MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 20 वेधशाला

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 20 वेधशाला (पत्रम्)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 20 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) उज्जयिनी कस्याः विद्यायाः प्रमुखं केन्द्रमस्ति? (उज्जैन किस विद्या का प्रमुख केन्द्र था?)
उत्तर:
ज्योतिषादयः। (ज्योतिष विद्या का)।

(ख) वेधशाला कस्याः नद्याः तटे स्थिता अस्ति? (यंत्रशाला किस नदी के तट के किनारे स्थित है?)
उत्तर:
क्षिप्रा। (क्षिप्रा।)

(ग) उज्जयिनीतः का रेखा निर्गता? (उज्जैन से होकर कौन-सी रेखा गुजरती है?)
उत्तर:
भूमध्य रेखा। (भूमध्य रेखा)।

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(घ) कस्य प्रयत्नेन वेधशालायाः जीर्णोद्धारो जातः? (किसके प्रयत्न से यंत्रशाला का जीर्णोद्धार हुआ?)
उत्तर:
पं. सूर्यनारायण व्यासस्य। (पं. सूर्यनारायण व्यास के)

(ङ) वेधशालायां कास्य विज्ञानस्य बोधं भवति? (यंत्रशाला से कौन-से विज्ञान का बोध होता है?)
उत्तर:
ज्योतिष। (ज्योतिष का)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) केन यन्त्रेण दिगंशः ज्ञायते? (किस यंत्र के द्वारा दिशाओं की गणना की जाती है?)
उत्तर:
दिगंशयन्त्रेण दिगंशः ज्ञायते। (दिशासूचक यंत्र के द्वारा दिशाओं की गणना की जाती है।)

(ख) वेधशालानिर्माणं कदा केन च कारितम्? (यंत्रशाला का निर्माण कब और किसके द्वारा किया गया?)
उत्तर:
वेधशालानिर्माणं अष्टादशशताब्दयां राजा जयसिंहेन च कारितम्। (वेधशाला का निर्माण 18वीं सताब्दी में राजा जयसिंह के द्वारा किया गया।)

(ग) सम्राट् यन्त्रेण कः लभ्यते? (सम्राट यंत्र से क्या जानकारी मिलती है?)
उत्तर:
सम्राट्यन्त्रेण सूर्योदयात् सूर्यास्तं यावत् स्पष्ट समयो लभ्यते। (सम्राट यंत्र के द्वारा सूर्योदय और सूर्यास्त के स्पष्ट समय की जानकारी मिलती है।)

(घ) नाडिवलययन्त्रेण कः ज्ञायते? (नाडिवलय यंत्र से क्या ज्ञान प्राप्त होता है?)
उत्तर:
नाडिवलंययन्त्रेण ग्रहनक्षत्राणां दक्षिणायन विज्ञातं। (नाडिवलय यंत्र के द्वारा ग्रह-नक्षत्रों का तथा दिशाओं का ज्ञान होता है।)

(ङ) पलभायन्त्रेण कस्य ज्ञानं भवति? (पलभा यंत्र द्वारा किसका ज्ञान होता है?)
उत्तर:
पलभायंत्रेण छायायामपि समयस्य ज्ञानं भवति। (पलभा यंत्र के द्वारा छाया से भी समय का ज्ञान होता है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) उज्जयिन्यां वेधशाला कुत्र स्थितास्ति? (उज्जैन की यंत्रशाला कहाँ पर स्थित है?)
उत्तर:
एषा वेधशाला उज्जयिन्याः दक्षिणभागे क्षिप्रायाः दक्षिण तटे स्थितास्ति। (यह वेधशाला उज्जैन के दक्षिण में क्षिप्रा नदी के दक्षिण तट में स्थित है।)

(ख) जयसिंहेन किमर्थं वेधशालानिर्माणं कारितम्? (जयसिंह ने किसलिए यंत्रशाला का निर्माण कराया?)
उत्तर:
जयसिंहेन ज्योतिषानुरागवशात् वेधशाला निर्माणं कारितम्। (जयसिंह ने ज्योतिष के वशीभूत होकर यंत्रशाला का निर्माण करवाया।)

(ग) उज्जयिन्यां कानि-कानि स्थलानि दर्शनीयानि सन्ति? (उज्जैन में कौन-कौन से स्थान देखने योग्य हैं?)
उत्तर:
उज्जयिन्यां महाकालेश्वर मन्दिरम् महर्षेः सान्दीपनेः आश्रमम्, गढ़कालिका मन्दिरम् आदयः स्थलानिदर्शनीयानि सन्ति।
(उज्जैन में महाकालेश्वर का मन्दिर, महर्षि सांदिपनि का आश्रम गढ़कालिका मन्दिर आदि स्थान देखने योग्य हैं।)

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(घ) दिगंशयन्त्रेण दक्षिणोत्तरभित्तियन्त्रेण च कस्य बोधः भवति? (दिक्यंत्र और दक्षिणोत्तर दीवाल यंत्र के द्वारा किसका ज्ञान होता है?)
उत्तर:
दिगंशयन्त्रेण दक्षिणोत्तर भित्तियन्त्रेण च नक्षत्राणाञ्चापि दिगंशोच ग्रहनक्षत्राणां मध्याह्नवृत्ता गमनसमये नतोन्नतांशयोः बोधः भवति। (दिक यंत्र और दक्षिणोत्तर दीवाल यंत्र के द्वारा नक्षत्रों के दिशाओं का, ग्रहों का तथा समयादि का ज्ञान होता है।)

(ङ) उज्जयिन्याः प्राचीननामानि लिखित्वा प्राचीनवैभवमपि वर्णयत? (उज्जैन का प्राचीन नाम लिखकर प्राचीनकालीन वैभव को भी वर्णित करें?)
उत्तर:
उज्जयिन्याः प्राचीननामानि अवन्तिका आसीत् च सर्वत्र पुरातात्त्विकं वैभवं, ज्योतिष-गणित आदयः आसीत्। (उज्जैन का प्राचीन नाम अवन्तिका था जहाँ पुरातात्त्विक वैभव के साथ-साथ ज्योतिष एवं गणित का अध्ययन केन्द्र था।)

प्रश्न 4.
रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) राजा जयसिंहेन वेधशालानिर्माणं कारितम्।
(ख) आङ्ग्लभाषायां वेधशालां अब्जर्वेटरी इति वदन्ति।
(ग) एषा अवन्तिका नाम्नापि शास्त्रेषु वर्णिता अस्ति।
(घ) भूमध्य रेखा इतः एव निर्गता।
(ङ) एतद् ज्योतिष ज्ञानं विज्ञानस्य उत्तमम् उदाहरणम् अस्ति।

प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
उदाहरणम् –
वेधशाला क्षिप्रायाः उत्तरतटे स्थिता अस्ति। – न
उज्जयिनी ज्योतिषविद्याया प्रमुख केन्द्रमस्ति। – आम्
(क) वेधशालायाः निर्माणम् अष्टादशशताब्याम् अभवत्।
(ख) जयसिंहेन वेधशालायाः जीर्णोद्धारं कारितम्।
(ग) पलभायन्त्रेण रात्रौ समयस्य ज्ञानं भवति।
(घ) उज्जयिनी विशाला इति नाम्नापि शास्त्रेषु वर्णिता।
(ङ) उज्जयिनीतः कर्करेखा निर्गता।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) न
(घ) न
(ङ) न

प्रश्न 6.
सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत
(क) पुरीयम् – पुर+इयम् = स्वरसन्धिः।
(ख) सर्वेऽपि – सर्व+अपि = पूर्व रूप स्वर सन्धिः।
(ग) कुशलताञ्च – कुशलता+च = व्यंजन संन्धिः।
(घ) दृष्टव्येति – दृष्टव्य+इति = स्वर सन्धिः।
(ङ) कालेऽपि – काल:+अपि = पूर्व रूप स्वर सन्धिः।

प्रश्न 7.
उदाहरणानुसारं शब्दानां धातुं प्रत्ययं च पृथक कुरुत-
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प्रश्न 8.
अव्ययैः वाक्यनिर्माणं कुरुत-
यथा :
जनाः वेधशालां यन्त्रभवनम् अपि वदन्ति।
(क) सर्वत्र – सर्वत्र शिक्षकाः सन्ति।
(ख) सम्यक् – सः सम्यक् पठितुम् भोपाल नगरम् आगच्छत्।
(ग) अधुना – अधुना उज्जैनयाम् वेधशाला पुरातात्त्विक धरोहरः अस्ति।
(घ) यावत् – यावत् सः अगमिष्यसि तावत् अहम् पठिष्यामि।
(ङ) यदा – यदा पं. सूर्यनारायण व्यासेन वेधशाला जीर्णोद्धारं कारितवान्।

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प्रश्न 9.
उदाहरणनुसारं शब्दानां विभक्तिं वचनं च लिखत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 20 वेधशाला img-2

प्रश्न 10.
यथायोग्यं योजयत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 20 वेधशाला img-3

वेधशाला पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

पत्रलेखन भाषण कला के समान एक लेखक कला है। लिखिन रूप में कहा गया अंश थोड़े में लिखते हैं। सरल, सुंदर विन्यास में संक्षिप्त किन्तु सम्पूर्ण लेख लेखन के महत्त्व को बताते हैं। व्यक्ति विशेष के अनुसार भूमिका, उपसंहार, पत्रलेखन की विशेषता होती है। प्रस्तुत पाठ में पत्र के माध्यम से उज्जैन की वेधशाला की विशेषता बताई गई है

वेधशाला पाठ का हिन्दी अर्थ

1.

शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालयः
शामगढ़नगरम् (मध्यप्रदेशः)

प्रियमित्र! तपन!
नमस्ते
अहमत्र कुशली, भवतः कुशलताञ्च कामये। मम अध्ययनं सम्यक् प्रचलति। मम विद्यालयस्य त्रैमासिकी परीक्षायाः परिणामः आगतः। मम परिणामः उत्तमः।

विगतसप्ताहे विद्यालयस्यैका शैक्षणिकयात्रांप्रवृत्ता। अहम् संस्कृतशिक्षकस्य निर्देशने छात्रैः सह उज्जयिनी गतवान्। उज्जयिनी भारतस्य अत्यंतं प्राचीनतम् इतिहासधर्म-दर्शन-कला-साहित्य-योग-ज्यौतिषादीनां च केन्द्रमासीत्। एषा अवन्तिका, विशाला नाम्नापि शास्त्रेषु वर्णिता अस्ति। अत्र सर्वत्र पुरातात्विकं वैभवं दृष्ट्वा मनसि आनन्दो जायते। भगवतःमहाकालस्य पुरीयं देशे श्रद्धायाः केन्द्रमस्ति। अत्र भव्यं महाकालेश्वरमन्दिरम्, हरसिद्धिमंदिरम्, गोपालमन्दिरम्, महर्षेः सान्दीपनेः आश्रमम्, गढ़कालिकामन्दिरम् कालभैरवमंदिर अन्यानि चापि सिद्धवट-अङ्कपात-मङ्गलनाथ-कालियादाहंभवनमित्यादि दिव्यस्थानानि अस्माभिः अवलोकितानि। किन्तु वेधशालां दृष्ट्वा वयं सर्वेऽपि आश्चर्यचकिताः सजाताः।

शब्दार्थ :
अहमत्र-मैं यहां हूं-I am hear; कामये-काम-disire/wish; अगतः-आया-come; विगतसप्ताहे-पिछले सप्ताह-last weak; प्रवृत्ता-प्रवृत्त-to go ahead; संस्कृत शिक्षकस्य-संस्कृत शिक्षक-Sanskrit teacher; वापि-और भी-and also; अस्माभिः-हमारे-our; सजाताः-हुए-happend; ज्यौति-ज्यौति-astrology.
हिन्दी अर्थ :

शासकीय उच्चतर माध्यमिक
विद्यालय, शामगढ़नगर (म. प्र.)

प्रिय मित्र तपन!
नमस्ते!
मैं यहाँ कुशलपूर्वक हूँ तथा आपकी कुशलता की कामना करता हूँ। मेरा अध्ययन ठीक से चल रहा है। मेरे विद्यालय की त्रैमासिक परीक्षा का परिणाम आ गया है। मेरा परिणाम उत्तम है।

पिछले सप्ताह विद्यालय की ओर से एक शैक्षणिक यात्रा सम्पन्न हुई। मैं भी संस्कृत के आचार्य महोदय व छात्रों के साथ उज्जैन गया। उज्जयिनी भारत के अत्यन्त प्राचीन इतिहास, धर्म, दर्शन, कला, साहित्य योग और ज्योतिष आदि का केन्द्र था। शास्त्रों में इस नगर को अवन्तिका के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ सर्वत्र पुरातात्त्विक सम्पन्नता को देखकर मन में आनन्द की लहरें हिलारें लेने लगती हैं। यहाँ का प्राचीन कालेश्वर मन्दिर, हरसिद्ध मंदिर, गोपाल मंदिर, महर्षि संदीपन आश्रम, गढ़ कालिका मन्दिर, काल भैरव मंदिर आदि अनेक दर्शनीय स्थल हैं। इसके अतिरिक्त अन्य और भी दर्शकीय स्थल है जैसे-सिद्धवट, अंक पात, मंगलनाथ, कालिया दाह भवन आदि । किन्तु वेधशाला को देखकर हम सभी आश्चर्य चकित हो गए।

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2. मित्र! आङ्ग्लभाषायां वेधशालाम् “ऑब्जर्वेटरी” इति वदन्ति । जनाः वेधशालां “यन्त्रभवनम्” अपि वदन्ति । एषा वेधशाला उज्जयिन्याः दक्षिणभागे क्षिप्रायाः दक्षिणतटे उन्नत-भू-भागे स्थिता अस्ति। प्राचीनकालत् एव उज्जयिनी ज्यौतिषविद्यायाः प्रमुखं केन्द्रम् । भूमध्यरेखा इतः एव निर्गता। इदं स्थानं गणितस्यापि आधारस्थलम् अस्ति। अष्टादशशताब्यां राज्ञा जयसिहेन ज्यौतिषानुरागवशात् वेधशालानिर्माणं कारितम् । ग्रहाणां प्रत्यक्षवेधनाय जयसिंहः उज्जयिन्या, काश्या, देहल्या, जयपुरे च वेधशालाना निर्माणं कृतवान्। सः वेधज्यौतिषमधिकृत्य एक ग्रन्थम् अपि रचितवान् इति श्रूयते। तेन अत्र एकम् उपनगरम् अपि निर्मितम् अधुना अपि जयसिंहपुरा इति नाम्ना तद् विख्यातमेव।

इयं वेधशाला जीर्णशीर्णा आसीत् परं 1961 तमे खीष्टाब्देः पं. सूर्यनारायणव्यासस्य प्रयत्नेन वेधशालायाः जीर्णोद्धारो जातः। अत्र विद्यते सम्राट्यन्त्रम् एतेन सूर्योदयात् सूर्यास्तं यावत् स्पष्टसमयो लभ्यते। अत्र स्थितेन दिगंशयन्त्रेण ग्रहाणां नक्षत्राणाञ्चापि दिगशो ज्ञायते। “नाडिवलययन्त्रेण” ग्रहनक्षत्राणां दक्षिणायन विज्ञातं भवति।

शब्दार्थ :
अब्जर्वेटरी-अब्जर्वेटरी-observatary; वदन्ति-कहते हैं-say; एषा-यह-this; निर्गता-जाती है-goes; इदं-यह-this; ज्यौतिषानुरागवशात्-ज्योतिष के अनुराग से-fond of astrology, astronomer; कारितम्-कराया-done; वेधज्योतिष्मधिकृत्य-यंत्र ज्योतिष पर आधारित-instrument lasred on astrology; श्रूयते-सुना जाता है-is listen; रचिवान्-रचा-create; एकम्-एक-one; निर्मितम्-जाता है-goes; अधुना-आज-today; विख्यातमेव-प्रसिद्ध-famous; प्रयत्नेन-प्रयत्न से-for try; जीर्णोद्धार-जीर्णोद्धार-repair; विद्यते-विद्यमान-wish man; यावत-जब तक-till that; लभ्यते-प्राप्त होता है-receives; ग्रहाणां-नक्षत्रों का-planets; ज्ञायते-ज्ञाता होता है-happens; ग्रह नक्षत्राणां-ग्रह नक्षत्रों का-planets.

हिन्दी अर्थ :
मित्र! आंग्ल भाषा में वेध शाला को ‘आब्जर्वेटरी’ कहते हैं। लोग वेधशाला को ‘यंत्र शाला’ भी या ‘यंत्र भवन’ भी कहते हैं। यह ‘यंत्र भवन’ उज्जैन के दक्षिणी भाग में शिप्रा के दक्षिण तट पर स्थित ऊँचे भू-भाग पर स्थापित की गई है। उज्जैन प्राचीन काल से ही ज्योतिष विद्या का केन्द्र रहा है। यहाँ से कर्क रेखा भी गुजरती है इसलिए यह स्थान गणित का भी प्रमुख आधार स्थल रहा है। अठारहवीं शताब्दी में राजा जयसिंह ज्योतिष प्रेम के वशीभूत एक यंत्र भवन का निर्माण कराया गया। ग्रहों के सम्यक् ज्ञान के लिए राजा जयसिंह ने उज्जैन, काशी, दिल्ली और जयपुर नगर में वेधशालाओं का निर्माण करया। ऐसा प्रचलित है कि उन्होंने वेध, ज्योतिष के आधार पर एक उपनगर भी बसाया जो आज भी जयसिंह पुरा के नाम से जाना जाता है।

यह यंत्र भवन जीर्ण हो गया था किन्तु सन् 1961 में पं. सूर्यनारायण व्यास के प्रयत्न से वेधशाला का जीर्णोद्धार का कार्य पूर्ण हुआ। इस वेधशाला में स्थापित यंत्र से सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त वेला तक समय स्पष्ट दिखाई देता है। यहाँ की स्थिति से दिशा सूचक यंत्र द्वारा ग्रह और नक्षत्र आदि की गणना ज्ञात होती है। नाडि वलय यंत्र द्वारा ग्रह-नक्षत्रों के दक्षिणायन होने का विशेष ज्ञान होता है।

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3. “दक्षिणोत्तरभित्तियन्त्रेण” ग्रहनक्षत्राणां मध्याहूनवृत्तागमनसमये नतोन्नतांशयोः परिज्ञानं सञ्ज्ञायते। “पलभायन्त्रेण” छायायामपि समयस्य सम्यक ज्ञानं भवति।

वस्तुतः वेशधालां वीक्ष्य मनसि गौरवमनुभवामि यत् प्राचीनकालेऽपि अस्माकं पूर्वजनां गणितस्य, ग्रहनक्षत्राणाञ्च ज्ञानम् अद्भुतं वैज्ञानिकञ्चासीत्।

इदानीं पत्रं समापयामि। यदा अवसरः लभ्यते तदा एकवारं ज्ञानविज्ञानस्य पुरीयम् उज्जयिनी अवश्यमेव दृष्टव्येति।
शम्।

भवतः कुशलापेक्षी
राजेशः

शब्दार्थ :
मध्याहनवृत्तागमनसमये-दोपहरी के समय-In the time of afternoon; छायायामपि-छाया भी-sadow also; वैज्ञानिकञ्चासीत्-वैज्ञानिक थे-was scientist; इदानीं-इस समय-this time; पुरीयम्-प्राचीन (नगर में)-old, ancient; परिज्ञान-विशेष ज्ञान-special knowledge; ज्ञानविज्ञानस्य-ज्ञान-विज्ञान के-knowledge of science.

हिन्दी अर्थ :
“दक्षिण-उत्तर दीवार के यंत्र के द्वारा ग्रह-नक्षत्रों के दोपहर के आगमन के समय विभिन्न भू-भाग का ज्ञान प्राप्त होता है। पलभ यन्त्र द्वारा छाया से भी सम्यक् ज्ञान प्राप्त होता है।
वस्तुतः वेधशाला को देखकर मैं गौरव की अनुभूति कर रहा हूँ कि प्राचीनकाल में भी हमारे पूर्वजों को गणित और ग्रह-नक्षत्रों का ज्ञान अद्भुत और वैज्ञानिक था।

अब इस समय पत्र समाप्त कर रहा हूँ। जब भी समय मिले, एक बार इस ज्ञान-विज्ञान के नगर उज्जैन को अवश्य देखना।

आपका कुशलापेक्षी
राजेश

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 19 उपायैः सर्वं शक्यम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 19 उपायैः सर्वं शक्यम् (कथा)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 19 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) हस्ती कुन निपतितः? (हाथी कहाँ गिर गया?)
उत्तर:
पङ्के। (कीचड़ में)

(ख) प्रथमं कं विन्देत्? (पहले किसकी वंदना करनी चाहिए?)
उत्तर:
राजानम्। (राजा की)

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(ग) हस्तेः नाम किमासीत्? (हाथी का क्या नाम था?)
उत्तर:
कर्पूरतिलकः। (कर्पूर तिलक था।)

(घ) राजा विना किं न युक्तम्? (राजा के बिना क्या उपयुक्त नहीं है?)
उत्तर:
अवस्थातुं।अवस्थातुं। (आवास करना।)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) वृद्धशृगालेन किं प्रतिज्ञातम्? (बूढ़े सियार ने क्या प्रतिज्ञा की?)
उत्तर:
वृद्ध शृगालेन प्रतिज्ञातम्-यथा बुद्धिप्रभावस्य हस्ति मरणं साधयितव्यम्। (बूढ़े सियार ने प्रतिज्ञा किया कि-मेरी बुद्धि के प्रभाव से हाथी का मरण संभव है।)

(ख) शृगालेन रिहस्य किमुक्तम्? (शृगाल ने हँसकर क्या बोला?)
उत्तर:
शृगालेन विहस्त उक्तम्-देव! मम पुच्छकावलम्बनं कृत्वा उत्तिष्ठ। (शृगाल हँसकर बोला कि-हे देव! मेरी पूँछ पकड़कर के उठो।)

(ग) केन ना आस्थातुं न युक्तम्? (किसके विना निवास करना उपयुक्त नहीं है:)
उत्तर:
राजा विना अवस्थातुं न युक्तम्। (राजा के बिना निवास करना उपयुक्त नहीं है।)

(घ) शृगालैः कः भक्षितः? (शृगालों ने किसका भोजन किया?)
उत्तर:
शृगालैः हस्ती भक्षितः। (शृंगालों ने हाथी का भोजन किया।)

(ङ) कर्पूतिलकः केन लोभेन धावति? (कर्पूरतिलक किरा लोभ से दौड़ता है?)
उत्तर:
कर्पूरलिलकः राज्यं लोभेन धावति। (कर्पूरतिलक राज्य के लोभ से दौड़ता है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) भुवि कीदृशः स्वामी युज्यते? (पृथ्वी में किस तरह (गुण वाले) राजा की स्थापना की जाती है?)
उत्तर:
भुवि अतिशुद्धः, प्रतापवानः, धार्मिकः, नीति कुशलः कुलाभिजना स स्वामी युज्यते। (पृथ्वी में अतिशुद्ध, कुलीन, प्रतापवान, धार्मिक और नीतिकुशल स्वामी की नियुक्ति की जाती है।)

(ख) पङ्केनिमग्नः हस्ती शृगालेन किमुक्तम्? (कीचड़ में गिरा हुआ हाथी सियार से क्या बोला?)
उत्तर:
पङ्के निमग्नः हस्ती शृगालेन उक्तम्-सखे शृगाल! किमधुना विधेयम्? पड़े निपतितोऽहं म्रिये। परावृत्य पश्य। (कीचड़ में गिरा हुआ हाधी सियार से बोला कि-मित्र सियार! अब क्या होगा? मैं कीचड़ में गिर गया हूँ और मरने वाला हूँ। लौटकर देखो।)

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प्रश्न 4.
उचितैः शब्दैः रिस्त स्थानानि पूरयत-
(पशुभिर्मिलित्वा, त्रिये, प्रथम, लोकेऽस्मिन्, यच्छक्य)
(क) पते निपतितोऽहं म्रिये।
(ख) सर्वैः वनवासिभिः पशुभिर्मिलित्वा भवत्सकाशं प्रस्थापितः
(ग) राजन्यसति लोकेऽस्मिन् कुतो भार्या कुतो धनम्।
(घ) उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः।
(ङ) राजानं प्रथमा विन्देत्।

प्रश्न 5.
उचितमेलनं कुरुत-
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प्रश्न 6.
निम्नलिखितशब्दानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत
उदारहणं यथा :
शृगालैभक्षितः- शृगालः+भक्षितः। = विसर्गसन्धिः।।
(क) चोक्तम् – च+उक्तं = गुणस्वर संधिः।
(ख) ततस्तेन – ततः+तेन = विसर्गः।
(ग) सर्वैर्वनवासिभिः – सर्वैः+वनवासिभि = विसर्ग सन्धिः।
(घ) तत्रैकेन – तत्र+एकेन = वृद्धिस्वर सन्धिः।
(ङ) ततोऽसौ – ततः+असो = पूर्वरूप सन्धिः
(च) यद्ययम् – यदि +अयम् = यण सन्धिः

प्रश्न 7.
क्रियापदानां धातुं लकारं वचनं पुरुषं च लिखत-
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प्रश्न 8.
अधोलिखितशब्दानां विभक्ति वचनञ्च लिखत-
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प्रश्न 9.
अधोलिखितैः अव्ययैः वाक्यनिर्माणं करुत-
(क) विना – रामेण विना दशरथः न जिवेत्।
(ख) कुतः – भवान् कुतः निवससि!
(ग) इति – अयं वंश नाम्ना गौतम इति ख्यात् आसीत्।
(घ) न – अहं दुग्धं पिवामि चायं न पिवामि।
(ङ) ततः – कर्पूरतिलकोः महापङ्के निमग्नतः।

प्रश्न 10.
अधोलिखितशब्दानां धातुं प्रत्ययञ्च पृथक् कुरुत
(क) भक्षितः -भक्ष् + क्तः।
(ख) कृतः – कृ + क्तः।
(ग) कृत्वा – कृ + क्त्वा।
(घ) प्रणम्य – प्र + नम् + ल्यप्।
(ङ) गत्वा – गम् + क्त्वा।

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उपायैः सर्वं शक्यम् पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

संस्कृत साहित्य में कथा साहित्य का विपुल भंडार है। उसमें पंचतंत्र, कथा सरित् सागर बेताल पंचविंशितिः, विक्रमादित्य कथा; वृहत्कथा मञ्जरी, हितोपदेश इत्यादि प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ हैं। उसमें पंचतंत्र की नीति कथाएं पशु-पक्षियों के माध्यम से प्रस्तुत की गई हैं। प्रस्तुत पाठ में कहानी के पात्र हाथी, सियार हैं जो-उपायों के द्वारा सब संभव है-नीति को मनुष्य के लिए सूचित करते हैं।

उपायैः सर्वं शक्यम् पाठ का हिन्दी अर्थ

अस्ति ब्रह्मारण्ये कर्पूरतिलको नाम हस्ती। तमवलोक्य सर्वे शृगालश्चिन्तयन्ति स्म’यद्ययं केनाप्युपायेन म्रियतेतदा अस्माकम् एतद्देहेन मासचतुष्टयस्य भोजनं भविष्यति’। तत्रैकेन वृद्धशृगालेन प्रतिज्ञातम्-‘मया बुद्धिप्रभावादस्य मरणं साधयितव्यम्।’ अनन्तरं स वञ्चकः कर्पूरतिलकसमीपं गत्वा साष्टाङ्गपातं प्रणम्य उवाच-‘देव! दृष्टिप्रसादं कुरु।’ हस्ती ब्रूते-‘कस्त्वम्, कुतः समायातः?’ सोऽवदत्-‘जम्बुकोऽहम्। सर्वैर्वनवासिभिः पशुभिर्मिलित्वा भवत्सकाशं प्रस्थापितः।’ यद्विना राज्ञा अवस्थातुं न युक्तम्, तदात्राटवीराज्येऽभिषेक्तुं भवान् सर्वस्वामिगुणोपेतो निरूपितः।

यतः :
यः कुलाभिजनाचारैरतिशुद्धः प्रतापवान्।
धार्मिको नीतिकुशलः स स्वामी युज्यते भुवि॥

अपरञ्च पश्य :
राजानं प्रथमं विन्देततो भायां ततो धनम्।
राजन्यसति लोकऽस्मिन्कुतो भार्या कुतो धनम्॥

शब्दार्थ :
अस्ति-है-is; कर्पूरतिलको-कर्पूरतिलक नाम का -Namely Karpoor Tilak; तमवलोक्य-उसे देखकर-seeing him; सद्ययं-आज मैं-today I; तत्रकेन-इनमें से एक-one among them; साधयितव्यम्-साधना चाहिए-should meditate; वञ्चकः-धूर्त/कपटी-wicked; सोऽवदत्-वह बोला-he spoke; दृष्टिप्रसादं-दृष्टि की कृपा-blessing; नीतिकुशलः-नीति में कुशल-skill in policy, good moral; युज्यते-जोड़ता है-joins कृतः -किया-did; लोकस्मिन-इस संसार में-in this world.

हिन्दी अर्थ :
ब्रह्मारण्य में कर्पूरतिलक नामक हाथी रहता था। उसे देख सभी सियारों ने विचार किया कि यदि यह किसी प्रकार मर जाए तो इसके शरीर की चार महीने की खाद्य सामग्री हो जाएगी। तब एक वृद्ध सियार ने कहा-मैं अपनी बुद्धि चातुर्य से इस हाथी को मार सकता हूँ। तब वह सियारकर्पूर तिलक (हाथी) के पास पहुँच उसे साष्टांग प्रणाम करके बोला-हे भगवान्! मुझ पर दया करो। हाथी बोला-तुम कोन हो? कहाँ से आए हो? तब वह (बूढ़ा) सियार बोला-मैं सियार हूं। वन के सभी पशु-पक्षियों ने मिलकर मुझे आपके पास भेजा है। कारण कि बिना राजा के कहीं पर भी रहना ठीक नहीं है और इस जंगल के राज्य में आपसे अच्छा अभिषेक करने योग्य दूसरा कोई नहीं है। आप में राजा के गुण विद्यमान हैं।

जैसे-इस पृथ्वी पर वही राजा हो सकता है जो कुलीन हो, आचार-विचार से शुद्ध हो, प्रतापी हो, धार्मिक हो साथ ही नीति कुशल भी हो।

और भी-सर्वप्रथम राजा को प्राप्त करना चाहिए, उसके बाद पत्नी और धन को प्राप्त करना चाहिए। यदि राजा ही प्राप्त नहीं हुआ तो कहाँ पत्नी और कहाँ धन प्राप्त हो सकता है।

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2. तद्यथा लग्नवेला न विचलति तथा कृत्वा सत्वरमागम्यतां देवेन। इत्युक्त्वोत्थाय चलितः। ततोऽसौ राज्यलोभाकृष्टः कर्पूरतिलकः शृगालवर्त्मना धावन्महापङ्के निमग्नः। ततस्तेन हस्तिनोक्तम्-‘सखे शृगाल! किाधुना विधेयम्? पङ्के निपतितोऽहं म्रिये। परावृत्य पश्य।’ शृगालेन विहस्योक्तम्-‘देव! मम पुच्छकावलम्बनं कृत्वा उत्तिष्ठ। यन्मद्विधस्य वचसि त्वया प्रत्ययः कृतस्तदनुभूयताम् अशरणं दुःखम्।’

तथा चोक्तम् :
यदाऽसत्सङ्गरहितो भविष्यसि भविष्यसि।
यदाऽसज्जनगोष्ठीषु पतिष्यसि पतिष्यसि॥

ततो महापङ्के हस्ती शृगालैर्भक्षितः। अतोऽहम् ब्रवीसि-
उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः।
शृगालेन हतो हस्ती गच्छता पङ्कवर्मना॥

शब्दार्थ :
प्रणम्य-प्रणाम करके-saluting; प्रतिज्ञातम्-प्रतिज्ञा की-promised; वञ्चकः-धृत/कपटी-wicked person; प्रस्थापित-भेजा गया-send; अटवी-जङ्गल-forest, jungal; युज्यते-उचित होता है।-Satisfied; भुवि-पृथ्वी पर-on earth; विन्देत्-प्राप्त करें-receive; महापङ्के-दलदल में-in mud; निपतितः-गिरा हुआ-fallen; परावृत्य-लौटकर-returning; विहस्य-हँसकर-laughing.

हिन्दी अर्थ :
इसलिए अभिषेक का शुभ मुहूर्त न निकल जाए, ऐसा विचार कर शीघ्रता से आप मेरे साथ चलें। ऐसा कह वह जल्दी से उठा और चल दिया। यह सुन राज्य के लोभ से आकर्षित हो कर्पूरतिलक सियार के पीछे-पीछे चला और दौड़ते हुए भयंकर कीचड़ के दल-दल में फँसकर डूबने लगा, तब उसने सियार से कहा-मित्र सियार! अब क्या करना चाहिए! मैं कीचड़ में फँस मरने वाला हूँ, लौट कर देखो। सियार ने हँसते हुए कहा-हे देव! मेरी पूँछ का सहारा लेकर तुम बाहर आ जाओ। मुझ जैसे के वचन पर तुमने भरोसा किया तो उसका परिणाम दुख ही है। उसे भोगो।

वैसे कहा भी है-जब कोई सत्संगै से रहित हाकर दुर्जनों की संगति में जाएगा। तो उसका पतन ही होगा, उसफा पतन ही होगा।

तब दलदल में फँसे हाथी को सियारों ने खा लिया। इसलिए मैं कहता हूँ-उपाय से जो सम्भव है, वह पराक्रम से नहीं हो सकता। जैसे कि शृगाल द्वारा दलदल भाग पर ले जाने के कारण हाथी मारा गया।

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 18 पुरुषोत्तमः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 18 पुरुषोत्तमः (पद्यम्)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 18 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) नियतात्माः महावीर्यः कः? (मन को वश में रखने वाला कौन है?)
उत्तर:
प्रभवो रामः। (प्रभु राम)

(ख) रामः किमर्थं वनं गतः? (राम किसलिए वन को गए?)
उत्तर:
पितुर्वचननिर्देशात्। (पिता के वचनों का पालन करने के लिए।)

(ग) सुग्रीववचनात् रामः कं हतवान्? (सुग्रीव के वचन से राम ने किसका वध किया?)
उत्तर:
बालिन। (बालि का)

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(घ) महाकपिः कां दग्धवान्? (हनुमान ने किसे जलाया?)
उत्तर:
लङ्कां। (लंका को)

(ङ) सीता दृष्टा इति कः रामं न्यवेदयत? (सीता को देखकर किसने राम को सम्पूर्ण कथा सुनायी?)
उत्तर:
महाकपि हनुमानः (महावीर हनुमान ने)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) सीता लक्ष्मणश्च केन सह वनम् अगच्छताम्? (सीता और लक्ष्मण के साथ कौन वन को गए?)
उत्तर:
सीता लक्ष्मणश्च रामेण सह वनम् अगच्छताम्। (सीता और लक्ष्मण के साथ राम वन को गए।)

(ख) रामः कस्मिन् वंशे उत्पन्नः अभूत? (राम किस वंश में उत्पन्न हुए?)
उत्तर:
राम इक्ष्वाकुवंशे उत्पन्नः अभूत्। (राम इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न हुए।)

(ग) केन दशरथस्य मरणमभवत्? (किसके कारण दशरथ की मृत्यु हुई?)
उत्तर:
पुत्र शोकात् दशरथस्य मरणमभवत्।। (पुत्र शोक के कारण दशरथ की मृत्यु हुई।)

(घ) मायावी रावणः सीतां कथं जहार? (मायावी रावण ने सीता का कैसे हरण किया?)
उत्तर:
मायावी रावणः सीतां नृपात्मजौ दूरम् अपवाह्य रामस्य भार्यां जहार। (मायावी रावण ने सीता को राजकुमारों (राम-लक्ष्मण) को दूर भेजकर)

(ङ) श्रीराम बालिनः राज्ये कं प्रत्यपादयत्? (श्रीराम ने बालि का राज्य किसको प्रदान किया?)
उत्तर:
श्रीराम बालिनः राज्ये सुग्रीवमेव प्रत्यपादयत्। (श्रीराम ने बालि का राज्य सुग्रीव को प्रदान किया।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) रामस्य विशिष्टगुणाः के? (राम के विशिष्ट गुण कौन-कौन से हैं?)
उत्तर:
रामस्य विशिष्टगुणाः महावीर्यं द्युतिमान् धृतिमान् श्च आसीत्। (राम के विशिष्ट गुण महान बलशाली, वीर और कांति युक्त थे।)

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(ख) रामस्य वनगमनसमये के दूरम् अनुगतः? (राम के वनगमन के समय कौन दूर तक अनुगमन किया?)
उत्तर:
रामस्य वनगपन समये पित्रा दशरथेन पौरेः च दूरम् अनुगतः। (राम के वनगमन के समय पिता दशरथ और ग्रामवासी दूर तक अनुगमन किए।)

(ग) वने रामः शूर्पणखावाक्यादुधुक्तान् कान्-निजधान? (वन में राम शूर्पणखा द्वारा उत्तेजित किए गए किन-किन राक्षसों को मारा?)
उत्तर:
वने रामः शूर्पणखावाक्यादुधुक्तान् सर्वराक्षसान् खरं, त्रिशिरसं, दूषणं च निजधान। (वन में राम ने शूर्पणखा द्वारा उत्तेजित किए गए राक्षसों खर, त्रिशला, और दूषण आदि को मारा।)

(घ) हनुमान कं प्रियम् आख्यातुम आयात्! (हनुमान किसको प्रिय कथा सुनाने आये?)
उत्तर:
हनुमान रामं प्रियम् आख्यातुम् आधात्। (हनुमान राम को प्रिय कथा सुनाने आये।)

(ङ) रावणस्य वधानन्तरं रामः किं कृतवान्? (रावण का वध करके राम ने क्या किया?)
उत्तर:
रावणस्य वधानन्तरं रामं नदीग्रामे जटां हित्वा भ्रातृभिः सहितः सीताम् अनुप्राप्य राजं पुनः आप्तवान्। (रावण के वध के अनन्तर राम नंदी ग्राम में जटाओं को कटवाकर भाइयों सहित सीता के साथ राज्यभार पुनः प्राप्त किया।)

प्रश्न 4.
युग्ममेलनं कुरुत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 18 पुरुषोत्तम img-1

प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
यथा-
श्रीरामः धैर्येण हिमवान इवं अस्ति।। – आम्
आम् सुग्रीवेण सह रामः मित्रतां न कृतवान् – न
(क) कैकेय्याः प्रियकारणात् रामः वनं गतः।
(ख) सुमित्रानन्दवर्धनः लक्ष्मणः वनं न गतः।
(ग) रामः चतुर्दशसह राक्षसान् हतवान्।
(घ) सुग्रीवः बालिनं हतवान्।
(ङ) रामः रावणं न हतवान।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) न

प्रश्न 6.
उचितैः शब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) रामः समुद्रइव गाम्भीर्ये अस्ति।
(ख) वनं गत्वा रामः राक्षसान् निजधान।
(ग) सुग्रीवेण पम्पातीरे सह रामस्य मित्रता सम्पन्नता।
(छ) लङ्का गत्वा रामः रावणं हतवान्।
(ङ) रामः नन्दिग्रामे जटां त्यक्तवान्।

प्रश्न 7.
अधोलिखितवाक्यानि भूतकाले परिवर्तयत
(क) राक्षसान् मारणाय रामः वनं गच्छति।
उत्तर:
राक्षसान मारणाय रामः वनं आगच्छत्।।

(ख) समेण सह सीता लक्ष्मणश्च वनं गच्छतः।
उत्तर:
रामेण सह सीता लक्ष्मणश्च वनं गतवन्तौ।

(ग) रामः सुग्रीवेण सह मैत्री करोति।”
उत्तर:
रामः सुग्रीवेण सह मैत्री अकरोत्।

(ध) वाल्मीकिः रामचरित लिखति।
उत्तर:
वाल्मीकिः रामचरितं अलिखत्।

(ङ) श्रीरामः विभीषणाय लङ्काराज्यं ददाति।
उत्तर:
श्रीरामः विभीषणाय लङ्काराज्यं अद्दात्/दत्ता।

प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं शब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 18 पुरुषोत्तम img-2

प्रश्न 9.
अधोलिखित शब्दानां समानार्थशब्दान् लिखत
उदाहरणं यथा- सुतः – पुत्रः
रामः – सीतापतिः।
हनमुान् – अंजनि पुत्रः।
शशी – मयङ्क
राजा – नृपः
समुद्रः – रत्नाकरः
वनम् – अरण्यम्।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अव्ययानि प्रयुज्य वाक्यनिमाणं कुरुत-
इव – रामस्य गम्भीरता समुद्रः इव अस्ति।
च – कौशल्यानन्द स्य गंभीरता समुद्रः इव च धैर्येण हिमवान् इव आसीत्।
तत: – ततः रामः परिवार सहितेन वनं जगाम।
अपि – अहं अपि नगरं गमिष्यामि।
एव – गीता एव मधुरं गीतं गायति।

प्रश्न 11.
निम्नलिखितेषु प्रत्ययं च पृथक् कुरुत-
दृष्ट्वा – दृशृ + क्त्वा
कृत्वा – कृ + क्त्वा
श्रुत्वा – श्रु + क्त्वा
हत्वा – हनू + क्त्वा
दग्ध्वा – दग्ध् + क्त्वा।

पुरुषोत्तमः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

वाल्मीकि (चित रामायण विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य है। उसमें से उद्धृत कुछ गीत काव्य के महानायक राम के चरित्र को व्यक्त करते हैं।

पुरुषोत्तमः पाठ का हिन्दी अर्थ

1. इक्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः।
नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान् धृतिमान् वशी॥

शब्दार्थः :
इक्ष्वाकुवंश प्रभवो-इक्ष्वाकु-family; श्रुतः-सुना गया-listen; नियतात्मा-मन को वश में रखने वाले -controller of mind /who under the mind; द्युतिमान-कान्तिमान्-fame full.

हिन्दी अर्थः :
इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न, अपने मन को वश में रखने वाले महावीर, कान्तिमान, धैर्यवान, इन्द्रियजयी राम का नाम सभी लोगों न सुना है।

2. स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्धनः
समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्येण हिमवानिव ॥

शब्दार्थः :
कौसल्यानन्दवर्धनः-कौसल्या के आनन्द को बढ़ाने वाला-who incresing of Kaushalya’s enjoyment; इव-के समान-like you.

हिन्दी अर्थः :
वे कौसल्या के आनन्द को बढ़ाने वाले सर्वगुण संपन्न, समुद्र के समान गम्भीर, हिमालय के समान धैर्यवान हैं।

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3. स जैगाम वनं वीरः प्रतिज्ञामनुपालयन्।
पितुर्वचननिर्देशात् कैकेय्याः प्रियकारणात् ॥

शब्दार्थः :
पितुर्वचननिर्देशात्-पिता के वचनों के निर्देश से-orders of father’s sentence. कैकेयाप्रियकारणात्-कैकेयी को प्रिय लगने के कारण-reason of loving Kaikeyi.

हिन्दी अर्थ :
वे कैकेयी के अभीष्ट सिद्धि एवं पिता की प्रतिज्ञा के पालनार्थ उनकी आज्ञा से वन गए।

4. तं व्रजन्तं प्रियो भ्राता लक्ष्मणेऽनुजगाम ह।
स्नेहाद् विनयसम्पन्नः सुमित्रानन्दवर्धनः॥

शब्दार्थ :
भ्राता-भाई-Brother; विनयसम्पन्नः-विनय से युक्त-Full of respect; सुमित्रानन्दवर्धनः-सुमित्रा के आनन्द को बढ़ाने वाला-for Sumitra and Anand; अनुजगाम-अनुसरण किया-followed.

हिन्दी अर्थ :
उनको जाते देख उनके प्रिय भाई स्नेह व विनय से संपन्न, सुमित्रा के आनन्द को बढ़ाने वाले लक्ष्मण ने भी उनका अनुसरण किया।

5. सीताप्यनुगता रामं शशिनं रोहिणी यथा।
पौरैरनुगतो दूरं पित्रा दशरथेन च॥

शब्दार्थः :
पौरैः-ग्रामवासी-villagers; अनुगतः-अनुकरण-follower; शशिं-चन्द्रमा-Moon.

हिन्दी अर्थ :
वन जाते समय पिता दशरथ एवं नगरवासियों द्वारा उनका बहुत दूर तक अनुगमन किया। सीता भी चन्द्रमा-रोहिणी के समान उनका अनुगमन किया अर्थात् उनके साथ वन को गईं।

6. चित्रकूटं गते रामे पुत्रशोकातुरस्तदा।
राजा दशरथः स्वर्गे जगाम विलपन् सुतम्॥

शब्दार्थः :
गते-गए हुए-went; जगाम्-गया-went. विलाप-रोना-weep.

हिन्दी अर्थ :
राम के चित्रकूट चले जाने पर पुत्र शोक से विह्वल महाराज दशरथ विलाप करते हुए स्वर्गारोहण किया।

7. ततः शूर्पणखावाक्यादुधुक्तान् सर्वराक्षसान्।
खरं त्रिशिरसं चैव दूषणं चैव राक्षसम्
निजघान रणे रामस्तेषां चैव पदानुगान्॥

शब्दार्थः :
ततः-तब-then; चैव-और भी-and also; विजधान्-विजय को-to receive Victory.

हिन्दी अर्थः :
इसके बाद (रावण की बहन) शूर्पणखा द्वारा उत्तेजित किए जाने वाले सभी राक्षस गण-खर, दूषण, त्रिसिरा और उनके सहयोगी सभी राम द्वारा युद्ध में मारे गए।

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8. वने तस्मिन् निवसता जनस्थाननिवासिनाम्।
रक्षसां निहतान्यासन् सहस्त्राणि चतुर्दश।
ततो ज्ञातिवधं श्रुत्वा रावणः क्रोधमूर्छितः॥

शब्दार्थः :
तस्मिन्-उस-His; जनस्थानं-लोक स्थान-public place; सहस्राणि-हजारों-thousands; ततो-तब-then; श्रुत्वा-सुनकर-to listen.

हिन्दी अर्थः :
वन में रहते हुए जनस्थान के निवासियों की रक्षार्थ चौदह हजार राक्षस राम के द्वारा मारे गए। यह जानकर कि (जनस्थान में खर-दूषण आदि सारे राक्षस मारे गए) रावण क्रोधान्ध हो गया।

9. तेन मायाविना दूरमपवाह्य नृपात्मजौ।
जहार भार्यां रामस्य गृधं हत्वा जटायुषम्॥

शब्दार्थः :
तेन-उससे-his,him;जहार-अपहरण-kiddnap; गृधं-गिद्ध (जटायु)-A big bird; हत्वा-मारकर-after kill.

हिन्दी अर्थः :
तब रावण ने (अपने मामा) मायावी मारीच राजपुत्रों (राम-लक्ष्मण) को दूर ले जाकर राम की भार्या सीता का अपहरण कर लिया और जटायु नामक गिद्ध को मार दिया।

10. पम्पातीरे हनुमता सङ्गतो वानरेण ह।
हनुमद्वैचनाच्चैव सुग्रीवेण समागतः॥

शब्दार्थः :
पम्पा तीरे-पम्पा नामक सरोवर के किनारे-Near by the Pumpa; सङ्गतो-मित्रता–friendship; वानरेण-वानर के द्वारा-By monkey; सुग्रीवेण-सुग्रीव के ART-By Sugreev.

हिन्दी अर्थ :
उसके बाद पम्पासर के तट पर हनुमान नामक वानर के साथ मित्रता हुई। हनुमान के कहने पर सुग्रीव से उनकी मित्रता हुई।

11. ततः सुग्रीववचनाद्धत्वा वालिनमाहवे।
सुग्रीवमेव तद्राज्ये राघवः प्रत्यपादयत्॥

शब्दार्थः :
ततः-तब-then; सुग्रीववचनात्-सुग्रीव के वचन से;प्रत्ययादयत्-बैठा दिया-to sat.

हिन्दी अर्थ :
फिर सुग्रीव के कहने पर (राम ने) बाली का वध कर सुग्रीव को उस राज्य (किष्किंधा) का राजा नियुक्त किया।

12. ततो दग्ध्वा पुरीं लङ्कामृते सीतां च मैथिलीम्।
रामाय प्रियमाख्यातुं पुनरायात्महाकपिः॥

शब्दार्थः :
दग्ध्वा-जलाकर-to burn; मैथिलीम-सीता को-to Sita; प्रियमाख्यातुं-शुभ समाचार-Good news.

हिन्दी अर्थ :
उसके बाद हनुमान ने समुद्र को लांघकर, लंकापुरी को भस्मसात कर मैथिली सीता का समाचार राम को सुनाया।

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13. सोभिगम्य महात्मानं कृत्वा रामं प्रदक्षिणम्।
न्यवेदयदमेयात्मा दृष्टा सीतेति तत्त्वतः॥

शब्दार्थ :
सोभिगम्य-बहुत अधिक-Highly; महात्मानं-महात्मा को-to saint; कृत्वा-करके-doing.

हिन्दी अर्थ :
अपरिमित, अतुलित बलशाली हनुमान ने आकर भगवान राम की प्रदक्षिणा करके माँ सीता का समाचार उन्हें सुनाया और कहा–हमने माँ सीता को देखा है।

14. तेन गत्वा पुरीं लङ्कां हत्वा रावणमाहवे।
रातः सीतामनुप्राप्य परां व्रीडामुपागमत्।।

शब्दार्थः :
तेन-उससे-his, her; गत्वा-जाकर-going; परां-बहुत अधिक-very much.

हिन्दी अर्थ :
तब राम ने समुद्र में सेतु का निर्माण कर लंका पुरी में जाकर रावण को युद्ध में मार कर सीता को प्राप्त कर लज्जित हुए।

15. नन्दिग्रामे जटां हित्वा भ्रातृभिः सहितोऽनघः।
रामः सीतामनुप्राप्य राज्यं पुनरवाप्तवान्॥

शब्दार्थः :
नन्दिग्रामे-नंदिग्राम में-In Nandigram; भ्रातृभिः-भाईयों के साथ-with brothers; पुनःप्राप्तवान्-पुनः प्राप्त किया-re-received.

हिन्दी अर्थः :
पुनः पाप रहित राम ने नन्दिग्राम में आकर अपनी बढ़ी हुई जटाओं को कटवा कर अपने साथ सीता को प्राप्त कर पुनः राज्याभिषिक्त हुए।

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणिः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणिः (संवादः)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 17 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) आरुणेः गुरोः नाम किम्? (आरुणि के गुरु का क्या नाम था?)
उत्तर:
धौम्य आयोदः ।(धौम्य आयोद)।

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(ख) गुरुपूर्णिमायां किम् भवति? (गुरु पूर्णिमा को क्या होता है?)
उत्तर:
गुरुजनानां पूजनं सम्मानञ्च। (गुरुजनों का पूजन एवं सम्मान होता है।)

(ग) धौम्यः आरुणिं कुत्र प्रेषयति? (धौम्य ने आरुणि को कहाँ भेजा?)
उत्तर:
केदारखण्ड बधान इति। (खेत की क्यारी को बाँधने।)

(घ) आरुणिः केदारखण्डे किमकरोत? (आरुणि ने खेत के खण्ड में क्या किया?)
उत्तर:
तत्केदारखण्डे संविवेश। (तब वह खेत की क्यारी में लेट गया।)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) गुरुः आरुणिं पाञ्चाल्यं किमर्थम् प्रेषयति स्म? (गुरु ने आरुणि को पाञ्चाल किसलिए भेजा?)
उत्तर:
गुरुः आरुणिं पाञ्चाल्यं केदारखण्डे बधान इति प्रेषयति स्म। (गुरु ने आरुणि को पाञ्चाल खेत की क्यारी को बाँधने के लिए भेजा।)

(ख) गुरोः आदेशेन आरुणिः किमकरोत? (गुरु के आदेश से आरुणि ने क्या किया?)
उत्तर:
गुरोः आदेशेन आरुणिः तत्केदारखण्डे संविवेश। (गुरु के आदेश से आरुणि खेत की क्यारी में लेट गया।)

(ग) आरुणिः गुरोः शब्दं श्रुत्वा किं कृतवान्? (आरुणि गुरु के शब्दों को सुनकर क्या किया?)
उत्तर:
आरुणिः गुरोः शब्द श्रुत्वा केदारखण्डात् सहसेत्थाय ऋषि समीपं प्रत्यागच्छत् कृतवान्। (आरुणि गुरु के शब्द को सुनकर खेत की क्यारी को छोड़कर पास में आकर नमस्कार किया।)

(घ) धौम्यः शिष्याय कमाशीर्वादम् अददात्? (आचार्य धौम्य ने शिष्य को क्या आशीर्वाद दिया?)
उत्तर:
धौम्यः शिष्याय ते सर्वे वेदाः प्रतिभाष्यन्ति सर्वाणि च शास्त्राणीति आशीर्वादम् अददात्। (धौम्य ने शिष्य को सभी वेद तथा शास्त्रों के ज्ञाता होने का आशीर्वाद दिया।)

प्रश्न 3.
उचितशब्देन रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) तस्य शिष्यः आरुणिः आसीत्।
(ख) उपाध्यायः धौम्यः शिष्यान् अपृच्छत्।
(ग) भवान् उद्दालक इति नाम्ना भविष्यति।
(घ) अहमभिवादये भवन्तम्।
(ङ) ते सर्वे वेदाः प्रतियास्यन्ति।

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प्रश्न 4.
शुद्धकथनानां समक्षम् “आम्” अशुद्धकथनानां समक्षं “न” इति लिखत
(क) आरुणिः महान् पितृभक्तः आसीत्।
(ख) धौम्यः आरुणिम् आह्वनाय शब्दं चकार।
(ग) आरुणिः गुरोः आज्ञया केदारखण्डम् प्रति गतवान्।
(घ) आरुणिः उद्दालक नाम्ना प्रसिद्धः।
उत्तर:
(क) न
(ख) आम्
(ग) आम्
(घ) आम्

प्रश्न 5.
निम्नलिखितैः अव्ययशब्दैः वाक्यानि रचयत्
(क) श्वः – श्वः गुरुपूर्णिमा पर्व अस्ति।
(ख) तत्र – तत्र आरुणि आसीत्।
(ग) यत्र – यत्र केदारखण्डं आसीत्।
(घ) बाढम् – उपाध्यायः बाढम् कथित्वा अगच्छत्।
(ङ) क्व – क्व आरुणि पाञ्चाल्य।

प्रश्न 6.
क्रियापदानां धातुं लकारं पुरुषं वचनं च लिखत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणि img-1

प्रश्न 7.
निम्नलिखितशब्दानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणि img-2

प्रश्न 8.
निम्नलिखित शब्दानां धातुं प्रत्ययं च विभज्य लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणि img-3

प्रश्न 9.
निम्नलिखितशब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं लिङ्गं च लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 17 गुरुभक्तः आरुणि img-4

पश्न 10.
निम्नलिखितवाक्यानि कथानुसारेण क्रमेण लिखत
(क) शयाने तस्मिन् प्रवाहं विरराम।
(ख) स तत्र संविवेश केदारखण्डे।
(ग) तदभिवादये भवन्तम्।
(घ) गुरुजनानामाज्ञा पालनीया।
(ङ) तस्य शिष्यः आमीत आरुणिरिति
उत्तर:
(ङ) तस्य शिष्यः आसीत् आरुणिरिति।
(घ) गुरुजनानामाज्ञा पालनीया।
(ख) स तत्र संविवेश केदारखण्डे।
(क) शयाने तस्मिन् प्रवाहं विरराम।
(ग) तद्भिवादये भवन्तम्।

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गुरुभक्तः आरुणिः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

‘श्रद्धागन को ही ज्ञान लाभ होता है’ इस कथन के अनुसार श्रद्धालु शिष्य ही गुरु से ज्ञान प्राप्त करते हैं। न केवल बुद्धि अपितु आसक्ति (गुरु के प्रति) भी ज्ञान प्राप्त करने हेतु आवश्यक होता है। उपनिषदों में अनेक उदाहरण श्रद्धा के महत्त्व को सिद्ध करते हैं। आरुणि का चरित्र भी गुरु-भक्ति का एक उदाहरण है।

गुरुभक्तः आरुणिः पाठ का हिन्दी अर्थ

1. शिक्षक-(छात्रान प्रति) श्वः किम् पर्व अस्ति?
रुचिरा-महोदय! श्वः गुरुपूर्णिमा-पर्व अस्ति।
प्रसून-गुरुपूर्णिमा पर्वणि किम् भवति?

शिक्षक :
अस्मिन् पर्वणि गुरुजनानां पूजनं सम्मानञ्च भवति। लोके आरुणिः, एकलव्यः, उपमन्युः इत्यादयः गुरुभक्तिं कृत्वा प्रसिद्धिं गताः।

अक्षत :
गुरुवर्य! आरुणिः कः आसीत?

शिक्षक :
शोभनम्, शृणोतु! आसीत् कश्चिद् ऋषिः धाम्यो नाम आयोदः। तस्य शिष्यः आसीत् आरुणिरिति।

प्रज्ञा :
तेन गुरोः कीदृशी सेवा कृता?

शिक्षक :
शृणोतु, ऋषि धौम्यः आरुणिं पाञ्चाल्यं प्रेषयति स्म-गच्छ, केदारखण्डं बधान इति। उपाध्यायेन आदिष्टः आरुणिः तत्र गतवान् परञ्च केदारखण्डं बर्बु नाशक्नोत्। मयङ्क-तदनन्तरं स किमकरोत्?

शब्दार्थः :
श्वः-कल (आने वाला)-tomorrow; भवति-होता है-happens; अस्मिन्-हमारे-our; सम्मानञ्च-सम्मान-Honour; शोभनम्-सुन्दर-beautiful; शृणोतु-सुनाए-to listen;कीदृशी-किस तरह-How;कृता-किया-did;धाम्मो-भेजा-to sent; केदारखण्ड वधान-आचार्य धौम्य-Acharaya Dhoumya. उपाध्यायेन-शिक्षक के द्वारा-By teacher; नाशक्नोत्-असमर्थ-not capable.

हिन्दी अर्थ :
शिक्षक :
(छात्रों से) आज कौन-सा पर्व है? रुचिरा-महोदय! आज गुरु पूर्णिमा का पर्व है। प्रसून-गुरु पूर्णिमा का पर्व क्या होता है?

शिक्षक :
इस पर्व के दिन गुरु जनों का पूजन एवं सम्मान किया जाता है। संसार में आरुणि एकलव्य उपमन्यु इत्यादि गुरु-भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं।

अक्षत :
गुरुवर! आरुणि कौन थे?

शिक्षक :
बहुत सुंदर, सुनो! कोई धौम्य आयादि नामक ऋषि थे। उन्हीं के शिष्य का नाम आरुणि था।

प्रज्ञा :
उन्होंने गुरु की किस प्रकार सेवा की?

शिक्षक :
सुनो, ऋषि धौम्य आरुणि पाञ्चाल को कहा-जाओ, खेत की मेड़ को बांधो। गुरु के इस तरह के ओदश को सुनकर आरूणि वहाँ गया किन्तु खेत के उस मेड़ को बाँधने में असमर्थ हो गया।

मयंक :
तब उसने क्या किया?

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2. शिक्षक-कष्टमनुभवन् स अचिन्तयदुपायम्-भवतु एवमहं करिष्यामीति। इति विचिन्त्य स तत्केदारखण्डे संविवेश। शयाने तस्मिन् तदुदकप्रवाहं विरराम। ततः परम्। बहुकालानन्तरमुपाध्यायः आयोदो धौम्यः शिष्यानपृच्छत्-“क्व आरुणिः पाञ्चाल्य गत इति।” ते प्रत्यवदन् भगवतैव प्रेषितः। बहुकालगतेऽपि स न प्रत्यागतः।

अक्षत :
तदा धौम्यः आरुणेः अन्वेषणाय प्रयत्नं न कृतवान् किम्?

शिक्षक :
अवश्यमेव, यदा आरुणिः न प्रत्यागच्छत् तदा चिन्तितः सशिष्यैः ऋषिः तत्र गतवान् यत्र स आरुणिः गतः। तत्र तमाह्वनाय उच्चैः शब्दं चकार-भो आरुणि! क्वासि वत्स? क्वासि? एतच्छ्रुत्वा स तस्मात् केदारखण्डात् सहसोत्थाय ऋषिसमीप प्रत्यागच्छत्। प्रत्यवदच्चैनम् अयमस्मि अत्र केदारखण्डे, अहं निस्सरदकमवारणीयं संरोद्धं संविष्टः। भवच्छब्दं श्रुत्वा केदारखण्ड विदार्य समुपस्थितः। तदभिवादये भवन्तम्। आज्ञापयतु भवान् किमिदानीं करवाणीति।

रुचिरा :
स गुरुणां पुरस्कृतः किम्?

शिक्षक :
शृणोतु! तमुपाध्यायोऽब्रबीत्-“यं केदारखण्डमवदार्य त्वमुपस्थितः, तस्मात् त्वमुद्दालक इति नाम्ना भविष्यतीति।” यस्मात् त्वया मद्वचनं अनुष्ठितं तस्मात् श्रेयोऽवाप्स्यसीति! ते सर्वे वेदाः प्रतिभवन्ति, सर्वाणि च शास्त्राणीति । अनेन स गुरुभक्तः आरुणिः उद्दालक नाम्ना प्रसिद्धो विद्वान शास्त्रज्ञो यशस्वी दीर्घायुश्चाजायतः।

प्रसून :
आस्मभिरपि गुरुजनानामाज्ञा पालनीया। शिक्षक-आम्, अवश्यमेव।

शब्दार्थः :
संविवेश-लेट गया-laid; क्लिश्यमानः-दुखीः होते हुए-being distressed; प्रेषितः-भेज दिया गया-has been sent; प्रत्युवाच-उत्तर भेजा-replied; उत्थाय उठकर-raising; प्रत्यागच्छत्-पास लौट आया-came near; उकम्-पानी को-water; संरोद्धम्-रोकने के लिए-for stop; संविष्टः-लेट गया-laid down; विदार्य-तोड़करbreaking; समुपस्थितः-पहुँचा हूँ-reached; आज्ञापयतु-आज्ञा दीजिए-grant me permission; अनुगृहीत-कृपा किया गया-was blessed; अनुष्ठितम्-किया गया-was done;अवाप्स्यसि-प्राप्त करोगे-will get;प्रतिभास्यन्ति -ज्ञात हो जाएँगे-will be known.

हिन्दी अर्थ :
शिक्षक :
कष्ट का अनुभव करते हुए उसने एक उपाय सोचा-ठीक है, इस तरह ही मैं करूँगा-ऐसा सोच वह स्वयं उस खेत की मेड़ पर लेट गया। उसके लेटने से पानी का वह प्रवाह रुक गया। कुछ समय बीतने पर आचार्य आयोद धौम्य के शिष्यों से पूछा-आरुणि पाञ्चाल कहाँ गया है? वे बोले-आपने ही उसे भेजा है। बहुत समय व्यतीत हो जाने पर भी अभी तक नहीं लौटा है।

अक्षत :
तब धौम्य ने आरुणि को खोजने के लिए प्रयत्न नहीं किया?

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शिक्षक :
अवश्य किया। जब आरुणि नहीं लौटा तब चिंतित ऋषि शिष्यों सहित गए जहां आरुणि को भेजा था। वहाँ उन्होंने आरुणि का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारा-हे आरुणि! तुम कहाँ हो, कहाँ हो। अपने को पुकारता सुन वह मेड़ से उठ गुरु के समीप आ गया और बोला-मैं यहाँ हूँ। यहाँ खेत की मेड़ से बहते हुए पानी को रोकने के लिए मैं यहाँ लेट गया था। आपके शब्दों को सुनकर खेत की मेड़ को छोड़कर यहाँ उपस्थित हुआ हूँ। हे श्रीमान! मैं आपका अभिवादन करता हूँ। आप आज्ञा दें-अब मैं क्या करूँ।

रुचिरा :
उसे गुरु ने क्या पुरस्कार दिया?

शिक्षक ;
सुनो, आचार्य उससे बोले-जिस तरह खेत के इस खण्ड को तोड़ कर तुम उपस्थित हुए, इससे तुम्हारा नाम उद्दालक होगा और जिस तरह तुमने मेरे वचन का ज्ञान होगा। बाद में, वही गुरु भक्त आरुणि उद्दालक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह विद्वान शास्त्रों का ज्ञाता एवं यशस्वी व दीर्घायु हुआ।

प्रसून :
हमें भी गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए।

शिक्षक :
हाँ, अवश्य ही।

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 16 अध्ययने प्रत्यूहः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 16 अध्ययने प्रत्यूहः (नाट्यांशः)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 16 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) सद्भिः सङ्गः केन भवति? (सज्जनों के साथ सम्पर्क किससे होता है?)
उत्तर:
पुण्येना। (पुण्य से)

(ख) दण्डकारण्यप्रदेशे के प्रमुखाः वसन्ति? (दण्डकारण्य प्रदेश में प्रमुख रूप से कौन रहता है?)
उत्तर:
अगस्त्यादयः। (अगस्तादि प्रमुख ऋषि रहते हैं)

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(ग) देवताविशेषेण अद्भुतं किम् उपनीतम्? (देवता गण किस अद्भुत विशेषण को बताते हैं?)
उत्तर:
जृम्भकास्त्राणि। (जृम्भकास्त्र।)

(घ) दारको केन पोषितौ रक्षितौ च? (दोनों किसके द्वारा रक्षित पोषित हुए?)
उत्तर:
वल्मीकिना। (वाल्मीकि के द्वारा)।

(ङ) तयोः कानि जन्मसिद्धानि? (उन दोनों को क्या जन्म सिद्ध था?)
उत्तर:
जृम्भकास्त्र। (जृम्भकास्त्र।)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) आत्रेयी दण्डकारण्ये किमर्थं भ्रमति स्म? (आत्रेयी दण्डकारण्य वन में क्यों घूमते थे?)
उत्तर:
आत्रेयी दण्डकारण्ये महानध्ययनप्रत्यूह भ्रमति स्मः। (आत्रेयी दण्डकारण्य में पढ़ाई में विघ्न आ जाने के कारण घूमते थे।)

(ख) वाल्मीकिना तयोः कां विद्याम् अध्यापितौ? (वाल्मीकि के द्वारा उन दोनों को कौन-सी विद्या पढ़ाई जाती थी?)
उत्तर:
वाल्मीकिना तयोः त्रयीवर्जमितरास्तिस्त्रो विद्याम् अध्यापितौ। (वाल्मीकि के द्वारा उन दोनों को वेद को छोड़कर और तीनों (आन्वीक्षिकी, वार्ता और दण्डनीति) विद्याओं का अध्ययन कराया जाता था।)

(ग) गुरुः विद्या कथं वितरति? (गुरु विद्या कैसे देते हैं?)
उत्तर:
गुरुः विद्या प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जड़े वितरति। (गुरु जिस तरह बुद्धिमान छात्र को उसी तरह मन्द बुद्धि छात्र को भी विद्या देता है।)

(घ) ब्रह्मर्षिः किमर्थं तमसामनुप्रपन्नः? (बह्मर्षि तमसा नदी के किनारे किसलिए गए?)
उत्तर:
बह्मर्षिः माध्यन्दिनसवनाय नदीं तमसामनुप्रपन्नः। (ब्रह्मर्षि तमसा नदी के किनारे मध्याह्न (दोपहर की संध्या) वन्दन करने के लिए तमसा नदी के किनारे गए।)

(ङ) क्रौञ्चयोः एकं कः हतवान्? (क्रौञ्च में से एक को किसने मारा?)
उत्तर:
क्रौञ्चयोरेकं एक व्याधेन हतवान्। (क्रौञ्च में से एक को बहेलिया ने मारा।)

प्रश्न 3.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) वनदेवता वनस्य सौन्दर्य विषये तापसी किं वदति? (वनदेता वन के सौन्दर्य के विषय में तापसी से क्या कहता है?)
उत्तर:
वनदेवता वनस्य सौन्दर्य विषये तापसी यथेच्छा भोग्यं दो वदति। (वनदेवता वन के सौन्दर्य के विषय में तापसी से कहता है कि यह वन आपकी इच्छा के अनुसार उपभोग योग्य है।)

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(ख) पद्मयोनिः वाल्मीकि किमवोचत्? (ब्रह्मा ने वाल्मीकि से क्या कहा?)
उत्तर:
पद्मयोनिरवोचत्-ऋषेः प्रबुद्धोऽसि वागात्मनि ब्रह्ममणि। तदृ ब्रहि रामचरितम्। (ब्रह्मा ने वाल्मीकि से कहा कि ऋषि जी! तुम शब्द रूप ब्रह्म में ज्ञान सम्पन्न हो गए हो, इस कारण रामचरित का वर्णन करो।)

(ग) साधूनां चरित कीदृशमस्ति? (सज्जनों का चरित किस तरह का होता है?)
उत्तर:
साधूनां चरितं सतां सद्भिः सङ्गः कथमपि हि पुण्येन भवति। (सज्जनों की संगति सज्जनों द्वारा कष्टमय पुण्य से होती है।)

(घ) क्रौञ्चवधानन्तरं वाल्मीकिमुखात् का वाणी निर्गता? (क्रौञ्च के वध के अनन्तर वाल्मीकि के मुख से कौन-सी वाणी निकली?)
उत्तर:
क्रौञ्चवधानन्तरं वाल्मीकि किं मुखात् वाणी निर्गता-मा निषाद्। प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। (क्रौंच के वध के अनन्तर वाल्मीकि के मुख से वाणी निकली कि-हे व्याध! जो कि तूने एक का वध कर दिया है इसलिए तू बहुत समय तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सकेगा)

प्रश्न 4.
यथायोग्यं योजयत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 16 अध्ययने प्रत्यूह img-1

प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
उदाहरणम् :
तापसी अध्वगवेषा अस्ति। – आम्
व्याधः क्रौञ्च न हतवान्। – न
(क) गुरुः यथा प्राज्ञे तथैव जड़े विद्यां वितरति।
(ख) जृम्भकास्त्राणि जन्मसिद्धानि आसन्।
(ग) लवकुशौ त्रयी विद्यां न अधीतवन्तौ।
(घ) वाल्मीकिः आदिकविः अस्ति।
(ङ) वाल्मीकिः रामायणं न लिखितवान्
उत्तर:
(क) आम्
(ख) आम्
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न

प्रश्न 6.
उचितैः पदैः रिक्तस्थानानि पूरयत
(निगमान्तविद्याम्, पुण्येन, प्रतिष्ठाम, विशुद्धम्, माध्यन्दिनसवनाय)
(क) सतां सद्भिः सङ्गः पुण्येन भवति।
(ख) आत्रेयी निगमान्तविद्याम् अध्येतुम् पर्यटति।
(ग) महर्षि माध्यन्दिनसवनाय तमसामनुप्रपन्नः।
(घ) मा! निषाद प्रतिष्ठाम् त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
(ङ) रहस्यं साधूनामनुपधि विशुद्धं विजयते।

प्रश्न 7.
सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत
उदाहरणम् :
केनापि- केन + अपि = दीर्घस्वरसन्धिः।
(क) अथापरः – अथ + अपर = दीर्घस्वरसंधिः।
(ख) यथेच्छा – यथा इच्छा – गुणस्वरसंधिः।
(ग) यथैव – यथा + एव = वृद्धिस्वरसंधिः।
(घ) आत्रेय्यस्मि – आत्रेयी + अस्मि = यणस्वरसंधिः।
(ङ) अन्येऽपि – अन्ये + अपि = पूर्ण रूप।

प्रश्न 8.
अव्ययैः वाक्य निर्माण कुरुत
उदाहरणं यथाः
तत्र महर्षिः वाल्मीकिः वसति स्म।
(क) अपि – रामः अपि फलं खादति।
(ख) यदा – यदा मोहितः आगच्छति तदा अन्शुलः, राशिन्तश्च गच्छति।
(ग) किल – रामचन्द्रः किल पितृभक्तिः आसीत्।
(घ) खलु – पासः प्रधानं खलु योग्यतायाः।
(ङ) एकदा – एकदा अहं भेड़ाघट्टम्अवश्यमेव गमिष्यामि।

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अध्ययने प्रत्यूहः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

महाकवि भवभूति रचित ‘उत्तर रामचरितम्’ नामक नाटक ग्रन्थ से उद्धृत यह अंश संस्कृत भाषा के नाट्य परम्परा का परिचय प्रस्तुत करने में सक्षम है। बुद्धि कौशल युक्त गुरु का छात्रों के प्रति समान रूप से समदर्शिता का भाव यहाँ प्रस्तुत किया गया है।

अध्ययने प्रत्यूहः पाठ का हिन्दी अर्थ
(ततः प्रविशत्यध्वगवेषा तापसी)

1. तापसी-अये, वनदेवता फलकुसुमगर्भेण पल्लवायेण दूरान्मामुपतिष्ठते। (प्रविश्य) वनदेवता-(अर्घ्य विकीय)
यथेच्छाभोग्यं वो वनमिदमयं मे सुदिवसः
सतां सद्भिः सङ्गः कथमपि हि पुण्येन भवति।
तरुच्छाया तोयं यदपि तपसां योग्यमशनं
फलं वा मूलं वा तदपि न पराधीनमिह वः॥

तापसी :
किमत्रोच्यते?
प्रियप्राया वृत्तिर्विनयमधुरो वाचि नियमः
प्रकृत्या कल्याणी मतिरनवगीतः परिचयः।
पुरो वा पश्चाद् वा तदिदमविपर्यासितरसं
रहस्यं साधूनामनुपधि विशुद्धं विजयते॥
(उपविशतः)

शब्दार्थः :
वनदेवता-वनदेवता-forest God;फलकुसुमगर्भेण-फल और फलो से भरे-full of fruits and flowers; पल्लवादंण-पल्लवसहित-with new leaves; दूरान्मामुपतिष्ठते-दूर से ही मेरा सत्कार करती है-salute me from long distance; अर्घ्य विकीर्य-अर्घ्य देखकर-water give by hands; यथेच्छायोग्य इच्छा के अनुसार योग्य-like desire consumation; कथमपि-किसी तरह से-any how; पुण्येन-पुण्य के द्वारा-By good work; तरुछाया-वृक्ष की छाया-shade of tree; तदापि-वह भी-he also; किमत्रोक्यते-क्या कहा जाए-what do say; पुरो-पहले-first; पश्चाद्-बाद में-after; विनयमूर्धरा-विनय के कारण हृदयाकर्षक-to reason of attration by heart; अनवगीतः-अनिन्दित-not criticise; प्रियाप्रायव्रति-अतिशय प्रियकारी व्यवहार-lovely behavioure.

हिन्दी अर्थः :
(तब पथिक रूप में तपस्विनी का प्रवेश)

तापसी :
अरे! वन देवता पुष्प-फलों से पूर्ण, पल्लव फपी अर्घ्य के द्वारा दूर से ही मेरा स्वागत करते हैं। (प्रवेश करके)

वन देवता :
(अर्घ्य देकर) यह वन इच्छानुरूप भोग के लिए आप को अर्पित है क्योंकि सज्जनों का सज्जन पुरुष से संयोग बड़े पुण्य से होता है। वृद्धा की छाया, जल और तप के योग्य जो भी पदार्थ-फल मूल है वह आपकी सेवा में है, पराधीन नहीं है।

तापसी :
इस पर क्या कहा जाए?

व्यवहार अत्यधिक प्रीतियुक्त, हृदय को आकर्षित करने वाली नम्रता, स्वभाव से ही मंगल रूप बुद्धि, न बदलने वाला, व अनिंदित प्रेम, छल-कपट से रहित और विशुद्ध-ऐसा उत्कृष्ट रूप साधुओं का होता है। (दोनों बैठते हैं)

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2. वनदेवता-काम् पुनरत्रभवतीमवगच्छामि?

तापसी :
आत्रेय्यस्मि।

वनदेवता :
आर्ये आत्रेयि! कुतःपुनरिहागम्यते? किम् प्रयोजनो दण्डकारण्योपवनप्रचारः?

आत्रेयी :
अस्मिन्नगस्त्यप्रमुखाः प्रदेशे भूयांस उद्गीथविदो वदन्ति।
तेभ्योऽधिगन्तुं निगमान्तविद्यां वाल्मीकिपादिह पर्यटामि॥

वनदेवता :
यदा तावदन्येऽपि मुनयस्तमेव हि पुराणब्रह्मवादिनम् प्राचेतसमृषिम् ब्रह्मपारायणायोपासते, तत्कोऽयमार्यायाः प्रवासः?

आत्रेयी :
तस्मिन् हि महानध्ययनप्रत्यूह इत्येष दीर्घप्रवासोऽङ्गीकृतः। वनदेवता-कीदृशः?

आत्रेयी :
तत्र भगवतः केनापि देवताविशेषेण सर्वप्रकाराद्भुतं स्तन्यत्यागमात्रके वयसि धर्तमानं दारकद्वयमुपनीतम्। तत्खलु न केवलं तस्य, अपितु तिरश्चामप्यन्तः करणानि तत्त्वान्युपस्नेहयति।

शब्दार्थः :
आत्रेयरिम-मैं आत्रेयी हूं-I am Aitreyi. कुत्रः-कहां से-from where; प्रयोजना-प्रयोजन है -is pland. अगस्त्यप्रमुखाः -अगस्त्य आदि प्रमुख-Augustya and main; प्रदेशे-क्षेत्र में-In area; पर्यटामि-घूमते हुए आ रहा हूं-coming into wonderd; वदन्ति-कहते हैं-says; ब्रह्मवादिनाम्ब्रह्मवादी-of Bramha; उपासते-उपासना करते हैं-prayers; आर्याया-आर्यों का-Aryar; प्रवासः-प्रवास-migration; तस्मिनः-वहां-there; प्रत्यूह- विघ्न-disturbe; दीर्घ प्रवासो-दीर्घप्रवास को-lang bravery; अंगीकृता-स्वीकृत किया है-expect; कीदृशः-कैसा-how, सर्वेकारात-सभी प्रकार से-all types; वयस्वीउम्र में-In age; तस्य-उसके-his; अधिगतुम्-जानने के लिए-for knowing,

हिन्दी अर्थ :
वन देवता-आपको मैं क्या समझू?

तापसी :
मैं आत्रेयी हूँ।

वनदेवता :
आर्ये आत्रेयी! आप कहाँ से आ रही हैं? किस प्रयोजन से आप दण्डकारण्य में घूम रही हैं?

आत्रेयी :
इस स्थान में अगस्त्य आदि प्रमुख ऋषि रहते हैं। उनसे वेदान्त की शिक्षा प्राप्त करने के लिए ऋषि वाल्मीकि के आश्रम से आ रही हूँ।

वनदेवता :
जब अनेक ऋषि मुनि एवं अनुभवी ब्रह्मवेत्ता मुनि महर्षि वाल्मीकि के यहाँ वेदांत शिक्षा ग्रहण करते हैं, तब आर्या के यहाँ आकर प्रवास का क्या कारण है?

आत्रेयी :
वहाँ पढ़ने में व्यवधान उत्पन्न हो जाने के कारण मैंने दीर्घ प्रवास को स्वीकार किया।

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3. वनदेवता-तयैव किल देवतया तयोः कुशलवाविति नामनी प्रभावश्चाख्यातः।

वनदेता :
कीदृशः प्रभावः?

आत्रेयी :
तयोः किल सरहस्यानि जृम्भकास्त्राणि जन्मसिद्धनीति।

वनदेवता :
अहो नु भोश्चित्रमेतत्।

आत्रेयी :
तौ च भगवता वाल्मीकिना धात्रीकर्मतः परिगृह्य पोषितौ रक्षितौ च, निर्वृत्तचौलकर्मणोस्तयोस्त्रयी-वर्जमितरास्तिस्रो विद्याः सावधानेन परिनिष्ठापिताः। तदनन्तरं भगवतैकादशे वर्षे क्षात्रेण कल्पेनोपनीय त्रयीविद्यामध्यापितौ न त्वेताभ्यामतिदीप्तिप्रज्ञाभ्यामस्मदादेः सहाध्ययनयोगोऽस्ति यतः
वितरति गुरुः प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जडे
न तु खलु तयोाने शक्तिं करोत्यपहन्ति वा।
भवति हि पुनर्भूयान् भेदः फलम् प्रति, तद्यथा
प्रभवति शुचिबिम्बग्राहे मणिनं मृदादयः॥

वनदेवता :
अयमध्ययनप्रत्यूहः?

आत्रेयी :
अन्यश्च।

वनदेवता :
अथापरः कः?

शब्दार्थः :
कीदृशः-किस तरह-How type; वितरति-वितरित करती है-Distributes; प्राज्ञे-शास्त्र विषय-Knowledge of book; प्रभवति-प्रभावित करती है-to affect; सुचि-पवित्रता-holyness; प्रत्यूहः-बाध्य-trouble.

हिन्दी अर्थः :
वनदेवता-कैसा विघ्न?

आत्रेयी :
वहाँ भगवान वाल्मीकि के निकट किसी देवता ने सभी प्रकार से अद्भुत एवं स्तन त्याग करने की अवस्था के दो बच्चों को छोड़ दिया है। वे बालक केवल उन्हीं के नहीं वरन् पशु-पक्षियों के हृदय में भी स्नेह का संचार करते हैं।

वनदेवता :
क्या आप उन दोनों बालकों का नाम जानती हैं?

आत्रेयी :
उसी देवता ने उन दोनों का नाम लव एवं कुश यह नाम व प्रभाव बताया है।

वनदेवता :
कैसा प्रभाव? आत्रेयी-उन दोनों को मन्त्रपूरित जृम्भका नामक अस्त्र सिद्ध है। वनदेवता-यह आश्चर्य है।

आत्रेयी :
उन दोनों को भगवान वाल्मीकि ने धात्री के समान पालन-पोषण व रक्षित किया है। चूडाकर्म से निवृत्त होने के बाद बहुत कुशलतापूर्वक उन्हें वेदाध्ययन के अतिरिक्त अन्य तीन विद्याओं (आन्वीक्षिकी, वार्ता एवं दण्डनीति) का अध्ययन कराया। पुनः उनकी ग्यारहवीं साल की उम्र में क्षत्रिय विधि से उपनयन संस्कार कर उन्हें वेद की शिक्षा प्रदान की। अत्यंत प्रतिभा के धनी उन दोनों बालकों के साथ हम लोगों का पढ़ना बहुत कठिन है क्योंकि गुरु तीव्र बद्धि एवं मंद बुद्धि वाले दोनों तरह के छात्रों को एक समान शिक्षा प्रदान करता है। दोनों में से किसी को न अलग से समझने की सामर्थ्य प्रदान करता है और न ही किसी को बोध-शक्ति को नष्ट ही करता है। ऐसा होने पर भी परिणाम में बहुत भिन्नता होती है, जैसे कि हीरा, स्फटिक मणि आदि सभी प्रतिबिम्ब ग्रहण करने में समर्थ होते हैं किन्तु मिट्टी आदि पदार्थ प्रतिबिम्ब धारण नहीं कर सकते।

वन देवता :
पढ़ने में यही विघ्न है?

आत्रेयी :
और दूसरा भी

वन देवता :
और दूसरा विघ्न क्या है?

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4. आयेत्री-अथ स ब्रह्मर्षिरेकदा माध्यन्दिनसवनाय नदीं तमसामनुप्रपन्नः। तत्र युग्मचारिणोः क्रौञ्चयोरेकं व्याधेन वध्यमानं ददर्श। आकस्मिकप्रत्यवभासां देवीं वाचमानुष्टुभेन छन्दसा परिणतामभ्युदैरयत्-
मा निषाद! प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
वनदेवता-चित्रम्? भग्नायादन्यत्र नूतनश्छन्दसामवतारः।

आत्रेयी :
तेन हि पुनः समयेन तं भगवन्तमाविर्भूतशब्दप्रकाशमृषिमुपसङ्गम्य भगवान् भूतभावनः-पद्मयोनिरवोचत् ऋषे प्रबुद्धोऽसि वागात्मनि ब्रह्माणि। तब्रूहि रामचरितम्। अव्याहतज्योतिरार्षं ते चक्षुः प्रतिभातु। आयः कविरसि इत्युक्त्वान्तर्हितः। अथ स भगवान् प्राचेतसः प्रथमम् मनुष्येषु शब्दब्रह्मणस्तादृशं विवर्तमितिहासं रामायणम् प्रणिनाय।

वनदेवता :
हन्त! पण्डितः संसारः।

आत्रेयी :
तस्मादेव हि ब्रवीमि ‘तत्र महानध्ययनप्रत्यूह’ इति।

वनदेवता :
युज्यते। आत्रेयी-विश्रान्तास्मि भद्रे! संप्रत्यगस्त्याश्रमस्य पन्थानम् ब्रूहि।

वनदेवता :
इतः पञ्चवटीमनुप्रविश्य गम्यतामनेन गोदावरी तीरेण।
(इति निष्क्रान्तः)।

शब्दार्थः :
व्याधेन-बहेलिया ने-Hunter. पद्मयोनि-ब्रह्म-Brahma; प्रबुद्धोऽसि-प्रबुद्ध है-wise man; तादृशं-उस तरह-this type; तस्मादेव-इसी कारण से-for this reason; ब्रवीमि-कहती हूँ-says.

हिन्दी अर्थ :
एक दिन ब्रह्मर्षि दोपहर स्नान के लिए तमसा नदी के तट पर गए। वहाँ प्रेमरत नर-मादा क्रौंच पक्षियों में से एक नर को बहेलिए द्वारा मारे जाते हुए देखा। तब उन्होंने एकाएक उत्पन्न हुए छन्दबद्ध श्लोक के रूप में कहा-हे बहेलिए तुमने काम मोहित क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया, इस कारण तुम बहुत समय तक प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर सकोगे।।

वनदेवता :
आश्चर्य है! वेद के अतिरिक्त भी छन्द का नया जन्म हुआ।

आत्रेयी :
जिनको छन्द रूपी प्रकाश का दर्शन हो गया है एवं भगवान वाल्मीकि के पास आकर लोक के जन्मदाता ब्रह्मा ने आकर कहा-ऋषि! तुम शब्द रूप ब्रह्मा से अभिभूत हो गए हो। अब तुम रामचरित का वर्णन करो। न क्षीण होने वाला प्रकाश रूपी आर्य ज्ञान तुम्हें प्रकाशित करे। तुम आदि कवि हो। ऐसा कहकर ब्रह्मा अंतर्धान हो गए। तब भगवान वाल्मीकि ने मनुष्यों में सर्वप्रथम शब्द ब्रह्म का रूपान्तर कर रामायण नामक इतिहास की रचना की।

वनदेवता :
हाय! तब तो सांसारिक लोग भी पण्डित हो जाएँगे। आत्रेयी-इसी कारण वहाँ पढ़ने में विघ्न है-ऐसा मैं कहती हूँ। वनदेवता-ठीक है।

आत्रेयी :
हे भद्र! मैं विश्राम कर चुकी। अब मुझे भगवान अगस्त्य के आश्रम का मार्ग बताएँ।

वनदेवता :
वहाँ से पंचवटी में प्रवेश कर गोदावरी के किनारे से जाइए। इस तरह जाते हैं।

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 14 वीरबाला (संवादः)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 14 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)-
(क) वीरबालायाः नाम किम्? (वीरबाला का क्या नाम था?)
उत्तर:
चम्पा। (वीरबाला का नाम चम्पा था)

(ख) चम्पायाः पितुः नान किम्? (चम्पा के पिता का नाम क्या था?)
उत्तर:
महाराणा प्रताप। (महाराणाप्रताप)।

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(ग) रोटिकाद्वयम् कुत्र स्थापितम्? (दोनों रोटियाँ कहाँ रखी थीं?)
उत्तर:
पाषाणतले। (पत्थर के नीचे)!

(घ) उद्वेलितः प्रतापः किं कर्तुमुद्यतः अभवत्? (दुःखी प्रताप क्या करने के जिए तैयार हो गए?)
उत्तर:
अकबरस्याधीनता। (अकबर की आधीनता स्वीकार करने के लिए)।

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) अस्माकं देशे काः काः वीरबालाः जाताः? (हमारे देश में कौन-कौन-सी वीरबालाएँ हुईं?)
उत्तर:
अस्माकं देशे चम्पा, कृष्णा, वीरमती, पद्मादयः वीरबालाः जाताः। (हमारे देश में चम्पा, कृष्णा, वीरमती, पद्ममा जैसी वीरबालाएँ हुईं।)

(ख) प्रतापेन का प्रतिज्ञा कृता? (राणा प्रताप ने क्या प्रतिज्ञा की?).
उत्तर:
प्रतापेन प्रतिज्ञा कृताः अकबरस्य अधीनतां न स्वीकृतवान्। (प्रताप ने अकबर की आधीनता न स्वीकरने की प्रतिज्ञा की।)

(ग) चम्पया रोटिकाद्वयम् किमर्थं संरक्षिता? (चम्पा दोनों रोटियों को किसलिए सुरक्षित रखी थी?)
उत्तर:
चम्पया रोटिकाद्वयम् अनुजाय भोजनार्थम् संरक्षिता। (चम्पा दोनों रोटियों को छोटे भाई के भोजन के लिए सुरक्षित रखी थी।)

(घ) राजकुमारः कथं सुप्तवान् आसीत्? (राजकुमार कैसे सो गया?)
उत्तर:
राजकुमारः बुभुक्षितः सुप्तवान् आसीत्। (राजकुमार भूखा सो गया।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) महाराणाप्रतापस्य प्रतिज्ञा का आसीत्? (महाराणाप्रताप की प्रतिज्ञा क्या थी?)
उत्तर:
महाराणाप्रतापस्य प्रतिज्ञा आसीत् अकबरस्य अधीनतां न स्वीकृत। (महाराणा। प्रताप की प्रतिज्ञा थी कि अकबर की अधीनता न स्वीकारूँगा।)

(ख) चम्पा केन कारणेन मूर्छिता जाता? (चम्पा किस कारण से मूर्छित हो गई?)
उत्तर:
चम्पा दौर्बल्यात् कारणेन मूर्च्छिता जाता। (चम्पा दुर्बल होने के कारण मूर्च्छित हो गई।)

(ग) महाराणाप्रतापः किमर्थं चिन्तामग्नः आसीत्? (महाराणाप्रतापः को किस बात की चिंता थी?)
उत्तर:
महाराणाप्रतापः अतिथिः भोजनार्थम् चिन्तामग्नः आसीत्। (महाराणाप्रताप को अतिथि के लिए भोजन की व्यवस्था की चिंता थी।)

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प्रश्न 4.
यथायोग्यं योजयत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला img-1

प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्ष कोष्ठके ‘न’ इति लिखत
(क) अरावलीपर्वतस्य उपत्यकायां महाराणाप्रतापः एकाकी आसीत्। (आम्)
(ख) अतिथिः महाराणागृहात् अनश्नन् गतवान्।
(ग) चम्पा स्वभागस्य रोटिकां स्वानुजं ददाति स्म।
(घ) महाराणाप्रतापः आधीनताविषये पत्रं लिखितवान्।
उत्तर:
(क) (आम्)
(ख) (न)
(ग) (आम्)
(घ) (न)

प्रश्न 6.
उचितविकल्पेन वाक्यानि पूरयत
(क) अरावलीपर्वतस्य उपत्यकायाम् कष्टमनुभूतम्। (उपत्यकायाम्/गुहायाम्)
(ख) पाषाणतले रोटिकाद्वयम् संरक्षिता आसीत्। (रोटिका/रोटिकाद्वयम्)
(ग) चम्पामूर्छिता जाता अनश्नन्। (अश्नन्/अनश्नन्)
(घ) कष्टान् अवलोक्य महाराणाप्रतापः उद्वेलितः जातः। (जाता/जातः)
(ङ) राजकुमारः बुभुक्षया पीडित सुप्तवान्। (बुभुक्षया/पिपासया)

प्रश्न 7.
कोष्टकात् चित्वा वाक्यानि रचयत्
यथा- घटना – एक घटना महाराणाप्रताप कालीना आसीत्
(क) चम्पा – एषा महाराणाप्रतापस्य पुत्री आसीत्।
(ख) राजकुमारः – एषः महाराणाप्रतापस्य पुत्रः आसीत।
(ग) शपथः – महाराणाप्रतापः शपथः गृहीतवान्।
(घ) पत्रम् – महाराणाप्रतापः पत्रम् अलिखत्।
(ङ) वीरः – महाराणाप्रतापः वीरः च आसीत्।

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प्रश्न 8.
अधोलिखितशब्दानां धातुं प्रत्ययं च पृथक् कुरुत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला img-2

प्रश्न 9.
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला img-3

प्रश्न 10:
निम्नलिखत क्रियापदानां धातुं लकारं पुरुषं वचनञ्च लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 14 वीरबाला img-4

प्रश्न 11.
निम्ललिखित अव्यायानां वाक्यप्रयोगं कुरुत-
उदाहरणं यथा-
कदा – सः कदा पठति? तदा-यदा अहं आगमिष्यामि तदा त्वम् गमिष्यसि
अद्य – अद्य सोमवासरः अस्ति। ह्यः-ह्यः दीपावली अस्ति।।
कृते – संस्कृतस्य कृते अहं जीवनम् ददामि।
एव – अहं दुग्धं न पिवामि, अहं चायमेव पिवामि।
च – मोहितः राशिन्तश्च विद्यालयं गच्छति।

वीरबाला पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

मेवाड़ के राजा उदयसिंह के पुत्र महाराणा प्रताप पिता के समान विशाल, वीर व पराक्रमी थे। उसने प्रतिज्ञा की कि जब तक मैं अकबर को पराजित नहीं करूँगा और चित्तौड़ के दुर्ग को नहीं जीत लूँगा तब तक पत्ते में भोजन करूँगा तथा जमीन पर शयन करूँगा परिवार पर आए संकट से विचलित होकर उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा बदलने की इच्छा की किन्तु उनकी पुत्री चम्पा के जीवन का उत्सर्ग करने के बाद महाराणा प्रताप अपनी पूर्व प्रतिज्ञा पर दृढ़ होकर मेवाड़ के गौरव की रक्षा के लिए पुनः प्रतिज्ञा की। प्रस्तुत पाठ में भारतीय बालाओं की गौरव गाथा है

वीरबाला पाठ का हिन्दी अर्थ

1. शिक्षक-भो छात्राः अस्माकं भारतदेशे बहव्यः वीरबालाः चम्पा, कृष्णा, वीरमती, पद्मा दयः सञ्जाताः।
आनन्द :
आचार्य! एतासु केयम् चम्पा? कृपया तद्विषये कथयतु। शिक्षक-आम्! शृणोतु, किं भवन्तः महाराणाप्रताप विषये जानन्ति?

वेदान्त :
किं स एव महाराणाप्रतापः यः भारतवर्षभूषणः स्वदेशस्वातन्त्र्याभिमानी च।

शिक्षक :
आम् तस्यैव पुत्री आसीत् चम्पा।

आरती :
तस्याः विषये विस्तारेण न जानीमः।

शिक्षक :
शृण्वन्तु। महाराणाप्रतापः अकबरस्य अधीनतां न स्वीकृतवान्। अनेन कारणेन अरावलीपर्वतस्य उपत्यकाय गुहासु वनेषु च सपरिवारंपरिभ्रमन् अत्यधिकं कष्टम् अन्वभवत्।

भरत :
तत्र ते कुत्र स्वपन्ति, स्म किञ्च खादन्ति स्म?

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शब्दार्थ :
बहव्य-बहुत-सी-Many; आदय-आदि-and; सजाता-हुए-Happen; केयम्-यह कौन-who is that; तद्विषये-उस विषय में-in that subjects;जानन्ति-जानते हैं-knows; किं-कौन-who; भवन्त-आप सब-every body; स-वह-He, Smile, it; एव-भी-also; भूषण-भूषण-Bhushan; तस्यैव-उसका ही-His; आसीत्-था-was; तस्याः -उसके-His; शृण्वन्तु-सुनिए-listen; जानीमः-जानते हैं-knows; अनेन-इस तरह-This type; अन्वभवत्-अनुभव किया-felt; स्वपन्ति-सोते थे-were sleeping, स्म-थे-were.

हिन्दी अर्थ :
शिक्षक-हे विद्यार्थियो! हमारे देश भारत में अनेक वीर बालाएँ-कृष्णा, चंपा, वीरमती, पद्मा आदि हुई हैं।

आनन्द :
गुरुजी! इनमें चम्पा कौन थी? कृपया उसके विषय में बताएँ।

शिक्षक :
ठीक है, सुनो। क्या आप लोग महाराणा प्रताप के विषय में जानते हैं?

वेदान्त :
क्या वही महाराणा प्रताप जो भारतवर्ष के गौरव तथा अपने देश की स्वतंत्रताभिमानी थे?

शिक्षक :
हाँ, उन्हीं की पुत्री चंपा थी।

आरती :
उसके विषय में हम विस्तारपूर्वक नहीं जानते।

शिक्षक :
सुनो! महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता नहीं स्वीकार की जिसके कारण उन्होंने अरावली पर्वत की घाटियों, गुफाओं, उपत्यका में परिवार सहित गुप्त भ्रमण करते हुए अत्यधिक कष्ट पूर्ण जीवन बिताया।

भरत :
(उन उपत्यकाओं में) वे कहाँ सोते थे और क्या खाते थे।

2. शिक्षक-अहोरात्रं पदातिरेव ते चलन्ति स्म भूमौ शिलायां वा स्वपन्ति स्म। बहुधा उपवासं कृत्वा यदा कदा। बदरीफलानि वा तृणरोटिकांश्च खादन्ति स्म। नैकवारं ईदृशः समयः आगतः यदा तृणरोटिकाम् अपि त्यक्त्वा पलायनार्थं शत्रुभि विवशीकृताः। तस्मिन् काले प्रतापस्य पुत्री चम्पा एकादशवर्षीया पुत्रश्च चतुर्वर्षीयः आस्ताम्।

शालिनी :
आचार्य। यदि तयोः विषये कापि अस्ति तर्हि नूनं कथयतु।

शिक्षक :
एकदा राजकुमारः चम्पा च नदीतटे क्रीडतः आस्ताम्। तदैव राजकुमारः क्षुधापीडितः अभवत्। सः रोटिकां याचमानः रोदितवान!। सः न जानाति स्म यत् रोटिकायाः ग्रासमेकमपि नास्ति। चम्पा तं कथां श्रावयित्वा विनोदयामास। राजकुमारः बुभुक्षितः एव सुप्तवान्।

प्रियङ्का :
(सोत्साहेन पृच्छति) तदा किम् अभवत्?

शिक्षकः :
शृणवन्तु! सुप्तं अनुजं अङ्के नीत्वा चम्पा शयनाय मातुः समीपे आगत्य पितरं चिन्तामग्नम् अपश्यत् अपृच्छच्च भवान् किमर्थं चिन्तातुरोऽस्ति? तदा तेनोक्तम्-सुते। अस्माकं गृहे एकः अतिथिः आगतः, किं चित्तौड़महाराणागृहात् सः अनश्नन् एव गच्छेत् तदा चम्पा अवदत पितः! भवान् मा चिन्तयतु। ह्यः भवता दत्तम् रोटिकाद्वयं सुरक्षितम् अस्ति! मे बुभुक्षा नास्ति। भवान् रोटिकाद्वयम् तस्मै ददातु।

शब्दार्थ :
अहोरात्रं-रात्रि में-on night; चलन्ति-चलते हैं-walks; स्म-थे-were; स्वपन्ति-सोते थे-were slept; बहुधा-बहुत अधिक-very much; कृत्वा-करके-do; वदरीफलानि-बेर का फल-fruit of Bare; तृणरोटिकांश्च-और घास की रोटियाँ-and grass’s chapati; त्यक्त्वा -छोड़कर-After left; पलायनार्थ-भागने के लिए-for running; तस्मिन्-उस-That; प्रतापस्य-प्रताप के-famous; तयो-वे दोनों-these two; कापि-कोई भी-Anybody; वार्ता-वार्ता-Talking, conversation; नूनं-निश्चित ही-certainly;, कथयतु-कहिए-Say; च-और-and; तदेव-उसके अनुसार-According to him;अभवत्-हुआ-Happend; रोटिकां-रोटी को-for chapati; यत्-जो-who; तं-उसको-him; श्रावयित्वा-सुनकर-Listening; एव-भी-Also; मुप्तवान्-सो गया-he slept; नीत्वा-ले जाकर-for going; आगत्य-आकर-for coming; पितरं-माता-पिता-Mother and father; देखा-Seeing; अपश्यत्-देखा-seeing; भवान्-आप-you; तेनोक्तय-उसके कहे अनुसार-his according to saying; आगत-आया-came; गच्छेत्-जाने के लिए-for going; ह्य-बीता हुआ कल-Past; दत्तम्-देने के लिए-for giving; मे-मुझे-me: तस्मै-उसे-His; ददातु-दो-give.

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हिन्दी अर्थ :
शिक्षक-वे रात्रि में चलते थे, भूमि एवं शिलाओं पर सोते थे। अधिकतर उपवास करते थे। कभी-कभी बेर के फल एवं तृण आदि की रोटियाँ खाते थे। एक बार ऐसा समय आ गया जब शत्रुओं ने घास की रोटी खाता छोड़ भागने पर विवश कर दिया। उस समय प्रताप की पुत्री चम्पा ग्यारह वर्ष एवं बालक 4 वर्ष का था।

शालिनी :
गुरु जी! यदि उन दोनों के विषय में कोई कथा हो तो कहें।

शिक्षक :
एक बार राजकुमार एवं चम्पा नदी के तट पर क्रीड़ा कर रहे थे तभी राजकुमार भूख से पीड़ित हो गए और वह रोटियों की माँग करते हुए रोने लगे। उन्हें यह पता नहीं था कि रोटियों के लिए घास नहीं है। चम्पा ने उसे कहानियाँ सुनाकर मन बहलाया। राजकुमार भूखा-प्यासा ही सो गया।

प्रियंका :
(उत्साहपूर्वक) तब क्या हुआ?

शिक्षक :
सुनो! फिर चम्पा सोते हुए अनुज को गोद में लेकर माँ के पास आई तो पिता को चिंता में निमग्न देखा और पूछा-आप क्यों चिंतित हैं? उन्होंने (प्रताप) ने कहा-बेटी! हमारे घर में एक अतिथि आया है। क्या चित्तौड़गढ़ के महाराजा के घर से वह भूखा ही जाएगा? चम्पा बोली-पिताजी! आप चिंतित न हों। आपने कल जो दो रोटी मुझे दी थी, वे अब भी मसुरक्षित रखी हुई हैं। आप दोनों रोटी मेहमान को खिलाएँ। मुझे भूख नहीं है।

3. सर्वेश-ततः किम् अभवत्?

शिक्षक :
तदनन्तरं चम्पा पाषाणतले संरक्षितां तृणरोटिकाम् आनीत्य अतिथये ददाति अतिथिः उपभुज्य गतवान्। परन्तु स्वपरिवार प्रति आगतान् कष्टान् अवलोक्य उद्वेलितः महाराणा स्वप्रतिज्ञां परित्यज्य अकबरस्याधीनता विषये पत्रमलिखत्।

प्रभा :
तदनन्तरं किं जातम?

शिक्षक :
तस्यै बालायै नैक दिनान्तराले याः तृणरोटिकाः मिलन्ति स्म ताः अपि अनुजं भोजयति स्म। अनेन कारणेन क्षुत्क्षामा वीरबाला चम्पा अति दुर्बलतां प्राप्ता। एकदा दौर्बल्यात् सा मूर्छिता जाता। तदा महाराणाप्रतापः ताम् अङ्के उत्थाय रुदन्नवदत्-पुत्रि! इतोप्यधिकम! दुःखम् त्वाम् न दास्यामि। मया अकबरस्य कृते पत्रं लिखितम्। अर्धचेतनायाम् इदम् पितुर्वाक्यं श्रुत्वैव सा पितरमवदत् तात। भवान् किं कथयति, अस्मभ्यं जीवनरक्षणाय दासतां स्वीकरिष्यति भवान्। किं वयम् कदापि न मरिष्यामः? देशस्य अवमानं मा करोतु! देशस्य कुलस्य च गौरवरक्षार्थं लक्षवारमपि यदि वयम् प्राणानुत्सृजामः तदपि न्यूनमस्ति।

अतः मम आग्रहः एषः यत् भवान् कदापि अकबरस्य अधीनतां मा स्वीकरोतु। वीरबाला चम्पा एवं वदन्ती एव महाराणाङ्के चिरनिद्रां गता। ततः महाराणाप्रतापः पराधीनतायाः विचारम् अत्यजत्। इत्थं चम्पया स्वजीवनोत्सर्गेण न केवलं महाराणाप्रतापस्य विचारपरिवर्तनम् : अपितु मेवाड़गौरवस्य रक्षणमपि विहतम्।

शब्दार्थ :
अभवत्-हुआ-happen; तदनन्तरं-इसके बाद-After this; आनीत्यलाया-getting; ददाति-देता है-gives; गतवान्-गया-went; स्वपरिवारं-अपने परिवार को-for own family; आगतान्-आया-came; उद्वेलित-बहुत दुःखी-very sad; स्वप्रतिज्ञां-अपनी प्रतिज्ञा-our promise; तदनन्तरं-इसके बाद-After this; मिलन्ति-मिलते हैं-meet; स्म-थे-was; ता-उसके-his; अपि-भी-also; अनेन-इस कारण-That reason; अङ्के-गोद में-In lap; त्वाम्-तुम में-In you;मया-मेरे-my; कृते-के लिए-for; अर्धचेतनयाम्-अर्ध चेतन स्थिति में-half unconscious situation; श्रुत्वैव-सुनकर भी-to listening; भवान्-आप-you; कथयति-कहें-say; अस्मभ्यं-हमारे-our; दासतां-दासता-Slavery; वयम्-हम सब-we all; मरिष्याम-मरेंगे-will die; अवमान-अपमान-Defame; न्यूनमस्ति-थोड़ा-Little; मम-मेरा-my; आग्रह-निवेदन-Application; अधीनता-अधीनता-Under, Ruled; स्वीकरोतु-स्वीकार करो-to accept; अत्यजत्-छोड़ा-left; इत्थं-इस तरह-That type; रक्षणमपि-रक्षा में भी-In defence also; निहितम्-निहित-Constant.

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हिन्दी अर्थ :
सर्वेश-तब क्या हुआ?

शिक्षक :
तब चम्पा पत्थर के नीचे सुरक्षित रखी तृण की रोटियां निकाल कर अतिथि को प्रदान कर दी। अतिथि उसका उपभोग कर चले गए। परन्तु अपने परिवार पर आए कष्ट को देखकर राजा प्रताप का मन विचलित हो उठा और उन्होंने प्रतिज्ञा को छोड़कर अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए पत्र लिखा।

प्रभा :
फिर क्या हुआ?

शिक्षक :
उनके बच्चों को प्रतिदिन रोटी न मिलकर एक दिन के अंतराल पर रोटी खाने को मिलती थी। उसे भी उसका छोटा भाई खा जाता था इसलिए वह लड़की चम्पा बहुत दुबली हो गई। एक बार दुर्बलता के कारण वह बेहोश हो गई। तब महाराणा प्रताप उसे गोद में उठा रोते हुए बोले-पुत्री! अब मैं इससे अधिक कष्ट तुम्हें नहीं दूंगा, मैं अकबर को पत्र लिखूगा। अर्द्ध मूर्छितावस्था में इस तरह (हताश) पिता के वाक्यों को सुनकर बोली-पिताजी! यह आप क्या कह रहे हैं? हमारे जीवन की रक्षा के लिए आप गुलामी स्वीकार करेंगे? क्या हम कभी मरेंगे नहीं? पिताजी! देश का अपमान न करें देश और कुल के मान की रक्षा के लिए यदि हमें लाखों बार प्राण देने पड़ें तो भी वह थोड़ा है।

मेरी प्रार्थना है कि आप इस तरह कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार न करें…इस प्रकार कहती हुई वह वीर बाला चम्पा महाराणा प्रताप की गोद में ही प्राण त्याग दिए। तब महाराणा ने अधीनता स्वीकार करने की बात अपने मन से निकाल दी। इस प्रकार चम्पा के प्राणोत्सर्ग से न केवल महाराणा के विचारों में परिवर्तन हुआ, बल्कि मेवाड़ के गौरव की रक्षा भी हुई।

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 13 गीतादर्शनम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 13 गीतादर्शनम् (पद्यम्)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 13 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) ईश्वरः किमर्थम् आत्मानं सृजति? (ईश्वर किसलिए आत्मा का सृजन करता है?)
उत्तर:
धर्मउत्थानाय। (धर्म के उत्थान के लिए)।

(ख) ते अधिकाराः कुत्र? (तुम्हारा अधिकार क्या है?)
उत्तर:
कर्मानिश्व। (स्वयं का कम)।

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(ग) जातस्यध्रुवं किम्? (जन्म लेने वाले का क्या होता है?)
उत्तर:
मृत्युः। (मृत्यु होती है।)

(घ) अन्नात् कानि भवन्ति? (अन्न से क्या होता है?)
उत्तर:
भूतानि। (भूख मिटती है।)

(ङ) कामात् कः अभिजायते? (काम से क्या पैदा होता है?)
उत्तर:
क्रोधो। (क्रोध उत्पन्न होता है।)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) तत्त्वदर्शिनः कथम् उपदेक्ष्यन्ति? (तत्त्वज्ञाता क्या उपदेश देते हैं?)
उत्तर:
तत्त्वदर्शिनः ज्ञानिनः ज्ञानम् उपदेयन्ति। (तत्त्वज्ञाता ज्ञान का उपदेश देते हैं।)

(ख) मनः कथं वशी भवति? (मन किस तरह वश में होता है?)
उत्तर:
मनः यतः यतः निश्चरति ततः ततः नियम्य आत्यनि एव वशम् नयेत्। (मन यहाँ-वहाँ विचरण करता है तब स्वयं द्वारा उसे वश में किया जाता है।)

(ग) त्वं कस्मिन्नर्थे न शोचितुमर्हसि? (तुम्हें किसके लिये सोच नहीं करना चाहिए?)
उत्तर:
त्वं जातस्य मृत्युः ध्रुवः मृतस्य जन्म ध्रुवं च तस्मात् अपरिहार्ये अर्धे शोचितुम् न अर्हषि।। (जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मर रहा है वह जन्मेगा अतः व्यर्थ सोच नहीं करना चाहिये।)

(घ) बुद्धिनाशात् किं भवति? (बुद्धि के नाश होने से क्या होता है?)
उत्तर:
बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात् प्रणश्यति। (बुद्धि के नाश होने से व्यक्ति नष्ट हो जाता है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) पुरुष कथं विनश्यति? (पुरुष का विनाश कैसे होता है?)
उत्तर:
पुरुषः बुद्धिनाशात् विनश्यति। (पुरुष का विनाश बुद्धि के नाश होने पर होता है।)

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(ख) तत्त्वदर्शिनः कथं उपदेक्ष्यन्ति? (तत्त्वदर्शी क्या उपदेश देते हैं?)
उत्तर:
तत्त्वदर्शिनः ज्ञानिनः ज्ञानम् उपदेक्ष्यन्ति। (तत्त्वदर्शी ज्ञान का उपदेश देते हैं।)

(ग) ईश्वरः कदा सम्भवति? (ईश्वर कब जन्म लेता है?)
उत्तर:
यदा, यदा धर्मस्य ग्लानिः अधर्मस्य अभ्युत्थानम् भवति तदा हि अहम् आत्मानम् सृजामि। (जब-जब पृथ्वी में धर्म का नाश होता है तब धर्म को बचाने के लिये और अधर्म का नाश करने के लिये ईश्वर अवतार लेता है।)

(घ) यज्ञाः कस्मात् संभवति? (यज्ञ किससे संभव है?)
उत्तर:
यज्ञ कर्मात् संभवति। (यज्ञ कर्म से संभव है।)

प्रश्न 4.
रेखाङ्कितशब्दान् आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) क्रोधात् सम्मोहः भवति। (क्रोध से सम्मोह होता है।)
उत्तर:
कस्मात् सम्मोहः भवति? (किससे सम्मोह होता है?)

(ख) स्मृतिविभ्रमः सम्मोहात् भवति। (स्मृति भ्रम सम्मोह से होती है।)
उत्तर:
कस्मात् स्मृतिविभ्रमः भवति? (किससे स्मृति भ्रमित होती है?)

(ग) बुद्धिनाशः स्मृतिभ्रशांत् भवति। (बुद्धि का नाश स्मृतिविभ्रम से होता है।)
उत्तर:
कस्य नाशः स्मृतिभंशात भवति? (किसका नाश स्मृति विभ्रम से होता है?)

(घ) यज्ञात् भवति पर्जन्यः। (यज्ञ से पर्जन्य होता है।)
उत्तर:
यज्ञात् कः भवति? (यज्ञ से क्या होता है?)

प्रश्न 5.
श्लोकपूर्ति कुरुत
उत्तर :
(क) विद्यार्थी स्वयं करें।
(ख) अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न संभवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद्भवः॥

प्रश्न 6.
उचितं योजयत्-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 13 गीतादर्शनम् img-1

प्रश्न 7.
उचितशब्देन रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति।
(ख) ते कर्मणि एवं अधिकारः।
(ग) जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः।
(घ) ध्यायतो विषयानुपुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

प्रश्न 8.
अधोलिखितपदाना पर्यायवाचि लिखत
(क) साधुः = सज्जनः
(ख) पर्जन्यः = जलम्
(ग) चञ्चलम् = लोलम्
(घ) यज्ञ = अध्वरः

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प्रश्न 9.
अधोलिखत पदानां विलोमपदानि लिखत
(क) सङ्गः = पृथकः
(ख) मृत्युः = जन्मः
(ग) धर्मः = अधर्मः
(घ) अन्यः = विशेषः
(ङ) परित्राणः = विनाशः।

प्रश्न 10.
पञ्चमी विभक्तिः स्थाने तसिल (तः) प्रत्ययं इति योजयित्वा लिखत
यथा- ग्रामात् – ग्रामतः
(क) सङ्गात् – सङ्गतः
(ख) कामात् – कामतः
(ग) क्रोधात् – क्रोधतः
(घ) सम्मोहात् – सम्मोहतः
(ङ) स्मृतिभ्रंशात् – स्मृतिभ्रंशतः।
(च) बुद्धिनाशात् – बुद्धिनाशतः
(छ) अन्नात्। – अन्नतः।
(ज) पर्जन्यात् – पर्जन्यतः
(स) यज्ञात् – यज्ञतः।

प्रश्न 11.
सन्धिं कुरुत
(क) अभि + उत्थानम् = अभ्युत्थानम्।
(ख) सृजामि + अहम् = सृजाम्यहम्।
(ग) क्रोधः + अभिजायते = क्रोधाभिजायते।
(घ) मनः + चञ्चलं + अस्थिरम् = मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
(ङ) कर्मणि + एव + अधिकारः + ते = कर्मण्येवाधिकारस्ते।

गीतादर्शनम् पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

विश्व के दर्शन ग्रन्थों में सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ उपनिषद हैं। सारे उपनिषदों का सार है-श्रीमद् भगवद्गीता। यह महाभारत का एक अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं। यह मूल उपदेश है इसलिए युद्धादि कर्तव्य में भी इसका अवश्य ही पालन करना चाहिए।

गीतादर्शनम् पाठ का हिन्दी अर्थ

1. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

शब्दार्थ :
अभ्युत्थानम्-वृद्धि-Progress; अधर्मस्य-अधर्म की-Non-religon; तदा-उस समय-That time; आत्मानम्-अपने को-Own; सृजामि-प्रकट करता है-Presentation.

हिन्दी अर्थ :
हे भारत अर्थात् अर्जुन! जब-जब धर्म का पतन होता, अधर्म की बहुलता होती है तब अधर्म से मुक्ति दिलाने हेतु मैं अपने को प्रकट करता हूँ अर्थात् अवतार लेता हूँ।

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2. परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥

शब्दार्थ :
परित्राणाय-उद्धार के लिए-Compulsion; संस्थापन-स्थापितSetup, अर्थाय-करने-DD; सम्भवामि-प्रकट होता है-Appears.

हिन्दी अर्थ :
साधु-पुरुषों के उद्धार हेतु एवं दुष्टों का विनाश करने एवं पुनः धर्म राज्य की स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में प्रकट होता हूँ।

3. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूमा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि

शब्दार्थ :
कर्मण्ये-कर्म में-At work; मा-नहीं-Never, not; कदाचन-कभी-Any time; सङ्ग-लिप्त होना-To involve; अस्तु-हों-are.

हिन्दी अर्थ :
हे अर्जुन! तुम्हारा केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फल को प्राप्त करने का अधिकार तुम्हारा नहीं हैं। तुम कर्म के फल की इच्छा वाले मत बनो और न ही अकर्मण्यता की ओर से प्रवृत्त हो।

4. जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्धवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ।।

शब्दार्थ :
ज्ञातस्य-उत्पन्न होना-Rising: ध्रुवो-अटल-Fix; तस्माद-इसलिए-So; अपरिहार्येऽर्थे-अचानक-Suddenly.

हिन्दी अर्थ :
हे अर्जुन! इस संसार में प्राणी का जन्म निश्चित है और मृत्यु भी शाश्वत है। अतः न टाले जाने योग्य कारण के लिए तुम्हें शोक करना उचित नहीं है।

5. अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाभ्दवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुभ्दवः॥

शब्दार्थ :
सम्भव-सम्भव होती है-possibles; पर्जन्यः-वर्षा-Rain; यज्ञः-यज्ञ का सम्पन्न होना-Finished worship; कर्म-नियत कर्त्तव्य से-with good manner; समुद्धवः-उत्पन्न होता है-grows.

हिन्दी अर्थ :
सारे प्राणी अन्न पर निर्भर हैं। यह अन्न वर्षा से उत्पन्न होता है। वर्षा यज्ञादि कर्म से होती है। यज्ञ नियत कर्मों से होता है।

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6. ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामाक्रोधोऽभिजायते॥

शब्दार्थ :
ध्यायतः-चिन्तन करते हुए-meditating; विषयान-इन्द्रिय को-Tosenses; तेषु-उन इन्द्रिय-विषयों में-These senses subject; उपजायते-विकसित होती है-Increase, Develop; सगात्-अशक्ति से-Not interest; अभिजायते-प्रकट होता है-Rising.

हिन्दी अर्थ :
इन्द्रियों के विषय में (निरंतर) सोचने से मनुष्य की उसमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है। इसी आसक्ति को कामोद्वेग उत्पन्न होता है और काम से क्रोध प्रकट होता है।

7. क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

शब्दार्थ :
भवति-होता है-Happens; सम्मोह-पूर्ण मोह-full love; बुद्धि-नाशः-बुद्धि का विनाश-The mind is kill; प्रणश्यति-पतन होता है-Ruins.

हिन्दी अर्थ :
क्रोध से अविवेक उपजता है, अविवेक के उपजने से स्मरण-शक्ति नष्ट हो जाती है। जब स्मरण-शक्ति विभ्रमित हो जाती है तो बुद्धि का नाश होता है। बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य नष्ट हो जाता है।

8. तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।

शब्दार्थ :
विद्धि-जानने का प्रयास करा-Try to know; प्रणिपातेन-गुरु के पास जाकर-Go to near of teacher; परिप्रश्नेन-विनीत जिज्ञासा से-For kindly desire; सेवया-सेवा के द्वारा-Throw seves; ज्ञानिन-स्वरूप सिद्ध-Proved face.

हिन्दी अर्थ :
तुम तत्त्व वेत्ता गुरु के समीप जा उन्हें दण्डवत प्रणाम कर विनीत भाव से, सेवाभाव से युक्त होकर सत्य का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करो। वही तत्त्व वेत्ता गुरु ही तुम्हें सत्य (ज्ञान) का बोध कराएँगे क्योंकि उन्होंने ही सत्य का साक्षात्कार किया है।

9. यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥

शब्दार्थ :
निश्चलति-विचलित होती है-Disturbing; नियम्य-वश में करके-In under; एतत्-इस-This; एव-निश्चय ही-certainly.

हिन्दी अर्थ :
चंचल मन अपनी अथिरता के कारण जहाँ-जहाँ भी विचरण करता हो, मनुष्य का कर्तव्य है कि वह उसे खींचकर अर्थात् उसे नियंत्रित कर अपने वश में लाए।

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 12 कर्तव्यपालनम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 12 कर्तव्यपालनम् (संवादः)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 12 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) जनाः वञ्चनया किं कर्तुं कामयन्ते? (लोग छल से क्या करना चाहते हैं?)
उत्तर:
स्वार्थ साधनं। (अपना स्वार्थ साधना चाहते हैं।)

(ख) आत्मनः देशस्य वा समुन्नतेः मूलमन्त्र: कः? (अपने देश की उन्नति का मूल मंत्र क्या है?)
उत्तर:
कर्त्तव्यपालनमेव। (कर्त्तव्य का पालन करना है)

(ग) जीवन किम् आवश्यकम्? (जीवन में क्या आवश्यक है?)
उत्तर:
सत्कार्यम्। (अच्छे कार्य करना।)

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(घ) कर्त्तव्यपरायणानां गणना कुत्र भवति? (कर्त्तव्यपालन की गणना कहाँ होती है?)
उत्तर:
श्रेष्ठ पुरुषेषु। (श्रेष्ठ पुरुषों में)

(ङ) यस्य बुद्धिः व्यापन्ना अस्ति सः कर्त्तव्यपालनं करोति न वा? (जिसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है वह कर्त्तव्य-पालन करता है या नहीं?)
उत्तर:
न करोति। (नहीं करता है।)

प्रश्न 2.
एक वाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) कृषकाः देशस्य उन्नति कथं कुर्वन्ति?(कृषक देश की उन्नति कैसे करता हैं?)
उत्तर:
कृषकाः देशस्य उन्नतिं कृषिकार्येण कुर्वन्ति। (कृषक देश की उन्नति कृषि कार्यों के द्वारा करता है।)

(ख) कर्त्तव्यपालनं किमर्थम् आवश्यकं वर्तते? (कर्त्तव्यपालन क्यों आवश्यक है?)
उत्तर:
कर्त्तव्यपालनं देशस्य समुचित रूपेण उन्नतिम् वर्तते। (कर्तव्यपालन से देश का समुचित रूप से उन्नति होती है।

(ग) यदि जनाः स्वकर्त्तव्यपालनं न कुर्वन्ति तर्हि किं भविष्यति? (यदि लोग अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करेंगे तो क्या होगा?)
उत्तर:
यदि जनाः स्वकर्तव्य पालनं न कुर्वन्ति तर्हि देशस्य समुचित उन्नतिम् न भविष्यति। (यदि लोग अपने कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे तो देश की समुचित उन्नति नहीं होगी।)

(घ) जनाः देशस्य हितसाधनं कथं कुर्वन्ति? (लोग देश का हित किस तरह से करते हैं?)
उत्तर:
जनाः देशस्य हितसाधनं स्वकर्त्तव्यपालन माध्यमेन् कुर्वन्ति। (लोग देश का हित अपने कर्त्तव्य-पालन के माध्यम से करते हैं।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) कर्त्तव्यपालनं किमर्थन् आवश्यकम्? (कर्तव्यपालन क्यों आवश्यक है?)
उत्तर:
कर्त्तव्यपालनं सर्वहिताय आवश्यकम्। (कर्त्तव्यपालन सबके हित के लिए आवश्यक है।)

(ख) ये कर्त्तव्यपालन कुर्वन्ति ते केषां हितसाधनं कुर्वन्ति?(जो कर्त्तव्यपालन करते हैं वे किस तरह हित साधन करते हैं?)
उत्तर:
ये कर्त्तव्यपालनं कुर्वन्ति ते न केवलम् आत्मनः एव प्रत्युत् सम्पूर्णस्यापि देशस्य हितसाधनं कुर्वन्ति। (जो कर्त्तव्यपालन करते हैं वे न केवल अपना अपितु समस्त देश का हित करते हैं।)

(ग) देशस्य उन्नतियोजना केन कथम् अधिकफलवती भवेत्? (देश की योजना की उन्नति कैसे और किसके द्वारा अधिक फलीभूत होती है?)
उत्तर:
देशस्य उन्नतियोजना जनाः कर्त्तव्यपालनं प्रति ध्यानं ददाति तर्हि अधिकफलवती भवेत्। (देश की उन्नति लोगों के द्वारा कर्तव्यपालन के माध्यम से अधिक फलवती होती है।)

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प्रश्न 4.
यथायोग्यं योजयत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 12 कर्तव्यपालनम् img-1

प्रश्न 5.
रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) देशे सर्वे जनाः कर्त्तव्यपालनं कुर्वन्ति।
(ख) जनेषु कर्त्तव्यपालनम् प्रति महती शिथिलता समागता वर्तते।
(ग) जनाः वञ्चनया एव स्वार्थ साधनं कर्तुं कामयन्ते।
(घ) इयम् भूमिः कर्मभूमिः अस्ति।
(ङ) कर्तव्य पालनमेव आत्मनः देशस्य वा समुन्नतेः मूलमन्त्र।

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं ‘न’ इति लिखत
उदाहरणं यथ –
जीवने कार्यत् आवश्यकम् अस्ति। – (आम्)
कर्तव्यपालनम् आवश्यकं नास्ति। – (न)
(क) नैकाः जनाः वञ्चनया एव स्वार्थ साधनं कर्तुं कामयन्ते।
(ख) स्वकर्तव्यपालन न करणीयम्।
(ग) कर्त्तव्यपालनमेव देशस्य समुन्नतेः मूलमन्त्रः।
(घ) मनुष्योपरि अनेकविधानां कर्त्तव्यानां पालनस्य महान् भारो वर्त्तते।
(ङ) इयम् भूमिः कर्मभूमिः नास्ति।
उत्तर:
(क) (न)
(ख) (न)
(ग) (आम्)
(घ) (आम्)
(ङ) (न)

प्रश्न 7.
क्रियापदानां धातुं वचनं पुरुषं च लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 12 कर्तव्यपालनम् img-2

प्रश्न 8.
सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत
(क) एकोऽपि
उत्तर:
एकः+अपि = पूर्व रूप स्वर सन्धि

(ख) प्रत्येकम्
उत्तर:
प्रति+एक = स्वर सन्धि

(ग) सम्पूर्णस्यापि
उत्तर:
सम्पूर्णस्य+अपि = स्वर सन्धि

(घ) कानिचित्
उत्तर:
कानि+चित् = स्वर सन्धि

प्रश्न 9.
उदाहरणानुसारं शब्दानां विभक्तिं वचनं च लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 12 कर्तव्यपालनम् img-3

प्रश्न 10.
निम्नाङ्कितैः अव्ययैः वाक्यनिर्माणं कुरुत
यथा-सः अपि पठति।
(क) यदि-तर्हि
(ख) यत-तत
(ग) यावत्
(घ) एव
(ङ) कृते
उत्तर:
(क) यदि सः आगच्छति तर्हि अहं अपि गमिष्यामि।
(ख) यतः शान्तिः भवति ततः सुखम् भवति।
(ग) तावत्-यावत् वृष्टिः न भवति तावत् कृषि कार्यं न भवति।
(घ) सः एव गच्छति।
(ङ) मम कृते पुस्तकं ददातु।

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कर्तव्यपालनम् पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

समाज में प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य निश्चित होता है। विविध स्थानों में स्थित लोग अपने द्वारा करणीय कर्तव्य का निर्वहन करते हैं। राजा, प्रजा, अधिकारी, कर्मचारी, माता-पिता, पुत्र-पुत्री, बंधु-बांधव आदि सभी के समाज की दृष्टि से कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व निश्चित हैं। भारतीय धर्म-ग्रन्थों में कर्तव्य-पालन के उपाय एवं उनका महत्त्व अधिकतर प्रतिपादित है।

कर्तव्यपालनम् पाठ का हिन्दी अर्थ

1. शिक्षक :
जीवने किम् आवश्यकम् अस्ति?

दिव्यांश :
जीवने तु कार्यम् आवश्यकम् अस्ति।

शिक्षक :
मानवाः किमर्थं कार्याणि कुर्वन्ति?

विशाला :
मानवः स्वजीवनयापनार्थं, समाजसेवार्थं, देशसेवार्थं च कार्याणि कुर्वन्ति।

शिक्षक :
आम्। तानि तु तेषां कर्त्तव्यानि सन्ति। अतः ते स्वकर्तव्यपालनं कुर्वन्ति। यस्य मनुष्यस्य यत् कर्त्तव्यं तस्य समुचितरूपेण पालनमेव स्वकर्तव्यपालनं कथ्यते।

मीमांसा :
किं सर्वेषां जनानां कर्त्तव्यभूमिः पृथक्-पृथक् भवन्ति अथवा समानमेव भवन्ति।

शब्दार्थ :
किमर्थ-किस लिए-for what; कुर्वन्ति-करते हैं-do; यापनार्थम्-बिताने के लिए-for spend; तेषां-उनके-Them; यस्य-जिसके-Whose; समुचितरूपेण-समुचित रूप से-Well; कथ्यते-कहा जाता है-says; सर्वेषां-सभी-all; भवन्ति-होते हैं-happens;

हिन्दी अर्थ :
शिक्षक :
जीवन में क्या आवश्यक है?

दिव्यांश :
जीवन में कार्य आवश्यक है।

शिक्षक :
मनुष्य लोग किस लिए कार्य करते हैं।

विशाला :
लोग अपने जीवन-यापनार्थ, देश की सेवा के लिए समाज की सेवा के लिए कार्य करते हैं।

शिक्षक :
ठीक है। ये सब तो उनके कर्तव्य हैं अतः वे अपना कर्तव्य पालन करते हैं। जिस मनुष्य का जो कार्य है, उसका उचित तरीके से पालन करता है।

मीमांसा :
क्या सभी लोगों के कर्तव्य अलग-अलग होते हैं अथवा सबके समान होते हैं।

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2. शिक्षक-इयम् भूमिः कर्मभूमिः अस्ति कर्तव्यभूमिः अस्तिः। अस्मिन् संसारे यावन्तः जनाः गृहन्ति तेषां सर्वेषामपि पृथक्-पृथक कर्त्तव्यानि भवन्ति। तानि अनेक विधानि भवन्ति। कानिचित् व्यक्तिगतानि, कानिचित पारिवारिकाणि, कानिचित, सामाजिकानि भवन्ति। एवं च प्रत्येक मनुष्यस्योपरि अनेकविधानां कर्त्तव्यानां पालनस्य महान् भारो वर्त्तते। एकोऽपि एवं विधः मनुष्य नास्ति, यस्य किमपि कर्त्तव्यं न स्याद्, यदि तस्य शरीरं बुद्धिर्वा व्यापन्ना नास्ति।

वेदान्त :
कर्त्तव्यपालनं सर्वेषां कृते किमर्थम् आवश्यकम् अस्ति?

शिक्षक :
कर्त्तव्यपालनं जनस्य स्वहिताय देशहिताय सर्वहिताय च परमावश्यकम्। ये स्वकर्तव्यानां समुचित-रूपेण पालनं कुर्वन्ति तेषामेव श्रेष्ठपुरुषेषु गणना भवति। ते : न केवलम् क्षात्मनः एव प्रत्युत् सम्पूर्णस्यापि देशस्य हितसाधनं कुर्वन्ति।

नरेन्द्र :
यदि जनाः स्वकर्तव्यपालनं न कुर्वन्ति तर्हि किं भविष्यति?

शब्दार्थ :
इयम्-इस तरह से-by this type; यावन्त-जब तक-Till that;गृह्णन्ति-ग्रहण करते हैं-Takes; सर्वेषामपि-सभी-all; पृथक-पृथक-अलग-अलग-different-different; कानिचित्-कोई-any; मनुष्योपरि-मनुष्य के ऊपर-on human; कर्त्तव्यनां-कर्तव्यों को-Duties; एकोऽपि-एक भी-one also; नास्ति-नहीं-no; किमपि-कुछ भी-anything also; व्यापन्ना-नष्ट-ruin; किमर्थं-किस लिए-for what; जनस्य-लोगों का-People; देशहिताय-देश का हित-Country profit; सर्वहिताय-सभी का हित-All profit; हितसाधनं-हित साधन-profit source; कुर्वन्ति-करते हैं-Do; धटना-Incident.

हिन्दी अर्थ :
यह घर या भूमि ही कर्तव्य भूमि है, कर्म भूमि है। इस संसार में आने वाले समस्त जन अर्थात् इस संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के कर्तव्य अलग-अलग होते हैं। उनकी अनेक विधाएँ भी हैं। कुछ कर्तव्य व्यक्तिगत होते हैं कुछ सामाजिक कर्तव्य होते हैं और कुछ पारिवारिक होते हैं। इस तरह प्रत्येक पुरुष पर अनेक विधि के कर्तव्य पालन का महत भार रहता है। एक भी ऐसा मनुष्य नहीं है, जिसका कोई कर्तव्य न हो। यदि उसका शरीर स्वस्थ है तो वह अवश्य ही कर्तव्य पालन करेगा।

देदांत :
कर्तव्य पालन सभी व्यक्तियों के लिए क्यों आवश्यक है?

शिक्षक :
कर्तव्य पालन स्वहित, जनहित व देशहित के लिए अत्यन्त आवश्यक है। जो अपने कर्तव्य का समुचित रूप से पालन करता है उसकी श्रेष्ठ पुरुषों में गिनती होती है। वे केवल अपना ही नहीं बल्कि समस्त देश का हित साधते हैं।

नरेन्द्र :
यदि लोग अपने कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे तो क्या होगा?

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3. शिक्षक-यदि जनाः स्वकर्त्तव्यपालनं न कुर्यु तर्हि समाजस्य कापि व्यवस्था भवितुं न अर्हति। कल्पनां कुरु-यदि अध्यापकाः सम्यक् न अध्यापयेयुः, विद्यार्थिनः परिश्रमेण न पठेयुः, न्यायाधीशाः समुचितरूपेण न्यायं न कुर्युः, शासकाः समीचीनतया शासनकार्य न सम्पादयेयुः, का कराः स्वानि स्वानि कर्माणि सम्यक् न विदध्युः, कृषकाः कृषिकार्य श्रमेण न कुर्युः तर्हि देशस्य कथमपि उन्नतिः भविष्यति न वा? नैव भविष्यति।

स्नेहल :
किम् अस्माकं देशे सर्वे जनाः कर्त्तव्यपालनं कुर्वन्ति?

शिक्षक :
देशस्य कृते महतः दुर्भाग्यस्य अयं विषयः वर्तते यत् साम्प्रतिकेषु जनेषु कर्तव्यपालन प्रति महती शिथिलता समागता वर्तते। नैकाः जनाः श्रमेणः, सत्येन, निष्ठया च कार्यं कर्तुं न वाञ्छन्ति, वञ्चनया एव स्वार्थसाधनं कर्तुं कामयन्ते। अधिकारार्थं सर्वे कलहं कुर्वन्ति परं कर्त्तव्यपालने ध्यान न ददति। देशस्य यावान् अर्थव्ययः समयव्ययः च भवति तावती न कार्यसिद्धिः। यदि जनाः कर्त्तव्यपालनं प्रति ध्यानं ददति तर्हि देशस्य राजकीया अराजकीया वा कापि उन्नतियोजना समुचितरूपेण पूर्णरूपेण फलवती भविष्यत्येव।

कर्त्तव्यपालनमेव अतोऽस्माभिः सङ्कल्पः करणीय यत् स्वकर्तव्यपालनम् अवश्यमेव करणीयम् (आत्मनः देशस्या वा समुन्नतेः मूलमन्त्रः)

शब्दार्थ :
स्वकर्त्तव्यपालनं-अपना कर्तव्य पालन को-to obey the duty; भवितुं-होने के लिए-for becomes; अध्यापयेयु-अध्यापन कराएँ-Do study; समुचितरूपेण-सम्यक रूप से-form of comfortable;समीचीनतया-ठीक प्रकार का-right type;साम्प्रतिकेषु-इस समय में-In this time; समागता-आयी हुई-Come; वाञ्छन्ति-चाहते हैं-Likes; न ददति-नहीं देता-not gives;अराजकीया-अशासकीय, निजी-Private,no government; सङ्कल्प-संकल्प-Promise; करणीय-करना चाहिए-Should do;

हिन्दी अर्थ :
शिक्षक-यदि लोग स्वकर्तव्य पालन नहीं करेंगे तो उस समाज की कोई भी व्यवस्था सुचारु नहीं हो सकती। कल्पना करो-शिक्षक यदि उचित शिक्षा नहीं देगा, विद्यार्थी परिश्रमपूर्वक नहीं पढ़ेगा, न्यायाधीश समुचित रूप से (सत्यासत्य का विवेचन किए बगैर) न्याय नहीं करेगा, शासक समुचित रूप से शासन कार्य का संपादन नहीं करेगा, कर्मकार अपने-अपने कार्य समुचित विधि से नहीं करेंगे, किसान परिश्रमपूर्वक किसानी न करे, तो उस देश की कैसे उन्नति होगी? कभी नहीं होगी।

स्नेहल :
हमारे देश में क्या सभी लोग कर्तव्य पालन करते हैं?

शिक्षक :
इस देश का सबसे महान दुर्भाग्य यह है कि लोगों में अपने कर्तव्यपालन के प्रति बहुत उदासीनता देखने को मिलती है। अनेक लोग श्रमपूर्वक, सत्यपूर्वक, निष्ठापूर्वक कार्य नहीं करना चाहते वरन अपने स्वार्थ के साधने में लगे हुए हैं। सर्वत्र अधिकारों के लिए लोग लड़ रहे हैं किन्तु अपने कर्तव्य-पालन की ओर ध्यान नहीं देते। देश की अर्थ-व्यवस्था त तक एक समान नहीं होगी जब तक की कार्यों के सिद्धि समुचित तरीके से नहीं होगी। यदि लोग (निष्ठापूर्वक) कर्तव्यपालन की ओर ध्यान दें तो देश की शासकीय एवं अशासकीय (सार्वजनिक) सभी योजनाएँ उन्नति करेंगी, समुचित रूप से पुष्पित फलित होंगी। हम सभी को कर्तव्य पालन का संकल्प करना चाहिए। जिससे अपने-अपने कर्तव्यों का सम्यक् रूप से पालन हो (अपने देश। की उचित रीति से उन्नति ही मूल मंत्र है।)

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 11 संसर्गजाः दोषगुणाः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 11 संसर्गजाः दोषगुणाः (कथा)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 11 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक पद में उत्तर लिखिये)
(क) ऋषिः किमर्थं भ्रमति स्म? (ऋषि किस कारण भ्रमित हुये?)
उत्तर:
शुकः भिन्न व्यवहारम् दृष्टवा। (तोतों के विभिन्न व्यवहारों को देखकर)

(ख) प्रथमः शुकः किं वदति स्म? (पहला तोता क्या बोलता था?)
उत्तर:
मारयतु कुट्टयतु। (मारो-कूटो)

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(ग) अपरः शुकः किं वदति स्म? (दूसरा तोता क्या बोलता था?)
उत्तर:
सीतारामः सीतारामः। (सीताराम-सीताराम)।

(घ) महर्षिः वाल्मीकिः किं रचितवान्? (महर्षि वाल्मीकि ने किसकी रचना की?)
उत्तर:
रामायणम्। (रामायण की)।

(ङ) केषां सङ्गात् पिपीलिका चन्द्रबिम्बं चुम्बति? (किसके सत्संग से चीटी शंकरजी के चन्द्र बिम्ब का चुम्बन करती है?)
उत्तर:
सुमनः। (फूलों के या पुष्पों के)।

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखिये)
(क) ऋषिः आश्चर्यसागरे किमर्थं निमग्नोऽभवत्? (ऋषि आश्चर्य में क्यों डूब गया?)
उत्तर:
शुकौ समानजातीयौ तथापि आचरणं पृथक-पृथक दृश्यते ऋषिः आश्चर्य सागरे निमग्नोऽभवत्। (तोतों की समान जाति होने पर भी उनके भिन्न-भिन्न व्यवहार को देखकर ऋषि आश्चर्य में डूब गया।)

(ख) महर्षिः वाल्मीकिः कथं तपस्वी जातः? (महर्षि वाल्मीकि कैसे तपस्वी हुये?)
उत्तर:
महर्षिः वाल्मीकिः सप्तर्षाणां सत्सङ्ग प्रभावात् तपस्वी जातः। (महर्षि वाल्मीकि ने सप्तर्षियों के सत्सङ्ग के प्रभाव से तपस्वी हुये।)

(ग) अश्मा कथं देवत्वं प्राप्नोति? (पत्थर कैसे देवत्व को प्राप्त करता है?)
उत्तर:
अश्मा महद्भिः सुप्रतिष्ठितः देवत्वं प्राप्नोति। (पत्थर महान लोगों के सम्पर्क से देवत्व को प्राप्त करता है।)

(घ) केषां सङ्गः करणीयः? (किनका साथ करना चाहिये?)
उत्तर:
सज्जनानां सङ्ग करणीयः। (सज्जनों का संग या साथ करना चाहिये।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत (नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिये)
(क) द्वितीयः शुकः ऋषि किम् उक्तवान्? (दूसरे तोता ने ऋषि से क्या कहा?)
उत्तर:
द्वितीयः शुकः ऋषिं उक्तवान् अहं मुनीनां वचनं शृणोमि सः गवाशनानाम् वाक्यम् शृणोति। (दूसरे तोता ने ऋषि से कहा कि मैं ऋषियों के वचनों को सुनता हूँ और वह गो-वध करने वालों के वचनों को सुनता है।)

(ख) किमर्थं सत्सङ्गः करणीयः? (किसलिये सत्सङ्ग करना चाहिये?)
उत्तर:
महनीय सुप्रतिष्ठताय सत्सङ्ग करणीयः। (महानता को प्राप्त करने के लिये सत्संग करना चाहिये।)

(ग) दोषाः गुणाश्च कथम् उत्पद्यन्ते? (गुण और दोष कैसे उत्पन्न होते हैं?)
उत्तर:
दोषाः गुणाश्च संसर्गात् उत्पद्यन्ते। (गुण और दोष सत्संग से उत्पन्न होते हैं।)

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प्रश्न 4.
यथायोग्यं योजयेत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 11 संसर्गजाः दोषगुणा img-1

प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
यथा- संसर्गात् स्वभावपरिर्वनं भवति – आम्
दुर्जनानां सङ्गः करणीयः – न
(क) द्वितीयः शुकः “सीताराम” इति वदति स्म।
(ख) ऋषिः लोककल्याणार्थं न भ्रमति स्म।
(ग) दुर्जनानां सङ्गात् लाभः भवति।
(घ) सज्जनानां सङ्गतिः करणीया।
(ङ) पिपीलिका सत्सङ्गात् भगवतः शिवस्य शीर्षस्थितं चन्द्रबिम्ब न चुम्बति।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न

प्रश्न 6.
निम्नलिखित क्रियापदानां भूतकालिकक्रियापदानि लिखत
उदहारणम्
वदति – अवदत्।
भ्रमति – अभ्रमत।
शृणोति – अशृणोत।
गच्छति – अगच्छत।
चिन्तयति – अचिन्तयत
भवति – अभवत।
करोति – अकरोत्।

प्रश्न 7.
निम्नलिखितानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 11 संसर्गजाः दोषगुणा img-2

प्रश्न 8.
निम्नलिखितानां क्रियापदानां द्विवचन बहुवचनं लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 11 संसर्गजाः दोषगुणा img-3

प्रश्न 9.
निम्नलिखिततानां धातुम् प्रत्ययं च पृथक् कृत्वा लिखत-
यथादृष्ट्वा – दृश् + क्त्वा।
श्रुत्वा – श्रु + क्त्वा।
पठित्वा – पठ् + क्त्वा।
पालितः – पाल + क्तः।
करणीयम् – कृ + अनीयर।
विरचितवान् – विरचित + वान्
उक्तवान् – उक्त + वान्

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प्रश्न 10.
निम्नलिखितानां अव्ययानां वाक्यप्रयोगं कुरुत
उदाहरणम्एकदा-
एकदा – सः ग्रामम् अगच्छत्।
सुरेशः – मोहनः च पठति। तत्र
तत्र – वायुः प्रवहति।
अपि – त्वम् अपि गच्छतु।
उच्चैः – सः उच्चैः वदति।
इति – वाल्मीकिः रामायणम् इति महाकाव्यम् अलिखत्।
तदा – तदा आचार्यः पाठं पाठितवान्।

संसर्गजाः दोषगुणाः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

संस्कृत साहित्य में कथा साहित्य का विपुल भंडार है। उसमें पंचतंत्र, कथा सरित्सागर, बैताल पचीसी, विक्रमादित्य कथा, वृहत् मंजरी, हितोपदेश आदि प्रसिद्ध कथा-ग्रन्थ हैं। सत्संगति से किस प्रकार व्यवहार में परिवर्तन होता है, इस कथा के माध्यम से यहाँ प्रग्तुत किया जा रहा है।

संसर्गजाः दोषगुणाः पाठ का हिन्दी अर्थ

1. कश्चित् एकः महान् तपस्वी ऋषिः आसीत्। सः लोककल्याणार्थम् अहर्निशं भूतले भ्रमति स्म। एकदा सः परिभ्रमन् एक ग्रामम् अगच्छत्। ग्रामस्य एकस्मिन् गृहे एकः शुकः पालितः आसीत्। सः शुकः ऋषिं दृष्ट्वा “मारयतु कट्टयतु” इति वारं वारम् उच्चैः उक्तवान्। अनन्तरं सः ऋषिः अपरं स्थानम् अगच्छत् तत्रापि एकस्मिन् गृहे शुकः पालितः आसीत्। सः ऋषि दृष्ट्वा “सीताराम-सीताराम” इति उक्तवान्। एवं शुकयोः भिन्नव्यवहारं दृष्ट्वा ऋषिः आश्चर्यसागरे निमग्न अभवत्। सः चिन्तयति यद्यपि शुकौ समानजातीयौ तथापि आचरणं पृथक्-पृथक् दृश्यते, किं कारणम्? तत्र पार्श्वस्थं शुकं ऋषिः कारणं पृष्टवान्। तदा शुकः उत्तरति यत् ऋषिवर्य! शृणोतु-

अहं मुनीनां वचनं शृणोमि
गवाशनानां स शृणोति वाक्यम्।
न चास्य दोषो न च मद्गुणो वा
संसर्गजाः दोषणुणाः भवन्ति।

शब्दार्थ :
लोककल्याणार्थम्-जनता के कल्याण के लिए-For welfare of people; अहर्निशं-निरन्तर-Continue; अगच्छत्-गया-Went; ग्रामस्य-गाँव का-Of village; पालितः-पाला हुआ-Getting brought up; मारयतु कट्टयतु-मारो कूटो-Kill beat; तत्रापि-वहाँ भी-There also; चिन्तयति-सोचता है-Thinks; पृष्टवान्-देखा-Looked; शृणोतु-सुनिये-Listen; शृणोमि-सुनता हूँ-Listen; संसर्गजाः-संग रहने से उत्पन्न होने वाले-The fault with company; गवाशनानाम्-गोभक्षियों के–Eating the flash of cow.

हिन्दी अर्थ :
कहीं एक महान तपस्वी ऋषि थे। वे लोक कल्याण के निमित्त सदैव पृथ्वी पर विचरण किया करते थे। एक बार परिभ्रमण करते हुए एक ग्राम में पहुंचे। गाँव में किसी घर में एक तोता पल रहा था। वह तोता ऋषि को देखकर ‘मारो-काटो’ ऐसा तीव्र शब्दों में बार-बार बोलने लगा। थोड़ी देर में ऋषि दूसरे स्थान पर गए। वहाँ एक घर में तोता पाला गया था। वहाँ ऋषि को देख तोते ने ‘सीताराम-सीताराम’ बोलने लगा। इस प्रकार दोनों तोतों के भिन्न व्यवहार देख ऋषि आश्चर्य के सागर में डूब गए।

वे सोचने लगे-यद्यपि दोनों शुक एक ही जाति के हैं तो भी उनके आचरण भिन्न-भिन्न होने का क्या कारण है? तब समीप स्थित उस तोते से ऋषि ने इसका कारण पूछा। तब तोते ने उत्तर दिया-ऋषिवर! सुनिए मैं मुनियों के वचन सुनता हूँ, अच्छी-अच्छी नीतिप्रद बातें सुनता हूँ। वह तोता हरदम नीति विरुद्ध बातें सुनता है। इसमें उसका कोई दोष नहीं और न ही यह मेरा महान गुण है। साथ रहने से गुण-दोष पैदा होते हैं।

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2. महात्मन्! तत्र व्याधानां ग्रामः अस्ति। सः शुकः व्याधस्य गृहे निवसति। व्याधाः अहर्निशं मारणं कर्तनं हिंसात्मिकां वार्तां च कुर्वन्ति, सोऽपि तानि कार्याणि पश्यति तेषां वार्तालापं च शृणोति। अतः “मारयतु कुट्टयतु” इति वदति। अहं तु मुनेः आश्रमे निवसामि। तत्र मुनयः भगवन्नामसङ्कीर्तनं पूजां च कुर्वन्ति। अहं सर्वं खलु पश्यामि आचरामि च। अतः अहं “सीताराम-सीताराम” इति वदामि। अतः तस्य शुकस्य न कोऽपि दोषः न मम गुणश्च यतोहि दोषाः गुणाः च संसर्ग-प्रभावात् उत्पन्नाः भवन्ति।

पूर्वं महर्षिः वाल्मीकिः सप्तर्षीणां सत्सङ्गप्रभावात् महान् तपस्वी जातः अनन्तरं रामायणमहाकाव्यं विरचितवान्। महद्भिः जनैः प्रतिष्ठितो भूत्वा अश्मा, अपि देवत्वं प्राप्नोति। पुष्पाणां संसर्गात् पिपीलिका अपि भगवतः शिवस्य शीर्षस्थितं चन्द्रबिम्ब चुम्बति। अतः सज्जनानां सङ्गः करणीयः दुर्जनानां सङ्गः परिहर्तव्यश्च। कथितमपि-

कीटोऽपि सुमनः सङ्गादारोहति सतां शिरः।
अश्मापि याति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः॥

शब्दार्थ :
तत्र-वहां-There; व्याधस्य-बहेलिया के-Hunter; निवसति-रहता है-Lives; अहर्निशं-दिन-रात-Day-night; हिसात्मिकां-हिसात्मक-Violent; मारयतु-कुट्टयतु-मारो कूटो-Kill beat; निवसामि-रहता हूँ-Live; खलु-निश्चित ही-Definite also; शुकस्य-तोते का-Parrot; गुणश्च-और गुण-And quality; उत्पन्नाः -उत्पन्न-Born; कीटोऽपि-कीड़ा भी-Play also; अश्मापि-पत्थर भी-Stone also.

हिन्दी अर्थ :
हे महात्मन! यहाँ शिकारियों का ग्राम है। वह तोता शिकारी के घर में निवास करता है। शिकारी रात-दिन मारने-काटने की हिंसात्मक बात करता रहता है। वह तोता भी उनके कार्य को देखता है और उनके वार्तालाप को सुनता है अतः मारो-कूटो बोलता रहता है। मैं मुनि के आश्रम में रहता हूँ। वहाँ मुनिगण ईश्वर की पूजा-आराधना-कीर्तन करते रहते हैं। मैं सभी कार्यों को देखता हूँ और उसी अनुरूप आचरण करता हूँ। इसलिए मैं ‘सीताराम’ शब्द का उच्चारण करता हूँ। इसलिए हे मुनिवर! इसमें उसका कोई दोष नहीं और मेरा कोई गुण नहीं है क्योंकि दोष और गुण संगति में उत्पन्न होते हैं।

पहले महर्षि वाल्मीकि सप्तर्षियों के सत्संग के प्रभाव से महान तपस्वी हुए। उसके बाद उन्होंने रामायण महाकाव्य की रचना की। महान लोगों के संसर्ग में पत्थर भी देवत्व को प्राप्त होता है। पुरुषों के संसर्ग से चींटी भी भगवान शिव के शीर्ष पर चढ़कर चन्द्र बिम्ब का चुम्बन करती है। अतः सज्जन पुरुषों की संगति करना चाहिए, दुजों की संगति छोड़नी चाहिए। कहा भी है-

कीड़ा भी फूलों के साथ रहकर सज्जनों के सिर पर धारण कर लिया जाता है, पत्थर भी देवत्व को प्राप्त हो जाता है और पूज्य होकर प्रतिष्ठित होता है।

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 10 नीतिश्लोकाः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 10 नीतिश्लोकाः (पद्यम्)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 10 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपेदन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) जनपदस्यार्थे कं त्यजत्? (जनपद के लिए किसका त्याग कर देना चाहिए?)
उत्तर:
ग्राम। (ग्राम का)।

(ख) विपदि किम् आवश्यकम्? (विपत्ति में क्या आवश्यक है?)
उत्तर:
धैर्यं। (धैर्य का)।

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(ग) मित्राणि रिपवः च कथं जायन्ते? (मित्र और शत्रु किससे उत्पन्न होते हैं?)
उत्तर:
व्यवहारेण। (व्यवहार द्वारा)।

(घ) सतसङ्गतिः पापं किं करोति? (अच्छी संगति पाप को क्या करती है?)
उत्तर:
अपाकरम्। (दूर करती है)।

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) कस्यार्थे एकं त्यजेत्? (किसके लिए एक का त्याग कर देना चाहिए?)
उत्तर:
कुलस्यार्थे एकं त्येजत्। (कुल के लिए एक का त्याग कर देना चाहिए।)

(ख) सदसि किम् अपेक्षते? (सभा में क्या अच्छा लगता है?)
उत्तर:
सदसि वाक्पटुता अपेक्षते। (सभा में वाणी या चातुर्य अच्छा लगता है।)

(ग) पापात् कः निवारयति? (पाप से निवारण कौन करता है?)
उत्तर:
पापात् सन्मित्रः निवारयति। (पाप से अच्छा मित्र निवारण करता है।)

(घ) धियः जाड्यं का हरतिः? (बुद्धि की जड़ता को कौन दूर करते हैं?)
उत्तर:
धियः जाड्य सतसंगति हरतिः। (बुद्धि की जड़ता अच्छी संगति से दूर होती है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) महात्मनां किं किं प्रकृतिसिद्धं भवति? (महात्मा जन कौन-कौन से कार्यों में सिद्ध होते हैं?)
उत्तर:
महात्मनां विपदि धैर्यम्, अभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता आदयः प्रकृतिसिद्धं भवति। (महात्माजन विपत्ति में धैर्य, अभ्युदय में क्षमा, सभा में वाक्पटुता आदि कार्यों के लिए सिद्ध होते हैं।)

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(ख) बान्धवः कः अस्ति? (बान्धव कौन हैं?)
उत्तर:
उत्सवे व्यसने, दुर्भिक्षे, राष्ट्रविप्लवे, राजद्वारे, श्मशाने च यः तिष्ठति सः बान्धवः अस्ति। (उत्सव में, आपत्ति में, दुर्भिक्ष में, राष्ट्र में विद्रोह होने पर, राज-दरबार और श्मशान में जो साथ देता है वही बन्धु है।)

(ग) सन्मित्रलक्षणं किम्? (अच्छे मित्र का क्या लक्षण है?)
उत्तर:
सन्मित्रलक्षणं पापात् निवारयति, हिताय योजयति, गुह्यं निगृहति, गुणान प्रकटी करोति च। (अच्छा मित्र पाप से रोकता है हित में लगाता है, गुप्त बात को छुपाता है और गुणों को प्रकट करता है।)

(घ) सत्सङ्गतिः पुंसां किं करोति? (अच्छी संगति पुरुष का क्या करती है?)
उत्तर:
सत्सङ्गतिः पुंसां धियः जाड्यं हरति, वाचि सत्यं सिञ्चयति, भावोन्नति दिशति आदयः करोति। (अच्छी संगति पुरुष की जड़ता को दूर करती है, वाणी को सत्य से सींचती है, भावों में उन्नति देती है, इस तरह से अनेक कार्य करती है।)

प्रश्न 4.
रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) व्यवहारेण हि मित्राणि जायन्ते रिपवस्तथा।
(ख) आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्
(ग) गुह्यं निगृहति गुणान्प्रकटी करोति।
(घ) दिक्षु तनोति कीर्तिम्।।
(ङ) राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति सः बान्धवः।

प्रश्न 5.
युग्ममेलनं कुरुत-
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 10 नीतिश्लोका img-1

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
यथा अभ्यागतः सर्वस्य गुरुः भवति। – (आम्)
दीर्घसूत्रता उत्तमः गुणः – (न)
(क) यत्र सम्मानः न भवति तत्र गन्तव्यम्।
(ख) आलस्यं परिवर्जनीयम्।
(ग) दुर्जने विश्वासः करणीय।
(घ) सत्सङ्गतिः मानोन्नतिं दिशति।
(ङ) सन्मित्रं गुणन्प्रकटीकरोति।
उत्तर:
(क) (न)
(ख) (आम्)
(ग) (न)
(घ) (आम्)
(ङ) (आम्)

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प्रश्न 7.
श्लोकपूर्तिं कुरुत-
(क) षडदोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रांतन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।
(ख) उत्सवे व्यसने चैव, दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः॥

प्रश्न 8.
सन्धिविच्छेदं कुरुत-
उदाहरणं यथा-
सर्वस्याभ्यागतः सर्वस्य + अभ्यागतः
विद्यागमः विद्या + आगमः
पतिरेकः पतिः + एकः
सन्मित्रम् सत् + मित्रम्
कश्चित् कः + चित्
पापान्निवारयति पापात् + निवारयति।

प्रश्न 9.
उदाहरणानुसारं शब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 10 नीतिश्लोका img-2

प्रश्न 10.
निम्नलिखित वाक्यानि शुद्धं कुरुत(क) ते पठति।
(ख) सः गच्छसि।
(ग) त्वं खेलामि।
(घ) यूयं लिखन्ति।
(ङ) अहं वदति।
(च) वयं चलामि।
उत्तर:
(क) ते पठन्ति।
(ख) सः गच्छति।
(ग) त्वं खेलसि।
(घ) यूयं लिखथ।
(ङ) अहं वदामि।
(च) वयं चलामः।

प्रश्न 11.
निम्नलिखितक्रियापदानि भूतकाले परिवर्तयत
उदाहरणम् :
करोति – अकरोत्।
तनोति – अतनोत्।
जहाति – अजहत्।
ददाति – अददत्।
सिञ्चति – असिञ्चत्।
दिशति – अदिशत्।
तिष्ठति – अतिष्ठत्।

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नीतिश्लोकाः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य :

सव्यवहार की शिक्षा ही नीति है। विद्वानों ने श्लोक के माध्यम से नियम अनुशासन, सदाचार, स्वास्थ्य-रक्षण, समाज-रक्षण, देश-रक्षण की शिक्षा प्रदान किया है। ऐसे श्लोक ही नीति श्लोक कहे जाते हैं। विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिए ही यहाँ नीति श्लोक प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

नीतिश्लोकाः पाठ का हिन्दी अर्थ

1. यस्मिन्देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः।
न च विद्यागमः कश्चित् तं देशं परिवर्जयेत्॥

शब्दार्थ :
बान्धव-कुटुम्बी जन-Family person; यस्मिन्देशे-जिस देश में-In that country.

हिन्दी अर्थ :
जिस देश में सम्मान न हो, आजीविका का साधन न हो, जहाँ स्वजन न हों और न ही विद्यार्जन की व्यवस्था हो, ऐसे देश का परित्याग कर देना चाहिए।

2. षड्दोषाः पुरुषेणेह हातव्य भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता॥

शब्दार्य :
षड्दोषा-छह प्रकार के दोष-six types of default; हातव्या-छोड़ देना चाहिए-Should leave; दीर्घसूत्रता-दीर्घसूत्रता-Long theory.

हिन्दी अर्थ :
पुरुष के अपने कल्याण के लिए इस छः दोषों को छोड़ देना चाहिए-निद्रा, अर्धनिद्रा भय, क्रोध, आलस्य एवं किसी भी कार्य को देर से करना।

3. त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥

शब्दार्थ :
कुलस्यार्थे-वंश के लिए-Family race; आत्मार्थे-परम तत्त्व के लिए-for great element.

हिन्दी अर्थ :
कुल (खानदान) के लिए एक व्यक्ति का त्याग कर देना चाहिए। गाँव के लिए कुल को त्याग देना चाहिए, जनपद के लिए ग्राम का त्याग कर देना चाहिए। परम तत्त्व की प्राप्ति के लिए संसार का त्याग कर देना चाहिए।

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4. विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा,
सदसि बाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशास चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ,
प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।।

शब्दार्थ:
विपदि-आपत्ति में-In object; अभ्युदये-उन्नति में-In progress; वाक्पटुता-वाणी की चतुरता-Clever of voice; श्रुतौ-वेद शास्त्र-Medical books.

हिन्दी अर्थ :
विपत्ति में धैर्य रखना, अभ्युदय में क्षमा भाव, किसी सभा आदि में वाक्पटुता, युद्ध के समय वीरता, यश में रुचि, वेद-शास्त्र के अध्ययन का व्यसनमहात्माओं की सहज प्रवृत्ति होती है।

5. न कश्चित्कस्यचिन्मित्रं न कश्चित्कस्यचिद्रिपुः।
व्यवहारेण हि मित्राणि जायन्ते रिपवस्तथा॥

शब्दार्थ :
कस्यचित्-किसी का-any other; जायन्ते-हो जाते हैं-to become.

हिन्दी अर्थ :
न कोई किसी का मित्र होता है और न ही कोई किसी का शत्रु। व्यवहार करने पर ही शत्रु एवं मित्र की पहचान हो पाती है।

6. उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः॥

शब्दार्थ :
राष्ट्रविप्लवे-राष्ट्र में विद्रोह होने पर-On the time of civil war; व्यसने-आपत्ति में-in objective; दुर्भिक्ष-अकाल में-in bad time.

हिन्दी अर्थ :
उत्सव में, व्यसन में, अकाल में, राष्ट्र में विद्रोह होने पर राजा के दरबार में और श्मशान यात्रा में जो साथी होता है, वही बंधु कहा जाता है।

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7. दुर्जनः प्रियवादी च नैतद्विश्वासकारणम्।
मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदि हालाहलं विषम्॥

शब्दार्थ :
प्रियवादी-प्रिय बोलने वाला-Sweet tongue; जिह्वाग्रे-जिवा के अन्त भाग में-tip of tounge; तिष्ठति-रहता है-Lives; हालाहलं-विष-Position.

हिन्दी अर्थ :
दुर्जन व्यक्ति का प्रिय बोलना विश्वास का कारण नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे लोगों की जिहा के अग्रभाग पर मधु होता है किन्तु हृदय में हलाहल विष भरा होता है।

8. पापान्निवारयति योजयते हिताय,
गुहयं निगृहति गुणान्प्रकटी करोति।
आपदगतं च न जहाति ददाति काले,
सन्मित्र लक्षणमिदं प्रवदन्तिं सन्तः।।

शब्दार्थ :
निवारयति-दूर करता है-far always; हिताय-हित के लिए-for benefit; योजयते-जोड़ता है-to connect; निगृहति-छिपाता है-Hidden; प्रकटी करोति-प्रकट करता है-Appears; आपद्गतं-विपत्ति काल में-In bad time; ददाति-देता है-gives; इदं-इस तरह-this types; सन्मित्रलक्षण-अच्छे मित्र के द्वारा-for good friends; प्रवदन्ति-कहते हैं-Says.

हिन्दी अर्थ :
संतों ने सुहृद (अच्छे मित्र) के लक्षण इस प्रकार कहे हैं-जो पापों का निवारण करने वाला हो, जो सर्वदा हित करने वाला हो, गोपनीयता को नष्ट नहीं करता, सदैव सद्गुणों को ही प्रकट करता है, आपत्ति-विपत्ति में साथ नहीं छोड़ता-वही सच्चा मित्र होता है।

9. जाड्यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यम्
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिम्।
सत्सङ्गतिः कथय किन्न करोति पुंसाम्॥

शब्दार्थ :
धियः जाड्यं-बुद्धि की जड़ता को-rust of wisdom; अपाकरोति-दूर करती है-for always; प्रसादयति-प्रसन्न करती है-to happy; सिंचति-सींचती है-to waters; मानोन्नति-मान और उन्नति-honour and development; दिशति-देती है-gives; तनोति-चलाती है-runs; कथन-कहिए-Say; सत्सङ्गति-अच्छी संगति-good company; किं न-क्या नहीं-what is not; करोति-करती है-does.

हिन्दी अर्थ :
सद् संगति मस्तिष्क की जड़ता को दूर करती है, वाणी सत्य का अनुसरण करती है जिससे सम्मान यश मिलता है, उन्नति होती है, पाप नष्ट होता है, मन (सदैव) प्रसन्न रहता है और दिग्-दिगंत तक कीर्ति फैलती है। इस तरह सत्संगति मनुष्य को सब कुछ प्रदान करती है।

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