MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया (एकांकी, भगवतीचरण वर्मा)

रुपया तुम्हें खा गया पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

रुपया तुम्हें खा गया लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल की सुख-शान्ति क्यों भंग हो गई?
उत्तर:
किशोरीलाल को रुपए चुराने के जुर्म में तीन साल की जेल की सजा हो गई। इसलिए उसकी सुख-शान्ति भंग हो गई।

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प्रश्न 2.
जयलाल कौन था? वह कौन-सा व्यवसाय करता था?
उत्तर:
जयलाल मानिकचंद का पुत्र था। वह डॉक्टरी करता था।

प्रश्न 3.
मदन को सम्पत्ति का मालिक बनाने की बात पर मानिकचंद ने क्या कहा?
उत्तर:
मदन को सम्पत्ति का मालिक बनाने की बात पर मानिकचंद ने यह कहा-“मेरे मरने के बाद ही उसके पहले नहीं। और मेरे मरने के लिए तुम दोनों माला फेरो, पूजा-पाठ कराओ…..यहाँ से…..जाओ तुम दोनों।”

रुपया तुम्हें खा गया दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल के जेल जाने पर परिवार ने अपना जीवन-निर्वाह किस प्रकार किया?
उत्तर:
किशोरीलाल के जेल जाने पर उसके परिवार ने अपना जीवन-निर्वाह बड़ी कठिनाई से किया। उसकी पत्नी ने अपने जेवर बेचे। उसकी लड़की ने चक्की चलाई और पड़ोस के कपड़े सिले। इससे उसके बेटे जयलाल की डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की।

प्रश्न 2.
सजा काटने के पश्चात् किशोरीलाल की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सजा काटने के पश्चात किशोरीलाल की मनोदशा काफी बिगड़ चकी थी। वह अपने उजड़े हुए घर-परिवार को देखकर अशान्त हो गया था। उसने अपनी बाबी, अपने बच्चों के कुपोषण को देखा। इससे वह एकदम घबड़ा गया। उसने लोगों से होने वाले अनादर और उपेक्षा को देखा। घर के घोर अभाव को देखा। इन सब दुखों को देखकर वह काँप गया। उसके बाप-दादा को पुराना मकान कर्ज से दब चुका था। उसे बेचकर वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ और दूसरे शहर को चला गया।

प्रश्न 3.
मानिकचंद अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी अपने पुत्र मदन को क्यों नहीं देना चाहता था?
उत्तर:
मानिकचंद अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी अपने पुत्र मदन को नहीं देना चाहता था यह इसलिए कि वह अपनी सम्पत्ति का मालिक अपने जीते जी नहीं बनाना चाहता था। अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी देकर वह अपनी पत्नी और बेटे के अधीन होकर नहीं जीना चाहता था।

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प्रश्न 4.
मानिकचंद को अपनी भूल का अहसास कैसे होता है?
उत्तर:
मानिकचंद को अपनी भूल का अहसास तब होता है, जब किशोरीलाल उससे उसके जीवन का सबसे बड़ा सत्य कह गया कि रुपया उसे खा गया है। इसलिए उसमें ममता नहीं है, दया नहीं है, प्रेम नहीं है और भावना नहीं है। उसके अन्दर वाला मानव मर चुका है। उसकी जगह अर्थ का पिशाच घुस गया है।

प्रश्न 5.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ एकांकी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी में मनुष्य की उस लोभवृत्ति का चित्रण किया गया है जिसके अधीन होकर वह सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को भूलकर मात्र धन-लिप्सा के मोहजाल में आकण्ठ डूबा रहता है और अपनी मानसिक शान्ति खो बैठता है। पैसे की तुलना में मनुष्य के उदात्त मानवीय गुण यथा महत्त्वपूर्ण है। ये गुण ही मनुष्य को जीवन में सच्चा सुख और शान्ति प्रदान करते हैं। पैसों की ताकत इन मानवीय गुणों की तुलना में हेय है।

प्रश्न 6.
एकांकी के आधार पर मानिकचंद का चरित्र-चित्रण कीजिए?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ एक यथार्थपूर्ण एकांकी है। इसका मुख्य पात्र मानिकचंद का चरित्र बड़ा ही रोचक और विश्वसनीय है। वह धनपशु है। उसमें धन की पिशाच पूरी तरह मौजूद है। इससे वह हर प्रकार के अनैतिक विचारों को पालता है। हर प्रकार के अनैतिक कार्यों को करता है। धन ही उसका जीवन, उसकी चाह है। और तो और, धन ही उसका सब कुछ है। इसके सामने वह किसी को कुछ नहीं समझता है। सबको ठोकर मार देने में वह नहीं हिचकता है। अपनी बीवी-बच्चों को भी वह धन के सामने भूल जाता है।

इसी धनलिप्सा के मोहजाल में वह इतना फँस चुका है कि किशोरीलाल के बार-बार यह सावधान किए जाने पर “रुपया तुम्हें खा गया” वह नहीं सावधान होता है। बीमार होने पर भी वह अपने बेटे मदन को अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी नहीं देता है। अपनी बीवी रानी को फटकारते हुए वह कहता भी है_ “हा…..हा….हा। नहीं मिलेगी, सेफ की चाबी नहीं मिलेगी, जब तक मैं जिन्दा हूँ। जानती हो, इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। बीवी, नातेदार, पड़ोसी, नौकर ये सब के सब मेरे नहीं हैं, ये मेरे रुपए के हैं। अभी किशोरीलाल मुझे बतला गया है कि मैं मर चुका हूँ। वह मुझसे कह गया है कि रुपया तुम्हें खा गया।”

प्रश्न 7.
एकांकी के तत्त्वों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
उत्तर:
एकांकी नाटक सामान्य रूप से नाटक के उस स्वरूप को कहते हैं जिसमें एक ही अंक में सारा नाटक समाप्त हो जाता है। एकांकी के छह तत्त्व माने जाते हैं।

  1. कथानक या कथावस्तु
  2. पात्र और चरिघ्र-चित्रण
  3. कथोपकथन
  4. देशकाल तथा संकलनत्रय
  5. भाषा-शैली, और
  6. उद्देश्य।

1. कथानक और कथावस्तु:
यह एकांकी की कहानी है। कहानी को इस प्रकार से नियन्त्रित करके रखा जाए कि वह बहुत कम में समाप्त होकर श्रोता और दर्शक के मन को अपनी ओर रमा सके।

2. पात्र और चरित्र-चित्रण:
श्रोता और दर्शक के हृदय पर सबसे अधिक. प्रभाव पात्रों के द्वारा ही डाला जाता है। यह एकांकी का प्राण होता है। पात्र ही कथावस्तु को आगे बढ़ाते हैं। मुख्य पात्र को नायक कहते हैं। वह नाटक के फल को प्राप्त करता है। वह अनेकानेक उदात्त गुणों का खजाना होता है।

3. कथोपकथन:
कथोपकथन कथावस्तु को आगे बढ़ाते हैं और पात्रों के चरित्र का उद्घाटन करते हैं। कथोपकथन के आधार पर ही नाटकीयता का मूल्यांकन किया जाता है। ये संक्षिप्त, चुटीले, पात्रानुकूल तथा स्वाभाविक होने चाहिए।

4. देश-काल तथा संकलनत्रय:
एकांकी कथावस्तु से सम्बन्धित देश-काल (परिस्थितियों) का स्वाभाविक वर्णन एकांकी को सजीवता एवं वास्तविकता प्रदान करता है। कम-से-कम स्थानों एवं कम अन्तराल की घटनाओं का वर्णन संकलनत्रय के तत्त्व के निर्वाह में सहायक होता है।

5. भाषा-शैली:
एकांकी को प्रस्तुत करने के ढंग को शैली कहते हैं। इसे ही एकांकी का परिधान कह सकते हैं। इसके अन्तर्गत पात्रों की भाषा, रंगमंच की व्यवस्था, नाटककार का व्यक्तित्व आदि बातें आती हैं।

6. उद्देश्य:
एकांकी का मुख्य उद्देश्य मनोरंजक ढंग पर जीवन की व्याख्या करना है। एकांकी का महत्त्व मुख्य रूप से नैतिक है। समाज के कल्याण के साथ काव्य का जो सम्बन्ध है, वह सबसे अधिक एकांकी में ही प्रकट किया जाता है।

रुपया तुम्हें खा गया भाव विस्तार/पल्लवन

  1. रुपया तुमने नहीं खाया, रुपया तुम्हें खा गया।
  2. तुमने जो चोरी की थी उसकी सजा मैं भुगत चुका हूँ। तुम्हारे पाप का प्रायश्चित मैं कर चुका हूँ।

उत्तर:
1. उपर्युक्त कथन किशोरीलाल का मानिकचंद के प्रति है। इस कथन में यह भाव छिपा हुआ है कि धन का लोभी व्यक्ति का चरित्र गिर जाता है। धन को ही वह सबकुछ समझ लेता है। इससे उसके अंदर का मनुष्य मर जाता है। उसकी जगह पिशाच का प्रवेश हो जाता है। उससे उसमें प्रेम नहीं होता है। कोई सद्भावना नहीं होती है। कोई दया नहीं है। इस प्रकार रुपया को चाहने वाले या रुपया को ही सबकुछ समझने वाले को रुपया इस तरह से खा लेता है कि उसके पास केवल पशुतापन और राक्षसीपन ही रह जाता है। उससे उसके परिवार और समाज का नुकसान ही होता रहता है।

2. उपर्युक्त कथन किशोरीलाल का मानिकचन्द के प्रति है। इस कथन का यह भाव है कि आज के समाज में कानून कमजोर पड़ गया है। वह धनवान और साधन-सम्पन्न मुजरिम को पकड़ने में आनाकानी करता है, बहाना बनाता है। घूस पाकर कमजोर, गरीब और लाचार आदमी को गिरफ्तार कर उसे जेल में बन्द कर उसे सजा दे डालता है। इस प्रकार आज का कानून है-करे कोई, भरै कोई।

रुपया तुम्हें खा गया भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
दिए गए शब्दों में से उपसर्ग छाँटकर अलग कीजिए। कुरूप, अभाव, कुप्रबंध, सुडौल।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया img-1

प्रश्न 2.
निम्ननिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए –
अभिशाप, तिरस्कार, असभ्य, कठोर।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया img-2

प्रश्न 3. दिए गए निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन कीजिए –
उदा:

  1. रुपया तुम्हें खा गया। (प्रश्वाचक वाक्य)
  2. वह कल दिल्ली जाएगा (निषेधात्मक वाक्य)
  3. कितना सुन्दर दृश्य है(विस्मयादि बोधक)
  4. आज पानी बरस रहा है(संदेहार्थ वाक्य)
  5. आपने भोजन कर लिया है। (प्रश्नार्थक वाक्य)

उत्तर:

  1. क्या रुपया तम्हें खा गया है?
  2. वह कल दिल्ली नहीं जाएगा।
  3. अहा! कितना सुन्दर दृश्य है।
  4. शायद आज पानी बरसे।
  5. क्या आपने भोजन कर लिया है?

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प्रश्न 4.
इस एकांकी में आए आगत (विदेशी) शब्दों को लिखिए।
उत्तर:
इस एकांकी में आए आगत (विदेशी) शब्द इस प्रकार हैं –
करीब-करीब, हफ्ते, दफ्तर, डाइंग रूम, डॉक्टर, ताकत, ईमान, इज्जत, आबरू, दुनिया, बीमार, सबूत, साल, जेल, इशारा, सजायाफ्ता, आदमी, मकान, कर्ज, मुआवजा, सिर्फ, जिंदगी, कागज, इन्कमटैक्स, नोटिस, हिसाब-किताब, अजीब, मुसीबत, मतलब, सेफ़, आखिर, गलत, ऑफिस।

रुपया तुम्हें खा गया योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ एकांकी को कहानी के रूप में लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 2.
इस एकांकी को अभिनीत कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 3.
ईमानदारी विषय पर केन्द्रित अन्य प्रेरणा देने वाले प्रसंगों को संकलित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 4.
रुपये को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने हेतु डाकखाने में मनी आर्डर द्वारा सुविधा प्रदान की जाती है। यहाँ मनी ऑर्डर का प्रारूप दिया जा रहा है जिसमें आप आवेदक का नाम पता तथा पाने वाले का नाम, पता भरिए तथा मनी ऑर्डर के बारे में विस्तृत जानकरी डाकखाने से प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

रुपया तुम्हें खा गया परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

रुपया तुम्हें खा गया लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बीमारी में क्या होता है और क्या नहीं होता है?
उत्तर:
बीमारी में उतार-चढ़ाव होता है। उसमें सुधार नहीं होता है।

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प्रश्न 2.
किशोरीलाल अपने बुरे समय में मानिकचन्द से सहायता क्यों नहीं माँगी?
उत्तर:
किशोरीलाल अपने बुरे समय में मानिकचन्द से सहायता नहीं माँगी। वह इसलिए कि –

  1. उसे उसका पता नहीं मालूम था।
  2. उसे इस बात का पूरा विश्वास नहीं था कि वे रुपये उसने ही चुराए थे।

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प्रश्न 3.
किशोरीलाल ने मानिकचन्द से क्यों कहा कि रुपया उसे खा गया?
उत्तर:
किशोरीलाल ने मानिकचन्द से कहा कि रुपया उसे खा गया। यह इसलिए कि उसमें कोई ममता नहीं, दया नहीं, प्रेम नहीं और कोई भावना नहीं रह गई थी। उसके अन्दर का मानव मर चुका था और धन का पिशाच घुस गया था।

रुपया तुम्हें खा गया दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल मानिकचन्द को आपबीती क्या सुनाई?
उत्तर:
किशोरीलाल ने मानिकचन्द को आपबीती सुनाई। उसने उसे सुनाया कि जब वह जेल की सजा काटकर घर लौटा तो उसने जो देखा, उससे वह काँप उठा। उस समय तक यह जयलाल डॉक्टरी पास कर चुका था। लेकिन इसकी डॉक्टर नहीं चली। एक सजायाफ्ता आदमी का लड़का था न यह! बाप-दादा का पुराना मकान कर्ज से लद चुका था। उसे बेचकर मैं वहाँ से भाग खड़ा हुआ, और उसने इस नगर की शरण ली।

प्रश्न 2.
मानिकचन्द द्वारा. क्षमा माँगने पर किशोरीलाल ने क्या कहा?
उत्तर:
मानिकचन्द के क्षमा माँगने पर किशोरीलाल ने कहा –

“तुमने कोई अपराध नहीं किया। मानिकचन्द मुझसे क्षमा बेकार मांग रहे हो। कोई बहुत बड़ा पाप किया होगा मैंने कभी, उसी का दंड मुझे मिला। वह दंड मैंने भुगत लिया है,और आज मेरे मन में कोई ग्लानि नहीं, कोई संतापं नहीं। मेरे लड़के की डॉक्टरी अच्छी चलती है और वह ईमानदार तथा कर्तव्यपरायण आदमी है। मेरे पास कोई अभाव नहीं। मेरा जीवन, मेरी पत्नी की, मेरे पुत्र की, मेरे पौत्रों की ममता है, मेरा सुख-दुख उनका सुख-दुख है। यह क्या कम है? मैं भगवत भजन करता हूँ। मैं तुमसे कहीं अधिक सखी हूँ।”

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प्रश्न 3.
मानिकचन्द द्वारा झूठ बोलने और धोखा देने का आरोप लगाने पर किशोरीलाल ने उससे क्या कहा?
उत्तर:
मानिकचन्द द्वारा झूठ बोलने और धोखा देने का आरोप लगाने पर किशोरी लाल ने उससे इस प्रकार कहा –

“मानिकचन्द धोखा मैं तुम्हें नहीं दे रहा हूँ, धोखा तुम अपने को दे रहे हो। तुम्हारी सुख-शांति अर्थ के पिशाच ने तुमसे छीन ली, तुम्हारा संतोष उसने नष्ट कर दिया। उस दिन जब तुम दस हजार रुपया चुराकर लाए थे, तब तुमने समझा था कि तुम रुपया खा गए लेकिन तुमने बहुत गलत समझा था।”

प्रश्न 4.
“आखिर तुम सेफ की चाबी उन्हें क्यों नहीं दे देते?” किशोरीलाल के इस प्रश्न के उत्तर में मानिकचन्द ने क्या कहा?
उत्तर:
“आखिर तुम सेफ की चाबी इन्हें क्यों नहीं दे देते?” किशोरीलाल के इस प्रश्न के उत्तर में मानिक चन्द ने कहा –

किशोरीलाल तीन साल जेल में रहकर भी तुम यह नहीं जान पाए कि सेफ की चाबी जिन्दगी की चाबी है। उसे अपने पास से अलग कर देने के माने हैं विनाश। देख रहे हो मेरे गले में सोने की जंजीर में बंधी हुई यह चाभी?

प्रश्न 5.
रानी द्वारा सेफ की चाबी माँगने पर मानिकचन्द ने क्या कहा?
उत्तर:
रानी द्वारा सेफ की चाबी माँगने पर मानिकचन्द ने इस प्रकार कहा –

हा…हा…हा। नहीं मिलेगी, सेफ की चाबी नहीं मिलेगी, जब तक मैं जिंदा हूँ। जानती हो, इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। बीवी, बच्चे, नातेदार, पड़ोसी, नौकर. …ये सब के सब मेरे नहीं हैं, ये मेरे रुपये के हैं। अभी किशोरीलाल मुझे बतला गया है कि मैं मर चुका हूँ। वह मुझसे कह गया है कि रुपया तुम्हें खा गया।”

रुपया तुम्हें खा गया लेखक का परिचय

प्रश्न 1.
भगवतीचरण वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भगवतीचरण वर्मा का जन्म उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गांव में सन् 1903 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद में प्राप्त की। उनके साहित्य के लेखन का आरंभ कविता से हुआ, जो धीरे-धीरे बाद में कहानी-लेखन और नाटक-लेखन में बदलता गया।

रचनाएँ:
भगवतीचरण वर्मा मुख्य रूप से कहानीकार और उपन्यासकार हैं। उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं –

  • कहानी-संग्रह – ‘इंस्टालमेंट’, ‘दो बाँके तथा राख’ और ‘चिनगारी’।
  • काव्य-संग्रह – ‘मधुकण’, ‘प्रेम-संगीत’ और ‘मानव’।
  • उपन्यास – ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘चित्रलेखा’, ‘भूले-बिसरे चित्र’।

महत्त्व:
भगवतीचरण वर्मा उपदेशक नहीं हैं, न विचारक के आसन पर बैठने की आकांक्षा ही कभी उनके मन में उठी। वे जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान रहे। आज के भारतीय गांव और शहर के परिवेश तथा उनकी समस्याओं का ज्ञान और उनके निराकरण के संकेत लेखक की सूक्ष्म और अंतर्भेदनी दृष्टि में मिलते हैं। आज के युग की पहचान करने में उनका लेखन समर्थ है।

रुपया तुम्हें खा गया पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
भगवतीचरण वर्मा लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भगवतीचरण वर्मा-लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ में मनुष्य के लोभ और उससे होने वाली हानियों का चित्रण किया गया है। इस एकांकी का सारांश इस प्रकार है –

डॉ. जयपाल मानिकचन्द का कई दिनों से इलाज कर रहे हैं। मानिकचन्द के पूछने पर डॉक्टर जयपाल बताता है कि उसको सुधार धीरे-धीरे हो रहा है। बीमारी के दौरान उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। अगर सुधार हो, तब तो बीमारी अच्छी ही हो गई। इसे सुनते ही मानिकचंद का चेहरा उतर गया। उसे इस तरह देखकर डॉक्टर ने कहा कि डरने की कोई बात नहीं। बीमारी करीब-करीब ठीक हो चुकी है। इसे सुनकर मानिकचंद ने डॉक्टर को धन्यवाद दिया। फिर कहा कि वह मदन से उसके ड्राइंगरूम में अवश्य मिल ले। वह अस्पताल के खर्चे का सारा प्रबंध कर देगा। डॉक्टर ने उसके प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि क्या वह पैसे से ही धर्म, इंसान, इज्जत आदि को खरीद सकता है।

अब वह जिन्दगी भर बीमार ही रहेगा। उसे कोई भी ठीक नहीं कर सकता है। उसी समय किशोरीलाल वहां आ जाता है। उसे देखकर मानिकचंद हैरान होता है। उसकी हैरानी को देखकर उसने कहा कि वह डरे नहीं। उसने जो चोरी की थी, उसकी सजा वह भुगत चुका है। वह उसके पाप का प्रायश्चित्त कर चुका है। इस सिलसिले में तीन साल जेल में बंद था। वे दिन मेरी घोर विपत्ति और बर्बादी के दिन थे। जेल से छूटकर घर जाने पर उसने देखा कि वह बुरी तरह से उजड़ चुका है। लोग उससे बात न करके उस पर हँसते थे। उसका तिरस्कार और अपमान करते थे। उसके फूल-से बच्चे कुम्हला गए। उसकी पत्नी बूढ़ी हो गई। घर भयानक अभाव में था। यह डॉक्टर जयलाल उसका ही लड़का है।

यह उस समय डॉक्टरी पास कर चुका था। लेकिन एक सजायाफ्ता आदमी का लड़का होने से इसकी डॉक्टरी नहीं चली। बाप-दादा का पुराना सकान कर्ज में था। उसे बेचकर ही उसने इस शहर में शरण ली। इस समय वह उससे रुपए नहीं लेने आया है। वह तो यह देखने आया है कि वह किस प्रकार करोड़पति की जिंदगी जी रहा है। – उसी समय मानिकचंद के लड़के मदन ने कहा कि बाबूजी को इन्कमटैक्सवालों ने चालीस लाख रुपए का नोटिस दिया है। उन्हें हमारे पुराने हिसाब-किताब का पता चल गया है। उसकी पत्नी रानी ने कहा कि इन रुपयों का प्रबंध करना ही होगा। मिल छुड़ाना है। इसलिए वह सेफ की चाबी मदन को दे दे।

इसे सुनकर उसने उन दोनों को फटकारते हुए कहा कि वह सेफ की चाबियाँ मदन को देकर अपना हाथ नहीं कटवाएगा। इसलिए वे दोनों वहाँ से चले जाएँ। इसे देखकर डॉक्टर जयपाल उन दोनों माँ-बेटे (रानी और मदन) को समझाता है कि वे दोनों वहाँ से तुरन्त चले जाएँ। जब मानिकचंद शान्त हो जाएगा, तब वह उसे समझा-बुझाकर सब कुछ तय कर लेगा। किशोरीलाल को देखकर मदन ठिठक जाता है।

किशोरीलाल से सहानुभूति की आशा से मानिकचंद अपनी पत्नी-बेटे की शिकायत करता है। किशोरीलाल उसे अपने पत्नी-बेटे को सेंफ की चाबी दे देने की सलाह देता है। उसे सुनकर मानिकचंद उसे समझाते हुए केहता है कि वह उन्हें सेफ की चाबी हरगिज नहीं देगा। अगर देगा तो उसका अर्थ होगा अपने गले में फंदा डालना।

मानिकचंद किशोरीलाल से अपना रुपया वापस लेकर उसे उस अभिशाप से मुक्त करने का निवेदन करता है। वह उससे क्षमा माँगता है तो किशोरीलाल उसे समझाते हुए कहता है कि उसने कोई अपराध नहीं किया है। उसने ही कोई बड़ा पाप किया होगा, जिसका उसे दंड के रूप में जेल की सजा मिली। अब उसे कोई दुःख-अभाव नहीं है। उसका सारा परिवार सुखी और सम्पन्न है। इसे सुनकर मानिकचंद ने कहा कि वह उसे धोखा दे रहा है। किशोरीलाल ने उसे फटकारते हुए कहा कि वह उसे धोखा नहीं दे रहा है बल्कि वह अपने आपको ही धोखा दे रहा है। ऐसा इसलिए कि उसकी सुख-शान्ति और संतोष को अर्थ के पिशाच ने छीनकर नष्ट कर दिया है।

उस दिन जब उसने दस हजार रुपए चुराए थे, तब उसने यह समझा था कि वह रुपया खा गया, लेकिन ऐसी बात नहीं है। उसने रुपया नहीं खाया था, बल्कि रुपया उसे खा गया। इसका प्रमाण है कि उसमें प्रेम, दया आदि की कोई भावना नहीं है। उसके अंदर का मनुष्य मर चुका है। उसकी जगह पिशाच घुस गया है। अपनी पत्नी रानी को देखकर मानिक चंद विक्षिप्त की तरह कहता है कि अगर वह सेफ की चाबी लेने आई है, तो वह उसे नहीं मिलेगी।

उसका इस संसार में कोई भी नहीं है। उसके सभी नाते, संबंधी, पड़ोसी, नौकर रुपए के हैं, उसके नहीं हैं। किशोरीलाल अभी कह गया है कि वह मर चुका है। उसे रुपया खा गया है। रानी के पूछने पर मानिकचंद ने कहा कि उसकी तबियत बिल्कुल ठीक है। केवल एक सत्य उस पर प्रकट हुआ है कि उसकी प्रेत आत्मा को किशोरीलाल ने पकड़कर उसके सिरहाने छोड़ दिया है। वह कह रही है रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया।

रुपया तुम्हें खा गया संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
सेठजी, बीमारी का अन्त होता है, बीमारी में सुधार नहीं हुआ करता। जितने दिन तक बीमारी चलती है वह बीमारी की अवधि कहलाती है। उस अवधि में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं, अगर सुधार हो तब तो बीमारी अच्छी ही हो गई।

शब्दार्थ:

  • अवधि – समय।
  • उतार-चढ़ाव – कम-अधिक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा भगवतीचरण वर्मा लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने डॉक्टर जयलाल के कथन के माध्यम से बीमारी क्या होती है, यह बतलाने का प्रयास किया है। डॉक्टर जयलाल बीमार मानिकचंद को समझाते हुए कह रहा है –

व्याख्या:
सेठजी! बीमार के सही इलाज होने से बीमारी में सुधार या कमी नहीं होती है, बल्कि बीमारी की समाप्ति ही हो जाती है। इस प्रकार बीमारी का इलाज लगातार होता रहता है। इसे ही बीमारी का समय कहा जाता है। इस समय में बीमारी में कभी कमी होती है तो कभी अधिकता। दूसरे शब्दों में यह कि इलाज के बावजूद बीमारी कभी घट जाती है तो कभी बढ़ जाती है। इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि बीमार का सही इलाज होने से कुछ सुधार होने लगता है। ऐसा होने पर यह मान लिया जाता है कि बीमारी का अंत हो गया।

विशेष:

  1. बीमारी के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  2. भाषा में प्रवाह है।
  3. शैली बोधगम्य है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. बीमार के इलाज से क्या होता है?
  2. बीमारी की अवधि किसे कहते हैं?

उत्तर:

  1. बीमारी के इलाज से बीमारी का अंत होता है।
  2. जितने दिन बीमारी चलती है, वह बीमारी की अवधि कहलाती है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
बीमारी की अवधि में क्या होता है?
उत्तर
बीमारी की अवधि में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।

प्रश्न 2.
मैं जेल में बंद था। कभी रोता था, कभी हँसता था। कभी पागलपन में बकने लगता था। तीन साल बाद छूटकर मैं अपने घर पहुंचा, और मैंने देखा कि मैं बुरी तरह उजड़ गया हूँ। लोग मुझसे बात नहीं करते थे। मुझ पर तिरस्कार और उपेक्षा की वर्षा होती थी। मेरे फूल से बच्चे कुम्हला गए थे। मेरी पत्नी इन तीन वर्षों में बूढ़ी हो गई थी। घर में भयानक अभाव था।

शब्दार्थ:

  • उजड़ – बर्बाद।
  • तिरस्कार – अपमान।
  • उपेक्षा – अनादर।
  • कुम्हला – मुरझा।
  • अभाव – कमी।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें मानिकचंद से किशोरीलाल की आपबीती दुखद जिंदगी का उल्लेख किया गया है। किशोरीलाल ने मानिकचंद से कहा।

व्याख्या:
मानिकचंद तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि उसने कई साल जेल की सजा काटी है। जेल की सजा काटते हुए वह कभी शान्त नहीं था। वह अपने दुःखमय जीवन को सोच-सोचकर कभी रोता था और कभी सुखों को याद करके हँसता भी था। इसी तरह कभी-कभी पागल होकर बेचैन हो उठता था। फिर ऊटपटांग बातें करने लगता था। इस तरह से उसने तीन साल जेल में बिताए। जेल से छूटने पर जब वह अपने घर आया तो उसने देखा कि उसका घर पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। उसकी गरीबी और तंग हालात को देखकर उसके आस-पास के लोग और सगे-संबंधी उससे मुँह फेर लिये थे।

उससे मिलना-जुलना और बात करना बंद कर दिए थे। इस प्रकार उसकी चारों ओर से अनादर और अपमान होने लगा था। उसकी इस प्रकार की दुर्दशा का यह भी असर पड़ा कि उसके सुखी और सुन्दर बच्चे कुपोषण का शिकार हो गए। उनका जीवन अंधकार में डूब गया। इसी तरह उसकी पत्नी भी गरीबी का शिकार होने के कारण इतनी कमजोर हो गई थी कि वह झुक गई। सीधी न खड़ी हो सकती थी और न बैठ ही सकती थी। सचमुच में उसके घर में बुरी तरह कंगाली छा गई थी।

विशेष:

  1. भाषा मार्मिक है।
  2. शैली हृदयस्पर्शी है।
  3. गरीबी का सटीक चित्रण है।
  4. सम्पूर्ण कथन स्वाभाविक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपर्युक्त कथन में किस तथ्य का उल्लेख है?
  2. उपर्युक्त कथन का संक्षिप्त भाव लिखिए।

उत्तर:

1. उपर्युक्त कथन में जेल-जीवन के दुखद पहलुओं का उल्लेख है।

2. उपर्युक्त कथन के द्वारा यह भाव स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। कि गरीबी और अभावपूर्ण जीवन हर प्रकार से दुखद और उपेक्षित होता है। उसे कहीं से कोई सुख की किरण नहीं दिखाई देती है। इस प्रकार का जीवन जीनेवाला हताशा और निराशा के घने अंधकार में डूब जाता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. जेल-जीवन कैसा होता है?
  2. उजड़े हुए व्यक्ति का घर-परिवार किस तरह का हो जाता है?

उत्तर:

  1. जेल-जीवन बड़ा ही दुखद होता है। जेल में बंद व्यक्ति पागल की तरह बड़ा ही अशान्त रहता है।
  2. उजड़े हुए व्यक्ति से लोग बात नहीं करते और उस पर तिरस्कार और उपेक्षा की वर्षा करते हैं। बच्चों पर मुसीबत आ जाती है। घर में भयानक अभाव आ जाता है।

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प्रश्न 3.
मानिकचंद्र, धोखा मैं तुम्हें नहीं दे रहा हूँ, धोखा तुम अपने को दे रहे हो। तुम्हारी सुख-शाति अर्थ के पिशाच ने तुमसे छीन ली, तुम्हारा संतोष उसने नष्ट कर दिया। उस दिन जब तुम दस हजार रुपया चुराकर लाए थे। तब तुमने समझा था. कि तुम रुपया खा गए….लेकिन तुमने बहुत गलत समझा था।

शब्दार्थ:

  • पिशाच – भूत-प्रेत।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें किशोरीलाल ने मानिकचंद की अज्ञानता को उसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
वह उसे धोखा नहीं दे रहा है। यह भी कि वह किसी प्रकार के अँधेरे में भी नहीं रख रहा है। उसे तो यह बहुत अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि वह ही अपने आपको धोखा दे रहा है। अपने आपको अँधेरे में रख रहा है। यह इसलिए कि वह अपने आपको बहुत सुखी और शान्ति का जीवन जीने की बात सोचकर फूले नहीं समा रहा है तो वह गलतफहमी है। उसे तो यह बिलकुल ही साफ-साफ समझ लेना चाहिए कि उसके सुख और उसकी शान्ति को उसके लोभ और असंतोष ने समाप्त कर दिया है।

उसमें अर्थ की प्रेतात्मा आ गई है, जिसने उसके सुख-चैन और संतोष को निगल लिया है। उसे उस दिन को नहीं भूलना चाहिए, जिस दिन उसने दस हजार रुपये की चोरी की थी। उस दिन उसने यह समझने में गलती की थी कि उसने रुपया खा लिया है। अब उसे इस सच्चाई को स्वीकारना होगा कि उसने रुपये नहीं खा लिये हैं, बल्कि रुपया ने उसे खा लिया है।

विशेष:

  1. अर्थ को पिशाच के रूप में कहकर अर्थ के दुष्परिणाम को बतलया गया है।
  2. भाषा में सजीवता है।
  3. कथन में यथार्थ की पूर्णता है।
  4. शैली व्यंग्यात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
अर्थ के दुष्प्रभाव को बताइए।
उत्तर:
अर्थ के कई दुष्प्रभाव होते हैं; जैसे-सुख शान्ति और कष्ट हो जाते हैं। स्वयं को सही और दूसरे को गलत समझना आदि।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
उपर्युक्त गद्यांश का संक्षिप्त भाव लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त गद्यांश का भाव यह है कि अर्थ पिशाच की तरह होता है। वह जिसके पास होता है, उसके सुख, शान्ति और संतोष को नष्ट कर देता है। वह उसे कहीं का नहीं छोड़ता है। वह उसके ज्ञान और विवेक को भूलभूलैया में डालकर उसमें अनेक प्रकार के दुर्भावों को पैदा कर देता है। इससे वह घर-समाज की आँखों से गिरकर अकेला पड़ जाता है।

प्रश्न 4.
बिल्कुल ठीक है रानी, केवल एक सत्य मुझ पर प्रकट हुआ है। मेरी प्रेतात्मा को किशोरीलाल न जाने कहाँ से पकड़ लाया और वह उस प्रेतात्मा को मेरे सिरहाने छोड़ गया। सुन रही हो, वह प्रेतात्मा क्या कह रही है? वह कह रही है… रुपया तुम्हें खा गया। रुपया तुम्हें खा गया…रुपया तुम्हें खा गया।

शब्दार्थ:

  • सिरहाने – सिर के पास।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें मानिकचंद के सत्यज्ञान पर प्रकाश डाला गया है। मानिकचंद की धर्मपत्नी ने घबराकर डॉक्टर जयलाल से अपने पति (मानिकचंद) की तबियत के विषय में पूछा तो मानिकचंद ने उसे बड़े प्यार से अपने सत्यज्ञान को बतलाते हुए कहा कि –

व्याख्या:
मेरी प्यारी रानी! तुमने मेरे स्वास्थ्य के बारे में चिन्ता की, इससे मैं बहुत खुश हूँ। लेकिन इस समय मुझे ऐसा आत्मज्ञान हो रहा है, जो मेरे ऊपर छाए हुए असत्य के अन्धकार को हटाकर सत्य का प्रकाश फैला रहा है। किशोरी लाल ने मेरे लिए एक दुखद स्थिति पैदा कर दी है। वह यह कि उसने उसकी प्रेतात्मा को कहीं से पकड़ लिया है। उसने उसे उसके सिरहाने लाकर रख दिया है। वह प्रेतात्मा हमेशा उसे बेचैन किए रहती है। वह हमेशा बड़बड़ाती रहती है। तुम उसे इस प्रकार बड़बड़ाते हुए सुन सकती हो। सुनो, सुनो वह यह कह रही है-“रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया।”

विशेष:

  1. रुपया के दुष्प्रभाव को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
  2. भाषा सरल और सपाट है।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।
  4. 4. यह अंश मर्मस्पर्शी है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
मानिकचंद पर कौन-सा सत्य प्रकट हुआ?
उत्तर:
मानिकचंद पर रुपया. रूपी प्रेतात्मा का सत्य प्रकट हुआ।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
‘रुपया तुम्हें खा गया।’ का भावार्थ क्या है?
उत्तर:
‘रुपया तुम्हें खा गया।’ का भाव यह है-धनवान व्यक्ति के अन्दर का मानव पिशाच बन जाता है। फलस्वरूप उसमें ममता नहीं होती है। दया नहीं होती है। प्रेम नहीं होता है। वह तो अपने सुख और आनन्द के लिए किसी की भी बलि चढ़ा देता है।

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