MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 भू का त्रास हरो (कविता, रामधारी सिंह ‘दिनकर’)
भू का त्रास हरो पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
भू का त्रास हरो लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कवि के अनुसार राजाओं से भी पूज्य कौन है?
उत्तर:
कवि के अनुसार राजाओं से भी पूज्य कवि, कलाकार और ज्ञानीजन हैं।
प्रश्न 2.
कविता में नृप समाज का उल्लेख किस रूप में हुआ है?
उत्तर:
कविता में नृप-समाज का उल्लेख मदांध शासक के रूप में हुआ है।
प्रश्न 3.
कवि ज्ञानियों को क्या धारण करने का उपदेश देता है?
उत्तर:
कवि ज्ञानियों को मदांध शासकों को सबक सिखाने के लिए तलवार धारण करने का उपदेश देता है।
भू का त्रास हरो दीर्घउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि का भोगी भूप से क्या आशय है?
उत्तर:
कवि का भोगी नृप से आशय है ऐसे अविचारी, विलासी और मदांध शासक से जो प्रजा की भलाई के लिए कुछ नहीं करता है। केवल तलवार की ताकत से अपनी सत्ता को सुरक्षित रखता है।
प्रश्न 2.
कवि ने अविचारी नृप समाज के साथ कैसा व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है?
उत्तर:
कवि ने अविचारी नृप समाज के साथ कठोरतापूर्ण व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है। उसने उसको सबक सिखाने के लिए ज्ञानीजनों को यहाँ तक प्रेरित किया है कि जरूरत पड़े तो उन्हें तलवार भी उठाने से तनिक संकोच नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 3.
‘आग में पड़ी धरती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आग में पड़ी धरती’ से कवि का तात्पर्य है-चारों ओर फैली अव्यवस्था, अजराकता, अभाव, अशान्ति, अमानवता और असुरक्षा का फैलता दूषित वातावरण। इस प्रकार के वातावरण का निकट भविष्य में कोई सुधार का उपाय दिखाई नहीं दे रहा है। इसलिए कवि ने ज्ञानियों को तलवार धारण कर सभी प्रकार के अन्याय और अत्याचार को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया है। ऐसा इसलिए कि संसार को उनसे ही यह आशा है और वे इसके लिए सक्षम और समर्थ हैं।
भू का त्रास हरो भाव-विस्तार/पल्लवन
प्रश्न.
- ‘जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलाएँगे’ का भाव पल्लवन कीजिए।
- ‘भूप समझता नहीं और कुछ छोड़ खड्ग भाषा को’ इस पंक्ति का अपने शब्दों में विस्तार कीजिए।
- निम्नांकित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए(क) “रोक-टोक से नहीं सुनेगा…..वह तुम त्रास हरो।”
उत्तर:
1. “जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलाएँगे” का भाव यह है कि जब तक अविचारी और विलासी शासक प्रजाहित में कार्य नहीं करेगा, तब तक कवियों, कलाकारों और ज्ञानियों को मान-सम्मान प्राप्त नहीं होगा। चारों ओर अत्याचार और दुखद वातावरण बना रहेगा। उससे जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
2. “भूप समझता नहीं और कुछ छोड़ खड्ग की भाषा’ इस काव्य-पंक्ति के द्वारा कवि ने यह कहना चाहा है कि सत्ता से मदान्ध शासक निश्चित रूप से अविचारी और विलासी होता है। वह प्रजाहित में कुछ भी नहीं करता है। वह तो केवल तलवार की ताकत से ही अपनी सत्ता को सुरक्षित रखता है और इसी को ही महत्त्व देता है। फलस्वरूप वह कवियों, कलाकारों और ज्ञानियों का अनादर करता है। इस प्रकार वह किसी की अच्छी बात नहीं सुनता है। उसे तो केवल ज्ञानीजन ही तलवार उठाकर सबक सिखा सकते हैं।
3. ‘रोक-टोक से नहीं सुनेगा…..वह तुम त्रास हरो।”
व्याख्या:
सुख-सुविधाओं में डूबा हुआ और सत्ता के मद से अंधा बना हुआ शासक वर्ग ज्ञानीजनों की सीख पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं देता है। दुखी प्रजा के विरोध करने पर भी यह अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आता है। इसलिए यह तो वास्तव में विचारहीन है। यह सत्ता के मद से इतना अंधा हो चुका होता है कि गर्दन काटनेवाली कुल्हाड़ी ही इसके सुधार का एकमात्र उपाय है। यह इसलिए भी इसका ही पात्र है। कवि का पुनः कहना है कि वह इसीलिए ज्ञानीजनों से अब कह रहा है कि ऐसे मदान्ध शासकों को सबक सिखाने के लिए उन्हें तलवार भी उठानी पड़े तो इसके लिए उन्हें हमेशा तैयार रहना चाहिए। इस तरह इस धरती पर फैले हुए दुख-अभाव को जो कोई भी हर न सका, उसे हरने के लिए उन्हें हर प्रकार से कमर कस लेनी चाहिए।
भू का त्रास हरो भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए –
(क) कविता की रचना करने वाला
(ख) विज्ञान में विशेष निपुण
(ग) कलाओं का सृजन करने वाला
(घ) अभिमान करने वाला।’
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्द अनेकार्थी हैं, इन शब्दों के विभिन्न अर्थ दर्शाने वाले वाक्य बनाओ –
कनक, पद, पक्ष, विधि।
उत्तर:
- कनक – धतूरा, सोना
- पद – पैर, ओहदा
- पक्ष – पन्द्रह दिन का समय, पंख
- विधि – कानून, ढंग।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम लिखिएउज्ज्वल, मदान्ध, निष्ठुर, उद्धार।
उत्तर:
भू का त्रास हरो योग्यता विस्तार
प्रश्न 1.
आप अपना आदर्श किसे मानते हैं? अपने आदर्श के प्रमुख गुणों को लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
प्रश्न 2.
यदि आपको अपने जीवन में समाज का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त होता है तो आप क्या-क्या कार्य करेंगे, लिखिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
प्रश्न 3.
एक आदर्श नेता में आप किन-किन गुणों को देखना चाहते हैं, सूची बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
भू का त्रास हरो परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
भू का त्रास हरो लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जनता के हितों की अनदेखी कौन करता है?
उत्तर:
जनता के हितों की अनदेखी अविचारी और मदांध शासक करता है।
प्रश्न 2. अपमान सहकर भी मानवता की कौन चिन्ता करता है?
उत्तर:
अपमान सहकर मानवता की चिन्ता कवि, कलाकार और ज्ञानी करते हैं।
प्रश्न 3.
आज के कवि, कलाकार और ज्ञानी किस तरह का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं?
उत्तर:
आजकल के कवि, कलाकार और ज्ञानी भोजन-वस्त्र से हीन, अपमानित और दीनता का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं।
प्रश्न 4.
‘भू का त्रास’ आज तक कोई क्यों नहीं हर सका?
उत्तर:
भू का त्रास’ आज तक कोई नहीं हर सका, क्योंकि मदान्ध और अविचारी शासक का विरोध कर उसे सबक सिखाने वाला कोई नहीं है।
भू का त्रास हरो दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
संसार किन विभूतियों को नहीं पहचान रहा है और क्यों?
उत्तर:
संसार कवि, कलाकार और ज्ञानीजन रूपी विभूतियों को नहीं पहचान रहा है। यह इसलिए कि इन विभूतियों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण वह अविचारी और मदान्ध शासकों को मान रहा है। उसका ऐसा मानने के पीछे यह कारण है कि मदांध शासक अपनी मदान्धता के फलस्वरूप और किसी को कुछ भी नहीं समझता है।
प्रश्न 2.
‘ज्ञानियों खड्ग धरो’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘ज्ञानियों खड्ग धरो’ का आशय है-कवि, कलाकार और ज्ञानी ही जनता के हितों की अनदेखी करने वाले अविचारी और विलासी मदान्ध शासकों को भली-भांति समझता है। वह जानता है कि यह शासक केवल तलवार की ताकत से अपनी सत्ता को सुरक्षित रखता है। ऐसे शासक को वही सबक सिखा सकता है। इसलिए जब कभी ऐसी जरूरत पड़े तो उसे तलवार उठाने से भी संकोच नहीं करना चाहिए। उससे ही संसार को इस प्रकार की अपेक्षा है और वह इसके लिए समर्थ है। ऐसा करके ही वह नीति विमुख राजसत्ता को सही रास्ते पर ला सकता है।
प्रश्न 3.
‘भू का त्रास हरो’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में अविचारी और विलासी शासकों की भर्त्सना की गई है। जो शासक प्रजाहित में कार्य नहीं करता है और केवल तलवार की ताकत से अपनी सत्ता को सुरक्षित रखता है, ऐसे शासक का प्रतिकार उज्ज्वल चरित्र वाले कवि, कलाकार एवं ज्ञानीजन ही कर सकते हैं। सत्ता के मद में डूबे हुए शासक अपने जीवन-दर्शन को केवल शब्द सुनकर ही नहीं बदल सकते हैं। अतः उन्हें सबक सिखाने के लिए ज्ञानवान व्यक्तियों को तलवार भी उठाना पड़े तो इसके लिए उन्हें सदैव तैयार रहना चाहिए। संसार तभी सुख का अनुभव कर सकेगा जब समाज चरित्रवान कवि, कलाकारों और ज्ञानियों को इन मदांध शासकों से अधिक महत्त्वपूर्ण मानेगा। नीति विमुख राजसत्ता को समाज का बौद्धिक और कलाकार वर्ग ही मार्ग पर लाने में समर्थ है।
भू का त्रास हरो लेखक-परिचय
प्रश्न 1.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का संक्षित जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन परिचय-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार राज्य के मुंगेर जिला के सिमरिया नामक गाँव में 30 सितम्बर, 1908 को एक किसान परिवार में हुआ था। बचपन में ही पिता का साया उठ जाने के बाद आपकी विधवा माँ ने आपकी शिक्षा को आगे बढ़ाया। मोकामाघाट से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करके आपने पटना विश्वविद्यालय से सन् 1932 में बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। आप में बचपन से ही कविता के अंकुर फूट पड़े थे। यही कारण है कि आपने मिडिल स्कूल में पढ़ते समय ‘बीरबाला’ और हाईस्कूल में अध्ययन करते समय ‘प्रणभंग’ काव्यों की रचना की थी।
मोकामा में एक वर्ष तक प्रधानाचार्य रहने के बाद आप सन् 1934 में सब-रजिस्ट्रार हो गए। इसके बाद आप सन् 1943 में ब्रिटिश सरकार के युद्ध-प्रचार विभाग में निर्देशक के पद पर रहे। सन् 1952 से सन् 1963 तक आप राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होकर राज्यसभा के सदस्य रहे। सन् 1964 में आप भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इसके बाद ‘दिनकर’ जी भारत सरकार के गृह-विभाग में हिन्दी-समिति के सलाहकार के रूप में कार्य करते रहे। इसके बाद आप आकाशवाणी के निदेशक के पद पर भी रहे। इस तरह से ‘दिनकर’ जी कई वर्षों तक हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। दिनकर जी का साहित्यिक-मूल्यांकन करते हुए उन्हें विभिन्न प्रकार की उपाधियों-पुरस्कारों से समय-समय पर अलंकृत-पुरस्कृत किया जाता रहा। 24 अप्रैल, 1974 ई. को हिन्दी का यह ‘दिनकर’ सदा के लिए अस्त हो गया।
रचनाएँ:
‘दिनकर’ मुख्य रूप से कवि तो थे ही लेकिन उनका गद्य-साहित्य पर भी बेजोड़ अधिकार रहा। उनकी निम्नलिखित रचनाएँ हैं –
1. महाकाव्य:
- कुरुक्षेत्र,
- उर्वशी।
2. खण्डकाव्य:
- प्रणभंग,
- रश्मिरथी।
3. काव्य:
- बारदोली-विजय
- द्वन्द्वगीत
- रसवंती
- रेणुका
- हुंकार
- दिल्ली
- नीलकुसुम
- इतिहास के आँसू
- नीम के पत्ते
- सिपी और शंख
- परशुराम की प्रतिज्ञा
- सामधेनी, और
- कलिंग-विजय।
4. गद्य-साहित्य:
- मिट्टी की
- संस्कृति के चार अध्याय
- पंत, प्रसाद, गुप्त
- हिन्दी साहित्य की भूमिका
- अर्द्धनारीश्वर।
5. आलोचना:
- शुद्ध कविता की खोज में आदि।
महत्त्व:
कविवर ‘दिनकर’ का महत्त्व निस्संदेह है। वह काव्य, दर्शन, चिन्तन और राष्ट्र की दृष्टि से निश्चय ही उपयोगी सिद्ध हुआ है और होता रहेगा। उन परवर्ती रचनाकारों को ‘दिनकर’ जी विशेष रूप से मिल के पत्थर का काम करेंगे, जो प्रगतिवादी चेतना के आग्रही हैं। इस प्रकार ‘दिनकर’ का महत्त्व हमारे समाज और राष्ट्र के लिए सदैव प्रेरक रूप में बना रहेगा।
भू का त्रास हरो पाठ का सारांश
प्रश्न 1.
श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ विरचित कविता ‘भू का त्रास हरो’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
श्री रामधारी सिंह-विरचित कविता में भोगी-विलासी राजनेताओं और शासकों की निन्दा की गई है। दूसरी ओर ज्ञान, तप और त्याग की उपेक्षा के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। कवि इस प्रकार के तथ्यों पर प्रकाश डालना चाहा है। इस विषय में कवि का कहना है कि जब तक भोगी-विलासी और कुविचारी शासक प्रजा के नेता बने रहेंगे, तब तक ज्ञान, त्याग और तप का महत्त्वांकन नहीं होगा। भोजन-वस्त्र से हीन, दीन-हीन जीवन जीने वाले, हर प्रकार से उपेक्षा और अपमान का चूंट पीकर मानवता की चिन्ता करने वाले, कवि; पंडित, विज्ञान के जानकार, कलाकार, ज्ञानी और पवित्र-चरित्र का स्वाभिमान रखनेवाले की पहचान संसार जब तक नहीं करेगा, वह राजनेताओं-शासकों से भी अधिक उन्हें जब तक नहीं पूज्य मानेगा, तब तक यह धरती आग में पड़ी हुई अकुलाती रहेगी।
लाख कोशिश के बावजूद वह दुखों से निजात नहीं पाएगी। ऐसा इसलिए राजनेता और शासक तो केवल तलवार की ही भाषा समझते हैं। वह किसी प्रकार की रोक-टोक से नहीं रुकने वाला है। ऐसा इसलिए कि यह समाज ही अविचारी और मुर्ख है। यह तो अपनी कुल्हाड़ी से किसी की गर्दन काटने में बड़ा ही निष्ठुर (कठोर) है। यह बहुत मदान्ध है। इसलिए तो मैं ज्ञानियों से यह कहना चाहता हूँ कि अब तुम ज्ञानोपदेश बंद करके अपने हाथ में तलवार ले लो। अब तक इस धरती के जिस दुख को किसी से नहीं दूर किया, उसे अब तुम दूर कर दो।
भू का त्रास हरो संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
प्रश्न 1.
जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलायेंगे,
ज्ञान, त्याग, तप नहीं श्रेष्ठता का जब तक पद पायेंगे।
अशन-वसन से हीन, दीनता में जीवन धरनेवाले,
सहकर भी अपमान मनुजता की चिन्ता करनेवाले,
शब्दार्थ:
- भोगी – सुख सुविधाओं में डूबे हुए।
- भूप – राजा (राजनेता व प्रशासक)।
- अशन-वसन – भोजन और वस्त्र।
- दीनता – अभाव, गरीबी।
- धरनेवाले – धारण करने वाले।
- मनुजता – मनुष्यता।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सामान्य हिन्दी भाग-1’ में संकलित और महाकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा विरचित कविता ‘भू का त्रास हरो’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें कवि ने कुविचारी और सुख-सुविधाओं में डूबे हुए राजाओं (आजकल के राजनेताओं और प्रशासकों) के प्रति अपना क्रोध प्रकट करते हुए कहा है कि –
व्याख्या:
चूँकि आजकल भोगी-विलासी और सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं में डूबे हुए राजनेता और प्रशासक अधिक हो रहे हैं। इससे देश की जनता की नाना प्रकार की दुर्दशा हो रही है। इससे देश की स्थिति बिगड़ गई है। इसलिए यह ध्यान देने की बात है कि जब तक देश में इस प्रकार के भोगी-विलासी और अनेक प्रकार के सुख-सुविधाओं में डूबे हुए लोग जनता के नेता और प्रशासक बने रहेंगे, तब तक ज्ञान, त्याग और तप को न सम्मान मिलेगा और न महत्त्व।
भोजन-वस्त्र से हीन अर्थात् दाने-दाने को मोहताज और फटे-मैले कपड़ों से तन ढकने के लिए मजबूर, दीनता-हीनता की जिन्दगी जीने वाली तथा हर प्रकार की उपेक्षा-अपमान के घूट को पी-पीकर मानवता की रक्षा के लिए अड़ी हुई जनता की ओर ऐसे भोगी-विलासी राजनेताओं-प्रशासकों का ध्यान बिल्कुल जाता नहीं है। ऐसा इसलिए कि वे सुख-सुविधाओं में पड़कर इतने मदांध हो जाते हैं कि उन्हें सच्चाई दिखाई ही नहीं देती है।
विशेष:
- भाषा में ओज है।
- तत्सम शब्दावली है।
- प्रगतिवादी चेतना है।
- ‘त्याग तप’ और ‘अशन-घसन’ में अनुप्रास अलंकार है।
- यह अंश प्रेरक और भाववर्द्धक है।
पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
- प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में भोगी-विलासी राजनेताओं-प्रशासकों के कारण ज्ञानी और त्यागी व्यक्तियों की हो रही उपेक्षा का उल्लेख धारदार शब्दों के द्वारा हुआ है। तुकान्त शब्दावली और कथन को स्पष्टता प्रदान करने वाली भाषा निश्चय ही प्रभावशाली है। ‘त्याग-तप’ और ‘अशन-वसन’ में अनुप्रास अलंकार का चमत्कार है तो शैली ओजस्वी
2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य अद्भुत है। भोगी राजनेताओं-प्रशासकों की वास्तविकता को व्यक्त करने वाले भाव बिना किसी लाग-लपेट के हैं। इसीलिए विश्वसनीय हैं। विश्वसनीय होने के कारण हृदयस्पर्शी बन गए हैं।
पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न
- भोगी राजनेता-प्रशासक किसके श्रेष्ठता के बोधक हैं?
- आजकल राजनेताओं-प्रशासकों के दोष क्या हैं?
उत्तर:
- भोगी राजनेता-प्रशासक ज्ञान, त्याग और तप की श्रेष्ठता के पद के बोधक हैं।
- आजकल राजनेताओं-प्रशासकों के दोष हैं कि वे अनेक प्रकार के भोग-विलास और अनेक प्रकार की सुख सुविधाओं में पड़े हुए रहते हैं।
प्रश्न 2.
कवि, कोविंद, विज्ञान-विशारद, कलाकार, पंडित, ज्ञानी,
कनक नहीं, कल्पना, ज्ञान, उज्ज्वल चरित्र के अभिमानी,
इन विभूतियों को जब तक संसार नहीं पहचानेगा,
राजाओं से अधिक पूज्य जब तक न इन्हें वह मानेगा,
तब तक पड़ी आग में धरती, इसी तरह, अकुलायेगी,
चाहे जो भी करे, दुखों से छूट नहीं वह पायेगी।
थकी जीभ समझाकर, गहरी लगी ठेस अभिलाषा को,
भूप समझता नहीं और कुछ छोड़ खड्ग की भाषा को।
शब्दार्थ:
- कोविद – जानकार, पंडित, विशेषज्ञ।
- विज्ञान-विशारद – विज्ञान के जानकार।
- कनक – सोना।
- विभूति – दिव्य, अलौकिक शक्ति।
- ठेस – हृदय पर लगी चोट।
- अभिलाषा – इच्छा।
- खड्ग – तलवार।
प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें कवि ने महान चरित्रों के अनादर करने से होने वाली दुखद स्थिति पर प्रकाश डाला है। इस विषय में कवि का कहना है कि –
व्याख्या:
आजकल देश की दशा राजनेताओं और प्रशासकों के भोग-विलास और अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं में डूबे रहने के कारण बड़ी दुखद और चिन्ताजनक हो गई है। वह यह कि इनके कारण कवि, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, कलाकार, पंडित और ज्ञानी धनवान न होते हुए स्वच्छंद चिंतन करने वाले ज्ञान और पवित्र चरित्र के अभिमानी हैं। कहने का भाव यह है कि कवि, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, कलाकार, पंडित और ज्ञानी किसी प्रकार के धन-वैभव की परवाह न करते हुए अपने ज्ञान और पवित्र चरित्र का स्वाभिमान रखते हैं। इस प्रकार की अलौकिक शक्तियों की पहचान संसार नहीं करेगा, और जब तक इन्हें वह सुविधा-भोगी राजनेताओं और प्रशासकों से अधिक सम्मानित नहीं करेगा, तब तक यह धरती आग में पड़ी हुई अकुलाती ही रहेगी।
कहने का भाव यह है कि कवि, पंडित, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, कलाकार और ज्ञानी जनों का महत्त्व आज जिस तरह से घट रहा है, उस तरह से इस धरती (संसार) का सुख-चैन समाप्त होता जा रहा है। इसलिए चाहे कोई कुछ भी करे, इस धरती (संसार) को वह दुखों से निजात नहीं दिला सकता है। मान-सम्मान की अभिलाषा रखने वाले महाविभूतियों के हृदय पर उस समय गहरी चोट लगती है, जब सत्ता के मद में डूबे हुए शासक को समझा-समझाकर उनकी वाणी थक जाती है, लेकिन वे उनकी बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं देते हैं। यह इसलिए सत्ता और सुख-सुविधाभोगी प्रशासक और कुछ नहीं समझता है। वह तो तलवार की ताकत से ही अपनी सत्ता को सुरक्षित रखना जानता-समझता है।
विशेष:
- भाषा में तीव्रता है।
- तत्सम शब्दावली है।
- मुहावरों (आग में पड़ना, जी.भटकना, ठेस लगना और तलवार की भाषा समझना) के प्रयोग सटीक हैं।
- वीर रस का संचार है।
- ‘कवि कोविद’ और ‘विज्ञान विशारद’ में अनुप्रास अलंकार है।
- भावात्मक शैली है।
पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
- आज कौन किससे निरादृत हो रहा है और क्यों?
उत्तर:
1. प्रस्तुत गद्यांश में भोगी सत्ताधारियों के कारण निरादर को प्राप्त होने वाली विभूतियों के उल्लेख हैं। इसके साथ ही धरती की दुखद दशा के दोषी सत्ताधारियों के प्रति सीधा आक्रोश के भी स्वर हैं। इस प्रकार प्रस्तुत हुए इस पद्यांश के कथन को सीधी और सपाट भाषा के माध्यम से दर्शाने का प्रयास काबिलेतारीफ है। अनुप्रास अलंकार (कवि कोविद, और विज्ञान विशारद) के चमत्कार और वीर रस के संचार से प्रस्तुत पद्यांश की शैली ऐसी भावात्मक है, जो अधिक हृदयस्पर्शी और प्रेरक होकर अपना अनूठा प्रभाव दिखा रही है।
2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य यथार्थपूर्ण कथन की सजीवता और विश्वसनीयता से अधिक रोचक सिद्ध हो रहा है। भावों की तीव्रता, क्रमबद्धता और प्रासंगिकता की एक त्रिवेणी प्रवाहित हुई है, जो सरस, मर्मस्पर्शी और उत्साहवर्द्धक के रूप में फलित है। फलस्वरूप इसकी सार्थकता देखते ही बनती है।
3. आज कवि, कोविद, विज्ञान-विशारद, कलाकार, पंडित व ज्ञानी, जैसी विभूतियाँ सत्ता के मद में डूबे हुए और सुविधाभोगी शासकों से निरादृत हो रही है। यह इसलिए कि सत्ताधारी प्रशासक उनके हित-अनहित की कुछ भी चिन्ता नहीं करता है।
पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- धरती दुखों से छुटकारा कब पाएगी?
- ‘भूप समझता नहीं कुछ खड्ग की भाषा’ का आशय क्या है?
उत्तर:
- धरती दुखों से छुटकारा तब पाएगी जब संसार उज्ज्वल चरित्र वाले कवि, कलाकार और ज्ञानीजनों का मान-सम्मान भोगी प्रशासकों से बढ़कर करेगा।
- ‘भूप समझता नहीं और कुछ खड्ग की भाषा’ का आशय है-भोगी शासक केवल तलवार की ताकत से अपने को सुरक्षित रखता है।
प्रश्न 3.
रोक-टोक से नहीं सुनेगा, नृप-समाज अविचारी है,
ग्रीवाहार निष्ठुर कुठार का यह मदान्ध अधिकारी है।
इसीलिए तो मैं कहता हूँ, अरे ज्ञानियो खड्ग धरो,
हर न सका जिसको कोई भी, भू का यह तुम त्रास हरो।
शब्दार्थ:
- नृप-समाज – राजा समाज अर्थात् सत्ताधारी वर्ग।
- अविचारी – विचारहीन।
- ग्रीवाहार – गर्दन काटने वाला।
- कुठार – कुल्हाड़ी।
- मदान्ध – मद से अंधा।
- खड्ग – तलवार।
प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें कवि ने भोगी शासकों को सब सिखाने ज्ञानियों को तलवार उठाने का सुझाव दिया है। इस विषय में कवि का कहना है कि
व्याख्या:
सुख-सुविधाओं में डूबा हुआ और सत्ता के मद से अंधा बना हुआ शासक वर्ग ज्ञानीजनों की सीख पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं देता है। दुखी प्रजा के विरोध करने पर भी यह अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आता है। इसलिए यह तो वास्तव में विचारहीन है। यह सत्ता के मद से इतना अंधा हो चुका होता है कि गर्दन काटनेवाली कुल्हाड़ी ही इसके सुधार का एकमात्र उपाय है।
यह इसलिए भी इसका ही पात्र है। कवि का पुनः कहना है कि वह इसीलिए ज्ञानीजनों से अब कह रहा है कि ऐसे मदान्ध शासकों को सबक सिखाने के लिए उन्हें तलवार भी उठानी पड़े तो इसके लिए उन्हें हमेशा तैयार रहना चाहिए। इस तरह इस धरती पर फैले हुए दुख-अभाव को जो कोई भी हर न सका, उसे हरने के लिए उन्हें हर प्रकार से कमर कस लेनी चाहिए।
विशेष:
- सत्ता के मद में डूबे हुए शासक वर्ग की कड़ी निंदा की गई है।
- भाषा में गति और ओज है।
- प्रगतिवादी चेतना है।
- ‘दुख हरना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
- वीर रस का संचार हैं।
पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य लिखिए।
- उपर्युक्त पद्यांश में सत्ताधारी वर्ग के किन दुर्गुणों का उल्लेख हुआ है?
उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में सत्ताधारी के अवगुणों को समाप्त करने के लिए ज्ञानीजनों को तलवार धारण करने की सीख दी गई है। इसकी प्रस्तुति के लिए आया हुआ अनुप्रास अलंकार ‘रोक-टोक’ और ‘ग्रीवाहार निष्ठुर’ का चमत्कार प्रसंगानुसार है। वीर रस के संचार से भाषा में न केवल ताजगी आई है अपितु उत्साहवर्द्धकता नामक विशेषता भी जुड़ गई है। तत्सम शब्दों का चयन और उनकी उपयुक्तता कवि की अद्भुत प्रतिभा को व्यक्त कर रही है।
2. प्रस्तुत पद्यांश की भाव-योजना अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली है। सत्ता के मद में डूबे हुए शासक वर्ग के प्रमुख दुर्गुणों को तेज और संजीव भावों के द्वारा प्रस्तुत करना निश्चय ही अनूठा है। इस प्रकार इस पद्यांश के भावों में क्रमबद्धता और प्रासंगिकता दोनों ही ऐसी विशेषताएँ हैं, जो मन को छू लेती हैं।
3. उपर्युक्त पद्यांश में सत्ताधारी वर्ग के दो दुर्गुणों का उल्लेख हुआ है-विचारहीनता और मदान्धता।
पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- ज्ञानियों को तलवार उठाने के लिए कवि क्यों कहता है?
- ‘भू का त्रास’ क्या है?
उत्तर:
1. ज्ञानियों को तलवार उठाने के लिए कवि कहता है। यह इसलिए कि सत्ता के मद में डूबे हुए शासक तलवार की ही ताकत से अपनी सत्ता को सुरक्षित – रखता है। इसलिए वह तलवार की ही भाषा को समझता है। फलस्वरूप ऐसे शासक को सबक सिखाने के लिए ज्ञानियों को तलवार भी उठानी पड़े तो इसके लिए इन्हें तैयार रहना चाहिए।
2. भू का त्रास’ यह है कि चरित्रवान कवियों, कलाकारों और ज्ञानियों से कहीं अधिक सत्ता से मदांध शासकों को महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इससे इस धरती पर अनेक प्रकार के दुख, अशान्ति और असुरक्षा का वातावरण फैलता जा रहा है।