MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य भाव
वात्सल्य भाव अभ्यास
बोध प्रश्न
वात्सल्य भाव अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सखी प्रातः काल किसके द्वार पर जाती है?
उत्तर:
सखी प्रातःकाल अयोध्या नरेश राजा दशरथ के द्वार पर जाती है।
प्रश्न 2.
बालक राम किस वस्तु को माँगने का हठ करते हैं?
उत्तर:
बालक राम, चन्द्रमा को माँगने का हठ करते हैं।
प्रश्न 3.
बच्चे की आँखों की तुलना किससे की गई है?
उत्तर:
बच्चे की आँखों की तुलना तितली के पंखों से की गई है।
प्रश्न 4.
तुलसीदास जी के मन-मन्दिर में सदैव कौन विहार करता रहता है?
उत्तर:
तुलसीदास जी के मन-मन्दिर में अयोध्या नरेश दशरथ के चारों पुत्र विहार करते रहते हैं।
प्रश्न 5.
ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को क्या दिया?
उत्तर:
ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को औषधियाँ दी हैं।
वात्सल्य भाव लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सखी ठगी-सी क्यों रह गई?
उत्तर:
अयोध्या नरेश राजा दशरथ की गोद में भगवान श्रीराम को देखकर सखी ठगी-सी रह गई।
प्रश्न 2.
माताएँ बालक राम की कौन-कौनसी चेष्टाओं से प्रसन्न होती हैं?
उत्तर:
माताएँ बालक राम की चन्द्रमा की माँग करने की, कभी अपनी परछाईं से डरने की और कभी करताल बजाकर नाचने की चेष्टाओं से प्रसन्न होती हैं।
प्रश्न 3.
बालक राम का मुख सौन्दर्य कैसा है?
उत्तर:
बालक राम का मुख सौन्दर्य अरविन्द पुष्प जैसा शोभित हो रहा है।
प्रश्न 4.
बच्चे के रेशमी बालों को कवि अपनी हथेलियों से क्यों स्पर्श करना नहीं चाहता?
उत्तर:
बच्चे के रेशमी बालों को कवि अपनी बिवाईं वाली पथरीली हथेलियों से इसलिए स्पर्श नहीं करना चाहता है क्योंकि उससे बालक को जीवन की कठोरताओं एवं संघर्षों का ज्ञान हो जायेगा और उससे नन्हें शिशु का कोमल मन खिन्न हो जायेगा।
वात्सल्य भाव दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
तुलसीदास ने बालक राम के किस स्वभाव का चित्रण किया है?
उत्तर:
तुलसीदास ने बालक राम के स्वभाव की विभिन्न चेष्टाओं का चित्रण किया है। कभी तो राम चन्द्रमा को पाने की हठ करते हैं, कभी अपनी ही परछाईं को देखकर डर जाते हैं, कभी करताल बजाकर नाचते हैं, कभी गुस्सा करके एवं किसी वस्तु को पाने की जिद्द पर अड़ जाते हैं।
प्रश्न 2.
‘तुलसी ने बालहठ’ का स्वाभाविक चित्रण किया है? इस उक्ति को पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
संसार में तीन हठ प्रसिद्ध हैं-बालहठ, त्रियाहठ और राजहठ। बालहठ से अभिप्राय है कि बालक के मुख से जो बात निकल जाती है उसे ही वह पूरा करना चाहता है चाहे वह सम्भव हो या असम्भव। तुलसीदास ने राम की इस हठ को कि मैं तो आकाश में दिखाई देने वाला चन्द्रमा लूँगा। इसी श्रेणी में लिया है। तुलसी ने यह भी वर्णन किया है कि जिसके लिए वे अड़ जाते हैं, उसी को लेकर ही मानते हैं।
प्रश्न 3.
हरिनारायण व्यास ने अपने ‘ख्यालों’ की किन कमियों की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
हरिनारायण व्यास ने अपने ख्यालों की इन कमियों की ओर संकेत किया है कि उसके ख्याल दुनियादारी की लपटों से झुलस गए हैं। जैसे कोई नाव पहाड़ों से टकराती है, उसी प्रकार उसके ख्याल भी संघर्ष करते हुए लहूलुहान हो गए हैं।
प्रश्न 4.
निम्नांकित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(अ) पग नूपुर औ पहुँची कर कंजनि ………. तुलसी जग में फलु कौन जिएँ।
उत्तर:
एक सखी दूसरी सखी से कह रही है कि बालक राम के पैरों में घुघरू हैं और हाथों में पहुँची पहने हुए हैं तथा उन्होंने सुन्दर कमलों से बनी हुई तथा मणियों की माला अपने वक्ष स्थल पर पहन रखी है। उन्होंने शरीर पर नीला वस्त्र तथा पीला अँगा पहन रखा है जो अत्यधिक झलक मार रहा है। ऐसे वेशभूषा वाले बालक को गोद में लेकर राजा दशरथ बहुत आनन्द का अनुभव कर रहे हैं। उनका मुख कमल जैसा है तथा रूप मकरंद जैसा और उनके आनन्दित नेत्र रस पान करने वाले भौरे जैसे दिखाई दे रहे हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि ऐसे बालक राम की रूप छवि यदि किसी संसारी मनुष्य के मन में नहीं बसती है तो उसका संसार में जीना व्यर्थ है।
अथवा
कबहूँ ससि माँगत आरि करें …………. तुलसी मन-मन्दिर में विहरैं।
उत्तर:
हे सखी! बालक राम कभी चन्द्रमा को माँगते हुए – उसे लेने की हठ पकड़ जाते हैं और कभी धरती पर पड़ते अपने ही प्रतिबिम्ब (परछाईं) को देखकर डरने लगते हैं। कभी ताली बजा-बजाकर नाचते हैं। सारी अर्थात् तीनों माताएँ-कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा- उनकी इन बाल-क्रीड़ाओं को देख-देख मन ही मन आनन्द से भर उठती हैं। कभी राम गुस्सा होकर हठ करके कोई चीज माँग बैठते हैं और फिर जिस वस्तु के लिए हठ पकड़ जाते हैं, उसे लेकर ही मानते हैं।
तुलसीदास जी कहते हैं कि राजा दशरथ के ये चारों बालक तुलसी के मनरूपी मन्दिर में सदैव विहार करते रहें। कहने का भाव यह है कि तुलसी सदैव उनका ही स्मरण करते रहें।
(ब) ये ख्याल इन दुनियादारी की/लपटों से झुलस गए हैं, पहाड़ों से टकराती नाव हैं, नाकामयाबी की चोट से/ये लहूलुहान हैं।
उत्तर:
कविवर हरिनारायण व्यास कहते हैं कि मेरे विचार आज सांसारिकता की लपटों से बुरी तरह झुलस गए हैं। मेरे विचारों की श्रृंखला पहाड़ों से संघर्ष करती हुई नाव की तरह है तथा जीवन में निरन्तर मिल रही असफलता की चोट से ये खून से लथपथ हो रहे हैं। यदि इन भीषण संघर्षों की गाथा को मैंने तुम पर रोपित करने की चेष्टा की, तो तितली की पंखुड़ियों जैसी तुम्हारी आँखों में उगते हुए उजाले के ये सतरंगी सपने इनमें फँसकर बिखर जाएँगे। उन पर मेरे संघर्षशील विचारों का कोई भी अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। अतः मैंने यह निश्चय कर लिया है कि मैं अपनी बिवाईं से कटी-फटी तथा पत्थर जैसी कठोर हथेलियों से तुम्हारे रेशमी बालों की शैशवी लापरवाही को स्पर्श नहीं करूँगा। कहने का भाव यह है कि कवि अपने जीवन के संघर्षों की कटु अनुभूतियों को शैशव अवस्था के बालकों की भावना पर थोपना नहीं चाहता है। वह तो यह चाहता है कि ये नये शिशु जीवन में कुछ नया भोगें, नया अनुभव करें ताकि उनका जीवन संघर्ष की कठोर यातनाओं की गाथा बनकर न रह जाए।
अथवा
फटी हुई चमड़ी में उलझकर/कोई बाल, कोई रंगीन मनसूबा, कोई कामयाब भविष्य/टूट जायेगा/आने वाला जमाना/मुझे दोषी ठहराएगा।
उत्तर:
कवि कहता है कि फटी हुई चमड़ी में उलझकर किसी बच्चे के रंगीन भविष्य की कोई अभिलाषा अधूरी रह जाएगी अथवा उसके अपने उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न टूट जाएगा और इस घटना के पश्चात् आने वाला युग उसे दोषी सिद्ध करेगा। उस समय जीवन का स्वर्णिम भविष्य बच्चे की अलसाई पुतलियों और पलकों पर तैरता हुआ दिखाई देगा।
वात्सल्य भाव काव्य सौन्दर्य
प्रश्न 1.
रस की परिभाषा देते हुए रस के अंगों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
इसके लिए अध्याय 8 ‘काव्य बोध’ के अन्तर्गत द्वितीय शीर्षक ‘रस’ का अध्ययन करें।
प्रश्न 2.
वात्सल्य रस को परिभाषित करते हुए एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
परिभाषा :
सन्तान के प्रति होने वाला माता-पिता का स्नेह ही वत्सलता कहलाता है। यह वत्सल स्थायी भावही विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव के संयोग से वात्सल्य रस रूप में परिणत होता है। उसमें सन्तान आलम्बन, उनके मोहक क्रियाकलाप आदि उद्दीपन, गाना, पुचकारना, हँसना आदि। अनुभाव तथा हर्ष, गर्व, उत्सुकता आदि संचारी भाव होते हैं।
उदाहरण :
जसोदा हरि पालने झुलावैं।
हलरावैं दुलराइ मल्हावै जोइ सोइ कछु गावें।
मेरे लाल को आव री निंदरिया, काहे न आन सुवावैं।
तू काहे नहिं बेगिहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै।
कबहुँ पलक हरि नूदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन द्वै रहि, करि करि सैन बतावै।
इति अन्तर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख ‘सूर’ अमर मुनि दुर्लभ, सो नँद-भामिनी पावै।
स्पष्टीकरण :
इसमें वत्सल स्थायी भाव है। यशोदा आश्रय और कृष्ण आलम्बन हैं। कृष्ण का पलक झपकाना, होंठ फरकाना उद्दीपन हैं। यशोदा का गीत गाना आदि अनुभाव हैं। इन सबसे पुष्ट वत्सल स्थायी भाव वात्सल्य रस दशा को प्राप्त हुआ है।
वात्सल्य भाव महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
वात्सल्य भाव बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सखी प्रात:काल किसके द्वार पर जाती है?
(क) कृष्ण
(ख) राम
(ग) राजा दशरथ
(घ) नन्द।
उत्तर:
(ग) राजा दशरथ
प्रश्न 2.
सोए हुए बालक को कौन जगाएगा?
(क) सूरज का प्रकाश
(ख) चिड़ियों की चहचहाहट
(ग) बालक की माँ
(घ) वायु के झोंके।
उत्तर:
(क) सूरज का प्रकाश
प्रश्न 3.
बालक राम के दाँतों का सौन्दर्य कैसा है?
(क) बिजली
(ख) पीत वर्ण
(ग) श्वेत वर्ण
(घ) कुंदकली।
उत्तर:
(घ) कुंदकली।
प्रश्न 4.
बच्चे के रेशमी बालों को कवि अपनी हथेलियों से स्पर्श नहीं करना चाहता है, क्योंकि
(क) हथेलियाँ कठोर थीं
(ख) रंगीन सपने देख रहा था
(ग) फटी हुई चमड़ी थी
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।
रिक्त स्थानों की पूर्ति
- लोकनायक तुलसीदास जी ………… के प्रतिनिधि कवि हैं।
- तुलसीदास जी ने ‘कवितावली’ में राम की …………. व बाललीला का वर्णन किया है।
- ‘रामचरितमानस’ युग-युगान्तर तक समाज को …………. प्रदान करने में सक्षम है।
- हरिनारायण व्यास ने बच्चे की आँखों की तुलना ………….. से की है।
उत्तर:
- भक्ति काल
- बाल छवि
- नवजीवन
- तितली के पंखों।
सत्य/असत्य
- कवि ने सपनों की तुलना इन्द्रधनुष से की है।
- तुलसीदास ने सूरदास और रसखान की भाँति वात्सल्य भाव की कविताओं की रचना की।
- राम के गले में मूल्यवान मोतियों की माला सुशोभित हो रही थी।
- कवि ने सोए हुए बच्चे को सहलाकर जगा दिया।
- बालक राम चन्द्रमा को माँगने की हठ करते हैं। (2013)
उत्तर:
- सत्य
- सत्य
- सत्य
- असत्य
- सत्य।
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
1. → (ख)
2. → (ग)
3. → (घ)
4. → (क)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- तुलसीदास ने मूल रूप में किस प्रकार की भक्ति को स्वीकार किया है?
- राम की बाल क्रीड़ा को देखकर कौन प्रसन्न होता है?
- कवि सोए हुए बच्चे को स्पर्श नहीं करना चाहता क्योंकि उसकी हथेलियाँ थीं।
- हरिनारायण व्यास की शिक्षा कहाँ सम्पन्न हुई?
उत्तर:
- दास्य भाव
- राम की माताएँ
- खुरदरी-पथरीली
- उज्जैन,बड़ौदा।
कवितावली भाव सारांश
प्रस्तुत पंक्तियों में तुलसीदास ने बालक राम की मनोहारी छवि का अत्यन्त हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। अयोध्या के राजा दशरथ प्रातः बालक श्रीराम को अपनी गोद में लेकर बाहर निकले तो सभी बालक राम का अप्रतिम सौन्दर्य देखकर ठगे से रह गये। उनके काजल लगे नेत्र नीलकमल की शोभा का हरण कर रहे थे। उनके पैरों में पायजनिया और हाथों में कंगन तथा गले में मणियों की माला सुशोभित हो रही थी। उन्होंने सुन्दर पीला झबला पहन रखा था। उनके श्याम शरीर की कान्ति नीलकमलों की और नेत्र कमलों की-सी सुन्दरता को प्राप्त कर रहे थे। उनको दन्तावली उनके सुन्दर श्याम मुख पर दिखलाई देती हुई काले बादलों में विद्युत रेखा की जैसी उपमा प्राप्त कर रही थी। राम कभी माता से चन्द्रमा पाने का हठ करते हैं तो कभी ताली बजाकर नृत्य करते हैं। उनके गालों में लटकती हुई घुघराली लटें उनकी शोभा को इतना अधिक बढ़ा रही थीं कि कवि का मन उन पर न्योछावर हो जाने को चाहता है।
कवितावली संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) अवधेस के द्वारें सकारें गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच विमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से॥
तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन, नैनसुखंजन-जातकसे।
सजनी ससि में समसील उभै नवलील सरोरूह-से बिकसे॥
शब्दार्थ :
अवधेस = अवध अर्थात् अयोध्या के राजा दशरथ। सकारें = सबेरे। सुत= पुत्र। भूपति= राजा। अवलोकि = देखकर। सोच-विमोचन = चिन्ता दूर करना। धिक = धिक्कार। मनरंजन = मन को प्रसन्न करने वाले। रंजित-अंजन = काजल लगाये हुए। सुखंजन-जातक = सुन्दर खंजन पक्षी के बच्चे जैसे। सजनी = सखि। ससि = चन्द्रमा। समसील = एक जैसे। उभै = दोनों। सरोरुह – कमल। विकसे = खिले।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ से लिया गया है।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद में एक सखी दूसरी सखी से राजा दशरथ द्वारा गोद में लिए गए राम के बाल रूप का वर्णन करती हुई कह रही है।
व्याख्या :
आज सबेरे जैसे ही मैं अवध नरेश राजा दशरथ के द्वार पर गयी तो उसी समय राजा दशरथ अपने पुत्र राम को गोद में लिए राजमहल से बाहर निकले। मैं समस्त चिन्ताओं को दूर करने वाले राम के उस रूप को देख ठगी-सी, मन्त्रमुग्ध-सी खड़ी रह गयी। ऐसे रूप को देखकर जो न ठगे गये अर्थात् मन्त्रमुग्ध नहीं हुए, उनका जीवन धिक्कार योग्य है। तुलसीदास
जी कहते हैं कि सखी कह रही है-उस बालक के अंजन लगे हुए सुन्दर नेत्र मन को आनन्द देने वाले और सुन्दर खंजन पक्षी के बच्चे के समान मनोहर थे। हे सखी! उन नेत्रों को देखकर ऐसा लग रहा था मानो चन्द्रमा में समान रूप वाले वे नये नील कमल खिल उठे हों।
विशेष :
- इस पद में राम का मुख चन्द्रमा के समान और उनके दोनों नीले नेत्र दो नये खिले कमलों के समान बताये गये हैं।
- पद में छेकानुप्रास, उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार।
- वात्सल्य रस का वर्णन।
(2) पग नूपुर औ पहुँची कर कंजनि भंजु बनी मनिमाल हिएँ।
नवनील कलेवर पीत सँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ।
अरविन्दु सो आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन भंग पिएँ।
मनमो न बस्यौ अस बालकु जौं तुलसी जग में फल कौन जिएँ।
शब्दार्थ :
पग = पैरों में। नूपुर = धुंघरू। औ = और। पहुँची = हाथ में पहनने वाला कड़ा। कंजनि = कमल। मनिमाल = मणियों की माला। पीत = पीला। पुल = पुलकित होकर। अरविन्दु = कमल। लोचन = नेत्र। भुंग = भौंरा। मनमो = मन में। अस = ऐसा। जिएँ = जीने का। कलेवर = शरीर।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस पद में कविवर तुलसी बालक राम की वेशभूषा और साज-सज्जा का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या :
एक सखी दूसरी सखी से कह रही है कि बालक राम के पैरों में घुघरू हैं और हाथों में पहुँची पहने हुए हैं तथा उन्होंने सुन्दर कमलों से बनी हुई तथा मणियों की माला अपने वक्ष स्थल पर पहन रखी है। उन्होंने शरीर पर नीला वस्त्र तथा पीला अँगा पहन रखा है जो अत्यधिक झलक मार रहा है। ऐसे वेशभूषा वाले बालक को गोद में लेकर राजा दशरथ बहुत आनन्द का अनुभव कर रहे हैं। उनका मुख कमल जैसा है तथा रूप मकरंद जैसा और उनके आनन्दित नेत्र रस पान करने वाले भौरे जैसे दिखाई दे रहे हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि ऐसे बालक राम की रूप छवि यदि किसी संसारी मनुष्य के मन में नहीं बसती है तो उसका संसार में जीना व्यर्थ है।
विशेष :
- बालक राम की मनोहारी छवि का वर्णन हुआ
- अनुप्रास, उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार।
- वात्सल्य रस का वर्णन।
(3) तनकी,दुति स्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं।
अति सुन्दर सोहत धूरि भरे छवि भूरि अनंग की दूरि धरैं।
दमकैं दतियाँ दुति दामिनि ज्यौं किलक कल बाल विनोद करें।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन-मन्दिर में बिहरैं।
शब्दार्थ :
दुति = आभा। सरोरूह = कमल। कंज = कमल। मंजुलताई = सुन्दरता। हरै = हरण करते हैं। अनंग = कामदेव। दतियाँ = दाँतों की पंक्ति। दामिनि = बिजली। मन-मन्दिर = मनरूपी मन्दिर में। बिहरै = विचरण करते हैं।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
राम के बाल रूप का वर्णन करती हुई एक सखी दूसरी सखी से कह रही है।
व्याख्या :
हे सखी! राम के शरीर की कान्ति नीले कमल के समान मनोहर है और उनके नेत्र कमल के कोमल सौन्दर्य को भी हर लेने वाले अर्थात् कमल से भी अधिक सुन्दर हैं। धूल में लिपटे हुए राम अत्यन्त सुन्दर और मन को मोह लेने वाले लगते हैं। उनके शरीर की छवि अनेक कामदेवों की शोभा को भी दूर करने वाली है अर्थात् उससे भी बढ़कर है। राम की दंत पंक्ति बिजली की चमक के समान चमकती है। कहने का भाव यह है कि जैसे श्याम मेघ में बिजली चमक उठती है, उसी प्रकार राम के हँसने पर उनके श्यामल मुख में उनके सफेद दाँत बिजली के समान चमकते हुए शोभा देते हैं। राम किलकारी मारते हुए सुन्दर। बाल-क्रीड़ाएँ कर रहे हैं। तुलसीदास कहते हैं कि राजा दशरथ के चारों पुत्र मेरे मन-मन्दिर में विहार करते रहते हैं।
विशेष :
- राम की सुन्दर रूप छवि का वर्णन किया गया।
- उपमा, प्रतीप और रूपक अलंकार।
- वात्सल्य भाव का सुन्दर चित्रण।
(4) कबहूँससि माँगत आरिकरैं कबहूँप्रतिबिम्ब निहारि डरैं।
कबहूँ कर ताल बजाइ कैं नाचत मातु सबै मन मोद भरें।
कबहूँ रिसिआई कहैं हठिकै पुनिलेत सोई जेहिलागि अरैं।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन-मन्दिर में बिहरैं।
शब्दार्थ :
आरि = हठ, जिद्द। निहारि = देखकर। मोद = आनन्द रिसिआई = खिसियाकर। लागि अ = जिस बात की जिद्द पर अड़ जाता है।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस पद में एक सखी दूसरी सखी से बालक राम की सुन्दर बाल-क्रीड़ाओं का वर्णन करती हुई कह रही है।
व्याख्या :
हे सखी! बालक राम कभी चन्द्रमा को माँगते हुए – उसे लेने की हठ पकड़ जाते हैं और कभी धरती पर पड़ते अपने ही प्रतिबिम्ब (परछाईं) को देखकर डरने लगते हैं। कभी ताली बजा-बजाकर नाचते हैं। सारी अर्थात् तीनों माताएँ-कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा- उनकी इन बाल-क्रीड़ाओं को देख-देख मन ही मन आनन्द से भर उठती हैं। कभी राम गुस्सा होकर हठ करके कोई चीज माँग बैठते हैं और फिर जिस वस्तु के लिए हठ पकड़ जाते हैं, उसे लेकर ही मानते हैं।
तुलसीदास जी कहते हैं कि राजा दशरथ के ये चारों बालक तुलसी के मनरूपी मन्दिर में सदैव विहार करते रहें। कहने का भाव यह है कि तुलसी सदैव उनका ही स्मरण करते रहें।
विशेष :
- इस पद में कवि ने राम की बालकोचित चेष्टाओं को बड़े ही स्वाभाविक रूप में वर्णित किया है।
- अनुप्रास एवं रूपक अलंकार।
- वात्सल्य रस का वर्णन।
(5) वर दंत की पंगति कुंदकली अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमकैंघन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की।
घुघरारि लटैं लटकै मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलन की।
नेवछावरि प्रान करें तुलसी बलि जाऊँलला इन बोलन की।
शब्दार्थ :
वर = श्रेष्ठ। पंगति = पंक्ति। अधराधर = दोनों ओंठ। पल्लव = पत्ते। चपला = बिजली घन = बादल। लोल = सुन्दर। कपोलन = गालों। ल₹ = केश पाश।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद में बालक राम के दाँतों और धुंघराले केशों के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।
व्याख्या :
एक सखी दूसरी सखी से बालक राम के दाँतों और धुंघराले केशों के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहती है कि हे सखी! राम के सुन्दर दाँतों की पंक्तियाँ कुन्द नामक श्वेत रंग के फूल की कलियों के समान सुन्दर हैं। उनके दोनों ओंठ ऐसे लगते हैं मानो लता के कोमल चिकने पत्ते हिल रहे हों अथवा प्रस्फुटित हो रहे हों। जब राम हँसते हैं तो उनकी दाँतों की पंक्तियाँ ऐसी चमक उठती हैं जैसे बादलों के बीच बिजली चमक रही हो। उन दाँतों की छवि अमूल्य मोतियाँ की माला के समान सुन्दर लगती है। उनके मुख के ऊपर घराली लटें लटकती रहती हैं और कपोलों पर (कान पर पड़े हुए) चंचल कुंडल लहराते रहते हैं।
तुलसीदास जी कहते हैं कि राम के इस सौन्दर्य पर वह अपने प्राण न्योछावर करते हैं और उनकी बातों पर बलिहारी जाते हैं तथा वे उनकी बलैया लेते हैं।
विशेष :
- प्रस्तुत पद में बाल स्वभाव की सुन्दर चेष्टाओं का वर्णन किया गया है।
- अनुप्रास एवं उत्प्रेक्षा अलंकार।
- वात्सल्य रस का वर्णन।
सोए हुए बच्चे से भाव सारांश
प्रस्तुत कविता में कवि एक छोटे बालक को सोते हुए देखता है। वह उसे अपने विचारों का आशीर्वाद देना चाहता है किन्तु तभी वह सोचता है कि उसके विचार उतने पवित्र, उतने निष्कलंक नहीं रह गये हैं जितना यह सोता हुआ बालक है। यह बालक इस दुनियादारी से पूर्णतया अनभिज्ञ, अबोध और मासूम है। मैं अपने सपने देकर इस पर दुनियादारी का कोई दाग नहीं लगाना चाहता। वह बालक से कहता है कि वह तो अभी तितली की भाँति खुले आकाश में उड़ना चाहेगा इसलिए मैं उसके रेशमी बालों को अपनी पथरीली हथेलियों से सहलाकर उसकी निद्रा को खोलना नहीं चाहता हूँ। बालक की नींद सपनों से भरी सेमल के फूलों सी कोमल है किन्तु लेखक संसार के थपेड़े खा-खाकर लहूलुहान हो चुका है अतः वह उसे छूकर अपावन नहीं करना चाहता। बालक का निष्कलंक सौन्दर्य और पवित्र मुस्कराहट उसे जीवन जीने की प्रेरणा देता है। इसलिए वह कहता है कि जब सूर्योदय होगा तो वह तुम्हें स्वयं ही जगा देगा।
सोए हुए बच्चे से संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) मेरे ख्याल इतने खूबसूरत नहीं हैं,
जिनको मैं फलों-सी खूबसूरत तुम्हारी पलकों को
छुआ दूँ और ये तुम्हारे लिए,
खूबसूरत सपने बन जाएँ।
शब्दार्थ :
ख्याल = विचार। खूबसूरत = सुन्दर।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद श्री हरिनारायण व्यास द्वारा रचित ‘सोए हुए बच्चे से’ शीर्षक कविता से लिया गया है।
प्रसंग :
इस कविता में कवि ने शिशु की सुन्दरता पर संघर्षों की कठोर छाया न डालने की प्रतिज्ञा की है, उसी का यहाँ वर्णन है।
व्याख्या :
आधुनिक कवि श्री हरिनारायण व्यास जीवन की कठोरता का अनुभव करते हुए कहते हैं कि मेरे विचार इतने सुन्दर नहीं हैं कि मैं इन्हें फूलों-सी खूबसूरत नव पीढ़ी के बालकों की पलकों से छुआ हूँ और मेरे द्वारा ऐसा करने पर मेरे विचार इन बच्चों के लिए मात्र एक खूबसूरत सपना बनकर रह जाएँ। कहने का भाव यह है कि कवि अपने विचारों को, जीवन की कठोरता भोग रहे बच्चों पर लादना नहीं चाहता है।
विशेष :
- अनुप्रास एवं उपमा अलंकार।
- खड़ी बोली का प्रयोग।
- वात्सल्य भाव।
(2) ये ख्याल इन दुनियादारी की
लपटों से झुलस गए हैं
पहाड़ों से टकराती नाव हैं,
नाकामयाबी की चोट से,
ये लहूलुहान है।
तितली की पाँखों-सी
तुम्हारी आँखों से उगते हुए उजाले के इन्द्रधनुष सपने
इनमें फंसकर बिखर जाएँगे।
बिवाई वाली इन पथरीली हथेलियों से
तुम्हारे रेशमी बालों की
शैशवी लापरवाही को स्पर्श नहीं करूंगा।
शब्दार्थ :
दुनियादारी = सांसारिकता। नाकामयाबी = असफलता। लहूलुहान = खून से लथपथ। बिवाई वाली = फटी हुईं। इन्द्रधनुष सपने = सतरंगी सपने।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
कवि संघर्षपूर्ण एवं विपदाग्रस्त विचारों को सुन्दर शिशु के ऊपर नहीं डालना चाहता है, इसी भावना का वर्णन यहाँ किया गया है।
व्याख्या :
कविवर हरिनारायण व्यास कहते हैं कि मेरे विचार आज सांसारिकता की लपटों से बुरी तरह झुलस गए हैं। मेरे विचारों की श्रृंखला पहाड़ों से संघर्ष करती हुई नाव की तरह है तथा जीवन में निरन्तर मिल रही असफलता की चोट से ये खून से लथपथ हो रहे हैं। यदि इन भीषण संघर्षों की गाथा को मैंने तुम पर रोपित करने की चेष्टा की, तो तितली की पंखुड़ियों जैसी तुम्हारी आँखों में उगते हुए उजाले के ये सतरंगी सपने इनमें फँसकर बिखर जाएँगे। उन पर मेरे संघर्षशील विचारों का कोई भी अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। अतः मैंने यह निश्चय कर लिया है कि मैं अपनी बिवाईं से कटी-फटी तथा पत्थर जैसी कठोर हथेलियों से तुम्हारे रेशमी बालों की शैशवी लापरवाही को स्पर्श नहीं करूँगा। कहने का भाव यह है कि कवि अपने जीवन के संघर्षों की कटु अनुभूतियों को शैशव अवस्था के बालकों की भावना पर थोपना नहीं चाहता है। वह तो यह चाहता है कि ये नये शिशु जीवन में कुछ नया भोगें, नया अनुभव करें ताकि उनका जीवन संघर्ष की कठोर यातनाओं की गाथा बनकर न रह जाए।
विशेष :
- अनुप्रास एवं उपमा अलंकार।
- कवि ने तितली की पाँखों, इन्द्रधनुष सपने, बिवाईं वाली हथेली आदि नये-नये प्रतीक एवं उपमानों का प्रयोग किया
- खड़ी बोली का प्रयोग।
(3) फटी हुई चमड़ी में उलझकर
कोई बाल कोई रंगीन मनसूबा कोई
कामयाब भविष्य
टूट जाएगा
आने वाला जमाना,
मुझे दोषी ठहराएगा।
तुम्हारी पलकों में तैरती
उनींदी पुतलियों पर।
शब्दार्थ :
बाल = बच्चा। मनसूबा = अभिलाषा। कामयाब = सफल। उनींदी = अलसाई।
सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।
व्याख्या :
कवि कहता है कि फटी हुई चमड़ी में उलझकर किसी बच्चे के रंगीन भविष्य की कोई अभिलाषा अधूरी रह जाएगी अथवा उसके अपने उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न टूट जाएगा और इस घटना के पश्चात् आने वाला युग उसे दोषी सिद्ध करेगा। उस समय जीवन का स्वर्णिम भविष्य बच्चे की अलसाई पुतलियों और पलकों पर तैरता हुआ दिखाई देगा।
विशेष :
- अनुप्रास की छटा।
- खड़ी बोली का प्रयोग।
(4) सेमल की रूई-सी
सुबह की नींद
जागने से पहले की खुमारी
मँडरा रही है
और तुम्हारा मन
आतुर है कुलाँचें भरने।
हम, तुम ही से तो अपनी अहमियत पहचानते हैं
तुम हो, इसीलिए तो हमारी भूख-प्यास
मकसद रखती है।
मैं तुम्हारे गालों को
बीमार आठों की छुअन से नहीं जलाऊँगा
तुम इसी तरह मुस्कुराते सोये रहो
सूरज खुद तुमको जगाएगा।
शब्दार्थ :
रूई-सी = रूई जैसी। कलाँचें भरने = उछल-कूद करने को। अहमियत = महत्ता। मकसद = मतलब। छुअन = स्पर्श से।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
कवि अपने जीवन के कठोर संघर्षों की परछाईं शिशुओं के मन पर नहीं छोड़ना चाहता है, इसी भाव का इस अंश में अंकन हुआ है।
व्याख्या :
कवि कहता है कि हे शिशुओ! सेमल की रूई जैसी कोमल तुम्हारी सुबह की नींद है, लेकिन तुम्हारे ऊपर जागने से पूर्व की खुमारी मँडरा रही है और तुम्हारा मन वास्तविकताओं से अनजान बनकर कुलाँचें भरने को व्याकुल हो रहा है।
आगे कवि कहता है कि बच्चे ही प्रत्येक समाज के भविष्य हुआ करते हैं। अतः कवि इन बच्चों में ही अपना बड़प्पन देखता है। तुम्हारे भविष्य की उन्नति की आशा में ही तो हम आज अपनी भूख और प्यास की चिन्ता करते हैं।
कवि कहता है कि मेरा दृढ़ निश्चय है कि मैं अपने बालकों के कोमल गालों को अपने बीमार ओठों का स्पर्श नहीं करने दूंगा अर्थात् उनके खुशहाल जीवन को मैं कष्टों में नहीं पड़ने दूंगा।
अंत में कवि कामना करता है कि मेरे देश के भोले-भाले शिशु इसी प्रकार मुस्कराते हुए सोते रहें और समय आने पर स्वयं सूरज ही उन्हें जगाने के लिए आएगा।
विशेष :
- कवि शिशुओं का जीवन संघर्षों की कठोरता से बचाये रखना चाहता है।
- अनुप्रास एवं उपमा अलंकार।
- सेमल की रूई-सी, जागने से पहले की खुमारी, कुलाँचें भरना, बीमार ओठों की छुअन से बचाना आदि का बड़ा ही सटीक एवं प्रभावशाली प्रयोग किया है।