MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

संगठन Important Questions

संगठन वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन-सा अंतरण का तत्व नहीं है –
(a) उत्तरदेयता
(b) अधिकार
(c) उत्तरदायित्व
(d) अनौपचारिक संगठन
उत्तर:
(d) अनौपचारिक संगठन

प्रश्न 2.
कार्य करते हुए अंतःक्रिया में अचानक बना सामाजिक संबंध तंत्र कहलाता है –
(a) औपचारिक संगठन
(b) अनौपचारिक संगठन
(c) विकेन्द्रीकरण
(d) अंतरण।
उत्तर:
(b) अनौपचारिक संगठन

प्रश्न 3.
संगठन को देखा नहीं जा सकता –
(a) प्रबंध के एक कार्य के रूप में
(b) संबंधों के एक ढाँचे के रूप में
(c) एक प्रक्रिया के रूप में
(d) उद्यम वृत्ति के रूप में।
उत्तर:
(d) उद्यम वृत्ति के रूप में।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा संगठन प्रक्रिया का एक चरण नहीं है –
(a) क्रियाओं का विभाजन
(b) कार्य सौंपना
(c) कार्यों एवं विभागों का निर्माण
(d) नेतृत्व प्रदान करना।
उत्तर:
(d) नेतृत्व प्रदान करना।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन संदेशवाहन के अधिकारिक मार्ग का प्रयोग नहीं करता –
(a) औपचारिक संगठन
(b) अनौपचारिक संगठन
(c) कार्यात्मक संगठन
(d) प्रभागीय संगठन
उत्तर:
(b) अनौपचारिक संगठन

प्रश्न 6.
किस संगठन में क्रियाओं को उत्पादों के आधार पर समूहों में बाँटा जाता है –
(a) विकेन्द्रित संगठन
(b) प्रभागीय संगठन
(c) कार्यात्मक संगठन
(d) केन्द्रित संगठन।
उत्तर:
(b) प्रभागीय संगठन

प्रश्न 7.
एक लंबा ढाँचा होता है –
(a) प्रबंध की सिकुड़ी हुई शृंखला
(b) प्रबंध की फैली हुई श्रृंखला
(c) प्रबंध की कोई भी श्रृंखला
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) प्रबंध की सिकुड़ी हुई शृंखला

प्रश्न 8.
उत्पादन रेखा पर आधारित सामूहिक क्रिया अंग है –
(a) अंतरित संगठन का
(b) प्रभागीय संगठन का
(c) कार्यात्मक संगठन का
(d) स्वायत्त शासित संगठन का।
उत्तर:
(b) प्रभागीय संगठन का

प्रश्न 9.
केन्द्रीयकरण से तात्पर्य है –
(a) निर्णय लेने के अधिकारों को सुरक्षित रखना
(b) निर्णय लेने के अधिकारों का बिखराव करना
(c) प्रभागों का लाभ केन्द्र बनाना
(d) नये केन्द्रों अथवा शाखाओं को खोलना।
उत्तर:
(a) निर्णय लेने के अधिकारों को सुरक्षित रखना

प्रश्न10.
प्रबंध के विस्तार से तात्पर्य है –
(a) प्रबंधकों की संख्या में वृद्धि
(b) एक प्रबंधक की नियुक्ति के समय की सीमा जिसके लिये उसे नियुक्ति दी गई है
(c) एक उच्चाधिकारी के अंतर्गत कार्य करने वाले अधीनस्थों की गणना
(d) शीर्ष प्रबंध के सदस्यों की गणना।
उत्तर:
(c) एक उच्चाधिकारी के अंतर्गत कार्य करने वाले अधीनस्थों की गणना

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. अधिकार अंतरण या भारार्पण का आशय …………. सौंपना है।
  2. विकेन्द्रीकरण में …………. के वितरण पर बल दिया जाता है।
  3. विकेन्द्रीकरण अधिकारियों के कार्यभार में …………. करता है।
  4. कार्यात्मक संगठन संरचना की अवधारणा …………. के मस्तिष्क की उपज है।
  5. बैंक …………. संरचना संगठन का उदाहरण है।
  6. संगठन संरचना से आशय संस्था में …………. संबंधों की व्याख्या करने से है।
  7. संस्था को उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के आधार पर विभक्त करना ……….. संगठन कहलाता है।
  8.  …………. संगठन में अधिकार तथा कर्तव्यों की स्पष्ट व्याख्या की जाती है।

उत्तर:

  1. अधिकार
  2. सत्ता
  3. कमी
  4. टेलर
  5. भौगोलिक
  6. अधिकार कर्तव्य
  7.  संभागीय
  8. औपचारिक।

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. उच्च अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों में अपने कार्यों-अधिकारों का वितरण, सीमित रूप से किया जाना क्या कहलाता है ?
  2. संस्था में शीघ्र निर्णयन को प्रोत्साहित करने हेतु क्या अपनाया जाना चाहिए?
  3. ऐसी संस्था जो विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाती है उसे कौन-सा संगठन अपनाना चाहिए ?
  4. किस स्थिति में अधिकारों का हस्तांतरण होता है परन्तु उत्तरदायित्वों का नहीं?
  5. संगठन का वह स्वरूप जो कर्मचारियों के मध्य पारस्परिक संबंध के कारण स्वतः ही विकसित होता है, उसे क्या कहते हैं ?
  6. उस संगठन का नाम बताइए जो नियमों एवं कार्य विधियों पर आधारित है।
  7. संगठनात्मक ढाँचे में किस प्रकार के संबंध को दिखाया जाता है ?
  8. प्रबंध का संगठन का कार्य प्रबंध के किस कार्य के बाद आता है ?
  9. विभागीय संगठन प्रक्रिया का कौन-सा चरण है ?
  10. अनौपचारिक संगठन में सदस्यों में किस प्रकार का संबंध होता है ?

उत्तर:

  1. भारार्पण
  2. विकेंद्रीयकरण
  3. संभागीय संगठन
  4. भारार्पण
  5. अनौपचारिक संगठन
  6. औपचारिक संगठन
  7. अधिकारी व अधीनस्थ संबंध
  8. नियोजन के बाद
  9. दूसरा चरण
  10. मधुर संबंध।

प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1.  संगठन की स्थापना निम्न स्तर के प्रबन्ध द्वारा होती है।
  2. संगठन भ्रष्टाचार को जन्म देता है।
  3. अधिकार का भारार्पण दिया जा सकता है।
  4. जवाबदेही का भारार्पण नहीं किया जा सकता है।
  5. संगठन का प्रबन्ध में वही महत्व है जो मानव शरीर में हड्डियों के ढाँचे का होता है।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन - 1
उत्तर:

  1. (e)
  2. (a)
  3. (b)
  4. (c)
  5. (d)

संगठन लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संगठन के उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
संगठन के उद्देश्य –

1. उत्पादन में मितव्ययिता – संगठन का प्रमुख उद्देश्य उत्पादन में मितव्ययिता लाना है अर्थात् न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना प्रत्येक उपक्रम का उद्देश्य होता है।

2. समय तथा श्रम में बचत – संगठन में श्रेष्ठ मशीनें व यंत्र तथा श्रेष्ठ प्रणाली अपनाई जाती है जिससे कार्य के समय व श्रम में काफी बचत की जाती है। संगठन द्वारा बड़े पैमाने में उत्पादन के लाभ भी लिए जा सकते हैं।

3. श्रम तथा पूँजी में मधुर संबंध – श्रमिकों तथा प्रबंध के बीच मधुर संबंध स्थापित करना भी संगठन का एक उद्देश्य है, इस हेतु कुशल संगठनकर्ता की नियुक्ति कर श्रम व पूँजी के हितों की रक्षा की जाती है।

4. सेवा भावना – वर्तमान सामाजिक चेतना एवं जन जागरण के कारण प्रत्येक व्यवसायी का उद्देश्य “प्रथम सेवा फिर लाभ” हो गया है वैसे भी प्रत्येक व्यवसायी को समाज सेवा कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
संगठन के कोई चार सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संगठन के सिद्धान्त –

1. विशिष्टीकरण का सिद्धान्त प्रत्येक सदस्य की क्रियाएँ विशेष कार्य को पूरा करने तक ही सीमित होनी चाहिए, अर्थात् एक व्यक्ति को एक कार्य सौंपा जाये तो इससे कुशलता में वृद्धि होगी।

2. एकरूपता का सिद्धान्त – प्रत्येक पद से संबंधित अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों में एकरूपता होनी चाहिए, परन्तु एक अधिकारी के अधिकार दूसरे से टकराने नहीं चाहिए, इससे संस्था का अनुशासन ढीला होगा और कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न नहीं हो सकेगा।

3. अपवाद का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. टेलर वैज्ञानिक प्रबंध के जन्मदाता ने किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करने के लिये अधीनस्थों को अधिकार दे दिये जाने चाहिए तथा अपवादपूर्ण एवं महत्वपूर्ण मामलों पर निर्णय करने के कार्य को उच्च अधिकारियों पर छोड़ देना चाहिये।

4. सरलता का सिद्धान्त – संगठन का ढाँचा सरल होना चाहिये ताकि प्रत्येक कार्य के निष्पादन में कमसे-कम समय एवं व्यय लगे। सरलता के अभाव में संदेशों के आदान-प्रदान में भी कठिनाई सामने आती हैं तथा कार्य शीघ्रता व सरलता से नहीं हो पाएगा।

प्रश्न 3.
कार्यात्मक संगठन संरचना के गुण/लाभ समझाइये।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन ढाँचे के गुण / लाभ निम्नलिखित हैं

  1. कार्यात्मक संगठन में व्यावसायिक क्रियाओं का विभाजन तर्क संगत होता है।
  2. प्रत्येक विभाग के प्रबन्धक अपने विभाग के कार्य के लिए उत्तरदायी होते हैं।
  3. कार्यात्मक संगठन द्वारा सर्वोच्च प्रबन्ध का उपक्रम पर नियंत्रण रखना आसान हो जाता है।
  4. इस ढाँचे का आधार श्रम विभाजन है अर्थात् प्रबन्धकों को कार्य उनकी योग्यता एवं सूची के अनुसार दिये जाते हैं।

प्रश्न 4.
संगठन के कोई चार लाभ लिखिए।
उत्तर:
संगठन वह तंत्र है, जिसकी सहायता से प्रबंध व्यवसाय का संचालन, समन्वय तथा नियंत्रण करता है। यह प्रबंध की आधारशिला है। संगठन का महत्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो जाता है

1. उपक्रम के विकास में सहायक-श्रेष्ठ संगठन के माध्यम से उपक्रम का विकास तेज गति से होने लगता है, बड़े पैमाने के उत्पादन की सफलता के पीछे श्रेष्ठ संगठन का हाथ होता है।

2. समन्वय स्थापित होना-संगठन की सहायता से विभिन्न विभागों, उपविभागों, विभिन्न व्यक्तियों एवं क्रियाओं में उचित समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित होता है। जिससे प्रशासन द्वारा निर्धारित नीति का पूर्ण परिपालन संभव होता है।

3. भ्रष्टाचार पर नियंत्रक-स्वस्थ एवं कुशल संगठन भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण करने में भी सफल रहता है, जिससे कर्मचारियों की दक्षता बढ़ती है और उनका मनोबल तथा उत्साह बढ़ता रहता है।

4. मनोबल में वृद्धि-कुशल संगठन से कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकार, दायित्व तथा कर्तव्य से सुपरिचित रहता है तथा वह उपक्रम की नीतियों व उद्देश्यों को भली-भाँति समझ जाता है।

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प्रश्न 5.
श्रेष्ठ संगठन से प्रशासकीय तथा प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि होती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रशासन द्वारा उपक्रम की नीतियों एवं लक्ष्यों का निर्धारण किया जाता है व इनका क्रियान्वयन प्रबंध द्वारा संगठन के सहयोग से किया जाता है। श्रेष्ठ संगठन में सहयोग, समन्वय, कार्यनिष्ठा व अनुशासन की भावना भरी होती है, जिससे संगठन के मानवीय प्रयासों को एक निश्चित दिशा देकर अधिक सार्थक व प्रभावी बनाया जा सकता है। उपक्रम की क्रियाओं एवं उद्देश्यों को सरलता व शीघ्रता से समय पर पूर्ण कराया जा सकता है। इस प्रकार श्रेष्ठ संगठन से प्रशासकीय व प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 6.
रेखा एवं कर्मचारी संगठन क्या है ? इसकी तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
रेखा एवं कर्मचारी संगठन में काम का विभाजन स्वतंत्र विभागों में किया जाता है तथा उत्तरदायित्व का विभाजन भी लम्बवत् होता है किन्तु कार्यदक्षता तथा सहकारिता को प्रोत्साहन देने के लिए प्रत्येक विभाग में विशेषज्ञ नियुक्त किये जाते हैं, जो परामर्श का कार्य करते हैं।
रेखा व कर्मचारी संगठन की विशेषताएँ

  1. इस संगठन में अधिकार व उत्तरदायित्व ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता है।
  2. इस संगठन में योग्य कर्मचारियों को उन्नति के अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।
  3. इसमें सोचने एवं परामर्श देने व करने के कार्य दोनों पृथक्-पृथक् होते हैं।

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प्रश्न 7. रेखा संगठन के दोष लिखिए।
उत्तर:
रेखा संगठन के दोष :

  1. इस संगठन में पक्षपात की आशंका बनी रहती है। इसमें सर्वोच्च अधिकारी अपने अधीनस्थों की नियुक्ति, पदोन्नति आदि में पक्षपात कर सकता है।
  2. आधुनिक उद्योग इतने जटिल व मिश्रित हैं कि एक ही व्यक्ति सारे कार्य दक्षतापूर्वक सम्पन्न नहीं कर सकता है,
  3. विशिष्टीकरण इसमें संभव नहीं है।
  4. दक्ष अधिकारी के बिना विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित करना कठिन हो जाता है।
  5. अनुशासन पर अधिक ध्यान देने के कारण इस प्रणाली में तानाशाही की बुराइयाँ आ जाती हैं।
  6. उच्चाधिकारी के गलत निर्णय लेने पर उपक्रम विफल हो सकता है।

प्रश्न 8.
रेखा संगठन के लाभों को समझाइये।
उत्तर:
रेखा संगठन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

  1. इस संगठन में प्रत्येक सदस्य को अपने उत्तरदायित्व व कर्तव्यों की स्पष्ट जानकारी रहती है।
  2. इस संगठन में निर्णय प्रायः एक व्यक्ति द्वारा लिए जाते हैं, अतः निर्णय सरलतापूर्वक व शीघ्र होते हैं।
  3. विभिन्न विभागों को एक ही व्यक्ति के निर्देशन में कार्य करना होता है, अतः उनमें समन्वय आसानी से किया जा सकता है।
  4. इस संगठन प्रणाली में आवश्यकतानुसार समायोजन भी किया जा सकता है अर्थात् यह लोचपूर्ण है।

प्रश्न 9.
कार्यात्मक संगठन प्रभागीय संगठन से किस प्रकार असमानता रखता है ?
उत्तर:
संगठनात्मक ढाँचा (Organisational structure)- संगठनात्मक ढाँचा संगठन में विभिन्न पदों के बीच अधिकार और उत्तरदायित्व संबंध प्रदर्शित करता है और साथ ही स्पष्ट करता है कि कौन किसको रिपोर्ट करेगा। हर्ले (Hurley) के अनुसार, “संगठन ढाँचे, एक संस्था में विभिन्न पदों एवं उन पदों पर काम करने वाले व्यक्तियों के मध्य संबंधों के स्वरूप होते हैं ।” संगठन ढाँचे को प्रायः संगठन चार्ट पर प्रदर्शित किया जाता है। संगठन ढाँचे के दो रूप हैं-

  1. कार्यात्मक ढाँचा तथा
  2.  प्रभागीय ढाँचा।

प्रश्न 10.
औपचारिक संगठन तथा अनौपचारिक संगठन किस प्रकार आपस में संबंधित हैं?
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन और औपचारिक संगठन में संबंध (Relation between formal organization and informal organization)- अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन का एक अंग होता है। औपचारिक संगठन के अंदर सदस्य अपने कार्यों को एक-दूसरे के सहयोग से पूरा करते हैं। वे एक-दूसरे से बातचीत करते हैं। इससे उनमें मैत्रीपूर्ण संबंध बन जाते हैं। मित्रता के आधार पर सामाजिक समूह का एक संजाल (Network) बन जाता है।

इस संजाल को अनौपचारिक संगठन कहते हैं। इस प्रकार औपचारिक संगठन अनौपचारिक संगठनों को जन्म देते हैं। अनौपचारिक संगठन के अंदर काम करने वाले सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों की एक व्यवस्था होती है। औपचारिक ढाँचे के अंदर ही अनौपचारिक संगठन की उत्पत्ति होती है।

औपचारिक संगठन में अनौपचारिक संगठन की उत्पत्ति के कई आधार होते हैं- जैसे समान रूचि, भाषा, संस्कृति आदि। ये संगठन पूर्व-नियोजित नहीं होते। ये लोगों की आवश्यकताओं और संस्था के वातावरण के अनुसार स्वतः ही बन जाते हैं।

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प्रश्न 11.
केंद्रीयकरण और विकेंद्रीयकरण की अवधारणा अधिकार अंतरण की अवधारणा से संबंधित है। कैसे?
उत्तर:
अधिकारों के केंद्रीयकरण से अभिप्राय उच्च प्रबंध स्तरों पर अधिकारों के संकेद्रण (Centralization) से है। यहाँ अधिकांश निर्णय उच्च स्तर के प्रबंधकों के द्वारा लिए जाते हैं। अधीनस्थ प्रबंधको के द्वारा निर्देशों के अनुसार करते हैं। इसके विपरीत अधिकार विकेंद्रीयकरण से अभिप्राय केवल केंद्रीय बिंदुओं पर ही प्रयोग किये जा सकने वाले अधिकारों को छोड़कर शेष सभी अधिकारों को व्यवस्थित रूप से निम्न स्तरों को सौंपने से है।

केंद्रीयकरण और विकेंद्रीकरण की दोनों अवधारणाएँ अधिकार अंतरण की अवधारणा से संबंधित हैं। जब अधिकार अधीनस्थों को हस्तांतरण नहीं हो जाते और सारे अधिकार उच्च प्रबंध पर संकेद्रित हैं, तब केंद्रीयकरण कहलायेगा और जब अधिकारों का अंतरण अधीनस्थों को किया जाता है तब विकेंद्रीयकरण की स्थिति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 12.
अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन की किस प्रकार सहायता करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन का जन्म औपचारिक संगठन से होता है, जब व्यक्ति अधिकारिक तौर पर बतलाई गई भूमिकाओं से परे आपस में मेल-मिलाप से कार्य करते हैं। जब कर्मचारी सगंठन की ओर नहीं धकेला जा सकता बल्कि वे मैत्रीपूर्ण व सहयोगपूर्ण विचारों से एक ग्रुप बनाने की ओर झुकते हैं। यह उनके आपसी हितों की अनुरूपता को प्रकट करता है।

ऐसे समूहों का प्रयोग संगठन की उन्नति तथा सहयोग के लिए किया जा सकता है। ऐसे समूह उपयोगी तथा कर्मचारियों एवं उच्चाधिकारियों के मध्य झगड़े सुलझाने का कार्य अनौपचारिक संप्रेषण के द्वारा भली-भाँति किया जा सकता है। प्रबंधकों को औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार के संगठनों का युक्ति पूर्ण उपयोग करना चाहिए ताकि संगठन का कार्य सुगमतापूर्वक चल सके। औपचारिक संगठन को यदि भली-भाँति नियंत्रित किया जाए तो औपचारिक संगठन के द्वारा बनाये गये उद्देश्यों की प्राप्ति में अनौपचारिक संगठन अत्यंत उपयोगी है।

प्रश्न 13.
केंद्रीयकरण एवं विकेंद्रीयकरण में अंतर्भेद कीजिए।
उत्तर:
बहुत से संगठनों में सभी निर्णयों को लेने में शीर्ष प्रबंध की मुख्य भूमिका होती है जबकि अन्य संगठनों में यह अधिकार प्रबंध के निम्नतम स्तर को भी दिया जाता है। जिन उपक्रमों में निर्णय लेने का अधिकार केवल शीर्ष स्तरीय प्रबंध को ही होता है वे केंद्रीकृत संगठन कहलाते हैं। जबकि उन संगठनों में जहाँ इस प्रकार के निर्णयों को लेने में निम्न स्तर तक के प्रबंध को भागीदार बनाया जाता है, विकेंद्रीकृत संगठन कहते हैं।

विकेंद्रीयकरण से तात्पर्य उस विधि से है जिसमें निर्णय लेने का उत्तरदायित्व सोपानिक क्रम में विभिन्न स्तरों में विभाजित किया जाता है। सरल शब्दों में विकेंद्रीयकरण का अर्थ संगठन के प्रत्येक स्तर पर अधिकार अंतरण करना होता है। निर्णय लेने का अधिकार निम्नतम स्तर तक के प्रबंध को दिया जाता है जहाँ पर वास्तविक रूप में कार्य होना है। दूसरे शब्दों में निर्णय लेने का अधिकार आदेश की श्रृंखला में नीचे तक दिया जाता है।

केंद्रीयकरण (Centralization) – जिस संगठन में निर्णय लेने का अधिकार केवल उच्चस्तरीय प्रबंधन को ही होता है तो वह संगठन केंद्रीकृत कहलाता है। कोई भी संस्था कभी भी न तो पूर्णरूपेण केंद्रीकृत हो सकती है और न विकेंद्रीकृत। जब कोई संस्था आकार तथा जटिलताओं की ओर अग्रसर होती है तो यह देखा गया है · कि वे संस्थाएँ निर्णयों में विकेंद्रीयकरण को अपनाती हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि बड़ी-बड़ी संस्थाओं में जहाँ कर्मचारियों को प्रत्यक्ष तथा अतिनिकट से कार्य संचालन में आल्पित किया जाता है उनका ज्ञान तथा अनुभव उन उच्चस्तरीय प्रबंधकों से कहीं अधिक होता है जो संस्थान से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए होते हैं।

श्रेष्ठ नियंत्रण (Best control)- विकेंद्रीयकरण से प्रत्येक स्तर पर कार्य निष्पादन के मूल्यांकन का अवसर मिलता है जिससे प्रत्येक विभाग व्यक्तिगत रूप से उसके परिणामों के लिए जवाबदेह बनाया जा सकता है। संगठन के उद्देश्यों की उपलब्धि किस सीमा तक हुई या समस्त उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रत्येक विभाग कितना सफल हो सका इसका भी निर्धारण किया जा सकता है। सभी स्तरों से प्रतिपुष्टि द्वारा भिन्नताओं का विश्लेषण करने तथा सुधारने में सहायता मिलती है। विकेंद्रीयकरण में निष्पादन की जवाबदेही एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए संतुलन अंक कार्ड तथा प्रबंध सूचना विधि।

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प्रश्न 14.
विकेंद्रीयकरण के महत्व लिखिए।
उत्तर:
एक संगठन निम्न कारणों से विकेंद्रीयकरण होना पसंद करता है

1. उच्च अधिकारियों की अत्यधिक कार्यभार से मुक्ति (More capacity utilization)विकेंद्रीयकरण के अतंर्गत दैनिक प्रबंधकीय कार्यों को अधीनस्थों को सौंप दिया जाता है। इसके फलस्वरूप उच्च प्रबंधकों के पास पर्याप्त समय बचता है जिसका प्रयोग वे नियोजन, समन्वय, नीति निर्धारण, नियंत्रण आदि में कर सकते हैं।

2. विभिन्नीकरण में सुविधा (Ease to expansion)- इस बात से इंकार नहीं किया जाता कि एक व्यक्ति का नियंत्रण सर्वश्रेष्ठ होता है लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है। सीमा का अभिप्राय व्यवसाय के आकार से है अर्थात् जब तक व्यवसाय का आकार छोटा है उच्च स्तर पर सभी अधिकारियों को केंद्रित करके व्यवसाय को कुशलतापूर्वक चलाया जा सकता है लेकिन जब उसमें उत्पादन की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा अधिक हो जाती है तब केंद्रीय नियंत्रण से काम नहीं चल सकता क्योंकि अकेला व्यक्ति सभी वस्तुओं की समस्याओं की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दे सकता।

3. प्रबंधकीय विकास (Managerial development)- विकेंद्रीयकरण का अभिप्राय है निम्नतम स्तर के प्रबंधकों को भी अपने कार्यों के संबंध में निर्णय लेने के अधिकार होना। इस प्रकार निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होने से सभी स्तरों के प्रबंधकों के ज्ञान एवं अनुभव में वृद्धि होती है और इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह व्यवस्था प्रशिक्षण का काम करती है।

4. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि (Increase in employees morale)- विकेंद्रीयकरण के कारण प्रबंध में कर्मचारियों की भागीदारी बढ़ती है। इससे संस्था में उनकी पहचान बनती है। जब संस्था में किसी व्यक्ति की पहचान बने अथवा उसका महत्व बढ़े तो उसके मनोबल में वृद्धि होना स्वाभाविक है। मनोबल में वृद्धि होने से वे अपनी इकाई की सफलता के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने से भी नहीं घबराते।

प्रश्न 15.
औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औपचारिक संगठन एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर:
औपचारिक संगठन

  1. इसका निर्माण किसी योजना को पूरा करने के लिए विचार-विमर्श करके किया जाता है। होता है।
  2. इसे किसी तकनीकी उद्देश्य को पूरा करने के उद्देश्य से बनाया जाता है।
  3. इसका आकार बड़ा हो सकता है।
  4. इसमें सत्ता का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है।

अनौपचारिक संगठन

  1. इसका निर्माण स्वतः ही सामाजिक संबंधों द्वारा
  2. इसका निर्माण सामाजिक संतोष प्राप्त करने
  3. यह प्रायः छोटे आकार का होता है।
  4. इसमें सत्ता का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर होता है।

प्रश्न 16.
औपचारिक संगठन से क्या आशय है ? इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
औपचारिक संगठन – इसका आशय एक ऐसे संगठन से है जिसमें प्रत्येक स्तर के प्रबन्धकों के अधिकारों, कर्तव्यों तथा दायित्वों की स्पष्ट सीमा निर्धारित होती है। इस संगठन को संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रबंध द्वारा बनाया जाता है।

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प्रश्न 17.
अनौपचारिक संगठन किसे कहते हैं ? विशेषताओं सहित बताइए।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन से अभिप्राय ऐसे संगठन से है जिसकी स्थापना जानबूझकर नहीं की जाती अपितु, अनायास ही सामान्य हितों, संबंध, रुचियों तथा धर्म के कारण हो जाती है।
अर्ल. पी. स्ट्रांग के अनुसार, “अनौपचारिक संगठन एक ऐसी सामाजिक संरचना है जिसका निर्माण व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।”
अनौपचारिक संगठन की विशेषताएँ- इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं.

1. निर्माण स्वतः-इसका निर्माण जानबूझकर नहीं किया जाता बल्कि व्यक्तियों के आपसी संबंधों तथा रुचियों के आधार पर स्वयं हो जाता है।

2. व्यक्तिगत संगठन-व्यक्तिगत संगठन से अभिप्राय है कि इसमें व्यक्तियों की भावनाओं को ध्यान में रखा जाता है, उन पर किसी भी बात को थोपा नहीं जाता।

3. अधिकार-इसमें अधिकार व्यक्ति से जुड़े रहते हैं तथा उनका प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर या समतल रूप में चलता है।

4. स्थायित्व का अभाव-इसमें जब तक व्यक्ति एक समूह में है तभी तक वह संगठन है जब व्यक्ति अलग होता है तो संगठन समाप्त हो जाता है। इसमें स्थायित्व का अभाव रहता है।

प्रश्न 18.
अधिकार अन्तरण या भारार्पण से क्या तात्पर्य है ? इसके प्रमुख तत्वों ( प्रक्रिया) को समझाइए।
उत्तर:
अधिकार अंतरण से आशय, अधीनस्थों को निश्चित सीमा के अन्तर्गत कार्य करने का केवल अधिकार देना है। अधिकार अंतरण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसकी आवश्यकता उस समय उत्पन्न होती है जब एक प्रबंधक के पास कार्यभार अधिक होने के कारण वह सभी कार्यों का अधीनस्थों में विभाजन करता है। अतः उसे अधिकार अंतरण का सहारा लेना पड़ता है। जब कुछ कार्यों का निष्पादन करने के लिए दूसरे व्यक्तियों को अधिकृत किया जाता है तो इसे अधिकार अंतरण कहते हैं।
विभिन्न विद्वानों ने अधिकार अंतरण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है

  1. एफ. जी. मूरे, “अधिकार अंतरण से अभिप्राय दूसरे लोगों को कार्य सौंपना और उसे करने के लिए अधिकार देना है।”
  2. मैस्कॉन, “अधिकार अंतरण किसी व्यक्ति को कार्य तथा सत्ता सौंपना है, जो उनके लिए दायित्व ग्रहण करता है।”

अधिकार अंतरण के तत्व-अधिकार अंतरण के पाँच तत्व हैं

1. कार्यभार सौंपना – अधिकार अंतरण प्रक्रिया का पहला कदम कार्यभार सौंपा जाना है क्योंकि कोई भी अधिकारी इतना सक्षम नहीं होता कि वह अपना सारा कार्य स्वयं पूरा कर ले इसलिए अपने कार्य का सफलतापूर्वक निष्पादन करने के लिए वह अपने कार्य का विभाजन करता है, विभाजन के समय अधीनस्थों कीयोग्यता एवं कुशलता का ध्यान में रखा जाना अत्यंत आवश्यक होता है।

2. अधिकार प्रदान करना-कार्य का सफलतापूर्वक निष्पादन करने हेतु अधिकार सौंपे जाते हैं क्योंकि . जब तक अधीनस्थों को अधिकार प्रदान नहीं किए जाएँगे तब तक कार्यभार सौंपना अर्थहीन होता है। अतः कार्य को पूरा करने के लिए अधिकार सौंपे जाने चाहिए।

3. प्रत्यायोजन की स्वीकृति-जिस व्यक्ति को कार्य दिया गया है वह उस कार्य को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। यदि अधिकार अंतरण स्वीकार नहीं किया जाता तो प्रत्यायोजक प्रबन्धक किसी अन्य अधीनस्थ व्यक्ति को कार्य सौंपने की कार्यवाही करेगा। इसलिए प्रत्यायोजन की स्वीकृति अत्यंत आवश्यक होती है।

4. जवाबदेही निर्धारित करना-जवाबदेही, अधीनस्थों को सही ढंग से कार्य करने के लिए जिम्मेदार ठहराता है, प्रत्येक अधीनस्थ केवल उस अधिकारी के समक्ष ही जवाबदेह होता है जिससे उसे कार्य करने के अधिकार प्राप्त होते हैं।

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प्रश्न 19.
विकेन्द्रीयकरण से क्या तात्पर्य है ? विकेन्द्रीयकरण के कौन-कौन से लाभ होते हैं ?
उत्तर:
विकेन्द्रीयकरण से तात्पर्य है, निर्णय लेने के अधिकार को संगठन के निम्न स्तर पर पहुँचाना है। विकेन्द्रीयकरण, अधिकार अंतरण का ही विस्तृत रूप है। जब किसी उच्च अधिकारी के द्वारा अपने अधीनस्थों को अपेक्षाकृत अधिक भाग में अधिकारों का भारार्पण किया जाता है, तो यह विकेन्द्रीयकरण कहलाता है। इसके अंतर्गत केवल ऐसे अधिकार जो उच्च अधिकारियों के लिए सुरक्षित रखना जरुरी है, को छोड़कर शेष सभी अधिकार अधीनस्थों को स्थाई रूप से सौंप दिए जाते हैं।
विकेन्द्रीयकरण के लाभ-विकेन्द्रीकरण के लाभों को निम्न बातों से स्पष्ट किया जा सकता है

1. उच्च अधिकारियों का कार्य भार कम होना-विकेन्द्रीयकरण की सहायता से उच्च अधिकारियों के कार्यभार में बहुत कमी आ जाती है, वे अपना पूरा ध्यान महत्वपूर्ण कार्यों में लगा सकते हैं उन्हें छोटे-छोटे कार्यों में उलझना नहीं पड़ता है, जिस कारण व्यावसायिक उपक्रम उच्च अधिकारियों की योग्यता, कुशलता तथा विवेक का अधिकारिक लाभ उठा सकते हैं।

2. विविधीकरण की सुविधा-विकेन्द्रीयकरण में विविधीकरण की पर्याप्त सुविधा होती है क्योंकि अलग-अलग क्रियाओं के लिए अलग-अलग अध्यक्षों की नियुक्ति की जा सकती है।

3. अनौपचारिक संबंधों का विकास-विकेन्द्रीयकरण के द्वारा अनौपचारिक संबंधों का विकास होता है।

4. अभिप्रेरण-विकेन्द्रीयकरण के द्वारा कर्मचारियों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होता है जिससे वह बेहतर परिणाम लाने के लिए अभिप्रेरित होते हैं।।

प्रश्न 20.
कार्यात्मक संगठन तथा प्रभागीय संगठन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन तथा प्रभागीय संगठन में अन्तर –

प्रश्न 21.
औपचारिक संगठन के लाभ तथा दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औपचारिक संगठन के लाभ (Advantages of Formal Organisation)

1. व्यवस्थित कार्यवाही (Systematic Working)-इस ढाँचे का परिणाम एक संगठन की व्यवस्थित और सरल कार्यवाही होता है।

2. संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति (Achievement of Organisational Objectives)-इस ढाँचे को संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए स्थापित किया जाता है।

3. कार्य का दोहराव नहीं (No Overlapping of Work)-औपचारिक संगठनात्मक ढाँचे में विभिन्न विभागों और कर्मचारियों के बीच कार्य व्यवस्थित ढंग से विभाजित होता है। इसलिए कार्य के दोहराव का कोई अवसर नहीं होता है।

4. समन्वय (Coordination)-इस ढाँचे का परिणाम विभिन्न विभागों की क्रियाओं को समन्वित करना होता है।

औपचारिक संगठन के दोष (Disadvantages of Formal Organization)

1. कार्य में देरी (Delay in Action) – सोपान श्रृंखला और आदेश श्रृंखला का अनुसरण करते समय कार्यों में देरी हो जाती है।

2. कर्मचारियों की सामाजिक आवश्यकताओं की अवहेलना करता है (Ignores Social Needs of Employees)-यह ढाँचा कर्मचारियों की सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को महत्व नहीं देता ‘जिससे कर्मचारियों के अभिप्रेरण में कमी हो सकती है।

3. केवल कार्य पर बल (Emphasis on Work Only) – यह ढाँचा केवल कार्य को महत्व देता है इसमें मानवीय संबंधों, सृजनात्मकता, प्रतिभाओं इत्यादि को महत्व नहीं दिया जाता है।

प्रश्न 22.
विकेंद्रीयकरण एवं भारार्पण में अंतर लिखिए।
उत्तर:
विकेंद्रीयकरण एवं भारार्पण में अंतर
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन - 4

प्रश्न 23.
अधिकार अंतरण तथा विकेन्द्रीयकरण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकार अंतरण तथा विकेन्द्रीयकरण में अंतर

अधिकार अंतरण

  1. उच्च अधिकारी के द्वारा सत्ता का अधीनस्थों को हस्तांतरण, अधिकार अंतरण कहलाता है। करण कहलाता है।
  2. इसमें अंतिम उत्तरदायित्व अधिकार सौंपने उत्तरदायित्व कावाले का ही होता है अर्थात् इसमें उत्तर भी हस्तांतरण हो जाता है।दायित्व का हस्तांतरण नहीं होता।
  3. यह सभी संस्थाओं के लिए आवश्यक होता है क्योंकि अधीनस्थों से काम लेने के लिए उन्हें अधिकार देना पड़ता है।
  4. अधिकार अंतरण, विकेन्द्रीयकरण पर नहीं होता।

विकेन्द्रीयकरण

  1. पूरे संगठन में सत्ता का फैलाव करना विकेन्द्रीय
  2. इसमें अधिकार के साथ-ही-साथ
  3. विकेन्द्रीयकरण प्रत्येक संस्था के लिए आवश्यक नहीं है।
  4. विकेन्द्रीयकरण, अधिकार अंतरण के बिना संभव आधारित नहीं होता है।

प्रश्न 24.
अधिकार एवं उत्तरदायित्व में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकार एवं उत्तरदायित्व में अन्तर –

अधिकार

  1. अधिकार का अर्थ है, निर्णय लेने की शक्ति।
  2. अधिकार वह शक्ति है जो अधीनस्थों के कर्तव्य को पूरा करने से है।
  3. अधिकार का प्रत्यायोजन किया जा सकता है।
  4. अधिकार, संस्था में औपचारिक पद के कारण उत्पन्न होता है।

उत्तरदायित्व

  1. उत्तरदायित्व का अर्थ है, सौंपे गये कार्य को सही
  2. उत्तरदायित्व का आशय किसी व्यक्ति द्वारा अपने व्यवहार को प्रभावित करती है।
  3. उत्तरदायित्व दूसरों को सौंपे जा सकते हैं।
  4. उत्तरदायित्व, उच्चाधिकारी अधीनस्थ सम्बन्ध से उत्पन्न होता है।

प्रश्न 25.
प्रभावी भारार्पण की अनिवार्य अपेक्षाओं को समझाइए।
उत्तर:
प्रभावी भारार्पण की अनिवार्य अपेक्षाएँ – अधिकार सौंपने की व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए निम्नांकित निर्देशों का पालन करना चाहिए

1. अधिकार और दायित्वों की स्पष्ट सीमा – अधीनस्थों को जो कार्य सौंपे जाएँ तो उन्हें यह पूरी तरह मालूम होना चाहिए कि उनके दायित्व तथा अधिकारों का क्षेत्र क्या है तथा उनकी सीमा कहाँ तक है।

2. अधिकार और दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या – अधीनस्थों को स्पष्ट रूप से यह ज्ञान होना चाहिए कि उन्हें क्या करना है तथा सौंपे गए कार्य के लिए कितने अधिकार दिये गये हैं तथा उनसे किस प्रकार के कार्य की आशा की जाती है।

3. उचित नियन्त्रण – अधिकार सौंपने की व्यवस्था के पश्चात् भी वरिष्ठ अधिकारी का उत्तरदायित्व समाप्त नहीं होता। इसलिए उच्च अधिकारियों को अपने अधीनस्थों के कार्यों पर उचित नियंत्रण रखना चाहिए।

4. योग्य व्यक्ति का चयन – अधिकार हमेशा योग्य व्यक्ति को ही सौंपने चाहिए तभी सौंपा गया कार्य सही ढंग से पूर्ण होता है।

प्रश्न 26.
संगठन के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
किसी भी व्यावसायिक एवं औद्योगिक इकाई में संगठन के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं…

1. उत्पादन में मितव्ययिता (Economy in production) संगठन का प्रमुख उद्देश्य, उत्पादन में मितव्ययिता लाना है, अर्थात् न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना प्रत्येक उपक्रम का उद्देश्य होता है, यहाँ यह ध्यान रखना है कि न्यूनतम लागत के साथ-साथ वस्तु की गुणवत्ता (Quality) व मात्रा (Quantity) में गिरावट नहीं आनी चाहिये।

2. समय व श्रम में बचत (Saving in time and labour)-संगठन में श्रेष्ठ मशीनें व यंत्र तथा श्रेष्ठ प्रणाली अपनाई जाती है जिससे कार्य के समय व श्रम में काफी बचत हो जाती है, संगठन द्वारा बड़े पैमाने में उत्पादन के लाभ भी लिये जा सकते हैं।

3. श्रम व पूँजी में मधुर सम्बन्ध (Cordial relations between labour and capital)- श्रमिकों व प्रबन्ध के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करना भी संगठन का एक उद्देश्य है, इस हेतु कुशल संगठनकर्ता की नियुक्ति कर श्रम व पूँजी के हितों की रक्षा की जाती है।

4. सेवा भावना (Spirit of service) वर्तमान सामाजिक चेतना एवं जन-जागरण के कारण प्रत्येक व्यवसायी का उद्देश्य ‘प्रथम सेवा फिर लाभ’ हो गया है वैसे भी प्रत्येक व्यवसायी को समाज सेवा कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिये। इसलिये वर्तमान में प्रत्येक संगठन चाहे वह आर्थिक हो या अनार्थिक सभी का उद्देश्य सेवा करना होता है।

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प्रश्न 27.
संगठन प्रक्रिया का संक्षेप में विवेचन कीजिये।
उत्तर:
संगठन के निर्माण के प्रमुख चरण

1. उद्देश्यों की स्थापना-संगठन के साथ उद्देश्यों का होना अति आवश्यक है। संगठन के उद्देश्यों में उन कार्यों की स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिए जिनके कारण संगठन की संरचना की जाती है।

2. क्रियाओं का निर्धारण-संगठन का दूसरा कदम क्रियाओं का निर्धारण एवं उनका विभाजन करना होता है। कार्यों को उपकार्यों में विभाजित कर प्रत्येक कार्य की स्पष्ट व्याख्या करनी चाहिए।

3. क्रियाओं का वर्गीकरण-तृतीय चरण में क्रियाओं का वर्गीकरण किया जाता है। इस हेतु विभिन्न क्रियाओं को अलग-अलग समूह में बाँट दिया जाता है। जैसे-क्रय, विक्रय, विज्ञापन, निरीक्षण, उत्पादन, मजदूरी, वेतन आदि।

4. कार्य का विभाजन-इसके अन्तर्गत सही कार्य के लिए सही व्यक्ति के सिद्धान्त के अनुसार कार्य विभाजन किया जाता है। साथ ही कर्मचारियों की जिम्मेदारी भी निश्चित की जाती है।

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प्रश्न 28.
विकेन्द्रीयकरण के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
विकेन्द्रीयकरण के निम्न उद्देश्य होते हैं

1.शीर्ष स्तर पर कार्यभार में कमी-सामान्यतः निर्णय उच्च प्रबन्धक या शीर्ष स्तर पर लिये जाते हैं। संगठन का विस्तार होने पर शीर्ष स्तर का कार्य और बढ़ जाता है अतः इस कार्यभार को कम करने के लिये विकेन्द्रीयकरण किया जाता है। इससे शीर्ष अधिकारियों का कार्यभार कम होगा और वे अति महत्वपूर्ण कार्यों के लिये अच्छा निर्णय ले सकते हैं।

2. प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के लाभ प्राप्त करने के लिये-विकेन्द्रीयकरण से अधिकारों का फैलाव छोटे-छोटे स्तर तक हो जाता है इससे प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के समस्त लाभ सभी वर्ग को प्राप्त होते हैं।

3. कार्यों के शीघ्र निष्पादन के लिये-उच्चाधिकारियों के अधिक कार्यों को कम कर दिया जाये तो वे अपने कार्यों को ठीक ढंग से व शीघ्र उसका निपटारा कर सकते हैं इसी के साथ प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने के लिये प्रत्येक स्तर पर अधिकारों का होना आवश्यक है इससे कार्य शीघ्र पूर्ण किये जा सकते हैं।

4.सर्वांगीण विकास-विकेन्द्रीयकरण से शीर्ष स्तर एवं निम्न स्तर के समस्त अधिकारियों को अधिकार प्राप्त होने से उन्हें अपने विकास का पूर्ण अवसर प्राप्त होता है। इसमें पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य निष्पादित किये जा सकते हैं। अतः संगठन के सर्वांगीण विकास के लिये भी विकेन्द्रीयकरण आवश्यक है।

प्रश्न 29.
अनौपचारिक संगठन के विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन में सामान्यतः निम्न विशेषतायें होती हैं

  1. इन संगठनों को बनाया नहीं जाता अपितु विशेष परिस्थितियों के कारण ये बन जाते हैं।
  2. इन संगठनों के समान उद्देश्य होते हैं।
  3. ये अस्थायी होते हैं कभी भी संगठन समाप्त हो जाते हैं।
  4. इनका अपना कोई चार्ट, विधान या मैन्यूवल नहीं होता अपितु सामान्य परम्परा ही इनके कानून होते हैं।
  5. ये संगठन व्यक्तिगत सम्बन्धों पर आधारित होते हैं।
  6. ये वैध एवं अवैध दोनों हो सकते हैं ।
  7. इसमें अधिकार एवं सत्ता को ऊपर से नीचे समर्पित किया जाता है।

प्रश्न 30.
संगठन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

1. दो या दो से अधिक व्यक्ति का होना-एक व्यक्ति अपने आपको संगठन नहीं कह सकता। अतः संगठन हेतु कम से कम दो व्यक्तियों का होना अति आवश्यक है। अधिकतम संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

2. निश्चित उद्देश्य का होना-संगठन में निश्चित उद्देश्य का होना अति आवश्यक है, बिना उद्देश्य के व्यक्तियों का समूह, संगठन नहीं हो सकता। जैसे कि किसी स्थान पर एक हजार लोग बिना उद्देश्य के एकत्र हैं तब वह संगठन न होकर मात्र भीड़ (Crowd) होगी।

3. लक्ष्य का पूर्व निर्धारित होना- संगठन के लिये यह आवश्यक है कि लक्ष्य या उद्देश्य पूर्व निर्धारित हो, लक्ष्य की प्राप्ति के लिये ही संगठन बनाया जाता है। अत: संगठन के पूर्व लक्ष्य (Targets) निर्धारित होना चाहिये।

4. व्यक्तियों का समूह होना-पशु-पक्षी या अन्य प्राणियों का समूह संगठन नहीं हो सकता। संगठन केवल व्यक्तियों का ही हो सकता है। यद्यपि फर्म या कम्पनियों के भी विधान द्वारा व्यक्ति (Person) कहा गया है, किन्तु ये सब कृत्रिम (Artificial) व्यक्ति हैं इसलिये 4 या 14 कम्पनियों का एक साथ कार्य करने को समूह (Group) कहेंगे संगठन नहीं।

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प्रश्न 31.
संगठन के किन्हीं चार सिद्धांतों को संक्षिप्त रूप में समझाइए।
उत्तर:
संगठन के सिद्धांत (Principles of Organization)

1.सोपानिक सिद्धांत (Principle of scalar chain)- कौन व्यक्ति किस प्रबंधक की अधीनस्थता में काम करेगा और किससे आदेश लेगा इस बात का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति इस आदेश श्रृंखला का उल्लंघन न करे।

2.अपवाद का सिद्धांत (Principle of exception)- प्रत्येक अधीनस्थ को इतने अधिकार दिये जायें कि वह दैनिक कार्यों को स्वयं निपटा सके। केवल असाधारण मामले ही अधीक्षक के पास आने चाहिए। इस प्रकार प्रबंधक का समय अधिक महत्वपूर्ण मामलों के लिए सुरक्षित रहता है।

3. लोच का सिद्धांत (Principle of flexibility)- संगठन में पर्याप्त लोच होनी चाहिए ताकि इसमें परिस्थितियों व समय के अनुसार आसानी से परिवर्तन किये जा सकें।

4. अधिकार एवं दायित्व (Rights and responsibility)- संगठन के प्रत्येक सदस्य को उसके अधिकार व दायित्व साथ-साथ दिये जाने चाहिए। अधिकार व दायित्व में तालमेल के बिना कोई भी व्यक्ति कुशलतापूर्वक कार्य नहीं कर पायेगा। अधीनस्थों को पर्याप्त अधिकार सौंपे जाने चाहिए।

प्रश्न 32.
रेखा एवं रेखा तथा कर्मचारी संगठन में अंतर लिखिए।
उत्तर:
रेखा एवं रेखा तथा कर्मचारी संगठन में अन्तर
(Difference between Line and Line and Staff Organization)
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन - 5

प्रश्न 33.
अधिकार, उत्तरदायित्व तथा उत्तरदेयता/जवाबदेही में तुलना करें।
अथवा
अधिकार प्रत्यायोजन के तत्वों में तुलना करें।
उत्तर:
अधिकार, उत्तरदायित्व एवं उत्तरदेयता में अंतर
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन - 2

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions