MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 16 समर्पण

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 16 समर्पण (सुरेशचन्द्र शुक्ल)

समर्पण अभ्यास-प्रश्न

समर्पण लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मनुष्य कब देवतुल्य बन जाता है?
उत्तर
अपने उच्च और महान गुणों से मनुष्य देवतुल्य बन जाता है।

प्रश्न 2.
महाराणा प्रताप ने अकबर को संधि-पत्र क्यों भेजा था?
उत्तर
महाराणा प्रताप ने अकबर को संघि-पत्र भेजा था। यह इसलिए कि उनमें अकबर का सामना करने की शक्ति नहीं रह गई थी।

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प्रश्न 3.
अकबर ने महाराणा प्रताप का संधि-पत्र क्यों अस्वीकार कर दिया?
उत्तर
अकबर ने महाराणा प्रताप का संधि-पत्र अस्वीकार कर दिया। यह इसलिए कि अकबर को वह संधि-पत्र जाली लगा। उसने राजकवि पृथ्वीराज को उसकी सत्यता का पता लगाने की आज्ञा दे दी।

प्रश्न 4.
भामाशाह के चरित्र में निहित राष्ट्रीय भावना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
भामाशाह का पूरा चरित्र राष्ट्रीय भावनाओं से भरा हुआ था। उसमें अपार देशभक्ति की भावना थी। वह देश का सच्चा सेवक था। इसलिए वह मेवाड़ पर आए । हुए संकट को नहीं देख सकता था। इसके लिए महाराणा प्रतापं को धन की वह थेली भेंट की जिससे पच्चीस हजार सैनिकों का खर्च बारह साल तक चल सकता था। यही नहीं उसने फिर से तलवार ग्रहण करके प्रतिज्ञा की वह तन-मन और धन से मेवाड़ की रक्षा में आजीवन अपना योगदान देता रहेगा

समर्पण दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजकवि पृथ्वीराज ने महाराणा प्रताप की स्तुति किन शब्दों में की?
उत्तर
राजकवि पृथ्वीराज ने महाराणा प्रताप की स्तुति निम्नलिखित शब्दों में की आज भारत के अनेक राजाओं ने अकबर के आगे सिर झुका दिया है-सिर ही नहीं, रोटी और बेटी का संबंध भी जोड़ा है। अब आप ही भारत माँ के मस्तक की बिंदी की तरह बचे हैं। आपका सिर झुकाना भारत माँ का सिर झुकाना होगा। संसार में पार्थिव रूप से कोई अमर नहीं है प्रताप! यदि आपने अपने शीर्य को सँभाला तो आपकी यशगाथा युगों-युगों चलेगी।

प्रश्न 2.
महाराणा प्रताप ने मेवाड़ को स्वतंत्र कराने के लिए क्या प्रतिज्ञा की?
उत्तर
महाराणा प्रताप ने मेवाड़ को स्वतंत्र कराने के लिए निम्नलिखित प्रतिज्ञा की जब तक मेवाड़ को स्वतंत्र न करा लूँगा, तब तक दाढ़ी और बाल न बनवाऊँगा। और न पलंग पर सोऊँगा, न स्वर्ण-पात्रों में भोजन करूँगा। (भूमि की ओर संकेत कर) यह भूमि ही मेरी शैया होगी और (मिट्टी को हाथ में उठाकर) इस मिट्टी के बने बर्तन ही मेरे पात्र होंगे। जब तक इस शरीर में प्राण रहेंगे, यह सिर अकबर के आगे नत न होगा।

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प्रश्न 3.
‘समर्पण’ एकांकी का नायक आप किसे मानते हैं? उसके चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
‘समर्पण’ एकांकी का नायक हम महाराणा प्रताप को मानते हैं। उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
1. पारिवारिक उत्तरदायित्व का निर्वाह-महाराणा प्रताप में पारिवारिक संबंधों को निभाने की अहम् विशेषता है। यद्यपि वे अपने मेवाड़ की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने के लिए तत्पर हैं। इससे पहले वे अपने परिवार के सदस्यों, पत्नी, बेटा और बेटी को सुखी और स्वतंत्र देखना चाहते हैं। यही कारण है कि वे उनके सुख के लिए ही अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए संधि-पत्र भेज देते हैं।

2. समय का सच्चा पारखी-महाराणा प्रताप के चरित्र की दूसरी विशेषता है-समय का सच्चा पारखी। सचमुच में महाराणा प्रताप समय के सच्चे पारखी हैं। हर प्रकार से अकबर से लोहा लेकर जब वे बार-बार हार जाते हैं तो उन्हें यही समझ में आता है कि समय उनके विपरीत है। अब तो अपने बच्चों और पत्नी का और दुख उनसे नहीं देखा जाता। इस प्रकार वे अपने बुरे समय की परख करके ही अकबर की अधीनता स्वीकार करने को ही उचित समझते हैं।

3. कृतज्ञता-महाराणा प्रताप के चरित्र की तीसरी विशेषता है-कृतज्ञता। वे अकबर के राजकवि पृथ्वीराज के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं कि उन्होंने उनकी वीरता और महानता को उनके शत्रु अकबर के सामने खुलकर प्रकट की है। इसी प्रकार वे अपनी घोर विपत्ति के समय अपने मंत्री और दीवान भामाशाह द्वारा दी गई सहायता राशि को पाकर उसकी बार-बार प्रशंसा कर अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

4. महान देश-भक्त-महाराणा प्रताप महान देश-भक्त हैं। वे मेवाड़ को स्वतंत्र करने के लिए प्रतिज्ञा करते हैं।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) ‘दुख में जो विचलित हो जाते हैं वे वीर नहीं कहलाते।’
(ख) परिस्थितियाँ मनुष्य को विवश कर देती हैं, मनुष्य चाहे तो परिस्थितियों को विवश कर सकता है। जो परिस्थितियों को मोड़कर आगे बढ़ते हैं उन्हीं की यशगाथा अमर रहती है।
उत्तर
(क) उपर्युक्त वाक्य का आशय यह है कि सच्चे वीर परुष किसी भी दशा में अपनी वीरता प्रकट करते ही रहे हैं। उन्हें कठिन-से-कठिन परिस्थितियाँ न तो झुका सकती हैं और न उन्हें बदल सकती हैं। कहने का भाव यह कि वीर पुरुष की वीरता सभी प्रकार की बाधाओं को पार कर आगे निकल जाती है।
(ख) उपर्युक्त वाक्यों का आशय यह है कि साधारण खासतौर से कायर मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है; लेकिन वीर पुरुष इसके ठीक विपरीत होते हैं। वे परिस्थितियों के न तो दास होते हैं और न उनसे वे विवश ही होते हैं। वे तो परिस्थितियों को अपना दास बना लेते हैं। उन्हें वे विवश कर देते हैं। ऐसे वीर पुरुष का यशगान संसार युगों-युगों तक करता रहता है।

प्रश्न 5.
भारत-माता को महाराणा प्रताप से क्या अपेक्षाएँ वी?
उत्तर
भारत-माता को महाराणा प्रताप से अनेक अपेक्षाएं थीं। उसे उनसे यह अपेक्षा वे अकबर के जनाने के कैद अबलाओं की पुकार सुनेंगे। फिर उन्हें आजाद करेंगे। यही नहीं वे भारत के उन राजाओं को स्वतंत्र करेंगे, जो अकबर की अधीनता स्वीकार कर चुके हैं।

समर्पण भाषा-अध्ययन

(क) वर्तनी सुधारिए
कीर्ती, करुड़, स्विकार, गृहण, आहूति, कालीख, शक्तीयाँ, प्रतीज्ञा।
उत्तर
(क) अशुद्ध वर्तनी शुद्ध वर्तनी
कीर्ती – कीर्ति
करुड़ – करुण
स्विकार – स्वीकार
गृहण – ग्रहण
आहूति – आहुति
कालीख – कालिख
शक्तीयाँ – शक्तियाँ
प्रतीज्ञा – प्रतिज्ञा।

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(ख) दिये गये वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए
(i) जिसे क्षमा न किया जा सके।
(ii) जो कुछ न करता हो।
(iii) जिसमें दया न हो।
(iv) जहाँ पहुँचना कठिन हो।
(v) उपकार को मानने वाला।
उत्तर
वाक्यांशों के लिए एक
शब्द वाक्यांश – एक शब्द
(i) जिसे क्षमा न किया जा सके। – अक्षम्य
(ii) जो कुछ न करता हो। – निठल्ला, निकम्मा
(ii) जिसमें दया न हो। – निर्दयी
(iv) जहाँ पहुँचना कठिन हो। – दुर्गम
(v) उपकार को मानने वाला। – कृतज्ञ।

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(घ) अपने मित्र को पत्र लिखिए जिसमें अपने प्रदेश की संपन्नता और संस्कृति के बारे में बताया गया हो।
उत्तर

मित्र के नाम पत्र

26 बंगलो रोड़
दिल्ली-110007
23-10-2008

प्रिय मित्र रवि,
सप्रेम नमस्ते!

तुम्हारा पत्र मिला। पढ़कर बड़ी प्रसन्नता हुई। पत्र में तुमने मेरे प्रदेश (दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी) की संपन्नता और संस्कृति के विषय में जानने की इच्छा व्यक्त की है, इससे मुझे और प्रसन्नता हुई। मित्र! तुम यह अच्छी तरह जानते हो कि मेरा प्रदेश दिल्ली है। इसे देश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यह इसलिए कि यह देश के अन्य महानगरों से बहुत अधिक सम्पन्न है। यहाँ सब कुछ है। मुख्य रूप से ऐतिहासिक महानगर होने के साथ-साथ यह आधुनिक महानगर है। लाल किला, जामा मस्जिद, कुतुब मीनार, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन आदि से इसकी ऐतिहासिक संपन्नता है, तो अनेक विश्वविद्यालयों, शिक्षा-विज्ञान के संस्थानों, बाजारों, पर्यटन स्थलों, धार्मिक स्थलों, यातायात की सभी प्रकार की सुविधाओं को यहाँ देखा जा सकता है और उनसे आनंद प्राप्त किया जा सकता है। परस्पर मेल-मिलाप की संस्कृति यहाँ के किसी कोने में देखी जा सकती है। अलग-अलग भाषाओं, बोलियों, तिथि-त्यौहारों, उत्सवों, खान-पान, पहनावे आदि की संस्कृति की सम्पन्नता यहाँ जितनी अधिक और जिस रूप में है, उतनी और कहीं नहीं है। यही मेरे प्रदेश दिल्ली का कमाल है। इसे देखकर किसी ने कहा है

‘दिल्ली है दिलवालों की, बाम्बे पैसेवालों की!’
माँ को चरण-स्पर्श रवि

तुम्हारा अभिन्न
दयाल

रवि
17-ए कमच्छा
वाराणसी

समर्पण योग्यता-विस्तार

(1) भारत भूमि सदा से वीरों और महापुरुषों की भूमि रही है। हमारे स्वर्णिम इतिहास में जिन-जिन महापुरुर्षों और वीर-वीरांगनाओं का योगदान रहा है उनके चित्र और जानकारी एकत्रित कीजिए।
(2) आज हम पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं। हमें अपने जीवन-मूल्यों का महत्त्व समझना है। इस विषय पर कक्षा में अपने साथियों से चर्चा कीजिए।
(3) आप पाश्चात्य संस्कृति के किन बिन्दुओं से असहमत हैं अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

समर्पण परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अकबर के दरबार में महाराणा प्रताप की कौन-सी बात चल रही थी?
उत्तर
अकबर के दरबार में महाराणा प्रताप की वीरता की बात चल रही थी। अकबर कह रहा था-“मैंने प्रताप-सा वीर, अपने जीवन में नहीं देखा। भारत के बड़े-बड़े राजाओं ने मेरी अधीनता स्वीकार कर ली, पर प्रताप ने मेरे सामने सिर नहीं झुकाया। उसकी वीरता सराहनीय है।

प्रश्न 2.
राजकवि ने अकबर से संधि-पत्र की सत्यता का पता लगाने का क्या कारण कहा?
उत्तर
राजकवि ने अकबर से कहा कि जहाँपनाह सिसौदिया कुल के मेवाड़ राजाओं ने मेवाड़ की रक्षा अपने प्राणों को देकर की है, उसे महाराणा प्रताप इस तरह नहीं खो देगा। इसलिए इस संधि-पत्र की सत्यता का पता लगाने की उसे आज्ञा दी जाए।

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प्रश्न 3.
लक्ष्मी ने वीरों की क्या विशेषता बतलायी है?
उत्तर
लक्ष्मी ने वीरों की यह विशेषता बतलायी है-‘वीर सुख-दुख दोनों में कर्त्तव्य का ध्यान रखते हैं। दुख में जो विचलित हो जाते हैं, वे वीर नहीं कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
कौन मनुष्य नहीं देवता होते हैं? उत्तर-जो परिस्थितियों को मोड़कर आगे बढ़ते हैं, वे मनुष्य नहीं देवता होते हैं। प्रश्न 5. भामाशाह ने महाराणा प्रताप को क्या सहयोग दिया?
उत्तर
भामाशाह ने महाराणा प्रताप को धन की एक थैली दी, जिससे पच्चीस हजार सैनिकों का खर्च बारह वर्ष तक चल सकता था।

समर्पण दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अकबर को संघि-पत्र भेजने पर अमर सिंह ने विरोध किया तो महाराणा प्रताप ने उससे क्या कहा?
उत्तर
महाराणा प्रताप ने अमर सिंह को समझाते हुए कहा “बेटा समय सब कुछ करा लेता है। तुम देख रहे हो, किस प्रकार हम सब वन में मारे-मारे फिर रहे हैं। तुम्हारी माँ, जो महलों में आराम से रहती थी, भीलनियों के साथ, इस जलजलाती धूप में, हम सबके लिए फल ढूँढ़ रही है, और दिनों का फेर कि सुबह से शाम तक कभी-कभी एक भी फल नहीं मिलता।”

प्रश्न 2.
महाराणा प्रताप ने राजकवि पृथ्वीराज से अपनी विवशता किन शब्दों में व्यक्त किया?
उत्तर
महाराणा प्रताप ने राजकवि पृथ्वीराज से अपनी विवशता निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया मोह में नहीं डूब रहा हूँ कवि। यदि मेरे पास साधन होते तो अकबर को दिखा देता कि प्रताप सिंह ने कितनी शक्ति है। असहाय होने के बाद भी, चार वर्ष से कोशिश कर रहा हूँ, पर कोई सहारा नहीं मिला। सब तरफ से निराश होकर मैंने संधि-पत्र लिखा था।

प्रश्न 3.
राजकवि पृथ्वीराज ने महाराणा प्रताप को किस प्रकार उत्साहित किया?
उत्तर
राजकवि पृथ्वीराज ने राणा प्रताप को इस प्रकार उत्साहित करते हुए कहा साहस से काम लो प्रताप! देखो, बाप्पा रावल और हंसपाल ने शक्ति न होते हुए भी, जीते-जी मेवाड़ की रक्षा की। अपने पितामह को देखो, शरीर में अस्सी घाव होने पर भी पानीपत के मैदान में बहादुरी से लड़े। झालामाना पर दृष्टि डालो, जिसने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। आज आपके संधि-पत्र को देखकर इन वीरों का हृदय स्वर्ग में रहा रहा होगा।

प्रश्न 4.
राजकवि पृथ्वीराज से महाराणा प्रताप ने क्या अपनी व्यथा प्रकट की?
उत्तर
राजकवि पृथ्वीराज ने महाराणा प्रताप ने अपनी निम्नलिखित व्यथा प्रकट की “कवि! तुमने मेरी स्थिति न सोची होगी। बच्चों की करुण-पुकार तुम्हें न सुनाई पड़ी होगी, नहीं तो तुम्हारा हदय भर आता, और तुम ऐसा न करते। मैंने अपने सुख के लिए संधि पत्र नहीं लिखा। पर इन सबके (रजनी की ओर संकेत कर) कष्ट मुझसे नहीं देखे गए। जब बच्चे रोटी के एक-एक टुकड़े को रोते हैं, तो मेरा धैर्य पिघलकर पानी-पानी हो जाता है। अब मैं और अधिक नहीं रह सकता कवि! तुमने ऐसा क्यों किया?

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प्रश्न 5.
‘समर्पण’ एकांकी का प्रतिपाय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
‘समर्पण’ एकांकी महान एकांकीकार डॉ. सुरेश शुक्ल-लिखित ऐतिहासिक एकांकी है। इसमें मुगल शासक अकबर और मेवाड़ केसरी महाराणा के बीच होने वाली संधि को आधार बनाकर महाराणा प्रताप और उनके परिवार की सहनशीलता, देशभक्ति और वीरता से संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। ये सभी तथ्य न केवल चौकाने वाले हैं, अपितु देश-भक्ति के सोए हुए भावों को जगाने वाले भी हैं। इस प्रकार एकांकीकार ने इस एकांकी के माध्यम से हमें यह संदेश देना चाहा है कि हम कितनी ही कठिन, दुखद और अपार परिस्थितियों में क्यों न घिरे रहें, हमें अपनी मातृभूमि के दुख और दुर्दशा को नहीं भूलना चाहिए। उसे हर प्रकार से सुखमय और संपन्न बनाने के लिए हमें अपने तन-मन, धन सब कुछ न्यौछावर कर देना चाहिए।

समर्पण लेखक का परिचय

प्रश्न
डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल का आधुनिक हिंदी एकांकीकारों में प्रमुख स्थान है। ऐतिहासिक एकांकी रचना के क्षेत्र में आप अधिक उल्लेखनीय हैं।

जीवन परिचय-डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल हिंदी के एक ऐसे महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं, जिन्होंने हिंदी गद्य-विधा के लिए अपना अद्भुत योगदान दिया है। खासतौर से आपने ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित एकांकी रचना के लिए विशेष प्रयास किया है। इस तरह से आपका दृष्टिकोण पूरी तरह से स्वस्थ और नया है। इस तरह आपने आधुनिक हिंदी एकांकी-नाटकों को एक ऐसी नई दिशा दी है, जिनमें मुख्य रूप से मानवीय मूल्यों और राष्ट्रीय चेतना के स्वर सुनाई देते हैं।

रचनाएँ-डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल के अब तक सोलह पूर्णाकार नाटक और चार एकांकी संग्रह, प्रकाशित हो चुके हैं; जो इस प्रकार हैं! ‘प्रत्यावर्तन’, ‘स्वप्न का सत्य’, ‘टूटते हए’ और ‘मेरे श्रेष्ठ रंग’

महत्त्व-डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल हिन्दी के जाने-माने सशक्त एकांकीकार हैं। उनका इस दृष्टि से दिया गया योगदान सर्वथा अपेक्षित रहा है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि उनकी रचनाएँ नयी पीढ़ी को मार्गदर्शन प्रदान करती रहेंगी।

समर्पण एकांकी का सारांश

प्रश्न
डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल लिखित एकांकी ‘समर्पण’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल लिखित एकांकी ‘समर्पण’ ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित एक प्रेरक और भाववर्द्धक एकांकी है। इस एकांकी का सारांश इस प्रकार है

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भीषण गर्मी से पूरा पर्वत-प्रदेश लू की चपेट में है। चारों फैले हुए सन्नाटे में महाराणा प्रताप एक वृक्ष की छाया में बैठे हुए हैं। उनकी दाढ़ी और बाल बढ़े हुए हैं। वे धोती-कुर्ता पहने हुए तलवार लटका रहे हैं। उनका बेटा-बेटी के भी पैर नंगे हैं। तीनों ही खिन्न हैं। बेटी रजनी को भूख से सिसकती देखकर महाप्रताप उसे सहलाते हुए कहते हैं कि वह रोये नहीं। कुंजर अकबर को संधि-पत्र देकर आ रहा होगा। इसे सुनकर पुत्र अमर सिंह चकित होकर प्रश्न करता है कि क्या वे सब अकबर का गुलाम बनकर रहेंगे? अगर ऐसा है तो उसे यह मंजूर नहीं है। महाप्रताप उसे समझाते हैं कि उसकी माँ किस तरह भीलनियों के साथ वन-वन फल ढूँढ़ती हुई परेशान हो जाती है। फिर भी कभी-कभी उसे एक भी फल नहीं मिलता है।

अमर सिंह महाप्रताप को उनकी वीरता की याद दिलाता है तो महाप्रताप अकबर की अधीनता को स्वीकारने की अपनी मजबूरी बतलाते हैं। उसी समय वहाँ पर कुंजर आता है। उसने महाप्रताप को बतलाया कि उनकी प्रशंसा अकबर कर रहा था तो मानसिंह ने विरोध किया। दूसरे राजपूत अर्थात् पृथ्वीराज कवि ने उसे समझाते हुए उनकी बड़ी प्रशंसा की। फिर अकबर ने जैसे संधि-पत्र को स्वीकार किया, वैसे ही पृथ्वीराज कवि ने कहा कि संधि-पत्र महाप्रताप का न होकर किसी षड्यंत्रकारी का है; क्योंकि वह महाराणा प्रताप को भलीभाँति जानता है कि वे किसी दशा में अधीनता नहीं स्वीकार करेंगे। जब मैंने (कुंजर ने कहा कि मैं महाप्रताप का सेवक हूँ। उन्होंने ही यह संधि-पत्र मुझसे भेजवाया है। इस पर राजकवि पृथ्वीराज ने संधि-पत्र की सत्यता का पता लगाने की आज्ञा अकबर से माँग ली। उसे देखकर मानसिंह राजकवि पर आरोप लगाया कि वे महाप्रताप का पक्ष ले रहे हैं। कुंजर ने कहा कि राजकवि आ रहे होंगे।

महाप्रताप को उनकी धर्मपत्नी महारानी लक्ष्मी ने समझाया कि वीर पुरुष दुख’ में भी अटल रहते हैं। उनसे ही भारत माँ को आशा है। एक पुत्री के आँसू से भारत के आँसू बढ़कर हैं। मैं अपनी पुत्री को भोजन दूंगी लेकिन मुझे अकबर की अधीनता मंजूर नहीं है। उसी समय राजकवि पृथ्वीराज का प्रवेश होता है।राजकवि ने महाप्रताप को समझाया कि वे भारत के मुकट हैं। संधि-पत्र तो उनकी वीरता को कलंकित कर रही है।

परिस्थितियाँ मनुष्य को विवश नहीं करती हैं, अपितु मनुष्य चाहे तो परिस्थितियों को विवश कर सकता है। परिस्थितियों को मोड़ने वाले ही अमर वीर पुरुष होते हैं। इसलिए वे मोह में न पड़े। इस अपने कर्तव्य को निभाने की आवश्यकता है। उन्हें अपने अमर वीरों की वीरतापूर्ण त्याग को याद करके साहस धारण करना चाहिए कि वीर पुरुष भटक सकते हैं, लेकिन अपयश नहीं ले सकते हैं। सभी भील उनकी सहायता अपने प्राणों की परवाह किए बिना करेंगे। उसी समय भामाशाह आकर महाप्रताप को पच्चीस हजार सैनिकों का खर्च बारह साल तक चलाने का धन भेंट करता है। महाप्रताप उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। भामाशाह ने कहा कि वह आजीवन मेवाड़ के राणा के साथ है। उससे उत्साहित होकर महाप्रताप प्रतिज्ञा करते हैं कि वे जब तक मेवाड़ को स्वतंत्र न करा लेंगे, तब तक दाढ़ी-बाल नहीं कटवायेंगे। मिट्टी के बर्तन में खायेंगे और जमीन पर सोयेंगे। सभी एक साथ बोलते हैं “हिन्दूपति महाप्रताप की जय”।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 15 वरदान मागूँगा नहीं

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 15 वरदान मागूँगा नहीं (शिवमंगल सिंह सुमन)

वरदान मागूँगा नहीं अभ्यास-प्रश्न

वरदान मागूँगा नहीं लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि किसी की दया का पात्र क्यों नहीं बनना चाहता है?
उत्तर
कवि किसी की दया का पात्र नहीं बनना चाहता है। यह इसलिए कि ‘वह आत्म-निर्भर है।

प्रश्न 2.
कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ वरदान क्यों नहीं माँगना चाहते हैं?
उत्तर
कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ वरदान नहीं माँगना चाहते हैं। यह इसलिए कि वे पूरी तरह से आत्मनिर्भर हैं। उन्हें अपने आत्मबल पर पूरा भरोसा है।

प्रश्न 3.
किस मार्ग से कवि कभी न हटने का संकल्प लेता है और क्यों?
उत्तर
कवि संघर्ष-पथ से कभी न हटने का संकल्प लेता है। यह इसलिए कि यही उसे स्वीकार है।

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प्रश्न 4.
अभिशाप मिलने के बाद भी कवि किस मार्ग से विचलित नहीं होगा?
उत्तर
अभिशाप मिलने के बाद भी कवि कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होगा?

वरदान मागूँगा नहीं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जीवन की प्रत्येक स्थिति में कवि ने क्या सन्देश दिया है?
उत्तर
जीवन की प्रत्येक स्थिति में कवि ने यह सन्देश दिया है कि यह जीवन महासंग्राम है। इसमें हुई हार एक विराम है। तिल-तिल मिटते हुए किसी की दया पर निर्भर न होकर अपने ऊपर ही निर्भर रहना चाहिए। जीवन-संघर्ष के दौरान सुख-सुविधाओं को भूल जाना चाहिए। संघर्ष-पथ पर जो कुछ मिले उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। कोई क्या कहता है, यह ध्यान नहीं देना चाहिए और अपने कर्तव्य-पथ पर बढ़ते ही जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
कवि अपने हृदय की वेदना को क्यों नहीं छोड़ना चाहता है?
उत्तर
कवि अपने हृदय की वेदना को नहीं छोड़ना चाहता है। यह इसलिए कि वह उससे ही संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ रहा है। उसके बिना उसके संघर्ष का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। यही कारण है कि वह उसे यों ही त्यागना नहीं चाहता है।

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प्रश्न 3.
जीवन को महासंग्रम कहने के पीछे कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जीवन को महासंग्राम कहने के पीछे कवि का बहत बड़ा आशय है। वह यह कि जीवन में एक-से-एक बढ़कर कठिनाइयाँ आती ही रहती हैं। महासंग्राम में भी एक-से-एक विकट और बढ़कर योद्धा सामने आते रहते हैं। जीवन में वही सफल होता है, जो सामने आने वाली हर कठिनाई का न केवल सामना करता है, अपितु उसे दूर करके आगे बढ़ जाता है। महा संग्राम में भी वही विजयी होता है, जो सामने आने वाले हर योद्धा का न केवल सामना करता है, अपितु उसे परास्त कर आगे निकल जाता है।

प्रश्न 4.
‘तिल-तिल मिटने’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
‘तिल-तिल मिटने’ से कवि का अभिप्राय है-निरन्तर अपनी पूरी शक्ति के साथ जीवन-संघर्ष करते रहना चाहिए। ऐसा करते हुए किसी की दया और सहायता पर निर्भर न होकर अपने ऊपर ही निर्भर रहना चाहिए। इस तरह अपने आत्मबल के साथ जीवन की हर कठिनाई का हल करते रहना चाहिए।

प्रश्न 5.
‘वरदान माँगूगा नहीं’ पाठ से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर
श्री शिव मंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता वरदान माँगूगा नहीं। एक न केवल प्रेरणादायक कविता है, अपितु शिक्षाप्रद भी है। इस कविता के माध्यम से कवि ने हमें यह शिक्षा देने का प्रयास किया है कि स्वाभिमानपूर्वक जीवन जीना चाहिए। चूँकि जीवन महायुद्ध के समान है इसलिए उसमें विजयी होने के लिए हममें आत्मनिर्भरता और आत्मबल पूरी तरह से होना चाहिए। किसी की दया-सहायता की अपेक्षा-आशा न करके अपने-आप पर पूरा भरोसा रखते हुए हरेक परिस्थिति का डटकर सामना करते रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

क. यह हार एक विराम है
जीवन महा संग्राम है ।
तिल-तिल मिलूंगा, पर दया की भीख मैं
लूँगा नहीं, वरदान माँगूंगा नहीं

ख. क्या हार में
क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत में
संघर्ष पद पर जो मिले
यह भी सही वह भी सही
वरदान माँगूंगा नहीं।
उत्तर
(क) यह जीवन महायुद्ध है, अर्थात् यह जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। इसमें हार जाना एक बड़ी रुकावट है। अर्थात संघर्ष करते हुए हिम्मत छोड़ देना बहुत बड़ी हानि है। इसलिए मैं इस जीवन रूपी महायुद्ध में भले ही एक-एक करके मिट जाऊँगा, लेकिन किसी के सामने अपना हाथ फैलाकर दया अर्थात् सहायता की कोई भीख नहीं माँगूंगा। यह मेरा दृढ़ सकंल्प है कि मैं किसी से कछ भी नहीं प्राप्त करने की भावना से यह जीवन का महायुद्ध लगा।

(ख) जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेना ही वह अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य समझता और मानता है। उसमें होने वाली हार या जीत को नहीं। दूसरे शब्दों में वह जीवन-रूपी महायुद्ध में होने वाली हार या जीत उसकी वीरता को प्रभावित नहीं कर सकती है। इस प्रकार वह जीवन रूपी महायुद्ध के और किसी परिणाम या प्रभाव से कुछ भयभीत नहीं है। वह तो उसे ही सब कुछ सही, अच्छा मानता और समझता
है जो उसे अपने संघर्ष के रास्ते पर बढ़ते हुए प्राप्त हो जाता है। इसलिए वह किसी पर निर्भर होकर अपने जीवन-पथ पर बढ़ना नहीं चाहता है, अपितु अपने आत्मबल से दृढ़ संकल्पों से आगे बढ़ना चाहता है।

वरदान मागूँगा नहीं भाषा-अध्ययन/काव्य-सौन्दर्य

प्रश्न 1.
तिल-तिल कर मिटना अर्वत थोड़ा-थोड़ा करके नष्ट होना। यह एक मुहावरा है पाँच मुहावरे खोजें और वाक्य में प्रयोग करें।
उत्तर
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प्रश्न 2.
संघर्ष-पथ तथा कर्त्तव्य-पच में योजक चिह (-) का प्रयोग हुआ है ऐसे अन्य शब्द भी लिखिये।
उत्तर
महा-संग्राम, तिल-तिल

प्रश्न 3.
तिल-तिल तथा स्मृति-सुखद में अनुप्रास अलंकार है, ऐसे अन्य शब्द भी खोजें।
उत्तर
महा-संग्राम, दया की भीख, तिल-तिल, संघर्ष-पथ और कर्तव्य-पथ ।

वरदान मागूँगा नहीं योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1. सुमन जी अपने गीतों के लिए भी साहित्य जगत में चर्चित रहे हैं। पुस्तकालय की सहायता से उनके गीतों को संकलित करें।
प्रश्न 2. मध्यप्रदेश के ऐसे कवियों की सूची तैयार कीजिए जिन्होंने जीवन में स्वाभिमान एवं संघर्ष के साथ जीवन को जीने की प्रेरणा दी।
प्रश्न 3. डॉ. शिवमंगल सिंह सुमनजी के जीवन पर आधारित घटनाओं पर जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

वरदान मागूँगा नहीं परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘हार’ को कवि ने विराम क्यों कहा है?
उत्तर
‘हार’ को कवि ने विराम कहा है। यह इसलिए कि हार से जीवन-संग्राम में विजय प्राप्त करने में रुकावट और कठिनाई आ जाती है।

प्रश्न 2.
कवि क्या नहीं चाहता है?
उत्तर
कवि स्मृति-सुखद प्रहरों के लिए संसार की सम्पत्ति नहीं चाहता है।

प्रश्न 3.
‘यह भी सही, वह भी सही’ कहने से कवि का किस ओर संकेत है?
उत्तर
‘यह भी सही वह भी सही’ कहने से कवि का सुख-दुख की ओर संकेत है।

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प्रश्न 4.
कर्त्तव्य-पथ पर डटे रहने के लिए कवि को क्या-क्या स्वीकार है?
उत्तर
कर्त्तव्य-पथ पर डटे रहने के लिए कवि को किसी के द्वारा दिये जाने वाले कष्ट, अभिशाप और सब कुछ स्वीकार है।

प्रश्न 5.
कवि किस-किस पथ पर चलकर जीवन का महासंग्राम जीतना चाहता है?
उत्तर
कवि संघर्ष-पथ और कर्तव्य-पथ पर चलकर जीवन का महासंग्राम जीतना चाहता है।

वरदान मागूँगा नहीं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ कविता में किन-किन भावों को व्यक्त किया है?
उत्तर
कविवर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने ‘वरदान माँगँगा नहीं’ कविता में अपने जीवन-संघर्ष पर चलने के लिए अनेक प्रकार के भावों को व्यक्त किया है। उनके द्वारा व्यक्त भाव उनके स्वाभिमान को प्रमाणित करते हैं। वे दृढ़ निश्चय, आत्मनिर्भर, आत्मबल, आत्मत्याग, व्यर्थ की बातों को भूलकर आत्मनिष्ठा, निश्चिन्त और अटूट विश्वास जैसे भावों को व्यक्त किए हैं।

प्रश्न 2.
कवि किससे थोड़ा भी भयभीत नहीं है और क्यों?
उत्तर
कवि जीवन के महासंग्राम में मिलने वाली हार से तनिक भी भयभीत नहीं है। इसके दो कारण हैं-पहला यह कि उसे यह अच्छी तरह ज्ञात है कि जीवन के महासंग्राम में भी और महासंग्रामों की तरह जीत मिल सकती है, तो हार भी। जब हार निश्चित नहीं है, तो फिर भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। दूसरा यह कि वह जीवन के महासंग्राम में अपनी भागीदारी अपना कर्तव्य समझकर करने जा रहा है। इससे वह अपने कर्तव्य-पथ पर बढ़ना ही अपना एकमात्र लक्ष्य समझ रहा है न कि उसके अच्छे-बुरे परिणामों को। इस दृष्टि से भी भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 3.
‘वरदान माँगूंगा नहीं’ कविता का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
वरदान मॉगूंगा नहीं कविता कविवर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की एक प्रेरणादायक कविता है। इस कविता में कवि ने स्वाभिमान-पूर्वक जीवन जीने का संदेश दिया है। इसी के साथ ही कवि ने जीवन संग्राम का सामना करने की प्रेरणा दी है। इस विषय में किसी की दया पर निर्भर होने के स्थान पर अपने आत्मबल से जीवन-पथ पर बढ़ने के दृढ़ संकल्प को इस कविता में देने का सराहनीय प्रयास है। कवि का यह मानना है कि व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थिति में कठिनाइयों से विचलित हुए बिना जीवन-पथ पर चलते जाना चाहिए।

वरदान मागूँगा नहीं कवि-परिचय

प्रश्न
श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन परिचय-शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 1916 में उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव जिले के झगरपुर गाँव में हुआ था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही सम्पन्न हुई। इसके पश्चात् आपने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में प्रवेश लिया और बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् काशी विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया और बाद में यहीं से पी-एच.डी. और डी. लिट की उपाधि प्राप्त की। आपने ग्वालियर और होल्कर कॉलेज, इन्दौर में अध्यापन-कार्य भी किया। इसी बीच आपकी नियुक्ति नेपाल स्थित भारतीय दूतावास में सांस्कृतिक सहायक के रूप में हो गई। 1961 ई. में माधव कॉलेज, उज्जैन के प्राचार्य पद पर नियुक्त हुए तथा कुछ वर्षों बाद विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति का कार्यभार ग्रहण किया।

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साहित्यिक परिचय-समन जी ने छात्र जीवन से ही कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था और छात्रों में लोकप्रियता प्राप्त की। वे मूल रूप से प्रगतिशील कवि हैं और वर्गहीन समाज की कामना करते हैं। पूँजीवाद के प्रति उनमें तीव्र आक्रोश और शोषित वर्ग के प्रति गम्भीर संवेदना है। उनकी कविताओं में एक ओर राष्ट्रीयता और नवजागरण के स्वर हैं तो दूसरी ओर इनके गीतों में प्रेम और प्रकृति की सरस व्यंजना है। इनकी छोटी कविताओं में और गीतों में अधिक व्यंग्यात्मकता, सरसता और चित्रात्मकता है और लम्बी कविताएँ वर्णनात्मक हैं।

रचनाएँ-हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, मिट्टी की बारात, विंध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरी तथा विश्वास बढ़ता ही गया समन जी की प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।

भाषा-सुमन जी की भाषा ओजपूर्ण, प्रवाहमयी और स्वाभाविक है। आपकी भाषा ने उनके काव्य को संगीतमय बनाया है। मुख्य रूप से उन्होंने गीत शैली को अपनाया है। प्रायः उनकी कविताएँ ध्वनि-माधुर्य से ओत-प्रोत हैं। सुमन जी ने कुछ छन्दमुक्त कविताओं की भी रचना की है।

वरदान मागूँगा नहीं कविता का सारांश

प्रश्न
श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ एक स्वाभिमानपूर्ण कविता है। इस कविता का सारांश इस प्रकार है
कवि का यह मानना है जीवन एक युद्ध है और इसमें हुई हार एक ठहराव है। इसलिए मैं यह संकल्प कर रहा हूँ कि मैं मिट-मिट कर भी किसी के सामने दया के लिए हाथ नहीं फैलाऊँगा और न लूँगा। चाहे मैं जीवन-युद्ध जीत जाऊँ, या हार जाऊँ, संघर्ष करते हुए तनिक भयभीत नहीं होऊँगा। इस दौरान मुझे जो कुछ भी मिलेगा, उसे सही मानकर स्वीकार कर लूँगा। मुझे कोई भले ही छोटा समझे, समझोता रहे, मैं अपने हदय की पीड़ा को यों ही नहीं त्यागूंगा! कोई महान बनने की बात करता है, तो करता रहे, मुझे उसकी कुछ भी परवाह नहीं। चाहे मुझे कोई कुछ भी समझे, मैं अपने कर्त्तव्य-पथ से कभी-पीछे नहीं हटूंगा। इस तरह मैं किसी की दया पर नहीं निर्भर रहूँगा।

वरदान मागूँगा नहीं संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

‘पद्यांश की सप्रंसग व्याख्या, काव्य-सौन्दर्य व विषय-वस्त से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर

1. यह हार एक विराम है,
जीवन महा-संग्राम है,
तिल-तिल मिलूंगा, पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं,
वरदान माँगूंगा नहीं।

शब्दार्थ-विराम-रुकावट, ठहराव । महा-संग्राम-बहुत बड़ा युद्ध (संघर्ष)। तिल-तिल मिटूंगा-एक-एक कर समाप्त हो जाऊँगा। दया की भीख-सहायता, सहारा। वरदान

माँगूंगा नहीं-किसी की दया पर निर्भर नहीं रहूँगा।

प्रसंग-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती हिन्दी सामान्य’ में संकलित व श्री शिव मंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ से है। इसमें कवि ने अपनी दृढ़ता को बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-यह जीवन महायुद्ध है, अर्थात् यह जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। इसमें हार जाना एक बड़ी रुकावट है। अर्थात संघर्ष करते हुए हिम्मत छोड़ देना बहुत बड़ी हानि है। इसलिए मैं इस जीवन रूपी महायुद्ध में भले ही एक-एक करके मिट जाऊँगा, लेकिन किसी के सामने अपना हाथ फैलाकर दया अर्थात् सहायता की कोई भीख नहीं माँगूंगा। यह मेरा दृढ़ सकंल्प है कि मैं किसी से कछ भी नहीं प्राप्त करने की भावना से यह जीवन का महायुद्ध लगा।

विशेष-

  1.  कवि का कथन दृढभावों से लबालब है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. जीवन को महासंग्राम के रूप में चित्रित करने के कारण इसमें रूपक अलंकार है।
  4. वीर रस का प्रवाह है।

1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य स्वरूप ओजपूर्ण है। भावों को काव्य के स्वरूपों में मुख्य रूप से रस, छन्द, अलंकार और प्रतीक से सँवारने का प्रयास किया गया है। इसमें रूपक अलंकार और मुक्त छन्द लाए गए हैं, जिन्हें वीर रस से प्रवाहित करने का आकर्षक प्रयास किया गया है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य ओजस्वी शब्दों से बनकर प्रस्तुत हुआ है। जीवन महायुद्ध में विजय श्री हासिल करने की आत्मनिर्भरता का दृढ़ संकल्प काबिलेतारीफ है। इससे यह पद्यांश भावों को प्रेरित करता हुआ हदयस्पर्शी बन गया है।

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2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(ii) कवि किस प्रकार का जीवन जीना चाहता है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है आत्मनिर्भर होकर कठिनाइयों का दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए जीवन जीना चाहिए।
(ii) कवि स्वाभिमानपूर्वक जीवन जीना चाहता है।

2. स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
यह जान लो में विश्व की सम्पत्ति चाहूँगा नहीं,
बरदान माँगूंगा नहीं।

शब्दार्थ-स्मृति-बीते हुए। सुखद-सुख देने वाले । प्रहरों-क्षणों, समय । विश्व-संसार। सम्पत्ति-सुख-सुविधा।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने अपने जीवन महायुद्ध में विजय श्री प्राप्त करने से पहले दृढ़ संकल्प करते हुए कह रहा है कि

व्याख्या-यह सभी को अच्छी तरह से ज्ञात होना चाहिए कि जीवन एक महायुद्ध ही है। सभी वीर पुरुष इसमें अपने-अपने ढंग से भाग लेते हैं। मैं भी इसमें अपने ही ढंग से भाग लेने जा रहा हूँ। मेरा ढंग यह है कि मैं इसमें भाग लेने से पहले अपने बीती हुई सभी सुख-सुविधाओं को भूल जाऊँगा। यह भी कि मैं यह महायुद्ध किसी सुखद स्वरूप को मन में रखकर नहीं करूंगा। यह भी मैं स्पष्ट कर देना समुचित समझ रहा हूँ कि मैं संसार की कोई भी सुविधा नहीं चाहूँगा। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से होकर किसी की सहायता नहीं चाहूँगा। किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहूँगा, अपितु आत्मनिर्भर होकर ही मैं इस महायुद्ध में भाग लूँगा।

विशेष-

  1. भाषा की शब्दावली सरल है।
  2. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  3. वीर रस का संचार है।
  4. यह पद्यांश प्रेरक रूप में है।

1. पयांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i)उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य वीर रस से प्रवाहित अनुप्रास अलंकार (स्मृति सुखद) से मण्डित है। मुक्त छन्द से प्रस्तुत हुए भावों की स्वच्छन्दता सराहनीय है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य में दृढ़ता, स्पष्टता, सहजता, प्रवाहमयता और रोचकता जैसी असाधारण विशेषताएँ हैं। इससे इस पद्यांश का भाव-सौन्दर्य प्रभावशाली रूप में है, ऐसा निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) ‘सुखद प्रहर’ से क्या तात्पर्य है?
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि का कौन-सा भाव व्यक्त हो रहा है?
उत्तर
(i) ‘सुखद प्रहर’ से तात्पर्य है-संघर्षों और कठिनाइयों का पलायन कर सुविधाओं को अपनाना।
(i) उपर्युक्त पद्यांश में कवि का निःस्वार्थ भाव व्यक्त हुआ है।

3. क्या हार में क्या जीत में,
किंचित नहीं भयभीत में,
संघर्ष-पथ पर जो मिले,
यह भी सही, वह भी सही,
वरदान माँगूगा नहीं।

शब्दार्थ-किंचित-कुछ। भयभीत-डरा हुआ। संघर्ष-पथ पर-कठिनाइयों का सामना करते हुए बढ़ते जाने पर।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेने को ही मुख्य जीबनोद्देश्य मानते हुए कहा है कि

व्याख्या-जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेना ही वह अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य समझता और मानता है। उसमें होने वाली हार या जीत को नहीं। दूसरे शब्दों में वह जीवन-रूपी महायुद्ध में होने वाली हार या जीत उसकी वीरता को प्रभावित नहीं कर सकती है। इस प्रकार वह जीवन रूपी महायुद्ध के और किसी परिणाम या प्रभाव से कुछ भयभीत नहीं है। वह तो उसे ही सब कुछ सही, अच्छा मानता और समझता
है जो उसे अपने संघर्ष के रास्ते पर बढ़ते हुए प्राप्त हो जाता है। इसलिए वह किसी पर निर्भर होकर अपने जीवन-पथ पर बढ़ना नहीं चाहता है, अपितु अपने आत्मबल से दृढ़ संकल्पों से आगे बढ़ना चाहता है।

विशेष-

  1.  तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. सम्पूर्ण कथन सुस्पष्ट है।
  4. संघर्ष-पथ में रूपक अलंकार है।
  5. वीर रस का प्रवाह है।

1. पयांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य अधिक उत्साहवर्द्धक है। इसके लिए किया गया वीर रस का प्रयोग आकर्षक रूप में है। भावात्मक शैली-विधान और मुक्तक छन्द के द्वारा बिम्बों और प्रतीकों की योजना इस पद्यांश को और सुन्दर बना रही है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश की भाव-योजना ओजस्वी और प्रभावशाली कही जा सकती है। जीवन-संघर्ष करने की दृढ़ आत्म-निर्भरता की भावाधारा देखते ही बनती है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) ‘किंचित भयभीत नहीं मैं’ का क्या तात्पर्य है?
(ii) कवि के संघर्ष-पथ की क्या विशेषता है?
उत्तर
(i) किंचित भयभीत नहीं ‘मैं’ का तात्पर्य है-कवि अपने संघर्ष के दौरान आने वाली कठिनाइयों के प्रभाव को बिल्कुल ही नहीं मानता है। वह उससे न तो शंकित है और न भयभीत ही।
(ii) कवि के संघर्ष-पथ की यह विशेषता है कि उस दौरान उसको हार मिले या जीत, सुख मिले या दुख वह इन सबको एक समान मानता है। वह इन सभी को गलत नहीं, अपितु ठीक ही मानता है।

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4. लपुता न अब मेरी छुओ,
तुम हो महान बने रहो,
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्व त्यागूंगा नहीं,
वरदान माँगूगा नहीं।

शब्दार्थ-लपुता-छोटापन। छुआ-स्पर्श करो। वेदना-पीड़ा।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने स्वतन्त्र व आत्मनिर्भर होकर जीवन-संघर्ष करने का दृढ़ संकल्प व्यक्त करते हुए कहा है कि

व्याख्या-वह जीवन संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ते हुए किसी की तनिक भी परवाह नहीं करेगा। अगर कोई उसकी कमियों और दोषों को उछालना चाहेगा तब भी वह उसकी ओर ध्यान नहीं देगा। अगर उससे कोई महान बनने की बात कहेगा तब भी वह उसकी ओर ध्यान नहीं देगा। उसकी वह यह कहकर उपेक्षा कर देगा कि वह महान है तो महान बना रहे। उसको कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह तो अपने जीवन के संघर्ष-पथ पर बढ़ता चला जायेगा। उसके हृदय में दुख-पीड़ा भरी हुई है, उसे वह यों ही नहीं त्याग देगा। वह उन्हें किसी-न-किसी प्रकार सार्थक करके ही त्यागेगा। इस प्रकार वह अपने जीवन-संघर्ष पथ की कठिनाइयों से डरकर-घबड़ाकर किसी की कोई भी सहायता की अपेक्षा-आशा नहीं करेगा। वह तो आत्म-निर्भर होकर ही आगे बढ़ता चला जायेगा।

विशेष-

  1. भाषा ठोस है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. वीर रस का प्रवाह है।
  4. यह अंश प्रेरक रूप में है।

1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य आकर्षक रूप में है। वीर रस के संचार-प्रवाह से मुक्तक छन्द की पुष्टि हुई है। इसके लिए आए हुए बिम्ब-प्रतीक की सहजता सराहनीय है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य सरल और सुस्पष्ट भावों का है। आत्म-संघर्षों के लिए प्रस्तुत की गई आत्म-निर्भरता की भाव-योजना न केवल आकर्षक है, अपितु प्रेरक भी है।

2. पयांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पयांश का मुख्य भाव लिखिए।
(11) प्रस्तुत पयांश में कवि का कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव है-संघर्ष के पथ पर बिना किसी की परवाह करते हुए बढ़ते जाना।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि का आत्म-निर्भरता के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में आत्मबल को लेकर बढ़ते जाने का भाव व्यक्त हुआ है।

5. चाहे हृदय का ताप दो,
चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किन्तु भागूंगा नहीं,
वरदान माँगूंगा नहीं।

शब्दार्च-ताप-दुख। अभिशाप-श्राप, शाप।

प्रसंग-पूर्ववत्। इसमें कवि ने किसी प्रकार के दख-दर्द की परवाह किए बिना जीवन रूपी महायुद्ध में आत्मनिर्भर होने के दृढ़-संकल्प को व्यक्त किया है। इस विषय में कवि का कहना है कि.

व्याख्या-उसका यह दृढ़ संकल्प है कि उसे जीवन-पथ पर संघर्ष करते समय चाहे उसे कोई हृदय को चोट पहुँचाने वाला कष्ट दे अथवा उसे कोई शाप दे या उसे कोई और ही तरह का दुख पहुँचाये, वह तनिक भी अपने दृढ-संकल्प स्वरूप कर्तव्य-पथ से पीछे नहीं हटेगा, अपितु उस पर आगे ही बढ़ता जायेगा। इसके लिए वह अपनी आत्मनिर्भरता का परित्याग नहीं करेगा। वह अपने आत्मबल का एकमात्र आधार लेकर बढ़ता चला जायेगा। इस प्रकार किसी की दया-सहायता की तनिक भी आशा-इच्छा नहीं करेगा।

विशेष-

  1. भाषा ओजस्वी और प्रवाहमयी है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. कर्त्तव्य-पथ में रूपक अलंकार है।
  4. तुकान्त शब्दावली है।
  5. वीर रस का प्रवाह.है।

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1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य को लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश के भाव-सौन्दर्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश की भाषा-शैली भावानुसार है। वीर रस के संचार से तुकान्त शब्दावली को पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार (चाहे-चाहे) और रूपक अलंकार (कर्त्तव्य-पथ) से चमकाने का प्रयास मन को छू लेता है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-विधान गतिशील भावों से पुष्ट है। कुछ कर गुजरने के लिए स्वाभिमानपूर्वक किसी की परवाह न करने की भाव-योजना सचमुच में अद्भुत है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पयांश का मुख्य भाव क्या है?
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि की कौन-सी विशेषता प्रकट हुई है? ।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है-कठिन और विपरीत परिस्थिति में भी लक्ष्य-पथ पद दृढ़तापूर्वक बढ़ते जाना।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि की दृढ़ता और आत्मनिर्भरता की विशेषता प्रकट

MP Board Class 9th Hindi Solutions

MP Board Class 10th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास

MP Board Class 10th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास

हिन्दी काव्य साहित्य का प्रारम्भ कब हुआ ? इसके विषय में विभिन्न विद्वानों के मतभेद हैं। कुछ विद्वान 800 ई.के आस-पास, तो अन्य लोग 1000 ई. के निकट हिन्दी काव्य साहित्य का प्रारम्भ स्वीकार करते हैं । अतः इसके विषय में निश्चित नहीं कहा जा सकता है। अतः विगत 1000 वर्षों से पूर्व के हिन्दी साहित्य को सरलतापूर्वक अध्ययन करने के उद्देश्य से उसे अनेक विद्वानों ने काल खण्डों में विभाजित किया है । इसे हिन्दी साहित्य का काल विभाजन कहते हैं। काल विभाजन का श्रेष्ठतम विभाजन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रन्थ हिन्दी साहित्य में किया है,वह इस प्रकार है-

  1. वीरगाथा काल (आदिकाल) – (सन् 993-1318 ई)
  2. भक्ति काल (पूर्व मध्यकाल) – (सन् 1318-1643 ई)
  3. रीति काल (उत्तर मध्य काल) – (सन् 1643-1843 ई)
  4. गद्य काल (आधुनिक काल) – (सन् 1843-अब तक)

MP Board Class 10th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास img-1

आधुनिक काल या नई कविता-

  1. भारतेन्दु युग – (1843 ई.-1900 ई)
  2. द्विवेदी युग – (1900 ई.-1920 ई)
  3. छायावादी युग – (1920 ई.-1936 ई)
  4. प्रगतिवाद – (1936 ई.-1942 ई)
  5. प्रयोगवाद एवं नई कविता – (सन् 1942 ई.- अब तक)

रीति काल का संक्षिप्त परिचय

भक्ति काल में सूरदास के द्वारा कृष्ण भक्ति व तुलसीदास द्वारा रामभक्ति का उल्लेख किया गया है।

इसके उपरान्त एक नवीन काव्यधारा का जन्म हुआ। इसे रीति काल अथवा श्रृंगार काल या कला काल के नाम से पुकारा जाता है । रीति काव्य वह काव्य है, जो लक्षण के आधार पर ध्यान में रखकर रचा गया है अर्थात् बँधी हुई परम्परा में काव्य रचना की गई है । रीति काल में मुक्तक काव्य की परम्परा प्रधान रही है । इस काल में कवियों ने साहित्यिक प्रवृत्ति को प्रधानता दी है,क्योंकि भूषण जैसे वीर रस के कवि ने भी रीति ग्रन्थ की रचना की। रीति काल में कवित्त, सवैया, दोहा तथा कुण्डलियाँ छन्दों की रचना हुईं।

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रहीम, वृन्द, गिरिधर की नीतिपरक रचनाएँ बहुत प्रसिद्ध रही हैं। रीति काल में तीन प्रकार की रचनाएँ हुईं-

  1. रीतिसिद्ध,
  2. रीतिबद्ध,
  3. रीतिमुक्त

रीतिसिद्ध और रीतिबद्ध कवियों ने प्रायः राजाश्रय प्राप्त किया। अतः इन्होंने आश्रयदाताओं की प्रशंसा करके पुरस्कार प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा रखी है।

रीतिमुक्त कवियों ने स्वतन्त्र भाव से रचना की है। भक्ति काल को जिस प्रकार से स्वर्ण युग कहा गया, उसी प्रकार से रीति काल को कला काल और श्रृंगार काल कहकर पुकारा गया।

रीतिकालीन प्रमुख कवि और रचनाएँ इस प्रकार हैं-
प्रमुख कवि – प्रमुख रचनाएँ

  1. केशवदास – कवि प्रिया,रामचन्द्रिका, रसिक प्रिया,रतन बावनी आदि
  2. देव – रस विलास,रस रहस्य, प्रेम तरंग, काव्य रसायन
  3. भूषण – शिवा बावनी,छत्रसाल दशक, शिवराज भूषण
  4. बिहारी – ‘बिहारी सतसई’
  5. घनानन्द – सुजान रसखान, विरह लीला, पद्मावत
  6. आलम – आलम केलि
  7. ठाकुर – ठाकुर ठसक,ठाकुर शतक
  8. चिंतामणि – काव्य विवेक, श्रृंगार मंजरी
  9. मतिराम – मतिराम,माधुरी,रसराज

आधुनिक काल का संक्षिप्त परिचय
MP Board Class 10th Special Hindi पद्य साहित्य का विकास img-2
रीति काल के पश्चात् काव्य जगत में एक नवीन काव्यधारा का जन्म हुआ जिसे छायावाद के नाम से पुकारा जाता है।

छायावादी कवियों ने जीवन की विभिन्न समस्याओं पर प्रकाश डाला। प्रेम एवं मानवतावाद की भावना का काव्य के माध्यम से प्रचार एवं प्रसार किया।

छायावाद
छायावादी कवियों ने प्रकृति प्रेमी होने के कारण प्रकृति का मानवीकरण किया। नारी के महिमामय स्वरूप का बखान किया। इस युग में गाँधी व रवीन्द्रनाथ टैगोर के दर्शनों का व्यापक प्रभाव है।
छायावादी कवियों में जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त और महादेवी वर्मा का प्रमुख स्थान है।

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प्रगतिवाद
छायावाद के उपरान्त प्रगतिवादी नवीन विचारधारा का जन्म हुआ। प्रगतिवादी कवि कॉर्ल मार्क्स से प्रभावित थे। अतः इन्होंने ‘कला को कला के लिए’ न मानकर ‘कला जीवन के लिए’ का सिद्धान्त अपनाया।

प्रगतिवादी युग का समय 1936 से 1942 तक माना गया है। इस युग के प्रमुख कवि-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, निराला, दिनकर,शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ और भगवतीचरण वर्मा,नागार्जुन,केदारनाथ अग्रवाल आदि हैं।

प्रयोगवाद
प्रगतिवाद के उपरान्त सन् 1943 ई. में अज्ञेय के ‘तार सप्तक’ के प्रकाशन के उपरान्त प्रयोगवाद नाम की नई काव्य धारा का जन्म हुआ।

प्रमुख कवि-अज्ञेय, धर्मवीर भारती।

नई कविता
इन कवियों ने नये प्रतीकों,नये उपमानों एवं नये बिम्बों का प्रयोग कर काव्य परम्परा की पुरानी रीतियों से पृथक् रचना की, लेकिन इस युग की कविता न होकर अकविता हो गयी है।
सन् 1950 के बाद नई कविता का शुभारम्भ हुआ। यह कविता किसी वाद या परम्परा में बँधकर नहीं चली। इस कविता में अति यथार्थतापूर्ण वर्णन है लेकिन इस कविता से निराशा ही मिली है।

प्रमुख कवि-
भवानी प्रसाद मिश्र,गिरिजाकुमार माथुर,जगदीश गुप्त।

प्रश्नोत्तर

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सी कृति रीतिकाल में लिखी गयी है?
(क) पृथ्वीराज रासो,
(ख) विनय पत्रिका,
(ग) बिहारी सतसई,
(घ) साकेत।
उत्तर-
(ग) बिहारी सतसई,

2. महाकवि भूषण की रचना है
(क) रेणुका,
(ख) चिदम्बरा,
(ग) दीप शिखा,
(घ) छत्रसाल दशक।
उत्तर-
(घ) छत्रसाल दशक।

3. रीतिमुक्त कवि कहे जाते हैं-
(क) बिहारी,
(ख) देव,
(ग) केशव,
(घ) घनानन्द।
उत्तर-
(घ) घनानन्द।

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4. रीतिकाल के कवियों में प्रधानता है
(क) सखा भाव की भक्ति प्रधानता,
(ख) समन्वयकारी भावना,
(ग) भक्ति की प्रधानता,
(घ) नारी सौन्दर्य का विलासितापूर्ण वर्णन।
उत्तर-
(घ) नारी सौन्दर्य का विलासितापूर्ण वर्णन।

5. निम्नलिखित में से कौन-सा कवि छायावादी नहीं है?
(क) जयशंकर प्रसाद,
(ख) सुमित्रानन्दन पन्त,
(ग) मैथिलीशरण गुप्त,
(घ) महादेवी वर्मा।
उत्तर-
(ग) मैथिलीशरण गुप्त,

6. प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है [2009]
(क) रामधारी सिंह ‘दिनकर’,
(ख) सुमित्रानंदन पन्त,
(ग) जयशंकर प्रसाद,
(घ) महादेवी वर्मा।
उत्तर-
(ख) सुमित्रानंदन पन्त,

7. कौन-सा अलंकार छायावाद की देन है?
(क) अनुप्रास,
(ख) उत्प्रेक्षा,
(ग) सन्देह,
(घ) मानवीकरण।
उत्तर-
(घ) मानवीकरण।

8. प्रगतिवादी कवि हैं
(क) निराला,
(ख) महादेवी वर्मा,
(ग) अज्ञेय,
(घ) प्रसाद।
उत्तर-
(क) निराला,

9. प्रयोगवाद का जनक कहा जाता है [2018]
(क) नरेश मेहता,
(ख) त्रिलोचन,
(ग) अज्ञेय,
(घ) भवानी प्रसाद मिश्र।
उत्तर-
(ग) अज्ञेय,

10. नई कविता का युग सन् से है [2010]
(क) 1936,
(ख) 1850,
(ग) 1943,
(घ) 1950.
उत्तर-
(घ) 1950.

11. छायावादी युग के प्रर्वतक हैं [2012]
(क) जयशंकर प्रसाद,
(ख) श्रीधर पाठक,
(ग) सुमित्रानन्दन पंत,
(घ) रामचन्द्र शुक्ल।
उत्तर-
(क) जयशंकर प्रसाद,

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. पदमाकर …….. के प्रमुख कवियों में से है। [2014, 17]
2. तुलसीदास जी ………. के कवि हैं। [2010]
3. कवि सेनापति ………… के कवि माने गये हैं। [2011]
4. महादेवी वर्मा को ……….. कहा जाता है।
5. पन्त जी के काव्य में ……… प्रकृति के दर्शन होते हैं।
6. छायावादी युग में प्रसाद के काव्य में ……… का उद्घोष दिखायी देता है।
7. तार सप्तक के प्रवर्तक ………. कवि हैं।
8. प्रयोगवाद का प्रारम्भ ……… माना जाता है।
9. नई कविता के प्रवर्तक ……… कवि हैं।
10. आधुनिक हिन्दी कविता का प्रारम्भ संवत् ……… से माना जाता है। [2016]
11. आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता ………. हैं। [2018]
उत्तर-
1. भक्तिकाल,
2. रामभक्ति शाखा,
3. रीतिकाल,
4. आधुनिक मीरा,
5. मानवतावादी भावना,
6. राष्ट्र प्रेम,
7. ‘अज्ञेय’,
8. 1943 ई. से,
9. डॉ. जगदीश गुप्त,
10. 1900,
11. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।

सत्य/असत्य

1. रीतिकालीन कवियों ने शृंगार रस का सुन्दर वर्णन किया है।
2. रीतिकाल के कवियों ने निर्गुण भक्ति पर बल दिया है। [2018]
3. गिरिधर कवि की कुण्डलियाँ नीतिपरक हैं।
4. छायावादी कविता के पतन का कारण विदेशी शासन कहा जा सकता है।
5. प्रसाद ने कथा साहित्य व गद्य एवं पद्य सभी प्रकार की रचनाएँ की हैं।
6. प्रगतिवाद मार्क्सवाद से प्रभावित नहीं है।
7. प्रगतिवादी कवियों ने धर्म,जाति वर्ग को असमान माना है।
8. नई कविता में नये प्रतीकों व नवीन भाषा-शैली का प्रयोग हुआ है।
उत्तर-
1. सत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य,
6. असत्य,
7. असत्य,
8. सत्य।

सही जोड़ी मिलाइए

I. ‘अ’ – ‘ब’
1. बिहारी कवि की बिहारी सतसई – (क) केवल राजाओं की प्रशंसा करते थे
2. कामायनी जयशंकर प्रसाद का। – (ख) शृंगार का वर्णन है
3. रीतिकाल के समस्त कवि दरबारी – (ग) सुप्रसिद्ध महाकाव्य है कवि थे वे
4. प्रगतिवादी कवियों ने मानव की – (घ) प्रसिद्ध श्रृंगार रस की रचना है
5. छायावाद में सौन्दर्य की भावना, प्रेम और – (ङ) महत्ता का प्रतिपादन किया है
उत्तर-
1. → (घ),
2. → (ग),
3. → (क),
4. , (ङ),
5. → (ख)।

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II. ‘अ’ – ‘ब’
1. नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना है – (क) भक्तिकाल
2. प्रगतिवादी कवि को शोषित वर्ग के प्रति – (ख) का विरोध किया है
3. हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग [2009] – (ग) मधुशाला है
4. प्रगतिवादी कवियों ने धर्म और ईश्वर – (घ) सहानुभूति थी
5. हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचना – (ङ) “प्यासी पथराई आँखें
उत्तर-
1. → (ङ),
2. → (घ),
3. → (क),
4. → (ख),
5. → (ग)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. भक्तिकाल के पश्चात् एक नवीन विचारधारा ने जन्म लिया वह हिन्दी साहित्य में किस नाम से विख्यात है?
2. “गागर में सागर भर दिया है” यह उक्ति किस कवि के लिए प्रयोग की गयी है?
3. कठिन काव्य का प्रेत किसे कहा जाता है?
4. छायावाद के प्रमुख तीन कवियों के नाम लिखिये, जिन्होंने इस काल को स्वर्णिम बनाया।
5. छायावाद के उपरान्त काव्य जगत में क्रान्ति लाने वाले विद्रोही कवि का नाम लिखिए।
6. प्रयोगवादी कवि प्रमुख रूप से किससे प्रभावित थे?
7. प्रयोगवादी कवियों ने प्रयोग के उपरान्त क्या-क्या अन्वेषण किया?
8. ‘सुनहले शैवाल’ कविता की रचना किस कवि ने की है?
उत्तर-
1. रीतिकाल के नाम से,
2. बिहारी,
3. केशवदास,
4. महादेवी वर्मा,प्रसाद व पन्त,
5. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
6. फ्रायड से,
7. नये प्रतीक, नये बिम्ब, नये उपमान, नई कविता,
8. अज्ञेय।

(ख) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है? रीतिकाल के कोई दो कवियों एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए। [2015]
अथवा
रीतिकाल के प्रमुख कवि तथा उनकी एक-एक रचनाओं का उल्लेख कीजिए। [2009, 13]
अथवा
रीतिकालीन काव्य को किन धाराओं में विभक्त किया गया है? इस काल के दो कवियों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर-
इस काल में दरबारी कवियों ने श्रृंगार की रचनाओं का ही सृजन किया था, अतः इसे श्रृंगार काल के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इस काल में नारी के नख-शिख का अतिरंजित चित्रण है।

रीतिकाल को तीन भागों में बाँटा गया है-

  • रीतिसिद्ध,
  • रीतिबद्ध,
  • रीतिमुक्त।

रीतिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी प्रतिनिधि रचनाएँ-बिहारी (‘बिहारी सतसई), केशव (रामचन्द्रिका), भूषण (शिवराज भूषण), घनानन्द (विरह लीला)।

प्रश्न 2.
रीतिकाल में कौन-से छन्दों का विशेष रूप से प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
छन्दों में दोहा, चौपाई, कवित्त तथा सवैया छन्द का प्रयोग विशेष रूप से किया गया है।

प्रश्न 3.
रीतिकाल के कवियों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। [2009]
अथवा
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। किन्हीं दो कवियों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर-
रीतिकाल के कवियों की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. रीति ग्रन्थों की रचना,
  2. श्रृंगार रस की प्रधानता,
  3. आश्रयदाताओं की प्रशंसा,
  4. नीतिपरक काव्यों की रचना,
  5. भक्ति-नीति प्रकृति का चित्रण,
  6. नारी-सौन्दर्य का विलासितापूर्ण चित्रण,
  7. अलंकारों का चमत्कारिक प्रयोग।

प्रमुख कवि-बिहारी, भूषण।

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प्रश्न 4.
छायावादी युग के प्रमुख चार कवियों तथा उनकी रचनाओं के नाम लिखिए। [2009, 10]
उत्तर-

  • महादेवी वर्मा-नीरजा, यामा।
  • जयशंकर प्रसाद कामायनी, लहर।
  • सुमित्रानन्दन पन्त-युगवाणी, पल्लव।
  • सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-परिमल, अपरा।

प्रश्न 5.
छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
छायावाद की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2009, 10]
उत्तर-

  • काव्य में वर्णन की काल्पनिकता,
  • प्रकृति के कोमल पक्ष का चित्रण,
  • रहस्यवादी भावनाओं का पुट,
  • सामाजिकता के स्थान पर वैयक्तिकता।

प्रश्न 6.
छायावाद की प्रमुख दो विशेषताएँ लिखते हुए इस काल के चार कवियों के नाम, उनकी रचनाओं सहित लिखिए। [2017]
उत्तर-

  • काव्य में वर्णन की काल्पनिकता,
  • प्रकृति के कोमल पक्ष का चित्रण,
  • रहस्यवादी भावनाओं का पुट,
  • सामाजिकता के स्थान पर वैयक्तिकता।
  • महादेवी वर्मा-नीरजा, यामा।
  • जयशंकर प्रसाद कामायनी, लहर।
  • सुमित्रानन्दन पन्त-युगवाणी, पल्लव।
  • सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-परिमल, अपरा।

प्रश्न 7.
प्रगतिवादी चार कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • नरेन्द्र शर्मा,
  • बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’,
  • सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
  • सुमित्रानन्दन पन्त।

प्रश्न 8.
छायावादी युग में प्रमुख रूप से कौन-सी शैली प्रयुक्त हुई?
उत्तर-
छायावादी युग प्रमुख रूप से मुक्तक गीतों का युग है।

प्रश्न 9.
प्रगतिवाद के किसी ऐसे कवि का नाम और उसकी दो रचनाओं का उल्लेख करें जो दो युगों से सम्बन्धित हैं?
उत्तर-
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ दो युगों-छायावाद और प्रगतिवाद से सम्बन्धित कवि हैं। इनकी दो रचनाएँ हैं-

  • अनामिका एवं
  • अणिमा।

प्रश्न 10.
प्रयोगवाद का प्रारम्भ किस कविता के संकलन से माना जाता है?
उत्तर-
प्रयोगवाद का प्रारम्भ अज्ञेय द्वारा सम्पादित तारसप्तक, जो कि सन् 1943 ई. में प्रकाशित हुआ था; से माना जाता है।

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प्रश्न 11.
प्रयोगवादी काव्यधारा के दो कवि और उनकी एक-एक रचना का उल्लेख कीजिए। [2009, 14]
उत्तर
कवि – रचना

  1. धर्मवीर भारती – कनप्रिया
  2. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’। – ऑगन के पार द्वार

प्रश्न 12.
प्रथम ‘तारसप्तक’ के चार कवियों का नाम लिखिए।
उत्तर-

  • सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’,
  • गजानन माधव मुक्तिबोध,
  • विष्णु प्रभाकर माचवे,
  • गिरिजा कुमार माथुर।

प्रश्न 13.
अज्ञेय की कुछ रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • आँगन के पार द्वार,
  • अरी ओ करुणा प्रभामय,
  • इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये,
  • कितनी नावों में कितनी बार,
  • बावरा अहेरी,
  • इत्यलम्,
  • चिन्ता,
  • पहले मैं सन्नाटा बुनता था,
  • सागर मुद्रा,
  • हरी घास पर क्षण भर आदि।

प्रश्न 14.
प्रगतिवादी कवियों का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
सरल शैली को अपनाकर अपनी रचनाओं को जनसाधारण तक पहुँचाना इनका मुख्य उद्देश्य रहा है।

प्रश्न 15.
प्रगतिवादी काव्य की कोई चार विशेषताएँ लिखिए। [2013, 14, 18]
अथवा
प्रगतिवाद की दो प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। दो कवियों एवं उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए। [2009, 10]
उत्तर-

  • व्यंग्य शैली का प्रयोग।
  • साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित।
  • मानवीय सम्बन्धों में समानता पर जोर।
  • रूढ़ियों का विरोध।
  • क्रान्ति की भावना।
  • शोषितों की दुर्दशा का चित्रण।

प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ-

  • सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-अनामिका।
  • नागार्जुन-युगाधार।
  • रामधारी सिंह ‘दिनकर’-रेणुका।

प्रश्न 16.
नई कविता की चार विशेषताएँ लिखिए। [2009]
उत्तर-

  • बौद्धिकता,
  • शिल्पगत नवीनता,
  • मानवता की महत्ता,
  • परम्परागत नहीं है।

प्रश्न 17.
नई कविता की बिम्ब योजना किस प्रकार की है?
उत्तर-
नई कविता की बिम्ब योजना सांकेतिक एवं प्रतीकात्मक रूप में अंकित है।

प्रश्न 18.
नई कविता में किस गुण का अभाव है?
उत्तर-
नई कविता में रसात्मकता का अभाव है।

प्रश्न 19.
नई कविता के दो कवि और उनकी दो-दो रचनाओं के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर-
कवि – रचनाएँ

  1. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना काठ की घंटियाँ,बाँस का पुल
  2. गजानन माधव मुक्तिबोध चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल

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प्रश्न 20.
प्रयोगवादी कविता का परिष्कृत रूप क्या है?
उत्तर-
प्रयोगवादी कविता का परिष्कृत रूप नई कविता है।

प्रश्न 21.
नई कविता का उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
नई कविता का मुख्य उद्देश्य वैयक्तिकता के साथ सामाजिकता का भी चित्रण करना है।

प्रश्न 22.
आधुनिक काल की दो प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
आधुनिक काल की कोई दो विशेषताएँ लिखते हुए बताइए कि इसे गद्य काल क्यों कहा जाता है? [2017]
उत्तर-
विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ)-

  1. हिन्दी काव्य में नवीन भाव, विचार एवं अभिव्यंजना का विकास हुआ।
  2. छायावाद,प्रयोगवाद एवं प्रगतिवाद का शुभारम्भ हुआ।

आधुनिक काल का समय सन् 1843 ई. से अब तक माना गया है। इस काल में हिन्दी साहित्य का बहुमुखी विकास हुआ। इस काल में अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध जन-जागरण समाज-सुधार, नारी जागृति, हरिजनोद्धार, भाषा परिमार्जनोद्धार आदि पर विशेष ध्यान केन्द्रित रहा। आधुनिक चेतना से युक्त होने तथा गद्य प्रधान रचनाओं के कारण इस काल को आधुनिक काल अथवा गद्य काल कहा जाता है।

प्रश्न 23.
रहस्यवाद से आप क्या समझते हो?
उत्तर-

  1. महादेवी वर्मा के शब्दों में, “अपनी सीमा को असीम तत्त्व में खोजना ही रहस्यवाद है।”
  2. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है. भावना के क्षेत्र में वही रहस्यवाद है।”

प्रश्न 24.
(अ) रहस्यवाद के दो कवियों के नाम तथा उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-

  1. कबीर (कबीर ग्रन्थावली)
  2. मलिक मोहम्मद जायसी (पद्मावत)।

(ब) सूर एवं तुलसीदास की भक्ति भावना की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
सूरदास-

  1. सखा भाव की भक्ति,
  2. कृष्ण का लोक रंजन रूप का चित्रण।

तुलसीदास

  1. दास भाव की भक्ति,
  2. राम का लोकरक्षक रूप में अंकन।

प्रश्न 25.
रीतिबद्ध एवं रीतिमुक्त काव्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
रीति का आशय है काव्य शास्त्रीय लक्षण। रीतिकाल में जो काव्य रचनाएँ काव्यशास्त्र की रीतियों अथवा लक्षणों के आधार पर लिखे गये, वे रीतिबद्ध काव्य की कोटि में आते हैं।

प्रश्न 26.
लोकायतन महाकाव्य के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
इसके रचयिता महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त हैं।

प्रश्न 27.
हिन्दी साहित्य के प्रथम युग का नाम वीरगाथा काल क्यों पड़ा?
उत्तर-
इस युग में अधिकांशत: वीर रस प्रधान काव्य का सृजन हुआ है। इसलिए इस युग का नाम वीरगाथा काल पड़ा।

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(ग) लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रीतिकाल के लिए कौन-कौन-से नाम सुझाये गये हैं? नामकरण करने वाले लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर-
रीतिकाल के विभिन्न नाम और नामकरण करने वाले लेखकों के नाम इस प्रकार हैं

  • रीतिकाल-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
  • कला काल-डॉ. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’
  • अलंकृत काल-मिश्र बन्धु
  • श्रृंगार काल-आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र।

प्रश्न 2.
रीतिबद्ध और रीतिमुक्त काव्य में अन्तर बताइए।
उत्तर-
रीतिबद्ध काव्य में रीतिकालीन काव्य के समस्त बन्धनों एवं रूढ़ियों का दृढ़ता से पालन किया जाता था।

रीतिमुक्त कविता में रीतिकाल की परम्परा के साहित्यिक बन्धनों एवं रूढ़ियों से मुक्त स्वच्छन्द रूप से काव्य रचना की जाती थी।

प्रश्न 3.
“रीतिकाल की कविता, कविता न होकर राज दरवार की वस्तु है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस काल में प्रत्येक कवि इस बात का प्रयत्न करता था कि वह अन्य कवियों से आगे निकल जाये। फलस्वरूप अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करने के निमित्त कविता की रचना करने का प्रयास करता था। इस प्रकार कविता, कविता न होकर राज दरबार की सीमा तक सिमट कर रह गई।

प्रश्न 4.
रीतिकाल की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। [2016]
उत्तर-
रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  • रीति या लक्षण ग्रन्थों की रचना,
  • श्रृंगार रस की प्रधानता,
  • काव्य में कलापक्ष की प्रधानता,
  • मुक्तक काव्य की प्रमुखता,
  • ब्रजभाषा का चरमोत्कर्ष,
  • आश्रयदाताओं की प्रशंसा,
  • प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण,
  • नीतिपरक सूक्तियों की रचना,
  • दोहा, सवैया, कवित्त छन्दों की प्रचुरता।

प्रश्न 5.
भारतेन्दुयुगीन काव्य की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। [2018]
उत्तर-
भारतेन्दु युग की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • समाज में फैली कुरीतियों, आडम्बरों, अंग्रेजों के अत्याचारों आदि का चित्रण कर जन-जागरण करना,
  • भारत के प्राचीन गौरव तथा नवीन आवश्यकताओं का चित्रण,
  • देश-प्रेम तथा राष्ट्रीयता का उद्घोष,
  • प्रेम, सौन्दर्य और प्रकृति के विविध रूपों का अंकन,
  • सरल एवं सुबोध भाषा शैली।

प्रश्न 6.
आधुनिक काल की कविता के इतिहास को कितने कालों में विभाजित किया गया है? प्रत्येक काल के एक-एक कवि का नाम लिखिए। [2009]
उत्तर-
आधुनिक काल की कविता के इतिहास को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया गया है-
काल – प्रमुख कवि

  1. छायावाद – जयशंकर प्रसाद
  2. प्रगतिवाद – सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
  3. प्रयोगवाद – अज्ञेय
  4. नई कविता – गिरिजाकुमार माथुर

प्रश्न 7.
आधुनिक काल की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-

  • राष्ट्रीय चेतना के स्वर मुखरित हैं।
  • साहित्य की विभिन्न विधाओं का सृजन हुआ है।
  • अंग्रेजी तथा बाल साहित्य का प्रभाव दृष्टिगोचर है।
  • खड़ी बोली का प्रयोग है।
  • प्राचीन एवं नवीन का समन्वय।

प्रश्न 8.
छायावादी काव्य का परिचय दीजिए तथा प्रमुख कवियों के नाम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
जिस काव्य में भावुकतापूर्ण व्यक्तिगत सूक्ष्म अनुभूतियों का चित्रण छाया रूप में किया गया है,मनीषियों ने छायावादी काव्य के नाम से सम्बोधित किया है। काव्य चित्रों के छाया रूप चित्रण के कारण ही छायावादी काव्य में दार्शनिकता रहस्यात्मकता दिखायी देती है।

महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद एवं सुमित्रानन्दन पन्त प्रमुख छायावादी कवि हैं।

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प्रश्न 9.
छायावादी काव्य की विशेषताएँ लिखिए। [2009, 15]
उत्तर-
छायावादी काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • छायावादी काव्य में कल्पना को प्रधानता दी गई है।
  • प्रकृति को चेतन मानते हुए उसका सजीव चित्रण किया गया है।
  • प्रेम और सौन्दर्य की व्यंजना हुई है।
  • भाषा अत्यन्त ही सरल तथा लाक्षणिक कोमलकान्त पदावली युक्त है।
  • छन्दों तथा अलंकारों का नवीनतम् प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 10.
प्रगतिवादी प्रमुख कवियों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रगतिवादी प्रमुख कवि इस प्रकार हैं-

  • सुमित्रानन्दन पन्त,
  • सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
  • भगवतीचरण वर्मा,
  • रामधारी सिंह ‘दिनकर’,
  • नरेन्द्र शर्मा,
  • डॉ. रामविलास शर्मा,
  • शिवमंगल सिंह ‘सुमन’,
  • नागार्जुन,
  • केदारनाथ अग्रवाल।

प्रश्न 11.
प्रगतिवादी युग की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रगतिवादी काव्यधारा में पूँजीवादी व्यवस्था का विरोध करते हुए साम्यवाद का रूपान्तरण हुआ है। प्रगतिवादी युग की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  • साम्यवादी विचारधारा (विशेष रूप से कार्ल मार्क्स से प्रभावित),
  • मानवतावादी दृष्टिकोण,
  • पूँजीपति के प्रति विद्रोह,
  • शोषितों के प्रति सहानुभूति,
  • छन्दों के बन्धन की उपेक्षा,
  • ‘कला को कला के लिए’ न मानकर ‘कला को जीवन के लिए’ का सिद्धान्त अपनाया।

प्रश्न 12.
प्रयोगवादी काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
उत्तर-
प्रयोगवाद हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम विचारधारा है। इसका एकमात्र उद्देश्य प्रगतिवाद के जनवादी दृष्टिकोण का विरोध करना है। प्रयोगवादी कवियों ने काव्य के भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों को ही महत्त्व दिया है। इन्होंने प्रयोग करके नये प्रतीकों, नये उपमानों एवं नवीन बिम्बों का प्रयोग कर काव्य को नवीन छवि प्रदान की है। प्रयोगवादी कवि अपनी मानसिक तुष्टि के लिए कविता की रचना करते थे। प्रयोगवादी कविता का प्रारम्भ 1943 ई. में अज्ञेय के ‘तारसप्तक’ के प्रकाशन से माना जाता है।

प्रश्न 13.
प्रयोगवाद की दो विशेषताएँ लिखिए। [2009, 14]
अथवा
प्रयोगवादी कविता की कोई तीन विशेषताएँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर-

  • जीवन का यथार्थ चित्रण।
  • भाषा का स्वच्छन्द प्रयोग किया गया।
  • नवीन उपमानों का प्रयोग किया गया।
  • व्यक्तिवाद को प्रधानता।।

प्रश्न 14.
प्रयोगवादी प्रमुख कवियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रयोगवादी प्रमुख कवि इस प्रकार हैं

  • सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ प्रवर्तक,
  • गिरिजाकुमार माथुर,
  • प्रभाकर माचवे,
  • नेमिचन्द्र जैन,
  • भारत भूषण,
  • धर्मवीर भारती,
  • गजानन माधव मुक्तिबोध,
  • शकुन्त माथुर,
  • रामविलास शर्मा,
  • भवानीप्रसाद मिश्र,
  • जगदीश गुप्त आदि।

प्रश्न 15.
नई कविता की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। [2009]
अथवा
नई कविता की दो विशेषताएँ लिखते हुए दो कवियों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर-
सन् 1950 ई. के बाद नई कविता के नये रूप का शुभारम्भ हुआ। प्रयोगवादी कविता ही विकसित होकर नई कविता कहलायी। यह कविता किसी भी प्रकार के वाद के बन्धन में न बँधकर वाद मुक्त होकर रची गयी। इस प्रकार यह नया काव्य परम्परागत न होकर इतना अलग हो गया कि इसे कविता न कहकर अकविता कहा जाने लगा। नई कविता की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  • नये प्रतीकों व बिम्बों का प्रयोग,
  • अति यथार्थता,
  • पलायन की प्रवृत्ति,
  • वैयक्तिकता,
  • निराशावाद,
  • बौद्धिकता।

नई कविता के प्रमुख कवि-डॉ.जगदीश चन्द्र गुप्त,सोम ठाकुर, दुष्यन्त कुमार।

प्रश्न 16.
तृतीय तारसप्तक कब प्रकाशित हुआ? इसके सात कवियों के नामों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
तीसरा सप्तक’ सन् 1959 ई.में प्रकाशित हुआ। इसके सात कवि इस प्रकार हैं

  • केदारनाथ सिंह,
  • कुँवर नारायण,
  • प्रयाग नारायण त्रिपाठी,
  • मदन वात्स्यायन,
  • कीर्ति चौधरी,
  • विजय देव नारायण साही,
  • सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।

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प्रश्न 17.
वर्तमान हिन्दी काव्य से सम्बन्धित दो प्रमुख प्रवृत्तियाँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वर्तमान हिन्दी काव्य की प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं-
(1) नारी के प्रति परिवर्तित दृष्टिकोण,
(2) यथार्थवादी चित्रण।

प्रश्न 18.
नई कविता के प्रवर्तक कवि तथा दो जीवित कवियों का नाम लिखिए।
अथवा
नई कविता के प्रमुख कवि बताइए। [2009]
उत्तर-
नई कविता के प्रवर्तक कवि डॉ. जगदीश चन्द्र गुप्त हैं। वर्तमान में नई कविता के प्रमुख कवि हैं

  • सोम ठाकुर,
  • दुष्यन्त कुमार।

प्रश्न 19.
नई कविता की संज्ञा किस प्रकार की कविताओं को दी गयी है?
उत्तर-
जिन कविताओं में आधुनिक युगीन भावों तथा विचारों की अभिव्यक्ति नवीन भाषाशिल्पों के द्वारा होती है, उसे नई कविता की संज्ञा दी जाती है। बौद्धिकता, क्षणवाद, संघर्ष तथा व्यक्तिगत कुंठाओं की नवीन काव्य धारा में प्रधानता होती है।

प्रश्न 20.
द्विवेदी युग की कविता की तीन विशेषताएँ लिखकर दो कवियों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर-
द्विवेदी युग की कविता की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • यथार्थ प्रधान भाव,
  • हिन्दी खड़ी बोली का प्रयोग,
  •  समाज सुधार की भावना।

कवि-

  • मैथिलीशरण गुप्त,
  • अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 14 मेहमान की वापसी

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Chapter 14 मेहमान की वापसी (मालती जोशी)

मेहमान की वापसी अभ्यास-प्रश्न

मेहमान की वापसी लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अजय के घर कौन-कौन आये थे और क्यों?
उत्तर
अजय के घर राय अंकल और राय आँटी अपने कुत्ते जॉली के साथ आये थे। वे बॉली को महीने भर की छुट्टियों में अजय के घर पर छोड़ने के लिए आये थे।

प्रश्न 2.
राय अंकल ने अजय से जॉली की दोस्ती कैसे कराई?
उत्तर
राय अंकल ने जॉली से कहा, “जॉली! कम हियर… शेक हैंड्स विद अजय।” जॉली ने एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह अपना दाहिना पंजा उठाया। अजय ने जॉली की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया। इस तरह राय अंकल ने अजय से जॉली की दोस्ती कराई।

प्रश्न 3.
जॉली के घर लौटने के पश्चात् अजय के मन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
जॉली के घर लौटने के पश्चात् अजय के मन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। उसके मन से शिकायतों का बोझ उतर गया। वह प्रसन्नता से खिल उठा।

मेहमान की वापसी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मेहमान की वापसी’ कहानी का उद्देश्य क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘मेहमान की वापसी’ कहानी एक सोद्देश्यपरक कहानी है। इसमें मनुष्य और पशु के परस्पर प्रेम को दर्शाया गया है। इसके माध्यम से लेखिका ने मनुष्य के प्रति पशुओं की वफादारी, कृतज्ञता और निःस्वार्थता को प्रेरक रूप में प्रस्तुत किया

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प्रश्न 2.
अजय ने जॉली को अपनी दिनचर्या में कैसे सम्मिलित कर लिया?
उत्तर
अजय जॉली के साथ घुल-मिल गया था। वह सुबह उठते ही जॉली को गुड-मार्निंग बोलता था। वह जॉली के पास अपनी छोटी-सी मेज लगाकर.अपनी छुट्टियों का होमवर्क जॉली से बातें करते हुए करता था। वह घर से बाहर निकलने पर जॉली को ‘टा-टा’ करना नहीं भूलता था। शाम को वापस लौटने पर जब जॉली अपनी पूँछ हिलाकर अजय की अगवानी करता था तो वह उसके गले में हाथ डालकर उसे चूम लेता था। वह अपनी मम्मी-पापा के फर्स्ट शो देखने चले जाने पर घर में जॉली के साथ रह लेता। दोस्तों के कुट्टी कर लेने की उसे कोई परवाह नहीं थी, क्योंकि उसे खेलने के लिए जॉली एक अच्छा साथी मिल गया था। वह जॉली के साथ ही खाना खाता था। इस तरह अजय ने जॉली को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित कर लिया था।

प्रश्न 3.
कहानी के मुख्य पात्र अजय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर
कहानी के मुख्य पात्र अजय की चरित्रगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. बाल-सुलभ व्यवहार-अजय बालक है, इसलिए उसमें अनुभव की कमी है। उसे यह नहीं मालूम है कि कोई पालतू अपने स्वामी के साथ उसके पास आने पर उसे काट लेगा। इसलिए राय अँकल और राय आंटी के अल्सेशियन कुत्ते को देखकर डर जाता है। बहुत समझाने-बुझाने पर भी वह उससे डरा-डरा रहता है। अजय अपने बाल-सुलभ व्यवहार के कारण ही जॉली के प्रति धीरे-धीरे समझने का दृष्टिकोण अपनाने लगता है।

2. भावुक हदय-अजय के चरित्र की दूसरी विशेषता है-भावक हदय। अजय में भावुकता है। वह जॉली के रात-भर रोने-चिल्लाने पर भावुक हो उठता है। उसे आपबीती, अकेलेपन की दुखद बातें जब याद आती हैं, तो वह जॉली के प्रति सहानुभूति करने से स्वयं को रोक नहीं पाता है। उससे अपना प्यार जताने के लिए उसे थपथपाने लगता है। उसके प्यार को पाकर रूठा हुआ जॉली खुश होकर खाना खा लेता है।

3. सच्चा मित्र-अजय के चरित्र की तीसरी विशेषता है-सच्चा मित्र । अजय जॉली के प्रति दोस्ती का जब हाथ बढ़ाता है, तो उसका अन्त तक निर्वाह करता है। वह जॉली को अपना सबसे बड़ा और एक मात्र दोस्त मानता है। इसलिए वह अपने किसी भी पुराने दोस्त की परवाह नहीं करता है। वह जॉली को अपना सच्चा दोस्त मानकर उसे अपनी दिनचर्या में सम्मिलित कर लेता है। जॉली के चले जाने पर उसकी भूख गायब हो जाती है। उसे जॉली के लौट आने की आशा जोर मारने लगती है। जॉली के वापस आने पर उसकी आँखों से खुशी के आँसू बहने लगते हैं। उनसे उसकी जॉली के प्रति उसके न होने पर की गयी शिकायतें एक-एक कर बहकर समाप्त हो जाती हैं।

प्रश्न 4.
पाठ में आए उन महत्त्वपूर्ण अंशों को लिखिए, जिसने अजय के बाल-सुलभ व्यवहार और भावुक हृदय को प्रभावित किया हो।
उत्तर
1. ‘मम्मी…’ उसने दरवाजे के बाहर खड़े होकर जोर से आवाज दी।

2. ‘मर गए। अजय ने सोचाः यह इतना बड़ा कुत्ता घर में रहेगा, तो मेरा एक दोस्त भी यहाँ पाँव नहीं रखेगा। मैं भी जैसे जेल में बन्द हो जाऊँगा। अब मम्मी की आँख बचाकर जब-तब बाहर नहीं निकला जा सकेगा। यह राक्षस जो बैठा होगा – बरामदे में। सारी छुट्टियों का मजा किरकिरा हो जाएगा। इस माहौल में घर में बैठना अजय को जरा भी अच्छा नहीं लगा। वह चुपचाप पिछले दरवाजे से खिसक गया और रात के खाने पर ही लौटा। मन-ही-मन प्रार्थना करता रहा कि हे भगवान, राय अँकल के पिता जी को जल्दी से अच्छा कर दो ताकि वे जल्दी लौट आएँ और यह मुसीबत हमारे यहाँ से जल्दी से विदा हो जाए।

3. क्या पता जॉली को भी अँकल और आंटी की याद आ रही हो। इस बार , जब उसकी रुलाई कान में पड़ी, तब वह सहन नहीं कर सका और धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर आ गया। जॉली कोने में सिमटकर बैठा हुआ था। दोपहर की तरह -अब वह बूंखार नहीं लग रहा था, बल्कि एक नन्हें बच्चे की तरह असहाय लग रहा था। अजय ने साहस बटोरा और उसके पास जा खड़ा हुआ और प्यार से बोला : ‘जॉली…!’

4. उनकी भी सावाज कुछ नम हो गई थी। और अजय? उसकी तो भख ही गायब हो गई थी। सामने रखी नाश्ते की प्लेट को वह यों ही घूरता रह गया था। उसे लग रहा था, अभी कहीं से जल्दी से जॉली आएगा और पास बैठकर बिस्कुट मांगेगा।

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5. नाश्ते की प्लेट वैसी की वैसी ही सरकाकर वह बाहर आया। बरामदे का वह कोना एकदम सूना लग रहा था। उसकी सारी गृहस्थी वहाँ से उठ गई थी। जगह पहले की तरह साफ हो गई थी-पर कितना उदास-उदास लग रही थी।

6. ‘खाक जानता है प्यार की कीमत!’ अजय ने सोचा : ‘कितना प्यार किया उसे। अपने दोस्त, अपनी पढ़ाई, अपना खाना-पीना सब कुछ भूल गया था मैं। पर उसे क्या, अंकल-आंटी को देखते ही सब कुछ भूल गया होगा।

7. खाना एकदम जहर लग रहा था उसे, फिर भी उसने खाया। क्यों भूखा रहे वह एक बेवफा कुत्ते के लिए। वह हजरत वहाँ मजे से अंकल और आंटी के हाथ से माल खा रहे होंगे।

मेहमान की वापसी भाषा-अध्ययन/काव्य-सौन्दर्य

प्रश्न 1.
आवाज, हिदायतें, कम हियर आदि शब्द विदेशी भाषा से लिए गए हैं ऐसे ही विदेशी भाषा के अन्य शब्द कहानी से छाँटकर मानक भाषा में परिवर्तित कर लिखिए।
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 14 मेहमान की वापसी img 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
जान निछावर करना, साँस अटकना, मुसीबत गले पड़ना, मज़ा किरकिरा होना, ठण्डा करना, फूलकर कुप्पा हो जाना
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 14 मेहमान की वापसी img 2

प्रश्न 3.
‘सूना-सूना’ जैसे पुनरुक्त शब्दों का प्रयोग कहानी में किया गया है। कहानी में आए ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
पीछे-पीछे, टा-टा, दूर-दूर, सूना-सूना, उदास-उदास और भांय-भाय।

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प्रश्न 4.
दिए हुए अनेकार्थी शब्दों के दो-दो अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्य बनाइये।
उदाहरण-राम ने अपना कार्य जल्दी कर लिया।
मुख्य अतिथि ने अपने कर कमलों से पुरस्कार बाँटे।
अपेक्षा, कल, पद, उपचार, हल
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 14 मेहमान की वापसी img 3

प्रश्न 5.
निम्नलिखित लोकोक्तियों के अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए
(i) ऊँची दुकान फीके पकवान
(ii) काला अक्षर भैंस बराबर
(iii) अँधा क्या जाने दो आँखें
(iv) चोर की दाढ़ी में तिनका
(v) जिसकी लाठी उसकी भेंस। उदाहरण देकर ऊपर लिखी लोकोक्तियों का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्य बनाइयेजैसे :-‘एक अनार सौ बीमार’ अर्थ-वस्तु एक चाहने वाले अनेक।
वाक्य रचना-चालीस ‘पद’ रिक्त हैं। प्रार्थना पत्र दस हजार हैं। यह तो वही बात हुई कि एक अनार, सौ बीमार।
उत्तर
(i) ऊँची दुकान फीका पकवान . अर्थ-आडम्बर अधिक असलियत कम
वाक्य-रचना-उसने लिखा तो है स्वादिष्ट भोजनालय, लेकिन उसके एक भी भोजन में कोई स्वाद नहीं है। इसे कहते हैं, ‘ऊँची दुकान फीका पकवान।’
(ii) काला अक्षर भैंस बराबर अर्थ-निरक्षर, अनपढ़
वाक्य-रचना-उसे बार-बार समझाया जाता है। फिर भी वह नहीं समझता है; क्योंकि वह पूरी तरह से काला अक्षर भैंस बराबर है।
(iii) अंघा क्या जाने दो आँखें अर्थ-दुखी को सुख का अनुभव नहीं होता
वाक्य-रचना-चुनाव के समय मन्त्री गरीबों को लाभकारी योजना की घोषणा करते हैं, लेकिन गरीब उन पर यकीन नहीं करते हैं। यह तो वही बात हुई कि अँधा क्या जाने दो आँखें।
(iv) चोर की दाढ़ी में तिनका अर्थ-बुरे व्यक्ति का मन हमेशा शंकालु होता है।
वाक्य-रचना-भ्रष्टाचारी तो भ्रष्टाचार करते हैं, लेकिन पकड़ लिए जाने के भय से परेशान रहते हैं। इसे कहते हैं ‘चोर की दाढ़ी में तिनका।’
(v) जिसकी लाठी उसकी भैंस अर्थ-हमेशा शक्तिशाली की विजय होती है।
वाक्य-रचना-आखिरकार उसने अपने धन-बल से चनाव जीत ही लिया। यह सच ही कहा गया है-‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’।

मेहमान की वापसी योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
यदि आपके घर कोई पालतू पशु है तो आप उसमें कितना ‘लगाव’ महसूस करते हैं। कोई एक घटना के आधार पर एक संस्मरण लिखिए।
प्रश्न 2.
आप अपनी दिनचर्या में कितने विदेशी शब्द प्रयोग करते हैं? उसकी सूची बनाइये।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मेहमान की वापसी परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अजय की साँस दरवाजे पर क्यों अटककर रह गई?
उत्तर
अजय ने बरामदे में एक शेर की तरह एक बड़ा-सा अल्सेशियन कुत्ता । देखा। उसे देखकर दरवाजे पर ही उसकी साँस अटककर रह गई।

प्रश्न 2.
जॉली कौन था?
उत्तर
जॉली शेर की तरह एक बड़ा-सा अल्सेशियन कुत्ता था।

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प्रश्न 3.
जॉली को वपथपाने का साहस अजय को कैसे हुआ?
उत्तर
अजय ने जॉली की बेबसी को समझने का प्रयास किया। उसने देखा कि जॉली रात-भर रो-रोकर थक गया है। वह एक कोने में एक नन्हें बच्चे की तरह सिमटा हुआ बड़ा ही असहाय लग रहा है। इससे उसके प्रति उसकी सहानुभूति हो गई। उसी के सहारे उसे थपथपाने का उसे साहस हुआ।

प्रश्न 4.
कुत्ते की क्या विशेषता होती है?
उत्तर
कुत्ते की यही विशेषता होती है कि वह प्यार की कीमत को जानता-समझता है। इसलिए वह प्यार करने वालों पर अपना प्राण निछावर कर देता है।

मेहमान की वापसी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जॉली के आने पर अजय ने क्या अनुभव किया?
उत्तर
जॉली के आने पर अजय ने अनुभव किया कि वह तो नाराज है ही। उसके मम्मी-पापा भी नाराज हैं। उसकी मम्मी की नाराजगी इस बात से है कि वह महीने जॉली के लिए खाना कैसे बना पायेगी। उसके पापा को उस समय गुस्सा आया, जब जॉली ने उनके द्वारा कटोरे में रखे गए दूध-रोटी को खाने से मुंह फेर लिया। इस प्रकार अजय ने अनुभव किया कि जब इतना बड़ा कुत्ता घर में रहेगा तो उसके दोस्तों का आना-जाना बन्द हो जायेगा और वह जैसे जेल में बन्द हो जाएगा।

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प्रश्न 2.
जॉली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर
जॉली एक बड़ा-सा अल्सेशियन कुत्ता था। वह शेर की तरह भयानक था। फिर वह बहुत ही समझदार और वफादार था। वह अपने स्वामी के द्वारा दूसरे को सौंप दिए जाने से अपनापन को नहीं भूल पाता है। वह अपने स्वामी के प्रति वफादारी दिखाने के लिए रात-भर चीखता-चिल्लाता है। उसके प्रति वह आँसू बहाता है। विवश होकर ही वह अपने दूसरे स्वामी के बच्चे के साथ दोस्ती कर लेता है। उसे बड़ी समझदारी से निभाता है। उस बच्चे से इतना घुल-मिल जाता है कि वह अपने पहले स्वामी को भूल जाता है। वह उसे इतना भूल जाता है कि वह उसे अपने दूसरे स्वामी के बच्चे के पास हमेशा के लिए छोड़ने को मजबूर कर देता है।

प्रश्न 3.
‘मेहमान की वापसी’ कहानी का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘मेहमान की वापसी’ कहानी सुप्रसिद्ध महिला कथाकार मालती जोशी की एक लोकचर्चित कहानी है। इसमें मूक पशुओं, और मनुष्यों के परस्पर प्रेम को बड़े ही भावपूर्ण शब्दों में चित्रित किया गया है। लेखिका की इस कहानी से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि यदि मनुष्य पशुओं के प्रेम की अनुभूति करता है, उनके दुःख-दर्द
और भावनाओं को समझता है तो पशु भी उनके प्रति अपने प्रेम को किसी-न-किसी प्रकार से अवश्य ही प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार वे आत्मीयता का भाव प्रकट करते रहते हैं।

मेहमान की वापसी लेखिका-परिचय

प्रश्न
श्रीमती मालती जोशी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-श्रीमती जोशी का हिन्दी के आधुनिक महिला कथाकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपनी शिक्षा समाप्त कर उन्होंने हिन्दी कथा-लेखन में सक्रिय रूप से भाग लिया। धीरे-धीरे उनके कथा-स्वरूप ने अपनी जड़ें जमाते हुए अत्यधिक सशक्त रूप ले लिया। उनके कथा-स्वरूप में पुरुष जगत-नारी जगत का विस्तार अधिक देखा जा सकता है। ‘ रचनाएँ-श्रीमती मालती जोशी के कथा-संग्रह इस प्रकार है-‘विश्वास गाथा’, ‘एक घर सपनों का’, ‘पटाक्षेप’, ‘रोग-विराग’, ‘समर्पण का सुख’, ‘सहचारिणी’, ‘मध्यान्तर’, ‘दादी की घड़ी’, आदि। महत्त्व-श्रीमती मालती जोशी का हिन्दी के उन आधुनिक महिला कथाकारों में बहुचर्चित स्थान है, जिन्होंने मध्यवर्गीय परिवारों का सूक्ष्म चित्रण मानवीय धरातल पर किया है। बाल-कथा-लेखन में भी उनका उन महिला बाल-कथाकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान है, जिन्होंने बाल-मनोविज्ञान का सूक्ष्म-से-सूक्ष्म और गहन-से-गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इस प्रकार श्रीमती मालती जोशी एक प्रतिष्ठित महिला कथाकार के रूप में आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी।

मेहमान की वापसी कहानी का सारांश

प्रश्न
श्रीमती मालती जोशी-लिखित कहानी ‘मेहमान की वापसी’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्रीमती मालती जोशी-लिखित कहानी ‘मेहमान की वापसी’ पशु-मनुष्य के परस्पर प्रेम-चित्रण की कहानी है। इस कहानी का सारांश इस प्रकार है अजय रोज की तरह सीटी बजाते हुए अपने घर में आया तो उसने दरवाजे पर शेर की तरह एक अल्सेशियन कुत्ता देखकर डर गया। उसकी इस डर को देखकर उसके पापा के दोस्त राय अंकल ने उसे समझाया कि काटता नहीं है। उन्होंने अंकल से उसकी दोस्ती कराने के लिए उसे पुचकारते हुए कहा-“जॉली, कम हियर… शेक हैंड विद अजय।” जॉली ने अपना दाहिना पंजा उठाया तो अजय ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया। राय अंकल ने अजय से कहा कि जॉली महीने भर की छुट्टियों में उसके पास ही रहेगा और वह उससे दोस्ती निभाता रहे। इसे सुनकर अजय दुखी हो गया कि इससे तो उसके दोस्तों का आना-जाना बन्द हो जायेगा और वह घर में ही बन्द पड़ा रहेगा। राय अंकल के चले जाने पर उसकी मम्मी को भी यह ठीक. नहीं लगा था। उसके नाराज होने पर उसके पापा ने उसे समझाया कि वे लोग जॉली के लिए एक बोरी आटा रख गए हैं।

रात होने पर अजय के पापा ने दूध में रोटियों को मीड़कर कटोरे में जॉली के सामने रख दिया। लेकिन उसने देखा तक नहीं। इससे अजय की मम्मी और पापा दोनों झल्ला गए। सबके सोने पर जॉली बिलखने लगा। उसका रोना अजय की मम्मी को असगुन लगा तो उसके पापा ने तसल्ली देते हुए कहा कि नई जगह है, थोड़ी. देर बाद ठीक हो जायेगा। अजय को अपनी पिछली छुट्टियों में बीते हुए अपने अकेलेपन के कारण अपने बहाए आँसुओं की जॉली के आँसुओं से समानता दिखाई दी। इससे उसके प्रति अचानक सहानुभूति हो आयी। उस समय उसे जॉली खूखार न लगकर एक नन्हें बच्चे की तरह असहाय लग रहा था। उसने उसे थपथपाते हुए कहा, “ऑटी की याद आ रही है न!

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उन्हें जल्दी आने के लिए हम लोग कल ही पत्र लिखेंगे, फिर उसने उसके गले में हाथ डालकर पुचकारते हुए कटोरे में पड़े हुए दूध-रोटी को उसे खिला दिया। सुबह गुडमार्निंग कहने पर जॉली ने दोनों पंजे उठाकर स्वागत किया तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसने अपने आस-पास के सहमे हुए बच्चों को समझा दिया कि जॉली काटता नहीं, प्यार करता है। वह जब घर से बाहर निकलता तो जॉली उसे सड़क तक छोड़ने जाता और वापस लौटने पर वह पूँछ हिलाकर उसका स्वागत करता। उसके पापा ने राय अंकल को पत्र लिख दिया था। पत्र पाकर राय अंकल और राय आँटी जॉली को ले गए। इसे सुनकर अजय एकदम उदास हो गया। यों तो खाना उसे जहर लग रहा था। फिर भी उसने खाया। क्यों न खाये। एक बेवफा कुत्ते के लिए वह क्यों भूखा रहे। वह तो वहाँ पर राय

अंकल और राय आँटी के हाथ से माल खा रहा होगा। जॉली के जाने पर सारा घर मानो काटने को दौड़ रहा था। अजय की तरह उसके मम्मी-पापा भी खूब उदास थे। उसी मोटर की आवाज आयी। अजय के पापा ने दरवाजा खोला। राय अंकल ने कहा, “माफ करना भाई साहब, बड़े बेवक्त तकलीफ दे रहा हूँ, लेकिन… ‘इसी बीच जॉली तीर की तरह घर में आकर अजय के पैरों से ऐसे लिपट गया, जैसे बरसों बाद मिला हो। अजय की सारी शिकायतें आँसुओं में बह गई थीं।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 13 बालिका का परिचय

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 13 बालिका का परिचय (सुभद्रा कुमारी चौहान)

बालिका का परिचय अभ्यास-प्रश्न

बालिका का परिचय लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इस कविता में जीवन-ज्योति का क्या आशय है? स्पष्ट करें।
उत्तर
इस कविता में जीवन-ज्योति का आशय है-जीवन का आधार । बिटिया के प्रति माँ का वात्सल्य प्रेम अनन्य होता है। वह उसके लिए अतुल्य होता है।

प्रश्न 2.
‘बेटी अंधकार में दीप-शिखा की तरह है’ यह भाव किस पंक्ति में है? चुनकर लिखिये।
उत्तर
‘बेटी अंधकार में दीप-शिखा की तरह है। यह भाव निम्नलिखित पंक्ति में हैं-‘दीपशिखा है अंधकार की।’

बालिका का परिचय सही उत्तर चुनिये

प्रश्न 1.
बेटी का परिचय कौन सबसे अच्छा दे सकता है?
(क) पिता
(ख) माता
(ग) दादा
उत्तर
(ख) माता।

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प्रश्न 2.
इस कविता में कौन-सा भाव है?
(क) श्रृंगार
(ख) वीरता
(ग) वात्सल्य
उत्तर
(ग) वात्सल्य।

बालिका का परिचय दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बालिका परिचय कविता का सारांश लिखिये।
उत्तर
देखें-‘कविता का सारांश’।

प्रश्न 2.
कवयित्री ने बालिका को गोदी की शोभा क्यों कहा है स्पष्ट कीजिये।
उत्तर
कवयित्री ने बालिका को गोदी की शोभा कहा है। यह इसलिए कि किसी भी माँ की गोद में उसकी बालिका का मचलना एक न केवल अपूर्व आनन्द देता है, अपितु मन को मोह भी लेता है। इससे माँ का हृदय बाग-बाग हो उठता है। उस समय की शोभा देखते ही बनती है।

प्रश्न 3.
बाल-सुलभ क्रियाओं को हँसती हुई नाटिका मानने का क्या आशय है?
उत्तर
बाल-सुलभ क्रियाओं को हँसती हुई नाटिका मानने का आशय है-बाल-सुलभ क्रियाएँ मन को भाने वाली और गुदगुदाने वाली होती है। अतएव उसे देखकर सभी आनन्द से झूम उठते हैं।

प्रश्न 4.
निम्न पंक्तियों का भावार्थ लिखो।
(क) मेरा मन्दिर …………………….. मेरी।
उत्तर
उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ यह है कि किसी माँ के लिए उसकी बालिका सब कुछ होती है। माँ अपनी बालिका को किसी मन्दिर, मस्जिद, काबा, काशी, पूजा-पाठ, ध्यान, जप-तप से कम नहीं समझती है। इस प्रकार वह अपने हृदय में बसाए रहती है।

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(ख) प्रभु ईशा ………………………….. पास ॥
उत्तर
(ख) उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ यह है कि बालिका में महान आत्माओं के गुण होते हैं। उसमें ईसामसीह की क्षमाशीलता, नबी-मुहम्मद का विश्वास और महावीर स्वामी और महात्मा गौतम बुद्ध के जीव-दया के भाव भरे होते हैं।

प्रश्न 5.
वही जान सकता है इसको
माता का दिल है जिसका ॥
इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिये।
उत्तर
इन पंक्तियों का भाव यह है कि बालिका के महान और उच्च गुणों का वर्णन करना सम्भव नहीं है। दूसरे शब्दों में यह कि बालिका की महानता और श्रेष्ठता को कह-सुनकर नहीं, अपितु अनुभव करके ही जाना-समझा जा सकता है।

प्रश्न 6.
बेटी की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर
बेटी की तुलना राम, कृष्ण, ईसामसीह, नबी, मुहम्मद, महावीर स्वामी और महात्मा गौतम बुद्ध से की गई है।

बालिका का परिचय भाषा-अध्ययन/काव्य-सौन्दर्य

क. कविता में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। जैसे जीवन-ज्योति नष्ट नयनों की पंक्ति में ‘ज’ वर्ण की पुनरावृत्ति हुई है। कविता में से अनुप्रास अलंकार छाँटकर लिखिए।
ख. निम्नलिखित उदाहरण में ‘पतझड़ के साथ हरियाली का प्रयोग कर काव्य में विरोधाभास के सौन्दर्य को प्रस्तुत किया गया है। कविता में से इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ छाँटिए।
उदाहरण-
है पतझड़ की हरियाली
पतझड़ की हरियाली है।
उत्तर-(क) ‘सुख-सुहाग, शाही शान, मनोकामना मतवाली, घनी घटा. मस्ती मगन. मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद, काबा-काशी, पूजा-पाठ, जप-तप, अपने आँगन और मात्र मोदे।

1. शाहीशान भिखारिन की है।
भिखारिन की शाही शान है।

2. दीपशिखा है अंधकार की।
अंधकार की दीपशिखा है

3. सुधा-धार यह नीरस दिल की।
नीरस दिल की यह सुधा-धार।

बालिका का परिचय योग्यता-विस्तार

प्रश्न
1. भारतीय संस्कृति में ‘कन्या’ के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए दो अनुच्छेद लिखिए।
2. धर्म अनेक परन्तु सन्देश एक है। हिन्दू, मुसलमान, और ईसाई, धर्मों के मूल आदर्श जानिए, उनकी और शिक्षाओं और मूल्यों के चार्ट तैयार कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

बालिका का परिचय परीक्षोपयोग अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘सुधा-धार यह नीरस दिल की’ का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘सुधा-धार यह नीरस दिल की’ का आशय है-बालिका का अद्भुत प्रभाव। किसी माँ के लिए उसकी बालिका अमृत की धारा के समान होती है। अर्थात् बालिका अपनी माँ के सूनेपन को दूर कर उसमें चंचलता और सजीवता ला देती है।

प्रश्न 2.
इस कविता में किसके परस्पर संबंध को चित्रित किया गया है?
उत्तर
इस कविता में माँ और बेटी के परस्पर संबंध को चित्रित किया गया है।

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प्रश्न 3.
इस कविता में कवयित्री की कौन-सी भावना प्रकट हुई है?
उत्तर
इस कविता में कवयित्री की ‘बेटी माँ के भविष्य की निर्मात्री है’ यह भावना प्रकट हुई है।

बालिका का परिचय दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इस कविता में रूपक अलंकार की छटा है। आप उन्हें छाँटकर लिखिए।
उत्तर
सुख-सुहाग की लाली, सुधा-धार और जीवन-ज्योति।

प्रश्न 2.
कवयित्री ने बालिका के लिए कौन-कौन से उदाहरण प्रस्तुत किए हैं?
उत्तर
कवयित्री ने बालिका के लिए.अँधेरे में दीपक, घटा का उजाला, आँखों की ज्योति. ईशामसीह की क्षमा, नबी मुहम्मद का विश्वास, महावीर स्वामी और महात्मा गौतम बुद्ध की दया को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है।

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प्रश्न 3.
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान विरचित कविता ‘बालिका का परिचय’ का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत कविता ‘बालिका का परिचय’ कवयित्री श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की भाववर्द्धक कविता है। सुभद्राकुमारी चौहान ने इसमें वात्सल्य रस को उड़ेल दिया है। इसे लक्ष्य कर लिखी गई यह रचना ‘बालिका का परिचय’ आज भी मील का पत्थर कही जा सकती है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री का मानो उनका मातृ हदय ही साकार हो उठा है। वे नन्हीं बालिका को अधिक प्रभावशाली रूप में अनुभव करती हैं। इसके लिए वे बालिका को अँधेरे में दीपक, घटा का उजाला, नयनों की ज्योति, ईशा की क्षमा, मुहम्मद का विश्वास तथा गौतम की दया जैसे अनेक यशस्वी प्रतीकों के रूप में देखती हैं। इस प्रकार हम यह देखते हैं कि उन्होंने माँ और शिशु के बीच के रागात्मक सम्बन्ध का नैसर्गिक चित्रण किया है। “बेटियाँ भविष्य की निर्माता हैं।” कवयित्री की यही भावना उनकी इस कविता में दिखाई देती है।

बालिका का परिचय कवयित्री-परिचय

प्रश्न
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान वीर रस की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री हैं। जीवन परिचय-श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म सन् 1904 में उत्तर प्रदेश के प्रयाग के निहालपुर महसे में श्री रामनाथ सिक नामक एक सुशिक्षित परिवार में हुआ था। आपके पिता सम्पन्न, ईश्वरभक्त, उदार, विद्यानुरागी एवं राष्ट्रीय-विचारधारा वाले व्यक्ति थे। आपकी प्रतिभा बचपन से ही विलक्षण थी। इससे प्रभावित होकर आपकी शिक्षा की समुचित व्यवस्था हुई थी। आप प्रयाग के क्राइस्ट कालेज में अध्ययन करते समय काव्य-रचना किया करती थीं। उस समय भी आपकी कविताएँ राष्ट्रीय-भावों से ओत-प्रेत हुआ करती थीं। उसमें तत्कालीन राष्ट्रीय-आन्दोलनों की झलक, स्वदेश-प्रेम और राष्ट्रीयता की बलवती भावना मुखरित होती थी। ये ही भावनाएँ आपकी आगामी कविता की प्रेरणा-शक्ति बनकर आयीं। ‘कर्मवीर’ पत्र में प्रकाशित रचनाओं के माध्यम से आपकी ख्याति अमर हो गई। आपका विवाह सन् 1919 में खण्डवा निवासी ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान से हुआ। पति की स्वीकृति लेकर आपने अपने अध्ययन का क्रम नहीं छोड़ा। बनारस के थियोसोफिकल स्कूल में प्रवेश लेकर अध्ययन जारी रखा। महात्मा गाँधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आन्दोलन में आपने जमकर भाग लिया। फलतः आपको कई बार जेल जीवन बिताना पड़ा। इस स्थिति में भी आपने अपनी पारिवारिक व्यवस्था को अव्यवस्थित नहीं होने दिया। सन् 1934 ई. में आप विधान-परिषद् की सदस्या बनीं। सन् 1948 ई. में एक मोटर दुर्घटना में आपकी असामयिक मृत्यु हो गई।

कृतियाँ-आपकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं

1. काव्य-संग्रह-

  • ‘मुकुल’
  • ‘नक्षत्र’
  • त्रिधारा’

2. कहानी-संग्रह

  • ‘सीधे-साधे चित्र’
  • ‘बिखरे मोती’
  • ‘उन्मादिनी’।

3. बाल-साहित्य-‘सभा के खेल’। भाषा-शैली-श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की भाषा सरल और प्रवाहमयी है। वह रोचक और हृदयस्पर्शी है। उसमें ओज और वेग है। वीर रस, करुण रस, वात्सल्य, शान्त रस आदि आपके प्रिय रस हैं। उपमा, अनुप्रास, मानवीकरण, उत्प्रेक्षा आदि आपके रुचिप्रद अलंकार हैं। बिम्बों और प्रतीकों के प्रयोग आपने यथावत् किए हैं। श्रीमती सुभ्रदा कुमारी चौहान की शैली चित्रात्मक, काव्यात्मक और भावात्मक गरसमें प्रवाहमयता और बोधगम्यता नामक शैलीगत विशेषताएँ अधिक रूप में दिखाई देती हैं। मूल रूप से आपकी शैली उपदेशात्मक और प्रेरणादायक है। वह सहज होकर भी कठिन दिखाई देती है।

साहित्यिक महत्त्व-श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान का साहित्यिक महत्त्व वीर रस काव्य-क्षेत्र में सर्वोच्च है। आपने राजनीति और साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में अपनी बहुत बड़ी पहचान बनाई है। यही नहीं आपने ग़द्य-पद्य दोनों ही साहित्यिक विधाओं का सफलतापूर्वक निर्वाह किया है। एक ओर जहाँ ‘झाँसी की रानी’ कविता हर युवक की जबान पर है, वहीं दूसरी ओर बचपन सम्बन्धी कविताएँ प्रत्येक को मधुर बचपन की याद दिलाती हैं। यही नहीं आप एक सफल कहानी लेखिका भी हैं। आपकी कहानियों में नारी-जीवन, शोषित-समाज और पारिवारिक-जीवन का मार्मिक चित्रण है। आपका साहित्यिक-महत्त्व रखने के लिए आपके काव्य-संग्रह ‘मुकुल’ पर सन् 1931 ई. में आपको सेक्सरिया पुरस्कार मिला था।

बालिका का परिचय कविता का सारांश

प्रश्न
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान-विरचित कविता ‘बालिका का परिचय’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान-विरचित कविता ‘बालिका का परिचय’ माता के हृदय के भावों को प्रकट करने वाली एक ज्ञानवर्द्धक कविता है। इस कविता का सारांश इस प्रकार है कवयित्री अपनी बेटी के प्रति अपने वात्सल्य भावों को उडेलती हई कह रही है कि वह उनकी गोदी की शोभा और सुख-सुहाग की लालिमा है। वह अंधकार की दीपशिखा, घनी घटाओं की चमक, उषा काल में कमल-भंगों (भौरी) की तरह सुखदायक है,तो पतझड़ की हरियाली है। नीरस और उदास हदय में अमत की धारा बहाने वाली है तो मस्त मगन तपस्वी के समान है। ज्योति खोई आँखों की जीवन-ज्योति और मनस्वी की सच्ची लगन है। बीते हुए बचपन की क्रीड़ामयी वाटिका है। यह तो मेरे लिए मन्दिर-मस्जिद, काबा-काशी के समान है। यह तो मेरी पूजा-पाठ, ध्यान, जप-तप है। उसने अपने आँगन में बालक कृष्ण की क्रीड़ाओं को देखा है। माता कौशल्या की प्रसन्नता को अपने मन के भीतर देखा। आओ सभी ईशामसीह की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद के विश्वास, और गौतम बुद्ध का जीवों के प्रति दया की भावना को बालिका के पास आकर देख लें। अगर कोई उससे परिचय पूछ रहा है, तो वह उसका किस प्रकार परिचय दे सकती है। उसे तो वही अच्छी तरह से जान सकता है, जिसमें माता का दिल है।

बालिका का परिचय संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौन्दर्य व विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. यह मेरी गोदी की शोभा,
सुख सुहाग की है लाली।
शाही शान भिखारिन की है,
मनोकामना मतवाली ॥1॥

दीपशिखा है अंधकार की,
घनी घटा की उजियाली।
उषा है यह कमल-भंग की,
है पतझड़ की हरियाली ॥2॥

शब्दार्थ-सुहाग-सौभाग्य। शाही-सम्पन्नता, वैभव। शान-स्वाभिमान। दीप शिखा-दीपक की लौ। भृग-मौंरा।

प्रसंग-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती-हिन्दी सामान्य’ में संकलित तथा श्रीमती सुभद्रा कुमारी विरचित कविता ‘बालिका का परिचय’ से है। इसमें कवयित्री ने अपनी बेटी को अपनी गोद की शोभा और सुख-सौभाग्य की लालिमा मानते हुए कहा है कि

व्याख्या-यह मेरी बिटिया मेरी गोद की शोभा और मेरे सुख-सौभाग्य की लालिमा है। यह मेरे लिए भिखारिन की शाही शान और मेरी स्वच्छन्द मनोकामना को पूरी करने के लिए मानो मतवाली बनी रहती है। यह मेरे दुख-अभाव रूपी अंधकार की दीपशिखा और कठिनाइयों की उमड़ती घटाओं के बीच उत्पन्न आशा रूपी उजियाली है। यही नहीं, यह तो मेरे लिए वैसे ही सुखकर और आनन्द है, जैसे उषा के होने पर कमलों-भौरों को आनन्द और सुख मिलता है। इसी प्रकार यह मेरे जीवन में आए पतझड़ के लिए हरियाली स्वरूप है। कहने का भाव यह कि मेरी बिटिया मेरे जीवन के लिए हर प्रकार से सुखद और आनन्ददायक है।

विशेष-

  1. कवयित्री का वात्सल्य भाव सच्चे रूप में है।
  2. वात्सल्य रस का संचार है।
  3. भाषा सरल और सुबोध है।
  4. रूपक अलंकार है।

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1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पयांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(i) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-विधान वात्सल्य रस से लबालब है। उसे रूपक अलंकार से आकर्षक बनाकर सरल और सुबोध शब्दावली से रोचक बनाने का प्रयास सचमुच में सराहनीय है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाव-योजना में सरलता और स्वाभाविकता है, तो रोचकता और प्रवाहमयता भी है। इस तरह यह पद्यांश भाववर्द्धक रूप में है। यह कहा जा सकता है।

2. पयांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश में कवयित्री ने क्या किया है?
(ii) बालिका का चरित्र कैसा है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश में कवयित्री ने बालिका का परिचय दिया है।
(ii) बालिका का चरित्र अत्यधिक विशुद्ध और स्वाभाविक है।

2. सुपा-धार यह नीरस दिल की मस्ती मगन तपस्वी की।
जीवन ज्योति नष्ट नयनों की सच्ची लगन मनस्वी की॥3॥

बीते हुए बालपन की यह क्रीड़ा पूर्ण वाटिका है।
वही मचलना, वही किलकना हँसती हुई नाटिका है।।4।।

शब्दार्च
सुधा-धार-अमृत की धार। नयनों-आँखों। मनस्वी-बुद्धिमान। बालपन-बचपन। नाटिका-नाटक करने वाली।

प्रसंग-पूर्ववत । इसमें कवयित्री ने अपनी बिटिया को नीरस दिल में अमृत धारा प्रवाहित करने वाली मानते हुए कहा है।

व्याख्या-मेरी बिटिया मेरे नीरस हृदय के लिए अमृत की धारा है। इसकी मस्ती और प्रसन्नता किसी तपस्वी से कम नहीं है। आँखों की गयी हुई रोशनी को वापस लाने वाली यह जीवन की ज्योति के समान है। इसमें बुद्धिमानों की तरह सच्ची लगन है। यह मेरे बीते हुए बचपन को लौटाने वाली क्रीड़ामयी वाटिका की तरह है। इसका मचलना और किलकना किसी हँसती हुई नाटिका से किसी प्रकार कम नहीं है।

विशेष-

  1. भाषा की शब्दावली सरल और सुबोध है।
  2. शैली चित्रात्मक है।
  3. रूपक अलंकार है।
  4. वात्सल्य रस का संचार है।

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1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न(i) प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) प्रस्तुत पयांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-स्वरूप सरल और सुबोध शब्दावली से होकर वात्सल्य रस में प्रवाहित हुआ है। इसमें चमत्कार लाने के लिए किया गया रूपक अलंकार का प्रयोग मन को और लुभा रहा है।
(ii) प्रस्तुत पयांश की भाव-योजना हृदय को बड़ी आसानी से छू रही है। बालिका के प्रति वात्सल्य भावना की सच्चाई की रोचकता निश्चर्य ही आकर्षक है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) बालिका को किन-किन रूपों में प्रस्तुत किया गया है?
(ii) बालिका के चरित्रोल्लेख से क्या अनुभूति होती है?
उत्तर
(i) बालिका को अमृत की धारा, मस्त मगन तपस्वी, जीवन-ज्योति, मनस्वी की सच्ची लगन, क्रीड़ामयी वाटिका और हँसती हुई नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
(ii) बालिका के चरित्रोल्लेख से बीते हुए बचपन की अनुभूति होती है।

3. मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद
काबा-काशी यह मेरी।
पूजा-पाठ, ध्यान-जप-तप है
घट-घट वासी यह मेरी ॥5॥

कृष्णचन्द्र की क्रीड़ाओं को
अपने आँगन में देखो।
कौशल्या के मात्र-मोदे को।
अपने ही मन में लेखो ॥6॥

शब्दार्थ-काबा-मुसलमानों का धार्मिक स्थान । घट-घट बासी-अन्दर निवास करने वाला परमात्मा। कृष्णचन्द्र-बालक श्रीकृष्ण। लेखो-देखो।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवयित्री ने बालिका को धर्मस्वरूप मानते हुए कहा है कि

व्याख्या-मेरे लिए यह मेरी बेटी मन्दिर-मस्जिद, काबा, काशी के समान अत्यन्त पवित्र है। यह मेरे लिए पूजा-पाठ और ध्यान, जप-तप के समान है। यह मेरे घट-घट में निवास करती है। इस प्रकार मैंने अपनी बालिका को अपने आँगन में अनेक प्रकार के खेल-खेलते हुए देखा, तो मुझे ऐसा लगा मानो बालक श्रीकृष्ण ही मेरे ऑगन में बाल-क्रीड़ा कर रहे हैं। इसे आप लोग भी अपनी-अपनी बालिकाओं में देख सकते हैं। इस प्रकार माता कौशल्या के आनन्द को अपने मन में अनुभव कर सकते हैं।

विशेष-

  1.  भाषा में सजीवता है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. वात्सल्य रस का प्रवाह है।
  4. सामाजिक शब्दावली है।

1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश वात्सल्य रस की सहज धारा से प्रवाहित है, जो सरल शब्दावली से पुष्ट हुआ है। अनुप्रास अलंकार (कृष्णचन्द्र की क्रीड़ाओं की, अपने आँगन, मात्र मोदे और मन में) के आकर्षक प्रयोग से यह पद्यांश प्रभावशाली बन गया है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य सरल, स्वाभाविक और भाववर्द्धक है। यह पूरी तरह से बोधगम्य और हृदय को छू लेने वाला है। बालक के चरित्र की पवित्रता का उल्लेख सचमुच में बड़ा ही अनूठा है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न-10 बालिका की पवित्रता कैसी है?

(i) बालिका की बाल-लीला कैसी होती है? उत्तर-0 बालिका की पवित्रता मन्दिर, मस्जिद, काबा और काशी जैसी है।
(ii) बालिका की बाललीला बालक राम-कृष्ण जैसी होती है।

4. प्रभु ईशा की क्षमाशीलता
नवी मुहम्मद का विश्वास।
जीव दया जिनवर गौतम की
आओ देखो इसके पास ॥7॥

परिचय पूछ रहे हो मुझसे
कैसे परिचय हूँ इसका।
वहीं जान सकता है इसको
माता का दिल है जिसका ॥8॥

शब्दार्थ-ईशा-ईशामसीह। नबी-इस्लाम धर्म के महापुरुष। जिनवर-तीर्थकर/ महावीर स्वीमी।

प्रसंग-पूर्ववत्। उसमें कवयित्री ने बालिका को संसार के महापुरुष के समान बतलाने का प्रयास किया है। इसके लिए कवयित्री का कहना है कि

व्याख्या-चूँकि बालिका का तन-मन स्वच्छंद और पवित्र भावों से भरा होता है।

इसलिए उसमें ईशामसीह की क्षमाशीलता और नबी-मुहम्मद के अटूट विश्वास को समझा जा सकता है। यही नहीं, उसमें महावीर स्वामी और महात्मा गौतम बुद्ध के जीवों के प्रति अपार दया की भावना जैसे अद्भुत और अनोखे उच्च गुणों को देखा-परखा जा सकता है। कवयित्री का पुनः कहना है कि अगर कोई उससे बालिका का परिचय पूछे तो वह क्या दे सकती है। उसका तो यही कहना है कि बालिका को एक माता का दिल ही सचमुच में जान सकता है।

विशेष-

  1. बालिका के उदार और विशाल हृदय को अत्यधिक श्रेष्ठ कहा गया है।
  2. ईशामसीह, नबी, मुहम्मद, महावीर स्वामी और महात्मा गौतम बुद्ध से बालिका की तुलना की गई है। इसलिए इसमें उपमा अलंकार है।
  3. उदाहरण शैली है।
  4. सम्पूर्ण कथन अत्यधिक रोचक है।

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1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश को उपमा अलंकार की झड़ी लगाकर अधिक आकर्षक बनाने का प्रयास सचमुच में प्रशंसनीय है। इसे और रोचक बनाने के लिए भाषा को धारदार बनाकर कथन की सच्चाई का सामने लाया गया है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-विधान स्वाभाविक, यथार्थपूर्ण, विश्वसनीय और हदयस्पर्शी है। बालिका की अद्भुत विशेषता को महानतम रूप में लाने का कवयित्री का प्रयास न केवल अनूठा है, अपितु प्रेरक भी है।

2. पयांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) बालिका के असाधारण गुण कौन-कौन से हैं?
(ii) बालिका की सच्चाई को कौन बता सकता है?
उत्तर
(i) बालिका के असाधारण गुण हैं-ईशामसीह की क्षमाशीलता, नवी-मुहम्मद का विश्वास, महावीर स्वामी और महात्मा गौतम बुद्ध के जीवों के प्रति दया-भावना।
(ii) बालिका की सच्चाई माता ही बता सकती है।

MP Board Class 9th Hindi Solutions

MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध

MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध

1. सन्धि

दो वर्णों के मेल को सन्धि कहते हैं;

जैसे-

विद्या + आलय = विद्यालय, रमा + ईश = रमेश आदि।

सन्धि के भेद-सन्धि तीन प्रकार की होती हैं-

  1. स्वर सन्धि,
  2. व्यंजन सन्धि,
  3. विसर्ग सन्धि।

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(1) स्वर सन्धि
स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल में जो परिवर्तन होता है, वह स्वर सन्धि कहलाता है;

जैसे-

पुस्तक + आलय = पुस्तकालय, विद्या + अर्थी = विद्यार्थी। स्वर सन्धि के पाँच प्रकार होते हैं

(अ) दीर्घ सन्धि-हस्व या दीर्घ अ,इ, उ, ऋ के बाद ह्रस्व या दीर्घ समान स्वर आये तो दोनों के मेल से दीर्घ स्वर हो जाता है।

जैसे-

हत + आश = हताश, कपि + ईश = कपीश, भानु + उदय = भानूदय आदि।

(आ) गुण सन्धि-अ या आ के बाद इ या ई आये तो दोनों के स्थान पर ए हो जाता है। अ या आ के बाद उ या ऊ आये तो ओ हो जाता है और अ या आ के बाद ऋ आये तो अर् हो जाता है।

जैसे-

देव + ईश = देवेश, वीर + उचित = वीरोचित,महा + ऋषि = महर्षि।

(इ) वृद्धि सन्धि–यदि अ या आ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ हो जाते हैं और अ या आ के बाद ओ या औ हो तो दोनों मिलकर औ हो जाते हैं;

जैसे-

सदा + एव = सदैव,महा + औषध = महौषध।

(ई) यण सन्धि–यदि हस्व या दीर्घ इ.उ.ऋके बाद कोई असमान स्वर आये तो इ का य,उ का व् एवं ऋ का र् हो जाता है;

जैसे-

  • प्रति + एक = प्रत्येक,
  • सु + आगत = स्वागत,
  • पित्र + आदेश = पित्रादेश।

(3) अयादि सन्धि–यदि ए.ऐ ओ औ के बाद कोई स्वर आये तो ए का अय.ऐ का आय, ओ का अव् और औ का आव् हो जाता है;

जैसे-

  • ने + अन = नयन,
  • नै + अक = नायक,
  • पो + अन = पवन,
  • पौ + अक = पावक।

(2) व्यंजन सन्धि
व्यंजन वर्ण के बाद व्यंजन या स्वर वर्ण के आने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं;

जैसे-

  • जगत + ईश = जगदीश,
  • जगत + नाथ = जगन्नाथ।

(i) श्चुत्व सन्धि–यदि ‘स’ तथा त वर्ग के योग में (आगे या पीछे) ‘श’ या च वर्ग आये, तो ‘स’ के स्थान पर ‘श’ और त वर्ग के स्थान पर च वर्ग हो जाता है;

जैसे-

  • हरिस् + शेते = हरिश्शेते
  • सत् + चयन = सच्चयन
  • सत् + चरित = सच्चरित
  • श्यामस + शेते = श्यामश्शेते

(ii) ष्टनाष्ट सन्धि-यदि ‘स’ तथा त वर्ग के योग में (आगे या पीछे) ‘स’ और त वर्ग कोई भी हो तो स् का और त वर्ग का ट वर्ग (ट,ठ, ड, ढ, ण) हो जाता है;

जैसे-

  • रामस् + टीकते = रामष्टीकते
  • पेष् + ता = पेष्टा
  • तत् + टीका = तट्टीका
  • उद् + डयन = उड्डयन

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(iii) अपदान्त सन्धि-झल् अर्थात् अन्तःस्थ य र ल व् और अनुनासिक व्यंजन को छोड़कर और किसी व्यंजन के पश्चात् झश् आवे तो पहले वाले व्यंजन जश् (ज, व, ग, ड,द) में बदल जाते हैं;

जैसे-

  • योध् + धा = योद्धा
  • एतत् + दुष्टम् = एतदुष्टम्
  • बुध् + धिः = बुद्धिः
  • दुध् + धम् = दुग्धम्

(iv) चरत्व सन्धि–यदि जल् (अनुनासिक व्यंजन) ड,ज,ण, न,म् तथा अन्तःस्थ-य् र् ल् व् को छोड़कर किसी भी व्यंजन के बाद ख्र (वर्ग का प्रथम, द्वितीय व्यंजन) क् च् त् प् तथा श् ष् स् में से कोई आये, तो झल् के स्थान चर् (उसी वर्ग का प्रथम अक्षर) हो जाता है;

जैसे-

  • वृक्षात् + पतति = वृक्षात्पतति
  • विपद् + कालः = विपत्काल
  • सद् + कारः = सत्कार
  • तज् + शिवः = तत्छिव

(v) अनुस्वार सन्धि-यदि पद के अन्त में ‘म्’ आये और उसके बाद कोई व्यंजन आवे तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार (-) हो जाता है। यथा

  • हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे
  • गृहम् + चलति = गृहं
  • चलति गृहम् + गच्छति = गृहं गच्छति
  • सत्यम् + वद = सत्यं वद
  • कार्यन् + कुरु = कार्यं कुरु

(vi) लत्व सन्धि–यदि त वर्ग (त् थ् द् ध् न्) के बाद ल आये तो त वर्ग के स्थान पर ल हो जाता है;

जैसे-

  • तत् + लीन = तल्लीन
  • उद् + लेख = उल्लेख

(vii) परसवर्ण सन्धि–यदि अनुस्वार (-) के बाद श, ष,स, ह को छोड़कर कोई अन्य व्यंजन आए तो अनुस्वार के स्थान पर अगले वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है;

जैसे-

  • शां + त = शान्त
  • अं + क = अंक

(3) विसर्ग सन्धि
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मिलने से जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं;

जैसे-

  • निः + आशा = निराशा,
  • मनः + ताप = मनस्ताप।

विग्रह-शब्द के वर्गों को अलग-अलग करना विग्रह या विच्छेद कहलाता है;

जैसे-

  • रमेश = रमा + ईश,
  • वस्त्रालय = वस्त्र + आलय।

(i) विसर्ग सन्धि–विसर्ग के बाद यदि ‘खर्’ प्रत्याहार का कोई वर्ण (वर्ग का प्रथम, द्वितीय तथा श् ष स) रहे, तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है;

जैसे-

  • विष्णुः + माता = विष्णुस्माता
  • रामः + मायते = रामस्मायते
  • निः + छलः = निश्छल = निश्छल

(ii) रुत्व सन्धि-पदान्त ‘स्’ तथा सजुष् शब्द के ष् के स्थान में (र) हो जाता है। इस पदान्तर के बाद र द् प्रत्याहार (वर्गों के प्रथम, द्वितीय और स्) का कोई अक्षर हो अथवा कोई भी वर्ण न हो,तो र के स्थान में विसर्ग हो जाता है;

जैसे-

  • हरिस् + अवदत् = हरिरवदत्
  • वधूस + एषा = बधूरेषा
  • पुनस् + आगत = पुनरागत
  • पुनस् + अन्तरे = पुनरन्तरे

(iii) उत्व सन्धि-स् के स्थान में जो र् आदेश होता है, उसके पूर्व यदि ह्रस्व अ आवे और बाद में ह्रस्व अ अथवा हश् प्रत्याहार का कोई अक्षर आवे,तो र के स्थान में उ हो जाता है;

जैसे-
शिवस् + अर्घ्यः = शिवर् + अर्घ्यः = शिव + उ + अर्घ्यः = शिवो + अर्ध्यः = शिवोऽर्यः . रामस् + अस्तिरामर् + अस्ति = राम + उ + अस्ति = रामोऽस्ति सः + अपि = सस् + अपि = सर् + अपि = स + उ + अपि = सोऽपि। बालस् + वदति = बालर् + वदति = बाल + उ + वदति = बालो वदति

(iv) र लोप सन्धि-यदि ‘र’ के बाद ” आए तो पहले ‘र’ का लोप हो जाता है और यदि लुप्त होने वाले ‘र’ से पूर्व अ, इ, उ में से कोई हो, तो वह स्वर दीर्घ हो जाता है; जैसे-

  • हरिर् + रम्यः = हरीरम्यः
  • शम्भुर् + राजते = शम्भूराजते।

सन्धि-विग्रह-सन्धि के जोड़े गये वर्गों को अलग-अलग करना विच्छेद कहा जाता है। जैसे-‘पुस्तकालय’ का सन्धि-विच्छेद ‘पुस्तक + आलय’, ‘महेश’ का सन्धि-विच्छेद ‘महा + ईश’ होगा।

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अन्य उदाहरण-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-1
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-2

2. समास

दो या दो से अधिक पदों के योग से बने शब्द को समास कहते हैं। समास छ: प्रकार के होते हैं

(1) अव्ययीभाव समास-जिस समास में प्रथम पद अव्यय हो तथा वह पद ही प्रधान हो, वहाँ अव्ययीभाव समास होता है।
जैसे-
प्रतिदिन–प्रत्येक दिन, यथाशक्ति-शक्ति के अनुसार, आजीवन-जीवनपर्यन्त या जीवनभर।

(2) तत्पुरुष समास-जिस समास में उत्तर पद प्रधान होता है तथा पूर्व पद के कारक (विभक्ति) का लोप करके दोनों पदों को मिला दिया जाता है, वहाँ तत्पुरुष समास होता है।
जैसे-
मन्त्रीपुत्र-मन्त्री का पुत्र,समुद्रयात्रा-समुद्र की यात्रा, विद्यालय [2009] विद्या का आलय, व्यायामशाला व्यायाम की शाला,पर्वतमाला-पर्वतों की माला,दुर्गपति-दुर्ग का पति।

विभक्तियों के भेद के आधार पर इसके कर्म तत्पुरुष, करण तत्पुरुष, सम्प्रदान तत्पुरुष, अपादान तत्पुरुष, सम्बन्ध तत्पुरुष तथा अधिकरण तत्पुरुष छ: प्रकार के होते हैं।

(3) कर्मधारय समास-विशेषण और विशेष्य अथवा उपमान और उपमेय के मिलने पर कर्मधारय समास होता है।
जैसे-
श्वेताम्बर-श्वेत है जो अम्बर, मधुरस-मधुर रस, घनश्याम-घन के समान श्याम।

(4) द्वन्द्व समास-इस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं, परन्तु उसके संयोजक शब्द ‘और’ का लोप रहता है। [2010]
जैसे-
आदान-प्रदान-आदान और प्रदान, भाई-बहिन-भाई और बहिन, राम-कृष्ण-राम और कृष्ण,शत्रु-मित्र-शत्रु और मित्र, पिता-पुत्र-पिता और पुत्र।

(5) द्विगु समास-जिस समास में पूर्व पद- संख्यावाचक हो वह द्विगु समास कहलाता है। [2009]
जैसे-
सप्तद्वीप-सात द्वीपों का समूह, त्रिभुवन-तीन भुवनों का समूह, अष्टकोण-आठ कोण, षडानन—षट् मुख।

(6) बहुब्रीहि समास-जिस समास में पूर्व एवं उत्तर पद के अतिरिक्त कोई अन्य पद प्रधान होता है, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। [2009]
जैसे-
पंचानन—पाँच मुख वाला = शिव,लम्बोदर-लम्बा है उदर जिसका = गणेश।

विग्रह सहित समास के कुछ उदाहरण-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-3
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-4
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-5

3. वाक्य के प्रकार

शब्दों का वह समूह जिसका कुछ अर्थ निकलता हो, उसे वाक्य कहते हैं। अर्थ के आधार पर वाक्य के आठ प्रकार होते हैं—

  1. विधानार्थ वाक्य-साधारणतः जिस वाक्य में किसी बात का उल्लेख किया जाए, वह विधानार्थक वाक्य कहलाता है।
    जैसे- श्याम नित्यप्रति घूमने जाता है।
  2. निषेधात्मक वाक्य-जिन वाक्यों में ना या निषेध का भाव हो, वे निषेधात्मक वाक्य कहलाते हैं।
    जैसे- राम आज पढ़ने नहीं आयेगा।
  3. प्रश्नवाचक वाक्य-जिन वाक्यों में प्रश्न किया जाये,वे प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते हैं।
    जैसे- क्या आप मेला देखने जायेंगे।
  4. आज्ञार्थक वाक्य-जिन वाक्यों में आज्ञा देने का भाव पाया जाता है, वे आज्ञार्थक वाक्य कहलाते हैं।
    जैसे-तुम विद्यालय जाओ।
  5. उपदेशात्मक वाक्य-उपदेश या परामर्श देने वाले वाक्य उपदेशात्मक वाक्य कहलाते हैं।
    जैसे- गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
  6. इच्छासूचक वाक्य-इच्छा, आशीष या निवेदन प्रकट करने वाले वाक्य इच्छा सूचक वाक्य कहलाते हैं।
    जैसे- ईश्वर करे, तुम्हारी नौकरी लग जाये।
  7. विस्मयादिबोधक वाक्य-हर्ष, शोक, दर्द, भय, क्रोध, घृणा आदि प्रकट करने वाले वाक्य विस्मयादिबोधक वाक्य कहलाते हैं।
    जैसे- आह ! कितना भयानक दृश्य है।
  8. सन्देहसूचक वाक्य-सन्देह या सम्भावना प्रकट करने वाले वाक्य सन्देहसूचक वाक्य कहलाते हैं।
    जैसे- सम्भवतः वह लौट नहीं पायेगा।

4. वाक्य परिवर्तन

एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में बदलना वाक्य परिवर्तन कहलाता है। वाक्य परिवर्तन में अर्थ या भाव का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

विधानार्थ वाक्य से निषेधवाचक वाक्य में परिवर्तन

विधानार्थ वाक्य – निषेधवाचक वाक्य
1. राम घर में सबसे बड़ा है। – घर में राम से बड़ा कोई नहीं है।
2. ताज सबसे सुन्दर इमारत है। – ताज से सुन्दर इमारत कोई नहीं है।
3. रहीम निर्धन है। – रहीम धनवान नहीं है।

विधानार्थक वाक्य से प्रश्नवाचक वाक्य में परिवर्तन
विधानार्थक वाक्य – प्रश्नवाचक वाक्य
1. श्याम मेरा भाई है। – क्या श्याम मेरा भाई है?
2. विवेक धनवान है। – क्या विवेक धनवान है?
3. चिन्मय सो रहा है। – क्या चिन्मय सो रहा है?

विधानार्थक वाक्य से आज्ञावाचक वाक्य में परिवर्तन
विधानार्थक वाक्य – आज्ञावाचक वाक्य
1. पिता का आदर करते हैं। – पिता का आदर करो।
2. विभोर दूध पीता है। – विभोर,दूध पिओ।
3. सुभाष समाज की सेवा करता है। – सुभाष,समाज की सेवा करो। .

विधानार्थक वाक्य से उपदेशात्मक वाक्य में परिवर्तन
विधानार्थक वाक्य – उपदेशात्मक वाक्य
1. राजीव खाना खाता है। – ‘राजीव को खाना खाना चाहिए।
2. मोहन पानी पीता है। – मोहन को पानी पीना चाहिए।
3. सिद्धार्थ सोता है। – सिद्धार्थ को सोना चाहिए।

विधानार्थक वाक्य से विस्मयादिबोधक वाक्य में परिवर्तन
विधानार्थक वाक्य – विस्मयादिबोधक वाक्य
1. वह दृश्य बड़ा सुन्दर है। – वाह ! वह दृश्य कितना सुन्दर है।
2. यह झील बहुत गहरी है। – ओ ! यह झील कितनी गहरी है।
3. रमन बहुत कमजोर हो गया है। – अरे ! रमन कितना कमजोर हो गया है।

5. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

संक्षेप में बात कहना एक विशेषता मानी गई है। अनेक शब्दों के लिए एक शब्द बोलने से ही संक्षिप्तता आती है। सूत्र रूप में बात कहने की परम्परा श्रेष्ठ मानी गई है। अनेक शब्दों के लिए एक शब्द की तालिका में कुछ शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं-

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अनेक शब्द – एक शब्द

  • हाथी को हाँकने का हुक – अंकुश
  • जो जीता न जा सके – अजेय
  • वह बच्चा जिसके माता-पिता न हों – अनाथ [2017]
  • बिना वेतन के काम करने वाला – अवैतनिक
  • जिसका कोई शत्रु न हो – अजातशत्रु
  • जिसके समान दूसरा न हो – अद्वितीय [2010, 17]
  • जो कभी मरता न हो – अमर [2009]
  • जिसकी कोई सीमा न हो – असीम
  • दोपहर के बाद का समय – अपराह्न
  • जो ईश्वर में विश्वास करता है। – आस्तिक [2009, 17]
  • आदि से अन्त तक – आद्योपरान्त
  • इन्द्रियों को जीतने वाला – इन्द्रियजित
  • जिसका हृदय उदार हो – उदार हृदय
  • जिसका उल्लेख करना आवश्यक हो – उल्लेखनीय
  • जिस भूमि में कुछ पैदा न होता हो – ऊसर
  • विद्या पढ़ने वाला – विद्यार्थी
  • सदैव रहने वाला – शाश्वत
  • श्रद्धा करने योग्य – श्रद्धेय
  • जो सब कुछ आनता हो – सर्वज्ञ
  • जो सबसे श्रेष्ठ हो – सर्वश्रेष्ठ
  • जो सबका प्यारा हो – सर्वप्रिय
  • अपने ही बल पर निर्भर रहने वाला। – स्वावलम्बी
  • अपना ही हित चाहने वाला – स्वार्थी
  • हाथ से लिखा हुआ – हस्तलिखित
  • भलाई चाहने वाला – हितैषी
  • क्षण भर में नष्ट होने वाला – क्षणभंगुर
  • जिसकी एक आँख फूटी हो – काणा, काना
  • उपकार मानने वाला – कृतज्ञ
  • किये गये उपकार को न मानने वाला। – कृतघ्न
  • जो छिपाने योग्य हो – गोपनीय
  • जो घृणा के योग्य हो – घृणित
  • जिसके चार भुजाएँ हों – चतुर्भुज
  • इन्द्रियों को जीत लेने वाला – जितेन्द्रिय
  • जानने की इच्छा रखने वाला – जिज्ञासु
  • तीनों लोकों में होने वाला – त्रिलोकी
  • पति-पत्नी का जोड़ा – दम्पत्ति
  • जिसकी आयु लम्बी हो – दीर्घायु
  • दूर की बात जान लेने वाला – दूरदर्शी [2009]
  • कठिनाई से प्राप्त होने वाला – दुर्लभ
  • धर्म में रुचि रखने वाला – धर्मात्मा
  • जो नष्ट होने वाला हो – नश्वर
  • जिसका आकार न हो – निराकार
  • जिसे ईश्वर पर विश्वास न हो – नास्तिक
  • जो एक अक्षर भी न जानता हो – निरक्षर
  • वह स्त्री जिसे पति ने छोड़ दिया हो – परित्यक्ता
  • अपने पति के प्रति ही प्रेम रखने वाली – पतिव्रता स्त्री
  • दूसरों का उपकार करने वाला – परोपकारी
  • मन्दिर में पूजा करने वाला – पुजारी
  • फल खाकर जीने वाला – फलाहारी
  • बहुत से रूप धारण करने वाला – बहरूपिया
  • जिसके जोड़ का कोई और न हो – बेजोड़
  • कम बोलने वाला – मितभाषी
  • कम खर्च (व्यय) करने वाला – मितव्ययी
  • जो मीठा बोलता हो – मृदुभाषी
  • बहत अधिक बोलने वाला – वाचाल
  • जिसका पति मर गया हो – विधवा
  • जिसकी पत्नी मर गई हो – विधुर
  • जो जानने योग्य हो – ज्ञातव्य
  • जो ज्ञान से युक्त हो – ज्ञानी
  • ठेका लेने वाला – ठेकेदार [2016]
  • नीति का बोध कराने वाला – नीतिबोधक [2016]
  • उपासना करने वाला – उपासक [2018]
  • पूजा करने वाला – पुजारी [2018]

प्रश्नोत्तर

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

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बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. ‘वागीश’ किस सन्धि का उदाहरण है? [2009]
(i) स्वर सन्धि
(ii) दीर्घ सन्धि
(iii) विसर्ग सन्धि .
(iv) व्यंजन सन्धि।
उत्तर-
(ii) दीर्घ सन्धि

2. ‘महा + ओजस्वी = महौजस्वी’ में सन्धि है [2011]
(i) गुण सन्धि
(ii) वृद्धि स्वर सन्धि
(iii) यण सन्धि
(iv) दीर्घ सन्धि।
उत्तर-
(ii) वृद्धि स्वर सन्धि

3. ‘नि: + चय = निश्चय’ कौन-सी सन्धि का उदाहरण है? [2016]
(i) विसर्ग
(ii) स्वर
(iii) व्यंजन
(iv) दीर्घ स्वर।
उत्तर-
(i) विसर्ग

4. ‘पथ भ्रष्ट’ में समास है [2011]
(i) सम्प्रदान तत्पुरुष
(ii) करण तत्पुरुष
(iii) अपादान तत्पुरुष
(iv) सम्बन्ध तत्पुरुष।
उत्तर-
(ii) करण तत्पुरुष

5. ‘चौराहा’ में समास है [2015]
(i) द्वन्द्व
(ii) तत्पुरुष
(iii) द्विगु
(iv) अव्ययी भाव।
उत्तर-
(iii) द्विगु

6. किस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं? [2013]
(i) द्वन्द्व
(ii) द्विगु
(iii) बहुब्रीहि
(iv) तत्पुरुष।
उत्तर-
(i) द्वन्द्व

7. ‘पावक’ शब्द उदाहरण है
(i) दीर्घ स्वर सन्धि
(ii) गुण स्वर सन्धि
(iii) वृद्धि स्वर सन्धि
(iv) अयादि स्वर सन्धि।
उत्तर-
(iv) अयादि स्वर सन्धि।

8. सब कुछ जानने वाले को क्या कहा जाता है? [2017]
(i) जानकार
(ii) ज्ञानी
(iii) बहुज्ञानी
(iv) सर्वज्ञ।।
उत्तर-
(iv) सर्वज्ञ।।

9. ईश्वर पर विश्वास रखने वाले को कहा जाता है [2018]
(i) ईश्वरीय
(ii) सेवक
(iii) आस्तिक
(iv) नास्तिक।
उत्तर-
(iii) आस्तिक

10. ‘जिसका कोई आकार हो’ के लिए एक शब्द है-
(i) आकार रहित
(ii) साकार
(iii) पूर्वाकार
(iv) आकार सहित।
उत्तर-
(iv) आकार सहित।

11. ‘नीरस’ का सन्धि-विच्छेद होगा [2014]
(i) निरा + रस,
(ii) निः + रस,
(iii) नि + अरस
(iv) नि + रस।
उत्तर-
(ii) निः + रस,

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. दो वर्णों के मेल को …………… कहते हैं।
2. सन्धि …………….” प्रकार की होती है। [2015]
3. स्वर सन्धि के ………… भेद होते हैं।
4. द्वन्द्व समास में . .. शब्द का लोप होता है।
5. भोजन करके पढ़ाई करो …………… वाक्य है।
6. ‘रमेश को पढ़ना चाहिए।’ …………. वाक्य है।
7. अर्थ के आधार पर वाक्य के प्रकार ………… हैं। [2013]
8. ‘दर्शन शास्त्र को जानने वाला’ …………….” कहलाता है।
9. ‘ईश्वर में …….रखने वाला’ आस्तिक कहलाता है।
10. ‘यात्रा करने वाला’ ………… कहलाता है।
11. रसोईघर ……… समास का उदाहरण है। [2014]
12. द्विगु समास का उदाहरण ……..” है। [2016]
उत्तर-
1. सन्धि,
2. तीन,
3. पाँच,
4. और,
5. सरल,
6. उपदेशात्मक,
7. आठ,
8. दर्शनशास्त्री,
9. आस्था,
10. यात्री,
11. तत्पुरुष,
12. पंचवटी।

सत्य/असत्य

1. दो पदों के मेल को सन्धि कहते हैं।
2. ‘जगदीश’ शब्द में विसर्ग सन्धि है। [2009]
3. पुनर्जन्म में व्यंजन सन्धि है। [2013]
4. मनोहर शब्द में व्यंजन संधि है। [2017]
5. ‘निराला’ शब्द में व्यंजन संधि है। [2018]
6. शुद्ध वाक्य के तीन गुण होते हैं।
7. ‘अरे ! वह मर गया।’ वाक्य विस्मयादिबोधक है।
8. ‘वह देश की रक्षा करता है।’ प्रश्नवाचक वाक्य है।
9. जो कभी नहीं मरता वह अमर कहलाता है। [2015]
10. ‘जानने की इच्छा रखने वाला’ जिज्ञासु कहलाता है।
11. ‘जिसकी एक आँख हो’ अन्धा कहलाता है। [2014]
12. ‘यथाशक्ति’ अव्ययीभाव समास का उदाहरण है। [2012]
13. ‘पुष्प’ का पर्यायवाची शब्द ‘कमल’ है। [2016]
14. ‘पुरुषों में उत्तम’ पुरुषोत्तम कहलाता है। [2016]
उत्तर-
1. असत्य,
2. असत्य,
3. असत्य,
4. सत्य,
5. असत्य,
6. सत्य,
7. सत्य,
8. असत्य,
9. सत्य,
10. सत्य,
11. असत्य,
12. सत्य,
13. असत्य,
14. सत्य।

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सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-6
उत्तर-
1. → (ग), 2. → (क), 3. → (ख), 4. → (ङ), 5. → (घ)।

MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-7
उत्तर-
1. → (ग), 2. → (ङ), 3. → (घ), 4. → (क), 5. → (ख)।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. सन्धि के कितने प्रकार हैं?
2. हरेऽव में कौन-सी सन्धि है?
3. किस समास में विभक्तियों के चिह्नों का लोप होता है?
4. जगन्नाथ का सन्धि-विच्छेद लिखिए। [2018]
5. पुस्तकालय शब्द का सन्धि विग्रह है। [2010]
6. सच्चरित्र का सन्धि विच्छेद कर सन्धि का नाम बताइए। [2017]
7. “राम ! तुम नगर में रहो” यह किस प्रकार का वाक्य है? [2014]
8. ‘हमें पढ़ाई करनी चाहिए’ कैसा वाक्य है?
9. निन्दा करने वाला क्या कहलाता है? [2016]
10. जिसके समान कोई दूसरा न हो। [2012]
11. गागर में सागर भरने का क्या अर्थ है? [2012]
12. उपासना करने वाला क्या कहलाता है? [2014]
13. ‘ईश्वर के अनेकों नाम हैं।’ वाक्य को शुद्ध कीजिए। [2015]
उत्तर-
1. तीन,
2. पूर्वरूप,
3. तत्पुरुष,
4. जगत + नाथ,
5. रमा + ईश,
6. सत् + चरित्र (व्यंजन सन्धि),
7. आज्ञावाचक वाक्य,
8. इच्छात्मक,
9. निन्दक,
10. अद्वितीय,
11. कम शब्दों में बड़ी बात करना,
12. उपासक,
13. ईश्वर के अनेक नाम हैं।

(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों की सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा सन्धि का नाम लिखिएरामावतार, परोपकार, विद्यालय, रमेश, धनादेश, गायक।
उत्तर-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-8

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम बताइएमनोरथ, उच्चारण, सदाचार, शिवालय,महोत्सव।
उत्तर-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-9

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम लिखिएतथैव, अत्यन्त, जगन्नाथ, नरेश।
उत्तर-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-10

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों की सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम लिखिएहिमालय, परमार्थ,मनोरम, निस्सार।
उत्तर-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-11

प्रश्न 5.
स्वर-सन्धि की क्या पहचान है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
स्वर के साथ स्वर का मेल होने पर स्वर सन्धि होती है, जैसे-देवालयः।

प्रश्न 6.
दीर्घ सन्धि किसे कहते हैं?
उत्तर-
जब दो शब्दों ह्रस्व या दीर्घ परस्पर मिलने से जो परिवर्तन होता है,उसे दीर्घ सन्धि कहते हैं।
यथा-विद्यालय।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों में कौन-सी सन्धि हैकश्चित्, नायक, हिमालय।
उत्तर-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-12

प्रश्न 8.
विसर्ग सन्धि की परिभाषा लिखिए।।
उत्तर-
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मिलने से जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं;

जैसे-
मनोरथः = मनः + रथ।

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प्रश्न 9.
समास किसे कहते हैं?
उत्तर-‘
समास शब्द का आशय है-संक्षेप। दो या दो से अधिक शब्दों का अपने विभक्ति चिह्नों को छोड़कर मिलना ही समास कहलाता है।

प्रश्न 10.
सामासिक पद का क्या आशय है?
उत्तर-
जिन शब्दों में समास होता है उनके योग से एक नया ही शब्द बन जाता है, ऐसे पद को सामासिक पद कहते हैं।
जैसे-राजपुत्र = राजा का पुत्र।

प्रश्न 11.
तत्पुरुष समास में कौन-सा पद प्रधान होता है?
उत्तर-
तत्पुरुष समास में अन्तिम पद प्रधान होता है।

प्रश्न 12.
कर्मधारय समास एवं द्विगु समास के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
कृष्णसर्प,श्वेत अश्व – कर्मधारय समास।
पंचवटी,त्रिलोक – द्विगु समास

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो पदों का समास-विग्रह कर समास का नाम बताइएराजपुरुष, दशानन, भाई-बहिन, चन्द्रमुख।
उत्तर-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-13

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो पदों का समास-विग्रह करके समास का नाम लिखिए
सुख-दुःख, नवग्रह, नीलकमल,प्रतिदिन,प्रत्येक।
उत्तर-
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-14
MP Board Class 10th Special Hindi भाषा बोध img-15

प्रश्न 15.
सन्धि और समास में कोई तीन अन्तर लिखिए। [2010, 14]
उत्तर-

  1. सन्धि दो वर्गों के मेल को कहते हैं जबकि दो या दो से अधिक पदों के योग से बनने वाले शब्द को समास कहते हैं।
  2. सन्धि तीन प्रकार की होती हैं जबकि समास छ: प्रकार के होते हैं।
  3. सन्धि को तोड़ना विच्छेद कहलाता है,जबकि समास को तोड़ना विग्रह कहलाता है।

प्रश्न 16.
वाक्य रूपान्तरण से क्या तात्पर्य है? हिन्दी में वाक्य रूपान्तरण कितने प्रकार से किया जाता है? [2014]
उत्तर-
एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में बदलना,वाक्य परिवर्तन अथवा वाक्य रूपान्तरण कहलाता है। वाक्य रूपान्तरण करते समय अर्थ या भाव का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

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जैसा कि हमें ज्ञात है कि अर्थ की दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं। इनमें से विधानवाचक वाक्य को मूल आधार माना जाता है। अन्य वाक्य भेदों में विधानवाचक वाक्य का मूलभाव ही विभिन्न रूपों में परिलक्षित होता है। किसी भी विधानवाचक वाक्य को सभी प्रकार के भावार्थों में प्रयुक्त किया जा सकता है।

जैसे-

  1. विधानवाचक वाक्य-राम भोपाल में रहता है।
  2. विस्मयादिवाचक वाक्य-अरे ! राम भोपाल में रहता है।
  3. प्रश्नवाचक वाक्य-क्या राम भोपाल में रहता है?
  4. निषेधवाचक वाक्य-राम भोपाल में नहीं रहता है।
  5. संदेशवाहक वाक्य-शायद राम भोपाल में रहता है।
  6. आज्ञावाचक वाक्य-राम, तुम भोपाल में रहो।
  7. इच्छावाचक वाक्य-काश,राम भोपाल में रहता।
  8. संकेतवाचक वाक्य-यदि राम भोपाल में रहना चाहता है, तो रह सकता है।

प्रश्न 17.
निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन कीजिए [2009]
(क) मोहित फूल लाता है। (प्रश्नवाचक)
(ख) तुम वाराणसी में रहते हो। (प्रश्नवाचक)
(ग) माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। (आज्ञावाचक)
(घ) गौरव पुस्तक पढ़ता है। (आज्ञावाचक)
उत्तर-
(क) क्या मोहित फूल लाता है?
(ख) क्या तुम वाराणसी में रहते हो?
(ग) माता-पिता की सेवा करो।
(घ) गौरव पुस्तक पढ़ो।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए-
1. गुरु का सम्मान करना चाहिए। (आज्ञावाचक)
2. सीता रो रही है। (प्रश्नवाचक)
3. गुड्ड कक्षा में सबसे छोटा है। (निषेधवाचक)
4. बाढ़ का दृश्य बड़ा भयानक था। (विस्मयादिबोधक)
5. मैं खेती के बारे में अधिक जानता हूँ। [2013] (निषेधात्मक)
6. बादल समय पर पानी नहीं देते हैं। [2013] (विधानवाचक)
7. दीपक बाजार जा रहा है। [2015] (प्रश्नवाचक वाक्य)
8. गणित का प्रश्न-पत्र कठिन है। [2015] (निषेधात्मक वाक्य)
9. तुम्हें अपना गृह कार्य करना चाहिए। [2015] (आदेशात्मक वाक्य)
10. मोहन दिल्ली में रहता है। [2016] (निषेधवाचक)
11. सीता गाना गाती है। [2016] (विस्मयादिसूचक)
12. वह आस्तिक है। [2018] (निषेधवाचक)
13. अशेक रामनगर में रहता है। [2018] (विस्मयादिबोधक)
उत्तर-
1. गुरु का सम्मान करो।
2. क्या सीता रो रही है?
3. कक्षा में गुड़ से छोटा कोई नहीं है।
4. आह ! बाढ़ का दृश्य कितना भयानक था।
5. मैं खेती के बारे में कम नहीं जानता हूँ।
6. बादल असमय पानी देते हैं।
7. क्या दीपक बाजार जा रहा है?
8. गणित का प्रश्न-पत्र सरल नहीं है।
9. तुम अपना गृहकार्य करो।
10. मोहन दिल्ली में नहीं रहता है।
11. वाह ! सीता गाना गाती है।
12. वह नास्तिक नहीं है।
13. अरे ! अशोक रामनगर में रहता है।

प्रश्न 19.
निम्नलिखित वाक्यों को पहचानकर वाक्य के भेद लिखो- [2009]
(क) तुम विद्यालय जाओ।
(ख) मैं चाय नहीं पीता हूँ।
(ग) मैं आज भोजन नहीं करूंगा।
(घ) भगवान तुम्हें स्वस्थ रखे।
उत्तर-
(क) आज्ञार्थक वाक्य।
(ख) निषेधात्मक वाक्य।
(ग) निषेधात्मक वाक्य।।
(घ) इच्छासूचक वाक्य।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित वाक्यों के लिए एक शब्द लिखिए [2009]
(1) जो ईश्वर में विश्वास रखता हो।
(2) बिना वेतन के काम करने वाला।
(3) जिसे क्षमा न किया जा सके।
(4) लकड़ी काटने वाला।
उत्तर-
(1) आस्तिक,
(2) अवैतनिक,
(3) अक्षम्य,
(4) लकड़हारा।

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प्रश्न 21.
निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध रूप में लिखिए-
(क) गरम गाय का दूध पिओ।
(ख) मैं आपको मिलकर प्रसन्न हुआ।
(ग) खरगोश को काटकर गाजर खिलाओ। [2015]
(घ) बाढ़ में कई लोगों के डूबने की आशा है।
(ङ) में आपकी श्रद्धा करता हूँ।
(च) नेताजी को एक फूल की माला पहनाओ।
(छ) अपराधी को मृत्युदण्ड की सजा मिली।
(ज) छात्र कक्षा के अन्दर गया। [2011]
(झ) मैंने गाते हुए लता मंगेशकर को देखा। [2011]
(ज) मुझसे अनेकों भूलें हुईं। [2011]
उत्तर-
(क) गाय का गरम दूध पिओ।
(ख) मैं आपसे मिलकर प्रसन्न हुआ।
(ग) गाजर काटकर खरगोश को खिलाओ।
(घ) बाढ़ में कई लोगों के डूबने की आशंका है।
(ङ) में आप में श्रद्धा रखता हूँ।
(च) फूलों की एक माला नेताजी को पहनाओ।
(छ) अपराधी को मृत्युदण्ड मिला।
(ज) छात्र कक्षा में गया।
(झ) मैंने लता मंगेशकर को गाते हुए देखा।
(ज) मुझसे अनेक भूलें हुईं।

प्रश्न 22.
निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों का शुद्ध रूप लिखिए [2010]
(i) सेठ ज्वालाप्रसाद अच्छा महाजन थे।
(ii) स्त्री शिक्षा पर निवेदिता का विचार स्पष्ट कीजिए।
(iii) राम पुस्तक पढ़ती है।
(iv) अमित को अनुत्तीर्ण होने की आशा है। [2015]
(v) हर्षित शुद्ध गाय का दूध पीता है। [2015]
उत्तर-
(i) सेठ ज्वालाप्रसाद अच्छे महाजन थे।
(ii) स्त्री शिक्षा पर निवेदिता के विचार स्पष्ट कीजिए।
(iii) राम पुस्तक पढ़ता है।
(iv) अमित को अनुत्तीर्ण होने की आशंका है।
(v) हर्षित गाय का शुद्ध दूध पीता है।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों का शुद्ध रूप लिखिए। [2012]
(i) श्याम ने सत्यता को पहचान लिया।
(ii) मैं आपको मिलकर प्रसन्न हुआ।
(iii) बाढ़ में कई लोगों के बह जाने की आशा है।
उत्तर-
(i) श्याम ने सत्य को पहचान लिया।
(ii) मैं आपसे मिलकर प्रसन्न हुआ।
(iii) बाढ़ में कई लोगों के बह जाने की आशंका है।

प्रश्न 24. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए- [2009]
(1) श्रीगणेश करना। [2013, 17]
(2) गढ़े मुर्दे उखाड़ना।
(3) फूला न समाना। [2013]
(4) आँख का तारा होना। [2014]
(5) रंग में भंग होना।
(6) काला अक्षर भैंस बराबर।
(7) हथेली पर सरसों जमाना।
(8) कलेजे पर साँप लोटना।
(9) बाल की खाल खींचना।
(10) तूती बोलना।
(11) दिन-रात एक करना। [2017]
(12) गज भर की छाती होना।
(13) गागर में सागर भरना। [2017]
(14) मान न मान में तेरा मेहमान। [2011]
(15) आग बबूला होना। [2013]
(16) चकमा देना। [2013]
(17) हाथ मारना। [2014]
उत्तर-
(1) श्रीगणेश करना किसी कार्य को प्रारम्भ करना।
प्रयोग-आज बिग बाजार का श्रीगणेश हुआ।

(2) गढ़े मुर्दे उखाड़ना-पुरानी बातें करना।
प्रयोग रमेश तो गढ़े मुर्दे उखाड़ता रहता है। इसके कारण झगड़े होते हैं।

(3) फूला न समाना-प्रसन्न होना।
प्रयोग-प्रथम आने पर रोहित फूला न समाया।

(4) आँख का तारा होना बहुत प्यारा होना।
प्रयोग-श्रीकृष्ण जी अपने माँ-बाप के आँख के तारे थे।

(5) रंग में भंग होना किसी काम में विघ्न पड़ना।
प्रयोग-विवाह समारोह में बारिश पड़ने के कारण लोगों के रंग में भंग पड़ गया।

(6) काला अक्षर भैंस बराबर-अनपढ़ होना।
प्रयोग काजल के लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।

(7) हथेली पर सरसों जमाना-जल्दबाजी करना।
प्रयोग-रवीन्द्र ने सोहन से कहा, तुम तो हथेली पर सरसों जमाना चाहते हो। इस प्रकार मुझसे काम न होगा।

(8) कलेजे पर साँप लोटना-ईर्ष्या करना।
प्रयोग–मेरी लॉटरी निकलने पर रिश्तेदारों के कलेजे पर साँप लोट गया।

(9) बाल की खाल निकालना-कानून निकालना या बारीकी से जाँच-पड़ताल करना।
प्रयोग-सोहन का स्वभाव तो बाल की खाल निकालना है।

(10) तूती बोलना-धाक होना।
प्रयोग-आजकल तो शक्तिशाली लोगों की समाज में तूती बोलती है।

(11) दिन-रात एक करना कठिन परिश्रम करना।
प्रयोग-दिन-रात एक करके मैंने जिले में प्रथम स्थान पाया।

(12) गज भर की छाती होना-प्रसन्न होना।
प्रयोग-अच्छी नौकरी मिल जाने के कारण रोहित के माता-पिता की छाती गज भर की हो गयी।

(13) गागर में सागर भरना-कम शब्दों में बड़ी बात करना।
प्रयोग-बिहारी ने अपने दोहों में गागर में सागर भरा है।

(14) मान न मान मैं तेरा मेहमान-अनाधिकार चेष्टा करना।
प्रयोग कुछ लोग दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप करके इस कहावत को चरितार्थ करते हैं कि मान न मान मैं तेरा मेहमान।

(15) आग बबूला होना अत्यधिक क्रोधित होना।
प्रयोग-श्याम को देखकर महेश आग बबूला हो गया।

(16) चकमा देना-झाँसा देना।
प्रयोग-चोर पुलिस को चकमा देकर भाग गया।

(17) हाथ मारना-प्राप्त करना।
प्रयोग-सुरेश ने अपनी मेहनत के बल पर अल्प समय में ही नौकरी में उच्च पद प्राप्त करके एक बड़ा हाथ मारा है।

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प्रश्न 25.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखिए [2010]
(i) आँख लगना।
(ii) घड़ों पानी पड़ना।
(iii) अक्ल का दुश्मन।
(iv) आँख का काँटा।
उत्तर-
(i) आँख लगना सो जाना।
प्रयोग-अभी मेरी आँख लगी थी कि चोर चोरी करके सारा सामान ले गये।
(ii) घड़ों पानी पड़ना-लज्जित होना।
प्रयोग नकल करते समय पकड़े जाने पर रोहित पर घड़ों पानी पड़ गया क्योंकि सभी छात्रों ने देख लिया था।
(iii) अक्ल का दुश्मन-मूर्ख।
प्रयोग-तुम तो निरे अक्ल के दुश्मन हो, पन्द्रह हजार का टेलीविजन दस हजार में ही बेच आये।
(iv) आँख का काँटा-शत्रु। प्रयोग-विनोद अपने सौतले भाई को आँख का काँटा समझता है।

प्रश्न 26.
लोकोक्ति किसे कहते हैं? एक उदाहरण सहित लिखिए। [2014]
उत्तर-
लोक प्रचलित कथन (उक्ति) को लोकोक्ति कहते हैं। यह विशेष अर्थ व्यक्त करती है। उदाहरण-नाच न जाने आँगन टेढ़ा,न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी आदि।

प्रश्न 27.
निम्नलिखित लोकोक्तियों का अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए- [2011]
(क) भूत मरे पलीत जागे।
(ख) गुदड़ी का लाल।
(ग) आ बैल मुझे मार।
उत्तर-
(क) भूत मरे पलीत जागे-एक दुष्ट के उपरान्त अन्य दुष्ट का उत्पन्न होना।
प्रयोग–पाकिस्तान की धरती पर आतंकवाद का कहर इस प्रकार जमा जैसे भूत मरे पलीत जागे।

(ख) गुदड़ी का लाल-साधारण परिवार में असाधारण व्यक्ति।
प्रयोग-भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री गुदड़ी के लाल थे।

(ग) आ बैल मुझे मार-स्वयं ही मुसीबत मोल लेना।
प्रयोग-घर के बाहर दुश्मन घूम रहे हैं लेकिन मोहन फिर भी रात में बाहर आ गया। यह तो वही बात हुई कि आ बैल मुझे मार।

प्रश्न 28.
निम्नलिखित लोकोक्तियों का अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग कीजिए-[2012]
(क) थोथा चना बाजे घना।
(ख) दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
(ग) हाथ कंगन को आरसी क्या।
उत्तर-
(क) थोथा चना बाजे घना-अकर्मण्य बात बहुत करता है।
प्रयोग-आतंकवादियों को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान विश्व मंच पर आतंकवाद मुक्त विश्व की बात करता है। इसे कहते हैं थोथा चना बाजे घना।

(ख) दूर के ढोल सुहावने होते हैं दूर की वस्तु भली लगती है, असलियत का पता पास से चलता है।
प्रयोग-जी. आई.सी. के अनुशासन और उत्तम परीक्षाफल से प्रभावित होकर मैंने इसमें प्रवेश पा लिया था लेकिन यहाँ के वातावरण को देखकर यही लगता है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

(ग) हाथ कंगन को आरसी क्या प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
प्रयोग-रिश्वत लेते कैमरे पर पकड़े गये नेताजी के लिए जाँच बैठाने की क्या आवश्यकता है। यह तो हाथ कंगन को आरसी क्या वाली बात है।

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प्रश्न 29. आज्ञावाचक वाक्य किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए। [2013]
उत्तर-
जिन वाक्यों में आज्ञा देने का भाव पाया जाता है,वे आज्ञावाचक वाक्य कहलाते हैं।
उदाहरण-
तुम विद्यालय जाओ।

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MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1

प्रश्न 1.
हल कीजिए 24x < 100, जब
(i) x एक प्राकृत संख्या है।
(ii) x एक पूर्णांक है।
हल:
24x < 100
24 से दोनों पक्षों में भाग करने पर
x < \(\frac{30}{-12}\) अर्थात x < \(-\frac{5}{2}\) (i) यदि x एक प्राकृत संख्या है तो हल {1, 2, 3, 4} है। (ii) यदि x एक पूर्णांक संख्या है तो हल {……. – 3, -2, -1, 0, 1, 2, 3, 4}. प्रश्न 2. हल कीजिए : 12x > 30, जब
(i) x एक प्राकृत संख्या है।
(ii)x एक पूर्णांक है।
हल:
– 12x > 30
– 12 से दोनों पक्षों में भाग करने पर,
\(x<\frac{100}{24}\) अर्थात \(x<\frac{25}{6}\)
(i) यदि x प्राकृत संख्या है तो कोई हल नहीं है।
(ii) यदि x पूर्णाक संख्या है तो हल {…..-5, -4 ,-3} है।

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प्रश्न 3.
हल कीजिए : 5x – 3 < 7, जब
(i) x एक पूर्णांक है।
(ii) x एक वास्तविक संख्या है।
हल:
5x – 3 < 7
दोनों पक्षों में 3 जोड़ने पर,
5x < 10
5 से भाग देने पर .
x < \(\frac{10}{5}\) अर्थात x < 2 (i) यदि x एक पूर्णांक संख्या है तो हल {….-2, –1, 0, 1}. (ii) यदि x एक वास्तविक संख्या है तो हल x ϵ (- ∞, 2). प्रश्न 4. हल कीजिए : 3x + 8 > 2, जब
(i) x एक पूर्णांक है।
(ii) x एक वास्तविक संख्या है।
हल:
3x + 8 > 2
3x > 2 – 8 या 3x > – 6
3 से भाग करने पर
x > – \(\frac{6}{3}\) या x> – 2
(i) यदि x एक पूर्णांक संख्या है तो हल {-1, 0, 1, 2 ,….}.
(ii) यदि x एक वास्तविक संख्या है तो हल x ϵ (-2, ∞).

प्रश्न 5.
हल कीजिए : 4x + 3 < 6x + 7.
हल :
4x + 3 < 6x + 7
6x को बाएँ पक्ष में तथा 3 को दाएँ पक्ष में रखने पर,
4x – 6x < 7 – 3
या – 2x < 4 – 2 से भाग देने पर, \(x>\frac{4}{-2}\) या x > – 2
दी हुई असमिका का हल है : x ϵ (- 2, ∞).

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प्रश्न 6.
हल कीजिए :
3x – 7 > 5x – 1.
हल:
3x – 7 > 5x – 1
5x का बाएँ पक्ष में और 7 को दाएँ पक्ष मे रखने पर,
3x – 5x > – 1 + 7
– 2x > 6
– 2 से भाग देने पर
x < – 3
∴ दी हुई असमिका का हल है x ϵ (- ∞, – 3).

प्रश्न 7.
हल कीजिए : 3(x – 1) ≤ 2 (x – 3).
हल:
असमिका
3(x – 1) ≤ 2 (x – 3)
3x – 3 ≤ 2x – 6
2x को बाएँ पक्ष में और 3 को दाएँ पक्ष में रखने पर,
3x – 2x ≤ 3 – 6
या x ≤ – 3
∴ हल है : x ϵ (- ∞, – 3].

प्रश्न 8.
हल कीजिए:
3(2 –x) ≥ 2 (1 –x).
हल:
दी हुई असमिका
3(2 – x) ≥ 2 (1 – x)
6 – 3x ≥ 2 – 2x
2x को बायीं ओर तथा 6 को दायीं ओर रखने पर,
2x – 3x ≥ 2 – 6.
या – x ≥ – 4 या x ≤ 4
∴ हल है : x ϵ (- ∞, 4].

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प्रश्न 9.
हल कीजिए : x + \(\frac{x}{2}+\frac{x}{3}\) < 11
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1 img-1

प्रश्न 10. हल कीजिए: \(\frac{x}{3}>\frac{x}{2}+1\)
हल:
दी हुई असमिका \(\frac{x}{3}>\frac{x}{2}+1\)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1 img-2

प्रश्न 11.
हल कीजिए: \(\frac{3(x-2)}{5} \leq \frac{5(2-x)}{3}\)
हल:
दी हुई असमिका है : \(\frac{3(x-2)}{5} \leq \frac{5(2-x)}{3}\)
दोनों ओर 15 से गुणा करने पर
9(x – 2) ≤ 5 (2 –x)
या 9x – 18 ≤ 50 – 25x
25x को बायीं ओर तथा 18 को दायीं ओर रखने पर,
9x + 25x ≤ 50 + 18
या 34x ≤ 68
या x ≤ 2
∴ दी हुई असमिका का हल है x ϵ (- ∞, 2].

प्रश्न 12 .
हल कीजिए: \(\frac{1}{2}\left(\frac{3 x}{5}+4\right) \geq \frac{1}{3}(x-6)\)
हल:
दी हुई असमिका
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1 img-3

प्रश्न 13.
हल कीजिए :
2(2x + 3) – 10 < 6 (x – 2).
हल:
दी हुई असमिका
2(2x + 3) – 10 < 6(x – 2)
4x + 6 – 10 < 6x – 12
6x को बायीं ओर तथा — 4 को दायीं ओर रखने पर,
4x – 6x < – 12 +4
या – 2x < – 8 (- 1) से गुणा करने पर, x > 4
∴ हल है : x ϵ (4, ∞)

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प्रश्न 14.
हल कीजिए: 37 – (3x + 5) ≥ 9x – 8(x – 3).
हल:
दी हुई असमिका
37 – (3x + 5) ≥ 9x – 8(x – 3)
37 – 3x-5 ≥ 9x – 8x + 24
– 3x + 32 ≥ x + 24
x को बायीं ओर तथा 32 को दायीं ओर रखने पर
– 3x – x ≥ 24 – 32
या – 4x ≥ – 8
(- 1) से गुणा करने पर तथा 4 से भाग देने पर
x ≤ \(\frac{8}{4}\) या x ≤ 2
∴ हल है : x ϵ (- ∞, 2].

प्रश्न 15.
हल कीजिए : \(\frac{x}{4}<\frac{5 x-2}{3}-\frac{7 x-3}{5}\)
हल : दी हुई असमिका \(\frac{x}{4}<\frac{5 x-2}{3}-\frac{7 x-3}{5}\)
60 से दोनों पक्षों में गुणा करने पर ।
15x < 20(5x – 2) – 12 (7x – 3)
या 15x < 100x – 40 – 84x + 36
या 15x < 16x – 4
16x को बायीं ओर लाने पर,
15x – 16x < – 4
या – X < – 4 – 1 से गुणा करने पर x > 4
∴ हल है :
x ϵ (4, ∞)

प्रश्न 16.
हल कीजिए : \(\frac{2 x-1}{3} \geq \frac{3 x-2}{4}-\frac{2-x}{5}\)
हल:
दी हुई असमिका \(\frac{2 x-1}{3} \geq \frac{3 x-2}{4}-\frac{2-x}{5}\)
60 से गुणा करने पर,
20(2x – 1 ) ≥ 15(3x – 2) – 12(2 –x)
या 40x – 20 ≥ 45x – 30 – 24 + 12x
या 40x – 20 ≥ 57x – 54
57x को बायीं ओर तथा 20 को दायीं ओर रखने पर,
40x – 57x ≥ – 54 + 20
– 17x ≥ – 34
– 17 से भाग देने पर
x ≤ 2
∴ हल है :
x ϵ (- ∞, 2].

प्रश्न 17.
से 20 तक की असमिकाओं का हल ज्ञात कीजिए तथा उन्हें संख्या रेखा पर आलेखित कीजिए।
प्रश्न 17.
3x – 2 < 2x + 1.
हल:
दी हुई असमिका 3x – 2 < 2x + 1
2x को बायीं ओर तथा 2 को दायीं ओर रखने पर,
3x – 2x < 1 + 2
या x <3
∴ हल है :
x ϵ (- ∞, 3].
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1 img-4

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प्रश्न 18.
5x – 3 ≥ 3x -5.
हल:
दी हुई असमिका 5x – 3 ≥ 3x – 5
3x को बायीं ओर तथा 3 को दायीं ओर रखने पर,
5x – 3x ≥ – 5 +3
या 2x ≥ – 2
2 से भाग देने पर
x ≥ – 1
∴ हल है x = [- 1, ∞).
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1 img-5

प्रश्न 19.
3(1 – x) < 2 (x + 4)
हल:
दी हुई असमिका
3(1 – x) < 2 (x + 4)
3 – 3x < 2x +8
2x को बायीं ओर तथा 3 को दायीं ओर रखने पर,
– 3x – 2x < 8 – 3
या – 5x < 5 – 5 से भाग देने पर x > – 1
∴ हल है :
x ϵ (- 1, ∞)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1 img-6

प्रश्न 20.
\(\frac{x}{2}<\frac{(5 x-2)}{3}-\frac{(7 x-3)}{5}\)
हल:
दी हुई असमिका \(\frac{x}{2}<\frac{(5 x-2)}{3}-\frac{(7 x-3)}{5}\)
30 से दोनों पक्षों में गुणा करने पर
15x < 10 (5x – 2) – 6(7x – 3)
या 15x < 50x – 20 – 42x + 18
या 15x < 8x – 2
8x को बायीं ओर रखने पर,
15x – 8x < – 2
या 7x < – 2
∴ x < – \(\frac{2}{7}\)
∴ हल है : \(\left(-\infty,-\frac{2}{7}\right)\)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1 img-7

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प्रश्न 21.
रवि ने पहली दो एकक परीक्षा में 70 और 75 अंक प्राप्त किए हैं। वह न्यूनतम अंक ज्ञात कीजिए, जिसे वह तीसरी एकक परीक्षा में पाकर 60 अंक का न्यूनतम औसत प्राप्त कर सके।
हल:
मान लीजिए तीसरे एकक परीक्षा में x अंक प्राप्त किए।
रवि द्वारा प्राप्त अंकों का औसत = \(\frac{70+75+x}{3}\)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.1 img-8
3 से दोनों पक्षों में गुणा करने पर,
145 + x ≥ 180
या x ≥ 180 – 145
या x ≥ 35
अतः रवि को तीसरी परीक्षा में 35 से अधिक या उसके बराबर अंक प्राप्त करने हैं।

प्रश्न 22.
किसी पाठ्यक्रम में ग्रेड A पाने के लिए एक व्यक्ति को सभी पाँच परीक्षाओं (प्रत्येक 100 अंकों में से) में 90 अंक या अधिक अंक का औसत प्राप्त करना चाहिए यदि सुनीता के प्रथम चार परीक्षाओं के प्राप्तांक 87,92, 94 और 95 हों तो वह न्यूनतम अंक ज्ञात कीजिए जिसे पांचवीं परीक्षा में प्राप्त करके सुनीता उस पाठ्यक्रम में ग्रेड A पाएगी।
हल:
मान लीजिए सुनीता ने पांचवीं परीक्षा में x अंक प्राप्त किए।
पाँच परीक्षाओं के प्राप्त अंकों का औसत = \(\frac{87+92+94+95+x}{5}\)
= \(\frac{368+x}{5}\)
प्रश्नानुसार
∴ \(\frac{368+x}{5}\) ≥ 90
5 से दोनों पक्षों में गुणा करने पर
368 + x ≥ 5 x 90
या 368 + x ≥ 450
या x ≥ 450 – 368
∴ x ≥ 82
अतः सुनीता को पाँचवीं परीक्षा में 82 से अधिक या उसके बराबर अंक प्राप्त करने चाहिए।

प्रश्न 23.
10 से कम क्रमागत विषम संख्याओं के ऐसे युग्म ज्ञात कीजिए जिनके योगफल 11 से अधिक हों।
हल:
मान लीजिए x और x + 2 दो विषम परिमेय संख्याएँ हैं।
x तथा x + 2 दोनों ही 10 से कम हैं।
⇒ x < 10 और x + 2 < 10 या x < 8 दोनों का योग 11 से अधिक है। ∴ x + (x + 2) > 11
या 2x + 2 > 11 या 2x > 11 – 2
∴ 2x > 9 या x > \(\frac{9}{2}\), या x > 4 \(\frac{1}{2}\)
अर्थात् यदि x = 5 हो, तब दूसरी संख्या = x + 2 = 7
इसी प्रकार यदि x = 7, तो x + 2 = 9
∴ दूसरा युग्म (7, 9)
x = 9 नहीं हो सकता क्योंकि x + 2 = 11 > 10
अत: वांछित युग्म है (5, 7), (7, 9).

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प्रश्न 24.
क्रमागत सम संख्याओं के ऐसे युग्म ज्ञात कीजिए जिनमें से प्रत्येक 5 से बड़े हों, तथा उनका योगफल 23 से कम हो।
हल:
मान लीजिए x और x + 2 दो सम संख्याएँ हैं।
x और x + 2 दोनों ही 5 से बड़ी है।
⇒ x > 5
और x + (x + 2) < 23
∴ 2x + 2 < 23
या 2x < 23 – 2 = 21
∴ 2x < 21 या x < \(\frac{21}{2}\)
यदि x = 10, x + 2 = 12 ⇒ x + (x + 2) < 23
इसी प्रकार (6, 8), (8, 10) युग्म भी दी हुई शर्त पूरी करते हैं।
वांछित युग्म (6, 8), (8, 10), (10, 12).

प्रश्न 25.
एक त्रिभुज की सबसे बड़ी भुजा सबसे छोटी भुजा की तीन गुनी है तथा त्रिभुज की तीसरी भुजा सबसे बड़ी भुजा से 2 सेमी कम है। तीसरी भुजा की न्यूनतम लंबाई ज्ञात कीजिए जबकि त्रिभुज का परिमाप न्यूनतम 61 सेमी है।
हल:
मान लीजिए त्रिभुज की सबसे छोटी भुजा = x सेमी
सबसे बड़ी भुजा = 3x सेमी
तीसरी भुजा = 3x – 2 सेमी
प्रश्नानुसार
x + 3x + (3x – 2) ≥ 61
7x – 2 ≥ 61
7x ≥ 61 + 2 = 63
⇒ x ≥ 9
∴ सबसे छोटी भुजा 9 सेमी है।

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प्रश्न 26.
एक व्यक्ति 91 सेमी लंबे बोर्ड में से तीन लंबाईयाँ काटना चाहता है। दूसरी लंबाई सबसे छोटो लंबाई से 3 सेमी अधिक और तीसरी लंबाई सबसे छोटी लंबाई की दूनी है। सबसे छोटे बोर्ड की संभावित लंबाई क्या है, यदि तीसरा टुकड़ा दूसरे टुकड़े से कम से कम 5 सेमी अधिक लंबा हो ?
हल:
मान लीजिए कटे हुए सबसे छोटे बोर्ड की लंबाई = x सेमी.
दूसरे कटे हुए बोर्ड की लम्बाई = x + 3
तीसरे कटे हुए बोर्ड की लम्बाई = 2x सेमी
दिया है कि
x + (x + 3) + 2x ≤ 91
या 4x + 3 ≤ 91
या 4x + 3 ≤ 91 – 3
या 4x ≤ 88
x ≤ 22 …(1)
∴ यह भी दिया गया है कि 2x ≥ (x + 3) +5
2x ≥ x +8
x ≥ 8
∴ सबसे छोटे बोर्ड की लम्बाई कम से कम 8 सेमी हो और अधिक से अधिक 22 सेमी हो। …(2)

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 12 जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 12 जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया (संकलित)

जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया अभ्यास-प्रश्न

जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया लबूतरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सैल्यूकस कहाँ का राजा वा? वह भारत क्यों आया था?
उत्तर
सैल्यूकस सीरिया का राजा था। वह भारत, भारत भ्रमण के लिए आया था।

प्रश्न 2.
मैगस्थनीज कौन था? उसने चाणक्य से मिलने का समय कब निश्चित किया?
उत्तर
मैगस्थनीज चन्द्रगुप्त के दरबार में नियुक्त राजदूत था। वह चाणक्य का प्रशंसक था। उसने चाणक्य से मिलने का समय सायंकाल निश्चित किया।

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प्रश्न 3.
जब चन्द्रगुप्त और सैल्यूकस कुटिया में पहुँचे, तब आचार्य चाणक्य किस कार्य में व्यस्त थे?
उत्तर
जब चन्द्रगुप्त और सैल्यूकस कुटिया में पहुँचे तब आचार्य चाणक्य राजकार्य से सम्बन्धित कुछ जरूरी दस्तावेजों की जाँच कर रहे थे।

प्रश्न 4.
सैल्यूकस के चकित होने का क्या कारण था?
उत्तर
सैल्यूकस के चकित होने का कारण यह था कि इतने बड़े साम्राज्य के प्रधानमन्त्री चाणक्य किसी भव्य और विशाल भवन में नहीं, अपितु एक कुटिया में रह रहे हैं।

जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आचार्य चाणक्य के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
आचार्य चाणक्य का व्यक्तित्व विभिन्न प्रकार की अदभत विशेषताओं का भण्डार है। उनका व्यक्तित्व अनोखे गुणों से भरा हुआ था। वे एक साथ प्रतिभाशाली, चरित्रवान, सुस्पष्ट, दूरदर्शी, कुशल राजनीतिज्ञ, राष्ट्रभक्त, त्यागशील, ईमानदार, बुद्धिमान और उदार प्रकृति के थे। उनमें किसी प्रकार का न तो अभिमान था और न ही पद-लोलुपता थी। वे कर्तव्यपरायण और अतिथि सम्मानकर्ता थे। इस प्रकार आचार्य चाणक्य की अद्भुत विशेषताओं से दूसरे देश के शासक भी अधिक प्रभावित थे।

प्रश्न 2.
सैल्यूकस ने कुटिया में क्या-क्या देखा? ।
उत्तर
सैल्यूकस ने कुटिया में निम्नलिखित समानों को देखा कटिया के अन्दर एक ओर जल का घड़ा रखा था। दूसरे कोने में उपलों और समिधाओं का ढेर था। एक चटाई बिछी थी। नमक आदि पीसने के लिए सील-बट्टा भी रखा था। एक बाँस लटका हुआ था जिस पर कपड़े रखे हुए थे। एक चौकी, जिस पर पढ़ने-लिखने की सामग्री थी। पास ही दो दीपाधार भी रखे हुए थे। उस समय चाणक्य गम्भीर और एकाग्रचित्त विचार मग्न होकर लेखन के काम में व्यस्त थे।

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प्रश्न 3.
एक दीपक बुझाकर दूसरे दीपक को जलाने के पीछे चाणक्य का क्या तर्क था?
उत्तर
एक दीपक बुझाकर दूसरे दीपक को जलाने के पीछे चाणक्य का तर्क था-पहले दीपक में राजकोष के पैसों से तेल डाला गया था। इसलिए उससे राजकार्य से सम्बन्धित जरूरी दस्तावेजों की जाँच की जा रही थी। जाँच का काम समाप्त होने पर उसे बुझा दिया गया। दूसरा दीपक निजी पैसे से खरीदा हुआ जल रहा है। इससे होने वाली बात भी निजी है।

जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया भाषा-अध्ययन

(क) नीचे लिखे अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए:
स्वार्थ और परणाई मानव की दो प्रवृत्तियाँ हैं। हम अधिकतर सभी कार्य अपने लिए करते हैं ‘पर’ के लिए सर्वस्व बलिदान करना ही सच्ची मानक्ता है। यही धर्म है, यही पुण्य है। इसे ही परोपकार कहते हैं। प्रकृति हमें निरन्तर परोपकार का सन्देश देती है। नदी दूसरों के लिए बहती है। वृत मनुष्यों को छाया तथा फल देने के लिए ही घूप, आँधी, वर्षा और तूफानों के जल के रूप में अपना सब कुछ बलिदान कर देते हैं।

प्रश्न 1. सच्ची मानवता क्या है?
प्रश्न 2. वृक्ष हमें परोपकार का सन्देश कैसे देते हैं?
प्रश्न 3. मनुष्य की कौन-सी दो प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं?
प्रश्न 4. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) वर्तनी सुधारियेचरीत्रवान, नियूक्त, आर्चाय, कुटीया, विशीष्ट, आशिर्वाद, सामराज्य, चटायी, चाडक्य।
उत्तर
1. परार्थ काम करना ही सच्ची मानवता है।
2. वृक्ष हमें छाया तथा फल देकर परोकार का सन्देश देते हैं।
3. स्वार्थ और परमार्थ मनुष्य की दो प्रमुख प्रवृत्तियों हैं।
4. शीर्षक-‘परोपकार’।
(ख) चरित्रवान्, नियुक्त, आचार्य, कुटिया, विशिष्ट, आशीर्वाद, साम्राज्य, चटाई, चाणक्य।

जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया योग्यता-विस्तार

(क) आचार्य चाणक्य की तरह प्रतिभाशाली और सूझबूझ रखने वाले राष्ट्र-भक्तों के बारे में साथियों से जानकारी प्राप्त कीजिए और उनके चित्रों को एकत्रित करिए। पुस्तकालय में जाकर जीवन-मूल्यों पर आधारित कहानियाँ पढ़िए और स्वयं इस प्रकार की कहानी लिखिए। चाणक्य से सम्बन्धित अन्य कहानियाँ जानिए और लिखिए।
‘सैल्यूकस की जन्म-भूमि अर्वात् ग्रीस के बारे में जानकारी एकत्रित कर लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आचार्य चाणक्य कौन ?
उत्तर
आचार्य चाणक्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के महामन्त्री थे। वे महान प्रतिभाशाली, दूरदर्शी और कुशल राजनीतिज्ञ थे।

प्रश्न 2.
सैल्यूकस कौन था? वह आचार्य चाणक्य से क्यों मिलने गया?
उत्तर
सैल्यूकस सिरिया का राजा था। उसने आचार्य चाणक्य की प्रशंसा सुन रखी थी। इसलिए वह उनसे मिलने गया।

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प्रश्न 3.
सम्राट चन्द्रगुप्त सैल्यूकस को लेकर कहाँ गये?
उत्तर
सम्राट चन्द्रगुप्त सैल्यूकस को लेकर एक पुरानी टूटी-फूटी कुटिया में रह रहे आचार्य चाणक्य के पास गये।

प्रश्न 4.
राजकोष के तेल से जलने वाले दीपक को बुझाकर निजी कोष के तेल से दूसरा दीपक जलाने से आचार्य चाणक्य के किस दृष्टिकोण का पता चलता है?
उत्तर
राजकोष के तेल से जलने वाले दीपक को बुझाकर निजी कोष के तेल से दूसरा दीपक जलाने से आचार्य चाणक्य की राष्ट्रभक्ति और ईमानदारी के दृष्टिकोण का पता चलता है।

जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आचार्य चाणक्य ने सैल्यूकस की शंका का समाधान करते हुए क्या कहा?
उत्तर
आचार्य चाणक्य ने सैल्यूकस की शंका का समाधान करते हुए कहा-“दूसरे दीपक को जलाने और पहले दीपक को बुझाने के पीछे कोई सनक या उन्माद की भावना काम नहीं कर रही थी। सच्चाई तो यह है कि जब आप यहाँ आये तो मैं राजकार्य से सम्बन्धित कुछ जरूरी दस्तावेजों की जाँच कर रहा था। उस समय जो दीपक जल रहा था उसमें राजकोष के पैसों से तेल डाला गया था, इस समय आपसे बातचीत करेंगे, वह हमारी निजी होगी। इस कारण मैंने राजकीय दीपक को बुझाकर अपने कमाये हुए धन से खरीदा हुआ दीपक जलाया है। ऐसा करके मैंने कोई विचित्र काम नहीं किया है।”

प्रश्न 2.
इस प्रेरक प्रसंग से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर
इस प्रेरक प्रसंग से हमें कई प्रकार की प्रेरणा मिलती है

  1. हमें अपने कर्तव्य का पालन सच्चाई से करना चाहिए।
  2. हमें अपने निजी स्वार्थ को देश और समाज के लिए न्यौछावर कर देना चाहिए।
  3. अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम और भक्ति की भावना को प्रकट करते रहना चाहिए।
  4. हमें अपने पद और कार्यभार के दायित्व को सच्ची भावना से निभाना चाहिए।
  5. हमें पद-प्रतिष्ठा पाकर अहंकार नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
‘जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया’ प्रेरक प्रसंग के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत प्रेरक प्रसंग का आधार एक ऐतिहासिक घटना है। इस घटना को आधार बनाकर यह दिखलाने का प्रयास किया गया है कि जहाँ एक ओर ‘त्याग’ . व्यक्ति के जीवन को उदात्त बनाता है। वहीं दूसरी ओर सामाजिक जीवन के एक विशिष्ट मूल्य के रूप में व्यवस्थाओं को लोकहितकारी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करता है। राजनीति और त्याग पर आधारित इस प्रेरक प्रसंग के माध्यम से महान सम्राट चन्द्रगुप्त के महामन्त्री चाणक्य की राष्ट्र-भक्ति को चित्रित किया गया है। राज्य के सभी प्रकार के सुख-वैभव को छोड़कर महामन्त्री चाणक्य का झोपड़ी। में रहना, के उल्लेख से जहाँ उनके अद्भुत त्याग का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। वहीं सैल्यूकस की निजी भेंट के समय राजकोष के तेल से जलने वाले दीपक को बुझाकर निजी कोष के तेल से दूसरा दीपक प्रज्ज्वलित करने के उल्लेख के द्वारा रनके राष्ट्रीय संचेतक एवं राजनीति के भोगवादी दृष्टिकोण के निषेध की भूमिका को भी बड़े अनूठे ढंग से सामने लाने का प्रयास किया गया है प्रस्तुत करता है।

जब चाणक्य ने दूसरा दीपक जलाया प्रेरक प्रसंग का सारांश

प्रश्न
‘जब चाणक्य ने दीपक जलाया’ प्रेरक प्रसंग का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
प्रस्तुत प्रसंग प्रेरक रूप में है। सम्राट चन्द्रगुप्त के महामन्त्री चाणक्य की ईमानदारी को इस प्रसंग में लाकर शिक्षाप्रद बनाने का प्रयास किया गया है। इस प्रेरक प्रसंग का सारांश इस प्रकार है सम्राट चन्द्रगुप्त के महामन्त्री आचार्य चाणक्य अत्यधिक प्रतिभाशाली, दूरदर्शी, कुशल राजनीतिक और महान चरित्रवान् थे। उनकी इस अद्भूत विशेषता को सुनकर सीरिया का राजा सिल्यूकस ने भारत आने पर उनसे मिलने की इच्छा सम्राट चन्द्रगुप्त के दरबार में नियुक्त राजदूत मैगस्थनीज से प्रकट की। चाणक्य से मिलने के लिए सूर्यास्त के बाद का समय निश्चित किया गया। एक विशाल साम्राज्य के महामन्त्री को एक पुरानी कुटिया में देखकर सिल्यूकस हैरान हो गये। चन्द्रगुप्त-सिल्यूकस ने उस कुटिया के भीतर जाकर देखा कि एक ओर पानी का घड़ा है तो दूसरी ओर उपले, सिल बट्टा, बाँस पर कपड़े और चौकी पर पढ़ने-लिखने की सामग्री थी।

पास में दो दीपाधार थे। उस समय चाणक्य गम्भीर मुद्रा में कुछ लिख रहे थे। लिखने का काम समाप्त करके उन्होंने चन्द्रगुप्त को आशीर्वाद और सिल्यूकस को सम्मान देते हुए दीपक बुझा दिया और दूसरा दीपक जला दिया। इसे देखकर सिल्यूकस हैरान हो गया। पूछने पर चाणक्य ने कहा कि जब वे वहाँ आये तो वे राजकार्य से सम्बन्धित जरूरी दस्तावेजों की जाँच कर रहे थे। उस समय जलते हुए उस दीपक में राजकोष के पैसों से तेल डाला गया था। इस समय उन दोनों की बात उनकी निजी होगी। इसलिए उन्होंने राजकीय दीपक को बुझाकर अपने कमाए हुए धन से खरीदा हुआ दीपक जलाया है। यह सुनकर सिल्यूकस और हैरान होकर सोचने लगे कि शायद ही ऐसे महान आदर्श महामन्त्री और किसी देश या राज्य में होगा।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 11 जागरण गीत

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 11 जागरण गीत (सोहनलाल द्विवेदी)

जागरण गीत अभ्यास-प्रश्न

जागरण गीत लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि गीत गाकर ही लोगों को क्यों जगाना चाहता है?
उत्तर
कवि गीत गाकर ही लोगों को जगाना चाहता है। यह इसलिए कि साधारण रूप से कही गई बातों की अपेक्षा गीत के माध्यम से कही बातें अधिक प्रभावशाली होती हैं।

प्रश्न 2.
इस गीत में किस रास्ते को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है?
उत्तर
इस गीत में उदयाचल को सर्वश्रेष्ठ रास्ता बताया गया है।

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प्रश्न 3.
कवि किस रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए आतुर है?
उत्तर
कवि प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए आतुर है।

प्रश्न 4.
संकीर्णताएँ तोड़ने के लिए कवि क्या करना चाहता है?
उत्तर
संकीर्णताएँ तोड़ने के लिए कवि सोए हुए दृढ़ भावों को जगाना चाहता है।

जागरण गीत दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि आकाश में उड़ने के लिए क्यों रोक रहा है? कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि आकाश में उड़ने के लिए रोक रहा है। यह इसलिए कि इससे जीवन की वास्तविकता का ज्ञान नहीं हो पाता है। फलस्वरूप जीवन दुखद और निरर्थक बना रहता है।

प्रश्न 2.
शूल को फूल बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर
शूल को फूल बनाने से कवि का आशय है-जीवन में आने वाली कठिनाइयों, रुकावटों और कष्टों को अपनी क्षमता, शक्ति आर बुद्धिबल से दूर करके जीवन को हर प्रकार से सुखद और सुन्दर बना लेना। इसके द्वारा कवि ने आलसी और निराश लोगों को प्रेरित और उत्साहित करना चाहा है।

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प्रश्न 3.
‘अतल अस्ताचल तुम्हें जाने न दूँगा। अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ।’ उपरोक्त पंक्तियों का भावार्य लिखिए।
उत्तर
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने न दूंगा। अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ।’ उपरोक्त पंक्तियों के द्वारा कवि ने यह भाव दर्शाना चाहा है कि गहरी नींद में पड़े रहना, जीवन की सच्चाई को नकारना है। इस प्रकार का जीवन डूबते हुए सूरज के समान है, जिसमें न कोई आशा, विश्वास, आकर्षण, समुल्लास आदि जीवन-स्वरूप दिखाई देते हैं। इस प्रकार का जीवन न स्वयं के लिए अपितु दूसरे के लिए भी दुखद और कष्टकर होता है। इसलिए इस प्रकार के जीवन का परित्याग करके अरुण उदयाचल अर्थात् प्रगति के पथ पर बढ़ने के लिए हर प्रकार से कदम बढ़ाना चाहिए।

प्रश्न 4.
विपथ होकर मुड़ने का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
विपथ होकर मुड़ने का आशय है-सन्मार्ग से हटकर कुमार्ग पर चलना। दूसरे शब्दों में अच्छाई और सुन्दरता को छोड़कर बुराई और कुरूपता को अपनाना।

जागरण गीत भाषा-अध्ययन/काव्य-सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं उन्हें दूर कर पुनः लिखिए।
अरूण, सीस, सूल, मंझदार, श्रृंखलाएँ, पातवार, पृगति, संकीणताएँ, विपथ, झनझनाये।
उत्तर
अशुद्धियाँ – शुद्धियाँ
अरूण – अरुण
शीस – शीश
सूल – शूल
मंझदार – मैंनधार
श्रृंखलाएँ – श्रृंखलाएँ
पातवार – पतवार
पृगति – प्रगति
संकीणताएँ – संकीर्णताएँ
विपथ – बिपथ
झनझनाये – झनझनाए।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखकर पुनः वाक्य लिखिए
1. अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूंगा।
2. फूल मैं उसको बनाने आ रहा हूँ।
3. विपथ होकर मैं तुम्हें मुड़ने न दूंगा।
4. मैं किनारे पर तुम्हें बकने न दूंगा।
5. सिंधु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ।
उत्तर

  1. अब तुम्हें आसमान में उड़ने न दूंगा।
  2. पुष्प मैं उसको बनाने आ रहा हूँ।
  3. कुपथ होकर मैं तुम्हें मुड़ने न दूंगा।
  4. मैं तट पर तुम्हें थकने न दूँगा।
  5. समुद्र बन तुमको उठाने आ रहा हूँ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को पढ़िए और पाठ में आए शब्दों में से स्वर मैत्री समझकर लिखिए
अस्ताचल – उदयाचल
साधना – ……………..
मैंनदार – ………………..
उठाए – ……………….
गति – ………………..
शूल – ……………
उत्तर
अस्ताचल – उदयाचल
साधना – कल्पना
मँझदार – पतवार
उठाए – झनझजाए
गति – गति
शूल – फूल

जागरण गीत योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
जीवन में प्रगति तभी सम्भव है जब हम निराशा के क्षणों में तथा विरोधी परिस्थितियों में संघर्षरत रहकर आशावादी दृष्टिकोण रखकर आगे बढ़ें। इस सन्दर्भ की अन्य कविताएँ संकलित कीजिए तवा विभिन्न अवसरों पर अपने मित्रों/साथियों को सुलेख में लिखकर भेंट करें।

प्रश्न 2.
कक्षा में एक डिब्बा रखिए। अपने साथियों के किस गुण से किस परिस्थिति से आप प्रभावित हुए एक कागज पर लिखकर डिब्बे में डालिए। कुछ दिनों के उपरांत अपने शिक्षक एवं कक्षा के सम्मुख उन्हें खोलकर सबको सुनाएँ।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

जागरण गीत परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गहरी नींद में सोने वाले अब सो न सकेंगे। क्यों?
उत्तर
गहरी नींद में सोने वाले अब सो न सकेंगे। यह इसलिए कि कवि उन्हें गीत गाकर जगाने आ रहा है।

प्रश्न 2.
कवि अस्ताचल जाने के बजाय कहा जाने की बात कह रहा है? उत्तर-कवि अस्ताचल जाने के बजाय उदयाचल जाने की बात कह रहा है। प्रश्न 3. कवि के अनुसार क्या दुख-सुख है?
उत्तर
कवि के अनुसार नींद में सपने संजोना दुख है और इससे हटकर परिश्रम पूर्वक जीवन जीना सुख है।

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प्रश्न 4.
मैंनधार से किनारे पर आने के लिए कवि ने क्या कहा है?
उत्तर
मँझधार से किनारे पर आने के लिए कवि ने कहा है कि मैंझधार में पड़ने पर घबड़ाना नहीं चाहिए। हिम्मत करके विश्वासपूर्वक हाथ में पतवार लेकर किनारे की ओर आने का लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।

जागरण गीत दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि गीत किसके लिए गा रहा है?
उत्तर
कवि गहरी नींद में सोने वालों, अतल अस्ताचल की ओर जाने वालों, कल्पना के पंख लगाकर आकाश में उड़ने वालों, जीवन को काँटा समझने वालों, जीवन के मँझधार में पड़कर घबड़ाने और थकने वालों, मन में तुच्छ विचारों को रखने वालों और विपथ होकर जीवन की सच्चाई को नकारने वालों के लिए गीत गा रहा है।

प्रश्न 2.
‘आ रहा हूँ। ऐसा कवि ने बार-बार क्यों कहा है?
उत्तर
‘आ रहा हूँ।’ ऐसा कवि ने बार-बार कहा है। यह इसलिए कि इसके द्वारा वह अपना जागरण सन्देश देना चाहा है। उसने अपना यह जागरण सन्देश उन लोगों को ही देना चाहा है, जो जीवन की सच्चाई को नकारते रहे हैं और संकीर्ण मनोवृत्तियों जैसे-आलस्य, निराशा आदि को स्वीकारते रहे हैं। कवि इस प्रकार की संकीर्ण मनोवृत्तियों को त्यागकर कर्मरत होते हुए जीवन की वास्तविकता को स्वीकारने के लिए ही बार-बार ‘आ रहा हूँ। कहकर आत्मीयता प्रकट करना चाहता है।

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प्रश्न 3.
‘जागरण गीत’ का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
श्री सोहनलाल द्विवेदी-विरचित कविता ‘जागरण गीत’ एक प्रेरक कविता है। इस गीत के द्वारा द्विवेदी जी ने बड़े ही नपे-तुले शब्दों में जीवन की सार्थकता को बतलाने का प्रयास किया है। द्विवेदी जी इस जागरण गीत के माध्यम से जीवन की वास्तविकता का चित्रण किया है। उन्होंने यह बतलाना चाहा है कि जीवन में आलस्य, निराशा तथा संकीर्ण मनोवृत्ति को नकारते हुए मनोवृत्ति कर्मरत जीवन को ही प्रगति का मूलमंत्र बताया है। इस प्रकार उन्होंने पुराने मिथक तोड़ते हुए नव-जीवन के संचार का सन्देश इस गीत माध्यम से दिया है।

जागरण गीत कवि-परिचय

प्रश्न
श्री सोहनलाल द्विवेदी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परचिय-श्री सोहनलाल द्विवेदी का राष्ट्रीय विचारधारा के कवियों में प्रमुख स्थान है। उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता का अधिक स्वर सुनाई पड़ता है। उनका जन्म सन् 1905 ई. में हुआ था। उन्होंने छोटी-सी आयु में ही काव्य-रचना आरम्भ किया, जो क्रमशः देश-प्रेम और भक्ति के स्वर से गुंजित होता गया। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय विचारधारा का प्रवाह है, तो गाँधीवादी चिन्तन और दृष्टिकोण भी है।

रचनाएँ-द्विवेजी जी की निम्नलिखत-रचनाएँ हैं-भैरवी-पूजा, ‘गीत’, ‘सेवाग्राम’, ‘दूध बतासा’, ‘चेतना’,’बाल भारती’ आदि।

भाषा-शैली-द्विवेदी जी की भाषा सहज और ऐसे प्रचलित शब्दों की है, जिसमें विविधता और अनेकरूपता है। तत्सम शब्दों की अधिकता है। जिसकी सहजता के लिए तभव और देशज शब्द बड़े ही उपयुक्त और सटीक रूप में प्रस्तुत हुए हैं। कहीं-कहीं मुहावरों-कहावतों को प्रयुक्त किया गया है। उनसे भाषा में और सजीवता आ गई है। बोधगम्यता और प्रवाहमयता उनकी शैली की पहली विशेषता है।

महत्त्व-द्विवेदी जी भारतीय संस्कृति को गौरवपूर्ण स्थान दिलाने के प्रबल समर्थक थे चूँकि गाँधी की विचारधारा से वे पूरी तरह प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने उसका न केवल समर्थन किया, अपितु उसे अपनी रचनाओं के माध्यम से जन-जन तक प्रेरित भी किया। गाँधीवादी विचारधारा में आस्था रखने के कारण उनकी रचनाओं में प्रेम, अहिंसा और समता के भाव दिखाई देते हैं। इस प्रकार वे अपने विशिष्ट योगदानों के लिए सदैव याद किए जाते रहेंगे।

जागरण गीत कविता का सारांश

प्रश्न
सोहन लात द्विवेदी विरचित कविता ‘जागरण गीत’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्री सोहनलाल द्विवेदी-विरचित कविता ‘जागरण गीत’ एक भाववर्द्धक और सन्देशवाहक कविता है। इसमें कवि ने यथार्थ जीवन जीने का सन्देश दिया है। इस कविता का सारांश इस प्रकार है कवि गहरी नींद में सोने वालों से कह रहा है कि वह गीत गाकर उसे जगाने के लिए आ रहा है। वह अब नींद की गहराई से ऊपर निकालकर उसे आकर्षक उदयाचल की तरह उत्साह प्रदान करने का जागरण गीत गा रहा है। कवि गहरी नींद में सोने वाले को फटकारते हुए कह रहा है कि वह आज तक नींद में पड़े-पड़े मीठी-मीठी कल्पना का उड़ान भरता रहा है। परिश्रम करने से कतराता रहा है।

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लेकिन वह ऐसा नहीं कर पायेगा। ऐसा इसलिए कि वह अपने जागरण गीत से उसे यथार्थ जमीन पर ला देगा। उसमें यह चेतना ला देगा कि नींद में सपने देखना सुखदायक नहीं है। उसके दुःखों को सुखों में वह अपने जागरण गीत से फूल में बदल देगा। गहरी नींद में सोने वाले को कवि की सीख है कि उसे जीवन के दुखों के मझधार में पड़ने पर घबड़ाना नहीं चाहिए। ऐसा इसलिए कि वह अपने जागरण गीत से उसे पार लगा देगा। इसलिए उसे अपने मन में उठने वाली छोटी-छोटी बातों को भूल जाना चाहिए। उसे यह विश्वास होना चाहिए कि वह अपने जागरण गीत से उसकी हीनता को समाप्त कर देगा। यह सोच-समझकर अपने जीवन-पथ पर निरन्तर आगे बढ़ते जाओ। वह अपने जागरण गीत से उसे उसके प्रगति के पथ से पीछे नहीं मुड़ने देगा।

जागरण गीत संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

पद की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौन्दर्य व विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ।
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने न दूंगा,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ॥

कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम,
साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम।
अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूँगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ॥

शब्दार्च-अतल-गहराई। अस्ताचल-पश्चिम का वह कल्पित पर्वत जिसके पीछे सूर्य का अस्त होना माना जाता है। उदयाचल-पूर्व का वह कल्पित पर्वत जहाँ से सूर्य उदित होता है।

प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासन्ती’ हिन्दी सामान्य में संकलित तथा श्री सोहनलाल द्विवेदी विरचित कविता ‘जागरण गीत’ से है। इसमें कवि ने आलसी मनुष्यों को सावधान करते हुए कहा है कि

व्याख्या-अब मैं तुम्हें गहरी नींद में नहीं सोने दूंगा। मैं तुम्हें जगाने के लिए जागरण गीत तुम्हें सुनाने के लिए तुम्हारे पास आ रहा हूँ। अस्ताचल की गहराई अर्थात् जीवन की बर्बादी की ओर तुम्हें जाने से रोकने के लिए मैं आकर्षक उदयाचल को सजाने के लिए अर्थात् तुम्हारे जीवन को आनन्दित बनाने के लिए तुम्हारे पास आ रहा हूँ। तुम्हें अपने-आपके विषय में यह अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए कि तुम आज तक कल्पना की ऊँची उड़ान उड़ते रहे हो। परिश्रम से मुँह मोड़ते रहे हो। लेकिन अब मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगा। अब तो मैं आकाश की उड़ान से नीचे धरती पर लाने के लिए तुम्हारे पास आ रहा हैं। दूसरे शब्दों में तम्हें जीवन की वास्तविकता बतलाने-समझाने के लिए तुम्हारे पास आ रहा हूँ।

विशेष-

  1. कवि का जागरण-सन्देश भाववर्द्धक है।
  2. शब्द-चयन लाक्षणिक है।
  3. तत्सम शब्दों एवं तदभव शब्दों के प्रयोग सटीक हैं।
  4. शैली उपदेशात्मक-भावात्मक है।
  5. वीर रस का संचार है।

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1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पयांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य काव्यांग के स्वरूपों से पष्ट है। अनप्रास अलंकार की छटा (गीत गाकार व अतल अस्ताचल) इस पद्यांश में जहाँ है, वहीं मुहावरेदार शैली (गहरी नींद में सोना, आकाश में उड़ना और धरती पर बसाना) का प्रयोग आकर्षक है। वीर रस से यह अंश अधिक गतिशील होकर ओजपूर्ण बन गया है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य सरस और सहज शब्दों का है गहरी नींद में गीत गाकर जगाने का भाव न केवल अनूठा है अपित आत्मीयता से परिपूर्ण है।
गहरी नींद की सच्चाई को विश्वसनीयता के साथ बतलाने का ढंग रोचक होने के । साथ प्रेरक भी है। इससे कथन की सफलता को नकारा नहीं जा सकता है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) कवि गीत गाकर किसे जगाना चाहता है?
(ii) आकाश में उड़ने के लिए कवि क्यों मना करता है?
उत्तर
(i) कवि गीत गाकर गहरी नींद में सोने वाले को जगाना चाहता है।
(ii) आकाश में उड़ने के लिए कवि मना करता है। यह इसलिए कि इससे जीवन की निरर्थकता सिद्ध होती है।

2. सुख नहीं यह, नींद में सपने संजोना,
दुख नहीं यह, शीश पर गुरू भार ढोना।
शूल तुम जिसको समझते वे अभी तक,
फूल में उसको बनाने आ रहा हूँ।
देखकर मँझधार को घबरा न जाना,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना।
मैं किनारे पर तुम्हें चकने न दूंगा,
पार में तुमको लगाने आ रहा हूँ।

शब्दार्थ-गुरूभार-भारीभार। शूल-काँटा (कठिनाई)। मझधार-बीच धारा।

प्रसंग-पूर्ववत् । इस पद्यांश में कवि ने कायर और आलसी मनुष्यों को प्रोत्साहित करते हुए कहा है कि

व्याख्या-हे आलसी, कायर मनुष्य! तुम्हें यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि गहरी नींद में पड़े रहना किसी प्रकार से सुखद नहीं हो सकता है। दूसरे शब्दों में यह हर प्रकार से दुखद और हानिकर ही होगा। इस प्रकार दुःखद होगा कि यह सिर का एक बहुत बड़ा बोझ बन जायेगा। उसे ढो पाना निश्चय ही असम्भव होगा। अब तक तुमने जिसे फूल अर्थात् जीवन की कठिनता समझते आ रहे हो। उसे ही मैं फूल बनाने के लिए तुम्हारे पास आ रहा हूँ।

कवि का पुनः गहरी नींद में सोने वाले अर्थात् जीवन-संघर्ष से भागने वाले मनुष्य को समुत्साहित करते हुए कहना है कि तुम स्वयं को जीवन-सागर के मँझधार में पाकर घबड़ाओ नहीं, अपितु धैर्य और हिम्मत से काम लो। जीवन-सागर के मँझधार से निकलकर किनारे पर आने के लिए तुम धैर्य रूपी पतवार को अपने हाथ में संभाल लो। इस प्रकार जब तुम साहस करोगे तो मैं तुम्हें किनारे पर आने तक उत्साहित करते हुए किसी प्रकार से निराश नहीं होने दूंगा। इस प्रकार मैं तुम्हें तुम्हारे जीवन-सागर से पार लगाने के लिए ही तुम्हारे पास आ रहा हूँ।

विशेष-

  1. वीर रस का प्रवाह है।
  2. तुकान्त शब्दावली है।
  3. शैली उपदेशात्मक है।
  4. ‘नींद में सपने संजोना’, ‘फूल बनाना’, हाथ में पतवार लेना और पार लगाना मुहावरों के सटीक और सार्थक प्रयोग हैं।

1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पयांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पयांश का भाक्-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश को काव्य:विधान-स्वरूप शब्द-भाव-योजना से निखारने का प्रयास प्रशंसनीय कहा जा सकता है। ‘घबरा न जाना’ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार से अलंकृत यह पद्यांश कई मुहावरों के एकजुट आने से अधिक भावपूर्ण होकर सार्थकता में बदल गया है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाव-योजना अपनी प्रभावमयता के फलस्वरूप रोचक और आकर्षक है। निराश और जीवन-संघर्ष के सामने घुटना टेकने वालों को सत्प्रेरित करने के विविध प्रयास प्रभावशाली रूप में हैं।

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2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) नींद में सपने संजोना क्यों नहीं सुखद है?
(ii) मँझधार में पड़ने पर क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए?
उत्तर-
(i) नींद में सपने संजोना सुखद नहीं है। यह इसलिए कि इससे दुखों का बोझ कम न होकर बहुत भारी हो जाता है। फिर उसे ढोना असम्भव-सा हो जाता है।
(ii) मँझधार में पड़ने पर घबड़ाना नहीं चाहिए। हाथ में पतवार लेकर किनारे पर आने के लिए पूरी शक्ति लगा देनी चाहिए।

3. तोड़ दो मन में कसी सब शृंखलाएँ
तोड़ दो मन में बसी संकीर्णताएँ।
बिन्दु बनकर मैं तुम्हें ढलने न दूंगा
सिन्धु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ॥
तुम उठो, धरती उठे, नभ शिर उठाए,
तुम चलो गति में नई गति झनझनाए।
विपथ होकर मैं तुम्हें मुड़ने न दूंगा,
प्रगति के पथ पर बढ़ाने आ रहा हूँ॥

शब्दार्व-संकीर्णताएँ-तुच्छ विचार । श्रृंखलाएँ-कड़ियाँ। नभ-आकाश । शिर-मस्तक, सिर। विपथ-बुरा रास्ता। प्रगति-उन्नति।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने आलसी और निराश व्यक्ति को समुत्साहित करते हुए कहा है कि

व्याख्या-तुम अपने मन को हीन करने वाली विचारों की कड़ियों को खण्ड-खण्ड कर डालो। इसी प्रकार तुम अपने अन्दर के तुच्छ विचारों और हीन भावों का परित्याग कर दो। तुम्हें स्वयं को कम न समझते हुए समुद्र की तरह विशाल और असीमित शक्ति से भरपूर समझना चाहिए। अगर तुम ऐसा नहीं समझते हो तो मैं तुम्हें ऐसा समझने के भावों को तुम्हारे अन्दर से जगाऊँगा।

इस प्रकार तुम्हें एक बिन्दु के समान जीवन जीने की स्थिति में नहीं रहने देगा। मैं तो तुम्हें समुद्र की तरह जीने देने के लिए तुम्हारे अन्दर सोई हुई भावनाओं को जगाने के लिए तुम्हारे ही पास आ रहा हूँ। कवि का पुनः जीवन में हारे हुए और निराश व्यक्ति को समुत्साहित करते हुए कहना है कि तुम अब अपनी गहरी नींद से जग जाओ। तुम्हारी जागृति और चेतना से इस संसार में जागृति और चेतना आ जाएगी। सारा आसमान अपना मस्तक ऊंचा कर लेगा। तुम्हारे गतिशील होने से सब ओर गतिशीलता आ जाएगी। तुम्हें विकास के पथ पर आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मैं तुम्हारे जीवन में हारने नहीं दूंगा। इस प्रकार मैं तुम्हें विकास के रास्ते पर निरंतर बढ़ाने के उद्देश्य से तुम्हारे पास ही आ रहा हूँ।

विशेष-

  1. भाषा में ओज और गति है।
  2. मुहावरों के प्रयोग सटीक हैं।
  3. शब्द-चयन प्रचलित रूप में है।
  4. वीर रस का प्रवाह है।

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1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-स्वरूप प्रचलित तत्सम शब्दावली से परिपुष्ट है। उसे रोचक और आकर्षक बनाने के लिए तुकान्त शब्दावली की योजना ने लय
और संगीत को प्रस्तुत करके भाववर्द्धक बना दिया है। वीर रस के प्रवाह-संचार से यह पद्यांश प्रेरक रूप में है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य वीरता के भावों से प्रेरक रूप में है। निराश मनों को वीर रस से संचारित करने का प्रयास प्रशंसनीय है। भाव और अर्थ का सुन्दर मेल है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) ‘शृंखलाओं’ से कवि का क्या आशय है?
(ii) ‘विपव’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर
(i) शृंखलाओं से कवि का आशय है हीन भावनाएँ।
(ii) ‘विपथ’ से कवि का तात्पर्य है-कुपथ। सन्मार्ग को छोड़कर दुखद रास्ते पर चलना।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 10 न्यायमंत्री

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 10 न्यायमंत्री (सुदर्शन)

न्यायमंत्री अभ्यास प्रश्न

न्यायमंत्री लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शिशुपाल के घर आने वाला अतिथि कौन था? उसकी बातों से शिशुपाल क्यों नाराज हो गये?
उत्तर
शिशुपाल के घर आने वाला अतिथि एक परदेशी था। उसकी बातों से शिशुपाल नाराज हो गए, क्योंकि उसने उनके पुत्र को सेवक कहा था।

प्रश्न 2.
‘गोबर में फूल खिला हुआ है।’ यह वाक्य किसके लिए कहा गया है और क्यों ?
उत्तर
‘गोबर में फूल खिला हुआ है।’ यह वाक्य उस परदेशी अतिथि द्वारा शिशुपाल के लिए कहा गया है। यह इसलिए कि उसके युक्तियुक्त और शासन पद्धति का इतना विशाल ज्ञान उस छोटे-से गाँव के ऐसे व्यक्ति में होने की उसने कल्पना भी नहीं की थी।

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प्रश्न 3.
शिशुपाल महाराज अशोक के दरबार में जाने से क्यों घबरा रहे थे?
उत्तर
शिशुपाल महाराज अशोक के दरबार में जाने से घबरा रहे थे। यह इसलिए कि उनके मन में यह आशंका हो रही थी कि उनके शत्रओं ने महाराज से कोई शिकायत कर दी है। उन्हें हो सकता है कि प्राणदंड मिल जाए।

प्रश्न 4.
न्यायमंत्री को प्रहरी के हत्यारे का पता कैसे चला?
उत्तर
न्यायमंत्री को प्रहरी के हत्यारे का पता एक स्त्री के द्वारा गुप्त रूप से चला।

प्रश्न 5.
न्यायमंत्री ने महाराज को दंड किस तरह दिया?
उत्तर
न्यायमंत्री ने महाराज की सोने की मुर्ति को फाँसी पर लटकवाया और उनको चेतावनी देकर छोड़ दिया। इस प्रकार न्यायमंत्री ने महाराज को दंड दिया।

न्यायमंत्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“शिशुपाल का न्याय अंपा और बहरा है।’ यह उक्ति किन संदर्भो में कही गई है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘शिशुपाल का न्याय अंधा और बहरा है। यह उक्ति उन संदर्भो में कही गई है कि शिशुपाल ने न्यायमंत्री के अधिकार से पूरे पाटलीपुत्र नगर में न्याय और सप्रबंध की धूम मचा दी। उन्होंने चोर-डाकुओं को इस प्रकार वश में कर लिया था, जिस प्रकार बीन बजाकर सपेरा साँप को वश में कर लेता है। उन दिनों लोगबाग दरवाजे खुले छोड़ देते थे, फिर भी किसी की हानि नहीं होती थी। इस प्रकार शिशपाल का न्याय अंधा और बहरा था। जो न सूरत देखता था, न कोई सिफारिश सुनता था। वह तो केवल शिक्षाप्रद दंड ही देना जानता था।

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प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर शिशुपाल के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
शिशुपाल के चरित्र में हमें निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई देती हैं
1. आतिथ्य सत्कार की भावना-शिशुपाल अपने गाँव का घोर दरिद्र ब्राह्मण था। उसकी जीविका थोड़ी-सी भूमि पर चलती थी। फिर भी एक परदेशी को द्वार पर खड़ा देखकर उसका मुख खिल गया। वह मुस्कुर.कर कहता है कि यह मेरा सौभाग्य है। आइए, पधारिए अतिथि के चरणों से मेरा चौका पवित्र हो जाएगा। इस प्रकार उसमें अतिथि-सत्कार की भावना दिखाई देती है।

2. सच्चा न्यायप्रिय-शिशुपाल ब्राह्मण को शासन-पद्धति का पूरा-पूरा ज्ञान था। सम्राट अशोक ने उसे न्यायमंत्री बना दिया। शिशुपाल का न्याय अंधा और बहरा था जो न सूरत देखता था और न सिफारिश मानता था। वह तो केवल दंड देना जानता था। उसने प्रहरी की हत्या के अपराध में सम्राट अशोक को भी दंडित किया। वह एक सच्चा न्यायी था।

3. निर्भीक और साहसी-शिशुपाल पाटलिपुत्र का न्यायमंत्री था। वह सम्राट अशोक से भी भयभीत नहीं होता था। जब सम्राट अशोक प्रहरी की हत्या के अपराध में पकड़े जाते हैं तो शिशुपाल उनके हाथ में बड़े साहस के साथ हथकड़ी डलवा देता है और निर्भीकता से सम्राट को दंडित करता है।

4. कर्तब्ध-परायण-शिशुपाल ने एक बार कहा था कि अवसर मिले तो दिखा हूँ कि न्याय किसे कहते हैं। मुझसे कोई अपराधी दंड से नहीं बचेगा। मैं न्याय का डंका बजाकर बता दूंगा। और शिशुपाल ने ऐसा ही करके दिखा दिया। प्रहरी की हत्या का पता उसने तीन दिन में निकाल लिया ! उसके न्याय के आगे न राजा बड़ा है और न रंक। वह राजा अशोक को प्रहरी की हत्या के अपराध में बंदी बनाता है और उसे दंडित भी करता है।

प्रश्न 3.
आपकी दृष्टि में न्यायमंत्री कैसा होना चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
हमारी दृष्टि में न्यायमंत्री सच्चा और निष्पक्ष होना चाहिए। उसमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए और उसका पालन करने की दृढ़ता होनी चाहिए। उसका न्याय दोषी और अपराधी के प्रति कठोर और सीधा होना चाहिए। उसे दंड-विधान का ज्ञान होना चाहिए। उसका दंड शिक्षाप्रद और सुधारप्रद होना चाहिए।

प्रश्न 4.
अपराधी घोषित होने पर भी महाराज अशोक का हृदय क्यों प्रफुल्लित वा?
उत्तर
अपराधी घोषित होने पर भी महाराज अशोक का हदय प्रफुल्लित था। यह इसलिए कि उन्होंने अपने गुप्त वेश में शिशुपाल की जो दृढ़ता सुनी थी, उसने उसे कर दिखाया। इस प्रकार शिशुपाल के न्याय को सुनकर उन्होंने प्रफुल्लित हदय से यह विचार किया कि यह मनुष्य सोना है, जो अग्नि में पड़कर कुंदन हो गया। ऐसे मनुष्यों पर जातियाँ अभिमान करती हुई अपने तन-मन को निछावर करने के लिए तैयार हो जाती हैं।

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प्रश्न 5.
न्यायमंत्री की जगह यदि आप होते, तो किसी प्रकार का न्याय करते? लिखिए।
उत्तर
न्यायमंत्री की जगह यदि हम होते तो उचित-अनुचित का ध्यान रखकर न्याय करते। ‘राजा को ईश्वर माना गया है। ईश्वर ही दंड दे सकता है।’ इसे हम ध्यान में रखकर महाराज अशोक की मूर्ति को फाँसी पर लटकाए जाने का आदेश तो अवश्य देते, लेकिन उन्हें सम्मान देते, उन्हें सार्वजनिक रूप से चेतावनी नहीं देते।

प्रश्न 6.
आशय स्पष्ट कीजिए

(क) जिसका अंतःकरण कुढ़ रहा हो जिसके नेत्र आँसू बहा रहे हों, जिसका मस्तिष्क अपने आपे में नहीं, उसके होंठों पर हँसी ऐसी भयानक प्रतीत होती है, जैसे श्मशान में चाँदनी वरन् उससे भी अधिक।
(ख) उन्होंने चोर-डाकुओं को इस प्रकार वश में कर लिया था जिस प्रकार बीन बजाकर सपेरा सर्प को वश में कर लेता है।
उत्तर
उपर्युक्त कथन का आशय है कि शुष्क हृदय, शुष्क आँखों और अव्यवस्थित मन और मस्तिष्क में अचानक आशाओं को जगा देने से क्षणिक सुख का अनुभव अवश्य होता है। वह सुखद होकर भी भयानकता से बाहर नहीं दिखाई देता है। भाव यह है कि दुखमय जीवन में आने वाले सुखद क्षणों से पूरा जीवन हरा-भरा नहीं दिखाई देता है।

(ख) उपर्युक्त वाक्य का आशय यह है कि सुशासन और सुप्रबंध से अपराधियों के हौसले पस्त हो जाते हैं। जनता में प्रशासन के प्रति विश्वास बढ़ जाता है। भय और आतंक के पादल छंटने लगते हैं। चारों ओर अमन-चैन का माहौल बनने लगता है।

न्यायमंत्री भाषा-अध्ययन

1. वाक्य शुद्ध कीजिए
(क) मेरे को आपकी परीक्षा करना है।
(ख) मैं तुमही को जानमा हूँ।
(ग) हम लोग आपस में परस्पर हमेशा विचार विमर्श करने हैं।
(घ) मैं सोती नींद से उठ बैठा।
(ङ) कृपया उनका कार्य करने की कृपा करें।

2. दिए हुए शब्दों में से तत्सम, तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए
सर्प, चरण, आँखें, रक्त, कठिन, अश्रु, अंधा, मृत्यु, आग, कदाचित, बातचीत, सफल, नींद, ग्राम।

3. निम्नलिखित शब्दों को पढ़कर उनका सही उच्चारण कीजिए
दृढ़-संकल्प, निर्विवाद, हतोत्साह, निस्तब्धता, आत्मोत्सर्ग।
उत्तर
1. शुद्ध वाक्य
(क) मुझे आपकी परीक्षा करनी है।
(ख) मैं तुम्हें जानता हूँ।
(ग) हम लोग आपस में हमेशा विचार-विमर्श करते हैं।
(घ) मैं नींद से उठ बैठा।
(ङ) उनका कार्य करने की कृपा करें।

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2. तत्सम शब्द तद्भव शब्द
सर्प – आँखें
चरण – कठिन
रक्त – अंधा
अश्रु – आग
मृत्यु – बातचीत
कदाचित – नींद
ग्राम – सफल।

3. निम्नलिखित शब्दों को पढ़कर उनका सही उच्चारण छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें
दृढ़-संकल्प, निर्विवाद, हतोत्साह, निस्तब्धता, आत्मोत्सर्ग।

न्यायमंत्री योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
बदलते परिवेश में शिशुपाल का चरित्र कितना प्रासंगिक है? इस संबंध में अपने आस-पास के अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्रित करें जिससे आप प्रभावित हैं।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

2. पाठ में आए शिशुपाल के संवार्दो को अभिनय के साथ कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

3. सम्राट अशोक से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं को एकत्र करें तश नाटिका या कहानी लिखें।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

न्यायमंत्री परीक्षापयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शिशुपाल कौन था?
उत्तर
शिशुपाल बुद्ध गया नामक गाँव का सबसे अधिक निर्धन ब्राह्मण था। बाद में महाराज अशोक के दरबार में न्यायमंत्री बना।

प्रश्न 2.
अशोक कैसा था?
उत्तर
अशोक बहुत ही निष्ठुर और निर्दयी था। वह ब्राह्मणों और स्त्रियों को भी फाँसी पर चढ़ा दिया करता था।

प्रश्न 3.
अशोक ने शिशुपाल के न्याय की परीक्षा लेने के लिए क्या कहा?
उत्तर
अशोक ने शिशुपाल के न्याय की परीक्षा लेने के लिए कहा, “यह राजमुद्रा है, तुम कल प्रातःकाल से सूर्य की पहली किरण के साथ न्यायमंत्री समझे जाओगे। मैं देखूगा, तुम अपने-आपको किस प्रकार सफल शासक सिद्ध कर सकते हो?

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प्रश्न 4.
न्यायमंत्री निरुत्तर क्यों हो गए?
उत्तर
न्यायमंत्री ने जब अशोक को उसकी मुद्रा लौटाते हुए कहा कि वे यह अपनी वस्तु सँभाले। वह अपने गाँव वापिस जाएगा, तब अशोक ने कहा, “आपका साहस मैं कभी नहीं भूलूँगा। यह बोझ आप ही उठा सकते हैं। मुझे कोई दूसरा इस पद के योग्य दिखाई नहीं देता।” अशोक की इन बातों को सुनकर न्यायमंत्री निरुत्तर हो गए।

न्यायमंत्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
न्यायमंत्री के रूप में शिशुपाल ने राज्य में क्या व्यवस्था की थी?
उत्तर
न्यायमंत्री के रूप में शिशुपाल ने राज्य में व्यवस्था के लिए पुलिस और पहरेदारों को संगठित किया। पहरेदारों के कारण पहले तो अपराध होते ही नहीं थे। यदि अपराध हो जाए तो अपराधी को कठोर सजा मिलती थी। कुछ दिनों में सारे राज्य में शिशुपाल के न्याय की पताका फहरा उठी थी।

प्रश्न 2.
न्यायमंत्री ने अपनी कार्यकुशलता का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर
सम्राट अशोक के बुलाने पर शिशुपाल सामने आए। महाराज ने पूछा-“घातक का पता लगा?” न्यायमंत्री ने कहा, “हाँ, लग गया।” न्यायमंत्री ने थोड़ी देर कुछ सोचा फिर दृढ़ संकल्प के साथ कहा, “मेरी आज्ञा है, सम्राट अशोक को गिरफ्तार कर लो।” इस पर अशोक क्रोध से लाल हो गए। उन्होंने ब्राह्मण से कहा-“ब्राह्मण! तुममें इतनी शक्ति है कि जो तुम मुझ तक बढ़ आए” किंतु शिशुपाल ने सम्राट अशोक की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। शिशुपाल ने फिर दोहराया, “मैं आज्ञा देता हूँ गिरफ्तार कर लो। यह घातक है। इसे मेरी अदालत में पेश करो।”

धनवीर ने अशोक को हथकड़ी लगा दी और शिशुपाल की अदालत में सम्राट अशोक को बंदी के रूप में पेश किया। शिशपाल ने धीरे से कहा, “सम्राट तुम पर एक पहरेदार की हत्या का अपराध है। तुम इसका क्या उत्तर देते हो?” सम्राट अशोक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। परंतु उन्होंने उसे उद्दण्डता के कारण मारा था। शिशुपाल ने कहा, “अशोक! तुमने एक राजकर्मचारी की हत्या की है। मैं तुम्हारे वध की आज्ञा देता हूँ।”

प्रश्न 3.
लोग शिशुपाल के किस न्याय पर मुग्ध हो गए?
उत्तर
जब न्यायमंत्री ने खड़े होकर कहा, “महाशय! यह सच है कि एक राजकर्मचारी की हत्या की गई है। उसका दंड अवश्यंभावी है। परंतु शास्त्रों में राजा को ईश्वर माना गया है। उसे ईश्वर ही दंड दे सकता है। यह काम न्यायमंत्री की शक्ति के बाहर है, अतएव मैं आज्ञा देता हूँ कि महाराज को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए और उनकी मूर्ति फाँसी पर लटकाई जाए जिससे लोगों को शिक्षा मिले।”न्यायमंत्री का जय-जयकार हुआ। लोग इस न्याय पर मुग्ध हो गए।

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प्रश्न 4.
शिशुपाल और महाराज अशोक में तुम किसे श्रेष्ठ समझते हो और क्यों?
उत्तर
शिशुपाल और महाराज अशोक में हम शिशुपाल को श्रेष्ठ समझते हैं। यह इसलिए कि उसमें निष्पक्ष न्याय करने की योग्यता थी। वह अपराधी सिद्ध होने पर सम्राट अशोक को भी फाँसी की सजा देने से नहीं हिचकता है। वह परम न्यायी है। उसे न्याय के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई देता है जबकि सम्राट अशोक न्याय के नाम पर क्रोधित हो जाते हैं। लेकिन वह निडर होकर अपने न्याय पर ही डटा रहता है।

प्रश्न 5.
सुदर्शन-लिखित कहानी ‘न्यायमंत्री’ का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
न्यायमंत्री’ शीर्षक कहानी महान कथाकार सुदर्शन की एक श्रेष्ठ और चर्चित कहानी है। इस कहानी में यह बतलाने का प्रयास किया गया है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में शिशुपाल एक निर्धन ब्राह्मण था। इसके साथ ही वह एक न्यायप्रिय, निर्भीक तथा लोकप्रिय व्यक्ति भी था। शिशुपाल के यहाँ अतिथि के रूप में रहकर सम्राट अशोक ने उसकी उस अद्भुत योग्यता को परखा। उससे प्रभावित होकर उसे न्यायमंत्री के पद पर नियुक्त किया। उसने न्यायमंत्री बनते ही राज्य में सुख-शांति का वातावरण फैला दिया। अपने न्याय के बल पर उसने एक परिवार की रक्षा करते पहरेदार की हत्या के आरोप में सम्राट अशोक को ही दोषी सिद्ध कर दिया। फिर उन्हें मृत्युदंड के रूप में सजा सुना दिया। उसकी न्यायप्रियता और राज्यभक्ति वर्तमान समय में भी अनुकरणीय है।

न्यायमंत्री लेखक-परिचय

प्रश्न
श्री तुदर्शन का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश झलिए।
उत्तर
श्री सुदर्शन प्रेमचंदकालीन कहानीकारों में एक प्रमुख कहानीकार हैं।

जीवन-परिचय-श्री सुदर्शन जी का असली नाम पंडित बदरीनाथ था। आपका जन्म सन् 1896 ई. में स्यालकोट में हुआ था। आपने हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू जादि भाषाओं का सम्यक अध्ययन किया। आपकी प्रवृत्ति लेखन की ओर आरंभ से ही थी। प्रेमचंद की तरह आपने उर्दू के बाद हिंदी में कच्ची उम्र में ही लिखना शुरू किया था।

रचनाएँ-‘तीर्थ-यात्रा’, ‘पनघट’, ‘फूलवती’, ‘भाग्यचक्र’, ‘सिकंदर’ आदि आपकी लोकचर्चित रचनाएँ हैं। इसके अतिरिक्त आपने नाटक और बाल-साहित्य भी रचा है।

भाषा-शैली-श्री सुदर्शन जी की भाषा-शैली सरस और प्रवाहमयी है, आपकी भाषा शैली संबंधित निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

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1. भाषा-श्री सुदर्शनजी की भाषा में उर्दू-फारसी और अरबी के प्रचलित शब्द स्थान-स्थान पर दिखाई देते हैं। उसमें जगह-जगह कहावतों और मुहावरों के भी प्रयोग हुए हैं। इससे आपकी भाषा सुबोध भाषा कही जा सकती है।

2. शैली-श्री सुदर्शन जी की शैली में बोधगम्यता नामक विशिष्ट गुण है। वह सर्वत्र रोचक और हदयस्पर्शी है। मार्मिकता उसकी प्रमुख पहचान है। स्थान-स्थान पर उद्धरणों और कथा-सूत्रों को प्रयुक्त करके विषय को स्पष्ट करने के प्रयास अधिक आकर्षक लगते हैं। महत्त्व-श्री सुदर्शनजी का स्थान मुंशी प्रेमचंद के बाद है ये उनके अनुवर्ती हैं, उर्दू से हिंदी में लिखने वाले आप मुंशी प्रेमचंद के बाद सर्वप्रमुख हैं। कथा-साहित्य में आपने प्रेमचंद के बाद अत्यधिक भूमिका निभाई है।

न्यायमंत्री कहानी का सारांश

प्रश्न
श्री सुदर्शन लिखित कहानी ‘न्यायमंत्री’ का तारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्री सुदर्शन लिखित कहानी न्यायमंत्री एक शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक कहानी है। इस कहानी का सारांश इस प्रकार है आज से 2500 साल पहले बुद्ध गया नामक गाँव में एक बहुत गरीब शिशुपाल नामक ब्राह्मण रहता था। उसके यहाँ एक परदेशी रहा। उस परदेशी की शिशुपाल ने यथाशक्ति आदर-सत्कार किया। उससे वह परदेशी बहुत खुश था। उसने उसकी खूब प्रशंसा की। उससे उसने यह भी कहा-“मुझे ख्याल भी न था कि गोबर में फूल खिलाहुआ है। महाराज अशोक को पता लग जाए तो कोई बड़ी-सी ऊँची पदवी पर नियुक्त कर दें।”

शिशुपाल ने उस परदेशी की बातें सुनकर मुस्कुरा दिया। कुछ देर बाद उसने उस परदेशी से कहा, “आजकल के बढ़ रहे अन्याय को देखकर मेरा रक्त उबलने लगता है। अगर मुझे अवसर मिले तो कोई अन्याय नहीं होने दूंगा और कोई अपराधी दंड से नहीं बचेगा।” परदेशी ने हँसते हुए कहा, “यदि मैं अशोक होता तो आपकी इच्छा पूरी कर देता।” . दूसरे दिन महाराज अशोक ने जब शिशुपाल को दरबार में बुलाया तो लोगों ने अशोक की कठोरता-निर्दयता को याद कर यह समझ लिया कि अब शिशुपाल जीवित नहीं लौटेगा।

शिशुपाल अपने पुत्र-स्त्री को समझाकर पाटलीपुत्र पहुँचा तो उसके मन में तरह-तरह की आशका होने लगी। उसे यह भी आशंका हुई कि कहीं वह परदेशी ही हो, यह उसी की लगाई हुई हो। इस प्रकार की आशंकाओं से उसका कलेजा धड़कने लगा। उसी समय महाराज अशोक ने राजकीय ठाठ से कमरे में आकर उससे पूछा कि क्या उसने उसे पहचान लिया? उसने कहा कि उसे पता होता कि वही महाराज हैं, तो वह उतनी स्वतंत्रता से बात नहीं करता। महाराज ने उससे कहा कि उसने कहा था कि उसे अवसर दिया जाए तो वह न्याय का डंका बजा देगा। महाराज ने उससे आगे कहा कि इसके लिए अब उसे एक परीक्षा देनी होगी। कल प्रातः से वह न्यायमंत्री के रूप में कार्य करेगा। उसके अधीन पुलिस अधिकारी होंगे। उसका उत्तरदायित्व पाटलीपुत्र में शांति रखने का होगा। यह देखा जाएगा कि वह स्वयं को किस प्रकार सफल शासक सिद्ध करता है। एक माह बीतते ही न्यायमंत्री के रूप में शिशुपाल ने अपने कड़े शासन की चारों ओर धूम मचा दी। इससे नगर की दशा में आकाश-पाताल का अंतर पड़ गया।

एक रात को एक अमीर ने एक विशाल भवन के द्वार को खटखटाकर खुलवाना चाहा, लेकिन उसके अंदर से किसी स्त्री ने खोलने से मना कर दिया। उसने उस स्त्री को धमकाया तो उसने उससे कहा कि शिशुपाल का राज्य है। कोई किसी को तंग नहीं कर सकता। लेकिन उस अमीर ने उसकी एक न सुनी और तलवार निकालकर दरवाजे पर आक्रमण कर दिया। अचानक आकर एक पहरेदार ने उसका हाथ थामकर उसे फटकारा। पूछने पर उस पहरेदार ने उसे बताया कि उसे न्यायमंत्री ने नियुक्त किया है। उसने यह प्रण किया है कि उसके तन में जब तक प्राण और खून की अंतिम बूँद है, वह अपने कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटेगा। इसलिए अगर इस समय महाराज अशोक भी आ जाएँ तो भी वह नहीं टलेगा। उस अमीर ने उसकी बातों को अनसुना कर उस पर तलवार लेकर झपटा। उसका सामना करते हुए वह पहरेदार मारा गया। उसकी लाश को एक ओर करके वह अमीर वहाँ से भाग निकला।

इस घटना को सुनकर सब हैरान थे कि शिशुपाल के शासन में ऐसी घटना! शिशु की नींद हराम हो गई। वे खाना-पीना सब भूलकर उस घातक का पता न लगा सके। महाराज उनसे बार-बार पूछते-“घातक पकड़ा गया…कब तक पकड़ा जाएगा।” न्यायमंत्री उन्हें तसल्ली देते-“जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा।” एक दिन महाराज ने क्रोध में आकर यह चेतावनी दे दी, “तुम्हें तीन दिन की अवधि दी जाती है। यदि इस बीच घातक न पकड़ा गया तो तुम्हें फाँसी दे दी जाएगी।” इस समचार से पूरे नगर में

हलचल मच गई। तीसरे दिन आने पर शिशुपाल नगर के घने बाजार में घूम रहे थे। एक स्त्री ने उन्हें खिड़की से देख लिया। उसने उन्हें अंदर बलाकर उस बीती घटना के बारे में सब कुछ बता दिया। दूसरे दिन दरबार में आते ही महाराज अशोक के पछने पर शिशुपाल ने कहा कि घातक का पता लग गया है और वह घातक तुम हो। तुम पर पहरेदार की हत्या का अपराध है। तुम इसका क्या उत्तर देते हो? महाराज अशोक ने कहा कि वह उइंड था। इसलिए उन्होंने उसको मार डाला। न्यायमंत्री शिशुपाल ने उन्हें एक राजकर्मचारी का वध करने के अपराध में उनके वध की आज्ञा दी।

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उसे सुनकर लोगों ने शिशुपाल को गाली दी। लेकिन अशोक ने उन्हें शांत रहने का संकेत किया। अशोक ने उपेक्षापूर्वक कहा कि वे इस आज्ञा के विरुद्ध कछ नहीं बोल सकते। न्यायमंत्री के आदेश पर एक मनुष्य अशोक की सोने की मूर्ति लेकर उपस्थित हुआ। न्यायमंत्री ने खड़े होकर कहा, “महाशय! यह सच है कि राजकर्मचारी की हत्या की गई है। उसका दंड अवश्यंभावी है। परंतु शास्त्रों में राजा को ईश्वर माना गया है। ईश्वर ही दंड दे सकता है। यह काम न्यायमंत्री की शक्ति से बाहर है। अतएव मैं आज्ञा देता हूँ कि महाराज को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए और उनकी मूर्ति को फाँसी दे दी जाए, जिससे लोगों को शिक्षा मिले।” इसे सुनकर सभी ने न्यायमंत्री की जय-जयकार की।

रात को न्यायमंत्री ने राजमहल में जाकर अशोक को उसकी अंगठी और मद्रा देते हुए अपने गाँव वापिस जाने की बात कही। अशोक ने उसे सम्मानभरी आँखों से देखते हुए कहा कि अब यह संभव नहीं है। वह उसके साहस को नहीं भूल सकता है। दूसरा. इस पद के योग्य उसे कोई नहीं दिखाई देता।

न्यायमंत्री संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या, अर्थ-ग्रहण संबंधी व विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. महाराज ने सिर झुका दिया। इस समय उनके हृदय में ब्रह्मानंद का समुद्र लहरें मार रहा था। सोचते थे, यह मनुष्य स्वर्ण है, जो अग्नि में पड़कर कुंदन हो गया। कहता था मेरा न्याय अपनी पूम मचा देगा, यह वचन झूठा न था। इसने अपने कहने की लाज रख ली है। ऐसे ही मनुष्य होते हैं जिन पर जातियाँ अभिमान करती हैं और जिन पर अपना तन-मन निष्ठावर करने को उद्धृत हो जाती हैं।

शब्दार्थ-ब्रह्मानंद-ब्रह्म का आनंद । लाज-इज्जत। निछावर-बलिदान।

संदर्भ-प्रस्तुत गद्यांश महाकथाकार श्री सुदर्शन द्वारा लिखित कहानी ‘न्यायमंत्री’

प्रसंग-इस गद्यांश में कहानीकार ने इस तथ्य पर प्रकाश डालना चाहा है कि जब शिशुपाल ने अपराधी का पता लगा लिया और यह पाया कि अपराधी स्वयं सम्राट अशोक ही हैं तो शिशुपाल ने अपराधी होने के कारण उन्हें फाँसी की सजा दे दी। इस पर सम्राट अशोक की क्या प्रतिक्रिया हुई।

व्याख्या-जब फाँसी की सजा को न्यायमंत्री शिशुपाल ने सुनाया तब सम्राट अशोक का सिर झुक गया। उस समय उनके हृदय में स्वर्ग के आनंद की लहर उठ रही थी। ऐसा इसलिए कि उन्हें अपने एक सच्चे और निर्भीक न्यायमंत्री का न्याय देखकर आनंद आ रहा था। वे मन-ही-मन सोच रहे थे कि शिशुपाल वास्तव में सच्चा स्वर्ण-मानव था जो कत्र्तव्यरूपी अग्नि में पड़कर शुद्ध हो गया था। वह कहा करता था कि उसके न्याय की धूम मचेगी यह बात निःसंदेह सच ही निकली। उसने जो कुछ कहा था उसको पूरा कर दिया। शिशुपाल जैसे मनुष्य जो सच्चे और साहसी होते हैं उन पर आने वाली पीढ़ियाँ गर्व करती हैं और ऐसे ही लोगों पर अपना तन-मन-धन न्यौछावर करने के लिए वे तत्पर भी हो उठती हैं।

विशेष-

  1. सत्य और निष्पक्ष न्याय के महत्त्व को प्रदर्शित किया गया है।
  2. भाषा सरल और स्पष्ट है।
  3. ‘धूम मचाना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
  4.  शैली सुबोध है।
  5. संपूर्ण अंश प्रेरणादायक है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) महाराज ने सिर क्यों झुका लिया?
(ii) महाराज के हृदय में ब्रह्मानंद का समुद्र लहरें क्यों मार रहा था? .
उत्तर
(i) महाराज ने सिर झुका लिया। यह इसलिए कि उन्हें न्यायमंत्री शिशुपाल ने अपराधी सिद्ध कर दिया था। उसे सिर झुकाकर स्वीकार कर लेना उन्होंने अपना कर्तव्य समझ लिया था।
(ii) महाराज के हृदय में ब्रह्मानंद का समुद्र लहरें मार रहा था। यह इसलिए कि उनसे शिशुपाल ने कहा था कि उसका न्याय धूम मचा देगा तो उसने आज सचमुच यह कर दिखाया है। इस प्रकार उसने उनको झूठे वचन न देकर उनके विश्वास को कायम रखा था।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) जातियाँ किन पर अभिमान कर अपना तन-मन निछावर करने को उद्यत हो जाती हैं?
(ii) उपर्युक्त गयांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) जातियाँ कथनी-करनी में अंतर न रखने वालों पर अपना तन-मन निछावर करने को उद्यत हो जाती हैं।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का मुख्य भाव है-किसी को दिए गए वचन को झूठा न होने देना। किसी भी परिस्थिति में अपने कहने की लाज रखना।

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