MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 12 नींव का पत्थर
MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Chapter 12 पाठ का अभ्यास
बोध प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) जूही के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है’हँसना’। आपको जूही की हँसी से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर
हँसना बहुत जरूरी है। जूही के चरित्र की यह बहुत बड़ी विशेषता है। जूही की हँसी सभी को प्रेरणा देती है कि वे मृत्यु से भी भयभीत नहीं हो सकेंगे। उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी हँसना चाहिए। इस प्रकार हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जा सकते हैं।
(ख) “वीरता कलंकित न हो, सुशोभित हो” इसके लिए कौन-कौन से कार्य करना चाहिए?
उत्तर
वीरता तभी कलंकित होती है जब हम अपने कर्त्तव्य के पालन में पीछे रहते हैं। कर्त्तव्यपालन से मिलने वाली सफलता वीरता को सुशोभित करती है। इसलिए मातृभूमि की आजादी की रक्षा के काम में अडिग बना रहना चाहिए। मातृभूमि की सेवा हमारे बलिदान को चाहती है।
(ग) निम्नांकित के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए
(क) लक्ष्मीबाई
(ख) मुन्दर
(ग) तात्या।
उत्तर
(क) लक्ष्मीबाई – महारानी लक्ष्मीबाई अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम करती हैं। वे उसकी आजादी की रक्षा में अपना सर्वस्व लुटा देती हैं। वे आजादी के लिए लगातार लड़ती रहती हैं। दृढ़ प्रतिज्ञ लक्ष्मीबाई हँसते-हँसते आजादी की बलि वेदी पर स्वयं को न्योछावर कर देती हैं। देशभक्ति, जनसेवा और राष्ट्र सेवा के लिए सब कुछ त्यागने के लिए तत्पर रहती हैं।
(ख) मुन्दर – मुन्दर महारानी लक्ष्मीबाई की सहेली है। वह फिरंगियों (अंग्रेजों) के आगमन की सूचना पर व्याकुल हो उठती और चाहती है कि उन्हें एकदम वहाँ से खदेड़ देना चाहिए। वह आज्ञापालक और वीरता के गुणों से युक्त है। वह स्वराज्य की पुजारिन है।
(ग) तात्या – तात्या लक्ष्मीबाई के एक सहयोगी हैं। वे प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम (1857) के सेनानी हैं। वे मातृभूमि की सुरक्षा और स्वराज्य की नींव का आधार है। वे निर्भीक होकर शत्रु से लोहा लेते रहे।
प्रश्न 2. निम्नांकित कथनों का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) हम सब मिलकर या तो स्वराज्य प्राप्त करके रहेंगे या स्वराज्य की नींव का पत्थर बनेंगे।
(ख) सूर्य का तेज अनन्त सूर्य में विलीन हो गया।
उत्तर
(क) स्वराज्य प्राप्त करने में सफलता हम सब के सम्मिलित प्रयासों से सम्भव है। आजादी मिल भी सकती है। अन्यथा आजादी के लिए किये गये अपने प्रयासों के द्वारा स्वराज्य की नींव का पत्थर तो बन ही जायेंगे, जो आजादी के भवन को ऊँचा और मजबूत बनाने में सहायक होगा।
(ख) लक्ष्मीबाई की सेना का सेनापति रघुनाथ राव महारानी लक्ष्मीबाई के सर्वस्व त्याग पर कहता है कि लक्ष्मीबाई सूर्य जैसे तेज से युक्त ीं। उनका तेज सूर्य के कभी भी समाप्त न होने वाले तेज में विलीन हो गया। कहने का तात्पर्य यह है कि सूर्य के अन्तहीन तेज से स्वयं चूकने वाली वीरांगना अब उसी तेज में विलीन हो गयी और अमर हो गयी।
प्रश्न 3.
निम्नांकित कश्चन किसके द्वारा कहे गये
(क) स्वराज्य की लड़ाई स्वराज्य मिलने पर ही समाप्त हो सकती है, बाई साहब। (…… ने लक्ष्मीबाई से कहा।)
(ख) महारानी जी, विश्वास दिलाता हूँ कि आपकी पवित्र देह को छूने का साहस केवल पवित्र अग्नि ही कर सकेगी। (…… ने लक्ष्मीबाई से कहा।)
(ग) मैं किसी के लिए सरदार हो सकता हूँ, पर आपके लिए तो सेवक ही हूँ। (……… ने लक्ष्मीबाई से कहा।)
(घ) आज हमें स्वामिभक्त से ज्यादा देशभक्तों की आवश्यकता है। (ने जूही से कहा)
उत्तर
(क) (मुन्दर ने लक्ष्मीबाई से कहा।)
(ख) (रघुनाथ राव ने लक्ष्मीबाई से कहा।)
(ग) (तात्या ने लक्ष्मीबाई से कहा।)
(घ) (लक्ष्मीबाई ने जूही से कहा।)
भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए
अस्तबल, प्रतिज्ञा, रणभूमि, समर्पित, स्वराज्य।
उत्तर
शुद्ध उच्चारण के लिए विद्यार्थी लगातार इन शब्दों को पढ़ें और कोशिश करें कि ये शब्द सही रूप से उच्चारित हो रहे हैं या नहीं। अध्यापक महोदय की सहायता ले सकते हैं।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों को वाक्यों में प्रयोग कीजिए
विलासप्रियता, जनसेवक, स्वामिभक्त, मरहमपट्टी।
उत्तर
विलासप्रियता = विलासप्रियता राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करने में एक सबसे बड़ी बाधा है।
जनसेवक = जनसेवक ही स्वराज्य के सच्चे पहरेदार हैं।
स्वामिभक्त = स्वामिभक्त की अपेक्षा देशभक्त बनिए।
मरहमपट्टी = अनेक घायलों की मरहमपट्टी करके उनका इलाज किया।
प्रश्न 3.
सही शब्द पर सही (✓) का निशान लगाइए
(क) दुर्भाग्य, दुरभाग्य, र्दुभाग्य, दुभार्य।
(ख) लक्ष्मिबाई, लछमीबाई, लक्ष्मीबाई, लक्षमीबाई।
(ग) सुरक्षीत, सुरक्षित, सूरछित, सुरशित।
(घ) समीत, समरपित, समर्पित, स्मर्पित।
(ङ) युधघोस, युधघोष, युधघोश, युद्धघोष।
उत्तर
(क) दुर्भाग्य
(ख) लक्ष्मीबाई
(ग) सुरक्षित
(घ) समर्पित
(ङ) युद्धघोष।
प्रश्न 4.
नीचे दिये गये शब्द समूहों का प्रयोग करते हुए प्रत्येक से एक-एक वाक्य बनाइए
(क) क्या से क्या हो गया ?
(ख) कहाँ से कहाँ पहुँच गई?
(ग) नहीं, नहीं।
(घ) कौन कहता है?
उत्तर
(क) सोचते थे कि इस वर्ष वह परीक्षा में सफल हो सकेगा, परन्तु वह तो असफल ही रहा। क्या से क्या हो गया ? यह तो सोचा ही नहीं था।
(ख) उसकी पुत्री एक साधारण छात्रा थी, परन्तु वह तो आई.ए.एस. में सफल हो गयी। देखो तो वह कहाँ से कहाँ पहुंच गई ?
(ग) राधा ने उसे अपने घर ठहरने के लिए आग्रह किया परन्तु वह तो नहीं, नहीं ही कहती रही।
(घ) कौन कहता है कि मैंने उसकी सहायता नहीं की है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रत्येक शब्द के दो-दो वाक्य छाँटकर लिखिए
कौन, कहाँ, कब, किसने, किसे।
उत्तर
- कौन कहता है, आप अकेली हैं, महारानी ?
कौन सी बात की बाई साहब? - कब हमने सोचा था, ऐसा भी होगा।
कब क्या हो जाये, कह नहीं सकते। - किसने ग्वालियर से झाँसी की ओर कूच किया ?
किसने सम्मान पाया है ? देशभक्त ने या स्वामिभक्त ने। - मेरी सहायता की किसे है दरकार।
उसने किसे सहायता के लिए वचन दिया।
प्रश्न 6.
दिए गए संवादों का हाव-भाव से वाचन कीजिए
रघुनाथ राव-महारानी, आपने सुना ?
लक्ष्मीबाई-क्या, रघुनाथ राव ?
जूही-क्या हुआ सरदार?
रघुनाथ राव-महारानी, जनरल यूरोज की सेना ने मुरार की सेना को हरा दिया।
जूही-(काँपकर) क्या पेशवा की सेना हार गई ?
उत्तर
इन संवादों को विशेष हाव-भाव से वाचन करने के लिए अपने आचार्य महोदय की सहायता ले सकते हैं।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थी शब्द लिखिए
सफलता, दुर्भाग्य, आकाश, चेतन, दुर्बल, दुश्मन।
उत्तर
शब्द – विपरीतार्थी शब्द
सफलता – असफलता
दुर्भाग्य – सौभाग्य
आकाश – पाताल
चेतन – अचेतन
दुर्बल – सबल
दुश्मन – मित्र
प्रश्न 8.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
हिमालय अड़ जाना, नींद खुलना, पीठ दिखाना, कलेजे पर पत्थर रखना।
उत्तर
हिमालय अड़ जाना – जीवन में सफलता के मार्ग में कभी-कभी हिमालय अड़ जाता है।
नींद खुलना – मुरार की सेना पर अंग्रेजों की फौज के आक्रमण ने उनकी नींद खोल दी।
पीठ दिखाना – भारतीय सैनिक युद्धक्षेत्र में कभी भी पीठ नहीं दिखाते।
कलेजे पर पत्थर रखना – कलेजे पर पत्थर रखकर, उसने अपने प्राणप्रिय से वियोग प्राप्त किया।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित शब्दों के समास विग्रह करते हुए समास के नाम लिखिए
देशभक्त, रणभूमि, पेड़-पौधे, वीरबाला, फूल-पत्ती, शुभ-अशुभ, युद्धघोष।
उत्तर
नींव का पत्थर परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या
1. स्वराज्य को आते देखती हूँ, परन्तु दूसरे ही क्षण मार्ग में हिमालय अड़ जाता है। जूही, मैंने प्रतिज्ञा की थी कि अपनी झाँसी नहीं दूंगी। लेकिन झाँसी हाथ से निकल गई। (अत्यन्त धीमे स्वर में) झाँसी हाथ से निकल गई जूही। (सहसा तीव्रतर होकर) नहीं, नहीं, झाँसी हाथ से नहीं निकली। मैं अपनी झाँसी नहीं दूंगी।
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक भाषा-भारती के ‘नींव का पत्थर’ नामक पाठ से ली गई हैं। इस पाठ के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं।
प्रसंग-महारानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजी सेना के खिलाफ युद्ध कर रही हैं। वे झाँसी पर अंग्रेजों का अधिकार नहीं होने देंगी। वे अपनी आजादी के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं।
व्याख्या-महारानी लक्ष्मीबाई अपनी सखी जूही से कहती हैं कि वह एक क्षण तो आशावान हो उठती हैं कि वह स्वराज्य (आजादी) प्राप्त कर लेंगी। परन्तु दूसरे ही क्षण आजादी के मार्ग में बाधा आ खड़ी होती है। यह बाधा हिमालय पर्वत जैसी अति दुर्गम हो जाती है। लक्ष्मीबाई ने यह प्रतिज्ञा की हुई थी कि वह कभी भी अपनी झाँसी पर दुश्मनों का अधिकार नहीं होने देंगी। वह भावनाओं में खो जाती हैं और कहती हैं कि झाँसी उनके हाथों से निकल गई है, परन्तु एकदम ही वह अपनी प्रतिज्ञा को याद करके कह उठती हैं कि वह अपनी झाँसी को नहीं देंगी। झाँसी उनके हाथ से नहीं निकल सकती। वह कभी भी झाँसी पर शत्रुओं का अधिकार नहीं होने देंगी।
2. मैं जानती हूँ कि मैं झाँसी लेकर रहूँगी, लेकिन क्या तुम नहीं जानती कि उस दिन बाबा गंगादास ने कहा था फिर मिट जाना, जब तक हम विलास-प्रियता को छोड़कर जन-सेवक नहीं बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता। वह मिल सकता है केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-महारानी लक्ष्मीबाई स्वराज्य को प्राप्त करने के लिए सेवा, तपस्या और बलिदान को महत्वपूर्ण मानती हैं।
व्याख्या-लक्ष्मीबाई को उनकी सखी जूही बताती है कि उनके साथ वे सभी (देशवासी) हैं। लक्ष्मीबाई इस बात को भली-भाँति जानती भी हैं कि पूरी जनता का सहयोग उनके साथ है। अत: वे झाँसी को फिर से अपने अधिकार में लेकर ही रहेंगी। लक्ष्मीबाई अपनी सखी से कहती हैं कि बाबा गंगादास का उपदेश तो वह जानती ही है। उन्होंने कहा था झाँसी (मातृभूमि) की आजादी के लिए हमें मर-मिट जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि हम जब तक विलासी बने रहेंगे, तब तक आम आदमी की सेवा करने वाले हम लोग नहीं हो सकते तथा आजादी को भी प्राप्त नहीं कर सकते। स्वराज्य को केवल सेवा के कार्यों से, तपस्या से और स्वयं को बलिदान करने की भावना से प्राप्त किया जा सकता है।
3. उन्होंने यह भी तो कहा था कि स्वराज्य प्राप्ति सेबढ़कर है, स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना; स्वराज्य की नींव का पत्थर बनना। सफलता
और असफलता देव के हाथ में है, लेकिन नींव का पत्थर बनने से हमें कौन रोक सकता है? वह हमारा अधिकार है।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-महारानी लक्ष्मीबाई की सहेली जूही अपने इस वार्तालाप में स्वराज्य स्थापना के लिए स्वराज्य की नींव का पत्थर बनने को अनिवार्य बतलाती है।
व्याख्या-महारानी लक्ष्मीबाई को जूही बाबा गंगादास के उपदेश के बारे में याद दिलाती हुई कहती है कि उन्होंने बतलाया था कि स्वराज्य को प्राप्त करने से भी बढ़कर यह जरूरी है कि स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार की जाये फिर स्वराज्य की नींव का ऐसा पत्थर जड़ा जाये कि उस पर आजादी के भवन का निर्माण होता चला जाये। उस आजादी को प्राप्त करने में जो भी सफलता और असफलता हाथ लगेगी, वह तो देवता के अधीन है, परन्तु आजादी की नींव का पत्थर बनने में हमारे लिए कोई भी बाधा नहीं डाल सकता। स्वराज्य को प्राप्त करना, हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
नींव का पत्थर शब्दकोश
निराशा = हताश, जो हर आशा छोड़ चुका है; फिरंगी = अंग्रेज; कूच = प्रयाण, प्रस्थान; रणभूमि = युद्ध क्षेत्र, कलंक = दाग, धब्या; मुलाहिजा = लिहाज, सम्मान; अस्तबल = घोड़े बाँधने का स्थान; व्यूह = जमावड़ा, युद्धभूमि में सैनिकों को विशेषरूप में खड़ा करना; कृतज्ञ = उपकार मानने वाला।