MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 6 तात्या टोपे (एकांकी, डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’)
तात्या टोपे अभ्यास
तात्या टोपे अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेजर मीड ने तात्या टोपे को पकड़ने के लिए क्या सुझाव दिया?
उत्तर:
मेजर मीड ने नेपियर को तात्या टोपे को पकड़ने के लिए सुझाव दिया कि “हमें अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि करनी होगी।”
प्रश्न 2.
एकांकी में तात्या की वाणी का क्या प्रभाव बताया गया है?
उत्तर:
एकांकी में बताया गया है कि तात्या की वाणी में महान शक्ति है। वह जहाँ बोलता है,क्रान्ति की आग फूंक देता है।
प्रश्न 3.
तात्या नरवर के राजा मानसिंह के संरक्षण में क्यों आये?
उत्तर:
मानसिंह तात्या के विश्वसनीय मित्र थे,एक वर्ष से दौड़ते-दौड़ते थक गये थे तथा उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ चुका था। इस कारण वे मानसिंह के संरक्षण में आये।
प्रश्न 4.
तात्या को किस गुप्त स्थान पर रखा गया था? (2010)
उत्तर:
तात्या को पाडौन के जंगल में एक गुप्त स्थान पर रखा गया था।
तात्या टोपे लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मीड के शब्दों में तात्या टोपे के युद्ध-कौशल का वर्णन कीजिये?
उत्तर:
मीड ने कहा था-तात्या टोपे में कमाल का हुनर है। वह अपने में असीम है। उसमें जादू की-सी करामात है। उसके पास हजारों सैनिक हैं, भयंकर तोपें और शस्त्र हैं,शत्रु के सामने आने से भी नहीं चूकता। उसकी वाणी क्रान्ति की आग फैंक देती है। शारीरिक शक्ति और बुद्धि से भी वह अपराजेय है। उसकी सैन्य-संचालन शक्ति आश्चर्य में डाल देती है। उसमें बिजली की सी फुर्ती है।
प्रश्न 2.
राज-महिलाओं को किस प्रकार बन्धक बनाया गया?
उत्तर:
मानसिंह के एक सगे सम्बन्धी नारायण देव ने विश्वासघात किया। जिस समय मेजर मीड मानसिंह के पास आये थे,नारायण देव मे महल में घुसकर प्रहरियों को हटा दिया तथा सरकारी सैनिक वेश बदलकर तैनात कर दिये गये। मेजर मीड के दरबार से निकलते ही गुप्तचरों को इशारा किया गया। पलक झपकते ही सैकड़ों सैनिक महल में घुस गये। मानसिंह के सैनिकों के पहुंचने से पहले महल खाली हो चुका था। इस प्रकार राज-महिलाओं को बन्धक बनाया गया।
प्रश्न 3.
विक्रमसिंह ने तात्या को संरक्षण में सुरक्षित रखने के लिए किस प्रकार की व्यवस्था की थी?
उत्तर:
विक्रमसिंह ने पाडौन के जंगल में एक गुप्त स्थान पर तात्या टोपे के निवास की व्यवस्था की थी तथा सुरक्षा के लिए गुप्तचर और सैनिक भी नियुक्त कर दिये थे। सरकार की पकड़ से सुरक्षित रखने के लिए पाडौन के जंगल में पर्याप्त सैनिक पहुँचा दिये थे। विक्रमसिंह स्वयं भी उनकी रक्षा के लिए प्रयत्नशील थे।
प्रश्न 4.
तात्या को सौंपने के लिए मीड ने मानसिंह को कौन-कौन से प्रलोभन दिये?
उत्तर:
तात्या को सरकार को सौंपने के लिए समझाते हुए मेजर मीड ने कहा, “मानसिंह जी, कोरी भावुकता में मत बहिए। मैं आपके हित में कह रहा हूँ, तात्या को मेरे हवाले कर दीजिये। इससे सरकार आपको बहुत-सा पारितोषिक देगी। राजकर से आप मुक्त कर दिये जायेंगे, आपका राज्य भी एक स्वतन्त्र स्थायी राज्य बना दिया जायेगा।” इस प्रकार, जनरल मीड द्वारा मानसिंह को अनेक प्रलोभन दिये गये।
प्रश्न 5.
राज-महिलाओं को छुड़ाने के लिए, विक्रमसिंह का “जैसे को तैसा” सिद्धान्त क्या था?
उत्तर:
राज-महिलाओं को दुश्मनों के चंगुल से छुड़ाने का “जैसे को तैसा” सिद्धान्त था-एक वीर सैनिक जिसने सहर्ष अपनी बलि स्वीकार की थी, उसे तात्या टोपे के स्थान पर सरकार के हवाले कर दिया गया। सरकार उस जाली वीर को ही तात्या समझ बैठी, क्योंकि अंग्रेजों को तात्या की दैहिक पहचान नहीं थी,फलतः राज-महिलाओं को छोड़ दिया गया तथा उस वीर को तुरन्त फाँसी दे दी गई।
तात्या टोपे दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
एकांकी के तत्त्वों के नाम लिखते हुए ‘तात्या टोपे’ एकांकी के किसी एक तत्त्व पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ द्वारा लिखित ऐतिहासिक एकांकी ‘तात्या टोपे’ में तात्या टोपे के जीवन की उस घटना को लिया गया है जिसमें तात्या, महाराज मानसिंह के संरक्षण में रह रहे थे और अंग्रेज उन्हें पकड़ना चाहते थे। एकांकी की समीक्षा हेतु एकांकी के निम्नलिखित तत्त्वों को ध्यान में रखना होता है-
(1) कथानक :
प्रस्तुत नाटक का कथानक ऐतिहासिक है, जिसमें प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम (1857) के सेनानायक तात्या टोपे के जीवन की एक घटना को लिया गया है। देशभक्ति, सच्ची मित्रता, जैसे को तैसा सिद्धान्त, आत्म बलिदान जैसे गुणों को साकार किया है। कथानक में आरम्भ, मध्य, चरम सीमा तथा उद्देश्य को बड़े सुन्दर ढंग से बताया गया है। कथानक को चार दृश्यों में रखा गया है। कथानक में जिज्ञासा बराबर बनी रही है। शिथिलता कहीं भी नहीं आने पायी है।
(2) पात्र या चरित्र :
चित्रण-एकांकी का नायक तात्या टोपे है। सम्पूर्ण कथानक उसी के चारों ओर घूमता है। यद्यपि एकांकी में वह बहुत कम दिखायी देते हैं। नायक देशभक्त,सच्चा वीर, रणकुशल, साहसी, परिश्रमी योद्धा, सहृदयी, भावुक आदि गुणों से सुशोभित है। दूसरा प्रमुख पात्र मानसिंह है जो तात्या का मित्र है। मानसिंह राष्ट्र के प्रति समर्पित, प्रणपालक, निडर, साहसी और आदर्श मित्र है। तीसरा पात्र विक्रम सिंह है जो कर्त्तव्यपालक के साथ ‘शठे शाठ्यं समाचरेत्’ की नीति में विश्वास रखते हैं। अंग्रेज सेना के अधिकारी ‘नेपियर’ और ‘मीड’ का चरित्र दमनकारी और षड्यन्त्रकारी है। एक अन्य महत्त्वपूर्ण पात्र है जो मंच पर नहीं है। वह है तात्या के स्थान पर बलि होने वाला युवक।
(3) संवाद या कथोपकथन :
एकांकी के संवाद संप्रेषणीय हैं। छोटे-छोटे वाक्यों में गहन अर्थ का समायोजन है, जैसे-
मानसिंह – क्या! राज-महिलाओं को सरकारी सैनिक पकड़ ले गये?
प्रतिहारी – हाँ,महाराज।।
मानसिह – यह कैसे हुआ? क्या वहाँ सैनिक नहीं थे?
प्रतिहारी – थे, पर धोखा दिया गया।
मानसिंह – कैसा धोखा?
दो-तीन स्थान पर कथन अति विस्तृत हो गये हैं, परन्तु उनमें शिथिलता कहीं नहीं है।
(4) भाषा-शैली :
सम्पूर्ण एकांकी की भाषा सहज और सुबोध है परन्तु भाषा का रूप संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। लोकोक्तियों व मुहावरों का प्रयोग भाषा में सजीवता ले आया है, जैसे-आस्तीन का साँप, मृत्यु के घाट उतारना आदि। कमाल और हुनर, फर्ज, करामात, फुरती, इनाम, शोहरत जैसे-प्रचलित उर्दू के शब्दों से भाषा में चंचलता है। प्रतिहारी के मुख से संस्कृत के शब्द बड़े अटपटे लगते हैं।
(5) देशकाल और वातावरण :
एकांकी में भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय की घटना को लिया गया है, जिस समय एक ओर भारतीयों में देशभक्ति तथा त्याग था तो शासक वर्ग दमन और षड्यन्त्र रचना में लगा था। भारतीयों को लालच देकर कर्त्तव्य-पथ से विचलित किया जा रहा था। कुछ भारतीय देश के प्रति गद्दारी कर रहे थे।
(6) उद्देश्य :
प्रस्तुत एकांकी ‘तात्या टोपे’ ऐतिहासिक एकांकी है, जिसमें 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानायक के माध्यम से देशभक्ति, सत्य, ईमानदारी, स्वदेश-रक्षा, मानवीय गुणों की स्थापना, नारी के प्रति सम्मान आदि गुणों को उजागर करने का प्रयत्न किया गया है। तत्कालीन भारत की राजनैतिक दशा से पाठकों को परिचित कराकर बताया गया है कि स्वतन्त्रता हेतु कितने लोगों के प्राण गये हैं। उस समय देश में गद्दार लोग भी थे उनके दुर्गुणों को स्पष्ट करना है। व्यक्ति से देश अधिक महत्त्वपूर्ण है। संगठन से ही शत्रु को जीता जा सकता है।
(7) अभिनेयता या रंगमंचीयता :
यह एकांकी मंचीय दृष्टि से सफल एकांकी है। चारों दृश्य में स्थान व समय मंच पर अच्छी प्रकार से दिखाये जा सकते हैं। समस्त घटनाएँ मंचनीय हैं। पात्रों के वार्तालाप से ही घटनाओं का ज्ञान हो जाता है। साथ ही, पात्र भी उचित संख्या में है। वन, राजसभा और उद्यान के सैट लगाने में कोई असुविधा नहीं होगी। वेशभूषा भी कोई विशेष प्रकार की निर्देशित नहीं है। भाषा सरल, वाक्य अधिकतर छोटे तथा तकनीकी व्यवस्था उचित है।
प्रश्न 2.
वीर सैनिक की बलि से तात्या टोपे के भावुक हृदय पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
वीर सैनिक की बलि से तात्या टोपे का भावुक हृदय विचलित हो गया और वह कह उठे कि उनके प्राणों की रक्षा के लिए एक निर्दोष का खून। तात्या कायर नहीं है। युद्ध क्षेत्र में लड़ते-लड़ते मर जाना तात्या को स्वीकार है। पर वीर के बलिदान ने तात्या को कलंकित कर दिया। तात्या के सम्पूर्ण जीवन का शौर्य तथा त्याग निरीह हत्या के खून में बह गया। वह कहते हैं कि यह कलंक धोना ही होगा। खून का बदला चुकाना आसान नहीं है। सेना संगठित कर दूंगा और जब तक उस वीर के खून की एक-एक बूंद का बदला नहीं चुका लूँगा तब तक शान्ति नहीं लूँगा।
तात्या भगवान से प्रार्थना करते हैं, “हे प्रभु! अब मुझे शक्ति दो, जिससे उस वीर के खून का बदला ले सकूँ। अब मुझे फिर से रणचण्डी का आह्वान करना है और अपने को गुप्त रखते हुए उस अमरात्मा को शान्ति प्रदान करनी है! जब तक बदला नहीं चुका लूँगा तब तक संन्यासी वेश में रहकर जीवन-पर्यन्त दुःखों का ही वरण करते हुए इस गुरुतर कार्य को निभाऊँगा। अब तक मैं अपने लिए जीता रहा हूँ, अब उसके और देश के लिए जीऊँगा।
इस कार्य को वह विश्वासघात मानते हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि तात्या का भावुक हृदय विचलित हो उठा और उन्होंने उस कलंक को धोने का प्रण लिया।
प्रश्न 3.
“तात्या टोपे का जीवन राष्ट्रभक्ति का पर्याय था” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ ने अपने ऐतिहासिक एकांकी ‘तात्या टोपे’ में तात्या टोपे के जीवन को राष्ट्रभक्ति का पर्याय स्वीकारा है। तात्या टोपे प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख सेनानायक थे। उनकी वीरता और देशभक्ति ने अंग्रेजों को हिला दिया था। अंग्रेज सैनिक बल तथा षड्यन्त्रों के द्वारा भी उन्हें बन्दी नहीं बना सके। अंग्रेजों की षड्यन्त्रकारी दमन नीति के संदर्भ में तात्या टोपे की राष्ट्रभक्ति का व्यापक रूप दर्शनीय है। उनके मित्र मानसिंह तात्या से कहते हैं कि देश के लिए तात्या जैसे वीरव्रती राष्ट्रभक्त की आवश्यकता है।
अंग्रेजी सेना के सर राबर्ट्स नेपियर जनरल मीट से तात्या की देशभक्ति के विषय में कहते हैं, “तात्या सच्चा देशभक्त है, मीड साहब। वह जिधर से निकल जाता है, वहीं से लोग उसके सहायक बन जाते हैं। सुना है,उसकी वाणी में महान शक्ति है। वह जहाँ बोलता है,क्रान्ति की आग फूंक देता है।” इसी प्रकार मीड आगे कहते हैं, भारत का बच्चा-बच्चा तात्या की क्रान्ति से परिचित है।”
तात्या की राष्ट्रभक्ति की चरम भावना एकांकी के अन्तिम कथन में मिलती है। तात्या कहते हैं, “देश को एकता के सूत्र में बाँधना है। क्रान्ति के बीज बोते हुए राष्ट्र प्रेम को रग-रग में प्रवाहित करना है। ……. अब तक मैं अपने लिए जीता रहा हूँ, अब उसके और देश के लिए जीऊँगा।
यह उदाहरण तात्या की देशभक्ति का सच्चा पर्याय है। अतः हम यह कह सकते हैं कि तात्या टोपे का जीवन राष्ट्रभक्ति का पर्याय था।
प्रश्न 4.
मानसिंह के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ आपको प्रभावित करती हैं और क्यों?
अथवा
मानसिंह के चरित्र की चार विशेषताएँ बताइए। (2014)
उत्तर:
डॉ.सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ के प्रसिद्ध एकांकी ‘तात्या टोपे’ में मानसिंह तात्या टोपे का सच्चा मित्र है। नायक न होते हुए भी वह सम्पूर्ण एकांकी में छाया हुआ है। तात्या भी उनके कहे अनुसार कार्य करते हैं। उनके चरित्र की अग्रलिखित विशेषताएँ हमें प्रभावित करती हैं-
(1) सच्चा मित्र :
मानसिंह तात्या का विश्वसनीय मित्र है। वह थके व अस्वस्थ मित्र को संरक्षण देना अपना कर्त्तव्य समझता है। अंग्रेजों से उसकी रक्षा करने के लिए उसे पाडौन के जंगल में गुप्त स्थान पर छिपाकर रखता है तथा रक्षा हेतु पर्याप्त सैनिक व गुप्तचर नियुक्त करता है। दूसरी ओर, जब तात्या प्राण त्यागने के लिए कहते हैं तो सच्चे मित्र के समान उन्हें मार्ग निर्देशित करते हैं।
(2) वीरों का पूजक :
मानसिंह वीरों का सम्मान करना जानता है,तभी तो वह विक्रमसिंह से कहता है, “इस वीर सैनानी की रक्षा तन, मन, धन की बाजी लगाकर करनी होगी।” तात्या की वीरता, साहस और कौशल सराहनीय है।
(3) निडर व साहसी :
मानसिंह जनरल मीड को निडरता से उत्तर देते हैं कि तात्या उनके संरक्षण में नहीं आतिथ्य में है। उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता। अतिथि के लिए मैं सब कुछ उत्सर्ग कर सकता हूँ। मैं अपने सम्पूर्ण राज्य को विनष्ट होता देख सकता हूँ। देशभक्त की रक्षा करना स्वाभिमान का विषय है। क्षत्रिय मृत्यु से नहीं डरते।
(4) प्रलोभनों से दूर :
मीड का कथन है कि तात्या को अंग्रेजों के हवाले करने पर सरकार आपको पारितोषिक देगी,राज्य कर से मुक्त कर देगी तथा एक स्वतन्त्र स्थायी राज्य का मालिक बना देगी। इस पर मानसिंह उत्तर देते हैं, प्रलोभन से कर्तव्य ऊँचा है। तात्या को कभी आपके हवाले नहीं कर सकता।”
(5) नारी का सम्मान करने वाला :
जब राज-महिलाओं को सरकारी सैनिक पकड़कर ले जाते हैं, तो मानसिंह कहते हैं, “यह घटना मेरी राजमर्यादा पर अमिट कलंक है। प्राणों की बाजी लगाकर महिलाओं को आजाद कराना होगा।”
(6) कर्त्तव्यपरायण व प्रणपालक :
तात्या की रक्षा करना मानसिंह अपना परम कर्त्तव्य समझते हैं यही उनका प्रण है। वह सेनापति से कहते हैं कि तात्या की रक्षा करना अपना प्रथम कर्तव्य है। तात्या भारत माँ का सच्चा सपूत है। उससे भारत को बहुत-सी आशाएँ हैं। इस वीर की रक्षा हमें सब कुछ देकर करनी है। मानसिंह तात्या से कहते हैं, “मित्र की रक्षा करना मित्र का कर्तव्य है।”
(7) सलाहकार :
वीर के बलिदान को सुनकर तात्या विचलित हो जाते हैं, तो मानसिंह तात्या को सलाह देते हैं, “आप केवल सैनिकों को युद्ध शिक्षा दीजिए और उनका मार्ग-प्रशस्त कीजिये। यह बदला भी कुछ कम नहीं है। इससे भी देश की सेवा होगी।
तात्या टोपे भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
दिये गये सामासिक शब्दों का विग्रह कर समास का नाम लिखिए
मान-रक्षा, राज-मर्यादा, सैन्य-शक्ति, युद्ध-शिक्षा, लंबोदर, नवरत्न, हँसी-खेल।
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में से सरल, मिश्र एवं संयुक्त वाक्य छाँटकर लिखिए
- राज-महिलाओं का अपहरण केवल इसलिए हुआ कि महाराज घबड़ाकर और अपनी मान-रक्षा के लिए तात्या को सरकार के हवाले कर दें।
- धैर्य से काम लेना होगा,महाराज!
- युद्ध-क्षेत्र में लड़ते-लड़ते मर जाना तात्या को स्वीकार है, पर एक वीर के बलिदान द्वारा स्थायी रहना स्वीकार नहीं।
- मैं इस राज को छिपा नहीं सकता।
- जब तक देश स्वतन्त्र नहीं हो जाता तब तक हमारे कार्यों की इतिश्री नहीं।
- अभी तो देश को एकता के सूत्र में बाँधना है और क्रान्ति के बीज बोते हुए राष्ट्रप्रेम को रग-रग में प्रवाहित करना है।
उत्तर:
- मिश्र वाक्य
- सरल वाक्य
- संयुक्त वाक्य
- सरल वाक्य
- मिश्र वाक्य
- संयुक्त वाक्य।
तात्या टोपे पाठ का साराश
प्रतिभासम्पन्न लेखक ‘डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ द्वारा लिखित एकांकी ‘तात्या टोपे’ एक ऐतिहासिक एकांकी है। इस एकांकी में लेखक की ऐतिहासिक और राजनैतिक दृष्टि सक्रिय है। एकांकी का कथानक तात्या टोपे के जीवन से सम्बन्धित एक विशेष घटना की ओर इंगित करता है।
तात्या टोपे ने अपने रण-कौशल से अंग्रेजों को आश्चर्यचकित तथा भयभीत कर दिया था। जिस कारण अंग्रेज उन्हें व्यूह-रचना के द्वारा कैद करना चाहते थे। सात सेनाओं के द्वारा पीछा किया जाने पर भी अंग्रेजों को सफलता नहीं मिली । एक वर्ष तक भागते-भागते तात्या बीमार पड़ गये तब वह अपने मित्र मानसिंह के संरक्षण में पाडौन के जंगल में एक गुप्त स्थान पर रहे। अंग्रेज सैनिक मीड मानसिंह से तात्या को माँगता है तथा अनेक प्रलोभन भी देता है परन्तु मानसिंह कहते हैं, वे मेरे अतिथि हैं अतिथि की रक्षा करना परम कर्त्तव्य है, अतः तात्या को नहीं दे सकता।” इस पर अंग्रेज नारायण देव की सहायता से मानसिंह के राजभवन के अन्तःपुर की महिलाओं का अपहरण कर लेते हैं और बदले में तात्या को माँगते हैं।
महामन्त्री विक्रमसिंह तात्या के बजाय एक अन्य देशभक्त को भेज कर महिलाओं को मुक्त करा लेते हैं। अंग्रेज तात्या को शारीरिक रूप से नहीं पहचानते थे इस कारण उसे ही तात्या समझ कर फाँसी दे देते हैं। तात्या को जब उस वीर के उत्सर्ग का पता चलता है तो वे भावुक हो उठते हैं। अंग्रेजों के सामने प्रस्तुत हो अपने कलंक को धोना चाहते हैं परन्तु मानसिंह तात्या को ऐसा नहीं करने देते। तात्या को समझाते हैं कि तात्या जैसे वीर, बुद्धिमान, देशभक्त, निडर, साहसी आदि गुणों से युक्त व्यक्ति की देश को आवश्यकता है। अतः वे नवयुवकों को युद्ध का प्रशिक्षण देने के लिए तैयार हो जाते हैं, आजीवन संन्यासी रहकर राष्ट्र को समर्पित हो जाते हैं। समस्त घटनाएँ तात्या के चारों ओर घटित होती हैं परन्तु पट पर उनका अवतरण बहुत थोड़े समय के लिए हुआ है। वही एकांकी के नायक हैं। एकांकी का शीर्षक भी विषयानुकूल है।
तात्या टोपे कठिन शब्दार्थ
हुनर = गुण। फर्ज = कर्त्तव्य। असीम = व्यापक। करामात = कारगुजारी। अपराजेय = जिसे जीता न जा सके। निर्दिष्ट = बताया हुआ। शोहरत = प्रसिद्ध, यश। राजद्रोही = देश के प्रति गद्दार। सहज = सरलता। सपूत = सुपुत्र। स्वतः = स्वयं। अस्थि-पंजर = हड्डियों का ढाँचा। लाचार = मजबूर। सराहनीय = प्रशंसा के योग्य। अनुरोध = प्रार्थना। लोहा लेना = टकराना। उत्सर्ग = बलिदान। हवाले = सुपुर्द। पारितोषिक = इनाम। प्रलोभन = लालच। नश्वर = नाशवान। मुक्ति = आजादी। विनष्ट = बरबाद। आवेश = जोश। समुचित = उचित प्रकार से। प्रहरियों = पहरेदारों। निरर्थक = बेकार। निः प्रयोजन = बिना उद्देश्य। उपयुक्त = उचित। सहस्त्र = हजार। अनुचर = नौकर चिकमा = धोखा। राज = रहस्य। निरीह = निर्दोष। सहर्ष = खुशी से। प्रवृत्त = लग जाना। इतिश्री = पूर्ण,समाप्त। समर्पण = त्याग। विसर्जित = त्यागना। कटिबद्ध = तैयार। गुरुतर = महान। जीवन पर्यन्त = जीवन भर। वरण = ग्रहण।
तात्या टोपे संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
(1) है, पर तात्या छोटा होता हुआ भी अपने में असीम है। हम लोग पीछा करते-करते निराश हो गये हैं। उसमें जादू की-सी करामात है। कभी तो उसके पास हजारों सैनिक रहते हैं, क्रान्तिकारियों की सेनाएँ अचानक आ जाती हैं; तोपों और शस्त्रों की गड़गड़ाहट से हम लोग भयभीत हो जाते हैं। कभी एक छोटी-सी टुकड़ी लिए ही सामने से निकल जाता है।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘तात्या टोपे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ हैं।
प्रसंग :
सर राबर्ट्स नेपियर मेजर मीड से कहते हैं कि एक छोटे से भारतीय क्रान्तिकारी को पकड़ने के लिए सात सेनाएँ लगी हैं फिर भी वह पकड़ में नहीं आता है। यह आश्चर्य का विषय है। तब मीड कहते हैं यह एक आश्चर्य की ही तो बात है।
व्याख्या :
मीड नेपियर के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि कितने आश्चर्य की बात है कि तात्या जो एक छोटा-सा क्रान्तिकारी है परन्तु उसमें सीमा रहित शक्ति है, वह अपने में बहुत ही व्यापक है। अंग्रेजी सेना की सात टुकड़ियाँ उसका पीछा कर रही हैं,एक वर्ष हो गया पर वह पकड़ में नहीं आता क्योंकि उसमें जादूगर जैसी कारगुजारी है। कभी उसकी सेना में हजारों सैनिक रहते हैं, तात्या की सेना अचानक आकर उपस्थित हो अंग्रेजी सेनाओं पर हमला कर देती है, जिससे अंग्रेजी सैनिक भयातुर हो जाते हैं। वे अपने को कमजोर महसूस करने लगते हैं। तात्या की तोपें आग उगलने लगती हैं,भयंकर आवाज से शत्रुओं को डरा देती हैं। यहाँ तक कि स्वयं तात्या थोड़े से सैनिकों के साथ अंग्रेजी सेना के सामने से धोखा देकर निकल जाता है, क्योंकि अंग्रेजों को तात्या की दैहिक पहचान नहीं है। इस अनभिज्ञता का पूरा-पूरा लाभ उठाना वह जानता है। अंग्रेज भी तात्या की इस चतुराई से आश्चर्यचकित तथा अपनी असफलता पर निराश होते हैं।
विशेष :
- तात्या की चतुराई, रण-कौशल के साथ अंग्रेजी सेना की असमर्थता और निराशा का परिचय मिलता है।
- भाषा सरल तथा बोधगम्य बोलचाल की है।
- संस्कृत की तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू के शब्दों का प्रयोग।
- शैली व्याख्यात्मक।
(2) हे प्रभु! अब मुझे शक्ति दो, जिससे उस वीर के खून का बदला ले सकूँ। अब मुझे फिर से रणचण्डी का आह्वान करना है और अपने को गुप्त रखते हुए उस अमरात्मा को शान्ति प्रदान करनी है। अतः जब तक बदला नहीं चुका दूँगा तब तक संन्यासी वेश में रहूँगा और जीवनपर्यन्त दुःखों का ही वरण करते हुए इस गुरुतर कार्य को निभाऊँगा। अब तक मैं अपने लिए जीता रहा हूँ, अब उसके और देश के लिए जीऊँगा। (2009, 11)
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
एकांकी के अन्तिम गद्यांश में तात्या टोपे अपने मित्र मानसिंह से कहते हैं कि तात्या के स्थान पर फाँसी चढ़े उस आदमी के बलिदान का बदला वह अवश्य लेंगे और देश को भी आजाद करायेंगे।
व्याख्या :
तात्या भगवान से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे भगवान्! उन्हें उस बलिदानी युवक, जो तात्या के रूप में फाँसी पर चढ़ गया था, के खून का बदला लेने की शक्ति प्रदान करें। फिर से अंग्रेजों से युद्ध करना है और निर्दोष की हत्या का बदला लेना है। बदला पूरा न होने तक तात्या अपने को गुप्त व वेश बदल कर रखेंगे। बदला पूरा होने पर ही उस अमर आत्मा को शान्ति मिलेगी। इस बदले को वह एक पवित्र और महान कार्य मानते हैं। इस महान कार्य को करने के लिए वे संन्यासी के रूप में जीवन भर रहने का प्रण करते हैं। साथ ही वे जीवन भर कष्ट को सहन करने के लिए तैयार हैं। वे सच्चे देशभक्त और वीर के समान जीवन व्यतीत करते रहे व भविष्य में भी इसी प्रकार के बने रहने का प्रण करते हैं। अन्त में,वे कहते हैं कि अभी तक वह अपने लिए जीवित रहे परन्तु अब वह उस देशभक्त बलिदानी युवक का बदला लेने तथा देश की सेवा के लिए जीवित रहेंगे। तात्या एक सच्चे देश भक्त थे। ऐसे देशप्रेमियों ने ही भारत को स्वतन्त्र कराया था।
विशेष :
- तात्या टोपे की देशभक्ति व भावुकता का ज्ञान होता है।
- संस्कृत शब्दों से युक्त खड़ी बोली ओजपूर्ण है।
- शैली ओजपूर्ण तथा साहित्यिक है।