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MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 2 भारत के संसाधन II

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

सामाजिक विज्ञान कक्षा 10 पाठ 2 के प्रश्न उत्तर MP Board प्रश्न 1.
भारत में सर्वाधिक रबर का उत्पादन होता है
(i) केरल में
(ii) तमिलनाडु में
(iii) असम में
(iv) कर्नाटक में।
उत्तर:
(i) केरल में

कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान पाठ 2 प्रश्न उत्तर MP Board प्रश्न 2.
नीली क्रान्ति का सम्बन्ध है (2009)
(i) फलोत्पादन से
(ii) मछली उत्पादन से
(iii) भेड़ पालन से
(iv) दुग्ध उत्पादन से।
उत्तर:
(ii) मछली उत्पादन से

Bharat Ke Sansadhan Class 10th MP Board प्रश्न 3.
लौह अयस्क का प्रकार नहीं है
(i) हेमेटाइट
(ii) मैग्नेटाइट
(iii) सिडेराइट
(iv) बॉक्साइट।
उत्तर:
(iv)

प्रश्न 4.
मध्य प्रदेश किस खनिज के उत्पादन में भारत में प्रथम स्थान रखता है ? (2014, 18)
(i) लोहा
(ii) अभ्रक
(iii) सोना
(iv) हीरा।
उत्तर:
(iv) हीरा।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. पीत क्रान्ति का सम्बन्ध ………… से है।
  2. श्वेत क्रान्ति द्वारा भारत में ………… को बढ़ावा मिला है। (2009, 13)
  3. प्रति हेक्टेयर गेहूँ का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य ………… है।
  4. सोयाबीन उत्पादन में प्रथम स्थान प्राप्त भारतीय राज्य ………… है। (2010, 15)

उत्तर:

  1. खाद्य तेलों और तिलहन फसलों
  2. दुग्ध उत्पादन
  3. उत्तर प्रदेश
  4. मध्य प्रदेश।

सही जोड़ी मिलाइए
सामाजिक विज्ञान कक्षा 10 पाठ 2 के प्रश्न उत्तर MP Board
उत्तर:

  1. → (ख)
  2. → (ङ)
  3. → (घ)
  4. → (क)
  5. → (ग)।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
खाद्यान्न फसलों से क्या तात्पर्य है ? खरीफ व रबी की फसल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
रबी और खरीफ की फसलों में कोई तीन अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2018)
उत्तर:
खाद्यान्न फसलें-खाद्यान्न फसलों से हमारा आशय उन फसलों से है जो भोजन के लिए मुख्य पदार्थ का कार्य करती हैं। खाद्यान्न फसलों में अनाज व दालें सम्मिलित हैं;
जैसे – चावल, गेहूँ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना, अरहर (तुअर) व अन्य दालें।

खरीब व रबी की फसल में अन्तर –

खरीफ

  1. यह ऋतु मानसून के आगमन के साथ ही शुरू होती है।
  2. इसकी प्रमुख फसलें चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, पटसन और मूंगफली आदि हैं।
  3. इन फसलों के पकने में कम समय लगता है।
  4. इन फसलों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता
  5. ये फसलें सितम्बर-अक्टूबर में काटी जाती हैं।

रबी

  1. यह फसल मानसून ऋतु के बाद शरद ऋतु के साथ शुरू होती है।
  2. इसकी मुख्य फसलें गेहूँ, जौ, चना, सरसों और अलसी जैसे तेल निकालने के बीज आदि हैं।
  3. इन फसलों के पकने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है।
  4. इन फसलों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता है।
  5. ये फसलें मार्च-अप्रैल में काटी जाती हैं।

प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति से आप क्या समझते हैं ? (2018)
उत्तर:
हरित क्रान्ति-हरित क्रान्ति का आशय कृषि उत्पादन में उस तीव्र वृद्धि से है, जो अधिक उपज देने वाले (High Yielding Variety) बीजों, रासायनिक उर्वरकों व नई तकनीक के प्रयोग के परिणामस्वरूप हुई है। इस क्रान्ति के फलस्वरूप फसलों की उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है। भारतीय कृषि में उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश में गेहूँ व चावल का अधिक उत्पादन उन्नत किस्म के बीजों की देन है।

प्रश्न 3.
श्वेत क्रान्ति व पीत क्रान्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2018)
उत्तर:
श्वेत क्रान्ति व पीत क्रान्ति में अन्तर

श्वेत क्रान्ति

  1. श्वेत क्रान्ति का पशुपालन से निकट का सम्बन्ध है।
  2. इसे पीली क्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
  3. श्वेत क्रान्ति का अर्थ है डेरी विकास कार्यक्रमों के द्वारा दूध के उत्पादन में वृद्धि।
  4. सरकार द्वारा इस क्रान्ति के अन्तर्गत विदेशी नस्लों की गायों तथा स्थानीय गायों के संकरण से नई जातियों का विकास किया है जो अधिक दूध देती हैं।

पीत क्रान्ति

  1. पीली क्रान्ति का सम्बन्ध खाद्य तेलों और तिलहन फसलों से है।
  2. इसे ऑपरेशन फ्लड के नाम से जाना जाता है।
  3. खाद्य तेलों और तिलहन फसलों के उत्पादन के क्षेत्र में अनुसन्धान और विकास करने की रणनीति को पीली क्रान्ति कहते हैं।
  4. 1987-88 में भारत सरकार ने टेक्नोलॉजी मिशन की शुरुआत की, साथ ही सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में पर्याप्त वृद्धि की है और किसानों को अच्छे बीज उपलब्ध कराकर देश की तिलहन उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास किया है।

प्रश्न 4.
औषधीय उद्यान विधि के प्रमुख घटक कौन-कौनसे हैं ?
अथवा
औषधीय उद्यान विधि के अन्तर्गत कौन-कौनसी फसलों का उत्पादन सम्भव है ? लिखिए। (2009)
उत्तर:
औषधीय उद्यान विधि के घटक निम्नलिखित हैं –

  1. फल – भारत में उष्ण कटिबन्धीय फलों के अन्तर्गत आम, केला, नीबू, अनन्नास, पपीता, अमरूद, चीकू, लीची, अंगूर तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय फलों में सेब, आडू, नाशपाती, खूबानी, बादाम, अखरोट और शुष्क क्षेत्र के फलों में आँवला, बेर, अनार, अंजीर का उत्पादन होता है।
  2. सब्जियाँ – सब्जियों की पैदावार में चीन के बाद दूसरा स्थान भारत का है। भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख सब्जियाँ टमाटर, प्याज, बैंगनी, पत्तागोभी, फूल गोभी, मटर, आलू, खीरा हैं।
  3. फूल – गुलाब, ग्लैडियोला, ट्यूबरोज, कोसादा प्रमुख फूल हैं। इनकी खेती भारत में परम्परागत ढंग से हो रही है।
  4. मसाले – भारत मसालों का घर कहा जाता है। यहाँ काली मिर्च, इलायची, अदरक, लहसुन, हल्दी, मिर्च के साथ-साथ बीज वाले मसालों का भी उत्पादन होता है।
  5. औषधीय व सुगन्धित पौधे – लगभग 2000 देशीय प्रजातियों को औषधि के रूप में एवं 1,300 प्रजातियों को सुगन्धित एवं महक देने वाले पौधों के रूप में चिन्हित किया गया है।

प्रश्न 5.
उद्यानिकी विकास कार्यक्रम के प्रमुख प्रावधान बताइए। (2017)
उत्तर:
उद्यानिकी विकास कार्यक्रम के प्रमुख प्रावधान निम्नवत् हैं –

  1. कलम बैंक स्थापित करने सहित पर्याप्त गुणवत्ता वाले पौधों का उत्पादन और पूर्ति की क्षमता बढ़ाना।
  2. बागवानी फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करना।
  3. मिट्टी एवं पत्तियों के परीक्षण हेतु प्रयोगशालाएँ, पौधशालाएँ, पाली हाउस, ग्रीन हाउस की सुविधाएँ बढ़ाना।
  4. निर्यात के लिए उच्च किस्म की बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाना।
  5. विपणन एवं निर्यात के लिए मूलभूत सुविधाओं में वृद्धि करना।

प्रश्न 6.
खनिज पदार्थ का क्या महत्त्व है ? (2017)
उत्तर:
धरातल के नीचे बहुत गहराई तक खोदकर बहुत-से पदार्थ निकाले जाते हैं जिन्हें खनिज पदार्थ कहते हैं।
खनिज के महत्त्व –

  1. औद्योगिक विकास का आधार खनिज है।
  2. यातायात के सभी साधन, मशीनें, उपकरण, कृषि, यन्त्र, पेट्रोलियम से बने पदार्थ, सोना, चाँदी व हीरे से बने आभूषण आदि हमें खनिजों से ही प्राप्त होते हैं।
  3. लोहा और कोयला दो ऐसे खनिज हैं, जिनके बिना औद्योगिक प्रगति सम्भव नहीं है।
  4. खनिजों का शक्ति के साधनों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका विकास किये बिना कोई भी देश या क्षेत्र आर्थिक और औद्योगिक प्रगति नहीं कर सकता। इससे स्पष्ट है कि खनिजों का मानव के लिए अत्यधिक महत्त्व है।
  5. दैनिक जीवन में काम आने वाली प्रत्येक वस्तु का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खनिजों से सम्बन्ध जुड़ा है।

प्रश्न 7.
धातु के आधार पर खनिज पदार्थों के कौन-कौनसे प्रकार हैं?
उत्तर:
धात्विक खनिज – वे खनिज पदार्थ, जिनमें धातु पर्याप्त मात्रा में मिलती है। लोहा, मैंगनीज, क्रोमाइट, टंगस्टन, बेरिल आदि लौह वस्तुएँ हैं। अलौह धातुएँ ताँबा, सोना, चाँदी, सीसा, टिन, जस्ता एवं बॉक्साइट आदि हैं।

प्रश्न 8.
आधुनिक युग में लोहे का क्या महत्व है ?
उत्तर:
भू-गर्भ से प्राप्त होने वाले खनिजों में लौह अयस्क सबसे अधिक महत्वपूर्ण खनिज है। यह धरातल में सुलभ और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध खनिज है। मानव के विकास में लोहे का महत्त्वपूर्ण योगदान है। यह केवल औद्योगिक ढाँचे की रीढ़ ही नहीं, बल्कि आधुनिक युग के प्रत्येक क्षेत्र की आधारशिला है।

वर्तमान में मनुष्य के उपयोग में आने वाली छोटी-छोटी वस्तुएँ; जैसे सुई, ब्लेड, आलपिन, चाकू आदि से लेकर विशाल मशीनें, ट्रैक्टर, मोटर, वायुयान, रेल, अस्त्र-शस्त्र आदि सभी वस्तुओं का निर्माण लोहे से होता है। लोहे का प्रयोग भवन बनाने, कारखानों का निर्माण करने, वस्त्र बनाने आदि अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया जाता है। मानव जीवन की प्रत्येक आवश्यकता को पूरा करने और जीवन को सुखमय बनाने में लौह अयस्क का महत्त्वपूर्ण योगदान है। यदि लोहे का अभाव होता तो आज आर्थिक प्रगति एवं औद्योगिक विकास बिल्कुल सम्भव नहीं होता। अत: वर्तमान युग में लौह-अयस्क विकास के जन्मदाता हैं।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान को स्पष्ट कीजिए। (2009, 13, 15)
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान
कृषि हमारा प्राथमिक व्यवसाय है। इसमें फसलों की खेती तथा पशुपालन दोनों ही सम्मिलित हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान निम्न तथ्यों से स्पष्ट है –

(1) जनसंख्या का भरण-पोषण-भारतीय कृषि से विश्व की लगभग 17 प्रतिशत जनसंख्या का पोषण हो रहा है। कृषि हमारी दो-तिहाई जनसंख्या का भरण-पोषण करती है।

(2) रोजगार में योगदान-भारतीय कृषि में देश की लगभग दो-तिहाई श्रमशक्ति लगी हुई है। इसके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप में भी अनेक लोगों को रोजगार मिला है। लोग या तो दस्तकारी में लगे हैं या गाँवों में कृषि उत्पादों पर आधारित छोटे-मोटे उद्योग-धन्धों में लगे हैं। साथ ही कृषि में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देने की सम्भावनाएँ छिपी हैं।

(3) उद्योग-धन्धों का आधार-कृषि हमारे देश के अनेक छोटे-बड़े तथा कुटीर उद्योगों का प्रमुख आधार है, क्योंकि इन उद्योगों के लिए कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है; जैसे-कपड़ा उद्योग के लिए कपास, जूट उद्योग के लिए जूट (पटसन), चीनी उद्योग के लिए गन्ना तथा अन्य अनेक उद्योगों के लिए तिलहन इत्यादि कृषि से ही प्राप्त होते हैं। इस प्रकार देश का औद्योगिक विकास बहुत कुछ कृषि पर ही आधारित है।

(4) निर्यात व्यापार में महत्त्व-भारत के विदेशी व्यापार में भी कृषि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। चाय, तिलहन, तम्बाकू, मसाले, कहवा, रुई, जूट, आलू, गुड़, प्याज, सूती वस्त्र, चीनी आदि अनेक वस्तुएँ जिनका भारत विदेशों को निर्यात करता है, कृषि से ही प्राप्त होती हैं। इनके निर्यात से हमें दुर्लभ विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। देश के कुल निर्यात का लगभग 13.4% भाग कृषि से सम्बन्धित वस्तुओं का ही होता है।

(5) खाद्य सामग्री की उपलब्धि-कृषि में लगभग 62.5% करोड़ लोगों को खाद्य सामग्री; जैसे गेहूँ, चावल, जौ, चना, दालें, मक्का, ज्वार, बाजरा, फल, मेवा एवं शाक-सब्जियाँ, तिलहन तथा विविध प्रकार के मसाले प्राप्त होते हैं।

खाद्य पदार्थों की प्राप्ति एवं पूर्ति के सम्बन्ध में महात्मा गांधी का कथन है, “जीवन-कृषि पर निर्भर करता है। जहाँ, कृषि लाभदायक नहीं है वहाँ स्वयं जीवन भी लाभदायक नहीं हो सकता है।”

संक्षेप में, भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण आधारशिला है। इसकी सफलता या विफलता का प्रभाव देश की खाद्य समस्या, सरकारी आय, आन्तरिक व विदेशी व्यापार, यातायात के साधनों तथा राष्ट्रीय आय पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। इसलिए कहा जाता है मानव जीवन में जो महत्त्व आत्मा का है वही भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का है।

प्रश्न 2.
भारत की प्रमुख कृषि उपजों का वर्णन करते हुए कृषि विकास हेतु किए गए सरकारी प्रयासों का वर्णन कीजिए।
अथवा
श्वेत क्रान्ति क्या है ? (2016)
[संकेत-श्वेत क्रान्ति शीर्षक देखें।
उत्तर:
भारत की प्रमुख कृषि उपजें

  1. खरीफ की फसलें-वे फसलें जो वर्षा के आरम्भ (जून, जुलाई) में बोयी जाती हैं एवं दशहरे के बाद शरद ऋतु के अन्त (अक्टूबर, नवम्बर) तक तैयार हो जाती हैं, खरीफ की फसलें कहलाती हैं। मानसून के आगमन पर बोई जाने वाली प्रमुख खरीफ फसलें चावल, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, गन्ना, कपास, पटसन, तिली, मूंगफली आदि हैं।
  2. रबी की फसलें-जो फसलें शरद ऋतु के आगमन पर दशहरे के पश्चात् अक्टूबर, नवम्बर में बोई जाती हैं और ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में मार्च, अप्रैल में तैयार हो जाती हैं, रबी की फसलें कहलाती हैं। गेहूँ, चना, ‘ जौ, सरसों, तम्बाकू आदि रबी की फसलें हैं।
  3. जायद फसलें-विशेषतः ग्रीष्म ऋतु में पैदा की जाने वाली सब्जियाँ और हरे चारे की फसलें जायद की फसलें कहलाती हैं।
  4. खाद्यान्न फसलें- लघु उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
  5. नकद व व्यापारिक फसलें- अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न का अति लघु उत्तरीय प्रश्न 5 का उत्तर देखें।

कृषि विकास हेतु सरकारी प्रयास
(1) हरित क्रान्ति- लघु उत्तरीय प्रश्न 2 का उत्तर देखें।

(2) श्वेत क्रान्ति-श्वेत क्रान्ति का अर्थ है डेरी विकास कार्यक्रमों के द्वारा दुग्ध उत्पादन में वृद्धि। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में दूध का उत्पादन बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया है। सरकार द्वारा विदेशी नस्लों की गायों तथा स्थानीय गायों के संकरण से नई जातियों का विकास किया है जो अधिक दूध देती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों का गठन कर गाँवों में दुग्ध उत्पादकों के दूध को एकत्रित करके उसे बेचने का प्रबन्ध करती हैं। ये समितियाँ ऋण देती हैं तथा पशुओं की चिकित्सा की व्यवस्था भी करती हैं। यह आन्दोलन गुजरात के खेड़ा जिले से प्रारम्भ होकर बड़ी तेजी से महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में पहुँच गया। 1999-2000 में देश में कुल दुग्ध उत्पादन 781 लाख टन था जो बढ़कर 2015-16 में लगभग 1,555 लाख टन हो गया।

(3) पीत क्रान्ति-खाद्य तेलों और तिलहन फसलों के उत्पादन के क्षेत्र में अनुसन्धान और विकास करने की रणनीति को पीली क्रान्ति (Yellow Revolution) कहते हैं। साठ के दशक तक भारत तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर था, किन्तु कुल भूमि में तिलहन फसलों के घटते क्षेत्रफल, खाद व उर्वरकों के नगण्य उपयोग, सिंचाई के सीमित साधन, बढ़ती आबादी और फसल सुरक्षा एवं वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग न करने से देश में खाद्य तेलों की कमी हो गई है। तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास किये गये; जैसे–1987-88 में भारत सरकार ने एक टेक्नोलॉजी मिशन की शुरुआत की जिसके द्वारा राष्ट्रीय, राज्य व स्थानीय स्तर पर गठित सरकारी समितियों, कृषि अनुसन्धान संस्थाओं एवं ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं की मदद से तिलहन उत्पादन को अधिक लाभप्रद बनाने के उपाय किए। सरकार ने तिलहन के समर्थन मूल्य, भण्डारण और वितरण की सुविधाओं में वृद्धि की।

गुलाबी क्रान्ति – अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न का अति लघु उत्तरीय प्रश्न 2 का उत्तर देखें।

नीली क्रान्ति – देश में मछली उत्पादन में हुई प्रगति को नीली क्रान्ति (Blue Revolution) कहते हैं। भारत विश्व में कुल मछली उत्पादन में तीसरा बड़ा राष्ट्र है। देश में मछली उत्पादन को बढ़ाने के लिए विश्व बैंक की सहायता से एक परियोजना 5 राज्यों में लागू की गई है। मछली उत्पादन से भोजन की आपूर्ति बढ़ती है, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं तथा विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। वर्ष 2015-16 में देश में 107.95 लाख टन मछली की उत्पादन हुआ।

प्रश्न 3.
भारत में लोहा या मैंगनीज उत्पादक क्षेत्रों के वितरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में लोहा उत्पादक क्षेत्रों के वितरण का वर्णन कीजिए। (2014)
उत्तर:
लोहा अयस्क आधुनिक औद्योगिक सभ्यता का आधार लोहा है। विश्व के लोहा उत्पादन राष्ट्रों में भारत का आठवाँ स्थान है परन्तु उत्कृष्ट लोहे की प्राप्ति में भारत का दूसरा स्थान है।
लोहा चार प्रकार का होता है-हेमेटाइट (Haematite), मैग्नेटाइट (Magnetite), लिमोनाइट (Limonite) तथा सिडेराइट (Siderite)।

भारत में लोहा उत्पादक क्षेत्रों का वितरण निम्न प्रकार है –

  1. उत्तरी पूर्वी क्षेत्र-झारखण्ड राज्य के सिंहभूमि की प्रसिद्ध लोहा खदानें मनोहरपुर, पाशिराबरु, बुढ़ाबुरु, गुआ और नोआमुण्डो हैं। उड़ीसा के मयूरभंज जिले में गुरूमहिसानी, सलाइपट तथा बादाम पहाड़ की खदानें प्रमुख हैं।
  2. मध्य भारत क्षेत्र-इस क्षेत्र में गोवा, मध्य प्रदेश में जबलपुर, मण्डला, बालाघाट, छत्तीसगढ़ का दुर्ग, रायगढ़, बिलासपुर और महराष्ट्र के चाँदा और रत्नागिरि जिलों में लौह भण्डार हैं। दुर्ग जिले में डल्ली व राजहरा और बस्तर की बैलाडिला एवं राउघाट की खदानें प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के अरावली क्षेत्र, उदयपुर व भीलवाड़ा, डूंगरपुर व बूंदी जिलों में भी लौह खदानें हैं।
  3. प्रायद्वीपीय क्षेत्र-कर्नाटक के चिकमंगलूर, बेल्लारि, उत्तरी कन्नड तथा चित्रदुर्ग जिलों में, तमिलनाडु के सलेम, तिरुचिरापल्ली तथा दक्षिणी अर्काड जिलों में तथा आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर, कुर्नूल तथा नेल्लूर जिलों में लोहे की खदानें हैं।।
  4. अन्य क्षेत्र-हरियाणा के महेन्द्रगढ़, हिमाचल प्रदेश के मण्डी में, उत्तराखण्ड के गढ़वाल, अल्मोड़ा तथा नैनीताल, केरल के कोझिकोड, जम्मू व कश्मीर के जम्मू व ऊधमपुर जिलों तथा नागालैण्ड में लोहे के भण्डार हैं।

मैंगनीज अयस्क

भारत मैंगनीज के उत्पादन में बहुत धनी है तथा यहाँ उत्तम कोटि का मैंगनीज निकाला जाता है। मैंगनीज उत्पादन में भारत का विश्व में द्वितीय स्थान है। विश्व के कुल उत्पादन का 19 प्रतिशत मैंगनीज यहाँ निकाला जाता है। जिस धातु में मैंगनीज व लोहा दोनों अधिक मात्रा में मिश्रित रहते हैं, उसे मैंगनीज लौह अयस्क कहते हैं। 5 प्रतिशत से कम मैंगनीज के अंश होने पर लौह अयस्क कहलाता है।

भारत में मैंगनीज उत्पादन क्षेत्रों का वितरण निम्न प्रकार है –

  1. मध्य भारतीय खदानें-इस क्षेत्र में भारत का 50 प्रतिशत मैंगनीज का उत्पादन होता है। मुख्य खदानें महाराष्ट्र के भण्डारा, रत्नागिरि व नागपुर, मध्य प्रदेश के बालाघाट, छिन्दवाड़ा, सिवनी, मण्डला, धार, झाबुआ, छत्तीसगढ़ के बस्तर, गुजरात के खेड़ा व पंचमहल और राजस्थान के उदयपुर एवं बाँसवाड़ा में स्थित है।
  2. प्रायद्वीपीय खदानें-कर्नाटक के उत्तरी कन्नड़, चित्रदुर्ग, चिकमंगलूर, शिमोगा, बेल्लारि तथा तुमकुर जिलों में मैंगनीज अयस्क की खदानें हैं। आन्ध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम, कड़प्पा तथा श्रीकाकुलम में मैंगनीज मिलता है।
  3. उत्तरी-पूर्वी खदानें-झारखण्ड में सिंहभूमि और उड़ीसा के क्योंझर, गंजाम, सुन्दरगढ़ तथा बेलागिरि जिलों में मैंगनीज मिलता है।

प्रश्न 4.
जड़ी-बूटियों के औषधीय उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जड़ी-बूटियों के औषधीय उपयोग

औषधीय पौधे एवं जड़ी-बूटियों को मानव के लिए प्रकृति प्रदत्त अमूल्य उपहार कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रमुख औषधीय पौधे एवं उनका उपयोग निम्नानुसार है –

  1. अश्वगन्धा-आयुर्वेद में इसे गठिया के दर्द, जोड़ों की सूजन, पक्षाघात तथा रक्तचाप आदि रोगों के उपचार में इस्तेमाल करने की बात कही है। इसकी पत्तियों का उपयोग नेत्र व क्षय रोग के उपचार में किया जाता है।
  2. गिलोय-इसका तना सर्वाधिक उपयोगी होता है। इसके फल का उपयोग पीलिया व गठिया रोग के उपचार में तथा सूखे पाउडर को शहद के साथ मिलाकर बलवर्धक टॉनिक के रूप में एवं ज्वर में इसके तनों को छीलकर उसका रस निकालकर देना उपयोगी है।
  3. शतावरी-इसकी जड़ों से प्राप्त बलवर्धक टॉनिक मानसिक तनाव से मुक्ति, एनीमिया के उपचार, सूखी खाँसी, विष निरोधक, पुराने फोड़े-फुसी के उपचार में उपयोगी है।
  4. सर्पगंधा-इसकी जड़ों का उपयोग उच्च रक्तचाप में, श्वास रोग में, अनिद्रा, हिस्टीरिया, हैजा, पुराना बुखार आदि रोगों के उपचार में किया जाता है। इसके पत्तों का रस मोतियाबिन्द की सफेदी के उपचार में किया जाता है।
  5. ग्वारपाठा-इसे घृतकुमारी या ऐलोवेरा के नाम से भी जाना जाता है। शहद के साथ इसके पत्तों का रस लेने से खाँसी व कफ में आराम, पत्तों का ताजा गूदा लेने से गठिया, कटिवात व जोड़ों के दर्द में उपयोगी होता है। यह रुधिर विकार तथा त्वचारोग नाशक है।
  6. तुलसी-यह भारतवर्ष का एक सर्वरोग नाशक पौधा है जो अपने अनेक गुणों के कारण उपयोगी है। अस्थमा, खाँसी व सर्दी में तुलसी पत्तों को हल्दी व शहद के साथ काढ़ा बनाकर सेवन करने से फायदा होता है। बच्चों की सामान्य बीमारियों में भी तुलसी के पत्तों का रस लाभदायक होता है।

प्रश्न 5.
छोटा नागपुर के पठार को विश्व का खनिज आश्चर्य’ क्यों कहते हैं ? समझाइए। (2010)
उत्तर:
छोटा नागपुर का पठार खनिज पदार्थों की दृष्टि से इतना अधिक धनी है कि उसे ‘विश्व का खनिज आश्चर्य’ कहा जाता है। भारत का लगभग 40 प्रतिशत खनिज पदार्थ यहीं पाया जाता है। यह क्षेत्र बिहार राज्य के दक्षिणी भाग (यह भाग वर्तमान में झारखण्ड राज्य के अन्तर्गत आता है।) उड़ीसा और पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ है जो भारत के लगभग मध्य भाग में है।

छोटा नागपुर का सम्पूर्ण पठार प्राचीन कठोर शिलाओं का होने से यह अनेक प्रकार के धात्विक खनिजों का भण्डार है। बिहार और उड़ीसा में लौह-अयस्क की खदानें हैं। इसके अलावा यहाँ मैंगनीज, बॉक्साइट, अभ्रक, ताँबा, क्रोमाइट तथा चूने का पत्थर आदि खनिज पदार्थ पाये जाते हैं। इसीलिए छोटा नागपुर के पठार को भारत का ‘खनिज हृदय प्रदेश’ भी कहते हैं।

प्रश्न 6.
लोहे के उपयोग पर प्रकाश डालते हुए भारत में लोहा उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
लोहे का उपयोग-लघु उत्तरीय प्रश्न 8 का उत्तर देखें।
लोहा उत्पादक क्षेत्र- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 7.
अभ्रक का क्या उपयोग है ? भारत में अभ्रक कहाँ-कहाँ मिलता है ?
अथवा
अभ्रक के कोई दो उपयोग लिखिए। (2016)
उत्तर:
अभ्रक का उपयोग – यह पुरानी कायान्तरित शैलों में पाया जाता है। यह परतदार, हल्का तथा चमकीला होता है। यह गरमी तथा बिजली के लिये कुचालक होता है। बहुत-से उद्योगों में इसका उपयोग होता है; जैसे-औषधि बनाने में, बिजली के संचालन, टेलीफोन, रेडियो, वायुयान, मोटर परिवहन आदि उद्योग में। अभ्रक के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। विश्व का 26 प्रतिशत अभ्रक भारत से प्राप्त होता है।

अभ्रक उत्पादक क्षेत्र – अभ्रक मुख्यतया बिहार, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान व कर्नाटक राज्यों से प्राप्त होता है। भारत का 60 प्रतिशत अभ्रक बिहार और झारखण्ड से प्राप्त होता है। गया, मुंगेर व हजारीबाग जिलों में अभ्रक की खदानें हैं। बिहार का अभ्रक स्वच्छता एवं सफेदी के लिए विश्व प्रसिद्ध है इसीलिए बिहार के अभ्रक को रूबी अभ्रक’ (Ruby Mica) कहते हैं। तमिलनाडु में अभ्रक नीलगिरि, मदुराई, कोयम्बटूर तथा सलेम जिलों में पाया जाता है। आन्ध्र प्रदेश के नेल्लूर, गुण्टूर, विशाखापट्टनम तथा पश्चिमी गोदावरी जिलों में अभ्रक पाया जाता है। यहाँ का अभ्रक हरे रंग का होता है और शीघ्र पहचान में आ जाता है। राजस्थान के भीलवाड़ा, जयपुर, उदयपुर, टोंक, सीकर तथा अजमेर में अभ्रक मिलता है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर, छत्तीसगढ़ के बस्तर, कर्नाटक के हासन तथा केरल के पुन्नालूर जिले में अभ्रक पाया जाता है। इसके अलावा हरियाणा के नारलौल (महेन्द्रगढ़) व गुड़गाँव तथा हिमाचल प्रदेश के किन्नोर जिलों में भी अभ्रक मिलता है।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय

प्रश्न 1.
मूंगफली उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है ?
(i) प्रथम
(ii) द्वितीय
(iii) तृतीय
(iv) पाँचवाँ।
उत्तर:
(i)

प्रश्न 2.
उद्यानिकी विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया –
(i) 1999 में
(ii) 2002 में
(iii) 2005 में
(iv) 2006 में
उत्तर:
(iii)

प्रश्न 3.
‘जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स’ कहा जाता है –
(i) अभ्रक को
(ii) मैंगनीज को
(iii) लौह अयस्क को
(iv) कोयले को।
उत्तर:
(ii)

प्रश्न 4.
कोयला उत्पादन में भारत का स्थान है –
(i) प्रथम
(ii) द्वितीय
(iii) तृतीय
(iv) पाँचवाँ
उत्तर:
(iii)

प्रश्न 5.
भारत में खनिज तेल का उत्पादन सर्वप्रथम किस राज्य में प्रारम्भ हुआ ?
(i) असम
(ii) राजस्थान
(iii) गुजरात
(iv) कर्नाटक
उत्तर:
(i)

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय ताप बिजली निगम (एन. टी. पी. सी.) की स्थापना हुई
(i) वर्ष 1970 में
(ii) वर्ष 1972 में
(iii) वर्ष 1974 में
(iv) वर्ष 1975 में
उत्तर:
(iv)

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. स्वतन्त्रता से पर्व भारत में एकमात्र तेल शोधकशाला ……….. में थी।
  2. भारत में पहला जल विद्युत उत्पादन केन्द्र ……….. नामक स्थान पर स्थापित किया गया।
  3. हरित क्रान्ति का सम्बन्ध ……….. से है। (2009)

उत्तर:

  1. डिग्बोई
  2. शिवसमुद्रम (कर्नाटक)
  3. कृषि उत्पादन।

सत्य/असत्य

  1. विश्व में कुल क्षेत्रफल का 11 प्रतिशत भाग ही कृषि योग्य है।
  2. भारतीय कृषि में देश की लगभग एक-तिहाई श्रमशक्ति लगी हुई है।
  3. एन्थ्रेसाइट एक सर्वोत्तम कोयला है।
  4. हीरे की खुदाई सर्वप्रथम भारत में हुई थी।
  5. बायोमास ऊर्जा गैस एवं विद्युत दोनों रूपों में प्राप्त की जाती है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. सत्य

जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 2 भारत के संसाधन II 2
उत्तर:

  1. → (ग)
  2. → (क)
  3. → (घ)
  4. → (ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
गन्ना उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है ?
उत्तर:
प्रथम

प्रश्न 2.
‘श्वेत क्रांति’ की शुरुआत किस राज्य से हुई है ? (2012)
उत्तर:
गुजरात

प्रश्न 3.
ऊर्जा के स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कोयला, पेट्रोलियम, सौर ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा आदि

प्रश्न 4.
‘जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स’ किस अयस्क को कहते हैं ? (2013)
उत्तर:
मैंगनीज

प्रश्न 5.
भारत सरकार ने आणविक शक्ति विभाग की स्थापना किस वर्ष में की ?
उत्तर:
1954

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रबी और खरीफ की फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
रबी की फसलें-गेहूँ, चना, जौ, सरसों, तम्बाकू आदि रबी की फसलें हैं।
खरीफ की फसलें – चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, सोयाबीन, गन्ना, कपास, पटसन, तिली, मूंगफली आदि खरीफ की फसलें हैं।

प्रश्न 2.
‘गुलाबी क्रान्ति’ क्या है ? (2017)
उत्तर:
गुलाबी क्रान्ति-हमारे देश में विविध जलवायु एवं मृदा का उपयोग करते हुए उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय फलों (सेब, आम, केला, नारियल, काजू, अनन्नास, सन्तरा, नींबू, नाशपाती, आलूचे, खूवानी, बादाम) की कृषि को विकसित करने पर जोर दिया गया है, इसे ही ‘गुलाबी क्रान्ति’ का नाम दिया गया है।

प्रश्न 3.
ऊर्जा के परम्परागत एवं गैर-परम्परागत साधनों के नाम बताइए। (2014)
उत्तर:
ऊर्जा के परम्परागत साधन-कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस एवं विद्युत।
गैर – परम्परागत साधन-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जैविक ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा आदि।

प्रश्न 4.
भारत के चार परमाणु बिजलीघरों के नाम बताइए। उनमें से प्रत्येक किस राज्य में स्थित है ?
उत्तर:

  1. तारापुर-महाराष्ट्र,
  2. कोटा-राजस्थान
  3. कलपक्कम-तमिलनाडु
  4. नरौरा-उत्तर प्रदेश

प्रश्न 5.
नकद व व्यापारिक फसलों से क्या आशय है ?
उत्तर:
नकद व व्यापारिक फसलों से आशय उन फसलों से है जो प्रत्यक्ष रूप से भोजन के लिए उत्पन्न नहीं की जाती हैं किन्तु उन्हें बेचकर नकद राशि प्राप्त की जाती है। इनमें कपास, चाय, काफी, तिलहन, सोयाबीन, गन्ना, तम्बाकू, रबर आदि हैं।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौनसी हैं ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. उन्नत बीजों तथा वैज्ञानिक यन्त्रों का प्रयोग।
  2. रासायनिक खादों व उर्वरकों का प्रयोग करना।
  3. अधिक कृषि-उपज देने वाली फसलों को बोया जाना।
  4. पौध तथा भू-संरक्षण के लिए कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करना।
  5. कृषि सम्बन्धी अनुसन्धानों तथा शिक्षा की व्यवस्था करना।
  6. सघन खेती के कार्यक्रम को अपनाना।
  7. लघु एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं का विस्तार।
  8. कृषि उत्पादों के समर्थन मूल्य का निर्धारण करना।
  9. कृषि विपणन सुविधाओं में वृद्धि करना।
  10. कृषि वित्त एवं ऋण सुविधाओं का विस्तार करना।

प्रश्न 2.
उद्यानिकी विकास कार्यक्रम मुख्यतया किन राज्यों में लागू किया गया ? इसकी प्रमुख उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:
उद्यानिकी विकास कार्यक्रम को मुख्यतया जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड में लागू किया गया।
उपलब्धियाँ –

  1. विभिन्न बागवानी फसलों के अन्तर्गत 5,79,558 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को लाना।
  2. फल, सब्जी और मसालों के लिए क्रमश: 3,16,064 हेक्टेयर, 1,15,140 हेक्टेयर और 71,791 हैक्टेयर क्षेत्र को शामिल करना।
  3. औषधि एवं सुगन्धित पौधों और फूलों जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों के अन्तर्गत 82,572 हेक्टेयर क्षेत्र को शामिल करना।
  4. बेहतर उत्पादन के लिए मूलभूत सुविधाओं; जैसे-1003 नर्सरियों, 12,654 सामुदायिक जल टैंक, ड्रिप सिंचाई के अन्तर्गत 2,121 हेक्टेयर क्षेत्र को स्थापित करना।

प्रश्न 3.
ताँबे की उपयोगिता का वर्णन कीजिए और उसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
ताँबा एक धात्विक खनिज है। इसके अनेक उपयोग हैं। यह अलौह खनिजों की श्रेणी में आता मूल्यवान धातु है। यह विद्युत का सुचालक है। इसके अलावा मूर्ति, बर्तन तथा सजावट के सामान भी इस धातु द्वारा बनाये जाते हैं।

उत्पादक क्षेत्र – भारत ताँबा उत्पादन में अधिक धनी नहीं है। प्रमुख रूप से महत्त्वपूर्ण ताँबा अयस्क का भण्डार सिंहभूमि जिला (झारखण्ड), बालाघाट (मध्य प्रदेश), झुंझनू और अलवर (राजस्थान) में हैं। इसके अलावा ताँबा अयस्क के कुछ छोटे भण्डार आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, सिक्किम, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और . पश्चिम बंगाल में हैं।

प्रश्न 4.
बॉक्साइट का उपयोग बताते हुए उसके वितरण पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बॉक्साइट – बॉक्साइट एक अधातु खनिज है। इससे ऐल्युमिनियम तैयार होता है। विश्व के भण्डार में भारत का स्थान प्रमुख है, परन्तु उत्पादन में देश का स्थान नौवाँ है। भारत में बॉक्साइट झारखण्ड के राँची और पलामू; मध्य प्रदेश के बालाघाट, जबलपुर व मण्डला; महाराष्ट्र के कोल्हापुर, थाणे, बीड, रत्नागिरि, सतारा व कोलाबा; तमिलनाडु के सलेम; उत्तर प्रदेश के बाँदा तथा छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में मिलता है।

प्रश्न 5.
खनिज पदार्थों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
खनिज प्रकृति की अनुपम देन है। करोड़ों वर्षों में खनिज तैयार होते हैं। उनकी मात्रा सीमित है। मानव विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन निर्बाध रूप से कर रहा है। इससे खनिजों की मात्रा में भारी कमी आई है। इसके दुष्परिणाम आने वाले समय में देखने को मिल सकते हैं। मूल्यवान व उपयोगी खनिजों के दोहन में स्पर्धा इतनी बढ़ी गई है कि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण करने से भी नहीं चूकता। खनिज पदार्थों के असंयमित दोहन से प्राकृतिक असन्तुलन बिगड़ा है वहीं उसके अत्यधिक उपयोग से वातावरण में प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। इसलिए खनिज पदार्थों को भावी पीढ़ियों के उपयोग हेतु संरक्षण की आवश्यकता है।

प्रश्न 6.
खनिज पदार्थों के संरक्षण के उपाय लिखिए।
उत्तर:
खनिज पदार्थों के संरक्षण के उपाय-खनिज पदार्थों का संरक्षण हम निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं –

  1. प्रत्येक राष्ट्र को यह समझना चाहिए कि प्रकृति की यह सम्पदा आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है। इसलिए आर्थिक विकास की दौड़ में खनिज पदार्थों का दोहन सीमित कर दे जिससे मानव व प्रकृति का सन्तुलन बना रहे। प्रतिस्पर्धा के कारण मानवीय गुणों का हास न हो। विश्व बन्धुत्व की भावना रखकर हर देश खनिजों के वैकल्पिक साधन तलाशे।
  2. वातावरण प्रदूषित करने वाले पदार्थों का उपयोग बन्द किया जाना चाहिए।
  3. खनिज पदार्थों के विकल्प की खोज की जानी चाहिए।
  4. संयुक्त राष्ट्र संघ (U. N. O.) हर राष्ट्र द्वारा खनिज पदार्थों के दोहन व उपयोग पर निगरानी रखे।

प्रश्न 7.
ऊर्जा के परम्परागत व गैर-परम्परागत साधनों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
ऊर्जा के परम्परागत साधन

  1. कोयला, पेट्रोलियम, परमाणु ऊर्जा, जलशक्ति ऊर्जा के परम्परागत साधन हैं।
  2. जल-विद्युत के अतिरिक्त इन सभी साधनों से प्रदूषण फैलता है।
  3. जल-विद्युत को छोड़कर ये साधन अनापूर्ति साधनों की श्रेणी में आते हैं। इनका एक बार प्रयोग करने के बाद दुबारा प्रयोग करना सम्भव नहीं है।
  4. इनका प्रयोग गैर-परम्परागत साधनों के बाद हुआ है।

ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन

  1. सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, कूड़े-कचरे या गोबर या मल-मूत्र से तैयार ऊर्जा इस श्रेणी में आती है।
  2. ये साधन प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा देते हैं।
  3. ये सभी साधन आपूर्ति साधनों की श्रेणी में आते हैं। इनका प्रयोग निरन्तर सम्भव है।
  4. इनका प्रयोग बहुत पहले से हो रहा है।

प्रश्न 8.
शक्ति के संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
शक्ति के संसाधनों का संरक्षण-वर्तमान अर्थव्यवस्था में शक्ति के संसाधन ‘प्राणवायु’ की भूमिका में माने जाते हैं; जैसे-मानव का शरीर प्राण वायु के अभाव में मृत हो जाता है, ठीक वैसे ही अर्थव्यवस्था के विभिन्न घटक-कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि भी शक्ति संसाधनों के बिना संचालित नहीं हो सकते। अत: देश में उपलब्ध शक्ति के संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है जिससे मानव की शक्ति सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति सदैव होती रहे, शक्ति के संसाधन का समुचित उपयोग हो, शक्ति के स्रोतों से भविष्य में भी ऊर्जा मिलती रहे तथा शक्ति संसाधनों से पर्यावरण प्रदूषित न हो।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 2 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“मध्य प्रदेश खनिज सम्पदा का भण्डार है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2010)
उत्तर:
मध्य प्रदेश को खनिज सम्पदा की दृष्टि से धनी राज्यों की श्रेणी में रखा जाता है। यह प्रदेश न सिर्फ मैंगनीज, बॉक्साइट तथा कोयला प्रमुख क्षेत्र है, बल्कि हीरा उत्पादन में मध्य प्रदेश का स्थान भारत में प्रथम है।

छत्तीसगढ़ राज्य के विभाजन के पूर्व तक मध्य प्रदेश राज्य खनिज उत्पादन के क्षेत्र में राष्ट्र में प्रथम स्थान पर था, परन्तु वर्तमान में झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के बाद इसका स्थान तीसरा है। राज्य में 21 तरह के खनिज निकाले जाते हैं। हीरा उत्पादन में प्रदेश को राष्ट्र में एकाधिकार प्राप्त होने के साथ-साथ चूना-पत्थर, ताम्र अयस्क तथा स्लेट के उत्पादन में भी राज्य को प्रथम स्थान प्राप्त है। इसके अतिरिक्त प्रदेश को केलसाइट, लेटेराइट तथा रॉक फॉस्फेट के उत्पादन में भी द्वितीय तथा मैंगनीज के उत्पादन में तृतीय स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 2.
कोयले के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए भारत में कोयला उत्पादक क्षेत्रों के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कोयला
आधुनिक औद्योगीकरण के शुभारम्भ एवं विकास का श्रेय कोयला को है। कोयला को ‘उद्योग-धन्धों का जनक’ कहा जाता है। कोयले का निर्माण वनस्पतियों के विघटन से हुआ है। कार्बन, वाष्पशील द्रव्य, राख इत्यादि तत्व इसमें विद्यमान रहते हैं। यह अवसादी चट्टानों में मिलता है।

औद्योगिक क्रान्ति के बाद कोयले का महत्त्व सम्पूर्ण विश्व में बढ़ा है। वर्तमान में कोयले का उपयोग घरेलू ईंधन, संयन्त्र संचालन, विद्युत उत्पादन तथा अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनाने; जैसे- शृंगार सामग्री, नायलोन, बटन आदि के लिए भी होता है। अपनी तीन विशेषताओं- भाप बनाने, ताप प्रदान करने तथा धातुओं के पिघलाने के कारण वर्तमान में यह आधारभूत शक्ति साधन बना हुआ है। कोयले में कार्बन ज्वलनशील तत्व है। कार्बन की विद्यमान मात्रा के आधार पर भारतीय कोयला चार प्रकार का है –

  1. एन्थेसाइट – यह सर्वोत्तम कोयला है। भारत में मिलने वाले इस किस्म के कोयले में कार्बन की मात्रा 85 से 95 प्रतिशत तक है। यह कोयला अत्यधिक कठोर तथा चमकीला होता है। जलते समय धुआँ नहीं देता तथा ताप अधिक देता है।
  2. बिटुमिनस – यह द्वितीय श्रेणी का कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 70 से 80 प्रतिशत तक है। इसका रंग काला होता है तथा जलते समय कम धुआँ देता है।
  3. भूरा या लिग्नाइट – यह घटिया किस्म का कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 40 से 55 प्रतिशत तक होती है। यह छूने पर हाथ काला करता है तथा जलते समय अधिक धुआँ देता है।
  4. पीट – यह कोयले का प्राथमिक रूप है। इसका जमाव छिछले गड्डों में वनस्पति विघटन से हुआ है। इसमें कार्बन की मात्रा 20 प्रतिशत तक है और आर्द्रता 80 प्रतिशत तक है।

भारत में कोयले का उत्पादन एवं भण्डार

भारत का कोयले के उत्पादन में विश्व में तीसरा स्थान है। प्रथम स्थान चीन का, द्वितीय स्थान संयुक्त राज्य अमेरिका का है। भारत में कोयले का उत्पादन 1774 में प्रारम्भ हुआ। वर्तमान में भारत विश्व का 4.7 प्रतिशत कोयला उत्पादन कर रहा है।

देश में खपत होने वाली व्यवसायिक ऊर्जा के 67 प्रतिशत भाग की पूर्ति कोयला कर रहा है। भारत के . कुल विद्युत् उत्पादन में कोयले का योगदान 70 प्रतिशत है। कोयले के भण्डारण की दृष्टि से विश्व में भारत सातवें स्थान पर है। “भारत का कुल अनुमानित भण्डार 308.802 अरब टन है।”

भण्डारण की दृष्टि से झारखण्ड, ओडिशा व छत्तीसगढ़ राज्य शीर्ष पर हैं।

कोयला उत्पादक क्षेत्र

कोयला प्राप्ति के भारत में दो प्रमुख क्षेत्र माने जाते हैं –

  1. गोंडवाना कोयला क्षेत्र-देश में सर्वाधिक कोयला इन्हीं चट्टानों से प्राप्त होता है। देश के कुल भण्डारण का 96 प्रतिशत तथा उत्पादन का 99 प्रतिशत कोयला इसी क्षेत्र से उत्पादित होता है। झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कोयला गोंडवाना काल के हैं। इन क्षेत्रों में उत्तम प्रकार का बिटुमिनस कोयला पाया जाता है।
  2. टरशरी कोयला क्षेत्र- भारत में कुल उत्पादित कोयले का एक प्रतिशत इस क्षेत्र से प्राप्त होता है। असम, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु आदि राज्य इस कोयला क्षेत्र में हैं। यहाँ लिग्नाइट प्रकार का घटिया कोयला मिलता है।

प्रश्न 3.
मैंगनीज को ‘जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स’ क्यों कहा जाता है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मैंगनीज अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण खनिज धातु है। इसका रंग भूरा होता है। मैंगनीज का 95 प्रतिशत भाग अन्य धातुओं में मिलाकर उन्हें कठोर तथा टिकाऊ बनाने में किया जाता है। औद्योगिक क्षेत्र में इसका महत्त्व होने के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की धातु बन गयी है। जिस लोहे के प्रस्तर में 50% से कम मैंगनीज मिलता है उसे लौह खनिज तथा जिसमें 50 प्रतिशत से अधिक मैंगनीज लौह-अयस्क पाया जाता है उसे मैंगनीज लौह-अयस्क कहते हैं। दोनों धातुओं की बराबर मात्रा होने पर उसे फैरो-मैंगनीज कहते हैं। फैरो-अलॉय लोहे के आधार पर बनी मिश्र धातुएँ बहुत मजबूत होती हैं। विशालकाय शक्तिशाली मशीनों के युग में इनका महत्त्व बढ़ गया है।

मैंगनीज एक बहुउद्देशीय धातु है। लोहे से इस्पात बनाने में इस धातु का अधिक उपयोग किया जाता है। मैंगनीज का उपयोग सूखी बैटरियाँ, वार्निश, ब्लीचिंग पाउडर, क्लोरीन गैस, ऑक्सीजन, रंग-रोगन बनाने, चीनी 1 भारत 2018; पृष्ठ 188.

मिट्टी के बर्तनों पर पॉलिश करने, पोटैशियम परमैंगनेट बनाने में किया जाता है। मैंगनीज का उपयोग अब विद्युत उपकरण, काँच उद्योग, गैस बनाने तथा वायुयान निर्माण में भी किया जाने लगा है। भारत में मैंगनीज धातु का लगभग 25 प्रतिशत भाग लोहा-इस्पात उद्योग में ही खप जाता है।

मैंगनीज के इतने अधिक उपयोग होने के कारण ही इसको ‘जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स’ कहा जाता है।

प्रश्न 4.
खनिज तेल का क्या महत्त्व है ? भारत के प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र बताइए।
अथवा
भारत के खनिज तेल उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
पृथ्वी के गर्भ से निकाला जाने वाला तेल खनिज तेल कहलाता है। इसे पेट्रोलियम भी कहते हैं। खनिज तेल में 90 से 98 प्रतिशत तक हाइड्रोकार्बन तथा शेष ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, गन्धक और जैविक धातु की मात्रा पाई जाती है।

महत्त्व – वैज्ञानिक प्रगति के साथ खनिज तेल की उपयोगिता बढ़ती जा रही है। डीजल इंजन, वायुयान तथा मोटर के लिए यह एक चालक शक्ति है। कृषि तथा उद्योगों के विकास में भी खनिज तेल उपयोगी है। ताप एवं प्रकाश भी इससे मिलता है। खनिज तेल को शुद्धि शालाओं में शुद्ध कर पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, गैस, कोलतार आदि बनाया जाता है। वर्तमान में खनिज तेल के बढ़ते उपयोग और महत्त्व के चार प्रमुख कारण हैं

  1. इसकी ढुलाई आसान है
  2. इसका प्रत्येक अंश उपयोगी है
  3. कोयले की अपेक्षा इसकी यन्त्र संचालन शक्ति अधिक है, तथा
  4. इसके प्रयोग में श्रम कम लगता है।

भारत के खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र – भारत में खनिज तेल की खोज सन् 1890 में हुई तथा सन् 1899 में असम राज्य में इसका उत्पादन आरम्भ हुआ। खनिज तेल टरशियरी काल की चट्टानों में मिलते हैं। वर्तमान में देश के खनिज तेल उत्पादक प्रमुख तीन क्षेत्र हैं

(1) असम तेल क्षेत्र – यह भारत का सबसे पुराना तेल क्षेत्र है। यहाँ का डिग्बोई तेल क्षेत्र 13 वर्ग किमी. में फैला हुआ है जिसमें 800 तेल कुएँ हैं। असम की सुरमा घाटी में बदरपुर, मसीमपुर तथा पथरिया प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र कुएँ हैं। नाहरकटिया तेल क्षेत्र दिहांग नदी के किनारे स्थित है। नाहरकटिया से 40 किमी. दक्षिण-पश्चिमी में हुगरीजन-मोरेन तेल क्षेत्र स्थित है। यहाँ प्राकृतिक गैस भी मिलती है। असम में प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन होता है।

(2) गुजरात तेल क्षेत्र – गुजरात के तेल क्षेत्र 15,360 वर्ग किमी. में फैले हैं। यहाँ तेल की पेटी सूरत से लेकर राजकोट तक फैली है। बड़ौदा, भड़ौच, सूरत, खेड़ा एवं मेहसाना प्रमुख तेल उत्पादक जिले हैं। अंकलेश्वर गुजरात में सर्वाधिक तेल उत्पादन करता है। खम्भात की खाड़ी के निकट का तेल क्षेत्र लुनेज कहलाता है। अहमदाबाद के निकट किलोल भी प्रमुख उत्पादक है। गुजरात प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन करता है।

(3) समुद्र मग्न अपतटीय तेल क्षेत्र – धरातलीय क्षेत्रों के अतिरिक्त समुद्र मन अपतटीय क्षेत्रों में भी तेल मिलता है। मुम्बई नगर से 176 किमी दूर अरब सागर में स्थित मुम्बई हाई (Mumbai High) भारत का प्रमुख तेल क्षेत्र है। यहाँ से प्रतिवर्ष 200 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त बसीन,खम्भात बेसिन, कावेरी बेसिन व गोदावरी बेसिन भी खनिज तेल के प्रमुख अपतटीय क्षेत्र हैं।

प्रश्न 5.
प्राकृतिक गैस हमारे लिये क्यों आवश्यक है ? भारत के प्राकृतिक गैस क्षेत्र एवं उत्पादन के बारे में बताइए।
अथवा
प्राकृतिक गैस की माँग निरन्तर क्यों बढ़ रही है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक गैस ऊर्जा का एक उपयोगी संसाधन है। इसकी माँग निरन्तर बढ़ रही है। इसकी माँग बढ़ने के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं –

  1. इसका उत्पादन एवं वितरण आसान व कम खर्चीला है तथा संचय के लिए कम स्थान की आवश्यक होती है।
  2. यह पूर्णतः ज्वलनशील तथा गन्ध एवं कालिख रहित है। अत: घरों को गर्म रखने, भोजन बनाने आदि के लिए उत्तम ईंधन है।
  3. उपयोग के बाद इसमें धूल या राख नहीं होती।
  4. अपने प्राकृतिक रूप में भी यह ज्वलनशील है।

प्राकृतिक गैस का उपयोग गृह ऊर्जा के अतिरिक्त पेट्रो रसायन उद्योग, उर्वरक तथा विद्युत उत्पादन में भी होता है। इसका 60 प्रतिशत भाग उर्वरक कारखानों, 20 प्रतिशत विद्युत उत्पादन, 15 प्रतिशत आन्तरिक प्रयोग और 5 प्रतिशत अन्य कार्यों में हो रहा है।

प्राकृतिक गैस, क्षेत्र एवं उत्पादन

भारत में प्राकृतिक गैस के क्षेत्र प्रायः खनिज तेल के ही उत्पादक क्षेत्र हैं। ऐसा अनुमान है कि हमारे देश में प्राकृतिक गैस के भण्डार 750 करोड़ घन मीटर है। भारत वर्ष में त्रिपुरा, गुजरात व पश्चिमी तट के निकट गैस के भण्डार हैं। कावेरी और गोदावरी क्षेत्र में भी भण्डार होने के अनुमान लगाए गए हैं। भण्डारण की तुलना में देश में प्राकृतिक गैस का उत्पादन कम है। सन् 2015-16 में भारत का कुल प्राकृतिक गैस उत्पादन 24.69 बीसीएम हुआ।

देश में उत्पादित व आयातित गैस को देश के भीतरी भागों में पहुँचाने के लिए पाइपलाइनों का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 6.
विद्युत शक्ति क्या है ? विद्युत उत्पादन के किन्हीं दो स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विद्युत शक्ति
ऊर्जा के प्रारम्भिक स्त्रोतों – कोयला, खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस की तुलना में विद्युत अनेक विशेषताओं के कारण अधिक उपयोगी शक्ति संसाधन है। कम उत्पादन लागत, आसान वितरण सुविधा, प्रदूषण रहित होना, आसान प्रयोग और रख-रखाव का कम खर्च इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। इन विशेषताओं के कारण आज बिजली आम आदमी की जरूरत बन गई है। कृषि, उद्योग और परिवहन के साथ घरेलू ऊर्जा के लिए इसकी सर्वाधिक माँग है। विद्युत उत्पादन के प्रधानतः चार स्रोत हैं

  1. ताप विद्युत
  2. जल विद्युत
  3. आणविक विद्युत, एवं
  4. गैस एवं खनिज तेल विद्युत।

ताप विद्युत – राष्ट्रीय ताप बिजली निगम (एन. टी. पी. सी.) की स्थापना ताप विद्युत के विकास के. लिए केन्द्रीय क्षेत्र के विद्युत उत्पादन हेतु 1975 में हुई। वर्तमान में एन. टी. पी. सी. कोयला आधारित 12 ताप बिजली परियोजनाएँ तथा गैस तेल आधारित 7 परियोजनाएं संचालित कर रही है। ताप विद्युत परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं –

  1. सिंगरोली (उत्तर प्रदेश)
  2. कोरबा (छत्तीसगढ़)
  3. रामगुंदम (आन्ध्र प्रदेश)
  4. फरक्का (पश्चिम बंगाल)
  5. विन्ध्याचल(मध्य प्रदेश)
  6. रिहन्द (उत्तर प्रदेश)
  7. दादरी (उत्तर प्रदेश)
  8. कहलगाँव (बिहार)
  9. तलचर (उड़ीसा)
  10. ऊँचाहार (उत्तर प्रदेश)
  11. बदरपुर (दिल्ली )

अणु विद्युत – अणु का विद्युत के रूप में प्रयोग 1969 से प्रारम्भ हुआ। अणु शक्ति हेतु यूरेनियम, थोरियम, वेरीलियम एवं जिरकोनियम खनिज प्रयोग होते हैं। भारत में यह खनिज अच्छी मात्रा में मिलता है। अतः भारत में अणु विद्युत उत्पादन सुविधापूर्वक हो सकता है। भारत में आणविक शक्ति आयोग का गठन 1945 में हुआ तथा 1954 में भारत सरकार ने आणविक शक्ति विभाग की स्थापना की। इस समय देश में पाँच अणु विद्युत गृह कार्य कर रहे हैं-

  1. तारापुर (महाराष्ट्र)
  2. कोटा (राजस्थान)
  3. कलपक्कम (तमिलनाडु)
  4. नरौरा (उत्तर प्रदेश)
  5. काकरापार (गुजरात)।

इसके अतिरिक्त सौर ऊर्जा, बायोगैस, समुद्री लहर और भू-ताप से भी विद्युत उत्पादित की जाती है। व्यावसायिक दृष्टि से भारत में ताप विद्युत, जल विद्युत एवं अणु विद्युत का ही अधिक विकास हुआ है।

प्रश्न 7.
ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन

गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों में प्रमुख निम्नलिखित हैं –

(1) सौर ऊर्जा – सूर्य की धूप से प्राप्त ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहा जाता है। सूर्य की धूप से प्राप्त ऊर्जा का सीधा उपयोग भी किया जाता है तथा विद्युत में बदलकर भी उपयोग किया जाता है। सौर ऊर्जा का उपयोग-पानी को गर्म करने तथा भोजन पकाने, जगह को गर्म करने तथा वस्तुओं को सुखाने, पानी को शुद्ध करने व फसलों को पकाने, प्रकाश व मशीनों के संचालन के लिए किया जाता है।

सौर ऊर्जा को बिजली के रूप में प्राप्ति करने हेतु सौर फोटो वौल्टेइक प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाता है। सौर ऊर्जा से प्राप्त बिजली का उपयोग वर्तमान में व्यावसायिक स्तर पर भी किया जाने लगा है। भारत के दूर-दराज के गाँवों में जहाँ बिजली नहीं है, वहाँ सौर ऊर्जा को अति सरलता से विविध कार्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है।

(2) पवन ऊर्जा-बहती हुई हवा की गति से जो ऊर्जा प्राप्त होती है उसे पवन ऊर्जा कहते हैं। पवन की गति का उपयोग कृषि कार्यों एवं परिवहन में मनुष्य बहुत पहले से करता आ रहा है। वर्तमान में पवन ऊर्जा का उपयोग पवन चक्कियों के द्वारा भूगर्भ से जल निकालने के लिए भी किया जाता है। भारत में 80 मीटर की ऊँचाई पर आंकी गई संशोधित पवन ऊर्जा संभावनाएँ 102,788 मेगावाट पाई गई है।

(3) बायोमास ऊर्जा-कृषि, वन, पशु, उद्योग एवं अन्य के अपशिष्टों से ऊर्जा प्राप्त करना बायोमास ऊर्जा कहलाता है। बायोमास ऊर्जा गैस एवं विद्युत दोनों रूपों में प्राप्त की जाती है गैस उत्पादन हेतु गोबर, मानव का मल-मूत्र तथा अन्य जैव अपशिष्ट प्रयोग करते हैं। इन्हें ऑक्सीजन रहित वातावरण में सड़ाकर मुख्यतः मीथेन गैस प्राप्त की जाती है। यह गैस सस्ती पड़ती है और इसके जलने से प्रदूषण नहीं होता। इसके बायोगैस कहते हैं। इसके उत्पादन के बाद शेष बचा अपशिष्ट, पौधों के लिए खाद के रूप में उपयोगी होता है।

(4) भू-तापीय ऊर्जा-पृथ्वी का आन्तरिक भाग गर्म है। भू-गर्भ के इस ताप से प्राप्त ऊर्जा भू-तापीय ऊर्जा कहलाती है। इसका उत्पादन गर्म जल के स्रोतों व जलाशयों पर निर्भर करता है। भू-तापीय ऊर्जा से विद्युत् उत्पादन की सम्भावना की जाँच का कार्य ‘राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक अनुसन्धान संस्थान हैदराबाद’ द्वारा किया जा रहा है।