MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश (पत्र, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’)

अंतिम संदेश पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

अंतिम संदेश लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘अंतिम संदेश’ पत्र किसने और किसे लिखा है?
उत्तर:
‘अंतिम संदेश’ पत्र राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपनी पूजनीय माँ को लिखा है।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
यह पत्र कब और कहाँ लिखा गया है?
उत्तर:
यह पत्र 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर जिला जेल से लिखा गया है।

प्रश्न 3.
शहीद राम प्रसाद बिस्मिल से पहले उनके कौन-कौन से साथी शहीद हुए थे?
उत्तर:
शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ से पहले उनके साथी रोशन, लाहड़ी और अशफाक शहीद हुए थे।

प्रश्न 4.
राम प्रसाद बिस्मिल किसके अनुयायी थे?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ महर्षि दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे।

अंतिम संदेश दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने पत्र में अपने शत्रु को क्षमा करने के कौन से दो कारण बताए हैं?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपने पत्र में अपने शत्रु को क्षमा करने के निम्नलिखित दो कारण बताए हैं –

  1. भारतवर्ष का वायुमंडल तथा परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि इसमें अभी दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति बहुत कम उत्पन्न होते हैं।
  2. महर्षि दयानंद का अनुयायी हूँ, जिन्होंने अपने जहर देने वाले को अपने पास से रुपये दिये थे कि वह भाग जाए।

प्रश्न 2.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के अनुसार नवयुवकों को क्या करना चाहिए?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के अनुसार नवयुवकों को निम्नलिखित कार्य करना चाहिए –

  1. गाँव-गाँव में जाकर ग्रामीणों खासतौर से किसानों की दशा को सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
  2. मजदूरों और रोजमर्रा की जिंदगी जीने वालों की जीवन-दशा को सुखद बनाने का प्रयास करना चाहिए।
  3. सामान्य जन को सुशिक्षा देनी चाहिए।
  4. दलितों के उद्धार के लिए काम करना चाहिए।
  5. चारों ओर सुख-शान्ति और भाईचारे का वातावरण बनाना चाहिए।
  6. प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
वे क्रांतिकारियों के विरुद्ध गवाही देने वालों के साथ कैसा व्यवहार करने को कहते हैं और क्यों?
उत्तर:
वे क्रांतिकारियों के विरुद्ध गवाही देने वालों के साथ क्षमा और दया का व्यवहार करने को कहते हैं। यह इसलिए कि वे इसे सर्वथा उचित और अपने प्रति न्यायपूर्ण मानते हैं। वे यह भी मानते हैं कि इससे उनकी आत्मा को सुख और शान्ति प्राप्त होगी।

प्रश्न 4.
अपनी माता जी को एक पत्र लिखिए ‘जिसमें एन.सी.सी’, राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर में भाग लेते हुए ग्रामीण क्षेत्र में किए गए कार्यों का वर्णन हो।
उत्तर:

छावनी-अम्बाला
7 – 8 – 2007

पूजनीय माता जी!

सादर प्रणामः
आपका पत्र मिला। पढ़कर प्रसन्नता हुई। यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि आपका स्वास्थ्य पहले से बेहतर है।

आजकल मैं एन.सी.सी राष्ट्रीय योजना शिविर में भाग लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहा हूँ। इन क्षेत्रों में गरीबी है, इसके साथ ही अशिक्षा है और संसाधनों की भारी कमी है। गरीबी दूर करने के लिए हम लोग ग्राम प्रधान के माध्यम से जिला अधिकारी व राज्य सरकार को ज्ञापन दे चुके हैं। गाँवों में लघु उद्योग स्थापित करने और कम ब्याज पर ऋण दिलाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। अशिक्षा को दूर करने के लिए अलग-अलग स्थानों पर शिक्षा शिविर चला रहे हैं। संसाधनों की कमी को दूर करने के लिए श्रमदान के प्रति लोगों में जागृति ला रहे हैं। जिला प्रशासक, ब्लाक प्रमुख और ग्राम प्रधान को ज्ञापन दिए जा चुके हैं। इस प्रकार हम लोग ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।

आशा है, घर में सभी ठीक तरह से होंगे। अगले माह एक-दो दिन की छुट्टी आऊँगा। मुकेश को आशीर्वाद।

आपका स्नेहाकांक्षी
राकेश

सेवा में
श्रीमती रेखा गुप्ता
डी – 83, कमला नगर
दिल्ली – 110007

MP Board Solutions

प्रश्न 5.
पत्र कितने प्रकार के होते है? प्रत्येक पत्र का एक-एक प्रारूप तैयार कीजिए।
उत्तर:
पत्र निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  1. व्यक्तिगत या सामाजिक पत्र
  2. कार्यालयीन पत्र-प्रशासनिक, व्यावसायिक पत्र

पत्र के संबंध में नीचे तालिका दी जा रही है –
पत्र का आरंभ, पत्र समाप्त करने की औपचारिक तालिका –

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-1

1. व्यक्तिगत/सामाजिक पत्र का प्रारूप
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-2

2. कार्यालयीन पत्र प्रारूप
व्यक्ति द्वारा किसी कार्यालय को लिखा जाने वाला पत्र
आवेदन-पत्र, प्रार्थना-पत्र का प्रारूप
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-3

3. कार्यालयी पत्र का प्रारूप
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-4

4. अर्द्धशासकीय पत्र का प्रारूप
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-5

अंतिम संदेश भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.
1. भारतवर्ष का वायुमंडल तथा परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि इसमें अभी दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति बहुत कम उत्पन्न होते हैं। इन पंक्तियों की तत्कालीन वातावरण – को दृष्टिगत रखते हुए व्याख्या कीजिए।

2. कोई भी घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाए किन्तु करुणा सहित प्रेम भाव का बर्ताव किया जाए। इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
1. उपर्युक्त गद्यांश में ब्रिटिश शासनकालीन भारतीय समाज का उल्लेख किया गया है। इसमें यह बतलाने का प्रयास किया गया है कि तत्कालीन जन-मानस ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों और हरकतों से भयभीत था। इसलिए उस समय अपने देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने वाले लोग इने-गिने थे, जबकि ब्रिटिश सत्ता के तलवे चाटने वालों की कोई कमी नहीं थी। इससे सारा देश पराधीनता की बेड़ियों से दिनों-दिन और ही कसता जा रहा था। फलस्वरूप आजादी एक दिवास्वप्न बनकर रह गई थी।

2. उपर्युक्त पंक्ति के द्वारा राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने यह भाव व्यक्त किया है कि ब्रिटिश शासन के अन्याय और अत्याचारपूर्ण नीतियों व कार्यों से देश का वातावरण बहुत दूषित हो चुका है। इससे परस्पर फूट, घृपा, उपेक्षा और हीनता की दुर्भावना पैदा हो गई है। फलस्वरूप प्रेम, करुणा और ममता जैसे मानवीय गुण गायब हो चुके हैं। अगर यही स्थिति रही तो देश भक्ति और देश-प्रेम का नामोनिशान मिट जायेगा। इससे देश की आजादी के लिए चल रहे प्रयास लटक जायेंगे। फिर देश को आजाद करने-कराने की बात एक सपना बनकर रह जाएगी। इसलिए सभी देशवासियों को खासतौर से कुछ कर गुजरने का दम रखनेवाले नवजवानों को पूरे देश के वर्तमान दूषित वातावरण को करुणा, प्रेम और ममता पूर्ण वातावरण में बदलने के लिए कमर कस लेनी चाहिए।

अंतिम संदेश अपठित गद्यांश

इस गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
चाणक्य ने कहा, ‘दूसरे दीपक को जलाने और पहले दीपक को बुझाने के पीछे कोई सनक या उन्माद की भावना काम नहीं कर रही थी। सच्चाई तो यह है कि जब आप यहाँ आए तो मैं राजकार्य से संबंधित कुछ जरूरी दस्तावेजों की जांच कर रहा था। उस समय जो दीपक जल रहा था उसमें राजकोष के पैसों से तेल डाला गया था। इस समय आप से जो बातचीत करेंगे, वह हमारी निजी होगी। इस कारण मैंने राजकीय दीपक को बुझाकर अपने कमाये हुए धन से खरीदा हुआ दीपक जलाया है।’ सैल्यूकस यह सुनकर दंग रह गए।

प्रश्न.

  1. इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
  2. चाणक्य द्वारा एक दीपक जलाने और दूसरे बुझाने के पीछे क्या भावना थी?
  3. सैल्यूकस चाणक्य का उत्तर सुनकर दंग क्यों रह गए?

उत्तर:

  1. ‘चाणक्य की ईमानदारी’।
  2. चाणक्य द्वारा एक दीपक जलाने और दूसरा बुझाने के पीछे ईमानदारी की भावना थी।
  3. सैल्यूकस चाणक्य का उत्तर सुनकर दंग रह गया। यह इसलिए कि उसे एक महान राजनीतिज्ञ के इस तरह ईमानदार होने की उम्मीद नहीं थी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का संधि-विच्छेद करते हुए संधि का नाम बताइए –
धर्मात्मा, दलितोद्धार, सज्जन, स्वाधीन, वीरोचित, दिग्गज।।
उत्तर;
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-6

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का समास विग्रह कर समास का नाम लिखिए तथा प्रयुक्त समास के अन्य दो-दो उदाहरण लिखिए।

  1. फाँसीघर
  2. पीताम्बर
  3. चौराहा
  4. गजानन
  5. माता-पिता
  6. यथा शक्ति।

उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-7

प्रश्न 4.
‘ईय’ तथा ‘पन’ प्रत्यय लगाकर चार-चार शब्द बनाइए: जैसे-पूजनीय, उतावलापन।
उत्तर:
‘इय’ प्रत्यय लगाकर चार शब्द-माननीय, वन्दनीय, आदरणीय, और अनुकरणीय।
‘पन’ प्रत्यय लगाकर चार शब्द-कालापन, भोलापन, अपनापन और लड़कपन ।

प्रश्न 5.
‘अन’ और ‘अनु’ उपसर्ग लगाकर चार-चार शब्द बनाइए, जैसे-अनचाहा, अनुयायी।
उत्तर:
‘अन’ उपसर्ग लगाकर चार शब्द-अनजान, अनाहार, अनर्थ और अनंत।
‘अनु’ उपसर्ग लगाकर चार शब्द-अनुमान, अनुसार, अनुचर और अनुराग।

अंतिम संदेश योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी से संबंधित किसी ऐसे प्रसंगों का पता लगाइए जिसमें उन्होंने किसी को हानि पहुँचाने वाले व्यक्ति के प्रति बदले की भावना रखने की जगह उसे क्षमा कर दिया हो।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
क्रांतिकारियों अथवा अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के लिखे अन्य पत्र संकलित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की रचनाओं को संगृहीत कीजिए तथा उन्हें विद्यालय के वार्षिक/सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुनाइए।
अथवा
उनके द्वारा रचित रचनाओं की हस्तलिखित पुस्तिका का प्रकाशन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
जॉतिकारियों से संबधित घटनाओं और प्रसंगों से जुड़े नाटकों को खोजकर या स्वयं तैयार कर उसका अभिनय वार्षिक उत्सव अथवा किसी अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम के अवसर पर प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

अंतिम संदेश परीक्षोययोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अंतिम संदेश लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने कौन-सा पत्र और कब लिखा?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने ‘अंतिम संदेश’ नामक पत्र 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर जिला जेल से अपनी फाँसी के एक घंटे पहले लिखा।

प्रश्न 2.
अपनी माँ से भेंट का राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अपनी माँ से भेंट का राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ पर बहुत बझे प्रभाव पड़ा। उनका उत्साह दुगुना हो गया। उनकी बड़ी खुशी के साथ अपना प्राण त्यागने की हिम्मत बढ़ गई।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपने देशवासियों से क्या विनती की?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपने देशवासियों से यह विनती की कि कोई भी घृणा और उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाए, किन्तु करुणा सहित प्रेमभाव का व्यवहार किया जाए।

अंतिम संदेश दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने क्या करना अनुचित और अपने प्रति अन्याय माना और क्यों?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपनी मृत्यु से अचानक उत्तेजित होकर अपने शत्रुओं को क्षति पहुँचाने के काम को अनुचित माना। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अमुक ने मुखबरी कर दी या अमुक पुलिस से मिल गया या गवाही दी, इसलिए उसकी हत्या कर दी जाए अथवा उसको कोई आघात पहुँचाया जाए, बिलकुल अनुचित है। उनके प्रति यह अन्याय होगा। ऐसा इसलिए कि जिस किसी ने भी उनके प्रति शत्रुता पूर्ण व्यवहार किया है, उसे उन्होंने क्षमा कर दिया है।

प्रश्न 2.
राम प्रसाद ‘विस्मिल’ किस प्रकार के नवजवानों को क्या-क्या करने की सीख दी और क्यों?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने जोशीले, उमंगित और उत्तेजित नवजवानों को यथाशीघ्र गाँवों में जाकर किसानों की दशा सुधारने, मजदूरों के जीवन-स्तर ऊँचा उठाने, सामान्य जन को सुशिक्षा देने और दलितोद्धार के लिए प्रयत्नशील होने की सीख दी। यह इसलिए कि उस प्रकार के काम पूरे होने पर उन्हें मृत्यु दण्ड देने वाले लज्जित हो जाएंगे। इससे उनकी आत्मा को शान्ति मिलेगी।

प्रश्न 3.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल -लिखित ‘अंतिम संदेश’ नामक पत्र की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’-लिखित ‘अंतिम संदेश’ नामक पत्र की विशेषताएं इस प्रकार हैं –

‘अंतिम संदेश’ शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ द्वारा अपनी माँ को लिखा एक ऐतहासिक पत्र हैं जो उन्होंने अपनी फाँसी के मात्र एक घण्टे पहले लिखा था। पत्र में उन्होंने अपनी माँ से हुई भेंट का उल्लेख करते हुए अपने प्राणोत्सर्ग को भारत माता के चरणों में एक तुच्छ भेंट और हर्ष का कारण बताया। यह पत्र भारत के नवयुवकों के लिए प्रेरणाप्रद अंतिम संदेश है। इस पत्र से पता चलता है कि वे अपने शत्रुओं को हृदय से क्षमा कर चुके थे। वह अपेक्षा करते हैं कि नवयुवक अपने जोश को सकारात्मक दिशा देने का काम करें। उनके अनुसार देश-द्रोहियों से भी करुणा और प्रेम का व्यवहार किया जाना चाहिए। उनके इन मर्मस्पर्शी भावों से पता चलता है कि वे परिस्थितियों से प्रेरित होकर क्रांतिकारी बने जबकि वे स्वभाव से संत थे।

अंतिम संदेश लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
राम प्रसाद बिस्मिल का संक्षित जीवन-परिचय देते हुए उनके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन परिचय-राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी जिले में 4 जून, 1887 को हुआ था। उनका बचपन मध्य-प्रदेश के जिला मुरैना के अपने पैतृक स्थान बरवई में बीता था। वे बचपन से ही स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों से काफी हद तक प्रभावित थे। फलस्वरूप वे उनके अनुयायी बन गए। देश की आजादी के लिए वे सदैव प्रयत्नशील रहे। इसके लिए उन्होंने क्रांतिकारी कदम उठाये। अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर उन्होंने ‘हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ’ की स्थापना की। इसका एकमात्र उद्देश्य यही था कि यथाशीघ्र भारत माँ को गुलामी के बंधन से मुक्त कराया जाए।

इस दिशा में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की जन-विरोधी नीतियों का खुल्लमखुल्ला विरोध किया। उनके इस कार्य में सहयोग देने वालों में अनेक क्रांतिकारी थे। उनमें सर्वप्रमुख शहीद अशफाक उल्ला खाँ, ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्र सिंह लाहड़ी, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ गुप्त, सुखदेव, राजगुरु आदि थे। भारत माँ को परतंत्रता के बंधन से मुक्त कराने के साथ-साथ उनका लक्ष्य शोषण और अन्याय से मुक्त खुशहाल समाज को बनाने का भी था। उनको क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। फिर भी वे निडर बने रहे और अंग्रेजों का विरोध करते रहे। फाँसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी उनकी आवाज को अंग्रेज नहीं दबा सके। वे अदालत में और फांसी के फंदे पर झूलते समय भी ‘प्रजातंत्र अमर रहे’ का जोशीला नारा लगाते रहे। 19 दिसम्बर, 1927 को उन्हें गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गयी।

महत्त्व:
रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के देश-भक्तिपूर्ण गीतों ने भारतीय युवकों में आजादी की व्याकुलता और तड़प के साथ अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने की बड़ी भावना उत्पन्न की। उनका महान पवित्र बलिदान युग-युग तक देशभक्ति के भावों को जगाता रहेगा। उन्होंने ‘सरफरोशी की तमना अब हमारे दिल में है’ जैसे देशभक्ति और बलिदानी गीतों को तो लिखा ही है, इसके साथ-ही-साथ उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण संस्मरण और पत्र भी लिखे हैं। उनके पत्रों में राष्ट्रीयता, उदारता और ग्रामीण जन-जीवन के प्रति चिंता के भाव भरे हैं।

अंतिम संदेश पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ लिखित पत्र ‘अंतिम संदेश’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ लिखित पत्र ‘अंतिम संदेश’ न केवल एक ऐतिहासिक पत्र है, अपितु, अविस्मरणीय भी है। वह पत्र उन्होंने अपनी माँ को 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर जिला जेल से अपनी फाँसी के एक घंटे पहले लिखा था। ‘बिस्मिल’ ने अपने उस पत्र में अपनी माँ को संबोधित करते हुए लिखा था –

पूजनीय माँ! आप से मैंने कल भेंट की तो मेरा उत्साह बहुत बढ़ गया। उससे मैं खुशी से फाँसी का फंदा चुमूंगा। मैं समझता हूं कि आप मेरे देश-सेवा के लिए प्राण निछावर से खुश रहेंगी। मेरे कई साथियों को फाँसी दी जा चुकी है। मुझे भी एक घंटे में दे दी जायेगी। मैं अपने देश के नवजवानों को इस पत्र के द्वारा यह अपना अंतिम संदेश देना चाहता हूँ कि वे मेरी फाँसी के कारण बने हुए किसी को कोई क्षति न पहुँचाएं। अगर वे ऐसा करते हैं, तो यह मेरे प्रति अन्याय होगा। मैंने अपने शत्रुओं को दो कारणों से क्षमा कर दिया है –

1. भारतवर्ष का वायुमंडल तथा परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि इसमें अभी दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति बहुत कम उत्पन्न होते हैं:

2. मैं महर्षि दयानंद का अनुयायी हूँ, जिन्होंने अपने जहर देने वाले को अपने पास से रुपये देकर भगाकर बचा दिया था। मेरी मृत्यु से उत्तेजित नवजवान यथाशीघ्र गाँव-सुधार में लग जाएँ। यथाशक्ति अशिक्षा को दूर करने के लिए कमर कस लें। दलितोद्धार में लग जाएं। इससे मुझे शांति मिलेगी। मेरी यही प्रार्थना है कि सबके प्रति करुणा और प्रेम का व्यवहार किया जाए।

अंतिम संदेश संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
हमारी मृत्यु से किसी को क्षति और उत्तेजना हुई हो, तो उसको सहसा उतावलेपन से कोई ऐसा कार्य न कर डालना चाहिए कि जिससे मेरी आत्मा को कष्ट पहुँचे। यह समझकर कि अमुक ने मुखबरी कर दी अथवा अमुक पुलिस से मिल गया या गवाही दी, इसलिए किसी की हत्या कर दी जाए या किसी को कोई आघात पहँचाया जाए, मेरे विचार में ऐसा करना सर्वथा अनुचित तथा मेरे प्रति अन्याय होगा। क्योंकि जिस किसी ने भी मेरे प्रति शत्रुता का व्यवहार किया है और यदि क्षमा कोई वस्तु है तो मैंने उन सबको अपनी ओर से क्षमा किया।

शब्दार्थ:

  • क्षति – हानि, नुकसान।
  • उत्तेजना – अधिक क्रोध, उतावलापन।
  • सहसा – अचानक।
  • अमुक – किसी।
  • मुखबरी – खबर करना।
  • आघात – चोट।
  • सर्वथा – हर प्रकार से।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित है तथा शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’-लिखित पत्र ‘अंतिम संदेश’ शीर्षक से उद्धृत है। ‘बिस्मिल’ ने अपनी माँ के नाम लिखे इस पत्र में अपने देश के नवजवानों को समझाते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
मुझे देश-भक्ति के लिए दिए गये कार्यों के विरोध में फांसी की सजा हुई है। लेकिन इससे मैं तनिक भी उत्तेजित और ,अशान्त नहीं हूँ। यह भी कि मैं इसके लिए किसी को दोषी भी नहीं मान रहा हूँ। इसलिए आप लोग भी मेरी मृत्यु के बाद किसी के प्रति कोई आक्रोश न करें। किसी को किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचाएं। अपने उतावलेपन का शिकार किसी को न बनाएं। अगर आप लोग ऐसा करेंगे तो इससे मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी। उसे तो भारी दुख ही मिलेगा।

इस प्रकार मेरी मृत्यु के बाद अपने उतावलेपन में आकर किसी को यह समझकर कि उसने मेरे विपरीत मुखबरी की है या पुलिस की मेरे विरुद्ध सहायता की है या गवाही दी है, इसलिए उस पर किसी प्रकार का वार किया जाए या उसे मौत के घाट उतार दिया जाए, इस प्रकार के विचार और इस प्रकार के उठाए गए कदम किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं हैं। इससे मेरे प्रति सहानुभूति नहीं होगी अपितु मेरे प्रति तो अन्याय ही होगा। मेरे प्रति सहानुभूति और अपनापन रखने वालों को यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि जिसने मेरे प्रति शत्रुता किया है, उसे मैंने बड़े ही सहज भाव से क्षमा कर दिया है।

विशेष:

  1. भाषा अत्यधिक सरल और सपाट है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. देश-भक्ति की भावना है।
  4. भक्ति -रस का प्रवाह है।
  5. यह अंश प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपर्युक्त कथन किसका और किसके प्रति.है?
  2. ‘बिस्मिल’ को अपनी आत्मा को किससे कष्ट होने की आशंका है?

उत्तर:

  1. उपर्युक्त कथन राम प्रसाद बिस्मिल’ का अपने देश के नवजवानों के प्रति है।
  2. ‘बिस्मिल’ को अपनी आत्मा को अपने शत्रुओं द्वारा किसी प्रकार की क्षति पहुँचाने से कष्ट होने की आशंका है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ‘बिस्मिल’ ने अपने देश के नवजवानों को क्यों उपदेश दिया?
  2. अपने शत्रुओं को क्षमा कर देने से ‘बिस्मिल’ के किस स्वभाव का पता चलता है?

उत्तर:
1. ‘बिस्मिल’ ने अपने देश के नवजवानों को उपदेश दिया। यह इसलिए कि वे उनकी मृत्यु से उत्तेजित होकर उनके शत्रुओं को किसी-न-किसी प्रकार से कोई आघात न पहुँचाएं या उनमें से किसी की हत्या न कर दें। अगर वे ऐसा करेंगे तो वह उनके प्रति अन्याय होगा। यही नहीं उनकी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
यदि नवयुवकों के हृदय में कोई जोश, उमंग तथा उत्तेजना उत्पन्न हुई है तो उन्हें उचित है कि शीघ्र ग्रामों में जाकर कृषकों की दशा सुधारें, श्रमजीवियों की स्थिति को उन्नत बनावें, जहाँ तक हो सके साधारण जन-समूह को सुशिक्षा दें, और यथाशक्ति दलितोद्धार के लिए प्रयत्न करें। जब इतने काम होंगे तो जिन्हें दण्ड देने की इच्छा है वे लज्जित होंगे और मेरी आत्मा को शांति प्राप्त होगी। मेरी यही विनती है कि कोई भी घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाए। किन्तु करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए।

शब्दार्थ:

  • जोश – उत्साह।
  • उत्तेजना – उतावलापन।
  • शीघ्र – जल्दी।
  • ग्राम – गाँव।
  • कृषकों – किसानों।
  • श्रमजीवियों – मजदूरों।
  • उन्नत – विकसित।
  • दलितोद्धार – पिछड़ों की भलाई।
  • विनती – प्रार्थना।
  • करुणा – दया।
  • बर्ताव – व्यवहार।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें ‘बिस्मिल’ ने अपने देश के नवजवानों को उत्साहित करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
यदि उनकी मृत्यु से उनके देश के नवजवानों में किसी प्रकार का जोश, कुछ कर गुजरने का उत्साह या कोई उत्तेजना होती है, तो ऐसे नवजवानों को मेरी सीख है कि यथाशीघ्र देश के हरेक गाँव में जाएं। वहाँ जाकर ग्रामीणों को खासतौर से किसानों की दीन-दशा को देखें। उन्हें अच्छी और सुखद दशा में लाने के लिए आवश्यक कदम उठायें। मजदूरों और रोजमर्रा की जिंदगी जीने वालों की दुखद दशा से उन्हें सुखद दशा में लाने के लिए पूरी-पूरी कोशिश करें। इसी के साथ वे अज्ञानता और अशिक्षा को दूर करने में लग जाएं। इस तरह दे दलितों के जीवन-स्तर को ऊपर उठाने के लिए बार-बार प्रयास करते रहें।

जब इस प्रकार के आवश्यक और समुचित कदम उठाये जायेंगे तो जो उन्हें फांसी की सजा देना चाहते हैं, वे ऐसे उठाए गए कदमों को देखकर पानी-पानी हो जायेंगे। इससे मेरी आत्मा को प्रसन्नता और शान्ति प्राप्त होगी। बिस्मिल का अपने देश के नवजवानों से पुनः कहना है कि हे देश के नवजवानों! उनकी उनसे यही एकमात्र प्रार्थना है कि उनकी मृत्यु से वे किसी प्रकार से उत्तेजित न होकर शान्तिपूर्वक देश और समाज के लिए कदम-से-कदम बढ़ाकर चलें। इसके लिए यह भी बेहद जरूरी है कि वे देश-समाज में मधुर और सरस वातावरण पैदा करें। यह ध्यान रखें कि उस वातावरण में कोई किसी से न तो नफरत करे और न किसी की उपेक्षा ही करे। सभी परस्पर करुणा और प्रेम का ही व्यवहार करें।

विशेष:

  1. सम्पूर्ण कथन भाववर्द्धक है।
  2. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  3. देश-भक्ति का प्रवाह है।
  4. वीर रस का संचार है।
  5. यह अंश हृदयस्पर्शी और प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. नवयुवकों को ‘बिस्मिल’ राष्ट्रीय उत्थान में क्यों लगाना चाहते हैं?
  2. ‘बिस्मिल’ किस-किस के प्रति चिन्ता और सहानुभूति हैं?

उत्तर:

1. नवयुवकों को ‘बिस्मिल’ राष्ट्रीय उत्थान में लगाना चाहते हैं। इसके तीन कारण हैं –

  1. उत्तेजित नवयुवक कोई छोटी-बड़ी हिंसा न कर पाएँ।
  2. देश और समाज की तत्कालीन गिरी हुई दशा में सुधार आ जाए।
  3. ‘बिस्मिल’ को दण्ड देने की इच्छा रखने वाले लज्जित हो जाएं। इससे उनकी आत्मा को शान्ति मिल सकेगी।

2. ‘बिस्मिल’ को ग्रामीणों, किसानों, मजदूरों, सामान्यजन और दलितों के प्रति चिंता और सहानुभूति थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपर्युक्त गद्यांश से राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के किस स्वभाव का पता चलता है?
  2. राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ किस प्रकार का वातावरण देखना चाहते थे?

उत्तर:

  1. उपर्युक्त गद्यांश से राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के संत स्वभाव का पता चलता है।
  2. राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ परस्पर मेल-मिलाप, भाईचारा, करुणा और प्रेमभाव से परिपूर्ण वातावरण देखना चाहते थे।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना (कविता, माखनलाल चतुर्वेदी)

उलाहना पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

उलाहना लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मधुदान का मेहमान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मधुदान का मेहमान से तात्पर्य है-देशप्रेमी का महत्त्व रखना।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
कवि के अनुसार सलामत कौन रह जाता है?
उत्तर:
कवि के अनुसार सलामत आम आदमी रह जाता है।

प्रश्न 3.
रमलू भगत किसका प्रतीक है?
उत्तर:
रमलू भगत सर्वहारा वर्ग का प्रतीक है।

उलाहना दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
छोटे अपने किन गुणों के कारण सलामत रह जाते हैं?
उत्तर:
जीवन में हर प्रकार के अभावों और कठिनाइयों को झेलते रहना, दुखों को सहन करते रहना, हमेशा मर-मरकर घोर और कठोर श्रम साधना करते रहना और परस्पर घुल-मिलकर रहना। इन गुणों के कारण छोटे सलामत रह जाते हैं।

प्रश्न 2.
कवि अमीरों से उनके जीवन में किस तरह के परिर्वन की आकांक्षा करता है?
उत्तर:
कवि अमीरों से उनके जीवन में अनेक तरह के परिवर्तन की आकांक्षा करता है। हमेशा छोटों से घुल-मिलकर रहना, उनके दुःखों को समय निकालकर समझना और उन्हें दूर करने की कोशिश करना, अमीरी की ऊँचाई से नीचे उतर गरीबी की जमीन पर आना और कुटिया निवासी आम आदमी के आदर-भाव को महत्त्व देना। इस प्रकार के अपने जीवन में परिवर्तन लाने की कवि अमीरों से चाहता है।

प्रश्न 3.
कविता में ‘कुटिया निवासी’ वनने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कविता में ‘कुटिया निवासी’ बनाने का तात्पर्य है-अमीर अपनी निर्माणपरक शक्तियों का उपयोग कुटिया में रहने वालों के लिए करें और अपनी एकांतिक अमीरों की ऊँचाई से नीचे उतरकर समाज के विकास में सहयोग करें।

उलाहना भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.

  1. “सदा सहना ……… छोटे सलामत हैं”
  2. “अमीरी से जरा नीचे उतर आओ।”
  3. “उठो, कारा ……… के सहलाओ।”

उत्तर:

1 ‘सदा सहना ………छोटे सलामत हैं’:
उपर्युक्त पद्यांश में आम आदमी खास तौर मजदूर वर्ग के जीवन-स्वरूप को रेखांकित किया गया है। इसके माध्यम से यह बतलाने का प्रयास किया गया है कि मजदूर अनेक प्रकार के अभावों और कठिनाइयों को जीवन-भर झेलता रहता है। फिर भी वह उससे हिम्मत नहीं हारता है। घोर परिश्रम करके वह मर-मरकर अपनी जीविका चलाता है। इस प्रकार वह जीवन जीते हुए पर हितार्थ लगा रहता है। वह समाज को हमेशा सही दिशा देते हुए आगे बढ़ाता रहता है। इसके विपरीत अमीर वर्ग ऐसा कुछ नहीं कर पाता है। इसलिए मजदूरों के सामने उसका कोई सामाजिक मूल्य नहीं रह जाता है।

2. ‘अमीरी से जरा नीचे उतर आओ’:
काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह भाव व्यक्त करना चाहता है कि जन-सामान्य खास तौर से मजदूर को हर प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, फिर भी वह अपने उद्देश्य से नहीं भटकता है। वह समाज-सेवा और समाज-कल्याण के लिए निरंतर लगा रहता है। उसके लिए वह कठोर-से-कठोर श्रम करता है। अनेक प्रकार के अभावों को झेलता है। समय आने पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है।

उसके इस देन से अमीर वर्ग प्रभावित होता है। इससे वह खूब फूलता-फलता रहता है। उसे इस प्रकार देखकर मजदूर की उससे अपेक्षा होती है कि वह कभी समय निकालकर अपनी अमीरी की ऊँचाई से उतर वह गरीबी की जमीन पर आता तो उसकी निराशा, हताशा, आशा और उत्साह की किरणों से जगमगा उठती है।

3. ‘उठो कारा……..के सहलाओ’:
उपर्युक्त काव्यांश का भाव यह है कि मजदूर वर्ग अपने अभावों की जिन्दगी से ऊब चुका है। उसे अपनी गरीबी को दूर करने के लिए और कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। उसे अगर कोई रास्ता दिखाई दे रहा है तो वह है अमीर वर्ग। उससे उसे वही उम्मीदें हैं। ऐसा इसलिए कि उसने अनेक बड़े-बड़े काम किए हैं। उससे देश-समाज के रूप-रंग बदले हैं। उसे उससे बड़े यश प्राप्त हुए हैं। इसलिए वह अब मजदूर वर्ग के पास आए।

उसके दुखों-अभावों को समझे, उसकी गरीबी की कारा बना दे, अर्थात गरीबी को नियंत्रित करके उसे दूर कर दे। इस प्रकार वह मजदूर वर्ग के बलबूते पर रहते हुए उन्हें न भूलें। उन्हें अपना समझकर उनके दुःख-सुख में हाथ बँटाए। मजदूर वर्ग की उससे अपेक्षा है कि वह एक मसीहा के रूप में आकर सदियों से चले आ रहे उनके दुखों और अभावों के गहरे घावों पर ममता का मरहम लगाकर उन्हें सहला दे।

उलाहना भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
इबादत, मसीहा, अमीरी, मेहमान, जमाना, सलामत विदेशी शब्द हैं, इनके मानक अर्थ लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना img-1

प्रश्न 2.
बाढ़ोमयी, बड़ापन, न्यौतता, बलिदान, इन शब्दों में लगाये गये प्रत्यय बताएं?
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
श्रम, मुत्यु, प्यार, स्मृति।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना img-3

प्रश्न 4.
निम्नांकित अपठित पद्यांश को ध्यान से पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

हर कदम-कदम पे सबको साथ ले,
एकता अखंडता की बात ले,
शुभ-पवित्र लक्ष्य के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥1॥

मातृभूमि पर भी हमको गर्व हो,
मातृभूमि रक्षा एक पर्व हो,
ऐसे राष्ट्र पर्व के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥2॥

श्रम सभी का एक मूलमंत्र हो
श्रम के लिए हर मनुज स्वतंत्र हो
लोक-लाज शर्म छोड़कर जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥3॥

हो अनाथ दुखिया अगर राह में
हो समानुभूति हर निगाह में,
करुणा-और प्रेम के लिए जिओ,
देश और धर्म के लिए जिओ ॥4॥

भाईचारा सबके दिल में हो सदा
कटुता घृणा बैर भाव हो विदा,
जीना, श्रेष्ठ कर्म के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ॥5॥ -मुनि विमर्शसागर

प्रश्न – (क) इस पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
प्रश्न – (ख) इस पद्यांश का भाव संक्षेप में लिखिए।
प्रश्न – (ग) इन प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

  1. इन पंक्तियों के रचयिता कौन हैं?
  2. हमें किस पर गर्व होना चाहिए?
  3. हमारा मूलमंत्र क्या होना चाहिए?

उत्तर:
(क) देश और धर्म

(ख) उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने परस्पर एकता, अखंडता और भाईचारा को बनाए रखने का भाव भरा है। अपनी मातृभूमि के प्रति गर्व रखते हुए उसकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहने का मूल मंत्र दिया है। सबमें करुणा और प्रेम जगाने के लिए सहानुभूति की आँखें सोखने की आवश्यकता पर भी कवि ने बल दिया है।

(ग)

  1. रचयिता-मुनि विमर्श सागर।
  2. हमें अपनी मात्रभूमि पर गर्व होना चाहिए।
  3. हमारा मूलमंत्र श्रम होना चाहिए।

उलाहना योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आप अपने गाँव या शहर के नजदीक किसी बाँध का भ्रमण कीजिए तथा बाँध से होने वाले लाभ-हानि पर चार्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
घरों में पकाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजनों की सूची बनाइए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
कवि ने कविता में ‘बड़े रास्ते, बड़े पुल, बाँध क्या कहने। बड़े ही कारखाने हैं, इमारत हैं।’ के माध्यम से विकास की बात कही है। आप अपने आस-पास की किसी खदान/कारखाना/लघुउद्योग आदि में जाकर उसके बारे में जानकरी प्राप्त कर उसे सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

उलाहना परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

उलाहना लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बलिदान के मंदिर गिराने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बलिदान के मंदिर गिराने से तात्पर्य है-बलिदान करने वालों की घोर उपेक्षा करना।

प्रश्न 2.
जमाने में कौन तालियों से सब कुछ पा लेता है?
उत्तर:
जमाने में अमीर वर्ग तालियों से सब कुछ पर लेता है।

प्रश्न 3.
‘कुटिया निवासी’ किसका प्रतीक है?
उत्तर:
‘कुटिया निवासी’ गरीबी का प्रतीक है।

उलाहना दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बड़ों में कौन-कौन से दोष होते हैं?
उत्तर:
बड़ों में निम्नलिखित दोष होते हैं –

वे याद की टीसें भुला देते हैं। वे बलिदान के मंदिर गिराते हैं। वे शहीदों के बलिदान को भुला देते हैं। वे अपने आप ही बिना किसी के कहे-सुने बहके-बहके काम करने लगते हैं।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
बड़ों से गरीब क्या अपेक्षा करता है और क्यों?
उत्तर:
बड़ों से गरीब अपने साथ भाईचारा और अपने दुख-सुख का साथी बने रहने की अपेक्षा करता है। वह उससे यह भी अपेक्षा करता है कि वह कभी कुटिया निवासी बनकर उनके दुखों को समझे। इस तरह वह उनकी गरीबी को दूर करने के लिए अपनी शक्तियों और क्षमताओं को लगा दे। यह इसलिए कि वह इसके लिए हर प्रकार से सक्षम और समर्थ है।

प्रश्न 3.
‘उलाहना’ कविता के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने इस कविता में जन सामान्य से अलग-थलग पड़ जाने वाले अमीर वर्ग को उलाहना देते हुए स्पष्ट किया है कि क्रांतिकारियों के बलिदान को भूलकर इस वर्ग ने अपने हित में जय-जयकार कराके अपने समाज को कोई सही दिशा नहीं दी है। जन सामान्य के दुःख-दर्द का अनुभव करना भी पूजाभाव से परिपूर्ण होना है। छोटों के साथ घुल-मिलकर जीने में ही जीवन की सार्थकता है। कवि को अमीरों से अपेक्षा है कि वे अपनी निर्माणपरक शक्तियों का उपयोग कुटिया में रहने वालों के लिए करें और अपनी एकांतिक अमीरी की ऊँचाई से नीचे उतरकर समाज के विकास में सहयोग करें। प्रस्तुत कविता में कवि ने बड़े-बड़े कारखानों, पुलों और बाँधों के निर्माणों के साथ-साथ मानवीय संवेदना के विस्तार को भी जरूरी माना है।

उलाहना कवि-परिचय

प्रश्न 1.
माखललाल चतुर्वेदी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, सन् 1889 में होशंगाबाद जिले के बाबई नामक स्थान में हुआ था। अपनी शिक्षा समाप्त करके उन्होंने अध्यापन शुरू किया। अध्यापन के दौरान उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती और बंगला का गहरा ज्ञान प्राप्त किया। उनकी रचनाएँ गांधीवादी दर्शन, चिन्तन और विचारधारा से प्रभावित हैं। उनका निधन 30 जनवरी, 1968 को हुआ।

रचनाएँ:
माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रमुख रचनाएँ ‘हिमकिरीटिनी’, ‘हिमतरंगिनी’. ‘माता’, ‘युगचरण’, ‘समर्पण’, ‘वेणु’, ‘लो गूंजे धरा’ (काव्य) ‘साहित्य देवता’ (गद्यकाव्य) वनवासी और कला का अनुवाद (कहानी), ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ (नाटक) हैं।

भाषा-शैली:
चतुर्वेदी जी की भाषा-शैली में प्रवाह है। इनकी भाषा में बोलचाल के शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फारसी के शब्द भी हैं जो भाषा को गति प्रदान करते हैं।

महत्त्व:
माखनलाल चतुर्वेदी ‘हिन्दी साहित्य जगत’ में ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रसिद्धि का आधार कविता ही है, किन्तु वे एक सक्रिय पत्रकार, समर्थ निबंधकार और सिद्धहस्त संपादक भी थे। भारत सरकार ने आपको पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया। चतुर्वेदी जी के काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयतावादी है, जिसमें समर्पण, त्याग, बलिदान, सेवा और कर्त्तव्य की भावना सन्निहित है।।

उलाहना पाठ का सारांश

MP Board Solutions

प्रश्न 1.
माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित कविता ‘उलाहना’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित कविता ‘उलाहना’ एक शिक्षाप्रद कविता है। कवि ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से जन-सामान्य से हटकर सुख-सुविधा की जिन्दगी जीनेवाले सुविधाभोगियों को उलाहना देने का प्रयत्न किया है। कवि को साधन सम्पन्न और सुविधाभोगियों से शिकायत है कि वे ही जब देश-भक्तों के बलिदानों को भुला दिए हैं, तो फिर साधारण लोगों को उनसे क्या उम्मीदें हो सकती हैं? कवि का पुनः साधनसम्पन्न और सुविधाभोगी वर्ग से शिकायत है कि वह नहीं बदल पाया है।

उसने देश के लिए कुर्बान होनेवाले को भुला दिया है। वह लोगों से अपनी प्रशंसा की तालियाँ बजवाकर भी देश-समाज के दिल को नहीं जीत पाया। बड़ी-बड़ी सड़कें, बड़े-बड़े पुल, बड़े-बड़े बाँध, बड़े-बड़े कारखाने, और बड़ी-बड़ी इमारत तो उसने बनवाई, लेकिन इन्हें बनाने वाले मजदूरों के अभाव के आँसुओं को वह नहीं पोंछ पाया। छोटों का तो जीवन हमेशा सहन करना, श्रम-साधना करना होता है। इसलिए तुम भी उनसे घुल-मिलकर रहना सीखो। यह भी समझो कि बड़े-बड़े ऐसे मिट गए कि उनका कोई नाम-निशान भी शेष नहीं है, लेकिन छोटे आज भी सलामत हैं।

वे तो तुम्हारी चरण-रेखा देखते हैं, लेकिन तुम्हें तो उनके दुःख-दर्द को समझने का समय नहीं होता है। वे तो तुम्हारे मान-सम्मान के लिए मर-मिटते हैं। इसे समझकर तुम अपनी अमीरी से हटकर गरीबी की ओर आ जाओ। तुम्हारी आँचाज संसार का जादू है, तुम्हारी बाँहों में संसार की ताकत है। कभी कुटिया निवासी बनकर तो देखो। तुमने असंभव जैसे कई काम किए हैं। इसलिए अब तुम अपनों के पास आओ। युग का मसीहा बनकर सदियों के लगे गहरे घाव पर ममता के मलहम लगाकर सहला दो।

उलाहना संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
तुम्हीं जब याद की टीसें भुलाते हो,
भला फिर प्यार का अभिमान क्यों जीवे?
तुम्हीं जब बलिदान के मन्दिर गिराते हो,
भला मधुदान का मेहमान क्यों ‘जीवे?
भुला दीं सूलियाँ? जैसे सभी कुछ,
जमाने में तालियों से पा लिया तुमने,
न तुम बहले, न युग बहला, भले साथी,
बताओ तो किसे बहला लिया तुमने!

शब्दार्थ:

  • टीसें – दर्द की अनुभूति।
  • जीवे – जीवित रहे।
  • मधुदान – प्रेम का दान।
  • सूलियाँ – बलिदान।
  • बहला – फुसला।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ से संकलित तथा माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित ‘उलाहना’ शीर्षक कविता से उद्धत है। इसमें कवि ने अमीर वर्ग के प्रति जन-सामान्य के उलाहना को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अमीर वर्ग को उलाहना देते हुए जन-सामान्य कह रहा है –

व्याख्या:
देश के नेता और कर्णधार कहे जाने वाले अमीर वर्ग! जब तुम्हीं देश के आन-मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों के बलिदान करने वालों के दर्द की अनुभूति को अनसुना कर रहे हो, तो फिर कैसे प्रेम का अभिमान जीवित रह सकता है? तुम्हीं जब त्याग और बलिदान को महत्त्व नहीं दे रहे हो, तो प्रेम का दान करने वाले का हौसला बढ़ सकता है, अर्थात् नहीं बढ़ सकता है। यह भी बड़े दुःख और अफ़सोस की बात है कि तुमने तो देश के आन-मान पर मर मिटने वाले अमर देशभक्तों की पवित्र यादों को भुला दिया है। अपने चापलूसों और पिछलग्गुओं द्वारा वाहवाही की तालियों को बजवाकर मानो तुमने सब कुछ पा लिया है। इस प्रकार की सोच रखने वाले क्या तुम यह बतलाओगे कि अगर तुम बहके नहीं हो और न जमाना ही बहका है, तो फिर तुम्हें किसने बहका दिया है?

विशेष:

  1. अमीर वर्ग से खासतौर से देश के गद्दारों का उल्लेख है।
  2. व्यंग्यात्मक शैली है।
  3. तुकान्त शब्दावली है।
  4. यह अंश मार्मिक है।
  5. ‘बलिदान का मंदिर’ में रूपक अलंकार है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्यबोध संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. ‘तुम्हीं जब बलिदान के मंदिर गिराते हो’ काव्य-पंक्ति का मुख्य भाव लिखिए।

उत्तर:

1. प्रस्तुत पद्यांश में अमीर वर्ग के प्रति जन-सामान्य की शिकायत है। अमीर वर्ग द्वारा अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले देशभक्तों को भुला देना जन-सामान्य को मान्य नहीं है। इसे कवि ने मुहावरेदार भाषा के द्वारा प्रस्तुत किया है। शब्द-चयन सामान्य स्तर के हैं लेकिन बड़े सजीव हैं। शैली-विधान भावपूर्ण है। रूपक अलंकार से कथन को आकर्षक बनाने का प्रयास किया है।

2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव रोचक किन्तु मर्मस्पर्शी है। देश के बलिदानियों को सहज ढंग से भुलाकर बहके-बहके भाषणों की बौछार लगाकर वाहवाही लूटना आज के राजनेताओं का राजनीतिक कुचक्र.है। इसके नीचे आम जनता पिस जाती है। लेकिन राजनेता उसी ढर्रे पर अपनी राजनीति का पहिया चलाते रहते हैं। उसे आम जनता तनिक भी नहीं समझ पाती है। वह भौचक्की बनी रहकर कुछ भी नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार के तथ्य इस पद्यांश में भावपूर्ण शब्दों के द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं।

3. ‘तुम्हीं जब बलिदान के मंदिर गिराते हो।’ काव्य-पंक्ति का भाव है-राजनेताओं के द्वारा अंगरशहीदों की उपेक्षा कर वर्तमान देश-भक्तों को हतोत्साहित करना। इससे राजनेताओं के देश-द्रोही भावों का संकेत हो रहा है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. ‘भुला दी सूलियाँ’ का आशय क्या है?

उत्तर:

  1. कवि-माखन लाल चतुर्वेदी। कविता-‘उलाहना’।
  2. ‘भुला दी सूलियाँ’ का आशय है-देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले देश-भक्तों और अमीर शहीदों की राजनेताओं द्वारा उपेक्षा करना।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!
बड़े ही कारखाने हैं, इमारत हैं,
जरा पोर्चे इन्हें आँस उभर आये,
बड़ापन यह न छोटों की इबादत है।

सदा सहना, सदा श्रम साधना मर-मर,
वही हैं जो लिये छोटों का मृत-वृत हैं,
तनिक छोटों से घुल-मिलकर रहो जीवन,
बड़े सब मिट गये, छोटे सलामत हैं!

शब्दार्थ:

  • रस्ते – रास्ता, सड़क।
  • इमारत – भवन, मकान।
  • इबादत – पूजा।
  • श्रम – सौधनामेहनत।
  • सलामत – सुरक्षित।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें अमीरों और गरीबों के जीवन की भिन्नता पर प्रकाश डाला गया है। अमीर वर्ग के प्रति सामान्य-जन शिकायत करते हुए कह रहा है –

व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! यह बड़ी ही अच्छी बात है कि तुम्हारे प्रयासों से देश को बड़ी सुविधाएँ मिली हैं। पगडंडियाँ चौड़ी-चौड़ी और लम्बी-लम्बी सड़कों के रूप ले लिये हैं। नदियों की छाती पर बड़े-बड़े पुल और बाँध खड़े हो गए हैं। जगह-जगह बड़े-बड़े कारखाने बन गए हैं। ऊँची-ऊँची इमारतें आकाश से बातें करने लगी हैं। फिर भी सामान्य जन को दो जून की रोटी नहीं नसीब हो रही है। उनके आँखों में दुख और अभावों के आँसू छलकते रहते हैं। उन्हें पोंछना सच्ची मानवता है। यह बड़प्पन नहीं है, बल्कि यह तो छोटों की पूजा करना है।

ऐसा इसलिए कि ये जीवन भर सभी प्रकार की विपत्तियां सहते रहते हैं। मरते दम तक घोर परिश्रम से मुँह नहीं फेरते हैं। इस प्रकार के जीवन जीनेवाले ही आज सलामत हैं, जबकि सभी बड़े मिट गए। यह समझकर तुम इनसे कुछ देर के लिए घुलमिल कर रहते, तो इनके जीवन के गम का बोझ हल्का हो जाता। इनके मुरझाए चेहरे थोड़ी देर के लिए ही सही, खिल उठता। फिर ये अपने जीवन के बोझ को उठाकर और आगे ले जाने की हिम्मत जुटा पाते।

विशेष:

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. शैली व्यंग्यात्मक है।
  3. सम्पूर्ण कथन मार्मिक है।
  4. ‘मर-मर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. करुण रस का संचार है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. ‘बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!’ का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

1. प्रस्तुत पद्यांश में देश के कर्णधार कहे जाने वाले राजनेताओं द्वारा अनेक प्रकार के साधनों-सुविधाओं को देने का उल्लेख है। इसके साथ ही सामान्य जन के प्रति उनकी उपेक्षा और दूरी का भी उल्लेख है। इस प्रकार इस पद्यांश में परस्पर विरोधी बातों को बड़े ही रोचक रूप में प्रस्तुत किया गया है। फलस्वरूप प्रस्तुत हुए विरोधाभास अलंकार का चमत्कार तब और हृदयस्पर्शी दिखाई देता है जब उसके सहयोगी अलंकार पुनरुक्ति प्रकाश ‘मर-मर’ और अनुप्रास अलंकार ‘सदा सहना’ पर हमारा ध्यान जाता है। इसकी भाव और भाषा भी कम प्रभावशाली नहीं है।

2. उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य आकर्षक है। देश में विकास के बढ़ते चरण के बावजूद सामान्यजन की बदहवाली के चित्र स्वाभाविक होने के साथ-साथ मार्मिक और विचारणीय हैं। इस प्रकार के तथ्य को विश्वसनीय रूप में प्रस्तुत करने का ढंग सचमुच बड़ा ही अनूठा है। इस तरह उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य हृदयस्पर्शी और उद्धरणीय बन गया है।

3. ‘बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!’ का मुख्य भाव यह है कि देश में चहुंमुखी विकास हो रहे हैं। इसे देखकर सबका मन बाग-बाग हो रहा है।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. ‘छोटों से घुल-मिलकर रहो’ ऐसा कवि ने क्यों कहा है?

उत्तर:

  1. कवि-माखललाल चतुर्वेदी कविता-उलाहना।
  2. ‘छोटों से घुल-मिलकर रहो’ ऐसा कवि ने कहा है। यह इसलिए कि इसमें ही जीवन की सार्थकता है।

प्रश्न 3.
‘तुम्हारी चरण-रेखा देखते हैं वे,
उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ,
तुम्हारी आन पर कुर्बान जाते हैं,
अमीरी से जरा नीचे उतर आओ!

तुम्हारी बाँह में बल है, जमाने का,
तुम्हारे बोल में जादू जगत का है,
कभी कुटिया निवासी बन जरा देखो,
कि दलिया न्यौतता रमलू भगत का है!

शब्दार्थ:

  • कुर्बान – बलिदान।
  • बाँह – भुजा।

प्रसंग: पूर्ववत्।

व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! सामान्य जन जो हर प्रकार से अपने जीवन में दुखी और अभावग्रस्त हैं, वे तुमसे सहायता के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके लिए तुम्हें कुछ अवश्य समय निकालना होगा। ऐसा इसलिए कि तुम्हारी आन-मान के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं। इसे तुम गंभीरतापूर्वक समझो, फिर अपनी अमीरी की ऊँचाई से गरीबी की जमीन पर आ जाओ। तुम्हें स्वयं को यह जानना चाहिए कि तुम्हारी भुजाओं के अंदर बहुत बड़ी शक्ति है। वह शक्ति है-जमाने की। तुम्हारे भाषण में दुनिया की जादुई शक्ति है। इसलिए तुम कभी समय निकालकर अभावों को झेल रहे कटिया निवासी रमलू भगत के पास आकर रहो। फिर देखो कि वह तुम्हें कितना अपनापन लिए बुला रहा है। इसे समझने पर तुम्हें अपार सुख का अनुभव होगा।

विशेष:

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. उर्दू की प्रचलित शब्दावली है।
  4. अमीरों को अपनी अमीरी को भुलाकर सामान्य जन के लिए सहयोग करने की शिक्षा दी गई है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पयांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
  3. ‘अमीरी से जरा नीचे उतर आओ’ का मुख्य भाव बताइए।

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में आम जनता का आह्वान साधन-सम्पन्न अर्थात् अमीर वर्ग के प्रति है। आमजन अमीर वर्ग से उसका महत्त्वांकन करते हुए उसे उसके साथ अपनापन के भावों को रखने की अपेक्षा करता है। इसे सरल आर सपाट भाषा के द्वारा अतिशयोक्ति अलंकार के साथ रूपक अलंकार (चरण-रेखा) से अलंकृत करके चमत्कृत किया है। बिम्ब, प्रतीक और योजना वीर रस और करुण रस के मिश्रण से अधिक प्रभावशाली रूप में है।

2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य आकर्षक रूप में है। इसमें भावों की तारतम्यता और क्रमबद्धता सुनियोजित रूप में है। इससे मार्मिकता का जो पुट प्रस्तुत हो रहा है, वह न केवल भाववर्द्धक है, अपितु प्रेरक है। सरलता से प्रयुक्त हुए भाव सहज ही ग्रहणीय और हृदयस्पर्शी बन गए हैं।

3. ‘अमीरी से जरा नीचे उतर आओ’ का मुख्य भाव परस्पर समानता और सहयोग का वातावरण उत्पन्न करता है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. ‘उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ’ का व्यंग्यार्थ क्या है?

उत्तर:

1. कवि-माखनलाल चतुर्वेदी कविता-‘उलाहना’।

2. ‘उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ’ का व्यंग्यार्थ है-अमीर वर्ग आम आदमी के दुखों और अभावों को समझने से कतराता रहता है। उसे तो अपने सुख-विलास से ही फुरसत नहीं मिलती है। फिर वह आम आदमी के लिए कहाँ समय निकाल पाएगा। दूसरी ओर आम आदमी उससे सहयोग प्राप्त करने की हमेशा आशा लगाए रहता है।

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
गयी सदियाँ कि यह बहती रही गंगा,
गनीमत है कि तुमने मोड़ दी धारा,
बड़ी बाढ़ोमयी उद्दण्ड नदियों को,
बना दी पत्थरों वाला नयी कारा।

उठो, कारा बनाओ इस गरीबी की,
रहो मत दूर अपनों के निकट आओ,
बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के,
मसीहा इनको ममता भर के सहलाओ।

शब्दार्थ:

  • सदियाँ – शताब्दियाँ।
  • गनीमत – अच्छी बात।
  • उद्दण्ड – बेकाबू।
  • कारा – जेल।
  • मसीहा – अवतारी पुरुष।
  • ममता – अपनापन।

प्रसंग: पूर्ववत्।

व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! अनेक सदियों के बाद तम अपने शक्ति से गंगा के बहते पानी को व्यर्थ बहने के बारे में चिंतन-मनन किया। फिर उसे जनोपयोगी बनाने के लिए उसकी धारा को मोड़कर उसके ऊपर बाँध बनवाकर अनेक प्रकार से सिंचाई के रूप तैयार किए। इस प्रकार बाढ़ से उफनती हुई उद्दण्ड नदियों को पत्थर वाले जेल की अपने काबू में कर लिये। इस प्रकार के महान जीवनोपयोगी कार्य करने के बाद अब तुमसे यही कहना है कि अब तुम उठो। इस गरीबी को जेल में बदलकर उस पर अपना नियंत्रण रखो। सदियों से गरीबी की मार सह रहे गरीबों का मसीहा बनकर तुम उनके दुखों-अभावों रूपी घावों पर अपनी ममता का मरहम सहलाते रहो।

विशेष:

  1. अमीर वर्ग से गरीब वर्ग की अपेक्षाओं को चित्रित किया गया है।
  2. अमीरों का महत्त्वांकन,प्रस्तुत है।
  3. रूपकालंकार है।
  4. वीर रस का संचार है।
  5. तुकान्त शब्दावली है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को लिखिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. ‘गरीबी को कारा’ बनाने से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में अमीर वर्ग के प्रति आमजन के भावों को व्यक्त किया गया है। ये भाव उसके हौसले को बढ़ाते हुए उससे कुछ पाने की उम्मीदों के हैं। इसे स्मरण अलंकार, रूपक और अनुप्रास अलंकारों से अलंकृत करके चमत्कृत किया गया है। भाषा की सरलता में प्रवाहमयता है तो वर्णनात्मक शैली विधान में रोचकता है। प्रचलित उर्दू और तत्सम शब्दों के साथ-साथ देशज शब्दों का मेल उपयुक्त रूप में है। बिम्ब और प्रतीक यथास्थान हैं।

2. प्रस्तुत पद्यांश की भाव योजना में क्रमबद्धता और अनुरूपता है। अमीर वर्ग को समुत्साहित करते हुए आमजन को अपने कल्याणार्थ प्रेरित करने का प्रयास सचमुच में काबिलेतारीफ़ है। इसके लिए दिए गए उल्लेखों को दृष्टान्तों के माध्यम से प्रस्तुत करने का भी प्रयास कम कलात्मक नहीं है। फलस्वरूप यह पद्यांश भाववर्द्धक बन गया है।

3. ‘गरीबी को कारा’ बनाने से तात्पर्य अभावों पर पूरी तरह नियंत्रण रखने से है।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. ‘बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के’ का मुख्य भाव बताइए।

उत्तर:

  1. कवि-माखनलाल चतुर्वेदी। – कविता-‘उलाहना’।
  2. ‘बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के’ का मुख्य भाव है-बहुत समय से आमजन अभावों में अपना जीवन सफर कर रहा है। वह इससे ऊब चुका है। उसे इससे मुक्ति चाहिए। अमीर वर्ग ही उसे इससे मुक्ति मसीहा बनकर दिला सकता है।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया (एकांकी, भगवतीचरण वर्मा)

रुपया तुम्हें खा गया पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

रुपया तुम्हें खा गया लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल की सुख-शान्ति क्यों भंग हो गई?
उत्तर:
किशोरीलाल को रुपए चुराने के जुर्म में तीन साल की जेल की सजा हो गई। इसलिए उसकी सुख-शान्ति भंग हो गई।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
जयलाल कौन था? वह कौन-सा व्यवसाय करता था?
उत्तर:
जयलाल मानिकचंद का पुत्र था। वह डॉक्टरी करता था।

प्रश्न 3.
मदन को सम्पत्ति का मालिक बनाने की बात पर मानिकचंद ने क्या कहा?
उत्तर:
मदन को सम्पत्ति का मालिक बनाने की बात पर मानिकचंद ने यह कहा-“मेरे मरने के बाद ही उसके पहले नहीं। और मेरे मरने के लिए तुम दोनों माला फेरो, पूजा-पाठ कराओ…..यहाँ से…..जाओ तुम दोनों।”

रुपया तुम्हें खा गया दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल के जेल जाने पर परिवार ने अपना जीवन-निर्वाह किस प्रकार किया?
उत्तर:
किशोरीलाल के जेल जाने पर उसके परिवार ने अपना जीवन-निर्वाह बड़ी कठिनाई से किया। उसकी पत्नी ने अपने जेवर बेचे। उसकी लड़की ने चक्की चलाई और पड़ोस के कपड़े सिले। इससे उसके बेटे जयलाल की डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की।

प्रश्न 2.
सजा काटने के पश्चात् किशोरीलाल की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सजा काटने के पश्चात किशोरीलाल की मनोदशा काफी बिगड़ चकी थी। वह अपने उजड़े हुए घर-परिवार को देखकर अशान्त हो गया था। उसने अपनी बाबी, अपने बच्चों के कुपोषण को देखा। इससे वह एकदम घबड़ा गया। उसने लोगों से होने वाले अनादर और उपेक्षा को देखा। घर के घोर अभाव को देखा। इन सब दुखों को देखकर वह काँप गया। उसके बाप-दादा को पुराना मकान कर्ज से दब चुका था। उसे बेचकर वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ और दूसरे शहर को चला गया।

प्रश्न 3.
मानिकचंद अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी अपने पुत्र मदन को क्यों नहीं देना चाहता था?
उत्तर:
मानिकचंद अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी अपने पुत्र मदन को नहीं देना चाहता था यह इसलिए कि वह अपनी सम्पत्ति का मालिक अपने जीते जी नहीं बनाना चाहता था। अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी देकर वह अपनी पत्नी और बेटे के अधीन होकर नहीं जीना चाहता था।

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
मानिकचंद को अपनी भूल का अहसास कैसे होता है?
उत्तर:
मानिकचंद को अपनी भूल का अहसास तब होता है, जब किशोरीलाल उससे उसके जीवन का सबसे बड़ा सत्य कह गया कि रुपया उसे खा गया है। इसलिए उसमें ममता नहीं है, दया नहीं है, प्रेम नहीं है और भावना नहीं है। उसके अन्दर वाला मानव मर चुका है। उसकी जगह अर्थ का पिशाच घुस गया है।

प्रश्न 5.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ एकांकी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी में मनुष्य की उस लोभवृत्ति का चित्रण किया गया है जिसके अधीन होकर वह सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को भूलकर मात्र धन-लिप्सा के मोहजाल में आकण्ठ डूबा रहता है और अपनी मानसिक शान्ति खो बैठता है। पैसे की तुलना में मनुष्य के उदात्त मानवीय गुण यथा महत्त्वपूर्ण है। ये गुण ही मनुष्य को जीवन में सच्चा सुख और शान्ति प्रदान करते हैं। पैसों की ताकत इन मानवीय गुणों की तुलना में हेय है।

प्रश्न 6.
एकांकी के आधार पर मानिकचंद का चरित्र-चित्रण कीजिए?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ एक यथार्थपूर्ण एकांकी है। इसका मुख्य पात्र मानिकचंद का चरित्र बड़ा ही रोचक और विश्वसनीय है। वह धनपशु है। उसमें धन की पिशाच पूरी तरह मौजूद है। इससे वह हर प्रकार के अनैतिक विचारों को पालता है। हर प्रकार के अनैतिक कार्यों को करता है। धन ही उसका जीवन, उसकी चाह है। और तो और, धन ही उसका सब कुछ है। इसके सामने वह किसी को कुछ नहीं समझता है। सबको ठोकर मार देने में वह नहीं हिचकता है। अपनी बीवी-बच्चों को भी वह धन के सामने भूल जाता है।

इसी धनलिप्सा के मोहजाल में वह इतना फँस चुका है कि किशोरीलाल के बार-बार यह सावधान किए जाने पर “रुपया तुम्हें खा गया” वह नहीं सावधान होता है। बीमार होने पर भी वह अपने बेटे मदन को अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी नहीं देता है। अपनी बीवी रानी को फटकारते हुए वह कहता भी है_ “हा…..हा….हा। नहीं मिलेगी, सेफ की चाबी नहीं मिलेगी, जब तक मैं जिन्दा हूँ। जानती हो, इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। बीवी, नातेदार, पड़ोसी, नौकर ये सब के सब मेरे नहीं हैं, ये मेरे रुपए के हैं। अभी किशोरीलाल मुझे बतला गया है कि मैं मर चुका हूँ। वह मुझसे कह गया है कि रुपया तुम्हें खा गया।”

प्रश्न 7.
एकांकी के तत्त्वों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
उत्तर:
एकांकी नाटक सामान्य रूप से नाटक के उस स्वरूप को कहते हैं जिसमें एक ही अंक में सारा नाटक समाप्त हो जाता है। एकांकी के छह तत्त्व माने जाते हैं।

  1. कथानक या कथावस्तु
  2. पात्र और चरिघ्र-चित्रण
  3. कथोपकथन
  4. देशकाल तथा संकलनत्रय
  5. भाषा-शैली, और
  6. उद्देश्य।

1. कथानक और कथावस्तु:
यह एकांकी की कहानी है। कहानी को इस प्रकार से नियन्त्रित करके रखा जाए कि वह बहुत कम में समाप्त होकर श्रोता और दर्शक के मन को अपनी ओर रमा सके।

2. पात्र और चरित्र-चित्रण:
श्रोता और दर्शक के हृदय पर सबसे अधिक. प्रभाव पात्रों के द्वारा ही डाला जाता है। यह एकांकी का प्राण होता है। पात्र ही कथावस्तु को आगे बढ़ाते हैं। मुख्य पात्र को नायक कहते हैं। वह नाटक के फल को प्राप्त करता है। वह अनेकानेक उदात्त गुणों का खजाना होता है।

3. कथोपकथन:
कथोपकथन कथावस्तु को आगे बढ़ाते हैं और पात्रों के चरित्र का उद्घाटन करते हैं। कथोपकथन के आधार पर ही नाटकीयता का मूल्यांकन किया जाता है। ये संक्षिप्त, चुटीले, पात्रानुकूल तथा स्वाभाविक होने चाहिए।

4. देश-काल तथा संकलनत्रय:
एकांकी कथावस्तु से सम्बन्धित देश-काल (परिस्थितियों) का स्वाभाविक वर्णन एकांकी को सजीवता एवं वास्तविकता प्रदान करता है। कम-से-कम स्थानों एवं कम अन्तराल की घटनाओं का वर्णन संकलनत्रय के तत्त्व के निर्वाह में सहायक होता है।

5. भाषा-शैली:
एकांकी को प्रस्तुत करने के ढंग को शैली कहते हैं। इसे ही एकांकी का परिधान कह सकते हैं। इसके अन्तर्गत पात्रों की भाषा, रंगमंच की व्यवस्था, नाटककार का व्यक्तित्व आदि बातें आती हैं।

6. उद्देश्य:
एकांकी का मुख्य उद्देश्य मनोरंजक ढंग पर जीवन की व्याख्या करना है। एकांकी का महत्त्व मुख्य रूप से नैतिक है। समाज के कल्याण के साथ काव्य का जो सम्बन्ध है, वह सबसे अधिक एकांकी में ही प्रकट किया जाता है।

रुपया तुम्हें खा गया भाव विस्तार/पल्लवन

  1. रुपया तुमने नहीं खाया, रुपया तुम्हें खा गया।
  2. तुमने जो चोरी की थी उसकी सजा मैं भुगत चुका हूँ। तुम्हारे पाप का प्रायश्चित मैं कर चुका हूँ।

उत्तर:
1. उपर्युक्त कथन किशोरीलाल का मानिकचंद के प्रति है। इस कथन में यह भाव छिपा हुआ है कि धन का लोभी व्यक्ति का चरित्र गिर जाता है। धन को ही वह सबकुछ समझ लेता है। इससे उसके अंदर का मनुष्य मर जाता है। उसकी जगह पिशाच का प्रवेश हो जाता है। उससे उसमें प्रेम नहीं होता है। कोई सद्भावना नहीं होती है। कोई दया नहीं है। इस प्रकार रुपया को चाहने वाले या रुपया को ही सबकुछ समझने वाले को रुपया इस तरह से खा लेता है कि उसके पास केवल पशुतापन और राक्षसीपन ही रह जाता है। उससे उसके परिवार और समाज का नुकसान ही होता रहता है।

2. उपर्युक्त कथन किशोरीलाल का मानिकचन्द के प्रति है। इस कथन का यह भाव है कि आज के समाज में कानून कमजोर पड़ गया है। वह धनवान और साधन-सम्पन्न मुजरिम को पकड़ने में आनाकानी करता है, बहाना बनाता है। घूस पाकर कमजोर, गरीब और लाचार आदमी को गिरफ्तार कर उसे जेल में बन्द कर उसे सजा दे डालता है। इस प्रकार आज का कानून है-करे कोई, भरै कोई।

रुपया तुम्हें खा गया भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
दिए गए शब्दों में से उपसर्ग छाँटकर अलग कीजिए। कुरूप, अभाव, कुप्रबंध, सुडौल।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया img-1

प्रश्न 2.
निम्ननिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए –
अभिशाप, तिरस्कार, असभ्य, कठोर।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया img-2

प्रश्न 3. दिए गए निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन कीजिए –
उदा:

  1. रुपया तुम्हें खा गया। (प्रश्वाचक वाक्य)
  2. वह कल दिल्ली जाएगा (निषेधात्मक वाक्य)
  3. कितना सुन्दर दृश्य है(विस्मयादि बोधक)
  4. आज पानी बरस रहा है(संदेहार्थ वाक्य)
  5. आपने भोजन कर लिया है। (प्रश्नार्थक वाक्य)

उत्तर:

  1. क्या रुपया तम्हें खा गया है?
  2. वह कल दिल्ली नहीं जाएगा।
  3. अहा! कितना सुन्दर दृश्य है।
  4. शायद आज पानी बरसे।
  5. क्या आपने भोजन कर लिया है?

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
इस एकांकी में आए आगत (विदेशी) शब्दों को लिखिए।
उत्तर:
इस एकांकी में आए आगत (विदेशी) शब्द इस प्रकार हैं –
करीब-करीब, हफ्ते, दफ्तर, डाइंग रूम, डॉक्टर, ताकत, ईमान, इज्जत, आबरू, दुनिया, बीमार, सबूत, साल, जेल, इशारा, सजायाफ्ता, आदमी, मकान, कर्ज, मुआवजा, सिर्फ, जिंदगी, कागज, इन्कमटैक्स, नोटिस, हिसाब-किताब, अजीब, मुसीबत, मतलब, सेफ़, आखिर, गलत, ऑफिस।

रुपया तुम्हें खा गया योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ एकांकी को कहानी के रूप में लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 2.
इस एकांकी को अभिनीत कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 3.
ईमानदारी विषय पर केन्द्रित अन्य प्रेरणा देने वाले प्रसंगों को संकलित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 4.
रुपये को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने हेतु डाकखाने में मनी आर्डर द्वारा सुविधा प्रदान की जाती है। यहाँ मनी ऑर्डर का प्रारूप दिया जा रहा है जिसमें आप आवेदक का नाम पता तथा पाने वाले का नाम, पता भरिए तथा मनी ऑर्डर के बारे में विस्तृत जानकरी डाकखाने से प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

रुपया तुम्हें खा गया परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

रुपया तुम्हें खा गया लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बीमारी में क्या होता है और क्या नहीं होता है?
उत्तर:
बीमारी में उतार-चढ़ाव होता है। उसमें सुधार नहीं होता है।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
किशोरीलाल अपने बुरे समय में मानिकचन्द से सहायता क्यों नहीं माँगी?
उत्तर:
किशोरीलाल अपने बुरे समय में मानिकचन्द से सहायता नहीं माँगी। वह इसलिए कि –

  1. उसे उसका पता नहीं मालूम था।
  2. उसे इस बात का पूरा विश्वास नहीं था कि वे रुपये उसने ही चुराए थे।

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया img-3

प्रश्न 3.
किशोरीलाल ने मानिकचन्द से क्यों कहा कि रुपया उसे खा गया?
उत्तर:
किशोरीलाल ने मानिकचन्द से कहा कि रुपया उसे खा गया। यह इसलिए कि उसमें कोई ममता नहीं, दया नहीं, प्रेम नहीं और कोई भावना नहीं रह गई थी। उसके अन्दर का मानव मर चुका था और धन का पिशाच घुस गया था।

रुपया तुम्हें खा गया दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल मानिकचन्द को आपबीती क्या सुनाई?
उत्तर:
किशोरीलाल ने मानिकचन्द को आपबीती सुनाई। उसने उसे सुनाया कि जब वह जेल की सजा काटकर घर लौटा तो उसने जो देखा, उससे वह काँप उठा। उस समय तक यह जयलाल डॉक्टरी पास कर चुका था। लेकिन इसकी डॉक्टर नहीं चली। एक सजायाफ्ता आदमी का लड़का था न यह! बाप-दादा का पुराना मकान कर्ज से लद चुका था। उसे बेचकर मैं वहाँ से भाग खड़ा हुआ, और उसने इस नगर की शरण ली।

प्रश्न 2.
मानिकचन्द द्वारा. क्षमा माँगने पर किशोरीलाल ने क्या कहा?
उत्तर:
मानिकचन्द के क्षमा माँगने पर किशोरीलाल ने कहा –

“तुमने कोई अपराध नहीं किया। मानिकचन्द मुझसे क्षमा बेकार मांग रहे हो। कोई बहुत बड़ा पाप किया होगा मैंने कभी, उसी का दंड मुझे मिला। वह दंड मैंने भुगत लिया है,और आज मेरे मन में कोई ग्लानि नहीं, कोई संतापं नहीं। मेरे लड़के की डॉक्टरी अच्छी चलती है और वह ईमानदार तथा कर्तव्यपरायण आदमी है। मेरे पास कोई अभाव नहीं। मेरा जीवन, मेरी पत्नी की, मेरे पुत्र की, मेरे पौत्रों की ममता है, मेरा सुख-दुख उनका सुख-दुख है। यह क्या कम है? मैं भगवत भजन करता हूँ। मैं तुमसे कहीं अधिक सखी हूँ।”

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
मानिकचन्द द्वारा झूठ बोलने और धोखा देने का आरोप लगाने पर किशोरीलाल ने उससे क्या कहा?
उत्तर:
मानिकचन्द द्वारा झूठ बोलने और धोखा देने का आरोप लगाने पर किशोरी लाल ने उससे इस प्रकार कहा –

“मानिकचन्द धोखा मैं तुम्हें नहीं दे रहा हूँ, धोखा तुम अपने को दे रहे हो। तुम्हारी सुख-शांति अर्थ के पिशाच ने तुमसे छीन ली, तुम्हारा संतोष उसने नष्ट कर दिया। उस दिन जब तुम दस हजार रुपया चुराकर लाए थे, तब तुमने समझा था कि तुम रुपया खा गए लेकिन तुमने बहुत गलत समझा था।”

प्रश्न 4.
“आखिर तुम सेफ की चाबी उन्हें क्यों नहीं दे देते?” किशोरीलाल के इस प्रश्न के उत्तर में मानिकचन्द ने क्या कहा?
उत्तर:
“आखिर तुम सेफ की चाबी इन्हें क्यों नहीं दे देते?” किशोरीलाल के इस प्रश्न के उत्तर में मानिक चन्द ने कहा –

किशोरीलाल तीन साल जेल में रहकर भी तुम यह नहीं जान पाए कि सेफ की चाबी जिन्दगी की चाबी है। उसे अपने पास से अलग कर देने के माने हैं विनाश। देख रहे हो मेरे गले में सोने की जंजीर में बंधी हुई यह चाभी?

प्रश्न 5.
रानी द्वारा सेफ की चाबी माँगने पर मानिकचन्द ने क्या कहा?
उत्तर:
रानी द्वारा सेफ की चाबी माँगने पर मानिकचन्द ने इस प्रकार कहा –

हा…हा…हा। नहीं मिलेगी, सेफ की चाबी नहीं मिलेगी, जब तक मैं जिंदा हूँ। जानती हो, इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। बीवी, बच्चे, नातेदार, पड़ोसी, नौकर. …ये सब के सब मेरे नहीं हैं, ये मेरे रुपये के हैं। अभी किशोरीलाल मुझे बतला गया है कि मैं मर चुका हूँ। वह मुझसे कह गया है कि रुपया तुम्हें खा गया।”

रुपया तुम्हें खा गया लेखक का परिचय

प्रश्न 1.
भगवतीचरण वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भगवतीचरण वर्मा का जन्म उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गांव में सन् 1903 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद में प्राप्त की। उनके साहित्य के लेखन का आरंभ कविता से हुआ, जो धीरे-धीरे बाद में कहानी-लेखन और नाटक-लेखन में बदलता गया।

रचनाएँ:
भगवतीचरण वर्मा मुख्य रूप से कहानीकार और उपन्यासकार हैं। उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं –

  • कहानी-संग्रह – ‘इंस्टालमेंट’, ‘दो बाँके तथा राख’ और ‘चिनगारी’।
  • काव्य-संग्रह – ‘मधुकण’, ‘प्रेम-संगीत’ और ‘मानव’।
  • उपन्यास – ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘चित्रलेखा’, ‘भूले-बिसरे चित्र’।

महत्त्व:
भगवतीचरण वर्मा उपदेशक नहीं हैं, न विचारक के आसन पर बैठने की आकांक्षा ही कभी उनके मन में उठी। वे जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान रहे। आज के भारतीय गांव और शहर के परिवेश तथा उनकी समस्याओं का ज्ञान और उनके निराकरण के संकेत लेखक की सूक्ष्म और अंतर्भेदनी दृष्टि में मिलते हैं। आज के युग की पहचान करने में उनका लेखन समर्थ है।

रुपया तुम्हें खा गया पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
भगवतीचरण वर्मा लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भगवतीचरण वर्मा-लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ में मनुष्य के लोभ और उससे होने वाली हानियों का चित्रण किया गया है। इस एकांकी का सारांश इस प्रकार है –

डॉ. जयपाल मानिकचन्द का कई दिनों से इलाज कर रहे हैं। मानिकचन्द के पूछने पर डॉक्टर जयपाल बताता है कि उसको सुधार धीरे-धीरे हो रहा है। बीमारी के दौरान उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। अगर सुधार हो, तब तो बीमारी अच्छी ही हो गई। इसे सुनते ही मानिकचंद का चेहरा उतर गया। उसे इस तरह देखकर डॉक्टर ने कहा कि डरने की कोई बात नहीं। बीमारी करीब-करीब ठीक हो चुकी है। इसे सुनकर मानिकचंद ने डॉक्टर को धन्यवाद दिया। फिर कहा कि वह मदन से उसके ड्राइंगरूम में अवश्य मिल ले। वह अस्पताल के खर्चे का सारा प्रबंध कर देगा। डॉक्टर ने उसके प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि क्या वह पैसे से ही धर्म, इंसान, इज्जत आदि को खरीद सकता है।

अब वह जिन्दगी भर बीमार ही रहेगा। उसे कोई भी ठीक नहीं कर सकता है। उसी समय किशोरीलाल वहां आ जाता है। उसे देखकर मानिकचंद हैरान होता है। उसकी हैरानी को देखकर उसने कहा कि वह डरे नहीं। उसने जो चोरी की थी, उसकी सजा वह भुगत चुका है। वह उसके पाप का प्रायश्चित्त कर चुका है। इस सिलसिले में तीन साल जेल में बंद था। वे दिन मेरी घोर विपत्ति और बर्बादी के दिन थे। जेल से छूटकर घर जाने पर उसने देखा कि वह बुरी तरह से उजड़ चुका है। लोग उससे बात न करके उस पर हँसते थे। उसका तिरस्कार और अपमान करते थे। उसके फूल-से बच्चे कुम्हला गए। उसकी पत्नी बूढ़ी हो गई। घर भयानक अभाव में था। यह डॉक्टर जयलाल उसका ही लड़का है।

यह उस समय डॉक्टरी पास कर चुका था। लेकिन एक सजायाफ्ता आदमी का लड़का होने से इसकी डॉक्टरी नहीं चली। बाप-दादा का पुराना सकान कर्ज में था। उसे बेचकर ही उसने इस शहर में शरण ली। इस समय वह उससे रुपए नहीं लेने आया है। वह तो यह देखने आया है कि वह किस प्रकार करोड़पति की जिंदगी जी रहा है। – उसी समय मानिकचंद के लड़के मदन ने कहा कि बाबूजी को इन्कमटैक्सवालों ने चालीस लाख रुपए का नोटिस दिया है। उन्हें हमारे पुराने हिसाब-किताब का पता चल गया है। उसकी पत्नी रानी ने कहा कि इन रुपयों का प्रबंध करना ही होगा। मिल छुड़ाना है। इसलिए वह सेफ की चाबी मदन को दे दे।

इसे सुनकर उसने उन दोनों को फटकारते हुए कहा कि वह सेफ की चाबियाँ मदन को देकर अपना हाथ नहीं कटवाएगा। इसलिए वे दोनों वहाँ से चले जाएँ। इसे देखकर डॉक्टर जयपाल उन दोनों माँ-बेटे (रानी और मदन) को समझाता है कि वे दोनों वहाँ से तुरन्त चले जाएँ। जब मानिकचंद शान्त हो जाएगा, तब वह उसे समझा-बुझाकर सब कुछ तय कर लेगा। किशोरीलाल को देखकर मदन ठिठक जाता है।

किशोरीलाल से सहानुभूति की आशा से मानिकचंद अपनी पत्नी-बेटे की शिकायत करता है। किशोरीलाल उसे अपने पत्नी-बेटे को सेंफ की चाबी दे देने की सलाह देता है। उसे सुनकर मानिकचंद उसे समझाते हुए केहता है कि वह उन्हें सेफ की चाबी हरगिज नहीं देगा। अगर देगा तो उसका अर्थ होगा अपने गले में फंदा डालना।

मानिकचंद किशोरीलाल से अपना रुपया वापस लेकर उसे उस अभिशाप से मुक्त करने का निवेदन करता है। वह उससे क्षमा माँगता है तो किशोरीलाल उसे समझाते हुए कहता है कि उसने कोई अपराध नहीं किया है। उसने ही कोई बड़ा पाप किया होगा, जिसका उसे दंड के रूप में जेल की सजा मिली। अब उसे कोई दुःख-अभाव नहीं है। उसका सारा परिवार सुखी और सम्पन्न है। इसे सुनकर मानिकचंद ने कहा कि वह उसे धोखा दे रहा है। किशोरीलाल ने उसे फटकारते हुए कहा कि वह उसे धोखा नहीं दे रहा है बल्कि वह अपने आपको ही धोखा दे रहा है। ऐसा इसलिए कि उसकी सुख-शान्ति और संतोष को अर्थ के पिशाच ने छीनकर नष्ट कर दिया है।

उस दिन जब उसने दस हजार रुपए चुराए थे, तब उसने यह समझा था कि वह रुपया खा गया, लेकिन ऐसी बात नहीं है। उसने रुपया नहीं खाया था, बल्कि रुपया उसे खा गया। इसका प्रमाण है कि उसमें प्रेम, दया आदि की कोई भावना नहीं है। उसके अंदर का मनुष्य मर चुका है। उसकी जगह पिशाच घुस गया है। अपनी पत्नी रानी को देखकर मानिक चंद विक्षिप्त की तरह कहता है कि अगर वह सेफ की चाबी लेने आई है, तो वह उसे नहीं मिलेगी।

उसका इस संसार में कोई भी नहीं है। उसके सभी नाते, संबंधी, पड़ोसी, नौकर रुपए के हैं, उसके नहीं हैं। किशोरीलाल अभी कह गया है कि वह मर चुका है। उसे रुपया खा गया है। रानी के पूछने पर मानिकचंद ने कहा कि उसकी तबियत बिल्कुल ठीक है। केवल एक सत्य उस पर प्रकट हुआ है कि उसकी प्रेत आत्मा को किशोरीलाल ने पकड़कर उसके सिरहाने छोड़ दिया है। वह कह रही है रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया।

रुपया तुम्हें खा गया संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

MP Board Solutions

प्रश्न 1.
सेठजी, बीमारी का अन्त होता है, बीमारी में सुधार नहीं हुआ करता। जितने दिन तक बीमारी चलती है वह बीमारी की अवधि कहलाती है। उस अवधि में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं, अगर सुधार हो तब तो बीमारी अच्छी ही हो गई।

शब्दार्थ:

  • अवधि – समय।
  • उतार-चढ़ाव – कम-अधिक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा भगवतीचरण वर्मा लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने डॉक्टर जयलाल के कथन के माध्यम से बीमारी क्या होती है, यह बतलाने का प्रयास किया है। डॉक्टर जयलाल बीमार मानिकचंद को समझाते हुए कह रहा है –

व्याख्या:
सेठजी! बीमार के सही इलाज होने से बीमारी में सुधार या कमी नहीं होती है, बल्कि बीमारी की समाप्ति ही हो जाती है। इस प्रकार बीमारी का इलाज लगातार होता रहता है। इसे ही बीमारी का समय कहा जाता है। इस समय में बीमारी में कभी कमी होती है तो कभी अधिकता। दूसरे शब्दों में यह कि इलाज के बावजूद बीमारी कभी घट जाती है तो कभी बढ़ जाती है। इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि बीमार का सही इलाज होने से कुछ सुधार होने लगता है। ऐसा होने पर यह मान लिया जाता है कि बीमारी का अंत हो गया।

विशेष:

  1. बीमारी के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  2. भाषा में प्रवाह है।
  3. शैली बोधगम्य है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. बीमार के इलाज से क्या होता है?
  2. बीमारी की अवधि किसे कहते हैं?

उत्तर:

  1. बीमारी के इलाज से बीमारी का अंत होता है।
  2. जितने दिन बीमारी चलती है, वह बीमारी की अवधि कहलाती है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
बीमारी की अवधि में क्या होता है?
उत्तर
बीमारी की अवधि में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।

प्रश्न 2.
मैं जेल में बंद था। कभी रोता था, कभी हँसता था। कभी पागलपन में बकने लगता था। तीन साल बाद छूटकर मैं अपने घर पहुंचा, और मैंने देखा कि मैं बुरी तरह उजड़ गया हूँ। लोग मुझसे बात नहीं करते थे। मुझ पर तिरस्कार और उपेक्षा की वर्षा होती थी। मेरे फूल से बच्चे कुम्हला गए थे। मेरी पत्नी इन तीन वर्षों में बूढ़ी हो गई थी। घर में भयानक अभाव था।

शब्दार्थ:

  • उजड़ – बर्बाद।
  • तिरस्कार – अपमान।
  • उपेक्षा – अनादर।
  • कुम्हला – मुरझा।
  • अभाव – कमी।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें मानिकचंद से किशोरीलाल की आपबीती दुखद जिंदगी का उल्लेख किया गया है। किशोरीलाल ने मानिकचंद से कहा।

व्याख्या:
मानिकचंद तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि उसने कई साल जेल की सजा काटी है। जेल की सजा काटते हुए वह कभी शान्त नहीं था। वह अपने दुःखमय जीवन को सोच-सोचकर कभी रोता था और कभी सुखों को याद करके हँसता भी था। इसी तरह कभी-कभी पागल होकर बेचैन हो उठता था। फिर ऊटपटांग बातें करने लगता था। इस तरह से उसने तीन साल जेल में बिताए। जेल से छूटने पर जब वह अपने घर आया तो उसने देखा कि उसका घर पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। उसकी गरीबी और तंग हालात को देखकर उसके आस-पास के लोग और सगे-संबंधी उससे मुँह फेर लिये थे।

उससे मिलना-जुलना और बात करना बंद कर दिए थे। इस प्रकार उसकी चारों ओर से अनादर और अपमान होने लगा था। उसकी इस प्रकार की दुर्दशा का यह भी असर पड़ा कि उसके सुखी और सुन्दर बच्चे कुपोषण का शिकार हो गए। उनका जीवन अंधकार में डूब गया। इसी तरह उसकी पत्नी भी गरीबी का शिकार होने के कारण इतनी कमजोर हो गई थी कि वह झुक गई। सीधी न खड़ी हो सकती थी और न बैठ ही सकती थी। सचमुच में उसके घर में बुरी तरह कंगाली छा गई थी।

विशेष:

  1. भाषा मार्मिक है।
  2. शैली हृदयस्पर्शी है।
  3. गरीबी का सटीक चित्रण है।
  4. सम्पूर्ण कथन स्वाभाविक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपर्युक्त कथन में किस तथ्य का उल्लेख है?
  2. उपर्युक्त कथन का संक्षिप्त भाव लिखिए।

उत्तर:

1. उपर्युक्त कथन में जेल-जीवन के दुखद पहलुओं का उल्लेख है।

2. उपर्युक्त कथन के द्वारा यह भाव स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। कि गरीबी और अभावपूर्ण जीवन हर प्रकार से दुखद और उपेक्षित होता है। उसे कहीं से कोई सुख की किरण नहीं दिखाई देती है। इस प्रकार का जीवन जीनेवाला हताशा और निराशा के घने अंधकार में डूब जाता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. जेल-जीवन कैसा होता है?
  2. उजड़े हुए व्यक्ति का घर-परिवार किस तरह का हो जाता है?

उत्तर:

  1. जेल-जीवन बड़ा ही दुखद होता है। जेल में बंद व्यक्ति पागल की तरह बड़ा ही अशान्त रहता है।
  2. उजड़े हुए व्यक्ति से लोग बात नहीं करते और उस पर तिरस्कार और उपेक्षा की वर्षा करते हैं। बच्चों पर मुसीबत आ जाती है। घर में भयानक अभाव आ जाता है।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
मानिकचंद्र, धोखा मैं तुम्हें नहीं दे रहा हूँ, धोखा तुम अपने को दे रहे हो। तुम्हारी सुख-शाति अर्थ के पिशाच ने तुमसे छीन ली, तुम्हारा संतोष उसने नष्ट कर दिया। उस दिन जब तुम दस हजार रुपया चुराकर लाए थे। तब तुमने समझा था. कि तुम रुपया खा गए….लेकिन तुमने बहुत गलत समझा था।

शब्दार्थ:

  • पिशाच – भूत-प्रेत।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें किशोरीलाल ने मानिकचंद की अज्ञानता को उसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
वह उसे धोखा नहीं दे रहा है। यह भी कि वह किसी प्रकार के अँधेरे में भी नहीं रख रहा है। उसे तो यह बहुत अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि वह ही अपने आपको धोखा दे रहा है। अपने आपको अँधेरे में रख रहा है। यह इसलिए कि वह अपने आपको बहुत सुखी और शान्ति का जीवन जीने की बात सोचकर फूले नहीं समा रहा है तो वह गलतफहमी है। उसे तो यह बिलकुल ही साफ-साफ समझ लेना चाहिए कि उसके सुख और उसकी शान्ति को उसके लोभ और असंतोष ने समाप्त कर दिया है।

उसमें अर्थ की प्रेतात्मा आ गई है, जिसने उसके सुख-चैन और संतोष को निगल लिया है। उसे उस दिन को नहीं भूलना चाहिए, जिस दिन उसने दस हजार रुपये की चोरी की थी। उस दिन उसने यह समझने में गलती की थी कि उसने रुपया खा लिया है। अब उसे इस सच्चाई को स्वीकारना होगा कि उसने रुपये नहीं खा लिये हैं, बल्कि रुपया ने उसे खा लिया है।

विशेष:

  1. अर्थ को पिशाच के रूप में कहकर अर्थ के दुष्परिणाम को बतलया गया है।
  2. भाषा में सजीवता है।
  3. कथन में यथार्थ की पूर्णता है।
  4. शैली व्यंग्यात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
अर्थ के दुष्प्रभाव को बताइए।
उत्तर:
अर्थ के कई दुष्प्रभाव होते हैं; जैसे-सुख शान्ति और कष्ट हो जाते हैं। स्वयं को सही और दूसरे को गलत समझना आदि।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
उपर्युक्त गद्यांश का संक्षिप्त भाव लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त गद्यांश का भाव यह है कि अर्थ पिशाच की तरह होता है। वह जिसके पास होता है, उसके सुख, शान्ति और संतोष को नष्ट कर देता है। वह उसे कहीं का नहीं छोड़ता है। वह उसके ज्ञान और विवेक को भूलभूलैया में डालकर उसमें अनेक प्रकार के दुर्भावों को पैदा कर देता है। इससे वह घर-समाज की आँखों से गिरकर अकेला पड़ जाता है।

प्रश्न 4.
बिल्कुल ठीक है रानी, केवल एक सत्य मुझ पर प्रकट हुआ है। मेरी प्रेतात्मा को किशोरीलाल न जाने कहाँ से पकड़ लाया और वह उस प्रेतात्मा को मेरे सिरहाने छोड़ गया। सुन रही हो, वह प्रेतात्मा क्या कह रही है? वह कह रही है… रुपया तुम्हें खा गया। रुपया तुम्हें खा गया…रुपया तुम्हें खा गया।

शब्दार्थ:

  • सिरहाने – सिर के पास।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें मानिकचंद के सत्यज्ञान पर प्रकाश डाला गया है। मानिकचंद की धर्मपत्नी ने घबराकर डॉक्टर जयलाल से अपने पति (मानिकचंद) की तबियत के विषय में पूछा तो मानिकचंद ने उसे बड़े प्यार से अपने सत्यज्ञान को बतलाते हुए कहा कि –

व्याख्या:
मेरी प्यारी रानी! तुमने मेरे स्वास्थ्य के बारे में चिन्ता की, इससे मैं बहुत खुश हूँ। लेकिन इस समय मुझे ऐसा आत्मज्ञान हो रहा है, जो मेरे ऊपर छाए हुए असत्य के अन्धकार को हटाकर सत्य का प्रकाश फैला रहा है। किशोरी लाल ने मेरे लिए एक दुखद स्थिति पैदा कर दी है। वह यह कि उसने उसकी प्रेतात्मा को कहीं से पकड़ लिया है। उसने उसे उसके सिरहाने लाकर रख दिया है। वह प्रेतात्मा हमेशा उसे बेचैन किए रहती है। वह हमेशा बड़बड़ाती रहती है। तुम उसे इस प्रकार बड़बड़ाते हुए सुन सकती हो। सुनो, सुनो वह यह कह रही है-“रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया।”

विशेष:

  1. रुपया के दुष्प्रभाव को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
  2. भाषा सरल और सपाट है।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।
  4. 4. यह अंश मर्मस्पर्शी है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
मानिकचंद पर कौन-सा सत्य प्रकट हुआ?
उत्तर:
मानिकचंद पर रुपया. रूपी प्रेतात्मा का सत्य प्रकट हुआ।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
‘रुपया तुम्हें खा गया।’ का भावार्थ क्या है?
उत्तर:
‘रुपया तुम्हें खा गया।’ का भाव यह है-धनवान व्यक्ति के अन्दर का मानव पिशाच बन जाता है। फलस्वरूप उसमें ममता नहीं होती है। दया नहीं होती है। प्रेम नहीं होता है। वह तो अपने सुख और आनन्द के लिए किसी की भी बलि चढ़ा देता है।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी (आत्मकथा, महात्मा गाँधी)

धर्म की झाँकी पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

धर्म की झाँकी लघु-स्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आत्मबोध और आत्मज्ञान को गांधीजी ने किसका उदार अर्थ माना है?
उत्तर:
आत्मबोध और आत्मज्ञान को गांधीजी ने धर्म का उदार अर्थ माना है।

प्रश्न 2.
गांधीजी के मन पर किस चीज का गहरा असर पड़ा?
उत्तर
गांधीजी के मन पर रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
गांधीजी के अनुसार किस ग्रंथ के पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है?
उत्तर:
गांधीजी के अनुसार भागवत ग्रंथ के पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
गांधीजी ने अपने इक्कीस दिन के उपवास-काल में किन महोदय से भागवत कथा सुनी थी?
उत्तर:
गांधीजी ने अपने इक्कीस दिन के उपवास-काल में भारत-भूषण पंडित मदनमोहन मालवीय के शुभ-मुख से भागवत कथा सुनी थी?

प्रश्न 5.
गांधीजी का भूत-प्रेत का भय कैसे दूर हुआ?
उत्तर:
गांधीजी का भूत-प्रेत का भय अपनी धाय रम्भा के द्वारा राम-नाम के जप नामक अमोघ शक्ति से दूर हुआ।

धर्म की झाँकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गांधीजी के अनुसार धर्म का अर्थ क्या है?
उत्तर:
गांधीजी के अनुसार धर्म का अर्थ उदा है धर्म का यह भी अर्थ है-आत्मबोध, आत्मज्ञान।

प्रश्न 2.
गांधीजी के भीतर रामायण-श्रवण और रामायण के प्रति प्रेम की बुनियाद किस घटना ने रखी थी?
उत्तर:
गांधीजी के भीतर रामायण-श्रवण और रामायण के प्रति बुनियाद पोरबन्दर में घटी एक घटना ने रखी थी। उस समय वे अपने पिताजी के साथ रामजी के मंदिर में रोज रात के समय बीलेश्वर लाधा महाराज से रामायण सुनते थे। वे एक पंडित थे। वे रामचन्द्रजी के परम भक्त थे। उनके बारे में कहा जाता था कि उन्हें कोल की बीमारी हुई, तो उसका इलाज करने के बदले उन्होंने बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेल-पत्र लेकर कोढ़ वाले अंग पर बांधे, और केवल रामनाम का जप शुरू किया। अन्त में उनका कोढ़ जड़-मूल से नष्ट हो गया। यह बात सच हो या न हो, हम सुनने वालों ने तो सच ही मानी।

यह भी सच है कि जब लाधा महाराज ने कथा शुरू की, तब उनका शरीर बिल्कुल निरोग था। लाधा महाराज का कंठ मधुर था। वे दोहा-चौपाई गाते और उनके अर्थ को समझाते थे। स्वयं उसके रस में डूब जाते थे और सुननेवालों को भी उसमें डुबो देते थे। गांधीजी का कहना है कि वे उस समय लगभग तेरह साल के थे। फिर भी उन्हें याद है कि लाधा महाराज के पाठ से उन्हें खूब आनंद आता था। यह राम-नाम श्रवण रामायण के प्रति उनके अत्यधिक प्रेम की बुनियाद है। आज वे इसीलिए तुलसीदास की रामायण को भक्ति मार्ग का सर्वोत्तम ग्रंथ मानते हैं।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
गांधीजी की दृष्टि में सर्वधर्म समभाव का उदय किन प्रसंगों की प्रेरणा से हुआ था?
उत्तर:
राजकोट में गांधीजी को अनायास ही सब सम्प्रदायों के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा मिली। उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रत्येक समुदाय का आदर करना सीखा, क्योंकि उनके माता-पिता वैष्णव मन्दिर में, शिवालय में और राम-मंदिर में भी जाते और अपने भाइयों को भी साथ ले जाते या भेजते थे। फिर उनके पिताजी के पास जैन धर्माचार्यों से भी कोई-न-कोई हमेशा आते रहते थे। उनके पिताजी उन्हें दान भी देते थे।

वे उनके पिताजी के साथ धर्म और व्यवहार की बातें किया करते थे। इसके सिवा उनके पिताजी के मुसलमान और पारसी मित्र भी थे। वे अपने-अपने धर्म की चर्चा करते और पिताजी उनकी बातें सम्मानपूर्वक और रसपूर्वक सुना करते थे। उनके पिताजी के बीमार होने के कारण उनकी देखभाल हेतु ऐसी चर्चा के समय वे अक्सर हाजिरें रहते थे। इस सारे वातावरण का प्रभाव उन पर यह पड़ा कि उनमें सब धर्मों के लिए समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी भाव विस्तार/ पल्लवन

प्रश्न.

  1. ‘बचपन में जो बीज बोया गया, वह नष्ट नहीं हुआ’ पंक्ति में विचार का विस्तार कीजिए?
  2. “आज मैं यह देख सकता हूँ, कि भागवत एक ऐसा ग्रंथ है, जिसके पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है।”
  3. “बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।”

उत्तर:

1. उपर्युक्त पंक्ति महात्मा गाँधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से लिया गया है। इसमें गाँधीजी ने यह कहना चाहा है कि बचपन के संस्कार बड़े ही मजबूत और महत्त्वपूर्ण होते हैं। वे बचपन में अंकुरित अवश्य होते हैं, लेकिन उनके प्रभाव बड़े ही दूरगामी होते हैं। इस तथ्य को समझकर और इसे ध्यान में बच्चों के ऐसे संस्कारों को महत्त्व देना चाहिए जो हर प्रकार से सुन्दर, सुखद और लाभकारी हों। इसके विपरीत संस्कार तो न केवल बच्चों के लिए हानिकारक होते हैं अपितु दूसरों को भी। अगर बच्चों के संस्कार अच्छे होंगे, तो उनका बचपन खुशहाल होगा और उनका शेष जीवन भी। उससे आस-पास का वातावरण भी लाभान्वित होगा। इसके विपरीत बच्चों के बुरे संस्कार उनके बचपन और शेष जीवन को हानि पहुँचाए बिना नहीं रहेगा। यही नहीं उससे आस-पास का वातावरण भी दुखी बना रहेगा। इस प्रकार बचपन में बोया गया बीज कभी नष्ट नहीं होता है।

2. उपर्युक्त कथन महात्मा गांधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से है। इसमें महात्मा गांधी ने इस बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि भागवत एक महान ग्रंथ ही नहीं है, अपितु वह एक सरस, भाववर्द्धक और धार्मिक ग्रंथ भी है। वह मुख्य रूप से एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें धार्मिक रस प्रवाहित होता है। इस तथ्य की सच्चाई तभी ज्ञात होती, जब कोई धार्मिक व्यक्ति अपने तन-मन से उसका ऐसा मधुर, भावपूर्ण और सरस पाठ करे, जिसे सुनकर लोग बाग-बाग हो उठे। उनकी धार्मिक भावधारा उमड़कर प्रवाहित होने लगे।

3. ‘उपर्युक्त वाक्य महात्मा गाँधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से उद्धृत है। इस वाक्य के द्वारा गाँधीजी ने यह कहना चाहा है कि बचपन की आदतें जल्दी नहीं जाती हैं। वे बचपन के बाद युवावस्था और उसके बाद भी कुछ-न-कुछ अवश्य बनी रहती हैं। परिस्थितियाँ टकराकर भी अपनी जड़ें बनाए रहती हैं। वे आदतें चाहे अच्छी हों या बुरी, लेकिन उनके प्रभाव बहुत समय तक होते हैं। इसलिए बच्चों के शुभ-अशुभ संस्कारों की जानकारी न रखने की भूल बड़ी दुखद, होती है। क्योंकि अगर शुभ संस्कारों की जगह अशुभ संस्कार किसी प्रकार से हानिप्रद होते हैं तो वे बच्चों का सुनहरा बचपन छीन लेते हैं। फलस्वरूप उनका आगामी जीवन अंधकारमय हो जाता है। इसके विपरीत शुभ संस्कारों से न केवल बचपन जगमगा उठता है, अपितु आगामी जीवन भी सुगंधित होकर लोकप्रिय बन जाता है। इस आधार पर यह कहना बिल्कुल ही सच है-‘बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।’

धर्म की झाँकी भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए –
भूत-प्रेत, राम-नाम, नित्यपाठ, धर्म-रस, राम-रस।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिएउदार, आदर, ऊपर, श्रद्धा।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को संधियुक्त करते हुए संधि का नाम बताइए –

  1. वात + आवरण
  2. सर्व + उत्तम
  3. शिव + आलय
  4. राम + अयण।

उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखते हुए वाक्य बनाइए –
भूत, जड़, भेद, फल
उत्तर:
भूत – अतीत-हमें अपना भूत नहीं भूलना चाहिए।
भूत – मृतात्मा-मैं भूतों से नहीं डरता हूं।

जड़ – मूल-बरगद की जड़ बहुत दूर तक फैली होती है।
जड़ – मूर्ख-जड़बुद्धि वालों से सावधान रहना चाहिए।

भेद – रहस्य-इसका कोई भेद नहीं जान सकता है।
भेद – अंतर-सही और गलत में भेद जानना चाहिए।

फल – परिणाम-मेहनत का फल मीठा होता है।
फल – पेड़ का फल-सेव एक स्वास्थ्यवर्धक फल है।

MP Board Solutions

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध रूप में लिखिए –

  1. वे दोहा-चौपाई को गाते और दोहा-चौपाई का अर्थ समझाते थे।
  2. पिता भी नित्य प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे।
  3. पिताजी रसपूर्वक उनकी बातें सम्मानपूर्वक सुना करते थे।
  4. बचपन में शुभ-अशुभ संस्कार में पड़े हुए बहुत गहरे जड़ जमाते हैं।

उत्तर:

  1. वे दोहा-चौपाई गाते और अर्थ समझाते थे।
  2. पिताजी प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे।
  3. पिताजी उनकी बातें सम्मानपूर्वक और रसपूर्वक सुना करते थे।
  4. बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।

धर्म की झाँकी योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
अपने जीवन की प्रमुख दो घटनाओं को आधार बनाकर उन्हें आत्मकथात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
गांधीजी की ‘मेरी आत्मकथा’ पुस्तक को पढ़कर उनके प्रेरक प्रसंगों की सूची बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
सभी धर्मों का मूल मानवता है। आप जिस धर्म या संप्रदाय से हैं, उनके मूल गुणों को लिखिए और अन्य धर्मों के मूल गुणों को समझिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
“शिक्षा केवल विद्यालय से नहीं, वरन् वातावरण से भी प्राप्त होती है।” वाद-विवाद प्रतियोगिता के माध्यम से तर्क प्रस्तुत कीजिए अथवा उपर्युक्त विषय पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

धर्म की झाँकी परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

धर्म की झाँकी लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गाँधीजी को धर्म की शिक्षा कहाँ से मिली?
उत्तर:
गाँधीजी को धर्म की शिक्षा उनके आस-पास के वातावरण से मिली।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
गाँधीजी का मन हवेली से क्यों उदासीन हो गया?
उत्तर:
गाँधीजी का मन हवेली से उदासीन हो गया। यह इसलिए कि हवेली में अनीति की बातें होती थीं। उसे सुनकर उनका मन उदासीन हो गया।

प्रश्न 3.
गाँधीजी को रामायण के पाठ में क्यों खूब रस आता था?
उत्तर:
गाँधीजी को रामायण के पाठ में खुब रस आता था। यह इसलिए कि रामायण के पाठ को लाधा महाराज बड़ी सरसता से अर्थ समझाकर करते थे। उसे सुनने वाले स्वयं को उसी में खो देते थे।

प्रश्न 4.
किससे गाँधीजी में सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया?
उत्तर:
अपने वातावरण के प्रभाव से गांधीजी में सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गाँधीजी को हवेली से क्या मिला?
उत्तर:
गाँधीजी को जो हवेली से मिला, वह उन्हें अपनी धाय रेम्भा से मिला। रम्भा उनके परिवार की पुरानी नौकरानी थी। उसका प्रेम उन्हें आज भी याद है। उन्हें भूत-प्रेत आदि का डर लगता था। रम्भा ने उन्हें समझाया कि इसकी दवा रामनाम है। उन्हें तो रामनाम से भी अधिक श्रद्धा रम्भा पर थी, इसलिए बचपन में भूत-प्रेतादि के भय से बचने के लिए उन्होंने राम-नाम जपना शुरू किया। यह जप बहुत समय तक नहीं चला। पर बचपन में जो बीज बोया गया, वह नष्ट नहीं हुआ। आज रामनाम उनके लिए अमोघ शक्ति है। वे मानते हैं कि उसके मूल में रम्भाबाई का बोया हुआ बीज है।

प्रश्न 2.
गाँधीजी के द्वारा रामायण कंठाग्र करने के कारण बताइए।
उत्तर:
गाँधीजी के चाचाजी के एक लड़के ने जो रामायण के भक्त थे, उनके दो भाइयों को राम-रक्षा का पाठ सिखाने की व्यवस्था की। उन्होंने उसे कण्ठाग्र कर लिया और स्नान के बाद उसके नित्यपाठ का नियम बनाया। जब तक पोरबंदर में रहे, यह नियम चला। राजकोट के वातावरण में यह टिकं न सका। इस क्रिया के प्रति भी खास श्रद्धा नहीं थी। अपने बड़े भाई के लिए मन में जो आदर था, उसके कारण और कुछ शुद्ध उच्चारणों के साथ राम-रक्षा का पाठ कर पाते हैं-इस अभिमान के कारण पाठ चलता रहा।

प्रश्न 3.
रामायण का पारायण सुनने वालों ने क्या बात सच मानी?
उत्तर:
गाँधीजी के पिताजी रामजी के मंदिर में रोज रात के समय रामायण सुनते थे। सुनाने वाले बीलेश्वर के लाधा महाराज नामक एक पंडित थे। वे रामचन्द्र जी के परम भक्त थे। उनके बारे में कहा जाता था कि उन्हें कोढ़ की बीमारी हुई, तो उसका इलाज करने के बदले उन्होंने बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेलपत्र लेकर कोढ़ वाले अंग पर बांधे, और केवल रामनाम का जप शुरू हुआ। अन्त में उनका कोढ़ जड़-मूल से नष्ट हो गया। यह बात सच हो या न हो, रामायण का पारायण सुनने वालों ने तो सच ही मानी।

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
मालवीय जी से भागवत सुनकर गांधीजी पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
पंडित मदन मोहन मालवीय जी से भागवत सुनकर गांधीजी पर बड़ी भारी प्रतिक्रिया हुई। उन्हें उस समय यह ख्याल हुआ कि बचपन में उनके समान भगवत्-भक्त के मुंह से भागवत सुनी होती, तो उस पर उसी उमर में मेरा प्रगाढ़ प्रेम हो जाता। बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं, इसे मैं खूब अनुभव करता हूँ; और इस कारण उस उम्र में मुझे कई उत्तम ग्रन्थ सुनने का लाभ नहीं मिला, सो अब अखरता है।

प्रश्न 5.
‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा के केन्द्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपने बाल और किशोर जीवन के उन कतिपय प्रसंगों को महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा के इस अंश में प्रस्तुत किया है, जिन्होंने उनके परवर्ती जीवन पर प्रभाव डाला है। राम-नाम के प्रति उनकी दृढ़ आस्था ने उन्हें निर्भीकता प्रदान की। भारतीय महाकाव्यों के श्रवण-पठन ने उन्हें संस्कारी जीवन जीने की प्रेरणा दी और उनके उदार पारिवारिक वातावरण ने उन्हें सर्वधर्म समभाव की दृष्टि प्रदान की। आत्मकथा के इस हिस्से में महात्मा गांधी की स्पष्टता, आत्मीयता और सहजता का अनुभव किया जा सकता है।

धर्म की झाँकी लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को गुजरात राज्य के पोरबन्दर नगर में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था.। उनके पिता का नाम करमचन्द और माता का नाम पुतलीबाई था। उनकी आरम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई। अपनी आरम्भिक शिक्षा को समाप्त करके अपनी उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ पर उन्होंने लगातार अध्ययन करके बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त कर ली। इसके बाद स्वेदश लौट जाए।

स्वदेश आकर महात्मा गाँधी वकालत करने लगे। वे एक मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ पर उन्होंने भारतीयों और अपने साथ अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार और दुर्व्यवहार को देखकर अंग्रेजों का विरोध किया। इसके लिए उन्होंने अहिंसात्मक आन्दोलन चलाए। इसके बाद वे स्वदेश लौट आए। स्वदेश आकर उन्होंने श्री गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मान लिया। उनकी देख-रेख में उन्होंने देश की आजादी के लिए देश के विभिन्न भागों में सत्याग्रह किए। उन्होंने अपने सत्याग्रह और असहयोग आन्दोलन को आजादी के लिए अस्त्र-शस्त्र के रूप में प्रयोग किया। उनके इस अथक प्रयास से 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हो गया। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

रचनाएँ:
‘हिन्दस्वराज्य’ सर्वोदय (रस्किन की ‘अन टु दि लास्ट’ पुस्तक का अनुवाद) दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर अत्याचार का वर्णन करने वाली पुस्तक ‘हरी पुस्तक’ आदि गाँधीजी की महत्त्वपूर्ण पुस्तकें हैं। उन्होंने ‘यंग इण्डिया’ और ‘हरिजन’ नामक पत्र भी निकाले। उन्होंने ‘सत्य के प्रयोग’ नामक महत्त्वपूर्ण आत्मकथा भी लिखी।

महत्त्व:
गाँधीजी के साहित्य का महत्त्व निर्विवाद रूप से है। उनका साहित्य साम्प्रदायिक सद्भाव का पक्षपाती है। वह निम्न तथा पिछड़े वर्ग के विकास का प्रेरक है। उसमें आत्मनिर्भरता का अद्भुत पाठ है। परस्पर मेल-मिलाप की सीख देने वाला वह एक बेजोड़ साहित्य है।

धर्म की झाँकी पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर:
महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा में अनेक प्रेरक घटनाओं प्रसंगों का उल्लेख है। महात्मा गाँधी का कहना है कि उन्हें छह या सात साल से सोलह साल तक की शिक्षा में धर्म की शिक्षा नहीं मिली। धर्म अर्थात् आत्मबोध, आत्मज्ञान। हवेली का वैभव उन्हें अच्छा नहीं लगा। उसके प्रति उदासीन हो गए। उन्हें वहाँ की रम्भा की याद आज भी है। वह उनके परिवार की पुरानी नौकरानी थी। उसने उन्हें भूत-प्रेतादि के भय से बचाने के लिए राम-नाम जपने का मन्त्र दिया था। आज भी उनके लिए यह अमोघ शक्ति है। उन्होंने अपने चाचाजी के एक लड़के से राम-रक्षा का पाठ सीख कर नियमित रूप से पाठ करके उसे कंठाग्र कर लिया। पोरबंदर में यह पाठ नियमित रूप से चलता रहा, लेकिन राजकोट में नहीं।

गाँधीजी के मन पर रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा। उनके बीमार पिताजी पोरबंदर के रामजी के मन्दिर में रात के समय बीलेश्वर के लाधा महाराज नामक पण्डित से रामायण सुनते थे। वे रामचन्द्र के इतने बड़े भक्त थे कि उन्होंने अपनी कोढ़ की बीमारी को बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेल-पत्र को कोढ़ वाले अंगों पर बाँध देते थे। फिर राम नाम का जप करते थे। इससे उनका कोढ़ बिलकुल ठीक हो गया। उनका कण्ठ इतना मीठा था कि जब वे दोहा-चौपाई गाकर अर्थ समझाते थे तो उससे श्रोता रसमग्न हो जाते थे। उससे वे रामायण के प्रति अधिक लीन हो गए। फलस्वरूप वे तुलसी के रामायण को भक्तिमार्ग का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ मानते हैं।

वे राजकोट आए तो रामायण नहीं, एकादशी के दिन भागवद् जरूर पढ़ी जाती थी। उसे सुनने पर उन्हें रामायण जैसा आनन्द नहीं आया। इसलिए उन्होंने यह मान लिया कि भागवद् ग्रन्थ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता हैं उन्होंने अपने उपवास के दौरान मदन मोहन मालवीय के मूल संस्कृत के कुछ अंश सुने। उससे उन्हें यह पश्चाताप हुआ कि अगर वे बचपन में ऐसा सुने होते तो उस पर उस समय प्रगाढ़ प्रेम हो जाता।

राजकोट में गाँधी को सभी सम्प्रदायों के प्रति एक समान भाव रखने की शिक्षा मिली। इससे उन्होंने सभी सम्प्रदायों के प्रति सम्मान की भावना रखना सीखा। ऐसा इसलिए भी कि उनके माता-पिता उन्हें और उनके भाइयों को अपने साथ वैष्णव मन्दिर में, शिवालय में और राम-मन्दिर ले जाते थे या किसी के साथ भेजते थे। गाँधीजी के पिताजी के पास जैन धर्माचार्य आया करते थे। इनके पिताजी उन्हें दान देते थे और वे उनके साथ धर्म-व्यवहार पर चर्चा करते थे। इनके पिताजी के पारसी और मुसलमान मित्र उनसे अपने धर्म की चर्चा करते थे। वे उसे बड़े आदर से सुनते थे। इससे उनमें सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

MP Board Solutions

प्रश्न 1.
छह या सात साल से लेकर सोलह साल की उमर तक मैंने पढ़ाई की, पर स्कूल में कहीं भी धर्म की शिक्षा नहीं मिली। यों कह सकते हैं कि शिक्षकों से जो आसानी से मिलना चाहिए था, नहीं मिला। फिर भी वातावरण से कुछ-न-कुछ तो मिलता ही रहा। यहाँ धर्म का उदार अर्थ करना चाहिए। धर्म अर्थात् आत्मबोध, आत्मज्ञान। मैं वैष्णव सम्प्रदाय में जन्मा था, इसलिए हवेली में जाने के प्रसंग बार-बार आते थे, पर उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई। हवेली का वैभव मुझे अच्छा नहीं लगा। हवेली में चलने वाली अनीति की बातें सुनकर मन उसके प्रति उदासीन बन गया। वहाँ से मुझे कुछ भी न मिला।

शब्दार्थ:

  • उदार – दयालु, भला।
  • आत्मबोध – आत्मा का ज्ञान, स्वयं को जानना।
  • अनीति – दुराचार, दुष्टता, अनैतिकता।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने धर्म के अर्थ को बतलाने का प्रयास करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत छह या सात साल की उम्र से की थी। इस उम्र से लेकर वे सोलह साल तक लगातार पढ़ते रहे। लेकिन यह ध्यान देने . की बात है कि इस दौरान उन्हें किसी भी स्कूल या कॉलेज से धर्म की शिक्षा नहीं प्राप्त हुई। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि धर्म शिक्षा का जो एक आवश्यक अंग होता है। उसे शिक्षकों ने छोड़ दिया। इस तरह की अपनी शिक्षा के दौरान धर्म का पाठ न पढ़ सके। इसके बावजूद उन्हें अपने आस-पास के वातावरण से जो कुछ प्राप्त हुआ, उसमें धर्म-शिक्षा भी थी। उससे उन्होंने अपने जीवन में बहुत सीखा। उससे बहुत कुछ हासिल भी किया।

गाँधीजी का पुनः कहना है कि धर्म का अर्थ खासतौर से उदार होना चाहिए। जिस धर्म में उदारता, दयालुता, परोपकारिता और परहित चिन्तन की भावना नहीं है, वह धर्म सच्चा नहीं हो सकता। धर्म से अभिप्राय आत्म-बोध अर्थात् अपना अनुभव। धर्म का एक दूसरा भी अर्थ होता है-आत्मज्ञान, अर्थात् आत्मा का ज्ञान, अपने आप को जान लेना, समझ लेना। गाँधीजी का स्वयं के विषय में यह कहना है कि वैष्णव सम्प्रदाय में पैदा हुए थे। यही कारण था, उन्हें हवेली में जाने की बात बार-बार आती थी। लेकिन इसका उनके मन में कोई लगाव नहीं था और न कोई श्रद्धा ही हुई थी।

इसके कई कारणों में से कुछ कारण इस प्रकार थे-हवेली की साधन-सम्पन्नता उन्हें आकर्षित न कर सकी। हवेली का वाताबरण उन्हें ठीक नहीं लगता था। वहाँ की बातचीत बड़ी ही अनैतिक और असभ्य होती थी। इससे उनका मन नहीं लगा। इस प्रकार उन्हें वहाँ पर ऐसी कोई चीज नहीं दिखाई दी, जिससे वे आकर्षित हो सकें या कुछ प्राप्त कर सकें।

विशेष:

  1. भाषा सरल और सुबोध है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. धर्म के अर्थ और स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  4. वाक्य का गठन अर्थपूर्ण है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. विद्यार्थी जीवन में महात्मा गाँधी को क्या नहीं प्राप्त हुआ?
  2. धर्म के क्या-क्या अर्थ हैं?

उत्तर:

  1. विद्यार्थी जीवन में महात्मा गाँधी को धर्म क्या होता है? इसकी शिक्षा उन्हें प्राप्त नहीं हुई।
  2. धर्म के कई अर्थ हैं-उदारता, आत्मबोध, आत्मज्ञान आदि।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. महात्मा गाँधी को किससे क्या नहीं मिला?
  2. हवेली के प्रति गाँधीजी को क्यों अरुचि हो गई थी?

उत्तर:

1. महात्मा गाँधी को अपने शिक्षकों से धर्म की शिक्षा नहीं मिली।

2. हवेली के प्रति गाँधीजी को अरुचि हो गई थी। यह इसलिए कि –

  • हवेली की साधन-सम्पन्नता उन्हें अनुचित लगती थी।
  • हवेली में होने वाली बातें अनैतिक होती थीं।
  • हवेली से उन्हें कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ।

प्रश्न 2.
जब लाधा महाराज ने कथा शुरू की, तब उनका शरीर विल्कुल नीरोग था। लाधा महाराज का कंठ मीठा था। वे दोहा-चौपाई गाते और अर्थ समझाते थे। स्वयं उसके रस में लीन हो जाते थे और श्रोताजनों को भी लीन कर देते थे। उस समय मेरी उम्र तेरह साल की रही होगी, पर याद पड़ता है कि उनके पाठ में मुझे खूब रस आता था। यह रामायण-श्रवण रामायण के प्रति मेरे अत्यधिक प्रेम की बुनियाद है। आज मैं तुलसीदास की रामायण को भक्ति-मार्ग का सर्वोत्तम ग्रन्थ मानता हूँ।

शब्दार्थ:

  • कथा – रामायण की कथा।
  • लीन हो जाते थे – डूब जाते थे।
  • श्रोताजनों – सुनने वालों।
  • श्रवण – सुनना।
  • बुनियाद – आरम्भ, जड़, नींव, आधार।
  • सर्वोत्तम – सर्वश्रेष्ठ।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने तुलसीकृत रामायण के प्रति अपनी श्रद्धा-भावना को व्यक्त करने का प्रयास किया है। इस विषय में गाँधीजी का कहना है कि –

व्याख्या:
उनके मन पर तुलसीकृत रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा है। लाधा महाराज नामक एक पण्डित थे। उन्होंने रामायण की कथा और रामनाम के जप से अपने कोढ़ग्रस्त शरीर को ठीक कर लिये। उन्होंने जब कथा आरम्भ की, तब वे कोढ़ी नहीं थे। वे उस समय बिलकुल स्वस्थ और निरोग थे। उस समय उनका कण्ठ बहुत मधुर और सरस था। इससे वे रामायण के दोहा-चौपाई का सरस और मधुर स्वर निकालते थे। फिर उनके अर्थ और व्याख्या खूब तन-मन से किया करते थे। इस प्रकार वे उसमें ‘पूरी तरह से डूब जाते थे। फलस्वरूप सुनने वाले भी उसी में डूबकर अपनी सुध खो देते थे।

गाँधी जी का पुनः कहना है कि वे लाधा महाराज द्वारा शुरू की गई इस प्रकार की कथा को बड़े ही ध्यान देकर सुनते थे। वे उस समय लगभग तेरह साल के थे। फिर भी उन्हें उनके द्वारा किए गए रामायण के पाठ से बड़ा ही आनन्द आता था। इस प्रकार रामायण की कथा को सुनकर उसके प्रति उनकी बहुत अधिक श्रद्धा की शुरुआत थी। यही कारण है कि वे आज भी तुलसीकृत रामायण के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं। उसे वे भक्तिमार्ग के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ के रूप में देखते भी हैं।

विशेष:

  1. भाषा सरल शब्दों की है।
  2. आत्मकथात्मक शैली है।
  3. तुलसीकृत रामायण के प्रति लेखक की श्रद्धा भावना व्यक्त हुई है।
  4. तुलसीकृत रामायण का महत्त्वांकन किया गया है।
  5. यह अंश प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. लाधा महाराज कौन थे?
  2. लाधा महाराज के कथा कहने की खूबी क्या थी?

उत्तर:

1. लाधा महाराज एक पण्डित थे। वे रामचन्द्र जी के परम भक्त थे।

2. लाधा महाराज के कथा कहने की बहुत बड़ी खूबी थी। उनका कण्ठ बहुत मधुर और सरस था। वे दोहा-चौपाई को मधुर स्वरों से गा-गाकर उनके अर्थ और भावार्थ को अच्छी तरह से समझाते थे। वे उसमें डूब जाते थे। यही नहीं अपनी कथा-कहने । की शैली से सुनने वालों को भी उसमें डूबा देते थे।

गाद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. गाँधीजी को कैसे रामायण के प्रति अत्यधिक प्रेम उत्पन्न हो गया?
  2. गाँधी जी तुलसीदास की रामायण को किस रूप में देखते हैं?

उत्तर:

  1. गाँधीजी को रामायण को सुनने से रामायण के प्रति अत्यधिक प्रेम उत्पन्न हो गया?
  2. गाँधीजी तुलसीदास की रामायण को भक्ति मार्ग के सर्वोत्तम ग्रन्थ के रूप में देखते हैं।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
भागवत एक ऐसा ग्रन्थ है जिसके पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है। मैंने तो उसे गुजराती में बड़े चाव से पढ़ा है। लेकिन इक्कीस दिन के अपने उपवास काल में भारत-भूषण पण्डित मदनमोहन मालवीयजी के शुभ मुख से मूल संस्कृत के. कुछ अंश जब सुने तो ख्याल हुआ कि बचपन में उनके समान भगवद्-भक्त के मुँह से भागवत सुनी होती, तो उस पर उसी उमर में मेरा प्रगाढ़ प्रेम हो जाता। बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं, इसे मैं खूब अनुभव करता हूँ; और इस कारण उस उमर में मुझे कई उत्तम ग्रन्थ सुनने का लाभ नहीं मिला, सो अब अखरता है।

शब्दार्थ:

  • चाव – रुचि, शौक।
  • मुख – मुँह।
  • मूल – आरंभ, आदि, आधार, नींव।
  • ख्याल – ध्यान।
  • प्रगाढ़ – अत्यधिक, गहरा।
  • अखरता – अफ़सोस होता।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें गांधी जी ने भागवत धर्मग्रंथ की विशेषता बतलाने का प्रयास किया है। इस विषय में गांधीजो का कहना है कि –

व्याख्या:
भागवत साधारण धर्मग्रंथ नहीं है। वह तो एक ऐसा असाधारण ग्रंथ है, जिसके नियमित पाठ से धार्मिक भावों को प्रवाहित करके जीवन को महान बनाया जा सकता है। गांधीजी का यह स्पष्ट कहना है कि उन्होंने तो इस धर्मग्रंथ को गुजराती भाषा में अनुवाद के माध्यम से बड़ी रुचि के साथ पढ़ा था। फिर उस पर गहराई से मनन भी किया था। यह ध्यान देने की बात है कि अपने इक्कीस दिनों के लगातार उपवास के दौरान तो उन्होंने इसे और रुचि के साथ समझने का प्रयास किया था। उस समय उनके लिए एक वह सुवअसर प्राप्त हुआ था।

जब भारत-भूषण पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने अपने मुखारविंद से इसके कुछ अंश को मूल संस्कृत में सुना। उससे उन्हें यह पश्चाताप हुआ कि अगर वे इसे अपने बचपन में इस तरह सुने होते, तो उसी समय ही उन्हें इससे अत्यधिक लगाव हो गया होता। इस तरह उनका पिछला समय न तो बर्बाद होता और न उन्हें इस तरह से पछताना पड़ता। सच में बचपन में जो भी आदत, चाहे अच्छी हो या बुरी पड़ जाती है, वह पूरे जीवन में स्थायी रूप से हो जाती है। यही कारण है कि उस समय के ऐसे-ऐसे श्रेष्ठ ग्रंथों को सुनने का लाभ नहीं उठा पाए, जिसके लिए उन्हें आज भी बहुत पछताना पड़ता है।

विशेष:

  1. भाषा में सरलता है।
  2. भागवत का महत्त्वांकन किया गया है।
  3. आत्मकथात्मक शैलो है।
  4. बचपन को जोवन की नींद के रूप में माना गया है।
  5. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. भागवत्कैसा ग्रंथ है?
  2. मालवीय जी क्या थे?

उत्तर:

  1. भागवत् ग्रंथ एक ऐसा ग्रंथ है, जिसके पास से धर्म का रसप्रवाहित होता है।
  2. मालवीय जी भगवद्-भक्त थे। वे भागवत् मोहक और मधुर स्वरों में पाठ करतेथे।

प्रश्न.

  1. बचपन के संस्कार कैसे होते हैं?
  2. गांधीजी को क्या अखरता है?

उत्तर:

  1. बचपन के संस्कारों की जड़ें गहरी होती हैं। वे बाद में जीवन में अपना प्रभाव किसी-न-किसी प्रकार से अवश्य डालती हैं।
  2. गांधीजी को अपने बचपन में कई उत्तम ग्रंथों को सुनने का लाभ नहीं मिला। वही अब उन्हें अखरता है।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 12 बिहारी के दोहे

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 12 बिहारी के दोहे (कविता, बिहारी)

बिहारी के दोहे पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

बिहारी के दोहेलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सर्प, मोर, हिरण और सिंह कहाँ एक साथ रहते हैं?
उत्तर:
सर्प, मोर, हिरण और सिंह एक साथ तपोवन में रहते हैं।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
किस तिथि को सूर्य और चन्द्र एक साथ होते हैं?
उत्तर:
अमावस्या तिथि को सूर्य और चन्द्र एक साथ होते हैं।

प्रश्न 3.
पाप का बोध किसको अधिक होता है?
उत्तर:
पाप का बोध शक्तिहीन को अधिक होता है।

बिहारी के दोहे दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बाज के माध्यम से कवि ने किसके आचरण को लक्षित किया है, और क्यों?
उत्तर:
बाज के माध्यम से कवि ने अपने आश्रयदाता महाराजा जयसिंह के आचरण । को लक्षित किया है कि उन्हें औरंगजेब के इशारे पर महाराजा शिवाजी पर आक्रमण नहीं करना चाहिए। यह इसलिए कि इसमें उनका अपना कोई लाभ नहीं है। दूसरी बात यह कि एक हिन्दू राजा द्वारा दूसरे हिन्दू राजा पर आक्रमण करना भी सजातीयता के बिल्कुल विपरीत और अनुचित है।

प्रश्न 2.
सज्जन के प्रेम की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
सज्जन के प्रेम की कई विशेषताएँ हैं –

  1. वह सदैव बना रहता है।
  2. वह अपने प्रेमी के बुरे दिन आने पर भी उसके प्रति पहले की तरह ही प्रेम करता है।
  3. वह लाभ-हानि की चिन्ता नहीं करता है।
  4. वह शुद्ध और अच्छे भावों से भरा होता है।
  5. वह चोल के रंग के समान जीवन भर प्रेम का निर्वाह करता रहता है।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
मित्रता सदैव चलती रहे, इस हेतु क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर:
मित्रता सदैव चलती रहे, इस हेतु निम्नलिखित सावधानी बरतनी चाहिए –

  1. अपने हृदय को शुद्ध और खुला रखना चाहिए।
  2. लाभ-हानि का ध्यान नहीं देना चाहिए।
  3. संकट के समय भी मित्रता की भावना को फीका नहीं पड़ने देना चाहिए।
  4. किसी प्रकार के अहंकार के ताप से मित्रता को मुरझाने से बचाना चाहिए।
  5. मित्रता को एक आदर्श के रूप में बनाए रखने की भावना सदैव रखनी चाहिए।

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण की वंशी इन्द्रधनुष के समान क्यों लगती है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की वंशी इन्द्रधनुप के समान लगती है। यह इसलिए कि श्रीकृष्ण के ओठों का रंग लाल है, आँखों का रंग सफेद और काला है, और उनका वस्त्र पीला है। इन सबके प्रभाव से हरे रंग वाली वंशी रंग का इन्द्रधनुष के समान हो उटना स्वाभाविक ही लगता है।

बिहारी के दोहे भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.

  1. बढ़त-बढ़त सम्पति, सलिलु, मन सरोज बढ़ि जाइ।
  2. दुसह दुराज प्रजानु कौं, क्यों न बढ़े दुःख-दंदु!
  3. बैठि रही अति सघन वन, पैठि सदन-तन माँहि।
    देखि दुपहरी जेठ की, छाँही चाहति छाँह।

उत्तर:

1. जिस प्रकार पानी के हमेशा बढ़ते रहने पर कमल की नाल भी हमेशा बढ़ती रहती है, पानी के घटने पर वह नाल घटती तो नहीं, लेकिन कुम्हलाकर नष्ट हो जाती है। टीक इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति की सम्पत्ति बढ़ती रहती है, तो उसके मन में अनेक प्रकार की इच्छाएँ जोर मारने लगती हैं, लेकिन जब उसकी सम्पत्ति घटने लगती है, तो केवल घटती ही नहीं, बल्कि मूलधन सहित वह नष्ट हो जाती है, अर्थात् उस व्यक्ति के पास कुछ भी शेष नहीं रह जाता है।

2. दो राजाओं के राज्य में, अर्थात् जिस राज्य के एक ही समय में दो राजा हों, उस राज्य की प्रजा को अनेक प्रकार के दुःख झेलने पड़ते हैं। कहने का भाव यह है कि सबल और शक्तिसम्पन्न लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए निर्बलों के सुख-दुःख को बिल्कुल ही भूल जाते हैं। शक्ति-सम्पन्न लोग अपनी शक्ति के प्रदर्शन अपने बराबर वालों से जहाँ करते हैं, वहाँ तक तो वे प्रशंसनीय हैं। लेकिन उनके इस शक्ति के प्रदर्शन से आम जनता को जो कष्ट होता है, वह निश्चय ही निन्दनीय है। अतएव अपने सुख-स्वार्थ के लिए हमें दूसरों के हितों को अनदेखा नहीं करना चाहिए।

3. चूँकि गर्मी की ऋतु में भारत में सूर्य की किरणें तिरछी नहीं पड़ती हैं, बल्कि सीधी पड़ती हैं। उस समय सूर्य भूमध्य रेखा पर आ जाता है। उससे भारत के अनेक स्थान तपने लगते हैं। फलस्वरूप गर्मी का प्रकोप बहुत भयंकर हो जाता है। यह जेठ के माह में चरम सीमा पर होता है। यहाँ उपर्युक्त दोहे में जेठ माह की इसी भीषण गर्मी के उल्लेख से उसके असाधारण प्रभाव को बतलाया गया है कि उससे न केवल जीव-जन्तु ही, अपितु पेड़-पौधे भी समाप्त होने लगते हैं। फलस्वरूप कहीं भी किसी की छाया तक भी नहीं दिखाई देती है। इसी दशा से कवि ने यह संभावना व्यक्त करने का प्रयास किया है कि छाया को भी छाया की जरूरत है। इसलिए वह या . तो घने जंगलों में जाकर छिप गई है या घरों के अंदर।

बिहारी के दोहे भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
पदु, दुराज, स्याम, जगत, दीरघ, छाँड़तु, रंग्यौ, मावस, सुम्रत्यौ शब्दों के शुद्ध हिन्दी मानक रूप लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 12 बिहारी के दोहे img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के समास विग्रह कर समास का नाम लिखिए-नीलमणि, सज्जन, दुपहरी।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 12 बिहारी के दोहे img-2

बिहारी के दोहे योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
रहीम के तीन नीतिपरक दोहे खोजकर लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
ग्रीष्म की दोपहरी का अनुभव आप अपने शब्दों में लिखिए। कक्षा में बताइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
आपने कभी किसी असहाय/निर्धन व्यक्ति की मदद की है, यदि हाँ तो आप उसकी सहायता के अनुभव की चर्चा अपने साथियों से कीजिए तथा ऐसे किसी विषय पर एकांकी को खोजकर उसका अभिनय कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

बिहारी के दोहे परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बिहारी के दोहे लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सर्प, मोर, हिरण और बाघ कब एक साथ रहते हैं?
उत्तर:
सर्प, मोर, हिरण और बाघ उस समय एक साथ रहते हैं जब चारों ओर जानलेवा गर्मी फैल जाती है। उससे सारा संसार एक तपोवन की तरह हो जाता है। उस समय अपनी जान बचाने के लिए सर्प, मोर, हिरण और बाघ परस्पर वैरभाव भूलकर एक साथ रहते हैं।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण की शोभा कब और अधिक बढ़ जाती है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की शोभा तब और अधिक बढ़ जाती है जब वे पीताम्बर धारण करते हैं।

प्रश्न 3.
दो राजाओं के एक ही राज्य में क्या होता है?
उत्तर:
दो राजाओं के एक ही राज्य में प्रजा को बेहद दुःख होता है।

बिहारी के दोहे दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अधर धरत हरि कै परत, ओठ-दीठि-पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुष रंग होति।।
उपर्युक्त दोहे में किन भावों की व्यंजना हुई है।
उत्तर:
उपर्युक्त दोहे में एक गोपी की अपनी एक प्रिय सखी से श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य के सम्बन्ध में कही गई बातों की व्यंजना हुई है। वह गोपी अपनी सखी से श्रीकृष्ण की साधारण वंशी की इन्द्रधनुष के रंग का होना कहकर यह व्यंजित करना चाहती है कि यदि वह उनके पास चलेगी, तो उसकी भी सुन्दरता रँगीली हो जाएगी। वह ओठ, आँख और वस्त्र की ज्योति से वंशी को इन्द्रधनुष के समान रंग वाली कहकर श्रीकृष्ण के ओठों की ललाई, आँखों की श्यामलता और वस्त्रों के पीलापन का अधिक चटक और प्रभा देने वाली होना भी व्यंजित करती है।

प्रश्न 2.
कहलाने एक बसत, अहि, मयूर, मृग बाघ।
जगत तपोवन सो कियौ, दीरघ-दाघ-निदाघ।।
उपर्युक्त दोहे का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त दोहे के द्वारा कवि ने यह भाव स्पष्ट करना चाहा है कि चारों ओर बेहद गर्मी पड़ रही है। उसके कारण यह सारा संसार एक तपोवन का रूप ले चुका है। जिस प्रकार तपोवन में हिंसक पशु अपने हिंसक भाव को छोड़कर मित्रभाव से रहने लगते हैं उसी प्रकार साँप, मोर, हिरण और बाघ रह रहे हैं। अर्थात् साँप ने मोर के प्रति और बाघ ने हिरण के प्रति अपने हिंसक भाव का परित्याग कर मित्र-भाव को अपना लिया है।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
‘बिहारी के दोहे’ के केन्द्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
केन्द्रीय भाव के अन्तर्गत बिहारी ने कृष्ण के स्वरूप का वर्णन उत्प्रेक्षा के माध्यम से किया है। कृष्ण एवं उनकी बाँसुरी का वर्णन करते हुए कवि ने वर्ण परिवर्तन को चमत्कारिक ढंग से प्रस्तुत किया है। प्रकृतिपरक वर्णन में कवि का ग्रीष्म वर्णन महत्त्वपूर्ण है। ग्रीष्म के आतप से तापित वे पशु-पक्षी जो आपस में शत्रुभाव रखते हैं, एक-दूसरे के साथ मित्र-भाव से रह रहे हैं-यह तपोवन के रहवास का गुण है। ज्येष्ठ महीने की इतनी अधिक तपन है कि दोपहर में छाया भी छाया ढूँढ़ती फिरती है। नीतिपरक दोहों में बिहारी ने सज्जनों के अमिट प्रेम का, द्विराज में प्रजा के दुःख-दर्दो का, सम्पत्ति की क्षण-भंगुरता का, मित्र-धर्म की गहनता का, दुर्बल को दबाने वाली शक्तियों का तथा अपने सजातीय बन्धुओं पर अन्यथा प्रेरणा से प्रहार करने की मनाही का वर्णन किया है।

बिहारी के दोहे कवि परिचय

प्रश्न 1.
कविवर बिहारी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
कविवर बिहारी का जन्म ग्वालियर के पास बसुआ गोविन्द पुर गाँव में माना जाता है। इनके जीवन परिचय से संबंधित निम्नलिखित दोहा बहुत प्रसिद्ध है –

‘जनम ग्वालियर जानिए, खंड बुंदेल बाल।
तरुनाई आई सुघर, मथुरा बसि ससुराल।।’

(अर्थात् उनका जन्म ग्वालियर में, बचपन बुंदेलखंड में और युवावस्था ससुराल मथुरा में बीती थी।) उनका जन्म मथुरा के चौबे परिवार में हुआ था। उनके पिता केशवराय थे। वे ग्वालियर छोड़कर ओरछा चले गए थे। वहीं रहकर उन्होंने कवि केशवदास से काव्य-शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कविवर केशवदास के साहित्य का विस्तृत अध्ययन-मनन किया। इसकी छाप उनके दोहों में दिखाई देती है। इनके जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। वह यह कि वे जिस समय अपनी वृत्ति लेने के लिए जयपुर के राजा के दरबार में गए, उस समय वहाँ के राजा जयसिंह अपनी नई रानी के प्रेम में इतना फँसे हुए थे कि राजकाज देखने के लिए तनिक भी समय नहीं निकाल पाते थे। बिहारी ने उनकी आँखें खोलने के लिए यह दोहा लिखकर भेजा –

“नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिं काल।
अली कली ही सों कस्यो, आगे कौन हवा।।”

इस दोहा का राजा जयसिंह पर जादू-सा असर पड़ा। उन्होंने प्रसन्न होकर बिहारी को इसी प्रकार के सरस दोहे रचने के लिए आदेश दिया। उन्होंने उनके द्वारा रचे गए प्रत्येक दोहे पर एक-एक अशरफी देने का वचन दिया। बिहारी ने ऐसे सात सौ दोहों की रचना की, जो ‘बिहारी सतसई’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी मृत्यु 1663 में हुई।

रचना:
बिहारी ने ‘सतसई’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इसमें सात सौ दोहे संकलित हैं।

साहित्य का महत्त्व:
बिहारी रीतिकाल के महाकवि हैं। उनकी रचना ‘सतसई’ मुक्तक काव्य की सुप्रसिद्ध रचना है। इनके दोहे शृंगार रस से लबालब भरे हुए हैं तो उनमें अलंकारों का चमत्कार देखते ही बनता हैं। उन्होंने ब्रजभाषा में शब्द-योजना और वाक्य-रचना बड़े व्यवस्थित रूप में की है। इस प्रकार उन्होंने अपने दोहों में ‘गागर में सागर’ भर दिया है।

बिहारी के दोहे पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
कविवर बिहारी विरचित दोहों का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बिहारी के दोहों के इस संकलन में तीन प्रकार के दोहे हैं-भक्तिपरक, प्रकृतिपरक और नीतिपरक। भक्ति संबंधित दोहों में कवि ने श्रीकृष्ण के मनमोहक स्वरूप का चित्रांकन किया है। श्रीकृष्ण के वस्त्र और उनकी मुरली, उनकी शारीरिक सुन्दरता को बड़ा ही अनूठा बनाकर मन को मोहने वाले हैं। प्रकृति संबंधी दोहों में ग्रीष्मकाल की भीषण तपन गहरे रूप में चित्रित है। नीति से संबंधित दोहों में सज्जनों के अमिट प्रेम का, द्विराज में प्रजा के दुखों का, संपत्ति की अस्थिरता का, मित्र-धर्म की गंभीरता का, दुर्बलों को कमजोर करने वाली शक्तियों का और अपने सजातीय बंधुओं पर अन्यथा प्रेरणा से प्रहार करने की अवरोध का वर्णन है।

बिहारी के दोहे संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

भक्ति:

प्रश्न 1.
सोहत ओटै पीतु पटु, स्याम सलौनैं गात।
मनौं नीलमनि-सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात।।

शब्दार्थ:

  • सोहत – शोभायमान।
  • ओढ़े – धारण करने पर।
  • पीतु – पीला।
  • पटु – वस्त्र।
  • मनौं – मानो।
  • आतप – धूप।
  • पर्यो – पड़ा।

प्रसंग:
यह दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी सामान्य भाग-1 में संकलित तथा कविवर बिहारी द्वारा विरचित ‘सतसई’ के ‘भक्ति’ शीर्षक से उद्धत है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के शारीरिक सौन्दर्य का चित्रण करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
श्रीकृष्ण सांवले हैं। उन्होंने पीताम्बर धारण किया है। उनको इस तरह देखकर ऐसा लगता है, मानो नीलमणि पर्वत पर सुबह-सुबह सूर्य की किरणें पड़ रही हैं। दूसरे शब्दों में पीताम्बर धारण किए हुए सांवले श्री कृष्ण सुबह की पड़ती हुई सूर्य की किरणों से सुशोभित नीलमणि पर्वत के समान बहुत ही सुन्दर लग रहे हैं।

विशेष:

  1. चित्रात्मक शैली है।
  2. ब्रजभाषा की शब्दावली है।
  3. श्रीकृष्ण के अद्भुत सौन्दर्य का चित्रण है।
  4. श्रृंगार रस है।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
अधर धरत हरि कै परत, ओठ-ढीठि-पट-जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुष-रंग होति।।

शब्दार्थ:

  • अधर – होंठ।
  • परत – पड़ती।
  • हरित – हरी।
  • ढीठि – नेत्र।
  • पट – वस्त्र।
  • ज्योति – चमक।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें कवि ने यह चित्रित करना चाहा है कि एक गोपी श्रीकृष्ण को बाँसुरी बजाते हुए देख आई है। वह राधिका जी से उनकी प्रशंसा कर उनको उन्हें दिखाने के बहाने से ले जाना चाहती है।

व्याख्या:
जब श्रीकृष्ण बाँसुरी को होंठों पर रखते हैं, तब उस पर उनके होंठों की, आँखों की और पीले वस्त्र की चमक पड़ती है। उससे वह हरे रंग की बाँसुरी इन्द्रधनुप की तरह रंग-बिरंगी (सतरंगी) हो उठती है। कहने का भाव यह है कि कृष्ण के होंठों का रंग लाल है, आँखों का रंग सफेद और काला है, और कपड़े का रंग पीला है। इन सबके प्रभाव से हरे रंग वाली बाँसुरी का रंग-बिरंगी (सतरंगी) हो उठना स्वाभाविक है।

विशेष:

  1. ब्रजभाषा की शब्दावली है।
  2. अनुप्रास अलंकार है।
  3. दोहा छंद है।
  4. श्रीकृष्ण के अनूठे सौन्दर्य का भावपूर्ण चित्रण है।
  5. शैली चित्रमयी है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्यबोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. पीताम्बर धारण करने पर श्रीकृष्ण की शोभा कैसी हो जाती है?
  2. बाँसुरी श्रीकृष्ण के होंठों पर रखने पर कैसी दिखाई देती है?
  3. उपर्युक्त दोहों के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

  1. पीताम्बर धारण करने पर श्रीकृष्ण की शोभा सुबह की पड़ती हुई सूर्य की किरणों से सुशोभित नीलमणि पर्वत के समान मन को मोह लेने वाली हो जाती है।
  2. बाँसुरी श्रीकृष्ण के होंठों पर रखने से रंग-बिरंगी (सतरंगी) दिखाई देती है।
  3. उपर्युक्त दोहों का काव्य-सौन्दर्य अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों से आकर्षक है। भाव, भाषा, प्रतीक-योजना, बिम्ब आदि प्रभावशाली हैं, शैली चित्रमयी है।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. उपर्युक्त पद्यांशों का मुख्य भाव बताइए।

उत्तर:

  1. कवि-कविवर बिहारी, कविता-भक्ति।
  2. उपर्युक्त पद्यांशों का मुख्य भाव-श्रीकृष्ण के अद्भुत और मनमोहक रूप-सौन्दर्य का चित्रण करना है।

प्रकृति:

प्रश्न 3.
कहलाने एकत बसत, अहि, मयूर, मृग, बाघ।
जगतु तपोवन सो कियौ, दीरघ दाघ निदाघ।।

शब्दार्थ:

  • कहलाने – किस कारण से।
  • एकत बसत – इकट्ठा रहते हैं।
  • अहि – साँप।
  • मयूर – मोर।
  • मृग – हिरण।
  • बाघ – शेर।
  • दीरघ – लम्बी।
  • दाघ – आग।
  • निदाघ-गर्मी की ऋतु।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा कविवर बिहारी विरचित ‘सतसई’ के ‘प्रकृति’ शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत दोहा में कवि ने ग्रीष्म ऋतु की अत्यधिक बढ़ती गर्मी का वर्णन किया है कि इससे परस्पर शत्रुभाव रखने वाले प्राणी भी इस संकट की घड़ी में साथ रहने लगे हैं।

व्याख्या:
अत्यधिक गर्मी में साँप और मोर तथा हिरण और बाघ को अपनी दुश्मनी भुलाकर एक ही स्थान पर रहते हुए देखकर एक पथिक दूसरे से पूछ रहा है-क्या कारण है कि जन्म से ही एक-दूसरे के प्रति शत्रुभाव रखने वाले साँप और मोर तथा हिरण और बाघ एक ही साथ दिखाई दे रहे हैं। उसकी जिज्ञासा को शान्त करते हुए दूसरा पथिक कह रहा है कि भयंकर गर्मी पड़ रही है। उसके कारण यह संसार एक तपोवन की तरह दिखाई दे रहा है। जैसे तपोयन में हिंसक पशु अपनी हिंसा की भावना को छोड़कर मित्रभाव से रहने लगते हैं। ठीक उसी प्रकार साँप ने मोर के प्रति और बाघ ने हिरण के प्रति अपनी हिंसा की दुर्भावना को त्याग दिया है।

विशेष:

  1. उपमा और अनुप्रास अलंकार है।
  2. दोहा छन्द है।
  3. भीषण गर्मी का उल्लेख है।
  4. संकट के समय शत्रुता मित्रता में बदल जाती है-इसे सुस्पष्ट करने का प्रयास है।
  5. शैली चित्रमयी है।

प्रश्न 4.
बैठि रही अति सघन वन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की, छाँहौ चाहति छाँह।।

शब्दार्थ:

  • पैठि – प्रवेश करके।
  • सदन – घर।
  • निरखि – देखकर।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इस दोहे में कवि ने जेठ माह की गर्मी की ऋतु के अत्यधिक भयंकर प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
गर्मी की ऋतु के भयंकर रूप को देखकर कोई परेशान होकर कह रहा है कि जेठ माह की गर्मी की अधिकता इतनी बढ़ गई है कि कहीं कोई छाया भी नहीं दिखाई दे रही है, जिसका सहारा लेकर कोई इस जानलेवा गर्मी से छुटकारा पा सके। ऐसा इसलिए कि स्वयं छाया भी इस भयंकर गर्मी से आकुल-व्याकुल होकर छाया की खोज में या तो घने जंगलों में जाकर छिप गई है या घरों के ही भीतर जाकर बैठ गई है; अर्थात् घरों के कमरों के अंदर छिपकर अपनी जान बचा रही है।

विशेष:

  1. भाषा-ब्रजभाषा है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. छाया को मनुष्य के रूप में चित्रित किया गया है। इसलिए इसमें मानवीकरण अलंकार है।
  4. उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  5. जानलेवा गर्मी का सटीक चित्रण है।

पद्यांशों पर आधारित सौन्दर्य बोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. परस्पर हिंसा की दुर्भावना रखने वाले पशु हिंसा क्यों छोड़ दिए हैं?
  2. तपोवन से किसकी उपमा और क्यों दी गई है?
  3. छाँह-छाँह को क्यों चाह रही है?
  4. ‘प्रकृति’ शीर्षक दोहों के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

1. परस्पर हिंसा की दुर्भावना रखने वाले पशु हिंसा छोड़ दिए हैं। यह इसलिए कि जेठ माह की भीषण गर्मी के बढ़ते संकट के कारण उनमें स्वयं के बचाव की भावना ने किसी को हानि पहुँचाने की भावना को भुलाकर मित्रता की भावना को उत्पन्न कर दिया है।

2. तपोवन से संसार की उपमा दी गई है। यह इसलिए कि ऋषि-मुनियों के तपोवनों में हिंसक पशु भी अपनी हिंसा की दुर्भावना का परित्याग कर देते हैं।

3. छाँह-छाँह को चाह रही है। यह इसलिए कि स्वयं छाँह भी बढ़ती हुई जानलेवा गर्मी से कहीं नहीं दिखाई देती हैं। वह तो अपने बचाव के किसी सुरक्षित स्थान में जाकर छिप गई है।

4. प्रकृति शीर्षक दोहों में गर्मी के भीषण स्वरूप को उपमा, अनुप्रास, रूपक और उत्प्रेक्षा अलंकारों से अलंकृत करके उन्हें भावात्मक और चित्रात्मक शैलियों में प्रस्तुत किया गया है। भाव-भाषा, प्रतीक और योजना आकर्षक है।

पद्यांशों पर आधारित विषय वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. उपर्युक्त दोहों का मुख्य भाव लिखिए।

उत्तर:

1. कवि-कविवर बिहारी। कविता-‘प्रकृति’।

2. उपर्युक्त दोहों में गर्मी की ऋतु के भयंकर प्रभाव का उल्लेख कर उससे प्रभावित जीव-जन्तुओं की दुखद दशा को स्पष्ट किया गया है। गर्मी की अधिकता इतनी है कि सारा संसार तपोवन में बदल. गया है। फलस्वरूप शत्रुभाव रखने वाले पशु मित्रभाव से एक साथ रह रहे हैं। दोपहर की गर्मी से परेशान होकर तो छाया भी छाया की तलाश कर रही है।

MP Board Solutions

नीति:

प्रश्न 5.
चटक न छाँड़तु घटत हूँ, सज्जन-नेहँ गंभीरू।
फीकौ परै न, बरु फटै, रँग्यौ चोल-रंग चीरू।।

शब्दार्थ:

  • चटक – चटकीलापन।
  • घटक हूँ – घटते हुए (प्रेम पात्र न होते हुए भी)।
  • बरु – चाहे।
  • चोल रंग – चोल, एक प्रकार की वह लकड़ी, जिसे औटाकर (खौलाकर) रंग निकाला जाता है। यह रंग बहुत पक्का होता है और कपड़े के फट जाने पर भी नहीं छूटता।

प्रसंग:
यह दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा कविवर बिहारी विरचित ‘सतसई’ के ‘नीति’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें कवि ने सज्जनों के प्रेम की अटलता और स्थिरता का उल्लेख किया है। इस विषय में कवि का कहना है कि

व्याख्या:
सज्जनों का अटल प्रेम प्रेमपात्र के घटने पर भी अपनी अटलता नहीं छोड़ता है; अर्थात् सज्जन जिससे प्रेम करते हैं, वह चाहे अपनी भावना कम करने लगे या दुर्भावना करते हुए नीचे गिरने लगे। दूसरे शब्दों में प्रेम का निर्वाह करना छोड़ दे, तो भी सज्जनों के प्रेम में कोई कमी या अन्तर नहीं आता है। सज्जनों का प्रेम तो वैसे ही हमेशा बना रहता है, जैसे चोल के रंग में रंगा हुआ कपड़ा, भले ही फट जाए, लेकिन उसका रंग कभी भी फीका नहीं पड़ता है।

विशेष:

  1. ब्रजभापा की शब्दावली है।
  2. दोहा छन्द है।
  3. उपमा अलंकार।
  4. उपदेशात्मक शैली है।
  5. यह अंश भाववर्द्धक है।

प्रश्न 6.
दुसह दुराज प्रजानु कौं, क्यों न बढ़े दुख-दंद।
अधिक अँधेरौ जग करत, मिलि मावस रवि-चंदु।।

शब्दार्थ:

  • दुसह – दुसह्य, जो सहा न जा सके।
  • दुराज – दो राजाओं का राज।
  • दुख-दंदु – दुखों का द्वंद्व, विविध प्रकार के दुख।
  • मावस – अमावस्या।
  • रवि-चंदु – सूर्य और चन्द्रमा।

प्रसंग:
पूर्ववत्। दो राजाओं के राज में अर्थात् जिस राज्य के एक ही समय ‘ में दो राजा हों, अनेक प्रकार के दुःख होते हैं। इस बात को कवि ने इस दोहे में .. व्यक्त करने का प्रयास किया है। इस विषय में कवि का कहना है कि –

व्याख्या:
किसी प्रकार से असहनीय, (न सहन किए जाने योग्य) दो राजाओं के राज्य में प्रजा को अनेक प्रकार के दुःख क्यों न होवे। अर्थात् जिस राज्य में एक समय में दो राजा होते हैं, वहाँ की प्रजा को अनेक प्रकार के भयंकर दुःख झेलने पड़ते हैं। यह ठीक उसी प्रकार से है, जैसे अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा मिलकर एक साथ होने से संसार में बहुत अधिक (सबसे अधिक) अंधकार को बढ़ा देते हैं।

विशेष:

  1. दोहा छन्द है।
  2. भाषा ब्रजभाषा है।
  3. उपमा अलंकार है।
  4. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।
  5. दृष्टान्त शैली है।

प्रश्न 7.
बढ़त-बढ़त संपति-सलिलु, मन-ससेजु बढ़ि जाइ।
घटत-घटत सुन फिर घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ।।

शब्दार्थ:

  • संपत्ति-सलिलु – संपत्ति रूपी पानी।
  • मन-सरोज – मनरूपी कमल।
  • बरु – बल्कि, परन्तु।
  • समूल – जड़ सहित, मूलधन सहित।
  • कुम्हिलाइ – मुरझा जाता है, नष्ट हो जाता है।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें कवि ने धन की चंचलता और नश्वरता का वर्णन करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
सम्पत्ति रूपी पानी के निरन्तर बढ़ते रहने से मन रूपी कमल भी बढ़ता जाता है। दूसरे शब्दों में संपत्ति आने-जाने से मन में अनेक प्रकार की लालसाएँ उत्पन्न होती जाती हैं। लेकिन सम्पत्ति रूपी पानी के घटने पर मन रूपी कमलं घटता ही नहीं, अपितु समूल (जड़ सहित) ही नष्ट हो जाता है। कहने का भाव यह है कि जिस प्रकार पानी के हमेशा बढ़ते रहने पर कमल की नाल भी निरन्तर बढ़ती रहती है। और पानी के घटने पर वह नाल घटती तो नहीं, लेकिन कुम्हलाकर नष्ट हो जाती है। ठीक इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति की सम्पत्ति बढ़ती रहती है तो उसके मन में अनेक प्रकार की इच्छाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। लेकिन जब उसकी सम्पत्ति घटने लगती है तो उसकी इच्छाएँ भी बिल्कुल समाप्त हो जाती हैं।

विशेष:

  1. ‘बढ़त-बढ़त’ और ‘घटत-घटत’ में पुनरुक्ति अलंकार है।
  2. ‘सम्पत्ति-सलिल’ और ‘मन-सरोज’ में रूपक अलंकार है।
  3. दोहा छन्द है।
  4. उपर्युक्त कथन यथार्थपूर्ण है।

प्रश्न 8.
जो चाहत, चटक न घटे, मैलो होई न चित्त।
रज राजसु न छुवाइ तौ, नेह चीकने चित्त।।

शब्दार्थ:

  • चाहत – चाहते हैं।
  • चटक – चटकीलापन।
  • मैलो – मलिन।
  • नेह – प्रेम।
  • चीकने – पवित्र।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें कवि ने प्रेम को पवित्र और निरन्तर बने रहने की युक्ति को बतलाते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
एक सच्चा व्यक्ति यदि अपने प्रेम को निरंतर बनाए रखना चाहता है। इसके साथ ही यदि वह अपने प्रेम की पवित्रता के लिए अपने चित्त को और किसी प्रेम के लिए स्थान नहीं देना चाहता है, उसे चाहिए कि वह अपने अंदर किसी प्रकार का अहंकार न करे। ऐसा करने से उसका प्रेम उसके पवित्र चित्त में स्थायी रूप से रह सकेगा, अन्यथा नहीं।

विशेष:

  1. ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली है।
  2. शैली उपदेशात्मक है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. दोहा छन्द है।
  5. यह दोहा प्रेरक रूप में है।

प्रश्न 9.
कहै यहै श्रुति सुम्रत्यौ, यहै सयाने लोग।
तीन दबावत निस कही, पातक, राजा, रोग।।

शब्दार्थ:

  • श्रुति – वेद।
  • सुम्रत्यौ – स्मृति भी।
  • सयाने – चतुर।
  • निस कही – शक्तिहीन को।
  • पातक – पाप।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इस दोहे में कवि ने शक्तिहीनता के दोष पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
पाप, राजा और रोग-ये तीनों ही शक्तिहीनों को दबाते हैं। इस बात को बार-बार वेद, स्मृतियाँ और चतर लोग कहते हैं।

विशेष:

  1. पातक, राजा और रोग की ‘दंबावत’ एक क्रिया होने से दीपक अलंकार है।
  2. कथ्य को प्रमाण सहित कहने से प्रमाणालंकार है।
  3. दोहा छंद है।
  4. यह दोहा ज्ञानवर्द्धक है।
  5. दृष्टान्त शैली है।

MP Board Solutions

प्रश्न 10.
स्वारथ, सुकृत, न श्रम वृथा, देखि बिहंग, बिचारि।
बाज पराए पानि परि तू पच्छीनु न मारि।।

शब्दार्थ:

  • स्वारथ – निजी लाभ, मतलब।
  • सुकृतु – अच्छा काम।
  • श्रमु – परिश्रम।
  • बृथा – बेकार।
  • बिहंग – पक्षी।
  • पराएँ पानि परि – दूसरों के इशारे पर।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इस दोहे को कवि ने अन्योक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें कवि ने अपने आश्रयदाता जयसिंह को यह समझाने का प्रयास किया है कि उन्हें औरंगजेब के इशारे पर महाराज शिवाजी पर आक्रमण नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए कि उसमें उनका कोई निजी लाभ तो है ही नहीं। एक हिन्दू राजा द्वारा दूसरे हिन्दू राजा पर आक्रमण करना उचित भी नहीं है। इस बात को कवि ने किसी वाज को संबोधित करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
अरे बाज! (महाराजा जयसिंह) तुम दूसरों (औरंगजेब) के इशारे पर जिस पक्षी (महाराज शिवाजी) को मारने जा रहे हो, उससे तुम्हारे किसी निजी लाभ की पूर्ति नहीं होगी। ऐसा इसलिए कि शिकार (शिवाजी) को तो वह शिकारी (औरंगजेब) ही लेगा, जिसके इशारे पर उस पक्षी को मारने जा रहे हो। कहने का भाव यह कि किसी दूसरे के इशारे पर और दूसरों की भलाई के लिए अपने सजातीय को मारना (हानि पहुँचाना) किसी प्रकार से ठीक नहीं है। इस दृष्टि से इससे होने वाला परिश्रम भी व्यर्थ ही होगा।

विशेष:

  1. ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली है।
  2. दोहा छंद है।
  3. अन्योक्ति अलंकार है।
  4. उपदेशात्मक शैली है।
  5. यह दोहा प्रेरणादायक रूप में है।

पद्यांशों पर आधारित सौन्दर्यबोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सज्जनों का प्रेम कैसा होता है?
  2. नीति के दोहों का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  3. नीति के दोहों के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:

1. सज्जनों का प्रेम बड़ा ही स्थायी और अमिट होता है। वह चोल के रंग के समान हमेशा ही बना रहता है।

2. नीति के दोहों में व्यक्त भावों की सस्लता, उपयुक्त, यथार्थता और स्पष्टता सराहनीय है। इन दोनों में कही गई बातें बिल्कुल सारपूर्ण और जीवन की सफलता के लिए अपेक्षित व समुचित कही जा सकती हैं। इस आधार पर ये अधिक विश्वसनीय और सार्थक सिद्ध होती हुई दिखाई दे रही हैं।

3. नीति के दोहों का काव्य-सौन्दर्य हृदयस्पर्शी और रोचक है। जीवन को हद तक सार्थक बनाने में जीवन-नीति का महत्त्व कितना अधिक होता है, इसे दर्शाने के लिए कवि ने प्रस्तुत दोहों को अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा आदि अलंकारों से अलंकृत किया है। फिर उन्हें वीर रस और शान्त रस में डुबोकर ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली को आकर्षक बनाया है। भावों में सरसता और प्रतीक-बिम्बों की सटीकता के द्वारा उन्हें हृदय-स्पर्शी बनाने में अद्भुत सफलता कायम की है।

पद्यांशों पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. दो राजाओं का राज्य कैसा होता है?
  3. सम्पत्ति के बढ़ने-घटने से क्या प्रभाव पड़ता है?
  4. स्मृतियाँ और चतुर लोग क्या मानते हैं?।
  5. बाज के माध्यम से कवि ने क्या सीख दी है?

उत्तर:

  1. कवि-कविवर बिहारी, कविता-नीति।
  2. दो राजाओं का राज्य प्रजा के लिए हर प्रकार से दुःखद और विपत्तिकारक होता है।
  3. सम्पत्ति के बढ़ने से मन में अनेक प्रकार की इच्छाएँ जोर मारने लगती हैं। इसके विपरीत सम्पत्ति के घटने से मन की इच्छाएँ लगभग समाप्त हो जाती हैं।
  4. स्मृतियाँ और चतुर लोग यह मानते हैं कि पाप, राजा और रोग, ये तीनों ही शक्तिहीनों को दबाते हैं।
  5. बाज के माध्यम से कवि ने यह सीख दी है कि हमें किसी दूसरे के बहकावे में आकर और दूसरों की भलाई के लिए अपने सजातीय को कोई दुःख या हानि नहीं पहुँचानी चाहिए।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय (विज्ञान कथा, डॉ. जयन्त नार्लीकर)

हिम-प्रलय पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

हिम-प्रलय लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1:
हिमपात का मुकाबला कौन-कौन से देश नहीं कर सके थे?
उत्तर:
हिमपात का मुकाबला जापान, यूरोप, रूस, कनाडा जैसे प्रगत राष्ट्र नहीं कर सके।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
डॉ. वसंत चिटणीस का कौन-सा सिद्धान्त विश्वविख्यात हुआ?
उत्तर:
डॉ. वसंत चिटणीस का यह सिद्धान्त विश्वविख्यात हुआ-“हिम प्रलय का आगमन-भारतीय वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी!”

प्रश्न 3.
राजीव शाह ने अपनी डायरी में क्या लिखा?
उत्तर:
राजीव शाह ने अपनी डायरी में लिखा:
हिम-प्रलय के आगमन की आशंका किसी को चिंतित नहीं कर रही थी। बंबई को भारत की अस्थायी राजधानी बनाने की बात सरकारी लाल फीताशाही में सिमट कर रह गई थी। “कुछ पराक्रमी राजाओं ने इन्द्र पर चढ़ाई की थी। ऐसी हमारी पौराणिक कथाओं में लिखा है। वही बात आज के आक्रमण को देखकर याद आ रही है। लेकिन क्या आज यह चढ़ाई सफल होगी?”

प्रश्न 4.
आकाश में ऊर्जा का वातावरण बनाना क्यों आवश्यक था?
उत्तर:
आकाश में ऊर्जा का वातावरण बनाना आवश्यक था। यह इसलिए कि प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग किया जा सके।

प्रश्न 5.
आकाश में अग्निबाणों की सफलता का पता कैसे चला?
उत्तर:
बटन दबाते ही एक के बाद एक अग्निबाण अंतरिक्ष की ओर लपक पड़े। इस बार इन अग्निबाणों का उद्देश्य तापमान पर नियंत्रण पाना था, न कि तापमान या मौसम का पूर्वानुमान बताना। इससे आकाश में अग्निदाणों की सफलता का पता चला।

हिम-प्रलय दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हिमपात से बचने की डॉ. चिटणीस की क्या योजना थी?
उत्तर:
हिमपात से बचने की डॉ. चिटणीस की यह योजना थी कि हिम-प्रलय प्रतिबंधक उपाय है, वह महंगा है, लेकिन फिर भी उस पर अभी से अमल किया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
डॉ. वसंत चिटणीस ने क्या चेतावनी दी थी?
“अबकी गर्मियों में इस बर्फ को भूलिए नहीं क्योंकि अगली सर्दियाँ इतनी भयंकर होंगी कि बर्फ पिघलने का नाम ही नहीं लेगी। हिम-प्रलय प्रतिबंधक उपाय है, वह महंगा है, लेकिन फिर भी उस पर अभी से अमल कीजिए।”

प्रश्न 3. अन्य वैज्ञानिकों ने डॉ. बसंत की बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया?
उत्तर:
कुछ ऐसे वैज्ञानिक भी थे, जो अब भी यह मानते थे कि न तो यह हिम-प्रलय है और न ही उसका प्रारंभ । वसंत चिटणीस का सिद्धान्त उन्हें मान्य नहीं था। उनकी यही धारणा थी कि शीत लहर जैसे आई वैसी चली जाएगी और तापमान सामान्य हो जाएगा। किंतु ठंड की चपेट में आए देशों के गले यह बात उतारना कठिन था।

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
डॉ. वसंत को टैलेक्स द्वारा क्या संदेश मिला?
उत्तर:
डॉ. वसंत को टेलैक्स द्वारा यह संदेश मिला:
“आपके कथनानुसार अंटार्कटिक में बर्फ के फैलाव में वृद्धि हुई है और वहाँ के पानी की परत का तापमान भी दो अंश कम पाया गया है। अपने सर्वेक्षण के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि यह परिवर्तन पिछले दो वर्षों में हुआ है।”

प्रश्न 5.
डॉ. वसंत ने राजीव शाह को कहाँ और क्यों जाने की सलाह दी?
उत्तर:
डॉ. वसंत ने राजीव शाह को अगले साल इंडोनेशिया चले जाने की सलाह दी। यह इसलिए कि भूमध्य रेखा के पास ही बचने की कुछ गुंजाइश है।

हिम-प्रलय भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
इस बार की गर्मियाँ उस दीपक की भांति थीं, जो बुझने से पहले एक बार अधिक रोशनी देता है।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखक ने यह भाव प्रकट करना चाहा है कि अत्यंत भयंकर गर्मी के कारण सारा वातावरण अग्निमय हो जाता है। पृथ्वी की तपन को सूरज का प्रकाश अपनी चरम सीमा पर बढ़ाकर आग की लौ की तरह वातावरण को असह्य बना देता है। इस प्रकार के वातावरण को देखकर ऐसा लगने लगता है कि पूरा वातावरण एक ऐसे दीपक के समान है, जो रोशनी करते-करते बुझ रहा है। लेकिन वह बुझने से पहले अपनी पूरी शक्ति को एक बड़ी लौ के रूप में लगा देता है।

हिम-प्रलय भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
चार-चाँद लगाना, नाक रगड़ना, कलेजा काँपना, पसीना छूटना, पाँव पसारना।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह कर समास का नाम लिखिए।
हिम-प्रलय, समुद्र-विज्ञान, विश्वविख्यात, दुष्चक्र, वसंत ऋतु, हिमयुग।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय img-2

प्रश्न 3.
‘सत्य’ के पूर्व ‘अ’ उपसर्ग जोड़ने से ‘असत्य’ शब्द बनता है। ‘अ’ उपसर्ग से बनने वाले पाँच शब्द पाठ में से छाँटकर लिखिए?
उत्तर:
‘अ’ उपसर्ग से बनने वाले पाँच शब्द –

  1. अमल
  2. अस्थायी
  3. अप्रिय
  4. अमान्य
  5. अदावत।

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों में प्रयुक्त प्रत्यय अलग कीजिए।
वैज्ञानिक, कीर्तिमान, तकनीकी, नैतिकता, भारतीय।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय img-3

प्रश्न 5.
पाठ में आए आगत (विदेशी) शब्दों को छाँटकर उनके मानक हिन्दी शब्द रूप लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय img-4

हिम-प्रलय अपठित गद्यांश

विज्ञान एक दोधारी तलवार है। इसके अनगिनत लाभ हैं तो अनचाही हानियाँ भी। विज्ञान ने एक ओर मनुष्य को तमाम सुविधाएँ दी हैं तो दूसरी ओर उसके मन की शांति छीन ली है। यदि उत्पादन में वृद्धि हुई है तो वहीं मनुष्य के हाथ से काम छीनकर बेरोजगारी भी बढ़ाई है। संसार के निर्माण और ध्वंस की अपार शक्ति विज्ञान के पास है। विज्ञान ने मनुष्य के विवेक पर पर्दा डाल दिया है पर गहराई से देखा जाए तो इसमें दोष विज्ञान का नहीं है। दोप वस्तुतः मनुष्य की बुद्धि का है जो उसकी तृष्णाओं और इच्छाओं को विस्तार देकर विज्ञान का सदुपयोग करने के स्थान पर दुरुपयोग सिखा रही है। यदि विज्ञान विभीषिका से बचाता है तो मनुष्य को अपनी सोच में व्यापक परिवर्तन करना पड़ेगा।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

  1. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
  2. गद्यांश का सार-संक्षेप अपने शब्दों में लिखिए?
  3. विज्ञान से होने वाली हानियों के लिए कौन दोषी है?
  4. वैज्ञानिक विभीषिकाओं से कैसे बचा जा सकता है?

उत्तर:

1. ‘विज्ञान और मनुष्य’।

2. विज्ञान के दो पहलू हैं-लाभ और हानि। विज्ञान से मनुष्य को अनेक लाभ हैं तो अनेक हानियाँ भी हैं। असल बात यह है कि विज्ञान ने मनुष्य के विवेक पर पर्दा डाल दिया है। इससे मनुष्य विज्ञान का सदुपयोग नहीं, अपितु दुरुपयोग करने लगा है। इससे बचने के लिए उसे अपनी सोच-समझ में बदलाव लाना ही होगा।

3. विज्ञान से होने वाली हानियों के लिए मनुष्य दोषी है।

4. वैज्ञानिक विभीषिका से बचने के लिए मनुष्य को अपनी सोच-समझ में व्यापक बदलाव लाना होगा।

हिम-प्रलय योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ के कारण और निदान विषय पर एक चार्ट तैयार कीजिए तथा कक्षा में उसका प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
हिम-प्रलय की तरह जल-प्रलय भी एक वैज्ञानिक संभावना या पृथ्वी पर एक आसन्न संकट है। जल-प्रलय की स्थिति में उसका सामना कैसे किया जा सकता है? इस पृष्ठभूमि पर एक विज्ञान-कथा या फंतासी लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
पिछले दस वर्षों में भारत में कौन-कौन-सी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ आई हैं उनको वर्ष के क्रमानुसार सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

हिम-प्रलय परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

हिम-प्रलय लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
डॉ. वसंत चिटणीस के हर वक्तव्य, हर टिप्पणी को महत्त्व क्यों प्राप्त हो गया?
उत्तर:
डॉ. वसंत चिटणीस के हर वक्तव्य, हर टिप्पणी को महत्त्व प्राप्त हो गया। यह इसलिए कि सभी ने उनकी बात मान ली। सामान्य आदमी भी उनकी बातों का महत्त्व समझ रहा था।

प्रश्न 2.
डॉ. वसंत की चेतावनी लोगों को खोखली क्यों लगी?
उत्तर:
डॉ. वसंत की यह चेतावनी लोगों को खोखली लगी क्योंकि अप्रैल में वसंत ऋतु का आगमन ठीक समय पर हुआ था और जून-जुलाई में पृथ्वी की तपन बढ़ाने के लिए सूर्य-प्रकाश अपनी चरम सीमा पर था। सभी लोग मानकर चल रहे थे कि पिछली सर्दियाँ भले ही भयानक रही हों, लेकिन अब फिर वही हाल नहीं होगा।

प्रश्न 3.
डॉ. चिटणीस ने अपनी दराज से क्या निकाला?
उत्तर:
डॉ. चिटणीस ने अपनी दराज से एक टंकलिखित लेख निकाला, जिसका शीर्षक था-‘अभियान : इन्द्र पर आक्रमण’।

प्रश्न 4.
क्या इन्द्र पर आक्रमण सफल होगा? इस प्रश्न का उत्तर कब मिलने लगा था?
उत्तर:
सितम्बर में इस प्रश्न का उत्तर मिलने लगा था। उत्तरी हिन्दुस्तान में जमीन की बर्फ पिघलने लगी। फ्लोरिडा से कैलिफोर्निया के बीच की जमीन बर्फ के सफेद बुरखे से धीरे-धीरे झाँक रही थी। आखिर बर्फ पिघलने लगी थी।

हिम-प्रलय दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नवंबर माह में क्या घटना घटी?
उत्तर:
बंबईवालों ने 2 नवंबर को एक बहुत बड़ा अभूतपूर्व दृश्य देखा। वह यह कि आकाश में पूरे दिन पक्षी उड़ते रहे। वे वायुसेना की किसी कवायद की तरह बहुत ही अनुशासन में उड़ रहे थे। हर रोज की तरह उस दिन कौए गायब हो रहे थे। वे सभी पक्षी दक्षिण की ओर जा रहे थे। 4 नवंबर को अंतरिक्ष में स्थिर अनेक उपग्रहों ने संदेश देने शुरू कर दिए थे कि पृथ्वी के आस-पास वायुमंडल में हिमपात के आसार नजर आ रहे हैं। अगले चौबीस घंटों में जगह-जगह बर्फ गिरने की संभावना है। इससे पहले पक्षियों को खतरे का अंदाज हो चुका था। वे भूमध्य रेखा तक सुरक्षित पहुँच चुके थे।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
हिमपात ने होम्स के विचार किस प्रकार बदल डाले थे?
उत्तर:
हिमपात ने होम्स के विचार भी बदल डाले थे। वरना राजीव की इस सूचना को वे तुरन्त अमान्य कर देते। वसंत चिटणीस तीन-चार सालों से जिस हिमप्रलय की पूर्व सूचना दे रहे थे, वह तो आन खड़ा था। इसलिए इससे बचने का उनके पास यदि उपाय है तो उस पर विचार होना ही चाहिए। होम्स ने बात मान ली और दो ही दिन बाद राजीव शाह को लेकर होम्स बांडुंग गए। लेकिन क्या हम वास्तव में इस विपदा पर विजय पा सकेंगे? उनके मन में अभी भी थोड़ी शंका थी।

प्रश्न 3.
डॉ. वसंत चिटणीस की दूसरी क्या सताने लगी थी?
उत्तर:
प्रकृति और इंसान के बीच छिड़े युद्ध में इंसान की जीत हुई थी, लेकिन अब उसे अनेक समस्याओं का सामना करना था। बर्फ पिघलने से ‘न भूतो न भविष्यति’ बाढ़ आने वाली थी। पृथ्वी की जनसंख्या आधी हो चुकी थी। अनेक बहुमूल्य चीजें इसी आक्रमण में नष्ट हो गई थीं। इस एकता का परिचय इंसान ने इंद्र पर आक्रमण के दौरान दिया था, क्या?

प्रश्न 4.
‘हिम-प्रलय’ विज्ञान-कथा के द्वारा लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
इस विज्ञान कथा में प्रकृति असन्तुलन से उत्पन्न समस्या को आधार बनाया गया है। प्राकृतिक आपदाएँ कभी भी, किसी भी देश पर आ सकती हैं। ऐसी स्थित में यदि यथासमय उचित प्रयास नहीं किए गए तो महाविनाश की स्थिति निर्मित हो सकती हैं। विकसित कहे जाने वाले राष्ट्र भी इन आपदाओं से संघर्प करम में विफल हो सकते हैं। मानव जाति का अस्तित्व बचाए रखने के लिए सभी राष्ट्रों को आपसी मतभेद भुलाकर सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए। इस पाठ के माध्यम से लेखक हमें यही संदेश देना चाहता है।

हिम-प्रलय लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
डॉ. जयन्त नार्लीकर का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके महत्त्व पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
वैज्ञानिक लेखन के क्षेत्र में डॉ. जयन्त नार्लीकर का स्थान प्रमुख है। उनका जन्म महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 1938 में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रेड होयल के साथ खगोल सम्बन्धित क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण शोध कार्य किया। इसके कुछ समय बाद उन्होंने भारत की शोध संस्था ‘टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ फण्डामेन्टल रिसर्च’ में भी अनेक शोध कार्य किए।

रचनाएँ:
डॉ. जयन्त नार्लीकर ने अपने अनुसंधान कार्य के साथ-साथ हिन्दी और मराठी में अनेक विज्ञान कथाएँ और उपन्यास लिखे हैं। उनकी ‘आगन्तुक’ ‘धूमकेतु’ ‘विज्ञान’ : ‘मानव’, ब्रह्माण्ड’ आदि प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ हैं।

महत्त्व:
डॉ. जयन्त नार्लीकर को वैज्ञानिक खोजों के लिए ‘स्मिथ पुरस्कार’, ‘एडम्स पुरस्कार’ तथा ‘शान्ति स्वरूप भटनागर पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। भारत सरकार द्वारा उनको ‘पद्म विभूषण’ की उपाधि से विभूषित किया गया है।

हिम-प्रलय पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
डॉ. जयन्त नार्लीकर लिखित ‘हिम-प्रलय’ विज्ञान-कथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
डॉ. जयन्त नार्लीकर लिखित ‘हिम-प्रलय’ एक विज्ञान-कथा है। इसमें लेखक ने ‘हिम-प्रलय’ से होने वाले महाविनाश को रेखांकित करने का प्रयास किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि ‘हिम-प्रलय का आगमन-भारतीय वैज्ञानिक की भविष्यवाणी’ राजीव शाह के इस लेख की अधिक चर्चा हो रही थी। लेकिन कुछ वैज्ञानिक इसे हिम-प्रलय मानने को तैयार नहीं थे।

विदेशी पत्रकारों से एक भेटवार्ता में डॉ. वसंत चिटणीस ने चेतावनी दी थी-“अब की गर्मियों में इस बर्फ को भूलिए नहीं! क्योंकि अगली सर्दियाँ इतनी भयंकर होंगी कि बर्फ पिघलने का नाम ही नहीं लेगी। हिम-प्रलय प्रतिबंधक उपाय है, वह महंगा है, लेकिन फिर भी उस पर अभी से अमल कीजिए।” लेकिन डॉ. वसंत की इस चेतावनी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

इसका मुख्य कारण था कि उस समय मौसम सुहावना था। हमेशा की तरह भारत में मानसून पूरे जोरों पर था। फिर भी डॉ. वसंत बार-बार चेतावनी दे रहे थे जिसे कोई नहीं सुन रहा था। केवल राजीव शाह ही उनके विश्लेषण से सहमत थे। जब डॉ. वसंत ने अपने नाम समुद्र-विज्ञान के एक विश्वविख्यात संस्थान के संचालक द्वारा भेजे गए संदेश को राजीव शाह को पढ़कर सुनाया। राजीव शाह उसे सुनकर हैरान हो गए। डॉ. वसंत ने राजीव शाह को सलाह दी कि वह आने वाले साल इंडोनेशिया चला जाए। ऐसा इसलिए कि भूमध्य रेखा के पास ही बचने की कुछ गुंजाइश है। वह तो बांडुंग जाने ही वाला है।

बम्बई वालों ने 2 नवंबर को आकाश का एक अपूर्व दृश्य देखा कि पूरे दिन आकाश में पक्षी उड़ते रहे। सभी पक्षी दक्षिण की ओर जा रहे थे। 4 नवंबर को अंतरिक्ष में स्थित उपग्रहों ने संदेश दिया- “पृथ्वी के इर्द-गिर्द वायुमंडल में हिमपात के आसार नजर आ रहे हैं। अगले चौबीस घंटों में जगह-जगह बर्फ गिरने की संभावना है।” इससे पहले पक्षी खतरे का अनुमान लगाकर भूमध्य रेखा तक सुरक्षित पहुँच चुके थे।

अनेक शहरों में हुए भीषण हिमपात ने चारों ओर तबाही मचा दी। जापान, रूस, यूरोप, कनाडा जैसे विकसित देश भी इस तबाही से नहीं बच सके थे। अमेरिकी ऊर्जा समिति के सदस्य रिचर्ड होम्स ने राजीव शाह से डॉ. बसंत से मुलाकात की इच्छा व्यक्त करते हुए उनकी प्रशंसा की। दो दिन बाद वे राजीव शाह को लेकर डॉ. वसंत के पास बांडुंग पहुंचकर अपनी शंका बताए।

राजीव शाह ने डॉ. वसंत को कुछ टैलेक्स दिए। डॉ. वसंत ने पढ़ा-…”ब्रिटिश सरकार ने अपनी बची हुई जनता के 40 प्रतिशत लोगों को केनिया में स्थानान्तरित किया है। स्थानान्तरित करने का यह काम दो महीने में पूरा हो जाएगा।” “मास्को तथा लेनिनग्राद खाली किए जा चुके हैं-सोवियत प्रधानमंत्री की घोषणा”, “जमीन के नीचे बनाई बस्तियों में हम एक साल रह सकते हैं-इजरायली अध्यक्ष का विश्वास।”

“उत्तर भारत की सभी नदियाँ जम चुकी हैं।” डॉ. वसंत ने कहा- “यह तो केवल शुरुआत है। पिछले वर्ष सिर्फ इसकी झलक मिली थी। किंतु अगले साल पृथ्वी मनुष्यहीन हो जाएगी।” होम्स के यह पूछने पर कि क्या इससे बचाव का कोई उपाय है? डॉ. वसंत ने कहा कि “अब बहुत देर हो चुकी है। इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता।” इतना कहकर उन्होंने अपनी दराज से एक टंकलिखित लेख निकाला। उसका शीर्षक था-‘अभियान : इन्द्र पर आक्रमण।’

कन्या कुमारी से कुछ दूर स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र का अग्निबाण प्रक्षेपण स्थल पर अनेक वैज्ञानिक-विशेषज्ञ एकत्रित हुए थे। प्रकल्प के प्रमुख तंत्रज्ञ ने बटन दबाया। उससे अनेक अग्निबाण अंतरिक्ष की ओर गए। उनका उद्देश्य तापमान पर नियंत्रण पाना था। अनेक देशों से इस प्रकार के उपग्रह छोड़े जाने वाले थे लेकिन डॉ. वसंत ने सबसे पहले वातावरण पर हमला बोला था। भूमध्य रेखा पर स्थित कई देशों से छोड़े गए विशालकाय गुब्बारे और उपग्रह अंतरिक्ष में लपक रहे थे। इसके साथ ही ऊँची उड़ानें भरने वाले हवाई जहाजों ने भी उड़ानें भरीं। इस प्रकार चतुरंगी सेना ने वायुमंडल पर जबरदस्त हमला बोल दिया था।

अब प्रक्षेपण अस्त्रों से किए जाने वाले विस्फोटों के उपयोग ने उनकी विधायक शक्ति का स्थान धीमी गति से आग उगलने वाले विस्फोटों ने ले लिया था। अपनी सभी प्रकार की साधन-सामग्री को परस्पर तनाव को भूलकर सभी देशों ने दाँव पर लगा दिया था। फिर इस आक्रमण की सफलता के प्रति सभी सशंकित थे। इसका उत्तर मिलने लगा कि आखिर बर्फ पिघलने लगी थी। इसे देखकर मियासी से होम्स ने डॉ. वसंत को फोन करके बधाई दी। फिर भी डॉ. वसंत को चिन्ता यह होने लगी थी कि प्रकृति और इंसान की इस जीत के बावजूद इंसान को अनेक समस्याओं का सामना तो करना ही होगा। बर्फ पिघलने से बाढ़ आएगी। पृथ्वी की जनसंख्या आधी हो चुकी थी।

हिम-प्रलय संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

MP Board Solutions

प्रश्न 1.
4 नवंबर को अंतरिक्ष में स्थिर अनेक उपग्रहों से खतरे के संदेश आने लगे। “पृथ्वी के इर्द-गिर्द वायुमण्डल में हिमपात के आसार नजर आ रहे हैं। अगले चौबीस घंटों में जगह-जगह बर्फ गिरने की संभावना है।” एक तरफ देश-विदेश के मौसम विभाग अपनी इस पूर्व सूचना पर गर्व अनुभव कर रहे थे, लेकिन उनकी सूचना से पहले ही पक्षियों को खतरे का अंदाज आ चुका था और वे भूमध्य रेखा तक सुरक्षित पहुँच चुके थे।

शब्दार्थ:

  • अंतरिक्ष – आकाश।
  • इर्द-गिर्द – आस-पास।
  • हिमपात – बर्फ का गिरना।
  • आसार – आशा।
  • अंदाज-अनुमान।

प्रसंग:
यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा डॉ. जयन्त नार्लीकर द्वारा लिखित विज्ञान-कथा ‘हिम-प्रलय’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने हिमपात होने के पहले की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
हिमपात होने की जानकारी संबंधित वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता ली जा रही थी। इस दिशा में संसार के सभी वैज्ञानिक चौकन्ने हो गए थे। इससे पहले ही सभी दक्षिण दिशा की ओर बड़ी तेजी से भागते हुए दिखाई देने लगे थे। जैसे-जैसे हिमपात का समय आने लगा, वैसे-वैसे अंतरिक्ष में स्थिर उपग्रह संदेश भेजने लगे थे। 4 नवंबर को अंतरिक्ष में स्थित उपग्रहों ने हिमपात से होने वाले खतरों के विषय में संदेश भेजने शुरू कर दिए थे। उनका मुख्य रूप से यही संदेश था कि पृथ्वी के आस-पास के वायुमंडल में हिमपात होने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है।

इस प्रकार आने वाले 24 घंटे और खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसा इसलिए कि इन 24 घंटों में कई जगह भीषण हिमपात होने की पूरी-पूरी संभावना है। इस तरह की सूचना देश के मौसम-विभाग ने पहले से ही देनी शुरू कर दी थी और इससे वह बहुत गर्व का अनुभव भी कर रहा था। लेकिन यह एक बड़ी अद्भुत बात थी कि मौसम विभाग की इस प्रकार की सूचना से पहले ही सभी पक्षियों को हिमपात से होने वाले खतरों का अनुमान हो चुका था। इसलिए वे भूमध्य रेखा के पास अच्छी तरह से जा चुके थे।

विशेष:

  1. हिमपात की भयंकरता पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भयानक रस का प्रवाह है।
  3. भाषा के शब्द मिश्रित हैं.।
  4. शैली वर्णनात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. हिमपात से पहले की स्थिति क्या थी?
  2. पक्षियों को हिमपात के खतरे का अंदाज सबसे पहले होने का क्या आशय है?

उत्तर:

  1. हिमपात से पहले की स्थिति यह थी कि पृथ्वी के आस-पास वायुमंडल में हिमपात होने के आसार दिखाई देने लगे थे।
  2. पक्षियों को हिमपात के खतरे का अंदाजा सबसे पहले होने का आशय यह है कि मनुष्य से कहीं अधिक ज्ञान पक्षियों को होता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपग्रहों से क्या-क्या संदेश आने लगे थे?
  2. पहले ही पक्षियों को क्या हो गया था?

उत्तर:

1. उपग्रहों से संदेश आने लगे थे कि –

  • पृथ्वी के आस-पास वायुमंडल में हिमपात के आसार नजर आ रहे हैं।
  • अगले चौबीस घंटों में जगह-जगह बर्फ गिरने की संभावना है।

2. पहले ही पक्षियों को हिमपात के खतरों का अनुमान हो चुका था।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
उनकी एकता और अनुशासन यदि मानव जाति में होती तो विभिन्न देशों में भारी भगदड़ न मची होती। तकनीकी लिहाज से जापान, यूरोप, रूस, कनाडा जैसे प्रगत राष्ट्र भी इस हिमपात का मुकाबला नहीं कर सके। अनेक शहरों में पाँच से छह मीटर तक बर्फ गिरी थी। इतने भीषण हिमपात ने चारों तरफ तबाची मचा दी। सिर्फ कुछ ही लोग इस तबाही से अपने आप को बचा सके थे। ये सभी लोग उन शेल्टरों में थे जो अणु-युद्ध से बचने के लिए बनाए गए थे। मध्य पूर्व एशिया, मैक्सिको जैसे देशों में ठंड का आघात कम था। लेकिन चूंकि उनके पास बचाव का कोई जरिया नहीं था इसलिए वहाँ भी जान-माल की भयंकर हानि हुई थी।

शब्दार्थ:

  • भगदड़ – अस्थिरता।
  • लिहाज – दृष्टि से।
  • प्रगत – प्रगतिशील, विकसित।
  • भीषण – भयंकर।
  • तबाही – बर्बादी।
  • सिर्फ – केवल।
  • शेल्टर – रक्षास्थान।
  • आघात – प्रहार।
  • जरिया – माध्यम, साधन।

प्रसंग:
पूर्ववत्! इसमें लेखक ने मानव जाति के परस्परं भेदभाव और दूरी को हानिकारक बतलाते हुए उसे पक्षियों से एकता और अनुशासन सीखने की सीख दी. है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
पक्षियों में एकता और अनुशासन होता है। इसी से वे आने वाले खतरों का अनुमान कर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाते हैं, जबकि मनुष्य ऐसा कुछ भी नहीं कर पाता है। यही कारण है कि यदि पक्षियों की तरह मनुष्य में एकता और अनुशासन का जीवन होता तो हिमपात के खतरों का अनुमान कर अलग-अलग देशों में भगदड़ नहीं मची होती। तकनीकी साधनों के बावजूद जापान, यूरोप, रूस, कनाडा, आदि संसार के अनेक विकसित देश भी हिमपात से हुए खतरों का सामना करने में असफल रहे। चूँकि हिमपात असाधारण और अभूतपूर्व हुआ था। उससे संसार के कई देशों के नगरों-महानगरों में पाँच से छः मीटर तक वर्क की ऊँची-ऊँची परतें पड़ी थीं।

इस प्रकार के भयंकर हिमपात के पड़ने से चारों ओर हाहाकार मच गया था। जान-माल के भारी नुकसान ने भयंकर तबाही मचा दी थी। इस तबाही से बहुत कम लोग ही बच पाए थे। अधिक-से-अधिक बर्बादी ने चारों ओर भयंकर दृश्य उपस्थित कर दिया था। जो लोग इस तबाही से बचे थे, वे अणु-युद्ध से बचने के लिए बनाए गए रक्षा-स्थान में रहने के कारण सुरक्षित रह सके थे।

लेखक-का पुनः कहना है कि हिमपात से होने वाली हानि से अनेक देश प्रभावित हुए थे। लेकिन वे समान रूप से नहीं प्रभावित हुए थे। किसी-किसी देश में तो इसका आघात बहुत अधिक था, तो किसी-किसी देश में बहुत कम था। मध्य-पूर्व एशिया, मैक्सिको जैसे देशों में इस हिमपात का आघात कम था तो और देशों में इसका आघात बहुत अधिक था। इस प्रकार जिन देशों के पास इससे बचाव के साधन अधिक और बड़े थे, वहाँ इसका आघात कम था। इसके विपरीत जिन देशों में इससे बचाव के साधन कम और छोटे थे, वहाँ इसका आघात बहुत था, इससे वहाँ जान-माल की बहुत बड़ी हानि हुई थी।

विशेष:

  1. हिमपात से होने वाली हानियों का उल्लेख है।
  2. हिमपात से बचने के लिए सुरक्षित स्थानों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  3. भाषा तत्सम प्रधान शब्दों की है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. विभिन्न देशों में भगदड़ क्यों मच गई?
  2. कौन लोग भीषण हिमपात से अपने आपको बचा सके थे?

उत्तर:

  1. विभिन्न देशों में भगदड़ मच गई। ऐसा इसलिए कि मानव जाति में पक्षियों की तरह एकता और अनुशासन की बहुत बड़ी कमी है।
  2. जो लोग अणु-युद्ध से बचने के लिए बनाए गए शेल्टरों (सुरक्षा-घरों) में चले गए थे, वे ही भीषण हिमपात से अपने आपको बचा सके थे।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. चारों ओर तबाही क्यों मच गई?
  2. जान-माल की भयंकर हानि कहाँ और क्यों हुई थी?

उत्तर:

  1. चारों ओर तबाही मच गई। यह इसलिए कि अनेक देशों में पाँच-छ: मीटर तक भीषण हिमपात हुआ था।
  2. जान-माल की भयंकर हानि मध्यपूर्व एशिया, मैक्सिको आदि देशों में हई थी। यह इसलिए कि उनके पास बचाव के कोई साधन नहीं थे।

प्रश्न 3.
यही सवाल दुनिया के विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों को भी सता रहा था। इस योजना के तहत सूर्य की उष्णता को अपने में समाकर पृथ्वी तक पहुँचाने वाले असंख्य धातुकण वायुमण्डल में बिखरने वाले थे। वसंत का विचार था कि ज्वालामुखी द्वारा फैले उष्णता प्रतिबंधक कण नीचे आ जाएँगे, और ये धातु कण उनका स्थान ले लेंगे। लेकिन यह काफी नहीं था। वातावरण में ऊर्जा-निर्मिति आवश्यक थी। ‘हीरे की धूल’ कम करने के लिए वातावरण का अस्थायी तौर पर गर्म होना भी जरूरी था।

इसलिए प्रक्षेपण अस्त्रों द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग किया गया। उनकी विघातक शक्ति का स्थान धीमी गति से आग उगलने वाले विस्फोटों ने ले लिया। वैसे तो ये अस्त्र एक-दूसरे का नाश ही करते। लेकिन परिप्रेक्ष्य बदलते ही उनकी उपयोगिता भी बदल गई। अपनी सारी साधन-सामग्री दाँव पर लगाकर, आपसी अदावत भुलाकर सभी देशों ने इस कार्य में मदद की थी। लेकिन फिर भी सभी इस कशमकश में उलझे थे कि क्या यह आक्रमण सफल होगा?

शब्दार्थ:

  • सता – चिन्तित कर।
  • प्रतिबंधक – रुकावट।
  • परिप्रेक्ष्य – संदर्भ।
  • अदावत – तनाव, ईर्ष्या, द्वेष।
  • कशमकश – खींचातानी, असमंजस।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने हिमपात को रोकने या नियंत्रित करने की कठिनाई को वैज्ञानिकों की चिन्ता का एक विषय बतलाते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
हिमपात कैसे और किस प्रकार रोका जाए, इसकी चिन्ता संसार के सभी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को बार-बार हो रही थी। हिमपात पर नियंत्रण रखने के लिए वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों ने जो योजना बनाई, वह सूर्य की गर्मी को अपने में रखकर पृथ्वी तक आने वाले अनेक धातुकण वायुमंडल में फैलने वाले थे। इस विपय में डॉ. वसंत का यह मानना था कि ज्वालामुखी की फैलती हुई जो गर्मी होगी उससे प्रतिबंधक कण नीचे तक आ जाएँगे। उनके स्थान पर धातुकण आ जाएँगे। फिर भी यह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता था। ऐसा इसलिए कि वातावरण में ऊर्जा का निर्मित होना बेहद जरूरी था। दूसरी बात यह कि ‘हीरे की धूल को कम करने के लिए वातावरण का अस्थायी तौर पर गर्म होना भी बेहद जरूरी था।

लेखक का पुनः कहना है कि हिमपात को नियंत्रित करने के लिए संसार के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अंतरिक्ष में प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा विस्फोटों का उपयोग किया। लेकिन कुछ समय बाद उन विस्फोटों की एक विघातक शक्ति उत्पन्न हुई। फिर कुछ समय बाद उस शक्ति की जगह धीरे-धीरे आग को फेंकने वाले विस्फोटों ने ले लिया था। ये सभी अस्त्र एक-दूसरे के लिए उपयोगी न होकर घातक और विध्वंसक होते हैं।

लेकिन यह ध्यान देने की बात है कि संदर्भ और समय बदलते ही उनका महत्त्व और उनकी उपयोगिता भी वही नहीं रही। इसे सभी देशों के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अपनी सोच और समझ को एकता का रूप देने का प्रयास किया। इससे पहले उन्होंने आपसी भेदभाव और अदावत को भुला दिया। फिर भी वे इस असमंजस में थे कि उनके द्वारा किए गए प्रयास सफल होंगे या असफल।

विशेष:

  1. वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का परस्पर एकमत होने के उल्लेख प्रेरक रूप में हैं।
  2. वैज्ञानिक शब्दावली है।
  3. नए-नए वैज्ञानिक खोजों के विषय में प्रकाश डाला गया है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. वाक्य-गठन गंभीर अर्थमय है।
  6. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. किसको क्या सता रहा था?
  2. वसंत का क्या मानना था?
  3. प्रक्षेपण अस्त्रों द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का क्यों उपयोग किया गया?

उत्तर:

1. दुनिया के सभी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को यह सवाल सता रहा था कि क्या इन्द्र पर वैज्ञानिक सफल होंगे?

2. डॉ. वसंत का यह मानना था कि ज्वालामुखी द्वारा कैसे उष्णता प्रतिबंधक कण नीचे आ जाएँगे और धातुकण उनका स्थान ले लेंगे।

3. प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग इसलिए किया गया कि वातावरण में ऊर्जा बिल्कुल जरूरी थी। इसके साथ ही ‘हीरे की धूल’ कम करने के लिए भी वातावरण का अस्थायी रूप से गर्म होना भी बेहद जरूरी था। बहुत अधिक था। इस प्रकार जिन देशों के पास इससे बचाव के साधन अधिक और बड़े थे, वहाँ इसका आघात कम था। इसके विपरीत जिन देशों में इससे बचाव के साधन कम और छोटे थे, वहाँ इसका आघात बहुत था, इससे वहाँ जान-माल की बहुत बड़ी हानि हुई थी।

विशेष:

  1. हिमपात से होने वाली हानियों का उल्लेख है।
  2. हिमपात से बचने के लिए सुरक्षित स्थानों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  3. भाषा तत्सम प्रधान शब्दों की है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. विभिन्न देशों में भगदड़ क्यों मच गई?
  2. कौन लोग भीषण हिमपात से अपने आपको बचा सके थे?

उत्तर:

  1. विभिन्न देशों में भगदड़ मच गई। ऐसा इसलिए कि मानव जाति में पक्षियों की तरह एकता और अनुशासन की बहुत बड़ी कमी है।
  2. जो लोग अणु-युद्ध से बचने के लिए बनाए गए शेल्टरों (सुरक्षा-घरों) में चले गए थे, वे ही भीषण हिमपात से अपने आपको बचा सके थे।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. चारों ओर तबाही क्यों मच गई?
  2. जान-माल की भयंकर हानि कहाँ और क्यों हई थी?

उत्तर:

  1. चारों ओर तबाही मच गई। यह इसलिए कि अनेक देशों में पाँच-छः मीटर तक भीषण हिमपात हुआ था।
  2. जान-माल की भयंकर हानि मध्यपूर्व एशिया, मैक्सिको आदि देशों में हुई । थी। यह इसलिए कि उनके पास बचाव के कोई साधन नहीं थे।

MP Board Solutions

प्रश्न 4.
यही सवाल दुनिया के विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों को भी सता रहा था। इस योजना के तहत सूर्य की उष्णता को अपने में समाकर पृथ्वी तक पहुँचाने वाले असंख्य धातुकण वायुमण्डल में बिखरने वाले थे। वसंत का विचार था कि ज्वालामुखी द्वारा फैले उष्णता प्रतिबंधक कण नीचे आ जाएँगे, और ये धातु कण उनका स्थान ले लेंगे। लेकिन यह काफी नहीं था। वातावरण में ऊर्जा-निर्मिति आवश्यक थी। ‘हीरे की धूल’ कम करने के लिए वातावरण का अस्थायी तौर पर गर्म होना भी जरूरी था।

इसलिए प्रक्षेपण अस्त्रों द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग किया गया। उनकी विघातक शक्ति का स्थान धीमी गति से आग उगलने वाले विस्फोटों ने ले लिया। वैसे तो ये अस्त्र एक-दूसरे का नाश ही करते। लेकिन परिप्रेक्ष्य बदलते ही उनकी उपयोगिता भी बदल गई। अपनी सारी साधन-सामग्री दाँव पर लगाकर, आपसी अदावत भुलाकर सभी देशों ने इस कार्य में मदद की थी। लेकिन फिर भी सभी इस कशमकश में उलझे थे कि क्या यह आक्रमण सफल होगा?

शब्दार्थ:

  • सता – चिन्तित कर।
  • प्रतिबंधक – रुकावट।
  • परिप्रेक्ष्य – संदर्भ।
  • अदावत – तनाव, ईर्ष्या, द्वेष।
  • कशमकश – खींचातानी, असमंजस।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने हिमपात को रोकने या नियंत्रित करने की कठिनाई को वैज्ञानिकों की चिन्ता का एक विषय बतलाते हुए कहा है कि व्याख्या-हिमपात कैसे और किस प्रकार रोका जाए, इसकी चिन्ता संसार के सभी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को बार-बार हो रही थी। हिमपात पर नियंत्रण रखने के लिए वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों ने जो योजना बनाई, वह सूर्य की गर्मी को अपने में रखकर पृथ्वी तक आने वाले अनेक धातुकण वायुमंडल में फैलने वाले थे।

इस विषय में डॉ. वसंत का यह मानना था कि ज्वालामुखी की फैलती हुई जो गर्मी होगी उससे प्रतिबंधक कण नीचे तक आ जाएँगे। उनके स्थान पर धातुकण आ जाएँगे। फिर भी यह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता था। ऐसा इसलिए कि वातावरण में ऊर्जा का निर्मित होना बेहद जरूरी था। दूसरी बात यह कि ‘हीरे की धूल’ को कम करने के लिए वातावरण का अस्थायी तौर पर गर्म होना भी बेहद जरूरी था।

लेखक का पुनः कहना है कि हिमपात को नियंत्रित करने के लिए संसार के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अंतरिक्ष में प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा विस्फोटों का उपयोग किया। लेकिन कुछ समय बाद उन विस्फोटों की एक विघातक शक्ति उत्पन्न हुई। फिर कुछ समय बाद उस शक्ति की जगह धीरे-धीरे आग को फेंकने वाले विस्फोटों ने ले लिया था। ये सभी अस्त्र एक-दूसरे के लिए उपयोगी न होकर घातक और विध्वंसक होते हैं।

लेकिन यह ध्यान देने की बात है कि संदर्भ और समय बदलते ही उनका महत्त्व और उनकी उपयोगिता भी वही नहीं रही। इसे सभी देशों के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अपनी सोच और समझ को एकता का रूप देने का प्रयास किया। इससे पहले उन्होंने आपसी भेदभाव और अदावत को भुला दिया। फिर भी वे इस असमंजस में थे कि उनके द्वारा किए गए प्रयास सफल होंगे या असफल।

विशेष:

  1. वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का परस्पर एकमत होने के उल्लेख प्रेरक रूप में हैं।
  2. वैज्ञानिक शब्दावली है।
  3. नए-नए वैज्ञानिक खोजों के विषय में प्रकाश डाला गया है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. वाक्य-गठन गंभीर अर्थमय है।
  6. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. किसको क्या सता रहा था?
  2. वसंत का क्या मानना था?
  3. प्रक्षेपण अस्त्रों द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का क्यों उपयोग किया गया?

उत्तर:

1. दुनिया के सभी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को यह सवाल सता रहा था कि क्या इन्द्र पर वैज्ञानिक सफल होंगे?

2. डॉ. वसंत का यह मानना था कि ज्वालामुखी द्वारा कैसे उष्णता प्रतिबंधक कण नीचे आ जाएँगे और धातुकण उनका स्थान ले लेंगे।

3. प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग इसलिए किया गया कि वातावरण में ऊर्जा बिल्कुल जरूरी थी। इसके साथ ही ‘हीरे की धूल’ कम करने के लिए भी वातावरण का अस्थायी रूप से गर्म होना भी बेहद जरूरी था।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. एक अस्त्र दूसरे का विनाशक होने पर भी क्यों उपयोगी हो गए?
  2. सभी देशों की उलझन क्या थी?

उत्तर:

  1. एक अस्त्र दूसरे का विनाशक होने पर भी उपयोगी हो गए। यह इसलिए कि परिप्रेक्ष्य बदलते ही उनकी उपयोगिता भी बदल गई थी।
  2. सभी देशों की यही उलझन थी कि क्या इन्द्र पर आक्रमण सफल होगा?

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू (संस्मरण, महादेवी वर्मा)

राजेन्द्र बाबू पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

राजेन्द्र बाबू लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू को लेखिका ने प्रथम बार कहाँ देखा?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू को लेखिका ने प्रथम बार पटना के रेलवे स्टेशन पर देखा।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू पौत्रियों को प्रयाग क्यों लाए थे?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू अपनी पौत्रियों को प्रयाग लाए थे। यह इसलिए कि उनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। वे लेखिका महादेवी वर्मा के प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय के छात्रावास में रहकर विद्यापीठ की परीक्षाएँ दे सकें। इससे उन्हें शीघ्र कुछ विद्या प्राप्त हो सकेगी।

प्रश्न 3.
राजेन्द्र बाबू के निकट सम्पर्क में आने का अवसर लेखिका को किस प्रकार मिला?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू के निकट सम्पर्क में आने का अवसर लेखिका को सन 1937 में मिला। उस समय के कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में लेखिका के प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय भवन का शिलान्यास करने प्रयाग आए। उनसे ज्ञात हुआ कि उनकी 15-16 पौत्रियाँ हैं, जिनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई है। यदि वह अपने छात्रावास में रखकर उन्हें विद्यापीठ की परीक्षाओं में बैठा सकें तो उन्हें शीघ्र कुछ विद्या प्राप्त हो सकेगी।

प्रश्न 4.
महादेवी वर्मा, राजेन्द्र बाबू के साथ बिताई संध्या क्यों नहीं भूल पातीं?
उत्तर:
महादेवी वर्मा, राजेन्द्र बाबू के साथ बिताई संध्या को नहीं भूल पातीं। यह इसलिए कि उसने उन्हें अर्थात् भारत के प्रथम राष्ट्रपति को सामान्य आसन पर बैठकर दिन भर के उपवास के बाद केवल कुछ उबले आलू खाकर पारायण करते देखा था। उसे भी वही खाते हुए देखकर उनकी दृष्टि से संतोष और होंठों पर बालकों जैसी सरल हँसी छलक उठी थी।

राजेन्द्र बाबू दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के उन कतिपय पहचान चिह्नों का उल्लेख कीजिए जो भारतीय जन की आकृति को व्यक्त करते हैं?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति ही नहीं, उनके शरीर के सारे गठन में एक साधारण भारतीय जन की आकृति और गठन की छाया थी। इसलिए उन्हें देखने वाले को कोई-न-कोई आकृति या व्यक्ति स्मरण हो आता था। वह अनुभव करने लगता था कि इस प्रकार के व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है। आकृति और वेशभूषा के समान ही वे अपने स्वभाव और रहन-सहन में भी साधारण भारतीय या भारतीय किसान का ही प्रतिनिधित्व करते थे। प्रतिभा और बुद्धि की विशेषता के साथ-साथ उन्हें जो गम्भीर संवेदना प्राप्त हुई थी, वही उनकी सामान्यता को गरिमा प्रदान करती थी।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के गुणों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के निम्नलिखित गुण थे –

  1. बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने का उन्हें कभी न घमण्ड हुआ और न कोई मानसिक ग्रन्थि ही हुई।
  2. सबके प्रति वे समान ध्यान रखती थीं।
  3. राष्ट्रपति भवन में भी वे स्वयं भोजन बनाती थीं। पति, परिवार और परिजनों को खिलाने के बाद ही स्वयं भोजन करती थीं। इस प्रकार वह एक सामान्य भारतीय गृहिणी के समान ही रहती थीं।
  4. वह अपने पति के साथ सप्ताह में एक दिन उपवास किया करती थीं।

प्रश्न 3.
पाठ के आधार पर राजेन्द्र बाबू की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पाठ के आधार पर राजेन्द्र बाबू की निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएँ हैं –

  1. उनकी शारीरिक बनावट बड़ी ही अदभुत थी। वह ऐसी विशेषता थी, जो पहली ही नजर में किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी। उन्हें देखने वाला हर कोई यही मान लेता था कि उसने इस आकृति को अवश्य कहीं-न-कहीं देखा है।
  2. उनकी वेशभूषा ग्रामीणों की थी। उसमें भारतीयता की साफ झलक दिखाई देती थी।
  3. उनकी आकृति, वेशभूषा तो आकर्षक थी ही, उनका स्वभाव और रहन-सहन भी सामान्य भारतीय या भारतीय किसान की ही तरह था।
  4. उनकी प्रतिभा और बुद्धि उनकी सामान्यता को महत्त्व प्रदान करती थी।
  5. उनमें जीवन-मूल्यों को परखने की अद्भुत दृष्टि थी। इसी से उन्हें ‘देशरत्न’ का सम्मान दिया गया।
  6. उनके मन की सरल स्वच्छता ऐसी थी कि वे इन्हीं के आधार पर ‘अजातशत्रु’ के रूप सम्मानित होते रहे।
  7. उनके समान कठिन लेकिन कोमल चरित्र आज नहीं है।

प्रश्न 4.
राजेन्द्र बाबू को अजातशत्रु किस सन्दर्भ में कहा जाता है?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू को अजातशत्रु उस सन्दर्भ में कहा जाता है कि उनका मन बहुत ही सरल और स्वच्छ था। उनके इन गुणों से अत्यधिक प्रभावित होकर उनके सम्पर्क में आने वाला हर कोई उनका लोहा मान लेता था।

प्रश्न 5.
सामान्यतः हमारा उपवास कैसा होता है?
उत्तर:
सामान्यतः हमारा उपवास अधिक सस्ता और कामचलाऊ होता है। कम-से-कम खर्च से अल्पाहार करके हम उपवास करते हैं।

राजेन्द्र बाबू भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.

  1. क्या वह साँचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे।
  2. कर्तव्य विलास नहीं कर्मनिष्ठा है।
  3. सत्य में से कुछ घटाना या जोड़ना सम्भव नहीं रहता।

उत्तर:
1. ‘क्या वह साँचा टूट गया, जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे’:
उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन किन्तु कोमल चरित्रों का आज बिलकुल अभाव हो गया है। यों तो आज भी अनेक महान पुरुष हैं, लेकिन उनके जैसे बेजोड़ और अद्भुत चरित्रों का आज अकाल पड़ा हुआ दिखाई देता है। इससे यह सहज ही प्रश्न उठ खड़ा हो रहा है कि राजेन्द्र बाबू जैसे बेजोड़ चरित्रों को तैयार करने वाला समय का साँचा आज नहीं दिखाई दें रहा है। वास्तव में यह एक बहुत बड़ी ही दुखद और अफसोस की बात है।

2. ‘कर्तव्य विलास नहीं, कर्मनिष्ठा है’:
उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि जीवन में महानता हासिल करने के लिए सुख-सुविधाओं को महत्त्क नहीं देना चाहिए। अगर ऐसा कोई करता है तो वह जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता है। वह अपने उद्देश्य से भटक जाता है। इससे वह अपना महत्त्व खोने लगता है। इसके विपरीत जो परिश्रमी होकर उद्देश्यमय जीवन जीना चाहते हैं, वे अपने कर्तव्य से कभी पीछे नहीं हटते हैं। वे उसे विलास के रूप में नहीं देखते हैं। वे तो उसे कर्मनिष्ठा ही समझकर आगे बढ़ते जाते हैं। ऐसे ही लोग युग-पुरुष के रूप में सम्मानित होकर सदैव याद किए जाते रहते हैं।

3. ‘सत्य में से कुछ घटाना या जोड़ना सम्भव नहीं रहता’:
उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि सत्य अटल होता है। वह किसी दिशा में नहीं बदलता है। वह हमेशा अपने ही रूप में रहता है। इसलिए बदलने या इसे कुछ और रूप देने की कोशिश बिल्कुल व्यर्थ होती है। सत्य का यह अटल रूप परिश्रम, स्वभाव, चरित्र, सोच, विचार आदि कहीं और कभी देखा जा सकता है। इस प्रकार सत्य काल का अमर चिह्न और अमर पहचान कहा जा सकता है।

राजेन्द्र बाबू भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
पुरातन, सीमित, अनुपस्थित, संयम, अपेक्षा, विचलित, संकुचित
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग एवं प्रत्यय युक्त शब्दों को छाँटकर पृथक-पृथक लिखिए –
प्रसारित, विचित्र, प्रतिनिधित्व, विशिष्टता, सहधर्मिणी।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
आँख, धरती, स्मृति, कृषक, सहधर्मिणी।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-3

प्रश्न 4.
पाठ में आए निम्नलिखित शब्द अनेकार्थी हैं। इन शब्दों का पृथक-पृथक . अर्थों में प्रयोग कीजिए –
कोट, जान, भेंट, फल, सूप।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-4

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के भिन्नार्थक समोच्चरित शब्द लिखकर वाक्य बनाइए –
निर्वाण, चर्म, कच्छा, तुरंग, प्रासाद, वास, द्वीप, तरिण, आसन्न, परिधान, अनु, वाला।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-5

राजेन्द्र बाबू योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आप किन महापुरुषों के व्यक्तित्व से प्रभावित हैं, कारण सहित लिखिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
क्या आपके जीवन में कभी कोई ऐसा संस्मरण घटित हुआ जिसे आप अपने साथियों के साथ बाँटना चाहेंगे। यदि हाँ, तो संस्मरण को लिखकर कक्षा में सुनाइए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

प्रश्न 3.
रेल-यात्रा के लिए पूर्व में आरक्षण कराया जा सकता है। रेल यात्रा के आरक्षण तथा रद्दकरण हेतु आवेदन पत्र देना होता है। यहाँ दिए आरक्षण पत्र को भरिए तथा रेलवे की अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

राजेन्द्र बाबू परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

राजेन्द्र बाबू लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू के बारे में लेखिका को किसने बताया?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू के बारे में लेखिका को उसके भाई ने बताया।

प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति देखकर ऐसा अनुभव होता था?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति देखकर ऐसा अनुभव होता था, मानो उन्हें पहले कहीं देखा है।
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-6

प्रश्न 3.
राजेन्द्र बाबू को ‘देशरत्न’ की उपाधि क्यों मिली?
उत्तर:
जीवन-मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण राजेन्द्र बाबू को ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली।

राजेन्द्र बाबू दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा कैसी थी?
उत्तर:
उनकी वेशभूषा की ग्रामीणता तो दृष्टि को और भी उलझा लेती थी। खादी की मोटी धोती ऐसा फेंटा देकर बाँधी गई थी कि एक ओर दाहिने पैर पर घुटना छूती थी और दूसरी ओर बाएँ पैर की पिण्डली। मोटे, खुरदरे, काले बंद गले के कोट में ऊपर का भाग बटन टूट जाने के कारण खुला था और घुटने के नीचे का बटनों से बंद था। सरदी के कारण पैरों में मोजे-जूते तो थे, परन्तु कोट और धोती के समान उनमें भी विचित्र स्वच्छंदतावाद था। एक मोजा जूते पर उतर आया था और दूसरा टखने पर घेरा बना रहा था।

मिट्टी की पर्त से न जूतों के रंग का पता चलता था, न रूप का। गाँधी टोपी की स्थिति तो और भी विचित्र थी। उसकी आगे की नोक बाईं भौंह पर खिसक आई थी और टोपी की कोर माथे पर पट्टी की तरह लिपटी हुई थी। देखकर लगता था मानो वे किसी हड़बड़ी में चलते-चलते कपड़े पहनते आए हैं, अतः जो जहाँ जिस स्थिति में अटक गया, वह वहीं उसी स्थिति में अटका रह गया।

प्रश्न 2.
जवाहरलाल और राजेन्द्र बाबू की अस्त-व्यस्तता में क्या अन्तर था?
उत्तर:
जवाहरलाल जी की अस्त-व्यस्तता भी व्यवस्था से निर्मित होती थी किन्तु राजेन्द्र बाबू की सारी व्यवस्था ही अस्त-व्यस्तता का पर्याय थी। दूसरे, यदि जवाहरलाल जी की अस्त-व्यस्तता देख लें तो उन्हें बुरा नहीं लगता था, परन्तु अपनी अस्त-व्यस्तता के प्रकट होने पर राजेन्द्र बाबू भूल करने वाले बालक के समान संकुचित हो जाते थे। एक दिन यदि दोनों पैरों में दो भिन्न रंग के मोजे पहने किसी ने उन्हें देख लिया तो उनका संकुचित हो उठना अनिवार्य था। परन्तु दूसरे दिन जब वे स्वयं सावधानी से रंग का मिलान करके पहनते तो पहले से भी अधिक बेमेल रंगों को पहन लेते।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
लेखिका राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के सम्पर्क में कव आयी? वह कैसी थीं?
उत्तर:
पहले बड़ी, फिर छोटी, फिर उनसे छोटी के क्रम से बालिकाएँ मेरे संरक्षण में आ गईं और उन्हें देखने प्रायः उनकी दादी और कभी-कभी दादा भी प्रयाग आते रहे। तभी राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के निकट सम्पर्क में आने का अवसर मिला। वे सच्चे अर्थ में धरती की पुत्री थीं साध्वी, सरल, क्षमामयी, सबके प्रति ममतालु और असंख्य सम्बन्धों की सूत्रधारिणी। ससुराल में उन्होंने बालिका-वधू रूप में पदार्पण किया था। संभ्रांत जमींदार परिवार की परम्परा के अनुसार उन्हें घण्टों सिर नीचा करके एकासन में बैठना पड़ता था, परिणामतः उनकी रीढ़ की हड्डी इस प्रकार झुक गई कि युवती होकर भी वे सीधी खड़ी नहीं हो पाईं।

राजेन्द्र बाबू लेखिका परिचय

प्रश्न 1.
श्रीमती महादेवी वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में 26 मार्च, 1907 को हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्रयाग से प्राप्त की। विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय और सामाजिक गतिविधियों से वह बहुत अधिक परिचित और प्रभावित होने लगीं। उन पर वह लगातार कविताएँ भी लिखने लगी थीं। अपने जीवन में आने वाले सामान्य और विशिष्ट दोनों लोगों के प्रति उनमें आत्मीयता और सहानुभूति की भावधारा आने लगी थी। उन्होंने राष्ट्रीय संकट के समय में अपनी व्यापक मानवीय संवेदना से भरी हुई साहित्यिक रचनाएँ राष्ट्र को दी। कुछ समय बाद वह प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या और फिर उपकुलपति रहीं। उनका निधन 11 सितम्बर, 1987 को हुआ।

रचनाएँ:
‘नीहार’, ‘नीरजा’, दीपशिखा, ‘यामा’ आदि महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएँ हैं। उन्हें ‘यामा’ काव्य-संग्रह पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्य की विशेषताएँ:
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख कवयित्री हैं। आपने द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता, नैतिकता, पौराणिकता और उपदेशात्मकता के अतिरिक्त भावुक मन की सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभूतियों को संगीतात्मक लय के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है। भावुकता की अतिशयता के कारण उन्हें ‘वेदना की कवयित्री’ भी कहा • जाता है। आपके व्यक्तित्व पर बौद्ध दर्शन का प्रभाव भी परिलक्षित होता है।

राजेन्द्र बाबू पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर:
श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ एक हृदयस्पर्शी संस्मरण है। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के प्रेरणादायक स्वरूपों पर प्रकाश डाला है। लेखिका के अनुसार-उसने एक गद्यात्मक वातावरण में जष राजेन्द्र बाबू को पहली बार देखा तो उनमें अकथनीय भावात्मक क्षणों के अनेक रूप झलकते हुए दिखाई दे रहे थे। उस समय वह प्रयाग में बी.ए. की छात्रा थी। शीतकाल में उसने अपने घर जब भागलपुर जाते समय अपने भाई से मिलने की प्रतीक्षा में पटना स्टेशन पर राजेन्द्र बाबू को देखा था। उनका व्यक्तित्व बहुत सहज होते हुए भी बड़ा असहज था। उनकी वेशभूषा बिलकुल देहाती थी। उन्हें देखकर लगता था, मानो वे किसी हड़बड़ी में चलते-चलते कपड़े पहनते आए हैं।

उनकी मुखाकृति को देखकर लगता था, मानो उन्हें कहीं देखा है। उनके शरीर के सारे गठन में एक साधारण भारतीय की आकृति और गठन की झलक थी। इसी प्रकार उनकी प्रतिभा, बुद्धि, स्वभाव और रहन-सहन भी थी। कुल मिलाकर वे भारतीय होने का ही प्रतिनिधित्व करते थे। उनकी अस्त-व्यस्तता जवाहर लाल जी की अस्त-व्यस्तता से अलग थी। जवाहर लाल जी की अस्त-व्यस्तता भी व्यवस्था से निर्मित होती थी, तो राजेन्द्र बाबू की सारी व्यवस्था ही अस्त-व्यस्तता का पर्याय थी। उनकी वेशभूषा की अस्त-व्यस्तता को ठीक करने में उनके निजी सचिव और सहचर भाई चक्रधर का योगदान सराहनीय रहा। उन्होंने वर्षों तक राजेन्द्र बाबू के पुराने कपड़े से अपने आपको प्रसाधित कर कृतार्थता का अनुभव किया था। इस प्रकार के गुरु-शिष्य या स्वामी-सेवक आज सचमुच में दुर्लभ हैं।

लेखिका का कहना है कि राजेन्द्र बाबू के सम्पर्क में आने का सुअवसर उसे सन् 1937 में प्राप्त हुआ। उस समय वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे और प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय के भवन का शिलान्यास करने प्रयाग आए थे। उन्होंने उसे बताया कि उनकी 15-16 पौत्रियाँ हैं। उनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई है। यदि वह उन्हें अपने छात्रावास में रखकर विद्यापीठ की परीक्षाएँ दिलवा सके, तो वे कुछ शिक्षित हो सकेंगी। इसे सहर्ष स्वीकार कर उसने उन्हें अपने संरक्षण में रख लिया। उसी समय उसे राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी से परिचय प्राप्त हुआ। वह सचमुच में धरती की पुत्री थीं। एक सरल, क्षमामयी, ममतामयी, साध्वी और उदार। सम्भ्रान्त जमींदार परिवार की परम्परा के अनुसार वह घण्टों सिर नीचा करके एकासन में बैठी रहती थीं। इससे

उनकी रीढ़ की हड्डी इतनी झुक गई थी कि वह युवती होने पर भी सीधी खड़ी नहीं हो पाती थीं। फिर भी उन्हें कोई अहंकार नहीं था। सबके प्रति उनकी आत्मीयता थी। संगम में वह स्नान-ध्यान करके बड़ी श्रद्धा से अधिक-से-अधिक दूध-फूल संगम को भेंट कर देती थीं। पंडों. को वह यथोचित दान-दक्षिणा दिया करती थीं। लेखिका का पुनः कहना है कि बालिकाओं के प्रति राजेन्द्र बाबू का स्पष्ट निर्देश था कि वे सामान्य बालिकाओं के साथ संयम और सादगी से रहें। इससे वे एक स्वयंसेविका की तरह सब कुछ कर लेती थीं। जब वे भारत के पहले राष्ट्रपति हुए तब उन्होंने लेखिका को लिखा था-“महादेवी बहन, दिल्ली मेरी नहीं है, राष्ट्रपति भवन मेरा नहीं है।

अहंकार से मेरी पोतियों का दिमाग खराब न हो जाए, तुम केवल इसकी चिन्ता करो। वे जैसी रहती आई हैं, उसी प्रकार रहेंगी। कर्त्तव्य-विलास नहीं, कर्मनिष्ठा है।” उनकी धर्मपत्नी में भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वे अन्त तक भारतीय गृहिणी के समान पति, परिवार और परिजनों को खिलाने के बाद ही भोजन करती थीं। उन्होंने लेखिका को एक दर्जन सिरके के बने सूप दिल्ली लाने का आदेश दिया। प्रयाग से प्रथम श्रेणी के डिब्बे में टंग कर दिल्ली स्टेशन आए। फिर उन्हें बड़ी कार में लादा गया। राष्ट्रपति भवन के हर द्वार पर सलाम ठोकने वाले सिपाहियों की आँखें इसे देखकर हैरान हो गईं। सचमुच में ऐसी भेंट लेकर कोई अतिथि न वहाँ पहुँचा था और न पहुँचेगा।

लेखिका का अंत में कहना है कि राजेन्द्र बाबू और उनकी धर्मपत्नी सप्ताह में एक दिन उपवास करते थे। संयोग से वह उनके उपवास के दिन पहुँची तो उन्होंने उनका अतिथि-सत्कार किया। लेखिका भी उनके उपवास में शामिल हो गई। वह आज भी वह शाम नहीं भूल पाई कि किस प्रकार भारत के पहले राष्ट्रपति ने सामान्य आसन पर बैठकर उपवास के बाद कुछ उबले हुए आलू खाकर, पारायण किया था। उसे वही खाते हुए देखकर वे किस प्रकार संतोषकर बच्चों की सरल हँसी से खिल उठे थे। जीवन-मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली थी। उनके मन की सरल स्वच्छता ने उन्हें अजातशत्रु बना दिया। जिज्ञासा होती है कि क्या वह साँचा टूट गया, जिसमें ऐसे कठिन-कोमल चरित्र ढलते थे।

राजेन्द्र बाबू संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

MP Board Solutions

प्रश्न 1.
काले घने पर छोटे कटे हुए बाल, चौड़ा मुख, चौड़ा माथा, घनी भृकुटियों के नीचे बड़ी आँखें, मुख के अनुपात में कुछ भारी नाक, कुछ गोलाई लिए चौड़ी ठुड्डी, कुछ मोटे पर सुडौल होंठ, श्यामल झाँई देता हुआ गेहुआँ वर्ण, ग्रामीणों जैसी बड़ी-बड़ी मूंछे जो ऊपर के होंठ पर ही नहीं नीचे के होंठ पर भी रोमिल आवरण डाले हुए थीं। हाथ, पैर; शरीर सबमें लम्बाई की ऐसी विशेषता थी, जो दृष्टि को अनायास आकर्षित कर लेती थी।

शब्दार्थ:

  • भृकुटियों – भौंहों।
  • श्यामल – साँवला।
  • गेहुआ – गेहूँ के।
  • ग्रामीण – देहाती।
  • रोमिल – रोएँ।
  • आवरण – पर्दा।
  • दृष्टि – नज़र।
  • अनायास – अचानक।
  • आकर्षित – खींच लेती।

प्रसंग:
प्रस्तत गंद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सामान्य हिन्दी भाग-1’ में संकलित तथा श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूपरेखा का चित्रण करते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूपरेखा बड़ी ही अद्भुत थी। उनके सिर के बाल बहुत काले और घने थे। वे कटे हुए थे। इसलिए बहुत छोटे-छोटे थे। उनका मुँह और माथा चौड़ा था। उनकी आँखें बड़ी-बड़ी थीं। वे भौंहों के बीच दिखाई देती थीं। उनके मुँह की तुलना में उनकी नाक बड़ी लगती थी। उनकी ठुड्डी गोल थी लेकिन चौड़ी थी। उनके मुँह की आकृति कुछ ऐसी थी कि उनके होंठ सुडौल तो थे, लेकिन भारी और मोटे थे। उनका पूरा शरीर गेहुएँ रंग का तो था, लेकिन वह पूरी तरह ऐसा नहीं था।

उसमें साँवलेपन की कुछ झलक अवश्य थी। उनकी मूंछे भी असाधारण थीं। वे छोटी-छोटी नहीं, बल्कि बड़ी-बड़ी थीं। उन्हें देखने से ऐसा लगता था कि वे किसी देहाती की मूंछों के समान थीं। वे ऊपर के होंठ पर होने के साथ-ही-साथ नीचे के भी होंठ पर रोएँ के पर्दा डाले हुए दिखाई देती थीं। उनके हाथ और पैर भी अद्भुत ही थे। वे लम्बे-लम्बे थे। इससे भी वे देखने वालों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। कहने का भाव यह कि उनकी शारीरिक बनावट को देखकर हर कोई उनकी ओर अपने आप खिंचा चला जाता था।

विशेष:

  1. राजेन्द्र बाबू के अद्भुत शारीरिक स्वरूप का चित्रण किया गया है।
  2. शैली चित्रमयी है।
  3. शब्द-योजना बिम्बात्मक।
  4. यह गद्यांश रोचक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में किसका उल्लेख हुआ है?
  2. प्रस्तुत गद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए?

उत्तर:

1. प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बांबू का शारीरिक रूप-ढाँचा का चित्रांकन हुआ है।

2. प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा लेखिका ने यह भाव स्पष्ट करना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व बड़ा ही सरल और आकर्षक था। वह सबको चकित करने वाला था। यों तो वह बहुत ही सरल और सहज था लेकिन उसका प्रभाव निश्चय ही अमिट और बेजोड़ था। कुल मिलाकर वह एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व था।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व मुख्य रूप से कैसा था?
  2. राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूप-रचना की कौन-सी विशेषता थी?

उत्तर:

  1. राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व मुख्य रूप से देहाती था।
  2. राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूप-रचना की मुख्य विशेषता वह थी, जो किसी को अनायास ही आकर्षित कर लेती थी।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति ही नहीं, उनके शरीर के सम्पूर्ण गठन में एक सामान्य भारतीय जन की आकृति और गटन की छाया थी, अतः उन्हें देखने वाले को कोई-न-कोई आकृति या व्यक्ति स्मरण हो आता था और वह अनुभव करने लगता था कि इस प्रकार के व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है। आकृति तथा वेशभूषा के समान ही वे अपने स्वभाव और रहन-सहन में सामान्य भारतीय या भारतीय कृषक का ही प्रतिनिधित्व करते थे। प्रतिभा और बुद्धि की विशिष्टता के साथ-साथ उन्हें जो गम्भीर संवेदना प्राप्त हुई थी, वही उनकी सामान्यता को गरिमा प्रदान करती थी।

शब्दार्थ:

  • मुखाकृति – मुँह की बनावट।
  • जन – मनुष्य।
  • आकृति – बनावट।
  • स्मरण – याद।
  • कृषक – किसान।
  • प्रतिभा – तेज।
  • विशिष्टता – विशेषता।
  • संवेदना – गहरा प्रभाव।
  • गरिमा – महत्त्व।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का महत्त्वांकन करते हुए कहा है कि… व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की मुख की बनावट बिलकुल साधारण थी। उसमें भारतीयता की पूरी रूपरेखा दिखाई देती थी। इसी प्रकार उनका शारीरिक गठन भी था। यही कारण था कि उन्हें जो कोई देखता था, उसे यही लगता था कि उसने उन्हें कहीं-न-कहीं या कभी-न-कभी अवश्य देखा है। इस प्रकार अनुभव करने वाला उनसे अपनापन का भाव रखने का प्रयत्न करने लगता था। लेखिका का पुनः कहना है कि वे अपनी शारीरिक रचना और अपनी वेशभूषा के अनुसार ही अपने स्वभाव और जीवन-स्तर को भी ढाल चुके थे।

यह भी कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने स्वभाव और जीवन-स्तर के अनुकूल ही अपनी वेशभूषा को अपना लिया था। इस प्रकार वे अपने स्वभाव, शारीरिक गठन और रहन-सहन के आधार पर एक साधारण भारतीय लगते थे। दूसरे शब्दों में वे एक सच्चे भारतीय किसान के प्रमाण थे। इसी तरह वे अपनी तेज समझ और तीव्र बुद्धि की बहुत बड़ी विशेषता से सम्पन्न थे। इसके साथ-ही-साथ उनमें बहुत अधिक गम्भीरता थी। उस गम्भीरता से वे किसी बात की तह तक पहुँच जाते थे। उनकी इस प्रकार की साधारण विशेषता का महत्त्व सहज ही स्पष्ट हो जाता था।

विशेष:

  1. राजेन्द्र बाबू के बाहरी और आन्तरिक व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।
  2. यह गद्यांश प्रेरक रूप में है।
  3. भाषा उच्च स्तरीय है।
  4. शैली भावात्मक और वर्णनात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के किन पक्षों पर प्रकाश डाला गया है?
  2. इस गद्यांश का मुख्य भाव लिखिए।

उत्तर:

  1. प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बाबू के बाहरी और आन्तरिक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।
  2. इस गद्यांश का मुख्य भाव है-राजेन्द्र बाबू के आन्तरिक और बाहरी पक्षों का चित्रण कर प्रेरक रूप में प्रस्तुत करना।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. राजेन्द्र बाबू को देखकर कोई उन्हें क्या समझता था?
  2. राजेन्द्र बाबू किसके द्वारा किसका प्रतिनिधित्व करते थे?

उत्तर:

  1. राजेन्द्र बाबू को देखकर हर कोई यही समझता था कि उसने उन्हें कहीं-न-कहीं अवश्य देखा है।
  2. राजेन्द्र बाबू अपने स्वभाव और अपने रहन-सहन के द्वारा भारतीय या भारतीय किसान का ही प्रतिनिधित्व करते थे।

प्रश्न 3.
बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने का न उन्हें कभी अहंकार हुभा और न उनमें कोई मानसिक ग्रन्थि ही बनी। छात्रावास की सभी बालिकाओं तथा नौकर-चाकरों का उन्हें समान रूप से ध्यान रहता था। एक दिन या कुछ घण्टों ठहरने पर भी वे सबको बुला-बुलाकर उनका तथा उनके परिवार का कुशल-मंगल पूछना न भूलती थीं। घर से अपनी पौत्रियों के लिए लाए मिष्ठान्न में से प्रायः सभी बँट जाता था। देखने वाला यह जान ही नहीं सकता था कि वह सबकी इया, अइया अर्थात् दादी नहीं है।

शब्दार्थ:

  • स्वातंत्र्य – स्वतन्त्र।
  • अपराजेय – पराजित नहीं होने वाला।
  • अहंकार – घमण्ड।
  • मानसिक ग्रन्थि – मन सम्बन्धी दोष।
  • पौत्रियों – पोतियों।
  • मिष्ठान्न – मिठाई।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी के आकर्षक व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी साधारण भारतीय महिला होने के बावजूद असाधारण थीं। वे बिहार के एक उच्च जमींदार परिवार की वधू थीं। इसके साथ ही वे स्वतन्त्र युद्ध के अपराजेय सेनानी राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी भी थीं। लेकिन अपनी इन अद्भुत विशेषताओं का न उन्हें कोई अनुभव था और न कोई घमण्ड ही था। इसके लिए उनके मन में कभी कोई विकार या दोष भी नहीं आया। दूसरी बात यह कि उनमें सबके प्रति समानता और अभेद की भावना थी। इसका प्रमाण एक यह भी था कि छात्रावास की सभी छात्राएँ और नौकर-चाकरों से उनका समान व्यवहार होता था।

वे उनके प्रति हमेशा समान व्यवहार करने को पहला महत्त्व दिया करती थीं। इस सन्दर्भ में यह कहना समुचित ही होगा कि जब कभी वे छात्रावास में आती थीं, तब वे सभी छात्राओं और नौकरों-चाकरों को अपने पास बुला लेती थीं। फिर उनका और उनके परिवार सहित उनके सगे-सम्बन्धियों का भी समाचार बड़े प्रेमपूर्वक अवश्य पूछती थीं। वे अपने पोतियों के लिए जो भी मिठाइयाँ लाती थीं, उन्हें सबके बीच उसी समय बाँट देती थीं। उस समय यहाँ जो कोई भी रहता, वह उनकी इस समानता की सोच-समझ और व्यवहार से चकित हो जाता था। फिर वह नहीं समझ पाता कि वह किसकी अपनी दादी हैं और किसकी नहीं।

विशेष:

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी की असाधारण विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है।
  2. वाक्य-गठन उच्चस्तरीय हैं।
  3. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  4. यह अंश रोचक और हृदयस्पर्शी है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी का स्वभाव कैसा था?
  2. प्रस्तुत गद्यांश के मूल भाव को स्पष्ट कीजिए?

उत्तर:

1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी का स्वभाव बहुत ही सरल, सहज और उदार था। वह किसी को अपरिचित और पराया नहीं समझती थीं। वह सबके प्रति अपनापन का. भाव रखती थीं। इस प्रकार वह एक आदर्श भारतीय नारी थीं।

2. प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा लेखिका ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी एक ऐसी आदर्श भारतीय नारी थीं, जिनके लिए अपने-पराये का कोई भेदभाव नहीं था। वह बहुत सरल, स्पष्ट, उदार और विनम्र थीं। उनकी समानता की विशेषता सबको प्रभावित कर मोह लेती थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी किस प्रकार के अहंकार और मानसिक ग्रन्थि से दूर थीं?
  2. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी किस प्रकार समानता का व्यवहार करती थीं?

उत्तर:

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने के अहंकार और मानसिक ग्रन्थि से दूर थीं।
  2. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी सबका कुशल-मंगल पूछा करती थीं। अपनी कोई भी चीज वह सबको बाँट देती थीं। इस प्रकार वह समानता का व्यवहार करना कभी भी नहीं भूलती थीं।

प्रश्न 4.
जीवन मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली और मन की सरल स्वच्छता ने उन्हें अजातशत्रु बना दिया। अनेक बार प्रश्न उठता है, क्या वह साँचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे।

शब्दार्थ:

  • परख – पहचान।
  • उपाधि – सम्मान।
  • अजातशत्रु – शविहीन, जिसका कोई शत्रु न हो!
  • साँचा – वह साधन, जिसमें गीली वस्तु डालकर उसी के आकार की दूसरी और वस्तुएँ ढाली जाती हैं।

प्रसंग:
पूर्ववत्! इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की महानता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की सबसे बड़ी महानता यह थी कि उन्हें जीवन-मूल्यों की बहुत बड़ी पहचान थी। इसी कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि देकर उनका बहुत बड़ा मूल्यांकन किया गया था। उनके व्यक्तित्व की दूसरी बहुत बड़ी विशेषता थी उनके मन की सरलता, सहजता, स्पष्टता और स्वच्छता। इसी विशेषता के बलबूते पर वे अजातशत्रु के रूप में याद किए जाते हैं। उनकी इस प्रकार की महानता और विशेषता की कमी आज के महापुरुषों में दिखाई देती है। इससे यह स्वाभाविक रूप से जिज्ञासा होती है कि इस प्रकार की विशेषता को तैयार करने वाला साँचा क्या आज नहीं है, जो राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन किन्तु सरल और सरस चरित्रों को ढाल सके।

विशेष:

  • राजेन्द्र बाबू की बेजोड़ व्यक्तित्व को स्पष्ट करने पर प्रयास किया गया है।
  • भाषा की शब्दावली तत्सम शब्दों की है।
  • भावात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोतर
प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू को ‘देश रत्न’ को उपाधि क्यों मिली?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू में जीवन-मूल्यों की पहचान करने की अद्भुत दृष्टि थी। इसीलिए उन्हें देशरत्न’ की उणधि दी गई।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
आज किस साँचे का. अभाव दिखाई देता है?
उत्तर:
आज उस साँचे का अभाव दिखाई देता है, जिसमें राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन और कोमल दोनों ही प्रकार के चरित्र ढलते थे।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 9 नई इबारत

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 9 नई इबारत (कविता, भवानी प्रसाद मिश्र)

नई इबारत पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

नई इबारत लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने सोने से पहले कौन-से दो काम करने के लिए प्रेरित किया है?
उत्तर:
कवि ने सोने से पहले ‘कुछ लिख के और कुछ पढ़के’ ये दो काम करने के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 2.
खेलते समय कौन-सी सावधानी रखना है?
उत्तर:
खेलते समय समझ-बूझ करके और किसी प्रकार की जिद न करके खेलते जाने की सावधानी रखना है।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
कवि ने खेत की क्या विशेषता बताई है?
उत्तर:
कवि ने खेत की विशेषता बताई है कि वे खुले-फैले और धानी हैं। वे कभी-कभी हवा से डोलते हैं। वे कभी-कभी बरसात के झोकों से गद्गद हो उठते हैं। इस तरह वे कभी-कभी हर प्रकार की खुश्क और तर की शक्ति से प्रभावित होते रहते हैं।

नई इबारत दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है?
उत्तर:
कविता के माध्यम से कवि यह सन्देश देना चाहता है कि हमें जीवन में आगे बढ़ते जाने के लिए हर समय कुछ-न-कुछ करते रहना चाहिए। इसके लिए कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों-प्रतिरूपों के उदाहरण देकर यह सिद्ध करना चाहा है कि प्रकृति कभी भी निष्कर्म नहीं रहती है। वह पल-पल कर्मरत रहती है। इससे वह आने वाले हर दुःखों और कठिनाइयों का सामना करती हुई हमेशा आगे बढ़ती जाती है। प्रकृति के इस प्रक्रिया से हमें प्रेरणा लेकर अपने जीवन को समुन्नत और महान बनाते रहने का हमेशा ही प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 2.
कविता में प्रकृति के माध्यम से कवि ने कुछ सन्देश व्यक्त किए हैं, उनमें से किन्हीं दो को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कविता में प्रकृति के माध्यम से कवि ने कुछ सन्देश व्यक्त किए हैं। उनमें दो इस प्रकार हैं –

  1. सूरज ने किरणों की कलम से इबारत लिखी।
  2. हवा ने मन-ही-मन कुछ गुनगुनाया।

1. सूरज ने किरणों की कलम से इबारत लिखी:
उपर्युक्त सन्देश के द्वारा कवि ने मनुष्य को अपने पुरुषार्थ और कड़ी मेहनत से अपने जीवन को सुखद बनाने का सन्देश दिया है।

2. हवा ने मन ही मन कुछ गुनगुनाया:
उपर्युक्त सन्देश के द्वारा कवि ने मनुष्य को अपने जीवन में आने वाले दुखों और कठिनाइयों को डटकर खुशी-खुशी और बेफिक होकर सामना करने का सन्देश दिया है।

प्रश्न 3.
निष्क्रियता के सम्बन्ध में कवि ने कैसे संकेत किया है?
उत्तर:
निष्क्रियता के सम्बन्ध में. कवि ने इस प्रकार संकेत किया है –
“बिना समझे बिना बूझे खेलते जाना,
एक जिद को जकड़ लेकर ठेलते जाना,
गलत है, बेसूद है, कुछ रचके सो, कुछ गढ़के सो।”

नई इबारत भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांश की व्याख्या कीजिए –

  1. “तू जिस जगह जागा सबेरे उस जगह से बढ़ के सो।”
  2. “दिनभर इबारत पेड़-पत्ती और पानी की।
    बन्द घर की खुले फैले खेत धानी की।”
  3. ‘एक जिद को जकड़ लेकर ठेलते जाना।’
  4. ‘जो इबारत लहर बनकर नदी पर दरसी।’

उत्तर:

1. “तू जिस जगह जागा सबेरे, उस जगह से बढ़के सो”:
उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने यह प्रकट करना चाहा है कि हमें अपने दैनिक जीवन में कुछ-न-कुछ श्रेष्ठ और प्रशंसनीय कार्य करते रहना चाहिए। इससे हमारा जीवन सार्थक और सफल हो सकेगा। फलस्वरूप हमें सुख और शान्ति प्राप्त होगी। यह सुख और शान्ति दूसरे के लिए सन्देश-स्वरूप होगी। खासतौर से उलझे, मुरझाए, हारे, थके और असफल लोगों के लिए। ऐसा करके ही हम दिन-प्रतिदिन अपने जीवन को आगे बढ़ा हुआ पा सकते हैं। यह तभी सम्भव है, जब हम जो कुछ करें, सोच-विचार कर करें। दृढ़संकल्प लेकर करें।

2. “दिन-भर इबारत पेड़-पत्ती और पानी की।
बन्द घर की खुले-फैले, खेत धानी की।”

उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि हमें अपने जीवन की एक-एक बातों का एक इबारत की तरह महत्त्व देना चाहिए। हमें अपने जीवन को सार्थक और उपयोगी बनाने के लिए प्रकृति के स्वच्छन्द स्वरूप को महत्त्व देते हुए उससे प्रेरणा लेनी चाहिए। इस दृष्टि से हमें पेड़-पत्ती, पानी, खुले-फैले खेत धानी की स्वच्छन्दता को अपने अन्दर उतारकर हमेशा हौसला रखते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए।

3. “एक जिद को जकड़ लेकर ठेलते जाना:
उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए समझ-बूझ को साथ रखना चाहिए। इसके साथ-ही-साथ हमें किसी बच्चे की तरह कोई जिद या हठ लेकर नहीं बैठ जाना चाहिए। इससे हमारा जीवन आगे न बढ़कर वहीं जाम हो जाता है। यह एक सुखद और सफल जीवन के लिए किसी प्रकार अनुकूल और उचित नहीं है।

4. “जो इबारत लहर बनकर नदी पर दरसी”:
उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने यह भाव प्रकट करना चाहा है कि हमें जीवन में हमेशा ही आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए। इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि हम नदी पर मचलती हुई एक लहर की तरह बड़े ही स्वच्छन्द और उमंग के साथ सामने वाली हर कठिनाइयों का सामना करते चलें। इसी से हमारे जीवन की सार्थकता सिद्ध होगी।

नई इबारत भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
कविता में आए निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
खुश्क, उठा, बेसूद, जागना।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 9 नई इबारत img-1

नई इबारत योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
कवि ने सोने से पहले आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है, क्या आप प्रतिदिन विचार करते हैं, आपने आज क्या प्राप्त किया जो आपके जीवन को लक्ष्य की ओर प्रेरित कर सके। उन विचारों को सोने के पूर्व डायरी विधा में लिखने की आदत विकसित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
इसी प्रकार की प्रेरणाप्रद कविताओं को संकलित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
प्रेरणा देने वाली ऐसी ही अन्य कविताओं का संकलन कर उसे सुस्पष्ट अक्षरों में लिखकर विभिन्न अवसरों पर अपने साथियों को भेंट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

नई इबारत परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

नई इबारत लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने जगने के बाद क्या काम करने के लिए प्रेरित किया है?
उत्तर:
कवि ने जगने के बाद उस जगह से आगे बढ़कर सोने के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 2.
कवि ने कौन-सी इबारत के सुनहरे वर्क से मंन मढ़के सो जाने के लिए कहा है?
उत्तर:
कवि ने पेड़-पत्ती और पानी, बन्द घर की खुली-फैले खेत, धानी की, हवा की, बरसात की, हरेक खुश्क की, दिन-भर अपने और दूसरे की इबारत के सुनहरे वर्क से मन मढ़के सो जाने के लिए कहा है।

प्रश्न 3.
पंछी ने किसका नाम लेकर पुकारा?
उत्तर:
पंछी ने, सूरज ने अपने किरण की कलम से जो लिखा, उसी को पंछी ने नाम लेकर पुकारा।

नई इबारत दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने प्रकृति के किन-किन को किस रूप में चित्रित किया है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों को चित्रित किया है। कवि द्वारा चित्रित ये रूप हैं-सुबह-शाम, पेड़-पत्ती, पानी, खुले-फैले धानी खेत, हवा, बरसात, सूखा, नम, दैनिक क्रिया-व्यापार, सूरज, उसकी किरणें, पंछी, हवा, लहर, नदी आदि। इन्हें कवि ने प्रेरणादायक रूप में चित्रित किया है। यह इसलिए कि इनसे प्रेरणा लेकर मनुष्य अपने जीवन को महान बना सके।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
प्रस्तुत कविता में सुबह जागना और रात को सोना का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में सुबह जागना और रात को सोना का भाव प्रेरक रूप में है। ये दोनों ही भाव जीवन मे आगे बढ़ते जाने के लिए प्रयुक्त हुए हैं। इनके माध्यम से कवि ने हमारे जीवन में उत्साह को लाते हुए हमेशा अपने को महान बनाने का सुझाव दिया है। उसका यह कहना है कि जब रात को सोते हैं, उससे पहले कुछ अच्छा और सराहनीय काम करें। फिर सुबह जगने पर और कुछ पहले से सराहनीय करने का दृढ़ संकल्प लें।

प्रश्न 3.
‘नई इबारत’ कविता के केन्द्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन में उत्साह का संचार करते हुए निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है। उनके अनुसार जिस स्थिति में हम सुबह जागते हैं, उसी स्थिति में यदि रात्रि को सो जाते, हैं, तो हमारा जीवन अर्थपूर्ण नहीं हो पाता है। निरर्थक जिद किए बगैर कुछ रचके, कुछ गढ़के ही जीवन को सृजनात्मक बनाया जा सकता है। प्रकृति का सम्पूर्ण कार्य-व्यापार जीवन के नए पृष्ठ खोलने वाला है। प्रकृति की इस कर्म-शीलता से प्रेरणा लेकर जीवन में कठिनाइयों का सामना किया जाना ही उपयुक्त है। इस तरह के दृढ़निश्चय से ही जीवन के महत्त्व को प्रतिपादित किया जा सकता है।

नई इबारत कवि-परिचय

प्रश्न 1.
भवानी प्रसाद मिश्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म मध्य-प्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया गाँव में 28 मार्च 1914 को हुआ था। उनका आरम्भिक जीवन बड़े संघर्षों में बीता। उन्होंने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की। 1942 के ‘भारत-छोड़ो’ आन्दोलन में उनका सक्रिय योगदान था। परिणामस्वरूप उन्हें तीन वर्ष का कारावास मिला। कारावास की अवधि में भी उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा। सन् 1946 ई. से 1950 ई. तक उन्होंने वर्धा के महिला आश्रम में शिक्षण-कर्म किया। लगभग एक वर्ष तक “राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा” से सम्बद्ध रहे।

सन् 1952 से 1955 तक वे ‘कल्पना’ (हैदराबाद) के सम्पादन-विभाग से जुड़े रहे। इसके पश्चात् उन्होंने आकाशवाणी के बम्बई केन्द्र के “विविध भारती” कार्यक्रम का निर्देशन कार्य सँभाला। गाँधी जी के जीवन-दर्शन तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं से वे विशेष रूप से प्रभावित हुए। जीवन के अन्तिम दिनों तक वे “गाँधी स्मारक निधि व सर्वसेवा संघ” से जुड़े रहे।

रचनाएँ:
श्री भवानी प्रसाद की मुख्य रचनाएँ हैं-‘गीत फरोश’, ‘चकित है दुःख’, ‘अँधेरी कविताएँ’, ‘बुनी हुई रस्सी’, ‘खुशबू के शिलालेख’, ‘कवितान्तर’, ‘त्रिकाल संध्या’ तथा ‘शतदल’ आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ:
मिश्रजी सदा सरल व सहज भाषा-प्रयोग के पक्षपाती रहे हैं। सादगी व सरलता उनकी शैली की एक प्रमुख विशेषता है। उनकी कविताओं में एक ओर तो गाँधीवादी विचारधारा की अभिव्यक्ति मिलती है तो दूसरी ओर प्रकृति की विभिन्न छवियों की सजीव व सचित्र अभिव्यक्ति मिलती है। उनकी कविताओं में कहीं-कहीं आदर्शवाद व उपदेशात्मकता का भी स्वर मुखरित हुआ है।

नई इबारत पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
भवानी प्रसाद मिश्र विरचित कविता ‘नई इबारत’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भवानी प्रसाद मिश्र विरचित कविता ‘नई इबारत’ एक उत्साहबर्द्धक कविता है। इसमें कवि ने हमें हमेशा आगे बढ़ने का उत्साह प्रदान किया है। कवि का कहना है कि हमें सोने से पहले कुछ लिख-पढ़कर ही रात को सोना चाहिए। इस प्रकार जब सुबह नींद खुले तो हम आगे बढ़ते हुए स्वयं को पाएं। एक बच्चे की तरह हमें बिना कुछ समझे-बूझे जिद करके बैठे रहना नहीं चाहिए। यह बिल्कुल ही गलत है। हमें तो जीवन में हमेशा ही कुछ रचते-गढ़ते रहना चाहिए। हमें तो दिनभर पेड़-पत्ती, पानी, खुले-फैले खेत, हवा, बरसात, नमी की इबारत के सुनहरे बर्फ से मन को मढ़कर रात को चुपचाप सो जाना चाहिए कि सवेरे नींद खुलने पर हम अपने को उस जगह से बढ़ा हुआ पा सकें।

कवि का पुनः कहना है कि सूरज ने किरणों की कलम से जो कुछ लिखा, उसे चिड़ियों ने पढ़ लिया। हवा ने जो कुछ गुनगुनाया, बरसात ने जो कुछ जल बरसाया और जो इबारत एक लहर की तरह नदी पर दिखाई दी, उस इबारत की यदि सीढ़िया हैं, तो हमें उस पर चढ़कर रात को ऐसे सो जाना चाहिए कि सुबह नींद खुलने पर हमें पहले से स्वयं को आगे बढ़ा हुआ पा सकें।

नई इबारत संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
कुछ लिखके सो कुछ पढ़के सो,
तू जिस जगह जागा सबेरे,
उस जगह से बढ़के सो।
जैसा उठा वैसा गिरा जाकर बिछौने पर,
तिफ्ल जैसा प्यार यह जीवन खिलौने पर,
बिना समझे बिना बूझे खेलते जाना,
एक जिद को जकड़ लेकर ठेलते जाना,
गलत है बेसूद है कुछ रचके सो कुछ गढ़के सो,
तू जिस जगह जागा सबेरे उस जगह से बढ़के सो।

शब्दार्थ:

  • तिफ्ल – बच्चा।
  • बेसूद – व्यर्थ, निरर्थक।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा विरचित कविता ‘नई इबारत’ शीर्षक से उद्धत है। इसमें कवि ने हमारे जीवन में उत्साह का संचार करते हुए हमें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
हमें कुछ लिखकर और कुछ पढ़कर रात को सोना चाहिए। फिर सुबह नींद खुलने पर पहले से स्वयं को आगे बढ़ा हुआ पाना चाहिए। कहने का भाव यह है कि जीवन में हमें हमेशा कुछ-न-कुछ ऐसे महान कार्य करते रहना चाहिए, जिससे हम हमेशा विकास करते हुए आगे बढ़ते जाएँ। कवि का पुनः कहना है कि जिस प्रकार कोई बच्चा बिछौने पर उठता-गिरता है, वैसे ही यह हमारा प्यारा जीवन समय रूपी खिलौने पर मचलता रहता है। यह एक नासमझ बच्चे की तरह बिना कुछ समझे-बूझे खेलता रहता है। वह एक बच्चे की तरह एक जिद को जकड़कर ठेलते जाता है। यह सचमुच में गलत है और व्यर्थ है। हमें तो कुछ-न-कुछ रचके और गढ़ के ही रात को सोना चाहिए। सुबह जब नींद खुले तो हम अपने-आपको पहले से आगे बढ़ा हुआ पाएँ।

विशेष:

  1. भाव प्रेरक रूप में है।
  2. शैली प्रेरणादायक है।
  3. वीर रस का प्रवाह है।
  4. प्रगतिशील विचारधारा है।
  5. शब्द मिश्रित हैं।

पद्यांश आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धी सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
  3. कवि ने बच्चे के उदाहरण से कौन-सी समानता लाने का प्रयत्न किया है?

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि का कथन बड़ा ही सरस और हृदय को छूने वाला है। जीवन में हमेशा आगे बढ़ते जाने की कवि द्वारा प्रेरणा देना अधिक उत्साहबर्द्धक है। यह निराश, उदास और जीवन में हारे हुए व्यक्तियों के सोए हुए भावों को बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रेरित करने वाला है। भाकों को जगाने के लिए कवि का मार्गदर्शन बड़े ही सटीक रूप में हुआ है। इस प्रकार यह पूरा पद्यांश अधिक सरस और भावबर्द्धक है।

2. प्रस्तुत पद्यांश की भाव-योजना सरल और हिन्दी-उर्दू मिश्रित शब्दों की है। तुकान्त शब्दावली के द्वारा वीर रस का संचार अधिक आकर्षक रूप में हुआ है। नपे-तुले भावों को नपे-तुले बिम्बों और प्रतीकों द्वारा प्रेरणादायक शैली में प्रस्तुत किया गया है। इससे यह पद्यांश सराहनीय है।

3. कवि ने बच्चे के उदाहरण से जीवन में असफल और लापरवाह रहने वाले लोगों के निरर्थक जीवन की समानता लाने का प्रयास किया है। इससे कवि के कहने का आशय सुस्पष्ट और प्रभावशाली बन गया है।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
दिन-भर इबारत पेड़-पत्ती और पानी की
बन्द घर की खुले-फैले खेत धानी की
हवा की बरसात की हर खुश्क की तर की
गुजरती दिनभर रही जो आप की पर की
उस इबारत के सुनहरे वर्क से मन मढ़के सो
तू जिस जगह जागा सबेरे उस जगह से बढ़के सो।
लिखा सूरज ने किरन की कलम लेकर जो
नाम लेकर जिसे पंछी ने पुकारा सो
हवा जो कुछ गा गई बरसात जो बरसी
जो इबारत लहर बनकर नदी पर दरसी
उस इबारत की अगरचे सीढ़ियाँ हैं चढ़के सो
तू जिस जगह जागा सबेरे उस जगह से बढ़के सो।

शब्दार्थ:

  • इबारत – लेख, रचना।
  • खुश्क – शुष्क, सूखा।
  • तर – सरस, रसमय, भींगा।
  • पर की – दूसरों की।
  • वर्क – सोने या चाँदी का अत्यन्त पतला पत्तर।
  • दसी – दिखी।
  • अगरचे – यदि।

प्रसंग – पूर्ववत्!

व्याख्या:
दिन-भर पेड़-पत्ती और पानी बन्द घर की, खले-फैले खेत-धानी की. हवा की, बरसात की, हरेक सूखापन और नमी की, अपने पर दिन-भर बीती बातों की और ऐसी अनेक बातों की सुनहरे वर्क के समान रचना मन में गढ़ते हुए चुपचाप रात को सो जाना चाहिए। इस प्रकार हम जब सुबह जगें, तो हम अपने आपको पहले से बढ़ा हुआ पावें। कहने का भाव यह है कि हमें हमेशा ही कुछ-न-कुछ करते हुए आगे बढ़ते रहने का प्रयास करना चाहिए। कवि का पुनः कहना है कि सूरज ने अपनी किरणों की कलम से जो कुछ लिखा, उसे पंछी ने उसी नाम से पुकारा। हवा ने जो कुछ गुनगुनाया, बरसात ने जो कुछ बरसाया और जो इबारत लहर बनकर नदी पर दिखाई दी, अगर उस इबारत की सीढ़ियाँ हैं, तो उस पर हमें चढ़कर रात को सो जाना चाहिए। फिर सुबह जब हम जगें तो हम अपने आपको पहले से कहीं आगे पावें। दूसरे शब्दों में, हमें हमेशा ही कुछ-न-कुछ करते हुए आगे बढ़ते रहने का प्रयास करते रहना चाहिए।

विशेष:

  1. प्रस्तुत पद्यांश भाववर्द्धक और आकर्षक है।
  2. शैली दृष्टान्त है।
  3. इस पद्यांश का मुख्य अलंकार मानवीकरण है।
  4. भाषा उर्दू के प्रचलित शब्दों और हिन्दी के सहज शब्दों की है।
  5. तुकान्त योजना है।
  6. वीर रस का संचार है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव बतलाइए।

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि द्वारा मनुष्य ने निरन्तर कर्मरत होने का उत्साह-पूर्ण भाव भरने का प्रयास अधिक सराहनीय सिद्ध हुआ है। इसके लिए कवि ने खुली प्रकृति के प्रत्येक स्वरूप की कर्मशीलता का भावपूर्ण चित्रांकन किया है। उन भावों को ‘इबारत के सुनहरे वर्क से मन मढ़के’ कहने का दृष्टान्त निश्चय ही सोए हुए भावों को जगाने की दिशा में एक सफल प्रयास कहा जा सकता है। सूरज, पंछी, हवा, बरसात आदि के उपमान बड़े ही भाववर्द्धक और प्रेरक हैं।

2. प्रस्तुत पद्यांश की दृष्टान्त-योजना न केवल उत्साहवर्द्धक है, अपितु अधिक सटीक और विषय के अनुकूल है। इसे सार्थक, प्रभावशाली और भावपूर्ण बनाने के लिए भाषा के शब्द-चयन सरल और सुबोध हैं। सूरज, पंछी, हवा और बरसात को मनुष्य की तरह कर्मरत रहने का उल्लेख मानवीकरण अलंकार का अनूठा उदाहरण है। इसमें चित्रात्मकता नामक विशेषता आ गई है। वीर रस के प्रवाह से प्रेरणादायक शैली हृदयस्पर्शी रूप में प्रवाहित हुई है।

3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव है-मनुष्य के सोए हुए भावों को जगाकर उसे निरन्तर कर्मरत बनाकर विकास करते जाने का उत्साह प्रदान करना।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि ने किसे सुनहरे वर्क से मन को मढ़ने को कहा है?
  2. ‘जिस जगह जागा, सवेरे उस जगह से बढ़के सो’ का क्या आशय है?

उत्तर:

  1. कवि ने दिन-भर पेड़, पत्ती, पानी, बन्द घर, खुले-फैले खेत धानी, हवा, बरसात, सूखा, नमी आदि की इबारत के सुनहरे वर्क से मन को मढ़ने को कहा है।
  2. ‘जिस जगह जागा, सवेरे उस जगह से बढ़के सो’ का आशय यह है कि हम जो आज हैं आने वाले कल से कहीं बेहतर हों।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम (निबंध, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल)

देश-प्रेम पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

देश-प्रेम लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देश-प्रेम का दावा कौन नहीं कर सकता?
उत्तर:
जो हृदय संसार की जातियों के बीच अपनी जाति की स्वतन्त्र सत्ता का अनुभव नहीं कर सकता, वह देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकता।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
अपने स्वरूप को भूलने पर हमारी कैसी दशा होगी?
उत्तर:
अपने स्वरूप को भूलने पर हमारी दशा अपनी परम्परा से सम्बन्ध तोड़कर नई उभरी हुई इतिहास शून्य जातियों के समान होगी।

प्रश्न 3.
साँची की प्रसिद्धि का क्या कारण है?
उत्तर:
साँची की प्रसिद्धि का कारण है-बहुत सुन्दर छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर स्थित होना, जिसके नीचे छोटा-मोटा जंगल है।

प्रश्न 4.
लेखक ने किस मौसम में साँची की यात्रा की थी?
उत्तर:
लेखक ने वसन्त ऋतु में साँची की यात्रा की थी।

देश-प्रेम दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देश-प्रेम को साहचर्य प्रेम क्यों कहा गया है?
उत्तर:
देश-प्रेम को साहचर्य प्रेम कहा गया है। यह इसलिए कि इसके बिना सच्चा देश-प्रेम सम्भव नहीं है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें हम बराबर अपनी आँखों से देखते रहते हैं, जिनकी बातें हम हमेशा सुनते रहते हैं। इस प्रकार जिनसे हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, उनसे हमारा गहरा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। यह सम्बन्ध स्थापित हो जाना ही साहचर्यगत प्रेम है।

प्रश्न 2.
रसखान ने ब्रजभूमि के प्रेम के सम्बन्ध में क्या कहा है?
उत्तर:
रसखान ने ब्रजभूमि के प्रेम के सम्बन्ध में यह कहा है –

“नैनन सों ‘रसखान’ जबै ब्रज के वन, बाग, तड़ाग निहारौं।
केतिक वे कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥”

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
देश के स्वरूप से परिचित होने के लिए लेखक ने किन-किन बातों पर बल दिया है?
उत्तर:
देश के स्वरूप से परिचित होने के लिए लेखक ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया है –

  1. घर से बाहर निकलकर और अपनी आँखें खोलकर देखना चाहिए कि खेतों में हरियाली कैसी लहलहा रही है।
  2. झाड़ियों के बीच नाले किस प्रकार कल-कल स्वर करते हुए बह रहे हैं।
  3. दूर-दूर तक पलाश के लाल-लाल फूल कैसे खिल रहे हैं और उनसे धरती कैसे लाल हो रही है।
  4. कछारों में पशुओं के झुण्ड चराते हुए चरवाहे कैसे तानें लड़ा रहे हैं।
  5. आमों के बागों के बीच गाँव कैसे. झाँक रहे हैं। उन गाँवों के लोगों से किसी पेड़ की छाया में कुछ देर बैठकर बातें करें कि ये सब हमारे ही देश के हैं।

प्रश्न 4.
“गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा होता है या बड़ा।” यह कथन किस सन्दर्भ में कहा गया है?
उत्तर:
“गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा होता है या बड़ा।” यह कथन अपने देश का महत्त्व भूलकर दूसरे देश के महत्त्व को समझने वाले गुलामी मानसिकता के शिकार लोगों की सोच-समझ के सन्दर्भ में कहा गया है। इस कथन के द्वारा लेखक ने यह बतलाना चाहा है कि देश-प्रेम होना और स्वदेशीपन की पहचान रखना आजकल के शहरी बाबुओं के लिए लज्जा का एक विषय हो रहा है।

देश-प्रेम भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों का भाव पल्लवन कीजिए –

  1. स्वतन्त्रता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है।
  2. प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।
  3. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है।

उत्तर:
1. स्वतन्त्रता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है:
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि स्वदेश-प्रेम स्वतन्त्र सत्ता के अनुभव बिना नहीं हो सकता है। जो जाति या प्राणी अपनी स्वतन्त्र सत्ता का अनुभव नहीं कर पाता है, वह देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकता है। स्वतन्त्र सत्ता से अभिप्राय अपने स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता ही है। इसलिए देश-प्रेम तभी सम्भव है, जब कोई देशवासी स्वतन्त्रतापूर्वक अपने देश के एक-एक रूप की स्वतन्त्रता की पहचान करे। उससे . लगाव रखे। उसके साथ रहे। उसे चाहभरी दृष्टि से देखे और उसकी याद में आँसू बहाए।

2. प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि देश-प्रेम विशुद्ध प्रेम होता है। उसमें किसी प्रकार के लाभ-हानि की सोच-समझ नहीं होती है। इस प्रकार की सोच-समझ रखने वाले देश-प्रेमी नहीं हो सकते हैं। वे तो अर्थशास्त्री हो सकते हैं, जो देश की दशा या प्रत्येक देशवासी की औसत आमदनी का परता बता सकते हैं। लेकिन देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार सच्चा देश-प्रेमी तो अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होता है। वह देश के प्रत्येक स्वरूप के साथ हर घड़ी सम्बन्ध बनाए रहता है। उसके प्रति हित-चिन्तन किया करता है। इसके लिए वह किसी लाभ-हानि की बात वह तनिक भी नहीं सोचता समझता है। वह यह भलीभाँति जानता है उसका कर्तव्य है देश-प्रेम करना, हिसाब-किताब करना नहीं। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े के भी हो सकते हैं, लेकिन देश-प्रेम करने वाले भाड़े के कभी नहीं हो सकते हैं।

3. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि परिचय से ही लगाव होता है। यह लगाव धीरे-धीरे प्रेम में बदल जाता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता है। हम अपने दैनिक जीवन में यह देखते हैं कि पशु-बालक भी जिनके साथ रहते हैं। उनसे परच जाते हैं। इससे उनका परस्पर प्रेम हो जाता है। वह प्रेम बिना किसी लाभ-हानि का होता है। यह इसलिए परिचय से उत्पन्न हुआ प्रेम शुद्ध हृदय से ही होता है। यह बहुत ही टिकाऊ और सरस होता है।

देश-प्रेम भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
‘भव’ से पूर्व ‘अनु’ जोड़कर ‘अनुभव’ बना है। ‘अनु’ उपसर्व जोड़कर पाँच शब्द बनाइए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम img-1

प्रश्न 2.
‘देश-प्रेम’ में तत्पुरुष समास है। तत्पुरुष समास के पाँच उदाहरण लिखिए।
उत्तर:

  1. भातृ-प्रेम
  2. हठयोग
  3. राजपुरुष
  4. राजपुत्र और
  5. दुख-सागर।

प्रश्न 3.
निम्नांकित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
आख, पेड़, वन, पर्वत, देहात।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम img-2

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार परिवर्तित कर लिखिए –

  1. स्तूप के नीचे छोटा-मोटा जंगल है। (निषेधात्मक)
  2. स्तूप छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर नहीं है। (विधानवाचक)
  3. महुआ की महक आ रही है। (प्रश्नवाचक)
  4. किसानों के झोपड़ों में क्या हो रहा है? (विस्मयादि बोधक)
  5. तुम चुपचाप काम करते हो। (आज्ञावाचक)

उत्तर:

  1. स्तूप के नीचे छोटा-मोटा जंगल नहीं है।
  2. स्तूप छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर है।
  3. क्या महुआ की महक आ रही है?
  4. ओह! किसानों के झोपड़ों में क्या हो रहा है।
  5. तुम चुपचाप काम करो।

देश-प्रेम योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
अपने आस-पास के किसी प्राकृतिक स्थल के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख देशभक्तों के चित्रों का संकलन कर एक अलबम बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
“मातृभाषा प्रेम देश-प्रेम का द्योतक है।” विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
मध्यप्रदेश के लेखकों की देशभक्ति पूर्ण रचनाओं का संकलन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

देश-प्रेम परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

देश-प्रेम लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्वतन्त्र सत्ता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्वतन्त्र सत्ता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है।

प्रश्न 2.
अपने स्वरूप को भूलकर ‘भारतवासियों ने क्या किया?
उत्तर:
अपने स्वरूप को भूलकर भारतवासियों ने संसार में सुख-समृद्धि तो प्राप्त की लेकिन उदात्तवृत्तियों को उत्तेजित करने वाली बँधी-बँधाई परम्परा से अपना सम्बन्ध तोड़ लिया और नई उभरी हुई इतिहास शून्य जातियों में अपना नाम लिखाया।

देश-प्रेम दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सच्चे देश-प्रेमी की क्या पहचान होती है?
उत्तर:
सच्चे देश-प्रेमी की निम्नलिखित पहचान होती है –

  1. वह अपने देश के सभी मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, नाले, झरने आदि से प्रेम करेगा।
  2. वह अपने देश के प्रत्येक स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखेगा।
  3. विदेश में होने पर वह अपने देश के स्वरूप को याद करके तरसेगा और आँसू बहाएगा।
  4. वह अपने देश के प्रत्येक दशा को जानने के लिए उत्सुक रहेगा।
  5. वह अपने देश के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझने का प्रयास करता रहेगा।

प्रश्न 2.
“आजकल अपने देश के स्वरूप का परिचय बाबुओं की लज्जा का एक विषय हो रहा है।” ऐसा लेखक ने क्यों कहा है?
उत्तर:
“आजकल अपने देश के स्वरूप का परिचय बाबुओं की लज्जा का एक विषय हो रहा है।” ऐसा लेखक ने इसलिए कहा कि आजकल के बाबुओं अर्थात् पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता में शिक्षित और अभ्यस्त लोगों को अपने देश के स्वरूप का कुछ भी ज्ञान नहीं होता है। उन्हें तो विदेशी स्वरूप और दशा का ही ज्ञान और पता होता है। इसलिए वे विदेशी स्वरूप को ही महत्त्व देते हैं। उसका ही गुणगान करते हैं। अगर उनके सामने कोई देश-प्रेम की बात करता है, तो उससे वे अपनी मानहानि समझकर उसे महत्त्वहीन सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार वे देश के स्वरूप से अनजान रहने या बनने में अपनी बड़ी शान समझते हैं।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
‘देश-प्रेम’ निबन्ध के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘देश-प्रेम’ निबन्ध आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का एक ज्ञानवर्द्धक निबन्ध है। इसमें लेखक ने यह बतलाने का प्रयास किया है कि देश-प्रेम हृदय का शुद्ध और पवित्र भाव है। यह उसी के हृदय में उत्पन्न होता है, जिसे अपने देश के प्रत्येक स्वरूप का परिचय और अनुभव प्राप्त होता है। अपने देश के लोक-जीवन के प्रति अनुराग (लगाव) और उसकी शान्ति और उन्नति के लिए हमेशा प्रयत्नशील होने वाला ही सच्चा देश-प्रेमी होता है। परिचय और साहचर्य ही प्रेम के प्रवर्तक होते हैं। इसलिए अपने देश के सभी प्राणियों और प्रकृति के साथ हमारा जितना घनिष्ठ सम्बन्ध होगा, उतना ही हमारा देश-प्रेम मजबूत और परिपूर्ण होगा। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि देश-प्रेम न कोई बाहरी दिखावा है और न कोई शाब्दिक हिसाब-किताब का विषय ही।

देश-प्रेम लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य की सूक्ष्म और परिपक्व रूप में देखने-परखने और मूल्यांकन की परम्परा रामचन्द्र शुक्ल ने दी। इस अभूतपूर्व योगदान के कारण उन्हें आचार्य की उपाधि प्रदान की गई। इतिहास और काव्य के क्षेत्र में आचार्य शुक्ल की भूमिका अधिक चर्चित है।

जीवन-परिचय:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार तथा समीक्षक हैं। आपका जन्म बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 ई. में हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा उर्दू तथा अंग्रेजी में हुई। विधिवत् शिक्षा तो वे इण्टरमीडिएट तक ही प्राप्त कर सके। शुक्लजी ने आरम्भ में मिर्जापुर के मिशन स्कूल में पढ़ाया। जब काशी में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा ‘हिन्दी शब्द सागर’ का सम्पादन आरम्भ हुआ, तो शुक्लजी को वहाँ कार्य करने का मौका मिला फिर हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए तथा विभागाध्यक्ष बने। शुक्लजी ने अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत तथा हिन्दी के प्राचीन साहित्य का गम्भीर अध्ययन किया।

शुक्लजी का पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश ‘आनन्द-कादम्बिनी’ पत्रिका के सम्पादन से हुआ जिसका सम्पादन उन्होंने कई वर्षों तक कुशलतापूर्वक किया था। इसके बाद वे नागरी प्रचारिणी सभा में ‘हिन्दी शब्द-सागर’ के सहयोगी नियुक्त हुए थे। इसके बाद आपने ‘नागरी प्रचारिणी’ पत्रिका का कई वर्षों तक कुशलता के साथ सम्पादन किया। साहित्य-सेवा करते हुए शुक्लजी ने 8 फरवरी, 1941 को अन्तिम साँस ली।

रचनाएँ:
यों तो शुक्लजी प्रमुख रूप से निबन्धकार और समालोचक के रूप में ही सुविख्यात हैं लेकिन इसके साथ ही कवि भी रहे हैं। यह बहुत कम चर्चा में है। उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

1. निबन्ध-संग्रह:

  • विचार-वीथी
  • चिन्तामणि भाग 1-2
  • त्रिवेणी।

2. समालोचना:

  • जायसी, सूर और तुलसी पर श्रेष्ठ आलोचनाएँ।

3. इतिहास:

  • हिन्दी-साहित्य का इतिहास
  • काव्य में रहस्यवाद

4. कविता-संग्रह:

  • वसन्त
  • पथिक
  • शिशिर-पथिक
  • हृदय का मधुर भार
  • अभिमन्यु-वध।

5. सम्पादन:

  • हिन्दी शब्द-सागर
  • नागरी-प्रचारिणी पत्रिका
  • तुलसी
  • जायसी।

6. अनुवाद:

  • शशांक
  • बुद्ध-चरित
  • कल्पना का आनन
  • आदर्श-जीवन
  • मेगस्थनीज का भारतवर्षीय वर्णन
  • राज्य प्रबन्ध-शिक्षा
  • विश्वप्रपंच।

भाषा-शैली:
शुक्लजी की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक भाषा है। उसमें कहीं-कहीं तद्भव शब्द भी आए हैं। मुख्य रूप से आपकी भाषा गम्भीर, संयत, भावपूर्ण और सारगर्भित है। आपके शब्द चयन ठोस, संस्कृत और उच्च-स्तरीय हैं। उर्दू, अंग्रेजी और फारसी शब्दों के प्रयोग कहीं-कहीं हुए हैं। अधिकतर संस्कृत और सामाजिक शब्द ही आए हैं। शुक्लजी की शैली गवेषणात्मक, मुहावरेदार और हास्य-व्यंग्यात्मक है। इससे विषय का प्रतिपादन सुन्दर ढंग से हुआ है। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि शुक्लजी की भाषा-शैली, विषयानुकूल होकर साभिप्राय और सफल है।

व्यक्तित्व:
शुक्लजी का व्यक्तित्व सर्वप्रथम कविमय व्यक्तित्व था जो उत्तरोत्तर समीक्षक और निबन्धकार सहित इतिहासकार के रूप में बदलता गया। इस प्रकार शुक्ल जी का व्यक्तित्व विविध है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि शुक्लजी युग-प्रवर्तक प्रधान व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार हैं।

देश-प्रेम पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ एक भाववर्द्धक और प्रेरक निबन्ध है। इसमें लेखक ने देश-प्रेम के स्वरूप और उसकी विशेषताओं को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। लेखक के अनुसार देश-प्रेम एक ऐसा प्रेम है जो देश के स्वरूप से परिचित होने से प्राप्त होता है। देश के प्रत्येक स्वरूप को अर्थात् उसके मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी-नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि के बीच रहने, उसे हमेशा देखने, अनुभव आदि के द्वारा उसके प्रति लोभ या राग उत्पन्न होना ही देश-प्रेम है। यदि. यह नहीं है तो देश-प्रेम की बातें करना कोरी बकवाद है या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

इस प्रकार यदि किसी को अपने देश से सच्चा प्रेम होगा तो वह उसके प्रत्यके स्वरूप आदि की याद विदेशों में भी करते हुए उसके लिए तरसता रहेगा। इसीलिए कविवर ‘रसखान’ तो किसी की ‘लकुटी अरु कामरिया’ पर तीनों पुरी का राजसिंहसान तक त्यागने का तैयार थे। लेखक का पुनः कहना है कि पशु-पालक जिसके साथ रहते हैं, उससे परिचित हो जाते हैं। यह परचना ही, परिचय ही प्रेम का प्रवर्तक है। देश-प्रेम के लिए यह आवश्यक है कि हम बाहर निकलकर देखें कि कैसे खेत-बाग लहलहा रहे हैं। कछारों में चौपायों के झुण्ड कैसे इधर-उधर घूम रहे हैं और चरवाहे कैसे तानें लड़ा रहे हैं। नाले झाड़ियों के बीच कैसे बह रहे हैं। टेसू के फूलों से वनस्थली कैसी सुन्दर लग रही है। अमराइयों के बीच झाँकते हुए गाँव में घुसिए, जो मिलें, उनके साथ किसी पेड़ की छाया में बैठकर कुछ बातें कीजिए।

उन्हें अपने देश का समझिए। इससे आपकी आँखों में देश का रूप समा जाएगा। आप उसके स्वरूप से परिचित हो जाएंगे। फिर आपके हृदय में सच्चा देश-प्रेम उत्पन्न हो जाएगा। लेखक का यह मानना है कि आजकल के पढ़े-लिखे लोग देश के स्वरूप से इस प्रकार परिचित होना लज्जा का विषय मान रहे हैं। ऐसे लोग किसी देहात शब्द को कहना या सुनना अपने बाबूपन में बड़ा भारी बट्टा लगना समझ रहे हैं। ऐसे लोगों को यह भी नहीं मालूम कि गेहूँ का पेड़ होता है या आम का।

देश-प्रेम संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

MP Board Solutions

प्रश्न 1.
देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी-नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बरावर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है। सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में अन्तःकरण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवाद या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

शब्दार्थ:

  • आलंबन – आधार।
  • सहित – साथ।
  • साहचर्यगत – साथ रहने से सम्बन्धित।
  • घड़ी – समय।
  • सान्निध्य – समीप, पास।
  • राग – प्रेम, लगाव।
  • अन्तःकरण – हृदय।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा सुप्रसिद्ध निबन्धकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ शीर्षक से है। इसमें लेखक ने देश-प्रेम क्या है, इसे समझाते हुए कहा है कि व्याख्या-अगर हम यह जानना चाहते हैं कि देश-प्रेम किसे कहते हैं, तो इसका यह उत्तर है कि देश-प्रेम एक प्रकार का प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आधार पूरा देश होता है। दूसरे शब्दों में देश के सभी मनुष्य, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे, नदी-नाले, . मैदान, वन, पर्वत आदि सहित देश की सारी धरती।

इन सबसे प्रेम करना ही देश-प्रेम है। यह प्रेम साथ-साथ रहने से ही प्राप्त होता है। यह प्रेम जिनके साथ हम रहते हैं, जिन्हें हम देखा करते हैं, जिनसे हम अपने भाव-विचार प्रकट करते हैं और जिनके भाव-विचार को हम ग्रहण करते हैं। कहने का भाव यह कि जिनसे हमारा सम्बन्ध हमेशा बना रहता है, उनसे हमारा लगाव हो जाता है। यह लगाव ही देश-प्रेम है। इसलिए देश-प्रेम यदि सचमुच में हृदय से निकला हुआ कोई भाव है तो यही लगाव है। अगर यह नहीं है, तो देश-प्रेम की बात करना बेकार है। यह किसी बनावटी भाव के लिए गढ़ा हुआ कोई शब्द ही होगा।

विशेष :

  1. देश-प्रेम के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा तत्सम शब्दों की है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।
  4. भाव सरस और रोचक हैं।
  5. यह अंश भाववर्द्धक और प्रेरक रूप में है।
  6. वाक्य गठन सारगर्भित है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. देश-प्रेम किसका आलंबन है?
  2. देश-प्रेम को साहचर्यगत प्रेम क्यों कहा गया है?
  3. देश-प्रेम किसका भाव है और क्यों?

उत्तर:

  1. देश-प्रेम सारे देश का आलंबन है।
  2. देश-प्रेम साहचर्यगत प्रेम है। यह इसलिए कि इसके बिना देश-प्रेम हो ही नहीं सकता।
  3. देश-प्रेम अन्तःकरण का भाव है। यह इसलिए कि इसके बिना देश-प्रेम की बातें करना बिलकुल व्यर्थ और मनगढ़त है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सारा देश से क्या अभिप्राय है?
  2. हमें किसका अभ्यास कब पड़ जाता है?
  3. लोभ या राग से लेखक का आशय क्या है?

उत्तर:

  1. सारा देश से अभिप्राय है-देश का सम्पूर्ण स्वरूप अर्थात् सभी प्राणी, वन, पर्वत, नदी, नाले, मैदान, सारी धरती आदि।
  2. हमें अपने परिचितों के साथ रहने वाले का अभ्यास पड़ जाता है।
  3. लोभ या राग से लेखक का आशय है-लगाव या प्रेम। जिनके साथ हम हमेशा रहा करते हैं, उनके प्रति हमारा लोभ या राग हो जाता है।

प्रश्न 2.
यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु-पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा; वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि दस बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप-परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुःख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए, उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझें?

शब्दार्थ:

  • चाहभरी – लगावभरी।
  • सुध – याद।
  • प्रणय सौरभपूर्ण – प्रेम-सुगन्धित।
  • मंजरियों – बोरों।
  • परत-हिसाब।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने देश-प्रेम के लिए आवश्यक तत्त्वों पर प्रकाश डालते हुए नकली देश-प्रेमियों पर तीखा व्यंग्य-प्रहार किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
यदि कोई व्यक्ति सच्चा देश-प्रेमी है, तो उसकी यही पहचान है कि वह अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होगा। उससे उसका अधिक लगाव होगा। कहने का भाव यह है कि अपने देश से प्रेम करने वाला अपने देश की सारी धरती, मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी, नाले, पर्वत, झरने, हवा, पानी, आसमान और वातावरण से जी भरकर लगाव रखेगा। वह इन सबके प्रति अपना सच्चा भाव और विचार रखेगा। इन सभी को बार-बार याद करता रहेगा। अगर वह अपने देश से दूसरे देश में चला जाएगा, तो वहाँ भी वह इन सबको चाहभरी दृष्टि से देखना चाहेगा! इन सबको याद करेगा। इनके अभाव में वह रोएगा और तड़पेगा। इसके विपरीत जो सच्चा देश-प्रेमी नहीं होगा, वह देश के स्वरूप से बिलकुल नहीं परिचित होगा। वह तो यह भी न जानेगा कि कोयल किसे कहते हैं।

चातक क्या है और वह क्या करता है। उसे बाग-खेत के लहलहाने का कुछ भी ज्ञान-ध्यान नहीं होता है। उसे आम के सुगन्धित बौर, खेतों की हरी-भरी फसलें, किसानों के झोपड़ों के भीतर की दीन-दशा आदि का कुछ भी पता नहीं होता है। इस प्रकार के ढोंगी और नकली देश-प्रमियों की देश-ज्ञान की बातें फजूल की होती हैं। ऐसा इसलिए कि उन्हें देश की दशा से कुछ भी लेना-देना नहीं होता है। इसलिए अगर ऐसे लोग अपने को देश-प्रेमी कहते हैं तो उनसे यह जानना चाहिए कि देश के स्वरूप से परिचित हुए बिना वे किस आधार पर अपने को देश-प्रेमी कह रहे हैं। देश के स्वरूप से अनजान रहकर और उसकी आवश्यकताओं को अनदेखा कर भला कोई देश-प्रेमी कैसे कहा जा सकता है। अर्थात् नहीं कहा जा सकता है।

विशेष:

  1. सच्चे देश-प्रमियों की पहचान बतलायी गई है।
  2. भाषा सरल है।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।
  4. ढोंगी देश-प्रेमियों पर व्यंग्य प्रहार है।
  5. यह अंश रोचक और भावप्रद है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सच्चा देश-प्रेमी कौन होता है?
  2. नकली देश-प्रेमी कौन होता है?
  3. हमें अपने देश के स्वरूप से किस प्रकार परिचित होना चाहिए?

उत्तर:

  1. सच्चा देश-प्रेमी वही होता है, जिसे अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से प्रेम होता है।
  2. नकली देश-प्रेमी वह होता है, जिसे अपने देश के स्वरूप से प्रेम-परिचय नहीं होता है। वह देश की दशा का हिसाब-किताब बताकर देश-प्रेमी होने की बड़ी-बड़ी बातें बनाता है।
  3. हमें अपने देश के स्वरूप से भलीभाँति परिचित होना चाहिए। देश के प्रत्येक स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखना चाहिए। उसकी याद में विदेश में होने पर ऑसू बहाना चाहिए।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सच्चे देश-प्रेमी और ढोंगी देश-प्रेमी में क्या अन्तर है?
  2. देश-प्रेम की पहली शर्त क्या है?

उत्तर:

1. सच्चा देश-प्रेमी अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होता है। वह उससे हमेशा प्रेम करता है। अगर वह किसी कारणवश विदेश चला जाता है, तो वह वहाँ अपने देश की हरेक बातों को याद करता है। उसके लिए तरसता है। उसके अभाव में आँसू बहाता है। इसके विपरीत ढोंगी देश-प्रेमी न तो अपने देश के किसी भी स्वरूप से परिचित होता है और न उससे प्रेम करता है। यह भी वह अपने मित्रों के बीच देश की दशा का हिसाब-किताब की बातें करता रहता है।

2. देश-प्रेम की पहली शर्त है-अपने देश के स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखना और उससे हमेशा प्रेम करना।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
पशु और बालक भी जिनके साथ अधिक रहते हैं, उनसे परच जाते हैं। यह परचना परिचय ही है। परिचय प्रेम का प्रवर्तक है, बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता। यदि देश-प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाइए। बाहर निकलिए तो आँख खोलकर देखिए कि खेत कैसे लहलहा रहे हैं, नाले झाड़ियों के बीच कैसे बह रहे हैं, टेसू के फूलों से वनस्थली कैसी लाल हो रही है, कछारों में चौपायों के झुण्ड इधर-उधर चरते हैं, चरवाहे तान लड़ा रहे हैं, अमराइयों के बीच गाँव झाँक रहे हैं; उनमें घुसिए, देखिए तो क्या हो रहा है।

जो मिलें उनसे दो-दो बातें कीजिए उनके साथ किसी पेड़ की छाया के नीचे घड़ी-आध-घड़ी बैठ जाइए और समझिए कि ये सब हमारे देश के हैं। इस प्रकार जब देश का रूप आपकी आँखों में समा जाएगा, आप उसके अंग-प्रत्यंग से परिचित हो जाएँगे, तब आपके अन्तःकरण में इस इच्छा का सचमुच उदय होगा कि वह हमसे कभी न छूटे, वह सदा हरा-भरा और फला-फूला रहे, उसके धनधान्य की वृद्धि हो, उसके सब प्राणी सुखी रहें।

शब्दार्थ:

  • परच – परिचित होना।
  • प्रवर्तक – प्रतीक।
  • टेसू – पलाश।
  • कछार – नदी का छोड़ा हुआ स्थान, भाग।
  • तान लड़ाना – गीत गाना।
  • अमराइयों – आमों।
  • अंग-प्रत्यंग – प्रत्येक स्वरूप।
  • अन्तःकरण – हृदय।
  • धनधान्य – धन-वैभव।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने देश के स्वरूप से परिचय करने के विषय में कहा है कि व्याख्या-साथ-साथ रहने से परिचय हो जाता है। यह परिचय किसी के लिए भी सम्भव होता है। यह न केवल मनुष्य के लिए सम्भव होता है अपितु पशु-पक्षी के लिए भी सम्भव होता है। इस परिचय से ही प्रेम का प्रर्वतन होता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि जब तक परिचय नहीं होगा, तब तक प्रेम नहीं हो सकता है। इसलिए अगर हमें देश-प्रेम करना है या देश-प्रेमी बनना है तो हमें अपने शुद्ध हृदय से देश के एक-एक स्वरूप से परिचित होना है। इसकी आदत डालनी होगी। इसके लिए यह जरूरी है कि जब हम बाहर निकलें तो अपनी आँखें खोलकर देश के एक-एक स्वरूप को देखें। यह देखें कि खेतों में हरी-भरी फसलें कैसे लहलहा रही हैं।

झाड़ियों के कल-कल करते हुए नाले कैसे बह रहे हैं। पलाश के लाल-लाल फूलों से कैसे धरती रंगीन हो रही है। कछारों में पशुओं को चराते हुए चरवाहे एक-से-एक बढ़कर कैसे गाने छेड़ रहे हैं। आमों के बागों के बीच में गाँवों की झलक कैसी दिखाई दे रही है। फिर गाँवों में हम जाएँ। गाँव के लोगों से मिलें। उनका समाचार पूछे। उनके साथ कुछ देर तक रहें। उनसे भाईचारा की भावना से उनमें परस्पर दुःख-सुख की बातें करें। इससे देश के स्वरूप का पूरा ज्ञान हमको हो जाएगा। हम देश के एक-एक रूप से परिचित हो जाएँगे। जब हमारी ऐसी दशा हो जाएगी, तब हमारे हृदय में देश-प्रेम के सच्चे भाव खिल उठेंगे। उन्हें हम कभी नहीं भूलना चाहेंगे। इस प्रकार हम एक सच्चे देश-प्रेमी होकर देश के सुख-शान्ति और उसकी महानता के लिए हमेशा शुभकामना करते रहेंगे।

विशेष:

  1. देश-प्रेम के लिए आवश्यक तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है।
  2. देश के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  3. भाषा प्रभावशाली है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. देश-प्रेम की प्रेरणा दी गई है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है क्यों?
  2. हृदय से देश-प्रेम करने के लिए क्या आवश्यक है?
  3. हमें किसका अभ्यस्त हो जाना चाहिए?

उत्तर:

  1. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है। यह इसलिए कि बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता है।
  2. हृदय से देश-प्रेम करने के लिए आवश्यक है कि हम देश के अंग-प्रत्यंग से बखूबी परिचित हो जाएं।
  3. हमें देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाना चाहिए।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. लेखक ने सच्चे देश-प्रेम का भाव किसे माना है?
  2. देश-प्रेम की परिपूर्णता कैसे सम्भव है?

उत्तर:

  1. लेखक ने अपने देश के लोक-जीवन के प्रति लगाव और उसके सुख-शान्ति की कामना करते रहना ही सच्चे देश-प्रेम का भाव माना है।
  2. देश-प्रेम की परिपूर्णता अपने देश की प्रकृति के साथ गहरा सम्बन्ध और साहचर्य से ही सम्भव है।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा (एकांकी, जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’)

प्रताप-प्रतिज्ञा पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रताप-प्रतिज्ञा लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
महाराणा प्रताप का युद्ध किसके साथ और कहाँ हुआ?
उत्तर:
महाराणा प्रताप का युद्ध मुगल सम्राट अकबर के साथ हल्दी घाटी में हुआ था।

प्रश्न 2.
युद्ध-भूमि में महाराणा प्रताप को किस विकट स्थिति का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
युद्ध-भूमि में महाराणा प्रताप मुगल सेना से चारों ओर से घिर गए। उनके वास्से वे घायल हो गए। उनके शरीर से खून की धारा बहने लगी। तलवार चलाते-चलाते उनके दोनों हाथ थक गए। चेतक घोड़ा मृतप्राय हो गया। फिर भी उन्हें पागलों की तरह लड़ना पड़ा था।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
चन्द्रावत ने महाराणा को बचाने का क्या उपाय किया?
उत्तर:
चन्द्रावत ने महाराणा को बचाने के लिए उनकी तेजस्वी तलवार अपने हाथ में ले ली। फिर उनसे राजमुकुट लेकर अपने सिर पर धारण कर लिया। चन्द्रावत ने यह उपाय इसलिए किया ताकि अकबर की सेना उसे ही महाराणा प्रताप समझकर उस पर टूट पड़े और राणा प्रताप युद्ध-भूमि से निकल जाने में सफल हो सकें।

प्रश्न 4.
शक्ति सिंह ने महाराणा प्रताप को मुगल सैनिकों से किस तरह बचाया?
उत्तर:
शक्ति सिंह ने महाराणा प्रताप को मुगल सैनिकों से बड़ी सावधानी से बचाया। उसने महाराणा प्रताप के घातक दोनों मुगल सैनिकों को मार डाला।

प्रताप-प्रतिज्ञा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
महाराणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए
उत्तर:
महाराणा प्रताप की निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएँ हैं –

  1. जनता के प्रतिनिधि
  2. चित्तौड़ का उद्धारक
  3. संजीवनी शक्तिदाता
  4. प्रजा का विधाता
  5. स्वदेश की आशा
  6. महान वीर
  7. असाधारण योद्धा
  8. स्वाभिमानी और
  9. महान देश-भक्त।

प्रश्न 2.
शक्ति सिंह स्वयं को क्यों धिक्कारता है?
उत्तर:
शक्ति सिंह स्वयं को धिक्कारता है। यह इसलिए कि वह महाराणा प्रताप जैसे असाधारण योद्धा, देशभक्त, स्वाभिमानी और कर्तव्यनिष्ठ का भाई होकर देश का गद्दार है, स्वार्थी और पदलोलुप है।

प्रश्न 3.
महाराणा प्रताप ने चेतक के प्रति अपनी संवेदना किस प्रकार व्यक्त की?
उत्तर:
महराणा प्रताप ने चेतक के प्रति अपनी संवेदना इस प्रकार व्यक्त की-“चेतक! प्यारे चेतक! तुम राह ही में चल बसे। तुम्हारी अकाल मृत्यु देखने के पहले ही ये आँखें क्यों न सदा को मुँद गईं। मेरे प्यारे सुख-दुःख के साथी, तुम्हें छोड़कर मेवाड़ में पैर रखने को जी नहीं करता। शरीर का रोम-रोम घायल हो गया है, प्राण कण्ठ में आ रहे हैं, एक कदम भी चलना दूभर है, फिर भी इच्छा होती है कि तुम्हारे शव के पास दौड़ता हुआ लौट आऊँ, तुमसे लिपटकर जी भरकर रो लूँ और वहीं चट्टानों से सर टकरा-टकराकर प्राण दे दूँ। अपने प्राण देकर प्रताप के प्राण बचाने वाले मूक प्राणी! तुम अपना कर्तव्य पूरा कर गए, पर मैं संसार से मुँह दिखाने योग्य न रहा। हाय, मेरे पापी प्राणों से तुमने किस दुर्दिन में प्रेम करना सीखा था। चेतक, चेतक प्यारे चेतक!

प्रश्न 4.
शक्ति सिंह के स्वभाव में परिवर्तन क्यों आया?
उत्तर:
शक्ति सिंह के स्वभाव में परिवर्तन आया। उसने आँखें खोलकर मेवाड़ के वीरों का बलिदान देखा। उससे समझ लिया कि उसका अहंकार व्यर्थ है। उससे कई गुना वीरता, कई गुनी देशभक्ति और कई गुना त्याग मेवाड़ के एक-एक सैनिक के हृदय में हिलोरें ले रहा है।

प्रश्न 5.
एकांकी के आधार पर सच्चा सैनिक किसे कहेंगे?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी के आधार पर सच्चा सैनिक हम चन्द्रावत को कहेंगे। ऐसा इसलिए कि उसने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उसके इस त्याग-समर्पण से देश-भक्ति की सच्ची प्रेरणा मिलती है।

MP Board Solutions

प्रश्न 6.
प्रताप की बातें शक्ति सिंह को हृदयवेधक क्यों लगीं?
उत्तर:
प्रताप की बातें शक्ति सिंह को हृदयवेधक लगीं। यह इसलिए कि उसने स्वयं को पापी, कायर, पथ के भिखारी, रण से विमुख आदि कहा था।

प्रश्न 8.
एकांकी के विकास-क्रम को समझाते हुए उसकी परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
संस्कृत रूपक के दस भेदों में से पाँच (भाषा, व्यायोग, अंक, वीथी और प्रहसन) एक-एक अंक वाले रूपक हैं। पर संस्कृत के एकांकी रूपक आधुनिक एकांकी की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। शिल्प की दृष्टि से आधुनिक एकांकी पश्चिम की देन है। आधुनिक शैली का प्रथम एकांकी जयशंकर प्रसाद का ‘एक चूंट’ माना जाता है। यद्यपि प्रसाद से पहले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भी विषय विषमौषधम्’, ‘धनंजय विजय’, ‘वैदिकी हिंसा-हिंसा न भवति’, ‘अन्धेर नगरी’ एकांकी लिखे हैं। परन्तु शिल्प की दृष्टि से वे संस्कृत के भाण, वीथी आदि एक अंक वाले रूपकों के अधिक समीप हैं। वर्तमान एकांकी-कला की कसौटी पर वे पूरे नहीं उतर सके। भुवनेश्वर तथा डॉ. रामकुमार वर्मा के एकांकी-क्षेत्र में उतरने से इनका विकास तथा विस्तार हुआ।

हिन्दी में आधुनिक ढंग के पहले एकांकीकार भुवनेश्वर हैं। उनका ‘कारवाँ’ एकांकी संग्रह 1935 में प्रकाशित हुआ। ‘कारवां’ में छः एकांकी हैं। इसका विषय प्रेम का त्रिकोण है। भुवनेश्वर के एकांकी पश्चिम से प्रभावित हैं। बर्नाड शॉ का उन पर प्रभाव है। एकांकीकार अपने एकांकियों में समस्याएँ उठाना जानता है, पर उनका समाधान वह प्रस्तुत नहीं कर सका। भुवनेश्वर में बौद्धिकता की प्रधानता है, भावुकता को वह विष मानते हैं। उनके एकांकियों में यथार्थ के नग्न चित्र हैं।

भुवनेश्वर के बाद हिन्दी एकांकीकारों में डॉ. रामकुमार वर्मा का नाम आता है। उनका पहला एकांकी है-‘बादल की मृत्यु’ इस एकांकी में कल्पना और काव्यमयता की अधिकता है। इसे ‘फेन्टेसी’ कहा जा सकता है। डॉ. वर्मा के एकांकियों की संख्या 100 के लगभग है, जो अलग-अलग एकांकी-संग्रहों में संकलित हैं। ‘पृथ्वीराज की आँखें’, ‘चारुमित्रा’, रेशमी टाई’, ‘सप्तकिरण’, ‘विभूति’, ‘दीपदान’, ‘रूपरंग’, ‘इन्द्रधनुष’, ‘ध्रुवतारिका’ आदि उनके एकांकी-संग्रह हैं। डॉ. वर्मा ने अधिकतर ऐतिहासिक और सामाजिक एकांकी लिखे हैं। ऐतिहासिक एकोकीकार के रूप में वह सबसे बड़े एकांकीकार हैं।

उदयशंकर भट्ट हिन्दी के एकांकीकारों में एकांकी-कला के प्रारम्भिक उन्नायकों में हैं। उनका पहला एकांकी-संग्रह ‘अभिनव एकांकी’ नाम से 1940 में प्रकाशित हुआ। भट्टजी के एकांकी मुख्य रूप से पौराणिक व सामाजिक हैं। ‘कालिदास’ आदि युग के एकांकी पौराणिक हैं तथा ‘स्त्री का हृदय’, ‘समस्या का अन्त’ आदि में सामाजिक एकांकी संगृहीत है। अपने पौराणिक एकांकियों में भट्टजी ने सामयिक समस्याओं की ओर भी संकेत किया है।

सेठ गोविन्ददास ने सामाजिक, राजनीतिक, पौराणिक, ऐतिहासिक आदि सभी प्रकार के एकांकी लिखे हैं। उनके एकांकी-संग्रह हैं- ‘स्पर्धा’, ‘सप्तरश्मि’, ‘एकादशी’, ‘पंचभूत’, ‘अष्टदल’ आदि। शिल्प की दृष्टि से सेठ जी ‘उपक्रम’ और उपसंहार’ आदि अपने एकांकियों में प्रयोग करते हैं। उन्होंने ‘मोनो-ड्रामा’ भी लिखे हैं। ‘चतुरपथ’ में ऐसे एकांकी हैं। ‘शाप और वर’, ‘अलबेला’ इनके प्रसिद्ध (मोनोड्रामा) नाटक हैं।

उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ के एकांकियों में मध्यवर्गीय समाज की समस्याएँ हैं। ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘जोंक’, ‘अधिकार का रक्षक’ और ‘तौलिए’ इनके प्रसिद्ध एकांकी हैं। रंगमंच का सान ‘अश्क’ को हिन्दी एकांकीकारों में सबसे अधिक ख्याति प्राप्त है। उनके एकांकी गठन, प्रभाव तीव्रता और प्रवाह की दृष्टि से सफल हैं। विष्णु ‘प्रभाकर’ आधुनिक एकांकीकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सामाजिक, राजनीतिक, हास्य-व्यंग्य प्रधान तथा मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार के एकांकी विष्णु जी ने लिखे हैं, जिनमें ‘माँ’, ‘भाई’, ‘रहमान का बेटा’, ‘नया कश्मीर’, ‘मीना कहाँ है’ आदि प्रसिद्ध हैं।

जगदीश चन्द्र माथुर सामाजिक समस्याओं को लेकर एकांकी कला को सम्पन्न बनाने वाले कलाकार हैं। एकांकी-कला और रंगमंच का अध्ययन उनका गहरा है। ‘भोर का तारा’, ‘रीढ़ की हड्डी’, ‘उनके प्रसिद्ध एकांकी हैं। लक्ष्मीनारायण मिश्र के एकांकियों में बुद्धिवादिता, भारतीय-संस्कृति तथा समस्याएँ इन सभी का समावेश है। हरिकृष्ण प्रेमी के ‘मन-मन्दिर’ संग्रह के एकांकियों में गाँधीवादी आदर्श है। वृन्दावन लाल वर्मा के एकांकियों में यथार्थ और आदर्श का समन्वय है। इनके अतिरिक्त हिन्दी एकांकी कला की विकसित करने वाले रचनाकार हैं-सदगुरुशरण अवस्थी, गोविन्द बल्लभ पन्त, भगवती चरण वर्मा, लक्ष्मी नारायण लाल, धर्मवीर भारती, मोहन राकेश, प्रभाकर माचवे, नरेश मेहता, चिरंजीत आदि। इस प्रकार विकसित होती हुई आज रेडियो-रूपक, फेन्टेसी, मोनोड्रामा आदि रूपों में आगे बढ़ रही है।

एकांकी की परिभाषा:
कुछ आलोचक एकांकी को नाटक का लघु रूप मानते हैं। लेकिन यह बहुत हद तक सही नहीं है। वास्तव में नाटक और एकांकी दो भिन्न गद्य विधाएँ हैं। जिस नाटक की कथावस्तु केवल एक ही अंक में होती है, वह एकांकी नाटक कहलाता है।

प्रताप-प्रतिज्ञा भाव-विस्तार/पल्लवन

MP Board Solutions

प्रश्न 1.
“भातप्रेम का निर्मल झरना, विद्वेष की शिला से नहीं रुकता।” इस पंक्ति का पल्लवन करें।
उत्तर:
भातृप्रेम का प्रवाह बड़ा ही पवित्र और स्वच्छ होता है। जब वह हृदय के उच्च शिखर से प्रवाहित होता है, तब उसमें बहुत बड़ा वेग होता है। वह वेग बड़ा ही स्वतन्त्र और अद्भुत रूप से आगे बढ़ने लगता है। वह अपने सामने आने वाले किसी विद्वेष रूपी चट्टान को छिन्न-भिन्न करके अपना रास्ता बना लेता है। चूंकि उसमें इतना ओज, उत्साह और प्रबल भाव भरा होता है, उसे किसी प्रकार हीन और तुच्छ भाव रूपी बाधाएँ सेकने में असमर्थ हो जाती हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि भातृप्रेम का निर्मल झरना, विद्वेष की शिला से कभी नहीं रुकता है।

प्रताप-प्रतिज्ञा भाषा – अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
प्राणों की बाजी लगाना, पीठ दिखाना, आँखें फाड़कर देखना; काँटों का ताज पहनना, नजर करना, दो के चार होना।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों के विग्रह कर समास का नाम लिखिए।
राजमार्ग, राजमुकुट, मुक्तिद्वार, प्रतिहिंसा।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की सन्धि विच्छेद कीजिए।
आहुति, नराधम, उत्सर्ग, निश्चय, शोकाकुल, स्वाधीनता, रणोन्मत्त, समरांगण।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित विदेशी शब्दों के मानक हिन्दी शब्द लिखिए।
मगरूर, दोजख, यार, कैद, ईनाम, बुजदिल।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img 4

चालान क्र………………. – तृतीय प्रति
(बैंक हेतु)

माध्यमिक शिक्षा मण्डल, मध्यप्रदेश

यूको बैंक हबीबगंज, भोपाल – शाखा-मधुकुल परिसर
1. संख्या का मान्यता क्रमांक (कोड नं.) ………………………………………………………………………………………………………………………………
संख्या का नाम, स्थान एवं जिला ……………………………………………………………………………………………………………………………………….
………………………………………………………………………………………………………………………………..
2. छात्र का नाम………………………………………….. परीक्षा का नाम ………………………………………….. वर्ग ……………………………………….
अनुक्रमांक …………………………………………………….केन्द्र क्रमांक ……………………………………………………………………………………………..
……………………………………………………………………………………………………………………………….

परीक्षा का नाम – (संबंधित परीक्षा के नाम पर सही का चिह्न लगाएं)

  1. हाईस्कूल/हायर सेकेण्डरी/हा.सं. व्यावसायिक पाठ्यक्रम नियमित/स्वाध्यायी मुख्य पूरक परीक्षा
  2. हाईस्कूल/हायर सेकेण्डरी/पत्राचार पाठ्यक्रम/मुख्य/पूरक परीक्षा
  3. डिप्लोमा इन एजूकेशन (नियमित/पत्राचार, प्रथम/द्वितीय वर्ग) मुख्य/पूरक परीक्षा
  4. पूर्व प्राथमिक प्रशिक्षण नियमित/स्वाध्यायी मुख्य/पूरक परीक्षा
  5. शारीरिक प्रशिक्षण (नियमित/स्वाध्याय) मुख्य/पूरक परीक्षा
  6. अन्य ……………………………………………………………………………………………………………..

शुल्क का विवरण मद विवरण

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img4
छात्रों द्वारा फीस भरने हेतु शीर्ष:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img5
योग –
राशि शब्दों में ………………………………………………………………………………………………………………………………
(जमाकर्ता के हस्ताक्षर)
………………………………………………………………………………………………………..
(बैंक उपयोग हेतु)
बैंक कोड……………………….. – दिनांक ………………..
माध्यमिक शिक्षा मंडल के खाते में राशि रु ……………. जमा की।

प्रताप-प्रतिज्ञा योग्यता विस्तार – हस्ताक्षर/सील।

प्रश्न 1.
‘प्रताप प्रतिज्ञा’ एकांकी को कहानी रूप में लिखिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
अपने आस-पास के उन वीरों के नामों की सूची बनाइए जिन्होंने देशभक्ति हेतु प्राणोत्सर्ग किया है।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले एकांकी/नाटक तथा रेडियो पर प्रसारित रूपक में क्या अन्तर परिलक्षित होता है? दोनों की प्रभावशीलता का विश्लेषण कर अपनी लिखित प्रतिक्रिया व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
चालान फार्म को चार प्रतियों में भरा जाता है यहाँ चालान की तृतीय प्रति (बैंक हेतु) भरने को दी जा रही है। शेष तीन प्रतियाँ किस-किस के लिए होती हैं बैंक जाकर मालूम कीजिए तथा चालान आवेदन-पत्र एकत्रित कीजिए।
चलान फार्म-
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रताप-प्रतिज्ञा परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रताप-प्रतिज्ञा लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ एकांकी में प्रस्तुत पात्रों और गौण पात्रों को बताइए।
उत्तर:
‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ एकांकी में प्रस्तुत प्रमुख पात्र हैं-चन्द्रावत, महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह। – गौण पात्र हैं-दो मुगल सरदार।

प्रश्न 2.
चन्द्रावत ने महाराणा प्रताप से क्या माँगा?
उत्तर:
चन्द्रावत महाराणा प्रताप से राजमुकुट और तलवार माँगा।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
महाराणा प्रताप ने क्या कहकर शक्ति सिंह को क्षमा किया?
उत्तर:
जब शक्ति सिंह ने महाराणा प्रताप से क्षमा माँगी तो प्रताप ने यह कह कर उसे क्षमा कर दिया-“क्षमा! क्षमा कैसी भाई! भ्रातृप्रेम का निर्मल झरना विद्वेष की शिला से नहीं रुक सकता। तुम्हारे एक ‘भैया’ सम्बोधन पर लाखों क्षमा निछावर हैं। भाई पुकारो तो शक्ति, पुकारो तो ‘भैया’, एक बार मुझे फिर प्यार से भैया कहकर पुकारो तो।

प्रताप-प्रतिज्ञा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मेवाड़ का सर्वनाश किस प्रकार निकट आ गया था?
उत्तर:
मेवाड़ का सर्वनाश निकट आ गया था। स्वतन्त्र मेवाड़ का सौभाग्य सूर्य अस्त होने लगा था। ऐसा इसलिए कि मुगल सेना मेवाड़ के चारों ओर छा गई थी। बीच में अकेले बलिदानी वीर महाराणा प्रताप प्राणों की बाजी लगाकर दोनों हाथों से तलवार चला रहे थे। वे घायल हो गए थे। उनके शरीर से खून की धारा निकल रही थी। तलवार चलाते-चलाते वे बुरी तरह से थक गए थे। उनका घोड़ा चेतक मृतप्राय हो गया था। हजारों नरमुण्डों से हल्दीघाटी पाट देने पर भी विजय की आशा व्यर्थ हो गई थी।

प्रश्न 2.
चन्द्रावत ने अपनी मातृभूमि मेवाड़ के प्रति अपना सच्चा और पवित्र प्रेमभाव किस प्रकार व्यक्त किया?
उत्तर:
चन्द्रावत ने अपनी मातृभूमि मेवाड़ के प्रति इस प्रकार अपना सच्चा और पवित्र प्रेमभाव व्यक्त किया-“चित्तौड़! जन्मभूमि! प्रणाम! तुम्हारा यह तुच्छ सेवक आज विदा लेता है। माँ, जीते जी तुम्हें स्वतन्त्र न देख सका, अब मरकर देखने की अभिलाषा है। अपने भग्नावशेषों के हाहाकारमय स्वर से एक बार आशीर्वाद दो, माँ हँसते-हँसते मरने की शक्ति प्रदान करो। जीवन के अन्तिम क्षणों में कर्त्तव्य-पालन करने का अवसर दो। जिस राजमुकुट को इन हाथों ने तुम्हारे हित के लिए, विलासी जगमल के सिर से उतारा था, उसी को ये फिर, तुम्हारे ही हित के लिए वीरवर प्रताप के मस्तक से उतारेंगे। तुम्हारे सम्मान की रक्षा के लिए आशालता को कुचलने से बचाने के लिए-आज महाराणा प्रताप के बदले यह चन्द्रावत प्राणों की आहुति देगा।”

प्रश्न 3.
‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ एकांकी के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ महान एकांकीकार जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ की एक आदर्शवादी एकांकी है। इसमें महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच हल्दी घाटी के भयंकर युद्ध का उल्लेख किया गया है। इसके लिए एकांकीकार ने चन्द्रावत, महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह इन तीन प्रमुख पुरुष पात्रों का चयन किया है, तो दो मुगल सैनिकों को गौण पुरुष पात्रों के रूप में लिया है। इन पात्रों के माध्यम से राजनीतिक संघर्ष को मार्मिक रूप में चित्रित करने का सुन्दर प्रयास किया है।

इसमें बाहरी द्वन्द्व को मुख्य स्वर देकर उससे मानसिक विक्षोभ को सामने लाने की पूरी कोशिश की है। हम देखते हैं कि चन्द्रावत का अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देना देश-भक्ति की प्रेरणा देता है। यह भी हम देखते हैं कि महाराणा प्रताप की अटल देश-भक्ति के लिए मरते दम तक वीरतापूर्ण कदम उठाने से शक्तिसिंह की प्रतिशोध की दुर्भावना भातृत्व प्रेम में बदल कर देश-भक्ति का गान।

प्रताप – प्रतिज्ञा लेखक – परिचय

प्रश्न 1.
श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
हिन्दी के एकांकीकारों में श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ का स्थान प्रमुख है। उनका जन्म सन् 1907 ई. में मध्य-प्रदेश के मुरार ग्वालियर में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया। वहाँ से आपने साहित्य, इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र का गहरा अध्ययन-मनन किया।

‘मिलिन्द’ जी ने अपने स्वाध्याय से भी अनेक भाषाओं का अध्ययन-मनन किया। उन्होंने अपने स्वाध्याय से जिन भाषाओं का अध्ययन-मनन किया, उनमें हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी के अतिरिक्त उर्दू, मराठी, बंगला और गुजराती प्रमुख हैं। इन भाषाओं के अध्ययन-मनन के पश्चात उन्होंने विश्वभारती, शान्ति निकेतन और महिला आश्रम, वर्धा में अध्यापन का कार्य किया।

रचनाएँ:
‘मिलिन्द’ जी की रचनाओं में विविधता है। उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं –

  1. काव्य-संग्रह-‘जीवन-संगीत’, ‘नवयुग के गान’, ‘बलिपथ’ के गीत, ‘भूमि की अनुभूति’ और ‘मुक्तिका’।
  2. निबन्ध संग्रह-‘चिन्तन कण’ और ‘सांस्कृतिक प्रश्न’।
  3. व्यंग्य विनोद कथा-संग्रह-‘बिल्लो का नखछेदन’।
  4. नाट्य-कृतियाँ-‘समर्पण’, ‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ और ‘गौतम नन्द’।

महत्त्व:
चूंकि ‘मिलिन्द’ जी बहुमुखी प्रतिमा-सम्पन्न साहित्यकार हैं, इसलिए उनका साहित्यिक योगदान उल्लेखनीय है। उनके साहित्य का प्रमुख स्वर देश-भक्ति और देश-प्रेम है। इस दृष्टि से भी आपका स्थान प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से एक है। फलस्वरूप आने वाली साहित्यिक अभिरुचि की पीढ़ी आपसे दिशाबोध प्राप्त करती रहेगी।

प्रताप-प्रतिज्ञा पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ लिखित एकांकी ‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ लिखित एकांकी ‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच हल्दीघाटी युद्ध पर आधारित है। इसमें तीन प्रमुख पात्रों चन्द्रावत, प्रताप और शक्ति सिंह एवं दो गौण पुरुष पात्रों (दो मुगल सरदारों) के माध्यम से राजनीतिक संघर्ष को चित्रित किया गया है। चन्द्रावत प्रताप सिंह की वीरता का उल्लेख तो कर रहा है, लेकिन उसे मेवाड़ का सौभाग्य सूर्य अस्त होता हुआ दिखाई दे रहा है। उसी समय एक सभासद आकर महाराणा प्रताप के घायल होने का समाचार सुनाता है। चन्द्रावत उसे राजा के साथ मर-मिटने का आदेश देकर चित्तौड़ के प्रति अपनी देश-भक्ति की भावना को प्रकट करता है।

वह उससे आशीर्वाद माँगता है कि वह उसे हँसते-हँसते उसकी सेवा में मर-मिटने की शक्ति प्रदान करे। यह भी कि वह उसे ऐसा साहस दे कि वह महाराणा प्रताप के बदले अपने प्राणों की आहुति दे सके। उसी समय प्रताप आकर अपने प्राणों के बलिदान करने की घोषणा करता है। चन्द्रावत उसे समझाता है कि उसके प्राण इतने सस्ते नहीं हैं। उनमें संजीवनी शक्ति है। वह प्राणों का बलिदान न करें। उसके स्थान पर वह और सरदारों के साथ मर-मिटेगा। प्रताप उसे समझाता है कि वह उसे ऐसा नहीं करने देगा। वह युद्ध में पीठ दिखाकर कलंक का टीका नहीं लगने देगा। चन्द्रावत अपनी बात को दोहराता है कि वह उससे हठ न करें। उसके हठ से अखण्ड मेवाड़ पराधीन हो जाएगा।

लेकिन प्रताप उसकी एक नहीं सुनता है। वह वहाँ से बड़ी तेजी से निकल जाता है। चन्द्रावत ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसको रक्षा करे। शक्ति सिंह आकर घोर युद्ध का उल्लेख करता है कि किस प्रकार से मुगलों ने चन्द्रावत को महाराणा समझकर चारों ओर से घेर लिया है। फिर उसे मार डाला है। उसे स्वयं पर अफसोस है कि वह मेवाड़ के काम नहीं आया। उसी समय दो मुगलों का प्रवेश होता है। दोनों परस्पर बातें करते हैं। फिर प्रताप को मारकर अपने शाहजादा साहब से इनाम लेने की बात करते हुए वहाँ से प्रस्थान करते हैं। उसके बाद शक्ति सिंह आकर स्वयं से कुछ कर गुजरने की बात कहता है।

पट परिवर्तन होता है। प्रताप अकेले शोकाकुल बैठे हैं। चेतक के चले जाने पर अफसोस प्रकट करते हैं। विकल होकर आँखें मूंद लेते हैं। इसके बाद दोनों मुगलों का प्रवेश होता है। दोनों परस्पर बातें करते हैं। दोनों पर प्रताप अपने वार की नाकामी पर अफसोस प्रकट करते हैं। उसी समय शक्ति सिंह आकर उन दोनों का काम तमाम कर देता है। फिर वह प्रताप को ‘महाराणा प्रताप सिंह’ शब्द से सम्मानपूर्वक पुकारता है। प्रताप आँखें खोलते हैं। शक्ति सिंह को देखकर चकित होते हैं। उससे वह पूछते हैं कि क्या वह बदला लेना ही चाहता है, तो ठीक है। आओ, और इस अन्त समय प्यारी मेवाड़ी कटारी भोंक दो। बड़ी शान्ति से मरूँगा, जल्दी करो। देर हो रही है। इसे सुनकर शक्ति सिंह कहता है-बज्रपात है भैया! कौन कहता है प्रताप कायर है। प्रताप तो वीरों का आदर्श है। भारत का अभिमान है। राजस्थान की शान है।

इसे सुनकर प्रताप चकित होता है। शक्ति सिंह अपने दुर्भाग्य पर अफसोस करता है कि वह मेवाड़ को भूलकर भारतीयता को खो बैठा था। उसे अब उसके अपराधों का फल अवश्य मिलना चाहिए। इससे ही उसकी आत्मा को शान्ति मिलेगी। वह उसके लिए देवता है। वह प्रताप को भैया कहते हुए पुनः कहता है-“भैया! क्या तुम मुझे क्षमा न करोगे? मेवाड़ को फिर एक बार बड़े प्यार से माँ कहने का अधिकार न दोगे?” इसे सुनकर प्रताप का भातृप्रेम का झरना फूट पड़ता है। वह कहता है कि उसके ‘भैया’ सम्बोधन पर लाखों क्षमा निछावर हैं। एक बार मुझे फिर प्यार से भैया कहकर पुकारो तो। शक्ति उसके पैरों पर ‘भैया, भैया मेरे’ कहकर गिर पड़ता है। बरसों बाद दोनों गले मिलते हैं।

MP Board Solutions

प्रताप-प्रतिज्ञा संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
आ! काँटों के ताज! संकट के स्नेही! मेवाड़ के राजमुकुट ! आ! तुझे आज एक तुच्छ सैनिक धारण कर रहा है। इसलिए नहीं कि तू वैभव का राजमार्ग है बल्कि इसलिए कि आज तू देश पर मर मिटने वालों का मुक्तिद्वार है। आ! मेरी साधना के अन्तिम साधन! इस अवनत मस्तक को माँ के लिए कट-मरने का गौरव प्रदान कर।

शब्दार्थ:

  • तुच्छ – छोटा।
  • वैभव – सम्पत्ति, धन।
  • राजमार्ग – सड़क।
  • अवनत – झुकाव हुआ।
  • गौरव – मर्यादा, महत्त्व, प्रतिष्ठा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी समान्य भाग-1’ में संकलित तथा जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ द्वारा लिखित एकांकी ‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ शीर्षक से है। इसमें लेखक ने चन्द्रावत् के द्वारा राजमुकुट हाथ में लेते हुए कथन पर प्रकाश डालना चाहा है।

व्याख्या:
लेखक का कहना है कि जब प्रताप कुर्ती से तलवार मुकुट रखकर चला जाता है, तब उसे चन्द्रावत बड़े प्रेम और आदर के साथ हाथ में ले लेता है। फिर वह कहता है–हे राजमुकुट! वैसे तो तुम काँटों के ताज हो, फिर भी संकट के समय एक सच्चे प्रेमी की तरह साथ निभाते हो। वास्तव में तुम मेवाड़ के राजमुकुट हो। इसलिए तुम्हारा महत्त्व असाधारण है। तुम्हें धारण करने की योग्यता मुझ जैसे तुच्छ सैनिक में नहीं है, फिर भी मैं तुम्हें धारण कर रहा हूँ। मैं तुम्हें इसलिए नहीं धारण कर रहा हूँ कि तुम वैभव का राजमार्ग हैं।

मैं तो तुम्हें इसलिए धारण कर रहा हूँ कि तुम्हीं देश की आन-बान पर अपने प्राणों को न्यौछावर कर देने वालों के लिए मुक्तिदाता स्वरूप हो। इसलिए अब तुम मुझे अपना लो। मेरी युद्ध-साधना के तुम्ही एकमात्र आधार हो। तुम्ही एकमात्रं साधन हो। अब तुम मेरे इस झुके हुए मस्तक को मेरी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा के लिए मर-मिटने का महत्त्व प्रदान कर दो। तुमसे मेरी यही प्रार्थना है और यही उम्मीद है।

विशेष:

  1. मेवाड़ के राजमुकुट का असाधारण महत्त्व बतलाया गया है।
  2. मातृभूमि की महिमा को अधिक सम्मान दिया गया है।
  3. वीर रस की प्रभावशाली धारा प्रवाहित हुई है।
  4. भाषा-शैली में ओज और प्रभाव है।
  5. वर्णनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में किसका कथन किसके प्रति है?
  2. चन्द्रावत के मनोभाव किस प्रकार के हैं?

उत्तर:

  1. प्रस्तुत गद्यांश में मेवाड़ के वीर सैनिक चन्द्रावत का मेवाड़ के राजमुकुट के प्रति है।
  2. प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रावत के मनोभाव बड़े ही आकर्षक और असाधारण हैं। उसके मनोभाव निरभिमानी, उदात्त, शिष्ट, विनम्र, आत्मीय और पवित्र हैं। इसलिए वे प्रेरक, हृदयस्पर्शी और भाववर्द्धक हैं।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में मेवाड़ के राजमुकुट की कौन-कौन-सी विशेषताएँ बतलायी गई हैं।
  2. प्रस्तुत गद्यांश से क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर:

1. प्रस्तुत गद्यांश में मेवाड़ के राजमुकुट की कई आकर्षक विशेषताएँ बतलायी, गई हैं –

  • काँटों का ताज
  • देश पर मर-मिटने वालों का मुक्तिद्वार, और
  • साधना का अन्तिम साधन।

2. प्रस्तुत गद्यांश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। देश की आजादी के खतरे में पड़ने पर हमें उसकी रक्षा के लिए बिना किसी संकोच के अपने तन, मन और धन को तुरन्त न्यौछावर कर देना चाहिए।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
तुम्हारी अकाल मृत्यु देखने के पहले ही ये आँखें क्यों न सदा को मुँद गईं। मेरे प्यारे सुख-दुःख के साथी, तुम्हें छोड़कर मेवाड़ में पैर रखने को जी नहीं करता। शरीर का रोम-रोम घायल हो गया है, प्राण कण्ठ में आ रहे हैं, एक कदम भी चलना भर है, फिर भी इच्छा होती है कि तुम्हारे शव के पास दौड़ता हुआ लौट आऊँ, तुमसे लिपटकर जी भरकर रो लूँ और वहीं चट्टानों से सर टकराकर प्राण दे दूँ। अपने प्राण देकर प्रताप के प्राण बचाने वाले मूक प्राणी! तुम अपना कर्त्तव्य पूरा कर गए, पर मैं संसार से मुँह दिखाने योग्य न रहा! हाय, मेरे पापी प्राणों से तुमने किस दुर्दिन में प्रेम करना सीखा था। चेतक, चेतक, प्यारे चेतक! (विकल हाकर आँखें मूंद लेते

शब्दार्थ:

  • अकाल मृत्यु – असमय मृत्यु।
  • मुँद गईं – बन्द हो गईं।
  • जी – मन।
  • रोम-रोम – प्रत्येक अंग।
  • कण्ठ में आना – निकल जाना।
  • दूभर – कठिन।
  • मूक – बेजबान।
  • दुर्दिन – बुरे दिन।

प्रसंग:
पूर्ववत् । इसमें लेखक ने राणा प्रताप के द्वारा अपने प्राणप्रिय चेतक के मर-मिटने पर विलाप किए जाने का उल्लेख किया है।

व्याख्या:
चेतक के मर-मिटने पर राणा प्रताप अपने को असहाय और अकेला समझकर विलाप कर रहा है। वह चेतक को सम्बोधित करते हुए कह रहा है कि तुम्हारे असमय चले जाने पर मेरी आँखें पहले ही क्यों नहीं बन्द हो गईं। अगर वे पहले ही बन्द हो गई होती तो मैं इतना दुःखी और विकल नहीं होता। इसलिए हे मेरे प्राण प्यारे चेतक! तुम्हीं तो मेरे हर दुःख-सुख के साथी और सहभागी थे। अब तुम्हारे सिवा मेरा और कोई नहीं है। इसलिए अब मैं मेवाड़ में नहीं जाना चाहता हूँ। तुम्हारे जाने के बाद मेरा पूरा शरीर थककर चूर हो गया है।

वह किसी प्रकार से कोई भी दुःख सहने योग्य नहीं रह गया है। लगता है कि अब मैं और नहीं जी पाऊँगा। अब तो मैं चलने-फिरने में भी असमर्थ हूँ। ऐसा होने के बावजूद अभी मेरे अन्दर तुम्हारे शव को देखने की ललक है। इसके लिए भीतर-ही-भीतर मेरी इच्छा उमड़ रही है। मेरा जी चाहता है कि तुम्हारे शव से लिपटकर जी भर आँसू बहाऊँ। रो-रोकर अपने पाश्चात्ताप को प्रकट करूँ। यही नहीं, यह भी जी करता है कि अपने सिर को किसी चट्टान से फोड़ डालूँ ताकि कुछ समय तक तो शान्ति मिल सके। प्रताप का पुनः कहना है-हे चेतक! तुमने प्राणों की बलि देकर अपने कर्तव्य को पूरा कर लिया है, लेकिन मैं तो इस संसार में किसी के सामने अपना मुँह दिखलाने का साहस नहीं कर पा रहा हूँ।

यह इसलिए कि तुमने अपनी वीरता दिखाते हुए सदैव याद करने योग्य मृत्यु को प्राप्त कर लिया है। दूसरी ओर मैं बुजदिल बनकर अपने किए पर लज्जित हूँ। इसलिए अपने को छिपाकर रखना ही एकमात्र विकल्प समझ रहा हूँ। वास्तव में मैं पापी और अधम कोटि का हूँ। फिर भी मुझे यह नहीं समझ में आ रहा है कि तुमने मुझे क्यों महत्त्व दिया। मुझमें तुझे कौन-सी अच्छाई दिखाई दी थी। यह मैं सच्चे मन से कह रहा हूँ। इसे तुम जहाँ भी हो, मेरे प्राण चेतक सुन लो।

विशेष:

  1. प्रताप का अपने प्राण प्यारे चेतक के प्रति अनन्य भाव व्यक्त हुए हैं।
  2. प्रताप का आत्मकथन में सच्चाई और विश्वसनीयता है।
  3. भाव हृदयस्पर्शी है।
  4. भाषा सरल है।
  5. काव्य रस का संचार है।
  6. शैली भावात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में किसका कथन किसके प्रति है और क्यों?
  2. चेतक की विशेषताओं को लिखिए।
  3. प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख भाव क्या है?

उत्तर:

1. प्रस्तुत गद्यांश में राणा प्रताप का कथन चेतक के प्रति है। यह इसलिए कि चेतक उनका प्राणप्रिय घोड़ा था। उसके समाप्त होने पर राणा प्रताप अपनी व्यथा को प्रकट किए बिना नहीं रह सके थे।

2. चेतक की कई विशेषताएँ थीं, जैसे

  • सुख-दुख का साथी
  • महान वीर
  • देशभक्त और स्वामिभक्त
  • कर्त्तव्यनिष्ठ, और
  • महान प्रेमी व आत्मीय।

3. प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव है-राणा प्रताप के प्राणप्रिय घोड़ा चेतक की अच्छाइयों पर प्रकाश डालना।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. मेवाड़ में किसका क्या नहीं करने का जी करता?
  2. चेतक के चले जाने पर राणा प्रताप की दशा कैसी हो गई है?
  3. राणा प्रताप की क्या इच्छा होती है?

उत्तर:

  1. मेवाड़ में राणा प्रताप का पैर रखने को जी नहीं करता।
  2. चेतक के चले जाने पर राणा प्रताप की दशा बड़ी दयनीय और निराशाजनक हो गई है। उनका रोम-रोम घायल हो गया है। उनके प्राण कण्ठ में आ रहे हैं। उन्हें एक कदम चलना कठिन हो गया है।
  3. राणा प्रताप की इच्छा होती है कि वह अपने प्राणप्रिय घोड़े चेतक के शव के पास दौड़ते हुए लौट आवें। उससे लिपटकर जी भरकर आँसू बहाएं। वहीं पर किसी चट्टान से अपने सिर को टक्कर मारकर मर जाएँ।

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
आँखें खोलकर मेवाड़ी वीरों का बलिदान देखने से इस युद्ध ने कान मलकर मुझे बता दिया कि मेरा अहंकार व्यर्थ है। मुझसे कई गुनी वीरता, कई गुनी देशभक्ति और कई गुना त्याग मेवाड़ के एक-एक सैनिक के हृदय में हिलोरें ले रहा है। और आप! आप तो देव हैं भैया। मेवाड़ के सौभाग्य से यहाँ जन्म लेने आए हैं। आपकी यह क्षत-विक्षत देह और प्राणों की ममता छोड़कर भीषण संग्राम। आश्चर्य होता है भैया, और श्रद्धा उमड़ पड़ती थी। इच्छा होती थी कि तुम्हारे चरणों पर सिर रखकर समरांगण में सदा के लिए वीरों की नींद सोया जाए। भैया, क्या तुम मुझे क्षमा न करोगे? मेवाड़ को फिर एक बार बड़े प्यार से माँ कहने का अधिकार न दोगे? भैया, मुझे क्षमा करो।

शब्दार्थ:

  • बलिदान – त्याग।
  • कान मलकर बताना – बिल्कुल साफ-साफ कहना।
  • अहंकार – घमण्ड।
  • व्यर्थ – बेकार।
  • देव – देवता।
  • क्षत – विक्षत – घायल।
  • देह – शरीर।
  • ममता – लगाव।
  • भीषण – भयंकर।
  • संग्राम – युद्ध।
  • समरांगण – युद्धभूमि।

प्रसंग:
पूर्ववत्। प्रस्तुत गद्यांश में महाराणा प्रताप के शक्ति सिंह के आत्मपश्चात्ताप का उल्लेख किया गया है। शक्ति सिंह घायल राणा प्रताप के सामने आत्मपश्चात्ताप प्रकट करते हुए कह रहा है कि –

व्याख्या:
इस हल्दीघाटी के युद्ध में मुझे यह बड़ा ही स्पष्ट ज्ञान हो गया है कि मेरा घमण्ड निराधार है। मैं कुछ भी नहीं हूँ। मुझसे मेवाड़ का एक-एक सैनिक बहुत बड़ा वीर, देश-भक्त और त्यागी है। मुझमें तो कुछ भी वीरता, देश-भक्ति और प्राणों को न्यौछावर करने की भावना नहीं है, जबकि मेवाड़ के एक-एक सैनिक का हृदय इस प्रकार के पवित्र और महान भावों से भरा हुआ है।

शक्ति सिंह ने राणा प्रताप के प्रति अपने आत्मीय, पवित्र और उच्च भावों को रखते हुए कहा-भैया! आप तो हमारे लिए देवता समान हैं। आपका मेवाड़ में जन्म लेना मेवाड़ के लिए बड़े ही सौभाग्य और गौरव की बात है। जब-जब मैं आपको घायल होते हुए घनघोर युद्ध में अपने प्राणों की तनिक परवाह किए बिना देखता था, तब-तब मुझे घोर आश्चर्य होता। उससे मुझे अपार श्रद्धा की भावना आपके प्रति बढ़ जाती थी। फिर मेरी यही हार्दिक इच्छा होती थी कि काश! आपके चरणों पर अपने सिर को रखकर इस युद्ध-भूमि में एक सच्चे वीर की तरह अपने प्राणों का बलिदान कर दूं। इसलिए अब मुझे एक ही ललक और जिज्ञासा है कि क्या आप मुझे अपनी जन्मभूमि मेवाड़ को. माँ कह लेने को एक बार मौका नहीं देंगे। इसी प्रकार क्या आप मुझे अपना छोटा समझकर मेरी गलतियों को क्षमा नहीं कर देंगे।

विशेष:

  1. शक्ति सिंह का आत्मपश्चात्ताप प्रेरक रूप में है।
  2. देश-भक्ति की प्रबलधारा है।
  3. वीर रस का सुन्दर प्रवाह है।
  4. शैली सुबोध है।
  5. वाक्य-गठन भाववर्द्धक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में किसका कथन किसके प्रति ही?
  2. प्रस्तुत गद्यांश के मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
  3. शक्ति के कथन का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर:

  1. प्रस्तुत गद्यांश में शक्ति सिंह का कथन राणा प्रताप के प्रति है।
  2. प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव है-शक्ति सिंह का राणा प्रताप के प्रति भातृत्व प्रेम को प्रकट करना।
  3. शक्ति सिंह के कथन का मुख्य उद्देश्य यही है कि राणा प्रताप उसे अपने भाई के रूप में पहले की तरह अपनाकर उसकी गलतियों को क्षमा कर दें।

MP Board Class 11th Hindi Solutions