MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय
श्वसन और गैसों का विनिमय NCERT प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जैव क्षमता क्या है ? इसका महत्व बताइए।
उत्तर:
यह वायु का वह अधिकतम आयतन है, जिसे व्यक्ति एक बार में नि:श्वसन के दौरान ग्रहण और निःश्वसन के दौरान त्याग सकता है। यह नर में 4,500 मिली. तथा मादा में 3,000 मिली. के बराबर होता है। महत्व-चिकित्सकों के द्वारा फेफड़ों की जैव क्षमता के आधार पर फेफड़ों में असामान्यता या बीमारी का पता लगाया जाता है।
प्रश्न 2.
सामान्य निःश्वसन के उपरांत फेफड़ों में शेष वायु के आयतन को बताइए।
उत्तर:
सामान्य निःश्वसन के उपरांत फेफड़ों में शेष वायु लगभग 2200 मिली. होती है।
प्रश्न 3.
गैसों का विसरण केवल कूपिकीय क्षेत्र में होता है, श्वसन तंत्र के किसी अन्य भाग में क्यों नहीं?
उत्तर:
फेफड़ों में उपस्थित कूपिकाएँ श्वसन के समय गैसों के आदान-प्रदान हेतु एक विस्तृत सतह प्रदान करती है।
प्रश्न 4.
CO2के परिवहन (ट्रांसपोर्ट)की मुख्य क्रिया-विधि क्या है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कार्बन डाइ-ऑक्साइड का परिवहन (Transportation of CO2 ):
जब कोशिका के अन्दर भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है तो CO2 बनती है जो अधिक मात्रा में हमारे शरीर के लिए हानिकारक है। इस कारण इसे शरीर से बाहर निकाला जाता है। कोशिकाओं में ही बनने के कारण इसमें इसकी सान्द्रता अधिक हो जाती है लेकिन रुधिर में कम होती है। इस कारण यह कोशिका से विसरण द्वारा ऊतक द्रव और ऊतक द्रव से कोशिका से रुधिर में आ जाती है। अब यह रुधिर इसे कूपिकाओं की सतह तक निम्नलिखित तीन रूपों में ले जाता है –
(1) प्लाज्मा में घुलकर (Dissolved in Plasma):
वैसे तो CO2 प्लाज्मा में O2 की अपेक्षा 20 गुना अधिक घुलनशील होती है। फिर भी प्लाज्मा के द्वारा सम्पूर्ण CO2 के केवल 7% भाग (0.3 मिली प्रति 100 मिली रक्त) का ही परिवहन किया जाता है। जब CO2 प्लाज्मा में आती है तो इसके जल से मिलकर कार्बोनिक अम्ल H2CO3 बना देती है और इसी अवस्था में फेफड़े तक लायी जाती है जहाँ पर यह पुनः जल से मुक्त होकर विसरण के द्वारा कूपिका में आती है।
CO2 + H2O ⇌ H2CO3 (कार्बोनिक अम्ल)
(2) कार्बेमिनो यौगिकों के रूप में (As Carbamino Compounds):
कुछ CO2 रुधिर के हीमोग्लोबीन तथा अन्य प्रोटीन से मिलकर कुछ अस्थायी यौगिक बनाती हैं। इन यौगिकों को कार्बेमिनो यौगिक कहते हैं जब ये यौगिक कूपिका की सतह पर पहुँचते हैं तो CO2 को मुक्त कर देते हैं और यह विसरण द्वारा कूपिका में आ जाती है।
ऑक्सीकरण में बनी CO2 की लगभग 23% मात्रा का परिवहन इसी प्रकार होता है।
(3) बाईकार्बोनेट्स के रूप में (As bicarbonates):
कार्बन डाइ-ऑक्साइड की शेष 70% मात्रा का संवहन बाईकार्बोनेट्स के रूप में होता है। कार्बन डाइ-ऑक्साइड रुधिर कणिकाओं के सोडियम और पोटैशियम से मिलकर इनके बाईकार्बोनेट्स बनाती है जो श्वसन सतह पर आकर CO, को मुक्त कर देते हैं और यह विसरण के द्वारा कूपिका में पहुँच जाती है। कार्बोनिक ऐनहाइड्रेज प्रकीण्व इस कार्य में मदद करता है।
H2O + CO3 + Na2 CO2 ⇌ 2NaHCO3
(सोडियम बाइकार्बोनेट)
CO2 का परिवहन चाहे किसी भी प्रकार से हो जब यह कूपिका में पहुँचती है तो यह नि:श्वसन के द्वारा वहाँ से बाहर कर दी जाती है।
प्रश्न 5.
कूपिका वायु की तुलना में वायुमण्डलीय वायु में pO2 तथा pCO2 कितनी होगी, मिलान करें
(a) pO2न्यून
(b) pCO2 उच्च
(c) pO2 उच्च, pO2 न्यून
(d) pO2 न्यून, PO2 न्यून।
उत्तर:
(b) pCO2 उच्च
प्रश्न 6.
सामान्य स्थिति में अंतःश्वसन की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए। उत्तर- श्वासोच्छ्वास की क्रिया दो पदों में पूर्ण होती है –
- निश्वसन (Inspiration)
- नि:श्वसन (Expiration)
(1) निश्वसन:
निश्वसन के समय डायफ्राम के पीछे की ओर खींचने एवं वक्षीय पिंजड़े के ऊपर उठने से वक्षगुहा का आयतन चारों ओर बढ़ जाता है। डायफ्राम वक्षगुहा के तल पर स्थित रेडियल पेशियों की एक पतली परत का बना होता है। इसके उपरांत पीछे की ओर तथा पार्श्व में लंबर कशेरुकों से तथा आगे की ओर स्टर्नम से जुड़े होते हैं। विश्रामावस्था में वह गुम्बद के समान होता है। निश्वसन के समय जब रेडियल पेशियाँ सिकुड़ती हैं तो डायफ्राम नीचे की ओर खींचता है।
इसके फलस्वरूप वक्षगुहा अग्र पश्च दिशा में आकार में बड़ी हो जाती है। निश्वसन के समय बाह्य इन्टरकोस्टल पेशियों तथा अन्तर इन्टर कास्टल पेशियों के इन्ट्राकार्टिलेजिनस भागों के सिकुड़ने से पसलियाँ आगे व बाहर की ओर खींच जाती हैं – जिससे वक्षगुहा का आकार बढ़ने पर फुफ्फुसा वरणी गुहाएँ फैल जाती हैं और इनमें इंट्राप्लूरल अथवा अन्त:वक्ष दाब कम हो जाता है। फेफड़ों को अधिक स्थान मिलने से ये फैल जाते हैं। फलस्वरूप इंट्राप्लूरल अथवा अन्त:वक्ष दाब से कम हो जाता है और एक अवशोषण बल उत्पन्न हो जाता है जिससे वायुमण्डल की वायु श्वसन पथ से फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है।
(2) निःश्वसन:
नि:श्वसन के समय ये परिवर्तन नि:श्वसन से उल्टे होते हैं डायफ्राम की रेडियल पेशियों के शिथिलन तथा अन्त:इन्टरकोस्टल पेशियों के आकुंचन के फलस्वरूप डायफ्राम एवं पसलियाँ अपनी वास्तविक स्थिति में आ जाती हैं। अब डायफ्राम गुम्बद के समान हो जाता है। अंत:वक्ष स्थल का आयतन तथा प्लूरल गुहाओं का निगेटिव दाब भी कम हो जाता है इससे फेफड़ों पर दाब पड़ता है जिससे फेफड़ों की वायु बाहर निकल जाती है। वास्तव में नि:श्वसन निष्क्रिय प्रावस्था है।
प्रश्न 7.
श्वसन का नियमन कैसे होता है ?
उत्तर:
श्वासोच्छ्वास (Breathing) एक भौतिक या यांत्रिक प्रक्रिया है, जो कि आंतरिक एवं कोशिकीय श्वसन से संबंधित होती है। मनुष्य में श्वसन या श्वासोच्छ्वास की दर का नियन्त्रण निम्नलिखित दो विधियों द्वारा होता है –
(1) तंत्रिकीय नियमन (Nervous regulation):
मस्तिष्क में उपस्थित मेड्यूला ऑब्लांगेटा (Medulla oblongata) श्वसन की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखता है। इसमें एक जोड़ी श्वसन केन्द्र (Respiratory centre) पाया जाता है, जो कि श्वसन का तंत्रिकीय नियमन करता है। इस भाग के तंत्रिका तन्तु फेफड़ों की भित्तियों अन्तरापर्युक पेशियों (Intercoastal muscles) एवं डायफ्राम की पेशियों तक जाते हैं। ये पेशियाँ मेड्यूला ऑब्लांगेटा के श्वसन केन्द्र के नियंत्रण में कार्य करती हैं।
अतः श्वसन केन्द्र पसलियों और डायफ्राम की पेशियों की क्रिया को संचालित करके श्वसन की क्रिया पर नियंत्रण करता है। अतः श्वास क्रिया तन्त्रिकीय नियन्त्रण में होती है इसी कारण चाह कर भी हम श्वास क्रिया को बहुत देर तक नहीं रोक सकते। इसके अलावा पोन्स (Pons) में स्थित न्यूमोटेक्सिक केन्द्र (Pneumotaxic centre) प्रश्वसन को धीमा करता है।
(2) रासायनिक नियमन (Chemical regulation):
(i) रुधिर की CO2 (CO2 of blood):
स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (Autonomous nervous system) शरीर के ताप, रुधिर में CO2 की अधिकता या O2 की कमी एवं रुधिर के pH के आदि से प्रभावित होकर श्वास केन्द्र, श्वासोच्छ्वास से संबंधित पेशियों को उद्दीप्त करता है और इन परिस्थितियों में यह साँस लेने की गति में वृद्धि करता है।
(ii) रुधिर की O2 (O2 of blood):
कैरोटिड ग्रंथि (Carotid glands) एवं ऐओर्टिक चाप (Aortic arch) में संवेदी या ग्राही (Receptors) का समूह उपस्थित होता है, जो कि रुधिर को PO2 एवं PCO2 में होने वाले परिवर्तनों को ग्रहण करके उन्हें श्वसन केन्द्र (Respiratory center) तक पहुँचाते हैं तथा यह श्वसन केन्द्र श्वासोच्छ्वास से संबंधित सभी पेशियों को श्वासोच्छ्वास क्रिया के लिए निर्देशित करती है।
जब कभी फेफड़ा आवश्यकता से अधिक फुल जाता है, तब केन्द्र एक प्रकार का प्रतिवर्ती चाप चक्र (Reflex arch of cycle) बनाते हैं, इस चाप चक्र को हेरिंग ब्रुएर चाप (Hering Breuer Arch) कहते हैं । यह चाप ऐसी स्थिति में श्वसन दर को बढ़ा देता है।
प्रश्न 8.
pCO2 का ऑक्सीजन के परिवहन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
ऐल्विओलर कोशिकाओं में उपस्थित ऑक्सीजन रहित (Deoxygenated) रुधिर के pCO2 के मान 46 mm Hg होता है, जो कि एल्विओलर वायु के pCO2 (40 mm Hg) से अधिक होता है। अत: pCO2 के मान में इस अंतर के कारण CO2 ऐल्विओलर कोशिकाओं में विसरित होकर ऐल्विओलाई (Alveoli) में चली जाती है तथा क्रिया तब तक होती है, जब तक कि रक्त का pCO2 मान घटकर 40 mm Hg तक नहीं हो जाता है।
प्रश्न 9.
पहाड़ पर चढ़ने वाले व्यक्ति की श्वसन प्रक्रिया में क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
जब व्यक्ति ऊपर चढ़ने लगता है तब वायुमण्डलीय दाब बढ़ जाता है। जिससे बाहर की वायु बलपूर्वक फेफड़ों के अन्दर आ जाती है अर्थात् अंतःश्वसन की क्रिया होती है। डायफ्राम और अंतरापर्शक पेशियों का शिथिलन डायफ्राम और उरोस्थि को उनके सामान्य स्थान पर वापस कर देते हैं और वक्षीय आयतन को घटाता है। जिससे फुफ्फुसीय आयतन घट जाता है इसके परिणामस्वरूप अंतर फुफ्फुसीय दाब वायुमण्डलीय दाब से थोड़ा अधिक होता जाता है। जिससे फेफड़ों की हवा बाहर निकल जाती है। अर्थात् निःश्वसन हो जाता है।
प्रश्न 10.
कीटों में श्वसन क्रियाविधि कैसी होती है ?
अथवा
कीटों या ऑर्थोपोड्स में गैसीय आदान-प्रदान का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
कीटों तथा ऑर्थोपोड्स जन्तुओं में गैसीय आदान-प्रदान तथा परिवहन-कीटों और आर्थोपोडा संघ के दूसरे जीवों जैसे-बिच्छू, तिलचट्टा इत्यादि में गैसीय आदान-प्रदान तथा परिवहन पतली-पतली विशिष्ट नलिकाओं के जाल से होता है, जिसे श्वास नलिका तंत्र (Tracheal system) कहते हैं इनकी नलिकाएँ श्वास नलिका (Trachea) कहलाती हैं।
ट्रैकिया विशिष्ट श्वसन रचनाएँ होती हैं, जो शरीर के पार्श्व में ऊपरी सतह पर श्वास रन्ध्र या स्पाइरेकल (Spiracle) नामक छिद्र के रूप में शुरू होती हैं और पतली श्वास नलिकाओं (Tracheoles) के जाल तंत्र में खुलती हैं।
इन ट्रैकिओल्स अर्थात् पतली श्वास नलिकाओं का अन्त छोटे-छोटे कोष्ठों में होता है, जिन्हें वायु कोष्ठ (Air sacs) कहते हैं। ये वायु कोष्ठ शरीर के ऊतकों में स्थित होते हैं। कीटों के वक्षीय (Tho Tracheole racic) भाग में दो जोड़ी तथा उदर भाग में 8 जोड़ी स्पाइरेकिल्स (अर्थात् प्रत्येक खण्ड के दोनों पार्यो में एक-एक) पाये जाते हैं। गैसीय आदान-प्रदान के समय उदर की पेशियाँ शिथिल होती हैं।
परिणामस्वरूप उदर का आयतन बढ़ जाता है, फलतः वातावरणीय वायु श्वास छिद्रों के द्वारा क्रमशः ट्रैकिया, ट्रैकिओल्स और वायु कोष्ठों में चली जाती है।इन कोष्ठों से वायु की ऑक्सीजन ERE विसरित होकर ऊतक कोशिकाओं में चली जाती है और CO2 का कुछ हिस्सा विसरण द्वारा ही वायु कोष्ठों में चला जाता है, अब उदर की पेशियाँ संकुचित होती हैं और बाहर निकल जाती हैं।
श्वसन या वायु कोष्ठों, ट्रैकिओल्स और ट्रैकिया से होते हुए श्वासरन्ध्रों द्वारा बाहर निकल जाता है। श्वसन या ऑक्सीकरण में बनी CO2 की बहुत कम मात्रा को इस विधि द्वारा बाहर निकाला जाता है। अधिकांश CO2का निष्कासन तो रुधिर के माध्यम से होता है। इस विधि में CO2 रुधिर प्लाज्मा में घुल जाती है और बाह्य कंकाल से विसरित होकर शरीर से बाहर निकल जाती है।
स्पाइरेकल से शुरू होने वाली श्वास नलियाँ शरीर के पृष्ठ तथा प्रतिपृष्ठ दोनों सतहों पर नलिका तंत्र बनाती हैं। ऑर्थोपोडा संघ के जन्तुओं में चूँकि O2 का वितरण सीधे नलियों द्वारा कोशिकाओं को होता है, अतः इसमें परिसंचरण तंत्र का कोई योगदान नहीं होता।
इसी कारण कीटों तथा दूसरे ऑर्थोपोडा में हीमोग्लोबिन नहीं होता, फलतः इनका रुधिर रंगहीन होता है। जब ऑर्थोपोडा जन्तु विश्रामावस्था में रहते हैं, तब इनके ट्रैकिओल्स में ऊतक द्रव भरा रहता है, लेकिन जब ये सक्रिय अवस्था में होते हैं, तब वायु के दबाव के कारण ऊतक द्रव ट्रैकिओल्स के अन्तिम सिरों अर्थात् वायु कोष्ठों में केन्द्रित हो जाता है।
चित्र – एक कीट का श्वास नलिका तंत्र
(A) नलिका तंत्र जिसमें सफेद नलिकाएँ पृष्ठ तथा काली प्रतिपृष्ठ सतह के नलिका तंत्र को व्यक्त करती हैं।
(B) विश्रामावस्था में ट्रैकिओल
(C) सक्रिय अवस्था में ट्रैकिओल
प्रश्न 11.
ऑक्सीजन वियोजन वक्र की परिभाषा दीजिए, क्या आप इसकी सिग्माभ आकृति का कोई कारण बता सकते हैं ?
उत्तर:
ऑक्सीजन वियोजन वक्र (Oxygen Dissociation Curve):
यह वह वक्र (Curve) है जो दर्शाता है कि PO2 के दबाव के कारण हीमोग्लोबिन में कितने प्रतिशत ऑक्सीजन की मात्रा संतृप्त (Saturated) हुई है। यह वक्र लाक्षणिक सिग्माभ (Sigmoid) या ‘S’ आकृति को प्रदर्शित करता है। वक्र की सिग्माभ आकृति (Sigmoid Pattern) PO2 के कारण हीमोग्लोबिन की संतृप्तता के कारण बनती है।
प्रश्न 12.
क्या आपने अवकाशीयता (हाइपोक्सिया न्यून ऑक्सीजन) के बारे में सुना है ? इस संबंध में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश कीजिए व साथियों के बीच चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हाइपोक्सिया ऐसी स्थिति है जिससे ऊतकों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इसके दो प्रकार हैं –
1. कृत्रिम हाइपोक्सिया-इसका कारण ऊँचे स्थान पर ऑक्सीजन की कमी है यह मुख्यत: पहाड़ों पर होती है। इस बीमारी के लक्षण है –
- साँसों में कमी होती है
- सिर दर्द
- चक्कर आना एवं चमड़ी का रंग हल्का नीला हो जाता है।
2. ऐनेमिक हाइपोक्सिया-इसका मुख्य कारण खून में कार्बन मोनोऑक्साइड नामक विषैले पदार्थ का पहुँचना या खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाने के कारण ऐनेमिया की बीमारी हो जाती है। इन दोनों घटनाओं में ऑक्सीजन के परिवहन में हीमोग्लोबीन की कमी होना है।
प्रश्न 13.
निम्न के बीच अंतर कीजिए –
- अन्तःश्वसित आरक्षित आयतन (IRV) एवं निःश्वसित आरक्षित आयतन (ERV)
- अंतःश्वसन क्षमता (IC) और निःश्वसन क्षमता (EC)
- जैव क्षमता और फेफड़ों की कुल धारिता।
उत्तर:
(1) अन्तःश्वसित आरक्षित आयतन (IRV) एवं निःश्वसित आरक्षित आयतन (ERV) –
(i) अंतःश्वसित आरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume, IRV):
यह वायु की वह मात्रा है जो एक स्वस्थ व्यक्ति प्रवाही आयतन (Tidal volume) के अतिरिक्त अन्तःश्वसित (Inspiratory) कर सकता है। पुरुषों में अन्तःश्वसित आरक्षित आयतन लगभग 3000 मिली तथा स्त्रियों में लगभग 1900 मिली होती है।
(ii) निःश्वसित आरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume, ERV):
यह वायु की वह मात्रा है जो सामान्य अन्तःश्वसन के पश्चात् प्रवाही आयतन के अतिरिक्त फेफड़ों से बलपूर्वक नि:श्वसित की जा सकती है। पुरुषों में नि:श्वसित आरक्षित आयतन लगभग 1000 मिली. तथा स्त्रियों में 700 मिली. होता है।
(2) अन्तःश्वसन क्षमता (IC) और निःश्वसन क्षमता (EC) में अंतर –
(i) अन्तःश्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity):
यह प्रवाही आयतन (TV) तथा अन्तःश्वसित आरक्षित आयतन (IRV) के योग के बराबर होती है। अत: यह वायु की वह कुल मात्रा है जिसे अधिकतम चेष्टा द्वारा अन्तःश्वसित किया जा सकता है। पुरुषों में यह 3500 (500 + 3000) मिली. तथा स्त्रियों में 2400 (500 +1900) मिली. होती है।
(ii) निःश्वसन क्षमता (Expiratory Capacity) –
यह किसी व्यक्ति में वायु की वह कुल मात्रा है जो वह सामान्य निःश्वसन में बाहर निकालता है। यह प्रवाही आयतन (TV) तथा नि:श्वसित आरक्षित आयतन (ERV) का योग होता है।
(3) जैव क्षमता और फेफड़ों की कल धारिता –
1. जैव क्षमता (Vital Capacity):
यह अन्तःश्वसित आरक्षित आयतन (IRV), प्रवाही आयतन (TV) तथा निःश्वसित आरक्षित आयतन (ERV) के योग के बराबर होती है। इस प्रकार यह वायु की वह अधिकतम आयतन है। जिसे अधिकतम गहरी श्वास लेने के बाद फेफड़ों से बाहर निकाला जाता है। पुरुषों में यह 4500 (3000 + 500 +1000) मिली. तथा स्त्रियों में 3100 (1900 + 500 +700) मिली. होती है।
2. फेफड़ों की कुल धारिता (Total lung Capacity):
यह जैवक्षमता (VC) तथा अवशेषी आयतन (RV) के योग के बराबर होते हैं, अर्थात् यह वायु की वह अधिकतम मात्रा है जो अधिकतम चेष्टा से अन्तःश्वास के उपरांत फेफड़ों में भरी पायी जाती है। पुरुषों में यह 5700 (4500 + 1200) मिली. तथा स्त्रियों में 4200 (3100 +1100) मिली. होती है।
प्रश्न 14.
ज्वारीय आयतन (Tidal volume) क्या है ? एक स्वस्थ मनुष्य के लिए एक घंटे के ज्वारीय आयतन (लगभग मात्रा) को आकलित कीजिए।
उत्तर:
यह वायु का वह आयतन है, जो एक श्वासोच्छ्वास के दौरान लिया और छोड़ा जाता है। यह वायु के उस आयतन को व्यक्त करता है, जो एक श्वासोच्छ्वास के दौरान पूरे श्वसन तंत्र में स्थानान्तरित की जाती है। एक घंटे में सामान्य वयस्क व्यक्ति में इसका मान 500 मिली. होता है।
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श्वसन और गैसों का विनिमय वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
1. जब फेफड़ों में 1200 ml वायु शेष रह जाती है तो इसे कहते हैं –
(a) जैव क्षमता
(b) प्रवाही आयतन
(c) अवशेषी आयतन
(d) निश्वसन आरक्षित आयतन।
उत्तर:
(c) अवशेषी आयतन
2. हीमोग्लोबिन के द्वारा परिवहन की गई O2 की प्रतिशत मात्रा होती है –
(a)97%
(b) 100%
(c)3%
(d)49%.
उत्तर:
(a)97%
3. अधिक ऊँचाई (High altitude) पर मनुष्य की R.B.Cs –
(a) के आकार में वृद्धि हो जाती है।
(b) की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
(c) का आकार छोटा हो जाता है।
(d) की संख्या में कमी आ जाती है।
उत्तर:
(b) की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
4. स्तनियों में फेफड़ों की वेन्टीलेशन गति का नियंत्रण किसके द्वारा होता है –
(a) डायफ्राम द्वारा
(b) कॉस्टल पेशियों द्वारा
(c) फेफड़ों की पेशीय भित्ति द्वारा
(d) (a) और (b) दोनों से।
उत्तर:
(a) डायफ्राम द्वारा
5. मनुष्य में एडम्स एप्पल होता है –
(a) फेफड़ों की उपास्थि में
(b) श्वासनाल की उपास्थि में
(c) कंठ की थायरॉइड उपास्थि में
(d) इपीग्लॉटिस में।
उत्तर:
(d) इपीग्लॉटिस में।
6. कॉकरोच एवं खरगोश की श्वासनाल का सामान्य लक्षण होता है –
(a) दोनों में रोमाभि उपकला होती है
(b) दोनो में नॉन-कोलैप्सेबल भित्ति होती है
(c) दोनों की उत्पत्ति शीर्ष भाग से होती है
(d) दोनों जोड़ीदार तथा शाखित होते हैं।
उत्तर:
(c) दोनों की उत्पत्ति शीर्ष भाग से होती है
7. फेफड़ों की क्रियात्मक इकाई होती है –
(a) ट्रैकिया
(b) ब्रोंकाई
(c) ब्रोकिओल्स
(d) एल्विओलाई।
उत्तर:
(b) ब्रोंकाई
8. जब CO2 की सान्द्रता अधिक हो जाती है तो O2 का वक्र किस दिशा में जाता है –
(a) बाईं ओर
(b) दाहिनी ओर
(c) केन्द्र की ओर
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं।
9. निश्वसन या प्रश्वसन के समय, डायफ्राम –
(a) संकुचित होता है
(b) फैल जाता है
(c) शिथिल हो जाता है
(d) इनमें कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उत्तर:
(b) फैल जाता है
10. वोकल कॉर्ड किसके अन्दर पाये जाते हैं –
(a) लैरिक्स
(b) फैरिक्स
(c) ग्लॉटिस
(d) एल्विओलाई।
उत्तर:
(a) लैरिक्स
11. अवायुवीय श्वसन होता है –
(a) हाइड्रा में
(b) केंचुए में
(c) फीताकृमि में
(d) कॉकरोच में।
उत्तर:
(a) हाइड्रा में
12. शीत निष्क्रियता के समय मेढक श्वसन करता है –
(a) फेफड़े द्वारा
(b) गिल्स द्वारा
(c) मुखगुहा द्वारा
(d) त्वचा द्वारा।
उत्तर:
(c) मुखगुहा द्वारा
13. R.B.Cs. में वायुवीय श्वसन की क्षमता नहीं पाई जाती क्योंकि उनमें अभाव होता है –
(a) केन्द्रक का
(b) माइटोकॉण्ड्रिया का
(c) लाइसोसोम का
(d) E.R.का।
उत्तर:
(d) E.R.का।
14. जैविक ऑक्सीकरण में ऊर्जा किसके रूप में उत्पन्न होती है –
(a) ग्लूकोज
(b) लैक्टिक अम्ल
(c) A.T.P
(d) A.M.P
उत्तर:
(b) लैक्टिक अम्ल
15. बिच्छू का श्वसनांग होता है –
(a) गिल्स
(b) बुक लंग
(c) त्वचा
(d) बुक गिल्स।
उत्तर:
(c) त्वचा
16. रुधिर में ऑक्सीजन का परिवहन मुख्यतः किसके द्वारा होता है –
(a) रुधिर प्लाज्मा
(b) ल्यूकोसाइट्स
(c) थ्रॉम्बोसाइट्स
(d) इरीथ्रोसाइट्स।
उत्तर:
(b) ल्यूकोसाइट्स
17. CO2 के परिवहन के समय R.B.Cs. एवं प्लाज्मा के मध्य होने वाली क्रिया है –
(a) परासरण
(b) अधिशोषण
(c) क्लोराइड शिफ्ट
(d) अवशोषण।
उत्तर:
(d) अवशोषण।
18. निःश्वसित वायु में ऑक्सीजन की मात्रा होती है –
(a)4%
(b) 16%
(c)21%
(d) 78%.
उत्तर:
(c)21%
19. श्वसन क्रिया संपन्न होती है –
(a) फेफड़ों की कूपिका कोशिकाओं में
(b) आहारनाल की कोशिकाओं में
(c) मस्तिष्क की कोशिकाओं में
(d) शरीर की समस्त कोशिकाओं में।
उत्तर:
(d) शरीर की समस्त कोशिकाओं में।
20. फेफड़ों का बाहरी स्तर बना होता है –
(a) प्लूरल झिल्ली का
(b) पेरीकार्डियम का
(c) पेरीटोनियम का
(d) श्लेष्मिक झिल्ली का।
उत्तर:
(a) प्लूरल झिल्ली का
उत्तर:
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
- फेफड़ा ………….. में स्थित होता है।
- कीटों में श्वसन ……………. के द्वारा होता है।
- लाल रुधिराणुओं में उपस्थित श्वसन वर्णक ……………. है।
- सिगरेट पीने से ……………. रोग होता है।
- रुधिराणुओं में CO2 का परिवहन ……………. के रूप में होता है।
- क्रेब्स चक्र ……………. कोशिकांग में होता है।
- मानव के फेफड़ों में कुल पिण्डों की संख्या …………… होती है।
- रुधिर का pH घटने पर श्वसन दर ……………. हो जाती है।
- हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से मिलकर ……………. यौगिक बनाता है।
- ऊतकों में ऑक्सीजन अत्यधिक या अनुपस्थिति को ……………. कहते हैं।
उत्तर:
- वक्ष गुहा
- स्पाइरेकल, गिल
- हीमोग्लोबिन
- एम्फीसेमा
- बाईकार्बोनेट
- माइटोकॉण्ड्रिया
- पाँच
- कम
- ऑक्सीहीमोग्लोबिन
- एनॉक्सिया।
प्रश्न 3.
एक शब्द में उत्तर दीजिए –
- मनुष्य की श्वसन दर क्या होती है ?
- मनुष्य में कितनी एल्विओलाई पाई जाती है ? इनका कुल क्षेत्रफल कितना होता है ?
- मानव श्वसन गैसों का विनिमय कहाँ होता है ?
- ऐसे जीवों का नाम जिनकी श्वसन क्रिया में रक्त भाग नहीं लेता।
- श्वासोच्छ्वास में उपयोग की गई गैस के आयतन को क्या कहते हैं ?
- लीच और कीटों के श्वसनांग का नाम लिखिए।
- हाइड्रा के शरीर का कौन-सा भाग गैसीय विनिमय में भाग लेता है ?
- मछली के श्वसनांग का नाम लिखिए।
- मस्तिष्क का कौन-सा हिस्सा श्वासोच्छ्वास को नियंत्रित करता है ?
- नेरीस के किस अंग में श्वसन के समय गैसीय विनिमय होता है ?
उत्तर:
- 16 से 20 प्रति मिनट
- मनुष्य में 750,000,000 एल्विओलाई पाई जाती हैं जिनका कुल क्षेत्रफल 100 वर्गमीटर
- फेफड़े में
- एक कोशिकीय जन्तु जैसे-अमीबा, पैरामीशियम
- टाइडल वाल्यूम (T.V.)
- लीच-शरीर की सतह, कीट-ट्रैकियल तंत्र
- विशिष्ट कोशाएँ
- गिल्स
- मेड्युला ऑब्लांगेटा
- पैरापोडिया।
प्रश्न 4.
उचित संबंध जोड़िए –
उत्तर:
- (e) पाइरुविक अम्ल
- (d) CO2 ATP
- (b) माइटोकॉण्ड्रिया
- (c) क्रेब्स चक्र
- (a) PPP
उत्तर:
- (b) ट्रैकिया
- (d) जल संवहन तंत्र
- (c) पैरापोडिया
- (a) त्वक श्वसन
- (e) ट्रैकिओल
श्वसन और गैसों का विनिमय अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
धूम्रपान का श्वसन संबंधी क्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
धूम्रपान से श्वसन पथ की श्लेष्मा झिल्ली उत्तेजना की स्थिति पर आ जाती है। धुएँ में उपस्थित हानिकारक पदार्थ श्वसनांगों की आंतरिक सतह पर जम जाते हैं जिसके कारण श्वासनली एवं श्वसनिका और . वायु कोष्ठों का स्थान कम हो जाता है तथा इसकी कोशिकाओं को उत्तेजित करके कोशिकाओं को विभाजन के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे कैंसर की सम्भावना बढ़ जाती है।
प्रश्न 2.
शरीर में ऑक्सीजन की कमी को क्या कहा जाता है ?
उत्तर:
शरीर में ऑक्सीजन की कमी को हाइपॉक्सिया (Hypoxia) कहते हैं। यह स्थिति ऊँचाई या वायुदाब में कमी या सायनाइड विषाक्तता के कारण होती है।
प्रश्न 3.
CO2 सान्द्रता तथा ऑक्सीहीमोग्लोबिन का टूटना किस प्रकार एक-दूसरे से संबंधित है ?
उत्तर:
CO2 की सान्द्रता एवं ऑक्सीहीमोग्लोबिन के टूटने के प्रभाव की खोज सबसे पहले बोहर ने की। ये दोनों क्रियाएँ एक-दूसरे की समानुपाती होती हैं । वास्तव में CO2 रक्त में घुलकर इसे अम्लीय बना देती है। फलतः ऑक्सीहीमोग्लोबिन ऑक्सीजन और हीमोग्लोबिन में टूट जाता है।
प्रश्न 4.
श्वसन एवं श्वासोच्छ्वास में अंतर बताइए।
उत्तर:
श्वसन तथा श्वासोच्छ्वास में अंतर –
श्वसन (Respiration):
- यह जैव-रासायनिक क्रिया है, जिसमें O2 द्वारा भोजन का ऑक्सीकरण होता है।
- इस क्रिया में ATP ऊर्जा मुक्त होती है।
- यह क्रिया अन्त:कोशिकीय होती है।
श्वासोच्छ्वास (Breathing):
- यह एक भौतिक क्रिया हैं, जिसमें श्वसन में O2 ली जाती है एवं नि:श्वसन में CO2 मुक्त होती है।
- इस क्रिया में ATP ऊर्जा मुक्त नहीं होती है।
- यह क्रिया बाह्य कोशिकीय होती है।
प्रश्न 5.
‘नाक से श्वास लेना, मुँह से श्वास लेने की अपेक्षा बेहतर माना जाता है। कारण बताइये।
उत्तर:
नाक से श्वास लेना अधिक स्वास्थ्यप्रद है, क्योंकि –
- यह एक स्वाभाविक क्रिया है।
- श्वास में ली जाने वाली वायु में धूल के कण, बैक्टीरिया आदि हानिकारक पदार्थ होते हैं। नाक में पाये जाने वाले रोमों से ये छनते हैं तथा फेफड़े में जाने वाली हवा शुद्ध बनी रहती है।
- नाक में पाये जाने वाली टर्बाइनल हड्डी हवा को गर्म करने का कार्य करती है।
प्रश्न 6.
प्रोटोजोआ में श्वसन अंग आवश्यक नहीं है, क्यों?
उत्तर:
प्रोटोजोआ समूह के जन्तुओं जैसे-अमीबा, यूग्लीना, पैरामीशियम आदि में श्वसन क्रिया सामान्य शारीरिक सतह के द्वारा होती है, जिसमें O2 गैस कोशिका झिल्ली से विसरित होकर अंदर जाती है। अतः इनमें श्वसनांगों की आवश्यकता नहीं होती है।
प्रश्न 7.
जोंक तथा कीटों के श्वसन अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- जन्तु – श्वसन अंग
- जोंक – त्वचा
- कीट – ट्रैकिया (श्वासनाल)।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में श्वसन अंग के नाम लिखिए –
- केंचुआ
- पक्षी
- मछली
- उभयचर।
उत्तर:
जन्तु – श्वसन अंग
- केंचुआ – त्वचा
- पक्षी – फेफड़ा
- मछली – गलफड़े या गिल्स
- उभयचर – त्वचा।
श्वसन और गैसों का विनिमय लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हीमोग्लोबिन की रासायनिक प्रकृति एवं गुण समझाइये।
उत्तर:
लाल रुधिर कणिकाओं में एक विशेष वर्णक पाया जाता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। यह एक विशेष प्रोटीन है, जिसमें आयरन (हीम) समूह जुड़ा होता है, इस प्रोटीन को ग्लोब्यूलीन कहते हैं। हीमोग्लोबिन एक वृहद् अणु है जिसका सूत्र C587 H1213 N195 O214 S3Fe है। यह ऑक्सीजन से संयुक्त होकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाता है। ऊतकों में यह टूटकर पुनः ऑक्सीजन और हीमोग्लोबिन बना देता है। इस प्रकार यह रुधिर के द्वारा O2 का सम्वहन करता है।
प्रश्न 2.
श्वसन किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार का होता है ? समझाइए।
उत्तर:
श्वसन जीवों में होने वाली एक ऑक्सीकरण क्रिया है, जिसमें जटिल कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति में अपघटन किया जाता है, जिसके फलस्वरूप जल और CO2 अथवा कार्बनिक पदार्थ और CO2 बनते हैं अथवा ऊर्जा मुक्त होती है। इसे निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं –
C6H12O6 + 6O2 → 6H2O + 6CO2 + 673 kcal ऊर्जा या 38 ATP
श्वसन के प्रकार:
श्वसन दो प्रकार का होता है –
(1) अवायवीय या अनॉक्सी श्वसन (Anaerobic Respiration) –यह वह श्वसन है, जिसमें भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण O2 की अनुपस्थिति में अपूर्ण रूप से CO2 और सरल कार्बनिक पदार्थों जैसे-ऐथिल ऐल्कोहॉल, साइट्रिक अम्ल, लैक्टिक अम्ल, मैलिक अम्ल, ब्यूटेरिक अम्ल या ऑक्जेलिक अम्ल में हो जाता है। यह श्वसन कुछ निम्न कोटि के सूक्ष्म जीवों, परजीवियों, जीवाणुओं, यीस्टों तथा कुछ जन्तु ऊतकों में होती है।
C6H12O6 → 2C2H5OH (एथिल ऐल्कोहॉल) + 2CO2 + 21 kcal या 2 ATP
(2) वायवीय या ऑक्सी श्वसन (Aerobic Respiration):
यह वह श्वसन है, जिसमें खाद्य पदार्थों का ऑक्सीकरण O2 की उपस्थिति में जल तथा CO2 में होता है। कुछ पौधों, निम्न श्रेणी के जीवों तथा सभी जन्तुओं में इसी प्रकार का श्वसन होता है।
C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + 673 kcal ऊर्जा या 38 ATP ऊर्जा
प्रश्न 3.
श्वसन एवं जारण में दो अंतर लिखिए।
उत्तर:
श्वसन एवं जारण में अंतर –
श्वसन (Respiration):
- यह एक जैविक क्रिया है।
- इसमें मन्द गति से ऑक्सीकरण होता है।
- इसकी ऊर्जा ATP के रूप में संचित रहती है।
- इसमें ताप कम होता है और यह एक नियन्त्रित क्रिया है।
जारण (Combustion):
- यह एक अजैविक क्रिया है।
- इसमें तीव्र गति से ऑक्सीकरण होता है।
- इसकी ऊर्जा प्रकाश एवं ताप के रूप में निकलती है।
- इसका ताप अधिक होता है और यह एक अनियन्त्रित क्रिया है।
प्रश्न 4.
निःश्वसन की क्रिया में अन्तःअन्तरापर्युक पेशी का क्या महत्व है ?
उत्तर:
अन्तःअन्तरापर्युक पेशियों (Intercostal muscles) के संकुचन से पसलियाँ दबती हैं। इसी समय डायफ्राम शिथिल व उदरगुहा संकुचित होती है, इन सबके सम्मिलित प्रभाव के कारण वक्षीय गुहा का आयतन कम हो जाता है। फलत: फेफड़े का भी आयतन कम और फेफड़े के अंदर वायु दाब बढ़ जाता है तथा फेफड़े की वायु निकल जाती है। अतः अन्तःअन्तरापर्युक पेशियाँ निःश्वसन क्रिया के होने में मदद करती हैं।
प्रश्न 5.
वायवीय श्वसन एवं अवायवीय श्वसन में अंतर लिखिये।
अथवा
ऑक्सी एवं अनॉक्सी श्वसन में अंतर लिखिये।
उत्तर:
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में अंतर –
वायवीय श्वसन (Aerobic Respiration):
- यह श्वसन 0, की उपस्थिति में होता है। इसकी कुछ क्रिया कोशिकाद्रव्य (ग्लाइकोलिसिस) और कुछ माइटोकॉण्ड्रिया में होती है।
ग्लूकोज का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। - उत्पाद CO2 एवं H2 O बनते हैं।
- 38 ATP या 673 K cal ऊर्जा प्राप्त होती है।
- हानिकारक पदार्थ नहीं बनता है।
अवायवीय श्वसन (Anaerobic Respiration):
- यह श्वसन O2 की अनुपस्थिति में होता है तथा इसकी समस्त क्रियाएँ कोशिकाद्रव्य में होती ग्लूकोज का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है।
- उत्पाद ऐल्कोहॉल एवं CO2 बनते हैं।
- 2ATP अथवा 21 k cal ऊर्जा प्राप्त होती है।
- एथिल ऐल्कोहॉल जैसा हानिकारक पदार्थ बनता है।
प्रश्न 6.
ऑक्सीजन ऋण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
भारी काम या कसरत के समय पेशियों को जल्दी और अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसके कारण ग्लाइकोलिसिस द्वारा अनॉक्सी रूप में ATP का उत्पादन होने लगता है। इस क्रिया में बना पायरुविक अम्ल लैक्टिक अम्ल में रूपान्तरित होकर जमा होने लगता है। इस अम्ल के ऑक्सीकरण के लिए अतिरिक्त O2 की आवश्यकता पड़ती है। पेशियों में O2 की इसी अतिरिक्त खपत को ऑक्सीजन ऋण कहते हैं। कुछ मात्रा में O2 ऋण की पूर्ति मायोग्लोबीन के द्वारा की जाती है।
प्रश्न 7.
माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का विद्युत् गृह (Power house) क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
माइटोकॉण्ड्रिया ही वह अंग है, जहाँ भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ATP का उत्पादन किया जाता है, जिसमें उच्च ऊर्जा संचित रहती है। यही ATP अपघटित होकर संचित ऊर्जा को मुक्त कर देता है चूँकि माइटोकॉण्ड्रिया में ऊर्जा का उत्पादन होता है, इसी कारण इसे कोशिका का ऊर्जा गृह कहते हैं।
प्रश्न 8.
बाह्य श्वसन तथा आंतरिक श्वसन में क्या अंतर है ?
उत्तर:
बाह्य श्वसन तथा आन्तरिक श्वसन में अंतर –
बाह्य श्वसन (External Respiration):
- इस प्रकार के श्वसन में गैस विनिमय घिरे हुए माध्यम से होता है, जिसमें O2 ली जाती एवं CO2 मुक्त होती है।
- यह क्रिया श्वसन अंगों, जैसे-त्वचा या फेफड़ों द्वारा होती है।
- इस क्रिया में O2 ग्रहण कर एवं CO2 मुक्त किया जाता है।
- यह एक भौतिक प्रक्रिया है।
आन्तरिक श्वसन(Internal Respiration):
- इस प्रकार के श्वसन में ऊतक कोशिका द्वारा ऑक्सीजन ली जाती है, जिससे भोजन का ऑक्सी करण होता है एवं ऊर्जा प्राप्त होती है एवं ऊतक कोशिकाओं द्वार CO2 मुक्त होती है।
- यह क्रिया कोशिका के अंदर सम्पन्न होती है।
- इस क्रिया में भोजन का ऑक्सीकरण होता है एवं CO2 मुक्त होती है।
- यह एक रासायनिक प्रक्रिया है।
प्रश्न 9.
क्लोराइड शिफ्ट से क्या समझते हो?
उत्तर:
क्लोराइड शिफ्ट:
श्वसन क्रिया के परिणामस्वरूप ऊतकों में संचित भोज्य पदार्थ का ऑक्सीकरण होता है, जिससे ऊर्जा प्राप्त होती है एवं CO2 मुक्त होती है। मुक्त CO2 ऊतक द्रव्य के माध्यम से ऊतक कोशिकाओं में पहुँच जाती है। इस प्रकार R.B.Cs. में कार्बोनेट की मात्रा बढ़ जाने से pH का मान बढ़ जाता है। विद्युत् तटस्थता बनाये रखने के लिए HCO3 आयन प्लाज्मा में जाते हैं एवं समान मात्रा में प्लाज्मा से CI आयन R.B.Cs. में आते हैं । इस प्रकार प्लाज्मा में सोडियम बाइकार्बोनेट एवं R.B.Cs. में पोटैशियम क्लोराइड एकत्रित हो जाता है। इस क्रिया को क्लोराइड शिफ्ट कहते हैं।
प्रश्न 10.
CO2 की सान्द्रता एवं ऑक्सीहीमोग्लोबिन का टूटना किस प्रकार एक-दूसरे से संबंधित है ?
उत्तर:
CO2 की सान्द्रता ऑक्सीहीमोग्लोबिन के टूटने की क्रिया को नियन्त्रित करती है। ये दोनों क्रियाएँ एक-दूसरे के समानुपाती हैं। जब रुधिर या ऊतकों में CO, की सान्द्रता ज्यादा हो जाती है, तब रुधिर का माध्यम अम्लीय हो जाता है, क्योंकि यह रुधिर प्लाज्मा के जल से मिलकर कार्बोनिक अम्ल ( H2CO3) बनाती है –
CO2 +H2O → H2CO3
अम्लीय माध्यम में ऑक्सीहीमोग्लोबिन को ऑक्सीजन तथा हीमोग्लोबिन में टूटने के लिए प्रेरित करता है। फलत: यह O2 और हीमोग्लोबिन में टूट जाती है।
प्रश्न 11.
क्या कारण है कि अधिक कार्य के दौरान हमारी पेशियाँ थक जाती हैं ?
उत्तर:
अधिक या तीव्र कार्य के दौरान पेशियों के लिए आवश्यक ऊर्जा की पूर्ति ऑक्सी ऑक्सीकरण से नहीं हो पाती, इस कारण उनमें भोज्य पदार्थों का अनॉक्सी ऑक्सीकरण तीव्र दर से होने लगता है और ऊर्जा की पूर्ति का प्रयास किया जाता है। अनॉक्सी श्वसन के दौरान ग्लाइकोलिसिस में बने पायरुविक अम्ल को लैक्टिक अम्ल में बदल दिया जाता है। इसी लैक्टिक अम्ल के जमाव के कारण पेशियाँ थक जाती हैं, लेकिन कुछ देर आराम करने के बाद लैक्टिक अम्ल पुनः पायरुविक अम्ल में बदल जाता है और हम सामान्य हो जाते हैं।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए –
- ट्रैकिओल्स एवं ब्रोकिओल्स
- कार्ब ऐमीनो हीमोग्लोबिन एवं ऑक्सीहीमोग्लोबिन।
उत्तर:
(1) ट्रैकिओल्स एवं ब्रोकिओल्स में अंतर –
ट्रैकिओल्स (Tracheoles):
कीटों की श्वासनली के अग्र भाग पर ऊतकों से बनी अधिक संख्या में शाखाएँ पाई जाती हैं, जिसके द्वारा गैसीय विनिमय अर्थात् O2 का लेना एवं CO2 का छोड़ना होता है।
ब्रोकिओल्स (Bronchioles):
स्तनधारियों में प्रत्येक ब्रोंकाई कई छोटी शाखाओं में विभाजित हो जाती है, जिसे ब्रोंकिओल्स कहते हैं। इन ब्रोंकिओल्स में गैसीय विनिमय नहीं होता।
(2) कार्ब ऐमीनो हीमोग्लोबिन एवं ऑक्सीहीमोग्लोबिन में अंतर –
कार्ब ऐमीनो हीमोग्लोबिन (Carbamino haemoglobin):
- कार्बन-डाइऑक्साइड जब एरिथ्रोसाइट (R.B.Cs.) में प्रवेश करती है तो वह इसके ग्लोबिन भाग से जुड़कर कार्ब ऐमीनो हीमोग्लोबिन बनाती है।
- इसे अशुद्ध रक्त कहा जाता है।
ऑक्सीहीमोग्लोबिन (Oxyhaemoglobin):
- ऑक्सीजन एरिथ्रोसाइट में विसरित होकर हीमोग्लो बिन के Fe भाग से जुड़कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है।
- इस प्रकार के रक्त को शुद्ध रक्त कहा जाता है।
प्रश्न 13.
गैसीय आदान-प्रदान के लिए श्वसन सतह में क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं ?
उत्तर:
गैसीय आदान-प्रदान के लिए श्वसन सतह में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –
- श्वसन सतह पतली होती है, जिससे गैसों का आदान-प्रदान सरलता से हो सके।
- श्वसन सतहों में म्यूकस ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं, जिनके कारण यह हमेशा नम बनी रहती है। इस नमी में आदान-प्रदान से सम्बन्धित गैसें सरलता से घुलकर आदान-प्रदान को सरल बनाती हैं।
- श्वसन सतहों में रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है, जिससे गैसें परासरित होकर इनके रुधिर में घुल जाती हैं।
- श्वसन सतहों का क्षेत्रफल सामान्य से अधिक होता है, जिससे अधिक-से-अधिक गैसों का आदान-प्रदान हो सके।
श्वसन और गैसों का विनिमय दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मनुष्य के श्वसन संबंधी किन्हीं चार रोगों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
श्वसन संबंधी कौन-कौन-सी अनियमितताएँ हो सकती हैं ?
उत्तर:
श्वसन तंत्र से संबंधित निम्नलिखित बीमारियाँ या विकार उत्पन्न हो सकते हैं –
(1) अस्थमा (Asthma):
यह एक प्रकार की एलर्जी प्रतिक्रिया है, जिसमें म्यूकस द्रव गाढ़ा हो जाता है। इस कारण नि:श्वसन में बाधा उत्पन्न होती है। यह रोग सामान्यतः पुष्पों के परागकण या भोज्य-पदार्थों से ऐलर्जी उत्पन्न होने के कारण होता है।
(2) सर्दी-जुकाम (Common Cold):
यह रोग वाइरस के कारण होता है। नासिका की म्यूकस झिल्ली में सूजन हो जाती है एवं म्यूकस द्रव का स्रावण अधिक हो जाता है। नाक बन्द हो जाती है एवं साँस लेने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
(3) इनफ्लूएन्जा (Influenza):
यह रोग इन्फ्लुएन्जा वाइरस के द्वारा होता है। इस रोग में म्यूकस झिल्ली में सूजन आ जाती है।
(4) एम्फिसेमा (Emphysema):
यह सामान्यतः धूम्रपान एवं प्रदूषण के कारण होता है। इसमें कूपिका की दीवार नष्ट हो जाने के कारण फेफड़ों के वायु ग्रहण या वायु विनिमय की क्षमता नष्ट हो जाती है।
(5) फुफ्फुस कैन्सर (Lung Cancer):
यह सामान्यत: धूमपान करने वाले व्यक्तियों में अधिक होता है। इस रोग के कारण ऊतक असामान्य वृद्धि करते हैं एवं रोगी की मृत्यु निश्चित होती है।
प्रश्न 2.
PO2 का ऑक्सीजन के परिवहन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
पल्मोनरी धमनी में ऑक्सीजनविहीन रुधिर पाया जाता है, जिसका PO2 (40 mmHg) ऐल्विओलाई के PO2 से कम (100 mm Hg) होता है। अतः आंशिक दाब (Partial pressure) में इस अंतर के कारण ऐल्विओलर O2 विसरित होकर कोशिकाओं में चली जाती है। इसे
ऑक्सीजनीकरण (Oxygenation) कहते हैं। यह ऑक्सीजन युक्त रुधिर ऐल्विओलर कोशिकाओं से पल्मोनरी शिरा (Pulmonary veins) में जाकर एकत्रित हो जाता है। पल्मोनरी शिरा में PO2 का मान लगभग 95 mm Hg होता है।
इस अवस्था में ऑक्सीजन युक्त रुधिर में, O2की मात्रा 19.8% होती है। इसी प्रकार ऐल्विओलर कोशिकाओं में उपस्थित ऑक्सीजन रहित (Deoxygen Capillary ated) रुधिर के PCO2 के मान 46 mm Hg होता है, जो कि एल्विओलर वायु के PCO2 (40 mm Hg) से अधिक होता है। अत:PCO2 के मान में इस अंतर के कारण CO2 ऐल्विओलर कोशिकाओं में विसरित होकर ऐल्विओलाई (Alveoli) में चली जाती है तथा क्रिया तब तक होती है, जब तक कि रक्त का PCO2 मान घटकर 40 mm Hg तक नहीं हो जाता है।
इस आंशिक दाब (Partial pressure) पर धमनी में उपस्थित रक्त में CO2 की मात्रा 52.7% होती है, जो कि शिराओं में पहुँचकर घटकर 49% तक हो जाती है। इस प्रकार ऐल्विओलर वायु में उपस्थित O2 पल्मोनरी शिरा के रुधिर में तथा रुधिर में उपस्थित CO2 पल्मोनरी धमनी में चली जाती है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित श्वसनांगों को चित्र द्वारा समझाइए –
- लैरिक्स
- ट्रैकिया
- ब्रोंकाई
- फेफड़े।
उत्तर:
स्तनी वर्ग का श्वसन तंत्र मुख्यतः चार अंगों लैरिक्स, ट्रैकिया ब्रोंकाई एवं फेफड़ों का बना होता है –
(1) कंठ या लैरिक्स (Larynx):
मनुष्य के नासाछिद्र नासापथ ग्रसनी में खुलते हैं। ग्रसनी की वायु एक छोटे से कोष्ठ में खुलती है, जिसे कंठ (Larynx) कहते हैं। यह भोजन नली की प्रतिपृष्ठ सतह पर स्थित होता है। इसकी गुहा को कण्ठकोष कहते हैं, जो आगे की तरफ ग्लॉटिस छिद्र द्वारा ग्रसनी से जुड़ा होता है। इसके ऊपर एपिग्लॉटिस नामक एक उपास्थि पायी जाती है, जो भोजन निगलते समय ग्लॉटिस को बन्द कर देती है, जिससे इसमें भोजन नहीं जा पाता, लेकिन श्वासोच्छ्वास के समय ग्लॉटिस को खोलकर वायु का आदान-प्रदान होने देती है।
कंठ उपास्थियों थायरॉइड, क्रिकॉइड और एक जोड़ी एरिटेनॉइड से घिरा रहता है। कंठ स्वर उत्पादक अंग है, जिसमें वाक्रज्जु नामक दो तन्तुमय रचनाएँ पायी जाती हैं। जब फेफड़े की वायु इनसे होकर गुजरती है, तब कम्पन के कारण ये ध्वनि पैदा करते हैं।
(2) ट्रैकिया या श्वासनाल (Trachea):
लैरिंक्स नीचे की ओर एक नली में खुलती है, जिसे श्वासनाल (Trachea) कहते हैं। वह वायु को ब्रोंकाई में पहुँचाती और लगभग 12 cm लम्बी पूरी गर्दन की लम्बाई में स्थित होती है। इसका कुछ भाग वक्षीय गुहा में भी स्थित होता है। इसकी दीवार पतली तथा लचीली होती है, जिसमें ‘C’ आकार के उपास्थि छल्ले पाये जाते हैं। ये छल्ले इसे पिचकने से बचाते हैं। इसकी आन्तरिक सतह पर तन्तुमय श्लेष्मा झिल्ली पायी जाती है। यह श्वसन में ली गयी वायु को फेफड़े तक तथा फेफड़े की वायु को कण्ठ तक पहुँचाती है।
(3) ब्रोंकाई (Bronchi):
ट्रैकिया वक्षगुहा में जाकर दो शाखाओं में बँट जाती है, इन शाखाओं को ब्रोंकाई कहते हैं। ये ब्रोंकस अपनी तरफ के फेफड़े में जाकर कई शाखाओं में बँट जाते हैं, जिन्हें ब्रोंकिओल कहते हैं। प्रत्येक ब्रोकिओल पुन: 2 से 11 शाखाओं में बँट जाता है, जिन्हें कूपिका वाहिनियाँ कहते हैं। इनका ऊपरी शिरा फुलकर कूपिका कोष बनाता है। प्रत्येक कूपिका कोष में अनेक छोटी कूपिकाएँ पायी जाती हैं। ये कूपिकाएँ फेफड़े की दीवार में स्थित होती हैं, जिनमें रुधिर कोशिकाएँ फैली होती हैं यहीं पर गैसीय आदान-प्रदान होता है।
(4) फेफड़े (Lungs):
इनकी संख्या 2 होती है। हृदय को छोड़कर समस्त उदरगुहा को यह घेरे रहता है। फेफड़ों के चारों ओर पायी जाने वाली गुहा को फुप्फुसीय गुहा (Pleural cavity) कहते हैं। फेफड़ों के चारों तरफ एक पतला आवरण पाया जाता है, जिसे विसरल प्लूरा (Visceral pleura) कहते हैं। प्लूरल गुहा के चारों ओर एक आवरण पाया जाता है, जिसे पेराइटल प्लूरा (Parietal pleura) कहते हैं।
इन्हीं दोनों आवरणों के बीच प्लूरल गुहा पाई जाती है। संरचनात्मक दृष्टि से फेफड़े में ब्रोन्क्रिओल्स, कूपिका वाहिका, कूपिका, रुधिर वाहिकाओं का जाल पाया जाता है। फेफड़े में वायु कोषों की उपस्थिति के कारण गैसीय विनिमय के लिए मनुष्य में 2,000 वर्ग फीट क्षेत्र प्राप्त होता है।