MP Board Class 12th Special Hindi गद्य साहित्य की विभिन्न विधाएँ
गद्य वह वाक्यबद्ध विचारात्मक रचना है, जिसमें हमारी चेष्टाएँ, हमारी कल्पनाएँ, हमारे मनोभाव और हमारी चिन्तनशील मनःस्थितियाँ सरलतापूर्वक अभिव्यक्त की जा सकती हैं। वास्तव में आधुनिक युग गद्य साहित्य के विकास का युग है। अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होने के कारण गद्य साहित्य अपनी विभिन्न विधाओं के माध्यम से वर्तमान युग में अत्यधिक लोकप्रिय होता जा रहा है।
गद्य की विभिन्न विधाएँ
गद्य साहित्य की विभिन्न विधाओं को निम्नलिखित दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है
(1) गद्य की प्रमुख विधाएँ इसके अन्तर्गत निबन्ध,कहानी,नाटक, एकांकी एवं उपन्यास जैसी लोकप्रिय विधाएँ आती हैं।
(2) गद्य की लघु विधाएँ – हिन्दी गद्य ने पुराने रूपों में परिवर्तन कर नए रूपों को अपनाया, जिनमें रिपोर्ताज, संस्मरण, जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, रेखाचित्र, यात्रावृत्त (यात्रा साहित्य), गद्य – काव्य, भेटवार्ता,डायरी एवं पत्र – साहित्य जैसी विधाएँ सम्मिलित हैं।
गद्य की प्रमुख विधाएँ
गद्य साहित्य का विकास सही जोड़ी MP Board Class 12th 1. निबन्ध
हिन्दी गद्य साहित्य में निबन्ध एक महत्त्वपूर्ण विधा है। हिन्दी में निबन्ध का आविर्भाव आधुनिक युग में ही हुआ। हिन्दी निबन्ध साहित्य के विकास को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया गया है –
1. भारतेन्दु युग (1850 – 1900)
भारतेन्दुयुगीन निबन्धों की सामान्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –
(1) इतिहास, धर्म,समाज, राजनीति, आलोचना, यात्रा, प्रकृति वर्णन, आत्मचरित, व्यंग्य – विनोद आदि विषयों पर लिखा गया।
(2) इस युग में राजनीति और समाज – सुधार के निबन्ध अधिक लिखे गये।
(3) प्रायः व्यंग्यात्मक शैली के सहारे कटु सत्य का वर्णन किया गया।
(4) कहावतों और मुहावरों का अधिक प्रयोग हुआ।
(5) गम्भीर विषयों को भी इस युग के लेखकों ने सरल, सुबोध एवं मनोरंजक शैली में प्रस्तुत किया।
(6) इनके निबन्ध शुष्क वैज्ञानिक नहीं, वरन् आदर्श साहित्यिक निबन्ध हैं।
(7) इन निबन्धों में ज्ञानवर्द्धन और रसानुभूति दोनों विद्यमान हैं।
(8) लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग है।
प्रमुख रचनाकार – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन, प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त, राधाचरण गोस्वामी आदि उल्लेखनीय एवं प्रमुख नाम हैं।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के निबन्ध – कश्मीर कुसुम’, ‘उदय – पुरोदय’, ‘कालचक्र’, ‘बादशाह दर्पण’, ‘स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन’, ‘वैष्णवता’ और ‘भारतवर्ष’ हैं। इनमें ऐतिहासिक, धार्मिक एवं राजनीतिक समस्याओं के साथ व्यंग्य और आलोचना भी हैं।
बालकृष्ण भट्ट ने “हिन्दी प्रदीप’ पत्रिका में वर्णनात्मक, भावात्मक, विवरणात्मक और विचारात्मक सभी प्रकार के निबन्ध समाविष्ट किये। ‘मेला ठेला’, वकील’, सहानुभूति’,’आशा’, ‘खटका’, ‘इंगलिश पढ़े तो बाबू होय’, ‘माधुर्य’, ‘शब्द की आकर्षण शक्ति’, ‘आत्म – निर्भरता’, ‘रोटी तो किसी भाँति कमा खाय मुछन्दर’, भट्टजी के निबन्ध हैं, जिनमें विचारों की मौलिकता, विषय की व्यापकता,शैली की रोचकता आदि गुण हैं।
प्रतापनारायण मिश्र ने ‘ब्राह्मण’ पत्रिका का सम्पादन किया और अनेक निबन्ध लिखे। भौं. दाँत,पेट, मुच्छ,नाक आदि पर विनोदपूर्ण निबन्ध लिखे। ‘बुद्ध’, प्रताप’,’चरित’,’दान’, ‘जुआ, ‘अपव्यय’, ‘नास्तिक’, ‘ईश्वर की मूर्ति’, ‘शिवमूर्ति’, ‘सोने का डण्डा’,’मनोवेग’, ‘समझदार की मौत’ आदि विचारात्मक निबन्ध लिखे। इनके निबन्धों में मुहावरों का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में हुआ है।
बदरीनारायण ‘प्रेमघन’ ने दो पत्रों का सम्पादन किया – ‘आनन्द कादम्बिनी’ और ‘नागरी – नीरद’। इनके प्रमुख निबन्ध हैं – ‘हिन्दी भाषा का विकास’, ‘उत्साह – आलम्बन’, ‘परिपूर्ण – प्रवास’। इनकी भाषा में आलंकारिकता और चमत्कार के दर्शन होते हैं।
बालमुकुन्द गुप्त और राधाचरण गोस्वामी भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग के बीच की कड़ी थे। गुप्तजी ‘शिवशम्भु’ उपनाम से लिखते थे। ‘शिवशम्भु का चिट्ठा’ में उनके अनेक प्रसिद्ध निबन्ध संग्रहीत हैं। गोस्वामीजी का ‘यमपुर का चिह्न’ हास्य – व्यंग्य का काल्पनिक लेख है।
2. द्विवेदी युग (1900 – 1920)
इस युग का प्रारम्भ महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादक के रूप में किया। कवि और कविता’, ‘प्रतिभा’,’कविता’, ‘साहित्य की महत्ता’, ‘क्रोध आदि रोचक निबन्धों की रचना आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने की।
इस यग के प्रमख निबन्धकार थे – माधव प्रसाद मिश्र गोविन्दनारायण मिश्र श्यामसुन्दर दास, पदमसिंह शर्मा, अध्यापक पूर्णसिंह एवं चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’। माधवप्रसाद मिश्र के निबन्ध ‘धृति’ और ‘सत्य’ गम्भीर शैली के निबन्ध हैं। गोविन्दनारायण मिश्र की शैली आलंकारिक थी। श्यामसुन्दर दास ने आलोचनात्मक निबन्ध लिखे। ‘भारतीय साहित्य की विशेषताएँ’, ‘समाज और साहित्य’, ‘हमारे साहित्योदय की प्राचीन कथा’, ‘कर्त्तव्य और सत्यता’, आदि उनके प्रसिद्ध निबन्ध हैं। पदमसिंह शर्मा के दो निबन्ध संकलन प्रकाशित हुए ‘पद्म पराग’ और ‘प्रबन्ध मंजरी’। इनमें महापुरुषों का जीवन – चित्रण, समकालीन व्यक्तियों के संस्मरण, श्रद्धांजलि एवं साहित्य समीक्षा आदि विषय संग्रहीत हैं।
अध्यापक पूर्णसिंह और चन्द्रधर शर्मा गुलेरीजी की विशिष्ट शैली थी। इन दोनों ने कम निबन्ध लिखे,पर उनमें प्राचीन और नवीन का समन्वय था। ‘आचरण की सभ्यता’ और ‘कछुआ धर्म’ क्रमशः पूर्णसिंह और गुलेरीजी के प्रसिद्ध निबन्ध हैं।
द्विवेदी युग के निबन्धकारों ने विचार – प्रधान निबन्ध लिखे। ये निबन्ध मौलिकता लिये हुए नवीन विषयों पर थे और गम्भीर निबन्धों की कोटि में आते हैं।
3. शुक्ल युग (1920 – 1940)
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के नाम पर यह युग ‘शुक्ल युग’ कहलाया। गद्य के क्षेत्र में निबन्ध की विधा में सबसे अधिक समृद्धि शुक्लजी ने ही की।
‘चिन्तामणि’ में शुक्लजी के प्रौढ़तम निबन्ध संग्रहीत हैं। उनके निबन्ध साहित्यिक और आलोचनात्मक हैं। ‘साधारणीकरण’, ‘व्यक्ति वैचित्र्यवाद’, ‘रसात्मक बोध के विविध रूप’, ‘काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था’ आदि अनेक चिन्तापूर्ण एवं मौलिक विचारों वाले निबन्ध हैं।
शुक्ल युग के अन्य निबन्धकारों में डॉ. गुलाबराय, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, माखनलाल चतुर्वेदी, डॉ. रघुवीर सिंह, वियोगी हरि, रायकृष्ण दास, वासुदेवशरण अग्रवाल, शान्तिप्रिय द्विवेदी के नाम उल्लेखनीय हैं।
गुलाबरायजी के अनेक निबन्ध संग्रह हैं। ‘फिर निराश क्यों?’, ‘मेरी असफलताएँ’,’मेरे निबन्ध’ आदि। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबन्ध हैं—’उत्सव’, रामलाल पण्डित’, समाज सेवा’, ‘विज्ञान’ आदि। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने सांस्कृतिक विरासत और संस्कृत साहित्य पर निबन्ध लिखे। डॉ. रघुवीर सिंह ने इतिहास पर निबन्ध लिखे। ‘ताज’, ‘फतेहपुर सीकरी’ उनके प्रसिद्ध निबन्ध हैं।
इस युग में साहित्य,मनोविज्ञान, संस्कृति, इतिहास जैसे गम्भीर विषयों पर प्रचुर संख्या में उच्चकोटि के निबन्धों की रचना हुई। इन निबन्धों की भाषा गम्भीर और क्लिष्ट है तथा तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है।
4. शुक्लोत्तर युग (1940 से अब तक)
इस युग के निबन्धकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, नन्ददुलारे वाजपेयी, वासुदेवशरण अग्रवाल, शान्तिप्रिय द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, जैनेन्द्र कुमार, डॉ. विनयमोहन शर्मा, प्रभाकर माचवे,रामवृक्ष बेनीपुरी, रामधारीसिंह ‘दिनकर’, शिवदान सिंह चौहान, प्रकाशचन्द्र गुप्त, देवेन्द्र सत्यार्थी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, डॉ. भगवतशरण उपाध्याय, डॉ. भगीरथ मिश्र, डॉ. रामविलास शर्मा, धर्मवीर भारती, विद्यानिवास मिश्च एवं अज्ञेय प्रमुख हैं।
इस युग के निबन्धकारों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का स्थान प्रमुख है। उनके निबन्ध संग्रह, अशोक के फूल’,’आलोक पर्व’, ‘कल्पलता’,’विचार और वितर्क’, विचार प्रवाह’, कुटज’ आदि हैं। इनका विषय क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है तथा उनमें चिन्तन की गहराई और विचारों की सघनता मिलती है। अधिकांश निबन्ध ललित या कलात्मक निबन्धों की कोटि में आते हैं।
आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने मूलतः आलोचनात्मक निबन्ध लिखे हैं। उनके निबन्ध संग्रह हैं – ‘हिन्दी साहित्य बीसवीं सदी’, आधुनिक साहित्य’, ‘नया साहित्य : नये प्रश्न’।
इस युग के निबन्धकारों ने भावात्मक एवं आत्मपरक निबन्ध लिखे जिनमें विषय – वस्तु की विविधता सन्निहित थी। शैली विचारात्मक, भावात्मक एवं समीक्षात्मक रही।
अन्य निबन्धकार और उनकी रचनाएँ
(1) शान्तिप्रिय द्विवेदी – ‘जीवनयात्रा’, ‘साहित्यिक’, ‘हमारे साहित्य निर्माता’, ‘कवि और काव्य’, ‘संचारिणी’, ‘युग और साहित्य’,’सामयिकी’ आदि।
(2) डॉ. नगेन्द्र – विचार और विवेचना’, ‘विचार और अनुभूति’, ‘कामायनी के अध्ययन की समस्याएँ।
(3) जैनेन्द्र कुमार – ‘जड़ की बात’, ‘जैनेन्द्र के विचार’, ‘साहित्य का श्रेय और प्रेय’, ‘प्रस्तुत दर्शन’, ‘सोच – विचार’, मन्थन’।
(4) डॉ. विनयमोहन शर्मा – ‘साहित्यावलोकन’, ‘दृष्टिकोण’, ‘कलाकार और सौन्दर्य बोध’।
(5) प्रकाश चन्द्रगुप्त ‘नया हिन्दी साहित्य एक भूमिका’, साहित्यधारा’।
(6) शिवदानसिंह चौहान – साहित्यानुशीलन’ और ‘आलोचना के मान’।
(7) डॉ. भगवतशरण उपाध्याय – भारत की संस्कृति का सामाजिक विश्लेषण’, ‘इतिहास के पृष्ठों पर’,’खून के धब्बे’, सांस्कृतिक निबन्ध।
(8) रामधारीसिंह ‘दिनकर’ – ‘मिट्टी की ओर’, अर्द्धनारीश्वर’,रती के फूल’।
(9) रामवृक्ष बेनीपुरी – माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’।
(10) अज्ञेय’त्रिशंकु’।
(11) प्रभाकर माचवे – ‘मुँह’, ‘गला’, ‘गाली’, ‘बिल्ली’, मकान’।
(12) देवेन्द्र सत्यार्थी – ‘एक युग एक प्रतीक’, रेखाएँ बोल उठी’, ‘क्या गोरी क्या साँवरी’, कला के हस्ताक्षर।
(13) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ – ‘जिन्दगी मुस्करायी’, ‘बाजे पायलिया के घुघरू’, ‘दीप जले शंख बजे’,’क्षण बोले कण मुस्कराये।
(14) डॉ. विद्यानिवास मिश्र – तुम चन्दन हम पानी’।
(15) हरवंशराय बच्चन’ ने ‘क्या भूलूँ, क्या याद करूँ’ आदि चार खण्डों में जीवन के मर्मस्पर्शी संस्मरण प्रस्तुत किए हैं।
गद्य साहित्य का विकास MP Board Class 12th 2. कहानी
कहानी का शाब्दिक अर्थ है, कहना। जो कुछ भी कहा जाय, कहानी है; किन्तु विशिष्ट अर्थ में किसी रोचक घटना का वर्णन कहानी है। कहानी के अनिवार्य लक्षण हैं –
(1) गद्य में रचित होना।
(2) मनोरंजक या कौतूहलवर्द्धक होना।
(3) अन्त में किसी चमत्कारपूर्ण घटना की योजना।
हिन्दी गद्य में कहानी शीर्षक से प्रकाशित होने वाली रचना है – रानी केतकी की कहानी’ जो 1803 में लिखी गयी। इसके बाद राजा शिवप्रसाद ‘सितारे हिन्द’ की ‘राजा भोज का सपना’, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का अद्भुत अपूर्व स्वप्न’ है।
‘सरस्वती’ नामक पत्रिका में कहानी का विकास – क्रम इस प्रकार दिया गया है :
(1) ‘इन्दुमती’ – किशोरीलाल गोस्वामी (1900 ई)।
(2) ‘गुलबहार – किशोरी लाल गोस्वामी (1902 ई)।
(3) ‘प्लेग की चुडैल’ – मास्टर भगवान दास (1902)।
(4) ग्यारह वर्ष का समय’ – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (1903)।
(5) ‘पण्डित और पण्डितानी’ – गिरिजादत्त वाजपेयी (1903)।
(6) ‘दुलाईवाली’ – बंग महिला (1907)।
ये सभी कहानियाँ ‘सरस्वती’ में प्रकाशित हुईं। इस प्रकार प्रथम कहानीकार किशोरीलाल गोस्वामी सिद्ध होते हैं।
(1) प्रथम युग – इसके बाद हिन्दी में अनेक उच्चकोटि के कहानीकारों ने कहानियाँ लिखीं। जयशंकर प्रसाद,प्रेमचन्द, चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’,विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक’, सुदर्शन ‘पाण्डेय, बेचन शर्मा ‘उग्र’, आचार्य चतुरसेन शास्त्री आदि।
जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘ग्राम’ सन् 1909 ई. में प्रकाशित हुई। इसके बाद इनके अनेक कहानी संग्रह प्रकाशित हुए –
(1) ‘छाया’,
(2) ‘प्रतिध्वनि’,
(3) ‘आकाशदीप’,
(4) ‘आँधी’,
(5) ‘इन्द्रजाल’।
प्रेमचन्द द्वारा रचित कहानियों की संख्या तीन सौ से अधिक है,जो ‘मानसरोवर’ नामक ग्रन्थ के आठ भागों में संग्रहीत हैं। उनके कुछ स्फुट संग्रह – ‘सप्त सरोज’, ‘नवनिधि’, ‘प्रेम पच्चीसी’, ‘प्रेम पूर्णिमा’, ‘प्रेम द्वादसी’, ‘प्रेम तीर्थ’, ‘सप्त सुमन’ हैं। उनकी पहली कहानी ‘पंच परमेश्वर 1916 में प्रकाशित हुई थी। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं –
(1) ‘आत्माराम’,
(2) ‘बड़े घर की बेटी’,
(3) ‘शतरंज के खिलाड़ी’,
(4) ‘वज्रपात’,
(5) ‘रानी सारन्धा’,
(6) ‘अलग्योझा’,
(7) ‘ईदगाह’,
(8) ‘कफन’,
(9) ‘पूस की रात’।
चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने केवल तीन कहानियाँ लिखी और अमर हो गये। उनकी प्रथम कहानी ‘उसने कहा था’ (1915) में प्रकाशित हुई थी,उनकी अन्य दो कहानियाँ
(1) ‘सुखमय जीवन’ और
(2) ‘बुद्धू का काँटा’ हैं।
विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ ने पहली कहानी ‘रक्षाबन्धन’ 1913 में लिखी। उनकी लगभग 300 कहानियाँ इन दो कहानी संग्रहों में संग्रहीत हैं—
(1) ‘कल्प – मन्दिर’ और
(2) ‘चित्रशाला’।
बद्रीनाथ भट्ट ‘सुदर्शन’ ने पहली कहानी ‘हार की जीत’ 1920 में लिखी। उनके कहानी संग्रह इस प्रकार हैं –
(1) ‘सुदर्शन सुधा’,
(2) सुदर्शन सुमन’,
(3) ‘तीर्थ – यात्रा’,
(4) ‘पुष्पलता’,
(5) ‘गल्प मंजरी’,
(6) ‘सुप्रभात’,
(7) ‘झरोखा’,
(8) ‘चार कहानियाँ’,
(9) ‘नगीना’,
(10) ‘पंचवटी’।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री के कहानी संग्रह हैं—
(1) ‘रजकण’,
(2) अक्षत’,
(3) ‘ककड़ी की कीमत’,
(4) ‘भिक्षुराज’,
(5) ‘दे खुदा की राह पर’,
(6) ‘दुखवा मैं कासे कहूँ मोरी सजनी’।
(2) द्वितीय युग – हिन्दी कहानी का द्वितीय युग जैनेन्द्र कुमार से प्रारम्भ होता है। उनकी कहानियों के संग्रह हैं –
(1) ‘वातायन’,
(2) स्पर्धा’,
(3) ‘फाँसी’,
(4) पाजेब’,
(5) ‘वयःसन्धि’,
(6) “एक रात’,
(7) ‘दो चिड़ियाँ।
वृन्दावनलाल वर्मा, गोविन्दबल्लभ पन्त, सियारामशरण गुप्त और हृदयेश भी इस युग के अच्छे कहानीकार हैं। वृन्दावनलाल वर्मा की कहानियाँ कलाकार का दण्ड’ नामक शीर्षक संग्रह में प्रकाशित हैं।
(3) तृतीय युग – हिन्दी कहानी के तीसरे युग में भगवतीप्रसाद वाजपेयी ने अपनी कहानियों को मनोवैज्ञानिक ढंग से लिखा। इनके अनेक कहानी संग्रह (1) ‘हिलोर’, (2) पुष्करिणी’, (3) ‘खाली बोतल’ हैं। इनकी प्रसिद्ध कहानी ‘मिठाईवाला’, ‘वंशी वादन’, ‘झाँकी’ और ‘त्याग’ हैं। भगवतीचरण वर्मा के कहानी संग्रह ‘खिलते फूल’ तथा ‘दो बाँके’ हैं।
अज्ञेय के कहानी संग्रह हैं—
(1) ‘विपथगा’,
(2) ‘परम्परा’,
(3) ‘कोठरी की बात’,
(4) ‘जयदोल’। इलाचन्द्र जोशी ने
(1) रोमांटिक छाया’,
(2) ‘आहुति’,
(3) ‘दीवाली और होली’ नामक कहानी संग्रह लिखे।
। उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’, चन्द्रगुप्त ‘विद्यालंकार’ ने भी अच्छी कहानियाँ लिखीं। यशपाल ने साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित होकर सामाजिक कहानियाँ लिखीं।
हास्य कहानियों में जी.पी.श्रीवास्तव, कृष्णदेव प्रसाद गौड़ ‘बेढब बनारसी’, अन्नपूर्णानन्द, जयनाथ नलिन के नाम प्रसिद्ध हैं।
महिला कहानी लेखिकाओं में सुभद्राकुमारी चौहान, शिवरानी देवी, उषादेवी मित्रा, सत्यवती मलिक, चन्द्रकिरण सौनरिक्सा आदि के नाम प्रम –
(4) वर्तमान युग – सन् 1950 से कहानी के क्षेत्र में अतियथार्थवादी दृष्टिकोण आया। नये कहानीकारों में राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, कमलेश्वर, मार्कण्डेय, अमरकान्त, धर्मवीर भारती,निर्मल वर्मा, ज्ञानरंजन, भीष्म साहनी, शैलेश मटियानी, फणीश्वरनाथ रेणु’, राजेन्द्र अवस्थी, शरद जोशी, हरिशंकर परसाई,रवीन्द्रनाथ त्यागी आदि प्रमुख हैं।
नयी उभरती प्रतिभाओं में कहानी लेखिकाओं का योगदान भी उल्लेखनीय है। इनमें प्रमुख हैं – मनू भण्डारी, रजनी पणिक्कर, उषा प्रियम्वदा, मृदुला गर्ग, कृष्णा सोबती, मृणाल पाण्डे, मंजुला भगत, मालती जोशी, शिवानी, ममता कालिया, सूर्यबाला, कुसुम अंसल। इन लेखिकाओं ने कथा साहित्य के इतिहास में नया मोड़ दिया है। नारी मन के अन्तर्द्वन्द्व को समझकर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर जो समस्याएँ समाज को जाग्रत करें, झकझोर कर रख दें, ऐसी कहानियाँ इन महिला लेखिकाओं ने लिखकर नयी कहानी के युग को समृद्ध किया है।
हिंदी गद्य के विकास पर आधारित प्रश्न Class 12 MP Board 3. नाटक
नाटक एक प्रमुख दृश्य काव्य है। यह एक ऐसी अभिनयपरक विधा है, जिसमें सम्पूर्ण मानव जीवन का रोचक वर्णन होता है। [2015]
नाटक के प्रमुख तत्व हैं –
(1) कथावस्तु,
(2) पात्र एवं चरित्र – चित्रण,
(3) संवाद या कथोपकथन,
(4) भाषा – शैली,
(5) देशकाल एवं वातावरण,
(6) उद्देश्य,
(7) संकलनत्रय,
(8) अभिनेयता आदि।
वैसे तो नाटक के भी वे ही तत्त्व होते हैं जो कहानी, उपन्यास आदि के होते हैं, किन्तु नाटकों में रस की प्रधानता होती है। वास्तव में, नाटक काव्य की वह विधा है जिसमें लोक – परलोक की घटित – अपघटित घटनाओं का दृश्य दिखाने का आयोजन किया जाता है। इस कार्य के लिए अभिनय की सहायता ली जाती है। शास्त्रीय परिभाषा में नाटक को रूपक कहा जाता है। एक सफल नाटक के प्रदर्शन के लिए उसका रूप और आकार, दृश्यों और अंकों का उपयुक्त विभाजन, रस का साधारणीकरण, क्रिया व्यापार, प्रवेग तथा प्रवाह, अनुभावों और सात्विक भावों का निदर्शन, संवादों की कसावट, नृत्य और गीत, भाव, भाषा और साहित्यिक अलंकरण,वर्जित दृश्यों का अप्रदर्शन,सुरुचिपूर्ण प्रदर्शन,आलेखन,अलंकरण तथा परिधान और प्रकाश की व्यवस्था आवश्यक होती है।
हिन्दी नाटक साहित्य का काल विभाजन विद्वानों ने अनेक प्रकार से किया है, लेकिन निम्नलिखित विभाजन को सर्वमान्य रूप से स्वीकारा गया है-
1. भारतेन्दु काल (1837 – 1904)
हिन्दी में रंगमंच नाटकों का आरम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना गया है। भारतेन्दु के साथ हिन्दी नाट्य – साहित्य की परम्परा प्रारम्भ हुई,जो अब तक चली आ रही है। इस काल में नाटकों की रचना का मूल उद्देश्य मनोरंजन के साथ – साथ जनमानस को जाग्रत करना था। इस काल के नाटककारों में भारतेन्दु का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। __ भारतेन्दु के अतिरिक्त इस काल के अन्य प्रमुख नाटककारों में बालकृष्ण भट्ट, राधाचरण गोस्वामी, लाला श्री निवासदास, राधाकृष्ण दास, किशोरी लाल गोस्वामी इत्यादि के नाम प्रमुख हैं।
2. संधि काल (1904 – 1915)
इस काल में भारतेन्दु काल की धाराओं के साथ – साथ नवीन धाराओं का आविर्भाव भी हुआ। इस काल में बंगाली, अंग्रेजी, संस्कृत नाटकों के हिन्दी अनुवाद हुए। बदरीनाथ भट्ट, जयशंकर प्रसाद आदि इस काल के प्रमुख नाटककार थे। करुणालय’ जैसी रचना इसी काल में सृजित हुई।
3. प्रसाद युग (1915 – 1933)
जयशंकर प्रसाद के नाम पर इस युग को ‘प्रसाद युग’ कहा गया। इस युग को हिन्दी नाटक साहित्य के विकास युग की संज्ञा प्रदान की गई है। हिन्दी नाटक साहित्य को सुदृढ़ बनाने में प्रसाद का महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय योगदान रहा है। इस युग के नाटकों में ऐतिहासिक नाटकों की अधिकता रही। इस युग के प्रमुख नाटककारों में दुर्गादत्त पांडे,वियोगी हरि, कौशिक, सुदर्शन, गोविन्द वल्लभ पंत, पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, सेठ गोविन्द दास, लक्ष्मी नारायण मिश्र जैसे बड़े नाम शामिल हैं।
4. वर्तमान युग (1933 – अब तक)
इस युग को प्रसादोत्तर युग भी कहा गया। इस युग में समस्या – प्रधान एवं नए पुराने जीवन मूल्यों पर आधारित नाटक लिखे गये। इस युग में कई प्रतिभाशाली नाटककारों ने अपनी प्रबल लेखनी और कल्पनाशीलता से हिन्दी नाटक की विधा को और भी परिष्कृत किया।
हिंदी गद्य साहित्य का इतिहास कक्षा 12 MP Board 4. एकांकी
एकांकी एक अंक का वह दृश्य काव्य है जिसमें एक कथा तथा एक उद्देश्य को कुछ पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
एकांकी के प्रमुख तत्त्व हैं –
(1) कथावस्तु,
(2) पात्र एवं चरित्र – चित्रण,
(3) संकलन – त्रय,
(4) द्वन्द्व संघर्ष,
(5) संवाद या कथोपकथन,
(6) भाषा – शैली,
(7) अभिनेयता आदि।
हिन्दी एकांकी का आरम्भ भारतेन्दु युग से होता है। भारतेन्दुजी ने ‘अन्धेर नगरी’, ‘विषस्य विषमौषधम्’, ‘वैदिकी हिंसा – हिंसा न भवति’ आदि की रचना की। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के
अतिरिक्त निम्नलिखित लेखकों के एकांकी भी प्रसिद्ध हैं
(1) ‘तन, मन, धन, गुसाईजी के अर्पण’ – राधाचरण गोस्वामी,
(2) कलयुगी जनेऊ’ देवकीनन्दन त्रिपाठी,
(3) ‘शिक्षादान’ – बालकृष्ण भट्ट,
(4) ‘दुखिनी बाला’ – रायकृष्ण दास,
(5) रेल का विकट खेल’ – कार्तिक प्रसाद,
(6) ‘चौपट – चपेट’ – किशोरीलाल गोस्वामी।
द्विवेदी युग में हिन्दी एकांकियों पर पाश्चात्य प्रभाव पड़ने लगा। इनका प्रमुख उद्देश्य समाज – सुधार था। ऐसे एकांकी एवं एकांकीकार इस प्रकार हैं :
(1) ‘शेरसिंह’ – मंगलाप्रसाद विश्वकर्मा,
(2) ‘कृष्ण’ – सियारामशरण गुप्त,
(3) रेशमी’ – रामसिंह वर्मा,
(4) ‘भयंकर भूल’ – सरयूप्रसाद मिश्र,
(5) ‘चार बेचारे’–पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’,
(6) ऑनरेरी मजिस्ट्रेट’ – सुदर्शन।
जयशंकर प्रसाद ने 1930 के लगभग प्रसिद्ध एकांकी ‘एक घुट’ की रचना की,जो एकांकी तकनीक की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
मौलिक एकांकियों की परम्परा में डॉ. रामकुमार वर्मा ने ‘बादल की मृत्यु’ सर्वप्रथम एकांकी लिखा। उनके कुछ सफल एकांकी हैं—
(1) ‘पृथ्वीराज की आँखें’,
(2) रेशमी टाई’,
(3) ‘चारुमित्रा’,
(4) ‘विभूति’,
(5) ‘सप्तकिरण’,
(6) ‘रूपरंग’,
(7) ‘कौमुदी – महोत्सव’,
(8) ‘ध्रुवतारिका’,
(9) ऋतुराज’,
(10) ‘रजत रश्मि’,
(11) ‘दीपदान’,
(12) ‘काम कंदला’,
(13) ‘बापू’,
(14) ‘इन्द्रधनुष’,
(15) ‘रिमझिम’।
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ के सामाजिक, प्रतीकात्मक और मनोवैज्ञानिक एकांकी सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। उनके एकांकी इस प्रकार हैं –
(1) पासी’,
(2) लक्ष्मी का स्वागत’,
(3) ‘आपस का समझौता’,
(4) ‘स्वर्ग की झलक’,
(5) ‘विवाह के दिन’,
(6) ‘जोक’,
(7) ‘चरवाहे’,
(8) ‘चिलमन’,
(9) ‘चमत्कार’,
(10) ‘सूखी डाली’,
(11) ‘अन्धी गली’,
(12) ‘भँवर’,
(13) ‘जीवन साथी’।
उदयशंकर भट्ट ने अनेक एकांकी लिखे –
(1) ‘नकली और असली’,
(2) ‘आदमी की मृत्यु’,
(3) ‘विष की पुड़िया’,
(4) ‘मुंशीलाल अनोखेलाल’,
(5) ‘समस्या का अन्त’,
(6) ‘पिशाचों का नाच’,
(7) ‘वापसी’,
(8) ‘नये मेहमान’,
(9) ‘पर्दे के पीछे’,
(10) ‘दो अतिथि’,
(11) ‘विस्फोट’,
(12) ‘धूम्र – शिखा’,
(13) ‘एकला चलो रे’,
(14) ‘अमर अर्चना’,
(15) ‘मालती माधव’,
(16) ‘मदन – दहन’,
(17) ‘वन महोत्सव’,
(18) ‘धर्म परम्परा’ आदि।
सेठ गोविन्ददास ने सभी विषयों पर नाटक और एकांकी लिखे,जो संख्या में 100 से भी अधिक हैं। कुछ एकांकी इस प्रकार हैं :
(1) ऐतिहासिक एकांकी –
(1) ‘बुद्ध की एक शिष्या’,
(2) ‘बुद्ध के सच्चे स्नेही कौन’,
(3) ‘नानक की नमाज’,
(4) तेगबहादुर की भविष्यवाणी’,
(5) ‘परमहंस का पत्नी – प्रेमी’।
(2) सामाजिक एकांकी–
(1) ‘स्पर्द्धा’
(2) ‘मानव – मन’,
(3) ‘मैत्री’,
(4) ‘ईद और होली’,
(5) जाति उत्थान’,
(6) वह मरा क्यों?’।
(3) राजनैतिक एकांकी–’सच्चा काँग्रेसी’।
(4) पौराणिक – ‘कृषि – यज्ञ’ आदि।
जगदीशचन्द्र माथुर का प्रथम एकांकी ‘मेरी बाँसुरी’ 1936 में प्रकाशित हुआ। माथुरजी ने रंगमंच की दृष्टि से बड़े सफल एकांकी लिखे। उन्होंने समस्या उठाकर समाधान भी प्रस्तुत किये। उनके एकांकियों में हास्य – व्यंग्य का पुट भी है। उनके एकांकी इस प्रकार हैं –
(1) ‘भोर का तारा’,
(2) ‘कलिंग विजय’,
(3) रीढ़ की हड्डी’,
(4) ‘मकड़ी का जाला’,
(5) ‘खण्डहर’,
(6) ‘खिड़की राह’,
(7) ‘घोंसले’,
(8) ‘कबूतरखाना’,
(9) भाषण’,
(10) ‘ओ मेरे सपने’,
(11) ‘शारदीया’,
(12) ‘बन्दी’।
हरिकृष्ण प्रेमी और वृन्दावनलाल वर्मा ने उत्कृष्ट एकांकियों की रचना की। इनके बाद जो और एकांकीकार हुए, उनके नाम इस प्रकार हैं – भगवतीचरण वर्मा, डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल, विनोद रस्तोगी, चिरंजीत, सत्येन्द्र शरत, देवराज दिनेश, विष्णु प्रभाकर, मन्नू भण्डारी आदि।
Hindi Gadya Sahitya Ki Dharohar MP Board 5. उपन्यास
उपन्यास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है – ‘उप’ + ‘न्यास’ अर्थात् ‘पास रखा हुआ’। उपन्यास गद्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है। उपन्यास एक वृहत् आकार का आख्यान या वृत्तान्त है जिसके अन्तर्गत वास्तविक जीवन के पात्रों और कार्यों का चित्रण किया जाता है।
उपन्यास के प्रमुख तत्त्व हैं –
(1) कथावस्तु,
(2) पात्र या चरित्र – चित्रण,
(3) कथोपकथन या संवाद,
(4) देशकाल – परिस्थिति,
(5) शैली,
(6) उद्देश्य।
शैली की दृष्टि से उपन्यासों में भेद हैं—
(1) आत्मकथात्मक शैली,
(2) कथात्मक शैली,
(3) पत्र शैली,
(4) डायरी शैली।
हिन्दी उपन्यासों के विकास में तीन लेखकों को श्रेय है –
(1) देवकीनन्दन खत्री,
(2) गोपालराम गहमरी,
(3) किशोरीलाल गोस्वामी।
खत्रीजी ने ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’ और ‘भूतनाथ’ तक एक लम्बी उपन्यास की श्रृंखला लिखी, जो बेहद लोकप्रिय हुई। गोस्वामीजी ने 65 छोटे – बड़े उपन्यास लिखे। गहमरीजी ने ‘जासूस’ नाम की पत्रिका निकालकर 60 से भी अधिक जासूसी उपन्यास लिखे।
प्रेमचन्दजी का नाम ‘उपन्यास सम्राट’ के रूप में जाना जाता है। इन्होंने अनेक प्रसिद्ध उपन्यास लिखे। जिनमें ‘गोदान’, ‘गबन’, ‘निर्मला’, ‘कर्मभूमि’ प्रसिद्ध हैं। जयशंकर प्रसाद ने ‘तितली और कंकाल’ नामक उपन्यास की रचना की।
इसके बाद आचार्य चतुरसेन शास्त्री, वृन्दावनलाल वर्मा और उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ आये। बाद के प्रसिद्ध उपन्यास लेखक जैनेन्द्र कुमार, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा, इलाचन्द्र जोशी, भगवती प्रसाद वाजपेयी, अज्ञेय, राहुल सांकृत्यायन, रांगेय राघव, भीष्म साहनी, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, नागार्जुन, अमृतलाल नागर, श्रीलाल शुक्ल, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, मोहन राकेश, नरेश मेहता, शानी, शैलेश मटियानी, धर्मवीर भारती, निर्मला वर्मा, श्रीलाल शुक्ल, राही मासूम रजा, मनोहरश्याम जोशी, रमेश बक्षी, रामदरश मिश्र, मन्नू भण्डारी और शिवानी प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’,’चारु – चन्द्रलेख’ तथा ‘अनामदास का पोथा’ नामक उपन्यासों की रचना की।
गद्य की लघु विधाएँ
Hindi Gadya Sahitya Ka Itihas Class 12 MP Board 1. रिपोर्ताज
गद्य की इस विधा में किसी विषय का आँखों देखा या कानों सुना वर्णन इतने प्रभावशाली ढंग से किया जाता है कि उसकी अमिट छाप हृदय – पटल पर अंकित हो जाती है। रिपोर्ताज में तथ्य वर्णन पर बल होता है, उसमें कलात्मकता पर ध्यान नहीं दिया जाता है।।
इस विधा का आरम्भ शिवदानसिंह चौहान की ‘लक्ष्मीपुरा’ से हुआ। रांगेय राघव द्वारा बंगाल के दुर्भिक्ष एवं महामारी के बारे में लिखे गये रिपोर्ताज काफी मार्मिक बन पड़े हैं। इनका संकलन ‘तूफानों के बीच’ नामक रचना में हुआ है। प्रकाशचन्द्र गुप्त, उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’, . रामनारायण उपाध्याय, अमृतराय, निर्मल वर्मा, विष्णु प्रभाकर, कुबेरनाथ राय, प्रभाकर माचवे के रिपोर्ताज भी प्रसिद्ध हैं। भदन्त आनन्द कौसल्यायन देश की मिट्टी बोलती है’, शिवसागर मिश्र ‘वे लड़ेंगे हजारों साल’,धर्मवीर भारती ‘युद्ध यात्रा’, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ‘क्षण बोले कण मुस्काए’ तथा शमशेर बहादुर सिंह ‘प्लाट का मोर्चा’ इस विधा की समर्थ रचनाएँ हैं।
इस विधा के विकास में पत्र – पत्रिकाओं ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। ‘हंस’ के ‘समाचार विचार’ तथा ‘धर्मयुग’,’हिन्दुस्तान’, ‘दिनमान’, रविवार में जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी, निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, विष्णुकान्त शास्त्री, उदयन शर्मा, लक्ष्मीकान्त वर्मा ने रिपोर्ताज लिखे हैं।
2. संस्मरण
संस्मरण जीवनी लेखन का एक विशेष रूप है। इसमें लेखक अपने जीवन के विशेष प्रसंगों और अनुभवों का उल्लेख करता है। जीवन की मर्मस्पर्शी स्मृतियों के आधार पर प्रभावशाली भाषा का लेखन ही संस्मरण है। संस्मरण का अर्थ है – भलीभाँति याद करना। जीवन में कभी कोई विशिष्ट व्यक्ति,घटना या वस्तु इस प्रकार प्रभाव डालती है कि हम उन्हें कभी भी भूल नहीं पाते। संस्मरण लिखते समय लेखक अपने बारे में अधिक लिखता है। उसका विशिष्ट स्वरूप, आकृति, आचार – विचार, रंग, रूप, उसका कौशल, उसकी भावना, उसके आस – पास के अन्य लोगों पर किस प्रकार प्रभाव डालता है; इस सबका मनोयोगपूर्वक वर्णन ही संस्मरण है। इसमें या तो व्यक्तिपरकता या प्राकृतिक सौन्दर्य उपादान या घटना विशेष की मर्मस्पर्शी छवि लेखक के मन में पूरे समय रहती है और लेखक संस्मरण लिखते समय पूर्ण रूप से उसी पर केन्द्रित रहता है और उससे सम्बन्धित छोटी से छोटी बात या घटना लिखना नहीं भूलता। यह यथार्थपरक होती है। संस्मरण लेखन में श्री पदमसिंह शर्मा ने साहित्यकारों और रसिकों के लिए आकर्षक और रोचक संस्मरण लिखकर अपना स्थान अग्रणी रखा है। महादेवी वर्मा ने ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ नामक संस्मरण लिखे हैं। श्री बनारसीदास चतुर्वेदी, नगेन्द्र, यशपाल, श्रीनारायण चतुर्वेदी, उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ आदि अनेक लेखकों ने संस्मरण लिखे हैं।
3. जीवनी
जीवनी में लेखक इतिहासकार की तरह पूरी सच्चाई से किसी व्यक्ति के जीवन की जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी घटनाओं के बारे में लिखता है। वह व्यक्ति विशेष के जीवन का परिचय इस तरह प्रस्तुत करता है कि उसके जीवन के सभी अच्छे – बुरे पहलू सामने आयें और जीवनी पढ़ते – पढ़ते हम उस व्यक्ति से अपनापन अनुभव करने लगते हैं। जीवनी लेखन में लेखक तटस्थ रहकर लिखता है। वह अपने विचार और प्रतिक्रियाएँ नहीं दर्शाता। उसके जीवन के उन तथ्यों पर विशेष ध्यान देता है जिससे हमें कुछ प्रेरणा प्राप्त हो सके। उसके जीवन की उस घटना से हम अपने जीवन में उन्नति कर सकते हैं। साहित्यिक विधा के रूप में जीवनी लेखन की शुरूआत भारतेन्दु युग से ही हुई। जीवनी का प्रामाणिक होना आवश्यक है। इस युग में प्राचीन सन्तों, महापुरुषों, कवियों और साहित्यकारों की जीवनियाँ लिखी गयीं। बाद में राष्ट्रीय महापुरुषों और नेताओं की जीवनियाँ लिखी गयीं।
4. आत्मकथा
आत्मकथा में लेखक स्वयं अपने जीवन की कथा पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है। वह पूरी निष्पक्षता और सच्चाई से अपने जीवन में घटित प्रत्येक घटना का वर्णन अपनी स्मरण शक्ति के आधार पर प्रस्तुत करता है। जब वह अपनी कहानी कहता है तब उसके जीवन में आने वाले हर पहलू का वह चित्रण करता है। अपने जीवन पर जिन व्यक्तियों, पुस्तकों की छाप है, जिससे उसे प्रेरणा मिली यह सब भी वह लिखता है। जब वह अपनी आत्मकथा लिखता है तो उस समय उसके जीवन काल में जो भी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक घटनाक्रम होते हैं उसके भी दर्शन होते हैं। उसके जीवन काल में क्या नैतिक मूल्य थे, क्या परम्पराएँ थीं, क्या अन्धविश्वास थे,कौन – से सामाजिक बन्धन थे, यह सब हमें उसकी आत्मकथा से पता चलता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने – ‘कुछ आप बीती कुछ जग बीती’ नामक आत्मकथा लिखी। श्यामसुन्दर दास, वियोगी हरि, गुलाबराय, यशपाल आदि ने भी आत्मकथाएँ विभिन्न रूप में लिखीं।
महात्मा गाँधी की आत्मकथा’, जवाहरलाल नेहरू की ‘मेरी कहानी’, ‘राजेन्द्र प्रसाद की आत्मकथा’ श्रेष्ठ साहित्य हैं। चतुरसेन शास्त्री तथा सेठ गोविन्ददास ने भी आत्मकथा लिखीं। आधुनिक काल में श्री हरिवंशराय बच्चन ने चार भागों में अपनी आत्मकथा लिखी जो लोकप्रिय हुई।
5. आलोचना
आलोचना साहित्य का इतिहास आधुनिक काल से ही प्रारम्भ हुआ है। डॉ. श्यामसुन्दर दास के अनुसार, “आलोचना किसी भी साहित्यिक कृति या रचना को भली – भाँति पढ़कर उसका मूल्यांकन करना है। यदि साहित्य जीवन की व्याख्या है तो आलोचना उस व्याख्या की व्याख्या है। आलोचना लेखक की रचना और पाठक के बीच पुल का काम करती है। आलोचना किसी भी रचना का सही मूल्यांकन करके पाठकों तक उसकी विशेषता और गहराई प्रस्तुत कर उस कृति को पढ़ने की प्रेरणा देती है।।
भारतेन्दु युग में वास्तविक समीक्षा का विकास नहीं हो पाया था। प्रारम्भ अवश्य हो गया था। पत्र – पत्रिकाओं में समीक्षात्मक निबन्धों का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। आलोचना की दृष्टि से द्विवेदी युग महत्त्वपूर्ण है। स्वयं द्विवेदीजी ने आलोचना लिखी। इनमें भाषा के शुद्ध रूप और विचारों को व्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त करने की प्रेरणा दी गयी।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सर्वश्रेष्ठ आलोचक माने गये। बाद में बाबू गुलाबराय, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, डॉ. नगेन्द्र आदि समीक्षक हुए।
6. रेखाचित्र
इसे अंग्रेजी में ‘स्कैच’ कहा जाता है। चित्रकार जिस प्रकार अपनी तूलिका से चित्र बनाता है उसी प्रकार लेखक अपने शब्दों के रंगों के द्वारा ऐसे चित्र उपस्थित करता है जिससे वर्णन योग्य वस्तु की आकृति का चित्र हमारी आँखों के सामने घूमने लगे। चित्रकार की सफलता उसके रेखांकन तथा रंगों के तालमेल पर निर्भर करती है, जबकि रेखाचित्र के लेखक की उसके शब्दों को गूंथने की कला पर। रेखाचित्र का लेखक अपने शब्दों में ऐसा चित्र बनाता है जो हमारे मानस पटल पर उभरकर मूर्त रूप धारण कर लेता है। इस विधा के प्रमुख लेखक हैं श्रीराम शर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी, रामवृक्ष बेनीपुरी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, निराला तथा महादेवी वर्मा।
7. यात्रावृत्त (यात्रा साहित्य)। यह साहित्य की एक रोचक तथा मनोरंजन – प्रधान विधा है। इसमें लेखक विशेष स्थलों की यात्रा का सरस तथा सुन्दर वर्णन इस दृष्टि से करता है कि जो पाठक उन स्थलों की यात्रा करने में समर्थ न हों वे उसका मानसिक आनन्द उठा सकें और घर बैठे ही उन स्थलों के प्राकृतिक दृश्यों, वहाँ के निवासियों के आचार – विचार,खान – पान, रहन – सहन आदि से परिचित हो सकें। इस विधा का यह लक्ष्य रहता है कि लेखक अपनो यात्रा में प्राप्त किये हुए आनन्द तथा ज्ञान को पाठकों तक पहुँचा सकें। यह विधा आत्मपरक, अनौपचारिक,संस्मरणात्मक तथा मनोरंजक होती है। इसकी सफलता लेखक के स्वरूप – निरीक्षण तथा उसकी वर्णन – शैली के सौष्ठव एवं सौन्दर्य पर अधिक निर्भर रहती है। इसमें लेखक अपनी यात्रा की कठिनाई,सम्बन्धों तथा उपलब्धियों का रोचक विवरण पाठकों के समक्ष रखता है। यात्रा साहित्य की रचना की दृष्टि से राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय, देवेन्द्र सत्यार्थी, डॉ. नगेन्द्र, यशपाल और विनय मोहन शर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं। इस संकलन में विनयमोहन शर्मा का ‘दक्षिण भारत की एक झलक’ यात्रा वत्तान्त पर्याप्त रोचक और ज्ञानवर्धक होने के कारण सफल यात्रा वृत्तान्त का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
8. गद्य – काव्य
गद्य – काव्य,गद्य तथा काव्य के बीच की विधा है। इसमें गद्य के माध्यम से किसी भावपूर्ण विषय की काव्यात्मक अभिव्यक्ति होती है। इसका गद्य भी सामान्य गद्य से अधिक सरस, भावात्मक, अलंकृत, संवेदनात्मक तथा संगीतात्मक होता है। इसमें लेखक अपने हृदय की संवेदना की अभिव्यक्ति इस प्रकार करता है कि पाठक उसे पढ़कर रसमय हो जाता है। इसमें विचारों की अभिव्यक्ति की अपेक्षा भावों की सरस अभिव्यक्ति की ओर लेखक का अधिक ध्यान रहता है। यह निबन्ध की अपेक्षा संक्षिप्त,वैयक्तिक तथा एकतथ्यता लिए होता है। इसका ध्येय प्रायः निश्चित होता है तथा इसमें केवल केन्द्रीय भाव की प्रधानता होती है। इसकी शैली प्रायः चमत्कारपूर्ण एवं कवित्वपूर्ण होती है तथा विचारों का समावेश भी प्रायः भावों के ही रूप में होता है। गद्य – काव्य के लेखकों में वियोगी हरि तथा रामवृक्ष बेनीपुरी के नाम उल्लेखनीय हैं।
9. भेटवार्ता
भेंटवार्ता वह रचना है जिसमें लेखक किसी व्यक्ति विशेष से साक्षात्कार करके उसके सम्बन्ध में कतिपय जानकारियों को तथा उसके सम्बन्ध में अपनी क्रिया – प्रतिक्रियाओं को अपनी पूर्व धारणाओं,आस्थाओं और रुचियों से रंजित कर सरस एवं भावपूर्ण शैली में व्यक्त करता है। यह एक प्रकार से संस्मरण का ही रूप है। पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ और रणवीर रांगा ने वास्तविक भेंटवार्ताएँ लिखी हैं। राजेन्द्र यादव तथा लक्ष्मीचन्द जैन ने कल्पना के आधार पर भेंटवार्ताएँ लिखी हैं।
10. डायरी
अपने जीवन के दैनिक प्रसंगों को या किसी प्रसंग विशेष को डायरी के रूप में लिखा जाता है। इनमें जीवन की यथार्थ घटनाओं का वर्णन संक्षेप में रहता है। व्यंजना, व्यंग्य और वर्णन डायरी की विशेताएँ हैं।
हिन्दी में डायरी विधा में लेखन को आरम्भ करने का श्रेय डॉ. धीरेन्द्र वर्मा की ‘मेरी कॉलेज डायरी’ नामक रचना को है। इस विधा में रामधारी सिंह दिनकर, शमशेर बहादुर सिंह, इलाचन्द्र जोशी,सुन्दरलाल त्रिपाठी तथा मोहन राकेश के नाम महत्त्वपू हैं।
11. पत्र – साहित्य
पत्र – साहित्य भी गद्य की एक सशक्त विधा है : उर्दू में ‘गुबारे खातिर’ (आजाद का पत्र संग्रह) और रूसी भाषा में ‘टालस्टाय की डायरी’ स्थायी साहित्य की निधि हैं। पत्र के द्वारा आत्म – प्रदर्शन, विचारों की अभिव्यक्ति को अच्छी दिशा प्राप्त होती है। हिन्दी में ‘द्विवेदी पत्रावली’, ‘द्विवेदी युग के साहित्यकारों के पत्र’, ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इस विधा के प्रवर्तन में बैजनाथ सिंह, विनोद, बनारसीदास चतुर्वेदी, जवाहरलाल नेहरू आदि का योगदान महत्त्वपूर्ण है।
(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- बहु – विकल्पीय प्रश्न
1. गद्य साहित्य के विकास का युग माना जाता है –
(अ) आधुनिक युग, (ब) भारतेन्दु युग, (स) द्विवेदी युग, (द) कहानी।
2. गद्य की प्रमुख विधा है
(अ) रिपोर्ताज, (ब) संस्मरण, (स) पत्र – साहित्य, (द) शुक्ल युग।
3. गद्य की लघु विधा है
(अ) कहानी, (ब) जीवनी, (स) उपन्यास, (द) निबन्ध।
4. हिन्दी निबन्ध साहित्य के विकास को कितने वर्गों में बाँटा गया है?
(अ) एक, (ब) दो, (स) चार, (द) छः।
5. भारतेन्दुयुगीन सुप्रसिद्ध निबन्धकार हैं
(अ) बालकृष्ण भट्ट, (ब) श्यामसुन्दर दास, (स) डॉ.वासुदेवशरण अग्रवाल, (द) प्रेमचन्द।
6. भारतेन्दु काल के नाटककार हैं [2009]
(अ) जयशंकर प्रसाद, (ब) बालकृष्ण भट्ट, (स) शम्भूनाथ सिंह, (द) डॉ.रामकुमार वर्मा।
7. प्रसादजी ने लगभग कहानियाँ लिखी हैं [2009]
(अ) 49, (ब) 59, (स) 69, (द) 79.
8. ‘आचरण की सभ्यता’ है, एक
(अ) कहानी, (ब) उपन्यास, (स) निबन्ध, (द) एकांकी।
9. ‘राजा भोज का सपना’ कहानी के कहानीकार हैं
(अ) राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द’, (ब) जयशंकर प्रसाद, (स) प्रेमचन्द, (द) मास्टर भगवान दास।
10. एक प्रमुख दृश्य – काव्य है
(अ) नाटक, (ब) उपन्यास, (स) कहानी, (द) जीवनी।
11. एकांकी में अंकों की संख्या होती है
(अ) एक, (ब) दो, (स) तीन, (द) कई।
12. सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’ के उपन्यासकार हैं [2013]
(अ) प्रेमचन्द, (ब) यशपाल, (स) वृन्दावनलाल वर्मा, (द) देवकीनन्दन खत्री।
उत्तर–
1. (अ), 2. (द), 3. (ब), 4. (स), 5. (अ), 6. (स), 7. (स), 8. (स), 9. (अ), 10. (अ), 11. (अ), 12. (द)।
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
1. हिन्दी में निबन्ध का आविर्भाव ….. युग में हुआ।
2. ‘भारतवर्ष’ नामक निबन्ध के निबन्धकार ……… हैं।
3. प्रतापनारायण मिश्र ने ……… नामक पत्रिका का सम्पादन किया।
4. जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘ग्राम’ सन् ……. ई.में प्रकाशित हुई।
5. नाटक एक प्रमुख ……… काव्य है।
6. सुप्रसिद्ध नाटक ‘आधे – अधूरे’ के लेखक ……. हैं।
7. हिन्दी एकांकी का आरम्भ … युग से माना गया है।
8. ……. एक वृहत् आकार का आख्यान या वृत्तान्त है, जिसके अन्तर्गत वास्तविक जीवन के पात्रों और कार्यों का चित्रण किया जाता है।
9. प्रेमचन्द को ….की उपाधि प्रदान की गई है। [2015]
10. ….. में लेखक स्वयं अपने जीवन की कथा पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है। (2009, 11)
11. आलोचना के क्षेत्र में वरदानस्वरूप …….का आगमन हुआ। [2009]
12. …… के आगमन के साथ ही हिन्दी आलोचना का आरम्भ माना जाता है। [2013]
उत्तर–
1. आधुनिक,
2. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,
3. ब्राह्मण,
4. 1909,
5. दृश्य,
6. मोहन राकेश,
7. भारतेन्दु,
8. उपन्यास,
9. उपन्यास सम्राट,
10. आत्मकथा,
11. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल,
12. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
- सत्य/असत्य
1. रेखाचित्र गद्य साहित्य की एक मख्य विधा है।
2. हास्य – व्यंग्य भारतेन्दुयुगीन निबन्धों की एक प्रमुख विशेषता है।
3. ‘हिन्दी प्रदीप’ नामक पत्रिका का सम्पादन बालकृष्ण भट्ट ने किया।
4. यशपाल ने साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित होकर सामाजिक कहानियाँ लिखीं।
5. ‘अभिनेयता’ नाटक का एक प्रमुख तत्त्व है।
6. हिन्दी रंगमंचीय नाटकों का आरम्भ उपेन्द्रनाथ अश्क’ से माना जाता है।
7. ‘प्रसाद युग’ का नामकरण जयशंकर प्रसाद के नाम पर हुआ।
8. नाटक और एकांकी में कोई अन्तर नहीं है। [2010]
9. प्रेमचन्द ने ‘तितली और कंकाल’ नामक उपन्यास की रचना की।
10. ‘टालस्टाय की डायरी’ पत्र – साहित्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
11. एकांकी दृश्य काव्य का रूप होता है। [2009]
12. ‘रानी केतकी की कहानी’ को हिन्दी का सर्वप्रथम लघु उपन्यास मानते हैं। [2011]
13. ‘चिन्तामणि’ के लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं। [2012]
14. जीवनी सत्य घटनाओं पर आधारित होती है। [2015]
उत्तर–
1. असत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य,
6. असत्य,
7. सत्य,
8. असत्य,
9. असत्य,
10. सत्य,
11. सत्य,
12. असत्य,
13. असत्य,
14. सत्य।
- सही जोड़ी मिलाइये
I. ‘क
(1) शिव शम्भू का चिट्ठा – (अ) कहानी
(2) बड़े घर की बेटी – (ब) एकांकी आषाढ़ का एक दिन
(स) निबन्ध –
(4) दीपदान – (द) उपन्यास
(5) गोदान – (इ) नाटक
(6) आत्मकथा के क्षेत्र से निकली विधा [2009] – (ई) निबन्ध
(7) हिन्दी गद्य साहित्य की धरोहर [2009] – (उ) संस्मरण
उत्तर–
(1) → (स),
(2) → (अ),
(3) → (इ),
(4)→ (ब),
(5) → (द),
(6) → (उ),
(7) → (ई)।
‘ख’
(1) संवदिया [2012] – (अ) धर्मवीर भारती
(2) पिता के पत्र पुत्री के नाम – (ब) फणीश्वरनाथ रेणु
(3) युद्ध यात्रा – (स) पं.जवाहर लाल नेहरू
(4) समाज और साहित्य – (द) जयशंकर प्रसाद
(5) एक घुट – (इ) बाबू श्यामसुन्दर दास
उत्तर–
(1) → (ब),
(2) → (स),
(3) →(अ),
(4) → (इ),
(5) → (द)।
- एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
एक अंक वाली नाट्य कृति क्या कहलाती है?
उत्तर–
एकांकी।
प्रश्न 2.
हिन्दी की प्रथम कहानी कौन – सी मानी गयी है?
उत्तर–
इन्दुमती।
प्रश्न 3.
चन्द्रगुप्त किसकी नाट्य – रचना है? [2015]
उत्तर–
जयशंकर प्रसाद की।
प्रश्न 4.
‘आनन्द कादम्बिनी’ नामक पत्र का सम्पादन किसने किया था?
उत्तर–
बदरीनारायण ‘प्रेमधन’।
प्रश्न 5.
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किस पत्रिका का सम्पादन किया?
उत्तर–
सरस्वती।
प्रश्न 6.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर निबन्ध लिखने वाले निबन्धकार कौन थे?
उत्तर–
डॉ. रघुवीर सिंह।
प्रश्न 7.
यशपाल ने साम्यधारी विचारधारा से प्रभावित होकर किस प्रकार की कहानियाँ लिखीं? [2013]
उत्तर–
सामाजिक कहानियाँ।
प्रश्न 8.
‘मुक्ति पथ’ नामक नाटक के लेखक कौन हैं?
उत्तर–
उदयशंकर भट्ट।
प्रश्न 9.
जगदीश चन्द्र माथुर का प्रथम एकांकी (1936 में प्रकाशित) कौन – सा था?
उत्तर–
मेरी बाँसुरी।
प्रश्न 10.
‘दक्षिण भारत की एक झलक’, हिन्दी साहित्य की किस विधा का उदाहरण है?
उत्तर–
यात्रावृत्त (यात्रा साहित्य)।
प्रश्न 11.
‘गणेश शंकर विद्यार्थी’ साहित्य की किस विधा में लिखा गया है? [2010]
उत्तर–
संस्मरण विधा में।
प्रश्न 12.
संकलन त्रय क्या है? [2012]
उत्तर–
देश, काल और घटनाओं को संकलन त्रय कहा जाता है।
- (ख) अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हिन्दी की आधुनिक कहानी का विकास कब से माना जाता है?
उत्तर–
हिन्दी की आधुनिक कहानी का विकास सन् 1900 से माना जाता है।
प्रश्न 2.
नाटक के चार तत्त्व लिखिए।
उत्तर–
(1) कथावस्तु,
(2) चरित्र – चित्रण,
(3) संवाद,
(4) अभिनेयता।
प्रश्न 3.
उपन्यास के कोई चार तत्त्व बताइये।
उत्तर–
(1) कथावस्तु,
(2) पात्र या चरित्र – चित्रण,
(3) कथोपकथन या संवाद,
(4) भाषा – शैली।
- (ग) लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निबन्ध की परिभाषा देते हुए दो निबन्धकारों के नाम लिखिए तथा उनकी एक – एक निबन्ध रचना का नाम लिखिए।
उत्तर–
निबन्ध की परिभाषा – “निबन्ध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन,स्वच्छन्दता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।”
निबन्धकार तथा उनकी निबन्ध रचना –
(1) डॉ. नन्ददुलारे वाजपेयी – राष्ट्रीय साहित्य’,
(2) डॉ. नगेन्द्र ‘आलोचक की आस्था’।
प्रश्न 2.
निबन्ध लेखन की व्यास तथा समास शैली में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2009]
उत्तर–
व्यास शैली में विषय का विस्तार से विवेचन प्रस्तुत किया जाता है, जबकि समास शैली में सूत्ररूप से विषय – वस्तु प्रस्तुत कर दी जाती है।
प्रश्न 3.
डॉ. भगीरथ मिश्र के अनुसार निबन्ध की परिभाषा दीजिए।
उत्तर–
डॉ. भगीरथ मिश्र के अनुसार, “निबन्ध वह गद्य रचना है, जिसमें लेखक किसी भी विषय पर स्वच्छन्दतापूर्वक परन्तु एक सौष्ठव सहित सजीवता और वैयक्तिकता के साथ अपने भावों, विचारों और अनुभवों को व्यक्त करता है।”
प्रश्न 4.
निबन्ध को गद्य की कसौटी क्यों कहा गया है? [2011]
उत्तर–
इस कथन का तात्पर्य यह है कि पद्य की तुलना में गद्य रचना सम्पन्न करना दुष्कर कार्य है,क्योंकि अगर आठ पंक्तियों वाली कविता में यदि एक भी पंक्ति भावपूर्ण लिख जाती है तो कवि प्रशंसा का भागी होता है,परन्तु गद्य के सन्दर्भ में ऐसा नहीं देखा जाता। गद्यकार को एक – एक वाक्य सुव्यवस्थित एवं सोच – विचारकर लिखना होता है। उसी स्थिति में गद्यकार प्रशंसनीय है। गद्य में निबन्ध लेखन बहुत ही दुष्कर कार्य है। निबन्ध को सुरुचिपूर्ण, आकर्षक एवं व्यवस्थित होना चाहिए। इसी हेतु निबन्ध को गद्य की कसौटी कहा गया है।
प्रश्न 5.
“भावों की पूर्णाभिव्यक्ति का विकास निबन्ध में ही सबसे अधिक सम्भव होता है।” इस कथन का आशय समझाइए।
उत्तर–
निबन्ध गद्य लेखन की एक उत्कृष्ट विधा है। भावों की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति का विकास निबन्ध में ही सम्भव होता है, क्योंकि निबन्ध व्यक्ति – सापेक्ष्य होता है। वैयक्तिकता ही निबन्ध का प्रधान गुण है। लेखक के व्यक्तित्व का प्रभाव ही निबन्ध में परिलक्षित होता है। भावों के प्रकाशन (अभिव्यक्ति) का सबसे उपयुक्त साधन निबन्ध हैं, क्योंकि इसका विकास निबन्ध में ही सम्भव है।
प्रश्न 6.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और गुलाबराय द्वारा दी गयी निबन्ध की परिभाषाएँ लिखिए।
उत्तर–
(1) आचार्य रामचन्द्र शक्ल – “यदि गद्य लेखकों की कसौटी है. तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।” प्रस्तुत कथन का आशय है कि निबन्ध से ही गद्यकार के लेखन की उत्कृष्टता का ज्ञान होता है।
(2) गुलाबराय–“निबन्ध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।”
प्रश्न 7.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार ‘निबन्ध’ की परिभाषा देते हुए बताइए कि हिन्दी निबन्ध साहित्य को किन – किन वर्गों में विभाजित किया गया है? [2009]
उत्तर–
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “यदि गद्य लेखकों की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।”
हिन्दी निबन्ध साहित्य को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया गया है-
प्रश्न 8.
द्विवेदीयुगीन निबन्धों की चार प्रमुख विशेषताएँ बताते हुए इस युग के दो प्रमुख निबन्धकारों के नाम उनकी एक – एक रचना के साथ लिखिए। [2013]
उत्तर–
विशेषताएँ–
(1) विषय – वस्तु की गम्भीरता,
(2) राष्ट्रीय भावना,
(3) समाज सुधार,
(4) हास्य – व्यंग्यात्मकता।
प्रमुख निबन्धकार – रचनाएँ
महावीर प्रसाद द्विवेदी – साहित्य की महत्ता, विचार वीथी
सरदार पूर्णसिंह – कन्यादान, आचरण की सभ्यता
प्रश्न 9.
द्विवेदीयुगीन गद्य की कोई चार विशेषताएँ लिखिए। [2012]
उत्तर–
द्विवेदीयुगीन गद्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) विषय – वस्तु को व्यवस्थित ढंग से प्रभावी शैली में प्रस्तुत करने पर बल दिया गया।
(2) भाषा को परिमार्जित एवं परिष्कृत किया गया।
(3) नैतिकता, राष्ट्रीयता, समाज – सुधार जैसे विषयों पर लिखा गया।
(4) इस युग के गद्य, विशेषकर निबन्धों में हास्य – व्यंग्यात्मक शैली को अपनाया गया।
प्रश्न 10.
भारतेन्दू युग और द्विवेदी युग के निबन्धों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारतेन्दु युग के निबन्धों की दो विशेषताएँ बताइए। [2014]
उत्तर–
भारतेन्दुयुगीन निबन्ध रोचक ही नहीं, प्रेरक भी थे। निबन्धों का मूल स्वर समाज – सुधार की भावना, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक चेतना पर आधारित था। इस युग के निबन्धों में वैयक्तिकता की झलक और हास्य – व्यंग्य का समावेश विशेष रूप से लक्षित होता है।
द्विवेदी युग में भाषा, भाव – विचार के विस्तार की अपेक्षा परिष्कार पर अधिक ध्यान दिया गया। इसलिए इस युग के निबन्ध भाव, विचार और भाषा की दृष्टि से अपेक्षाकृत अधिक परिष्कृत हैं तथा उनमें स्वछन्दता के स्थान पर गम्भीरता अवलोकनीय है।
प्रश्न 11.
शुक्लयुगीन निबन्धों की तीन विशेषताएँ बताइए तथा यह भी बताइए कि निबन्ध का स्वर्णकाल’ किस युग को कहा गया है? [2009]
अथवा
शुक्ल युग के निबन्धों की दो विशेषताएँ तथा इस युग के दो लेखकों एवं उनके निबन्धों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर–
शुक्ल युग के निबन्धों की विशेषताएँ –
(1) साहित्य और जीवन के विविध विषयों पर विचारात्मक तथा विश्लेषणात्मक निबन्धों की रचना,
(2) निबन्धों में भाव – पक्ष की अपेक्षा चिन्तन पक्ष की प्रधानता,
(3) भाषा और शैली में परिष्कार तथा लालित्य। ‘शुक्ल युग’ को ही हिन्दी निबन्ध का स्वर्णकाल माना गया है।
प्रमुख लेखक एवं उनके निबन्ध
(1) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल – क्रोध,उत्साह,भय।
(2) बाबू गुलाबराय – मेरी असफलताएँ, सिद्धान्त और अध्ययन।
प्रश्न 12.
शुक्लोत्तर युग के निबन्धों की चार विशेषताएँ लिखिए। [2017]
उत्तर–
शुक्लोत्तर युग निबन्ध के विकास की चरम सीमा का युग है। इस युग में विषय वैविध्य अपेक्षाकृत अधिक दृष्टिगत होता है। इस युग के निबन्ध लेखक की अपनी निजी विशेषताएँ हैं।
विशेषताएँ –
(1) भावनात्मक एवं आत्मपरक निबन्ध,
(2) विषय – वस्तु की विविधता,
(3) विचारात्मक, भावात्मक,समीक्षात्मक शैली,
(4) निबन्धों के विकास का चरमोत्कर्ष।।
प्रश्न 13.
प्रेमचन्द के अनुसार कहानी की परिभाषा लिखते हुए बताइए कि सुविधा की दृष्टि से कहानी को किन – किन वर्गों में बाँटा गया है? [2009]
उत्तर–
प्रेमचन्द के अनुसार, “कहानी एक ऐसी रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंश या मनोभाव को प्रदर्शित करना ही कहानीकार का उद्देश्य होता है।”
सुविधा की दृष्टि से कहानी को निम्नलिखित चार वर्गों में बाँटा जा सकता है-
प्रश्न 14.
श्रेष्ठ कहानी की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर–
(1) जीवन के सुन्दर एवं महत्त्वपूर्ण पहलुओं का वर्णन,
(2) जिज्ञासा एवं कौतूहल का समावेश,
(3) कथानक का अप्रत्याशित (चरम) विकास तथा प्रभावपूर्ण अन्त,
(4) संक्षिप्तता।
प्रश्न 15.
कहानी के तत्त्व लिखिए। [2015]
उत्तर–
कहानी के छः तत्त्व हैं –
(1) कथानक,
(2) पात्र या चरित्र – चित्रण,
(3) कथोपकथन या संवाद,
(4) देशकाल वातावरण,
(5) भाषा – शैली,
(6) उद्देश्य।
प्रश्न 16.
कहानी में कथोपकथन या संवाद की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर–
(1) कथोपकथन स्पष्ट हों,
(2) छोटे – छोटे सरल वाक्यों में लिखे गये हों,
(3) भाषा सीधी,चुटीली एवं मर्मस्पर्शी हो,
(4) पात्रानुकूलता हो।
प्रश्न 17.
नाटक किसे कहते हैं? नाटक और एकांकी में क्या अन्तर है?
उत्तर–
नाटक शब्द ‘नट’ से बना है जिसका अर्थ भावों का अभिनय है। इस प्रकार नाटक का सम्बन्ध रंगमंच से है। इसमें रंगमंच और अभिनय का ध्यान रखा जाता है। नाटक का कथानक कुछ अंकों और दृश्यों में विभाजित होता है।
नाटक का लघु आकार एकांकी है। इसमें मात्र एक अंक में कथावस्तु प्रस्तुत की जाती है। इस प्रकार नाटक में जीवन का वृहद् चित्रण होता है और एकांकी में एक अंश चित्रित किया जाता है।
प्रश्न 18.
हिन्दी में नाटक सम्राट किसे कहा गया है? उनके दो नाटकों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर–
हिन्दी में नाटक साहित्य को उत्कर्ष पर पहुँचाने का श्रेय जयशंकर प्रसाद को है। उन्होंने भारतीय तथा पाश्चात्य शैलियों का समन्वय करके एक नवीन शैली का प्रारम्भ किया। प्रसाद ने इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों को अपने नाटकों का आधार बनाया। इतिहास के कथानकों में उन्होंने वर्तमान का सन्देश दिया। राष्ट्रीयता,सांस्कृतिक – प्रेम तथा नारी के प्रति सहानुभूति का भाव आपके नाटकों में स्पष्ट दिखाई पड़ता है। ‘चन्द्रगुप्त’ एवं ‘ध्रुवस्वामिनी प्रसाद जी के प्रसिद्ध नाटक हैं।
प्रश्न 19.
हिन्दी नाट्य परम्परा में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का योगदान बताइए।
उत्तर–
आधुनिक युग में नाट्य परम्परा का विकास भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। उन्होंने पूर्व परम्पराओं से हटकर नाटक को नया रूप दिया। उन्होंने ही सर्वप्रथम नाटक को रंगमंचीय रूप प्रदान किया। उन्होंने मौलिक नाटकों की रचना के साथ – साथ संस्कृत,बंगला और अंग्रेजी के नाटकों का अनुवाद किया।
प्रश्न 20.
एकांकी किसे कहते हैं? हिन्दी के दो प्रमुख एकांकीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर–
एक अंक वाले नाटक को एकांकी कहते हैं। ये आकार में छोटे होते हैं तथा लगभग आधा घण्टे में समाप्त हो जाते हैं। इसमें जीवन का खण्ड चित्र प्रस्तुत होता है। आधुनिक युग में एकांकी पर्याप्त मात्रा में लिखे गये हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा तथा उपेन्द्रनाथ अश्क’ के नाम प्रमुख दो एकांकीकारों में गिनाये जा सकते हैं।
प्रश्न 21. नाटक एवं एकांकी के चार अन्तर बताइए। [2014]
अथवा
गद्य की नाटक विधा की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर–
(1) नाटक में एक मुख्य कथा के साथ – साथ अन्य प्रासंगिक कथाएँ होती हैं, जबकि एकांकी में एक ही कथा होती है। प्रासंगिक कथाएँ नहीं होती।
(2) नाटक में अनेक घटनाएँ तथा कार्य – व्यापार होते हैं, जबकि एकांकी में एक ही घटना तथा एक ही कार्य व्यापार होता है।
(3) नाटक में अनेक अंक होते हैं, जबकि एकांकी में एक ही अंक होता है। (4) नाटक में विस्तार होता है, जबकि एकांकी में संक्षिप्तता होती है।
प्रश्न 22.
भारतेन्दु युग तथा प्रसाद युग के तीन – तीन प्रमुख एकांकीकारों के नाम एवं प्रत्येक के एक – एक उल्लेखनीय एकांकी के शीर्षक बताइए।
उत्तर–
भारतेन्दु युग
(1) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र – ‘अंधेर नगरी’,
(2) राधाकृष्णदास ‘दुःखिनी बाला’,
(3) प्रतापनारायरण मिश्र ‘कलि कौतुक’।
प्रसाद युग –
(1) जयशंकर प्रसाद – एक घूट’,
(2) वृन्दावनलाल वर्मा – राखी की लाज’,
(3) सुदर्शन – ‘ऑनरेरी मजिस्ट्रेट’।
प्रश्न 23.
रेखाचित्र किसे कहते हैं? हिन्दी के दो प्रसिद्ध रेखाचित्रकारों के नाम लिखिए। रेखाचित्र की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर–
रेखाचित्र रेखाचित्र में शब्दों की कलात्मक रेखाओं के द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के बाह्य तथा आन्तरिक स्वरूप का सजीव तथा वास्तविक रूप प्रस्तुत किया जाता है।
रेखाचित्रकार – दो प्रसिद्ध रेखाचित्रकार हैं –
(1) महादेवी वर्मा,
(2) रामवृक्ष बेनीपुरी।
रेखाचित्र की विशेषताएँ –
(1) रेखाचित्र कल्पना प्रधान हो सकता है।
(2) रेखाचित्र के लिये किसी भी विषय को अपनाया जा सकता है।
(3) रेखाचित्र की विषय – वस्तु विस्तृत होती है।
प्रश्न 24.
रेखाचित्र और संस्मरण में दो अन्तर [2014]
स्पष्ट करते हुए अपनी पाठ्य – पुस्तक में संकलित दोनों विधाओं की एक – एक रचना का नाम लिखिए। [2010]
अथवा
रेखाचित्र एवं संस्मरण में कोई चार अन्तर लिखिए। [2016] \
उत्तर–
रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर –
(1) रेखाचित्र सामान्य से सामान्य व्यक्ति का हो सकता है,जबकि संस्मरण महान व्यक्ति का ही होता है।
(2) रेखाचित्र कल्पना प्रधान होता है, जबकि संस्मरण वास्तविक होता है।
(3) रेखाचित्र में चित्रात्मक शैली प्रयुक्त होती है, जबकि संस्मरण में विवरणात्मक शैली का प्रयोग होता है।
(4) रेखाचित्र में भाषा सांकेतिक होती है, जबकि संस्मरण में भाषा अभिधामूलक होती है।
पाठ्य – पुस्तक में संकलित रचनाएँ –
(1) रेखाचित्र – गौरा (महादेवी वर्मा)।
(2) संस्मरण – गणेश शंकर विद्यार्थी (भगवतीचरण वर्मा)।
प्रश्न 25.
गद्य काव्य किसे कहते हैं? हिन्दी के दो प्रमुख गद्य संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर–
गद्य काव्य में गद्य के माध्यम से किसी भावपूर्ण विषय की काव्यात्मक अभिव्यक्ति होती है। इसमें केवल एक ही भाव की प्रधानता होती है। इसकी भाषा – शैली अलंकृत, संवेदनात्मक, चमत्कारपूर्ण एवं कवित्वपूर्ण होती है। दो प्रमुख गद्य संग्रह हैं—
(1) ‘साधना’,
(2) ‘अन्तर्नाद’।
प्रश्न 26.
गद्य काव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
किसी अनुभूति का कलात्मक लय से गद्य में प्रस्तुत किया जाना गद्य काव्य है। गद्य काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं : भावात्मक – भावना की गहनता ही इस रचना का स्रोत है। अनुभूति की प्रबलता से प्रेरित लेखक ही सफल गद्य काव्यकार हो सकते हैं। प्रवाहपूर्णता – – गद्य काव्य में कविता की सी प्रवाहपूर्णता अपेक्षित है। यह प्रवाहात्मकता भाव तथा भाषा दोनों में ही होती है। लयात्मकता – गद्य युक्त होती है। सघनता – इसमें लेखक की तन्मयता तथा भाव सघनता के सर्वत्र दर्शन होते हैं। इसके अतिरिक्त गद्य – काव्य में व्यक्त अनुभूति विचारों से युक्त होती है।
प्रश्न 27.
यात्रा – साहित्य से आप क्या समझते हैं? किसी एक यात्रा – साहित्य लेखक तथा उसके एक यात्रा – वृत्तान्त का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर–
यात्रावृत्त में लेखक यात्रा के किसी स्थान, घटना विशेष का सजीव एवं आकर्षक वर्णन करता है। इसमें लेखक की व्यक्तिगत विशेषताएँ भी प्रतिभाषित हो जाती हैं। यात्रा सम्बन्धी साहित्य में राहुल सांस्कृत्यायन, काका कालेलकर,श्रीराम शर्मा, अज्ञेय’,धर्मवीर भारती, मोहन राकेश,विनय मोहन शर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। राहुल जी की ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ श्रेष्ठ यात्रा वृत्तान्त है।
प्रश्न 28.
रिपोर्ताज का क्या अर्थ है? हिन्दी के दो प्रमुख रिपोर्ताज लेखकों के नाम उनकी एक – एक रचना सहित लिखिए। [2010]
उत्तर–
रिपोर्ताज में किसी विषय का आँखों देखा या कानों सुना वर्णन इतने प्रभावशाली ढंग से किया जाता है कि उसकी अमिट छाप हृदय – पटल पर अंकित हो जाती है। रिपोर्ताज में तथ्य वर्णन पर बल होता है, उसमें कलात्मकता पर ध्यान नहीं दिया जाता है। रिपोर्ताज में सूचना के अतिरिक्त साहित्यिकता भी होती है। रिपोर्ताज का सम्बन्ध वर्तमान से होता है।
हिन्दी के प्रमुख रिपोर्ताज लेखकों के नाम एवं उनकी रचनाएँ –
(1) शिवदान सिंह चौहान (‘लक्ष्मीपुरा),
(2) रांगेय राघव (‘तूफानों के बीच),
(3) उपेन्द्रनाथ अश्क (रेखाएँ तथा चित्र),
(4) धर्मवीर भारती (‘युद्ध यात्रा),
(5) शमशेर बहादुर सिंह (‘प्लाट का मोचा),
(6) शिवसागर मिश्र (‘वे लड़ेंगे हजारों साल) आदि।
प्रश्न 29.
रिपोर्ताज से क्या आशय है? रिपोर्ताज की विशेषताएँ लिखिए। [2012]
उत्तर–
रिपोर्ताज में किसी विषय का आँखों देखा या कानों सुना वर्णन इतने प्रभावशाली ढंग से किया जाता है कि उसकी अमिट छाप हृदय – पटल पर अंकित हो जाती है। रिपोर्ताज में तथ्य वर्णन पर बल होता है, उसमें कलात्मकता पर ध्यान नहीं दिया जाता है। रिपोर्ताज में सूचना के अतिरिक्त साहित्यिकता भी होती है। रिपोर्ताज का सम्बन्ध वर्तमान से होता है।
हिन्दी के प्रमुख रिपोर्ताज लेखकों के नाम एवं उनकी रचनाएँ –
(1) शिवदान सिंह चौहान (‘लक्ष्मीपुरा),
(2) रांगेय राघव (‘तूफानों के बीच),
(3) उपेन्द्रनाथ अश्क (रेखाएँ तथा चित्र),
(4) धर्मवीर भारती (‘युद्ध यात्रा),
(5) शमशेर बहादुर सिंह (‘प्लाट का मोचा),
(6) शिवसागर मिश्र (‘वे लड़ेंगे हजारों साल) आदि।
रिपोर्ताज की विशेषताएँ –
(1) यह किसी घटना का वास्तविक वर्णन या विवरण होता है।
(2) घटना का विवेचन तथा विश्लेषण होता है।
(3) रिपोर्ताज में रेखाचित्र,कहानी तथा निबन्धों की भी विशेषताएँ पायी जाती हैं।
(4) सरलता,रोचकता, प्रभावपूर्णता एवं आत्मीयता के गुण पाये जाते हैं।
प्रश्न 30.
उपन्यास किसे कहते हैं? तीन प्रसिद्ध उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर–
उपन्यास शब्द का अर्थ है – ‘जीवन के निकट’। इस तरह उपन्यास मानव जीवन को निकटता से प्रस्तुत करता है। इसमें जीवन का विस्तृत रूप प्रस्तुत किया जाता है। उपन्यास के विस्तृत कथानक में अनेक पात्र, घटनाएँ आदि होती हैं। हिन्दी में यह विधा बड़ी लोकप्रिय तथा विकसित है। उपन्यास सामाजिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक आदि विविध विषयों पर लिखे जाते हैं। हिन्दी के अनेक महत्त्वपूर्ण उपन्यासों में ‘गोदान’, ‘चित्रलेखा’ तथा ‘पुनर्नवा’ तीन के नाम प्रमुख हैं।
प्रश्न 31.
हिन्दी में ‘उपन्यास सम्राट’ किसे कहा गया है? उनके दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
अथवा [2809, 14]
हिन्दी उपन्यास साहित्य के विकास में प्रेमचन्द के योगदान का निरूपण कीजिये। [2011]
उत्तर–
हिन्दी में प्रेमचन्द को ‘उपन्यास सम्राट’ कहा गया है। वास्तव में, प्रेमचन्द के अवतरण के साथ ही हिन्दी उपन्यास को सशक्त प्रतिभा का सम्बल मिला। प्रेमचन्द ने नवजात उपन्यास विधा को पूर्ण विकास तक पहुँचाया। गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन, प्रेमाश्रय, निर्मला, गबन आदि आपके उत्कृष्ट उपन्यास हैं। विषय तथा शिल्प दोनों दृष्टियों में आपने उपन्यास साहित्य को पुष्ट किया। आप यथार्थवादी लेखक हैं। राजनीति,समाज तथा मानव की समस्याओं को उभारकर उनके समाधान दिये गये हैं।
प्रश्न 32.
कहानी और उपन्यास के तीन प्रमुख अन्तर स्पष्ट कीजिए। साथ ही, दो प्रमुख कहानीकारों तथा दो उपन्यासकारों के नाम लिखिए। [2013]
अथवा
कहानी और उपन्यास में कोई चार अन्तर लिखिए। [2017]
उत्तर–
कहानी और उपन्यास में प्रमुख अन्तर –
(1) कहानी जीवन के किसी एक खण्ड का चित्रण करती है जबकि उपन्यास में सम्पूर्ण जीवन का चित्रण होता है।
(2) कहानी में एक ही कथा होती है, उपन्यास में मुख्य कथा के साथ – साथ अन्य प्रासंगिक कथाएँ जुड़ी होती हैं।
(3) कहानी में सीमित पात्र तथा घटनाएँ होती हैं जबकि उपन्यास में अनेक पात्र एवं घटनाओं का वर्णन होता है।
(4) कहानी का कथानक संक्षिप्त होता है किन्तु उपन्यास का कथानक अत्यन्त विस्तृत होता है।
दो प्रमुख कहानीकार
(1) प्रेमचन्द,
(2) जयशंकर प्रसाद।
दो प्रमुख उपन्यासकार –
(1) प्रेमचन्द,
(2) जैनेन्द्र कुमार।
प्रश्न 33.
एकांकी के चार तत्त्व लिखिए।
उत्तर–
एकांकी के चार तत्त्व
(1) कथावस्तु,
(2) पात्र – योजना,
(3) संवाद एवं
(4) अभिनेयता।
प्रश्न 34.
जीवनी और आत्मकथा में तीन अन्तर स्पष्ट करते हुए दोनों विधाओं की एक – एक रचना लिखिए। [2009]
अथवा
जीवनी और आत्मकथा में अन्तर लिखिए। [2011]
उत्तर–
(1) जीवनी में लेखक इतिहासकार की तरह पूरी सच्चाई से किसी व्यक्ति के जीवन की जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी घटनाओं के बारे में लिखता है जबकि आत्मकथा में लेखक स्वयं अपने जीवन की कथा पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है।
(2) जीवनी लेखन में लेखक तटस्थ रहकर लिखता है। आत्मकथा में लेखक अपने जीवन की घटना का वर्णन अपनी स्मरण शक्ति के आधार पर करता है।
(3) जीवनी में लेखक अपने विचार और प्रतिक्रिया नहीं दर्शाता है। आत्मकथा में लेखक अपने परिवार, समाज,आर्थिक दशा,राजनैतिक घटनाक्रम का बराबर दर्शन कराता रहता है।
जीवनी – कलम का सिपाही’ (अमृतलाल)।
आत्मकथा – ‘मेरी कहानी’ (जवाहरलाल नेहरू)।
प्रश्न 35.
आलोचना का क्या अर्थ है? हिन्दी के दो आलोचकों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर–
आलोचना विधा अथवा समीक्षा आधुनिक काल की देन है। गद्य साहित्य के क्षेत्र में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी में आलोचकों का शुभारम्भ भारतेन्दु युग से ही प्रारम्भ हो
चुका है।
(1) बालकृष्ण भट्ट,
(2) चौधरी बदरी नारायण प्रेमघन’ सुप्रसिद्ध आलोचक थे।