MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 5 नीरा

नीरा अभ्यास

नीरा अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीरा के पिता को क्या पढ़ने का शौक था?
उत्तर:
नीरा के पिता को अखबार पढ़ने का शौक था।

प्रश्न 2.
अमरनाथ ने अपना लेख किनके विषय में लिखा था?
उत्तर:
अमरनाथ ने अपना लेख लौटे हुए प्रवासी कुलियों के विषय में लिखा था।

प्रश्न 3.
नीरा के पिता कुली बनकर कहाँ गये थे? (2016)
उत्तर:
नीरा के पिता कुली बनकर मॉरीशस गये थे।

प्रश्न 4.
नीरा की माँ का क्या नाम था?
उत्तर:
नीरा की माँ का नाम ‘कुलसम’ था।

MP Board Solutions

नीरा लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“भगवान यदि हों तो आपका भला करें,” कहने के पीछे नीरा के पिता बूढ़े बाबा के किस भाव का आभास होता है?
उत्तर:
‘भगवान यदि हों तो आपका भला करें’ इस कथन का भाव है कि बूढ़े बाबा को अनायास ही साइकिल के कारण चोट लग गयी। साइकिल वाले ने बूढ़े को एक अठन्नी दी। यह उस व्यक्ति की दया का प्रतीक थी। इसी कारण गद्गद् होकर बूढ़े बाबा ने साइकिल वाले के प्रति यह भाव व्यक्त किया।

प्रश्न 2.
नीरा के पिता को किस बात की चिन्ता थी? (2014, 15)
उत्तर:
नीरा के पिता को यह चिन्ता थी कि उसके मरणोपरान्त नीरा की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं था। इसी कारण पिता को भय था कि आज समाज में असामाजिक तत्त्व यत्र-तत्र घूमते रहते हैं। ऐसे नर पिशाचों के हाथ में पड़कर नीरा का जीवन बरबाद हो जायेगा। यही चिन्ता उसे प्रति पल कचोटती रहती थी।

प्रश्न 3.
अपराधों का दण्ड तत्काल न मिलने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
अपराधों का दण्ड तत्काल न मिलने के फलस्वरूप आज समाज में दिन-प्रतिदिन अपराधों की संख्या में कई गुनी वृद्धि होती चली जा रही है। व्यक्ति का नैतिक पतन निरन्तर हो रहा है। मानवीय मूल्यों की भी गिरावट अवलोकनीय है। यदि यह कहा जाय कि जीवन में अपराधों का इतना जाल फैला हुआ है कि इससे मुक्त होने में मानव को कितना समय लगेगा यह प्रश्न भविष्य के अन्तराल में तिरोहित है।

नीरा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देवनिवास नीरा के किन गुणों से प्रभावित है? (2008)
उत्तर:
देवनिवास नीरा के अपूर्व सौन्दर्य, सरलता एवं सहृदयता से प्रभावित है। उसका प्रमुख कारण है कि नीरा यद्यपि निर्धन थी परन्तु उसके पास जो भी रूखा-सूखा पदार्थ सुलभ था उसी को ग्रहण करके अपूर्व सुख तथा आनन्द का अनुभव करती थी। इसके साथ ही उसे अपने बूढ़े बाबा की चिन्ता प्रतिपल सताती रहती थी। उनकी सेवा में वह कोई भी कसर नहीं छोड़ती थी।
बाबा के प्रति कर्त्तव्य निर्वाह को अपने जीवन का सर्वोपरि कर्त्तव्य मानती थी।
नीरा का धनिकों के प्रति कहा गया निम्न कथन देखिए, “जाओ, मेरी दरिद्रता का स्वाद लेने वाले धनी विचारकों और सुख तो तुम्हें मिलते ही हैं, एक न सही।”
देवनिवास नीरा की स्वाभिमानी एवं निश्छल प्रवृत्ति से प्रभावित है।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
कहानी का शीर्षक ‘नीरा’ कितना सार्थक है?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘नीरा’ कहानी अभावग्रस्त मध्यमवर्गीय परिवार की व्यथा कथा है।

इस कहानी की मुख्य पात्र नीरा है। नीरा मातृविहीन एक बूढ़े की पुत्री है। उसकी माँ का निधन बचपन में ही हो गया था। उसका बूढ़ा पिता अभावग्रस्त होते हुए भी जागरूक है। उसे जीवन के कटु अनुभव हैं। अतः हर पल नीरा के बूढ़े बाबा को अपनी पुत्री की सुरक्षा का भय रहता है। बूढ़े को लगता है कि मेरे मरने के बाद कहीं मेरी पुत्री किसी अत्याचारी के हाथ पड़कर नष्ट न हो जाये।

यद्यपि उसका बूढ़ा बाबा मरणासन्न है लेकिन पुत्री के लिए व्याकुल है। उसकी पुत्री निरन्तर अपने पिता को सांत्वना देती रहती है कि “बाबा, तुम मेरी चिन्ता न करो भगवान मेरी रक्षा करेंगे।”

इसी मध्य देवनिवास ने नीरा के पिता से विवाह का प्रस्ताव रखा और कहा, “यदि तुम्हें ………. इस बात को सुनकर वृद्ध बाबा का हृदय पुलकित हो गया।

उसने अपने दोनों हाथ देवनिवास और नीरा पर फैलाकर रखते हुए कहा-“हे मेरे भगवान।” इस प्रकार हम देखते हैं कि समस्त कहानी का केन्द्र बिन्दु नीरा है। कहानी का ताना-बाना नीरा पर ही आधारित है।

नीरा के प्रणय बँधन में बँधने के पश्चात् कहानी का समापन हो जाता है। कहानी में ऐसा कोई स्थल नहीं है जहाँ नीरा दृष्टिगोचर न होती हो। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि नीरा प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सटीक एवं सार्थक है।

प्रश्न 3.
देवनिवास या बूढ़े बाबा नीरा के पिता के चरित्र के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यह कहानी अपने पात्रों के चरित्र-चित्रण में सफल रही है?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘नीरा’ नामक कहानी सामाजिक एवं चरित्र-चित्रण की दृष्टि से एक सफल कहानी है। कहानी में पात्रों की संख्या सीमित होते हुए भी कहानीकार ने उनके चरित्र-चित्रण में अभूतपूर्व सफलता पायी है।

कहानी के पात्र जीवन्त एवं यथार्थता के धरातल पर प्रतिष्ठित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक का मुख्य उद्देश्य पाठकों के हृदय में ईश्वर के प्रति आस्था उत्पन्न करना है, क्योंकि कहानी का मुख्य पात्र बूढ़ा बाबा प्रारम्भ में नास्तिक विचारों वाला दिखाया गया है। देवनिवास एवं अमरनाथ दोनों ही उस वृद्ध व्यक्ति को विभिन्न तर्कों द्वारा ईश्वर के प्रति विश्वास करने को कहते हैं। लेकिन बूढ़े के विचार तनिक भी परिवर्तित नहीं होते।

संयोगवश देवनिवास का साधारण कथन बूढ़े व्यक्ति की विचारधारा को बदल देता है और ईश्वर में आस्था जगा देता है। बाबा अपने जीवन के प्रति उदासीन है। कहानी में देवनिवास, बूढ़े बाबा एवं नीरा प्रमुख पात्र हैं। गौण रूप में अमरनाथ हैं। इस कहानी में समस्त पात्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। कहानीकार ने प्रमुख रूप से यह बताने का प्रयास किया है कि “जो जस करिय तो तस फल चाखा”।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि बूढ़ा बाबा नास्तिक था लेकिन कहानीकार ने उसे ईश्वर के प्रति आस्था रखने के लिए प्रेरित किया। कहानीकार अपने इस उद्देश्य में पूर्णतः सफल हुआ है।

आज भी बूढ़े बाबा का चरित्र पाठक के स्मृति पटल पर छा जाता है। देवनिवास ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाला व्यक्ति है। वह दूसरों के कष्टों में भाग लेकर अपनी सहृदयता का परिचय देने वाला है।

बूढ़े बाबा की लाचारी को देखकर उसने जो नीरा के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा वह उसके उज्ज्वल चरित का द्योतक है।

अमरनाथ ईश्वर के प्रति आस्थावान है। लेकिन वह बूढ़े बाबा की नास्तिक विचारधारा को परिवर्तित करने में असमर्थ है। इस कारण वह बूढ़े के प्रति आक्रोश व्यक्त करता है जो उसकी संकुचित मानसिकता का प्रतीक है।

अन्त में कहा जा सकता है कि जयशंकर प्रसाद ने मानव को ईश्वर के प्रति सदैव आस्थावान रहने की प्रेरणा दी है। चाहे कितनी भी विषम परिस्थितियाँ आयें, व्यक्ति को ईश्वर के प्रति आस्था नहीं त्यागनी चाहिए। इस प्रकार कहानी चरित्र-चित्रण की दृष्टि से सफल एवं प्रेरणादायक है।

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(1) सुख और सम्पत्ति ………………….. ठुकराता नहीं।
(2) जैसे एक साधारण ……………….. कराना चाहते हो।
उत्तर:
(1) सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक की ‘नीरा’ नामक कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं।

प्रसंग :
अमरनाथ एवं देवनिवास इस तथ्य को स्पष्ट कर रहे हैं कि अत्यधिक निर्धनता के फलस्वरूप मानव ईश्वर के प्रति अविश्वासी हो जाता है।

व्याख्या :
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने इस तथ्य को दर्शाने का प्रयास किया है कि मानव यदि निरन्तर कष्ट भोगता रहे तो उसका ईश्वर के प्रति विश्वास कम होने लगता है। वह अपने समस्त कष्टों को उत्तरदायी ईश्वर को ठहराता है। भगवान सर्वव्यापी हैं, वह प्रत्येक जीव के हृदय में विद्यमान हैं, उनकी दृष्टि में मानव-मानव में तनिक भी भेद नहीं है। जब मानव दु:ख के झंझावातों से निराश होने लगता है तो ऐसी दशा में भगवान मानव को कभी दुत्कारता नहीं, ठुकराता नहीं और न प्रताड़ित करता है। मानव को प्रत्येक परिस्थिति में ईश्वर के प्रति अनन्य निष्ठा रखनी चाहिए, जीवन में सुख-दुःख का चक्र तो निरन्तर चलता ही रहता है।

(2) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि विपत्तियों के फलस्वरूप बूढ़े बाबा की ईश्वर के प्रति आस्था नहीं रही।

व्याख्या :
देव निवास ने कहा जिस प्रकार एक आलोचक हर लेखक से अपने मनोनुकूल कहानी कहलवाने का आकांक्षी रहता है तथा इस बात का भरसक प्रयास करता है कि मैं जिस प्रकार की भावना रखता हूँ तदनुरूप अन्य व्यक्ति भी उसी के अनुकूल चलें।

बूढ़े बाबा भी भगवान् से अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं, सुख-दुःख के झंझावातों एवं अपनी मनोव्यथा को ईश्वर के माध्यम से सुख और शान्ति में परिवर्तित देखने के इच्छुक हैं।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्ति का भाव पल्लवन कीजिएआलोक एक उज्ज्वल सत्य है। (2008)
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का भाव है कि जीवन की सत्यता उसी प्रकार है जैसे कि प्रकाश में प्रत्येक वस्तु अच्छी हो अथवा बुरी, स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। लेखक ने अपनी इस पंक्ति द्वारा नीरा की दरिद्रता का परिचय दिया है। नीरा अपनी दरिद्रता को किसी भी प्रकार प्रकट नहीं करना चाहती है लेकिन रूखी रोटी मुख में नहीं प्रवेश कर पा रही है फिर भी उसको चबाने का प्रयास कर रही थी। “टीन का गिलास अपने खुरदरे रंग का नीलापन नीरा की आँखों में उड़ेल रहा था।”

अर्थात् उस गिलास में नीरा के जीवन की सत्यता उजागर हो रही थी जिसे नीरा संकोचवश व्यक्त नहीं करना चाहती थी।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आलोक (प्रकाश) जीवन का एक ऐसा सत्य है जिसको व्यक्ति किसी भी भाँति छिपा नहीं सकता है। जैसे प्रकाश के सम्पर्क में आने पर सभी पदार्थ स्पष्टरूपेण दृष्टिगोचर होने लगते हैं। तद्नुरूप वास्तविकता के ऊपर पड़ा हुआ पर्दा कभी न कभी हट ही जाता है जो वस्तुओं की यथार्थता को स्पष्ट करता है।

प्रश्न 6.
“जो काम देवनिवास अपने तर्कों से नहीं कर सका उसे उसके कर्म ने सम्भव बना दिया।” बूढ़े बाबा के नास्तिक से आस्तिक बनने के घटनाक्रम को दृष्टिगत रखते हुए कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कथन का भाव है कि निरन्तर प्रयत्न करने के उपरान्त व्यक्ति को कभी न कभी सफलता प्राप्त होती है। अतः व्यक्ति को निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए।

बूढ़ा बाबा नास्तिक था। उसे ईश्वर के प्रति तनिक भी आस्था और विश्वास न था। देवनिवास प्रतिदिन बूढ़े बाबा को विभिन्न प्रकार से ईश्वर के प्रति आस्था रखने के लिए प्रेरित करता रहता था। बूढ़े के मन पर उसके तर्कों का नाममात्र को भी प्रभाव नहीं पड़ता था। लेकिन देवनिवास हताश नहीं हुआ। एक दिन अचानक ही बूढ़े बाबा के समक्ष नीरा से विवाह का प्रस्ताव रखकर देवनिवास ने बूढ़े बाबा के हृदय में ईश्वर के प्रति निष्ठा उत्पन्न कर दी। अन्त में बूढ़े बाबा ईश्वर की सत्ता के प्रति नतमस्तक हो गये। क्योंकि बूढ़े बाबा को पुत्री के विवाह की चिन्ता आकुल-व्याकुल करती रहती थी। उन्हें कदापि देवनिवास से ऐसी उम्मीद न थी। इसी कारण बूढ़े बाबा को देवनिवास के कर्म ने नास्तिक से आस्तिक बना दिया।

नीरा भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों को वाक्य में प्रयोग कीजिएढोंग रचना, बिजली कौंधना, दाँत किटकिटाना, चौंक उठना, सुख की नींद सोना।
उत्तर:

  1. ढोंग रचना-आजकल साधु-सन्त ढोंग रचकर भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाते हैं।
  2. बिजली कौंधना-उसका झूठ पकड़े जाने पर उसके शरीर में बिजली कौंध गयी।
  3. दाँत किटकिटाना-व्यर्थ में दाँत किटकिटाने से क्या लाभ है? कुछ करके दिखाओ तो जानें।
  4. चौंक उठना-बोर्ड की परीक्षा में आकाश ने सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया इसको देख सभी चौंक उठे।
  5. सुख की नींद सोना-बेटी के विवाह के पश्चात् माता-पिता सुख की नींद सोते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में यथास्थान विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए
(अ) क्षमा मैं करूँ अरे आप क्या कह रहे हैं।
(ब) नहीं-नहीं बाबूजी मुझे यह कहने का अधिकार नहीं। मैं हूँ अभागा हाय रे भाग।
उत्तर:
(अ) क्षमा मैं करूँ? अरे ! आप क्या कह रहे हैं?
(ब) नहीं-नहीं बाबूजी, मुझे यह कहने का अधिकार नहीं, मैं हूँ अभागा ! हाय रे भाग !

प्रश्न 3.
प्रस्तुत पाठ में निम्नलिखित द्विरुक्ति वाले शब्दों का प्रयोग हुआ है। उनमें से यह शब्द किस प्रकार की द्विरुक्ति के अन्तर्गत आते हैं। लिखिए।
गिरते-गिरते, खड़े-खड़े, कुछ न कुछ, कभी-कभी, कौन-कौन, ठीक-ठीक, मन ही मन, दूर-दूर, धीरे-धीरे, कहते-कहते।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 5 नीरा img-1

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यांश के लिए एक शब्द लिखिए।
उत्तर:
(क) जो ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास न रखता हो – नास्तिक।
(ख) जो विश्वास करने योग्य न हो – अविश्वसनीय।
(ग) किए गये उपकार को मानने वाला – कृतज्ञ।
(घ) तर्क से सम्बन्धित – तार्किक।
(ङ) जो क्षमा करने योग्य न हो – अक्षम्य।

नीरा पाठ का सारांश

प्रस्तुत कहानी अभावग्रस्त जीवन एवं आस्था के मध्य संघर्षों से जूझते हुए पात्र के हृदय में प्रच्छन्न व्यथा की मार्मिक घटना है। जीवन का अभाव व्यक्ति विशेष को ईश्वर के अस्तित्व के प्रति दुविधा में डाल देता है। सब तरफ से निराश होकर मानव ईश्वर को ही कष्टों के लिए सर्वे सर्वा ठहराकर आस्तिकता की ओर कदम बढ़ाता है।

नीरा बूढ़े बाबा की मातृहीन बेटी है। निर्धन होने के फलस्वरूप नीरा के विवाह के लिए बूढ़ा बाबा अत्यन्त ही व्याकुल है। अमरनाथ को बूढ़े बाबा की नास्तिकता से चिढ़ है, लेकिन देवनिवास एवं नीरा को उससे सहानुभूति है। देवनिवास बूढ़े के कष्टों से द्रवीभूत होकर उसके पास जाकर नीरा के साथ विवाह का प्रस्ताव रखता है। देवनिवास का यह साधारण किन्तु यथार्थ कर्म बूढ़े बाबा की मानसिकता को परिवर्तित कर देता है। बूढ़े बाबा के मन में ईश्वर के प्रति अनायास ही आस्था उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार परिस्थितियाँ जगतनियन्ता के समक्ष व्यक्ति को नास्तिक से आस्तिकता की ओर उन्मुख करती हैं।

MP Board Solutions

नीरा कठिन शब्दार्थ 

विरक्त= वैराग्य। दर्बल = कमजोर। चिथडे = फटे कपड़े। अडियल = हठीला, जिद्दी। मसखरा = मजाकिया, हसोड़। उज्ज्वल आलोक = चमकता हुआ प्रकाश। आत्मविस्मृत = सुध-बुध न रहना, अपने को भूल जाना। स्मरण = याद। अनिच्छापूर्वक = बिना इच्छा के। मनोयोग = मन से। मलिना = मैली। उत्कण्ठा = उत्सुकता। मुखाकृति = मुख की आकृति, रूपरंग, चेहरे के भाव। मॉरिशस = हिन्द महासागर में एक द्वीप। दरिद्रता = निर्धनता। उलाहनों = उपालम्भ। अवलम्बन = सहारा। उत्कण्ठा = इच्छा, लालसा। नास्तिक = ईश्वर को न मानने वाला। तार्किक = तर्क के योग्य। चरायँध = दुर्गन्ध, जलते हुए शरीर से निकलने वाली गन्ध। हताश = निराश। ऐश्वर्यशाली = धनवान, ऐश्वर्य वाला। सर्वत्र = चारों ओर। मनोनुकूल = मन के अनुरूप। सृष्टिकर्ता = सृष्टि का निर्माण करने वाला। तत्काल = शीघ्र। प्रणत = प्रणाम करने को झुकना। आतिथ्य = आवभगत, सत्कार। वैभव = ऐश्वर्य। अच्छी युक्तियाँ = अच्छे तर्क, उचित विचार। जीर्ण = पुराने। पुआल = धान का चारा, डण्ठल। अभिमान = घमण्ड। धारणा = मान्यता। उच्छृखल = बन्धन न मानने वाला। अन्तरात्मा = अन्त:करण। पुलकित = आनन्दित, हर्ष विह्वल, प्रसन्नचित्त। विनीत = विनम्र।

नीरा संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. सुख और सम्पत्ति में क्या ईश्वर का विश्वास अधिक होने लगता है? क्या मनुष्य ईश्वर को पहचान लेता है? उसकी व्यापक सत्ता को मलिन वेश में देखकर दुरदुराता ‘ नहीं, ठुकराता नहीं। (2009)

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक की ‘नीरा’ नामक कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं।

प्रसंग :
अमरनाथ एवं देवनिवास इस तथ्य को स्पष्ट कर रहे हैं कि अत्यधिक निर्धनता के फलस्वरूप मानव ईश्वर के प्रति अविश्वासी हो जाता है।

व्याख्या :
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने इस तथ्य को दर्शाने का प्रयास किया है कि मानव यदि निरन्तर कष्ट भोगता रहे तो उसका ईश्वर के प्रति विश्वास कम होने लगता है। वह अपने समस्त कष्टों को उत्तरदायी ईश्वर को ठहराता है। भगवान सर्वव्यापी हैं, वह प्रत्येक जीव के हृदय में विद्यमान हैं, उनकी दृष्टि में मानव-मानव में तनिक भी भेद नहीं है। जब मानव दु:ख के झंझावातों से निराश होने लगता है तो ऐसी दशा में भगवान मानव को कभी दुत्कारता नहीं, ठुकराता नहीं और न प्रताड़ित करता है। मानव को प्रत्येक परिस्थिति में ईश्वर के प्रति अनन्य निष्ठा रखनी चाहिए, जीवन में सुख-दुःख का चक्र तो निरन्तर चलता ही रहता है।

विशेष :

  1. भाषा सरल, बोधगम्य एवं प्रभावपूर्ण है।
  2. साधारण बोलचाल के शब्दों दुरदुराता, ठुकराता आदि का प्रसंगानुकूल प्रयोग है।

2. जैसे एक साधारण आलोचक प्रत्येक लेखक से अपनी मन की कहानी कहलाना चाहता है और हठ करता है कि नहीं यहाँ तो ऐसा नहीं होना चाहिए था, ठीक उसी तरह तुम सृष्टिकर्ता से अपने जीवन की घटनावली अपने मनोनुकूल सही कराना चाहते हो।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि विपत्तियों के फलस्वरूप बूढ़े बाबा की ईश्वर के प्रति आस्था नहीं रही।

व्याख्या :
देव निवास ने कहा जिस प्रकार एक आलोचक हर लेखक से अपने मनोनुकूल कहानी कहलवाने का आकांक्षी रहता है तथा इस बात का भरसक प्रयास करता है कि मैं जिस प्रकार की भावना रखता हूँ तदनुरूप अन्य व्यक्ति भी उसी के अनुकूल चलें।

बूढ़े बाबा भी भगवान् से अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं, सुख-दुःख के झंझावातों एवं अपनी मनोव्यथा को ईश्वर के माध्यम से सुख और शान्ति में परिवर्तित देखने के इच्छुक हैं।

विशेष :

  1. भाषा परिमार्जित, सरल एवं बोधगम्य है।
  2. शैली विषयानुरूप है।

MP Board Solutions

3. इसके बाद मेरी वह सब उद्दण्डता तो नष्ट हो गई थी, जीवन की पूँजी जो मेरा निज का अभिमान था-वह भी चूर-चूर हो गया था। मैं नीरा को लेकर भारत के लिए चल पड़ा। तब एक तो मैं ईश्वर के सम्बन्ध में एक उदासीन नास्तिक था, किन्तु इस दुःख ने मुझे विद्रोही बना दिया। मैं अपने कष्टों का कारण ईश्वर को ही समझने लगा और मेरे मन में यह बात जम गई कि यह मुझे दण्ड दिया गया है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में जयशंकर प्रसाद ने बूढ़े बाबा की पत्नी ‘कुलसम’ की मृत्यु के पश्चात् उसके जीवन में होने वाले परिवर्तन का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
बूढ़े बाबा का कथन है कि पत्नी की मृत्यु के पूर्व वह एक मस्त-मौला प्रवृत्ति का घमण्डी मानव था। लेकिन पत्नी की मृत्यु ने उसे झकझोर कर रख दिया। उसके पश्चात् बूढ़े बाबा की उच्छृखलता समाप्त हो गयी। गाढ़ी कमाई तो बरे व्यसनों में नष्ट हो गयी। लेकिन जीवन की वास्तविक पूँजी जो उसकी धर्मपत्नी थी वह भी मौत की गोद में सो गयी। वही मेरे जीवन की यथार्थ पूँजी थी। इसके पश्चात् मेरा घमण्ड नष्ट हो गया। मैं अपनी बेटी नीरा को लेकर भारत आ गया। उस समय तक मैं घोर नास्तिक था, विपत्तियों ने मुझे विद्रोही बना दिया। बूढ़ा बाबा अपने समस्त कष्टों का मूल कारण ईश्वर को ठहराता है और उसके मन में यह बात गहरे रूप से बैठ चुकी है कि शायद मुझे भगवान ने यह सारी मुसीबतें दण्ड स्वरूप प्रदान की हैं।

विशेष :

  1. भाषा, सरल, सहज एवं विषयानुरूप है।
  2. मुहावरों का प्रयोग है-चूर-चूर होना, बात जमाना।
  3. व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थिति में ईश्वर के प्रति दृढ़ आस्था रखनी चाहिए।

MP Board Class 11th Hindi Solutions