MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 18 डॉ. जगदीशचन्द्र बसु (संकलित)
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु अभ्यास-प्रश्न
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
डॉ. बसु ने अपने माता-पिता से कौन-कौन से गुण ग्रहण किये?
उत्तर
डॉ. बसु ने अपने पिता से साहस, दृढ़-संकल्प तथा सहानुभूति के गुण ग्रहण किये। इसी प्रकार उन्होंने अपनी माता से भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम के गुणों को ग्रहण किया।
प्रश्न 2.
डॉ. बसु सफलता की कुंजी किसे मानते थे और क्यों?
उत्तर
डॉ. बसु सफलता की कुंजी धैर्य, साहस और लगन के साथ काम करने को मानते थे। यह इसलिए कि उनका जीवन विज्ञान ही था। ज्ञान प्राप्त करने की उनमें इतनी तीव्र इच्छा थी कि इसके लिए हर प्रकार के कष्टों का सामना करने के लिए तैयार थे। इस प्रकार वे यह भलीभाँति जानते थे कि धैर्य, साहस और लगन के बिना कोई भी काम सफल नहीं हो सकता है।
प्रश्न 3.
डॉ. बसु ने बनस्पति विज्ञान को जानने के लिए जिन यंत्रों का आविष्कार किया, उनके नाम और प्रयोग लिखिए।
उत्तर
डॉ. बसु ने वनस्पति विज्ञान को जानने के लिए कई यंत्रों के आविष्कार किए। कास्कोग्राफ, रेजोनेंट रिकार्ड आदि यंत्रों के आविष्कार करके संसार में अपनी धूम मचा दी। कास्कोग्राफ पौधों की वृद्धि नापने का यंत्र था तो रेजोनेंट रिकार्डर से यह ज्ञात हो जाता था कि चोट लगने पर और मरते समय पौधे भी काँपने लगते हैं।
प्रश्न 4.
डॉ. बसु को ‘पूर्व का जादूगर’ किसने कहा और क्यों कहा?
उत्तर
डॉ. बसु ने पौधों के कष्ट और उनकी मृत्यु के दृश्य परदे पर दिखाए। उन्होंने जीवित पौधों में विद्युत की एक हल्की-सी लहर दौड़ाई। परदे पर पौधों का काँपना और तड़पना साफ-साफ दिखाई देने लगा। धीरे-धीरे पौधा निर्जीव हो गया। यह देखकर लोग आश्चर्यचकित हो गए। उनकी आश्चर्यजनक खोजें, आविष्कारों तथा प्रयोगों को देखकर यूरोप के लोग उन्हें ‘पूर्व का जादूगर’ कहने लगे।
प्रश्न 5.
डॉ. बसु के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
डॉ. बसु का व्यक्तित्व मूल रूप से वैज्ञानिक था। विज्ञान ही उनका जीवन था। ज्ञान की प्राप्ति के लिए वे सभी प्रकार के कष्टों को झेलने के लिए तैयार थे। उन्होंने अपने अपार धैर्य, साहस और लगन से ऐसे-ऐसे आविष्कार किए, जिन्हें देखकर सारा संसार दंग रह गया। यों तो डॉ. बसु महान वैज्ञानिक थे, फिर भी उनमें देश-प्रेम की भावना कम नहीं थी। यही कारण है कि उन्होंने जर्मन वैज्ञानिकों के द्वारा एक पूरा विश्वविद्यालय सौंपने के प्रस्ताव को ठुकाराते हुए कहा था- “मेरा कार्य क्षेत्र भारत ही रहेगा और मैं देश के उसी महाविद्यालय में काम करता रहूँगा, जिसमें मैंने उस समय काम करना शुरू किया था, जब मुझे कोई जानता नहीं था।”
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
देश की गुलामी का हमें क्या मूल्य चुकाना पड़ा? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने दूसरा जो अनुसंधान किया था, वह अपने आप में नहीं अपितु सारे संसार में पहला था। वह अनुसंधान था-बेतार के तार का। इटली के डॉक्टर मार्कोनी और एक अमरीकन भी इस संबंध में खोज करने में लगे हुए थे। 1895 में जगदीशचन्द्र बसु ने बंगाल के गवर्नर के सामने इसका सफल प्रदर्शन किया। उन्होंने बिना तार के ही दूर पर पड़े बोझ को हिला दिया था और घंटी को बजाकर दिखाया था। लेकिन बेतार के तार के आविष्कार का श्रेय जगदीशचन्द्र बसु को न मिलकर इटली के प्रोफेसर मार्कोनी को मिला। देश की गुलामी का हमें यह मूल्य चुकाना पड़ा। बाद में मार्कोनी ने यही आविष्कार करके इसे अपने नाम रजिस्टर्ड करा लिया।
प्रश्न 2.
डॉ. बसु भारत को ही अपना कार्य क्षेत्र क्यों बनाना चाहते थे? समझाइये।
उत्तर
डॉ. बसु भारत को ही अपना कार्य क्षेत्र बनाना चाहते थे। इसके निम्नलिखित कारण थे
- उनमें अपार देश-भक्ति की भावना भरी हुई थी।
- वे किसी के पिछलग्गू न होकर पूरी तरह स्वतंत्र विचारधारा के थे।
- उनके मन में अपने हरेक नए अनुसंधानों के द्वारा भारतीय गौरव को बढ़ाने की प्रबल इच्छा थी।
प्रश्न 3.
‘बसु विज्ञान-मंदिर’ की स्थापना का क्या उद्देश्य था?
उत्तर
‘बसु विज्ञान-मंदिर’ की स्थापना के निम्नलिखित उद्देश्य थे
- डॉ. दसु अपने नए अनुसंधानों के द्वारा भारतीय गौरव को बढ़ाने की प्रबल अभिलाषा तो करते थे। इसके लिए प्रयोगशाला की आवश्यकता था। उनके कॉलेज में अनुसंधानों के लिए उचित प्रबंधन था। इसलिए उन्होंने अपने घर पर ही एक निजी प्रयोगशाला बनाई।
- डॉ. बसु सच्चे अर्थों में एक सफल तथ्यान्वेषक थे। उन्होंने देश में विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञान-मंदिर नामक संस्था की स्थापना की।
- इस संस्था के द्वारा वैज्ञानिक विद्यार्थियों को शोध संबंधी सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने का भी एक महान उद्देश्य था।
प्रश्न 4.
किस घटना से बसु के स्वाभिमानी होने का पता चलता है? उल्लेख कीजिए।
उत्तर
बसु को कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में और अध्यापकों से बहुत कम वेतन दिया गया। उससे उनके स्वाभिमान को बहुत भारी ठेस पहुँची। फलस्वरूप उन्होंने उस कॉलेज के प्रबन्धकों से स्पष्ट रूप से कहा कि या तो मुझे पूरा वेतन दिया जाए या मैंने बिना वेतन के ही काम करूँगा। तीन वर्ष तक वे बिना वेतन के कार्य करते रहे। पैसे की तंगी के कारण उनका जीवन काफी कठिनाई से बीत रहा था, पर वे झुकना नहीं जानते थे। अंत में कॉलेज के अधिकारियों को ही झुकना पड़ा। अंग्रेज अध्यापकों जितना वेतन उन्हें मिलने लगा।
प्रश्न 5.
डॉ. बसु की वैज्ञानिक उपलब्धि पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर
डॉ. बसु हमारे देश के एक ऐसे महावैज्ञानिक के रूप में लोकप्रसिद्ध हैं, जिन्होंने वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करके संसार को चकित कर दिया। उनका सारा जीवन विज्ञान ही था। ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा उनमें इतनी तेज थी कि वे इसके लिए हर प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने से पीछे नहीं हटते थे। धैर्य, साहस और लगन के साथ काम करना ही उनकी सफलता की कुंजी थी। डॉ. बसु के व्यक्तित्व की एक यह बड़ी विशेषता थी कि वे लकीर के फकीर नहीं थे।
वे स्वतंत्र विचारधारा के थे। उनमें आत्मनिर्भरता परी तरह से थी। अपनी इसी विशेषता के कारण उन्होंने अपने ही घर अपनी एक निजी प्रयोगशाला बनाई। उसका नाम उन्होंने रखा-‘बसु विज्ञान-मंदिर’ । उसका उद्देश्य था-अपने नए अनुसंधानों के द्वारा भारतीय गौरव को तेजी से बढ़ाना। इसके साथ-ही-साथ वैज्ञानिक विद्यार्थियों के लिए शोध-संबंधी सभी आवश्यक सुविधाओं को उपलब्ध कराना।
इसके पीछे उनका यह भी उद्देश्य था कि भारत का नाम संसार में ऊँचा रहे। यही कारण है कि जब जर्मन वैज्ञानिक उनकी खोजों से प्रभावित होकर उन्हें एक पूरा विश्वविद्यालय सौंपने के लिए तैयार हो गए, तब उन्होंने उसे अस्वीकार अपने देश के उसी महाविद्यालय में काम करते रहने के अपने दृढ़ संकल्प को दोहराया। इससे उनकी अपार और अटूट देश-भक्ति की भावना प्रकट होती है। वास्तव में वे एक महान देश-भक्त थे। अपनी इस भावना को उन्होंने अपने अभिन्न मित्र रवीन्द्र नाथ टैगोर से एक पत्र के माध्यम से प्रकट किया-“यदि मुझे सौ बार भी जन्म लेना पड़े तो मैं हर बार अपनी मातृभूमि के रूप में हिन्दुस्तान का ही चयन करूँगा।”
डॉ. बसु ने पेड़-पौधों में भी जीवन है, इसे सिद्ध करने के लिए कई यंत्र बनाए। उनमें कास्कोग्राफ, रेजोनेंट रिकॉर्डर आदि अधिक चर्चित हैं। ‘कास्कोग्राफ’ पौधों की वृद्धि नापने का यंत्र था, तो रेजोनेंट रिकॉर्डर से यह ज्ञात हो जाता था कि चोट लगने पर और मरते समय पौधे भी काँपने लगते हैं। डॉ. बसु आजीवन अपने विज्ञान साधना में लगे रहे। एक-से-एक बढ़कर उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान किये। उसमें उन्हें सफलता मिलती रही। उनकी इस प्रकार की मौलिकता और विविधता आज भी बेमिसाल मानी जाती है। फलस्वरूप उमकी खोजों से आने वाली वैज्ञानिक पीढ़ी को प्रेरणा मिलती रहेगी।
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु भाषा-अध्ययन काव्य-सौन्दर्य
(क) शीर्षकों के आधार पर एक-एक अनुच्छेद लिखकर डॉ. जगदीशचन्द्र बसु की जीवनी लिखिए बचपन, शिक्षा, कार्यक्षेत्र, सम्मान।
(ख) डॉ. बसु ने इसके बारे में क्या-क्या पता लगाया? बेतार का तार, धातु, पेड़-पौधे।
(ग) निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए रुचि, ज्ञान, सफलता, इच्छा, आवश्यक, परतन्त्र, निर्जीव, उदय।
उत्तर
(क) डॉ. जगदीशचन्द्र बसु की जीवनी
1. बचपन-डॉ. जगदीशचन्द्र बसु का जन्म 30 नवंबर 1858 को बंगला देश के ढाका जिले के मेमनसिंह नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री भगवान चन्द्र बसु था। वे बड़े विचारक थे। डॉ. बसु ने अपने पिता श्री से विचारशीलता, साहस, दृढ़ संकल्प तथा सहानुभूति और माता से भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम के गुणों को ग्रहण कर अपने भविष्य का निर्माण करने लगे।
2. शिक्षा-बालक जगदीश ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव की पाठशाला में प्राप्त की थी। पाठशाला में किसान और मछुआरों के बेटे उनके साथी थे। किसान के लड़के, खेतीबाडी और पौधों के बारे में बातें करते थे। इससे बचपन में ही जगदीशचन्द्र की रुचि पेड़-पौधों में हो गई। गाँव में उन्हें पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधों के सम्पर्क में रहने का अवसर मिला। बालक जगदीश इन वस्तुओं को ध्यान से देखते और इनके विषय में अनेक बातें सोचते। इनकी इसी प्रवृत्ति ने आगे चलकर इन्हें एक महान वैज्ञानिक बना दिया। तेरह वर्ष की आयु में वे कलकत्ता के संत जेवियर्स का कॉलेज में भर्ती हुए। वहाँ की शिक्षा समाप्त करके वे इंग्लैंड चले गए, वहाँ से उन्होंने विज्ञान की उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वदेश लौट आए।
3. कार्यक्षेत्र-डॉ. बसु का कार्यक्षेत्र भारत ही रहा। वे कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रोफेसर रहे। अध्यापन के साथ उन्होंने ‘बसु विज्ञान-मंदिर’ नामक शोध संस्थान की स्थापना की। उन्होंने अपनी निजी प्रयोगशाला के द्वारा बेतार के तार, कास्कोग्राफ, रेजोनेंट रिकॉर्डर जैसे अनेक अद्भुत यंत्रों का आविष्कार किया।
4.सम्मान-डॉ. बसु को उनकी वैज्ञानिक खोजों के लिए अनेक सम्मानों से सम्मानित किया गया। विद्युत के विषय में उनके गवेषणापूर्ण लेखों के लिए लंदन की रायल सोसायटी ने उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की। डॉ. बसु ने अपने अनुसंधान का कार्य का पहला प्रतिवेदन रॉयल सोसायटी को भेजा। लंदन विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से सम्मानित किया। उनके आश्चर्यजनक खोजों, आविष्कारों और प्रयोगों को देखकर यूरोप के लोगों ने उन्हें ‘पूर्व का जादूगर’ कहा। 1911 में सरकार ने उनको सी. आई. ई., 1916 में अमेरिका से लौटने पर सी. एस. आई और 1917 में ‘सर’ की उपाधि से विभूषित किया।
(ख)
1. बेतार का तार-उन्होंने बिना तार के ही दूर पर पड़े बोझ को हिला दिया था और घण्टी बजाकर दिखाया था।
2. पात-उन्होंने धातु से कई यंत्र बनाए; जे-कास्कोग्राफ, रेजोनेंट रिकॉर्डर आदि
3. पेड़-पौधे-पेड़-पौधों में भी हमारे तरह की जीवन है। उनमें हमारे जैसी अनुभव शक्ति है।
(ग) शब्द
विलोम शब्द
रुचि – अरुचि
ज्ञान – अज्ञान
इच्छा – अनिच्छा
सफलता – विफलता
आवश्यक – अनावश्यक
परतंत्र – स्वतंत्र
निर्जीव – संजीव
उदय – अस्त।
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु योग्यता-विस्तार
(क) अपने बाग-बगीचे या आस-पास लगे पेड़-पौधों का सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन कर यह जानिये कि उनमें भी जीवन होता है। एक पौधा लागकर उसे बड़ा कीजिए।
(ख) महान वैज्ञानिक एवं उनके कार्य-चार्ट तैयार कर कक्षा में लगाइये।
(ग) भारतीय संस्कृति में किन-किन पेड़-पौधों की पूजा की जाती है? उनकी जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक अध्यापिका की सहायता से हल करें।
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1.लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
अपनी माँ की किन बात सुनकर बालक बसु पेड़-पौधों के बारे में सोचने लगे?
उत्तर
‘बेटा पौधे सो गए हैं। उन्हें मत जगाओ, गेंद सवेरे निकाल लेना।” अपनी माँ की इन बातों को सुनकर बालक बसु पेड़-पौधों के बारे में सोचने लगे।
प्रश्न 2.
बसु ने निजी प्रयोगशाला क्यों बनाई?
उत्तर
बसु अपने नये अनुसंधानों के द्वारा भारतीय गौरव को बढ़ाने के लिए मचल उठे थे। कलकत्ता से प्रेसीडेन्सी कॉलेज जहाँ पर वे प्रोफेसर थे, वहाँ की प्रयोगशाला में अनुसंधानों के लिए उचित प्रबंध नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने घर पर ही एक निजी प्रयोगशाला बनाई।
प्रश्न 3.
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने वैज्ञानिक मंच पर अपने प्रसंगों द्वारा क्या प्रमाणित कर दिया?
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने वैज्ञानिक मंच पर अपने प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि पेड़-पौधों में भी जीवन है। उन्हें भी हम प्राणियों जैसी सर्दी-गर्मी और भूख-प्यास आदि लगती है। वे भी हमारी तरह सुख-दुख का अनुभव करते हैं। वे भी आराम करते हैं और अंत में हमारी ही तरह मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 4.
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु संसार के पहले वैज्ञानिक क्यों थे?
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु संसार के पहले वैज्ञानिक थे। यह इसलिए कि उन्होंने ही संसार को सबसे पहले यह बतलाया कि पेड़-पौधों और धातओं में भी संवेदना होती है। उनके इस सिद्धान्त से वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में चिंतन के एक नये अध्याय की शुरुआत हुई।
प्रश्न 5.
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने पौधों के कष्ट और उनकी मृत्यु के दृश्य परदे पर किस प्रकार दिखाए?
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने पौधों के कष्ट और उनकी मृत्यु के दृश्य परदे पर दिखाए। इसके लिए उन्होंने स्वयं के द्वारा बनाए गए यंत्र ‘रेजोनेंट रिकॉर्डर से जीवित पौधों में विद्युत की एक हल्की-सी लहर दौड़ाई। परदे पर पौधों का काँपना और तड़पना साफ़-साफ़ दिखाई देने लगा। धीरे-धीरे पौधा निर्जीव हो गया। इसे देखकर लोग हैरान हो गए।
प्रश्न 6.
डॉ. बसु ने अपने अभिन्न मित्र रवीन्द्रनाथ ठाकुर को क्या लिखा था?
उत्तर
डॉ. बसु ने अपने अभिन्न मित्र रवीन्द्रनाथ ठाकुर को एक पत्र में लिखा था-“यदि मुझे सौ बार भी जन्म लेना पड़े, तो मैं हर बार अपनी मातृभूमि के रूप में हिन्दुस्तान का ही चयन करूँगा।”
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
अपनी माँ की बात सुनकर बालक बसु क्या सोचने लगे?
उत्तर
अपनी माँ की बात सुनकर बालक बसु सोचने लगे कि अगर पौधे हमारी तरह सोते-जागते हैं तो उनमें भी हमारी तरह प्राण होते होंगे। पौधों को पानी देते समय वह सोचता-क्या पौधे पानी और भोजन पाकर प्रसन्न होते हैं? क्या आकाश में उमड़ते बादलों को देखकर उनका मन भी आनन्द से नाच उठता है? फूलों को तोड़ लेने पर या आँधी से डालियों के टूटने पर पेड़-पौधों को भी कष्ट होता होगा?
प्रश्न 2.
लेखक के रूप में डॉ. बसु को विश्वस्तर पर बड़ी ख्याति कैसे मिली?
उत्तर
डॉ. जगदीश चन्द्र बसु ने 1895 में कई गवेषणापूर्ण लेख लिखे। इनमें से विद्युत संबंधी दो लेख इंग्लैण्ड के एक वैज्ञानिक पत्र में प्रकाशित हुए। इन लेखों के प्रकाशित होने से उन्हें बड़ी ख्याति मिली। लन्दन की रायल सोसायटी के मुखपत्र में अपने लेख के छपने का गौरव प्राप्त करने वाले यह प्रथम भारतीय थे। विद्युत के संबंध में लिखा गया यह लेख इतना अधिक सराहा गया कि उन्हें उसके विषय में विशेष अनुसंधान करने के लिए सोसायटी की ओर से विशेष छात्रवृत्ति दी गई। दो वर्ष पश्चात् बंगाल सरकार की ओर अनुसंधान कार्य के लिए विशेष सहायता प्रदान की गई।
प्रश्न 3.
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु में देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। सोदाहरण लिखिए।
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने पेड़-पौधों के विषय में एक-से-एक बढ़कर अद्भुत खोज और प्रयोग किए। उससे सारा संसार चकित हो गया। उनकी खोजों और प्रयोगों ने जर्मन वैज्ञानिकों को भी बहुत प्रभावित किया। उनकी खोजों और प्रयोगों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि वे डॉ. बसु को एक विश्वविद्यालय सौंपने को तैयार हो गए। लेकिन डॉ. बसु ने उनके इस प्रस्ताव को अपने देश-प्रेम की भावना से अस्वीकार’ करते हए कहा, “मेरा कार्यक्षेत्र भारत ही रहेगा और में देश के उसी महाविद्यालय में काम करता रहूँगा, जिसमें मैं उस समय काम करना शुरू किया था, जब मुझे कोई जानता नहीं था।” यह था डॉ. बसु का देश-प्रेम।
प्रश्न 4.
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु के जन्मदिन पर महात्मा गाँधी ने उन्हें क्या शुभकामना दी थी?
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु के जन्मदिन के सुअवसर पर महात्मा गांधी ने उन्हें वर्धा से 5 दिसंबर 1928 को एक पत्र में लिखा था-‘मैं यहाँ कूपमण्डूक की तरह रहता हूँ। मुझे मालूम नहीं होता कि इस कुएँ की दीवारों के बाहर क्या हो रहा है? मुझे कल ही आपके जन्म दिन मनाए जाने का समाचार प्राप्त हुआ। यद्यपि में देरी से लिख रहा हूँ। फिर भी आपको जो अनेक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ प्राप्त हो रही हैं, उनमें मेरी शुभकामना और बधाई सम्मिलित कर लें। भगवान आपको चिरायु करे, जिससे कि आपके निरन्तर बढ़ने वाले महान गौरव एवं यश में सारा भारत भागीदार बन सके।”
प्रश्न 5.
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु के संपूर्ण व्यक्तित्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु हमारे देश के महान वैज्ञानिक थे। उन्होंने वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में अनेक अभूतपूर्व खोज और प्रयोग करके सारे संसार को आश्चर्य में डाल दिया। उससे उन्हें देश और विदेश में एक-से-एक बढ़कर सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए। उनमें विज्ञान के प्रति अटूट लगाव था तो देश-प्रेम के प्रति अपार त्याग-समर्पण के भाव भरे हुए थे। यही कारण है कि उन्होंने जर्मन के विश्वविद्यालय का उत्तरदायित्व सँभालने का आग्रह ठुकरा कर भारत में ही रहकर कार्य करने का फैसला लिया था। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि विज्ञान ही डॉ. जगदीशचन्द्र बसु का जीवन था। धैर्य, साहस और लगन के साथ काम करना ही उनकी सफलता की कुंजी थी।
प्रश्न 6.
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु पर आधारित ‘वैज्ञानिक निबंध’ के मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु हमारे देश के एक ऐसे महान वैज्ञानिक थे, जिनकी महानता का लोहा संसार के सभी वैज्ञानिक मानते हैं। अद्भुत, बेजोड़ और असाधारण व्यक्तित्व के धनी महान वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचन्द्र बसु की वैज्ञानिक खोजों पर आधारित यह लेख वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नई पीढ़ी के लिए अत्यन्त प्रासंगिक है। इसमें यह बतलाने का प्रयास किया गया है कि बालक जगदीश की बाल-सुलभ बुद्धि में जिज्ञासा और खोज की प्रवृत्ति ने उन्हें विश्व का श्रेष्ठ वैज्ञानिक बना दिया। बचपन में अपनी माँ के द्वारा संध्या-समय गेंद खेलने से पेड़-पौधों के जागने की बात ने उन्हें ऐसा प्रभावित किया कि उन्होंने अपने पूरे शिक्षाकाल में अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए अनेक प्रकार से चिंतन-मनन किए। फिर एक-से-एक बढ़कर वैज्ञानिक खोज और प्रयोग किए। उनकी खोजों और प्रयोगों में बेतार का तार तथा पेड़-पौधों में संवेदनशीलता प्रमुख है।
प्रश्न
डॉ. जगदीश चन्द्र बसु का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
डॉ. जगदीश चन्द्र बसु भारत के पहले और आधुनिक वैज्ञानिक रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने विज्ञान को अपने एक स्वस्थ दृष्टिकोण से देखा, उसे गहराई से समझा और उपयोगिता की दृष्टि से प्रस्तुत किया। इससे वे विश्व के महान वैज्ञानिकों में प्रतिष्ठित हो गए। उनकी इस महानता को सभी ने एकमत से स्वीकार किया। उनकी इस महानता के विषय में यह कहा जाता है कि वे अपने विद्यार्थी जीवन में जिज्ञासु प्रकृति के थे। खासतौर से वे अपनी माँ से प्रकृति के विषय में अधिकांश रूप में पेड़-पौधों के विषय में बहुत-सी बातों की जानकारी हासिल करते थे। इस तरह उनके अंदर प्रकृति-प्रेम मुख्य रूप से वनस्पति जगत के प्रति जिज्ञास प्रवृत्ति के कारण गहरा लगाव हो गया था।
डॉ. जगदीशचन्द्र के व्यक्तित्व का दूसरा महान पक्ष यह है कि उनमें अपार देश-प्रेम की भावना भरी हुई थी। इसी भावना के कारण ही उन्होंने जर्मन के विश्वविद्यालय का उत्तरदायित्व संभालने का आग्रह ठुकराकर भारत में ही रहकर कार्य करने का फैसला किया था। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि डॉ. जगदीशचन्द्र बसु हमारे देश के एक ऐसे महावैज्ञानिक हैं, जिनका जीवन एक अद्भुत मिसाल है। उनकी सर्वोच्च विशेषता यही थी कि उनमें अपार धैर्य, साहस और लगन थी। यही उनके जीवन की सफलता की कुंजी थी।
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु निबंध का सारांश
प्रश्न.
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु पर आधारित वैज्ञानिक निबंध का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
डॉ. जगदीशचन्द्र बस पर आधारित वैज्ञानिक निबंध एक तथ्यपूर्ण निबंध है। इस निबंध में हमारे देश के महावैज्ञानिक डॉ. जगदीशचन्द्र बसु से संबंधित अनेक अप्रकाशित तथ्यों की जानकारी दी गई है, जिससे हमारी जिज्ञासा में तेजी आ जाती है। इस निबंध का सारांश इस प्रकार है
संध्या-समय एक बालक अपने बगीचे की लताओं में अटकी हुई गेंद लकड़ी से गिरा रहा था तो उसकी माँ ने कहा कि इस समय पौधे सो गए हैं। गेंद सेवेरे निकाल लेना। इसे सुनकर बालक के मन में तरह-तरह की जिज्ञासा होने लगी- ‘क्या पौंधों में हमारी तरह प्राण-जीवन होता है? क्या पानी-भोजन पाकर और बादलों को देखकर आनंदित होते हैं और उन्हें नुकसान पहुँचाने पर दुखी होते हैं। बड़ा होने पर उस बालक ने यह खोज की कि पौधों में भी हमारे जैसे जीवन की कई बातें मिलती हैं। इससे संसार हैरान हो गया। उस बालक का नाम था-जगदीशचन्द्र बसु।
जगदीशचन्द्र बसु का जन्म 30 नवम्बर 1858 को बंगाल प्रान्त (इस समय बंगला देश) के ढाका जिलान्तर्गत मेमन सिंह नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता विचारशील उच्च पदाधिकारी थे और माता भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट भाव प्रधान। बालक वसु ने अपने माता-पिता से इन गुणों को ग्रहण कर शिक्षा अध्ययन प्राप्त करने लगे। उनके प्रारंभिक सहपाठी किसानों और मछुआरों के लड़के थे। किसानों के लड़कों से उन्होंने पेड़-पौधों की ऐसी-ऐसी अपनी आरंभिक शिक्षा समाप्त कर तेरह वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता के संत जेवियर्स कॉलेज में अपनी पढ़ाई समाप्त की। इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड में जाकर महान वैज्ञानिकों के सम्पर्क में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की। स्वेदश आकर उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रोफेसर के पद अध्यापन आरंभ कर दिया। उनकी योग्यता और स्वाभिमान के कारण उन्हें अच्छा वेतन मिलने लगा था।
1895 में खोजपूर्ण लिखे लेख इंग्लैंड के वैज्ञानिक पत्र में प्रकाशित हुए तो उन्हें बड़ी ख्याति मिली। वे इस दृष्टि से पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। विद्युत.संबंधी उनके उस लेख से प्रभावित होकर लन्दन की रायल सोसायटी ने उन्हें उस विषय में विशेष खोज करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। दो वर्ष के बाद बंगाल सरकार ने भी उन्हें इस दिशा में खोज करने के लिए विशेष सहायता राशि प्रदान की। उन्होंने अपनी मौलिक प्रतिभा को साकार करने के लिए. एक प्रयोगशाला बनाई। वह उनके मित्रों के सहयोग से ही चल पायी थी। उनके अनुसंधान कार्य के प्रतिवेदन को स्वीकार करके लंदन विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ साइन्स’ की उपाधि से सम्मानित , किया। डॉ. बसु का दूसरा अनुसंधान था-बेतार के तार, जिसे उन्होंने 1895 में बंगाल के गवर्नर के सामने सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया। चूंकि उस समय हमारा देश गुलाम था। इसलिए इटली के डॉक्टर मार्कोनी ने इस आविष्कार को अपने नाम से रजिस्टर्ड करा लिया। फलस्वरूप इसका श्रेय डॉ. बसु को नहीं मिला।
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने पेड़-पौधों के विषय में सबसे पहले बड़ी अद्भुत खोज की। उन्होंने वेदों-उपनिषदों के उस कथन को सत्य कर दिखाया कि पेड़-पौधों में भी जीवन है। वे भी हमारी तरह सुख-दुख का अनुभव करते हैं और जन्म-मृत्यु को प्राप्त होते हैं। उनकी इस खोज से वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में चिंतन का एक नया अध्याय शुरू किया। उनके शोध-ग्रंथ ‘रिस्पांस इन दि लिविंग एंड नान-लिविंग’ ने सारे संसार में हलचल पैदा कर दिया। डॉ. बसु ने मैग्नेटिक कास्कोग्राफ’ के द्वारा यह सफलतापूर्वक प्रदर्शित कर दिया कि पेड़-पौधों में भी जीवन है। इस दिशा में उनके द्वारा बनाए
यंत्रों में कास्कोग्राफ, रेजानेंट, रिकार्ड आदि अधिक चर्चित हैं। कास्कोग्राफ से पौधों . की वृद्धि और रेजोनेंट से उनके घायल होने या मरते समय के कंपन को देखा जा सकता है। इसे देखकर लोग हैरान हो गए। उनके इस प्रकार के चमत्कारी खोजों, आविष्कारों और प्रयोगों के कारण यूरोपियों ने उन्हें ‘पूर्व का जादूगर’ कहा है। उनकी ख्याति सारे संसार में फैल गई। लंदन की रायल सोसायटी ने उन्हें कई बार अपनी महत्त्वपूर्ण खोजों को प्रदर्शित करने और व्याख्यान देने के लिए बुलाया। 1906 में उनका ‘वृक्षों में जीव है’, नामक ग्रन्थ प्रकाशित हुआ। 1911 में भारत सरकार ने
उनको सी.आई.ई., 1916 में सी.एस.आई. और 1917 में ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया। वे 1915 में प्रेसीडेन्सी कॉलेज से सेवा-निवृत्त हए तो अपनी 59वीं वर्षगाँठ पर अपने ‘वसु विज्ञान मंदिर की स्थापना की। 1928 में जब उनका 70वां शुभ जन्म-दिन बड़े उल्लास के साथ मनाया गया तो उन्हें देश-विदेश से शुभकामनाएँ भेंट की गयीं। वर्धा से 5 दिसंबर 1928 को महात्मा गांधी ने उन्हें पत्र लिखकर उनके दीर्घायु की मंगलकामना व्यक्त की थी। डॉ. वसु ने आजीवन विज्ञान-साधना की। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दौर में भी कई सफल वैज्ञानिक अनुसंधान किए। उनके द्वारा स्थापित ‘विज्ञान मंदिर’, एक ऐसा शोध संस्थान है, जिसमें वैज्ञानिकों, विद्यार्थियों के लिए शोध-संबंधी सभी सुविधाएँ मौजूद हैं।
डॉ. बसु का निधन 23 नवबर 1937 को हुआ। वे वास्तव में वनस्पति विज्ञान के चमकते-दमकते नक्षत्र थे। उनमें अपार धैर्य, दृढ़ संकल्प, दयालुता विलक्षणता स्वाभिमान और देश-प्रेम भरा हुआ था। इन गुणों के कारण वे सदैव याद किए जाते रहेंगे।
डॉ. जगदीशचन्द्र बसु संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण व विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. कहते हैं कि कण-कण में भगवान मौजूद है। हमारे वेदों और उपनिषदों में भी यही कहा गया है। यहाँ जड़ और चेतन के बीच कोई भेदभाव नहीं बताया गया है। पर लोग धीरे-धीरे इसे भूलते चले गए। जड़ को अचेतन माना जाने लगा। जगदीशचन्द्र बसु ने इस विस्मृत ज्ञान को एक बार पुनः वैज्ञानिक मंच पर उठाया और अपने प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि पेड़-पौधों में भी जीवन है। उन्हें भी हम प्राणियों जैसी सर्दी-गर्मी व भूख-प्यास आदि लगती है। वे भी हमारी तरह सुख-दुख की अनुभूति रखते हैं। वे भी आराम करते हैं और अंत में मनुष्यवत् ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
शब्दार्च-कण-कण-एक-एक रूप। विस्मृत-लुप्त, गायब । अनुभूति-अनुभव, ज्ञान, समझ। मनुष्यवत्-मनुष्य की तरह।
प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक वासंती’ हिन्दी सामान्य में संकलित महान वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचन्द्र बसु के जीवन पर आधारित है ‘वैज्ञानिक निबंध’ नामक शीर्षक से है। इसमें डॉ. जगदीशचन्द्र बसु द्वारा पेड़-पौधों में जीवन को प्रमाणित किए जाने के विषय में प्रकाश डाला गया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि
व्याख्या-हमारे धर्म-ग्रन्थों में यह कहा गया है कि सृष्टि के हर छोटे-बड़े रूप में ईश्वर की सत्ता और प्रभाव दिखाई देता है। खासतौर से हमारे चारो वेदों-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद में ईश्वर की सत्ता और उसकी उपस्थिति सृष्टि के हरेक रूप में बतलायी गयी है। इसी प्रकार के प्रमाण हमारे सभी पुराणों, उपनिषदों ‘ और ऋचाओं-स्मृतियों में बार-बार प्रस्तुत हुए हैं। इस प्रकार हमारे सभी धर्म-ग्रन्थ सृष्टि के जड़ और चेतन में ईश्वर की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं। ऐसा करते हुए ने किसी का किसी के प्रति कोई अंतरभाव या भेदभाव नहीं प्रकट करते हैं। लेकिन यह बड़े ही अफसोस की बात कही जा सकती है कि आज के लोगबाग इतने आधुनिक मन-मस्तिष्क के हो गए हैं कि वे इसे लगभग भूल ही चुके हैं। उनके मन-मस्तिष्क की यही उपज है कि जड़ और अचेतन है।
लेखक का पुनः कहना है कि जब लोगों ने जड़ को अचेतन समझना शुरू कर दिया, तो डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने लोगों की इस भूल-भटकन को एक बार फिर से अपनी वैज्ञानिक सोच-समझ के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उन्होंने इसके लिए कई तरह के प्रयोग भी किए। उन प्रयोगों से यह साबित कर दिया कि पेड़-पौधों में भी हमारी ही तरह का जीवन है। वे भी हमारी तरह सुख-दुख का अनुभव करते हैं। उन्हें भी सर्दी-गर्मी सताती है। उन्हें भी समय-समय पर भूख, प्यास और नींद लगती है। वे भी थकते हैं और आराम करते हैं। इस प्रकार हमारे जैसे जीवन जीते हुए अंत में मौत की गोद में चले जाते हैं।
विशेष-
- भाषा वैज्ञानिक शब्दों की है।
- शैली प्रामाणिक है।
- सम्पूर्ण कथन सत्य पर आधारित है।
- यह अंश ज्ञानवर्द्धक और भाववर्द्धक है।
1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर :
प्रश्न
(i). हमारे वेदों-उपनिषदों की क्या मान्यता है।
(ii) आज के लोगों की क्या मान्यता है?
(iii) डॉ. बसु ने वैज्ञानिक मंच पर क्या उठाया?
उत्तर
(i) हमारे वेदों-उपनिषदों की यह मान्यता है कि सृष्टि के एक-एक तत्त्व (रूप) में ईश्वर की सत्ता मौजूद है। इसलिए जड़ और चेतन में कोई अंतर नहीं है।
(ii) आज के लोगों की यह मान्यता है कि जड़ और चेतन में अंतर है। जड़ ही अचेतन है।
(iii) डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने जड़ और चेतन क्या है? दोनों एक ही हैं या दोनों अलग-अलग हैं। इस तरह जड़-चेतन में भेद है या नहीं, इस प्रकार के तथ्य का गंभीरतापूर्वक अध्ययन-मनन किया। फिर इसे वैज्ञानिक मंच पर रखा।
2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने क्या प्रमाणित कर दिया?
(ii) पेड़-पौधों और हमारे में मुख्य अंतर क्या है?
(iii) उपर्युक्त गद्यांश का प्रतिपाय क्या है?
उत्तर
(i) डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने अपने बार-बार के प्रयोगों से यह प्रमाणित कर दिया कि हमारी तरह ही पेड़-पौधों में जीवन है। वे भी हमारी तरह सुख-दुख का अनुभव करते हैं। उन्हें सर्दी-गर्मी और भूख सताती है। घायल होने पर वे भी दुख-दर्द से परेशान हो उठते हैं। इस प्रकार वे हमारी तरह जीवन-मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
(ii) पेड़-पौधों और हमारे में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं है। उनमें और हमारे में मुख्य अंतर यह है कि हम अपने दुखों और अभावों-कठिनाइयों को बड़ी गहराई से समझते हैं। अपने शक्ति-क्षमता से उन्हें दूर कर ही लेते हैं। पेड़-पौधे ऐसा नहीं कर पाते हैं; क्योंकि उनकी शक्ति-क्षमता हमारी तुलना में बिल्कुल ही नहीं के बराबर होती है।
(iii) उपर्युक्त गद्यांश का प्रतिपाद्य है-पेड़-पौधों के विषय में अद्भुत और ज्ञानवर्द्धक जानकारी प्रस्तुत करना।