MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 21 मन की एकाग्रता

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 21 मन की एकाग्रता (निबंध, पं. बालकृष्ण भारद्वाज)

मन की एकाग्रता पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

बोध प्रश्न

मन की एकाग्रता अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
छात्रों की समस्या क्या है?
उत्तर:
जब छात्र पढ़ने के लिए बैठता है तो उसके मन को अनेक विचार घेरने लगते हैं, मन भटक उठता है। सोचता है कि पढ़कर अधिक उच्च पद प्राप्त करूँ और अधिक अर्थ अर्जित करूँ, पर जब पढ़ने बैठता है तो सिनेमा व क्रिकेट, मित्र-मण्डल की मौज-मस्ती याद आ जाती है और उसके मन की एकाग्रता हट जाती है।

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प्रश्न 2.
स्थित प्रज्ञता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर:
मन को किसी परम उच्च में लगा देने से स्थितप्रज्ञता प्राप्त की जा सकती है। जैसे लोक-संग्रह के कार्य में, राष्ट्रभक्ति में, दीन-दुखियों की सेवा में।

प्रश्न 3.
मन कितने प्रकार से उत्तेजित होता है?
उत्तर:
मन दो प्रकार से उत्तेजित होता है-एक तो बाहरी विषयों से और दूसरे भीतर की वासनाओं की स्मृतियों से।

प्रश्न 4.
गीता में परं का अर्थ क्या है?
उत्तर:
गीता में परं का अर्थ परमात्मा है। इसे परिभाषित करते हुए गीता में कहा गया है कि सब विश्व ईश्वर है। मुझ ईश्वर को सब ईश्वर में जानो और मुझमें संपूर्ण विश्व समझो।

मन की एकाग्रता लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्जुन की स्वीकारोक्ति को लिखिए।
उत्तर:
अर्जुन की स्वीकारोक्ति है-“चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है।”

प्रश्न 2.
मन को एकाग्र करने की बाह्य साधना क्या है?
उत्तर:
मन को एकाग्र करने की बाह्य साधना यह है कि दो बाहरी आकर्षणों अर्थात् बाहरी चकाचौंध से हटा दिया जाए। जैसे मित्रों के साथ भोज-मस्ती, क्रिकेट, सिनेमा आदि से।

प्रश्न 3.
छात्र की समस्याएँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
छात्र की समस्याएँ हैं आज के प्रौद्योगिकी युग में भौतिक उन्नति प्राप्त की जाए। इसके लिए जब पढ़ने बैठता है तो उसके मन की एकाग्रता भंग होने लगती है। उसका मन भटकने लगता है। जब पढ़ने में मन नहीं लगता तो उदास हो जाता है और सोचता है कि मैं बिना परीक्षा उत्तीर्ण किए किस प्रकार अच्छे अंक लाकर पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करूँगा? इस तरह तो जीवन बोझ हो जाएगा।

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प्रश्न 4.
इंद्रियों का क्या कार्य होना चाहिए।
उत्तर:
जीवन में इंद्रियों का सेवन तो होना चाहिए पर यह आसक्ति व द्वेष से नहीं किया जाना चाहिए। इन्हें स्वच्छंद और निरंकुश कभी नहीं छोड़ना चाहिए। अगर ऐसा किया तो यह व्यवहार में अनेक समस्याओं का कारण बन सकती हैं।

मन की एकाग्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संयम को समझाइए।
उत्तर:
संयम का अर्थ है संसार में सांसारिक भोग भोगते रहें पर उतनी ही मात्रा में जितने आवश्यक हों। जीवन में इंद्रियों का सेवन आसक्ति व द्वेषभाव से कभी नहीं करना चाहिए। इंद्रियों को कभी स्वच्छद नहीं छोड़ना चाहिए। अन्यथा भविष्य में इतनी समस्याएँ पैदा हो जाएँगी कि जीवन को ही नरक बना देंगी।

प्रश्न 2.
परं उच्च लक्ष्य का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
परम का अर्थ है मन को किसी परम् अर्थात् परम लक्ष्य में लगाया जाए। यह लक्ष्य है सेवा-कार्य में लगना, लोक- संग्रह करना, राष्ट्र की सेवा में स्वयं को लगाना। दीन-दुखियों की सहायता करना। जब व्यक्ति इस तरह के कार्यों में अपने मन को लगाता है तो तब उसके मन में व्याप्त आसक्ति स्वयं नष्ट हो जाती है।

मन की एकाग्रता भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
विलोम शब्द लिखिए।
राग, अनाचार।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 21 मन की एकाग्रता img-1

प्रश्न 2.
दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
चंचल, कामनाएँ, निग्रह।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 21 मन की एकाग्रता img-2

प्रश्न 3.
उपसर्ग पहचानकर लिखिए।
विचलना, निग्रह, परिभाषित।
उत्तर:
उपसर्ग की पहचान:

  • विचलना – वि + उपसर्ग – विचलना।
  • निग्रह – नि + उपसर्ग – निग्रह।
  • परिभाषित – परि + उपसर्ग – परिभाषितं।

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प्रश्न 4.
समास विग्रह कर नाम बताइए।
अशक्य, बहिर्मुख, लोकसंग्रह।
उत्तर:
विग्रह और नाम:

  • अशक्य – शक्य का अभाव, अव्ययीभाव समास।
  • बहिर्मुख – बाहर की ओर जो मुख, कर्मधारय समास।
  • लोकसंग्रह – लोक के लिए संग्रह, संप्रदान तत्पुरुष या चतुर्थी तत्पुरुष समास।

मन की एकाग्रता योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
स्थित प्रज्ञ के द्वितीयाध्याय के 18 श्लोकों का अर्थ विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
स्थित प्रज्ञ के लक्षण श्रीमद्भगवत् गीता में द्वितीय अध्याय में हैं। इस अध्याय का नाम कर्मयोग है। इसमें 72 श्लोक हैं। 52 से 72 श्लोकों में स्थितप्रज्ञ पुरुष के लक्षण बताए गए हैं। अर्जुन ने पूछा, हे केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थितप्रज्ञ पुरुष के क्या लक्षण हैं? स्थित प्रज्ञ पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है? श्री भगवान ने कहा कि हे अर्जुन! जिस काल में पुरुष मन में स्थित संपूर्ण कामनाओं को त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।

दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है। हे अर्जुन! आसक्ति का नाश न होने के कारण ये प्रमथन स्वभाववाली इंद्रियाँ यत्न करते हुए बुद्धिमान पुरुष के मन को भी बलात् हर लेती हैं। इसलिए साधक को चाहिए कि वह उन संपूर्ण इंद्रियों को वश में करके समाहितचित्त हुआ मेरे प्रति परायण होकर ध्यान में वैठे हैं। क्रोध से मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है। मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात् ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है।

भगवान् ने अर्जुन से कहा कि अंतःकरण की प्रसन्नता होने पर इसके संपूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्नचित्त वाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भली-भाँति स्थिर हो जाती है। श्रीभगवान् ने कहा कि संपूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानंद की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिंस नाशवान् सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं परमात्मा के तत्त्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि के समान है।

उन्होंने अपने प्रिय भक्त से कहा कि जैसे नाना नदियों के जल सब और परिपूर्ण अचल, प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं वैसे ही सब भोग जिस स्थितप्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किए बिना ही समा जाते हैं, वही पुरुष परमशान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं। अन्तिम श्लोक में श्रीभगवान् ने कहा- हे अर्जुन! यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है, इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता और अन्तकाल में भी इस ब्राह्मी स्थिति में स्थित होकर ब्रह्मानंद को प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 2.
गीता पर लिखी गई पुस्तकों का अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
गीता पर बहुत-से विद्वानों ने व्याख्यात्मक व आलोचनात्मक पुस्तकें लिखी हैं। सबसे श्रेष्ठ पुस्तक बालगंगाधर तिलक की मानी जाती हैं जिसका नाम है ‘गीता रहस्य’ । इसी तरह ‘श्रीमद्भगवद् गीता यथा रूप’ नाम से ग्रंथ प्रसिद्ध है जिसे श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने लिखा है। इन दोनों ग्रंथों में व्याख्याकारों ने विषयों को ही विस्तार से उठाया है। छात्र इन ग्रंथों का अध्ययन कर अपने विषय को विस्तार से समझ सकते हैं।

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प्रश्न 3.
अवसाद जीवन-मूल्य और सामाजिक समरसता पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
निबंध:
अवसाद जीवन-मूल्य और सामाजिक समरसता:
जब व्यक्ति जीवन में निराश हो जाता है तब उसे चारों ओर से अवसाद घेर लेता है। इसका मूल कारण यह है कि वह अपने जीवन-मूल्यों से दूर होता जा रहा है। पहले वह अपने जीवन के लिए कुछ मूल्य निश्चित कर लिया करता था और उन पर चलने का उम्रभर निर्णय करता था।

वह जानता था कि सत्य पर आचरण करने से कभी व्यथित नहीं हो सकता। दूसरों का विश्वास प्राप्त करने पर वह हमेशा लोगों में लोकप्रिय हो सकता है। सभी के साथ समान व्यवहार करने और सबको साथ लेकर चलने से वह सामाजिक समरसता को मजबूत कर सकता है क्योंकि सामाजिक समरसता किसी भी समाज की सबसे बड़ी शक्ति होती है।

समाज में बदलाव आया तो लोग केवल अपने बारे में सोचने लगे। दूसरों के बजाय अपनी उन्नति का ख्वाब देखने लगे क्योंकि समाज में एकतानता की जगह अकेलेपन की भावना पैदा हुई इसलिए समाज में अवसाद ने लोगों को घेरना शुरू कर दिया। व्यक्ति अपनी विषय-भावना न पूरी होने पर सही रास्ते के बजाय गलत रास्ते अपनाने लगा। सही-गलत का फर्क मिट गया। आज समाज मन की एकाग्रता के अभाव में बिखर गया है इसलिए उसका जीवन अवसादमय हो गया है।

अगर व्यक्ति चाहता है कि उसका जीवन प्रसन्न हो, तो उसे अपने सही जीवन-मूल्यों पर चलने का निर्णय करना होगा। उसे सत्य और विश्वास के बल पर अपना जीवन का पथ निश्चित करना होगा। वासनाओं का आवश्यक उपभोग करते हुए और उन पर नियंत्रण करते हुए आगे बढ़ना होगा। अतः व्यक्ति को अवसाद से उबरना होगा, निराशा से दूर भागना होगा। सत्य और विश्वास पर टिकने वाले जीवन-मूल्य के बल पर सामाजिक समरसता लाने का प्रयत्न करना होगा, तभी समाज में आनंद का वातावरण बन सकेगा।

प्रश्न 4.
‘मन की एकाग्रता’ विषयक लेखों और विचारों का संग्रह कीजिए।
उत्तर:
‘मन की एकाग्रता’ के संबंध में अनेक निबंधकारों ने लेख लिखे हैं। उन लेखों में एक लेख द्विवेदीयुगीन रचनाकार का है। रचनाकार हैं बालकृष्ण भट्ट इस निबंध का शीर्षक है मन की दृढ़ता। लेखक इस पर जोर देता है कि मन दृढ़ होता है तो उसमें स्थितप्रज्ञता आ जाती है। एक प्रसिद्ध उक्ति है ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत।’ इस उक्ति में भी कवि ने मन की एकाग्रता पर बल दिक है क्योंकि मन अगर एकाग्र होता है तो वह कभी हारता नहीं।

वह सदैव जीतता है। सुदृढ़ मन वाला व्यक्ति उन्नति पर उन्नति करता चला जाता है, पीछे नहीं देखता। एक निबंध ‘एकाग्र मन के गुण’ शिवशंकर चौहान ने लिखा है। यह निबंध योग साधना पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। इस प्रकार यदा-कदा मन की एकाग्रता पर लेख प्रकाशित होते रहते हैं।

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प्रश्न 5.
अपने अशांत मन को संतुलित कर जिन महापुरुषों ने कीर्ति पाई उनका वृत्त संकलित कीजिए।
उत्तर:
भारत में ऐसे अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने असंतुलित मन को संतुलित कर देश में यश की पताका फहराई है, जिनमें स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानंद आदि महापुरुषों का नाम लिया जा सकता है। पूर्वप्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के भी इस तरह के कई किस्से हैं। विद्यार्थी इस संदर्भ में पुस्तकालयों से संबंधित महापुरुषों की पुस्तकें नामांकित कर इनके बारे में विशद जानकारी प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 6.
यदि आप अर्जुन होते तो कृष्ण से क्या-क्या प्रश्न करते?
उत्तर:
अगर हम अर्जुन होते तो कृष्ण से प्रश्न करते –

  1. हे भगवन्! मेरा मन अध्ययन में नहीं लग रहा है मुझे क्या करना चाहिए?
  2. सांसारिक वासनाएँ मुझे आपका नाम नहीं लेने देतीं, इनसे मुक्त होने का कोई उपाय बताइए।
  3. मेरा मन आज बहुत उद्विग्न है क्योंकि परीक्षाएँ निकट आ रही हैं, मैं अपना मन कैसे शांत कर सकता हूँ?
  4. मैं जीवन में संतोष कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?
  5. क्या संसार के सीमित भोगों के साथ जीवन-निर्वाह करते हुए मैं मन एकाग्र कर सकता हूँ? आदि।

मन की एकाग्रता परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
मन की एकाग्रता……… है –
(क) सनातन
(ख) अस्थायी
(ग) वेगमय
(घ) मंदमय
उत्तर:
(क) सनातन।

प्रश्न 2.
छात्र का मन …… घबरा उठता है –
(क) मौज-मस्ती के कारण
(ख) अध्ययन न कर पाने के कारण
(ग) होटल में जाने पर
(घ) ईर्ष्या के कारण
उत्तर:
(ख) अध्ययन न कर पाने के कारण।

प्रश्न 3.
चंचल मन का निग्रह वायु की ….. रोकने के समान दुष्कर है।
(क) आँधी
(ख) गति
(ग) साँसें
(ख) मंदता
उत्तर:
(ख) गति।

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प्रश्न 4.
मन ………. प्रकार से उत्तेजित होता है।
(क) चार
(ख) केवल एक
(ग) दो
(घ) पाँच
उत्तर:
(ग) दो।

प्रश्न 5.
…..अभाव तभी संभव है जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना संतुष्ट हो।
(क) कामनाओं का
(ग) जीवन का
(ग) बुद्धि का
(घ) परमात्मा
उत्तर:
(क) कामनओं का।

प्रश्न 6.
मन की एकाग्रता पाठ के लेखक हैं…..
(क) बालमुकुंद गुप्ता
(ख) पं. बालकृष्ण भट्ट
(ग) पं. बालकृष्ण भारद्वाज
(घ) पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन
उत्तर:
(ग) पं. बालकृष्ण भारद्वाज।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित कथनों के सही विकल्प चुनिए –
‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः’ किस ग्रंथ की सूक्ति है?
(क) श्रीमद्भागवत महापुराण
(ख) शिवपुराण
(ग) श्रीमद्भगवत् गीता
(घ) श्रीराधाकृष्ण चरितमानस
उत्तर:
(क) श्रीमद्भगवत् गीता।

प्रश्न 8.
…… इच्छाएँ समाज में अनाचार पनपाएँगी।
(क) अनियंत्रित
(ख) नियंत्रित
(ग) चंचल
(घ) स्थिर
उत्तर:
(क) अनियन्त्रित।

II. निम्नलिखित कथनों में सत्य या असत्य छाँटिए –

  1. ऐसी छात्र की तीन समस्याएँ हैं।
  2. ‘मन की एकाग्रता’ के लेखक बालकृष्ण भारद्वाज हैं।
  3. स्थितप्रज्ञ पुरुष मन के विषयों के पास जा सकता है।
  4. गीता में परम का अर्थ बहुत अधिक है।
  5. अनियंत्रित इच्छाएँ समाज में अनाचार पनपाएँगीं।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य
  5. सत्य।

मन की एकाग्रता लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए।

प्रश्न 1.
जब छात्र पढ़ने बैठता है तो उसका मन कहाँ विचरण करने लगता है?
उत्तर:
जब छात्र पढ़ने बैठता है तो उसका मन क्रिकेट और सिनेमा में विचरण करने लगता है।

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प्रश्न 2.
छात्र को अपना जीवन बोझ कव लगने लगता है?
उत्तर:
जब छात्र का मन पढ़ाई से भटक जाता है तब उसे अपना जीवन बोझ लगने लगता है क्योंकि सोचता है कि न पढ़े पाने के कारण न तो वह अच्छी नौकरी पा सकेगा और न ही प्रतिष्ठित पद।

प्रश्न 3.
कामनाओं का अभाव कब संभव है?
उत्तर:
कामनाओं का अभाव तभी संभव है जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना भी संतुष्ट रह सकता है।

प्रश्न 4.
बलपूर्वक हटाई गई इंद्रियों की लेखक ने किससे उपमा दी है?
उत्तर:’
बलपूर्वक हटाई गई इंद्रियों की लेखक ने ग्रीष्म ऋतु के बाद होने वाली वर्षा से उपमा दी है क्योंकि जिस तरह गमी में सूखी वनस्पतियाँ वर्मा का जल गिरने से हरी-भरी हो जाती हैं उसी प्रकार हठयोग से हटाई गई शुष्क इंद्रियाँ विषय का रस पाकर पुनः जाग उठती हैं।

प्रश्न 5.
जीवन का परम सत्य लेखक ने क्या बताया है?
उत्तर:
लेखक ने जीवन का परम सत्य बताया है कि इंद्रियों को वश में नहीं किया जा सकता, अतः इंद्रियों का आवश्यक सेवन करते हुए उस पर अंकुश लगाने का प्रयास करना चाहिए।

मन की एकाग्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मन की एकाग्रता’ निबंध का केंद्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
पं. बालकृष्ण भारद्वाज ने ‘मन की एकाग्रता’ में कहा है कि आज छात्र के पास ज्ञान के अनिवार्य साधन उपलब्ध हैं। पुस्तकालय, इंटरनेट, मेधावी शिक्षक आदि के सहयोग से छात्र बहुमुखी ज्ञान प्राप्त कर रहा है परन्तु प्रतिभा के बिना सब व्यर्थ है। इस प्रतिभा को मन की एकाग्रता से प्राप्त किया जा सकता है।

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प्रश्न 2.
‘मन की एकाग्रता’ के लिए कौन-से साधन महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
‘मन की एकाग्रता’ के लिए दो साधन अपनाए जाते हैं। पहला साधन संसार के आकर्षणों से मुँह मोड़ लेना और दूसरा है आंतरिक मन पर संयम करना। इनमें बाहरी आकर्षणों पर सरलता से अंकुश लगाया जा सकता है पर आंतरिक मन पर संयम करना कठिन है। इसके लिए गीता में बताए गए मार्ग से मन एकाग्र रखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
स्थितप्रज्ञ दर्शन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्थितप्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए मन विषयों के पास नहीं ले जाना चाहिए और यह तभी संभव है जब इंद्रियों के भोगों में आसक्त न रहे। उनसे दूर रहे। मन इंद्रियों से दूर तभी हो सकता है जब उसमें रहने वाली कामनाएँ नष्ट हो जाती हैं। कामनाएँ तभी समाप्त हो सकती हैं जब उसमें वस्तुओं के होते हुए भी इच्छाएँ न हों। वह संतुष्ट रहे। ऐसे ही व्यक्ति को स्थित प्रज्ञ की दिशा में गतिशील कहा जा सकता है।

प्रश्न 4.
गीता के अनुसार परं का क्या अर्थ है?
उत्तर:
गीता में परं का अर्थ परमात्मा कहा गया है। इसे परिभाषित करते हुए गीता में कहा गया है कि सारा संसार ही ईश्वर है। मुझे ईश्वर को समस्त विश्व में समझो। मुझसे ही सारा संसार समझो। ईश्वर व विश्व एक-दूसरे से अभिन्न हैं। अतः गीता सबके प्रति सेवाभाव और मन की वासनाओं को शुद्ध करने के लिए दीक्षित करती है।

प्रश्न 5.
क्या इंद्रियों पर नियन्त्रण मन में कुंठाएँ उत्पन्न कर सकता है?
उत्तर:
यह समझा जाता है कि अगर हम अपनी इंद्रियों पर जबरदस्ती नियंत्रण करेंगे तो इससे अनेक कुंठाएँ जन्मेंगी। हम अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाएँगे। पर ऐसा नहीं है। अनियंत्रित इच्छाएँ निश्चित रूप से समाज में अनाचार व व्यभिचार पैदा करती हैं पर इन्हें अनिवार्य रूप से भोगते हुए काबू में रखा जाए तो निश्चित रूप से मन की एकाग्रता में सहायता करेंगी।

मन की एकाग्रता पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
‘मन की एकाग्रता’ निबंध का सार लिखिए।
उत्तर:
मन किस प्रकार एकाग्र होना चाहिए वह सदा से व्यक्ति की समस्या रही है। आज प्रौद्योगिकी का समय है और इसमें प्रगति की सीमाहीन संभावनाएं हैं। ऐसे में जब वह अध्ययन करने के लिए बैठता है तो अनेक चिंताएँ मन की एकाग्रता में बाधा बनती हैं। उत्कृष्ट पद पाने के लिए मन एकाग्र करना चाहता है पर मनोरंजन के साधन उसके लक्ष्य में रुकावट बन जाते हैं। इस कारण वह बार-बार निराशा का शिकार होता है। तब उसे यह ठीक लगता है कि चंचल मन को एकाग्र करना उसी तरह कठिन है जिस प्रकार वायु की गति रोकना दुष्कर है।

मन एकाग्र करने वाले छात्र की दो समस्याएँ हैं-पहली मन का भोगों की ओर भागना और दूसरी पढ़ने में एकाग्रचित्त न होना। वह बाहरी परिस्थितियों से किसी तरह स्वयं को बचा लेता है पर भीतरी मन का चक्र उसे अनेक कामनाओं में भटका देता है। प्राणायाम आदि से कुछ समय के लिए मन पर नियंत्रण हो भी जाता है पर हमेशा नहीं रहता। गीता में इसका उपाय अवश्य लिखा है, : स्थित प्रज्ञ वह है जिसकी बुद्धि अस्थिर व चंचल नहीं है।

स्थित प्रज्ञता इन्द्रिय और मन संयमित बुद्धि का नाम है। इंद्रियों को भोगों से दूर रखकर स्थित प्रज्ञ रहा जा सकता है। कामनाओं को नष्ट कर मन को इंद्रियों से दूर रखा जा सकता है। यह तभी संभव है जब व्यक्ति बिमा वस्तुओं के संतुष्ट हो। गीता में भी कहा गया है कि व्यक्ति अपनी संतुष्टि के लिए अन्य वस्तुओं की इच्छा नहीं रखता। जब तक उसकी एक भी वृत्तिं बाहरी होगी तब तक वह मन के पराधीन होगा।

हठयोग से मन भागों से दूर करके भी नहीं हटता, अवसर पाते ही पुनः उस ओर भागने लगता है। इसी तरह बलपूर्वक हटाई गई इंद्रियाँ विषय-चिंतन रूपी जल से फिर हरी हो जाती हैं, अतः प्राणायाम आदि उपाय क्षणिक हैं। – मन की उत्तेजना दो कारणों से है : बाहरी विषयों से और भीतरी वासनाओं की याद से। जब तक वासनाएँ हैं तब तक विषय से मन दूर नहीं किया जा सकता। ऐसे में गीता में दिए गए उपाय का अनुसरण किया जा सकता है। यह उपाय है, मन को किसी परम लक्ष्य के लिए लगाया जाए। जैसे राष्ट्रभक्ति में, दीनों की सेवा में। ऐसा करने से मन में व्याप्त विषयों की आसक्ति नष्ट हो जाएगी। छात्रों के लिए अध्ययन परम लक्ष्य है।

गीता में परं का अर्थ परमात्मा कहा गया है। मैन की वासनाओं को मिटाने का सूत्र गीता में है। उसके अनुसार सब विश्व ईश्वर है, अतः सबके प्रति सेवाभाव रखो। यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या इंद्रियों को भोगों से दूर करने पर मानसिक कुंठाओं का उदय नहीं होगा? गीता में इसका उत्तर तार्किक है। इसमें कहा गया है कि जीवन के लिए इंद्रियों का सेवन आवश्यक है पर यह आसक्ति व द्वेषभाव से नहीं किया जाना चाहिए। इन्हें खुला नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि इससे जीवन जीने में अनेक बाधाएँ खड़ी हो जाती हैं। अनियंत्रित इच्छाओं से समाज में अनाचार फैलता है। इसलिए कहा गया है कि इंद्रियों से विषयों का सेवन तो किया जाए पर विवेकशील होकर किया जाए। उन पर नियंत्रण रहे पर अनिवार्य विषयों में वे प्रवृत्त भी रहें।

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मन की एकाग्रता संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
मन की एकाग्रता की समस्या सनातन है। आज के प्रौद्योगिकी युग में जहाँ भौतिक उन्नति की संभावनाएँ अपार हैं ऐसे में छात्र जब अध्ययन करने बैठता है, तब उसके मन को अनेक तरह के विचार घेरने लगते हैं। वह सोचता है इस अर्थ प्रधान युग में मुझे उत्कृष्ट पद प्राप्ति के लिए एकाग्र मन से पढ़कर परीक्षा में उच्चतम श्रेणी प्राप्त करना आवश्यक है। लेकिन वह जब पढ़ने बैठता है तो क्रिकेट, सिनेमा या मित्र मण्डली की मौज-मस्ती के विचार में उसका मन भटकने लगता है। मन का यह विचलन बुद्धि की एकाग्रता भंग कर देता है।

वह घबड़ा कर सोचता है, परीक्षा तिथि पास है, मन उद्विग्न है, कैसे अध्ययन करूँ? क्या करूँ? व्यर्थ के विचारचक्र से बुद्धि अस्थिर और मन चंचल बना रहता है। वह सोचता है यदि परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा। पद, प्रतिष्ठा, वैभव कुछ नहीं मिलेगा, जीवन बोझ बन जाएगा, वह बार-बार हताशा से घिर जाता है। अनियंत्रित मन और एकाग्रहीनता उसे चिंताओं में डुबो देती है। अर्जुन की यह स्वीकारोक्ति कि ‘चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है उसे उचित प्रतीत होने लगता है।’ (Page 96)

शब्दार्थ:

  • एकाग्रता – मन को एक ओर लगाना।
  • सनातन – पुरानी।
  • अपार – असीमित।
  • उत्कृष्ट – श्रेष्ठ।
  • विचलन – चंचल।
  • उद्विग्न – बेचैन, व्याकुल।
  • विचारचक्र – विचारों का चक्कर।
  • अस्थिर – गतिमान।
  • प्रतिष्ठा – सम्मान।
  • हताशा – निराशा।
  • स्वीकारोक्ति – स्वीकार की गई उक्ति।
  • निग्रह – नियंत्रण।
  • दुष्कर – कठिन, जिसे करना बहुत मुश्किल हो।
  • प्रतीत – लगना।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। आज छात्र उच्च पद की प्राप्ति के लिए अध्ययन करना चाहता है पर मन एकाग्र नहीं रहता। लेखक ने यहाँ उसकी इसी समस्या पर विचार किया है।

व्याख्या:
मन किस प्रकार नियंत्रण में किया जाए, यह सदा से व्यक्ति की समस्या रही है। छात्र चाहता है कि वह प्रौद्योगिकी युग में अपने लिए कोई उच्च पद प्राप्त करे और इसके लिए मन अध्ययन में लगाना चाहता है, पर नहीं, लगता। उसका मन बाहरी विचारों में विचरण करने लगता है। वह सोचता है कि अर्थप्रधान युग में अच्छे अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण करूँ ताकि मुझे उच्च पद प्राप्त हो। वह इस बात को अच्छी तरह जानता है कि जब तक परीक्षा में अच्छे अंकों से पास नहीं होगा तब तक अच्छी नौकरी नहीं प्राप्त कर सकता।

पर जब वह पढ़ने के लिए बैठता है तो बाहरी मनोरंजन के साधन उसके लिए समस्या पैदा कर देते हैं। कभी तो उसका मन क्रिकेट की ओर विचरण करने लगता है तो कभी सिनेमा-जगत् की ओर। कभी वह सोचने लगता है कि पढ़ने में क्या रखा है, जरा मित्र-मण्डली में बैठकर गप-शप की जाए। उसका मन जब इस प्रकार की बातें सोचने लगता है तो उसकी बुद्धि की एकाग्रता भटकं जाती है। वह घबरा जाता है। सोचता है कि मन तो पढ़ाई में लग नहीं रहा है, अब क्या करूँ? मन बहुत बेचैन है, किस तरह इसे पढ़ाई में लगाऊँ? अगर ऐसा रहा तो परीक्षा में अच्छे अंक कैसे आएँगे? और अच्छे अंक नहीं आए तो वह अच्छी नौकरी कैसे पा सकेगा?

सोचता है कि अगर मन एकाग्र न होने के कारण परीक्षा में ही अनउत्तीर्ण हो गया तो तब क्या होगा? मेरा तो जीवन ही नष्ट हो जाएगा! न मुझे कोई प्रतिष्ठित पद मिल पाएगा और न ही अच्छी नौकरी। तब तो यह जीवन बोझ बन जाएगा। यह सोचकर वह बार-बार निराशा में घिर जाता है। अनियंत्रित मन उसे अनेक चिंताओं में डुबो देता है। तब उसे अर्जुन की यह स्वीकारोक्ति याद. आने लगती है कि मन बहुत चंचल है। इस पर नियंत्रण उसी तरह पाना कठिन है जिस तरह बहती हवा को रोकने की नाकाम कोशिश करना।

विशेष:

  1. एकाग्र मन न होने से छात्र में कितना भय व्याप्त हो जाता है, इसका यथार्थ चित्रण है।
  2. ‘मन की एकाग्रता की समस्या सनातन है’, सूक्तिपरक वाक्य है। इसी प्रकार अन्य सूत्र वाक्य है- ‘अर्जुन की यह सकारोक्ति है कि चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है।’
  3. सूत्रात्मक, व्याख्यात्मक और विवेचनात्मक शैली है।
  4. भाषा संस्कृतनिष्ट है, किंतु तद्भव व विदेशी शब्दों के इस्तेमाल से परहेज भी नहीं किया गया है। घेरने, घबरा जैसे शब्द तद्भव हैं तो एकाग्रता, संभावनाएँ, अध्ययन जैसे तत्सम। क्रिकेट, सिनेमा, मौज-मस्ती जैसे शब्द विदेशी हैं। प्रौद्योगिकी पारिभाषिक शब्द है। एकाग्र अर्द्धपारिभाषिक शब्द है। बार-बार युग्म शब्द है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
छात्र के लिए भौतिक उन्नति की क्या संभावनाएँ हैं?
उत्तर:
छात्र के लिए आज प्रौद्योगिकी युग में भौतिक उन्नति की अपार संभावनाएँ – हैं। जैसे इंटरनेट की सुविधा, पुस्तकालय की सुविधा, विद्वान शिक्षकों का समूह और छात्रवृत्ति आदि।

प्रश्न (ii)
छात्र का मन पढ़ने से क्यों भटक जाता है?
उत्तर:
छात्र जब पढ़ने के लिए बैठता है तो उसके सामने बाहरी आकर्षण आकर खड़े हो जाते हैं। ये आकर्षण उसे सिनेमा चलने, मित्रों के साथ गप-शप मारने और क्रिकेट आदि खेलने के संबंध में होते हैं। ऐसे में उसका मन भटक जाता है और उसे समझ नहीं आता कि अब वह अपना अध्ययन किस प्रकार जारी रखे।

प्रश्न (iii)
छात्र के अनियंत्रित मन में किस प्रकार की आंशकाएँ जागती हैं?
उत्तर:
छात्र सोचता है कि मेरा मन तो बाहरी आकर्षणों के कारण पढ़ाई से हट गया है। अब मैं ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाऊँगा, परिणामतः असफल हो जाऊँगा। इससे मुझे न तो अच्छी नौकरी मिल पाएगी और न ही प्रतिष्ठित पद।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
अर्जुन की स्वीकारोक्ति लेखक को उचित क्यों लगती है?
उत्तर:
अर्जुन की स्वीकारोक्ति है कि चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है। यह इसलिए कहा गया है कि मन एकाग्र करना उसी तरह कठिन है जिस तरह वायु की गति को रोकना।

प्रश्न (ii)
मन की एकाग्रता को लेखक ने सनातन क्यों कहा है?
उत्तर:
लेखक ने कहा है कि आदिकाल से ही ऋषि-मुनि इंद्रियों पर निग्रह करने के प्रयास करते रहे हैं। उनमें अधिकांश को सफलता प्राप्त नहीं हो पाई है। आज भी यही समस्या है। आज भी इसे नियंत्रण में करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। इसलिए लेखक का कहना है कि यह समस्या सदा से रही है।

प्रश्न (iii)
मन का विचलन क्या प्रभाव पैदा करता है?
उत्तर:
मन का विचलन बुद्धि के प्रभाव को भंग कर देता है। व्यक्ति का मन किए जाने वाले कार्य से दूर हो जाता है। इससे उसे काम में सफलता प्राप्त नहीं होती। काम पूरा न होने पर वह घबरा जाता है। उसमें कई प्रकार की निराशाएँ जन्म ले लेती हैं।

प्रश्न 2.
ऐसे छात्र की दो समस्याएँ हैं। पहली उसका मन भोग और ऐश्वर्य पाने के लिए उसे लुभा रहा है, और दूसरी पढ़ने में उसकी बुद्धि की एकाग्रता का न होना। बाहर की चकाचौंध उसे अपनी ओर खींचती है और आन्तरिक मन उसे अनेक स्मृतियों और कामनाओं में भटका रहा है। वह बाहर की परिस्थितियों में स्वयं को बचा सकता है, पर आन्तरिक मनश्चक्र की गति अनियंत्रित वेग से चलती रहती है। ऐसी स्थिति में मन का संयम कैसे करें। यम-नियम, आसन, प्राणायाम आदि कुछ क्षण के लिए मन को एकाग्र कर सकते हैं पर ये सब मन की पूर्ण और स्थायी एकाग्रता कराने मन की एकाग्रता में समर्थ नहीं है। इसका पूर्ण उपाय गीता के स्थित प्रज्ञ के विवरण में है। स्थित प्रज्ञ वह है जिसकी बुद्धि अस्थिर, चंचल तथा विचलित नहीं है। स्थित प्रज्ञता इन्द्रिय और मन से संयमित बुद्धि का नाम है। (Page 90)

शब्दार्थ:

  • ऐश्वर्य-भोग – विलास।
  • लुभाना – ललचाना।
  • चकाचौंध – चमक-दमक।
  • आन्तरिक – मन की।
  • मनश्चक्र – मन का चक्र।
  • वेग – तेज।
  • संयम – नियंत्रण।
  • यम-नियम – ये योग के शब्द हैं।
  • प्राणायाम – प्राणों का यौगिक प्रयोग प्राणायाम कहलाता है।
  • समर्थ – क्षमतावान।
  • स्थितप्रज्ञ – जिसने अपनी बुद्धि को वश में कर लिया है।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। आज छात्र उच्च पद की प्राप्ति के लिए अध्ययन करना चाहता है पर मन एकाग्र नहीं रहता। लेखक ने उसकी दो समस्याओं का यहाँ वर्णन किया है, पहली भोग की ओर आकर्षण व दूसरा मन की एकाग्रता का न होना। यहीं इसके उपाय की ओर भी संकेत किया गया है।

व्याख्या:
आज के छात्र की दो सबसे बड़ी समस्याएँ दिखाई दे रही हैं। पहली समस्या यह है कि सांसारिक भोग-विलास उसे अपनी ओर खींचे बिना नहीं रहते और दूसरी यह है कि उसका मन एकाग्र नहीं हो रहा है। इसकी उसे यह हानि उठानी पड़ रही है कि उसका मन पढ़ने में नहीं लग रहा है। बाहर की चकाचौंध यानी क्रिकेट के मैच, सिनेमा व मित्र-मण्डली की गप-शप उसे अपनी ओर खींचती है। उसका भीतरी मन अनेक स्मृतियों के कारण उसे आकुल करता है। जैसे सैर-सपाटा, अच्छे होटलों में खाना खाना, मनोरंजन के साधनों में मन लगे रहना आदि।

वह पढ़ने के लिए कोशिश करते हुए बाहरी परिस्थितियों से मन दूर रखने का प्रयास करता है। कहने का अभिप्राय यह है कि वह मित्र-मण्डली से किनारा कर लेता है, सिनेमा-क्रिकेट या होटल वगैरह से मन हटा लेता है पर भीतरी परिस्थितियाँ उसे शांत नहीं रहने देतीं। उसका मन इन सब चीजों को प्राप्त करने के लिए व्याकुल रहता है। उसके सामने बड़ी समस्या आकर खड़ी हो जाती है कि आखिर वह इन सबसे किस प्रकार अपने आप को बचाए। वह अपने मन पर किस प्रकार निग्रह करे। मन पर नियंत्रण के लिए वह यम-नियम आदि करता है, आसन-प्राणायाम आदि करता है पर ये सब उसे कुछ समय के लिए ही मन नियंत्रित करने में सहयोग करते हैं।

कुछ देर बाद उसका मन पुनः इन सब बाहरी पदार्थों के लिए विचरण करने लगता है। लेखक कहता है कि मन को किस प्रकार एकाग्र किया जा सकता है, इसका उपाय श्रीमद्भगवत् गीता में है। गीता में स्थितप्रज्ञ व्यक्ति का विवरण दिया गया है। इसमें कहा गया है कि वही व्यक्ति स्थितप्रज्ञ कहलाता है जिसकी बुद्धि स्थिर रहती है और मन चंचल नहीं होता। स्थितप्रज्ञता भी उसे ही कहते हैं जब — इन्द्रिय और मन पर संयम हो जाता है।

विशेष:

  1. लेखक ने छात्रों की प्रमुख दो समस्याओं पर विचार किया है-मन का बाहरी आकर्षणों की ओर भागना व बुद्धि का एकाग्र न होना।
  2. छात्र बाहरी समस्याओं पर किसी प्रकार संयम करता है तो भीतरी मन उसे स्थिर नहीं रहने देता। इस ओर रचनाकार ने विशेष ध्यान दिया है।
  3. यम-नियम, आसन-प्राणायाम मन की एकाग्रता के स्थायी उपचार नहीं हैं।
  4. मन को स्थिर कैसे किया जा सकता है, इसका उपाय गीता में है।
  5. भाषा संस्कृतनिठ है। भोग, ऐश्वर्य, एकाग्रता, स्मृतियाँ आदि तत्सम शब्द हैं। यम-नियम युग्म शब्द हैं। लुभा, सब आदि तद्भव शब्द हैं। चकाचौंध, भटकना आदि देशज शब्द हैं। मनश्चक्र में विसर्ग संधि है। यम-नियम में द्वंद्व समास है। एकाग्र में ता प्रत्यय है। प्रज्ञ में ता प्रत्यय मिलाकर प्रज्ञता शब्द बनाया गया है।
  6. सूक्ति वाक्य है-स्थितप्रज्ञता इन्द्रिय और मन में संयमित बुद्धि का नाम है।
  7. सूत्रात्मक, विवेचनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
भटके हुए छात्र की दो समस्याएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
भटके हुए छात्र की दो समस्याएँ हैं-एक तो यह है कि उसका मन भोग-विलास के लिए हमेशा लुभाता रहा है और दूसरी यह है कि उसकी बुद्धि पढ़ने को नहीं करती। पढ़ने के लिए जिस प्रकार की एकाग्र बुद्धि की आवश्यकता है, वह उसके पास नहीं है।

प्रश्न (ii)
व्यक्ति को मन का संयम करने में क्या दिक्कत आती है?
उत्तर:
व्यक्ति का मन संयम में नहीं हो पाता। इसके मार्ग में पहली दिक्कत यह आती है कि बाहर की चमक-दमक उसे अपनी ओर खींचती है और आंतरिक मन में उन आकर्षणों की यादें उसे भटकाती रहती हैं। इसी कारण उसे अपना मन संयमित करने में दिक्कत आती है।

प्रश्न (iii)
मन को संयम में करने के लिए व्यक्ति को किन विधियों का पालन करना पड़ता है?
उत्तर:
मन को संयमित करने के लिए वह योग साधना में बताए यम-नियम, प्राणायाम आदि का आसरा लेता है। पर वे सब उसके मन को पूरी तरह एकाग्र करने में असफल रहते हैं। ये तो कुछ क्षण के लिए ही मन को नियंत्रित कर पाते हैं।

गयांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मन को एकाग्र करने का पूरा उपाय कहाँ बताया गया है?
उत्तर:
यों तो मन को एकाग्र करना निश्चित रूप से कठिन है पर श्रीमद्भगवत् गीता में मन को एकाग्र करने का उपाय अवश्य बताया गया है। अगर व्यक्ति उस उपाय का पालन करता है तो वह निश्चित रूप से मन एकाग्र कर सकता है।

प्रश्न (ii)
स्थितप्रज्ञ किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह व्यक्ति स्थित प्रज्ञ कहलाता है जिसकी बुद्धि अस्थिर नहीं है। चंचल व विचलित नहीं है। वस्तुतः स्थित प्रज्ञता इंद्रिय और मन से संयमित होने वाली बुद्धि को कहते हैं।

प्रश्न (iii)
अगर व्यक्ति बाहरी आकर्षण से बच भी जाए तो उसे कौन-सा कारण स्थित प्रज्ञ नहीं होने देना चाहता?
उत्तर:
व्यक्ति प्रयत्न कर बाहरी आकर्षण से बचने का प्रयत्न कर लेता है। उसे सफलता मिल भी जाती है तब भी उसका मन एकाग्र नहीं हो पाता क्योंकि भोगों की स्मृति उसके सभी प्रयास धूल में मिला देती है। परिणामतः वह पुनः आकर्षणों में स्वयं को फँसा पाता है।

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प्रश्न 3.
स्थित प्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए आवश्यक है कि मन को विषयों के पास न ले जावें। पर यह तभी संभव है जब मन इन्द्रियों के भोगों में आसक्त न हो, उनसे दूर रहे। मन इन्द्रियों से दूर तभी तक रह सकता है जब उसमें रहने वाली कामनाएँ नष्ट हो जाएँ। पर कामनाओं का अभाव तभी संभव है जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना स्वयं संतुष्ट हो। इसे गीता में ‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः’ कहा है अर्थात् व्यक्ति अपनी तुष्टि के लिए अन्य या भिन्न वस्तु की इच्छा नहीं करता। अतः चित्तं की एक भी वृत्ति जब तक बहिर्मुखी है तब तक मन अशांत रहेगा। इन्द्रियों की गुलामी से वह मुक्त नहीं रह सकता। ऐसा मन, बुद्धि को अस्थिर करता है। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • आसक्त – रमा हुआ।
  • कामनाएँ – अभिलाषाएँ।
  • तुष्टि – संतोष।
  • चित्त – हृदय।
  • वृत्ति – स्वभाव।
  • बहिर्मुखी – बाहरी।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। मन की एकाग्रता पर विचार करते हुए लेखक कहता है कि कामनाएँ व्यक्ति को स्थिर प्रज्ञ नहीं होने देतीं। ये तभी समाप्त हो सकती हैं जब वह अन्य वस्तुओं के बिना भी स्वयं को संतुष्ट अनुभव कर सके।

व्याख्या:
अगर व्यक्ति स्थितप्रज्ञ बनना चाहता है तो उसके लिए परम आवश्यक है कि बुद्धि को स्थिर रखे। यह तभी संभव है जब वह अपने पास विषयों को न फटकने दे। इसलिए उसे अपने मन को इंद्रियों से एकदम हटाना होगा। उनसे बिलकुल दूर रखना होगा। उसका मन तभी इंद्रियों से दूर रह सकता है जब उससे कामनाएँ दूर हो जाएँ। पर कामनाओं का अभाव इतना आसान भी नहीं है। अलबत्ता, जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना भी स्वयं को संतुष्ट या संतोषी अनुभव करने लगेगा, तब उसे स्थितप्रज्ञ कहा जा सकेगा।

लेखक श्रीमद्भगवत् गीता से उद्धरण प्रस्तुत करता है कि ‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः सूक्ति का अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने संतोष के लिए दूसरी वस्तुओं की कामना नहीं करता। लेखक कहता है कि चित्त की एक वृत्ति जब तक बाहरी रहेगी तब तक व्यक्ति का मन शांत नहीं होगा। उसमें व्याकुलता बराबर बनी रहेगी। वह किसी भी सूरत में इन्द्रियों की गुलामी से आज़ाद नहीं हो सकता। ऐसा व्यक्ति अस्थिर मन का ही होता है। उसकी बुद्धि कभी स्थिर हो ही नहीं सकती।

विशेष:

  1. लेखक ने स्थितप्रज्ञ दर्शन का विवेचन किया है।
  2. लेखक का मानना है कि मन की एकाग्रता की पहली शर्त यह है कि व्यक्ति को विषयों से दूर रहना होगा। और मन इन्द्रियों से तब दूर होगा जब उसमें कोई कामना नहीं होगी।
  3. कामना का अभाव उस व्यक्ति में हो सकता है जो बिना अन्य वस्तुओं के मिलने पर भी संतोषी होता है।
  4. गीता से उद्धरण लिया गया है ‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः’ यह इस ..अनुच्छेद का सूत्रवाक्य है।
  5. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। तत्सम शब्दों में स्थितप्रज्ञ, बुद्धि की अस्थिरता, संभव, आसक्त आदि हैं। स्थितप्रज्ञ अर्द्ध पारिभाषिक शब्द है। इसी प्रकार वृत्ति और बहिर्मुखी शब्द हैं। स्थिरता में ता प्रत्यय है, अभाव में अ उपसर्ग है। गुलाम में ई प्रत्यय लगने से गुलामी शब्द बना है। बहिर्मुखी बहि + मुखी, विसर्ग संधि है। सूत्रात्मक वाक्य है-“अतः चित्त की एक भी वृत्ति जब तक बहिर्मुखी है तब तक मन अशांत रहेगा। इन्द्रियों की गुलामी से वह मुक्त नहीं रह सकता।”
  6. सूत्रात्मक और विवेचनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
स्थितप्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
स्थितप्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए प्रयत्न करना चाहिए कि मन विषयों की ओर न जाए। यह तभी संभव है जब यह इंद्रियों के वशीभूत न हो व भोगों में न यह फँसे। मन इंद्रियों से दूर तभी हो सकता है जब उसमें किसी प्रकार की कामना न हो।

प्रश्न (ii)
मन की कामनाएँ किस मन में नहीं निवास करती?
उत्तर:
मन की कामनाएँ ऐसे व्यक्ति के मन में निवास नहीं करतीं जिसके मन में भोगों के प्रति कोई लालसा न हो। जिसके पास भोग न हो, तब भी संतोषी रहे। ऐसे व्यक्ति के मन में कामनाओं का कोई काम नहीं है।

प्रश्न (iii)
गीता के किस सूत्र की इस अनुच्छेद में व्याख्या की गई है?
उत्तर:
इस अवतरण में गीता के इस सूत्र की व्याख्या की है : ‘आत्मन्येयात्मना तुष्टः’ इस सूत्र का अर्थ है कि व्यक्ति अपने संतोष के लिए अन्य अथवा भिन्न वस्तु की अभिलाषा नहीं करता।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
व्यक्ति का मन कब तक अशांत रहेगा?
उत्तर:
वही व्यक्ति सुखी है जिसके मन में एक भी वृत्ति अशांत नहीं है। जब तक उसकी वृत्ति बहिर्मुखी है. तब तक उसका मन शांत हो ही नहीं सकता।

प्रश्न (ii)
स्थितप्रज्ञ शब्द लेखक ने किस स्थान से ग्रहण किया है?
उत्तर:
स्थितप्रज्ञ लेखक ने गोता से ग्रहण किया है। गीता के द्वितीय अध्याय कर्मयोग में भगवान ने अर्जुन को स्थित प्रज्ञ व्यक्ति के लक्षण बताए हैं। वहीं से यह शब्द भारद्वाज ने चयन किया है।

प्रश्न (iii)
आत्मन्येयात्मना तुष्टः सूत्र का हिंदी अनुवाद कीजिए।
उत्तर:
आत्मन्येयात्मना तुष्टः सूत्र का अर्थ है कि व्यक्ति अपनी तुष्टि के लिए अन्य या भिन्न वस्तु की इच्छा नहीं करता।

प्रश्न 4.
समस्या यह है कि यदि इंद्रियों को विषयों से बलपूर्वक हठयोग के द्वारा दूर भी कर लें, तो भी विषयों का चिंतन नहीं छूटता वह अवसर आने पर पुनः विकसित होगा। जैसे ग्रीष्म ऋतु के ताप से पृथ्वी पर वनस्पतियाँ सूख जाती हैं, पर वर्षा ऋतु में जल पाकर फिर पल्लवित हो जाती हैं। – इसी प्रकार विषयों से बलपूर्वक हटाई गयी शुष्क इन्द्रियाँ विषय चिन्तन रूपी जल से फिर विषयों में लिप्त हो जाती हैं। क्योंकि इन्द्रियों की विषय रस की चाह बाह्य दमन से नष्ट नहीं होती है। इसीलिए प्राणायामादि के अभ्यास से मन कुछ समय के लिए विषय शून्य हो जाएगा, किंतु बाद में वह अवसर पाकर फिर विषयों में डूब जाएगा। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • बलपूर्वक – जबरदस्ती।
  • हठयोग – योग का एक प्रकार।
  • पल्लवित – विकसित।
  • लिप्त – लीन।
  • दमन – नष्ट करना।
  • प्राणायाम – योग में साँस लेने की एक पद्धति।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से लिया गया है। मन की एकाग्रता पर विचार करते हुए लेखक कहता है कि कामनाएँ व्यक्ति को स्थित प्रज्ञ नहीं होने देतीं। यहाँ भारद्वाज कहते हैं कि इन्द्रियों को जबरदस्ती विषयों से हटाने पर भी समस्या बनी रहती है क्योंकि विषयों के चिंतन से व्यक्ति का नाता नहीं छूटता।

व्याख्या:
लेखक मन की एकाग्रता पर विचार कर रहा है। वह कामनाओं के संदर्भ में सोचता है कि अगर व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना संतोष कर ले तो उसकी कामनाएँ शांत हो जाएँगी। इस प्रकार वह मन को एकाग्र कर सकेगा। लेखक के विचार में यह भी उचित नहीं लगता। इसमें समस्या यह पैदा होती है कि हम इंद्रियों को बलपूर्वक अपने से अलग तो कर देते हैं पर उनका चिन्तन निरन्तर करते रहते हैं। ऐसे में उनका मन से हटना न हटना व्यर्थ ही है। जैसे ही मन उन विषयों के बारे में चिंतन करता है, वैसे ही वे फिर जाग जाती हैं।

यह स्थिति ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार गर्मी में अतिशय ताप के कारण वनस्पतियाँ सूख जाती हैं परन्तु वर्षा ऋतु आती है तो पुनः हरी-भरी हो जाती हैं। वे पुनः पल्लवित हो जाती हैं। अतःएव बलपूर्वक हटाई गई इन्द्रियाँ अवसर मिलते ही पुनः जाग उठती हैं। और यह काम विषय चिंतन करता है। शुष्क इन्द्रियाँ विषय चिंतन रूपी जल से पुनः विषयों में लिप्त हो जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यम-नियम, आसन-प्राणायाम आदि से कुछ समय के लिए इंद्रियाँ दब अवश्य जाती हैं पर अवसर आने पर पुनः खड़ी हो जाती हैं और मानव की हानि करना आरम्भ कर देती हैं।

विशेष:

  1. लेखक ने साधक के बलपूर्वक इंद्रियों के दमन को गलत बताया है। उसका मानना है कि बलपूर्वक हटाई गई इंद्रियाँ उसी तरह पुनः जाग जाती हैं जिस प्रकार गर्मी में सूखी वनस्पतियाँ वर्षा ऋतु में पुनः पल्लवित हो जाती हैं।
  2. उपमा अलंकार है। प्रसाद गुण है।
  3. ऋतुओं के उपयोग की सुंदर व्याख्या की गई है। ग्रीष्म का काम – सूखना और वर्षा का काम हरा-भरा करना है।
  4. विषय किस प्रकार मानव मन पर आक्रमण कर देते हैं, इसका सुंदर विवेचन किया गया है।
  5. संस्कृतनिष्ट भाषा है। इन्द्रियों, बलपूर्वक, वनस्पतियाँ आदि शब्द तत्सम हैं। हठयोग और प्राणयाम शब्द अर्द्ध पारिभाषिक शब्द हैं।
  6. दृष्टांत या उदाहरण व विवेचनात्मक शैली है। सूत्रात्मक शैली भी देखी जा सकती है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
लेखक ने इस अनुच्छेद में किस समस्या की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
लेखक ने व्यक्ति की इस समस्या की ओर संकेत किया है कि इंद्रियों को हठयोग से दूर कर भी लिया जाए तब भी उसका विषयों के चिंतन से पीछा नहीं छूटता। अवसर आने पर वे पुनः व्यक्ति पर हावी हो जाती हैं।

प्रश्न (ii)
कामनाओं का पुनः लौट आने को लेखक ने किस उदाहरण से समझाया है?
उत्तर:
लेखक ने कहा है कि जिस प्रकार ग्रीष्म में सूखी वनस्पतियाँ वर्षा का जल पीने पर पुनः हरी-भरी हो जाती हैं उसी प्रकार बलपूर्वक मन से हटाई गई इच्छाएँ विषयों का चिन्तन करने से पुनः जाग जाती हैं।

प्रश्न (iii)
इंद्रियाँ क्यों नहीं समाप्त होती?
उत्तर:
इंद्रियों का समाप्त न होने का कारण यह है कि इन्हें विषय-रस समाप्त नहीं होने देता। हम चाहे हठयोग से इन पर कुछ समय के लिए नियंत्रणं क्यों न कर लें पर जैसे ही विषय याद आते हैं ये पुनः रसमग्न हो जाती हैं।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
हठयोग का इस अवतरण में क्या उपयोग है?
उत्तर:
हठयोग योग का शब्द है। इसे अर्द्धपारिभाषिक शब्द कहा जाता है। हठयोग में बलपूर्वक इंद्रियों को वश में किया जाता है। लेखक यहाँ कहना चाहता है कि व्यक्ति बाहरी वासनाओं को अपने वश में कर लेता है और इसके लिए हठयोग का प्रयोग करता है।

प्रश्न (ii)
क्या हठयोग से मन एकाग्र हो सकता है?
उत्तर:
हठयोग से मन एकाग्र नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे हम बाहरी वासनाओं पर लगाम लगा सकते हैं। वस्तुतः मन का भीतरी पक्ष वासनाओं को स्मरण कर पुनः जीवन धारण करता रहता है। ऐसे में हठयोग मन को एकाग्र करने का कारगर साधन नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न (iii)
शुष्क इंद्रियाँ लेखक ने किसे कहा है?
उत्तर:
लेखक ने शुष्क इंद्रियाँ उन्हें कहा है जिन्हें बलपूर्वक वश में करने का प्रयास किया गया है।

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प्रश्न 5.
मन दो प्रकार से उत्तेजित होता है-बाहर के विषयों से एवं भीतर की वासनाओं और स्मृतियों से। अतः जब तक वासनाएँ हैं विषय रस का संस्कार नष्ट नहीं किया जा सकता। यद्यपि बाह्य प्राणायामादि कुछ सहायक हैं पर पूरी तरह विषय रस का निस्सारण नहीं करते, तब मन से विषय रस कैसे निवृत्त हो? गीता बताती है कि ‘परं दृष्ट्वा निवर्तते’, परं का अर्थ है कि मन को किसी परं अर्थात् परम उच्च लक्ष्य में लगाना जैसे सेवा-कार्य के प्रकल्पों में, लोक-संग्रह में, राष्ट्र भक्ति में या दीन-दरिद्रों की सेवा में। ऐसा करने से मन की विषय आसक्ति नष्ट हो जाती है। इस संदर्भ में छात्रों के लिए अध्ययन ही परम लक्ष्य है। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • उत्तेजित – तनाव।
  • निस्सारण – निकालना।
  • निवृत्त – फारिग।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। मन की एकाग्रता पर लेखक का विचार यह है कि मन दो कारणों से उत्तेजित होता है। इस उत्तेजना को परम लक्ष्य में लगाने पर व्यक्ति मन एकाग्र कर सकता है।

व्याख्या:
भारद्वाज कहते हैं कि मन अगर एकाग्र नहीं होता तो इसके दो कारण कहे जा सकते हैं। दूसरे शब्दों में मन दो कारणों से उत्तेजित होता है। एक तो उसे बाहरी विषय यानी सैर-सपाटे, होटलों में खाना-पीना, मौज-मस्ती वगैरह मन एकाग्र नहीं करने देते और दूसरे भीतर की वासनाएँ उसे नोच-नोच कर खाती हैं। उसके मन में उठी वासनाओं की आँधी उसे बार-बार याद आती है। उनसे वह उत्तेजित होता है। अगर व्यक्ति मन को एकाग्र करना चाहता है तो उसे सबसे पहले विषय-रस के संस्कार खत्म करने होंगे। यह ठीक है कि मन को एकाग्र करने के लिए प्राणायाम, यम, आसन आदि कुछ लाभ देते हैं पर उनका यह लाभ क्षणिक होता है।

वे पूरी तरह व्यक्ति के मन में रमे विषय रस को मिटा नहीं सकते। तब सवाल पैदा होता है कि मन से विषय रस कैसे समाप्त किए जाएँ? इसका उत्तर हमें मीता में मिलता है कि मन को किसी परं यानी परम उच्च लक्ष्य में लगा देना चाहिए। लोक-संग्रह के कामों में लगा देना चाहिए, राष्ट्रभक्ति में मन लगाना चाहिए, दीन-दुखियों की सेवा में लग जाना चाहिए। इस तरह के काम करने से मन की विषय आसक्ति समाप्त हो जाती है। छात्र के लिए क्योंकि परम लक्ष्य अध्ययन है अतः इस दृष्टि से वह मन को एकाग्र कर सकता है साथ ही अर्थप्रधान युग में उच्च पद पर प्रतिष्ठित भी हो सकता है। अच्छा धनार्जन भी कर सकता है।

विशेष:

  1. मन के एकाग्र न होने के कारण बताए गए हैं। लेखक का कहना है कि बाहर के विषयों से और भीतरी वासनाओं की स्मृति से मन एकाग्र नहीं रह पाता।
  2. प्राणायाम, यम-नियम मन की एकाग्रता में सहायक हैं पर यह चिरकालिक उपाय नहीं हैं।
  3. मन को नियंत्रित करने का उपाय बताया गया है कि इसे उच्च लक्ष्य की ओर मोड़ दो जैसे दीन-दुखियों की सेवा करना, राष्ट्रभक्ति की ओर उन्मुख हो जाना।
  4. छात्र इसी माध्यम से मन एकाग्र कर सकते हैं और उच्च पद पर प्रतिष्ठित हो सकते हैं।
  5. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। वासनाओं, उत्तेजित, संस्कार आदि तत्सम शब्द हैं। निस्सारण नि+सारण। यहाँ विसर्ग सन्धि है। प्राणायाम अर्द्ध पारिभाषिक शब्द है। दीन-दरिद्रों मे द्वंद्व समास है।
  6. सूत्रात्मक शैली है। इसके अतिरिक्त विवेचनात्मक शैली है।

गयांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मन को उत्तेजित करने के दो प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर:
मन को उत्तेजित करने के दो प्रकार हैं-एक तो बाहर के विषयों से मन उत्तेजित होता है और दूसरा विषय-चिंतन से वह तनाव में आ जाता है।

प्रश्न (ii)
विषय की वासनाएँ क्यों नष्ट नहीं होती?
उत्तर:
जब तक इंद्रियों की विषय-वासना रसमग्न रहती हैं तब तक नष्ट नहीं होतीं। कारण यह है कि मन से विषय रस का संस्कार नष्ट नहीं होता। संस्कार के नष्ट न होने से विषय वासनाओं का अंत होने लगता है।

प्रश्न (iii)
वासनाओं पर लगाम लगाने के लिए प्राणायाम का अभ्यास कितना उपयोगी है?
उत्तर:
प्राणायाम का अभ्यास करने से वासनाओं पर नियंत्रण अवश्य होता है पर यह बाहरी आकर्षण पर ही प्रतिबंध लगा सकता है। जैसे मित्र-मण्डली में न जाना, होटलों में जाकर बढ़िया खाना न खाना, क्रिकेट-सिनेमा आदि न देखना। बाहरी आकर्षण के बाद जो भीतरी वासनाएँ व्यक्ति को प्रताड़ित करती हैं, उससे मन एकाग्र नहीं रह पाता।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गीता में परं का अर्थ क्या है? लेखक ने इस शब्द का यहाँ किस प्रकार उपयोग किया है?
उत्तर:
गीता में परं का अर्थ है मन को किसी श्रेष्ठ कार्य के लिए लगाना। यह . किसी की सेवा करना हो सकता है, दीन-दुखियों की मदद करना हो सकता है अथवा राष्ट्रभक्ति में अपने को खो देना हो सकता है।

प्रश्न (ii)
छात्रों के लिए परम शब्द कितना उपयोगी है?
उत्तर:
छात्रों के लिए परम शब्द बहुत उपयोगी है। लेखक का मानना है कि अगर छात्र अपना मन एकाग्र करने के लिए भटकते मन को देश-सेवा या दीन-दुखियों की सेवा के लिए लगा देते हैं तो उनके मन में एकाग्रता स्थान ग्रहण कर सकती है।

प्रश्न (iii)
मन से विषय रस कैसे दूर किया जा सकता है?
उत्तर:
मन से विषय रस दूर करने के लिए परम लक्ष्य को अपनाना होगा। इसके बिना विषय रस से मुक्ति संभव नहीं।

प्रश्न 6.
गीता में परं का अर्थ परमात्मा है इसे परिभाषित करते हुए गीता कहती है कि सब विश्व ईश्वर ही है। वासुदेवः सर्वम्। यह भी कहा गया है कि मुझ ईश्वर को सब विश्व में व्याप्त जानो और मुझमें संपूर्ण विश्व को समझो। अर्थात् ईश्वर और विश्व अभिन्न हैं। अतः सबके प्रति सेवाभाव रखो। यही मन की वासनाओं की शुद्धि का सूत्र गीता देती है। क्या इंद्रियों के भोगों को नियंत्रण करने से मानसिक कुंठाएँ नहीं उभरेंगी तथा व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रोगों से पीड़ित नहीं हो जाएगा। गीता का इस विषय में उत्तर पूर्णतः तर्क संगतं है। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • परं – परमात्मा।
  • वासुदेव – ईश्वर।
  • व्याप्त – संपूर्ण।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। मन की एकाग्रता पर विचार करते हुए लेखक कहता है कि कामनाएँ व्यक्ति को स्थितप्रज्ञ नहीं रहने देतीं। स्थिर मन के उपायों पर विचार करते हुए लेखक गीता के प्रधान सूत्र का उल्लेख करता है कि यह वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना उत्पन्न करती है। इसी में मन की एकाग्रता का सूत्र विद्यमान है।

व्याख्या:
गीता के एक सूत्र में आए परं शब्द की व्याख्या करते हुए रचनाकार कहता है, परं का अर्थ है परमात्मा। यह समस्त विश्व और कुछ नहीं है, ईश्वर है। कहा भी गया है कि सबमें ईश्वर समाया हुआ है। मुझ ईश्वर को संसार के कण-कण में व्याप्त जानो। यह विश्व किसी अन्य में नहीं, मुझमें ही है। ईश्वर और विश्व को अलग अलग नहीं देखा जा सकता। ये एक-दूसरे में लीन हैं।

इसलिए लेखक गीता के इस सूत्र का आधार लेकर अपने विषय को विवेचित करता है और व्यक्ति मा को संदेश देता है कि मन की वासनाओं को शुद्ध करने का एक ही उपाय है कि सबके प्रति सेवाभाव रखो। यहीं एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि अगर हम वासनाओं पर नियंत्रण करेंगे तो इससे मन में अनेक प्रकार की कुंठाएँ जन्म लेंगी। इससे व्यक्ति में मानसिक व शारीरिक पीड़ा पैदा होगी। ऐसे में संभव नहीं लगता कि व्यक्ति मन एकाग्र कर सकेगा।

विशेष:

  1. इस अंश में लेखक ने वेद सूक्त को विवेचित किया है कि मैं एक अवश्य हूँ पर समस्त विश्व में व्याप्त हूँ। एकोहं….। यहीं लेखक ने एक अन्य सूत्र का उल्लेख भी किया है, “वासुदेवः सर्वम्।
  2. दर्शनशास्त्र में बड़ा झगड़ा है। आत्मा और ब्रह्म अलग-अलग हैं या एक हैं। कुछ ब्रह्मज्ञानी इन्हें अलग-अलग मानते हैं और कुछ अभिन्न। यहाँ ईश्वर व विश्व अभिन्न में ब्रह्मज्ञानियों की यही भावना परिलक्षित होती है।
  3. वासनाओं की शुद्धि का मूल मंत्र बताया गया है-सबके प्रति सेवाभाव रखो, वासनाएँ शांत हो जाएँगी।
  4. यहाँ एक महत्त्वपूर्ण आशंका उठाई गई है कि क्या इन्द्रियों के भोगों को नियन्त्रण करने से मानसिक कुंठाएँ जन्म नहीं लेंगी? शारीरिक पीड़ा नहीं होगी?
  5. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। सूत्रात्मक विवेचनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गीता में परं का अर्थ क्या है?
उत्तर:
गीता में परम का अर्थ परमात्मा है।

प्रश्न (ii)
परं को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
परं को गीता में इस प्रकार परिभाषित किया है–सारा विश्व ईश्वर है। मुझ ईश्वर को सबमें व्याप्त समझो। मुझमें ही सारा विश्व बना है। दूसरे शब्दों में ईश्वर और विश्व अभिन्न हैं।

प्रश्न (iii)
मन की वासनाओं को दूर करने का गीता में क्या उपाय बताया गया है?
उत्तर:
गीता में कहा गया है कि अगर मन की वासनाओं को शांत करना चाहते हो तो सबके प्रति सेवाभाव रखो। इससे मन की वासनाएँ शुद्ध हो जाएंगी।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
इस अनुच्छेद का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर:
इस अनुच्छेद का केंद्रीय भाव है कि ईश्वर कण-कण में बसा है। सबके प्रति सेवाभाव से मन की वासनाओं को शुद्ध किया जा सकता है।

प्रश्न (ii)
इंद्रियों पर नियंत्रण करने से क्या समस्या पैदा हो सकती है?
उत्तर:
इंद्रियों पर नियंत्रण करने से मन में कुंठाएँ जन्म ले सकती हैं। इससे व्यक्ति अनेक प्रकार की बीमारियों का शिकार हो सकता है।

प्रश्न (iii)
गीता में इंद्रियों के नियंत्रण से पनपने वाली कुंठाओं का क्या समाधान बताया है? .
उत्तर:
गीता में कहा गया है कि वासमाओं पर नियंत्रण से मन में कुंठाएँ तो उपज सकती हैं पर उनका सरल उपाय यह कि विषय का सेवन तो किया जाए पर आसक्ति या द्वेष से न किया जाए। इससे मन में कुंठाएँ उपजने का भय नहीं रह सकता।

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प्रश्न 7.
अनियन्त्रित इच्छाएँ समाज में अनाचार पनपाएँगी। लोग कामनाओं से आवेशित होकर निषिद्ध आचरण में प्रवृत्त होवेंगे। अतः इन्द्रियों द्वारा विषयों का सेवन – तो हो पर विवेक शून्य आसक्ति न हो। इन्द्रियाँ अपने वश में रहें। उन पर अंकुश रहे अनिवार्य विषयों में इंद्रियाँ प्रवृत्त हों, पर निषिद्ध वर्जित विषयों में नहीं। (Page 97)

शब्दार्थ:

  • अनियन्त्रित – जिन पर नियंत्रण लगा दिया गया है।
  • आवेशित – क्रोधित।
  • वर्जित – त्याज्य।

प्रसंग:
यह अवतरण पं. बालकृष्ण भारद्वाज द्वारा रचित है और ‘मन की एकाग्रता’ पाठ से उद्धृत है। मन की एकाग्रता पर विचार करते हुए लेखक कहता है कि कामनाएँ व्यक्ति को स्थित प्रज्ञ नहीं रहने देतीं। लेखक ने अंत में स्वीकार कर लिया है कि कामनाएँ कभी समाप्त नहीं हो सकती हैं पर आवश्यकता इस बात है कि व्यक्ति को उनका दास नहीं होना चाहिए।

व्याख्या:
लेखक का मानना है कि व्यक्ति वासनाओं से स्वयं को कभी दूर नहीं कर सकता पर इन्हें नियंत्रित कर जीवन में अपनाया जाए तो वह अपने मन को एकाग्र कर सकता है। क्योंकि वासनाएँ समाज के लिए अनेक प्रकार अनाचार पैदा करती हैं। लोग कामनाओं से संचालित होने लगते हैं और ऐसे आचरण करने लगते हैं जिनकी समाज में करने की मनाही है। अतः लेखक कहता है कि इन्द्रियों से विषय सेवन करो, तुम्हें कोई नहीं रोकने वाला पर इनके सेवन में विवेक को मत भूलो। उन पर आपका हर हालत में नियंत्रण रहना चाहिए। अनिवार्य हो तो विषयों का सेवन करो अन्यथा इनसे परहेज करो।

विशेष:

  1. जब वासनाओं पर नियंत्रण नहीं होता तो समाज में तरह-तरह के अत्याचार पैदा हो जाते हैं। इससे समाज में अनाचार फैलता है।
  2. इंद्रियों के सेवन की मनाही नहीं है पर विवेक का प्रयोग करते हुए करना चाहिए।
  3. तत्सम प्रधान शब्द हैं, संस्कृतनिष्ठ भाषा है। अनियंत्रित में अ और नि दो उपसर्गों का प्रयोग किया गया है तब जाकर अनियंत्रित शब्द का निर्माण किया गया है। इसी तरह अनाचार में अ उपसर्ग का प्रयोग है। प्र उपसर्ग लगाकर प्रवृत्त शब्द तैयार किया गया है।
  4. विवेचित व सूत्रात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
अनियंत्रित इच्छाएँ समाज का क्या अहित करती हैं?
उत्तर:
जिन इंद्रियों पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं रहता वे समाज को भयावह बना देती हैं। समाज को अनुशासनहीन बना देती हैं। लोग कामनाओं से तनाव में आकर समाज के विरुद्ध आचरण करने लगते हैं।

प्रश्न (ii)
इंद्रियों के सेवन के लिए लेखक ने क्या परामर्श दिया है?
उत्तर:
लेखक ने कहा है कि इंद्रियों का सेवन तो किया जाए पर विवेक से किया जाए। इनके सेवन में आसक्ति का लेश मात्र भी अंश नहीं होना चाहिए।

प्रश्न (iii)
लेखक इंद्रियों का सेवन करते समय किस बात की ओर ज़्यादा ध्यान देना चाहता है?
उत्तर:
इंद्रियों का नियंत्रण अपने हाथ में होना चाहिए। अगर नियंत्रण छूटा तो समाज में अनाचार फैल सकता है।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
अनाचार से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
जब समाज-विरुद्ध क्रियाएँ की जाती हैं तो उसे अनाचार की श्रेणी में रखा जाता है। इंद्रियों का नियंत्रित सेवन समाज-सम्मत है और अनियंत्रित सेवन निश्चित रूप से समाज-विरुद्ध है।

प्रश्न (ii)
इस अनुच्छेद में कोई एक पारिभाषिक शब्द का चुनाव कीजिए।
उत्तर:
इस अनुच्छेद में पारिभाषिक शब्द है–आसक्ति।

प्रश्न (iii)
आवेशित शब्द किस प्रकार बना है?
उत्तर:
आवेश में इत प्रत्यय लगकर आवेशित शब्द का निर्माण हुआ है।

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ (कविता, सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’)

हम कहाँ जा रहे हैं…! पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

हम कहाँ जा रहे हैं…! लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि का दोगली-दोहरी सभ्यता से क्या आशय है?
उत्तर:
दोगली-दोहरी सभ्यता से आशय है-पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय सभ्यता का सम्मिश्रण।

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प्रश्न 2.
हम कैसी दुंदुभी बजा रहे हैं?
उत्तर:
हम विदेशी जीवन-शैली में अपनी संस्कृति की ही वस्तुओं को आयायित समझकर अपना रहे और आधुनिक होने की दुंदुभी बजा रहे हैं।

प्रश्न 3.
हम विदेश क्यों जा रहे हैं?
उत्तर:
अपनी ही संस्कृति के रहस्यों को जानने के लिए हम विदेश जा रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि ने किस संदर्भ में कहा है? (M.P. 2009)
उत्तर:
विदेशियों द्वारा हमारी परंपराओं और उपलब्धियों को अपना कहकर प्रचारित करने के सौंदर्य में कवि ‘उल्टे बाँस बरेली को’ कहा है।

प्रश्न 2.
हमने दूसरों को क्या सौंप दिया है? (M.P. 2010)
उत्तर:
हमने दूसरों को अपनी सभ्यता और संस्कृति सौंप दी है।

प्रश्न 3.
‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से कवि यह संदेश केता चाहता है कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति, उसकी परंपराएँ, व्यवहार, उपलब्धियाँ और जीवन-मूल्य सर्वश्रेष्ठ है। हमें पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को नहीं अपनाना चाहिए। हमें भारतीय ही बने रहना चाहिए; क्योंकि इसी में हमारा कल्याण है।

हम कहाँ जा रहे हैं…! भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित का भाव पल्लवन कीजिए –

  1. मान्यताएँ बदल कर हम अपना सर मुड़ा रहे हैं।
  2. अपना खालिसे कलश भी हम विदेशी बना रहे हैं।

उत्तर:
1. हम भारतीय पुरातन काल से चली आ रही परंपराओं, जीवन-मूल्यों और आदर्शों को बदलकर, पाश्चात्य जीवन-शैली को अपनाकर, अपनी संस्कृति और अपने व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। आज जब विश्व हमारे चिंतन और ज्ञान से नई चेतना प्राप्त कर रहा है, तब हम अपनी विरासत को छोड़कर विदेशी चिंतन और व्यवहार को ग्रहण करें, यह उचित नहीं है।

2. हम विदेशी वस्तुओं के प्रति इतने आकर्षित हो रहे हैं कि हमने शुद्ध भारतीय ‘देन कलश को विदेशी की देन बता दिया है। कवि ने इसके द्वारा भारतीयों पर व्यंग्य किया है कि हम अपनी सांस्कृतिक उपलब्धियों को भी नकार रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए –
(अ) मुलम्में पर मुलम्मा चढ़ाना।
(ब) उल्टे बाँस बरेली को
(स) दुदंभी बजाना
(द) सर मुंडाना।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-1

प्रश्न 2.
विलोम शब्द लिखिए –

  1. कड़वा
  2. नीति
  3. ज्ञान
  4. सभ्यता
  5. रहस्य
  6. दानवीर।

उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-3
हम कहाँ जा रहे हैं…! योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
किसी प्रवासी भारतीय की कविता खोजिए और उसे कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
चाणक्य और अभिमन्यु के संबंध में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर:
चाणक्य चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री था और अर्थशास्त्र का रचयिता था। अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था। महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए वह उसमें प्रवेश कर गया, किंतु वहाँ कई महारथियों ने मिलकर उसका वध कर दिया था।

प्रश्न 3.
पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण को आप कैसा मानते हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
विश्व में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार की स्थिति पर अपने विचार अपने साथियों के साथ बाँटिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

हम कहाँ जा रहे हैं…! परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हम कहाँ जा रहे हैं। कविता के कवि हैं –
(क) मैथिलीशरण गुप्त
(ख) देवेंद्र ‘दर्शिक’
(ग) बालकवि ‘वैरागी’
(घ) सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’
उत्तर:
(घ) सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’

प्रश्न 2.
मान्यताएँ बदलकर हम अपना सर……………………..रहे हैं –
(क) कटा
(ख) मुँडा
(ग) झुका
(घ) ऊँचा
उत्तर:
(ख) मुँड़ा।

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प्रश्न 3.
चक्रव्यूह में फँसा था –
(क) अभिमन्यु
(ख) अर्जुन
(ग) भीम
(घ) द्रोणाचार्य
उत्तर:
(क) अभिमन्यु।

प्रश्न 4.
हम ‘डॉविंची कोड’ बना रहे हैं, कैसे ………..
(क) दबाव में आकर
(ख) जान-बूझकर
(ग) अनजाने में
(घ) देख-सुनकर
उत्तर:
(ख) जान-बूझकर।

प्रश्न 5.
हम कैसी सभ्यता के रंग में रंगे हैं –
(क) दोहरी-दोगली
(ख) भारतीय पाश्चात्य
(ग) असली-नकली
(घ) अच्छी-बुरी
उत्तर:
(क) दोहरी-दोगली।

प्रश्न 6.
कवि ने हमें संदेश दिया है –
(क) हम भारतीय बने रहें
(ख) हम आधुनिक बनने के लिए पाश्चात्य जीवन-शैली अपनाएँ
(ग) हम अपनी संस्कृति-सभ्यता को भूल जाएँ
(घ) हम अपनी उपलब्धियों को नकार दें
उत्तर:
(क) हम भारतीय बने रहें।

प्रश्न 7.
हमारा कल्याण इसी में है कि –
(क) हम भारतीय बने रहें।
(ख) हम नकली जीवन-शैली को उतार फेंकें।
(ग) हम अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें।
(घ) हम अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को और अपनी सांस्कृतिक चेतना पहचानें।
उत्तर:
(घ) हम अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार कीजिए –

  1. सुदर्शन ‘प्रियदर्शनी’ ………. हैं। (प्रवासी भारतीय/अप्रवासी भारतीय)
  2. विश्व में ………. पहले स्थान पर है। (चीनी भाषा/हिंदी भाषा)
  3. हिंदी जानने वालों की संख्या ………. करोड़ है। (100/102)
  4. पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर हम ………. रहे। (भाग/ललचा)
  5. ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ कविता के कवि ……… हैं। (बालकवि वैरागी/सुदर्शन प्रियदर्शिनी)

उत्तर:

  1. अप्रवासी भातीय
  2. हिंदी भाषा
  3. 102
  4. ललचा
  5. सुदर्शन “प्रियदर्शिनी।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –

  1. महाभारत के चक्रव्यूह में अभिमन्यु फँसा था।
  2. कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं’…में हैरीपीटर फिल्म का उल्लेख है।
  3. हम दोहरी-दोगली सभ्यता के रंग में रंगे हैं।
  4. कवि ने संदेश दिया है कि हम भारतीय बने रहें।
  5. ‘दोगली-दोहरी’ में उपमा अलंकार है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-4
उत्तर:

(i) (ङ)
(i) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

  1. हमारे लिए क्या शुभ संकेत नहीं है।
  2. विदेशी किसे क्या कहकर प्रचारित कर रहे हैं?
  3. हमारा कल्याण किसमें है?
  4. चाणक्य-नीति क्या है?
  5. ‘सब कुछ गड़मड़ा रहा है?

उत्तर:

  1. हमारे लिए यह शुभ संकेत नहीं है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं।
  2. विदेशी हमारी देन वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं।
  3. हमारा कल्याण इसी में हैं कि हम भारतीय बने रहें।
  4. खूब सोच-विचार कर ही कदम उठाना चाणक्य नीति है।
  5. ‘सब कुछ गड़मड़ा रहा है’ से कवि का तात्पर्य है-भारतीय और पाश्चात्य जीवन-शैली एक-दूसरे से इतनी मिल गई हैं कि क्या भारतीय है और क्या पाश्चात्य, यह समझ पाना कठिन होता जा रहा है।

हम कहाँ जा रहे हैं…! लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभद्रा कौन-सी कथा सुनते-सुनते सो गई थी?
उत्तर:
सुभद्रा चक्रव्यूह की कथा सुनते-सुनते सो. गई थी?

प्रश्न 2.
‘डॉविंची कोड’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘डॉविंची कोड’ से तात्पर्य है नकली नियमावली।

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प्रश्न 3.
विदेशी क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
विदेशी हमारी वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
विदेशी हमारा क्या-क्या ग्रहण कर उन्हें क्या-क्या बना दिया है?
उत्तर:
विदेशी हमारी वास्तुकला को ग्रहण कर उसे फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग को योगा बना दिया है।

प्रश्न 5.
कवि ने क्या उतार फेंकने के लिए कहा है?
उत्तर”:
कवि ने नकली जीवन-शैली उतार फेंकने के लिए कहा है।

प्रश्न 6.
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि सुदर्शन ने किस संदर्भ में कहा है? (M.P. 2009)
उत्तर:
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि सुदर्शन ने उस संदर्भ में कहा है कि विदेशी हमारी ही वस्तुओं को ग्रहण करके उसे अपना अच्छा बताकर हमें लौटा रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने किन प्रसंगों को उजागर किया है?
उत्तर:
कवि ने भारतीय और पाश्चात्य जीवन-बोध के उन प्रसंगों को उजागर किया है जिनमें हम अपनी संस्कृति और अपने परंपरागत व्यवहार को भूल रहे हैं।

प्रश्न 2.
हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चकाचौंध में क्या-क्या खोते जा रहे हैं?
उत्तर:
हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चकाचौंध में अपनी सांस्कृतिक पहचान, धर्म-कर्म, वेशभूषा, भाषा-ज्ञान, विधि-विधान आदि खोते जा रहे हैं।

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प्रश्न 3.
हमारा क्या-क्या विदेशी हो गया है?
उत्तर:
हमारा खालिस कलश, धर्म, कर्म, वेशभूषा, भाषा-विज्ञान, विधि-विधान सभ्यता, संस्कृति, दानवीरता, वास्तुकला, सत्वज्ञान, योग, नीम की निमोली आदि विदेशी हो गए हैं। इन्हें विदेशी अपना मुलम्मा चढ़ाकर अपना बतलाते हुए प्रचारित कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
‘हम कहाँ जा रहे हैं….. कविता के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ कविता सोद्देश्यपूर्ण कविता है। इसमें कवि सुदर्शन का यह उद्देश्य है कि हमें बाहरी आडम्बरों से दूर रहना चाहिए। तथाकथित सभ्यता और पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे-समझे अपनाना मूर्खता है। हमारी ही विरासत और सांस्कृतिक निष्ठा दुनिया में श्रेष्ठ है। विदेशी वस्तुओं की ओर दौड़ना अच्छी बात नहीं है। अच्छी बात यही है कि हम भारतीय हैं और भारतीय बने रहें।

हम कहाँ जा रहे हैं…! पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
“हम कहाँ जा रहे हैं…!” कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं। कविता में कवि सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ ने भारतीय और पाश्चात्य जीवन-बोध के उन प्रसंगों को उजागर किया है। जिन्हें हम भारतीय अपनी भारतीय संस्कृति और परंपरागत व्यवहार में होने पर भी भूलते जा रहे हैं। कविने इस बात पर बल दिया है कि हम अपनी छम प्रवृत्ति को छोड़ दें। बाह्य आडंबर को नष्ट कर दें। कुछ नवीन सभ्यता के नाम पर पाश्चात्य जीवन-शैली का अपनाना बुद्धिमानी नहीं है। सच तो यह है कि हमारी विरासत एवं सांस्कृतिक निष्ठा विश्व में श्रेष्ठ है। पाश्चात्य जीवन-शैली और उनकी वस्तुओं को देखकर हम ललचा रहे हैं। उन्हें स्वीकार कर रहे हैं।

अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। हम अपनी संस्कृति को देखने-समझने के लिए विदेश जा रहे हैं। यहाँ तक कि हम अपने स्वयं के कलश (धरोहर) को भी विदेशी बता रहे हैं। मैंनशुई, रेकी और योगा का उल्लेख करते हुए कवि कहता है कि यह सब कुछ हमारी वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग हमारी ही देन हैं। विदेशी लोग अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं। कवि हमें सचेत करता है कि हमें अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानना चाहिए। इसी में हमारा कल्याण है कि हम भारतीय बने रहे। नकली जीवन-शैली को त्याग दें।

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

प्रश्न 1.
चिरंतन काल से
लिख-पीढ़ी दर –
पीढ़ियाँ चली
मान्यताएँ बदलकर
अपना सर हम

मुड़ा रहे हैं…!
न जाने हम कहाँ
जा रहे हैं…!

चाणक्य नीतियों
के चक्रव्यूह में फँसे
हम अभिमन्यु के
व्यूह को दुहरा रहे हैं…।

सुनते-सुनते
कथा, सो गई
सुभद्रा-हम जान-बूझकर
डॉविंची कोड बना रहे हैं।
रहस्य पर रहस्य
दबे हैं संस्कृति के
उन्हें देखने-समझने
विदेश आ रहे हैं…!

पगड़ी उतरी –
बार-बार-हमारी
फिर भी कलगी
की-कलफ सहला रहे हैं…… (Page 93)

शब्दार्थ:

  • चिरंतन – पुरातन, बहुत पहले से चलते रहने वाला।
  • मान्यताएँ – किसी सिद्धांत आदि का मान्य होना, मानने योग्य।
  • सर मुड़ाना – अपने पास का धन गँवा देना।
  • चाणक्य-नीति – चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री की चतुराई भरी चाल।
  • व्यूह – सैनिकों को युद्धभूमि में उपयुक्त स्थान पर रखना।
  • डॉविची कोड – नकली आचारसंहिता, नकली नियमावली।
  • रहस्य – गुप्त भेद।
  • पगड़ी उतारना – प्रतिष्ठा समाप्त करना।
  • कलगी – पगड़ी। में लगाया जाने वाला फूंदना।
  • कलफ़ – माँड़ी।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश.सुदर्शन ‘प्रिंयदिर्शनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ से उद्धृत है। कवि ने भारतीयों को पुरातन समय से चली आ रही भारतीय संस्कृति की मान्यताओं को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे-समझे अपनाने और अपनी जीवन-शैली को भूलते जाने को उचित नहीं मानता। इन्हीं भावों को इस काव्यांश में व्यक्त किया गया है।

व्याख्या:
कवि का कहना है कि हम भारतीय पुरातन काल से पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपनी संस्कृति की परंपरागत जीवन-शैली को बदलकर, अपने परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। हम अपने जीवन-मूल्यों और आदर्श परंपराओं को छोड़कर पाश्चात्य परंपराओं और जीवन-शैली का अंधानुकरण करके कहाँ जा रहे हैं। हम पाश्चात्य संस्कृति की चतुराईभरी नीतियों के चक्रव्यूह में फंसकर अभिमन्यु वध वाले कांड को दुहरा रहे हैं; अर्थात् हम भारतीय पाश्चात्य जीवन-शैली के शिकार होते जा रहे हैं, जिसमें एक बार फँसने के बाद निकलना अभिमन्यु की तरह असंभव है।

जिस प्रकार अभिमन्यु ने सुभद्रा के गर्भ में ही चक्रव्यूह में प्रवेश का मार्ग जान लिया या किंतु कहानी सुनते-सुनते सुभद्रा के सो जाने पर वह उससे निकलने का मार्ग नहीं जान पाया क्योंकि सुभद्रा कथा के बीच में ही सो गई थी। अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुस तो गया, लेकिन वापस नहीं लौट सका। वही स्थिति हमारी है। हम पाश्चात्य जीवन-शैली के चक्रव्यूह में फँसते जा रहे हैं। हमारे लिए उससे छुटकारा पाना कठिन है। हम जान-बूझकर इसमें फँस रहे हैं तथा बिना सोचे-समझे इसे अपनाकर, नकली नियमावली बना रहे हैं। हमें यह अपनी छद्म प्रवृत्ति छोड़ देनी चाहिए।

हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अनेक गुप्त भेद दबे पड़े हैं। हम उन गुप्त भेदों को जानने के लिए विदेश आ रहे हैं। आज जब हमारे चिंतन और ज्ञान को अपनाकर विश्व नई चेतना ग्रहण कर रहा है, तब हम अपनी विरासत को छोड़कर विदेशी चिंतन और व्यवहार को अपनाने के लिए आतुर हो रहे हैं। ऐसा करने से बारम्बार हमारी प्रतिष्ठा घटती जा रही, है, फिर भी हम कलगी में लगे कलफ़ को सहला रहे हैं।

विशेष:

  1. कवि ने भारतीय संस्कृति को पाश्चात्य संस्कृति से श्रेष्ठ बताया है और पाश्चात्य शैली को बिना विचारे स्वीकार करना उचित नहीं है।
  2. सुनते-सुनते, बार-बार मैं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  3. कलगी की कलफ़ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुहावरों का सटीक, सार्थक प्रयोग किया गया है।
  5. महाभारत की पौराणिक कथी का प्रयोग हुआ है।
  6. भाषा तत्सम प्रधान है जिसमें अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  7. मुक्त छंद है। तुकांत का अभाव है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
चिरंतन काल से चली आ रही मान्यताओं को बदलेकर हम क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
पुरातन काल से चली आ रही अपनी संस्कृति और परंपरागत मान्यताओं को बदलकर हम पाश्चात्य जीवन-शैली का अनुकरण कर अपनी संस्कृति और परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं।

प्रश्न (ii)
चाणक्य नीतियों से क्या आशय है?
उत्तर:
चाणक्य नीतियों से आशय है चतुराई की चालें। हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चतुराईभरी चालों में फँसते जा रहे हैं। आशय यह कि हम बिना सोचे-विचारे उन्हें अपना रहे हैं।

प्रश्न (iii)
हम किन्हें देखने-समझने विदेश जा रहे हैं?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता-संस्कृति में अनेक. गुप्त भेद दवे पड़े हैं। हम उन गुप्त भेदों को जानने के लिए विदेश जा रहे हैं।

पयांश पर आधारित सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।.
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
हम भारतीय अपनी संस्कृति और अपने परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। शताब्दियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही मान्यताओं, जीवन आदर्शों और जीवन-शैली को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे विचारे अपना रहे हैं। अपनी ही संस्कृति के रहस्यों को जानने के लिए हम विदेशों में जा रहे हैं। यह उचित नहीं है।

प्रश्न (ii)
पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
कवि कहता है कि पाश्चात्य जीवन-शैली का बिना सोचे-विचारे स्वीकार करना बुद्धिमानी नहीं है। सुनते-सुनते, बार-बार में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। ‘कलगी की कलफ’ में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों को सटीक, सार्थक प्रयोग किया गया है। महाभारत की पौराणिक कथा और चाणक्य का उल्लेख करने से उदाहरण अलंकार है। चाणक्य…सुभद्रा में रूपक अलंकार है। मुक्तक छंद है। तुकांत का अभाव है। भाषा तत्सम प्रधान है, जिसमें अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न (iii)
पद्यांश का मुख्य भाव बताइए।
उत्तर:
पद्यांश का मुख्य भाव यह है कि हमारी विरासत एवं संस्कृति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है।

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प्रश्न 2.
सब कुछ गड़मड़ा
रहा है-क्या है
हमारा-क्या
पाश्चात्य –
जानकर भी
नकारा –
सर हिला रहे हैं…।
दोगली-दोहरी
सभ्यता के रंग
में रंगे हैं –
हम और हमारा
कुछ भी नहीं
यही…
मुलम्में पर
मुलम्मा चढ़ा
रहे हैं…। (Page 94)

शब्दार्थ:

  • गड़मड़ा – अस्त-व्यस्त होना।
  • मुलम्मे पर मुलम्मा चढ़ाना – दिखावे पर दिखावा करना, सोने या चाँदी का पानी चढ़ाया हुआ।
  • नकारा – अस्वीकृत, इनकार, निकम्मा।
  • दोगली – वर्णसंकर।
  • दोहरी – दो तरह की बात।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से उद्धृत है। कवि का मानना है कि हम न तो भारतीय रह पाए हैं और न ही पूरी तरह पाश्चात्य जीवन-शैली को अपना सके। हम दो रंगी सभ्यता में रंगे जा रहे हैं।

व्याख्या:
कवि कहता है कि आज सब कुछ अस्त-व्यस्त हो रहा है। कहने का भाव यह है कि भारतीय संस्कृति, परंपराएँ और मान्यताएँ तथा पाश्चात्य जीवन-शैली दोनों ही एक-दूसरे में मिलकर गड़मड़ होकर अस्त-व्यस्त हो रही हैं। इस कारण पता ही नहीं चलता कि क्या हमारा है अर्थात् क्या भारतीय है और क्या पाश्चात्य है। सत्य तो यह है कि हम सब कुछ जानकर भी निकम्मे बने हुए अस्वीकृति में सर हिला रहे हैं। हम वर्णसंकर; अर्थात् दो प्रकार की जीवन-शैली अपनाकर दो तरह की बातें करते हैं।

हम एक ओर भारतीय सभ्यता-संस्कृति की अपनी परंपरागत जीवन-शैली को नहीं छोड़ पा रहे हैं और दूसरी ओर हम पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की जीवन-पद्धति को बिना विचारे अपनाकर दोहरी जिन्दगी जी रहे हैं। कहने का भाव यह है कि हम आधुनिक होने का दिखावा कर रहे हैं। हम अपनी विरासत को भुलाकर पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर ललंचा रहे हैं अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। इस प्रकार हम दिखावे पर दिखावा कर रहे हैं। भारतीय जीवन-शैली पर पाश्चात्य जीवन-शैली को चढ़ा रहे हैं।

विशेष:

  1. भारतीय जीवन-शैली को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को अपनाने वालों पर व्यंग्य किया है।
  2. भारतीय पाश्चात्य होने का दिखावा कर रहे हैं। अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं।
  3. दोगली-दोहरी में अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  5. छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।
  6. भाषा सरल और उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-सुदर्शन ‘प्रियदर्शनी, कविता-‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’

प्रश्न (ii)
‘हम और हमारा’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘हम’ से कवि का तात्पर्य है हम भारतीय और ‘हमारा’ से तात्पर्य है-हम भारतीयों की उपलब्धियों से, अपनी विरासत से हे जिसे हम भूलते जा रहे हैं।

प्रश्न (iii)
‘दोगली-दोहरी सभ्यता के रंग में रंगे’ द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कवि यह कहना चाहता है कि हा भारतीय अपनी संस्कृति की मान्यताओं और जीवन-शैली के साथ-साथ पाश्चात्य जीवन-शैली और उनकी वस्तुओं के प्रति ललचा रहे हैं। इस तरह हम न तो अपनी जीवन-शैली को छोड़ पा रहे हैं और न ही पाश्चात्य जीवन-शैली को पूरी तरह अपना पा रहे हैं।

पद्यांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पद्यांश का भाव-सौदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
भारतीय जीवन-शैली और पाश्चात्य जीवन-पद्धति दोनों मिल जाने के कारण सभी कुछ अस्त-व्यस्त हो रहा है। हम अपनी विरासत और उपलब्धियों को भी जानते हुए नकार रहे हैं। हमें लगता है कि हमारा कुछ भी नहीं है। यही कारण है कि हम परत पर परत चढ़ा रहे हैं।

प्रश्न (ii)
पद्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
हम भारतीय पाश्चात्य होने का दिखावा कर रहे हैं और अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। दोगली-दोहरी में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है। छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है। भाषा सरल और उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है। विशेषणों का प्रयोग अर्थवत्ता में वृद्धि कर रहा है।

प्रश्न 3.
अपना खालिस
कलश भी हम
विदेश बता रहे, हैं…।
न धर्म न कर्म-अपना
न वेश-न भूषा
न भाषा-न विज्ञान
न विधि-न विधान –
सब कुछ दूसरों
के हवाले –
किए जा रहे हैं….।
बड़े त्यागी –
ऋषि-और दानवीर हैं हम –
दूसरे-हमें –
हमारे ही प्याले
से-हमारी सभ्यता
संस्कृति का
घुट पिला रहे हैं… (Page 94)

शब्दार्थ:

  • खालिस – शुद्ध।
  • कलश – घड़ा।
  • विधि – रचना, ढंग।
  • विधान – व्यवस्था।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश सुर्दशन ‘प्रियदर्शनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं….!’ से उद्धृत है। कवि भारतीयों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। यहाँ तक कि इमने स्वयं के कलश (धरोहर) को भी विदेशी दर्शा दिया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। यहाँ तक अपने शुद्ध देशी कलश (धरोहर) को भी विदेशी बता रहे हैं। दूसरे शब्दों में, मांगलिक कार्यों में रखा जाने वाला कलश भारतीय संस्कृति की देन है। विदेशी वस्तुओं को अपनाने के चक्कर में हमने उसे भी विदेशी संस्कृति की देन बता दिया है। न धर्म – हमारा है, न कर्म अपना है और न ही पहनावा अपना रहा है। यहाँ तक कि विधि-विधान भी अपने नहीं रहे। हम सब कुछ हवाले किए जा रहे हैं। हम बड़े त्यागी बन रहे हैं। कहने का भाव यह है कि हम अपनी उपलब्धियों को विदेशियों को दिए जा रहे हैं।

हम अपने-आपको ऋषि और दानवीर समझ रहे हैं। दूसरी ओर विदेशी हमारी इन्हीं परंपराओं का सत्व ग्रहण करके हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें विदेशी मानकर ग्रहण कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में, पाश्चात्य संस्कृति के लोग हमारी भारतीय संस्कृति की मान्यताओं व हमारी उपलब्धियों को दूसरा नाम देकर हमारी सभ्यता और संस्कृति हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें अपना रहे हैं। यह हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है।

विशेष:

  1. हम भारतीय अपनी संस्कृति, अपनी मान्यताएँ और परंपरागत व्यवहार को त्यागकर विदेशी जीवन-शैली अपना रहे हैं जो शुभ संकेत नहीं है।
  2. सभ्यता-संस्कृति में अनुप्रास अलंकार है।
  3. मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  4. भाषा सरल खड़ी बोली है जिसमें उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  5. छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।
  6. व्यंग्यात्मकता का प्रयोग, किया गया है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि ने भारतीयों पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
कवि ने भारतीयों पर व्यंग्य किया है कि हम लोग विदेशी वस्तुओं के प्रति ललचा रहे हैं इसलिए हमें अपनी संस्कृति में मांगलिक कार्यों में प्रयोग होने वाले भारतीय देन कलश को भी विदेशी बता दिया है। यह सर्वथा अनुचित है।

प्रश्न (ii)
भारतीय अपनी किन-किन सांस्कृतिक उपलब्धियों को दूसरों को सौंप रहे हैं?
उत्तर:
भारतीय अपना धर्म-कर्म, वेशभूषा, भाषा और ज्ञान एवं विधि-विधान आदि दूसरों को सौंप रहे हैं और उनकी जीवन-शैली को अपना रहे हैं। हमारे पास अपना कुछ नहीं रहा है।

प्रश्न (iii)
विदेशी हमें क्या परोस रहे हैं?
उत्तर:
विदेशी हमारी सभ्यता और संस्कृति को अपने साँचे में ढोलकर हमें ही परोस रहे हैं।

पयांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि ने भारतीयों को व्यंग्य का निशाना बनाया है। हम पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर ललचा रहे हैं। इसलिए हम अपना सब कुछ उन्हें सौंप रहे हैं। हमारी यह स्थिति हो गई है कि न हमारा धर्म-कर्म, न ही वेशभूषा, भाषा-ज्ञान और न कोई विधि-विधान रहा है। पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के लोग हमारी उपलब्धियों को अपना बताकर हमें परोस रहे हैं।

प्रश्न (ii)
पद्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट. कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
कवि ने भारतीयों की मनःस्थिति को व्यंग्य का निशाना बनाया है। अतः पद्यांश की भाषा में व्यंग्यात्मकता है। हमें हमारे’ व ‘सभ्यता-संस्कृति’ में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा सरल खड़ी बोली है इसमें उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ है। छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।

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प्रश्न 4.
उल्टे बाँस
बरेली को –
योग-साधना –
धर्म नीति –
सब उल्टे हमें
परोसे
जा रहे हैं…।
वास्तुकला
हुई फेंगशुई
सत्वज्ञान को
रेकी-बना रहे हैं
योग को योगा हुआ देख
कैसी हम
दुंदुभी-बजा
रहे हैं…!
नीम भी
गले नहीं उतरी –
हमें कड़वी लगी –
निमोली की
तरह-तोड़ कर
उन्हें खिला रहे हैं –
हम कहाँ जा रहे हैं…! (Page 94)

शब्दार्थ:

  • दुंदुभी – एक तरह का वाद्य-यंत्र।
  • उल्टे बाँस बरेली को – जैसा होना चाहिए उसके विपरीत होना।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ से उद्धृत है। इसमें कवि कह रहा है कि पाश्चात्य और अन्य देशों केलोग हमारी परंपराओं का सत्व ग्रहण करके हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें विदेशी मानकर स्वीकार कर रहे हैं। हमें आधुनिक चकाचौंध में अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।

व्याख्या:
कवि का कहना है कि विदेशी उल्टे बाँस बरेली की कहावत को चरितार्थ करते हुए अर्थात् हमारी उपलब्धियों, परंपराओं और जीवन-पद्धति को हमें लौटा रहे हैं जबकि होना यह चाहिए था कि हमें ही उन्हें सब कुछ अपना बता कर देना चाहिए था, पर हो रहा इसके विपरीत है। हमारी संस्कृति में प्रारंभ से ही योग-साधना पर बल दिया जाता रहा है। धर्म-नीति हमारी परंपरा का अंग रही है। वे इन्हें हमसे लेकर हमें ही परोस रहे हैं। उदाहरणार्थ-हमारी वास्तुकला को ग्रहण कर उसे फेंगशुई नाम दे दिया गया, सत्वज्ञान को ग्रहण कर रेकी बना दिया और योग को योगा बना दिया गया।

इस प्रकार वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग हमारी ही देन है। इसे विदेशी लोग अपना कहकर – प्रचारित कर रहे हैं और हम इन्हें विदेशी मानकर और इन्हें अपनाकर कितने प्रसन्न हो रहे हैं। कवि कहता है कि नीम का वृक्ष हमारी संस्कृति की देन है, लेकिन वह भी – हमारे गले नहीं उतरा। वह भी हमें कड़वा लगा। उसके औषधीय गुणों को हमने नहीं जाना। हम उनकी निमोलियों की दवाई बना-बनाकर उन्हें खिला रहे हैं। दूसरे शब्दों में, विदेशियों ने नीम के महत्त्व को पहचानकर उसे पेटेंट कराने का प्रयास किया।

कवि कहता है कि हम लोग कहाँ जा रहे हैं। हम अपनी संस्कृति को भूले जा रहे हैं। सच तो यह है कि हमारी विरासत और सांस्कृतिक निष्ठा दुनिया में श्रेष्ठ है। हमें अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। उसकी प्रासंगिकता को आधुनिकता के साथ तलाशें और भली-भाँति भारतीय जीवन-मूल्यों के महत्त्व को समझें। हम भारतीय बने रहें और नकली जीवन-शैली को उतार दें।

विशेष:

  1. कवि ने हमें अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानने और भारतीय बने रहने का संदेश दिया है।
  2. बाँस बरेली में अनुप्रास अलंकार है।
  3. उदाहरण अलंकार भी है।
  4. मुहावरों और कहावतों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  5. भाषा सरल, तत्सम और विदेशी शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।
  6. छंदविहीन रचना में लय और तुक का नितांत अभाव है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
हमारी संस्कृति की किन-किन उपलब्धियों को विदेशी किन-किन नामों से हमें परोस रहे हैं?
उत्तर:
हमारी संस्कृति की वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को विदेशी ग्रहण करके हमें ही फेंगशुई, रेकी और योगा के नाम से परोस रहे हैं।

प्रश्न (ii)
‘कैसी हम दुंदुभी बजा रहे हैं…!’ के द्वारा कवि हम पर क्या व्यंग्य कर रहा है?
उत्तर:
इसके द्वारा कवि यह व्यंग्य कर रहा है कि हम अपनी ही वास्तुकला को फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग को योगा को विदेशी मानकर, अपनाकर स्वयं को आधुनिक समझकर अत्यंत प्रसन्न हो रहे हैं। यह हमारे लिए उचित नहीं है।

प्रश्न (iii)
कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
कवि यह संदेश देना चाहता है कि हम अपनी शक्ति, अपनी उपलब्धियों और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें। हमारी विरासत विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। आधुनिक जीवन की चकाचौंध में अपनी संस्कृति को न भूलें भारतीय बने रहें तथा नकली पाश्चात्य जीवन-शैली को उतार फेंकें।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
इस काव्यांश में कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि हमारी सभ्यता संस्कृति के जीवन-मूल्य विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। विदेशी लोग हमारी संस्कृति की उपलब्धियों को ही अपनी उपलब्धियाँ बताकर प्रचारित कर रहे हैं। वे हमारी वास्तुकला को फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग का योगा बनाकर हमें परोस रहे हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी संस्कृति की उपलब्धियों को पहचानें और भारतीय बने रहें। इस तरह हमें पाश्चात्य जीवन-शैली अपनाने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
‘बाँस बरेली, तरह-तोड़’ में अनुप्रास अलंकार है। उदाहरण अलंकार भी है। मुहावरों और कहावतों का सुंदर प्रयोग किया गया है। भाषा सरल, तत्सम और विदेशी शब्दों से युक्त खड़ी बोली है। छंदविहीन रचना में लय और तुक का अभाव है। शब्द चयन भावानुकूल है।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 पुस्तक

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 पुस्तक (निबन्ध, देवेन्द्र ‘दीपक’)

पुस्तक पाठ्य-पुस्तक पर अधिारित प्रश्न

पुस्तक लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बख्तियार खिलजी के आक्रमण से क्या हानि हुई?
उत्तर:
बख्तियार खिलजी के आक्रमण से सबसे बड़ी हानि नालंदा के पुस्तकालयों को जलाने से हुई।

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प्रश्न 2.
पुस्तक पढ़ने की आदत कम क्यों होती जा रही है?
उत्तर:
सूचना क्रांति और दूरदर्शन के प्रभाव से पुस्तकें पढ़ने की आदत कम होती जा रही है।

प्रश्न 3.
नालंदा विश्वविद्यालय में कौन-से तीन पुस्तकालय थे?
उत्तर:
नालंदा विश्वविद्यालय में रत्न सागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक नाम के तीन विशाल पुस्तकालय थे।

प्रश्न 4.
पुस्तक या यात्रा का क्या संबंध है?
उत्तर:
पुस्तक बाहरी और भीतरी यात्रा का घनिष्ठ संबंध है।

पुस्तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नालंदा विश्वविद्यालय की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
नालंदा विश्वविद्यालय में पुस्तकालय का एक विशिष्ट क्षेत्र था। उसे धर्मगंज कहा जाता था। इसमें रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक नामक तीन विशाल पुस्तकालय थे। रत्नसागर पुस्तकालय का भवन नौमंजिला था। बख्तियार खिलजी ने इन पुस्तकालयों को जला डाला। इस अग्निकांड में अमूल्य ग्रंथ जलकर सदा के लिए भस्म हो गए।

प्रश्न 2.
पुस्तकें किन षड्यंत्रों का शिकार होती हैं?
उत्तर:
पुस्तकें कई षड्यंत्रों का शिकार होती हैं। षड्यंत्रों के शिकार के कारण ही कुछ पुस्तकें तिरस्कृत हो जाती हैं। कुछ प्रतिबंधित कर दी जाती हैं और कुछ विशेष लेखकों की पुस्तकें जला दी हैं। पुस्तकें भी राजनीतिक, साहित्यिक, धार्मिक और भाषाई षड्यंत्रों का शिकार होती हैं।

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प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार पुस्तक की समीक्षा किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार पुस्तक की समीक्षा बेबाक होती है और प्रायः प्रायोजित होती है। समीक्षा में अक्सर एक अनावश्यक लंबी भूमिका होती है। इसमें पुस्तक के अंदर जो कुछ है उसकी चर्चा कम होती है और जो नहीं है उसकी चर्चा अधिक होती है। दूसरे शब्दों में, पुस्तक की समीक्षा ठीक प्रकार से नहीं होती है।

प्रश्न 4.
पुस्तकों के जलने से होने वाली क्षति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुस्तकों के जलने से देश की सबसे बड़ी क्षति होती है। ज्ञान का अपार भंडार जलकर राख हो जाता है। प्रत्येक, ग्रंथ रचनाकार की साधना और परिश्रम का प्रतिफल होता है। उसका सारा परिश्रम व्यर्थ चला जाता है। कितने लोगों का शोध व्यर्थ चला जाता है। कितने ही विद्वानों का चिंतन-मनन नष्ट हो जाता है, जो पुनः लौटकर नहीं आता। आगामी पीढ़ियों को ज्ञान नहीं मिल पाता। विश्वधरोहर जलकर नष्ट हो जाती है।

पुस्तक भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्ति का भाव-विस्तार कीजिए“यात्रा में पुस्तक, पुस्तक में यात्रा, यों यात्रा में यात्रा।”
उत्तर:
यात्रा में पुस्तकें यात्रा की मित्र होती हैं। उनको पढ़ने से यात्री की यात्रा आराम से कट जातं. है। पुस्तकें पढ़ने से उनका ज्ञान भी बढ़ता है और मनोरंजन भी होता है। यात्री जिन स्थानों की यात्रा करता है, उनका वर्णन वह पुस्तकों में करता है। उन स्थानों के निवासियों के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहारों और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक धरोहरों का वर्णन करता है। इस प्रकार यात्रा में यात्रा हो जाती है। यात्रा से सभी का ज्ञान बढ़ता है और मनोरंजन होता है।

पुस्तक भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
समीक्षा शब्द विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होने के कारण पारिभाषिक शब्द है। इसी तरह के पाँच पारिभाषिक शब्द लिखिए –
उत्तर:
विदेश नीति, विमोचन, प्राक्कथन, प्रायोजित, समालोचक।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से विदेशी शब्द और तत्सम शब्द छाँटिए –
वहशत, ग्रंथ, दहशत, दिमाग, सारस्वत, गैरजरूरी, सुटेबिल, जलयात्रा, अलमारी, समवाय, दुर्लभ, समीक्षा।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 पुस्तक img-1

प्रश्न 3.
(क) यह आम रास्ता नहीं है।
(ख) आम के फल मीठे होते हैं।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘आम’ शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। पहले वाक्य में आम का अर्थ ‘जन साधारण’ है, जबकि दूसरे वाक्य में ‘आम’ फल के लिए आया है। इसी प्रकार अंक, अम्बर, अर्थ, उत्तर और मूल शब्दों के उदाहरण के अनुसार वाक्य बनाइए।
उत्तर:

  • अंक – विमला को सौ में से पचास अंक मिले हैं।
    माँ ने रोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
  • अंबर – अंबर में तारे छिटके हैं।
    श्रीकृष्ण पीत अंबर धारण करते हैं।
  • अर्थ – ‘गगन’ शब्द का अर्थ आकाश है।
    आजकल हम अर्थ-अभाव से गुजर रहे हैं।
  • उत्तर – इस प्रश्न का उत्तर बीस शब्दों में लिखिए।
    भारत के उत्तर में पर्वतराज हिमालय है।
  • मूल – मूल कट जाने के कारण यह पौधा सूख गया है।
    मैं मूल रूप से राजस्थान का निवसी हूँ।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए –

  1. पुस्तक चुराया जाता है।
  2. जितना सोचता हूँ उतना खिन्नता बढ़ती है।
  3. हर पाठक को पुस्तक मिलना चाहिए।
  4. रविवार के दिन की छुट्टी रहती है।

उत्तर:

  1. पुस्तक चुराई जाती है।
  2. जितना सोचता हूँ, उतनी खिन्नता बढ़ती है।
  3. हर पाठक को पुस्तक मिलनी चाहिए।
  4. रविवार को छुट्टी रहती है।

पुस्तक योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
‘पुस्तक मित्र’ पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आधुनिक विश्वविद्यालयों में नालंदा विश्वविद्यालय से भिन्न जिन नए विषयों का अध्ययन किया जाता है, उन नए विषयों की सूची बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं सूची बनाएँ।

प्रश्न 3.
पुस्तकालय जाकर देखिकए कि वहाँ पुस्तकें कैसे व्यवस्थित रखी जाती हैं, ताकि कोई भी पुस्तक एक मिनिट में आप खोज सकें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
अपने विद्यालय के पुस्तकालय से ऐसी पुस्तकें प्राप्त कीजिए, जो बहुत पुरानी हो चुकी हों, तथा जो फट रही हों, उन्हें प्राप्त कर चिपकाइए तथा व्यवस्थित कीजिए ताकित वह लम्बे समय तक सुरक्षित रह सकें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

पुस्तक परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
विचारों की जययात्रा का मूर्तरूप है ……..
(क) पुस्तक
(ख) नालंदा
(ग) शिक्षा
(घ) पुस्तकालय
उत्तर:
(क) पुस्तक।

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प्रश्न 2.
पुस्तक रची, छापी और ………… की जाती है –
(क) बिक्री
(ख) भेंट
(ग) विमोचित
(घ) चुराई
उत्तर:
(ग) विमोचित।

प्रश्न 3.
पुस्तक समीक्षाओं में होती है ……
(क) एक आवश्यक लंबी भूमिका
(ख) एक गैरज़रूरी लंबी भूमिका
(ग) एक बेकार अर्थहीन भूमिका
(घ) एक सार्थक लंबी भूमिका
उत्तर:
(ख) एक गैरज़रूरी लंबी भूमिका।

प्रश्न 4.
नालंदा विश्वविद्यालय को ………. नामक आक्रमणकारी ने जलाकर राख कर दिया।
(क) अलाउद्दीन खिलजी
(ख) ग्यासुद्दीन खिलजी
(ग) बख्तियार खिलजी
(घ) जलालुद्दीन खिलजी
उत्तर:
(ग) बख्तियार खिलजी।

प्रश्न 5.
नालंदा में पुस्तकालयों के विशिष्ट क्षेत्र को कहते थे ………..।
(क) धर्मगंज
(ख) पुस्तकगंज
(ग) दर्शन गंज
(घ) आचार्य गंज
उत्तर:
(क) धर्मगंज।

प्रश्न 6.
पुस्तकालय वाले कहते हैं, दान में किताबें ही नहीं, उन्हें रखने के लिए ……….. भी दो।
(क) अलमारियाँ
(ख) धन
(ग) स्थान
(घ) आदमी
उत्तर:
(क) अलमारियाँ।

प्रश्न 7.
कमरे को रोशनदान चाहिए, तो याद रखिए दिमाग को भी ………..।
(क) दवाई चाहिए
(ख) पुस्तक चाहिए
(ग) ज्ञान चाहिए
(घ) प्रकाश चाहिए
उत्तर:
(ख) पुस्तक चाहिए।

प्रश्न 8.
हर पुस्तक को उसका मिलना चाहिए ……….. ।
(क) खरीददार
(ख) पाठक
(ग) आलोचक
(घ) समीक्षक
उत्तर:
(ख) पाठक।

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प्रश्न 9.
ग्रंथों में प्रक्षेप करते हैं ………..।
(क) कुछ धूर्त लोग
(ख) कुछ धूर्त रचनाकार
(ग) कुछ बेईमान लोग
(घ) कुछ पागल लोग
उत्तर:
(क) कुछ धूर्त लोग।

प्रश्न 10.
सूचना क्रांति और दूरदर्शन के कारण आदत कम होती जा रही है ………….।
(क) पुस्तकें पढ़ने की
(ख) पुस्तकें खरीदने की
(ग) पुस्तकें भेंट करने की
(घ) पुस्तकें एकत्र करने की
उत्तर:
(क) पुस्तकें पढ़ने की।

प्रश्न 11.
एक उम्र होती है कि –
(क) आदमी पुस्तकें लिखता है
(ख) आदमी पुस्तकें सहेजता है
(ग) आदमी पुस्तकें बेचता है
(घ) आदमी पुस्तकें खरीदता है
उत्तर:
(ख) आदमी पुस्तकें सहेजता है।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. रातों रात कोई पुस्तक ………. हो जाती है। (बहिष्कृत/तिरस्कृत)
  2. हर पुस्तक को’ उसका ………. मिलना चाहिए। (लेखक/पाठक)
  3. ………. का भवन नौमंजिला था। (रत्नसागर/रत्नरंजक)
  4. आज ………. का दौर है। (हरितक्रांति/सूचनाक्रांति)
  5. पुस्तक ………. जाती है। (रची/लिखी)

उत्तर:

  1. तिरस्कृत
  2. पाठक
  3. रत्नासागर
  4. सूचनाक्रान्ति
  5. रची।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –

  1. ‘पुस्तक’ एक कहानी है।
  2. ‘पुस्तक’ के लेखक देवेन्द्र ‘दीपक’ हैं।
  3. नालंदा में पन्द्रह हजार विद्यार्थी थे।
  4. पुस्तकें षड्यंत्रों का शिकार होती हैं।
  5. कुछ धूर्त लोग कुछ वाक्यों को लुप्त कर देते हैं।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 पुस्तक img-2
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
पुस्तक किसका समवाय है?
उत्तर:
पुस्तक बाहरी और भीतरी यात्रा का समवाय है।

प्रश्न 2.
हमारे देश में सबसे बड़ा विद्या का केन्द्र कौन था?
उत्तर:
नालंदा का पुस्तकालय।

प्रश्न 3.
पुस्तक का जलना किसका जलना है?
उत्तर:
पुस्तक का जलना विश्व धरोहर का जलना है।

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प्रश्न 4.
नालंदा के पुस्तकालय को किसने जला डाला था?
उत्तर:
बख्तियार खिलजी ने।

प्रश्न 5.
पुस्तक जलाना और उसे नष्ट करना क्या है?
उत्तर:
पुस्तक जलाना और उसे नष्ट करना घोर अपराध जैसा कत्य है।

पुस्तक लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुस्तक किसका मूर्तरूप है?
उत्तर:
पुस्तक लेखक के पुरुषार्थ का सारस्वत मूर्तरूप है।

प्रश्न 2.
पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन कैसे लिखवाया जाता है?
उत्तर:
पुस्तक की भूमिका और प्राक्काय लिखवाने के लिए उपयुक्त व्यक्ति खोजे जाते हैं। फिर उनसे प्राक्कथन और भूमिका लिखवाई जाती है।

प्रश्न 3.
पुस्तकों के क्या-क्या प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर:
पुस्तकें भेंट की जाती हैं, माँगी, चुराई, दबाई और पढ़ी जाती हैं।

प्रश्न 4.
पुस्तकालय वाले दान में किताबों के साथ क्या माँगते हैं?
उत्तर:
पुस्तकालय वाले दान में किताबों के लिए अलमारियाँ भी माँगते हैं।

प्रश्न 5.
नालंदा विश्वविद्यालय के साथ कौन-सा काला ध भी लगा है?
उत्तर:
नालंदा विश्वविद्यालय के साथ पुस्तकालय जलाने का काला धब्बा भी लगा है।

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प्रश्न 6.
पुस्तकों के संबंध में लेखक की क्या आशा है?
उत्तर:
लेखक की आशा है कि पुस्तक मित्र थीं, मित्र हैं और मित्र रहेंगी।

प्रश्न 7.
‘पुस्तक’ निबंध में लेखक का कौन-सा स्वर है?
उत्तर:
‘पुस्तक’ निबंध में लेखक का आशावादी स्वर है।

प्रश्न 8.
शिक्षा के क्षेत्र में किसका दबदबा रहा?
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा विश्वविद्यालय का दबदबा रहा।

प्रश्न 9.
‘रत्नसागर’ का भवन कैसा था?
उत्तर:
रत्नसागर’ का भवन नौमंजिला था।

पुस्तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुस्तकालय को लेकर घर में चिकचिक क्यों होने लगती है?
उत्तर:
जब घर में आदमी के अपने लिए जगह कम पड़ने लगती है, तो निजी पुस्तकालय को लेकर घर में चिकचिक होने लगती है। प्राध्यापकों की संतानों की शिक्षण में रुचि न होना भी एक कारण है।

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प्रश्न 2.
नालंदा विश्वविद्यालय की महिमा का वर्णन कीजिए। (M.P. 2012)
उत्तर:
नालंदा प्राचीन भारत का एक सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। शिक्षा के क्षेत्र – में इसका बड़ा दबदबा था, जहाँ दस हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। इन विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए 1500 आचार्य थे। यहाँ अनेक विषयों की शिक्षा दी जाती थी। नालंदा का पुस्तकालय बहुत विशाल था। आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा के पुस्तकालय को जलाकर राख कर दिया था।

प्रश्न 3.
नालंदा में किन-किन विषयों की शिक्षा दी जाती थी? (M.P. 2012)
उत्तर:
नालंदा में बौद्धदर्शन, दर्शन, इतिहास, निरुक्त, वेद, हेतुविद्या, न्यायशास्त्र, व्याकरण, चिकित्साशास्त्र, ज्योतिष आदि के शिक्षा की व्यवस्था थी।

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प्रश्न 4.
नालंदा विश्वविद्यालय में कार्यरत आचार्य कौन-कौन से थे? (M.P. 2010)
उत्तर:
नालंदा विश्वविद्यालय में कार्यरत आचार्य शीलभद्र, नागार्जुन, आचार्य धर्म कीर्ति, आचार्य ज्ञानश्री, आचार्य बुद्ध भंद्र, आचार्य गुणमति, आचार्य स्थिरमति, आचार्य सागरमति आदि विख्यात आचार्य कार्यरत थे।

प्रश्न 5.
‘पुस्तक’ नामक निबंध में देवेन्द्र ‘दीपक’ (लेखक) ने नालंदा विश्वविद्यालय की क्या विशेषताएँ बताई हैं? (M.P. 2009)
उत्तर:
‘पुस्तक’ नामक निबंध में देवेन्द्र ‘दीपक’ (लेखक) नै नालंदा विश्वविद्यालय की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं –
नालंदा विश्वविद्यालय का शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा दबदबा था। वहाँ दस हजार विद्यार्थी और पन्द्रह सौ आचार्य थे। बौद्ध-दर्शन, इतिहास, निरुक्त, वेद, हेतुविद्या, न्यायशास्त्र, व्याकरण, चिकित्साशास्त्र, ज्योतिष आदि के शिक्षण की व्यवस्था थी। आचार्य शीलभद्र, नागार्जुन, आचार्य धर्मकीर्ति, आचार्य ज्ञानश्री, आचार्य बुद्ध भट्ट,आचार्य गुणमति, आचार्य स्थिरमति, आचार्य सागरमीरा जैसे विश्वविख्यात आचार्य वहाँ थे।

प्रश्न 6.
पुस्तक-समीक्षा की क्या विशेषता है?
उत्तर:
पुस्तक-समीक्षा के लिए सुटेबिल आदमी खोजे जाते हैं। समीक्षा कभी बेबाक होती है। समीक्षा प्रायः प्रायोजित होती है। इस प्रकार की समीक्षाओं में प्रायः एक गैरज़रूरी लम्बी भूमिका होती है। पुस्तक में जो है, उसकी चर्चा कम, जो नहीं है, उसकी चर्चा अधिक होती है।

पुस्तक लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
देवेन्द्र ‘दीपक’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
राष्ट्रवादी चिंतक और रचनाकार देवेंद्र ‘दीपक’ का जन्म 31 जुलाई, 1934 ई० को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुआ। आपने शालेय शिक्षा के बाद साहित्य रत्न, एम.ए. (हिंदी, अंग्रेजी में) किया। उसके बाद पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपने वंचित समाज के विकास में शब्द और कर्म द्वारा अपूर्व कार्य कर महत्त्वपूर्ण योगदान किया। मारीशस, लंदन, सूरीनाम तथा न्यूयार्क में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलनों में अपना सक्रिय योगदान दिया है। आप उन चिंतकों में से हैं, जिन्होंने हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया है। आप्रे अनुसूचित जाति से संबद्ध परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण केंद्र का प्राचार्य रहे हैं। मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक के रूप में आपने सराहनीय कार्य किया है।

साहित्यिक-परिचय:
वर्तमान में आप साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद् के निदेशक पद पर कार्य करते हुए साहित्य सेवा में जुटे हैं। ‘साक्षात्कार’ पत्रिका के प्रधान संपादक हैं। ‘दीपक’ जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। आपने काव्य, काव्य नाटक, कठपुतली नाटक और अनेक ग्रंथों का अनुवाद किया है। काव्य-सृजन में उन्होंने अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई है। आपने गद्य-क्षेत्र में भी मानदंड स्थापित किए हैं। आपकी गद्य रचनाओं में जीवन-बोध के सहज और आत्मीय प्रसंग मिलते हैं। आपकी गद्य रचनाओं में सामाजिक चिंताओं और आस्थामूलक दृष्टि का समावेश है।

रचनाएँ:

  • काव्य-संग्रह – सूरज बनती किरण, बंद कमरा, दुली कविताएँ (आपत्तकालीन) मास्टर धर्मदास, हम दंने नहीं (अन्त्यज कविता)
  • काव्य-नाटक – भूगोल राजा का। खगोल राजा का।
  • कठपुतली – नाटक दवाव।
  • अन्य रचनाएँ – शिक्षाशास्त्रियों के सिद्धांत, विचारणा विथि का, कुंडली चक्र पर मेरी वार्ता आदि।

भाव-शैली:
‘दीपक’ जी को भाषा-शैली शब्द विपर्यय के चमत्कार आपकी गद्य रचनाओं के भाव-सौन्दर्य में विशेष रूप से वृद्धि करते हैं। वे भाषा के क्षेत्र में अपनी रचनात्मकता के माध्यम से मुहावर जैरे. चते चलते है। उनकी भाषा सहज स्वाभाविक खड़ी बोली है। उसमें यथास्थान तत्सम, उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का समावेश है।

पुस्तक पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
‘पुस्तक’ पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘पुस्तक’ निबंध में देवेंद्र ‘दीपक’ ने पुस्तक को केंद्र बनाकर अनेक प्रकार के विचारों को प्रस्तुत किया है। लेखक कहता है कि पुस्तक का जीवन में बड़ा महत्त्व है। पुस्तक जीवन की बाहरी और भीतरी,मात्रा का समन्वय है। पुस्तकें लिखी, छापी और विमोचित की जाती हैं। पुस्तकें बेची, खरीदी जाती हैं। बुक डिपो में अलमारी में करीने से सजी होती हैं। ये कभी चौराहे पर भी रेहड़ी में भी बेची जाती हैं। इतना ही नहीं पुस्तकें भेंट की जाती हैं, माँगी, चुराई और दबाई जाती हैं। अंततः पुस्तकें पढ़ी जाती हैं। कुछ पुस्तकें रखी जाती हैं, जबकि कुछ निगली और उनमें से कुछ ही पचाई जाती हैं।

पुस्तकों की भूमिका लिखने के लिए उपयुक्त व्यक्ति खोजे जाते हैं। पुस्तक की समीक्षा की जाती है। व्यक्ति एक आयु में पुस्तकें खरीदता है, पढ़ता है और अंत में पुस्तकालय के कमरे को लेकर परिवार में झगड़ा होता है। पुस्तकालय वाले : भी उन दुर्लभ पुस्तकों को दान में स्वीकार नहीं करते। पुस्तकों को राजनीति के कारण कई उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को बख्तियार खिलजी ने जला डाला था। पुस्तक का जलना विश्व धरोहर का जलना है। पुस्तक जलाना और नष्ट करना घोर अपराध जैसा कार्य है। पुस्तकों को जलाना, जलवाना रचनाकार के कठोर परिश्रम और साधना को बरबाद करने के समान है।

कितनों का शोध और सोचा-समझा व्यर्थ हो जाता, जो पुनः लौट कर नहीं आता। पुस्तकें भी षड्यंत्रों का शिकार होती हैं। कुछ धूर्त लोग ग्रंथों में प्रक्षेप कर देते हैं इसलिए जो ग्रंथ नष्ट होने से बच गए, उनमें भी बहुत बदलाव आ गए। लेखक का आशावादी स्वर भी उभरा है। आधुनिक युग में सूचना क्रांति का दौर होने के कारण पुस्तकों को पढ़ने की आदत अवश्य कम हुई है, लेकिन यह भी पुस्तकों के महत्त्व को कम भी नहीं कर सकता। पुस्तक की उपस्थिति और उपयोगिता बनी ही रहेगी।

पुस्तक संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
पुस्तक बेची जाती हैं-पुस्तक खरीदी जाती हैं-कभी किसी बुक डिपो में करीने से सजी अलमारियों से, तो कभी चौराहे पर खड़े किसी ठेले पर लगे ढेर से। पुस्तक भेंट की जाती है, पुस्तक माँगी जाती है। पुस्तक चुराई जाती है। पुस्तक दबाई जाती है। और यह सब इसलिए कि अंततः पुस्तक पढ़ी जाती है। पढ़ने में कुछ पुस्तकें केवल रखी जाती हैं, कुछ निगली जाती हैं, कुछ ही हैं जो पचाई जाती हैं। पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन के लिए सुटेबिल आदमी खोजे जाते हैं। पुस्तक की समीक्षा की जाती है। कभी यह समीक्षा बेबाक होती है, अक्सर प्रायोजित। इन समीक्षाओं में अक्सर एक गैरज़रूरी लंबी भूमिका होती है। पुस्तक में जो है उसकी चर्चा कम, जो नहीं है उसकी चर्चा अधिक। (Pages 89-90)

शब्दार्थ:

  • सुटेबिल – उपयुक्त।
  • बेबाक – अचूक, सटीक।
  • गैरज़रूरी – अनावश्यक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश देवेंद्र ‘दीपक’ के द्वारा लिखित निबंध ‘पुस्तक’ से उद्धृत है। लेखक इस गद्यांश में पुस्तकों की उपयोगिता और उनकी समीक्षा पर प्रकाश डाल रहा है।

व्याख्या:
लेखक पुस्तकों की उपयोगिता के संबंध में कहता है कि प्रकाशक पुस्तकों का व्यापार करता है। पुस्तकें प्रकाशन गृहों और बुक डिपों में बेची जाती हैं। बुक डिपो वाले पुस्तकों को अलमारियों में सजाकर रखते हैं और बेचते हैं। कभी-कभी पुस्तकें चौराहे पर खुद को दुकानदारों द्वारा ठेले पर ढेर के रूप में रखकर भी बेची जाती हैं। पाठक पुस्तकों को खरीदते हैं। सुशिक्षित तथा पुस्तकों के सुधी पाठक अपने साहित्यिक मित्रों, सगे-संबंधियों अथवा अन्य लोगों को उपहार के रूप में भी देते हैं। पुस्तकें कुछ लोगों द्वारा माँग कर पढ़ी जाती हैं।

इतना ही नहीं पुस्तकालयों से महत्त्वपूर्ण दुर्लभ पुस्तकों को चुराया भी जाता है और आवश्यक पुस्तकों को इधर-उधर दबाकर भी रख दिया जाता है ताकि जरूरत पड़ने पर उसे प्राप्त किया जा सके। ये सारे काम इसलिए किए जाते हैं कि अंत में पुस्तक पढ़ी जाती है। पुस्तक पढ़ने के बाद कुछ पुस्तकें केवल रखी जाती हैं क्योंकि उन्हें फेंका नहीं जा सकता। कुछ पुस्तकें रोचक अथवा मनोरंजक न होने के कारण जबरदस्ती पढ़ी जाती हैं जबकि कुछ ही पुस्तकें ऐसी होती हैं जिन्हें पाठक पढ़ता है और चिंतन-मनन कर उन्हें आत्मसात् करता है।

लेखक पुस्तक की भूमिका और समीक्षा पर टिप्पणी करते हुए कहता है कि पुस्तक का सर्जन करने वाला अपनी पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन लिखवाने के लिए उपयुक्त आदमी को ढूँढ़कर, उससे भूमिका और प्राक्कथन लिखवाता है। पुस्तक के विषय, उसकी शैली, उसके उद्देश्य और गुण-दोषों की समीक्षा की जाती है। पुस्तक की यह समीक्षा एकदम सटीक होती है। प्रायः यह समीक्षा प्रायोजित होती है। इन समीक्षाओं में प्रायः एक अनावश्यक लंबी भूमिका रहती है, जिसमें जो कुछ पुस्तक के अंदर होता है, उसकी – चर्चा कम होती है और जो उसमें नहीं होता, उसकी चर्चा अधिक की जाती है।

विशेष:

  1. पुस्तकों के अच्छी-बुरी होने का वर्णन रखी, निगली और पचाई जाने जैसे शब्दों से किया गया है।
  2. समीक्षा के ढंग पर व्यंग्य किया गया है।
  3. भाषा तत्सम शब्दों के साथ-साथ विदेशी शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पुस्तकें चुराई और दबाई क्यों जाती हैं?
उत्तर:
कुछ पुस्तकें महत्त्वपूर्ण होती हैं। बाजार में वे उपलब्ध नहीं होती हैं। ऐसी पुस्तकें दुर्लभ होती हैं। जो केवल पुस्तकालयों में ही होती हैं, पाठक या छात्र अथवा शोधकर्ता ऐसी पुस्तकों को चुरा लेते हैं और अपना काम सरलता से निपटा लेते हैं। कुछ पुस्तकें पुस्तकालय में प्रायः छात्रों द्वारा ही दबाई जाती हैं। वे अपने विषय से संबंधित पुस्तक को इधर-उधर दबाकर रख देते हैं और जरूरत पड़ने पर निकाल लेते हैं।

प्रश्न (ii)
पुस्तकों के निगलने और पचाने से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
पुस्तकों के निगलने से लेखक का आशय यह है कि पुस्तकें विषय पर शैली की दृष्टि से रोचक, मनोरंजक नहीं होतीं। ऐसी पुस्तकों को पाठक जबरदस्ती पढ़ता है। कुछ पुस्तकें विषय की दृष्टि से, शैली और उद्देश्य की दृष्टि से रोचक, मनोरंजक और जीविनोपयोगी होती हैं। ऐसी पुस्तकों को पाठक पढ़कर चिंतन-मनन करता है और जीवन में उनकी बातों को व्यवहार में लाता है। यही पुस्तकों का पचाना है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन लिखवाने के लिए क्या किया जाता है?
उत्तर:
पुस्तक की भूमिका और प्राक्कथन लिखवाने के लिए उपयुक्त व्यक्ति को खोजा जाता है और उससे ही भूमिका और प्राक्कथन लिखवाया जाता है।

प्रश्न (ii)
पुस्तक-समीक्षा पर लेखक ने क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
पुस्तक-समीक्षा पर लेखक ने व्यंग्य किया है कि पुस्तक प्रायः प्रायोजित है। समीक्षा चर्चा होती है जो पुस्तक में होती ही नहीं है। पुस्तक में होने वाली बातों की चर्चा कम की जाती है।

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प्रश्न 2.
पागल कौन है?-वह जो पुस्तक लिखता है या वह जो पुस्तकालय को जलाता है, जलवाता है। क्या होता है किसी पुस्तक का जलना? क्या होता है किसी पुस्तकालय का जलना! जितना सोचता हूँ, उतनी खिन्नता बढ़ती है। हर पुस्तक अपने में लंबी साधना और परिश्रम का प्रतिफल होती है। कितनी आँखों का कितना जागरण व्यर्थ चला गया। कितने लोगों के कितने शोध व्यर्थ हो गए। कितनों का सोचा-समझा था जो अब लौटकर नहीं आएगा। यह तो विश्वधरोहर को नष्ट करना हुआ। शताब्दियों की सारस्वत साधना के साथ छल किया पुस्तकालय जलाने बालों ने। वहत और दहशत की जुगलबंदी के अलावा और क्या था वह! (Page 90) (M.P. 2010)

शब्दार्थ:

  • खिन्नता – दुख।
  • प्रतिफल – परिणाम।
  • वहशत – असभ्यता, जंगलीपन।
  • दहशत – आतंक।
  • सारस्वत – सरस्वती संबंधी।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश देवेंद्र ‘दीपक’ द्वारा रचित निबंध ‘पुस्तक’ से लिया गया है। लेखक पुस्तकालय जलाने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है।

व्याख्या:
लेखक पाठकों से प्रश्न करता है कि पागल कौन है? जो पुस्तक की रचना करता है या वह जो पुस्तकालय को जलाता है, अपने लोगों से जलवाता है। इन दोनों में से पागल व्यक्ति कौन है? इसका उत्तर देने से पूर्व लेखक फिर प्रश्न करता है कि इस संबंध में जितना सोचता हूँ, उतनी ही दुख में वृद्धि होती है। लेखक के मतानुसार प्रत्येक पुस्तक लेखक की लंबी साधना और परिश्रम का परिणाम होती है अर्थात लेखक किसी पुस्तक की रचना लंबी साधना और परिश्रम से करता है। पुस्तक के जलने के कारण लेखक का रातों को जागकर पुस्तक लिखना व्यर्थ हो जाता है।

उसकी कृति नष्ट हो जाती है। कितने ही लोगों के अनुसंधान से संबंधित ग्रंथ पुस्तकालय जलने से नष्ट हो जाते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा परिश्रम से खोजे गए नए सिद्धांत और नए फार्मूले बेकार हो जाते हैं। अनेक विद्वानों, चिंतकों, दर्शनशास्त्रियों और चिकित्सकों का चिंतन-मनन जलकर राख हो जाता है जो कभी पुनः प्राप्त नहीं हो सकता। पुस्तकों और पुस्तकालयों को जलाना विश्वधरोहर को नष्ट करना है।

इस तरह विश्वधरोहर को नष्ट करना घोर अपराध जैसा कार्य किया है, पुस्तकालय को जलाने वालों ने। शताब्दियों की विद्या की देवी सरस्वती की साधना के साथ धोखा किया है। यह उनकी असभ्यता और आतंक फैलाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। उन्होंने पुस्तकालय जलाकर विश्व को ज्ञान के स्रोत से वंचित किया। यह उनके असभ्य होने का ही परिचायक है।

विशेष:

  1. लेखक ने पुस्तकालय जलाने को घोर अपराध माना है।
  2. पुस्तकालय जलाने वालों को असभ्य कहा है।
  3. विचारात्मक और प्रश्नात्मक शैली है।
  4. भाषा तत्सम व उर्दू शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

गयांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
लेखक ने पुस्तक लेखक और पुस्तकालय जलाने वाले में से किसे पागल माना है?
उत्तर:
लेखक ने पुस्तक लेखक और पुस्तकालय जलाने वाले में से पुस्तकालय जलाने वाले को पागल माना है ऐसा इसलिए कि पुस्तकालय जलाने से पुस्तक लेखकों की लंबी साधना, शोधकर्ताओं का परिश्रम और विद्वानों का चिंतन-मनन नष्ट हो गया।

प्रश्न (ii)
पुस्तकालय को जलाना लेखक की दृष्टि में कैसा कार्य है?
उत्तर:
पुस्तकालय को जलाना लेखक की दृष्टि में घोर आपराधिक कार्य है।

गयांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पुस्तकालय जलाने वालों ने किसके साथ छल किया?
उत्तर:
लेखक के अनुसार पुस्तकालय जलाने वालों ने शताब्दियों की विद्या की देवी सरस्वती के साधकों की साधना के साथ छल किया।

प्रश्न (ii)
लेखक पुस्तकालय जलाने वालों को क्या मानता है?
उत्तर:
लेखक पुस्तकालय जलाने वालों को असभ्य और आतंक फैलाने वाले मानता है; क्योंकि पुस्तकालय जलाना असभ्यता और आतंक फैलाने की मनोवृत्ति का ही सूचक है।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ (कविता, बालकवि बैरागी’ एवं संकलित)

माँ पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

माँ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व की शुभकामना किसे कहा गया है? (M.P. 2010)
उत्तर:
माँ के वात्सल्य भाव को ही विश्व की शुभकामना कहा गया है।

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प्रश्न 2.
माँ किस राग के गीत गाने का निर्देश देती है?
उत्तर:
माँ भैरवी राग के गीत गाने का निर्देश देती है।

प्रश्न 3.
मुसीबत में किसका नाम लेना चाहिए? और क्यों?
उत्तर:
मुसीबत में माँ का नाम लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
पथ पर चलने के लिए प्रतिफल कैसा कदम चाहिए?
उत्तर:
पथ पर चलने के लिए गतिशील कदम चाहिए।

प्रश्न 5.
गुरुता का ज्ञान क्यों अपेक्षित है?
उत्तर:
गुरुता का ज्ञान जीवन में प्रेरणा के लिए अपेक्षित है।

माँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचतत्त्वों के किन गुणों को माँ धारण किए हुए है? (M.P. 2010)
उत्तर:
पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु पाँच तत्त्व होते हैं। माँ इन सभी गुणों को धारण किए हुए हैं। माँ पृथ्वी का गुण धैर्य, आकाश के गुण चैतन्य अथवा प्रकाश को, अग्नि के गुण तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता तथा जल के गुण गंभीरता को धारण किए हुए है।

प्रश्न 2.
माँ किस प्रकार शिक्षा देती है?
उत्तर:
माँ अपनी संतान को जागृत होने की शिक्षा देती है। वह जगाकर संघर्ष का मार्ग दिखताती और जीवन में संघर्ष करने के लिए प्रेरित करती है। इतना ही नहीं वह कर्तव्य निभाने की भी शिक्षा देती है। वह जीवन में होश के साथ कार्य करने की भी शिक्षा देती है।

प्रश्न 3.
कवि माँ से क्या कामना करता है? (M.P.2011)
उत्तर:
कवि माँ से कामना करता है कि वह वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करें कि उसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके। वह हार-जीत को समान भाव से ग्रहण कर सके। यही नहीं वह देश की उन्नति-प्रगति के लिए अपने स्वार्थों को त्यागकर समर्पित हो सके।

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प्रश्न 4.
देश की जय के लिए कवि किस भाव का आकांक्षी है?
उत्तर:
देश की जय के लिए कवि अपनी हार, स्वार्थ, त्याग और बलिदान के भाव का आकांक्षी है।

प्रश्न 5.
कवि किस उद्देश्य के लिए जीवन देना चाहता है?
उत्तर:
कवि संसार को खुशहाल जीवन देने के लिए उद्देश्य से अपना जीवन देना चाहता है।

माँ भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
‘मेरी हार देश की जय हो’ का भाव-विस्तार कीजिए।
उत्तर:
कवि चाहता है कि जीवन संघर्ष में बेशक उसकी हार हो जाए, वह जीवन में प्रगति और उन्नति बेशक न कर पाए, किंतु देश सदैव विजयी हो, उसकी संघर्षों में सदैव विजय हो। मेरी व्यक्तिगत समस्याएँ हल हों या न हौं, लेकिन देश अपनी समस्त समस्याओं पर विजय प्राप्त कर, निरंतर उन्नति-प्रगति करता रहे। देश की विजय में ही उसकी स्वतंत्रता, अखंडता और एकता निहित होती है। उसकी विजय से जनता में खुशहाली, सुख और शांति आती है इसलिए व्यक्ति की बेशक हार हो जाए, लेकिन देश की हार नहीं होनी चाहिए।

माँ भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित समोच्चित शब्दों का वाक्य बनाकर अर्थ स्पष्ट कीजिएअनिल-अनल, फाँस-पाश, ह्रास-हास, नीर-नीड़, पवन-पावन।
उत्तर:

  • अनिल – शीतल अनिल शरीर की थकान हर लेता है।
  • अनल – यह तुम्हारी स्वार्थ की अनल तुम्हें जलाकर राख कर देगी।
  • फाँस – मित्र के असत्य वचन मेरे लिए फाँस बन गए हैं।
  • पाश-मोह – माया के पाश में बँधे हो और मुक्ति चाहते हो, कैसे संभव है।
  • हास – जीवन में हास और त्रास मिलते रहते हैं।
  • हास – जीवन में हास (हास्य) को महत्त्व दिया जाना चाहिए।
  • नीर – महादेवी वर्मा ने कहा है, मैं नीर भरी दुख की बदली हूँ।
  • नीड़ – इस वृक्ष पर पक्षी नीड़ों में बैठे विश्राम कर रहे हैं।
  • पवन – प्रातःकाल का शीतल, मंद और सुगंधित पवन स्वान्मावर्धक होता है।
  • पावन – गंगा पावन नदी है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह सहित नाम लिखिए –
कंटक पथ, दावानल, टालो-संभालो, गिरें-उठे।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-1

प्रश्न 3.
दिए गए मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
तिल-तिल कर जलना, गिर-गिर कर उठना, कंटक पथ पर चलना, लोरियाँ गाकर सुनाना, भैरवी गीत गाना।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-2

माँ योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
माँ की आराधना विषयक अन्य गीतों को याद कर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘देश की जय’ के लिए अपने प्राणों की बलि चढ़ाने वाले अमर शहीदों की जानकारी संगृहीत कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
‘माँ’ विषय पर अपने विचार लिखिए तथा उसे कथा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

माँ परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता के कवि हैं –
(क) मनमोहन मदारिया
(ख) बालकवि वैरागी
(ग) मैथिलीशरण गुप्त
(घ) कवि सुदर्शन
उत्तर:
(ख) बालकवि वैरागी।

प्रश्न 2.
कवि किससे वरदान माँग रहा है –
(क) ईश्वर से
(ख) दुर्गा देवी से
(ग) माँ से
(घ) भगवान शिव से
उत्तर:
(ग) माँ से।

प्रश्न 3.
संसार को सुखद और सरल बनाने वाला भाव है –
(क) वात्सल्य भाव
(ख) भक्तिभाव
(ग) स्वार्थ भाव
(घ) अहिंसा भाव
उत्तर:
(क) वात्सल्य भाव।

प्रश्न 4.
माँ से व्यक्तित्व में पवन से…… का गुण निहित है –
(क) गंभीरता
(ख) व्यापकता
(ग) धैर्य
(घ) तीव्रता
उत्तर:
(ख) व्यापकता।

प्रश्न 5.
कवि को जीवन का अभिमान चाहिए ताकि वह –
(क) जीवन-मार्ग पर बढ़ता रहे
(ख) वह निराश न हो
(ग) जीवन-संघर्षों से घबराए
(घ) वह जीवन के संघर्षों पर विजय प्राप्त करे
उत्तर:
(घ) वह जीवन-संघर्षों में विजय प्राप्त करे।

प्रश्न 6.
मुसीबत के समय किसे याद करना चाहिए –
(क) ईश्वर को
(ख) माँ को
(ग) मित्र को
(घ) पिता को
उत्तर:
(ख) माँ को।

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प्रश्न 7.
कवि को गुरुता का ज्ञान चाहिए; क्योंकि –
(क) वह जीवन की प्रेरणा बने
(ख) वह जीवन की आशा बने
(ग) वह जीवन का त्याग बने
(घ) वह जीवन की कठिनाई बने
उत्तर:
(क) वह जीवन की प्रेरणा बने।

प्रश्न 8.
जीवन के समस्त स्वार्थ त्यागकर…………के लिए समर्पित होना ही हमारा लक्ष्य है।
(क) मातृ-सेवा
(ख) राष्ट्र-सेवा
(ग) समाज-सेवा
(घ) प्रभु-सेवा
उत्तर:
(ख) राष्ट्र-सेवा।

प्रश्न 9.
कवि किससे वरदान की अपेक्षा करता है? (M.P. 2012)
(क) माँ से
(ख) गुरु से
(ग) प्रभु से
(घ) भाई से
उत्तर:
(क) माँ से।

प्रश्न 10.
‘माँ की भावनाओं में है –
(क) पहाड़ जैसी ऊँचाई
(ख) समुद्र जैसी चौड़ाई
(ग) धरती जैसा विस्तार
(घ) धरती जैसा धैर्य
उत्तर:
(घ) धरती जैसा धैर्य।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. तिल-तिलकर ………. जले। (मन/तन)
  2. माँ ………. की रचना है। (मैथिलीशरण गुप्त/वालकवि ‘वैरागी’)
  3. बालकवि ‘वैरागी’ ………. हैं। (आलोचक/कवि)
  4. बाल कवि ‘वैरागी’ का जन्म ………. को हुआ था। (1931/1941)
  5. कवि माँ से ………. की अपेक्षा करता है। (वरदान प्यार)

उत्तर:

  1. तन
  2. बालकवि ‘वैरागी’
  3. कवि
  4. 1931
  5. वरदान।

III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –

  1. ‘माँ’ एक निबन्ध है।
  2. ‘माँ’ संघर्ष का मार्ग दिखाती है।
  3. ‘जल-जलकर जीवन’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. बालकवि वैरागी का वास्तविक नाम नन्दरामदास वैरागी है।
  5. मुसीबत में बस माँ का नाम लेना चाहिए।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

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IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-3
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (घ)
(iii) (ख)
(iv) (क)
(v) (ग)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
माँ से कवि क्या चाहता है?
उत्तर:
वरदान।

प्रश्न 2.
माँ क्या गाकर सुलाती है?
उत्तर:
लोरियाँ।

प्रश्न 3
मुसीबत आने पर क्या करना चाहिए?
उत्तर:
माँ का नाम लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
जीवन के संघर्षों में क्या होना चाहिए?
उत्तर:
होठों पर मुस्कान होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
जीवन में क्या स्वाभाविक है?
उत्तर:
काँटों के रास्ते पर गिरना-बढ़ना और हार-जीत।

माँ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता में किसके व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है?
उत्तर:
‘माँ’ कविता में माँ के विराट व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है।

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प्रश्न 2.
‘माँ’ में पृथ्वी तत्त्व का कौन-सा गुण निहित है? (M.P. 2012)
उत्तर:
‘माँ’ में पृथ्वी तत्त्व का धैर्य गुण निहित है।

प्रश्न 3.
माँ का कौन-सा भाव संसार को सुखद और सरल बनाता है?
उत्तर:
माँ का वात्सल्य-भाव ही संसार को सुखद और सरल बनाता है।

प्रश्न 4.
जीवन-पथ कंटकमय होने पर भी कवि किसकी कामना करता है?
उत्तर:
जीवन-पथ कंटकमय होने पर भी कवि जीवन-मार्ग पर निरंतर गतिशील रहने की कामना करता है।

प्रश्न 5.
कवि किस पर विजय प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर:
कवि जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करना चाहता है।

प्रश्न 6.
‘माँ’ संसार की क्या है?
उत्तर:
माँ संसार की शुभकामना है।

प्रश्न 7.
कवि की माँ से एक कामना क्या है?
उत्तर:
कवि की माँ से एक कामना यह है कि उसके पैर हर क्षण गतिमान होने चाहिए।

प्रश्न 8.
उठ-उठकर गिरने और फिर उठने पर कवि को माँ से क्या चाहिए?
उत्तर:
उठ-उठकर गिरने और फिर उठने पर कवि को माँ से गुरुता का ज्ञान होने का वरदान चहिए।

माँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
माँ के व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
माँ का व्यक्तित्व विराट है। उसके व्यक्तित्व में धैर्य, तीव्रता, व्यापकता और गंभीरता के साथ-साथ ममता, वात्सल्य आदि गुण निहित हैं। उसका व्यक्तित्व केवल स्नेहमयी है, अपितु वह अपनी संतान को जगाती है। संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। वह कर्तव्य मार्ग पर चलने के प्रेरित करने वाली शक्ति है।

प्रश्न 2.
कवि कैसी माँ को अपनी स्मृतियों में बसाने की प्रेरणा देता है? (M.P. 2012)
उत्तर:
कवि धैर्यशाली, तीव्र प्रकाशयुक्त, गतिमयी व्यापकता और गंभीरता से युक्त स्नेहमयी, वात्सल्यमयी, संघर्ष का मार्ग दिखाने वाली तथा कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली माँ को सदैव अपनी स्मृतियों में बसाने की प्रेरणा देता है।

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प्रश्न 3.
कवि देश और जगत् के लिए क्या-क्या करने के लिए तैयार है?
उत्तर:
कवि देश के लिए अपनी हार स्वीकार करने के लिए तैयार है। वह अपने स्वार्थों को देश-सेवा के लिए त्यागने को तैयार है। जगत् के लिए वह अपना जीवन भी देने के लिए तैयार है।

प्रश्न 4.
कवि को कौन-सा सम्मान चाहिए?
उत्तर:
कवि को अपना स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित होने का ही सम्मान चाहिए। इस सम्मान के अतिरिक्त उसे कोई अन्य सम्मान नहीं चाहिए। यही सम्मान प्राप्त करना, उसके जीवन का लक्ष्य है। इसी लेंए वह कहता है-‘बस इतना सम्मान चाहिए।’

प्रश्न 5.
माँ का स्वरूप क्या है?
उत्तर:
माँ धरा का धैर्य है। वह आसमान की ज्योति है। वह आग की लपट है। वह हवा तीव्र गति है। वह पानी का गंभीर स्वर है। यही नहीं वह वत्सला है। वह वंदना है, वह जननी है और जन्मदात्री भी है।

प्रश्न 6.
कवि माँ से कब-कब वरदान चास’ है?
उत्तर:
कवि माँ से तब-तब वरदान चाह जब उसका जीवन काँटों से भर जाए, विपदाओं से घिर जाए, उसे हास मिले ना त्रास मिले, विश्वास मिले या फाँस मिले, उसके सामने काल ही आकर क्यों न गरजे, इस प्रकार के संकटमय और दुखमय जीवन में कवि माँ से वरदान चाहता है।

माँ कवि-परिचय

प्रश्न 1.
बालकवि वैरागी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
श्रीबालकवि वैरागी युगचेतना को ओजस्वी स्वर देने वाले आधुनिक युग के कवियों में सुप्रसिद्ध हैं।
जीवन-परिचय:
बालकवि वैरागी का जन्म मध्य प्रदेश के जिला मंदसोर के नीमच नामक स्थान में 10 फरवरी, सन् 1931 ई० को हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में हुई। इसके उपरान्त आपने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से एम.ए. हिंदी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस प्रकार आपने एक मेधावी छात्र होने का परिचय दिया। आपने शिक्षा-समाप्ति के उपरांत साहित्य और राजनीति दोनों में ही दखल देना शुरू कर दिया। आप मध्य प्रदेश के एक सम्मानित विधायक और सांसद होने के साथ साथ आप मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं किंतु आपने साहित्य-सृजन को नहीं छोड़ा। आपकी कविताएँ राजनीतिक क्षितिज से उठकर जन-सामान्य के दुख-दर्द और आशा-आकांक्षाओं से जड़ी रही हैं।

रचनाएँ:
बालकवि वैरागी की रचनाएँ मुख्य रूप से काव्य ही हैं। अब तक आपके कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आपके निम्नलिखित काव्य-संग्रह हैं –

‘दरद दीवानी’, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’, ‘गौरव-गीत’, ‘भावी रक्षक देश के’, ‘दो टूक’, ‘दादी का कर्ज’, ‘रेत के रिश्ते’, ‘कोई तो समझें’, ‘शीलवती आग’, ‘गाओ बच्चों’, ‘पुलिवर’ (पद्यानुवाद), ‘वंशज का वक्तव्य’, ‘ओ अमलतास’ आदि। . इनके अतिरिक्त ‘चटक म्हारा चम्पा’ मालवीय काव्य-संग्रह भी बालकवि ‘वैरागी’ का एक जीवंत और सशक्त प्रकाशित काव्य-संग्रह हैं।

बालकवि वैरागी की कार्यशैली ‘गद्य’ विधा में भी है। कुछ प्रकाशित गद्य रचनाओं के उल्लेख इस प्रकार किए जा सकते हैं-गद्य सरपंच (सहयोगी उपन्यास), ‘कच्छ का पदयात्री’ (यात्रा-संस्मरण), ‘बर्लिन से बच्चू को’ (विदेशी यात्रा के पत्र) आदि।’

भाषा-शैली:
बालकवि वैरागी की भाषा-शैली में एकरूपता है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि कविवर बालकवि की भाषा और शैली में काव्यात्मकता है। दूसरे शब्दों में, बालकवि वैरागी जी मूलतः कवि हैं, अतएव उनकी भाषा-शैली का काव्यमयी होना स्वाभाविक है। आपकी भाषा-शैली संबंधित निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

1. भाषा:
बालकवि वैरागी की भाषा मध्यस्तरीय काव्यमयी भाषा है। उसमें मुहावरों, कहावतों के प्रयोग आवश्यकतानुसार हुए हैं। इस प्रकार की भाषा में आए शब्द प्रायः तद्भव श्रेणी के हैं। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि तत्सम शब्द और विदेशी शब्दों की तुलना में प्रयुक्त देशज शब्द बहुत अधिक हैं। इनके बाद ही उर्दू के प्रचलित शब्द प्रयुक्त हुए। इस प्रकार से बने हुए शब्दों से वाच्यार्थ और विषय के प्रतिपादन बहुत अच्छी तरह से हुए हैं।

2. शैली:
बालकवि वैरागी की शैली मुख्य रूप से काव्यमयी है। अतः उसमें अलंकारिता, चमत्कारिता और रसात्मकता जैसे स्वाभाविक और आवश्यक गुण सर्वत्र दिखाई देते हैं। इस प्रकार की शैली में प्रयुक्त हुए अलंकारों में मुख्य रूप से अनुप्रास, रूपक, स्वभावोक्ति और दृष्टांत अलंकार हैं। आपकी रचनाधारा को प्रवाहित करने वाले रस मुख्य रूप से वीररस, करुणरत, रौद्ररस आदि हैं। आपकी कविताओं में संगीतात्मकता और लयात्मकता ये दोनों ही गुण सर्वत्र दिखाई देते हैं।

महत्त्व:
बालकवि वैरागी का आधुनिक हिंदी कविता धारा का राष्ट्रीय तरंगित भावोत्थान में एक विशिष्ट और सुपरिचित स्थान है। राष्ट्र-प्रेम के भावों से भीग-भीगकर राष्ट्र के प्रति अपार प्रेम दिखलाने वाले आप बहुत ऊँचे कवि हैं। कविताओं के अतिरिक्त गद्य-रचना के क्षेत्र में भी आपकी बड़ी शान और मान है। इस प्रकार बालकवि वैरागी आधुनिक हिंदी काव्य-जगत के एक उज्ज्वल और प्रकाशवान रचनाकार हैं। आपका साहित्यिक महत्त्वांकन करके ही आपको राजसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में चुना गया। अभी आपसे अनेक साहित्यिक उपलब्धियों की अपेक्षाएँ हैं।

‘माँ’ पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘माँ’ कविता बालकवि वैरागी द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्ति दी है। माँ में धरती के जैसा धैर्य, उसमें आकाश ज्योति की तीव्रता है, पवन की गतिमयी व्यापकता है और जल जैसी गंभीरता है। वह वात्सल्य भाव से भरी हुई पूजनीय है। माँ जन्म देने वाली है और वह संसार को सुखद और सरल बनाने वाली है।

कवि कहता है कि माँ का व्यक्तित्व केवल स्नेह का पर्याय नहीं है। वह लोरियाँ गाकर सुलाती है तो वह जगाती भी है और संघर्ष का मार्ग भी दिखलाती है। माँ पालन-पोषण करने वाली शक्ति भी है तो वह कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। माँ कहती है कि मुझे बहाने बनाकर टालने का प्रयास मत करो, होश से काम लो और जब कभी मुसीबत आए तो तुम केवल माँ को याद करो। तुम ऐसी माँ को सदैव स्मृतियों में बसाकर रखो।

दूसरी कविता ‘माँ बस यह वरदान चाहिए’ है। इस कविता में कवि माँ से वरदान स्वरूप वह शक्ति माँगता है, जिसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की जा सके। कवि चाहता है कि उसकी यही इच्छा है कि उसका प्रत्येक पग गतिशील रहे। उसे जीवन में हास मिले या त्रास मिले, विश्वास प्राप्त हो या विश्वासघात प्राप्त हो और चाहे उसके सामने मृत्यु ही क्यों न आ जाए, लेकिन जीवन के इन विरोधों के बीच भी स्वाभिमान जागृत रहे।

कष्टों में भी जीवन की प्रसन्नता बनी रहे। काँटोंभरे रास्तों पर गिरना, चढ़ना और हार-जीत स्वाभाविक हैं, किंतु फिर भी जीवन में बड़प्पन, गंभीरता का भाव बना रहे। हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का ज्ञान हमारे जीवन की प्रेरणा बने। हम सदा देश की उन्नति के लिए क्रियाशील रहें। इस हेतु जीवन से समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र-सेवा के लिए. समर्पित होना ही हमारा लक्ष्य रहे। यही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। कवि माँ से ऐसे ही वरदान की अपेक्षा करता है।

माँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
मैं धरा का धैर्य हूँ
ज्योति हूँ मैं ही गगन की
अग्नि की मैं ही लपट हूँ
तीव्र गति हूँ मैं पवन की
नीर का गंभीर स्वर हूँ,
वत्सला हूँ-वंदना हूँ ,
मैं जननि हूँ-जन्मदात्री
विश्व की शुभकामना हूँ। (Page 86) (M.P. 2011)

शब्दार्थ:

  • धरा – पृथ्वी, जमीन, धरती।
  • ज्योति – प्रकाश।
  • गगन – आकाश।
  • अग्नि – आग।
  • तीव्र – तेज।
  • गति – चाल।
  • पवन – वायु।
  • नीर – पानी, जल।
  • वत्सला – ममतामयी, स्नेहमयी।
  • वंदना – प्रार्थना, पूजन।
  • जननि – जन्म देने वाली।
  • विश्व – संसार।
  • शुभकामना – अच्छी इच्छा।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित कविता ‘माँ’ से उद्धृत है। कवि माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्त करते हुए कहता है कि-माँ की भावनाओं में धैर्य, तीव्र गति और गंभीरता है। इन्हीं भावों को इस काव्यांश में व्यक्त किया गया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि माँ के लिए विराट व्यक्तित्व में अनेक भावनाएँ निहित हैं। माँ कहती है कि मेरी भावनाओं में धरती के जैसा धैर्य है; अर्थात् मेरे व्यक्तित्व पृथ्वी के समान धैर्य हैं। मैं अत्यंत धैर्यवान हूँ। मैं ही आकाश की ज्योति हूँ। मैं ही आग की लपट हूँ और मुझ में ही वायु की गति व्यापक है। मुझ में ही जल की गंभीरता है। मैं ममतामयी, स्नेहमयी और पूजनीय हूँ। मैं जन्म देने वाली माता हूँ। मेरा वात्सल्य भाव से ही संसार को सुखद और सरल बनाने वाली हूँ। कहने का भाव यह है कि माँ का व्यक्तित्व विराट है। उसके व्यक्तित्व में धरती के समान धैर्य, तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता और गंभीरता है। वह स्नेहमयी, पूजनीय और जन्म देने वाली माँ हैं। वह पूजनीय है। उसमें विश्व का कल्याण को चाहने की कामना है।

विशेष:

  1. माँ के विराट व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है।
  2. माँ के व्यक्तित्व में अनेक गुणों का समावेश है।
  3. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  4. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  5. ‘मैं धरा का धैर्य हूँ’ में उदाहरण अलंकार है।
  6. ‘वत्सला हूँ-वंदना हूँ’ में अनुप्रास अलंकार है।
  7. रूपक अलंकार है।
  8. विशेषणों का सार्थक प्रयोग किया गया है।

पद्य पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-बालकवि वैरागी, कविता-‘माँ’।

प्रश्न (ii)
कविता में किसके व्यक्तित्व का अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर:
कविता में माँ के विराट व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति हुई है।

प्रश्न (iii)
माँ के व्यक्तित्व में क्या निहित है?
उत्तर:
माँ के व्यक्तित्व में पृथ्वी जैसा धैर्य, आकाश की तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता और जल जैसी गंभीरता और वात्सल्य भाव निहित हैं।

पद्य पर आधारित सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत पद्य के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि ने इस पद्य में माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्ति दी है। उसके व्यक्तित्व में धैर्य, तेजी, व्यापकता, गंभीरता और वात्सल्य भावना निहित है। वह पूजनीय है।

प्रश्न (ii)
प्रस्तुत पद्य के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य:
पद्य की भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। ‘धरा का धैर्य हूँ’ में उदाहरण अलंकार है। ‘वत्सला हूँ-वंदना हूँ’ में अनुप्रास अलंकार है। छंदबद्ध रचना में तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। शांतरस है। पद्य में माँ का विराट रूप साकार हो उठा है। शब्द चयन सटीक और भावानुकूल है। विशेषणों का सार्थक प्रयोग हुआ है।

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प्रश्न 2.
लोरियाँ गाकर सुलाया
अब जगाती हूँ तुम्हें,
भैरवी गाओ-उठो!
रस्ता दिखाती हूँ तुम्हें
मत मुझे टालो-सम्हालो,
होश से कुछ काम लो,
जब कभी आए मुसीबत
सिर्फ माँ का नाम लो। (Page 86)

शब्दार्थ:

  • लोरियाँ – बच्चों को सुलाने के समय गाया जाने वाला गीत।
  • भैरवी – एक राग।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश बालकवि ‘वैरागी’ द्वारा रचित कविता ‘माँ’ से उद्धृत है। कवि माँ के विराट स्वरूप को व्यक्त करते हुए कहता है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि माँ का व्यक्तित्व केवल स्नेहमयी, ममतामयी ही नहीं है अपितु माँ अपने बच्चों को गीत गाकर सुलाती है, तो वह जगाती भी है। वह भैरवी राग गाकर, दुर्गा की भाँति उठाती भी है और जीवन में संघर्ष का मार्ग भी दिखाती है। वह कहती है कि तुम मुझे विभिन्न प्रकार बहाने करके टालने का प्रयास मत करो। उठो, और संघर्ष करो। कुछ होश से कार्य करो अर्थात् माँ पालित-पोषित करने वाली ममता है, तो वह कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। कवि कहता है कि जब भी तुम पर कोई मुसीबत आए, तो तुम केवल माँ को याद करो। उसका नाम लो, तुम्हें संकट से छुटकारा मिलेगा। ऐसी माँ को सदा अपनी स्मृतियों में बसाए रखो।

विशेष:

  1. कवि ने माँ व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन किया है।
  2. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  3. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  4. ‘कुछ काम’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. ‘टालो-सम्हालो’ में पद-मैत्री है।
  6. माँ को शक्ति के रूप में चित्रण किया गया है।

पद्य पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-बालकवि ‘वैरागी’। कविता-‘माँ’

प्रश्न (ii)
‘माँ’ को किस रूप में चित्रित किया गया है?
उत्तर:
माँ को अपनी संतान का पालन-पोषण करने वाली ममतामयी माता के रूप में तथा कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति के रूप में चित्रित किया है।

प्रश्न (iii)
इस पद्य में कवि ने क्या प्रेरणा दी है?
उत्तर:
इस पद्य में कवि ने माँ को सदा अपनी स्मृतियों में वसाने की प्रेरणा दी है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने माँ के विराट व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है। माँ एक ओर अपनी संतान का स्नेहपूर्वक पालन-पोषण करती है। अपनी संतान को लोरी गाकर सुलाती है, तो दूसरी ओर वह उसे जगाती है और संघर्ष का मार्ग भी दिखलाती है। वह ममतामयी भी है तो कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। हमें ऐसी माँ को सदैव स्मृतियों में बसाए रखना चाहिए।

प्रश्न (ii)
प्रस्तुत काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश की भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली हैं। छंदबद्ध रचना है। तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। ‘मत मुझे’ ‘कुछ काम’ में अनुप्रास अलंकार है। शब्द-चयन में मितव्ययता और सटीकता है। ‘टालो-सम्हालो’ में पद-मैत्री है।

प्रश्न 3.
माँ बस यह वरदान चाहिए!
जीवन-पथ जो कंटकमय हो,
विपदाओं का घोर वलय हो,
किंतु कामना एक यही बस,
प्रतिपल पग गतिमान चाहिए। (M.P. 2010)

ह्रास मिले या त्रास मिले,
विश्वास मिले या फाँस मिले,
गरजे क्यों न काल ही सम्मुख
जीवन का अभिमान चाहिए। (Page 86)

शब्दार्थ:

  • वरदान – किसी को इष्ट वस्तु देना।
  • जीवन-पथ – जीवन रूपी रास्ता।
  • कंटकमय – काँटों से भरा।
  • विपदाओं – संकटों।
  • वलय – घेरा।
  • कामना – इच्छा, अभिलाषा।
  • हास – हानि।
  • त्रास – कष्ट।
  • विपत्ति – फाँस।
  • काल – मृत्यु।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित’ कविता से उद्धृत है। इस कविता में कवि द्वारा माँ से वरदानस्वरूप वह शक्ति माँगी गई है, जिसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की जा सके।

व्याख्या:
कवि माँ से कहता है कि हे माँ! मुझे केवल आपसे यही वरदान चाहिए कि चाहे जीवन रूपी मार्ग काँटों से भरा हो और मेरा जीवन विभिन्न प्रकार के कष्टों और संकटों में क्यों न घिरा हो, फिर भी मेरी यही अभिलाषा है कि मैं समस्त, दुखों, कष्टों और संकटों से संघर्ष करता हुआ हर क्षण नितर आगे बढ़ता रहूँ।

मुझे जीवन रूप मार्ग आगे बढ़ते हुए चाहे हानि प्राप्त हो अथवा कष्टों विपत्तियों का सामना करना पड़े, जीवन में विश्वास प्राप्त हो अथवा मेरी अपघात (विश्वासघात) हो, चाहे मेरे सामने साक्षात् मृत्यु ही क्यों न आ जाए, किंतु ‘सी स्थिति में भी मेरा स्वाभिामान बना रहना चाहिए। कहने का भाव यह कि कवि माँ से ऐसा वरदान चाहता है कि जीवन-मार्ग में आगे बढ़ते हुए आने वाली कठिनाइयों ५ विजय प्राप्त कर ..सके। जीवन के समस्त विरोधों के बावजूद स्वाभिमान जागृत र।

विशेष:

  1. कवि ने माँ से ऐसा वरदान देने की कामना की है जिससे जीवन के कष्टों के बीच भी उसका स्वाभिमान बना रहे।
  2. ‘जीवन-पथ’ में रूपक अलंकार है।
  3. ‘किंतु कामना और प्रतिफल पग’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ह्रास मिले…या फाँस मिले, में संदेह अलंकार है।
  5. ह्रास और त्रास क्रमशः हानि और कष्ट के प्रतीक हैं।
  6. भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त परिमार्जित खड़ी बोली है।
  7. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  8. विशेषणों का सार्थक प्रयोग किया गया है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कविता-‘माँ बस यह वरदान चाहिए’।

प्रश्न (ii)
कवि माँ से क्या चाहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि माँ से ऐसा वरदान चाहता है, जिसके द्वारा जीवन में आने वाली समस्त कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके।

प्रश्न (iii)
कवि ने माँ से क्या वरदान देने की कामना की है?
उत्तर:
कवि ने माँ से बस ऐसा वरदान देने की कामना की है कि उसे जीवन में चाहे हानि प्राप्त हो या कष्ट, विपत्ति मिले, या फिर विश्वास प्राप्त हो या विश्वासघात प्राप्त हो किंतु जीवन के इन कष्टों के मध्य भी जीवन में स्वाभिमान सदा बना रहे।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
भाव-सौंदर्य-इस कविता में कवि माँ से वरदान प्राप्त करना चाहता है कि जिसके द्वारा वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने में सफल हो। वह यह भी चाहता है कि उसे जीवन के सभी लाभ-हानि, विश्वासघातों, कष्टों, विपत्तियों और विरोधों के बीच स्वाभिमान बना रहे।

प्रश्न (ii)
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य:
‘जीवन-पथ’ में रूपक अलंकार है। किंतु कामना, प्रतिपल पग में अनुप्रास अलंकार है। ह्रास मिले…फाँस मिले में संदेह अलंकार है। ह्रास और त्रास क्रमशः हानि और कष्ट के प्रतीक हैं। तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। विशेषणों का सार्थक प्रयोग है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त परिमार्जित खड़ी बोली है।

प्रश्न (iii)
कवि किससे और क्या माँग रहा है?
उत्तर:
कवि माँ से वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति माँग रहा है जिसके बल पर वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके।

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प्रश्न 4.
जीवन के इन संघर्षों में
दुःख कष्ट के दावानल में
तिल तिलकर तन जले न क्यों पर,
होठों पर मुस्कान चाहिए।

कंटक पथ पर गिरना, चढ़ना,
स्वाभाविक है हार जीतना,
उठ-उठ कर हम गिरें, उठे फिर
पर गुरुता का ज्ञान चाहिए। (Page 87)

शब्दार्थ:

  • दावानल – जंगल की आग।
  • तन – शरीर।
  • मुस्कान – हँसी, प्रसन्नता।
  • गुरुता – बड़प्पन, गंभीरता।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित कविता’ से उद्धृत है। इस काव्यांश में कवि माँ से वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति की कामना करता है कि कष्टों में भी जीवन का प्रसन्नता बनी रहे, यह स्पष्ट किया है।

व्याख्या:
कवि माँ से कामना करता है कि वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करे कि जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए जीवन के संघर्षों में दुख और कष्टों की जंगल की आग में यह शरीर थोड़ा-थोड़ा जलकर क्यों न जले किंतु इन समस्त कष्टों-दुखों में भी जीवन की प्रसन्नता समाप्त न हो। अर्थात् कवि चाहता है कि जीवन में कष्टों और दुखों के कारण यह शरीर धीरे-धीरे नष्ट क्यों न हो जाए किंतु होंठों पर सदा मुस्कान बनी रहनी चाहिए।

मुख पर निराशा या पीड़ा के भाव नहीं आने चाहिए। काँटों और दुखों, विपत्तियों से भरे जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए अवनति की ओर जाना और फिर उठकर चढ़ना तथा जीवन में हार-जीत आना तो स्वाभाविक प्रक्रिया है। जीवन-मार्ग पर चलते हुए हम गिरें, उठें और फिर उठें और गिरें। ऐसी स्थिति में भी मन में सदैव गंभीरता बनी रहे। जीवन में हार-जीत तो होती रहती है। किंतु हमें हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने की शक्ति प्रदान करें। हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का ज्ञान हमारे जीवन की प्रेरणा बने।

विशेष:

  1. कवि चाहता है कि माँ वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करें कि कष्टमय जीवन व्यतीत करते हुए भी प्रसन्नता का भाव बना रहे।
  2. कवि हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने की क्षमता चाहता है।
  3. तिल-तिलकर तन में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ‘तिल-तिलकर जलना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया है।
  5. ‘दुख कष्ट के साथ दावानल’ में रूपक अलंकार है।
  6. ‘गिरना’ अवनति का और ‘चढ़ना’ प्रगति, उन्नति का प्रतीक है।
  7. ‘उठ-उठ’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  8. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
संकलित कविता।

प्रश्न (ii)
कंटक पथ पर गिरना, चढ़ना का प्रतिकार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘कंटक पथ’ दुखों और कष्टों से भरे जीवन पथ का प्रतीक है, तो ‘गिरना’.. अवनति का और ‘चढ़ना’ उन्नति प्रगति का प्रतीक। कवि कहना चाहता है कि हम दुखों और कष्टों से भरे जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए संघर्ष द्वारा जीवन में उन्नति-प्रगति करें, किंतु हम इन्हें समान भाव से ग्रहण करें और हमारे मुख पर कभी निराशा का भाव न आने पाए।

प्रश्न (iii)
कवि को गुरुता का ज्ञान क्यों चाहिए?
उत्तर:
कवि को गुरुता का ज्ञान इसलिए चाहिए, ताकि वह हार-जीत को समान भाव से ग्रहण कर सके और उसमें जीवन की प्रेरणा बनी रहे।

काव्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
इस काव्यांश में कवि ने जीवन कष्टों में भी प्रसन्नता बनी रहने की कामना व्यक्त की है। इसके साथ ही जीवन में हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का वरदान माँ से प्राप्त करना चाहता है। उसकी इच्छा है कि उसमें जीवन की प्रेरणा सदैव बनी रहे।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
‘तिल-तिलकर तन’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘तिल-तिलकर जलना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया गया है। ‘दुख-कष्ट के दावानल’ में रूपक अलंकार है। गिरना और चढ़ना क्रमश जीवन में अवनति का और उन्नति प्रगति का प्रतीक है। ‘उठ-उठ’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

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प्रश्न 5.
मेरी हार देश की जय हो,
स्वार्थ-भाव का क्षण-क्षण क्षय हो,
जल-जल कर जीवन दूं जग को,
बस इतना सम्मान चाहिए।
माँ बस यह वरदान चाहिए
माँ बस यह वरदान चाहिए! (Page 87)

शब्दार्थ:

  • हार – पराजय।
  • जय – विजय।
  • क्षय – कम होना, नष्ट होना।
  • जग – संसार।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित कविता’ से उद्धृत है। कवि इस काव्यांश में माँ से वरदानस्वरूप ऐसी शक्ति की कामना करता है जिसके द्वारा वह अपने समस्त स्वार्थ त्याग कर राष्ट्र-सेवा के लिए समर्पित हो सके।

व्याख्या:
कवि कहता है कि हे माँ! तुम हमें वरदानस्वरूप वह शक्ति प्रदान करो, जिससे हम सदैव देश की उन्नति और प्रगति के लिए क्रियाशील रहें। इसमें हमारी बेशक पराजय हो लेकिन देश की विजय हो। अर्थात् हम अपने जीवन में उन्नति और प्रगति करें या न करें लेकिन देश की उन्नति और प्रगति हो। हमारे स्वार्थ मानों का हर क्षण क्षय हो भाव यह कि हम अपने समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र सेवा में लगे रहें। हम जल-जल कर जीवन को जग के लिए समर्पित कर दें। हमारा लक्ष्य यही रहे, यही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। माँ, हमें वरदान स्वरूप यही शक्ति प्रदान करो। इसके अतिरिक्त हमें और कुछ नहीं चाहिए।

विशेष:

  1. देश-सेवा के लिए समर्पित होने का वरदान कवि माँ से चाहता है।
  2. कवि अपनी हार में देश की विजय चाहता है।
  3. ‘स्वार्थ-भाव’ में रूपक अलंकार है।
  4. क्षण-क्षण क्षय, जल-जल में अनुप्रास अलंकार है।
  5. क्षण-क्षण, जल-जल में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  6. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
इस काव्यांश में कवि माँ से क्या वरदान चाहता है?
उत्तर:
इस काव्यांश में कवि सदैव देश की उन्नति और विकास के लिए क्रियाशील रहने का वरदान चाहता है।

प्रश्न (ii)
कवि ने अपना जीवन-लक्ष्य क्या बताया है?
उत्तर:
कवि ने देश की उन्नति और प्रगति हेतु जीवन के समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र-सेवा के लिए समर्पित होना ही अपने जीवन का लक्ष्य बताया है।

प्रश्न (iii)
जीवन का सबसे बड़ा सम्मान क्या है?
उत्तर:
अपने जीवन से समस्त स्वार्थ त्यागकर देश की उन्नति-प्रगति के समर्पित हो जाना ही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है।

काव्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस काव्यांश में कवि अपनी जीत की अपेक्षा देश की जीत चाहता है। वह चाहता है कि उसका देश उन्नति और प्रगति करे। इसके लिए वह अपने स्वार्थ त्याग कर राष्ट्र सेवा में जुट जाने का भाव व्यक्त कर रहा है। राष्ट्र सेवा में समर्पित होना ही उसके जीवन का लक्ष्य और सबसे बड़ा सम्मान है। कवि माँ से ऐसे ही वरदान की अपेक्षा करता है।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि की राष्ट्र-सेवा की भावना को अभिव्यक्ति मिली है। ‘स्वार्थ-भाव’ में रूपक अलंकार है। ‘क्षण-क्षण-क्षय’, ‘जल-जल’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘क्षण-क्षण, जल-जल’ में पुनरुक्तिप्रकाश है। ‘माँ बस यह वरदान’ पंक्ति की पुनरावृत्ति है। काव्यांश की भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी (लोककथा, मनमोहन मदारिया)

हंसिनी की भविष्यवाणी पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

हंसिनी की भविष्यवाणी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंत्री ने राजा को क्या सलाह दी?
उत्तर:
मंत्री ने निस्संतान राजा को किसी होनहार बालक को गोद लेने की सलाह दी।

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प्रश्न 2.
राजा का चुनाव करना क्यों आवश्यक था? (M.P. 2011)
उत्तर:
राजा की मृत्यु हो गई थी। राजकाज चलाने वाला कोई नहीं था। इसलिए राजा का चुनाव करना आवश्यक था।

प्रश्न 3.
मंत्री जी सरोवर किनारे क्यों जाते थे?
उत्तर:
मंत्रीजी को जब कोई गहरी बात सोचनी होती थी तो वे सरोवर के किनारे चले जाते थे।

प्रश्न 4.
हंसिनी ने प्रजा को राज स्थापित करने का कौन-सा उपाय बताया?
उत्तर:
जिसका देश है, उसी प्रजा को राजकाज सौंपने का उपाय हंसिनी ने बताया।

हंसिनी की भविष्यवाणी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंत्री जी क्यों उदास थे?
उत्तर:
देश के राजा निसंतान चल बसे थे। तब राजा किसे चुना जाए, इसी फिक्र में मंत्रीजी उदास थे।

प्रश्न 2.
मंत्री जी ने देश का राजा चुनने की समस्या, किस प्रकार हल की?
उत्तर:
मंत्री ने एक विचारसभा की स्थापना की। उसमें तीन सौ आदमी थे। ये आदमी प्रजा ने चुने थे। एक लाख आबादी में से एक आदमी चुना गया था। इस विचारसभा में जाने-माने व्यक्ति थे। तीन सौ आदमियों ने अपना एक नेता चुना। वह देश का मुखिया हुआ। उसने विचार सभा में से चार आदमी और चुन लिए वे सब मिलकर देश का राजकाज चलाने लगे। इक्त मकार मंत्रीजी ने देश का राजा चुनने की समस्या हल कर ली।

प्रश्न 3.
नए ढंग के राज्य से क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
नए ढंग के राज्य से देश का राजकाज ठीक ढंग से चलने लगा। यह प्रजा के लिए बड़ा हितकारी हुआ। प्रजा पहले से भी अधिक सुखी और धनी हो गई। जिसका देश था, उसी को राज्य मिल गया।

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प्रश्न 4.
किसने किससे कहा?

  1. ‘भगवान नहीं चाहते कि इस देश के सिंहासन पर मेरे वंश का राज रहे।’
  2. अरे! तुझे नहीं मालूम? देश के राजा नहीं रहे।
  3. हाँ, यही न्याय की बात है। मंत्री जी को चाहिए कि वह प्रजा के हाथ में राज-काज सौंप दें।
  4. अरे तूने सुना, अपने देश में प्रजा का ही राज कायम हो गया है?

उत्तर:

  1. राजा ने मंत्री से कहा।
  2. हंस ने हंसिनी से कहा।
  3. हंसिनी ने हंस से कहा।
  4. हस ने हंसिनी से कहा।

हंसिनी की भविष्यवाणी भाव-विस्तार पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों का भाव-विस्तार कीजिए –

प्रश्न 1.
मैं भगवान की मरजी के खिलाफ काम नहीं करना चाहता।
उत्तर:
देश के राजा के कोई संतान नहीं थी। राजा बूढ़ा हो चला था। मंत्रीजी ने उसे किसी होनहार बालक को गोद लेने की सलाह दी ताकि उनके बाद उसे राजा बनाया जा सके। इस पर राजा ने कहा कि मैं भगवान की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करूँगा, क्योंकि यदि भगवान यह चाहता कि उसके वंश का राज कायम रहे तो भगवान उसे संतान अवश्य देते।

किन्तु भावान नहीं चाहते कि देश पर उसका वंश राज करे इसलिए उन्होंने मुझे निस्संतान रखो। भगवान की इच्छा के विरुद्ध कार्य करना सर्वथा अनुचित होता है। उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने से मन अशांत रहता है। हानि होने का अंदेशा बना रहता है। ईश्वर की मरजी के विरुद्ध कार्य करना धर्म के विरुद्ध है। अतः ईश्वर की मरजी के बिना कार्य नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘आखिरी वक्त तो मुझ से एक न्याय का काम हुआ? ईश्वर दूसरे देश बालों को भी ऐसी ही समझ दे।’
उत्तर:
राजा के मंत्री पद पर कार्य करते हुए, राजा की आज्ञा का पालन करते हुए प्रजा के हित अवहेलना करके, प्रजा पर अत्याचार और अन्याय किए। उनके हितों का बिलकुल ध्यान नहीं रखा परंतु जीवन के अंतिम समय में जिस प्रजा का देश है, उसी को उसका राज सौंपकर मैंने एक तो न्याय का काम किया है। जैसे इस देश में प्रजा का राज स्थापित हुआ है, ऐसी समझ भगवान दूसरे देश वालों को भी दे। दूसरे शब्दों में, दूसरे देशों में भी प्रजातंत्र की स्थापना हो।

हंसिनी की भविष्यवाणी भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए – (M.P. 2009)

  1. स्वर्ग सिधार जाना।
  2. कानों में भनक पड़ना।
  3. हँसी खेल न होना।

उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
साधारण, बूढ़ा, हित, आसान, मालिक, धनी।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कर नाम लिखिए –
राज-सिंहासन, राज-काज, हित-अनहित, हंस-हंसिनी, नील गगन, यथा शक्ति।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी img-3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर यथास्थान विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए – (M.P. 2012)
मंत्री को फिक्र हुई अब कौन राज काज संभाले कौन राजा बने ऐसा चतुर आदमी कहाँ मिले कैसे मिले मंत्री को कुछ सूझ नहीं रहा था क्या करें राजा का चुनाव साधारण काम तो नहीं राजभर की जनता के हित-अनहित का सवाल था कहीं किसी गलत आदमी को राजा चुन बैठे तो राज बरबाद हो सकता था मंत्री को यह सवाल नामुमकिन जान पड़ने लगा?
उत्तर:
मंत्री को फिक्र हुई, अब कौन राज काज सँभाले? कौन राजा बने? ऐसा चतुर आदमी कहाँ मिले, कैसे मिले? मंत्री को कुछ सूझ नहीं रहा था। क्या करें? राजा का चुनाव साधारण काम तो नहीं? राजभर की जनता के हित-अनहित का सवाल था। कहीं किसी गलत को राजा चुन बैठे, तो राज बरबाद हो सकता था। मंत्री को यह सवाल नामुमकिन जान पड़ने लगा।

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प्रश्न 5.
उदाहरण के अनुसार ‘तंत्र’ शब्द जोड़कर चार नए शब्द बनाइए –
प्रजा + तंत्र = प्रजातंत्र
उत्तर:

  1. स्व + तंत्र = स्वतंत्र
  2. राज + तंत्र = राजतंत्र
  3. पर + तंत्र = परतंत्र
  4. लोक + तंत्र = लोकतंत्र

हंसिनी की भविष्यवाणी योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
हंस और हंसिनी की लोककथा बाल-सभा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
अपने परिवेश में प्रचलित किसी लोक कथा की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
पशु-पक्षियों के वार्तालाप से प्राप्त बोल कथाओं का संकलन कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
हमारे देश में भी प्रजातंत्र है। लोक सभा और विधान सभा के सदस्यों की संख्या पता कीजिए और उनके अधिभारों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

हंसिनी की भविष्यवाणी परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1.
मंत्री ने राजा को सलाह दी कि –
(क) वह किसी बालक को गोद ले लें।
(ख) वह किसी बालक को अपना उत्तराधिकारी बना दें।
(ग) वह किसी मंत्री को राजकाज सौंप दें।
(घ) वह किसी को भी अपना राजसिंहासन न सौंपें ।
उत्तर:
(क) वह किसी बालक को गोद ले लें।

प्रश्न 2.
मंत्री ने राजा को किसी बालक को गोद लेने की सलाह दी, क्योंकि –
(क) राजा बूढ़े हो गए थे
(ख) राजा निस्संतान थे
(ग) राजा के केवल लड़की थी
(घ) राजा को दूसरे राजा से खतराथा
उत्तर:
(ख) राजा निस्संतान थे।

प्रश्न 3.
राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था क्योंकि –
(क) मंत्री को अपना पद जाने का सवाल था
(ख) जनता के हित-अहित का सवाल था
(ग) राज्य की रक्षा का सवाल था
(घ) राजा के परिवार का सवाल था।
उत्तर:
(ख) जनता के हित-अहित का सवाल था।

प्रश्न 4.
बातचीत की आवाज आ रही थी –
(क) महल के पीछे से
(ख) सरोवर के किनारे से
(ग) सरोवर के बीच से
(घ) सरोवर के पेड़ों के पीछे से
उत्तर:
(ग) सरोवर के बीच से।

प्रश्न 5.
वाह! यह छोटी-सी बात कैसे हुई? किसने कहा?
(क) मंत्री ने
(ख) राजा ने
(ग) हंसिनी ने
(घ) हंस ने
उत्तर:
(घ) हंस ने।

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प्रश्न 6.
‘अब दूसरे देशों में भी ऐसा ही राज कायम होगा’ में किस राज की बात की गई है?
(क) तानाशाही राज की
(ख) राजा के राज की
(ग) प्रजा के राज की
(घ) स्वतंत्र राज की
उत्तर:
(ग) प्रजा के राज की।

प्रश्न 7.
हंसिनी ने क्या भविष्यवाणी की?
(क) दूसरे देशों में प्रजातंत्र कायम होने की
(ख) दूसरे देशों में राजतंत्र कायम होने की
(ग) दूसरे देशों में परतंत्र कायम होने की
(घ) दूसरे देशों में भीड़तंत्र कायम होने की।
उत्तर:
(क) दूसरे देशों में प्रजातंत्र कायम होने की।

प्रश्न 8.
मंत्री ने इस तरह व्यवस्था बनाई कि –
(क) प्रजातंत्र का प्रारंभ हुआ
(ख) राजा का चुनाव करना आसान हो गया
(ग) राज्य में राजतंत्र पुनःस्थापित हो गया
(घ) मंत्री आसानी से राजा बन गया
उत्तर:
(क) प्रजातंत्र का प्रारंभ हुआ।

प्रश्न 9.
मंत्री को कुछ सूझ नहीं रहा था क्योंकि –
(क) राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था
(ख) उसको अपना पद जाने का भय था
(ग) उसे किसी और के पदासीन होने की आशंका थी
(घ) उसे राज्य से निर्वासित होने का डर सता रहा था।
उत्तर:
(क) राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. ‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ ………. है। (लोककथा/वेदकथा)
  2. ‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ के लेखक हैं ……….। (उदयशंकर भट्ट/मनमोहन मदारिया)
  3. ………. का मालिक तो प्रजा ही है। (राज/राजा)
  4. जिसका यह देश है, उसको ही इसका ………. सँभालने दिया जाए। (शासन/राजकाज)
  5. मनमोहन मदारिया का साहित्य ………. है। (समाजोपयोगी बालोपयोगी)

उत्तर:

  1. लोककथा
  2. मनमोहन मदारिया
  3. राज
  4. राजकाज
  5. समाजोपयोगी।

III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –

  1. राजा ने कहा, “भगवान नहीं चाहते कि इस देश के राजसिंहासन पर दूसरे वंश का राज रहे।”
  2. मंत्री ने कहा, “राजन्! आप किसी होनहार बालक को गोद ले लें।”
  3. मंत्रीजी राजकाज से छुटकारा नहीं चाहते थे।
  4. किसी गलत आदमी के राजा बनने से राज बरबाद हो सकता था।
  5. देश में प्रजा के राज को राजतंत्र कहते हैं।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 हंसिनी की भविष्यवाणी img-4
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
मंत्री ने राजा को अपना वारिस चुनने की सलाह क्यों दी?
उत्तर:
मंत्री ने राजा को अपना वारिस चुनने की सलाह इसलिए दी कि वह बुड्ढा हो गया था।

प्रश्न 2.
राजा का चुनाव क्या नहीं था?
उत्तर:
राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था।

प्रश्न 3.
मंत्री ने किसकी बात कान लगाकर सुनी?
उत्तर:
मंत्री ने हंस और हंसिनी की वात कान लगाकर सुनी।

प्रश्न 4.
हंस ने न्याय की क्या बात कही?
उत्तर:
हंस ने यह न्याय की बात कही, “देश की असल मालिक तो प्रजा है, देश उसका ही है।”

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प्रश्न 5.
मंत्री ने संतोष की साँस क्यों ली?’
उत्तर:
मंत्री ने संतोष की साँस ली; क्योंकि आखिरी वक्त में उससे एक न्याय का काम हुआ था।

हंसिनी की भविष्यवाणी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंत्री ने बूढ़े राजा को किसी बालक को गोद लेने की सलाह क्यों दी?
उत्तर:
बूढ़े राजा निस्संतान थे। मंत्री ने राजा को किसी बालक को गोद लेने की सलाह इसलिए दी, ताकि उनके बाद उस बालक को राजकाज दिया जा सके।

प्रश्न 2.
राजा ने बालक को गोद लेने से इनकार क्यों कर दिया?
उत्तर:
राजा समझता था किसी बालक को गोद लेना भगवान की मरजी के खिलाफ होगा।

प्रश्न 3.
मंत्री राजकाज से छुटकारा क्यों पाना चाहता था?
उत्तर:
मंत्री राजकाज से छुटकारा पाना चाहता था; क्योंकि मंत्री बहुत बूढ़ा हो गया था।

प्रश्न 4.
सरोवर में हंस-हंसिनी किस संबंध में बातें कर रहे थे?
उत्तर:
सरोवर में हंस-हंसिनी मंत्री और देश के राजकाज के संबंध में बातें कर रहे थे।

प्रश्न 5.
हंसिनी ने राजकाज किसे सौंपने का सुझाव दिया?
उत्तर:
हंसिनी ने देश की असल मालिक प्रजा को राजकाज सौंपने का सुझाव दिया।

प्रश्न 6.
मंत्रीजी ने राज की किस पद्धति का आरंभ किया? उसे किस नाम से : जाना जाता है?
उत्तर:
मंत्रीजी द्वारा प्रारंभ की गई राज-पद्धति को प्रजातंत्र के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 7.
राजा क्या था?
उत्तर:
राजा बूढ़ा और निस्संतान था।

प्रश्न 8.
मंत्री की चिंता कैसे दूर हुई?
उत्तर:
मंत्री की चिन्ता हंस-हंसिनी के परस्पर बातचीत को सुनने से दूर हुई।

प्रश्न 9.
दूसरे देशों में भी किस ढंग का राज्य फैला?
उत्तर:
दूसरे देशों में भी प्रजातंत्र का राज्य फैला।

प्रश्न 10.
हंसिनी ने राजकाज किसे सौंपने का सुझाव दिया? (M.P. 2009)
उत्तर:
हंसिनी ने राजकाज प्रजा को सौंपने का सुझाव दिया।

हंसिनी की भविष्यवाणी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा ने किसी बालक को गोद न लेने के लिए क्या तर्क दिए?
उत्तर:
राजा ने किसी बालक को गोद न लेने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए –

  1. भगवान नहीं चाहते कि देश के राजसिंहासन पर मेरे वंश का राज रहे।
  2. मैं भगवान की मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं करूँगा। मैं भगवान की मरजी के खिलाफ कुछ नहीं करना चाहता।

प्रश्न 2.
हंसिनी ने राजा चुनने के प्रश्न को कैसे हल कर दिया?
उत्तर:
हंसिनी ने राजा चुनने के प्रश्न को बड़ी सरलता से हल कर दिया। उसने – हंस से कहा कि जो देश का असली मालिक है, उसे राजकाज सौंप दो। देश की असली मालिक प्रजा है और प्रजा को ही उसका राजकाज सौंप देना चाहिए।

प्रश्न 3.
हंसिनी ने राजकाज प्रजा को सौंपने की क्या योजना बताई? (M.P. 2012)
उत्तर:
हंसिनी ने राजकाज प्रजा को सौंपने की निम्नलिखित योजना बताई-प्रजा अपने में से कुछ व्यक्तियों को चुन ले। वे प्रजा की ओर से राजकाज सँभाले। उन व्यक्तियों में से एक मुखिया चुन लें और वह मुखिया चार-पाँच व्यक्तियों को चुन ले। वे सब मिलकर काम करें। यदि ठीक काम न करें तो प्रजा उन्हें हटाकर दूसरे आदमी चुन लें।

प्रश्न 4.
मंत्री की क्या परेशानी थी?
उत्तर:
मंत्री की यह परेशानी थी कि वह राजा का चुनाव कैसे करे, क्योंकि राजा का चुनाव आसान काम नहीं था। यह पूरे देश की जनता के हित-अनहित का प्रश्न था, इसके लिए उसने कुछ चतुर-सयाने लोगों से सलाह ली। लेकिन किसी ने सही सलाह नहीं दी थी। गलत आदमी को राजा बनाने से पूरा देश बरबाद हो सकता था।

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प्रश्न 5.
विचार-सभा बनने से क्या हुआ?
उत्तर:
विचार-सभा बनने से देश में नए ढंग का राज होने लगा। इससे प्रजा को बहुत अधिक लाभ हुआ। प्रजा पहले कभी उतनी सुखी और धनी नहीं रही थी, जितनी इस नए ढंग के राज में सुखी रही।

हंसिनी की भविष्यवाणी लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
मनमोहन मदारिया का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
समाज-कल्याण से निरंतर रूप से जुड़े मनमोहन मदारिया का जन्म मध्य प्रदेश के बोहानी नरसिंहपुर गाँव में 3 सितंबर, 1929 को हुआ। आपने बी.एस.सी., एम.ए. और एल.एल.बी. तक शिक्षा प्राप्त की। उसके उपरान्त आप दैनिक अखबारों में संपादक के कार्य से जुड़े। विज्ञान और साहित्य की समझ और पत्रकारिता की समझ के कारण ही आप साहित्य-सृजन की ओर मुड़ पड़े। साहित्य-सृजन के क्षेत्र में आपने कहानी, उपन्यास, संस्मरण, व्यंग्य और बालोपयोगी साहित्य की रचना की। आपने मध्य प्रदेश शासन के समाज-कल्याण विभाग से अवकाश ग्रहण किया। आज भी आप साहित्य-सृजन के क्षेत्र में सक्रिय हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ:
मदनमोहनजी ने अपनी साहित्य रचनाओं में अपने विचार, अनुभव और समकालीन सोच में सामंजस्य को स्थान दिया है। यह सामंजस्य उनकी रचनाओं से स्पष्ट झलकता है। जमीन से जुड़ाव और सामाजिक समस्याओं से साक्षात्कार ने उनकी रचनात्मकता को व्यापक फलक प्रदान किया है। यही कारण है कि उन्होंने विविध विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है।

रचनाएँ:

  • कहानी-संकलन – एक वासंती रात, समुद्र के किनारे।
  • उपन्यास – चार दीवारी, मिसेज लाल।
  • संस्मरण-संग्रह – वे सहचर आत्मा के।
  • व्यंग्य-संग्रह – मेरी प्रिय व्यंग्य रचनाएँ।
  • एकांकी-संग्रह – सूरज की धूप।
  • बालोपयोगी साहित्य – गुदड़ी का लाल (उपन्यास), आज की लोककथाएँ, बाल, कथाएँ आदि।

भाषा-शैली:
मनमोहन मदारिया की भाषा-शैली सहज, सरल, प्रांजल खड़ी बोली है। उनकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। उनकी भाषा में व्यंग्य के छींटे भी हैं। बालोपयोगी साहित्य की भाषा सहज और स्वाभाविक है। वे नवसाक्षरों हेतु उपयोगी साहित्य-सृजन में सिद्धहस्त हैं। समाज कल्याण विभाग से संबद्धता और संपादन कार्य ने उन्हें समाजोपयोगी सृजन का विस्तृत क्षेत्र प्रदान किया है।

हंसिनी की भविष्यवाणी पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
मनमोहन मदारिया ने इस कहानी में लोककथा शैली को अपनाते हुए प्रजातंत्र शासन-पद्धति की प्रारंभिक अवधारणा को एक कल्पना कथा के द्वारा प्रस्तुत किया है। कहानी का सार इस प्रकार है –

एक देश के राजा को कोई संतान नहीं थी। उस बूढ़े राजा को मन्त्री ने किसी योग्य बालक को गोद लेने की सलाह दी परंतु राजा ने इस सलाह को यह कहकर मानने से इनकार कर दिया कि भगवान नहीं चाहते कि इस देश के राजसिंहासन, पर मेरे वंश का राज रहे। मैं भगवान की इच्छा के विपरीत कार्य नहीं करना चाहता। कुछ समय बाद राजा की मृत्यु हो गई। मंत्रीजी बड़े चिंतित हुए कि अब राज-काज कौन चलाये। कौन राजा बने? वह स्वयं भी बहुत वृद्ध थे। वे मरने से पहले किसी चतुर आदमी के हाथ में राज-काज सौंपना चाहते थे।

उन्होंने कई लोगों की सलाह ली, पर कोई ठीक से राय नहीं दे सका। – एक दिन मंत्रीजी महल के पीछे सरोवर के किनारे टहल रहे थे और नया राजा चुनने के संबंध में सोच रहे थे कि वह समस्या अचानक सुलझ गई। सरोवर के किनारे टहलते हुए उन्हें हंस-हंसिनी की बातें सुनाई पड़ीं जो मंत्रीजी और नया राजा चुनने के संबंध में ही बातें कर रहे थे। हंसिनी ने सुझाव दिया कि जिसका राज-काज है, उसे ही सँभालने दिया जाए। हंस ने कहा, देश की असल मालिक तो प्रजा है, देश उसका ही है। हंसिनी ने कहा-न्याय की बात तो यही है कि मंत्रीजी को राजकाज प्रजा को सौंप देना चाहिए। इसके बाद हंसिनी ने प्रजा को राज-काज सौंपने की सारी प्रक्रिया समझाई।

हंसिनी की बातों को सुनकर मंत्रीजी को उपाय सूझ गया। उन्होंने एक विचार-सभा स्थापित की। उसमें तीन सौ आदमी थे। वे देश की तीन करोड़ जनता द्वारा चुने गए थे। उनमें से एक आदमी को नेता चुना गया। वह देश का मुखिया हुआ। उस मुखिया ने विचार-सभा में से चार आदमी और चुन लिए। वे मिलकर राजकाज चलाने लगे। यह बंदोबस्त प्रजा के लिए बड़ा हितकारी हुआ ! प्रजा नए ढंग के राज में पहले से अधिक धनी और सुखी हुई।

पुराने मंत्री अपने महल में आराम से रहने लगे। एक दिन जब मंत्रीजी सरोवर की ओर विहार के लिए गए तो उन्होंने हंस-हंसिनी को बातें करते सुना। हंस हंसिनी से कह रहा था कि अपने देश में प्रजा का ही राज स्थापित हो गया है। हंसिनी ने कहा, इसमें आश्चर्य की क्या बात है? आज नहीं तो कल यह तो डोने वाला ही था। अब दूसरे देशों में भी ऐसा ही राज कायम होगा। हंस ने कहा, भगवान करे, तेरी बात सच हों। मंत्री ने उनकी बातें सुनकर संतोष की साँस ली और मन ही मन कहा, चलो आखिरी वक्त में मुझसे एक न्याय का काम हुआ। आगे चलकर हंसिनी की भविष्यवाणी सच हुई। दूसरे देशों में भी उस ढंग का राज फैला। इस प्रकार के प्रशासन को आज प्रजातंत्र के नाम से जाना जाता है।

हंसिनी की भविष्यवाणी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
कुछ दिनों बाद राजा चल बसा। मंत्रीजी को फिक्र हुई, अब कौन राज-काज सँभाले? कौन राजा बने? वह खुद बहुत बूढ़े थे। राज-काज से अब वह भी छुटकारा चाहते थे। मगर इसके पहले किसी चतुर आदमी के हाथ में वह राज-काज सौंप देना चाहते थे। ऐसा चतुर आदमी आखिर कहाँ मिले, कैसे मिले? मंत्री इसी सोच में थे। उन्होंने कुछ चतुर-सयाने लोगों से सलाह ली पर कोई ठीक राय न दे सका। मंत्री सब तरफ से निराश हो गए। कुछ सूझ नहीं रहा था, क्या करें? राजा का चुनाव साधारण काम तो था नहीं राज्यभर की जनता के हित-अनहित का सवाल था। कहीं किसी गलत आदमी को राजा चुन बैठे तो राज बरबाद हो सकता था। मंत्री को यह सवाल नामुमकिन जान पड़ने लगा। (Pages 80-81)

शब्दार्थ:

  • चल बसा – मृत्यु होना।
  • फ्रिक – चिंता।
  • चतुर – चालाक, योग्य।
  • सयाने – समझदार।
  • राय – सलाह।
  • बरबाद – समाप्त।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश मनमोहन मदारिया द्वारा रचित कहानी ‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ से उद्धृत है। इस गद्यांश में मंत्री नए राजा के चुनाव को लेकर चिंतित है। उसके सामने नए राजा का चुनाव करना एक समस्या बन गया है। इस पर प्रकाश डालते हुए लेखक ने कहा है –

व्याख्या:
कुछ समय के बाद बूढ़े निस्संतान राजा की मृत्यु हो गई। संतानहीन होने के कारण उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उसकी मृत्यु के बाद मंत्री को चिंता हुई कि अब राज्य का कार्य कौन सँभालेगा? कौन राजा बने? मंत्री स्वयं भी बहुत बूढ़ा हो गया था। वह राजकार्य चलाने में असमर्थ था। मंत्री तो स्वयं अब राजकार्य से मुक्त होना चाहता था। मंत्री राजकार्य से मुक्ति पाने से पहले किसी योग्य व्यक्ति को राजकाज दे देना चाहता था। उन्हें इस बात की चिंता हो रही थी कि ऐसा योग्य व्यक्ति उन्हें कहाँ मिलेगा। उसे कहाँ खोजा जाए और कैसे खोजा जाए। मंत्रीजी इसी सोच-विचार में लगे हुए थे। उन्होंने राज्य के कुछ योग्य और समझदार लोगों से इस संबंध में विचार-विमर्श किया। किंतु कोई भी उचित सलाह नहीं दे सका।

मंत्री सब ओर से निराश हो गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करें और कैसे राजा का चुनाव करें। राजा का चुनाव करना कोई साधारण काम नहीं था। राजा के चुनाव के साथ राज्य की समूची जनता की भलाई और बुराई का प्रश्न जुड़ा था। यदि योग्य व्यक्ति राजा बना, तो वह जनता की भलाई, उसके कल्याण के लिए कार्य करेगा और यदि राजा अयोग्य चुना गया, तो जनता पर अन्याय, अत्याचार करेगा। मंत्री को डर था कि यदि उसने राजा के रूप में गलत व्यक्ति का चुनाव कर दिया, तो सारा राज्य नष्ट हो जाएगा। मंत्री को योग्य राजा चुनने के प्रश्न का उत्तर मिलना असंभव लग रहा था। उसे लगने लगा था कि योग्य राजा का चुनाव करना अत्यंत मुश्किल है।

विशेष:

  1. मंत्री की चिंता को व्यक्त किया गया है।
  2. विचारात्मक शैली है।
  3. सरल, सुबोध खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मंत्री को क्यों चिंता सता रही थी?
उत्तर:
राजा की मृत्यु हो चुकी थी। राज्य का मंत्री इसलिए चिंतित था कि राजा निःसंतान था। उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। मंत्री को चिंता सता रही थी कि वह अब किसे राजा बनाए, जो राज्य का कार्यभार सँभाल सके।

प्रश्न (ii)
मंत्री स्वयं राजा क्यों नहीं बनना चाहता था?
उत्तर:
मंत्री ईमानदार और स्वामिभक्त था। दूसरे वह बहुत बूढ़ा हो चुका था। समस्त राज-काज संलना उसके बस का नहीं था। मंत्री स्वयं राजकाज से छुटकारा चाहता था इसलिए वह स्वयं राजा नहीं बनना चाहता था।

प्रश्न (iii)
मंत्री ने राजा चुनने के लिए क्या प्रयास किया?
उत्तर:
मंत्री ने योग्य व्यक्ति को राजा चुनने के लिए राज्य के योग्य और समझदार व्यक्तियों से विचार-विमर्श किया किन्तु कोई भी उन्हें उचित सलाह नहीं दे सका।

प्रश्न (iv)
राजा का चुनाव साधारण काम क्यों नहीं था?
उत्तर:
राजा का चुनाव साधारण काम नहीं था, क्योंकि इसके साथ राज्य की प्रजा के हित-अहित का प्रश्न जुड़ा था। राज्य की सुरक्षा का भी प्रश्न था । अयोग्य व्यक्ति राजा बन जाए, तो राज्य बरबाद हो सकता था।

गद्य पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मंत्री कैसा राजा ढूँढना चाहता था और क्यों?
उत्तर:
मंत्री राज्य के लिए योग्य व्यक्ति ढूँढना चाहता था, क्योंकि वह चाहता था कि यदि योग्य व्यक्ति राजा बना, तो वह राज्य की प्रजा के हितों का ध्यान रखेगा और राज्य भी सुरक्षित रहेगा।

प्रश्न (ii)
मंत्री सब तरफ से निराश क्यों हो गया?
उत्तर:
मंत्री चतुर व्यक्ति के हाथ में सारा राजकाज सौंप देना चाहते थे। उसने योग्य व्यक्ति की खोज के लिए राज्य के विद्वानों से विचार-विमर्श किया किंतु कोई भी व्यक्ति उचित सलाह नहीं दे सका। इसलिए मंत्री निराश हो गया।

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प्रश्न 2.
हंस-हंसिनी की इन बातों से मंत्री को राह सूझ गई। उनकी एक बड़ी फिक्र मिट गई। उन्होंने हंस-हंसिनी की बातों के मुताबिक काम किया। देश में एक विचारसभा कायम की गई। उसमें तीन सौ आदमी थे। ये आदमी प्रजा ने चुने थे। देश की आबादी तीन करोड़ थी। एक लाख आबादी में से एक आदमी चुना गया था। इस तरह विचारसभा में प्रजा के जाने-माने आदमी थे। विचारसभा के तीन सौ आदमियों ने अपना एक नेता चुना।

वह आदमी देश का मुखिया हुआ, उसने ही पुराने राजा का काम सँभाला। अपनी मदद के लिए उसने विचारसभा में से ही चार आदमी और चुन लिए। वे पाँच लोग मिल-जुलकर राज-काज चलाने लगे। उनके कामों पर विचारसभा की निगरानी रहती थी। विचारसभा राज चलाने के कानून भी बनाती थी। इस तरह देश में नएं ढंग से राज होने लगा। यह बंदोबस्त प्रजा के लिए बड़ा हितकारी हुआ। प्रजा पहले कभी उतनी सुखी और धनी नहीं रही थी जितनी इस नए ढंग के राज में सुखी रही। (Page 82)

शब्दार्थ:

  • राह सूझना – रास्ता दिखाई देना।
  • फ्रिक – चिंता।
  • मुताबिक – के अनुसार।
  • कायम – स्थापना, स्थापित करना।
  • आबादी – जनसंख्या।
  • जाने-माने – प्रसिद्ध, योग्य।
  • निगरानी – देख-रेख।
  • बंदोबस्त – व्यवस्था।
  • हितकारी – कल्याणकारी।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश मनमोहन मदारिया द्वारा रचित कहानी ‘हंसिनी की भविष्यवाणी’ से उद्धृत है। इस गद्यांश से प्रजातंत्र पद्धति की प्रारंभिक अवधारणा को प्रस्तुत करने के साथ-साथ उसके सफल होने का भी वर्णन किया गया है।

व्याख्या:
हंस-हंसिनी के पारस्परिक वार्तालाप को सुनकर राजा की खोज के लिए मंत्री को रास्ता समझ में आ गया। उसकी एक बहुत बड़ी चिंता समाप्त हो गई। मंत्री ने हंस-हंसिनी की बातों के अनुसार प्रजा का राज्य प्रजा को सौंपने का कार्य आरंभ कर दिया। उन्होंने देश में एक विचारसभा की स्थापना की। उस विधारसभा में तीन सौ व्यक्ति थे। ये तीन सौ व्यक्ति प्रजा ने स्वयं चुने थे। देश की कुल जनसंख्या तीन करोड़ थी। इस प्रकार एक लाख की जनसंख्या में से एक आदमी चुना गया था। दूसरे शब्दों में, विचारसभा का गठन प्रजा ने अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया। विचारसभा के सदस्यों की संख्या जनसंख्या पर आधारित थी।

एक लाख व्यक्तियों का एक प्रतिनिधि था। विचारसभा के तीन सौ आदमियों ने अपना एक नेता चुना। वह नेता देश का मुखिया हुआ। उस मुखिया ने ही पुराने राजा का कार्य सँभाल लिया। उसने अपनी सहायता के लिए विचारसभा से ही चार व्यक्तियों का चुनाव कर लिया। वे पाँच लोग मिल-जुलकर राज्य का राजकाज चलाने लगे। उनके द्वारा किए गए और किए जाने वाले सभी काम पर विचारसभा देख-रेख करती थी।

विचारसभा ही देश का प्रशासन सुचारु रूप से चलाने के नियम-उपनियम बनाती थी। इस प्रकार देश में नई शासन-व्यवस्था से राज होने लगा। यह शासन-व्यवस्था देश की प्रजा के लिए बड़ा कल्याणकारी सिद्ध हुआ। इस शासन-व्यवस्था के कारण प्रजा पहले की अपेक्षा अधिक सुखी और धनी थी। इस नए ढंग की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में प्रजा अत्यंत सुखी रही।

विशेष:

  1. प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था की प्रारंभिक अवधारणा को प्रस्तुत किया गया है।
  2. विचारात्मक शैली है।
  3. भाषा सहज, सरल, उर्दू शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
हंस-हंसिनी की बातों से मंत्री को कौन-सी राह सूझ गई?
उत्तर:
मंत्रीजी देश के लिए योग्य राजा चुनने की चिंता से ग्रस्त थे। उसे राजा के योग्य व्यक्ति नहीं मिल रहा था। हंस-हंसिनी की पारस्परिक बातों से मंत्री को रास्ता मिल गया कि देश की असली मालिक प्रजा है और प्रजा को देश का राजकाज सौंप देना चाहिए। यही न्याय है।

प्रश्न (ii)
मंत्री ने देश की प्रजा को राजकाज सौंपने के लिए क्या किया?
उत्तर:
मंत्री ने देश में एक विचारसभा की स्थापना की। उसमें जनसंख्या के आधार पर जनता को एक प्रतिनिधि चुनकर भेजने को कहा। प्रजा ने अपने तीन सौ प्रतिनिधि चुनकर भेजे। ये सभी देश के जाने-माने व्यक्ति थे। विचारसभा के आदमियों ने अपना एक मुखिया चुना। मुखिया ने उन आदमियों में से चार आदमी चुन लिए। मंत्री ने मुखिया को सारा राजकाज सौंप दिया। वे सब मिलकर राजकाज चलाने लगे।

प्रश्न (iii)
नए ढंग की व्यवस्था से क्या फल हुआ?
उत्तर:
नए ढंग की व्यवस्था से राज में प्रजा का बहुत.हित हुआ। राज में सुख और शांति का वातावरण बना। प्रजा पहले राज की तुलना में अधिक धनी और सुखी हुई।

गद्य पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मंत्री ने किसके मुताबिक कार्य किया और क्यों?
उत्तर:
मंत्री ने हंस-हंसिनी की बातों के मुताबिक कार्य किया क्योंकि उसे देश ‘ की असली मालिक प्रजा को राजकाज सौंपने की बात उचित लगी।

प्रश्न (ii)
पुराने राजा का कार्य किसने सँभाला?
उत्तर:
पुराने राजा का काम विचारसभा में तीन सौ आदमियों द्वारा अपना नेता चुने गए व्यक्ति ने सँभाला।

प्रश्न (iii)
विचारसभा क्या-क्या कार्य करती थी?
उत्तर:
विचारसभा मुखिया उसके सहयोगी के कामों पर निगरानी रखती थी। वह राज चलाने के लिए कानून बनाती थी।

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक (निबन्ध, आचार्य विनय मोहन शर्मा)

दक्षिण भारत की एक झलक पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

दक्षिण भारत की एक झलक लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तमिलनाडु के निवासियों की दृष्टि में सर्वोपरि क्या है?
उत्तर:
तमिलनाडु के निवासियों की दृष्टि में अपनी भाषा और संस्कृति सर्वोपरि है।

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प्रश्न 2.
‘महाश्वेता’ की छवि कौन धारण करता है? यहाँ महाश्वेता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
महाश्वेता की छवि केरल की स्त्रियाँ धारण करती हैं। यहाँ महाश्वेता का अर्थ है-सरस्वती देवी।

प्रश्न 3.
कन्याकुमारी में कौन-कौन से समुद्रों का मिलन होता है? (M.P. 2011)
उत्तर:
कन्याकुमारी में हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी समुद्रों का मिलन होता है।

प्रश्न 4.
तमिल कवि की तुलना तुलसी काव्य से क्यों की जाती है?
उत्तर:
तमिल कवि ‘कम्बन’ ने भी तुलसी के समान ही ‘कम्बन रामायण’ की रचना की है।

प्रश्न 5.
पार्वती जी का नाम कन्याकुमारी क्यों पड़ा? (M.P. 2010)
उत्तर:
शिव-पार्वती का विवाह होने वाला था। विवाह का मूहूर्त रात में था। पार्वती उनकी खोज में चली गईं। बारात न पहुँचने के कारण वे उदास होकर अपने निवास में लौट आयीं और तभी से उनका नाम कन्याकुमारी पड़ गया।

दक्षिण भारत की एक झलक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आंध्रवासियों का रहन-सहन कैसा है?
उत्तर:
आंध्रवासियों का रहन-सहन साधारण है। स्त्रियाँ खुली साड़ी पहनती हैं। उन्हें अपने बालों को फूलों से सजाने का चाव है। पुरुष धोती पहनते हैं। पीछे लाँग का छोर झंडी की तरह लहराता दिखाई देता है। वे कॉफी पीते हैं और इडली का नाश्ता करते हैं। यहाँ रामायण का बड़ा प्रचार है। स्त्री-पुरुषों में भावुकता अधिक पाई जाती है। वे समय के अनुसार स्वयं को ढालने में सक्षम हैं।

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प्रश्न 2.
तमिल और आंध्रवासियों की भोजन पद्धति में क्या नवीनता है?
उत्तर:
तमिल और आंध्रवासियों की भोजन पद्धति में विशेष अंतर नहीं है। केले के पत्ते पर भात का ढेर, रसम, दाल, तरकारी, दही, चटनी, मोर (तक्र) परोसा जाता है। खाने वाला भात में सब कुछ मिलाकर लंबे लंबे पिंड बनाकर गटकता जाता है। अय्यर (ब्राह्मण) निरामिष भोजी होता है और ब्राह्मणोत्तर को आमिष भोजन से परहेज नहीं है। भात की इडली ‘छोले’ के समान दोसा और उपमा, चटनी और दही के साथ बड़े प्रेम से खाये जाते हैं। भात में शुद्ध देशी घी का प्रयोग होता है।

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार नारी किस तरह भारतीय एकता का प्रतीक बन रही है?
उत्तर:
हिंदी फिल्मों के प्रभाव के कारण आधुनिक महाराष्ट्र, तमिल और केरल नारी की वेशभूषा समान होती जा रही है। सभी स्त्रियाँ एक जैसी साड़ी पहनती हैं, जिसका एक छोर दक्षिण कंधे से होता हुआ पीछे एड़ी से छूता हुआ झूलता है। उसका सर सदा खुला रहने का रिवाज धीरे-धीरे उत्तर के शिक्षित घरों में भी बढ़ रहा है। इस प्रकार लेखक के अनुसार वेशभूषा में भारतीय नारी एकता की प्रतीक बनती जा रही है।

प्रश्न 4.
केरल के गाँवों की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
केरल के गाँवों में भोजन के अंत में जीरे से उबाला हुआ कुनकुना पानी पीने के काम में लाया जाता है। वहाँ रहन-सहन का स्तर ऊँचा है। गरीबों के नारियल के अवयवों से बने घर भी बिलकुल स्वच्छ होते हैं। प्रत्येक घर के आँगन में दस-पाँच नारियल, दो-चार केले, कटहल के पेड़ अवश्य होते हैं। गाँव की प्रत्येक गली साफ-सुथरी होती है। अधिकांश गाँवों में बिजली है। पोस्ट ऑफिस, छोटा दवाखाना और स्कूल हैं। दो-चार गाँवों के बीच हाई स्कूल और बीस-पच्चीस गाँवों के बीच कॉलेज की व्यवस्था है। गाँव-गाँव में हिंदी बोलने वाले हैं।

प्रश्न 5.
चेन्नई में हिंदी प्रचार-सभा क्या-क्या कार्य कर रही है?
उत्तर:
चेन्नई में हिंदी प्रचार-सभा हिंदी की विद्यापीठ का कार्य कर रही है। यहाँ से हिंदी के कई सौ अध्यापक-अध्यापिकाएँ प्रतिवर्ष शिक्षा ग्रहण कर दक्षिण के अनेक स्कूल और कॉलेजों में हिंदी अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। वे दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार का महत्त्वपूर्ण काम कर रही हैं।

दक्षिण भारत की एक झलक भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
‘आमिष’ शब्द में निः उपसर्ग लगाकर ‘निरामिष’ विलोम शब्द बनाया गया है। इसी प्रकार उपसर्गों के प्रयोग से निम्नलिखित के विलोम शब्द लिखिए –
प्रशंसनीय, एकता, सजीव, संस्कृति
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह कर समासों के नाम लिखिए –
तमिलनाडु, अनंत-शयनम्, शताव्दी, चौपाटी, शृंगार-काल।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक img-2

प्रश्न 3.
‘कृष्णा नदी के दर्शन होते हैं।’ वाक्य में ‘दर्शन’ शब्द एकवचन होकर भी बहुवचन की तरह प्रयुक्त हुआ है। हिंदी के ऐसे ही पाँच वाक्य जिसमें बहुवचन के रूप में शब्द का प्रयोग हुआ हो लिखिए।
उत्तर:

  1. अधिकारी ने चेक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।
  2. बीमार वृद्धा के प्राण-पखेरू उड़ गए।
  3. इस मंदिर में भगवान विराजमान हैं।
  4. दुखभरी बातें सुनते ही महिला की आँखों से आँसू बह निकले।
  5. सुमन के बाल लंबे हैं।

दक्षिण भारत की एक झलक भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
प्रकृति पर विजय पाकर ही मनुष्य दम लेता है।
उत्तर:
प्रकृति मनुष्य के मार्ग में अनेक बाधाएँ उपस्थित करती है। समुद्र की लहरों पर मछुआरों की नाव बार-बार ऊपर-नीचे होती है। उन्हें देखकर प्रतीत होता है कि उनकी नावें अब डूबी और तब डूबीं। काफ़ी प्रयास के बाद वे नाव को स्थिर कर पाते हैं। मछुआरे शीघ्र ही समुद्र की सतह पर नाव खेते हुए दिखाई देते हैं। इस प्रकार मनुष्य प्रकृति से हार नहीं मानता, उस पर विजय प्राप्त करके ही दम लेता है। समुद्र की लहरों पर नाव खेना उसके द्वारा प्रकृति पर विजय पाने का ही परिणाम है।

दक्षिण भारत की एक झलक योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
दक्षिण भारतीय छात्रों से सघन मैत्री कर उनके प्रदेशों की विशेषताएँ ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
दक्षिण के उन लोगों की सूची बनाइए जो राजनीति, फिल्म, साहित्य, नृत्य …….. और संगीत में प्रसिद्ध हुए हैं।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
संविधान स्वीकृत कोई अन्य भाषा सीखने का प्रयत्न कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
दक्षिण भारत दर्शन का कार्यक्रम बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 5.
हिंदी प्रचार सभा (चेन्नई) की तरह हिंदी के विकास के लिए जो संस्थाएँ पत्रिकाएँ कार्य करती हैं, उनकी सूची बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

दक्षिण भारत की एक झलक परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘दक्षिण भारत की एक झलक’ यात्रा-वृत्तांत के लेखक हैं –
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) आचार्य विनय मोहन शर्मा
(घ) आचार्य नरेंद्र देव
उत्तर:
(ग) आचार्य विनय मोहन शर्मा।

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प्रश्न 2.
कृष्णा नदी स्थित है –
(क) तमिलनाडु में
(ख) केरल में
(ग) आंध्र प्रदेश में
(घ) महाराष्ट्र में
उत्तर:
(ग) आंध्र प्रदेश में।

प्रश्न 3.
अय्यर (ब्राह्मण) ……….. भोजी होता है।
(क) निरामिष
(ख) आमिष
(ग) शाकाहारी
(घ) रंजक
उत्तर:
(क) निरामिष।

प्रश्न 4.
अनंत-शयनम् के मंदिर में ……….. पहनकर जाना निषिद्ध है।
(क) सिला हुआ वस्त्र या जूता
(ख) पगड़ी या खड़ाऊँ।
(ग) पैंट-कमीज अथवा धोती
(घ) घड़ी, बेल्ट अथवा चप्पल
उत्तर:
(क) सिला हुआ वस्त्र या जूता।

प्रश्न 5.
विश्व में वह कौन-सा स्थान है, जहाँ सूर्य समुद्र में डूबता है और समुद्र से ही उगता है?
(क) कन्याकुमारी का समुद्र तट
(ख) गोवा का समुद्र तट
(ग) मुंबई का समुद्र तट
(घ) कोलकाता का गंगा तट
उत्तर:
(क) कन्याकुमारी का समुद्र तट।

प्रश्न 6.
त्रिवेन्द्रम का दूसरा नाम है –
(क) त्रावणकोर
(ख) तिरुअनन्तपुरम
(ग) गोपुरम
(घ) तिरुचिरापल्ली
उत्तर:
(ख) तिरुअनन्तपुरम।

प्रश्न 7.
मीनाक्षी मंदिर स्थित है –
(क) मदुरा में
(ख) मथुरा में
(ग) रामेश्वरम में
(घ) मद्रास में
उत्तर:
(क) मदुरा में।

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प्रश्न 8.
काले पत्थर की विशाल हनुमान मूर्ति दक्षिण के किस मंदिर में है?
(क) शुचिन्द्रम मंदिर
(ख) मीनाक्षी मंदिर
(ग) अनन्तशयनम् मंदिर
(घ) कन्याकुमारी मंदिर
उत्तर:
(क) शुचिन्द्रम मंदिर।

प्रश्न 9.
कन्याकुमारी को मंदिर किस देवी का मंदिर है?
(क) सरस्वती
(ख) दुर्गा
(ग) पार्वती
(घ) लक्ष्मी
उत्तर:
(ग) पार्वती।

प्रश्न 10.
तमिल स्त्रियाँ किससे बनी बाल्टी से कुएँ से पानी खींच रही थीं?
(क) लोहे की
(ख) ताड़ के पत्तों की
(ग) नारियल के पत्तों की
(घ) प्लास्टिक की
उत्तर:
(ख) ताड़ के पत्तों की।

प्रश्न 11.
जब पार्वती का विवाह शिव से होने वाला था –
(क) तब शिवजी की बारात वहाँ पहुँच गई।
(ख) कुमारी पार्वती शिवजी से मिल गईं।
(ग) विवाह का मुहूर्त भोर में था।
(घ) शिवजी के न मिलने पर पार्वती अपने निवास स्थान को लौट आईं।
उत्तर:
(घ) शिवजी के न मिलने पर पार्वती अपने निवास स्थान को लौट आईं।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. त्रिवेन्द्रम का दूसरा नाम ………. है। (तिरुचिरापल्ली/तिरुअनन्तपुरम्)
  2. लेखक ने दक्षिण भारत की यात्रा ………. में की थी। (1853/1953)
  3. बेजवाड़ा ………. का एक प्रमुख नगर है। (आंध्र-प्रदेश/तमिलनाड्)
  4. तेलुगु भाषा में सत्तर प्रतिशब्द ………. के होते हैं। (तमिल संस्कृत)
  5. आंध्र में ………. कृत रामायण का बड़ा प्रचार है। (त्यागराज/तुलसी)

उत्तर:

  1. तिरुअनन्तपुरम्
  2. 1953
  3. आन्ध-प्रदेश
  4. संस्कृत
  5. तुलसी।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –

  1. त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी तक लगातार बस्ती है।
  2. गोपुरम् मन्दिर के द्वार को कहते हैं।
  3. तमिल का व्याकरण ईसा के आठवीं शताब्दी पूर्व लिखा गया था।
  4. मद्रास को चेन्नई कहते हैं।
  5. श्री रंगम् का मंदिर कावेरी नदी के द्वीप में है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 दक्षिण भारत की एक झलक img-3
उत्तर:
(i) (ग), (ii) (घ), (iii) (ङ), (iv) (ख), (v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
त्रिवांकुर (त्रावणकोर) जाते समय लेखक ने किसकी झलक देखी?
उत्तर:
त्रिवांकुर (त्रावणकोर) जाते समय लेखक ने आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल की झलक देखी।

प्रश्न 2.
आंध्र का प्रमुख नगर कौन-सा है?
उत्तर:
वेजवाड़ा

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प्रश्न 3.
भक्त कवि त्यागराज किस शताब्दी के थे?
उत्तर:
18वीं शताब्दी के

प्रश्न 4.
अय्यर ब्राह्मण कैसे होते हैं?
उत्तर:
अय्यर ब्राह्मण निरामिष भोजी होते हैं।

प्रश्न 5.
आन्ध्र में क्या-क्या अधिक पैदा होता है?
उत्तर:
आंध्र में काजू, केला और धान अधिक पैदा होता है।

दक्षिण भारत की एक झलक लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आंध्र में हिंदी की किस पुस्तक का बड़ा प्रचार है?
उत्तर:
आंध्र में हिंदी की तुलसीकृत रामायण का बड़ा प्रचार है।

प्रश्न 2.
आंध्रप्रदेश के लोग कौन-सी भाषा बोलते हैं?
उत्तर:
आंध्रप्रदेश के लोग तमिल भाषा बोलते हैं।

प्रश्न 3.
केरल के गरीब लोग क्या खाते हैं?
उत्तर:
केरल के गरीब लोग जंगल से कंद को उखाड़कर उसे भूनकर या उबाल के खाते हैं।

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प्रश्न 4.
त्रिवेन्द्रम में बाजारों में बहुत-से लोग नंगे पैर क्यों चलते हैं?
उत्तर:
त्रिवेन्द्रम में बारहों महीने वर्षा होती रहती है। अतः कीचड़ से बचने के लिए लोग नंगे पैर चलते हैं।

प्रश्न 5.
श्रीरंगम् का मंदिर कहाँ बना हुआ है?
उत्तर:
श्रीरंगम् का मंदिर तिरुचिरापल्ली के निकट कावेरी नदी के द्वीप में बना हुआ है।

प्रश्न 6.
मद्रास का कौन-सा वृक्ष जग-प्रसिद्ध है और क्यों?
उत्तर:
मद्रास का वट-वृक्ष जग प्रसिद्ध है, क्योंकि इसकी लंबाई उत्तर से दक्षिण की ओर 200 फुट और चौड़ाई में पूरब से पश्चिम की ओर 205 फुट है।

प्रश्न 7.
तमिल और आंध्र का मुख्य भोजन क्या है?
उत्तर:
भात का ढेर, रसम, दाल, तरकारी, दही, चटनी, मोटर (तक्र), भात की इडली, डोसा और उपमा तमिल और आंध्र का मुख्य भोजन है।

प्रश्न 8.
समुद्र दर्शन के बाद लेखक कहाँ गया?
उत्तर:
समुद्र दर्शन के बाद लेखक अजायबघर गया।

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प्रश्न 9.
रामेश्वरम् की क्या विशेषता है?
उत्तर:
रामेश्वरम् में विशाल मंदिर है। कई तीर्थ कूप हैं, जिनका पानी मीठा है। यहाँ हिंदी जानने वाले बहुत हैं।

दक्षिण भारत की एक झलक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तमिलानाडु के स्त्री-पुरुषों की वेशभूषा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तमिलनाडु के पुरुषों की वेशभूषा में लुंगी, कुरता और आधुनिक बुशर्ट शामिल हैं। स्त्रियाँ खुली साड़ी पहनती हैं। उन्हें हरा रंग अच्छा लगता है। स्त्रियाँ हरा परिधान पहनती हैं।

प्रश्न 2.
लेखक किस व्यावसायिक ईमानदारी से प्रभावित हुआ?
उत्तर:
लेखक ने मद्रास, मदुरा, तिरुचिरापल्ली और रामेश्वरम् आदि स्थानों के होटल में भोजन किया। वहाँ के होटलों में भात पर शुद्ध देशी घी ही डाला गया। होटल वालों की यह ईमानदारी प्रशंसनीय है। दूध के संबंध में वहाँ के दुकानदार बड़े स्पष्टवादी हैं। वे स्पष्ट कहते हैं कि हम शुद्ध दूध नहीं बेचते। हम कॉफी का दूध बेचते हैं, जिसमें पानी मिला होता है। लेखक उनकी इस व्यावसायिक ईमानदारी से बड़ा प्रभावित हुआ।

प्रश्न 3.
लेखक कन्याकुमारी में सूर्यास्त का दृश्य क्यों नहीं देख पाया?
उत्तर:
लेखक सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए कन्याकुमारी के समुद्र तट पर पहुँच गया। बहुत-से सैलानी वहाँ सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए उत्सुक थे, पर बादल सूर्य को रह-रहकर ढाँप लेते थे। लेखक सूर्यास्त की दिशा पर नजरें गड़ाये रहा, पर बादलों ने सूर्य को मुक्त नहीं किया। फलस्वरूप वह सूर्यास्त का दृश्य नहीं देख पाया।

प्रश्न 4.
मीनाक्षी मंदिर की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मीनाक्षी मंदिर मदुरा में स्थित है। यह बड़ा विशाल मंदिर है। यह कई गोपुरम से घिरा हुआ है। गोपुरम ऊँचा गुंबद के समान द्वार है। इस मंदिर में अनेक मूर्तियों में पौराणिक गाथाएँ अंकित हैं। मंदिर के प्रत्येक खंभे पर हाथी के ऊपर सवार सिंह दिखलाया गया है। मूर्तियाँ बड़ी सजीव हैं। यहाँ एक हजार खंभों वाला हाल है। मंदिर में दक्षिण के 63 संतों की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर में इनकी वाणियों का अध्ययन-मनन होता है।

प्रश्न 5.
अनंतशयनम् के मंदिर की क्या विशेषता है?
उत्तर:
अनंतशयनम् मंदिर में सिला हुआ वस्त्र या जूता पहनकर जाना निषिद्ध है। महिलाओं की साड़ी सिला हुआ वस्त्र न होने के कारण मंदिर में प्रवेश पा सकती, हैं। मंदिर में मूर्ति की विशालता दर्शनीय है।

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प्रश्न 6.
मद्रास का जग-प्रसिद्ध वट-वृक्ष कैसा है?
उत्तर:
मद्रास का जग-प्रसिद्ध वट-वृक्ष दर्शनीय है। इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण की ओर 200 फुट और चौड़ाई पूरब से पश्चिम की ओर 205 फुट है। इसके नीचे एनींबेसेन्ट ने थियोसोफिकल सोसाइटी की अनेक महत्त्वपूर्ण सभाएँ की हैं। यह हजारों दर्शकों का विश्राम-स्थल है।

दक्षिण भारत की एक झलक लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
आचार्य विनय मोहन शर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
आचार्य विनय मोहन शर्मा का जन्म 19 दिसंबर, सन् 1905 में करकबैल मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में हुआ। इनका मूल नाम शुक देव प्रसाद तिवारी ‘वीरात्मा’ था। आपने एम.ए., पी-एचडी., एल.एल.बी., तक शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने पत्रकारिता से साहित्य जगत् में प्रवेश किया। ये ‘कर्मवीर’ पत्रिका के सहायक सम्पादक.रहे। सन् 1940 से शिक्षा-जगत् में विभिन्न पदों पर रहकर अध्यापन किया।

ये नागपुर एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और महाकौशल विश्वविद्यालय, जबलपुर में प्राचार्य रहे। इन्होंने केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के प्रथम निदेशक पद को भी सुशोभित किया। ये सन् 1970 से 1973 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अंतर्गत विश्वविद्यालय से भी संबद्ध रहे। 5 अगस्त, सन् 1993 को इनका निधन हो गया।

साहित्यिक-परिचय:
हिंदी को मराठी संतों की देन’ शोध प्रबंध पर आपको अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए। इन्होंने हिंदी, पंजाबी और मराठी संतों का तथा तुलसी काव्यों का तुलनात्मक अध्ययन किया और ‘गीत-गोविंद’ का हिंदी अनुवाद किया। इनकी ‘दृष्टिकोण’, ‘साहित्य कथा पुराना’, शोध प्रविधि-मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत की जा चुकी है। विभिन्न शासकीय एवं अशासकीय साहित्य संस्थानों तथा सभाओं द्वारा आपको सम्मानित एवं पुरस्कृत भी किया गया है। पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र द्वारा रचित महाकाव्य ‘कृष्णायक’ की इन्होंने अवधी से खड़ी बोली में रूपान्तरित किया है। हिंदी साहित्य जगत् में निबंधकार, समीक्षक, एवं शोधकर्ता के रूप में इनका विशिष्ट स्थान है।

रचनाएँ:
इनकी हिंदी को मराठी संतों की देन, हिंदी, पंजाबी और मराठी में कृष्ण तथा तुलसी काव्यों का तुलनात्मक अध्ययन, गीत-गोविन्द का हिंदी अनुवाद, दृष्टिकोण, साहित्य कथा पुराना, शोध प्रविधि, कृष्णायन का खड़ी बोली में रूपांतरण आदि रचनाएँ हैं।

भाषा-शैली:
विनय मोहन शर्मा की भाषा प्रौढ़, सशक्त, परिमार्जित खड़ी बोली – है। भाषा में तत्सम शब्दों के अतिरिक्त प्रचलित उर्दू शब्द भी हैं। साधारण विषयों पर इनकी लेखनी सरल और व्यावहारिक भाषा का रूप धारण कर लेती है।

दक्षिण भारत की एक झलक पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
‘दक्षिण भारत की एक झलक’ यात्रा-वृत्तांत का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत की एक झलक’ यात्रा-वृत्तांत में आचार्य विनय मोहन शर्मा ने दक्षिण भारत के सुरम्य स्थानों, रीति-रिवाजों और दृश्यों का वर्णन करते हुए वहाँ की संस्कृति की सजीव झाँकियाँ प्रस्तुत की हैं। शर्माजी कहते हैं कि मुझे 1953 में पहली बार त्रावणकोर जाते हुए आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जाने का अवसर मिला। प्रातःकाल जब उनकी गाड़ी आंध्र प्रदेश के बेजबाड़ा पहुँची तो उन्हें ऐसा लगा मानो किसी नई दुनिया में प्रवेश हो रहा है।

वहाँ की समुद्र से आने वाली वायु तन और मन दोनों को शीतलता प्रदान कर रही थी। वहाँ कृष्णा नदी भी देखी। आंध की स्त्रियाँ खुली साड़ी पहनती हैं और पुरुष धोती पहनते हैं, जिनकी लांग की छोर झंडी की तरह लहराता दिखाई देती है। लोग गोरे रंग के होते हैं और लोग तेलुगू बोलते हैं। यहाँ तुलसीकृत रामायण का बड़ा प्रचार है। 18वीं शताब्दी में भक्त कवि त्यागराज ने भी तुलसी का अनुकरण किया है।

आचार्यजी आंध्र के लोगों के खान-पान के संबंध में बताते हुए कहते हैं कि लोग कॉफी अधिक पीते हैं और इडली का नाश्ता करते हैं। स्त्रियाँ फूलों से केश-सज्जा करती हैं। वहाँ काजू और केले के साथ-साथ धान उत्पन्न होता है। स्त्री-पुरुष भावुक होते हैं। वे स्वयं को समय के अनुरूप ढालने में सक्षम हैं। ‘गुडूर’ से गाड़ी तमिलनाडु में प्रवेश करती है। यहाँ तमिल भाषा बोली जाती है। पुरुष लुंगी, कुर्ता और बुशशर्ट पहनते हैं। यहाँ के लोग रंग के साँवले होते हैं। स्त्रियों को हरा रंग अधिक पसन्द है। तमिल और आंध्र के भोजन में विशेष अंतर नहीं है। वहाँ केले के पत्ते पर भात, रसम, दाल, तरकारी और दही, चटनी, मोर परोसा जाता है।

यहाँ इटली, दोसा, उपमा, चटनी और दही के साथ खाया जाता है। – सुदूर दक्षिण में मिठाइयों की दुकानें नहीं हैं। वहाँ होटल वाले ईमानदार हैं। वे भात में शुद्ध घी का प्रयोग करते हैं परन्तु वे शुद्ध दूध नहीं बेचते। केरल की आबादी सघन है। जमीन हरी-भरी है। गरीब लोग कंद खाते हैं। उसके साथ मछली मिल जाने पर पूरा आहार हो जाता है। नारियल बहुतायत से होता है। अतः लोग उसका कई रूपों में प्रयोग करते हैं। उसका पानी बेंचा जाता है।

केरल में स्त्रियों का पहनावा तमिलनाडु की स्त्रियों से अलग है। वे उजले रंग के वस्त्र पहनती हैं। शहरी स्त्रियों का पहनावा हिंदी फिल्मों के प्रभाव के कारण महाराष्ट्र, तमिल और केरल में एक जैसा है। त्रावणकोर-कोचीन में शिक्षा प्रचार-प्रसार अधिक है। लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा है। घर साफ-सुथरे होते हैं। अधिकांश गाँवों में बिजली है। पोस्ट-ऑफिस, दवाखाना, और स्कूल प्रत्येक गाँव में हैं। दो-चार गाँवों के मध्य एक हाई स्कूल और बीस-पच्चीस गाँवों के बीच एक कॉलेज भी स्थापित है। हिंदी का यहाँ बहुत प्रचार है। परीक्षा के लिए हिंदी अनिवार्य है।

त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी की यात्रा बड़ी रोचक थी। स्त्री-पुरुष बाजारों में नंगे पैर चलते हैं; क्योंकि वर्षा होती रहती है। यहाँ का समुद्र-दर्शन अत्यन्त आकर्षक होता है। समुद्र की आती-जाती लहरों में खड़ा होने में आनन्द आता है। समुद्र में अनेक मछुवारे मछलियाँ पकड़ते दिखाई देते हैं। उनकी नावें समुद्र में तैरती दिखाई देती हैं। वहाँ के अजायबघर में समुद्र की मछलियों, सर्पो, केकड़ों आदि को सुरक्षित रखा गया है। यह अजायबघर भारत में अपनी तरह का एक ही है। वहाँ के अनन्त-शयनम् मन्दिर में सिला हुआ वस्त्र या जूता पहनकर जाना मना है। मन्दिर में मूर्ति की विशालता दर्शनीय है।

त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी तक इतनी सघन आबादी है कि भारत के किसी भाग में इतनी सघन आबादी नहीं है। तमिल स्त्रियाँ ताड़ की बनी बाल्टी से कुएँ से पानी निकालती हैं। दक्षिण भारत में मामूली स्त्रियाँ सोने के और संभ्रांत स्त्रियाँ हीरे, मोती, जवाहरात के आभूषण पहनती हैं। कन्याकुमारी में सूर्यास्त का दृश्य अत्यन्त भव्य होता है। यहाँ तीन समुद्रों का मिलन होता है। अनेक स्त्री-पुरुष सूर्यास्त का दृश्य देखने को उत्सुक थे, लेकिन बादलों के कारण यह सम्भव नहीं हो सका। संसार में यही स्थान है जहाँ सूर्य समुद्र में डूबता है और समुद्र से ही उगता है।

कन्याकुमारी के मंदिर में पार्वती के दर्शन के लिए गए। इस मंदिर में भी नंगे बदन ही जाना पड़ता था। वहाँ पार्वती विवाह का मुहूर्त निकल जाने के कारण अविवाहित रूप में ही आकर विराजमान हो गई थी। अतः इसीलिए यहाँ का नाम कन्याकुमारी पड़ा है। इसके बाद शुचिन्द्रम के भव्य मंदिर के दर्शन किए। वहाँ पर काले पत्थर की विशाल हनुमान की मूर्ति है। वह मुख्य रूप से शिव-मंदिर है। मंदिर के प्रस्तर स्तंभों की विशेषता है कि उसे हाथ से ठोंकने पर धीमी सुरीली आवाज निकलती है।

त्रिवेन्द्रम और कन्याकुमारी के बीच की भूमि में सुपारी, काजू, केला, नारियल और धान आदि से उर्वरा है। आचार्य कहते हैं कि समय की कमी के कारण मलयालय के कई साहित्यकारों से भेंट नहीं हो पाई। इसके बाद मदुरा का मीनाक्षी मंदिर देखा। वह बहुत विस्तीर्ण है। यह कई गोपुरम से घिरा है। गोपुरम ऊँचा गुम्बद के समान द्वार है। यहाँ की मूर्तियाँ बड़ी सजीव हैं। वहाँ एक हजार खम्भों वाला हॉल है, वहाँ हजारों नर-नारी प्रसाद पा सकते हैं। मदुरा से रामेश्वरम धनुष-कोटि भी गए। रामेश्वरम का मंदिर विशाल है। यहाँ तीर्थयात्री समुद्र में स्नान करते हैं।

यहाँ हिंदी जानने वाले बड़ी संख्या में हैं। तिरुचिरापल्ली का कावेरी नदी के द्वीप पर बना श्रीरंगम का मंदिर दर्शनीय है। त्रिचिन्नापल्ली में सहस्रों सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद ऊँचाई पर एक विशाल मंदिर है। यहाँ से । नगर और नदी का दृश्य बड़ा सुन्दर दिखायी देता है। तमिल साहित्य बहुत प्राचीन है। तमिल का व्याकरण आज भी ईसा की चार शताब्दी पूर्व ही लिखा गया व्याकरण है। चेन्नई में भी हिंदी साहित्य में गीत का परिचय मिलता है। वहाँ की हिंदी-प्रचार सभा को दक्षिण में हिंदी की प्रमुख विद्यापीठ का रूप प्रदान कर रही है।

वहाँ से कई सौ अध्यापक-अध्यापिकाएँ प्रतिवर्ष शिक्षा ग्रहण कर दक्षिण के अनेक स्कूल-कॉलेजों दक्षिण भारत की एक झलक में हिंदी पढ़ा रहे हैं। मद्रास में अडयार पुस्तकालय काफी संपन्न है। वहाँ का वटवृक्ष विश्वविख्यात है। वहाँ का समुद्रतट भी बहुत सुन्दर है। वहाँ शाम को सैलानियों का मेला-सा लग जाता है। रात के आठ बजे तक सैलानियों को मद्रास रेडियो स्टेशन का भोंपू कार्यक्रम सुनाता रहता है।

दक्षिण भारत की एक झलक संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
सुदूर दक्षिण में उत्तर भारत के समान तरह-तरह की मिठाइयों की दुकानें नहीं हैं। बड़े-बड़े नगरों में उत्तर भारत के एक-दो हलवाई थोड़ी-बहुत मिठाई बनाते हैं। चटपटी, खारी, खट्टी चीजें दक्षिण भारतीयों को बहुत प्रिय हैं। घी की अपेक्षा नारियल के तेल का इस्तेमाल अधिक होता है। परन्तु वहाँ के होटलों में एक बात यह देखी गई है कि जब वे भात पर घी डालते हैं, तो ह शुद्ध घी ही होता है।

होटल वालों की यह ईमानदारी प्रशंसनीय है। मैंने मद्रास, मदुरा, त्रिचिनापल्ली, रामेश्वरम् आदि स्थानों के होटलों में भोजन किया और मुझे हर जगह शुद्ध ताजे घी का स्वाद मिला। दूध के संबंध में भी यहाँ के दुकानदार बड़े स्पष्टवादी हैं। दक्षिण के स्टेशनों पर आपकी आँखों के सामने की पाल (दूध) में वल्लम (पानी) मिलाकर देंगे और कहेंगे शुद्ध दूध हम नहीं बेचते, हम कॉफी का दूध रखते हैं। इस व्यावसायिक ईमानदारी ने मुझे बड़ा प्रभावित किया। (Page 74)

शब्दार्थ:

  • सुदूर – बहुत दूर, बहुत दूर का।
  • प्रशंसनीय – प्रशंसा करने योग्य।
  • स्पष्टवादी – स्पष्ट बोलने वाले।
  • व्यावसायिक – व्यापारिक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य विनय मोहन शर्मा द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत ‘दक्षिण भारत की एक झलक’ से उद्धृत है। लेखक दक्षिण भारत के सुरम्य स्थानों, रीति-रिवाजों और दृश्यों का रोचक वर्णन किया है। इस गद्यांश में लेखक दक्षिण भारत के लोगों की व्यावसायिक ईमानदारी का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या:
लेखक ने दक्षिण भारत की कवा के दौरान तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश की यात्रा की। उसने देखा कि बहुत दूर स्थित दक्षिण में उत्तर भारत के समान तरह-तरह की मिठाइयों की दुकानें नहीं हैं। दूसरे शब्दों, जैसे उत्तर भारत में तरह-तरह की मिठाई बनाने वाले हलवाइयों की दुकानें होती हैं, वैसे दुकानें दूरस्थ दक्षिण भारत में नहीं मिलतीं। यहाँ केवल बड़े-बड़े नगरों में ही उत्तर भारत के एक-दो हलवाई ही थोड़ी-बहुत मिठाई बनाते हैं। इसका कारण है दक्षिण भारत के लोगों को मिठाई अधिक रुचिकर नहीं होती है।

दक्षिण भारत के लोगों को मिठाइयों की अपेक्षा चटपटी, मसालेदार, खारी और खट्टी चीजें ही अधिक पसन्द हैं। दक्षिण भारत में लोग घी का कम प्रयोग करते हैं। नारियल के तेल का अधिक इस्तेमाल करते हैं। लेखक यहाँ के होटलों की विशेषता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहता है कि यहाँ के होटलों में एक बात यह देखने में आई कि वे भात पर घी डालते हैं और वह भी शुद्ध देशी घी। भात पर देशी घी डालने के संबंध में उनकी ईमानदारी प्रशंसा करने के योग्य है। वे देशी घी में किसी तरह की मिलावट नहीं करते। वे ईमानदारी से भात पर शुद्ध देशी घी ही डालते हैं।

लेखक बताता है कि उसने दक्षिण भारत के मद्रास, मदुरा, त्रिचिन्नापल्ली, रामेश्वरम आदि स्थानों के होटलों में खाना खाया और उसे हर स्थान पर शुद्ध देशी घी का ही स्वाद मिला। इतना ही नहीं दूध के संबंध में भी यहाँ के दुकानदार बहुत स्पष्ट बोलने वाले हैं। दक्षिण भारत के स्टेशनों पर वे आपके द्वारा दूध माँगने पर आपकी आँखों के सामने ही दूध में पानी मिलाकर देंगे। वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि हम लोग शुद्ध दूध नहीं बेचते। हम कॉफी का दूध रखते हैं। कॉफी के दूध में पानी मिला होता है। लेखक दक्षिण भारतीयों की इस व्यापारिक ईमानदारी से वड़ा प्रभावित हुआ।

विशेष:

  1. दक्षिण भारतीय होटल वालों की ईमानदारी की प्रशंसा की है।
  2. वर्णनात्मक शैली है।
  3. भाषा सरल, स्पष्ट खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
उत्तर भारतीय तथा दक्षिण भारतीय लोगों के स्वाद में क्या अंतर है?
उत्तर:
उत्तर भारतीयों को भिठाइयाँ अधिक पसंद हैं, तो दक्षिण भारतीयों को चटपटी, खारी और खट्टी चीजें अधिक पसंद हैं।

प्रश्न (ii)
लेखक दक्षिण भारतीयों की किस स्पष्टवादिता से प्रभावित हुआ?
उत्तर:
दक्षिण भारत के लोग आपके सामने दूध में पानी मिलाकर आपको देंगे और स्पष्ट कहेंगे कि हम शुद्ध दूध नहीं बेचते, हम कॉफी का दूध रखते हैं। लेखक उनकी इस स्पष्टवादिता से प्रभावित हुआ।

प्रश्न (iii)
दक्षिण भारत के होटलों में भात पर किस तरह का घी डाला जाता है?
उत्तर:
दक्षिण भारत के होटलों में भात पर शुद्ध देशी घी डाला जाता है।

गद्य पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर:
दक्षिण भारतीयों की पसंद, ईमानदारी और स्पष्टवादिता की प्रशंसा करना।

प्रश्न (ii)
लेखक ने दक्षिण भारत के किन-किन नगरों के होटल में खाना खाया और उसको क्या अनुभव हुआ?
उत्तर:
लेखक ने दक्षिण भारत के मद्रास, मदुरा, त्रिचिन्नापल्ली, रामेश्वरम आदि चारों होटलों में खाना खाया और उसे हर स्थान पर शुद्ध ताजे घी के स्वाद का अच्छा अनुभव हुआ।

प्रश्न 2.
त्रावणकोर (केरल) में प्रवेश करते ही स्त्रियों की पोशाक के रंग में अंतर दिखाई देने लगता है। यहाँ वे ‘महाश्वेता’ की छवि धारण कर लेती हैं। उन्हें तमिलनाडु की स्त्री के समान हरा-लाल रंग पसन्द नहीं-वे उजले रंग के वस्त्र पहनती हैं। यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूं। इस लेख में पोशाक आदि की चर्चा नगर और ग्राम के सामूहिक जीवन को लक्ष्य करके की जा रही है। यों आज महाराष्ट्र, तमिल और केरल राज्यों की ही नहीं, समस्त देश की शहरी स्त्रियों की वेशभूषा प्रायः समान ही होती जा रही है। यह हिंदी चित्रपटों का प्रभाव जान पड़ता है।

आधुनिक महाराष्ट्र की नारी स्वच्छ साड़ी पहनना पसन्द करती है, तमिल और केरल की नारी भी उसी तरह साड़ी पहनती है, जिसका एक छोर दक्षिण कन्धे से होता हुआ पीछे एड़ी से छूता हुआ झूलता है। उसका सर सदा खुला रहने का रिवाज धीरे-धीरे उत्तर के शिक्षित घरों में भी बढ़ रहा है। वेशभूषा में नारी भारतीय एकता का प्रतीक बनती जा रही है। त्रावणकोर-कोचीन में शिक्षा का प्रसार अधिक होने से जनता के रहन-सहन का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा है। गरीबों के घर भी, जो अधिकतर नारियल के विभिन्न अवयवों से बनते हैं, बिल्कुल स्वच्छ रहते हैं।

प्रत्येक छोटे से घर के आँगन में दस-पाँच नारियल, दो-चार केले, कटहल के पेड़ अवश्य दिखाई देंगे। उत्तर के गाँव जहाँ चारों ओर पुरीष से घिरे रहते हैं, वहाँ केरल के गाँव गली-गली स्वच्छ झलकते हैं। यहाँ अधिकांश ग्राम विजली से जगमगाते हैं। पोस्ट ऑफिस, छोटा-सा दवाखाना और स्कूल के बिना तो गाँव बसते ही नहीं, दो-चार गाँवों के मध्य एक हाईस्कूल, बीस-पच्चीस गाँवों के बीच एक कॉलेज आवश्यक समझा जाता है। वहाँ हिंदी का इतना अधिक प्रचार है कि गाँव-गाँव में उसे बोलने-समझने वाले स्त्री-पुरुष मिल जाते हैं। (Page 75)

शब्दार्थ:

  • महाश्वेता – सरस्वती।
  • छवि – सुंदरता, रूप।
  • पोशाक – वेशभूषा।
  • सामूहिक – सामाजिक।
  • चित्रपटों – फिल्मों।
  • स्वच्छ – साफसुथरे।
  • रिवाज – परंपरा।
  • अवयवों – भागों।
  • पुरीष – गंदगी
  • कूड़ा – करकट।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य विनय मोहन शर्मा द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत दक्षिण भारत की एक झलक’ से उद्धृत है। इस गद्यांश में लेखक केरल की स्त्रियों की वेशभूषा, वहाँ के घरों तथा शिक्षा-व्यवस्था के साथ-साथ हिंदी की स्थिति पर प्रकाश डाल रहा है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि केरल राज्य में प्रवेश (दाखिल) होते ही स्त्रियों के पहनावे की पोशाकों के रंग में अंतर स्पष्ट दिखाई देने लगता है। वेशभूषा के संबंध में केरल की स्त्रियाँ सरस्वती का रूप ग्रहण करती दिखाई पड़ती हैं। यहाँ की स्त्रियों को तमिलनाडु की स्त्री की तरह हरा और लाल रंग पसंद नहीं है। वे सफेद (उज्ज्वल) रंग के कपड़े पहनती हैं। लेखक यहाँ एक बात स्पष्ट कर रहा है कि इस लेख में पहनावे आदि की चर्चा नगर और गाँव के सामूहिक जीवन को लक्ष्य करके ही की जा रही है। वैसे तो आज महाराष्ट्र, जमिल और केरल राज्यों में ही नहीं, अपितु देश के समस्त राज्यों के शहरी क्षेत्रों की स्त्रियों के पहनावे में समानता आती जा रही है।

सारे देश के शहरी क्षेत्रों नारियों की वेशभूषा में समानता आने का कारण हिंदी फिल्मों का प्रभाव दिखाई देता है। हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियाँ जो वस्त्र पहनती हैं, वही आजकल नगरों की स्त्रियाँ पहनने लगी हैं। आधुनिक महाराष्ट्रीय स्त्री साफ-सुथरी साड़ी पहनना पसंद करती है तो तमिलनाडु और केरल की स्त्रियाँ भी उसी प्रकार की साड़ी पहनती हैं। उस तरह की साड़ी का एक किनारा दक्षिण कंधे से होता पीछे एड़ी से छूता हुआ लटकता रहता है। दूसरे शब्दों में, सभी स्त्रियाँ उलटे पल्ले की साड़ी पहनती हैं। उनका सर बिना पल्ले के खुला रहता है। यह रिवाज धीरे-धीरे उत्तर भारत के सुशिक्षित घरों की नारियों में भी निरंतर बढ़ता जा रहा है।

इस तरह के पहनावे से भारतीय नारी राष्ट्रीय एकता की प्रतीक बनती जा रही है। त्रावणकोर और कोचीन में शिक्षा-प्रसार अधिक होने के कारण जनता के रहन-सहन का स्तर तुलनात्मक दृष्टि से ऊँचा है। गरीबों के घर भी जो अधिकतर नारियल के विभिन्न भागों में बने होते हैं, बिलकुल साफ-सुथरे होते हैं। प्रत्येक छोटे-से घर के आँगन में भी नारियल के दस-पाँच पेड़, दो-चार केले के पेड़ और कटहल के पेड़ अवश्य लगे होते हैं। उत्तर भारत के गाँवों में चारों तरफ कूड़े-करकट के ढेर लगे होते हैं, वहीं दक्षिण भारत के गाँव की गली-गली साफ-सुथरी होती है। यहाँ के अधिकांश गाँवों में बिजली की व्यवस्था है, जिसके प्रकाश से गाँव बिजली की रोशनी से जगमगाते रहते हैं।

केरल के प्रत्येक गाँव में पोस्ट ऑफिस (डाकखाना), छोटा दवाखाना और प्राथमिक स्कूल हैं। दो-चार गाँवों के बीच हाई स्कूल है। तो 20-25 गाँवों के मध्य एक कॉलेज भी है। इस प्रकार केरल राज्य में शिक्षा की अच्छी व्यवस्था है। केरल में हिंदी का प्रचार-प्रसार बहुत है। यही कारण है कि यहाँ के गाँव-गाँव में हिंदी बोलने और समझने वाले स्त्री-पुरुष मिल जाते हैं। दूसरे शब्दों में, केरल में हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या पर्याप्त है।

विशेष:

  1. लेखक ने केरल की विशेषताओं का वर्णन किया है।
  2. वर्णनात्मक शैली है।
  3. भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

प्रश्न (i)
लेखक ने हिंदी चित्रपट के किस प्रभाव का वर्णन किया है?
उत्तर:
लेखक ने हिंदी चित्रपट के वेशभूषा के प्रभाव का वर्णन किया है। हिंदी फिल्मों के प्रभाव के कारण सारे भारत के शहरी क्षेत्रों की स्त्रियों में एक ही ढंय से साड़ी पहने जाने लगी है।

प्रश्न (ii)
उत्तर भारत और केरल के गाँवों में क्या अंतर है?
उत्तर:
उत्तर भारत के गाँव चारों ओर से कूड़े-करकट से घिरे रहते हैं, जबकि केरल के गाँव की गली-गली साफ-सुथरी रहती हैं।

प्रश्न (iii)
तमिलनाडु और केरल की स्त्रियों की पसंद में क्या अंतर है?
उत्तर:
तमिलनाडु की स्त्रियाँ पहनावे में हरा और लाल रंग पसंद करती हैं, तो केरल की स्त्रियाँ उजले वस्त्र पहनना पसन्द करती हैं।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न (i)
त्रावणकोर-कोचीन में रहन-सहन का स्तर ऊँचा क्यों है?
उत्तर:
त्रावणकोर-कोचीन में शिक्षा का प्रचार-प्रसार अधिक होने के कारण जनता के रहन-सहन का स्तर गाँवों की अपेक्षा अधिक ऊँचा है।

प्रश्न (ii)
केरल के गाँवों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. केरल के गाँवों में बिजली की व्यवस्था है। गाँव बिजली से जगमगाते रहते हैं।
  2. केरल के गाँवों में डाकखाना, दवाखाना और स्कूल हैं।

प्रश्न (iii)
किस राज्य के गाँव-गाँव में हिंदी बोलने और समझने वाले मिल जाते हैं और क्यों?
उत्तर:
केरल राज्य के गाँव-गाँव में हिंदी बोलने वाले और समझने वाले मिल जाते हैं, क्योंकि यहाँ हिंदी का प्रचार-प्रसार बहुत है। यहाँ हिंदी परीक्षा की अनिवार्य भाषा है।

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प्रश्न 3.
त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी तक लगातार बस्ती होने से ऐसा जान पड़ता है, मानो त्रिवेन्द्रम ही पचास मील तक चला गया हो। इतनी घनी आबादी भारत के किसी भाग में नहीं है। मार्ग में गाड़ी पंचर हो जाने से हम एक निकटवर्ती कुएँ पर गए जहाँ तमिल स्त्रियाँ ताड़ की बनी हुई बाल्टी से पानी खींच रही थीं। उन्होंने हमें प्यासा, अनुमान कर स्वयं पानी पिलाया। उन्हें हम अजनबियों को देखकर कुतूहल होता था और हमें उनके नीचे तक लटके फटे कानों से सोने के कर्णफूल देखकर आश्चर्य होता था। ऐसा जान पड़ता था कि कान अब अधिक भार नहीं सह सकेंगे, फट ही पड़ेंगे। दक्षिण में मामूली स्त्रियाँ सोने के आभूषण पहनती हैं। संभ्रान्त परिवार की स्त्रियाँ हीरे, मोती, जवाहरात को काम में लाती हैं। सोना उनके लिए हल्की धातु है। (Page 76)

शब्दार्थ:

  • आबादी – जनसंख्या।
  • कुतूहल – आश्चर्य।
  • आभूषण – जेवर।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य विनय मोहन शर्मा द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत ‘दक्षिण भारत की एक झलक’ से उद्धृत है। लेखक केरल की सघन जनसंख्या और तमिल स्त्रियों की आभूषणप्रियता का वर्णन करता हुआ कर रहा है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी तक लगातार बस्ती ही बस्ती थी। उस बस्ती को देखकर लमता था, मानो त्रिवेन्द्रम ही पचास मील तक फैला हुआ हो। इतनी अधिक सघन आबादी (जनसंख्या) भारत के किसी भाग में नहीं है जितना त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी के बीच फैले भाग में है। लेखक कहता है कि कन्याकुमारी की ओर जाते हुए उनकी गाड़ी में पंचर हो गया इसलिए गाड़ी में सवार हम सभी उतरकर पास वाले कुएँ पर चले गए। वहाँ हमने देखा कि तमिल स्त्रियाँ ताड़ के पत्तों से बनी हुई बाल्टी से पानी खींच रही थीं। उन्होंने हम लोगों को प्यासा जानकर अंदाजे से स्वयं ही पानी पिलाया।

उन तमिल स्त्रियों को हम अपरिचितों को देखकर आश्चर्य होता था और हम लोगों को उन स्त्रियों के नीचे तक लटके फटे हुए कानों में सोने के कर्णफूल देखकर आश्चर्य होता था। कहने का भाव यह कि वे तमिल स्त्रियाँ हम अपरिचितों को आश्चर्य से देख रही थीं तो हम लोगों को भी उनके कानों में सोने के कर्णफल नामक आभूषण देखकर आश्चर्य हो रहा था। उन स्त्रियों के कान भी कटे-फटे हुए थे।

उनके कानों की स्थिति देखकर लगता था कि उनके नीचे तक लटके-फटे हुए कान अब अधिक वजन नहीं सह सकेंगे। यदि और थोड़ा वजन अधिक डाला, तो कान फट ही जायेंगे। लेखक बताता है कि दक्षिण भारत में साधारण वर्ग की स्त्रियाँ सोने के जेवर धारण करती हैं और उच्च वर्ग या कुल की स्त्रियाँ हीरे, मोती और जवाहरात के आभूषण पहनती हैं। सोना उनके लिए हल्की वस्तु है; अर्थात् उनके लिए मामूली चीज है।

विशेष:

  1. लेखक ने दक्षिण भारत की सामाजिक स्थिति का वर्णन किया है।
  2. वर्णानात्मक शैली है।
  3. भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

प्रश्न (i)
तमिल स्त्रियों को क्या देखकर आश्चर्य हो रहा था?
उत्तर:
तमिल स्त्रियों को अजनबियों को अपने गाँव में देखकर आश्चर्य हो रहा था।

प्रश्न (ii)
तमिल स्त्रियों के कटे-फटे कान क्या संकेत कर रहे थे?
उत्तर:
तमिल स्त्रियों के कटे-फटे और लटके कान इस बात की ओर संकेत कर रहे थे कि अपने कानों में वज़नदार आभूषण पहनती होंगी, जिनके कारण कान नीचे तक लटककर फट गए हैं। अब उन कानों में अधिक भार सहने की क्षमता नहीं : रह गई है।

प्रश्न (iii)
तमिल स्त्रियों ने लेखक और उसके साथियों को पानी क्यों पिलाया?
उत्तर:
लेखक और उसके साथी गाड़ी में पंचर होने के कारण गाड़ी से उतरकर एक पास के कुएँ पर गए। वहाँ पानी भरने वाली तमिल स्त्रियों ने समझा कि वे लोग प्यासे हैं और पानी पीने के लिए ही कुएँ पर आए हैं। इसलिए तमिल स्त्रियों ने उन्हें पानी पिलाया।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न (i)
दक्षिण में साधारण स्त्रियों और संभ्रान्त स्त्रियों के आभूषणों में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
दक्षिण में साधारण स्त्रियाँ सोने के आभूषण पहनती हैं और संभ्रान्त परिवार की स्त्रियाँ हीरे, मोती और जवाहरात के आभूषण काम में लाती हैं।

प्रश्न (ii)
त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी की आबादी के सम्बन्ध में लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर:
त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी की आबादी के संबंध में लेखक ने कहा कि इतनी घनी आबादी तो भारत के किसी भी भाग में नहीं है। दूसरे शब्दों में केरल के इस क्षेत्र में बहुत सघन जनसंख्या है।

प्रश्न 4.
यहाँ हिंदी साहित्य में गति का परिचय मिलता है। यहाँ की हिंदी प्रचार सभा को दक्षिण में हिंदी की प्रमुख विद्यापीठ का रूप प्रदान कर रही है। यहाँ से हिंदी के कई सौ अध्यापक-अध्यापिकाएँ प्रतिवर्ष शिक्षा ग्रहण कर दक्षिण की अनेक शालाओं तथा विश्वविद्यालय के कॉलेजों में हिंदी-अध्यापन कार्य कर रहे हैं। महात्माजी ने जब मद्रास में हिंदी-प्रचार की नींव रखी तब हृषीकेशजी के साथ-साथ रघुवरदयालजी जो यहाँ के हिंदी प्रेमी जन हैं वे भी सभा में पहुँचे।

तब से आज तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का अंग मानकर ये सभा में कार्य कर रहे हैं। दक्षिण भारत में कई अहिंदी भाषा-भाषी सज्जन हिंदी की बड़ी सेवा कर रहे हैं। रघुवरदयाल मिश्र ने बतलाया कि तंजोर पुस्तकालय में मणि-प्रवाल शैली में लिखित बहुत पुराना हस्तलिखित ग्रन्थ है, जिसमें अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी रचनाएँ हैं। (Page 77)

शब्दार्थ:

  • गति – प्रगति।
  • महात्माजी – महात्मा गाँधी जी।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य विनय मोहन शर्मा द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत ‘दक्षिण भारत की एक झलक’ से उद्धृत है। लेखक इस गाद्यांश में चेन्नई की हिंदी प्रचार सभा के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहता है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि जब वह दक्षिण भारत की यात्रा करते हुए त्रिचिन्नापल्ली से मद्रास पहुँचा, तो उसे यहाँ हिंदी साहित्य की प्रगति की जानकारी प्राप्त हुई। दूसरे शब्दों में, मद्रास में हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में पर्याप्त प्रगति देखने को मिली। यहाँ स्थापित हिंदी प्रचार सभा दक्षिण में हिंदी की प्रमुख विद्यापीठ के रूप में कार्य कर रही है। यहाँ से हिंदी प्रचार सभा के कई सौ अध्यापक और अध्यापिकाओं को हर वर्ष प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। वे प्रशिक्षण प्राप्त करके दक्षिण भारत के अनेक स्कूलों और विश्वविद्यालय के अनेक कॉलेजों में हिंदी पढ़ा रहे हैं।

महात्मा गाँधीजी ने जब मद्रास में हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की तब हृषीकेशजी के साथ-साथ एक हिंदी प्रेमी सज्जन रघुवरदयाल भी सभा में पहुँचे थे। वे तब से लेकर आज तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का अंग मानकर सभा में कार्य कर रहे हैं। लेखक कहता है कि दक्षिण भारत में कई अहिंदी भाषा-भाषी व्यक्ति भी हिंदी की बड़ी सेवा कर रहे हैं; अर्थात् अहिंदी भाषा-भाषी भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं। स्वर्गीय रघुवरदयाल मिश्र ने बतलाया कि तंजोर पुस्तकालय में मणि-प्रवाल शैली में लिखित बहुत पुराना हाथ से लिखा ग्रंथ है, जिसमें अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी की रचनाएँ भी सम्मिलित हैं।

विशेष:

  1. मद्रास की हिंदी प्रचार सभा के कार्यों का वर्णन किया गया है।
  2. वर्णानात्मक शैली है।
  3. भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है।

गद्य पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
‘हिंदी साहित्य में गति का परिचय मिलता है’ से लेखक का क्या आशय
उत्तर:
इससे लेखक का आशय है कि मद्रास की हिंदी प्रचार सभा के प्रयत्नों से दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार-प्रसार में पर्याप्त प्रगति देखने को मिलती है।

प्रश्न (ii)
दक्षिण की हिंदी प्रचार सभा विद्यापीठ के रूप में किस प्रकार कार्य कर रही है?
उत्तर:
दक्षिण की हिंदी प्रचार सभाप्रतिवर्ष कई सौ अध्यापक-अध्यापिकाओं को हिंदी अध्यापन का प्रशिक्षण प्रदान करती है। वे अध्यापक-अध्यापिकाएँ दक्षिण भारत के स्कूल और कॉलेजों में हिंदी-अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। इस प्रकार यहाँ की प्रचार सभा हिंदी विद्यापीठ के रूप में कार्य कर रही है।

गद्यांश की विषय-वस्त पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
रघुवरदयाल अहिंदीभाषी होते हुए भी हिंदी प्रचार सभा में कार्य क्या कर रहे थे?
उत्तर:
रघुवरदयाल को हिंदी से प्रेम था। वे दक्षिण की हिंदी प्रचार सभा में उसकी स्थापना से लेकर आज तक कार्य कर रहे हैं। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा का अंग मानकर सभा में कार्य कर रहे थे।

प्रश्न (ii)
रघुवरदयाल मिश्र ने लेखक को क्या जानकारी दी थी?
उत्तर:
रघुवरदयाल मिश्र ने लेखक को जानकारी दी थी कि तंजोर पुस्तकालय में मणि-प्रवाल शैली में रचित एक बहुत पुराना ग्रंथ है, जो हाथ से लिखा हुआ है। उस ग्रंथ में अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी रचनाएँ हैं।

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 पत्र जो इतिहास बन गए

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 पत्र जो इतिहास बन गए (पत्र, महात्मा गाँधी)

पत्र जो इतिहास बन गए पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

पत्र जो इतिहास बन गए लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बा’ का स्वास्थ्य सुधरने की जानकारी बापू को किसके द्वारा मिली?
उत्तर:
‘बा’ का स्वास्थ्य सुधरने की जानकारी डिप्टी गवर्नर (उपराज्यपाल) द्वारा मिली।

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प्रश्न 2.
बापूजी प्रातःकालीन स्वल्पाहार में किन पदार्थों को ग्रहण करने की सलाह देते थे?
उत्तर:
बापूजी प्रातःकालीन स्वल्पाहार में दूध और साबूदाना ग्रहण करने की सलाह देते थे।

प्रश्न 3.
गाँधी जी ने अक्षर ज्ञान में किन विषयों पर बल दिया है? और क्यों?
उत्तर:
गाँधी जी ने अक्षर ज्ञान में गणित और संस्कृत विषयों पर बल दिया है क्योंकि बड़ी आयु में इन्हें सीखना कठिन होता है।

प्रश्न 4.
गाँधी जी ने अपने पुत्र से व्यय के संबंध में कौन सी सावधानी रखने को कहा है?
उत्तर:
व्यय के एक-एक पैसे का हिसाब-किताब सावधानी से रखने को कहा है।

प्रश्न 5.
गाँधी जी के अनुसार ईश प्रार्थना करने का उपयुक्त समय क्या है?
उत्तर:
ईश प्रार्थना करने का सबसे उपयुक्त समय सूर्योदय से पहले है।

पत्र जो इतिहास बन गए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधी जी का शिक्षा के प्रति क्या दृष्टिकोण था? (M.P. 2009)
उत्तर:
गाँधी जी का शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण था कि जो शिक्षा व्यक्ति में चरित्र-निर्माण की भावना और कर्तव्य की भावना उत्पन्न करे, वही सर्वश्रेष्ठ है। केवल अक्षरज्ञान शिक्षा नहीं है। सच्ची शिक्षा तो चरित्र-निर्माण और कर्तव्य-बोध है।

प्रश्न 2.
माँ की सेवा के माध्यम से अपने पुत्र को गाँधी जी क्या संदेश देना चाहते थे?
उत्तर:
माँ की सेवा के माध्यम से अपने पुत्र को गाँधी जी यह संदेश देना चाहते थे कि माँ की सेवा करना ही सच्ची शिक्षा है। यही तुम्हारा कर्तव्य है।

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प्रश्न 3.
गाँधी जी का ‘आधी शिक्षा’ से क्या अभिप्राय था?
उत्तर:
गाँधी जी का ‘आधी शिक्षा’ से अभिप्राय था-केवल अक्षरज्ञान प्राप्त करना या होना। उनके अनुसार जो शिक्षा व्यक्ति को केवल अक्षरज्ञान कराती हो और उसमें चारित्रिक सद्गुणों और कर्त्तव्य-बोध की भावना उत्पन्न नहीं करती है, वह आधी शिक्षा है।

प्रश्न 4.
गाँधी जी ने अपने पुत्र से अच्छा किसान बनने की अपेक्षा क्यों की?
उत्तर:
गाँधी जी की इच्छा थी कि उनके परिवार में एक किसान हो। वे भविष्य में खेती से ही अपना जीवन-निर्वाह करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र से ‘अच्छा किसान बनने की अपेक्षा की है।

प्रश्न 5.
समय की पाबंदी के संबंध में गाँधी जी का क्या मत था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समय की पाबंदी के संबंध में गाँधी जी का मत था कि व्यक्ति को समय की पाबंदी रखनी चाहिए। समय की पाबंदी जीवन में आगे चलकर बड़ी सहायक सिद्ध होती है।

पत्र जो इतिहास बन गए भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्ति का भाव-विस्तार कीजिए –

प्रश्न 1.
‘अमीरी की तुलना में गरीबी अधिक सुखद है।’
उत्तर:
अमीरी की तुलना में गरीबी व्यक्ति को अधिक सुख देती है। अमीरी में व्यक्ति में झूठे प्रदर्शन की भावना के साथ-साथ अभिमान की भावना घर कर जाती है। वह समाज से दूर हो जाता है। लोगों के मन में ईर्ष्या-द्वेष की भावना उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति अधिक से अधिक प्राप्त करने के चक्कर में लगा हुआ सदा असंतुष्ट रहता है। गरीबी में व्यक्ति संतुष्ट रहता है। उसके जीवन आवश्यकताएँ सीमित रहती हैं। वह सुख, शांति का अनुभव करता है। उसे धन की रक्षा की चिंता नहीं सताती।

प्रश्न 2.
‘मैं समझता हूँ कि केवल अक्षर ज्ञान ही शिक्षा नहीं है।’ उत्तर-गाँधी जी की दृष्टि में केवल अक्षरज्ञान प्राप्त करना शिक्षा नहीं है। सच्ची शिक्षा तो व्यक्ति में चारित्रिक सद्गुणों का विकास करती है। इसके साथ ही वह तो व्यक्ति में कर्तव्य पालन की भावना उत्पन्न करती है। उसे उत्तरदायित्व निभाने का बोध कराती है।

पत्र जो इतिहास बन गए भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित का समास-विग्रह कर’ उनके नाम लिखिए –
प्रतिमास, अक्षर-ज्ञान, चरित्र-निर्माण, जीवन-निर्वाह, घर-खर्च।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 पत्र जो इतिहास बन गए img-2

प्रश्न 2.
क्या ‘सूर्योदय’ में संधि और समास दोनों हैं? यदि हाँ तो कैसे? इसी प्रकार के तीन अन्य शब्द लिखिए जिनमें संधि और समास दोनों हों।
उत्तर:
सूर्योदय में समास और संधि दोनों हैं।

सूर्योदय में संधि:
सूर्य + उदय। इसमें गुण संधि है। ‘अ’ स्वर के पश्चात् ह्रस्वः ‘उ’ है, अतः दोनों मिलकर ‘ओ’ हो गए हैं।

सूर्योदय में समास:
सूर्य का उदय। सूर्योदय में तत्पुरुष समास है। इसमें सूर्य और उदय मिलाकर समास बनाते हैं। इसमें ‘का’ विभक्ति का लोप हो जाता है।

तीन अन्य शब्द:
अछूतोद्धार, महोत्सव, हितोपदेश।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों का निर्देशानुसार रूपांतरण कीजिए –

  1. कुछ करने का अधिकार मुझे नहीं है। (प्रश्नवाचक)
  2. क्या वह फिर से चलने-फिरने लगी। (विधिवाचक)
  3. मैं पूर्ण रूप से शांति में हूँ। (निषेध वाचक)

उत्तर:

  1. मुझे कुछ करने का अधिकार क्यों नहीं है?
  2. वह फिर से चलने-फिरने लगी है।
  3. मैं पूर्ण रूप से शांति में नहीं हूँ।

प्रश्न 4.
नीचे लिखे वाक्यों के प्रकार बताइए –

  1. मैंने तुम्हें लिखना पसंद किया क्योंकि पढ़ने के समय तुम्हारा ही ध्यान मुझे बराबर रहता था।
  2. मुझे मालूम है कि तुम्हारे कुछ पत्र यहाँ आए हैं।
  3. गरीबी में ही सुख है।

उत्तर:

  1. संयुक्त वाक्य।
  2. मिश्र वाक्य।
  3. सरल वाक्य।

पत्र जो इतिहास बन गए योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
यदि आपके पिताजी ऐसा पत्र तुम्हें लिखें तो क्या उत्तर दोगे, सोचकर लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आधुनिक कम्प्यूटर युग में ‘ई-पत्र’ लिखे जाते हैं। ज्ञात कीजिए कि उन्हें लिखने की क्या पद्धति है तथा उससे क्या फायदे हैं?
उत्तर:
छात्र अपने साइंस के अध्यापक से जानकारी प्राप्त करें या कंप्यूटर अध्यापक से पूछे।

प्रश्न 3.
विभिन्न महापुरुषों, साहित्यकारों, स्वतंत्रता सेनानियों और जेल यात्रियों ने अपनी संतानों या देशवासियों को प्रेरक पत्र लिखे हैं। उनकी जानकारी अपनी लघु पुस्तिका में लिखें और मनन करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 4.
मध्य प्रदेश से प्रकाशित होने वाले हिंदी पत्रों और पत्रिकाओं की सूची बनाइए तथा उनके पतों पर लेख या कविता भेजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

पत्र जो इतिहास बन गए परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
गाँधी ने पत्र ……….. के नाम लिखा।
(क) कस्तूरबा
(ख) पंडित जवाहरलाल
(ग) पुत्र
(घ) डिप्टी गवर्नर
उत्तर:
(ग) पुत्र।

प्रश्न 2.
गाँधी जी ने अपने पुत्र के नाम पत्र में अपने संबंध में लिखा कि मैं……हूँ।
(क) पूर्णरूप से शांति में
(ख) पूर्णरूप से दुविधा में
(ग) पूर्णरूप से तनाव में
(घ) पूर्णरूप से मौन में।
उत्तर:
(क) पूर्णरूप से शांति में।

प्रश्न 3.
गाँधी जी को डिप्टी गवर्नर की उदारता से ज्ञात हुआ कि –
(क) ‘बा’ का स्वास्थ्य सुधर रहा है
(ख) पुत्र का स्वास्थ्य खराब है
(ग) पुत्र का स्वास्थ्य सुधर रहा है
(घ) पुत्र का स्वास्थ्य गिर रहा है
उत्तर:
(क) ‘बा’ का स्वास्थ्य सुधर रहा है।

प्रश्न 4.
गाँधी जी ने कहा कि ……….. ही शिक्षा नहीं है –
(क) आध्यात्मिक ज्ञान
(ख) पुस्तकीय ज्ञान
(ग) अक्षरज्ञान
(घ) धार्मिक ज्ञान
उत्तर:
(ग) अक्षरज्ञान।

प्रश्न 5.
जीवन में आगे चलकर बड़ी सहायक सिद्ध होगी यह ………..
(क) नियमितता
(ख) शिक्षा
(ग) ईश-प्रार्थना
(घ) आत्म-निर्भरता
उत्तर:
(क) नियमितता।

प्रश्न 6.
गाँधी जी ने अपने पुत्र से एक योग्य ……….. बनने की अपेक्षा की।
(क) डॉक्टर
(ख) सत्याग्रही
(ग) किसान
(घ) राजनेता
उत्तर:
(क) किसान।

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प्रश्न 7.
महात्मा गाँधी ने अपने पुत्र को पत्र तब लिखा, जब –
(क) वे आन्दोलन चला रहे थे
(ख) जब वे दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर थे
(ग) जब वे जेल में थे
(घ) जब वे दाण्डी यात्रा कर रहे थे।
उत्तर:
(ग) जब वे जेल में थे।

II. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –

  1. गाँधीजी अक्षरज्ञान को ही शिक्षा समझते थे। (M.P. 2009)
  2. गाँधीजी को हर माह एक पत्र लिखने का अधिकार मिला था।
  3. गाँधीजी गरीबी की तुलना में अमीरी सुखद समझते थे।
  4. काम की अधिकता से मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए।
  5. महात्मा गाँधी ने अपने पुत्र देवदास को पत्र लिखा।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

III. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए – (M.P. 2012)

  1. गाँधीजी ने ………. को पत्र लिखा। (पुत्र/पत्नी)
  2. गाँधीजी अपने पुत्र को ………. बनाना चाहते थे। (किसान/वकील)
  3. पत्र में ………. की बीमारी का उल्लेख किया गया है। (बा/पुत्र)
  4. ‘बा’ के स्वास्थ्य की जानकारी ………. से हुई। (जेलर डिप्टी गवर्नर)
  5. ‘पत्र जो इतिहास बन गए’ के लेखक ………. हैं। (मणिलाल गाँधी/महात्मा गाँधी)

उत्तर:

  1. पुत्र
  2. किसान
  3. ‘बा’
  4. डिप्टी गवर्नर
  5. महात्मा गाँधी।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 पत्र जो इतिहास बन गए img-1
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (ख)
(iv) (घ)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
रामदास और देवदास कौन थे?
उत्तर:
महात्मा गाँधी के सुपुत्र।

प्रश्न 2.
गाँधीजी ने किसको पत्र लिखा?
उत्तर:
अपने सुपुत्र मणिलाल गाँधी को।

प्रश्न 3.
‘बा’ कौन थी?
उत्तर:
महात्मा गाँधी की धर्मपत्नी।

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प्रश्न 4.
गाँधीजी ने पुत्र को क्या बनने के लिए कहा?
उत्तर:
किसान।

प्रश्न 5.
प्रार्थना नियमपूर्वक क्यों करनी चाहिए?
उत्तर:
प्रार्थना नियमपूर्वक करनी चाहिए, क्योंकि जीवन में यह बहुत सहायक सिद्ध होती है।

पत्र जो इतिहास बन गए लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यह पत्र किसने किसको कहाँ से लिखा है?
उत्तर:
यह पत्र महात्मा गाँधी ने अपने पुत्र मणिलाल गाँधी को जेल से लिखा है।

प्रश्न 2.
महात्मा गाँधी ने पुत्र को ही पत्र लिखने का क्या कारण बताया है?
उत्तर:
महात्मा गाँधी को जेल में पढ़ते समय अपने पुत्र का ध्यान ही बराबर रहता था।

प्रश्न 3.
महात्मा गाँधी ने यह पत्र किस जेल से लिखा था?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने यह पत्र दक्षिण अफ्रीका की प्रिटोरिया जेल से लिखा था।

प्रश्न 4.
गाँधी जी को जेल में कितने पत्र लिखने और प्राप्त करने का अधिकार था?
उत्तर:
गाँधी जी को जेल में एक मास में एक पत्र लिखने और एक पत्र प्राप्त करने का अधिकार था।

प्रश्न 5.
गाँधी जी गरीबी में क्यों रहना चाहते थे?
उत्तर:
गाँधी जी को लगता था कि गरीबी में अधिक सुख है। इसलिए वे गरीबी में रहना चाहते थे।

प्रश्न 6.
गाँधीजी ने पत्र कहाँ से लिखा?
उत्तर:
गाँधीजी ने पत्र प्रिटोरिया जेल से लिखा।

प्रश्न 7.
गाँधीजी ने पत्र किसे और कब लिखा?
उत्तर:
गाँधीजी ने पत्र अपने सुपुत्र मणिलाल गाँधी को 15 मार्च, 1909 को लिखा।

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प्रश्न 8.
गणित और संस्कृत कब सीखनी चाहिए?
उत्तर:
गणित और संस्कृत छोटी उम्र में ही सीखनी चाहिए। बड़ी उम्र में ये विषय कम समझ में आते हैं।

पत्र जो इतिहास बन गए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधी जी को अपने पुत्र से क्या आशा थी?
उत्तर:
गाँधी जी को अपने पुत्र से आशा थी कि उन्होंने जो जिम्मेदारी अपने पुत्र पर डाली है, वे उनके सर्वथा योग्य हैं और वह उस काम को अच्छी तरह से आनंद से निभा रहे होंगे।

प्रश्न 2.
गाँधी जी ने जेल जीवन में अध्ययन के द्वारा शिक्षा के संबंध में क्या निष्कर्ष निकाला?
उत्तर:
गाँधी जी ने जेल जीवन में अध्ययन के द्वारा शिक्षा के संबंध में निष्कर्ष निकाला कि अक्षर-ज्ञान ही शिक्षा नहीं है। सच्ची शिक्षा तो चरित्र-निर्माण और कर्तव्य का बोध है।

प्रश्न 3.
काम के संबंध में गाँधी जी का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
काम के संबंध में गाँधी जी का दृष्टिकोण था कि व्यक्ति को काम की अधिकता से नहीं घबराना चाहिए। उसे यह नहीं सोचना चाहिए कि यह काम कैसे होगा और पहले क्या करूँगा।

प्रश्न 4.
इस पत्र में गाँधी जी ने किन बातों पर बल दिया है?
उत्तर:
इस पत्र में गाँधी जी ने माँ की सेवा, शिक्षा में चरित्र-निर्माण की भावना, गरीबी की महत्ता, किसानी जीवन का महत्त्व, संस्कृत ज्ञान की उपयोगिता, मितव्ययता और ईश्वर की प्रार्थना पर विशेष बल दिया हैं।

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प्रश्न 5.
एक योग्य किसान बनने के लिए क्या-क्या आवश्यक है?
उत्तर:
एक योग्य किसान बनने के लिए यह आवश्यक है कि खेत में घास और गड्ढे खोदने में पूरा समय देना है। सभी औजारों को हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिए। यही नहीं उन्हें सुव्यवस्थित भी रखना चाहिए।

पत्र जो इतिहास बन गए लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
मोहनदास करमचंद गाँधी को विश्व महात्मा गाँधी के नाम से जानता है। प्रत्येक भारतवासी उनके नाम से परिचित है। भारतीय उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में जानते हैं। महात्मा गाँधी 20वीं शताब्दी के युगपुरुष हैं। उनका जन्म 2 अक्टबर, 1869 में गजरात के पोरबंदर में हआ था। आपके पिता का नाम करमचंद और माता का नाम पुतलीबाई था। आपकी माता बहुत धार्मिक प्रवृ 1 की थीं। उनका प्रभाव बेटे पर भी पड़ा।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा भारत में हुई। उसके बाद बैरिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे इंग्लैंड चले गए। वे वहाँ से बैरिस्टरी की परीक्षा:पास करके भारत लौटे और वकालत करने लगे। तेरह वर्ष की आयु में कस्तूरबा से उनका विवाह हुआ। पोरबंदर के धनी व्यवसायी दादा अब्दुल्ला शेख के कुछ मुकदमे दक्षिण अफ्रीका में चल रहे थे। उन मुकदमों की पैरवी करने के लिए अब्दुल्ला शेख गाँधी जी को मई 1893 में अफ्रीका ले गए।

वहाँ गाँधी जी ने भारतीयों की दुर्दशा देखी। उन्होंने उनकी दुर्दशा देखकर उनके उद्धार के लिए आंदोलन चलाया। यह आंदोलन बिलकुल नए ढंग का था। यह आंदोलन ‘सत्याग्रह’ के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन के द्वारा उन्होंने भारतीयों के उद्धार करने में सफलता अर्जित की। अफ्रीका से भारतीयों को सत्याग्रह का मंत्र देकर वे भारत लौट आए। यहाँ आकर उन्होंने संपूर्ण भारत का भ्रमण किया और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर सँभाली। सत्याग्रह आंदोलन, असहयोग आंदोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन आदि चलाकर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश किया।

इस तरह 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। महात्मा गाँधी की मातृभाषा गुजराती थी। लेकिन उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया। उन्होंने हिंदी के महत्त्व को समझते हुए अपने अधिकांश भाषण हिंदी में दिए। वे सन् 1918 के हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन के सभापति बने। उन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी-प्रचार की वृहद् योजना बनाई। वे हमेशा कहते थे, “स्वदेशाभिमान को स्थिर रखने के लिए हमें हिंदी सीखनी चाहिए।” महात्मा गाँधी, राम, कृष्ण, बुद्ध, ईसा, मुहम्मद आदि महान् विभूतियों की परंपरा में थे। 30 जनवरी, सन् 1948 ई० में एक धर्मांध ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

रचनाएँ:
गाँधी जी के विपुल साहित्य को उनकी मृत्यु के बाद भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने ‘संपूर्ण गाँधी वाङ्मय’ नाम से प्रकाशित किया है। इसके अनेक – भाग अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ महत्त्वपूर्ण रचना है। आपने ‘हरिजन’ और ‘इंडिया’ नामक पत्र भी निकाले।

भाषा-शैली:
गाँधी जी की भाषा सरल हिंदी है। उन्होंने अपने विचारों को आम लोगों तक पहुँचाने के तत्सम, तद्भव, देशी-विदेशी शब्दों का निस्संकोच प्रयोग किया। उन्होंने अपने दार्शनिक विचारों को अत्यंत सरल भाषा में अभिव्यक्त किया।

पत्र जो इतिहास बन गए पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
‘गाँधी जी का पुत्र के नाम पत्र’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
यह पत्र गाँधी जी ने 25 मार्च, 1909 को प्रिटोरिया जेल से अपने पुत्र मणिलाल गाँधी को लिखा था। गाँधी जी ने अपने पुत्र को बताया है कि उन्हें जेल में रहते हुए एक पत्र लिखने और एक पत्र प्राप्त करने का अधिकार मिला है। उन्होंने पुत्र को पत्र लिखने का कारण स्पष्ट करते हुए कहा कि पढ़ते समय उन्हें अपने पुत्र का ही ध्यान रहता है। उन्होंने अपने पुत्र को लिखा कि वह मेरे संबंध में चिंता न करे।

मैं पूर्णरूप से शांति में हूँ। आशा है कि ‘बा’ स्वस्थ हो गई होंगी। डिप्टी गवर्नर की उदारता से ही मुझे ज्ञात हो सका कि ‘बा’ का स्वास्थ्य सुधर रहा है। क्या वह फिर से चलने-फिरने लगी हैं? ‘बा’ और तुम्हें सुबह प्रतिदिन साबूदाने का प्रयोग करना चाहिए। मैंने तुम्हारे ऊपर जो उत्तरदायित्व डाला है, उसे तुम योग्यता से और आनंद से पूरा कर रहे होंगे।

वास्तविक शिक्षा अक्षर ज्ञान नहीं है। सच्ची शिक्षा तो चरित्र-निर्माण और कर्तव्य का बोध है। तुम्हें माँ की सेवा का अवसर मिला है। अपने दोनों भाइयों की भी देखभाल कर रहे हो। तुम्हारी अधूरी शिक्षा इसी से पूरी हो जाती है। तुम्हें याद रखना चाहिए कि हमें आगे गरीबी में रहना है; क्योंकि अमीरी की अपेक्षा गरीबी अधिक सुखद है। तुम्हें योग्य किसान बनना है और सभी औजारों को साफ-सुथरा और सुव्यवस्थित रखने हैं।

तुम्हें गणित, संस्कृत और संगीत में पूरा ध्यान देना चाहिए। तुम्हें हिंदी, गजराती और अंग्रेजी के चुने हुए भजनों एवं कविताओं का संग्रह करना है। काम की अधिकता से आदमी को घबराना नहीं चाहिए। घर-खर्च में जो भी व्यय करते हो, उसका पैसे-पैसे का हिसाब रखना चाहिए। गाँधी जी अपने पुत्र को नियमित प्रार्थना करने के संबंध में भी कहते हैं। उनका विचार है कि इस नियमितता से भविष्य में बड़ी सहायता मिलेगी। वे अपने पुत्र को लिखते हैं-मैं आशा करता हूँ कि पत्र को अच्छी प्रकार पढ़ने और समझने के बाद ही उत्तर दोगे।

पत्र जो इतिहास बन गए संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
आशा है कि ‘बा’ अब अच्छी हो गई होंगी। मुझे मालूम है कि तुम्हारे कुलपत्र यहाँ आए हैं, लेकिन वह मुझे नहीं दिए गए। फिर भी डिप्टी गवर्नर की उदारता से मुझे मालूम हुआ है कि ‘बा’ का स्वास्थ्य सुधर रहा है। क्या वह फिर से चलने-फिरनेलगीं? ‘बा’ और तुम लोग सवेरे दूध के साथ साबूदाने बराबर ले रहे होंगे। (Page 66)
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश महात्मा गाँधी द्वारा लिखित पाठ ‘पत्र जो इतिहास बन गए’ से उद्धृत है। यह पत्र महात्मा गाँधी जी ने अपने पुत्र मणिलाल गाँधी को 25 मार्च, 1909 को प्रिटोरिया जेल से लिखा था। वे इस गद्यांश में अस्वस्थ ‘बा’ के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, साथ ही उन्हें स्वस्थ रहने के लिए साबूदाना खाने की सलाह भी दे रहे हैं।

व्याख्या:
गाँधी जी इसमें आशा व्यक्त कर रहे हैं कि अब कस्तूरबा स्वस्थ हो गई होंगी। वे अपने पुत्र से कहते हैं-तुमने कई पत्र लिखे होंगे और वे पत्र जेल तक पहुँचे भी होंगे, परंतु दक्षिण अफ्रीका सरकार ने वे पत्र मुझे नहीं दिए। लेकिन यहाँ के डिप्टी गवर्नर की उदारता के कारण ही मुझे ज्ञात हो सका कि अब ‘बा’ के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है।

यदि वे उदारता न दिखाते तो मुझे ‘बा’ के स्वास्थ्य के संबंध में कछ पता ही नहीं चलता। गाँधी जी जानना चाहते हैं कि ‘बा’ फिर से चलने-फिरने लगी हैं या नहीं। वे अपनी पत्नी कस्तूरबा और पुत्र को सुबह प्रतिदिन दूध के साथ साबूदाना लेने का भी निर्देश दे रहे हैं। कहने का आशय यह है कि जेल में बंद गाँधी जी अपने पुत्र, पत्नी आदि के स्वास्थ्य के प्रति सचेत हैं। वे जेल में रहकर भी उन्हें खान-पान के संबंध में सचेत करते हैं।

विशेष:

  1. गाँधी जी की अपनी पत्नी कस्तूरबा के स्वास्थ्य संबंध में जानकारी प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त हुई है।
  2. भाषा सरल खड़ी बोली है।

प्रश्न 2.
मैं यह जानता हूँ कि तुम्हें अपनी शि के प्रति असन्तोष है। जेल में मैंने यहाँ खूब पढ़ा है। इससे मैं समझता हूँ कि केवल अक्षर-ज्ञान ही शिक्षा नहीं है। सच्ची शिक्षा तो चरित्र-निर्माण और कर्तव्य का बोध है। यदि यह दृष्टिकोण सही है और मेरे विचार. से तो यह बिलकुल ठीक है, तो तुम सच्ची शिक्षा प्राप्त कर रहे हो। अपनी माँ की सेवा का तो अवसर तुम्हें मिला है और उसकी बीमारी के दुःख को जो तुम सहन कर रहे हो, इससे अच्छा और क्याहो सकता है। रामदास और देवदास को भी तुम सँभाल रहे हो। यदि यह काम तुम अच्छी तरह और आनंद से करते हो, तो तुम्हारी आधी शिक्षा तो इसी के द्वारा पूरी हो जातीहै। (Page 66)

शब्दार्थ:

  • असंतोष – संतुष्ट ने होना।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश महात्मा गाँधी द्वारा लिखित पाठ ‘पत्र जो इतिहास बन गए’ से उद्धृत है। महात्मा गाँधी ने यह पत्र अपने पुत्र को उस समय लिखा जब वे दक्षिण अफ्रीका की जेल में थे। इस गद्यांश में गाँधी जी ने माँ की सेवा, शिक्षा में चरित्र-निर्माण की भावना पर बल दिया है।

व्याख्या:
गाँधी जी अपने पत्र में पुत्र को लिखते हैं कि उन्हें ज्ञात है कि तुम्हारे मन में अपनी शिक्षा को लेकर असंतोष की भावना है। अर्थात् तुम्हें जो शिक्षा प्रदान की गई है अथवा दिलवाई गई है, उससे तुम संतुष्ट नहीं हो। गाँधी जी पत्र में लिखते हैं कि उन्होंने जेल में रहते हुए बहुत अध्ययन किया है। इस अध्ययन के आधार पर वे समझते हैं कि केवल अक्षर ज्ञान प्राप्त करना ही शिक्षा नहीं है। सच्ची शिक्षा तो वही होती है, जो व्यक्ति में चरित्र-निर्माण की भावना और कर्तव्य का पालन करने की भावना उत्पन्न करती है। भाव यह है कि गाँधी जी उसी शिक्षा को श्रेष्ठ मानते थे, जो व्यक्ति में चारित्रिक सद्गुणों का विकास करे और उसमें अपने कर्तव्यों को पहचानने और उनका पालन करने की भावना उत्पन्न करें।

गाँधी जी आगे पत्र में लिखते हैं कि यदि शिक्षा के प्रति मेरा यह दृष्टिकोण ठीक है और मेरे विचार में तो शिक्षा के प्रति यह दृष्टिकोण एकदम सही है तो इसमें कोई खराबी नहीं है। कुछ भी अनुचित नहीं है। इस दृष्टिकोण से देखा जाए, तो तुम सच्ची शिक्षा प्राप्त कर रहे हो। तुम्हें अपनी माँ की सेवा का अवसर (मौका) मिला है। तुम अपनी माँ की बीमारी का दुख सहन कर रहे हो, इससे अच्छा क्या हो सकता है? अर्थात् बीमारी में अपनी माँ की सेवा करना, उनके दुख का अनुभव करना, स्वयं दुखी होना और उनके प्रति अपने कर्तव्य का पालन करना सर्वश्रेष्ठ चारित्रिक गुण है। इसके साथ ही तुम अपने दोनों भाइयों रामदास और देवदास की भी देखभाल कर रहे हो। यदि यह काम तुम भली-भाँति कर रहे हो और प्रसन्नता के साथ निभा रहे हो, तो तुम्हारी आधी शिक्षा की पूर्ति, तो इससे ही हो जाती है।

विशेष:

  1. गाँधी जी ने भारतीय जीवन के मूल्यवान पक्षों का उल्लेख करते हुए शिक्षा के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है।
  2. भाषा सरल, स्पष्ट परिमार्जित खड़ी बोली है।
  3. विचारात्मक शैली है।

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प्रश्न 3.
अक्षर ज्ञान में गणित और संस्कृत में पूरा ध्यान देना। भविष्य में संस्कृत तुम्हारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। ये दोनों विषय बड़ी उम्र में सीखना कठिन हैं। संगीत में भी बराबर रुचि रखना। हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी के चुने हुए भजनों एवं कविताओं का एक संग्रह तुम्हें तैयार करना चाहिए। वर्ष के अंत में, तुम्हें अपना यह संग्रह बहुत मूल्यवान प्रतीत होगा। काम की अधिकता से मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए और न ही यही सोचना चाहिए कि वह कैसे होगा और पहले क्या करूँ। शांत चित्त से विचारपूर्वक तुमने यदि सभी सद्गुणों को प्राप्त करने की चेष्टा की, तो तुम्हारे लिए ये बहुत उपयोगी और मूल्यवान प्रमाणित होंगे। तुमसे मुझे यह भी आशा है कि घर-खर्च के लिए जो तुम खर्च करते हो, उसका पैसे-पैसे का हिसाब रखते रहो। (Page 66)

शब्दार्थ:

  • उपयोगी – लाभदायक।
  • उम्र – आयु।
  • मूल्यवान – कीमती।
  • चेष्टा – प्रयास।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश महात्मा गाँधी द्वारा रचित पाठ ‘पत्र जो इतिहास बन गए’ : से उद्धृत है। यह पत्र गाँधी जी ने जेल से अपने पुत्र मणिलाल गाँधी को लिखा है। इस गद्यांश में उन्होंने अपने पुत्र को गणित एवं संस्कृत के ज्ञान की उपयोगिता तथा चारित्रिक सद्गुणों को प्राप्त करने की महत्ता और मितव्ययता पर प्रकाश डालते हुए, इन्हें जीवन में अपनाने पर बल दिया है।

व्याख्या:
गाँधी जी अपने पत्र में अपने पुत्र को सलाह देते हैं कि अक्षर ज्ञान में गणित और संस्कृत विषय के अध्ययन पर पूरा ध्यान देना क्योंकि तुम्हारे आगामी जीवन में संस्कृत अत्यंत लाभदायक सिद्ध होगी। संस्कृत और गणित दोनों विषय ऐसे हैं जिन्हें बड़ी आयु में सीखना कठिन होता है। आयु बड़ी होने पर इन विषयों को नहीं सीखा जा सकता है। इन दोनों विषयों के साथ-साथ संगीत में भी अपनी रुचि बराबर बनाए रखना। तुम्हें हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी के चुने हुए भजनों और कविताओं का एक संग्रह तैयार करना चाहिए।

वर्ष के अंत में यह संग्रह तुम्हें बहुत कीमती लगेगा। व्यक्ति को काम की अधिकता से कभी नहीं घबराना चाहिए। काम के संबंध में व्यक्ति को कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि यह काम या इतना काम कैसे होगा और पहले कौन-सा काम करूँ। भाव यह कि गाँधी जी पत्र में अपने पुत्र को सलाह देते हैं कि तुम्हें काम की अधिकता से नहीं घबराना चाहिए और नहीं यह सोचना चाहिए कि यह काम कैसे होगा और पहले कौन-सा काम प्रारंभ करूँ।

वे अपने पुत्र को कहते हैं कि तुमने शांत मन से अच्छी तरह सोच-विचार कर यदि सभी अच्छे गुणों को प्राप्त करने का प्रयास किया तो तुम्हारे लिए ये बहुत लाभदायक और कीमती सिद्ध होंगे। वे आगे लिखते हैं कि पुत्र! मुझे तुमसे यह भी उम्मीद है कि घर-खर्च; अर्थात् घर को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए जो भी तुम व्यय करते हो, उसका भी पूरा हिसाब-किताब लिखते होगे। घर खर्च का पूरा ब्यौरा रखना उचित है।

विशेष:

  1. गाँधी जी ने अपने पुत्र को कई परामर्श दिए हैं उसके आगामी जीवन के लिए लाभदायक सिद्ध होंगे।
  2. भाषा सरल खड़ी बोली है।
  3. उपदेशात्मक शैली है।

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 तीन बच्चे

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 तीन बच्चे (कहानी, सुभद्राकुमारी चौहान)

तीन बच्चे पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

तीन बच्चे लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बच्चों में किस बात पर बहस छिड़ी थी?
उत्तर:
बच्चों में अपनी-अपनी क्यारियों में फूल अधिक सुंदर होने को लेकर बहस छिड़ी थी।

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प्रश्न 2.
माँ को अपने बच्चों के प्रति न्याय करने में कठिनाई क्यों आ रही थी?
उत्तर:
माँ के लिए सभी बच्चे एक समान होते हैं इसीलिए उसे न्याय करने में कठिनाई आ रही थी।

प्रश्न 3.
लड़की ने अपने पिता के संबंध में क्या बताया?
उत्तर:
लड़की ने बताया कि उसका पिता शराब पीकर दंगा करता था और माँ को मारता था।

प्रश्न 4.
लड़की की माँ को जेल क्यों हुई थी?
उत्तर:
लड़की की माँ ने उन पुलिसवालों को मारा था, जो उसके बाप को पकड़कर ले जा रहे थे।

तीन बच्चे दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तीनों बच्चों की दशा कैसी थी? (M.P. 2009)
उत्तर:
तीनों बच्चों की दशा दयनीय थी। उन्होंने चिथड़े पहन रखे थे। शरीर पर मैल की परत जम गई थी। वे भूखे और असहाय थे। जेल के पास नाले पर बने पुल के नीचे रहते थे। वे भीख माँगकर पेट भरते थे।

प्रश्न 2.
चौके का काम निपटाकर बाहर आने पर लेखिका ने क्या देखा? (M.P. 2009)
उत्तर:
चौके का काम निपटाकर लेखिका घर से बाहर गई, तो उसने देखा-तीन भिखारी बच्चे बड़े मजे में पूरियाँ खा रहे थे और उसके बच्चे भी बड़े उत्साह से उन्हें पूरियाँ परस रहे थे।

प्रश्न 3.
लेखिका को सबसे छोटे लड़के पर दया क्यों आई?
उत्तर:
लड़का उन तीनों में सबसे छोटा था। वह मुश्किल से पाँच वर्ष का था। उसने फटे-पुराने कपड़े पहने हुए थे। उसके बाल रूखे-सूखे थे। कई दिनों से न नहाने के कारण उसके शरीर पर मैल की परत जम गई थी। उसके गालों पर आँसुओं के निशान बने हुए थे। लड़के की असहाय स्थिति को देखकर लेखिका को बड़ी दया आई।

प्रश्न 4.
जबलपुर की जेल में लेखिका को किस प्रकार रखा गया था?
उत्तर:
लेखिका को जबलपुर की जेल में रखने की जगह अस्पताल में रखा था। उसकी सेवा के लिए दो महिला कैदियों को नियुक्त किया गया था।

प्रश्न 5.
अखबार में जबलपुर की कौन-सी घटना छपी थी?
उत्तर:
अखबार में जबलपुर की निम्नलिखित घटना छपी थी कल रात एकाएक पानी बरसा और खूब बरसा। जेल के पास के नाले में तीन गरीब बच्चे बह गए। उन तीनों की लाशें मिलीं। बहुत कोशिश करने पर भी इनकी शिनाख्त नहीं हो सकी। दो लड़कियाँ हैं और एक लड़का। ऐसा सुना गया है कि वे गाना गाकर भीख माँगा करते थे।

तीन बच्चे भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों का भाव-विस्तार कीजिए – (M.P. 2010)

प्रश्न 1.
“जज के पथ-प्रदर्शन के लिए कानून होते हैं और नज़ीर भी।”
उत्तर:
न्यायालय में न्याय करने के लिए न्यायाधीश को न्याय का रास्ता दिखाने के लिए लिखित कानून हैं और उसके सामने उदाहरण भी होते हैं। न्यायाधीश उन कानूनों के अंतर्गत, वकीलों के तर्क, गवाहों और उदाहरणों की रोशनी में न्याय करते हैं। कभी-कभी आँख मूंदकर कानूनों को मानने से न्याय करने में अन्याय भी हो जाताहै।

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प्रश्न 2.
“कैदखाने की दुनिया भी एक विचित्र ही है।”
उत्तर:
कैदखाने अर्थात् जेल का संसार भी अद्भुत ही होता है। जेल में विभिन्न प्रकार के अपराध करने वाले अपराधी होते हैं। इन अपराधियों में स्त्री-पुरुष दोनों होते हैं। कोई चोर है, तो कोई हत्यारा और कोई चरस बेचने का अवैध धंधा करता है। कोई अपने ही बच्चे की जान लेने वाली होती है तो कोई पुलिस की पिटाई करने वाले/वाली है। कैदियों में जवान से लेकर बूढ़े तक होते हैं। सब अलग-अलग धर्म और जाति के होते हुए पुलिस की दृष्टि में सब अपराधी और कैदी हैं।

तीन बच्चे भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों को वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
अपनी-अपनी, खाली-खाली, दो-दो, ठहरो-ठहरो, रोज-रोज।
उत्तर:

  1. अपनी-अपनी-वर्तमान में सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी ढपली बजा रहे हैं।
  2. खाली-खाली-भिखारियों की झोली खाली-खाली लग रही थी।
  3. दो-दो-पहलवान दो-दो हाथ करने को तैयार हैं।
  4. ठहरो-ठहरो-ठहरो, ठहरो! कहाँ जाते हो? पुलिस आ रही है।
  5. रोज-रोज़-तुम रोज़-रोज़ यहाँ खाने आ जाते हो। इसे क्या धर्मशाला समझ रखा है।

प्रश्न 2.
मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
लकीर का फकीर होना, माथा टेकना, पेट दिखाना, बाँह पकड़ना।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 तीन बच्चे img-1

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कीजिए –
पथ-प्रदर्शक, सत्याग्रह, दशानन, भरपेट, चौराहा।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 तीन बच्चे img-2

प्रश्न 4.
दिए गए गद्यांश को पढ़कर यथास्थान उचित विराम-चिह्नों का प्रयोग कीजिए –
मैं बहत सोचती थी कि लखिया कौन है वह जेल क्यों आई एक दिन अचानक मैंने मेट्रन से पूछा जिसका उत्तर मिला ओह यह बड़ी खतरनाक औरत है इसने पुलिस को मारा है पुलिस को पर हमने इसका दिमाग ठीक कर दिया है आपको कोई तकलीफ तो नहीं देती।
उत्तर:
मैं बहुत सोचती थी कि लखिया कौन है। वह जेल क्यों आई? एक दिन अचानक मैंने मेट्रन से पूछा, जिसका उत्तर मिला- ‘ओह! यह बड़ी खतरनाक औरत है। इसने पुलिस को मारा है-पुलिस को। पर हमने उसका दिमाग ठीक कर दिया है। आपको कोई तकलीफ तो नहीं देती?”

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए –

  1. आपको चुप रहना चाहिए। (आज्ञा वाचक)
  2. क्या तुम खेलोगे? (इच्छा वाचक)
  3. अहा! कैसा सुंदर दृश्य है। (विधिवाचक)

उत्तर:

  1. आप चुप रहिए।
  2. ईश्वर करे! तुम खेलो।
  3. बहुत सुंदर दृश्य है।

तीन बच्चे योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आपने सड़क पर भजन गाते हुए छोटे बच्चों को देखा होगा, उन्हें देखकर आपके मन में क्या विचार आते हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
न्यायालय, न्यायाधीश और जेल पर चार-चार वाक्य लिखिए।
उत्तर:
न्यायालय:

  1. देश में अपराधों की रोकथाम के लिए न्यायालयों की स्थापना की गई है।
  2. न्यायालय दो प्रकार के होते हैं-दीवानी और फौजदारी न्यायालय।
  3. देश में कनिष्ठ न्यायालय से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक की न्याय व्यवस्था है।
  4. सुप्रीम कोर्ट देश का सर्वोच्च न्यायालय है।

न्यायाधीश:

  1. न्यायाधीश का कार्य न्याय करना होता है।
  2. न्यायाधीश के अदालतों के स्तर पर अपने-अपने अधिकार क्षेत्र होते हैं।
  3. न्यायाधीश मुकदमों की सुनवाई करते हैं।
  4. न्यायाधीश अपराधियों को सजा सुनाते हैं।

जेल:

  1. जेल न्यायालय से सजा-प्राप्त कैदियों को रखने का स्थान होता है।
  2. जेल में विभिन्न प्रकार के अपराधी रखे जाते हैं।
  3. जेल में यातनाएँ दी जाती हैं।
  4. जेल एक भयावह स्थान है। हमें जेल जाने योग्य कर्म नहीं करने चाहिए।

प्रश्न 3.
बच्चों का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए क्या योजनाएँ चलाई जा रही हैं? इन योजनाओं की जानकारी स्थानीय निकायों से प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
बाल-सुधार गृह व बाल न्यायालय के बारे में जानकारी एकत्रित करके जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

तीन बच्चे परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
बच्चों के काकाजी को किसी का ………… के ऊपर बोलना पसंदनहीं था।
(क) सप्तम स्वर
(ख) पंचम स्वर
(ग) अष्टम स्वर
(घ) द्वितीय स्वर
उत्तर:
(ख) पंचम स्वर।

प्रश्न 2.
बड़ी लड़की की आयु दस वर्ष और छोटी की आयु सात-आठ वर्ष और लड़के की आयु थी ……..।
(क) छह वर्ष
(ख) चार वर्ष
(ग) पाँच वर्ष
(घ) एक वर्ष
उत्तर:
(ग) पाँच वर्ष।

प्रश्न 3.
लेखिका के जेल में जाने का कारण था –
(क) भारत छोड़ो आंदोलन में सत्याग्रह करना
(ख) नमक तोड़ो आंदोलन में सत्याग्रह करना
(ग) युद्ध विरोधी आंदोलन में सत्याग्रह करना
(घ) बहिष्कार आंदोलन में भाग लेना।
उत्तर:
(ग) युद्ध विरोधी आंदोलन में सत्याग्रह करना।

प्रश्न 4.
भिखारी बच्चों का बाप अमरावती जेल में था और माँ …….. थी।
(क) अमरावती जेल में
(ख) जबलपुर जेल में
(ग) थाणे जेल में
(घ) तिहाड़ जेल में
उत्तर:
(ख) जबलपुर जेल में।

प्रश्न 5.
भिखारी बच्चों ने अपने न नहाने का कारण बताया था कि …..।
(क) हमारे पास दूसरे कपड़े नहीं हैं।
(ख) हमारे पास नहाने के लिए साबुन नहीं है।
(ग) हमारे पास पानी नहीं है।
(घ) हमारे पास घर नहीं है।
उत्तर:
(क) हमारे पास दूसरे कपड़े नहीं हैं।

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प्रश्न 6.
भिखारी बच्चे जेल के पास के एक ……….. में रहते थे।
(क) झोंपड़ी
(ख) नाले
(ग) मकान
(घ) छप्पर
उत्तर:
(ख) नाले।

प्रश्न 7.
जेल में मिनू किससे हिल गई थी?
(क) लेखिका से
(ख) लखिया से
(ग) जेलर से
(घ) मेट्रन से
उत्तर:
(ख) लखिया से।

प्रश्न 8.
तीन भिखारी बच्चों की मौत हुई थी …….।
(क) बरसात के पानी में बहने से
(ख) बीमारी लग जाने से
(ग) भूख के कारण से
(घ) दुर्भाग्य से
उत्तर:
(क) बरसात के पानी में बहने से।

प्रश्न 9.
हर एक का कहना था कि –
(क) उसकी क्यारी के पौधे सबसे अधिक सुन्दर हैं।
(ख) उसकी क्यारी के फूल सबसे सुन्दर हैं।
(ग) उसकी क्यारी की मिट्टी सबसे अच्छी है।
(घ) उसकी क्यारी सबसे अधिक सुन्दर है।
उत्तर:
(ख) उसकी क्यारी. के फूल सबसे सुन्दर हैं।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पस्कीजिए –

  1. तीन बच्चे ………. है। (एकांकी/कहानी) (M.P. 2012)
  2. सुभद्राकुमारी का जन्म सन् ………. में हुआ था। (1804/1904)
  3. तीन बच्चे के रचनाकार हैं ……….। (मनमोहन मदारिया/सुभद्राकुमारी चौहान)
  4. बिखरे मोती सुभद्रा कुमारी चौहान का ………. है। (काव्य-संग्रह/कहानी-संग्रह)
  5. सत्याग्रह के दौरान सुभद्राकुमारी ………. गईं। (जेल/जेल नहीं)

उत्तर:

  1. कहानी
  2. 1904
  3. सुभद्राकुमारी चौहान
  4. कहानी-संग्रह
  5. जेल।

III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –

  1. जज के पथ-प्रदर्शन के लिए कानून होते हैं।
  2. लेखिका के सामने कानून और नज़ीर थीं।
  3. गाना कोरस में था और स्वर बच्चों का-सा।
  4. लेखिका ने बाहर आकर देखा-चार बच्चे।
  5. लेखिका की सेवा के लिए दो औरतें तैनात थीं।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 तीन बच्चे img-3
उत्तर:

(i) (ग)
(ii) (घ)
(iii) (ङ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
तीन बच्चे कौन थे?
उत्तर:
दो लड़कियाँ और एक लड़का।

प्रश्न 2.
लड़की ने गोद से लड़के को उतारकर क्या किया?
उत्तर:
लड़की ने गोद से लड़के को उतारकर जमीन से माथा टेककर लेखिका को प्रणाम किया।

प्रश्न 3.
बच्चों ने लेखिका को क्या बतलाया?
उत्तर:
बच्चों ने लेखिका को बतलाया कि वे भूखे हैं।

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प्रश्न 4.
बाहर से कौन-से गाने की आवाज आई?
उत्तर:
बाहर से निम्नलिखित गाने की आवाज आई “भगवान दया करके मेरी नैया को पार लगा देना।”

प्रश्न 5.
लड़की की माँ जेल में क्यों थी?
उत्तर:
पुलिस की पिटाई करने के कारण लड़की की माँ जेल में थी।

तीन बच्चे लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखिका ने किन्हें हिटलर और मुसोलिनी कहा है?
उत्तर:
लेखिका ने अपने बच्चों को हिटलर और मुसोलिनी कहा है।

प्रश्न 2.
काका ने बच्चों का झगड़ा कैसे समाप्त किया?
उत्तर:
काका ने कहा, यदि तुम लड़े-भिड़े तो मैं तुम्हारी माँ को सत्याग्रह नहीं करने दूंगा। यह सुनकर बच्चों ने अपना झगड़ा समाप्त कर दिया।

प्रश्न 3.
तीन बच्चे किस प्रकार भीख माँग रहे थे?
उत्तर:
तीन बच्चे गाना गाकर भीख माँग रहे थे।

प्रश्न 4.
लेखिका ने अपने बच्चों को क्या निर्देश दिया?
उत्तर:
लेखिका ने अपने बच्चों को भीख माँगने वालों को दो-दो पूरियाँ देने का निर्देश दिया।

प्रश्न 5.
तीनों बच्चों के क्या नाम थे?
उत्तर:
बड़ी लड़की का ईठी, छोटी लड़की का सीठी और लड़के का प्रेम नाम था।

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प्रश्न 6.
बच्चों का बाप कहाँ था?
उत्तर:
अमरावती जेल में।

प्रश्न 7.
लेखिका की सेवा के लिए दोनों औरतें कैसी थीं?
उत्तर:
लेखिका की दोनों औरतें अलग-अलग विशेषताओं की थीं। उनमें एक अल्लड़-सी थी, जिसे कुछ काम-काज नहीं आता था। दूसरी समझदार थी जो हर काम को मन लगाकर करती थी।

तीन बच्चे दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बच्चे कौन-सा गाना गाकर भीख माँग रहे थे?
उत्तर:
बच्चे निम्नलिखित गाना गाकर भीख माँग रहे थे –
“भगवान दया करना इतनी,
मेरी नैया को पार लगा देना।”
“मैं तो डूबत हूँ मँझधार पड़ीं.
मेरी बैयाँ पकड़ के उठा लेना।”

प्रश्न 2.
दूसरे दिन लेखिका के बच्चों ने क्या तर्क देकर भिखारी बच्चों को पूरियाँ खिलाईं?
उत्तर:
बच्चों ने कहा पूरियाँ तो धरी हैं। बेचारे छोटे-छोटे बच्चे हैं। जाने अकी माँ है या नहीं। वे भला कहाँ पकायेंगे। इससे तो अच्छा यह है कि उन्हें कुछ न दिया जाए। आप माँ होकर ऐसा क्यों कहती हो। उन बेचारों को भी भूख लगी होगी। हमारे हिस्से की ही दें दो। हम शाम को नाश्ता नहीं करेंगे। ये तर्क देकर लेखिका के बच्चों ने दूसरे दिन भिखारी बच्चों को पूरियाँ खिलाईं।

प्रश्न 3.
लेखिका जेल क्यों गई?
उत्तर:
लेखिका युद्ध-विरोध के आंदोलन में सत्याग्रह करके जेल गई। उसके बच्चे चाहते थे कि उनकी माँ सत्याग्रह करके जेल जाएँ।

प्रश्न 4.
लड़की ने अपने माता-पिता के संबंध में क्या बताया?
उत्तर:
लड़की ने बताया कि उसका बाप शराब पीकर दंगा करता था। माँ को मारता था और गाली बकता था। इसलिए पुलिसवाले पकड़कर ले गए और माँ ने पुलिसवालों को मारा था क्योंकि उसने हमारे बाप को पकड़ा था। इसलिए पुलिस उसे भी साथ ले गई। अब माँ-बाप दोनों जेल में हैं।

प्रश्न 5.
नाले में तीनों बच्चे क्यों बह गए?
उत्तर:
नाले में तीनों बच्चे बह गए क्योंकि उस दिन खूब पानी बरसा था। खूब बादल गरजे थे और कड़क-कड़क कर बिजली चमकी थी। अधिक पानी बरसने से बच्चों को बचने की कोई गुंजाइश नहीं रही। वे उस पानी में बह गए।

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प्रश्न 6.
लेखिका को लखिया के बारे में मेट्रन से क्या जानकारी मिली?
उत्तर:
लेखिका को लखिया के बारे में मेट्रन से यह जानकारी मिली कि वह बड़ी खतरनाक औरत है। उसने पुलिस को मारा है लेकिन पुलिस ने जेल में उसके दिमाग को ठीक कर दिया है।

तीन बच्चे लेखिका-परिचय

प्रश्न 1.
सुभद्राकुमारी चौहान का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी. साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 ई० को निहालपुर, इलाहाबाद में हुआ था। इनका परिवार एक प्रगतिशील परिवार था। इन्होंने प्रयाग के क्रास्थवेस्ट स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। इनकी पहली रचना ‘नीम’ 1913 ई० में ‘मर्यादा’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। उस समय इनकी आयु मात्र 9 वर्ष की थी। इनका विवाह 1919 में श्री लक्ष्मणसिंह के साथ हुआ। 1921 में गाँधी जी के असहयोग आंदोलन का प्रभाव इन पर भी पड़ा। इन्होंने अपने पति के साथ पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

इसके पश्चात् आप दोनों ने स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया। 1923 में इनको सत्याग्रह के सिलसिले में पुलिस ने हिरासत में ले लिया। 1942 में भी इनको दस मास का कारावास मिला। देश के स्वाधीन होने पर आप मध्य प्रदेश विधानसभा की सदस्य बनीं। 15 फरवरी, 1948 में एक मोटर-दुर्घटना में इनकी दिमाग की नस फट गई और सिवनी में ही इनका देहावसान हो गया।

साहित्यिक विशेषताएँ:
श्रीमती सुभद्राकुमारी की साहित्य और राजनीति में आरंभं से ही रुचि थी। स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के कारण आप अधिक साहित्य रचना नहीं कर पाईं। फिर भी कविता, कहानी और निबंध के क्षेत्र में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में बिखरी हुई हैं। इनकी सुप्रसिद्ध कविता ‘झाँसी की रानी’ है, जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था। इनकी कविताओं के दो विषय रहे-राष्ट्रीयता तथा सामाजिक जीवन की समस्याएँ। राष्ट्रीय रचनाओं का मूल स्वर स्वाधीनता आंदोलन और देशभक्ति रहा।

इन कविताओं में अपने देश के प्रति अपनी भक्ति-भावना को प्रदर्शित किया है। इन कविताओं में राष्ट्रभक्ति के साथ-साथ निर्भीकता और ओजस्विता का गुण मुख्य है। सुभद्राजी हिंदी काव्य जगत् में अकेली ऐसी कवयित्री हैं, जिन्होंने अपने कंठ की पुकार से लाखों भारतीय युवक-युवतियों को युग-युग की अकर्मण्य उदासी को त्याग, स्वतंत्रता संग्राम में अपने को समर्पित कर देने के लिए प्रेरित किया। सामाजिक जीवन से संबंधित कविताओं में दाम्पत्य-प्रेम और वात्सल्य भाव की कविताएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके काव्य में एक ओर नारी सुलभ ममता तथा सुकुमारता है तो दूसरी ओर पद्मिनी के जौहर की भीषण ज्वाला है।

रचनाएँ:
काव्य-संग्रह-त्रिधारा और मुकुल।

कहानी-संग्रह:
सीधे-सादे चित्र, बिखरे मोती और उन्मादिनी।

इनकी कविताओं की भाषा सरल तथा बोलचाल के निकट है। वर्ण्य-विषय के अनुरूप उसमें प्रसाद और ओजगुण मिलता है। आपकी कविताओं में मानक जीवन की सहज अनुभूति हुई है। इन कविताओं में अलंकारों का प्रयोग भी सहज ढंग से ही हुआ है; अर्थात् इन रचनाओं में अलंकारों का प्रयोग प्रयत्नपूर्ण नहीं किया गया है।

तीन बच्चे पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
‘तीन बच्चे’ कहानी का सार लिखिए।
उत्तर:
लेखिका के बच्चों ने घर की क्यारियों में फूलों के पौधे लगाए थे। थोड़े दिन बाद क्यारियों में फूल खिल आए। बच्चे आपस में झगड़ने लगे कि उसकी क्यारी के फूल सबसे सुंदर हैं। उनके झगड़े की आवाज सुनकर लेखिका को रसोईघर छोड़कर बगीचे में जाना पड़ा। लेखिका को बच्चों की लड़ाई को न्यायपूर्वक समाप्त करना था। इतने में बच्चों के काकाजी आ गए। उन्होंने बच्चों से कहा कि यदि तुम लड़े-भिड़े तो मैं तुम्हारी माँ को सत्याग्रह न करने दूंगा। लेखिका के बच्चे चाहते थे कि मैं (लेखिका) सत्याग्रह करूँ और जेल जाऊँ। बच्चों ने झगड़ना बंद कर दिया और कहा सभी क्यारियों के फूल सुंदर हैं।

सब घर के अंदर जा रहे थे कि बाहर से बच्चों के गाने की आवाज आई, “भगवान दया करना इतनी, मेरी नैया को पार लगा देना।” हम दरवाजे की और दौड़ पड़े। बाहर आकर देखा तीन बच्चे थे। दो लड़कियाँ और एक लड़का। बड़ी लड़की 10 साल की तथा छोटी 8 साल की होगी। लड़का 5 साल के लगभग होगा, जो बड़ी लड़की की गोद में था। उनके कपड़े फटे-पुराने थे। उन्होंने बताया कि वे भूखे हैं। कल से कुछ नहीं खाया है। लेखिका ने अपने बच्चों से उन्हें दो-दो पूरी लाकर देने को कहकर, अंदर चली गई। बच्चों ने उन्हें भरपेट पूरियां खिलाईं।

दूसरे दिन जब वे लोग चाय पी ही रहे थे कि उन बच्चों की टोली फिर आ पहुँची। लेखिका ने अपने बच्चों से कहा कि कल तुमने खूब पूरियाँ खिलाई थीं न, अब वे सब फिर आ गए। जैसे उनके लिए यहाँ रोज पूरियाँ रखी हैं। बच्चों ने एक साथ कहा, ‘धरी तो हैं माँ! इसके साथ ही उनके हाथ पूरी के डिब्बे की ओर बढ़े। एक बच्चे ने कहा, ‘न जाने उनकी माँ भी है या नहीं।’ बच्चों ने उन तीनों को पूरियाँ खिलाईं।

लेखिका भी दरवाजे पर पहुँच गई। लेखिका ने उनके संबंध में जानना चाहा। उसे पता लगा कि वे तीनों भाई-बहन हैं। उनमें से बड़ी लड़की का नाम ‘ईठी’, छोटी बहन का नाम ‘सीठी’ और भाई का नाम ‘प्रेम’ था। उनके माँ-बाप जेल में थे। उनका बाप शराब पीकर दंगा मचाता था और उनकी माँ को पीटता था। पुलिस ने उसके बापू को पकड़ा, तो माँ ने पुलिसवालों को मारा था इसलिए पुलिसवाले उसे भी ले गए। उनकी माँ के साथ उनका एक छोटा भाई भी था।

लेखिका को बड़ा दुख हुआ कि माँ-बाप जेल में और ये अनाथ सड़क पर भीख माँगते फिरते हैं। उन्हें देखकर लेखिका को लगा कि इन बच्चों को नहाये हुए भी काफी दिन हो गए हैं। लेखिका ने बड़ी लड़की से पूछा कि तुम अपनी माँ से मिलने जेल नहीं जातीं। इस पर उसने बताया कि तीन महीने में एक बार मुलाकात होती है। एक बार मुलाकात करने गए थे। दूसरी बार तीन महीने बाद गए, तो पता चला कि माँ को यहाँ की जेल में भेज दिया गया है। इसलिए हम काली माँ के साथ यहाँ आ गए।

काली माँ भीख माँगती है। वे तीनों बच्चे जेल के पास बने नाले के पुल के नीचे रहते हैं। कभी-कभी काली माँ आ जाती है। बड़ी लड़की कहती है-जब माँ जेल से छूटेगी तो हम उसको साथ लेकर देश जाएँगे। बालिका का मुँह इस विचार से खुशी से भर उठा। बच्चों ने लेखिका को बताया कि उनके पास दूसरे कपड़े नहीं हैं। इस पर लेखिका के बच्चों ने अपने ढेर सारे कपड़े उन्हें लाकर दिए।

लेखिका भी युद्ध-विरोधी सत्याग्रह करके जेल की अतिथि बनी। उनकी सबसे छोटी बेटी मिनू उनके साथ ही गई; क्योंकि वह बहुत छोटी थी। उन्हें जेल की बजाय, अस्पताल में रखा गया और उनकी सेवा के लिए दो साधारण कैदी स्त्रियों को लगा दिया गया था। लेखिका की सेवा में तैनात औरतों में से एक अल्हड़-सी थी। उसे कुछ काम-काज नहीं आता था और दूसरी प्रौढ़ा थी। उसकी गोद में एक बच्चा था। वह बड़ी फिक्र से सब काम करती थी। मिनू को तो उसने अपनी बच्ची की तरह हिला लिया था। उस औरत का नाम लखिया था। लेखिका लखिया के संबंध में सोचती थी कि लखिया कौन है? यह जेल क्यों आई? एक दिन लेखिका ने मेट्रन से पूछा तो उसने बताया कि इसने पुलिस को मारा था।

इस पर लेखिका को उन तीन बच्चों की याद आई। उनकी माँ भी तो पुलिस को मारने के कारण जेल में थी और उसके साथ भी एक बच्चा था लेकिन लेखिका लखिया से कुछ पूछने का साहस न जुटा पाई। एक दिन खूब मूसलाधार बरसात हुई। बादल जोर-जोर से गरजे। लेखिका ने ईश्वर से सब बच्चों को अच्छी तरह रखने की प्रार्थना की। लेखिका के पास जेल में अखबार आता था। उसमें एक खबर थी। कल रात, एकाएक बहुत पानी बरसा। जेल के पास के नाले में तीन गरीब बच्चे बह गए। उनकी लाशें मिलीं।

वे गाकर भीख माँगा करते थे। लेखिका के सामने उन तीनों बच्चों के चित्र खिंच गए। उसने जबरदस्ती अपने आँसुओं को रोका। उसके मुख से निकला-बेचारे बच्चे। लेखिका ने लखिया से पूछा कि जेल के बाहर उसके कितने बच्चे हैं? लखिया ने गहरी साँस लेकर कहा-“जेल के बाहर बाई साहब! वो तो भगवान के हैं-अपने कैसे कहूँ।” उसके बाद वह अखबार की खबर पूछती ही रह गई लेकिन उसे कुछ नहीं बता सकी।

तीन बच्चे संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
संग्राम में विषैले वाक्यों का प्रयोग होते सुनकर मुझे चौके का काम छोड़, बगीचे की ओर जाना पड़ा। मुझे देखते ही सब एक साथ अपने-अपने पक्ष का समर्थन कर न्याय की दुहाई देने लगे। न्याय का कार्य उतना आसान न था, जितना एक अदालत के जज का होता है। जज के पथ-प्रदर्शन के लिए कानून होते हैं और नजीरें भी। चाहे लकीर की फकीरी में अन्याय ही क्यों न हो जाए; पर उसका मार्ग स्पष्ट रहता है। मेरे सामने न कानून था, न नज़ीर-फिर भी मुझे यह लड़ाई समाप्त करनी थी और न्यायपूर्वक। (Page 57)

शब्दार्थ:

  • संग्राम – युद्ध, लड़ाई।
  • विषैले – जहर में बुझे।
  • आसान – सरल।
  • अदालत – न्यायपालिका।
  • जज – न्यायाधीश।
  • नज़ीरें – अनेक उदाहरण।
  • प्रदर्शन – दिखावा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा लिखित कहानी ‘तीन बच्चे’ से , उद्धृत है। लेखिका इस गद्यांश में अपने बच्चों के परस्पर हो रही लड़ाई का वर्णन करते हुए और उनकी लड़ाई समाप्त करने के लिए न्यायाधीश की भूमिका निभाने की अपनी स्थिति का वर्णन कर रही है।

व्याख्या:
लेखिका के बच्चों ने घर की क्यारियों में एक-एक फूलों का बगीचा लगाया था। उन क्यारियों में फूल खिल आए थे और बच्चे अपनी-अपनी क्यारियों के फूलों को एक-दूसरे से सुंदर बताते हुए परस्पर लड़ने लगे थे। बच्चों की लड़ाई में प्रयुक्त हो रहे, विष की तरह वाक्यों को सुनकर लेखिका को रसोईघर का काम बीच में ही छोड़कर बगीचे में जाना पड़ा। लेखिका को बगीचे में देखकर बच्चे परस्पर लड़ना छोड़कर, लेखिका से अपने-अपने पक्ष का समर्थन कर न्याय की माँग करने लगे। बच्चे चाहते थे कि वह न्याय करे कि किसकी क्यारी के फूल सुंदर हैं।

लेखिका कहती हैं कि बच्चों में न्याय करना सरल नहीं था। यदि एक का पक्ष लेकर उसकी क्यारी के फूलों को सुंदर बताया तो दूसरा नाराज. हो जाएगा और यदि दूसरे के फूलों को सुंदर बताया तो पहला नाराज हो जाएगा। न्यायालय में बैठे न्यायाधीश के लिए न्याय करना अधिक आसान होता है, क्योंकि न्याय के लिए न्यायालय के न्यायाधीश के सामने कानून होता है, जो उसको मार्ग दिखाते हैं।

इतना ही नहीं उसके सामने उदाहरण होते हैं और वकीलों के तर्क होते हैं। यह दूसरी बात है कि कानूनों का अक्षरशः पालन करने में अन्याय ही क्यों न हो जाए, किंतु उसका न्याय करने का रास्ता एकदम साफ होता है। लेखिका कहती है कि उसके सामने न तो कोई कानून था और न ही कोई उदाहरण था। ऐसी स्थिति में भी उसे बच्चों की इस लड़ाई को.समाप्त करना था और वह भी बिना किसी का पक्ष लिए हुए। उसे निष्पक्ष रहकर न्याय करनाथा।

विशेष:

  1. लेखिका ने इस तथ्य को उजागर किया है कि बच्चों की लड़ाई का निर्णय करना आसान नहीं होता है।
  2. न्याय के रास्ते की कठिनाइयों का वर्णन किया गया है।
  3. भाषा उर्दू शब्दावली युक्तखड़ी बोली है।
  4. मुहावरों का भी प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
हम लोगों को देखते ही उन्होंने गाना बंद कर दिया। लड़के को गोद से उतारकर, बड़ी ने जमीन से माथा टेककर हमें प्रणाम किया। उसकी देखा-देखी छोटी लड़की और लड़के ने जमीन से माथा टेका और तीनों ने अपने चीथड़ों से छिपे हुए पेट को दिखाकर यह बतलाया कि वे भूखे हैं। बड़ी के हाथ में एक झोली थी और छोटी के हाथ में एक टीन का डिब्बा। उन्होंने एक बार झोली की ओर देखा जो बिलकुल खाली जान पड़ती थी फिर हमारी ओर याचना की दृष्टि से देखने लगे। मैंने उनसे कहा-“तुम गाती तो बहुत अच्छा हो, और भी कोई गाना. जानती हो?” (Page 57)

शब्दार्थ:

  • जमीन – धरती, पृथ्वी।
  • चीथड़ों – फटे-पुराने कपड़े।
  • माथा टेकना – भूमि से सर लगाकर प्रणाम करना।
  • याचना – प्रार्थना करना, माँगना।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित कहानी ‘तीन बच्चे’ से उद्धृत है। लेखिका तीन भीख माँगने वाले बच्चों की दुर्दशा का वर्णन करती हुई कहती है।

व्याख्या:
बच्चों की लड़ाई समाप्त होने के बाद लेखिका घर के अंदर जा रही थी कि बाहर से बच्चों के गाने की आवाज सुनकर सब दरवाजे की ओर दौड़ पड़े और बाहर आकर उन्होंने देखा कि तीन बच्चे दो लड़कियाँ और एक लड़का गाकर भीख माँग रहे हैं। लेखिका कहती है कि हमें बाहर आया देखकर उन तीनों बच्चों ने गाना बंद कर दिया। उनमें से बड़ी लड़की ने लड़के को गोद से उतार दिया और भूमि से सर लगाकर उसे प्रणाम किया।

उस बड़ी लड़की का अनुसरण करते हुए छोटी लड़की और लड़के ने भी भूमि से माथा टेककर उसे प्रणाम किया। उन तीनों ने अपने फटे-पुराने, मैल से भरे हुए कपड़ों में छिपे पेट को दिखलाते हुए बताया कि वे भूखे हैं। बड़ी लड़की के हाथ में एक झोली थी और छोटी के हाथ में टीन का डिब्बा था। उनकी झोली बिलकुल खाली थी। उन तीनों में माँगने की दृष्टि से हमारी ओर देखा। लेखिका कहती है कि मैंने उन तीनों से कहा कि तुम तीनों बहुत अच्छा गाते हो। क्या और भी कोई गाना जानती हो?

विशेष:

  1. भीख माँगने वाले बच्चों की स्थिति का हृदयस्पर्शी वर्णन किया गया हैं।
  2. भाषा सरल, स्पष्ट, सुबोध खड़ी बोली है।
  3. मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 3.
हमारी माँ ने पुलिस वालों को मारा था-जिसने हमारे बाप को पकड़ा था न, उसी को। और फिर वे हमारी माँ को भी पकड़ कर ले गए। बड़े बुरे होते हैं पुलिस वाले-“हमारी माँ को भी ले गए। माँ के बिना हमको भी बुरा लगता है, पर यह प्रेमा तो रात-दिन रोता ही रहता है।” मैंने लड़के की ओर देखा-बेचारा छोटा-सा बच्चा; मुश्किल से पाँच बरस का फटे चीथड़ों में लिपटा हुआ, सर में महीनों से तेल का नाम नहीं, रूखे-बिखरे बाल न जाने कब से नहाया नहीं था; शरीर पर एक मैल की तह-सी जम गई थी, गालों पर आँसुओं के निशान बने हुए थे, आँसुओं के साथ-साथ उस स्थान की मैल जो धुल गई थी। मुझे उस बच्चे पर बड़ी दया आई। (Pages 59-60)

शब्दार्थ:

  • मुश्किल – कठिनाई।
  • तह जमना – परत जमना।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित कहानी ‘तीन बच्चे’ से उद्धृत है। भीख माँगने वाली लड़की अपनी माँ के जेल जाने का कारण लेखिका को बता रही है, तो लेखिका उनके साथ छोटे लड़के की दुर्दशा का चित्रण कर रही है।

व्याख्या:
भीख माँगने वाले तीन बच्चों में से बड़ी लड़की बताती है कि हमारी माँ ने उन पुलिसवालों को मारा था, जिन्होंने हमारे बाप को पकड़ा था। पुलिसवालों को पीटने के अपराध में पुलिस हमारी माँ को भी पकड़कर ले गई थी। लड़की कहती है कि पुलिसवाले बहुत बुरे होते हैं। वे हमारी माँ को पकड़कर ले गए। उसे भी जेल में डाल दिया। माँ के बिना हम बच्चों को बुरा लगता है। माँ का अभाव हमें खलता है। यह मेरा भाई प्रेम तो रात-दिन माँ को याद करके रोता ही रहता है।

लेखिका कहती है कि मैंने उस लड़के की ओर देखा-बेचारा (असहाय, विवश) छोटा-सा बच्चा है। वह मुश्किल से पाँच वर्ष का होगा। फटे-पुराने मैले कपड़ों में लिपटा हुआ है। उसके बाल रूखे-सूखे हैं, लगता है उसे नहाये हुए बहुत दिन हो गए थे। उसके शरीर पर मैल की एक तह-सी जम गई थी। उसके गालों पर आँसुओं के बहने के निशान बन गए थे। गालों पर आँसुओं के बहने से उस छोटे-से बच्चे के गालों से मैल भी धुल गई थी। लेखिका कहती है कि मुझे उसकी दुर्दशा देखकर बड़ी दया आई। लेखिका के मन में उस अबोध बालक के प्रति दया का भाव जागृत हो उठा।

विशेष:

  1. लड़की ने अपनी माँ के जेल जाने के कारण को स्पष्ट किया है।
  2. लेखिका ने छोटे लड़के की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला गया
  3. भाषा सरल, स्पष्ट खड़ी बोली है।

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प्रश्न 4.
मेरी सेवा के लिए जो दो औरतें तैनात थीं, उनमें एक तो अल्हड़-सी थी, जिसे कुछ काम-काज न आता था पर दूसरी समझदार थी। वह प्रौढ़ा थी। उसकी गोद में भी एक बच्चा था। वह बड़ी फिक्र से सब काम करती थी। वह अधिकतर चुप रहती थी, जैसे सदा मन ही मन कुछ सोचा करती हो। मिनू को तो उसने इस प्रकार हिला लिया था जैसे वह उसकी बच्ची हो। उसका खुद का बच्चा पाँव-पाँव चलता और मिनू उसकी गोदी पर। पानी भरती, तो मिनू उसके साथ होती; दाल दलती, तो मिनू उसके साथ और बर्तन मलती तो मिनू भी उसके साथ छोटी-छोटी कटोरियाँ और गिलास मलती दीख पड़ती। अंत को बात इतनी बढ़ी कि वह मिनू को अपनी पीठ से बाँधकर झाडू देने लगी। उसका नाम का लखिया’। (Page 61)

शब्दार्थ:

  • तैनात – नियुक्त।
  • अल्हड़ – बालोचित सरलता के साथ मस्त और लापरवाह।
  • प्रौढ़ा – वह स्त्री जिसकी आयु अधिक हो चली हो।
  • फिक्र – चिंता।
  • हिला लेना – घुल-मिल जाना।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित कहानी ‘तीन बच्चे – उद्धृत है। इस गद्यांश में लेखिका उनकी सेवा में नियुक्त दोनों स्त्रियों की विशेषताओं पर प्रकाश डाल रही है।

व्याख्या:
लेखिका युद्ध-विरोधी आंदोलन में सत्याग्रह करके जेल चली गई, तो उसे जबलपुर जेल में रखने की अपेक्षा अस्पताल में आ गया और दो महिला कैदियों को उसकी देखभाल के लिए नियुक्त कर दिया था था। उन दोनों महिलाओं में से एक बातूनी सरसता के साथ मस्त और लापरवाह थी। उसे कोई काम-काज नहीं आता था किंतु दूसरी समझदार थी। वह अधिक आयु की थी। उसकी गोद में भी एक बच्चा था। वह प्रत्येक काम में निपुण थी और बड़ी चिंता के साथ सब काम करती थी। वह अधिक नहीं बोलती थी। अधिकांश समय चुप ही रहती थी। उसे देखकर लगता था जैसे वह मन ही मन सोचती रहती हो।

लेखिका कहती कि उस औरत ने मेरी लड़की मिनू को अपने साथ इस प्रकार घुला मिला लिया था जैसे वह उसकी लड़की हो। उसका स्वयं का लड़का पैदल चलता था और मीनू उसकी गोदी में रहती। जब वह पानी भरती तो भी मिनू उसके साथ ही रहती, दाल दलती तो भी मिनू उसके साथ ही रहती और वह बर्तन साफ करती तो मिनू भी उसके काम में हाथ बँटाती। वह छोटी-छोटी कटोरियाँ और गिलास मलती दिखाई पड़ती। भाव यह कि मिनू उस औरत के ही साथ रहती। आखिर में बात इतनी बढ़ गई कि वह मिनू को अपनी पीठ से बाँधकर सफाई का काम करने लगी। उस औरत का नाम लखिया था। लखिया के साथ मीनू बहुत अधिक घुल-मिल गई थी।

विशेष:

  1. लेखिका ने लखिया नामक महिला कैदी और अपनी सेविका के चरित्र पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा चित्रात्मक है।
  3. भाषा खड़ी बोली है।

प्रश्न 5.
मैं बहुत सोचती थी कि लखिया कौन है। वह जेल क्यों आई? एक दिन अचानक मैंने मेट्रन से पूछा, जिसका उत्तर मिला-“ओह! यह बड़ी खतरनाक औरत है। इसने पुलिस को मारा है-पुलिस को। पर हमने उसका दिमाग ठीक कर दिया है। आपको कोई तकलीफ तो नहीं देती?” अचानक मुझे उन बच्चों का ख्याल में गया। उनकी माँ भी तो पुलिस को मारने के कारण जेल भेजी गई थी और उसके साथ भी तो एक छोटा बच्चा था। पूछना मैंने कई बार चाहा, पर लखिया की गंभीर और उदास मुद्रा देखकर, हिम्मत मेरी एक बार भी न हुई। (Page 61)

शब्दार्थ:

  • अचानक – एकाएक, अकस्मात।
  • दिमाग – मस्तिष्क।
  • तकलीफ – कष्ट, दुख।
  • ख्याल – ध्यान।
  • मुद्रा – आकृति।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित कहानी ‘तीन बच्चे’ से उद्धृत है। लेखिका लखिया के संबंध में बता रही है।

व्याख्या:
लेखिका कहती है कि मैं लखिया के संबंध में बहुत सोचती थी कि यह कौन है और किस अपराध में जेल आई है? एक दिन एकाएक मैंने मेट्रन से लखिया के संबंध में पूछा, तो उसने बताया कि यह बहुत खतरनाक स्त्री है। इसने पुलिसवालों की पिटाई की है किंतु हमने इसका दिमाग ठीक कर दिया है। यह आपको कोई कष्ट तो नहीं देती। लेखिका कहती है कि यह सुनकर कि इसने पुलिसवालों को पीटा है, मुझे उन तीन भीख माँगने वाले बच्चों का ध्यान आ गया।

उनकी माँ भी तो पुलिसवालों को मारने के अपराध में जेल में थी। उसके साथ भी एक बच्चा था। लेखिका कहती है कि मैंने इस संबंध में लखिया से कई बार पूछना चाहा लेकिन उसका गंभीर और उदास मुख देखकर, एक बार भी साहस नहीं हुआ। कहने का भाव यह है कि लेखिका लखिया से चाहते हुए भी कुछ नहीं पूछ सकी।

विशेष:

  1. लेखिका लखिया के संबंध में जिज्ञासा होते हुए उससे कुछ भी पूछने का साहस नहीं जुटा सकी। लेखिका की मनःस्थिति पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल, स्पष्ट खड़ी बोली है।

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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 मेरे सपनों का भारत

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 मेरे सपनों का भारत (निबन्ध, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम)

मेरे सपनों का भारत पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

मेरे सपनों का भारत लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बौद्धिक पुनर्जागरण की प्रक्रिया में किस-किसका योगदान था?
उत्तर:
बौद्धिक पुनर्जागरण की प्रक्रिया में धार्मिक संतों, दार्शनिकों, कवियों, वैज्ञानिकों, खगोलविदों और गणितज्ञों का योगदान था।

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प्रश्न 2.
शिक्षा के क्षेत्र में कौन-कौन से आचार्य प्रसिद्ध हुए हैं? (M.P. 2010)
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में कौटिल्य, पाणिनि, जीवक, अभिनव गुप्त और पतंजलि आदि आचार्य प्रसिद्ध हुए हैं।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के विकास के लिए किस प्रकार की योजनाएँ बनाई गईं?
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गईं।

प्रश्न 4.
भारत विकसित देशों की श्रेणी में वैसे आ सकेगा?
उत्तर:
भारत बौद्धिक समाज के रूप में बदलकर ही विकसित देशों की श्रेणी में आ सकेगा।

प्रश्न 5.
भारतीय सेना में कौन-कौन सी स्वदेशी मिसाइलें शामिल की गई हैं?
उत्तर:
भारतीय सेना में ‘पृथ्वी’ और ‘अग्नि’ स्वदेशी मिसाइलें शामिल की गई हैं।

मेरे सपनों का भारत दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अतीत में शिक्षा के क्षेत्र में भारत को बहुत उन्नत क्यों कहा गया है?
उत्तर:
अतीत में भारत में तक्षशिला और नालंदा जैसे महान् विश्वविद्यालय थे, जिनमें भारत के अतिरिक्त सुदूर देशों के विद्यार्थी भी भाषा, व्याकरण, दर्शनशास्त्र, औषधि, विज्ञान, सर्जरी, धनुर्विद्या, एकाउंट्स, वाणिज्य, भविष्य-विज्ञान, दस्तावेजीकरण, तंत्रविद्या, संगीत, नृत्य तथा छिपे खजानों की शिक्षा प्राप्त करने आते थे। इसीलिए अतीत में शिक्षा के क्षेत्र में भारत को बहुत उन्नत कहा गया है।

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प्रश्न 2.
शून्य के आविष्कार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (M.P. 2011)
उत्तर:
गणित के क्षेत्र में भारत ने शून्य का आविष्कार किया जिससे गणना करने की दोहरी प्रणाली विकसित हुई। इसी दोहरी प्रणाली पर आधुनिक कंप्यूटर निर्भर हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने विश्व को गणना सिखाने का श्रेय भारतीयों को दिया। शून्य के आविष्कार से अनेक महत्त्वूपर्ण वैज्ञानिक खोज संभव हो सकीं।

प्रश्न 3.
आर्यभट्ट की क्या देन है? (M.P. 2009, 2012)
उत्तर:
आर्यभट्ट ने हमें बताया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। उन्होंने रेखागणित के क्षेत्र में वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात को पाई के रूप में परिभाषित किया था और दशमलव के चार अंकों तक इसका शुद्ध मान बतलाया था। इस प्रकार रेखागणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट की महत्त्वपूर्ण देन है। दशमलव पद्धति भी उनकी देन है।

प्रश्न 4.
भारत के आधारभूत ढाँचे के निर्माण के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए?
उत्तर:
भारत ने आधारभूत ढाँचे के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण उद्योगों की स्थापना की। अनुसंधान व विकास और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना की। इनका नेतृत्व योग्य व्यक्तियों के हाथों में दिया गया।

प्रश्न 5.
“स्वतंत्रता से पूर्व भी भारतीयों ने विश्वस्तरीय उपलब्धियाँ प्राप्त की थीं।” इस कथन का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए। (M.P. 2012)
उत्तर:
इस कथन का तात्पर्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भी भारत में प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, कवि, दार्शनिक, इंजीनियर, चिकित्सक आदि थे। वैज्ञानिकों ने अपनी खोजों के द्वारा विदेशों में भारत का नाम रोशन किया। टैगोर ने साहित्य के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। सी.वी. रमन, के.एस. कृष्णन को उनकी वैज्ञानिक खोजों के लिए ‘सर’ उपाधि से सम्मानित किया गया। दार्शनिक क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद ने अपने व्याख्यानों से विश्व के लोगों को प्रभावित किया।

प्रश्न 6.
अंतर्राष्ट्रीय व्यावसायिक बाजार में भारतीय सॉफ़्टवेयर की अच्छी साखक्यों है?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय व्यावसायिक बाजार में भारतीय सॉफ्टवेयर की अच्छी साख है, क्योंकि इस क्षेत्र में सक्रिय भारतीय इंजीनियरों ने अपनी कुशलता का परिचय दिया है। हमारा कुशल- जन-संसाधन विश्व में सर्वोपरि है। इसमें युवा उद्यमियों का कुशल प्रबंधन प्रशंसनीय है।

प्रश्न 7.
सही जोड़ियाँ बनाइए –
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 मेरे सपनों का भारत img-1
उत्तर:

  1. (ग)
  2. (ङ)
  3. (क)
  4. (ख)
  5. (घ)।

मेरे सपनों का भारत भाव-विस्तार/पल्लवन

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्ति का भाव-विस्तार कीजिए- “विश्व एक बौद्धिक समाज में परिवर्तित हो रहा है।”
उत्तर:
21वीं शताब्दी ज्ञान युग और बौद्धिक युग से सम्बन्धित है। जहाँ ज्ञान की प्राप्ति, उपलब्धि और प्रयोग को महत्त्वपूर्ण संसाधन माना जाता है। आज संसार में प्रत्येक व्यक्ति विविध विषयों का ज्ञान अर्जित करना चाहता है। ज्ञान बुद्धि का विषय है। इसीलिए समाज के लिए अपना बौद्धिक विकास करने में संलग्न है और विश्व एक बौद्धिक समाज में परिवर्तित हो रहा है। जहाँ अज्ञान और अंधविश्वास के लिए कोई स्थान नहीं है।

मेरे सपनों का भारत भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह करते हुए उनके नाम भी लिखिए –
विश्वविद्यालय, दर्शनशास्त्र, औषधि विज्ञान, तंत्र विद्या, आधारशिला।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 मेरे सपनों का भारत img-2

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए –

  1. हम इसका श्रेय भारतीयों को देते हैं, जिन्होंने हमें गणना करना सिखाया। (सरल वाक्य में)
  2. भारत ने महत्त्वपूर्ण उद्योगों की स्थापना और आधारभूत ढाँचे के निर्माण को प्रेरित किया। (मिश्र वाक्य में)
  3. बालक रो-रोकर चुप हो गया। (संयुक्तं वाक्य में)

उत्तर:

  1. हमें गणना करना सिखाने का श्रेय भारतीयों को देना चाहिए।
  2. जब भारत ने महत्त्वपूर्ण उद्योगों की स्थापना की, तब उसने आधारभूत ढाँचे का भी निर्माण किया।
  3. बालकं रो रहा था और वह रोकर चुप हो गया।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अशुद्ध वाक्य को शुद्ध रूप में लिखिए –

  1. खिड़की खुलने से प्रकाश आएगा।
  2. तुम तुम्हारे घर जाओ।
  3. हमारे को अपनी उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए।

उत्तर:

  1. खिड़की खुलने से प्रकाश आता है।
  2. तुम अपने घर जाओ।
  3. हमें अपनी उपलब्धि पर गर्व करना चाहिए।

मेरे सपनों का भारत योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
भारत ने शून्य का आविष्कार किया, ऐसे ही भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में और क्या-क्या उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं? सूची बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
भारतीय मिसाइल का मॉडल तैयार कर उसका प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
आपके सपनों में भारत कैसा है, विषय पर परिचर्चा का आयोजन कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
गाँव/शहर का विकास ही भारत का विकास है, अतः आप अपने गाँव/शहर के विकास के लिए स्वयं क्या करना चाहते हैं, लेखबद्ध करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

मेरे सपनों का भारत परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
विश्व को शून्य की देन ……….. है।
(क) इंग्लैंड की
(ख) अमेरिका की
(ग) जापान की
(घ) भारत की
उत्तर:
(घ) भारत की।

प्रश्न 2.
रामानुजम प्रसिद्ध ……….. थे।
(क) वैज्ञानिक
(ख) गणितज्ञ
(ग) दार्शनिक
(घ) शिक्षा शास्त्री
उत्तर:
(ख) गणितज्ञ।

प्रश्न 3.
भारत ने ………… का आविष्कार किया।
(क) दशमलव प्रणाली
(ख) कंप्यूटर
(ग) शिक्षा प्रणाली
(घ) मिसाइल प्रणाली
उत्तर:
(क) दशमलव प्रणाली।

प्रश्न 4.
‘हम इसका श्रेय भारतीयों को देते हैं’ किसने कहा?
(क) अल्बर्ट आइंस्टाइन ने
(ख) अल्बर्ट डिसूजा ने
(ग) अल्बर्ट मारकोनी ने
(घ) सी.वी. रमन ने
उत्तर:
(क) अल्बर्ट आइंस्टाइन ने।

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प्रश्न 5.
वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात को पाई के रूप में ……….. परिभाषित किया।
(क) आर्यभट्ट ने
(ख) भास्कराचार्य ने
(ग) मिहिर वराह ने
घ) नागार्जुन ने
उत्तर:
(क) आर्यभट्ट ने।

प्रश्न 6.
भारतीय सेना में शामिल की जा चुकी मिसाइलें हैं –
(क) सूर्य और आकाश
(ख) पृथ्वी और अग्नि
(ग) क्रूज और नाग
(घ) गौरी और हल्फ
उत्तर:
(ख) पृथ्वी और अग्नि।

प्रश्न 7.
विश्व किस समाज में परिवर्तित हो रहा है –
(क) बौद्धिक
(ख) धार्मिक
(ग) वैज्ञानिक
(घ) आध्यात्मिक
उत्तर:
(क) बौद्धिक।

प्रश्न 8.
‘मेरे सपनों का भारत’ के लेखक हैं……….। (M.P. 2012)
(क) अब्दुल कलाम आजाद
(ख) डॉ. अब्दुल कलाम
(ग) अब्दुल कादिर
(घ) अब्दुल रहमान
उत्तर:
(ख) डॉ. अब्दुल कलाम।

प्रश्न 9.
सुश्रुत ने कब जटिल शल्य क्रिया की थी?
(क) 15,000 वर्ष पहले
(ख) 1,000 वर्ष पहले
(ग) 2,500 वर्ष पहले
(घ) 2,000 वर्ष पहले
उत्तर:
(ग) 2,500 वर्ष पहले।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. भारत पिछली शताब्दी में एक ………. राष्ट्र था। (प्रबल उन्नत)
  2. भारत ने ………. का आविष्कार किया। (गुरुत्वाकर्षण/शून्य)
  3. इक्कीसवीं सदी ………. से संबंधित है। (बौद्धिक युग/धार्मिक युग)
  4. स्वतंत्रता के बाद भारत ने ………. शुरू की। (पंचवर्षीय योजना/राजनीतिक योजना)
  5. 70 के दशक में पहले ………. क्रान्ति के परिणाम देखने को मिले। (समग्र/हरित)

उत्तर:

  1. उन्नत
  2. शून्य
  3. बौद्धिक युग
  4. पंचवर्षीय योजना
  5. हरित।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –

  1. ‘मेरे सपनों का भारत’ निबंध के लेखक पंडित नेहरू हैं।
  2. हमें अपने उल्लेखनीय उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए।
  3. भारतीय सेना में ‘पृथ्वी’ और ‘अग्नि’ को शामिल किया गया।
  4. परमाणु ऊर्जा उत्पत्ति तथा अस्त्र विकास में हमारी उपलब्धियाँ विकसित विश्व के मुकाबले की नहीं हैं।
  5. विश्व एक बौद्धिक समाज में परिवर्तित हो रहा है।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए – (M.P. 2009)

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 मेरे सपनों का भारत img-3
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
किस दशक में पहले हरित क्रांति के परिणाम देखने को मिले?
उत्तर:
70 के दशक में।

प्रश्न 2.
भारत किस अवसर का लाभ एक विकसित देश बनने के लिए उठा सकता हैं।
उत्तर:
दो दशकों के भीतर का।

प्रश्न 3.
भास्कराचार्य ने किस सिद्धान्त की स्थापना की?
उत्तर:
‘सूर्य-सिद्धान्त’ की।

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प्रश्न 4.
‘सूर्य सिद्धान्त’ में भास्कराचार्य ने किसके नियम को पहचाना था?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के नियम को।

प्रश्न 5.
शिक्षकों के पैनल में कौन-कौन से प्रसिद्ध आचार्य थे?
उत्तर:
कौटिल्य, पाणिनि, जीवक, अभिनव गुप्त और पतंजति।

मेरे सपनों का भारत लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अतीत में भारत के दो महान् विश्वविद्यालय कौन-कौन से थे? (M.P. 2012)
उत्तर:
अतीत में भारत में तक्षशिला. और नालंदा दो महान् विश्वविद्यालय थे।

प्रश्न 2.
2500 वर्ष पहले किस चिकित्सक ने जटिलशल्य क्रियाएँ की थीं?
उत्तर:
2500 वर्ष पहले सुश्रुत ने जटिलशल्य क्रियाएँ की थीं।

प्रश्न 3.
आज़ादी से पूर्व के प्रसिद्ध कवि कौन थे?
उत्तर:
आज़ादी से पूर्व रवींद्रनाथ टैगोर प्रसिद्ध कवि थे।

प्रश्न 4.
ऑपरेशन फ्लड से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऑपरेशन फ्लड से तात्पर्य है-दूध उत्पादन में क्रांति होना।

प्रश्न 5.
पी.एस.एल.वी. सी.-5 की सातवीं सफल उड़ान ने क्या प्रदर्शिताकिया?
उत्तर:
उपग्रह को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करने की स्वदेशी योग्यता को।

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प्रश्न 6.
आर्यभट्ट कौन थे?
उत्तर:
आर्यभट्ट एक महान भारतीय वैज्ञानिक थे। उन्होंने किसी वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपातको पाई के रूप में परिवर्तित किया था।

प्रश्न 7.
लेखक ने शल्य-क्रिया के क्षेत्र में किसका नाम लिया है?
उत्तर:
लेखक ने शल्य-क्रिया के क्षेत्र में सुश्रुत का नाम लिया है।

प्रश्न 8.
स्वतंत्रता के बाद भारत ने क्या शुरू की?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना।

मेरे सपनों का भारत दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हरित क्रांति से क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति के कारण भारत खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना। खाद्यान्नों के आयात पर उसकी निर्भरता समाप्त हो गई।

प्रश्न 2.
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने क्या प्रगति की?
उत्तर:
अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में हर प्रकार उपग्रह डिजाइन तथा विकसित करने और उन्हें अपने प्रक्षेपण यानों द्वारा अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करने के साथ ही स्वदेशी तकनीक विकसित करने की योग्यता प्राप्त कर ली है।

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प्रश्न 3.
मिसाइल क्षेत्र में भारत की क्या उपलब्धि है?
उत्तर:
मिसाइल के क्षेत्र में भारत ने किसी भी प्रकार की मिसाइल या मुखाग्र को डिजाइन करने, विकसित करने तथा उसे उत्पादित करने की स्वदेशी क्षमता प्राप्त कर ली है।

प्रश्न 4.
आजादी से पहले हमारे पास विस-किस क्षेत्र के कौन-कौन-से लोग जुड़े हुए थे?
उत्तर:
आजादी से पहले हमारे पास विश्वस्तरीय वैज्ञानिक, कवि, दार्शनिक, इंजीनियर, चिकित्सक और लगभग हरेक क्षेत्र से लोग जुड़े हुए थे। हमारे पास एस. एन. बोस, मेघनाद साहा, जे.सी. बोस., सर सी.वी. रमन, सर के.एस. कृष्णन, होमी जहाँगीर भाभा, विक्रम साराभाई, वी.एस. राय जैसे वैज्ञानिक, रामानुजम् जैसे गणितज्ञ, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे कवि, विवेकानंद जैसे दार्शनिक जुड़े हुए थे।

प्रश्न 5.
व्यावसायिक बाजार में भारत किस प्रकार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है?
उत्तर:
हमारा कुशल जन-संसाधन संसार में सबसे इच्छित संसाधनों में से एक है। यह विकसित संसार के आर्थिक विकास में भारतीय वैज्ञानिकों और उद्यमियों के बड़े योगदान से स्पष्ट है। इसके अलावा अपनी जनसंख्या और शिक्षित जनशक्ति की उपलब्धता के कारण भारत तुरन्त बौद्धिक कर्मियों की विशाल संख्या कर सकने में सक्षम है। ऐसा कर सकने में बहुत कम विकसित देश सक्षम हैं।

मेरे सपनों का भारत लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का संक्षिप्त जीवन-परिचय और साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
भारतरत्न और भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम का जन्म सन् 1931 में तमिलनाडु के रामेश्वरम जिले के धनुष कोटि नगर के एक साधारण परिवार में हुआ। उनका पूरा नाम डॉ. चंबुल पाकिर जैनुल आवदीन अब्दुल कलाम था। उनका जीवन सादगी की अनूठी मिसाल था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम में हुई। उच्चशिक्षा के लिए आप तिरुचिरापल्ली चले गए और वहाँ के सेंट जोसफल कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त की।

ईश्वर में आपकी पूर्ण आस्था थी। आप सच्चे धर्मनिरपेक्ष थे। आप जिस प्रकार कुरान का पाठ करते थे, उसी प्रकार गीता के दर्शन में भी आपकी आस्था थी। उनका कहना था कि जब में विज्ञान विपय से संबंधित अनेक सूक्ष्म कणों से मिलकर बने कणों का अध्ययन करता था, तो उससे प्रभु की सत्ता में मेरा विश्वास और भी दृढ़ हो जाता।

आपकी परिकल्पना थी कि सन् 2020 तक भारत विकसित राष्ट्र बने। इस कल्पना को साकार करने के लिए आपने विज्ञान के क्षेत्र में गहन अनुसंधान किया तथा देश को उपग्रह प्रणाली में आत्मनिर्भर बनाया। सर्वप्रथम मिसाइल कार्यक्रम को भारत में एक पहचान दी। इसी कारण उन्हें ‘मिसाइलमैन’ भी कहा जाता है। आपके प्रयासों से भारतीय सेना को पृथ्वी और अग्नि जैसी मिसाइलों से सुसज्जित किया गया है तथा अनेक मिसाइलों के निर्माण का कार्य प्रगति पर है। डॉ. कलाम ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इन्हीं विशिष्ट उपलब्धियों एवं वैज्ञानिक परिकल्पना के लिए उनको राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत-रत्न’ प्रदान किया गया। 28 जुलाई, 2015 को इनका निधन हो गया।

साहित्यिक उपलब्धियाँ:
विज्ञान के अतिरिक्त साहित्य के क्षेत्र में डॉ. कलाम ने उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। आपकी रचनात्मक प्रतिभा का लाभ साहित्य जगत् को भी मिलता रहा है। आपके बहुमूल्य विचार, कल्पना शक्ति एवं दूर-दृष्टि आपकी बहुमूल्य रचनाओं में भी झलकती हैं। आपमें देश के भावी कर्णधारों को सँवारने की अद्वितीय परिकल्पनाएँ थीं।

रचनाएँ:
मेरे सपनों का भारत।

महत्त्व:
आप बच्चों को राष्ट्र की धरोहर मानते थे। आप भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर आसीन थे। आप वैज्ञानिक क्षेत्र के साथ-साथ शिक्षण और साहित्य-सृजन में भी संलग्न थे।

मेरे सपनों का भारत पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
डॉ. अब्दुल कलाम के द्वारा रचित ‘मेरे सपनों का भारत’ लेख का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘मेरे सपनों का भारत’ पाठ के रचयिता डॉ. अब्दुल कलाम हैं। इसमें लेखक ने भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक बौद्धिक समाज के रूप में विकसित होने और स्वयं को एक बौद्धिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित होने के तरीकों व उपायों पर विचार किया है। लेखक का कहना है कि भारतीय सभ्यता की प्रभावशाली उपलब्धियों को देखने पर स्पष्ट हो जाता है कि विगत सहस्राब्दी में भारत एक उन्नत समाज था। यहाँ धार्मिक संतों, दार्शनिकों, कवियों, वैज्ञानिकों, खगोलविदों और गणितज्ञों के प्रेरक योगदानों से बौद्धिक पुनर्जागरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रही है। उनके मौलिक विचारों, सिद्धांतों और व्यवहारों ने बौद्धिक समाजका ठोस आधारशिला रखी।

तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय जिनमें अन्य देशों के विद्यार्थी भी अनेक विषयों की शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इस बात के प्रमाण हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में भारत बहुत उन्नत था। कौटिल्य, पाणिर्णाने, जीवक, अभिनव गुप्त तथा पतंजलि जैसे योग्य शिक्षाविद् थे। गणित के क्षेत्र में भारतीयों ने विश्व को शून्य और दशमलव पद्धति दी, जिसक कारण वर्तमान कम्प्यूटर और महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज संभव हो सकी। यूकलिड से बहुत पहले भारत में ज्यामिति’ के नाम से रेखागणित का प्रयोग किया जाता था। आर्यभट्ट ने किसी वृत्त की परिधि और अनुपात को पाई के रूप में परिभाषित किया था और दशमलव के चार अंकों तक शुद्ध मान बतलाया था।

इसी प्रकार भास्कराचार्य ने सूर्य सिद्धांत की स्थापना की। उन्होंने बताया था। कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण को पहचाना था। चरक ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को दिया, तो सुश्रुत ने जटिल शल्य क्रियाएँ की थीं। हमें अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व है। भारत में आजादी से पूर्व भी भारत में एस.एन. बोस, मेघनाथ साहा, जे.सी. बोस, सर सी.वी. रमन, सर के.एस. कृष्णन, होमी जहाँगीर भाभा, विक्रम सारा भाई जैसे वैज्ञानिक, रामानुजम जैसे गणितज्ञ, रवींद्रनाथ जैसे कवि, विवेकानंद जैसे दार्शनिक थे।

स्वतंत्रता के बाद भारत में पंचवर्षीय योजना प्रारंभ की गई। उद्योगों के लिए आधारभूत ढाँचा बना। 1970 में हरित क्रांति हुई। देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर बना। ऑपरेशन फ्लड के द्वारा देश विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में काफी विकास हुआ। भारत ने उपग्रह डिजाइन तथा विकसित करने, अपनी धरती से प्रक्षेपण यानों द्वारा कक्षा में प्रक्षेपित करने की क्षमता प्राप्त की। इसी प्रकार मिसाइल या मुखाग्र को डिजाइन करने की क्षमता प्राप्त की है। भारतीय सेना में पृथ्वी और अग्नि को शामिल किया जाना स्वदेशी क्षमता का ही प्रमाण है।

परमाणु ऊर्जा उत्पत्ति तथा अस्त्र विकास में हम विश्व के समकक्ष हैं। भारतीय सॉफ्टवेयर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों व उद्यमियों ने विश्व आर्थिक व्यवस्था में बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत तुरंत बौद्धिक कर्मियों की विशाल संख्या तैयार करने में सक्षम है। आज विश्व बौद्धिक समाज में बदल रहा है, जहाँ समन्वित ज्ञान-शक्ति तथा धन का स्रोत होगा। अतः भारत को विकसित देश बनने के लिए अवसर का लाभ उठाना चाहिए। इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि हम प्रतिस्पर्धात्मकता के मामले में कहाँ हैं, जो यह एक बौद्धिक शक्ति बनने के लिए आवश्यक है।

मेरे सपनों का भारत संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
भारतीय सभ्यता की प्रभावशाली उपलब्धियों को देखने पर यह विश्वास प्रबल हो जाता है कि भारत पिछली सहस्राब्दी में एक उन्नत समाज था। कई धर्मों के संतों, दार्शनिकों, कवियों, वैज्ञानिकों, खगोलविदों और गणितज्ञों के प्रेरक योगदानों के द्वारा बौद्धिक पुनर्जागरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रही। उनके भए तथा मौलिक विचारोंसिद्धांतों और व्यवहारों ने हमारे अपने बौद्धिक समाज के लिए एक ठोस आधार प्रदान किया। (Page 49)

शब्दार्थ:

  • प्रबल – दृढ़।
  • सहस्राब्दी – हजारों वर्ष।
  • उपलब्धियों – प्राप्तियों।
  • बौद्धिक – बुद्धि से संबंधित।
  • पुनर्जागरण – फिर जागृत होने की प्रक्रिया।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा लिखित लेख ‘मेरे सपनों का भारत’ से लिया गया है। लेखक प्राचीन भारत की उपलब्धियों के आधार पर बौद्धिक पुनर्जागरण की प्रक्रिया के निरंतर चलते रहने की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

व्याख्या:
भारत विगत एक हजार वर्षों के दौरान एक उन्नत समाज था, यह बात प्राचीन भारतीय सभ्यता की विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली देनों को देखने से प्रमाणित हो जाता है। यह विश्वास भी दृढ़ हो जाता है कि भारत एक प्रगतिशील देश था। भारत में प्रचलित विभिन्न धर्मों के साधु-सं, ऋषि-महर्षियों, दर्शन-शास्त्र के तत्त्ववेत्ताओं, कवियों, वैज्ञानिकों, आकाशमंडल के ग्रह-नक्षत्रों के जानकारों और गणित के विद्वानों के प्रेरित करने वाले योगदानों के द्वारा बुद्धि संबंधी पुनजागरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती थी। इससे फिर जागृत होने की प्रक्रिया में कभी बाधा उत्पन्न नहीं होती थी। उनके नवीन और मौलिक विचारों, सिद्धांतों और व्यवहारों ने हमारे अधुिनिक बौद्धिक समाज के लिए ठोस आधार प्रदान किया है।

विशेष:

  1. लेखक ने प्राचीन भारत की उपलब्धियों को प्रेरक बताया है। यह भी बताया है कि उस काल में बौद्धिक पुनजांगरण की निरंतर चलने वाली प्रक्रिया ने समाज को ठोस आधार प्रदान किया है।
  2. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त है।
  3. विचारात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
भारत एक उन्नत समाज था, यह कैसे प्रमाणित होता है?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता की विगत एक हजार वर्षों की प्रभावशाली उपलब्धियों को देखने पर यह बात प्रमाणित हो जाती है कि भारत एक उन्नत समाज था।

प्रश्न (ii)
प्राचीन काल में समाज को ठोस आधार किसने प्रदान किया है?
उत्तर:
प्राचीन काल में बौद्धिक पुनर्जागरण की निरंतर चलने वाली प्रक्रिया ने समाज को ठोस आधार प्रदान किया है।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस ओर ध्यान आकर्षित किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने प्राचीन भारत की उपलब्धियों और निरंतर चलने वाली बौद्धिक प्रक्रिया की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

प्रश्न (ii)
किन लोगों के योगदान से पुनर्जागरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रही?
उत्तर:
धार्मिक संतों, दार्शनिकों, कवियों, वैज्ञानिकों, खगोलविदों और गणितज्ञों के प्रेरक योगदानों से भारत में पुनर्जागरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रही।

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प्रश्न 2.
भारत ने शून्य का आविष्कार किया, जिसने गणना की दोहरी प्रणाली की आधारशिला रखी, जिस पर वर्तमान कंप्यूटर निर्भर हैं। अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था, “हम इसका श्रेय भारतीयों को देते हैं, जिन्होंने हमें गणना करना सिखाया, जिसके बिना कोई भी महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज नहीं की जा सकती थी।” इसी प्रकार, भारत ने दशमलवे पद्धति (डेसिमल सिस्म) का आविष्कार किया। यूकलिड से काफी पहले भारत में ज्यामिति के नाम से रेखागणित का प्रयोग किया जाता था। आर्यभट्ट ने किसी वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात को पाई के रूप में परिभाषित किया था और दशमलव के चार अंकों तक इसका शुद्ध मान बतलाया था। (Page 50)

शब्दार्थ:

  • शून्य – जीरो।
  • आविष्कार-खोजगणना – गिनने की प्रक्रिया आधारशिलानींव का रह पत्थर, जिसके ऊपर मकान की दीवार बनाई जाती है।

प्रसंग:
प्नत गद्यांश डॉ. अब्दुल कलाम द्वारा लिखित लेख ‘मेरे सपनों के भारत’ में लिया गया है। खक प्राचीन भारत के गणित के क्षेत्र में योगदान का उल्लेख किया है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि गणित के क्षेत्र में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इस क्षेत्र में भारत ने शून्य (जीरो) का आविष्कार किया, जिसने गिनती करने की दोहरी पद्धति की नींव रखी। गणना की इसी दोहरी पद्धति पर वर्तमान कंप्यूटर आश्रित है। आधुनिक कंप्यूटर दोहरी प्रणाली से ही संचालित है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने जीरो के आविष्कार का श्रेय भारतीयों को देते हुए कहा कि भारतीयों ने ही हमें गिनती करना सिखाया। विश्व के लिए उनका यह बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। समुचित गणना के अभाव में कोई भी महत्त्वपूर्ण खोज नहीं की जा सकती थी; अर्थात् गणित के क्षेत्र में भारतीयों द्वारा शून्य की विश्व को देन के पश्चात् ही महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज और आविष्कार संभव हो सके हैं।

दशमलव प्रणाली भी विश्व को भारतीयों की ही देन है। इतना ही नहीं यूकलिड से बहुत पहले भारत में ज्यामिति के नाम से रेखागणित का प्रयोग किया जाता था। दूसरे शब्दों में, यूकलिड से पहले ही भारतीयों ने रेखागणित का आविष्कार कर लिया था। आर्यभट्ट ने वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात को पाई के रूप में परिभाषित किया था। इसके साथ ही दशमलव के चार अंकों तक इसका शुद्ध मान निकालकर बताया था।

विशेष:

  1. गणित के क्षेत्र में भारतीयों की उपलब्धियों और विश्व में उनके – योगदान के महत्त्व को स्पष्ट किया गया है।
  2. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  3. गणित की पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।

मयांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्राचीन भारत की गणित के क्षेत्र में विश्व को क्या देन है?
उत्तर:
प्राचीन भारत की गणित के क्षेत्र में विश्व को महत्त्वपूर्ण देन है-शून्य (जीरो)। इस देन से गिनती करने की दोहरी पद्धति की नींव पड़ी, जिससे अनेक वैज्ञानिक आविष्कार संभव हो सके।

प्रश्न (ii)
भारत में यूकलिड से पूर्व किस नाम से रेखागणित का प्रयोग होता था।
उत्तर:
यूकलिड से पूर्व ही भारत में ‘ज्यामिति’ के नाम से रेखागणित का प्रयोग होता था।

प्रश्न (iii)
अल्बर्ट आइंस्टाइन ने भारतीयों को किस बात का श्रेय दिया?
उत्तर:
अल्बर्ट आइंस्टाइन ने भारतीयों को विश्व को गणना सिखाने का श्रेय दिया।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गणित के क्षेत्र में जीरो के अतिरिक्त भारतीयों ने क्या आविष्कार किया?
उत्तर:
गणित के क्षेत्र में जीरो के अतिरिक्त भारतीयों के दशमलव पद्धति का आविष्कार किया। आधुनिक दशमलव पद्धति विश्व को भारतीयों की ही देन है।

प्रश्न (ii)
आर्यभट्ट ने पाई के रूप में किसे परिभाषित किया था?
उत्तर:
आर्यभट्ट ने किसी वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात को पाई के रूप में परिभाषित किया था।

प्रश्न 3.
ऐसा नहीं है कि उल्लेखनीय उपलब्धियाँ केवल हमारे अतीत तक सीमित हैं। भारत की आजादी से पहले, हमारे पास विश्व स्तरीय वैज्ञानिक, कवि, दार्शनिक, इंजीनियर, चिकित्सक और लगभग प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े लोग थे। हमारे पास एस.एन. बोस, मेघनाद साहा, जे.सी. बोस, सर सी.वी. रमन, सर के.एस. कृष्णन, होमी जहाँगीर भाभा, विक्रम साराभाई, बी.सी. राय जैसे वैज्ञानिक, रामानुजम जैसे गणितज्ञ; रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे कवि; विवेकानंद जैसे दार्शनिक संत रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद के काल में भी उतनी ही महान् उपलब्धियाँ देखने को मिली हैं। (Page 50)

शब्दार्थ:

  • आजादी – स्वतंत्रता।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ. अब्दुल कलाम द्वारा लिखित लेख ‘मेरे सपनों का भारत’ से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक अतीत की उपलब्धियों की चर्चा करने के पश्चात् स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व के विद्वानों की चर्चा किया है।

व्याख्या:
लेखक का कहना है कि ऐसा नहीं है कि भारत ने केवल अतीत (प्राचीनकाल) में ही विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की हों, अपितु भारत में स्वतत्रता प्राप्ति से पहले भी विश्व-स्तरीय अर्थात् उच्चकोटि के वैज्ञानिक, कवि, दार्शनिक, इंजीनियर, डॉक्टर और लगभग प्रत्येक क्षेत्र के जुड़े लोग थे।

हमारे देश में एस.एन बोस, मेघनाद साहा, जे.सी. बोस, सर सी.वी. रमन, सर के.एस. कृष्णन, होमी जहाँगीर भाभा, विक्रम साराभाई और बी.सी. राय जैसे योग्य वैज्ञानिक, गणित के क्षेत्र में रामानुजम जैसे गणितज्ञ, साहित्य के क्षेत्र में रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान् कवि और आध्यात्मिक संसार में विवेकानंद जैसे संत रहे हैं। हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के समय में भी उतनी ही योग्य और उच्चकोटि की महान् प्राप्तियाँ देखने को मिली हैं। इस प्रकार हमारे देश ने अतीत में, स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और बाद में वैज्ञानिक, दार्शनिक, साहित्यिक, इंजीनियरिंग, गणित आदि सभी क्षेत्रों में महान् उपलब्धियाँ अर्जित की हैं।

विशेष:

  1. स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत महान् लोगों की गणना करवाई गई है।
  2. भाषा सरल, सुबोध खड़ी बोली है।
  3. वर्णनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
आजादी से पहले भारत के पास कौन-सा विश्व स्तर कवि रहा है?
उत्तर:
आज़ादी से पहले भारत के पास कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसा विश्वस्तरीय कवि रहा है।

प्रश्न (ii)
स्वतंत्रता से पहले भारत में कौन-कौन से क्षेत्रों से जुड़े उच्चकोटि के लोग रहे हैं?
उत्तर:
स्वतत्रता प्राप्ति से पहले भारत में वैज्ञानिक, कवि, दार्शनिक, इंजीनियर, डॉक्टर आदि प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े विश्वस्तरीय लोग रहे हैं।

प्रश्न (iii)
लेखक ने गणित के क्षेत्र में किस गणितज्ञ का नाम लिया है?
उत्तर:
लेखक ने गणित के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध गणितज्ञ रामानुजम का नाम लिया है।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
लेखक ने प्रस्तुत गद्यांश में किस काल की चर्चा की है?
उत्तर:
लेखक ने प्रस्तुत गद्यांश में स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व काल की चर्चा की है।

प्रश्न (ii)
लेखक ने किन वैज्ञानिकों के नाम गिनाए हैं, जिनका स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता के बाद महान् उपलब्धियों में योगदान रहा है?
उत्तर:
होमी जहाँगीर भाभा, विक्रम सारा भाई, और बी.सी. राय जैसे वैज्ञानिकों की स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता के बाद भी महान वैज्ञानिक उपलब्धियों में योगदान रहा है।

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प्रश्न 4.
स्वतंत्रता के बाद भारत ने अपनी पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की। इसने महत्त्वपूर्ण उद्योगों की स्थापना और आधारभूत ढाँचे के निर्माण को प्रेरित किया। ’70 के दशक में पहले हरित क्रांति के परिणाम देखने को मिले, जिसने भारत को खाद्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया। ऑपरेशन फ्लड ने भारत को निश्चित समयावधि में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बनाया। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में भी काफी विकास देखने को मिला और कई अनुसंधान व विकास और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना हुई, जिनका नेतृत्व विभिन्न क्षेत्रों के योग्य नेता कर रहे थे। इसने उच्च प्रौद्योगिकी मिशनों के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया। (Page 50)

शब्दार्थ:

  • पंचवर्षीय – पाँच वर्ष की।
  • निर्माण – बनाने की प्रक्रिया।
  • प्रेरित – प्रेरणा देना।
  • प्रौद्योगिकी – किसी विशेष क्षेत्र या व्यवसाय-संबंधी तकनीक।
  • अनुसंधान – अन्वेषण, जाँच-पड़ताल द्वारा वस्तुस्थिति का पता लगाना।
  • मिशन – लक्ष्य।
  • मजबूत – दृढ़ आधार-नींव।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ. अब्दुल कलाम द्वारा लिखित लेख ‘मेरे सपनों का भारत’ से लिया गया है। लेखक स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अर्जित की गई उपलब्धियों का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक का कहना है कि भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की। उसके बाद भारत ने अपने चहुंमुखी विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ शुरू की। भारत में स्वतंत्रता के बाद पहली पाँच साल की योजना आरंभ की गई। पहली पंचवर्षीय योजना में महत्त्वपूर्ण जनोपयोगी माल या सामान बनाने के लिए कल-कारखानों की स्थापना और उनके विकास के लिए मुख्य नींव के रूप में ढाँचा खड़ा करने के लिए प्रेरित किया गया। दूसरे शब्दों में, इस पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत देश के औद्योगिक विकास के लिए आधारभूत ढाँचा तैयार किया गया।

1970 के दशक (दस वर्षों) में सबसे पहले कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति के परिणाम सामने आए। इस हरित क्रांति ने देश को खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया। इसके बाद ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के अंतर्गत भारत एक निश्चित समय सीमा में विश्व का सबसे बड़ा उत्पादन करने वाला देश बना। विज्ञान और तकनीकी में भी इस अवधि में पर्याप्त बड़ा दूध उत्पादन करने वाला देश बना। विज्ञान और तकनीकी में भी इस अवधि में इसमें पर्याप्त विकास देखने को मिला उस समय अनुसंधान व विकास के लिए अनेक विज्ञान तथा तकनीकी संस्थानों की स्थापना की गई। इन संस्थानों का नेतृत्व विभिन्न क्षेत्रों के योग्य वैज्ञानिक, इंजीनियर आदि कर रहे थे। इसने उच्च तकनीक प्राप्त करने के लिए एक सुदृढ़ आधार भी तैयार किया।

विशेष:

  1. लेखक ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हरित क्रांति और ऑपरेशन फ्लड की सफलता का उल्लेख किया है, जिससे देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर बना और दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश बना।
  2. भाषा पारिभाषिक शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।
  3. वर्णनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के वाद विकास के लिए क्या तरीका अपनाया है?
उत्तर:
भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का तरीका अपनाया है।

प्रश्न (ii)
लेखक ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की किन उपलब्धियों का वर्णन किया है?
उत्तर:
लेखक ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाढ़ की हरित क्रांति और ऑपरेशन फ्लड का वर्णन किया है। सन् 1970 के पहले दशक में हरित क्रांति हुई, जिसके कारण देश खाद्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना। ऑपरेशन फ्लड के अंतर्गत भारत एक निश्चित समय में विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना।

प्रश्न (iii)
भारत ने वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक क्षेत्र में क्या प्रगति की है?
उत्तर:
भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिक के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। यहाँ • कई अनुसंधान व विकास और विज्ञान प्रौद्योगिकी संस्थाओं की स्थापना हुई है। इससे उच्च प्रौद्योगिकी लक्ष्यों की प्राप्ति का आधार तैयार हुआ।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत गद्यांश में किन उपलब्धियों का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की उपलब्धियों का वर्णन किया गया है।

प्रश्न (ii)
कृषि के क्षेत्र में कौन-सी क्रांति हुई? उसका क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति हुई। इस क्रांति के कारण देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर बना।

प्रश्न 5.
भारत के उपग्रह तथा उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रमों द्वारा रखे गए ठोस आधार ने देश को किसी प्रकार का उपग्रह डिजाइन तथा विकसित करने और उसे अपनी ही धरती से अपने प्रक्षेपण यानों द्वारा कक्षा में प्रक्षेपित करने की क्षमता प्रदान की है। पी. एस.एल.वी. सी-5 की सातवीं सफल उड़ान ने, जिसमें रिसोर्स सेट-1 को सन सिंक्रोनस ऑरबिट में स्थापित किया गया, ने स्वदेशी योग्यता में भारत की क्षमता को प्रदर्शित किया है। इसी प्रकार, भारत किसी भी प्रकार की मिसाइल या मुखाग्र को डिजाइन करने, विकसित करने तथा उत्पादित करने में सक्षम है। भारतीय सेना में ‘पृथ्वी’ तथा ‘अग्नि’ को शामिल किया जाना इस स्वदेशी क्षमता का प्रमाण है। परमाणु ऊर्जा उत्पत्ति तथा अस्त्र विकास में हमारी उपलब्धियाँ विकसित विश्व के मुकाबले की हैं। (Page 50)

शब्दार्थ:

  • उपग्रह – कृत्रिम ग्रह, अंतरिक्ष में राकेट द्वारा भेजे गए कृत्रिम ग्रह।
  • प्रक्षेपण – दूर फेंकना।
  • ठोस – सुदृढ़।
  • आधार – नींव।
  • डिजाइन – रूपांकन, आकृति।
  • क्षमता – शक्ति, योग्यता।
  • स्वदेशी – अपने देश में विकसित।
  • प्रदर्शित – दिखाना।
  • मुखाग्र – मुख का अगला भाग।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ. अब्दुल कलाम द्वारा रचित लेख ‘मेरे सपनों का भारत’ से लिया गया है। लेखक भारत की आंतरिक तथा रक्षा के क्षेत्र में अर्जित उपलब्धियों का वर्णन किया है।

व्याख्या:
भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में आशातीत उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। भारत के उपग्रह तथा उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रमों के द्वारा रखी गई सुदृढ़ नींव ने देश को किसी भी तरह के उपग्रह (कृत्रिम ग्रह) को आकार देने तथा उसे विकसित करने और अपने ही प्रक्षेपण यानों द्वारा अंतरिक्ष की किसी भी कक्षा में स्थापित करने अथवा फेंकने की योग्यता से संपन्न किया। भारत उपग्रह बनाने तथा उन्हें अपने प्रक्षेपण यानों के द्वारा अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है। पी.एस.एल.वी. सी-5 की सातवीं सफल उड़ान के द्वारा रिसोर्स सेट-1 को सन सिंक्रोनस ऑर बिट में स्थापित किया गया।

इसके द्वारा भारत ने अपनी स्वदेशी योग्यता तथा क्षमता को प्रदर्शित किया है। इसी प्रकार रक्षा-अनुसंधान के क्षेत्र में भारत किसी भी तरह की मिसाइल अथवा उसके अग्रभाग को डिजाइन करने, उसे विकसित करने के साथ ही साथ उसका उत्पादन करने में भी सक्षम है। भाव यह कि भारत किसी भी प्रकार की मिसाइल बनाने और उसका उत्पादन करने में सक्षम है। भारतीय सेना में सम्मिलित की गई पृथ्वी और अग्नि नामक मिसाइलें इस स्वदेशी प्रौद्योगिकी क्षमता का जीवंत उदाहरण है। परमाणु ऊर्जा तथा परमाणु अस्त्र विकसित करने की भारतीय प्राप्तियाँ विकसित विश्व के स्तर की हैं। दूसरे शब्दों में भारत ने उपग्रह प्रक्षेपण, मिसाइल निर्माण और परमाणु अस्त्र निर्माण की जो स्वदेशी तकनीक विकसित की है, वह विकसित राष्ट्रों की तकनीक के स्तर की है।

विशेष:

  1. लेखक ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत की आधुनिक उपलब्धियों से परिचित कराया है।
  2. भाषा पारिभाषिक शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।
  3. वर्णनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
भारत ने उपग्रह तथा उपग्रह प्रक्षेपण में कौन-सी क्षमता प्राप्त की है?
उत्तर:
भारत ने उपग्रह के क्षेत्र में किसी भी प्रकार का उपग्रह डिजाइन करने और उसे विकसित करने की स्वदेशी तकनीक विकसित की है। वह हर प्रकार के उपग्रह बनाने में समर्थ है। भारत ने उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में भी आशातीत क्षमता प्राप्त की है। वह प्रक्षेपण यान बनाने और उनसे अपनी ही धरती से उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है।

प्रश्न (ii)
भारत ने उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में अपनी स्वदेशी योग्यता कैसे प्रमाणित की है?
उत्तर:
भारत ने पी.एस.एल.वी., सी-5 प्रक्षेपण यान की सातवीं सफल उड़ान के द्वारा रिसोर्स सेट-1 को सन सिंक्रोनस ऑरबिट में स्थापित कर अपनी प्रक्षेपण की स्वदेशी योग्यता और क्षमता को प्रमाणित किया है।

प्रश्न (iii)
भारत की मिसाइल निर्माण की क्षमता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत ने मिसाइल निर्माण के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति की है। वह किसी भी प्रकार की मिसाइल अथवा उसका मुखाग्र डिजाइन करने, विकसित करने और उत्पादित करने की क्षमता रखता है।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
मिसाइल के क्षेत्र में भारत की स्वदेश क्षमता का प्रमाण क्या है?
उत्तर:
भारतीय सेना में भारत द्वारा निर्मित ‘पृथ्वी’ और ‘अग्नि’ मिसाइलों का सम्मिलित किया जाना ही मिसाइल के क्षेत्र में उसकी स्वदेशी क्षमता का प्रमाण है।

प्रश्न (ii)
भारत की कौन-सी उपलब्धियाँ विश्वस्तर की हैं?
उत्तर:
भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता तथा परमाणु अस्त्र निर्माण की क्षमता विकसित विश्व के स्तर की हैं।

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प्रश्न 6.
भारत के पास कुछ ऐसी संपदाएँ तथा लाभ हैं, जिनके बारे में विश्व के कुछ देश गर्व से दावा कर सकते हैं। हमें अपने गौरवशाली अतीत और वर्तमान योगदानों तथा अपने भविष्य की रूपरेखा बनाने के लिए प्राप्त प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को पहचानना चाहिए। विश्व एक बौद्धिक समाज में परिवर्तित हो रहा है, जहाँ समन्वित ज्ञानशक्ति तथा धन का स्रोत होगा। यही समय है, जब भारत खुद को एक बौद्धिक शक्ति में बदलने और फिर अगले दो दशकों के भीतर एक विकसित देश बनने के लिए इस अवसर का लाभ उठा सकता है। इस रूपांतरण के लिए यह जानना आवश्यक है कि हम प्रतिस्पर्धात्मकता के मामले में कहाँ हैं, जो एक बौद्धिक शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर होने के लिए वास्तविक इंजन है। (Page 51) (M.P. 2009)

शब्दार्थ:

  • संपदाएँ – संपत्तियाँ, कोश, खजाना।
  • गर्व – घमंड, अभिमान।
  • दावा – किसी वस्तु को अपनी बताने का अधिकार प्रतिस्पर्धात्मक-होड़, प्रतियोगिता।
  • समन्वित – संतुलित।
  • रूपांतरण – रूप में परिवर्तन।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ. अब्दुल कलाम द्वारा लिखित लेख ‘मेरे सपनों का भारत’ से लिया गया है। लेखक कहता है कि भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिए स्वयं को एक बौद्धिक अर्थव्यवस्था में बदलने की आवश्यकता है। इसके लिए उसे तरीकों और उपायों को जानना होगा।

व्याख्या:
लेखक का मत है कि भारत के पास कुछ ऐसी खनिज संपदाएँ और प्राकृतिक लाभ हैं, जिनके संबंध में संसार के कुछ देश अभिमान के साथ अधिकार जता सकते हैं। दूसरे शब्दों में भारत खनिज संपदाओं से संपन्न देश है और इससे वह लाभ उठा सकता है। इन संपदाओं के होने का दावा वह गर्व के साथ कर सकता है। लेखक का मत है कि हमें अपने गौरवशाली अतीत और वर्तमान के विविध क्षेत्रों में योगदान तथा भविष्य की योजना बनाने के लिए प्राप्त उपलब्धियों के प्रतियोगितात्मक लाभ को पहचानकर लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। वर्तमान में विश्व बौद्धिक समाज में बदल रहा है, जहाँ संतुलित ज्ञान शक्ति तथा धन का स्रोत होगा।

आज संसार बौद्धिक अर्थव्यवस्था में बदल रहा है। धन का स्रोत वहीं होगा, जहाँ बौद्धिक ज्ञान का संतुलित रूप से उपयोग किया जाएगा। इसलिए भारत जैसे विकासशील देश के लिए स्वयं का एक बौद्धिक समाज के रूप में विकसित होना है, तो उसे एक बौद्धिक अर्थ-व्यवस्था में बदलना होगा। अतः भारत को स्वयं को एक बौद्धिक शक्ति में बदलने और फिर आगामी बीस वर्षों में एक विकसित देश बनने के अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

किंतु स्वयं को विकसित देश में परिवर्तित करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि हम प्रतियोगितात्मक के दृष्टिकोण से कहाँ हैं? इसके लिए हमें बौद्धिक अर्थव्यवस्था में बदलने के तरीकों और उपायों की जाँच-पड़ताल करनी पड़ेगी। उसी के आधार पर हम एक बौद्धिक शक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं और विकसित देशों में सम्मिलित हो सकते हैं।

विशेष:

  1. लेखक ने भारत के विकसित देश बनने की रूपरेखा प्रस्तुत की है।
  2. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  3. विचारत्मक तार्किक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए क्या किया जाना आवश्यक है?
उत्तर:
भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए स्वयं को एक द्धिक अर्थव्यवस्था में बदलना आवश्यक है। इसके लिए उसे तरीकों और उपायों को जानना आवश्यक है।

प्रश्न (ii)
लेखक के अनुसार हमें कौन-सा लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए?
उत्तर:
लेखक के अनुसार हमें अपने गौरवशाली अतीत और वर्तमान के विविध क्षेत्रों में योगदान और भविष्य की योजना बनाने के लिए प्राप्त उपलब्धियों के प्रतियोगितात्मक लाभ को पहचानकर अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
विश्व किस प्रकार की अर्थव्यवस्था में बदल रहा है?
उत्तर:
विश्व आज बौद्धिक अर्थव्यवस्था में बदल रहा है।

प्रश्न (ii)
हम किस आधार पर बौद्धिक शक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं?
उत्तर:
हम बौद्धिक अर्थव्यवस्था में बदलने के तरीकों और उपायों की जाँच-पड़ताल के आधार पर ही एक बौद्धिक शक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ सकते है।

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (संस्मरण, काका कालेलकर)

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक ने राष्ट्रमाता किसे कहा है? (M.P. 2010)
उत्तर:
माँ कस्तूरबा को राष्ट्रमाता कहा गया है।

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प्रश्न 2.
राष्ट्र माँ कस्तूरबा को किस आदर्श की जीवित प्रतिमा मानता है?
उत्तर:
राष्ट्र माँ कस्तूरबा का आर्य सती स्त्री के आदर्श की जीवित प्रतिमा मानता है।

प्रश्न 3.
कस्तूरबा भाषा का सामान्य ज्ञान होने पर भी कैसे अपना काम चला लेती थीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा कुछ अंग्रेजी समझ लेती थीं और वे 25-30 शब्द बोल लेती थीं। उन्हीं शब्दों को समझ-बोलकर अपना काम चला लेती थीं।

प्रश्न 4.
कस्तूरबा को किन ग्रंथों पर असाधारण श्रद्धा थी?
उत्तर:
कस्तूरबा को गीता और तुलसी-रामायण पर असाधारण श्रद्धा थी।

प्रश्न 5.
महात्माजी और कस्तूरबा को पहली बार देखकर लेखक ने क्या अनुभव किया?
उत्तर:
लेखक ने अनुभव किया कि मानो उस आध्यात्मिक माँ-बाप मिल गए हैं।

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुनिया में कौन-सी दो अमोघ शक्तियाँ मानी गई थीं? कस्तूरबा की निष्ठा किसमें अधिक थी? (M.P. 2009, 2010)
उत्तर:
दुनिया में शब्द और कृति दो अमोघ शक्तियाँ मानी गई हैं। शब्दों ने तो सारी दुनिया को हिला कर रख दिया है।

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प्रश्न 2.
कस्तूरबा को तेजस्वी महिला क्यों कहा गया है? (M.P. 2012)
उत्तर:
जब माँ कस्तूरबा को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया तो उन्होंने अपने बचाव में कुछ नहीं कहा और न ही कोई निवेदन प्रकट किया। उन्होंने केवल यही कहा कि मुझे तो वह कानून तोड़ना है जो यह कहता है कि मैं महात्माजी की धर्मपत्नी नहीं हूँ। जेल में उनकी तेजस्विता तोड़ने में सरकार असफल रही और सरकार को घुटने टेकने पड़े इसीलिए माँ कस्तूरबा को तेजस्वी कहा गया है।

प्रश्न 3.
“सभा में जाने का मेरा निश्चय पक्का है मैं जाऊँगी ही” यह कथन किसका है और किस प्रसंग में कहा गया है?
उत्तर:
यह कथन माँ कस्तूरबा का है। यह इस प्रसंग में कहा गया है जब गाँधी जी को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था और माँ कस्तूरबा पति के कार्य को आगे बढ़ाने के उस सभा में भाषण देने जा रही थीं जिसमें गाँधीजी भाषण देने वाले थे। उस समय सरकारी अधिकारियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो उन्होंने उक्त कथन द्वारा उन्हें उत्तर दिया।

प्रश्न 4.
“मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए। मुझे तो सेवाग्राम की कुटिया ही पसंद है” माँ कस्तूरबा के इस कथन के आशय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आशय-माँ कस्तूरबा को गाँधीजी के साथ आगा खाँ महल में सरकार ने कैद कर रखा था। वहाँ किसी प्रकार का अभाव नहीं था। सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध थीं किंतु उन्हें वहाँ कैद होना असहनीय लग रहा था। उन्हें महल में कैद होना अच्छा नहीं लगता। उन्हें किसी प्रकार सुख-सुविधा, ऐश्वर्य की आवश्यकता नहीं थी, उन्हें तो स्वतंत्रतापूर्वक सेवाग्राम की कुटिया में रहना ही पसंद था।

प्रश्न 5.
कस्तूरबा ने अपनी तेजस्विता और कृतिनिष्ठा से क्या सिद्ध कर दिखाया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने अपनी तेजस्विता और कृतिनिष्ठा से यह सिद्ध कर दिखाया कि उन्हें शब्द-शास्त्र में बेशक निपुणता प्राप्त न हो परंतु कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के निर्णय करने में उन्हें कोई दुविधा नहीं है। उनमें तुरंत निर्णय लेने की क्षमता है।

प्रश्न 6.
बदलते आदर्शों के इस युग में कस्तूरबा के प्रति श्रद्धा प्रकट कर किस बात का प्रमाण दिया गया है?
उत्तर:
बदलते आदर्शों के इस युग में कस्तूरबा के प्रति श्रद्धा प्रकट कर इस बात का प्रमाण दिया कि आज भी हमारे देश में प्राचीन तेजस्वी आदर्श मान्य हैं और हमारी संस्कृति की जड़ें आज भी काफी मजबूत हैं।

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथन का भाव-विस्तार कीजिए।
“हमारी संस्कृति की जड़ें आज भी काफी मजबूत हैं।”
उत्तर:
हमारी भारतीय संस्कृति के जीवन-मूल्य और आदर्श आज के बदलते . आदर्शों के युग में भी महत्त्व रखते हैं। भारतीय समाज में आज भी उन आदर्शों को श्रद्धा और विश्वास की दृष्टि से देखा जाता हैं। इससे प्रमाणित होता है कि हमारी संस्कृति की जड़ें भी काफी मजबूत हैं। संस्कृति के आदर्शों और मूल्यों को सरलता से समाप्त नहीं किया जा सकता।

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों की संधि-विच्छेद करते हुए संधि का नाम लिखिए –
लोकोत्तर, स्वागत, सत्याग्रह, महत्त्वाकांक्षा, निस्तेज।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए –
धर्मनिष्ठा, राष्ट्रमाता, देशसेवा, जीवनसिद्धि, बंधनमुक्त।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग अलग करके लिखिए –
उपसंहार, प्रत्युत्पन्न, असाधारण, अशिक्षित, अनपढ़।
उत्तर:
उपसर्ग – उप, प्रति, अ, अ, अन।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों से प्रत्यय अलग करके लिखिए –
तेजस्विता, कौटुम्बिक, चरित्रवान, शासकीय, उत्कृष्टता।
उत्तर:
प्रत्यय – ता, इक, वान, ईय, ता।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित विदेशी शब्दों के लिए हिंदी शब्द लिखिए –
अमलदार, हासिल, खुद, कायम, आंबदार, जिद्द।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा img-3

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
ऐसी नारियों के जीवन-प्रसंगों का संकलन कीजिए जो समाज के लिए प्रेरक व आदर्श साथ ही स्वरूप रही हैं।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
अपने आस-पास की ऐसी महिला के बारे में लिखिए, जो आपके लिए आदर्श हो।
उत्तर:
छात्र स्वयं लिखें।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली महिलाओं के चित्रों का एलबम बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं चित्र एकत्र कर एलबम बनाएँ।

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
कस्तूरवा का एकाक्षरी नाम…….था।
(क) माँ
(ख) बा
(ग) तेजस्वी
(घ) दा
उत्तर:
(ख) बा।

प्रश्न 2.
अपने आंतरिक सद्गुणों और निष्ठा के कारण कस्तूरबा…….वन पाईं।
(क) राष्ट्रमाता
(ख) वीरमाता
(ग) वीर पत्नी।
(घ) आदर्श नारी
उत्तर:
(क) राष्ट्रमाता।

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प्रश्न 3.
‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ संस्मरण के लेखक हैं –
(क) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
(ख) उदयशंकर भट्ट
(ग) काला कालेलकर
(घ) मैथिलीशरण गुप्त
उत्तर:
(ग) काका कालेलकर।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार गाँधीजी को भारत में कहाँ गिरफ्तार किया गया था?
(क) विधानसभा हाउस
(ख) आगा खाँ महल
(ग) बिड़ला हाउस
(घ) बिड़ला मंदिर
उत्तर:
(ग) बिड़ला हाउस।

प्रश्न 5.
कस्तूरबा का निधन……….में हुआ।
(क) बिड़ला हाउस
(ख) आगा खाँ महल
(ग) सेवाग्राम
(घ) वायसराय हाउस
उत्तर:
(ख) आगा खाँ महल।

प्रश्न 6.
“अगर आप गिरफ्तार करें, तो भी मैं जाऊँगी।” यह कथन उस समय … का है?”
(क) जब कस्तूरबा को पुलिस ने घेर लिया।
(ख) जब कस्तूरवा पर सरकार ने आरोप लगाया।
(ग) जब महात्माजी को गिरफ्तार कर लिया गया।
(घ) जब कस्तूरबा से पुलिस ने पूछताछ की।
उत्तर:
(ख) जब कस्तूरबा पर सरकार ने आरोप लगाया।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. राष्ट्र ने ………. को राष्ट्रपति का सम्मान दिया। (महात्माजी बापूजी)
  2. कस्तूरबा ………. के नाम से राष्ट्रमाता का सम्मान दिया गया। (माँ वा)
  3. दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं ……….। (शब्द और कृति स्मृति और उपासना)
  4. लेखक को कस्तूरवा के प्रथम दर्शन ………. में हुए। (शान्तिनिकेतन/दक्षिण अफ्रीका)
  5. हमारी ………. की जड़ें आज भी काफी मजबूत हैं। (परम्परा/संस्कृति)

उत्तर:

  1. बापूजी
  2. बा
  3. शब्द और कृति
  4. शान्तिनिकेतन
  5. संस्कृति।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –

  1. अपने आंतरिक सद्गुणों और निष्ठा के कारण कस्तूरबा राष्ट्रमाता बन गईं।
  2. कस्तूरबा का भाषा-ज्ञान सामान्य से अधिक था।
  3. 1915 के आरंभ में महात्माजी शान्तिनिकेतन पधारे।
  4. आश्रम में कस्तूरबा लेखक के लिए देवी के समान थीं।
  5. अध्यक्षीय भाषण किसी से लिखवा लेना आसान है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्या
  4. असत्य
  5. सत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा img-4
उत्तर:

(i) (घ)
(ii) (ग)
(iii) (ख)
(iv) (ङ)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
सत्याग्रहाश्रम क्या था?
उत्तर:
महात्माजी की संस्था।

प्रश्न 2.
स्त्री-जीवन सम्बन्ध के हमारे आदर्श को हमने क्या किए हैं?
उत्तर:
काफी बदल दिए हैं।

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प्रश्न 3.
कस्तूरबा के सामने उनका कर्त्तव्य कैसा था?
उत्तर:
किसी दीये के समान था।

प्रश्न 4.
किन दो वाक्यों में कस्तूरबा अपना फैसला सुना देतीं।
उत्तर:
‘मुझसे यही होगा’ और ‘यह नहीं होगा।

प्रश्न 5.
कस्तूरबा में कौन-से भारतीय गुण थे?
उत्तर:
कौटुम्बिक सत्वगुण।

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
माँ कस्तूरबा कौन थीं? (M.P. 2010)
उत्तर:
माँ कस्तूरबा महात्मा गाँधीजी की सहधर्मचारणी थीं।

प्रश्न 2.
माँ कस्तूरबा अंग्रेजी कैसे समझ और बोल लेती थीं?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में जाकर रहने के कारण कस्तूरबा कुछ अंग्रेजी समझ लेती थीं और 25-30 शब्द बोल भी लेती थीं।

प्रश्न 3.
माँ कस्तूरबा ने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से इनकार क्यों कर दिया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा एक धर्मनिष्ठ महिला थीं। धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से उनका धर्म भ्रष्ट हो जाता इसलिए उन्होंने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से मना कर दिया।

प्रश्न 4.
लेखक को कस्तूरबा के प्रथम दर्शन कब हुए?
उत्तर:
सन् 1915 में शांतिनिकेतन पधारने पर लेखक को कस्तूरबा के प्रथम दर्शन हुए हैं।

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प्रश्न 5.
माँ कस्तूरबा को भारत में कहाँ कैद रखा गया?
उत्तर:
माँ कस्तूबा को भारत में आगा खाँ महल में कैद रखा गया।

प्रश्न 6.
आज हमारी संस्कृति की जड़ें कैसी हैं?
उत्तर:
आज हमारी संस्कृति की जड़ें काफी मजबूत हैं।

प्रश्न 7.
महात्मा गाँधी की सहधर्मिणी कौन थी?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा, महात्मा गाँधी की संहधर्मिणी थीं।

प्रश्न 8.
माँ कस्तूरबा का किसके प्रति अपार श्रद्धा थी?
उत्तर:
तुलसीदास की रामायण के प्रति माँ कस्तूरबा की अपार श्रद्धा थी।

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधीजी ने किन दो शक्तियों की उपासना की?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने विश्व की दो अमोघ शक्तियों-शब्द और कृति-की असाधारण उपासना की। उन्होंने इन दोनों शक्तियों में निपुणता प्राप्त की।

प्रश्न 2.
“मुझे अखाद्य खाकर जीना नहीं है। यह कथन किसका है और किस प्रसंग में कहा गया हैं?
उत्तर:
यह कथन माँ कस्तूरबा का है और यह डॉक्टर द्वारा धर्म के विरुद्ध खुराक लेने की बात के प्रसंग में कहा गया है।

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प्रश्न 3.
पति के गिरफ्तार होने पर मौकस्तूरबा ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
पति के गिरफ्तार होने पर माँ कस्तूरबा ने उनके कार्य आगे बढ़ाने के लिए उस सभा में भाषण देने के लिए गईं जिसे गाँधीजी संबोधित करने वाले थे। दो-तीन बार राजकीय परिषदों या शिक्षण सम्मेलनों में अध्यक्ष का पद संभाला और अध्यक्षीय भाषण दिए।

प्रश्न 4.
माँ कस्तूरबा देश में चल रही सूक्ष्म जानकारी.कैसे रखती थीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा देश में क्या चल रहा है इसकी सूक्ष्म जानकारी प्रश्न पूछ-पूछकर या अखबारों पर दृष्टि डालकर प्राप्त कर लेती थीं और इस देश में चल रही गतिविधियों की जानकारी रखती थीं।

प्रश्न 5.
“मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए। मुझे तो सेवाधाम की कुटिया ही पसंद है।” यह किसने, कब और क्यों कहा?
उत्तर:
“मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए। मुझे तो सेवाधाम की कुटिया ही पसंद है।” यह माँ कस्तूरबा ने कहा। यह उस समय कहा, जव माँ कस्तूरबा को गाँधीजी के साथ आगा खाँ महल में सरकार ने कैद कर लिया। माँ कस्तूरबा ने यह इसलिए कहा कि उन्हें वहाँ कैद होना असहनीय हो उठा था। इसका यही कारण था कि उन्हें किसी प्रकार की सुख-सुविधा और ऐश्वर्य की आवश्यकता नहीं थी। उन्हें तो स्वतंत्रता एवं सेवाग्राम कुटिया ही पसंद थी।

प्रश्न 6.
माँ कस्तूरबा ने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से क्यों मना कर दिया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से मना कर दिया क्योंकि धर्म के प्रति उनकी अपार श्रद्धा थी। इस प्रकार की खुराक उनकी अंतरात्मा के विरुद्ध थी। फलस्वरूप उन्होंने इस प्रकार की खुराक लेने की अपेक्षा मृत्यु को प्राप्त होना उचित समझा था।

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
काका कालेलकर का संक्षिप्त-जीवन परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
काका कालेलकर का जन्म 1 दिसंबर, सन् 1885 ई० में महाराष्ट्र प्रांत के सतारा नगर में हुआ था। अहिंदीभाषी होते हुए भी आपने सबसे पहले हिंदी सीखी और कई वर्षों तक दक्षिण सम्मेलन की ओर से हिंदी का प्रचार-कार्य किया। आपने राष्ट्रभाषा प्रचार के कार्य में सक्रिय और सार्थक भूमिका निभाई। अपनी चमत्कारी सूझ-बूझ और व्यापक अध्ययनशीलता के कारण आपकी गणना प्रमुख अध्यापकों और व्यवस्थापकों में होने लगी।

गुजरात में हिंदी प्रचार के लिए. गाँधी जी ने कालेलकर को ही चुना इसलिए उन्होंने गुजराती सीखी और गहन अध्ययन के बाद ही शिक्षण-कार्य प्रारंभ किया। आप गुजरात विद्यापीठ के कुलपति पद पर रहे। आपको दो बार राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। सन् 1964 ई० में आपको ‘पदम् विभूषण’ सम्मान से सम्मानित किया गया। मराठीभाषी होते हुए भी आपने हिंदी के प्रचार-प्रसार में रुचि दिखाई। आप विज्ञापन और आत्मप्रचार से दूर रहकर हिंदी की सेवा में लगे रहे। आपका निधन 21 अगस्त, 1981 को हुआ।

साहित्यिक विशेषताएँ:
आपके साहित्य में यात्राओं के वर्णन तथा लोक-जीवन के अनुभवों को स्थान मिला है। आपने हिंदी में यात्रा-साहित्य के अभाव को काफी हद तक दूर किया। आपकी रचनाओं में सजीवता के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। अपनी भाषा क्षमता के कारण ही आप साहित्य अकादमी में गुजराती भाषा के प्रतिनिधि चुने गए।

रचनाएँ:
काका कालेलकर ने लगभग तीस पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें स्मरण-यात्रा, धर्मोदय, हिमालय प्रवास, लोकमाता, जीवन और साहित्य, तक्षशिला, अमृत और विष, मुक्ति पथ, स्त्री का हृदय, युगदीप आदि प्रमुख हैं।

भाषा-शैली:
काका कालेलकर की भाषा-शैली बड़ी सजीव और प्रभावशाली है। उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदी खड़ी बोली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा आम बोलचाल की है। उन्होंने अपनी भाषा में तद्भव, तत्सम और देशी-विदेशी भाषाओं के शब्दों, मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग किया है।

साहित्य में महत्त्व:
काका कालेलकर को उत्तम निबंध, सजीव यात्रा-वृत्त, प्रभावोत्पादक संस्मरण और भावुकतापूर्ण जीवनी लिखने वालों में उच्च स्थान प्राप्त है। आप अहिंदीभाषी होते हुए भी राष्ट्रभाषा हिंदी के सच्चे सेवकों में गिने जाते हैं।

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निष्ठामूर्ति कस्तूरबा पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
काका कालेलकर के संस्मरण ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरवा’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
लेखक ने इस संस्मरण में कस्तूरबा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है। लेखक का मानना है कि माँ कस्तूरबा का सम्मान गाँधी जी की पत्नी होने के कारण नहीं, अपितु उनके स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण है। राष्ट्र ने बापूजी को राष्ट्रपिता का सम्मान दिया है तो ‘बा’ भी राष्ट्रमाता का सम्मान पा सकीं। वे राष्ट्रमाता अपने आंतरिक सद्गुणों और निष्ठा के कारण बनीं। उन्होंने प्रत्येक स्थान पर अपने चरित्र को उजागर किया है। वे आर्य स्त्री के आदर्श की जीवंत प्रतिमा थीं।

माँ कस्तूरबा का भाषा ज्ञान विशेष नहीं था। दक्षिण अफ्रीका में जाकर कुछ अंग्रेजी के शब्द समझने में समर्थ हो सकी थी और अंग्रेजी के 25-30 शब्द बोलने के लिए भी सीख लिए थे। विदेशी मेहमानों के आने पर उन्हीं शब्दों से अपना काम चलाती थीं। माँ कस्तूरबा की गीता और तुलसी की रामायण पर अपार श्रद्धा थी। आगा खाँ महल में कारावास के दौरान वार-बार गीता का पाठ लेने का प्रयास करती रही थीं।

संसार में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति, किंतु अंतिम अक्ति ‘कृति’ है। महात्माजी ने शब्द और कृति दोनों शक्तियों की उपासना की तो बा ने कृति शक्ति की ‘नम्रता के साथ उपासना करके संतोष प्राप्त करने के साथ-साथ जीवन-सिद्धि भी प्राप्त की थी। दक्षिण अफ्रीका में जब उन्हें जेल भेजा, तो उन्होंने अपना बचाव नहीं किया। न कोई निवेदन किया और जेल चली गईं। जेल में वहाँ की सरकार ने उनकी तेजस्विता भंग करने का बड़ा प्रयास किया किंतु वह सफल न हो सकी। डॉक्टर ने जब धर्म के विरुद्ध खुराक लेने की बात कही तो केवल इतना कहा- “मुझे अखाद्य खाकर जीना नहीं है। फिर भले ही मुझे मौत का सामना करना पड़े।”

लेखक को सन् 1915 में शांतिनिकेतन में ‘बा’ को देखने का अवसर मिला। रात को आंगन के बीच के एक चबूतरे पर अगल-बगल विस्तर लगाकर वापृ ओर बा सो गए और अन्य लोग आँगन में बिस्तर लगा सो गए। उस समय लेखक को लगा कि हमें आध्यात्मिक मां-बाप मिल गए हैं। लेखक को ‘बा’ के अंतिम दर्शन बिड़ला हाउस में गिरफ्तारी के दौरान हुए। जब गाँधी जी को गिरफ्तार करने के वाद उनसे कहा गया कि आपकी इच्छा हो । तो आप भी चल सकती हैं। ‘बा’ ने कहा अगर आप गिरफ्तार करें तो मैं भी जाऊँगी। पति के गिफ्तार होने के बाद उन्होंने उस सभा में जाने का निश्चय किया, जिसमें बापू बोलने वाले थे। सरकार ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, तो उन्होंने उत्तर दिया कि ‘सभा में जाने का निश्चय पक्का है, मैं जाऊँगी।’

माँ कस्तूरबा को गिरफ्तार करके आगा खाँ महल में रखा गया है, जहाँ सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ थीं किंतु उन्हें अपना कैद में होना असह्य था। उन्होंने कई बार कहा-‘मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए, मुझे तो सेवाग्राम की कुटिया ही पसंद है।” सरकार ने उनके शरीर को कैद रखा, किंतु उनकी आत्मा को वह कैद सहन नहीं हुई। उन्होंने सरकार की कैद में ही अपने प्राण त्यागे और वह स्वतंत्र हुई। माँ कस्तूरबा के सामने उनके कर्तव्य सदा स्पष्ट रहे। उन्होंने ‘मुझसे यही होगा’ और ‘यह नहीं होगा’ वाक्यों में अपना निर्णय सुना देती थीं।

आश्रम में कस्तूरबा लोगों के लिए माँ के समान थीं। आश्रम के नियम उन पर लागू नहीं होते थे। आश्रम में सभी के खाने-पीने की व्यवस्था कस्तूरबा करती थीं। आलस्य उनमें बिलकुल नहीं था। वे रसोईघर में जो भी काम करती थीं, आस्था से करती थीं। उनमें संस्था चलाने की महत्त्वाकांक्षा नहीं थी। परंतु देश में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी वे अवश्य रखती थीं। वापूजी जब जेल में होते थे तो उन्होंने दो-तीन बार राजकीय परिषदों का या शिक्षण सम्मेलनों का अध्यक्ष पद भी सँभालना पड़ा। उनके अध्यक्षीय भाषण लेखक लिखता था। किन्तु उपसंहार माँ कस्तूरबा अपनी प्रतिभा से करती थीं, उनके भाषणों में परिस्थिति की समझ, भाषा की सावधानी और खानदानी की महत्ता आदि गुण उत्कृष्टता से दिखाई देते थे।

माँ कस्तूरबा की मृत्यु पर पूरे देश ने स्वयं स्फूर्ति से उनका स्मारक बनाया। कस्तूरबा अपने संस्कार के बल पर पातिव्रत्य को, कुटुंब-वत्सलता को और तेजस्विता को चिपकाए रहीं और उसी के बल पर बापूजी के माहात्म्य की बराबरी कैर सकीं। स्वातंत्र्य की पूर्व शिवरात्रि के दिन उनका स्मरण कर सभी देशवासी अपनी-अपनी तेजस्विता को और अधिक तेजस्वी बनाते हैं।

निष्ठामूर्ति कस्तूरबा संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी जैसे महान पुरुष की सहधर्मचारिणी के तौर पर पूज्य कस्तूरबा के बारे में राष्ट्र का आदर मालूम होना स्वाभाविक है। राष्ट्र ने महात्माजी को ‘बापूजी’ के नाम से राष्ट्रपिता के स्थान पर कायम किया ही है। इसलिए कस्तूरबा भी ‘घा’ के एकाक्षरी नाम से राष्ट्रमाता बन सकी हैं। किंतु सिर्फ महात्माजी के साथ संबंध के कारण ही नहीं, बल्कि अपने आंतरिक सद्गुणों और निष्ठा के कारण भी कस्तूरबा राष्ट्रमाता बन पाई हैं। चाहे दक्षिण अफ्रीकामें हों या हिंदुस्तान में, सरकार के खिलाफ लड़ाई के समय जब-जब चारित्र्य का तेज प्रकट करने का मौका आया, कस्तूरबा हमेशा इस दिव्य कसौटी से सफलतापूर्वक पार हुई हैं। (Page 44)

शब्दार्थ:

  • सहधर्मचारिणी – धर्म या कर्तव्यों के निर्वाह में साथ देने वाली पत्नी।
  • कायम – स्थापित।
  • एकाक्षरी – एक अक्षर वाला।
  • आंतरिक सद्गुण – हृदय के अच्छे गुण।
  • कसौटी – परख, परीक्षा।
  • खिलाफ – विरुद्ध।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा रचित संस्मरण ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से लिया गया है। लेखक इन पंक्तियों में कस्तूरबा के राष्ट्रमाता बनने के कारणों को स्पष्ट करने के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डाल रहा है।

व्याख्या:
महात्मा गाँधी की धर्म अथवा कर्तव्यों के निर्वाह में साथ देने वाली पूजनीय कस्तूरबा के संबंध में राष्ट्र के आदर को देशवासियों को ज्ञान होना स्वाभाविक है। राष्ट्र ने महात्मा गाँधी को ‘बापूजी’ कहकर सम्मानित किया है। इतना ही नहीं उन्हें राष्ट्रपिता के पद पर स्थापित किया है। सारा राष्ट्र उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्मान देता है। इसलिए कस्तूरबा भी ‘बा’ एक अक्षर वाले नाम से राष्ट्रमाता बनने में सफल रही हैं।

सारा देश उन्हें राष्ट्रमाता का दर्जा देता है। महात्मा गाँधी की पत्नी होने के कारण ही वे राष्ट्रमाता नहीं बनीं, अपितु अपने सद्गुणों अर्थात् अच्छे गुणों से युक्त होने और विश्वास के कारण बनीं। वे चाहे दक्षिण अफ्रीका में रही हों अथवा भारत में, जब भी उन्हें सरकार के विरुद्ध लड़ाई लड़ते समय अपने चारित्रिक तेज को उजागर करने का अवसर मिला, वे सदा इस दिव्य परीक्षा में पूर्णतः सफल हुईं। भाव यह है कि माँ कस्तूरबा को जब भी अपने चारित्रिक तेज को उजागर करने का अवसर मिला, उन्होंने इसे उजागर किया।

विशेष:

  1. माँ कस्तूरबा का सम्मान उनकै स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण समूचे देश में होता है। लेखक मैं इस तथ्य को उजागर किया है।
  2. माँ कस्तूरबा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।
  3. भाषा तत्सम, उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा किस कारण से राष्ट्रमाता बन सकीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा महात्मा गाँधी की पत्नी होने के कारण राष्ट्रमाता नहीं बनी, अपितु वे अपने हृदय के सद्गुणों और विश्वास तथा स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण राष्ट्रमाता बनने में सफल रहीं।

प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा किस कसौटी पर सदा खरी उतरीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा को दक्षिण अफ्रीका और हिंदुस्तान में सरकार के विरुद्ध लड़ाई लड़ते समय जब भी चारित्रिक तेज को प्रकट करने का मौका मिला वे सदा इस कसौटी पर खरी उतरीं।

प्रश्न (iii)
माँ कस्तूरबा के दो चारित्रिक गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. माँ कस्तूरबा महात्मा गाँधी के धर्म और कर्तव्यों के निर्वाह में साथ देने वाली पतिव्रता नारी थीं।
  2. उनका अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व था। सरकार के विरुद्ध लड़ाई लड़ने में वे कभी पीछे नहीं हटीं।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा को महात्मा गाँधी की सहधर्मचारिणी क्यों कहा गया है?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा महात्मा गाँधी की ऐसी पत्नी ही, जो अपने पति के धर्म और कर्तव्यों के निर्वाह में पूर्ण साथ देती थीं इसीलिए उन्हें महात्मा गाधी की सहधर्मचारिणी कहा गया है।

प्रश्न (ii)
राष्ट्र ने महात्मा गाँधी को किस पद पर स्थापित किया है?
उत्तर:
राष्ट्र ने महात्मा गाँधी को ‘बापूजी’ नाम से राष्ट्रपिता के पद पर स्थापित किया।

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प्रश्न 2.
दुनिया में दो अमोध शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति। इसमें कोई शक नहीं कि ‘शब्दो’ नै सारी पक्षी को हिला दिया है। किंतु अंतिम शक्ति तो ‘कृति’ की है। महात्माजी ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों से ही अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति की नम्रता के साथ उपासना करके संतोष माना और जीवनसिद्धि प्राप्त की। (Page 45) (M.P 2011).

शब्दार्थ:

  • दुनिया – संसार, विश्व, जगत्।
  • अमोघ – अचूक।
  • कृति – रचना, कार्य, कर्म।
  • शक – संदेह।
  • स्मृति – स्मरण, चिंतन, इच्छा, पाप।
  • उपासना – आराधना, प्रजा जीवन।
  • असाधारण – जो साधारण नहीं है, विशेष।
  • नम्रता – कोमलता, विनम्रता।
  • जीवनसिद्धि – जीवन में सफलता प्राप्ति।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा रचित संस्मरण ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से लिया गया है। लेखक माँ कस्तूरवा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाल रहा हैं।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि संसार में दो अचूक ताकते हैं-शब्द और कृति अर्थात् शब्द और उनके माध्यम से रचित रचना। इस बात में विलकुल संदेह नहीं है कि शब्दों की शक्ति में सारे भू-मंडल को हिला दिया है। दूसरे शब्दों में, शब्दों ने अपनी शक्ति से सारे संसार को अस्थिर कर दिया है परंतु आखिरी शक्ति तो स्मरण अथवा चिंतन है। महात्मा गाँधी ने अपने जीवन में शब्द और कृति दोनों शक्तियों की विशेष आधिमा की; अर्थात् उन्होंने शब्दों की शक्ति और उससे होने वाली रचनों पर विशेष दक्षता प्राप्त की। उन्होंने किस अवसर किन शब्दों का प्रयोग करना चाहिए और रचना में किस प्रकार के शब्दों का चयन करना चाहिए। इसमें विशेष योग्यता प्राप्त की।

कस्तूरबा गांधी ने इसके विपरीत इन दोनों शक्तियों से अधिक श्रेष्ठ सृष्टि की रचना; अर्थात् महात्मा गाँधी की विनम्रता के साथ आराधना करके ही संतुष्टि प्राप्त की और जीवन में सफलता प्राप्त की। दूसरे शब्दों में, कस्तूरबा गांधी ने शब्द शक्ति की अधिक उपासना नहीं की। उनका भाषा ज्ञान अधिक नहीं था किंतु उन्होंने सृष्टि की रचना महात्मा गाँधी की सेवा द्वारा ही अपने जीवन को सफल बनाया।

विशेष:

  1. महात्मा गाँधी और कस्तूरबा के भाषा ज्ञान के अंतर को स्पष्ट किया गया है।
  2. कस्तूरबा की पतिनिष्ठा को उजागर किया गया है।
  3. भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी वोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
किस, शक्ति ने सारी दुनिया को हिला दिया है?
उत्तर:
शब्द की अमोघ शक्ति ने सारी दुनिया को हिला दिया है।

प्रश्न (ii)
महात्मा गाँधी ने किन दो शक्तियों की उपासना की है?
उत्तर:
महात्मा गांधी ने शब्द और कृति दोनों अमोघ शक्तियों की असाधारण उपासना की है। उन्होंने इन दोनों शक्तियों पर असाधारण अधिकार प्राप्त कर लिया था।

प्रश्न (iii)
इन दोनों शक्तियों से अधिक श्रेष्ठ कृति’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
शब्द और कृति शक्तियों से आधक श्रेष्ठ कृति महात्मा गाँधी को कहा गया है।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
इस गयांश में किसके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर:
इस गद्यांश में माँ कस्तूरबा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।

प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा ने किसकी उपासना करके जीवन-सिद्धि प्राप्त की?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने शब्द और कृति जैसी अमोघ शक्तियों से अधिक सृष्टि की श्रेष्ठ रचना महात्मा गाँधी की विनम्रता के साथ आराधना करके ही संतुष्टि और जीवनसिद्धि प्राप्त की।

प्रश्न (iii)
माँ कस्तूरबा ने किस शक्ति की अधिक उपासना नहीं की?
उत्तर:
माँ कस्तूरवा ने शब्द शक्ति की अधिक उपासना नहीं की। उन्हें भाषा ज्ञान अधिक नहीं था।

प्रश्न 3.
दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने जब उन्हें जेल भेज दिया, कस्तूरबा ने अपना बचाव तक नहीं किया। न कोई निवेदन प्रकट किया। “मुझे तो वह कानून तोड़ना ही है जो यह कहता है कि मैं महात्माजी की धर्मपत्नी नहीं हूँ।” इतना कहकर सीधे जेल चली गईं। जेल में उनकी तेजस्विता तोड़ने की कोशिशें वहाँ की सरकार ने बहुत की, किंतु अंत में सरकार की उस समय की जिद्द ही टूट गई। डॉक्टर ने जब उन्हें धर्म विरुद्ध खुराक लेने की बात कही तब भी उन्होंने धर्मनिष्टा पर कोई व्याख्यान नहीं दिया। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा-“मुझे अखाद्य खाना खाकर जीना नहीं है। फिर भले ही मुझे पौत का सामना करना पड़े।” (Page 45)

शब्दार्थ:

  • बचाव – बचने का प्रयास।
  • निवेदन – प्रार्थना, याचिका।
  • तेजस्विता – तेजस्वी होने का भाव, प्रभावशाली होने का भाव कोशिश-प्रयास।
  • जिद – हटवादिता।
  • धर्मविरुद्ध – धर्म के विपरीत।
  • खुराक – आहार, भोजन।
  • धर्मनिष्ठा – धर्म के प्रति श्रद्धा।
  • व्याख्यान – भाषण।
  • अखाद्य – जो खाने योग्य न हो।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा रचित ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से लिया गया है। लेखक कस्तूरबा के व्यक्तित्व के तेजस्वी स्वरूप और दृढ़ता को उजागर कर रहा है।

व्याख्या:
लेखक दक्षिणी अफ्रीका में घटित घटना के द्वारा माँ कस्तूरबा के व्यक्तित्व की दृढ़ता को उजागर करते हुए आगे कहता है कि जव दक्षिणी अफ्रीका की सरकार ने माँ कस्तूरबा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, तो उन्होंने अपने बचाव के संबंध में कुछ नहीं कहा। न कोई तर्क दिया और न ही जेल से छूटने के लिए कोई याचिका दर्ज की। उन्होंने उस समय केवल इतना ही कहा कि मुझे तो वह कानून भंग करना है, जो मुझे महात्मा गाँधी की पत्नी स्वीकार नहीं करता। इतना कहकर वे जेल चली गईं और जेल जाकर यह सिद्ध कर दिया कि वे गांधी जी की पत्नी हैं।

जेल में उनके तेजस्वी होने के भाव और उनकी दृढ़ता तोड़ने के अनेक प्रयास वहाँ की सरकार ने किए, लेकिन वह माँ कस्तूरबा की तेजस्विता तोड़ने में सफल नहीं हो पाईं। उनकी दृढ़ता के सामने तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका की सरकार को घुटने टेकने पड़े। जेल में रहते हुए जब उनका स्वास्थ्य गिरने लगा, तो डॉक्टर ने उन्हें हिंदू-धर्म के विरुद्ध भोजन लेने का सुझाव दिया।

उस समय उन्होंने धर्म के प्रति श्रद्धा और आस्था पर कोई भाषण नहीं दिया। उन्होंने केवल इतना ही कहा कि मुझे अखाद्य (न खाने योग्य) भोजन खाकर जीवित नहीं रहना है। चाहे मुझे मृत्यु का ही सामना करना पड़े। दूसरे शब्दों में, उन्होंने मांस-अंडे आदि खाने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने ऐसा भोजन खाने की अपेक्षा मृत्यु को चुना। यह उनके व्यक्तित्व की दृढ़ता का ही परिचायक है।

विशेष:

  1. माँ कस्तूरबा के व्यक्तित्व की तेजस्विता, दृढ़ता, धर्मनिष्ठा को उजागर किया गया है।
  2. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  3. मुहावरों के प्रयोग से भाषा में अर्थवत्ता का समावेश हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा ने किस कानून को तोड़ने की बात की है?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने दक्षिण अफ्रीका के उस कानून को तोड़ने की बात की है, जो उन्हें महात्मा गाँधी की पत्नी स्वीकार नहीं करता था।

प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने बंदी क्यों बनाया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने दक्षिण अफ्रीका के सरकारी कानून को तोड़ा था, इसलिए उन्हें बंदी बनाकर जेल भेज दिया गया।

प्रश्न (iii)
जेल में डॉक्टर ने उन्हें क्या परामर्श दिया?
उत्तर:
जेल में माँ कस्तूरबा का स्वास्थ्य गिरने लगा, तो डॉक्टर ने उन्हें धर्म के विरुद्ध खाना खाने का परामर्श दिया। दूसरे शब्दों में, डॉक्टर ने उन्हें मांस और अण्डे खाने की सलाह दी।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
दक्षिण अफ्रीका में कस्तूरबा को जब जेल भेज दिया तो उन्होंने अपना बचाव क्यों नहीं किया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा दक्षिण अफ्रीका के उस कानून को तोड़ना चाहती थीं जो उन्हें. महात्मा गाँधी की धर्मपत्नी नहीं मानता था इसीलिए उन्होंने अपना बचाव नहीं किया और जेल चली गईं।

प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा ने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से मना क्यों कर दिया?
उत्तर:
धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से माँ कस्तूरबा की धर्मनिष्ठा खंडित हो जाती इसीलिए उन्होंने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से मना कर दिया।

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प्रश्न 4.
महात्माजी को गिरफ्तार करने के बाद सरकार की ओर से कस्तूरबा को कहा गया, “अगर आपकी इच्छा हो तो आप भी साथ में चल सकती हैं।” बा बोलीं-“अगर आप गिरफ्तार करें तो मैं भी जाऊँगी। वरना आने की मेरी तैयारी नहीं है। महात्माजी जिस सभा में बोलने वाले थे उस सभा में जाने का उन्होंने निश्चय किया था। पति के गिरफ्तार होने के बाद उनका काम आगे चलाने की जिम्मेदारी बा ने कई बार उठाई है।

शाम के समय जब वह व्याख्यान के लिए निकल पड़ीं, सरकारी अमलदारों ने आकर उनसे कहा, ‘माताजी सरकार का कहना है कि आप घर पर ही रहें, सभा में जाने का कष्ट न उठाएँ।” बा ने उस समय उन्हें न देशसेवा का महत्त्व समझाया और न उन्होंने उन्हें ‘देशद्रोह करने वाले हो’ कहकर उनकी निभर्त्सना ही की। उन्होंने एक ही वाक्य में सरकार की सूचना का जवाब दिया। “सभा में जाने का मेरा निश्चय पक्का है, मैं जाऊँगी ही।” (Page 45)

शब्दार्थ:

  • व्याख्यान – भाषण।
  • अमलदारों – अधिकारियों।
  • निभर्त्सना – निंदा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा लिखित संस्मरण ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से उद्धृत है। लेखक कस्तूरबा के व्यक्तित्व की दृढ़ता को उजागर कर रहा है।

व्याख्या:
दिल्ली के बिड़ला हाउस में पुलिस द्वारा महात्मा गाँधी को गिरफ्तार करने के बाद सरकार की तरफ़ से बा को संदेश दिया गया कि यदि आपकी इच्छा गाँधी जी के साथ जेल जाने की हो, तो आप भी साथ चल सकती हैं। इस पर बा ने उत्तर दिया कि यदि आप मुझे गिरफ्तार करेंगे तो मैं भी चलूँगी, अन्यथा जेल जाने की मेरी कोई तैयारी नहीं; अर्थात् मैं बिना गिरफ्तार किए जेल जाने के लिए तैयार नहीं हूँ। गिरफ्तार करोगे, तो मुझे जाना ही पड़ेगा। महात्मा गांधी उस दिन जिस सभा में भाषण देने वाले थे, माँ कस्तूरबा ने उस सभा में जाने का निश्चय किया।

पति के जेल जाने के बाद, उनकी अनुपस्थिति में पति के कार्य को आगे बढ़ाने का उत्तरदायित्व ‘बा’ ने कई बार उठाया। शाम के समय वे सभा में भाषण देने के लिए बिड़ला हाउस चल दीं। तो सरकारी अधिकारियों ने आकर उनसे कहा कि माताजी सरकार चाहती है कि आप घर पर ही रहें, अर्थात् आप सभा में भाषण देने जाएँ, यह सरकार नहीं चाहती। ‘बा’ ने उस अवसर पर उन सरकारी अधिकारियों को न तो देश सेवा का महत्त्व समझाया और न ही उन्होंने उन्हें देश के विरुद्ध कार्य करने वाला कहकर उनकी निंदा की। उन्होंने एक ही वाक्य में सरकार की उस सूचना का उत्तर दिया कि सभा में जाने का मेरा निश्चय पक्का है, और में अवश्य जाऊँगी। . इस प्रकार उन्होंने अपनी दृढ़ता का परिचय दिया।

विशेष:

  1. माँ कस्तूरबा की दृढ़ता को उजागर किया गया है। पति के कार्य को आगे बढ़ाने के क्षमता को उद्घाटित किया गया है।
  2. भाषा सरल, सुबोध और आम बोलचाल की खड़ी बोली है।
  3. मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत गद्याशं में माँ कस्तूरबा के चरित्र का कौन-सा पक्ष उजागर हुआ है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में माँ कस्तूरबा के चरित्र की दृढ़ता का पक्ष उजागर हुआ है।

प्रश्न (ii)
महात्मा गाँधी को गिरफ्तार करने के बाद दक्षिण अफ्रीका सरकार ने कस्तूरबा के सामने क्या प्रस्ताव रखा?
उत्तर:
महात्मा गाँधी को गिरफ्तार करने के बाद दक्षिण अफ्रीका सरकार ने माँ कस्तूरबा के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर आपकी इच्छा हो तो आप भी (गाँधीजी के) साथ चल सकती हैं।

प्रश्न (iii)
माँ कस्तूरबा ने पति की गिरफ्तारी के बाद उनके अधूरे कार्य को आगे बढ़ाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने पति की गिरफ्तारी के बाद उनके अधूरे कार्य को आगे बढ़ाने के लिए उस सभा को सम्बोधित करने का निश्चय किया, जिसमें वे भाषण देने वाले थे। सरकारी अधिकारियों द्वारा रोकने पर भी वे नहीं रुकीं।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा ने गाँधी के साथ जेल जाने से क्यों मना कर दिया?
उत्तर:
सरकार माँ कस्तूरबा को गिरफ्तार नहीं कर रही थी अपितु उसने उनकी इच्छा पर छोड़ दिया था इसलिए उन्होंने गाँधीजी के साथ जेल जाने से मना कर दिया था। दूसरे उनकी जेल जाने की तैयारी भी नहीं थी।

प्रश्न (ii)
सरकारी अमलदारों ने क्या कहकर कस्तूरबा को सभा में जाने से रोकने का प्रयास किया?
उत्तर:
सरकारी अमलदारों ने यह कहकर कि ‘माताजी सरकार का कहना है कि आप घर पर ही रहें, सभा में जाने का कप्ट न उठाएँ, यह कहकर कस्तूरबा को सभा में जाने से रोकने का प्रयास किया।

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प्रश्न 5.
आगाखाँ महल में खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। हवा की दृष्टि से भी स्थान अच्छा था। महात्माजी का साथ भी था, किंतु कस्तूरबा के लिए यह विचार ही असह्य हुआ कि ‘मैं कैद में हूँ।’ उन्होंने कई बार कहा-‘मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए, मुझे तो सेवाग्राम की कुटिया ही पसंद है।’ सरकार ने उनके शरीर को कैद रखा किंतु उनकी आत्मा को वह कैद सहन नहीं हुई। जिस प्रकार पिंजड़े का पक्षी प्राणों का त्याग करके बंधनमुक्त हो जाता है उसी प्रकार कस्तूरबा ने सरकार की कैद में अपना शरीर छोड़ा और वह स्वतंत्र हुईं। उनके इस मूक किंतु तेजस्वी? बलिदान के कारण अंग्रेजी साम्राज्य की नींव ढीली हुई और हिंदुस्तान पर उनकी हुकूमत कमजोर हुई।

कस्तूरबा ने अपनी कृतिनिष्ठा के द्वारा यह दिखा दिया कि शुद्ध और रोचक साहित्य के पहाड़ों की अपेक्षा कृति का एक क्षण अधिक मूल्यवान और आबदार होता है। शब्द-शास्त्र में जो लोग निपुण होते हैं उनको कर्त्तव्य-अकर्तव्य की हमेशा ही विचिकित्सा करनी पड़ती है। कृतिनिष्ठ लोगों को ऐसी दुविधा कभी परेशान नहीं कर पाती। कस्तूरबा के और सामने उनका कर्तव्य किसी दीये के समान स्पष्ट था। जब कभी कोई चर्चा शुरू हो जाती तब ‘मुझसे पेही होगा’ और ‘यह नहीं होगा’-इन दो वाक्यों में ही अपना फैसला सुना देतीं। (Pages 45-46)

शब्दार्थ:

  • तकलीफ़ – परेशानी।
  • असह्य – असहनीय, सहन न करने योग्य।
  • वैभव – ऐश्वर्य।
  • कतई – बिलकुल, ज़रा भी।
  • बंधनमुक्त – स्वतंत्र।
  • मूक – मौन।
  • नींव ढीली होना – आधार कमजोर होना।
  • हुकूमत-शासन – व्यवस्था।
  • आबदार – स्वाभिमानी, धारदार, चमकदार।
  • निपुण – कुशल।
  • विचिकित्सा – संदेह, शक, दुविधा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा रचित ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से उद्धृत किया गया है। लेखक माँ कस्तूरबा की मृत्यु और उससे ब्रिटिश साम्राज्य पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या:
भारत की ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गाँधी और माँ कस्तूरबा को गिरफ्तार करके आगा खाँ महल में रखा। महल में खाने-पीने की व्यवस्था अच्छी थी। उन्हें खाने-पीने की कोई परेशानी नहीं थी। हवा के आने-जाने की भी अच्छी व्यवस्था थी। दूसरे शब्दों में, महल हवादार और आरामदायक था। फिर गाँधीजी भी माँ कस्तूरबा के साथ ही थे किंतु सभी प्रकार की सुविधाएँ होते हुए भी ‘बा’ के लिए यह विचार ही असहनीय था कि वे इस महल में कैद हैं। यह महल कैदखाना है। उन्होंने इस संबंध में कई बार कहा कि मुझे यहाँ का ऐश्वर्य बिलकुल नहीं चाहिए।

मुझे तो इस महल की अपेक्षा सैवाग्राम की कुटिया ही अधिक पसंद है। लेखक कहता है कि सरकार ने उनके शरीर को आगा खाँ महल में कैद कर रखा था किंतु उनकी आत्मा को यह कैद सहन नहीं हुई। जिस प्रकार पिंजरे में बंद पक्षी अपने प्राणों को त्यागकर स्वतंत्र हो जाता है। उसी प्रकार माँ कस्तूरबा सरकार की कैद में अपना शरीर छोड़ा अर्थात् सरकार की कैद में ही माँ कस्तूरबा का देहांत हो गया और वे सरकार की कैद से आजाद हो गईं। उनके इस मौन किंतु तेजस्वी बलिदान के कारण भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के आधार को कमजोर कर दिया। हिंदुस्तान पर उनकी पकड़ ढीली पड़ गई।

माँ कस्तूरबा ने अपने कार्यों से यह दिखा दिया कि अपनी कृतिनिष्ठा अर्थात् महात्मा गाँधी के प्रति उनकी श्रद्धा और आस्था के द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि शुद्ध और रोचक साहित्य के विशाल भंडार की अपेक्षा सृष्टि की रचना का एक क्षण अधिक मूल्यवान और स्वाभिमान होता है। शब्द-शास्त्र अर्थात् शब्द ज्ञान में जो लोग निपुण होते हैं उनको कर्त्तव्य और अकर्तव्य का निर्णय करने में सदैव दुविधा होती हैं।

लेखक का मत है कि ईश्वर की रचना के प्रति आस्था रखने वाले लोगों को इस प्रकार की दुविधा कभी भी परेशान नहीं कर पाती अर्थात् वे तुरंत निर्णय करने में सक्षम होते हैं। माँ कस्तूरबा के सम्मुख उनका कर्त्तव्य दीये के प्रकाश के सामने बिलकुल स्पष्ट था। जब कभी कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के संबंध में चर्चा आरंभ हो जाती तो :मुझसे यही होगा’ और ‘मुझसे यह नहीं होगा’ कहकर वे अपना स्पष्ट निर्णय दे देती थीं। उन्हें निर्णय लेने में ज़रा भी देर नहीं लगती थी। वे तुरंत निर्णय लेने की क्षमता रखती थीं।

विशेष:

  1. माँ कस्तूरबा की कैद में मृत्यु ओर ब्रिटिश शासन पर उसके प्रभाव का वर्णन किया गया है।
  2. माँ कस्तूरबा की निर्णय क्षमता को उजागर किया गया है।
  3. भाषा तत्सम तथा उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा आगा खाँ महल में क्यों नहीं रहना चाहती थीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा को सरकार ने आगा खाँ महल में कैद में रखा था। यद्यपि उन्हें वहाँ सारी सुविधाएँ उपलब्ध थीं तथापि उन्हें कैद में होने का विचार असह्य था इसलिए वे आगा खाँ महल में नहीं रहना चाहती थीं।

प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा सरकार की कैद से कैसे स्वतंत्र हुईं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा जेल में ही अपने प्राणों को त्यागकर सरकार की कैद से मुक्त हो गईं।

प्रश्न (iii)
प्रस्तुत गद्यांश में माँ कस्तूरबा की कौन-सी चारित्रिक विशेषता उभरकर सामने आई है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में माँ कस्तूरबा के चरित्र की कर्तव्य-अकर्त्तव्य के संबंध में निर्णय लेने की क्षमता उजागर हुई है। वे तुरंत निर्णय लेने में समर्थ थीं।

गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
आगा खाँ महल में सरकारी कैद में माँ कस्तूरबा की मृत्यु होने का ब्रिटिश साम्राज्य पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
कैद में माँ कस्तूरबा की मृत्यु होने से भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव ढीली हुई और हिंदुस्तान पर उनकी हुकूमत कमजोर हुई।

प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा को आगा खाँ महल के वैभव की अपेक्षा क्या पसंद था?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा को आगा खाँ महल के वैभव की अपेक्षा सेवाग्राम की कुटिया का सीधा-सादा जीवन अधिक पसंद था।

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