MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी (आत्मकथा, महात्मा गाँधी)

धर्म की झाँकी पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

धर्म की झाँकी लघु-स्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आत्मबोध और आत्मज्ञान को गांधीजी ने किसका उदार अर्थ माना है?
उत्तर:
आत्मबोध और आत्मज्ञान को गांधीजी ने धर्म का उदार अर्थ माना है।

प्रश्न 2.
गांधीजी के मन पर किस चीज का गहरा असर पड़ा?
उत्तर
गांधीजी के मन पर रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा।

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प्रश्न 3.
गांधीजी के अनुसार किस ग्रंथ के पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है?
उत्तर:
गांधीजी के अनुसार भागवत ग्रंथ के पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
गांधीजी ने अपने इक्कीस दिन के उपवास-काल में किन महोदय से भागवत कथा सुनी थी?
उत्तर:
गांधीजी ने अपने इक्कीस दिन के उपवास-काल में भारत-भूषण पंडित मदनमोहन मालवीय के शुभ-मुख से भागवत कथा सुनी थी?

प्रश्न 5.
गांधीजी का भूत-प्रेत का भय कैसे दूर हुआ?
उत्तर:
गांधीजी का भूत-प्रेत का भय अपनी धाय रम्भा के द्वारा राम-नाम के जप नामक अमोघ शक्ति से दूर हुआ।

धर्म की झाँकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गांधीजी के अनुसार धर्म का अर्थ क्या है?
उत्तर:
गांधीजी के अनुसार धर्म का अर्थ उदा है धर्म का यह भी अर्थ है-आत्मबोध, आत्मज्ञान।

प्रश्न 2.
गांधीजी के भीतर रामायण-श्रवण और रामायण के प्रति प्रेम की बुनियाद किस घटना ने रखी थी?
उत्तर:
गांधीजी के भीतर रामायण-श्रवण और रामायण के प्रति बुनियाद पोरबन्दर में घटी एक घटना ने रखी थी। उस समय वे अपने पिताजी के साथ रामजी के मंदिर में रोज रात के समय बीलेश्वर लाधा महाराज से रामायण सुनते थे। वे एक पंडित थे। वे रामचन्द्रजी के परम भक्त थे। उनके बारे में कहा जाता था कि उन्हें कोल की बीमारी हुई, तो उसका इलाज करने के बदले उन्होंने बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेल-पत्र लेकर कोढ़ वाले अंग पर बांधे, और केवल रामनाम का जप शुरू किया। अन्त में उनका कोढ़ जड़-मूल से नष्ट हो गया। यह बात सच हो या न हो, हम सुनने वालों ने तो सच ही मानी।

यह भी सच है कि जब लाधा महाराज ने कथा शुरू की, तब उनका शरीर बिल्कुल निरोग था। लाधा महाराज का कंठ मधुर था। वे दोहा-चौपाई गाते और उनके अर्थ को समझाते थे। स्वयं उसके रस में डूब जाते थे और सुननेवालों को भी उसमें डुबो देते थे। गांधीजी का कहना है कि वे उस समय लगभग तेरह साल के थे। फिर भी उन्हें याद है कि लाधा महाराज के पाठ से उन्हें खूब आनंद आता था। यह राम-नाम श्रवण रामायण के प्रति उनके अत्यधिक प्रेम की बुनियाद है। आज वे इसीलिए तुलसीदास की रामायण को भक्ति मार्ग का सर्वोत्तम ग्रंथ मानते हैं।

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प्रश्न 3.
गांधीजी की दृष्टि में सर्वधर्म समभाव का उदय किन प्रसंगों की प्रेरणा से हुआ था?
उत्तर:
राजकोट में गांधीजी को अनायास ही सब सम्प्रदायों के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा मिली। उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रत्येक समुदाय का आदर करना सीखा, क्योंकि उनके माता-पिता वैष्णव मन्दिर में, शिवालय में और राम-मंदिर में भी जाते और अपने भाइयों को भी साथ ले जाते या भेजते थे। फिर उनके पिताजी के पास जैन धर्माचार्यों से भी कोई-न-कोई हमेशा आते रहते थे। उनके पिताजी उन्हें दान भी देते थे।

वे उनके पिताजी के साथ धर्म और व्यवहार की बातें किया करते थे। इसके सिवा उनके पिताजी के मुसलमान और पारसी मित्र भी थे। वे अपने-अपने धर्म की चर्चा करते और पिताजी उनकी बातें सम्मानपूर्वक और रसपूर्वक सुना करते थे। उनके पिताजी के बीमार होने के कारण उनकी देखभाल हेतु ऐसी चर्चा के समय वे अक्सर हाजिरें रहते थे। इस सारे वातावरण का प्रभाव उन पर यह पड़ा कि उनमें सब धर्मों के लिए समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी भाव विस्तार/ पल्लवन

प्रश्न.

  1. ‘बचपन में जो बीज बोया गया, वह नष्ट नहीं हुआ’ पंक्ति में विचार का विस्तार कीजिए?
  2. “आज मैं यह देख सकता हूँ, कि भागवत एक ऐसा ग्रंथ है, जिसके पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है।”
  3. “बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।”

उत्तर:

1. उपर्युक्त पंक्ति महात्मा गाँधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से लिया गया है। इसमें गाँधीजी ने यह कहना चाहा है कि बचपन के संस्कार बड़े ही मजबूत और महत्त्वपूर्ण होते हैं। वे बचपन में अंकुरित अवश्य होते हैं, लेकिन उनके प्रभाव बड़े ही दूरगामी होते हैं। इस तथ्य को समझकर और इसे ध्यान में बच्चों के ऐसे संस्कारों को महत्त्व देना चाहिए जो हर प्रकार से सुन्दर, सुखद और लाभकारी हों। इसके विपरीत संस्कार तो न केवल बच्चों के लिए हानिकारक होते हैं अपितु दूसरों को भी। अगर बच्चों के संस्कार अच्छे होंगे, तो उनका बचपन खुशहाल होगा और उनका शेष जीवन भी। उससे आस-पास का वातावरण भी लाभान्वित होगा। इसके विपरीत बच्चों के बुरे संस्कार उनके बचपन और शेष जीवन को हानि पहुँचाए बिना नहीं रहेगा। यही नहीं उससे आस-पास का वातावरण भी दुखी बना रहेगा। इस प्रकार बचपन में बोया गया बीज कभी नष्ट नहीं होता है।

2. उपर्युक्त कथन महात्मा गांधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से है। इसमें महात्मा गांधी ने इस बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि भागवत एक महान ग्रंथ ही नहीं है, अपितु वह एक सरस, भाववर्द्धक और धार्मिक ग्रंथ भी है। वह मुख्य रूप से एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें धार्मिक रस प्रवाहित होता है। इस तथ्य की सच्चाई तभी ज्ञात होती, जब कोई धार्मिक व्यक्ति अपने तन-मन से उसका ऐसा मधुर, भावपूर्ण और सरस पाठ करे, जिसे सुनकर लोग बाग-बाग हो उठे। उनकी धार्मिक भावधारा उमड़कर प्रवाहित होने लगे।

3. ‘उपर्युक्त वाक्य महात्मा गाँधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से उद्धृत है। इस वाक्य के द्वारा गाँधीजी ने यह कहना चाहा है कि बचपन की आदतें जल्दी नहीं जाती हैं। वे बचपन के बाद युवावस्था और उसके बाद भी कुछ-न-कुछ अवश्य बनी रहती हैं। परिस्थितियाँ टकराकर भी अपनी जड़ें बनाए रहती हैं। वे आदतें चाहे अच्छी हों या बुरी, लेकिन उनके प्रभाव बहुत समय तक होते हैं। इसलिए बच्चों के शुभ-अशुभ संस्कारों की जानकारी न रखने की भूल बड़ी दुखद, होती है। क्योंकि अगर शुभ संस्कारों की जगह अशुभ संस्कार किसी प्रकार से हानिप्रद होते हैं तो वे बच्चों का सुनहरा बचपन छीन लेते हैं। फलस्वरूप उनका आगामी जीवन अंधकारमय हो जाता है। इसके विपरीत शुभ संस्कारों से न केवल बचपन जगमगा उठता है, अपितु आगामी जीवन भी सुगंधित होकर लोकप्रिय बन जाता है। इस आधार पर यह कहना बिल्कुल ही सच है-‘बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।’

धर्म की झाँकी भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए –
भूत-प्रेत, राम-नाम, नित्यपाठ, धर्म-रस, राम-रस।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिएउदार, आदर, ऊपर, श्रद्धा।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को संधियुक्त करते हुए संधि का नाम बताइए –

  1. वात + आवरण
  2. सर्व + उत्तम
  3. शिव + आलय
  4. राम + अयण।

उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखते हुए वाक्य बनाइए –
भूत, जड़, भेद, फल
उत्तर:
भूत – अतीत-हमें अपना भूत नहीं भूलना चाहिए।
भूत – मृतात्मा-मैं भूतों से नहीं डरता हूं।

जड़ – मूल-बरगद की जड़ बहुत दूर तक फैली होती है।
जड़ – मूर्ख-जड़बुद्धि वालों से सावधान रहना चाहिए।

भेद – रहस्य-इसका कोई भेद नहीं जान सकता है।
भेद – अंतर-सही और गलत में भेद जानना चाहिए।

फल – परिणाम-मेहनत का फल मीठा होता है।
फल – पेड़ का फल-सेव एक स्वास्थ्यवर्धक फल है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध रूप में लिखिए –

  1. वे दोहा-चौपाई को गाते और दोहा-चौपाई का अर्थ समझाते थे।
  2. पिता भी नित्य प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे।
  3. पिताजी रसपूर्वक उनकी बातें सम्मानपूर्वक सुना करते थे।
  4. बचपन में शुभ-अशुभ संस्कार में पड़े हुए बहुत गहरे जड़ जमाते हैं।

उत्तर:

  1. वे दोहा-चौपाई गाते और अर्थ समझाते थे।
  2. पिताजी प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे।
  3. पिताजी उनकी बातें सम्मानपूर्वक और रसपूर्वक सुना करते थे।
  4. बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।

धर्म की झाँकी योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
अपने जीवन की प्रमुख दो घटनाओं को आधार बनाकर उन्हें आत्मकथात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
गांधीजी की ‘मेरी आत्मकथा’ पुस्तक को पढ़कर उनके प्रेरक प्रसंगों की सूची बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
सभी धर्मों का मूल मानवता है। आप जिस धर्म या संप्रदाय से हैं, उनके मूल गुणों को लिखिए और अन्य धर्मों के मूल गुणों को समझिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
“शिक्षा केवल विद्यालय से नहीं, वरन् वातावरण से भी प्राप्त होती है।” वाद-विवाद प्रतियोगिता के माध्यम से तर्क प्रस्तुत कीजिए अथवा उपर्युक्त विषय पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

धर्म की झाँकी परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

धर्म की झाँकी लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गाँधीजी को धर्म की शिक्षा कहाँ से मिली?
उत्तर:
गाँधीजी को धर्म की शिक्षा उनके आस-पास के वातावरण से मिली।

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प्रश्न 2.
गाँधीजी का मन हवेली से क्यों उदासीन हो गया?
उत्तर:
गाँधीजी का मन हवेली से उदासीन हो गया। यह इसलिए कि हवेली में अनीति की बातें होती थीं। उसे सुनकर उनका मन उदासीन हो गया।

प्रश्न 3.
गाँधीजी को रामायण के पाठ में क्यों खूब रस आता था?
उत्तर:
गाँधीजी को रामायण के पाठ में खुब रस आता था। यह इसलिए कि रामायण के पाठ को लाधा महाराज बड़ी सरसता से अर्थ समझाकर करते थे। उसे सुनने वाले स्वयं को उसी में खो देते थे।

प्रश्न 4.
किससे गाँधीजी में सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया?
उत्तर:
अपने वातावरण के प्रभाव से गांधीजी में सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गाँधीजी को हवेली से क्या मिला?
उत्तर:
गाँधीजी को जो हवेली से मिला, वह उन्हें अपनी धाय रेम्भा से मिला। रम्भा उनके परिवार की पुरानी नौकरानी थी। उसका प्रेम उन्हें आज भी याद है। उन्हें भूत-प्रेत आदि का डर लगता था। रम्भा ने उन्हें समझाया कि इसकी दवा रामनाम है। उन्हें तो रामनाम से भी अधिक श्रद्धा रम्भा पर थी, इसलिए बचपन में भूत-प्रेतादि के भय से बचने के लिए उन्होंने राम-नाम जपना शुरू किया। यह जप बहुत समय तक नहीं चला। पर बचपन में जो बीज बोया गया, वह नष्ट नहीं हुआ। आज रामनाम उनके लिए अमोघ शक्ति है। वे मानते हैं कि उसके मूल में रम्भाबाई का बोया हुआ बीज है।

प्रश्न 2.
गाँधीजी के द्वारा रामायण कंठाग्र करने के कारण बताइए।
उत्तर:
गाँधीजी के चाचाजी के एक लड़के ने जो रामायण के भक्त थे, उनके दो भाइयों को राम-रक्षा का पाठ सिखाने की व्यवस्था की। उन्होंने उसे कण्ठाग्र कर लिया और स्नान के बाद उसके नित्यपाठ का नियम बनाया। जब तक पोरबंदर में रहे, यह नियम चला। राजकोट के वातावरण में यह टिकं न सका। इस क्रिया के प्रति भी खास श्रद्धा नहीं थी। अपने बड़े भाई के लिए मन में जो आदर था, उसके कारण और कुछ शुद्ध उच्चारणों के साथ राम-रक्षा का पाठ कर पाते हैं-इस अभिमान के कारण पाठ चलता रहा।

प्रश्न 3.
रामायण का पारायण सुनने वालों ने क्या बात सच मानी?
उत्तर:
गाँधीजी के पिताजी रामजी के मंदिर में रोज रात के समय रामायण सुनते थे। सुनाने वाले बीलेश्वर के लाधा महाराज नामक एक पंडित थे। वे रामचन्द्र जी के परम भक्त थे। उनके बारे में कहा जाता था कि उन्हें कोढ़ की बीमारी हुई, तो उसका इलाज करने के बदले उन्होंने बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेलपत्र लेकर कोढ़ वाले अंग पर बांधे, और केवल रामनाम का जप शुरू हुआ। अन्त में उनका कोढ़ जड़-मूल से नष्ट हो गया। यह बात सच हो या न हो, रामायण का पारायण सुनने वालों ने तो सच ही मानी।

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प्रश्न 4.
मालवीय जी से भागवत सुनकर गांधीजी पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
पंडित मदन मोहन मालवीय जी से भागवत सुनकर गांधीजी पर बड़ी भारी प्रतिक्रिया हुई। उन्हें उस समय यह ख्याल हुआ कि बचपन में उनके समान भगवत्-भक्त के मुंह से भागवत सुनी होती, तो उस पर उसी उमर में मेरा प्रगाढ़ प्रेम हो जाता। बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं, इसे मैं खूब अनुभव करता हूँ; और इस कारण उस उम्र में मुझे कई उत्तम ग्रन्थ सुनने का लाभ नहीं मिला, सो अब अखरता है।

प्रश्न 5.
‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा के केन्द्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपने बाल और किशोर जीवन के उन कतिपय प्रसंगों को महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा के इस अंश में प्रस्तुत किया है, जिन्होंने उनके परवर्ती जीवन पर प्रभाव डाला है। राम-नाम के प्रति उनकी दृढ़ आस्था ने उन्हें निर्भीकता प्रदान की। भारतीय महाकाव्यों के श्रवण-पठन ने उन्हें संस्कारी जीवन जीने की प्रेरणा दी और उनके उदार पारिवारिक वातावरण ने उन्हें सर्वधर्म समभाव की दृष्टि प्रदान की। आत्मकथा के इस हिस्से में महात्मा गांधी की स्पष्टता, आत्मीयता और सहजता का अनुभव किया जा सकता है।

धर्म की झाँकी लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को गुजरात राज्य के पोरबन्दर नगर में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था.। उनके पिता का नाम करमचन्द और माता का नाम पुतलीबाई था। उनकी आरम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई। अपनी आरम्भिक शिक्षा को समाप्त करके अपनी उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ पर उन्होंने लगातार अध्ययन करके बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त कर ली। इसके बाद स्वेदश लौट जाए।

स्वदेश आकर महात्मा गाँधी वकालत करने लगे। वे एक मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ पर उन्होंने भारतीयों और अपने साथ अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार और दुर्व्यवहार को देखकर अंग्रेजों का विरोध किया। इसके लिए उन्होंने अहिंसात्मक आन्दोलन चलाए। इसके बाद वे स्वदेश लौट आए। स्वदेश आकर उन्होंने श्री गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मान लिया। उनकी देख-रेख में उन्होंने देश की आजादी के लिए देश के विभिन्न भागों में सत्याग्रह किए। उन्होंने अपने सत्याग्रह और असहयोग आन्दोलन को आजादी के लिए अस्त्र-शस्त्र के रूप में प्रयोग किया। उनके इस अथक प्रयास से 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हो गया। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

रचनाएँ:
‘हिन्दस्वराज्य’ सर्वोदय (रस्किन की ‘अन टु दि लास्ट’ पुस्तक का अनुवाद) दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर अत्याचार का वर्णन करने वाली पुस्तक ‘हरी पुस्तक’ आदि गाँधीजी की महत्त्वपूर्ण पुस्तकें हैं। उन्होंने ‘यंग इण्डिया’ और ‘हरिजन’ नामक पत्र भी निकाले। उन्होंने ‘सत्य के प्रयोग’ नामक महत्त्वपूर्ण आत्मकथा भी लिखी।

महत्त्व:
गाँधीजी के साहित्य का महत्त्व निर्विवाद रूप से है। उनका साहित्य साम्प्रदायिक सद्भाव का पक्षपाती है। वह निम्न तथा पिछड़े वर्ग के विकास का प्रेरक है। उसमें आत्मनिर्भरता का अद्भुत पाठ है। परस्पर मेल-मिलाप की सीख देने वाला वह एक बेजोड़ साहित्य है।

धर्म की झाँकी पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर:
महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा में अनेक प्रेरक घटनाओं प्रसंगों का उल्लेख है। महात्मा गाँधी का कहना है कि उन्हें छह या सात साल से सोलह साल तक की शिक्षा में धर्म की शिक्षा नहीं मिली। धर्म अर्थात् आत्मबोध, आत्मज्ञान। हवेली का वैभव उन्हें अच्छा नहीं लगा। उसके प्रति उदासीन हो गए। उन्हें वहाँ की रम्भा की याद आज भी है। वह उनके परिवार की पुरानी नौकरानी थी। उसने उन्हें भूत-प्रेतादि के भय से बचाने के लिए राम-नाम जपने का मन्त्र दिया था। आज भी उनके लिए यह अमोघ शक्ति है। उन्होंने अपने चाचाजी के एक लड़के से राम-रक्षा का पाठ सीख कर नियमित रूप से पाठ करके उसे कंठाग्र कर लिया। पोरबंदर में यह पाठ नियमित रूप से चलता रहा, लेकिन राजकोट में नहीं।

गाँधीजी के मन पर रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा। उनके बीमार पिताजी पोरबंदर के रामजी के मन्दिर में रात के समय बीलेश्वर के लाधा महाराज नामक पण्डित से रामायण सुनते थे। वे रामचन्द्र के इतने बड़े भक्त थे कि उन्होंने अपनी कोढ़ की बीमारी को बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेल-पत्र को कोढ़ वाले अंगों पर बाँध देते थे। फिर राम नाम का जप करते थे। इससे उनका कोढ़ बिलकुल ठीक हो गया। उनका कण्ठ इतना मीठा था कि जब वे दोहा-चौपाई गाकर अर्थ समझाते थे तो उससे श्रोता रसमग्न हो जाते थे। उससे वे रामायण के प्रति अधिक लीन हो गए। फलस्वरूप वे तुलसी के रामायण को भक्तिमार्ग का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ मानते हैं।

वे राजकोट आए तो रामायण नहीं, एकादशी के दिन भागवद् जरूर पढ़ी जाती थी। उसे सुनने पर उन्हें रामायण जैसा आनन्द नहीं आया। इसलिए उन्होंने यह मान लिया कि भागवद् ग्रन्थ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता हैं उन्होंने अपने उपवास के दौरान मदन मोहन मालवीय के मूल संस्कृत के कुछ अंश सुने। उससे उन्हें यह पश्चाताप हुआ कि अगर वे बचपन में ऐसा सुने होते तो उस पर उस समय प्रगाढ़ प्रेम हो जाता।

राजकोट में गाँधी को सभी सम्प्रदायों के प्रति एक समान भाव रखने की शिक्षा मिली। इससे उन्होंने सभी सम्प्रदायों के प्रति सम्मान की भावना रखना सीखा। ऐसा इसलिए भी कि उनके माता-पिता उन्हें और उनके भाइयों को अपने साथ वैष्णव मन्दिर में, शिवालय में और राम-मन्दिर ले जाते थे या किसी के साथ भेजते थे। गाँधीजी के पिताजी के पास जैन धर्माचार्य आया करते थे। इनके पिताजी उन्हें दान देते थे और वे उनके साथ धर्म-व्यवहार पर चर्चा करते थे। इनके पिताजी के पारसी और मुसलमान मित्र उनसे अपने धर्म की चर्चा करते थे। वे उसे बड़े आदर से सुनते थे। इससे उनमें सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
छह या सात साल से लेकर सोलह साल की उमर तक मैंने पढ़ाई की, पर स्कूल में कहीं भी धर्म की शिक्षा नहीं मिली। यों कह सकते हैं कि शिक्षकों से जो आसानी से मिलना चाहिए था, नहीं मिला। फिर भी वातावरण से कुछ-न-कुछ तो मिलता ही रहा। यहाँ धर्म का उदार अर्थ करना चाहिए। धर्म अर्थात् आत्मबोध, आत्मज्ञान। मैं वैष्णव सम्प्रदाय में जन्मा था, इसलिए हवेली में जाने के प्रसंग बार-बार आते थे, पर उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई। हवेली का वैभव मुझे अच्छा नहीं लगा। हवेली में चलने वाली अनीति की बातें सुनकर मन उसके प्रति उदासीन बन गया। वहाँ से मुझे कुछ भी न मिला।

शब्दार्थ:

  • उदार – दयालु, भला।
  • आत्मबोध – आत्मा का ज्ञान, स्वयं को जानना।
  • अनीति – दुराचार, दुष्टता, अनैतिकता।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने धर्म के अर्थ को बतलाने का प्रयास करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत छह या सात साल की उम्र से की थी। इस उम्र से लेकर वे सोलह साल तक लगातार पढ़ते रहे। लेकिन यह ध्यान देने . की बात है कि इस दौरान उन्हें किसी भी स्कूल या कॉलेज से धर्म की शिक्षा नहीं प्राप्त हुई। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि धर्म शिक्षा का जो एक आवश्यक अंग होता है। उसे शिक्षकों ने छोड़ दिया। इस तरह की अपनी शिक्षा के दौरान धर्म का पाठ न पढ़ सके। इसके बावजूद उन्हें अपने आस-पास के वातावरण से जो कुछ प्राप्त हुआ, उसमें धर्म-शिक्षा भी थी। उससे उन्होंने अपने जीवन में बहुत सीखा। उससे बहुत कुछ हासिल भी किया।

गाँधीजी का पुनः कहना है कि धर्म का अर्थ खासतौर से उदार होना चाहिए। जिस धर्म में उदारता, दयालुता, परोपकारिता और परहित चिन्तन की भावना नहीं है, वह धर्म सच्चा नहीं हो सकता। धर्म से अभिप्राय आत्म-बोध अर्थात् अपना अनुभव। धर्म का एक दूसरा भी अर्थ होता है-आत्मज्ञान, अर्थात् आत्मा का ज्ञान, अपने आप को जान लेना, समझ लेना। गाँधीजी का स्वयं के विषय में यह कहना है कि वैष्णव सम्प्रदाय में पैदा हुए थे। यही कारण था, उन्हें हवेली में जाने की बात बार-बार आती थी। लेकिन इसका उनके मन में कोई लगाव नहीं था और न कोई श्रद्धा ही हुई थी।

इसके कई कारणों में से कुछ कारण इस प्रकार थे-हवेली की साधन-सम्पन्नता उन्हें आकर्षित न कर सकी। हवेली का वाताबरण उन्हें ठीक नहीं लगता था। वहाँ की बातचीत बड़ी ही अनैतिक और असभ्य होती थी। इससे उनका मन नहीं लगा। इस प्रकार उन्हें वहाँ पर ऐसी कोई चीज नहीं दिखाई दी, जिससे वे आकर्षित हो सकें या कुछ प्राप्त कर सकें।

विशेष:

  1. भाषा सरल और सुबोध है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. धर्म के अर्थ और स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  4. वाक्य का गठन अर्थपूर्ण है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. विद्यार्थी जीवन में महात्मा गाँधी को क्या नहीं प्राप्त हुआ?
  2. धर्म के क्या-क्या अर्थ हैं?

उत्तर:

  1. विद्यार्थी जीवन में महात्मा गाँधी को धर्म क्या होता है? इसकी शिक्षा उन्हें प्राप्त नहीं हुई।
  2. धर्म के कई अर्थ हैं-उदारता, आत्मबोध, आत्मज्ञान आदि।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. महात्मा गाँधी को किससे क्या नहीं मिला?
  2. हवेली के प्रति गाँधीजी को क्यों अरुचि हो गई थी?

उत्तर:

1. महात्मा गाँधी को अपने शिक्षकों से धर्म की शिक्षा नहीं मिली।

2. हवेली के प्रति गाँधीजी को अरुचि हो गई थी। यह इसलिए कि –

  • हवेली की साधन-सम्पन्नता उन्हें अनुचित लगती थी।
  • हवेली में होने वाली बातें अनैतिक होती थीं।
  • हवेली से उन्हें कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ।

प्रश्न 2.
जब लाधा महाराज ने कथा शुरू की, तब उनका शरीर विल्कुल नीरोग था। लाधा महाराज का कंठ मीठा था। वे दोहा-चौपाई गाते और अर्थ समझाते थे। स्वयं उसके रस में लीन हो जाते थे और श्रोताजनों को भी लीन कर देते थे। उस समय मेरी उम्र तेरह साल की रही होगी, पर याद पड़ता है कि उनके पाठ में मुझे खूब रस आता था। यह रामायण-श्रवण रामायण के प्रति मेरे अत्यधिक प्रेम की बुनियाद है। आज मैं तुलसीदास की रामायण को भक्ति-मार्ग का सर्वोत्तम ग्रन्थ मानता हूँ।

शब्दार्थ:

  • कथा – रामायण की कथा।
  • लीन हो जाते थे – डूब जाते थे।
  • श्रोताजनों – सुनने वालों।
  • श्रवण – सुनना।
  • बुनियाद – आरम्भ, जड़, नींव, आधार।
  • सर्वोत्तम – सर्वश्रेष्ठ।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने तुलसीकृत रामायण के प्रति अपनी श्रद्धा-भावना को व्यक्त करने का प्रयास किया है। इस विषय में गाँधीजी का कहना है कि –

व्याख्या:
उनके मन पर तुलसीकृत रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा है। लाधा महाराज नामक एक पण्डित थे। उन्होंने रामायण की कथा और रामनाम के जप से अपने कोढ़ग्रस्त शरीर को ठीक कर लिये। उन्होंने जब कथा आरम्भ की, तब वे कोढ़ी नहीं थे। वे उस समय बिलकुल स्वस्थ और निरोग थे। उस समय उनका कण्ठ बहुत मधुर और सरस था। इससे वे रामायण के दोहा-चौपाई का सरस और मधुर स्वर निकालते थे। फिर उनके अर्थ और व्याख्या खूब तन-मन से किया करते थे। इस प्रकार वे उसमें ‘पूरी तरह से डूब जाते थे। फलस्वरूप सुनने वाले भी उसी में डूबकर अपनी सुध खो देते थे।

गाँधी जी का पुनः कहना है कि वे लाधा महाराज द्वारा शुरू की गई इस प्रकार की कथा को बड़े ही ध्यान देकर सुनते थे। वे उस समय लगभग तेरह साल के थे। फिर भी उन्हें उनके द्वारा किए गए रामायण के पाठ से बड़ा ही आनन्द आता था। इस प्रकार रामायण की कथा को सुनकर उसके प्रति उनकी बहुत अधिक श्रद्धा की शुरुआत थी। यही कारण है कि वे आज भी तुलसीकृत रामायण के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं। उसे वे भक्तिमार्ग के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ के रूप में देखते भी हैं।

विशेष:

  1. भाषा सरल शब्दों की है।
  2. आत्मकथात्मक शैली है।
  3. तुलसीकृत रामायण के प्रति लेखक की श्रद्धा भावना व्यक्त हुई है।
  4. तुलसीकृत रामायण का महत्त्वांकन किया गया है।
  5. यह अंश प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. लाधा महाराज कौन थे?
  2. लाधा महाराज के कथा कहने की खूबी क्या थी?

उत्तर:

1. लाधा महाराज एक पण्डित थे। वे रामचन्द्र जी के परम भक्त थे।

2. लाधा महाराज के कथा कहने की बहुत बड़ी खूबी थी। उनका कण्ठ बहुत मधुर और सरस था। वे दोहा-चौपाई को मधुर स्वरों से गा-गाकर उनके अर्थ और भावार्थ को अच्छी तरह से समझाते थे। वे उसमें डूब जाते थे। यही नहीं अपनी कथा-कहने । की शैली से सुनने वालों को भी उसमें डूबा देते थे।

गाद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. गाँधीजी को कैसे रामायण के प्रति अत्यधिक प्रेम उत्पन्न हो गया?
  2. गाँधी जी तुलसीदास की रामायण को किस रूप में देखते हैं?

उत्तर:

  1. गाँधीजी को रामायण को सुनने से रामायण के प्रति अत्यधिक प्रेम उत्पन्न हो गया?
  2. गाँधीजी तुलसीदास की रामायण को भक्ति मार्ग के सर्वोत्तम ग्रन्थ के रूप में देखते हैं।

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प्रश्न 3.
भागवत एक ऐसा ग्रन्थ है जिसके पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है। मैंने तो उसे गुजराती में बड़े चाव से पढ़ा है। लेकिन इक्कीस दिन के अपने उपवास काल में भारत-भूषण पण्डित मदनमोहन मालवीयजी के शुभ मुख से मूल संस्कृत के. कुछ अंश जब सुने तो ख्याल हुआ कि बचपन में उनके समान भगवद्-भक्त के मुँह से भागवत सुनी होती, तो उस पर उसी उमर में मेरा प्रगाढ़ प्रेम हो जाता। बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं, इसे मैं खूब अनुभव करता हूँ; और इस कारण उस उमर में मुझे कई उत्तम ग्रन्थ सुनने का लाभ नहीं मिला, सो अब अखरता है।

शब्दार्थ:

  • चाव – रुचि, शौक।
  • मुख – मुँह।
  • मूल – आरंभ, आदि, आधार, नींव।
  • ख्याल – ध्यान।
  • प्रगाढ़ – अत्यधिक, गहरा।
  • अखरता – अफ़सोस होता।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें गांधी जी ने भागवत धर्मग्रंथ की विशेषता बतलाने का प्रयास किया है। इस विषय में गांधीजो का कहना है कि –

व्याख्या:
भागवत साधारण धर्मग्रंथ नहीं है। वह तो एक ऐसा असाधारण ग्रंथ है, जिसके नियमित पाठ से धार्मिक भावों को प्रवाहित करके जीवन को महान बनाया जा सकता है। गांधीजी का यह स्पष्ट कहना है कि उन्होंने तो इस धर्मग्रंथ को गुजराती भाषा में अनुवाद के माध्यम से बड़ी रुचि के साथ पढ़ा था। फिर उस पर गहराई से मनन भी किया था। यह ध्यान देने की बात है कि अपने इक्कीस दिनों के लगातार उपवास के दौरान तो उन्होंने इसे और रुचि के साथ समझने का प्रयास किया था। उस समय उनके लिए एक वह सुवअसर प्राप्त हुआ था।

जब भारत-भूषण पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने अपने मुखारविंद से इसके कुछ अंश को मूल संस्कृत में सुना। उससे उन्हें यह पश्चाताप हुआ कि अगर वे इसे अपने बचपन में इस तरह सुने होते, तो उसी समय ही उन्हें इससे अत्यधिक लगाव हो गया होता। इस तरह उनका पिछला समय न तो बर्बाद होता और न उन्हें इस तरह से पछताना पड़ता। सच में बचपन में जो भी आदत, चाहे अच्छी हो या बुरी पड़ जाती है, वह पूरे जीवन में स्थायी रूप से हो जाती है। यही कारण है कि उस समय के ऐसे-ऐसे श्रेष्ठ ग्रंथों को सुनने का लाभ नहीं उठा पाए, जिसके लिए उन्हें आज भी बहुत पछताना पड़ता है।

विशेष:

  1. भाषा में सरलता है।
  2. भागवत का महत्त्वांकन किया गया है।
  3. आत्मकथात्मक शैलो है।
  4. बचपन को जोवन की नींद के रूप में माना गया है।
  5. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. भागवत्कैसा ग्रंथ है?
  2. मालवीय जी क्या थे?

उत्तर:

  1. भागवत् ग्रंथ एक ऐसा ग्रंथ है, जिसके पास से धर्म का रसप्रवाहित होता है।
  2. मालवीय जी भगवद्-भक्त थे। वे भागवत् मोहक और मधुर स्वरों में पाठ करतेथे।

प्रश्न.

  1. बचपन के संस्कार कैसे होते हैं?
  2. गांधीजी को क्या अखरता है?

उत्तर:

  1. बचपन के संस्कारों की जड़ें गहरी होती हैं। वे बाद में जीवन में अपना प्रभाव किसी-न-किसी प्रकार से अवश्य डालती हैं।
  2. गांधीजी को अपने बचपन में कई उत्तम ग्रंथों को सुनने का लाभ नहीं मिला। वही अब उन्हें अखरता है।

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