MP Board Class 12th Special Hindi अपठित गद्यांश

अपठित का अर्थ है,जो पहले पढ़ा हुआ नहीं हो। इसके द्वारा छात्रों की बौद्धिक क्षमता तथा पाठ्यक्रम के अतिरिक्त उनके पठन-पाठन का पता चलता है। भाषा को पढ़कर समझना तथा उसके भावार्थ को ग्रहण कर संक्षेप में लिखना,वह अंश किस विषय का वर्णन करता है, यह समझना ही अपठित का उद्देश्य है। जिस छात्र का भाषा-ज्ञान जितना परिपक्व होगा, वह अपठित गद्यांश को उतनी ही सरलता से ग्रहण कर उत्तर लिख सकेगा।

अपठित गद्यांश हल करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :

  1. मूल अवतरण को बड़ी एकाग्रता से पूरा पढ़ लेना चाहिए। तीन-चार बार पढ़ने से उसका भाव स्वत: ही समझ में आ जाता है।
  2. मूल भाव से शीर्षक का पता चल जाता है कि गद्यांश किस विषय पर लिखा गया है। अत: उसे अलग से लिख लेना चाहिए।
  3. दिये गये प्रश्नों के उत्तर भी उसी गद्यांश में निहित होते हैं। उसे पढ़कर अपनी भाषा में उत्तर देना चाहिए।
  4. गद्यांश का एक-तिहाई सारांश देना चाहिए। संक्षेप में सभी मुख्य बातें आ जायें।
  5. लिखते समय वर्तनी की शुद्धता पर भी ध्यान देना चाहिए।
  6. शीर्षक सरल,संक्षिप्त और सारगर्भित होना चाहिए।

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MP Board Class 12th Special Hindi अपठित गद्यांश

नारी सृष्टि का आधार है। नारी के बिना संसार की हर रचना अपूर्ण तथा रंगतहीन है। वह मृदु होते हुए भी कठोर है, उसमें पृथ्वी जैसी सहनशीलता, सूर्य जैसा ओज तथा सागर जैसा गाम्भीर्य एक साथ दृष्टिगोचर होता है। नारी के अनेक रूप हैं, वह समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता, जहाँ नारी को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। नर और नारी गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। इन दोनों के तालमेल से ही गृहस्थी का रथ सुचारु रूप से गतिमान रहता है।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
3. सृष्टि का आधार किसे कहा गया है?
4. गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहियों में से एक नर है, दूसरा कौन है?
उत्तर-
1. शीर्षक नारी की महत्ता।
2. सारांश-नारी सृष्टि का मूल आधार है। उसके अभाव में संसार की प्रत्येक रचना अधूरी है। वह कोमल होते हुए भी कठोर है। उसके मन-मानस में सूर्य के समान तेज है तथा सागर जैसी गम्भीरता है। पुरुष एवं नारी के तालमेल के बिना गृहस्थी का रथ भली प्रकार संचालित नहीं हो सकता।
3. सृष्टि का आधार नारी को कहा गया है।
4. गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहियों में से एक नर है तथा दूसरा नारी है।

2. संस्कार ही शिक्षा है। शिक्षा इंसान को इंसान बनाती है। आज के भौतिकवादी युग में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य सुख पाना रह गया है। अंग्रेजों ने इस देश में अपना शासन व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए ऐसी शिक्षा को उपयुक्त समझा, किन्तु यह विचारधारा हमारी मान्यता की विपरीत है। आज की शिक्षा प्रणाली एकाकी है, इसमें व्यावहारिकता का अभाव है, श्रम के प्रति निष्ठा नहीं है। प्राचीन शिक्षा प्रणाली में आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जीवन की प्रधानता थी। यह शिक्षा केवल नौकरी के लिए नहीं, जीवन को सही दिशा प्रदान करने के लिए थी। अत: आज के परिवेश में यह आवश्यक हो गया है कि इन दोषों को दूर किया जाय अन्यथा यह दोष सुरसा के समान हमारे सामाजिक जीवन को निगल जायेगा।। [2009]

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
3. अंग्रेजी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
1. शीर्षक-शिक्षा का उद्देश्य।
2. सारांश-श्रम के प्रति निष्ठा,नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था तथा जीवन को व्यावहारिक बनाना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है। अंग्रेजी शासनकाल में भौतिक सुख की प्राप्ति ही शिक्षा का उद्देश्य समझा जाने लगा। इससे शिक्षा में अनेक दोष पैदा हो गये। आज इन दोषों को दूर कर उसमें आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जीवन का समन्वय करना होगा।
3. अंग्रेजी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य नौकरी प्राप्त करना एवं सुख पाना है।

3. अपनी ही भाषा के अध्ययन पर विशेष जोर देने के कारण कुछ लोग समझते हैं कि मैं विदेशी भाषाएँ सीखने के विरुद्ध हूँ। मेरा यह मतलब कदापि नहीं है कि विदेशी भाषाएँ सीखनी ही नहीं चाहिए। अपनी आवश्यकता, रुचि की अनुकूलता, अध्ययन के अवसर और अन्य आवश्यक कार्यों में आवश्यक होने पर हमें एक नहीं, अनेक भाषाएँ सीखकर ज्ञान अर्जित करना चाहिए। द्वेष किसी भाषा से नहीं करना चाहिए। ज्ञान किसी भी भाषा में मिलता हो उसे ग्रहण करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। विदेशी भाषा सीखने के बारे में संकीर्ण मनोवृत्ति और संकुचित दृष्टिकोण रखने वाली जातियाँ कुएँ में मेंढक के समान अल्पज्ञ रह जाती हैं।

प्रश्न
1. किसी भाषा से द्वेष क्यों नहीं करना चाहिए?
2. संकीर्ण मनोवृत्ति वालों की उपमा किससे दी है?
3. उपर्युक्त गद्यांश का एक उचित शीर्षक लिखिए।
4. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
1. किसी भी भाषा से द्वेष इसलिए नहीं करना चाहिए कि ज्ञान किसी भी भाषा में मिले उसे ग्रहण करना चाहिए।
2. संकीर्ण मनोवृत्ति वाले तो कुएँ में मेंढक के समान होते हैं।
3. शीर्षक-‘विविध भाषाओं का ज्ञान’।
4. सारांश-अपनी भाषा सीखना आवश्यक है। लेकिन अन्य भाषाओं से द्वेष नहीं रखना चाहिए अपितु उन्हें सीखने की कोशिश करनी चाहिए। अन्य भाषाओं के प्रति द्वेष एवं संकीर्ण भाव रखने वाला व्यक्ति कुएँ में मेंढक के समान अल्पज्ञ रह जाता है।

4. कर्मठता लक्ष्य की निश्चितता, उत्कृष्ट अभिलाषा एवं सतत् प्रयत्न के समन्वित स्वरूप का नाम है। कोरा श्रमसाध्य नहीं, यह तो बालकों के खेल और पशुओं की दौड़ में भी होता है। सही श्रम तो वही है जो कुछ ठोस परिणाम देता है। मेरी दृष्टि से यही कर्मठता है। जिस देश में कर्मठजनों का जितना प्रतिशत होता है, वह देश तदनुकूल ही प्रगति अथवा अवनति करता है। अतः शिक्षण का सही उद्देश्य देश में ऐसे कर्मठजनों का निर्माण एवं उत्तरोत्तर उनका प्रतिशत बढ़ाना है। [2014]

प्रश्न
1. सही श्रम किसे कहते हैं?
2. शिक्षण का सही उद्देश्य बताइए।
3. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
4. उपर्युक्त गद्यांश का एक उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर-
1. सही श्रम वह है जो कुछ वांछित परिणाम दे।
2. शिक्षण का सही उद्देश्य कर्त्तव्यपरायण मानवों का निर्माण है।
3. सारांश-सोद्देश्य श्रम ही कर्मठता है। कर्मठ व्यक्तियों से ही देश प्रगति करता है, अतः सही शिक्षण द्वारा व्यक्तियों को कर्मठ बनाना आवश्यक है।
4. शीर्षक-शिक्षा का उद्देश्य।

5. पर्यावरण प्रदूषण परमात्माकृत नहीं, अपितु मानवकृत है जो उसने प्रगति के नाम पर किये गये आविष्कारों द्वारा निर्मित किया है। आज जल, वायु सभी कुछ प्रदूषित हो चुका है। शोर, धुआँ, अवांछनीय गैसों का मिश्रण एक गम्भीर समस्या बन चुका है। यह सम्पूर्ण मानवता के लिए एक खुली चुनौती है और एक समस्या है जो सम्पूर्ण मानवता के जीवन और मरण से सम्बन्धित है। इसके समक्ष मानवता बौनी बन चुकी है। [2010]

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
3. प्रदूषण किसके कारण निर्मित है?
उत्तर-
1. शीर्षक-पर्यावरण प्रदूषण की समस्या।
2. सारांश-पर्यावरण को मानव द्वारा प्रदूषित किया गया है और वही उसके बुरे परिणाम भी भुगत रहा है। यह समस्या इतनी बढ़ गयी है कि अब इससे निकल पाना अत्यधिक कठिन हो गया है। यह विनाश की ओर ले जा रही है।
3. प्रदूषण मानव के नित नये आविष्कारों के कारण निर्मित है।

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6. साहित्य मानव समाज का सर्वोत्तम फल है। समाज एवं परिस्थितियाँ ही साहित्यकार के व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। साहित्यकार की अनुभूति समाज एवं परिस्थितियों की देन होती है। ज्ञान-राशि के संचित कोष का नाम ही साहित्य है। साहित्य और समाज अन्योन्याश्रित है। साहित्य समाज का दर्पण है। मनुष्य जिस वातावरण में रहता है, उसका प्रभाव भी उस पर पड़ता है। समाज की ओर से आँखें मूंदकर साहित्यकार नहीं चल सकता। साहित्य समाज का दर्पण होने के नाते समयुगीन-परिस्थितियों का चित्र भी प्रतिबिम्बित करता है। साहित्यकार का कर्तव्य है कि वह अपने देशकाल एवं परिस्थितियों का सच्चा चित्र प्रस्तुत कर उसमें कल्पना का इन्द्रधनुषी रंग भर दे।

प्रश्न
1. साहित्य किसे कहते हैं?
2. साहित्यकार का क्या कर्त्तव्य है?
3. उपर्युक्त गद्यांश का एक उचित शीर्षक लिखिए।
4. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
1. ज्ञान राशि के संचित कोष को साहित्य कहते हैं।
2. साहित्यकार का कर्तव्य है कि वह देशकाल एवं परिस्थिति का सच्चा एवं यथार्थ चित्र प्रस्तुत करे परन्तु साथ ही कल्पना का सतरंगी ताना-बाना भी बुने।
3. शीर्षक साहित्य और समाज।
4. सारांश-साहित्य और समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाज तथा समय की परिस्थितियाँ साहित्यकार को प्रभावित करती हैं, साहित्यकार उनकी अपेक्षा नहीं कर सकता। इसलिए साहित्यकार का यह दायित्व है कि वह अपने युग का वास्तविक वर्णन अपनी कल्पना के साथ करे।

7. अहिंसा भी सत्य का पूरक रूप है। अहिंसा में दूसरे के अधिकारों की, विशेषकर जीवधारियों की स्वीकृति रहती है। अहिंसा मन, वचन और कर्म तीनों से होती है। अहिंसा के पीछे ‘जिओ और जीने दो’ का सिद्धान्त कार्य करता है। जहाँ अहिंसा का मान नहीं, वहाँ मानवता नहीं। अहिंसा मानवता का पर्याय है। मनुष्य को उस जीवन को छीनने का कोई अधिकार नहीं, जिसको वह दे नहीं सकता। हिंसा केवल जान लेने में नहीं, वरन दूसरों के स्वत्वों और स्वाभिमान को आघात पहुँचाने में भी होती है। [2012]

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
2. अहिंसा किस सिद्धान्त पर कार्य करती है?
3. मानवता का पर्याय किसे कहा गया है?
4. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
1. शीर्षक-अहिंसा का अर्थ।
2. अहिंसा के पीछे ‘जिओ और जीने दो’ का सिद्धान्त कार्य करता है।
3. मानवता का पर्याय अहिंसा को कहा गया है।
4. सारांश-अहिंसा सत्य का पूरक है। अहिंसा मन,वचन और कर्म से तथा जिओ और जीने दो’ के सिद्धान्त पर कार्य करती है। दूसरों के अधिकारों तथा स्वाभिमान को चोट पहुँचाना भी हिंसा है।

8. किसी भी काल का समाज साहित्य के प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। समाज को अपनी आवश्यकताओं की पर्ति के लिए साहित्य पर आश्रित रहना पड़ता है। शाश्वत साहित्य समाज के स्वरूप में परिवर्तन कर देता है। साहित्य में जो शक्ति छिपी है वह तोप, तलवार और बम के गोले में नहीं पायी जाती।

हिन्दी साहित्य के वीरगाथा काल का वातावरण युद्ध और अशान्ति का था। वीरता प्रदर्शन ही जीवन का महत्त्व था। युद्ध अधिकतर विवाहों के पीछे होते थे। इसकी प्रधान प्रकृति वीर और श्रृंगार की है इसलिए इस साहित्य की रचना हुई। भक्तिकाल के आते-आते विदेशियों का शासन स्थापित हो गया था। निराशा के वातावरण में हिन्दू जनता को भक्ति आन्दोलन की सशक्त लहरी ने जीवनदायिनी शीतलता प्रदान की। इस समय की साहित्यधारा ज्ञान और प्रेम के रूप में प्रवाहित हुई। रीतिकाल तक सम्पूर्ण भारत पर यवनों का शासन स्थापित हो गया था। काव्य का सृजन राजाश्रय में हो रहा था। कवि नारी के अंगों का मादक चित्रण करने में लगे थे। आधुनिक युग के आगमन के साथ ही भारतीय समाज पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव पड़ा। नवजागृति से प्रेरित होकर साहित्य की धारा शृंगारादि से निकलकर राष्ट्रीयता और समाज-सुधार की ओर चल पड़ी।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
2. इस गद्यांश का एक उचित शीर्षक दीजिए।
3. कौन-सा साहित्य समाज के लिए हितकारी है?
4. भक्ति-आन्दोलन का जन्म क्यों हुआ?
उत्तर-
1. सारांश-साहित्य और समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध है। साहित्य अपने समय के समाज पर अपना प्रभाव डाल कर उसके रूप में परिवर्तन करता है। समाज अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साहित्य पर निर्भर रहता है। इसलिए साहित्य को अत्यन्त शक्तिशाली एवं प्रभावोत्पादक माना जाता है।
2. शीर्षक-साहित्य और समाज।
3. शाश्वत साहित्य समाज के लिए हितकारी होता है, क्योंकि वह समाज के स्वरूप में समयानुकूल परिवर्तन करता है।
4. निराशा में निमग्न हिन्दू जनता में जीवनदायिनी आशा का संचार करने के लिए भक्ति-आन्दोलन का जन्म हुआ।

9. बढ़ती हुई आबादी की समस्या मानव की न्यूनतम आवश्यकताओं-रोटी, कपड़ा और मकान की कमी उत्पन्न करेगी, जीवन स्तर को गिराएगी, देश में हो रहे विकास कार्यों का लाभ जन-जन तक पहुँचाने में रोड़ा अटकायेगी, राष्ट्र की प्रगति पर प्रश्नचिह्न लगायेगी तथा असामाजिक तत्वों का निर्माण कर जीवन-मूल्यों का गला घोंट देगी। भारत को इन समस्त समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या चट्टान बनकर सामने खड़ी है।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
3. मानव की मूलभूत आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
4. भारत की प्रमुख समस्या क्या है?
उत्तर-
1. शीर्षक-जनसंख्या वृद्धि से हानियाँ।
2. सारांश-जनसंख्या वृद्धि से देश में समस्याएँ बढ़ेगी। इससे रोटी, कपड़ा और मकान की मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति में कमी होगी, देश के विकास कार्यों में बाधा पहुँचेगी, असामाजिक तत्त्व पनपेंगे तथा जीवन मूल्यों का ह्रास होगा।
3. मानव की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं-रोटी, कपड़ा और मकान।
4. भारत की एक बड़ी एवं प्रमुख समस्या बढ़ती हुई आबादी है।

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10. वर्तमान युग संघर्ष और प्रतिस्पर्धा का है। मानव जीवन में सुख और सन्तोष में जो गिरावट आयी है उससे परस्पर मानव व्यवहारों में असन्तुलन दिखायी देता है। जीवन-स्तर को उन्नत करने के लिए प्रतिस्पर्धी हो रही है। नैतिक और सामाजिक मूल्य पतित हो रहे हैं। भोजन, वस्त्र, आवास जैसी बुनियादी सुविधाएँ दूभर हो रही हैं। व्यक्ति अपने स्वार्थ की सीमाओं में ही कैद हो गया है।

प्रश्न
1. उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
2. सारांश लिखिए।
3. वर्तमान युग में किस प्रकार का संघर्ष है?
4. वर्तमान युग में किन मूल्यों के पतित होने की बात कही गयी है?
उत्तर-
1. शीर्षक-संघर्ष एवं प्रतिस्पर्धा।
2. सारांश-आज का मानव प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष से बुरी तरह ग्रस्त है। नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। बुनियादी समस्याएँ गूलर का फूल हो गई हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ सब पर हावी है।
3. वर्तमान युग में जीवन-स्तर को अधिकाधिक उन्नत करने का संघर्ष अवलोकनीय है।
4. वर्तमान युग में नैतिक और सामाजिक मूल्यों के पतित होने की बात कही गयी है।

11. राष्ट्रीय चरित्र का विकास ही प्रजातन्त्र का आधार है। किसी भी राष्ट्र की नींव उसके राष्ट्रवासियों के चरित्र पर आधारित है। जिस राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र जितना महान होगा उसका भविष्य भी उतना ही महान होगा। प्रजातन्त्र के क्रियान्वयन में राष्ट्र के चरित्र की रक्षा आवश्यक है। चरित्र से नैतिकता का विकास होता है और नैतिकता प्रजातन्त्र की रक्षा कर उसे सफल बनाती है। राष्ट्रीय चरित्र से राष्ट्र के गौरव में वृद्धि होती है। यही कारण है कि भारत अपने राष्ट्रीय चरित्र के नाम पर विश्व के समक्ष अपना मस्तक ऊंचा किये हुए है। [2013]

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिये।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिये।
3. राष्ट्रीय चरित्र के विकास को किसका आधार कहा गया है?
4. चरित्र से किसका विकास होता है?
उत्तर-
1. शीर्षक राष्ट्रीय चरित्र की उपादेयता।
2. सारांश-राष्टवासियों के चरित्र पर राष्ट की आधारशिला अवलम्बित होती है। उज्ज्वल चरित्र स्वर्णिम भविष्य का नियामक है। चरित्र से नैतिकता एवं मानव मूल्यों की वृद्धि होती है। राष्ट्रीय चरित्र के बलबूते पर ही आज भारत विश्व रंगमंच पर अपना गौरवपूर्ण स्थान रखता है।
3. राष्ट्रीय चरित्र के विकास को प्रजातन्त्र का आधार कहा गया है।
4. चरित्र से नैतिकता का विकास होता है।

12. देश की उन्नति के लिए हम अपने व्यवहार में ईमानदारी और सच्चाई का आदर्श उपस्थित करें। हमें अपने वायदे के पक्के और अपनी जबान के सच्चे बनना चाहिये जिससे कि कोई हम पर उँगली न उठा सके। जिस माल का भाव करें, वही माल दें। ऐसी बातों से देश की साख बढ़ती है। हम अपने वैयक्तिक लाभ की ओर ध्यान न देकर देश की साख पर विचार करें। हमें चाहिए कि अपने को लोभ और लालच से बचायें। विशेषकर उन कार्यों में जहाँ देश के हित का सीधा सम्बन्ध हो। बहुत-से लोग व्यक्तिगत लाभ के लिए देश के हित की परवाह नहीं करते हैं। इस सम्बन्ध में ‘मॉडर्न रिव्यू के सम्पादक श्री रामानन्द चटर्जी ने बड़ा ऊंचा आदर्श स्थापित किया था। वे पहले महायुद्ध के बाद ‘लीग ऑफ नेशन्स’ के अधिवेशन में गये थे। वहाँ उनको आठ हजार रुपये मार्ग व्यय के रूप में भेंट किये गये; किन्तु उन्होंने केवल इसलिए स्वीकार नहीं किये कि उनके स्वीकार कर लेने पर वे उसके सम्बन्ध में स्वतन्त्र और निर्भीक आलोचना न कर सकेंगे। ऐसी बातों से देश का नैतिक नाम बढ़ता है।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
2. सारांश लिखिये।
3. ‘मार्डन रिव्यू’ के सम्पादक कौन थे?
4. व्यक्तिगत लाभ तथा देश हित में से क्या सर्वोपरि है?
उत्तर-
1. शीर्षक–व्यवहार में ईमानदारी’।
2. सारांश हमारे देश की उन्नति तभी होगी जब यहाँ के नागरिक ईमानदार और सच्चे व्यवहार वाले होंगे। लोभ और स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के सम्मान और गौरव की रक्षा के काम करेंगे। श्री रामानन्द चटर्जी का उदाहरण यहाँ के प्रत्येक नागरिक के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है। मनुष्य के चरित्र को बल मिलता है। नैतिक रूप से उत्थान प्राप्त व्यक्ति सर्वत्र सफल और विजयी होता है।
3. ‘मॉर्डन रिव्यू’ के सम्पादक श्री रामानन्द चटर्जी थे।
4. व्यक्तिगत लाभ तथा देश हित में से निश्चित ही देश हित सर्वोपरि है।

13. धन का व्यय विलास में करने से केवल क्षणिक आनन्द की प्राप्ति होती है यह धन का दुरुपयोग है किन्तु धन का सदुपयोग सुख और शान्ति देता है। धन के द्वारा जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य हो सकता है वह है परोपकार। भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र, रोगियों को दवा, अनाथों को घर द्वार, लूले-लंगड़ों और अपाहिजों के लिए आराम के साधन, विद्यार्थियों के लिए पाठशालाएँ इत्यादि वस्तुएँ धन के द्वारा जुटाई जा सकती हैं। धन रहने के कारण एक अमीर आदमी को लोगों की भलाई करने के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं, जो कि एक गरीब आदमी को उपलब्ध नहीं हैं चाहे वह इसके लिए कितना ही इच्छुक क्यों न हो, पर संसार में ऐसे आदमी बहुत ही कम हैं जो अपना भोग-विलास त्यागकर अपने धन को परोपकार में लगाते हैं।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
3. धन के सदुपयोग से क्या प्राप्त होता है?
4. धन द्वारा किया जा सकने वाला कोई एक महत्वपूर्ण कार्य बताइए।
उत्तर-
1. शीर्षक-‘धन का सदुपयोग।।
2. सारांश-धन का व्यय यदि विलास कार्य के लिए किया जाता है तो इससे तो क्षणभर का आनन्द प्राप्त होता है। इससे धन का दुरुपयोग होता है। धन का सदुपयोग तो वह है जो भूखे-नंगों,गरीब और अनाथों, अपाहिजों और विद्यार्थियों के कल्याण के लिए व्यय करके किया जाता है। किन्तु संसार में ऐसे धनवान कम हैं जो धन का उपयोग स्वयं के भोग-विलास के लिए – न करके पर-कल्याण के लिए करते हैं।
3. धन के सदुपयोग से सुख और शान्ति प्राप्त होती है।
4. धन के द्वारा जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य हो सकता है, वह है-—’परोपकार’।

14. सर्वोत्तम कविता की यह पहचान है कि उसके पढ़ने या सुनने से पाठक या श्रोता का मन कवि के भाव में लीन हो जाता है। कवि के हृदय का भाव पाठक या श्रोता के हृदय का भाव बन जाता है। जिस कवि में अपने हृदय के भाव को यथार्थ रूप में पाठक या श्रोता के हृदय में पहुँचाने की जितनी अधिक प्रतिभा होती है, उसकी कविता उतनी ही अधिक प्रभाव तथा रसमग्न करने वाली होती है। ऐसे ही कवियों की कविता का सदैव आदर होता है। [2009]

प्रश्न
1. उपर्यक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
3. कैसे कवियों की कविता का सदैव आदर होता है?
उत्तर-
1. शीर्षक-‘सर्वोत्तम कविता’।
2. सारांश-सबसे अधिक प्रभावशाली कविता वह है जिसे सुनने अथवा पढ़ने मात्र से उसके सुनने अथवा पढ़ने वाले के मन पर गहरा असर पड़े। उस कविता में व्यक्त किये गये कवि के मन के भाव श्रोता को स्वयं के ही मन के भाव प्रतीत हों। वास्तव में, जिस कवि में अपनी बात अथवा भाव को कविता के माध्यम से सम्प्रेषित करने का अद्भुत कौशल होता है,वह कवि महान बन जाता है और उसकी रचनाओं को लोग लम्बे समय तक आदर के साथ याद रखते हैं।
3. जिस कवि में अपने हृदय के भाव को यथार्थ रूप में पाठक या श्रोता के हृदय में पहुँचाने की जितनी अधिक प्रतिभा होती है, उसकी कविता उतनी ही अधिक प्रभाव तथा रसमग्न करने वाली होती है। ऐसे ही कवियों की कविता का सदैव आदर होता है।

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15. ज्ञान राशि के संचित कोष का ही नाम साहित्य है। प्रत्येक भाषा का अपना साहित्य होता है। जिस भाषा का अपना साहित्य नहीं होता है, वह रूपवती भिखारिणी के समान कदापि आदरणीय नहीं हो सकती। भाषा की शोभा, उसकी श्री सम्पन्नता उसके साहित्य पर ही निर्भर करती है। साहित्य में जो शक्ति छिपी रहती है वह तोप, तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पायी जाती। साहित्य सर्वशक्तिमान होता है। अत: सक्षम होकर भी जो व्यक्ति ऐसे साहित्य की सेवा और अभिवृद्धि नहीं करता वह आत्महन्ता, समाजद्रोही और देशद्रोही है। साहित्य समाज का सर्वोत्तम फल है। इसका निर्माण और रसास्वादन करना हम सभी का परम दायित्व है। [2003, 04, 11]

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
2. गद्यांश का सारांश लिखिए।
3. साहित्य किसे कहते हैं?
उत्तर-
1. उचित शीर्षक-साहित्य।
2. सारांश-वही भाषा सर्वोत्तम एवं आदर्श मानी जाती है, जिसका खुद का साहित्य होता है। तोप-तलवार तथा बम भी साहित्य की शक्ति के सामने तुच्छ हैं। साहित्य समाज का वह सर्वोत्तम मीठा फल है जिसका रसास्वादन जीवनदायक होता है। साहित्य में समाज के लिए संजीवनी व्याप्त होती है।
3. ज्ञानराशि के संचित कोष का नाम ही साहित्य है। साहित्य में सबका हित निहित है। समाज को सत्साहस से भरने की सर्वश्रेष्ठ अपराजेय शक्ति साहित्य में होती है।

16. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिचित तो बहुत होते हैं, पर मित्र बहुत कम हो पाते हैं, क्योंकि मैत्री एक ऐसा भाव है, जिसमें प्रेम के साथ समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है। मैत्री में सबसे आवश्यक है-परस्पर विश्वास। मित्र एक ऐसा सखा, गुरु तथा माता है जो सबके स्थानों को पूर्ण करता है। [2007, 15]

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
2. मनुष्य एक कैसा प्राणी है?
3. समाज से अलग किसके अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती?
4. मित्र किस-किस के स्थानों की पूर्ति करता है?
5. मित्रता के लिए किस बात की आवश्यकता होती है?
उत्तर-
1. शीर्षक ‘सच्चा मित्र’।
2. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
3. समाज से अलग मनुष्य के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
4. एक सच्चा मित्र सखा, गुरु तथा माता,सभी के स्थानों की पूर्ति करता है।
5. मित्रता के लिए प्रेम के साथ-साथ समर्पण तथा त्याग की भावना की बहुत आवश्यकता होती है।

17. सफलता प्राप्ति का मूल मन्त्र है-अपने समय का सदुपयोग करना। सदुपयोग का अर्थ है-सही उपयोग। कार्य को समझ कर तुरन्त कार्य में लग जाना। जीवन में अनेक दबाव आते हैं, अनेक व्यस्तताएँ आती हैं। व्यस्तताओं से अधिक मन को आलस्य घेरता है। जो व्यक्ति व्यस्तताओं का बहाना बनाकर या आलस्य में घिरकर शुभ कार्यों को टाल देता है, उसकी सफलता भी टल जाती है। इसके विपरीत जो व्यक्ति सोच-समझकर योजनापूर्वक शुभ कार्यों की ओर निरन्तर कदम बढ़ाता चलता है, एक न एक दिन सफलता उसके चरण चूम लेती है। आज के काम को कल पर टालने की प्रवृत्ति सबसे घातक है। इस प्रवृत्ति के कारण मन में असन्तोष बना रहता है,अनेक कामों का बोझ बना रहता है और काम को टालने की ऐसी आदत बन जाती है कि शुभ कार्य करने की घड़ी आती ही नहीं। [2016]

प्रश्न
1. सफलता प्राप्ति का मूल मन्त्र क्या है?
2. मनुष्य की सफलता क्यों टल जाती है?
3. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
4. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
1. सफलता प्राप्ति का मूल मन्त्र है-अपने समय का सदुपयोग करना।
2. जो व्यक्ति व्यस्तताओं का बहाना बनाकर या आलस्य में घिरकर शुभ कार्यों को टाल देता है,उसकी सफलता भी टल जाती है।
3. शीर्षक ‘समय का सदुपयोग।
4. सारांश व्यक्ति के जीवन में समय का बहुत महत्व है। साथ ही, मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कोई और नहीं उसका स्वयं का आलस्य है। यदि व्यक्ति आलस्य का त्याग करके अपने समय का सदुपयोग करता है तो उसकी सफलता सुनिश्चित है। अंग्रेजी की एक कहावत ‘DO IT NOW’ की तर्ज पर हमें भी आज के काम को आज ही निबटाने का प्रयास करना चाहिए। आलस्य के वशीभूत हो कार्यों को टालने की आदत अत्यन्त घातक है।

18. भारतीय संस्कृति में पर्यों का अत्यधिक महत्त्व है। पर्व किसी भी संस्कृति के वह अंग हैं, जिनके बिना वह संस्कृति अधूरी रह जाती है। पर्व हमें ऐसा अवकाश प्रदान करते हैं कि जब हम अपने जीवन के विषय में अच्छा सोच सकते हैं। जीवन प्रवाह को सही दिशा देने वाले पर्व ही होते हैं। जीवन व्यवहार की समस्त कटुताएँ भी पर्व के द्वारा ही समाप्त हो सकती हैं। पर्व जीवन में ऊर्जा उद्दीप्त करते हैं, रिश्तों में मधुर रस घोलते हैं,प्रेम और करुणा की सद्भावना जीवन में नियोजित करते हैं, ज्ञान, आचरण, विश्वास को परिमार्जित करने का प्रयास करते हैं अतः सभी धार्मिक, राष्ट्रीय पर्यों को उल्लास के साथ मर्यादा में रहकर मनाना चाहिए। [2017]

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
2. जीवन प्रवाह को सही दिशा कौन देता है?
3. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
1. शीर्षक-‘पर्वो का महत्व।
2. जीवन प्रवाह को सही दिशा पर्व देते हैं।
3. सारांश-भारतीय संस्कृति में पर्वो को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है। पर्व हमें जिन्दगी की भाग-दौड़ के बीच फुरसत के कुछ ऐसे पल प्रदान करते हैं जब हम रुककर अपने विषय में सोच सकते हैं। पर्व ही जीवन-प्रवाह को सही दिशा देते हैं। इनसे व्यवहार में अनायास प्रविष्ट हुई कटुताएँ समाप्त हो जाती हैं। ये जीवन में नई ऊर्जा, स्फूर्ति,प्रेम,करुणा और परस्पर सम्बन्धों के मध्य मधुरता का रस घोलते हैं। पर्व ही तो हैं जो जीवन में ज्ञान,धर्म,संस्कृति आचरण और विश्वास को संबल प्रदान करते हैं। अतः सभी को विभिन्न पर्वो को उल्लासपूर्वक सादगी के साथ मनाना चाहिए।

अभ्यासार्थ गद्यांश

1. विज्ञान के द्वारा जीवन में विशाल परिवर्तन हुए हैं, यद्यपि वे सभी मानव जाति के लिए कल्याणकारी सिद्ध नहीं हुए हैं, किन्तु उन परिवर्तनों में सबसे मुख्य और आशाप्रद परिवर्तन है वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास। विज्ञान के प्रभाव से मनुष्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रयोग करना भूल जाते हैं। केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही मनुष्य जाति को कुछ आशा हो सकती है और उसके द्वारा ही क्लेशों का अन्त हो सकता है। संसार में परस्पर विरोधी शक्तियों के संघर्ष चल रहे हैं। उनका विश्लेषण किया जाता है और उन्हें भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है, लेकिन जो वास्तविक और प्रधान संघर्ष है, वह वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक दृष्टिकोण का ही संघर्ष है।

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प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
2. गद्यांश का सारांश लिखिए।
3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास किसकी देन है?
4. मनुष्य जाति को सर्वाधिक आशाएँ किससे हैं?

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