MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 10 विविधा-2

विविधा-2 अभ्यास

विविधा-2 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि के लिए कब तक विराम नहीं है?
उत्तर:
कवि को जीवन की अन्तिम साँस तक विराम नहीं है।

प्रश्न 2.
जीवन को अपूर्ण क्यों कहा है?
उत्तर:
मानव जीवन में कोई न कोई अभाव रहता ही है। इसलिए जीवन को अपूर्ण कहा गया है।

प्रश्न 3.
कजरी कब गाई जाती है?
उत्तर:
कजरी वर्षा ऋतु में गाई जाती है।

प्रश्न 4.
बादलों से मिलने के लिए कौन-कौन से प्राणी आतुर रहते हैं?
उत्तर:
बादलों से मिलने के लिए मानव, कोयल, मयूर, दादुर आदि समस्त प्राणीमात्र आतुर रहते हैं।

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विविधा-2 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘विशद विश्व प्रवाह में बहने का अर्थ क्या है?
उत्तर:
मानव इस विशाल संसार में जन्म लेता है। वह यहाँ के रहन-सहन, चाल-चलन, कार्य-व्यवहार आदि के क्रम में बचपन से ही सक्रिय होने लगता है। धीरे-धीरे वह इस जगत में पूरी तरह फंस जाता है। वह अन्यान्य कार्य अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर करता है, जिनमें उसे विभिन्न प्रकार की स्थितियों से गुजरना पड़ता है। कार्य में सफलता मिलते जाने पर उसे सुख होता है और जब काम में बाधाएँ आती हैं तो वह दुखी होता है। यह सुख-दुःख की अनुभूति करते हुए हर मानव जीवनयापन करता है। यही इस विशद संसार के प्रवाह का आशय है।

प्रश्न 2.
सफलता प्राप्त करने का मूल मंत्र क्या है? (2011)
उत्तर:
संसार में अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रयास करता है। उसे विविध बाधाओं को पार करना पड़ता है। कुछ व्यक्ति बाधाएँ आने पर निराश हो जाते हैं, और कार्य को त्याग देते हैं। किन्तु कुछ ऐसे होते हैं जो अन्यान्य संकटों का सामना करते हैं उन संकटों से छुटकारा पाते हैं और लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। अन्त में सफलता उन्हीं को मिलती है जो निरन्तर चलते ही रहते हैं। जो रुक जाते हैं वे असफल रहते हैं। अतः सफलता प्राप्त करने का मूल मंत्र निरन्तर काम करते रहना है।

प्रश्न 3.
कवि मेघों से पृथ्वी पर उतरने के लिए आह्वान क्यों कर रहा है? (2008)
उत्तर:
कवि आकाश की चोटियों पर विराजमान बादलों से धरती पर उतरने का आह्वान इसलिए करता है कि वे जीवन की प्रत्येक राह से जल की धारा बहाकर जीवन के प्रवाह को जीवंत बना दें। वे गागर से लेकर सागर तक को पानी से सराबोर कर दें। वर्षा आने से पुरवाई हवा का मान बढ़ेगा तथा उल्लास से भर कर लोग कजरी की तान छेड़ेंगे। आकाश में बादलों के छा जाने से काम नहीं चलता। जब वे जल वर्षा करते हैं, तभी जीवन में आनन्द का संचार होता है। इसीलिए कवि मेघों से पृथ्वी पर उतरने के लिए आह्वान करता है।

प्रश्न 4.
‘कवि ने सूरज के रथ को धीमा-धीमा’ क्यों बताया है? (2014, 16)
उत्तर:
यह सत्य है कि सूर्य अपने रथ पर सवार होकर निरन्तर गतिमान रहता है। किन्तु जब वर्षा ऋतु में आकाश में बादल छाए रहते हैं तब वह ढक जाता है तथा दिखाई नहीं पड़ता है। उसका तीव्र ताप भी कम हो जाता है। जब तेज हवा चलती है तो आकाश में बादल भी बड़ी तेजी से दौड़ते हैं। उनकी तेज गति की तुलना से सूर्य की गति बहुत धीमी प्रतीत होती है। इसीलिए कवि ने तीव्र गति वाले बादलों का हौसला बढ़ाते हुए शीघ्र पृथ्वी पर जल वर्षा करने का आग्रह किया है।

विविधा-2 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘गति-मति न हो अवरुद्ध’ इसके लिए कवि ने क्या-क्या प्रयास किए हैं?
उत्तर:
कवि मानते हैं कि मनुष्य का काम निरन्तर सफलता की ओर चलते रहना है। संभव है मार्ग में बाधाएँ आएँ, चलते हुए कभी कुछ मिल सकता तो कभी कुछ गँवाना भी पड़ सकता है। सफलता-असफलता के फलस्वरूप आशा-निराशा के भाव भी हो सकते हैं। परन्तु सुख-दुःखात्मक स्थितियों में मनुष्य को अपने बढ़ते कदम नहीं रोकने चाहिए और न अपने चिन्तन को सही बात सोचने से हटाना चाहिए। जीवन नाम चलते रहना है। यदि गति और मति अवरुद्ध हो जाएगी, तो मानव मृतवत् हो जाएगा। चलते रहने पर यह निश्चित है कि सही प्रयास रहे तो एक न एक दिन अवश्य सफलता मिलेगी। इसलिए कवि हर स्थिति में गति-मति को सचल रखने हेतु प्रयासरत हैं। वे हर प्रकार का सम्भव प्रयास कर रहे हैं कि मानव जीवन पथ पर निरन्तर बढ़ता ही रहे।

प्रश्न 2.
‘चलना हमारा काम है’ कविता के मूलभाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (2008, 09, 13)
अथवा
‘चलना हमारा काम है।’ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की इस कविता के मूलभाव का चार बिन्दुओं में विस्तार कीजिए। (2012)
उत्तर:
इसका उत्तर ‘चलना हमारा काम है’ कविता के भाव-सारांश से पढ़िए।

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प्रश्न 3.
कवि बादलों को हँसते-गाते आने के लिए क्यों कहता है? (2009)
उत्तर:
वर्षा जनमानस में हर्ष और उल्लास का भाव पैदा करती है। मनुष्य ही नहीं जानवर, पक्षी, वनस्पतियों में भी एक स्फूर्ति की लहर वर्षा से दौड़ जाती है। वर्षा में बड़े-छोटे, ऊँच-नीच, धनी-निर्धन का भेद भी नहीं होता है। वह तो गागर से लेकर सागर तक को जल से सराबोर कर देती है। यह तभी सम्भव है जब बादल हँसते-गाते, उल्लास भरे होकर वर्षा करें। छुट-पुट वर्षा से काम नहीं चलेगा। बादल प्रसन्न होकर झूम के बरसेंगे, तभी आनन्द का भाव व्याप्त होगा। इसीलिए कवि बादलों को हँसते-गाते अठखेलियाँ करते हुए आने तथा मुक्त भाव से वर्षा करने की आग्रह करते हैं।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(अ) ऊँची नीची जीवन घाटी ……………..”बाहों में।
(आ) आओ तुम ……………..अफवाहों में।
(इ) जीवन अपूर्ण ………………काम है।
(ई) मैं पूर्णतः ………………..काम है।
उत्तर:
(अ) शब्दार्थ :
अम्बर = आकाश; शिखरों = चोटियों; जीवन = जल, जिन्दगी; राहों = रास्तों; प्रतिध्वनि = अनुगूंज।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ‘विविधा-2’ पाठ के ‘बरसो रे’ गीत से अवतरित है। इसके रचयिता वीरेन्द्र मिश्र हैं।

प्रसंग :
भावों के कुशल चितेरे वीरेन्द्र मिश्र ने आकाश में छाए बादलों से बिना भेदभाव के सर्वत्र वर्षा करने का आग्रह किया है।

व्याख्या :
बादलों को सम्बोधित करते हुए कवि कहते हैं कि हे बादल ! तुम जगत भर में जल की वर्षा कर दो। तुम आकाश की चोटियों से उतरकर मानव-जीवन के रास्तों पर उतरकर तीव्र वर्षा कर दो। जीवन की विकट-गहन, ऊँची-नीची घाटियों से तथा धरती की मिट्टी से यही अनुगूंज आ रही है कि तुम बिना भेदभाव के गागर से लेकर सागर तक को जल से परिपूर्ण कर दो अर्थात् सभी के प्रति समान व्यवहार करते हुए जीवन का दान करके हर्ष व्याप्त कर दो।

(आ) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद्यांश में बादलों के घिरने तथा वर्षा की मदमस्त फुहारों के मध्य गाये जाने वाले गीतों का वर्णन हुआ है।

व्याख्या :
वर्षा होते ही जो उल्लासमय वातावरण हो जाता है उसकी ओर इंगित करते हुए कवि कहते हैं कि हे बादलो! तुम वर्षा कर दो ताकि आनन्दोल्लास के गीत कजरी की तान छिड़ जाय। तुम्हारे वर्षा के जल से वाणी की मधुरता का वरदान मिल जायेगा अर्थात् मधुर स्वर में कजरी गीतों का गायन प्रारम्भ हो जायेगा। हे बादलो! अभी कल तक तो तुम घिर करके आकाश में चारों ओर छाए हुए थे और कुछ दिन पूर्व तो तुम वर्षा आई-वर्षा आई; इस प्रकार अफवाहों में आये थे अर्थात् तुम्हारे आने की चर्चा आकाश में आच्छादित होने से ही होने लगी थी। किन्तु आज तुम वास्तव में वर्षा कर दो ताकि वह अफवाह सत्य सिद्ध हो जाय।

(इ) शब्दार्थ :
अपूर्ण = अधूरा; अवरुद्ध = बाधित, रुके आठों याम= हर समय (दिन और रात दोनों आठ याम (प्रहर) के होते हैं)।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ बताया गया है कि व्यक्ति अधूरा जीवन जीते हुए कभी कुछ प्राप्त कर लेता है, तो कभी कुछ खो भी देता है।

व्याख्या :
मानव के अधूरे जीवन की पूर्णता के प्रयास में कभी कुछ मिल जाता है तो कभी कुछ खो भी जाता है अर्थात् इस जीवन में लाभ-हानि, उत्थान-पतन, ऊँच-नीच चलती ही रहती है। इसी के अनुसार आशा-निराशा के भाव जगते ही रहते हैं। सफलता से आशा और असफलता से कुछ निराशा होती ही है। फलस्वरूप व्यक्ति हँसता-रोता हुआ जीवन पथ पर चलता ही जाता है। उसका ध्यान दिन-रात इस बात पर रहता है कि उसके जीवन की चाल कहीं बाधित न हो जाय। क्योंकि व्यक्ति का काम निरन्तर चलते रहना ही है।

(ई) शब्दार्थ :
दर-दर = द्वार-द्वार; पग = कदम; रोड़ा अटकता = बाधा आती रही; निराश = हताश।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ बताया गया है कि जीवन में आने वाली बाधाओं से निराश नहीं होना चाहिए।

व्याख्या :
मनुष्य जीवन में समग्र सफलता पाने के लिए विभिन्न प्रकार से प्रयास करता है। उसे द्वार-द्वार चक्कर काटने पड़ते हैं। जहाँ भी वहे प्रयास करता है वहाँ कुछ न कुछ बाधाएँ भी आती रहती हैं। व्यक्ति को उन बाधाओं से निराश नहीं होना चाहिए। आशा-निराशा तो जीवन में अपरिहार्य हैं। उनसे डरकर रुकने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जीवन पथ पर चलते रहना ही व्यक्ति का कार्य है।

विविधा-2 काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिएसागर, आकाश, सूर्य, पानी, बादल, हाथी।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 10 विविधा-2 img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी मानक रूप लिखिएछाँह, बरखा, नैया, माटी, बानी, अचम्भा।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 10 विविधा-2 img-2

बरसो रे भाव सारांश

वर्तमान हिन्दी कविता को नवीन संवेदनाएँ प्रदान करने वाले गीतकार वीरेन्द्र मिश्र के गीतों ने विशेष पहचान बनाई है। ‘बरसो रे’ गीत में कवि ने वर्षा ऋतु के बादलों का आह्वान किया है। गीत आधुनिक जीवन के संदर्भ को भी व्यंजित करता है। कवि बादलों से वर्षा करने का आग्रह करते हुए कहते हैं कि तुम आकाश के शिखरों से उतरकर जगत की राहों में जल वर्षा कर जीवंतता का संचार कर दो। जीवन की ऊँची-नीची घाटियों से धरती के कोने-कोने से आवाज आ रही है कि तुम अपनी गागर से सागर के समान जल वर्षा कर गागर से सागर तक परिपूर्ण जल व्याप्त कर दो।

हे बादलो! तुम हँसते-गाते हुए खुशी से मदमस्त होकर आओ और मिलने को आतुर धरती की बाहों में समा जाओ। तुम्हारे आने से पुरवाई की मानवृद्धि होगी तथा आनन्द व्याप्त करने वाली कजरी की तान छिड़ जायेगी। तुम सघन रूप से आकाश में छा जाओगे तो सूर्य का रथ भी धीमा प्रतीत होगा और मन में विविध कल्पनाएँ उमड़ पड़ेंगी। तुम आम के बागों को वर्षा की बौछारों से जलमग्न कर दो ताकि वनस्पतियों में जीवंतता आ जाए। कल जब तुम आकाश में छाए हुए थे तो वर्षा के आगमन की अफवाहें प्रारम्भ हो गयी थीं। किन्तु आज तुम वर्षा करके जीवन में हर्ष व्याप्त कर दो।

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बरसो रे संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

[1] बरसो रे, बरसो रे, बरसो रे,
अम्बर के शिखरों से उतरो रे
जीवन देने राहों में
ऊँची नीची जीवन घाटी से
प्रतिध्वनियाँ आती हैं माटी से
गागर से सागर दुलकाओ, धन! (2012)

शब्दार्थ :
अम्बर = आकाश; शिखरों = चोटियों; जीवन = जल, जिन्दगी; राहों = रास्तों; प्रतिध्वनि = अनुगूंज।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ‘विविधा-2’ पाठ के ‘बरसो रे’ गीत से अवतरित है। इसके रचयिता वीरेन्द्र मिश्र हैं।

प्रसंग :
भावों के कुशल चितेरे वीरेन्द्र मिश्र ने आकाश में छाए बादलों से बिना भेदभाव के सर्वत्र वर्षा करने का आग्रह किया है।

व्याख्या :
बादलों को सम्बोधित करते हुए कवि कहते हैं कि हे बादल ! तुम जगत भर में जल की वर्षा कर दो। तुम आकाश की चोटियों से उतरकर मानव-जीवन के रास्तों पर उतरकर तीव्र वर्षा कर दो। जीवन की विकट-गहन, ऊँची-नीची घाटियों से तथा धरती की मिट्टी से यही अनुगूंज आ रही है कि तुम बिना भेदभाव के गागर से लेकर सागर तक को जल से परिपूर्ण कर दो अर्थात् सभी के प्रति समान व्यवहार करते हुए जीवन का दान करके हर्ष व्याप्त कर दो।

काव्य सौन्दर्य :

  1. वर्षा ऋतु के बादलों से बरसने का आग्रह किया गया है।
  2. अनुप्रास अलंकार तथा पद मैत्री का सौन्दर्य दृष्टव्य है।
  3. शुद्ध-साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

[2] अब तो हँसते गाते आओ, घन।
इन मिलनातुर बाहों में
पुरवैया नैया के पालों में
नभ के नारंगी रुमालों में
सूरज का रथ धीमा धीमा है।
सपनों की क्या कोई सीमा है
अमराई की छाँओ में।

शब्दार्थ :
मिलनातुर = मिलने के लिए बैचेन; नैया = नाव; पाल = नाव के मस्तूल के सहारे ताना जाने वाला एक कपड़ा जिसमें हवा भरने पर नाव चलती है; नभ = आकाश; अमराई = आम का बाग, उद्यान।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश में वर्षा ऋतु के बादलों से मुस्कराते हुए वर्षा करने के लिए आने का आग्रह किया गया है।

व्याख्या :
कवि बादलों को आमन्त्रित करते हुए कहते हैं कि हे बादलो ! तुम अब मुस्कराते और गायन करते हुए मिलन के लिए बेचैन धरती की इन बाँहों में आ जाओ, तुम पुरवाई पवन के पालों में आकर सम्मान बढ़ा दो तथा आकाश में रंगीन रुमालों (बदलियों) के रूप में छा जाओ। तुम्हारी गति इतनी तीव्र है कि सूर्य का रथ भी धीमा हो गया है। पुरवाई हवा के तेज झोंकों से बादल इतनी तीव्र गति से उड़ रहे हैं तथा सूर्य को ढक रहे हैं तो ऐसा लगता है कि सूर्य के रथ की गति धीमी हो गयी है। बादलों से होने वाली वर्षा के वातावरण में जो कल्पनाएँ उठती हैं, उनकी कोई सीमा नहीं है अर्थात् नाना प्रकार के मनोरम स्वप्न इस समय जागते हैं। इसलिए हे बादल! तुम आम के बागों की छाया में वर्षा करने आ जाओ ताकि वनस्पतियों को जल रूपी जीवन मिल जाए।

काव्य सौन्दर्य :

  1. आनन्द व्याप्त करने वाले बादलों से हर्षपूर्वक बरसने को कहा गया है।
  2. रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार। शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।

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[3] आओ तुम कजरी को स्वर देने
वाणी को पानी के वर देने।
कल तक तुम घिर-घिर कर छाए थे
कल तक तो तुम केवल आए थे।
बरखा की अफवाहों में।

शब्दार्थ :
कजरी वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला गीत; वर = वरदान; बरखा = वर्षा।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद्यांश में बादलों के घिरने तथा वर्षा की मदमस्त फुहारों के मध्य गाये जाने वाले गीतों का वर्णन हुआ है।

व्याख्या :
वर्षा होते ही जो उल्लासमय वातावरण हो जाता है उसकी ओर इंगित करते हुए कवि कहते हैं कि हे बादलो! तुम वर्षा कर दो ताकि आनन्दोल्लास के गीत कजरी की तान छिड़ जाय। तुम्हारे वर्षा के जल से वाणी की मधुरता का वरदान मिल जायेगा अर्थात् मधुर स्वर में कजरी गीतों का गायन प्रारम्भ हो जायेगा। हे बादलो! अभी कल तक तो तुम घिर करके आकाश में चारों ओर छाए हुए थे और कुछ दिन पूर्व तो तुम वर्षा आई-वर्षा आई; इस प्रकार अफवाहों में आये थे अर्थात् तुम्हारे आने की चर्चा आकाश में आच्छादित होने से ही होने लगी थी। किन्तु आज तुम वास्तव में वर्षा कर दो ताकि वह अफवाह सत्य सिद्ध हो जाय।

काव्य सौन्दर्य :

  1. उल्लास फैलाने वाली वर्षा के आगमन से पूर्व की उत्सुकता का वर्णन हुआ है।
  2. वर्षा काल में कजरी गीत गाये जाते हैं।
  3. पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास अलंकार तथा पद मैत्री की छटा दर्शनीय है।
  4. भावानुरूप भाषा का प्रयोग हुआ है।

चलना हमारा काम है भाव सारांश

अथक ऊर्जा, तेज और प्रेरणा के कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘चलना हमारा काम है’ कविता मानव को जीवन पथ पर गतिशील रहने के प्रति सचेष्ट करती है। जब जीवन का विस्तृत विकास मार्ग खुला पड़ा है और मेरे पग अपार शक्ति तथा गति से परिपूर्ण हैं, तो मुझे लक्ष्य प्राप्ति तक विश्राम नहीं करना है। सांसारिक सम्पर्कों में कुछ कहना-सुनना होने से परस्पर का दुःख-सुख बँट जाता है और मन हल्का हो जाता है। साथ ही जीवन भी सरल बन जाता है। जब जीवन पथ पर बढ़ते हैं तो सफलता-असफलता जन्य सुख-दुःख, आशा-निराशा का आना स्वाभाविक है। उसको हँसते-रोते हुए पार करके आगे चलते रहना ही मानव का मन्तव्य होना चाहिए। उसे हर पल आगे बढ़ने के प्रति जागरूक रहना चाहिए।

संसार के इस विशाल प्रवाह में सभी को किसी न किसी रूप में सुख-दुःख तो सहने ही होते हैं, इसको भाग्य का दोष या गुण मानना संगत नहीं है। जब मनुष्य लक्ष्य की ओर बढ़ने का प्रयास करता है तो बाधाओं का आना भी निश्चित है। किन्तु इन बाधाओं से विचलित होने की आवश्यकता नहीं क्योंकि इन बाधाओं को पार करते हुए आगे का मार्ग प्रशस्त करना ही जीवन है। संसार में बढ़ते हुए अन्यान्य साथी मिलते हैं, उनमें से कुछ छूट जाते हैं और कुछ चलते रहते हैं। जो सतत् गतिशील रहते हैं, उनको सफलता का मिलना निश्चित है। लक्ष्य के प्रति सजग रहकर हर स्थिति में चलते रहना ही मानव की जीवन्तता का लक्षण है। इसलिए उसकी गति कभी भी अवरुद्ध नहीं होने देनी चाहिए।

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चलना हमारा काम है संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

[1] गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर-दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंजिल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है। (2015, 16)

शब्दार्थ :
गति = चाल; प्रबल = तीव्र; दर-दर = द्वार-द्वार; मंजिल = लक्ष्य; विराम = आगम, रुकना।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित विविधा-2′ के ‘चलना हमारा काम है’ कविता से अवतरित है। इसके रचयिता शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं।

प्रसंग :
यहाँ कवि ने प्रेरित किया है कि क्षमता के रहते हुए व्यक्ति को लक्ष्य की ओर अविराम कदम बढ़ाने चाहिए।

व्याख्या :
कवि कहते हैं कि मेरे कदमों में चलने की तीव्र सामर्थ्य भरी हुई है इसलिए मैं द्वार-द्वार पर क्यों रुककर खड़ा रहूँ। जब आज मेरे सामने बहुत बड़ा प्रगति का मार्ग खुला पड़ा है तब मुझे खड़ा होने की क्या आवश्यकता है। मैं जब तक अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचता हूँ, तब तक मुझे रुकना स्वीकार नहीं है। क्योंकि हमारा वास्तविक कार्य तो जीवन में गतिशील रहना ही है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. लक्ष्य प्राप्ति के लिए सतत् सचेष्ट रहने की प्रेरणा दी गई है।
  2. पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास अलंकारों का सौन्दर्य अवलोकनीय है।
  3. शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया गया है।

[2] कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ तुम मिल गए
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है। (2010)

शब्दार्थ :
बोझ = भार; राह = मार्ग; राही = राहगीर, पंथी।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ बताया गया है कि हिल-मिलकर चलने से जीवन की राह बड़ी सरलता से कट जाती है।

व्याख्या :
संसार में जीवन की राह पर जब साथ-साथ चलते हैं तो कुछ कहन-सुनन होना स्वाभाविक है। आपस में दुःख-दर्द की बातें कहने-सुनने से मानव के हृदय का भार तो कम हो ही जाता है। यह भी अच्छा रहा कि साथी मिल जाने से बातों ही बातों में जीवन का कुछ रास्ता कट गया। अब मैं अपने नाम आदि का क्या परिचय बताऊँ वास्तव में तो हम सभी इस जीवन पथ के पंथी हैं क्योंकि हमारा काम चलते रहना ही है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. साथी से दुःख-दर्द बाँटकर जीवन की राह कुछ सहज कट जाती है।
  2. अनुप्रास अलंकार तथा पद मैत्री का सुन्दर संयोग देखा जा सकता है।
  3. सरल, सुबोध तथा साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।

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[3] जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी,
आशा निराशा से घिरा
हँसता कभी रोता कभी,
गति मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठों याम है
चलना हमारा काम है।

शब्दार्थ :
अपूर्ण = अधूरा; अवरुद्ध = बाधित, रुके आठों याम= हर समय (दिन और रात दोनों आठ याम (प्रहर) के होते हैं)।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ बताया गया है कि व्यक्ति अधूरा जीवन जीते हुए कभी कुछ प्राप्त कर लेता है, तो कभी कुछ खो भी देता है।

व्याख्या :
मानव के अधूरे जीवन की पूर्णता के प्रयास में कभी कुछ मिल जाता है तो कभी कुछ खो भी जाता है अर्थात् इस जीवन में लाभ-हानि, उत्थान-पतन, ऊँच-नीच चलती ही रहती है। इसी के अनुसार आशा-निराशा के भाव जगते ही रहते हैं। सफलता से आशा और असफलता से कुछ निराशा होती ही है। फलस्वरूप व्यक्ति हँसता-रोता हुआ जीवन पथ पर चलता ही जाता है। उसका ध्यान दिन-रात इस बात पर रहता है कि उसके जीवन की चाल कहीं बाधित न हो जाय। क्योंकि व्यक्ति का काम निरन्तर चलते रहना ही है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. सुख-दुःखमय जीवन की गति निरन्तर सचल रहनी चाहिए।
  2. यमक, अनुप्रास अलंकार।
  3. शुद्ध, साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

[4] इस विशद विश्व प्रवाह में
किसको नहीं बहना पड़ा,
सुख दुःख हमारी ही तरह
किसको नहीं सहना पड़ा,
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है। (2009)

शब्दार्थ :
विशद विशाल; विश्व-प्रवाह संसार का श्रम; व्यर्थ = बेकार, अनावश्यक रूप से; विधाता = भाग्य, ब्रह्मा; वाम = विपरीत।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ बताया गया है कि संसार में सुख-दुःख तो सभी को सहने होते हैं। उनका बखान करना अनावश्यक है।

व्याख्या :
ऐसा कौन है जिसे संसार के इस विशाल क्रम की धारा में प्रवाहित न होना पड़ा हो अर्थात् सभी को इस संसार रूपी सरिता में बहना ही पड़ता है। संसार में सभी को जीवन में सुख और दुःख सहन करने ही पड़ते हैं। इनसे कोई नहीं बच पाता है। फिर दुःख आने पर यह कहना अनावश्यक है कि भाग्य मेरे विपरीत है। हमें तो दुःख की चिन्ता छोड़कर जीवन की राह पर चलते रहना चाहिए क्योंकि चलना ही हमारा कार्य है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. दु:ख आने पर भाग्य को दोष देना उचित नहीं है।
  2. सुख-दुःख तो आते-जाते ही रहते हैं।
  3. रूपक, अनुप्रास अलंकार।
  4. शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।

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[5] मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
पर हो निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।

शब्दार्थ :
दर-दर = द्वार-द्वार; पग = कदम; रोड़ा अटकता = बाधा आती रही; निराश = हताश।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ बताया गया है कि जीवन में आने वाली बाधाओं से निराश नहीं होना चाहिए।

व्याख्या :
मनुष्य जीवन में समग्र सफलता पाने के लिए विभिन्न प्रकार से प्रयास करता है। उसे द्वार-द्वार चक्कर काटने पड़ते हैं। जहाँ भी वहे प्रयास करता है वहाँ कुछ न कुछ बाधाएँ भी आती रहती हैं। व्यक्ति को उन बाधाओं से निराश नहीं होना चाहिए। आशा-निराशा तो जीवन में अपरिहार्य हैं। उनसे डरकर रुकने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जीवन पथ पर चलते रहना ही व्यक्ति का कार्य है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. जीवन पथ में आने वाली बाधाओं से निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
  2. अनुप्रास अलंकार एवं पद मैत्री।
  3. शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।

[6] कुछ साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
पर गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए सो गिर गए,
चलता रहे हमदम, उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।

शब्दार्थ :
फिर गए = वापस लौट गए; हमदम = साथी; अभिराम = सुन्दर, श्रेष्ठ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ बताया गया है कि जीवन के क्रम में कुछ साथ चलते रहते हैं, कुछ छूट जीते हैं किन्तु जो चलता रहता है उसे सफलता अवश्य मिलती है।

व्याख्या :
इस जीवन की राह के कुछ साथी तो साथ चलते ही रहे परन्तु कुछ मध्य मार्ग से ही लौट गये; किन्तु जीवन की चाल में ठहराव नहीं आया। वह तो चलता ही रहा, जो लौट गये सौ लौट गये। किन्तु जो साथी अथक रूप से निरन्तर साथ चलते रहते हैं, उन्हें श्रेष्ठ सफलता प्राप्त होती है। अतः मानव को निरन्तर चलते ही रहना चाहिए क्योंकि चलना ही हमारा कार्य है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. जीवन में श्रेष्ठ सफलता उसे मिलती है जो निरन्तर चलता ही रहता है।
  2. यमक, अनुप्रास अलंकार।
  3. सरल सुबोध तथा भाव के अनुरूप भाषा का प्रयोग हुआ है।

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