MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (संस्मरण, काका कालेलकर)
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक ने राष्ट्रमाता किसे कहा है? (M.P. 2010)
उत्तर:
माँ कस्तूरबा को राष्ट्रमाता कहा गया है।
प्रश्न 2.
राष्ट्र माँ कस्तूरबा को किस आदर्श की जीवित प्रतिमा मानता है?
उत्तर:
राष्ट्र माँ कस्तूरबा का आर्य सती स्त्री के आदर्श की जीवित प्रतिमा मानता है।
प्रश्न 3.
कस्तूरबा भाषा का सामान्य ज्ञान होने पर भी कैसे अपना काम चला लेती थीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा कुछ अंग्रेजी समझ लेती थीं और वे 25-30 शब्द बोल लेती थीं। उन्हीं शब्दों को समझ-बोलकर अपना काम चला लेती थीं।
प्रश्न 4.
कस्तूरबा को किन ग्रंथों पर असाधारण श्रद्धा थी?
उत्तर:
कस्तूरबा को गीता और तुलसी-रामायण पर असाधारण श्रद्धा थी।
प्रश्न 5.
महात्माजी और कस्तूरबा को पहली बार देखकर लेखक ने क्या अनुभव किया?
उत्तर:
लेखक ने अनुभव किया कि मानो उस आध्यात्मिक माँ-बाप मिल गए हैं।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
दुनिया में कौन-सी दो अमोघ शक्तियाँ मानी गई थीं? कस्तूरबा की निष्ठा किसमें अधिक थी? (M.P. 2009, 2010)
उत्तर:
दुनिया में शब्द और कृति दो अमोघ शक्तियाँ मानी गई हैं। शब्दों ने तो सारी दुनिया को हिला कर रख दिया है।
प्रश्न 2.
कस्तूरबा को तेजस्वी महिला क्यों कहा गया है? (M.P. 2012)
उत्तर:
जब माँ कस्तूरबा को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया तो उन्होंने अपने बचाव में कुछ नहीं कहा और न ही कोई निवेदन प्रकट किया। उन्होंने केवल यही कहा कि मुझे तो वह कानून तोड़ना है जो यह कहता है कि मैं महात्माजी की धर्मपत्नी नहीं हूँ। जेल में उनकी तेजस्विता तोड़ने में सरकार असफल रही और सरकार को घुटने टेकने पड़े इसीलिए माँ कस्तूरबा को तेजस्वी कहा गया है।
प्रश्न 3.
“सभा में जाने का मेरा निश्चय पक्का है मैं जाऊँगी ही” यह कथन किसका है और किस प्रसंग में कहा गया है?
उत्तर:
यह कथन माँ कस्तूरबा का है। यह इस प्रसंग में कहा गया है जब गाँधी जी को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था और माँ कस्तूरबा पति के कार्य को आगे बढ़ाने के उस सभा में भाषण देने जा रही थीं जिसमें गाँधीजी भाषण देने वाले थे। उस समय सरकारी अधिकारियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो उन्होंने उक्त कथन द्वारा उन्हें उत्तर दिया।
प्रश्न 4.
“मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए। मुझे तो सेवाग्राम की कुटिया ही पसंद है” माँ कस्तूरबा के इस कथन के आशय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आशय-माँ कस्तूरबा को गाँधीजी के साथ आगा खाँ महल में सरकार ने कैद कर रखा था। वहाँ किसी प्रकार का अभाव नहीं था। सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध थीं किंतु उन्हें वहाँ कैद होना असहनीय लग रहा था। उन्हें महल में कैद होना अच्छा नहीं लगता। उन्हें किसी प्रकार सुख-सुविधा, ऐश्वर्य की आवश्यकता नहीं थी, उन्हें तो स्वतंत्रतापूर्वक सेवाग्राम की कुटिया में रहना ही पसंद था।
प्रश्न 5.
कस्तूरबा ने अपनी तेजस्विता और कृतिनिष्ठा से क्या सिद्ध कर दिखाया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने अपनी तेजस्विता और कृतिनिष्ठा से यह सिद्ध कर दिखाया कि उन्हें शब्द-शास्त्र में बेशक निपुणता प्राप्त न हो परंतु कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के निर्णय करने में उन्हें कोई दुविधा नहीं है। उनमें तुरंत निर्णय लेने की क्षमता है।
प्रश्न 6.
बदलते आदर्शों के इस युग में कस्तूरबा के प्रति श्रद्धा प्रकट कर किस बात का प्रमाण दिया गया है?
उत्तर:
बदलते आदर्शों के इस युग में कस्तूरबा के प्रति श्रद्धा प्रकट कर इस बात का प्रमाण दिया कि आज भी हमारे देश में प्राचीन तेजस्वी आदर्श मान्य हैं और हमारी संस्कृति की जड़ें आज भी काफी मजबूत हैं।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा भाव-विस्तार/पल्लवन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथन का भाव-विस्तार कीजिए।
“हमारी संस्कृति की जड़ें आज भी काफी मजबूत हैं।”
उत्तर:
हमारी भारतीय संस्कृति के जीवन-मूल्य और आदर्श आज के बदलते . आदर्शों के युग में भी महत्त्व रखते हैं। भारतीय समाज में आज भी उन आदर्शों को श्रद्धा और विश्वास की दृष्टि से देखा जाता हैं। इससे प्रमाणित होता है कि हमारी संस्कृति की जड़ें भी काफी मजबूत हैं। संस्कृति के आदर्शों और मूल्यों को सरलता से समाप्त नहीं किया जा सकता।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा भाषा-अनुशीलन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों की संधि-विच्छेद करते हुए संधि का नाम लिखिए –
लोकोत्तर, स्वागत, सत्याग्रह, महत्त्वाकांक्षा, निस्तेज।
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए –
धर्मनिष्ठा, राष्ट्रमाता, देशसेवा, जीवनसिद्धि, बंधनमुक्त।
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग अलग करके लिखिए –
उपसंहार, प्रत्युत्पन्न, असाधारण, अशिक्षित, अनपढ़।
उत्तर:
उपसर्ग – उप, प्रति, अ, अ, अन।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों से प्रत्यय अलग करके लिखिए –
तेजस्विता, कौटुम्बिक, चरित्रवान, शासकीय, उत्कृष्टता।
उत्तर:
प्रत्यय – ता, इक, वान, ईय, ता।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित विदेशी शब्दों के लिए हिंदी शब्द लिखिए –
अमलदार, हासिल, खुद, कायम, आंबदार, जिद्द।
उत्तर:
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1.
ऐसी नारियों के जीवन-प्रसंगों का संकलन कीजिए जो समाज के लिए प्रेरक व आदर्श साथ ही स्वरूप रही हैं।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2.
अपने आस-पास की ऐसी महिला के बारे में लिखिए, जो आपके लिए आदर्श हो।
उत्तर:
छात्र स्वयं लिखें।
प्रश्न 3.
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली महिलाओं के चित्रों का एलबम बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं चित्र एकत्र कर एलबम बनाएँ।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
कस्तूरवा का एकाक्षरी नाम…….था।
(क) माँ
(ख) बा
(ग) तेजस्वी
(घ) दा
उत्तर:
(ख) बा।
प्रश्न 2.
अपने आंतरिक सद्गुणों और निष्ठा के कारण कस्तूरबा…….वन पाईं।
(क) राष्ट्रमाता
(ख) वीरमाता
(ग) वीर पत्नी।
(घ) आदर्श नारी
उत्तर:
(क) राष्ट्रमाता।
प्रश्न 3.
‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ संस्मरण के लेखक हैं –
(क) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
(ख) उदयशंकर भट्ट
(ग) काला कालेलकर
(घ) मैथिलीशरण गुप्त
उत्तर:
(ग) काका कालेलकर।
प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार गाँधीजी को भारत में कहाँ गिरफ्तार किया गया था?
(क) विधानसभा हाउस
(ख) आगा खाँ महल
(ग) बिड़ला हाउस
(घ) बिड़ला मंदिर
उत्तर:
(ग) बिड़ला हाउस।
प्रश्न 5.
कस्तूरबा का निधन……….में हुआ।
(क) बिड़ला हाउस
(ख) आगा खाँ महल
(ग) सेवाग्राम
(घ) वायसराय हाउस
उत्तर:
(ख) आगा खाँ महल।
प्रश्न 6.
“अगर आप गिरफ्तार करें, तो भी मैं जाऊँगी।” यह कथन उस समय … का है?”
(क) जब कस्तूरबा को पुलिस ने घेर लिया।
(ख) जब कस्तूरवा पर सरकार ने आरोप लगाया।
(ग) जब महात्माजी को गिरफ्तार कर लिया गया।
(घ) जब कस्तूरबा से पुलिस ने पूछताछ की।
उत्तर:
(ख) जब कस्तूरबा पर सरकार ने आरोप लगाया।
II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –
- राष्ट्र ने ………. को राष्ट्रपति का सम्मान दिया। (महात्माजी बापूजी)
- कस्तूरबा ………. के नाम से राष्ट्रमाता का सम्मान दिया गया। (माँ वा)
- दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं ……….। (शब्द और कृति स्मृति और उपासना)
- लेखक को कस्तूरवा के प्रथम दर्शन ………. में हुए। (शान्तिनिकेतन/दक्षिण अफ्रीका)
- हमारी ………. की जड़ें आज भी काफी मजबूत हैं। (परम्परा/संस्कृति)
उत्तर:
- बापूजी
- बा
- शब्द और कृति
- शान्तिनिकेतन
- संस्कृति।
III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –
- अपने आंतरिक सद्गुणों और निष्ठा के कारण कस्तूरबा राष्ट्रमाता बन गईं।
- कस्तूरबा का भाषा-ज्ञान सामान्य से अधिक था।
- 1915 के आरंभ में महात्माजी शान्तिनिकेतन पधारे।
- आश्रम में कस्तूरबा लेखक के लिए देवी के समान थीं।
- अध्यक्षीय भाषण किसी से लिखवा लेना आसान है।
उत्तर:
- सत्य
- असत्य
- सत्या
- असत्य
- सत्य।
IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –
प्रश्न 1.
उत्तर:
(i) (घ)
(ii) (ग)
(iii) (ख)
(iv) (ङ)
(v) (क)।
V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –
प्रश्न 1.
सत्याग्रहाश्रम क्या था?
उत्तर:
महात्माजी की संस्था।
प्रश्न 2.
स्त्री-जीवन सम्बन्ध के हमारे आदर्श को हमने क्या किए हैं?
उत्तर:
काफी बदल दिए हैं।
प्रश्न 3.
कस्तूरबा के सामने उनका कर्त्तव्य कैसा था?
उत्तर:
किसी दीये के समान था।
प्रश्न 4.
किन दो वाक्यों में कस्तूरबा अपना फैसला सुना देतीं।
उत्तर:
‘मुझसे यही होगा’ और ‘यह नहीं होगा।
प्रश्न 5.
कस्तूरबा में कौन-से भारतीय गुण थे?
उत्तर:
कौटुम्बिक सत्वगुण।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
माँ कस्तूरबा कौन थीं? (M.P. 2010)
उत्तर:
माँ कस्तूरबा महात्मा गाँधीजी की सहधर्मचारणी थीं।
प्रश्न 2.
माँ कस्तूरबा अंग्रेजी कैसे समझ और बोल लेती थीं?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में जाकर रहने के कारण कस्तूरबा कुछ अंग्रेजी समझ लेती थीं और 25-30 शब्द बोल भी लेती थीं।
प्रश्न 3.
माँ कस्तूरबा ने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से इनकार क्यों कर दिया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा एक धर्मनिष्ठ महिला थीं। धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से उनका धर्म भ्रष्ट हो जाता इसलिए उन्होंने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से मना कर दिया।
प्रश्न 4.
लेखक को कस्तूरबा के प्रथम दर्शन कब हुए?
उत्तर:
सन् 1915 में शांतिनिकेतन पधारने पर लेखक को कस्तूरबा के प्रथम दर्शन हुए हैं।
प्रश्न 5.
माँ कस्तूरबा को भारत में कहाँ कैद रखा गया?
उत्तर:
माँ कस्तूबा को भारत में आगा खाँ महल में कैद रखा गया।
प्रश्न 6.
आज हमारी संस्कृति की जड़ें कैसी हैं?
उत्तर:
आज हमारी संस्कृति की जड़ें काफी मजबूत हैं।
प्रश्न 7.
महात्मा गाँधी की सहधर्मिणी कौन थी?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा, महात्मा गाँधी की संहधर्मिणी थीं।
प्रश्न 8.
माँ कस्तूरबा का किसके प्रति अपार श्रद्धा थी?
उत्तर:
तुलसीदास की रामायण के प्रति माँ कस्तूरबा की अपार श्रद्धा थी।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
महात्मा गाँधीजी ने किन दो शक्तियों की उपासना की?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने विश्व की दो अमोघ शक्तियों-शब्द और कृति-की असाधारण उपासना की। उन्होंने इन दोनों शक्तियों में निपुणता प्राप्त की।
प्रश्न 2.
“मुझे अखाद्य खाकर जीना नहीं है। यह कथन किसका है और किस प्रसंग में कहा गया हैं?
उत्तर:
यह कथन माँ कस्तूरबा का है और यह डॉक्टर द्वारा धर्म के विरुद्ध खुराक लेने की बात के प्रसंग में कहा गया है।
प्रश्न 3.
पति के गिरफ्तार होने पर मौकस्तूरबा ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
पति के गिरफ्तार होने पर माँ कस्तूरबा ने उनके कार्य आगे बढ़ाने के लिए उस सभा में भाषण देने के लिए गईं जिसे गाँधीजी संबोधित करने वाले थे। दो-तीन बार राजकीय परिषदों या शिक्षण सम्मेलनों में अध्यक्ष का पद संभाला और अध्यक्षीय भाषण दिए।
प्रश्न 4.
माँ कस्तूरबा देश में चल रही सूक्ष्म जानकारी.कैसे रखती थीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा देश में क्या चल रहा है इसकी सूक्ष्म जानकारी प्रश्न पूछ-पूछकर या अखबारों पर दृष्टि डालकर प्राप्त कर लेती थीं और इस देश में चल रही गतिविधियों की जानकारी रखती थीं।
प्रश्न 5.
“मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए। मुझे तो सेवाधाम की कुटिया ही पसंद है।” यह किसने, कब और क्यों कहा?
उत्तर:
“मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए। मुझे तो सेवाधाम की कुटिया ही पसंद है।” यह माँ कस्तूरबा ने कहा। यह उस समय कहा, जव माँ कस्तूरबा को गाँधीजी के साथ आगा खाँ महल में सरकार ने कैद कर लिया। माँ कस्तूरबा ने यह इसलिए कहा कि उन्हें वहाँ कैद होना असहनीय हो उठा था। इसका यही कारण था कि उन्हें किसी प्रकार की सुख-सुविधा और ऐश्वर्य की आवश्यकता नहीं थी। उन्हें तो स्वतंत्रता एवं सेवाग्राम कुटिया ही पसंद थी।
प्रश्न 6.
माँ कस्तूरबा ने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से क्यों मना कर दिया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से मना कर दिया क्योंकि धर्म के प्रति उनकी अपार श्रद्धा थी। इस प्रकार की खुराक उनकी अंतरात्मा के विरुद्ध थी। फलस्वरूप उन्होंने इस प्रकार की खुराक लेने की अपेक्षा मृत्यु को प्राप्त होना उचित समझा था।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा लेखक-परिचय
प्रश्न 1.
काका कालेलकर का संक्षिप्त-जीवन परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
काका कालेलकर का जन्म 1 दिसंबर, सन् 1885 ई० में महाराष्ट्र प्रांत के सतारा नगर में हुआ था। अहिंदीभाषी होते हुए भी आपने सबसे पहले हिंदी सीखी और कई वर्षों तक दक्षिण सम्मेलन की ओर से हिंदी का प्रचार-कार्य किया। आपने राष्ट्रभाषा प्रचार के कार्य में सक्रिय और सार्थक भूमिका निभाई। अपनी चमत्कारी सूझ-बूझ और व्यापक अध्ययनशीलता के कारण आपकी गणना प्रमुख अध्यापकों और व्यवस्थापकों में होने लगी।
गुजरात में हिंदी प्रचार के लिए. गाँधी जी ने कालेलकर को ही चुना इसलिए उन्होंने गुजराती सीखी और गहन अध्ययन के बाद ही शिक्षण-कार्य प्रारंभ किया। आप गुजरात विद्यापीठ के कुलपति पद पर रहे। आपको दो बार राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। सन् 1964 ई० में आपको ‘पदम् विभूषण’ सम्मान से सम्मानित किया गया। मराठीभाषी होते हुए भी आपने हिंदी के प्रचार-प्रसार में रुचि दिखाई। आप विज्ञापन और आत्मप्रचार से दूर रहकर हिंदी की सेवा में लगे रहे। आपका निधन 21 अगस्त, 1981 को हुआ।
साहित्यिक विशेषताएँ:
आपके साहित्य में यात्राओं के वर्णन तथा लोक-जीवन के अनुभवों को स्थान मिला है। आपने हिंदी में यात्रा-साहित्य के अभाव को काफी हद तक दूर किया। आपकी रचनाओं में सजीवता के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। अपनी भाषा क्षमता के कारण ही आप साहित्य अकादमी में गुजराती भाषा के प्रतिनिधि चुने गए।
रचनाएँ:
काका कालेलकर ने लगभग तीस पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें स्मरण-यात्रा, धर्मोदय, हिमालय प्रवास, लोकमाता, जीवन और साहित्य, तक्षशिला, अमृत और विष, मुक्ति पथ, स्त्री का हृदय, युगदीप आदि प्रमुख हैं।
भाषा-शैली:
काका कालेलकर की भाषा-शैली बड़ी सजीव और प्रभावशाली है। उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदी खड़ी बोली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा आम बोलचाल की है। उन्होंने अपनी भाषा में तद्भव, तत्सम और देशी-विदेशी भाषाओं के शब्दों, मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग किया है।
साहित्य में महत्त्व:
काका कालेलकर को उत्तम निबंध, सजीव यात्रा-वृत्त, प्रभावोत्पादक संस्मरण और भावुकतापूर्ण जीवनी लिखने वालों में उच्च स्थान प्राप्त है। आप अहिंदीभाषी होते हुए भी राष्ट्रभाषा हिंदी के सच्चे सेवकों में गिने जाते हैं।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा पाठ का सारांश
प्रश्न 1.
काका कालेलकर के संस्मरण ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरवा’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
लेखक ने इस संस्मरण में कस्तूरबा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है। लेखक का मानना है कि माँ कस्तूरबा का सम्मान गाँधी जी की पत्नी होने के कारण नहीं, अपितु उनके स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण है। राष्ट्र ने बापूजी को राष्ट्रपिता का सम्मान दिया है तो ‘बा’ भी राष्ट्रमाता का सम्मान पा सकीं। वे राष्ट्रमाता अपने आंतरिक सद्गुणों और निष्ठा के कारण बनीं। उन्होंने प्रत्येक स्थान पर अपने चरित्र को उजागर किया है। वे आर्य स्त्री के आदर्श की जीवंत प्रतिमा थीं।
माँ कस्तूरबा का भाषा ज्ञान विशेष नहीं था। दक्षिण अफ्रीका में जाकर कुछ अंग्रेजी के शब्द समझने में समर्थ हो सकी थी और अंग्रेजी के 25-30 शब्द बोलने के लिए भी सीख लिए थे। विदेशी मेहमानों के आने पर उन्हीं शब्दों से अपना काम चलाती थीं। माँ कस्तूरबा की गीता और तुलसी की रामायण पर अपार श्रद्धा थी। आगा खाँ महल में कारावास के दौरान वार-बार गीता का पाठ लेने का प्रयास करती रही थीं।
संसार में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति, किंतु अंतिम अक्ति ‘कृति’ है। महात्माजी ने शब्द और कृति दोनों शक्तियों की उपासना की तो बा ने कृति शक्ति की ‘नम्रता के साथ उपासना करके संतोष प्राप्त करने के साथ-साथ जीवन-सिद्धि भी प्राप्त की थी। दक्षिण अफ्रीका में जब उन्हें जेल भेजा, तो उन्होंने अपना बचाव नहीं किया। न कोई निवेदन किया और जेल चली गईं। जेल में वहाँ की सरकार ने उनकी तेजस्विता भंग करने का बड़ा प्रयास किया किंतु वह सफल न हो सकी। डॉक्टर ने जब धर्म के विरुद्ध खुराक लेने की बात कही तो केवल इतना कहा- “मुझे अखाद्य खाकर जीना नहीं है। फिर भले ही मुझे मौत का सामना करना पड़े।”
लेखक को सन् 1915 में शांतिनिकेतन में ‘बा’ को देखने का अवसर मिला। रात को आंगन के बीच के एक चबूतरे पर अगल-बगल विस्तर लगाकर वापृ ओर बा सो गए और अन्य लोग आँगन में बिस्तर लगा सो गए। उस समय लेखक को लगा कि हमें आध्यात्मिक मां-बाप मिल गए हैं। लेखक को ‘बा’ के अंतिम दर्शन बिड़ला हाउस में गिरफ्तारी के दौरान हुए। जब गाँधी जी को गिरफ्तार करने के वाद उनसे कहा गया कि आपकी इच्छा हो । तो आप भी चल सकती हैं। ‘बा’ ने कहा अगर आप गिरफ्तार करें तो मैं भी जाऊँगी। पति के गिफ्तार होने के बाद उन्होंने उस सभा में जाने का निश्चय किया, जिसमें बापू बोलने वाले थे। सरकार ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, तो उन्होंने उत्तर दिया कि ‘सभा में जाने का निश्चय पक्का है, मैं जाऊँगी।’
माँ कस्तूरबा को गिरफ्तार करके आगा खाँ महल में रखा गया है, जहाँ सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ थीं किंतु उन्हें अपना कैद में होना असह्य था। उन्होंने कई बार कहा-‘मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए, मुझे तो सेवाग्राम की कुटिया ही पसंद है।” सरकार ने उनके शरीर को कैद रखा, किंतु उनकी आत्मा को वह कैद सहन नहीं हुई। उन्होंने सरकार की कैद में ही अपने प्राण त्यागे और वह स्वतंत्र हुई। माँ कस्तूरबा के सामने उनके कर्तव्य सदा स्पष्ट रहे। उन्होंने ‘मुझसे यही होगा’ और ‘यह नहीं होगा’ वाक्यों में अपना निर्णय सुना देती थीं।
आश्रम में कस्तूरबा लोगों के लिए माँ के समान थीं। आश्रम के नियम उन पर लागू नहीं होते थे। आश्रम में सभी के खाने-पीने की व्यवस्था कस्तूरबा करती थीं। आलस्य उनमें बिलकुल नहीं था। वे रसोईघर में जो भी काम करती थीं, आस्था से करती थीं। उनमें संस्था चलाने की महत्त्वाकांक्षा नहीं थी। परंतु देश में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी वे अवश्य रखती थीं। वापूजी जब जेल में होते थे तो उन्होंने दो-तीन बार राजकीय परिषदों का या शिक्षण सम्मेलनों का अध्यक्ष पद भी सँभालना पड़ा। उनके अध्यक्षीय भाषण लेखक लिखता था। किन्तु उपसंहार माँ कस्तूरबा अपनी प्रतिभा से करती थीं, उनके भाषणों में परिस्थिति की समझ, भाषा की सावधानी और खानदानी की महत्ता आदि गुण उत्कृष्टता से दिखाई देते थे।
माँ कस्तूरबा की मृत्यु पर पूरे देश ने स्वयं स्फूर्ति से उनका स्मारक बनाया। कस्तूरबा अपने संस्कार के बल पर पातिव्रत्य को, कुटुंब-वत्सलता को और तेजस्विता को चिपकाए रहीं और उसी के बल पर बापूजी के माहात्म्य की बराबरी कैर सकीं। स्वातंत्र्य की पूर्व शिवरात्रि के दिन उनका स्मरण कर सभी देशवासी अपनी-अपनी तेजस्विता को और अधिक तेजस्वी बनाते हैं।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी जैसे महान पुरुष की सहधर्मचारिणी के तौर पर पूज्य कस्तूरबा के बारे में राष्ट्र का आदर मालूम होना स्वाभाविक है। राष्ट्र ने महात्माजी को ‘बापूजी’ के नाम से राष्ट्रपिता के स्थान पर कायम किया ही है। इसलिए कस्तूरबा भी ‘घा’ के एकाक्षरी नाम से राष्ट्रमाता बन सकी हैं। किंतु सिर्फ महात्माजी के साथ संबंध के कारण ही नहीं, बल्कि अपने आंतरिक सद्गुणों और निष्ठा के कारण भी कस्तूरबा राष्ट्रमाता बन पाई हैं। चाहे दक्षिण अफ्रीकामें हों या हिंदुस्तान में, सरकार के खिलाफ लड़ाई के समय जब-जब चारित्र्य का तेज प्रकट करने का मौका आया, कस्तूरबा हमेशा इस दिव्य कसौटी से सफलतापूर्वक पार हुई हैं। (Page 44)
शब्दार्थ:
- सहधर्मचारिणी – धर्म या कर्तव्यों के निर्वाह में साथ देने वाली पत्नी।
- कायम – स्थापित।
- एकाक्षरी – एक अक्षर वाला।
- आंतरिक सद्गुण – हृदय के अच्छे गुण।
- कसौटी – परख, परीक्षा।
- खिलाफ – विरुद्ध।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा रचित संस्मरण ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से लिया गया है। लेखक इन पंक्तियों में कस्तूरबा के राष्ट्रमाता बनने के कारणों को स्पष्ट करने के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डाल रहा है।
व्याख्या:
महात्मा गाँधी की धर्म अथवा कर्तव्यों के निर्वाह में साथ देने वाली पूजनीय कस्तूरबा के संबंध में राष्ट्र के आदर को देशवासियों को ज्ञान होना स्वाभाविक है। राष्ट्र ने महात्मा गाँधी को ‘बापूजी’ कहकर सम्मानित किया है। इतना ही नहीं उन्हें राष्ट्रपिता के पद पर स्थापित किया है। सारा राष्ट्र उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्मान देता है। इसलिए कस्तूरबा भी ‘बा’ एक अक्षर वाले नाम से राष्ट्रमाता बनने में सफल रही हैं।
सारा देश उन्हें राष्ट्रमाता का दर्जा देता है। महात्मा गाँधी की पत्नी होने के कारण ही वे राष्ट्रमाता नहीं बनीं, अपितु अपने सद्गुणों अर्थात् अच्छे गुणों से युक्त होने और विश्वास के कारण बनीं। वे चाहे दक्षिण अफ्रीका में रही हों अथवा भारत में, जब भी उन्हें सरकार के विरुद्ध लड़ाई लड़ते समय अपने चारित्रिक तेज को उजागर करने का अवसर मिला, वे सदा इस दिव्य परीक्षा में पूर्णतः सफल हुईं। भाव यह है कि माँ कस्तूरबा को जब भी अपने चारित्रिक तेज को उजागर करने का अवसर मिला, उन्होंने इसे उजागर किया।
विशेष:
- माँ कस्तूरबा का सम्मान उनकै स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण समूचे देश में होता है। लेखक मैं इस तथ्य को उजागर किया है।
- माँ कस्तूरबा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।
- भाषा तत्सम, उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा किस कारण से राष्ट्रमाता बन सकीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा महात्मा गाँधी की पत्नी होने के कारण राष्ट्रमाता नहीं बनी, अपितु वे अपने हृदय के सद्गुणों और विश्वास तथा स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण राष्ट्रमाता बनने में सफल रहीं।
प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा किस कसौटी पर सदा खरी उतरीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा को दक्षिण अफ्रीका और हिंदुस्तान में सरकार के विरुद्ध लड़ाई लड़ते समय जब भी चारित्रिक तेज को प्रकट करने का मौका मिला वे सदा इस कसौटी पर खरी उतरीं।
प्रश्न (iii)
माँ कस्तूरबा के दो चारित्रिक गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- माँ कस्तूरबा महात्मा गाँधी के धर्म और कर्तव्यों के निर्वाह में साथ देने वाली पतिव्रता नारी थीं।
- उनका अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व था। सरकार के विरुद्ध लड़ाई लड़ने में वे कभी पीछे नहीं हटीं।
गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा को महात्मा गाँधी की सहधर्मचारिणी क्यों कहा गया है?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा महात्मा गाँधी की ऐसी पत्नी ही, जो अपने पति के धर्म और कर्तव्यों के निर्वाह में पूर्ण साथ देती थीं इसीलिए उन्हें महात्मा गाधी की सहधर्मचारिणी कहा गया है।
प्रश्न (ii)
राष्ट्र ने महात्मा गाँधी को किस पद पर स्थापित किया है?
उत्तर:
राष्ट्र ने महात्मा गाँधी को ‘बापूजी’ नाम से राष्ट्रपिता के पद पर स्थापित किया।
प्रश्न 2.
दुनिया में दो अमोध शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति। इसमें कोई शक नहीं कि ‘शब्दो’ नै सारी पक्षी को हिला दिया है। किंतु अंतिम शक्ति तो ‘कृति’ की है। महात्माजी ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों से ही अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति की नम्रता के साथ उपासना करके संतोष माना और जीवनसिद्धि प्राप्त की। (Page 45) (M.P 2011).
शब्दार्थ:
- दुनिया – संसार, विश्व, जगत्।
- अमोघ – अचूक।
- कृति – रचना, कार्य, कर्म।
- शक – संदेह।
- स्मृति – स्मरण, चिंतन, इच्छा, पाप।
- उपासना – आराधना, प्रजा जीवन।
- असाधारण – जो साधारण नहीं है, विशेष।
- नम्रता – कोमलता, विनम्रता।
- जीवनसिद्धि – जीवन में सफलता प्राप्ति।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा रचित संस्मरण ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से लिया गया है। लेखक माँ कस्तूरवा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाल रहा हैं।
व्याख्या:
लेखक कहता है कि संसार में दो अचूक ताकते हैं-शब्द और कृति अर्थात् शब्द और उनके माध्यम से रचित रचना। इस बात में विलकुल संदेह नहीं है कि शब्दों की शक्ति में सारे भू-मंडल को हिला दिया है। दूसरे शब्दों में, शब्दों ने अपनी शक्ति से सारे संसार को अस्थिर कर दिया है परंतु आखिरी शक्ति तो स्मरण अथवा चिंतन है। महात्मा गाँधी ने अपने जीवन में शब्द और कृति दोनों शक्तियों की विशेष आधिमा की; अर्थात् उन्होंने शब्दों की शक्ति और उससे होने वाली रचनों पर विशेष दक्षता प्राप्त की। उन्होंने किस अवसर किन शब्दों का प्रयोग करना चाहिए और रचना में किस प्रकार के शब्दों का चयन करना चाहिए। इसमें विशेष योग्यता प्राप्त की।
कस्तूरबा गांधी ने इसके विपरीत इन दोनों शक्तियों से अधिक श्रेष्ठ सृष्टि की रचना; अर्थात् महात्मा गाँधी की विनम्रता के साथ आराधना करके ही संतुष्टि प्राप्त की और जीवन में सफलता प्राप्त की। दूसरे शब्दों में, कस्तूरबा गांधी ने शब्द शक्ति की अधिक उपासना नहीं की। उनका भाषा ज्ञान अधिक नहीं था किंतु उन्होंने सृष्टि की रचना महात्मा गाँधी की सेवा द्वारा ही अपने जीवन को सफल बनाया।
विशेष:
- महात्मा गाँधी और कस्तूरबा के भाषा ज्ञान के अंतर को स्पष्ट किया गया है।
- कस्तूरबा की पतिनिष्ठा को उजागर किया गया है।
- भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी वोली है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
किस, शक्ति ने सारी दुनिया को हिला दिया है?
उत्तर:
शब्द की अमोघ शक्ति ने सारी दुनिया को हिला दिया है।
प्रश्न (ii)
महात्मा गाँधी ने किन दो शक्तियों की उपासना की है?
उत्तर:
महात्मा गांधी ने शब्द और कृति दोनों अमोघ शक्तियों की असाधारण उपासना की है। उन्होंने इन दोनों शक्तियों पर असाधारण अधिकार प्राप्त कर लिया था।
प्रश्न (iii)
इन दोनों शक्तियों से अधिक श्रेष्ठ कृति’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
शब्द और कृति शक्तियों से आधक श्रेष्ठ कृति महात्मा गाँधी को कहा गया है।
गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
इस गयांश में किसके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर:
इस गद्यांश में माँ कस्तूरबा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।
प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा ने किसकी उपासना करके जीवन-सिद्धि प्राप्त की?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने शब्द और कृति जैसी अमोघ शक्तियों से अधिक सृष्टि की श्रेष्ठ रचना महात्मा गाँधी की विनम्रता के साथ आराधना करके ही संतुष्टि और जीवनसिद्धि प्राप्त की।
प्रश्न (iii)
माँ कस्तूरबा ने किस शक्ति की अधिक उपासना नहीं की?
उत्तर:
माँ कस्तूरवा ने शब्द शक्ति की अधिक उपासना नहीं की। उन्हें भाषा ज्ञान अधिक नहीं था।
प्रश्न 3.
दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने जब उन्हें जेल भेज दिया, कस्तूरबा ने अपना बचाव तक नहीं किया। न कोई निवेदन प्रकट किया। “मुझे तो वह कानून तोड़ना ही है जो यह कहता है कि मैं महात्माजी की धर्मपत्नी नहीं हूँ।” इतना कहकर सीधे जेल चली गईं। जेल में उनकी तेजस्विता तोड़ने की कोशिशें वहाँ की सरकार ने बहुत की, किंतु अंत में सरकार की उस समय की जिद्द ही टूट गई। डॉक्टर ने जब उन्हें धर्म विरुद्ध खुराक लेने की बात कही तब भी उन्होंने धर्मनिष्टा पर कोई व्याख्यान नहीं दिया। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा-“मुझे अखाद्य खाना खाकर जीना नहीं है। फिर भले ही मुझे पौत का सामना करना पड़े।” (Page 45)
शब्दार्थ:
- बचाव – बचने का प्रयास।
- निवेदन – प्रार्थना, याचिका।
- तेजस्विता – तेजस्वी होने का भाव, प्रभावशाली होने का भाव कोशिश-प्रयास।
- जिद – हटवादिता।
- धर्मविरुद्ध – धर्म के विपरीत।
- खुराक – आहार, भोजन।
- धर्मनिष्ठा – धर्म के प्रति श्रद्धा।
- व्याख्यान – भाषण।
- अखाद्य – जो खाने योग्य न हो।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा रचित ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से लिया गया है। लेखक कस्तूरबा के व्यक्तित्व के तेजस्वी स्वरूप और दृढ़ता को उजागर कर रहा है।
व्याख्या:
लेखक दक्षिणी अफ्रीका में घटित घटना के द्वारा माँ कस्तूरबा के व्यक्तित्व की दृढ़ता को उजागर करते हुए आगे कहता है कि जव दक्षिणी अफ्रीका की सरकार ने माँ कस्तूरबा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, तो उन्होंने अपने बचाव के संबंध में कुछ नहीं कहा। न कोई तर्क दिया और न ही जेल से छूटने के लिए कोई याचिका दर्ज की। उन्होंने उस समय केवल इतना ही कहा कि मुझे तो वह कानून भंग करना है, जो मुझे महात्मा गाँधी की पत्नी स्वीकार नहीं करता। इतना कहकर वे जेल चली गईं और जेल जाकर यह सिद्ध कर दिया कि वे गांधी जी की पत्नी हैं।
जेल में उनके तेजस्वी होने के भाव और उनकी दृढ़ता तोड़ने के अनेक प्रयास वहाँ की सरकार ने किए, लेकिन वह माँ कस्तूरबा की तेजस्विता तोड़ने में सफल नहीं हो पाईं। उनकी दृढ़ता के सामने तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका की सरकार को घुटने टेकने पड़े। जेल में रहते हुए जब उनका स्वास्थ्य गिरने लगा, तो डॉक्टर ने उन्हें हिंदू-धर्म के विरुद्ध भोजन लेने का सुझाव दिया।
उस समय उन्होंने धर्म के प्रति श्रद्धा और आस्था पर कोई भाषण नहीं दिया। उन्होंने केवल इतना ही कहा कि मुझे अखाद्य (न खाने योग्य) भोजन खाकर जीवित नहीं रहना है। चाहे मुझे मृत्यु का ही सामना करना पड़े। दूसरे शब्दों में, उन्होंने मांस-अंडे आदि खाने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने ऐसा भोजन खाने की अपेक्षा मृत्यु को चुना। यह उनके व्यक्तित्व की दृढ़ता का ही परिचायक है।
विशेष:
- माँ कस्तूरबा के व्यक्तित्व की तेजस्विता, दृढ़ता, धर्मनिष्ठा को उजागर किया गया है।
- भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
- मुहावरों के प्रयोग से भाषा में अर्थवत्ता का समावेश हुआ है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा ने किस कानून को तोड़ने की बात की है?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने दक्षिण अफ्रीका के उस कानून को तोड़ने की बात की है, जो उन्हें महात्मा गाँधी की पत्नी स्वीकार नहीं करता था।
प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने बंदी क्यों बनाया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने दक्षिण अफ्रीका के सरकारी कानून को तोड़ा था, इसलिए उन्हें बंदी बनाकर जेल भेज दिया गया।
प्रश्न (iii)
जेल में डॉक्टर ने उन्हें क्या परामर्श दिया?
उत्तर:
जेल में माँ कस्तूरबा का स्वास्थ्य गिरने लगा, तो डॉक्टर ने उन्हें धर्म के विरुद्ध खाना खाने का परामर्श दिया। दूसरे शब्दों में, डॉक्टर ने उन्हें मांस और अण्डे खाने की सलाह दी।
गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
दक्षिण अफ्रीका में कस्तूरबा को जब जेल भेज दिया तो उन्होंने अपना बचाव क्यों नहीं किया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा दक्षिण अफ्रीका के उस कानून को तोड़ना चाहती थीं जो उन्हें. महात्मा गाँधी की धर्मपत्नी नहीं मानता था इसीलिए उन्होंने अपना बचाव नहीं किया और जेल चली गईं।
प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा ने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से मना क्यों कर दिया?
उत्तर:
धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से माँ कस्तूरबा की धर्मनिष्ठा खंडित हो जाती इसीलिए उन्होंने धर्म के विरुद्ध खुराक लेने से मना कर दिया।
प्रश्न 4.
महात्माजी को गिरफ्तार करने के बाद सरकार की ओर से कस्तूरबा को कहा गया, “अगर आपकी इच्छा हो तो आप भी साथ में चल सकती हैं।” बा बोलीं-“अगर आप गिरफ्तार करें तो मैं भी जाऊँगी। वरना आने की मेरी तैयारी नहीं है। महात्माजी जिस सभा में बोलने वाले थे उस सभा में जाने का उन्होंने निश्चय किया था। पति के गिरफ्तार होने के बाद उनका काम आगे चलाने की जिम्मेदारी बा ने कई बार उठाई है।
शाम के समय जब वह व्याख्यान के लिए निकल पड़ीं, सरकारी अमलदारों ने आकर उनसे कहा, ‘माताजी सरकार का कहना है कि आप घर पर ही रहें, सभा में जाने का कष्ट न उठाएँ।” बा ने उस समय उन्हें न देशसेवा का महत्त्व समझाया और न उन्होंने उन्हें ‘देशद्रोह करने वाले हो’ कहकर उनकी निभर्त्सना ही की। उन्होंने एक ही वाक्य में सरकार की सूचना का जवाब दिया। “सभा में जाने का मेरा निश्चय पक्का है, मैं जाऊँगी ही।” (Page 45)
शब्दार्थ:
- व्याख्यान – भाषण।
- अमलदारों – अधिकारियों।
- निभर्त्सना – निंदा।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा लिखित संस्मरण ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से उद्धृत है। लेखक कस्तूरबा के व्यक्तित्व की दृढ़ता को उजागर कर रहा है।
व्याख्या:
दिल्ली के बिड़ला हाउस में पुलिस द्वारा महात्मा गाँधी को गिरफ्तार करने के बाद सरकार की तरफ़ से बा को संदेश दिया गया कि यदि आपकी इच्छा गाँधी जी के साथ जेल जाने की हो, तो आप भी साथ चल सकती हैं। इस पर बा ने उत्तर दिया कि यदि आप मुझे गिरफ्तार करेंगे तो मैं भी चलूँगी, अन्यथा जेल जाने की मेरी कोई तैयारी नहीं; अर्थात् मैं बिना गिरफ्तार किए जेल जाने के लिए तैयार नहीं हूँ। गिरफ्तार करोगे, तो मुझे जाना ही पड़ेगा। महात्मा गांधी उस दिन जिस सभा में भाषण देने वाले थे, माँ कस्तूरबा ने उस सभा में जाने का निश्चय किया।
पति के जेल जाने के बाद, उनकी अनुपस्थिति में पति के कार्य को आगे बढ़ाने का उत्तरदायित्व ‘बा’ ने कई बार उठाया। शाम के समय वे सभा में भाषण देने के लिए बिड़ला हाउस चल दीं। तो सरकारी अधिकारियों ने आकर उनसे कहा कि माताजी सरकार चाहती है कि आप घर पर ही रहें, अर्थात् आप सभा में भाषण देने जाएँ, यह सरकार नहीं चाहती। ‘बा’ ने उस अवसर पर उन सरकारी अधिकारियों को न तो देश सेवा का महत्त्व समझाया और न ही उन्होंने उन्हें देश के विरुद्ध कार्य करने वाला कहकर उनकी निंदा की। उन्होंने एक ही वाक्य में सरकार की उस सूचना का उत्तर दिया कि सभा में जाने का मेरा निश्चय पक्का है, और में अवश्य जाऊँगी। . इस प्रकार उन्होंने अपनी दृढ़ता का परिचय दिया।
विशेष:
- माँ कस्तूरबा की दृढ़ता को उजागर किया गया है। पति के कार्य को आगे बढ़ाने के क्षमता को उद्घाटित किया गया है।
- भाषा सरल, सुबोध और आम बोलचाल की खड़ी बोली है।
- मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
प्रस्तुत गद्याशं में माँ कस्तूरबा के चरित्र का कौन-सा पक्ष उजागर हुआ है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में माँ कस्तूरबा के चरित्र की दृढ़ता का पक्ष उजागर हुआ है।
प्रश्न (ii)
महात्मा गाँधी को गिरफ्तार करने के बाद दक्षिण अफ्रीका सरकार ने कस्तूरबा के सामने क्या प्रस्ताव रखा?
उत्तर:
महात्मा गाँधी को गिरफ्तार करने के बाद दक्षिण अफ्रीका सरकार ने माँ कस्तूरबा के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर आपकी इच्छा हो तो आप भी (गाँधीजी के) साथ चल सकती हैं।
प्रश्न (iii)
माँ कस्तूरबा ने पति की गिरफ्तारी के बाद उनके अधूरे कार्य को आगे बढ़ाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा ने पति की गिरफ्तारी के बाद उनके अधूरे कार्य को आगे बढ़ाने के लिए उस सभा को सम्बोधित करने का निश्चय किया, जिसमें वे भाषण देने वाले थे। सरकारी अधिकारियों द्वारा रोकने पर भी वे नहीं रुकीं।
गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा ने गाँधी के साथ जेल जाने से क्यों मना कर दिया?
उत्तर:
सरकार माँ कस्तूरबा को गिरफ्तार नहीं कर रही थी अपितु उसने उनकी इच्छा पर छोड़ दिया था इसलिए उन्होंने गाँधीजी के साथ जेल जाने से मना कर दिया था। दूसरे उनकी जेल जाने की तैयारी भी नहीं थी।
प्रश्न (ii)
सरकारी अमलदारों ने क्या कहकर कस्तूरबा को सभा में जाने से रोकने का प्रयास किया?
उत्तर:
सरकारी अमलदारों ने यह कहकर कि ‘माताजी सरकार का कहना है कि आप घर पर ही रहें, सभा में जाने का कप्ट न उठाएँ, यह कहकर कस्तूरबा को सभा में जाने से रोकने का प्रयास किया।
प्रश्न 5.
आगाखाँ महल में खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। हवा की दृष्टि से भी स्थान अच्छा था। महात्माजी का साथ भी था, किंतु कस्तूरबा के लिए यह विचार ही असह्य हुआ कि ‘मैं कैद में हूँ।’ उन्होंने कई बार कहा-‘मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए, मुझे तो सेवाग्राम की कुटिया ही पसंद है।’ सरकार ने उनके शरीर को कैद रखा किंतु उनकी आत्मा को वह कैद सहन नहीं हुई। जिस प्रकार पिंजड़े का पक्षी प्राणों का त्याग करके बंधनमुक्त हो जाता है उसी प्रकार कस्तूरबा ने सरकार की कैद में अपना शरीर छोड़ा और वह स्वतंत्र हुईं। उनके इस मूक किंतु तेजस्वी? बलिदान के कारण अंग्रेजी साम्राज्य की नींव ढीली हुई और हिंदुस्तान पर उनकी हुकूमत कमजोर हुई।
कस्तूरबा ने अपनी कृतिनिष्ठा के द्वारा यह दिखा दिया कि शुद्ध और रोचक साहित्य के पहाड़ों की अपेक्षा कृति का एक क्षण अधिक मूल्यवान और आबदार होता है। शब्द-शास्त्र में जो लोग निपुण होते हैं उनको कर्त्तव्य-अकर्तव्य की हमेशा ही विचिकित्सा करनी पड़ती है। कृतिनिष्ठ लोगों को ऐसी दुविधा कभी परेशान नहीं कर पाती। कस्तूरबा के और सामने उनका कर्तव्य किसी दीये के समान स्पष्ट था। जब कभी कोई चर्चा शुरू हो जाती तब ‘मुझसे पेही होगा’ और ‘यह नहीं होगा’-इन दो वाक्यों में ही अपना फैसला सुना देतीं। (Pages 45-46)
शब्दार्थ:
- तकलीफ़ – परेशानी।
- असह्य – असहनीय, सहन न करने योग्य।
- वैभव – ऐश्वर्य।
- कतई – बिलकुल, ज़रा भी।
- बंधनमुक्त – स्वतंत्र।
- मूक – मौन।
- नींव ढीली होना – आधार कमजोर होना।
- हुकूमत-शासन – व्यवस्था।
- आबदार – स्वाभिमानी, धारदार, चमकदार।
- निपुण – कुशल।
- विचिकित्सा – संदेह, शक, दुविधा।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश काका कालेलकर द्वारा रचित ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ से उद्धृत किया गया है। लेखक माँ कस्तूरबा की मृत्यु और उससे ब्रिटिश साम्राज्य पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या:
भारत की ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गाँधी और माँ कस्तूरबा को गिरफ्तार करके आगा खाँ महल में रखा। महल में खाने-पीने की व्यवस्था अच्छी थी। उन्हें खाने-पीने की कोई परेशानी नहीं थी। हवा के आने-जाने की भी अच्छी व्यवस्था थी। दूसरे शब्दों में, महल हवादार और आरामदायक था। फिर गाँधीजी भी माँ कस्तूरबा के साथ ही थे किंतु सभी प्रकार की सुविधाएँ होते हुए भी ‘बा’ के लिए यह विचार ही असहनीय था कि वे इस महल में कैद हैं। यह महल कैदखाना है। उन्होंने इस संबंध में कई बार कहा कि मुझे यहाँ का ऐश्वर्य बिलकुल नहीं चाहिए।
मुझे तो इस महल की अपेक्षा सैवाग्राम की कुटिया ही अधिक पसंद है। लेखक कहता है कि सरकार ने उनके शरीर को आगा खाँ महल में कैद कर रखा था किंतु उनकी आत्मा को यह कैद सहन नहीं हुई। जिस प्रकार पिंजरे में बंद पक्षी अपने प्राणों को त्यागकर स्वतंत्र हो जाता है। उसी प्रकार माँ कस्तूरबा सरकार की कैद में अपना शरीर छोड़ा अर्थात् सरकार की कैद में ही माँ कस्तूरबा का देहांत हो गया और वे सरकार की कैद से आजाद हो गईं। उनके इस मौन किंतु तेजस्वी बलिदान के कारण भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के आधार को कमजोर कर दिया। हिंदुस्तान पर उनकी पकड़ ढीली पड़ गई।
माँ कस्तूरबा ने अपने कार्यों से यह दिखा दिया कि अपनी कृतिनिष्ठा अर्थात् महात्मा गाँधी के प्रति उनकी श्रद्धा और आस्था के द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि शुद्ध और रोचक साहित्य के विशाल भंडार की अपेक्षा सृष्टि की रचना का एक क्षण अधिक मूल्यवान और स्वाभिमान होता है। शब्द-शास्त्र अर्थात् शब्द ज्ञान में जो लोग निपुण होते हैं उनको कर्त्तव्य और अकर्तव्य का निर्णय करने में सदैव दुविधा होती हैं।
लेखक का मत है कि ईश्वर की रचना के प्रति आस्था रखने वाले लोगों को इस प्रकार की दुविधा कभी भी परेशान नहीं कर पाती अर्थात् वे तुरंत निर्णय करने में सक्षम होते हैं। माँ कस्तूरबा के सम्मुख उनका कर्त्तव्य दीये के प्रकाश के सामने बिलकुल स्पष्ट था। जब कभी कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के संबंध में चर्चा आरंभ हो जाती तो :मुझसे यही होगा’ और ‘मुझसे यह नहीं होगा’ कहकर वे अपना स्पष्ट निर्णय दे देती थीं। उन्हें निर्णय लेने में ज़रा भी देर नहीं लगती थी। वे तुरंत निर्णय लेने की क्षमता रखती थीं।
विशेष:
- माँ कस्तूरबा की कैद में मृत्यु ओर ब्रिटिश शासन पर उसके प्रभाव का वर्णन किया गया है।
- माँ कस्तूरबा की निर्णय क्षमता को उजागर किया गया है।
- भाषा तत्सम तथा उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
माँ कस्तूरबा आगा खाँ महल में क्यों नहीं रहना चाहती थीं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा को सरकार ने आगा खाँ महल में कैद में रखा था। यद्यपि उन्हें वहाँ सारी सुविधाएँ उपलब्ध थीं तथापि उन्हें कैद में होने का विचार असह्य था इसलिए वे आगा खाँ महल में नहीं रहना चाहती थीं।
प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा सरकार की कैद से कैसे स्वतंत्र हुईं?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा जेल में ही अपने प्राणों को त्यागकर सरकार की कैद से मुक्त हो गईं।
प्रश्न (iii)
प्रस्तुत गद्यांश में माँ कस्तूरबा की कौन-सी चारित्रिक विशेषता उभरकर सामने आई है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में माँ कस्तूरबा के चरित्र की कर्तव्य-अकर्त्तव्य के संबंध में निर्णय लेने की क्षमता उजागर हुई है। वे तुरंत निर्णय लेने में समर्थ थीं।
गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
आगा खाँ महल में सरकारी कैद में माँ कस्तूरबा की मृत्यु होने का ब्रिटिश साम्राज्य पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
कैद में माँ कस्तूरबा की मृत्यु होने से भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव ढीली हुई और हिंदुस्तान पर उनकी हुकूमत कमजोर हुई।
प्रश्न (ii)
माँ कस्तूरबा को आगा खाँ महल के वैभव की अपेक्षा क्या पसंद था?
उत्तर:
माँ कस्तूरबा को आगा खाँ महल के वैभव की अपेक्षा सेवाग्राम की कुटिया का सीधा-सादा जीवन अधिक पसंद था।