MP Board Class 12th Special Hindi अपठित पद्यांश
MP Board Class 12th Special Hindi अपठित पद्यांश
1. “तुम हो धरती के पुत्र न हिम्मत हारो,
श्रम की पूँजी से अपना काज सँवारो।
श्रम की सीपी में ही वैभव पलता है,
तब स्वाभिमान का दीप स्वयं ही जलता है।
मिट जाता है दैन्य स्वयं क्षण में,
छा जाती है नव दीप्ति धरा के कण में,
जागो, जागो श्रम से नाता तुम जोड़ो,
पथ चुनो काम का, आलस भाव तुम छोड़ो।”
प्रश्न
1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक लिखिए।
3. कवि ने किस पूँजी से अपने बिगड़े कार्य सँवारने की बात कही है?
4. कवि ने किस भाव को त्यागने की बात कही है?
उत्तर-
1. कवि कहता है कि जिस प्रकार से सृष्टि में परिवर्तन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भी निरन्तर परिवर्तन होता है। अतः व्यक्ति को जीवन में निराश नहीं होना चाहिये। सदैव स्वाभिमान के साथ परिश्रम करते हुए उद्यम के मार्ग को ही अपनाना चाहिए। वास्तव में उद्यम ही सुख की निधि है। श्रम वैभव का प्रवेश द्वार है इसी के कारण स्वाभिमान की भावना जागृत होती है तथा निर्धनता समाप्त हो जाती है। मानव को प्रमाद त्यागकर श्रम करना चाहिए।
2. शीर्षक-‘श्रम की महत्ता’।
3. कवि ने परिश्रम की पूँजी से अपने बिगड़े कार्य सँवारने की बात कही है।
4. कवि ने आलस्य-भाव को त्यागने की बात कही है।
2. “प्राचीन हो या नवीन छोड़ो रूढ़ियाँ जो हों बुरी,
बनकर विवेकी तुम दिखाओ हँस जैसी चातुरी।
प्राचीन बातें ही भली हैं यह विचारो अलीक है,
जैसी अवस्था हो जहाँ, तैसी व्यवस्था ठीक है।
सर्वज्ञ एक अपूर्व युग का हो रहा संचार है,
देखो दिनों दिन बढ़ रहा विज्ञान का विस्तार है।
अब तो उठो क्यों पड़ रहे हो व्यर्थ सोच विचार में,
सुख दूर जीना भी कठिन है श्रम बिना संसार में।”
प्रश्न
1. इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. इस पद्यांश का शीर्षक बताइये।
3. कवि ने किन्हें छोड़ने की बात की है?
4. सुख प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर-
1. हंस का नीर क्षीर विषय ज्ञान विश्व विख्यात है। कवि के मतानुसार मानव को प्राचीन अथवा नवीन रूढ़ियाँ जो उसकी उन्नति में बाधक हैं, उन्हें त्यागकर कल्याणकारी नीतियाँ ग्रहण करनी चाहिये तथा सड़ी-गली रूढ़ियों का मोह त्याग देना चाहिये।
2. शीर्षक प्रगतिशील दृष्टिकोण’।
3. कवि ने बुरी रूढ़ियों को छोड़ने की बात की है।
4. सुख प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम आवश्यक है।
अभ्यासार्थ पद्यांश
“अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरु शिखा मनोहर
छिटका जीवन-हरियाली पर-मंगल कुंकुम-सारा
अरुण यह मधुमय देश हमारा।”
प्रश्न
1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक लिखिए।
3. अपने देश को क्या कहा गया है?
4. देश के सौन्दर्य का वर्णन दो वाक्यों में कीजिए।