MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 16 कूटश्लोकाः

MP Board Class 8th Sanskrit Chapter 16 अभ्यासः

Class 8 Sanskrit Chapter 16 MP Board प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत(एक शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) प्रथमायाः प्रहेलिकायाः उत्तरं किम्? (प्रथम पहेली का उत्तर क्या है?)
उत्तर:
सूची। (सूई)

(ख) वयं कया लिखामः? (हम किससे लिखते हैं?)
उत्तर:
लेखन्या। (पेन से)

(ग) कंसं कः सञ्जघान? (कंस को किसने मारा?)
उत्तर:
कृष्णः। (कृष्ण ने)

(घ) कम्बलवन्तं किंन बाधते? (कम्बल वाले को क्या परेशान नहीं करती?)
उत्तर:
शीतम्। (ठण्ड)

(ङ) कति स्त्रियः स्नानार्थ नर्मदां गताः? (कितनी स्त्रियाँ स्नान के लिए नर्मदा नदी पर गी?)
उत्तर:
विंशतिः। (बीस)

(च) करिणां कुलं को हन्ति? (हाथियों के समूह को कौन मारता है?)
उत्तर:
सिंहः। (शेर)

Mp Board Class 8 Sanskrit Chapter 16 प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) लेखन्याः स्वरूपं किम्? (पेन का स्वरूप कैसा है?)
उत्तर:
कृष्णमुखी द्विजिह्वा पञ्चभी च इति लेखन्याः स्वरूपम्। (मुंह काला, दो जीभ और पाँच अंगुलियों से चलना ऐसा पेन का स्वरूप है।)

(ख) सूच्याः किं लक्षणम्? (सूई का लक्षण क्या है?)
उत्तर:
एकचक्षुः बिलम् इच्छति क्षीयते वर्धते च इति सूच्याः लक्षणम्। (एक आँख होती है, बिल को खोजती है और घटती-बढ़ती है यह सूई का लक्षण है।)

(ग) काशीतलवाहिनी का? (काशी की सतह पर बहने वाली कौन है?)
उत्तर:
काशीतलवाहिनी गङ्गा। (काशी की सतह पर बहने वाली गंगा है।)

(घ) शीतं कं न बाधते? (ठण्ड किसको परेशान नहीं करती?)
उत्तर:
शीतं कम्बलवन्तम् न बाधते। (कम्बल जिसके पास हो ठण्ड उसे परेशान नहीं करती।)

(ङ) नर्मदायाः कति स्त्रियः पुनरायाता:? (नर्मदा से कितनी स्त्रियाँ वापस आयीं?)
उत्तर:
नर्मदायाः विंशतिः स्त्रियः पुनरायाताः। (नर्मदा से बीस स्त्रियाँ वापस आयीं।)

(च) शङ्करम् पतितं दृष्ट्वा पार्वती कीदशी भवति? (शंकर को गिरा हुआ देखकर पार्वती कैसी होती है?)
उत्तर:
शङ्करम् पतितं दृष्ट्वा पार्वती हषनिर्भरा भवति। (शंकर को गिरा हुआ देखकर पार्वती प्रसन्न होती है।)

Sanskrit Class 8 Chapter 16 MP Board प्रश्न 3.
युग्मेलनं कुरुत(जोड़े बनाओ-)
Mp Board Class 8 Sanskrit Chapter 16
उत्तर:
(क) → (iii)
(ख) → (vi)
(ग) → (i)
(घ) → (vii)
(ङ) → (ii)
(च) → (v)
(छ) → (iv)

Mp Board Class 8 Sanskrit Solution Chapter 16 प्रश्न 4.
रिक्त स्थानानि पूरयत(रिक्त स्थान भरो-)
(क) कंसं जघान ………….
(ख) कं बलवन्तं ………… शीतम्।
(ग) तत्पुरुष …………. येनाहं स्याम बहुब्रीहिः।
(घ) ………… पतितं दृष्टवा पन्नगाः रूरुदुः।
(ङ) मद्गेहे नित्यम् ………..।
उत्तर:
(क) कृष्णः
(ख) न बाधते
(ग) कर्मधारय
(घ) शङ्करम्
(ङ) अव्ययीभावः।

Class 8 Sanskrit Chapter 16 Mp Board प्रश्न 5.
द्वयर्थंकशब्दानाम् अर्थं लिखत(दो अर्थ वाले शब्दों के अर्थ लिखो-)
उत्तर:
Class 8 Sanskrit Chapter 16 MP Board

कूटश्लोकाः हिन्दी अनुवाद

कूटश्लोको
एकचक्षुः न काकोऽयं बिलमिच्छन्नपन्नगः।
क्षीयते वर्धते चैव न समुद्रो न चन्द्रमाः॥1॥

एकं चक्षुः अस्ति परन्तु काकः नास्ति बिलम् अन्विष्यति परन्तु पन्नगः नास्ति क्षयः भवति वृद्धिरपि भवति परन्तु समुद्रः नास्ति चन्द्रोऽपि नास्ति। तर्हि एतत् किम्?

Chapter 16 Sanskrit Class 8 MP Board अनुवाद :
जटिलश्लोक- एक आँख है परन्तु कौआ नहीं है, बिल खोजता है परन्तु साँप नहीं है, कम होता है और ज्यादा भी होता है परन्तु समुद्र नहीं है और चन्द्रमा भी नहीं है। तो यह क्या है?

उत्तर :
सूई।

Class 8 Sanskrit Chapter 16 Question Answer MP Board स्पष्टीकरण :
सूई में एक छेद होता है, इसलिए उसे एक आँख वाली कहा जाता है। सूई कपड़े के अन्दर जाती है, इसलिए वह बिल को खोजने वाली कही गई है। सूई में लगा धागा छोड़ा-बड़ा होता है इसलिए उसे घटने-बढ़ने वाली कहा गया है।

कृष्णमुखी न मार्जारी द्विजिह्वा न च सर्पिणी।
पञ्चभी न पाञ्चाली यो जानाति स पण्डितः॥2॥

मुखभागः कृष्णवर्णः वर्तते किन्तु कृष्णवर्णा मार्जारी नास्ति, द्वे, जिह्वे भवतः किन्तु सर्पिणी नास्ति, पञ्च पतयः सन्ति किन्तु पाञ्चाली नास्ति। तर्हि किम् अस्ति ? यः जानाति सः पण्डित एव।

Sanskrit Chapter 16 Class 8 MP Board अनुवाद :
मुँह काले रंग का है किन्तु काले रंग की बिल्ली नहीं है, दो जीभ होती हैं किन्तु सर्पिणी नहीं है, पाँच पति (अंगुलियों से पकड़ते हैं इसलिए) हैं किन्तु पांचाली (द्रोपदी) नहीं है। तो क्या है? जो जानता है वह पण्डित ही है।

उत्तर :
लेखनी।

Class 8 Chapter 16 Sanskrit MP Board स्पष्टीकरण :
पहले समय में प्रायः पेन काली स्याही वाले होते थे इसलिए उसे काले मुँह वाला कहा जाता है। पहले पेन में दो निब या जीभ होती थी इसलिए उसे दो जीभ वाली कहा गया हैं। पेन को चलाने में हाथ की पाँचों अंगुलियों का प्रयोग होता है। इसलिए इसके पाँच भर्ता या स्वामी कहे गये हैं।

कूटश्लोकः (प्रश्नोत्तरम्) –
कं सञ्जघान कृष्णः का शीतलवाहिनी गङ्गा।
केदारपोषणरताः कम् बलवन्तं न बाधते शीतम्॥3॥

कृष्णः कं जघान? ……… कंसम्
शीतलवाहिनी का? ……… काशीतलवाहिनीगङ्गा
दारपोषणरताः के? ……… केदारपोषणरताः
शीतं कम् न बाधते? ……… कम्बलवन्तम् बलवन्तम्
(जटिल श्लोक (प्रश्न और उत्तर सहित)

Ch 16 Sanskrit Class 8 MP Board अनुवाद :
श्रीकृष्ण ने किसको मारा? – कंस को।
कौन शीतल जल वाली गंगा है? – काशी की सतह पर बहने वाली।
कौन पत्नी के पोषण में रत है? – केदार (खेत) संवारने में संलग्न (कृषक)
किस बलवान् को ठण्ड परेशान नहीं करती? – कम्बल जिसके पास हो उसको।

संख्याकूटश्लोकः
एकोनाविंशतिः स्त्रीणां स्नानार्थं नर्मदां गता विंशतिः पुनरायाता एको व्याघ्रण भक्षितः॥4॥
स्त्रीणाम् एकोनाविंशतिः (१९) स्नानार्थं नर्मदां गता व्याघ्रण एको भक्षितः (१९-१ = १८) विंशतिः (२०) पुनरायाता!…….? एकः ना स्त्रीणां विंशतिः (१ + २० = २१) स्नानार्थ नर्मदां गता। व्याघ्रण एकः भक्षितः विंशतिः पुनः आयाता (२१ -१ = २०) संख्या वाले जटिल श्लोक

Chapter 16 Class 8 Sanskrit MP Board अनुवाद :
उन्नीस (एकोनाविंशतिः) स्त्रियाँ स्नान के लिए नर्मदा नदी पर गयीं। उनमें से बीस (विंशतिः) वापस आ गयीं, जबकि एक को बाघ खा गया?

स्पष्टीकरण :
इस पहेली में ‘एको न विंशतिः स्त्रीणां स्नानार्थं नर्मदां गता’ इस पंक्ति के दो अर्थ होंगे-
(1) एको ना विंशतिः स्त्रीणां = उन्नीस स्त्रियाँ।
(2) एको ना विंशतिः स्त्रीणां = एक नर या पुरुष (नर) और बीस (विंशतिः) स्त्रियाँ।

दूसरा अर्थ करने पर :
एक पुरुष और बीस स्त्रियाँ (1 + 20 = 21) स्नान के लिए नर्मदा नदी पर गयीं। उनमें से बीस वापस आ गयीं, एक को बाघ खा गया (21 -1 = 20)

समासकूटेन चमत्कारः
अहं च त्वं च राजेन्द्र लोकनाथावुभावपि।
बहुब्रीहिरहं राजन् षष्ठी तत्पुरुषो भवान्॥5॥

(एकः भिक्षुकः दरिद्रः/निर्धनः महाराजम् उद्दिश्य ब्रूते)
हे राजेन्द्र! अहं त्वं च उभौ अपि लोकनाथौ (स्व:) अहम् बहुव्रीहिः भवान् षष्ठीतत्पुरुषः। लोकः नाथः यस्य सः (भिक्षुकः) लोकस्य नाथः (राजा)। समास की जटिलता से चमत्कार

Class 8th Sanskrit Chapter 16 MP Board अनुवाद :
(एक भिक्षुक निर्धन है वह महाराज को उद्देश्य करके कहता है)

हे महाराज! मैं और तुम दोनों लोकनाथ हैं, मैं बहुब्रीहि और आप षष्ठी तत्पुरुष हैं।

स्पष्टीकरण :
इस समास पर आधारित पहेली को समझने के लिए बहुब्रीहि और षष्ठी तत्पुरुष समास को समझना आवश्यक है।

यहाँ ‘लोकनाथ’ इस समस्त पद का बहुब्रीहि और षष्ठी तत्पुरुष समास के आधार पर विग्रह करना होगा।

बहुब्रीहि-लोक नाथः यस्य सः (शिक्षकः)
(संसार ही सहारा है जिसका वह-भिक्षुक)

षष्ठी तत्पुरुष-लोकस्य नाथः
(राजा) (संसार का स्वामी-राजा)

इस आधार पर अर्थ करने पर-हे महाराज! मैं और तुम दोनों लोकनाथ (अर्थात् मैं भिक्षुक और तुम राजा हो) हैं।

द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहम् मद्गृहे नित्यम् अव्ययीभावः।
तत्पुरुषः कर्मधारय येनाहं स्याम बहुब्रीहिः॥6॥

Class 8 Sanskrit Ch 16 MP Board द्वन्द्व :
द्विगु-अव्ययीभाव-तत्पुरुष-कर्मधार बहुब्रीहिसमासभेदान् आश्रित्य अत्र कूटश्लोके निर्धनस्य धनप्राप्यै पत्न्याः प्रार्थनायाः अद्भुत: सामाजिकः भावः निबद्धः। अत्र पत्नी धनार्जनाय अकर्मण्य प्रारं प्रेरयति।

द्वन्द्व :
अहं भवता सह कलहं करोमि किल? किमर्थम्?

द्विगुः :
अहं भवतः भार्या अस्मि। मम पालन पोषणं भवतः कर्त्तव्यम् अस्ति किन्तु (मद्गृहे नित्यम्)

अव्ययीभाव: :
प्रतिदिनं पले भोजनार्थम् किमपि नास्ति।

तत्पुरुष :
अतः हे पतिदेव कामपि उद्योगं कुरु।

कर्म + धारय :
धनधास्वादिल गृहमानय येन कारणेन (येनाहं स्याम)

बहुब्रीहिः :
अहमशिनायान्यसपना भवेयम्।

अनुवाद :
द्वन्द्व, द्विगु, अव्ययीभाव, तत्पुरुष, कर्मधारयं और बहुब्रीहि समास के भेदों पर आधारित इस कूट श्लोक में निर्धन की धन प्राप्ति के लिए पत्नी की प्रार्थना का अद्भुत सामाजिक भाव निबद्ध है। यहाँ पत्नी धन कमाने के लिए आलसी पति को प्रेरित कर रही है

(द्वन्द-मैं आपके साथ कलह अवश्य करता हूँ। किसलिए? द्विगु-मैं आपकी पत्नी हूँ। मेरा पालन-पोषण आपका कर्तव्य है। किन्तु (मेरे घर में नित्य)

अव्ययीभाव :
प्रतिदिन घर में भोजन के लिए कुछ भी नहीं है।

तत्पुरुष :
इसलिए हे पतिदेव! कोई भी धन्धा करो।

कर्मधारय :
धन-धान्य आदि को घर लाओ जिसके कारण से हम ऐसे हैं। बहुब्रीहि-मुझे भी धन-धान्य से सम्पन्न होना चाहिए।)

स्पष्टीकरण :
मेरे घर में द्वन्द्व (लड़ाई-झगड़ा) है, द्विगु। दम्पत्ति (पति-पत्नी)] हैं, अव्ययी भाव (धन का अभाव) है। तत्पुरुष (पति) कर्मधारय (आलस्य को छोड़कर कर्म करो) जिससे मैं बहुब्रीहि (धनयुक्त) हो जाऊँ।

शङ्करम् पतितं दृष्ट्वा पार्वती हर्षनिर्भरा।
रूरुदुः पन्नगाः सर्वे हा हा शङ्कर शङ्कर॥7॥

अत्रापि श्लेष द्वारा अर्थः बोध्यः। शङ्करम् पतितं दृष्ट्वा पार्वती प्रसन्ना भवति, सर्वाः दुःखिताः जाताः। अत्र शङ्करशब्दे पार्वतीशब्दे च श्लेषः। सर्पाः शीतलं चन्दनवृक्षं आलिङ्य मिलन्ति सः चन्दनवृक्षः प्रकृतिविकोपेन पतितः अतः निराश्रिताः पन्नगाः रुदन्ति तथा भिल्लस्त्री (मलयपर्वते) चन्दनवृक्षबाहुल्यात् चन्दनवृक्षकाष्ठम् इन्धनाय-उपयुक्ते।

भिल्लस्त्री (पार्वती) पतितं चन्दनवृक्षं दृष्टवा इन्धनं लब्धमिति हर्षनिर्भरा जाता।

शङ्करः शिवः चन्दनवृक्षः च, पार्वती: गौरी भिल्लस्त्री च।

अनुवाद :
शंकर को गिरा हुआ देखकर पार्वती प्रसन्न होती हैं। सर्प रोने लगे और सभी हाय शंकर हाय शंकर करने लगे।

यहाँ भी श्लेष द्वारा अर्थ समझने योग्य है। शंकर को गिरा हुआ देखकर पार्वती प्रसन्न होती हैं, सभी दुःखी हो जाते हैं। यहाँ शंकर शब्द में और पार्वती शब्द में श्लेष है। सर्प शीतल चन्दन वृक्ष से लिपटकर मिलते हैं, वह चन्दन वृक्ष प्रकृति के प्रकोप से गिर जाता है, इसलिए निराश्रित होकर सर्प रोते हैं तथा मलय पर्वत पर रहने वाली भीलनी चन्दन वृक्ष से चन्दन लकड़ी को ईंधन के लिए प्राप्त कर लेती हैं।

भीलनी (पार्वती) चन्दन के वृक्ष को गिरा हुआ देखकर, ईंधन पाकर प्रसन्न होती हैं।

यहाँ शंकर शिव और चन्दन वृक्ष हैं, पार्वती गौरी और भीलनी हैं।

स्पष्टीकरण :
इस पहेली को समझने के लिए श्लेष अलंकार को समझना आवश्यक है। ‘श्लेष’ का अर्थ है जहाँ एक ही शब्द के दो या दो से अधिक भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं। यहाँ ‘शंकर’ और ‘पार्वती’ शब्दों के दो-दो अर्थ हैं। ‘शंकर’ का एक अर्थ भगवान शंकर है और दूसरा अर्थ चन्दन का पेड़ है। इसी प्रकार ‘पार्वती’ का एक अर्थ भगवान शंकर की पत्नी पार्वती है और दूसरा अर्थ पर्वत पर निवास करने वाली भीलनी है। श्लेष के अनुसार अर्थ करने पर इस श्लोक का भाव होगा-चन्दन के पेड़ को गिरा हुआ देखकर पर्वत पर निवास करने वाली भीलनी प्रसन्न होती है। सर्प रोने लगे और हाय चन्दन के पेड़, हाय चन्दन के पेड़ करने लगे।

कस्तूरी जायते कस्मात् को हन्ति करिणां कुलम्।
किं कुर्यात् कातरो युद्धे मृगात् सिंहः पलायनम्॥8॥

अत्र चरणत्रये त्रयः प्रश्नाः चतुर्थे चरणे त्रयाणाम् एवं उत्तरं वर्तते। कस्तूरी कस्मात् जायते इति प्रथमः प्रश्नः ‘करिणां कुलं कः हन्ति’ इति द्वितीयप्रश्नः कातरः युद्धे किं कुर्यात् इति तृतीयः प्रश्नः।

अनुवाद :
कस्तूरी किससे उत्पन्न होती है? कौन हाथियों के कुल (समूह) को मारता है? दुःखी युद्ध में क्या करे, मृग से, सिंह, पलायन।

यहाँ तीन चरणों में तीन प्रश्न हैं और चौथे चरण में तीनों के ही उत्तर हैं। कस्तूरी किससे उत्पन्न होती है? यह पहला प्रश्न है। हाथियों के कुल (समूह) को कौन मारता है? यह दूसरा प्रश्न है। दुःखी युद्ध में क्या करे? यह तीसरा प्रश्न है।

स्पष्टीकरण :
प्रश्न 1.
कस्तूरी किससे उत्पन्न होती है?
उत्तर:
मृग से।

2. हाथियों के कुल (समूह) को कौन मारता है?
उत्तर:
सिंह

3. दुःखी युद्ध में क्या करे?
उत्तर:
पलायन (भागे)।

कूटश्लोकाः शब्दार्थाः

चक्षुः= नेत्र। पन्नगः सर्प। बिलम् = छेद। जिह्वा=जीभ। पञ्चभी = पाँच पतियों वाली। पाञ्चाली = द्रोपदी। जघान = मारा। शीतलवाहिनी = शीतल जल वाली। दारपोषणरताः = पत्नी के पोषण में तत्पर। केदारपोषणरताः = खेत सँवारने में संलग्न (कृषक)। कम्बलवन्तम् = किस बलवान् को। ना= पुरुष:/नरः। एकोनाविंशति= 19। विंशतिः =20। लोकनाथः = भिक्षुक/राजा। लोकानाथः यस्य सः = अन्यपदार्थप्रधानो बहुब्रीहिः। लोकः सर्वोऽपि भिक्षुकस्य नाथः-लोकस्य दासःभिक्षुकः। लोकस्यनाथः = षष्ठीतत्पुरुषसमासे कृते राजा इत्यर्थः। द्वन्द्वः= द्वन्द्व समास, कलह। द्विगुः= द्विगुसमास, दम्पत्ति (पति-पत्नी)। अव्ययीभावः = समास, धनाभाव (निर्धनता)। तत्पुरुषः = समास, पति। कर्मधारयः = समास, अकर्मण्यता छोड़कर कर्म करो। बहुब्रीहिः = समास, धनधान्ययुक्त। शङ्करम् = शङ्कर भगवान को/चन्दन के पेड़ को। पतितम् = गिरते हुए। पार्वती = पार्वती शिवपत्नी/पर्वतनिवासिनी भीलनी। पन्नगाः = सर्प। कस्तूरी = कस्तूरी (गन्धविशेष)। जायते = उत्पन्न होती है। हन्ति = मारता है। करिणां कुलम् = हाथियों के समूह को। . कातरः = दुःखी। युद्धे = युद्ध में।

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