MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण

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वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण NCERT पाठ्यपुस्तक के अध्याय में पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
चित्र 6.1 (a) से (f) में वर्णित स्थितियों के लिए प्रेरित धारा की दिशा की प्रागुक्ति (predict) कीजिए।
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उत्तर :
(a) लेन्ज के नियम के अनुसार कुंडली का चुम्बक के दक्षिण ध्रुव के सामने वाला पृष्ठ, चुम्बक की गति का विरोध करेगा अर्थात् यह पृष्ठ दक्षिणी ध्रुव बनेगा। इसके लिए प्रेरित धारा qrpq मार्ग का अनुसरण करेगी।

(b) कुंडली pq का, चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव के सामने का पृष्ठ, दक्षिणी ध्रुव के पास आने का विरोध करेगा अर्थात् यह सिरा दक्षिणी ध्रुव बनेगा। इसके लिए प्रेरित धारा prqp मार्ग का अनुसरण करेगी। कुंडली xy का, चुम्बक के उत्तरी ध्रुव के सामने वाला पृष्ठ, उत्तरी ध्रुव के दूर जाने का विरोध करेगा अर्थात् दक्षिणी ध्रुव बनेगा। इसके लिए कुंडली
xy में धारा xyzx मार्ग का अनुसरण करेगी।

(c) जब प्रथम कुंडली से जुड़ी कुंजी दबाते हैं तो इसमें धारा शून्य से महत्तम मान की ओर बढ़ती है। इस बढ़ती हुई धारा के कारण समीपस्थ कुंडली में विपरीत दिशा में धारा प्रेरित होती है। __ अतः समीपस्थ कुंडली में धारा xyzx मार्ग का अनुसरण करेगी।

(d) इंगित दिशा में धारा नियन्त्रक का समंजन बदलने पर परिपथ का प्रतिरोध घटेगा तथा कुंडली में धारा बढ़ेगी। यह बढ़ती हुई धारा समीपस्थ कुंडली में विपरीत दिशा में धारा प्रेरित करेगी। अतः प्रेरित धारा xzyx मार्ग का अनुसरण करेगी।

(e) लेन्ज के नियम के अनुसार कुंजी छोड़ने पर दूसरी कुंडली में धारा की दिशा वही होगी जो कि कुंजी छोड़ने से पूर्व प्रथम कुंडली में थी। अतः प्रेरित धारा xryx मार्ग का अनुसरण करेगी।

(f) तार में प्रवाहित धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ, लूप के तल के समान्तर हैं। अत: धारा परिवर्तन के कारण लूप से गुजरने वाले फ्लक्स में कोई परिवर्तन नहीं होगा, अत: लूप में कोई धारा प्रेरित नहीं होगी।

प्रश्न 2.
चित्र 6.2 में वर्णित स्थितियों के लिए लेन्ज के नियम का उपयोग करते हुए प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात कीजिए।
(a) जब अनियमित आकार का तार वृत्ताकार लूप में बदल रहा हो;
(b) जब एक वृत्ताकार लूप एक सीधे तार में विरूपित किया जा रहा हो।.
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उत्तर :
(a) क्रॉस (x) द्वारा एक ऐसे चुम्बकीय क्षेत्र को प्रदर्शित किया गया है जिसकी दिशा कागज के तल के लम्बवत् भीतर की ओर है अनियमित आकार के लूप को वृत्तीय रूप में खींचने पर इससे गुजरने वाला फ्लक्स बढ़ेगा। अत: लूप में प्रेरित धारा इस प्रकार की होगी कि वह निम्नगामी फ्लक्स को बढ़ने से रोकेगी। प्रेरित धारा कागज के तल के लम्बवत् ऊपर की ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करेगी। अत: धारा की दिशा adcba मार्ग का अनुसरण करेगी।

(b) चुम्बकीय क्षेत्र कागज के तल के लम्बवत् बाहर की ओर है। लूप के आकार को बदलने पर उससे गुजरने वाला ऊर्ध्वमुखी फ्लक्स घटेगा। अत: लूप में प्रेरित धारा ऊर्ध्वमुखी चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करेगी। इसके लिए धारा a’ d’ c b’a’ मार्ग का अनुसरण करेगी।

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प्रश्न 3.
एक लम्बी परिनालिका के इकाई सेन्टीमीटर लम्बाई में 15 फेरे हैं। उसके अन्दर 2.0 सेमी का एक छोटा-सा लूप परिनालिका की अक्ष के लम्बवत् रखा गया है। यदि परिनालिका में बहने वाली धारा का मान 0.1सेकण्ड में 2.0 ऐम्पियर से 4.0 ऐम्पियर कर दिया जाए तो धारा परिवर्तन के समय प्रेरित विद्युत वाहक बल कितना होगा?
हल :
परिनालिका में फेरों की संख्या N = 15, लम्बाई 1 = 1 सेमी = 0.01 मीटर, i1 = 2.0 ऐम्पियर, i2 = 4.0 ऐम्पियर, ∆t = 0.1 सेकण्ड, लूप का क्षेत्रफल A = 2.0 सेमी2 = 2.0 × 10-4 मीटर2
लूप में प्रेरित वैद्युत वाहक बल
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जबकि परिनालिका के अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन
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प्रश्न 4.
एक आयताकार लूप जिसकी भुजाएँ 8 सेमी एवं 2 सेमी हैं, एक स्थान पर थोड़ा कटा हुआ है। यह लूप अपने तल के अभिलम्बवत् 0.3 टेस्ला के एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर की ओर निकल रहा है। यदि लूप के बाहर निकलने का वेग 1 सेमी सेकण्ड-1 है तो कटे भाग के सिरों पर उत्पन्न वैद्युत वाहक बल कितना होगा, जब लूप की गति अभिलम्बवत् हो (a) लूप की लम्बी भुजा के, (b) लूप की छोटी भुजा के। प्रत्येक स्थिति में उत्पन्न प्रेरित वोल्टता कितने समय तक टिकेगी?
हल :
लम्बी भुजा की लम्बाई l1 = 0.08 मीटर, छोटी भुजा की लम्बाई l2 = 0.02 मीटर
B= 0.3 टेस्ला, υ = 1 सेमी सेकण्ड-1 = 0.01 मीटर सेकण्ड-1
(a) जब लूप लम्बी भुजा के लम्बवत् दिशा में गति कर रहा है तो वैद्युत वाहक बल इसी भुजा के सिरों के बीच उत्पन्न होगा।
∴ वैद्युत वाहक बल e = Bυl1 = 0.3 × 0.01 × 0.08
= 2.4 × 10-4 वोल्ट = 0.24 मिलीवोल्ट
यह वैद्युत वाहक बल तभी तक प्रेरित रहेगा जब तक कि लूप पूर्णतः चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर नहीं निकल जाता। लगा समय
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(b) इस बार वैद्युत वाहक बल छोटी भुजा के सिरों के बीच प्रेरित होगा।
∴ वैद्युत वाहक बल e = Bυl2 = 0.3x 0.01 x 0.02
= 0.6 × 10-4 वोल्ट
= 0.06 मिलीवोल्ट।
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= 8 सेकण्ड।

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प्रश्न 5.
1.0 मीटर लम्बी धातु की छड़ उसके एक सिरे से जाने वाले अभिलम्बवत् अक्ष के परितः 400 रेडियन सेकण्ड-1 की कोणीय आवृत्ति से घूर्णन कर रही है। छड़ का दूसरा सिरा एक धात्विक वलय से सम्पर्कित है। अक्ष के अनुदिश सभी जगह 0.5 टेस्ला का एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र उपस्थित है। वलय तथा अक्ष के बीच स्थापित वैद्युत वाहक बल की गणना कीजिए।
हल :
छड़ की लम्बाई l = 1.0 मीटर, ω = 400 रेंडियन सेकण्ड-1, B= 0.5 टेस्ला
अक्ष O से x दूरी पर स्थित छड़ के अल्पशि PQ = dx पर विचार कीजिए।

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इस अल्पांश का रेखीय वेग υ = xω
∴ इस अल्पांश का विभवान्तर
de = Bυdx = Bxω dx
∴ वलय तथा अक्ष के बीच प्रेरित वैद्युत वाहक बल
e = छड़ के सिरों O तथा A के बीच प्रेरित वैद्युत वाहक बल
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प्रश्न 6.
एक वृत्ताकार कुंडली जिसकी त्रिज्या 8.0 सेमी तथा फेरों की संख्या 20 है अपने ऊर्ध्वाधर व्यास के परितः 50 रेडियन सेकण्ड-1 की कोणीय आवृत्ति से 3.0 × 10-2 टेस्ला के एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में घूम रही है। कुंडली में उत्पन्न अधिकतम तथा औसत प्रेरित वैद्युत वाहक बल का मान ज्ञात कीजिए। यदि कुंडली 10Ω प्रतिरोध का एक बन्द लूप बनाए तो कुंडली में धारा के अधिकतम मान की गणना कीजिए। जूल ऊष्मन के कारण क्षयित औसत शक्ति की गणना कीजिए। यह शक्ति कहाँ से प्राप्त होती है?
हल :
त्रिज्या r = 0.08 मीटर, N = 20, ω = 50 रेडियन सेकण्ड, B= 3.0 × 10-2 टेस्ला, emax = ?,
e = ?
यदि R= 10Ω तब imax= ?
औसत शक्ति क्षय P = ?
जब कुंडली चुम्बकीय क्षेत्र में घूमती है तो उसके सिरों के बीच प्रत्यावर्ती वैद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। वै० वा० बल का महत्तम मान
emax = NBAω
= 20 × 3.0 × 10-2 × [r × (0.08)2] × 50
⇒ emax = 0.603 वोल्ट।
जबकि एक पूर्ण चक्र के लिए प्रत्यावर्ती वैद्युत वाहक बल का औसत मान शून्य होगा।
⇒ e = 0
परिपथ में महत्तम धारा
\(i_{\max }=\frac{e_{\max }}{R}=\frac{0.603}{10}\)
= 0.0603 ऐम्पियर।
परिपथ में औसत शक्ति क्षय
P = \(\frac{1}{2}\) × emax × imax =x emax ximar
= \(\frac{1}{2}\) × 0.603 × 0.0603
= 0.018 वाट।
यह शक्ति कुंडली को घुमाने वाले बाह्य स्रोत के द्वारा किए गए कार्य से प्राप्त होती है।

प्रश्न 7.
पूर्व से पश्चिम दिशा में विस्तृत एक 10 मीटर लम्बा क्षैतिज सीधा तार 0.30 × 10-4 वेबर मीटर-2 तीव्रता वाले पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज घटक के लम्बवत् 5.0 मीटर सेकण्ड-1 की चाल से गिर रहा है।
(a) तार में प्रेरित वैद्युत वाहक बल का तात्क्षणिक मान क्या होगा?
(b) वैद्युत वाहक बल की दिशा क्या है?
(c) तार का कौन-सा सिरा उच्च विद्युत विभव पर है?
हल :
तार की लम्बाई l = 10 मीटर, υ = 5.0 मीटर सेकण्ड-1,
चुम्बकीय क्षेत्र BH = 0.30 × 10-4 वेबर मीटर-2

(a) तार में प्रेरत वैद्युत वाहक बल का तात्क्षणिक मान
e = BHU = 0.30 × 10-4 × 5.0 × 10
= 1.5 × 10-3 वोल्ट
= 1.5 मिलीवोल्ट।
(b) फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम से, वैद्युत वाहक बल की दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होगी।
(c) यह तार जब वैद्युत वाहक बल के स्रोत की भाँति कार्य करेगा तो पूर्वी सिरा उच्च विद्युत विभव पर होगा।

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प्रश्न 8.
किसी परिपथ में 0.1 सेकण्ड में धारा 5.0 ऐम्पियर से 0.0 ऐम्पियर तक गिरती है। यदि औसत प्रेरित वैद्युत वाहक बल 200 वोल्ट है तो परिपथ में स्वप्रेरकत्व का आकलन कीजिए।
हल :
i1 = 5.0 ऐम्पियर, i2 = 0.0 ऐम्पयर, ∆t = 0.1 सेकण्ड
|e | = 200 वोल्ट, स्वप्रेरकत्व L = ?
सूत्र | e |= \(L \frac{d i}{d t}\)
स्वप्रेरकत्व \(L=\frac{|e|}{d i / d t}=\frac{200}{(5.0-0.0) / 0.1}=\frac{200 \times 0.1}{5.0} \) हेनरी

प्रश्न 9.
पास-पास रखे कुंडलियों के एक युग्म का अन्योन्य प्रेरकत्व 1.5 हेनरी है। यदि एक कुंडली में 0.5 सेकण्ड में धारा 0 से 20 ऐम्पियर परिवर्तित हो तो दूसरी कुंडली की फ्लक्स बंधता में कितना परिवर्तन होगा?
हल :
दिया है : M = 1.5 हेनरी, ∆i = 20 ऐम्पियर – 0 ऐम्पियर = 20 ऐम्पियर, ∆t = 0.5 सेकण्ड दूसरी कुंडली में फ्लक्स बन्धता में परिवर्तन
∆Φ = M∆i = 1.5 × 20 = 30 वेबर।

प्रश्न 10.
एक जेट प्लेन पश्चिम की ओर 1800 किमी/घण्टा वेग से गतिमान है। प्लेन के पंख 25 मीटर लम्बे हैं। इनके सिरों पर कितना विभवान्तर उत्पन्न होगा? पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का मान उस स्थान पर 5 × 10-4 टेस्ला तथा नति कोण (dip angle) 30° है।
हल :
दिया है : वेग υ = 1800 किमी/घण्टा = 1800 × \(\frac{5}{18}\)
= 500 मीटर सेकण्ड-1
पंखों की लम्बाई 1 = 25 मीटर,
B= 5 × 10-4 टेस्ला, नति कोण δ = 30°
∵ प्लेन क्षैतिज दिशा में गतिमान है, अत: प्लेन के पंख पृथ्वी के क्षेत्र के ऊर्ध्व घटक को काटेंगे।
ऊर्ध्व घटक BV = B sin δ = 5 × 10-4 × \(\frac{1}{2}\) = 2.5 × 10-4 टेस्ला
∴ पंखों के सिरों के बीच प्रेरित वैद्युत वाहक बल
e = BVυl = 2.5 × 10-4 × 500 × 25
= 3.125 वोल्ट
= 3.1 वोल्ट।

प्रश्न 11.
मान लीजिए कि प्रश्न 4 में उल्लिखित लूप स्थिर है किन्तु चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने वाले वैद्युत चुम्बक में धारा का मान कम किया जाता है जिससे चुम्बकीय क्षेत्र का मान अपने प्रारम्भिक मान 0.3 टेस्ला से 0.02 टेस्ला सेकण्ड-1 की दर से घटता है। अब यदि लूप का कटा भाग जोड़ दें जिससे प्राप्त बन्द लूप का प्रतिरोध 1.6Ω हो तो इस लूप में ऊष्मन के रूप में शक्ति ह्रास क्या है? इस शक्ति का स्रोत क्या है?
हल :
लूप का क्षेत्रफल A = 8 × 2 सेमी2 = 16 × 10-4 मीटर2
\(\frac{d B}{d t}\) = 0.02 टेस्ला सेकण्ड-1, R = 1.6Ω
प्रेरित वैद्युत वाहक बल \(e=\frac{d \phi}{d t}=\frac{d}{d t}(B A)=A \frac{d B}{d t}\)

⇒ e = 16 × 10-4 × 0.02
= 3.2 × 10-5 वोल्ट।
∴ प्रेरित धारा: \(\frac{e}{R}=\frac{3.2 \times 10^{-5}}{1.6}\)
= 2.0 × 10-5 ऐम्पियर।
∴ शक्ति ह्रास P = e × i
= 3.2 × 10-5 × 2.0 × 10-5
= 6.4 × 10-10 वाट।
यह शक्ति, चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन करने वाले बाह्य स्रोत द्वारा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 12.
12 सेमी भुजा वाला वर्गाकार लूप जिसकी भुजाएँ x एवं Y अक्षों के समान्तर हैं, –दिशा में 8 सेमी सेकण्ड-1 की गति से चलाया जाता है। लूप तथा उसकी गति का परिवेश धनात्मक –दिशा के चुम्बकीय क्षेत्र का है। चुम्बकीय क्षेत्र न तो एकसमान है और न ही समय के साथ नियत है। इस क्षेत्र की ऋणात्मक दिशा में प्रवणता 10-3 टेस्ला सेकण्ड-1 है (अर्थात् ऋणात्मक x-अक्ष की दिशा में इकाई सेन्टीमीटर दूरी पर क्षेत्र के मान में 10-3 टेस्ला सेकण्ड-1 की वृद्धि होती है) तथा क्षेत्र के मान में 10-3 टेस्ला सेकण्ड-1 की दर से कमी भी हो रही है। यदि कुंडली का प्रतिरोध 4.50 मिलीओम हो तो प्रेरित धारा का परिमाण एवं दिशा ज्ञात कीजिए।
हल :
लूप का प्रतिरोध R = 4.50 × 10-3Ω, लूप की भुजा a = 12 सेमी
\(\frac{\partial B}{\partial x}\) = – 10-3 टेस्ला मीटर-1 = – 10-1 टेस्ला मीटर-1
= – 0.1 टेस्ला मीटर-1 [X-अक्ष की ऋणात्मक दिशा में]
thada \(\frac{\partial x}{\partial t}\) = 8 सेमी सेकण्ड-1 = 0.08 मीटर सेकण्ड-1.
\(\frac{\partial B}{\partial t}\) = – 10-3 टेस्ला सेकण्ड-1
\(\frac{\partial B}{\partial x}\) तथा \(\frac{\partial B}{\partial t}\) दोनों का चिह्न ऋणात्मक लिया गया है क्योंकि x तथा t दोनों के बढ़ने के साथ चुम्बकीय क्षेत्र घट रहा है।
माना लूप की भुजा की लम्बाई ‘a’ है। x दूरी पर स्थित dx चौड़ाई की एक पट्टी ४ पर विचार कीजिए।
माना इस पट्टी पर चुम्बकीय क्षेत्र B(x, t) है तथा इस पट्टी का क्षेत्रफल dA = adx है।
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∴ इस पट्टी से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स
dΦ = BdA = B(x, t) adx
∴ लूप से बद्ध कुल फलक्स
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धारा की दिशा ऐसी होगी जो z-दिशा में चुम्बकीय फ्लक्स के घटने का विरोध करेगी। इसके लिए धारी वामावर्त दिशा में प्रवाहित होगी।

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प्रश्न 13.
एक शक्तिशाली लाउडस्पीकर के चुम्बक के ध्रुवों के बीच चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता के परिमाण का मापन किया जाना है। इस हेतु एक छोटी चपटी 2 सेमी क्षेत्रफल की अन्वेषी कुंडली (search coil) का प्रयोग किया गया है। इस कुंडली में पास-पास लिपंटे 25 फेरे हैं तथा इसे चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् व्यवस्थित किया गया है और तब इसे द्रुत गति से क्षेत्र के बाहर निकाला जाता है। तुल्यतः एक अन्य विधि में अन्वेषी कुंडली को 90° से तेजी से घुमा देते हैं जिससे कुंडली का तल चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाए। इन दोनों घटनाओं में कुल 7.5 मिलीकूलॉम आवेश का प्रवाह होता है (जिसे परिपथ में प्रक्षेप धारामापी (ballistic galvanometer) लगाकर ज्ञात किया जा सकता है)। कुंडली तथा धारामापी का संयुक्त प्रतिरोध 0.502 है। चुम्बक की क्षेत्र की तीव्रता का आकलन कीजिए। •
हल :
A = 2 × 10-4 मीटर2, N= 25 फेरे, प्रेरित आवेश q = 7.5×10-3 कूलॉम
परिपथ का प्रतिरोध R = 0.50Ω
माना चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता = B.
प्रारम्भिक फ्लक्स Φ1 = NBA cos 0° = NBA
अन्तिम फ्लक्स Φ2 = 0
∴ प्रेरित वैद्युत वाहक बल e = \(-\frac{d \phi}{d t}\)
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प्रश्न 14.
चित्र 6.5 में एक धातु की छड़ PQ को दर्शाया गया है जो पटरियों AB पर रखी हैं तथा एक स्थायी चुम्बक के ध्रुवों के मध्य स्थित है। पटरियाँ, छड़ एवं चुम्बकीय क्षेत्र परस्पर अभिलम्बवत् दिशाओं में हैं। एक गैल्वेनोमीटर (धारामापी) G को पटरियों से एक स्विच K की सहायता से संयोजित किया गया है। छड़ की लम्बाई = 15 सेमी, B= 0.50 टेस्ला तथा पटरियों, छड़ तथा धारामापी से बने बन्द लूप का प्रतिरोध = 9.0 मिली ओम है। . क्षेत्र को एकसमान मान लें।
(a) माना कुंजी K खुली (open) है तथा छड़ 12 सेमी सेकण्ड -1की चाल से दर्शायी गई दिशा में गतिमान है। प्रेरित वैद्युत वाहक बल का मान एवं ध्रुवणता (polarity) बताइए।
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(b) क्या कुंजी K खुली होने पर छड़ के सिरों पर आवेश का आधिक्य हो जाएगा? क्या होगा यदि कुंजी K बंद (close) कर दी जाए।
(c) जब कुंजी K खुली हो तथा छड़ एकसमान वेग से गति में हो तब भी इलेक्ट्रॉनों पर कोई परिणामी बल कार्य नहीं करता यद्यपि उन पर छड़ की गति के कारण चुम्बकीय बल कार्य करता है। कारण स्पष्ट कीजिए।
(d) कुंजी बन्द होने की स्थिति में छड़ पर लगने वाले अवमन्दन बल का मान क्या होगा?
(e) कुंजी बन्द होने की स्थिति में छड़ को उसी चाल (= 12 सेमी सेकण्ड-1) से चलाने हेतु कितनी शक्ति (बाह्य कारक के लिए) की आवश्यकता होगी?
(f) बन्द परिपथ में कितनी शक्ति का ऊष्मा के रूप में क्षय होगा? इस शक्ति का स्रोत क्या है?
(g) गतिमान छड़ में उत्पन्न वैद्युत वाहक बल का मान क्या होगा यदि चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पटरियों के लम्बवत् होने की बजाय उनके समान्तर हो?
हल :
दिया है : B= 0.50 टेस्ला , l = 0.15 मीटर, υ = 0.12 सेमी सेकण्ड-1, R= 9.0 × 10-3
(a) छड़ में प्रेरित वैद्युत वाहक बल e = Bυl = 0.50 × 0.12 × 0.15
= 9 × 10-3 वोल्ट = 9.0 मिलीवोल्ट।
छड़ का सिरा P धनात्मक तथा Q ऋणात्मक होगा।

(b) हाँ, छड़ के Q सिरे पर इलेक्ट्रॉन एकत्र हो जाएँगे जबकि P सिरे पर धनावेश की अधिकता हो जाएगी।
यदि कुंजी K को बन्द कर दिया जाए तो Q सिरे पर एकत्र होने वाले इलेक्ट्रॉन बन्द परिपथ से होते हुए (G से होकर) सिरे P की ओर गति करने लगेंगे। इस प्रकार परिपथ में स्थायी धारा स्थापित हो जाएगी।
(c) जब कुंजी K खुली है तो P सिरा धनात्मक व Q सिरा ऋणात्मक हो जाता है। इससे छड़ के भीतर सिरे P से सिरे Q की ओर एक वैद्युत क्षेत्र स्थित हो जाता है। इस क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉनों पर Q से P की ओर वैद्युत बल लगता है जो विपरीत दिष्ट चुम्बकीय बल को सन्तुलित कर लेता है।
इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों पर कोई नेट बल कार्य नहीं करता है।
(d) कुंजी K बन्द होने की स्थिति में छड़ PQ से प्रवाहित धारा
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∴ छड़ PQ पर चुम्बकीय क्षेत्र के कारण कार्य करने वाला अवमन्दन बल
F = il B sin 90° = 1.0 × 0.15 × 0.50 .
= 75 × 10-3 न्यूटन = 0.075 न्यूटन।
(e) कुंजी K के बन्द होने पर छड़ को खींचते रहने के लिए व्यय की जाने वाली शक्ति
P = Fυ = 0.075 × 0.12 = 9 × 10-3 वाट।
(f) परिपथ में व्यय ऊष्मीय शक्ति
. P= i2R = (1.0)2 × 9.0 × 10-3 = 9 × 10-3 वाट।
इस शक्ति का स्रोत छड़ को एकसमान वेग से खींचते रहने के लिए बाह्य स्रोत द्वारा व्यय की गई शक्ति है।
(g) शून्य; इस स्थिति में छड़ चुम्बकीय बल रेखाओं को नहीं काटेगी। अतः कोई वैद्युत वाहक बल प्रेरित नहीं होगा।

प्रश्न 15.
वायु के क्रोड वाली एक परिनालिका में, जिसकी लम्बाई 30 सेमी तथा अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 25 सेमी तथा कुल फेरे 500 हैं, 2.5 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है। धारा को 10-3 सेकण्ड के अल्पकाल में अचानक बन्द कर दिया जाता है। परिपथ में स्विच के खुले सिरों के बीच उत्पन्न औसत वैद्युत वाहक बल का मान क्या होगा? परिनालिका के सिरों पर चुम्बकीय क्षेत्र के परिवर्तन की उपेक्षा कर सकते हैं?
हल :
फेरों की संख्या N = 500, लम्बाई 1 = 0.30 मीटर, क्षेत्रफल A = 25 × 10-4 मीटर2,
i1 = 2.5 ऐम्पियर, i2 = 0, dt = 103 सेकण्ड
अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र को एकसमान मानते हुए प्रारम्भिक चुम्बकीय क्षेत्र \(B_{1}=\mu_{0} \frac{N}{l} i_{1}\)
तथा अन्तिम चुम्बकीय क्षेत्र B_{2}=\mu_{0} \frac{N}{l} i_{2}=0
∴ परिनालिका से बद्ध फ्लक्स बन्धुता में परिवर्तन
dΦ = NB2A – NB1A –
= 0 – 500 × 4 π × 10-7 × \(\frac{500}{0.30}\) × 25 × 10-4
= – 65.45 × 10-4 वेबर
अतः स्विच के सिरों के बीच प्रेरित औसत वैद्युत वाहक बल
\(e=-\frac{d \phi}{d t}=\frac{65.45 \times 10^{-4}}{10^{-3}}\)
= 6.545 वोल्ट = 6.5 वोल्ट।

प्रश्न 16.
(a) चित्र 6.6 में दर्शाए अनुसार एक लम्बे, सीधे तार तथा एक वर्गाकार लूप जिसकी एक भुजा की लम्बाई a है, के लिए अन्योन्य प्रेरकत्व का व्यंजक प्राप्त कीजिए।
(b) अब मान लीजिए कि सीधे तार में 50 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है तथा । लूप एक स्थिर वेग υ = 10 मीटर/सेकण्ड-1 से दायीं ओर को गति कर रहा है। लूप में प्रेरित वैद्युत वाहक बल का परिकलन उस क्षण पर कीजिए जब x= 0.2 मीटर हो। लूप के | लिए a = 0.1 मीटर लीजिए तथा यह मान लीजिए कि उसका प्रतिरोध बहुत अधिक है।
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हल :
(a) यदि अन्योन्य प्रेरण गुणांक M है तो
Φ = Mi
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(b) लूप के भीतर तार से 2 दूरी पर स्थित dz चौड़ाई की एक ऐसी पट्टी पर विचार कीजिए जो कि तार के समान्तर है।
इस पट्टी का क्षेत्रफल dA = adz
तार के कारण पट्टी पर चुम्बकीय क्षेत्र \(B=\frac{\mu_{0}}{2 \pi} \cdot \frac{i}{z}\)
यह क्षेत्र पट्टी के तल के लम्बवत् भीतर की ओर है।
∴ पट्टी से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स dΦ = BdA = \(\frac{\mu_{0}}{2 \pi} \cdot \frac{i}{z}\) .adz
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दिया है : i = 50 ऐम्पियर, υ = 10 मीटर/सेकण्ड-1, e= ?, जबकि x = 0.2 मीटर, a = 0.1 मीटर
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प्रश्न 17.
किसी M द्रव्यमान तथा R त्रिज्या वाले एक पहिये के किनारे (rim) पर एक रैखिक आवेश स्थापित किया गया है जिसकी प्रति इकाई लम्बाई पर आवेश का मान λ है। पहिये के स्पोक (spoke) हल्के एवं कुचालक हैं तथा वह अपनी अक्ष के परितः घर्षण रहित घूर्णन हेतु स्वतन्त्र है जैसा कि चित्र 6.8 में दर्शाया गया है। पहिये के वृत्तीय भाग पर रिम, के अन्दर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र विस्तरित है। इसे इस प्रकार परिभाषित किया गया है –
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण img 26
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण img 19
चुम्बकीय क्षेत्र को अचानक ‘ऑफ’ (switched off) करने के पश्चात्, पहिये का कोणीय वेग ज्ञात कीजिए।
हल :
माना चुम्बकीय क्षेत्र को स्विच ऑफ करने पर E वैद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है (Note) तथा पहिया ω कोणीय वेग से घूमना प्रारम्भ करता है।
यदि पहिये पर कुल आवेश q है तो एक पूर्ण चक्र के दौरान वैद्युत क्षेत्र द्वारा आवेश को घुमाने में कृत कार्य
w = F x s = qE x 2 1 R
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण img 20

वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण NCERT भौतिक विज्ञान प्रश्न प्रदर्शिका (Physics Exemplar Problems) पुस्तक से चयनित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हल

वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
x- y तल के किसी प्रदेश में, जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र \(B=B_{0}(2 \hat{\mathrm{i}}+3 \hat{\mathrm{j}}+4 \hat{\mathrm{k}}) \mathrm{T}\) है, (यहाँ B0 कोई नियतांक है), L मीटर भुजा का कोई वर्ग रखा है। इस वर्ग से गुजने वाले फ्लक्स का परिमाण है –
(a) 2B0L2 wb
(b) 3B0L2 Wb
(c) 4B0L2 Wb
(d) 29 BoL2 Wb.
उत्तर :
(c) 4B0L2 Wb

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प्रश्न 2.
किसी बेलनाकार छड़ चुम्बक को उसके अक्ष के परित: (चित्र 6.9) घूर्णन कराया जाता है। किसी अ क्ष
तार को इसके अक्ष से संयोजित करके इसके बेलनाकार पृष्ठ से किसी सम्पर्क द्वारा स्पर्श कराया गया है, तब –
(a) ऐमीटर A से दिष्ट धारा प्रवाहित होती है।
(b) ऐमीटर A से दिष्ट धारा प्रवाहित नहीं होती है
(c) ऐमीटर A से आवर्तकाल \(T=\frac{2 \pi}{\omega}\) की प्रत्यावर्ती ज्वावक्रीय धारा प्रवाहित होती है ।
(d) ऐमीटर A से काल परिवर्तित धारा प्रवाहित होती है जो ज्यावक्रीय नहीं होती।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण img 21
उत्तर :
(a) ऐमीटर A से दिष्ट धारा प्रवाहित होती है।

प्रश्न 3.
चित्र 6.10 में दर्शाए अनुसार A तथा B दो कुण्डलियाँ हैं। जब A को B की ओर गति कराते हैं तो B में चित्र में दर्शाए अनुसार धारा प्रवाहित होने लगती है तथा A के रुकने पर A धारा प्रवाहित होना बन्द हो जाती है। B में धारा वामावर्ती है। जब A गति करता है तो B को स्थिर रखा जाता है तो हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि –
(a) A में दक्षिणावर्ती दिशा में नियत धारा है
(b) A में परिवर्ती धारा है
(c) A में कोई धारा नहीं है
(d) A में वामावर्ती दिशा में नियत धारा है।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण img 22
उत्तर :
(d) A में वामावर्ती दिशा में नियत धारा है।

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प्रश्न 4.
इस प्रश्न में भी स्थिति प्रश्न 6.10 की भाँति है। अन्तर केवल यह है कि अब कुण्डली A को ऊर्ध्वाधर अक्ष के परितः घूर्णन कराया गया है (चित्र-6.11)। यदि A विराम में है तो B में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती। जब B में (t = 0 पर) धारा वामावर्ती दिशा में है तथा इस क्षण, t = 0, पर कुंडली A दर्शाए अनुसार है तब कुंडली A में प्रवाहित होती है?
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण img 23
(a) दक्षिणावर्त नियत धारा
(b) दक्षिणावर्त परिवर्ती धारा
(c) वामावर्त परिवर्ती धारा
(d) वामावर्त नियत धारा।
उत्तर :
(a) दक्षिणावर्त नियत धारा

प्रश्न 5.
किसी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल A तथा नियत फेरों की संख्या N वाली l लम्बाई की परिनालिका का स्वप्रेरकत्व L बढ़
जाता है –
(a) l तथा A में वृद्धि के साथ
(b) l में कमी तथा A में वृद्धि के साथ
(c) l में वृद्धि तथा A में कमी के साथ
(d) l तथा A में कमी के साथ।
उत्तर :
(b) l में कमी तथा A में वृद्धि के साथ

वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसी ऐसे चुम्बक पर विचार कीजिए जो एक ऑन/ऑफ स्विच लगे तार के लूप से घिरा है। यदि स्विच को ऑफ स्थिति (खुले परिपथ) से ऑन स्थिति (बन्द परिपथ) पर लाया जाए तो क्या परिपथ में कोई धारा प्रवाहित होगी?
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण img 24
उत्तर :
तार का कोई भी भाग गतिमान नहीं है, अत: कोई गतिक वैद्युत वाहक बल उत्पन्न नहीं होगा। चुम्बक भी स्थिर है, अत: समय के साथ चुम्बकीय क्षेत्र परिवर्तित नहीं होगा। अत: कोई प्रेरित वैद्युत वाहक बल भी उत्पन्न नहीं होगा। अत: परिपथ में कोई धारा प्रवाहित नहीं होगी।

प्रश्न 2.
कसकर लिपटी परिनालिका के रूप में कोई तार किसी दिष्ट धारा स्रोत से संयोजित है और इसमें विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। यदि कुंडली को इस प्रकार से खींचा जाए कि सर्पिलाकार कुंडली के क्रमागत लपेटों के बीच अन्तराल हो जाए, तो क्या विद्युत धारा बढ़ेगी अथवा घटेगी, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कुंडली को खींचकर उसके क्रमागत लपेटों के बीच अन्तराल आ जाने पर इन रिक्त स्थानों से चुम्बकीय फ्लक्स की हानि होगी। अत: लेन्ज के नियमानुसार परिनालिका में एक प्रेरित धारा बहेगी जो चुम्बकीय फ्लक्स में कमी का विरोध करेगी। अतः परिनालिका में प्रवाहित विद्यत धारा बढ़ेगी।

प्रश्न 3.
कोई परिनालिका किसी बैटरी से संयोजित है जिसके कारण उसमें अपरिवर्तित धारा प्रवाहित हो रही है। यदि इस परिनालिका के भीतर कोई लोह क्रोड रख दिया जाए तो विद्युत धारा घटेगी अथवा बढ़ेगी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
परिनालिका के भीतर कोई लौह क्रोड रख देने पर चुम्बकीय क्षेत्र में वृद्धि के कारण चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्धि हो जाएगी। अत: लेन्ज के नियमानुसार परिनालिका में एक प्रेरित वैद्युत वाहक बल एवं प्रेरित धारा उत्पन्न होगी जोकि फ्लक्स वृद्धि का विरोध करेगी। अतः परिनालिका में प्रवाहित धारा घटेगी।

प्रश्न 4.
धातु के किसी ऐसे छल्ले पर विचार कीजिए जो किसी ऊर्ध्वाधरतः रखी स्थिर परिनालिका (जैसे–कार्ड बोर्ड में जड़ी) के शीर्ष पर रखा है (चित्र 6.13)। छल्ले का केन्द्र परिनालिका के अक्ष के सम्पाती है। यदि अचानक स्विच ऑन करके परिनालिका में धारा प्रवाहित कराएँ तो धातु का छल्ला ऊपर उछलता है। स्पष्ट कीजिए।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 6 वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण img 25
उत्तर :
प्रारम्भ में धातु के छल्ले से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स शून्य है। अचानक स्विच ऑन करने पर छल्लों से चुम्बकीय फ्लक्स गुजरता है। लेज के नियमानुसार धातु के छल्ले में एक प्रेरित वैद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है जो इस चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्धि का विरोध करता है। यह केवल तभी सम्भव है जब छल्ला परिनालिका से दूर अर्थात् ऊपर की ओर गति करे। अत: छल्ला ऊपर की ओर उछलता है।

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प्रश्न 5.
1 सेमी आन्तरिक त्रिज्या के किसी धातु के पाइप पर विचार कीजिए। यदि 0.8 सेमी त्रिज्या का कोई बेलनाकार छड़ चुम्बक इस पाइप में गिराया जाए तो वह नीचे गिरने में किसी प्रकार की अचुम्बकित बेलनाकार लौह छड़ की तुलना में अधिक समय लेता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जब बेलनाकार छड़ चुम्बक को धातु के पाइप में गिराया जाता है तो पाइप में भँवर धाराएँ उत्पन्न होगी, जोकि चुम्बक की गति का विरोध करेंगी। अतः इसकी गति का त्वरण, गुरुत्वीय त्वरण से कम हो जाता है। अचुम्बकित बेलनाकार छड़ को पाइप में गिराने पर, पाइप में भँवर धाराएँ उत्पन्न नहीं होंगी और वह गुरुत्वीय त्वरण से नीचे गिरेंगी। अतः बेलनाकार छड़ चुम्बक पाइप में गिरने में, किसी अचुम्बकित बेलनाकार छड़ से अधिक समय लेती है।

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MP Board Class 12th General Hindi व्याकरण सन्धि

MP Board Class 12th General Hindi व्याकरण सन्धि

दो या दो से अधिक वर्षों के परस्पर मिलने से जो विकास या परिवर्तन होता है। उसे सन्धि कहते हैं।

जैसे–

  • विद्या + आलय = विद्यालय
  • रमा + ईश = रमेश
  • सूर्य + उदय = सूर्योदय
  • पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
  • सत् + जन = सज्जन
  • एक + एक = एकैक

सन्धि तीन प्रकार की होती हैं

  1. स्वर संधि,
  2. व्यंजन संधि और
  3. विसर्ग संधि।

जब स्वर से परे स्वर होने पर उनमें जो विकार होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। दूसरे शब्दों में स्वर के बाद जब कोई स्वर आता है तो दोनों के स्थान में स्वर हो जाता है। उसे स्वर संधि कहते हैं;

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जैसे–

  • धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
  • रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
  • भानु + उदय = भानूदय
  • सुर + इन्द्र सुरेन्द्र
  • सदा + एव = सदैव
  • इति + आदि = इत्यादि
  • नै + अक = नायक

स्वर संधि के भेद–स्वर संधि के पाँच भेद हैं–

  1. दीर्घ संधि,
  2. गुण संधि,
  3. वृद्धि संधि,
  4. यण संधि, और
  5. अयादि संधि।

1. दीर्घ संधि–ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ, के बाद ह्रस्व या दीर्घ अ इ, उ, ऋ क्रमशः आए तो दोनों को मिलाकर एक दीर्घ–स्वर हो जाता है।

जैसे–

  • परम + अर्थ = परमार्थ
  • राम + आधार = रामाधार
  • अभि + इष्ट = अभीष्ट
  • भानु + उदय = भानूदय
  • मही + इन्द्र = महीन्द्र
  • गिरि + ईश = गिरीश
  • महा + आशय = महाशय
  • अदय + अपि = यद्यपि

2. गुण संधि–अ अथवा आ के पश्चात् ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ आए तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ओ तथा अर् हो जाते हैं।

जैसे–

  • सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
  • सुर + ईश = सुरेश
  • सूर्य + उदय = सूर्योदय
  • महा + ऋषि = महर्षि
  • महा + उत्सव = महोत्सव
  • वीर + इन्द्र = वीरेन्द्र
  • राज + ऋषि = राजर्षि
  • हित + उपदेश = हितोपदेश

3. वृद्धि संधि–हस्व अथवा दीर्घ अ के पश्चात् ए अथवा ऐ आने पर “ऐ” और ओ अथवा औ आने पर दोनों के स्थान पर “औ” हो जाता है।

जैसे–

  • सदा + एव = सदैव
  • मत + ऐक्य = मतैक्य
  • परम + औषधि = परमौषधि
  • वन + औषधि = वनौषधि
  • महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
  • जल + ओध = जलौध

4. यण सन्धि–हस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ से परे अपने से भिन्न स्वर हो जाने पर इनके स्थान पर क्रमशः य, व और र होता है।

जैसे–

  • अति + उत्तम = अत्युत्तम
  • इति + आदि = इत्यादि.
  • प्रति + एक = प्रत्येक
  • यदि + अपि = यद्यपि
  • सु + आगत = स्वागत
  • अति + आचार = अत्याचार
  • पित्र + आदेश = पित्रादेश।

5. अयादि संधि–ए, ऐ, ओ, औ के पश्चात् स्वर वर्ण आने पर उनके स्थान .. पर अय, आय तथा अव हो जाते हैं।

जैसे–

  • पो + अन = पवन
  • पो + अक = पावक
  • नै + अक = नायक
  • न + अन = नयन
  • नै + इका = नायिका

जब व्यंजन और स्वर अथवा व्यंजन से मेल होता है, तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं। जैसे

  • सत् + जन = सज्जन
  • उत् + चारण = उच्चारण
  • जगत + नाथ = जगन्नाथ
  • दुस + चरित्र = दुश्चरित्र
  • शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
  • महत् + चक्र = महच्चक्र
  • षट् + आनन = षडानन
  • दिक् + गज = दिग्गज
  • सद् + आचार = सदाचार
  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • वाक् + ईश = वागीश
  • उत् + गमन = उद्गमन
  • उत् + हार = उद्धार
  • सम + कल्प = संकल्प
  • राम + अयन = रामायन

विसर्ग के साथ जब किसी स्वर या व्यंजन का मेल होता है, तब विसर्ग संधि होती है।
जैसे–

  • अति + एव = अतएव
  • निः + छल = निश्छल
  • धनु + टंकार = धनुष्टंकार
  • निः + कपट = निष्कपट
  • निः + पाप = निष्पाप
  • निः + धन = निर्धन
  • नमः +. कार = नमस्कार
  • तिरः + कार = तिरस्कार
  • पुरः + कार = पुरस्कार
  • मनः + योग = मनोयोग
  • मनः + रथ = मनोरथ
  • पुनः + जन्म = पुनर्जन्म
  • दुः + तर = दुस्तर
  • सत + आनंद = सदानन्द

अभ्यास के लिए महत्त्वपूर्ण प्रश्न

  1. संधि किसे कहते हैं?
  2. संधि के कितने प्रकार हैं?
  3. निम्नलिखित शब्दों में संधि करो और उनके नाम बताओ
  • मत + ऐक्य,
  • शुभ + इच्छु
  • धन + अभाव,
  • उत + लास
  • पितृ + अनुमति,
  • निः + सन्देह
  • जगत + नाथ,
  • जगत + ईश
  • हित + उपदेश,
  • सदा + ऐव
  • भोजन + आलय,
  • परम + ईश्वर
  • मनः + हर,
  • निः + बल
  • शिव + आलय,
  • उत् + गम
  • निः + रोग,
  • सम + कल्प
  • यदि + अपि,
  • पो + अन
  • नर + इन्द्र,
  • परम + अर्थ।

4. निम्नलिखित शब्दों का संधि–विच्छेद करो
व्यवसाय, दुरुपयोग, उद्योग, निश्चल, निर्जन, उज्ज्वल, सूर्योदय, इत्यादि, निर्भय, जगदीश, निश्चिन्त, मनोरथ।

5. नीचे लिखे प्रत्येक शब्द के आगे संधियों के उदाहरण और संधियों के नाम लिखे हैं, किन्तु वे गलत हैं। आप उन्हें सही क्रम में लिखिए–

  • मनोरथ – अयादि संधि
  • नायक – वृद्धि संधि
  • इत्यादि – गुण संधि
  • विद्यार्थी – व्यंजन संधि
  • महेन्द्र – विसर्ग संधि
  • सदैव – दीर्घ संधि
  • सज्जन – यण संधि
  • सम–कल्प – व्यंजन संधि
  • निष्फल – व्यंजन संधि
  • मनोयोग – विसर्ग संधि

6. निम्नलिखित शब्दों में से व्यंजन संधि का उदाहरण बताइएं।

  • मनोहर,
  • पवन,
  • जगन्नाथ,
  • महाशय।

7. परम + अर्थ, हित + उपदेश, सत् + जन, मनः + विकार उपर्युक्त संधियों में से किन–किन संधियों का उदाहरण है।

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MP Board Class 12th General Hindi निबंध साहित्य का इतिहास

MP Board Class 12th General Hindi निबंध साहित्य का इतिहास

निबंध का उदय

आधुनिक युग को गद्य की प्रतिस्थापना का श्रेय जाता है। जिस विश्वास, भावना और आस्था पर हमारे युग की बुनियाद टिकी थी उसमें कहीं न कहीं अनास्था, तर्क और विचार ने अपनी सेंध लगाई। कदाचित् यह सेंध अपने युग की माँग थी जिसका मुख्य साधन गद्य बना। यही कारण है, कवियों ने गद्य साहित्य में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।

हिंदी गद्य का आरम्भ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है। वह कविता के क्षेत्र में चाहे परम्परावादी थे पर गद्य के क्षेत्र में नवीन विचारधारा के पोषक थे। उनका व्यक्तित्व इतना समर्थ था कि उनके इर्द-गिर्द लेखकों का एक मण्डल ही बन गया था। यह वह मण्डल था जो हिंदी गद्य के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। हिंदी गद्य के विकास में दशा और दिशा की आधारशिला रखने वालों में इस मण्डल का अपूर्व योगदान है। इन लेखकों ने अपनी बात कहने के लिए निबंध विधा को चुना।

निबंध की व्युत्पत्ति, स्वरूप एवं परिभाषा

निबंध की व्युत्पत्ति पर विचार करने पर पता चलता है कि ‘नि’ उपसर्ग, ‘बन्ध’ धातु और ‘धर्म प्रत्यय से यह शब्द बना है। इसका अर्थ है बाँधना। निबंध शब्द के पर्याय के रूप में लेख, संदर्भ, रचना, शोध प्रबंध आदि को स्वीकार किया जाता है। निबंध को हिंदी में अंग्रेजी के एसे और फ्रेंच के एसाई के अर्थ में ग्रहण किया जाता है जिसका सामान्य अर्थ प्रयत्न, प्रयोग या परीक्षण कहा गया है।

निबंध की भारतीय व पाश्चात्य परिभाषाएँ कोशीय अर्थ।

‘मानक हिंदी कोश’ में निबंध के संबंध में यह मत प्रकट किया गया है-“वह विचारपूर्ण विवरणात्मक और विस्तृत लेख, जिसमें किसी विषय के सब अंगों का मौलिक और स्वतंत्र रूप से विवेचन किया गया हो।”

हिंदी शब्द सागर’ में निबंध शब्द का यह अर्थ दिया गया है- ‘बन्धन वह व्याख्या है जिसमें अनेक मतों का संग्रह हो।”

पाश्चात्य विचारकों का मत

निबंध शब्द का सबसे पहले प्रयोग फ्रेंच के मांतेन ने किया था, और वह भी एक विशिष्ट काव्य विधा के लिए। इन्हें ही निबंध का जनक माना जाता है। उनकी रचनाएँ आत्मनिष्ठ हैं। उनका मानना था कि “I am myself the subject of my essays because I am the only person whom I know best.”

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अंग्रेजी में सबसे पहले एस्से शब्द का प्रयोग बेकन ने किया था। वह लैटिन । भाषा का ज्ञाता था और उसने इस भाषा में अनेक निबंध लिखे। उसने निबंध कोबिखरावमुक्त चिन्तन कहा है।

सैमुअल जॉनसन ने लिखा, “A loose sally of the mind, an irregular, .. undigested place is not a regular and orderly composition.” “निबंध मानसिक जगत् की विशृंखल विचार तरंग एक असंगठित-अपरिपक्व और अनियमित विचार खण्ड है। निबंध की समस्त विशेषताएँ हमें आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में दी गई इस परिभाषा में मिल जाती है, “सीमित आकार की एक ऐसी रचना जो किसी विषय विशेष या उसकी किसी शाखा पर लिखी गई हो, जिसे शुरू में परिष्कारहीन अनियमित, अपरिपक्व खंड माना जाता था, किंतु अब उससे न्यूनाधिक शैली में लिखित छोटी आकार की संबद्ध रचना का बोध होता है।”

भारतीय विचारकों का मत

आचार्य रामचंद्र शक्ल-आचार्य रामचंद्र शक्ल ने निबंध को व्यवस्थित और मर्यादित प्रधान गद्य रचना माना है जिसमें शैली की विशिष्टता होनी चाहिए, लेखक का निजी चिंतन होना चाहिए और अनुभव की विशेषता होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त लेखक के अपने व्यक्तित्व की विशिष्टता भी निबंध में रहती है। हिंदी साहित्य के इतिहास में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निबंध की परिभाषा देते हुए लिखा, “आधुनिक पाश्चात्य लेखकों के अनुसार निबंध उसी को कहना चाहिए जिसमें व्यक्तित्व अर्थात् व्यक्तिगत विशेषता है। बात तो ठीक है यदि ठीक तरह से समझी जाय। व्यक्तिगत विशेषता का यह मतलब नहीं कि उसके प्रदर्शन के लिए विचारकों की श्रृंखला रखी ही न जाए या जान-बूझकर जगह-जगह से तोड़ दी जाए जो उनकी अनुमति के प्रकृत या लोक सामान्य स्वरूप से कोई संबंध ही न रखे अथवा भाषा से सरकस वालों की सी कसरतें या हठयोगियों के से आसन कराये जाएँ, जिनका लक्ष्य तमाशा दिखाने के सिवाय और कुछ न हो।”

बाबू गुलाब राय-बाबू गुलाबराय ने भी निबंध में व्यक्तित्व और विचार दोनों को आवश्यक माना है। वे लिखते हैं- “निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता, सौष्ठव, सजीवता तथा अनावश्यक संगति और संबद्धता के साथ किया गया हो।”

निबंध की परिभाषाओं का अध्ययन करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि निबंध एक गद्य रचना है। इसका प्रमुख उद्देश्य अपनी वैयक्तिक अनुभूति, भावना या आदर्श को प्रकट करना है। यह एक छोटी-सी रचना है और किसी एक विषय पर लिखी गई क्रमबद्ध रचना है। इसमें विषय की एकरूपता होनी चाहिए और साथ ही तारतम्यता भी। यह गद्य काव्य की ऐसी विधा है जिसमें लेखक सीमित आकार में अपनी भावात्मकता और प्रतिक्रियाओं को प्रकट करता है।

निबंध के तत्त्व

प्राचीन काल से आज तक साहित्य विधाओं में अनेक बदलाव आए हैं। साधारणतः निबंध में निम्नलिखित तत्त्वों का होना अनिवार्य माना गया है
1. उपयुक्त विषय का चुनाव-लेखक जिस विषय पर निबंध लिखना चाहता है उसे सबसे पहले उपयुक्त विषय का चुनाव करना चाहिए। इसके लिए उसे पर्याप्त सोच-विचार करना चाहिए। निबंध का विषय सामाजिक, वैज्ञानिक, दार्शनिक आर्थिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, साहित्यिक, वस्तु, प्रकृति-वर्णन, चरित्र, संस्मरण, भाव, घटना आदि में से किसी भी विषय पर हो सकता है, किंतु विषय ऐसा होना चाहिए कि जिसमें लेखक अपना निश्चित पक्ष व दृष्टिकोण भली-भाँति व्यक्त कर सके।

2. व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति-निबंध में निबंधकार के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति दिखनी चाहिए। मोन्तेन ने निबंधों पर निजी चर्चा करते हुए लिखा है, “ये मेरी भावनाएँ हैं, इनके द्वारा मैं स्वयं को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता हूँ।” भारतीय और पाश्चात्य दोनों ही विचारकों ने निबंध लेखक के व्यक्तित्व के महत्त्व को स्वीकार किया है। निबंध लेखक की आत्मीयता और वैयक्तिकता के कारण ही विषय के सम्बन्ध में निबंधकार के विचारों, भावों और अनुभूति के आधार पर पाठक उनके साथ संबद्ध कर पाता है। इस प्रकार निबंधकार के व्यक्तित्व को निबंध का केंद्रीय गुण कहा जाता है।

3. एकसूत्रता-निबंध बँधी हुई एक कलात्मक रचना है। इसमें विषयान्तर की संभावना नहीं होती, इसलिए निबंध के लिए आवश्यक है कि निबंधकार अपने विचारों को एकसूत्रता के गुण से संबद्ध करके प्रस्तुत करता है। निबंध के विषय के मुख्य भाव या विचार पर अपनी दृष्टि डालते हुए निबंधकार तथ्यों को उसके तर्क के रूप में प्रस्तुत करता है। इन तर्कों को प्रस्तुत करते हुए निबंधकार को यह ध्यान रखना पड़ता है कि तथ्यों और तर्कों के बीच अन्विति क्रम बना रहे। कई निबंधकार निबंध लिखते समय अपनी भाव-तरंगों पर नियन्त्रण नहीं रख पाते, ऐसे में वह विषय अलग हो जाता है। वस्तुतः लेखक का कर्तव्य है कि वह विषयान्तर न हो। अगर विषयान्तर हो भी गया तो उसे इधर-उधर विचरण कर पुनः अपने विषय पर आना ही पड़ेगा। निबंधकार को अपने अभिप्रेत का अंत तक बनाए रखना चाहिए।

4. मर्यादित आकार-निबंध आकार की दृष्टि से छोटी रचना है। इस संदर्भ में हर्बट रीड ने कहा है कि निबंध 3500 से 5000 शब्दों तक सीमित किया जाना चाहिए। वास्तव में निबंध के आकार के निर्धारण की कोई आवश्यकता नहीं है। निबंध विषय के अनुरूप और सटीक तर्कों द्वारा लिखा जाता है। लेखक अपने विचार भावावेश के क्षणों में व्यक्त करता है। ऐसे में वह उसके आकार के विषय में सोचकर नहीं चलता। आवेश के क्षण बहुत थोड़ी अवधि के लिए होते हैं, इसलिए निश्चित रूप से निबंध का आकार स्वतः ही लघु हो जाता है। इसमें अनावश्यक सूचनाओं को कोई स्थान नहीं मिलता।

5. स्वतःपूर्णता-निबंध का एक गुण या विशेषता है कि यह अपने-आप में पूर्ण होना चाहिए। निबंधकार का दायित्व पाठकों को निबंध में चुने हुए विषय की समस्त जानकारी देना है। यही कारण है कि उसे विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों पर पूर्णतः विचार करना चाहिए। विषय से संबंधित कोई ज्ञान अधूरा नहीं रहना चाहिए। जिस भाव या विचार या बिंदु को लेकर निबंधकार निबंध लिखता है, निबंध के अंत तक पाठक के मन में संतुष्टि का भाव जागृत होना चाहिए। अगर पाठक के मन में किसी तरह का जिज्ञासा भाव रह जाता है तो उस निबंध को अपूर्ण माना जाता है और इसे निबंध के अवगुण के रूप में शुमार कर लिया जाएगा।

6. रोचकता-निबंध क्योंकि एक साहित्यिक विधा है इसलिए इसमें रोचकता का तत्त्व निश्चित रूप से होना चाहिए। यह अलग बात है कि निबंध का सीधा संबंध बुद्धि तत्त्व से रहता है। फिर इसे ज्ञान की विधा न कहकर रस की विधा कहा जाता है, इसलिए इसमें रोचकता होनी चाहिए, ललितता होनी चाहिए और आकर्षण होना चाहिए। निबंध के विषय प्रायः शुष्क होते हैं, गंभीर होते हैं या बौद्धिक होते हैं।

अगर निबंधकार इन विषयों को रोचक रूप में पाठक तक पहुँचाने में समर्थ हो जाता है तो इसे निबंध की पूर्णता और सफलता कहा जाएगा।

निबंध के भेद

निबंध के भेद, इसके लिए अध्ययन किए गए हैं। विषयों की विविधता से देखा जाए तो इन्हें सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। अतः निबंध लेखन का विषय दुनिया के किसी भी कोने का हो सकता है। विद्वानों ने निबंधों का वर्गीकरण तो अवश्य किया है पर यह वर्गीकरण या तो वर्णनीय विषय के आधार पर किया है या फिर उसकी शैली के आधार पर। निबंध का सबसे अधिक प्रचलित वर्गीकरण यह है

1. वर्णनात्मक-वर्णनात्मक निबंध वे कहलाते हैं जिनमें प्रायः भूगोल, यात्रा, ऋतु, तीर्थ, दर्शनीय स्थान, पर्व-त्योहार, सभा- सम्मेलन आदि विषयों का वर्णन किया जाता है। इनमें दृश्यों व स्थानों का वर्णन करते हुए रचनाकार कल्पना का आश्रय लेता है। ऐसे में उसकी भाषा सरल और सुगम हो जाती है। इसमें लेखक निबंध को रोचक बनाने में पूरी कोशिश करता है।

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2. विवरणात्मक-इस प्रकार के निबंधों का विषय स्थिर नहीं रहता अपितु गतिशील रहता है। शिकार वर्णन, पर्वतारोहण, दुर्गम प्रदेश की यात्रा आदि का वर्णन जब कलात्मक रूप से किया जाता है तो वे निबंध विवरणात्मक निबंधों की शैली में स्थान पाते हैं। विवरणात्मक निबंधों में विशेष रूप से घटनाओं का विवरण अधिक होता है।

3. विचारात्मक-इस प्रकार के निबंधों में बौद्धिक चिन्तन होता है। इनमें दर्शन, अध्यात्म, मनोविज्ञान आदि विषयगत पक्षों का विवेचन किया जाता है। लेखक अपने अध्ययन व चिन्तन के अनुरूप तर्क-शितर्क और खण्डन का आश्रय लेते हुए विषय का प्रभावशाली विवेचन करता है। इनमें बौद्धिकता तो होती ही है साथ ही भावना और कला कल्पना का समन्वय भी होता है। ऐसे निबंधों में लेखक आमतौर पर तत्सम शैली अपनाता है। समासिकता की प्रधानता भी होती है।

4. भावात्मक-इस श्रेणी में उन निबंधों को स्थान मिलता है जो भावात्मक विषयों पर लिखे जाते हैं। इन निबंधों का निस्सरण हृदय से होता है। इनमें रागात्मकता होती है इसलिए लेखक कवित्व का भी प्रयोग कर लेता है। अनुभूतियाँ और उनके उद्घाटन की रसमय क्षमता इस प्रकार के निबंध लेखकों की संपत्ति मानी जाती हैं। वस्तुतः कल्पना के साथ काव्यात्मकता का पुट इन निबंधों में दृश्यमान होता है।

वर्गीकरण अनावश्यक

गौर से देखा जाए तो इन चारों भेदों की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि ये निबंध लेखन की शैली हैं। इन्हें वर्गीकरण नहीं कहा जाना चाहिए। अगर कोई कहता है कि वर्णनात्मक निबंध है या दूसरा कोई कहता है कि विवरणात्मक निबंध है तो यह शैली नहीं है तो और क्या है?

वस्तुतः इन्हें विचारात्मक निबंध की श्रेणी में रखा जा सकता है। विचारात्मक निबंधों का विषय मानव जीवन का व्यापक कार्य क्षेत्र है और असीम चिंतन लोक है। इसमें धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान आदि विषयों का गंभीर विश्लेषण होता है। इसे निबंध का आदर्श भी कहा जा सकता है। इसमें निबंधकार के गहन चिंतन, मनन, सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि और विशद ज्ञान का स्पष्ट रूप देखने को मिलता है। इस संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है, “शुद्ध विचारात्मक निबंधों का वहाँ चरम उत्कर्ष नहीं कहा जा सकता है जहाँ एक-एक पैराग्राफ में विचार दबा-दबाकर.टूंसे गए हों, और एक-एक वाक्य किसी विचार खण्ड को लिए हुए हो।’

आचार्य शुक्ल ने अपने निबंधों में स्वयं इस शैली का बखूबी प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी इस प्रकार के अनेक निबंध लिखे हैं जिनमें उनके मन की मुक्त उड़ान को अनुभव किया जा सकता है। इन निबंधों में उनकी व्यक्तिगत रुचि और अरुचि का प्रकाशन है। नित्य प्रति के सामान्य शब्दों को अपनाते हुए बड़ी-बड़ी बातें कह देना द्विवेदीजी की अपनी विशेषता है। व्यक्तिगत निबंध जब लेखक लिखता है तो उसका संबंध उसके संपूर्ण निबंध से होता है। आचार्यजी के इसी प्रकार के निबंध ललित निबंध कहलाते रहे हैं। आचार्यजी ने स्वयं कहा है, “व्यक्तिगत निबंधों का लेखन किसी एक विषय को छेड़ता है किंतु जिस प्रकार वीणा के एक तार को छेड़ने से बाकी सभी तार झंकृत हो उठते हैं उसी प्रकार उस एक विषय को छुते ही लेखक की चित्तभूमि पर बँधे सैकड़ों विचार बज उठते हैं।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल व्यक्तित्व व्यंजना को निबंधों का आवश्यक गुण मानते हैं। उन्होंने वैचारिक गंभीरता और क्रमबद्धता का समर्थन किया है। आज हिंदी में दो ही प्रकार के प्रमुख निबंध लिखे जा रहे हैं, “व्यक्तिनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ। यों निबंध का कोई भी विषय हो सकता है। साहित्यिक भी हो सकता है और सांस्कृतिक भी। सामाजिक भी और ऐतिहासिक आदि भी। वस्तुतः कोई भी निबंध केवल वस्तुनिष्ठ नहीं हो सकता और न ही व्यक्तिनिष्ठ हो सकता है। निबंध में कभी चिंतन की प्रधानता होती है और कभी लेखक का व्यक्तित्व उभर आता है।”

निबंध शैली

वस्तुतः निबंध शैली को अलग रूप में देखने की परम्परा-सी चल निकली है अन्यथा निबंधों का व करण निबंध शैली ही है। लेखक की रचना ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति होती है। शैली ही उसके व्यक्तित्व की पहचान होती है। एक आलोचक ने शैली के बारे में कहा है कि जितने निबंध हैं, उतनी शैलियाँ हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि निबंध लेखन में लेखक के निजीपन का पूरा असर पड़ता है। निबंध की शैली से ही किसी निबंधकार की पहचान होती है क्योंकि एक निबंधकार की शैली दूसरे निबंधकार से भिन्न होती हैं।

मुख्य रूप से निबंध की निम्न शैलियाँ कही जाती हैं-
1. समास शैली-इस निबंध शैली में निबंधकार कम से कम शब्दों में अधिक-से-अधिक विषय का प्रतिपादन करता है। उसके वाक्य सुगठित और कसे हुए होते हैं। गंभीर विषयों के लिए इस शैली का प्रयोग किया जाता है।

2. व्यास शैली-इस तरह के निबंधों में लेखक तथ्यों को खोलता हुआ चला जाता है। उन्हें विभिन्न तर्कों और उदाहरणों के ज़रिए व्याख्यायित करता चला जाता है। वर्णनात्मक, विवरणात्मक और तुलनात्मक निबंधों में निबंधकार इसी प्रकार की शैली का प्रयोग करता है।

3. तरंग या विक्षेप शैली-इस शैली में निबंधकार में एकान्विति का अभाव रहता है। इसमें निबंधकार अपने मन की मौज़,में आकर बात कहता हुआ चलता है पर विषय पर केंद्रित अवश्य रहता है।

4. विवेचन शैली-इंस निबंध शैली में लेखक तर्क-वितर्क के माध्यम से प्रमाण पुष्टि और व्याख्या के माध्यम से, निर्णय आदि के माध्यम से अपने विषय को बढ़ाता हुआ चलता है। इस शैली में लेखक गहन चिंतन के आधार पर अपना कथ्य प्रस्तुत करता चला जाता है। विचारात्मक निबंधों में लेखक इस शैली का प्रयोग करता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध इसी प्रकार की शैली के अन्तर्गत माने जाते हैं।

5. व्यंग्य शैली-इस शैली में निबंधकार व्यंग्य के माध्यम से अपने विषयों का प्रतिपादन करता चलता है। इसमें उसके विषय धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि भी हो सकते हैं। इसमें रचनाकार किंचित हास्य का पुट देकर विषय को पठनीय बना देता है। शब्द चयन और अर्थ के चमत्कार की दृष्टि से इस शैली का निबंधकारों में विशेष प्रचलन है। व्यंग्यात्मक निबंध इसी शैली में लिखे जाते हैं।

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6. निगमन और आगमन शैली-निबंधकार अपने विषय का प्रतिपादन करने । की दृष्टि से निगमन शैली और आगमन शैली का प्रयोग करता है। इस प्रकार की शैली में लेखक पहले विचारों को सूत्र रूप में प्रस्तुत करता है। तद्उपरांत उस सूत्र के अन्तर्गत पहले अपने विचारों की विस्तार के साथ व्याख्या करता है। बाद में सूत्र रूप में सार लिख देता है। आगमन शैली निनन शैली के विपरीत होती है। इसके अतिरिक्त निबंध की अन्य कई शैलियों को देखा जा सकता है, जैसे प्रलय शैली। इस प्रकार की शैली में निबंधकार कुछ बहके-बहके भावों की अभिव्यंजना करता है। कुछ लेखकों के निबंधों में इस शैली को देखा जा सकता है। भावात्मक निबंधों के लिए कुछ निबंधकार विक्षेप शैली अपनाते हैं। धारा शैली में भी कुछ निबंधकार निबंध लिखते हैं। इसी प्रकार कुछ निबंधकारों ने अलंकरण, चित्रात्मक, सूक्तिपरक, धाराप्रवाह शैली का भी प्रयोग किया है। महादेवी वर्मा की निबंध शैली अलंकरण शैली है।

हिंदी निबंध : विकास की दिशाएँ
हिंदी गद्य का अभाव तो भारतेंदुजी से पूर्व भी नहीं था, पर कुछ अपवादों तक सीमित था। उसकी न तो कोई निश्चित परंपरा थी और न ही प्रधानता। सन् 1850 के बाद गद्य की निश्चित परंपरा स्थापित हुई, महत्त्व भी बढ़ा। पाश्चात्य सभ्यता के संपर्क में आने पर हिंदी साहित्य भी निबंध की ओर उन्मुख हुआ। इसीलिए कहा जाता है कि भारतेंदु युग में सबसे अधिक सफलता निबंध लेखन में मिली। हिंदी निंबध साहित्य को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है

  • भारतेंदुयुगीन निबंध,
  • द्विवेदीयुगीन निबंध,
  • शुक्लयुगीन निबंध
  • शुक्लयुगोत्तर निबंध एवं
  • सामयिक निबंध-1940 से अब तक।

भारतेंदुयुगीन निबंध-भारतेंदु युग में सबसे अधिक सफलता निबंध में प्राप्त हुई। इस युग के लेखकों ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से निबंध साहित्य को संपन्न किया! भारतेंदु हरिश्चंद्र से हिंदी निबंध का आरंभ माना जाना चाहिए। बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र ने इस गद्य विधा को विकसित एवं समृद्ध किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इन दोनों लेखकों को स्टील और एडीसन कहा है। ये दोनों हिंदी के आत्म-व्यंजक निबंधकार थे। इस युग के प्रमुख निबंधकार हैं-भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्री निवासदास, राधाचरण गोस्वामी, काशीनाथ खत्री आदि। इन सभी निबंधकारों का संबंध किसी-न-किसी पत्र-पत्रिका से था। भारतेंदु ने पुरातत्त्व, इतिहास, धर्म, कला, समाज-सुधार, जीवनी, यात्रा-वृत्तांत, भाषा तथा साहित्य आदि अनेक विषयों पर निबंध लिखे। प्रतापनारायण मिश्र के लिए तो विषय की कोई सीमा ही नहीं थी। ‘धोखा’, ‘खुशामद’, ‘आप’, ‘दाँत’, ‘बात’ आदि पर उन्होंने अत्यंत रोचक निबंध लिखे। बालकृष्ण भट्ट भारतेंदु युग के सर्वाधिक समर्थ निबंधकार हैं। उन्होंने सामयिक विषय जैसे ‘बाल-विवाह’, ‘स्त्रियाँ और उनकी शिक्षा’ पर उपयोगी निबंध लिखे। ‘प्रेमघन’ के निबंध भी सामयिक विषयों पर टिप्पणी के रूप में हैं। अन्य निबंधकारों का महत्त्व इसी में है कि उन्होंने भारतेंदु, बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र के मार्ग का अनुसरण किया।

द्विवेदीयुगीन निबंध-भारतेंदु युग में निबंध साहित्य की पूर्णतः स्थापना हो गई थी, लेकिन निबंधों का विषय अधिकांशतः व्यक्तिव्यंजक था। द्विवेदीयुगीन निबंधों में व्यक्तिव्यंजक निबंध कम लिखे गए। इस युग के श्रेष्ठ निबंधकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864-1938), गोविंदनारायण मिश्र (1859-1926), बालमुकुंद गुप्त (1865-1907), माधव प्रसाद मिश्र (1871-1907), मिश्र बंधु-श्याम बिहारी मिश्र (1873-1947) और शुकदेव बिहारी मिश्र (1878-1951), सरदार पूर्णसिंह (1881-1939), चंद्रधर शर्मा गुलेरी (1883-1920), जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी (1875-1939), श्यामसुंदर दास (1875-1945), पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ (1876-1932), रामचंद्र शुक्ल (1884-1940), कृष्ण बिहारी मिश्र (1890-1963) आदि उल्लेखनीय हैं। महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध परिचयात्मक या आलोचनात्मक हैं। उनमें आत्मव्यंजन तत्त्व नहीं है। गोंविद नारायण मिश्र के निबंध पांडित्यपूर्ण तथा संस्कृतनिष्ठ गद्यशैली के लिए प्रसिद्ध हैं। बालमुकुंद गुप्त ‘शिवशंभु के चिट्टे’ के लिए विख्यात हैं।

ये चिट्ठे “भारत मित्र’ में छपे थे। माधव प्रसाद मिश्र के निबंध ‘सुदर्शन’ में प्रकाशित हुए। उनके निबंधों का संग्रह ‘माधव मिश्र निबंध माला’ के नाम से प्रकाशित है। सरदार पूर्णसिंह भी इस युग के निबंधकार हैं। इनके निबंध नैतिक विषयों पर हैं। कहीं-कहीं इनकी शैली व्याख्यानात्मक हो गई हैं। चंद्रधर शर्मा गलेरी ने कहानी के अतिरिक्त निबंध भी लिखे। उनके निबंधों में मार्मिक व्यंग्य है। जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी के निबंध ‘गद्यमाला’ (1909) और ‘निबंध-निलय’ में प्रकाशित हैं। पद्मसिंह शर्मा कमलेश तुलनात्मक आलोचना के लिए विख्यात हैं। उनकी शैली प्रशंसात्मक और प्रभावपूर्ण है। श्यामसुंदरदास तथा कृष्ण बिहारी मिश्र मूलतः आलोचक थे। इनकी शैली सहज और परिमार्जित है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के प्रारंभिक निबंधों में भाषा संबंधी प्रश्नों और कुछ ऐतिहासिक व्यक्तियों के संबंध में विचार व्यक्त किए गए हैं। उन्होंने कुछ अंग्रेजी निबंधों का अनुवाद भी किया।

इस युग में गणेशशंकर विद्यार्थी, मन्नन द्विवेदी आदि ने भी पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। शुक्लयुगीन निबंध-इस युग के प्रमुख निबंधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल हैं आचार्य शुक्ल के निबंध ‘चिंतामणि’ के दोनों खंडों में संकलित हैं। अभी हाल में चिंतामणि का तीसरा खंड प्रकाशित हुआ है। इसका संपादन डॉ. नामवर सिंह ने किया है। इसी युग के निबंधकारों में बाबू गुलाबराय (1888-1963) का उल्लेखनीय स्थान है। ‘ठलुआ क्लब’, ‘फिर निराश क्यों’, ‘मेरी असफलताएँ’ आदि संग्रहों में उनके श्रेष्ठ निबंध संकलित हैं। ल पुन्नालाल बख्शी’ ने कई अच्छे निबंध लिखे। इनके निबंध ‘पंचपात्र’ में संगृहीत हैं। अन्य निबंधकारों में शांति प्रेत द्विवेदी, शिवपूजन सहाय, पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, रधुवीर सिंह, माखनलाल चतुर्वेदी आदि मुख्य हैं। इस युग में निबंध तो लिखे गए, पर ललित निबंध कम ही हैं।

शुक्लयुगोत्तर निबंध-शुक्लयुगोत्तर काल में निबंध ने अनेक दिशाओं में सफलता प्राप्त की। इस युग मं समीक्षात्मक निबंध अधिक लिखे गए। यों व्यक्तव्यंजक निबंध भी कम नहीं लिखे गए। शुक्लजी के समीक्षात्मक निबंधों को परंपरा के दूसरे नाम हैं नंददुलारे वाजपेयी। इसी काल के महत्त्वपूर्ण निबंधकार आच हजागे प्रसाद द्विवेदी हैं। उनके ललित निबंधों में नवीन जीवन-बोध है।

शुक्लयुगोत्तर निबंधकारों में जैनेंद्र कुमार का स्थान काफी ऊँचा है। उनके निबंधों में दार्शनिकता है। यह दार्शनिकता निजी है, अतः ऊब पैदा नहीं करती। उनके निबंधों में सरसता है।

हिंदी में प्रभावशाली समीक्षा के अग्रदूत शांतिप्रिय द्विवेदी हैं। इन्होंने समीक्षात्मक निबंध भी लिखे हैं और साहित्येतर भी। इनके समीक्षात्मक निर्बंधों में निर्बध का स्वाद मिलता है। रामधारीसिंह ‘दिनकर’ ने भी इस युग में महत्त्वपूर्ण निबंध लिखे। इनके निबंध विचार-प्रधान हैं। लेकिन कुछ निबंधों में उनका अंतरंग पक्ष भी उद्घाटित हुआ है। समीक्षात्मक निबंधकारों में डॉ. नगेंद्र का स्थान महत्त्वपूर्ण है। उनके निबंधों की कल्पना, मनोवैज्ञानिक दृष्टि उनके व्यक्तित्व के अपरिहार्य अंग हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी के निबंध-संग्रह ‘गेहूँ और गुलाब’ तथा ‘वंदे वाणी विनायकौ’ हैं। बेनीपुरी की भाषा में आवेग है, जटिलता नहीं। श्रीराम शर्मा, देवेंद्र सत्यार्थी भी निबंध के क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। वासुदेवशरण अग्रवाल के निबंधों में भारतीय संस्कृति के विविध आयामों को विद्वतापूर्वक उद्घाटित किया गया है। यशपाल के निबंधों में भी मार्क्सवादी दृष्टिकोण मिलता है। बनारसीदास चतुर्वेदी के निबंध-संग्रह ‘साहित्य और जीवन’, ‘हमारे आराध्य’ नाम में यही प्रवृत्ति है। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर के निबंध में करुणा, व्यंग्य और भावुकता का सन्निवेश है। भगवतशरण उपाध्याय ने ‘ठूठा आम’, और ‘सांस्कृतिक निबंध’ में इतिहास और संस्कृति की पृष्टभूमि पर निबंध लिखे। प्रभाकर माचवे, विद्यानिवास मिश्र, धर्मवीर भारती, शिवप्रसाद सिंह, कुबेरनाथ राय, ठाकुर प्रसाद सिन्हा आदि के ललित निबंध विख्यात हैं।

सामयिक निबंधों में नई चिंतन पद्धति और अभिव्यक्ति देखी जा सकती है। अज्ञेय, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, निर्मल वर्मा, रमेशचंद्रशाह, शरद जोशी, जानकी वल्लभ शास्त्री, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, नेमिचंद्र जैन, विष्णु प्रभाकर, जगदीश चतुर्वेदी, डॉ. नामवर सिंह और विवेकी राय आदि ने हिंदी गद्य की निबंध परंपरा को न केवल बढ़ाया है, बल्कि उसमें विशिष्ट प्रयोग किए हैं। समीक्षात्मक निबंधों में गजानन माधव मुक्तिबोध का नाम आता है। उनके निबंधों में बौद्धिकता है और वयस्क वैचारिकता तबोध के ‘नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध’ नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, ‘समीक्षा की समस्याएँ’ और ‘एक साहित्यिक की डायरी’ नामक निबंध विशेष उल्लेखनीय हैं। डॉ. रामविलास शर्मा के निबंध शैली में स्वच्छता, प्रखरता तथा वैचारिक संपन्नता है। हिंदी निबंध में व्यंग्य को रवींद्र कालिया ने बढ़ाया है। नए निबंधकारों में रमेशचंद्र शाह का नाम तेजी से उभरा है।

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महादेवी वर्मा, विजयेंद्र स्नातक, धर्मवीर भारती, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना और रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ के निबंधों में प्रौढ़ता है। इसके अतिरिक्त विष्णु प्रभाकर कृत ‘हम जिनके ऋणी हैं’ जानकी वल्लभ शास्त्री कृत ‘मन की बात’, ‘जो बिक न सकी’ आदि निबंधों में क्लासिकल संवेदना का उदात्त रूप मिलता है। नए निबंधकारों में : प्रभाकर श्रोत्रिय, चंद्रकांत वांदिवडेकर, नंदकिशोर आचार्य, बनवारी, कृष्णदत्त पालीवाल, प्रदीप मांडव, कर्णसिंह चौहान और सुधीश पचौरी आदि प्रमुख हैं। आज राजनीतिक-सांस्कृतिक विषयों पर भी निबंध लिखे जा रहे हैं। अतः हिंदी निबंध-साहित्य उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है।

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MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 8 इकाई

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 8 इकाई

इकाई Important Questions

इकाई वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
नियंत्रण प्रबंध प्रक्रिया का कार्य है –
(a) प्रथम
(b) द्वितीय
(c) मध्यम
(d) अंतिम
उत्तर:
(d) अंतिम

प्रश्न 2.
नियंत्रण संबंधित है –
(a) परिणाम से
(b) कार्य से
(c) प्रयास से
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(a) परिणाम से

प्रश्न 3.
नियोजन तथा नियंत्रण है –
(a) पूर्णतया अलग
(b) विपरीत
(c) एक समान
(d) एक-दूसरे के पूरक
उत्तर:
(d) एक-दूसरे के पूरक

प्रश्न 4.
नियंत्रण की तकनीक नहीं है –
(a) अपवाद द्वारा नियंत्रण
(b) बजट नियंत्रण
(c) लागत द्वारा नियंत्रण
(d) दंडात्मक नियंत्रण
उत्तर:
(d) दंडात्मक नियंत्रण

प्रश्न 5.
नियंत्रण प्रक्रिया है –
(a) नकारात्मक
(b) ऋणात्मक
(c) सुधारात्मक
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) सुधारात्मक

प्रश्न 6.
नियंत्रण प्रक्रिया का प्रथम चरण है –
(a) बजट बनाना
(b) प्रमाप निर्धारित करना
(c) निष्पादन का मूल्यांकन
(d) विचलनों का पता लगाना
उत्तर:
(a) बजट बनाना

प्रश्न 7.
नियंत्रण का उद्देश्य है –
(a) उत्पादन का अनुमान लगाना
(b) वित्तीय साधनों का प्रबंधन करना
(c) वास्तविक निष्पादन की जाँच
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(c) वास्तविक निष्पादन की जाँच

प्रश्न 8.
नियंत्रण प्रक्रिया है –
(a) निरंतर जारी रहने वाली
(b) प्रारंभिक प्रक्रिया
(c) नियोजन प्रक्रिया
(d) अनावश्यक प्रक्रिया
उत्तर:
(a) निरंतर जारी रहने वाली

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. ……………… के द्वारा वास्तविक कार्य निष्पादन को योजनानुसार बनाये रखा जाता है।
  2. …………….. आगे देखना है जबकि …………… पीछे देखना।
  3. नियंत्रण प्रक्रिया में इस बात की ………….. की जाती है कि कार्य नियोजन के अनुसार हो रहा है या नहीं।
  4. प्रभावपूर्ण नियंत्रण का संबंध …………. का पता लगाना है।
  5. नियंत्रण प्रकिया में ……………… की तुलना, प्रमाणित निष्पादन से की जाती है।
  6. नियंत्रण के अंतर्गत ………………. कदम उठाये जाते हैं।
  7. नियंत्रण प्रक्रिया में …………. बिन्दुओं को इंगित किया जाता है।
  8. नियंत्रण ………….. को रोकने में सहायक सिद्ध होता है।
  9. उपयुक्त नियंत्रण व्यावसायिक उपक्रम के …………. संचालन में सहायक सिद्ध होता है।

उत्तर:

  1. नियंत्रण
  2. नियोजन, नियंत्रण
  3. जाँच
  4. परिणामों
  5. वास्तविक निष्पादन
  6. सुधारात्मक
  7. कमजोर
  8. अपव्यय
  9. कुशल।

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए

  1. नियंत्रण प्रक्रिया में वास्तविक निष्पादन की तुलना किससे की जाती है ?
  2. नियंत्रण प्रक्रिया में विचलनों को दूर करने हेतु जो उपाय किये जाते हैं उसे क्या कहते हैं ?
  3. नियंत्रण की किसी एक तकनीक का नाम लिखिए।
  4. उल्लेखनीय विचलन होने पर ही प्रबंधकों का ध्यान आकर्षित करना चाहिए, यह तथ्य नियंत्रण . की किस तकनीक पर आधारित है ?
  5. वित्त से संबंधित विभागों के लिए किस नियंत्रण तकनीक का प्रयोग करना चाहिए ?
  6. प्रमापों का निर्धारण करना नियंत्रण प्रक्रिया का कौन-सा चरण है ?
  7. अपवाद द्वारा प्रबंध का एक लाभ लिखिए।
  8. बजटिंग क्या है ?
  9. बजटीय नियंत्रण क्या है ?
  10. नियंत्रण प्रबंध के किस कार्य पर आधारित होता है ?

उत्तर:

  1.  प्रमापित (अपेक्षित) निष्पादन से
  2. सुधारात्मक (उपचारात्मक) कदम
  3. अवलोकन या अंकेक्षण,
  4. अपवाद द्वारा नियंत्रण
  5. अंकेक्षण तकनीक
  6. प्रमापों/मानकों का निर्धारण करना नियंत्रण प्रक्रिया का प्रथम चरण है
  7. अपवाद द्वारा प्रबंध से समय की बचत होती है
  8. बजटिंग एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बजट का नियंत्रण किया जाता है
  9. बजटीय नियंत्रण से अभिप्राय बजटों के माध्यम से नियंत्रण करना है,
  10. नियंत्रण नियोजन पर निर्भर होता है।

प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. नियंत्रण प्रबन्ध का एक प्राथमिक कार्य है।
  2. विचलन से आशय वास्तविक तथा इच्छित निष्पादन का अन्तर है।
  3. नियंत्रण प्रबन्ध का अंतिम कार्य है।
  4. नियंत्रण जोखिम से सुरक्षा प्रदान करता है।
  5. नियंत्रण सभी प्रबन्धकीय स्तरों पर लागू नहीं होता है।
  6. विचलन सदैव ऋणात्मक होता है।
  7. बजट गुणात्मक स्वरूप में व्यक्त किया जाता है।
  8. नियंत्रण सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों होते हैं।
  9. नियंत्रण एक सतत् जारी रहने वाली प्रक्रिया नहीं है।
  10. वर्तमान एवं भविष्य की क्रियाओं का ही नियंत्रण होता है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. असत्य
  8. सत्य
  9. असत्य
  10. सत्य।

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प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 8 इकाई - 1
उत्तर:

  1. (e)
  2. (c)
  3. (b)
  4. (a)
  5. (d)
  6. (g)
  7. (f)
  8. (h)
  9. (i)
  10. (j)

इकाई दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रमापों का निर्धारण करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
प्रमापों का निर्धारण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. प्रमाप मापने योग्य होने चाहिए।
  2. प्रमाप ऐसे होने चाहिए जिन्हें कुछ प्रयासों से प्राप्त किया जा सके।
  3. प्रमाप सरल तथा स्पष्ट होने चाहिए।
  4. प्रमाप लोचपूर्ण होने चाहिए ताकि उन्हें बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार बदला जा सके।
  5. प्रमाप निर्धारित करते समय विचलन सहन करने की सीमायें भी स्पष्ट कर देनी चाहिए।

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प्रश्न 2.
नियंत्रण प्रक्रिया के प्रथम चरण के रूप में ‘प्रमापों का निर्धारण’ समझाइये।
उत्तर:
प्रमापों का निर्धारण (Setting up of standards)—प्रमाप का अर्थ है-लक्ष्य या अपेक्षाएँ जिनके विरुद्ध वास्तविक कार्य निष्पादन को मापा जाता है। प्रमाप तुलना के आधार होते हैं। प्रमापों का निर्धारण इसलिए किया जाता है ताकि उनके साथ वास्तविक निष्पादन कार्य की तुलना की जा सके। बिना प्रमाप के हम यह नहीं जान सकते है कि हमारा निष्पादन कार्य योजना के अनुकूल है या नहीं। प्रमाप न अधिक ऊँचे होने चाहिए और न बहत ही नीचे। प्रमापों का निर्धारण करते समय संगठन के संसाधनों का ध्यान रखना चाहिए।

जहाँ तक संभव हो, प्रमापों का निर्धारण परिमाणात्मक रूप में हो ताकि तुलना में सरलता रहे। प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि मात्रा, गुणवत्ता या समय की दृष्टि से प्रमाप निर्धारित किये जायें। प्रमाप लोचशील होने चाहिए अर्थात् आवश्यकता पड़ने पर परिस्थितियों के अनुसार उनमें परिवर्तन किया जा सके। विभिन्न प्रकार की क्रियाओं के निष्पादन को मापने के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रमापों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
निष्पादन प्रमाप निर्धारित करने के संदर्भ में प्रमाप अवधारणा समझाइये।
उत्तर:
प्रमाप (Standards)—प्रमाप वे आधार होते हैं जिनके संदर्भ में वास्तविक प्रगति को मापा जाता है। इसके आधार पर ही एक प्रबंधक वास्तविक प्रगति का मूल्यांकन करके विचलनों का पता लगाता है और विचलनों को दूर करने कार्यवाही करता है। प्रमापों को यथासंभव यथार्थ बनाना चाहिए। प्रमाप न तो बहुत ऊँचे होने चाहिए और न ही बहुत नीचे।प्रमापों का निर्धारित समय संस्था के संसाधनों का ध्यान रखना चाहिए। प्रमापों का यथासंभव मात्रात्मक रूप में व्यक्त किया जाना चाहिए ताकि अपेक्षित प्रगति के स्तर का स्पष्ट पता चल सकें।

निर्धारित प्रमाप नियंत्रण प्रणाली के लिए आधार का काम करते हैं। प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि मात्रा, गुणवत्ता या समय की दृष्टि से प्रमाप निर्धारित किये जायें। ऐसा करने से निष्पादन का मूल्यांकन करना सरल होगा। प्रमाप लोचशील होने चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर परिस्थितियों के अनुसार उनमें परिवर्तन किया जा सके।

विभिन्न प्रकार की क्रियाओं के निष्पादन को मापने के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रमापों का प्रयोग किया जाता है। अनेक प्रमाप भौतिक रूप के होते हैं, जैसे इकाइयों की संख्या अथवा काम के घंटे, बिक्री, आय, लागत आदि से संबंधित अन्य प्रमाप मुद्रा के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं।

प्रश्न 4.
आगम केन्द्र और लाभ केन्द्र में अन्तर बताइये।
उत्तर:
आगम केन्द्र तथा लाभ केन्द्र में अन्तर (Difference between revenue centre and profit centre)-आगम केन्द्र में इस बात का वित्तीय मूल्याकंन किया जाता है कि विक्रय आगम ने बजट स्तर को प्राप्त करने में कितनी सफलता प्राप्त की है। यह केन्द्र आय उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होता है। यदि वास्तविक आय प्रत्याशित आय की तुलना में कम है या बराबर नहीं है तो इस केन्द्र का प्रबंध जवाबदेह होता है।
सामान्यतया विक्रय या विपणन विभागों को आय केन्द्र के रूप में निर्धारित किया जाता है।

इसके विपरीत लाभ केन्द्र में वास्तविक लाभों की निर्धारित लाभों से तुलना की जाती है। यह केन्द्र संगठन के लाभ के लिए उत्तरदायी होता है (लाभ = आय लागत)। अतः लाभ केन्द्र का प्रधान आय के साथ-साथ लागत के लिए भी उत्तरदायी होता है। उसे यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि आय प्रत्याशित आय से कम नहीं और लागत प्रत्याशित लागत से अधिक नहीं है।

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प्रश्न 5.
नियंत्रण की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नियंत्रण की प्रकृति अथवा विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1.नियंत्रण प्रबंध का आधारभूत कार्य- नियंत्रण प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर किया जाता है। यह प्रबंध के अन्य कार्यों को पूर्ण बनाता है तथा सफलता निश्चित करता है। नियंत्रण प्रबंध प्रक्रिया को पूर्ण करता है।

2. प्रबंध के सभी स्तरों पर लागू- नियंत्रण प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर किया जाता है। उच्च स्तर पर नियंत्रण मुख्य प्रबंधक द्वारा तथा निम्न स्तर पर सुपरवाइजर तथा फोरमैन द्वारा किया जाता है।

3. सतत् प्रक्रिया- नियंत्रण सदैव किया जाता है कभी भी समाप्त या पूरा नहीं होता अतः यह सतत् जारी रहने वाली प्रक्रिया है।

4. अंतिम कार्य-नियंत्रण प्रबंध का अंतिम कार्य होता है क्योंकि जब तक वास्तविक निष्पादन का पता नहीं होगा। इसमें नीतियों तथा कमियों का ज्ञान नहीं होता है तथा सुधार नहीं किये जा सकते हैं।

5. वास्तविक आँकड़ों पर आधारित- नियंत्रण सदैव वास्तविक आँकड़ों पर आधारित होता है न कि व्यक्तिगत या अनुमानित तथ्यों पर।

6. सुधारात्मक क्रिया- नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य त्रुटियों, कमियों तथा दोषों का पता लगाते हुए उन्हें दूर करना है।

प्रश्न 6.
“नियोजन तथा नियंत्रण सह-संबंधित है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अर्थ-नियोजन प्रत्येक उपक्रम का मूलभूत कार्य है क्योंकि इसके द्वारा भविष्य के लिए योजना बनाई जाती है कि क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है तथा किसके द्वारा किया जाना है। नियंत्रण, यह निरीक्षण करता है कि प्रत्येक कार्य निर्धारित योजना के अनुसार हो रहा है या नहीं और यदि विचलन है तो उन विचलनों को रोकने के लिए सुधारात्मक कार्यवाही करना।

1. नियोजन तथा नियंत्रण परस्पर आश्रित और संबंधित हैं – नियोजन तथा नियंत्रण दोनों का हमेशा से ही सह-अस्तित्व होता है क्योंकि एक कार्य दूसरे पर निर्भर करता है। प्रबंध का कार्य सुचारु ढंग से तब तक नहीं चल सकता जब तक नियोजन व नियंत्रण में आपसी समन्वय न हो। प्रबंध विशेषज्ञों ने तो नियंत्रण को नियोजन का एक पक्ष व प्रतिरूप माना है।

2. नियोजन तथा नियंत्रण दोनों भविष्यदर्शी हैं – नियोजन आगे की ओर देखना है क्योंकि योजनाएँ भविष्य के लिए बनाई जाती है। इसमें आगे की ओर देखना तथा भविष्य के संसाधनों के अधिकतम उपयोग हेतु नीतियाँ बनाई जाती है।

नियंत्रण भी आगे की ओर देखना है क्योंकि इसमें विचलन के कारणों का पता लगाना तथा उनके लिए सुझाव देना ताकि ये विचलन भविष्य में फिर से न हो। अत: दोनों भविष्यदर्शी हैं।

3. नियोजन, नियंत्रण को उत्पन्न करता है – नियंत्रण प्रक्रिया का निर्धारण नियोजन के द्वारा ही होता है क्योंकि योजना के अनुरूप कार्य हो रहा है या नहीं, देखना ही नियंत्रण है।

4. नियंत्रण, नियोजन को बनाए रखता है – नियंत्रण के द्वारा कार्य बनाई गई योजनानुसार हो तथा आवश्यकता अनुसार योजना में परिवर्तन करना हो ये सभी कार्य नियंत्रण द्वारा ही होते हैं।

निष्कर्ष नियोजन तथा नियंत्रण को अलग नहीं किया जा सकता। ये दोनों पूरक कार्य हैं। यह एक-दूसरे की सहायता करते हैं। नियोजन नियंत्रण को प्रभावशाली तथा कुशल बनाता है जबकि नियंत्रण भविष्य की योजनाओं में सुधार करता है।

प्रश्न 7.
नियंत्रण की सीमाएँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर:
नियंत्रण की सीमाएँ निम्नलिखित हैं

1.मात्रात्मक प्रमापों के निर्धारण में कठिनाई-जब मात्रात्मक प्रमापों के निष्पादन स्तर का वर्णन नहीं किया जा सकता तब किसी भी मनुष्य के व्यवहार, कुशलता स्तर, कार्य संतुष्टि आदि के लिए मात्रात्मक प्रमाप का निर्धारण करना कठिन होता है तब नियंत्रण पद्धति अपना प्रभाव खो देती है।

2. बाह्य कारकों पर नियंत्रण नहीं-कोई भी उपक्रम बाह्य कारकों जैसे सरकारी नीति, फैशन में परिवर्तन, बाजार की दशाएँ तथा तकनीकी परिवर्तन पर नियंत्रण नहीं कर सकता।

3. उत्तरदायित्व के निर्धारण में कठिनाई-उपक्रम के कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिसके लिए एक से अधिक व्यक्ति उत्तरदायी होते हैं। यदि ऐसे कार्यों में कोई त्रुटि हो जाती है तो यह निर्धारित करना कठिन होता है कि त्रुटि के लिए कौन उत्तरदायी है।

4.कर्मचारियों द्वारा विरोध-प्रायः कर्मचारी नियंत्रण का विरोध करते हैं इसके परिणामस्वरूप नियंत्रण की प्रभावशीलता कम हो जाती है। कर्मचारी उनका अवलोकन करने वाले कैमरे के प्रयोग का विरोध करते हैं।

5. महँगा कार्य-नियंत्रण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें अधिक समय तथा प्रयास शामिल होते हैं क्योंकि कर्मचारियों की प्रगति के अवलोकन के लिए पर्याप्त ध्यान देना पड़ता है। महँगी नियंत्रण पद्धति को स्थापित करने के लिए संगठन को विशाल राशि खर्च करनी पड़ती है।

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प्रश्न 8.
बजट नियंत्रण क्या है ? इसके महत्व समझाइए।
उत्तर:
बजट नियंत्रण बहुत ही महत्वपूर्ण एवं वृहत रूप में क्रिया करने वाला नियंत्रण है जिसके अंतर्गत बजट अनुभवों एवं वास्तविक परिणामों की तुलना की जाती है। नियंत्रण की यह पद्धति अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रचलित है इसके नियंत्रण बजट के माध्यम से किया जाता है।

जार्ज टेरी के अनुसार-“बजट नियंत्रण ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा वास्तविक क्रियाओं का पता लगाया जाता है फिर बजट अनुमानों की उससे तुलना की जाती है एवं त्रुटियों का पता लगाकर उनमें सुधार किया जा सके।”बजट नियंत्रण का महत्व निम्नलिखित है

  1. भविष्य की योजना बनाने में सहायक-नियंत्रण की सहायता से भविष्य की योजना बनाने में सहायता मिलती है, क्योंकि नियंत्रण के द्वारा निष्पादन में आने वाली बाधाओं का पता चलता है।
  2. अनुशासन के लिए किसी भी संगठन में पूर्ण अनुशासन बिना नियंत्रण के संभव नहीं है अतः पूर्ण अनुशासन हेतु बजट नियंत्रण आवश्यक है।
  3. कार्य कुशलता में वृद्धि-बजट नियंत्रण द्वारा मितव्ययिता के साथ-साथ कर्मचारियों की कार्य कुशलता बढ़ती है।
  4. जोखिमों में कमी-बजट नियंत्रण के द्वारा व्यवसाय की जोखिमों को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
नियंत्रण के क्षेत्रों की व्याख्या कीजिए?
उत्तर:
नियंत्रण के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं

  1. नीति नियंत्रण-व्यवसाय की नीतियों पर नियंत्रण नीतियों में स्थायित्व पैदा करता है और उनमें से किसी भी प्रकार के विचलन को रोकता है।
  2. कर्मचारियों पर नियंत्रण- प्रबंध, सेविवर्गीय प्रबंध की सहायता लेकर कर्मचारियों पर नियंत्रण बनाता है।
  3. मजदूरी तथा वेतन पर नियंत्रण-प्रबंध कार्य मूल्यांकन के द्वारा श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी तथा वेतन का निर्धारण करता है।
  4. 4. पूँजी पर नियंत्रण-नियंत्रण का प्रमुख कार्य है कि वह स्वयं को संतुष्ट करे कि पूँजी का उपयोग वास्तव में उददेश्यों की पूर्ति के लिए हो रहा है या नहीं। यदि नहीं तो क्यों और क्या सुधार किया जाए।
  5. लागत नियंत्रण-उत्पादन के विभिन्न साधनों के कुशलतम उपयोग द्वारा लागत को नियंत्रित किया जाता है।

प्रश्न 10.
नियंत्रण के सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नियंत्रण के निम्नलिखित महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं

  1. उद्देश्यों की सुरक्षा का सिद्धांत-नियंत्रण प्रक्रिया ऐसी हो जो योजनाओं और वास्तविक कार्यों के विचलन का अंतर ज्ञात करके उन विचलनों को दूर करे।
  2. कार्यकुशलता का सिद्धांत-नियंत्रण व्यवस्था अत्यधिक खर्चीली नहीं होनी चाहिए साथ ही यह अधीनस्थों की पहल शांति, सत्ता के प्रत्यायोजन एवं मनोबल पर बुरा असर न डाले।
  3. योजनाओं के प्रतिबिंब का सिद्धांत-नियंत्रित होने पर योजनाएँ प्रतिबिंबित होती हैं अर्थात् नियंत्रण का प्रयोजन योजनाओं के विचलनों का पता लगाकर उनके अनुसार कार्य करना होता है।
  4. नियंत्रण दायित्व का सिद्धांत-नियंत्रण करने का दायित्व प्रबंधकों का होता है। यह सौंपा नहीं जा सकता।
  5. लोच का सिद्धांत-नियंत्रण प्रक्रिया में पर्याप्त लोच होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर परिवर्तन आसानी से किया जा सके।

प्रश्न 11.
नियंत्रण की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
नियंत्रण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

1. नियंत्रण एक प्रबंधकीय कार्य है-नियंत्रण करने का कार्य लेखा अधिकारी का होता है। लेखा अधिकारी विभिन्न विशेषज्ञों की सलाह एवं सहायता ले सकता है।

2. नियंत्रण प्रबंध के सभी स्तरों पर नियंत्रण कार्य न तो उच्च अधिकारी का है और न ही निम्न स्तर का अपितु इसकी आवश्यकता प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर पड़ती है। उच्च स्तर पर नियन्त्रण प्रमुख प्रबंधक करते हैं निम्न स्तर पर फोरमैन या अन्य अधिकारी नियंत्रक करते हैं।

3. नियंत्रण एक सतत् प्रक्रिया है-नियंत्रण एक ऐसी प्रक्रिया है जो लगातार गतिमान रहती है। नियन्त्रण के माध्यम से विभिन्न योजनाओं, उद्देश्यों, क्रियाकलापों एवं कार्यविधियों पर लगातार नजर रखने की आवश्यकता पड़ती है ताकि कार्य योजनाओं के अनुरूप होता रहे।

4. प्रारम्भ तथा अंत में सहायक-नियंत्रण का सम्बन्ध किसी उपक्रम की प्रारंभिक अवस्था एवं अंतिम अवस्था से भी है। प्रारम्भ में विभिन्न योजनाओं, अनुमानों, लक्ष्यों को निर्धारित करते समय नियन्त्रण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा किसी उपक्रम के अंतिम काल में जबकि सम्पत्तियों का बँटवारा होता है नियन्त्रण अति आवश्यक है।

5. नियंत्रण व्यक्तियों से संबंधित है-प्रबंध के अन्तर्गत नियंत्रण शब्द का संबंध प्राकृतिक व्यक्ति से है, कोई फर्म या कंपनी से नहीं।

6. नियंत्रण हस्तक्षेप नहीं-हस्तक्षेप करना, कार्य में बाधा पहुँचाना है, जबकि नियंत्रण बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।

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प्रश्न 12.
एक प्रभावी नियंत्रण के पाँच आवश्यक तत्वों को समझाइये।
अथवा प्रभावशाली नियंत्रण प्रणाली के आवश्यक तत्व बताइए।(कोई पाँच)
उत्तर:
प्रभावी नियंत्रण व्यवस्था के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं

1. उपयुक्तता-नियन्त्रण की प्रणाली व्यावसायिक संस्था की प्रकृति, कारोबार की मात्रा एवं उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप ही होनी चाहिए। साथ ही संगठन कलेवर की आवश्यकता के अनुरूप भी होनी चाहिए। विभागीयकरण व्यवस्था अपनाई जाती है तो नियंत्रण का भार विभागीय अध्यक्षों को सौंप दिया जाना चाहिए।

2. विचलनों की जानकारी-कार्य निष्पादन हेतु प्रमाप तय रहते हैं। वास्तविक उपलब्धियों की तुलना प्रमापों से की जाती है। दोनों में अन्तर अथवा विचलन की न केवल जानकारी होनी चाहिए वरन् जानकारी को सम्बन्धित अधिकारी तक प्रेषित करने की व्यवस्था होनी चाहिए।

3. महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार-उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए जिनकी प्रगति संस्था की सम्पूर्ण प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। परिवहन संस्थाओं के लिए ट्रकों का चालू हालत में होना आवश्यक होगा, जबकि बीड़ी-उद्योग में श्रमिकों का स्वस्थ होना अधिक महत्वपूर्ण होगा। इसी प्रकार सामग्री अथवा वित्त नियन्त्रण के महत्वपूर्ण बिन्दु हो सकते हैं।

4. लोचशील-बाह्य एवं आन्तरिक परिस्थितियाँ बदलती हैं। नियन्त्रण व्यवस्था में परिस्थितियों के अनुसार ढल जाने का गुण होना चाहिए।

5. सरल एवं सुगम-नियन्त्रण व्यवस्था जटिल होने पर वह आसानी से समझ में नहीं आएगी। ऐसी स्थिति में उसका क्रियान्वयन भी संदिग्ध हो जाएगा।

प्रश्न 13.
नियंत्रण की विधियों को समझाइये।
उत्तर:
नियंत्रण की विधियों को नियंत्रण तकनीक या नियंत्रण के उपकरण या प्रणालियाँ (Techniques or Tools) भी कहा जाता है। प्रबन्धक का प्रमुख कार्य उपक्रम के कार्यों का नियंत्रण करना है इस हेतु वह विभिन्न तकनीक या उपकरण जिन्हें औजार भी कहा जाता है, उनका प्रयोग करता है। नियंत्रण की अनेक विधियाँ हैं जिन्हें मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा गया है

  • नियंत्रण की सामान्य विधियाँ
  • नियंत्रण की विशिष्ट विधियाँ।
  • नियंत्रण की सामान्य विधियाँ (General Methods of Control)

सामान्य विधियों से आशय नियंत्रण सम्बन्धी उन कार्यों से है जो किसी उपक्रम का प्रबन्धक सामान्य रूप से प्रयोग में लाता है। नियंत्रण की सामान्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. अवलोकन द्वारा नियंत्रण-कर्मचारियों के कार्यों का प्रत्यक्ष अवलोकन कर उन पर नियंत्रण करना अवलोकन द्वारा नियंत्रण कहा जाता है। यह नियंत्रण की बहु प्रचलित विधि है। इस विधि की विशेषता यह है कि इससे कर्मचारी एवं प्रबन्ध अधिकारी के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाता है तथा बना रहता है। इससे उपक्रम की अनेक समस्यायें स्वतः हल हो जाती हैं।

2. अंकेक्षण द्वारा नियंत्रण अंकेक्षण का आशय लेखा-पुस्तकों का परीक्षण है। यह दो प्रकार का होता है

  • आन्तरिक अंकेक्षण और
  • बाह्य अंकेक्षण। उपक्रम के वित्त से सम्बन्धित विभागों के लिये यह आवश्यक है।

3. अभिप्रेरणा द्वारा नियंत्रण कर्मचारियों को कार्य के प्रति प्रेरित करना अभिप्रेरणा द्वारा नियंत्रण है। यह नियंत्रण की उत्कृष्ट विधि है। इसे स्व-नियंत्रण भी कहा जा सकता है।

4. नीतियों द्वारा नियंत्रण नीतियों को भी नियंत्रण का एक साधन माना जाता है। इससे कर्मचारियों का मार्गदर्शन होता है तथा कार्य क्षेत्र एवं सीमा निर्धारित हो जाती है । निर्धारित नीतियों के विरुद्ध कार्य नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार कर्मचारियों पर नियंत्रण स्थापित हो जाता है। (ब) नियंत्रण की विशिष्ट विधियाँ (Specific Methods of Control) – नियंत्रण की अनेक विशिष्टं विधियाँ हैं जिनमें निम्नांकित मुख्य हैं

1. बजट द्वारा नियंत्रण-बजट-नियंत्रण का आशय बजट अनुमानों तथा वास्तविक परिणामों में तुलना करने की प्रक्रिया है। बजट-नियंत्रण से इस बात की जानकारी होती है कि उपक्रम अपने उद्देश्यों की उपलब्धि में सफल हो रहा है अथवा नहीं।

2. लागत नियंत्रण लागत नियंत्रण में इस बात का पता लगाया जाता है कि विभिन्न उत्पादों की प्रति इकाई लागत क्या होगी तथा लागत को कम कैसे किया जाये ? इसके लिये अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है।

3. उत्पादन नियंत्रण निर्माणी उपक्रम की समस्त क्रियायें इसके अन्तर्गत आ जाती हैं। निर्माणी संस्थान के समस्त कार्य को इस प्रकार नियंत्रित करना कि समस्त कार्य पूर्व नियंत्रित व्यवस्था के अनुसार संचालित हों।

4.किस्म या गुण नियंत्रण उत्पादित वस्तु के गुण या किस्म को नियंत्रित करना किस्म या गुण नियंत्रण है। इसी नियंत्रण के कारण उत्पादित वस्तु का आकार एवं रूप आकर्षक एवं वस्तु अधिक उपयोगी होती है।

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प्रश्न 14.
नियंत्रण के महत्व लिखिए।
उत्तर:
नियंत्रण का महत्व निम्न प्रकार है

1. नियंत्रण संगठन को उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करता है (Controlling helps in achieving organisational objectives) – प्रबंध का पहला कदम उद्देश्यों को निश्चित करना और उनकी प्राप्ति के लिए कार्यविधि तय करना है। उद्देश्य लाभ, विक्रय या उत्पादन लक्ष्यों के रूप में हो सकते हैं। लेकिन ये निश्चित लक्ष्य किसी बिंदु या समय पर गलत हो सकते हैं। अतः संगठन के विभिन्न विभागों में काम करने वाले लोगों द्वारा सम्पन्न की जाने वाली क्रियाएँ और संभावित व्यवहार को निर्दिष्ट करने वाली योजना बनाई जाती है।

यह योजना उन प्रभावों का निर्धारण करती है जिन लोगों द्वारा प्राप्त किया जाता है। इन क्रियाओं के पर्यवेक्षण व निरीक्षण तथा जहाँ आवश्यक हो उचित कदम उठाने के लिए एक नियंत्रण कार्यविधि विकसित की जाती है।

2. नियंत्रण पर्यावरण संबंधी परिवर्तनों को स्वीकार करने में सहायता करता है (Controlling enables the organisation to adopt organisational changes) – आज के गतिशील व्यावसायिक जगत में सभी संगठनों को परिवर्तन का सामना करना पड़ता है। व्यवसाय का अस्तित्व भी इस वातावरण का एक भाग है। व्यावसायिक वातावरण आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक वातावरण से संबंधित है जिसमें इसका संचालन किया जाता है।

इसकी प्रकृति गतिशील और कभी-कभी स्कंध बाजार सरकारी नीतियों तथा राजनैतिक तंत्र में परिवर्तन व्यवसाय को प्रभावित कर सकते हैं । वातावरण में बाह्य परिवर्तन व्यवसाय के नियंत्रण से बाहर होता है।

लक्ष्यों के निर्धारण समय से लेकर लक्ष्यों की प्राप्ति समय तक बहुत सी असंभावित घटनाएं घट सकती हैं जो उत्पादन या विक्रय लक्ष्यों को भंग कर सकती हैं या व्यय में वृद्धि कर सकती हैं। अतः एक ऐसे नियंत्रण को बदलती हुई परिस्थितियों का अनुमान लगाने, उनका पर्यवेक्षण व निरीक्षण कर प्रत्युत्तर देने में सहायता कर सके।

3. नियंत्रण संगठनात्मक जटिलताओं का सामना करने में सहायता प्रदान करता है (Controlling helps in facing the difficult situations) – नियंत्रण तंत्र किसी भी संगठन की संपूर्ण प्रबंधात्मक प्रक्रिया का एक भाग है।

एक संगठन अपनी प्रारंभिक अवस्था में सीमित संसाधनों, कर्मचारियों व बाजारों से लेन-देन कर सकता है लेकिन जैसे-जैसे इसका विस्तार होता है, यह अधिक-से-अधिक जटिल बन जाता है और उत्पादन विपणन, वित्त एवं मानवीय संसाधनों से व्यवहार करने के लिए विभिन्न विभागों का निर्माण किया जाता है। इन विविध प्रकार की क्रियाओं पर पर्याप्त नियंत्रण करने के लिए एक परिष्कृत नियंत्रण तंत्र आवश्यक हो गया है।

4. नियंत्रण गुणवत्ता को बनाये रखने और सुधारने में सहायता करता है (Controlling helps in maintaining and improving quality) – उत्पादन या संचालन नियंत्रण सामग्री-संसाधनों को उत्पाद में परिवर्तित करने की प्रक्रिया से संबंधित है। फलस्वरूप लागत को न्यूनतम करने में सहायता करता है अर्थात् कच्चे माल की गुणवत्ता की छानबीन, उसके बाद कच्चे माल को उत्पाद में परिवर्तन करने की प्रक्रिया और फिर अंतिम उत्पाद का निरीक्षण। गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए सुदृढ़ गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र आवश्यक है।

उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से गुणवत्ता के विभिन्न आयामों को पहचानना चाहिए और इन पक्षों पर अपना ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए। प्रत्येक उत्पाद को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जाना चाहिए। उपभोक्ता अंतिम क्रय निर्णय लेने से पूर्व उत्पाद के कुछ या सभी पक्षों को प्राथमिकता दे सकते हैं।

5. नियंत्रण वित्तीय मामलों में सहायता करता है (It helps in financial matters of the organisation) – प्रबंधक वित्त पर कठोर नियंत्रण रखना चाहते हैं और बाजार में निर्धारित सीमाओं में रहकर व्यय करते हैं। यदि नियंत्रण प्रणाली पर्याप्त है, तो सुधारात्मक नियंत्रण तुरन्त किये जा सकते हैं ।

वित्तीय नियंत्रण के विभिन्न प्रकार हैं। नियंत्रण बजट या वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के माध्यम से लागू किया जा सकता है। बजटीय नियंत्रण साधारणतया अल्पावधिक होता है। यह पूरे वर्ष चलता रहता है। बजट एक योजना है जिसे गणनात्मक या वित्तीय शब्दों में व्यक्त किया जाता है। यह विक्रय या लाभों के रूप में निष्पादन मूल्यांकन करने के लिए मानदंड प्रदान करता है।

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प्रश्न 15. “नियोजन व नियंत्रण एक-दूसरे के पूरक हैं। समझाइए।
उत्तर:
नियोजन एवं नियंत्रण दोनों ही प्रबंध के महत्वपूर्ण कार्य हैं। प्रबंध का कार्य सुचारु ढंग से उस समय तक नहीं चल सकता जब तक नियोजन व नियंत्रण दोनों में आपसी समन्वय न हो अर्थात् ये दोनों एकदूसरे से सहसंबंधित होते हैं। प्रबंध विशेषज्ञों ने नियंत्रण को नियोजन का एक पक्ष व प्रतिरूप के रूप में माना है।

नियोजन के अंतर्गत प्रबंधकीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक नीति व कार्य योजना बनाई जाती है, जबकि यह कार्य योजना उचित है या नहीं इसमें विचलन (Deviation) किस सीमा तक है इसकी जानकारी नियंत्रण से ज्ञात की जाती है योजना उचित हो इसके लिये उस पर नियंत्रण रखना आवश्यक होता है, अर्थात् नियन्त्रण, योजनाओं के क्रियान्वयन में हमारा मार्गदर्शन करता है।

प्रबंध में प्रभावी नियंत्रण व्यवस्था लागू रहने से दीर्घकाल की योजनाएं बनाने में मदद मिलती है। क्योंकि नियंत्रण पूर्व निर्धारित लक्ष्यों एवं प्रभावों के आधार पर कार्य करने की प्रेरणा देता है।

यह सच है कि किसी भी संगठन में योजना पहले बनाई जाती है किन्तु इस योजना को नियंत्रित रखने का कार्य नियंत्रण ही करता है। नियंत्रण प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण कार्य है और इसके बिना नियोजन कर लेना एक भूल ही होगी। विशेषकर बजट बनाना भी एक नियोजन कार्य है। बजट बनाते समय उसे उपक्रम के लक्ष्यों, नीतियों व सीमाओं से नियंत्रित रखा जाता है।

इस प्रकार नियोजन व नियंत्रण दोनों एक-दूसरे के सहयोगी होते हैं दोनों में आपसी समन्वय आवश्यक होता है तथा एक-दूसरे के सहयोग के बिना प्रबंध का कार्य आसानी से नहीं चलाया जा सकता है।
नियोजन में नियंत्रण का सहयोग- यह सर्वविदित है कि नियंत्रण प्रबन्ध का अंतिम कार्य है फिर भी वह नियोजन जैसे प्राथमिक कार्य में नियोजन निम्नानुसार सहयोग करता है-

  1. यह देखना कि योजनायें नीतियों के अनुरूप हैं या नहीं।
  2. यह देखना कि योजना बजट के अनुरूप या उसकी सीमा के अंदर है या नहीं।
  3. विभिन्न योजनाओं को बनाकर उन्हें प्रोत्साहित करने का कार्य नियंत्रण द्वारा ही किया जाता है।
  4. संस्था के उद्देश्यों को परिभाषित करने में नियंत्रण सहयोग करता है।
  5. व्यवसाय के दैनिक कार्यों को नियंत्रित करने में सहयोग करता है।
    इस प्रकार स्पष्ट है कि नियोजन प्रबन्ध का प्रथम कार्य तथा नियंत्रण प्रबन्ध का अंतिम कार्य होते हुए भी ये दोनों एक-दूसरे से सहसंबंधित हैं और इनके आपसी समन्वय बिना प्रबन्ध के कार्यों को करना तथा उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन कार्य होगा।

प्रश्न 16.
नियंत्रण प्रक्रिया में निहित विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियंत्रण प्रक्रिया में निम्न चरण समाहित होते हैं

1. कार्य प्रमापों का निर्धारण – इस कार्य को कार्य के प्रमापों का निर्धारण या प्रमापों को परिभाषित करना भी कहते हैं । प्रमाप का निर्धारण नियन्त्रण प्रक्रिया का पहला कदम है। संस्था के समस्त व्यक्तियों के कार्यों का प्रमाप निश्चित हो जाने से यह ज्ञात हो जाता है कि किस व्यक्ति को कहाँ पर, कितना, कब, किस प्रकार व कैसे कार्य करना है अर्थात् एक निर्धारित समय में एक व्यक्ति से कितने व कैसे कार्य की आशा की जा सकती है। अपेक्षित परिणामों का निर्धारण ही प्रमाप का निर्धारण कहलाता है।

2. वास्तविक प्रगति का मापन – प्रमापों का निर्धारण हो जाने के पश्चात् नियंत्रण का दूसरा कदम वास्तविक प्रगति को मापना है, ऐसी स्थिति बहुत कम आती है, जब प्रमाणित लागत के अनुरूप वास्तविक लागत आधी हो, बहुधा ऐसा ही होता है कि वास्तविक प्रगति प्रमाप से अधिक या कम होती है। प्रगति अधिक होने पर स्थिति अनुकूल (Favourable) व प्रगति कम होने पर स्थिति प्रतिकूल (Unfavourable) होती है, वास्तविक प्रगति कम होने पर इसके कारणों को खोजा जाता है।

3. प्रमापित एवं वास्तविक कार्यों की तुलना या विचलनों की तुलना – नियंत्रण प्रक्रिया का यह तृतीय कदम (Step) है। इस कदम के अन्तर्गत वास्तविक कार्य व प्रमाणित कार्यों के बीच जो अन्तर होता है, उन्हें ज्ञात किया जाता है।

विचलन क्या है – निर्धारित प्रमाप से वास्तविक निष्पादन की तुलना की जाती है। इसके पश्चात् प्रमाप से वास्तविक उत्पादन जितना कम या अधिक होता है उसे ही विचलन (Deviation) कहते हैं।
विचलनों का विश्लेषण–विचलनों के कारणों को ज्ञात करने हेतु विचलनों का विश्लेषण करना अति आवश्यक है।

4. सुधारात्मक कदम उठाना – इस प्रक्रिया में त्रुटियों व कमियों की जाँच कर उन्हें दूर करने हेतु आवश्यक कदम उठाये जाते हैं। त्रुटियों के कारण बिगड़े कार्यों को सही करने की क्रिया सुधारात्मक (Remedial) क्रिया कही जायेगी तथा कुछ ऐसे भी कदम उठाये जाते हैं जो भविष्य के लिये लाभप्रद व प्रेरणादायी हो सकते हैं तथा इनसे भविष्य में होने वाली त्रुटियों को रोका जा सकता है, जिन्हें प्रतिरोधक कदम (Preventive step) कहा जाता है। सुधारात्मक कार्यवाही सम्बन्धी कदम उठाते समय अग्र बातों को ध्यान में रखना चाहिये

  1. सुधारात्मक कार्यवाही तत्काल करनी चाहिये।
  2. विचलनों (अन्तरों) को आधार मानकर ही सुधारात्मक कदम उठाना चाहिये।
  3. सम्बन्धित कर्मचारी के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को आधार मानकर ही सुधारात्मक कार्यवाही करनी चाहिये।

5. अनुगमन-सुधारात्मक कदम उठाने के साथ ही समय-समय पर यह भी देखना आवश्यक है कि उठाये गये सुधारात्मक कदम का क्या तथा कैसा प्रभाव हो रहा है तथा यह पर्याप्त है या कुछ अन्य सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता होगी।

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य

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चुम्बकत्व एवं द्रव्य NCERT पाठ्यपुस्तक के अध्याय में पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भू-चुम्बकत्व सम्बन्धी निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(a) एक सदिश को पूर्ण रूप से व्यक्त करने के लिए तीन राशियों की आवश्यकता होती है। उन तीन स्वतन्त्र राशियों के नाम लिखिए जो परम्परागत रूप से पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होती हैं।
(b) दक्षिण भारत में किसी स्थान पर नति कोण का मान लगभग 18° है। ब्रिटेन में आप इससे अधिक नति कोण की अपेक्षा करेंगे या कम की?
(c) यदि आप ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में भू-चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं का नक्शा बनाएँ तो ये रेखाएँ पृथ्वी के अन्दर जाएँगी या इससे बाहर आएँगी?
(d) एक चुम्बकीय सुई जो ऊर्ध्वाधर तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र है, यदि भू-चुम्बकीय उत्तर या दक्षिण ध्रुव पर रखी हो तो यह किस दिशा में संकेत करेगी?
(e) यह माना जाता है कि पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र लगभग एक चुम्बकीय द्विध्रुव के क्षेत्र जैसा है जो पृथ्वी के केन्द्र पर रखा है और जिसका द्विध्रुव आघूर्ण 8 × 10225 जूल टेस्ला-1 है। कोई ढंग सुझाइए जिससे इस संख्या के परिमाण की कोटि जाँची जा सके।
(f) भूगर्भशास्त्रियों का मानना है कि मुख्य N-S चुम्बकीय ध्रुवों के अतिरिक्त, पृथ्वी की सतह पर कई अन्य स्थानीय ध्रुव भी हैं, जो विभिन्न दिशाओं में विन्यस्त हैं। ऐसा होना कैसे सम्भव है?
उत्तर :
(a) पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होने वाली तीन राशियाँ निम्नलिखित हैं-

  • नति कोण अथवा नमन कोण δ
  • दिक्पात का कोण θ
  • पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज अवयव BH

(b) चूँकि ब्रिटेन, दक्षिण भारत की तुलना में पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के अधिक समीप है, अतः यहाँ नति कोण अधिक होगा। वास्तव में ब्रिटेन में नति कोण लगभग 70° है।।
(c) ऑस्ट्रेलिया, पृथ्वी के दक्षिण गोलार्द्ध में स्थित है। चूंकि पृथ्वी के दक्षिण ध्रुव से चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ बाहर निकलती हैं, अत: ये पृथ्वी से बाहर निकलती प्रतीत होंगी।
(d) चूँकि ध्रुवों पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र ऊर्ध्वाधर होता है, अतः ध्रुवों पर लटकी चुम्बकीय सुई (जो ऊर्ध्वाधर तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र है) ऊर्ध्वाधर दिशा की ओर इंगित करेगी।

(e) यदि हम मान लें कि पृथ्वी के केन्द्र पर M चुम्बकीय-आघूर्ण का चुम्बकीय द्विध्रुव रखा है तो पृथ्वी के चुम्बकीय निरक्ष पर स्थित बिन्दुओं की इस द्विध्रुव के केन्द्र से दूरी पृथ्वी की त्रिज्या के बराबर होगी।
निरक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र \(B=\frac{\mu_{0}}{4 \pi} \cdot \frac{M}{r^{3}}\)
∴ \(M=\frac{4 \pi B r^{3}}{\mu_{0}} \)
प्रयोगों द्वारा पृथ्वी के चुम्बकीय निरक्ष पर B = 0.4 गॉस = 0.4 × 10-4 टेस्ला तथा
r = RE = 6.4 × 106 मीटर
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 1
= 10.5 × 1022
ऐम्पियर-मीटर 2 स्पष्ट है कि पृथ्वी के चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण का यह मान 8 × 1022 जूल टेस्ला-1 के अत्यन्त निकट है। इस प्रकार पृथ्वी के चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण के परिमाण की कोटि की जाँच की जा सकती है।
(f) यद्यपि पृथ्वी का सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र, एकल चुम्बकीय द्विध्रुव के कारण माना जाता है अपितु स्थानीय स्तर पर चुम्बकित पदार्थों के भण्डार अन्य चुम्बकीय ध्रुवों का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(a) एक जगह से दूसरी जगह जाने पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र बदलता है। क्या यह समय के साथ भी
साथ भी बदलता है? यदि हाँ, तो कितने समय अन्तराल पर इसमें पर्याप्त परिवर्तन होते हैं?
(b) पृथ्वी के क्रोड में लोहा है, यह ज्ञात है। फिर भी भूगर्भशास्त्री इसको पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का स्रोत नहीं मानते। क्यों?
(c) पृथ्वी के क्रोड के बाहरी चालक भाग में प्रवाहित होने वाली आवेश धाराएँ भू-चुम्बकीय क्षेत्र के लिए उत्तरदायी समझी जाती हैं। इन धाराओं को बनाए रखने वाली बैटरी (ऊर्जा स्रोत) क्या हो सकती है?
(d) अपने 4-5 अरब वर्षों के इतिहास में पृथ्वी अपने चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा कई बार उलट चुकी होगी। भूगर्भशास्त्री, इतने सुदूर अतीत के पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के बारे में कैसे जान पाते हैं?
(e) बहुत अधिक दरियों पर (30,000 किमी से अधिक) पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र अपनी द्विध्रुवीय आकृति से काफी भिन्न हो जाता है। कौन-से कारक इस विकृति के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं?
(1) अन्तरातारकीय अन्तरिक्ष में 10-12 टेस्ला की कोटि का बहुत ही क्षीण चुम्बकीय क्षेत्र होता है। क्या इस क्षीण चुम्बकीय क्षेत्र के भी कुछ प्रभावी परिणाम हो सकते हैं? समझाइए।
उत्तर :
(a) यद्यपि यह सत्य है कि पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र समय के साथ बदलता है, परन्तु चुम्बकीय-क्षेत्र में प्रेक्षण योग्य परिवर्तन के लिए कोई निश्चित समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। इसमें सैकड़ों वर्ष का समय भी लग सकता है।
(b) यह सुज्ञात तथ्य है कि पृथ्वी के क्रोड में पिघला हुआ लोहा है परन्तु इसका ताप लोहे के क्यूरी ताप से कहीं अधिक है। इतने उच्च ताप पर यह (लौहचुम्बकीय नहीं हो सकता) कोई चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न नहीं कर सकता।
(c) यह माना जाता है कि पृथ्वी के गर्भ में उपस्थित रेडियोऐक्टिव पदार्थों के विघटन से प्राप्त ऊर्जा ही आवेश धाराओं की ऊर्जा का स्रोत है।

(d) प्रारम्भ में पृथ्वी के गर्भ में अनेकों पिघली हुई चट्टानें थीं जो समय के साथ धीरे-धीरे ठोस होती चली गईं। इन चट्टानों में मौजूद लौह-चुम्बकीय पदार्थ उस समय के पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के अनुरूप संरेखित हो गए। इस प्रकार भूतकाल का पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र इन चट्टानों में चुम्बकीय पदार्थों के अनुरूपण में अभिलेखित है। इन चट्टानों का भूचुम्बकीय अध्ययन उस समय के पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का ज्ञान प्रदान करता है।

(e) पृथ्वी के आयनमण्डल में अनेकों आवेशित कण विद्यमान रहते हैं जिनकी गति एक अलग चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। यही चुम्बकीय क्षेत्र, पृथ्वी तल से अधिक दूरी पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को विकृत कर देता है। आयनों के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र सौर पवन पर निर्भर करता है।

(f) सूत्र R = \(\frac{m v}{q B}\) से, \(R \propto \frac{1}{B}\)
इससे स्पष्ट है कि अत्यन्त क्षीण चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेशित कण अति विशाल त्रिज्या का मार्ग अपनाता है जो कि थोड़ी दूरी में लगभग सरल रेखीय प्रतीत होता है, अत: छोटी दूरियों के लिए सूक्ष्म चुम्बकीय क्षेत्र अप्रभावी प्रतीत होते हैं परन्तु बड़ी दूरियों में ये प्रभावी विक्षेपण उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 3.
एक छोटा छड़ चुम्बक जो एकसमान बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र 0.25 टेस्ला के साथ 30° का कोण बनाता है, पर 4.5 × 10-2 जूल का बल आघूर्ण लगता है। चुम्बक के चुम्बकीय-आघूर्ण का परिमाण क्या है?
हल :
दिया है : B= 0.25 टेस्ला, θ = 30°, r = 4.5 × 10-2 जूल, M = ?
t= MB sin θ से,
\(M=\frac{\tau}{B \sin \theta}=\frac{4.5 \times 10^{-2}}{0.25 \times 0.5}\) (∵ sin 30° = 0.5)
∴ चुम्बकीय-आघूर्ण M = 0.36 जूल टेस्ला-1

प्रश्न 4.
चुम्बकीय-आघूर्ण m = 0.32 जूल टेस्ला-1 वाला एक छोटा छड़ चुम्बक, 0.15 टेस्ला के एकसमान बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा है। यदि यह छड़ क्षेत्र के तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो क्षेत्र के किस विन्यास में यह (i) स्थायी सन्तुलन और (ii) अस्थायी सन्तुलन में होगा? प्रत्येक स्थिति में चुम्बक की स्थितिज ऊर्जा का मान बताइए।
हल :
दिया है : m = 0.32 जूल टेस्ला-1
B= 0.15 टेस्ला ।
(i) जब चुम्बक का चुम्बकीय-आघूर्ण क्षेत्र की दिशा में संरेखित होगा तो चुम्बक स्थायी सन्तुलन की स्थिति में होगा।
इस स्थिति में स्थितिज ऊर्जा U0 = – MB cos 0° [∵ Uθe = – MB cos θ]
= – 0.32 × 0.15 × 1
= – 0.048 जूल
या = 4.8×10-2 जूल।

(ii) जब चुम्बकीय-आघूर्ण, क्षेत्र के विपरीत दिशा में संरेखित होगा (θ = 180°) तो चुम्बक अस्थायी सन्तुलन की स्थिति में होगा। इस स्थिति में स्थितिज ऊर्जा U180° = – MB cos 180°
= – 0.32 × 0.15 × (-1)
= + 0.048 जूल
= 4.8 × 10-2 जूल।

प्रश्न 5.
एक परिनालिका में पास-पास लपेटे गए 800 फेरे हैं तथा इसकी अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 2.5 × 10-4 मीटर2 है और इसमें 3.0 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है। समझाइए कि किस अर्थ में यह परिनालिका एक छड़ चुम्बक की तरह व्यवहार करती है? इसके साथ जुड़ा हुआ चुम्बकीय-आघूर्ण कितना है?
हल :
दिया है : N = 800, i = 3.0 ऐम्पियर, A = 2.5 × 10-4 मीटर2
∴ चुम्बकीय-आघूर्ण M = NiA = 800 × 3.0 × 2.5 × 10-4
= 0.60 जूल टेस्ला-1
∵ परिनालिका को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में लटकाने पर दण्ड चुम्बक के समान ही इस पर भी एक बल-युग्म कार्य करता है, अत: यह दण्ड-चुम्बक के समान व्यवहार करती है।

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प्रश्न 6.
यदि प्रश्न 5 में बताई गई परिनालिका ऊर्ध्वाधर दिशा के परितः घूमने के लिए स्वतन्त्र हो और इस पर क्षैतिज दिशा में एक 0.25 टेस्ला का एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र लगाया जाए, तो इस परिनालिका पर लगने वाले बल आघूर्ण का परिमाण उस समय क्या होगा, जब इसकी अक्ष आरोपित क्षेत्र की दिशा से 30° का कोण बना रही हो?
हल :
दिया है : B= 0.25 टेस्ला
पूर्व प्रश्न में,. M = 0.60 जूल टेस्ला-1
θ = 30°
∴ परिनालिका पर बल-आघूर्ण t = MB sin θ = 0.60 × 0.25 × \(\frac { 1 }{ 2 }\)
= 0.075 जूल = 7.5 × 10-2 जूल।

प्रश्न 7.
एक छड़ चुम्बक जिसका चुम्बकीय-आघूर्ण 1.5 जूल टेस्ला-1 है, 0.22 टेस्ला के एक एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र के अनुदिश रखा है।
(a) एक बाह्य बल आघूर्ण कितना कार्य करेगा यदि यह चुम्बक को चुम्बकीय क्षेत्र के (i) लम्बवत्, (ii) विपरीत दिशा में संरेखित करने के लिए घुमा दें।
(b) स्थिति (i) एवं (ii) में चुम्बक पर कितना बल आघूर्ण होता है?
हल :
दिया है : M = 1.5 जूल टेस्ला-1,
B= 0.22 टेस्ला ।
(a) सूत्र W = – MB (cosθ2 – cosθ1) से,
(i) चुम्बक को θ1 = 0° से θ2 = 90° तक घुमाने में बल-आघूर्ण द्वारा कृत कार्य
W = – 1.5 × 0.22 [cos 90° – cos 0°]
= – 0.33 × (0- 1)= 0.33 जूल। (ii) चुम्बक को 01 = 0° से 02 = 180° तक घुमाने में बल आघूर्ण द्वारा कृत कार्य
W = – 1.5 × 0.22 [cos 180° – cos 0°]
= – 0.33 [ – 1 – 1] = 0.66 जूल।

(b) (i) स्थिति (i) में चुम्बक पर कार्यरत बल आघूर्ण
t= MB sin 90°
= 1.5 × 0.22 × 1 = 0.33 जूल।
(ii) स्थिति (ii) में चुम्बक पर कार्यरत बल-आघूर्ण
T= MB sin 180° = 0

प्रश्न 8.
एक परिनालिका जिसमें पास-पास 2000 फेरे लपेटे गए हैं तथा जिसके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 1.6 × 10-4 मीटर2 है और जिसमें 4.0 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है, इसके केन्द्र से इस प्रकार लटकाई गई है कि यह एक क्षैतिज तल में घूम सके।
(a) परिनालिका के चुम्बकीय-आघूर्ण का मान क्या है?
(b) परिनालिका पर लगने वाला बल एवं बल आघूर्ण क्या है, यदि इस पर, इसकी अक्ष से 30° का कोण बनाता हुआ 7.5 × 10-2 टेस्ला का एकसमान क्षैतिज चुम्बकीय क्षेत्र लगाया जाए?
हल :
दिया है : कुल फेरे
N = 2000,
A = 1.6 × 10-4 मीटर2
i = 4.0 ऐम्पियर
B = 7.5 × 10-2 टेस्ला

(a) परिनालिका का चुम्बकीय-आघूर्ण
M = NiA = 2000 × 4.0 × 1.6 × 10-4
= 1.28 ऐम्पियर-मीटर2

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(b) सूत्र t = MB sin θ से,
अक्ष से θ = 30° के कोण पर लगे चुम्बकीय क्षेत्र के कारण बल आघूर्ण
t = 1.28 × 7.5 × 10-2 × \(\frac { 1 }{ 2 }\)
= 4.8 × 10-2 न्यूटन-मीटर
= 0.048 न्यूटन-मीटर। :: क्षेत्र एकसमान है, अत: परिनालिका पर कार्यरत बल शून्य होगा।

प्रश्न 9.
एक वृत्ताकार कुंडली जिसमें 16 फेरे हैं, जिसकी त्रिज्या 10 सेमी है और जिसमें 0.75 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है, इस प्रकार रखी है कि इसका तल 5.0 × 10-2 टेस्ला परिमाण वाले बाह्य क्षेत्र के लम्बवत् है। कुंडली, चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् और इसके अपने तल में स्थित एक अक्ष के चारों तरफ घूमने के लिए स्वतन्त्र है। यदि कुंडली को जरा-सा घुमा कर छोड़ दिया जाए तो यह अपनी स्थायी सन्तुलनावस्था के इधर-उधर 2.0 सेकण्ड-1 की आवृत्ति से दोलन करती है। कुंडली का अपने घूर्णन अक्ष के परितः जड़त्व-आघूर्ण क्या है?
हल :
दिया है : N = 16, r = 0.10 मीटर, i = 0.75 ऐम्पियर, B= 5.0 × 10-2 टेस्ला
घूर्णन आवृत्ति γ = 2.0 सेकण्ड-1, जड़त्व-आघूर्ण I = ?
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 2
कुंडली का चुम्बकीय-आघूर्ण
M = NiA = Ni × πr2
= 16 × 0.75 × 3.14 × (0.10)2
= 0.377 ऐम्पियर-मीटर2
∴ जड़त्व-आघूर्ण \(I=\frac{0.377 \times 5.0 \times 10^{-2}}{4 \times(3.14)^{2} \times(2.0)^{2}}\)
= 1.2 × 10-4 किग्रा-मीटर।

प्रश्न 10.
एक चुम्बकीय सुई चुम्बकीय याम्योत्तर के समान्तर एक ऊर्ध्वाधर तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र है। इसका उत्तरी ध्रुव क्षैतिज से 22° के कोण पर नीचे की ओर झुका है। इस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज अवयव का मान 0.35 गाउस है। इस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र का परिमाण ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है : चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज अवयव
BH = 0.35 गाउस
जबकि नति कोण δ = 22°
यदि पृथ्वी का सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र B है तो BH = B cos δ से,
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 3
\(B=\frac{B_{H}}{\cos \delta}=\frac{0.35}{\cos 22^{\circ}}\)
\(=\frac{0.35}{0.9272}\) = 0.38 गाउस।

प्रश्न 11.
दक्षिण अफ्रीका में किसी स्थान पर एक चुम्बकीय सुई भौगोलिक उत्तर से 12° पश्चिम की ओर संकेत करती है। चुम्बकीय याम्योत्तर में संरेखित नति-वृत्त की चुम्बकीय सुई का उत्तरी ध्रुव क्षैतिज से 60° उत्तर की
ओर संकेत करता है। पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज अवयव मापने पर 0.16 गाउस पाया जाता है। इस स्थान पर पृथ्वी के क्षेत्र का परिमाण और दिशा बताइए।
हल :
दिया है : नति कोण 6 = 60° जबकि दिक्पात का कोण θ = 12° उत्तर से पश्चिम की ओर BH = 0.16 गाउस
BH = B cos δ से,
\(B=\frac{B_{H}}{\cos \delta}=\frac{0.16}{\cos 60^{\circ}}\)
\(=\frac{0.16}{0.5}\) = 0.32 गाउस
अत: इस स्थान पर पृथ्वी का सम्पूर्ण क्षेत्र 0.32 गाउस है जिसकी दिशा भौगोलिक याम्योत्तर से 12° पश्चिम की ओर क्षैतिज से 60° के कोण पर ऊपर की ओर है।

प्रश्न 12.
किसी छोटे छड़ चुम्बक का चुम्बकीय-आघूर्ण 0.48 जूल टेस्ला-1 है। चुम्बक के केन्द्र से 10 सेमी की दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर इसके चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण एवं दिशा बताइए यदि यह बिन्दु (i) चुम्बक के अक्ष पर स्थित हो, (ii) चुम्बक के अभिलम्ब समद्विभाजक पर स्थित हो।
हल :
दिया है : M = 0.48 जूल टेस्ला-1, r = 0.10 मीटर, B= ?
(i) जब बिन्दु चुम्बक के अक्ष पर है तब चुम्बकीय क्षेत्र
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 4
= 0.96 × 10-4 टेस्ला ।
अथवा Bax = 0.96 गाउस दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर
(ii) जब बिन्दु चुम्बक के लम्ब समद्विभाजक पर है तो चुम्बकीय क्षेत्र
Beq= \(\frac { 1 }{ 2 }\)Bax = \(\frac { 1 }{ 2 }\) × 0.96
= 0.48 गाउस ( उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर)।

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प्रश्न 13.
क्षैतिज तल में रखे एक छोटे छड़ चुम्बक का अक्ष, चुम्बकीय उत्तर-दक्षिण दिशा के अनुदिश है। सन्तुलन बिन्दु चुम्बक के अक्ष पर, इसके केन्द्र से 14 सेमी दूर स्थित है। इस स्थान पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र 0.36 गाउस एवं नति कोण शून्य है। चुम्बक के अभिलम्ब समद्विभाजक पर इसके केन्द्र से उतनी ही दूर (14 सेमी) स्थित किसी बिन्दु पर परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र क्या होगा?
हल :
दिया है : पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र B= 0.36 गाउस, नति कोण δ = 0°
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 5
अक्ष पर सन्तुलन बिन्दु की दूरी r = 0.14 मीटर
माना सन्तुलन बिन्दु पर चुम्बक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र Bax है
तब सन्तुलन की अवस्था में ,
Bax = BH⇒ Bax = B cos δ = B
ये क्षेत्र परस्पर विपरीत होंगे।
अभिलम्ब समद्विभाजक पर, इतनी ही दूरी पर चुम्बक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
Beq = \(\frac { 1 }{ 2 }\)Bax⇒ Beq= \(\frac { 1 }{ 2 }\)B
परन्तु यहाँ पृथ्वी का क्षेत्र BH = B तथा चुम्बक का क्षेत्र दोनों एक ही दिशा में हैं, अतः यहाँ परिणामी क्षेत्र
B1 = Beq + B = \(\frac { 1 }{ 2 }\)B + B
= \(\frac { 3 }{ 2 }\)B = \(\frac { 3 }{ 2 }\) × 0.36 = 0.54 गाउस।
इसकी दिशा पृथ्वी के क्षेत्र के अनुदिश होगी।

प्रश्न 14.
यदि प्रश्न 13 में वर्णित चुम्बक को 180° से घुमा दिया जाए तो सन्तुलन बिन्दुओं की नई स्थिति क्या होगी?
हल :
इस स्थिति में, सन्तुलन बिन्दु अभिलम्ब समद्विभाजक पर प्राप्त होगा।
अक्षीय स्थिति में सन्तुलन बिन्दु हेतु
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 6
अन्तिम स्थिति में, प्रश्न के अनुसार rax = 0.14 मीटर
req = \(\frac{0.14}{(2)^{1 / 3}}\) × 2-1/3
= 0.111 मीटर = 11.1 सेमी।
अत: सन्तुलन बिन्दु निरक्षीय स्थिति में केन्द्र से 11.1 सेमी की दूरी पर मिलेगा।

प्रश्न 15.
एक छोटा छड़ चुम्बक जिसका चुम्बकीय-आघूर्ण 5.25 × 10-2 जूल टेस्ला-1 है, इस प्रकार रखा है कि इसका अक्ष पृथ्वी के क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् है। चुम्बक के केन्द्र से कितनी दूरी पर, परिणामी क्षेत्र पृथ्वी के क्षेत्र की दिशा से 45° का कोण बनाएगा, यदि हम (a) अभिलम्ब समद्विभाजक पर देखें, (b) अक्ष पर देखें? इस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण 0.42 गाउस है। प्रयुक्त दूरियों की तुलना में चुम्बक की लम्बाई की उपेक्षा कर सकते हैं।
हल :
दिया है : M = 5.25 × 10-2जूल टेस्ला-1
पृथ्वी का क्षेत्र BH = 0.42 गाउस
(a) माना ऐसा, चुम्बक के निरक्ष पर उसके केन्द्र से req दूरी पर होता है।
इस बिन्दु पर चुम्बक के कारण क्षेत्र
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 7

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प्रश्न 16.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(a) ठण्डा करने पर किसी अनुचुम्बकीय पदार्थ का नमूना अधिक चुम्बकन क्यों प्रदर्शित करता है? ( एक ही चुम्बककारी क्षेत्र के लिए)
(b) अनुचुम्बकत्व के विपरीत, प्रतिचुम्बकत्व पर ताप का प्रभाव लगभग नहीं होता। क्यों?
(c) यदि एक टोरॉइड में बिस्मथ का क्रोड लगाया जाए तो इसके अन्दर चुम्बकीय क्षेत्र उस स्थिति की तुलना में (किंचित) कम होगा या (किंचित) ज्यादा होगा, जबकि क्रोड खाली हो?
(d) क्या किसी लौहचुम्बकीय पदार्थ की चुम्बकशीलता चुम्बकीय क्षेत्र पर निर्भर करती है? यदि हाँ, तो उच्च चुम्बकीय क्षेत्रों के लिए इसका मान कम होगा या अधिक? . (e) किसी लौह चुम्बक की सतह के प्रत्येक बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ सदैव लम्बवत् होती हैं [यह तथ्य उन स्थिरविद्युत क्षेत्र रेखाओं के सदृश है जो कि चालक की सतह.के प्रत्येक बिन्दु पर लम्बवत् होती हैं। क्यों?
(f) क्या किसी अनुचुम्बकीय नमूने का अधिकतम सम्भव चुम्बकन, लौहचुम्बक के चुम्बकन के परिमाण की कोटि का होगा?
उत्तर :
(a) ताप के घटने पर पदार्थ के परमाण्वीय चुम्बकों का ऊष्मीय विक्षोभ कम हो जाता है जिसके कारण इन चुम्बकों के बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में संरेखित होने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। –
(b) प्रतिचुम्बकीय पदार्थ के परमाणु ऊष्मीय विक्षोभ के कारण, भले ही किसी भी स्थिति में हों, उनमें बाह्य
चुम्बकीय क्षेत्र के कारण, प्रेरित चुम्बकीय-आघूर्ण सदैव ही बाह्य क्षेत्र के विपरीत दिशा में प्रेरित होता है। इस प्रकार प्रतिचुम्बकत्व पर ताप का कोई प्रभाव नहीं होता।
(c) चूँकि बिस्मथ एक प्रतिचुम्बकीय पदार्थ है, अत: चुम्बकीय क्षेत्र अपेक्षाकृत कुछ कम हो जाएगा।
(d) लौहचुम्बकीय पदार्थों की चुम्बकशीलता बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र पर निर्भर करती है तथा तीव्र चुम्बकीय, क्षेत्र के लिए इसका मान कम होता है।
(e) जब दो माध्यम किसी स्थान पर मिलते हैं जिनमें से एक के लिए µ >>1 हो तो इनके सीमा पृष्ठ पर क्षेत्र रेखाएँ लम्बवत् हो जाती हैं।
(1) हाँ, किसी अनुचुम्बकीय पदार्थ का अधिकतम सम्भव चुम्बकत्व, लौहचुम्बकीय पदार्थ के चुम्बकन के परिमाण की कोटि का हो सकता है। परन्तु किसी अनुचुम्बकीय पदार्थ को इस कोटि तक चुम्बकित करने के लिए अति उच्च चुम्बकीय क्षेत्र की आवश्यकता होती है जिसे प्राप्त करना व्यवहार में सम्भव नहीं है।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(a) लौहचुम्बकीय पदार्थ के चुम्बकन वक्र की अनुत्क्रमणीयता, डोमेनों के आधार पर गुणात्मक दृष्टिकोण से समझाइए।
(b) नर्म लोहे के एक टुकड़े के शैथिल्य लूप का क्षेत्रफल, कार्बन-स्टील के टुकड़े के शैथिल्य लप के क्षेत्रफल से कम होता है। यदि पदार्थ को बार-बार चुम्बकन चक्र से गुजारा जाए तो कौन-सा टुकड़ा अधिक ऊष्मा ऊर्जा का क्षय करेगार
(c) लौह चुम्बक जैसा शैथिल्य लूप प्रदर्शित करने वाली कोई प्रणाली स्मृति संग्रहण की युक्ति है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
(d) कैसेट के.चुम्बकीय फीतों पर परत चढ़ाने के लिए या आधुनिक कम्प्यूटर में स्मृति संग्रहण के लिए, किस तरह के लौहचुम्बकीय पदार्थों का इस्तेमाल होता है? ।
(e) किसी स्थान को चुम्बकीय क्षेत्र से परिरक्षित करना है। कोई विधि सुझाइए।
उत्तर :
(a) जब बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र को शून्य कर दिया जाता है तो भी लौहचुम्बकीय पदार्थ के डोमेन अपनी प्रारम्भिक स्थिति में नहीं लौट पाते अपितु उनमें कुछ चुम्बकन शेष रह जाता है। यही कारण है कि लौहचुम्बकीय पदार्थों का चुम्बकन वक्र अनुत्क्रमणीय होता है।
(b) किसी पदार्थ के शैथिल्य लूप का क्षेत्रफल एक पूर्ण चुम्बकन चक्र में होने वाली ऊर्जा-हानि को प्रदर्शित करता है। यह ऊर्जा-हानि ही पदार्थ में ऊष्मा के रूप में उत्पन्न होती है। चूंकि कार्बन-स्टील के शैथिल्य लूप का क्षेत्रफल अधिक है, अत: इसमें अधिक ऊष्मा उत्पन्न होगी अर्थात् कार्बन-स्टील का टुकड़ा अधिक ऊष्मा क्षय करेगा।
(c) किसी लौहचुम्बकीय पदार्थ का चुम्बकन उस पर लगाए गए बाह्य चुम्बकीय-क्षेत्र के चक्रों की संख्या पर निर्भर करता है। इस प्रकार किसी लौह चुम्बकीय पदार्थ का चुम्बकन उस पर लगाए गए चुम्बकन चक्र की सूचना दे सकता है। इस प्रकार चुम्बकन चक्र की स्मृति, चुम्बकित पदार्थ के नमूने में एकत्र हो जाती है।
(d) इस कार्य के लिए सिरेमिक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है।
(e) किसी स्थान को चुम्बकीय क्षेत्र से परिरक्षित करने के लिए उस स्थान को नर्म लोहे के रिंग से घेर देना चाहिए। इससे चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ, नर्म लोहे के रिंग से होकर गुजर जाती हैं तथा रिंग के भीतर प्रवेश नहीं कर पातीं।

प्रश्न 18.
एक लम्बे, सीधे, क्षैतिज केबल में 2.5 ऐम्पियर धारा, 10° दक्षिण-पश्चिम से 10° उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित हो रही है। इस स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर भौगोलिक याम्योत्तर के 10° पश्चिम में है। यहाँ पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र 0.33 गाउस एवं नति कोण शून्य है। उदासीन बिन्दुओं की रेखा निर्धारित कीजिए। (केबल की मोटाई की उपेक्षा कर सकते हैं।)
(उदासीन बिन्दुओं पर, धारावाही केबल द्वारा चुम्बकीय क्षेत्र, पृथ्वी के क्षैतिज घटक के चुम्बकीय क्षेत्र के समान एवं विपरीत दिशा में होता है।)
हल :
दिया है : पृथ्वी का क्षेत्र B= 0.33 × 10-4 टेस्ला, नति कोण δ = 0°
∴ पृथ्वी के क्षेत्र का क्षैतिज घटक BH = B cos δ = 0.33 × 10-4 टेस्ला
माना उदासीन बिन्दु तार से a दूरी पर है, तब
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 8
इस प्रकार, उदासीन बिन्दु रेखा केबल के समान्तर ऊपर की ओर केबल से 1.5 सेमी की दूरी पर होगी।

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प्रश्न 19.
किसी स्थान पर एक टेलीफोन केबल में चार लम्बे, सीधे, क्षैतिज तार हैं जिनमें से प्रत्येक में 1.0 ऐम्पियर की धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रही है। इस स्थान पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र 0.39 गाउस एवं नति कोण 35° है। दिक्पात कोण लगभग शून्य है। केबल के 4.0 सेमी नीचे और 4.0 सेमी ऊपर परिणामी चुम्बकीय क्षेत्रों के मान क्या होंगे?
हल :
पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र
B = 0.39 × 10-4 टेस्ला, δ = 35°, i= 1.0 ऐम्पियर
पृथ्वी के क्षेत्र का क्षैतिज अवयव
BH = B cos δ = 0.39 × cos 35°
= 0.39 × 0.819
= 0.319 गाउस (दक्षिण से उत्तर)
तथा ऊर्ध्वाधर अवयव
BV = B sin δ = 0.39 × sin 35° = 0.39 × 0.573
= 0.224 गाउस
चार केबलों के कारण उनसे a = 4.0x 10-2 मीटर की दूरी पर चुम्बकीय क्षेत्र
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 9
= 0.2 × 10-4 टेस्ला = 0.2 गाउस
केबल के ऊपर चुम्बकीय क्षेत्र B’ क्षैतिजतः दक्षिण से उत्तर की ओर तथा केबल के नीचे यह क्षेत्र क्षैतिजतः उत्तर से दक्षिण की ओर होगा।
केबल के नीचे चुम्बकीय क्षेत्र
यहाँ BH व B’ परस्पर विपरीत हैं।
∴ क्षैतिज अवयव
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 10
अत: केबल के नीचे नेट चुम्बकीय क्षेत्र 0.254 गाउस है जो क्षैतिज से 62° के कोण पर है।
केबल के ऊपर चुम्बकीय क्षेत्र
यहाँ BH व B’ एक ही दिशा में हैं।
∴ क्षैतिज अवयव
B’H = BH + B’ = 0.319 + 0.2 = 0.519 गाउस
जबकि BV = 0.224 गाउस
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 11
अत: नेट चुम्बकीय क्षेत्र 0.57 गाउस है जो क्षैतिज से 23° के कोण पर है।

प्रश्न 20.
एक चुम्बकीय सुई जो क्षैतिज तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र है, 30 फेरों एवं 12 सेमी त्रिज्या वाली एक कुंडली के केन्द्र पर रखी है। कुंडली एक ऊर्ध्वाधर तल में है और चुम्बकीय याम्योत्तर से 45° का कोण बनाती है। जब कुंडली में 0.35 ऐम्पियर धारा प्रवाहित होती है, चुम्बकीय सुई पश्चिम से पूर्व की ओर संकेत करती है।
(a) इस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज अवयव का मान ज्ञात कीजिए।
(b) कुंडली में धारा की दिशा उलट दी जाती है और इसको अपनी ऊर्ध्वाधर अक्ष पर वामावर्त दिशा में (ऊपर से देखने पर ) 90° के कोण पर घुमा दिया जाता है। चुम्बकीय सुई किस दिशा में ठहरेगी? इस स्थान पर चुम्बकीय दिक्पात शून्य लीजिए।
हल :
(a) दिया है : कुंडली में फेरों की संख्या N = 30
धारा i = 0.35 ऐम्पियर, त्रिज्या a = 0.12 मीटर
कंडली के केन्द्र पर चम्बकीय क्षेत्र \(B=\frac{\mu_{0} N i}{2 a}=\frac{4 \pi \times 10^{-7} \times 30 \times 0.35}{2 \times 0.12}\)
= 0.55 गाउस
यह क्षेत्र कुंडली के तल के लम्बवत् है।
∵ चुम्बकीय सुई पूर्व-पश्चिम दिशा में ठहरती है, अतः इस स्थान पर नेट चुम्बकीय क्षेत्र पूर्व पश्चिम दिशा में होगा।
यह तभी सम्भव है जबकि क्षेत्र B का उत्तर-दक्षिण दिशा में अवयव BH को सन्तुलित कर ले।
अर्थात् BH = B cos 45° = 0.55 × \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)
पृथ्वी के क्षेत्र का क्षैतिज अवयव BH = 0.39 गाउस।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 12
(b) चित्र-5.4 (b) से स्पष्ट है कि इस बार नेट चुम्बकीय क्षेत्र पूर्व से पश्चिम की ओर होगा। अतः चुम्बकीय सुई पूर्व से पश्चिम की ओर संकेत करेगी।

प्रश्न 21.
एक चुम्बकीय द्विध्रुव दो चुम्बकीय क्षेत्रों के प्रभाव में है। ये क्षेत्र एक-दूसरे से 60° का कोण बनाते हैं और उनमें से एक क्षेत्र का परिमाण 1.2 × 10-2 टेस्ला है। यदि द्विध्रुव स्थायी सन्तुलन में इस क्षेत्र से 15° का कोण बनाए, तो दूसरे क्षेत्र का परिमाण क्या होगा?
हल :
दिया है : B1 = 1.2 × 10-2 टेस्ला, B2 = ?
∵ द्विध्रुव एक क्षेत्र से 15° का कोण बनाता है, अत: दूसरे क्षेत्र से 45° का कोण बनाएगा।
सन्तुलन की स्थिति में दोनों के कारण द्विध्रुव पर कार्यरत बल-युग्म के आघूर्ण परस्पर सन्तुलित हो जाएँगे।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 13
∴ MB1 sin 15o = MB2 sin 45°
B2= \(\frac{B_{1} \sin 15^{\circ}}{\sin 45^{\circ}}\)
= \(\frac{1.2 \times 10^{-2} \times 0.2588}{0.707}\)
450
150
= 4.39 × 10-3 टेस्ला
= 4.4 x 10-3 टेस्ला ।

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प्रश्न 22.
एक समोर्जी 18 किलो इलेक्ट्रॉन-वोल्ट वाले इलेक्ट्रॉनों के किरण पुंज पर जो शुरू में क्षैतिज दिशा में गतिमान हैं, 0.04 गाउस का एक क्षैतिज चुम्बकीय क्षेत्र, जो किरण पुंज की प्रारम्भिक दिशा के लम्बवत् है, लगाया गया है। आकलन कीजिए 30 सेमी की क्षैतिज दूरी चलने में किरण पुंज कितनी दूरी ऊपर या नीचे विस्थापित होगा? (me = 9.11 × 10-31 किग्रा, e= 1.60 × 10-19 कूलॉम)।
[नोट : इस प्रश्न में आँकड़े इस प्रकार चुने गए हैं कि उत्तर से आपको यह अनुमान हो कि T.V. सेट में इलेक्ट्रॉन गन से पर्दे तक इलेक्ट्रॉन किरण पुंज की गति भू-चुम्बकीय क्षेत्र से किस प्रकार प्रभावित होती है।
हल :
दिया है : B= 0.04 गाउस = 4 x 10-6 टेस्ला ।

MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 14
माना इलेक्ट्रॉनों का वेग υ x है, तब \(\frac { 1 }{ 2 }\)meυ x2 = K ⇒ υ x = \(\sqrt{\frac{2 K}{m_{e}}}[latex]
इलेक्ट्रॉन, चुम्बकीय क्षेत्र के कारण वृत्तीय मार्ग पर गति करते हैं जिसकी त्रिज्या । निम्नलिखित है –
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 15
माना इलेक्ट्रॉन-पुंज बिन्दु A पर चुम्बकीय क्षेत्र में क्षैतिज दिशा में प्रवेश करते हैं तथा क्षैतिज दिशा में x = 0.30 मीटर दूरी तय करने तक बिन्दु B पर पहुँच जाते हैं, तब (चित्र से),
sin θ = [latex]\frac{x}{R}=\frac{0.30}{11.3}\)= 0.0265
θ = sin-1(0.0265) = 1.52°
∴ इलेक्ट्रॉनों का ऊपर अथवा नीचे की ओर विस्थापन
y= OA – OC = R – R cos θ = R (1 – cosθ) = 11.3 (1 – 0.9996)
= 4.0 × 10-3 मीटर अथवा
y = 4 मिमी।

प्रश्न 23.
अनुचुम्बकीय लवण के एक नमूने में 2.0 × 1024 परमाणु द्विध्रुव हैं जिनमें से प्रत्येक का द्विध्रुव आघूर्ण 1.5 × 10-23 जूल टेस्ला-1 है। इस नमूने को 0.64 टेस्ला के एक एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा गया है और 4.2 K ताप तक ठण्डा किया गया। इसमें 15% चुम्बकीय संतृप्तता आ गई। यदि इस नमूने को 0.98 टेस्ला के चुम्बकीय क्षेत्र में 2.8 K ताप पर रखा हो तो इसका कुल द्विध्रुव आघूर्ण कितना होगा? (यह मान सकते हैं कि क्यूरी नियम लागू होता है।)
हल :
दिया है : N = 2.0 × 1024, m = 1.5 × 10-23 जूल टेस्ला -1, B1 = 0.64 टेस्ला, T1= 4.2 K, चुम्बकीय संतृप्तता M1 = 15%, B2 = 0.98 टेस्ला, T2 = 2.8 K,
चुम्बकीय संतृप्तता M2 = ?
चुम्बकीय संतृप्तता की स्थिति में,
पदार्थ का चुम्बकीय-आघूर्ण M = Nm = 2.0 × 1024 × 1.5 × 10-23 = 30 जूल टेस्ला-1
प्रथम स्थिति में,
चम्बकीय-आघूर्ण M1 = M का 15% = \(\frac{15 M}{100}=\frac{15 \times 30}{100}\) = 4.5 जल टेस्ला-1
∵ क्यूरी नियम लागू होता है। अतः
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 16

प्रश्न 24.
एक रोलैंड रिंग की औसत त्रिज्या 15 सेमी है और इसमें 800 आपेक्षिक चुम्बकशीलता के लौह चुम्बकीय क्रोड पर 3500 फेरे लिपटे हुए हैं। 1.2 ऐम्पियर की चुम्बककारी धारा के कारण इसके क्रोड में कितना घुम्बकीय क्षेत्र (\(\overrightarrow{\mathbf{B}}\)) होगा?
हल :
दिया है : औसत त्रिज्या a = 0.15 मीटर, μr = 800, N = 3500, i = 1.2 ऐम्पियर, B= ?
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 17

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प्रश्न 25.
किसी इलेक्ट्रॉन के नैज चक्रणी कोणीय संवेग \(\overrightarrow{\mathbf{s}}\) एवं कक्षीय कोणीय संवेग \(\overrightarrow{1}\) के साथ जुड़े चुम्बकीय-आघूर्ण क्रमशः \(\overrightarrow{\mu_{\mathrm{S}}}\) और \(\overrightarrow{\mu_{1}}\) हैं। क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर (और प्रयोगात्मक रूप से अत्यन्त परिशुद्धतापूर्वक पुष्ट) इनके मान क्रमशः निम्न प्रकार दिए जाते हैं –
μs = – \(\left(\frac{e}{2 m}\right) \overrightarrow{\mathrm{i}}\) एवं μl= – \left(\frac{e}{2 m}\right) \overrightarrow{\mathbf{1}}
इनमें से कौन-सा व्यंजक चिरसम्मत सिद्धान्तों के आधार पर प्राप्त करने की आशा की जा सकती है? उस चिरसम्मत आधार पर प्राप्त होने वाले व्यंजक को व्युत्पन्न कीजिए।
हल :
व्यंजक \(\vec{\mu}_{1}=-\left(\frac{e}{2 m}\right) \overrightarrow{1}\), चिरसम्मत सिद्धान्तों के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।
माना इलेक्ट्रॉन r त्रिज्या की वृत्तीय कक्षा में चक्कर लगा रहा है तथा इसका परिक्रमण काल T है, तब
परिक्रमण के कारण कक्षा में धारा i = \(\frac{e}{T}\)
∴ परिक्रमण के कारण उत्पन्न चुम्बकीय-आघूर्ण का परिमाण
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 18
जबकि कक्षा में घूमते इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 19
∵ इलेक्ट्रॉन का आवेश e ऋणात्मक है, अतः \(\vec{\mu}_{1} व \overrightarrow{1}\) सदिशों की दिशाएँ परस्पर विपरीत होंगी। . :
∴ सदिश रूप में लिखने पर, = \(\overrightarrow{\mu_{1}}=-\left(\frac{e}{2 m}\right) \overrightarrow{1}\)

चुम्बकत्व एवं द्रव्य NCERT भौतिक विज्ञान प्रश्न प्रदर्शिका (Physics Exemplar LO Problems) पुस्तक से चयनित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हल

चुम्बकत्व एवं द्रव्य बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को पृथ्वी के केन्द्र पर स्थित बिन्दु द्विध्रुव के क्षेत्र का प्रतिरूप माना जा सकता है। इस द्विध्रुव का अक्ष पृथ्वी के अक्ष से 11.3° का कोण बनाता है। मुम्बई में द्विक्पात लगभग शून्य है, तब –
(a) पृथ्वी पर दिक्पात का मान 11.3° पश्चिम से 11.3° पूर्व के बीच परिवर्तित होता है।
(b) निम्नतम दिक्पात शून्य अंश (0°) है।
(c) द्विध्रुव अक्ष तथा पृथ्ट के अक्ष को धारण करने वाला तल ग्रीनविच से गुजरता है।
(d) समस्त पृथ्वी पर दिक्पात सदैव ऋणात्मक होना चाहिए।
उत्तर :
(a) पृथ्वी पर दिक्पात का मान 11.3° पश्चिम से 11.3° पूर्व के बीच परिवर्तित होता है।

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प्रश्न 2.
कमरे के ताप पर किसी स्थायी चुम्बक में –
(a) प्रत्येक अणु का चुम्बकीय-आघूर्ण शून्य होता है
(b) सभी अलग-अलग अणुओं के शून्येतर चुम्बकीय-आघूर्ण होते हैं जो पूर्णत: संरेखित होते हैं।
(c) कुछ डोमेन अंशत: संरेखित होते हैं
(d) सभी डोमेन पूर्णत: संरेखित होते हैं।
उत्तर :
(c) कुछ डोमेन अंशत: संरेखित होते हैं

चुम्बकत्व एवं द्रव्य अतिं लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इलेक्ट्रॉन की भाँति प्रोटॉन में भी चक्रण तथा चुम्बकीय-आघूर्ण होता है, तब पदार्थों के चुम्बकत्व में इसमें प्रभाव की उपेक्षा क्यों की जाती है?
उत्तर :
इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय-आघूर्ण \(\left(\mu_{e}\right)=\frac{e h}{4 \pi m_{e}}\)
इसी प्रकार, प्रोटॉन का चुम्बकीय-आघूर्ण \(\left(\mu_{p}\right)=\frac{e h}{4 \pi m_{p}}\)
परन्तु mp >> me अतः μe >> μp
अतः पदार्थों के चुम्बकत्व में इलेक्ट्रॉन की तुलना में प्रोटॉन के चुम्बकीय-आघूर्ण की उपेक्षा की जाती है।

प्रश्न 2.
आण्विक दृष्टिकोण से प्रतिचुम्बकत्व, अनुचुम्बकत्व तथा लौहचुम्बकत्व की चुम्बकीय प्रवृत्तियों की ताप निर्भरता की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
प्रतिचुम्बकत्व इलेक्ट्रॉनों की कक्षीय गति के कारण उत्पन्न होता है, अतः यह ताप से अधिक प्रभावित नहीं होता है। अनुचुम्बकीय तथा लौहचुम्बकीय पदार्थों के अणुओं में अपना परिणामी । चुम्बकीय-आघूर्ण होता है तथा प्रत्येक अणु स्वयं एक चुम्बकीय द्विध्रुव होता है। इन पदार्थों में चुम्बकत्व इन चुम्बकीय द्विध्रुवों के बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के अनुदिश संरेखण के कारण उत्पन्न होता है। ताप वृद्धि पर संरेखण विक्षोभित होता है जिसके परिणामस्वरूप इन पदार्थों की चुम्बकशीलता ताप वृद्धि पर घट जाती है।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 20

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प्रश्न 3.
चित्र में दर्शाए अनुसार तीन सर्वसम छड़ चुम्बकों को समान तल में केन्द्र पर रिवट द्वारा जड़ दिया गया है। इस निकाय को विराम अवस्था में किसी धीरे-धीरे परिवर्तित होने वाले चुम्बकीय क्षेत्र में रखा गया है। यह पाया गया है कि चुम्बकों के निकाय में कोई गति नहीं हुई। एक चुम्बक के उत्तर-दक्षिण ध्रुवों को चित्र में दर्शाया गया है। अन्य दो चुम्बकों के ध्रुव निर्धारित कीजिए।
उत्तर :
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 5 चुम्बकत्व एवं द्रव्य img 21
चुम्बकों के निकाय में कोई गति नहीं हुई है, अत: परिणामी चुम्बकीय-आघूर्ण m = 0.
इसके लिए एकमात्र सम्भव स्थिति चित्र में दर्शायी गई है।

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MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन

निर्देशन Important Questions

निर्देशन वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा विशेषण का तत्व नहीं है –
(a) अभिप्रेरणा
(b) संप्रेषण
(c) पर्यवेक्षण
(d) हस्तांतरण।
उत्तर:
(d) हस्तांतरण।

प्रश्न 2.
अभिप्रेरणा का सिद्धांत जो आवश्यकताओं को क्रमबद्ध करता है, किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था –
(a) फ्रेड लुयांस
(b) स्काट
(c) अब्राहम मास्लो
(d) पीटर एन.ड्रकर।
उत्तर:
(c) अब्राहम मास्लो

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सा वित्तीय प्रोत्साहन है –
(a) पदोन्नति
(b) रहतिया प्रोत्साहन
(c) पद सुरक्षा
(d) कर्मचारी भागीदारी।
उत्तर:
(b) रहतिया प्रोत्साहन

प्रश्न 4.
अंगूरीलता है
(a) औपचारिक संप्रेषण
(b) संप्रेषण में बाधा
(c) पाीय संप्रेषण
(d) अनौपचारिक संप्रेषण।
उत्तर:
(d) अनौपचारिक संप्रेषण।

प्रश्न 5.
नारायण मूर्ति द्वारा प्रोत्साहित प्रवर्तक सॉफ्टवेयर कंपनी है –
(a) इन्फोसिस
(b) विप्रो
(c) सत्यम्
(d) एच.सी.एल.।
उत्तर:
(c) सत्यम्

प्रश्न 6.
नेतत्व के मार्ग में कौन-सी बाधाओं का सामना करना पड़ता है –
(a) अस्थिर आचरण वाले नेता
(b) कुछ नेता मानवीय प्रकृति से अपरिचित होते हैं
(c) अदूरदर्शी नेता
(d) सभी।
उत्तर:
(d) सभी।

प्रश्न 7.
निर्देशन प्रारम्भ होता है –
(a) शीर्ष स्तर से
(b) मध्यम स्तर से
(c) निम्न स्तर से
(d) सभी स्तरों से।
उत्तर:
(a) शीर्ष स्तर से

प्रश्न 8.
संप्रेषण का अभिप्राय है –
(a) कार्य का आबंटन
(b) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना देना
(c) कार्य पर नियंत्रण
(d) कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना।
उत्तर:
(b) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना देना

प्रश्न 9.
संदेश को संप्रेषण प्रतीकों में बदलने की प्रक्रिया को कहते हैं –
(a) माध्यम
(b) प्रतिपुष्टि
(c) एनकोडिंग
(d) डिकोडिंग।
उत्तर:
(d) डिकोडिंग।

प्रश्न 10.
निम्न में से क्या धनात्मक अभिप्रेरण नहीं है –
(a) वेतन वृद्धि रोकना
(b) वेतन वृद्धि
(c) बोनस
(d) प्रशस्ति पत्र।
उत्तर:
(a) वेतन वृद्धि रोकना

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. निर्देशन …………. प्रक्रिया का भाग है।
  2. निर्देशन ………… से ……….. की ओर प्रवाहित होता है।
  3. कर्मचारियों के प्रयासों का उद्देश्य प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करना …………. कहलाता है।
  4. मजदूरी में कटौती एक प्रकार का …………. अभिप्रेरण है।
  5. कर्मचारियों की अंतर्निहित शक्ति को जाग्रत करना ……… कहलाता है।
  6. पर्यवेक्षक …………. तथा ………… के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।
  7. लिखित संप्रेषण अधिक …………. होता है।
  8. मौखिक संप्रेषण …………. द्वारा किया जाता है।
  9. धनात्मक अभिप्रेरण में उद्देश्य प्राप्ति पर कर्मचारियों को ………. किया जाता है।
  10. ऋणात्मक अभिप्रेरण की दशा में कार्य समय पर पूरा न होने पर कर्मचारियों को किया जाता है।
  11. अभिप्रेरण …………. होती है।

उत्तर:

  1. प्रबन्ध
  2. ऊपर, नीचे
  3. निर्देशन
  4. ऋणात्मक
  5. अभिप्रेरण
  6. प्रबन्ध, श्रमिक
  7. विश्वसनीय,
  8. वार्तालाप
  9. पुरस्कृत
  10. दण्डित
  11. आंतरिक शांति।

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प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए

  1. ऐसा संदेशवाहन जो संस्था के संगठन संरचना के पदानुक्रम अनुसार होता है, उसे क्या कहते हैं ?
  2. अनौपचारिक संप्रेषण का वैकल्पिक नाम क्या है ?
  3. संस्था में अफवाह (भ्रम) की स्थिति किस संप्रेषण के कारण निर्मित होती है ?
  4. अधीनस्थों को प्रभावित करने की क्षमता क्या कहलाती है ?
  5. अमौद्रिक अभिप्रेरण का कोई एक उदाहरण लिखिये।
  6. निर्देशन का सार क्या है ?
  7. प्रबंधक किस प्रकार संगठन में कार्य प्रारंभ करते हैं ?
  8. अभिप्रेरण क्या है ?
  9. निम्न समीकरण को पूरा करें- पर्यवेक्षण +-+ नेतृत्व + अभिप्रेरणा = निर्देशन।
  10. निर्देशन के तीन तत्व पर्यवेक्षण, नेतृत्व तथा अभिप्रेरणा है। चौथा तत्व कौन-सा है ?
  11. अनुलाभ के कोई चार उदाहरण दें।
  12. प्रबंध के संदर्भ में पद का क्या अर्थ है ?
  13. किसे नेता कहते हैं ?
  14. आर्थिक सुरक्षा से क्या अभिप्राय है ?
  15. प्रबंध का कौन-सा कार्य कार्यात्मक प्रबंध कहलाता है ?
  16. किसी व्यक्ति द्वारा किसी विशेष कार्य करने की इच्छा किस पर निर्भर करती है ?
  17. लाभ-भागिता से क्या अभिप्राय है ? 18. भोजन, वस्त्र और आश्रय आदि किस प्रकार की आवश्यकताओं के उदाहरण हैं ?
  18. अनौपचारिक संप्रेषण से कर्मचारियों को होने वाला एक लाभ लिखिए।

उत्तर:

  1. औपचारिक संदेशवाहन
  2. अंगूरलता संप्रेषण
  3. अनौपचारिक संप्रेषण
  4. नेतृत्व क्षमता
  5. प्रशस्तिपत्रप्रदान करना
  6. निर्देशन का सार निष्पादन है
  7. प्रबंधक दिशा-निर्देश देकर संगठन में कार्य प्रारंभ करते हैं
  8. संस्था में काम करने वाले लोगों को अभिप्रेरित करने की तकनीक को अभिप्रेरण कहते हैं
  9. पर्यवेक्षण + संप्रेषण + नेतृत्व + अभिप्रेरणा = निर्देशन
  10. चौथा तत्व संप्रेषण है
  11. किराया मुक्त मकान
    • कार
    • नौकर की सुविधा
    • बच्चों की शिक्षा
  12. प्रबंध के संदर्भ में पद का अर्थ एक व्यक्ति के संगठन में स्थान से है
  13. नेतृत्व के गुण रखने वाले व्यक्ति को नेता कहते हैं
  14. आर्थिक सुरक्षा से अभिप्राय है रोजगार को सुरक्षित रखना तथा बुढ़ापा की व्यवस्था करना
  15. निर्देशन
  16. अभिप्रेरण पर
  17. लाभ-भागिता से अभिप्राय है कर्मचारियों को कंपनी के लाभ में से हिस्सा देना
  18. ये आर्थिक आवश्यकताओं के उदाहरण हैं
  19. अनौपचारिक संप्रेषण से कर्मचारियों को मनोवैज्ञानिक संतुष्टि मिलती है।

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प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. प्रबन्ध के सभी स्तरों पर निर्देशन की आवश्यकता होती है।
  2. पर्यवेक्षण नेतृत्व, अभिप्रेरण तथा सन्देशवाहन निर्देशन के महत्वपूर्ण तत्व हैं।
  3. प्रजातान्त्रिक पर्यवेक्षण में सख्त अनुशासन होता है।
  4. मास्लो के अनुसार सम्मान आवश्यकताओं की सबसे पहले सन्तुष्टि की जाती है।
  5. नेतृत्व की आवश्यकता केवल कम दक्ष कर्मचारियों के लिए है।
  6. नेता औपचारिक सत्ता से अपने प्रभाव का उपयोग करता है।
  7. यदि कर्मचारीगण कुशल हैं, तो नेतृत्व की आवश्यकता नहीं होती है।
  8. अंगूरीलता सन्देशवाहन औपचारिक सन्देशवाहन का प्रारूप है।
  9. सन्देशवाहन का आशय विचारों के आदान-प्रदान से है।
  10. सभी प्रबन्धक नेता होता है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. असत्य
  8. असत्य
  9. सत्य
  10. सत्य।

प्रश्न 5
सही जोड़ी बनाइये
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन IMAGE - 1
उत्तर:

  1. (g)
  2. (e)
  3. (b)
  4. (c)
  5. (d)
  6. (e)
  7. (f)

निर्देशन उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या निर्देशन प्रबंध का महत्वपूर्ण कार्य है ? क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
नहीं, मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। मेरे मतानुसार निर्देशन प्रबंध का अति महत्वपूर्ण कार्य है इसके समर्थन में निम्नलिखित कारण हैं

  1. क्रिया की शुरुआत करना
  2. अभिप्रेरण का साधन है
  3. संगठन में संतुलन बनाता है
  4. कर्मचारियों के प्रयासों को एकीकृत करता है।

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प्रश्न 2.
नेता तथा प्रबंधक के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए बताइए कि क्या एक अच्छा नेता होने के लिए अच्छा प्रबंधक भी होना आवश्यक है ?
उत्तर:
नेता तथा प्रबंधक के बीच का अंतर

नेता

  1. नेता संगठित तथा असंगठित समूह में बना रहता है।
  2. नेता का औपचारिक अधिकारों के अंदर प्रबंधक कार्य करना आवश्यक नहीं होता।
  3. नेता का कार्यक्षेत्र परिभाषित नहीं होता।

प्रबंधक

  1. प्रबंधक केवल संगठित समूह के अंतर्गत होता है।
  2. प्रबंध के कार्य-नियोजन, संगठन, नियंत्रण आदि करने होते हैं।
  3. प्रबंधक का कार्यक्षेत्र व्यापक होता है। प्रबंधक कोइन अंतरों से स्पष्ट होता है

सदैव औपचारिक अधिकारों के अंदरकार्य करता है। एक अच्छा नेता होने के लिए अच्छा प्रबंधक होना आवश्यक नहीं है कि एक अच्छा एवं प्रभावी प्रबंधक बनने के लिए नेता के अच्छे गुणों का होना आवश्यक है।

प्रश्न 3. निर्देशन के कार्य बताइए।
उत्तर:
निर्देशन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. आदेश-निर्देशन का प्रमुख कार्य अपने अधीनस्थों को आदेश देना होता है।
  2. पर्यवेक्षण-अधीन कर्मचारी दिए गये आदेशानुसार कार्य कर रहे हैं या नहीं, जाँच करने के लिए प्रबंधक को उनके कार्यों का पर्यवेक्षण करना होता है।
  3. मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण-अधीनस्थों को सही कार्य करने के लिए उनका मार्गदर्शन करना तथा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें प्रशिक्षण देना निर्देशक का कार्य होता है।
  4. समन्वय-निर्देशन का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य कर्मचारियों तथा प्रबंध के मध्य समन्वय अर्थात् तालमेल बनाना होता है।

प्रश्न 4.
नेता तथा प्रबंध में अंतर बताइए।
उत्तर:
नेता तथा प्रबंध के बीच का अंतर –
नेता

  1. नेता प्रबंध का एक भाग होता है। इस प्रकार इसका क्षेत्र सीमित होता है।
  2. नेता का अस्तित्व औपचारिक के साथ-साथ औपचारिक संगठन के अनौपचारिक संगठन में भी होता है।
  3. नेता अपने अनुयायियों को प्रेरित करता है।

प्रबंध

  1. प्रबंधकीय कार्यों में नेतृत्व कार्य होता है। अतः इसका क्षेत्र व्यापक होता है।
  2. प्रबंध का अस्तित्व केवल साथ होता है।
  3. प्रबंध का अस्तित्व केवल साथ होता है।

प्रश्न 5.
धनात्मक व ऋणात्मक अभिप्रेरण में चार अन्तर बताइये।
उत्तर:
धनात्मक व ऋणात्मक अभिप्रेरण में अन्तर –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन IMAGE - 2

प्रश्न 6.
मौद्रिक एवं अमौद्रिक प्रेरणाओं के कोई चार अन्तर बताइए।
उत्तर:
मौद्रिक एवं अमौद्रिक प्रेरणाओं में अन्तर –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन IMAGE - 3

प्रश्न 7.
निर्देशन के तत्वों को समझाइए।
उत्तर:
निर्देशन कोई एक कार्य नहीं है अपितु यह अनेक कार्यों का सम्मिश्रण है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित तत्वों को शामिल किया गया है

1. पर्यवेक्षण – यह निर्देशन कार्य का महत्वपूर्ण तत्व है। इसका अर्थ है अधीनस्थों के कार्य की निगरानी करना तथा उनकी समस्याओं के समाधान में मदद करते हुए प्रभावी निष्पादन को सुनिश्चित करना। .

2. नेतृत्व – एक प्रबंधक तभी सफल हो सकता है जबकि वह नेतृत्व योग्यता से ओत-प्रोत हो। नेतृत्व में अधीनस्थों को प्रभावित करने के लिए उचित प्रबंधकीय शैली प्रदान की जाती है।

3. संदेशवाहन – यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना देने की प्रक्रिया है इसमें व्यक्तियों को यह · बताना होता है कि उन्हें क्या करना है तथा कैसे करना है तथा अधीनस्थों की प्रतिक्रियाओं का पता लगाया जाता है।

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प्रश्न 8.
प्रेरणाएँ कितने प्रकार की होती हैं ? समझाइए।
उत्तर:
प्रेरणाएँ दो प्रकार की होती हैं

  1. मौद्रिक प्रेरणाएँ तथा अमौद्रिक प्रेरणाएँ
  2. धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रेरणाएँ।

(1) मौद्रिक प्रेरणाएँ – इन्हें वित्तीय प्रेरणाएँ भी कहते हैं। इनका मूल्यांकन मुद्रा के रूप में किया जा सकता है। जैसे-वेतन, मजदूरी, बोनस, कमीशन, निःशुल्क चिकित्सा सुविधा तथा वित्तीय अनुलाभ आदि।

अमौद्रिक प्रेरणाएँ – इन्हें अवित्तीय प्रेरणाएँ भी कहा जाता है। इनका मूल्यांकन मुद्रा के रूप में नहीं किया जाता है। जैसे-नौकरी की सुरक्षा, कैरियर में उन्नति के अवसर आदि।

(2) धनात्मक प्रेरणाए – इसमें कर्मचारियों के कार्य की प्रशंसा की जाती है उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। जिससे उनका मनोबल बढ़ता है।ऋणात्मक प्रेरणाएँ-इसमें कर्मचारियों के कार्य में की गई त्रुटियों को बताया जाता है, उन्हें दण्डित’ किया जाता है जिससे उनके मनोबल में गिरावट आती है।

प्रश्न 9.
एक पर्यवेक्षक के कार्यों को बताइए।
उत्तर:
एक पर्यवेक्षक के निम्नलिखित कार्य होते हैं :

  1. कार्यों का नियोजन करना- पर्यवेक्षक किए जाने वाले कार्य की अनुसूची तैयार करता है, निष्पादन का समय निर्धारित करता है, निष्पादन की निरंतरता का निर्धारण करना आदि ।
  2. आदेश-निर्देश देना- पर्यवेक्षक अधीनस्थों को कार्य शुरू करने, बंद करने, सुधारने, परिवर्तन करने, नवीनता लाने आदि के बारे में आदेश-निर्देश देता है।
  3. मार्गदर्शन करना – पर्यवेक्षक अपने अधीनस्थों को कार्य की पूरी जानकारी देकर उनका मार्गदर्शन करता है।

प्रश्न 10.
संदेशवाहन के माध्यम से क्या आशय है ?
उत्तर:
संदेशवाहन श्रृंखला औपचारिक हो चाहे अनौपचारिक, इस विषय-सामग्री (संदेश, विचार, सुझाव, शिकायत आदि) के आदान-प्रदान करने के लिए कुछ शब्दों, चिन्हों या चित्रों की आवश्यकता पड़ती है जिन्हें संदेशवाहन के माध्यम (Media) कहा जाता है। इनका प्रयोग अलग-अलग हो सकता है या एक माध्यम की सहायता के लिए दूसरे माध्यम का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-किसी बात को मौखिक रूप में कहा जा सकता है अथवा लिखित अथवा चिन्हों एवं चित्रों द्वारा भी प्रस्तुत किया जा सकता है। अतः संदेशवाहन के माध्यम को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं-

  1. मौखिक
  2. लिखित, तथा
  3. सांकेतिक।

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प्रश्न 11.
अभिप्रेरणा की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा का कार्य कई पदों से होकर गुजरता हैं । इसके अंतर्गत यह जाना जाता है कि यह कहाँ से शुरू होती है और कहाँ समाप्त होती है। कुण्ट्ज तथा ओ डेनेल ने अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को जरूरत→ आवश्यकता, तनाव कार्यवाही- संतुष्टि श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत किया है।

सबसे पहले जब किसी वस्तु की जरूरत महसूस होती है जो प्रबल होकर आवश्यकता बन जाती है। इस आवश्यकता को पूरा होने तक मनुष्य तनाव में रहता है इस तनाव से छुटकारा पाने के लिए वह अपनी इच्छापूर्ति के लिए कार्यवाही करता है और जब वह लक्ष्य पर पहुँच जाता है तो उसे संतुष्टि का अनुभव होता है।

अभिप्रेरणा द्वारा कर्मचारी को उसकी जरूरत का अनुभव करवाया जाता है जिसे पूरा करने की इच्छा अभिप्रेरित करके की जाती है ताकि कर्मचारी अपने प्रयासों से इच्छा रूपी मंजिल को पा सके और उनकी संतुष्टि हो सके।अभिप्रेरणा के द्वारा कर्मचारियों को संतुष्टि प्राप्त होने के साथ-साथ संगठन के लक्ष्यों को भी प्राप्त कराया जाता है।

प्रश्न 12.
पर्यवेक्षण की आवश्यकता या महत्व को समझाइए।
उत्तर:
पर्यवेक्षण के महत्व निम्नलिखित हैं

(1) पर्यवेक्षण प्रेरणा शक्ति है – बिना प्रेरणा शक्ति के किसी भी कार्य को पूरा नहीं किया जा सकता। कार्य को अतिशीघ्र पूरा करके लक्ष्य को प्राप्त करने में पर्यवेक्षण बहुत महत्वपूर्ण है।

(2) उपक्रम की सफलता – कोई भी उपक्रम कर्मचारियों के बिना प्रगति नहीं कर सकता। कर्मचारियों में स्फूर्ति लाने, सही मार्गदर्शन देने, दिशानिर्देश देने तथा सामंजस्य बनाए रखने के लिए पर्यवेक्षण आवश्यक है।

(3) अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक – किसी भी उपक्रम की सफलता के लिए उपक्रम में अनुशासन होना चाहिए, उसे बनाए रखने के लिए पर्यवेक्षण आवश्यक है। पर्यवेक्षक एक उच्च अधिकारी होता है।

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प्रश्न 13.
मौद्रिक तथा अमौद्रिक अभिप्रेरणाओं में अंतर बताइए।
उत्तर:
मौद्रिक तथा अमौद्रिक अभिप्रेरणाओं में अंतर

मौद्रिक अभिप्रेरणा

  1. मौद्रिक अभिप्रेरणा में व्यक्ति की इच्छा की अमौद्रिक पूर्ति मुद्रा के रूप में होती है।
  2. इसे मुद्रा में मापा जाता है।
  3. इसमें वेतन, मजदूरी, पेंशन आदि आते हैं।

अमौद्रिक अभिप्रेरणा

  1. अभिप्रेरणा में व्यक्ति की इच्छापूर्ति मुद्रा के अतिरिक्त अन्य तरीकों से होती है।
  2. इसे मुद्रा में नहीं मापा जाता।
  3. इसमें पदोन्नति के अवसर, नौकरी की सुरक्षा

प्रश्न 14.
संप्रेषण या संदेशवाहन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
संप्रेषण तथ्यों, विचारों, भावनाओं, सूचनाओं आदि को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने की कला है। संप्रेषण के अंतर्गत केवल संदेश भेजना या प्राप्त करना ही नहीं है, अपितु इसमें समझ भी शामिल है। संप्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच अर्थ तथा समझ का एक सेतु है। यह द्विमार्गी प्रक्रिया है। यह प्रेषक से प्रारंभ होती है और प्राप्तकर्ता की प्रतिपुष्टि पर समाप्त होती है। इस प्रकार यह एक चक्रीय प्रक्रिया है जो प्रेषक से प्रारंभ होकर प्रेषक पर ही समाप्त होती है।

प्रश्न 15.
एक नेता में संप्रेषण की कुशलता क्यों होनी चाहिए ?
उत्तर:
एक नेता में संप्रेषण की कुशलता निम्न कारणों से होनी चाहिए

1. एक नेता अपने समूह के सभी सदस्यों के लिये सूचना का स्रोत है। सामान्यतया अधिकारियों से प्राप्त सूचनाएँ एवं निर्देश अधीनस्थों को केवल नेताओं द्वारा दिये जाते हैं।

2. नेता अधीनस्थों की समस्याओं और शिकायतों को उच्च स्तर तक पहुंचाता है और समस्याओं की सही सूचना देने के लिए नेता के पास अच्छी संप्रेषण कुशलता होनी चाहिए।

3. अधीनस्थों और अधिकारियों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए नेताओं के पास संप्रेषण की कुशलता होनी चाहिए।

प्रश्न 16.
नेतृत्व की विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
नेतृत्व की विशेषताएँ (Features of leadership)-

  1. नेतृत्व एक व्यक्ति की दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता को प्रदर्शित करता है।
  2. नेतृत्व.व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करता है।
  3. नेतृत्व एक सतत् प्रक्रिया है।
  4. नेतृत्व का उद्देश्य सामान्य लक्ष्य को प्राप्त करना है।
  5. नेतृत्व नेता और अनुकरणकर्ता में अंत: वैयक्तिक संबंध दर्शाता है।

प्रश्न 17.
अभिप्रेरण में प्रयुक्त अंतः संबंधित शब्दों उदेश्य, अभिप्रेरण तथा अभिप्रेरक के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अभिप्रेरण में प्रयुक्त होने वाले अंत: संबंधित शब्द निम्नलिखित हैं-

1. उद्देश्य/प्रेरक (Motive) – यह एक आंतरिक इच्छा है। यह लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए शक्ति देता है। उद्देश्य एक व्यक्ति की आवश्यकताओं से उत्पन्न होता है।

2. अभिप्रेरण (Motivation) – यह लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लोगों को उनकी श्रेष्ठ योग्यता तक निष्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया है।

3. अभिप्रेरक (Motivators) – यह एक संगठन में लोगों को प्रेरित करने के लिए प्रयोग की जाने वाली एक तकनीक है। बोनस, बढ़ोत्तरी, पदोन्नति, मान्यता, सम्मान आदि प्रमुख अभिप्रेरक हैं।

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प्रश्न 18.
अभिप्रेरण की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
अभिप्रेरण की विशेषताएँ-

  1. अभिप्रेरणा एक आंतरिक अनुभव है।
  2. यह एक जटिल प्रक्रिया है।
  3. यह एक गतिशील और निरंतर प्रक्रिया है।
  4. अभिप्रेरक सकारात्मक भी हो सकते हैं और नकारात्मक भी।
  5. यह लक्ष्य अभिमुख (Object-oriented) व्यवहार को उत्पन्न करता है।
  6. अभिप्रेरणा प्रक्रिया मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित है।

प्रश्न 19.
अभिप्रेरण प्रक्रिया के निम्नलिखित चरणों के विषय में आप क्या जानते हैं ?

  1. असंतुष्ट आवश्यकता
  2. तनाव
  3. तनाव में कमी।

उत्तर:

1.असंतुष्ट आवश्यकता (Unsatisfied need) – यह मनुष्य की वह आवश्यकता है जिसको संतुष्ट किया जाना है। यह अभिप्रेरणा प्रक्रिया को शुरू करती है।

2. तनाव (Tension) – तनाव की उत्पत्ति असंतुष्ट आवश्यकता द्वारा होती है। यह स्वयं मनुष्य में एक इच्छा उत्पन्न करता है।

तनाव में कमी- यह अभिप्रेरणा प्रक्रिया का अंतिम चरण है। तनाव में कमी तब आती है जब आवश्यकता की संतुष्टि हो जाती है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित के विषय में आप क्या जानते हैं ?

  1. भौतिक या शारीरिक अवश्यकताएँ
  2. आत्म संतुष्टि की आवश्यकतायें।

उत्तर:

1. भौतिक या शारीरिक आवश्यकताएँ (Physiological needs)- मैस्लो की आवश्यकता सोपान में पहला क्रम (Rank) भौतिक या शारीरिक आवश्यकताओं का आता है। इसमें वे आवश्यकता हैं जो मनुष्य के अस्तित्व और उसको बनाये रखने (Maintain) के लिए आवश्यक हैं। इन आवश्यकताओं की संतुष्टि करने के लिए कर्मचारियों को मौद्रिक (वित्तीय) प्रेरणायें दी जाती है।

2. आत्म-संतुष्टि की आवश्यकतायें (Self actualisation needs) – आत्म-संतुष्टि आवश्यकताओं से अभिप्राय जीवन के लक्ष्य तक पहुंचने की चाह से है। एक बार कर्मचारी वह बन जाता है जो वह बनना चाहता है तो इसका अर्थ है कि उसकी आत्म संतुष्टि की आवश्यकता संतुष्ट हो गई है।

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प्रश्न 21.
‘अभिप्रेरण’ एवं ‘नेतृत्व’ की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:

1. अभिप्रेरण (Motivation)- अभिप्रेरण से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जो वांछित उद्देश्य प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों में उत्तेजना पैदा करती है। इससे लक्ष्य प्राप्ति व्यवहार पैदा होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, वह एक आंतरिक अभिव्यक्ति या अनुभव है। यह सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकती है। इससे निष्पादन स्तर में सुधार आता है। इससे कर्मचारियों के आवागमन में कमी आती है।

डब्लू. जी. स्काट के शब्दों में “अभिप्रेरण का अर्थ इस प्रक्रिया से है जो इच्छित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोगों को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है।”

नेतृत्व (Leadership)- नेतृत्व वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समूह के लोगों को इस प्रकार प्रभावित किया जाता है कि वे सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए स्वतः ही अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करने लगते हैं। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसमें अनुयायियों का व्यवहार बदलने की शक्ति होती है।

दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि नेतृत्व वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समूह के लोगों को इस प्रकार प्रभावित किया जाता है कि वे सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये स्वतः अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करने लग जाते हैं।

प्रश्न 22.
निर्देशन के एक तत्व के रूप में नेतृत्व शब्द की व्याख्या करें।
उत्तर:
नेतृत्व (Leadership)- नेतृत्व लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करने हेतु दूसरों को प्रेरित करने की योग्यता है। इसे अधीनस्थों को प्रभावित करने की प्रक्रिया के रूप में भी देखा जाता है ताकि वे संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में उत्साहपूर्वक योगदान करें।

नेतृत्व प्रबंध का एक अंग होता है, किंतु पूर्ण प्रबंध नहीं। यह दूसरों को प्रभावित करने की एक सतत् प्रक्रिया है। इसका कहीं भी अंत नहीं होता। कुन्टज और ओडोनेल के अनुसार, “नेतृत्व एक उच्चाधिकारी की अधीनस्थों को आत्म-विश्वास और उत्साह के साथ काम करने हेतु प्रेरित करने की योग्यता है।”

प्रश्न 23.
पर्यवेक्षण की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
पर्यवेक्षण की विशेषताएँ (Features of supervision) निम्नलिखित हैं

  1. यह प्रबंध के तीन स्तरों पर की जाने वाली एक सार्वभौमिक क्रिया है
  2. यह प्रबंध के निर्देशन कार्य का एक मुख्य अंग है।
  3. यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है क्योंकि इसकी आवश्यकता हर समय रहती है।
  4. यह सुनिश्चित करता है कि काम वांछित प्रगति से चल रहा है।
  5. इसका उद्देश्य मानवीय एवं अन्य साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना होता है।

प्रश्न 24.
औपचारिक संप्रेषण की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
औपचारिक संप्रेषण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. यह संप्रेषण लिखित या मौखिक दोनों प्रकार का हो सकता है।
  2. यह संप्रेषण उन लोगों के बीच होता है जिनके बीच संगठन द्वारा औपचारिक संबंध स्थापित किये गये हों।
  3. इसका पथ निश्चित होता है।
  4. औपचारिक संप्रेषण में संगठन से संबंधित अधिकृत सूचनाओं का ही प्रेषण किया जाता है। निजी संदेशों का नहीं।

प्रश्न 25.
अनौपचरिक या अंगूरीतला संप्रेषण की मुख्य विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
अनौपचारिक संप्रेषण की विशेषतायें –

  1. अनौपचारिक संप्रेषण सामाजिक संबंधों द्वारा उत्पन्न होता है अर्थात् यह संगठन के प्रतिबंधों से बाहर है। अधिकारी-अधीनस्थ संबंध जैसा कोई संबंध इसके बीच नहीं आता।
  2. इसके द्वारा कार्य संबंधी तथा व्यक्ति संबंधी दो प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित की जा सकती है।
  3. अनौपचारिक या अंगूरीलता संप्रेषण का मार्ग निश्चित नहीं होता। यह अंगूर की बेल की तरह टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर गुजरता है।
  4. इसमें अफवाहों तथा गलतफहमियों की संभावना अधिक रहती है। 5. अनौपचारिक संप्रेषण द्वारा खबरें जंगल की आग की तरह फैलती हैं।

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प्रश्न 26.
त्रुटिपूर्ण अनुवाद संप्रेषण की किस प्रकार की बाधा है ? उस प्रकार से संबंधित अन्य बाधायें लिखकर किसी एक बाधा के बारे में लिखें।
उत्तर:
त्रुटिपूर्ण अनुवाद भाषा संबंधी बाधा है। भाषा संबंधी अन्य बाधायें हैं

  1. संदेशों की गलत व्याख्या।
  2. भिन्न अर्थों वाले चिह्न या शब्द।
  3. अस्पष्ट मान्यतायें।
  4. अर्थहीन तकनीकी भाषा।
  5. शारीरिक भाषा व संकेतों का संप्रेषण।

संदेशों की गलत व्याख्या (Badly experessed messages)- भाषा के अस्पष्ट होने के कारण संदेशों को गलत व्याख्या होने की संभावना बनी रहती है। शब्दों का गलत चुनाव, अभद्र शब्द, वाक्यों का गलत क्रम आ से यह बाधा उत्पन्न होती है।

पान 27.
माध्यम, दिशा तथा विधि के आधार पर संप्रेषण के प्रकार लिखें।
उतर-

  1. माध्यम के आधार पर संप्रेषण के प्रकार-
    • औपचारिक संप्रेषण तथा
    • अनौपचरिक संप्रेषण
  2. दिशा के आधार पर संप्रेषण-
    • नीचे की ओर (अधोमुखी) संप्रेषण
    • ऊपर की ओर (ऊर्ध्वमुखी) संप्रेषण
    • समतल संप्रेषण
    • तिरछा संप्रेषण।
  3. विधि के आधार पर संप्रेषण-
    • मौखिक
    • लिखित
    • सांकेतिक।

प्रश्न 28.
संप्रेषण प्रक्रिया संदर्भ में ‘संदेशवाहक/प्रेषक’ तथा ‘शोर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

1. संदेशवाहक/प्रेषक (Communicator/Sender)- यह वह व्यक्ति/संस्था है जो संदेश भेजता है। संप्रेषण प्रक्रिया तब शुरू होती है जब प्रेषक कुछ विचार प्राप्त करता है और वह उस विचार को किसी के साथ बाँटना चाहता है।

2.शोर (Noise)- शोर संदेश प्रेषक से उसके प्राप्तकर्ता तक के मार्ग में कहीं भी उत्पन्न होने वाले एक अवांछित (Undesirable) ध्वनि है जो संप्रेषण प्रक्रिया को बाधित करती है। संप्रेषण को बाधित करने वाला शोर बस के चलने, दो व्यक्तियों के काफी नजदीक से बात करने या आसपास किसी के चिल्लाने अथवा खाँसने के कारण उत्पन्न हो सकता है। पत्र का खोजा जाना, टेलीफोन लाइन का बंद हो जाना अथवा सुनने वाले का ध्यान संदेश पर न होना आदि भी शोर के अंग माने जाते हैं। शोर का स्रोत आंतरिक और बाह्य दोनों हो सकते हैं।

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प्रश्न 29.
औपचारिक संप्रेषण के लाभ लिखें।
उत्तर:
औपचारिक संप्रेषण के लाभ –

  1. यह अधिक व्यवस्थित होता है।
  2. सूचना के स्रोत का सरलता से पता लगाया जा सकता है।
  3. इसमें विभिन्न कर्मचारियों के उत्तरदायित्वों को निश्चित करना सरल होता है।
  4. इसके द्वारा कर्मचारियों के कार्य-निष्पादन को नियंत्रित करना सरल होता है।

प्रश्न 30.
औपचारिक संप्रेषण के दोष लिखें।
उत्तर:
औपचारिक संप्रेषण के दोष निम्न हैं

1. इस तरह का संप्रेषण से सोपान श्रृंखला के आधार पर कार्य करते हुए धीमी गति का होता है। विशेषकर जब विभिन्न अधिकार स्तर के द्वारा संप्रेषण किया जाता है।

2. औपचारिक संप्रेषण मुख्य रूप से व्यक्तित्व शून्य तरीके से किया जाता है। व्यक्तिगत लगाव की कमी रहती है।
3. सही सूचनाओं या संदेशों के प्रतिकूल प्रभाव या विवेचन की संभावना के तथ्य संप्रेषित नहीं किये जाते। ऐसा आलोचना से बचने के लिए भी किया जा सकता है।

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

नियुक्तिकरण Important Questions

नियुक्तिकरण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
“भर्ती, भावी कर्मचारियों की खोज करने तथा उन्हें रिक्त कार्यों के लिये आवेदन करने के लिए प्रेरणा देने तथा प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया होती है।” यह परिभाषा दी है
(a) एलिन
(b) डेल.एस.बीच
(c) फिलिप्पो
(d) कूण्ट्ज एवं ओडोनेल।
उत्तर:
(c) फिलिप्पो

प्रश्न 2.
भर्ती के बाह्य स्रोत हैं –
(a) विज्ञापन
(b) रोजगार कार्यालय
(c) वर्तमान कर्मचारियों के मित्रगण
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
साक्षात्कार के उद्देश्य हैं –
(a) प्रार्थी की उपयुक्तता
(b) प्रार्थी को पद, संस्था के बारे में पूर्ण जानकारी देना
(c) प्रार्थी को संतोष
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न  4.
रोजगार कार्यालय भर्ती का स्रोत है –
(a) आन्तरिक
(b) बाह्य
(c) उपर्युक्त दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) बाह्य

प्रश्न  5.
सर्वोत्तम विकल्प का चयन किस पर आधारित होता है –
(a) पूर्वानुमान पर
(b) कार्यविधि पर
(c) विश्लेषण का मूल्यांकन
(d) नीति।
उत्तर:
(c) विश्लेषण का मूल्यांकन

प्रश्न 6.
प्रशिक्षण में बल दिया जाता है –
(a) सैद्धान्तिक ज्ञान पर
(b) सामान्य ज्ञान पर
(c) सर्वांगीण ज्ञान पर
(d) व्यावहारिक ज्ञान पर।
उत्तर:
(c) सर्वांगीण ज्ञान पर

प्रश्न 7.
निम्न में से क्या कार्य पर प्रशिक्षण’ है –
(a) केस अध्ययन
(b) भूमिका निर्वाह प्रशिक्षण
(c) शिक्षार्थी प्रशिक्षण
(d) सम्मेलन एवं गोष्ठियाँ।
उत्तर:
(c) शिक्षार्थी प्रशिक्षण

प्रश् 8.
नियुक्तिकरण का सम्बन्ध है –
(a) राजनीतिक घटक से
(b) आर्थिक घटक से
(c) सामाजिक घटक से
(d) मानकीय घटक से।
उत्तर:
(d) मानकीय घटक से

प्रश्न 9.
निम्न में से क्या मौद्रिक अभिप्रेरण है –
(a) बोनस
(b) पेंशन
(c) अवकाश वेतन
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10.
भर्ती प्रक्रिया में खोज की जाती है –
(a) वरिष्ठ कर्मचारियों की
(b) सेवानिवृत्त कर्मचारियों की
(c) भावी कर्मचारियों की
(d) विशिष्ट कर्मचारियों की।
उत्तर:
(c) भावी कर्मचारियों की

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. चयन …………. के बाद शुरू होता है।
  2. विकास का लक्ष्य कर्मचारी के …………. व्यक्तित्व का विकास करना है।
  3. गैर मानवीय संसाधन को …………. साधन क्रियाशील बनाता है।
  4. पूर्व कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति भर्ती का …………. स्रोत है।
  5. …………. एक नकारात्मक प्रक्रिया है जिसमें आवेदकों को चयनित तथा अचयनित दो भागों में विभाजित किया जाता है।
  6. संस्था में रिक्त पदों हेतु उपयुक्त कर्मचारियों का चयन व कार्य प्रदान करना …………. कहलाता है।
  7. संस्थानों में भर्ती के …………. स्रोत होते हैं।
  8. कर्मचारियों को भावी उच्च पदों हेतु तैयार करने की प्रक्रिया को …………. कहते हैं।
  9. कार्य परिवर्तन या कार्य बदली विधि का सर्वाधिक प्रचलन …………. में होता है।
  10. संस्था में कर्मचारियों की आवश्यकता का आकलन …………. प्रबन्धक द्वारा होता है।

उत्तर:

  1. पूर्व परीक्षा
  2. समग्र
  3. मानवीय
  4. आंतरिक
  5. चयन
  6. नियुक्तिकरण
  7. दो
  8. विकास,
  9. बैंक
  10. कार्मिक।

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. भर्ती के किसी एक आंतरिक स्रोत का नाम बताइये।
  2. भर्ती के किसी बाह्य स्रोत का नाम बताइये।
  3. चयन प्रक्रिया का अंतिम चरण क्या है ?
  4. जब कर्मचारी को संस्था के विभिन्न प्रकार के कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है, उस प्रशिक्षण पद्धति को क्या कहते हैं ?
  5. किस प्रशिक्षण पद्धति में कर्मचारियों को, कृत्रिम परिस्थिति में, कारखाने से अलग वास्तविक उपकरणों में प्रशिक्षण दिया जाता है ?
  6. प्रशिक्षण से किसमें वृद्धि होती है ?
  7. कर्मचारी वर्ग में प्रशिक्षण से किस बात का संचार होता है ?
  8. ‘कार्य पर प्रशिक्षण’ कहाँ दिया जाता है ?
  9. भर्ती का कौन-सा स्रोत विस्तृत चयन प्रदान करता है ?
  10. स्थानांतरण भर्ती का कौन-सा स्रोत है ?
  11. प्रशिक्षण की कितनी विधियाँ हैं ? उन विधियों के नाम लिखिए।
  12. भर्ती के किस स्रोत से कर्मचारी अभिप्रेरित होता है ?
  13. कर्मचारियों को प्रशिक्षण से होने वाला एक लाभ लिखिए।
  14. शिक्षा क्या है ?
  15. प्रशिक्षण तथा विकास में अंतर का एक बिन्दु लिखिए।

उत्तर:

  1. स्थानांतरण
  2. विज्ञापन द्वारा भर्ती
  3. नियुक्ति
  4. कार्य परिवर्तन विधि
  5. द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण विधि
  6. मनोबल
  7. आत्मविश्वास
  8. कार्यस्थल पर
  9. भर्ती का बाह्य स्रोत
  10. आंतरिक स्रोत
  11. शिक्षण की दो विधियाँ हैं –
    • कार्य पर प्रशिक्षण
    • कार्य से पृथक् प्रशिक्षण
  12. भर्ती के आंतरिक स्रोत से कर्मचारी अभिप्रेरित होता है।
  13. प्रशिक्षण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं कुशलता में वृद्धि होती है
  14. शिक्षा कर्मचारियों के ज्ञान तथा समझ को बढ़ाने वाली एक प्रक्रिया है,
  15. प्रशिक्षण जॉब प्रधान प्रक्रिया है, जबकि विकास कैरियर प्रधान प्रक्रिया है।

प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. प्रशिक्षण से कर्मचारी के ज्ञान, योग्यता, क्षमता में वृद्धि होती है।
  2. नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्ध का एक भाग है।
  3. नियुक्तिकरण कर्मचारियों के अपनत्व की भावना विकसित करता है
  4. कर्मचारियों की भर्ती तथा चयन दोनों समान है।
  5. नियुक्तिकरण की प्रक्रिया पर किया गया धन का व्यय धन की बर्बादी है।
  6. द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण में वास्तविक कार्यस्थल में कार्य के दौरान प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
  7. कार्य से संबंधित सैद्धांतिक व व्यावहारिक प्रशिक्षण, संयुक्त प्रशिक्षण के अंतर्गत दिया जाता है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. सत्य

प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण image - 1

उत्तर:

  1. (b)
  2. (c)
  3. (a)
  4. (e)
  5. (d)
  6. (f)

नियुक्तिकरण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कार्य से परे प्रशिक्षण की मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. प्रकोष्ठ शाला प्रशिक्षण- इस पद्धति के अंतर्गत नये कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से अलग से एक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की जाती है। एक अनुभवी एवं प्रशिक्षित प्रशिक्षक को इस केन्द्र का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। इस केन्द्र में औजारों एवं मशीनरी को इस ढंग से लगाया जाता है ताकि कारखाने जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाये। जब कर्मचारी प्रशिक्षित हो जाते हैं तो उन्हें वास्तविक कार्य पर लगा दिया जाता है।

2. विशिष्ट पाठ्यक्रम एवं कक्षाओं का आयोजन – प्रशिक्षण की इस विधि में संस्था के अंदर ही विशेष पाठ्यक्रम एवं कक्षाओं का आयोजन करके, प्रबंधकीय वर्ग के विभिन्न लोगों को अनुभवी एवं विशेषज्ञ व्यक्तियों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों प्रकार का होता है। इस तरह के प्रशिक्षण देने की अनेक विधियाँ हैं।

3. केस अध्ययन प्रणाली – इस विधि में वरिष्ठ प्रबंधक द्वारा प्रशिक्षार्थी प्रबंधकों को एक विशेष समस्या को सुलझाने के लिए कहा जाता है। सभी परीक्षार्थी अपने-अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर समस्या को हल निकालते हैं तथा एक-दूसरे के साथ मिलान करते हैं। एक ही समस्या के विभिन्न समाधान होने पर उनमें तर्क-वितर्क होता है।

सभी अपने-अपने समाधान के पक्ष में प्रमाण जुटाने का प्रयत्न करते हैं। इस तर्क-वितर्क को वरिष्ठ प्रबंधक द्वारा भी सुना जाता है। तर्क-वितर्क के आधार पर तथा अपने अनुभवों का प्रयोग करके वरिष्ठ प्रबंधक एक उपयुक्त समाधान प्रस्तुत करता है और उनके द्वारा किये गये प्रयासों में हुई त्रुटियों को स्पष्ट करता है।

4. चलचित्र – चलचित्र बहुत प्रभावी पद्धति हो सकती है, जहाँ कौशल का प्रदर्शन करना आवश्यक है। इसका सम्मेलन परिचर्चाओं में बहुत प्रयोग होता है।

5. कम्प्यूटर माडलिंग – यह कम्प्यूटर पर आधारित प्रशिक्षण है। इस विधि में प्रशिक्षार्थी अपने कौशल में वृद्धि के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग करता है। इस विधि का प्रयोग वहाँ होता है, जहाँ प्रशिक्षण अधिक महँगा हो। जैसे एक टाईम बम को प्रभावहीन करने का प्रशिक्षण देना।

6.नियोजित अनुदेश – इस विधि के अंतर्गत किसी संक्षिप्त घटना पर विचार किया जाता है। नियोजित अनुदेश में एक संक्षिप्त घटना को कक्षा में विचार के लिए रखा जाता है। प्रशिक्षक व विद्यार्थी सभी आपसी तर्कवितर्क के आधार पर समस्या का उचित समाधान ढूँढने का प्रयत्न करते हैं । इस विधि का मुख्य लाभ यह है कि इसमें प्रशिक्षक से प्रश्न पूछकर महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 2.
चयन प्रक्रिया में प्रयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार की रोजगार परीक्षाओं का वर्णन करें।
अथवा
विभिन्न प्रकार की रोजगार चयन परीक्षाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। .
अथवा
किन्हीं चार रोजगार परीक्षणों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
चयन परीक्षाएँ (Tests for selection) – आवेदकों के चयन की कई परीक्षायें हैं। उनमें से कुछ परीक्षाओं का नीचे वर्णन किया गया है

(i) बुद्धिमता परीक्षा (intelligence test) – इस परीक्षा के पीछे यह मान्यता है कि अधिक बुद्धिमान व्यक्ति किसी भी कार्य को शीघ्रता एवं सरलता से सीख सकता है और इनके प्रशिक्षण पर संस्था को अधिक खर्च नहीं करना पड़ता। प्रार्थियों की बुद्धिमता की जाँच के लिए उनकी ग्रहण शक्ति (Reception power), स्मरणशक्ति (Memory), तर्कशक्ति (Resasoning power) आदि को देखा जाता है। इस परीक्षण के लिए प्रश्नों की एक लंबी सूची तैयार करके प्रार्थियों को एक निश्चित समय में उत्तर देने को कहा जाता है। इसी आधार पर उनकी बुद्धिमता के स्तर का पता चलता है।

(ii) प्रवृत्ति परीक्षा (Aptitude test) – इस परीक्षा द्वारा प्रार्थी की छिपी हुई योग्यताओं का पता लगाने का प्रयास किया जाता है ताकि यह निश्चित किया जा सके कि उसे प्रशिक्षण द्वारा सिखाया जा सकता है अथवा नहीं। अन्य शब्दों में, वह परीक्षा जो प्रार्थी की सीखने की क्षमता का माप करती हो, प्रवृत्ति परीक्षा कहलाती है। प्रवृत्ति परीक्षा में यह देखा जाता है कि क्या एक व्यक्ति में किसी काम को सीखने की क्षमता है।

(iii) व्यक्तित्व परीक्षा (Personality test) – इस परीक्षा के द्वारा यह देखा जाता है कि एक व्यक्ति में अन्य व्यक्तियों के साथ मेल-मिलाप करने, उन्हें प्रभावित करने एवं उन्हें अभिप्रेरित करने की कितनी योग्यता है। इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि जिस कार्य पर उसे नियुक्त किया जायेगा, उसमें उपस्थित होने वाली बाधाओं से निपटने के लिए उसमें जरूरी शक्ति है या नहीं। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति जो दूसरे के दुःखों को नहीं समझता, एक अच्छा डॉक्टर नहीं हो सकता। इसी प्रकार एक व्यक्ति जिसको लोगों से मिलना अच्छा नहीं लगता वह एक अच्छा विक्रयकर्ता नहीं हो सकता।

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प्रश्न 3.
कार्य पर प्रशिक्षण से क्या अभिप्राय है ? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण (On the job training)- कार्य पर प्रशिक्षण से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसके अंतर्गत श्रमिक को उसके निकटतम पर्यवेक्षक (Immediate supervisor) द्वारा कार्यस्थल पर ही प्रशिक्षण दिया जाता है अर्थात् श्रमिक काम को वास्तविक परिवेश में ही सीखता है। यह करके सीखो (Learning by doing) के सिद्धांत पर आधारित है। यह विधि केवल तकनीकी कार्यों के लिये उपयुक्त है।
कार्य पर प्रशिक्षण की सामान्य प्रचलित विधियाँ (Common and popular methods of on the job training)- कार्य पर प्रशिक्षण की मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. नवसिखुआ प्रशिक्षण (Apprenticeship training)- इस विधि का प्रयोग वहाँ किया जाता है, जहाँ किसी विशेष कार्य में पूर्ण-दक्षता (Complete preficiency) प्राप्त करने के लिए एक लंबे समय तक प्रशिक्षण की आवश्यकता हो। इसमें प्रशिक्षण लेने वाले व्यक्ति को एक निश्चित समय तक किसी विशेषज्ञ के साथ काम करना पड़ता है। प्रशिक्षण की अवधि प्रायः दो वर्ष से सात वर्ष तक होती है।

प्रशिक्षण के दौरान विशेषज्ञ द्वारा कार्य के सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों पहलुओं की पूर्ण जानकारी दी जाती है। नियोक्ता द्वारा परीक्षण अवधि में निर्वाह भत्ता (Stipend) भी पारिश्रमक के रूप में दिया जाता है। पूर्ण दक्षता प्राप्त कर लेने पर कर्मचारी को वास्तविक कार्य सौंप दिया जाता है।

2. अनुशिक्षण (Coaching)- इस विधि में अधिकारी प्रशिक्षणार्थी का एक शिक्षक के रूप में मार्गदर्शन करता है और दिशा-निर्देश देता है। वह प्रशिक्षार्थी का मार्गदर्शन करता है कि वह किस प्रकार अपनी कमजोरी को दूर कर सकता है।

अधिकारी कर्मचारी के कार्य-निष्पादन और व्यवहार में आवश्यक परिवर्तनों का सुझाव देता है। शिक्षक संगठन के उद्देश्यों के साथ-साथ व्यक्तियों के उद्देश्यों को भी महत्व देता है।

3. संयुक्त प्रशिक्षण (Intership training)- संयुक्त प्रशिक्षण प्रणाली द्वारा तकनीकी संस्थाएँ एवं व्यावसायिक संस्थाएँ मिलकर अपने सदस्यों को प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक ज्ञान में संतुलन स्थापित करना है।

इस प्रशिक्षण प्रणाली के अंतर्गत शैक्षणिक संस्थाएँ अपने विद्यार्थियों को सैद्धांतिक ज्ञान तो स्वयं प्रदान करती हैं लेकिन व्यावहारिक ज्ञान के लिए उन्हें व्यावसायिक संस्थाओं में भेजती हैं। इस प्रकार जो कर्मचारी व्यावसायिक संस्थानों में पहले से काम कर रहे हैं,

उन्हें आधुनिकतम सैद्धांतिक ज्ञान (Latest theoretical knowledge) उपलब्ध कराने के लिए समय-समय पर शिक्षण संस्थाओं में भेजा जाता है। इस प्रकार दोनों प्रकार की संस्थायें एक-दूसरे की सहायता करती हैं।

4. पद-दली प्रशिक्षण-इस विधि का उद्देश्य एक अधिकारी को संस्था के सभी विभागों की जानकारी प्रदान करना है। अधिकारी को पहले एक विभाग में नियुक्त किया जाता है और जब वह इस विभाग के बारे में सभी जानकारियाँ प्राप्त कर लेता है, तो उसे किसी दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है और इसके बाद अन्य विभागों में इस प्रशिक्षण प्रणाली का मुख्य उद्देश्य संस्था में ऐसे अधिकारियों को उपलब्ध कराना है जो विपरीत परिस्थितियों में किसी भी विभाग को संभाल सके।

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प्रश्न 4.
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के एक चरण के रूप में अभिविन्यास (Orientation) के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
अभिविन्यास के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. नये कर्मचारी को संस्था से परिचित कराना।
  2. नये कर्मचारी को नये वातावरण में अति शीघ्र समायोजित करने का प्रयत्न करना।
  3. नये कर्मचारी तथा वर्तमान कर्मचारियों में मधुर संबंध विकसित करना।
  4. नये कर्मचारी को अनुभव करवाना कि वह संगठन का एक सदस्य है।
  5. नये कर्मचारी में संस्था के प्रति वफादारी का विकास करना।
  6. नये कर्मचारी का वर्तमान कर्मचारियों के साथ मिलकर एक टीम के सदस्य के रूप में काम करना।
  7. नये कर्मचारी को संस्था की नीतियों के बारे में अवगत कराना।
  8. इस बात को सुनिश्चित करना कि नया कर्मचारी संस्था के प्रति नकारात्मक अभिरुचि न बनाये।

प्रश्न 5.
अभिविन्यास कार्यक्रम के अंतर्गत नये कर्मचारियों को कौन-कौन सी सूचनाएँ दी जा सकती हैं ?
उत्तर:
अभिविन्यास कार्यक्रम (Induction programme) – के अंतर्गत नये कर्मचारी को निम्नलिखित सूचनायें दी जा सकती हैं

  1. कंपनी का संक्षिप्त इतिहास
  2. कंपनी की नीतियाँ।
  3. कंपनी का संगठनात्मक ढाँचा।
  4. विभागों की स्थिति (Location)
  5. कर्मचारियों को दी जाने वाली सुविधायें।
  6. नये कर्मचारी के अधिकार तथा कर्तव्य।
  7. कार्य करने के घंटे।
  8. अवकाश के नियम।
  9. अनुशासनं संबंधी नियम।

प्रश्न 6.
कारण सहित बताइए कि भर्ती के आंतरिक स्रोत बाह्य स्रोतों से बेहतर क्यों हैं ?
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक स्रोत, बाह्य स्रोतों से निम्नलिखित कारणों से बेहतर हैं

1. अभिप्रेरणा में वृद्धि- सभी आंतरिक स्रोतों और विशेषकर पदोन्नति द्वारा भर्ती किए जाने पर कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में वृद्धि होती है। यदि उन्हें पहले से ही मालूम हो कि उनकी पदोन्नति हो सकती है तो उच्च पद पर नियुक्त होने की इच्छा उनके मनोबल में वृद्धि करेगी और वे अपने कार्यों को अत्यधिक कुशलता के साथ करेंगे।

2. औद्योगिक शांति- भर्ती के आंतरिक स्रोतों का प्रयोग किए जाने पर पदोन्नति की खुशी में कर्मचारी वर्ग संतुष्ट रहता है और परिणामतः औद्योगिक शांति स्थापित होती है। पदोन्नति प्रक्रिया नीचे से ऊपर पूरे संगठन में चलती है। इसी विचार से कर्मचारी सीखने व अभ्यास करने पर पूरा जोर लगाते हैं।

3. सरल चयन- संस्था के अंदर काम कर रहे व्यक्तियों के बारे में हर तरह की जानकारी होती है। यही कारण है कि उनका उच्च पद के लिए चयन करने पर किसी प्रकार का जोखिम नहीं होता।

4. प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता नहीं- प्रस्तुतीकरण का अर्थ नए कर्मचारी को उस वातावरण से परिचित करवाना है जहाँ उसे काम करना है। भर्ती के इस स्रोत में कर्मचारियों को यह जानकारी पहले से ही होती है। अतः इस स्रोत में प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता नहीं है।

5. प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं-चूँकि कर्मचारी पहले से प्रशिक्षित होते हैं तो उन्हें पुनः प्रशिक्षण देने की आवश्यकता नहीं होती। अतः प्रशिक्षण पर होने वाले खर्च से भी संस्था का बचाव होता है।

प्रश्न 7.
कार्य पर प्रशिक्षण तथा कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों में अंतर लिखिए।
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण तथा कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों में अंतर –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण image - 2

प्रश्न 8.
नियुक्ति कार्य की आवश्यकता तथा महत्व को दर्शाने वाले बिंदु लिखें।
उत्तर:
निम्नलिखित बिंदु नियुक्ति कार्य की आवश्यकता तथा महत्व को दर्शाते हैं

  1. यह अन्य साधनों का प्रभावपूर्ण उपयोग संभव बनाता है।
  2. यह अन्य प्रबंधकीय कार्यों के निष्पादन को संभव बनाता है।
  3. यह सही व्यक्ति को सही कार्य दिलाता है।
  4. यह कर्मचारियों के विकास में सहायक है।
  5. यह कर्मचारियों के आवश्यकता से अधिक होने को रोकता है।
  6. यह योग्य एवं सक्षम कर्मचारियों को खोजने में सहायक है।
  7. यह मानवीय व्यवहार की जटिलताओं का सामना करने में सहायक है।

प्रश्न 9.
प्रशिक्षण से कर्मचारियों को होने वाले लाभों की सूची बनायें।
उत्तर:
प्रशिक्षण से कर्मचारियों को निम्नलिखित लाभ होते हैं

  1. कार्य संतुष्टि।
  2. दुर्घटनाओं में कमी।
  3. बाजार मूल्य में वृद्धि।
  4. पदोन्नति की अच्छी संभावनाएँ।
  5. कार्यक्षमता एवं कार्यकुशलता में वृद्धि।
  6. जीवन स्तर में सुधार।

प्रश्न 10.
भर्ती के बाह्य स्रोत के रूप में वर्तमान कर्मचारियों की अनुशंसा (Recommendation of exisiting employees) पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
वर्तमान कर्मचारियों की अनुशंसा (On the recommendations of existing employees)कई व्यावसायिक इकाइयाँ अपने कर्मचारियों को अपने यहाँ रोजगार देने के लिए उनके सगे-संबंधियों, मित्रों एवं अन्य जान-पहचान के लोगों के नामों के सिफारिश करने को प्रोत्साहित करती हैं। कुछ फर्मों का यह विश्वास है कि यह नीति एक मूल्यवान धरोहर है जिससे वर्तमान कर्मचारियों की साख भी बनी रहती है तथा इससे भरोसे के व्यक्ति भी मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त जब कोई वर्तमान कर्मचारी या व्यावसायिक मित्र किसी व्यक्ति की सिफारिश करता है तब अपने आप ही उस व्यक्ति की प्राथमिक जाँच हो जाती है।

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प्रश्न 11.
चयन प्रक्रिया के चरण के रूप में शारीरिक या डॉक्टरी परीक्षा के उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
चयन प्रक्रिया के चरण के रूप में डॉक्टरी परीक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  1. संबंधित कार्य के लिए आवश्यक क्षमता की जानकारी प्राप्त करना।
  2. संस्थाओं को संक्रामक रोगों से सुरक्षित रखना।
  3. कानूनी दावों के अंतर्गत अनुचित दावों के विरुद्ध संस्था को सुरक्षा प्रदान करना।
  4. कर्मचारियों की चिकित्सा पर अत्यधिक खर्च को रोकना।
  5. दुर्घटनाओं की दर, श्रम-आवर्तन और अनुपस्थिति दर को कम करना।

प्रश्न 12.
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भर्ती के किन्हीं पाँच आंतरिक स्रोतों को समझाइए।
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक स्रोत-जब संगठन के भीतर से ही विभिन्न पदों की पूर्ति की जाती है तो इसे आंतरिक स्रोत कहते हैं। भर्ती के आंतरिक स्रोत निम्नांकित हैं

1. स्थानांतरण-जब किसी कर्मचारी को उसके पद के अनुरूप उसी पद के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है तो इसे स्थानांतरण कहते हैं । स्थानांतरण होने पर अधिकारों तथा पारिश्रमिक के स्तर में कोई अंतर नहीं होता है।

2. पदोन्नति-जब कर्मचारियों को जो कि संगठन में पहले से ही कार्यरत हैं उन्हें अनुभव, वरिष्ठता तथा योग्यता के आधार पर पदोन्नत किया जाता है, इसे पदोन्नति कहते हैं।

3. अतिरेक कर्मचारियों का समायोजन-जब किसी कारणवश संगठन की किसी एक इकाई में कर्मचारियों की संख्या आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो उन अतिरिक्त कर्मचारियों को संगठन की ही दूसरी इकाई में जहाँ कर्मचारियों की संख्या कम है, अंतरित कर दिया जाता है। इसे ‘अतिरेक कर्मचारियों का समायोजन’ कहा जाता है।

भर्ती के बाह्य स्रोत-जब संगठन के बाहर से कर्मचारियों को कार्य पर रखा जाता है तो इसे बाह्य स्रोत कहा जाता है। भर्ती के बाह्य स्रोत निम्नलिखित हैं

1. सेवानिवृत्त सैन्य कर्मचारी-मिलिट्री में कार्यरत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु कम होने के कारण प्रबंधक इन्हें भर्ती करना पसंद करते हैं क्योंकि ये बहुत मेहनती, निष्ठावान तथा अनुशासनप्रिय होते हैं।

2. भूतपूर्व कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति-ऐसे कर्मचारी जो छंटनी के परिणामस्वरूप निकाल दिए गए थे या स्वयं किन्हीं कारणवश काम छोड़कर गए थे परन्तु अब कार्य करने के इच्छुक हैं और ऐसे कर्मचारियों का पुराना रिकॉर्ड यदि अच्छा है तो नए कर्मचारियों की तुलना में इन्हें रखना लाभप्रद होता है।

3. वर्तमान कर्मचारियों के मित्र तथा रिश्तेदार-वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों के मित्र व रिश्तेदार जो कि योग्य एवं कर्तव्यनिष्ठ हों उन्हें भी रिक्त पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

4. परिसर भर्ती-कारखानों या संस्थाओं द्वारा विभिन्न प्रार्थियों के आवेदन पत्र संस्था के द्वारा जमा करवा कर उनमें से कर्मचारियों का चयन किया जा सकता है।

5. शिक्षण संस्थाओं तथा तकनीकी संस्थाओं द्वारा विभिन्न शिक्षण तथा तकनीकी संस्थाओं से संपर्क करके रिक्त स्थानों पर होनहार नवयुवकों का चयन करके उनकी आवश्यकतानुसार भर्ती की जाती है।

6. विज्ञापन द्वारा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, रेडियो, टेलीविजन तथा इंटरनेट पर विज्ञापन देकर भी आवेदन बुलवाए जा सकते हैं, जिनमें से योग्य कर्मचारियों का चयन किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों में अंतर –

आंतरिक स्रोत

  1. आंतरिक स्रोत का तात्पर्य संस्था में रिक्त पदों को विद्यमान कर्मचारियों से भरना है नए कर्मचारियों से भरना है।
  2. इसके अंतर्गत कम समय लगता है।
  3. यह मितव्ययी होते हैं।
  4. इसमें चुनाव की सुविधा सीमित होती है इसलिए अधिक कुशल कर्मचारी नहीं मिल पाते। ।
  5. इसके द्वारा कर्मचारियों के मनोबल में कमी होती है।
  6. इसके अंतर्गत पदोन्नति तथा स्थानान्तरण आते

बाह्य स्रोत

  1. बाह्य स्रोत का तात्पर्य संस्था में रिक्त पदों को
  2. इस स्रोत के अंतर्गत अधिक समय लगता है
  3. बाह्य स्रोत के द्वारा भर्ती में अधिक खर्च वहन करने पड़ते हैं।
  4. इसमें चुनाव की सुविधा विस्तृत होती है तथा श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कर्मचारी मिल जाते हैं।
  5. इसके द्वारा कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि आती है।
  6. इसके अंतर्गत रोजगार कार्यालय द्वारा भर्ती, विज्ञापन द्वारा भर्ती आदि आते हैं।

प्रश्न 14.
प्रशिक्षण से संस्था तथा कर्मचारियों को कौन-कौन से लाभ होते हैं ?
उत्तर:
प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों को किसी विशेष प्रकार के कार्य को सही तथा कुशलतापूर्वक पूरा करने के लिए उसके ज्ञान तथा निपुणता में वृद्धि की जाती है। प्रशिक्षण देने से संस्था तथा कर्मचारी दोनों को लाभ होता है।
संस्था को लाभ-प्रशिक्षण देने पर एक संस्था को निम्नांकित लाभ होते हैं

  1. माल तथा मशीन का सही तथा मितव्ययी ढंग से प्रयोग होता है।
  2. उत्पादित माल की किस्म तथा मात्रा में सुधार होता है।
  3. दुर्घटनाओं में कमी आती है।
  4. पर्यवेक्षण की आवश्यकता कम पड़ती है।
  5. श्रमिकों की उपस्थिति बढ़ जाती है।
  6. औद्योगिक संबंधों में सुधार होता है।

कर्मचारियों को लाभ-प्रशिक्षण प्राप्त होने पर कर्मचारियों को निम्नांकित लाभ होते हैं

  1. कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है।
  2. दुर्घटनाओं का भय कम होता है।
  3. बाजार मूल्य में वृद्धि होती है।
  4. पदोन्नति के अवसरों में वृद्धि होती है।
  5. कार्यकुशलता तथा कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
  6. कर्मचारियों के जीवन स्तर में सुधार होता है।

प्रश्न 15.
चार्ट के माध्यम से भर्ती के दोनों स्रोतों को समझाइए।
उत्तर:
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण image - 4

प्रश्न 16.
भर्ती तथा चयन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भर्ती तथा चयन में अंतर –
भर्ती

  1. भर्ती में भविष्य के लिए कर्मचारियों की खोज करके उन्हें आवेदन-पत्र भेजने हेतु प्रोत्साहित
  2. भर्ती, चयन से पहले की जाती है।
  3. भर्ती के विभिन्न स्रोत होते हैं।
  4. भर्ती में प्रार्थियों की संख्या बहुत अधिक होती है।
  5. भर्ती एक सकारात्मक प्रक्रिया है।
  6. भर्ती एक साधन है।

चयन

  1. चयन में प्रार्थियों को दो भागों में बाँटा जाता है एक वे जिन्हें चुना गया है तथा दूसरे वे जिन्हें किया जाता है।अयोग्य घोषित किया गया है।
  2. चयन, भर्ती के बाद होता है।
  3. चयन की एक निश्चित प्रक्रिया होती है।
  4. चयन में प्रार्थियों की संख्या भर्ती से बहुत कम होती है।
  5. चयन एक नकारात्मक प्रक्रिया है।
  6. चयन एक साध्य है।

प्रश्न 17.
प्रशिक्षण की कोई पाँच विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की पाँच विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. कार्य पर प्रशिक्षण- इस विधि के अंतर्गत जिस स्थान पर कर्मचारी कार्य करते हैं उसी स्थान पर प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाती है। कार्य पर प्रशिक्षण देने का मुख्य उद्देश्य कम से कम समय में कर्मचारियों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित करने से है। इसमें प्रशिक्षार्थी रुचि से कार्य सीखता है तथा काम की बारीकियों से परिचित हो जाता है। इस विधि का एक बड़ा दोष है कि कार्य में बाधा उत्पन्न होती है और उत्पादन में गिरावट आती है।

2. प्रशिक्षण केन्द्रों पर प्रशिक्षण- इस विधि में प्रशिक्षण देने के लिए अलग-अलग विशिष्ट प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाते हैं। ऐसे प्रशिक्षण केन्द्र, सरकार या उद्योगपतियों द्वारा चलाए जाते हैं। इन केन्द्रों पर सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक दोनों प्रकार के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता है। इस विधि में उत्पादन कार्य में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती।

3. पर्यवेक्षकों द्वारा प्रशिक्षण- पर्यवेक्षकों द्वारा जब प्रशिक्षण दिया जाता है तो प्रशिक्षणार्थियों को अपने अधिकारियों से परिचित होने का अवसर भी मिल जाता है। साथ ही पर्यवेक्षकों को भी प्रशिक्षणार्थियों की योग्यता, दक्षता तथा संभावनाओं को परखने का अवसर मिल जाता है।

4. यंत्रों द्वारा प्रशिक्षण-यह प्रशिक्षण की आधुनिक विधि है। इसमें यंत्रों का बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है। ये यंत्र प्रशिक्षणार्थियों को काम के बारे में विभिन्न सूचनाएँ देते हैं।

5. उद्योग में प्रशिक्षण-वर्तमान समय में उद्योग में प्रशिक्षण देने का ढंग अत्यधिक लोकप्रिय हो गया है। इसमें उद्योग की आवश्यकता के अनुरूप ही कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

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प्रश्न 18.
भर्ती के बाह्य स्रोत में इंटरनेट द्वारा प्रकाशन (वेब प्रकाशन) क्या है ?
उत्तर:
वर्तमान समय में इंटरनेट का प्रयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट, भर्ती का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है क्योंकि आज की युवा पीढ़ी इंटरनेट से बहुत प्रभावित है। इंटरनेट पर भर्ती के लिए विशेष वेबसाइट बनाई जा रही है। इन वेबसाइटों के द्वारा प्रार्थियों को संपूर्ण जानकारी दी जाती है कि किस कंपनी को किस योग्यता के व्यक्ति, कितनी संख्या में चाहिए। वांछित योग्यता रखने वाले व्यक्ति इन कंपनियों में संपर्क करके नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। कुछ सामान्य वेबसाइट हैं
Naukri.com.,Monster.com, www.jobstreet.com, www. click. job. com. आदि।

प्रश्न 19.
प्रशिक्षण तथा विकास में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण तथा विकास में अंतरप्रशिक्षण
प्रशिक्षण

  1. प्रशिक्षण, ज्ञान तथा कौशल बढ़ाने की प्रक्रिया होती है।
  2. प्रशिक्षण अल्पकालीन होता है।
  3. प्रशिक्षण निम्न तथा मध्यम स्तर के कर्म चारियों के लिए उपयोगी होता है।
  4. प्रशिक्षण की एक निश्चित समयावधि होती है।
  5. प्रशिक्षण का क्षेत्र सीमित होता है।

विकास

  1. विकास, सीखने तथा वृद्धि की प्रक्रिया है।
  2. विकास दीर्घकालीन होता है।
  3. विकास का सम्बन्ध उच्च स्तर से होता है।
  4. विकास की कोई निश्चित समयावधि नहीं होती।
  5. विकास का क्षेत्र विस्तृत होता है।

प्रश्न 20.
प्रशिक्षण की आवश्यकता (महत्व) के कोई पाँच बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की आवश्यकता (महत्व) के प्रमुख बिन्दु निम्नांकित हैं

1. उत्पादकता में वृद्धि हेतु-प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि किसी भी कार्य को अच्छे ढंग तथा शीघ्र कैसे किया जाए। प्रशिक्षण द्वारा कर्मचारियों में कार्य के प्रति लगन में वृद्धि होती है। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप कार्यक्षमता में वृद्धि होती है इस प्रकार उपक्रम के उत्पादन में वृद्धि होती है।

2. दुर्घटनाओं में कमी-प्रशिक्षित कर्मचारी कार्य को सही ढंग से करता है। उसे पता होता है कि मशीनों एवं यंत्रों का उपयोग किस प्रकार करना है तो दुर्घटनाओं में भी कमी आती है। दुर्घटना को किस प्रकार टाला जा सकता है, सभी प्रशिक्षण के दौरान बताया जाता है।

3. पर्यवेक्षण तथा निर्देशन में कमी हेतु-किसी भी कार्य को सही ढंग से करने के लिए पर्यवेक्षण तथा निर्देशन दिया जाता है लेकिन एक प्रशिक्षित कर्मचारी अपने कार्य को सही व उचित तरीके से सम्पन्न कर लेता है। इसलिए प्रशिक्षण के बाद पर्यवेक्षण तथा निर्देशन करने की आवश्यकता नहीं होती है।

4. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि-प्रशिक्षित कर्मचारी अपने कार्य को पूर्ण कौशल के साथ करता है जिसके फलस्वरूप उसे कार्य में स्थायित्व मिलता है, पदोन्नति के अवसर अधिक मिलते हैं और उसके मनोबल में वृद्धि होती है।

5. स्थायित्व की भावना में वृद्धि-जब कोई भी संस्था किसी कर्मचारी को प्रशिक्षण प्रदान करती है तो प्रशिक्षण के दौरान उस पर अतिरिक्त भार बढ़ता है जिसकी पूर्ति वह कर्मचारी से कार्य करवाकर करती है। अतः कर्मचारी को कार्य में स्थायित्व प्रदान किया जाता है।

6. कार्यक्षमता व कुशलता में वृद्धि- प्रशिक्षण में विशेष कार्य को विधिपूर्वक करने की कला सिखाई जाती है। इससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं कुशलता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 21.
चयन क्या है ? इसकी प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चयन का आशय, बाहरी व्यक्तियों का परीक्षण करके, उनका साक्षात्कार लेकर उन्हें नियुक्त करने का निर्णय लेना है। चयन करने का मुख्य लक्ष्य होता है, सही व्यक्ति को सही कार्य पर लगाया जाये।
चयन की प्रक्रिया-चयन की सामान्य प्रक्रिया निम्न प्रकार है

1. पूर्व परीक्षाओं-चयन पूर्व परीक्षा के माध्यम से अयोग्य प्रत्याशियों को अलग कर दिया जाता है। इस पूर्व परीक्षा में सफल प्रत्याशी ही मुख्य परीक्षा में बैठने की पात्रता रखते हैं।

2. प्रारंभिक साक्षात्कार-प्रारंभिक साक्षात्कार में प्रार्थी की उपयुक्तता के बारे में निर्णय लेने में सहायता प्राप्त होती है। यदि प्रार्थी उपयुक्त पाया जाता है तो उसे रिक्त पद की नियुक्ति की अन्य औपचारिकताओं को पूरा करना पड़ता है।

3.रिक्त आवेदन पत्र भेजना-चयन करने के पश्चात् चयनित प्रत्याशी को एक रिक्त आवेदन पत्र भरने के लिए दिया जाता है। इसमें आवेदन के द्वारा अपनी शैक्षणिक योग्यता, अनुभव, अभिरुचि, वर्तमान स्थिति तथा संभावित वेतन आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है। इस प्रपत्र के तीन भाग होते हैं

  • व्यक्तिगत जानकारी
  • मनोवैज्ञानिक जानकारी
  • कार्य एवं योग्यता सम्बन्धी जानकारी।

4. आवेदन पत्र की जाँच-जब आवेदक द्वारा आवेदन पत्र भरकर संस्थान को भेज दिया जाता है तो आवेदन पत्र के साथ संलग्न संदर्भ पत्र तथा अनुभव आदि की जाँच की जाती है। प्रार्थी जब चयन की समस्त प्रक्रियाओं में सफल हो जाता है तब उसे नियोक्ता द्वारा एक पत्र निर्गमित किया जाता है जिसे नियुक्ति-पत्र कहते हैं।।

5. मुख्य परीक्षा-प्रत्याशी के चयन का आधार मुख्य परीक्षा ही होता है। इसे मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी कहते हैं। यह परीक्षा मुख्यतः लिखित में होती है। मुख्य परीक्षा में योग्यता परीक्षण, कार्य परीक्षण, अभिरुचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, भाषा-योग्यता तथा रुझान परीक्षण होते हैं।

प्रश्न 22.
चयन के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कर्मचारियों का चयन करते समय निम्नांकित सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए

  1. सक्षम व्यक्तियों द्वारा चयन-चयन हमेशा सक्षम व्यक्ति द्वारा ही किया जाना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर बाहरी विशेषज्ञों की सेवाएँ भी ली जा सकती हैं। इससे सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी के चयन की संभावना अधिक होती है।
  2. निर्धारित प्रभावों के आधार पर चयन हमेशा निर्धारित प्रमापों के आधार पर ही होना चाहिए ताकि संस्था में किसी भी अयोग्य कर्मचारी की नियुक्ति नहीं हो सके।
  3. उपयुक्त स्त्रोत-चयन आंतरिक तथा बाह्य किसी भी स्रोत से किया जा सकता है मुख्यत: यह बात ध्यान में रखी जाए कि सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशी का चयन होना चाहिए।
  4. चयन, संस्था की नीति के अनुरूप-यदि संस्था द्वारा कोई नीति निर्धारित की गई है तो चयन करते समय उसे ध्यान में रखा जाए, उसी के अनुरुप चयन होना चाहिए।
  5. सभी पहलुओं पर विचार-चयन करते समय व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता, उसकी कार्य के प्रति रुचि, स्वास्थ्य, अनुभव आदि बातों पर विचार किया जाना चाहिए।
  6. लोच-चयन की प्रक्रिया लोचदार होनी चाहिए अर्थात् संस्था के हित में आवश्यकता पड़ने पर आसानी से परिवर्तन किया जा सके।

प्रश्न 23.
भर्ती की पद्धतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी उद्योग या व्यवसाय में श्रम को एकत्र करने के लिये श्रमिकों की भर्ती आवश्यक है। श्रमिकों की भर्ती की पद्धति अलग-अलग हो सकती है किसी भी एक पद्धति पर निर्भर रहना उचित नहीं होता है अतः आवश्यकतानुसार एक या अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया जाना चाहिये। कर्मचारियों की भर्ती के लिये सामान्यतः निम्नलिखित पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं

1. मध्यस्थों द्वारा भर्ती (Recruitment through intermediary)–मध्यस्थों द्वारा कर्मचारियों की भर्ती की पद्धति अत्यधिक प्राचीन है। इस पद्धति में चौधरी, सरदार, मुकद्दम, ठेकेदार एवं दलालों द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों से श्रमिकों व कर्मचारियों को लाकर श्रम की पूर्ति करते हैं। यह पद्धति वर्तमान में अव्यावहारिक, शोषणकारी तथा अवैज्ञानिक मानी जाती है।

2.विज्ञापन द्वारा भर्ती (Recruitment through advertisement)-विज्ञापन श्रम पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन माना जाता है। इस पद्धति में नियोक्ता समाचार पत्र या रोजगार समाचार पत्रों में कर्मचारियों की आवश्यकता का विज्ञापन प्रकाशित करवाते हैं इसमें योग्यतायें, वेतन, भत्ते व अन्य शर्ते भी प्रकाशित की जाती हैं इच्छुक व योग्य व्यक्ति विज्ञापन पढ़कर आवेदन करते हैं व नियोक्ता आवेदकों में से योग्य व्यक्ति को कार्य पर नियुक्त कर देते हैं इस पद्धति में दूर-दूर के क्षेत्रों से योग्य कर्मचारियों को कार्य पर लगाया जा सकता है।

3. रोजगार कार्यालय द्वारा भर्ती (Recruitment through employment exchange) वर्तमान में प्रत्येक जिला स्तर पर व प्रत्येक विश्वविद्यालयों में रोजगार कार्यालय (केन्द्र). प्रारम्भ किये गये हैं जहाँ पर रोजगार से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त की जाती है। साथ ही यहाँ बेरोजगार युवक / युवतियों की विस्तृत जानकारी भी उपलब्ध रहती है। नियोक्ता या भर्तीकर्ता रोजगार केन्द्रों के माध्यम से भी श्रम पूर्ति कर सकते हैं।

4. प्रत्यक्ष भर्ती (Direct recruitment) – यह पद्धति आधुनिक समय में काफी प्रचलित व उपयुक्त मानी गई है। क्योंकि इसमें भर्तीकर्ता को अपने मनपसन्द व योग्य व्यक्ति को सीधे भर्ती करने का सुअवसर प्राप्त हो जाता है। इस पद्धति में विधिवत् आवेदन पत्रों को बुलाना, छाँटना, साक्षात्कार आदि समस्त क्रियायें क्रमवार की जाती हैं कुछ मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी इसमें किये जाते हैं। यह विधि पूर्णतः आधुनिक, वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक होने के कारण अधिकांश प्रतिष्ठानों द्वारा इसे अपनाया जा रहा है।

5. श्रम संघों द्वारा भर्ती (Recruitment through trade union) – कुछ उपक्रमों में या कुछ श्रम संगठन जैसे एटक, इन्टुक, हिन्द मजदूर सभा, ए. आई. फुटकों आदि अत्यधिक महत्त्वपूर्ण एवं सशक्त होते हैं। रोजगार से सम्बन्धित जानकारी इनके कार्यालय में सदैव उपलब्ध होती है अतः आवश्यकतानुसार श्रम संघों के माध्यम से भी श्रम पूर्ति की जा सकती है।

6. मित्रों एवं रिश्तेदारों द्वारा भर्ती (Recruitment through friends and relatives)-कुछ उपक्रम अपने कर्मचारी व प्रबन्धकों को यह निर्देशित करते हैं कि वे अपने विश्वासपात्र व योग्य मित्रों व रिश्तेदारों को कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करें। इससे अच्छे व योग्य कर्मचारी प्राप्त हो जाते हैं तथा इन कर्मचारियों पर विश्वास किया जा सकता है तथा गोपनीयता पर भरोसा किया जा सकता है किन्तु इस पद्धति में वर्तमान में काफी दोष आ गये हैं तथा गलत व्यक्ति के कार्य पर भर्ती हो जाने का सन्देह बना रहता है इस कारण इसे अव्यावहारिक पद्धति माना गया है।

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प्रश्न 24. आंतरिक स्रोत के लाभ लिखिए।
उत्तर:
आन्तरिक स्रोत के लाभ (Merits of internal sources)-भर्ती के आंतरिक स्रोतों के निम्नलिखित लाभ हैं

1. सामान्य नियमों की जानकारी संस्था में अनेक वर्षों से कार्य करने के कारण इन कर्मचारियों को संस्था के सामान्य नियमों व व्यावसायिक नीतियों की जानकारी अच्छी तरह से होती है। अतः नये कर्मचारियों की भांति इन्हें जानकारी देना आवश्यक नहीं होता इससे समय व धन की बचत होती है।

2. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि इस प्रणाली में कर्मचारियों का मनोबल सदैव उच्च बना रहता है,क्योंकि उन्हें यह ज्ञात रहता है कि कभी न कभी उनकी पदोन्नति अवश्य होगी। अत: वे काफी लगन व उत्साह
से कार्य करते हैं।

3. पदोन्नति के द्वार खुले रहना आंतरिक स्रोत से भर्ती विधि में सभी कर्मचारियों के लिये पदोन्नति के द्वार खुले रहते हैं। प्रत्येक कर्मचारी आशावान रहता है कि उसकी पदोन्नति भविष्य में अवश्य होगी।

4. भर्ती पर न्यूनतम व्यय – भर्ती की इस प्रणाली में न्यूनतम व्यय होता है, क्योंकि वे सभी औपचारिकतायें जो बाह्य स्रोतों में करनी पड़ती हैं तथा उन पर जो व्यय होता है, वह आंतरिक भर्ती में नहीं करना पड़ता। इससे उपक्रम अपव्यय से बच जाता है।

5. कार्यक्षमता में वृद्धि – इस विधि में सभी कर्मचारियों को यह ज्ञात रहता है कि उनकी भविष्य में पदोन्नति होगी। साथ ही अधिक कार्यकुशल व लगनशील कर्मचारियों की पदोन्नति शीघ्र होगी इसी उम्मीद से कर्मचारी पूर्ण लगन एवं आस्था से कार्य करते हैं। इससे कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 25.
प्रशिक्षण की परिभाषा लिखिए व प्रशिक्षण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की परिभाषायें (Definitions of Training)

1. एडविन बी. फ्लिप्पो (Edwin B. Flippo) के अनुसार-“किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिये कर्मचारी के ज्ञान, कौशल में वृद्धि करने से संबंधित क्रिया को प्रशिक्षण कहते हैं।”

2. डेल एस. बीच (Dale S. Beach) के अनुसार-“प्रशिक्षण एक ऐसी संगठित कार्यविधि है, जिसके द्वारा लोग किसी निश्चित उद्देश्य के लिये ज्ञान एवं कौशल सीखते हैं।”

3. माइकल जे. जूसियस (Michael J. Jucius) के अनुसार-“प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशिष्ट कार्यों के सम्पादन हेतु कर्मचारियों की अभिवृत्तियों, निपुणताओं एवं योग्यताओं में अभिवृद्धि की जाती है।”

4. प्लाण्टी, कोर्ड एवं इफर्सन (Planty, Cord and Efferson)-“प्रशिक्षण सभी स्तर के कर्मचारियों के उस ज्ञान, उन चातुर्यों तथा अभिवृत्तियों का सतत् एवं विधिवत् विकास है जो उनके तथा कम्पनी के कल्याण में योगदान देते हैं।”

वास्तव में जब हम किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन के लिये कुछ कार्य करते हैं तो इसे प्रशिक्षण कहा जाता है। इस प्रकार किसी विशिष्ट कार्य को विशिष्ट ढंग से करने की कला, ज्ञान एवं कौशल संबंधी शिक्षा प्रशिक्षण कहलाती है।

प्रशिक्षण की विश्नाथिया (Characteristics of Training)
प्रशिक्षण के आशय एवं परिभाषाओं की व्याख्या के पश्चात् इसकी निम्न विशेषतायें बताई जा सकती हैं।

  1. प्रशिक्षण कर्मचारी विकास की एक सतत् प्रक्रिया है।
  2. प्रशिक्षण कर्मचारियों के विकास का एक सुनिश्चित ढंग है।
  3. प्रशिक्षण से कर्मचारी के ज्ञान व कौशल में अभिवृद्धि होती है।
  4. प्रशिक्षण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  5. प्रशिक्षण मानव पूँजी (Human capital) में साभिप्राय विनियोग (Objective investment) है।
  6. प्रशिक्षण की व्यवस्था करना उपक्रम का उत्तरदायित्व एवं आवश्यकता है।
  7. प्रशिक्षण से कर्मचारियों को आत्मसन्तुष्टि मिलती है।

प्रश्न 26.
प्रशिक्षण के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Training)
किसी भी उपक्रम, संस्था या संगठन के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम एक आवश्यकता बन गई है। प्रशिक्षण के बिना औद्योगिक सफलता का प्रयास व्यर्थ होगा।
कीथ डेविस के अनुसार-“प्रशिक्षण का उद्देश्य किसी ऐसे व्यक्ति को नवीन अनुभव प्रदान करना है जो उसके ज्ञान, कौशल अथवा दृष्टिकोण में परिवर्तन द्वारा उसके आचरण में पविर्तन लाये।”प्रशिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं.

1. व्यवसाय की सामान्य जानकारी देना-नव नियुक्त कर्मचारी को व्यवसाय की सामान्य जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से सामान्य प्रशिक्षण आयोजित किया जाता है। कभी-कभी स्थानांतरण या कार्य परिवर्तन के कारण भी नये स्थान,नये कार्य की जानकारी प्रदान करने बाबत् प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

2. कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाने हेतु-प्रशिक्षण से कर्मचारी का मनोबल सदैव ऊँचा रहता है तथा अप्रशिक्षित कर्मचारी का मनोबल प्रतिकूल रहने से इसका उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अतः उत्पादन व कार्य में वांछित प्रगति के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है।

3. सूचना प्रसारित करने हेतु-व्यवसाय एवं उद्योग में कुछ ऐसी सूचनायें दी जाती हैं जिन्हें प्रशिक्षण केन्द्रों पर प्रदर्शन द्वारा देना महत्वपूर्ण होता है। अतः ऐसी सूचना कर्मचारियों में प्रदान करने के उद्देश्य से भी प्रशिक्षण आवश्यक है।

4. संगठन के प्रति निष्ठावान बनाना-प्रत्येक संगठन के लिए कर्मचारियों का निष्ठावान होना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे समर्पित भावना से कार्य करें। प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न मनोवैज्ञानिकों, प्रबन्धकों व श्रम संगठनों के नेताओं द्वारा विभिन्न विचारों व उत्प्रेरक भावनाओं द्वारा कर्मचारियों को निष्ठावान बनाना प्रशिक्षण का उद्देश्य है।

5. उत्पादन में वृद्धि हेतु-प्रत्येक उपक्रम उत्पादन में वृद्धि चाहता है इस हेतु कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। कुशल कर्मचारी प्रशिक्षण द्वारा बनाये या तैयार किये जाते हैं। अतः उत्पादन में वृद्धि करने, बाजार का विस्तार करने के उद्देश्य से कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

6. देहातीपन को दूर करना-यहाँ देहातीपन का आशय पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा व कार्यशैली से है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में पुरानी शैली से विकास की बात करना व्यर्थ है अत: संस्था के पुराने कर्मचारियों के मन मस्तिष्क से देहातीपन की विचारधारा को हटाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

प्रश्न 27.
मानव शक्ति नियोजन की अवधारणा को समझायें। इसके कितने पहलू हैं ? उन पहलुओं को समझाइयें।
उत्तर:
मानव शक्ति नियोजन (Man power planning)- मानव शक्ति नियोजन कर्मचारियों की माँग एवं पूर्ति में संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया है। इसके द्वारा संगठन की वर्तमान तथा भावी मानवीय आवश्यकताओं की व्याख्या की जाती है। यह मानव संसाधन प्राप्त करने, उपयोग करने, सुधार करने अथवा बनाये रखने की एक व्यूह रचना है। इसमें संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक मानव शक्ति की संख्या एवं किस्म का निर्धारण किया जाता है। मानव शक्ति नियोजन में मानव साधन के संबंध में नीतियों तथा कार्यविधियों का निर्माण किया जाता है ताकि कर्मचारियों की भर्ती एवं चयन भली-भाँति किया जा सके।
मानव शक्ति नियोजन के दो पहलू हैं

1. परिमाणात्मक पहलू (Quantitative aspect)- सर्वप्रथम कितने कर्मचारियों की आवश्यकता होगी, इसका अनुमान लगाया जाता है। यह अनुमान लगाते समय कार्यभार विश्लेषण में उत्पादन व विवरण बजटों के आधार पर कार्य की आवश्यकताओं को निश्चित किया जाता है। श्रम शक्ति विश्लेषण के अंतर्गत वर्तमान श्रम शक्ति, श्रम अनुपस्थिति,

स्थानांतरण तथा पदोन्नति, संस्था के विकास की दर आदि को ध्यान में रखकर नए कर्मचारियों की संख्या निर्धारित की जाती है। इस पहलू में विद्यमान मानव शक्ति और अपेक्षित मानव शक्ति की तुलना करके मानव शक्ति की परिमाणात्मक आवश्यकता का अनुमान लगाया जाता है। वर्तमान मानव शक्ति का विश्लेषण मानव शक्ति अंकेक्षण कहलाता है।

2. गुणात्मक पहलू (Qualitative aspect)- कर्मचारियों की संख्या का अनुमान लगाने के पश्चात् उनमें किस प्रकार की योग्यता, अनुभव एवं अभिरुचि होनी चाहिए इसका निर्धारण किया जाता है। इसके लिए कार्य का विश्लेषण आवश्यक है। आवश्यक मानवशक्ति के प्रकार (Type) की गणना करते समय कंपनी को पिछड़े समुदाय के लोगों, महिलाओं, विशेष आवश्यकताओं वाले लोगों इत्यादि में से नियुक्त किए जाने वाले व्यक्तियों की संख्या के संबंध में भी नीति बना लेनी चाहिए।

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प्रश्न 28.
नियुक्तिकरण की विशेषताएँ संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
नियुक्तिकरण की विशेषताएँ (Feature of staffing)- नियुक्तिकरण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. जनकेंद्रित (People-centred) – नियु क्तिकरण जनकेंद्रित है। यह व्यक्तियों पर केंद्रित है। इसका संबंध संस्था में ऊपर से लेकर नीचे तक सभी श्रेणियों के कर्मचारियों से है। नियुक्तिकरण में मनुष्यों की भर्ती की जाती है। उनका चयन किया जाता है। उनको प्रशिक्षण दिया जाता है।
उनका विकास किया जाता है। दूसरे शब्दों में नियुक्तिकरण की प्रत्येक क्रिया मनुष्य से संबंधित है। संगठन तथा नियोजन की तरह यह कोई कागजी कार्य नहीं है, अपितु योग्य व्यक्तियों को संगठन में विभिन्न पदों पर लगाना है।

2. एक पथक प्रबंधकीय कार्य (A separate managerial function) – नियुक्तिकरण प्रबंध का एक पृथक् तथा महत्वपूर्ण कार्य है। यह कार्य प्रबंध के अन्य कार्यों का अंग नहीं है। प्रत्येक प्रबं धक नियुक्तिकरण का कार्य करता है।

3. सभी प्रबंधकीय स्तरों पर आवश्यक (Essential at all levels of management) – कर्मचारी नियुक्ति कार्य की आवश्यकता सभी प्रबंधकीय स्तरों पर होती है। अलग से सेविवर्गीय विभाग (Personnel department) की स्थापना के बाद भी प्रत्येक प्रबंधक को नियुक्ति का कार्य करना पड़ता है।

4. व्यापक क्षेत्र (Wide scope) – नियुक्तिकरण का कार्यक्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसमें कर्मचारियों की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, विकास, उनके पारिश्रमिक एवं निष्पादन मूल्यांकन से संबंधित अनेक क्रियायें शामिल हैं।

5. कार्मिक (सेविवर्गीय) प्रबंध से भिन्न (Different from personnel management) – यद्यपि नियुक्तिकरण तथा सेविवर्गीय के सिद्धांत समान हैं परंतु फिर भी नियुक्तिकरण सेविवर्गीय प्रबंध से भिन्न है। नियुक्तिकरण प्रबंधकों से संबंधित है जबकि सेविवर्गीय प्रबंध अन्य प्रकार के कर्मचारियों से संबंध रखता है।

7. निरंतर सामंजस्य बनाना (Making continuous adjustment) – नियुक्तिकरण पद तथा व्यक्ति में निरंतर सामंजस्य स्थापित करने की क्रिया है।

8. उद्देश्य (Objective)- नियुक्तिकरण का उद्देश्य संगठन के कार्यों का निर्बाध एवं कुशल संचालन संभव बनाना है।

प्रश्न 29.
शिक्षा व प्रशिक्षण में अंतर लिखिए।
उत्तर:
शिक्षा एवं प्रशिक्षण में अन्तर (Difference between Education and Training)प्रायः शिक्षा व प्रशिक्षण दोनों को एक ही माना जाता है किन्तु इन दोनों के उद्देश्य अधिक ज्ञान व जानकारी देना है परन्तु इसके बावजूद भी इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है। मूलभूत अंतर इस प्रकार है

  1. शिक्षा एक विशिष्ट पाठ्यक्रम (Syllabus) के अनुरूप दी जाती है। यह पाठ्यक्रम दीर्घकाल तक प्रभावशील रहता है जबकि प्रशिक्षण में कार्य करने का ढंग महत्वपूर्ण होता है।
  2. शिक्षा दीर्घकालीन योजना है जो लगातार प्रतिवर्ष दी जाती है परन्तु प्रशिक्षण अल्पकालीन होता है।
  3. शिक्षा में गुरु-शिष्य या विद्यार्थी-शिक्षक का सम्बन्ध होता है जो दोनों के मध्य एक सम्मान का सूचक है। प्रशिक्षण में प्रशिक्षार्थी तथा मास्टर या प्रशिक्षक का सम्बन्ध होता है जिसमें दोनों के मध्य अल्पकालीन औपचारिक संबंध रहता है।
  4. शिक्षा सामान्य ज्ञान से संबंधित है जबकि प्रशिक्षण विशिष्ट ज्ञान से संबंधित होता है।
  5. शिक्षा से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है, प्रशिक्षण से मनुष्य को किसी विशिष्ट क्षेत्र का ही ज्ञान होता है।
  6. शिक्षा राष्ट्र या राज्यव्यापी होता है जबकि प्रशिक्षण किसी विशिष्ट विभाग के कर्मचारियों के लिये होता है।
  7. शिक्षा का संबंध स्कूल, मदरसा, विद्यालय, महाविद्यालय आदि से रहता है जबकि प्रशिक्षण का सम्बन्ध प्रशिक्षण केन्द्र या स्थल से होता है। –
  8. शिक्षा में बालक को अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाया जाता है। प्रशिक्षण में कोई विशिष्ट जानकारी दी जाती है।

प्रश्न 30.
भर्ती के सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
संसार में किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिये कुछ मार्गदर्शक या सिद्धांतों की आवश्यकता पड़ती है ये मार्गदर्शक या सिद्धान्त ही भर्ती की नीति कहलाती है। आदर्श भर्ती नीति प्रत्येक स्वामी (भर्तीकर्ता) के लिये आवश्यक है कि वह उनका पालन करे। वर्तमान में भर्ती का कार्य सेविवर्गीय प्रबन्धकों द्वारा किया जाता है अतः उन्हें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये

  1. भर्ती कार्य शीर्ष प्रबन्ध से भर्ती से सम्बन्धित समस्त कार्य हमेशा उच्च या शीर्ष प्रबन्ध से ही होना चाहिये ताकि भर्ती में किसी भी प्रकार का पक्षपात या विरोधाभासी कार्य न हो सके।
  2. विभिन्न विभागों से रिक्त स्थान की जानकारी – शीर्ष विभाग को विभिन्न विभागों से विभिन्न पदों पर रिक्त स्थान की जानकारी हेतु समय-समय पर बुलाना चाहिये ताकि उसी के अनुरूप भर्ती की जा सके ।
  3. आवश्यकता के अनुरूप भर्ती – उपक्रम में वर्तमान में जितने पद रिक्त हों उतने पदों पर ही भर्ती करनी चाहिये अधिक भर्ती से उपक्रम पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ता है तथा कम भर्ती करने पर कार्य पूर्ण होने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  4. भर्ती हेतु अलग विभाग भर्ती का कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अतः इस हेतु कुशल व अनुभवी भर्तीकर्ता का चयन कर, अलग विभाग या शाखा खोलनी चाहिये, जिसे सेविवर्गीय विभाग या भर्ती शाखा का नाम दिया जा सकता है।
  5. नये पदों की स्वीकृति कार्य बढ़ जाने से अतिरिक्त पदों की आवश्यकता हो तो अतिरिक्त पद निर्माण की स्वीकृति नियोक्ता से ही लेनी चाहिये। चूँकि अतिरिक्त पद निर्माण से आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।

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प्रश्न 31.
सेविवर्गीय विकास क्या है ? इसके मुख्य उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
आशय-विकास एक सामान्य शब्द है जिसका आशय बढ़ाना, विस्तार करना, प्रगति करना, उच्च स्तर बढ़ाना आदि से है। यहाँ पर विकास का संबंध सेविवगीर्य विकास से है जिसमें संस्था में कार्य करने वाले कर्मचारियों या प्रबंधकों के विकास का कार्य किया जाता है।

कर्मचारी विकास के उद्देश्य (Objectives of Employee development) – प्रबन्धकीय विकास में कर्मचारी विकास एक महत्वपूर्ण कार्य है। किसी भी उपक्रम में कर्मचारी विकास के सामान्यतः निम्न उद्देश्य होते हैं

1. योग्य श्रम शक्ति की लगातार पूर्ति (Continued supply of competent labour force) – किसी भी प्रबन्ध में कर्मचारी विकास एक लगातार प्रक्रिया है। योग्य कर्मचारी एवं प्रबन्धकों की लगातार पूर्ति के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है क्योंकि उनके हित में योजना (कार्य) न होने पर कार्य छोड़ने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।

2.विकास एवं लाभ प्राप्ति के लिये (For getting development and profit) – किसी भी उपक्रम की स्थापना लाभ प्राप्ति के लिये की जाती है तथा लाभ-प्राप्ति पर ही उपक्रम का विकास निर्भर है। उपक्रम की सफलता व उसका विकास कर्मचारियों की योग्यता व कार्यक्षमता पर आधारित होती है अतः उपक्रम के विकास एवं लाभ प्राप्ति के लिये कर्मचारियों का पर्याप्त विकास कार्य आवश्यक है।

3. मानव शक्ति का अधिकतम उपयोग के लिये (For maximum use of manpower) – उत्पादन के विभिन्न घटकों में श्रम (मानव) शक्ति का विशिष्ट एवं पृथक् स्थान होता है। कर्मचारी स्वयं प्रेरित होकर तभी कार्य करेगा जब वह स्वयं सन्तुष्ट हो, उसकी सन्तुष्टि के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है ताकि उसका अधिकतम उपयोग किया जा सके।

4. कर्मचारी प्रतिभा का विकास (Developement of employee’s talent) – कुछ न कुछ प्रतिभा प्रत्येक व्यक्ति में होती है प्रबन्ध एवं उपक्रम में चुने हुये कर्मचारी कार्य करते हैं अतः इनकी प्रतिभा को विकसित कर उसका अधिकतम लाभ लेने के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है। उपक्रम में उत्पादकता में वृद्धि करने के लिये कर्मचारी प्रतिभा का विकास आवश्यक है।

5. उच्चस्तरीय मूल्यांकन (Higher level assignments) – जब तक कर्मचारी का पर्याप्त एवं सर्वांगीण विकास नहीं होगा तब तक उसका उच्चस्तरीय मूल्यांकन नहीं हो सकता । कर्मचारी के कार्य को परखने (Examine) के लिये उसका मूल्यांकन आवश्यक है अतः उसके मूल्यांकन के लिये भी कर्मचारी का विकास आवश्यक है।

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MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा

MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा

विद्युत धारा NCERT पाठ्यपुस्तक के अध्याय में पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी कार की संचायक बैटरी का वैद्युत वाहक बल 12 वोल्ट है। यदि बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध 0.42 हो तो बैटरी से ली जाने वाली अधिकतम धारा का मान क्या होगा?
हल :
दिया है : E = 12 वोल्ट, r = 0.4Ω, imax = ?
सूत्र \(i=\frac{E}{r+R}\) से,
धारा महत्तम होगी यदि R = 0
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 1

प्रश्न 2.
10 वोल्ट वैद्युत वाहक बल वाली बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध 3Ω है, किसी प्रतिरोधक से संयोजित है। यदि परिपथ में धारा का मान 0.5 ऐम्पियर हो तो प्रतिरोधक का प्रतिरोध क्या है? जब परिपथ बन्द है तो सेल की टर्मिनल वोल्टता क्या होगी?
हल :
दिया है : E = 10 वोल्ट, r = 3Ω, i = 0.5 ऐम्पियर, बाह्य प्रतिरोध R = ?
परिषथ बन्द होने पर टर्मिनल वोल्टता V = ?
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 2
∴ बाह्य प्रतिरोध R = 20-r = 20- 3 = 17Ω .
सेल की टर्मिनल वोल्टता V = iR = 0.5 ऐम्पियर x 17Ω = 8.5 वोल्ट।

प्रश्न 3.
(a) 1Ω, 2Ω और 3Ω के तीन प्रतिरोधक श्रेणी में संयोजित हैं। प्रतिरोधकों के संयोजन का कुल प्रतिरोध क्या है?
(b) यदि प्रतिरोधकों का संयोजन किसी 12 वोल्ट की बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध नगण्य है, से सम्बद्ध है तो प्रत्येक प्रतिरोधक के सिरों पर वोल्टतापात ज्ञात कीजिए।
हल :
(a) दिया है : R1 = 1Ω, R2 = 2Ω, R3 = 3Ω
श्रेणी संयोजन का प्रतिरोध R = R1 + R2 + R3 = 1+ 2 + 3 = 6Ω
(b) E = 12 वोल्ट, R = 62, r = 0, प्रत्येक प्रतिरोधक के सिरों पर वोल्टतापात = ?
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 3
यही धारा प्रत्येक प्रतिरोधक में प्रवाहित होगी। .
∴ प्रतिरोधकों की अलग-अलग वोल्टतापात V1 = iR1 = 2 ऐम्पियर x 12 = 2 वोल्ट।
V2 = iR2 = 2 ऐम्पियर x 2Ω = 4 वोल्ट। .
V3 = iR3 = 2 ऐम्पियर x 3Ω = 6 वोल्ट।

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प्रश्न 4.
(a) 2Ω, 4Ω और 5Ω के तीन प्रतिरोधक पार्श्व में संयोजित हैं। संयोजन का कुल प्रतिरोध क्या होगा?
(b) यदि संयोजन को 20 वोल्ट के वैद्युत वाहक बल की बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध नगण्य है, से सम्बद्ध किया जाता है तो प्रत्येक प्रतिरोधक से प्रवाहित होने वाली धारा तथा बैटरी से ली गई कुल धारा का मान ज्ञात कीजिए।
हल :
(a) दिया है : R1 = 2Ω, R2 = 4Ω, . R3 = 5Ω
यदि पार्श्व क्रम संयोजन का प्रतिरोध R है तो.
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 4

(b) दिया है, E = 20 वोल्ट, r = 0, प्रत्येक प्रतिरोधक द्वारा ली गई धारा = ?
बैटरी से ली गई कुल धारा = ? ,
∵ प्रतिरोधक पार्श्व क्रम में संयोजित हैं, अत: प्रत्येक के सिरों का विभवान्तर समान (वै० वा० बल के बराबर) होगा।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 5
बैटरी से ली गई कुल धारा i = i1 +i2+i3 = 10 + 5 + 4 = 19 ऐम्पियर।

प्रश्न 5.
कमरे के ताप (27.0°C) पर किसी तापन-अवयव का प्रतिरोध 100Ω है। यदि तापन-अवयव का प्रतिरोध 117Ω हो तो अवयव का ताप क्या होगा? प्रतिरोधक के पदार्थ का ताप-गुणांक 1.70x 10-4°C-1 है।
हल :
दिया है : 27.0° C ताप पर प्रतिरोध R1 = 100Ω, t1 = 27°C
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 6

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प्रश्न 6.
15 मीटर लम्बे एवं 6.0 x 10-7 मीटर2 अनुप्रस्थ काट वाले तार से उपेक्षणीय धारा प्रवाहित की गई है और इसका प्रतिरोध 5.0Ω मापा गया है। प्रायोगिक ताप पर तार के पदार्थ की प्रतिरोधकता क्या होगी?
हल :
दिया है : तार की लम्बाई l = 15 मीटर, अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A = 6.0 x 10-7मीटर2
तार का प्रतिरोध R = 5.0Ω, p= ?
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 7

प्रश्न 7.
सिल्वर के किसी तार का 27.5°C पर प्रतिरोध 2.1Ω और 100°C पर प्रतिरोध 2.7Ω है सिल्वर का प्रतिरोधकता ताप-गुणांक ज्ञात कीजिए।
हल :
t1 = 27.5°C पर प्रतिरोध R1 = 2.1Ω,
t2 – t1 = 100 – 27.5 = ∆t = 72.5°C
t2 = 100°C पर प्रतिरोध R2 = 2.7Ω, a = ?

MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 8

प्रश्न 8.
नाइक्रोम का एक तापन-अवयव 230 वोल्ट की सप्लाई से संयोजित है और 3.2 ऐम्पियर की प्रारम्भिक धारा लेता है जो कुछ सेकण्ड में 2.8 ऐम्पियर पर स्थायी हो जाती है। यदि कमरे का ताप 27.0° C है तो तापन-अवयव का स्थायी ताप क्या होगा? दिए गए ताप-परिसर में नाइक्रोम का औसत प्रतिरोध का ताप-गुणांक 1.70 x 10-4°C-1 है।
हल :
दिया है : V = 230 वोल्ट, i1 = 3.2 ऐम्पियर तथा अन्त में i2 = 2.8 ऐम्पियर
कमरे का ताप t1 = 27.0°C का स्थायी ताप t2 = ?, α = 1.70 x 10-4°C-1
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प्रश्न 9.
चित्र 3.1 में दर्शाए नेटवर्क की प्रत्येक शाखा में प्रवाहित धारा ज्ञात कीजिए।
हल :
पाश ABDA पर किरचॉफ का नियम लगाने पर,
10i1 + 5i3 – 5i2 = 0 या 2i1 – i2 + i3 = 0 …(1)

तथा पाश BCDB से, 5(i1 – i3)- 10 (i2 + i3)- 5i3= 0

या 5i1 – 10i2 – 20i3 = 0 या i1– 2i2 – 4i3 = 0 …(2)
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पाश ABCGHA से,
10i1 + 5 (i1 – i3)+10 i = 10
या 10i + 15i1 – 5i3 = 10
या 2i + 3i1 – i3 = 2……………(3)

तथा बिन्दु A पर सन्धि के नियम से, .
i1+ i1 = i ………………(4)

समी० (4) से i का मान समी० (3) में रखने पर,
5i1 + 2i2 – i3= 2 ………………..(5)

समी० (5) व (1) को जोड़ने पर,
7i1 + i2 = 2 ……………..(6)
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समी० (1) को 4 से गुणा करके समी० (2) में जोड़ने पर,
9i1 – 6i2 = 0 ⇒ \(i_{2}=\frac{3}{2} i_{1}\)………….(7)
समी० (6) में मान रखने पर, 7i1 + \(\frac{3}{2}\)i1 = 2
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प्रश्न 10.
(a) किसी मीटर-सेतु में जब प्रतिरोधक S = 12.5Ω हो तो सन्तुलन बिन्दु, सिरे A से 39.5 सेमी की लम्बाई पर प्राप्त होता है। R का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। व्हीटस्टोन सेतु या मीटर सेतु में प्रतिरोधकों के संयोजन के लिए मोटी कॉपर की पत्तियाँ क्यों प्रयोग में लाते हैं?
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(b) R तथा S को अन्तर्बदल करने पर उपर्युक्त सेतु का सन्तुलन बिन्दु ज्ञात कीजिए।
(c) यदि सेतु के सन्तुलन की अवस्था में गैल्वेनोमीटर और सेल का अन्तर्बदल कर दिया जाए तब क्या गैल्वेनोमीटर कोई धारा दर्शाएगा?
हल :
(a) मीटर सेतु के लिए दिया है : S = 12.5Ω, l = 39.5 सेमी, R = ?
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मोटी कॉपर पत्तियों का प्रयोग उनके प्रतिरोध को न्यूनतम रखने के लिए किया जाता है क्योंकि सूत्र की स्थापना में इनके प्रतिरोध पर विचार नहीं किया गया है।

(b) R व S को परस्पर बदलने पर,
\(\frac{l}{100-l}=\frac{S}{R}\) Rl = 100S-lS
\(l=\frac{100 S}{R+S}=\frac{100 \times 12.5}{8.2+12.5}=60.38\) सेमी या 60.4 सेमी
अतः अब शून्य विक्षेप बिन्दु 60.38 सेमी पर प्राप्त होगा।

(c) नहीं, इस स्थिति में गैल्वेनोमीटर कोई विक्षेप नहीं दर्शाएगा।

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प्रश्न 11.
8 वोल्ट वैद्युत वाहक बल की एक संचायक बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध 0.5 2 है, को श्रेणीक्रम में 15.5Ω के प्रतिरोधक का उपयोग करके 120 वोल्ट के D.C. स्रोत द्वारा चार्ज किया जाता है। चार्ज होते समय बैटरी की टर्मिनल वोल्टता क्या है? चार्जकारी परिपथ में प्रतिरोधक को श्रेणीक्रम में सम्बद्ध करने का क्या उद्देश्य है?
हल :
दिया है : बैटरी का वै० वा० बल E = 8 वोल्ट, आन्तरिक प्रतिरोध r = 0.5Ω
आवेशन स्रोत का वै० वा० बल Eex = 120 वोल्ट, बाह्य प्रतिरोध R = 15.5Ω
चार्जिंग के समय बैटरी की वोल्टता V = ?
चार्जिंग के समय बैटरी की टर्मिनल वोल्टता V = E + ir
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 16
∴ टर्मिनल वोल्टता V = 8+ 7 x 0.5 = 11.5 वोल्ट।
बाह्य प्रतिरोध को जोड़ने का उद्देश्य, चार्जिंग धारा को कम रखना है। उच्च चार्जिंग धारा के कारण बैटरी के क्षतिग्रस्त होने की सम्भावना है।

प्रश्न 12.
किसी पोटेंशियोमीटर व्यवस्था में, 1.25 वोल्ट वैद्युत वाहक बल से एक सेल का सन्तुलन बिन्दु तार के 35.0 सेमी लम्बाई पर प्राप्त होता है। यदि इस सेल को किसी अन्य सेल द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाए तो सन्तुलन बिन्दु 63.0 सेमी पर स्थानान्तरित हो जाता है। दूसरे सेल का वैद्युत वाहक बल क्या है?
हल :
दिया है : सेल E1 = 1.25 वोल्ट के लिए अविक्षेप बिन्दु की दूरी l1 = 35.0 सेमी
E2 = ?, जबकि l2 = 63.0 सेमी
विभवमापी के लिए, E ∝ l
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 17
अत: दूसरे सेल का वै० वा० बल E2 = 2.25 वोल्ट।

प्रश्न 13.
किसी ताँबे के चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉनों का संख्या घनत्व 8.5 x 1028 मीटर3 आकलित किया गया है। 3 मीटर लम्बे तार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक अपवाह करने में इलेक्ट्रॉन कितना समय लेता है? तार की अनुप्रस्थ-काट 2.0 x 10-6 मीटर2 है और इसमें 3.0 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है।
हल :
ताँबे के लिए, n = 8.5 x 1028 मीटर3 तार की लम्बाई l = 3 मीटर
तार का अनु० क्षे० A = 2.0 x 10-6 मीटर2 = 3.0 ऐम्पियर
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प्रश्न 14.
पृथ्वी के पृष्ठ पर ऋणात्मक पृष्ठ-आवेश घनत्व 10-9 कूलॉम-सेमी-2 है। वायुमण्डल के ऊपरी भाग और पृथ्वी के पृष्ठ के बीच 400 किलोवोल्ट विभवान्तर (नीचे के वायुमण्डल की कम चालकता के कारण) के परिणामतः समूची पृथ्वी पर केवल 1800 ऐम्पियर की धारा है। यदि वायुमण्डलीय वैद्युत क्षेत्र बनाए रखने हेतु कोई प्रक्रिया न हो तो पृथ्वी के पृष्ठ को उदासीन करने हेतु (लगभग) कितना समय लगेगा? (व्यावहारिक रूप में यह कभी नहीं होता है क्योंकि वैद्युत आवेशों की पुनः पूर्ति की एक प्रक्रिया है; यथा-पृथ्वी के विभिन्न भागों में लगातार तड़ित झंझा एवं तड़ित का होना)। (पृथ्वी की त्रिज्या = 6.37 x 106 मीटर)।
हल :
पृथ्वी की त्रिज्या RE = 6.37 x 106 मीटर,
पृष्ठीय-आवेश घनत्व σ = 10-9 कूलॉम-सेमी-2 = 10-5 कूलॉम-मीटर-2
वायुमण्डल से पृथ्वी पर धारा i = 1800 ऐम्पियर
पृथ्वी के निरावेशन में लगा समय t = ?
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प्रश्न 15.
(a) छह लेड एसिड संचायक सेलों, जिनमें प्रत्येक का वैद्युत वाहक बल 2 वोल्ट तथा आन्तरिक प्रतिरोध 0.015Ω है, के संयोजन से एक बैटरी बनाई जाती है। इस बैटरी का उपयोग 8.5Ω प्रतिरोधक जो इसके साथ श्रेणी सम्बद्ध है, में धारा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। बैटरी से कितनी धारा ली गई है एवं इसकी टर्मिनल वोल्टता क्या है?
(b) एक लम्बे समय तक उपयोग में लाए गए संचायक सेल का वैद्युत वाहक बल 1.9 वोल्ट और विशाल आन्तरिक प्रतिरोध 380Ω है। सेल से कितनी अधिकतम धारा ली जा सकती है? क्या सेल से प्राप्त यह धारा किसी कार की प्रवर्तक-मोटर को स्टार्ट करने में सक्षम होगी?
हल :
(a) प्रत्येक सेल का. वै० वा० बल = 2 वोल्ट, आ० प्रतिरोध = 0.015Ω
सेलों की संख्या = 6, बाह्य प्रतिरोध R = 8.5Ω, बैटरी से ली गई धारा = ?, टर्मिनल वोल्टता = ?
∵ बैटरी में सेल श्रेणीक्रम में जुड़े हैं।
∴ बैटरी का वै० वा० बल E = 6 x 2 = 12 वोल्ट
बैटरी का आ० प्रतिरोध r = 6 x 0.015 = 0.09Ω
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 20
बैटरी की टर्मिनल वोल्टता V = iR = 1.4 ऐम्पियर x 8.5Ω = 11.9 वोल्ट।

(b) सेल का वै० वा० बल E = 1.9 वोल्ट तथा आ० प्रतिरोध r = 380Ω
E सेल से अधिकतम धारा imax = \(\frac{E}{r}=\frac{1.9}{380}\) = 0.005 ऐम्पियर।
नहीं, यह धारा किसी कार की मोटर स्टार्ट नहीं कर सकती।

प्रश्न 16.
दो समान लम्बाई की तारों में एक ऐलुमिनियम का और दूसरा कॉपर का बना है। इनके प्रतिरोध समान हैं। दोनों तारों में से कौन-सा हल्का है? अतः समझाइए कि ऊपर से जाने वाली बिजली केबिलों में ऐलुमिनियम के तारों को क्यों पसन्द किया जाता है? (ρAl = 2.63 x 10-8 ओम-मीटर, ρCu = 1.72 x 10-8 ओम-मीटर, Al का आपेक्षिक घनत्व = 2.7, कॉपर का आपेक्षिक घनत्व = 8.9)
हल :
दिया है : ρAl = 2.63 x 10-8 ओम-मीटर, Pa = 1.72 x 10-8 ओम-मीटर
dAl = 2.7 तथा dCu = 8.9
माना इन तारों के अनुप्रस्थ परिच्छेद क्रमश: AAl तथा ACu हैं।
∵ तारों के प्रतिरोध समान हैं।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 21
स्पष्ट है कि ऐलुमिनियम के तार का द्रव्यमान, कॉपर के तार के द्रव्यमान का आधा है अर्थात् ऐलुमिनियम का तार हल्का है। यही कारण है कि ऊपर से जाने वाले बिजली के केबिलों में ऐलुमिनियम के तारों का प्रयोग किया जाता है। यदि कॉपर के तारों का प्रयोग किया जाए तो खम्भे और अधिक मजबूत बनाने होंगे।

प्रश्न 17.
मिश्रधातु मैंगनिन के बने प्रतिरोधक पर लिए गए निम्नलिखित प्रेक्षणों से आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
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धारा ऐम्पियर वोल्टता वोल्
हल :
दी गई सारणी के प्रत्येक प्रेक्षण से स्पष्ट है कि \(\frac{V}{i} \approx 19.7 \Omega\)
इससे स्पष्ट है कि मैंगनिन का प्रतिरोधक लगभग पूरे वोल्टेज परिसर में ओम के नियम का पालन करता है, अर्थात् मैंगनिन की प्रतिरोधकता पर ताप का बहुत कम प्रभाव पड़ता है। –

प्रश्न 18.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(a) किसी असमान अनुप्रस्थ काट वाले धात्विक चालक से एकसमान धारा प्रवाहित होती है। निम्नलिखित में से चालक में कौन-सी अचर रहती है—धारा, धारा घनत्व, वैद्युत क्षेत्र, अपवाह चाल।
(b) क्या सभी परिपथीय अवयवों के लिए ओम का नियम सार्वत्रिक रूप से लागू होता है? यदि नहीं, तो उन अवयवों के उदाहरण दीजिए जो ओम के नियम का पालन नहीं करते।
(c) किसी निम्न वोल्टता संभरण जिससे उच्च धारा देनी होती है, का आन्तरिक प्रतिरोध बहुत कम होना चाहिए, क्यों?
(d) किसी उच्च विभव (H.T.) संभरण, मान लीजिए 6 किलोवाट का आन्तरिक प्रतिरोध अत्यधिक होना चाहिए, क्यों?
हल :
(a) केवल धारा अचर रहती है, जैसा कि दिया गया है।
अन्य राशियाँ अनुप्रस्थ क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती हैं।
(b) नहीं, ओम का नियम सभी परिपथीय अवयवों पर लागू नहीं होता।
निर्वात नलिकाएँ, (डायोड वाल्व, ट्रायोड वाल्व) अर्द्धचालक युक्तियाँ (सन्धि डायोड तथा ट्रांजिस्टर) इसी प्रकार की युक्तियाँ हैं।
(c) किसी संभरण से प्राप्त महत्तम धारा \(i_{\max }=\frac{E}{r}\)
∵ वै० वा० बल कम है, अत: पर्याप्त धारा प्राप्त करने के लिए आन्तरिक प्रतिरोध का कम होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त आन्तरिक प्रतिरोध के अधिक होने से सेल द्वारा दी गई ऊर्जा का अधिकांश भाग सेल के भीतर ही व्यय हो जाता है।
(d) यदि आन्तरिक प्रतिरोध बहुत कम है तो किसी कारणवश लघुपथित होने की दशा में संभरण से अति उच्च धारा प्रवाहित होगी और संभरण के क्षतिग्रस्त होने की संभावना उत्पन्न हो जाएगी।

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प्रश्न 19.
सही विकल्प छाँटिए-
(a) धातुओं की मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता प्रायः उनकी अवयव धातुओं की अपेक्षा (अधिक/कम) होती
(b) आमतौर पर मिश्रधातुओं के प्रतिरोध का ताप-गुणांक, शुद्ध धातुओं के प्रतिरोध के ताप-गुणांक से बहुत (कम/अधिक) होता है?
(c) मिश्रधातु मैंगनिन की प्रतिरोधकता ताप में वृद्धि के साथ लगभग (स्वतन्त्र है/तेजी से बढ़ती है)।
(d) किसी प्रारूपी विद्युतरोधी (उदाहरणार्थ, अम्बर) की प्रतिरोधकता किसी धातु की प्रतिरोधकता की तुलना में (1022 / 1023) कोटि के गुणक से बड़ी होती है?
हल :
(a) अधिक।
(b) कम।
(c) स्वतन्त्र है।
(d) 1022

प्रश्न 20.
(a) आपको R प्रतिरोध वाले n प्रतिरोधक दिए गए हैं। (i) अधिकतम, (ii) न्यूनतम प्रभावी प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए आप इन्हें किस प्रकार संयोजित करेंगे? अधिकतम और न्यूनतम प्रतिरोधों का अनुपात क्या होगा?
(b) यदि 1Ω, 2Ω, 3Ω के तीन प्रतिरोध दिए गए हों तो उनको आप किस प्रकार संयोजित करेंगे कि प्राप्त
तुल्य प्रतिरोध हों :
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(c) चित्र 3.4 में दिखाए गए नेटवर्कों का तुल्य प्रतिरोध प्राप्त कीजिए।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 25
हल :
(a) (i) अधिकतम प्रतिरोध के लिए उन्हें श्रेणीक्रम में जोड़ना होगा।
श्रेणीक्रम में तुल्य प्रतिरोध RS = R+ R + R+…. n पद = nR
(ii) न्यूनतम प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए इन्हें पार्श्व क्रम में जोड़ना होगा।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 26
(b) यहाँ R1 = 1Ω, R2 = 2Ω, R3 = 3Ω
(i) \(\frac{11}{3}\)Ω का प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए R1, R2 को पार्यक्रम में व R3 को श्रेणीक्रम में जोड़ना होगा।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 27
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(ii) \(\frac{11}{5}\) का प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए R2, R3 को पार्यक्रम में तथा R1 के श्रेणीक्रम में जोड़ना होगा।
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(iii) 6Ω का प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए तीनों को श्रेणीक्रम मे जोड़ना होगा।
तब Req = R1 + R2 + R3 = 1+2+ 3 = 6Ω

(iv) \(\frac{6}{11}\) का प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए तीनों को पार्श्वक्रम में जोड़ना होगा।

(c) (a) प्रत्येक पाश में 1Ω -1Ω श्रेणीक्रम में तथा 2Ω – 2Ω श्रेणीक्रम में हैं।
इन शाखाओं के अलग-अलग प्रतिरोध 1+ 1 = 2Ω व 2 + 2 = 4Ω
अब ये दो शाखाएँ समान्तर क्रम में जुड़ी हैं।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 31

(b) RΩ के 5 प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं,
∴ नेटवर्क का प्रतिरोध Req = R+ R+ R+ R+ R = 5 R

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प्रश्न 21.
किसी 0.5Ω आन्तरिक प्रतिरोध वाले 12 वोल्ट के एक संभरण (Supply) से चित्र 3.7 में दर्शाए गए अनन्त नेटवर्क द्वारा ली गई धारा का मान ज्ञात कीजिए। प्रत्येक प्रतिरोध का मान 1Ω है।
हल :
माना नेटवर्क का प्रतिरोध R है। यदि इस नेटवर्क में तीन . प्रतिरोध (प्रत्येक 1Ω) चित्रानुसार जोड़ दिए जाएँ तो नेटवर्क के प्रतिरोध में कोई परिवर्तन नहीं होगा। (∵ यह अनन्त नेटवर्क है।)
यहाँ R व 1Ω पार्श्वक्रम में हैं तथा 1Ω, 1Ω श्रेणीक्रम में हैं।
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प्रश्न 22.
चित्र 3.9 में एक पोटेंशियोमीटर दर्शाया गया है जिसमें एक 2.0 वोल्ट और आन्तरिक प्रतिरोध 0.40Ω का कोई सेल, पोटेंशियोमीटर के प्रतिरोधक तार AB पर वोल्टतापात बनाए रखता है। कोई मानक सेल जो 1.02 वोल्ट का अचर वैद्युत वाहक बल बनाए रखता है (कुछ मिलीऐम्पियर की बहुत सामान्य धाराओं के लिए) तार की 67.3 सेमी लम्बाई पर सन्तुलन बिन्दु देता है। मानक सेल से अति न्यून धारा लेना सुनिश्चित करने के लिए इसके साथ परिपथ में श्रेणी 600 किलोओम का एक अति उच्च प्रतिरोध इसके साथ सम्बद्ध किया जाता है, जिसे सन्तुलन बिन्दु प्राप्त होने के निकट लघुपथित (shorted) कर दिया जाता है। इसके बाद मानक सेल को किसी अज्ञात वैद्युत वाहक बल के सेल से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है जिससे सन्तुलन बिन्दु तार की 82.3 सेमी लम्बाई पर प्राप्त होता है।
(a) ε का मान क्या है?
(b) 600 किलोओम के उच्च प्रतिरोध का क्या प्रयोजन है?
(c) क्या इस उच्च प्रतिरोध से सन्तुलन बिन्दु प्रभावित होता है?
(d) क्या परिचालक सेल के आन्तरिक प्रतिरोध से सन्तुलन बिन्दु प्रभावित होता है?
(e) उपर्युक्त स्थिति में यदि पोटेंशियोमीटर के परिचालक सेल का वैद्यत वाहक बल 2.0 वोल्ट के स्थान पर 1.0 वोल्ट हो तो क्या यह विधि फिर भी सफल रहेगी?
(f) क्या यह परिपथ कुछ mV की कोटि के अत्यल्प वैद्युत वाहक बलों (जैसे कि किसी प्रारूपी तापविद्युत युग्म का वैद्युत वाहक बल) के निर्धारण में सफल होगी? यदि नहीं, तो आप इसमें किस प्रकार संशोधन करेंगे?
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 35
हल :
(a) दिया है : E1 = 1.02 वोल्ट के लिए l1 = 67.3 सेमी, E2= ε के लिए l2 = 82.3 सेमी, ε ?
सूत्र E ∝ l से,
\(\frac{E_{2}}{E_{1}}=\frac{l_{2}}{l_{1}}\)
\(E_{2}=\frac{l_{2}}{l_{1}} \times E_{1}\) या \(\varepsilon=\frac{82.3}{67.3} \times 1.02\)वोल्ट = 1.25 वोल्ट

(b) 600 किलोओम का उच्च प्रतिरोध, गैल्वेनोमीटर को असन्तुलित अवस्था में प्रवाहित होने वाली उच्च धारा से बचाता है।
(c) नहीं, क्योंकि शून्य विक्षेप बिन्दु के समीप पहुँचने पर इस उच्च प्रतिरोध को लघुपथित कर दिया जाता है।
(d) नहीं
(e) नहीं, इस विधि के फल होने के लिए परिचालक सेल का वै० वा० बल मापे जाने वाले वै० वा० बल से अधिक होना आवश्यक है।
(f) नहीं, यह परिपथ कुछ मिलीवोल्ट की कोटि के अत्यल्प वै० वा० बल के मापन के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि इस स्थिति में शून्य विक्षेप बिन्दु लगभग तार के A सिरे के साथ सम्पाती होगा।
मिलीवोल्ट की कोटि के वै० वा० बल के मापन हेतु तार AB पर वोल्टतापात (विभव प्रवणता) को अत्यन्त कम करना होगा। इसके लिए परिचालक सेल के श्रेणीक्रम में एक उच्च प्रतिरोध जोड़ना होगा।

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प्रश्न 23.
चित्र 3.10 दो प्रतिरोधों की तुलना के लिए विभवमापी परिपथ दर्शाता है। मानक प्रतिरोधक R = 10.0Ω के साथ सन्तुलन बिन्दु 58.3 सेमी पर तथा अज्ञात प्रतिरोध x के साथ 68.5 सेमी पर प्राप्त होता है। x का मान ज्ञात कीजिए। यदि आप दिए गए सेल से सन्तुलन बिन्दु प्राप्त करने में असफल रहते हैं तो आप क्या करेंगे?
हल :
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MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 37
सन्तुलन बिन्दु प्राप्त करने में असफल रहने पर, प्रतिरोधकों R व X के सिरों के बीच विभवपात कम करना होगा। इसके लिए सेल ε के श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोधक जोड़ना होगा।

प्रश्न 24.
चित्र 3.11 में किसी 1.5 वोल्ट के सेल का आन्तरिक
2.0 वोल्ट प्रतिरोध मापने के लिए एक 2.0 वोल्ट का पोटेंशियोमीटर दर्शाया गया है। खुले परिपथ में सेल का सन्तुलन बिन्दु 76.3 सेमी पर मिलता है। सेल के बाह्य परिपथ में 9.52 प्रतिरोध का एक प्रतिरोधक संयोजित करने पर A सन्तुलन बिन्दु पोटेंशियोमीटर के तार की 64.8 सेमी लम्बाई पर पहुँच जाता | 1.5 वोल्ट है। सेल के आन्तरिक प्रतिरोध का मान ज्ञात कीजिए।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 38
हल :
जब सेल खुले परपिथ पर है, तब l1 = 76.3 सेमी
जब सेल से R = 9.5Ω का प्रतिरोधक जुड़ा है, तब l1= 64.8 सेमी
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 39

विद्युत धारा NCERT भौतिक विज्ञान प्रश्न प्रदर्शिका (Physics Exemplar Problems) पुस्तक से चयनित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हल

विद्युत धारा बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दो बैटरियाँ जिनमें emf E1 तथा E2 [E2 > E1] तथा आन्तरिक प्रतिरोध r1 क्रमशः तथा r2 हैं, चित्र में दर्शाए अनुसार पार्श्व क्रम में संयोजित हैं
(a) दोनों सेलों का तुल्य emf Eतुल्य , E1 तथा E2 के बीच अर्थात् E1 < Eतुल्य < E2 है
(b) तुल्य emf Eतुल्य , E1 से कम है
(c) सदैव Eतुल्य = E1 + E2 होता है
(d) Eतुल्य आन्तरिक प्रतिरोधों r1 तथा r2 पर निर्भर नहीं है।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 40

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प्रश्न 2.
इलेक्ट्रॉनों का कौन-सा अभिलक्षण चालक में धारा के प्रवाह को निर्धारित करता है –
(a) केवल अपवाह वेग
(b) केवल तापीय वेग
(c) अपवाह वेग तथा तापीय वेग दोनों
(d) न तो अपवाह और न तापीय वेग।

प्रश्न 3.
आयताकार अनुप्रस्थ काट 1 सेमी x \(\frac{1}{2}\) सेमी तथा 10 सेमी लम्बाई की कोई धातु की छड़ विपरीत फलकों पर किसी बैटरी से संयोजित है। इसका प्रतिरोध –
(a) तब अधिकतम होगा जब बैटरी 1 सेमी x \(\frac{1}{2}\) सेमी फलकों के बीच संयोजित है
(b) तब अधिकतम होगा जब बैटरी 10 सेमी x 1 सेमी फलकों के बीच संयोजित है
(c) तब अधिकतम होगा जब बैटरी 10 सेमी x \(\frac{1}{2}\) सेमी फलकों के बीच संयोजित है
(d) समान रहेगा चाहे तीनों फलकों में से किसी के बीच भी बैटरी को संयोजित करें।

प्रश्न 4.
5 वोल्ट तथा 10 वोल्ट सन्निकट emf के दो सेलों की तुलना परिशुद्ध रूप से 400 सेमी लम्बाई के विभवमापी द्वारा की जानी है
(a) विभवमापी में उपयोग होने वाली बैटरी की वोल्टता 8 वोल्ट होनी चाहिए। .
(b) विभवमापी की वोल्टता 15 वोल्ट हो सकती है तथा R को इस प्रकार समायोजित कर सकते हैं कि तार के
सिरों पर विभवपात 10 वोल्ट से थोड़ा अधिक हो।
(c) स्वयं तार के पहले 50 सेमी भाग पर विभवपात 10 वोल्ट होना चाहिए।
(d) विभवमापी का उपयोग प्रायः प्रतिरोधों की तुलना के लिए किया जाता है, विभवों के लिए नहीं।

विद्युत धारा अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
क्या किसी विद्युत नेटवर्क में किसी सन्धि के पार गति में, आवेश का संवेग संरक्षित रहता है?
उत्तर :
नहीं, सन्धि के पार गति में, आवेश का संवेग संरक्षित नहीं रहता है। जब कोई इलेक्ट्रॉन किसी सन्धि की ओर गति करता है तब वहाँ कार्यरत एकसमान वैद्युत क्षेत्र के अतिरिक्त सन्धि के तारों के पृष्ठ पर संचित आवेश के कारण भी वैद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है जोकि आवेश के संवेग की दिशा परिवर्तित कर देता है।

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प्रश्न 2.
विभवमापी में तारों को संयोजित करने के लिए धातु की मोटी पट्टियों को उपयोग करने का क्या लाभ
उत्तर :
धातु की मोटी पट्टियों का प्रतिरोध नगण्य होने के कारण शून्य विक्षेप स्थिति में इनकी लम्बाई को विभवमापी के तार की लम्बाई में सम्मिलित करने की आवश्यकता नहीं होती है। अतः हमें केवल विभवमापी के सीधे तारों की लम्बाई ज्ञात करनी होती है जिसे मीटर पैमाने से सरलता से ज्ञात किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
घरों में विद्युत के लिए ताँबे (Cu) अथवा ऐलुमिनियम (Al) के तारों का उपयोग किया जाता है। ऐसा करने के पीछे किन-किन विचारों को ध्यान में रखा जाता है?
उत्तर :
घरों में विद्युत के लिए ताँबे अथवा ऐलुमिनियम के तारों का उपयोग करते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है
(i) धातु का मूल्य कम होना चाहिए।
(ii) धातु की चालकता अधिक होनी चाहिए।

विद्युत धारा लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दो चालक समान पदार्थ के बने हैं तथा इनकी लम्बाई भी समान है। चालक A, 1 मिमी व्यास का ठोस तार है। चालक B, 2 मिमी बाह्य व्यास तथा 1 मिमी आन्तरिक व्यास की खोखली नलिका है। प्रतिरोधों RA तथा RB का अनुपात ज्ञात कीजिए।
हल : दिया है,
rA = \(\frac{1}{2}\) मिमी = 0.5 मिमी
rB = \(\frac{2}{2}\) मिमी = 1 मिमी,
rB = \(\frac{1}{2}\) मिमी = 0.5 मिमी
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 41

विद्युत धारा आंकिक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पहले R प्रतिरोध के n समान प्रतिरोधकों के समुच्चय को श्रेणीक्रम में emf E तथा आन्तरिक प्रतिरोध R की बैटरी से संयोजित किया गया है। परिपथ में धारा I प्रवाहित होती है तत्पश्चात् । प्रतिरोधकों को उसी बैटरी से पार्श्वक्रम में संयोजित किया गया है। यह पाया गया कि धारा 10 गुना बढ़ गई है। ‘n’ का क्या मान है?
हल :
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 42

प्रश्न 2.
चित्र में दर्शाए परिपथ में दो सेल एक-दूसरे के साथ प्रतिकूलता से, संयोजित हैं। सेल E1 का emf 6 वोल्ट तथा आन्तरिक प्रतिरोध 2Ω और सेल E2 का emf 4 वोल्ट तथा आन्तरिक प्रतिरोध 8Ω है। बिन्दु A तथा B के बीच विभवान्तर ज्ञात कीजिए।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 3 विद्युत धारा img 43
हल :
सेलों का परिणामी emf, E = E1 – E2 = 6 – 4 = 2 वोल्ट
सेलों का कुल आन्तरिक प्रतिरोध (r) = r1 + r2 = 2+ 8 = 10Ω
∴ परिपथ में धारा, \(I=\frac{E}{r}=\frac{2}{10}=0.2\) ऐम्पियर
बिन्दु A व B के बीच विभवान्तर = सेल E2 के सिरों पर विभवान्तर = E2 + Ir2
= 4 + 0.2 x 8 = 5.6 वोल्ट।
अत: VAB = 5.6 वोल्ट तथा बिन्दु B, बिन्दु A से उच्च विभव पर है।

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EXTRA SHOTS

  • दोनों सेल प्रतिकूलता से संयोजित हैं, अत: सेलों का परिणामी वि०वा० बल, दोनों सेलों के वि०वा० बलों के
    अन्तर के बराबर होगा, अर्थात् E = E1 – E2
  • सेल E1 का विवा० बल, सेल E2 के वि०वा० बल से अधिक है। अतः परिपथ में धारा की दिशा सेल E1 के अनुसार निर्धारित होगी।
    सेल E2 के धन टर्मिनल से धारा प्रवेश कर रही है, अत: सेल E2 यहाँ आवेशित होगा। अत: उसके सिरों पर विभवान्तर V2 = E2 + Ir2 होगा।

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MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

संगठन Important Questions

संगठन वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन-सा अंतरण का तत्व नहीं है –
(a) उत्तरदेयता
(b) अधिकार
(c) उत्तरदायित्व
(d) अनौपचारिक संगठन
उत्तर:
(d) अनौपचारिक संगठन

प्रश्न 2.
कार्य करते हुए अंतःक्रिया में अचानक बना सामाजिक संबंध तंत्र कहलाता है –
(a) औपचारिक संगठन
(b) अनौपचारिक संगठन
(c) विकेन्द्रीकरण
(d) अंतरण।
उत्तर:
(b) अनौपचारिक संगठन

प्रश्न 3.
संगठन को देखा नहीं जा सकता –
(a) प्रबंध के एक कार्य के रूप में
(b) संबंधों के एक ढाँचे के रूप में
(c) एक प्रक्रिया के रूप में
(d) उद्यम वृत्ति के रूप में।
उत्तर:
(d) उद्यम वृत्ति के रूप में।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा संगठन प्रक्रिया का एक चरण नहीं है –
(a) क्रियाओं का विभाजन
(b) कार्य सौंपना
(c) कार्यों एवं विभागों का निर्माण
(d) नेतृत्व प्रदान करना।
उत्तर:
(d) नेतृत्व प्रदान करना।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन संदेशवाहन के अधिकारिक मार्ग का प्रयोग नहीं करता –
(a) औपचारिक संगठन
(b) अनौपचारिक संगठन
(c) कार्यात्मक संगठन
(d) प्रभागीय संगठन
उत्तर:
(b) अनौपचारिक संगठन

प्रश्न 6.
किस संगठन में क्रियाओं को उत्पादों के आधार पर समूहों में बाँटा जाता है –
(a) विकेन्द्रित संगठन
(b) प्रभागीय संगठन
(c) कार्यात्मक संगठन
(d) केन्द्रित संगठन।
उत्तर:
(b) प्रभागीय संगठन

प्रश्न 7.
एक लंबा ढाँचा होता है –
(a) प्रबंध की सिकुड़ी हुई शृंखला
(b) प्रबंध की फैली हुई श्रृंखला
(c) प्रबंध की कोई भी श्रृंखला
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) प्रबंध की सिकुड़ी हुई शृंखला

प्रश्न 8.
उत्पादन रेखा पर आधारित सामूहिक क्रिया अंग है –
(a) अंतरित संगठन का
(b) प्रभागीय संगठन का
(c) कार्यात्मक संगठन का
(d) स्वायत्त शासित संगठन का।
उत्तर:
(b) प्रभागीय संगठन का

प्रश्न 9.
केन्द्रीयकरण से तात्पर्य है –
(a) निर्णय लेने के अधिकारों को सुरक्षित रखना
(b) निर्णय लेने के अधिकारों का बिखराव करना
(c) प्रभागों का लाभ केन्द्र बनाना
(d) नये केन्द्रों अथवा शाखाओं को खोलना।
उत्तर:
(a) निर्णय लेने के अधिकारों को सुरक्षित रखना

प्रश्न10.
प्रबंध के विस्तार से तात्पर्य है –
(a) प्रबंधकों की संख्या में वृद्धि
(b) एक प्रबंधक की नियुक्ति के समय की सीमा जिसके लिये उसे नियुक्ति दी गई है
(c) एक उच्चाधिकारी के अंतर्गत कार्य करने वाले अधीनस्थों की गणना
(d) शीर्ष प्रबंध के सदस्यों की गणना।
उत्तर:
(c) एक उच्चाधिकारी के अंतर्गत कार्य करने वाले अधीनस्थों की गणना

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. अधिकार अंतरण या भारार्पण का आशय …………. सौंपना है।
  2. विकेन्द्रीकरण में …………. के वितरण पर बल दिया जाता है।
  3. विकेन्द्रीकरण अधिकारियों के कार्यभार में …………. करता है।
  4. कार्यात्मक संगठन संरचना की अवधारणा …………. के मस्तिष्क की उपज है।
  5. बैंक …………. संरचना संगठन का उदाहरण है।
  6. संगठन संरचना से आशय संस्था में …………. संबंधों की व्याख्या करने से है।
  7. संस्था को उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के आधार पर विभक्त करना ……….. संगठन कहलाता है।
  8.  …………. संगठन में अधिकार तथा कर्तव्यों की स्पष्ट व्याख्या की जाती है।

उत्तर:

  1. अधिकार
  2. सत्ता
  3. कमी
  4. टेलर
  5. भौगोलिक
  6. अधिकार कर्तव्य
  7.  संभागीय
  8. औपचारिक।

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. उच्च अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों में अपने कार्यों-अधिकारों का वितरण, सीमित रूप से किया जाना क्या कहलाता है ?
  2. संस्था में शीघ्र निर्णयन को प्रोत्साहित करने हेतु क्या अपनाया जाना चाहिए?
  3. ऐसी संस्था जो विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाती है उसे कौन-सा संगठन अपनाना चाहिए ?
  4. किस स्थिति में अधिकारों का हस्तांतरण होता है परन्तु उत्तरदायित्वों का नहीं?
  5. संगठन का वह स्वरूप जो कर्मचारियों के मध्य पारस्परिक संबंध के कारण स्वतः ही विकसित होता है, उसे क्या कहते हैं ?
  6. उस संगठन का नाम बताइए जो नियमों एवं कार्य विधियों पर आधारित है।
  7. संगठनात्मक ढाँचे में किस प्रकार के संबंध को दिखाया जाता है ?
  8. प्रबंध का संगठन का कार्य प्रबंध के किस कार्य के बाद आता है ?
  9. विभागीय संगठन प्रक्रिया का कौन-सा चरण है ?
  10. अनौपचारिक संगठन में सदस्यों में किस प्रकार का संबंध होता है ?

उत्तर:

  1. भारार्पण
  2. विकेंद्रीयकरण
  3. संभागीय संगठन
  4. भारार्पण
  5. अनौपचारिक संगठन
  6. औपचारिक संगठन
  7. अधिकारी व अधीनस्थ संबंध
  8. नियोजन के बाद
  9. दूसरा चरण
  10. मधुर संबंध।

प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1.  संगठन की स्थापना निम्न स्तर के प्रबन्ध द्वारा होती है।
  2. संगठन भ्रष्टाचार को जन्म देता है।
  3. अधिकार का भारार्पण दिया जा सकता है।
  4. जवाबदेही का भारार्पण नहीं किया जा सकता है।
  5. संगठन का प्रबन्ध में वही महत्व है जो मानव शरीर में हड्डियों के ढाँचे का होता है।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन - 1
उत्तर:

  1. (e)
  2. (a)
  3. (b)
  4. (c)
  5. (d)

संगठन लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संगठन के उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
संगठन के उद्देश्य –

1. उत्पादन में मितव्ययिता – संगठन का प्रमुख उद्देश्य उत्पादन में मितव्ययिता लाना है अर्थात् न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना प्रत्येक उपक्रम का उद्देश्य होता है।

2. समय तथा श्रम में बचत – संगठन में श्रेष्ठ मशीनें व यंत्र तथा श्रेष्ठ प्रणाली अपनाई जाती है जिससे कार्य के समय व श्रम में काफी बचत की जाती है। संगठन द्वारा बड़े पैमाने में उत्पादन के लाभ भी लिए जा सकते हैं।

3. श्रम तथा पूँजी में मधुर संबंध – श्रमिकों तथा प्रबंध के बीच मधुर संबंध स्थापित करना भी संगठन का एक उद्देश्य है, इस हेतु कुशल संगठनकर्ता की नियुक्ति कर श्रम व पूँजी के हितों की रक्षा की जाती है।

4. सेवा भावना – वर्तमान सामाजिक चेतना एवं जन जागरण के कारण प्रत्येक व्यवसायी का उद्देश्य “प्रथम सेवा फिर लाभ” हो गया है वैसे भी प्रत्येक व्यवसायी को समाज सेवा कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
संगठन के कोई चार सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संगठन के सिद्धान्त –

1. विशिष्टीकरण का सिद्धान्त प्रत्येक सदस्य की क्रियाएँ विशेष कार्य को पूरा करने तक ही सीमित होनी चाहिए, अर्थात् एक व्यक्ति को एक कार्य सौंपा जाये तो इससे कुशलता में वृद्धि होगी।

2. एकरूपता का सिद्धान्त – प्रत्येक पद से संबंधित अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों में एकरूपता होनी चाहिए, परन्तु एक अधिकारी के अधिकार दूसरे से टकराने नहीं चाहिए, इससे संस्था का अनुशासन ढीला होगा और कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न नहीं हो सकेगा।

3. अपवाद का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. टेलर वैज्ञानिक प्रबंध के जन्मदाता ने किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करने के लिये अधीनस्थों को अधिकार दे दिये जाने चाहिए तथा अपवादपूर्ण एवं महत्वपूर्ण मामलों पर निर्णय करने के कार्य को उच्च अधिकारियों पर छोड़ देना चाहिये।

4. सरलता का सिद्धान्त – संगठन का ढाँचा सरल होना चाहिये ताकि प्रत्येक कार्य के निष्पादन में कमसे-कम समय एवं व्यय लगे। सरलता के अभाव में संदेशों के आदान-प्रदान में भी कठिनाई सामने आती हैं तथा कार्य शीघ्रता व सरलता से नहीं हो पाएगा।

प्रश्न 3.
कार्यात्मक संगठन संरचना के गुण/लाभ समझाइये।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन ढाँचे के गुण / लाभ निम्नलिखित हैं

  1. कार्यात्मक संगठन में व्यावसायिक क्रियाओं का विभाजन तर्क संगत होता है।
  2. प्रत्येक विभाग के प्रबन्धक अपने विभाग के कार्य के लिए उत्तरदायी होते हैं।
  3. कार्यात्मक संगठन द्वारा सर्वोच्च प्रबन्ध का उपक्रम पर नियंत्रण रखना आसान हो जाता है।
  4. इस ढाँचे का आधार श्रम विभाजन है अर्थात् प्रबन्धकों को कार्य उनकी योग्यता एवं सूची के अनुसार दिये जाते हैं।

प्रश्न 4.
संगठन के कोई चार लाभ लिखिए।
उत्तर:
संगठन वह तंत्र है, जिसकी सहायता से प्रबंध व्यवसाय का संचालन, समन्वय तथा नियंत्रण करता है। यह प्रबंध की आधारशिला है। संगठन का महत्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो जाता है

1. उपक्रम के विकास में सहायक-श्रेष्ठ संगठन के माध्यम से उपक्रम का विकास तेज गति से होने लगता है, बड़े पैमाने के उत्पादन की सफलता के पीछे श्रेष्ठ संगठन का हाथ होता है।

2. समन्वय स्थापित होना-संगठन की सहायता से विभिन्न विभागों, उपविभागों, विभिन्न व्यक्तियों एवं क्रियाओं में उचित समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित होता है। जिससे प्रशासन द्वारा निर्धारित नीति का पूर्ण परिपालन संभव होता है।

3. भ्रष्टाचार पर नियंत्रक-स्वस्थ एवं कुशल संगठन भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण करने में भी सफल रहता है, जिससे कर्मचारियों की दक्षता बढ़ती है और उनका मनोबल तथा उत्साह बढ़ता रहता है।

4. मनोबल में वृद्धि-कुशल संगठन से कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकार, दायित्व तथा कर्तव्य से सुपरिचित रहता है तथा वह उपक्रम की नीतियों व उद्देश्यों को भली-भाँति समझ जाता है।

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प्रश्न 5.
श्रेष्ठ संगठन से प्रशासकीय तथा प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि होती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रशासन द्वारा उपक्रम की नीतियों एवं लक्ष्यों का निर्धारण किया जाता है व इनका क्रियान्वयन प्रबंध द्वारा संगठन के सहयोग से किया जाता है। श्रेष्ठ संगठन में सहयोग, समन्वय, कार्यनिष्ठा व अनुशासन की भावना भरी होती है, जिससे संगठन के मानवीय प्रयासों को एक निश्चित दिशा देकर अधिक सार्थक व प्रभावी बनाया जा सकता है। उपक्रम की क्रियाओं एवं उद्देश्यों को सरलता व शीघ्रता से समय पर पूर्ण कराया जा सकता है। इस प्रकार श्रेष्ठ संगठन से प्रशासकीय व प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 6.
रेखा एवं कर्मचारी संगठन क्या है ? इसकी तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
रेखा एवं कर्मचारी संगठन में काम का विभाजन स्वतंत्र विभागों में किया जाता है तथा उत्तरदायित्व का विभाजन भी लम्बवत् होता है किन्तु कार्यदक्षता तथा सहकारिता को प्रोत्साहन देने के लिए प्रत्येक विभाग में विशेषज्ञ नियुक्त किये जाते हैं, जो परामर्श का कार्य करते हैं।
रेखा व कर्मचारी संगठन की विशेषताएँ

  1. इस संगठन में अधिकार व उत्तरदायित्व ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता है।
  2. इस संगठन में योग्य कर्मचारियों को उन्नति के अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।
  3. इसमें सोचने एवं परामर्श देने व करने के कार्य दोनों पृथक्-पृथक् होते हैं।

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प्रश्न 7. रेखा संगठन के दोष लिखिए।
उत्तर:
रेखा संगठन के दोष :

  1. इस संगठन में पक्षपात की आशंका बनी रहती है। इसमें सर्वोच्च अधिकारी अपने अधीनस्थों की नियुक्ति, पदोन्नति आदि में पक्षपात कर सकता है।
  2. आधुनिक उद्योग इतने जटिल व मिश्रित हैं कि एक ही व्यक्ति सारे कार्य दक्षतापूर्वक सम्पन्न नहीं कर सकता है,
  3. विशिष्टीकरण इसमें संभव नहीं है।
  4. दक्ष अधिकारी के बिना विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित करना कठिन हो जाता है।
  5. अनुशासन पर अधिक ध्यान देने के कारण इस प्रणाली में तानाशाही की बुराइयाँ आ जाती हैं।
  6. उच्चाधिकारी के गलत निर्णय लेने पर उपक्रम विफल हो सकता है।

प्रश्न 8.
रेखा संगठन के लाभों को समझाइये।
उत्तर:
रेखा संगठन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

  1. इस संगठन में प्रत्येक सदस्य को अपने उत्तरदायित्व व कर्तव्यों की स्पष्ट जानकारी रहती है।
  2. इस संगठन में निर्णय प्रायः एक व्यक्ति द्वारा लिए जाते हैं, अतः निर्णय सरलतापूर्वक व शीघ्र होते हैं।
  3. विभिन्न विभागों को एक ही व्यक्ति के निर्देशन में कार्य करना होता है, अतः उनमें समन्वय आसानी से किया जा सकता है।
  4. इस संगठन प्रणाली में आवश्यकतानुसार समायोजन भी किया जा सकता है अर्थात् यह लोचपूर्ण है।

प्रश्न 9.
कार्यात्मक संगठन प्रभागीय संगठन से किस प्रकार असमानता रखता है ?
उत्तर:
संगठनात्मक ढाँचा (Organisational structure)- संगठनात्मक ढाँचा संगठन में विभिन्न पदों के बीच अधिकार और उत्तरदायित्व संबंध प्रदर्शित करता है और साथ ही स्पष्ट करता है कि कौन किसको रिपोर्ट करेगा। हर्ले (Hurley) के अनुसार, “संगठन ढाँचे, एक संस्था में विभिन्न पदों एवं उन पदों पर काम करने वाले व्यक्तियों के मध्य संबंधों के स्वरूप होते हैं ।” संगठन ढाँचे को प्रायः संगठन चार्ट पर प्रदर्शित किया जाता है। संगठन ढाँचे के दो रूप हैं-

  1. कार्यात्मक ढाँचा तथा
  2.  प्रभागीय ढाँचा।

प्रश्न 10.
औपचारिक संगठन तथा अनौपचारिक संगठन किस प्रकार आपस में संबंधित हैं?
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन और औपचारिक संगठन में संबंध (Relation between formal organization and informal organization)- अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन का एक अंग होता है। औपचारिक संगठन के अंदर सदस्य अपने कार्यों को एक-दूसरे के सहयोग से पूरा करते हैं। वे एक-दूसरे से बातचीत करते हैं। इससे उनमें मैत्रीपूर्ण संबंध बन जाते हैं। मित्रता के आधार पर सामाजिक समूह का एक संजाल (Network) बन जाता है।

इस संजाल को अनौपचारिक संगठन कहते हैं। इस प्रकार औपचारिक संगठन अनौपचारिक संगठनों को जन्म देते हैं। अनौपचारिक संगठन के अंदर काम करने वाले सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों की एक व्यवस्था होती है। औपचारिक ढाँचे के अंदर ही अनौपचारिक संगठन की उत्पत्ति होती है।

औपचारिक संगठन में अनौपचारिक संगठन की उत्पत्ति के कई आधार होते हैं- जैसे समान रूचि, भाषा, संस्कृति आदि। ये संगठन पूर्व-नियोजित नहीं होते। ये लोगों की आवश्यकताओं और संस्था के वातावरण के अनुसार स्वतः ही बन जाते हैं।

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प्रश्न 11.
केंद्रीयकरण और विकेंद्रीयकरण की अवधारणा अधिकार अंतरण की अवधारणा से संबंधित है। कैसे?
उत्तर:
अधिकारों के केंद्रीयकरण से अभिप्राय उच्च प्रबंध स्तरों पर अधिकारों के संकेद्रण (Centralization) से है। यहाँ अधिकांश निर्णय उच्च स्तर के प्रबंधकों के द्वारा लिए जाते हैं। अधीनस्थ प्रबंधको के द्वारा निर्देशों के अनुसार करते हैं। इसके विपरीत अधिकार विकेंद्रीयकरण से अभिप्राय केवल केंद्रीय बिंदुओं पर ही प्रयोग किये जा सकने वाले अधिकारों को छोड़कर शेष सभी अधिकारों को व्यवस्थित रूप से निम्न स्तरों को सौंपने से है।

केंद्रीयकरण और विकेंद्रीकरण की दोनों अवधारणाएँ अधिकार अंतरण की अवधारणा से संबंधित हैं। जब अधिकार अधीनस्थों को हस्तांतरण नहीं हो जाते और सारे अधिकार उच्च प्रबंध पर संकेद्रित हैं, तब केंद्रीयकरण कहलायेगा और जब अधिकारों का अंतरण अधीनस्थों को किया जाता है तब विकेंद्रीयकरण की स्थिति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 12.
अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन की किस प्रकार सहायता करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन का जन्म औपचारिक संगठन से होता है, जब व्यक्ति अधिकारिक तौर पर बतलाई गई भूमिकाओं से परे आपस में मेल-मिलाप से कार्य करते हैं। जब कर्मचारी सगंठन की ओर नहीं धकेला जा सकता बल्कि वे मैत्रीपूर्ण व सहयोगपूर्ण विचारों से एक ग्रुप बनाने की ओर झुकते हैं। यह उनके आपसी हितों की अनुरूपता को प्रकट करता है।

ऐसे समूहों का प्रयोग संगठन की उन्नति तथा सहयोग के लिए किया जा सकता है। ऐसे समूह उपयोगी तथा कर्मचारियों एवं उच्चाधिकारियों के मध्य झगड़े सुलझाने का कार्य अनौपचारिक संप्रेषण के द्वारा भली-भाँति किया जा सकता है। प्रबंधकों को औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार के संगठनों का युक्ति पूर्ण उपयोग करना चाहिए ताकि संगठन का कार्य सुगमतापूर्वक चल सके। औपचारिक संगठन को यदि भली-भाँति नियंत्रित किया जाए तो औपचारिक संगठन के द्वारा बनाये गये उद्देश्यों की प्राप्ति में अनौपचारिक संगठन अत्यंत उपयोगी है।

प्रश्न 13.
केंद्रीयकरण एवं विकेंद्रीयकरण में अंतर्भेद कीजिए।
उत्तर:
बहुत से संगठनों में सभी निर्णयों को लेने में शीर्ष प्रबंध की मुख्य भूमिका होती है जबकि अन्य संगठनों में यह अधिकार प्रबंध के निम्नतम स्तर को भी दिया जाता है। जिन उपक्रमों में निर्णय लेने का अधिकार केवल शीर्ष स्तरीय प्रबंध को ही होता है वे केंद्रीकृत संगठन कहलाते हैं। जबकि उन संगठनों में जहाँ इस प्रकार के निर्णयों को लेने में निम्न स्तर तक के प्रबंध को भागीदार बनाया जाता है, विकेंद्रीकृत संगठन कहते हैं।

विकेंद्रीयकरण से तात्पर्य उस विधि से है जिसमें निर्णय लेने का उत्तरदायित्व सोपानिक क्रम में विभिन्न स्तरों में विभाजित किया जाता है। सरल शब्दों में विकेंद्रीयकरण का अर्थ संगठन के प्रत्येक स्तर पर अधिकार अंतरण करना होता है। निर्णय लेने का अधिकार निम्नतम स्तर तक के प्रबंध को दिया जाता है जहाँ पर वास्तविक रूप में कार्य होना है। दूसरे शब्दों में निर्णय लेने का अधिकार आदेश की श्रृंखला में नीचे तक दिया जाता है।

केंद्रीयकरण (Centralization) – जिस संगठन में निर्णय लेने का अधिकार केवल उच्चस्तरीय प्रबंधन को ही होता है तो वह संगठन केंद्रीकृत कहलाता है। कोई भी संस्था कभी भी न तो पूर्णरूपेण केंद्रीकृत हो सकती है और न विकेंद्रीकृत। जब कोई संस्था आकार तथा जटिलताओं की ओर अग्रसर होती है तो यह देखा गया है · कि वे संस्थाएँ निर्णयों में विकेंद्रीयकरण को अपनाती हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि बड़ी-बड़ी संस्थाओं में जहाँ कर्मचारियों को प्रत्यक्ष तथा अतिनिकट से कार्य संचालन में आल्पित किया जाता है उनका ज्ञान तथा अनुभव उन उच्चस्तरीय प्रबंधकों से कहीं अधिक होता है जो संस्थान से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए होते हैं।

श्रेष्ठ नियंत्रण (Best control)- विकेंद्रीयकरण से प्रत्येक स्तर पर कार्य निष्पादन के मूल्यांकन का अवसर मिलता है जिससे प्रत्येक विभाग व्यक्तिगत रूप से उसके परिणामों के लिए जवाबदेह बनाया जा सकता है। संगठन के उद्देश्यों की उपलब्धि किस सीमा तक हुई या समस्त उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रत्येक विभाग कितना सफल हो सका इसका भी निर्धारण किया जा सकता है। सभी स्तरों से प्रतिपुष्टि द्वारा भिन्नताओं का विश्लेषण करने तथा सुधारने में सहायता मिलती है। विकेंद्रीयकरण में निष्पादन की जवाबदेही एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए संतुलन अंक कार्ड तथा प्रबंध सूचना विधि।

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प्रश्न 14.
विकेंद्रीयकरण के महत्व लिखिए।
उत्तर:
एक संगठन निम्न कारणों से विकेंद्रीयकरण होना पसंद करता है

1. उच्च अधिकारियों की अत्यधिक कार्यभार से मुक्ति (More capacity utilization)विकेंद्रीयकरण के अतंर्गत दैनिक प्रबंधकीय कार्यों को अधीनस्थों को सौंप दिया जाता है। इसके फलस्वरूप उच्च प्रबंधकों के पास पर्याप्त समय बचता है जिसका प्रयोग वे नियोजन, समन्वय, नीति निर्धारण, नियंत्रण आदि में कर सकते हैं।

2. विभिन्नीकरण में सुविधा (Ease to expansion)- इस बात से इंकार नहीं किया जाता कि एक व्यक्ति का नियंत्रण सर्वश्रेष्ठ होता है लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है। सीमा का अभिप्राय व्यवसाय के आकार से है अर्थात् जब तक व्यवसाय का आकार छोटा है उच्च स्तर पर सभी अधिकारियों को केंद्रित करके व्यवसाय को कुशलतापूर्वक चलाया जा सकता है लेकिन जब उसमें उत्पादन की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा अधिक हो जाती है तब केंद्रीय नियंत्रण से काम नहीं चल सकता क्योंकि अकेला व्यक्ति सभी वस्तुओं की समस्याओं की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दे सकता।

3. प्रबंधकीय विकास (Managerial development)- विकेंद्रीयकरण का अभिप्राय है निम्नतम स्तर के प्रबंधकों को भी अपने कार्यों के संबंध में निर्णय लेने के अधिकार होना। इस प्रकार निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होने से सभी स्तरों के प्रबंधकों के ज्ञान एवं अनुभव में वृद्धि होती है और इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह व्यवस्था प्रशिक्षण का काम करती है।

4. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि (Increase in employees morale)- विकेंद्रीयकरण के कारण प्रबंध में कर्मचारियों की भागीदारी बढ़ती है। इससे संस्था में उनकी पहचान बनती है। जब संस्था में किसी व्यक्ति की पहचान बने अथवा उसका महत्व बढ़े तो उसके मनोबल में वृद्धि होना स्वाभाविक है। मनोबल में वृद्धि होने से वे अपनी इकाई की सफलता के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने से भी नहीं घबराते।

प्रश्न 15.
औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औपचारिक संगठन एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर:
औपचारिक संगठन

  1. इसका निर्माण किसी योजना को पूरा करने के लिए विचार-विमर्श करके किया जाता है। होता है।
  2. इसे किसी तकनीकी उद्देश्य को पूरा करने के उद्देश्य से बनाया जाता है।
  3. इसका आकार बड़ा हो सकता है।
  4. इसमें सत्ता का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है।

अनौपचारिक संगठन

  1. इसका निर्माण स्वतः ही सामाजिक संबंधों द्वारा
  2. इसका निर्माण सामाजिक संतोष प्राप्त करने
  3. यह प्रायः छोटे आकार का होता है।
  4. इसमें सत्ता का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर होता है।

प्रश्न 16.
औपचारिक संगठन से क्या आशय है ? इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
औपचारिक संगठन – इसका आशय एक ऐसे संगठन से है जिसमें प्रत्येक स्तर के प्रबन्धकों के अधिकारों, कर्तव्यों तथा दायित्वों की स्पष्ट सीमा निर्धारित होती है। इस संगठन को संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रबंध द्वारा बनाया जाता है।

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प्रश्न 17.
अनौपचारिक संगठन किसे कहते हैं ? विशेषताओं सहित बताइए।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन से अभिप्राय ऐसे संगठन से है जिसकी स्थापना जानबूझकर नहीं की जाती अपितु, अनायास ही सामान्य हितों, संबंध, रुचियों तथा धर्म के कारण हो जाती है।
अर्ल. पी. स्ट्रांग के अनुसार, “अनौपचारिक संगठन एक ऐसी सामाजिक संरचना है जिसका निर्माण व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।”
अनौपचारिक संगठन की विशेषताएँ- इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं.

1. निर्माण स्वतः-इसका निर्माण जानबूझकर नहीं किया जाता बल्कि व्यक्तियों के आपसी संबंधों तथा रुचियों के आधार पर स्वयं हो जाता है।

2. व्यक्तिगत संगठन-व्यक्तिगत संगठन से अभिप्राय है कि इसमें व्यक्तियों की भावनाओं को ध्यान में रखा जाता है, उन पर किसी भी बात को थोपा नहीं जाता।

3. अधिकार-इसमें अधिकार व्यक्ति से जुड़े रहते हैं तथा उनका प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर या समतल रूप में चलता है।

4. स्थायित्व का अभाव-इसमें जब तक व्यक्ति एक समूह में है तभी तक वह संगठन है जब व्यक्ति अलग होता है तो संगठन समाप्त हो जाता है। इसमें स्थायित्व का अभाव रहता है।

प्रश्न 18.
अधिकार अन्तरण या भारार्पण से क्या तात्पर्य है ? इसके प्रमुख तत्वों ( प्रक्रिया) को समझाइए।
उत्तर:
अधिकार अंतरण से आशय, अधीनस्थों को निश्चित सीमा के अन्तर्गत कार्य करने का केवल अधिकार देना है। अधिकार अंतरण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसकी आवश्यकता उस समय उत्पन्न होती है जब एक प्रबंधक के पास कार्यभार अधिक होने के कारण वह सभी कार्यों का अधीनस्थों में विभाजन करता है। अतः उसे अधिकार अंतरण का सहारा लेना पड़ता है। जब कुछ कार्यों का निष्पादन करने के लिए दूसरे व्यक्तियों को अधिकृत किया जाता है तो इसे अधिकार अंतरण कहते हैं।
विभिन्न विद्वानों ने अधिकार अंतरण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है

  1. एफ. जी. मूरे, “अधिकार अंतरण से अभिप्राय दूसरे लोगों को कार्य सौंपना और उसे करने के लिए अधिकार देना है।”
  2. मैस्कॉन, “अधिकार अंतरण किसी व्यक्ति को कार्य तथा सत्ता सौंपना है, जो उनके लिए दायित्व ग्रहण करता है।”

अधिकार अंतरण के तत्व-अधिकार अंतरण के पाँच तत्व हैं

1. कार्यभार सौंपना – अधिकार अंतरण प्रक्रिया का पहला कदम कार्यभार सौंपा जाना है क्योंकि कोई भी अधिकारी इतना सक्षम नहीं होता कि वह अपना सारा कार्य स्वयं पूरा कर ले इसलिए अपने कार्य का सफलतापूर्वक निष्पादन करने के लिए वह अपने कार्य का विभाजन करता है, विभाजन के समय अधीनस्थों कीयोग्यता एवं कुशलता का ध्यान में रखा जाना अत्यंत आवश्यक होता है।

2. अधिकार प्रदान करना-कार्य का सफलतापूर्वक निष्पादन करने हेतु अधिकार सौंपे जाते हैं क्योंकि . जब तक अधीनस्थों को अधिकार प्रदान नहीं किए जाएँगे तब तक कार्यभार सौंपना अर्थहीन होता है। अतः कार्य को पूरा करने के लिए अधिकार सौंपे जाने चाहिए।

3. प्रत्यायोजन की स्वीकृति-जिस व्यक्ति को कार्य दिया गया है वह उस कार्य को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। यदि अधिकार अंतरण स्वीकार नहीं किया जाता तो प्रत्यायोजक प्रबन्धक किसी अन्य अधीनस्थ व्यक्ति को कार्य सौंपने की कार्यवाही करेगा। इसलिए प्रत्यायोजन की स्वीकृति अत्यंत आवश्यक होती है।

4. जवाबदेही निर्धारित करना-जवाबदेही, अधीनस्थों को सही ढंग से कार्य करने के लिए जिम्मेदार ठहराता है, प्रत्येक अधीनस्थ केवल उस अधिकारी के समक्ष ही जवाबदेह होता है जिससे उसे कार्य करने के अधिकार प्राप्त होते हैं।

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प्रश्न 19.
विकेन्द्रीयकरण से क्या तात्पर्य है ? विकेन्द्रीयकरण के कौन-कौन से लाभ होते हैं ?
उत्तर:
विकेन्द्रीयकरण से तात्पर्य है, निर्णय लेने के अधिकार को संगठन के निम्न स्तर पर पहुँचाना है। विकेन्द्रीयकरण, अधिकार अंतरण का ही विस्तृत रूप है। जब किसी उच्च अधिकारी के द्वारा अपने अधीनस्थों को अपेक्षाकृत अधिक भाग में अधिकारों का भारार्पण किया जाता है, तो यह विकेन्द्रीयकरण कहलाता है। इसके अंतर्गत केवल ऐसे अधिकार जो उच्च अधिकारियों के लिए सुरक्षित रखना जरुरी है, को छोड़कर शेष सभी अधिकार अधीनस्थों को स्थाई रूप से सौंप दिए जाते हैं।
विकेन्द्रीयकरण के लाभ-विकेन्द्रीकरण के लाभों को निम्न बातों से स्पष्ट किया जा सकता है

1. उच्च अधिकारियों का कार्य भार कम होना-विकेन्द्रीयकरण की सहायता से उच्च अधिकारियों के कार्यभार में बहुत कमी आ जाती है, वे अपना पूरा ध्यान महत्वपूर्ण कार्यों में लगा सकते हैं उन्हें छोटे-छोटे कार्यों में उलझना नहीं पड़ता है, जिस कारण व्यावसायिक उपक्रम उच्च अधिकारियों की योग्यता, कुशलता तथा विवेक का अधिकारिक लाभ उठा सकते हैं।

2. विविधीकरण की सुविधा-विकेन्द्रीयकरण में विविधीकरण की पर्याप्त सुविधा होती है क्योंकि अलग-अलग क्रियाओं के लिए अलग-अलग अध्यक्षों की नियुक्ति की जा सकती है।

3. अनौपचारिक संबंधों का विकास-विकेन्द्रीयकरण के द्वारा अनौपचारिक संबंधों का विकास होता है।

4. अभिप्रेरण-विकेन्द्रीयकरण के द्वारा कर्मचारियों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होता है जिससे वह बेहतर परिणाम लाने के लिए अभिप्रेरित होते हैं।।

प्रश्न 20.
कार्यात्मक संगठन तथा प्रभागीय संगठन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन तथा प्रभागीय संगठन में अन्तर –

प्रश्न 21.
औपचारिक संगठन के लाभ तथा दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औपचारिक संगठन के लाभ (Advantages of Formal Organisation)

1. व्यवस्थित कार्यवाही (Systematic Working)-इस ढाँचे का परिणाम एक संगठन की व्यवस्थित और सरल कार्यवाही होता है।

2. संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति (Achievement of Organisational Objectives)-इस ढाँचे को संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए स्थापित किया जाता है।

3. कार्य का दोहराव नहीं (No Overlapping of Work)-औपचारिक संगठनात्मक ढाँचे में विभिन्न विभागों और कर्मचारियों के बीच कार्य व्यवस्थित ढंग से विभाजित होता है। इसलिए कार्य के दोहराव का कोई अवसर नहीं होता है।

4. समन्वय (Coordination)-इस ढाँचे का परिणाम विभिन्न विभागों की क्रियाओं को समन्वित करना होता है।

औपचारिक संगठन के दोष (Disadvantages of Formal Organization)

1. कार्य में देरी (Delay in Action) – सोपान श्रृंखला और आदेश श्रृंखला का अनुसरण करते समय कार्यों में देरी हो जाती है।

2. कर्मचारियों की सामाजिक आवश्यकताओं की अवहेलना करता है (Ignores Social Needs of Employees)-यह ढाँचा कर्मचारियों की सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को महत्व नहीं देता ‘जिससे कर्मचारियों के अभिप्रेरण में कमी हो सकती है।

3. केवल कार्य पर बल (Emphasis on Work Only) – यह ढाँचा केवल कार्य को महत्व देता है इसमें मानवीय संबंधों, सृजनात्मकता, प्रतिभाओं इत्यादि को महत्व नहीं दिया जाता है।

प्रश्न 22.
विकेंद्रीयकरण एवं भारार्पण में अंतर लिखिए।
उत्तर:
विकेंद्रीयकरण एवं भारार्पण में अंतर
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प्रश्न 23.
अधिकार अंतरण तथा विकेन्द्रीयकरण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकार अंतरण तथा विकेन्द्रीयकरण में अंतर

अधिकार अंतरण

  1. उच्च अधिकारी के द्वारा सत्ता का अधीनस्थों को हस्तांतरण, अधिकार अंतरण कहलाता है। करण कहलाता है।
  2. इसमें अंतिम उत्तरदायित्व अधिकार सौंपने उत्तरदायित्व कावाले का ही होता है अर्थात् इसमें उत्तर भी हस्तांतरण हो जाता है।दायित्व का हस्तांतरण नहीं होता।
  3. यह सभी संस्थाओं के लिए आवश्यक होता है क्योंकि अधीनस्थों से काम लेने के लिए उन्हें अधिकार देना पड़ता है।
  4. अधिकार अंतरण, विकेन्द्रीयकरण पर नहीं होता।

विकेन्द्रीयकरण

  1. पूरे संगठन में सत्ता का फैलाव करना विकेन्द्रीय
  2. इसमें अधिकार के साथ-ही-साथ
  3. विकेन्द्रीयकरण प्रत्येक संस्था के लिए आवश्यक नहीं है।
  4. विकेन्द्रीयकरण, अधिकार अंतरण के बिना संभव आधारित नहीं होता है।

प्रश्न 24.
अधिकार एवं उत्तरदायित्व में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकार एवं उत्तरदायित्व में अन्तर –

अधिकार

  1. अधिकार का अर्थ है, निर्णय लेने की शक्ति।
  2. अधिकार वह शक्ति है जो अधीनस्थों के कर्तव्य को पूरा करने से है।
  3. अधिकार का प्रत्यायोजन किया जा सकता है।
  4. अधिकार, संस्था में औपचारिक पद के कारण उत्पन्न होता है।

उत्तरदायित्व

  1. उत्तरदायित्व का अर्थ है, सौंपे गये कार्य को सही
  2. उत्तरदायित्व का आशय किसी व्यक्ति द्वारा अपने व्यवहार को प्रभावित करती है।
  3. उत्तरदायित्व दूसरों को सौंपे जा सकते हैं।
  4. उत्तरदायित्व, उच्चाधिकारी अधीनस्थ सम्बन्ध से उत्पन्न होता है।

प्रश्न 25.
प्रभावी भारार्पण की अनिवार्य अपेक्षाओं को समझाइए।
उत्तर:
प्रभावी भारार्पण की अनिवार्य अपेक्षाएँ – अधिकार सौंपने की व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए निम्नांकित निर्देशों का पालन करना चाहिए

1. अधिकार और दायित्वों की स्पष्ट सीमा – अधीनस्थों को जो कार्य सौंपे जाएँ तो उन्हें यह पूरी तरह मालूम होना चाहिए कि उनके दायित्व तथा अधिकारों का क्षेत्र क्या है तथा उनकी सीमा कहाँ तक है।

2. अधिकार और दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या – अधीनस्थों को स्पष्ट रूप से यह ज्ञान होना चाहिए कि उन्हें क्या करना है तथा सौंपे गए कार्य के लिए कितने अधिकार दिये गये हैं तथा उनसे किस प्रकार के कार्य की आशा की जाती है।

3. उचित नियन्त्रण – अधिकार सौंपने की व्यवस्था के पश्चात् भी वरिष्ठ अधिकारी का उत्तरदायित्व समाप्त नहीं होता। इसलिए उच्च अधिकारियों को अपने अधीनस्थों के कार्यों पर उचित नियंत्रण रखना चाहिए।

4. योग्य व्यक्ति का चयन – अधिकार हमेशा योग्य व्यक्ति को ही सौंपने चाहिए तभी सौंपा गया कार्य सही ढंग से पूर्ण होता है।

प्रश्न 26.
संगठन के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
किसी भी व्यावसायिक एवं औद्योगिक इकाई में संगठन के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं…

1. उत्पादन में मितव्ययिता (Economy in production) संगठन का प्रमुख उद्देश्य, उत्पादन में मितव्ययिता लाना है, अर्थात् न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना प्रत्येक उपक्रम का उद्देश्य होता है, यहाँ यह ध्यान रखना है कि न्यूनतम लागत के साथ-साथ वस्तु की गुणवत्ता (Quality) व मात्रा (Quantity) में गिरावट नहीं आनी चाहिये।

2. समय व श्रम में बचत (Saving in time and labour)-संगठन में श्रेष्ठ मशीनें व यंत्र तथा श्रेष्ठ प्रणाली अपनाई जाती है जिससे कार्य के समय व श्रम में काफी बचत हो जाती है, संगठन द्वारा बड़े पैमाने में उत्पादन के लाभ भी लिये जा सकते हैं।

3. श्रम व पूँजी में मधुर सम्बन्ध (Cordial relations between labour and capital)- श्रमिकों व प्रबन्ध के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करना भी संगठन का एक उद्देश्य है, इस हेतु कुशल संगठनकर्ता की नियुक्ति कर श्रम व पूँजी के हितों की रक्षा की जाती है।

4. सेवा भावना (Spirit of service) वर्तमान सामाजिक चेतना एवं जन-जागरण के कारण प्रत्येक व्यवसायी का उद्देश्य ‘प्रथम सेवा फिर लाभ’ हो गया है वैसे भी प्रत्येक व्यवसायी को समाज सेवा कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिये। इसलिये वर्तमान में प्रत्येक संगठन चाहे वह आर्थिक हो या अनार्थिक सभी का उद्देश्य सेवा करना होता है।

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प्रश्न 27.
संगठन प्रक्रिया का संक्षेप में विवेचन कीजिये।
उत्तर:
संगठन के निर्माण के प्रमुख चरण

1. उद्देश्यों की स्थापना-संगठन के साथ उद्देश्यों का होना अति आवश्यक है। संगठन के उद्देश्यों में उन कार्यों की स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिए जिनके कारण संगठन की संरचना की जाती है।

2. क्रियाओं का निर्धारण-संगठन का दूसरा कदम क्रियाओं का निर्धारण एवं उनका विभाजन करना होता है। कार्यों को उपकार्यों में विभाजित कर प्रत्येक कार्य की स्पष्ट व्याख्या करनी चाहिए।

3. क्रियाओं का वर्गीकरण-तृतीय चरण में क्रियाओं का वर्गीकरण किया जाता है। इस हेतु विभिन्न क्रियाओं को अलग-अलग समूह में बाँट दिया जाता है। जैसे-क्रय, विक्रय, विज्ञापन, निरीक्षण, उत्पादन, मजदूरी, वेतन आदि।

4. कार्य का विभाजन-इसके अन्तर्गत सही कार्य के लिए सही व्यक्ति के सिद्धान्त के अनुसार कार्य विभाजन किया जाता है। साथ ही कर्मचारियों की जिम्मेदारी भी निश्चित की जाती है।

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प्रश्न 28.
विकेन्द्रीयकरण के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
विकेन्द्रीयकरण के निम्न उद्देश्य होते हैं

1.शीर्ष स्तर पर कार्यभार में कमी-सामान्यतः निर्णय उच्च प्रबन्धक या शीर्ष स्तर पर लिये जाते हैं। संगठन का विस्तार होने पर शीर्ष स्तर का कार्य और बढ़ जाता है अतः इस कार्यभार को कम करने के लिये विकेन्द्रीयकरण किया जाता है। इससे शीर्ष अधिकारियों का कार्यभार कम होगा और वे अति महत्वपूर्ण कार्यों के लिये अच्छा निर्णय ले सकते हैं।

2. प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के लाभ प्राप्त करने के लिये-विकेन्द्रीयकरण से अधिकारों का फैलाव छोटे-छोटे स्तर तक हो जाता है इससे प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के समस्त लाभ सभी वर्ग को प्राप्त होते हैं।

3. कार्यों के शीघ्र निष्पादन के लिये-उच्चाधिकारियों के अधिक कार्यों को कम कर दिया जाये तो वे अपने कार्यों को ठीक ढंग से व शीघ्र उसका निपटारा कर सकते हैं इसी के साथ प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने के लिये प्रत्येक स्तर पर अधिकारों का होना आवश्यक है इससे कार्य शीघ्र पूर्ण किये जा सकते हैं।

4.सर्वांगीण विकास-विकेन्द्रीयकरण से शीर्ष स्तर एवं निम्न स्तर के समस्त अधिकारियों को अधिकार प्राप्त होने से उन्हें अपने विकास का पूर्ण अवसर प्राप्त होता है। इसमें पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य निष्पादित किये जा सकते हैं। अतः संगठन के सर्वांगीण विकास के लिये भी विकेन्द्रीयकरण आवश्यक है।

प्रश्न 29.
अनौपचारिक संगठन के विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन में सामान्यतः निम्न विशेषतायें होती हैं

  1. इन संगठनों को बनाया नहीं जाता अपितु विशेष परिस्थितियों के कारण ये बन जाते हैं।
  2. इन संगठनों के समान उद्देश्य होते हैं।
  3. ये अस्थायी होते हैं कभी भी संगठन समाप्त हो जाते हैं।
  4. इनका अपना कोई चार्ट, विधान या मैन्यूवल नहीं होता अपितु सामान्य परम्परा ही इनके कानून होते हैं।
  5. ये संगठन व्यक्तिगत सम्बन्धों पर आधारित होते हैं।
  6. ये वैध एवं अवैध दोनों हो सकते हैं ।
  7. इसमें अधिकार एवं सत्ता को ऊपर से नीचे समर्पित किया जाता है।

प्रश्न 30.
संगठन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

1. दो या दो से अधिक व्यक्ति का होना-एक व्यक्ति अपने आपको संगठन नहीं कह सकता। अतः संगठन हेतु कम से कम दो व्यक्तियों का होना अति आवश्यक है। अधिकतम संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

2. निश्चित उद्देश्य का होना-संगठन में निश्चित उद्देश्य का होना अति आवश्यक है, बिना उद्देश्य के व्यक्तियों का समूह, संगठन नहीं हो सकता। जैसे कि किसी स्थान पर एक हजार लोग बिना उद्देश्य के एकत्र हैं तब वह संगठन न होकर मात्र भीड़ (Crowd) होगी।

3. लक्ष्य का पूर्व निर्धारित होना- संगठन के लिये यह आवश्यक है कि लक्ष्य या उद्देश्य पूर्व निर्धारित हो, लक्ष्य की प्राप्ति के लिये ही संगठन बनाया जाता है। अत: संगठन के पूर्व लक्ष्य (Targets) निर्धारित होना चाहिये।

4. व्यक्तियों का समूह होना-पशु-पक्षी या अन्य प्राणियों का समूह संगठन नहीं हो सकता। संगठन केवल व्यक्तियों का ही हो सकता है। यद्यपि फर्म या कम्पनियों के भी विधान द्वारा व्यक्ति (Person) कहा गया है, किन्तु ये सब कृत्रिम (Artificial) व्यक्ति हैं इसलिये 4 या 14 कम्पनियों का एक साथ कार्य करने को समूह (Group) कहेंगे संगठन नहीं।

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प्रश्न 31.
संगठन के किन्हीं चार सिद्धांतों को संक्षिप्त रूप में समझाइए।
उत्तर:
संगठन के सिद्धांत (Principles of Organization)

1.सोपानिक सिद्धांत (Principle of scalar chain)- कौन व्यक्ति किस प्रबंधक की अधीनस्थता में काम करेगा और किससे आदेश लेगा इस बात का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति इस आदेश श्रृंखला का उल्लंघन न करे।

2.अपवाद का सिद्धांत (Principle of exception)- प्रत्येक अधीनस्थ को इतने अधिकार दिये जायें कि वह दैनिक कार्यों को स्वयं निपटा सके। केवल असाधारण मामले ही अधीक्षक के पास आने चाहिए। इस प्रकार प्रबंधक का समय अधिक महत्वपूर्ण मामलों के लिए सुरक्षित रहता है।

3. लोच का सिद्धांत (Principle of flexibility)- संगठन में पर्याप्त लोच होनी चाहिए ताकि इसमें परिस्थितियों व समय के अनुसार आसानी से परिवर्तन किये जा सकें।

4. अधिकार एवं दायित्व (Rights and responsibility)- संगठन के प्रत्येक सदस्य को उसके अधिकार व दायित्व साथ-साथ दिये जाने चाहिए। अधिकार व दायित्व में तालमेल के बिना कोई भी व्यक्ति कुशलतापूर्वक कार्य नहीं कर पायेगा। अधीनस्थों को पर्याप्त अधिकार सौंपे जाने चाहिए।

प्रश्न 32.
रेखा एवं रेखा तथा कर्मचारी संगठन में अंतर लिखिए।
उत्तर:
रेखा एवं रेखा तथा कर्मचारी संगठन में अन्तर
(Difference between Line and Line and Staff Organization)
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन - 5

प्रश्न 33.
अधिकार, उत्तरदायित्व तथा उत्तरदेयता/जवाबदेही में तुलना करें।
अथवा
अधिकार प्रत्यायोजन के तत्वों में तुलना करें।
उत्तर:
अधिकार, उत्तरदायित्व एवं उत्तरदेयता में अंतर
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन - 2

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ NCERT पाठ्यपुस्तक के अध्याय में पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी n-प्रकार के सिलिकॉन में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकथन सत्य है?
(a) इलेक्ट्रॉन बहुसंख्यक वाहक हैं और त्रिसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं ।
(b) इलेक्ट्रॉन अल्पसंख्यक वाहक हैं और पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं
(c) होल (विवर) अल्पसंख्यक वाहक हैं और पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं
(d) होल (विवर) बहुसंख्यक वाहक हैं और त्रिसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
उत्तर
(c) प्रकथन सत्य है।

प्रश्न 2.
प्रश्न 1 में दिए गए कथनों में से कौन-सा प्रकार के अर्द्धचालकों के लिए सत्य है?
उत्तर :
(d) प्रकथन सत्य है।

प्रश्न 3.
कार्बन, सिलिकॉन और जर्मेनियम, प्रत्येक में चार संयोजक इलेक्ट्रॉन हैं। इनकी विशेषता ऊर्जा बैण्ड अन्तराल द्वारा पृथक्कृत संयोजकता और चालन बैण्ड द्वारा दी गई हैं, जो क्रमशः (Eg)c, (Eg)si तथा (Eg)Ge के बराबर हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकथन सत्य है?
(a) (Eg)si < (Eg)Ge < (Eg)c
(b) (Eg)c < (E g)Ge > (Eg)si
(c) (Eg)c > (Eg)si > (Eg)Ge .
(d) (Eg)c = (Eg)si = (Eg)Ge
उत्तर
चालन बैण्ड तथा संयोजकता बैण्ड के बीच ऊर्जा अन्तराल कार्बन के लिए सबसे अधिक, सिलिकॉन के लिए उससे कम तथा जर्मेनियम के लिए सबसे कम होता है, अत: (c) प्रकथन सत्य है।

प्रश्न 4.
बिना बायस p-n सन्धि में, होल क्षेत्र में n-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं, क्योंकि
(a) n-क्षेत्र में मुक्त इलेक्ट्रॉन उन्हें आकर्षित करते हैं
(b) ये विभवान्तर के कारण सन्धि के पार गति करते हैं।
(c) P-क्षेत्र में होल-सान्द्रता, n-क्षेत्र में उनकी सान्द्रता से अधिक है
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर
(c) प्रकथन सत्य है।

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प्रश्न 5.
जब p-n सन्धि पर अग्रदिशिक बायस अनुप्रयुक्त किया जाता है, तब यह
(a) विभव रोधक बढ़ाता है
(b) बहुसंख्यक वाहक धारा को शून्य कर देता है
(c) विभव रोधक को कम कर देता है
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर
(c) प्रकथन सत्य है।

प्रश्न 6.
ट्रांजिस्टर की क्रिया हेतु निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं
(a) आधार, उत्सर्जक और संग्राहक क्षेत्रों की आमाप और अपमिश्रण सान्द्रता समान होनी चाहिए
(b) आधार क्षेत्र बहुत बारीक और कम अपमिश्रित होना चाहिए
(c) उत्सर्जक सन्धि अग्रदिशिक बायस है और संग्राहक सन्धि पश्चदिशिक बायस है
(d) उत्सर्जक सन्धि संग्राहक सन्धि दोनों ही अग्रदिशिक बायस हैं।
उत्तर
(b) तथा (c) प्रकथन सही है।

प्रश्न 7.
किसी ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के लिए वोल्टता लब्धि
(a) सभी आवृत्तियों के लिए समान रहती है
(b) उच्च और निम्न आवृत्तियों पर उच्च होती है तथा मध्य आवृत्ति परिसर में अचर रहती है ।
(c) उच्च और निम्न आवृत्तियों पर कम होती है और मध्य आवृत्तियों पर अचर रहती है
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर
(c) प्रकथन सत्य है।

प्रश्न 8.
अर्द्ध तरंग दिष्टकरण में, यदि निवेश आवृत्ति 50 हर्ट है तो निर्गम आवृत्ति क्या है? समान निवेश आवृत्ति हेतु पूर्ण तरंग दिष्टकारी की निर्गम आवृत्ति क्या है?
उत्तर
अर्द्ध तरंग दिष्टकारी के लिए निर्गम आवृत्ति 50 हर्ट्स ही रहेगी परन्तु पूर्ण तरंग दिष्टकारी के लिए निर्गम आवृत्ति दोगुनी अर्थात् 100 हर्ट्स होगी।

प्रश्न 9.
उभयनिष्ठ उत्सर्जक (CE-ट्रांजिस्टर) प्रवर्धक हेतु, 2kΩ के संग्राहक प्रतिरोध के सिरों पर ध्वनि वोल्टता 2 वोल्ट है। मान लीजिए कि ट्रांजिस्टर का धारा प्रवर्धन गुणक 100 है। यदि आधार प्रतिरोध 1kΩ है तो निवेश संकेत (signal) वोल्टता और आधार धारा परिकलित कीजिए।
हल
दिया है, CE – प्रवर्धक हेतु, धारा प्रवर्धन गुणांक β = 100
निवेशी प्रतिरोध Ri = 1kΩ= 103
निर्गम प्रतिरोध Ro = 2kΩ = 2 × 103
निर्गम वोल्टता Vo = 2 वोल्ट
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प्रश्न 10.
एक के पश्चात् एक श्रेणीक्रम सोपानित में दो प्रवर्धक संयोजित किए गए हैं। प्रथम प्रवर्धक की वोल्टता लब्धि 10 और द्वितीय की वोल्टता लब्धि 20 है। यदि निवेश संकेत 0.01 वोल्ट है तो निर्गम प्रत्यावर्ती संकेत का परिकलन कीजिए।
हल
निवेश संकेत वोल्टता Vi = 0.01 वोल्ट
प्रथम प्रवर्धक की वोल्टता लब्धि = 10
द्वितीय प्रवर्धक की वोल्टता लब्धि = 20.
श्रेणी संयोजन की कुल वोल्टता लब्धि \(\frac{V_{o}}{V_{i}}\) = 20 × 10= 200
निर्गम वोल्टता Vo = 200Vi = 200 × 0.01 = 2 वोल्ट।

प्रश्न 11.
कोई p-n फोटो डायोड 2.8 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट बैण्ड अन्तराल वाले अर्द्धचालक से संविरचित है। क्या यह 6000 नैनोमीटर की तरंगदैर्घ्य का संसूचन कर सकता है?
हल
बैण्ड अन्तराल Eg = 2.8 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट
प्रकाश की तरंगदैर्घ्य λ = 6000 नैनोमीटर = 6000×10-9 मीटर
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 2
∵ आपतित प्रकाश के फोटॉन की ऊर्जा, बैण्ड अन्तराल से कम है, अत: फोटो डायोड इस प्रकाश का संसूचन नहीं कर पाएगा।

प्रश्न 12.
सिलिकॉन परमाणुओं की संख्या 5x 1028 प्रति मीटर है। यह साथ ही साथ आर्सेनिक के 5×1022 परमाणु प्रति मीटर3 और इंडियम के 5×1020 परमाणु प्रति मीटर3 से अपमिश्रित किया गया है। इलेक्ट्रॉन और होल की संख्या का परिकलन कीजिए। दिया. है कि ni = 1.5 × 1016 प्रति मीटर3 । दिया गया पदार्थ n-प्रकार का है या p-प्रकार का?
हल
यहाँ दाता परमाणुओं की सान्द्रता ND = 5 ×1022 परमाणु प्रति मीटर3
ग्राही परमाणुओं की सान्द्रता NA = 5 ×1020 परमाणु प्रति मीटर3
= 0.05 x 1022 परमाणु प्रति मीटर3
नैज वाहक सान्द्रता ni = 1.5 × 1016 प्रति मीटर3
नैज परमाणु सान्द्रता N= 5 × 1028 प्रति मीटर3 .
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 3

प्रश्न 13.
किसी नैज अर्द्धचालक में ऊर्जा अन्तराल Eg का मान 1.2 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट है। इसकी होल गतिशीलता इलेक्ट्रॉन गतिशीलता की तुलना में काफी कम है तथा ताप पर निर्भर नहीं है। इसकी 600 K तथा 300 K पर चालकताओं का क्या अनुपात है? यह मानिए की नैज वाहक सान्द्रता ni की ताप निर्भरता इस प्रकार व्यक्त होती है- \(\boldsymbol{n}_{\boldsymbol{i}}=\boldsymbol{n}_{0} \exp \left(-\frac{\boldsymbol{E}_{\boldsymbol{g}}}{\boldsymbol{2} \boldsymbol{k}_{\boldsymbol{B}} \boldsymbol{T}}\right)\)
जहाँ n0 एक स्थिरांक है।
हल
नैज अर्द्धचालक का ऊर्जा अन्तराल Eg = 1.2 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट
तथा परम ताप T1 = 600K व T2 = 300K
माना उक्त तापों पर अर्द्धचालक की चालकताएँ क्रमश: σ1व σ2 हैं।
अर्द्धचालक की चालकता निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्राप्त होती है-
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 4

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प्रश्न 14.
किसी p-n सन्धि डायोड में धारा I को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
I=Io\(\left[\exp \left(\frac{e V}{2 k_{B} T}\right)-1\right]\)
जहाँ I0 को उत्क्रमित संतृप्त धारा कहते हैं, V डायोड के सिरों पर वोल्टता है तथा यह अग्रदिशिक बायस के लिए धनात्मक तथा पश्चदिशिक बायस के लिए ऋणात्मक है। I डायोड से प्रवाहित धारा है, kB बोल्ट्समान नियतांक (8.6x 10-5 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट-K-1) है तथा T परम ताप है। यदि किसी दिए गए डायोड के लिए I0 = 5x 10-12 ऐम्पियर तथा T= 300K है, तब
(a) 0.6 वोल्ट अग्रदिशिक वोल्टता के लिए अग्रदिशिकधारा क्या होगी?
(b) यदि डायोड के सिरों पर वोल्टता को बढ़ाकर 0.7 वोल्ट कर दें तो धारा में कितनी वृद्धि हो जाएगी?
(c) गतिक प्रतिरोध कितना है?
(d) यदि पश्चदिशिक वोल्टता को 1 वोल्ट से 2 वोल्ट कर दें तो धारा का मान क्या होगा?
हल
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 5

(b) माना अग्र बायस वोल्टता को V = + 0.7 वोल्ट करने पर धारा
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 6

(c) डायोड का गतिक प्रतिरोध Rd =\(\frac{\Delta V}{\Delta I}\) = \(\frac { 0.7-0.6 }{ 2.957 }\) =0.033Ω

(d) पश्चदिशिक वोल्टता 1V (V = -1V) के लिए
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इसी प्रकार V = – 2 वोल्ट हेतु, I = -5×10-12 ऐम्पियर।
अत: उत्क्रम वोल्टता के लिए धारा उत्क्रमित. संतृप्त धारा के बराबर बनी रहती है।
इससे ज्ञात होता है कि पश्चदिशिक बायस के लिए डायोड का गतिक प्रतिरोध अनन्त होता है।

प्रश्न 15.
आपको चित्र-14.1 में दो परिपथ दिए गए हैं। यह दर्शाइए कि परिपथ
(a) OR गेट की भाँति व्यवहार करता है जबकि परिपथ
(b) AND गेट की भाँति कार्य करता है।
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हल
(a) दिया गया परिपथ NOR गेट तथा NOT गेट का श्रेणी संयोजन है। .
माना NOR गेट का निर्गम 1 है जो कि NOT गेट का निवेश है।
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स्पष्ट है कि Y, OR गेट के निर्गम के समान है, अत: दिया गया परिपथ एक OR गेट की भाँति व्यवहार करता है। इसी तथ्य को इस गेट की सत्यमान सारणी से भी सत्यापित किया जा सकता है जो कि निम्नवत् हैA .
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इस सारणी से स्पष्ट है कि हम देख सकते हैं कि इस परिपथ् का निर्गम केवल तभी निम्न है जबकि दोनों निवेश निम्न हैं, अन्यथा निर्गम उच्च है। यही OR गेट की भी विशेषता है। अतः दिया गया परिपथ एक OR गेट की भाँति व्यवहार करता है।

(b) दिए गए परिपथ में NOR गेट के दो निवेश दो NOT गेटों के निर्गमों से प्राप्त किए गए हैं। माना NOR गेट के ये दो निवेश क्रमश: y1 तथा y2 हैं।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 12
परन्तु यह एक AND गेट का निर्गम हैं, अत: इससे स्पष्ट है कि दिया गया परिपथ एक AND गेट की भाँति व्यवहार करता है। इस तथ्य को परिपथ की सत्यमान सारणी से भी सत्यापित किया जा सकता है जो कि निम्नवत है
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 13
सारणी से स्पष्ट है कि इस परिपथ का निर्गम तभी उच्च है जबकि इसके दोनों निवेश उच्च हैं। अन्यथा निर्गम निम्न है। यही AND गेट की विशेषता है।
अतः यह परिपथ एक AND गेट की भाँति व्यवहार करता है।

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प्रश्न 16.
नीचे दिए गए चित्र-14.2 में संयोजित NAND गेट संयोजित परिपथ.. की सत्यमान सारणी बनाइए।
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अतः इस परिपथ द्वारा की जाने वाली यथार्थ तर्क संक्रिया का अभिनिर्धारण चित्र-14.2 कीजिए।
हल
चित्र-14.2 में प्रदर्शित गेट एक NAND गेट है जिसके दोनों निवेशों को लघुपथित (short circuit) करके एक कर दिया गया है।
इस परिपथ की सत्यमान सारणी निम्नवत् है
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 15
∵ दोनों निवेश एक ही हैं, अतः उक्त सारणी को निम्नवत् बनाया जा सकता है
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 16
इस सारणी से स्पष्ट है कि यह परिपथ NOT गेट की भाँति व्यवहार करता है।
इसकी तर्क संक्रिया निम्नलिखित है- \(Y=\bar{A}\)

प्रश्न 17.
आपको निम्न चित्र-14.3 में दर्शाए अनुसार परिपथ दिए गए हैं जिनमें NAND गेट जुड़े हैं। इन दोनों परिपथों द्वारा की जाने वाली तर्क संक्रियाओं का अभिनिर्धारण कीजिए।
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 17
हल
(a) माना पहले NAND गेट का निर्गम Y1 है, तब
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पहले NAND गेट का निर्गम Y1 दूसरे NAND गेट का निवेश है। अत:
पूर्ण परिपथ का निर्गम
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अतः दिया गया परिपथ AND गेट की भाँति व्यवहार करेगा।
इसकी तर्क संक्रिया Y = A AND B या A. B है।

(b) माना प्रथम दो NAND गेटों के निर्गम क्रमश: Y1 तथा Y2 हैं तथा ये दोनों निर्गम अन्तिम NAND. गेट के निवेश हैं।
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यही इस परिपथ की तर्क संक्रिया है। इससे स्पष्ट है कि यह परिपथ एक OR गेट की भाँति व्यवहार करेगा।

प्रश्न 18.
चित्र-14.4 में दिए गए NOR गेट युक्त परिपथ की सत्यमान सारणी लिखिए और इस परिपथ द्वारा अनुपालित तर्क संक्रियाओं (OR, AND, NOT) को अभिनिर्धारित कीजिए।
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हल
माना प्रथम NOR गेट का निर्गम 71 है तब यह निर्गम Y, दूसरे NOR गेट के लिए निवेश है।
तब \(y_{1}=\overline{A+B}\) तथा पूर्ण परिपथ का निर्गम Y = \(\overline{y_{1}}\)
इस परिपथ की सत्यमान सारणी निम्नलिखित है
MP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ img 22
सारणी से स्पष्ट है कि इस परिपथ का निर्गम केवल तभी निम्न है जबकि इसके दोनों निवेश निम्न हैं, अत: यह परिपथ एक OR गेट की भाँति व्यवहार करता है।
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प्रश्न 19.
चित्र-14.5 में दर्शाए गए केवल NOR गेटों से बने परिपथ की सत्यमान सारणी बनाइए। दोनों परिपथों द्वारा अनुपालित तर्क संक्रियाओं (OR, AND, NOT) को अभिनिर्धारित कीजिए।
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(a) दिया गया परिपथ एक NOR गेट को प्रदर्शित करता है जिसके दो निवेशों को लघुपथित कर दिया गया है।
इस परिपथ का निर्गम निम्नलिखित है Y = \(\bar{A}\)= NOTA
इसकी सत्यमान सारणी निम्नलिखित है
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स्पष्ट है कि यह परिपथ एक NOT गेट की भाँति व्यवहार करता है जिसकी तर्क संक्रिया Y = \(\bar{A}\) है।

(b) दिए गए परिपथ में दो NOR गेटों के निर्गम \(\bar{A}\) तथा \(\bar{B}\) तीसरे NOR गेट के निवेश हैं।
एक NOR. गेट का निर्गम केवल तभी उच्च होता है जबकि उसके सभी निवेश निम्न हों अन्यथा निर्गम निम्न होता है। उक्त परिपथ की सत्यमान सारणी निम्नवत् है
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इस परिपथ का निर्गम है \(Y=\overline{\bar{A}+\bar{B}}=\overline{\bar{A}} \cdot \overline{\bar{B}}\) (डि-मोर्गन नियम से)
⇒ Y = A. B
यही इस परिपथ की तर्क संक्रिया है। तर्क संक्रिया से स्पष्ट है कि यह परिपथ एक AND गेट की भाँति व्यवहार करता है।

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अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ NCERT भौतिक विज्ञान प्रश्न प्रदर्शिका (Physics Exemplar LQ Problems) पुस्तक से चयनित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हल

अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
ताप में वृद्धि से किसी अर्द्धचालक की चालकता में वृद्धि का कारण यह है कि मुक्त धारावाहकों का
(a) संख्या घनत्व बढ़ जाता है ।
(b) विश्रांति काल बढ़ जाता है
(c) संख्या घनत्व तथा विश्रांति काल दोनों बढ़ जाते हैं
(d) संख्या घनत्व बढ़ जाता है और विश्रांति काल घट जाता है।
उत्तर
(d) संख्या घनत्व बढ़ जाता है और विश्रांति काल घट जाता है।

प्रश्न 2.
चित्र-14.6 में किसी सन्धि डायोड के लिए सन्धि केन्द्र से दूर जाने पर दूरी के साथ सन्धि के सिरों पर विभव प्राचीर में अन्तर को दर्शाया गया है। इसमें V. सन्धि के सिरों पर वह विभव प्राचीर है जो तब प्रभावी होती है जब सन्धि के सिरों के बीच कोई बैटरी न जुड़ी 1 हो
(a) 1 तथा 3 दोनों अग्र बायसित सन्धि के संगत हैं
(b) 3 अग्र बायसित सन्धि के संगत और 1 पश्च बायसित सन्धि के संगत है
(c) 1 अग्र बायसित सन्धि के संगत और 3 पश्च बायसित सन्धि के संगत है
(d) 3 तथा 1 दोनों पश्च बायसित सन्धि के संगत हैं।
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उत्तर
(b) 3 अग्र बायसित सन्धि के संगत और 1 पश्च बायसित सन्धि के संगत है

प्रश्न 3.
चित्र-14.7 में डायोडों को आदर्श मानें तो
(a) D1 अग्र बायसित है और D2 अतः धारा A से B की ओर प्रवाहित होती है
(b) D2 अग्र. बायसित और D1 पश्च बायसित है, अत: B से A की ओर अथवा A से B की ओर कोई धारा प्रवाहित नहीं होती
(c) D1 तथा D2 दोनों अग्र बायसित हैं, अतः धारा A से B की ओर अथवा B से की ओर प्रवाहित होती है .
(d) D1 तथा D2 दोनों पश्च बायसित हैं, अत: A से B की ओर अथवा B से A की ओर कोई धारा प्रवाहित नहीं होती।
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उत्तर
(b) D2 अग्र. बायसित और D1 पश्च बायसित है, अत: B से A की ओर अथवा A से B की ओर कोई धारा प्रवाहित नहीं होती

प्रश्न 4.
220 V ac विद्युत प्रदाय बिन्दुओं A और B के बीच जुड़ा है (चित्र-14.8) A_ संधारित्र के सिरों पर विभवान्तर V कितना होगा
(a) 220V
(b) 110V
(c) शून्य
(d) 220/2V.
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उत्तर
(d) 220/2V.

प्रश्न 5.
होल होता है
(a) इलेक्ट्रॉन का प्रतिकण
(b) सहसंयोजी आबन्ध से एक इलेक्ट्रॉन दूर छिटक जाने पर उत्पन्न रिक्ति
(c) मुक्त इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति
(d) कृत्रिम रूप से सृजित कोई कण।
उत्तर
(b) सहसंयोजी आबन्ध से एक इलेक्ट्रॉन दूर छिटक जाने पर उत्पन्न रिक्ति

प्रश्न 6.
चित्र-14.9 में दिए गए परिपथ का निर्गम होगा
(a) हर समय शून्य
(b) किसी अर्द्ध तरंग दिष्टकारी की भाँति निर्गम में धनात्मक अर्द्ध चक्र होंगे
(c) किसी अर्द्ध तरंग दिष्टकारी की भाँति निर्गम में ऋणात्मक अर्द्ध चक्र होंगे
(d) किसी पूर्ण तरंग दिष्टकारी के निर्गम जैसा।
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उत्तर
(c) किसी अर्द्ध तरंग दिष्टकारी की भाँति निर्गम में ऋणात्मक अर्द्ध चक्र होंगे

प्रश्न 7.
चित्र-14.10 में दर्शाए परिपथ में यदि डायोड का अग्रदिश वोल्टता-पात 0.3V है, तो A एवं B के बीच विभवान्तर है
(a) 1.3V
(b) 2.3V
(c) शून्य
(d) 0.5V.
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उत्तर
(b) 2.3V

प्रश्न 8.
दिए गए परिपथ (चित्र-14.11) के लिए सत्यापन सारणी है
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उत्तर
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अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सिलिकन या जर्मेनियम के मादन के लिए तात्विक मादकों का चयन प्रायः या तो समूह XIII अथवा समूह ‘xv के तत्वों में से ही क्यों किया जाता है?
उत्तर
सिलिकन या जर्मेनियम के मादन के लिए XIII अथवा XV समूह के तत्वों का चयन इसलिए किया जाता है क्योंकि इन तत्वों के परमाणुओं का आकार ऐसा होता है कि ये अर्द्धचालक क्रिस्टल जालक की संरचना को विकृत किए बिना ही सिलिकन या जर्मेनियम के साथ सहसंयोजी बन्ध बनाकर एक आवेश वाहक का क्रिस्टल में योगदान कर देते हैं।

प्रश्न 2.
Sn, C तथा Ge, Si सभी समूह XIV के तत्व हैं। फिर भी Sn चालक है, C विद्युतरोधी है जबकि Si एवं Ge अर्द्धचालक हैं। ऐसा क्यों है?
उत्तर
परमाणु आकार के अनुसार Sn के लिए ऊर्जा अन्तराल 0 eV,C के लिए 5.4eV, Si के लिए 1.1eV तथा Ge के लिए 0.7eV होता है। अत: Sn चालक, C विद्युतरोधी जबकि Si व Ge अर्द्धचालक हैं।

प्रश्न 3.
क्या p-n सन्धि के सिरों पर विभव प्राचीर की माप केवल सन्धि पर वोल्टतामापी जोड़ कर की जा सकती है?
उत्तर
नहीं, p-n सन्धि के सिरों पर वोल्टतामापी जोड़कर विभव प्राचीर की माप नहीं की जा सकती है। क्योंकि इसके लिए सन्धि प्रतिरोध की तुलना में वोल्टतामापी का प्रतिरोध बहुत अधिक होना चाहिए जबकि सन्धि प्रतिरोध लगभग अनन्त होता है।

प्रश्न 4.
प्रवर्धकों X, Y एवं Z को श्रेणीक्रम में जोड़ा गया है। यदि x, Y एवं Z की वोल्टता लब्धि क्रमश: 10, 20 एवं 30 और निवेश सिग्नल का शिखर मान 1 मिलीवोल्ट है, तो निर्गत सिग्नल वोल्टता का शिखर मान क्या होगा, जबकि

  1. dc प्रदान वोल्टता 10 वोल्ट है?
  2. dc प्रदाय वोल्टता 5 वोल्ट है?

हल
1. परिणामी वोल्टता लब्धि = 10x20x 30 = 6000 .
∴ निर्गत सिग्नल वोल्टता का शिखर मान (V0) = 6000×1 मिलीवोल्ट = 6000×10-3 वोल्ट = 6 वोल्ट।

2. यहाँ dc प्रदाय वोल्टता 5 वोल्ट है तो निर्गत सिग्नल वोल्टता का शिखर मान. भी 5 वोल्ट से अधिक नहीं हो सकता।
∴ V0 = 5 वोल्ट।

प्रश्न 5.
किसी उभयनिष्ठ उत्सर्जक ट्रांजिस्टर प्रवर्धक परिपथ से कोई धारा और वोल्टता लब्धि सम्बद्ध है। दसरे शब्दों में, कोई शक्ति-लब्धि होती है? शक्ति को ऊर्जा की माप मानते हुए क्या इस परिपथ में ऊर्जा संरक्षण का उल्लंघन होता है?
उत्तर
नहीं, इस परिपथ में ऊर्जा संरक्षण का उल्लंघन नहीं हुआ है। इस प्रक्रिया में आवश्यक अतिरिक्त शक्ति प्रयुक्त D.C. स्रोत द्वारा प्रदान की जाती है।

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अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
(i) उस डायोड के प्रकार का नाम लिखिए जिसके अभिलक्षणिक uil चित्र-14.12
(a) एवं
(b) में दर्शाए गए हैं।
(ii) चित्र-14.12 (a) में बिन्दु P क्या निरूपित करता है?
(iii) चित्र-14.12 (b) में बिन्दु P एवं Q क्या निरूपित करते हैं?
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उत्तर

  1. चित्र-14.12 (a) जेनर डायोड के व चित्र-14.12 (5) सौर सेल के अभिलक्षिक वक्र को प्रदर्शित करता है।
  2. चित्र-14.12 (a) में बिन्दु P, जेनर भंजक वोल्टता को निरूपित करता है।
  3. चित्र-14.12 (b) में बिन्दु P, खुले परिपथ की वोल्टता को तथा बिन्दु Q, लघु पथन धारा को निरूपित करता है।

प्रश्न 2.
तीन फोटो डायोड D1, D2 एवं D3 ऐसे अर्द्धचालकों से बनाया गए हैं जिनके बैण्ड अन्तराल क्रमशः 2.5eV;2eV एवं 3eV हैं। इनमें से कौन-सा डायोड 6000 A तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का संसूचन करने योग्य होगा?
उत्तर
6000A तरंगदैर्घ्य के प्रकाश फोटॉन की कर्ज (E) = \(\frac { hc }{ λ }\) = \(\frac{6.6 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^{8}}{6 \times 10^{-7}}\)
=\(\frac{3.3 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}}\) eV = 2.06eV
किसी फोटो डायोड द्वारा विकिरण के संसूचन के लिए आवश्यक है कि विकिरण फोटॉनों की ऊर्जा, बैण्ड अन्तराल से अधिक हो। यह शर्त केवल फोटो डायोड D2 के लिए पूरी होती है। अत: फोटो डायोड D2 ही आपतित विकिरण को संसूचित करेगा।

प्रश्न 3.
यदि प्रतिरोध R1 बढ़ाया जाता है (चित्र-14.13) तो अमीटर तथा वोल्टमीटर के पाठ्यांकों में क्या परिवर्तन होंगे?
उत्तर
प्रतिरोध R1 का मान बढ़ाने पर आधार धारा IB\(\left(I_{B}=\frac{V_{B B}-V_{B E}}{R_{1}}\right)\) का मान कम होगा, जिसके परिणामस्वरूप संग्राहक काम धारा Ic का मान भी कम होगा। अत: अमीटर तथा वोल्टमीटर का पाठ्यांक कम होगा।
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प्रश्न 4.
स्पष्ट कीजिए कि तात्विक अर्द्धचालकों का उपयोग दृश्य LEDs बनाने में क्यों नहीं किया जा सकता?
उत्तर
तात्विक अर्द्धचालकों का उपयोग दृश्य LED बनाने में नहीं किया जा सकता क्योंकि तात्विक अर्द्धचालकों के ऊर्जा-अन्तराल इस प्रकार के होते हैं कि उनसे उत्सर्जन अवरक्त क्षेत्र में होता है।

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अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ आंकिक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
यदि चित्र-14.14 में दर्शाए गए प्रत्येक डायोड का अग्र बायस प्रतिरोध _ 252 तथा पश्च बायस प्रतिरोध अनन्त हो, तो धारा 11, 12, I एवं I के मान क्या । होंगे?
हल
C व D के बीच लगा डायोड पश्च बायस है।
अतः I3 = 0
शाखा AB व EF का समान प्रतिरोध = 25+ 125 = 150Ω
शाखा AB व EF का तुल्य प्रतिरोध R’= \(\frac { 150 }{ 2 }\) = 750Ω
परिपथ का कुल प्रतिरोष्ट R = 75+ 25 = 100Ω
परिपथ में धारा I1= \(\frac { V }{ R }\) = \(\frac { 5 }{ 100 }\) = 0.05 ऐम्पियर
तथा धारा I2 = I4 = \(\frac { 0.05 }{ 2 }\)= 0.025 ऐम्पियर।

प्रश्न 2.
चित्र-14.15 में द्वारों के दिए गए संयोजनों के निर्गम सिग्नलों C एवं C को आरेखित कीजिए।
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हल
NAND गेटों से पहला प्राप्त संयोजन NOR गेट की भाँति कार्य करेगा [चित्र-14.15 (b)]|
NOR गेटों से प्राप्त दूसरा संयोजन AND गेट की भाँति कार्य करेगा [चित्र-14.15 (c)]।
C1 व C2 निर्गम सिग्नलों को चित्र-14.16 में दर्शाया गया है।
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