MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 12 याचक और दाता
याचक और दाता पाठ का अभ्यास
याचक और दाता बोध प्रश्न
याचक और दाता की कहानी Class 8 MP Board प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए।
उत्तर
याचक-माँगने वाला; धरोहर = वह वस्तु या द्रव्य जो कुछ समय के लिए दूसरे के पास इस विश्वास से रखी जाए कि माँगने पर उसी रूप में मिल जाए; वात्सल्य = बच्चों के प्रति प्रेम हतप्रभ = निस्तेज, शिथिल, आश्चर्यचकित; गुहार = पुकार; शंका= सन्देह जिजीविषा-जीवित रहने की इच्छा; निस्तब्ध + बिना हिले-डुले; सानुभूति = हमदर्दी, संवेदना।
याचक और दाता कहानी का सारांश MP Board Class 8th प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए.
(क) वृद्धा मन्दिर के पास क्या काम करती थी?
उत्तर
वह बूढ़ी औरत मन्दिर के पास उसके दरवाजे पर फूलों की माला बेचा करती थी।
(ख) सेठ बनारसीदास के यहाँ किन लोगों की भीड़ लगी रहती थी?
उत्तर
सेठ बनारसीदास के यहाँ जरूरतमन्दों की भीड़ लगी रहती थी।
(ग) वृद्धा सेठजी से क्या माँगने गई थी?
उत्तर
वृद्धा सेठजी से अपनी जमा की गई हौड़ी से कुछ रुपये मांगने के लिए गई थी। वह अपने बीमार बच्चे का इलाज डॉक्टर को दिखाकर करा लेना चाहती थी।
(घ) सेठजी ने अपने बच्चे की पहचान कैसे की?
उत्तर
वृद्धा ने बच्चे को बहुत गम्भीर दशा में देखा। उसने पता नहीं, क्या सोचा ? अचानक वह उठी और बच्चे को अपनी गोद में उठाकर सेठ के घर की ओर चल पड़ी। बच्चे का शरीर ज्वर से तप रहा था। उधर वृद्धा का कलेजा भी क्रोध से जल रहा था। वह बच्चे को लेकर सेठजी के घर पहुँची और धरना देकर बैठ गई। नौकर ने सेठजी के आदेश पर भगा देना चाहा। लेकिन, वह टस-से-मस नहीं हुई। सेठजी स्वयं आए, उन्हें क्रोध आ रहा था लेकिन जैसे ही बच्चे को देखा तो उनका चेहरा निस्तेज हो गया। बच्चे का चेहरा, उनके पुत्र मोहन से मिलता-जुलता था। मोहन खो गया था। सात वर्ष पहले खोये हुए मोहन की जाँघ पर लाल चिन्ह को देखकर सेठजी ने अपने पुत्र मोहन को पहचान लिया।
(ङ) बच्चा फिर से बीमार क्यों पड़ गया ?
उत्तर
वृद्धा उस बच्चे को सेठजी को न चाहते हुए देकर अपनी झोपड़ी में आकर शान्त लेटी हुई थी। उसके आँसू बह रहे थे। उधर वह बच्चा दवाओं के प्रभाव से होश में आने लगा। उसने अपनी आँखें खोली और बोला-‘मौ’। माँ, उसके पास नहीं थी। वह रोने लगा। उसकी हालत फिर से बिगड़ने लगी। ममतामयी वृद्धा माँ के बिना वह बच्चा फिर से बीमार पड़ गया।
भिखारिन कहानी का प्रश्न उत्तर MP Board Class 8th प्रश्न 3.
उपयुक्त शब्दों का चयन कर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
जिजीविषा, ममत्व, निस्तब्ध, हतप्रभ, मकरन्द
(क) वृद्धा …………… टाट पर लेटी हुई आँसू बहा रही थी।
(ख) असहाय बच्चे को देख माँ का ………..जाग उया।
(ग) आँसुओं में फूलों का …………… और ममता की गंध थी।
(घ) सेठजी बच्चे को देखकर …………….. रह गए।
(ङ) वात्सल्य की तड़प ने वृद्धा की …………….. बढ़ा दी थी।
उत्तर
(क) निस्तब्ध
(ख) ममत्व
(ग) मकरन्द
(घ) हतभ
(छ) जिजीविषा।
याचक और दाता की कहानी का सारांश MP Board Class 8th प्रश्न 4.
सही जोड़ी बनाइए.
उत्तर
(क) + (3), (ख) → (1), (ग) + (2), (घ) → (5), (छ)→ (4).
Yachak Aur Data Kahani Ka Saransh MP Board Class 8th प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए
(क) वृद्धा को उसकी मंजिल किस तरह मिल गई थी?
उत्तर
कोई बच्चा अपने माता-पिता से भटक गया। उसने देखा कि वह बच्चा असहाय था और रो रहा था। उस वृद्धा ने उस बच्चे को अपनी गोद में बिठाया और उस रोते बच्चे को शान्त करने की कोशिश करने लगी। बच्चे को माँ की ममता मिल गई। उसे माँ का आँचल मिला, वह अब सब कुछ भूल चुका था। वह वृद्धा के पास रहने लगा। उस वृद्धा में वात्सल्य की तड़प बढ़ने लगी। इस तरह वह चाहने लगी कि वह काफी लम्बे समय तक जीवित रहे। अब वह पहले से अधिक मेहनत करती थी। बच्चे की वजह से वह अपने घर शीघ्र लौटने लगी। बच्चा माँ के प्यार को प्राप्त करके बहुत ही प्रसन्न था। वृद्धा अपनी झोपड़ी में गाड़कर रखी हाँडी में दिनभर की मेहनत से कमाये पैसे बचत करके रखती थी, क्योंकि उसे उस बच्चे के भविष्य की चिन्ता थी। उसकी चिन्ता में एक सुखद भविष्य की चिन्ता छिपी थी। वह उस बच्चे को अच्छे-से-अच्छा खिलाती, पिलाती और पहनाती थी। वह उसे हर तरह खुश रखना चाहती थी। इससे उसे लग रहा था कि मानो उसे उसकी मंजिल मिल गई हो। दिन भर मन्दिर के दरवाजे पर फूल बेचती और शाम को घर आकर बच्चे को अपने हृदय से लगा लेती थी। यह बच्चा मानो उसकी फुलवारी थी जिसे पोषित करके प्रेम के जल से सींचकर सेवा कर रही थी।
(ख) मोहन कौन था ? वह वृद्धा के पास कैसे आया?
उत्तर
मोहन किसी नगर के सेठ बनारसीदास का बेटा था। वह छोटी उम्र में ही अपने घर से बिछुड़ गया। उसे वृद्धा ने अपने पास रख लिया। वृद्धा का सहारा पाकर, दुलार से वह रहने लगा। माँ की ममता पाकर वह अपने माता-पिता को भूल गया। उस वृद्धा ने बड़े वात्सल्य से उसका पालन-पोषण और परवरिश की। वृद्धा भी अब बच्चे के बिना एक क्षण नहीं रह पाती थी। इस तरह वृद्धा के पास वह बच्चा आया और रहने लगा।
(ग) मोहन ज्वर से कैसे मुक्त हुआ?
उत्तर
मोहन को एक दिन ज्वर ने आ दबोचा। उसके बढ़ते प्यर को भौंपकर वृद्धा बेचैन हो गई। वृद्धा माँ ने वैध को दिखाया। उसकी दवा से कोई लाभ नहीं हुआ। वह वृद्धा सेठ बनारसीदास के पास अपनी हांडी में से कुछ धन माँगने के लिए गयी जिससे वह बच्चे का इलाज किसी डॉक्टर से करा सके, लेकिन सेठजी ने उसे यह कहते हुए लौटा दिया कि उसके पास उसने कोई धन जमा नहीं कराया है। क्रोधित वृद्धा लौट आई। बच्चे का ज्वर तेज होता देखकर वह एक दिन जाने क्या सोचते हुए. बच्चे को गोद में उठाकर सेठजी के पास पहुँची। उसने कुछ धन फिर से मांगा। मुनीम ने उसे फटकार दिया। सेठजी स्वयं उसके पास आये और उस बच्चे के पैर पर लाल चिह्न देखकर पहचाना कि वह बच्चा तो उसी का है जो आज से सात वर्ष पहले खो गया था। वृद्धा ने उस बच्चे को देने से ना-नुकर किया लेकिन सेठजी ने बच्चे को प्राप्त कर लिया। वृद्धा वहाँ से चली गई। उसका अच्छे डॉक्टर से इलाज कराया। दवा के प्रभाव से कुछ होश आने पर बच्चे ने ‘माँ’ को पुकारा। बच्चे की हालत फिर से खराब हो गई। सेठजी वृद्धा के घर पहुँचे, वृद्धा को अनुनय-विनय से लाये। माँ के ममता भरे हाथ का स्पर्श पाकर बालक सचेत हुआ और उस बालक को ज्वर से मुक्ति मिली।
(घ) ‘सेठ याचक था और वह दाता’, इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
वृद्धा ने सेठजी के घर जाकर मोहन के माथे पर हाथ फेरा। मोहन ने हाथ को पहचान लिया; उसने अपनी आँखें तुरन्त खोल दी। कहने लगा,’माँ’, तुम आ गई। वृद्धा कहने लगी, “हाँ बेटा, तुम्हें छोड़कर कहाँ जा सकती हूँ। उसने मोहन का सिर गोद में रखा, थपथपाया। मोहन की नींद आ गईं। कुछ दिन बाद मोहन
स्वस्थ हो गया। जो काम दवाइयाँ, डॉक्टर और हकीम नहीं कर सके, वह काम वृद्धा माँ की ममता ने कर दिखाया।” – अब वह वृद्धा माँ वापस लौटने लगी तो सेठजी ने उससे कहा कि वे मोहन के ही पास रुक जाएँ, लेकिन वे नहीं मानी। सेठजी हाँडी के रुपये न देने के लिए क्षमा माँगने लगे और वह हाँडी लौटाने लगे तो वृद्धा ने कहा कि यह तो मैंने मोहन के लिए जमा किये थे। उसी को दे देना।
वृद्धा ने सेठजी की धरोहर (मोहन) ईमानदारी से लौटा दो। अब वह उसे यहाँ छोड़कर अपनी लाठी का सहारा लेकर चलती हुई अपनी झोपड़ी में लौट गई। उसके नेत्रों से आँसू बह रहे थे, परन्तु यह आँसू फूलों के पराग से, ममता की महक से महक रहे थे। वृद्धा माँ का ममत्व सेठ बनारसीदास के धन से अधिक गरिमावान सिद्ध हुआ। इस तरह सेठजी याचक थे और वृद्धा माँ दाता के रूप में महान और उदारता की साक्षात् मूर्ति सिद्ध हुई।
(छ) सेठजी और वृद्धा के चरित्र में से किसका चरित्र आपको अच्छा लगा ? उसकी कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
सेठजी और वृद्धा के चरित्र में से वृद्धा का चरित्र प्रशंसनीय है, महान् है। वृद्धा के चरित्र में जो गम्भीरता, ममता का भाव, किसी भी भेदभाव से रहित दीखता है, उसका सेठजी के चरित्र में पूर्णतः अभाव ही है। वृद्धा बच्चे का पालन-पोषण बिना किसी स्वार्थ से करती है, वह बच्चे में अपनी ममता उड़ेल देती है। उसे अपने आँचल की छाया प्रदान करती है। वह उस बच्चे के पालन-पोषण के लिए जीवित रहने की इच्छा करती है। वृद्धा के चरित्र की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं जो सभी पाठकों को प्रभावित करती हैं। उनमें उत्साह और त्याग का भाव भर देती हैं।
- वात्सल्यमयी माँ का ममत्व-वृद्धा में बच्चे के प्रति प्रेम और उसकी ममता भरी हुई है।
- सेवा परायणता-वृद्धा बच्चे की हर तरह से परवरिश करती है। विपरीत परिस्थिति में भी अपने ध्येय में लीन होकर उत्तरदायित्व को निभाती है।
- त्याग और भेदभाव से रहित-वृद्धा त्याग की साक्षात् मूर्ति है। इकट्ठे किये गये हौड़ी के धन को सेठ को ही सौंपकर धन्य होती है। सेठजी के बच्चे का पालन-पोषण अपने-तेरे को भावना से ऊपर उठकर करती है।
याचक और दाता भाषा-अध्ययन
याचक और दाता का सारांश MP Board Class 8th प्रश्न 1.
इस कहानी में ऐसे पाँच वाक्य लिखिए जहाँ अवतरण चिह्न का प्रयोग किया गया है।
उत्तर
- दर्शन करने वालों को वृद्धा पुकारती, और कहती-“ये फूल चढ़ावा तो लेते जाओ।”
- वृद्धा ने हाँडी सेठजी को सरकाते हुए कहा-“सेठजी, इसे जमा कर लें। मैं इसे कहाँ रखती फिरूंगी।”
- सेठजी ने मुनीम से कहा-“इसे बहीखाते में इसके नाम में जमा कर लो।”
- वृद्धा ने विनम्र भाव से कहा-“मेरा बच्चा बहुत बीमार है। मेरी जमा हाँडी से मुझे कुछ रुपये मिल जाएँ तो मैं डॉक्टर को दिखाकर उसका इलाज करा लूँ।”
- वृद्धा ने कहा-“सेठजी अभी दो वर्ष पहले ही तो मैंने हाँडी में जमा पूँजी आपके यहाँ जमा की थी।”
याचक और दाता की कहानी MP Board Class 8th प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए
टस से मस न होना, हाथ-पाँव फूल जाना, चंगुल में दबाना, ताँता बाँधना, जान में जान आना।
उत्तर
- टस-से-मस न होना-एक स्थान से न हटना।
वाक्य-प्रयोग-धरने पर बैठे शिक्षक, धरना स्थल से टस से मस नहीं हुए। . - हाथ-पांव फूल जाना-घबरा जाना।
वाक्य-प्रयोग-पिताजी के मूलित हो जाने पर, हमारे हाथ-पाँव फूल गये। - चंगुल में दबाना-वश में (कब्जे में) कर लेना।
वाक्य-प्रयोग-शत्रु सैनिकों को चंगुल में दबाने के लिए। पूरा-पूरा जोर लगाना पड़ा। - तांता बाँधना-लगातार बढ़ते जाना।
वाक्य-प्रयोग-शत्रुओं पर आक्रमण करने के लिए। भारतीय सैनिक ताँता बाँधकर आगे ही आगे बढ़ते गये। - जान में जान आना-चैन पड़ना।
वाक्य-प्रयोग-ऑपरेशन के बाद मरीज जैसे ही होश में आया तो उसके घर वालों की जान में जान आई।
Mp Board Class 8 Hindi Chapter 12 प्रश्न 3.
‘याचक’ एवं ‘दाता’ शब्दों के क्रिया रूप लिखकर संज्ञा और क्रिया रूपों के वाक्य बनाइए।
उत्तर
याचक और दाता शब्दों के क्रिया रूप याचना तथा दान देना होता है।
संज्ञा रूप में वाक्य प्रयोग –
- याचकों का तांता लग जाता है।
- याचक याचना करते हैं।
- दाता याचकों में भेद नहीं करता।
- दानी लोग प्रतिदिन दान देते हैं।
प्रश्न 4.
‘दुखिया’ शब्द के दुख शब्द में ‘इया’ प्रत्यय लगा है-दुख + इया = दुखिया। इसी प्रकार ‘इया’ एवं ‘वाला’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए।
उत्तर
- दुख + इया-दुखिया सुख+इया – सुखिया; बन + इया – बनिया; लख + इया – लखिया; लिख + इया – लिखिया, धन + इया – धनिया।
- दूध + वाला-दूधवाला, फल + वाला – फलवाला, पान + वाला = पानवाला, दुकान + वाला = दुकानवाला, घर + वाला-घरवाला।
प्रश्न 5.
‘अ’ और ‘वि’ उपसर्ग लगाकर शब्द बनाइए।
उत्तर
- अ+शुभ-अशुभ;अ+शुद्ध-अशुद्ध;अ+ पवित्र = अपवित्र अ + पावन = अपावन अ+ चल-अचल।
- वि+कार-विकार; वि+नाश = विनाश वि+लीन -विलीन; वि+लाप – विलाप; वि + लेप- विलेप।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए
एक दिन सिद्धार्थ बगीचे में बैठे हुए थे। अचानक उनके सामने एक घायल, एक तीर से बिंधा हुआ हंस आ गिरा। सिद्धार्थ ने उसे प्यार से उठाया, घाव पर मलहम लगाया। तभी उनका चचेरा भाई देवदत्त आ पहुँचा। उसने हंस मांगा। सिद्धार्थ ने हंस देने से मना कर दिया। विवाद राजा के दरबार तक जा पहुंचा। देवदत्त का कहना था कि उसने हंस का शिकार किया है, इसलिए हंस उसका है। सिद्धार्थ ने कहा कि मैंने हंस के प्राणों की रक्षा की है, इसलिए हंस पर मेरा अधिकार है। राजा ने न्याय करते हुए कहा कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। अतः हंस पर सिद्धार्थ का अधिकार बनता है। राजा ने सिद्धार्थ को हंस दे दिया।
(अ) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए
(आ) घायल हंस को किसने उठा लिया था ?
(क) देवदत्त हंस को क्यों मांग रहा था?
(ई) राजा ने क्या कहते हुए हंस सिद्धार्थ को सौंप दिया ?
(उ) राजा, दिन, तीर, प्यार के दो-दो समानार्थी शब्द लिखिए।
उत्तर
(अ) उपयुक्त शीर्षक-‘हंस और सिद्धार्थ
(आ) घायल हंस को सिद्धार्थ ने उठा लिया था।
(इ) देवदत्त हंस को इसलिए मांग रहा था क्योंकि उसने हंस को तीर से घायल कर दिया था। उसका कहना था कि घायल किये जाने से हंस पर उसका अधिकार है।
(ड) राजा ने हंस सिद्धार्थ को सौंप दिया। राजा का कहना था कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।
(ज) समानार्थी
- राजा = नृप, भूप।
- दिन = दिवस, वासर।
- तीर = बाण, सायक।
- प्यार = प्रेम, स्नेह।
याचक और दाता परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या
(1) सुबह से शाम तक वह उसी तरह सबका जीवन महकाती
और रात्रि को मन ही मन भगवान को प्रणाम कर लाठी टेकती, झोंपड़ी की राह पकड़ती। झोंपड़ी के समीप आते ही दस वर्षीय बालक उछलता-कूदता उससे लिपट जाता। वृद्धा उसे टटोलती, दुलारती और माथे को चूमकर जैसे पूरा प्यार उड़ेलने का प्रयास करती।
शब्दार्थ-महकाती = सुगन्ध से भर देती; राह = मार्ग, रास्ता; पकड़ती = चली जाती; समीप = पास; वर्षीय = वर्ष का; वृद्धा – बूढ़ी औरत; दुलारती = प्रेम करती; चूमकर = पुचकारते हुए।
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक भाषा-भारती” के पाठ ‘याचक और दाता से अवतरित है। इसके लेखक रवीन्द्रनाथ ठकुर है।
प्रसंग-एक बूढ़ी औरत की ममता और उसके प्रतिदिन के कार्य का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-वह बूढ़ी औरत रोजाना सन्दिर के दरवाजे पर प्रात:काल से लेकर सायंकाल तक आने वाले दर्शनार्थी लोगों के जीवन को खुशबू से भर देती थी। रात्रि होने पर मन ही मन भगवान को नमस्कार करके मन्दिर के दरवाजे से लौट पड़ती। उसके हाथ में लाठी होती थी। उसका सहारा लिए हुए, अपने निवास, उस झोंपड़ी की ओर जाने वाले मार्ग पर लौट पड़ती। जैसे ही वह अपनी झोपड़ी के पास आती, तो एक दस वर्ष का बालक उछल-कूद करता हुआ उसके पास आता और प्रेमपूर्वक उससे लिपट पड़ता था। उस समय वह बूढ़ी औरत उस बालक के शरीर पर हाथ फेरती हुई उसके पूरे अंगों को टटोलती, देखती कि कहीं कुछ कमजोरी तो नहीं आ गई है। इस प्रकार, वह उससे बहुत-सा प्यार करती। उसके मस्तक पर बार-बार चुम्बन लेती। इस तरह वह उसके ऊपर अपने अन्दर के असीम अतौल प्यार को उड़ेल देती थी।
(2) असहाय और रोते बच्चे को वृद्धा ने अपनी गोद में बिठाया और उसे चुप कराने का प्रयास करने लगी। ममता का आँचल पाकर बच्चा सब कुछ भूल गया था। इस तरह वह वृद्धा के पास रहने लगा। वात्सल्य की तड़प ने वृद्धा की जिजीविषा बढ़ा दी। अब वह पहले से ज्यादा श्रम करती और शीघ्र लौटने की कोशिश करती। बच्चा माँ के स्नेह को पाकर प्रसन्न था।
शब्दार्थ-असहाय =बिना सहारे वाला; वृद्धा = बढ़ी औरत ने; चुप कराने का शान्त कराने का प्रयास = कोशिश; ममता का आँचल = प्यार और लगाव की शरण या आश्रय; वात्सल्य = सन्तान के प्रति प्रेम तड़प = खिंचाव, आकर्षण; जिजीविषा = जीवित रहने की इच्छा; श्रम = मेहनत; स्नेहप्रेम प्रसन्न = खुश।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-बालक उस बूढ़ी औरत के प्रेम को प्राप्त करके बहुत खुश था।
व्याख्या-यह बालक अपने माता-पिता से बिछुड़ा हुआ बालक था। उस बालक से सभी अपरिचित थे। सन्ध्या का समय था। उस बूढी औरत ने उस बिछुड़े बालक को अपनी गोद में बिछाया। उस रोते बालक को शान्त कराने की, उस बूढ़ी औरत ने बड़ी कोशिश की। बच्चा रोने से शान्त हुआ। उसे प्यार और माँ के प्रेम का आँचल (छाया, शरण) मिल चुकी थी। वह, अब, अपने वास्तविक माता-पिता को भूल गया था। यह सब उस बूढ़ी औरत के प्यार और आकर्षण के कारण ही सम्भव हो सका। वह बूढ़ी औरत ही उसके लिए सब कुछ थी। उसके पास रहकर सब कुछ भूल गया। इधर, उस बूढ़ी औरत के अन्दर सन्तान के प्रति प्रेम के खिचाव ने जीवित रहने की इच्छा प्रबल कर दी। वह यह समय था जब उसे पहले से भी अधिक मेहनत करनी पड़ रही थी क्योंकि उसे पाये हुए उस बालक के पालन का उत्तरदायित्व निभाना था। अब वह मन्दिर के दरवाजे से पहले की अपेक्षा जल्दी लौटकर आने की कोशिश करती थी। माँ का प्यार इस बच्चे को मिला, इस कारण वह बहुत ही खुश था।
(3) सेठजी वृद्धा के पाँवों में गिरकर बच्चे की जान बचाने वी याचना करने लगे। वे बोले-“ममता की लाज रख लो।” माँ का ममाव जाग उठा। वह बीता हुआ सब कुछ भूल गई और सेठजी के साथ चल पड़ी। घर पहुँचते ही वृद्धा ने मोहन के माथे पर हाथ फेरा । हाश्व पहचानते ही मोहन ने तुरन्स आँखें खोल दीं। माँ, तुम आ गई। वृद्धा ने कहा, “हाँ बेटा, तुम्हें छोड़कर कहाँ जा सकती हूँ।” उसने मोहन का सिर अपनी गोद में रखकर थपथपाया और मोहन को नींद आ गई। कुछ दिन बाद मोहन बिल्कुल स्वस्थ हो गया। जो बाम दवाइयों, डॉक्टरों और हकीमों से न हो पाया वह वृद्धा माँ की ममता ने ममता- माँ के प्यार की; ममत्व-माँ के प्यार की भावना; बीता हुआ-जो घटना घटी उस सबको; बिल्कुल- पूर्ण रूप
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-माँ की ममता के महत्त्व को बताया गया है।
व्याख्या-सेठजी वृद्धा की झोंपड़ी पर आये। उसके पैरों पर गिर गये, वे प्रार्थना करने लगे कि उसके पुत्र के प्राणों की रक्षा तुम ही कर सकती हो। सेठ ने आगे कहा कि तुम्हें एक माँ के प्यार की, ममता की लाज रखनी है। माँ की ममता जागृत हो उठी। वह यूढ़ी औरत अब वह सब कुछ भूल गई,जो भी कुछ अभी तक घटित हुआ। वह तुरन्त ही सेठजी के साथ चल पड़ी। वह बूढ़ी औरत सेठजी के घर पहुँच गई। वहाँ पहुँचते ही मोहन के सिर और माथे पर अपना हाथ फेरने लगी। मोहन ने उसके (बड़ी औरत के) हाथ को पहचान लिया और एकदम से अपनी आँखें खोल दी। मोहन ने पुकारते हुए कहा कि माँ, तुम आ गई। उस | बूढ़ी औरत ने कहा-बेटा, मैं आ गयी हूँ। मैं तुम्हें छेड़कर कहाँ । जा सकती हूँ। अर्थात् मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती। उस बूढ़ी औरत ने मोहन के सिर को अपनी गोद में रख लिया। उसे धपकियाँ देने लगी, इस प्रकार मोहन सो गया। अब धीरे-धीरे मोहन के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। किसी भी डॉक्टर और हकीम की दवाइयों ने । कोई भी लाभ उसे नहीं पहुँचाया परन्तु बूढी माँ के प्यार ने, उसकी – ममता ने इसे पूर्णतः स्वस्थ कर दिया।
(4) “वृद्धा, सेठजी की धरोहर ‘मोहन’ को सेठजी के यहाँ छोड़कर, लाठी टेकती हुई, झोंपड़ी में लौट आई। उसके नेत्रों से आँसू बह रहे थे, पर आज इन आँसुओं में फूलों का मकरन्द और ममता की गंध थी। वह आज सेठ बनारसीदास से महान् हो गई थी। सेठ याचक था और वह दाता।”
शब्दार्थ-धरोहर = वह वस्तु या द्रव्य जो कुछ समय के लिए दूसरे के पास इस विश्वास से रखी जाए कि मांगने पर उसी रूप में वापस मिल जायेगी; मकरन्द = पराग; गंध-महक; महान् = बड़ी हो गई थी बन गई थी; याचक-भिखारी दाता= दान देने वाली।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-बूढ़ी औरत की विशेषताओं का उल्लेख किया गया
व्याख्या-उस ममता भरौ बूढ़ी औरत ने सेठ बनारसीदास के पुत्र मोहन को उसके वास्तविक माता-पिता के पास छोड़ दिया। मोहन वास्तव में सेठजी की धरोहर थी, उसे तो लौटाना ही था। वह अपनी लाठी के सहारे, वहाँ से (सेठजी के घर से) लाठी टेकते-टेकते अपनी झोपड़ी में लौटकर आ गई। उसकी आँखों में फूलों का पराग था। उन आँसुओं में माँ के गहरे प्रेम की महक थी। आज वह अपने ममत्व और सेवाभाव के साथ त्याग की महिमामयी मूर्ति थी। सेठ बनारसीदास को भी अपने महान् व्यक्तित्व से पीछे छोड़ दिया। उस दशा में सेठ बनारसीदास एक भिखारी थे जबकि वह एक उदार दानदाता के समान थी।