MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 9 जागो फिर एक बार (कविता, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’)
जागो फिर एक बार पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न
जागो फिर एक बार लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘सवा-सवा लाख पर’ एक को चढ़ाने की घोषणा किसने की थी?
उत्तर:
सवा-सवा लाख पर एक चढ़ाने की घोषणा गुरु गोविन्द सिंह ने की थी।
प्रश्न 2.
गीता की उक्ति क्या है?
उत्तर:
गीता की उक्ति है कि इस संसार में योग्य व्यक्ति ही जीता है।
प्रश्न 3.
‘ताप-त्रय’. कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
दैहिक, दैविक और भौतिक ताप-त्रय हैं।
प्रश्न 4.
‘सिंधु-नद-तीरवासी’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
भारतवासियों को सिंधु-नद-तीरवासी कहा गया है।
जागो फिर एक बार दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मेषमाता तप्त आँसू क्यों बहाती है?
उत्तर:
मेषमाता निर्बल होती है। उसकी संतान जब उससे छीनी जाती है, तो वह चुपचाप देखती रह जाती है इस प्रकार वह अपने जन्म पर दुखी होकर अपने तप्त आँसू बहाती है।
प्रश्न 2.
ऋषियों का महामंत्र क्या है?
उत्तर:
ऋषियों का महामंत्र है कि तुम महान् हो, तुम सदा से महान् हो। यह शरीर नाशवान है और इसके साथ ही यह हीनता दिखाना, कायरतापूर्ण व्यवहार करना तथा काम भावना में प्रवृत्तं रहना आदि भी स्थायी नहीं हैं बल्कि शीघ्र ही नष्ट होने वाले हैं। तुम ब्रह्म हो और सारा संसार तुम्हारे चरणों की धूल के बराबर नहीं है। अतः तुम उठो और अपनी शक्ति पहचानो तथा उसके अनुरूप कार्य करो।
प्रश्न 3.
कवि ‘जागो फिर एक बार’ में क्या उद्बोधन देता है? (M.P. 2012)
उत्तर:
कवि ने ‘जागो फिर एक बार’ कविता में भारतीयों को उद्बोधन दिया है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के महासंग्राम में योद्धा की तरह संघर्ष करो। अपनी वीस्वती परंपरा को अक्षुण्ण रखने वाले भारतीय व्यक्ति को अपनी संपूर्ण कायरता को त्यागकर अपने पराक्रमी और पुरुषार्थी स्वरूप को जागृत करो। अपनी दासता के संपूर्ण बंधनों को तोड़ने के लिए उसे जागृत करना आवश्यक है।
प्रश्न 4.
शिशु के छिनने पर सिंही और मेषमाता के व्यवहार में क्या अंतर है? (M.P. 2010)
उत्तर:
यदि सिंहनी की गोद से कोई उसका शिशु छीनने का प्रयत्न करे, तो वहचुप नहीं रहती। वह इतने जोर से दहाड़ती है कि उसके बच्चे को भयभीत होकर छोड़कर भाग जाता है। दूसरी ओर मेषमाता अपने बच्चे को छीनने वाले को चुपचाप देखती रहती है, क्योंकि वह कमजोर है। इसलिए अपने जन्म पर दुखी होकर आँसू बहाती रह जाती है। इसके विपरीत सिंहनी अपने शिशु की रक्षा के लिए उग्र रूप धारण कर लेती है जबकि मेषमाता अपने बच्चे की रक्षा के लिए कोई भी प्रयास नहीं करती।
जागो फिर एक बार भाव-विस्तार/पल्लवन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव-विस्तार कीजिए –
- हे नश्वर यह दीन भाव-कायरता, कामपरता।
- अभय हो गए हो तुम मृत्युंजय व्योमकेश के समान अमृत संतान।
उत्तर:
1. यह मानव शरीर नाशवान है और इसके साथ ही यह दीनता दिखाना, कायरतापूर्ण व्यवहार करना तथा कामभावना में प्रवृत्त रहना आदि भावनाएँ भी नश्वर हैं। जब शरीर ही नष्ट होने वाला है तो ये भाव भी स्थायी नहीं हैं। बल्कि ये भी शीघ्र नष्ट होने वाले हैं। इसलिए अपनी शक्ति को पहचानकर, उसी के अनुरूप कार्य करो।
2. तीनों प्रकार के गुण सत, रज और तम तथा तीन प्रकार के ताप दैविक, भौतिक तथा आध्यात्मिक अग्नि में जलकर भस्म हो गए थे। हे भारतवासियो! ऐसी स्थिति तुम मृत्यु को जीतने वाले भगवान शिव के समान निडर हो गए थे। तुम्हें मृत्यु का भय नहीं रहा था। अभयदान मिल जाने से तुम अमर हो गए थे।
जागो फिर एक बार भाषा-अनुशीलन
प्रश्न 1.
‘शप्त-सप्त’ समोच्चारित शब्द-युग्म है। इसी प्रकार के पाँच शब्द-युग्म लिखिए।
उत्तर:
- अनल – अनिल
- गुप्त – सुप्त
- दिन – दीन
- सुत – सूत
- कूल – कुल।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कर उनके नाम लिखिए –
मरणलोक, महासिंधु, तीरवासी, मेषमाता, सप्तावरण।
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अनेकार्थी शब्द हैं। प्रत्येक के ऐसे दो-दो वाक्य बनाइए जिससे उनके भिन्न अर्थ स्पष्ट हों –
सैंधव, काल, गुण, पद।
उत्तर:
सैंधव:
- सैंधव की थाह कोई नहीं पा सकता।
- महाभारत काल में सैंधव नरेश जयद्रथ था।
काल:
- विकराल काल से कोई नहीं बच सकता।
- संध्या काल पक्षी घर लौट रहे हैं।
गुण:
- काव्य के भी गुण-दोष होते हैं।
- गुणी का सब जगह आदर होता है।
पद:
- मुझे अध्यक्ष का पद मिल गया है।
- इस पद की रचना कबीर ने की है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
सच्चिदानंद, परमाणु, सहस्रार, माया।
उत्तर:
- सच्चिदानंद – ईश्वर का दूसरा नाम ही सच्चिदानंद है।
- परमाणु – आज सभी राष्ट्र परमाणु शक्ति सम्पन्न बनना चाहते हैं।
- सहस्रार – भक्ति का अंतिम पड़ाव सहस्रार है।
- माया – माया ईश्वर की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है।
जागो फिर एक बार योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1.
वीररस के कवियों की रचनाओं का संग्रह करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2.
वार्षिक उत्सव में वीररस के कवियों के प्रतिरूप धारण कर कवि सम्मेलन आयोजित करें।
उत्तर:
छात्र अपने भाषाध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 3.
निकटवर्ती स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से भेंट कर उनसे स्वतंत्रता संग्राम के अनुभवों को सुनिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
जागो फिर एक बार परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में ……… का भाव निहित है। (M.P. 2012)
(क) राष्ट्रीय नवजागरण
(ख) राष्ट्रीय एकता
(ग) राष्ट्रीय भाषा
(घ) राष्ट्रीय भक्ति
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय नवजागरण।
प्रश्न 2.
‘जागो फिर एक बार’ कविता ……… के आंदोलन की पृष्ठभूमि पर सजितं है।
(क) सामाजिक समता प्राप्ति
(ख) स्वतंत्रता प्राप्ति
(ग) आर्थिक मुक्ति प्राप्ति
(घ) अंग्रेज भगाओ
उत्तर:
(ख) स्वतंत्रता प्राप्ति।
प्रश्न 3.
गुरु गोविंद सिंह ……. के गुरु थे।
(क) ईसाइयों
(ख) जैनों
(ग) सिखों
(घ) बौद्धों
उत्तर:
(ग) सिखों।
प्रश्न 4.
भारतीयों को किसका रूप माना गया है?
(क) शिव का
(ख) ब्रह्मा का
(ग) इन्द्र का
(घ) विष्णु का
उत्तर:
(ख) ब्रह्मा का।
प्रश्न 5.
‘सत्श्री अकाल’ किस धर्म से संबंधित है?
(क) सिख धर्म से
(ख) इस्लाम धर्म से
(ग) मानव धर्म से
(घ) सनातन धर्म से
उत्तर:
(क) सिख धर्म से।
प्रश्न 6.
“तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्” यह भारतीयों में किसका ड्का महामंत्र है?
(क) महात्मा गाँधी
(ख) ऋषियों
(ग) गुरु गोविंद सिंह
(घ) स्वापी दयानंद
उत्तर:
(ख) ऋषियों।
प्रश्न 7.
“मृत्युंजय व्योमवेश के समान’ में ‘मृत्युंजय’ किसे कहा गया है?
(क) भगवान शिव को
(ख) भगवान श्रीकृष्ण को
(ग) भगवान विष्णु को
(घ) रावण को
उत्तर:
(क) भगवान शिव को।
प्रश्न 8.
तीन ताप कौन-कौन से हैं?
(क) दैहिक, दैविक और भौतिक
(ख) लौकिक, अलौकिक और आध्यात्मिक
(ग) समुद्री, आकाशीय और स्थलीय
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) दैहिक, दैविक और भौतिक।
प्रश्न 9.
‘जागो फिर एक बार’ कविता के रचयिता हैं – (M.P. 2010)
(क) श्री सुमित्रानंदन पंत
(ख) श्री सूर्यकांत त्रिपाठी
(ग) बालकवि बैरागी’
(घ) श्री जयशंकर प्रसाद’
उत्तर:
(ख) श्री सूर्यकांत त्रिपाठी
प्रश्न 10.
“सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा।” की घोषणा की थी –
(क) ऋषियों ने
(ख) सिन्धु-नद-तीरवासी ने
(ग) गुरु गोविन्द सिंह ने
(घ) सत्श्री अकाल ने
उत्तर:
(ग) गुरु गोविन्द सिंह ने।
II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –
- ‘समन्वय’ पत्रिका का सम्पादन ………. के द्वारा किया गया। (महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘निराला’)
- ‘निराला’ स्वच्छंदतावादी काव्य-संसार के ………. कवि रहे। (सर्वोत्कृष्ट श्रेष्ठ)
- ‘जागो फिर एक बार’. ………. प्रधान कविता है। (सामाजिक चेतना, राष्ट्रीय चेतना)
- ‘जागो फिर एक बार’ कविता ………. छन्द में है। (मुक्तक/मात्रिक)
- ‘योग्य जन जीता है’ उक्ति है ………. । (पश्चिम की गीता की)
उत्तर:
- ‘निराला’
- सर्वोत्कृष्ट
- राष्ट्रीय चेतना
- मुक्तकं
- गीता की।
III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –
- कवि ने भारतीयों को शेर और अंग्रेजों को सियार कहा है।
- ‘योग्य जन जीता है’ यह उक्ति पश्चिमी है।
- गुरु गोविन्द सिंह ईसाइयों के गुरु थे।
- ‘सत् श्री अकाल’ सिख धर्म से संबंधित है।
- ‘मृत्युंजय व्योमकोश के समान’ में मृत्युंजय भगवान विष्णु को कहा गया है।
उत्तर:
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- सत्य
- असत्य।
IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –
प्रश्न 1.
उत्तर:
(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।
V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –
प्रश्न 1.
‘तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्’ किसका महामंत्र है?
उत्तर:
ऋषियों का।
प्रश्न 2.
अपना बच्चा छिनता देख सिंहनी क्या करती है?
उत्तर:
सिंहनी अपनी गोद से बच्चा छीनने पर भयंकर दहाड़ करती हुई खाने के लिए दौड़ने लगती है।
प्रश्न 3.
दीन भाव क्या है?
उत्तर:
कायरता और कामपरता।
प्रश्न 4.
तीन गुण कौन-कौन हैं?
उत्तर:
सत्व, रज और तम।
प्रश्न 5.
तीन ताप कौन-कौन हैं?
उत्तर:
दैविक, दैहिक और भौतिक।
जागो फिर एक बार लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘जागो फिर एक बार’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
‘जागो फिर एक बार’ कविता के रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
प्रश्न 2.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि किसे जगा रहा है?
उत्तर:
इस कविता में कवि भारतीयों को जगा रहा है।
प्रश्न 3.
‘शेरों की माँद में आया है आज स्यार’ इसमें ‘स्यार’ किसे कहा गयाहै।
उत्तर:
इसमें ‘स्यार’ अंग्रेजों को कहा गया है।
प्रश्न 4.
भारतीयों को पशु तुल्य क्यों कहा गया है?
उत्तर:
यदि भारतीय कृतज्ञ होकर अपने देश को दासता से मुक्ति नहीं दिला सके, तो पशु तुल्य हैं।
प्रश्न 5.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में क्या दिया है?
उत्तर:
‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि ने भारतीयों को जागरथ का संदेश दिया है।
प्रश्न 6.
भारत देश की क्या परम्परा रही है?
उत्तर:
भारत देश की परम्परा वीरों की रही है।
प्रश्न 7.
गुरु गोविन्द सिंह ने क्या कहा था?
उत्तर:
गुरु गोविन्द सिंह ने कहा था –
“सवा-सवा लाख पर
एक को चढ़ाऊँगा,
गोविन्द सिंह निज
नाम तब कहाऊँगा।’
जागो फिर एक बार दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
गुरु गोविन्द सिंह ने ‘सवा लाख पर एक चढ़ाऊँगा’ की घोषणा क्यों की थी?
उत्तर:
गुरु गोविन्द सिंह ने सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए यह घोषणा की थी कि उसका एक-एक वीर सिपाही शत्रु की सेना के सवा लाख सिपाहियों के बराबर है। यदि वह रणभूमि में मरा तो शत्रुओं की सेना के सवा लाख सिपाहियों को ही मारकर मरेगा। इस नारे से सेना के सिपाही का उत्साह बढ़ता था और वह स्वयं को अजेय समझने लगता था।
प्रश्न 2.
उत्सर्ग की किस परंपरा का उल्लेख किया है?
उत्तर:
कवि ने उत्सर्ग की उस परंपरा का उल्लेख किया है, जिसमें युद्ध के फाग में खून की होली खेलते हुए अनेक वीरों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दियाथा।
प्रश्न 3.
कवि भारतीयों को क्यों जागत करना चाहता है?
उत्तर:
इस कविता में कवि भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्ति के महासंग्राम में एक योद्धा की तरह भाग लेने के लिए जागृत करना चाहता है।
प्रश्न 4.
कवि ने बलिदान की किस परम्परा का उल्लेख किया है?
उत्तर:
कवि ने बलिदान की उस परम्परा का उल्लेख किया है जिसमें युद्ध के फाग में रंगे रंग की तरह मानकर अनेक भारतीय वीरों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिए। युद्ध-भूमि में अपने प्राणों का बलिदान करने वाले इन धीरों ने परमपद प्राप्त करके मृत्यु पर मानो विजय प्राप्त कर ली।
प्रश्न 5.
अपनी महान् और वीरतापूर्ण परम्परा को हमेशा बनाए रखने के लिए कवि ने क्या सुझाव दिए हैं?
उत्तर:
अपनी महान् और वीरतापूर्ण परम्परा को हमेशा बनाए रखने के लिए कवि ने ये सुझाव दिए हैं कि हमें अपनी सारी कायरता को भूल जाना चाहिए। अपने पुरुषार्थ और पराक्रम को जगाना चाहिए। अपनी गुलामी के बंधनों को त्यागने के लिए जागना होगा। हमें अपने ऋषियों द्वारा दिए गए महामंत्र ‘तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्’ को हमेशा याद रखना चाहिए।
जागो फिर एक बार कवि-परिचय
प्रश्न 1.
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं का परिचय दीजिए।
उत्तर:
छायावादी कविता के चार स्तंभों में से एक सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म बंगाल प्रांत के अंतर्गत महिपादल के मेदिनीपुर जिले में 1896 ई० में वसंत पंचमी के दिन हुआ था। इनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला स्थान के रहने वाले थे। इनके पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी नौकरी के सिलसिले में बंगाल के महिषादल राज्य में रहने लगे थे। उनके बंगाल में रहने के कारण ‘निराला’ जी की शिक्षा-दीक्षा वहीं पर हुई। इसीलिए इनका आरंभ में बंगला भाषा और साहित्य से परिचय हो गया। बाद में इन्होंने हिंदी तथा संस्कृत का अध्ययन घर पर रहकर ही किया। इनकी नियमित शिक्षा नौवीं कक्षा से आगे न हो सकी।
प्रकृति प्रेम तथा एकांत में पत्र-पत्रिकाओं के पठन-पाठन से आपकी रुचि साहित्य की ओर बढ़ती गई। युवावस्था में प्रवेश करते-करते इन पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। पहले माँ की मृत्यु हुई। फिर पिताजी की। इसके पश्चात् फ्लू के रोग में परिवार के अन्य प्राणी भी चल बसे। इन घटनाओं से कवि का संवेदनशील मन कराह उठा। आर्थिक अभाव और उदारवादी वृत्ति के कारण इनको जीवन की कठोर विषमताओं से सदैव जूझना पड़ा। इन दैवी और आर्थिक आपदाओं ने इनको दार्शनिक बना दिया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस तथा विवेकानन्द के साहित्य और दर्शन का आप पर गहरा प्रभाव पड़ा।
पिता की मृत्यु के बाद इनको पिता के स्थान पर नौकरी मिल गई थी, किंतु ये वहाँ अधिक समय तक न रह सके। कोलकाता से प्रकाशित होने वाले ‘मतवाला’ तथा पत्रिकाओं का उन्होंने सम्पादन किया। कुछ दिन ‘सुधा’ पत्रिका का भी सम्पादन किया। जीवन के अंतिम समय में ये अर्द्धविक्षिप्त हो गए। इसी अवस्था में 15 अक्टूबर, 1961 ई० को इनका देहावसान हुआ।
साहित्यिक विशेषताएँ:
‘निराला’ के काव्य में छायावादी, प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का संगम हुआ है। ‘निराला’ की अनामिका, परिमल, गीतिका तथा तुलसीदास आदि छायावादी रचनाएँ हैं। परिमल, बेला और नए पत्ते इनकी प्रगतिवादी रचनाएँ मानी जाती हैं। ‘अणिमा’ काव्य को विद्वान दार्शनिक रचनाओं में सम्मिलित करते हैं। इनकी रचना ‘तुलसीदास’ प्रबंधात्मक रचना है। इसमें महाकवि तुलसीदास.. के मनोविकास को दर्शाया गया है। ‘राम की शक्ति पूजा’ करुणा की पृष्ठभूमि पर आधारित शृंगार, वात्सल्य और व्यंग्य को समेटे हुए हैं। ‘सरोज-स्मृति’ हिंदी साहित्य का प्रसिद्ध शोकगीत है।
रचनाएँ:
प्रबंधात्मक काव्य-राम की शक्ति पूजा, सरोज-स्मृति और तुलसीदास।
काव्य:
परिमल, गीतिका, अनामिका, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, . आराधना, गीतगुंज और सांध्यकली।
उपन्यास:
अप्सरा, अलका, निरुपमा, प्रभावती, चोरी की पकड़, काले कारनामे। कहानी-लिली, सखी, सुकुल की बीवी, देवी। रेखाचित्र-कुल्ली भाट, विल्लेसुर बकरिहा, चतुरी चमार।
आलोचना:
प्रबंध-पादप, प्रबंध प्रतिमा, संचय और चाबुक।
निरालाजी के काव्य की भाषा, भाव और छंद में नवीनता के कारण अद्वितीय बन गयी है। इनमें खड़ी बोली के साथ-साथ उर्दू, अरबी, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है पर ये प्रयोग कहीं भी खटकते नहीं। ‘निराला’ हिंदी कविता में मुक्त छंद के प्रवर्तक रहे। इनकी विशेषता लयात्मकता के कारण मात्रा, वर्गों में तालमेल के कारण बढ़ गई है। इनके काव्य में पारंपरिक अलंकारों के साथ-साथ छायावादी मानवीकरण तथा विशेषण विपर्यय जैसे अलंकारों का प्रयोग भी मिलता है। .
महत्त्व:
‘निराला’ आधुनिक हिंदी के उन महान् कवियों में से एक हैं, जिन्होंने रूढ़ियों को विध्वंस किया, किंतु भाव, भाषा और छंद को एक नया आयाम प्रदान कर हिंदी कविता का उत्कर्ष किया। ‘निराला’ जी छायावादी कविता के प्रवर्तकों में से एक हैं। स्वच्छंदतावादी काव्य जगत् के भी वे सर्वोत्कृष्ट कवि हैं।
जागो फिर एक बार पाठ का सारांश
प्रश्न 2.
‘जागो फिर एक बार’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि ने भारत के अतीत का गौरवमय चित्रण किया है। इसी संदर्भ में वह भारतीयों को जागरण का संदेशा दे रहे हैं। भारतीयों ने अतीत काल में युद्ध में मरकर स्वर्ग जाने का लक्ष्य बना रखा था यही उनके जीवन का आदर्श था। उनके इस आदर्श के कारण महासागर से लेकर सिंधु नदी के वासियों ने उनकी प्रशंसा के गीत गाए हैं। गुरु गोविन्द सिंह ने भी कहा कि सवा-सवा लाख शत्रओं को मारकर जब उनका एक सिपाही या योद्धा मरेगा। तभी वह अपना नाम गोविन्द सिंह कहलाना चाहेंगे।
वीरों के मन को मोहित कर लेने वाला यह गीत योद्धाओं को रणभूमि में अजेय बना देता था। आज शेरों! (भारतीयों) की माँद में पुनः सियार (अंग्रेज) घुस आए हैं। इसलिए शेरों जागो और इनको अपनी माँद में से बाहर धकेलो। गुरु गोविंद सिंह जब रणभूमि में सत श्री अकाल का उच्चारण करते हुए पहुँचते थे, तो उनका चेहरा तमतमा जाता था और उससे आग-सी निकला करती थी। इस आग में तीन काल (भूत, भविष्य, वर्तमान), तीनों गुण (सत्, रज, तम) तथा तीनों ताप (दैविक, भौतिक तथा आध्यात्मिक) जलकर भस्म हो जाते थे। ऐसी दशा में तुम शिव के समान मृत्यु को जीतने वाले हो गए।
तुम उस परम योगी के समान हो गए, जो सातों आवरण भेदकर उस स्थान पर पहुँच जाता है, जहाँ. ब्रह्मस्थल है। अरे तुम जागो, तुम वीर हो। भला कोई सिंहनी की गोद से उसका शिशु भी छीन ले और वह चुपचाप देखती रहेगी। ऐसा कभी नहीं हुआ। केवल भेड़ की माता ही अपने शिशु को छिनता हुआ देखती है और अपने जन्म पर आँसू बहाती रह जाती है। इस संसार में जो योग्य जन होता है वही जीता है। यही हमारे यहाँ की गीता का उपदेश है। इस उपदेश को याद करो और एक बार जाग जाओ। अरे तुम पशु नहीं हो, बल्कि वीर योद्धा हो।
यह ठीक है कि तुम कालचक्र में दबे हुए योद्धा के समान हो। पर क्या यह सब माया है। तुम मुक्त छंद की भाँति हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो और आनंद में डूबे हुए ईश्वर का रूप हो। महाऋषियों ने अणुओं और परमाणुओं में सदा यही मंत्र फूंका है कि तुम महान् हो। यह दीनता, कायरता और भोग-विलास की भावना को नष्ट कर दो। अरे तुम ब्रह्म हो। यह सारा संसार तुम्हारे चरणों की धूलि की बराबरी करने योग्य भी नहीं है इसलिए तुम जागो और अपने को पहचानो।
जागो फिर एक बार संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
प्रश्न 1.
जागो फिर एक बार!
समर में अमर कर प्राण,
गान गाए महासिंधु से
सिंधु-नद-तीरवासी!
सैन्धव तुरंगों पर
चतुरंग चमू संग,
सवा-सवा लाख पर
एकको चढ़ाऊँगा,
गोविन्दसिंह निज
नाम जब कहाऊँगा।” (Pages 40-41)
शब्दार्थ:
- समर – युद्ध।
- सैंधव – सिंधु (समुद्र) संबंधी
- चतुरंग – चार तरह की।
- चमू – सेना।
- महासिंधु – महासागर।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ की कविता ‘जागो फिर एक बार’ से ली गई हैं। यहाँ कवि ने गुरु गोविन्द सिंह का गुणगान करते हुए भारतवासियों को उद्दीप्त किया है कि वे भी अपने आलस्य भाव को छोड़कर शत्रुओं से भिड़ जाएँ और देश को स्वतंत्र कराएँ।
व्याख्या:
कवि कहता है कि हे भारतवासियो! तुम एक बार फिर जागो। इस देश के वीरों की परम्परा रही है कि युद्ध में शत्रुओं से लड़ते-लड़ते मर जाने पर वीर के प्राण अमर हो जाते हैं। सिंधु प्रांत के घोड़ों पर चढ़कर अपने साथ चतुरंगी सेना-अर्थात् अश्व सेना, गजसेना, रथसेना तथा पैदल सिपाही-के साथ जब वीर युद्ध में जाते थे तो सिंधु नदी के तटवासी और महासागर भी उनका गुणगान गाते थे।
याद करो गुरु गोविन्द सिंहजी जैसे वीर पुरुष ने कहा था कि जब शत्रुओं पर आक्रमण करूँगा तो सवा-सवा लाख शत्रुओं को मारकर ही अपने एक सिपाही को चढ़ाऊँगा। ऐसा होने पर ही मैं अपना नाम गोविंद सिंह कहलाऊँगा। भव यह है कि मेरी सेना का एक-एक वीर सिपाही शत्रु की सेना के सवा लाख सिपाहियों के लिए काफी है। यदि वह रणभूमि में मरा, तो शत्रुओं की सवा लाख सेना का सफाया करके ही मरेगा।
विशेष:
- यहाँ गुरु गोविन्द सिंह की सेना की वीरता का वर्णन किया है। गुरु गोविन्द सिंह अपनी सेना का मनोबल किस प्रकार बढ़ाया करते थे, कवि ने उस नारे का उल्लेख किया है।
- इसमें वीररस है।
- इसकी भाषा में ओजगुण है।
- इसमें अनुप्रास तथा पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्त संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
कवि ने भारतीयों को किस प्रकार उदबोधित किया है?
उत्तर:
कवि ने गुरु गोविन्द सिंह का गुणगान करते हुए भारतीयों को उद्बोधित किया है कि वे आलस्य भाव को छोड़कर देश को स्वतंत्र कराने के लिए शत्रुओं से भिड़ जाएँ।
प्रश्न (ii)
गुरु गोविंद सिंह ने क्या नारा लगाया था?
उत्तर:
गुरु गोविन्द सिंह ने नारा लगाया था कि सवा-सवा लाख पर एक को . चढ़ाऊँगा; अर्थात् उन्होंने कहा था कि उनकी सेना का एक-एक सिपाही शत्रु की सेना के संवा लाख सिपाहिया के बराध है। वह शत्रुओं की सेना के सिपाहियों को मारकर ही मरेगा। “सवा लाख से एक लड़ाऊँ तब गोविन्द सिंह नाम कहाऊँ।”
प्रश्न (iii)
किन लोगों की वीरता का गुणगान आज तक किया जाता है?
उत्तर:
सिन्धु नदी के किनारे रहने वाले लोगों की वीरता का गुणगान आज तक किया जाता है।
काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि ने गुरु गोविन्द सिंह का गुणगान करते हुए भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए तैयार होने के लिए उद्बोधित किया है। देश की परंपरा का उल्लेख करके भारतीयों को जगाने का प्रयास किया है। गोविन्द सिंह अपनी सेना का मनोबल किस प्रकार बढ़ाया करते थे, कवि ने उनके उस नारे का भी उल्लेख किया है।
प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
कवि ने भारत के अतीत का गौरवमय चित्रण किया है। वह भारतीयों को जागरण का संदेशा दे रहे हैं। ‘गान गाए’, ‘चतुरंग चमू’ में अनुप्रास अलंकार है। सवा-सवा में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। भाषा ओजगुण संपन्न और तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। काव्यांश में वीररस है।
प्रश्न 2.
किसने सुनाया यह
वीर-जन-मोहन अति
मोदन अति दुर्जय संग्राम-राग,
फागका खेला रण
बारहों महीनों में?
शेरों की माँद में
आया है आज स्यार
जागो फिर एक बार! (Page 41)
शब्दार्थ:
- वीर-जन-मोहन – वीरों को मोहित करना।
- दुर्जय – जिसे जीतना कठिन है।
- संग्राम राग – युद्ध का गीत।
- फाग – होली।
- माँद – घर।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘जागो फिर एक बार’ से उद्धृत है। भारतवासियों को उद्बोधित करते हुए कवि उन्हें अतीत काल के वीरों की शौर्य गाथा को सुना रहा है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि वीर जनों को मोहित कर लेने वाला यह राग किसने सुनाया अर्थात् ‘सवा-सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा’ का नारा गोविन्द सिंह का दिया हुआ है जिसे सुनकर वीर उत्साह में झूम उठते थे। वे वीर रणभूमि में इस राग में झूमते हुए दुर्जय हो जाते थे; अर्थात् शत्रु उन पर विजय नहीं पा सकते थे। गुरु गोविन्द सिंह एवं उनके योद्धा इस प्रकार बारह महीने रणभूमि में खून की होली खेला करते थे। गुरु गोविन्द सिंह की परम्परा वाले शेर आज भी हैं, किन्तु आज शेरों की माँद में स्यार (अंग्रेज) घुस आया है। इस स्यार को मारने के लिए हे भारतीय वीरो! तुम जाओ और शत्रु का सफाया करो।
विशेष:
- यहाँ पर कवि ने भारतीयों में रणोन्माद भरने की चेष्टा की है, ताकि ये अंग्रेजों के खिलाफ जमकर युद्ध कर सकें।
- इसमें अनुप्रास अलंकार है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
वीरजनों को मोहित करने वाले किस राग की ओर कवि का संकेत है?
उत्तर:
वीरजनों को मोहित करने वाले उस राग की ओर कवि का संकेत है जिसे गुरु गोविन्द सिंह ने सुनाया कि ‘सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँ’ इसे सुनकर वीर उत्साह में झूम उठते थे।
प्रश्न (ii)
कवि ने किसे शेर और स्यार कहा है?
उत्तर:
कवि ने भारतीयों को शेर और अंग्रेजों को सियार कहा है। इन सियारों को मार भगाने के लिए भारतीय शेरो! तुम जागो और शत्रु का सफाया कर दो।
काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि भारतीयों को उद्बोधित करने के लिए अतीतकाल के वीरों की वीरता का गुणगान कर रहा है। वह कहता है कि गुरु गोविन्द सिंह बारह महीने रणभूमि में खून की होली खेलते थे। भारतीय वीरो! उनसे प्रेरणा लेकर शत्रुओं को मार भगाओ। स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जाग उठो।
प्रश्न (ii)
प्रस्तुत काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने भारतीयों में रणोन्माद भरने की चेष्टा की है ताकि वे स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध कर सकें। ‘माँद में’ अनुप्रास अलंकार है। भाषा ओजस्वी तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। वीर रस है। शेर भारतीयों का, माँद भारत का और स्यार अंग्रेजों का प्रतीक है। छंदयुक्त कविता में लय-तुक नहीं है।
प्रश्न 3.
सत् श्री अकाल,
भाल-अनल धक-धक् कर जला,
भस्म हो गया था काल
तीनों गुण ताप त्रय,
अभय हो गये थे तुम
मृत्युंजय व्योमकेश के समान,
अमृत सन्तान! तीव्र
भेदकर सप्तावरण-मरण-लोक,
शोकहारी! पहुँचे थे वहाँ
जहाँ आसन है सहस्रार
जागो फिर एक बार! (Page 41)
शब्दार्थ:
- अनल – आग, तेज।
- भाल – माथा।
- ताप त्रय – तीन प्रकार के दुःख-मानसिक, शारीरिक और आत्मिक।
- अभय – निडर।
- मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले, भगवान शिव।
- सप्तावरण – सात आवरण, सात चक्र।
- मरण-लोक – मृत्यु लोक।
- शोकहारी – दुख दूर करने वाले।
- सहस्रार – हठयोग के अनुसार छः चक्रों को पार कर मस्तिष्क में रहने वाला सातवाँ चक्र जहाँ रस टपकता है, ब्रह्मलोक।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘जागो फिर एक बार’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने बताया है कि भारत का अतीत गौरवमय है। इसी सन्दर्भ में वह भारतीयों को जागरण का संदेश दे रहा है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि जब गुरु,गोविन्द सिंह सत श्री अकाल का उच्चारण करते हुए युद्धभूमि में पहुँचते थे तो उनके मस्तक से आग उगलने लगती थी, यह आग सबको जला डालने के लिए धधक उठती थी। इस आग में काल, तीनों प्रकार के गुण (सत, रज और तम) तथा तीन प्रकार के ताप (दैविक, भौतिक तथा आध्यात्मिक कष्ट) जलकर भस्म हो गए। हे भारतवासियो! ऐसी दशा में तुम शिवजी की सन्तान के समान हो गए थे।
अभयदान मिल जाने से तुम अमर हो गए थे। ऐसी अवस्था में तुम संसार के सात आवरणों को भेदकर उस स्थान पर जा पहुँचे थे, जिसे सहन दल कमल का आसन कहा जा सकता है; अर्थात् योग सिद्धि के द्वारा तुमने ब्रह्म . रंध्र की अवस्था को पा लिया है। अब एक बार फिर जागो! और शत्रुओं का सफाया करो।
विशेष:
1. सहन दल कमल का संबंध हठयोग की साधना से है। इसके अनुसार माना जाता है कि कुंडलिनी छः चक्रों में से निकलकर सातवें चक्र में प्रवेश करती है, जिसे सहस्रदल कमल कहा जाता है। कुंडलिनी के इस चक्र में पहुँचकर वहाँ पर एक रस टपकता है जिसे पीकर साधना पूरी हो जाती और उसे मुक्ति मिल जाती है।
2. कवि वीर सेनानी गुरु गोविन्द सिंह और योग साधना के द्वारा सिद्धि पाने वाले भारतीयों को लक्ष्य कर नए मूल्यों को पाने की प्रेरणा दे रहा है।
3. इसमें अनुप्रास तथा पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
तीन गुण और तापत्रय कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
सत, रज और तम तीन गुण हैं तथा दैविक, भौतिक और आध्यात्मिक तापत्रय हैं।
प्रश्न (ii)
भारतवासी अमर कैसे हो गए थे?
उत्तर:
जब तीनों गुण और तापत्रय जलकर भस्म हो गए, तो भारतवासी ऐसी स्थिति में शिवजी की संतान के समान हो गए थे और अभयदान मिलने के कारण अमर हो गए थे।
प्रश्न (iii)
भारतीयों ने किस स्थान को प्राप्त कर लिया था?
उत्तर:
भारतीयों ने संसार के सात आवरणों को भेदकर उस आसन को प्राप्त कर लिया था जिसे सहस्र दल कमल का आसन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में भारतीयों ने योगसिद्धि के द्वारा ब्रह्म रन्ध्र की अवस्था को पा लिया है।
प्रश्न 4.
सिंही की गोद से
छीनता रे शिशु कौन?
मौन भी क्या रहती वह
रहते प्राण? रे अजान!
एक मेषमाता ही
रहती है निर्निमेष –
दुर्बल वह –
छिनती संतान जब
जन्मपर अपने अभिशप्त
तप्त आँसू बहाती है –
किन्तु क्या,
योग्य जन जीता है,
पश्चिम की उक्ति नहीं –
गीता है, गीता है –
स्मरण करो बार-बार –
जागो फिर एक बार! (Page 41)
शब्दार्थ:
- अजान – अनजान।
- मेषमाता – भेड़ की माता।
- निर्मिमेष – चुपचाप देखना।
- दुर्बल – कमजोर।
- अभिशप्त – शाप से सताए हुए।
- तप्त – गर्म।
- जन – आदमी।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘जामो फिर एक बार’ से उद्धृत है। कवि भारतीयों को उद्बोधित करते हुए कहते हैं कि राष्ट्र विपत्ति में पड़ा हुआ है, तुम उसकी सन्तान हो। अतः उसका निवारण करने के लिए उठो।
व्याख्या:
कवि कहता है कि क्या कभी तुमने सिंह की गोद से उसके बच्चे को छीनते हुए देखा है। यदि कोई उसके बच्चे को छीनने का प्रयत्न करे तो क्या उस बच्चे की माता प्राण रहते चुप रहती है? अर्थात् वह इतनी जोर से दहाड़ती है कि उसके बच्चे को उठाने वाले हाथ अपने आप ही पीछे हट जाते हैं। क्या तुम इस बात से अनजान हो? एक भेड़ की माता ही ऐसी होती है वह अपने बच्चे को उठाने वाले व्यक्ति को चुपचाप देखती रह जाती है क्योंकि वह कमजोर है।
उसकी सन्तान जब उससे छीनी जाती है, तब अपने जन्म पर दुःखी होकर आँसू बहाती रह जाती है। लेकिन क्या कभी कोई अपनी रक्षा में समर्थ व्यक्ति भी इस प्रकार आँसू बहाता रह सकता है। इस संसार में योग्य व्यक्ति ही जीता है यह पश्चिम की ही उक्ति नही हैं, अपितु हमारी गीता का भी यही उपदेश है। इन बातों को बार-बार याद करो और अपना आलस्य भाव को छोड़ देश की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक बार जाग जाओ और शत्रुओं को मार डालो या मारकर भगा दो।
विशेष:
- यहाँ पर कवि ने सिंहनी और मेषमाता का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है कि यदि अपनी स्वतंत्रता को छिनता देखकर तुम लड़ने-सरने को तैयार हो जाते हो, तो शेर हो अन्यथा भेड़ हो जिसकी नियति में कटना है।
- गीता से सतत कर्म करने की शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा दी गई है।
- इसमें अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश तथा उदाहरण अलंकार हैं।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
सिंहनी और मेषमाता में क्या अंतर है?
उत्तर:
सिंहनी शक्तिशाली होती है और मेषमाता दुर्बल होती है। सिंहनी के बच्चे को जब कोई छीनने या उठाने का प्रयास करता है, तो वह चुप नहीं रहती, अपितु, क्रोधित होकर इतने जोर से दहाड़ती है कि बच्चे को उठाने वाले हाथ अपने आप पीछे हट जाते हैं जबकि मेषमाता अपने बच्चे को उठाते हुए देखकर भी चुपचाप रहती है। वह कुछ नहीं करती, केवल आँसू बहाती रह जाती है।
प्रश्न (ii)
इस संसार में कैसा व्यक्ति जीता है?
उत्तर:
इस संसार में योग्य, समर्थ व्यक्ति ही जीता है। यह पश्चिम की उक्ति ही नहीं, हमारी गीता का भी यही उपदेश है।
काव्यांश पर सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
यहाँ कवि ने सिंहनी और मेषमाता का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है कि यदि अपनी स्वतंत्रता को छीनता देखकर भी यदि तुम लड़ने-मरने को तैयार हो जाते हो तो शेर हो अन्यथा भेड़ हो जिसकी नियति में डरना है। तुम्हें स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना चाहिए।
शिल्प-सौंदर्य:
उदाहरण अलंकार है। ‘मेषमाता’, ‘अपने अभिशप्त’, ‘जन जीता’ में अनुप्रास अलंकार है। गीता है, गीता है और बार-बार में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। ओजमयी भाषा है। वीररस है। प्रयोगवादी कविता है।
प्रश्न 5.
पशु नहीं, वीर तुम,
समर-शूर कूर नहीं,
काल-चक्र में हो दबे
आज तुम राजकुँवर!
समर सरताज! पर, क्या है,
सब माया है-माया है,
मुक्त हो सदा ही तुम,
बाधा-विहीन-बंध-छंद ज्यों,
डूबे आनंद में सच्चिदानंद रूप। (Page 41)
शब्दार्थ:
- पशु – जानवर।
- समर-शूर – योद्धा।
- क्रूर – अत्याचारी।
- समर सरताज – युद्ध में विजयी।
- बाधा विहीन – बिना किसी रुकावट के।
- सच्चिदानंद – भगवान।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सूयकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘जागो फिर एक बार’ से लिया गया है। इस कविता में देशवासियों को उद्बोधित करते हुए कवि कहता है कि एक बार जाग जाओ और देश पर घिरी हुई विपत्तियों को दूर करो।
व्याख्या:
कवि कहता है कि यदि तुम कृतज्ञ होकर अपने देश को पराधीनता से मुक्त नहीं कर सके तो तुम पशु के तुल्य हो, वीर नहीं। तुम तो युद्ध वीर या योद्धा हो, अत्याचारी नहीं। यह ठीक है कि हे राजकुमार, तुम कालचक्र में दवे हुए हो, किन्तु यह क्यों भूल जाते हो कि तुमने युद्ध में हमेशा विजय प्राप्त की है। पर वह क्या कहते हो कि यह सब छल या छलावा मात्र है। तुम इसी प्रकार स्वतंत्र हो जैसे आज कविता में छंद मुक्त कविता की स्थिति है। तुम सच्चिदानंद भगवान् के रूप या अंश हो और आज अपने काल्पनिक आनंद में इवे हा हो।
विशेष:
- यहाँ कवि भारतवासियों को याद दिलाता है कि उन्होंने अनेक युद्ध जीते हैं और वे युद्धभूमि में विजयी रहे हैं। इसलिए उनको आज भी युद्ध करना चाहिए।
- इसमें अनुप्रास तथा पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
कवि ने यह क्यों कहा कि ‘पशु नहीं, वीर तुम’।
उत्तर:
कवि ने यह इसलिए कहा कि तुम भारतीय कृतज्ञ होकर भी अपने देश को पराधीनता से मुक्त नहीं कर सके तो तुम पशु के तुल्य हो, वीर नहीं। कवि ने यह भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करने के लिए कहा है।
प्रश्न (ii)
कवि ने भारतीयों को उद्बोधित करने के लिए क्या-क्या कहा है?
उत्तर:
कवि ने भारतीयों को उद्बोधित करने के लिए वीर, समर-शूर, राजकुंवर, समर सरताज, कालचक्र में दबे हुए, स्वतंत्र, सच्चिदानंद आदि कहा है।
काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य:
कवि ने यहाँ भारतीय को उद्बोधित करने के लिए उन्हें याद दिलाया है कि उन्होंने अनेक युद्ध जीते हैं। वे वीर हैं। स्वतंत्र, स्वच्छंद औसच्चिदानंद के अंश हैं। उन्हें आज भी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए युद्ध करके विजय प्राप्त करनी चाहिए। समर-शूर, समर सरताज, वाधाविहीन वंध में अनुप्रास अलंकार है। ‘माया है, माया है’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। भारतीयों के लिए अनेक विशेषणों का प्रयोग किया गया है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त आजमयी खड़ी बोली है। प्रयोगवादी कविता है।
प्रश्न 6.
महामंत्र ऋषियों का
अणुओं परमाणुओं में फूंका हुआ –
“तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्”
है नश्वर यह दीन भाव,
कायरता, कामपरता,
ब्रह्म हो तुम,
पद-रज भर भी है नहीं पूरा यह विश्व-भार
जागो फिर एक बार!
शब्दार्थ:
- नश्वर – नाश हो जाने वाला।
- दीन भाव – दैन्य भाव।
- कायरता – डरपोकपन।
- पद-रज – भर-पैरों की धूल।
- विश्व-भर – संसार का बोझ।
- तप्त – गर्म।
- जन – आदमी।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता ‘जागो फिर एक बार’ से लिया गया है। कवि भारतवासियों से बार-बार एक ही बात कह रहा है कि उनको जाग जाना चाहिए तथा अपनी सोई हुई वीरता को जगा लेना चाहिए। ताकि वे देश पर आई विपत्ति को दूर कर सकें।
व्याख्या:
कवि कहता है कि हमारे भारतीय ऋषियों से सदा ही यह महामंत्र हर अणु और परमाणु में फूंका है कि तुम महान् हो, तुम सदा से महान् हो । यह शरीर नाशवान् है और इसके साथ ही यह दीनता दिखाना, कायरतापूर्ण व्यवहार करना तथा काम भावना में प्रवृत्त रहना आदि भी स्थायी नहीं हैं, बल्कि शीघ्र ही नष्ट हो जाने वाले भाव हैं। तुम ब्रह्म के रूप हो। इसलिए तुम भी ब्रह्म हो और सारे संसार का भार तुम्हारे चरणों की धूल के बराबर भी नहीं है। तुम उठो और अपनी शक्ति पहचानो तथा उसके अनुरूप ही कार्य करो। और शत्रुओं को पराजित कर उन्हें अपने घर से बाहर निकालो।
विशेष:
- यहाँ पर भारतीय ऋषियों का मंत्र ‘मैं ही ईश्वर हूँ’ के बारे में वह भारतीयों को याद दिलाना चाहता है। वह उनको प्रेरित करता है कि उनके द्वारा किया जाने वाला कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
- इसमें अनुप्रास अलंकार है।
- इसमें भाषा में ओजगुण है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्त संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
ऋषियों ने कौन-सा महामंत्र फूंका है?
उत्तर:
भारतीय ऋषियों ने सदा यह महामंत्र फूंका है कि अणु और परमाणु में ‘तुम भारतीय महान् हो, सदा से महान् हो। यह शरीर नश्वर है, तुम अमर हो।
प्रश्न (ii)
कवि ने भारतीयों का उद्बोधन क्यों किया है?
उत्तर:
कवि ने भारतीयों का उद्बोधन इसलिए किया है ताकि वे आलस्य को त्यागकर उठें और अपनी शक्ति को पहचारकर, स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करें।
काव्यांश पर सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि भारतीयों को जगाने के लिए उद्बोधित करता है कि उन्हें जाग जाना चाहिए तथा. अपनी सोई हुई वीरता को पहचानकर देश पर आई विपत्ति को दूर करने के लिए संघर्ष करना चाहिए। भारतीय ऋषियों के महामंत्र का उल्लेख करते हुए कवि ने कहा कि यह शरीर नश्वर है, परंतु तुम अमर हो। तुम्हारे लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
प्रश्न (ii)
प्रस्तुत काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
महामंत्र, कायरता, कामपरता में अनुप्रास अलंकार है। विश्व-भार में रूपक अलंकार है। तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। भाषा में ओजगुण है। वीररस है। प्रयोगवादी कविता है।