MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग NCERT प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बीटी (Bt) आविष के रवे कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाये जाते हैं, लेकिन जीवाणु स्वयं को नहीं मारते क्योंकि
(क) जीवाणु आविष के प्रति प्रतिरोधी होते हैं
(ख) आविष अपरिपक्व हैं।
(ग) आविष (Toxin) निष्क्रिय होता है
(घ) आविष जीवाणु की विशेषथैली में मिलता है।
उत्तर
(ग) आविष (Toxin) निष्क्रिय होता है।

प्रश्न 2.
पारजीनी जीवाणु क्या है ? किसी ऐक उदाहरण द्वारा सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर
पारजीनी जीवाणु (Transgenic Bacteria)-ऐसे बैक्टीरिया (जीवाणु) जिनके डी.एन.ए. में परिचालन द्वारा एक अतिरिक्त (बाहरी) जीन व्यवस्थित होता है जो अपना लक्षण व्यक्त करता है, इसे पारजीनी जीवाणु कहते हैं।

उदाहरण-ई. कोलाई (E.coli) बैक्टीरिया एक पारजीनी जीवाणु है जो मधुमेह (डायबिटीज) रोग के निदान के लिए इन्सुलिन (Insulin) को उत्पन्न करता है। इन्सुलिन अणु दो पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं का बना होता है-A श्रृंखला (A chain) तथा B श्रृंखला (B chain) जो आपस में डाइ-सल्फाइड बंधों द्वारा जुड़ी होती हैं। इन्सुलिन की दोनों शृंखलाओं का जैव संश्लेषण (Biosynthesis) एकल पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं प्राक्इन्सुलिन (Proinsulin) के रूप में होता है।

मानव सहित स्तनधारियों में इन्सुलिन प्राक् -हॉर्मोन (Pro-hormone) संश्लेषित होता है जिसमें एक अतिरिक्त फैलाव होता है जिसे पेप्टाइड C(Peptide-C) कहते हैं । यह ‘सी’ पेप्टाइड परिपक्व इन्सुलिन में नहीं होता है, जो परिपक्वता के दौरान इन्सुलिन से अलग हो जाता है। सन् 1983 में एली लिली नामक एक अमेरिकी कम्पनी ने दो DNAअनुक्रमों को तैयार किया जो मानव इन्सुलिन की श्रृंखला A और B के अनुरूप होते हैं, जिसे इश्चेरिचिया कोलाई (E.coli) के प्लास्मिड में प्रवेश कराकर इन्सुलिन का उत्पादन किया। इन अलग-अलग निर्मित श्रृंखलाओं में A और B को निकालकर डाइसल्फाइड बन्ध बनाकर आपस में संयोजित कर मानव इन्सुलिन का निर्माण किया जाता है।

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प्रश्न 3.
आनुवंशिक रूपान्तरित फसलों के उत्पादन के लाभ व हानि का तुलनात्मक विभेद कीजिये ?
उत्तर
आनुवंशिक रूपान्तरित फसलों के उत्पादन के लाभ (Advantages of Production of Genetically Modified (GM) crops)
जैव प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके कई पादपों में लाभप्रद गुणों का निवेश किया जाता है। जैव प्रौद्योगिकी से विकसित आनुवंशिकता रूपान्तरित फसलों के लाभप्रद गुण अग्रलिखित हैं

  • इस प्रकार के फसलों में पोषण गुणवत्ता में सुधार (Improvement in Nutritional Quality) हुआ है, जैसे-अधिक उत्पादन, अच्छे प्रोटीन : टक तथा अच्छे आवश्यक गुणों जैसे-गेहूँ की अच्छी बेकिंग गुणवत्ता तथा जौ की अच्छी माल्टिंग गुणवत्ता आदि का विकास इस प्रकार की फसलों में हुआ है।
  • लवण एवं सूखा सहिष्णुता-इस प्रकार की फसलें अजैव प्रतिबलों (Abiotic stresses) जैसे– ठण्डा, सूखा, लवण, ताप आदि के प्रति अधिक सहिष्णु (Tolerant) होते हैं।
  • इस प्रकार की फसलें रासायनिक पीड़क नाशकों पर कम निर्भर करती है।
  • इस प्रकार की फसलें कटाई के पश्चात् होने वाले नुकसान को कम करती है।
  • इस प्रकार की फसलें ऐसे पादपों के विकास में सहायक है जिनसे वैकल्पिक पदार्थों (Pharmaceuticals) की आपूर्ति भी की जाती है।

आनुवंशिक रूपान्तरित फसलों के उत्पादन से हानि (Disadvantages of Production of Genetically Modified Crops) आनुवंशिक रूपान्तरित फसलों से कुछ हानियाँ भी होती है जो निम्न हैं

  • इस प्रकार की कुछ फसलों में बीज उत्पन्न करने की शक्ति नहीं होती जिससे प्रत्येक वर्ष किसान को नये बीज खरीदने पड़ते हैं।
  • छोटे किसान प्रत्येक बार इन फसलों को नहीं उगा सकते क्योंकि ये फसलें बहुत महँगी पड़ती है।
  • इस प्रकार की फसलों से लोगों में एलर्जी उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है।

प्रश्न 4.
क्राई प्रोटीन्स क्या है ? उस जीव का नाम बताइए जो इसे पैदा करता है ? मनुष्य अपने फायदे के लिये इस प्रोटीन को कैसे उपयोग में लाते हैं ?
उत्तर
जीव विष जिस जीन द्वारा कूटबद्ध होते हैं, उसे क्राई (Cry) कहते हैं। क्राई प्रोटीन क्रिस्टलीय प्रोटीन्स (Crystalline proteins) का एक वर्ग है। बैसीलस थूरीनजिएन्सिस जीवाणु की कुछ प्रजातियाँ क्राई प्रोटीन्स का निर्माण करती है। यह प्रोटीन फसल पादपों को कीट पीड़कों (Insect pests) के प्रति प्रतिरोधी बनाती है। ये कई प्रकार की होती है। उदाहरण के लिये, जो प्रोटीन्स जीन क्राई I ए सी (Cry I AC) व क्राई II ए बी (Cry II A B) द्वारा कूटबद्ध होते हैं वे कपास के मुकुल कृमि (Bud worm) को नियंत्रित करते हैं। जबकि क्राई I ए बी (Cry IA B) मक्का छेदक (Maize borer) को नियंत्रित करता है। ये प्रोटीन कई प्रकार के कीटों की प्रजातियों के लिये विष (Toxic) है लेकिन मनुष्य के लिये हानिकारक नहीं है।

प्रश्न 5.
जीन चिकित्सा क्या है ? एडीनोसिन डिएमिनेज (ए. डी. ए.) की कमी का उदाहरण देते हुए इसका सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर
जीन चिकित्सा (Gene Therapy)-जीन चिकित्सा में उन विधियों का सहयोग लिया जाता है जिनके द्वारा किसी बच्चे या भ्रूण में चिन्हित किये गये जीन दोषों का सुधार किया जाता है। उसमें रोग के उपचार के लिये जीनों को व्यक्ति की कोशिकाओं या ऊतकों में प्रवेश कराया जाता है। आनुवंशिक दोष वाली कोशिकाओं के उपचार के लिये सामान्य जीन को व्यक्ति या भ्रूण में स्थानान्तरित करते हैं जो निष्क्रिय जीन की क्षतिपूर्ति कर उसके कार्यों को सम्पन्न करते हैं।

जीन चिकित्सा का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1990 में एक चार वर्षीय बालिका में एडीनोसिन डिएमिनेज (Adenosine deaminase) की कमी को दूर करने के लिये किया गया था। यह एन्जाइम प्रतिरक्षा तंत्र के कार्य के लिए अति आवश्यक होता है। एडीनोसिन डिएमिनेज (ADA) से संबंधित जीन में गड़बड़ी होने के कारण घातक सम्बद्ध प्रतिरक्षा न्यूनता (Severe combined Immuno Deficiency SCID) रोग उत्पन्न होता है ।। इस प्रकार के रोगी में अक्रियाशील T- लिम्फोसाइट्स होती है। इसके कारण प्रतिरक्षा तंत्र रोगजनकों से लड़ने की क्षमता नहीं होती है।

जीन चिकित्सा में सर्वप्रथम रोगी के शरीर के रक्त से लसीकाणु को निकालकर शरीर के बाहर संवर्धित किया जाता है। सक्रिय ADA का CDNA लसीकाणु में प्रवेश कराकर अन्त में रोगी के शरीर में समाकलित कर दिया जाता है। ये कोशिकाएं मृतप्राय होती है इसलिये आनुवंशिकत: निर्मित लसीकाणुओं को समय-समय पर रोगी के शरीर से अलग करने की आवश्यकता होती है। यदि मज्जा कोशिकाओं से विलगित
अच्छे जीनों को प्रारंभिक भ्रूणीय अवस्था की कोशिकाओं से उत्पादित ADA में प्रवेश करा दिया जाये तो यह एक स्थाई उपचार हो सकता है।

प्रश्न 6.
ई. कोलाई जैसे जीवाणु में मानव जीन की क्लोनिंग एवं अभिव्यक्ति के प्रायोगिक चरणों का आरेखीय निरूपण प्रस्तुत कीजिए
उत्तर
पुनर्योगज डीएनए तकनीक (Re combinant DNA Technology)-

पुनर्योगज DNA प्राप्त करने के लिए तीन विधियाँ प्रयुक्त की
(अ) DNA की दो श्रृंखलाओं के अंतिम छोर पर नई DNA श्रृंखलाएँ जोड़कर-यदि हम एक DNA के सिरे पर कुछ क्षारक (जैसे – TTTTT) जोड़ दें, तथा दूसरे DNA के सिरे पर इसके संयुग्मी क्षारक (AAAAAA) जोड़ दें और फिर इन दोनों प्रकार के DNA को मिलायें, तो नई लड़ियाँ आपस में H-bond बनाकर दो भिन्न DNA अणुओं को संयुक्त कर देंगी। इस कार्य के लिए विशेष एंजाइम का उपयोग किया जाता है जिसे डी.एन.ए. ‘ए’ DNA ‘A’ टर्मिनल ट्रांसफरेज (Terminal Transferase) कहते हैं। अनजुड़े स्थानों को डी.एन.ए. लाइगेज (DNA Ligase) नामक एंजाइम द्वारा भर देते हैं।

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(ब) नियंत्रण एंजाइमों की सहायता से (With the help of Restriction Enzymes) –
इस विधि में संयुग्मी क्षारकों के बीच हाइड्रोजन बंध बनाकर संकरित DNA का निर्माण करते हैं। परन्तु इस विधि में एक विशेष एंजाइम, नियंत्रण एंजाइम (Restriction Enzymes) का उपयोग करते हैं। इस प्रकार के लगभग 100 एंजाइम अब उपलब्ध है। ये एंजाइम चाकू की तरह कार्य करते हैं तथा DNA श्रृंखला को विशिष्ट स्थानों पर इस प्रकार से काट देते हैं कि वांछित जीनों वाले खंड प्राप्त हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, ई. कोलाई से ईको आर.आई. (Eco RI) नामक नियंत्रण एंजाइम पृथक् किया गया है। यह DNA अणु में क्षारकों के निम्न क्रम को पहचान कर उसे G तथा A के मध्य काट देता है|
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भिन्न-भिन्न स्रोतों से प्राप्त दो DNA के टुकड़ों को मिला दिया जाये तो संयुग्मी बेस आपस में हाइड्रोजन आबंध बनाकर द्विकुंडलित रचना बना लेते हैं। जो स्थान बिना जुड़े रहते हैं, उन्हें DNA लाइगेज की सहायता से जोड़ लिया जाता है, जैसा कि पहली विधि में किया गया था। स्पष्ट है कि Eco तथा DNA Ligase की सहायता से विभिन्न जीवों के जीनों को संयुक्त कराके संकरित जीन तैयार किये जा सकते हैं। संकरित जीन में दोनों ही जीवों के गुण उपस्थित होंगे। यहाँ तक कि ऐसे जीव, जिनमें कोई समानता नहीं है (हाथी और मनुष्य, चूहा और बंदर, टमाटर और आम) इत्यादि। यही नहीं पौधों और जंतुओं के बीच भी संकरण की संभावना बढ़ गई है।

(स) क्लोनिंग (Cloning)—
यह विधि सबसे अधिक सरल तथा उपयोगी सिद्ध हुई है। आप जानते हैं कि कोशिकाओं में DNA का प्रतिकृतिकरण होता रहता है। परन्तु यह भी तभी होता है, जब स्वयं जीन इसका आदेश देता है। कोशिका में इन ‘प्रतिकृतिकरण जीनों’ की संख्या बहुत कम होती है। जैसे, कुछ जीवाणुओं के गुणसूत्र में 300-500 तक जीन होते हैं, परन्तु ‘प्रतिकृतिकरण जीन’ केवल एक ही होता है। इस जीन की एक विशेषता यह भी है कि यदि इसे मूल DNA से अलग करके किसी दूसरे DNA के साथ जोड़ दिया जाये तो यह उसकी प्रतिकृति करने लगता है। जीवाणुओं के प्लाज्मिड (Plasmid) में भी यह जीन उपस्थित होता है। यही कारण है कि जिस जीवाणु कोशिकाओं में प्लाज्मिड होता है, वे तेजी से गुणन करती है।
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शरीर में प्रत्येक पदार्थ के संश्लेषण के लिए कोई निश्चित जीन उत्तरदायी होता है। यदि इस विशिष्ट जीन के साथ प्लाज्मिड के साथ पहले बताई विधियों द्वारा संकरित करा दिया जाये और इस संकरित DNA को पुनः जीवाणु की कोशिका में स्थापित करके उपयुक्त संवर्धन माध्यम में उगने दिया जाये, तो जीवाणु में वह जीन उसी पदार्थ का संश्लेषण करता है जो कि वह मूल शरीर में करता था। इस समस्त प्रक्रिया को क्लोनिंग (Cloning) कहते हैं। पोषी जीवाणु के लिए ई. कोलाई का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 7.
तेल के रसायनशास्त्र तथाr-DNA तकनीक जिसके बारे में आपको जितना भी ज्ञान प्राप्त है, उसके आधार पर बीजों से तेल हाइड्रोकार्बन हटाने की कोई एक विधि सुझाझा ?
उत्तर
बीजों से तेल हटाने के लिए जैव प्रौद्योगिकी की आण्विक जैव तकनीक का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 8.
इन्टरनेट से पता लगाइए कि गोल्डन राइस (गोल्डन धान ) क्या है ?
उत्तर
“गोल्डन राइस” चावल (ओराइजा सटाइवा) की एक किस्म है जो जैव प्रौद्योगिकी द्वारा विकसित की गई है।

प्रश्न 9.
क्या हमारे रुधिर में प्रोटिओजेज तथा न्यूक्लिएजेज है ?
उत्तर
नहीं।

प्रश्न 10.
इन्टरनेट से पता लगाइए कि मुखीय सक्रिय औषध प्रोटीन को किस प्रकार बनायेंगे ? इस कार्य में आने वाली प्रमख समस्याओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर
प्रोटीन की संरचना तथा कार्यों के अध्ययन के लिए मास-स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक पर आधारित पेप्टाइड-एमाइड-ड्यूटीरियम परिवर्तन तकनीक का अध्ययन किया जाता है तथा प्रोब उप-अणुक प्रोटीन संचालक की क्षमता का अध्ययन किया जाता है। यह विधि अत्यधिक श्रम व समय लेने वाली है। इस विधि में एमाइड के पृथक्करण का अध्ययन किया जाता है। ड्यूटीरियम एक्सचेंज मास स्पेक्ट्रोस्कोपी (DXMS) के द्वारा बन्ध का पूर्ण होना एवं एकल एमाइड (अमीनो अम्ल) पृथक्करण तीव्रता से सिद्ध होता है।

उपर्युक्त तकनीक से अत्यन्त कम मात्रा में उपस्थित पदार्थ में तथा लम्बे प्रोटीन पर सरलतापूर्वक कार्य किया जाता है। रिसेप्टर-लिगेन्ड युग्म पर जो जीवित कोशिका के अन्दर या कोशिका पर उपस्थित होते हैं, को शुद्धता के बिना अध्ययन किया जा सकता है। प्रोटीन रिसेप्टर की झिल्लियों का इन विट्रो विश्लेषण किया जाता है। इसकी मुख्य कठिनाई यह है कि इसके द्वारा कैंसर रोग हो जाता है।

जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
गेहूँ है एक
(a) फल
(b) बीज
(c) भ्रूण
(d) ग्लूम।
उत्तर
(b) बीज

प्रश्न 2.
कॉल्चीसीन निम्न में से कौन-सा प्रभाव डालता है
(a) D.N.A. द्विगुणन
(b) गुणसूत्रों का द्विगुणन
(c) स्पिण्डिल तन्तुओं का बनना
(d) मध्य पटलिका के बनने में अवरोधन
उत्तर
(b) गुणसूत्रों का द्विगुणन

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प्रश्न 3.
वह पौधा जिसमें बीज बनता है फिर भी वर्धी प्रजनन द्वारा उगाया जाता है
(a) आलू
(b) नीम
(c) आम
(d) सेवन्ती।
उत्तर
(a) आलू

प्रश्न 4.
मानव निर्मित अन्न है
(a) ट्रिटिकम
(b) ट्रिटिकेल
(c) पाइसम
(d) गन्ना।
उत्तर
(b) ट्रिटिकेल

प्रश्न 5.
सोनेरा 64 और लारोजा 64A किस पादप की प्रजातियाँ हैं
(a) गेहूँ
(b) धान
(c) मटर
(d) मक्का
उत्तर
(a) गेहूँ

प्रश्न 6.
अगुणित नर पौधे किसके संवर्धन से तैयार किये जा सकते हैं
(a) पुतन्तु
(b) परागकण
(c) पुंकेसर
(d) पुमंग।
उत्तर
(b) परागकण

प्रश्न 7.
संकरण के समय फूल की कली से पुंकेसरों को हटाने की क्रिया कहलाती है
(a) कृप्स करवाना
(b) स्वनिषेचन
(c) विपुंसन
(d) टोपपिन
उत्तर
(c) विपुंसन

प्रश्न 8.
बीज बुआई निर्भर करती है
(a) तापमान पर
(b) प्रकाश अवधि पर
(c) भूमि की नमी पर
(d) उपर्युक्त सभी पर।
उत्तर
(d) उपर्युक्त सभी पर।

प्रश्न 9.
संकर ज्यादातर जनक से ओजस्वी होते हैं क्योंकि
(a) समयुग्मजता
(b) संकर ओज
(c) जनक ज्यादातर कमजोर होते हैं
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर
(b) संकर ओज

प्रश्न 10.
Ti प्लाज्मिड जो आनुवंशिक इंजीनियरिंग में प्रयुक्त होता है, प्राप्त होता है
(a) इश्चेरिचिया कोलाई से
(b) बैसीलस थूरिनजिएन्सिस से
(c) एग्रोबैक्टीरियम राइजोजीन्स से
(d) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएन्स से।
उत्तर
(d) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएन्स से।

प्रश्न 11.
Bt टॉक्सिन है
(a) अंत: कोशिकीय लिपिड
(b) अंत: कोशिकीय क्रिस्टलित प्रोटीन
(c) बाह्य कोशिकीय क्रिस्टलित प्रोटीन
(d) लिपिड।
उत्तर
(c) बाह्य कोशिकीय क्रिस्टलित प्रोटीन

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प्रश्न 12.
बैसीलस थूरिनजिएन्सिस (Bt) विभेद अपूर्व कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है
(a) बायोमेटलर्जिक तकनीक
(b) बायोइन्सेक्टिसाइड्स पौधे
(c) जैव उर्वरक
(d) बायोमिनरेलाइजेशन प्रक्रम।
उत्तर
(b) बायोइन्सेक्टिसाइड्स पौधे

प्रश्न 13.
भारतीय पौधों में विदेशी DNA स्थानान्तरण में सामान्यतः प्रयोग की जाती है
(a) ट्राइकोडर्मा हार्जीएनम
(b) मेलोइडोगॉन इन्काग्नीटा
(c) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएन्स
(d) पेनीसिलीयम एक्सपेन्सम
उत्तर
(c) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएन्स

प्रश्न 14.
बायोपाइरेसी सम्बन्धित है
(a) जैव अणु तथा जीन्स की खोज से
(b) परम्परागत ज्ञान से
(c) जैव अनुसंधान से
(d) उपरोक्त सभी से।
उत्तर
(c) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएन्स

प्रश्न 15.
सुनहरे चावल में कौन-सा विटामिन प्रचुर होता है
(a) विटामिन A
(b) विटामिन B
(c) विटामिन C
(d) विटामिन
उत्तर
(a) विटामिन A

2.  रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. देश के जैव संसाधनों की चोरी, डकैती तथा गैर कानूनी दोहन को ………….. कहते हैं।
2. जैविक पदार्थों के प्रयोग के लिए……………. एक प्रशासकीय आज्ञापत्र (Official licence) है।
3. जीवित जीवधारियों द्वारा उत्पन्न यौगिक ………….. है।
4. ……………. मानकों का एक समूह है जिसका प्रयोग हमारे कार्यों तथा जैविक संसार के बीच संबंधों को नियंत्रित करने में होता है।
5. उत्पाद की पुनर्घाप्ति, इसका शोधन तथा क्रियाविधि ………….. क्रिया कहलाती है।
उत्तर

  1. बायोपाइरेसी
  2. जैव एकाधिकार (बायोपेटेंट)
  3. जैव अणु
  4. जैव आचार संहिता
  5. डाउन स्ट्रीम।

3. सही जोड़ी बनाइए

‘A’ – ‘B’

1. एण्टीबायोटिक्स – (a) प्रति विषाणु प्रोटीन
2 ह्यूमूलिन – (b) जैव अणु तथा जीन की खोज
3. बायोपाइरेसी – (c) एस. वाक्समेन
4. इन्टरफेरॉन – (d) मानव इंसुलिन।
उत्तर
1. (c), 2. (d), 3. (b), 4. (a)

4. एक शब्द में उत्तर दीजिए

1. प्रथम ट्रांसजेनिक फसल का नाम लिखिए।
2. Bt-कपास में स्थानान्तरित कीटरोधी प्रोटीन का नाम क्या है ?
3. मानवनिर्मित इन्सुलिन का नाम क्या है ?
4. Nif जीन किस सूक्ष्मजीव में पाए जाते हैं ?
उत्तर

  1. तम्बाकू
  2. Cry प्रोटीन
  3. ह्यूम्यूलिन
  4. राइजोबियम।

जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वे जीन जिनके जीन्स हस्तकौशल द्वारा परिवर्तित किये जा चुके हैं, उन्हें क्या कहते हैं ?
उत्तर
आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीव (Genetically modified organisms = GMO)

प्रश्न 2.
जैव प्रौद्योगिकी के सहयोग से तैयार की गई पीड़क फसलों के नाम लिखिए। उत्तर-बी.टी. कपास, बी.टी मक्का, धान, टमाटर, आलू व सोयाबीन। प्रश्न 3. बी.टी. विष (Bt toxin) प्रोटीन किसके द्वारा उत्पन्न
होता है ?
उत्तर
बैसीलस थूरीनजिएंसिस (Bacillus thuringiensis) द्वारा।

प्रश्न 4.
बी.टी. विष किस जीन द्वारा कूटबद्ध होता है ?
उत्तर
बी.टी. विष क्राई (Cry) जीन्स द्वारा कूटबद्ध होता है।

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प्रश्न 5.
RNi का पूर्ण नाम लिखिए।
उत्तर
आर एन ए अंतरक्षेप (RNA interference)!

प्रश्न 6.
आनुवंशिक रोग से ग्रसित शिशु के रोगोपचार के लिये उपयुक्त चिकित्सा व्यवस्था का नाम लिखिए।
उत्तर
जीन चिकित्सा।

प्रश्न 7.
उस जीवाणु का वैज्ञानिक नाम लिखिये, जिसमें Bt जीव विष निर्मित होता है।
उत्तर
बैसीलस थूरीनजिएंसिस।

जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
GM खाद्य क्या है ?
अथवा
जी.एम. फसल को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर
आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित फसलों से उत्पादित खाद्य पदार्थों को GM खाद्य कहते हैं। यह GM

  • GM खाद्य पदार्थों में प्रति जैविक प्रतिरोधी जीन पाये जाते हैं।
  • इनमें ट्रांसजीवों (Transgenes) द्वारा उत्पादित प्रोटीन पाई जाती है। उदा. Cry-प्रोटीन । यह प्रोटीन कीट प्रतिरोधी किस्मों में पाई जाती है।
  • इन खाद्य पदार्थों में प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीनों के द्वारा उत्पादित एन्जाइम पाये जाते हैं जो कि पुनर्योजन DNA तकनीक में जीन ट्रांसफर के समय काम आते हैं।

प्रमुख GM फसल, खाद्य एवं फल

  • मक्का (Maize)-आनुवंशिक रूप से रूपांतरित जीनों का समावेश किया गया है जिनमें पीड़कों (Pests) एवं रोगों के लिए प्रतिरोधकता पायी जाती है।
  • फ्लौर-सौर टमाटर (Flaur Saur Tomato)-यह प्रथम GM खाद्य है । इन टमाटरों में कैनामाइसिन (Kanamycin) जैसे प्रतिजैविक के लिए प्रतिरोधकता पाई जाती है।
  • रेप ऑयल सीड (Rape Oil Seed)–यह एक नया पादप है जिनमें बास्टा (Basta) नाम खरपतवारनाशी के प्रति प्रतिरोधकता पाई जाती है।

प्रश्न 2.
GM फसलों के लाभ लिखिए।
उत्तर
GM फसलों के लाभ

  • GM फसलें, फसली पौधों में वांछित फिनोटाइपिक लक्षण उत्पन्न करती हैं।
  • Transgenesis द्वारा GM पौधों में विशिष्ट प्रकार की प्रोटीन उत्पन्न करने वाले जीवों को प्रविष्ट कराया जाता है। ये फसलें बाद में उस प्रोटीन का उत्पादन करती हैं।
  • इनमें विशिष्ट जैव-रासायनिक पथ वाले पौधों का संश्लेषण होता है।
  • इन फसलों में पूर्व से उपस्थित जीन की अभिव्यक्ति को रोकने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 3.
आनुवंशिक रूप से रूपांतरित खाद्य क्या है ? कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर
ऐसी फसलें जिनमें अन्य प्रजातियों के उपयोगी जीन पाये जाते हैं तथा जिन्हें आनुवंशिक अभियांत्रिकी की सहायता से दूसरे में प्रविष्ट कराया जाता है उसे आनुवंशिक रूप से रूपांतरित (Genetically modified) या ट्रांसजेनिक फसलें कहते हैं । इन फसलों को ट्रांसजिनेसिस विधि द्वारा पुनर्योगज DNA तकनीक की सहायता से तैयार किया जाता है।
उदाहरण-

  • फ्लौर सौर टमाटर-यह प्रथम GM खाद्य है। इनमें कैनामाइसिन जैसे प्रतिजैविक के लिए प्रतिरोधकता पायी जाती है।
  • रेप ऑयल सीड-यह नया GM पादप है जिनमें बास्टा नामक खरपतवारनाशी के प्रति प्रतिरोधकता होती है।

प्रश्न 4.
दोषमुक्त कृषि किसे कहते हैं ?
उत्तर
कृषि की वह विधि जो कि दीर्घकालीन, टिकाऊ एवं हानि रहित होती है उसे दोषमुक्त कृषि कहते हैं । हरित क्रांति एवं उसके बाद के दौर में अधिक उत्पादन हेतु नई किस्मों के उपयोग, सिंचित क्षेत्र में वृद्धि, उर्वरकों के अति उपयोग, कीटनाशकों तथा शाकनाशी रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से फसल उत्पादन में तो अत्यधिक वृद्धि हुई, परन्तु भूमि की गिरती उर्वरता, खाद्य व जल में प्रदूषण, विभिन्न रोगों व विकृतियों के रूप में सामने आ रही है।

पौधों व मनुष्य में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधी क्षमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। खाद्य व जल जनित बीमारियाँ मानव एवं पशु स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं । यह सब आधुनिक व्यावसायिक खेती के कारण हो रहा है, अतः एक ऐसी कृषि प्रणाली को विकसित करने की आवश्यकता हो गई है जो उपर्युक्त दोषों से मुक्त हों। ऐसी कृषि को दोषमुक्त या दीर्घकालीन कृषि कहा जाता है । दोषमुक्त कृषि का सबसे अच्छा उदाहरण कार्बनिक खेती (Organic agriculture) है।

प्रश्न 5.
कार्बनिक खेती क्या है ? इसका क्या आधार होता है ?
उत्तर
कार्बनिक खेती (Organic agriculture)-खेती कृषि उत्पादन की वह पद्धति है जिसमें संश्लेषित उर्वरक, कीटनाशक, निंदानाशक, पौध वृद्धि नियामक, पशुजनित पदार्थ, आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित जीवाणु का उपयोग नहीं किया जाता है। इस विधि में भूमि की उर्वरता तथा उत्पादकता बढ़ाने के लिए जैविक खाद, फसल चक्र तथा कीटों तथा खरपतवारों को नष्ट करने के लिए जैव पीड़क नाशकों का उपयोग किया जाता
है। इसके अन्तर्गत पर्यावरण को क्षति पहुँचाये बिना उर्वरकों एवं कृषि रसायनों का कम-से-कम प्रयोग करते हुए जैविक आधारित उर्वरकों, खादों एवं जैव पीड़कनाशकों का अधिकाधिक उपयोग करके उत्पादन में वृद्धि की जाती है।

खेती के आधार (Basic of organic agriculture)-

  • कार्बनिक खेती भूमि, पौधे, पशु व मानव तथा वैश्विक परिस्थितियों को सुधारने व उसे टिकाऊ बनाने पर आधारित है।
  • कार्बनिक उन खेती उन जैव पारिस्थितिक तंत्रों एवं जैव चक्रों पर आधारित है जिसमें उन्हीं जैव तंत्रों व जैव पारिस्थितिक तंत्रों का उपयोग किया जाता है तथा उन्हें बढ़ाया जाता है।
  • कार्बनिक खेती वातावरण एवं जीवन की संभावनाओं को प्रदूषण मुक्त बनाने पर आधारित है।
  • कार्बनिक खेती वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों के स्वास्थ्य एवं वातावरण को बचाने के लिए वांछित सावधानियों एवं आवश्यक उपायों पर आधारित है।

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प्रश्न 6.
जीन मैनीपुलेशन या जेनेटिक इन्जीनियरिंग को समझाइए।
अथवा
आनुवंशिक अभियांत्रिकी किसे कहते हैं ? उसका मानव जीवन में महत्व लिखिए।
उत्तर
वैज्ञानिकों द्वारा DNA या आनुवंशिक पदार्थ की संरचना में आवश्यकतानुसार हेर-फेर करने को जीन मैनीपुलेशन या जेनेटिक इन्जीनियरिंग कहते हैं । आनुवंशिक पदार्थ का कृत्रिम संश्लेषण दो अलग-अलग जीनों के DNA खण्डों को जोड़कर नया DNA बनाना, DNA की मरम्मत, DNA से कुछ न्यूक्लियोटाइड को हटाकर या जोड़कर या विस्थापित करके इच्छित संरचना वाले नये DNA अणुओं का संश्लेषण करके जीन क्रिया का नियन्त्रण करना तथा जीवधारियों में इच्छित गुणों का समावेश करना जेनेटिक इन्जीनियरिंग का मुख्य उद्देश्य है। आनुवंशिकी की यह शाखा अभी अपने शैशव काल में है।

उम्मीद की जाती है कि इस विधि के द्वारा आनुवंशिक वैज्ञानिक जीन की संरचना में सुधार करके अथवा विकृत जीन को सामान्य जीन द्वारा विस्थापित करके आनुवंशिक रोगों से मानव जाति को मुक्ति दिला सकेंगे अथवा मानव द्वारा उपयोग में आने वाले पादपों व जन्तुओं की नस्लों का सुधार कर सकेंगे। आनुवंशिक पदार्थ के संगठन में हेर-फेर, DNA की संरचना का ज्ञान एक अत्याधुनिक तकनीक के विकास के कारण सम्भव हो सकता है। इनको रिकॉम्बिनेन्ट DNA तकनीकी कहते हैं।

आनुवंशिक अभियांत्रिकी का मानव जीवन में महत्व

1. औद्योगिक उपयोग-उच्च वर्गों के जीवों के विटामिन प्रतिजैविक या हॉर्मोन के जीन को कोड करके तथा इनके संश्लेषित DNA को जीवाणुओं में पुनः स्थापित करके विटामिन्स, हॉर्मोन्स आदि यौगिकों का औद्योगिक स्तर पर संश्लेषण किया जाना सम्भव हुआ है। इस विधि से मानव इन्सुलिन का Humulin नाम से जैव-संश्लेषण किया गया है।

2.चिकित्सीय उपयोग-नयी दवाइयों का जैवस्तर पर संश्लेषण तथा जीन चिकित्सा द्वारा हीमोफीलिया, फिनाइल कीटोन्यूरिया आदि वंशागत रोगों का उपचार किया जाना सम्भव हुआ है।

3. कृषि क्षेत्र में उपयोग-

  • जीवाणु अथवा नीले-हरे शैवाल से नाइट्रोजन यौगिकीकरण करने वाले जीनों का अनाज वाली फसलों में स्थानान्तरण करने हेतु प्रयोग जारी है, जिससे हमारी फसलें पर्यावरण से नाइट्रोजन का सीधा प्रयोग कर सकेंगी और हमें कृषि में कृत्रिम उर्वरक के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहेगी।
  • आनुवंशिक अभियांत्रिकी के द्वारा पौधों की नई एवं उच्च उत्पादन वाली प्रजातियों का विकास किया जाता है।
  • इसकी सहायता से उच्च गुणवत्ता एवं प्रोटीन युक्त पौधे विकसित किये जा सकते हैं।

4. जीन संरचना अभिव्यक्ति में परिवर्तन-इस तकनीक द्वारा इच्छानुसार नये-नये प्रकार के जीवों तथा वनस्पतियों का निर्माण सम्भव हो सकेगा।

प्रश्न 7.
जीन लाइब्रेरी या जीन बैंक क्या हैं ? इसे तैयार करने की विधि लिखिये ।
उत्तर
जीनोमिक लाइब्रेरी या जीन बैंक के अन्दर जीनोम खण्डों अथवा पूर्ण जीनोम को संरक्षित किया जाता है। जीनोमिक लाइब्रेरी तैयार करने के लिए कई क्रियाएँ चरण के रूप में सम्पन्न कराई जाती हैं

Isolation of m-RNA from tissue

Reverse transcriptase

c-DNA copies

Removal of m-RNA by alkali treatment

Single-stranded c-DNA

Double-stranded c-DNA with DNA polymerase forming hairpin loops

Removal of hairpin loops with Si nuclease

Double-stranded c-DNA

Insertion in vector to make library
चित्र-जीनोमिक लाइब्रेरी का निर्माण

(1) DNA खण्डों का उत्पादन।
(2) DNA खण्डों का वाहक क्लोन (प्लाज्मिड, कास्मिड या विषाणु) में प्रवेश।
(3) क्लोन्ड DNA का पोषक जीवाणु में प्रवेश। इस प्रकार प्राप्त पोषक जीवाणु जिसमें इच्छित DNA संरक्षित रहता है, को संवर्धन माध्यम में विकसित करते हैं। ऐसा करने पर जीवाणुओं की कॉलोनियाँ प्राप्त होती हैं। इन जीवाणुओं से एन्जाइम की सहायता से DNA को प्राप्त कर इन खण्डों को जीनोमिक लाइब्रेरी में संरक्षित किया जाता है।

जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिक इन्जीनियरिंग की अनुप्रयोज्यता का वर्णन कीजिए।
उत्तर
अनुप्रयोज्यता की दृष्टि से आनुवंशिक इन्जीनियरिंग हमें निम्नलिखित लाभदायक तथा हानिकारक परिणाम देती है
(A) लाभदायक प्रभाव

  • औद्योगिक उपयोग-उच्च वर्गों के जीवों के विटामिन प्रतिजैविक या हॉर्मोन के जीन का कोड करके तथा संश्लेषित DNA को जीवाणुओं में पुन:स्थापित करके विटामिन्स, हॉर्मोन्स आदि यौगिकों को औद्योगिक स्तर पर संश्लेषण किया जाना सम्भव हुआ है। इस विधि से मानव इन्सुलिन का Humulin नाम से जैव-संश्लेषण किया गया है।
  • चिकित्सीय उपयोग-नयी दवाइयों का जैव स्तर पर संश्लेषण तथा जीन चिकित्सा द्वारा हीमोफीलिया, फीनाइलकीटोन्यूरिया आदि वंशागत रोगों का उपचार किया जाना सम्भव हुआ है।
  • कृषि क्षेत्र में उपयोग-जीवाणु अथवा नीले-हरे शैवाल से नाइट्रोजन यौगिकीकरण करने वाले जीनों का अनाज वाली फसलों में स्थानान्तरण करने हेतु प्रयोग जारी है, जिससे हमारी फसलें पर्यावरण से नाइट्रोजन का सीधा प्रयोग कर सकेंगी और हमें कृषि में कृत्रिम उर्वरक के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहेगी।
  • जीन संरचना अभिव्यक्ति में परिवर्तन-इस तकनीक द्वारा इच्छानुसार नये-नये प्रकार के जीवों तथा वनस्पतियों का निर्माण सम्भव हो सकेगा।

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(B) हानिकारक प्रभाव

  • रोगाणु ऐन्टीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं।
  • आन्त्र में पाये जाने वाले जीवाणु कैन्सर कारक हो सकते हैं।
  • सामान्य वाइरस से अत्यधिक खतरनाक वाइरस का निर्माण हो सकता है।

प्रश्न 2.
फोरेंसिक विज्ञान क्या है ? फोरेंसिक विज्ञान में DNA फिंगर प्रिंटिंग की विधि समझाइए।
उत्तर
फोरेंसिक विज्ञान-फोरेंसिक विज्ञान के अन्तर्गत अपराधों की विवेचना की जाती है। आज जैव तकनीकी ने अपराधिक प्रकरणों के निपटारे में नये आयाम खोल दिये हैं। इनमें से DNA फिंगर प्रिंटिंग

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