दीपक जलाकर, वृक्षों की जड़ें, फल-फूल, धान आदि खाकर आनन्दपूर्वक रहना चाहते हैं। कवि चाहते हैं कि मनुष्यों में धर्म आदि की भिन्नता के बावजूद भी कटुता न हो। पर्वत की तलहटी में उषा काल के सुनहरे प्रकाश में सभी मिल-जुलकर भावुक भक्ति के आनन्द में लीन होकर प्रेम एवं समरसता के गीत गायें।

काव्य सौन्दर्य :

  1. यहाँ आडम्बररहित सहज जीवन का समर्थन किया गया है।
  2. सरल, सुबोध तथा भावानुरूप भाषा में भाव को अभिव्यक्त किया गया है।

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